Tuesday, May 31, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के परिचय सम्मेलन में अजय सिंघल से झटका खाने के बावजूद शिव कुमार चौधरी को उम्मीद है कि आगे जल्दी ही वह अजय सिंघल को मुकेश गोयल की 'पकड़' से छुड़ा लेंगे

मुज़फ्फरनगर । संजीवा अग्रवाल को इस्तेमाल करते हुए शिव कुमार चौधरी ने अजय सिंघल को पटाने और डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के परिचय सम्मेलन में आने के लिए राजी करने का प्रयास तो खूब किया, लेकिन अजय सिंघल उनके जाल में फँसे नहीं - और इस तरह मुकेश गोयल व विनय मित्तल को अलग-थलग करने की शिव कुमार चौधरी व उनके संगी-साथियों की चाल फेल हो गई । आगामी लायन वर्ष की डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के परिचय सम्मलेन में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अजय सिंघल व सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय मित्तल की अनुपस्थिति पर लोगों का ध्यान खासतौर से गया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शिव कुमार चौधरी के साथ इन दोनों ने जिस तरह से दूरी बनाई हुई है - उसके चलते परिचय सम्मलेन में हर किसी की निगाह अजय सिंघल व विनय मित्तल को खोज रही थी । ये कार्यक्रम के अंत तक जब नहीं दिखे, तब हर किसी ने अपने अपने नजरिए से उनकी अनुपस्थिति की व्याख्या की । वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कुञ्ज बिहारी अग्रवाल ने अपने संबोधन में बिना नाम लिए अजय सिंघल व विनय मित्तल की अनुपस्थिति का जिक्र किया तथा उन कारणों की पड़ताल करने व उन्हें दूर करने की जरूरत को रेखांकित किया, जिनके चलते डिस्ट्रिक्ट में यह नौबत आई है । लोग तो 'इस' स्थिति की अपनी अपनी तरह से व्याख्या करके निकल गए, किंतु 'इस' स्थिति ने शिव कुमार चौधरी व उनके संगी-साथियों को बुरी तरह से निराश किया । इसलिए भी निराश किया क्योंकि उन्होंने परिचय सम्मेलन में अजय सिंघल की उपस्थिति को संभव बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया हुआ था ।
अजय सिंघल की उपस्थिति को संभव बनाने के लिए शिव कुमार चौधरी और उनके संगी-साथियों ने संजीवा अग्रवाल को भी इस्तेमाल किया - जिसके तहत उन्हें लायंस इंटरनेशनल से अधिकृत कमेटी का चेयरमैन बनाया गया । हालाँकि पहले संजीवा अग्रवाल को कैबिनेट से बाहर रखने का फैसला किया गया था । संजीवा अग्रवाल अगले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने की दौड़ में हैं, और लोगों के बीच मुकेश गोयल के उम्मीदवार के रूप में पहचाने जा रहे हैं । मुकेश गोयल का उम्मीदवार होने के नाते संजीवा अग्रवाल को शिव कुमार चौधरी ने निशाने पर लिया हुआ है, और इस निशानेबाजी के चक्कर में ही उन्हें कैबिनेट से बाहर रखने की तैयारी थी । संजीवा अग्रवाल चूँकि अजय सिंघल के क्लब के सदस्य हैं, इसलिए अजय सिंघल को पटाने में लगे शिव कुमार चौधरी ने संजीवा अग्रवाल के जरिए अजय सिंघल को पटाने का उपक्रम किया और इस उपक्रम के चलते आनन-फानन में संजीवा चौधरी को अधिकृत कमेटी का चेयरमैन पद दे दिया । शिव कुमार चौधरी के नजदीकियों के अनुसार, इस उपक्रम तथा अन्य तरकीबों से अजय सिंघल 'पटते' हुए दिखे थे और उन्होंने परिचय सम्मेलन में आने के लिए सहमति भी दे दी थी - लेकिन शिव कुमार चौधरी व उनके संगी-साथी इंतजार ही करते रह गए और अजय सिंघल परिचय सम्मेलन में नहीं पहुँचे । शिव कुमार चौधरी व उनके संगी-साथियों ने अजय सिंघल के रवैये को धोखाधड़ी कहा/बताया, हालाँकि उनकी तरफ से ऐसे संकेत भी मिले जिनसे लगता है कि वह अजय सिंघल को पटाने की अपनी कोशिशें जारी रखेंगे । 
अजय सिंघल को पटाना शिव कुमार चौधरी को कई कारणों से जरूरी लग रहा है : एक तो, उन्हें लगता है कि मुकेश गोयल को नीचा दिखाने के लिए अजय सिंघल को उनसे दूर करना बहुत जरूरी है; अभी की स्थिति में अजय सिंघल ने मुकेश गोयल का पलड़ा भारी बनाया हुआ है । दूसरी बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट व मल्टीपल में ही नहीं, बल्कि लायन-समाज में अपने आपको फजीहत से बचाने के लिए उन्हें अजय सिंघल से अपनी दूरी को पाटने की जरूरत नजर आ रही है । अभी हाल ही में चेन्नई में मल्टीपल ऑफीसर्स के लिए आयोजित हुए ऑल इंडिया स्कूलिंग कार्यक्रम में लायन लीडर्स के बीच इस बात की खूब चर्चा रही कि शिव कुमार चौधरी की अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से नहीं बनती है, और इस कारण से लायन लीडर्स के बीच उनकी काफी किरकिरी हुई । लायन समाज में इस बात को बहुत ही बुरे रूप में देखा/पहचाना जाता है कि किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की अपने ही वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से व्यावहारिक संबंध भी न हों । सवाल उठता है कि ऐसा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर क्या लीडर बनेगा और डिस्ट्रिक्ट के लोगों को क्या संदेश देगा ? इसीलिए जिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की अपने अपने वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से नहीं भी बनती है, वह भी कम से कम 'दिखाने' के लिए तो अपने वाइस से संबंध बनाता ही है । चेन्नई में शिव कुमार चौधरी को यह अहसास हुआ कि अपने वाइस से संबंध ठीक ठीक बनाने और दिखाने की 'जिम्मेदारी' उनकी ही है, अन्यथा लायन समाज में फजीहत उनकी ही होगी । अजय सिंघल को पटाने की जरूरत का तीसरा कारण उनका लायंस क्लब गाजियाबाद का सदस्य होना भी है । लायंस क्लब गाजियाबाद डिस्ट्रिक्ट का एक बड़ा और प्रमुख क्लब है । शिव कुमार चौधरी दूसरे क्लब्स में तो बदतमीजी कर लेते हैं, लेकिन लोगों ने देखा/पाया है कि लायंस क्लब गाजियाबाद से वह 'डर' कर रहते हैं । लायंस क्लब गाजियाबाद से उनके संबंध ठीक बने रहें, इसके लिए उन्हें अजय सिंघल से भी संबंध ठीक रखने की जरूरत महसूस होती है ।
इन कारणों में हालाँकि सबसे महत्वपूर्ण कारण मुकेश गोयल को नीचा दिखाने वाला कारण ही है । शिव कुमार चौधरी की एक बड़ी हसरत मुकेश गोयल को नीचा दिखाने की है । इस बाबत किए गए उनके अभी तक के प्रयास लगातार पिटते रहे हैं : सबसे पहले उन्होंने कोशिश की थी कि वह मुकेश गोयल की मदद के बिना गवर्नर चुन लिए जाएँ, लेकिन अपने पहले चुनाव में वह सुनील निगम जैसे तीन/चार बार हारे/भागे उम्मीदवार से जिस बुरी तरह से चुनाव हारे - उससे उन्हें समझ में आ गया कि मुकेश गोयल की शरण में गए बिना वह जीवन में कभी गवर्नर नहीं बन सकेंगे, सो उन्होंने अगली बार ही मुकेश गोयल के सामने समर्पण कर दिया । मुकेश गोयल के समर्थन की कृपा से शिव कुमार चौधरी को चुनावी जीत तो मिल गई, लेकिन मुकेश गोयल को नीचा दिखाने की उनकी हसरत नहीं मिटी । अगले वर्ष मुकेश गोयल के उम्मीदवार अजय सिंघल के खिलाफ उम्मीदवार लाने की उन्होंने कोशिश तो बहुत की, किंतु उनकी दाल गली नहीं । उसके अगले वर्ष, यानि इस वर्ष मुकेश गोयल के उम्मीदवार विनय मित्तल के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने में तो शिव कुमार चौधरी को सफलता मिल गई - लेकिन उनके उम्मीदवार के रूप में रेखा गुप्ता को जिस करारी हार का सामना करना पड़ा, उससे उनकी ही फजीहत हुई । शिव कुमार चौधरी की इससे भी ज्यादा फजीहत इस कारण से हुई कि वह डिस्ट्रिक्ट के सबसे ज्यादा नेगेटिव वोट पाने वाले गवर्नर बनेंगे । कोढ़ में खाज वाली बात यह हुई कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अजय सिंघल व सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय मित्तल उन्हें कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं । शिव कुमार चौधरी व उनके संगी-साथी अजय सिंघल को एक कमजोर कड़ी के रूप में देख/पहचान रहे हैं; उन्हें लगता है कि वह अजय सिंघल को 'तोड़' कर अपनी तरफ कर लेंगे । इसी चक्कर में परिचय सम्मेलन में अजय सिंघल की उपस्थिति को संभव बनाने के लिए शिव कुमार चौधरी व उनके संगी-साथियों ने एड़ी से चोटी तक का जोर लगाया था । यह जोर अभी तो उनके काम नहीं आया है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि आगे जल्दी ही वह अजय सिंघल को मुकेश गोयल की 'पकड़' से अवश्य ही छुड़ा लेंगे । अपने इस जरूरी 'काम' में वह संजीवा अग्रवाल की उम्मीदवारी से भी 'उम्मीद' लगाए हुए हैं ।
अजय सिंघल को पटाने के लिए शिव कुमार चौधरी व उनके संगी-साथी संजीवा अग्रवाल को जिस तरह की तवज्जो देते नजर आ रहे हैं, उससे रेखा गुप्ता तथा उनकी उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को अपनी स्थिति डांवाडोल होती हुई दिख रही है । उनके बीच डर पैदा हुआ है कि अजय सिंघल को पटाने के चक्कर में शिव कुमार चौधरी कहीं उन्हें तो धोखा नहीं दे देंगे ?

Monday, May 30, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में लायंस ब्लड बैंक के नए पदाधिकारियों तथा उनके नजदीकियों की बातों से लगता है कि वह जेपी सिंह को जल्दी से 'छोड़ेंगे' नहीं

नई दिल्ली । जेपी सिंह को अंततः अपने 'कमाऊ पूत' लायंस ब्लड बैंक से भी हाथ धोना पड़ा, और लोगों के जबर्दस्त विरोध के चलते उन्हें बेआबरू होकर लायंस ब्लड बैंक के कूचे से बाहर आने के लिए मजबूर होना पड़ा । गौर करने की मजे की बात यह है कि लायंस ब्लड बैंक को संचालित करने वाले लायंस सर्विस ट्रस्ट की वार्षिक आम सभा में किसी ने भी जेपी सिंह एंड टीम को ब्लड बैंक पर से कब्ज़ा छोड़ने के लिए नहीं कहा था, वार्षिक आम सभा में तो लोग लायंस ब्लड बैंक के खातों की गड़बड़ियों व बेईमानियों पर सवाल उठा रहे थे । जेपी सिंह एंड टीम ने उन सवालों का सामना करने व उनका जबाव देने की बजाए वार्षिक आम सभा से निकल भाग लेने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी - उन्होंने समझ लिया कि लोगों के सवालों के जरिए जिस तरह की गड़बड़ियों व बेईमानियों की पोल खुल रही है, उसके चलते उनके लिए लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा बनाए रख पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही होगा । लिहाजा मौके की नजाकत को पहचानते हुए जेपी सिंह एंड टीम ने लायंस ब्लड बैंक पर अपनी चौधराहट बचाए/बनाए रखने का कोई प्रयास नहीं किया और लायंस सर्विस ट्रस्ट की वार्षिक आम सभा से चुपचाप निकल भागे । उन्हें विश्वास है कि लायंस ब्लड बैंक पर अपने कब्ज़े को वह आसानी से छोड़ देंगे, तो ब्लड बैंक के लाखों/करोड़ों की घपलेबाजी का हिसाब देने से बच जायेंगे - और यह कोई घाटे का सौदा नहीं है । लायंस ब्लड बैंक की आड़ में लूट-खसोट करने के लगातार लगते रहे आरोपों पर जेपी सिंह हमेशा यही कहते/बताते रहे हैं कि इन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है, और विरोधी पक्ष की तरफ से यह आरोप लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से लगाए जा रहे हैं ।
इसी सोच के चलते जेपी सिंह को विश्वास है कि विरोधी पक्ष को अब जब लायंस ब्लड बैंक का कब्ज़ा मिल गया है, तो वह अपने ही द्वारा लगाए गए आरोपों को भूल जायेंगे । लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा पाने वाले नए पदाधिकारियों का कहना लेकिन यह है कि पदाधिकारी बनने से उनके लिए लायंस ब्लड बैंक में की जा रही धाँधलियों की जाँच करना तथा उन्हें पकड़ना आसान हो जायेगा, और तब वह घपला करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे । लायंस ब्लड बैंक के नए पदाधिकारियों का दावा है कि ब्लड बैंक में घपलेबाजी करने वाला कोई भी व्यक्ति, चाहें वह कितना भी बड़ा हो और या बड़े लोगों का चहेता हो, बचेगा नहीं । लायंस ब्लड बैंक के नए पदाधिकारियों तथा उनके नजदीकियों की बातों से लगता है कि वह जेपी सिंह को जल्दी से 'छोड़ेंगे' नहीं । इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के लिए जेपी सिंह की जो फजीहत हुई, और उसके बाद लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़े की लड़ाई में जेपी सिंह ने जितनी जल्दी हार मान ली - उससे जेपी सिंह के विरोधियों के हौंसले खासे बुलंद हैं । उन्हें लगता है कि यह अच्छा मौका है कि वह जेपी सिंह को इतना पीछे धकेल दें, कि फिर वह आगे न आ सकें । दरअसल उन्हें भी लगता है कि जेपी सिंह अभी हारे तो जरूर हैं, लेकिन पूरी तरह से 'ख़त्म' नहीं हुए हैं । जेपी सिंह उचित मौके का इंतजार करेंगे, तथा जैसे ही परिस्थितियाँ अनुकूल होंगी, जेपी सिंह वापसी के लिए प्रयास करेंगे ।
जेपी सिंह के नजदीकियों का कहना भी है कि लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़े की लड़ाई में जेपी सिंह एंड टीम अभी इसीलिए पीछे हटी है, क्योंकि परिस्थितियाँ अभी पूरी तरह उनके खिलाफ हैं और वह जान/समझ रहे हैं कि अभी वह यदि लड़ाई लड़ेंगे भी तो निश्चित ही हारेंगे । हारने की इस निश्चितता को पहचानते हुए ही जेपी सिंह एंड टीम ने लड़ने की बजाए समर्पण करने की रणनीति अपनाई । उनका सोचना और कहना है कि विरोधी पक्ष को अभी तक तो सिर्फ आरोप लगाने होते थे, सो वह बहुत जोश में रहते थे; पर अब जब उन्हें काम करना पड़ेगा - तो आधा जोश तो उनका वैसे ही हवा हो जायेगा । जेपी सिंह तथा उनके नजदीकियों को लगता है कि विरोधी पक्ष के लोगों ने लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा तो ले लिया है, पर अब जब वह काम करेंगे तो गलतियाँ भी करेंगे - तब आरोप लगाने का मौका उन्हें मिलेगा; और तभी जेपी सिंह एंड टीम को वापसी करने का अवसर मिलेगा । जेपी सिंह को लगता है कि उन्हें यदि फिर से अपनी चौधराहट को पाना है, तो कुछ समय के लिए उन्हें राजनीतिक पचड़ों से दूर रहना चाहिए । राजनीति के चक्कर में उन्होंने अपने तमाम दुश्मन बना लिए हैं । उन्हें उम्मीद है कि राजनीतिक पचड़ों से वह दूर रहेंगे, तो उनके दुश्मनों की संख्या भी कम होगी । जेपी सिंह की इस सोच में लेकिन विरोधाभास यह है कि वह यदि राजनीति से दूर रहेंगे, तो लोगों के बीच अपना प्रभाव कैसे बनायेंगे ? अभी तक उन्होंने अपना जो प्रभाव बनाया था, वह राजनीति करके ही तो बनाया था । जाहिर है कि खोट राजनीति में नहीं, बल्कि राजनीति के 'तरीके' में है । जेपी सिंह का राजनीति का जो तरीका रहा, वह अभी तक भले ही कामयाब रहा हो - लेकिन अब उनका तरीका पिटने लगा है । इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के 'चुनाव' में जेपी सिंह की जो फजीहत हुई, वह इस बात का सुबूत है कि जेपी सिंह के राजनीतिक हथकंडे अब पुराने पड़ गए हैं, तथा उनके भरोसे अब उन्हें कामयाबी नहीं मिलने वाली है । लायंस ब्लड बैंक की आड़ में घपलेबाजी के जो आरोप उनपर रहे हैं, और जिन आरोपों के कारण बने दबाव के चलते लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा छोड़ने के लिए वह मजबूर हुए - उससे जेपी सिंह की राजनीतिक परेशानी में और इजाफा हुआ है ।
लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा करने के साथ ही विरोधी पक्ष के लोगों ने जिस तरह के तेवर दिखाए हैं, और जेपी सिंह को और और पीछे धकेलने के प्रति अपने 'उद्देश्य' को जाहिर किया है, उससे लग रहा है कि जेपी सिंह के खिलाफ उनका अभियान अभी जारी रहेगा । लायंस सर्विस ट्रस्ट की सदस्यता को लेकर नए पदाधिकारियों ने तुरंत से जो कदम उठाए हैं, उससे लायंस सर्विस ट्रस्ट तथा लायंस ब्लड बैंक में फिर से घुसपैठ करना जेपी सिंह के लिए मुश्किल ही होगा । जेपी सिंह ने अपनी राजनीति ज़माने में इन दोनों संस्थाओं का जमकर फायदा उठाया है । आगे की राजनीतिक यात्रा उन्हें इनकी मदद के बिना ही करना होगी - जाहिर है कि जेपी सिंह के लिए आगे की राजनीतिक यात्रा आसान नहीं होगी । उनके विरोधी जल्दी जल्दी प्राप्त की गईं दो दो जीतों के कारण जिस तरह के जोश में हैं, और जेपी सिंह को पूरी तरह मटिया देने के हुंकारे भर रहे हैं - उसे देख/सुनकर तो जेपी सिंह की आगे की राजनीतिक यात्रा बहुत ही चुनौतीपूर्ण लग रही है । आगे क्या होगा; जेपी सिंह अपनी राजनीतिक वापसी कर पायेंगे या नहीं, यह तो आगे पता चलेगा - किंतु अभी जो बात पता चल रही है वह यह है कि डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में आगे बहुत दिलचस्प नज़ारे देखने को जरूर मिलेंगे ।

Friday, May 27, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य नितिन कँवर की ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल की आड़ में की जा रही 'धंधेबाजी' की शिकायत पर विजय गुप्ता किस डर या स्वार्थ के कारण कार्रवाई नहीं कर रहे हैं ?

नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल व नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में दिल्ली के ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल की आड़ में हो रही धांधलेबाजी को जिस तरह से शह दी जा रही है, उससे इस बात का एक बार फिर पुख्ता सुबूत मिला है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल व नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पूरी तरह मनमानी धंधेबाजी का अड्डा बन चुकी हैं । मनमानी धंधेबाजी करने वाले लोगों के हौंसले की ऊँचाई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस मामले में आरोपी पर कार्रवाई करने की बजाए शिकायतकर्ता को ही तरह तरह से परेशान किया जा रहा है - और उस पर तरह तरह से यह दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है कि वह इंस्टीट्यूट में की गई अपनी शिकायत को वापस ले ले । शिकायत नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य नितिन कँवर के खिलाफ है । मामला 25 मार्च को बैंक ऑडिट पर दिल्ली के स्कोप ऑडीटोरियम में आयोजित हुए एक सेमीनार का है, जिसमें प्रतिभागियों को चार सीपीई आर्स दिए गए । यह सेमीनार आरोपों के घेरे में इसलिए आया क्योंकि इसके निमंत्रण लोगों को दो संस्थाओं की तरफ से मिले - इस सेमीनार को आयोजित करने का दावा ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल ने किया, और उसी के चलते प्रतिभागियों को सीपीई आर्स मिल सके; लेकिन हैरान करने की बात यह रही कि इसी सेमीनार को नितिन कँवर एंड टीम की तरफ से इंटरनेशनल टैक्स सीए ग्रुप द्वारा आयोजित होना बताया । सवाल यह पैदा हुआ कि एक सेमीनार के आयोजन का जिम्मा दो संस्थाएँ कैसे ले सकती हैं ? लेने/करने को तो एक सेमीनार का आयोजन दस/बीस संस्थाएँ भी कर सकती हैं, लेकिन यह बात एक ही जगह स्पष्ट रूप से दर्ज होनी चाहिए न । एक सेमीनार के आयोजन का जिम्मा यदि एक से अधिक संस्थाएँ अलग अलग रूप में करती हैं, तो फिर यह सवाल तो उठेगा ही न कि सेमीनार का असली आयोजक वास्तव में है कौन ? 25 मार्च के सेमीनार को लेकर भी सवाल बड़ा सीधा और आसान सा हुआ कि इस सेमीनार का आयोजक वास्तव में है कौन ? सवाल का जबाव नहीं मिला, तो फिर कयास लगने शुरू हुए और आरोपों के निशाने पर नितिन कँवर आए । ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल को चूँकि नितिन कँवर के जेबी संगठन के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है, इसलिए आरोप लगा कि इस स्टडी सर्किल की आड़ में नितिन कँवर धंधे की राजनीति और राजनीति का धंधा कर रहे हैं ।
ईस्ट एंड स्टडी सर्किल की गतिविधियों पर पहले भी आरोप लगते सुने गए हैं, और बताया जाता रहा है कि यह स्टडी सर्किल सीपीई आर्स 'बेचने' के धंधे में शामिल रहा है और इस पर हिसाब-किताब में गड़बड़ी के आरोप लगते रहे हैं । लेकिन नितिन कँवर के नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चुने जाने के बाद उम्मीद की गई थी कि नितिन कँवर अब चूँकि जिम्मेदारी के पद पर आ गए हैं, तो अपनी पोजीशन का ख्याल करते/रखते हुए अब वह ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल द्वारा की जा रही कारस्तानियों पर रोक लगायेंगे और ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे काउंसिल का, इंस्टीट्यूट का और खुद उनका नाम खराब हो । किंतु 25 मार्च के सेमीनार के आयोजन के पीछे का गड़बड़झाला सामने आया, तो पता चला कि काउंसिल सदस्य होने के बाद तो नितिन कँवर और खुल कर 'बेईमानी' करने को अपना अधिकार समझ बैठे हैं । वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट अविनाश गुप्ता ने इस 'बेईमानी' की शिकायत इंस्टीट्यूट की सीपीई कमेटी को की - जिसके चेयरमैन विजय गुप्ता तथा सेक्रेटरी राजेश भल्ला हैं, और जिसमें कुल मिलाकर 28 सदस्य हैं । अविनाश गुप्ता को उम्मीद रही कि तथ्यों व सुबूतों के साथ की गई उनकी शिकायत पर इंस्टीट्यूट की सीपीई कमेटी तुरंत कार्रवाई करेगी और ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल द्वारा की जा रही धोखाधड़ी को न सिर्फ रोकेगी, बल्कि स्टडी सर्किल तथा सेमीनार की आड़ में किए जा रहे 'धंधे' के मुख्य प्रमोटर नितिन कँवर के खिलाफ भी उचित कार्रवाई करेगी । सेंट्रल काउंसिल सदस्य विजय गुप्ता की चेयरमैनी वाली सीपीई कमेटी ने लेकिन उनकी शिकायत को धूल खाने के लिए छोड़ दिया । दो महीने तक अविनाश गुप्ता को जब अपनी शिकायत पर कोई कार्रवाई होती हुई नजर नहीं आई, तो अभी हाल ही में उन्होंने सीपीई कमेटी के पदाधिकारियों से लिख कर पूछा है कि उनकी शिकायत पर अभी तक हुआ क्या है ?
ऐसा न माना/समझा जाए कि अविनाश गुप्ता की शिकायत पर ध्यान देने के लिए सीपीई कमेटी के पदाधिकारियों को समय नहीं मिला, और या उन्होंने शिकायत को संज्ञान लेने लायक ही नहीं समझा । शिकायत करने के बाद से अविनाश गुप्ता को जिस तरह से निशाना बनाना शुरू किया गया और एक स्पीकर के रूप में उनके कार्यक्रमों को रद्द करने/करवाने तथा असफल करने/करवाने की चालें चलना शुरू हुआ, उससे यह साफ नजारा देखने को मिला कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल व नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए शिकायतकर्ता को ही सबक सिखाने पर उतर आए हैं । शिमला ब्रांच तथा फरीदाबाद के अर्बन स्टेट स्टडी सर्किल सहित नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के जिन कार्यक्रमों में अविनाश गुप्ता को स्पीकर के रूप में आमंत्रित किया गया, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की तरफ से षड्यंत्रपूर्वक उन्हें या तो स्थगित करवा दिया गया और या उन्हें फेल करने के प्रयास किए गए । अविनाश गुप्ता ने दावा किया है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी सुमित गर्ग ने उनसे टेलीफोन पर बात करते हुए स्वीकार किया व बताया कि चेयरमैन दीपक गर्ग के नेतृत्व में रीजनल काउंसिल के 'पॉवर ग्रुप' ने तय किया हुआ है कि अविनाश गुप्ता को नॉर्दर्न रीजन के किसी भी कार्यक्रम में 'दिखने' नहीं दिया जायेगा । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दीपक गर्ग को विजय गुप्ता के 'चेले' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि नितिन कँवर से विजय गुप्ता को आखिर क्या डर या स्वार्थ है, जो वह न सिर्फ नितिन कँवर के खिलाफ हुई शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपने चेले दीपक गर्ग को उन्होंने शिकायतकर्ता अविनाश गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए लगा दिया है ।
इस मामले का सबसे ज्यादा गंभीर पहलू यह है कि इंस्टीट्यूट की विजय गुप्ता की चेयरमैनी वाली सीपीई कमेटी में सेंट्रल काउंसिल के कई सदस्य भी हैं, लेकिन किसी ने भी विजय गुप्ता से यह तक पूछने/जानने की हिम्मत नहीं की कि नितिन कँवर के खिलाफ आयी शिकायत पर कोई कार्रवाई आखिर क्यों नहीं हो रही है ? कमेटी अविनाश गुप्ता की शिकायत को निरस्त करते हुए यही कह दे कि जो हुआ है, उसमें नितिन कँवर ने और ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल ने कुछ भी गलत नहीं किया है । विजय गुप्ता की चेयरमैनी वाली सीपीई कमेटी में सेंट्रल काउंसिल के जय छारिया, प्रफुल्ल छाजेड़, तरुण घिआ, मंगेश किनरे, धीनल शाह, बाबु कल्लीवयलिल, मधुकर हिरेगंगे, के श्रीप्रिया, श्याम अग्रवाल, मुकेश कुशवाह, प्रकाश शर्मा, केमिशा सोनी, संजय अग्रवाल, संजीव चौधरी, अतुल गुप्ता, नवीन गुप्ता, राजेश शर्मा आदि सीनियर व जूनियर सदस्य हैं - लेकिन किसी ने भी इस बात की फ़िक्र नहीं की है कि स्टडी सर्किल की आड़ में की जा रही नितिन कँवर की धंधेबाजी को लेकर हुई शिकायत पर कमेटी कोई तो फैसला ले आखिर ! यह लोग कमेटी में क्या सिर्फ इसलिए हैं, ताकि अपने अपने प्रोफाइल में दिखा/जता सकें कि वह 'इस' कमेटी में भी सदस्य रहे हैं - कमेटी सदस्य के रूप में इनकी कोई न्यूनतम जिम्मेदारी भी बनती है या नहीं ? नितिन कँवर की धंधेबाजी के मामले में पूरी सेंट्रल काउंसिल जिस तरह से पंगु हो गई है, वह इंस्टीट्यूट की कार्यदशा का एक उदाहरण है ।

Thursday, May 26, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डेविड हिल्टन ने अपनी पक्षपाती हरकतों से रोटरी और डिस्ट्रिक्ट तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद को तो कलंकित किया ही है, साथ ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए डीसी बंसल की जीत पर भी तलवार लटका दी है

देहरादून । डीसी बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जितवाने में अपनी एड़ीचोटी लगाने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स नेताओं के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि डीसी बंसल की 'जीत' पर वह आखिर किस तरह खुशी मनाएँ ? डीसी बंसल की 'जीत' चुनावी इतिहास की ऐसी अनोखी जीत है, कि इस पर खुश और जोश से भर जाने वाले लोगों के बीच हताशा और निराशा नजर आ रही है - और उन्हें लोगों से मुँह छिपाना पड़ रहा है । डीसी बंसल की 'जीत' को संभव बनाने के लिए जिन पूर्व गवर्नर्स नेताओं ने अपनी मर्यादा व अपनी इज्जत तक को दाँव पर लगा दिया, उन्हें भी लग रहा है कि उन्होंने डीसी बंसल को जबर्दस्ती जितवा तो दिया है, लेकिन जबर्दस्ती की यह 'जीत' डीसी बंसल के पास ज्यादा दिन तक रह नहीं पाएगी । उल्लेखनीय है कि डीसी बंसल एक बार पहले भी फर्जी तरीके से प्राप्त की गई जीत से बेदखल किए जा चुके हैं । उस प्रकरण से डीसी बंसल ने खुद को बहुत अपमानित व लज्जित महसूस किया था, इसलिए इस बार की 'जीत' को लेकर तो वह और भी ज्यादा सशंकित हैं । डीसी बंसल से व्यक्तिगत किस्म की हमदर्दी रखने वाले कुछेक लोगों ने दावा किया है कि उन्होंने डीसी बंसल को सुझाव दिया है कि रोटरी इंटरनेशनल उनकी इस फर्जी तरीके से पाई गई जीत को निरस्त करे, और उन्हें डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच दोबारा से अपमानित व लज्जित होना पड़े - उससे पहले ही उन्हें इस 'जीत' से इस्तीफा दे कर अपनी इज्जत बचा लेनी चाहिए । यह सुझाव देने वाले लोगों का कहना है कि डीसी बंसल आज डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी हैं - कल रोटरी इंटरनेशनल उन्हें पहले ही तरह इस पद से हटाता है, उससे बेहतर व सम्मानजनक तरीका होगा कि डीसी बंसल खुद इस पद को छोड़ दें । ऐसा करके वह लोगों का ज्यादा विश्वास व गर्व के साथ सामना कर सकेंगे । 'जीत' के बावजूद हताशा व निराशा से घिरे डीसी बंसल को हौंसला देने वाले लोगों की भी हालाँकि कमी नहीं है, जिनका कहना है कि पहले जो हुआ सो हुआ - अब की बार राजा साबू रोटरी इंटरनेशनल से ऐसा कोई फैसला नहीं होने देंगे जिससे कि डीसी बंसल को लोगों के बीच दोबारा से अपमानित व लज्जित होना पड़े ।
डीसी बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जितवाने में अपनी एड़ीचोटी लगाने वाले पूर्व गवर्नर्स नेताओं के लिए शर्मनाक स्थिति इस कारण बनी कि अपनी तमाम बेशर्म कोशिशों के बावजूद वह डीसी बंसल को सिर्फ इतने वोट दिलवा सके, जिनसे डीसी बंसल अपने प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार टीके रूबी को मिले वोटों की बराबरी भर कर सके । पूर्व गवर्नर्स के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक स्थिति और भला क्या होगी कि राजा साबू के नेतृत्व में उन्होंने हर उपाय आजमाते हुए डीसी बंसल की उम्मीदवारी के समर्थन में वोट जुटाने का प्रयास किया; अपने प्रयासों पर वह पूरा भरोसा कर रहे थे - और इसी भरोसे के भरोसे वह डीसी बंसल को अस्सी से ज्यादा वोट मिलने का दावा कर रहे थे; लेकिन वोटों की गिनती पूरी होने पर पता चला कि डीसी बंसल को कुल 39 वोट ही मिले हैं । जो जानकारियाँ मिल रही हैं, उनसे पता चल रहा है कि टीके रूबी की उम्मीदवारी को वोट देने वाले कई एक क्लब्स के वोट रहस्यपूर्ण व षड्यंत्रकारी रूप से या तो पहुँचे ही नहीं और या गड़बड़ी करके उन्हें अवैध कर/करवा दिया गया । इस तरह की कुछेक शिकायतें डीसी बंसल की उम्मीदवारी के पक्ष में भी हैं - लेकिन जब चुनावी प्रक्रिया डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन की पक्षपातपूर्ण देखरेख में पूरी हुई है, तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि अनुपस्थित व अवैध घोषित हुए कौन से वोट जेनुइन तरीके से 'ऐसे' हुए और कौन से वोटों को षड्यंत्रकारी तरीके से अनुपस्थित व अवैध किया/बनाया गया । समझा जाता है कि टीके रूबी की हार को बड़ी और बुरी हार के रूप में दिखाने की तैयारी में टीके रूबी को मिले वोटों को हेराफेरी करके या तो गायब कर दिया गया और या उन्हें अवैध बना दिया गया ।
समझा जा रहा है कि वोटों में हेराफेरी करने का अवसर बनाए रखने के लिए ही डेविड हिल्टन ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराने की माँग को मानने से इंकार कर दिया था । डेविड हिल्टन ने बैलेटिंग कमेटी से टीके रूबी के प्रतिनिधि को बाहर रखने/करने की हर संभव कोशिश की । वह तो उनकी इस कोशिश पर रोटरी इंटरनेशनल का तगड़ा वाला डंडा उन पर पड़ा, जिस कारण वह अपनी कोशिश में कामयाब नहीं हो सके - अन्यथा डेविड हिल्टन की तैयारी तो टीके रूबी को मिलने वाले सभी वोटों को अनुपस्थित या अवैध 'कर' देने की थी । टीके रूबी के प्रति डेविड हिल्टन का दुश्मन वाला रवैया कोई छिपी हुई बात नहीं रही है । क्लब्स में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी आधिकारिक मीटिंग्स में उन्होंने टीके रूबी के खिलाफ जो जहर उगला और लोगों को टीके रूबी के खिलाफ भड़काने के जो प्रयास किए, उन्हें यदि अनदेखा भी कर दें - तो यह बात तो बाकायदा रिकॉर्ड पर है कि टीके रूबी के खिलाफ हुई शिकायत के समर्थन में उन्होंने कॉन्करेंस दी और इस तरह पार्टी बने । जोनल इलेक्शन रिव्यू कमेटी ने डीसी बंसल का पिछला चुनाव जब रिजेक्ट किया था, तब कमेटी के फैसले के खिलाफ अपील करके डेविड हिल्टन एक बार फिर पार्टी बने । डेविड हिल्टन ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का दुरूपयोग करते हुए टीके रूबी को रोटरी से ही निकालने के प्रयास किए । पहले तो उन्होंने टीके रूबी की सदस्यता रद्द करवाने का प्रयास किया, लेकिन इस प्रयास के विफल हो जाने पर उन्होंने टीके रूबी के क्लब का चार्टर ही रद्द करवा देने की चाल चली । यह कुछ तथ्य ऐसे हैं, जिनके कारण टीके रूबी तथा उनके क्लब को चुनाव में डेविड हिल्टन की भूमिका पर भरोसा नहीं था, और इसीलिए उन्होंने चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग करवाने की माँग की थी । राजा साबू के नेतृत्व में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के दिशा-निर्देश में चुनावी-व्यवस्था को अंजाम दे रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन ने समझ लिया था कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग में उनके लिए बेईमानी कर पाना संभव नहीं होगा - लिहाजा टीके रूबी की माँग पर रोटरी इंटरनेशनल द्धारा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव कराने के सुझाव को स्वीकार करने से डेविड हिल्टन ने इंकार कर दिया । टीके रूबी को 'मिले' वोटों के गायब हो जाने और या अवैध हो जाने को लेकर जो आरोप सुने जा रहे हैं, उससे यह समझना कोई मुश्किल नहीं है कि डेविड हिल्टन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के लिए राजी आखिर क्यों नहीं हुए थे ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डेविड हिल्टन ने जिस तरह की पक्षपाती हरकतें कीं, उससे रोटरी और डिस्ट्रिक्ट तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद को भी उन्होंने कलंकित किया है । इसे रोटरी व डिस्ट्रिक्ट 3080 का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि इन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डेविड हिल्टन जैसा व्यक्ति मिला, जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाने की बजाए राजा साबू तथा उनका नाम लेकर राजनीति करने वाले पूर्व गवर्नर्स की कठपुतली बनने के लिए तैयार हो गए - और रोटरी के इतिहास की एक कलंक-कथा के 'नायक' बने । इतने सब के बाद भी, डीसी बंसल को ऐसी सम्मानजनक जीत नहीं दिलवाई जा सकी - जिसे मिलने की खुशी जाहिर की जा सके । डीसी बंसल को मिली जीत, वास्तव में ऐसी जीत है - जिसे लेकर हर कोई मान/जान रहा है कि यह ज्यादा दिन तक डीसी बंसल के पास बनी नहीं रह पायेगी । टीके रूबी के नजदीकियों की तरफ से बता दिया गया है कि इस चुनाव में जो धांधलियाँ हुई हैं, उन्हें मुद्दा बना कर डीसी बंसल की जीत के फैसले को रोटरी इंटरनेशनल में चेलैंज किया जायेगा । डीसी बंसल की जीत को संभव बनाने में एड़ीचोटी लगा देने वाले लोगों को इससे तगड़ा झटका लगा है । ऐसे में, डीसी बंसल की जीत पर जिन लोगों को खुश होना चाहिए था और जोश के साथ जश्न मनाते हुए दिखना चाहिए था, उन्हें हताश व निराश देख कर कुछेक लोगों का यह सुझाव महत्वपूर्ण हो उठा है कि जिस जीत को पहले की तरह ही रोटरी इंटरनेशनल वापस ले लगा, उस जीत को डीसी बंसल को खुद ही रोटरी इंटरनेशनल को वापस कर देना चाहिए ।

