Wednesday, February 28, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में रमन गुप्ता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी दौड़ में काफी आगे और बढ़त में दिख तो रहे हैं, लेकिन अपने समर्थक नेताओं के 'अति-आत्मविश्वासी' रवैये के चलते उनके सामने अपनी बढ़त को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती भी है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह और निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग के मल्टीपल की राजनीति में व्यस्त रहने का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उनके उम्मीदवार रमन गुप्ता की स्थिति पर खराब असर पड़ता दिख रहा है, जिसका फायदा उठाने के लिए उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार मदन बत्रा तथा उनके समर्थक भरसक प्रयास कर रहे हैं । सत्ता खेमे के ही समर्थक कुछेक लोग कहने भी लगे हैं कि उनके नेता इस वर्ष भी वही गलती कर रहे हैं, जो उन्होंने पिछले वर्ष की थी - और जिसके चलते वह जीती/जिताई बाजी हार बैठे थे । पिछली बार की तरह इस बार भी सत्ता खेमे के नेता अपने उम्मीदवार की जीत को लेकर इस कदर आश्वस्त हैं कि अपनी कमजोरियों तथा अपने फैसलों व रवैयों के चलते बदलती स्थिति का सही सही आकलन नहीं कर पा रहे हैं - कर क्या नहीं पा रहे हैं, आकलन करने की जरूरत तक नहीं समझ रहे हैं । विरोधी खेमा पिछली बार की ही तरह इस बार भी सत्ता खेमे की लापरवाहियों का फायदा उठाने में लगा है । सत्ता खेमे के दोनों बड़े नेताओं ने जिस तरह से खुद को मल्टीपल की राजनीति में उलझा रखा है, उसके कारण भी डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में उनकी पकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है । दरअसल, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में इंद्रजीत सिंह ने विनय गर्ग को जो तवज्जो दी/दिलवाई है, उसके कारण सत्ता खेमे के ही कई पूर्व गवर्नर्स बिदके हुए हैं और अपने आपको अलग-थलग व उपेक्षित पा रहे हैं । उनकी नाराजगी रमन गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए नुकसानदेह हो सकती है ।
सत्ता खेमे के नेताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती जेपी सिंह बने हुए हैं । जेपी सिंह से उन्हें लड़ना तो है, लेकिन उनसे लड़ने के नए 'हथियार' और या तौर/तरीके वह नहीं खोज पा रहे हैं । जेपी सिंह को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने से रोकने की उनकी कोशिशें सफल तो नहीं ही हो पा रही हैं, डिस्ट्रिक्ट में भी कई लोगों को उनकी यह कोशिशें पसंद नहीं आ रही हैं - लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट को यदि इंटरनेशनल डायरेक्टर का पद मिल रहा है, तो अपनी निजी खुन्नस में उसका विरोध क्यों किया जाना ? ब्लड बैंक की बेईमानियों को मुद्दा बना कर जेपी सिंह को जब जिस तरह घेरा गया था, वह मुद्दा कामयाब रहा था; लेकिन जेपी सिंह के ब्लड बैंक छोड़ देने के बाद उनके विरोधी कोई कारगर/धारदार मुद्दा उनके खिलाफ नहीं खोज/बना सके हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर के मुद्दे पर लड़ाई जब तक डिस्ट्रिक्ट में थी, तब तक जेपी सिंह के विरोधियों को समर्थन मिल रहा था - लेकिन पहले डिस्ट्रिक्ट और फिर मल्टीपल में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जेपी सिंह के एंडोर्स हो जाने के बाद डिस्ट्रिक्ट में समीकरण बदल गए हैं; और उनके विरोधी रहे लोगों में से भी कई लोग मानने और कहने लगे हैं कि अभी भी जेपी सिंह के इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में रुकावटें पैदा करने के प्रयास सिर्फ खुन्नसी राजनीति के सुबूत हैं, और यह कामयाब भी नहीं हो रहे हैं । इसामे फोरम से जेपी सिंह को एंडोर्समेंट मिल जाने के बाद मल्टीपल में उन्हें रोकने की कोशिशें बेमानी भी हो गईं हैं । मदन बत्रा की उम्मीदवारी के अभियान में इस मुद्दे को जिस तरह से हवा दी जा रही है, उससे रमन गुप्ता की उम्मीदवारी के चुनाव प्रचार अभियान पर कुछ दबाव तो पड़ ही रहा है ।
रमन गुप्ता के सामने लेकिन इससे भी बड़ी चुनौती अपने समर्थक पूर्व गवर्नर्स को सक्रिय करने की है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह ने क्लब्स के आयोजनों में जिस तरह से निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग को तवज्जो दिलवाने पर जोर दिया, उसके कारण क्लब्स के कार्यक्रमों से पूर्व गवर्नर्स का पत्ता पूरी तरह से कटा रहा । इस बात से सत्ता खेमे को दोहरा झटका लगा । दरअसल हुआ यह है कि विरोधी खेमे के क्लब्स तो अपने कार्यक्रमों में विरोधी खेमे के पूर्व गवर्नर्स को बुलाते रहे, जिस कारण वह सक्रिय व चार्जड रहे और अपनी राजनीति करते रहे; लेकिन सत्ता खेमे के क्लब्स में चूँकि विनय गर्ग को ही बुलाए जाने का फरमान था, इसलिए सत्ता खेमे के पूर्व गवर्नर्स बेचारे घर बैठने को मजबूर हुए और अब चुनाव के मौके पर वह उतने चार्जड नजर नहीं आ रहे हैं, जितने की उनसे उम्मीद की जाती है । इस कारण से रमन गुप्ता की उम्मीदवारी के अभियान में उतनी तेजी और सघनता नहीं बन पा रही है, जितनी की बननी चाहिए - और इसका फायदा मदन बत्रा की उम्मीदवारी के समर्थक उठाते नजर आ रहे हैं । हालाँकि अभी भी सत्ता खेमे के उम्मीदवार होने के नाते रमन गुप्ता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी दौड़ में काफी आगे और बढ़त में दिख रहे हैं, लेकिन अपने समर्थक नेताओं के 'अति-आत्मविश्वासी' रवैये के चलते उनके सामने अपनी बढ़त को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती भी बन गया है । पिछले वर्ष सत्ता खेमे के नेताओं के इसी 'अति-आत्मविश्वासी' रवैये के कारण यशपाल अरोड़ा का बेड़ा-गर्क हुआ था - लगता है कि उस झटके से सत्ता खेमे के नेताओं ने कोई सबक नहीं सीखा है । यह भी ठीक है कि एक उम्मीदवार के रूप में मदन बत्रा वैसा 'दम' नहीं दिखा पा रहे हैं, जैसा पिछले वर्ष उनके खेमे के गुरचरण सिंह भोला ने दिखाया था; इसलिए मदन बत्रा की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में अभी भी ज्यादा स्वीकार्यता नहीं मिलती दिख रही है - लेकिन चुनावी राजनीति में अपनी कमजोरी को अनदेखा करना रमन गुप्ता और उनके समर्थक नेताओं के लिए मुसीबत भी बन जा सकता है । 

Monday, February 26, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल में अल्पमत वाले सत्ता खेमे के सदस्यों की चालबाजियों को पिटता देख उम्मीद बनी है कि इस बार बहुमत के समर्थन वाला सदस्य ही चेयरमैन बनेगा, और वह ज्ञान चंद्र मिश्र होंगे

कानपुर । सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन का चुनाव करने के लिए अल्पमत वाले सत्ता खेमे ने काउंसिल सदस्यों की मीटिंग 22 फरवरी को करने की जो योजना बनाई थी, उसके फेल हो जाने के कारण अभी के सत्ता खेमे के सदस्यों के सामने सत्ता से बाहर हो जाने का खतरा पैदा हो गया है - और सभी को विश्वास है कि सत्ता खेमे के सदस्यों तथा उनके समर्थक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने यदि कोई घटिया हरकत नहीं की तो चेयरमैन पद पर ज्ञान चंद्र मिश्र की ताजपोशी हो जाएगी । यह उम्मीद तो हालाँकि पहले से ही थी कि प्रकाश शर्मा, मुकेश कुशवाह, मनु अग्रवाल व केमिशा सोनी के रूप में सेंट्रल काउंसिल के जिन चार सदस्यों ने एक्स-ऑफिसो के रूप में अल्पमत वाले चेयरमैन को चुनवाने की जो हरकत पिछली बार की थी, उसे वह इस बार नहीं दोहरायेंगे । दरअसल इस हरकत के लिए उनकी भारी फजीहत हुई और अल्पमत वाला चेयरमैन जिस तरह सिर्फ एक कठपुतली बन कर रह गया और काउंसिल के कामकाज का बेड़ागर्क कर गया, उसके लिए लोगों ने चेयरमैन को कम तथा उन्हें समर्थन देने वाले चार सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को ज्यादा कोसा । चुनावी वर्ष में ऐसी फजीहत झेलना उनके लिए आत्मघाती हो सकता है, इसलिए अब की बार उनके रीजनल काउंसिल की चुनावी राजनीति से दूर रहने की उम्मीद की गई थी - और लोगों की यह उम्मीद काउंसिल सदस्यों की 22 फरवरी की मीटिंग को लेकर छिड़े विवाद में उनके रवैये से पूरी होती हुई दिखी भी । मजे की बात यह देखने में आई कि पूरे वर्ष सत्ताधारियों की जो फजीहत हुई, उससे सेंट्रल काउंसिल के सदस्य तो सबक लेते हुए दिखे, लेकिन रीजनल काउंसिल के सदस्य पुराने ढर्रे पर ही चलते हुए नजर आए । मीटिंग के लिए 22 फरवरी की तारीख तय करके उन्होंने यही साबित किया कि उनके लिए मानवीयता का कोई मूल्य और महत्ता नहीं है, और अपने साथ के लोगों के दुःख में भी वह अपना फायदा लेने/उठाने का काम कर सकते हैं ।
22 फरवरी को दरअसल सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के ही एक सदस्य रोहित रुवाटिया की माँ की तेरहवीं का कार्यक्रम था । रीजनल काउंसिल के सत्ता खेमे के सदस्यों ने आकलन किया कि रोहित रुवाटिया तो वहाँ व्यस्त होंगे, और इस कारण से काउंसिल की मीटिंग में शामिल नहीं हो सकेंगे - इससे विरोधी खेमे की ताकत घटेगी, जिसका फायदा वह उठा सकेंगे । काउंसिल के सदस्य के रूप में अपने ही साथी की माँ के निधन में राजनीतिक फायदा उठा लेने का मौका बनाने की यह हरकत साबित करती है कि सत्ता खेमे के सदस्यों के लिए राजनीति और कुर्सी ही सर्वोपरि है । अन्य कुछेक लोगों के साथ-साथ पिछले चेयरमैन अभय छाजेड़ ने भी काउंसिल के सेक्रेटरी मुकेश बंसल से अनुरोध किया कि वह जानते तो हैं ही कि 22 फरवरी को रोहित रुवाटिया की माँ की तेरहवीं हैं, इसलिए उस दिन मीटिंग न रखें, बाद की किसी भी तारीख में मीटिंग रख लें । इसके बावजूद मुकेश बंसल ने 22 फरवरी की ही मीटिंग रख ली और उसका नोटिस निकाल दिया । इस पर बबाल होना ही था, और वह हुआ भी । मुकेश बंसल की तरफ से सुना गया कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य प्रकाश शर्मा ने उन्हें आश्वस्त किया कि 22 फरवरी को मीटिंग करने को लेकर जो हाय/हल्ला है, उसे अनसुना करो - क्योंकि यह हाय/हल्ला करने वाले लोग इससे ज्यादा और कुछ कर भी नहीं सकेंगे । प्रकाश शर्मा को दरअसल गौतम शर्मा को रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की टीम में फिट करना था, और उन्हें लगता रहा कि 22 फरवरी को मीटिंग करके ही वह इस काम को कर सकते हैं । लेकिन जल्दी ही प्रकाश शर्मा और रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को समझ में आ गया कि 22 फरवरी को मीटिंग करने की उनकी चालबाजी कामयाब हो नहीं पाएगी ।
दरअसल काउंसिल सदस्य रोहित रुवाटिया की माँ की तेरहवीं वाले दिन ही मीटिंग करने को लेकर रीजन के लोगों से जो प्रतिक्रिया मिली, उसके चलते सेंट्रल काउंसिल में प्रकाश शर्मा के संगी-साथियों ने इस मुद्दे पर उनसे अलग राय रखना शुरू की । इससे जो माहौल बना, उससे 22 फरवरी को मीटिंग करके अपना राजनीतिक हित साधने वाले काउंसिल सदस्यों को समझ में आ गया कि 22 फरवरी को मीटिंग करने की जिद करके कहीं ऐसा न हो कि उन्हें लोगों के बीच बदनामी भी मिले, और कोई पद भी न मिले । लिहाजा 22 फरवरी की मीटिंग स्थगित करके, मीटिंग के लिए 28 फरवरी की नई तारीख घोषित की गई । रीजनल काउंसिल के मौजूदा सत्ता खेमे में 10 में से कुल चार सदस्य ही हैं; पिछली बार सेंट्रल काउंसिल के जिन चार सदस्यों के समर्थन से इन्होंने अल्पमत में होने के बावजूद सत्ता पा ली थी, वह इस बार पिछली बार जैसी भूमिका निभाने को तैयार नहीं नजर आ रहे हैं । इससे लग रहा है कि इस बार सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल को बहुमत के समर्थन वाला चेयरमैन मिल जायेगा । बहुमत वाले खेमे में चेयरमैन पद के लिए ज्ञान चंद्र मिश्र के नाम पर सहमति है, इसलिए उम्मीद की जा रही है कि 28 फरवरी को ज्ञान चंद्र मिश्र नए चेयरमैन चुन ही लिए जायेंगे ।

Sunday, February 25, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के चुनाव में पंकज पेरिवाल के समर्थकों ने मनीलॉन्ड्रिंग के मामले में फँसे राजेश अग्रवाल को लेकर बहुमत वाले ग्रुप में फूट डालने की कोशिशें तेज कीं

