Wednesday, August 27, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में महिला गवर्नर की चर्चा से बढ़ती दिख रही सरोज जोशी की उम्मीदवारी की धमक ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को खतरा महसूस कराया

नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में कुछेक नेता जिस तरह महिला गवर्नर की वकालत करते हुए सुने गए हैं, उससे रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए एक नई समस्या और चुनौती पैदा होती हुई दिख रही है । दरअसल रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतक भी समझ रहे हैं कि महिला गवर्नर की वकालत करने वाले नेताओं का वास्तविक एजेंडा सरोज जोशी की उम्मीदवारी के प्रति डिस्ट्रिक्ट के लोगों की सहानुभूति और उनका समर्थन जुटाना है; और उनकी इस वकालत के चलते रवि चौधरी की उम्मीदवारी से लोगों का ध्यान और कंसर्न हटेगा । उल्लेखनीय है कि मौजूदा वर्ष रोटरी में महिलाओं के प्रवेश का 25वाँ वर्ष है । कुछेक लोगों ने कहना शुरू किया है कि इस 25वें वर्ष को यादगार बनाने के लिए डिस्ट्रिक्ट को एक महिला को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनना चाहिए ।
उल्लेखनीय बात यह है कि जो लोग महिला गवर्नर की वकालत कर भी रहे हैं, उन्हें भी इस बात का पूरा पूरा अहसास है कि रोटरी में लीडरशिप महिलाओं की भागीदारी को लेकर उत्साहित व प्रोत्साहित करने वाली बातें चाहें जितनी करती हो, लेकिन लीडरशिप में महिलाओं के शामिल होने को लेकर उसकी सोच बहुत ही दकियानूसी और पक्षपातपूर्ण है । लीडरशिप में महिलाओं को जो भी स्थान प्राप्त हुआ है, उसके लिए उन्हें और उनके समर्थकों को बड़ा कड़ा संघर्ष करना पड़ा है । जिन डिस्ट्रिक्ट्स में महिलाएँ गवर्नर बनी हैं, उन डिस्ट्रिक्ट्स में वह कोई आसानी से नहीं बनी हैं - उसके लिए उन्हें एक उम्मीदवार रूप में तो काम करना ही पड़ा है, साथ ही पक्षपातपूर्ण व भेदभावपूर्ण सोच का भी मुकाबला करना पड़ा है । रोटरी में महिलाओं की मौजूदगी और उनकी पहचान के लिए एक बड़ी लंबी लड़ाई लड़े जाने का इतिहास है - जो ज्यादा पुराना भी नहीं है ।
यह बात तो अधिकतर लोग जानते होंगे कि रोटरी में महिलाओं को सदस्य बनने का अधिकार 1989 में काउंसिल ऑन लेजिस्लेशन में किए गए एक संशोधन के बाद मिला । लेकिन यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि महिलाओं को यह अधिकार देने से बचने के लिए रोटरी इंटरनेशनल के तत्कालीन पदाधिकारियों ने काफी दावपेंच खेले और उनमें मात खाने के बाद ही वह महिलाओं को रोटरी सदस्य बनने का अधिकार देने के लिए मजबूर हुए । रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को मजबूर करने की यह कहानी 1977 में उस समय शुरू हुई, जब रोटरी क्लब दुआर्ते, कैलिफोर्निया ने तीन महिलाओं को अपने क्लब का सदस्य बनाया । डिस्ट्रिक्ट से लेकर इंटरनेशनल तक के तत्कालीन पदाधिकारियों को क्लब का यह फैसला पसंद नहीं आया । रोटरी इंटरनेशनल के नियमानुसार महिलाएँ चूँकि रोटरी क्लब की सदस्य नहीं हो सकती थीं इसलिए क्लब पर उन महिलाओं की सदस्यता निरस्त करने के लिए हर तरह का दबाव बनाया गया । क्लब नहीं माना तो मार्च 1978 में क्लब का चार्टर ही रद्द कर दिया गया । रद्द चार्टर को बहाल कराने के लिए क्लब ने अदालत का दरवाजा खटखटाया । कैलिफोर्निया सुपीरियर कोर्ट से लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली । कोर्ट ने रोटरी इंटरनेशनल के इस तर्क को सही माना कि उसे अपने सदस्यों पर अपने नियम-कानून लागू करने का हक है । क्लब के लोग इस फैसले के खिलाफ अपील में गए । कैलिफोर्निया कोर्ट ऑफ अपील्स ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया । उसने क्लब के इस तर्क को तवज्जो दी कि अपने नियम-कानूनों की आड़ में रोटरी इंटरनेशनल को महिलाओं के साथ भेदभाव करने की छूट नहीं दी जा सकती । रोटरी इंटरनेशनल ने तब कैलिफोर्निया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने लेकिन मामले की सुनवाई करने से इंकार कर दिया । इसके बाद रोटरी इंटरनेशनल ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई । 4 मई 1985 के अपने फैसले में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने रोटरी इंटरनेशनल को तगड़ी झाड़ पिलाई और कैलिफोर्निया कोर्ट ऑफ अपील्स के फैसले को बदलवाने के लिए दी गई याचिका को खारिज करते हुए क्लब के चार्टर को बहाल करने का आदेश दिया ।
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से मिली फटकार के बाद भी रोटरी इंटरनेशनल के तत्कालीन पदाधिकारी अपनी हरकतों से बाज नहीं आये थे । कोर्ट के फैसले के कारण रोटरी इंटरनेशनल को अमेरिका में तो महिलाओं के रोटरी सदस्य बनने पर सहमति देने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन बाकी देशों में महिलाओं के लिए रोक को जारी रखा गया । कुछ महीने बाद कनाडा के रोटेरियंस ने रोटरी इंटरनेशनल को इस मामले में आँखें दिखाई तो रोटरी इंटरनेशनल ने कनाडा में भी महिलाओं के लिए रोटरी के दरवाजे खोल दिए । बाकी देशों में महिलाओं के रोटरी में प्रवेश पर तब भी रोक लगी रही । तब बाकी देशों में भी महिलाओं के रोटरी सदस्य बनने/बनाने को लेकर मांग उठने लगी और फिर रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के लिए इस माँग को दबाना मुश्किल हो गया । ऐसे में, 1989 में काउंसिल ऑन लेजिस्लेशन में एक संशोधन को स्वीकार किया गया, जिसके बाद महिलाओं के लिए रोटरी के दरवाजे पूरी तरह खोल दिए गए । रोटरी और महिलाओं के बीच संबंधों का एक बदनुमा पहलू यह भी है कि 1989 में हुए उक्त फैसले में भी काउंसिल ऑन लेजिस्लेशन के करीब 27 प्रतिशत सदस्यों ने उक्त संशोधन का विरोध किया था । रोटरी फाउंडेशन के 15 ट्रस्टियों में किसी महिला को 2005 में पहली बार जगह मिल सकी थी । रोटरी इंटरनेशनल के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में पहली महिला सदस्य एक जुलाई 2008 को प्रवेश पा सकी थी ।
महिलाओं के रोटरी सदस्य बनने और लीडरशिप का हिस्सा बनने के संघर्ष के तथ्यों को यहाँ याद करने के पीछे उद्देश्य सिर्फ इस सच्चाई को रेखांकित करना है कि महिलाओं को रोटरी में जो स्थान आज मिला हुआ है, रोटरी में आज उनकी जो पहचान है - उसे एक लंबे और कड़े संघर्ष से हासिल किया गया है; जो यह भी दिखाता/बताता है कि रोटरी में महिलाओं को जगह तथा पहचान देने के मामले में विरोध की जड़ें खासी गहरी हैं । इस संघर्ष का लेकिन एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि रोटरी में महिलाओं के प्रवेश को संभव बनाने का संघर्ष पुरुषों ने ही किया है - वास्तव में यह संघर्ष वही कर ही सकते थे; महिलाएँ जब सदस्य ही नहीं थीं तो वह संघर्ष भी कैसे करती ?
इन तथ्यों तथा इन तथ्यों के संदर्भ में प्रकट काले और उजले पक्षों की पृष्ठभूमि में डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में महिला गवर्नर की वकालत के सुने जा रहे स्वर महत्वपूर्ण हो जाते हैं । इन स्वरों को पश्चाताप करने और गलती सुधारने का मौका बनाने के प्रयत्न के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि इससे पहले विजया जोशी की उम्मीदवारी के रूप में डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लगातार दो वर्ष डिस्ट्रिक्ट के लिए एक महिला गवर्नर चुनने का मौका मिला था - लोगों ने लेकिन उनकी जगह पहले असित मित्तल को और दूसरी बार रमेश अग्रवाल को चुना । इन दोनों ने ही अपनी अपनी कारस्तानियों से रोटरी और डिस्ट्रिक्ट को अलग-अलग तरीके से कलंकित करने का ही काम किया है । इन दोनों का साथ देने वाले कई लोगों का मानना और कहना है कि उस समय उन्होंने यदि विजया जोशी को चुना होता तो डिस्ट्रिक्ट को और रोटरी को इतना कलंकित नहीं होना पड़ता । रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को लगता है कि इस तरह की बातों से प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सरोज जोशी की उम्मीदवारी के प्रति सहानुभूति और समर्थन का माहौल बनता है । रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों के लिए चिंता की बात यह भी है कि इस तरह की बातों से रवि चौधरी की उम्मीदवारी के प्रति एक नकारात्मक माहौल बनता है, क्योंकि रवि चौधरी को असित मित्तल और रमेश अग्रवाल के 'गिरोह' के सदस्य के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है ।
बात सिर्फ देखने/पहचानने तक ही सीमित नहीं है - रमेश अग्रवाल बाकायदा रवि चौधरी को 'अपने' उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं । प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लोगों से वह कई कई बार कह चुके हैं कि वह भले ही प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में हों, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 में भी उनका राजपाट रवि चौधरी के जरिये चलेगा । रमेश अग्रवाल ने इसी तरह के दावे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के उम्मीदवार डॉक्टर सुब्रमणियन को लेकर भी किये थे । डॉक्टर सुब्रमणियन लेकिन बड़ी होशियारी के साथ रमेश अग्रवाल के इस तरह दावों की पकड़ से बाहर निकल आये हैं । रवि चौधरी अभी तक भी इस तरह की होशियारी नहीं सीख पाये हैं - या हो सकता है कि वह सचमुच रमेश अग्रवाल के ही उम्मीदवार के रूप में मुकाबले में रहना चाहते हों । उनके नजदीकियों का कहना है कि रवि चौधरी लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि प्रस्तावित डिस्ट्रिक्ट 3011 में प्रमुख व सक्रिय भूमिका निभाने वाले नेताओं के साथ उन्होंने विश्वास के संबंध बनाने का कोई प्रयास तक नहीं किया है, जिसके कारण वह रमेश अग्रवाल के भरोसे रहने  के लिए मजबूर हैं । उनकी यह मजबूरी ही उनका काम बिगाड़े दे रही है ।
सरोज जोशी ने कम समय में ही अपनी उम्मीदवारी के प्रति जिस तरह की सहानुभूति और समर्थन को जुटा लिया है, उसे रवि चौधरी की उम्मीदवारी के प्रति बने नकारात्मक व विरोधी माहौल के नतीजे के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । ऐसे में, कुछेक लोगों द्धारा शुरू की गई महिला गवर्नर की वकालत के पीछे भी सरोज जोशी की उम्मीदवारी को प्रमोट करने की सोची-समझी राजनीति को पहचाना जा रहा है । यह सच है - रोटरी के इतिहास को देखते हुए यह सच और भी सघन दिखता है - कि महिला गवर्नर की वकालत करने मात्र से सरोज जोशी की उम्मीदवारी का दम बढ़ नहीं जाता है; लेकिन उससे उनकी उम्मीदवारी की धमक तो निश्चित रूप से बढ़ ही जाती है । दरअसल इस बढ़ी हुई धमक को पहचानते/समझते हुए ही रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को महिला गवर्नर की वकालत से खतरा महसूस हुआ है ।

Saturday, August 23, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में अपने गवर्नर-काल को विवादग्रस्त बनने से बचाने और गाजियाबाद के प्रमुख लोगों का सहयोग व समर्थन अपने साथ रखने की जेके गौड़ की कोशिशों ने रमेश अग्रवाल और शरत जैन के सामने मुसीबत और चुनौती खड़ी की

