Tuesday, December 31, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में एक जनवरी के प्रोजेक्ट के जरिये विक्रम शर्मा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में सकारात्मक माहौल बनाया

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा ने ठंड में ठिठुरते लोगों की चिंता करते हुए जिस मेगा प्रोजेक्ट का आयोजन किया है, उससे जरूरतमंदों को गर्मी का अहसास तो बाद में होगा - उससे पहले लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों में गर्मी जरूर पैदा हो गई है । विक्रम शर्मा के इस आयोजन को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संबंध में मास्टर स्ट्रोक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों का ही नहीं, विरोधियों का भी मानना और कहना है कि विक्रम शर्मा ने 'कंबल और स्वेटर वितरण' के कार्यक्रम को जिस होशियारी से अंजाम दिया है उसके चलते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी दौड़ में उनके नंबर अचानक से बढ़ गए हैं । उनके इस कार्यक्रम की टाइमिंग को पूरी तरह परफेक्ट माना जा रहा है ।
विक्रम शर्मा इस तरह के प्रोजेक्ट्स नियमित रूप से करते रहे हैं । अपने क्लब में उनका जैसा प्रभाव है तथा समाज के दूसरे सक्रिय लोगों के बीच उनकी जैसी पैठ है - उसके चलते उनके द्धारा और या उनकी प्रेरणा से अलग-अलग तरह के प्रोजेक्ट्स समय समय पर होते रहे हैं । इसी कारण से विक्रम शर्मा को 'मैन ऑफ प्रोजेक्ट्स' भी कहा जाता रहा है । प्रोजेक्ट्स के माध्यम से ही विक्रम शर्मा ने डिस्ट्रिक्ट में अपनी पहचान को न सिर्फ बनाया है बल्कि अपनी पहचान को निरंतर समृद्ध भी किया है । इस पहचान का लेकिन वह कभी राजनीतिक फायदा नहीं उठा सके । इस वर्ष भी, विक्रम शर्मा ने जब सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के संकेत दिए तो उन्होंने प्रोजेक्ट्स के माध्यम से भी अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास किया । यह प्रयास लेकिन कामयाब होता हुआ नहीं दिखा । दरअसल इस 'प्रयास' को जिस राजनीतिक हुनर के साथ इस्तेमाल होना चाहिए था, वह राजनीतिक हुनर विक्रम शर्मा नहीं सीख पाये या इस्तेमाल नहीं कर पाये ।
एक जनवरी को होने जा रहे प्रोजेक्ट को विक्रम शर्मा ने चूँकि राजनीतिक ऐंगल से संयोजित किया है - तो उसका असर भी होता 'दिख' रहा है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में यह वर्ष खासा दिलचस्प हो गया है । चुनावी नजरिये से बने खेमों के पास अपने अपने भरोसे के उम्मीदवार ही नहीं हैं और इस कारण जो उम्मीदवार हैं उनकी स्वीकार्यता को लेकर असमंजस बना हुआ है । डिस्ट्रिक्ट में पहली बार ऐसा हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आमतौर पर चुनाव इसलिए चाहते हैं जिससे कि क्लब्स के ड्यूज तो मिल ही जाते हैं, साथ ही उम्मीदवारों के भरोसे दूसरे कई तरह के खर्चों का जुगाड़ भी हो जाता है । डिस्ट्रिक गवर्नर को प्रायः अपना एक 'क्लोन' बनाने का भी शौक होता है, जिसके जरिये वह दिखाता/बताता रहता है कि उसे उसने गवर्नर 'बनाया' है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विजय शिरोहा ने लेकिन न तो उम्मीदवारों के जरिये खर्चों का जुगाड़ करने में कोई दिलचस्पी दिखाई है और न उन्होंने अपना कोई 'क्लोन' तैयार करने का विचार किया । इसके चलते 'उनका' कोई उम्मीदवार नहीं आया और जो आये उनमें से कोई 'उनका' उम्मीदवार बना नहीं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विजय शिरोहा ने उम्मीदवार 'बनाने' में भले ही दिलचस्पी न ली हो, लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उनकी भूमिका को निर्णायक महत्ता जरूर मिली । इसका नतीजा यह रहा कि डिस्ट्रिक्ट में चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के लिए उम्मीदवार का चुनाव करना मुश्किल हो गया । विजय शिरोहा की राजनीति के सामने विरोधी खेमे के नेताओं ने तो कोशिश किये बिना ही समर्पण कर दिया और कोई उम्मीदवार न लाने की घोषणा कर दी । जिन विक्रम शर्मा को विरोधी खेमे के नजदीक समझा जाता था, उन विक्रम शर्मा ने लेकिन विजय शिरोहा पर भरोसा करना ज्यादा मुनासिब समझा । विरोधी खेमे के नेताओं ने फिर ओंकार सिंह को उम्मीदवार बनाने का प्रयास किया, लेकिन विजय शिरोहा के प्रभाव को देखते/पहचानते हुए ओंकार सिंह ने उनके झाँसे में आने से साफ इंकार कर दिया । विरोधी खेमे को तो समर्पण के लिए मजबूर होना ही पड़ा, सत्ता खेमे के नेताओं के लिए भी उम्मीदवार तय करना मुश्किल हुआ - और यही वजह है कि अभी तक भी, जबकि चुनाव होने में एक माह का समय ही रह गया है, उम्मीदवार का 'चयन' नहीं हो सका है ।
ऐसे में, विक्रम शर्मा ने विजय शिरोहा की 'कमजोरी' को पहचाना और मेगा प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार कर ली । विजय शिरोहा में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स में आमतौर पर पाई जाने वाली 'कमजोरियाँ' तो नहीं हैं; किंतु चूँकि हर व्यक्ति में कोई न कोई कमजोरी तो होती ही है लिहाजा विक्रम शर्मा ने यह पहचानने में देर तो की लेकिन देर से ही सही यह पहचान लेने में सफलता पाई कि विजय शिरोहा की भी एक बड़ी कमजोरी है और वह यह कि विजय शिरोहा डिस्ट्रिक्ट में प्रोजेक्ट्स होते हुए देखना चाहते हैं । विक्रम शर्मा ने भाँप लिया कि प्रोजेक्ट को राजनीतिक ट्विस्ट देकर वह विजय शिरोहा का समर्थन पा सकते हैं । एक जनवरी के प्रोजेक्ट के जरिये विक्रम शर्मा ने एक तरफ डिस्ट्रिक्ट की गतिविधि से जुड़ने का प्रयास किया और दूसरी तरफ विजय शिरोहा की राजनीतिक स्थिति को मान्यता और पहचान को स्वीकार किया ।
इस प्रोजेक्ट से विक्रम शर्मा को सचमुच क्या राजनीतिक फायदा होगा - इसका पता तो अभी कुछ दिन बाद मालुम होगा; लेकिन अभी इस प्रोजेक्ट के चलते उनकी उम्मीदवारी के बारे में एक सकारात्मक माहौल तो बन ही गया है । इससे जाहिर है कि विक्रम शर्मा का यह दाँव तो ठीक पड़ा है - देखने की बात यह होगी कि इस दाँव को चलने के बाद उनकी अगली चाल क्या होगी, जिससे कि बाजी सचमुच में उनके हाथ आ सके ।


Tuesday, December 24, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की फजीहत में दीपक बाबू और उनके नजदीकियों को मजा आ रहा है और खुशी मिल रही है

मुरादाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की हो रही फजीहत से डिस्ट्रिक्ट 3100 में एक व्यक्ति को बड़ी खुशी हो रही है, क्योंकि राकेश सिंघल की फजीहत में उन्हें अपने लिए बड़ा फायदा होता दिख रहा है । वह व्यक्ति हैं दीपक बाबू - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार दीपक बाबू । दीपक बाबू की खुशी का कारण उनके समर्थक ही बता रहे हैं, जिनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दीपक बाबू को यदि दिवाकर अग्रवाल से चुनाव लड़ना पड़ता तो उनके लिए मुश्किल होती और दिवाकर अग्रवाल से उन्हें पराजय का ही सामना करना पड़ता; लेकिन जो हालात हैं उसमें दिवाकर अग्रवाल से लड़ने का जिम्मा चूँकि राकेश सिंघल ने खुद ही ले लिया है तो अब दीपक बाबू को कुछ करने की जरूरत ही नहीं हैं - और कुछ न करते हुए भी वह पूरी तरह आश्वस्त हो सकते हैं । राकेश सिंघल की उस घोषणा के बाद से तो दीपक बाबू पूरी तरह आश्वस्त हो गए हैं जिसमें राकेश सिंघल ने कहा है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं और वह जो चाहेंगे, वह करेंगे । दीपक बाबू अच्छी तरह जान/समझ रहे हैं कि राकेश सिंघल किसी भी कीमत पर दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को मान्य नहीं करेंगे और ऐसे में वह बिना कुछ किये-धरे ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन जायेंगे ।
मुजफ्फरनगर में हुए हल्ले-हंगामे के बाद से तो दीपक बाबू ने अपने आप को वर्ष 2016-17 का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मानना/समझना भी शुरू कर दिया है । दीपक बाबू के खुश होने और आश्वस्त होने का कारण भी है : राकेश सिंघल मानते हैं और कहते भी हैं कि डिस्ट्रिक्ट में उनके खिलाफ जो बबाल हो रहा है वह दिवाकर अग्रवाल के समर्थक कर रहे हैं । मुजफ्फरनगर में हुए हल्ले-हंगामे का सारा ठीकरा उन्होंने दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों के सिर ही फोड़ा है । राकेश सिंघल की बात कुछ हद तक सही भी है - लेकिन पूरा सच यह है कि डिस्ट्रिक्ट के बहुत से लोग जो दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थक नहीं होने के बावजूद राकेश सिंघल के रवैये के खिलाफ हैं । राकेश सिंघल ने अपने व्यवहार और अपने रवैये से प्रायः हर किसी को नाराज किया हुआ है । उनसे नाराज लोगों के अपने अपने कारण हैं । इसी वजह से राकेश सिंघल डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग पड़े हुए हैं । अपने व्यवहार और अपने रवैये से राकेश सिंघल डिस्ट्रिक्ट के उन प्रमुख लोगों को भी अपने साथ नहीं जोड़ पा रहे हैं जिन्हें दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी से कोई मतलब नहीं है ।
राकेश सिंघल की बदकिस्मती यह है कि जिन दीपक बाबू को फायदा पहुँचाने के लिए उन्होंने आफत और बदनामी मोल ली है, उन दीपक बाबू और उनके समर्थकों ने भी राकेश सिंघल से किनारा कर लिया है । मुजफ्फरनगर का कार्यक्रम एक तरह से डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन डॉक्टर पल्लव अग्रवाल का कार्यक्रम था, जो दीपक बाबू के सबसे बड़े समर्थक के रूप में पहचाने जाते हैं । उक्त कार्यक्रम में जब राकेश सिंघल लोगों के गुस्से और विरोध का शिकार होना शुरू हुए थे तब डॉक्टर पल्लव अग्रवाल मंच पर राकेश सिंघल के पास में ही खड़े हुए थे, लेकिन जैसे ही मामला बढ़ा - डॉक्टर पल्लव अग्रवाल चुपचाप सरक कर किनारे हो गए और तमाशा देखने लगे । उस हल्ले-हंगामे को देख कर दीपक बाबू की तो मानों बाछें खिल गई थीं - मंच पर राकेश सिंघल मुसीबत में फँसे थे, लेकिन दीपक बाबू उनकी मुसीबत में अपने लिए गवर्नर की कुर्सी को पक्का होता हुआ 'देख' रहे थे । कार्यक्रम-स्थल पर शोर मचा हुआ था, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल मुसीबत में फँसे हुए थे और अकेले थे - लेकिन दीपक बाबू पीछे खड़े होकर वर्ष 2016-17 की डिस्ट्रिक्ट टीम 'बना' रहे थे । अपने आसपास उन्हें जो कोई राकेश सिंघल के खिलाफ गुस्सा दिखाता हुआ मिल/दिख रहा था, उसे वह नाम लेकर संबोधित कर रहे थे - इतना गुस्सा क्यों हों, डिस्ट्रिक्ट में साथ मिल कर काम करेंगे । दीपक बाबू की तरफ से यह इशारा था कि गुस्सा छोड़ों और उनकी डिस्ट्रिक्ट टीम के लिए अपना नाम लिखवाओ ।
मुजफ्फरनगर में मचे हाय-हल्ले के बाद दीपक बाबू जिन लोगों से भी मिले हैं, उनमें से जिनसे भी इन पंक्तियों के लेखक की बात हो सकी है उन सभी ने इस बात को खास तौर से रेखांकित किया कि दीपक बाबू ने तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की तरह बात/व्यवहार करना शुरू कर दिया है । कुछेक पूर्व गवर्नर तक ने दीपक बाबू के तेवरों में आये बदलाव को महसूस किया और बताया कि दीपक बाबू तो अपने आप को गवर्नर मानने लगे हैं । रोटरी के इतिहास में शायद यह पहला मौका होगा जबकि एक संभावित उम्मीदवार की उम्मीदवारी अधिकृत रूप से अभी घोषित भी नहीं हुई है, लेकिन वह अपने आप को विजेता न सिर्फ मानने लगा है, बल्कि विजेता की तरफ बात/व्यवहार भी करने लगा है ।
दीपक बाबू को यह हौंसला राकेश सिंघल के रवैये से मिला है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ने जिन नियम/कानून का हवाला देकर दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को संदेह के घेरे में ला दिया है, उन्हीं नियम/कानून के तहत दीपक बाबू की उम्मीदवारी भी निरस्त होती है - इसे लेकर बाकायदा शिकायत भी दर्ज करवाई गई है । दीपक बाबू को लेकिन भरोसा है कि राकेश सिंघल उनकी उम्मीदवारी को लेकर हुई शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं करेंगे और दिवाकर अग्रवाल को छोड़ेंगे नहीं ।
मजे की बात है कि दीपक बाबू ने इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन बनाने/जुटाने हेतु कोई सक्रियता नहीं दिखाई । इस कारण से बीच में बहुत दिनों तक तो लोगों के बीच यही चर्चा रही कि दीपक बाबू की उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं होगी । इस चर्चा के पीछे लोगों का यही तर्क रहा कि कोई यदि अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाहता है तो इस तरह से डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों और कार्यक्रमों से लगातार गायब नहीं रह सकता । लेकिन जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नामांकन करने का समय आया और दीपक बाबू की उम्मीदवारी प्रस्तुत हुई तो हर किसी को हैरानी हुई कि दीपक बाबू ने किसके भरोसे अपना नामांकन दिया है । मोटे तौर पर यह मान लिया गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने मदद का भरोसा देकर दीपक बाबू को उम्मीदवार बनवा दिया है । इस तरह की बातें होती ही हैं इसलिए इस पर कोई खास गहमागहमी नहीं हुई । लेकिन दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी पर निरस्ती की तलवार लटका कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने मामले को गर्मा दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अधिकृत रूप से फैसला अभी तक भी नहीं ले सके हैं - इससे जाहिर है कि अपने 'तरीके' पर उन्हें खुद भरोसा नहीं है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल के रवैये ने अपने आपको ही विवाद के केंद्र में खड़ा कर लिया है ।
यह स्थिति दीपक बाबू को बहुत रास आ रही है । इस स्थिति के चलते दीपक बाबू को उम्मीदवार 'बनने' की जरूरत ही नहीं है । उन्हें विश्वास है कि राकेश सिंघल अब दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को मान्य होने ही नहीं देंगे और ऐसे में वह बिना कुछ किये-धरे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी घोषित हो जायेंगे । इसीलिए राकेश सिंघल की फजीहत में दीपक बाबू और उनके नजदीकियों को मजा आ रहा है और खुशी मिल रही है ।  

