Wednesday, May 30, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए सत्ता-समर्थकों के साथ साथ सत्ता-विरोधियों का भी समर्थन जुटा कर पारस अग्रवाल ने ऐतिहासिक जीत की तैयारी की

आगरा । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू के गवर्नर पारस अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में जिस तरह से एकतरफा समर्थन जुटाया है, उससे उन्होंने साबित किया है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने के लिए वह लीडरशिप के रहमोकरम पर निर्भर नहीं हैं । मजे की बात यह देखने में आ रही है कि पारस अग्रवाल की उम्मीदवारी को एक तरफ लीडरशिप के समर्थकों का भी समर्थन मिलता दिख रहा है, तो दूसरी तरफ लीडरशिप के विरोधियों के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले लोग भी उनकी उम्मीदवारी के समर्थन का झंडा उठाये नजर आ रहे हैं । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद को लेकर चली राजनीति में पिछले महीनों में काफी उतार-चढ़ाव रहे, जिनके चलते पारस अग्रवाल का 'खेल' कभी बनता तो कभी बिगड़ता हुआ दिखा; लेकिन हर प्रसंग व घटना को पारस अग्रवाल ने जिस चतुराई से हैंडल किया और प्रतिकूल दिखते प्रसंग को अपने हित में मोड़ने और या इस्तेमाल करने का काम किया - उसके कारण हालात फिर उनके अनुकूल होते गए । पारस अग्रवाल को अपनी मुहिम में अपने डिस्ट्रिक्ट के जितेंद्र चौहान और अशोक कपूर जैसे पूर्व गवर्नर्स की मदद तो मिली ही, साथ ही डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल का भी अप्रत्याशित सहयोग मिला । जितेंद्र चौहान ने पारस अग्रवाल की उम्मीदवारी के पक्ष में फील्डिंग जमाने का काम किया, अशोक कपूर ने लीडरशिप की तरफ से खड़ी हो सकने वाली मुश्किलों को खत्म करने में भूमिका निभाई और विनय मित्तल ने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच पारस अग्रवाल के लिए समर्थन बनाने का माहौल बनाया । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स में विनय मित्तल की तरह भले लोग हालाँकि और भी हैं, लेकिन वह राजनीति नहीं जानते/समझते - विनय मित्तल अकेले ऐसे फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, जिन्होंने अपने आचरण व व्यवहार से लोगों के बीच अपनी साख व विश्वसनीयता भी अर्जित की है, और वह राजनीतिक समीकरणों का ताना-बाना भी जोड़ लेते है; इसलिए विनय मित्तल की भूमिका ने पारस अग्रवाल के लिए मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के सत्ता-समर्थकों के साथ-साथ सत्ता-विरोधी समझे जाने वाले लोगों का भी समर्थन जुटाने का काम किया ।
मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए पारस अग्रवाल को दस में से आठ फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का समर्थन मिल जाने का दावा किया जा रहा है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के किसी उम्मीदवार को चुनाव से पहले ही घोषित रूप से इतना जोरदार समर्थन इससे पहले शायद ही कभी मिला हो - और वह भी तब जब मल्टीपल में नेताओं के बीच जोरदार घमासान मचा हो, और राजनीतिक मतभेद मनभेद की हद तक पहुँचे हुए हों और दूसरी तरफ के लोगों को दुश्मनों की तरह से देखा जा रहा हो । ऐसे माहौल में पारस अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में जो समर्थन जुटाया है, और मुकाबले को जिस तरह से एकपक्षीय बना दिया है - उसे मल्टीपल के चुनावी परिदृश्य में एक बड़ी घटना के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । कुछेक लोगों को लगता है और उनका कहना है कि हालात ने भी पारस अग्रवाल की स्थिति को मजबूत बनाने में मदद की है, जैसे डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू और डिस्ट्रिक्ट 321 डी में घटा घटनाचक्र पारस अग्रवाल के बड़ा काम आया है । यह बात कुछ हद तक सही भी है, लेकिन इसके साथ इस बात को भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि इन दोनों डिस्ट्रिक्ट्स में जो कुछ हुआ, उसका फायदा विरोधी खेमा भी उठा सकता था - बल्कि विरोधी खेमे के पास उसका फायदा उठाने का ज्यादा बढ़िया अवसर था; लेकिन अपने खिलाफ जाते अवसर को पारस अग्रवाल ने अपने साथियों/समर्थकों की मदद से जिस तरह अपने अनुकूल बना लिया, वह उनकी कुशल रणनीति का ही नतीजा है । डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में जो हुआ, उसका कुशलता के साथ इस्तेमाल करते हुए पारस अग्रवाल और उनके साथियों ने अपनी लड़ाई को सिर्फ जीता ही नहीं, बल्कि 'आसान' भी बना लिया ।
दरअसल डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू की फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वंदना निगम के कारण मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की इस बार की लड़ाई को मोलतोल की 'गंदगी' में फँसता हुआ देखा/पहचाना जा रहा था । डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस की 'नीयत' भी लपलपाती नजर आई तो माना जाने लगा कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की लड़ाई इस बार बहुत ही लूट-खसोट भरी होने जा रही है । लेकिन डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में अपने ही लालचभरे जाल में वंदना निगम जब फँस गईं, तो मल्टीपल की चुनावी राजनीति की डोर उनके हाथ से खुद ब खुद छूट गई - और फिर वीके हंस भी जब अकेले पड़ गए तो वह भी 'चुप' हो जाने के लिए मजबूर हो गए । इस तरह, डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू के घटनाचक्र ने मल्टीपल की चुनावी लड़ाई को 'गंदा' होने से बचा लिया । बाकी काम के लिए जितेंद्र चौहान की फील्डिंग, अशोक कपूर की लॉबिंग और विनय मित्तल की नफासतभरी राजनीति ने माहौल बना दिया - जिस पर पारस अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल डिस्ट्रिक्ट 321 में चेयरमैन पद के लिए समर्थन जुटाने का इतिहास रच दिया ।

Monday, May 28, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में लायंस क्लब कानपुर गैंजेस के पदाधिकारियों ने चार्टर्ड दिवस के कार्यक्रम में वंदना निगम को आमंत्रित न करके झूठ के सहारे रची गई उनकी चाल को फेल ही कर दिया है

कानपुर । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बनने' की प्रक्रिया में उलझी/फँसी वंदना निगम ने झूठ पर झूठ बोल कर लोगों को बताने/समझाने का प्रयास तो खूब किया कि लायंस इंटरनेशनल ने उनकी डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी क्लियर कर दी है, लेकिन लायंस क्लब कानपुर गैंजेस के पदाधिकारियों ने उनके झूठ को स्वीकार करने से इंकार करके उनके खेल को बिगाड़ दिया है । लायंस क्लब कानपुर गैंजेस के पदाधिकारियों ने हाल ही में हुए अपने क्लब के चार्टर्ड दिवस कार्यक्रम में वंदना निगम को आमंत्रित करने से इंकार कर दिया । लायंस क्लब कानपुर गैंजेस डिस्ट्रिक्ट का एक प्रमुख क्लब है, जिसमें आठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सदस्य हैं । वंदना निगम ने इस क्लब के चार्टर दिवस कार्यक्रम का निमंत्रण पाने के लिए प्रयास तो खूब किया, और इसके लिए कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से सिफारिश भी की/करवाई - लेकिन क्लब के पदाधिकारियों की तरफ से स्पष्ट कर दिया गया कि लायंस इंटरनेशनल के रिकॉर्ड में चूँकि उनकी कोई आधिकारिक/वैधानिक स्थिति नहीं है, इसलिए कार्यक्रम में उन्हें मंच नहीं दिया जा सकेगा; और इसलिए उचित यही होगा कि उन्हें आमंत्रित ही न किया जाए । वंदना निगम ने यह कोशिश भी की कि भले ही उन्हें मंच न दिया जाए, पर कार्यक्रम में उन्हें आमंत्रित कर लिया जाए । लायंस क्लब कानपुर गैंजेस के पदाधिकारी लेकिन इसके लिए भी राजी नहीं हुए ।
वंदना निगम को लायंस क्लब कानपुर गैंजेस के चार्टर दिवस कार्यक्रम में शामिल होना इसलिए जरूरी लगा, ताकि वह अपने द्वारा फैलाये जा रहे झूठ को लोगों के बीच सच 'बना' कर पेश कर सकें और अपने दावे को विश्वसनीय आधार दे सकें । लायंस क्लब कानपुर गैंजेस के चार्टर दिवस कार्यक्रम में शामिल होने का मौका यदि उन्हें मिल जाता, तो वह यह बताने और दावा करने की स्थिति में हो जातीं कि डिस्ट्रिक्ट के आठ पूर्व गवर्नर्स जब उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मान रहे हैं - तो इससे स्वतः ही साबित हो जाता है कि लायंस इंटरनेशनल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में उन्हें मान्यता दे दी है । वंदना निगम झूठा दावा करने के मामले में इस हद तक भी गईं हैं कि उन्होंने लोगों को बताया कि जिस किसी को उनके दावे पर भरोसा न हो, वह लायंस इंटरनेशनल की वेबसाइट पर जाकर उनका नाम डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट की सूची में देख सकता है । उनके नजदीकियों ने ही कहा/बताया है कि ऐसा झूठा दावा उन्होंने दरअसल यह सोच कर किया है कि लायंस इंटरनेशनल की वेबसाइट पर जाकर आखिर कौन उनका नाम देखने का प्रयास करेगा; और अधिकतर लोग वैसे ही उनके दावे को यह सोच कर सच मान लेंगे - कि जब वह ऐसा कह रही हैं, तो सच ही कह रही होंगी । वंदना निगम ने इस नकली कॉन्फिडेंस का सहारा लेते हुए सिर्फ अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को ही नहीं, बल्कि दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के गवर्नर्स तक को भरमाने का प्रयास किया है । कुछेक डिस्ट्रिक्ट्स के गवर्नर इलेक्ट ने इन पंक्तियों के लेखक से कहा/बताया है कि वंदना निगम की तरफ से गवर्नर इलेक्ट के रूप में उनका नाम लायंस इंटरनेशनल की वेबसाइट में चढ़ जाने की बात कही तो गई है, लेकिन लायंस इंटरनेशनल की वेबसाइट में उन्होंने गवर्नर इलेक्ट के रूप में वंदना निगम का नाम देखा नहीं है ।
वंदना निगम के लिए मुसीबत की बात दरअसल यह हुई है कि उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोग यह माने बैठे हैं कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बन सकेंगी और इस कारण से डिस्ट्रिक्ट टीम में पद पाने की इच्छा रखने वाले लोग उनसे बच रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में झमेला होने से पहले कई लोग पदाधिकारी बनने के लिए वंदना निगम से सिफारिश कर रहे थे, और पद के बदले में अच्छी-खासी रकम देने के लिए तैयार दिख रहे थे; लेकिन बदली परिस्थिति में वही लोग अब वंदना निगम से बात करना भी पसंद नहीं कर रहे हैं । लायनिज्म में डिस्ट्रिक्ट्स में जो सेटअप है, उसकी व्यवस्था के अनुसार - इन दिनों डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अपनी टीम बनाने के काम में लगा होता है और टीम में शामिल होने की इच्छा रखने वाले लोगों से मनमाने पैसे वसूल रहा होता है । वंदना निगम के नजदीकियों के अनुसार, वंदना निगम ने भी 'इन दिनों' के लिए जोरदार तैयारी की हुई थी; किस किस को क्या क्या पद देना है, और किस किस पद के ऐवज में किस किस से कितनी कितनी रकम वसूलनी है - इसका पूरा पूरा हिसाब उन्होंने लगाया हुआ था; लेकिन बदली परिस्थिति में उनका सारा गुड़ गोबर हो गया है । लोगों का कहना है कि इस स्थिति से उबरने के लिए ही उन्होंने यह झूठ फैलाया कि लायंस इंटरनेशनल ने उनका नाम गवर्नर इलेक्ट के रूप में क्लियर कर दिया है । उन्हें उम्मीद है कि इससे भ्रमित होकर लोग पद पाने के लिए उनसे सिफारिश करने लगेंगे और वह पदों के ऐवज में उनसे मनमाने दाम बसूल कर सकेंगी । लायंस क्लब कानपुर गैंजेस के पदाधिकारियों ने लेकिन चार्टर्ड दिवस के कार्यक्रम में उन्हें आमंत्रित न करके उनकी चाल को फेल ही कर दिया है । लायंस क्लब कानपुर गैंजेस चूँकि एक प्रमुख क्लब है और आठ पूर्व गवर्नर्स इसके सदस्य हैं, इसलिए इसके 'फैसले' को लोग गंभीरता से ही ले रहे हैं और वंदना निगम को भी लग रहा है कि इससे गवर्नरी की 'दुकान' सजाने की उनकी कोशिश को सचमुच धक्का लगा है ।

Saturday, May 26, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की तरफ से आयोजित हो रहे जीएसटी कॉन्क्लेव में राजेंद्र अरोड़ा को कोई भूमिका न देकर अतुल गुप्ता और पंकज पेरिवाल ने उन्हें उनकी सही 'हैसियत' बताई/दिखाई