गाजियाबाद । जेके गौड़ ने नाराज और विरोधी तेवर दिखा रहे गाजियाबाद के प्रमुख लोगों को मनाने का जो अभियान छेड़ा है, उसके संभावित नतीजों ने रमेश अग्रवाल और शरत जैन के लिए भारी मुसीबत और चुनौती खड़ी कर दी है । दरअसल जेके गौड़ की तरफ से जो अभियान शुरू किया गया है, उसकी प्रतिक्रिया उनके लिए तो सकारात्मक रही है - लेकिन रमेश अग्रवाल और शरत जैन के लिए चिंता पैदा करने वाली रही है । रमेश अग्रवाल और शरत जैन के सामने डर यह पैदा हुआ है कि गाजियाबाद के प्रमुख लोगों के दबाव में जेके गौड़ कहीं उनका साथ छोड़ तो नहीं देंगे ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की कुर्सी की तरफ बढ़ रहे जेके गौड़ के इस अभियान में गाजियाबाद के प्रमुख लोगों का जो रुझान सामने आया है, उससे यह बात भी साबित हुई है कि गाजियाबाद में रमेश अग्रवाल के प्रति भारी गुस्सा है - और इस गुस्से का खामियाजा रमेश अग्रवाल को तो भुगतना ही पड़ेगा; उनके साथ शरत जैन को भी भुगतना पड़ेगा ।
उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ की तरफ से गाजियाबाद के प्रमुख लोगों के साथ संबंध सुधारने तथा उनके विरोधी तेवरों की धार को कम करने/घटाने के लिए जो अभियान शुरू किया गया, उसके उन्हें अच्छे नतीजे मिले हैं । अभी कल तक जो लोग जब तब जेके गौड़ की तीखी आलोचना किया करते थे, अचानक से उनके मुँह से जेके गौड़ के लिए तारीफ के शब्द सुनने को मिलने लगे हैं । पहले आलोचना और अब तारीफ करने वाले लोगों का कहना है कि जेके गौड़ की तरफ से उनसे एक नए डिस्ट्रिक्ट के निर्माण में सहयोग करने/रखने के लिए जो आग्रह किया गया है, उसे उन्हें स्वीकार करना ही है; क्योंकि उसे स्वीकार करने से इंकार करने का उनके पास कोई कारण नहीं है । नए डिस्ट्रिक्ट की नींव मजबूत पड़े और नया डिस्ट्रिक्ट अच्छा बने - यह सिर्फ जेके गौड़ की ही जरूरत नहीं है, बल्कि उनकी भी जरूरत है; और इस जरूरत को पूरा करने के लिए जेके गौड़ के साथ मिल कर काम करने में उन्हें कोई समस्या नहीं है । अधिकतर लोगों का कहना है कि जेके गौड़ को गवर्नर चुनवाने में आखिर उनका भी सहयोग रहा है; और इसलिए वह क्यों नहीं चाहेंगे कि जेके गौड़ गवर्नर के रूप में अच्छा काम करें और रोटरी में नाम कमाएँ ?
जेके गौड़ के साथ हर तरह का सहयोग करने का आश्वासन देने के साथ साथ गाजियाबाद के अधिकतर लोगों ने उनके लिए लेकिन एक चेतावनी भी छोड़ी है । चेतावनी यह कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह रमेश अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट में हावी होने का और क्लब्स में तोड़फोड़ मचाने वाली हरकतें करने का मौका नहीं देंगे । उल्लेखनीय है कि गाजियाबाद के कई एक प्रमुख लोगों ने रमेश अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये जाने को लेकर जेके गौड़ से विरोध जताया हुआ था । जेके गौड़ ने इस विरोध को डिफ्यूज करने में तो सफलता यह कह कर पा ली कि वह रमेश अग्रवाल से उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने का वायदा कर चुके है इसलिए अब वायदे से मुकरना उचित नहीं होगा । लोगों ने जेके गौड़ के इस तर्क को तो स्वीकार कर लिया; लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह रमेश अग्रवाल को बता दें कि उन्हें सिर्फ डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का काम करना है - डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद का दुरूपयोग करते हुए वह क्लब्स में फूट डालने वाली तथा लोगों को अपमानित करने वाली हरकतें न करें ।
रमेश अग्रवाल के साथ गाजियाबाद के अधिकतर क्लब्स के बहुत ही बुरे अनुभव रहे हैं, जिस कारण से गाजियाबाद के लोगों के बीच रमेश अग्रवाल के प्रति गहरी नाराजगी और विरोध के तेवर हैं । डिस्ट्रिक्ट टेनिस प्रतियोगिता में अपने क्लब को बेईमानी से जितवाने की कोशिश करने के चलते रमेश अग्रवाल का रोटरी क्लब वैशाली के लोगों के साथ झमेला हुआ; रोटरी क्लब मोदीनगर के वरिष्ठ सदस्य केके भटनागर के साथ रमेश अग्रवाल ने बदतमीजी की; रोटरी क्लब गाजियाबाद आइडियल में राजीव गोयल को स्थापित कराने के चक्कर में ऐसा बखेड़ा करवाया कि क्लब के कई प्रमुख लोग क्लब ही नहीं, रोटरी भी छोड़ गए; उमेश चोपड़ा के रोटरी क्लब गाजियाबाद मिडटाउन के अध्यक्ष को एन मौके पर पेट्स में ले जाने से इंकार करके अपमानित किया; रोटरी क्लब गाजियाबाद नॉर्थ की जीओवी में लंबी-चौड़ी बकवास की जिसे क्लब के वरिष्ठ सदस्य सत्य प्रकाश अग्रवाल ने हस्तक्षेप करके नियंत्रित किया; विनोद चावला के दोनों क्लब्स - रोटरी क्लब गाजियाबाद एक्सीलेंस तथा रोटरी क्लब गाजियाबाद नवोदय को शहर के बाहर के जोन में करके परेशान किया; रोटरी क्लब गाजियाबाद की मैचिंग ग्रांट मनमाने तरीके से रोक ली; रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल में सुभाष जैन और अतुल गोयल को शह देकर योगेश गर्ग को अलग-थलग करने का काम किया; रोटरी क्लब गाजियाबाद शताब्दी के आलोक गुप्ता को उकसा कर उम्मीदवार बनवाया और फिर धोखा दिया; आलोक गुप्ता से पहले, इसी तरीके से रवींद्र सिंह को इस्तेमाल किया; आदि-इत्यादि और भी कई उदाहरण हैं जो रमेश अग्रवाल द्धारा की गई कारस्तानियों का सुबूत हैं ।
रमेश अग्रवाल द्धारा की गई कारस्तानियों को ध्यान में रखते हुए ही गाजियाबाद के प्रमुख लोगों ने जेके गौड़ को जता/बता दिया है कि रमेश अग्रवाल को वह डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बना रहे हैं तो बना लें; किंतु रमेश अग्रवाल को यह स्पष्ट कर दें कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद का दुरूपयोग करते हुए वह उन कारस्तानियों को न दोहराये - जो वह पहले करते रहे हैं । गाजियाबाद के लोगों के इन तेवरों ने रमेश अग्रवाल को बुरी तरह से फँसा दिया है । जो लोग रमेश अग्रवाल को जानते हैं उनका कहना है कि रमेश अग्रवाल हरकतें करना छोड़ ही नहीं सकते हैं - वह दरअसल उनके स्वभाव का हिस्सा है । रमेश अग्रवाल के सामने समस्या यह आ खड़ी हुई है कि जेके गौड़ चूँकि अपने गवर्नर-काल को विवादग्रस्त नहीं बनाना चाहेंगे और गाजियाबाद के प्रमुख लोगों का सहयोग व समर्थन अपने साथ रखना चाहेंगे - इसलिए सवाल यह है कि रमेश अग्रवाल को मनमानी करने की कितनी छूट जेके गौड़ दे सकेंगे । रमेश अग्रवाल के सामने यह समस्या इसलिए भी बड़ी है कि क्योंकि शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में ही करना है । जेके गौड़ के गवर्नर-काल के पदों की बंदरबाँट के जरिये ही उन्हें शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन का जुगाड़ करना है । गाजियाबाद के प्रमुख लोगों के साथ संबंध सुधारने के जेके गौड़ के प्रयासों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हुए गाजियाबाद के प्रमुख लोगों ने लेकिन जिस तरह रमेश अग्रवाल की नकेल कसने को लेकर अपनी 'तैयारी' दिखाई है, उसके बारे में जान/सुन कर रमेश अग्रवाल को - और उनके साथ-साथ शरत जैन को मुसीबत और चुनौती ठीक सामने खड़ी दिखाई दे रही है ।

Friday, August 22, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में सुधीर मंगला की ढील-ढाल और निष्क्रियता ने एक नए डिस्ट्रिक्ट के 'बनने' और उसे बनाने से जुड़ी स्थितियों और जरूरतों को लेकर लोगों को निराश किया हुआ है