Monday, December 23, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की हुई फजीहत ने दूसरे डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ रोटेरियंस जीके ठकराल और दीपक तलवार को भी आश्चर्य में डाला

मुजफ्फरनगर । रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को दूसरे डिस्ट्रिक्ट से पधारे अतिथियों जीके ठकराल और दीपक तलवार के सामने अपने ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों के जिस आक्रोश और विरोध का सामना करना पड़ा - उसके चलते डिस्ट्रिक्ट में हो रही उनकी फजीहत की कीर्ति डिस्ट्रिक्ट की सीमाओं के पार भी जा पहुँची है । जीके ठकराल डिस्ट्रिक्ट 3080 - जो कि पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू का डिस्ट्रिक्ट है - के और दीपक तलवार डिस्ट्रिक्ट 3010 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं तथा ये दोनों ही रोटरी फाउंडेशन के जिम्मेदार पदों पर हैं । रोटरी फाउंडेशन के बाबत डिस्ट्रिक्ट 3100 की मुजफ्फरनगर में आयोजित इंटरसिटी में इन दोनों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था । ये दोनों वरिष्ठ रोटेरियन बेचारे डिस्ट्रिक्ट 3100 की इंटरसिटी में पहुँचे तो रोटरी फाउंडेशन के बाबत ज्ञान देने थे, लेकिन वहाँ से लौटे डिस्ट्रिक्ट 3100 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की कारगुजारियों का ज्ञान लेकर । इन दोनों ने ही बाद में अलग अलग लोगों से जिक्र किया कि अपने रोटरी जीवन में उन्होंने इतनी गैरजिम्मेदारी से और पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करने वाला गवर्नर नहीं देखा है और न किसी गवर्नर की ऐसी फजीहत होते देखी ।
मुजफ्फरनगर में 22 दिसंबर को आयोजित इंटरसिटी में जो तमाशा हुआ, वह सचमुच बेमिसाल था और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश सिंघल का व्यवहार वास्तव में हैरान करने वाला था - लेकिन जीके ठकराल और दीपक तलवार को जिस बात ने आश्चर्य में डाला, वह था राकेश सिंघल का अपने ही डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग पड़ जाना । डिस्ट्रिक्ट इंटरसिटी में डिस्ट्रिक्ट चीफ काउंसलर बृज भूषण, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव रस्तोगी, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सुनील गुप्ता सहित कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उपस्थित थे - लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों के गुस्से और विरोध का सामना कर रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल के बचाव में कोई भी आगे नहीं आया; कुछ मौके से निकल गए थे और कुछ किनारे खड़े होकर तमाशा देख रहे थे । प्रायः सभी का मानना और कहना रहा कि राकेश सिंघल जो कर रहे हैं वह किसी भी तरह से न्यायपूर्ण नहीं है और उनके किये-धरे का किसी भी तर्क से बचाव नहीं किया जा सकता है ।
जीके ठकराल और दीपक तलवार जैसे वरिष्ठ व अनुभवी रोटेरियंस ने पहले तो मामले को समझने और उसे हल करने के उपायों पर विचार करना शुरू किया ताकि हालात को सँभाला जा सके, लेकिन जैसे ही उन्होंने मामले को जाना उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने इतनी घपड़-चौथ कर रखी है कि सारा दोष सिर्फ और सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का ही बनता है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का दोष समझ लेने के बाद जीके ठकराल और दीपक तलवार के सामने समस्या यह आ खड़ी हुई कि जिस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के बुलावे पर वह यहाँ आये हैं उसे ही कैसे दोषी ठहराये - सो उन्होंने मौके से चुपचाप निकल लेने में ही अपनी भलाई देखी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को लोगों के बीच अकेला फँसा देख कर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नीरज कुमार अग्रवाल आगे आये और उन्होंने राकेश सिंघल के लिए निकलने का मौका बनाया ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश सिंघल ने अपनी पक्षपातपूर्ण भूमिका से डिस्ट्रिक्ट में जो झमेला खड़ा किया हुआ है, उसके चलते लोगों को यह आभास तो था कि इंटरसिटी में इस बारे में कुछ सवाल-जबाव जरूर ही होंगे । वह हुए भी और कुछ समय तक हालात संभले हुए भी रहे लेकिन जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'फैसला' सुनाने के बाद इस जिद पर अड़े कि अब वह किसी सवाल का जबाव नहीं देंगे, तब हालात बिगड़ना शुरू हो गए । इस पर भी राकेश सिंघल का रवैया यह रहा कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं और वह जो चाहेंगे, करेंगे । उनके इस रवैये को किसी ने भी पसंद नहीं किया और उनके इसी रवैये के चलते हर किसी ने उनका साथ छोड़ दिया । उनके अहंकारी और मनमाने रवैये के चलते उनके अपने लोग उनके खिलाफ हो गए । राकेश सिंघल अपनी डिस्ट्रिक्ट टीम में असिस्टेंट गवर्नर पब्लिकेशन के पद पर नियुक्त चक्रेश लोहिआ के सवालों का जबाव देने को तैयार नहीं थे, जिस पर उन दोनों के बीच गर्मागर्मी हुई । राकेश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में बिलकुल शुरुआत में ही चक्रेश लोहिआ के नाम और तस्वीर और संपादकीय का दर्शन होता है, लेकिन मुजफ्फरनगर में राकेश सिंघल उन्हीं चक्रेश लोहिआ पर मंच से चिल्ला रहे थे कि मैं तुम्हें देख लूँगा, मैं तुमसे निपट लूँगा ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश सिंघल ने जिम्मेदारी तो इंटरनेशनल प्रेसीडेंट रॉन डी बर्टन के नारे 'एंगेज रोटरी चेंज लाइव्स' को अमल में लाने की उठाई पर मंच से घोषणाएँ वह अपनी ही डिस्ट्रिक्ट टीम के एक सदस्य को 'देख लेने' और 'निपट लेने' की करते सुने गए हैं ।
दरअसल राकेश सिंघल के इसी रवैये ने लोगों को भड़काया और फिर ऐसा माहौल बना जिसकी किसी ने भी कल्पना नहीं की थी । राकेश सिंघल के रवैये पर हालाँकि उन्हें जानने/पहचानने वालों को आश्चर्य भी हुआ - उनके लिए यह समझना मुश्किल हुआ कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में क्यों तो उन्होंने लोगों के सवालों के जबाव देने से इंकार किया और फिर क्यों इस हद तक चले गए कि 'देख लेने' और 'निपट लेने' की शब्दावली इस्तेमाल करने पर उतर आये । जिस जिस ने भी यह समझने की कोशिश की वह प्रायः इसी नतीजे पर पहुँचा कि वहाँ जो सवाल हो रहे थे वह राकेश सिंघल द्धारा पिछले कई दिनों से लगातार बोले जा रहे झूठ की चूँकि पोल खोल रहे थे, इसलिए राकेश सिंघल बौखला गए थे और इसीलिये उन्होंने सवालों के जबाव देने से मना कर दिया और प्रयास किया कि कोई सवाल न किये जाएँ । सवाल लेकिन फिर भी हो रहे थे - राकेश सिंघल किसी सवाल का जबाव नहीं दे रहे थे; लेकिन उनके जबाव देने से किये जा रहे इंकार 'से' भी लोगों को जबाव 'मिल' रहे थे : और लोगों को जो जबाव 'मिल' रहे थे उनसे राकेश सिंघल द्धारा बोले जा रहे झूठ और उनके द्धारा किये जा रहे षड्यंत्र की पोल खुल रही थी, जिससे राकेश सिंघल बौखला रहे थे ।
किंतु उस बौखलाहट ने राकेश सिंघल को और अकेला तो कर ही दिया, साथ ही अतिथियों के रूप में दूसरे डिस्ट्रिक्ट से पधारे वरिष्ठ रोटेरियंस के सामने भी उनकी असलियत को उद्घाटित भी कर दिया है ।

Saturday, December 21, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में दूसरी कैबिनेट मीटिंग के मुकाबले एके सिंह द्धारा आयोजित मीटिंग को प्राप्त हुई जोरदार सफलता को देखने के बाद से ही गुरनाम सिंह ने एके सिंह को जोन चेयरपरसन पद से हटवाने के लिए दबाव बनाना शुरू किया

लखनऊ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनुपम बंसल के सामने एके सिंह को जोन चेयरपरसन के पद से हटाने को लेकर गुरनाम सिंह द्धारा बनाये जा दबाव से निपटने की गंभीर चुनौती पैदा हो गई है । गुरनाम सिंह ने अनुपम बंसल को जता दिया है कि अनुपम बंसल ने यदि उनकी यह माँग पूरी नहीं की तो उनका भी हाल केएस लूथरा जैसा किया जायेगा और आगे उन्हें गवर्नरी नहीं करने दी जायेगी । अनुपम बंसल यूँ तो गुरनाम सिंह के नजदीक हैं और उनकी हर बात मानते रहे हैं, लेकिन एके सिंह को दिसंबर माह के भीतर भीतर जोन चेयरपरसन के पद से हटाये जाने की उनकी माँग को मानते हुए फ़िलहाल तो वह नहीं दिख रहे हैं । गुरनाम सिंह के नजदीकियों का दावा है कि अनुपम बंसल को गुरनाम सिंह की इस माँग को पूरा करना ही होगा । गुरनाम सिंह के लिए यह माँग दरअसल अपनी 'राजनीति' को बचाने का आख़िरी हथियार है । गुरनाम सिंह ने समझ लिया है कि दिसंबर माह के बाद भी एके सिंह यदि जोन चेयरपरसन बने रहे तो फिर वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने हेतु अधिकृत हो जायेंगे और तब - एक उम्मीदवार के रूप में एके सिंह का मुकाबला करना विशाल सिन्हा के लिए मुश्किल हो जायेगा । विशाल सिन्हा चूँकि गुरनाम सिंह के उम्मीदवार हैं, इसलिए उक्त मुश्किल विशाल सिन्हा की नहीं, गुरनाम सिंह की होगी ।
गुरनाम सिंह अपनी मुश्किल को आसान बनाने के लिए ही एके सिंह को दिसंबर माह के पूरा होने से पहले ही जोन चेयरपरसन के पद से हटवा देना चाहते हैं, ताकि एके सिंह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए क्वालीफाई ही न कर पायें । यानि न रहेगा बाँस, और न बजेगी बाँसुरी । अनुपम बंसल इस माँग को पूरा करने के लिए अभी तक इसलिए तैयार नहीं हुए हैं, क्योंकि इससे उनकी डिस्ट्रिक्ट में भारी फजीहत होगी । अनुपम बंसल के नजदीकियों को लगता है कि गुरनाम सिंह के 'आदमी' होने के रूप में पहचाने जाने के कारण उन्हें डिस्ट्रिक्ट में बहुत से लोगों का पहले से ही सहयोग नहीं मिल पा रहा है - एके सिंह को यदि उन्होंने जोन चेयरपरसन के पद से हटा दिया तो उनकी बची-खुची साख भी मिट्टी में मिल जायेगी । गुरनाम सिंह के नजदीक समझे जाने वाले कुछेक लोगों का तो यहाँ तक मानना और कहना है कि एके सिंह के खिलाफ षड्यंत्र करके गुरनाम सिंह ने यदि विशाल सिन्हा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने की तिकड़म लगाई, तो उसका उल्टा असर भी हो सकता है ।
गुरनाम सिंह के शुभचिंतकों का ही मानना और कहना है कि पिछले वर्ष गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने जिस तरह केएस लूथरा और भूपेश बंसल को तरह-तरह से अपमानित करने और तंग करने का काम किया, उसी के कारण डिस्ट्रिक्ट में उनके खिलाफ माहौल बना और उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा था । एके सिंह को जोन चेयरपरसन के पद से हटवा कर वह एके सिंह को तो उम्मीदवार बनने से रोक लेंगे, लेकिन उसके कारण डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनके खिलाफ जो माहौल बनेगा, उसका फायदा उठाने के लिए यदि कोई और उम्मीदवार आ गया तो फिर वह क्या करेंगे ? शुभचिंतकों की ही सलाह है कि गुरनाम सिंह को षड्यंत्र और तिकड़म के जरिये एके सिंह को चुनावी दौड़ से बाहर करने की बजाये विशाल सिन्हा को एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय होने के लिए प्रेरित करना चाहिए - उससे ही विशाल सिन्हा का भला होगा ।
मजे की बात यह है कि गुरनाम सिंह एक तरफ तो अनुपम बंसल पर एके सिंह को जोन चेयरपरसन पद से हटाने के लिए दबाव बना रहे हैं, और दूसरी तरफ वह लोगों के बीच यह भी कह/बता रहे हैं कि अनुपम बंसल चुनाव चाहते हैं, इसीलिये वह एके सिंह को आगे बढ़ने के मौके 'दे' रहे हैं । यह बात शायद सच भी है । अनुपम बंसल को दूसरी कैबिनेट मीटिंग में नजारा दिख गया है कि यदि वह विशाल सिन्हा के भरोसे रहे तो उनकी कॉन्फ्रेंस पिटेगी ही पिटेगी । उल्लेखनीय है कि काशीपुर क्षेत्र में आयोजित हुई दूसरी कैबिनेट मीटिंग में विशाल सिन्हा खुद तो फैलोशिप का जिम्मा लेने के लिए तैयार नहीं ही हुए, उन्होंने फैलोशिप का जिम्मा एके सिंह को भी नहीं देने दिया । इसका नतीजा यह हुआ कि दूसरी कैबिनेट मीटिंग में काशीपुर क्षेत्र से मुश्किल से बीस लोग जुटे; जबकि उससे पिछली शाम एके सिंह द्धारा काशीपुर में ही की गई मीटिंग में सत्तर से ज्यादा लोग उपस्थित थे । काशीपुर में दूसरी कैबिनेट मीटिंग के मुकाबले एके सिंह द्धारा आयोजित मीटिंग को प्राप्त हुई जोरदार सफलता को देखने के बाद ही गुरनाम सिंह को समझ में आ गया कि एके सिंह को रास्ते से हटा कर ही वह विशाल सिन्हा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवा सकते हैं । काशीपुर में दूसरी कैबिनेट मीटिंग की जो दुर्गति हुई, उससे लेकिन अनुपम बंसल ने यह सबक लिया है कि वह यदि विशाल सिन्हा के भरोसे रहे तो सब कुछ गँवा बैठेंगे ।
दरअसल इसीलिए अनुपम बंसल अभी तक एके सिंह को जोन चेयरपरसन के पद से हटाने की गुरनाम सिंह की माँग को मानने से इंकार कर रहे हैं । गुरनाम सिंह हालाँकि अभी भी प्रयास कर रहे हैं कि अनुपम बंसल उनकी बात मान लें, ताकि विशाल सिन्हा को लेकर वह निश्चिंत हो सकें । इसके लिए वह तरह-तरह से अनुपम बंसल को डराने-धमकाने में लगे हैं । अनुपम बंसल और दूसरे कई लोग मान रहे हैं और कह भी रहे हैं कि विशाल सिन्हा के सामने अभी भी उम्मीद बनी हुई है, लेकिन यदि एके सिंह के साथ बेईमानी और नाइंसाफी हुई तो विशाल सिन्हा के लिए ज्यादा बुरा होगा ।

Wednesday, December 18, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में लोगों के बीच सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता के खिलाफ नेगेटिव वोट करने के लिए लामबंदी की सुगबुगाहट

