नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह और निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन
विनय गर्ग के मल्टीपल की राजनीति में व्यस्त रहने का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
नॉमिनी पद के उनके उम्मीदवार रमन गुप्ता की स्थिति पर खराब असर पड़ता दिख
रहा है, जिसका फायदा उठाने के लिए उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार मदन बत्रा
तथा उनके समर्थक भरसक प्रयास कर रहे हैं । सत्ता खेमे के ही समर्थक
कुछेक लोग कहने भी लगे हैं कि उनके नेता इस वर्ष भी वही गलती कर रहे हैं,
जो उन्होंने पिछले वर्ष की थी - और जिसके चलते वह जीती/जिताई बाजी हार बैठे
थे । पिछली बार की तरह इस बार भी सत्ता खेमे के नेता अपने उम्मीदवार की
जीत को लेकर इस कदर आश्वस्त हैं कि अपनी कमजोरियों तथा अपने फैसलों व
रवैयों के चलते बदलती स्थिति का सही सही आकलन नहीं कर पा रहे हैं - कर क्या
नहीं पा रहे हैं, आकलन करने की जरूरत तक नहीं समझ रहे हैं । विरोधी
खेमा पिछली बार की ही तरह इस बार भी सत्ता खेमे की लापरवाहियों का फायदा
उठाने में लगा है । सत्ता खेमे के दोनों बड़े नेताओं ने जिस तरह से खुद को
मल्टीपल की राजनीति में उलझा रखा है, उसके कारण भी डिस्ट्रिक्ट की राजनीति
में उनकी पकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है । दरअसल, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के
रूप में इंद्रजीत सिंह ने विनय गर्ग को जो तवज्जो दी/दिलवाई है, उसके कारण
सत्ता खेमे के ही कई पूर्व गवर्नर्स बिदके हुए हैं और अपने आपको अलग-थलग व
उपेक्षित पा रहे हैं । उनकी नाराजगी रमन गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए
नुकसानदेह हो सकती है ।
सत्ता खेमे के नेताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती जेपी सिंह बने हुए हैं । जेपी सिंह से उन्हें लड़ना तो है, लेकिन उनसे लड़ने के नए 'हथियार' और या तौर/तरीके वह नहीं खोज पा रहे हैं । जेपी सिंह को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने से रोकने की उनकी कोशिशें सफल तो नहीं ही हो पा रही हैं, डिस्ट्रिक्ट में भी कई लोगों को उनकी यह कोशिशें पसंद नहीं आ रही हैं - लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट को यदि इंटरनेशनल डायरेक्टर का पद मिल रहा है, तो अपनी निजी खुन्नस में उसका विरोध क्यों किया जाना ? ब्लड बैंक की बेईमानियों को मुद्दा बना कर जेपी सिंह को जब जिस तरह घेरा गया था, वह मुद्दा कामयाब रहा था; लेकिन जेपी सिंह के ब्लड बैंक छोड़ देने के बाद उनके विरोधी कोई कारगर/धारदार मुद्दा उनके खिलाफ नहीं खोज/बना सके हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर के मुद्दे पर लड़ाई जब तक डिस्ट्रिक्ट में थी, तब तक जेपी सिंह के विरोधियों को समर्थन मिल रहा था - लेकिन पहले डिस्ट्रिक्ट और फिर मल्टीपल में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जेपी सिंह के एंडोर्स हो जाने के बाद डिस्ट्रिक्ट में समीकरण बदल गए हैं; और उनके विरोधी रहे लोगों में से भी कई लोग मानने और कहने लगे हैं कि अभी भी जेपी सिंह के इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में रुकावटें पैदा करने के प्रयास सिर्फ खुन्नसी राजनीति के सुबूत हैं, और यह कामयाब भी नहीं हो रहे हैं । इसामे फोरम से जेपी सिंह को एंडोर्समेंट मिल जाने के बाद मल्टीपल में उन्हें रोकने की कोशिशें बेमानी भी हो गईं हैं । मदन बत्रा की उम्मीदवारी के अभियान में इस मुद्दे को जिस तरह से हवा दी जा रही है, उससे रमन गुप्ता की उम्मीदवारी के चुनाव प्रचार अभियान पर कुछ दबाव तो पड़ ही रहा है ।