नई दिल्ली । सुधीर मंगला के रवैये ने डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 के प्रमुख लोगों को प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट के भविष्य को लेकर चिंतित किया हुआ है । चिंता का कारण यह है कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट को बदली हुई परिस्थितियों में जिन नई चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ेगा - उन्हें पहचानने, समझने और उन्हें हल करने को लेकर किसी भी तरह की सोच या सक्रियता किसी भी स्तर पर दिखाई नहीं दे रही है । प्रतीकात्मक अर्थों में इस स्थिति को प्रस्तावित नए डिस्ट्रिक्ट की नींव के कमजोर पड़ने/रहने के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । इस स्थिति के लिए सुधीर मंगला को जिम्मेदार माना/ठहराया जा रहा है । प्रस्तावित नए डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार चूँकि सुधीर मंगला को ही संभालना है, इसलिए नए डिस्ट्रिक्ट के सामने आने वाली समस्याओं और चुनौतियों से निपटने का काम उनके ही नेतृत्व में होगा - लेकिन सुधीर मंगला को लगता है कि इस बात का आभास ही नहीं है कि उन्हें एक बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाह करना है । कुछेक लोग मजाक में कहते भी हैं कि सुधीर मंगला को तो बस गवर्नर बनना था, जो वह बन ही जायेंगे - लेकिन यह तो उनके ख्याल में ही नहीं होगा कि गवर्नर के रूप में कुछ काम भी करना होता है, जो उन्हें भी करना होगा । समस्या दरअसल इसीलिए गंभीर है क्योंकि लोग यह देख/पा रहे हैं कि सुधीर मंगला अपनी जिम्मेदारियों को लेकर जरा भी गंभीर नहीं हैं ।
सुधीर मंगला के नजदीक और विश्वास के लोगों का भी कहना है कि सुधीर मंगला उनसे लगातार बात तो करते रहते हैं लेकिन उनकी बातों से यह नहीं लगता कि वह स्थिति की और अपनी जिम्मेदारी की गंभीरता को पहचान या समझ रहे हैं । समस्या की बात यह है कि सुधीर मंगला के नजदीकी और उनके विश्वास के लोग भी चूँकि यह जानते हैं कि वह करते अपने मन की ही हैं और दूसरे किसी की नहीं सुनते हैं - इसलिए कोई उन्हें उनकी जिम्मेदारी का अहसास कराने का भी प्रयत्न नहीं करता है । वह जानते हैं कि उसका कोई फायदा नहीं होगा - सुधीर मंगला सुनेंगे/मानेंगे हैं नहीं, इसलिए उनसे कुछ कहने का या उन्हें कोई सलाह देने का कोई लाभ नहीं होगा । सलाह देने वाले को ही बेइज्जत होना पड़ेगा - इसलिए सभी चुप हैं और प्रस्तावित डिस्ट्रिक्ट के भविष्य को लेकर चिंता व्यक्त करके ही रह जा रहे हैं ।
जो लोग सुधीर मंगला के नजदीक और खास देखे/समझे जाते हैं उनका उदारतारूपी एक तर्क यह जरूर है कि सुधीर मंगला पर जिम्मेदारी जल्दी ही आ पड़ी है जिसके लिए वह अभी तैयार नहीं थे; और दूसरी बात यह कि अभी भी औपचारिक से यह तय नहीं हुआ है कि सुधीर मंगला को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी संभालनी ही है - इसलिए सुधीर मंगला के सामने भी असमंजस की स्थिति है । लेकिन यह तर्क देने वाले लोगों का ही यह भी कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर बात जितना आगे बढ़ चुकी है और जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उसे देखते हुए सुधीर मंगला को जितना और जिस तरह से सक्रिय होना चाहिए था, वह नहीं हुए हैं और इसका प्रतिकूल असर नए प्रस्तावित डिस्ट्रिक्ट के कामकाज तथा उसकी प्रतिष्ठा पर पड़ेगा । सुधीर मंगला की समस्या यह है कि जिन लोगों को वह अपने नजदीक मानते, समझते और बताते भी हैं उन पर भी वह भरोसा नहीं करते हैं और उनके साथ भी खेल-सा खेलते हैं; जिस कारण दूसरे लोग भी अपने आप को छला हुआ और अपमानित-सा महसूस करते हैं और सुधीर मंगला के नजदीक व खास होने के बावजूद उनसे 'बच' कर रहते हैं । यही कारण है कि सुधीर मंगला के डिस्ट्रिक्ट में किसी के साथ विश्वास के संबंध शायद ही हों ।
डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर जो स्थिति है, उसमें यही विश्वास किया जा रहा है कि सुधीर मंगला को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी निभानी पड़ सकती है । यानि अभी उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में काम करना शुरू कर देना पड़ेगा और जल्दी ही पेम का आयोजन करना होगा । इसके लिए सबसे पहला काम उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के चयन का करना है । लोगों के बीच चर्चा तो है कि सुधीर मंगला के गवर्नर-काल का डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर अमित जैन या रमेश चंद्र में से किसी एक को होना चाहिए - लेकिन इन दोनों से सुधीर मंगला ने इस बारे में कोई बात तक नहीं की है । जो कोई भी इनसे पूछता है उसे इनसे यही जबाव सुनने को मिलता है कि इस बारे में बात करना तो दूर की बात है - इन्हें तो यह भी नहीं पता कि सुधीर मंगला कुछ करने के बारे में सोच भी रहे हैं क्या ? इनका यह जबाव लोगों को सच भी लग रहा है क्योंकि लोगों को 'पता' है कि सुधीर मंगला ने यदि कोई बात की होती तो रमेश चंद्र तो डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद अभी तक झटक भी चुके होते । सुधीर मंगला ने रमेश चंद्र से बात नहीं की है, यह समझ में आता है : सुधीर मंगला के चुनाव में रमेश चंद्र का ढुलमुल-सा रवैया था - वह अक्सर ही रवि भाटिया के साथ होने का आभास देते थे; सुधीर मंगला के साथ 'होने' की बात तो उन्होंने तब करना शुरू किया था जब सुधीर मंगला का जीतना लगभग पक्का हो गया था । अमित जैन तो लेकिन दोनों बार सुधीर मंगला के समर्थन में थे और दोनों बार 'खुल' कर उनके साथ थे, फिर भी सुधीर मंगला अपने गवर्नर-काल की तैयारी को लेकर उन्हें विश्वास में क्यों नहीं ले रहे हैं - यह समझना थोड़ा मुश्किल है । हालाँकि पिछले वर्ष दीवाली के मौके पर सुधीर मंगला ने अपने घनघोर समर्थक जितेंद्र गुप्ता को जिस तरह उपेक्षित किया था, उसका संदर्भ लें तो अमित जैन के साथ किए जा रहे उनके व्यवहार को समझना कोई मुश्किल भी नहीं है ।
प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में आने वाली समस्याओं और चुनौतियों के प्रति उपेक्षा का जो भाव है, उसके लिए एक अकेले सुधीर मंगला को ही दोषी ठहराना उचित नहीं होगा; क्योंकि कोई अन्य भी इस बारे में कुछ सोचता/करता हुआ नहीं दिख रहा है । सुधीर मंगला के बाद जिन लोगों को गवर्नर बनना है, उनमें से भी किसी ने एक नए डिस्ट्रिक्ट के सामने आने वाली चुनौतियों और समस्याओं पर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं समझी है । उनके होने वाले पड़ोसी डिस्ट्रिक्ट - प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार प्रसून चौधरी ने इस मामले में एक उदाहरण प्रस्तुत किया है । उन्होंने एक नए डिस्ट्रिक्ट के सामने आने वाली चुनौतियों और समस्याओं को लेकर एक पॉवर प्वाइंट प्रेजेंटेशन तैयार किया है और उसे अलग अलग लोगों के बीच इस तरह प्रस्तुत किया है जिससे कि एक नए डिस्ट्रिक्ट के 'बनने' और उसे बनाने से जुड़ी स्थितियों और जरूरतों को लेकर लोगों के बीच जागरूकता पैदा हो तथा उनके बीच चर्चा हो । प्रसून चौधरी की इस प्रस्तुति ने नए डिस्ट्रिक्ट के गठन से उत्साहित हुए लोगों को अपनी अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गंभीर होने तथा सक्रिय होने के लिए प्रेरित करने का काम किया है । प्रसून चौधरी की इस प्रस्तुति से प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 के जो लोग परिचित हुए हैं उनका बड़ी निराशा के साथ कहना यह है कि उनके डिस्ट्रिक्ट में बातों और स्थितियों को गंभीरता से लेने/देखने वाला प्रसून चौधरी जैसा कोई क्यों नहीं है ? प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में अपनी निराशा और असमंजसता का ठीकरा हर कोई सुधीर मंगला के सिर पर ही फोड़ने पर आमादा है । सुधीर मंगला को भी समझ में आ रहा होगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जीतने का काम तो तीन-तिकड़म से किया जा सकता है, किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का काम करने के लिए तो काम करना ही होगा । लोगों को इंतजार है कि सुधीर मंगला नई बनी परिस्थितियों के अनुरूप काम करना कब शुरू करेंगे ?

Monday, August 18, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में अरनेजा गिरोह को सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी के बीच बिखरा पा/देख कर शरत जैन के शुभचिंतकों को शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए खतरा महसूस होने लगा है

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा द्धारा सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन करने की दो-टूक घोषणा करने के बावजूद जेके गौड़ ने जिस तरह प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में दिखने की कोशिश की है, उसमें कुछेक लोगों को अरनेजा गिरोह में फूट पड़ने के संकेत नजर आये हैं । दरअसल यह बात तो सभी मानते हैं कि मुकेश अरनेजा जिस दिशा में चलने का इशारा करेंगे, जेके गौड़ उसी दिशा में चलेंगे; इसीलिए रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए जेके गौड़ को मुकेश अरनेजा के खुले ऐलान के खिलाफ जाता देख लोगों का हैरान होना स्वाभाविक ही है । हालाँकि कईयों के लिए इस बात पर विश्वास करना मुश्किल बना हुआ है कि जेके गौड़ - गिरोह की घोषित पक्षधरता के खिलाफ जाने का साहस करेंगे; लेकिन सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के कई एक समर्थकों व शुभचिंतकों को जेके गौड़ का रवैया पहेली भरा लगा है । उनके लिए यह बात सचमुच आश्चर्यभरी है कि मुकेश अरनेजा जब खुलेआम सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे हैं, तब जेके गौड़ और उनके दाएँ-बाएँ रहने वाले लोग प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के काम में क्यों लगे हुए हैं ?
प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों के संदर्भ में चुनावी समीकरण सचमुच उलझे हुए हैं । गाजियाबाद के जो कई प्रमुख लोग मुकेश अरनेजा और उनके गिरोह के खिलाफ हैं वह सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थन में समझे जा रहे हैं - मुकेश अरनेजा द्धारा सतीश सिंघल को अपना उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद भी उनमें सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव देखा/पहचाना जा रहा है । दूसरी तरफ गाजियाबाद, दिल्ली और हरियाणा के मुकेश अरनेजा के कई नजदीकी प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी का झंडा उठाये हुए हैं । इस उलझी हुई स्थिति का कारण कुछ लोग तो यह मानते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को अरनेजा गिरोह ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहा है; और इसीलिए उसके लोग परस्पर विपरीत दिशा में चलते/भागते हुए दिख रहे हैं - लेकिन कई अन्य लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए जो दो उम्मीदवार हैं वह अपने अपने समीकरण ही ऐसे बना रहे हैं जिनमें अरनेजा गिरोह के लिए एकजुट रह पाना मुश्किल है; और इसीलिए गिरोह के लोगों को परस्पर विपरीत दिशा में चलते/भागते हुए देखा जा सकता है । अरनेजा गिरोह के दूसरी और तीसरी पंक्ति के जो लोग हैं, विभाजित प्रस्तावित डिस्ट्रिक्ट में उनके लिए हालात दरअसल बिलकुल बदल गए हैं और बदले हुए हालात में उनके लिए गिरोह के नेताओं के प्रति पहले जैसी प्रतिबद्धता रख पाना संभव नहीं हो पा रहा है ।
जेके गौड़ का ही उदाहरण लें - डिस्ट्रिक्ट 3010 में जेके गौड़ के लिए मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के बताये रास्ते पर चलने के लिए गाजियाबाद के प्रमुख लोगों की उपेक्षा करना और उनके साथ राजनीति 'खेलना' आसान था; किंतु डिस्ट्रिक्ट 3012 में जेके गौड़ के लिए ऐसा कर पाना आसान नहीं होगा । सीओएल के चुनाव में जेके गौड़ ने जिस तरह की स्वामीभक्ति दिखाई थी, वैसी स्वामीभक्ति प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट में दिखा पाना उनके लिए आत्मघाती ही होगा । जेके गौड़ की 'अपनी जरूरतें' दरअसल उन्हें मजबूर कर रही हैं कि वह अरनेजा गिरोह की राजनीति के साथ अंध-भक्त की तरह न दिखें । जेके गौड़ की समस्या यह है कि उनके दाएँ-बाएँ रहने वाले कई लोग अलग-अलग कारणों से प्रसून चौधरी के नजदीक हैं - सिर्फ नजदीक ही नहीं हैं, प्रसून चौधरी के साथ उनकी मजबूत किस्म की बॉन्डिंग हैं; जेके गौड़ भी समझ रहे हैं कि इस बॉन्डिंग को वह डिस्टर्ब करने की कोशिश करेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे - और इसलिए ही वह भी प्रसून चौधरी के पक्ष में 'दिखने' में ही अपनी भलाई देख/पहचान रहे हैं । कुछ लोगों का कहना है कि जेके गौड़ अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में ऐसा कर रहे हैं; और ऐसा करते हुए यह भूल जा रहे हैं कि उनके अपने चुनाव में सतीश सिंघल ने उनकी कितनी मदद की थी । जेके गौड़ के नजदीकियों का तर्क लेकिन यह है कि जहाँ हर कोई अपना अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में लगा हो, वहाँ यदि जेके गौड़ भी ऐसा कर रहे हैं तो क्या गलत कर रहे हैं ? इस संबंध में मुकेश अरनेजा को निशाने पर लेते हुए उनका कहना है कि मुकेश अरनेजा वैसे तो 'अपने' अध्यक्षों के साथ खड़े होने के दावे करते रहते हैं, किंतु अब जब 'उनके' अध्यक्षों को उनकी मदद की जरूरत है तो तरह-तरह की बहानेबाजी करके वह 'अपने' अध्यक्षों के खिलाफ खड़े हैं ।
मुकेश अरनेजा के लिए बदले हुए हालात में समस्या यह तक हो गई है कि सतीश सिंघल भी उनके समर्थन पर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं । सतीश सिंघल को यह सावधानी रखनी पड़ रही है कि मुकेश अरनेजा का खुला समर्थन मिलने के बावजूद वह मुकेश अरनेजा के उम्मीदवार के रूप में न दिखें । सतीश सिंघल ने दरअसल एक बड़ा कमाल यह किया हुआ है कि मुकेश अरनेजा द्धारा उन्हें अपने छाते के नीचे खींचने की कोशिश करने के बावजूद उन्होंने कई ऐसे लोगों का समर्थन प्राप्त करने में लगभग सफलता पाई हुई है जिन्हें घोषित रूप से मुकेश अरनेजा के खिलाफ देख़ा/पहचाना जाता है । उनका यह कमाल बना रहे - इसके लिए उन्हें यह आवश्यक लग रहा है कि वह मुकेश अरनेजा के साथ 'पास और दूर के' संबंध में सामंजस्य बनाये रखे । इस सामंजस्य को बनाये रखना हालाँकि आसान नहीं होगा - क्योंकि इसे बनाये रखने का प्रयास करना सिर्फ सतीश सिंघल के हाथ में ही नहीं है; इसमें उन्हें मुकेश अरनेजा का 'सहयोग' भी चाहिए होगा । मुकेश अरनेजा के जो तेवर रहते हैं उनका संज्ञान लें तो 'इसमें' उनका सहयोग मिलना अनिश्चयभरा दिखता है । दरअसल सतीश सिंघल के लिए यही स्थिति चुनौतीपूर्ण है । सतीश सिंघल के नजदीकियों का भी मानना और कहना है कि मुकेश अरनेजा के साथ 'पास और दूर के' संबंध में सामंजस्य को बनाये रखने में सतीश सिंघल जितना कामयाब रहेंगे - एक उम्मीदवार के रूप में कामयाबी के वह उतना ही नजदीक पहुँचेंगे ।
प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों को समर्थन देने के मामले में अरनेजा गिरोह में जो फूट दिख रही है, उसमें रमेश अग्रवाल की भूमिका तो अप्रासंगिक-सी होती नजर आ रही है । मुकेश अरनेजा और जेके गौड़ की भूमिकाएँ तो लोगों को 'दिख' रही हैं, लेकिन रमेश अग्रवाल को गफलत में देखा जा रहा है । रमेश अग्रवाल के लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि वह सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी में से किसके साथ जाएँ । हाल-फिलहाल में रमेश अग्रवाल की जिन लोगों से बात हुई है, उनमें से जिनसे इन पँक्तियों के लेखक की बात हो सकी है उनका कहना है कि रमेश ने तो सिर्फ शरत जैन की और दीपक गुप्ता की ही बात की; दूसरे वाले चुनाव की या उसके उम्मीदवारों की उन्होंने कोई बात ही नहीं की ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के मामले में अरनेजा गिरोह जिस तरह बिखरा हुआ नजर आ रहा है, उसे देख कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के उम्मीदवार शरत जैन के शुभचिंतकों को शरत जैन के लिए खतरा महसूस होने लगा है । शरत जैन की उम्मीदवारी को ले दे कर अरनेजा गिरोह के समर्थन का ही तो भरोसा है । उनके प्रतिद्धंद्धी दीपक गुप्ता ने अपनी सक्रियता के बल पर अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में जो समर्थन-आधार तैयार किया है, उसका मुकाबला शरत जैन अपनी सक्रियता के भरोसे कर सकने का संकेत देने में अभी तक तो असफल ही रहे हैं; ले दे कर उनका भरोसा यही है कि वह अरनेजा गिरोह की मदद से दीपक गुप्ता की तरफ से मिलने वाली चुनौती का मुकाबला कर सकेंगे । इसीलिए शरत जैन की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को यह डर हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों के मामले में दिख रही अरनेजा गिरोह की फूट यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के उम्मीदवारों तक आ पहुँची तो शरत जैन की उम्मीदवारी का तो सहारा ही छिन्न-भिन्न हो जायेगा ।    

