Monday, July 29, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों चरनजोत सिंह नंदा, हंसराज चुग तथा विजय झालानी पर हालात को बिगाड़ने का आरोप लगा कर नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन हरीश चौधरी जैन व उनके नजदीकियों ने रीजनल काउंसिल में फैली अराजकता की तरफ से लोगों का ध्यान भटकाने का प्रयास किया

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन हरीश चौधरी जैन तथा काउंसिल में उनके नजदीकी सदस्यों ने काउंसिल में फैली/पसरी अराजकता के लिए इंस्टीट्यूट के सेंट्रल काउंसिल सदस्य चरनजोत सिंह नंदा व हंसराज चुग और सरकार द्वारा नामित सदस्य विजय झालानी को जिम्मेदार ठहराना शुरू किया है । हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकी सदस्य लोगों के साथ की जाने वाली बातचीतों में लगातार आरोप लगाने लगे हैं कि अपने अपने स्वार्थ में यह तीनों रीजनल काउंसिल के दूसरे सदस्यों को भड़काए रखते हैं, और तरह तरह से उन्हें समर्थन देते रहते हैं - जिसके चलते काउंसिल के कुछेक पदाधिकारी तथा सदस्य किसी न किसी बहानेबाजी से कामकाज में बाधा डालते हुए झगड़े बनाए/बढ़ाए रखते हैं । हरीश चौधरी जैन और उनके नजदीकियों का मानना/कहना है कि विजय झालानी ने अविनाश गुप्ता व श्वेता पाठक के बीच हुए मामले में श्वेता पाठक का पक्ष लेते हुए 10 अप्रैल को चैयरमैन हरीश चौधरी जैन को फटकार लगाने वाला ईमेल संदेश न लिखा होता, तो मामला इतना न बिगड़ता । उनका कहना है कि सरकार ने विजय झालानी को इंस्टीट्यूट में इसलिए नामित नहीं किया है कि वह रीजनल काउंसिल के मामलों में अपनी टाँग अड़ाते फिरे और वहाँ झगड़े बढ़ाएँ । उसके बाद, 6 जून को बुलाई गई रीजनल काउंसिल की अधिकृत मीटिंग के रद्द हो जाने के बाद हुई अनौपचारिक मीटिंग में चरनजोत सिंह नंदा व हंसराज चुग ने नियम-कानूनों का वास्ता देकर मेलमिलाप कराने के जो प्रयास किए, वह वास्तव में हरीश चौधरी और उनके नजदीकियों को हतोत्साहित करने वाले थे । उक्त अनौपचारिक मीटिंग में चरनजोत सिंह नंदा व हंसराज चुग ने साफ साफ कहा कि यह नियम भी है और भलाई भी इसी में है कि चेयरमैन और सेक्रेटरी मिलजुल कर फैसले लें और हर फैसले में दोनों की भागीदारी सुनिश्चित हो । हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकियों का कहना है कि उक्त मीटिंग के बाद से नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में झगड़े और बढ़े हैं तथा हालात और ज्यादा बिगड़े हैं । 
हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकियों का कहना है कि विजय झालानी को चूँकि सेंट्रल काउंसिल में कोई खास तवज्जो नहीं मिल रही है, इसलिए अपने आप को व्यस्त रखने के लिए वह रीजनल काउंसिल के मामले में दिलचस्पी लेते हैं और यहाँ अपनी अहमियत दिखाने का प्रयास करते रहते हैं; चरनजोत सिंह नंदा व हंसराज चुग को चिंता है कि राजेंद्र अरोड़ा व नितिन कँवर के सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने से उनके लिए मुकाबला चुनौतीपूर्ण हो जायेगा - इसलिए वह अभी से ही उन दोनों के पर कतर कर रखना चाहते हैं । उनकी खुशकिस्मती है कि राजेंद्र अरोड़ा व नितिन कँवर ने अपनी अपनी हरकतों से उन्हें मौका भी दे दिया है । हंसराज चुग को सुमित गर्ग व अविनाश गुप्ता की संभावित उम्मीदवारी से भी चुनौती मिल सकने का डर है ।कई लोगों को लगता है कि यह दोनों भी सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत कर सकते हैं, और इन्होंने यदि सचमुच उम्मीदवारी प्रस्तुत की, तो यह हंसराज चुग के लिए मुसीबत बनेंगे । मजेदार संयोग यह है कि राजेंद्र अरोड़ा, नितिन कँवर, सुमित गर्ग, अविनाश गुप्ता को ही चेयरमैन हरीश चौधरी जैन के नजदीकियों के रूप में देखा/पहचाना जाता है । गंभीर आरोप यही है कि इन्हीं चारों के दबाव में हरीश चौधरी जैन फैसले करते हैं और काउंसिल के वाइस चेयरपरसन, सेक्रेटरी व ट्रेजरर को अलग थलग रखते हैं । हरीश चौधरी जैन और उनके नजदीकियों के लिए मुसीबत की बात यह है कि उन्हें 'बाहर' से कहीं किसी का समर्थन प्राप्त नहीं है; उनकी कार्रवाईयों को उचित ठहराने वाला कोई नहीं है । विजय झालानी, चरनजोत सिंह नंदा, हंसराज चुग को लेकर उनके आरोप यदि सच भी हैं, तो भी कोई भी यह कहने/मानने वाला नहीं है कि उन्होंने कोई अनुचित बात की है, या अनामंत्रित रूप से घुसपैठ करने की कोशिश की है; वह तो मामले में तभी पड़े हैं, जब उनसे शिकायत की गई और उन्हें हालात को निपटाने में भूमिका निभाने के लिए आमंत्रित किया गया । यह अलग बात है कि उन्हें मौका मिला और उन्होंने अपनी अपनी 'जरूरतों' के हिसाब से मौके का फायदा उठाया ।
हरीश चौधरी जैन और उनके नजदीकियों ने विजय झालानी, चरनजोत सिंह नंदा व हंसराज चुग को जिस तरह से निशाना बनाना शुरू किया है - उससे रीजनल काउंसिल में हालात सुधरेंगे, इसकी तो किसी को उम्मीद नहीं है; उससे लेकिन रीजन की चुनावी राजनीति में नए बबाल जरूर पैदा होंगे । समझा जाता है कि विजय झालानी के साथ-साथ चरनजोत सिंह नंदा व हंसराज चुग को निशाने पर लेकर हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकियों ने दो उद्देश्य एक साथ साधने का प्रयास किया है - एक तरफ तो वह इन्हें दबाव में लेना/रखना चाहते हैं ताकि यह रीजनल काउंसिल के मामलों से दूर रहें, और दूसरी तरफ सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति में यह अपनी अहमियत दिखाना चाहते हैं; लोगों के बीच यह अभी से इस बात को पहुँचाना चाहते हैं कि इनकी उम्मीदवारी की संभावना मात्र से सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों को अगले चुनाव में अपने पुनर्निर्वाचन को लेकर डर पैदा हो गया है । हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकियों को एक तीसरा फायदा यह होता दिख रहा है कि उनके आरोपों से लोगों का ध्यान चुनावी राजनीति के समीकरणों पर जायेगा और रीजनल काउंसिल में फैली अराजकता की तरफ से हटेगा । हालाँकि कई लोगों को लगता है कि हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकियों ने यह जो राजनीति खेली है, इससे उन्हें तात्कालिक रूप से भले ही कोई फायदा होता हुआ दिखे, लेकिन कुल मिलाकर यह राजनीति उनकी मुसीबतों को बढ़ाने वाली ही साबित होगी । उनकी राजनीति क्या करेगी और उसका क्या नतीजा होगा, यह तो आगे पता चलेगा - अभी लेकिन उनके दाँव ने नॉर्दर्न रीजन के राजनीतिक खिलाड़ियों को चर्चा/कुचर्चा का अच्छा मौका जरूर दे दिया है ।

Sunday, July 28, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 में रोटरी फाउंडेशन का सिर्फ पैसा ही नहीं, बल्कि रोटरी के पदाधिकारियों के विश्वास को भी 'लूटने' वाले और सजा पाए पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल को ऐसा क्यों लगता है कि वह यदि डिस्ट्रिक्ट 3011 में होते, तो कुछ भी करने के बावजूद बच निकलते ?

जयपुर । डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी फाउंडेशन के पैसों की लूट-खसोट की कोशिशों के जो किस्से सामने आ रहे हैं, उन्हें सुन/जान कर डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल को अफसोस हो रहा है कि वह डिस्ट्रिक्ट 3011 में क्यों न हुए - वहाँ होते तो रोटरी फाउंडेशन से मिली ग्लोबल ग्रांट के पैसों में घपलेबाजी करने के मामले में न पकड़े जाते और न सजा पाते ? डिस्ट्रिक्ट 3011 में करोड़ों रुपए की ग्रांट में विवाद हुआ, लेकिन अंततः मामला 'मैनेज' हो गया; अनिल अग्रवाल करीब 20 लाख रुपए की ग्लोबल ग्रांट की घपलेबाजी में ऐसे फँसे कि तीन वर्षों के लिए रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित होने की सजा पा गए । उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल अपने डिस्ट्रिक्ट में उसी वर्ष गवर्नर थे, जिस वर्ष विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट 3011 में गवर्नर थे । विनोद बंसल ने अपने गवर्नर-वर्ष में अपने क्लब के प्रेसीडेंट राजेश गुप्ता को एकेएस का सदस्य बनवाया और बदले में उन्हें करीब ढाई/तीन करोड़ रुपए की ग्लोबल ग्रांट दिलवाई; अनिल अग्रवाल ने अपने नजदीकियों के क्लब को करीब 20 लाख रुपए की ग्लोबल ग्रांट दिलवाई ।दोनों ग्रांट्स के इस्तेमाल को लेकर आरोप लगे और विवाद हुआ । विनोद बंसल के क्लब वाली वाली ग्रांट के इस्तेमाल को लेकर लगे आरोपों के चलते उसका तीन तीन बार ऑडिट करने की नौबत आई; ग्रांट के इस्तेमाल में घपलेबाजी के आरोपों को देखते हुए क्लब के अगले एक प्रेसीडेंट ने उक्त ग्रांट के मामले में जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया, जिस कारण उक्त ग्रांट क्लब से छिन कर दूसरे क्लब को ट्रांसफर हो गई; ग्रांट के मुख्य कर्ताधर्ता बने राजेश गुप्ता की भूमिका को संदेहास्पद मानते हुए उन्हें भी मुख्य कर्ताधर्ता का पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा - हालाँकि तब तक राजेश गुप्ता उक्त ग्रांट से जो जो फायदे ले सकते थे, वह ले चुके थे । उक्त ग्रांट के इस्तेमाल के मामले में पिछले से पिछले रोटरी वर्ष के गवर्नर रवि चौधरी ने खासा हाय-हल्ला मचाया था, लेकिन बार-बार आने वाली अड़चनों के बावजूद मामले पर अंततः धूल पड़ गई । दूसरी तरफ अनिल अग्रवाल अपने मामले में ऐसे फँसे कि रोटरी इंटरनेशनल व रोटरी फाउंडेशन के तमाम बड़े पदाधिकारियों व नेताओं की मदद के बावजूद बच न सके । इसीलिए अनिल अग्रवाल को अब डिस्ट्रिक्ट 3054 में होने का अफसोस हो रहा है; उन्हें लग रहा है कि काश वह भी डिस्ट्रिक्ट 3011 में होते - तो कुछ भी करके बच निकलते !
अनिल अग्रवाल की घपलेबाजी की कहानी वैसे किसी तिलस्मी कहानी से कम नहीं है, और यह कहानी 'बताती' है कि उनमें एक लेखक होने के गुण खूब हैं । पिछले करीब पाँच महीने से वह रोटरी के बड़े पदाधिकारियों को तरह तरह से लिखित में बता रहे हैं कि वह थोड़ा थोड़ा करके रोटरी फाउंडेशन के करीब 20 लाख रुपए चुका देंगे, लेकिन पट्ठे ने अभी तक इकन्नी भी नहीं दी है । उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल ने पहले रोटरी फाउंडेशन को लिखित में विश्वास दिलाया था कि वह 31 मार्च तक चार/पाँच किस्तों में उक्त रकम वापस कर देंगे । फाउंडेशन के पदाधिकारी उनकी बातों में आ गए और उनके खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई को उन्होंने स्थगित कर दिया । किंतु जब 20 अप्रैल तक भी फाउंडेशन को कोई पैसा नहीं मिला, तो 25 अप्रैल को उन्हें सजा सुना दी गई । अपनी सजा को खत्म करवाने के लिए अनिल अग्रवाल ने नया झाँसा दिया और विश्वास दिलाया कि वह 30 जून तक पूरा पैसा दे देंगे । उन्होंने लिख कर बताया कि वह अलग अलग तारीखों के अलग अलग रकम के चेक जमा करा रहे हैं, लेकिन जो कभी जमा नहीं कराये गए । इस बीच उन्होंने नाटक रचा कि वह तो पैसे दे रहे हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी पैसे ले ही नहीं रहे हैं । रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारी तक अनिल अग्रवाल की झाँसापट्टी में फँस गए कि वह जब पैसा देने को तैयार हैं, तो डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी पैसे ले क्यों नहीं रहे हैं ? उन्होंने मामले की जाँच  के लिए डिस्ट्रिक्ट 3150 के पूर्व गवर्नर लक्कराजु सत्यनारायण उर्फ टिक्कू के नेतृत्व में दो सदस्यीय कमेटी बना दी, जो जाँच के लिए जयपुर आई - अनिल अग्रवाल ने उनके सामने पैंतरा बदला और 30 जून तक पूरा पैसा देने की बात से मुकर कर 30 जून तक पाँच लाख रुपए की पहली किस्त दे देने की लिखित घोषणा की, लेकिन जिस पर अभी तक अमल नहीं हुआ है । इससे पहले अनिल अग्रवाल की बातों में आकर निवर्त्तमान इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम ने अनिल अग्रवाल के साथ रियायत बरतने तथा उनके खिलाफ कोई कठोर फैसला न लेने का अनुरोध करते हुए फाउंडेशन ट्रस्टी गुलाम वाहनवती से बाकायदा लिखित में सिफारिश तक कर दी थी । 
इस तरह अनिल अग्रवाल ने रोटरी का सिर्फ पैसा ही नहीं 'लूटा' - रोटरी और रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों का विश्वास भी लूटा, और हर मौके पर उन्हें बेवकूफ बनाने की ही कोशिश की है । 30 जून के बाद अनिल अग्रवाल ने एक नया नाटक शुरू किया - उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों से कहा/पूछा कि वह एक लाख रुपए जमा कराना चाहते हैं और नगद जमा कराना चाहते हैं, किस अकाउंट में करवाएँ । अनिल अग्रवाल पिछले पाँच महीने में छत्तीस बार अकाउंट नंबर पूछ चुके हैं, और उन्हें छतीस बार अकाउंट नंबर बताया जा चुका है । इस बार भी उन्हें सूचित किया गया कि अकाउंट नंबर वही है, जो उन्हें पहले कई बार बताया जा चुका है; साथ ही उन्हें बताया गया कि लेन देन संबंधी नियमों के अनुसार यह रकम वह नगद में जमा नहीं करा सकते हैं, यह रकम वह चेक से ही जमा करा सकते हैं । अनिल अग्रवाल ने इस पर फिर पुराना राग छेड़ दिया कि वह तो पैसा दे रहे हैं, डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी ले ही नहीं रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी यह सोच सोच कर परेशान हैं कि अनिल अग्रवाल जो एक लाख रुपए देना चाह रहे हैं, वह क्या चोरी-चकारी के पैसे हैं जो वह नगद देने पर जोर दे रहे हैं । इससे भी बड़ा नाटक अनिल अग्रवाल ने रोटरी क्लब जयपुर नॉर्थ के जरिए किया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में रोटरी क्लब जयपुर नॉर्थ से दो लाख रुपए ट्रांसफर होने की जानकारी मिली, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने क्लब के प्रेसीडेंट से पूछा कि यह रकम किसलिए है ? प्रेसीडेंट ने उन्हें बताया कि डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में कोई रकम भेजे जाने की उन्हें कोई जानकारी नहीं है, वह पता करके बताते हैं । बाद में प्रेसीडेंट ने उन्हें सूचित किया कि उक्त रकम गलती से डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में ट्रांसफर हो गई है, और उस रकम को वह क्लब के अकाउंट में वापस कर दें । इस बीच लेकिन अनिल अग्रवाल ने दावा किया कि रोटरी क्लब जयपुर नॉर्थ से डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में जो दो लाख रुपए गए हैं, वह रोटरी फाउंडेशन को वापस किए जाने वाले करीब 20 लाख रुपए की पहली किस्त है । अनिल अग्रवाल के दावों की जाँच के लिए रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से लक्कराजु सत्यनारायण उर्फ टिक्कू के नेतृत्व वाली जो जाँच कमेटी जयपुर आई थी, उसके सामने भी उन दो लाख रुपयों का मामला आया । वहाँ भी अनिल अग्रवाल ने प्रेसीडेंट पर दबाव बनाने की कोशिश की कि वह उनके दावे का समर्थन करे । प्रेसीडेंट ने लेकिन साफ कह दिया कि इस बारे में फैसला लेने का अधिकार क्लब के बोर्ड को है, और वह किसी दावे का समर्थन नहीं कर सकते हैं । तब जाँच कमेटी के सदस्यों ने प्रेसीडेंट से कहा कि वह दो/चार दिन में क्लब के बोर्ड के फैसले से अवगत करवाएँ । दो/चार दिन में क्लब की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को फैसला सुना दिया गया कि उक्त रकम गलती से डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में चली गई है, और उसे जल्दी वापस किया जाए । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने क्लब की तरफ से मिले इस फैसले से जाँच कमेटी के सदस्यों को अवगत करवाया और उनसे पूछा कि उन दो लाख रुपयों कह क्या करें ? जाँच कमेटी के सदस्य बेचारे मुँह में दही जमाये बैठे हैं कि क्या जबाव दें ?
अनिल अग्रवाल ने झूठे दावे करके और तरह तरह से झाँसे देकर रोटरी के जिन पदाधिकारियों और नेताओं का समर्थन जुटाने का प्रयास किया, उन सभी को मामले से संबद्ध लोगों के सामने लज्जित होना पड़ा है । अनिल अग्रवाल के चक्कर में अभी हाल ही में विनोद बंसल को भी विवाद व खासी फजीहत का शिकार होना पड़ा । दरअसल 12 जुलाई को रोटरी क्लब जयपुर के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह में विनोद बंसल को मुख्य अतिथि तथा अनिल अग्रवाल को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था । चर्चा रही कि अनिल अग्रवाल ने ही उक्त समारोह में विनोद बंसल को मुख्य अतिथि बनवाया था, और मुख्य अतिथि बनने के लालच में विनोद बंसल भी रोटरी इंटरनेशनल द्वारा दोषी ठहराए गए तथा सजा प्राप्त अनिल अग्रवाल के साथ मंच शेयर करने के लिए तैयार हो गए । विनोद बंसल को कई लोगों ने समझाया था कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी उम्मीदवारी को ध्यान में रखते हुए उन्हें अनिल अग्रवाल जैसे 'सजायाफ्ता' के साथ मंच शेयर नहीं करना चाहिए, लेकिन विनोद बंसल को पहले तो यह बात समझ में नहीं आई लेकिन 'रचनात्मक संकल्प' में 9 जुलाई को रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद जो बबाल मचा, तो फिर विनोद बंसल और अनिल अग्रवाल को रोटरी क्लब जयपुर के कार्यक्रम में एकसाथ दिखने की योजना को स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा । इस तरह अनिल अग्रवाल का हर दाँव उल्टा पड़ता जा रहा है । अनिल अग्रवाल के शुभचिंतकों की कमी नहीं है; रोटरी के बड़े बड़े पदाधिकारी और नेता उन्हें बचाने के प्रयासों में लगे हैं, लेकिन अनिल अग्रवाल ने अपनी झाँसेबाजियों से मामला इस कदर उलझा लिया है कि उन्हें बचाने तथा उनके साथ खड़े/बैठने दिखने के लिए तैयार रहने वाले लोगों को भी फजीहत का शिकार होना पड़ता है । डिस्ट्रिक्ट 3011 की घटनाओं को देखते हुए अनिल अग्रवाल को लेकिन लग रहा है कि वह यदि डिस्ट्रिक्ट 3011 में होते तो घपलेबाजी करने के मामले में यदि पकड़े भी जाते, तो भी सजा पाने से तो बच ही जाते ! 