नई दिल्ली । राजेश अग्रवाल को धमका/फुसला कर अपने समर्थन में लाने/करने में असफल रहने के बाद पंकज पेरिवाल को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनवाने में लगे सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने अब राजेश अग्रवाल को निशाने पर लेकर अपने 'लक्ष्य' को साधने की रणनीति बनाई है । उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल के सदस्य राजेश अग्रवाल की गर्दन मनीलॉन्ड्रिंग के एक केस में फँसी हुई है, जिसके चलते वह जेल में भी रह चुके हैं, और फिलहाल जमानत पर हैं । रीजनल काउंसिल में अपने ग्रुप के अल्पमत स्टेटस को बहुमत में बदलने लिए सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा कई बार उन्हें अपने ग्रुप में लाने की कोशिश कर चुके हैं । पिछले महीनों में जब जब राजेश शर्मा के ग्रुप को बहुमत की जरूरत पड़ी, तब तब राजेश शर्मा ने अपने भाजपाई कनेक्शन का वास्ता देकर उन्हें कभी 'बच नहीं पाओगे' की धमकी देकर तो कभी 'हम बचा सकते हैं' का लालच देकर अपनी तरफ करने की कोशिशें कीं, लेकिन असफल रहे । पंकज पेरिवाल को चेयरमैन बनवाने के लिए तो राजेश शर्मा ने राजेश अग्रवाल का समर्थन लेने का जोरदार प्रयास किया, और इसके बदले में उन्हें चेयरमैन के अलावा कोई भी पद लेने का ऑफर दिया । राजेश अग्रवाल लेकिन 'हार्ड बारगेनर' निकले । उन्होंने माँग की कि चेयरमैन पद के लिए उनके नाम की पर्ची डाली जाए । राजेश शर्मा इस माँग को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुए । उन्हें डर हुआ कि पर्ची कहीं राजेश अग्रवाल की निकल आई, तो उनकी तो सारी कारस्तानी पर पानी फिर जाएगा । इस तरह, पंकज पेरिवाल को चेयरमैन बनवाने के लिए राजेश अग्रवाल के साथ की जा रही सौदेबाजी असफल हो गईं ।
पंकज पेरिवाल के समर्थक नेताओं ने राजेश अग्रवाल का समर्थन न मिलने की स्थिति में पैंतरा बदल कर उनके विरोध का झंडा उठा लिया है । राजेश अग्रवाल को चेयरमैन के अलावा कोई भी पद देने के लिए तैयार रहने वाले नेताओं ने रंग बदलते हुए अब घोषणा की है कि राजेश अग्रवाल की काउंसिल के किसी भी पद के लिए उम्मीदवारी आई, तो सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की भी वोटिंग करवाई जायेगी - ताकि राजेश अग्रवाल जैसे 'आरोपी' को काउंसिल में कोई पद न मिले । तर्क दिया जा रहा है कि राजेश अग्रवाल चूँकि मनीलॉन्ड्रिंग के मामले में आरोपी हैं और जेल की हवा भी खा चुके हैं, इसलिए उनका काउंसिल में किसी भी पद पर होना इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए बदनामीभरा मामला होगा । पंकज पेरिवाल के समर्थकों ने इस घोषणा के जरिए दरअसल बहुमत खेमे में एक तरफ तो फूट डालने की चाल चली है, और दूसरी तरफ सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के रीजनल काउंसिल के चुनाव में शामिल होने की 'भूमिका' तैयार की है । पंकज पेरिवाल के समर्थकों को उम्मीद है कि राजेश अग्रवाल को लेकर वह जो पेंच फँसा रहे हैं, उससे काउंसिल के सात सदस्यीय बहुमत खेमे में फूट पड़ जाएगी, जो उनका काम बनाएगी; और यदि बहुमत खेमे के लोगों ने आपसी समझदारी का परिचय देते हुए अपनी एकता को बनाए रखा, तो पंकज पेरिवाल के समर्थक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को बहाना मिल जायेगा कि वह तो इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की साख व प्रतिष्ठा बचाने के लिए चुनाव में कूदे हैं । पंकज पेरिवाल के समर्थकों को विश्वास है कि उनका यह गिरगिटी रंग बदलता रवैया - कि राजेश अग्रवाल यदि 'हमारे' साथ है तब तो ठीक है, लेकिन यदि किसी और के साथ है तो इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की बदनामी हो जाएगी; और तब इस बदनामी को रोकने के लिए सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को चुनाव में आना ही पड़ेगा - उन्हें अवश्य ही सफलता दिलवायेगा ।
यह सचमुच दिलचस्प नजारा है कि इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को बदनामी को बचाने की जिम्मेदारी राजेश शर्मा जैसों के कंधे पर आ पड़ी है । यह तो बड़ा चुटकुला हो गया है । राजेश शर्मा की करतूतों ने इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की कितनी और कैसी बदनामी करवाई है, यह बात क्या किसी से छिपी है ? जिस राजेश शर्मा के लिए इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में 'राजेश शर्मा चोर है' 'राजेश शर्मा दलाल है' जैसे नारे गूँजे हों - वह राजेश शर्मा इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को बदनामी से बचाने की बात करते हैं, तो इसे एक अवसरवादी व्यवहार के रूप में ही देखा/पहचाना जायेगा । रही बात राजेश अग्रवाल की - तो उन पर जो आरोप है, वह जगजाहिर है; उसके बाद भी वह रीजनल काउंसिल के सदस्य हैं, तो जाहिर है कि न तो देश का कोई कानून और न इंस्टीट्यूट का कोई नियम/कानून उन्हें काउंसिल की गतिविधियों में शामिल होने से रोक सकता है । राजेश अग्रवाल को लेकर जो लोग बदनामी की बात कर रहे हैं, वह विभिन्न कार्यक्रमों में राजेश अग्रवाल के साथ खड़े होकर तस्वीरें खिंचवा चुके हैं । सेंट्रल काउंसिल के जो सदस्य राजेश अग्रवाल के रीजनल काउंसिल में पदाधिकारी बनने को इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए बदनामीभरा मानते हैं, उन्होंने यह प्रयास आखिर कभी क्यों नहीं किया कि राजेश अग्रवाल को काउंसिल की गतिविधियों से अलग-थलग किया जाए - क्या इसलिए क्योंकि वह भी जानते हैं कि मनीलॉन्ड्रिंग के जैसे जो आरोप राजेश अग्रवाल पर हैं, वैसे काम-धंधे तो कई एक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के भी बताए जाते हैं; अभी फर्क सिर्फ इतना है कि राजेश अग्रवाल पकड़े जा चुके हैं, जबकि दूसरे लोग अभी पकड़ में नहीं आए हैं । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सीए डे के फंक्शन में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को खुली लताड़ लगाई ही थी, इसलिए मनीलॉन्ड्रिंग के आरोप में फँसे राजेश अग्रवाल को काउंसिल पदाधिकारी न बनने देने के नाम पर की जाने वाली राजनीति वास्तव में घड़ियाली आँसूं बहाने तथा नौ सौ चूहे खा चुकी बिल्ली के हज पर जाने की तैयारी करने जैसा मामला ही है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के चुनाव में यह नाटक भी देखने को मिलेगा, यह भला किसने सोचा था ?

Saturday, February 24, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए भरत पांड्या और अशोक गुप्ता के बीच हो रहे चुनाव में अचानक से नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस वाले डिस्ट्रिक्ट 3100 को वोटिंग अधिकार दिलवाने के फैसले ने चुनाव को और भी विवादपूर्ण बना दिया है

नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जोन 4 में वोट डालने की समय-सीमा के अंतिम सप्ताह में डिस्ट्रिक्ट 3100 को अचानक से वोटिंग अधिकार मिलने की खबर से जो हड़कंप मचा है, उसने रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों की कार्य-पद्धति पर तो सवालिया निशान लगाया ही है - चुनावी व्यवस्था को भी शक व आरोपों के घेरे में ला दिया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 सजा के तौर पर नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में है, और इसलिए एक डिस्ट्रिक्ट के रूप में उसकी पहचान और उसके अधिकार निलंबित हैं । डिस्ट्रिक्ट में कोई गवर्नर नहीं है और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को इंटरनेशनल असाइनमेंट्स से अलग-थलग किया हुआ है । डिस्ट्रिक्ट की व्यवस्था देखने और उसे 'रास्ते पर लाने' की जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर संजय खन्ना को सौंपी हुई है । खास और अंतर्विरोधी बात लेकिन यह है कि संजय खन्ना की देखरेख में डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट स्टेटस वाले काम हो भी रहे हैं - जैसे क्लब्स की सक्रियता बनी हुई है, संजय खन्ना के प्रयत्नों से रोटरी फाउंडेशन से संबद्ध कार्रवाइयाँ शुरू हुई हैं और अगले रोटरी वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का चुनाव भी संपन्न हुआ है । लेकिन फिर भी, नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस के कारण डिस्ट्रिक्ट 3100 को इंटरनेशनल डायरेक्टर का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में प्रतिनिधित्व नहीं मिला, और इस पर किसी को कोई आश्चर्य भी नहीं हुआ । न इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवारों और उनके समर्थकों ने, और न डिस्ट्रिक्ट 3100 के वोटरों ने इसकी कोई उम्मीद या माँग ही की । सभी ने मान लिया कि नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में होने के कारण डिस्ट्रिक्ट 3100 को भरत पांड्या व अशोक गुप्ता के बीच हो रहे इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव की प्रक्रिया से बाहर ही रहना है ।
लेकिन अभी जब इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव पूरे होने की समय-सीमा को समाप्त होने में करीब सप्ताह भर का ही समय बचा रह गया है, तब अचानक से सूचना मिली कि डिस्ट्रिक्ट 3100 के क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को लिंक व पासवर्ड भेजे जा रहे हैं, ताकि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में वह अपने अधिकार का प्रयोग कर सकें । अचानक मिली इस सूचना से हड़कंप मचना स्वाभाविक ही था, और वह मचा भी । हैरत की बात किंतु यह हुई कि इस बारे में पक्की सूचना और या व्यवस्था के बारे में संबद्ध पदाधिकारियों को भी कुछ पता नहीं था । प्रेसीडेंट्स को लिंक व पासवर्ड भेजे जाने की सूचना तो मिली है, लेकिन सचमुच में लिंक व पासवर्ड नहीं मिले । इस बारे में जब रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों से पूछा गया तो उन्होंने कोई जानकारी न होने की बात कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया । डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लगा कि साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारी कामचोरी कर रहे हैं और या किसी उम्मीदवार को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से बदमाशी दिखा रहे हैं । हद की बात तो यह हुई कि रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में डिस्ट्रिक्ट 3100 की जिम्मेदारी देख/संभाल रहे संजय खन्ना तक को अधिकृत रूप से नहीं पता कि वास्तव में हो क्या रहा है; इसीलिए पहले तो उन्होंने इसे अफवाह बताया, लेकिन जब उन्हें बताया गया कि कुछेक क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को लिंक व पासवर्ड मिले हैं - तब वह यह पता करने के लिए सक्रिय हुए कि इस मामले में हो क्या रहा है, और वास्तव में होना क्या है ? यह स्थिति तब की है, जब वोटिंग लाइन बंद होने में कुल चार दिन बचे हैं । रोटरी इंटरनेशनल पदाधिकारियों के काम करने के बेवकूफीभरे तरीके का यह एक नया और दिलचस्प उदाहरण है ।
इस नए उदाहरण से एक बार फिर यह सवाल उठा कि रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों की अक्ल का ताला धीरे धीरे खुलता है क्या ? नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में होने के कारण जिस डिस्ट्रिक्ट 3100 को नोमीनेटिंग कमेटी में प्रतिनिधित्व देने से तो इंकार कर दिया गया, लेकिन अब जब चुनावी प्रक्रिया संपन्न होने में कुल चार दिन बचे हैं, तब उसी डिस्ट्रिक्ट को चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने का अधिकार दे दिया गया है । तर्क सुना जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट भले ही नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में हो, लेकिन क्लब्स तो काम कर रहे हैं - इसलिए उनके प्रेसीडेंट्स को चुनावी प्रक्रिया में शामिल कर लिया गया है । इस तर्क से सवाल लेकिन यह उठता है कि नोमीनेटिंग कमेटी के लिए प्रतिनिधि चुनने का काम भी तो प्रेसीडेंट्स को ही करना था - तब प्रेसीडेंट्स को उनके अधिकार देने का ख्याल क्यों नहीं आया ? मजे की और मजाक की बात यह भी है कि नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस के बावजूद डिस्ट्रिक्ट 3100 के प्रेसीडेंट्स के लिए रोटरी फाउंडेशन के अधिकार तो खुले हुए हैं; उन्होंने अगले रोटरी वर्ष के लिए गवर्नर का चुनाव भी कर लिया है - जिसे रोटरी इंटरनेशनल ने ट्रेनिंग भी दे दी है; लेकिन उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव/चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में प्रतिनिधि चुनने/भेजने का अधिकार नहीं दिया गया । पर अब जब रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों की अक्ल का ताला खुला, तो उन्होंने नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में होने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट 3100 को इंटरनेशनल डायरेक्टर के लिए समाप्ति की ओर बढ़ रही चुनावी प्रक्रिया में शामिल करने का फैसला कर लिया है ।
अचानक हुए इस फैसले को लेकिन शक की निगाह से भी देखा/पहचाना जा रहा है । कई एक लोगों को शक है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 को अचानक से अंतिम दिनों में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में शामिल करने के पीछे भरत पांड्या की उम्मीदवारी को फायदा पहुँचाने का उद्देश्य छिपा हो सकता है । जोन की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों का मानना और कहना है कि जोन के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में पड़े वोटों का जो विवरण मिल रहा है, उसमें भरत पांड्या के मुकाबले अशोक गुप्ता का पलड़ा भारी पहचाना जा रहा है, जिसके कारण भरत पांड्या के समर्थक बड़े नेताओं के बीच चिंता और घबराहट है । हालाँकि भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक बड़े नेताओं ने अपनी तरफ से भरत पांड्या की उम्मीदवारी को बढ़त दिलवाने के लिए प्रयास तो खूब किए, लेकिन अपने प्रयासों का कोई लाभ मिलता हुआ उन्हें नहीं दिख रहा है । लोगों के बीच चर्चा सुनी जा रही है कि अशोक गुप्ता की बढ़त को रोकने के लिए ही भरत पांड्या के समर्थक नेताओं ने आनन-फानन में डिस्ट्रिक्ट 3100 को चुनावी प्रक्रिया में शामिल करवाने का फैसला करवा लिया है । उन्हें उम्मीद है कि यहाँ वह भरत पांड्या को इतने वोट जरूर दिलवा लेंगे, जिससे कि अशोक गुप्ता की बढ़त को वह रोक सकेंगे । उल्लेखनीय है कि भरत पांड्या को ज्यादा से ज्यादा वोट दिलवाने के लिए उनके समर्थक नेताओं ने कुछेक डिस्ट्रिक्ट्स में वोटिंग लाइन भी शिड्यूल से पहले ही खुलवा ली थीं, जिस पर खासा विवाद हुआ था । चुनावी प्रक्रिया पूरी होने के शिड्यूल से सप्ताह भर पहले अचानक से डिस्ट्रिक्ट 3100 को चुनावी प्रक्रिया में शामिल करने के फैसले ने जोन 4 में हो रहे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को और भी विवादपूर्ण बना दिया है ।