Sunday, August 17, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में लोगों की प्रतिक्रियाओं से लगता है कि शरत जैन और रमेश अग्रवाल के सामने दीपक गुप्ता की कमजोरियों से फायदा उठाने के मौके भी बहुत ज्यादा और आसान नहीं हैं; तथा उनके सामने चुनौती कहीं ज्यादा गंभीर है

नई दिल्ली ।  रमेश अग्रवाल ने अभी हाल ही में अपनी तरफ से फोन करके हालचाल पूछ कर कई ऐसे लोगों को चौंकाया है, जिन्हें 'गवर्नरी के नशे में' रहने के चलते अभी तक वह पहचानने से भी बचते रहे थे । मजे की बात यह है कि ऐसे कई लोगों में वह लोग भी हैं जिन्हें रमेश अग्रवाल के गवर्नर बनने से पहले रमेश अग्रवाल के नजदीकी के रूप में देखा/पहचाना जाता था । गवर्नरी का नशा यूँ तो सभी को हो जाता है - लेकिन रमेश अग्रवाल को कुछ ज्यादा ही हो गया था । गवर्नरी के नशे का ही असर था कि जिन केके भटनागर के आगे-पीछे वह गुरु जी-गुरु जी कहते हुए घूमते थे, उन्हीं केके भटनागर से वह ऐसी बदतमीजी कर गुजरे कि पिटते पिटते बचे । हालाँकि राजेंद्र जैना से बदतमीजी करने के बाद उनके लिए बचना थोड़ा मुश्किल हुआ - महिलाओं के बीच छिप कर किसी तरह उन्होंने अपने आप को राजेंद्र जैना के क्रोध से बचाया । गवर्नरी के नशे में ही रमेश अग्रवाल ने रोटरी क्लब गाजियाबाद मिडटाउन के अध्यक्ष को पेट्स में ले जाने से ऐन मौके पर इंकार कर दिया था, जिसके कारण उमेश चोपड़ा से उन्होंने खूब खरी-खोटी सुनी थी; और गवर्नरी के नशे में ही उन्होंने रोटरी क्लब गाजियाबाद की मैचिंग ग्रांट ही रोक ली थी ।
गवर्नरी के नशे में ही रमेश अग्रवाल ने क्लब्स के पदाधिकारियों पर दबाव बनाये थे कि जीओेवी वह अधिष्ठापन कार्यक्रम में ही करें और उसमें उनके अलावा किसी अन्य 'गवर्नर' को अतिथि के रूप में भी आमंत्रित न करें - जिसके चलते पिछले वर्षों में गवर्नर रहे लोगों को ही नहीं, उनके बाद गवर्नर बनने वाले विनोद बंसल और संजय खन्ना को भी कई जगह अपमानित तक होना पड़ा । रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के कार्यक्रम में तो विनोद बंसल ने खुद को इतना अपमानित महसूस किया कि कार्यक्रम बीच में ही छोड़ कर चले गए थे । गवर्नरी के नशे में रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट की टेनिस प्रतियोगिता में अपने क्लब को बेईमानी से जितवाने की कोशिश की और इस कोशिश में उन्होंने समीर गुप्ता और रमणीक तलवार से अपनी खासी फजीहत करवाई । गवर्नरी के नशे में रमेश अग्रवाल ने अपने कई नजदीकियों को अपने खिलाफ कर लिया । गवर्नरी का उनका नशा सीओएल में मिली पराजय के बाद से कुछ उतरना शुरू हुआ है । नशे का ही असर था कि सीओएल के चुनाव को वह आसानी से जीत लेने का दावा कर रहे थे । घमंड और बड़बोलेपन से भरे दावे की हवा निकली तो उसमें उनका नशा भी उड़ना शुरू हुआ । 
गवर्नरी के नशे में रमेश अग्रवाल द्धारा की गई कारस्तानियाँ शरत जैन के लिए बड़ी मुसीबत बनी हैं । शरत जैन के कई समर्थकों व शुभचिंतकों ने उन्हें शुरू से आगाह किया हुआ है कि रमेश अग्रवाल के भरोसे रहोगे तो कुछ नहीं पाओगे । लोगों ने उनके सामने तर्कपूर्ण उदाहरण भी दिया कि रमेश अग्रवाल अपनी बदनामी के चलते जब अपना खुद का चुनाव नहीं जीत सके तो उन्हें क्या जितवायेंगे ? शरत जैन की समस्या लेकिन दोहरी है - एक तरफ तो वह लोगों को अभी तक यह भरोसा नहीं दिला पाये हैं कि वह रमेश अग्रवाल के 'आदमी' नहीं हैं; और दूसरी तरफ उनके लिए अकेले अपने भरोसे कुछ कर पाना अभी तक संभव नहीं होता 'दिखा' है । रमेश अग्रवाल की (कु)ख्याति कुछ ऐसी है कि लोग यह मान रहे हैं कि रमेश अग्रवाल ने जैसे जेके गौड़ को अपना 'गुलाम' बनाया हुआ है, वैसे ही शरत जैन भी उनके 'गुलाम' बन कर ही रहेंगे; शरत जैन की समस्या यह है कि वह यह भी नहीं कह सकते हैं कि जेके गौड़ भले ही रमेश अग्रवाल के 'गुलाम' बन गए हों, लेकिन वह नहीं बनेंगे ।
शरत जैन ने अपने बल पर अपना अभियान चलाने का प्रयास किया - लेकिन उन्हें कोई खास सफलता मिलती नहीं दिखी है । दरअसल शरत जैन का चूँकि पहले से लोगों के साथ कोई परिचय नहीं है; और लोगों के बीच उनकी पहचान रमेश अग्रवाल के 'आदमी' के रूप में ही है - इसलिए अपनी स्वतंत्र पहचान के साथ लोगों से निकटता बनाने के उनके प्रयासों का कोई सार्थक नतीजा नहीं निकला है । यही कारण बना कि शरत जैन की मदद करने के लिए रमेश अग्रवाल को खुद सक्रिय होने की जरूरत महसूस हुई है । रमेश अग्रवाल ने अब ऐसे लोगों से संपर्क साधना शुरू किया है जो कभी उनके नजदीक हुआ करते थे, लेकिन पिछले बहुत समय से उनका कोई संपर्क नहीं है और संपर्क न होने कारण जिनसे उनका कोई टकराव भी नहीं हुआ है । रमेश अग्रवाल ने अपनी तरफ से तो अक्लमंदी दिखाई, किंतु वह यह भूल गए कि जिन लोगों को वह अपने 'अच्छे' दिनों में भूले हुए थे - वह अब उनके फोन करने और हालचाल पूछने से क्यों उनके साथ आ जायेंगे ? जिन लोगों से रमेश अग्रवाल ने हाल-फिलहाल में संपर्क किया है उन्होंने रमेश अग्रवाल की 'इस' मुहिम को अवसरवादी मुहिम के रूप में ही देखा/पहचाना है ।
रमेश अग्रवाल ने एक और होशियारी की - उन्होंने गाजियाबाद में ऐसे लोगों से भी संपर्क किया है जो उनके भी खिलाफ हैं, लेकिन दीपक गुप्ता के साथ भी नहीं हैं । रमेश अग्रवाल को लगता है कि उनके जिन विरोधियों को दीपक गुप्ता अभी तक भी अपने साथ नहीं जोड़ सके हैं; उन्हें दीपक गुप्ता के खिलाफ कर पाना उनके लिए आसान होगा । ऐसे लोगों को निशाने पर लेते हुए रमेश अग्रवाल ने उन्हें दीपक गुप्ता के खिलाफ भड़काने/उकसाने की चाल चली है । रमेश अग्रवाल ने चाल तो अच्छी चली है लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा शायद नहीं है कि लोगों के बीच उनके खिलाफ किस तरह की और कितनी गहरी नाराजगी है । उनकी करतूतें वास्तव में ऐसी रही हैं कि लोग उन्हें जल्दी से भूलने को तैयार नहीं हैं । ऐसे लोगों में से कुछेक से जिनसे इन पँक्तियों के लेखक की बात हो सकी है, उनका कहना है कि यह सच है कि दीपक गुप्ता के साथ उनके कुछ झंझट हैं, लेकिन वह झंझट इतने बड़े नहीं हैं कि उन्हें हल न किया जा सके; जिस दिन दीपक गुप्ता प्रयास करेंगे, वह झंझट सुलट जायेंगे; इसलिए उन झंझटों के सहारे रमेश अग्रवाल अपनी दाल गलाने की कोशिश न करें । इस तरह की प्रतिक्रियाओं से लगता है कि शरत जैन और रमेश अग्रवाल के सामने दीपक गुप्ता की कमजोरियों से फायदा उठाने के मौके भी बहुत ज्यादा और आसान नहीं हैं; तथा उनके सामने चुनौती कहीं ज्यादा गंभीर है ।   

Thursday, August 14, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को लेकर मचे झगड़े में 'कुछ भी लेना देना नहीं' होने का दावा करने वाले नरेश अग्रवाल से लोगों का पूछना लेकिन यह है कि झगड़े को हल करने/करवाने में दिलचस्पी न लेने के पीछे इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की जुगाड़ में लगे होने के बावजूद उनकी मजबूरी आखिर क्या है ?