Saturday, July 27, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे इकट्ठे करने के लिए विनोद बंसल के बनाए फार्मूले - 'दो, और उसके तिगुने लो' - ने विनय भाटिया का रिकॉर्ड बनवाने के साथ-साथ रोटरी फाउंडेशन के पैसों की लूट की जो 'तस्वीर' दिखाई है, उसे देख/समझ कर जरूरतमंदों की मदद के लिए पैसे देने वाले लोग अपने आप को ठगा पा रहे हैं

नई दिल्ली । रोटरी फाउंडेशन को दिया गया दान वापस माँगने की रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन के प्रेसीडेंट सुरेश गुप्ता की कार्रवाई ने रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों के बीच खासी खलबली तो मचा ही दी है, साथ ही डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी फाउंडेशन के पैसों की होने वाली लूट की 'तैयारी' पर भी उनका ध्यान खींचा है । रोटरी में इससे पहले शायद ही कभी हुआ हो कि रोटरी फाउंडेशन में दिए गए दान को किसी ने वापस माँगा हो; और इससे पहले शायद ही किसी डिस्ट्रिक्ट में रोटरी फाउंडेशन की बड़ी लूट का मामला सामने आया हो - मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी फाउंडेशन की लूट का बड़ा मामला तो सामने आया ही है, तथा उसके पकड़े जाने के साथ-साथ ही और लूट की 'तैयारी' की बात सामने आई है, लेकिन उसके लिए किसी को भी आधिकारिक रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा रहा है, सजा मिलना तो दूर की बात है । डिस्ट्रिक्ट 3011 में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया ने पहले तो घपलेबाजी के आरोप के चलते रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन द्वारा वापस की गई ग्लोबल ग्रांट को रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल को दिलवाने की 'बेईमानी' की और फिर रोटरी फाउंडेशन से और ज्यादा ग्रांट बटोरने के नाम पर रोटरी फाउंडेशन के लिए मोटी रकम इकट्ठी करने का 'करतब' किया । विनय भाटिया के इसी करतब को देखते हुए सुरेश गुप्ता का रोटरी फाउंडेशन से विश्वास उठ गया है और उन्हें लग रहा है कि अच्छी और सच्ची भावना से रोटरी फाउंडेशन को दिए गए दान को कुछेक बड़े खिलाड़ी तरह तरह की योजनाओं से हड़प लेते हैं । सुरेश गुप्ता क्लब का प्रेसीडेंट बनने से पहले ही मेजर डोनर बन चुके हैं, और अपने प्रेसीडेंट-वर्ष में उन्होंने एकेएस (ऑर्च क्लम्प सोसायटी) का सदस्य बनने की घोषणा की थी - लेकिन रोटरी फाउंडेशन के पैसों की खुली लूट के किस्सों को देखते हुए उन्होंने अपना इरादा बदल लिया है । रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस में रोटरी फाउंडेशन के मुखिया संजय परमार को लिखे पत्र में सारा हवाला देते हुए सुरेश गुप्ता ने रोटरी फाउंडेशन में दिए गए अपने पैसे वापस करने का अनुरोध किया है । 
सुरेश गुप्ता के इस अनुरोध ने रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों के बीच खासी हलचल मचा दी है । उन्हें डर हुआ है कि रोटरी फाउंडेशन ने इसी तरह से यदि और रोटेरियंस का विश्वास खो दिया, तो बड़ी समस्या हो जाएगी । इस समस्या की आशंका के चलते डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी फाउंडेशन के नाम पर जो घपलेबाजियाँ हो रही हैं, उन पर रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों का ध्यान गया है । इससे डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी फाउंडेशन के लिए 15 लाख डॉलर से अधिक की रकम का जमा होना संशय में आ गया है और रोटरी फाउंडेशन के बड़े पदाधिकारियों को भी आशंका हो चली है कि इस जमा हुई रकम के पीछे किसी बड़े घपले की तैयारी तो नहीं है । यह आशंका दरअसल इसलिए भी है क्योंकि निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया ने अपने गवर्नर-वर्ष के पहले ग्यारह महीनों में, यानि मई महीने तक रोटरी फाउंडेशन के लिए करीब साढ़े चार लाख डॉलर ही इकट्ठा किए थे, लेकिन आखिरी महीने में इकट्ठा हुई रकम का आँकड़ा ऊँची छलाँग लगा कर पंद्रह लाख डॉलर से भी ऊपर तक पहुँच गया । और इस रकम का बड़ा हिस्सा परोपकार के लिए नहीं, बल्कि परोपकार के नाम पर रोटरी फाउंडेशन से तीन से चार गुना रकम लेने के लिए 'दिया' गया है । लोगों के बीच होने वाली चर्चाओं में कहा/सुना जा रहा है कि कुछेक अस्पतालों/संस्थाओं से बात करके उनकी जरूरत की मशीनें व उनकी जरूरत के काम कुल लागत के आधे में या दो-तिहाई में करने/करवाने का ऑफर देकर उनसे सौदेबाजी की गई है । उदाहरण के लिए किसी अस्पताल/संस्था का कोई प्रोजेक्ट एक करोड़ रुपए का है; उसे ऑफर दिया गया कि उसका वह प्रोजेक्ट 70 लाख में लगवा देंगे; उससे 70 लाख लिए, उसमें से 40/50 लाख रोटरी फाउंडेशन में जमा करवाए और बाकी अपनी जेब में रख लिए । रोटरी फाउंडेशन को एक करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट दे दिया - उससे मिले एक करोड़ रुपए से अस्पताल/संस्था का प्रोजेक्ट लग गया/जायेगा । इस तरह से रोटरी में नाम भी हो गया, जिसके चलते रोटरी में कोई अवॉर्ड या असाइनमेंट मिल जायेगा; किसी प्रोजेक्ट में अपनी स्वर्गीय माता का नाम चिपकाने का मौका भी मिल गया और बैठे/बिठाए कमाई भी हो गई । ऐसे ही 'मौकों' के लिए कहावत बनी होगी - 'हींग लगे न फिटकरी, रंग और स्वाद चोखा ।' 
संजय परमार को लिखे सुरेश गुप्ता के पत्र ने लेकिन रंग और स्वाद बिगाड़ने का काम किया है । हालाँकि कई लोगों का कहना है कि यह कुछेक दिनों का बबाल है जो जल्दी ही शांत हो जायेगा और होगा कुछ नहीं । दरअसल रोटरी में सिस्टम ही कुछ ऐसा है कि बेईमानी करने वाले लोग होशियारी करके बड़ी आसानी से बच निकलते हैं । कुछेक 'मूर्ख' लोग हालाँकि फँसे भी हैं और सजा पाए हैं, लेकिन अधिकतर मामलों में मामला रफा/दफा ही होता देखा गया है । विनय भाटिया जिस तरह से रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन द्वारा वापस की गई ग्रांट को रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल को 'दिलवाने' के मामले में फँसे, और साफ बच निकले - उससे ही उन्हें अपने गवर्नर वर्ष के अंतिम महीने में रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसा इकट्ठा करने के लिए सौदेबाजी करने का हौंसला मिला होगा । इस सौदेबाजी में उन्हें पूर्व गवर्नर विनोद बंसल की मदद मिली सुनी/बताई जा रही है । विनय भाटिया इसीलिए आश्वस्त होंगे कि कहीं कुछ मामला फँसेगा, तो विनोद बंसल उन्हें बचा लेंगे । असल में रोटरी फाउंडेशन को दान देकर उससे तीन/चार गुना पैसे लेने के 'काम' को ऑर्गेनाइज्ड रूप देने का फंडा स्थापित करने का विनोद बंसल को ही श्रेय दिया जाता है । इस खेल का 'महारथी' होने के कारण विनोद बंसल हर वर्ष रोटरी फाउंडेशन के लिए अच्छी/मोटी रकम इकट्ठा करवाते हैं । उनकी मदद से उनके क्लब को भी रोटरी फाउंडेशन से खूब पैसे मिले हैं । इस बार भी उनके क्लब ने सबसे ज्यादा - करीब सवा दो लाख डॉलर रोटरी फाउंडेशन में दिए हैं; और इस तरह इसका करीब तीन गुना तो रोटरी फाउंडेशन से लेने की तैयारी की है । रवि चौधरी के गवर्नर-वर्ष में भी विनोद बंसल के क्लब ने रोटरी फाउंडेशन से मोटी रकम लेने की योजना बनाई थी, लेकिन हिस्सा न मिलने के कारण रवि चौधरी ने उसमें पंक्चर कर दिया था, और रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी गुलाम वाहनवती के सामने विनोद बंसल तथा उनके क्लब के अन्य पदाधकारियों की बड़ी हील-हुज्जत की थी । विनोद बंसल का 'दो, और उसका तिगुना लो' का जो फार्मूला है, वह सुनने/देखने में तो उपयोगी लगता है और आकर्षित करता है, लेकिन अपनी शुरुआत से ही यह लालच, स्वार्थ व बेईमानी के रास्ते पर चल पड़ता है; दरअसल इस फार्मूले के तहत रोटरी फाउंडेशन में कोई भी 'देता' इसीलिए है, क्योंकि उसे तीन गुना 'लेना' होता है; और जब लेने की भावना प्रबल होती है तो फिर वह किसी भी तरह की बेईमानी करने से नहीं हिचकती है । इस बेईमानी और लूट की कोशिश उन लोगों की भावनाओं को ठगती है, जो सचमुच की जरूरत के लिए रोटरी फाउंडेशन में पैसे देते हैं । उन्हें लगता है कि रोटरी फाउंडेशन को दिया गया उनका पैसा जरूरतमंदों तक पहुँचने की बजाए रोटेरियंस के भेष में बैठे ठगों व लुटेरों की जेबों में चला जाता है । विनोद बंसल के ही डिस्ट्रिक्ट में, रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन के प्रेसीडेंट सुरेश गुप्ता ने अपने आप को ठगे जाने वाले लोगों में पाया, तो वह रोटरी फाउंडेशन को दिए गए अपने पैसों को वापस माँगने के लिए मजबूर हुए ।

Thursday, July 25, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक द्वारा पुलिस में की गई शिकायत पर हो सकने वाली कार्रवाई से बचने की चेयरमैन हरीश चौधरी जैन और उनके नजदीकियों की कोशिश को गौरव गर्ग ने अपनी घटिया सोच के चलते मुश्किल में डाला