Wednesday, May 25, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में हिसाब-किताब में गड़बड़ी के आरोपों के लिए सुरेश गुलाटी व सुशील मल्होत्रा को जिम्मेदार ठहरा कर डॉक्टर सुब्रमनियम के नजदीकियों ने मामले को और गंभीर बना दिया है

नई दिल्ली । डॉक्टर सुब्रमनियम की पेम में हुए खर्चे का बोझ जबर्दस्ती क्लब पर डालने के मामले में डॉक्टर सुब्रमनियम के अपने क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल में खासा बबाल हो गया है । बात सिर्फ पचास हजार रुपयों की है । क्लब के अध्यक्ष सुनील मुटनेजा चाहते हैं कि पेम के आयोजन में खर्च का घाटा पूरा करने के लिए उन्होंने क्लब की तरफ से जो पचास हजार रुपए डॉक्टर सुब्रमनियम को दिए, उसे क्लब का बोर्ड मंजूरी दे और इन पचास हजार रुपयों को क्लब के खर्च के रूप में मान्यता दे । क्लब के लोगों का कहना है कि क्लब के दूसरे पदाधिकारियों से विचार-विमर्श किए बिना सुनील मुटनेजा ने जिस मनमाने तरीके से पैसे पेम के लिए दे दिए, उसे मंजूर नहीं किया जा सकता है - सुनील मुटनेजा को समझना चाहिए कि भले ही वह क्लब के अध्यक्ष हैं, लेकिन क्लब के पैसे को वह मनमाने तरीके से खर्च नहीं कर सकते हैं । डॉक्टर सुब्रमनियम के नजदीकी इस सारे झमेले के लिए क्लब के वरिष्ठ सदस्य सुरेश गुलाटी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । उनका कहना है कि सुरेश गुलाटी चूँकि डॉक्टर सुब्रमनियम से खफा हैं, इसलिए वह तरह तरह से डॉक्टर सुब्रमनियम के काम में रोड़े डालने तथा डॉक्टर सुब्रमनियम व उनके नजदीकियों को परेशान व बदनाम करने/कराने में लगे हुए हैं । क्लब के दूसरे कुछेक लोगों का कहना लेकिन यह है कि सुरेश गुलाटी जैसे वरिष्ठ सदस्य को निशाना बना कर डॉक्टर सुब्रमनियम व उनके साथी मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उनकी नाकामियों व बेवकूफियों पर पर्दा पड़ा रहे । सुरेश गुलाटी, डॉक्टर सुब्रमनियम से खफा हैं या नहीं हैं, इस बात का मामले से कोई लेना-देना ही नहीं है - मामला क्लब के बोर्ड का है, और सुरेश गुलाटी तो बोर्ड में हैं भी नहीं ! डॉक्टर सुब्रमनियम के नजदीकी लेकिन सुरेश गुलाटी को बख़्शने के मूड में नहीं हैं । उनका कहना है कि सुरेश गुलाटी अक्सर यह शिकायत करते हुए सुने गए हैं कि डॉक्टर सुब्रमनियम जब उम्मीदवार थे, तब तो उनकी मदद लेने के लिए उनकी खुशामद किया करते थे - लेकिन अब उन्हें पूछते और पहचानते तक नहीं हैं । सुरेश गुलाटी की इस शिकायत को आधार बना कर ही डॉक्टर सुब्रमनियम के नजदीकियों का कहना है कि क्लब में डॉक्टर सुब्रमनियम के खिलाफ जो कुछ हो रहा है, उसे सुरेश गुलाटी ही हवा दे रहे हैं ।
डॉक्टर सुब्रमनियम के नजदीकियों ने सुरेश गुलाटी के साथ साथ क्लब के एक अन्य वरिष्ठ सदस्य सुशील मल्होत्रा को भी निशाने पर लिया हुआ है : उनका कहना है कि सुशील मल्होत्रा ने क्लब पर बोझ बने पेम में खर्च हुए पचास हजार अपनी तरफ से देने का वायदा किया था, लेकिन अब वह अपने वायदे को पूरा करने से पीछे हट रहे हैं । क्लब में चर्चा है कि सुशील मल्होत्रा ने रवि चौधरी के गवर्नरी वाले वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का मन बनाया हुआ है । इसकी तैयारी के तहत उन्होंने डॉक्टर सुब्रमनियम से उम्मीद की हुई है कि अपने गवर्नर-काल के विभिन्न आयोजनों में वह उन्हें आगे आगे रखेंगे, जिससे कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने का मौका मिलेगा - और यह मौका पाने के लिए ही उन्होंने क्लब पर बोझ बने पेम में खर्च हुए पचास हजार रुपए का बोझ उठाने का जिम्मा ले लिया था । बाद में सुशील मल्होत्रा ने लेकिन पाया कि डॉक्टर सुब्रमनियम उन्हें आगे आने/रहने का कोई मौका ही नहीं दे रहे हैं - लिहाजा उन्होंने भी उक्त पचास हजार रुपए देने में दिलचस्पी नहीं ली । क्लब के सदस्यों को बात सही भी लगती है - उनका कहना है कि डॉक्टर सुब्रमनियम ने जब सुशील मल्होत्रा के साथ एक 'सौदा' किया, तो सौदे की अपनी जिम्मेदारी का भी उन्हें निर्वाह करना चाहिए; और यदि वह अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं, तो उन्हें सुशील मल्होत्रा से भी जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद नहीं रखना चाहिए ।
डॉक्टर सुब्रमनियम पर दरअसल सबसे गंभीर आरोप ही यह है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी जिम्मेदारी तो निभाना नहीं चाहते हैं, और दूसरों पर उन्हें विश्वास में लिए बिना ही जिम्मेदारी थोप देते हैं - नतीजे में उन्हें भी लोगों का सहयोग नहीं मिल पाता है, और आयोजनों का भट्टा बैठ जाता है । डॉक्टर सुब्रमनियम खुद कोई दिलचस्पी लेते नहीं हैं, तथा अपने नजदीकियों पर जिम्मेदारी छोड़ देते हैं - जिन पर कार्यक्रमों की आड़ में पैसे बनाने तक के गंभीर आरोप लग रहे हैं । पेम के हिसाब-किताब को लेकर भी आरोप हैं । क्लब के लोगों का कहना है कि पेम में पचास हजार के जिस घाटे की पूर्ति क्लब से की गई है, उसका वास्तविक उपयोग डॉक्टर सुब्रमनियम के कुछेक नजदीकियों की जेबें भरने में किया गया है । इस आरोप को तब और बल मिला, जब डॉक्टर सुब्रमनियम ने पेम का हिसाब देने/दिखाने से साफ मना कर दिया । हाल ही में एक ही दिन आयोजित हुए लिटरेसी ट्रेनिंग प्रोग्राम तथा डिस्ट्रिक्ट ग्रांट्स मैनेजमेंट सेमीनार को लेकर भी लोगों के बीच आरोप सुने गए । एक ही दिन दो कार्यक्रमों को आयोजित करने के फैसले को अव्यावहारिक माना/बताया गया, और इसीलिए इनमें ज्यादा लोगों की भागीदारी संभव नहीं हो सकी । उल्लेखनीय है कि लिटरेसी ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए तो रोटरी इंटरनेशनल से पैसे मिलते हैं - आरोप लगा/सुना गया है कि भागीदारों की संख्या को गड़बड़ी करके ज्यादा दिखाया गया और रोटरी इंटरनेशनल से ज्यादा पैसे ले लिए गए हैं । डॉक्टर सुब्रमनियम के अपने क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल में लोगों को ऐतराज इस बात पर है कि डॉक्टर सुब्रमनियम जब तब खर्चों का बोझ तो क्लब पर डाल देते हैं, किंतु किसी भी कार्यक्रम का हिसाब माँग लो - तो कन्नी काट जाते हैं । हिसाब-किताब को लेकर उठते सवालों का जबाव देने से बचने की कोशिश में डॉक्टर सुब्रमनियम के नजदीकियों ने जिस तरह से क्लब के वरिष्ठ सदस्य सुरेश गुलाटी को घसीट लिया है, उसके कारण मामला और गर्म व गंभीर हो गया है ।

Monday, May 23, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में दीपक बाबु रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को अपनी धमकियों से डरा कर अपनी गवर्नरी को वापस पा लेने में सचमुच कामयाब होंगे क्या ?

मुरादाबाद । दीपक बाबु रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को 'धमका' कर अपनी गवर्नरी वापस पाने की जो कोशिश कर रहे हैं, उसने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बुरी तरह डरा दिया है । लोगों के बीच डर यह पैदा हुआ है कि दीपक बाबु की मनमानी, स्वार्थपूर्ण व बेवकूफीभरी हरकतों से डिस्ट्रिक्ट पहले से ही मुसीबत में फँसा हुआ है - अब जो वह नया कारनामा करने जा रहे हैं, उससे पता नहीं डिस्ट्रिक्ट का और क्या हाल हो ? उल्लेखनीय है कि दीपक बाबु ने कल कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुलाई थी, जिसमें उन्होंने अपनी तरफ से सुझाव रखा कि रोटरी इंटरनेशनल को एक कर्रा सा पत्र लिखा जाए कि वह यदि डिस्ट्रिक्ट 3100 को नॉन डिस्ट्रिक्ट स्टेटस से बाहर नहीं निकालता है, तो डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस कोई इंटरनेशनल ड्यूज नहीं देंगे और रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारी यदि फिर भी नहीं माने तो डिस्ट्रिक्ट के सभी रोटेरियंस रोटरी छोड़ देंगे । दीपक बाबु ने दावा किया कि इस तरह का पत्र रोटरी इंटरनेशल कार्यालय जायेगा, तो रोटरी इंटरनेशल कार्यालय अवश्य ही संज्ञान लेगा और तुरंत से डिस्ट्रिक्ट को बहाल कर देगा । दीपक बाबु की बातें सुनकर मीटिंग में मौजूद कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने कहा भी कि रोटरी इंटरनेशनल के फैसले को पलटवाने के लिए प्रयास करने का अभी उचित समय नहीं है, और अभी हमें ईमानदारी से अपनी गलतियों की पहचान करना चाहिए और यह समझना चाहिए कि हमसे आखिर क्या क्या गलतियाँ हुईं हैं - जो हमें इस मुकाम पर ला खड़ा करने के लिए जिम्मेदार हैं । दीपक बाबु ने लेकिन इन बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया और वह रोटरी इंटरनेशनल को धमकीभरा पत्र लिखने की बात करते रहे । मीटिंग में मौजूद पूर्व गवर्नर्स ने जब देखा कि दीपक बाबु किसी की सुन ही नहीं रहे हैं, और अपनी ही हाँके जा रहे हैं - तो वह चुप लगा गए । पूर्व गवर्नर्स की चुप को दीपक बाबु ने उनकी सहमति माना और उन्होंने घोषणा कर दी कि वह दो एक दिन में रोटरी इंटरनेशनल को धमकीभरा पत्र लिख भेजेंगे ।
दीपक बाबु की इस घोषणा ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बुरी तरह डरा दिया है । लोगों को लग रहा है कि दीपक बाबु अपनी स्वार्थपूर्ण मूर्खता में डिस्ट्रिक्ट का और बेड़ा गर्क करेंगे । लोगों को लग रहा है कि दरअसल दीपक बाबु चाहते हैं कि किसी भी तरह से कुछ भी करके एक जुलाई से उन्हें गवर्नरी मिल जाए; और पता नहीं क्यों उन्हें यह लगता है कि धमकी देकर वह रोटरी इंटरनेशनल को एक जुलाई से उन्हें गवर्नरी सौंप देने के लिए मजबूर कर देंगे ? रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्था से परिचित लोग जानते हैं कि ऐसा हो पाना असंभव है । इसकी उम्मीद तो एक बार को फिर भी की जा सकती है कि अगला रोटरी वर्ष शुरू होने के बाद डिस्ट्रिक्ट के लोग आपसी एकजुटता व सकारात्मक सोच/व्यवहार का परिचय दें, तो दो-चार महीने में रोटरी इंटरनेशनल अपने फैसले पर पुनर्विचार कर ले - और हो सकता है कि छह/आठ महीने के लिए दीपक बाबु को गवर्नरी मिल जाए । लेकिन दीपक बाबु का जो व्यवहार कल की कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में देखने को मिला, उससे लगता नहीं है कि दीपक बाबु अपनी हरकतों से हालात को सुधरने देंगे । मीटिंग में नीरज अग्रवाल तथा बृज भूषण से लताड़ सुनने के बाद कहने को तो उन्होंने 'अभी तक की' अपनी गलतियों के लिए माफी माँगी, लेकिन माफी माँगने के उनके अंदाज़ तथा उनकी बातों व उनके रवैये से किसी को भी लगा नहीं कि उन्होंने अपनी गलतियों को वास्तव में पहचाना/समझा भी है ?
डिस्ट्रिक्ट के लोगों के अनुसार, दीपक बाबु की दो बड़ी गलतियाँ रहीं : एक तो उन्होंने कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में हुए फैसले को नहीं माना - इसलिए नहीं माना क्योंकि पूर्व गवर्नर्स के प्रति उनके मन में कोई सम्मान ही नहीं था, जिसके चलते कई एक पूर्व गवर्नर्स को उन्होंने अलग अलग तरह से अपमानित तक किया; दूसरी गलती उनकी यह रही कि रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय तथा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की तरफ से समय समय पर जो संकेत उन्हें मिले, उन्होंने न तो उन्हें समझने की कोशिश की और न उनसे सबक लेने का प्रयास किया । इसका नतीजा जो निकला, वह अब जगजाहिर है ।
दीपक बाबु ने कल की कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में भी इन्हीं गलतियों को दोहराने वाले तेवर दिखाए । 'अभी तक की' अपनी गलतियों के लिए माफी माँगने के बावजूद, एक बार फिर वह पूर्व गवर्नर्स की बातों की अनसुनी करने तथा कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में सर्वानुमति बनाने का प्रयास करने की बजाए अपनी ही बात थोपते हुए नजर आए । उनके इस रवैये को देखते हुए ही पूर्व गवर्नर्स ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी, क्योंकि उन्हें डर रहा कि उनके कुछ कहने पर दीपक बाबु उन्हें अपमानित न कर दें । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय तथा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को लेकर भी दीपक बाबु के रवैये में मूर्खता की उपस्थित को देखा/पहचाना गया । दीपक बाबु के प्रति तथा डिस्ट्रिक्ट 3100 के प्रति केआर रवींद्रन के रवैये को देखते/समझते हुए थोड़ी सी भी कॉमन सेंस रखने वाला व्यक्ति समझ लेगा कि धमकी देने से तो बात और बिगड़ेगी ही - लेकिन अपनी कुर्सी वापस पाने की फिराक में लगे दीपक बाबु को लगता है कि वह धमकी देकर केआर रवींद्रन से फैसला पलटवा लेंगे ।
दीपक बाबु सहित जिन भी लोगों को ऐसा लगता है, उन्हें डिस्ट्रिक्ट 3011 के एक घटना-प्रसंग से सबक लेना चाहिए : डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर्स केआर रवींद्रन की पहल से रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड द्वारा लिए गए एक फैसले से बुरी तरह खफा हैं, जिसे पलटवाने के लिए उन्होंने अपने डिस्ट्रिक्ट की काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में एक प्रस्ताव पास किया । गौर करने वाली बात यह है कि इस प्रस्ताव को पास करने के बावजूद उन्होंने अभी इसे इंटरनेशनल कार्यालय नहीं भेजने का फैसला किया - क्योंकि उन्होंने इस बात को समझा कि केआर रवींद्रन के प्रेसीडेंट रहते हुए इंटरनेशनल बोर्ड के उक्त फैसले को पलटवाना संभव नहीं होगा; उन्होंने फैसला किया कि वह अपने प्रस्ताव को जुलाई में इंटरनेशनल कार्यालय भेजेंगे । किंतु उनके बीच भी कोई दीपक बाबु जैसी सोच रखने वाला व्यक्ति था - उसने केआर रवींद्रन को लिख दिया कि इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले के खिलाफ हमारे यहाँ काफी रोष है और अपनी एकजुटता के जरिए हमने उस फैसले का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव पास किया है । जबाव में केआर रवींद्रन का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला को संबोधित फड़फड़ाता पत्र मिला, जिसमें साफ चेताया गया कि बदमाशी भी करोगे और उसके खिलाफ होने वाली कार्रवाई का विरोध भी करोगे, मैं कोशिश करूँगा कि आपके खिलाफ और कड़ी कार्रवाई हो । केआर रवींद्रन के इस पत्र ने डिस्ट्रिक्ट 3011 के गवर्नर्स के बीच हड़कंप मचा दिया । अलग अलग तरीकों से केआर रवींद्रन को संदेश भेजा गया व उन्हें समझाया गया कि जो प्रस्ताव पास हुआ है, वह लोगों की भावनाओं का इज़हार भर है, और उसे आधिकारिक रूप से रोटरी इंटरनेशनल को नहीं भेजा गया है - इसलिए रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय उसका संज्ञान नहीं ले सकता है । इसके बाद कहीं जाकर डिस्ट्रिक्ट 3010 के लोगों की जान छूटी । इस प्रसंग से सहज ही समझा जा सकता है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक बाबु यदि आधिकारिक रूप से रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय को धमकी भरा पत्र लिखे/भेजेंगे, तो फिर केआर रवींद्रन क्या हाल करेंगे ?
इसीलिए रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को 'धमका' कर अपनी गवर्नरी वापस पाने का दीपक बाबु ने जो फार्मूला सोचा है, उसने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बेचैन कर दिया है, और उन्हें फ़िक्र होने लगी है कि दीपक बाबु की हरकतें आगे न जाने और क्या गुल खिलाएँ ? कुछेक लोगों को हालाँकि दीपक बाबु से हमदर्दी भी है : उन्हें लगता है कि बेचारे दीपक बाबु ने बड़े झंझटों-झगड़ों-आफ़तों के बाद तो चुनाव जीता था, अब जब उस जीत का फल खाने का मौका आया - तो फल उनसे छीन लिया गया है । ऐसे लोगों का मानना और कहना है कि दीपक बाबु के लिए रास्ता अभी भी हालाँकि पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है, किंतु रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए उनके लिए सबसे पहली जरूरत यह है कि वह कोई अच्छे सलाहकार खोजें - जो उन्हें मामले की व स्थितियों की नाजुकता व गंभीरता से परिचित कराएँ तथा उन्हें नकारात्मक सोच व घेरेबंदी से बाहर निकालने में मदद करें । दीपक बाबु के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि दीपक बाबु की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने रवैये व व्यवहार से अपने तमाम तरह के दुश्मन बनाए हुए हैं, और तमाम लोगों के बीच अपनी एक नकारात्मक पहचान बना ली है; वह यदि ईमानदारी से व सोच-समझ कर थोड़ा सा भी प्रयास करें तो अपने दुश्मनों की संख्या को भी कम कर सकेंगे तथा अपनी पहचान की नकारात्मकता के गाढ़ेपन को भी कुछ पनीला कर लेंगे । कल की मीटिंग में उन्होंने जिस तरह से 'अभी तक की' गलतियों के लिए माफी माँगी, उससे ऐसा तो लगता है कि वह अपनी ऐंठ से जैसे बाहर निकलने का प्रयास तो कर रहे हैं, लेकिन उनके यह प्रयास अभी भी नकलीपन लिए हुए नजर आ रहे हैं -  इसीलिए अपने मामले को सँभालने की बजाए वह बिगाड़ते हुए ज्यादा दिख रहे हैं । और इसी कारण से उनके प्रयासों में हालात और खराब होने का खतरा देखा/पहचाना जा रहा है ।