नई दिल्ली । लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में चल रहे झगड़े में अचानक से देश भर के लायन नेताओं की दिलचस्पी बढ़ गई है । मजे की बात लेकिन यह है कि इस दिलचस्पी के बावजूद कोई भी यह नहीं जानना चाहता कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में झगड़ा क्या है; हर किसी की कोशिश सिर्फ यह जानने की है कि इस झगड़े में नरेश अग्रवाल की भूमिका क्या है ? इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की राह पर बढ़ रहे नरेश अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि वह जितना ज्यादा लोगों को यह जताने/बताने की कोशिश कर रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के झगड़े से उनका कुछ भी लेना/देना नहीं है, उतना ही उनका नाम उक्त झगड़े में फँसता जा रहा है । नरेश अग्रवाल उक्त झगड़े में अपनी संलग्नता की चर्चा से परेशान तो हैं, लेकिन चूँकि यह परेशानी उन्होंने खुद ही मोल ली है - इसलिए इस परेशानी को लेकर वह किसी अन्य लायन सदस्य की हमदर्दी भी नहीं जुटा पा रहे हैं । नरेश अग्रवाल इस परेशानी में अचानक से नहीं पड़े हैं - डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में के झगड़े के एक पक्ष के मुखिया हर्ष बंसल लगातार नरेश अग्रवाल से मदद मिलने के दावे करते रहे हैं, लेकिन नरेश अग्रवाल ने कभी भी न तो उनके दावों का खंडन ही किया और न ही हर्ष बंसल को इस तरह के दावे करने से रोका ।
नरेश अग्रवाल से मदद मिलने के हर्ष बंसल के दावे पर पहले तो अधिकतर लोग विश्वास नहीं करते थे, लेकिन डिस्ट्रिक्ट डिस्प्यूट रिजोल्यूशन प्रोसीजर मामले में हर्ष बंसल के दावे को लोगों ने जिस तरह सच होते हुए देखा - उससे उन्हें लगा कि तमाम मामलों में हर्ष बंसल भले ही झूठ बोलते हों, किंतु नरेश अग्रवाल से मदद मिलने के उनके दावे में सच्चाई है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट डिस्प्यूट रिजोल्यूशन प्रोसीजर में कॉन्सीलेटर-चेयरपरसन के रूप में जगदीश गुलाटी ने शिकायती पक्ष की तरफ से कॉन्सीलेटर के रूप में दिए गए हर्ष बंसल के नाम को स्वीकार करने से पहले इंकार कर दिया था । इस इंकार पर हर्ष बंसल ने पहले तो जगदीश गुलाटी को जमकर गलियाया और फिर लोगों को बताया कि जगदीश गुलाटी के इंकार करने से क्या होता है, उनकी नरेश अग्रवाल से बात हो चुकी है और नरेश अग्रवाल उन्हें शिकायती पक्ष की तरफ से कॉन्सीलेटर के रूप में उनकी उपस्थिति को मंजूर करवायेंगे । किसी को भी हर्ष बंसल के इस दावे पर भरोसा नहीं हुआ । किसी के लिए भी यह विश्वास करना मुश्किल हुआ कि नियमों का हवाला देकर शिकायती पक्ष की तरफ से कॉन्सीलेटर के रूप में हर्ष बंसल के नाम को स्वीकार करने से इंकार करने वाले जगदीश गुलाटी - हर्ष बंसल की गालियाँ सुनने के बाद उनके नाम को स्वीकार कर लेंगे । लेकिन जब मीटिंग में हर्ष बंसल को शिकायती पक्ष की तरफ से बैठे देखा गया, तो लोगों ने जान लिया कि हर्ष बंसल के साथ नरेश अग्रवाल के कुछ ज्यादा ही गहरे रिश्ते हैं ।
नरेश अग्रवाल के साथ अपने गहरे रिश्ते का परिचय हर्ष बंसल ने विजय शिरोहा के मल्टीपल काउंसिल सेक्रेटरी बनने की संभावना में रोड़ा डाल कर भी दिया था । उल्लेखनीय है कि मल्टीपल काउंसिल के पदों के बँटवारे को लेकर पकने वाली खिचड़ी में एक मौके पर डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के सेक्रेटरी बनने की बात चली थी । तत्कालीन मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन जितेंद्र सिंह चौहान द्धारा विजय शिरोहा की वकालत करने का जिक्र सुना गया था । इस जिक्र से हर्ष बंसल के नेतृत्व वाले विजय शिरोहा विरोधी खेमे के लोगों के तो तोते उड़ गए थे । हर्ष बंसल ने उस समय भी दावा किया था कि वह नरेश अग्रवाल से कहेंगे कि विजय शिरोहा को मल्टीपल काउंसिल में कोई पद नहीं मिलना चाहिए । मल्टीपल काउंसिल के पदों की बंदरबाँट में जितेंद्र सिंह चौहान की चौधराहट चलने की चर्चा तो खूब सुनी गई थी, किंतु जितेंद्र सिंह चौहान के चाहने के बावजूद विजय शिरोहा को मल्टीपल काउंसिल में कोई पद नहीं मिल पाया । हर्ष बंसल ने ही लोगों को बताया कि विजय शिरोहा के सेक्रेटरी बनने की राह में नरेश अग्रवाल ने ही रोड़ा अटकाया और ऐसा उनके कहने पर ही किया ।
लेकिन जो हर्ष बंसल, नरेश अग्रवाल से कोई भी काम करवा लेने का दावा अभी हाल तक करते रहे हैं - और काम करवा कर 'दिखाते' भी रहे हैं; वही हर्ष बंसल अब विक्रम शर्मा की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी को लायंस इंटरनेशनल से हरी झंडी न मिल पाने के लिए नरेश अग्रवाल को कोस रहे हैं । हालाँकि विक्रम शर्मा की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी पर जो संकट छाया, वह अचानक से ही आया और विक्रम शर्मा तथा उनके समर्थकों को सँभलने का वास्तव में मौका तक नहीं मिला; किंतु हर्ष बंसल का रोना है कि नरेश अग्रवाल ने मामले में पर्याप्त दिलचस्पी नहीं ली । हर्ष बंसल के अनुसार, सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में लायंस इंटरनेशनल के इंग्लिश लैंग्वेज डिपार्टमेंट में नाम चढ़वाने का आईडिया नरेश अग्रवाल ने ही दिया था । हर्ष बंसल की शिकायत है कि आईडिया तो नरेश अग्रवाल ने दिया किंतु आईडिया को सफल बनवाने में उन्होंने कोई मदद नहीं की । नरेश अग्रवाल की तरफ से हालाँकि उनसे कहा गया है कि उन्हें इस बात का आभास नहीं था कि इंग्लिश लैंग्वेज डिपार्टमेंट में उक्त काम नहीं हो पायेगा; अन्यथा वह जरूर तैयारी करते । यानि नरेश अग्रवाल के ओवर-कॉन्फीडेंस ने विक्रम शर्मा का काम बिगाड़ दिया और इसीलिए हर्ष बंसल, नरेश अग्रवाल को कोस रहे हैं ।
नरेश अग्रवाल के लिए ऐसे में दोहरी मुसीबत हो गई है - एक तरफ तो उन्हें यह सोचना पड़ रहा है कि वह कैसे विक्रम शर्मा की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर ताजपोशी करवाएँ और दूसरी तरफ वह लोगों को यह विश्वास दिलाने में लगे हैं कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को लेकर मचे झगड़े में उनका कुछ भी लेना देना नहीं है । नरेश अग्रवाल की मुसीबत इससे भी बड़ी यह है कि जिन लोगों को उनके 'कुछ भी नहीं लेने देने' वाले दावे पर विश्वास है भी, उनका कहना/पूछना यह है कि उन्हें उक्त मामले से लेना देना आखिर क्यों नहीं है ? इन लोगों का ही कहना/पूछना है कि नरेश अग्रवाल लायंस आंदोलन के मुखिया होने की जुगाड़ में हैं और अपने ही मल्टीपल के एक डिस्ट्रिक्ट के एक छोटे से झगड़े को सुलटवाने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । ऐसे में उनसे लीडरशिप की क्या उम्मीद की जाये भला ? देश भर के लायन नेताओं की दिलचस्पी दरअसल इसीलिए यह जानने को लेकर पैदा हुई है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में मचे झगड़े में नरेश अग्रवाल की भूमिका आखिर है क्या ? झगड़े में उनकी कोई भूमिका सचमुच में है या नहीं - और अगर नहीं है, तो क्यों नहीं है ? भूमिका न होने के पीछे, मामले को हल करने/करवाने में दिलचस्पी न लेने के पीछे इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की जुगाड़ में लगे नरेश अग्रवाल की मजबूरी आखिर क्या है ?  

Monday, August 11, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में सरोज जोशी की सक्रियता के बीच रवि चौधरी के लिए अरनेजा गिरोह के ठप्पे से मुक्त होकर अपनी उम्मीदवारी के लिए स्वीकार्यता बनाने की चुनौती पैदा हुई