Friday, February 23, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में लगातार दो वर्ष हारने का तर्क देकर अनूप मित्तल को अबकी बार चुनावी मुकाबले से बाहर रहने/करवाने का विनोद बंसल का 'विचार' अशोक कंटूर को फायदा पहुँचवाने का प्रयास है क्या ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अगले रोटरी वर्ष में होने वाली चुनावी लड़ाई में अशोक कंटूर को फायदा पहुँचाने और या वरीयता देने की कोशिश में अनूप मित्तल को बाहर बैठाने के लिए की जा रही कोशिशों ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा कर दी है । यह गर्मी इस कारण भी तेज हुई है, क्योंकि उक्त कोशिश की अगुआई विनोद बंसल कर रहे हैं । विनोद बंसल अगले रोटरी वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर की भूमिका में तो हैं ही, अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया को यूँ भी उनके ही 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है - और विनय भाटिया के अभी तक जो भी कार्यक्रम हुए हैं, उनमें अशोक कंटूर को अच्छी तवज्जो तथा आगे आगे रहने का मौका मिला है । दरअसल इसी पृष्ठभूमि के कारण अनूप मित्तल को पीछे करके अशोक कंटूर को आगे बढ़ाने की विनोद बंसल की कोशिश विवाद का विषय बन गई है । हालाँकि विनोद बंसल ने कई मौकों पर कहा है कि वह किसी को आगे/पीछे करने का काम नहीं कर रहे हैं; उनके लिए अनूप मित्तल भी महत्त्व रखते हैं और अशोक कंटूर भी महत्त्वपूर्ण हैं । उनका तो सिर्फ यह मानना/कहना है कि इनकी एनर्जी का फायदा डिस्ट्रिक्ट व रोटरी को मिले, न कि एक-दूसरे से 'लड़' कर नष्ट हो जाए; उनका मानना है कि दोनों को ही गवर्नर बनना है और दोनों को बनना ही चाहिए, और यह काम आपस में लड़े बिना आगे/पीछे बन के हो सकता है । दोनों में से आगे कौन रहे, पहले कौन बने - इस बारे में विनोद बंसल ने तर्क दिया कि अनूप मित्तल चूँकि लगातार दो बार चुनाव हार चुके हैं, इसलिए अपनी हार के कारणों का मंथन करने के लिए उन्हें थोड़ा 'दूर' रह कर विचार करना चाहिए और इसके लिए एक वर्ष अपनी उम्मीदवारी से गैप करना चाहिए । विनोद बंसल का कहना रहा कि यह सिर्फ उनका विचार है, दूसरे लोगों को भी इस बारे में अपने अपने विचार देने चाहिए, और बहुमत की जो राय हो - उसे स्वीकार किया जाना चाहिए । लेकिन विनोद बंसल का यह विचार ही बबाल का कारण बन गया है ।
लोग वास्तव में विचार पर गौर नहीं कर रहे हैं - गौर इस बात पर कर रहे हैं कि यह विचार विनोद बंसल क्यों दे रहे हैं ? हालाँकि इसमें लोगों का ज्यादा दोष नहीं है - क्योंकि उन्हें एक तरफ तो विनोद बंसल की सरपरस्ती वाले रोटरी वर्ष के कार्यक्रमों में अशोक कंटूर को तवज्जो मिलती दिख रही है, और दूसरी तरफ विनोद बंसल से अशोक कंटूर को फायदा पहुँचाने वाला विचार सुनने को मिल रहा है; दरअसल इसी परस्पर जुड़े दिख रहे दृश्य के कारण विनोद बंसल और उनका विचार विवाद में फँस गया है । विनोद बंसल के नाम पर विवाद हो जाने से कुछेक पूर्व गवर्नर्स अचानक से अनूप मित्तल के समर्थक हो गए हैं, और उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में विनोद बंसल अपनी राजनीति कर रहे हैं । विनोद बंसल बातों बातों में अजीत जालान का नाम भी भावी उम्मीदवार के रूप में ले लेते हैं । इससे लोगों को लग रहा है कि उन्होंने 'अपने' उम्मीदवारों की कोई लिस्ट तैयार कर ली है । अशोक कंटूर को फायदा पहुँचाने के लिए अनूप मित्तल को रास्ते से हटाने का विनोद बंसल का उनके लगातार दो वर्ष हारने का जो तर्क है, वह भी विवाद में पड़ गया है । अनूप मित्तल के पुराने और नए बने समर्थकों का कहना है कि पहले वर्ष में कुल करीब दो महीने की उम्मीदवारी में अनूप मित्तल पाँच उम्मीदवारों में दूसरे नंबर पर रहे थे, और दूसरे वर्ष में वह वास्तव में हारे नहीं हैं - बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने बेशर्म व निर्लज्ज किस्म की हरकतों के जरिए उन्हें हराया है । इसलिए अनूप मित्तल की लगातार दो वर्षों की उनकी हार को उनकी कमजोरी के रूप में नहीं देखा जा सकता है । और इसीलिए अनूप मित्तल को अपनी हार के कारणों पर विचार मंथन करने की जरूरत नहीं है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ व जिम्मेदार पूर्व गवर्नर्स को यह विचार करने की जरूरत है कि डिस्ट्रिक्ट में चुनाव को लेकर क्या मैकेनिज्म बनाया जाए ताकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर बैठा व्यक्ति पक्षपातपूर्ण बेईमानी कम से कम बेशर्मी के साथ न कर सके ! 
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी की कारस्तानियों का कच्चा-चिटठा अनूप मित्तल के क्लब के प्रेसीडेंट ने तैयार किया था, जिसे वह रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय भेजने की तैयारी कर रहे थे । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता तथा अन्य कुछ वरिष्ठ पूर्व गवर्नर्स ने डिस्ट्रिक्ट की छवि और पहचान व प्रतिष्ठा खराब होने का वास्ता देकर उन्हें रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करने से रोका । अनूप मित्तल और उनके क्लब के पदाधिकारियों को आश्वस्त किया गया कि वह आगे इस बात का ध्यान रखेंगे और व्यवस्था बनायेंगे कि कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनावी राजनीति में वैसी सक्रिय भूमिका न निभा सके, जैसी कि रवि चौधरी ने निभाई है । अनूप मित्तल की तरफ से हो सकने वाली चुनावी शिकायत को रोकने के लिए सुशील गुप्ता तथा कुछेक अन्य पूर्व गवर्नर्स ने अनूप मित्तल को आश्वस्त किया था कि वह देखेंगे कि आगे उनके साथ वैसी नाइंसाफी न हो, जैसी इस वर्ष हुई है । लेकिन विनोद बंसल की मुहिम से सुशील गुप्ता तथा अन्य पूर्व गवर्नर्स की तरफ से अनूप मित्तल को दिया गया आश्वासन संकट में पड़ता नजर आ रहा है । विनोद बंसल ने हालाँकि कई बार कहा/दोहराया है कि उनके डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर होते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनय भाटिया चुनाव में सक्रिय व पक्षपातपूर्ण भूमिका नहीं निभा सकेंगे; लेकिन अशोक कंटूर को फायदा पहुँचाने की गरज से अनूप मित्तल को चुनावी मुकाबले से हटने/हटवाने का विचार व्यक्त करके उन्होंने एक अपनी भूमिका के प्रति संदेह तो पैदा कर ही लिया है - और इस कारण से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में गर्मी आ गई महसूस होने लगी है ।

Wednesday, February 21, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता और उनके पिता एनडी गुप्ता के नाम पर नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनवाने की विजय झालानी की राजनीति ने पंकज पेरिवाल का और तमाशा बनाया

नई दिल्ली । राजेश शर्मा और विजय गुप्ता के बाद एनडी गुप्ता व नवीन गुप्ता का नाम लेकर विजय झालानी के भी पंकज पेरिवाल को चेयरमैन बनवाने के लिए कमर कस लेने के चलते, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन का चुनाव और भी दिलचस्प हो गया है । यह दिलचस्प इसलिए भी हो गया है क्योंकि इतने तुर्रमखाँओं के सक्रिय होने/रहने के बावजूद पंकज पेरिवाल छह सदस्यीय अल्पमत ग्रुप के उम्मीदवार ही बने हुए हैं, और सात सदस्यीय बहुमत ग्रुप के सदस्यों को उनके पक्ष में तोड़/जोड़ पाना मुश्किल क्या, असंभव बना हुआ है । दरअसल सात सदस्यीय बहुमत ग्रुप के सदस्यों को लग रहा है कि वह एकजुट रहते हैं, और अल्पमत के बाद भी पंकज पेरिवाल यदि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की मदद से चेयरमैन बन भी जाते हैं - तो भी पूरे वर्ष महत्त्वपूर्ण मामलों में बहुमत की जरूरत को पूरा करने में वह पंकज पेरिवाल को नचाते रहेंगे और असली राजपाट उनके ही हाथ में होगा; और यह 'हार में भी जीत' का मजेदार नजारा होगा । इस नजारे को संभव करने के लिए सेंट्रल काउंसिल के बाकी सदस्यों ने चुपचाप बैठ तमाशा देखने की भूमिका में अपने आपको अवस्थित कर लिया है, और वह चाह रहे हैं कि राजेश शर्मा व विजय गुप्ता अपना वोट डाल कर पंकज पेरिवाल को चेयरमैन बनवा ही दें - जिससे कि पूरे वर्ष उन्हें फजीहत का सामना करना पड़ेगा; चुनावी वर्ष में यह फजीहत राजेश शर्मा व विजय गुप्ता को भारी पड़ेगी और अपना गुल खिलायेगी ।
दरअसल इसी डर के चलते विजय गुप्ता ने अपने आप को राजेश शर्मा के साथ 'उस तरह से' नहीं जोड़ा है, जिस तरह से राजेश शर्मा उन्हें अपने साथ 'दिखा' रहे हैं । उल्लेखनीय है कि राजेश शर्मा दावा कर रहे हैं कि पंकज पेरिवाल के समर्थन में रीजनल काउंसिल में बहुमत यदि नहीं जुटा, तो वह और विजय गुप्ता वोट डाल कर पंकज पेरिवाल की बहुमत की जरूरत को पूरा करेंगे । विजय गुप्ता लेकिन एक अलग राग सुना रहे हैं - वह लोगों को बता रहे हैं कि विरोधी खेमे के सदस्यों में अधिकतर को नितिन कँवर व राजेंद्र अरोड़ा से समस्या है, इसलिए इन दोनों को निकाल कर पंकज पेरिवाल की चेयरमैनी में एक तीसरा नया ग्रुप बनाया जा सकता है । सेंट्रल काउंसिल में नॉमिनेटेड सदस्य विजय झालानी ने दूर का पाँसा फेंका है, जिसके तहत वह विरोधी खेमे के कुछेक सदस्यों से कह रहे हैं कि एनडी गुप्ता और नवीन गुप्ता चाहते हैं कि पंकज पेरिवाल चेयरमैन बने - इसलिए कोई ऐसा समीकरण बनाओ कि राजेश शर्मा की पकड़ से छूट कर पंकज पेरिवाल चेयरमैन बन जाए । माना/समझा जा रहा है कि नवीन गुप्ता के प्रेसीडेंट-काल में उनका और उनके पिता एनडी गुप्ता का नाम लेकर विजय झालानी इंस्टीट्यूट में जो राजनीति करना चाह रहे हैं, उसकी शुरुआत उन्होंने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद को लेकर हो रही उखाड़-पछाड़ में शामिल होकर कर दी है । दरअसल इंस्टीट्यूट में विजय झालानी को सबसे पहले राजेश शर्मा से निपटना है, और इसके लिए वह पंकज पेरिवाल को राजेश शर्मा की गिरफ्त से निकाल कर अपनी पकड़ में लाना और रखना चाहते हैं और लोगों को 'दिखाना' चाहते हैं कि पंकज पेरिवाल को वह भी चेयरमैन बनवा सकते हैं ।
मजे की बात यह है कि इस सारी उठा-पटक में तमाशा बेचारे पंकज पेरिवाल का बन रहा है । रीजन के चुनावबाज नेताओं ने उन्हें फुटबॉल समझ रखा है, और उन पर अपनी अपनी किक इस्तेमाल कर रहे हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में इससे पहले चेयरमैन पद के किसी उम्मीदवार का ऐसा तमाशा नहीं बना होगा, जैसा कि पंकज पेरिवाल का बना हुआ है । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने तो उन्हें लेकर अपनी अपनी पोजीशन ले ली है, और हर कोई उनके चेयरमैन बनने में अपना अपना फायदा देख रहा है । वास्तव में इसी से साबित हो रहा है कि हर कोई उन्हें मोहरा बना कर अपनी अपनी राजनीति सेट करने में लगा है, और कोई भी सचमुच में उनकी जीत का समीकरण बनाने में दिलचस्पी नहीं ले रहा है । रीजनल काउंसिल में विरोधी खेमे के सदस्य उनके फोन तक नहीं उठा रहे हैं; चर्चा है कि चेयरमैन बनवाने की राजनीति से दूरी बनाए नजर आ रहे सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने रीजनल काउंसिल के बहुमत ग्रुप के सदस्यों को समझा दिया है कि सारी कोशिश उनकी एकता को तोड़ने के लिए हो रही है, इसलिए पहली जरूरत अपनी एकता को बनाए रखने की है; रीजनल काउंसिल में बहुमत की एकता के विरोध के बाद भी पंकज पेरिवाल यदि चेयरमैन बन भी गया तो भी चुनावी वर्ष में यह उनके सभी विरोधियों के लिए फायदे की बात ही होगी । नॉदर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव का मजेदार सीन यही बना है कि हर किसी को लग रहा है कि चुनाव यदि रीजनल काउंसिल में बहुमत के आधार पर नहीं हुआ, तो पूरे वर्ष जो उठापटक होगी - वह पंकज पेरिवाल और उनके समर्थक सेंट्रल सदस्यों के लिए घातक ही साबित होगी ।

Tuesday, February 20, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की चुनावी लड़ाई जीतने के तेजपाल खिल्लन के 'फार्मूले' को अपना कर पारस अग्रवाल ने अभी तो तेजपाल खिल्लन को मुसीबत में फँसा दिया है, लेकिन तेजपाल खिल्लन की शातिराना राजनीति का तोड़ निकालने की चुनौती उनके सामने अभी बाकी है

आगरा । पारस अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की चुनावी लड़ाई में तेजपाल खिल्लन को उन्हीं की 'छड़ी' से 'पीटने' की जो तैयारी की है, उसने तेजपाल खिल्लन के सामने गंभीर चुनौती पैदा कर दी है । उल्लेखनीय है कि तेजपाल खिल्लन कहते/बताते रहे हैं कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए जीत का फार्मूला उन्होंने समझ लिया है और वह यह है कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को पैसे दो, बदले में उसका वोट लो - और चेयरमैन बनो । पिछले दिनों एक कार्यक्रम में पारस अग्रवाल ने तेजपाल खिल्लन से कह दिया कि उनके ही फार्मूले से वह इस बार मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनेंगे । लोगों ने पाया है कि पीने के बाद पारस अग्रवाल कुछ ज्यादा ही बहक जाते हैं और बदतमीजी पर उतर आते हैं; तेजपाल खिल्लन से उक्त दावा भी पारस अग्रवाल ने बहकते हुए ही किया था और तेजपाल खिल्लन को चुनौती दी थी कि चेयरमैन के चुनाव में तुमसे ज्यादा पैसे खर्च करूँगा । पारस अग्रवाल के इस व्यवहार से जल-भुन गए तेजपाल खिल्लन ने तुरंत ही उन्हें जबाव दिया था कि मैं देखूँगा कि तू कितना पैसे वाला है । पारस अग्रवाल और तेजपाल खिल्लन के बीच हुई इस 'तू' 'तू' 'मैं' 'मैं' को जिन लोगों ने सुना, और उनसे जिसने सुना - उसने यही माना/समझा कि इस बार मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन का चुनाव खासा धमाकेदार होगा ।
लेकिन अभी हाल ही में जीरकपुर में आयोजित हुए मल्टीपल सेमीनार में तेजपाल खिल्लन के तेवर लोगों को कुछ ढीले ढीले से लगे । इससे लोगों को आभास मिला कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में तेजपाल खिल्लन अपने आप को पारस अग्रवाल से पिछड़ा हुआ मान बैठे हैं । तेजपाल खिल्लन की बातों से लगा कि डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू की फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वंदना निगम के व्यवहार से उन्हें तगड़ा झटका लगा है । तेजपाल खिल्लन ने कुछेक लोगों को बताया कि वंदना निगम ने उनसे कहा है कि पारस अग्रवाल ने उनका वोट पाने के लिए उन्हें मोटी रकम ऑफर की है; वंदना निगम ने यह बात उनसे इस अंदाज में कही, जैसे वह उनसे जानना चाह रही हों कि वह उन्हें अपने उम्मीदवार से कितनी रकम दिलवायेंगे ? मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए तेजपाल खिल्लन इस वर्ष स्वर्ण सिंह खालसा और इंद्रजीत सिंह में से किसी एक पर दाँव लगाना चाहते हैं । लेकिन यह दोनों ही पैसे नहीं खर्च करना चाहते हैं । इसके अलावा, स्वर्ण सिंह खालसा का लोगों के साथ ज्यादा कम्यूनिकेशन भी नहीं है, और इंद्रजीत सिंह का विरोध इस आधार पर हो सकता है कि एक ही डिस्ट्रिक्ट से लगातार दूसरी बार मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन कैसे और क्यों बन सकता है ।
मुश्किलें पारस अग्रवाल के सामने भी कम नहीं हैं । मल्टीपल काउंसिल के चुनाव में पैसे खर्च होते हैं, यह बात तो सच है - लेकिन सच यह भी है कि सिर्फ पैसे से ही काउंसिल चेयरमैन बना जा सकता होता, तो इस वर्ष विनय गर्ग की बजाए अनिल तुलस्यान चेयरमैन होते । विनय गर्ग सफल इसलिए हुए, क्योंकि उन्होंने पैसे खर्च करने के साथ-साथ चुनावी समीकरणों को भी साधने का काम किया । पारस अग्रवाल के साथ समस्या यह है कि उनके पास कोई ऐसा सलाहकार या मददगार नहीं है, जो प्रतिकूल स्थितियों को भी अनुकूल बना सकने का हुनर रखता हो । ले दे कर वह जिन जितेंद्र चौहान पर निर्भर हैं, वह जितेंद्र चौहान उनकी मुश्किलों को कम करने की बजाए बढ़ाने का काम और कर रहे हैं । पारस अग्रवाल ने तेजपाल खिल्लन के 'फार्मूले' को अपना कर तेजपाल खिल्लन को अभी तो धराशाही कर दिया है, लेकिन तेजपाल खिल्लन जैसी शातिराना राजनीति का तोड़ वह कैसे करेंगे - यह देखना दिलचस्प होगा ।

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में राजेश गुप्ता की 'कमजोरी' को भाँप कर अश्वनी काम्बोज सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार तो हो गए हैं, लेकिन सवाल यह है कि राजेश गुप्ता के प्रति विनय मित्तल की नाराजगी का फायदा वह सचमुच उठा पायेंगे क्या ?