नई दिल्ली । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता के खिलाफ डिस्ट्रिक्ट के - खासकर हरियाणा के लायंस सदस्यों के बीच जिस तरह से नाराजगी पनप रही है, उसके कारण उनके सामने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बनने' वास्ते इक्यावन प्रतिशत वोट जुटा पाने का खतरा पैदा होता दिख रहा है । नरेश गुप्ता के शुभचिंतकों की चिंता इस बात को लेकर ज्यादा है कि डिस्ट्रिक्ट के जो नेता नरेश गुप्ता के गॉडफादर और/या सलाहकार बने हुए हैं वह उक्त संभावित खतरे को बिलकुल ही नजरअंदाज किये हुए हैं और इस तरह वह नरेश गुप्ता को एक बड़ी फजीहत का शिकार होने की तरफ धकेल रहे हैं । नरेश गुप्ता के शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक नेता अपनी राजनीति में नरेश गुप्ता को इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इस बात की बिलकुल भी परवाह नहीं कर रहे हैं कि इसका नरेश गुप्ता को कितना और कैसा खामियाजा भुगतना पड़ जायेगा । नरेश गुप्ता को भी चूँकि लायनिज्म का - और लायन राजनीति के उतार/चढ़ावों का कोई अता-पता और/या कोई अनुभव नहीं है इसलिए वह भी नहीं समझ रहे हैं कि लोगों के प्रति उनका जो व्यवहार/रवैया है, वह उन्हें कितनी भारी मुसीबत में धकेल सकता है ।
नरेश गुप्ता को 'गवर्नरी' चूँकि मुफ्त में और आसानी से मिल गई है, इसलिए वह 'गवर्नरी' की न तो गरिमा समझ पा रहे हैं और न उसकी अहमियत । नरेश गुप्ता के शुभचिंतकों के अनुसार, वह गवर्नरी की 'कीमत' नहीं समझ पा रहे हैं । सयानों ने कहा भी है कि किसी को जो चीज मुफ्त में मिल जाती है उसकी कीमत वह नहीं समझता है । नरेश गुप्ता इसी कहावत को सच साबित कर रहे हैं - बदकिस्मती से उन्हें सलाहकार भी ऐसे मिल गए हैं जिन्होंने उन्हें गवर्नर की बजाये अपना जासूस और अपनी कठपुतली बना रखा है । नरेश गुप्ता को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है - जो नेता उनके पक्ष में 'दिख' रहे हैं, वह तो उन्हें गवर्नर के रूप में तवज्जो और सम्मान दे नहीं रहे हैं; और जब उनके 'अपने' ही उन्हें कठपुतली समझ रहे हैं तो दूसरे उन्हें क्या और कैसी तवज्जो देंगे भला ? नरेश गुप्ता की समस्या लेकिन इससे भी 'आगे' की है - वह केवल नेताओं के बीच ही शटलकॉक नहीं बने हुए हैं; अपने रवैये से वह आम लायन सदस्यों के बीच भी तेजी से अलोकप्रिय हो रहे हैं ।
नरेश गुप्ता को गवर्नरी चूँकि मेहनत से नहीं, बल्कि किस्मत से मिली है - इसलिए उनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों के साथ उनका कोई 'परिचय' ही नहीं है । न वह लोगों को जानते हैं और न लोग उन्हें जानते हैं । लोगों के साथ अपनी इस 'दूरी' को वह भर सकते थे - नहीं तो कम तो कर ही सकते थे । पर जिस तरह से सत्ता की चाबी उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के कुछेक नेताओं को सौंप दी, उससे वह संभावना पूरी तरह ख़त्म हो गई । दरअसल हुआ यह कि डिस्ट्रिक्ट के जिन भी लोगों ने अपने भावी गवर्नर से बात करने और/या निकटता बनाने की कोशिश की तो वह यह देख/जान कर सन्न रह गए कि नरेश गुप्ता तो उनसे बात करने और/या उनसे निकटता बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, उनकी तरफ से दूसरे नेता अपनी अपनी 'नेतागिरी' दिखाने की कोशिश और कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि अगले लायन वर्ष में गवर्नरी का ताज भले ही नरेश गुप्ता के सिर पर होगा, लेकिन गवर्नरी ऐसे लोग करेंगे जो अपनी हरकतों और अपनी कारस्तानियों के कारण डिस्ट्रिक्ट में पहले से ही बुरी तरह बदनाम हैं और अपनी बदनामी के कारण ही बार-बार लोगों से 'पिटते' रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट में लोग जिन नेताओं को बार-बार हराते और खदेड़ते रहे हैं, उन नेताओं को अगले वर्ष भी सत्ता से बाहर रखने के लिए लोगों को एक ही उपाय समझ में आ रहा है और वह यह कि वह नरेश गुप्ता के खिलाफ नेगेटिव वोट करें ताकि नरेश गुप्ता अगले वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभाल ही न सकें और उन्हें कठपुतली बना कर डिस्ट्रिक्ट पर राज करने का सपना देखने वाले नेताओं का सपना सपना ही रह जाये । नरेश गुप्ता के लिए दिलचस्प विडंबना की बात यह हुई है कि जो नेता लोग उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने के खिलाफ थे, आज उन्हीं नेता लोगों के कारण उनका गवर्नर 'बनना' खतरे में पड़ा दिखाई दे रहा है । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि सुभाष गुप्ता के आकस्मिक निधन के कारण सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के खाली हुए पद को भरने की जब बात आई थी तब राकेश त्रेहन ने ओंकार सिंह रेणु के नाम की जोरदार वकालत की थी और हर्ष बंसल तथा अजय बुद्धराज को उनके नाम का समर्थन करने के लिए राजी कर लिया था । विजय शिरोहा और दीपक टुटेजा के विरोध के कारण राकेश त्रेहन की उक्त कोशिश सफल नहीं हो सकी थी और इन्हीं दोनों ने नरेश गुप्ता का नाम आगे बढ़ा कर ओंकार सिंह रेणु को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने की राकेश त्रेहन की कोशिश को विफल कर दिया था । विजय शिरोहा से मिली वह 'चोट' राकेश त्रेहन को गहरा घाव दे गई है, जिसका 'दर्द' वह भूल नहीं पा रहे हैं ।
नरेश गुप्ता को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने में जिन विजय शिरोहा की निर्णायक भूमिका थी, नरेश गुप्ता उन्हीं विजय शिरोहा के प्रति दुश्मनी का-सा भाव रखने वाले नेताओं की कठपुतली बन कर रह गए हैं । मामला यदि इतना ही होता, तब भी कोई समस्या नहीं थी । नरेश गुप्ता को चूँकि ज्यादा अता-पता नहीं है - और न अता-पता करने में उनकी कोई दिलचस्पी है - इसलिए किसी न किसी की कठपुतली तो उनको बनना ही था । कठपुतली 'बनने' के पीछे उद्देश्य यदि गवर्नरी चलाना होता, तो कोई समस्या नहीं थी । उद्देश्य लेकिन उन्हें कठपुतली बना कर, उनकी डोर थामने वाले नेताओं द्धारा अपनी राजनीति करने का है - इसलिए समस्या नरेश गुप्ता के लिए पैदा हो गई है । नरेश गुप्ता को मोहरा बना कर उनके समर्थक नेता चूँकि विजय शिरोहा, दीपक टुटेजा, अरुण पुरी, दीपक तलवार को निशाना बना रहे हैं - जिस कारण चपेट में डिस्ट्रिक्ट में इनके नजदीकी और समर्थक समझे जाने वाले लोग आ रहे हैं; और जिसकी प्रतिक्रिया में डिस्ट्रिक्ट के लोगों का गुस्सा नरेश गुप्ता के खिलाफ पैदा हो रहा है ।
नरेश गुप्ता के सचमुच के शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि नरेश गुप्ता ने यदि जल्दी ही हालात की नाजुकता को नहीं समझा/पहचाना, और अपना रवैया नहीं बदला/सुधारा तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बनने' के लिए आवश्यक इक्यावन प्रतिशत वोट जुटा पाना उनके लिए मुश्किल हो जायेगा और तब पास दिख रही गवर्नरी उनसे बहुत दूर हो जायेगी ।  

Sunday, December 15, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को लेकर विक्रम शर्मा के नए पैंतरे ने दोनों खेमों के नेताओं को असमंजस में डाला

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को हर हाल में प्रस्तुत करने का दावा करके डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के दोनों खेमों के नेताओं को राजनीतिक रूप से असमंजस में डाल दिया है, जिसके चलते दोनों खेमों के नेताओं के लिए अपने अपने उम्मीदवार तय कर पाना मुश्किल हो गया है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में नेताओं के बीच उम्मीदवार को लेकर जैसा असमंजस इस बार दिख रहा है, वैसा शायद ही कभी रहा/दिखा हो । वोटों की गणना और अपने प्रभाव क्षेत्र के विस्तार के संदर्भ में बढ़त बनाते दिख रहे सत्ता खेमे के लिए भी अपने उम्मीदवार का चयन करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, तो विरोधी खेमे के लिए तो हालात और भी पतले बने हुए हैं । मजे की बात यह है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जो दो उम्मीदवार - विक्रम शर्मा और आरके शाह - मैदान में दिख रहे हैं उन्हें दोनों ही तरफ समर्थन और विरोध का सामना करना पड़ रहा है; और इसीलिये दोनों ही तरफ के नेता फैसला नहीं कर पा रहे हैं ।
विक्रम शर्मा को विरोधी खेमे के नेताओं के नजदीक देखा/माना जाता रहा है, लेकिन उन्होंने सत्ता खेमे के सबसे प्रभावी केंद्र - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा से नजदीकी बनाने की जो कोशिश की उसके चलते उनके सत्ता खेमे का उम्मीदवार बनने की संभावना बलवती हुई । सत्ता खेमे के दूसरे नेताओं को लेकिन उनकी उम्मीदवारी से चूँकि विरोध है इसलिए सत्ता खेमे में विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को हरी झंडी नहीं मिल पा रही है । मजेदार दृश्य लेकिन आरके शाह को लेकर बन रहा है । आरके शाह को यूँ तो सत्ता खेमे के नजदीक माना/पहचाना जाता है लेकिन उनकी उम्मीदवारी को समर्थन सत्ता खेमे से भी ज्यादा विरोधी खेमे में है । विरोधी खेमे के नेता 'अपना' होने के बावजूद विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को समर्थन देने को तैयार नहीं दिख रहे हैं तो इसलिए क्योंकि वे मान/समझ रहे हैं कि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी उनको कुछ 'देगी/दिलवायेगी' नहीं । 'पराया' होने के बावजूद, आरके शाह की उम्मीदवारी में विरोधी खेमे के नेताओं को सत्ता खेमा चूँकि 'टूटता' हुआ दिख रहा है इसलिए वे आरके शाह की उम्मीदवारी को लेकर ज्यादा उत्साहित हैं । आरके शाह लेकिन सत्ता खेमे से ही उम्मीदवार होने में अपनी भलाई देख रहे हैं ।
आरके शाह सत्ता खेमे के उम्मीदवार हो भी जाते, यदि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा से मिली जिम्मेदारियों का ठीक से निर्वाह कर पाते । अपने खेमे के 'उम्मीदवार' के रूप में आरके शाह को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से विजय शिरोहा ने आरके शाह को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दी थीं; ऐसा करते हुए उन्होंने उम्मीद की थी कि आरके शाह उन जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए एक उम्मीदवार के रूप में लोगों के बीच अपनी पैठ भी बनायेंगे और इसके साथ ही सत्ता खेमे के नेताओं के बीच अपनी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता भी स्थापित करेंगे । आरके शाह लेकिन यह सब करने में चूक गए और इसका फायदा विक्रम शर्मा ने उठाया । विक्रम शर्मा ने भी लेकिन आधा-अधूरा काम किया - उन्होंने विजय शिरोहा के यहाँ तो अपनी पैठ बनाई,लेकिन सत्ता खेमे के दूसरे नेताओं को इग्नोर किया । उनके इसी रवैये के कारण उनका बनता हुआ काम रुक-रुक जा रहा है ।
विक्रम शर्मा ने लेकिन 'हर हाल में अपनी उम्मीदवारी' का दाँव चल कर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी ला दी है । उन्होंने लोगों के बीच कहना शुरू कर दिया है कि डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर नेताओं का भी और लोगों का भी समर्थन उनके साथ है, इसलिए उनके समर्थन के भरोसे वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । विक्रम शर्मा ने कहीं-कहीं लोगों को कहा/बताया है कि उनके समर्थक चूँकि दोनों खेमों में बँटे हुए हैं इसलिए खेमेबाजी की राजनीति के चलते उनकी उम्मीदवारी तय नहीं हो पा रही है, लेकिन उनकी उम्मीदवारी ही खेमेबाजी की दीवारों को तोड़ेगी और उनकी उम्मीदवारी को हर किसी का समर्थन मिल जायेगा । विक्रम शर्मा के नजदीकियों के अनुसार, विक्रम शर्मा को यह कॉन्फीडेंस संभवतः इस आधार पर मिला है कि आरके शाह को सत्ता खेमा अपना उम्मीदवार बनाएगा नहीं; विरोधी खेमे की तरफ से आरके शाह उम्मीदवार बनेंगे नहीं; और सत्ता खेमे के नेताओं की किसी तीसरे को उम्मीदवार के रूप में लाने की कोशिश सफल नहीं हो पायेगी । ऐसे में, विक्रम शर्मा के सामने कोई चुनौती बची नहीं रह जायेगी ।
विक्रम शर्मा हालाँकि अभी भी सत्ता खेमे का 'टिकट' पाने का भी प्रयास कर रहे हैं - यह प्रयास वह दो कारणों से करते लग रहे हैं : एक कारण तो यह हो सकता है कि उनका प्रयास यदि सफल हो जाता है तो उनका रास्ता और आसान हो जायेगा; दूसरा कारण यह हो सकता है कि उनका यह प्रयास सत्ता खेमे में आरके शाह या किसी अन्य की स्वीकार्यता को बनाने में बाधा का काम करता रहेगा; जिसका फायदा उन्हें संभावित लड़ाई - यदि उसके होने की नौबत आई ही - में मिल सकेगा ।
विक्रम शर्मा के इस पैंतरे ने दोनों खेमे के नेताओं को असमंजस में डाला हुआ है । दोनों तरफ के नेताओं के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि विक्रम शर्मा के दावे को वह कितनी तवज्जो दें - या न दें । विरोधी खेमे के नेताओं के असमंजस का कारण यह है कि जो विक्रम शर्मा उन्हें महत्व ही नहीं दे रहे हैं और सत्ता खेमे के उम्मीदवार होने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हें वह किस मुँह से समर्थन घोषित करें और कैसे करें ? सत्ता खेमे के नेताओं के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि विक्रम शर्मा की चुनौती कहीं उनका जमा-जमाया खेल तो न बिगाड़ देगी ।
वोटों के गणित के अनुसार, यूँ तो संभावित चुनावी मुकाबले में सत्ता खेमे का पलड़ा भारी नजर आता है; लेकिन चुनावी मुकाबले में उम्मीदवार की दौड़-भाग भी फैसला करती/करवाती है और वोटों की बढ़त धरी रह जाती है - इसे चुनावी राजनीति का हर खिलाड़ी जनता/समझता ही है । इसी बिना पर सत्ता खेमे के नेता यह आकलन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं कि मुकाबले पर यदि विक्रम शर्मा हुए तो आरके शाह या किसी दूसरे उम्मीदवार को लेकर चुनाव में उतरा जा सकेगा क्या ?
दरअसल इसीलिये विक्रम शर्मा के नए पैंतरे ने चुनावी राजनीति के दिग्गज नेताओं को फैसला करने से फ़िलहाल रोक लिया है ।

Friday, December 13, 2013

साउथ एशिया लिटरेसी समिट में, डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अपनाई जा रही पक्षपातपूर्ण भूमिका पर मोहर लग सकेगी क्या ?

नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को पूरा विश्वास है कि अपने डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर उन्होंने राजनीति की जो बिसात बिछाई है, उसमें उन्हें जीत दिलवाने का काम साउथ एशिया लिटरेसी समिट में अवश्य ही हो जायेगा । कोई भी आश्चर्य कर सकता है कि साउथ एशिया लिटरेसी समिट का घोषित उद्देश्य तो दक्षिण एशिया के लोगों को शिक्षित बनाने के उपायों पर विचार करना है, तब फिर उसमें किसी एक डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद को लेकर चल रहे झगड़े के हल होने का क्या मतलब है ? लोगों के आश्चर्य अपनी जगह हैं - लेकिन सच यही है कि साउथ एशिया लिटरेसी समिट में मंच पर चाहें जितनी बड़ी-बड़ी बातें हों, कई एक रोटरी नेताओं के लिए यह अपनी राजनीति चमकाने, रोटरी के बड़े नेताओं के साथ अपनी नजदीकी बनाने और/या 'दिखाने' का सुनहरा मौका भर है । यही कारण है कि जिन रोटेरियंस को रोटरी की राजनीति में आगे जाना है, वह तो बढ़-चढ़ कर यहाँ लोगों को 'ला' रहे हैं, लेकिन जिन्हें रोटरी की राजनीति नहीं करनी है वह इस महत्वपूर्ण आयोजन के प्रति अपने आप को प्रेरित नहीं कर पा रहे हैं । सच यह भी है कि उन्हें प्रेरित करने का कोई प्रयास भी नहीं किया गया है ।
साउथ एशिया लिटरेसी समिट की विभिन्न कमेटियों में जो लोग हैं वे प्रायः वही लोग हैं जो रोटरी के हर बड़े आयोजन की कमेटियों में होते हैं और जो अपने अपने डिस्ट्रिक्ट में रोटरी की राजनीति करने में संलग्न रहते हैं और जिन पर रोटरी की राजनीति में पक्षपात करने के आरोप दर्ज रहे हैं । विभिन्न कमेटियों में जिन लोगों को रखा गया है उनमें से कुछेक बेचारों को तो यह भी नहीं पता कि वह किस कमेटी में हैं । होस्ट डिस्ट्रिक्ट - रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 - के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी जेके गौड़ समिट की तैयारियों को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे लेकिन जैसे ही उनसे यह पूछ लिया गया कि उनके पास किस कमेटी की जिम्मेदारी है तो वह बगले झाँकने लगे; बहुत कोशिश करने पर भी उन्हें याद नहीं आया कि वह किस कमेटी में 'क्या कुछ' हैं; तब फिर उन्होंने यह कह कर बात को आगे बढ़ाया कि उनके पास बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है और उन्हें बहुत काम करना पड़ रहा है । कुछेक और लोगों का भी ऐसा ही हाल मिला जो काम तो बहुत कर रहे थे, बिजी तो वह बहुत थे लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि वह कर क्या रहे हैं और क्यों कर रहे हैं ?
ऐसा दरअसल इसीलिए है क्योंकि जिम्मेदारी से काम तो कुछ ही लोग कर रहे हैं, बाकी अधिकतर लोग - जैसा कि ऊपर कहा गया है - अपनी राजनीति चमकाने, रोटरी के बड़े नेताओं के साथ अपनी नजदीकी बनाने और/या 'दिखाने' को ही 'काम' समझ रहे हैं । कुछेक नेताओं ने इस मौके को अपने आपस के झगड़े निपटाने के मौके के रूप में भी देखा/पहचाना है । होस्ट डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3010 में अभी कुछेक लोगों को एक बेनामी पत्र मिला था जिसमें इस समिट के बहाने राजनीति करने का आरोप लगाते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल को जी-भर कर कोसा गया था । उक्त पत्र पर किसी का नाम तो नहीं था, लेकिन उसके मजमून से लोगों ने अंदाजा लगाया कि यह पूर्व गवर्नर मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल का काम है । ये दोनों भी इस समिट में महत्वपूर्ण पदों पर हैं । मजे की बात है कि ये तीनों - विनोद बंसल, मुकेश अरनेजा, रमेश अग्रवाल - पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर और इस समिट के एक प्रमुख नियंत्रक शेखर मेहता के बड़े खास हैं । समिट के होस्ट डिस्ट्रिक्ट के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते विनोद बंसल को चूँकि ज्यादा तवज्जो मिल रही है, इसलिए मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने बेनामी पत्र के जरिये समिट से ठीक पहले विनोद बंसल पर हमला बोल दिया ।
साउथ एशिया लिटरेसी समिट को डिस्ट्रिक्ट 3010 में मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने यदि विनोद बंसल से निपटने के एक मौके के रूप में देखा/पहचाना है; तो डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अपनी पक्षपातपूर्ण भूमिका पर मोहर लगवाने के एक अवसर के रूप में इसका इस्तेमाल करने की योजना बनाई है । डिस्ट्रिक्ट नॉमिनी पद के चुनाव में राकेश सिंघल ने जो झमेला खड़ा कर दिया है, उसे लेकर उन्हें न अपने डिस्ट्रिक्ट में कोई समर्थन मिल रहा है और न रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से कोई समर्थन मिला है । इस मुद्दे पर राकेश सिंघल अपने ही डिस्ट्रिक्ट में इस कदर अलग-थलग पड़ गए हैं कि लिटरेसी समिट के लिए कोई अभियान चला पाना तक उनके लिए संभव नहीं हुआ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव रस्तोगी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सुनील गुप्ता तक को नहीं पता कि लिटरेसी समिट के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल कर क्या रहे हैं ? राकेश सिंघल ने इन्हें विश्वास में संभवतः इसीलिये नहीं लिया है कि लिटरेसी समिट में उन्हें अपनी भूमिका पर जो मोहर लगवानी है उसमें ये दोनों कहीं अड़ंगा न डाल दें । दरअसल हर तरफ से समर्थन खो चुके राकेश सिंघल को अब आख़िरी आसरा यही है कि लिटरेसी समिट में जुटे बड़े नेताओं को वह किसी तरह समझा सकें कि अपने डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में उन्होंने जो किया है, वह ठीक किया है ।
लोगों को शिक्षित करने के उपायों पर विचार करने के लिए लिटरेसी समिट में जुटे रोटरी के बड़े नेताओं को क्या इस बात पर भी विचार नहीं करना चाहिए कि रोटरी में विभिन्न पदों पर बैठे लोगों और/या विभिन्न पदों की आस लगाये रोटेरियंस को रोटरी के आदर्शों व लक्ष्यों के प्रति गंभीर होने के प्रति भी थोड़ा 'शिक्षित' करने के बारे में प्रयास करने की जरूरत है ?

Wednesday, December 11, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में तथ्यों/सुबूतों के साथ की गई दीपक बाबू की उम्मीदवारी को निरस्त करने की मांग ने राकेश सिंघल की दिवाकर अग्रवाल को षड्यंत्रपूर्ण तरीके से चुनावी दौड़ से बाहर करने की योजना पर पलीता लगाया

मुरादाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत दीपक बाबू की उम्मीदवारी के खिलाफ मिली शिकायत पर चुप्पी साध लेने के आरोपों के कारण विवाद में और भी ज्यादा गहरे तक फँस गए हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाने के आरोपों के चलते राकेश सिंघल पहले से ही विवादों और गंभीर किस्म के आरोपों के घेरे में हैं । राकेश सिंघल पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों का आरोप है कि उन्हें जब दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के खिलाफ शिकायत मिली थी तो उन्होंने तुरंत कार्रवाई कर दी थी, लेकिन अब जब उन्हें दूसरे उम्मीदवार दीपक बाबू के खिलाफ शिकायत मिली है तो वह यह बताने से ही इंकार कर रहे हैं कि उन्होंने उक्त शिकायत पर क्या कार्रवाई की है ।
दीपक बाबू की उम्मीदवारी के खिलाफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को जो शिकायत मिली है उसमें दीपक बाबू पर अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में प्रचार करने का आरोप लगाया गया है । रोटरी इंटरनेशनल के
नियमानुसार चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के किसी भी उम्मीदवार को प्रचार करने की छूट नहीं है, इसलिए इस बिना पर दीपक बाबू की उम्मीदवारी को निरस्त करने की मांग की गई है । राकेश सिंघल को इस बारे में जो शिकायत मिली है उसमें बताया गया है कि दीपक बाबू अपने क्लब के पदाधिकारियों और सदस्यों के साथ जब अपनी उम्मीदवारी के लिए नामांकन पेपर देने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के यहाँ आये थे तो अपने साथ शहर के समाचार पत्रों के प्रतिनिधियों और फोटोग्राफरों को भी लेकर आये थे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल
को अपनी उम्मीदवारी के नामांकन पेपर देते हुए दीपक बाबू ने प्रेस फोटोग्राफरों से अपनी तस्वीरें खिंचवाई और अपनी उम्मीदवारी के बारे में आवश्यक विवरण समाचार पत्रों के प्रतिनिधियों को दिया । इस तरह, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी की खबर और तस्वीरों को समाचार पत्रों में प्रकाशित करवाने की दीपक बाबू ने पूरी व्यवस्था की । उनकी व्यवस्था ने अपना असर भी दिखाया । अगले दिन स्थानीय समाचार पत्रों में दीपक बाबू की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की खबर और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को नामांकन पत्र सौंपते हुए अवसर की तस्वीरें प्रकाशित हुईं । शिकायत में कहा गया है कि दीपक बाबू की यह कार्रवाई रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का खुला उल्लंघन है और इसके लिए उनकी उम्मीदवारी को तुरंत ही निरस्त कर दिया जाना चाहिए ।
दीपक बाबू की उम्मीदवारी को निरस्त करने की मांग करते हुए राकेश सिंघल को जो शिकायती पत्र मिला है, उसमें डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में प्रकाशित दीपक बाबू के विज्ञापन को भी मुद्दा बनाया गया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में आमतौर पर डिस्ट्रिक्ट टीम के सदस्यों और/या क्लब्स के पदाधिकारियों की ओर से शुभकामना संदेश विज्ञापन के रूप में प्रकाशित होते हैं । इसके अलावा, रोटरी सदस्यों द्धारा अरेंज कराये गए संस्थानों के विज्ञापन भी डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में प्रकाशित होते हैं । लेकिन दीपक बाबू का विज्ञापन जिस अंदाज़ में प्रकाशित हुआ है, वह अपने आप में डिस्ट्रिक्ट 3100 में ही नहीं, बल्कि रोटरी के इतिहास में एक विलक्षण घटना है । दीपक बाबू को चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करनी है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उन्हें अपनी टीम में तो नहीं लेते हैं - किंतु उनका व्यक्तिगत किस्म का विज्ञापन डायरेक्टरी में प्रकाशित करने के लिए सहर्ष तैयार हो जाते हैं । दीपक बाबू को और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को इस बात का ध्यान रखना चाहिए था कि इस तरह का विज्ञापन छपवाने/छापने का अर्थ डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के जरिये अपनी उम्मीदवारी का प्रचार करना ही माना जायेगा । उन्होंने क्या सोच कर उक्त विज्ञापन छपवाया/छापा यह तो वे दोनों जानें, लेकिन अब उक्त विज्ञापन का हवाला देकर दीपक बाबू की उम्मीदवारी को निरस्त करने की मांग की जा रही है ।
इस मांग ने राकेश सिंघल और दीपक बाबू को सकते में ला दिया है । दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त कराने के लिए इन्होंने जो व्यूह-रचना की थी, उसी व्यूह-रचना को अब जब उनके खिलाफ इस्तेमाल कर लिया गया है तो उनके तो होश फाख्ता हो गए हैं - और उन्हें कुछ सूझ ही नहीं रहा है कि इस मांग का वह क्या करें ?
समझा जाता है कि दीपक बाबू की उम्मीदवारी को निरस्त करने की यह मांग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल पर दबाव बनाने के लिए ही की गई है ताकि वह दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने/कराने के जिस षड्यंत्र का हिस्सा बने हुए हैं उससे अपने आप को अलग कर लें । यह मांग करके दीपक बाबू और उनके समर्थकों को भी यह संदेश दे दिया गया है कि जब वह खुद शीशे के घर में रहते हैं तो उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए । डिस्ट्रिक्ट के कई एक वरिष्ठ सदस्यों का कहना है कि उम्मीदवारों की उम्मीदवारी को नियम-कानूनों का वास्ता देकर निरस्त करने/करवाने के खेल का किसी को भी समर्थन नहीं करना चाहिए तथा जिन्होंने उम्मीदवारी प्रस्तुत की है उनके बीच चुनावी मुकाबला हो जाने देना चाहिए । दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों का भी कहना है कि वह भी यही चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट में गवर्नर कौन बने - इसका फैसला षड्यंत्रपूर्वक तरीके से किसी की उम्मीदवारी को निरस्त करके नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों को चुनाव के जरिये करने देना चाहिए ।
दीपक बाबू की उम्मीदवारी को निरस्त करने की मांग जिस तरह के तथ्यों/सुबूतों के साथ की गई है, उसके चलते राकेश सिंघल की दिवाकर अग्रवाल को षड्यंत्रपूर्ण तरीके से चुनावी दौड़ से बाहर करने की योजना पर पलीता लगता दिख रहा है । समझा जाता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश सिंघल के लिए दीपक बाबू की उम्मीदवारी के खिलाफ हुई शिकायत को अनदेखा करना तथा दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को शिकायत के आधार पर निरस्त करना आसान नहीं होगा । डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोगों का यही कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश सिंघल ने अपने एक गलत फैसले से अपनी बहुत बदनामी और छीछालेदर करवा ली है - इससे सीख लेते हुए कम-अस-कम अब उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अपनी पक्षपातपूर्ण भूमिका को छोड़ देना चाहिए । यह देखना दिलचस्प होगा कि राकेश सिंघल ने अब तक हुई अपनी बदनामी और छीछालेदर से कोई सबक सचमुच में लिया है या नहीं ?