नई दिल्ली । सरोज जोशी ने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने हेतु जो सक्रियता दिखाई है, उसके चलते रवि चौधरी की पिछले दिनों की गई सारी मेहनत पर पानी पड़ता दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का पद पाने के लिए रवि चौधरी ने पिछले दिनों 'दुश्मनों' को दोस्त बनाने का अभियान चलाया हुआ था । रवि चौधरी के शुभचिंतकों ने हवा यह बनाई हुई थी कि उक्त पद के लिए चूँकि और कोई नाम सामने नहीं आ रहा है, इसलिए रवि चौधरी के 'दुश्मनों' के सामने भी उनका दोस्त बनने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है । रवि चौधरी के शुभचिंतकों ने बहुत ही सुनियोजित तरीके से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना को भी अपने लपेटे में ले लिया था और यह दावा करना शुरू कर दिया था कि तीन वर्ष पहले संजय खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़ते हुए रवि चौधरी और उनके समर्थक नेताओं ने संजय खन्ना के खिलाफ जो कारस्तानियाँ की थीं, उन्हें भूल कर संजय खन्ना ने उन्हें माफ़ कर दिया है और रवि चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन कर दिया है । मजे की बात यह रही कि खुद संजय खन्ना ने कभी भी रवि चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करने की बात नहीं कही; किंतु रवि चौधरी के शुभचिंतकों की तरफ से संजय खन्ना का समर्थन मिलने का झूठा दावा लगातार किया जाता रहा ।
रवि चौधरी की तरफ से रवि दयाल के साथ अपने झगड़े को सुलझा लेने का भी दावा बढ़चढ़ कर किया गया । यह दावा करने की जरूरत दरअसल इसलिए भी पड़ी ताकि संजय खन्ना के समर्थन के दावे को विश्वसनीय बनाया जा सके । रवि दयाल के संजय खन्ना के साथ जैसे नजदीकी संबंध हैं उसके चलते रवि दयाल के साथ झगड़े को सुलटाये बिना संजय खन्ना का समर्थन मिलने का दावा उन लोगों को अविश्वसनीय लगता जिन्हें यह पता है कि किस तरह रवि चौधरी द्धारा खड़ी की गई अपमानजनक परिस्थितियों के चलते रवि दयाल को अपने कुछेक साथियों के साथ रोटरी क्लब दिल्ली वैस्ट छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था । जो लोग भी उस एपीसोड को जानते हैं, उनके लिए यह स्वीकार करना मुश्किल ही होगा कि रवि दयाल अपनी उस फजीहत और अपमान को भूल सकेंगे । रवि दयाल और संजय खन्ना चूँकि प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 के एक बड़े खेमे के सदस्य के रूप में देखे जाते हैं इसलिए रवि चौधरी को इन दोनों के साथ अपने लफड़ों/झगड़ों को सुलझा लेना जरूरी लगा । रवि चौधरी ने इसकी कोशिश भी की - समस्या लेकिन यह हुई कि अपनी कोशिश को उन्होंने कामयाब हुआ भी खुद ही मान लिया और अपनी कामयाबी का ढिंढोरा पीटना भी शुरू कर दिया ।
रवि चौधरी के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोगों का भी मानना और कहना है कि रवि चौधरी अपने प्रयासों में कोई कमी नहीं छोड़ते, लेकिन अपने प्रयासों में पता नहीं क्यों वह तिकड़मों और साजिशों का तड़का लगाते रहते हैं, जिस कारण उनका बनता-बनता काम बिगड़ जाता है । दोस्तों का चुनाव करने में वह ऐसी लापरवाही करते हैं कि तगड़ा नुकसान उठाते हैं । रोटरी में बिजनेस करने लिए उन्होंने असित मित्तल को चुना, जो आजकल तिहाड़ जेल में हैं । उनके साथ के बिजनेस संबंध का सहारा लेकर रवि चौधरी ने रोटरी की राजनीति में लंबी छलांग लगाने की कोशिश की - लेकिन उन्होंने बिजनेस में भी घाटा खाया और राजनीति में भी औधें गिरे । तीन वर्ष पहले संजय खन्ना से चुनाव जीतने के लिए रवि चौधरी ने जिस अरनेजा गिरोह की मदद ली थी, उस अरनेजा गिरोह की हरकतें ही वास्तव में उनकी पराजय का कारण बनीं थीं । इस बार रवि चौधरी ने दीपक तलवार का दामन पकड़ा - जिनका तौर-तरीका भी अरनेजा गिरोह के तौर-तरीकों से मिलता है और जिनका खुद का पहला चुनाव खासे फसाद का शिकार हुआ था । अशोक घोष के गवर्नर-काल में हुए वीरेंद्र उर्फ़ बॉबी जैन के मुकाबले में मिली दीपक तलवार की जीत को बेईमानी से मिली जीत के रूप में आरोपित किया गया था; और रोटरी इंटरनेशनल ने उनकी जीत के फैसले को अमान्य घोषित करते हुए दोबारा चुनाव कराने का आदेश दिया था । दोबारा हुए चुनाव में दीपक तलवार को हार का सामना करना पड़ा था । उन्हीं दीपक तलवार के हाथ में रवि चौधरी ने इस बार अपनी उम्मीदवारी की कमान सौंपी हुई है । लोगों का मानना और कहना है कि शायद यही कारण है कि पिछले दिनों रवि चौधरी की तरफ से किए गए दावों को किसी ने भी विश्वसनीय नहीं माना है । 
संजय खन्ना और रवि दयाल को 'मना' लेने के झूठे दावों के साथ-साथ रवि चौधरी के शुभचिंतकों ने सरोज जोशी की उम्मीदवारी के प्रति भी लोगों को बरगलाने की कोशिश की, और बीमारी के कारण हुई उनकी अनुपस्थिति का फायदा उठाने का प्रयास किया । उल्लेखनीय है कि सरोज जोशी ने प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को घोषित किया हुआ था; और इसी नाते से उन्होंने पेम थर्ड के आयोजन में अपने क्लब को हिस्सेदार बनवाया था । पिछले दिनों चूँकि बीमार होने के कारण सरोज जोशी के लिए कहीं आना-जाना संभव नहीं हो पाया, तो रवि चौधरी के शुभचिंतकों ने कहना/उड़ाना शुरू कर दिया कि सरोज जोशी ने तो उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का इरादा त्याग दिया है । रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों ने लोगों को विश्वास दिलाने की कोशिश की कि प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए एक अकेले रवि चौधरी ही उम्मीदवार हैं । स्वस्थ होने के बाद सरोज जोशी जब अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु सक्रिय हुईं तब रवि चौधरी के शुभचिंतकों द्धारा फैलाये जा रहे झूठ की पोल खुली ।
सरोज जोशी की उम्मीदवारी रवि चौधरी के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से खासी चुनौतीपूर्ण है । किसी भी चुनावी राजनीति की तरह रोटरी की चुनावी राजनीति में भी प्रतीकों का बड़ा महत्व होता है - इसी संदर्भ में रवि चौधरी के लिए समस्या की बात यह है कि उन्हें लोगों के बीच अरनेजा गिरोह के उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है, जबकि सरोज जोशी को अरनेजा गिरोह के हथकंडों का निशाना बने उम्मीदवार के रूप में पहचाना जाता है । रमेश अग्रवाल के गवर्नर-काल में सरोज जोशी की उम्मीदवारी को निरस्त करने के लिए रमेश अग्रवाल और अरनेजा गिरोह के दूसरे सदस्यों ने हर तरह का हथकंडा अपनाया था । उस समय वह सरोज जोशी की उम्मीदवारी को निरस्त करवाने में तो कामयाब नहीं हुए थे, लेकिन उनकी उम्मीदवारी के प्रति लोगों को सशंकित करने में वह जरूर सफल रहे थे । उस प्रकरण के चलते सरोज जोशी के प्रति अरनेजा गिरोह के विरोधी लोगों की सहानुभूति पैदा हुई । इस सहानुभूति को सरोज जोशी किस तरह अपने समर्थन में बदल सकेंगी - यह तो उनकी सक्रियता से तय होगा; अभी लेकिन रवि चौधरी के लिए चुनौती की बात यह है कि प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में अरनेजा गिरोह के विरोधी लोगों का जो वर्चस्व है - उसमें वह अपनी उम्मीदवारी के लिए स्वीकार्यता कैसे बनाये ?

Friday, August 8, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में सीओएल का चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवारों द्धारा की जाने वाली खरीद-फ़रोख्त को रोकने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी द्धारा स्टिंग ऑपरेशन की मदद लेने की तैयारी की खबर से उम्मीदवारों के बीच हड़कंप मचा

मेरठ । सीओएल के संभावित उम्मीदवारों के होश यह सुन/जान कर उड़े हुए हैं कि चुनाव जीतने के लिए मतदाताओं को लुभाने/पटाने वाले उनके हथकंडों को पकड़ने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी ने स्टिंग ऑपरेशन का जाल बिछाया है । उम्मीदवारों को पता चला है कि संजीव रस्तोगी ने विभिन्न क्लब्स के कुछेक लोगों को गुप्त तरीके से ऑडियो/वीडियो रिकॉर्ड कर लेने वाले यन्त्र - जैसे पेन और शर्ट के बटन उपलब्ध करवाने की तैयारी है, जिनके जरिये वह वोट जुटाने के लिए उम्मीदवारों द्धारा अपनाये जाने वाले हथकंडों के सुबूत इकठ्ठा करेंगे । उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में हुए सीओएल के चुनावी नतीजे को रोटरी इंटरनेशनल द्धारा अमान्य घोषित कर दिए जाने के चलते सीओएल का चुनाव अब नए सिरे से होना है । पिछले रोटरी वर्ष में हुए सीओएल के चुनाव में योगेश मोहन गुप्ता की जीत हुई थी । चुनाव में पराजित हुए ललित मोहन गुप्ता ने योगेश मोहन गुप्ता की जीत को ओछे और बेईमानीपूर्ण हथकंडों से हासिल की गई जीत बताते हुए रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत दर्ज करवाई । शिकायत के साथ जो सुबूत दिए गए वह इतने पुख्ता थे कि रोटरी इंटरनेशनल के पास चुनावी नतीजे को अमान्य घोषित करने के अलावा कोई चारा ही नहीं था । योगेश मोहन गुप्ता की चुनावी जीत वाले फैसले को अमान्य घोषित करने के साथ ही रोटरी इंटरनेशनल ने सीओएल के लिए नए सिरे से चुनाव करवाने का आदेश भी पारित किया; इस आदेश के तहत संजीव रस्तोगी को सीओएल का चुनाव करवाना है ।
रोटरी इंटरनेशनल ने पिछले वर्ष हुए सीओएल के चुनाव में हुई धाँधली को लेकर जो कठोर रुख अपनाया, उसे देखते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी के सामने अब दोबारा होने वाले चुनाव को ठीक से करवाने की गंभीर चुनौती है । संजीव रस्तोगी ने हालाँकि कई बार यह तो कहा/दोहराया है कि वह उम्मीदवारों को वोटों की खरीद-फ़रोख्त बिलकुल भी नहीं करने देंगे और किसी भी उम्मीदवार के खिलाफ वोटों की खरीद-फ़रोख्त करने संबंधी शिकायत यदि मिलेगी तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे; लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि वोटों की खरीद-फ़रोख्त होने के तथ्य/सुबूत वह कैसे जुटायेंगे - कार्रवाई तो सुबूत मिलने पर ही हो सकेगी न, केवल आरोप लगाने भर से तो कार्रवाई हो नहीं सकेगी । इसी कारण से लोगों के सामने यह सवाल उठा कि संजीव रस्तोगी चुनाव को ईमानदारी से कराने की जो बात कर रहे हैं, उसे अमली जामा वह कैसे पहनायेंगे ? संजीव रस्तोगी ने पिछले दिनों योगेश मोहन गुप्ता की हरकतों पर कार्रवाई करते हुए जिस तरह से उन्हें दिए गए महत्वपूर्ण पद से हटाया, उससे उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह संदेश तो दिया ही है कि वह कठोर फैसले लेने से हिचकेंगे नहीं । योगेश मोहन गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई करने पर संजीव रस्तोगी को कई लोगों ने समझाया था कि योगेश मोहन गुप्ता बहुत छोटी सोच का आदमी है और रोटरी के फैसलों को वह निजी रूप से ले लेता है और व्यक्तिगत दुश्मनी के रूप में देखने लगता है; संजीव रस्तोगी ने लेकिन साफ कह दिया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रोटरी के और डिस्ट्रिक्ट के हित में उन्हें यदि योगेश मोहन गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई करना जरूरी लगेगा, तो फिर वह यह नहीं सोचेंगे कि योगेश मोहन गुप्ता कैसे रिएक्ट करेंगे ?
संजीव रस्तोगी के इन्हीं तेवरों को देखते हुए लोगों ने यह तो समझ/मान लिया कि चुनाव जीतने  के लिए वोटों की खरीद-फ़रोख्त का जैसा नंगा-नाच राकेश सिंघल के गवर्नर-काल में पिछले वर्ष हुआ, वैसा इस वर्ष नहीं हो पायेगा । लेकिन यह सवाल फिर भी अनुत्तरित ही बना रहा कि संजीव रस्तोगी वोटों की खरीद-फ़रोख्त को रोकेंगे कैसे ? इसी बीच यह चर्चा फैली कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी ने वोटों की खरीद-फ़रोख्त को रोकने के लिए स्टिंग ऑपरेशन का सहारा लेने का फैसला किया है । यहाँ तक दावा किया गया है कि स्टिंग ऑपरेशन के लिए संजीव रस्तोगी ने गुप्त रूप से बातों को और तस्वीरों को रिकॉर्ड करने वाले यन्त्र खरीद भी लिए हैं और वह डिस्ट्रिक्ट में अपने उन विश्वासपात्र लोगों की लिस्ट बना रहे हैं जिन्हें वह यह यन्त्र सौपेंगे और वोटों की खरीद-फ़रोख्त करने वाले उम्मीदवारों के खिलाफ सुबूत जुटायेंगे । इस बारे में जिन कुछेक लोगों ने संजीव रस्तोगी से पूछा, उन्हें संजीव रस्तोगी से कोई सीधा जबाव नहीं मिला । इससे उक्त चर्चा को और बल मिला । लोगों ने यही समझा/माना कि संजीव रस्तोगी इस बारे में कुछ कहेंगे थोड़े ही - यदि कहेंगे तो फिर स्टिंग ऑपरेशन कैसा ?
संजीव रस्तोगी के स्टिंग ऑपरेशन वाले काम को योगेश मोहन गुप्ता की गर्दन दबोचने के उनके प्रयास के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । पिछले दिनों योगेश मोहन गुप्ता की राकेश रस्तोगी के साथ जिस स्तर की तू-तू मैं-मैं हुई, और उसके बाद जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी ने योगेश मोहन गुप्ता को दिया गया पद उनसे छीन लिया - उससे यह तो दिखने लगा है कि इस वर्ष योगेश मोहन गुप्ता द्धारा की जाने वाली कोई भी हरकत उन्हें मुश्किल में डाल सकती है । रोटरी इंटरनेशनल ने खरीद-फ़रोख्त के आरोपों के चलते जिस तरह से योगेश मोहन गुप्ता की जीत के फैसले को अमान्य घोषित किया है, उससे डिस्ट्रिक्ट में योगेश मोहन गुप्ता के खिलाफ माहौल भी बना है । रोटरी इंटरनेशनल के इस फैसले से रोटरी में डिस्ट्रिक्ट की बहुत बदनामी हुई है, और इस बदनामी के लिए डिस्ट्रिक्ट के लोग योगेश मोहन गुप्ता को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । लोगों का मानना/कहना है कि चुनाव जीतने के लिए अनैतिक हथकंडे यूँ तो सभी उम्मीदवार अपनाते हैं, लेकिन योगेश मोहन गुप्ता ने तो इस मामले में सारी हदें पार कर दी हैं, इसलिए उन्हें सबक सिखाया जाना जरूरी है । समझा जाता है कि डिस्ट्रिक्ट में योगेश मोहन गुप्ता के खिलाफ बने इस माहौल का फायदा उठाने पर राकेश रस्तोगी और संजीव रस्तोगी का पूरा ध्यान है ।
सीओएल के दोबारा होने जा रहे चुनाव को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी कैसे करवायेंगे और ईमानदारी से करवाने के लिए कैसी व्यवस्था करेंगे/करवायेंगे, यह तो बाद में पता चलेगा; किंतु उनके द्धारा स्टिंग ऑपरेशन करवाने वाली चर्चा ने संभावित उम्मीदवारों को जरूर सांसत में डाला हुआ है । यह देखना दिलचस्प होगा कि संजीव रस्तोगी की स्टिंग ऑपरेशन वाली चाल से बचने के लिए उम्मीदवार क्या चाल चलते हैं ?

