Monday, November 2, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन लंबे समय तक डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के सीन से गायब रहने के बाद, अब जब पुनः वापस लौटे हैं, तो विनय भाटिया और विनोद बंसल के लिए वास्तव में मुसीबत बन कर ही लौटे हैं

नई दिल्ली । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन की पुनः शुरू हुई सक्रियता ने रोटरी फाउंडेशन के लिए दिए गए दान के बदले में प्वाइंट न मिलने के मामले को एक बार फिर गर्म कर दिया है, और इस स्थिति ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन/चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया है । ऐसे में, मजे की स्थिति यह बनी है कि सुरेश भसीन तो विनय भाटिया की उम्मीदवारी को मदद करने में जुटना चाहते हैं, लेकिन विनय भाटिया और उनकी उम्मीदवारी की कमान संभालने वाले विनोद बंसल उनकी मदद से बचने की कोशिश कर रहे हैं । दरअसल विनय भाटिया और विनोद बंसल जान/समझ रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट में सुरेश भसीन की जैसी बदनामी है, उसके कारण उनके साथ जुड़ने से लाभ की बजाये नुकसान ज्यादा होगा - इसलिए सुरेश भसीन से दूर रहने तथा उनको दूर रखने में ही भलाई है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच, सुरेश भसीन की बदनामी हालाँकि तभी शुरू हो गई थी, जब वह गवर्नर थे - और इसका खामियाजा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में महेश त्रिखा को तथा सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में अमित जैन को उठाना/भुगतना पड़ा था । सुरेश भसीन ने इन दोनों का खुलकर समर्थन किया था । डिस्ट्रिक्ट में हर किसी का मानना/समझना रहा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुरेश भसीन की बदनामी के चलते उनका समर्थन महेश त्रिखा और अमित जैन को भारी पड़ा 
सुरेश भसीन के लिए फजीहत की बात यह रही कि गवर्नर पद से हटने के बाद उनकी बदनामी में और इजाफा ही हुआ है । दरअसल, उनके गवर्नर-वर्ष के आखिरी दो-तीन महीनों में रोटरी फाउंडेशन के लिए जिन लोगों ने पैसे दिए, उनमें से कईयों की शिकायत रही कि उनके द्वारा दी गई रकम के बदले में मिलने वाले प्वाइंट उन्हें नहीं मिले हैं । शुरू में तो सुरेश भसीन ने शिकायतकर्ताओं को यह कहते/बताते हुए टाला कि रोटरी फाउंडेशन के लिए रकम जुटाने/जुटवाने का काम विनोद बंसल और अशोक कंतूर ने किया था और जैसे ही उन्हें इन दोनों से संबंधित डिटेल्स मिलेंगे - वह प्वाइंट्स दिलवाने का काम करवायेंगे । खास बात यह रही कि सुरेश भसीन की इस बात पर विनोद बंसल और अशोक कंतूर ने पहले तो कोई सफाई या जबाव नहीं दिया, लेकिन जब शिकायतकर्ताओं का शोर बढ़ता गया और बदनामीभरे आरोपों ने सुरेश भसीन के साथ-साथ उन्हें भी घेरे में लेना शुरू कर दिया, तब मामले से पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हुए उन्होंने कहा/बताया कि उन्होंने तो रोटरी फाउंडेशन के लिए रकम जमा करवाने के काम में सुरेश भसीन की मदद भर की थी, और हिसाब-किताब तो सुरेश भसीन के पास ही है । इस मामले में ज्यादातर शिकायतकर्ता ऐसे रोटेरियंस रहे, जिन्होंने रोटरी फाउंडेशन के लिए नकद रकम दी थी; इसलिए उन्हें डर हुआ कि उनके द्वारा दी गई रकम रोटरी फाउंडेशन में पहुँची भी कि नहीं । इस मामले में शोर-शराबा अभी चल ही रहा था कि सुरेश भसीन डिस्ट्रिक्ट और रोटरी के सीन से गायब ही हो गए । इससे पहले तो बबाल बढ़ा, लेकिन फिर मामला शांत-सा हो गया ।
सुरेश भसीन लेकिन अब जब यह बताते हुए फिर से सक्रिय हुए हैं कि कुछ व्यक्तिगत व पारिवारिक कारणों से वह पिछले कुछेक सप्ताहों से लोगों के संपर्क में नहीं रह पा रहे थे; तो फिर शांत सा पड़ा उक्त मामला भी गर्म होता लग रहा है । सुरेश भसीन ने यह कहते हुए उक्त गर्मी को राजनीतिक ट्विस्ट भी दे दिया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में प्रतिनिधित्व के लिए वह विनोद बंसल के उम्मीदवार विनय भाटिया को चुनाव जितवाने के लिए काम करेंगे । सुरेश भसीन की इस घोषणा ने विनोद बंसल और विनय भाटिया को खुश करने की बजाये डरा और दिया है । उन्हें डर हुआ है कि सुरेश भसीन की बदनामी के कारण, उनका समर्थन वास्तव में नुकसान पहुँचाने का काम ही करेगा - इसलिए वह सुरेश भसीन को अपने से दूर रखने का ही प्रयास करना चाहते हैं । उनकी समस्या लेकिन यह भी है कि वह सुरेश भसीन को दूर रखने का, और उनसे पीछा छुड़ाने का काम करें, तो कैसे करें ? विनोद बंसल को सुरेश भसीन से, रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे देने वाले लोगों को अभी प्वाइंट दिलवाने का काम करवाना है - इसलिए उनके सामने सुरेश भसीन को साथ रखने की मजबूरी भी है । इस मजबूरी को निभाते हुए उन्हें लेकिन सुरेश भसीन की बदनामी के चलते होने वाले राजनीतिक नुकसान से बचने की चुनौती से भी जूझना है । इस तरह, लंबे समय से डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के सीन से गायब रहे सुरेश भसीन अब जब पुनः वापस लौटे हैं, तो विनय भाटिया और विनोद बंसल के लिए वास्तव में मुसीबत बन कर ही लौटे हैं ।