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में पदाधिकारियों के झगड़े के पुलिस में पहुँचने से बनी स्थिति को सँभालने के लिए हो रहे प्रयासों में काउंसिल के सदस्य गौरव गर्ग ने आग में घी डालने वाला जो काम किया है, उससे सुलझता दिख रहा मामला भड़क और गया है । उल्लेखनीय है कि 20 जुलाई के सेमीनार के रद्द होने की सूचना देने वाले संदेश में जिस तरह से वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक को जिम्मेदार ठहराया गया था, उससे भड़क कर श्वेता पाठक ने पुलिस में रिपोर्ट कर दी । श्वेता पाठक का आरोप रहा कि रीजनल काउंसिल के कुछेक सदस्य उन्हें तरह तरह से अपमानित व प्रताड़ित करते रहते हैं, और उक्त संदेश इसका नया उदाहरण व सुबूत है । श्वेता पाठक की तरफ से कहा/बताया गया कि उक्त झूठा संदेश काउंसिल के आधिकारिक अकाउंट से तो भेजा ही गया; हरीश चौधरी जैन, नितिन कँवर, राजेंद्र अरोड़ा, अविनाश गुप्ता ने अपने अपने अकाउंट से भी कुछेक लोगों को भेजा है - जो यह साबित करता है कि उक्त संदेश को काउंसिल के आधिकारिक अकाउंट से भेजे जाने में इन्हीं लोगों की मिलीभगत है और इस तरह से उन्हें अपमानित व प्रताड़ित करने में इन्हीं लोगों की भूमिका है । पुलिस ने श्वेता पाठक की शिकायती रिपोर्ट को आधिकारिक रूप से तो दर्ज नहीं किया, लेकिन अपने तरीके से मामले में पूछताछ शुरू की । पुलिस की पूछताछ से परेशान हुए आरोपी सदस्यों की तरफ से समझौते की कोशिशें शुरू हुईं, जिसके नतीजे के रूप में काउंसिल के आधिकारिक अकाउंट से एक और संदेश भेजा गया, जिसमें पिछले संदेश पर खेद व्यक्त किया गया । इससे लगा कि मामला सँभलने और हल होने की तरफ बढ़ रहा है, लेकिन लगभग इसी समय गौरव गर्ग के आए एक संदेश ने मामले को बिगाड़ने का काम कर दिया है । 
गौरव गर्ग ने दरअसल प्रशांत विहार लाइब्रेरी में एक छात्र की शिकायत को मुद्दा बनाया है, और सीधे तौर पर उनके द्वारा उठाया गया मुद्दा काउंसिल के पदाधिकारियों/सदस्यों के बीच चल रहे झगड़े से संबंध रखता नहीं 'दिखता' है; लेकिन 'टाइमिंग' और 'तरीके' के आधार पर काउंसिल सदस्यों ने गौरव गर्ग के संदेश को श्वेता पाठक पर कटाक्ष करने के रूप में देखा/पहचाना और व्याख्यायित किया - और यही व्याख्या मामले को भड़काने का काम कर गई है । प्रशांत विहार लाइब्रेरी में एक छात्र को एक स्टाफ का व्यवहार अनुचित लगा, जिसकी उसने शिकायत की । यह शिकायत मान्य प्रक्रिया के द्वारा सुनी जानी थी, और यदि नहीं सुनी जाती तो उसके सुने जाने के लिए दबाव बनाया जा सकता था । गौरव गर्ग ने लेकिन इस मामले को 13 काउंसिल सदस्यों के छोटे से वाट्स-ऐप ग्रुप में उठाया और सनसनीखेज बनाते हुए उठाया; उन्होंने लिखा कि प्रशांत विहार लाइब्रेरी में एक 'मेल' स्टाफ ने एक 'फीमेल' छात्र को परेशान किया । काउंसिल की लाइब्रेरीज में छात्रों को तरह तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, और वह अक्सर शिकायतें करते रहते हैं; उन शिकायतों को 'मेल' फीमेल' के झगड़े का रूप शायद ही कभी दिया गया हो । संदर्भित मामला यदि 'मेल' 'फीमेल' की प्रकृति का था भी, तो गौरव गर्ग को पूरी बात स्पष्ट करना चाहिए थी, जो उन्होंने नहीं की । दूसरी बात यह प्रसंग 13 काउंसिल सदस्यों के छोटे से वाट्स-ऐप ग्रुप में रखने का कोई मतलब नहीं था । गौरव गर्ग को शिकायत करने वाली छात्रा को यदि सचमुच न्याय दिलवाना था, तो उन्हें काउंसिल के उचित मंच पर इसे उठाना/रखना था । उन्होंने लेकिन उस छात्रा की शिकायत को 'इस्तेमाल' किया । इसी से कुछेक काउंसिल सदस्यों को गौरव गर्ग की बदनीयती का शक हुआ, और माना/समझा गया कि उक्त मामले के जरिए गौरव गर्ग ने दरअसल हरीश चौधरी जैन व उनके नजदीकियों की तरफ से श्वेता पाठक को निशाना बनाया है और उन पर कटाक्ष किया है । 
यह मानने/समझने का कारण यह भी रहा कि गौरव गर्ग पिछले कुछ समय से चेयरमैन हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकियों के रूप में पहचाने जाने वाले नितिन कँवर, राजेंद्र अरोड़ा, अविनाश गुप्ता के साथ जुड़ने का प्रयास कर रहे हैं । समझा जा रहा है कि गौरव गर्ग ने अपने इस 'खेल' के जरिए वास्तव में हरीश चौधरी जैन व उनके नजदीकियों की तरफ से 'बैटिंग' की है; उनकी इस बैटिंग ने लेकिन श्वेता पाठक और उनके समर्थकों को भड़का दिया है । हरीश चौधरी जैन और उनके नजदीकियों की तरफ से श्वेता पाठक के पुलिस में शिकायत करने को गलत परंपरा स्थापित करना बताया जा रहा है; इनका कहना है कि काउंसिल के प्रशासनिक विवाद को यदि पुलिस में ले जाने की परंपरा बनी, तो यह बहुत ही खतरनाक बात होगी । इन्हीं लोगों का यह भी कहना है कि काउंसिल में इस समय जो भी विवाद हैं, वह प्रशासनिक फैसलों से जुड़े विवाद हैं, न की 'मेल' 'फीमेल' के झगड़े हैं - जैसा कि श्वेता पाठक बनाने/बताने का कर रही हैं । श्वेता पाठक से हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि प्रशासनिक विवादों को हल करने के लिए जब चीखना-चिल्लाना, अपशब्दों व अशालीन व गाली-गलौच पूर्ण शब्दों का प्रयोग होने लगे तो फिर वह सिर्फ प्रशासनिक विवाद नहीं रह जाता और पुलिस में शिकायत का कारण बन जाता है । प्रशासनिक विवाद में कल यदि कोई किसी का सिर फोड़ दे और कहे कि यह पुलिस का मामला नहीं है, सिर्फ प्रशासनिक विवाद है - तो यह मान्य नहीं होगा । कई लोगों का कहना है कि प्रशासनिक विवाद के नाम पर काउंसिल के कुछेक सदस्य श्वेता पाठक के साथ जिस बदतमीजी से पेश आते हैं, वह सिर्फ एक प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं, बल्कि एक स्त्री के सम्मान को भी चोट पहुँचाने का मामला है; और श्वेता पाठक को हक है कि अपने सम्मान को बनाए रखने तथा न्याय पाने के लिए वह किसी की भी मदद लें । उल्लेखनीय है कि काउंसिल के पिछले टर्म में भी कई एक बार नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा के बदतमीजीभरे रवैये से परेशान होकर पुलिस में शिकायत करने की नौबत आई थी । इस बार अभी जो नौबत आई है, उससे निपटने की कोशिशों को गौरव गर्ग की हरकत से झटका लगता देखा जा रहा है । लोगों को हैरानी यह देख कर भी है कि अभी तीन दिन पहले ही गौरव गर्ग के पिता का निधन हुआ है; जिस समय उन्होंने प्रशांत विहार लाइब्रेरी की एक शिकायत की आड़ में श्वेता पाठक पर कटाक्ष करने का काम किया है, उस समय तक शायद उनके पिता की अस्थियाँ भी विसर्जित नहीं हुई होंगी - ऐसे मुश्किल निजी समय में भी वह काउंसिल की राजनीति में अपना गंदा खेल खेलने से नहीं चूके; यह उनकी घटिया सोच और व्यवहार को ही सामने लाता है । 

Wednesday, July 24, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नामांकन आमंत्रित करके जल्दी चुनाव कराने के संकेत दिए हैं; लोगों को लगता है कि जल्दी चुनाव करवाने की कोशिश दीपक गुप्ता का हाल सतीश सिंघल जैसा कर सकती है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता द्वारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के लिए नामांकन आमंत्रित करने की कार्रवाई को डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जल्दी चुनाव करवाने की 'तैयारी' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । लोगों को लग रहा है कि दीपक गुप्ता जल्दी चुनाव करवा कर ललित खन्ना की जीत को सुनिश्चित कर देना चाहते हैं । दिलचस्प संयोग यह है कि करीब दो वर्ष पहले यही फार्मूला अपना कर तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल ने ललित खन्ना की चुनावी संभावनाओं को खत्म कर/करवा दिया था, और आलोक गुप्ता की जीत को सुनिश्चित किया था - लेकिन उसी फार्मूले के जरिए इस बार ललित खन्ना की उम्मीदवारी की नाव को किनारे पहुँचाने की तैयारी की जा रही है । दीपक गुप्ता के नजदीकी पदाधिकारियों का हालाँकि कहना है कि उन्हें नहीं लगता है कि दीपक गुप्ता जल्दी चुनाव करवाने की तैयारी में हैं; और नामांकन आमंत्रित करने के पीछे ऐसा कोई उद्देश्य नहीं देखा जाना चाहिए । अन्य लोगों को भी लगता है कि जल्दी चुनाव करवा कर सतीश सिंघल की गवर्नरी का प्रभाव जिस तरह खराब हो गया था, उसे दीपक गुप्ता ने देखा/पहचाना है और उससे सबक लेकर वह वैसी 'गलती' नहीं करेंगे - जैसी सतीश सिंघल ने की थी । दरअसल अक्टूबर में चुनाव का नतीजा आ जाने से क्लब्स के पदाधिकारी आलोक गुप्ता के स्वागत/सम्मान में लग गए थे और यह भूल ही गए थे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सतीश सिंघल की उपेक्षा होने की स्थितियाँ आलोक गुप्ता की जीत की घोषणा होने के साथ ही बन गईं थीं । इसी आधार पर लोगों को लगता है कि दीपक गुप्ता ने यदि जल्दी चुनाव करवाया तो उनका हाल भी सतीश सिंघल जैसा ही होगा ।
उल्लेखनीय है कि सतीश सिंघल का हाल देख कर ही पिछले वर्ष सुभाष जैन ने नामांकन आमंत्रित करने का काम ही नबंवर में किया था और चुनावी प्रक्रिया को जनवरी में संपन्न हुई डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस तक खींच ले गए थे । इसी बिना पर उम्मीद की जा रही थी कि दीपक गुप्ता भी अपने गवर्नर-वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनाव को करवाने में जल्दी नहीं दिखायेंगे । लेकिन दीपक गुप्ता ने नामांकन आमंत्रित करके लोगों को यह कयास लगाने के लिए प्रेरित किया है कि वह जल्दी चुनाव कराने की तैयारी कर रहे हैं । लोगों को लगता है कि जल्दी चुनाव करवा कर दीपक गुप्ता दरअसल ललित खन्ना की जीत को व्यावहारिक रूप दे देना चाहते हैं । दीपक गुप्ता के नजदीकियों का मानना और कहना है कि दीपक गुप्ता को लगता है कि इस समय ललित खन्ना की चुनावी स्थिति बहुत अच्छी है, और यदि अभी चुनाव हो जाएँ, तो उनकी जीत पक्की है - चार/पाँच महीने बाद हालात बदल भी सकते हैं । दूसरे लोगों को भी लगता है कि डिस्ट्रिक्ट में अभी क्लब्स के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह हो रहे हैं, और अभी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता की पूछ/परख हो रही है - इस कारण दीपक गुप्ता अभी ललित खन्ना की जीत का श्रेय भी ले सकेंगे; बाद में फिर नए समीकरण बनने लगेंगे और तब राजनीतिक स्थिति जरूरी नहीं है कि वैसी ही बनी रहे, जैसी कि वह अभी नजर आ रही है । 
दीपक गुप्ता को यह डर अभी दिख रहे संकेतों से भी मिल रहा है । दीपक गुप्ता को यह देख/जान कर दरअसल तगड़ा झटका लगा है कि अधिष्ठापन समारोह के लिए उन्होंने क्लब्स को जो 'प्रोटोकॉल' दिया था, अधिकतर क्लब्स के पदाधिकारियों ने उसे मानने/अपनाने से इंकार कर दिया है । उल्लेखनीय है कि दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के पदाधिकारियों को निर्देश दिए थे कि अधिष्ठापन समारोह में वह सिर्फ उन्हें ही आमंत्रित करें, अन्य किसी गवर्नर को नहीं; उनके क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद के अलावा दो/तीन अन्य क्लब्स के पदाधिकारियों ने ही उनके इस निर्देश को स्वीकार किया, बाकी क्लब्स उनके साथ पिछले/अगले गवर्नर्स को भी अपने अधिष्ठापन समारोह में आमंत्रित कर रहे हैं, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के बावजूद दीपक गुप्ता असहाय बने क्लब्स पदाधिकारियों द्वारा की जा रही अपने निर्देश की इस अवहेलना को बर्दाश्त करने के लिए मजबूर हुए पड़े हैं । इसके अलावा, उनकी इस तथा अन्य कुछेक हरकतों के चलते डिस्ट्रिक्ट के पूर्व व भावी गवर्नर्स उनसे नाराज होते जा रहे हैं; डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर मुकेश अरनेजा कई मामलों को लेकर उनसे खफा सुने/बताए जा रहे हैं । दीपक गुप्ता के प्रति गवर्नर्स के बीच पैदा होने वाली यह नाराजगी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में ललित खन्ना की उम्मीदवारी के लिए मुसीबत बन सकती है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता की पहले ही महीने में डिस्ट्रिक्ट में जो भद्द पिटने लगी है, उसे देख/पहचान कर खुद दीपक गुप्ता को ही लगने लगा है कि उन्हें यदि ललित खन्ना की जीत का श्रेय लेना है, तो उन्हें जल्दी चुनाव करवा लेना चाहिए । चुनावी राजनीति की जरूरत दीपक गुप्ता को भले ही जल्दी चुनाव करवाने के लिए प्रेरित कर रही हो, लेकिन जल्दी चुनाव करवाने के जरिए सतीश सिंघल के हुए हाल को याद करके उनके लिए जल्दी चुनाव करवाने का फैसला करना आसान भी नहीं होगा । लोगों को लगता है कि दीपक गुप्ता नामांकन आमंत्रित करके फिलहाल 'गोटी' अपने हाथ में कर लेना चाहते हैं और फिर हालात के अनुरूप उन्हें जैसा करने में 'फायदा' दिखेगा, वैसा कर लेंगे । दीपक गुप्ता क्या करेंगे, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन उनके नामांकन आमंत्रित करने से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति की हलचल जरूर बढ़ गई है ।