Saturday, May 21, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में क्लब्स के पदाधिकारियों ने राजा साबू की धूर्त राजनीति को एक बार फिर तगड़ा झटका दिया

देहरादून । राजा साबू और उनके दरबार में नंबर एक 'बनने' की दौड़ में शामिल पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने डीसी बंसल के सिर पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी का ताज सजाने की जो तैयारी की थी, क्लब्स के पदाधिकारियों ने खासी चतुराई दिखाते हुए उसे धूल में मिला दिया है - जो हुआ है, उसे देख/जान कर राजा साबू व उनके 'शार्प शूटर' पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स सकते में हैं और उन्हें अपनी इज्ज़त बचाने का कोई तरीका समझ नहीं आ रहा है । जो हुआ है, वह टीके रूबी व डीसी बंसल के बीच हुए चुनाव का नतीजा भर नहीं है - बल्कि राजा साबू की तिकड़मी राजनीति पर ऐसा झन्नाटेदार तमाचा है, जिसकी गूँज देर तक व दूर तक सुनी जाएगी । मजे की बात हालाँकि यह है कि राजा साबू की चुनाव में कोई खुली भूमिका नहीं थी, किंतु चुनाव में कदम कदम पर उनके नाम का हवाला पूरा था । यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा, शाजु पीटर व अन्य जो लोग डीसी बंसल के पक्ष में वोट इकट्ठा कर रहे थे, वह खुल कर राजा साबू का नाम ले रहे थे; और राजा साबू के नाम पर क्लब्स के पदाधिकारियों पर भावनात्मक व प्रशासनिक दबाव बना कर उन्हें मजबूर कर रहे थे । यशपाल दास को तो अपने ही क्लब में राजा साबू के नाम की दुहाई देनी पड़ी । यह हरकतें राजा साबू के संज्ञान में थीं, किंतु उन्होंने कभी भी चुनावी राजनीति में अपना नाम घसीटे जाने पर आपत्ति नहीं की - तो इसका कारण यही था कि इस हरकत में उनकी सिर्फ मिलीभगत ही नहीं थी, बल्कि यह हरकत वास्तव में उनका ही प्लान थी । इस प्लान में राजा साबू एक तरफ यह 'दिखाने' का प्रयास कर रहे थे कि वह तो इस चुनाव से दूर ही हैं, और दूसरी तरफ वह चुनाव को निर्णायक तरीके से प्रभावित भी कर रहे थे । राजा साबू 'इसी तरीके' से अपने 'कामों' को अंजाम देते रहे हैं - इस बार लेकिन उन्हें क्लब्स के पदाधिकारियों की तरफ से ऐसा जबाव मिला है, कि उनकी सारी होशियारी हवा हो गई है ।
राजा साबू की चाल को सफल बनाने में लगे यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर अभी हाल ही में संपन्न हुई डिस्ट्रिक्ट असेम्बली तथा उससे पहले तक दावा करते सुने गए थे कि डीसी बंसल के पक्ष के अस्सी वोट तो उनके पास आ चुके हैं । इन दावों के भरोसे ही वोटों की गिनती शुरू होने तक हर किसी को डीसी बंसल की भारी जीत घोषित होने का इंतजार था । लेकिन वोटों की गिनती जब पूरी हुई, तो नतीजा देख/सुन कर हर कोई हैरान रह गया । टीके रूबी और डीसी बंसल को बराबर बराबर वोट मिले और नतीजा टाई के रूप में निकला । यह तथ्य तो सिर्फ नतीजा है, इससे पूरी बात पता नहीं चलती है । पूरी बात तब पता चलेगी, जब वोटों का पूरा विवरण जानेंगे - और तभी जान सकेंगे कि पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू की धूर्त राजनीति को सबक सिखाने के लिए क्लब्स के पदाधिकारियों ने किस तरह का 'कौशल' दिखाया । उल्लेखनीय है कि कुल वोट 129 थे, जिनमें से टीके रूबी और डीसी बंसल को 39-39 वोट मिले, तथा 43 वोट अवैध घोषित हुए - और 14 वोट डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय पहुँचे ही नहीं । रोटरी के किसी भी चुनाव में इतनी बड़ी संख्या में वोटों का अवैध होना तथा गायब हो जाना - जबकि एक एक वोट के लिए भयानक मारामारी मची हुई हो, और डिस्ट्रिक्ट के बड़े बड़े सूरमा वोट जुटाने के काम में लगे हुए हों - भारी हैरान करने वाली बात है । लेकिन इस हैरान करने वाली बात में ही क्लब्स के पदाधिकारियों का वह 'कौशल' छिपा है, जो उन्होंने राजा साबू की धूर्त राजनीति से निपटने में इस्तेमाल किया । यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा, शाजु पीटर आदि की तरफ से दावा किया गया है कि अवैध व गायब हुए वोट डीसी बंसल के थे, और जिनके सहारे डीसी बंसल को बड़ी जीत मिलनी थी । उनकी तरफ से किए जा रहे इस दावे को हर कोई सच भी मान रहा है, किंतु सच्चाई यह है कि अवैध व गायब हुए वोट डीसी बंसल की उम्मीदवारी के पक्ष में पड़े तो जरूर - लेकिन वह इस तरह 'पड़े' कि डीसी बंसल के काम न आ सके ।
समझा जा रहा है कि क्लब्स के पदाधिकारियों के बीच राजा साबू की धूर्त राजनीति के खिलाफ जो रोष पैदा हुआ, वोटों को जानबूझ कर अवैध व गायब करके क्लब्स के पदाधिकारियों ने उसका इजहार किया है । राजा साबू का नाम लेकर यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा, शाजु पीटर आदि ने क्लब्स के पदाधिकारियों पर जिस तरह का दबाव बनाया, उससे क्लब्स के पदाधिकारियों ने अपने आपको अपमानित महसूस किया और पाया कि राजा साबू तथा उनके लोगों ने उन्हें तो जैसे अपना 'पालतू' समझ लिया है - और उनके नाम पर कैसी भी मनमानी करने लगते हैं । खुद को अपमानित महसूस करने तथा रोष में होने के बावजूद उन्हें जब राजा साबू की धूर्त राजनीति का खुला विरोध करना मुश्किल लगा, तो उन्होंने 'असहयोग' का रास्ता अपनाया और विरोध का ऐसा तरीका अपनाया - जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी । अपनी नाराजगी, अपने गुस्से, अपने विरोध को जाहिर करने के खासे अनोखे अनोखे तरीके दुनिया के इतिहास में खूब मिलते हैं - डिस्ट्रिक्ट 3080 के क्लब्स के पदाधिकारियों ने उनमें जो इजाफा किया है, उसे दुनिया को व समाज को रोटरी की एक देन के रूप में निश्चित ही पहचाना जायेगा । रोटरी ने दुनिया को व समाज को बहुत कुछ दिया है, इसलिए शातिर व धूर्त लोगों को सबक सिखाने के लिए अपनाया गया विरोध का यह तरीका भी रोटरी की देन के रूप में ही देखा जायेगा ।
यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा, शाजु पीटर की तिकड़ी के रूप में 'टीम राजा साबू' ने हालाँकि अभी भी सबक नहीं सीखा है और वह चुनावी नतीजे को प्रभावित करने की कोशिशों से बाज नहीं आ रहे हैं । उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानून में स्पष्ट निर्देश है कि चुनाव में बराबर बराबर वोट होने की स्थिति में नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जायेगा । इस निर्देश के अनुसार, नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार टीके रूबी को विजेता घोषित होना चाहिए । किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन ने रोटरी इंटरनेशनल के इस स्पष्ट निर्देश का पालन  करने में कोई दिलचस्पी नहीं ली । चर्चा रही कि राजा साबू की तरफ से उन्हें निर्देश मिला कि टीके रूबी को विजेता घोषित करने की बजाए, चोर दरवाजे व बहाने खोजे जाएँ - जिनकी आड़ लेकर डीसी बंसल को विजेता घोषित किया जाए । तर्क दिया गया है कि रोटरी इंटरनेशनल के फैसले के कारण वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का चुनाव नए सिरे से हुआ है, इसलिए टीके रूबी के अधिकृत उम्मीदवार होने की बात स्वतः खारिज हो जाती है - और इसलिए अब यह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के अधिकार-क्षेत्र की बात हो जाती है कि बराबर बराबर वोट पाने वाले उम्मीदवारों में से वह किसे विजेता घोषित करे । राजा साबू का नाम लेकर यह तर्क दिया तो गया, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन की इस पर अमल करने की हिम्मत नहीं हुई । सुरक्षित तरीका यह समझा गया कि इस पर रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय की राय माँगी जाए । यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा, शाजु पीटर आदि की तरफ से दावा किया जा रहा है कि रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से राजा साबू मनमाफिक फैसला करवा ही लेंगे और अंततः वही होगा - जो 'हम' चाहेंगे ।
उल्लेखनीय है कि ठीक 15 महीने पहले - 22 फरवरी 2015 को टीके रूबी नोमीनेटिंग कमेटी के द्वारा अधिकृत उम्मीदवार चुने गए थे, जिसके बाद से ही राजा साबू के नेतृत्व में उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से दूर रखने की तरकीबें लगाना शुरू हो गईं थीं । इससे पहले तक नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुना गया अधिकृत उम्मीदवार ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनता रहा है; लेकिन टीके रूबी के मामले में डिस्ट्रिक्ट में चली आ रही इस महान परंपरा को तिलांजलि दे दी गई । पिछले पंद्रह महीनों से चला आ रहा घटनाक्रम देखें तो पाते हैं कि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव नहीं हो रहा है, बल्कि एक जंग हो रही है; जंग भी ऐसी जिसमें भारी भरकम फौज एक अकेले उम्मीदवार के खिलाफ पिली पड़ी है । राजा साबू के नेतृत्व में डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स की फौज ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को इस हद तक अपना गुलाम बना लिया है कि टीके रूबी द्धारा आयोजित एक कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट टीम के जो पदाधिकारी शामिल हुए, उन्हें डिस्ट्रिक्ट टीम से निकाल दिया गया । तमाम हरकतों के बावजूद 'टीम राजा साबू' को अपने लक्ष्य में सफलता नहीं मिली है, और डिस्ट्रिक्ट से लेकर रोटरी इंटरनेशनल तक उनकी चालबाजियाँ पिटती रही हैं । आज के चुनावी नतीजे से यह भी साफ हो गया है कि डिस्ट्रिक्ट में टीम राजा साबू के खिलाफ माहौल पूरी तरह से पक चुका है । इसके बावजूद जिस तरह से टीम राजा साबू अपनी हरकतों से बाज आती हुई नहीं दिख रही है, उससे लगता है कि डिस्ट्रिक्ट में अभी और दिलचस्प नज़ारे देखने को मिलेंगे ।