रमन गुप्ता के सामने लेकिन इससे भी बड़ी चुनौती अपने समर्थक पूर्व गवर्नर्स को सक्रिय करने की है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह ने क्लब्स के आयोजनों में जिस तरह से निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग को तवज्जो दिलवाने पर जोर दिया, उसके कारण क्लब्स के कार्यक्रमों से पूर्व गवर्नर्स का पत्ता पूरी तरह से कटा रहा । इस बात से सत्ता खेमे को दोहरा झटका लगा । दरअसल हुआ यह है कि विरोधी खेमे के क्लब्स तो अपने कार्यक्रमों में विरोधी खेमे के पूर्व गवर्नर्स को बुलाते रहे, जिस कारण वह सक्रिय व चार्जड रहे और अपनी राजनीति करते रहे; लेकिन सत्ता खेमे के क्लब्स में चूँकि विनय गर्ग को ही बुलाए जाने का फरमान था, इसलिए सत्ता खेमे के पूर्व गवर्नर्स बेचारे घर बैठने को मजबूर हुए और अब चुनाव के मौके पर वह उतने चार्जड नजर नहीं आ रहे हैं, जितने की उनसे उम्मीद की जाती है । इस कारण से रमन गुप्ता की उम्मीदवारी के अभियान में उतनी तेजी और सघनता नहीं बन पा रही है, जितनी की बननी चाहिए - और इसका फायदा मदन बत्रा की उम्मीदवारी के समर्थक उठाते नजर आ रहे हैं । हालाँकि अभी भी सत्ता खेमे के उम्मीदवार होने के नाते रमन गुप्ता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी दौड़ में काफी आगे और बढ़त में दिख रहे हैं, लेकिन अपने समर्थक नेताओं के 'अति-आत्मविश्वासी' रवैये के चलते उनके सामने अपनी बढ़त को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती भी बन गया है । पिछले वर्ष सत्ता खेमे के नेताओं के इसी 'अति-आत्मविश्वासी' रवैये के कारण यशपाल अरोड़ा का बेड़ा-गर्क हुआ था - लगता है कि उस झटके से सत्ता खेमे के नेताओं ने कोई सबक नहीं सीखा है । यह भी ठीक है कि एक उम्मीदवार के रूप में मदन बत्रा वैसा 'दम' नहीं दिखा पा रहे हैं, जैसा पिछले वर्ष उनके खेमे के गुरचरण सिंह भोला ने दिखाया था; इसलिए मदन बत्रा की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में अभी भी ज्यादा स्वीकार्यता नहीं मिलती दिख रही है - लेकिन चुनावी राजनीति में अपनी कमजोरी को अनदेखा करना रमन गुप्ता और उनके समर्थक नेताओं के लिए मुसीबत भी बन जा सकता है ।
सत्ता खेमे के नेताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती जेपी सिंह बने हुए हैं । जेपी सिंह से उन्हें लड़ना तो है, लेकिन उनसे लड़ने के नए 'हथियार' और या तौर/तरीके वह नहीं खोज पा रहे हैं । जेपी सिंह को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने से रोकने की उनकी कोशिशें सफल तो नहीं ही हो पा रही हैं, डिस्ट्रिक्ट में भी कई लोगों को उनकी यह कोशिशें पसंद नहीं आ रही हैं - लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट को यदि इंटरनेशनल डायरेक्टर का पद मिल रहा है, तो अपनी निजी खुन्नस में उसका विरोध क्यों किया जाना ? ब्लड बैंक की बेईमानियों को मुद्दा बना कर जेपी सिंह को जब जिस तरह घेरा गया था, वह मुद्दा कामयाब रहा था; लेकिन