देहरादून । तमाम ना-नुकुर के बावजूद राजेश गुप्ता और अश्वनी काम्बोज सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनावी मैदान में आखिरकार कूद ही पड़े हैं । मजे की बात है कि दोनों ही उम्मीदवार इस उम्मीद में उम्मीदवार बने हैं कि दूसरा जल्दी ही मैदान छोड़ देगा - और तब वह निर्विरोध सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन लिया जायेगा । अन्य कुछेक लोगों को भी आशंका है कि चुनावी तस्वीर साफ होते-होते इनमें से कोई एक मैदान छोड़ देगा, पर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के मँझे हुए खिलाड़ियों का मानना/कहना है कि दोनों ही उम्मीदवार अब चुनावी चक्रव्यूह में फँस गए हैं, और उनके लिए वापस लौटना अब मुश्किल ही नहीं - बल्कि असंभव ही होगा । खेमेबाजी के लिहाज से, मुकेश गोयल के उम्मीदवार के रूप में राजेश गुप्ता की स्थिति बेहतर मानी/समझी जा रही है - पिछले दो चुनाव मुकेश गोयल के उम्मीदवारों ने जिस बड़े बहुमत से जीते हैं और जिन स्थितियों में जीते हैं, इस बार स्थितियाँ उनसे और ज्यादा अनुकूल हैं । दरअसल इसीलिए अश्वनी काम्बोज इस बार चुनावी मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं कर रहे थे । पिछले वर्ष अश्वनी काम्बोज तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की तमाम पक्षपातपूर्ण बेईमानी और वोटों की खरीद-फरोख्त करने के बावजूद जिस बुरी तरह से चुनाव हारे थे, उसे देखते हुए इस वर्ष उन्हें अपने लिए कोई संभावना या उम्मीद नहीं नजर आ रही थी; और इसीलिए वह चुनावी पचड़े में पड़ने से बच रहे थे । लेकिन उम्मीदवार के रूप में राजेश गुप्ता के 'कमजोरी' दिखाने और मौजूदा व भावी गवर्नर्स के उनके खिलाफ होने की स्थितियों ने अश्वनी काम्बोज में हवा भरने का काम किया । अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि उन्होंने अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने के लिए हामी तब भरी, जब वह इस सूचना पर पूरी तरह आश्वस्त हो गए कि राजेश गुप्ता उम्मीदवार नहीं बनेंगे ।
इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का मजेदार पक्ष यह है कि हर कोई हर किसी से डरा हुआ है - राजेश गुप्ता को डर है कि अश्वनी काम्बोज कहीं ज्यादा पैसा खर्च करके उनके सामने समस्या न खड़ी कर दें; अश्वनी काम्बोज को डर है कि पिछली बार की तरह उनसे पैसे खाकर क्लब्स के पदाधिकारी इस बार भी कहीं उन्हें धोखा न दे दें; मुकेश गोयल को मौजूदा व भावी गवर्नर्स की बगावत का डर है; मौजूदा व भावी गवर्नर्स को डर है कि बगावत करने के बावजूद मुकेश गोयल की राजनीति को वह यदि फेल नहीं कर सके तो क्या होगा; विरोधी खेमे को डर है कि अनुकूल स्थिति के बावजूद वह इस बार भी यदि मुकेश गोयल 'को' नहीं हरा सके तो क्या होगा; अश्वनी काम्बोज के पैसों पर राजनीति करने वाले नेताओं को डर है कि पिछली बार की तरह इस बार भी उन्हें अश्वनी काम्बोज के पैसों पर मौज करने का मौका मिलेगा या नहीं; अश्वनी काम्बोज इस बार नेताओं के पेट भरने से बचने की कोशिश तो करते दिख रहे हैं, लेकिन डर भी रहे हैं कि उन्होंने नेताओं का पेट यदि नहीं भरा तो नेता लोग पता नहीं इसका बदला कैसे लेंगे; आदि-इत्यादि । अश्वनी काम्बोज वास्तव में पूरी तरह मुकेश गोयल खेमे की फूट पर निर्भर हैं, उन्हें डर है कि फूट यदि सचमुच में नहीं हुई, तो उनका क्या होगा ?
समझा जाता है कि दो वर्ष पहले अपनी पत्नी को उम्मीदवार बनवा कर राजेश गुप्ता ने विनय मित्तल के सामने जो मुश्किल खड़ी की थी, उसकी याद करते/रखते हुए विनय मित्तल किसी भी रूप में राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में नहीं हैं । अनुमान लगाया जा रहा था कि अश्वनी काम्बोज इस स्थिति का फायदा उठाते हुए विनय मित्तल का समर्थन पाने की कोशिश करेंगे और चुनावी समीकरण को अपने पक्ष में झुका लेंगे । अश्वनी काम्बोज लेकिन पता नहीं किस गलतफहमी में रहे और उन्होंने राजेश गुप्ता के प्रति विनय मित्तल की नाराजगी वाली स्थिति का फायदा उठाने का कोई प्रयास ही नहीं किया । अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों का कहना/बताना है कि अपनी अकड़ में अश्वनी काम्बोज उम्मीद करते रहे कि विनय मित्तल खुद उनके पास आयेंगे और इस तरह समय गवाँ बैठे । अश्वनी काम्बोज अपनी चुनावी जीत के लिए मुकेश गोयल खेमे की फूट पर निर्भर तो हैं, पर उसके लिए अपनी तरफ से कोई प्रयास करते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । वह इस उम्मीद में हैं कि राजेश गुप्ता के चक्कर में मुकेश गोयल खेमे में जो दरारें दिख रही हैं, वह अपने आप ही चौड़ी होंगी और उनकी मदद करेंगी । अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों को लगता है कि अनुकूल स्थितियों के बावजूद अश्वनी काम्बोज का यह 'कर्महीन' आशावादी नजरिया ही उनकी लुटिया डुबोने का काम करेगा । क्या होगा, और सचमुच किसकी लुटिया डूबेगी - यह तो आने वाले समय में पता चलेगा, अभी लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी महसूस की जाने लगी है ।

Sunday, February 18, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट सर्विस सोसायटी के पैसे चोरीछिपे राजा साबू की चेयरमैनी वाले उत्तराखंड रिलीफ फंड के बंद घोषित कर दिए गए अकाउंट में ले जाए जाने के मामले के तूल पकड़ने से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी मुसीबत में पड़ी

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी के गवर्नर-काल की मिड-ईयर रिव्यू मीटिंग में राजा साबू गिरोह की करीब साढ़े 21 लाख रुपए की 'लूट' और इस लूट को ठिकाने लगाने तथा छिपाने की कोशिशों को लेकर जो फजीहत हुई है, उसने कपिल गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए खासी समस्या पैदा कर दी है । उल्लेखनीय है कि कपिल गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को कामयाबी दिलाने के लिए पूरी तरह से राजा साबू गिरोह के नेताओं पर निर्भर हैं, लेकिन नेताओं के लिए समस्या की बात यह हुई है कि वह किस मुँह से लोगों के बीच कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी की सिफारिश और वकालत करें; बेशर्मी धारण करके यदि करें भी तो उनकी बेईमानियों के किस्से सुनने के बाद कौन उनकी सिफारिश व वकालत पर गौर करेगा ? कपिल गुप्ता के नजदीकियों ने भी मान लिया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई - लड़ाई शुरू होने से पहले ही वह हार गए हैं । कुछेक लोगों को हालाँकि लग रहा है कि दूसरे उम्मीदवारों की तुलना में कपिल गुप्ता की सक्रियता का ग्राफ चूँकि बेहतर है, और दूसरे उम्मीदवारों की तुलना में उनका समर्थन आधार भी अपेक्षाकृत बड़ा है - इसलिए कपिल गुप्ता के लिए चुनावी मुकाबला मुश्किल नहीं होगा; किंतु चुनावी राजनीति के अनुभवी लोगों का मानना और कहना है कि इस बार का मुकाबला दो उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि दो खेमों के बीच है; और डिस्ट्रिक्ट में इस समय राजा साबू खेमे की हरकतों के खिलाफ जो गुस्सा है - उसे देखते हुए कपिल गुप्ता के लिए चुनावी मुकाबला कठिन ही होगा । टीके रूबी की मिड-ईयर रिव्यू मीटिंग में क्लब्स के प्रेसीडेंट्स तथा अन्य लोगों के बीच राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स सदस्यों की हरकतों के प्रति जो नाराजगी फूटी है, उसे देखते हुए कपिल गुप्ता के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का उनके भरोसे लड़ा जाने वाला चुनाव खासी मुश्किल में फंस गया है ।
टीके रूबी के गवर्नर-काल की मिड-ईयर रिव्यू मीटिंग में 'रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3080 सर्विस' सोसायटी के हिसाब-किताब और उसके रख-रखाव को लेकर जो गंभीर आरोप सामने आए, उससे राजा साबू गिरोह के सदस्य पूर्व गवर्नर्स की लूट-खसोट के तथ्य एक बार फिर उद्घाटित हुए हैं । सोसायटी के नियम के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सोसायटी का चेयरमैन होगा, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सेक्रेटरी तथा निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ट्रेजरर होगा - लेकिन सोसायटी पर राजा साबू के मुँह लगे पूर्व गवर्नर्स मधुकर मल्होत्रा और चेतन अग्रवाल  ऐसी कुंडली मार कर बैठे हुए हैं कि इस नियम की बैंड बजाई हुई है । इनके बेशर्मी भरे दुस्साहस का आलम यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी ने जब सोसायटी के हिसाब-किताब देखने/माँगने की कोशिश की तो मधुकर मल्होत्रा ने उन्हें बाकायदा ईमेल लिख कर जबाव दिया कि आप तो सोसायटी के सदस्य ही नहीं हो, इसलिए आपको हिसाब माँगने/देखने का अधिकार ही नहीं है । नियम के अनुसार, जिस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को सोसायटी का चेयरमैन होना चाहिए, मधुकर मल्होत्रा उस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को सोसायटी का सदस्य तक मानने से इंकार कर रहे हैं और हिसाब-किताब देखने/माँगने के उसके अधिकार को ही चुनौती दे रहे हैं । टीके रूबी को सोसायटी के हिसाब-किताब को लेकर इन लोगों से जिस तरह की उलझन का सामना करना पड़ रहा है, उससे यह भी पोल खुली है कि चेतन अग्रवाल और मधुकर मल्होत्रा की जोड़ी ने पिछले वर्षों में गवर्नर रहे रमन अनेजा, डेविड हिल्टन, दिलीप पटनायक आदि को भी उनका अधिकार नहीं लेने दिया है; और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट प्रवीन गोयल को भी सेक्रेटरी का अधिकार नहीं दिया गया है ।
मिड-ईयर रिव्यू मीटिंग में प्रेसीडेंट्स व अन्य पदाधिकारियों के बीच जो पोल खुली उसमें इस सवाल का जबाव भी मिला, कि राजा साबू के सिपहसालारों के रूप में चेतन अग्रवाल और मधुकर मल्होत्रा के लिए नियमों की अनदेखी करते हुए जबर्दस्ती सोसायटी पर कब्जा जमाए रखने की जरूरत आखिर क्यों है ? पता चला कि सोसायटी के बैंक अकाउंट से चोरीछिपे और मनमाने तरीके से 21 लाख 44 हजार 900 रुपए 14 सितंबर 2017 को राजा साबू की चेयरमैनी वाले उत्तराखंड रिलीफ फंड अकाउंट में ट्रांसफर कर लिए गए; सोसायटी के चेयरमैन टीके रूबी को जिसकी भनक तक नहीं लगने दी गई । लगता है कि टीके रूबी को शक था कि सोसायटी के हिसाब-किताब में चोरी-चकारी हो सकती है, इसलिए उन्होंने पहले से ही अनुरोध किया हुआ था कि उनकी जानकारी के बिना सोसायटी के पैसों का कोई इस्तेमाल न हो । उनके इस अनुरोध के बावजूद, सोसायटी के अकाउंट से पैसे राजा साबू के चेयरमैनी वाले अकाउंट में ले जाए गए । इस मामले में और भी गंभीर बात यह भी है कि उत्तराखंड रिलीफ फंड को 17 अगस्त 2017 को ही बंद घोषित करते हुए उसका हिसाब-किताब दे दिया गया था । उल्लेखनीय है कि करीब पौने तीन करोड़ रुपए के घपले के आरोप राजा साबू की चेयरमैनी वाले उत्तराखंड रिलीफ फंड में भी हैं; उसके बावजूद उस फंड अकाउंट को बंद करने की घोषणा के बाद भी 'रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3080 सर्विस' सोसायटी के अकाउंट से चोरीछिपे 21 लाख से ज्यादा रुपए ले लिए गए । पैसों के इस ट्रांसफर की बात खुलने से उत्तराखंड रिलीफ फंड में हुई हेराफेरी के आरोप एक बार फिर ताजा हो गए हैं । हैरानी की बात यह है कि रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3080 सर्विस सोसायटी के हिसाब-किताब में व्यवस्था और नियमों के पालन की बात शुरू हुई तो चेतन अग्रवाल व मधुकर मल्होत्रा की जोड़ी ने 'चोरी और सीनाजोरी' वाला रवैया अपना लिया है ।
टीके रूबी के गवर्नर-काल की मिड-ईयर रिव्यू मीटिंग में राजा साबू गिरोह के सदस्यों की लूट-खसोट की पोल खुली, तो प्रेसीडेंट्स व अन्य पदाधिकारियों का गुस्सा फूटा । कुछेक लोगों ने कहा भी कि अभी तक वह यह विश्वास नहीं करते थे कि रोटरी के नाम पर पैसों की चोरी व हेराफेरी में राजा साबू की मिलीभगत भी हो सकती है - लेकिन जिस तरह के तथ्य सामने आ रहे हैं, उससे तो लग रहा है कि राजा साबू की मिलीभगत के बिना इस तरह की हेराफेरी हो ही नहीं सकती है । मीटिंग में मौजूद कुछेक लोगों ने माँग भी की कि रोटरी के प्रोजेक्ट्स के नाम पर पैसों की लूट व हेराफेरी करने के आरोप में राजा साबू और दूसरे पदाधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाना चाहिए ताकि आगे यह रोटरी के नाम पर लूट-खसोट न कर सकें । रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3080 सर्विस सोसायटी तथा उत्तराखंड रिलीफ फंड में हेराफेरियों के आरोपों व उसके दोषियों का वास्तव में क्या होगा, यह तो आगे पता चलेगा - अभी लेकिन इसका ठीकरा कपिल गुप्ता के सिर फूटता दिख रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में राजा साबू गिरोह के भरोसे जीत हासिल करने की तैयारी कर रहे कपिल गुप्ता को यह मुसीबत बैठे-बिठाए ही मिल गई है ।

Saturday, February 17, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में अपने आपको प्रफुल्ल छाजेड़ का पक्का वाला समर्थक बताने/दिखाने की अतुल गुप्ता की जोरशोर से की जा रही कोशिशों से अब्राहम बाबु, एमपी विजय कुमार, मनु अग्रवाल और धीरज खंडेलवाल का तो सिर ही चकरा गया है