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की पब्लिक फाइनेंस एंड गवर्नमेंट अकाउंटिंग कमेटी की तरफ से जीएसटी पर हो रहे नेशनल कॉन्क्लेव में कोई भी भूमिका पाने में असफल रहे राजेंद्र अरोड़ा कमेटी के चेयरमैन अतुल गुप्ता तथा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पंकज पेरिवाल को कोसने में लगे हैं । राजेंद्र अरोड़ा के लिए फजीहत की बात यह हुई है कि एक तरफ तो वह अपनी पहचान जीएसटी के एक बड़े एक्सपर्ट के रूप में बनाने की कोशिश कर रहे हैं, और इसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया में एक शेखचिल्लीपूर्ण हरकत यह तक की है कि अपना नाम ही 'जीएसटी सीए राजेंद्र अरोड़ा' कर लिया है - लेकिन दूसरी तरफ एक व दो जून को दिल्ली में हो रहे दो दिवसीय जीएसटी कॉन्क्लेव में उन्हें कोई भी भूमिका देने से इंकार कर दिया गया है । स्पीकर के रूप में तो उन्हें मौका नहीं ही मिला, पैनल डिस्कसन डिस्कशन तक में उन्हें शामिल करने से इंकार कर दिया गया । जिस बेचारे ने बाप/दादा की जगह जीएसटी का नाम तक अपने नाम में जोड़ लिया, उसकी इतनी बेइज्जती - और वह भी तब, जब राजेंद्र अरोड़ा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर हैं और नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल उक्त कॉन्क्लेव की आयोजक की भूमिका में है । राजेंद्र अरोड़ा ने कॉन्क्लेव ऑर्गेनाइज्ड करने वाली कमेटी के चेयरमैन अतुल गुप्ता की भी बहुत खुशामद की कि वह उन्हें कॉन्क्लेव में कोई भूमिका दे दें, और उन्होंने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पंकज पेरिवाल से भी इसके लिए सिफारिश करवाने की कोशिश की, लेकिन उनकी न तो अतुल गुप्ता ने सुनी और न पंकज पेरिवाल ने ही उनकी मदद करने में कोई दिलचस्पी ली । ऐसे समय जब कि राजेंद्र अरोड़ा तरह तरह के करतबों के जरिये लोगों को यह दिखाने/जताने का प्रयास कर रहे हैं कि वह जीएसटी के मामले में बड़े एक्सपर्ट हैं, तब दिल्ली में आयोजित हो रहे जीएसटी कॉन्क्लेव में उन्हें पूछा तक नहीं जा रहा है - इससे उनकी सारी करतबबाजी भारी फजीहत का शिकार हो रही है ।
राजेंद्र अरोड़ा अपनी इस फजीहत के लिए अतुल गुप्ता और पंकज पेरिवाल को लगातार कोस रहे हैं । उनका कहना है कि लोगों के बीच बढ़ रही उनकी लोकप्रियता से यह दोनों लोग चिढ़ रहे हैं, और उनका आगे बढ़ना इन्हें पसंद नहीं आ रहा है - इसलिए यह दोनों उन्हें किसी प्रोग्राम में महत्त्व लेने देना नहीं चाहते हैं । पंकज पेरिवाल के प्रति राजेंद्र अरोड़ा की नाराजगी कुछ ज्यादा ही सुनी/देखी जा रही है । दरअसल अभी हाल ही में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल द्वारा आयोजित एक सेमीनार में राजेंद्र अरोड़ा की स्पीकर बनने की हसरत पंकज पेरिवाल के विरोध के चलते फेल हो गई थी । जीएसटी में रिफंड प्रोसीजर्स जैसे विषय पर आयोजित सेमीनार में राजेंद्र अरोड़ा ने अपने आप को स्पीकर के रूप में घोषित कर दिया था । काउंसिल के चेयरमैन के रूप में पंकज पेरिवाल ने उनकी इस हरकत का विरोध किया । पंकज पेरिवाल ने उन्हें ध्यान दिलाया कि वह रीजनल काउंसिल में पदाधिकारी हैं, उन्हें काउंसिल के इस नियम के बारे में पता होना ही चाहिए और इसका पालन करना चाहिए कि काउंसिल का कोई पदाधिकारी सेमीनार में स्पीकर नहीं हो सकता है । राजेंद्र अरोड़ा लेकिन अपने आप को जीएसटी के एक्सपर्ट साबित करने की इतनी जल्दी में हैं कि किसी भी नियम-फियम को मानने तथा उसका पालन करने के लिए तैयार नहीं हैं । पंकज पेरिवाल की सख्ती के सामने लेकिन उनकी एक नहीं चली और सेमीनार में स्पीकर के रूप में अपने आप को हटाने के लिए उन्हें मजबूर होना पड़ा ।
राजेंद्र अरोड़ा ने पक्षपातपूर्ण मनमानी करने के घटियापने में तो लेकिन जैसे पीएचडी की हुई है; लिहाजा स्पीकर बनने का मौका उनसे छिना तो उन्होंने अपने आप को प्रोग्राम डायरेक्टर के रूप में निमंत्रण पत्र में दर्ज कर लिया । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल द्वारा आयोजित किए जाने वाले सेमिनार्स के निमंत्रण पत्रों में इससे पहले कभी प्रोग्राम डायरेक्टर का नाम नहीं गया है । वास्तव में इस तरह का कोई पद और या व्यवस्था है ही नहीं । यह सीधे सीधे काउंसिल की गतिविधियों के नाम पर अपना नाम चमकाने की फूहड़ व बेशर्म कोशिश का एक नजारा भर है । सेमीनार में इसके लिए राजेंद्र अरोड़ा की जमकर थू थू और फजीहत भी हुई, लेकिन लगता नहीं है कि इससे उन्होंने कोई सबक सीखा होगा । राजेंद्र अरोड़ा ने भले ही सबक न सीखा हो, लेकिन दिल्ली में जीएसटी पर दो दिवसीय कॉन्क्लेव ऑर्गेनाइज और होस्ट करने जा रहे अतुल गुप्ता व पंकज पेरिवाल ने राजेंद्र अरोड़ा को उनकी सही जगह दिखाने/बताने का काम जरूर कर दिया है । इससे जाहिर हो गया है कि खुद को जीएसटी के एक्सपर्ट के रूप में स्थापित करने के लिए की जा रही राजेंद्र अरोड़ा की तरह तरह की नौटंकी उनके काम आ नहीं रही है ।

Friday, May 25, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के पूर्व प्रेसीडेंट सुनील तलति द्वारा कमान संभाल लेने के बाद भी उनके बेटे अनिकेत तलति के लिए वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में पराग रावल तथा पुरुषोत्तम खंडेलवाल से आगे हो पाना संभव होगा क्या ?

अहमदाबाद । चार्टर्ड एकाउंटेंट इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अनिकेत तलति की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कमान उनके पिता और इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट सुनील तलति द्वारा संभाल लिए जाने से अहमदाबाद में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का परिदृश्य खासा दिलचस्प हो गया है । अहमदाबाद में सेंट्रल काउंसिल के लिए पराग रावल तथा पुरुषोत्तम खंडेलवाल की भी उम्मीदवारी की चर्चा है । पराग रावल ने पिछली बार भी सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ा था और पहली वरीयता में 2322 वोट के साथ 6ठे नंबर पर रहने के बावजूद वह ग्यारह विजेताओं की सूची में नहीं आ सके थे । पुरुषोत्तम खंडेलवाल ने पिछली बार रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ा था, जिसमें पहली वरीयता में 1728 वोटों के साथ वह तीसरे नंबर पर रहे थे । पिछली बार अनिकेत तलति ने भी रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ा था, और पहली वरीयता के वोटों की गिनती में 1469 वोटों के साथ वह छठे नंबर पर रहे थे । उससे पहले, अहमदाबाद ब्रांच के चुनाव में भी अनिकेत तलति की स्थिति पुरुषोत्तम खंडेलवाल की तुलना में बहुत ही पतली थी । इन तथ्यों की रोशनी में सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे तीनों उम्मीदवारों में अनिकेत तलति को तीसरे नंबर पर देखा/पहचाना जा रहा है । अनिकेत तलति के लिए यह बड़ी खतरनाक और चुनौतीपूर्ण स्थिति है । दरअसल आकलन यह किया जा रहा है कि सेंट्रल काउंसिल के लिए वह उम्मीदवार कामयाब होगा, जो अपने आप को पहले 'बाहर होने' से बचा ले सकेगा । अहमदाबाद के उम्मीदवारों को दूसरी/तीसरी वरीयता के वोट भी अहमदाबाद में ही मिलने की उम्मीद है, इसलिए अहमदाबाद के तीनों उम्मीदवारों में जो पिछड़ा हुआ रहेगा - उसके लिए मुकाबले में बने रह पाना मुश्किल क्या, असंभव ही होगा । सुनील तलति को अनिकेत तलति की उम्मीदवारी की कमान अभी से संभालने की जरूरत दरअसल इसीलिए पड़ी है, ताकि अहमदाबाद के तीन उम्मीदवारों में तीसरी समझी/पहचानी जा रही अनिकेत तलति की स्थिति को वह सुधार कर बेहतर बना सकें ।
उल्लेखनीय है कि पिछली बार, रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अनिकेत तलति की उम्मीदवारी को भी कमजोर देखा/समझा जा रहा था - लेकिन सुनील तलति जब उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने निकले, तो अनिकेत तलति की चुनावी नैय्या पार लग ही गई । पिताजी की मदद से अनिकेत तलति ने चुनाव तो जीत लिया, लेकिन अहमदाबाद ब्रांच के चुनाव में पुरुषोत्तम खंडेलवाल से पिछड़ने की जो स्थिति बनी हुई थी - वह रीजनल काउंसिल के चुनाव में भी बनी रही । एक और तथ्य पर गौर करना प्रासंगिक होगा । पिछली बार रीजनल काउंसिल के चुनाव में, इंस्टीट्यूट के तीन पूर्व प्रेसीडेंट्स के बेटा/बेटी उम्मीदवार थे - सुश्रुत चिताले, दृष्टि देसाई और अनिकेत तलति; इनमें अनिकेत तलति ही सबसे पीछे रहे । इसका एक बड़ा और प्रमुख कारण हालाँकि उनका अहमदाबाद - या मुंबई से बाहर का होना भी है । इंस्टीट्यूट के चुनाव में मुंबई के उम्मीदवारों की तुलना में मुंबई से बाहर के उम्मीदवारों के लिए मुसीबत या चुनौती अपेक्षाकृत बड़ी होती है । हालाँकि इसके बावजूद, पहले पराग रावल ने और फिर पुरुषोत्तम खंडेलवाल ने रीजनल काउंसिल में अनिकेत तलति और मुंबई के अधिकतर उम्मीदवारों की तुलना में बेहतर परफॉर्म किया ही है । पिछली से भी पिछली बार रीजनल काउंसिल के चुनाव में पराग रावल सबसे ज्यादा वोट पाकर पहले नंबर पर रहे थे । इसलिए अनिकेत तलति अहमदाबाद - या मुंबई के बाहर के होने का एक्सक्यूज नहीं ले सकते हैं । जाहिर है कि अनिकेत तलति पर दोहरा दबाव है । इस दोहरे दबाव से ही उन्हें मुक्त कराने के लिए उनके पिताजी ने अब मोर्चा संभाल लिया है ।
सुनील तलति के मोर्चा संभालने पर अनिकेत तलति की बनने वाली स्थिति को लेकर लोगों की राय लेकिन बँटी हुई है । कुछ लोगों को लगता है कि सुनील तलति के मोर्चा संभालने से अनिकेत तलति की स्थिति में सुधार होगा, लेकिन कई लोगों को लगता है कि अहमदाबाद ब्रांच तथा रीजनल काउंसिल के चुनाव में अनिकेत तलति को अपने पिता की सक्रियता से भले ही लाभ हुआ हो, लेकिन सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में चूँकि एक अलग ही केमिस्ट्री चलती है - इसलिए पिता की सक्रियता यहाँ उनके काम नहीं आने वाली है । सुनील तलति के बेटे होने की पहचान रखने तथा उनके सक्रिय समर्थन के चलते अनिकेत तलति ब्रांच और रीजनल काउंसिल के चुनाव जीतने में कामयाब भले ही हुए हों, लेकिन वह कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर सके हैं । उनके लिए मुसीबत की बात यह रही कि अहमदाबाद में ही उन्हें जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, उनसे निपट पाना ही उनके लिए मुश्किल बना रहा है । सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में उनके लिए यह चुनौती और भी बड़ी है । पहली प्राथमिकता के वोटों की गिनती में वह यदि अब की बार भी पराग रावल और पुरुषोत्तम खंडेलवाल से पीछे रह गए, तो फिर उनका जीत पाना मुश्किल क्या असंभव ही होगा । इस खतरे को जानते/पहचानते हुए ही सुनील तलति ने अनिकेत तलति के चुनाव की बागडोर अभी से संभाल ली है । सुनील तलति के सक्रिय होने से अनिकेत तलति को फायदा होगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन यह जरूर हुआ है कि अहमदाबाद में इंस्टीट्यूट का चुनावी परिदृश्य रोचक हो उठा है ।

Wednesday, May 23, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के द्वारका स्टडी सर्किल में स्पीकर का पद 'बेचने' के आरोप के चलते स्टडी सर्किल, ब्रांचेज और रीजनल काउंसिल के सेमिनार्स में उम्मीदवारों को स्पीकर बनाने का 'धंधा' एक बार फिर प्रोफेशन के लोगों के बीच चर्चा में

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के द्वारका स्टडी सर्किल में पैसे लेकर संजीव सिंघल और प्रमोद जैन को स्पीकर बनाए जाने के आरोप की इंस्टीट्यूट में शिकायत हो जाने से रीजनल काउंसिल, ब्रांचेज व स्टडी सर्किल द्वारा आयोजित कराये जाने वाले सेमिनार्स में पैसे लेकर उम्मीदवारों को स्पीकर बनाए जाने का आरोप एक बार फिर गर्माता हुआ दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट के प्रत्येक चुनाव में यह आरोप जोरशोर से उठता है, और इसके चलते हर बार यह माँग उठती है कि चुनावी वर्ष में होने वाले सेमिनार्स में उन लोगों को स्पीकर के रूप में आमंत्रित किए जाने पर रोक लगनी चाहिए, जिन्होंने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी हो । चुनाव के बाद लेकिन हर कोई इस माँग को भूल जाता है, और फिर मामला जहाँ का तहाँ ही बना रहता है । कई बार रीजनल काउंसिल, ब्रांचेज व स्टडी सर्किल के सदस्य सेमिनार्स में उम्मीदवारों को स्पीकर के रूप में बुलाये जाने का विरोध करते हैं, लेकिन सेमिनार्स के आयोजक उनकी सुनते ही नहीं हैं । लोगों का आरोप है कि उम्मीदवार आयोजकों पर तरह तरह से दबाव बना कर सेमिनार्स में अपने आपको आमंत्रित करने/करवाने के लिए 'मजबूर' कर ही लेते हैं । दरअसल उम्मीदवारों को लगता है कि सेमिनार्स में स्पीकर के रूप में शामिल होने से उन्हें लोगों तक पहुँचने का एक आसान और प्रभावी मौका मिल जाता है । वह अपनी उम्मीदवारी के प्रमोशन के लिए अपनी तरफ से मीटिंग या कार्यक्रम आयोजित करने के झँझट में पड़े, इसकी तुलना में सेमिनार्स में स्पीकर बन जाना उन्हें बढ़िया और 'सस्ता' सौदा लगता है । आरोप सुने जाते रहे हैं कि इसके लिए उम्मीदवार सेमिनार्स के आयोजकों की जेबें भी भरते हैं ।
अभी हाल ही में हुए सेमीनार में संजीव सिंघल और प्रमोद जैन को स्पीकर के रूप में आमंत्रित किए जाने को लेकर द्वारका स्टडी सर्किल ऐसे ही आरोप के घेरे में आ फँसा है । इंस्टीट्यूट को लिखे/भेजे एक शिकायती पत्र में कहा/बताया गया है कि द्वारका स्टडी सर्किल के ही कुछेक लोगों ने संयोजक रतन सिंह यादव को समझाया था कि वह सेमीनार में स्पीकर के रूप में संजीव सिंघल और प्रमोद जैन को आमंत्रित न करें, क्योंकि उससे नाहक ही स्टडी सर्किल की बदनामी होगी । उन लोगों का कहना था कि बेशक संजीव सिंघल और प्रमोद जैन अपने अपने विषय के एक्सपर्ट हैं, लेकिन चूँकि उन्होंने सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी अपनी उम्मीदवारी घोषित की हुई है - इसलिए सेमीनार में स्पीकर के रूप में उन्हें बुलाने से विवाद होगा और इस विवाद से बचने के लिए स्पीकर के रूपमें ऐसे लोग आमंत्रित किये जाएँ जो इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में सीधे सीधे हिस्सेदार नहीं हैं । शिकायती पत्र के अनुसार, लेकिन रतन सिंह यादव ने किसी की नहीं सुनी और मनमाने तरीके से संजीव सिंघल व प्रमोद जैन को स्पीकर के रूप में आमंत्रित करने के अपने फैसले पर वह अड़े रहे । मजे की बात यह रही कि सेमीनार में शामिल होने आये लोगों ने भी रतन सिंह यादव से कहा कि स्पीकर बनाये जाने के ऐवज में तुमने जब संजीव सिंघल और प्रमोद जैन से पैसे लिए ही हैं, तो सेमीनार फीस के रूप में प्रत्येक से छह सौ रुपए क्यों ले रहे हो ? कार्यक्रम के दौरान होने वाली इस तरह की चर्चाओं को रतन सिंह यादव ने अनसुना करने में ही भलाई देखी और कार्यक्रम के दौरान इस मामले में वह लगातार चुप ही बने रहे ।
कार्यक्रम के दौरान होने वाली चर्चाओं को तो रतन सिंह यादव ने अनसुना कर दिया, लेकिन इस संबंध में इंस्टीट्यूट में की गई शिकायत से मामला गर्म हो गया है । शिकायत में माँग की गई है कि द्वारका स्टडी सर्किल की जिम्मेदारी रतन सिंह यादव से वापस ली जाए और यह सुनिश्चित किया जाये कि आगे किसी सेमीनार में किसी उम्मीदवार को स्पीकर के रूप में नहीं बुलाया जायेगा । रतन सिंह यादव के प्रति-आरोपों ने भी मामले को गर्माने में मदद की । उनकी तरफ से कहा/सुना जा रहा है कि सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी घोषित करने वाले कुछेक उम्मीदवार उनके पीछे पड़े हुए थे कि वह उन्हें स्पीकर बनाएँ, और चूँकि उन्हें स्पीकर बनने का मौका नहीं मिला - इसलिए वही लोग अब इस तरह के आरोप लगा कर उन्हें बदनाम करने का काम कर रहे हैं । उनकी इस सफाई से लोगों के बीच यह चर्चा और छिड़ गई है कि रतन सिंह यादव ने स्पीकर बनने के लिए उनके पीछे पड़े उम्मीदवारों को स्पीकर न बना कर संजीव सिंघल व प्रमोद जैन को ही स्पीकर आखिर क्यों बनाया ? लोग यह भी माँग कर रहे हैं कि रतन सिंह यादव को उन उम्मीदवारों के नाम भी बताना चाहिए, जो सेमीनार में स्पीकर बनने के लिए उनके पीछे पड़े थे । द्वारका स्टडी सर्किल के सेमीनार को लेकर छिड़े विवाद के संदर्भ में कई लोगों का यह भी मानना/कहना है कि यह सिर्फ इसी स्टडी सर्किल की बात नहीं है, कई स्टडी सर्किल और ब्रांचेज के पदाधिकारी तथा रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी तक उम्मीदवारों को स्पीकर बनाने के 'धंधे' में लगे हुए हैं, और इंस्टीट्यूट को इस धंधे को रोकने के लिए जल्दी ही कुछ नियम बनाने चाहिएँ ।

