Friday, May 27, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य नितिन कँवर की ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल की आड़ में की जा रही 'धंधेबाजी' की शिकायत पर विजय गुप्ता किस डर या स्वार्थ के कारण कार्रवाई नहीं कर रहे हैं ?

नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल व नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में दिल्ली के ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल की आड़ में हो रही धांधलेबाजी को जिस तरह से शह दी जा रही है, उससे इस बात का एक बार फिर पुख्ता सुबूत मिला है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल व नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पूरी तरह मनमानी धंधेबाजी का अड्डा बन चुकी हैं । मनमानी धंधेबाजी करने वाले लोगों के हौंसले की ऊँचाई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस मामले में आरोपी पर कार्रवाई करने की बजाए शिकायतकर्ता को ही तरह तरह से परेशान किया जा रहा है - और उस पर तरह तरह से यह दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है कि वह इंस्टीट्यूट में की गई अपनी शिकायत को वापस ले ले । शिकायत नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य नितिन कँवर के खिलाफ है । मामला 25 मार्च को बैंक ऑडिट पर दिल्ली के स्कोप ऑडीटोरियम में आयोजित हुए एक सेमीनार का है, जिसमें प्रतिभागियों को चार सीपीई आर्स दिए गए । यह सेमीनार आरोपों के घेरे में इसलिए आया क्योंकि इसके निमंत्रण लोगों को दो संस्थाओं की तरफ से मिले - इस सेमीनार को आयोजित करने का दावा ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल ने किया, और उसी के चलते प्रतिभागियों को सीपीई आर्स मिल सके; लेकिन हैरान करने की बात यह रही कि इसी सेमीनार को नितिन कँवर एंड टीम की तरफ से इंटरनेशनल टैक्स सीए ग्रुप द्वारा आयोजित होना बताया । सवाल यह पैदा हुआ कि एक सेमीनार के आयोजन का जिम्मा दो संस्थाएँ कैसे ले सकती हैं ? लेने/करने को तो एक सेमीनार का आयोजन दस/बीस संस्थाएँ भी कर सकती हैं, लेकिन यह बात एक ही जगह स्पष्ट रूप से दर्ज होनी चाहिए न । एक सेमीनार के आयोजन का जिम्मा यदि एक से अधिक संस्थाएँ अलग अलग रूप में करती हैं, तो फिर यह सवाल तो उठेगा ही न कि सेमीनार का असली आयोजक वास्तव में है कौन ? 25 मार्च के सेमीनार को लेकर भी सवाल बड़ा सीधा और आसान सा हुआ कि इस सेमीनार का आयोजक वास्तव में है कौन ? सवाल का जबाव नहीं मिला, तो फिर कयास लगने शुरू हुए और आरोपों के निशाने पर नितिन कँवर आए । ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल को चूँकि नितिन कँवर के जेबी संगठन के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है, इसलिए आरोप लगा कि इस स्टडी सर्किल की आड़ में नितिन कँवर धंधे की राजनीति और राजनीति का धंधा कर रहे हैं ।
ईस्ट एंड स्टडी सर्किल की गतिविधियों पर पहले भी आरोप लगते सुने गए हैं, और बताया जाता रहा है कि यह स्टडी सर्किल सीपीई आर्स 'बेचने' के धंधे में शामिल रहा है और इस पर हिसाब-किताब में गड़बड़ी के आरोप लगते रहे हैं । लेकिन नितिन कँवर के नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चुने जाने के बाद उम्मीद की गई थी कि नितिन कँवर अब चूँकि जिम्मेदारी के पद पर आ गए हैं, तो अपनी पोजीशन का ख्याल करते/रखते हुए अब वह ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल द्वारा की जा रही कारस्तानियों पर रोक लगायेंगे और ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे काउंसिल का, इंस्टीट्यूट का और खुद उनका नाम खराब हो । किंतु 25 मार्च के सेमीनार के आयोजन के पीछे का गड़बड़झाला सामने आया, तो पता चला कि काउंसिल सदस्य होने के बाद तो नितिन कँवर और खुल कर 'बेईमानी' करने को अपना अधिकार समझ बैठे हैं । वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट अविनाश गुप्ता ने इस 'बेईमानी' की शिकायत इंस्टीट्यूट की सीपीई कमेटी को की - जिसके चेयरमैन विजय गुप्ता तथा सेक्रेटरी राजेश भल्ला हैं, और जिसमें कुल मिलाकर 28 सदस्य हैं । अविनाश गुप्ता को उम्मीद रही कि तथ्यों व सुबूतों के साथ की गई उनकी शिकायत पर इंस्टीट्यूट की सीपीई कमेटी तुरंत कार्रवाई करेगी और ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल द्वारा की जा रही धोखाधड़ी को न सिर्फ रोकेगी, बल्कि स्टडी सर्किल तथा सेमीनार की आड़ में किए जा रहे 'धंधे' के मुख्य प्रमोटर नितिन कँवर के खिलाफ भी उचित कार्रवाई करेगी । सेंट्रल काउंसिल सदस्य विजय गुप्ता की चेयरमैनी वाली सीपीई कमेटी ने लेकिन उनकी शिकायत को धूल खाने के लिए छोड़ दिया । दो महीने तक अविनाश गुप्ता को जब अपनी शिकायत पर कोई कार्रवाई होती हुई नजर नहीं आई, तो अभी हाल ही में उन्होंने सीपीई कमेटी के पदाधिकारियों से लिख कर पूछा है कि उनकी शिकायत पर अभी तक हुआ क्या है ?