Tuesday, May 17, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ से धोखा खाए रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के लोगों की मदद का राजनीतिक फायदा उठाने में चूके दीपक गुप्ता ने एक बार फिर साबित किया कि मौकों को राजनीतिक फायदे में बदलने की कला उन्होंने अभी भी नहीं सीखी है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए दीपक गुप्ता द्वारा अपनाई गई रणनीति ने जिस तरह से उल्टा ही असर दिखाना शुरू किया है, उसे देख/जान कर उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच ही टकराव पैदा हो गया है । उनके कई एक समर्थकों व शुभचिंतकों का कहना है कि दीपक गुप्ता फिर पिछले वर्षों जैसी ही गलती कर रहे हैं, और परिस्थितियोंवश मिले एक अच्छे मौके को गँवाने का काम कर रहे हैं । ऐसा मानने और कहने वाले लोगों का यह भी कहना है कि दीपक गुप्ता पता नहीं किसकी सलाह से काम कर रहे हैं - पर जिसकी सलाह से भी वह काम कर रहे हैं, वह उन्हें उबारने की बजाए डुबोने की तरफ धकेल रहा है । मजे की बात यह हुई है कि इस खुली आलोचना से वह लोग बचाव की मुद्रा में आ गए हैं, जो दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के घोषित समर्थक व सलाहकार के रूप में पहचाने जाते हैं । लिहाजा, उनकी तरफ से सफाई सुनने को मिल रही है कि दीपक गुप्ता जो कर रहे हैं - वह अपनी मर्जी से कर रहे हैं, और उनकी तो बिलकुल भी नहीं सुन रहे हैं । कुछेक का कहना/बताना है कि दीपक गुप्ता उनसे सलाह तो जरूर लेते हैं, उन्हें ऐसा दर्शाते भी हैं कि उनकी सलाह को वह गंभीरता से लेते हैं - लेकिन अंततः करते अपने मन की ही हैं । दीपक गुप्ता के नजदीक रहे लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता की समस्या यह है कि वह जिसकी सुनते हैं, उसे अहसास तो यह कराते हैं कि वह उनकी बात पर अमल करेंगे - लेकिन अमल फिर करते नहीं हैं, इससे वह किसी के साथ विश्वास और भरोसे वाला संबंध नहीं बना पाते हैं । इससे उनका किया-धरा सब व्यर्थ चला जाता है । पीएचएफ के मुद्दे पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ तथा नए बने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के पदाधिकारियों के बीच पैदा हुई 'गर्मी' को ठंडा करने में निभाई गई अपनी भूमिका को दीपक गुप्ता जिस तरह गवाँ दे रहे हैं, उससे भी साबित हुआ है कि मौकों को राजनीतिक फायदे में बदलने की कला उन्होंने नहीं सीखी है - चुनावी राजनीति में जो सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।
पहले, दीपक गुप्ता की चुनावी तैयारी और उसके नतीजों को देखते हैं : सुनने में आया है कि अपनी चुनावी तैयारी के तहत उन्होंने प्रेसीडेंट्स इलेक्ट को छोटे छोटे समूहों में अपने घर आमंत्रित करना और इस बहाने से उनके साथ नजदीकी बनाने का काम शुरू किया है । इस मामले में उनके लिए फजीहत की बात यह हुई है कि उनके समर्थक, नजदीकी व शुभचिंतक समझे जाने वाले लोगों को भी यह नहीं पता है कि आमंत्रित किए जाने वाले प्रेसीडेंट्स इलेक्ट के समूह किस आधार पर उन्होंने बनाए हैं और कितने व किन प्रेसीडेंट्स इलेक्ट से उनकी बात हो चुकी है - लेकिन इस प्रोग्राम के कारण हो रहे नुक्सान की हर तरफ चर्चा है । दरअसल इस प्रोग्राम के कारण कई क्लब्स के मठाधीश नाराज हो रहे हैं - उनकी शिकायत है कि दीपक गुप्ता उनसे बात किए बिना उनके क्लब के अध्यक्ष के साथ तार जोड़ रहे हैं । उल्लेखनीय है कि हर क्लब में कुछेक मठाधीश होते ही हैं, चुनावी राजनीति में उनकी बहुआयामी भूमिका होती है - यह ठीक है कि चुनाव में क्लब के अध्यक्ष की भूमिका ही निर्णायक होती है, लेकिन अध्यक्ष की निर्णायक भूमिका को नियंत्रित व प्रभावित करने का काम बहुत हद तक क्लब के मठाधीश ही करते हैं; इसलिए मठाधीशों को इग्नोर करके सिर्फ अध्यक्ष को खुश करके चुनावी सफलता नहीं पाई जा सकती । दीपक गुप्ता के रवैये पर मठाधीशों की नाराजगी की खबर फैली तो दीपक गुप्ता की तरफ से सफाई सुनने को मिली कि वह मठाधीशों को भी घर बुलायेंगे । समस्या की बात लेकिन यह है कि जब तक बुलायेंगे, तब तक वह अपना काफी नुकसान करा चुके होंगे । उनके कुछेक शुभचिंतकों का कहना है कि दीपक गुप्ता का यह तरीका ही गलत है, क्योंकि इससे माहौल नहीं बनता है । यह तरीका सपोर्टिव तो हो सकता है, किंतु यदि इसे ही मुख्य गतिविधि बना लिया गया - तो यह किसी भी तरह से उपयोगी साबित नहीं होता है ।
दीपक गुप्ता के समर्थक व शुभचिंतक ही नहीं, उनकी उम्मीदवारी के विरोधी भी मानते और कहते हैं कि दीपक गुप्ता के लिए इस बार परिस्थितियाँ बहुत ही अनुकूल हैं - क्योंकि उनके अलावा और जो उम्मीदवार हैं, उनमें से कोई भी अभी तक एक उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता को संयोजित नहीं कर सका है । इसके अलावा, विरोधी खेमे के नेताओं के बीच 'अपने' उम्मीदवार को लेकर विवाद है - कुछेक नेता अशोक जैन को उम्मीदवार बनाना चाहते हैं, तो कुछेक नेता ललित खन्ना की वकालत कर रहे हैं । नेताओं के बीच के इस मतभेद/विवाद के कारण अशोक जैन व ललित खन्ना भी अभी उम्मीदवार के 'रूप' में दिखने से बच रहे हैं, और नेताओं से हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रहे हैं । यह स्थिति दीपक गुप्ता की राह को आसान बनाने का काम करती है । लेकिन यहाँ दीपक गुप्ता के लिए एक बड़ा खतरा भी छिपा हुआ है - दरअसल जो स्थिति है, उसमें दीपक गुप्ता ने अपने आप को विजेता मान लिया है, और वह अपनी उम्मीदवारी को लापरवाही से ले रहे हैं । अनुकूल स्थितियों के बावजूद दीपक गुप्ता के सामने बड़ी चुनौती अभी भी यह है कि डिस्ट्रिक्ट का सत्ताधारी खेमा उनके प्रति उदारता बरतने के मूड में बिलकुल नहीं है । सत्ताधारी खेमा अंततः उम्मीदवार के नाम पर एकमत होगा ही, और तब 'वह' उम्मीदवार भी सक्रिय होगा ही - जिसके नतीजे में तब दीपक गुप्ता के लिए हालात उतने आसान संभवतः नहीं रह जायेंगे, जितने आसान वह आज नजर आ रहे हैं । दीपक गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर वास्तव में यही है कि दीपक गुप्ता ने जिस तरह से अपने आपको अभी से विजेता मान/समझ लिया है, उसमें खतरा यह है कि जब उनके सामने सचमुच की चुनौती पेश होगी - तब तक वह अपनी स्थिति का कहीं इतना कबाड़ा न कर लें कि फिर संभलना ही मुश्किल हो जाए । दीपक गुप्ता के नजदीकी ही कहते/बताते हैं कि दीपक गुप्ता में अपनी अच्छी-भली स्थिति को खराब कर लेने का बड़ा हुनर है - कई बार तो लगता है जैसे कि इस विषय में उन्होंने बड़ी मेहनत से पीएचडी की हुई है ।
दीपक गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों का डर इस कारण भी है, क्योंकि वह देख रहे हैं कि दीपक गुप्ता जो कुछ भी कर रहे हैं - उसके राजनीतिक ऐंगल पर उनका कोई ध्यान नहीं है; जिसका नतीजा है कि वह जिन बातों का राजनीतिक फायदा ले सकते हैं, उनका फायदा नहीं ले पा रहे हैं; और जिन बातों से उन्हें राजनीतिक नुकसान हो सकता है, उनसे बचने का वह कोई प्रयास नहीं करते हैं ।  पीएचएफ के मुद्दे पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ तथा नए बने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के पदाधिकारियों के बीच के झगड़े में दीपक गुप्ता ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इस महत्त्वपूर्ण भूमिका का वह कोई राजनीतिक लाभ नहीं ले सके हैं । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ ने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं को झाँसा दिया था कि वह उनके सदस्यों को साढ़े तीन सौ डॉलर में पीएचएफ बना/बनवा देंगे, लेकिन साढ़े तीन सौ डॉलर के हिसाब से पैसे जब जेके गौड़ की अंटी में आ गए तब जेके गौड़ अपने वायदे से मुकर गए । रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं के सामने गंभीर संकट पैदा हुआ -  उनके क्लब के सदस्य नए रोटेरियन हैं; उनके साथ 'धोखाधड़ी' तो जेके गौड़ ने की, लेकिन वह तो क्लब के कर्ताधर्ताओं को ही जिम्मेदार मानते/ठहराते । ऐसे में, दीपक गुप्ता अवतरित हुए और उन्होंने अपने प्वाइंट्स देकर पीएचएफ बनाने/बनवाने की राह को खोला और गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं को मुसीबत से उबारा । इस मामले में जेके गौड़ ने अपना अवसरवादी रवैया फिर दिखाया - जैसे ही उन्हें दीपक गुप्ता के इरादे का पता चला वैसे ही उन्होंने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं व पदाधिकारियों के सामने दावा करना/जताना शुरू कर दिया कि दीपक गुप्ता को अपने प्वाइंट्स देने के लिए उन्होंने राजी किया है । जेके गौड़ चुनावी खेमेबाजी में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के खिलाफ हैं - इसलिए दीपक गुप्ता यदि राजनीतिक होशियारी से काम लेते तो पीएचएफ बनने/बनाने के काम में इस्तेमाल होने वाले अपने प्वाइंट्स से वह राजनीतिक फायदा उठा सकते थे; पर वास्तव में हुआ यह कि उनके राजनीतिक विरोधी जेके गौड़ ने उनके प्वाइंट्स का 'मुफ्त' में इस्तेमाल कर लिया ।
दीपक गुप्ता की इसी तरह की बिना सोची-समझी 'मनमानी' कार्रवाइयों को देखते हुए लोगों को लगता है कि दीपक गुप्ता का एक ही राजनीतिक दुश्मन है - और वह हैं खुद दीपक गुप्ता । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में उन्हें दूसरों से उतना नहीं निपटना है, जितना कि अपने आप से निपटना है । दीपक गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को ही लगता है कि दीपक गुप्ता ने यदि खुद को नहीं संभाला तो मौजूदा अनुकूल चुनावी स्थितियों को वह अपने खुद के कामों से ही प्रतिकूल बना लेंगे ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में निजी खुन्नसबाजी के चलते दी गई प्रमोद विज की धमकी से डरे राजा साबू व डिस्ट्रिक्ट के दूसरे 'चौधरियों' के मुँह फेर लेने से डेविड हिल्टन ने डिस्ट्रिक्ट की बदनामी में और इजाफा किया

देहरादून । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन ने अभी हाल ही में चार्टर हुए रोटरी क्लब पानीपत क्लासिक के चार्टर को रद्द करने के लिए रोटरी इंटरनेशनल को अनुरोध पत्र लिख कर रोटरी के 111 वर्षों के इतिहास में एक अनोखा कीर्तिमान स्थापित किया है । रोटरी के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चार्टर हुए क्लब का चार्टर क्लब पदाधिकारियों को सौंपने से पहले ही चार्टर रद्द कर देने की सिफारिश करे । मजे की उल्लेखनीय बात यह है कि रोटरी क्लब पानीपत क्लासिक के गठन के कागजात डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में खुद डेविड हिल्टन ने भी रोटरी इंटरनेशनल को सौंपे थे; और रोटरी इंटरनेशनल से चार्टर आने के बाद उन्होंने खुद नए क्लब के गठन से जुड़े पदाधिकारियों - डिस्ट्रिक्ट एक्सटेंशन चेयरमैन सुरेश गुगलानी तथा नए बने क्लब के जीएसआर एसएन गुप्ता व पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रंजीत भाटिया को मुबारकवाद देते हुए पत्र लिखा था - तथा नए क्लब को लेकर अपनी शुभकामनाएँ भी व्यक्त की थीं । सिर्फ यही नहीं, खुद डेविड हिल्टन ने ही बताया था कि इस नए बने क्लब के पदाधिकारियों व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्हें इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की तरफ से रोटरी में वृद्धि करने के लिए प्रशंसा पत्र भी प्राप्त हो चुका है । जाहिर है कि इस नए बने क्लब से सभी खुश थे । किंतु फिर भी जिस तारिख को डेविड हिल्टन ने नए क्लब का चार्टर नए क्लब के समारोह में उसके पदाधिकारियों व सदस्यों को सौंपने का कार्यक्रम बनाया व घोषित किया था, उसी तारीख के आसपास डेविड हिल्टन ने चार्टर रद्द करने का अनुरोध पत्र रोटरी इंटरनेशनल को लिखा ।
ऐसा नाटकीय घटनाक्रम रोटरी के अभी तक के 111 वर्षों के इतिहास में इससे पहले कभी भी नहीं देखा गया है ।
इस ऐतिहासिक नाटकीय घटनाक्रम के पटकथा-लेखक व निर्देशक रहे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रमोद विज । उनकी शिकायत थी कि इस नए क्लब को बनाने को लेकर रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानूनों का पालन नहीं हुआ है । इसके लिए प्रमोद विज ने डिस्ट्रिक्ट एक्सटेंशन चेयरमैन सुरेश गुगलानी तथा नए बने क्लब के जीएसआर एसएन गुप्ता को काफी कोसा । प्रमोद विज ने माँग की कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन इस नए क्लब का चार्टर रद्द करवाएँ । प्रमोद विज ने धमकी दी कि डेविड हिल्टन ने यदि उनकी माँग के अनुरूप कदम नहीं उठाया, तो वह इस मामले को कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में उठायेंगे तथा जरूरत पड़ी तो रोटरी इंटरनेशनल में भी इसकी शिकायत करेंगे । डेविड हिल्टन ने खुद को डिस्ट्रिक्ट के 'चौधरी' समझने वाले पूर्व गवर्नर्स से और यहाँ तक की पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू तक से इस बारे में बात की और तर्क दिया कि नए बने क्लब के गठन की प्रक्रिया को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय से लेकर इंटरनेशनल कार्यालय तक ने देखा है, और उसे उचित पा कर ही क्लब को चार्टर देने का फैसला हुआ है - इसलिए इस आरोप का कोई मतलब नहीं है कि इसके बनने में नियम-कानूनों का पालन नहीं हुआ है । राजा साबू सहित अपने आप को डिस्ट्रिक्ट का चौधरी समझने वाले दूसरे पूर्व गवर्नर्स ने भी माना कि प्रमोद विज ने निजी खुन्नसबाजी में यह बबाल खड़ा किया है, और वह नाहक ही डिस्ट्रिक्ट की फजीहत करवा रहे हैं - किंतु राजा साबू सहित कोई भी 'चौधरी' डेविड हिल्टन की मदद के लिए आगे नहीं आया । सभी को डर रहा कि उन्होंने यदि डेविड हिल्टन का साथ देने की कोशिश की, तो प्रमोद विज उनके साथ न जाने क्या बदतमीजी करें और उन्हें अपमानित होना पड़े - लिहाजा सभी ने इस मामले से दूर रहने में ही अपनी भलाई देखी । डेविड हिल्टन ने जब अपने आप को अकेला पाया, तो उन्होंने भी प्रमोद विज की माँग के सामने समर्पण करने में ही अपनी भलाई समझी । इस तरह डिस्ट्रिक्ट 3080 ने रोटरी के इतिहास में एक नया रिकॉर्ड दर्ज किया - पहले तो नए क्लब के लिए आवेदन किया, और जब चार्टर मिल गया तो तुरंत ही चार्टर रद्द करने की सिफारिश कर दी ।
अभी हाल ही में संपन्न हुई रमन अनेजा की डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए इंटरनेशनल डायरेक्टर नॉमिनी बास्कर चोकालिंगम ने अपने भाषण में जोश व खुशामद का पुट देते लोगों से पूछा कि डिस्ट्रिक्ट 3080 की मुख्य पहचान क्या है ? जबाव में आवाज सुनाई दी : राजा साबू, राजा साबू । बाहर से आने वाले रोटरी के बड़े पदाधिकारी इस तरह का नाटक पहले भी कई बार कर चुके हैं । जिन लोगों ने पहले के इस तरह के नाटक देखे हैं, उनका कहना है कि इस बार 'राजा साबू' 'राजा साबू' की आवाज में ज्यादा जोश नहीं था । दरअसल डिस्ट्रिक्ट 3080, राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के रूप में तो पहचाना ही जाता है - अब लेकिन इसकी और कई पहचानें भी हो गईं हैं : जैसे डिस्ट्रिक्ट 3080 इस समय रोटरी का अकेला ऐसा डिस्ट्रिक्ट है, जिसमें वर्ष 2017-18 का गवर्नर अभी तक तय नहीं हुआ है । डिस्ट्रिक्ट 3080 रोटरी के इतिहास का अकेला डिस्ट्रिक्ट है, जहाँ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (दिलीप पटनायक) नियमों का पालन करते हुए चुनाव करवाता है, और चुनाव हो जाने के बाद खुद ही नियमों का पालन न हो पाने का तर्क देकर चुनाव स्थगित कर देता है (जिसके लिए हालाँकि बाद में वह रोटरी इंटरनेशनल से फटकार खाता है) । डिस्ट्रिक्ट 3080 रोटरी का अकेला डिस्ट्रिक्ट है, जिसका गवर्नर (दिलीप पटनायक) अपने कार्यकाल का हिसाब देने की हेराफेरी में दो दो बैलेंसशीट बनाता/बनवाता है - जिन्हें चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप में एक पूर्व गवर्नर हेमंत अरोड़ा साइन करते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद को लेकर हर डिस्ट्रिक्ट में राजनीति होती है और हर डिस्ट्रिक्ट में पूर्व गवर्नर्स इसमें अपनी अपनी भूमिका निभाते हैं - लेकिन छिप कर निभाते हैं, जो खुलेआम निभाने के लिए बदनाम हैं भी वह भी अपनी भूमिका को छिपाने की कोशिश करते हैं : किंतु डिस्ट्रिक्ट 3080 ऐसा डिस्ट्रिक्ट है, जहाँ पूर्व गवर्नर्स अपनी भूमिका खुल कर निभाते हैं और इस मामले में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास तथा पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू भी मौजूदा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के दिशा-निर्देशों का खुला उल्लंघन करते हैं । डिस्ट्रिक्ट 3080 ऐसा डिस्ट्रिक्ट है, जहाँ पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू के होते हुए भी विभिन्न खर्चों के हिसाब-किताब छिपाने के प्रयास होते हैं और हिसाब-किताब देने की माँग को तरह तरह की बहानेबाजी करके टालने की कोशिश की जाती है ।
इन हरकतों ने डिस्ट्रिक्ट 3080 को जो पहचान दी है, उसे डेविड हिल्टन ने नए बने क्लब का चार्टर रद्द करने का अनुरोध करके एक नई ऊँचाई दी है । उन्हें लगा होगा कि वह दिलीप पटनायक से पीछे क्यों रहें - वह भी कुछ ऐसा गुल खिलाएँ कि रोटरी के इतिहास में उनका नाम भी दर्ज हो । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगता है कि दिलीप पटनायक व डेविड हिल्टन तो बस इस्तेमाल हो रहे हैं; डिस्ट्रिक्ट के 'चौधरी' उन्हें इस्तेमाल करके अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं और फिर उन्हें अकेला छोड़ देते हैं । हिसाब-किताब के मामले में दिलीप पटनायक से पहले तो हेराफेरी करवाई और जब वह 'पकड़े' गए, तो उन्हें अकेला छोड़ दिया - अब वह बेचारे जाँच भुगत रहे हैं और बदनामी झेल रहे हैं । डेविड हिल्टन के साथ भी यही हो रहा है : चुनाव को लेकर उनसे गलत-सलत काम करवाए जा रहे हैं, जिसके लिए वह बार-बार रोटरी इंटरनेशनल से फटकार खा रहे हैं; रोटरी क्लब पानीपत क्लासिक के मुद्दे पर प्रमोद विज के हमले से बचाने के लिए लेकिन उन्होंने जब मदद माँगी, तो सभी ने मुँह फेर लिया । डिस्ट्रिक्ट के 'चौधरियों' की लिस्ट में अपना नाम लिखवाने के लिए प्रमोद विज ने डिस्ट्रिक्ट व रोटरी का यह जो मजाक बनाया/बनवाया है, उसकी जिम्मेदारी राजा साबू सहित खुद को डिस्ट्रिक्ट का 'चौधरी' समझने वाले लोगों पर तो है ही - डेविड हिल्टन पर भी है, जो अपने आप को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की बजाए एक कठपुतली ही समझते हैं । डिस्ट्रिक्ट की हो रही बदनामी के चलते घटती साख से चिंतित लोगों का कहना है कि डेविड हिल्टन यदि एक कठपुतली की बजाए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में व्यवहार और फैसले करें, तो अपनी भी इज्जत बचायेंगे और डिस्ट्रिक्ट को भी बदनामी से दूर रख सकेंगे । प्रमोद विज व डिस्ट्रिक्ट के दूसरे 'चौधरी' लेकिन क्या ऐसा होने देंगे ?