Tuesday, May 22, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल की मिलीभगत से बनी कंपनी 'लायंस को-ऑर्डीनेशन कमेटी ऑफ इंडिया एसोसिएशन' पर लगने वाले आरोपों से बचने/बचाने के लिए लायंस पदाधिकारी केंद्रीय मंत्रियों से नजदीकी बना और 'दिखा' रहे हैं क्या ?

नई दिल्ली । लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के केंद्रीय मंत्रियों से मिलने और सरकार के साथ मिल कर काम करने की इच्छा जाहिर करने के इधर जो प्रयास हुए हैं, उन्हें लेकर आरोपपूर्ण चर्चाओं के मुखर होने से पदाधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में आ गई है । दरअसल हैरान/परेशान करने वाला संयोग यह बना है कि पिछले दिनों ही लायंस को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया के एक कंपनी बन जाने, और इस कंपनी के जरिए भारतीय कानूनों की अवहेलना करने के आरोप भी चर्चा में आए हैं । लोगों का आरोप है कि कंपनी के जरिए बड़े पदाधिकारी जो घपलेबाजियाँ कर रहे हैं, उनसे बचने के लिए ही वह केंद्रीय मंत्रियों के यहाँ हाजिरी बजा रहे हैं । पदाधिकारियों को विश्वास है कि कंपनी के कामकाज को लेकर होने वाली शिकायतों पर कार्रवाई होने की नौबत यदि आई तो मंत्रियों के साथ बनने वाली नजदीकी उन्हें बचाने के काम आएगी । उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों लगभग चुपचाप तरीके से लायंस इंटरनेशनल के भारतीय सेगमेंट में एक परिवर्तन कर लिया गया, जिसके तहत 'लायंस को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया' को 'लायंस को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया एसोसिएशन' नाम की एक कंपनी में परिवर्तित कर दिया गया । 18 मई 2016 को गठित की गई इस कंपनी ने एक जुलाई 2017 से अपने काम की विधिवत शुरुआत की । कंपनी एक्ट 2013 की धारा 8(1) के तहत रजिस्टर्ड इस कंपनी में कहने को तो पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर्स, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स व फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स आदि भी सदस्य हैं, लेकिन गंभीर आरोप यह है कि कई पूर्व डायरेक्टर्स तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स व फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को पता भी नहीं है कि लायंस को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया अब एक कंपनी बन गई है ।
'लायंस को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया एसोसिएशन' नाम से बनी कंपनी का लायंस इंटरनेशनल के साथ किस तरह का संबंध होगा, इस बात को समझने के लिए इन पंक्तियों के लेखक ने कई वरिष्ठ पूर्व गवर्नर्स तथा कुछेक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से बात की - लेकिन कोई भी उस संबंध को स्पष्ट नहीं कर सका । किसी को यह भी नहीं पता है कि यह कंपनी बनाने के लिए लायंस इंटरनेशनल की अनुमति ली भी गई है, या भारत के कुछेक पदाधिकारियों ने मनमाने तरीके से यह कंपनी बना ली है । यह सवाल इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि 'लायंस' शब्द और उसका चिन्ह इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ लायंस क्लब्स की 'संपत्ति' है, जिसे अन्य कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता । भारत में कंपनी के गठन के लिए यदि अनुमति नहीं ली गई है, तो 'लायंस' शब्द का तथा उसके चिन्ह का इस्तेमाल गंभीर अपराध की श्रेणी में आयेगा; और यदि अनुमति ली गई है तो उसका स्वरूप क्या है - यह स्पष्ट करना चाहिए । इसके अलावा, बड़ी समस्या खर्चों के स्वरूप को लेकर भी है । दरअसल अभी तक सभी खर्चे और ड्यूज व ग्रांट्स के लेन-देन लायन इंटरनेशनल के नाम पर होते थे, जिसमें देश के नियम-कानूनों की सीमित भूमिका होती थी; किंतु अब जब एक भारतीय कंपनी बन गई है, तो सभी खर्चे व लेन-देन देश के नियमों-कानूनों के अनुसार ही करने होंगे । कंपनी के प्रारूप के कारण भी कई कामों और उनके खर्चों को लेकर असमंजस व आरोप हैं । दरअसल, कंपनी एक्ट 2013 की धारा 8(1) के तहत गठित कंपनी समाज सेवा और उपकार के कामों में ही पैसे खर्च कर सकती है; लेकिन 'लायंस को-ऑर्डीनेशन कमेटी ऑफ इंडिया एसोसिएशन' ने अभी तक के अपने छोटे से कार्यकाल में ही ऐसे खर्चे कर डाले हैं, जो कंपनी एक्ट तथा इनकम टैक्स एक्ट की धाराओं का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करते हैं ।
लोगों के बीच यह सवाल भी उठ रहे हैं कि यह कंपनी बनाने की जरूरत आखिर पड़ी ही क्यों ? इस बारे में जो गंभीर आरोप चर्चा में हैं वह यह कि देश के कुछेक प्रमुख लायन नेता लायनिज्म के नाम पर देश में इकट्ठे होने वाले तथा लायंस इंटरनेशनल से आने वाले पैसों पर अपना अधिकार रखना/जमाना चाहते हैं और उसमें हेराफेरी करके अपनी अपनी जेबें भरना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने कंपनी बना ली है । इसका नजारा अभी पिछले दिनों ही मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को मिली एक करोड़ 31 लाख रुपए की ग्रांट के मामले में देखने को मिला । मल्टीपल ड्रिस्ट्रिक्ट 321 को मिली ग्रांट की रकम 'लायंस को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया एसोसिएशन' के पदाधिकारियों ने हड़पने की कोशिश की, जिसमें असफल होने पर उक्त ग्रांट को वापस करने के लिए दबाव बनाया गया और जिसके तहत मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के चेयरमैन विनय गर्ग को उनके पद से हटाने तक के लिए षड्यंत्र रचा गया - जो मामला अब अदालत में विचाराधीन है । चर्चा है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के लिए स्वीकृत हुई ग्रांट का पैसा अब 'लायंस को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया एसोसिएशन' नाम की कंपनी को दिया जायेगा । एक भारतीय कंपनी को वह पैसा कैसे मिलेगा और कैसे खर्च हुआ दिखाया जायेगा - इसे लेकर तमाम सवाल हो रहे हैं, लेकिन कंपनी बनाने के पीछे के मुख्य प्रेरणास्रोत इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल मुँह पर पट्टी बाँधे हुए हैं, और किसी भी सवाल का जबाव नहीं दे रहे हैं । 'लायंस को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया एसोसिएशन' नाम की कंपनी के स्वरूप और उसके अभी तक के कामकाज को लेकर सवाल उठाते और शिकायत करते एक पत्र का ड्राफ्ट 'रचनात्मक संकल्प' को प्राप्त हुआ है, जिससे आभास मिलता है कि इस कंपनी के कामकाज को लेकर आरोपों का दौर एक बड़ा गंभीर रूप लेने की तैयारी कर रहा है । समझा जाता है कि कंपनी के गठन से जुड़े नेताओं और पदाधिकारियों ने भी इस खतरे को भाँप लिया है, और इससे बचने के लिए ही उन्होंने केंद्रीय मंत्रियों से नजदीकी बनाना और 'दिखाना' शुरू कर दिया है । उन्हें लगता है कि केंद्रीय मंत्रियों के साथ उनकी नजदीकी बनेगी और 'दिखेगी' तो कंपनी विभाग तथा इनकम टैक्स विभाग के पदाधिकारी कंपनी के खिलाफ मिलने वाली शिकायतों पर कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं कर सकेंगे ।  
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'लायंस को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया एसोसिएशन' नाम की कंपनी के स्वरूप और उसके अभी तक के कामकाज को लेकर सवाल उठाते और शिकायत करते एक पत्र का ड्राफ्ट, जो  'रचनात्मक संकल्प' को प्राप्त हुआ है :

The Registrar of Companies,
Chennai.
Reg : ​Lions co-ordination Committee of India Association, a Company registered u/s. 8  of the Companies  Act, 2013 with CIN No. U74999TN2016NPL110455.

Dear Sir,
I am a Member of the International Association of Lions Clubs have to address you as under.
I, as also several thousand members of the Lions Clubs functioning  in India have received a demand  for compulsory payments in the form of a fee to a Company  “Lions Co-ordination Committee of India Association”.
The Company “Lions Co-ordination Committee of India Association”,  (hereinafter referred to as the said Company for the sake of brevity), is purported to be a  Company  incorporated u/s 8 of the Companies Act, 2013, as a “Not for profit Company,  not having share capital”. I am not a member of the Company, the several thousand members of Lions clubs from whom contributions are demanded are also not members of the said Company.
The Company  is using a registered name and mark viz. “LIONS”.  The name and mark “LIONS” belongs to the International Association of Lions  Clubs and  is a name and mark that has been registered by the Association Internationally. The use of the name  and mark is strictly monitored.  I verily believe that the Company  has not sought or obtained the consent of the International Association of Lions Clubs for the use of the name and mark “LIONS”, the Company  therefore formed using the name and mark “LIONS” is illegal and is required to be struck off  the register.
By definition a Section 8 Company is one which is incorporated for carrying out activities directed towards the poor and needy and/or improvement of the environment, the company as can be seen from its memorandum is a “LOBBYIST” formed as unambiguously stated in the Memorandum of Association to promote the chances of certain Directors/Members of the company to get elected to hold International offices in the Lions  Clubs International.
I have accessed the data of the said company. The Directors Report of the Company  for the period 18/5/2016 upto 31/3/2017 claims  that the Company  has allegedly provided better facilities to the students of “Great Vidya Mandir” by organizing a programme for  free distribution of stationary items to the students.  The report also claims that the Company  is working under the project name “Relieving Hunger” AIM to Fight Hunger in india  in which the Company  claims to have spent altogether a grand sum of Rs. 1,21,900/- out of a total expenditure of  Rs.46,97,920/-. Firstly the existence of both these beneficiaries are doubtful, secondly the details of the expenses are not forthcoming and finally the activity does not appear to fall within the objects clause of the memorandum of the Company.
It is pertinent to note that  the amount spent on alleged doubtful charity is miniscule as compared to the amounts spent on non charity activities.  It is also significant  that the Balance Sheet of the Company for the year ended 31st March, 2017 shows that the Company  has spent a sum of Rs. 2,95,727/- “on all India Directory”,   sum of Rs. 1,08,202/- on “training programme”, and Rs. 3,70,219/- as “meeting expenses”.  It can, therefore, be clearly seen that this is a Company  incorporated for unabashed self aggrandizement and not for charitable purposes.
The balance sheet also shows that a sum of Rs. 19,93,984/- has been spent under what is  termed as “International Convention Bid Account” and Rs.13,69,585/- as “International Convention expenses”.  Firstly the expenditure towards “International Convention Bid” and/or “International Conventional expenses” are not charitable or one of the objects of the  Company, the expenditure therefore is ultra vires the objects of the Company  and not a charitable activity  the same is therefore required to be reimbursed to the Company  by the Directors of the Company, this is more so  because the income of the Company  is from public contributions, collected  by coercive methods from members of Lions Clubs who are not members of the company.
Your Honour will be aware that Section 12 of the Income Tax Act has been amended and the changes contemplated by the Income Tax Department in the amendment  is to curb Associations and Clubs, claiming exemption under Section 12  of the Income Tax Act,  indulging activities  which are for the benefit of the members and not for society in general and/or not Charitable  in nature. It is pertinent that the Income Tax Department through the Office of the Commissioner of Income Tax (Exemption) had called upon the Company  to prove  how the activities carried out by the Company  is authorised by the Memorandum and also to prove with necessary evidence that the activities carried out by the Company  are charitable in nature.  It is therefore clear that the activities, the Company  are already under scrutiny by the  Taxation Authorities and the Company  under the scanner of the revenue authorities. The company has spent a meager sum of of Rs 200,000/- to hoodwink the taxation authorities to get Income tax exemption under section 12 of I T Act. The expenditure in the nature of Charity is not the so called Objects as explained to the general membership of Lion Members from whom the contributions are sought.
It is undoubtedly clear from the expenses shown and the query raised by the Revenue authorities  that the company is formed for purposes that far from being charitable are for the enhancement of the status of the persons operating the company.
The Company  is soliciting contributions from the members of the LIONS Clubs in India, who are  not members of the company and are in no way concerned or connected with the overt and/or covert objects of the company, the amounts solicited are in the nature of a compulsory fee that is levied upon the members of the Lions  clubs, such demand for fees from members of Lions  Clubs is  ultra vires the constitution  of the “Lions Clubs International”.  The Company  is therefore carrying out  activities that are illegal and in violation of the constitution of another duly registered  organization,  further the contributions solicited by the company are from the public which is in violation of the provisions of the Companies Act.
The Company  is directing its Members and Directors  who are senior  functionaries and officers of Lions  Clubs situated all over India to disfranchise those members of the Lions Clubs who do not pay the  compulsorily imposed fees by the Company, denial of the right to vote to any member of a legally formed organization that has its own constitution, is a clear violation of the fundamental  rights  granted to every Indian citizen.  The Company   is therefore carrying  out activities that are violative of the Constitution of India.
The expenditure of the company  on certain objects being not approved  by the Income Tax authorities will give rise to large demands from the Revenue which will be paid out of the collection made by the company, which are meant for charitable purposes, the company will have to be stopped at the very  threshold to prevent waste of public moneys and the Directors compelled to bring back the amounts.
The independent Auditors Report dated 8th September, 2017 issued by one Ramachandran and Murali, Chartered Accountants states that the affairs of the Company  are in order, clearly showing that  the Chartered Accountants  have failed in their statutory duty to draw the attention of the  members of the Company,  to the fact that there are some expenses  which are not authorized by the objects  of the Company   The  auditors having failed  in their statutory duties will be required to explain the serious lapse in their Audit Report and will also have to be taken to task including  being reported to The Institute of Chartered Accountants.
A scrutiny of the account also shows that  the Company  has not  utilized 85% of its income as required u/s 11 of the Income Tax Act.  In case the Company  has filed  Form No. 10 prescribed under the Income Tax Act, it is not clear as to  what the funds not spent are earmarked for.
The Company is ostensibly formed for promoting the image of the Association   [“International Association of Lions Clubs”] (Sub-clause 4 of Clause III (b) of the Memorandum of Association), this is not a charitable activity by any stretch of imagination.
It is also believed that the company has been purchasing U.S. Dollars from unofficial and unauthorised sources for being spent  for meetings of Lions  Clubs  held outside India which besides being illegal and anti National is also a criminal offence under the Foreign  Exchange Management Act and therefore requires detailed investigation regarding the role of the persons in management of the company  as also the Chartered Accountants who have carried out the audit of the company.
Under the circumstances, therefore,  you are requested, in public interest, to investigate the affairs of the Company  and take  appropriate action, because the  Members of the Company  will for obvious reasons not object to any of the illegalities, since the company is the private fiefdom  of a limited number of people who are the direct beneficiaries of the large amounts of money compulsorily collected from persons who are not the members of the company but  are members of Lions  Clubs  spred out all over the country.
Thanking you,
Yours faithfully.