जेपी सिंह के ब्लड बैंक छोड़ देने के बाद उनके विरोधी कोई कारगर/धारदार मुद्दा उनके खिलाफ नहीं खोज/बना सके हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर के मुद्दे पर लड़ाई जब तक डिस्ट्रिक्ट में थी, तब तक जेपी सिंह के विरोधियों को समर्थन मिल रहा था - लेकिन पहले डिस्ट्रिक्ट और फिर मल्टीपल में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जेपी सिंह के एंडोर्स हो जाने के बाद डिस्ट्रिक्ट में समीकरण बदल गए हैं; और उनके विरोधी रहे लोगों में से भी कई लोग मानने और कहने लगे हैं कि अभी भी जेपी सिंह के इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में रुकावटें पैदा करने के प्रयास सिर्फ खुन्नसी राजनीति के सुबूत हैं, और यह कामयाब भी नहीं हो रहे हैं । इसामे फोरम से जेपी सिंह को एंडोर्समेंट मिल जाने के बाद मल्टीपल में उन्हें रोकने की कोशिशें बेमानी भी हो गईं हैं । मदन बत्रा की उम्मीदवारी के अभियान में इस मुद्दे को जिस तरह से हवा दी जा रही है, उससे रमन गुप्ता की उम्मीदवारी के चुनाव प्रचार अभियान पर कुछ दबाव तो पड़ ही रहा है ।
रमन गुप्ता के सामने लेकिन इससे भी बड़ी चुनौती अपने समर्थक पूर्व गवर्नर्स को सक्रिय करने की है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह ने क्लब्स के आयोजनों में जिस तरह से निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग को तवज्जो दिलवाने पर जोर दिया, उसके कारण क्लब्स के कार्यक्रमों से पूर्व गवर्नर्स का पत्ता पूरी तरह से कटा रहा । इस बात से सत्ता खेमे को दोहरा झटका लगा । दरअसल हुआ यह है कि विरोधी खेमे के क्लब्स तो अपने कार्यक्रमों में विरोधी खेमे के पूर्व गवर्नर्स को बुलाते रहे, जिस कारण वह सक्रिय व चार्जड रहे और अपनी राजनीति करते रहे; लेकिन सत्ता खेमे के क्लब्स में चूँकि विनय गर्ग को ही बुलाए जाने का फरमान था, इसलिए सत्ता खेमे के पूर्व गवर्नर्स बेचारे घर बैठने को मजबूर हुए और अब चुनाव के मौके पर वह उतने चार्जड नजर नहीं आ रहे हैं, जितने की उनसे उम्मीद की जाती है । इस कारण से रमन गुप्ता की उम्मीदवारी के अभियान में उतनी तेजी और सघनता नहीं बन पा रही है, जितनी की बननी चाहिए - और इसका फायदा मदन बत्रा की उम्मीदवारी के समर्थक उठाते नजर आ रहे हैं । हालाँकि अभी भी सत्ता खेमे के उम्मीदवार होने के नाते रमन गुप्ता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी दौड़ में काफी आगे और बढ़त में दिख रहे हैं, लेकिन अपने समर्थक नेताओं के 'अति-आत्मविश्वासी' रवैये के चलते उनके सामने अपनी बढ़त को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती भी बन गया है । पिछले वर्ष सत्ता खेमे के नेताओं के इसी 'अति-आत्मविश्वासी' रवैये के कारण यशपाल अरोड़ा का बेड़ा-गर्क हुआ था - लगता है कि उस झटके से सत्ता खेमे के नेताओं ने कोई सबक नहीं सीखा है । यह भी ठीक है कि एक उम्मीदवार के रूप में मदन बत्रा वैसा 'दम' नहीं दिखा पा रहे हैं, जैसा पिछले वर्ष उनके खेमे के गुरचरण सिंह भोला ने दिखाया था; इसलिए मदन बत्रा की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में अभी भी ज्यादा स्वीकार्यता नहीं मिलती दिख रही है - लेकिन चुनावी राजनीति में अपनी कमजोरी को अनदेखा करना रमन गुप्ता और उनके समर्थक नेताओं के लिए मुसीबत भी बन जा सकता है ।