Saturday, May 14, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में वोटों की गिनती में निकलने वाली डीसी बंसल की जीत क्या एक बार फिर यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर जैसे लोगों की हरकतों का शिकार बनेगी ?

चंडीगढ़ । डीसी बंसल की चुनावी जीत का जश्न मनाने को लेकर उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों में गंभीर विवाद पैदा हो गया है - इस विवाद में एक तरफ उनकी उम्मीदवारी के समर्थक यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर जैसे बड़े नेता हैं; तो दूसरी तरह उनके क्लब के सदस्य व अन्य नजदीकी हैं । मजे की बात यह है कि डीसी बंसल की जीत की घोषणा अभी हुई नहीं है, किंतु उनकी जीत का जश्न मनाने को लेकर उनके समर्थक आपस में भिड़े नजर आ रहे हैं । उल्लेखनीय है कि रोटरी वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद के लिए टीके रूबी व डीसी बंसल के बीच हुए चुनाव का नतीजा आना अभी बाकी है - वास्तव में अभी तो चुनाव ही पूरा होना बाकी है, जिसके बाद वोटों की गिनती होगी; लेकिन यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर जैसे बड़े नेता अभी से दावा कर रहे हैं कि डीसी बंसल भारी बहुमत से चुनाव जीतेंगे । डीसी बंसल की जीत के जरिए इन्हें चूँकि डिस्ट्रिक्ट में अपने दबदबे को दिखाने व साबित करने का मौका मिलेगा, इसलिए यह चाहते हैं कि इस जीत का बड़ा जश्न हो । डीसी बंसल की भारी जीत के अपने दावे के प्रति लोगों को विश्वास दिलाने के लिए ये यह बताने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं कि क्लब्स के वोट तो इन्होंने ही इकट्ठे किए हैं, इसलिए वोट खुलने के बाद होने वाली गिनती तो जब होगी, तब होगी - इन्हें लेकिन अभी ही पता है कि किसको कितने वोट मिल रहे हैं । टीके रूबी व डीसी बंसल के बीच हुआ चुनाव इतने 'खुल्ला खेल फर्रुख्खावादी' स्टाइल में हुआ है कि यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर जैसे नेताओं की बातों व उनके दावों पर किसी को शक नहीं है - और सभी ने मान लिया है कि टीके रूबी के मुकाबले डीसी बंसल अच्छे अंतर से चुनाव जीतने जा रहे हैं ।
डीसी बंसल की चुनावी जीत के दावों को विश्वसनीय मानते हुए कुछेक लोग तो बल्कि कहने भी लगे हैं कि चुनावी प्रक्रिया पूरी होने/करने का जो नाटक किया जा रहा है, उसकी अब क्या जरूरत बची है - उसे अधबीच में ही खत्म करो और रमन अनेजा की डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में डीसी बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी घोषित करो । डिस्ट्रिक्ट में - राजा साबू के इस डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, शायद किसी भी डिस्ट्रिक्ट में यह पहला और अनोखा मौका होगा कि जिस गवर्नर की असेम्बली हो रही है, उसके आगे के दो गवर्नर्स का कोई अतापता ही नहीं है - जो कि स्वाभाविक रूप से होना चाहिए था ! इस 'अनोखेपन' को खत्म करने के लिए ही, कुछेक लोगों का कहना है कि जब यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर जैसे डिस्ट्रिक्ट के बड़े कर्ताधर्ता दावा कर रहे हैं कि खुद उन्होंने डीसी बंसल के पक्ष में वोट इकट्ठा किए हैं और डीसी बंसल भारी बहुमत से चुनाव जीतेंगे - तो रमन अनेजा की डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में डीसी बंसल की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के रूप में ताजपोशी कर देनी चाहिए ।
मजे की बात यह है कि डीसी बंसल की चुनावी जीत को लेकर उनके समर्थक डिस्ट्रिक्ट के बड़े नेताओं में जिस तरह का जोश दिखाई पड़ रहा है, वैसा जोश लेकिन डीसी बंसल के क्लब के सदस्यों तथा उनके अन्य नजदीकियों में दिखाई नहीं दे रहा है । दरअसल वह पहले भी एक बार चुनावी जीत की खुशी मना चुके हैं, लेकिन जो मुश्किल से तीन महीने ही टिकी रह पाई थी - इसलिए 'दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है' वाली तर्ज पर अबकी बार की चुनावी जीत को लेकर वह बहुत उत्साहित नहीं हैं । डीसी बंसल के क्लब के सदस्यों व उनके अन्य नजदीकियों को भी अच्छी तरह से पता है कि वोटों की गिनती जब शुरू होगी, तब डीसी बंसल के वोट ही ज्यादा निकलेंगे और वही विजेता घोषित किए जायेंगे - लेकिन फिर भी वह बहुत खुश नजर नहीं आ रहे हैं; तो इसका कारण नतीजा घोषित होने के बाद का संभावित घटनाक्रम है । डीसी बंसल के क्लब के सदस्यों व अन्य नजदीकियों को लग रहा है कि चुनावी नतीजा आने के बाद टीके रूबी चुप नहीं बैठेंगे और चुनावी प्रक्रिया को निश्चित ही रोटरी इंटरनेशनल में चुनौती देंगे - और कहीं इस बार भी वैसा ही न हो जैसा कि पिछली बार हुआ था, जबकि डीसी बंसल को मिलीमिलाई जीत ज्यादा देर उनके पास नहीं रह पाई थी । डीसी बंसल के समर्थकों व शुभचिंतकों में ही कई एक ऐसे लोग हैं, जो मानते हैं कि इस बार की चुनावी प्रक्रिया में ऐसे ऐसे झोल हैं, जिनके कारण चुनावी प्रक्रिया और चुनाव को निरस्त किया/करवाया जा सकेगा । उन्हें लगता है कि टीके रूबी ने मामले को यदि रोटरी इंटरनेशनल में ठीक से रिपोर्ट किया, तो रोटरी वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद के लिए हुए चुनाव को एक बार निरस्त होना पड़ेगा । जाहिर है कि वोटों की गिनती में डीसी बंसल की जो जीत निकलेगी, वह ज्यादा दिन तक टिकी नहीं रह पायेगी ।
दरअसल इसीलिए डीसी बंसल के क्लब के सदस्य तथा उनके अन्य नजदीकी वोटों की गिनती में निकलने वाली जीत को लेकर उत्साहित नहीं हैं । अपनी आशंका को लेकर वह यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर जैसे नेताओं को कोस भी रहे हैं । उनका कहना है कि पिछली बार भी इन्हीं लोगों की कारस्तानियों के कारण रोटरी इंटरनेशनल ने डीसी बंसल से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का पद वापस ले लिया था, जिसके कारण उनकी भारी फजीहत हुई थी और व्यक्तिगत रूप से भी डीसी बंसल के लिए भी यह काफी परेशान करने वाली बात बनी थी । डीसी बंसल के नजदीकियों का कहना है कि इन नेताओं ने उस हादसे से कोई सबक नहीं सीखा और इस बार की चुनावी प्रक्रिया में फिर से ऐसी कई हरकतें की हैं, जिनसे डीसी बंसल का चुना जाना फिर से खतरे में पड़ जायेगा । ऐसे में वोटों की गिनती में निकलने वाली डीसी बंसल की जीत कितने दिनों की मेहमान होगी - इसका किसे पता है ? डीसी बंसल के नजदीकियों का कहना है कि इसलिए वोटों की गिनती में निकलने वाली जीत का जश्न मनाने का औचित्य भला क्या है ? यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर आदि नेताओं के साथ मजाक यह हो रहा है कि डीसी बंसल की उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए क्लब्स के पदाधिकारियों की खुशामद करने से लेकर दूसरी तरह की तीन-तिकड़में इन्होंने कीं और इस सब के लिए बदनामी भी मोल ली, लेकिन डीसी बंसल के नजदीकी फिर भी इन्हें ही कोस रहे हैं - और पिछली बार हुई फजीहत के लिए तथा आगे होने वाली संभावित फजीहत के लिए इन्हें ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । ऐसे में वोटों की गिनती में निकलने वाली डीसी बंसल की जीत डीसी बंसल के समर्थकों व नजदीकियों को उत्साहित ही नहीं कर पा रही है ।

Friday, May 13, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 की डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में होने वाली पक्षपातपूर्ण मनमानी व पैसों की गड़बड़ी के आरोपों के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शरत जैन की बदनामी का दायरा और बढ़ा

नई दिल्ली । शरत जैन की डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर को शरत जैन के खिलाफ जिस तरह की शिकायतें मिली हैं तथा मिल रही हैं, उन्हें सुन/जान कर मुख्य अतिथि के रूप में दिए जाने वाले अपने भाषण के नोट्स बनाने में उन्हें समस्या आ रही है । उनके लिए एक साथ मजे की और मुसीबत की बात यह हुई कि अपने प्रस्तावित भाषण के नोट्स तैयार करने हेतु उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के हाल-चाल जानने के लिए अपने कुछेक परिचितों से बात की, तो उनके सामने शिकायतों का जैसे पिटारा खुल गया । पीटी प्रभाकर को जो कुछ भी कहा/बताया गया उसका निचोड़ कुल मिलाकर यह निकला कि शरत जैन एक कठपुतली गवर्नर साबित होने जा रहे हैं, और उनकी गर्दन पूरी तरह डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल के हाथों में फँसी हुई है - इस कारण से डिस्ट्रिक्ट में हर स्तर पर व्यापक असंतोष पैदा हुआ है । लोगों का आरोप है कि रमेश अग्रवाल के साथ मिलीभगत करके शरत जैन ने डिस्ट्रिक्ट के हर मौके का न सिर्फ मनमाना इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों को किनारे/ठिकाने लगाने का काम भी शुरू किया हुआ है । डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों को तो शरत जैन व रमेश अग्रवाल से शिकायतें हैं हीं, उनके क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली अशोका के सदस्यों के बीच भी इनकी कारस्तानियों के प्रति नाराजगी व शिकायतें सुनी जाने लगी हैं । क्लब के सदस्यों की नाराजगी के निशाने पर इन दोनों के साथ साथ अशोक जैन भी आ गए हैं, और क्लब के सदस्यों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी की आड़ में अशोक जैन भी क्लब के सदस्यों पर मनमानी थोपने लगे हैं । रमेश अग्रवाल, शरत जैन व अशोक जैन की तिकड़ी ने डिस्ट्रिक्ट असेम्बली के नाम पर अपने ही क्लब के सदस्यों से पैसे ऐंठने की जो कोशिश की है, उसके चलते क्लब के तमाम सदस्यों का गुस्सा और भड़का हुआ है ।
शरत जैन और रमेश अग्रवाल को लेकर मिली शिकायतों के कारण पीटी प्रभाकर भारी गफलत में हैं : आयोजन के मुख्य अतिथि होने के नाते उनका धर्म है कि उनके मेजबान की हरकतें चाहें जैसी भी हों, उन्हें उन पर बात नहीं करना चाहिए और मेजबान की तारीफ ही करना चाहिए - भले ही सब जान रहे हों कि यह तारीफ झूठी ही है; लेकिन एक लीडर होने के नाते पीटी प्रभाकर के सामने लोगों के बीच अपनी यह छवि बनाने की जिम्मेदारी भी है कि वह सब जानते हैं और गलत बात को गलत कहने का साहस रखते हैं । पीटी प्रभाकर के सामने समस्या की बात यह है कि मुख्य अतिथि के रूप में उन्हें 'सुनने' वाले लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शरत जैन व उनके डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर रमेश अग्रवाल की कारस्तानियों की शिकायतों से भरे बैठे होंगे, और उम्मीद कर रहे होंगे कि पीटी प्रभाकर उन्हें आश्वस्त करें कि रोटरी में इन दोनों की पक्षपातपूर्ण घटिया हरकतें स्वीकार नहीं होंगी; लेकिन पीटी प्रभाकर खुद मेजबान की भूमिका निभा रहे इन दोनों के प्रति अपने मुख्य अतिथि के 'धर्म' से भी बँधे होंगे । शरत जैन और रमेश अग्रवाल वास्तव में इसीलिए आश्वस्त भी हैं कि पीटी प्रभाकर को उनकी कारस्तानियों के चाहें कितने ही किस्से बता/सुना दिए गए होंगे, किंतु डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में मुख्य अतिथि के रूप में पीटी प्रभाकर उनकी भद्द नहीं उड़ायेंगे और उनकी कारस्तानियों पर चुप ही रहेंगे ।
डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में पीटी प्रभाकर भले ही चुप रहें, किंतु डिस्ट्रिक्ट में शरत जैन के प्रति नाराजगी व विरोध जिस तरह से बढ़ता जा रहा है - डिस्ट्रिक्ट के लिए उसे कोई अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है । लोग हालाँकि मान रहे हैं और कह रहे हैं कि शरत जैन बेचारे रमेश अग्रवाल व अशोक जैन के चक्कर में फँस गए हैं, और उनके चक्कर में अपनी फजीहत करा रहे हैं । शरत जैन को जो लोग नजदीक से जानते हैं, वह हैरान हैं कि शरत जैन तो होशियार व क्षमतावान व्यक्ति हैं, फिर पता नहीं किस मजबूरी में वह रमेश अग्रवाल के हाथों की कठपुतली बन बैठे हैं ? लोगों को इससे भी ज्यादा हैरानी इस बात पर है कि शरत जैन सिर्फ रमेश अग्रवाल के हाथों ही नहीं, बल्कि अशोक जैन के हाथों भी इस्तेमाल हो रहे हैं । अशोक जैन उन्हें जैसी जो पट्टी पढ़ा देते हैं, शरत जैन उसे वैसे ही पढ़ लेते हैं । डिस्ट्रिक्ट असेम्बली के एजेंडे से लोगों को पता चला है कि असेम्बली में रमेश अग्रवाल को तो तीन-चार बार अलग अलग बहानों से लोगों के सामने मंच पर आने का मौका मिलेगा, किंतु बाकी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को कोई मौका नहीं मिलेगा । मुकेश अरनेजा को कोई मौका नहीं मिलेगा, इसके पीछे तो चलो मुकेश अरनेजा के प्रति रमेश अग्रवाल की निजी खुन्नस को कारण माना जा सकता है - किंतु बाकी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को भी डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में कोई तवज्जो न मिलने की बात पर लोगों को खासी हैरानी है । इसी तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों के मामले में पक्षपात किया गया है - अशोक जैन के लिए तो लोगों के सामने मंच पर आने का मौका 'बनाया' गया है, किंतु अन्य उम्मीदवारों को पर्दे के पीछे रखने का ही इंतजाम किया गया है । इस तरह की बातों से शरत जैन को लोगों की नाराजगी व आलोचनाओं का ज्यादा शिकार होना पड़ रहा है ।
शरत जैन को सबसे बड़ी और गंभीर चुनौती लेकिन अपने ही क्लब में मिल रही है । डिस्ट्रिक्ट असेम्बली की व्यवस्था चूँकि इनका ही क्लब देख रहा है - इसलिए रजिस्ट्रेशन की रकम क्लब के खाते में ही आ रही है; लेकिन खाते में आने वाली रकम और खर्चे के डिटेल्स यह किसी को बताने के लिए तैयार नहीं हैं । क्लब के सदस्यों को डिटेल्स इसलिए चाहिए क्योंकि शरत जैन और रमेश अग्रवाल ने असेम्बली में घाटा होने की स्थिति में क्लब के सदस्यों से पैसे बसूलने की बात कही है । क्लब के सदस्यों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट असेम्बली की जिम्मेदारी जब अशोक जैन की उम्मीदवारी को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से ली गई है, तो अतिरिक्त खर्चा अशोक जैन से ही लिया जाना चाहिए - उसका बोझ क्लब के सदस्यों को क्यों उठाना चाहिए ? क्लब के सदस्यों का कहना है कि शरत जैन पहले उनके इस तर्क से सहमत थे, लेकिन रमेश अग्रवाल के दबाव में उन्होंने फिर पलटी मार ली । अशोक जैन ने जो हिसाब समझाया, शरत जैन ने उसे फिर वैसे ही मान लिया । इस मामले में क्लब के सदस्यों का गंभीर आरोप यह है कि शरत जैन और रमेश अग्रवाल इस बात को भी छिपा रहे हैं कि रजिस्ट्रेशन व स्पॉन्सरशिप से कितनी रकम इकट्ठा हुई है और किस किस मद में कितने कितने पैसे खर्च हो रहे हैं ? रोटरी की राजनीति से परिचित लोगों का मानना और कहना है कि इस तरह की हरकतों से शरत जैन की ज्यादा बदनामी और फजीहत हो रही है । शरत जैन से ऊँची ऊँची उम्मीदें लगाए हुए लोगों को शरत जैन की हालत पर तरस भी आ रहा है - उन्हें लग रहा है कि गवर्नर-काल शुरू होने से पहले ही शरत जैन की जिस तरह की बदनामी व फजीहत हो रही है, वह अपने आप में एक अनोखा उदाहरण है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में शरत जैन की कारस्तानियों की खबरें पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर तक पहुँचने की बात से यह भी नजर आ रहा है कि शरत जैन की बदनामी अब सिर्फ डिस्ट्रिक्ट के भीतर की ही बात नहीं रह गई है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट की सीमाओं से बाहर निकल कर रोटरी के बड़े नेताओं तक पहुँच रही है । बदनामी की चादर शरत जैन को जितनी जल्दी मिल गई है, उतनी जल्दी उनसे पहले शायद ही किसी गवर्नर ने ओढ़ी हो !