Monday, May 21, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डीआरएफसी बनने की पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल की कोशिशों को भावी गवर्नर्स दीपक गुप्ता व आलोक गुप्ता के विरोध के चलते झटका लगता दिख रहा है, पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता से मदद माँगने का उनका प्रयास भी सफल नहीं हो सका है

नई दिल्ली । डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) पद पाने की पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल की कोशिशें सफल होती हुई नहीं दिख रही हैं, और इस मामले में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता ने भी उनकी मदद करने में दिलचस्पी नहीं ली है । रमेश अग्रवाल के लिए राहत की बात सिर्फ यही है कि डीआरएफसी पद अपने ही पास बनाए रखने की मुकेश अरनेजा की कोशिशें भी पिटती दिख रही हैं । मजे की बात यह रही कि डीआरएफसी पद को लेकर मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के बीच खासी छीनाझपटी जैसी स्थिति बनी, जिसमें दोनों की ही पहली कोशिश तो उक्त पद खुद हथियाने की रही - और दूसरी कोशिश के रूप में उनका प्रयास यह रहा कि उन्हें नहीं, तो दूसरे को भी उक्त पद न मिले । उनके इस झगड़े के चलते डिस्ट्रिक्ट 3012 में डीआरएफसी के पद के लिए फैसला होना मुश्किल बना हुआ है, और फैसले की घड़ी लगातार टलती ही जा रही है । उनके इस झगड़े का फायदा लेकिन अब जेके गौड़ को मिलता नजर आ रहा है । डीआरएफसी का पद जेके गौड़ को मिलने की संभावना के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में अशोक अग्रवाल को अपने लिए भी मौके बनते दिख रहे हैं । अशोक अग्रवाल को अगले रोटरी वर्ष में यूँ तो डिस्ट्रिक्ट एडवाईजर जैसा महत्त्वपूर्ण पद मिला है, लेकिन उनके पास लोगों से मिलते रहने का कोई आधिकारिक 'बहाना' नहीं है । अशोक अग्रवाल को इस बात की बड़ी शिकायत रही है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार अमित गुप्ता को तो क्लब्स के प्रेसीडेंट्स तथा अन्य लोगों से संपर्क करने तथा संपर्क में रहने के बहुत मौके मिलेंगे, जबकि उन्हें नहीं मिलेंगे । लेकिन जेके गौड़ के डीआरएफसी बनने पर अशोक अग्रवाल को उम्मीद है कि वह अपनी उम्मीदवारी के लिए इसका फायदा उठा सकेंगे ।
रमेश अग्रवाल की डीआरएफसी पद पाने की कोशिशों का विफल होना रमेश अग्रवाल के लिए बड़े झटके की बात है । दरअसल डीआरएफसी पद पाने की उनकी कोशिशों की बातें रोटरी के बड़े नेताओं तक के बीच चर्चा का विषय रही हैं । यह इसलिए भी हुआ, क्योंकि इसके लिए उन्होंने पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता तक की मदद लेने का प्रयास किया । सुशील गुप्ता के जरिये उन्होंने अपने डिस्ट्रिक्ट के दो भावी गवर्नर्स दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता का समर्थन जुटाने का प्रयास किया । वास्तव में इन दोनों के विरोध के चलते ही रमेश अग्रवाल को डीआरएफसी पद अपने से दूर जाता दिख रहा था, लिहाजा उन्होंने सोचा और प्रयास किया कि सुशील गुप्ता यदि इन दोनों को कहेंगे तो फिर यह विरोध की जगह उनका समर्थन करने लगेंगे । रमेश अग्रवाल की लेकिन बदकिस्मती रही कि जिन सुशील गुप्ता से उन्होंने मदद की उम्मीद की थी, उन सुशील गुप्ता ने उनकी मदद करने में दिलचस्पी ही नहीं ली । रमेश अग्रवाल ने सुशील गुप्ता का नाम लेकर दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता पर दबाव बनाने का भी प्रयास किया, लेकिन वह दोनों उनके झाँसे में आए नहीं । डीआरएफसी का पद पाना रमेश अग्रवाल को दरअसल इसलिए जरूरी लगा, ताकि रोटरी की बड़ी राजनीति में वह अपनी अहमियत बना/दिखा सकें । रमेश अग्रवाल तमाम कोशिशों के बावजूद रोटरी की बड़ी राजनीति में अपने लिए कोई जगह नहीं बना सके हैं । ले दे कर उनके पास विन्स का ही 'मंच' है, जिसे लेकिन रोटरी की बड़ी राजनीति में कोई गंभीरता से नहीं लेता है । रमेश अग्रवाल रोटरी की 'व्यवस्था' व राजनीति में आगे बढ़ना चाहते हैं; इसलिए उन्हें जरूरी लगा कि रोटरी में उनके पास जब कोई बड़ा असाइनमेंट नहीं है - तो कम से कम डिस्ट्रिक्ट में ही वह डीआरएफसी बन जाएँ ।
दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता लेकिन उनकी जरूरत के पूरा होने के आड़े आ गए । मुकेश अरनेजा ने भी भरसक प्रयास किया कि डीआरएफसी के रूप में अगले तीन वर्ष का टर्म उन्हें और मिल जाए, लेकिन डीआरएफसी के रूप में मौजूदा टर्म में उनकी भूमिका इतनी बेईमानीभरी रही कि किसी ने भी उनके नाम पर विचार करने की जरूरत तक नहीं समझी । डीआरएफसी के पद पर रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के सीन से बाहर होने पर जेके गौड़ की लॉटरी निकलती दिख रही है । एक विकल्प हालाँकि शरत जैन का भी है, लेकिन उन्हें शायद पता है कि उनकी दाल नहीं ही गलेगी, इसलिए उन्होंने अपने आपको इस दौड़ से अलग ही रखा है । ऐसे में एक अकेले जेके गौड़ ही बचे रह जाते हैं । उम्मीद की जा रही है कि न चाहते हुए भी तीनों भावी गवर्नर्स उन्हें ही डीआरएफसी चुन लेंगे । इससे जेके गौड़ की किस्मत का दरवाजा भी खुलता हुआ दिखा है, अन्यथा पिछले दो मौकों पर उन्हें फजीहत का ही सामना करना पड़ा था : पहले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के लिए हुए चुनाव में उन्हें रमेश अग्रवाल के मुकाबले पराजय का सामना करना पड़ा, और फिर दीपक गुप्ता के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने का उनका मौका मुकेश अरनेजा ने उनसे छीन लिया । मजेदार संयोग है कि रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा से बारी बारी से झटका खा चुके जेके गौड़ को अब इन दोनों के झगड़े के चलते डीआरएफसी का पद मिलता नजर आ रहा है । जेके गौड़ के डीआरएफसी बनने में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अशोक अग्रवाल को अपना फायदा भी होता हुआ दिख रहा है । उन्हें लग रहा है कि जेके गौड़ के डीआरएफसी बनने से उन्हें भी क्लब्स के पदाधिकारियों के बीच पैठ बनाने तथा उन्हें प्रभावित करने का मौका मिलेगा ।

Friday, May 18, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के असेम्बली सेमीनार से पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के वापस लौटते ही अशोक कंतूर ने रवि चौधरी के साथ मिल कर उनके संदेश का जिस तरह से मजाक बनाना शुरू कर दिया है, उसके चलते अशोक कंतूर किसी बड़ी मुसीबत में तो नहीं फँस जायेंगे ?

नई दिल्ली । पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन दिल्ली में आयोजित हुए डिस्ट्रिक्ट 3011 के असेम्बली सेमीनार में पदाधिकारियों द्वारा नियमों का पालन करने तथा रोटरी की पहचान के साथ खिलवाड़ न करने के सुझाव देने वाली बातें करके अभी अपने घर भी नहीं पहुँचे होंगे, कि डिस्ट्रिक्ट 3011 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी और गवर्नर नॉमिनी का चुनाव जीतने की तैयारी कर रहे अशोक कंतूर ने उनकी बातों का मजाक ही बना दिया । रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार, जैसे ही कोई रोटेरियन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की घोषणा करता है, वैसे ही उसे रोटरी के अधिकृत कार्यक्रमों से अपने आप को दूर कर लेना चाहिए - अन्यथा उसे चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी माना जायेगा और उसे उम्मीदवारी के अयोग्य घोषित कर दिया जायेगा । अशोक कंतूर लेकिन रोटरी इंटरनेशनल के इस नियम का धड़ल्ले से उल्लंघन कर रहे हैं; और मजे की तथा गंभीरता की बात यह है कि इस मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की उन्हें पूरी पूरी शह मिली हुई है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी ने जिस तरह से मनमानी, बदतमीजीपूर्ण और लफंगई से परिपूर्ण कार्रवाईयाँ की हैं - उन्हें ध्यान में रखते हुए उनसे तो किसी को उम्मीद नहीं बची रह गई है कि वह रोटरी के नियमों व आदर्शों का पालन करेंगे; लेकिन लोगों को अशोक कंतूर के व्यवहार पर जरूर हैरानी हो रही है । लोगों को लग रहा है कि रवि चौधरी के चक्कर में अशोक कंतूर अपने लिए किस किस तरह की मुसीबतों को इकट्ठा कर रहे हैं, इसका शायद उन्हें आभास नहीं है । अशोक कंतूर के नजदीकियों का कहना लेकिन यह है कि रवि चौधरी की मनमानियों और हर किसी के साथ बदतमीजी कर लेने की कार्रवाईयों के बावजूद डिस्ट्रिक्ट के बड़े समझे जाने वाले 'नेता' जिस तरह चुप्पी साधे बैठे हैं, उससे अशोक कंतूर को विश्वास हो चला है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से उतरने के बाद भी नेतागिरी तो रवि चौधरी की ही चलेगी - और डिस्ट्रिक्ट के बाकी नेता उनके सामने बौने ही साबित होंगे । नजदीकियों के ही अनुसार, अशोक कंतूर को खतरे का भी अहसास है, और इसलिए उन्होंने बचाव का रास्ता भी बना लिया है ।  
रवि चौधरी धड़ल्ले से बार-बार यह कहते/बताते हैं ही कि उन्होंने जैसे संजीव राय मेहरा जैसे व्यक्ति को चुनाव जितवा दिया है, वैसे ही वह अशोक कंतूर को भी चुनाव जितवा देंगे । इसीलिए अशोक कंतूर पूरी तरह से रवि चौधरी की 'भक्ति' में लगे हैं । रवि चौधरी भी उनकी भक्ति का पूरा पूरा सम्मान कर रहे हैं, और इसके लिए क्लब्स में होने वाले जीओवी कार्यक्रमों को ही उन्होंने अशोक कंतूर के चुनाव प्रचार अभियान का प्लेटफॉर्म बना लिया है । आरोपपूर्ण चर्चाओं के अनुसार, रवि चौधरी क्लब्स के पदाधिकारियों को मजबूर करते हैं कि वह जीओवी कार्यक्रम में अशोक कंतूर को भी आमंत्रित करें, तथा उनका सम्मान करें । अशोक कंतूर डिस्ट्रिक्ट कोर टीम के सदस्य हैं, इस नाते रवि चौधरी उन्हें अपने साथ जीओवी में ले जा सकते हैं; लेकिन अशोक कंतूर ने चूँकि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी है, इसलिए रोटरी इंटरनेशनल के नियम का ख्याल रखते हुए रवि चौधरी को कोर टीम के किसी और सदस्य को अपने साथ जीओवी में ले जाना चाहिए । पर रवि चौधरी यदि ऐसा करेंगे तो उनका घटिया रूप लोगों को फिर कैसे दिखेगा ? इसलिए वह अशोक कंतूर को ही जीओवी में साथ रखते हैं, और अशोक कंतूर भी इस अवसर का फायदा उठाते हैं । कुछेक क्लब्स में तो यहाँ तक हुआ है कि रवि चौधरी के कहने के बावजूद क्लब्स के पदाधिकारियों ने अशोक कंतूर को जीओवी के लिए आमंत्रित नहीं किया, तो अशोक कंतूर ने रवि चौधरी से शिकायत करके ऐन मौके पर भी अपने लिए निमंत्रण 'मँगवाया' । इसी के साथ, अशोक कंतूर ने प्रेसीडेंट्स इलेक्ट को अपने घर पर आमंत्रित करने और उनके आवभगत करके उन्हें अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में पटाने का काम भी शुरू किया है । उनके ऐसा करने पर तो किसी को भी आपत्ति करने का हक हालाँकि नहीं है, लेकिन इस मामले में भी हो यह रहा है कि कोई प्रेसीडेंट इलेक्ट अपनी व्यस्तता का वास्ता देकर, आने में आनाकानी करता नजर आता है - तो अशोक कंतूर उसकी शिकायत रवि चौधरी से करते हैं, रवि चौधरी फिर उसे हड़का कर अशोक कंतूर के घर जाने के लिए राजी करते हैं ।
अशोक कंतूर के नजदीकियों व समर्थकों को भी लग रहा है, और वह कहते सुने जा रहे हैं कि अशोक कंतूर ने अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु रवि चौधरी पर जिस तरह की निर्भरता बना ली है, वही उनके लिए दोहरे तरीके से आत्मघाती साबित होगी । दरअसल एक तरफ तो रवि चौधरी ने अपनी सनकभरी हरकतों से अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को सत्ता के सहयोग के इतने सुबूत इकट्ठे कर दिए हैं, जो उनकी उम्मीदवारी को ही अयोग्य कर देने का काम कर देंगे; और दूसरी तरफ रवि चौधरी ने अपने कार्य-व्यवहार से हर किसी को अपना 'दुश्मन' बना लिया है, जो अभी भले ही चुप हों - लेकिन रवि चौधरी के गवर्नर पद से हटते ही जो रवि चौधरी से गिन गिन कर बदले लेंगे, और रवि चौधरी की आड़ में वास्तव में अशोक कंतूर से लेंगे । अशोक कंतूर के कुछेक नजदीकियों का लेकिन यह भी कहना/बताना है कि अशोक कंतूर को इस 'खतरे' का पता है, और उन्होंने इससे बाहर निकलने का 'रास्ता' पहले से ही बना लिया है; नजदीकियों के अनुसार, अशोक कंतूर अभी बस तभी तक रवि चौधरी के साथ हैं, जब तक रवि चौधरी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं - अशोक कंतूर को भी पता है कि रवि चौधरी से वह तभी तक फायदा उठा सकते हैं, जब तक कि वह गवर्नर हैं, गवर्नर न रहने पर रवि चौधरी उनके लिए फायदे की चीज नहीं रह जायेंगे, और तब अशोक कंतूर उनसे दूरी बना लेंगे । अशोक कंतूर के नजदीकियों का ही मानना और कहना है कि अशोक कंतूर ने 'रास्ता' तो ठीक बनाया है, लेकिन अभी बनी हुई रवि चौधरी के साथ उनकी जोड़ी की लोगों के बीच इतनी बदनामी हो चुकी है कि - इस कालिख से छुटकारा पाना उनके लिए आसान नहीं होगा । पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के दिल्ली से वापस लौटते ही अशोक कंतूर ने रवि चौधरी के साथ मिल कर उनके संदेश का जिस तरह से मजाक बनाना शुरू कर दिया है, अशोक कंतूर को उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है ।