Tuesday, July 23, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में विनय भाटिया के गवर्नर-वर्ष में रोटरी फाउंडेशन के लिए जुटी रकम को रोटरी फाउंडेशन के पैसों की लूट की 'तैयारी' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी के प्रोजेक्ट ग्रांट के लिए बढ़चढ़ कर आवेदन करने से भी इस तैयारी का शक बढ़ा है

नई दिल्ली । विनय भाटिया के गवर्नर-वर्ष में रोटरी फाउंडेशन के लिए जुटे 1.53 मिलियन अमेरिकी डॉलर की जिस रकम को उपलब्धि के रूप में देखा/दिखाया जा रहा है, उसे डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोग ही रोटरी फाउंडेशन के पैसों की लूट की 'तैयारी' के रूप में पहचान/समझ रहे हैं । यह पहचान और समझ दरअसल जुटी रकम को वर्गीकरण के लिहाज से देखने के कारण बनी है । रोटरी फाउंडेशन के लिए जो यह रकम जुटी है, उसका करीब 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा वास्तव में ग्लोबल ग्रांट के तहत रोटरी फाउंडेशन से मोटी रकम लेने के लिए 'दिया' गया है - जो रोटरी व रोटरी फाउंडेशन के आदर्शों व लक्ष्यों को उलट-पलट देने का काम करता है । उल्लेखनीय है कि रोटरी और रोटरी फाउंडेशन की बुनियाद इस विचार पर टिकी है कि समाज में मोटे तौर पर दो तरह के लोग होते हैं - एक वह समर्थ लोग जो दान दे सकते हैं, और दूसरे वह असमर्थ लोग जिन्हें दान की जरूरत होती है । रोटरी और रोटेरियंस इस बात पर गर्व करते रहे हैं कि वह पहले वाली श्रेणी के लोग हैं - लेकिन विनय भाटिया और उनके सलाहकारों ने डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस को दूसरी श्रेणी में खड़ा कर दिया है । विनय भाटिया के गवर्नर-वर्ष में रोटरी फाउंडेशन के लिए 1.53 मिलियन, यानि करीब 15 लाख अमेरिकी डॉलर की जो रकम इकट्ठा हुई है - उसका करीब 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा देने वाले लोगों/क्लब्स ने दी गई रकम के बदले में कई गुना रकम 'लेने' की योजना के साथ दिया है; यानि यह लोग/क्लब्स वास्तव में पहली श्रेणी के देने वाले नहीं, बल्कि दूसरी श्रेणी के दान 'लेने' वाले लोग हैं । 
उल्लेखनीय है कि रोटरी फाउंडेशन में मुख्यतः चार उद्देश्यों के लिए पैसा दिया/लिया जाता है - एनुअल फंड, पोलियो फंड, एंडोवमेंट फंड तथा प्रोजेक्ट ग्रांट के लिए अपना हिस्सा । विनय भाटिया के गवर्नर-वर्ष में 15 लाख अमेरिकी डॉलर से ज्यादा की जो रकम इकट्ठा हुई है, उसमें एनुअल फंड के लिए दो लाख अमेरिकी डॉलर से कम रकम जमा हुई है; पोलियो तथा एंडोवमेंट फंड के लिए कुल मिला कर एक लाख से कम अमेरिकी डॉलर जुटे हैं; बाकी बचे 12 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक रकम प्रोजेक्ट के लिए ग्रांट लेने के लिए मिली है - विनय भाटिया और उनके सलाहकार इसे गर्व की बात मानते हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों की निगाह में यह शर्म की बात है । शर्म की बात इसलिए क्योंकि यह तथ्य दिखाता है कि डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटेरियंस के लिए रोटरी सेवा करने की बजाये 'धंधा' करने/जमाने का जरिया बन गया है । रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन की प्रोजेक्ट ग्रांट को लेकर अभी जो बबाल हो चुका है, और उसमें जिस तरह से विनय भाटिया की मिलीभगत सामने आई है, उसके चलते उनके गवर्नर-वर्ष में प्रोजेक्ट ग्रांट के लिए लगी होड़ ने संदेह पैदा कर दिया है । यह संदेह रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी के बढ़चढ़ कर प्रोजेक्ट ग्रांट के लिए आवेदन करने से भी पैदा हुआ है । विनय भाटिया के गवर्नर-वर्ष में प्रोजेक्ट ग्रांट के नाम पर जो 12 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक रकम मिली है, उसमें करीब सवा दो लाख अमेरिकी डॉलर रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी से मिले हैं । रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी पूर्व प्रेसीडेंट राजेश गुप्ता के कार्यकाल में मिली एक ग्लोबल ग्रांट को लेकर आरोपों के घेरे में तथा विवाद में रहा है । आरोपों के चलते उक्त ग्रांट का तीन बार तो ऑडिट हुआ था; आरोपों के ही कारण क्लब के एक प्रेसीडेंट ने उक्त प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया, जिस कारण उक्त प्रोजेक्ट क्लब से छिन कर दूसरे क्लब के नाम करवाना पड़ा और बाद में उक्त प्रोजेक्ट के कर्ताधर्ता के रूप में राजेश गुप्ता का नाम भी हटाया गया । उसके बाद रवि चौधरी के गवर्नर वर्ष में क्लब ने एक और बड़ी ग्लोबल ग्रांट के लिए आवेदन किया, जिसे रवि चौधरी ने स्वीकार नहीं किया और दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में क्लब के कई पदाधिकारियों के सामने रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी गुलाम वाहनवती से इस बात की शिकायत की कि रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी के पदाधिकारियों ने रोटरी फाउंडेशन से ग्रांट लेने को धंधा बना लिया है, और उन्होंने इसीलिए उनके आवेदन को अस्वीकार कर दिया ।
रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल भी सदस्य हैं, इसलिए क्लब के पदाधिकारियों पर लगने वाला आरोप उनकी भूमिका को भी संदेहास्पद बना देता है । क्लब के पदाधिकारियों की ग्रांट लेने में दिखने वाली दिलचस्पी इसलिए भी संदेहास्पद है क्योंकि प्रोजेक्ट ग्रांट के नाम पर करीब सवा दो लाख अमेरिकी डॉलर देने वाला क्लब एनुअल फंड में एक हजार डॉलर की मामूली रकम ही देता है, तथा पोलियो फंड व एंडोवमेंट फंड में तो इकन्नी भी नहीं देता है । जाहिर है कि रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी की रोटरी के बुनियादी कामों में कोई रुचि नहीं है, उसका सारा ध्यान तो बस रोटरी फाउंडेशन से ग्रांट लेने में है । डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों का ही कहना है कि विनोद बंसल इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, इसलिए उन्हें अपने क्लब की 'गतिविधियों' पर ध्यान देना चाहिए और क्लब में ऐसी गतिविधियों को नहीं होने देना चाहिए, जिससे कि उनकी भूमिका भी संदेह और विवाद के घेरे में आए । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी पेश करने वाले अजीत जालान के क्लब ने भी विनय भाटिया के गवर्नर-वर्ष में ग्रांट जुगाड़ने के लिए प्रोजेक्ट बना कर उसके लिए अपना हिस्सा रोटरी फाउंडेशन में जमा कराया है । अजीत जालान का क्लब भी एकाउंट न देने के मामले में आरोपों का शिकार बन चुका है, और वह मामला काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग तक में आ गया था । अजीत जालान के क्लब ने एक ट्रस्ट भी बनाया था, जिसपर आरोप लगे थे कि रोटरी के पैसों की घपलेबाजी को अंजाम देने के लिए वह ट्रस्ट बनाया गया है । अजीत जालान और उनके नजदीकियों द्वारा बनाये गए उक्त ट्रस्ट को लेकर क्लब के भीतर व बाहर ऐसी घेरेबंदी की गई कि उस ट्रस्ट को बंद कर देने के लिए अजीत जालान और उनके साथी मजबूर हुए थे । उन्हीं बातों को याद/ध्यान करते हुए कई लोगों को शक है कि अजीत जालान द्वारा अपने क्लब से ग्लोबल ग्रांट के लिए आवेदन करवाने के पीछे कहीं यह उद्देश्य तो नहीं है कि रोटरी फाउंडेशन से मिली ग्रांट में 'डंडी' मार कर वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी में खर्च होने वाले पैसों को जुटा लें । रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन को मिली और फिर वापस हुई रोटरी फाउंडेशन की ग्रांट में विनय भाटिया की मदद से होने वाली घपलेबाजी की कोशिश जिस तरह से बेनकाब हुई है, उसके कारण उनके गवर्नर-वर्ष में रोटरी फाउंडेशन के लिए इकट्ठा हुई रकम के ऐवज में मंजूर हुईं ग्रांट्स संदेह के घेरे में आ गई हैं - खासकर उन क्लब्स की ग्रांट्स, जो पहले से ही वित्तीय घपलेबाजी के आरोपों में घिरे रहे हैं । ऐसे में, विनय भाटिया के गवर्नर-वर्ष में रोटरी फाउंडेशन के लिए इकट्ठा हुई 15 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक की रकम गर्व करने की बजाये शर्म का कारण बन गई लग रही है ।

Sunday, July 21, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी फाउंडेशन के पैसों पर सीधे सीधे 'डकैती' डालने वाला प्रोजेक्ट अंततः रद्द हुआ; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन से कुछेक लोगों की माँग कि उन्हें तुरंत काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुलाना चाहिए और उस मीटिंग में उक्त प्रोजेक्ट को हरी झंडी देने से लेकर उसे बनाये रखने की कोशिशें करने वाले और उन्हें समर्थन देने वाले गवर्नर्स की भूमिका की निंदा का प्रस्ताव पास कराना चाहिए

नई दिल्ली । रोटरी फाउंडेशन के पैसों की लूट के मामले में महीनों से तरह तरह से आँखों में धूल झोंकने की कुछेक गवर्नर्स की कोशिशें मामले के 'रचनात्मक संकल्प' में प्रकाशित होने के बाद तीन दिन भी आगे नहीं बढ़ सकीं और धराशाही हो गईं । 'रचनात्मक संकल्प' ने 17 जुलाई को उक्त मामले की एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन ने 20 जुलाई को एक संदेश के जरिए जानकारी दी कि गरीब बच्चों को फ्री एजुकेशन देने के नाम पर करीब 50/60 लाख रूपए अपनी जेबों में भरने के लिए कुछेक गवर्नर्स ने जो प्रोजेक्ट बनाया था, उसे बंद कर दिया गया है और रोटरी फाउंडेशन से मिला पैसा जल्दी ही वापस कर दिया जायेगा । इस मामले में मजेदार बात यह हुई कि निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया की तरफ से सफाई सुनी गई कि इस मामले में उन्हें नाहक ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जबकि इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी ने दिखाई थी । रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन के उक्त प्रोजेक्ट को लेकर शुरु से ही विवाद था, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी ने किसी की नहीं सुनी थी और आनन-फानन में उन्होंने उक्त प्रोजेक्ट को क्लियर कर दिया था । प्रोजेक्ट को आनन-फानन में क्लियर करवाने में उस वर्ष डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेटर रहे अशोक कंतूर तथा रवि चौधरी के समर्थन के भरोसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव लड़ रहे संजीव राय मेहरा की भी अहम् भूमिका थी । विनय भाटिया रोटरी फाउंडेशन के 50/60 लाख रुपयों की लूट के मामले में सारा दोष भले ही रवि चौधरी, संजीव राय मेहरा व अशोक कंतूर पर डालने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन लोगों का कहना है कि उस समय डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में विनय भाटिया उन्हीं के बड़े खास हुआ करते थे और बाद में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनय भाटिया को जब 'बहती गंगा' में हाथ धोने का मौका मिला तो उन्होंने भी पूरी बेशर्मी के साथ बेईमानीभरे उक्त प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने का काम किया । 
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन ने अपने संदेश में उक्त प्रोजेक्ट के रद्द होने की सूचना देते हुए दावा किया है कि प्रोजेक्ट को रद्द करने की कार्रवाई डिस्ट्रिक्ट 3011 के कामकाज में पारदर्शिता बने रहने की प्रतिबद्धता का एक उदाहरण है । सुरेश भसीन के इस दावे को झूठ के पुलिंदे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है और कहा जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के कामकाज में यदि सचमुच पारदर्शिता होती तो उक्त प्रोजेक्ट क्लियर ही नहीं होता और यदि हो भी गया था तो रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल को ट्रांसफर न हो पाता । लोगों का कहना है कि रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन के प्रेसीडेंट सुरेश गुप्ता यदि मामले को न उठाते और 'रचनात्मक संकल्प' में उक्त मामले की रिपोर्ट यदि प्रकाशित न होती तो पारदर्शिता की ऐसीतैसी करते हुए कुछेक गवर्नर्स ने रोटरी फाउंडेशन के 50/60 लाख रुपए हजम करने की पूरी 'व्यवस्था' कर ली थी । कुछेक लोगों का कहना है कि सुरेश भसीन डिस्ट्रिक्ट के कामकाज में पारदर्शिता यदि सचमुच बनाना चाहते हैं तो उन्हें तुरंत काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुलाना चाहिए और उस मीटिंग में उक्त प्रोजेक्ट को हरी झंडी देने से लेकर उसे बनाये रखने की कोशिशें करने वाले और उन्हें समर्थन देने वाले गवर्नर्स की भूमिका की निंदा का प्रस्ताव पास कराना चाहिए तथा और कुछ नहीं तो कम-से-कम उन्हें चेतावनी तो देना ही चाहिए । ऐसा करना इसलिए जरूरी है ताकि आगे इस तरह की जालसाजी न हो सके। ऐसा करना इसलिए और भी जरूरी है, क्योंकि उक्त प्रोजेक्ट के जरिये रोटरी फाउंडेशन के पैसों को हड़पने की योजना में शामिल लोग किसी न किसी रूप में सत्ता में आने वाले हैं या आने के प्रयासों में लगे हैं । रवि चौधरी व संजीव राय मेहरा की जो जोड़ी उक्त प्रोजेक्ट को हरी झंडी देने के लिए जिम्मेदार ठहराई जा रही है, वही जोड़ी अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में फिर से इसी तरह के मौके बना सकती है; अशोक कंतूर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बनने के लिए तैयार घूम रहे हैं, और विनय भाटिया इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव/चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी करते हुए सुने/बताए जा रहे हैं । 
बेईमानीपूर्ण इरादों से सुसज्जित उक्त प्रोजेक्ट के रद्द हो जाने से यह बात भी साबित हुई है और सबक मिला है कि आम रोटेरियंस यदि चाहें और कोशिश करें, तो गवर्नर्स की बेईमानियों को रोका जा सकता है । रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन के पिछले वर्ष के पदाधिकारियों तथा मौजूदा प्रेसीडेंट सुरेश गुप्ता ने इस मामले में जिस तरह की दिलचस्पी दिखाई, और मामले को लगातार उठाते रहे - उसके कारण बेईमान गवर्नर्स तथा पीछे से उन्हें समर्थन व हौंसला देने वाले गवर्नर्स की हिम्मत भी जबाव दे गई और उन्होंने प्रोजेक्ट को बनाये रखने की कोशिशों से हाथ खींच लिए । कुछेक लोगों का हालाँकि मानना/कहना है कि इस मामले में बेईमानों को मिली हार से ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है; क्योंकि यह मामला इस बात का भी सुबूत है कि बेईमान गवर्नर्स के हौंसले इस हद तक बुलंद हैं कि वह रोटरी फाउंडेशन के पैसों पर सीधे सीधे 'डकैती' डालने से भी नहीं हिचकिचाए - इसलिए उन्हें तात्कालिक झटका भले ही लगा हो, लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज तो नहीं ही आयेंगे । यह मामला कितना बड़ा था, और इसके चलते डिस्ट्रिक्ट की साख व पहचान किस हद तक दाँव पर लग गई थी - इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि प्रोजेक्ट के रद्द होने की जानकारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को देने की जरूरत पड़ी । इससे पहले शायद ही कभी किसी डिस्ट्रिक्ट में ऐसा हुआ हो कि किसी प्रोजेक्ट के मिलने और या रद्द होने की जानकारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने लोगों को दी हो । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन इस प्रोजेक्ट के रद्द होने को भले ही डिस्ट्रिक्ट के कामकाज में पारदर्शिता बने रहने के उदाहरण के रूप में देख/बता रहे हों, लेकिन डिस्ट्रिक्ट के ही कई लोगों को लगता है कि कुछेक गवर्नर्स की हरकतों पर यदि निगाह नहीं रखी गई, तो फिर वह रोटरी के पैसों को लूटने की अपनी हरकतों से बाज नहीं आयेंगे । 