Monday, December 9, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में 'दोनों तरफ' के लोगों को साधने में आ रही विक्रम शर्मा की मुसीबतों में आरके शाह ने अपना मौका बनाने के लिए कमर कसी

नई दिल्ली । आरके शाह ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा का समर्थन जुटाने के लिए जो चक्रव्यूह रचा है, उसने विक्रम शर्मा के लिए गंभीर चुनौती पैदा कर दी है । उल्लेखनीय है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अभी तक इन्हीं दोनों का नाम सामने है और इनमें से विक्रम शर्मा ने पिछले दिनों विजय शिरोहा के साथ अपनी नजदीकी स्थापित करने में बड़ी कामयाबी पाई । विक्रम शर्मा को चूँकि विरोधी खेमे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है, इसलिए उन्होंने विजय शिरोहा के यहाँ अपने लिए जो जगह बनाई - उसे उनकी एक बड़ी उपलब्धि के रूप में रेखांकित किया गया । आरके शाह की उम्मीदवारी की चर्चा रहते हुए - और सत्ता खेमे के दूसरे नेताओं को इग्नोर करते रहने के बावजूद विक्रम शर्मा ने विजय शिरोहा के यहाँ अपनी जगह बनाई - इसके चलते विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को ज्यादा नंबर मिलते देखे गए । आरके शाह को भी हालाँकि विजय शिरोहा के यहाँ बढ़िया जगह मिली थी तथा डिस्ट्रिक्ट के कुछेक महत्वपूर्ण काम उनके जिम्मे रहे, लेकिन आरके शाह उनका इस्तेमाल अपनी 'राजनीतिक हवा' बनाने में कर नहीं सके । उनकी इस असफलता ने भी विक्रम शर्मा का काम आसान कर दिया ।
आरके शाह ने लेकिन जैसे ही दोबारा से अपनी सक्रियता शुरू की है तो विक्रम शर्मा के लिए चुनौती खड़ी हो गई है । आरके शाह को सत्ता खेमे में 'घर का आदमी' होने का फायदा तो है लेकिन फिर भी विक्रम शर्मा के लिए उम्मीद है तो इसका कारण यही है कि 'घर का आदमी' होने के बावजूद सत्ता खेमे में आरके शाह की स्वीकार्यता सहज नहीं है । दरअसल इसी कारण से विक्रम शर्मा को विजय शिरोहा के यहाँ अपने लिए जगह बनाने में आसानी हुई । आरके शाह ने लगता है कि इस सच्चाई को पहचान और स्वीकार लिया है कि सत्ता खेमे में 'घर का आदमी' होने के बावजूद सत्ता खेमे का टिकट प्राप्त करना उनके लिए आसान नहीं होगा और उन्हें अपनी सक्रियता दिखानी ही होगी । इस सच्चाई को स्वीकार करने के बाद आरके शाह ने जब दोबारा से अपनी सक्रियता दिखाना शुरू की तो उन्होंने चौतरफा तरीके से अपने को सक्रिय किया । एक तरफ तो उन्होंने विजय शिरोहा के यहाँ अपनी जगह को पुनः कब्जाया, दूसरी तरफ उन्होंने सत्ता खेमे के अन्य नेताओं को भी विश्वास में लेना शुरू किया, तीसरी तरफ उन्होंने विक्रम शर्मा की गलतियों से फायदा उठाने पर ध्यान देना शुरू किया और चौथी तरफ उन्होंने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में पूर्व गवर्नर राजिंदर बंसल की 'वकालत' को मुखर बनाना शुरू किया ।
पुरानी मशहूर फ़िल्म 'दीवार' में एक हीरो दूसरे हीरो पर जिस तरह यह कह कर भारी पड़ता है कि 'मेरे पास माँ है' - ठीक उसी तर्ज पर विक्रम शर्मा पर आरके शाह इसलिए भारी पड़ते हैं क्योंकि उनके पास राजिंदर बंसल हैं । राजिंदर बंसल उनकी कितनी वकालत करते हैं या नहीं करते हैं, और उनकी वकालत का कितना क्या असर पड़ेगा - यह बाद में साफ होगा, लेकिन राजिंदर बंसल के साथ आरके शाह का जो नाम जुड़ा हुआ है, उसके चलते अभी तो आरके शाह की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर बैठती है । विक्रम शर्मा इस मामले में अकेले पड़ जाते हैं - और सिर्फ अकेले ही नहीं पड़ जाते, उनके साथ विरोधी खेमे के नेताओं के जो नाम जुड़े हैं उनके कारण उनकी प्रतिबद्धता संदेह के घेरे में भी आ जाती है । विक्रम शर्मा को 'दोनों तरफ' के लोगों को साधने में जो कसरत करना पड़ रही है उसके चलते उनकी स्थिति में डाँवाडोल होने का खतरा पैदा हो गया है । इसी संदर्भ में पैदा हुई परिस्थितियों में पिछले दिनों कुछेक मौकों पर विक्रम शर्मा को विजय शिरोहा की तीखी नाराजगी का सामना करना पड़ा । उन परिस्थितियों में आरके शाह ने अपने लिए अच्छा मौका देखा और उनका अपने हित में इस्तेमाल किया । पाँच से आठ दिसंबर के बीच काठमांडु में आयोजित हुए 41 वें लॉयंस ईसामे फोरम में विजय शिरोहा के साथ विक्रम शर्मा गए तो इसलिए थे कि उन तीन दिनों में उन्हें विजय शिरोहा के और नजदीक होने का अवसर मिलेगा, किंतु वहाँ घटी घटनाओं की जो रिपोर्ट्स यहाँ मिली हैं उनसे लगता है कि काठमांडु में विक्रम शर्मा के नंबर बढ़ने की बजाये कम ही हुए हैं ।
इसके बावजूद विक्रम शर्मा के लिए सत्ता खेमे में उम्मीद अभी ख़त्म नहीं हुई है तो इसका कारण यही है कि उन्हें पता है कि सत्ता खेमे के पास अभी कोई उम्मीदवार नहीं है - आरके शाह सत्ता खेमे में भले ही 'घर के आदमी' हों, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को लेकर सत्ता खेमे में अभी भी असमंजस का भाव है । असमंजस के इस भाव को दूर करने के लिए तथा सत्ता खेमे के नेताओं के बीच अपनी उम्मीदवारी को स्वीकार्य बनाने के लिए आरके शाह ने भी लेकिन अब प्रयास शुरू कर दिए हैं - जिसके बाद सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई खासी दिलचस्प हो गई है । आरके शाह की सक्रियता के चलते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई में जो सीन बना है उसमें आगे की पटकथा इस बात पर निर्भर करेगी कि विक्रम शर्मा अब क्या पैंतरा आजमाते हैं और आरके शाह अपनी सक्रियता को किस तरह निरंतरता देते हैं ?

Friday, December 6, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में सुरेश भसीन को अगला 'रमेश अग्रवाल' और 'सुधीर मंगला' बनाने की कोशिश

नई दिल्ली । सुधीर मंगला का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुना जाना जिन लोगों को पसंद नहीं आ रहा है, वह लोग सुधीर मंगला के चुने जाने में हुई राजनीति और बेईमानी की शिकायत करने के लिए सुरेश भसीन को उकसाने/तैयार करने के 'काम' में लग गए हैं । सुरेश भसीन ने हालाँकि अभी इसके लिए अपनी कोई सहमति व्यक्त नहीं की है, लेकिन 'काम' में लगे लोगों ने भरोसा व्यक्त किया है कि वे सुरेश भसीन को राजी कर लेंगे । ऐसे लोगों का सबसे जोरदार तर्क है कि हाल के वर्षों में यह ट्रेंड देखने को मिला है कि पहली बार में पिछड़ जाने वाला उम्मीदवार जब अधिकृत उम्मीदवार के चुने जाने की प्रक्रिया को चेलैंज करता है, तो अगली बार वह जीत जाता है । रमेश अग्रवाल के साथ ऐसा ही हुआ था : पहली बार जब वह असित मित्तल से पिछड़ गए थे और अधिकृत उम्मीदवार नहीं चुने गए थे, तो उन्होंने चुनावी प्रक्रिया को लेकर रोटरी इंटरनेशनल में जोरदार शिकायत दर्ज करवाई थी । शिकायत पर कोई कार्रवाई न तो होनी थी और न हुई - लेकिन रमेश अग्रवाल की उस सक्रियता का नतीजा यह जरूर निकला कि अगली बार तमाम प्रतिकूल हालात के बावजूद वह जीत गए ।
सुधीर मंगला के साथ भी यही हुआ । पिछली बार अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने की प्रक्रिया में उन्हें जेके गौड़ से मात खानी पड़ी थी । जिसके बाद, चुनाव में धाँधली की शिकायतें लेकर उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल का दरवाजा खटखटाया था । रोटरी इंटरनेशनल को न कुछ करना था और न उसने कुछ करा - लेकिन सुधीर मंगला को अपनी उस सारी कसरत का यह नतीजा जरूर मिला कि इस बार तमाम प्रतिकूल हालात के बावजूद वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुन लिए गए हैं । इसी बिना पर, इन्हीं उदाहरणों के साथ कुछेक लोग तर्क दे रहे हैं कि सुरेश भसीन को भी यही 'फंडा' आजमा लेना चाहिए और - यदि यह कोई टोटका भी है तो भी इसे अपना कर अगले वर्ष में अपने लिए हालात को अनुकूल बनाने का काम कर लेना चाहिए ।
सुरेश भसीन ही क्यों ? जो लोग सुधीर मंगला के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने से खुश नहीं हैं, वह यह सलाह सुरेश भसीन को ही क्यों दे रहे हैं ?
उनके पास इसका भी जबाव है । उनका कहना है कि दरअसल सुरेश भसीन के पास ही वह एनर्जी है जो यह काम कर सकती है । उन्हें लगता है कि रवि भाटिया के पास वह टेम्परामेंट नहीं है कि वह इस झमेले में पड़ें और अगले वर्ष फिर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करें । राजीव देवा के पास झमेले में पड़ने वाला टेम्परामेंट तो है, लेकिन उनकी 'सामर्थ्य' कुछ कर सकने की नहीं है । वह बातें तो बना सकते हैं, लेकिन सुनियोजित तरीके से कुछ कर सकें - यह उनके बस की बात नहीं है । अब बचे सुरेश भसीन - तो लोगों को लगता है कि सुरेश भसीन में टेम्परामेंट भी है और उनकी 'सामर्थ्य' भी है; और इसीलिए एक अकेले वही हैं जो अगले 'रमेश अग्रवाल' और 'सुधीर मंगला' बन सकते हैं । एक बात और है - सुरेश भसीन का चूँकि रोटरी के बड़े नेताओं से अच्छा परिचय है इसलिए वह यदि 'रमेश अग्रवाल' और 'सुधीर मंगला' वाले रास्ते पर चलते हैं तो अवश्य ही कुछ गुल खिला सकेंगे ।
सुरेश भसीन को लेकर लोग इसलिए भी उम्मीद से हैं क्योंकि उन्होंने पेम सेकेंड में सुरेश भसीन को प्रेसीडेंट इलेक्ट के साथ बहुत घुलते/मिलते हुए देखा/पाया था । इसे लोगों ने इस बार सफल न होने की स्थिति में अगली बार आने की उनकी तैयारी के रूप में देखा/पहचाना है । सुरेश भसीन ने इस बार अपनी उम्मीदवारी को बहुत देर से प्रस्तुत किया था, दरअसल इसी कारण से बहुत काम करने और एक उम्मीदवार के रूप में अपनी साख बना लेने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ में जीतते हुए वह कभी 'नजर' नहीं आये । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी की पद की इस बार की लड़ाई पहले से ही रवि भाटिया और सुधीर मंगला के बीच तय हो चुकी थी । हो सकता है कि इस बात से सबक लेकर सुरेश भसीन अब आगे वह गलती न दोहराना चाहते हों, जो इस बार उनसे हुई ।
सुरेश भसीन ने अगली बार की उम्मीदवारी को लेकर कुछ कहा नहीं है । उनकी उम्मीदवारी की संभावना लोग सिर्फ इसी आधार पर 'देख' रहे हैं कि पेम सेकेंड में वह प्रेसीडेंट इलेक्ट के बीच बहुत सक्रिय थे । दरअसल इसी कारण से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को लगता है कि सुरेश भसीन के मन में यदि सचमुच कुछ है तो उन्हें जल्दी से फैसला कर लेना चाहिए । वह खुद असमंजस में रहेंगे तो अपनी उम्मीदवारी के प्रति लोगों को असमंजस में ही रखेंगे - जैसा कि इस बार हुआ । इसी नाते से, डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में कुछ न कुछ करते रहने की इच्छा रखने वाले लोगों ने सुरेश भसीन तक संदेश पहुँचाये हैं कि पेम सेकेंड में प्रेसीडेंट इलेक्ट के बीच सक्रिय होने के पीछे यदि सचमुच अगले वर्ष उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की उनकी तैयारी है तो इस तैयारी की शुरुआत सुधीर मंगला की जीत के पीछे की राजनीति और धाँधली को लेकर उन्हें रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत दर्ज करवाने से करना चाहिए - जैसा कि रमेश अग्रवाल ने और सुधीर मंगला ने अपने अपने समय में किया था ।
सुरेश भसीन क्या करेंगे और क्या नहीं करेंगे, यह तो आगे पता चलेगा; लेकिन उन्हें उकसाने को लेकर हो रही हलचलों को देख कर यह जरूर पता चल रहा है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति करने वाले लोगों को काम जरूर मिल गया है ।

Wednesday, December 4, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में हर किसी की यही सलाह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में एक पक्ष नहीं बनना चाहिए

मुरादाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अपने ही द्धारा बुने गए जाल में बुरी तरह फँस गए हैं । उनकी हालत 'न घर के न घाट के' वाली हो गई है । राकेश सिंघल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उन्होंने जिन दीपक बाबू को फायदा पहुँचाने के लिए उक्त जाल बुना, उन्हीं दीपक बाबू के समर्थकों ने अब शक जताना और आरोप लगाना शुरू कर दिया है कि राकेश सिंघल अब लगता है कि दिवाकर अग्रवाल के साथ 'सौदा' करने का मौका बना रहे हैं और इसीलिए दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी पर उठे सवाल पर फैसला करने से बच रहे हैं । दरअसल, दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी पर फैसला लेने में राकेश सिंघल जिस तरह से टाल-मटोल कर रहे हैं, उससे दीपक बाबू के समर्थकों में बेचैनी बढ़ती जा रही है । बढ़ती बेचैनी के प्रभाव में ही उन्होंने कहना शुरू कर दिया है कि लगता है कि राकेश सिंघल ने दीपक बाबू के साथ धोखा करने का निश्चय कर लिया है । 
ऐसा इसलिए है क्योंकि राकेश सिंघल ने जिस दिन दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी में फच्चर फँसाया था, दीपक बाबू के समर्थकों ने उसी दिन से दीपक बाबू को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मानना शुरू कर दिया था । 
राकेश सिंघल की टीम में प्रमुख हैसियत में रहने वाले दीपक बाबू के समर्थकों ने योजना ही ऐसी बनाई थी जिसमें 'बिना लाठी तोड़े साँप को मार देने का' पूरा इंतज़ाम था । उनके सामने चुनौती बस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल का समर्थन जुटाने भर की थी । उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनकी योजना को राकेश सिंघल का समर्थन आसानी से मिल जायेगा । दरअसल राकेश सिंघल के दिवाकर अग्रवाल से और दिवाकर अग्रवाल के कई नजदीकियों से बड़े अच्छे संबंध रहे हैं - जिन्हें जानते/पहचानते हुए दीपक बाबू के समर्थकों को उम्मीद नहीं थी कि राकेश सिंघल उनकी ऐसी किसी योजना का सहयोग/समर्थन करेंगे, जिसके चलते उनके दिवाकर अग्रवाल के साथ ही नहीं, उनके कई नजदीकियों के साथ भी वर्षों के संबंध खतरे में पड़ जायेंगे ।
दीपक बाबू के समर्थक लेकिन यह देख कर हैरान रह गए कि राकेश सिंघल ने तो उनकी योजना के प्रति बड़ा उत्साह दिखाया । दीपक बाबू के समर्थकों द्धारा तैयार की गई योजना को क्रियान्वित करने को लेकर राकेश सिंघल ने जी उत्साह दिखाया, उससे सिर्फ दीपक बाबू के समर्थक ही हैरान नहीं हुए; डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोग भी हैरान हुए और उनके बीच इस तरह की चर्चाएँ चलीं कि राकेश सिंघल को दीपक बाबू से आखिर ऐसा क्या मिल गया है, जो वह ऐसा कदम उठाने के लिए तैयार हो गए जिसके नतीजे के रूप में उन्हें सिर्फ और सिर्फ बदनामी ही मिलेगी ।
दरअसल इसी वजह से, राकेश सिंघल द्धारा दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निशाने पर लेने के साथ ही दीपक बाबू के समर्थकों ने दीपक बाबू को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मानना शुरू कर दिया था । उन्हें विश्वास हो गया कि राकेश सिंघल ने जो खेल शुरू किया है, उसे वह तार्किक परिणति तक पहुँचायेंगे ही । लेकिन अब जब राकेश सिंघल ऐसा करते हुए नहीं दिख रहे हैं तो दीपक बाबू के समर्थकों को दाल में कुछ काला होने का शक होने लगा है । उन्हें शक यह होने लगा है कि राकेश सिंघल कहीं दिवाकर अग्रवाल से खेल खेलने की आड़ में उनके साथ तो कोई खेल नहीं खेल रहे हैं ? राकेश सिंघल कहीं डबल क्रॉस तो नहीं कर रहे हैं ? दीपक बाबू के समर्थकों को ही नहीं, दूसरे कई लोगों को भी लग रहा है कि राकेश सिंघल ने पहले दीपक बाबू के साथ सौदा करके 'माल' हड़पा और अब वह दिवाकर अग्रवाल के साथ सौदा करके उनसे 'माल' हड़पने की कोशिश में तो नहीं हैं - और इसीलिये फैसला लगातार टाल रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ने दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के संबंध में फैसला टालने के अपने रवैये में रोटरी इंटरनेशनल को बहाना बनाया हुआ है । उनका कहना है कि रोटरी इंटरनेशनल उन्हें जो निर्देश देगा, वह वही फैसला करेंगे । रोटरी इंटरनेशनल उन्हें कोई निर्देश दे क्यों नहीं रहा, इस सवाल के जबाव में राकेश सिंघल चुप्पी साध लेते हैं । राकेश सिंघल भले ही चुप्पी साध लेते हैं, लेकिन रोटरी इंटरनेशनल के जिन भी बड़े पदाधिकारियों से इन पँक्तियों के लेखक की बात हुई है उन सभी का कहना है कि संबंधित मामले में फैसला डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को ही करना है - रोटरी इंटरनेशनल का उससे कुछ लेना-देना नहीं है । उल्लेखनीय है कि राकेश सिंघल ने लिखित में और मौखिक रूप से इस मामले में रोटरी इंटरनेशनल के जिन भी पदाधिकारियों से बात की है, उन्होंने राकेश सिंघल को यही कहा/बताया है कि जिस आधार पर दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने की बात की जा रही है, वह कोई आधार बनता ही नहीं है । इसके बाद जो फैसला करना है वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को करना है ।
ऐसे में, राकेश सिंघल को यह बात तो समझ में आ रही है कि उन्होंने यदि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने का फैसला किया, तो डिस्ट्रिक्ट से लेकर रोटरी इंटरनेशनल तक में उनकी भारी फजीहत होगी । समस्या उनकी लेकिन यह भी है कि वह यदि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार कर लेते हैं तो दीपक बाबू के समर्थकों को कैसे मुँह दिखायेंगे ?
राकेश सिंघल ने रोटरी के कुछेक बड़े नेताओं की मदद से यह प्रयास भी किया कि वह रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को सेट कर लें, जो दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने के उनके फैसले पर मुहर लगा दें । इस मामले में उन्हें मिलाजुला सा रेस्पांस मिला है, और वह बहुत आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं । इसीलिए वह फैसले को टालते रहने में ही अपना बचाव देख रहे हैं । उनके इस रवैये को लेकिन दीपक बाबू के समर्थक अपने साथ धोखा मान रहे हैं । उनका कहना है कि राकेश सिंघल ने दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने के लिए जो खेल शुरू किया था, उसे पूरा करें । मजे की बात यह है कि दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों का भी कहना है कि राकेश सिंघल को जो भी फैसला करना हो करें, लेकिन जल्दी करें ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल के साथ सहानुभूति रखने वाले लोगों का कहना लेकिन यह है कि राकेश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में इस तरह से एक पक्ष नहीं बनना चाहिए; और जब रोटरी इंटरनेशनल के लोगों ने भी उन्हें बता दिया है कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने का कोई आधार बनता ही नहीं है तब फिर उन्हें दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करके दोनों उम्मीदवारों के बीच चुनाव हो जाने देना चाहिए । इसी से उनकी साख और प्रतिष्ठा बनेगी । रोटरी इंटरनेशनल के जिन भी पदाधिकारियों से इस मामले को लेकर इन पँक्तियों के लेखक की बात हो सकी है, उन सभी का भी यही कहना है कि राकेश सिंघल ने नाहक ही अपने आप को एक मुसीबत में फँसा लिया है, जिसके कारण उनकी सिर्फ बदनामी ही हो रही है; अच्छा होगा कि वह अपने आप को इस पचड़े से बाहर निकाल लें - क्योंकि अभी भी बहुत देर नहीं हुई है । कल तक राकेश सिंघल के प्रति समर्थन का भाव दिखा रहे दीपक बाबू के समर्थकों ने अब उनके लिए जिस तरह की बातें करना शुरू कर दिया है, उससे लगने लगा है कि राकेश सिंघल ने अपना मौजूदा रवैया यदि बनाये रखा तो वह अपने लिए और ज्यादा आरोपों को तथा और ज्यादा मुसीबतों को ही आमंत्रित करेंगे ।

Tuesday, December 3, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में विनय कुमार अग्रवाल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के दावे ने सुधीर मंगला की उम्मीदवारी को लोगों के बीच मजाक और मुसीबत का विषय बना दिया है

नई दिल्ली । विनय कुमार अग्रवाल ने सुधीर मंगला के गवर्नर-काल में खुद के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने का शिगुफा छेड़ कर सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के लिए एक दिलचस्प किस्म का संकट खड़ा कर दिया है । सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के समर्थकों का ही मानना और कहना है कि विनय कुमार अग्रवाल की इस तरह की बातें सुधीर मंगला के चुने जाने की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर ही डालेंगी तथा उम्मीदवार के रूप में सुधीर मंगला को नुकसान पहुँचाने का काम करेंगी । ऐसा मानने और कहने वाले लोगों का तर्क है कि रवि भाटिया की उम्मीदवारी के सामने सुधीर मंगला के लिए वैसे भी गंभीर चुनौती है, ऐसे में, सुधीर मंगला के अनुमानित गवर्नर-काल में विनय कुमार अग्रवाल का खुद को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में प्रोजेक्ट करना सुधीर मंगला को चोट पहुँचाने का काम ही करेगा । लोगों ने कहना शुरू भी कर दिया है कि सुधीर मंगला अभी उम्मीदवार ही हैं, लेकिन विनय कुमार अग्रवाल ने उनके कार्य-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के सपने देखने शुरू कर दिए हैं ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अधिकतर लोग सुधीर मंगला और रवि भाटिया के बीच ही मुकाबला मान/समझ रहे हैं । इन दोनों के व्यक्तित्व और रोटरी के प्रति इनकी संलग्नता व प्रतिबद्धतता के मापदंडों पर तुलना करने वाले लोगों को रवि भाटिया का पलड़ा भारी दिखता है । रवि भाटिया के व्यक्तित्व में पढ़े-लिखे होने का और गंभीरता, शालीनता तथा दूसरों के मान-सम्मान का ख्याल रखने का भाव नजर आता है; सुधीर मंगला भी पढ़े-लिखे और एक स्थापित उद्यमी हैं लेकिन उनके व्यवहार में गंभीरता और दूसरों के मान-सम्मान का ख्याल रखने वाले तत्व का नितांत अभाव डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने पाया है । इसी 'अभाव' के चलते तीन वर्ष पहले विनोद बंसल की उम्मीदवारी को पचड़े में डालने के लिए वह इस हद तक चले गए थे कि क्लब में ही झगड़ा हो गया और क्लब दो फाड़ हो गया । विनोद बंसल के साथ सुधीर मंगला का सिर्फ क्लब और रोटरी का ही संबंध नहीं था, बल्कि प्रोफेशनल संबंध भी था और इस नाते से पारिवारिक रिश्ता भी था । लेकिन विनोद बंसल के उम्मीदवार होने को लेकर उन्हें जब ऐतराज हुआ, तो वह जैसे सारे रिश्ते भूल गए । सुधीर मंगला ने ऐसा ही सुलूक पिछले वर्ष अपने नए बने क्लब के अध्यक्ष अरुण जैन के साथ किया । अरुण जैन क्लब, डिस्ट्रिक्ट और रोटरी के लिए एक बहुत ही उपयोगी रोटेरियन साबित होते, लेकिन सुधीर मंगला के रवैये ने उन्हें अपमानजनक तरीके से क्लब के अध्यक्ष पद से ही हटने के लिए मजबूर नहीं किया, बल्कि रोटरी से भी बाहर हो जाने के लिए बाध्य कर दिया । इस तरह की बातें सुधीर मंगला की उम्मीदवारी को कमजोर करती हैं ।
सुधीर मंगला अपने व्यवहार के कारण ही अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में अपने क्लब के सदस्यों की मदद नहीं ले पा रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में सुधीर मंगला के क्लब के किसी भी सदस्य को उनके साथ खड़ा नहीं देखा/पाया गया । इसके विपरीत रवि भाटिया को अपने क्लब के सदस्यों से हर तरह का सहयोग और समर्थन मिलता दिख रहा है और डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में रवि भाटिया के क्लब के सदस्य उनके साथ खड़े दिखे हैं । इसी तरह की बातों से डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लग रहा है कि जिन सुधीर मंगला ने दो वर्ष पहले अपने पुराने क्लब को तुड़वाया, एक वर्ष पहले अपने नए बने क्लब के अध्यक्ष को रोटरी से ही निकलवाया, और अभी भी अपने क्लब के सदस्यों को अपने साथ खड़ा नहीं दिखा पा रहे हैं - वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर यदि बने तो डिस्ट्रिक्ट का क्या हाल होगा ? ऐसे ही आकलन के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच रवि भाटिया का पलड़ा भारी हो जाता है । रवि भाटिया को डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने पिछले कई वर्षों से लगातार साल-दर-साल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के साथ काम करते हुए देखा/पाया है, जो रोटरी और डिस्ट्रिक्ट के प्रति उनकी संलग्नता और प्रतिबद्धता को दर्शाता है । सुधीर मंगला इस तरह की कोई संलग्नता और प्रतिबद्धता को नहीं दिखा सके हैं । इसीलिए जो लोग डिस्ट्रिक्ट और रोटरी का भला चाहते/सोचते हैं - उनके बीच सुधीर मंगला की बजाये रवि भाटिया के प्रति समर्थन का भाव दिखता है ।
सुधीर मंगला व्यक्तित्व और डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के प्रति संलग्नता और प्रतिबद्धता के मामले में रवि भाटिया से भले ही मात खा जा रहे हों - लेकिन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय कुमार अग्रवाल ने सुधीर मंगला को जितवाने का पूरा जिम्मा लिया हुआ है । अपना जिम्मा निभाने के क्रम में ही उन्होंने लोगों से कहना शुरू किया है कि सुधीर मंगला को जितवा दो, ताकि मैं भी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बन सकूँ । उन्होंने लोगों को बताया है कि सुधीर मंगला ने उनसे वायदा किया है कि वह यदि गवर्नर बने तो उन्हें ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनायेंगे । विनय कुमार अग्रवाल के इस दावे को सुधीर मंगला के लिए नुकसानदायक मानने वाले लोगों का कहना है कि विनय कुमार अग्रवाल की डिस्ट्रिक्ट में कोई साख नहीं है और उन्हें एक बदमिजाज व्यक्ति के रूप में ही जाना/पहचाना जाता है, जो अभद्र और अशालीन तरीके से बात करने के लिए बदनाम है; जिसका कोई भी वाक्य माँ/बहनों और शरीर के नाजुक अंगों से जुड़ी गालियों के बिना पूरा ही नहीं होता है । ऐसे व्यक्ति को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बना कर सुधीर मंगला डिस्ट्रिक्ट और रोटरी को कहाँ ले जायेंगे और क्या करेंगे ?
सुधीर मंगला गवर्नर बनेंगे या नहीं और यदि बने और उन्होंने विनय कुमार अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया तो डिस्ट्रिक्ट और रोटरी का क्या होगा - यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन विनय कुमार अग्रवाल के इस दावे ने सुधीर मंगला की उम्मीदवारी को लोगों के बीच मजाक और मुसीबत का विषय जरूर बना दिया है ।

Monday, December 2, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा ने एक फैसला करके विरोधी खेमे के नेताओं को राजनीतिक रूप से पूरी तरह 'कंगाल' कर दिया