Thursday, May 17, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में रमेश बजाज के फेलिसिटेशन कार्यक्रम में लोगों की तरफ से अजय मदान को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनाने की उठी माँग ने राजा साबू गिरोह के सामने अपना अस्तित्व बचाने की चुनौती पेश की

पानीपत । पानीपत में आज आयोजित हुए रमेश बजाज के फेलिसिटेशन कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट के कई क्लब्स का प्रतिनिधित्व करते जुटे लोगों ने अजय मदान को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनाने की जो माँग रखी, उसमें राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के साथ बड़ा क्रूर मजाक होता हुआ नजर आया । दरअसल जितेंद्र ढींगरा, रमेश बजाज, अजय मदान उन बारह रोटेरियंस में हैं, जिन्हें करीब दो/ढाई वर्ष पहले राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के निशाने पर रहे टीके रूबी के पक्ष में हुई एक मीटिंग में शामिल होने के 'अपराध' में राजा साबू के निर्देश पर डिस्ट्रिक्ट टीम में मिले उनके पदों से हटा दिया गया था । राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स पूरी ताकत लगा लेने/देने के बावजूद टीके रूबी का तो कुछ नहीं ही बिगाड़ पाए, टीके रूबी का साथ देने वाले जितेंद्र ढींगरा और रमेश बजाज को भी गवर्नर चुने जाने से नहीं रोक पाए । राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के लिए फजीहत का सिलसिला जारी रखते हुए डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने अब अजय मदान को गवर्नर के रूप में 'चुनने' का ऐलान और कर दिया है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच मजाक में कही जा रही यह बात अब सीरियसली ली जाने लगी है कि टीके रूबी का साथ देने के लिए राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने जिन बारह रोटेरियंस को डिस्ट्रिक्ट टीम के पदों से हटवाया था, वह एक एक करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनेंगे - और राजा साबू तथा उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स लाख कोशिशों के बावजूद कुछ नहीं कर पायेंगे । टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा के बाद, रमेश बजाज के मामले में भी राजा साबू तथा उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की इस बेचारगी को देखा गया है ।
रमेश बजाज को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने से रोकने के लिए राजा साबू तथा उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने हर मौके पर प्रयास किया, लेकिन हर मौके पर उन्हें मुँहकी ही खानी पड़ी । नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग में रमेश बजाज को अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने से रोकने के लिए पूर्व गवर्नर मधुकर मल्होत्रा ने हर हथकंडा आजमाया, लेकिन नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों ने उनकी किसी भी चालबाजी को कामयाब नहीं होने दिया । राजा साबू गिरोह के लिए झटके की दूसरी बात यह रही कि कपिल गुप्ता ने उन पर भरोसा करने से इंकार कर दिया, और उनके भरोसे अधिकृत उम्मीदवार के रूप में रमेश बजाज को चेलैंज करने की प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए । कपिल गुप्ता ने जान/समझ लिया कि राजा साबू गिरोह के झाँसे में फँस कर वह अपनी फजीहत ही करवायेंगे, सो उन्होंने सदाशयता दिखाते हुए नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को स्वीकार करते हुए अपने आप को राजा साबू गिरोह की गंदी राजनीति से दूर कर लिया । राजा साबू गिरोह ने तब सुरेश सबलोक के कंधे पर अपनी राजनीति का बोझ टिकाया । सुरेश सबलोक से उन्होंने चेलैंज तो करवा दिया, और कुछेक पूर्व गवर्नर्स उनके चेलैंज को स्वीकृत करवाने के लिए क्लब्स का समर्थन जुटाने में भी लगे - लेकिन वह खुद पर ही भरोसा नहीं कर सके, और इस कारण राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने अपने अपने क्लब का समर्थन सुरेश सबलोक को नहीं दिया/दिलवाया । राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने दूसरे क्लब्स के पदाधिकारियों से तरह तरह के झूठ बोल कर और उन्हें झाँसा देकर उनका समर्थन जुटाने का भरसक प्रयास तो किया, लेकिन पर्याप्त क्लब्स का समर्थन जुटाने में वह फेल हो गए - और इस तरह सुरेश सबलोक का चेलैंज स्वतः ही निरस्त हो गया और रमेश बजाज डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी घोषित हो गए ।
राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स इसके बाद भी अपनी चालबाजियों से लेकिन बाज नहीं आए । उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच प्रचारित किया कि वह सुरेश सबलोक की तरफ से रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करवायेंगे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी ने बेईमानीपूर्ण तरीके से सुरेश सबलोक के चेलैंज को निरस्त किया है । सुरेश सबलोक के क्लब की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय को इस संबंध में शिकायती पत्र भेज भी दिया गया । राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने इस बीच एक और हरकत की, जिसके तहत उन्होंने कोशिश की कि प्रेसीडेंट्स इलेक्ट व सेक्रेटरीज इलेक्ट सेमीनार में रमेश बजाज का फेलिसिटेशन न हो । तर्क दिया गया कि चूँकि रमेश बजाज के चुने जाने की रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत हो सकती है, इसलिए अभी उनका फेलिसिटेशन करना उचित नहीं होगा । यह तर्क लेकिन रमेश बजाज के समर्थकों के तर्क के सामने टिक नहीं सका, जिनका कहना रहा कि आगे क्या होगा यह आगे देखा जायेगा, आज का सच यह है कि रमेश बजाज डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी हैं और इस सच्चाई को अभी कोई चेलैंज नहीं है - इसलिए उनका फेलिसिटेशन होना चाहिए । इस तर्क पर निरुत्तर होने के बावजूद राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स मनमानी करना तो चाहते थे, लेकिन सेमीनार में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम की उपस्थिति को देखते हुए उनकी मनमानी करने की हिम्मत हुई नहीं - और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के विजेता के रूप में वह रमेश बजाज का फेलिसिटेशन करने के लिए मजबूर हुए । राजा साबू गिरोह के लिए सबसे बड़े झटके की बात यह रही कि सुरेश सबलोक की तरफ से रोटरी इंटरनेशनल में जो शिकायत दर्ज करने/करवाने की तैयारी की जा रही थी, उसके लिए तय समय सीमा के भीतर जरूरी संख्या के क्लब्स का समर्थन नहीं जुटाया जा सका - और इस तरह रमेश बजाज के रास्ते में खड़ी की जा सकने वाली अंतिम बाधा का मौका भी राजा साबू गिरोह से छूट/छिन गया ।
सभी बाधाओं से मुक्त होने के बाद, रमेश बजाज के समर्थकों व शुभचिंतकों ने पानीपत में आज उनका जोरदार तरीके से फेलिसिटेशन किया । कार्यक्रम में मौजूद डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के प्रतिनिधियों का उत्साह देखने लायक था । वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना रहा कि इस तरह का स्वागत समारोह तो टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा का भी नहीं हो सका था । टीके रूबी की जीत में तो राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने मट्ठा डालने की हर संभव कोशिश की ही थी, जितेंद्र ढींगरा और रमेश बजाज की जीत को भी वह आसानी से हजम नहीं कर सके - लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों का इन्हें जो समर्थन और सहयोग मिला है, वह राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के लिए एक कड़ा संदेश है । इस संदेश को और कड़ा करने का काम डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने अजय मदान को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनाने की माँग करके किया है । अजय मदान के अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार हो सकने की चर्चा तो हालाँकि पहले से थी, लेकिन अजय मदान अपनी निजी व्यस्तता का वास्ता देकर 'बचने' की कोशिश करते सुने जा रहे थे । पर अब जब डिस्ट्रिक्ट के लोगों की तरफ से ही माँग उठी है, तो माना/समझा जा रहा है कि अजय मदान को उम्मीदवार बनने के लिए राजी कर ही लिया जायेगा । इन घटनाओं से जाहिर है कि राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट में पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं, और डिस्ट्रिक्ट में उनकी भूमिका नकारात्मक किस्म के टुच्चे षड्यंत्र करने और उनमें फेल होते रहने तक ही बची रह गई है । इसी से जुड़ी एक खास बात आज पानीपत में हुए रमेश बजाज के फेलिसिटेशन कार्यक्रम में देखने को मिली, और वह यह कि पानीपत में रह रहे तीन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रंजीत भाटिया, प्रमोद विज और रमन अनेजा निमंत्रण पाने के बावजूद कार्यक्रम में शामिल होने का साहस नहीं दिखा सके ।

Wednesday, May 16, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ व दीपक गर्ग के पंकज पेरिवाल को घेरने व बदनाम करने की जुगत में होने के कारण उम्मीद की जा रही है कि इंटरनेशनल स्टडी टूर को लेकर उनकी कीचड़-उछाल कोशिशों का कीचड़ अभी और देखने/सुनने को मिलेगा

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में पिछले दो वर्षों में चेयरमैन रहे दीपक गर्ग और राकेश मक्कड़ जिस तरह से इस वर्ष प्लान किए गए इंटरनेशनल स्टडी टूर को फेल करने की कोशिशों में जुटे सुने जा रहे हैं, उससे नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में एक नया घमासान शुरू होता दिख रहा है । दरअसल इस वर्ष प्लान किए गए इंटरनेशनल स्टडी टूर को लेकर दीपक गर्ग और राकेश मक्कड़ की खुन्नस इसलिए है, क्योंकि इससे चेयरमैन के रूप में उनका निकम्मापन एकदम से जाहिर हो रहा है । उन्हें लग रहा है कि रीजन के आम और खास लोग आकलन करेंगे ही कि चेयरमैन के रूप में वह दोनों तो इस तरह का कार्यक्रम नहीं बना सके, और पंकज पेरिवाल ने चेयरमैन का पदभार संभालते ही इंटरनेशनल स्टडी टूर के बारे में सोच भी लिया और प्लान भी फाइनलाइज कर लिया । अब लोग तुलना तो करते ही हैं, और इस तुलना में पंकज पेरिवाल का पलड़ा उनसे पहले चेयरमैन रहे राकेश मक्कड़ और दीपक गर्ग से भारी पड़/दिख रहा है, तो यह बात राकेश मक्कड़ और दीपक गर्ग के लिए शर्म की तो है ही । उनके लिए ज्यादा शर्म की बात इसलिए भी है, क्योंकि पंकज पेरिवाल को चेयरमैन का पदभार सँभाले अभी तीन महीने भी पूरे नहीं हुए हैं, और रीजन में लोग महसूस करने के साथ-साथ बातें भी करने लगे हैं कि उनसे पहले के दोनों चेयरमैन किस हद तक नाकारा और निकम्मे किस्म के थे । दीपक गर्ग के साथ तो मुसीबत की बात यह भी हुई कि उन्हें तो अपना कार्यकाल ही पूरा करने का मौका नहीं मिला; और करीब छह महीने में ही उन्हें पता चल गया था कि चेयरमैन का पद उन्होंने जुगाड़ तो लिया है, लेकिन इसकी जिम्मेदारी निभाना उनके बस की बात नहीं है - लिहाजा उन्होंने इस्तीफा देकर किनारे हो लेने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । राकेश मक्कड़ ने चेयरमैन बनते ही लूट-खसोट पर ध्यान देना शुरू किया, जिसके चलते उनका चेयरमैन-काल आरोपों का ही शिकार रहा और वह पहले ऐसे चेयरमैन बने जिनकी हरकतों और कारस्तानियों के खिलाफ इंस्टीट्यूट की डिसिप्लिनरी कमेटी में शिकायत दर्ज हुई ।
 ऐसे में, राकेश मक्कड़ और दीपक गर्ग को जब चेयरमैन के रूप में पंकज पेरिवाल के कामकाज की तारीफ होती सुनाई पड़ी, तो उनका माथा और भन्नाया । इसलिए दोनों ने पंकज पेरिवाल के चेयरमैन-काल को फेल करने की तैयारी शुरू कर दी । इस तैयारी में उन्होंने पंकज पेरिवाल के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम के रूप में देखे जा रहे इंटरनेशनल स्टडी टूर पर अपनी निगाह लगाई है । उन्हें लगता है कि वह यदि इस स्टडी टूर को किसी भी तरह से फेल कर दें, तो पंकज पेरिवाल की बड़ी बदनामी होगी - और पंकज पेरिवाल की इस बदनामी में उनकी बदनामी छिप जाएगी । राकेश मक्कड़ और दीपक गर्ग ने पहले तो इस टूर के महँगे होने का आरोप लगते हुए लोगों को भड़काने की कोशिश की । यह आरोप लेकिन ज्यादा चला नहीं; क्योंकि पता चला कि टूर ऑफर को लोगों ने आकर्षक माना और जल्दी ही काफी बुकिंग हो गई है । पंकज पेरिवाल के नजदीकियों का तो दावा है कि टूर के लिए जितनी सीटें तय की गईं थीं, वह सभी बुक हो चुकी हैं । इससे जाहिर है कि लोगों को टूर ऑफर महँगा नहीं लगा है, और उन्होंने इस ऑफर को हाथोंहाथ लिया । टूर ऑफर को महँगा बताने की कोशिश पर राकेश मक्कड़ और दीपक गर्ग को कुछेक लोगों से यह तक सुनना पड़ा है कि तुम्हारे बस की तो कुछ करना था नहीं, अब इस वर्ष कुछ हो रहा है तो उसमें कमी निकालने की कोशिश कर रहे हो । कुछेक लोगों ने उन्हें चेलैंज भी किया कि तुम्हारे बस की हो, तो इससे सस्ता टूर प्रोग्राम आयोजित करके दिखाओ न ! लोगों की इस प्रतिक्रिया से राकेश मक्कड़ और दीपक गर्ग को अपनी ही फजीहत होती दिखी, तो उन्होंने पैंतरा बदल कर आरोप लगाना शुरू किया है कि यह स्टडी टूर नहीं, बल्कि पिकनिक टूर है - क्योंकि इसमें परिवार के सदस्यों को भी साथ ले जाने की सुविधा दी गई है ।
राकेश मक्कड़ और दीपक गर्ग को इस आरोप पर कुछेक लोगों का समर्थन मिलता नजर आ रहा है । कुछेक लोगों ने माना/कहा है कि छह दिन के पेरिस और स्विट्जरलैंड के टूर में परिवार के साथ जाने वाला चार्टर्ड एकाउंटेंट स्टडी तो क्या ही करेगा ? स्टडी का रूप और तरीका और माध्यम क्या होगा, चूँकि इसका भी खुलासा नहीं किया गया है - इसलिए इस स्टडी टूर के वास्तव में पिकनिक टूर होने की बात ही लोगों के बीच स्वीकार्य हो रही है । लोगों का कहना/पूछना है कि वास्तव में यह यदि स्टडी टूर ही है, तो प्रोग्राम के साथ यह भी तो बताना चाहिए कि टूर में किस तरह की स्टडी होगी, स्टडी करवायेगा कौन तथा कहाँ और कैसे उसका मौका मिलेगा ? जाहिर तौर पर, स्टडी टूर के नाम पर पिकनिक करने के राकेश मक्कड़ और दीपक गर्ग के आरोप को कुछेक लोगों के बीच स्वीकार्यता तो मिल गई है, लेकिन यह देख कर इन दोनों को निराशा भी हुई है कि इस स्वीकार्यता के बावजूद लोगों का रवैया आक्रामक व आरोपपूर्ण नहीं है । दरअसल प्रोफेशन के लोगों ने यह मान लिया हुआ है कि इंस्टीट्यूट में स्टडी के नाम पर अधिकतर तफरीह, राजनीति और पिकनिक ही होती है - इसलिए यह बात प्रायः किसी आरोप की शक्ल में नहीं आती है । इस बात को इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन के लोगों के बीच एक आवश्यक और स्वीकार्य बुराई के रूप में अपना लिया गया है । इसी के चलते राकेश मक्कड़ और दीपक गर्ग की इंटरनेशनल स्टडी टूर को पिकनिक टूर बताने के जरिये बदनाम व आरोपित करने की कोशिश फेल हो गई है । इंटरनेशनल स्टडी टूर जाने में अभी चूँकि करीब ढाई महीने का समय है, और राकेश मक्कड़ व दीपक गर्ग इसके बहाने पंकज पेरिवाल को घेरने व बदनाम करने की जुगत में हैं - इसलिए उम्मीद की जा रही है कि इंटरनेशनल स्टडी टूर को लेकर राकेश मक्कड़ व दीपक गर्ग की कीचड़-उछाल कोशिशों का कीचड़ अभी और देखने/सुनने को मिलेगा ।