Saturday, July 20, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन हरीश चौधरी के नाकारापन के चलते कार्यक्रमों तक को लेकर श्वेता पाठक व अविनाश गुप्ता के बीच बनी संवादहीनता ने न सिर्फ सेमीनार को रद्द करवाया, बल्कि काउंसिल के माहौल को और खराब किया

नई दिल्ली । अविनाश गुप्ता के को-ऑर्डिनेशन में आज होने वाले सेमीनार के स्थगित होने से नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्यों के बीच चल रहा झगड़ा एक बार फिर मुखर हो उठा है । पिछले कुछेक दिनों से रीजनल काउंसिल में शांति बनी हुई थी, जिसके चलते लोगों को लग रहा था कि काउंसिल सदस्यों ने झगड़े से तौबा कर ली है और अब काउंसिल का कामकाज बिना किसी बाधा के आगे बढ़ेगा; लेकिन यह उम्मीद झूठी साबित हुई है और पता चला कि जिसे शांति-काल समझा जा रहा था - वह दरअसल तूफान से पहले की तैयारी के लिए लिया गया 'ब्रेक' था । मजे की बात यह है कि 20 जुलाई के सेमीनार के को-ऑर्डिनेटर के रूप में जब अविनाश गुप्ता का नाम सामने आया, तो कई लोगों ने पहले से ही घोषणा कर दी थी कि इस कार्यक्रम को लेकर अवश्य ही बबाल होगा और बहुत संभव है कि यह सेमीनार हो ही न सके । इससे भी ज्यादा मजे की बात यह है कि सेमीनार के रद्द होने की घोषणा वाले जिस संदेश में वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक को जिम्मेदार ठहराया गया है, उसे तैयार करने तथा भेजने की अनुमति/स्वीकृति देने की जिम्मेदारी से काउंसिल के सभी सदस्य बच रहे हैं । यह किस्सा दरअसल इस बात का एक उदाहरण भी है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में कामकाज आखिर हो कैसे रहा है - जब काउंसिल के किसी भी पदाधिकारी और या सदस्य ने उक्त संदेश तैयार करने व भेजने की अनुमति/स्वीकृति देने का काम नहीं किया है, तो उक्त संदेश काउंसिल की तरफ से लोगों को चला कैसे गया; और काउंसिल सदस्य इसकी जाँच-पड़ताल करने/करवाने को लेकर भी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । वास्तव में सिर्फ यह किस्सा ही नहीं, बल्कि पूरा वाकया ही काउंसिल में फैली अराजकता और सदस्यों व पदाधिकारियों की मनमानियों का नजारा व सुबूत पेश करता है ।
वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक इस बात पर भड़की हुई हैं कि काउंसिल की तरफ से भेजे गए संदेश में पर्चेज ऑर्डर पर उनके द्वारा साइन न करने को सेमीनार के रद्द होने का कारण बताते हुए उन्हें लोगों के बीच बदनाम करने की कोशिश की गई है । उनकी तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि सेमीनार करने की तैयारी को लेकर उनसे जब कभी कोई बात ही नहीं की गई, उनसे न कुछ पूछा गया और न उन्हें कुछ बताया गया - तो उन्हें भला कौन से पर्चेज ऑर्डर पर साइन करने थे; क्या उनसे यह उम्मीद की जा रही है कि कोई भी मनमाने तरीके से पर्चेज ऑर्डर बना ले और वह आँख बंद करके उस पर साइन कर दें ? दूसरी तरफ अविनाश गुप्ता से हमदर्दी रखने वाले लोगों का यह भी मानना/कहना है कि प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर के रूप में अविनाश गुप्ता यदि श्वेता पाठक से कार्यक्रम की तैयारी के संबंध में बात करते भी तो भी श्वेता पाठक कोई न कोई मीन-मेख निकाल कर बखेड़ा खड़ा करती हीं और फिर मामला खराब ही होता । इस आशंका को यदि सच मान भी लिया जाए तो भी यह सवाल तो बना ही रहता है कि एक प्रोग्राम का को-ऑर्डिनेटर यदि पर्चेज कमेटी के मुखिया को प्रोग्राम की तैयारी तथा उसकी जरूरतों से अवगत नहीं करवाता है, तो पर्चेज कमेटी का मुखिया आखिर किस बिना पर पर्चेज ऑर्डर पर साइन कर दे ? दरअसल काउंसिल के पदाधिकारियों और सदस्यों के बीच संवाद हीनता की स्थिति ने ही ऐसे हालात बनाए हुए हैं और काउंसिल के कामकाज को बुरी तरह प्रभावित किया हुआ है । काउंसिल के पदाधिकारियों तथा सदस्यों के बीच संवाद या तो है ही नहीं, और जो है उसमें प्रायः तेज चीखने-चिल्लाने व गाली-गलौच भरे शब्द हैं । 'रचनात्मक संकल्प' को चार से पाँच मिनट का एक ऐसा ऑडियो मिला है, जिसमें चेयरमैन हरीश मल्होत्रा के साथ रीजनल काउंसिल के ही कुछेक सदस्य खासी आक्रामक, अशालीन व गाली-गलौच भरी भाषा में बात कर रहे हैं; बात क्या कर रहे हैं, उन्हें हड़का रहे हैं । काउंसिल सदस्यों तथा स्टॉफ के सदस्यों का कहना/बताना है कि काउंसिल के पदाधिकारी और सदस्य एक-दूसरे से प्रायः सड़कछाप तरीके से ही पेश आते हैं और एक दूसरे के साथ चीखते-चिल्लाते हुए व गाली-गलौच करते हुए ही बात करते हैं ।
इस सारी स्थिति के लिए हर कोई चेयरमैन हरीश चौधरी को ही जिम्मेदार ठहराता है । काउंसिल के हालचाल से परिचित लोगों का कहना है कि चेयरमैन के रूप में हरीश चौधरी में न तो कोई अपनी अक्ल/समझ है, और न ही वह नियम-कानून का पालन करने में दिलचस्पी लेते हैं - और इसीलिए लगातार वह खुद भी फजीहत का शिकार बनते हैं और काउंसिल का कामकाज भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है । पिछले दिनों एक अनौपचारिक मीटिंग में वरिष्ठ सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने उन्हें स्पष्ट रूप से समझाया/बताया था कि नियमानुसार काउंसिल में वह कोई भी काम सेक्रेटरी की सहमति/स्वीकृति के बिना नहीं कर सकते हैं । कई वरिष्ठ व अनुभवी लोगों का मानना और कहना है कि हरीश चौधरी यदि फैसलों की प्रक्रिया में सेक्रेटरी पंकज गुप्ता को शामिल रखें तो बहुत ही समस्याएँ पैदा ही नहीं होंगी । माना जा रहा है कि कई मुसीबतों को हरीश चौधरी ने स्वयं ही पैदा किया हुआ है - जिस धोखाधड़ी से वह चेयरमैन बने, उसके चलते रतन सिंह यादव व अजय सिंघल उनसे खफा हैं और वह तरह तरह से उनके सामने मुश्किलें खड़ी करते रहते हैं; उन मुश्किलों से बचाने के लिए नितिन कँवर, राजेंद्र अरोड़ा, सुमित गर्ग, अविनाश गुप्ता उनकी मदद करते हैं तो श्वेता पाठक, पंकज गुप्ता, विजय गुप्ता जैसे पदाधिकारियों की उपेक्षा होती है और तब वह अपने दाँव चलते हैं; उनके दाँव से बचने के लिए हरीश चौधरी उनकी सुनते हैं तो नितिन कँवर, राजेंद्र अरोड़ा, सुमित गर्ग, अविनाश गुप्ता उनकी ऐसीतैसी करने में जुट जाते हैं । इन सब से वह किसी तरह बचते हैं तो 'न तीन में न तेरह में' वाले गौरव गर्ग धरने जैसी नौटंकी करने लगते हैं । इस सब नौटंकी से परिचित लोगों का कहना है कि वास्तव में चेयरमैन के रूप में हरीश चौधरी के नाकारापन तथा ढुलमुल रवैये के कारण ही काउंसिल में अराजकता का माहौल बना है और कामकाज का मजाक बना हुआ है । 'सर्वे, सर्च एंड सीज़र' जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर आज होने वाला सेमीनार जिस तरीके से रद्द हुआ है, उससे आभास मिल रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में हालात जल्दी नहीं सुधरने वाले हैं ।

Friday, July 19, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के अधिष्ठापन समारोह में प्रेसीडेंट्स, असिस्टेंट गवर्नर्स के साथ-साथ वरिष्ठ रोटेरियंस व गवर्नर्स की उत्साही उपस्थिति ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए ललित खन्ना की उम्मीदवारी को प्रभावी रूप से उत्साहित करने का काम किया

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के क्लब के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत ललित खन्ना की उम्मीदवारी के अभियान को और मजबूती देने का काम किया है । वास्तव में उक्त अधिष्ठापन समारोह को ललित खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थन-आधार की झलक पाने-दिखाने के रूप में ही डिजाईन किया गया था; और कह सकते हैं कि उसका नतीजा भी उनकी तैयारी के अनुरूप ही निकला/रहा । उल्लेखनीय है कि चुनावी राजनीति के चलते रोटरी में दरअसल यह प्रथा ही बन गई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के क्लब का अधिष्ठापन समारोह नए पदाधिकारियों की बजाये वास्तव में उम्मीदवार का 'शो' बन जाता है - और उसमें जुटे लोगों की पहचान के आधार पर उम्मीदवार की ताकत और कमजोरी का शुरुआती आकलन किया जाता है । संख्या के हिसाब से रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के - नहीं, ललित खन्ना के - समारोह में भीड़ तो अच्छी जुटी ही; उस भीड़ में प्रेसीडेंट्स और असिस्टेंट गवर्नर्स की अच्छी-खासी उपस्थिति ने ललित खन्ना की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को बम बम भी किया । समारोह में प्रायः सभी असिस्टेंट गवर्नर्स थे और प्रेसीडेंट्स की संख्या भी 70 के करीब सुनी/बताई गई । समारोह में डिस्ट्रिक्ट के प्रायः हर क्षेत्र - दिल्ली, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों/कस्बों तथा सोनीपत के क्लब्स के सदस्यों की अच्छी खासी संख्या थी; और कई क्लब्स के छोटे/बड़े समझे जाने वाले नेता लोग भी समारोह की रौनक बढ़ा रहे थे ।  गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों/कस्बों तथा सोनीपत के रोटेरियंस की उपस्थिति ने ललित खन्ना की उम्मीदवारी को खासा उत्साहित करने का काम किया ।
समारोह में मौजूद डिस्ट्रिक्ट के कुछेक वरिष्ठ रोटेरियंस ने इस मजेदार संयोग को भी रेखांकित किया कि जेके गौड़ और उनके बाद जिस उम्मीदवार के क्लब का अधिष्ठापन समारोह इस जगह पर हुआ है, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव उसी ने जीता है । उम्मीदवार के रूप में ललित खन्ना लेकिन संयोगों पर निर्भर नहीं हैं; और कई एक वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना रहा कि ललित खन्ना इस बार अपने चुनाव अभियान में कहीं कोई कमी नहीं रहने देना चाहते हैं और हर तरफ ध्यान दे रहे हैं । पिछले महीनों में ललित खन्ना ने प्रेसीडेंट्स तथा वरिष्ठ रोटेरियंस के बीच काफी प्रभावी तरीके से संपर्क-अभियान चलाया है - समारोह में डिस्ट्रिक्ट के कई आम और खास लोगों की उपस्थिति को उनके उसी संपर्क-अभियान के नतीजे के रूप में देखा/समझा गया है । ललित खन्ना ने इस बार के अधिष्ठापन समारोह को इस तरह से डिजाईन किया कि उनका समारोह सिर्फ समारोह के रूप में ही नहीं था, बल्कि उसमें रोटरी के उद्देश्य व लक्ष्य भी थे - अधिष्ठापन समारोह में क्लब ने 17 नए प्रोजेक्ट्स की शुरुआत की घोषणा की तथा दो ग्लोबल ग्रांट्स के प्रोजेक्ट्स घोषित हुए; ग्लोबल ग्रांट्स के तहत घोषित किए गए दो प्रोजेक्ट्स में एक में ललित खन्ना का क्लब एक विदेशी क्लब से मदद ले रहा है, तथा दूसरे में उनका क्लब एक अन्य विदेशी क्लब को मदद दे रहा है । समारोह में एक और खास बात यह रही कि इसमें इनरव्हील की एक पूर्व प्रेसीडेंट तथा दो पूर्व एसोसिएटेड प्रेसीडेंट तथा ललित खन्ना की पत्नी नीलु खन्ना के अलावा दो अन्य पूर्व डिस्ट्रिक्ट चेयरपरसन उपस्थित हुईं - और उनकी उपस्थिति ने रोटेरियंस को, खासतौर से प्रेसीडेंट्स को रोटरी परिवार की अवधारणा से परिचित होने का मौका दिया और उन्हें विशेष रूप से प्रभावित किया ।
ललित खन्ना की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के संपर्क-अभियान के असर को जाँचने/परखने तथा उसे और गति देने के उद्देश्य से आयोजित हुए समारोह में कई गवर्नर्स के शामिल होने से भी ललित खन्ना की उम्मीदवारी के अभियान को 'वजन' मिलता नजर आया । हालाँकि यह देखने की बात होगी कि 'समय' पर कौन उनकी उम्मीदवारी के सचमुच काम आता है, लेकिन कई एक गवर्नर्स ने जिस उत्साह के साथ ललित खन्ना की और उनकी लीडरशिप क्वालिटी की प्रशंसा की, उससे उपस्थित लोगों के बीच ललित खन्ना की 'पहचान' का रंग कुछ गाढ़ा तो हुआ ही - और यह बात उनकी उम्मीदवारी के अभियान को सुदृढ़ तो करती नजर आई भी । ललित खन्ना की उम्मीदवारी की नाव को पिछले दिनों कुछ हिचकोले खाने पड़े हैं, लेकिन क्लब के अधिष्ठापन समारोह को भव्यता तथा रोटेरियंस की व्यापक उपस्थिति के साथ आयोजित करके ललित खन्ना ने अपनी उम्मीदवारी की नाव को स्थिरता व मजबूती देने का जो काम किया है, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य को रोमांचक बना दिया है । 