नई दिल्ली । अतुल गुप्ता को प्रफुल्ल छाजेड़ के 'विजय जुलूस' में शामिल देख अब्राहम बाबु, एमपी विजय कुमार, मनु अग्रवाल और धीरज खंडेलवाल का सिर चकराया हुआ है - तो देवराज रेड्डी को नवीन गुप्ता द्वारा नई कमेटियाँ गठित न करने के कारण विजय गुप्ता की जिद के चलते प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रेसीडेंट व वाइस प्रेसीडेंट के साथ मंच पर बैठने का मौका नहीं मिला । यह कुछ घटनाएँ इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट चुनाव के ऑफ्टर व साइड इफेक्ट्स हैं, जिनमें अगले वर्ष होने वाले चुनाव की तैयारी की झलक भी देखी/पहचानी जा सकती है । वाइस प्रेसीडेंट पद पर प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत के बाद सेंट्रल काउंसिल के जितने सदस्य उन्हें वोट देने की बात कह/कर रहे हैं, उसे देख/सुन कर खुद प्रफुल्ल छाजेड़ को हैरानी हो रही है । हैरानी उन्हें इस बात पर हो रही है कि यदि सचमुच उन्हें इतने लोगों ने वोट दिया होता तो वह तो पहले दौर की गिनती में ही साफ विजेता बन गए होते । चूँकि ऐसा नहीं हुआ, इसलिए जाहिर है कि प्रफुल्ल छाजेड़ को वोट देने की बात करने/कहने वाले कुछेक लोग तो स्पष्ट रूप से झूठ बोल रहे हैं - और इस झूठ के जरिए वास्तव में वह प्रफुल्ल छाजेड़ के नजदीक होने/दिखने की कोशिश कर रहे हैं । वोट देने का तरीका चूँकि ऐसा है कि दावे के साथ यह पता करना मुश्किल क्या असंभव ही है कि सचमुच किसने किसे वोट दिया है, इसलिए सदस्यों के झूठ को पकड़ना भी मुश्किल क्या असंभव ही है; लेकिन चूँकि वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव बहुत छोटा चुनाव है, जिसमें कुल 32 वोटर हैं - तो यह समझ पाना कोई बहुत मुश्किल भी नहीं है कि कौन किसके साथ था ।
इस मामले में सबसे मजेदार स्थिति बनी है, अतुल गुप्ता की । और यह स्थिति बनाने में खुद उनकी अपनी भूमिका ही निर्णायक रही है । दरअसल प्रफुल्ल छाजेड़ के वाइस प्रेसीडेंट घोषित होते ही अतुल गुप्ता जोरशोर से उनके 'विजय जुलूस' में शामिल हो गए । अपने आपको प्रफुल्ल छाजेड़ का पक्का वाला समर्थक और वोटर बताने/दिखाने की अतुल गुप्ता की जोरशोर से की गई कोशिशों ने लोगों का ध्यान खींचा - खासकर अब्राहम बाबु, एमपी विजय कुमार, मनु अग्रवाल और धीरज खंडेलवाल का तो सिर ही चकरा गया । पोल खुली कि अतुल गुप्ता तो इन चारों को ही समर्थन देने की न सिर्फ बात कर रहे थे, बल्कि इन्हें चुनाव भी लड़वा रहे थे । अतुल गुप्ता अलग अलग तरीके से इन चारों को टिप्स दे रहे थे, दूसरे उम्मीदवारों व वोटरों के बीच बन/जुड़ रहे समीकरणों की चुगली कर रहे थे और इन्हें बता रहे थे कि किस वोटर से क्या कहना है या क्या नहीं कहना है और किसको किससे फोन करवाना है, आदि-इत्यादि । लिहाजा अब जब अतुल गुप्ता खुद ही दावा कर रहे हैं कि वह तो प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ थे, तो इन चारों का यह सोच-सोच कर सिर चकरा रहा है कि अतुल गुप्ता यदि सचमुच प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ थे - तो उनके साथ वह क्या खेल कर रहे थे ? ऐसे में, लोगों को कहने का मौका मिला है कि अतुल गुप्ता सचमुच किसके साथ थे - यह बात या तो वह जानते हैं, और या ऊपर वाला जानता है ।
इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के कुछेक सदस्यों को लगता है कि प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत में अपनी (सच्ची या झूठी) भूमिका जोरशोर से 'दिखाने' के पीछे अतुल गुप्ता की दरअसल अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव जीतने की तैयारी की योजना है । वह प्रफुल्ल छाजेड़ के नजदीक होकर अगले वर्ष के चुनाव में वाइस प्रेसीडेंट के रूप में उनका समर्थन पाने की 'योजना' के चलते कुछ ज्यादा जोरशोर से प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत का श्रेय लेने का काम कर रहे हैं । उनका यह काम अगले वर्ष उनके काम आयेगा या नहीं, यह तो अगले वर्ष ही पता चलेगा - लेकिन अभी इस काम के चक्कर में उनका खूब मजाक बन रहा है । अतुल गुप्ता के कुछेक नजदीकियों का कहना है कि इस बार के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में विजय गुप्ता की 'टेबल टर्न' करने वाली जो भूमिका रही, उसने अतुल गुप्ता को चिंतित किया है - क्योंकि अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में विजय गुप्ता के भी उम्मीदवार होने का अनुमान लगाया जा रहा है । इस वर्ष के चुनाव में विजय गुप्ता किसके साथ थे, यह तो विजय गुप्ता ही जानते होंगे - लेकिन एक बात सब जानते हैं कि इस बार विजय गुप्ता ने उत्तम अग्रवाल का खेल बिगाड़ने का काम जरूर किया । मजे की बात यह है कि एक समय उत्तम अग्रवाल खेमे के व्यक्ति के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले विजय गुप्ता यूँ तो पिछले दो/तीन वर्षों से वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में उत्तम अग्रवाल के खेल से बाहर और अलग ही बने रहे हैं, लेकिन फिर भी उत्तम अग्रवाल खेमे का टैग उनके ऊपर लगा ही रहा - जिससे इस बार उन्होंने मुक्ति पाई । इस बार टैग से मुक्ति दरअसल उन्हें इसलिए मिल पाई, क्योंकि उन्होंने स्पष्ट रूप से इस बात को कहा कि उत्तम अग्रवाल के नजदीक होने के बावजूद उन्हें उत्तम अग्रवाल से कभी कोई मदद नहीं मिली । विजय गुप्ता ने यह बात कही तो अपने बारे में थी, लेकिन उनकी यह बात वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव के संदर्भ में एक बड़े 'स्टेटमेंट' में बदल गई और फिर इससे जो माहौल बना - उसका फायदा प्रफुल्ल छाजेड़ को मिला ।
दरअसल विजय गुप्ता की कही बात को तरुण घिआ, निहार जम्बूसारिया और जय छैरा ने भी अपने अपने तरीके से एंडोर्स किया । उत्तम अग्रवाल ने तीन/चार उम्मीदवारों को समर्थन दिलवाने का झाँसा दिया हुआ था और मजे की बात यह रही कि सभी ने माना/पाया कि उत्तम अग्रवाल ने उनके साथ धोखा किया है । इस तरह की स्थितियों और चर्चाओं ने विजय गुप्ता की कही बात को खासा बड़ा बना दिया और इसी बात ने इस बार के चुनावी नतीजे में निर्णायक भूमिका निभाई । इससे प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत में विजय गुप्ता की भूमिका को देखा/पहचाना जाने लगा । इससे अतुल गुप्ता की चिंता बढ़ी । लिहाजा उन्होंने झट से प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत के जुलूस में शामिल होने का फैसला किया, ताकि वह भी प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत के वाहक बन सकें और प्रफुल्ल छाजेड़ के नजदीक हो सकें ।
अतुल गुप्ता इस बीच घटी उस घटना से काफी उत्साहित हैं, जिसमें विजय गुप्ता के कारण पूर्व प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी को प्रेसीडेंट व वाइस प्रेसीडेंट की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके साथ मंच पर बैठने का मौका नहीं मिला । उल्लेखनीय है कि नीलेश विकमसे के साथ देवराज रेड्डी मंच पर बैठने और आगे आगे रहने की 'आजादी' खूब ले चुके हैं । यही आजादी उन्होंने ताज होटल में नवीन गुप्ता व प्रफुल्ल छाजेड़ की प्रेस कॉन्फ्रेंस में लेने की कोशिश की । उनका कहना रहा कि पूर्व प्रेसीडेंट होने के नाते उन्हें मंच पर बैठने का मौका मिलना चाहिए । पीआर कमेटी के चेयरमैन के रूप में मंच की व्यवस्था संभाल रहे विजय गुप्ता ने लेकिन तर्क दिया कि प्रोटोकॉल के तहत निवर्तमान प्रेसीडेंट को तो यह मौका मिल सकता है, 'किसी' भी पूर्व प्रेसीडेंट को लेकिन यह मौका नहीं दिया जा सकता है । विजय गुप्ता के सख्त रवैये पर देवराज रेड्डी को मनमसोस कर रह जाना पड़ा । देवराज रेड्डी ने इसकी खुन्नस नवीन गुप्ता पर यह कहते हुए निकाली कि प्रेसीडेंट का पदभार संभालते ही उन्हें नई कमेटियाँ बना लेने का काम करना चाहिए । उल्लेखनीय है कि नवीन गुप्ता ने चूँकि नई कमेटियाँ नहीं बनाई हैं, इसलिए पीआर कमेटी के चेयरमैन के रूप में विजय गुप्ता ही प्रेसीडेंट व वाइस प्रेसीडेंट की प्रेस कॉन्फ्रेंस को नियोजित व नियंत्रित कर रहे थे । मंच पर जगह न मिलने से नाराज हुए देवराज रेड्डी को नवीन गुप्ता और विजय गुप्ता के खिलाफ नाराजगी व्यक्त करता देख तो अतुल गुप्ता को मजा आया, लेकिन यह देख/जान कर उन्हें निराशा भी हुई कि नवीन गुप्ता और प्रफुल्ल छाजेड़ ने विजय गुप्ता की कार्रवाई का समर्थन ही किया । सेंट्रल काउंसिल सदस्य इन घटनाओं को वाइस प्रेसीडेंट चुनाव के ऑफ्टर व साइड इफेक्ट्स के रूप में ही देख पहचान रहे हैं, और उनका कहना है कि इस तरह के अभी और दृश्य देखने को मिलेंगे ।

Thursday, February 15, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया पर फरीदाबाद की एकता के अपने ही नारे को भुला देने का जितेंद्र गुप्ता का आरोप क्या सचमुच उनके फ्रस्ट्रेशन का सुबूत है ?

फरीदाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया को फरीदाबाद के 'हितों' की अनदेखी करने के लिए जितेंद्र गुप्ता ने निशाने पर लिया है । जितेंद्र गुप्ता फरीदाबाद में लोगों से रोना रो रहे हैं कि विनय भाटिया जब खुद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार थे, तब तो फरीदाबाद की एकता की बड़े जोर-शोर से बातें किया करते थे, लेकिन अब उन्हें फरीदाबाद की एकता की जैसे कोई फिक्र ही नहीं रह गई है । जितेंद्र गुप्ता दरअसल विनय भाटिया के गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार होने की तैयारी कर रहे हैं और ठीक विनय भाटिया की तर्ज पर अपना अभियान चलाने की योजना बना रहे हैं । दिल्ली और गुरुग्राम के लोगों के बीच वह दावा भी कर रहे हैं कि फरीदाबाद तो उनका गढ़ है । जितेंद्र गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि योजना तो उन्होंने बना ली और दावा भी उन्होंने कर लिया, लेकिन फरीदाबाद में कोई भी उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेता हुआ नहीं दिख रहा है - और इस तरह उनके लिए 'सिर मुड़ाते ओले पड़ने' वाली स्थिति पैदा हो गई है । जितेंद्र गुप्ता को सबसे तगड़ा झटका विनय भाटिया की तरफ से लगा है । उन्हें उम्मीद थी कि विनय भाटिया अवश्य ही उनकी उम्मीदवारी के प्रति सच्चा न सही, मगर झूठा ही समर्थन दिखायेंगे । जितेंद्र गुप्ता की योजना थी कि विनय भाटिया से मिलने वाली सच्ची/झूठी तरफदारी को दिखा कर वह फरीदाबाद के दूसरे कुछेक लोगों को भी समर्थन 'दिखाने' के लिए राजी कर लेंगे - और फिर उसके भरोसे डिस्ट्रिक्ट में यह हवा बनाने की कोशिश करेंगे कि फरीदाबाद में उनकी उम्मीदवारी के लिए एकतरफा समर्थन है । लेकिन विनय भाटिया की बेरुखी के चलते जितेंद्र गुप्ता की यह योजना सफल ही नहीं हो रही है । इसीलिए जितेंद्र गुप्ता ने अब विनय भाटिया पर ही हमला बोल दिया है ।
विनय भाटिया के इस रवैये के लिए जितेंद्र गुप्ता ने विनोद बंसल को जिम्मेदार ठहरा कर अपने आरोप के दायरे को और बढ़ा दिया है । उनका कहना है कि विनोद बंसल जिस वर्ष उम्मीदवार थे, उस वर्ष चूँकि वह भी उम्मीदवार हो गए थे - जिस कारण विनोद बंसल को चुनाव जीतने के लिए कुछ ज्यादा मशक्कत करना पड़ी थी; विनोद बंसल उसी का बदला लेने के लिए उन्हें कोई तवज्जो न देने के लिए विनय भाटिया पर दबाव बना रहे हैं । जितेंद्र गुप्ता का कहना है कि विनोद बंसल के दबाव के चलते ही विनय भाटिया उन्हें कोई अहमियत नहीं दे रहे हैं और फरीदाबाद की एकता के अपने ही नारे को भुला बैठे हैं । जितेंद्र गुप्ता का यह भी कहना है कि विनोद बंसल चूँकि अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं, इसलिए विनय भाटिया भी अशोक कंतूर को हर मौके पर आगे आगे रख रहे हैं । जितेंद्र गुप्ता की इस तरह की बातों पर विनय भाटिया ने यूँ तो चुप रहने की ही कोशिश की है, लेकिन जहाँ कहीं उन्हें मुँह खोलने की जरूरत पड़ी भी है वहाँ उन्होंने यही कहते/बताते हुए पलटवार किया है कि जितेंद्र गुप्ता को फरीदाबाद में कोई समर्थन नहीं मिल रहा है और इसका फ्रस्ट्रेशन वह उन पर आरोप लगा कर निकाल रहे हैं । जितेंद्र गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि फरीदाबाद में ही लोग उन्हें फरीदाबाद का मानने से इंकार कर रहे हैं । कई लोगों का कहना है कि जितेंद्र गुप्ता जब फरीदाबाद के किसी क्लब के सदस्य ही नहीं हैं, तब वह अपने आपको फरीदाबाद का कैसे कह सकते हैं और अपनी उम्मीदवारी के लिए फरीदाबाद की एकता की उम्मीद कैसे कर सकते हैं ?
विनय भाटिया ने अशोक कंतूर को आगे आगे रखने के जितेंद्र गुप्ता के आरोप को भी झूठा बताते हुए दावा किया है कि उन्होंने किसी भी मौके पर अशोक कंतूर को कोई तवज्जो नहीं दी है । विनय भाटिया का कहना रहा है कि विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में उन्हें एक ही बात के लिए सख्त हिदायत दी है और वह यह कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के पचड़े में उन्हें नहीं पड़ना है और इस बात का विशेष ध्यान रखना है कि वह गलती से भी किसी उम्मीदवार के पक्ष में न 'दिखें' । विनय भाटिया का कहना है कि विनोद बंसल से मिली इस हिदायत के चलते ही उन्होंने इस बात का खास ध्यान रखा है कि उनके कार्यक्रमों में अशोक कंतूर को कोई तवज्जो मिलती हुई न दिखे - जिससे कि लोगों के बीच अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को उनके समर्थन का भ्रम पैदा हो । विनय भाटिया ने जितेंद्र गुप्ता के आरोपों का उन्हीं की तर्ज पर जबाव देने का काम तो कर दिया है, लेकिन जितेंद्र गुप्ता जिस तरह से फरीदाबाद में अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के काम में असफल हो रहे हैं, उसे देख कर लग रहा है कि विनय भाटिया को उनके आरोपों का अभी और शिकार बनना पड़ेगा ।

Wednesday, February 14, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अल्पमत का चेयरमैन बनवाने की राजेश शर्मा की हरकत को विजय गुप्ता का भी समर्थन सचमुच मिलेगा क्या ?