Monday, May 14, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद जेके गौड़ से छीनने की मुकेश अरनेजा की कोशिश की सफलता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव अभियान को भी रोमांचक बनायेगी

गाजियाबाद । दीपक गुप्ता की तरफ से जेके गौड़ की बजाये मुकेश अरनेजा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये जाने के मिल रहे संकेतों ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों में हलचल पैदा करने का काम किया है, और इस हलचल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अशोक अग्रवाल की स्थिति को झटका देने का काम किया है । अशोक अग्रवाल को जेके गौड़ के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है, ऐसे में जेके गौड़ को यदि आश्वस्त करने के बाद भी दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर नहीं बनाते हैं - तो यह जेके गौड़ के साथ-साथ अशोक अग्रवाल के लिए भी झटके वाली बात तो है ही । जेके गौड़ अपने समर्थकों से हालाँकि दीपक गुप्ता पर दबाव डलवा रहे हैं कि वह जेके गौड़ को ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाएँ; और उन्हें विश्वास भी है कि उनके समर्थक उन्हें ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने के लिए दीपक गुप्ता को राजी कर लेंगे । हालाँकि मुकेश अरनेजा को भी कम नहीं समझा जा रहा है । लोगों को लग रहा है कि वह एक बार जब डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद जेके गौड़ से छीनने में कामयाब हो गए हैं, तो अब वह उसे आसानी से वापस तो नहीं ही जाने देंगे । दीपक गुप्ता के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद को लेकर जेके गौड़ और मुकेश अरनेजा के बीच छिड़ी यह लड़ाई वास्तव में इसलिए भी दिलचस्प हो गई है, क्योंकि इससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के अभी बने हुए समीकरणों पर भी सीधा असर पड़ेगा - और यह लड़ाई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी सीन को विभाजित करके दो पक्षीय बनाने का काम करेगी ।
जेके गौड़ बेचारे दीपक गुप्ता के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर की जिम्मेदारी संभालने की तैयारी कर चुके थे, इसलिए उन्हें जब संकेत मिले कि दीपक गुप्ता उनकी बजाये मुकेश अरनेजा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने जा रहे हैं - तो उनके तो तोते ही उड़ गए । यह संकेत उन्हें इस बात से मिले कि दीपक गुप्ता ने अपनी पेम वन की तैयारी शुरू कर दी, और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगने दी; उन्हें तो भनक भी नहीं लगी, जबकि मुकेश अरनेजा उनकी तैयारी में मदद करते सुने/देखे गए । दरअसल दीपक गुप्ता ने पेम वन के स्पॉन्सर्स के रूप में जब कुछेक क्लब्स के पदाधिकारियों से बात करना शुरू की, और क्लब्स के पदाधिकारी बचते व पीछे हटते दिखे, तो वह परेशान हुए - और उनकी परेशानी को हल करने के लिए मुकेश अरनेजा आगे आए । मुकेश अरनेजा ने उन्हें आश्वस्त किया कि पेम वन की स्पॉन्सरिंग के लिए क्लब्स वह उन्हें दिलवायेंगे । मुकेश अरनेजा रोटरी में कुशल 'सौदेबाज' और 'व्यापारी' रोटेरियन हैं, समझा जाता है कि इस आश्वासन के बदले उन्होंने दीपक गुप्ता से डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के लिए सौदा कर लिया । मुकेश अरनेजा की बदकिस्मती दरअसल यह रही है कि उन्होंने सौदेबाजी करके दो बार डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद तो पाया, लेकिन वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए । अमित जैन ने उन्हें अपने गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया था, लेकिन करीब महीने/डेढ़ महीने में ही उनकी हरकतों से तंग आकर उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद से हटा दिया था । रोटरी के इतिहास में शायद यह पहला मौका होगा, जब किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने एक-डेढ़ महीने में ही अपने डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर को पद से हटा दिया हो । मौजूदा रोटरी वर्ष में भी वह सतीश सिंघल द्वारा डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाए गए थे, लेकिन ब्लड बैंक में घपलेबाजी के आरोपों के चलते सतीश सिंघल की गवर्नरी गई, तो साथ-साथ मुकेश अरनेजा की ड्रिस्ट्रिक्ट ट्रेनरी भी चली गयी । 
मुकेश अरनेजा जब दूसरी बार भी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके, तो उनकी नजर दीपक गुप्ता के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद पर पड़ी । दीपक गुप्ता हालाँकि जेके गौड़ को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने का संकेत दे चुके थे, लेकिन फिर भी मुकेश अरनेजा को विश्वास रहा कि अपनी चालबाजी से वह डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद जेके गौड़ से छीन लेंगे । पेम वन की तैयारी में मुकेश अरनेजा पर दीपक गुप्ता की निर्भरता देख कर लोगों को ऐसा लग रहा है कि मुकेश अरनेजा अपनी चालबाजी में सफल हो गए हैं । अभी लेकिन चूँकि आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद अपने पास ही बनाए रखने के लिए जेके गौड़ ने भी कमर कस ली है । इस होड़ में हालाँकि लोगों को मुकेश अरनेजा का पलड़ा ही भारी दिख रहा है । दरअसल दीपक गुप्ता ढीले ढाले से व्यक्ति हैं, और उनके साथ कोई काम करने वाला व्यक्ति भी नहीं है; इसलिए लोगों को भी लग रहा है - और शायद उन्हें भी लग रहा होगा कि एक तेज-तर्रार व्यक्ति का संग-साथ ही उनकी गवर्नरी की नैय्या को पार लगा सकेगा; और इस नाते जेके गौड़ की बजाए मुकेश अरनेजा ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में उनके सही मददगार साबित होंगे । सतीश सिंघल के साथ मिल कर मुकेश अरनेजा डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर काबिज होने की जो कोशिश कर रहे थे, उसे सतीश सिंघल के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से निलंबित होने से तगड़ा झटका लगा है । इस झटके से उबरने के लिए मुकेश अरनेजा को दीपक गुप्ता के गवर्नर काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने की जरूरत महसूस हो रही है । अपनी अपनी जरूरतों के चलते मुकेश अरनेजा और दीपक गुप्ता यदि सचमुच साथ आए, तो यह साथ डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में नए समीकरण बनने का प्रस्थान बिंदु भी बन सकता है । लोगों को लग रहा है कि यह स्थिति डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अभी तक अशोक अग्रवाल के लिए आसान दिख रहे माहौल में अड़चन डालने का काम कर सकती है । इस लिहाज से माना जा रहा है कि दीपक गुप्ता के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद जेके गौड़ से छीनने में मुकेश अरनेजा यदि सचमुच सफल रहे, तो इससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का अभी तक ठंडा-ठंडा सा चल रहा चुनाव अभियान रोमांचक हो उठेगा ।

Sunday, May 13, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के स्वागत में आयोजित टॉक-शो व रात्रि-भोज के कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया द्वारा रिकॉग्नाइज न किए जाने से भड़के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने विनय भाटिया के साथ साथ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल के खिलाफ भी जमकर भड़ास निकाली

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी अपनी हरकतों के चलते डिस्ट्रिक्ट में दुत्कारे जायेंगे, यह बात तो कई लोग बार बार कह रहे थे - लेकिन उनको दुत्कारे जाने की स्थिति इतनी जल्दी आ जाएगी, इसका किसी को अनुमान नहीं था । कल रात पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के स्वागत में आयोजित टॉक-शो व रात्रि-भोज के कार्यक्रम में रवि चौधरी के साथ जो हुआ, उसे लेकर वह आग-बबूला हुए और फिर उन्होंने कार्यक्रम में खासा तमाशा किया । पूरे वर्ष अपने व्यवहार और अपनी हरकतों से क्लब प्रेसीडेंट्स से लेकर पूर्व गवर्नर्स तक को तथा मेहनती व प्रतिभाशाली वरिष्ठ रोटेरियंस तक को अपमानित करते रहे रवि चौधरी ने कार्यक्रम में अपने अपमान का मुद्दा उठा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल के साथ जमकर बदतमीजी की । विडंबनापूर्ण नजारा यह देखने को मिला कि रवि चौधरी जब दूसरे लोगों के साथ बदतमीजी करते थे, तब विनय भाटिया और विनोद बंसल मजे लेते थे; लेकिन कल जब रवि चौधरी इन दोनों के साथ बदतमीजी कर रहे थे, तब दूसरे लोग मजे ले रहे थे । कुछेक लोग कहते हुए सुने भी गए कि विनय भाटिया और विनोद बंसल ने सोचा होगा कि दूसरों के साथ बदतमीजी करने वाले रवि चौधरी उनके साथ कभी बदतमीजी नहीं करेंगे; पर उन्हें यह सोचना चाहिए था कि एक बदतमीज व्यक्ति किसी का लिहाज नहीं करता और वह हर किसी के साथ बदतमीजी कर सकता है । रवि चौधरी अभी करीब 47/48 दिन और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहेंगे, लेकिन उनके बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार सँभालने की तैयारी कर रहे विनय भाटिया ने उनके साथ जो सुलूक किया - वैसा इससे पहले शायद ही किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ हुआ होगा ।
डिस्ट्रिक्ट असेम्बली कार्यक्रम से पिछली रात पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की मौजूदगी में हुए टॉक-शो व रात्रि-भोज कार्यक्रम को संयोजित करते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया ने केआर रवींद्रन और पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता का तो नाम लिया और उनका स्वागत किया, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी का स्वागत करना तो दूर - विनय भाटिया ने उनका नाम तक नहीं लिया । पूरे वर्ष तरह तरह से दूसरों को अपमानित करते रहे रवि चौधरी ने विनय भाटिया के इस रवैये को अपना अपमान माना । वरिष्ठ पूर्व गवर्नर्स का भी मानना/कहना है कि विनय भाटिया ने कार्यक्रम में जिस तरह से रवि चौधरी को रिकॉग्नाइज तक नहीं किया, वह प्रोटोकॉल का उल्लंघन भी है और रवि चौधरी का अपमान भी है, लिहाजा रवि चौधरी का नाराज होना जायज ही है । कार्यक्रम में जब तक केआर रवींद्रन मौजूद रहे तब तक तो रवि चौधरी ने किसी तरह अपने गुस्से पर काबू बनाये रखा, लेकिन केआर रवींद्रन के जाते ही रवि चौधरी फिर अपनी असलियत पर आ गए । विनय भाटिया के खिलाफ उन्होंने जमकर अपनी भड़ास निकाली; रवि चौधरी ने विनोद बंसल को भी यह कहते हुए लपेटे में ले लिया कि विनोद बंसल के कहने पर ही विनय भाटिया ने कार्यक्रम में उन्हें रिकॉग्नीज तक नहीं किया । विनोद बंसल ने सफाई देने की बहुत कोशिश की कि जो हुआ उसमें उनकी कोई भूमिका नहीं है; रवि चौधरी लेकिन जब बकवास करने पर आते हैं, तब वह किसी की सुनते कहाँ हैं - लिहाजा उन्होंने विनोद बंसल की भी नहीं सुनी, और वह लगातार विनय भाटिया और विनोद बंसल को बुरा-भला कहते रहे । डिस्ट्रिक्ट के किसी बड़े कार्यक्रम में, जो पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के मुख्य आतिथ्य में हुआ हो - ऐसा तमाशा पहले कभी हुआ हो, यह वरिष्ठ रोटेरियंस को भी याद नहीं है । 
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में विनय भाटिया, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी का इतना जल्दी बुरा हाल करेंगे - यह देख कर हर किसी को हैरानी हुई । दरअसल दोनों ही पदाधिकारी कुछ समय पहले तक जिस तरह से मिल-जुल कर 'रहते' थे, उससे लोगों को आभास मिलता था कि दोनों में बड़ी अटूट किस्म की दोस्ती रहेगी । रवि चौधरी ने तो 'जताना/दिखाना' शुरू भी कर दिया था कि विनय भाटिया के गवर्नर-काल में वही सुपर गवर्नर होंगे । हालाँकि पिछले कुछ दिनों से दोनों के बीच कुछ दरारें पड़नी/दिखनी शुरू हो गईं थीं, जिनके हवाले से 'रचनात्मक संकल्प' ने अपनी पिछली कुछेक रिपोर्ट्स में बताया था कि रवि चौधरी और विनय भाटिया के बीच दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चलेगी । पर वह दोस्ती गाली-गलौच में बदल जाएगी और रवि चौधरी के गवर्नर रहते रहते बदल जाएगी - इसका अंदेशा वास्तव में किसी को नहीं था । विनय भाटिया को उनके खिलाफ करने के लिए रवि चौधरी ने सीधे सीधे विनोद बंसल को जिम्मेदार ठहराया है । विनोद बंसल के साथ रवि चौधरी के कभी नर्म तो कभी सर्द जैसे संबंध रहे हैं; कई मौकों पर विनोद बंसल ने रवि चौधरी की बदतमीजियों को नजरअंदाज भी किया; कल रात विनोद बंसल के साथ की गई रवि चौधरी की बदतमीजी के जो चश्मदीद गवाह हैं, उनका मानना/कहना है कि विनोद बंसल ने रवि चौधरी के प्रति जो नर्म रवैया अपनाया, उससे ही रवि चौधरी का साहस इतना बढ़ा कि वह उनके साथ सार्वजनिक रूप से इतनी बदतमीजी कर सका । रवि चौधरी के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि जो लोग प्रोटोकॉल का पालन न करने के लिए विनय भाटिया को जिम्मेदार ठहरा भी रहे हैं, उन्हें भी रवि चौधरी के साथ कोई हमदर्दी नहीं है । उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी ने ही कौन से प्रोटोकॉल माने/अपनाए । इसलिए उनके साथ जैसे को तैसा वाला व्यवहार ही हुआ है, और ठीक हुआ है । रवि चौधरी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का कार्यकाल-काल पूरा होने से पहले ही, कुछ दिन पहले तक अच्छे साथी व दोस्त माने जा रहे विनय भाटिया के हाथों फजीहत का शिकार बनेंगे, यह उन्होंने तो क्या - अन्य किसी ने भी नहीं सोचा था । पर अब जब यह जल्दी से हो ही गया है, तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों का कहना है कि रवि चौधरी को वास्तव में यह अपनी करनी की ही सजा मिली है । कल तक हर किसी को अपमानित करता रहा रवि चौधरी आज अपने अपमान की बात कर रहा है - और मजा यह है कि किसी को उससे हमदर्दी भी नहीं हो रही है ।