Wednesday, May 11, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट डॉक्टर सुब्रमनियम पर डिस्ट्रिक्ट की पहचान को बद से बदतर करने/बनाने का काम करने का आरोप पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता की उपस्थिति में लगा

नई दिल्ली । डॉक्टर सुब्रमनियम को अपनी डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में मुख्य अतिथि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता के सामने अपने ही डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों की जिस तरह की आलोचना का शिकार होना पड़ा है, उससे संकेत मिल रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डॉक्टर सुब्रमनियम की राह खासी मुश्किलों भरी है । उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में संपन्न हुई डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता के सामने ही कई मौकों पर अलग अलग लोगों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट डॉक्टर सुब्रमनियम को अलग अलग कारणों से निशाना बनाया : किसी ने व्यवस्था को लेकर शिकायत की, तो किसी ने असेम्बली के स्तर को लेकर तथा किसी ने असेम्बली में ज्यादा लोगों की भागीदारी न हो पाने का ठीकरा डॉक्टर सुब्रमनियम के सिर फोड़ा, गंभीर आरोप यह भी सुनाई दिया कि डॉक्टर सुब्रमनियम के नजदीकी कार्यक्रम की आड़ में पैसों का भी घपला कर रहे हैं । डॉक्टर सुब्रमनियम के लिए खासी फजीहत की स्थिति उस समय हुई, जब किन्हीं लोगों ने तमाम खामियों के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर रंजन ढींगरा को भी जिम्मेदार ठहराना शुरू किया - लेकिन रंजन ढींगरा यह कहते/बताते हुए बचने की कोशिश करते दिखे कि बहुत सी बातों की तो उन्हें भी बाद में ही जानकारी मिलती है, और वह तो बस कहने भर के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर हैं । डॉक्टर सुब्रमनियम पर यह आरोप तो कई लोगों की तरफ से सुना गया है कि अपने गवर्नर-काल के कामकाज को लेकर वह किसी से कोई विचार-विमर्श ही नहीं करते हैं, और बस दो-एक लोगों ही के भरोसे वह गवर्नरी करने/चलाने का काम कर रहे हैं - लेकिन वह अपने डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर से भी विचार-विमर्श नहीं करते हैं - इस सूचना ने तो लोगों को डॉक्टर सुब्रमनियम पर भड़कने का और मौका दे दिया ।
डॉक्टर सुब्रमनियम के तौर-तरीकों से नाराज होने/रहने वाले लोगों की दो कैटेगरी हैं : एक तरफ तो ऐसे लोग हैं जिन्हें तवज्जो न मिलने की शिकायत है; उनका कहना है कि डॉक्टर सुब्रमनियम जब उम्मीदवार थे, तब तो उनकी खुशामद किया करते थे और तरह तरह से उनकी मदद लिया करते थे - किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी तक पहुँचते पहुँचते वह उन्हें पूरी तरह भुला बैठे हैं । ऐसे लोगों में डॉक्टर सुब्रमनियम के अपने क्लब के लोगों की संख्या ज्यादा है । क्लब के कई सदस्यों का कहना है कि क्लब में रवि भाटिया की बजाए डॉक्टर सुब्रमनियम की उम्मीदवारी को क्लियर करवाने में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी, लेकिन अब उन्हें लगता है कि उनसे गलती हुई । क्लब के कई सदस्यों को लगता है कि डॉक्टर सुब्रमनियम की बजाए वह यदि रवि भाटिया की उम्मीदवारी पर ध्यान देते तो उन्हें इतना उपेक्षित व अपमानित न होना पड़ता । डॉक्टर सुब्रमनियम से नाराज होने वाले लोगों की दूसरी कैटेगरी में वह लोग हैं, जो यह देख कर बेहद निराश हैं कि डॉक्टर सुब्रमनियम ने दीपक तलवार, सुशील खुराना, रवि चौधरी, विनय भाटिया जैसे लोगों को शह दी हुई है - जो रोटरी व डिस्ट्रिक्ट में अपने नकारात्मक रवैये के कारण बदनाम ज्यादा हैं । इनकी भूमिका की रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड तक ने अभी हाल की अपनी मीटिंग में भर्त्सना की है । डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में इन्हीं चार लोगों को आगे आगे देखा गया । लोगों का कहना/पूछना है कि डिस्ट्रिक्ट में जो लोग अपनी नकारात्मकता के लिए, और अपनी कम काबिलियत के लिए जाने/पहचाने जाते हैं - उन्हें आगे रख कर व तवज्जो देकर डॉक्टर सुब्रमनियम डिस्ट्रिक्ट को आखिर कहाँ ले जाना चाहते हैं ? डिस्ट्रिक्ट के कई महत्वपूर्ण पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने जिस तरह से अपने आप को डिस्ट्रिक्ट असेम्बली से दूर रखा, उसे डॉक्टर सुब्रमनियम के रवैये के परिणाम के रूप में देखा गया है और डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के लिए इसे आत्मघाती माना गया है ।
डॉक्टर सुब्रमनियम के रवैये से उन लोगों को ज्यादा झटका लगा है, जो उनके समर्थक व शुभचिंतक रहे हैं । ऐसे लोगों का मानना और कहना है कि उन्होंने उम्मीद की थी कि डॉक्टर सुब्रमनियम डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में एक मिसाल कायम करेंगे, लेकिन अभी तक के उनके रवैये से लग रहा है कि उनकी दिलचस्पी सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने में थी, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में काम करने में उनकी ज्यादा दिलचस्पी नहीं है - और इसीलिए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के काम को भगवान भरोसे छोड़ दिया है । इसी का फायदा उठाकर कुछेक नकारात्मक सोच रखने वाले कम काबिल लोगों ने डिस्ट्रिक्ट पर 'कब्ज़ा' कर लिया है । इनमें से कुछेक लोगों पर तो पैसा बनाने का आरोप भी है । लोगों के बीच शिकायत है कि कुछेक आयोजनों में रजिस्ट्रेशन के नाम पर जितने पैसे लिए गए, उतने की लोगों को 'सर्विस' नहीं मिली - जिससे लगता है कि डॉक्टर सुब्रमनियम के कुछेक नजदीकियों ने कार्यक्रमों को पैसा बनाने का जरिया भी बना लिया है । इस तरह की बातों की पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता के सामने जिस तरह से चर्चा हुई, उससे डिस्ट्रिक्ट की बदनामी के डिस्ट्रिक्ट की सीमाओं से बाहर तक फैलने के संकेत मिले । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट को लेकर दर्ज हुई प्रतिकूल टिप्पणी ने डिस्ट्रिक्ट 3011 की पहचान को पहले से ही संदिग्ध बना दिया है; उम्मीद की गई थी कि उससे सबक लेकर डॉक्टर सुब्रमनियम संभल कर काम करेंगे - उनके तौर-तरीकों ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट की पहचान को बद से बदतर बनाने/करने की दिशा में मोड़ दिया लगता है ।

Tuesday, May 10, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ ने नए बने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं से अपनी खुन्नस निकालने के लिए ही साढ़े तीन सौ डॉलर में पीएचएफ बनाने के अपने ही ऑफर को रद्द किया है क्या ?

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ पीएचएफ बनाने के अपने ही फार्मूले को लागू करने से इंकार करने के कारण, क्लब्स के पदाधिकारियों की गाली खा रहे हैं । क्लब्स के पदाधिकारी जेके गौड़ को इस बात के लिए कोस रहे हैं कि जेके गौड़ ने अपनी मूर्खतापूर्ण व खुन्नसी हरकतों से उन्हें बेकार की मुसीबत में फँसा दिया है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ ने क्लब्स के पदाधिकारियों को ऑफर दिया था कि वह साढ़े तीन सौ डॉलर में पीएचएफ बना/बनवा देंगे । उनके इस ऑफर के ऐवज में कई क्लब्स के पदाधिकारियों ने अपने अपने क्लब में सदस्यों को साढ़े तीन सौ साढ़े डॉलर प्रति सदस्य देने के लिए राजी किया - लेकिन अब जेके गौड़ कह रहे हैं कि इस रकम में पीएचएफ नहीं बनाया जा सकेगा, तथा पीएचएफ बनने/बनाने के लिए और पैसे देने होंगे । जेके गौड़ के इस बदले रूप ने क्लब्स के पदाधिकारियों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है; क्योंकि इसके चलते उन्हें अब अपने क्लब के सदस्यों के सामने लज्जित होना पड़ेगा और उनके लिए सदस्यों के बीच अपनी साख को बचाने की गंभीर चुनौती खड़ी होगी । क्लब्स के पदाधिकारियों का कहना है कि क्लब को चलाने में सदस्यों के बीच बनी साख की महत्वपूर्ण व निर्णायक भूमिका होती है, उसके न होने और या खत्म हो जाने से क्लब के सदस्यों का सहयोग मिलने में दिक्कत होती है । जेके गौड़ के ऑफर के भरोसे ही क्लब्स के पदाधिकारियों ने अपने अपने क्लब में सदस्यों को साढ़े तीन सौ डॉलर में पीएचएफ बनने के लिए मुश्किल से तो राजी किया, ऐसे में अब वह किस मुँह से सदस्यों से कहें कि पीएचएफ बनने के लिए उन्हें और रकम देनी होगी । जिन क्लब्स के पदाधिकारियों ने साढ़े तीन सौ डॉलर प्रति सदस्य के हिसाब से रकम इकट्ठा कर जेके गौड़ को पहले ही सौंप दी है, उनके सामने समस्या और विकट हो गई है - उनके तो पैसे भी गए और पीएचएफ बनाने की बजाये जेके गौड़ ने उन्हें झुनझुना थमा दिया है ।
जेके गौड़ के इस रवैये से क्लब्स के पदाधिकारी अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं । ऐसे क्लब्स में अभी हाल ही में चार्टर हुए रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के पदाधिकारियों के सामने संकट खासा गंभीर है । यह एक नया क्लब है और इसमें अधिकतर सदस्य पहली बार रोटरी के संपर्क में आए हैं । ऐसे में जाहिर तौर पर क्लब्स के प्रमुख कर्ताधर्ताओं व पदाधिकारियों ने पहली बार रोटरी के संपर्क में आए लोगों को प्रेरित करने तथा रोटरी के लिए कुछ करने हेतु तैयार करने में काफी मेहनत की और उन्हें पीएचएफ बनने के लिए राजी किया । रोटरी सदस्य बनते ही पीएचएफ बनने के उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं - रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास में चार्टर लेने/मिलने के साथ ही यह काम हुआ, तो इसे रोटरी व डिस्ट्रिक्ट के इतिहास की एक उल्लेखनीय घटना के रूप में देखा/पहचाना गया । किंतु रोटरी व डिस्ट्रिक्ट के इतिहास की यह उल्लेखनीय घटना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ की वायदाखिलाफी व मूर्खता की भेंट चढ़ती नजर आ रही है । रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के मामले में गंभीर बात यह है कि कुछेक लोगों को लगता है कि जेके गौड़ ने वायदाखिलाफी का जो कदम उठाया है, उसके पीछे वास्तव में उनका उद्देश्य इस क्लब के मुख्य कर्ताधर्ताओं को परेशान करना ही है । इस क्लब के मुख्य कर्ताधर्ताओं के प्रति जेके गौड़ का 'दुश्मनी' वाला भाव किसी से छिपा हुआ नहीं है । इस क्लब के गठन को रोकने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ जितने प्रयास कर सकते थे, वह उन्होंने किए; रोटरी के बड़े नेताओं ने हस्तक्षेप न किया होता तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ इस क्लब को कभी भी बनने नहीं देते ।
जेके गौड़ के नजदीकियों का ही कहना है कि रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के प्रमुख कर्ताधर्ताओं की तरफ से जेके गौड़ को जो दोतरफा 'मार' पड़ी, उसी का बदला लेने के लिए जेके गौड़ ने साढ़े तीन सौ डॉलर में पीएचएफ बनाने की अपनी ही योजना को बंद कर दिया है । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद इस क्लब के गठन को तो नहीं ही रोक सके - उनके लिए 'कोढ़ में खाज' वाली बात यह भी हुई कि इस क्लब के चार्टर प्रेजेंटेशन कार्यक्रम में मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता शामिल हुए । इस तरह से रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास को लेकर जेके गौड़ को दोहरी 'मार' पड़ी । ऐसे में, जेके गौड़ को यह बात पसंद नहीं आई कि इस क्लब के कई सदस्य पीएचएफ बन कर रोटरी व डिस्ट्रिक्ट में एक उल्लेखनीय रिकॉर्ड बनाएँ - और वह भी उनके द्वारा घोषित किए गए फार्मूले का फायदा उठा कर । सो, जेके गौड़ ने फार्मूला ही खत्म कर दिया - 'न रहेगा बाँस, और न बजेगी बाँसुरी' वाली तर्ज पर । जेके गौड़ के 'बदले की भावना' वाले इस रवैये ने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं के सामने समस्या तो खड़ी कर ही दी है; उनकी समस्या इसलिए और बड़ी है - क्योंकि वह साढ़े तीन सौ डॉलर के हिसाब से पैसे दे चुके हैं । अब जब जेके गौड़ की धोखाधड़ी के चलते, साढ़े तीन सौ डॉलर देकर पीएचएफ बनने की तैयारी कर रहे सदस्य पीएचएफ नहीं बन सकेंगे - तब उनका निराश और नाराज होना स्वाभाविक ही होगा; क्लब के कर्ताधर्ताओं के सामने निराश व नाराज होने वाले सदस्यों को समझा पाना वास्तव में एक चुनौती होगा । यह उनसे जेके गौड़ का बदला होगा । क्लब के पदाधिकारियों की तरफ से हालाँकि कहा जा रहा है कि जेके गौड़ ने यदि अपना वायदा पूरा नहीं किया, तो वह साढ़े तीन सौ डॉलर के हिसाब से दी गई रकम वापस करने की माँग करेंगे और इस बारे में सुशील गुप्ता व मनोज देसाई से शिकायत करेंगे । जेके गौड़ की तरफ से कहा जा रहा है कि रकम तो वापस होगी नहीं, और इस बारे में सुशील गुप्ता व मनोज देसाई भी कुछ नहीं कर पायेंगे ।
रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के प्रमुख कर्ताधर्ताओं से अपनी खुन्नस निकालने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ ने जो यह रास्ता चुना है, उसने लेकिन दूसरे कई क्लब्स के पदाधिकारियों को भी मुसीबत में फँसा दिया है । हालाँकि उनमें कुछेक ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपने अपने क्लब के सदस्यों से साढ़े तीन सौ डॉलर के हिसाब से पैसे इकट्ठे तो कर लिए हैं, किंतु अभी जेके गौड़ को नहीं सौंपे हैं । ऐसे पदाधिकारियों के सामने बचने का आसान तरीका यही है कि वह इकठ्ठा किए गए पैसे जेके गौड़ को देने की बजाए सदस्यों को वापस कर दें । ऐसे कुछेक पदाधिकारियों का लेकिन यह भी कहना है कि जेके गौड़ ने अपने नजदीकियों से उन्हें कहलवाया है कि वह अभी चुप रहें, कुछ दिनों में वह अपने फार्मूले के अनुसार साढ़े तीन सौ डॉलर में उनके सदस्यों को चुपचाप से पीएचएफ बना/बनवा देंगे । जेके गौड़ आगे क्या करेंगे और क्या नहीं करेंगे, यह तो आने वाले दिनों में ही पता चल पायेगा - अभी लेकिन रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के प्रमुख कर्ताधर्ताओं के साथ अपनी खुन्नस निकालने के लिए उन्होंने जिस तरह से साढ़े तीन सौ डॉलर में पीएचएफ बनाने के अपने ही ऑफर को रद्द कर दिया है, उसके कारण वह कई लोगों के निशाने पर आ गए हैं; जो उन्हें उनकी वायदाखिलाफी के लिए जम जम कर कोस रहे हैं ।