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा ने कॉल निकाल कर डिस्ट्रिक्ट के लोगों को चकित तथा विरोधी खेमे के लोगों को परेशान कर दिया है । विरोधी खेमे के जो नेता अभी कल तक कहा करते थे कि विजय शिरोहा को राजनीति नहीं आती, वह विजय शिरोहा की राजनीति की 'मार' से हतप्रभ हैं और विजय शिरोहा की राजनीति के फंदे में अपने आप को फँसा हुआ पा रहे हैं और समझ नहीं पा रहे हैं कि करें तो क्या करें ? गहरे सदमे और निराशा में, ले दे कर अभी उनकी तरफ से एक ही प्रतिक्रिया आ रही है कि विजय शिरोहा इस तरह मनमाने तरीके से - दूसरों को विश्वास में लिए बिना कॉल कैसे निकाल सकते हैं ? उनका आरोप है कि विजय शिरोहा ने कॉल निकालने के संबंध में 'अपने' लोगों को भी अँधेरे में रखा है तथा बहुत ही गुपचुप तरीके से कॉल निकालने के काम को अंजाम दिया है । अब कॉल निकालने के संबंध में ऐसा कोई नियम तो है नहीं, जो यह कहता/बताता हो कि किसे अँधेरे में रखा जा सकता है और किसे 'उजाले में' रखना जरूरी है । जाहिर है कि विरोधी खेमे का यह सिर्फ एक प्रलाप है - जिसे गाने के अलावा उनके पास और कोई चारा या विकल्प नहीं है ।
सचमुच, विजय शिरोहा की इस चाल ने विरोधी खेमे की राजनीति को पूरी तरह बैंकरप्ट कर दिया है । दरअसल इसीलिए विरोधी खेमा बुरी तरह बौखला गया है । विरोधी खेमे के नेताओं को दरअसल यह उम्मीद नहीं थी कि विजय शिरोहा इस तरह की चाल चल कर उन्हें राजनीतिक रूप से पूरी तरह कंगाल कर देंगे । विजय शिरोहा ने जो चाल चली है उसके चलते विरोधी खेमे को पिछले लायन वर्ष के मुकाबले करीब 40 वोटों का घाटा हो गया है । यह घाटा हालाँकि - विजय शिरोहा की चाल का उतना नहीं, जितना विरोधी खेमे के नेताओं की अदूरदर्शिता और अपने आपको ज्यादा होशियार समझने की 'समझ' का नतीजा है । विजय शिरोहा ने तो सिर्फ मौके का फायदा भर उठाया है ।
उल्लेखनीय है कि विरोधी खेमे के नेताओं ने अपने-अपने क्लब्स के तमाम सदस्यों को मौजूदा लायन वर्ष के शुरू से ही ड्रॉप दिखा दिया था । उन सदस्यों के ड्यूज उन्हें न देना पड़े, इसलिए उन्होंने ऐसा किया । उनकी समस्या दरअसल यह हुई कि उक्त सदस्यों के ड्यूज देने के लिए कोई 'मुर्गा' उनके जाल में फँसा नहीं, और ड्यूज देना उनके बस में था नहीं । विरोधी खेमे के नेता अपने आप को बड़ा होशियार समझते हैं - इसी होशियारी के चलते उन्होंने सोचा कि जब चुनाव का समय नजदीक आयेगा और कोई उम्मीदवार उनके हाथों 'हलाल' होने को तैयार हो जायेगा, तब उससे उक्त सदस्यों के ड्यूज जमा करवा कर उनकी सदस्यता को पुनर्जीवित करवा लिया जायेगा । विरोधी खेमे के नेताओं की चाल तो अच्छी थी - किंतु 'लड़ाई' के एक बुनियादी सिद्धांत को वह भूल गए; जो कहता है कि विरोधी को कभी भी सोया हुआ नहीं समझना चाहिए । विरोधी खेमे के नेताओं ने माना/समझा कि सत्ता खेमे के नेताओं को तो कोई समझ है नहीं, इसलिए वह जैसे चाहेंगे वैसे कर लेंगे । खास कर विजय शिरोहा के बारे में तो विरोधी खेमे के नेताओं का यह मानना और कहना रहा है कि उन्हें तो कुछ राजनीति नहीं आती है । इसी समझ के चलते विरोधी खेमे के नेता बेफिक्र थे और ख्याली पुलाव पकाने में व्यस्त थे ।
विजय शिरोहा ने लेकिन सारी स्थितियों को जाना/समझा और बहुत ही सुनियोजित तरीके से कॉल की तैयारी की । उन्होंने अपनी इस तैयारी की किसी को हवा भी नहीं लगने दी । इसीलिए जैसे ही कॉल सामने आई - विरोधी खेमे के नेताओं के तो तोते उड़ गए । सत्ता खेमे के भी लोगों को हैरानी हुई - क्योंकि उन्हें भी इस कॉल के आने की कोई आहट तक नहीं हुई थी । विरोधी खेमे के नेताओं ने सत्ता खेमे के कई लोगों को यह कह कर भड़काने का प्रयास भी किया कि विजय शिरोहा ने तो उन्हें भी विश्वास में नहीं लिया और अपनी मनमानी चलाते हुए कॉल निकाल दी । 'खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे' वाले अंदाज़ में विरोधी खेमे के नेताओं ने सत्ता खेमे के लोगों को भड़काने को यह जो प्रयास किया, उसका कोई सुफल न तो उन्हें मिलना था और न मिला ही - क्योंकि सत्ता खेमे के लोगों को अचानक से लिए गए विजय शिरोहा के फैसले से हैरानी भले ही हुई हो, लेकिन यह समझने में उन्होंने कोई चूक नहीं की कि विजय शिरोहा का यह फैसला डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में विरोधी खेमे को आत्मसमर्पण करने की राह पर धकेलने का काम ही करेगा ।
कॉल निकाल कर विजय शिरोहा ने विरोधी खेमे को जो जोर का झटका जोर से दिया है, उससे निपटने का कोई फार्मूला विरोधी खेमे के नेता तलाश कर पायेंगे, इसकी उम्मीद खुद विरोधी खेमे के नेताओं को भी नहीं है; और इसीलिए उन्होंने रोना-धोना शुरू कर दिया है । विरोधी खेमे के कुछेक नेताओं की खासियत यह भी है कि वह चुप भी नहीं बैठ सकते हैं, इसलिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों की उम्मीद यह है कि वह विजय शिरोहा की कॉल निकालने की कार्रवाई को मुद्दा बनाकर शिकायतें करने का खेल शुरू कर सकते हैं । दरअसल विरोधी खेमे के नेताओं के सामने सिर्फ इसी एक तरीके से अपने होने का अहसास कराने का अवसर बचा है ।
                                  "हारेगी हर बार अँधियारे की घोर-कालिमा
                                  जीतेगी जगमग उजियारे की स्वर्ण-लालिमा"
दीपावली के मौके पर लिखी/प्रकाशित हुई विजय शिरोहा की कविता की इन दो पँक्तियों में अभिव्यक्त होते भाव को विरोधी खेमे के नेताओं ने यदि पढ़ा/समझा होता तो शायद वे विजय शिरोहा को कम करके नहीं आँकते और विजय शिरोहा द्धारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में लिए गए फैसले से हक्के-बक्के न रह गए होते ।

Saturday, November 30, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में अरुण मित्तल और मलकीत सिंह जस्सर ने डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट का पैसा 'कब्जाने' की सुधीर जनमेजा की कोशिशों को फ़िलहाल तो विफल कर दिया है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर जनमेजा ने डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट की मोटी रकम पर कब्ज़ा जमाने के लिए सुशील अग्रवाल की मदद से जो दाँव चला था, उसमें अरुण मित्तल और मलकीत सिंह जस्सर ने जिस तरह से फंदा फँसाया है - उसके नतीजे को देख/समझ कर लगता नहीं है कि सुधीर जनमेजा के हाथ ट्रस्ट का पैसा लगेगा । मामला हालाँकि अभी भी पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल की 'कोर्ट' में है लेकिन उनके लिए भी अब सुधीर जनमेजा के इरादे को कामयाब बनाना आसान नहीं रह गया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में तरह-तरह से पैसा जुगाड़ने के अपने प्रयासों को अंजाम देने के क्रम में सुधीर जनमेजा ने डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के लाखों रूपए 'पार करने' के लिए पहला कदम गाजियाबाद में आयोजित अधिष्ठापन समारोह के दौरान गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में उठाया था । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट की उपस्थिति में हुई उक्त मीटिंग में सुधीर जनमेजा ने अपनी तरफ से होशियारी दिखाते हुए प्रस्ताव रखा कि डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट में लाखों रूपया यूँ ही पड़ा हुआ है, इसलिए किसी प्रोजेक्ट में उसका इस्तेमाल करते हुए उसका सदुपयोग कर लेना चाहिए ।
'सदुपयोग' का नाम देकर सुधीर जनमेजा ने किस मनमाने तरीके से पैसे इकट्ठे किये हैं - इससे वाकिफ पूर्व गवर्नर्स ने जब सुधीर जनमेजा के मुँह से ट्रस्ट के पैसों के 'सदुपयोग' की बात सुनी, तो वह हक्के-बक्के रह गये । जल्दी से किसी को कुछ सूझा ही नहीं कि बेहद चालाकी से तैयार किये गए सुधीर जनमेजा के इस प्रस्ताव पर वह किस तरह से रिएक्ट करें और क्या कहें । सुधीर जनमेजा ने भी जल्दीबाजी दिखाते हुए 'आगे बढ़ने की' कोशिश की ताकि उनके प्रस्ताव को स्वीकृत मान लिया जाये । लेकिन उनकी इस कोशिश को विफल करते हुए इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोरसी अरुण मित्तल ने तर्क दिया कि डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों को इस्तेमाल करने के बारे में एक नियम बना हुआ है, जिसका पालन किया जाना चाहिए; और यदि उस नियम को बदलने की जरूरत महसूस की जा रही है तो नए नियम क्या हों उसका प्रारूप सामने आना चाहिए और उस पर चर्चा होनी चाहिए । अरुण मित्तल ने यह सुझाव देकर तो सुधीर जनमेजा के मंसूबों पर पूरी तरह पानी फेर दिया कि इस संबंध में बात करने का यह उचित मौका नहीं है, इसलिए इस विषय को अगली किसी मीटिंग के लिए स्थगित कर देना चाहिए । सभी पूर्व गवर्नर अरुण मित्तल के इस सुझाव से सहमत हुए और तब सुधीर जनमेजा को मनमसोस कर रह जाना पड़ा ।
सुधीर जनमेजा ने लेकिन हिम्मत नहीं हारी और कुछ दिनों बाद देहरादून में डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों के इस्तेमाल करने को लेकर एक मीटिंग बुला ली । अरुण मित्तल के लिए उक्त मीटिंग में शामिल हो पाना संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने मीटिंग का निमंत्रण मिलते ही जबावी ईमेल भेज कर उक्त मीटिंग के ही गैरकानूनी होने का सवाल उठा दिया । अरुण मित्तल का कहना था कि ट्रस्ट की मीटिंग बुलाने का अधिकार ट्रस्ट के चेयरमैन को है - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को मीटिंग बुलाने का अधिकार ही नहीं है । अरुण मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को लिखे/भेजे अपने जबावी ईमेल संदेश को सभी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को भी भेज दिए । इस ईमेल संदेश में अरुण मित्तल ने जो कुछ कहा उससे लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर जनमेजा को डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पदाधिकारियों को पद-स्थापित करने का जो काम करना चाहिए, उसे करने में तो वह कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं; और उनकी सारी दिलचस्पी डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों का कब्ज़ा ले लेने में है । अरुण मित्तल के इस संदेश ने सुधीर जनमेजा के प्रयासों को एक बार फिर विफल कर दिया ।
डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों को कब्जाने के अपने प्रयासों के संबंध में सुधीर जनमेजा ने हिम्मत लेकिन अभी भी नहीं हारी थी । हरिद्धार में आयोजित दूसरी कैबिनेट मीटिंग के समय डिस्ट्रिक्ट ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में सुधीर जनमेजा ने डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पदाधिकारियों को लेकर तो कोई बात नहीं की, लेकिन ट्रस्ट के पैसों के 'सदुपयोग' का राग फिर छेड़ दिया । बात आगे बढ़ती, इससे पहले ही अरुण मित्तल ने सवाल दाग दिया कि जो लोग ट्रस्ट के सदस्य तक नहीं हैं उन्हें ट्रस्ट के बारे में फैसला करने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है ? सुधीर जनमेजा को यह समझने में देर नहीं लगी कि अरुण मित्तल ने इस सवाल के जरिये उन्हें ही निशाने पर लिया है । लिहाजा, सुधीर जनमेजा ने झट से ढाई हजार रुपये अपनी जेब से निकाल कर सामने रख दिए और ट्रस्ट के सदस्य होने का  दावा करने लगे । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट की सदस्यता को लेकर नियम यह है कि वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनते ही ट्रस्ट की सदस्यता की पात्रता बन जाती है लेकिन ट्रस्ट का सदस्य बनने के लिए पात्रता रखने वाले को ढाई हजार रुपए ट्रस्ट में जमा कराने होते हैं । वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में भी सुधीर जनमेजा ने उक्त ढाई हजार रुपए जमा कराने की लेकिन कोई जरूरत नहीं समझी । डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के लाखों रुपए कब्जाने के लिए तरह-तरह की तिकड़म लगा रहे सुधीर जनमेजा को जब अरुण मित्तल ने यह अहसास कराया कि वह तो डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के सदस्य ही नहीं हैं और इस नाते से उन्हें ट्रस्ट के बारे में बात करने का ही अधिकार नहीं हैं, तब सुधीर जनमेजा ने अपनी जेब से ढाई हजार रुपए निकाले और ट्रस्ट के सदस्य 'बने' ।
सुधीर जनमेजा डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों को कब्जाने की अपनी कोशिशों के चलते लगातार फजीहत का शिकार हो रहे थे - लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी कोशिशों को नहीं छोड़ा । हरिद्धार में डिस्ट्रिक्ट ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में सुधीर जनमेजा ने ट्रस्ट का सदस्य 'बनने' के बाद बेहद चालाकी के साथ बड़ा दाँव चला और प्रस्ताव रखा कि डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट को लेकर चूंकि कई तरह की अस्पष्टाएँ हैं इसलिए उन सब को क्लियर करने का जिम्मा सुशील अग्रवाल को सौंप देना चाहिए । सुधीर जनमेजा को विश्वास था कि सुशील अग्रवाल को उक्त जिम्मेदारी देने का कोई भी विरोध नहीं करेगा और फिर सुशील अग्रवाल से तो वह जो चाहेंगे, करवा लेंगे । सुधीर जनमेजा का यह विश्वास सच भी साबित हुआ; सुशील अग्रवाल को उक्त जिम्मेदारी देने का किसी ने विरोध नहीं ही किया और एक बार को तो लगा कि सुधीर जनमेजा की तरकीब काम कर जायेगी - लेकिन तभी मलकीत सिंह जस्सर ने हस्तक्षेप किया और बाजी पलट दी । मलकीत सिंह जस्सर ने सुझाव दिया कि सुशील अग्रवाल को जो जिम्मेदारी दी जा रही है उसे अकेले निभाना उनके लिए मुश्किल होगा इसलिए उक्त जिम्मेदारी निभाने के काम में सुशील अग्रवाल के साथ अरुण मित्तल को भी शामिल कर लिया जाना चाहिए । जिस तरह सुशील अग्रवाल के नाम का कोई विरोध नहीं कर पाया, ठीक उसी तरह अरुण मित्तल के नाम का भी कोई विरोध नहीं कर सका । सुधीर जनमेजा ने समझ लिया कि मलकीत सिंह जस्सर उनके भी 'गुरु' साबित हुए हैं और मलकीत सिंह जस्सर ने उनकी कामयाब होती दिख रही योजना में फच्चर फँसा दिया है । मलकीत सिंह जस्सर ने जो चाल चली उसके बाद सुधीर जनमेजा के सामने अपने प्रस्ताव को वापस लेने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा ।
मलकीत सिंह जस्सर के हस्तक्षेप के बाद जो सीन बना, उससे उत्साहित हुए अरुण मित्तल ने प्रस्ताव रखा कि पहली जरूरत डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पदाधिकारियों का नियमानुसार चयन करने की है । उनका कहना था कि ट्रस्ट के नियमानुसार चुने हुए पदाधिकारियों को ही ट्रस्ट के पैसों को इस्तेमाल करने संबंधी फैसले करने चाहिए । सभी ने उनकी बातों का समर्थन किया और अरुण मित्तल के प्रस्ताव पर ही डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पदाधिकारियों का नियमानुसार चयन करने की जिम्मेदारी सुशील अग्रवाल को सौंप दी गई । इससे डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों को कब्जाने की सुधीर जनमेजा की कोशिशों को धक्का तो लगा है; लेकिन लोगों को शक है कि सुधीर जनमेजा अपनी कोशिशों को विराम देंगे । लोगों को डर है कि सुधीर जनमेजा अब कोई और तरकीब सोच और आजमा सकते हैं । हालाँकि अरुण मित्तल और मलकीत सिंह जस्सर ने अभी तक जो जो किया है उससे सुधीर जनमेजा की कोशिशों को लेकर संदेह और जागरूकता का माहौल तो बना ही है । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसे को कब्जाने और बचाने की लड़ाई खासी दिलचस्प हो गई है ।