Saturday, May 12, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में मुसीबत और फजीहत का शिकार बनीं फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वंदना निगम की सारा दोष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद के सिर मढ़ने की कोशिश ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उन्हें मजाक का पात्र और बना दिया है

कानपुर । डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर पैदा हुए झगड़े का ठीकरा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद के सिर फोड़ने की फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वंदना निगम की कोशिशों ने दीपक राज आनंद व उनके नजदीकियों को बुरी तरह भड़का दिया है । दीपक राज आनंद के नजदीकियों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव को लेकर दीपक राज आनंद जो कुछ भी कर रहे थे, उस सब में वंदना निगम की पूरी पूरी सहमति और संलग्नता थी, लेकिन अब लोगों के सामने वह ऐसी भोली-भाली बन रही हैं, जैसे उन्हें तो कुछ पता ही नहीं था - और जो कुछ भी हुआ है, उसके लिए एक अकेले दीपक राज आनंद ही जिम्मेदार हैं । दरअसल डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर जो कुछ भी हुआ है, उससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच भारी नाराजगी है और इस नाराजगी के चलते लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को बुरी तरह कोस रहे हैं । कई क्लब्स के पदाधिकरियों और वरिष्ठ सदस्यों ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि मनमानी और लूट-खसोटपूर्ण हरकतों को देखते हुए वह अपने अपने क्लब्स के कार्यक्रमों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व उनके साथियों को आमंत्रित नहीं करेंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के प्रति डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच इस तरह की खुल्ली नाराजगी और विरोध के तेवर इससे पहले कभी नहीं देखे गए । लोगों की इस नाराजगी और विरोध को देख वंदना निगम बुरी तरह बौखला गई हैं । अपनी हरकतों पर पश्चाताप करने तथा जो हुआ उसके लिए अफसोस प्रकट करने और लोगों से माफी माँगने की बजाए वंदना निगम ने लोगों के साथ यह कहते हुए बदतमीजी करना और शुरू कर दिया है कि जो कुछ हुआ है, उसके लिए गवर्नर से कहो जो कहना है - मुझ पर क्यों आरोप लगा रहे हो । इस तर्क पर हालाँकि कई लोगों से उन्हें सुनने को मिला है कि जो कुछ हुआ है, फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होने के नाते उसकी जिम्मेदारी से वह बच नहीं सकती हैं ।
वंदना निगम के इस तर्क पर डिस्ट्रिक्ट के लोग तो हैरान हुए ही हैं, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद और उनके नजदीकी भी चक्कर खा गए हैं । उनका कहना है कि अपने आपको मुसीबत से बचाने के लिए लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के सामने वह यदि इस तरह की दलील दें, तो फिर भी समझ में आता है - लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों को वह यदि अपनी निर्दोषता बताने की कोशिश करेंगी और सारी जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के सिर डालने की कोशिश करेंगी, तो अपनी ही खिल्ली उड़वायेंगी । और यही हो भी रहा है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस होने से पहले तक जो कुछ भी होता हुआ दिख रहा था, उसमें सभी को साफ साफ नजर आ रहा था कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अजय डंग को चुनाव जितवाने के लिए जो भी कारस्तानियाँ हो रही हैं - उनमें वंदना निगम की पूरी पूरी मिलीभगत है । चाहें षड्यंत्रपूर्ण तरीके से कॉन्फ्रेंस की जगह बदलने का मामला हो, और चाहें क्लब्स को क्रिडेंशियल देने में पक्षपात करने का विवाद हो - वंदना निगम हर मौके पर दीपक राज आनंद के फैसले के पक्ष में थीं । अजय डंग की उम्मीदवारी को प्रमोट करने तथा उन्हें समर्थन दिलवाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों के कई एक मामलों में तो लोगों को लगता था कि 'मास्टर माइंड' वंदना निगम हैं, और दीपक राज आनंद उन्हें फॉलो कर रहे हैं । इसीलिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ-साथ दीपक राज आनंद व उनके साथियों को भी आश्चर्य हो रहा है कि जब सब कुछ साफ साफ है तब वंदना निगम अब इतनी भोली बनने की कोशिश क्यों कर रही हैं ?
डिस्ट्रिक्ट के लोगों का ही कहना/बताना है कि वंदना निगम को वास्तव में यह अनुमान ही नहीं था कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अजय डंग को चुनवाने का जो मनमाना खेल वह खेल रही हैं, या जिस मनमाने खेल में वह शामिल हैं - वह उन्हें ही फजीहत व मुसीबत में फँसा देगा । वास्तव में यह अनुमान किसी भी सत्ताधारी को नहीं होता है; सत्ता में बैठा व्यक्ति अपने आपको ईश्वर से कम नहीं समझता है और सोचता है कि वह अपनी मनमानी कर लेगा; कई बार उसकी मनमानी चल भी जाती है - लेकिन कई बार उसकी मनमानी उसे ही लपेटे में ले लेती है । डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू के सत्ताधारियों के साथ इस बार ऐसा ही हुआ । सत्ताधारियों में सबसे ज्यादा नुकसान वंदना निगम का ही होता हुआ दिख रहा है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में वोट देने का अधिकार न मिल पाने से, वोट के बदले नोट पाने की उनकी उम्मीद तो ध्वस्त हुई ही है - साथ ही लायंस इंटरनेशनल के खर्चे पर अमेरिका जाने का मिलने वाला मौका भी उनसे छिनता हुआ नजर आ रहा है । इतने बड़े नुकसानों के बाद, डिस्ट्रिक्ट में भी हर किसी के निशाने पर वंदना निगम ही हैं - जिसके चलते वह बुरी तरह बौखला गई हैं । बौखलाहट में वह अपने आपको बचाने के लिए सारा दोष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के सिर मढ़ने की कोशिश कर रही हैं । उनकी इस कोशिश ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उन्हें मजाक का पात्र बना दिया है । लोगों का कहना है कि यदि वह सचमुच इतनी भोली हैं कि उन्हें यह पता ही नहीं चला कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गड़बड़ियाँ कर रहा है, तो उन्हें फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर बने रहने का कोई नैतिक हक़ नहीं है, और उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का विचार छोड़ देना चाहिए ।

Friday, May 11, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 की डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में मुख्य अतिथि के रूप में आ रहे पूर्व प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को कोई भड़का न दे, क्या इसीलिए विनोद बंसल और विनय भाटिया ने उन्हें घेरे रखने तथा अन्य लोगों से दूर रखने की 'तैयारी' की है ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट 3011 की डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में मुख्य अतिथि के रूप में आ रहे पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया तथा डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर विनोद बंसल द्वारा घेरे रखने और अन्य किसी से ज्यादा न मिलने देने की 'तैयारी' करने की चर्चाओं ने डिस्ट्रिक्ट असेम्बली को लेकर पारा चढ़ा दिया है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में आ रहे केआर रवींद्रन के दिल्ली में 36 घंटे से भी ज्यादा रुकने की सूचना मिलने पर कुछेक लोगों ने उनसे दिल्ली में मिलने के लिए समय माँगा, तो वह केआर रवींद्रन से यह सुन कर हैरान रह गए कि दिल्ली में उनके कार्यक्रम कुछ इस तरह आयोजित हैं, कि ज्यादातर समय वह विनोद बंसल और या विनय भाटिया के साथ ही रहेंगे । केआर रवींद्रन से अलग से मिलने की इच्छा रखने व कोशिश करने वालों को यह जान कर निराशा हुई है, और उन्हें लगा है कि विनोद बंसल और विनय भाटिया ने जानबूझ कर ऐसे कार्यक्रम बनाये हैं, जिनमें व्यस्तता के चलते केआर रवींद्रन डिस्ट्रिक्ट के अन्य लोगों से मिल ही न सकें । इस तरह की चर्चा ने डिस्ट्रिक्ट की राजनीति तथा नेताओं के रवैये से मिलने वाले घावों के साथ-साथ वर्ष 2015-16 के आरोपपूर्ण घटनाचक्र को भी हरा और ताजा कर दिया है । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015-16 में केआर रवींद्रन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट थे, और उसी वर्ष डिस्ट्रिक्ट 3011 में हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में विनय भाटिया चुनाव जीते थे । विनय भाटिया को चुनाव जितवाने में जिस स्तर की धाँधली हुई थी, उसकी गूँज रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय तक पहुँची थी; और रोटरी इंटरनेशनल के इतिहास में पहली बार यह हुआ था कि बिना किसी औपचारिक शिकायत के इंटरनेशनल बोर्ड में चुनावी धाँधली के आरोपों पर चर्चा हुई थी - जिसमें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक तलवार, सुशील खुराना व विनोद बंसल की भूमिका की आलोचना की गई थी । पप्पूजीत सिंह सरना की भूमिका को लेकर तो बहुत ही नाराजगी व्यक्त की गई थी ।
दिलचस्प इत्तिफाक है कि विनय भाटिया को चुनाव जितवाने में धाँधलीपूर्ण सक्रियता निभाने के लिए केआर रवींद्रन के कोपभाजन बने विनोद बंसल और पप्पूजीत सिंह सरना करीब दो वर्ष बाद केआर रवींद्रन के सामने होंगे । समझा जाता है कि डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में केआर रवींद्रन को आमंत्रित करके विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट 3011 व केआर रवींद्रन के बीच जमी बर्फ को पिघलाने की पहल की है । दरअसल 2015-16 में रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने जो किया था, उसकी डिस्ट्रिक्ट में भी बड़ी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी, और काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को एक बड़ी सख्त चिट्ठी भेजने पर सहमति बनी थी और उसका ड्राफ्ट भी तैयार हुआ था । लेकिन बाद में फिर यह सोच कर उक्त चिट्ठी न भेजने का ही फैसला किया गया कि इससे रोटरी इंटरनेशनल के साथ टकराव बढ़ेगा ही । सोचा/माना यह गया था कि केआर रवींद्रन का प्रेसीडेंट-काल पूरा हो जायेगा, तो उनसे स्वतः छुटकारा मिल जायेगा । लेकिन प्रेसीडेंट पद से हटने के बाद केआर रवींद्रन की रोटरी इंटरनेशनल में मजबूत हैसियत चूँकि बनी रही, इसलिए डिस्ट्रिक्ट 3011 के नेताओं को उनसे अच्छे संबंध बना कर रखने की जरूरत महसूस हुई । डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने तथा उनके साथ कुछ अतिरिक्त आकर्षक कार्यक्रम रखने के पीछे वास्तव में वही जरूरत काम कर रही है । मुसीबत की बात लेकिन यह भी है कि केआर रवींद्रन और डिस्ट्रिक्ट 3011 के संबंधों में टकराहट पैदा करने के लिए जो लोग मुख्य रूप से जिम्मेदार रहे - विनय भाटिया, विनोद बंसल और पप्पूजीत सिंह सरना; वही तीनों डिस्ट्रिक्ट असेम्बली के मुख्य कर्ताधर्ता हैं - और इस नाते यह केआर रवींद्रन के लगातार सामने रहेंगे ।
केआर रवींद्रन संभवतः यह जानते ही होंगे कि उनके प्रेसीडेंट वर्ष में डिस्ट्रिक्ट 3011 के नेताओं को दी गई सख्त चेतावनी का डिस्ट्रिक्ट के नेताओं पर रत्ती भर का भी असर नहीं पड़ा है, और इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी द्वारा निभाई गई पक्षपातपूर्ण भूमिका को विनय भाटिया व पप्पूजीत सिंह सरना का प्रत्यक्ष तथा विनोद बंसल का अप्रत्यक्ष सहयोग रहने/मिलने के आरोप लगे हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की मनमानी व बद्तमीजीपूर्ण कारस्तानियों को विनय भाटिया का खुल्ला समर्थन तथा कई पूर्व गवर्नर्स की शह मिलती दिखी - जिनके चलते रोटरी के आयोजन सड़कछाप कार्यक्रम बने और वरिष्ठ पूर्व गवर्नर सुरेश जैन से लेकर वरिष्ठ व अत्यंत सक्रिय रोटेरियन आभा झा चौधरी तक को अपमानित होना पड़ा । अगले रोटरी वर्ष के लिए उम्मीदवारी घोषित करने वाले अशोक कंतूर को विनय भाटिया की टीम में महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलती देख विनय भाटिया और विनोद बंसल को अगले रोटरी वर्ष की चुनावी राजनीति में सक्रिय भागीदारी निभाने की तैयारी करते देखा जा रहा है । केआर रवींद्रन के चूँकि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व गवर्नर्स से बहुत ही नजदीकी संबंध हैं, और वह अत्यंत सक्रिय व अपडेट रहने वाले नेता/पदाधिकारी भी हैं, इसलिए माना/समझा जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट 3011 में जो भी गुलगपाड़ा हो रहा है और उसमें शीर्ष नेताओं की जैसी मिलीभगत है, केआर रवींद्रन उससे परिचित ही होंगे । केआर रवींद्रन चूँकि सख्त मिजाज के व्यक्ति माने जाते हैं, इसलिए विनोद बंसल और विनय भाटिया की जोड़ी को यह डर भी है कि केआर रवींद्रन अपने भाषण (या भाषणों) में कहीं कोई ऐसी बात न कह दें, जो उनके लिए फजीहत वाली साबित हो । लोगों को लग रहा है कि शायद इसीलिए विनोद बंसल और विनय भाटिया को ऐसी व्यवस्था करने की जरूरत पड़ी है कि केआर रवींद्रन दिल्ली में जितना समय रहें, वह उनके आसपास ही रहें - ताकि कोई अन्य उनसे न मिल सके और डिस्ट्रिक्ट में क्या कुछ चल रहा है, उससे उन्हें मौके पर अवगत न करा सके । इस तरह मजेदार सीन बना हुआ है, जिसमें कि केआर रवींद्रन को डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में आमंत्रित करने वाले और डिस्ट्रिक्ट असेम्बली के प्रमुख कर्ताधर्ता उनसे डरे हुए भी हैं; उन्हें डर है कि रोटरी इंटरनेशनल में बड़ी हैसियत रखने वाले केआर रवींद्रन से संबंध सुधारने की उनकी चाल कहीं उल्टी न पड़ जाए ।

Thursday, May 10, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल का लीगल विभाग मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के चेयरमैन विनय गर्ग के मामले में प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल के इशारे पर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर 'काम' करते हुए लायंस इंटरनेशनल की न्याय व्यवस्था का ही नहीं, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था का भी मजाक नहीं बना रहा है क्या ?