Wednesday, May 4, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट असेम्बली से पहले हुई जेके गौड़ के क्लब की असेम्बली में शामिल होकर शरत जैन ने भी अपनी 'असलियत' दिखाई

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ अपने क्लब की असेम्बली को लेकर खुद तो भारी फजीहत का शिकार हो ही रहे हैं, साथ में उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शरत जैन तथा डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर रमेश अग्रवाल का भी मजाक बनवा दिया है । डिस्ट्रिक्ट के और रोटरी सर्किल के जानकारों के बीच इन तीनों की इस बात के लिए जबर्दस्त खिंचाई हो रही है कि इन्होंने रोटरी के पहले चैप्टर का यह बुनियादी सबक भी नहीं सीखा है क्या कि डिस्ट्रिक्ट असेम्बली से पहले क्लब की असेम्बली हो ही नहीं सकती है ? डिस्ट्रिक्ट असेम्बली अभी दस दिन बाद होगी, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ ने अपने क्लब की असेम्बली लेकिन उससे पंद्रह दिन पहले ही कर ली है । जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर हैं, उनसे इतनी उम्मीद तो की ही जाती है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होते हुए वह अपने ही क्लब में रोटरी विरोधी यह हरकत नहीं होने देते । जेके गौड़ को कई लोग चूँकि 'अंधे के हाथ बटेर लगी' कहावत के अनुरूप डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी मिली मानते हैं, इसलिए उनकी बात जानें भी दें - तो शरत जैन को क्या हुआ ? शरत जैन को तो लोग बड़ा होशियार व कायदे-अनुसार काम करने वाले व्यक्ति के रूप में 'देखते' हैं, उन्होंने रोटरी क्लब गाजियाबाद ग्रेटर के पदाधिकारियों तथा जेके गौड़ से यह क्यों नहीं कहा कि डिस्ट्रिक्ट असेम्बली से पहले क्लब की असेम्बली नहीं हो सकती है; यह कहना तो दूर की बात है, शरत जैन ने इस असेम्बली में अतिथि के रूप में शामिल होकर यही साबित किया कि रोटरी की समझ के मामले में वह भी उतने ही 'पैदल' हैं, जितने जेके गौड़ हैं । इस आलोचना में, इन दोनों के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर होने के नाते पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल भी आ घिरे हैं । लोगों का कहना है कि रमेश अग्रवाल माइक पकड़ कर रोटरी के बारे में ऐसा ऐसा ज्ञान बघारते हैं जैसे उनके शरीर में खून की बजाए रोटरी बहती हो - लेकिन वह अपने इन दो चेलों को रोटरी की एक बुनियादी बात नहीं सिखा सके, और इन दोनों को उन्होंने रोटरी का चीरहरण करने के लिए खुला छोड़ दिया है ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी में असेम्बली का बड़ा महत्त्व है । असेम्बली वास्तव में रोटरी की जान है । यह असेम्बली ही है, जिसमें आने वाले वर्ष के लिए रोटरी का एजेंडा, उसके कार्यक्रम व उसके लक्ष्य निर्धारित होते हैं तथा उन्हें क्रियान्वित करने की रूप रेखा गहन विचार-विमर्श के साथ तैयार होती है । इसीलिए असेम्बली होने का क्रम इंटरनेशनल से क्लब की तरफ बढ़ता है : पहले इंटरनेशनल एसेम्बली होती है, जिसमें अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को प्रशिक्षित किया जाता है; फिर डिस्ट्रिक्ट असेम्बली होती है, जिसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर क्लब्स के पदाधिकारियों को प्रशिक्षित करता है; और फिर उसके बाद क्लब्स की असेम्बली होती है, जिसमें क्लब के पदाधिकारी क्लब के दूसरे सदस्यों को अगले रोटरी वर्ष के एजेंडे के संबंध में प्रशिक्षित करते हैं और अगले रोटरी वर्ष के अपने कामकाज की योजना बनाते हैं । ऐसे में, यह सिर्फ नियम की और या व्यवस्था की ही बात नहीं है - बल्कि अक्ल की भी बात है कि क्लब की असेम्बली डिस्ट्रिक्ट असेम्बली के बाद होगी । क्लब के अगले रोटरी वर्ष के पदाधिकारी अपने कार्यकाल के रोटरी इंटरनेशनल के एजेंडे को लेकर क्लब के दूसरे सदस्यों के साथ तभी तो विचार-विमर्श कर पायेंगे, जब वह स्वयं अगले वर्ष के रोटरी के एजेंडे से परिचित होंगे - जिसका मौका उन्हें शरत जैन की डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में ही मिलेगा ।
सोचिए, रोटरी क्लब गाजियाबाद ग्रेटर के अगले रोटरी वर्ष के पदाधिकारियों का अगले रोटरी वर्ष के एजेंडे को लेकर अभी जब प्रशिक्षण हुआ ही नहीं है, तो उन्होंने अपने क्लब के सदस्यों के साथ क्लब की असेम्बली में क्या विचार विमर्श किया होगा ? जाहिर है कि असेम्बली के नाम पर उन्होंने पिकनिक ही मनाई होगी, और इस तरह रोटरी में असेम्बली जैसी महत्त्वपूर्ण व खूबसूरत अवधारणा को लागू करने वाले महान सोच के लोगों की खिल्ली ही उड़ाई होगी । संभव है कि क्लब के अगले रोटरी वर्ष के पदाधिकारियों को इसकी कोई जानकारी या समझ न हो; जानकारी या समझ के उनके अभाव को दूर करने की जिम्मेदारी क्लब के वरिष्ठ सदस्यों की होती है - रोटरी क्लब गाजियाबाद ग्रेटर में यह जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते जेके गौड़ व डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेटर होने के नाते अशोक अग्रवाल को निभानी चाहिए थी । वैसे गलती इन बेचारों की भी नहीं है - क्योंकि इन्होंने रोटरी को पिकनिक मनाने व 'धंधा' करने वाले अड्डे से ज्यादा महत्त्व दिया ही नहीं है; असेम्बली का महत्त्व तो इन बेचारों ने खुद ही नहीं समझा; उसे वास्तव में इन्होंने यदि समझा होता, तब तो यह क्लब के नए पदाधिकारियों को डिस्ट्रिक्ट असेम्बली होने से पहले क्लब की असेम्बली करने से रोकते ?
जेके गौड़ की समय समय पर की गई हरकतों ने डिस्ट्रिक्ट व रोटरी को जिस तरह से बदनाम किया है, उसके बदले में उनकी खुद की काफी फजीहत होती रही है - जिसका नतीजा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के बावजूद कोई भी उन्हें गंभीरता से नहीं लेता है, और रोटरी में उनकी स्थिति अलग-थलग व गई-गुजरी सी बन गई है । लेकिन शरत जैन को भी जेके गौड़ की ही राह पर चलते देख लोगों को आश्चर्य हुआ है । जेके गौड़ के क्लब की असेम्बली में शरत जैन के अतिथि के रूप में शामिल होने की जानकारी पर हैरान हो रहे लोगों को लगने लगा है कि शरत जैन भी जेके गौड़ जैसे ही हैं । इस मामले में हो रही आलोचना में जेके गौड़ के लिए राहत की बात यही है - वह इस बात से काफी परेशान रहे हैं कि उनकी तुलना में लोग शरत जैन को कुछ ज्यादा ही होशियार समझ रहे हैं; पर अब वह यह देख कर बहुत खुश हैं कि जैसी टोपी उनके सिर पर है, ठीक वैसी ही टोपी लोगों को शरत जैन के सिर पर भी नजर आने लगी है; और कुछेक लोगों को तो यह आशंका भी होने लगी है कि शरत जैन की पोलपट्टी जैसे जैसे खुल रही है तथा उनकी असलियत सामने आ रही है - कहीं ऐसा न हो कि वह जेके गौड़ से भी गए-गुजरे साबित हों ।

Monday, May 2, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार संजीवा अग्रवाल के दूर दूर रहने के रवैये ने शिव कुमार चौधरी के सामने संकट पैदा किया

गाजियाबाद । संजीवा अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार सँभालने जा रहे शिव कुमार चौधरी तथा उनके नजदीकियों से जो दूरी बनाई और 'दिखाई' हुई है, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प दोराहे पर खड़ा कर दिया है । संजीवा अग्रवाल अगले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे हैं, और इस तैयारी के तहत उन्होंने अपनी सक्रियता व संलग्नता को संयोजित किया हुआ है । इसी नाते से उम्मीद की जाती है कि एक उम्मीदवार के रूप में संजीवा अग्रवाल अपनी उम्मीदवारी वाले वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर बैठे शिव कुमार चौधरी के नजदीक रहने की कोशिश करेंगे, ताकि उनका समर्थन और सहयोग भी उन्हें मिल सके । संजीवा अग्रवाल का रवैया लेकिन बिलकुल उल्टा है । शिव कुमार चौधरी के नजदीक रहने की बजाए संजीवा अग्रवाल उनसे दूर रहने ही नहीं, बल्कि दूर 'दिखने' का भी काम कर रहे हैं । हद तो यह हुई कि गाजियाबाद में हुए डिस्ट्रिक्ट ऑफिस के उद्घाटन अवसर पर भी संजीवा अग्रवाल उपस्थित नहीं हुए । इस मौके पर गाजियाबाद के हालाँकि और भी कई प्रमुख व सक्रिय रहने वाले लायन सदस्य उपस्थित नहीं हुए, किंतु संजीवा अग्रवाल की अनुपस्थिति का लोगों ने खास नोटिस लिया । यूँ भी दूसरे लोग उपस्थित हों या न हों, उससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता है - किंतु सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार ऐसे किसी आयोजन में यदि गायब दिखे, तो लोगों के बीच सवाल तो उठेंगे ही । सवाल उठे तो शिव कुमार चौधरी के नजदीकियों ने संजीवा अग्रवाल की अनुपस्थिति का ठीकरा मुकेश गोयल के सिर फोड़ दिया । उनका आरोप रहा कि मुकेश गोयल ने संजीवा अग्रवाल को शिव कुमार चौधरी के आयोजन से दूर रहने के लिए कहा था, और संजीवा अग्रवाल इसीलिए उक्त कार्यक्रम में नहीं पहुँचे ।
उल्लेखनीय है कि संजीवा अग्रवाल को मुकेश गोयल के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, और अभी मुकेश गोयल व शिव कुमार चौधरी के बीच शीत-युद्ध जैसी स्थिति है - इसलिए डिस्ट्रिक्ट ऑफिस के उद्घाटन अवसर पर संजीवा अग्रवाल की अनुपस्थिति को लेकर शिव कुमार चौधरी के नजदीकियों ने जो कारण बताया, उसे कई लोगों ने स्वीकार भी कर लिया । हालाँकि कुछेक लोगों को यह जरूर लगा कि मुकेश गोयल ने संजीवा अग्रवाल को कार्यक्रम में जाने से मना किया, वह तो ठीक है - लेकिन संजीवा अग्रवाल ने उनकी ऐसी बात क्यों मानी, जिससे कि उनकी उम्मीदवारी को नुकसान हो सकता है ? अभी तक माना/समझा जा रहा था कि संजीवा अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी भले ही मुकेश गोयल के भरोसे प्रस्तुत की है, लेकिन वह दूसरे लोगों का सहयोग-समर्थन भी लेने का प्रयास करेंगे - जिससे कि उनकी नाव निर्विरोध रूप से किनारे लग जाए । इसी नाते से उम्मीद की जा रही थी कि वह शिव कुमार चौधरी के साथ भी अपने तार जोड़ कर रखेंगे । शिव कुमार चौधरी के साथ उनके चूँकि कुछेक बिजनेस रिलेशन रहे हैं, इसलिए उनके लिए तार जोड़े रखना आसान भी होता । लेकिन डिस्ट्रिक्ट ऑफिस के उद्घाटन अवसर पर अनुपस्थित होकर संजीवा अग्रवाल ने फिलहाल तो यही दिखाया है कि अपने चुनाव के संदर्भ में वह सिर्फ और सिर्फ मुकेश गोयल पर भरोसा कर रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से परिचित लोगों को संजीवा अग्रवाल के इस रवैये पर हैरानी है । उन्हें लग रहा है कि इस रवैये से तो संजीवा अग्रवाल अपने लिए मुश्किलों को जैसे आमंत्रित कर रहे हैं । शिव कुमार चौधरी राह में रोड़े बिछाने के लिए यूँ भी बदनाम हैं; उन्होंने जब विनय मित्तल को नहीं छोड़ा - जिन्होंने हमेशा हर तरह से उनकी मदद ही की, तो संजीवा अग्रवाल विरोधी तेवर दिखा कर उनसे भला कैसे बच सकेंगे ? मजे की बात लेकिन यह है कि दूसरों को भले ही यह आशंका हो, लेकिन संजीवा अग्रवाल के नजदीकियों को शिव कुमार चौधरी के रवैये का कोई डर नहीं है । संजीवा अग्रवाल के क्लब के लोगों का कहना है कि राजनीतिक मुकाबला चाहें जैसा जो हो, शिव कुमार चौधरी और उनके संगी-साथी लेकिन उस तरह की विरोधी हरकतें संजीवा अग्रवाल के साथ नहीं कर पायेंगे, जैसी उन्होंने विनय मित्तल के साथ कीं । संजीवा अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि उन्होंने दोनों तरह से स्थितियों का आकलन किया है - और पाया है कि शिव कुमार चौधरी के नजदीक रहने में ज्यादा नुकसान है; इसलिए उन्होंने उनसे दूरी बना कर रहने का फैसला किया है । यह आकलन उन्होंने रेखा गुप्ता के अनुभव व उनकी बातों के आधार पर किया है । उम्मीदवारी के चक्कर में रेखा गुप्ता के जो अनापशनाप पैसे खर्च हुए हैं, वह तो हुए ही - पाँच/सात लाख रुपए तो उनके 'चोरी' हुए हैं । यह 'चोरी' हुए रुपए उनकी उम्मीदवारी के किस समर्थक की जेब में गए या किन किन समर्थकों के बीच बंटे, इसका खुलासा तो रेखा गुप्ता की तरफ से नहीं हुआ है - लेकिन उनकी इस तरह की शिकायतों ने संजीवा अग्रवाल को जरूर सावधान कर दिया है । इसी सावधानी में संजीवा अग्रवाल ने शिव कुमार चौधरी से दूर रहने का निश्चय किया है ।
संजीवा अग्रवाल के इस निश्चय में लोगों के बीच दो तरह के मत आ रहे हैं : कुछेक लोगों को लग रहा है कि इसके चलते शिव कुमार चौधरी उनका विनय मित्तल जैसा हाल करेंगे, वह उनकी संभावित जीत को तो भले ही प्रभावित न कर सकें - लेकिन उनके लिए चुनाव मुश्किलों भरा जरूर बना देंगे; अन्य कुछेक लोगों का कहना किंतु यह है कि संजीवा अग्रवाल चूँकि लायंस क्लब गाजियाबाद के सदस्य हैं, इसलिए शिव कुमार चौधरी और उनके संगी-साथी संजीवा अग्रवाल के साथ विनय मित्तल जैसा बर्ताब नहीं कर सकेंगे । लायंस क्लब गाजियाबाद में संजीवा अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि शिव कुमार चौधरी को लायंस क्लब गाजियाबाद की 'ताकत' का अंदाजा है, और इस कारण से वह संजीवा अग्रवाल से नाहक ही पंगा नहीं लेंगे । उनका कहना है कि शिव कुमार चौधरी इतनी समझ तो रखते ही हैं कि वह तय करें कि उन्हें कब कहाँ क्या करना है । इस बात को वह एक उदाहरण बता कर साबित करते हैं : इस बार के चुनाव में कुछेक खबरों से नाराज होकर शिव कुमार चौधरी ने ऐलान किया था कि वह फलाँ तारीख को विरोधी पक्ष के कुछेक पूर्व गवर्नर्स के चाल-चलन की पोल खोलेंगे । विरोधी पक्ष की तरफ से भी जबाव आया कि शिव कुमार चौधरी ने यदि कोई बकवास की तो वह भी लोगों को बतायेंगे कि लायनिज्म में उन्होंने किस किस के पैसे मारे हुए हैं । दोनों तरफ से इस तरह की बयानबाजी के चलते लोगों ने तमाशा देखने की तैयारी शुरू कर दी । किंतु तमाशे का शोर तो बहुत हुआ, मगर तमाशा न हुआ । विरोधी पक्ष के कुछेक पूर्व गवर्नर्स के चाल-चलन की पोल खोलने के लिए शिव कुमार चौधरी ने जिस तारीख की घोषणा की थी, वह तारीख निकल गई - और पूरा चुनाव निकल गया, लेकिन शिव कुमार चौधरी ने वह काम किया ही नहीं, जिसे करने की उन्होंने जोरशोर से घोषणा की थी । दरअसल उन्होंने समझ लिया था कि जिस खेल को वह खेलने की बात कर रहे हैं, वह खेल उलटे कहीं उनपर ही चोट न करे - इसलिए फिर अपनी ही घोषणा से पीछे हटने में उन्होंने अपनी भलाई समझी । इस उदाहरण को देते हुए लायंस क्लब गाजियाबाद के लोगों का दावा है कि शिव कुमार चौधरी दूरी बनाए रखने के संजीवा अग्रवाल के रवैये पर भड़कें चाहें जितना, लेकिन उनके साथ वह उस तरह की हरकत नहीं कर सकेंगे - जैसी उन्होंने विनय मित्तल के साथ की । संजीवा अग्रवाल के रवैये ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को सचमुच दिलचस्प दोराहे पर ला खड़ा किया है ।