नई दिल्ली । विज्ञान भवन में आयोजित हुए इंस्टीट्यूट के 68वें वार्षिक समारोह के अवसर पर निवर्तमान प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को तीन केंद्रीय मंत्रियों के सामने पिछले 'सीए डे' फंक्शन की बदइंतजामी को लेकर जो लताड़ सुनने को मिली, उसने सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा की करतूतों की याद एक बार फिर ताजा करा दी - और इस याद ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव को लेकर राजेश शर्मा द्वारा बनाए जा रहे समीकरण को गड़बड़ा देने की आशंका पैदा कर दी है । यह आशंका वास्तव में सेंट्रल काउंसिल के एक दूसरे सदस्य विजय गुप्ता को लेकर उठी है । लोगों को लग रहा है कि 'सीए डे' फंक्शन में की गईं राजेश शर्मा की करतूतों की यादें जिस तरह से चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को अभी भी पीड़ा पहुँचा रही हैं, उसे देखते हुए विजय गुप्ता अपना नाम किसी भी रूप में राजेश शर्मा के साथ जोड़ने को तैयार शायद न हों । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन को लेकर राजेश शर्मा लेकिन जो समीकरण बनाते सुने जा रहे हैं, उसमें उन्होंने विजय गुप्ता को शामिल किया हुआ है । हालाँकि यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि राजेश शर्मा ने अपने समीकरण में शामिल करने के लिए विजय गुप्ता की सहमति ले ली है, या उन्हें फँसाने के लिए वह उनका नाम अपने मन से ले रहे हैं । राजेश शर्मा के नजदीकियों का कहना है कि राजेश शर्मा यदि अपने किसी खेल में विजय गुप्ता के भी शामिल होने की बात कर रहे हैं, तो इसके लिए उन्होंने अवश्य ही विजय गुप्ता से सहमति ले ली होगी; लेकिन विजय गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि प्रोफेशन के लोगों के बीच राजेश शर्मा की भारी बदनामी को देखते हुए विजय गुप्ता चुनावी वर्ष में राजेश शर्मा के साथ किसी भी रूप में खड़े नहीं दिखना चाहेंगे - उनके किसी खेल में शामिल होना तो बहुत दूर की बात है । 
68वें वार्षिक समारोह में राजेश शर्मा की कारस्तानियों के कारण भरी सभा में नीलेश विकमसे की जो फजीहत हुई, उसने विजय गुप्ता को और भी सावधान कर दिया है । उनकी यह सावधानी नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव को लेकर राजेश शर्मा द्वारा तैयार की गई रणनीति को गड़बड़ा रही है । राजेश शर्मा ने पंकज पेरिवाल को अल्पमत के बावजूद चेयरमैन बनवाने की जो रणनीति तैयार की है, उसमें विजय गुप्ता की अहम् भूमिका है । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के 13 सदस्यों में राजेश शर्मा के उम्मीदवार के रूप में पंकज पेरिवाल को कुल 6 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है । तरह तरह की हरकतों व दबावों से राजेश शर्मा ने बाकी सदस्यों में से किसी एक का समर्थन जुटाने का प्रयास तो बहुत किया है, लेकिन उनकी बदनामी को देखते हुए उनका प्रयास सफल नहीं हो सका है । इस असफलता के चलते ही राजेश शर्मा ने दावा करना शुरू किया कि चेयरमैन तो पंकज पेरिवाल ही बनेगा, इसके लिए भले ही एक्स-ऑफिसो के रूप में उन्हें और विजय गुप्ता को अपना वोट क्यों न डालना पड़े । उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल में एक्स-ऑफिसो के रूप में हालाँकि पाँच वोट और हैं, और उन पाँचों को पंकज पेरिवाल व राजेश शर्मा की जोड़ी के खिलाफ ही देखा/पहचाना जाता है - लेकिन राजेश शर्मा को उनकी परवाह नहीं है । राजेश शर्मा जानते हैं कि यह पाँचों 'शरीफ' लोग हैं और यह एक्स-ऑफिसो के रूप में अपना अपना वोट नहीं डालेंगे । दरअसल जैसा कि समाज में होता है - जहाँ बदमाशियाँ बदमाशों के प्रभाव के कारण नहीं होती/बढ़ती हैं, बल्कि शरीफों के चुप रहने के कारण बढ़ती हैं; ठीक उसी तर्ज पर इंस्टीट्यूट में राजेश शर्मा की हरकतों ने इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को अपने प्रभाव के कारण कलंकित नहीं किया हुआ है, बल्कि इसलिए कलंकित किया हुआ है क्योंकि दूसरे लोग चुपचाप बैठे तमाशा देखते रहते हैं । राजेश शर्मा इसीलिए आश्वस्त हैं कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनवाने में उनकी मर्जी सफल हो जाएगी । विजय गुप्ता को वह 'अपने जैसा ही' मानते/समझते हैं ।
विजय गुप्ता को राजेश शर्मा अपने खेल में इसलिए भी शामिल समझते हैं, क्योंकि पंकज पेरिवाल के साथ विजय गुप्ता के यूँ भी अच्छे संबंध हैं । विजय गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी के लिए लुधियाना में पंकज पेरिवाल और उनके पिता से सहयोग व समर्थन मिलता रहा है । राजेश शर्मा को विश्वास है कि वही सहयोग व समर्थन पंकज पेरिवाल के पक्ष में वोट करने के लिए विजय गुप्ता की मजबूरी बनेगा । विजय गुप्ता के सामने दोहरी समस्या है - एक तो यह कि पंकज पेरिवाल के लिए वह वोट करने को यदि तैयार हो भी जाएँ, तो भी पंकज पेरिवाल की जीत वास्तव में राजेश शर्मा की ही जीत मानी/समझी जाएगी और उनके हाथ कुछ नहीं लगेगा; दूसरी समस्या यह कि राजेश शर्मा की बदनामी का कीचड़ उनके साथ और चिपक जायेगा । विजय गुप्ता को यह भी लगता है कि पंकज पेरिवाल यदि अल्पमत में होने के बावजूद चेयरमैन बन भी जाते हैं, तो पूरे वर्ष बार बार मौजूदा चेयरमैन राकेश मक्कड़ की तरह फजीहत के शिकार बनेंगे - और तब बार बार उनका नाम भी उछलेगा, और यह बात चुनावी वर्ष में उनके लिए खासी फजीहत भरी साबित हो सकती है । विजय गुप्ता को अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव भी लड़ना है । अल्पमत के चेयरमैन के रूप में पंकज पेरिवाल के झंझट तब तक चलते ही रहेंगे और यह बात विजय गुप्ता के लिए मुसीबत भरी साबित हो सकती है । इसलिए विजय गुप्ता के शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि विजय गुप्ता को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अल्पमत का चेयरमैन बनवाने के राजेश शर्मा के खेल में नहीं पड़ना/फँसना चाहिए । विजय गुप्ता क्या करेंगे, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन यह जरूर पता चल रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के चुनाव की चाबी विजय गुप्ता के पास ही है ।

Tuesday, February 13, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी से तरह तरह के 'लाभ' उठाने के प्रयासों के चलते बबाल में घिरी सारिका यादव के मामले में दो पूर्व गवर्नर सुरेश जैन व संजय खन्ना भी 'आमने-सामने' हुए

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट की प्रेसीडेंट सारिका यादव के रवैये के कारण बनी नाराजगी से भड़के माहौल को शांत करने के लिए पूर्व प्रेसीडेंट्स की मीटिंग के बाद मामला सुलझने की बजाए बढ़ और गया लगता है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश जैन के इस मीटिंग में शामिल न होने से मीटिंग में माहौल यूँ भी तनावपूर्ण था, जिसे सारिका यादव के नए आरोपों ने और उलझा दिया । अपने ऊपर लगे आरोपों पर सफाई देने और या शर्मिंदा होने की बजाए सारिका यादव ने जिस तरह क्लब के कुछेक सदस्यों पर उन्हें बदनाम करने का आरोप लगाया, उससे क्लब के कुछेक और सदस्यों ने भी घोषणा कर दी है कि सारिका यादव के अध्यक्ष रहते वह क्लब के आयोजनों में शामिल नहीं होंगे । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश जैन पहले से ही यह घोषणा किए हुए हैं । क्लब के सदस्यों के अनुसार, क्लब के सदस्य एक अन्य पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना ने सुरेश जैन को समझाने तथा उनकी नाराजगी दूर करने के काफी प्रयास किए हैं, और उनके प्रयासों के चलते ही उम्मीद बनी थी कि सुरेश जैन पूर्व प्रेसीडेंट्स की मीटिंग में शामिल होंगे - लेकिन सुरेश जैन के मीटिंग में शामिल न होने से संदेश गया है कि वह संजय खन्ना के प्रयासों से संतुष्ट नहीं हैं । क्लब के कुछेक सदस्यों को लगता है कि बीच-बचाव करने के संजय खन्ना के प्रयासों को देख/जान कर सारिका यादव ने समझ लिया है कि उनका प्रेसीडेंट पद बच ही जाएगा - और इसीलिए उन्होंने क्लब के और कई सदस्यों को निशाना बना लिया है । सारिका यादव के इस रवैये से क्लब में सुलझता दिख रहा मामला भड़क और गया है ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट में पैदा हुए बबाल का मुख्य विषय यह है कि क्लब के प्रेसीडेंट की प्रतिबद्धता क्लब व क्लब के सदस्यों के प्रति ज्यादा होनी चाहिए या डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के प्रति ? सारिका यादव के खिलाफ जो गंभीर आरोप है और जिसने क्लब के सदस्यों को भड़काया हुआ है, वह यही है कि क्लब की प्रेसीडेंट के रूप में सारिका यादव डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाने/जताने के चक्कर में क्लब के फैसलों के साथ न सिर्फ धोखा करती रही हैं, बल्कि क्लब के वरिष्ठ सदस्यों को रवि चौधरी द्वारा अपमानित किए जाने की कार्रवाईयों को भी समर्थन देती रही हैं । क्लब के मौजूदा हालात से खफा सदस्यों का कहना है कि बीच-बचाव करने वाले वरिष्ठ सदस्य लेकिन सारिका यादव से इस मुख्य आरोप का जबाव लेने की कोई कोशिश ही नहीं कर रहे हैं; और इस कारण क्लब के सदस्यों को अपमानित करने के अपने रवैये में सारिका यादव कोई सुधार करती हुई नहीं दिख रही हैं । उनके रवैये के कारण पूर्व प्रेसीडेंट्स की मीटिंग के बाद हालात और बिगड़ गए हैं ।
अभी तक यह समझा जा रहा था कि क्लब और क्लब के सदस्यों की बजाए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को ज्यादा तवज्जो देने के पीछे सारिका यादव का उद्देश्य अपने लिए अवॉर्ड का जुगाड़ करना ही है; लेकिन अब कुछेक नई बातें चर्चा में आ रही हैं, जिनसे मामला और गंभीर होता जा रहा है । सारिका यादव के पति सम्राट यादव को रवि चौधरी ने अपनी टीम में डिस्ट्रिक्ट वेबसाईट कमेटी के चेयरमैन का पद दिया हुआ है, जिसके तहत उन्हें डिस्ट्रिक्ट की वेबसाईट बनाने और चलाने की जिम्मेदारी निभानी है । रवि चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट की वेबसाईट बनवाने/चलवाने के खर्चे पूरे करने के लिए प्रत्येक क्लब से बीस-बीस हजार रुपए की सहयोग राशि की माँग की है । यह बात किसी को नहीं पता कि इस तरह से जो करीब पंद्रह लाख रुपए इकट्ठा होंगे, वह किसे मिलेंगे - वह सम्राट यादव को मिलेंगे और या रवि चौधरी की जेब में जायेंगे ? सम्राट यादव को डिस्ट्रिक्ट की वेबसाईट बनाने/चलाने की जो जिम्मेदारी मिली है, वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की टीम के एक पदाधिकारी के रूप में उन्हें मिली है, या यह एक प्रोफेशनल असाइनमेंट है जिसके उन्हें पैसे मिलने हैं - और यदि उन्हें पैसे मिलने हैं, तो कितने मिलने हैं; और यदि उन्हें पैसे नहीं मिलने हैं तो वेबसाईट के नाम पर क्लब्स से इकट्ठे किए जाने वाले करीब पंद्रह लाख रुपयों का होगा क्या ? यह कुछ ऐसे सवाल हैं, जिन पर रवि चौधरी ने पूरी तरह चुप्पी साधी हुई है । यह सवाल इसलिए भी बड़े गड़बड़झाले का संकेत देते हैं, क्योंकि यह बात भी चर्चा में है कि रवि चौधरी ने सारिका यादव को आश्वस्त किया हुआ है कि वह उनसे बिना कोई पैसा लिए उन्हें 'मेजर डोनर' का खिताब दिलवायेंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रोटरी फाउंडेशन के नाम पर मिले पैसों को 'दिखाने' में हेराफेरी करके कम पैसों में पीएचएफ और मेजर डोनर 'बनाने' का खेल करते हुए तो सुने गए हैं, लेकिन रवि चौधरी बिना कोई पैसा लिए सारिका यादव को मेजर डोनर बना/बनवा देंगे - इस बात ने क्लब व डिस्ट्रिक्ट के लोगों को चौंकाया जरूर है ।
लोग चौंके जरूर हों, लेकिन सारिका यादव को दिए रवि चौधरी के आश्वासन पर वास्तव में शक किसी को नहीं हुआ । हर कोई मानता है कि रवि चौधरी ने सारिका यादव को यदि कोई पैसा लिए बिना मेजर डोनर बनाने/बनवाने का आश्वासन दिया है, तो वह उसे अवश्य ही पूरा करेंगे । डिस्ट्रिक्ट विन्स सेमीनार का नजारा लोगों को खूब याद है - जहाँ समयाभाव का वास्ता देते हुए रवि चौधरी ने रोटरी इंडिया विन्स प्रोग्राम के चेयरमैन सुशील गुप्ता का भाषण तो नहीं होने दिया था, लेकिन सारिका यादव के एक निजी शुभ अवसर को सेलीब्रेट करने के लिए उनके पास समय का कोई अभाव नहीं था । रोटरी की, रोटरी के एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम के रूप में विन्स प्रोग्राम की, और पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता की एक साथ ऐसीतैसी करते हुए रवि चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट विन्स सेमीनार में सारिका यादव से केक कटवाने का जो कार्यक्रम करवाया था - वह इस बात की मिसाल है कि रवि चौधरी के लिए सारिका यादव की क्या अहमियत है । इसीलिए बिना पैसा लिए सारिका यादव को मेजर डोनर बनवाने के रवि चौधरी के आश्वासन पर किसी को भी शक नहीं है । समझा जाता है कि अवॉर्ड और मेजर डोनर जैसे आश्वासनों के चलते ही सारिका यादव ने अपने क्लब और क्लब के सदस्यों की साख व प्रतिष्ठा की अनदेखी की हुई है - लेकिन जो अभी फिलहाल उनके लिए मुसीबत का सबब बनी हुई है । सारिका यादव के व्यवहार व रवैये को लेकर छिड़े बबाल के चलते रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट में एक दिलचस्प नजारा यह भी बना है कि एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश जैन तो बुरी तरह खफा हैं, लेकिन दूसरे पूर्व गवर्नर संजय खन्ना मामले को ठंडा करने की कोशिशों में जुटे हैं ।

Monday, February 12, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद पर प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत ने इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट बनने की नवीन गुप्ता की खुशी को फीका किया

नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद पर प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत ने प्रेसीडेंट बने नवीन गुप्ता की खुशियों पर जैसे मट्ठा डाल दिया है । नवीन गुप्ता यूँ तो चुनावी समीकरणों को बनाने/बिगाड़ने के खेल में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते हैं - वैसे भी वह किसी काम में दिलचस्पी लेते नहीं देखे गए हैं - लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी के खिलाफ उनमें गजब का जोश था । नवीन गुप्ता को यद्यपि प्रफुल्ल छाजेड़ से कोई शिकायत नहीं थी; वह तो प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी के खिलाफ सिर्फ इसलिए थे, क्योंकि प्रफुल्ल छाजेड़ को नीलेश विकमसे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । प्रेसीडेंट के रूप में नीलेश विकमसे ने वाइस प्रेसीडेंट होने के बावजूद नवीन गुप्ता की जो गत बना कर रखी हुई थी, उसके कारण नवीन गुप्ता को नीलेश विकमसे से भारी नाराजगी थी - और उनकी इस नाराजगी का शिकार बन रही थी प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी । प्रफुल्ल छाजेड़ को नीलेश विकमसे के उम्मीदवार के रूप में 'दिखाने' और प्रचारित करने का काम वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में हमेशा ही अपनी टाँग फँसाए रखने वाले पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल ने किया । यह उत्तम अग्रवाल की चाल थी । दरअसल वाइस प्रेसीडेंट के इस वर्ष के चुनाव में प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ अब्राहम बाबु और निहार जम्बूसारिया को ही मजबूत उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था - और इनमें भी प्रफुल्ल छाजेड़ की स्थिति को अपेक्षाकृत बेहतर माना जा रहा था । 'रचनात्मक संकल्प' ने 6 जनवरी की अपनी रिपोर्ट में इस बात का विस्तृत विवरण दिया था और बताया था कि इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में प्रफुल्ल छाजेड़ को जीतने से 'रोकने' के लिए उत्तम अग्रवाल क्या क्या चालें चल रहे हैं ।
उत्तम अग्रवाल की चाल वास्तव में यही थी कि प्रफुल्ल छाजेड़ को वह नीलेश विकमसे के उम्मीदवार के रूप में 'दिखायेंगे' और प्रचारित करेंगे, तो नीलेश विकमसे के साथ अलग अलग कारणों से विरोध के चलते कई सेंट्रल काउंसिल सदस्य खुद-ब-खुद प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी के खिलाफ हो जायेंगे । नवीन गुप्ता वास्तव में उत्तम अग्रवाल की इसी चाल का शिकार हो गए; और इंस्टीट्यूट की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों ने इंस्टीट्यूट की राजनीति में एनडी गुप्ता के हमेशा विरोधी रहे उत्तम अग्रवाल को एनडी गुप्ता के बेटे नवीन गुप्ता का समर्थन मिलने का दिलचस्प नजारा देखा । इस तरह नवीन गुप्ता ने अपने पिता की राजनीतिक दुश्मनी के बोझ से अपने आप को मुक्त किया । इस मुक्ति के बावजूद लेकिन वह अपना ध्येय पाने में विफल रहे । नवीन गुप्ता और उत्तम अग्रवाल मिलकर भी प्रफुल्ल छाजेड़ को वाइस प्रेसीडेंट बनने से नहीं रोक सके । 6 जनवरी की 'रचनात्मक संकल्प' की रिपोर्ट में एक मजेदार तथ्य यह बताया गया था कि वेस्टर्न रीजन में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में उत्तम अग्रवाल का विकमसे भाइयों के साथ पुराना बैर है, और जब जब भी उनके बीच सीधी चुनावी टक्कर हुई है - उत्तम अग्रवाल को हमेशा ही विकमसे भाइयों से हारना ही पड़ा है । इसी बात का बदला लेने की खुन्नस में उत्तम अग्रवाल ने इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी के सामने तरह तरह से मुसीबतें खड़ी करने के प्रयास किए ।
प्रफुल्ल छाजेड़ ने लेकिन होशियारी से अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का अपना अभियान चलाया । सबसे ज्यादा होशियारी उन्होंने इस बात में दिखाई कि अपनी उम्मीदवारी के अभियान को उन्होंने बहुत ही लो-प्रोफाइल रखा । प्रफुल्ल छाजेड़ ने शुरू से ही इस बात का ध्यान रखा कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर जो उम्मीदवार ज्यादा 'उड़ता' है, लोग उसे गिराने में लग जाते हैं - इसलिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह 'उड़ने' से बचे रहे, और लो-प्रोफाइल में रहे । इससे उन्हें नीलेश विकमसे के उम्मीदवार के 'टैग' से छुटकारा पाने में भी मदद मिली । प्रफुल्ल छाजेड़ ने नीलेश विकमसे से मिल सकने वाले फायदे को तो 'लिया', लेकिन साथ ही नीलेश विकमसे के कारण हो सकने वाले नुकसान से अपने आप को बचाया भी । उत्तम अग्रवाल की अति सक्रियता भी प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए फायदे का सौदा रही । उत्तम अग्रवाल की बेमतलबभरी दखलंदाजी से लोग वास्तव में अब चिढ़ने लगे हैं; उत्तम अग्रवाल के पास राजनीति करने के लिए कुछ होता भी नहीं है - वह तो बस कहीं से ईंट और कहीं से रोड़ा लेकर अपनी राजनीति का कुनबा जोड़ने का प्रयास करते हैं, और जो जीतता हुआ दिखता है उसे अपना बताने लगते हैं । इस वर्ष उत्तम अग्रवाल ने पहले तो धीरज खंडेलवाल की उम्मीदवारी का झंडा पकड़ा, लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया कि धीरज खंडेलवाल का कहीं कोई काम नहीं बन सकेगा तो फिर वह अब्राहम बाबु और निहार जम्बूसारिया की स्थिति को 'तोलने' लगे । उत्तम अग्रवाल को शुरू से यह तो पता था कि उन्हें किसी भी तरह से प्रफुल्ल छाजेड़ को 'रोकना' है, लेकिन वह यह अंत तक तय नहीं कर सके कि 'लाना' किसे हैं । प्रफुल्ल छाजेड़ के विरोध में उन्हें नवीन गुप्ता का भी समर्थन मिल गया, लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ की राजनीतिक होशियारी के सामने उन्हें अंततः मुहँकी ही खानी पड़ी । वाइस प्रेसीडेंट पद पर प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत ने प्रेसीडेंट बनने की नवीन गुप्ता की खुशी को फीका कर दिया है ।

Saturday, February 10, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केके गुप्ता के गवर्नर-काल के सिल्वर जुबली कार्यक्रम को तत्कालीन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट क्लिफ डॉचटर्मन ने रोटरी के इतिहास में यूनीक आईडिया बताया

नई दिल्ली । पच्चीस वर्ष पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे केके गुप्ता ने अपने गवर्नर-काल की सिल्वर जुबली मनाने का फैसला करके रोटरी के इतिहास में एक अनोखा अध्याय जोड़ा है । उस वर्ष इंटरनेशनल प्रेसीडेंट रहे क्लिफ डॉचटर्मन ने तो उनके निमंत्रण पर कहा भी कि रोटरी में उन्होंने इस तरह के आयोजन की बात नहीं सुनी है, और यह बहुत ही यूनीक आईडिया है । क्लिफ डॉचटर्मन सिर्फ एक पूर्व प्रेसीडेंट ही नहीं हैं, रोटरी में और अमेरिकी समाज व प्रशासन में वह एक बड़ा नाम हैं । रोटरी में वह एक बड़े नेता हैं, जो रोटरी इंटरनेशनल की प्रायः सभी कमेटियों में प्रमुख पदों पर अपनी सेवाएँ दे चुके हैं । रोटरी में उनकी सेवाओं को देखते/ पहचानते और रेखांकित करते हुए उनके नाम पर 'द क्लिफ डॉचटर्मन अवॉर्ड' की स्थापना हुई है । क्लिफ डॉचटर्मन की लिखी 'द एबीसी ऑफ रोटरी' शीर्षक पुस्तक रोटेरियंस तथा रोटरी पर शोध करने वाले अकादमिक संस्थानों के बीच खासी लोकप्रिय है । ऐसे क्लिफ डॉचटर्मन ने केके गुप्ता के गवर्नर-काल के सिल्वर जुबली आयोजन को यदि यूनीक कहा है - तो यह वास्तव में यूनीक ही है । केके गुप्ता ने अपने गवर्नर-काल के सिल्वर जुबली आयोजन से जब क्लिफ डॉचटर्मन तक को चौंकाया व विस्मित किया है, तब दूसरों की तो बात ही क्या है ? सचमुच में, जिस किसी ने भी केके गुप्ता के इस आयोजन के बारे में सुना/जाना है - उसने खुशी मिश्रित आश्चर्य ही व्यक्त किया है । ऐसे समय और माहौल में, जबकि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स आमतौर पर पदों को पाने - और या दूसरों को 'दिलवाने' के लिए राजनीति व जुगाड़ करने में ही व्यस्त देखे/पहचाने जाते हैं; कोई पूर्व गवर्नर अपने गवर्नर-काल में सहयोगी और साथी रहे रोटेरियंस के साथ सेलीब्रेट करने के बारे में सोचे - तो यह अपने आप में यूनीक बात तो है ही ।
एक रोटेरियन के रूप में केके गुप्ता की उपलब्धियाँ यूँ भी कम नहीं हैं । 1992-93 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे केके गुप्ता को 1999 में आगरा में हुए रोटरी जोन 5 व 6ए के रोटरी इंस्टीट्यूट का चेयरमैन बनने का मौका मिला था । रोटरी फाउंडेशन के 'मेरिटोरियस सर्विस' अवॉर्ड तथा 'डिस्टिंगुइशड सर्विस' अवॉर्ड के साथ-साथ रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिष्ठित 'सर्विस अबव सेल्फ' से नवाजे जा चुके केके गुप्ता को एक बार सीओएल रिप्रेजेंटेटिव तथा रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रिप्रेजेंटेटिव के रूप में दो बार भूमिका निभाने का मौका मिला । वह दो बार डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी निभाने के बाद इन तमाम भूमिकाओं को निभाते तथा उपलब्धियों को प्राप्त करते हुए केके गुप्ता का स्वाभाविक रूप से रोटरी से नजदीक का संबंध निरंतर बना रहा है । संभवतः इसी बात ने उन्हें अपने गवर्नर काल की सिल्वर जुबली मनाने के लिए प्रेरित किया होगा । एक दिलचस्प संयोग यह है कि केके गुप्ता के गवर्नर-काल में रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के प्रेसीडेंट रहे सुभाष जैन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद-भार सँभालने की तैयारी कर रहे हैं । पच्चीस वर्ष पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे केके गुप्ता और पच्चीस वर्ष पहले प्रेसीडेंट रहे सुभाष जैन के गवर्नर पद की तरफ बढ़ने के बने संयोग के चलते केके गुप्ता के गवर्नर वर्ष का सिल्वर जुबली कार्यक्रम का परिदृश्य और भी दिलचस्प हो गया है ।
केके गुप्ता के गवर्नर-काल के सिल्वर जुबली आयोजन की तैयारी ने छोटे/बड़े रोटेरियंस को खुशी मिश्रित आश्चर्य के साथ प्रेरित किया है, और हर किसी ने केके गुप्ता के इस आईडिया की तारीफ ही की है । केके गुप्ता ने आयोजन के लिए 23 फरवरी की तारीख भी बहुत सोच-विचार कर तय की है । उल्लेखनीय है कि 113 वर्ष पहले, वर्ष 1905 में 23 फरवरी के दिन ही रोटरी की स्थापना हुई थी और रोटरी के संस्थापक पॉल हैरिस ने शिकागो में पहले रोटरी क्लब का गठन किया था । अपने गवर्नर-काल के सिल्वर जुबली कार्यक्रम को रोटरी के स्थापना दिवस से जोड़ कर केके गुप्ता ने रोटरी के प्रति अपने विश्वास और अपनी प्रतिबद्धता का ही इज़हार किया है - जो आजकल कम ही देखने को मिलता है । पिछले पच्चीस वर्षों में रोटरी बहुत बदल गई है : रोटरी का न केवल भारी विस्तार हुआ है, बल्कि उसका स्वरूप भी खासा बदल गया है । कोई भी बदलाव चूँकि अच्छे और बुरे दोनों रूपों में होता है - इसलिए रोटरी में भी पिछले पच्चीस वर्षों में बहुत सी अच्छी बातें जुड़ी हैं, तो बहुत कुछ घटियापन भी आया है । इस लिहाज से देखें तो केके गुप्ता के गवर्नर-काल का सिल्वर जुबली कार्यक्रम रोटरी के पिछले पच्चीस वर्षों के इतिहास का मूल्याँकन करने का मौका भी उपलब्ध करवाता है ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश जैन के प्रति रवि चौधरी द्वारा की गई बदतमीजी का समर्थन करने के कारण खतरे में पड़े प्रेसीडेंट पद को बचाने की कोशिश में सारिका यादव ने इस्तीफे के ऑफर का नाटक रचा

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट की प्रेसीडेंट सारिका यादव ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से अवॉर्ड प्राप्त करने के चक्कर में क्लब की और क्लब के वरिष्ठ सदस्यों की पहचान व प्रतिष्ठा के साथ जो खिलवाड़ किया है, उसे लेकर क्लब में खासा बबाल पैदा हो गया है । सारिका यादव ने प्रेसीडेंट पद से इस्तीफा देने के ऑफर का नाटक करके इस बबाल को और भड़का दिया है । क्लब के कई सदस्यों का कहना है कि सारिका यादव को यदि सचमुच इस्तीफा देना है, तो वह इस्तीफा देती क्यों नहीं हैं - इस्तीफा देने के ऑफर का नाटक क्यों कर रही हैं ? क्लब के कुछेक वरिष्ठ सदस्य हालाँकि बीच-बचाव करने के प्रयासों में भी लगे हैं, और उन सदस्यों को समझाने में लगे हैं जो प्रेसीडेंट के रूप में सारिका यादव के रवैये व व्यवहार से नाराज हैं । क्लब के कुछेक सदस्य यह भी कहने लगे हैं कि इस बार के घटनाचक्र से सबक लेकर क्लब के प्रेसीडेंट के चुनाव में सावधानी रखने की जरूरत है, ताकि सारिका यादव जैसे छोटी सोच के स्वार्थी लोग अध्यक्ष न बन सकें और क्लब की पहचान व प्रतिष्ठा को कलंकित न कर सकें । प्रेसीडेंट के रूप में सारिका यादव के रवैये व व्यवहार से नाराज क्लब के सदस्यों का कहना है कि क्लब की गतिविधियों के संचालन में तो सारिका यादव को क्लब के सदस्यों का सहयोग व समर्थन चाहिए होता है, लेकिन अपने लिए अवॉर्ड के लालच में वह क्लब के साथ-साथ क्लब के वरिष्ठ सदस्यों की साख व प्रतिष्ठा को भी अपने व्यवहार और रवैये से दाँव पर लगाती रही हैं ।
क्लब के सदस्यों के अनुसार, सारिका यादव के क्लब विरोधी रवैये की इंतहा का नजारा डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में उस समय देखने को मिला, जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश जैन के खिलाफ बकवासबाजी करने लगे, और सारिका यादव उनकी हाँ में हाँ मिलाने लगीं । सुरेश जैन रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट के सदस्य हैं, और रोटरी के लिए उन्होंने जितना किया है - किसी दूसरे रोटेरियन ने नहीं किया है । सुरेश जैन ने रोटरी में अपना पैसा तो लगाया ही है, अपनी पहल और सक्रियता से रोटरी के कई एक महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स भी संभव किए हैं । रवि चौधरी लेकिन उन्हें एक बेईमान पूर्व गवर्नर के रूप में चित्रित कर रहे थे और आरोप लगा रहे थे कि सुरेश जैन ने रोटरी फाउंडेशन में जितने पैसे दिए हैं, उससे कहीं ज्यादा उन्होंने रोटरी फाउंडेशन से पैसे लिए हैं । यह बात अपने आप में रवि चौधरी की मूर्खता को ही जाहिर कर रही थी - सुरेश जैन के नाम पर रोटरी फाउंडेशन से जो पैसे मिले हैं, वह विभिन्न प्रोजेक्ट्स के लिए ही तो मिले हैं; तो उसमें आरोप जैसी भला क्या बात है ? यह सामान्य सी बात लेकिन रवि चौधरी की समझ में नहीं आएगी - क्योंकि उन्होंने तो रोटरी के लिए कुछ किया नहीं है । अपने 'कुछ न करने' को, अपने 'छोटेपन' को छिपाने का उन्हें यही तरीका आता है कि जिन्होंने कुछ किया है, उन्हें लांछित करो । अपने इसी फार्मूले को अपनाते हुए रवि चौधरी विभिन्न मौकों पर विनोद बंसल को तरह तरह से लांछित करते रहे; और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में उन्होंने सुरेश जैन को लपेट लिया । सुरेश जैन के खिलाफ रवि चौधरी की बकवासबाजी को सुनने वाले लोगों को रवि चौधरी के व्यवहार पर तो कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि रवि चौधरी के घटिया स्वभाव से सभी परिचित हैं - किंतु सुरेश जैन के क्लब की प्रेसीडेंट सारिका यादव को रवि चौधरी की हाँ में हाँ मिलाते और उनकी बकवासबाजी का समर्थन करते देख लोगों को जरूर हैरानी हुई ।
सारिका यादव के इस व्यवहार में इंतहा की भी इंतहा तब हुई, जब मौके पर मौजूद उनके क्लब के वरिष्ठ सदस्य नीरज भटनागर ने सुरेश जैन के खिलाफ बकवास करते रवि चौधरी को टोका और उनसे कहा कि सुरेश जैन जैसे व्यक्ति के लिए उन्हें इस तरह की बातें नहीं कहना/करना चाहिए - जिसे सुनकर रवि चौधरी, नीरज भटनागर पर ही भड़कने लगे और उस दौरान भी सारिका यादव ने रवि चौधरी की ही बातों के प्रति समर्थन दिखाया/जताया । सारिका यादव के इस व्यवहार की जानकारी जब क्लब के अन्य सदस्यों को मिली, तब अधिकतर सदस्य भड़क उठे । सदस्यों का कहना रहा कि सारिका यादव को अवॉर्ड मिलेगा, तो यह क्लब के सदस्यों के लिए भी गर्व करने की बात होगी - लेकिन अवॉर्ड पाने के लिए सारिका यादव इस स्तर तक चली जायेंगी कि रवि चौधरी द्वारा क्लब के वरिष्ठ सदस्यों को अपमानित किए जाने को भी समर्थन देने लगेंगी, तो यह क्लब और क्लब के सदस्यों के लिए नितांत शर्म की ही बात है । सारिका यादव की खुशकिस्मती रही कि क्लब के अधिकतर सदस्यों को इस बात का पता भी नहीं रहा/चला कि सारिका यादव अपने अवॉर्ड के चक्कर में किस किस तरह से क्लब का नाम खराब करती रही हैं और क्लब के वरिष्ठ सदस्यों के लिए अपमानजनक स्थितियाँ पैदा करती रही हैं - लेकिन सुरेश जैन के प्रति और नीरज भटनागर के साथ रवि चौधरी द्वारा की गई बदतमीजी का उनके द्वारा किए गए समर्थन की बात ने पिछली बातों को भी उद्घाटित कर दिया । इसके बाद ही क्लब में चर्चा चली कि सारिका यादव क्लब की प्रेसीडेंट बने रहने लायक नहीं हैं और उन्हें क्लब के प्रेसीडेंट पद से तुरंत हटा दिया जाना चाहिए ।
क्लब में अपने खिलाफ बने माहौल की भनक लगते ही सारिका यादव ने चाल चली और प्रेसीडेंट पद से इस्तीफा दे देने का ऑफर दिया । उनका कहना रहा कि उनके व्यवहार और रवैये को लेकर क्लब के सदस्यों के बीच यदि नाराजगी है, तो फिर वह प्रेसिडेंट पद से इस्तीफा दे देती हैं । उनके इस ऑफर पर क्लब के कुछेक सदस्य बीच-बचाव की कोशिशों में जुट गए हैं । उनका कहना है कि रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में इस तरह की बातें होती ही रहती हैं; रवि चौधरी ने सुरेश जैन से सीधे सीधे तो कुछ नहीं कहा है - सुरेश जैन की पीठ के पीछे उन्होंने जो कुछ भी कहा है, उसके लिए क्लब की प्रेसीडेंट को दोषी क्यों ठहराना चाहिए ? क्लब के कुछेक सदस्य सारिका यादव के प्रेसीडेंट पद को बचाने की कोशिशों में भले ही जुट गए हों, लेकिन क्लब के अधिकतर सदस्यों का मानना और कहना है कि सारिका यादव अवॉर्ड के लिए रवि चौधरी की चाटुकारिता में इस हद तक चली गईं हैं कि क्लब के वरिष्ठ सदस्यों के किए जा रहे अपमान तक का समर्थन करने लगीं हैं - तो उन्हें प्रेसीडेंट के पद पर बने रहने का कोई नैतिक हक नहीं है । ऐसा मानने और कहने वाले सदस्यों का यह भी कहना है कि सारिका यादव को इस्तीफे का ऑफर देने की बजाए प्रेसीडेंट पद से इस्तीफा देना चाहिए । ऑफर से ऐसा लग रहा है जैसे कि वह प्रेसीडेंट पद पर बने रहना चाहती हैं, और इस्तीफे का सिर्फ नाटक कर रही हैं । मजे की बात यह है कि ऐसा कहने वाले सदस्यों में ही कुछेक को यह भी लग रहा है कि इस्तीफे के ऑफर के नाटक के जरिए सारिका यादव प्रेसीडेंट का पद बहुत संभव है कि बचा भी लें ।