Wednesday, July 17, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में प्रोजेक्ट के नाम पर रोटरी फाउंडेशन के पैसों की लूट के मामले को तथा इस मामले में डिस्ट्रिक्ट के कुछेक गवर्नर्स की मिलीभगत को रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन के प्रेसीडेंट सुरेश गुप्ता ने बेनकाब किया

नई दिल्ली । रोटरी फाउंडेशन के पैसों की 'लूट' के मामले में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स रमन भाटिया, नरसिम्हन सुब्रमणियन व सुशील खुराना तथा निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया व मौजूदा गवर्नर सुरेश भसीन तथा इन दोनों के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर विनोद बंसल के बीच जो एकता 'दिखी' है, वह रोटरी में लूट-खसोट के तंत्र की जड़ों के व्यापक होने का आभास देती है । मामला एक ग्लोबल ग्रांट (जीजी 1755679) का है, जिसके तहत रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन को दिल्ली के पटेल नगर के नजदीक स्थित कठपुतली कॉलोनी में 'कठपुतली कॉलोनी फ्री एजुकेशन सेंटर' के लिए करीब 88 लाख रुपए मिले । यह ग्रांट क्लब के वरिष्ठ सदस्य व पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन भाटिया के प्रयासों से मिली बताई गई । लेकिन क्लब में ही इस ग्रांट और इससे जुड़े प्रोजेक्ट को लेकर संदेह पैदा हो गया और आरोप लगने लगे कि यह ग्रांट बच्चों को फ्री एजुकेशन देने के लिए नहीं, बल्कि कुछेक वरिष्ठ रोटेरियंस की जेबें भरने के लिए ली गई है । पिछले रोटरी वर्ष में क्लब के पदाधिकारियों को शिकायत मिली, तो जाँच-पड़ताल के लिए क्लब के वरिष्ठ सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई - जिसके मुखिया तत्कालीन प्रेसीडेंट इलेक्ट सुरेश गुप्ता बने । कमेटी ने कुछेक प्रोफेशनल एक्सपर्ट्स की मदद लेकर की गई अपनी जाँच-पड़ताल में प्रोजेक्ट को पूरा करने की तैयारी को फर्जी व झूठा पाया और प्रोजेक्ट के खर्चे के आकलन को तीन से चार गुना तक बढ़ा-चढ़ा देखा । कमेटी ने पाया/समझा कि जो काम किया जाना है, उसमें मुश्किल से 25 से 30 लाख रुपए के बीच रकम खर्च होनी है, लेकिन रोटरी फाउंडेशन से उसके लिए करीब 88 लाख रुपए ले लिए गए हैं । प्रोजेक्ट की आड़ में की जाने वाली पैसों की इस भारी लूट का पता चलने पर रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन के पदाधिकारियों ने इस प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिए और रोटरी फाउंडेशन से मिले पैसे ब्याज सहित वापस कर दिए ।
मामला यहाँ खत्म हो जाना चाहिए था - लेकिन यदि सचमुच खत्म हो जाता तो रोटरी में बने लूट-तंत्र की जड़ों के फैले होने की बात कैसे सामने आती ? रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन ने उक्त ग्रांट छोड़ी, तो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरसिम्हन सुब्रमणियन की 'गिद्ध' दृष्टि इस पर पड़ी और उन्होंने अपने क्लब के लिए उसी प्रोजेक्ट व ग्रांट को ले लिया । इस तरह प्रोजेक्ट तो वही रहा, लेकिन उसके 'माई-बाप' बदल गए और ग्रांट का नाम/नंबर भी बदल कर जीजी 1987611 हो गया और उसका खर्च भी पहले जितना ही रहा । इस मामले में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया और डीआरएफसी सुशील खुराना की भूमिका भी संदिग्ध रही । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनय भाटिया और डीआरएफसी के रूप में सुशील खुराना के जरिये ही रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन ने उक्त ग्रांट वापस की थी और इन दोनों को ही इस तथ्य से अवगत कराया था कि प्रोजेक्ट के नाम पर तीन से चार गुना ज्यादा रकम रोटरी फाउंडेशन से बसूलने की तैयारी की गई थी । इस तरह, रोटरी फाउंडेशन के पैसों की 'लूट' की बात जानते हुए भी विनय भाटिया और सुशील खुराना ने उक्त प्रोजेक्ट पहले वाले खर्चे पर ही रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल के नाम करवा दिया । विनय भाटिया और सुशील खुराना की इस हरकत को देखते हुए आरोप लगा कि उक्त ग्रांट के बढ़े पैसों के बँटवारे में इन दोनों का भी हिस्सा तय हो गया होगा, और इसीलिए इन्होंने रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन की 'शिकायत' को अनदेखा कर दिया । विनय भाटिया के गवर्नर-वर्ष के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर विनोद बंसल की भूमिका भी संदेह के घेरे में आई । आरोप लगा कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर होने के नाते विनोद बंसल को यह तो पता होगा ही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनय भाटिया जानते-बूझते हुए रोटरी फाउंडेशन के पैसों की लूट के मामले में क्या गुल खिला रहे हैं, लेकिन तब भी उन्होंने मामले में चुप बने रहने का फैसला किया और लूट की कार्रवाई को होने दिया ।        
प्रोजेक्ट के नाम पर रोटरी फाउंडेशन से तीन से चार गुना पैसा लेने का आरोप लगा कर वापस की गई ग्रांट रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल को मिल जाने की बात रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन के पदाधिकारियों को पता चली, तो वह भड़क गए और हैरान रह गए - उनकी हैरानी का कारण यही रहा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और डीआरएफसी जैसे प्रमुख पदों पर बैठे लोग कैसे जानते-बूझते हुए भी रोटरी फाउंडेशन के पैसों की लूट में शामिल रहते हैं । इस बीच डिस्ट्रिक्ट में सत्ता बदल गई । रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन के पदाधिकारियों ने लेकिन चुप रहने की बजाये मामले को उठाने तथा अपनी आपत्ति दर्ज करने/करवाने का फैसला किया । क्लब के प्रेसीडेंट सुरेश गुप्ता ने मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन को एक लंबा पत्र लिख कर पूरे मामले की जानकारी दी और उनसे अनुरोध किया कि उक्त प्रोजेक्ट के खर्चे का प्रोफेशनल एक्सपर्ट्स की मदद से आकलन कराया जाए और जरूरत से ज्यादा पैसे को रोटरी फाउंडेशन को वापस किया जाए । सुरेश गुप्ता ने अपने पत्र में मुद्दे की बात यह भी उठाई है कि प्रोजेक्ट के नाम पर खर्चों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने तथा इस तरह रोटरी फाउंडेशन के पैसों को लूटने की प्रवृत्ति पर यदि रोक नहीं लगाई गई, तो इससे एक तरफ तो रोटरी फाउंडेशन में दान देने वाले लोगों की सोच पर प्रतिकूल असर पड़ेगा और दूसरी तरफ रोटरी फाउंडेशन के बड़े पदाधिकारियों के बीच देश के रोटेरियंस का नाम खराब होगा । सुरेश गुप्ता ने अपने पत्र में इस बात की जरूरत को भी रेखांकित किया है कि डिस्ट्रिक्ट में ग्लोबल ग्रांट के आवेदनों की गहराई से पड़ताल होना चाहिए ताकि बूढ़ों, गरीबों, बीमारों, अनपढ़ों के नाम पर प्रोजेक्ट्स बना कर रोटरी फाउंडेशन के पैसों को हड़पने/लूटने की कोशिशों पर रोक लग सके । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन को लिखे पत्र की प्रतिलिपि सुरेश गुप्ता ने काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों को भी भेजी है - और इसे लिखे/भेजे हुए करीब दस दिन हो गए हैं; लेकिन अभी तक तो किसी के कानों पर जूँ रेंगती हुई नहीं दिखी है । देखना दिलचस्प होगा कि रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन के पदाधिकारियों द्वारा शुरू की गई मुहिम तथा उसके प्रेसीडेंट सुरेश गुप्ता द्वारा लिखे पत्र से रोटरी फाउंडेशन के पैसों की होने वाली लूट रुकती है, या गवर्नर्स मिलजुल कर मामले में लीपापोती कर लेते हैं ।

Saturday, July 13, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अचानक से प्रस्तुत हुई मनीष गोयल की उम्मीदवारी के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में ललित खन्ना की उम्मीदवारी के समीकरणों में सेंध लगने की स्थिति सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को फायदा पहुँचाती लग रही है

नई दिल्ली । मनीष गोयल इंकार करते करते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी संग्राम में आखिरकार कूद ही पड़े हैं । यही तमाशा पिछले दिनों अशोक जैन ने किया/दिखाया था; वह भी ना ना करते हुए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर बैठे थे, लेकिन जल्दी ही उन्हें यह समझ में आ गया कि यह 'खेल' उनके बस का है नहीं - सो वह चुपचाप वापस हो लिए । मनीष गोयल को जानने वालों का कहना है कि यह खेल मनीष गोयल के बस का भी नहीं है, और यदि उनकी सद्बुद्धि वापस लौटी तो वह भी अशोक जैन वाली होशियारी दिखायेंगे - अन्यथा उनका हाल रवि सचदेवा जैसा होगा । मनीष गोयल के मामले में दो बातें गौर करने वाली हैं : एक यह कि उनके नजदीकी और डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ी पिछले करीब दो महीने से उन्हें उम्मीदवार बनने के लिए उकसा/भड़का रहे थे, लेकिन अपनी तात्कालिक पारिवारिक जिम्मेदारियों का वास्ता देकर वह कह/बता रहे थे कि इस वर्ष तो उम्मीदवार बन पाना उनके लिए असंभव ही होगा ।उनके नजदीकी एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने इन पंक्तियों के लेखक से बताया है कि मनीष गोयल ने अपनी कुछेक ऐसी तात्कालिक पारिवारिक जिम्मेदारियों का जिक्र किया, जिन्हें सुन/जान कर उन्हें भी लगा कि इस वर्ष उम्मीदवार बनना मनीष गोयल के लिए मुसीबतभरा ही होगा और इसीलिए उन्होंने मनीष गोयल से उम्मीदवारी की बात करना बंद कर दिया था । गौर करने वाली दूसरी बात मनीष गोयल का वह सार्वजनिक कथन है जो उन्होंने डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी बनाए जाने पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को थैंक्यू कहते हुए दर्ज किया था, जिसमें उन्होंने अपने सेक्रेटरी-वर्ष को 'लर्निंग ईयर' (सीखने वाला वर्ष) कहा था । इन दो बातों पर गौर करते हुए कह सकते हैं कि अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करते हुए मनीष गोयल ने खुद अपने द्वारा ही बताई गईं अपनी गंभीर पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लिया है; और जो 'लर्निंग' उन्हें पूरे वर्ष करनी थी, वह उन्होंने शुरू के महीने के पहले सप्ताह में ही कर ली है ।
इसीलिए मनीष गोयल की उम्मीदवारी पर सबसे पहली प्रतिक्रिया के रूप में डिस्ट्रिक्ट के लोगों का कहना यही है कि ऐसा कन्फ्यूज्ड व्यक्ति डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनेगा भी, तो करेगा क्या ? लोगों का कहना यही है कि उम्मीदवारी प्रस्तुत करने में मनीष गोयल ने जितनी जो देरी की है, उससे ही साबित है कि यह उनका 'अपना' फैसला नहीं है, वह तो बस किन्हीं और लोगों के उकसाने/भड़काने के चलते उम्मीदवार बन गए हैं । मनीष गोयल किन लोगों के उकसाने/भड़काने के चलते उम्मीदवार बने हैं, इसे लेकर डिस्ट्रिक्ट के लोगों की राय बँटी हुई है; कुछेक लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, तो अन्य कुछेक लोग इसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को जिम्मेदार मान रहे हैं । मनीष गोयल को डिस्ट्रिक्ट में हालाँकि पूर्व गवर्नर मुकेश अरनेजा के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है; मुकेश अरनेजा को लेकिन सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के समर्थन में देखा/पहचाना जा रहा है - इसलिए यह बात पहेली भी बनी हुई है कि मनीष गोयल आखिर किस भरोसे उम्मीदवार बने हैं ? डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच चर्चा यही है कि दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता ने अपने अपने 'स्वार्थ' में मनीष गोयल को बलि के लिए बकरा बना दिया है । मनीष गोयल की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में कोई भी गंभीरता से लेता हुआ भले ही न दिख रहा हो, लेकिन उनकी अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य को नाटकीय बनाने का काम तो किया ही है - और इस नाटकीय परिदृश्य में ललित खन्ना के लिए मुसीबत बढ़ती देखी जा रही है, और ललित खन्ना की बढ़ती मुसीबत में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को फायदा होने का अनुमान लगाया जा रहा है ।
ललित खन्ना दरअसल अभी तक दीपक गुप्ता और उनकी कोर टीम का एकतरफा समर्थन पाते हुए नजर आ रहे थे; मनीष गोयल की उम्मीदवारी के आने से जिसके बँटने का खतरा पैदा हो गया है । ललित खन्ना के कुछेक शुभचिंतकों का हालाँकि दावा है कि ललित खन्ना ने दीपक गुप्ता के लिए जो किया है, उसे देखते हुए दीपक गुप्ता उनके साथ धोखा नहीं करेंगे; लेकिन उनके सामने सवाल यह है कि मनीष गोयल की उम्मीदवारी के पीछे यदि दीपक गुप्ता नहीं हैं, तो दीपक गुप्ता उम्मीदवारी घोषित करने के बाद मनीष गोयल को डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी के पद से हटा क्यों नहीं देते हैं और क्लब्स की मीटिंग्स में उन्हें अपने साथ ले जाना बंद क्यों नहीं कर देते हैं ? दीपक गुप्ता को 'जानने' वाले लोगों का कहना तो यहाँ तक है कि दीपक गुप्ता ने वास्तव में ललित खन्ना की 'लगाम कसने' के लिए ही मनीष गोयल को उम्मीदवार बनाया है, और इसीलिए वह मनीष गोयल को डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी बनाए रखेंगे । जो लोग मनीष गोयल की उम्मीदवारी के पीछे आलोक गुप्ता को देख रहे हैं, उनका कहना है कि अपनी गवर्नरी की 'धमक' पैदा करने के लिए उन्हें एक उम्मीदवार चाहिए था; दरअसल रोटरी में गवर्नरी तभी 'पूरी हुई' मानी जाती है जब वह किसी और को गवर्नर बनवाता है - जैसे जेके गौड़ ने सुभाष जैन को बनवाया, सुभाष जैन ने अशोक अग्रवाल को बनवाया, दीपक गुप्ता व आलोक गुप्ता को सतीश सिंघल के 'प्रॉडक्ट' के रूप में देखा/पहचाना जाता है, दीपक गुप्ता ने ललित खन्ना का झंडा उठा लिया; आलोक गुप्ता के पास हालाँकि गवर्नरी 'पूरी' करने का अभी अगले वर्ष का मौका है, लेकिन उन्होंने जब देखा/पाया कि मनीष गोयल में 'कीड़े' तो हैं, लेकिन कीड़े अलग अलग दिशाओं में भाग रहे हैं, तो उन्होंने मौका ताड़ा और मनीष गोयल के 'कीड़ों' को एक दिशा में करके उन पर एडहेसिव टेप लगा दिया; आलोक गुप्ता को यह भी उम्मीद होगी कि मनीष गोयल के रूप में एक उम्मीदवार उनके हाथ में होगा, तो उनके कार्यक्रमों में उनके 'काम' आयेगा ।
मनीष गोयल की उम्मीदवारी को 'कठपुतली' उम्मीदवारी के रूप में देखे जाने के कारण मनीष गोयल के लिए एक उम्मीदवार के रूप में 'मूव' करना फजीहतभरा तो होगा, लेकिन उनकी उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को त्रिकोणीय बनाने का जो काम किया है - उसने ललित खन्ना की तैयारी व स्थिति को गड़बड़ा दिया है । दरअसल मनीष गोयल की उम्मीदवारी के चलते बनते/बिगड़ते समीकरण सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करते हैं; वह सिर्फ ललित खन्ना की उम्मीदवारी के पक्ष में बनते समीकरणों को प्रभावित करते नजर आ रहे हैं - इसलिए मनीष गोयल की उम्मीदवारी के चलते ललित खन्ना के समर्थन-आधार में पड़ती दिख रही सेंध सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को फायदा पहुँचाती लग रही है ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के रोटरी क्लब दिल्ली वेस्ट से निकाले जाने से बचने का मौका खोज रहे पूर्व गवर्नर रवि चौधरी को रोटरी क्लब दिल्ली साऊथएक्स में शरण मिलने के बाद अशोक कंतूर का आरोप कि पूर्व गवर्नर रमेश चंदर अब उन्हें भी क्लब से निकलवाना चाहते हैं