नई दिल्ली । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग को लायंस इंटरनेशनल के लीगल विभाग से भारतीय समयानुसार आज आधी रात के बाद तीन बजे के करीब जो ईमेल चिट्ठी मिली है, वह इस बात का जीता-जागता सुबूत है कि नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-काल में लायन इंटरनेशनल में किस तरह की मनमानियाँ हो रही हैं, और लायंस इंटरनेशनल की न्याय व्यवस्था का ही नहीं - बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था का भी मजाक बनाया जा रहा है । ईमेल चिट्ठी में विनय गर्ग को धमकाने वाले अंदाज में बताया गया है कि लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करके उन्होंने अपनी लायन सदस्यता को रद्द करने/करवाने का एक कारण और दे दिया है । विनय गर्ग को ध्यान दिलाया गया है कि लायंस इंटरनेशनल में यह नियम है कि कोई लायन सदस्य यदि लायनिज्म की व्यवस्था से बाहर जाकर कार्रवाई करता है, तो उसकी लायन सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी । लीगल विभाग के पदाधिकारी के इस रवैये में आपत्ति की बात यह है कि लायंस इंटरनेशनल में लीगल विभाग लीगल मामलों में कार्रवाई करने के लिए बनाया गया है, वह लोगों को नियम-कानून बताने और या धमकाने के लिए नहीं बनाया गया है । विनय गर्ग ने यदि सचमुच कोई नियम विरुद्ध काम किया है, तो लीगल विभाग के पदाधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह तुरंत उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू करे; लीगल विभाग का पदाधिकारी लेकिन कार्रवाई शुरू करने की बजाए, विनय गर्ग को धमकी देने का काम कर रहा है - तो उससे लग रहा है कि किसी बड़े नेता ने उसे किसी 'और' काम पर लगाया है । यहाँ मजे की यह बात भी गौर करने की है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में पिछले लायन वर्ष के अंतिम दिनों में मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में घटी घटनाओं को लेकर कई लोग पुलिस में और अदालत में गए थे, तब यह लीगल विभाग का अधिकारी कहाँ सो रहा था और लायनिज्म की व्यवस्था से बाहर जाकर कार्रवाई करने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात क्यों नहीं कर रहा था ? इससे जाहिर लग रहा है कि लीगल विभाग का यह अधिकारी अपनी ड्यूटी करने की बजाए लायन लीडर्स की कठपुतली बना हुआ है - और कुछेक लायन लीडर्स के इशारे पर लायंस इंटरनेशनल की व्यवस्था के साथ-साथ भारतीय न्याय व्यवस्था का भी मजाक बना रहा है ।
हद की बात यह भी है कि लीगल विभाग के पदाधिकारी ने विनय गर्ग को धमकाने का यह मौका, जिस मामले में बनाया है - उसे उन्होंने लगभग अंत में धकेल दिया है । लीगल विभाग के पदाधिकारी ने यह पत्र वास्तव में मल्टीपल काउंसिल की आपात मीटिंग बुलाने तथा उसमें लिए गए फैसलों को लेकर लिखा है - लेकिन इस बात का जिक्र उन्होंने चार पैराग्राफ की अपनी चिट्ठी के तीसरे पैराग्राफ में किया है । इसमें भी उन्होंने कोई निर्णय नहीं दिया है, बल्कि चेताया है कि उक्त आपात मीटिंग यदि उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए नहीं की गई है, तो उसके फैसले अमान्य होंगे । यह ऐसी कौन सी खास बात है जिसे बताने में लीगल विभाग के प्रमुख अधिकारी को अपना समय नष्ट करना पड़ा है । यह बात तो हर पदाधिकारी जानता है कि उसने कोई भी काम यदि उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए नहीं किया है, तो वह काम अमान्य ही होगा । एक बार फिर दोहराना चाहेंगे कि लीगल विभाग के एक प्रमुख पदाधिकारी का काम यह बताना नहीं है; उसे तो यह देखना चाहिए था कि उक्त आपात मीटिंग उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए हुई है या नहीं, और यदि नहीं हुई है तो उसे मीटिंग के फैसलों को अमान्य घोषित करना चाहिए । ऐसा न करके, उसने जो किया है - उससे लग रहा है कि वह खुद असमंजस में है कि उसे आखिर कहना/करना क्या है, और ऐसा असमंजस प्रायः तब पैदा होता है जब कोई पदाधिकारी अपने विवेक से फैसला न करके किसी अन्य के आदेश पर काम कर रहा हो ।
आखिरी पैराग्राफ में तो लीगल विभाग के पदाधिकारी ने हद की भी हद कर दी है । उसने विनय गर्ग को निर्देश दिया है कि वह मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के सभी अकाउंट्स मल्टीपल काउंसिल के वाइस चेयरमैन तथा सेक्रेटरी को सौंप दें । क्यों सौंप दें ? लायंस इंटरनेशनल की तरफ से विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद से हटाने की अभी तक कोई अधिकृत कार्रवाई नहीं हुई है; जो अधिकृत कार्रवाई हुई है उसमें विनय गर्ग के क्लब के प्रेसीडेंट को विनय गर्ग को क्लब से निकालने के लिए कहा गया है, जिस पर अदालत से स्टे मिला हुआ है । हर कोई जान/समझ रहा है कि यह अधिकृत कार्रवाई विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद से हटाने/हटवाने की कार्रवाई का हिस्सा ही है; लेकिन आज भी व्यवस्था संबंधी सच्चाई यही है कि विनय गर्ग मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन हैं, और लायंस इंटरनेशनल ने भी उनकी इस स्थिति को लेकर अभी तक कोई चैलेंज नहीं किया/दिया है । गौर करने की बात यह भी है कि लीगल विभाग के पदाधिकारी ने भी यह नहीं कहा है कि विनय गर्ग चेयरमैन का कार्यभार वाइस चेयरमैन को सौंपे; यानि वह भी विनय गर्ग को अभी चेयरमैन मान रहा है - आखिर तब फिर वह अकाउंट्स वाइस चेयरमैन को सौंपने के निर्देश किस अधिकार के तहत दे रहा है ? हर कोई जान रहा है कि नरेश अग्रवाल करीब पचास दिन बाद प्रेसीडेंट के पद पर नहीं रहेंगे, तो क्या लीगल विभाग उनसे कहेगा कि अकाउंट्स प्रेसीडेंट इलेक्ट को सौंप दो ? नरेश अग्रवाल जब प्रेसीडेंट नहीं रहेंगे, और विनय गर्ग जब चेयरमैन नहीं रहेंगे - तब उनसे संबंधित अकाउंट्स स्वतः दूसरे लोगों को ट्रांसफर हो ही जायेंगे, इसमें लीगल विभाग का भला क्या काम है ? इसके बाद भी लीगल विभाग का पदाधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर 'काम' कर रहा है, तो इस संदेह को बल मिल रहा है कि वह किसी अन्य के इशारे पर काम कर रहा है ।
विनय गर्ग से लायंस इंटरनेशनल के लीगल विभाग के पदाधिकारी की भला क्या खुन्नस हो सकती है ? इसलिए संदेह यही किया जा रहा है कि लीगल विभाग के पदाधिकारी को नरेश अग्रवाल के नेतृत्व वाला 'गैंग ऑफ फोर' इस्तेमाल कर रहा है । इससे यह बात भी स्पष्ट हो चली है कि नरेश अग्रवाल के नेतृत्व वाला 'गैंग ऑफ फोर' विनय गर्ग को तरह तरह से घेरने की कोशिश करता रहेगा और मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन का कार्यकाल पूरा नहीं करने देगा । साथ ही लेकिन यह भी दिखाई दे रहा है कि यह सब वह सहज तरीके से तो नहीं ही कर सकेगा । जाहिर है कि मल्टीपल एक बड़े झगड़े और फसाद का केंद्र बनेगा - उस झगड़े और फसाद में जीते चाहें कोई भी, हारेगा सिर्फ लायनिज्म । नरेश अग्रवाल के नेतृत्व वाला 'गैंग ऑफ फोर' विनय गर्ग को 'बर्बाद' और बदनाम करने के लिए तीन-तिकड़म कर रहा होता, तो कोई बात नहीं होती; लेकिन उसकी तीन-तिकड़में जिस तरह से लायनिज्म को बर्बाद और बदनाम करने का काम कर रही हैं - उससे नरेश अग्रवाल का प्रेसीडेंट-काल लायंस इंटरनेशनल पर एक कलंक की तरह ही याद किया जायेगा ।

Wednesday, May 9, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डीके शर्मा के पक्ष में आए अदालती फैसले तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक जैन की हरकत और उस हरकत पर रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय द्वारा अपनाए गए कड़े रवैये जैसी घटनाओं के एक साथ होने/घटने से डिस्ट्रिक्ट में डर हो चला है कि पटरी पर वापस लौटता डिस्ट्रिक्ट कहीं एक बार फिर पटरी से उतर तो नहीं जाएगा ?

सिकंदराबाद । पौढ़ी-गढ़वाल के सिविल जज की अदालत में डीके शर्मा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी सौंपने को लेकर आज हुए एक फैसले ने डिस्ट्रिक्ट 3100 में एक बार फिर उथलपुथल मचा दी है । उथलपुथल दरअसल इस फैसले से उत्साहित होते हुए डीके शर्मा की अगली कार्रवाई से मची है । अदालत में हुए फैसले का संज्ञान लेते हुए डीके शर्मा की तरफ से अगले दो रोटरी वर्षों के लिए हुए चुनाव को निरस्त करने के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू करने की चर्चा है । उनकी कार्रवाई पर अदालती फैसला क्या होगा, यह तो कार्रवाई चलने और फैसला आने के बाद ही पता चलेगा - लेकिन आज जो घटनाचक्र घटा/चला है, उसने कम से कम अगले रोटरी वर्ष के दीपक जैन के गवर्नर-काल को तो संशय में डाल ही दिया है । दीपक जैन बेचारे के लिए मुसीबत की बात यह हो गई है कि उन्हें वैसे भी ज्यादा लोग गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, तिस पर इस तरह की घटनाएँ उनके गवर्नर-काल का और कबाड़ा किए दे रही हैं । एक गवर्नर के रूप में दीपक जैन की कारस्तानियाँ भी उनकी फजीहत करने/करवाने में सहयोग कर रही हैं । डीआरएफसी के पद से अजय कुमार को हटवाने की उनकी कोशिशों का जैसा जो हश्र हुआ और रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने उनकी हरकत को जिस तरह से निष्प्रभावी किया, वह किसी भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए बहुत ही शर्म की बात है । रोटरी इंटरनेशनल के इतिहास में इससे पहले शायद ही कभी ऐसा हुआ होगा, जबकि डीआरएफसी के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की सिफारिश को स्वीकार करने की बजाये रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने उसे रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिया हो । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में दीपक जैन द्वारा की गई हरकत, उस हरकत पर रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय द्वारा अपनाए गए कड़े रवैये और डीके शर्मा की अदालती जीत जैसी घटनाओं के एक साथ होने/घटने से लोगों को यह डर भी हो चला है कि पटरी पर वापस लौटता डिस्ट्रिक्ट कहीं एक बार फिर पटरी से उतर न जाए ।
पिछले दिनों, हिचकोले खाते खाते हुए भी दीपक जैन की गवर्नरी के कार्यक्रमों के जैसे तैसे होने तथा उनके गवर्नर-काल के बाद वाले वर्ष के लिए निर्विरोध तरीके से गवर्नर का चयन होने से लगा था कि डिस्ट्रिक्ट धीरे धीरे ही सही पटरी पर लौट रहा है । डीके शर्मा और उनकी कानूनी लड़ाईयों को लोगों ने भुला दिया था और उनके चैप्टर को खत्म हुआ मान/समझ लिया गया था । लेकिन आज आए अदालती फैसले ने डीके शर्मा के मामले को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है । लगता है कि आज आए फैसले ने डीके शर्मा को एक नई ऊर्जा से भर दिया है, और वह एक बार फिर ताल ठोंक कर रोटरी इंटरनेशनल से भिड़ने को तैयार हो गए हैं । देखा/समझा जा रहा है कि डीके शर्मा को मिली अदालती जीत तथा उनके फिर से सक्रिय होने से डिस्ट्रिक्ट के उन लोगों को खासा उत्साह मिला है, जो दीपक जैन के वोटों की खरीदारी से गवर्नरी का चुनाव जीतने की स्थिति को देख कर निराश हुए हैं । दीपक जैन के चुनावी अभियान में वोटों को खरीदने का जो खुल्लाखेल हुआ, उससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच सवाल उठा/छिड़ा कि दो वर्षों तक डिस्ट्रिक्ट को निलंबित रखने का आखिर क्या फायदा हुआ ? यह सवाल इस विडंबना को देखते हुए और महत्त्वपूर्ण बना कि निहायत शांति और भाईचारे की भावना के साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के लिए चुने गए डीके शर्मा को तो गवर्नरी करने का मौका नहीं मिला, और वोटों की खरीद-फरोख्त के आरोपों के बीच गवर्नर का चुनाव जीतने वाले दीपक जैन को गवर्नरी करने का मौका मिल रहा है । यही कारण रहा कि डिस्ट्रिक्ट के पटरी पर लौटने की स्थिति डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर लोगों को उत्साहित व प्रेरित करने में विफल रही है ।
दीपक जैन की हरकतों ने जैसे ठंडी पड़ती आग में घी डालने का काम किया । दीपक जैन द्वारा चुनाव जीतने के लिए अपनाए गए हथकंडों की चर्चा भी थमने लगी थी, और लोगों ने स्वीकार करना शुरू कर दिया था कि दीपक जैन चाहें जैसे भी हों, और वह चाहें जैसे चुनाव जीते हों - लेकिन डिस्ट्रिक्ट को अब उन्हीं के नेतृत्व में आगे बढ़ना है । यह एक मौका था, जब दीपक जैन होशियारी व जिम्मेदारी से काम लेते तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी साख बनाते, लेकिन वह पदों के मनमाने बँटवारे और छीना-झपटी के खेल में उलझ गए । डीआरएफसी के पद पर नई नियुक्ति को लेकर की गई उनकी मूर्खतापूर्ण कार्रवाई ने तो उन्हें जगहँसाई का पात्र बना दिया । कई-एक लोगों का कहना हालाँकि यह भी है कि दीपक जैन की गलती सिर्फ इतनी है कि वह कठपुतली बने हुए हैं, और उनके नजदीकी उन्हें जैसा नचाते हैं वह नाचते हैं - ऐसे में उनके नजदीकियों ने उन्हें गलत 'स्टेप' बता दिए तो वह भी क्या करते ? कुछेक लोगों का लेकिन यह भी कहना है कि दीपक जैन इतने नादान भी नहीं हैं; वह यह अच्छे से जानते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रोटरी फाउंडेशन के पैसे में हेराफेरी करनी है तो डीआरएफसी अपना 'आदमी' होना चाहिए; उन्हें पता है कि अजय कुमार के डीआरएफसी रहते हुए तो रोटरी फाउंडेशन के पैसों में हेराफेरी करने का उन्हें मौका नहीं मिल सकेगा, इसलिए अजय कुमार को डीआरएफसी पद से हटाने/हटवाने के लिए दीपक जैन ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया - लेकिन तमाम जोर के बावजूद उनके हाथ सिर्फ फजीहत ही लगी । दीपक जैन की इन हरकतों ने डीके शर्मा के साथ हुई नाइंसाफी की बात को और मुखर बना दिया । कई लोग तो कहने भी लगे हैं कि डिस्ट्रिक्ट दीपक जैन के 'हाथ' में रहे, उससे तो अच्छा है कि वह निलंबित ही बना रहे । डीके शर्मा के पक्ष में आज आए अदालती फैसले ने इस बात को और बड़ा करने तथा बढ़ाने का काम किया है कि डीके शर्मा की अदालती कार्रवाई के चलते डिस्ट्रिक्ट यदि निलंबित ही बना रहता है तो कम से कम दीपक जैन की बेईमानीपूर्ण हरकतों से तो बचा रहेगा ।