Wednesday, November 27, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में विनोद बंसल और उनकी पत्नी को निशाना बनाने की अरनेजा गिरोह की कार्रवाई को शेखर मेहता की शह भी हो सकती है क्या ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल को लांछित और अपमानित करने के उद्देश्य से उन पर जो सबसे बड़ा हमला हुआ है, उस हमले को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता की शह और समर्थन की चर्चाओं ने खासा गंभीर बना दिया है । यूँ तो शेखर मेहता के विनोद बंसल के साथ भी बहुत नजदीक और भरोसे के संबंध हैं, जिसके कारण किसी के लिए भी यह विश्वास कर पाना सहज नहीं होगा कि विनोद बंसल को पूरी तरह धराशाही करने के उद्देश्य से किये गए हमले में उनका कोई हाथ होगा; लेकिन परिस्थितिजन्य तथ्य चूँकि इस ओर इशारा कर रहे हैं इसलिए लोगों का शक शेखर मेहता पर जा रहा है । विनोद बंसल के खिलाफ करीब दो पेज का जो मेल अभी अवतरित हुआ है, उस पर हालाँकि नाम तो किसी का नहीं है - लेकिन यह किन लोगों का कारनामा है, इसका संकेत खुद इसी मेल में मौजूद है । इस मेल के तीसरे पैरा में कहा गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संबंध में मुकेश अरनेजा, विनय कुमार अग्रवाल और रमेश अग्रवाल ने कई कई मेल विनोद बंसल को लिखी हैं । इन्होंने विनोद बंसल को कई कई मेल लिखी हैं - यह बात इनके अलावा और कौन जानता होगा ? इसी से लोगों को शक है कि विनोद बंसल को निशाना बनाने वाली बेनामी मेल के पीछे यही लोग हैं । यह शक इसलिए भी और पुख्ता होता है क्योंकि इस खेल के ये लोग बड़े बदनाम और मशहूर खिलाड़ी हैं । इनके इस बार के 'खेल' को शेखर मेहता की शह और समर्थन के साथ इसलिए जोड़ कर देखा जा रहा है क्योंकि मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल को भी शेखर मेहता के यहाँ बहुत तवज्जो है ।
शेखर मेहता के यहाँ - जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि - तवज्जो विनोद बंसल को भी है । ऐसे में लोगों को आश्चर्य इस बात का है कि शेखर मेहता की कोर टीम में डिस्ट्रिक्ट 3010 के जो तीन लोग हैं उनके बीच आपस में इतनी मारकाट क्यों मची है - और यदि मची है तो शेखर मेहता इनके बीच की इस मारकाट को ख़त्म करवाने का प्रयास क्यों नहीं करते ? इस आश्चर्य की परतें खोलने का काम विनोद बंसल के खिलाफ लिखी गई बेनामी मेल भी करती है । बेनामी मेल का पहला पैरा विस्तार से विनोद बंसल की 'अति महत्वाकांक्षा' को रेखांकित करते हुए इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर के साथ उनकी नजदीकी को निशाना बनाता है । पीटी प्रभाकर से विनोद बंसल की नजदीकी डिस्ट्रिक्ट के लोगों की बजाये डिस्ट्रिक्ट से ऊपर के लोगों के लिए ही चिढ़ का कारण हो सकती है ! विनोद बंसल को शेखर मेहता के 'काम' आकर उतना फायदा नहीं मिला, जितना फायदा उन्हें पीटी प्रभाकर के काम आकर मिला है - यह तथ्य शेखर मेहता को ही 'चोट' पहुँचा सकता है । एक तो इस चोट के चलते, और दूसरे पीटी प्रभाकर से नजदीकी बना कर विनोद बंसल कहीं ज्यादा आगे न बढ़ जाएँ - इसलिए उन्हें पीछे खींचना शेखर मेहता की भी जरूरत हो जाती है । यह जरूरत इसलिए भी हो जाती है ताकि पीटी प्रभाकर के कार्यक्रमों को विनोद बंसल से मिलने वाले 'सहयोग' को रोका जा सके । विनोद बंसल के लिए अनुभवी लोगों की एक सलाहियत रही ही है कि रोटरी के हर 'बड़े जहाज' पर लंगर डालने की उनकी 'रणनीति' अंततः उन्हें नुकसान ही पहुँचायेंगी । पीटी प्रभाकर के साथ उनकी नजदीकी शेखर मेहता को उनके घोर विरोधियों की तरफ धकेलने का काम कर रही हो - तो इसमें कोई बहुत हैरानी की बात नहीं है ।
विनोद बंसल के खिलाफ इस बेनामी मेल को अब तक के सबसे बड़े हमले के रूप में इसलिए देखा जा रहा है क्योंकि इसमें सिर्फ विनोद बंसल को ही नहीं, बल्कि उनकी पत्नी संगीता बंसल को भी निशाना बनाया गया है । मेल के तीसरे पैरा में कहा गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनोद बंसल के कई फैसले उनकी पत्नी संगीता बंसल लेती हैं, जो खुद भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की इच्छुक हैं । रोटरी ने और डिस्ट्रिक्ट 3010 ने बड़ी बड़ी लड़ाइयाँ देखी हैं, लेकिन किसी भी लड़ाई में मर्यादा का ऐसा उल्लंघन प्रायः नहीं देखा/सुना गया कि महिलाओं को निशाना बनाया गया हो । रोटरी को और डिस्ट्रिक्ट को यह निर्लज्ज किस्म की सौगात मुकेश अरनेजा की एंट्री के बाद मिली है । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने आशीष घोष के खिलाफ इस 'हथियार' का खूब इस्तेमाल किया था । उस समय लेकिन यह सब आपसी बातचीतों और गपशपों में हुआ था । विनोद बंसल के मामले में संगीता बंसल का नाम तो ये लोग अब 'रिकॉर्ड' पर भी ले आये हैं । अपने इस 'काम' को और अच्छे से पूरा करने के लिए इन्होंने विनय कुमार अग्रवाल को अपने साथ और जोड़ लिया है, जिनका कोई भी वाक्य माँ/बहनों से जुड़ी गालियों के बिना पूरा ही नहीं होता है । शेखर मेहता के विनोद बंसल के साथ जैसे संबंध 'दिखते' हैं, वैसे सचमुच में यदि 'हैं' भी तो उनकी 'कोर टीम' के दो सदस्य मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल आपस में मिल कर तीसरे सदस्य विनोद बंसल के खिलाफ बिलो-द-बेल्ट हमला करने का साहस भला कैसे कर सकते हैं ?
विनोद बंसल के खिलाफ उक्त बेनामी मेल में एक मुख्य आरोप यह लगाया गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक उम्मीदवार सुधीर मंगला के खिलाफ व्यक्तिगत रंजिश के कारण नकारात्मक अभियान चलाये हुए हैं । सचमुच में यदि ऐसा है तो मुकेश अरनेजा, रमेश अग्रवाल और विनय अग्रवाल को इस बारे में खुली और औपचारिक शिकायत करने से भला कौन रोक रहा है ? बेनामी मेल में इस तरह का आरोप लगाने का मतलब ही यह है कि आरोप झूठा है । सच बात यह है कि इन्हीं लोगों ने रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से अनुमति लेने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संबंध में विनोद बंसल द्धारा अपनाई जा रही उस व्यवस्था को लागू नहीं होने दिया, जिसके तहत नॉमिनेटिंग कमेटी के सदस्य रोटरी के प्रति उम्मीदवारों की संलग्नता और प्रतिबद्धता की पहचान कर पाते । नॉमिनेटिंग कमेटी के सदस्यों के सामने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार रोटरी को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी सोच, अपना उद्देश्य और अपना लक्ष्य प्रस्तुत करते - जिससे नॉमिनेटिंग कमेटी के सदस्यों को उनका मूल्यांकन करने में सुविधा होती और डिस्ट्रिक्ट को वास्तव में एक जेनुइन गवर्नर मिलता - इससे अच्छी बात भला क्या हो सकती थी ? लेकिन तरह-तरह की बहानेबाजी करके उस व्यवस्था को लागू नहीं होने दिया गया ।
लोगों को लगता है कि मुकेश अरनेजा, रमेश अग्रवाल, विनय कुमार अग्रवाल ने उस व्यवस्था को इसीलिए लागू नहीं होने दिया क्योंकि उन्हें डर हुआ कि उसके चलते सुधीर मंगला नॉमिनेटिंग कमेटी के सदस्यों के सामने बाकी उम्मीदवारों से कमजोर साबित हो जायेंगे । दरअसल उस व्यवस्था को लागू करने को सुधीर मंगला को नुकसान पहुँचाने वाली कार्रवाई के रूप में देखा/पहचाना गया । माना गया कि वह व्यवस्था रोटरी और डिस्ट्रिक्ट का भले ही भला करती, लेकिन सुधीर मंगला की उम्मीदवारी का तो कबाड़ा ही कर देती । अरनेजा गिरोह ने उस व्यवस्था को लागू होने से रोक कर सुधीर मंगला को फ़िलहाल तो राहत दिलवा दी है, लेकिन उन्हें यह डर बराबर बना हुआ है कि विनोद बंसल ने यदि निष्पक्ष होकर काम किया और रोटरी व डिस्ट्रिक्ट के हितों को तवज्जो दी तो कहीं सुधीर मंगला की उम्मीदवारी का मामला गड़बड़ा न जाये । इसीलिये उन्होंने विनोद बंसल को दबाव में लेने के लिए बेनामी मेल के जरिये उन पर तगड़ा हमला बोला है ।
शेखर मेहता की शह - या चुपचाप तमाशा देखने की उनकी 'तरकीब' ने अरनेजा गिरोह को यह हौंसला भी दे दिया कि वह विनोद बंसल को ही नहीं, उनकी पत्नी को भी निशाना बना लें ।  

Monday, November 25, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेता उनसे पीछा छुड़ाने की तरकीबें लगाने लगे हैं

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा के लिए यह समझना लगातार मुश्किल हो रहा है कि जिन नेताओं के कहने से उन्होंने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया और जिनकी सलाह के अनुसार ही वह अपने 'कदम' बढ़ा रहे हैं, वही नेता पर्दे के पीछे उन्हें धोखा देने वाले काम क्यों कर रहे हैं ? उल्लेखनीय है कि विक्रम शर्मा को विरोधी खेमे के उम्मीदवार के रूप में ही डिस्ट्रिक्ट में पहचान मिली है और उनकी उम्मीदवारी की वकालत करते हुए हर्ष बंसल, अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन को सुना गया है । इन्होंने विक्रम शर्मा से अपने फर्जी किस्म के क्लब्स - आनंद निकेतन, भगवान नगर, सुविधा कुञ्ज, किरण गैलेक्सी, आदि - के भारी-भरकम ड्यूज भी जमा करा लिए हैं । विक्रम शर्मा ने इनके उस आदेश का पालन भी पूरी निष्ठां के साथ किया जिसमें इन्होँने विक्रम शर्मा को विरोधी खेमे के नेताओं के यहाँ दीवाली देने जाने से मना किया था । विक्रम शर्मा हालाँकि विरोधी खेमे के नेताओं को फोन पर बात करके उन्हें अपने आने/पहुँचने की सूचना दे चुके थे । अपने नेताओं से लेकिन 'न जाने का फ़तवा' मिलने के बाद विक्रम शर्मा को बहानेबाजी करके विरोधी खेमे के नेताओं से न आने/पहुँचने के लिए माफी माँगनी पड़ी थी । इस तरह, विक्रम शर्मा अपने नेताओं की हर बात मान रहे हैं - लेकिन फिर भी उन्हें दूसरों से लगातार इस तरह की सूचनाएँ मिल रही हैं कि जिन्हें वह अपना नेता मान रहे हैं और जिनकी हर डिमांड पूरी कर रहे हैं, उनके वही 'अपने नेता' दूसरे दूसरे लोगों को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए उकसाने/प्रेरित करने में लगे हुए हैं ।
'अपने नेता'(ओं) की इस हरकत से परेशान हो रहे विक्रम शर्मा की परेशानियों से परिचित उनके नजदीकियों का कहना है कि विक्रम शर्मा के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि अपने फर्जी किस्म के क्लब्स के ड्यूज के पैसे जब ये नेता उनसे ले रहे हैं, तो फिर दूसरे दूसरे लोगों को ये उम्मीदवार बनने के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं ? विक्रम शर्मा को ये बात भले ही न समझ में आ रही हो, लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खेल से परिचित लोग इस बात को बखूबी समझ रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से और नेताओं के समीकरणों/स्वार्थों से परिचित लोगों का मानना/कहना है कि विक्रम शर्मा ने जिन नेताओं के भरोसे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया है, उन नेताओं की वह दरअसल 'मजबूरी' की पसंद हैं । अजय बुद्धराज के साथ विक्रम शर्मा का पुराना लफड़ा है जिसके चलते अजय बुद्धराज हरगिज हरगिज उनका समर्थन करने को राजी नहीं हो सकते हैं; राकेश त्रेहन का बस चले तो वह ओंकार सिंह को आगे बढ़ाये; हर्ष बंसल ने तमाम गुणा-भाग करके यह नतीजा निकाला है कि कोई बनिया उम्मीदवार ही उनकी चुनावी राजनीति को पार लगा सकता है - इनकी समस्या लेकिन यह है कि इन्हें अपनी पसंद का कोई उम्मीदवार मिला नहीं । हर्ष बंसल ने दो-तीन बनियों को उम्मीदवार बनने के लिए उकसाया भी, लेकिन वह हर्ष बंसल की बातों में आये नहीं । ओंकार सिंह को लाने के लिए राकेश त्रेहन द्धारा किये गए प्रयासों को भी सफलता नहीं मिली है । ओंकार सिंह को चूँकि स्थितियाँ अनुकूल नहीं दिख रही हैं इसलिए वह उम्मीदवार बनने को राजी नहीं हो रहे हैं । अजय बुद्धराज ने भी जिन लोगों को आगे आने के लिए प्रेरित किया, उन्होंने अजय बुद्धराज को कोई सकारात्मक जबाव नहीं दिया । विक्रम शर्मा ने चूँकि उत्सुकता दिखाई, इसलिए ये लोग उनके साथ जुड़ने के लिए मजबूर हो गए ।
अब नेतागिरी करने के लिए कोई उम्मीदवार तो चाहिए ही ।
मजबूरी में ही सही, विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को उन्होंने हरी झंडी तो दे दी और उनकी सलाहानुसार विक्रम शर्मा ने काम करना भी शुरू कर दिया; लेकिन विक्रम शर्मा से उन्हें यह शिकायत भी बनी रही कि विक्रम शर्मा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के साथ संबंध बना लिए हैं । विजय शिरोहा के साथ विक्रम शर्मा की नजदीकी विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को बिलकुल भी पसंद नहीं आई । यह तब है जब विजय शिरोहा के साथ नजदीकी बनाने का प्रयास विक्रम शर्मा ने अपने नेताओं की सलाह पर ही किया । उनके नेताओं ने ही उन्हें समझाया था कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई जीतने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का समर्थन जरूरी होगा ।
विजय शिरोहा के साथ नजदीकी बनाने का सुझाव विक्रम शर्मा को उनके नेताओं ने दरअसल यह सोच कर दिया था कि विजय शिरोहा ने यदि विक्रम शर्मा को सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी, तो उन्हें विजय शिरोहा को बदनाम करने का मौका मिलेगा; और यदि विक्रम शर्मा को विजय शिरोहा की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली तो विजय शिरोहा को अपने ग्रुप के दिल्ली के नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ेगा । विक्रम शर्मा को इस्तेमाल करके विजय शिरोहा और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स के बीच दूरियाँ पैदा करने के उद्देश्य से ही विक्रम शर्मा को उनके नेताओं ने विजय शिरोहा के साथी गवर्नर्स के यहाँ दीवाली देने नहीं जाने दिया । विक्रम शर्मा के नेताओं ने लेकिन जब देखा/पाया कि विक्रम शर्मा के जरिये बिछाये गए जाल में सत्ता खेमे के नेता फँस ही नहीं रहे हैं तो उन्होंने विक्रम शर्मा की विजय शिरोहा के साथ बनी नजदीकी को ही संदेह से देखना शुरू कर दिया है ।
विक्रम शर्मा के लिए मुसीबत की बात यह हो गई है कि चूँकि अभी तक वह विरोधी खेमे के नेताओं के कहे अनुसार ही चल रहे हैं, इसलिए विजय शिरोहा के साथ नजदीकी बना लेने के बावजूद सत्ता खेमे के नेताओं के बीच उन्हें लेकर संदेह बना हुआ है और वहाँ तो उनकी स्वीकार्यता नहीं ही बन पा रही है; उनके अपने खेमे के नेता भी उनसे पीछा छुड़ाने की तरकीबें और लगाने लगे हैं । विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं ने अपने अपने क्लब्स के ड्यूज तो विक्रम शर्मा से जमा करवा लिए हैं, लेकिन उम्मीदवारी के लिए अब वह दूसरे दूसरे 'शिकार' खोजने लगे हैं ।