ऐसा न माना/समझा जाए कि अविनाश गुप्ता की शिकायत पर ध्यान देने के लिए सीपीई कमेटी के पदाधिकारियों को समय नहीं मिला, और या उन्होंने शिकायत को संज्ञान लेने लायक ही नहीं समझा । शिकायत करने के बाद से अविनाश गुप्ता को जिस तरह से निशाना बनाना शुरू किया गया और एक स्पीकर के रूप में उनके कार्यक्रमों को रद्द करने/करवाने तथा असफल करने/करवाने की चालें चलना शुरू हुआ, उससे यह साफ नजारा देखने को मिला कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल व नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए शिकायतकर्ता को ही सबक सिखाने पर उतर आए हैं । शिमला ब्रांच तथा फरीदाबाद के अर्बन स्टेट स्टडी सर्किल सहित नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के जिन कार्यक्रमों में अविनाश गुप्ता को स्पीकर के रूप में आमंत्रित किया गया, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की तरफ से षड्यंत्रपूर्वक उन्हें या तो स्थगित करवा दिया गया और या उन्हें फेल करने के प्रयास किए गए । अविनाश गुप्ता ने दावा किया है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी सुमित गर्ग ने उनसे टेलीफोन पर बात करते हुए स्वीकार किया व बताया कि चेयरमैन दीपक गर्ग के नेतृत्व में रीजनल काउंसिल के 'पॉवर ग्रुप' ने तय किया हुआ है कि अविनाश गुप्ता को नॉर्दर्न रीजन के किसी भी कार्यक्रम में 'दिखने' नहीं दिया जायेगा । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दीपक गर्ग को विजय गुप्ता के 'चेले' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि नितिन कँवर से विजय गुप्ता को आखिर क्या डर या स्वार्थ है, जो वह न सिर्फ नितिन कँवर के खिलाफ हुई शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपने चेले दीपक गर्ग को उन्होंने शिकायतकर्ता अविनाश गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए लगा दिया है ।
इस मामले का सबसे ज्यादा गंभीर पहलू यह है कि इंस्टीट्यूट की विजय गुप्ता की चेयरमैनी वाली सीपीई कमेटी में सेंट्रल काउंसिल के कई सदस्य भी हैं, लेकिन किसी ने भी विजय गुप्ता से यह तक पूछने/जानने की हिम्मत नहीं की कि नितिन कँवर के खिलाफ आयी शिकायत पर कोई कार्रवाई आखिर क्यों नहीं हो रही है ? कमेटी अविनाश गुप्ता की शिकायत को निरस्त करते हुए यही कह दे कि जो हुआ है, उसमें नितिन कँवर ने और ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल ने कुछ भी गलत नहीं किया है । विजय गुप्ता की चेयरमैनी वाली सीपीई कमेटी में सेंट्रल काउंसिल के जय छारिया, प्रफुल्ल छाजेड़, तरुण घिआ, मंगेश किनरे, धीनल शाह, बाबु कल्लीवयलिल, मधुकर हिरेगंगे, के श्रीप्रिया, श्याम अग्रवाल, मुकेश कुशवाह, प्रकाश शर्मा, केमिशा सोनी, संजय अग्रवाल, संजीव चौधरी, अतुल गुप्ता, नवीन गुप्ता, राजेश शर्मा आदि सीनियर व जूनियर सदस्य हैं - लेकिन किसी ने भी इस बात की फ़िक्र नहीं की है कि स्टडी सर्किल की आड़ में की जा रही नितिन कँवर की धंधेबाजी को लेकर हुई शिकायत पर कमेटी कोई तो फैसला ले आखिर ! यह लोग कमेटी में क्या सिर्फ इसलिए हैं, ताकि अपने अपने प्रोफाइल में दिखा/जता सकें कि वह 'इस' कमेटी में भी सदस्य रहे हैं - कमेटी सदस्य के रूप में इनकी कोई न्यूनतम जिम्मेदारी भी बनती है या नहीं ? नितिन कँवर की धंधेबाजी के मामले में पूरी सेंट्रल काउंसिल जिस तरह से पंगु हो गई है, वह इंस्टीट्यूट की कार्यदशा का एक उदाहरण है ।