Thursday, August 7, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने की आड़ में राजीव गुप्ता ने जिस तरह से अगले वर्षों में संभावित अपनी उम्मीदवारी के लिए जमीन तैयार का काम किया, उससे रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के दो खेमों में बँटने का खतरा पैदा हुआ है

नई दिल्ली । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के बहाने राजीव गुप्ता जिस तरह अपने आप को लोगों के बीच पहचनवाने का काम कर रहे हैं, उससे उनके क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार में खासा बबाल पैदा हो गया है । क्लब के कई लोगों का कहना है कि दूसरे क्लब के लोगों के सामने राजीव गुप्ता जिस तरह की बातें करते हैं और अपने आप को जिस तरह से 'पोज' करते हैं उससे वह यह जताने/दिखाने का प्रयास करते हैं कि जैसे क्लब वही चला रहे हैं और क्लब में जो कुछ भी होता है वह उनसे पूछ कर और उनके 'सहारे' से ही होता है - इससे क्लब की तो बदनामी होती ही है, साथ ही क्लब के दूसरे जो लोग सक्रिय रहते हैं उनकी हेठी भी होती है । क्लब में संजीव सिंघल, विनीत विद्यार्थी, अनूप मित्तल आदि भी हैं जिन्होंने अपनी सक्रियता और अपने कामकाजी रवैये से डिस्ट्रिक्ट में अपनी पहचान बनाई है । पिछले रोटरी वर्ष में, विनोद बंसल के गवर्नर-काल में प्रकाशित डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में अनूप मित्तल का नाम पाँच बार छपा है । अनूप मित्तल के अलावा उक्त डायरेक्टरी में पाँच और उससे ज्यादा बार छपने वाले नाम राजेश बत्रा, आशीष घोष, संजय खन्ना, जेके गौड़, नवदीप चावला और पप्पूजीत सिंह सरना के हैं । इनमें पहले चार नाम तो गवर्नर कैटेगरी वाले हैं - यानि विनोद बंसल के गवर्नर-काल में जिन तीन लोगों को सबसे ज्यादा जिम्मेदारियाँ मिलीं उनमें एक नाम रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के अनूप मित्तल का था । विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरर जैसे महत्वपूर्ण और जिम्मेदारी वाले पद के लिए रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के संजीव सिंघल को उपयुक्त पाया । क्लब के लोगों का कहना है कि इन तथ्यों से जाहिर है कि क्लब के किन लोगों की डिस्ट्रिक्ट में ऊँची पहचान और हैसियत है; अब ऐसे में राजीव गुप्ता जब अपने आप को क्लब का सर्वेसर्वा दिखाने/जताने का प्रयास करते हैं तो डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों को क्लब में उठापटक होने का अंदेशा होता है और इससे क्लब की छवि और पहचान पर प्रतिकूल असर पड़ता है ।
राजीव गुप्ता की अति-सक्रियता के पीछे उनके क्लब के लोग उनकी महत्वाकांक्षा को देखते/पहचानते हैं । क्लब के लोगों का कहना है कि राजीव गुप्ता अगले वर्षों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार होना चाहते हैं और इसके लिए दूसरे क्लब्स के लोगों की निगाह में चढ़ना चाहते हैं । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थन में वह बढ़चढ़कर जो सक्रियता दिखा रहे हैं, उसके पीछे उनका उद्देश्य दरअसल अगले वर्षों में प्रस्तुत होने वाली अपनी उम्मीदवारी के लिए जमीन तैयार करना है । वास्तव में, उनके इसी 'उद्देश्य' ने क्लब में बबाल खड़ा कर दिया है । क्लब में दरअसल अनूप मित्तल को भी संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है; इसीलिए समझा गया है कि राजीव गुप्ता अपनी सक्रियता के सहारे अनूप मित्तल को पीछे धकेल कर आगे आने का जुगाड़ लगा रहे हैं । क्लब के कुछेक लोग हालाँकि इसमें कोई बुराई भी नहीं समझते हैं । बातचीत में उनकी 'टोन' से ऐसा नहीं लगता कि वह कोई राजीव गुप्ता के समर्थक हैं, लेकिन फिर भी वह राजीव गुप्ता की आगे आने की कोशिश को सही ठहराते हुए तर्क देते हैं कि अनूप मित्तल उम्मीदवार होने की बात तो करते हैं, लेकिन उम्मीदवार बनते हुए 'दिखते' नहीं हैं, ऐसे में राजीव गुप्ता यदि आगे आने का प्रयास कर रहे हैं तो उसमें क्या गलत है ? इनका कहना है कि 'आ रहे हैं' 'आ रहे हैं' कहते हुए अनूप मित्तल को दूसरों का रास्ता रोके रखने का अधिकार तो नहीं मिल जाता है न ?
राजीव गुप्ता के तरीके को गलत मानने वाले क्लब के दूसरे कुछेक सदस्यों का कहना लेकिन यह है कि राजीव गुप्ता को जब पता है कि अनूप मित्तल पहले से ही उम्मीदवारी की लाइन में हैं और अपने तरीके से उसके लिए काम भी कर रहे हैं और बदले में डिस्ट्रिक्ट लीडरशिप के बीच पहचान और स्वीकार्यता भी प्राप्त कर रहे हैं, तब उन्हें अनूप मित्तल के साथ बात करके अपना 'कार्यक्रम' तय करना चाहिए । वह यदि ऐसा नहीं करते हैं तो यही माना जायेगा कि वह चालबाजी खेल रहे हैं और इससे क्लब के लोगों के बीच खटराग पैदा होगा । वास्तव में, यही हुआ भी है । क्लब के वरिष्ठ और अनुभवी लोगों का मानना और कहना है कि राजीव गुप्ता ने जो कुछ भी किया है, या करने का प्रयास किया है उसमें गलत कुछ भी नहीं है - बस उनका अंदाज कुछ ऐसा रहा जिससे बात का बतंगड़ बन गया और उँगलियाँ उन्हीं की तरफ उठ गईं ।
राजीव गुप्ता ने जो किया और या जो 'दिखाने' का प्रयास किया - उसे उनके उतावलेपन का सुबूत मानने वाले लोगों का कहना है कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के प्रमोशन की आड़ में अपना प्रमोशन करने की तरकीब जुटा कर राजीव गुप्ता ने मौके को पहचानने में तथा उसका इस्तेमाल करने में तो कोई गलती नहीं की, लेकिन उन्होंने जो तरीका अपनाया उससे उन्होंने अपने लिए भी और सतीश सिंघल के लिए भी मुश्किल खड़ी कर ली हैं । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के प्रमुख लोगों के रोटरी क्लब नोएडा के प्रमुख लोगों के साथ नजदीकी और व्यावहारिक दोस्ती के संबंध रहे हैं और इस नाते से सतीश सिंघल को रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार का समर्थन मिलना लगभग तय माना जा रहा है । राजीव गुप्ता लेकिन जिस तरह से सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के झंडावरदार बन कर अपना काम बनाने की जुगत में लगे हैं उससे रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार दो खेमों में बँटने की कगार पर बढ़ता दिखने लगा है - और इसके चलते सतीश सिंघल के इस मजबूत किले में प्रसून चौधरी के लिए सुरंग बनने की आहट सुनाई देने लगी है । राजीव गुप्ता को नजदीक से जानने वाले लोगों को हैरानी इस बात की है कि राजीव गुप्ता तो बहुत सुलझे हुए और व्यवहारकुशल व्यक्ति हैं - तब फिर उन्होंने ऐसी चूक आखिर क्यों कर दी जिसके चलते उन्हें अपने नजदीकियों और समर्थकों की आलोचना तक का शिकार होना पड़ रहा है ।

Tuesday, August 5, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में '24 घंटे वाले' सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन कर विक्रम शर्मा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की राह पर बढ़ रहे नरेश अग्रवाल की खासी फजीहत कराई है