Wednesday, February 7, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में ट्रेनिंग सेमीनार के आयोजन की तैयारी से दूध में पड़ी मक्खी की तरह से निकाल बाहर फेंके जाने से बौखलाए रवि चौधरी ने विनय भाटिया और विनोद बंसल पर एक साथ हमला बोला

नई दिल्ली । असिस्टेंट गवर्नर्स व डिस्ट्रिक्ट टीम के ट्रेनिंग सेमीनार के आयोजन को महँगा बताते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया पर जिस तरह से हमला बोला है, उससे उन्होंने जता दिया है कि विनय भाटिया के साथ उन्होंने छोटे भाई और बड़े भाई के जो संबंध बनाए हुए थे, वह फर्जी थे - और उनकी बदतमीजी का शिकार बनने से कोई भी नहीं बच सकता है । हालाँकि जो लोग दोनों के नजदीक रहे हैं, उनका कहना है कि रवि चौधरी वास्तव में इस बात पर भड़के हुए हैं कि पिछले कुछ समय से विनय भाटिया उनसे अलग चल रहे हैं । रवि चौधरी को उम्मीद थी कि विनय भाटिया जो भी कुछ करेंगे, उनसे पूछ/बता कर करेंगे; कुछ समय तक विनय भाटिया ने उनकी उम्मीद पूरी भी की - किंतु अब रवि चौधरी को लग रहा है कि विनय भाटिया उन्हें किनारे कर रहे हैं । असिस्टेंट गवर्नर्स व डिस्ट्रिक्ट टीम के ट्रेनिंग सेमीनार के आयोजन की तैयारी से तो विनय भाटिया ने रवि चौधरी को पूरी तरह अलग-थलग रखा । दोनों के नजदीक रहे लोगों का कहना है कि विनय भाटिया के इसी बदले हुए रवैये को लेकर रवि चौधरी भड़के हुए हैं और अपना भड़कना 'दिखाते' हुए ही उन्होंने ट्रेनिंग सेमीनार में ज्यादा पैसा लेने का आरोप लगाया है । रवि चौधरी का कहना है कि होटल जब सभी इंतजाम के लिए 35 हजार रुपए ले रहा है, तो विनय भाटिया 48 हजार रुपए क्यों बसूल रहे हैं ? रवि चौधरी का कहना है कि असिस्टेंट गवर्नर्स के ट्रेनिंग सेमीनार के लिए तो रोटरी इंटरनेशनल से भी पैसे मिलते हैं । विनय भाटिया के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि यूँ तो लोग रवि चौधरी की बातों को गंभीरता से नहीं लेते हैं, और मानते/समझते हैं कि बकवास करना रवि चौधरी का स्वभाव ही है; लेकिन 35 के बदले 48 हजार रुपए बसूलने के उनके आरोप लोगों को उकसा रहे हैं ।
असिस्टेंट गवर्नर्स व डिस्ट्रिक्ट टीम के ट्रेनिंग सेमीनार के बहाने से विनय भाटिया पर हमला करते हुए रवि चौधरी ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल को भी लपेटे में ले लिया है । विनोद बंसल को विनय भाटिया ने अपने गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया है । रवि चौधरी ने यह दावा तो कई बार खुद ही किया है कि विनोद बंसल को उनके और विनय भाटिया के बीच बना 'दोस्ताना' पसंद नहीं आ रहा है, और वह इस दोस्ताना का खत्म करने/करवाने के लिए प्रयत्नशील हैं । विनोद बंसल के रवैये के चलते हुए ही रवि चौधरी ने बहुत कोशिश की कि विनय भाटिया उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटा दें । एक मौके पर तो ऐसा लगा भी कि विनय भाटिया, रवि चौधरी की कोशिशों को कामयाब कर ही देंगे । विनोद बंसल की तरफ से सुना भी गया कि विनय भाटिया उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद से हटा देंगे, तो हट जायेंगे - इसमें समस्या की बात क्या है ? वास्तव में इसी आशंका में विनोद बंसल ने पेम टू के कई आयोजनों का बहिष्कार भी किया । मजे की बात यह रही कि पेम टू के एक से अधिक आयोजन करने का आईडिया विनोद बंसल का था, लेकिन वही अपनी प्रोफेशनल व्यस्तताओं का बहाना बना कर पेम टू के आयोजनों से दूर रहे । रवि चौधरी ने उन दिनों विनोद बंसल का नाम लेकर खूब फब्तियाँ कसीं कि विनोद बंसल यदि अपने प्रोफेशन में इतने ही व्यस्त हैं, तो डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद छोड़ क्यों नहीं देते हैं ? रवि चौधरी ने अपनी बातों से विनय भाटिया और विनोद बंसल को उकसाने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन विनोद बंसल ने धैर्य दिखाते हुए उनकी कोशिश को सफल नहीं होने दिया - और उधर विनय भाटिया को भी समझ में आ गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए रवि चौधरी की बजाए विनोद बंसल के नजदीक रहना उनके लिए ज्यादा फायदेमंद होगा ।
असिस्टेंट गवर्नर्स व डिस्ट्रिक्ट टीम के ट्रेनिंग सेमीनार के आयोजन की तैयारी से विनय भाटिया ने रवि चौधरी को जिस तरह दूध में पड़ी मक्खी की तरह से निकाल बाहर फेंका, उससे रवि चौधरी को खासा तगड़ा झटका लगा है । उनके नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि रवि चौधरी ने तो विनय भाटिया के गवर्नर-काल में भी अपनी चौधराहट दिखाने/जताने के मंसूबे बनाए हुए थे, जो विनय भाटिया के बदले रवैये से उन्हें हवा होते हुए नजर आ रहे हैं । इसी बात का बदला लेने के लिए रवि चौधरी ने उक्त ट्रेनिंग सेमीनार को ही निशाने पर ले लिया है, और उसके बहाने से विनय भाटिया और विनोद बंसल पर एक साथ हमला बोला है । रवि चौधरी का कहना है कि विनोद बंसल हर काम को बड़ा करने/बनाने के चक्कर में खुद भी फजीहत को शिकार होते हैं, और अपने नजदीकियों को भी फँसाते हैं । उनके अनुसार, विनोद बंसल के चक्कर में ही उनके क्लब के पूर्व प्रेसीडेंट राजेश गुप्ता बेचारे ऐसे फँसे हैं कि अभी तक भी फजीहत झेल रहे हैं । रवि चौधरी की भविष्यवाणी है कि विनोद बंसल के चक्कर में विनय भाटिया भी फजीहत का शिकार बनेंगे । विनय भाटिया ने जिस तरह से रवि चौधरी से दूरी बनाना शुरू किया है, और इसकी प्रतिक्रिया में रवि चौधरी ने विनय भाटिया और विनोद बंसल को आरोपों के घेरे में लेना शुरू किया है - उससे लग रहा है कि इनके बीच अभी और तमाशे देखने को मिलेंगे ।

Monday, February 5, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी ने नीलेश विकमसे और नवीन गुप्ता के बीच के झगड़े को चर्चा का विषय बनाया

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी ने उनके अपने सदर्न रीजन से लेकर इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल तक में बुरी तरह से खलबली मचा दी है । एमपी विजय कुमार का सेंट्रल काउंसिल में पहला टर्म है । यूँ तो पहली टर्म वाले धीरज खंडेलवाल और मनु अग्रवाल भी अपनी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत किए हुए हैं, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के चुनावी समीकरणों में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को हालाँकि यही लग रहा है कि पहली टर्म वाले सदस्यों की उम्मीदवारी - और कुछ नहीं, बल्कि सिर्फ किसी गंभीर उम्मीदवार का खेल बनाने और या किसी का खेल बिगाड़ने का ही काम करेगी, और इस सोच के कारण सबसे बुरी दशा में धीरज खंडेलवाल और मनु अग्रवाल हैं । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में हमेशा ही अपनी टाँग फँसाए रखने वाले फुर्सती पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल के समर्थन की चर्चा के चलते धीरज खंडेलवाल को तो कुछ समय लोगों ने गंभीरता से लिया भी, मनु अग्रवाल को लेकिन उम्मीदवार के रूप में कभी भी तवज्जो नहीं मिली । लोगों को यही सोच सोच कर हैरानी है कि मनु अग्रवाल आखिर किस भरोसे वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए उम्मीदवार बन गए हैं । कानपुर में उनके नजदीकियों से मजाक भी सुने गए हैं कि पनकी वाले हनुमान मंदिर के बाबा ने मनु अग्रवाल को (वाइस) प्रेसीडेंट बनने का आशीर्वाद दिया हुआ है, और वह उसी आशीर्वाद के भरोसे वाइस प्रेसीडेंट बनने की लाइन में लग गए हैं । उत्तम अग्रवाल और पनकी वाले बाबा के कारण क्रमशः धीरज खंडेलवाल और मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के बारे में भले ही मजाक सुने जा रहे हों, लेकिन एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी ने अलग अलग कारणों से कइयों को सांसत में डाला हुआ है । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में एमपी विजय कुमार का क्या हाल होगा और वह जीतेंगे या नहीं, यह तो नतीजा मिलने पर ही पता चलेगा - लेकिन उनकी उम्मीदवारी ने इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में चौतरफा बबाल जरूर काटा हुआ है ।
सबसे ज्यादा बबाल उनके अपने सदर्न रीजन में ही मचा हुआ है, और उनकी उम्मीदवारी सदर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों के लिए दिलचस्पी का विषय बनी हुई है । एमपी विजय कुमार ने दरअसल सेंट्रल काउंसिल के पिछले चुनाव में सदर्न रीजन में सबसे ज्यादा वोट प्राप्त किए थे, और इस तरह से वह देवराज रेड्डी के लिए दुःस्वप्न साबित हुए थे । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट में यह रिकॉर्ड रहा है कि वाइस प्रेसीडेंट के रूप में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने वाला अपने रीजन में सबसे ज्यादा वोट पाता है । देवराज रेड्डी के मामले में लेकिन यह रिकॉर्ड टूट गया, क्योंकि वाइस प्रेसीडेंट के रूप में चुनाव लड़ने वाले देवराज रेड्डी को एमपी विजय कुमार से कम वोट मिले और वह अपने रीजन में दूसरे नंबर पर रहने के लिए मजबूर हुए । सदर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे लोगों को डर है कि एमपी विजय कुमार यदि वाइस प्रेसीडेंट बन गए, तो इस वर्ष वर्ष होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में कितने वोट पायेंगे - और किस किस का काम बिगाड़ेंगे ? इसलिए सदर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे कई उम्मीदवार और उनके समर्थक नेता अपने अपने तरीके से वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में एमपी विजय कुमार की राह को मुश्किल बनाने का काम कर रहे हैं । जिस बेचारे की वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में कोई भूमिका नहीं है, वह प्रार्थना करके एमपी विजय कुमार के लिए मुश्किलें खड़ी करने की कोशिश कर रहा है ।
एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी ने लेकिन बड़ा काम प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे और वाइस प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के बीच के 'झगड़े' को सामने लाने का किया है । नवीन गुप्ता को यूँ तो महा-नाकारा सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में देखा/पहचाना जाता है, जिनकी इंस्टीट्यूट के किसी काम में कभी कोई सक्रियता नहीं रही और जो सिर्फ अपने पिताजी की बदौलत काउंसिल में सदस्य बन गए और फिर वाइस प्रेसीडेंट भी बन गए - लेकिन एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी के खिलाफ उनकी गजब की सक्रियता है । नवीन गुप्ता के अनुसार, वाइस प्रेसीडेंट चाहे कोई भी बन जाए, बस एमपी विजय कुमार न बने । एमपी विजय कुमार से नवीन गुप्ता की नाराजगी का कारण - एमपी विजय कुमार का नीलेश विकमसे के नजदीक होना/रहना है । नवीन गुप्ता की नाराजगी वास्तव में नीलेश विकमसे से है । इंस्टीट्यूट के इतिहास में प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट के बीच इतने खराब रिश्ते शायद ही कभी रहे हों, जितने इस वर्ष रहे हैं । नवीन गुप्ता की शिकायत रही है कि प्रेसीडेंट के रूप में नीलेश विकमसे ने उन्हें कभी किसी मौके पर कोई अहमियत नहीं दी, और उन्हें पूरी तरह से उपेक्षित रखा । इस स्थिति के लिए कई लोग हालाँकि नवीन गुप्ता को ही जिम्मेदार मानते/ठहराते हैं । उनका कहना है कि नवीन गुप्ता किसी लायक हैं ही नहीं; इसलिए नीलेश विकमसे ने अपना समय और एनर्जी बचाने के लिए ही उन्हें किसी मौके पर अहमियत नहीं दी । अब वजह चाहें जो हो, नीलश विकमसे से तवज्जो न मिलने के कारण नवीन गुप्ता उनसे बुरी तरह खफा हैं; और नीलेश विकमसे से अपनी नाराजगी का बदला वह एमपी विजय कुमार से लेने की कोशिश कर रहे हैं - क्योंकि एमपी विजय कुमार इस वर्ष नीलेश विकमसे के बड़े खास रहे हैं । नवीन गुप्ता के लिए नीलेश विकमसे का तो कुछ बिगाड़ पाना संभव नहीं है, इसलिए वह उनके खास रहे एमपी विजय कुमार से ही बदला लेकर अपने कलेजे को ठंडक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं ।
वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में वाइस प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की इस सक्रियता ने एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी को खास बना दिया है । लोगों का कहना/मानना है कि एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी ही है, जिसने नीलेश विकमसे और नवीन गुप्ता के बीच के झगड़े को सार्वजनिक चर्चा का विषय बना दिया है । इसी से लोगों को कहने का मौका मिला है कि वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी का क्या होगा, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन उनकी उम्मीदवारी ने वाइस प्रेसीडेंट के चुनावी परिदृश्य को रोचक जरूर बना दिया है ।