नई दिल्ली । अपनी हरकतों के चलते अपने क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली वेस्ट से निकलने के लिए मजबूर किए गए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी को अंततः रोटरी क्लब दिल्ली साऊथएक्स में शरण मिल गई है, और अब अशोक कंतूर पर भी दबाव बनाया जा  रहा है कि वह भी क्लब से निकल लें ! रवि चौधरी और अशोक कंतूर क्लब में होने वाली अपनी दुर्दशा के लिए क्लब के वरिष्ठ सदस्य और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश चंद्र को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में ही रवि चौधरी को क्लब से निकालने की तैयारी हो गई थी, लेकिन रवि चौधरी ने किसी तरह क्लब के पदाधिकारियों को इस बात के लिए राजी कर लिया था कि वह उन्हें क्लब से न निकालें, क्योंकि तब रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में उनकी बहुत बदनामी होगी - उन्होंने क्लब के पदाधिकारियों को आश्वस्त किया कि वह स्वयं ही किसी दूसरे क्लब में ट्रांसफर ले लेंगे, ताकि क्लब से निकाले जाने की बदनामी से बच सकें । रवि चौधरी के लिए बदकिस्मती की बात लेकिन यह रही कि उन्होंने जिस भी क्लब के लोगों से अपनी सदस्यता की बात की, उन्होंने रवि चौधरी के हाथ जोड़ लिए । दरअसल रवि चौधरी की हरकतों को तथा डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनकी बदनामी को देखते/पहचानते हुए कोई भी क्लब रवि चौधरी को अपने यहाँ लेने के लिए तैयार नहीं हुआ । मजे की बात यह रही कि रवि चौधरी ने अपनी इस बदनामीभरी स्थिति से शर्मसार होने की बजाये इसका लाभ उठाने की कोशिश की, और अपने क्लब में तर्क किया कि उन्हें चूँकि कोई और क्लब नहीं ले रहा है, इसलिए उन्हें दिल्ली वेस्ट में ही रहने दिया जाए । लेकिन रवि चौधरी की यह चालबाजी चली नहीं और उन्हें स्पष्ट कर दिया गया कि जल्दी से वह अपने लिए कोई क्लब खोज लें, अन्यथा उन्हें दिल्ली वेस्ट से तो निकाल ही दिया जायेगा । तब रवि चौधरी ने किसी तरह रोटरी क्लब दिल्ली साऊथएक्स के पदाधिकारियों को राजी किया और उसमें शरण ली ।
रवि चौधरी के निकलने के बाद रोटरी क्लब दिल्ली वेस्ट में अब अशोक कंतूर पर भी दबाव बनाया जा रहा है कि वह भी अपने लिए कोई और क्लब खोज लें ताकि उनकी हरकतों से क्लब का माहौल खराब न हो और क्लब अपनी पहचान व प्रतिष्ठा को बनाये/बचाये रख सके । क्लब के लोगों का कहना है कि रवि चौधरी और अशोक कंतूर की हरकतों के कारण क्लब का माहौल काफी खराब हो गया था; रवि चौधरी तो गवर्नर रह चुके थे, और अशोक कंतूर को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) चुने जाने का पूरा भरोसा था -  इसलिए दोनों लोग क्लब में अपनी मनमानी चलाने लगे थे, जिसके चलते क्लब के पदाधिकारियों के लिए काम कर पाना मुश्किल हो गया था । क्लब में खराब होते माहौल के लिए रवि चौधरी को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना गया और उन्हें क्लब से निकालने की तैयारी शुरू हो गई । रवि चौधरी ने पहले तो दादागिरी दिखाते हुए पदाधिकारियों को हड़काने की कोशिश की, लेकिन पदाधिकारियों को क्लब के दूसरे सदस्यों का समर्थन मिलता देख वह समझौते पर आ गए और किसी दूसरे क्लब में ट्रांसफर लेने की बात करने लगे । बाद में भी वह दिल्ली वेस्ट में बने रहने की तिकड़में करते रहे, लेकिन उनकी दाल गली नहीं । अंततः रवि चौधरी को रोटरी क्लब दिल्ली साऊथएक्स में शरण मिल गई है । रोटरी क्लब दिल्ली वेस्ट के पदाधिकारी और सदस्य अब अशोक कंतूर पर भी दबाव बना रहे हैं कि रवि चौधरी की तरह वह भी किसी और क्लब में ट्रांसफर ले लें । दिल्ली वेस्ट के पदाधिकारियों और सदस्यों को दरअसल लगता है कि रवि चौधरी के 'आदमी' के रूप में अशोक कंतूर यदि क्लब में रहेंगे, तो क्लब रवि चौधरी की हरकतों से वास्तव में मुक्त नहीं हो पायेगा । रवि चौधरी, अशोक कंतूर के जरिये दिल्ली वेस्ट की गतिविधियों को प्रभावित करने की कोशिश करेंगे और क्लब में गंद फैलाने का काम करेंगे । क्लब यदि सचमुच रवि चौधरी की हरकतों से आजाद होना चाहता है तो जरूरी है कि अशोक कंतूर भी क्लब छोड़ें । 
रवि चौधरी और अशोक कंतूर रोटरी क्लब दिल्ली वेस्ट में अपने खिलाफ बने माहौल के लिए क्लब के वरिष्ठ सदस्य व पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश चंदर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । अशोक कंतूर ने तो पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में मिली पराजय के लिए भी रमेश चंदर को जिम्मेदार ठहराया था ।अशोक कंतूर का आरोप था कि रमेश चंदर ने उनके साथ धोखा किया था; और वास्तव में उनके साथ नहीं, बल्कि क्लब के साथ धोखा किया था - क्योंकि वह क्लब की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार थे । अशोक कंतूर का कहना है कि उनकी उम्मीदवारी के साथ धोखा करके रमेश चंदर ने असल में क्लब के साथ धोखा किया था - और इसलिए उन्हें क्लब से निकाला जाना चाहिए, न कि उन्हें या रवि चौधरी को । अशोक कंतूर के लिए मुसीबत की बात यह रही कि उनके इस तर्क को क्लब में कोई समर्थन नहीं मिला, और रवि चौधरी को तो क्लब से निकलने के लिए मजबूर होना ही पड़ा है, उन पर भी क्लब छोड़ने के लिए दबाव पड़ रहा है । अशोक कंतूर लेकिन रोटरी क्लब दिल्ली वेस्ट की अपनी सदस्यता बचाने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं; दरअसल उन्हें डर है कि रवि चौधरी की तरह यदि कहीं उन्हें भी क्लब छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा तो यह बात डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उंनकी उम्मीदवारी के लिए बड़ा नुकसान पहुँचाने वाली होगी । यह देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली वेस्ट की अपनी सदस्यता बचा सकने में फेल होने के बाद अशोक कंतूर कैसे अपनी सदस्यता बचा पाते हैं - बचा भी पाते हैं या नहीं ?

Tuesday, July 9, 2019

रोटरी फाउंडेशन के पैसों को हड़पने का दोषी पाए गए तथा रोटरी इंटरनेशनल से सजा प्राप्त डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल के साथ मंच शेयर करने के मामले में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए समर्थन जुटाने में लगे विनोद बंसल मुसीबत व फजीहत का शिकार बन रहे हैं

नई दिल्ली । बूढ़ों, बीमारों, गरीबों व अनपढ़ों के नाम पर रोटरी फाउंडेशन से मिले पैसों को हड़पने के आरोप में रोटरी इंटरनेशनल से सजा पाए डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल के साथ मंच शेयर करने के मामले में डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल खासे विवाद व फजीहत का शिकार हो रहे हैं । उल्लेखनीय है कि 12 जुलाई को जयपुर में रोटरी क्लब जयपुर के नए पदाधिकारियों का इंस्टॉलेशन हो रहा है, जिसमें विनोद बंसल मुख्य अतिथि के रूप में तथा अनिल अग्रवाल विशेष अतिथि के रूप में शामिल होंगे । अनिल अग्रवाल को अभी हाल ही में रोटरी इंटरनेशनल द्वारा तीन वर्षों के लिए रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित करने की सजा सुनाई गई है । विनोद बंसल रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्य बनने की कोशिश में है । ऐसे में, लोगों को हैरानी है कि रोटरी इंटरनेशनल की सबसे बड़ी प्रशासनिक ईकाई का सदस्य बनने की कोशिश करने वाले विनोद बंसल रोटरी इंटरनेशनल द्वारा दोषी ठहराए गए और सजा प्राप्त अनिल अग्रवाल के साथ मंच शेयर करने के लिए कैसे और क्यों तैयार हो गए हैं ? इससे क्या यह समझा जाए कि इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में विनोद बंसल बूढ़ों, बीमारों, गरीबों व अनपढ़ों की मदद के नाम पर रोटरी फाउंडेशन के पैसों को हड़पने वालों को संरक्षण देंगे; और उनके डायरेक्टर-काल में रोटरी के पैसों की लूट करने वालों की मौज-बहार होगी ? कई लोगों की तरफ से विनोद बंसल को सुझाव दिया गया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी उम्मीदवारी को ध्यान में रखते हुए उन्हें अनिल अग्रवाल जैसे 'सजायाफ्ता' के साथ मंच शेयर नहीं करना चाहिए । 
इस तरह की बातें विनोद बंसल के लिए भले ही मुसीबत व फजीहत का कारण बनी हुईं हैं, लेकिन अनिल अग्रवाल और उनके नजदीकियों पर इन बातों का कोई असर नहीं है । अनिल अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि रोटरी क्लब जयपुर के कार्यक्रम में विनोद बंसल को मुख्य अतिथि अनिल अग्रवाल ने ही बनवाया है, इसलिए विनोद बंसल उनके साथ मंच शेयर करने से इंकार नहीं कर पायेंगे । विनोद बंसल के शुभचिंतकों को डर लेकिन यह लग रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में विनोद बंसल यदि अनिल अग्रवाल जैसे बेईमान और रोटरी इंटरनेशनल से सजा पाए लोगों के साथ खड़े दिखेंगे तो इससे उनकी उम्मीदवारी को नुकसान ही पहुँचेगा । उक्त कार्यक्रम में हालाँकि कुछेक और पूर्व गवर्नर्स भी अनिल अग्रवाल के साथ मंच शेयर करेंगे, लेकिन उक्त पूर्व गवर्नर्स चूँकि कुछ पाने की 'दौड़' में नहीं हैं, इसलिए रोटरी इंटरनेशनल से सजा पाए अनिल अग्रवाल के साथ उठने-बैठने का उन पर कोई असर नहीं पड़ता है । विनोद बंसल का मामला लेकिन दूसरा पड़ जाता है । वह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार हैं; और इस नाते जब वह रोटरी इंटरनेशनल के फैसले का मजाक बनाते देखे जाते हैं तो लोगों के बीच सवाल पैदा होता है कि विनोद बंसल को जब रोटरी इंटरनेशनल के फैसलों का सम्मान ही नहीं करना है, और रोटरी इंटरनेशनल द्वारा दोषी घोषित किए गए और सजा प्राप्त अनिल अग्रवाल के साथ ही सार्वजनिक रूप से उठना-बैठना है, तो इंटरनेशनल डायरेक्टर उन्हें क्यों बनना है - क्या बूढ़ों, बीमारों, गरीबों व अनपढ़ों के नाम पर रोटरी का पैसा हड़पने वालों को बचाने के लिए ?
अनिल अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि रोटरी इंटरनेशनल ने अनिल अग्रवाल को रोटरी से निकाला नहीं है, और उनका पूर्व गवर्नर का स्टेटस बरकरार है; जो प्रतिबंध उन पर लगाए गए हैं, उनमें किसी क्लब के कार्यक्रम में विशेष अतिथि बनने पर कोई रोक नहीं है - इसलिए रोटरी क्लब जयपुर के कार्यक्रम में उनके विशेष अतिथि बनने को नाहक ही मुद्दा बनाया जा रहा है और इसमें विनोद बंसल को भी गैरजरूरी रूप से घसीटा जा रहा है । तकनीकी रूप से इस तर्क में दम है और यह सही है, लेकिन नैतिकता नाम की भी कोई चीज होती है - रोटरी में नैतिकता को शर्म के साथ घोल कर यदि पी लिया जायेगा, तो यह रोटरी की साख व प्रतिष्ठा के लिए बहुत ही बुरा संकेत व उदाहरण नहीं होगा क्या ? सोचिये, एक क्लब के नए पदाधिकारियों व सदस्यों के सामने मंच पर एक ऐसा रोटेरियन बैठा होगा, जिसे बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों के नाम पर पैसों का घपला करने का दोषी ठहराया गया है और सजा सुनाई गई है - तो नए पदाधिकारियों व सदस्यों के बीच कैसा संदेश जायेगा । इसी तर्क से उक्त कार्यक्रम में विनोद बंसल की होने वाली मौजूदगी पर सवाल उठाए जा रहे हैं । रोटरी इंटरनेशनल में डायरेक्टर होने की तैयारी कर रहे विनोद बंसल एक कार्यक्रम में रोटरी के पैसों को हड़पने के मामले में रोटरी इंटरनेशनल द्वारा दोषी ठहराए गए तथा सजा प्राप्त अनिल अग्रवाल के साथ जब मंच शेयर करेंगे, तो वह रोटरी की पहचान, साख व प्रतिष्ठा के साथ एक तरह का खिलवाड़ ही नहीं कर रहे होंगे ? विनोद बंसल के शुभचिंतकों का भी मानना और कहना है कि विनोद बंसल को अनिल अग्रवाल जैसे 'सजायाफ्ता' के साथ मंच शेयर करने से बचना चाहिए, अन्यथा यह बात इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उनकी उम्मीदवारी के लिए घातक साबित हो सकती है ।
रोटरी इंटरनेशनल द्वारा अनिल अग्रवाल को दोषी ठहराने व सजा सुनाने वाला पत्र :

 