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा ने '24 घंटे वाले' सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का लायंस इंटरनेशनल में अनोखा रिकॉर्ड बनाया है । उल्लेखनीय है कि तीन अगस्त को डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री की कैबिनेट मीटिंग में उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुना गया था, लेकिन चार अगस्त को लायंस इंटरनेशनल ने इस चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया । इस प्रकरण ने एक तरफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता की और दूसरी तरफ इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की राह पर बढ़ रहे नरेश अग्रवाल की खासी किरकिरी करवाई है । तीन अगस्त को दिल्ली में आयोजित हुई कैबिनेट मीटिंग में लायनिज्म के नैतिकता और व्यावहारिकता के उच्च आदर्शों की धज्जियाँ उड़ाते हुए विक्रम शर्मा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनने का जो 'नाटक' किया गया उसे लायंस इंटरनेशनल ने स्वीकार करने से इंकार करते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता को लिखित में हिदायत दी है कि उनके अगले आदेश तक सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की खाली कुर्सी पर किसी को बैठाने की कवायद वह न करें । लायंस इंटरनेशनल द्धारा दिए गए इस आदेश के कारण विक्रम शर्मा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने की सारी कसरत बेकार हो गई है । इस कवायद के रचयिता और सूत्रधार हर्ष बंसल तो हालाँकि पहले से ही बदनाम हैं - लेकिन इस कवायद को संभव होने देने के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट में और डिस्ट्रिक्ट के बाहर के लायन नेताओं के बीच अपने मुँह पर जो कालिख पुतवाई है, वह बड़ी अनोखी घटना है । नरेश गुप्ता और हर्ष बंसल की जोड़ी लायंस इंटरनेशनल के इस फैसले के लिए नरेश अग्रवाल को कोस रहे हैं ।
नरेश अग्रवाल की शह पर हर्ष बंसल और नरेश गुप्ता की जोड़ी ने विक्रम शर्मा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की खाली कुर्सी को दिलवाने की व्यवस्था तो ठीक की थी, किंतु लायंस इंटरनेशनल ने उनकी व्यवस्था का कबाड़ा कर दिया है । इस खेल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता की जैसी फजीहत हुई है, वह अपने आप में खासा मजेदार किस्सा है । नरेश गुप्ता के अलावा लायन राजनीति के इतिहास में ऐसा उदाहरण दूसरा नहीं मिलेगा जिसमें एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने अपनी कैबिनेट का गठन यह ध्यान में रखकर नहीं किया कि कौन कौन उसके गवर्नर-काल को अच्छे से संचालित करने में मददगार होगा, बल्कि इस आधार पर किया कि कौन कौन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की खाली कुर्सी पर उनकी मर्जी के व्यक्ति को बैठाने में कठपुतली की तरह उनके मददगार साबित होंगे । अब लायनिज्म में राजनीति होती है तो वह होगी ही और नरेश गुप्ता को भी यह हक़ है कि वह अपनी राजनीति करें - और खूब करें । उनसे यह उम्मीद करना बेमानी होगा कि वह राजनीति न करें - लेकिन उनसे यह उम्मीद भी की ही जायेगी कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी का भी निर्वाह करें । नरेश गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जिस तरह डिस्ट्रिक्ट के धंधेबाज नेताओं के सामने घुटने टेक दिए हैं और सिर्फ एक कठपुतली बन कर रह गए हैं - उससे लायनिज्म को, डिस्ट्रिक्ट को और अपने आप को उन्होंने कलंकित ही किया है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की खाली जगह का मामला चूँकि अदालत में चला गया है, इसलिए नरेश गुप्ता को उस जगह के लिए चुनाव करवाना ही नहीं चाहिए था । नरेश गुप्ता ने फिर भी चुनाव करवा दिया, तब लायंस इंटरनेशनल को उनके कान उमेठने के लिए आगे आना पड़ा ।
कैबिनेट के लिए सदस्यों का चुनाव करना यूँ तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का विशेषाधिकार है और इसके तहत वह जिसे चाहे उसे कैबिनेट में ले सकता है; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आमतौर पर ऐसे लोगों को ही अपनी कैबिनेट के लिए चुनता है जो उसकी राजनीति को सहारा देते हैं - इस 'स्थिति' को व्यापक स्वीकार्यता मिली हुई है; लेकिन नरेश गुप्ता ने तो सारी हदें ही पार कर दीं । नरेश गुप्ता ने कैबिनेट में ऐसे ऐसे लोगों को लिया जिन्हें डिस्ट्रिक्ट में या कोई जानता तक नहीं और या जो किसी की पत्नी, किसी के बेटे के रूप में जाने/पहचाने जाते हैं । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हर्ष बंसल की पत्नी और बेटे को कैबिनेट में लिया गया; एक और पूर्व गवर्नर पुरुषोत्तम गोयल के क्लब में सदस्य तो कुल पाँच हैं लेकिन इन पाँच में एक उनकी पत्नी को भी कैबिनेट में लिया गया । एक कठपुतली कैबिनेट का हिस्सा बनने में ओंकार सिंह रेनु ने अपनी जैसी जो फजीहत कराई है, वह भी एक दिलचस्प उदाहरण है । लायंस क्लब दिल्ली राजौरी गॉर्डन के सदस्य ओंकार सिंह रेनु की पहचान डिस्ट्रिक्ट के एक अच्छे और सक्रिय लायन के रूप में है; पिछले लायन वर्ष में वह रीजन चेयरपरसन थे - इस वर्ष उन्हें जोन चेयरपरसन बना दिया गया । डिस्ट्रिक्ट में इससे पहले के वर्षों में रीजन चेयरपरसन रहे लायन सदस्य की ऐसी बेइज्जती कभी नहीं हुई । अब यह सिर्फ इसलिए हुई ताकि कैबिनेट में कठपुतलियों की संख्या को पूरा किया जा सके । कई लोगों को ओंकार सिंह रेनु के इस रवैये पर हैरानी हुई है । उनका कहना है कि उन्हें विश्वास नहीं था कि ओंकार सिंह रेनु इस हद तक गिर सकते हैं और अपनी ऐसी बेइज्जती कराने के लिए तैयार हो सकते हैं ?
पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजिंदर बंसल ने इस मामले को जिस नजरिये से देखा है उसने तो नरेश गुप्ता के लिए मुँह छिपाने तक के लिए जगह नहीं छोड़ी है । राजिंदर बंसल ने सवाल उठाया है कि खुद नरेश गुप्ता जिस 'तरह' से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की खाली कुर्सी पर आये थे, उसी 'तरह' से उन्होंने अब सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की खाली कुर्सी को भरने का काम क्यों नहीं किया ? राजिंदर बंसल ने जो तर्क दिया है उसके संदर्भ में याद करना प्रासंगिक होगा कि दो वर्ष पहले जब सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की खाली कुर्सी को भरने का मौका आया था तब अलग-अलग खेमों के पूर्व गवर्नर्स ने मिल बैठ कर नरेश गुप्ता के नाम पर सहमति बना ली थी । हालाँकि राजनीति तब भी बहुत हुई थी और ओंकार सिंह रेनु को उक्त खाली कुर्सी पर बैठाने के लिए पर्दे के आगे-पीछे कई कुटिल चालें चली गईं थीं; लेकिन अंततः लायनिज्म की मूल भावना तथा उसके उच्च नैतिक आदर्शों व व्यावहारिकताओं को खंडित नहीं होने दिया गया था । राजिंदर बंसल का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते नरेश गुप्ता की यह जिम्मेदारी थी कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की खाली जगह को भरने के लिए वह ऐसा कोई काम नहीं करते जिससे डिस्ट्रिक्ट की, लायनिज्म की और खुद उनकी बदनामी हो । अन्य कई लोगों को भी लगता है कि नरेश गुप्ता और हर्ष बंसल की जोड़ी जो भी कुछ करना चाहती, उसे कर ही लेती - पूर्व गवर्नर्स समूह में भी उन्हें बहुमत प्राप्त है और कैबिनेट में भी वह अपना बहुमत बना सकते थे; और उन्हें वह छिछोरपन करने की जरूरत ही नहीं थी जो उन्होंने किया ।
नरेश गुप्ता और हर्ष बंसल की जोड़ी ने डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में जो छिछोरपन किया, उसने नरेश अग्रवाल की और फजीहत कराई है । मल्टीपल 321 के तथा दूसरे मल्टीपल्स के लोगों को कहने का मौका मिला है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की राह पर बढ़ रहे नरेश अग्रवाल कैसे लीडर हैं, जो अपने मल्टीपल के एक डिस्ट्रिक्ट में एक छोटे से झगड़े को ख़त्म नहीं करवा पा रहे हैं जिसके चलते लायनिज्म का एक मामूली-सा विवाद कोर्ट-कचहरी तक जा पहुँचा है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के झगड़े ने नरेश अग्रवाल की लीडरशिप पर ही सवाल खड़े करने के हालात बना दिए हैं । कुछेक लोगों को लगता है कि इस झगड़े की जड़ में नरेश अग्रवाल ही हैं; जिन्होंने अपने प्रयत्नों से झगड़ा तो इसलिए पड़वाया ताकि दोनों खेमों के लोग उनके आगे-पीछे रहे, लेकिन अब यह झगड़ा उनकी पकड़ से बाहर जा पहुँचा है और उनकी भी किरकिरी करवा रहा है ।

Saturday, August 2, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को मनीष अग्रवाल और राजीव गुप्ता की मदद ने, तथा प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी को रमणीक तलवार और विकास चोपड़ा की तरफदारी ने; दोनों के बीच होने वाले चुनावी मुकाबले को दिलचस्प और काँटे का बनाया

गाजियाबाद । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थन में मनीष अग्रवाल और राजीव गुप्ता ने तथा प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में रमणीक तलवार और विकास चोपड़ा ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर खासी गर्मी पैदा हो गई है । मजे की बात यह है कि मनीष अग्रवाल और रमणीक तलवार डिस्ट्रिक्ट में 'ग्रुप 26' के नाम से जाने/पहचाने जाने वाले एक प्रमुख ग्रुप के सदस्य हैं, जिसके सदस्यों ने आपस में बड़ी कसमें/बसमें खाई हुई हैं कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चक्कर में ग्रुप के सदस्य अपनी एकता पर आँच नहीं आने देंगे । लेकिन इन दोनों के अलग-अलग उम्मीदवारों के साथ खुल कर सक्रिय होने से उक्त ग्रुप की एकता खतरे में पड़ गई है । मनीष अग्रवाल और रमणीक तलवार की मजबूरी भी है - जब इनके अपने अपने क्लब से उम्मीदवार आ रहे हैं, तो इन्हें उनके समर्थन में सक्रिय होना भी है । इस प्रसंग की एक और दिलचस्प बात यह है कि सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी घोषित होने से पहले संभावित उम्मीदवारों की जो सूची लोगों के बीच चर्चा में थी उसमें मनीष अग्रवाल और रमणीक तलवार के नाम थे; लेकिन उम्मीदवारी जब चर्चा की चुगलखोरियों से निकल कर जमीन पर उतरी तो सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी के नाम सामने आये ।
सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को मनीष अग्रवाल की सक्रियता से तो बल मिला ही है, साथ ही रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के राजीव गुप्ता की सक्रियता से भी ताकत मिली है । राजीव गुप्ता ने निजी दिलचस्पी लेकर अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को न सिर्फ आमंत्रित किए गए अतिथियों की संख्या को बढ़वा कर बड़ा करवाया बल्कि उसे सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थक-आयोजन में भी तब्दील कर दिया । किसी उम्मीदवार को किसी दूसरे क्लब में इतना खुला समर्थन शायद ही कभी मिला हो, जितना रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार में सतीश सिंघल को मिला । कुछेक लोगों को हालाँकि यह कहते हुए भी सुना गया कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के बहाने राजीव गुप्ता ने वास्तव में अगले वर्षों में प्रस्तुत होने वाली अपनी उम्मीदवारी के लिए जमीन तैयार का काम किया है । यह बात यदि सच भी है तो भी - राजीव गुप्ता ने जो किया उससे अभी तो सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को ही ताकत मिली है । इससे पहले, सतीश सिंघल और मनीष अग्रवाल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह को अच्छे से आयोजित करने में तथा दूसरे क्लब्स के महत्वपूर्ण लोगों की उपस्थिति को संभव बनाने में मनीष अग्रवाल ने अतिरिक्त सक्रियता दिखाई । क्लब के लोगों को ही कहते हुए सुना गया कि मनीष अग्रवाल यदि सक्रिय न होते तो क्लब का अधिष्ठापन समारोह वैसा न होता, जैसा कि वह हुआ ।
मनीष अग्रवाल और राजीव गुप्ता ने यदि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को मुकाबले में लाने का काम किया है तो रमणीक तलवार और विकास चोपड़ा ने प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की हवा बनाने में योगदान दिया है । उम्मीदवार के रूप में प्रसून चौधरी के सामने सबसे बड़ी समस्या लोगों के साथ अपने अपरिचय को लेकर थी । वह खुद भी ज्यादा लोगों को नहीं जानते/पहचानते थे और विभिन्न क्लब्स के लोग भी उन्हें नहीं जानते/पहचानते थे । लोगों के साथ उनके इस अपरिचय को दूर करने में उन्हें रमणीक तलवार और विकास चोपड़ा की सक्रियता से बहुत मदद मिली । रमणीक तलवार चूँकि चुनावी लटकों-झटकों से भी अच्छी तरह परिचित हैं, इसलिए रमणीक तलवार की सक्रियता के कारण प्रसून चौधरी ने कम समय में चुनावी-यात्रा की जितनी दूरी तय कर ली है, वह अन्यथा उनके लिए मुश्किल क्या - शायद असंभव ही होती । संजय खन्ना और रवि चौधरी के बीच हुए चुनाव में रवि चौधरी के पक्ष में जुटे चुनावी महारथियों के जबड़े से संजय खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थन को खींचने का जो लोमहर्षक काम हुआ था, उसे करने वालों में एक नाम रमणीक तलवार का भी था । तभी से डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों की सूची में रमणीक तलवार का भी नाम जुड़ा है । संजय खन्ना के चुनाव में रमणीक तलवार ने जिस तरह की जो भूमिका निभाई थी, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट के प्रायः सभी क्लब्स में उनका परिचय है जिसका फायदा वह प्रसून चौधरी को दिलवा रहे हैं । विकास चोपड़ा इस वर्ष असिस्टेंट गवर्नर हैं, जिस नाते उनके लिए लोगों के बीच पैठ बनाने की सुविधा है । विकास चोपड़ा की इस सुविधा ने प्रसून चौधरी के कई कामों को आसान बना दिया है ।
सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी की एक कॉमन समस्या है - और वह यह कि राजनीतिक तिकड़मों को संभव करने के मामले में दोनों ही कच्चे हैं । सतीश सिंघल की रोटरी में लंबी सक्रियता रही है । रोटरी में उन्होंने काम भी बहुत किए हैं लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उन्हें कभी इन्वॉल्व होते हुए नहीं देखा/पाया गया । यही कारण रहा कि रोटरी में कामकाजी उपलब्धियों के लिहाज से उन्हें डिस्ट्रिक्ट में जो जगह मिलना चाहिए थी, वह नहीं मिल सकी । प्रसून चौधरी अपने क्लब के चार्टर प्रेसीडेंट हैं और प्रेसीडेंट के रूप में उन्होंने कुछेक ऐसे उल्लेखनीय काम किए जो डिस्ट्रिक्ट में उदाहरण बने; किंतु उनका क्लब डिस्ट्रिक्ट में पहचाना जाता है 'रमणीक तलवार के क्लब' के रूप में । सतीश सिंघल भी और प्रसून चौधरी भी अपने काम से राजनीतिक फायदा उठाने का हुनर नहीं सीख सके । सामान्य परिस्थितियों में तो इसे एक अच्छी बात के तौर पर लिया जाता; लेकिन चुनावी राजनीति के संदर्भ में यह 'कमजोरी' है । जाहिर है कि उम्मीदवार के रूप में दोनों के सामने अपनी इस 'कमजोरी' पर विजय पाने की गंभीर चुनौती है ।
सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान में जिस तरह अपने अपने नजदीकी समर्थकों पर निर्भर हैं और उनके नजदीकी समर्थक भी उन्हें जिस तरह से मदद पहुँचा रहे हैं - उसके चलते दोनों के बीच होने वाले चुनाव का परिदृश्य दिलचस्प और काँटे का हुआ जा रहा है ।