Monday, July 8, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा के इंस्टॉलेशन समारोह में 'बिन बुलाए' आए यश पाल दास को मिली तवज्जो तथा शाजु पीटर व जेपीएस सिबिया की मौजूदगी को डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में राजा साबू गिरोह की वापसी करने की तैयारी के संकेतों के रूप में देखा जा रहा है

चंडीगढ़ । जितेंद्र ढींगरा के गवर्नर-वर्ष के डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन समारोह में राजेंद्र उर्फ राजा साबू के साथ-साथ उनके नजदीकी पूर्व गवर्नर्स की उपस्थिति ने डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का सर चकराने का काम किया है । उल्लेखनीय है कि जितेंद्र ढींगरा के कार्यक्रमों में राजा साबू तो आते रहे हैं; लेकिन यश पाल दास, शाजु पीटर, जेपीएस सिबिया जैसे उनके नजदीकी पूर्व गवर्नर्स कभी नहीं दिखे हैं । इसीलिए इनकी उपस्थिति पर लोगों को हैरानी हुई और फुसफुसाहटें शुरू हुईं कि यह लोग कैसे आ गए ? इन पूर्व गवर्नर्स का आरोप रहा है कि जितेंद्र ढींगरा ने इन्हें कभी अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित ही नहीं किया । पिछले एक कार्यक्रम में कुछेक लोगों के सामने राजा साबू ने जितेंद्र ढींगरा से यह शिकायत करते हुए उन्हें सुझाव दिया था कि वह इन पूर्व गवर्नर्स को भी आमंत्रित किया करें । समझा गया कि राजा साबू के सुझाव पर जितेंद्र ढींगरा ने इन पूर्व गवर्नर्स को भी आमंत्रित कर लिया होगा, और इसलिए यह जितेंद्र ढींगरा के कार्यक्रम में आ पहुँचे । जितेंद्र ढींगरा ने लेकिन कई मौकों पर अलग अलग लोगों के सामने स्पष्ट कहा कि उन्होंने इन्हें 'खासतौर' से नहीं आमंत्रित किया था । जितेंद्र ढींगरा का कहना रहा कि उन्होंने तो पहले की तरह ही सभी के लिए एक आम निमंत्रण भेजा था - पहले यह उस निमंत्रण को निमंत्रण नहीं मानते थे, लेकिन अब की बार उन्होंने मान लिया; तो इस बदले हुए रवैये का कारण वही जानते होंगे । दरअसल पिछले करीब तीन वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में जो राजनीतिक व प्रशासनिक गंद मचा रहा, उसके लिए राजा साबू के इन तीन नजदीकी पूर्व गवर्नर्स को ही मुख्य रूप से जिम्मेदार माना/ठहराया जाता रहा है । इसीलिए पहले टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष में इन्हें कोई तवज्जो नहीं मिली, और अब जितेंद्र ढींगरा के गवर्नर-वर्ष में भी इनके साथ वैसा ही सुलूक होने की उम्मीद की जा रही थी । इसीलिए लोगों को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट में अपना 'वनवास' खत्म करने के लिए ही राजा साबू के नजदीकी पूर्व गवर्नर्स यश पाल दास, शाजु पीटर और जेपीएस सिबिया 'बिन बुलाए' ही जितेंद्र ढींगरा के कार्यक्रम में आ पहुँचे ।
दरअसल राजा साबू और उनके नजदीकी पूर्व गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था व राजनीति में पुनर्वापसी के लिए लगातार हाथ-पैर मार रहे हैं । अपनी पुनर्वापसी का विश्वास उन्हें मौजूदा व भावी गवर्नर्स - जितेंद्र ढींगरा, रमेश बजाज व अजय मदान के 'व्यवहार' से भी हुआ । इन तीनों के 'व्यवहार' से राजा साबू और उनके नजदीकी गवर्नर्स को लगा कि यह तीनों उनके नजदीक आना/रहना चाहते हैं । राजा साबू के नजदीकी मनमोहन सिंह को जितेंद्र ढींगरा द्वारा डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाए जाने से राजा साबू और उनके नजदीकी गवर्नर्स का पुनर्वापसी का हौंसला और बढ़ा । राजा साबू और उनके नजदीकी गवर्नर्स लेकिन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी के प्रति अपनी खुन्नस को नहीं छोड़ पाए और उन्हें लगा कि जितेंद्र ढींगरा, रमेश बजाज व अजय मदान के ढीले-ढाले रवैये में वह टीके रूबी को निशाना बना लेंगे । इसी के तहत अभी हाल तक, राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों ने टीके रूबी के डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) बनने में अड़चनें डालने के प्रयास किए । इन प्रयासों पर लेकिन जितेंद्र ढींगरा के कड़ा रवैया अपनाने से पानी फिर गया । जितेंद्र ढींगरा के 'कभी नर्म तो कभी गर्म' रहने पर राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों को इतना तो शायद समझ में आ गया है कि जितेंद्र ढींगरा, रमेश बजाज व अजय मदान के साथ उनके नजदीक तो आ सकते हैं - लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह तीनों उन्हें टीके रूबी के साथ 'बदतमीजी' करने का मौका दे देंगे । माना/समझा जा रहा है कि इसीलिए राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों ने अब यह योजना बनाई है कि तवज्जो न दिए जाने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों में उन्हें अपनी उपस्थिति बनानी और 'दिखानी' चाहिए; इससे वह सत्ता में न होते हुए भी मेडीकल मिशन जैसे अपने स्वार्थी 'काम' बना सकेंगे - और इसीलिए यश पाल दास, शाजु पीटर व जेपीएस सीबिया 'बिन बुलाए' ही जितेंद्र ढींगरा के इंस्टॉलेशन कार्यक्रम में आ पहुँचे ।
दरअसल राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों में शामिल होकर वह एक तरफ तो अपने 'काम' बनाने/निकालने के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह संकेत दे सकते हैं कि जितेंद्र ढींगरा और उनके साथियों ने उनके साथ नजदीकी बनाना शुरू कर दिया है और इसीलिए वह उन्हें अपने कार्यक्रमों में शामिल कर रहे हैं; और दूसरी तरफ वह विभिन्न मुद्दों पर अपनी अलग राय रख कर वह जितेंद्र ढींगरा और उनके साथियों के बीच खटराग पैदा करने का मौका पा सकते हैं । राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों ने इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत हुई नवीन गुलाटी की उम्मीदवारी के मामले में अपनी अलग राय देकर अपने इरादे जाहिर भी कर दिए हैं । खुद राजा साबू ने जितेंद्र ढींगरा को सलाह दी है कि इस वर्ष किसी महिला को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुना जाना चाहिए । इस सलाह के जरिए राजा साबू ने वास्तव में नवीन गुलाटी की उम्मीदवारी को विवादास्पद बनाने का दाँव चला है । जितेंद्र ढींगरा ने हालाँकि अभी तो नवीन गुलाटी की उम्मीदवारी पर कोई 'समझौता' करने से इंकार कर दिया है; लेकिन कौन जानता है कि राजा साबू ने जो दाँव चला है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में टीके रूबी व जितेंद्र ढींगरा की जो धाक जमी है, वह बिखर न जाए ! जितेंद्र ढींगरा के कई एक नजदीकियों का कहना है कि उन्हें यह बात समझ नहीं आती है कि जितेंद्र ढींगरा जब यह मानते हैं और कहते भी रहते हैं कि राजा साबू और उनके संगी-साथी अपनी 'हरकतों' से बाज नहीं आयेंगे, तब फिर वह उन्हें तवज्जो देते हुए हरकतें करने का मौका क्यों दे रहे हैं ? पिछले तीन वर्षों में राजा साबू और उनके गिरोह के साथ छिड़ी लड़ाई में टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा का लगातार साथ देने वाले कई लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति और व्यवस्था में राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों को जब पूरी तरह अलग-थलग कर दिया गया है, तब फिर उन्हें किसी भी तरह की तवज्जो देकर उनके लिए वापसी का रास्ता क्यों तैयार किया जा रहा है ? डिस्ट्रिक्ट के कई लोग इंस्टॉलेशन कार्यक्रम में यश पाल दास को मिली तवज्जो तथा शाजु पीटर व जेपीएस सिबिया की मौजूदगी को पिछले तीन वर्षों की 'लड़ाई' में मिली जीत पर पानी फिरने की शुरुआत के रूप में भी देख/पहचान रहे हैं ।

Sunday, July 7, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन समारोह में ढाई सौ डॉलर देने की शर्त के नाम पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों, रोटरी फाउंडेशन तथा रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी गुलाम वहनवती तक से धोखाधड़ी करने वाले दीपक गुप्ता रोटरी फाउंडेशन की रकम में घपला करने के आरोपों में फँसे

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता रोटरी फाउंडेशन के करीब एक लाख 25 हजार डॉलर की रकम का कोई घपला करने का प्रयास कर रहे हैं क्या ? यह शक जाहिर करने वाले लोग दीपक गुप्ता पर रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी गुलाम वहनवती के साथ 'धोखा' करने का आरोप तो सीधा सीधा ही लगा रहे हैं । हालाँकि कई लोगों के लिए इस बात पर यकीन करना काफी मुश्किल भी हो रहा है; लेकिन रोटरी में जिस तरह के किस्से सामने आ रहे हैं, उन्हें देखते/सुनते हुए कुछ भी 'असंभव' नहीं लगता है । पिछले दिनों ही डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को रोटरी फाउंडेशन के पैसे हड़प जाने के आरोप में रोटरी में प्रतिबंधित करने का फैसला हुआ है । उससे पहले भी कुछेक पूर्व गवर्नर्स व गवर्नर्स को घपलेबाजियों के आरोप में सजाएँ सुनाई गईं हैं । और तो और, अभी हाल ही में रॉन बुर्टोन को रोटरी फाउंडेशन के चेयरमैन पद से हटाया गया है, जबकि चेयरमैन के रूप में उनका कार्यकाल कुल दो महीने ही बाकी बचा था । इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि रोटरी में घपलेबाजियों, बेईमानियों और धोखाधड़ियों की बातें आम हैं, और किसी भी पद पर बैठा व्यक्ति यह सब कर सकता है; सच बल्कि यह है कि जो जितने बड़े पद पर है, वह ज्यादा बड़ी लूट-खसोट कर सकता है - करता है और सजा तक पा चुका है । इसलिए दीपक गुप्ता भी यदि आरोपों के घेरे में हैं तो उसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है । मजे की बात यह है कि आरोपों का यह घेरा दीपक गुप्ता ने खुद ही अपने लिए बुना/बनाया/कसा है ।
उल्लेखनीय है कि दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन में शामिल होने वाले प्रत्येक रोटेरियन और उनके जीवनसाथी पर रोटरी फाउंडेशन के नाम पर ढाई सौ डॉलर देने की शर्त रखी थी । उनके द्वारा जारी किए गए एक परिपत्र में साफ कहा गया था कि जो कोई 250 डॉलर रोटरी फाउंडेशन के लिए देगा, उसे ही डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन का अधिकृत निमंत्रण मिलेगा । डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन समारोह में करीब पाँच सौ लोगों के जुटने का दावा किया गया है । इस हिसाब से डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन समारोह में रोटरी फाउंडेशन के नाम पर करीब एक लाख 25 हजार डॉलर की रकम इकट्ठा होने का सीधा सीधा अनुमान लगाया गया है । कुछेक लोगों ने रोटरी फाउंडेशन में और भी ज्यादा रकम दी है, जिसके चलते रोटरी फाउंडेशन के नाम पर इकट्ठा हुई रकम के और भी ज्यादा होने का अनुमान है । लेकिन रोटरी फाउंडेशन तक यह रकम नहीं पहुँची है । ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि इतनी बड़ी रकम आखिर गई कहाँ ? डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन समारोह की तैयारी से जुड़े लोगों का कहना है कि समारोह में इतनी रकम जमा ही नहीं हुई । उनका कहना है कि ढाई सौ डॉलर देने की शर्त के चलते डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन समारोह में शामिल होने में जब कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, तो समारोह को 'पिटने' से बचाने के लिए उन्होंने ढाई सौ डॉलर की शर्त को हटा दिया था । इस बारे में लेकिन कोई अधिकृत परिपत्र जारी नहीं किया गया था और यह काम दीपक गुप्ता ने 'चोरी-छिपे' ही किया । उन्होंने लोगों को फोन कर कर के बताया कि ढाई सौ डॉलर की शर्त को हटा लिया गया है, और समारोह में शामिल होने का कोई पैसा नहीं लिया जायेगा । समझा जाता है कि यह 'काम' दीपक गुप्ता ने चोरी-छिपे इसलिए किया, ताकि जिन कुछेक लोगों ने उनकी झाँसेबाजी में आकर रजिस्ट्रेशन के ढाई सौ डॉलर दिए हैं, वह कहीं वापस न माँग लें ।
दीपक गुप्ता ने रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी गुलाम वहनवती को धोखे में रखने के उद्देश्य से भी ढाई सौ डॉलर वाली शर्त हटाने की घोषणा को अधिकृत रूप से प्रकट नहीं किया । उनके नजदीकियों का ही कहना है कि गुलाम वहनवती को समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करते हुए दीपक गुप्ता ने यही झाँसा दिया था कि समारोह में शामिल होने वाले प्रत्येक रोटेरियन से रोटरी फाउंडेशन में ढाई सौ डॉलर मिलेंगे । उनकी योजना के फेल होने की पोल न खुल जाए और उनका झूठ पकड़ा न जाए, इसलिए दीपक गुप्ता ने ढाई सौ डॉलर वाली शर्त को हटाने की बात को छिपाए ही रखा । रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को दीपक गुप्ता की इस चालबाजी का पता नहीं है, इसलिए वह बेचारे तो पाँच सौ लोगों की उपस्थिति के आधार पर एक लाख 25 हजार डॉलर तथा उससे भी अधिक रकम के आने का इंतजार कर रहे हैं - लेकिन दीपक गुप्ता उन्हें यह रकम सौंप ही नहीं रहे हैं । रोटरी में अनुभवी लोगों का मानना और कहना है कि दीपक गुप्ता ने शर्त के रूप में अपनी जो योजना बनाई थी, उसे सफल बनाना कोई मुश्किल नहीं था; किंतु उन्होंने बिना किसी तैयारी के अपनी योजना को जबर्दस्ती लोगों पर थोपने की जो कोशिश की - वह उन्हें उलटी पड़ गई और फिर उन्हें हर किसी के साथ अलग अलग रूप में धोखाधड़ी करना पड़ी; किसी से कुछ कहा और किसी से कुछ छिपाया । खास बात यह है कि अभी भी उनकी तरफ से यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन में कितने लोगों ने ढाई सौ डॉलर के साथ रजिस्ट्रेशन करवाया था । बातें और दावे तो लंबे-चौड़े हैं, लेकिन तथ्य गायब हैं । दरअसल इसीलिए समारोह की तैयारी से जुड़े लोगों को भी इस बात की हवा नहीं है कि रोटरी फाउंडेशन के नाम पर सचमुच कितना पैसा आया है । इसी से लोगों को शक हो रहा है कि ढाई सौ डॉलर की शर्त के नाम पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों, रोटरी फाउंडेशन तथा रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी गुलाम वहनवती तक से धोखाधड़ी करने वाले दीपक गुप्ता कहीं रोटरी फाउंडेशन की रकम में कोई घपला तो नहीं कर रहे हैं ?