Tuesday, June 30, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में राजा साबू व उनके 'गिरोह' के गवर्नर्स ने डीसी बंसल पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुनाव लड़ने की तैयारी करने के साथ साथ रोटरी इंटरनेशनल में तीन हजार डॉलर फीस वाली शिकायत दर्ज कराने के लिए भी दबाव बनाया

चंडीगढ़ । राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर टीके रूबी के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने पर रोटरी इंटरनेशनल की मुहर लग जाने के बाद उम्मीद की गई थी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद को लेकर चल रहा झगड़ा शांत पड़ जायेगा, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की कुर्सी से उतरते उतरते दिलीप पटनायक ने जो कारनामा किया है - उसे देख कर लग रहा है कि राजा साबू के नेतृत्व वाली डिस्ट्रिक्ट की लीडरशिप झगड़े को शांत करने/करवाने की बजाये उसे और भड़काने की तैयारी कर रही है । टीके रूबी के क्लब की तरफ से की गई चुनावी शिकायत पर आये रोटरी इंटरनेशनल के फैसले पर कार्रवाई करते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक ने कॉन्करेंस जुटाने/देने के लिए 33 दिन का समय निर्धारित किया है । रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार, अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करने वाले उम्मीदवार को कॉन्करेंस जुटाने/देने के लिए 21 दिन का समय निर्धारित है । खुद इन्हीं डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक ने 16 मार्च की अपनी ईमेल के जरिए 22 फरवरी को चुने गए और 24 फरवरी को घोषित किए गए अधिकृत उम्मीदवार टीके रूबी को चेलैंज करने वाले उम्मीदवार डीसी बंसल को 6 अप्रैल तक कॉन्करेंस जुटाने/देने के लिए कहा था - यानि कॉन्करेंस जुटाने/देने के लिए 21 दिन का समय निर्धारित किया था । उन्होंने 26 मार्च को इस चुनावी प्रक्रिया को स्थगित किया था - यानि कॉन्करेंस जुटाने/देने के लिए जो 21  समय दिया गया था, उसमें दस दिन बीत चुके थे । रोटरी इंटरनेशनल ने टीके रूबी की तरफ से दर्ज कराई गई शिकायत पर फैसला देते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को 'चुनावी प्रक्रिया को जहाँ स्थगित किया गया था, वहाँ से उसे शुरू करने और आगे बढ़ाने' का जिम्मा दिया है । इस हिसाब से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक को कॉन्करेंस जुटाने/देने के लिए बाकी बचे कुल ग्यारह दिन निर्धारित करने थे - लेकिन उन्होंने इसके लिए 33 दिन निर्धारित कर दिए ।   
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक का यह फैसला इसलिए कोई बड़ा मामला नहीं बनाता कि उन्होंने दिनों के मामले में कोई हेरफेर कर लिया है । यह तो बहुत छोटी बात है । जो बात छोटी नहीं है, वह यह कि पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट का गवर्नर रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के साथ खिलवाड़ कैसे और क्यों कर रहा है, और राजा साबू आँखों पर पट्टी बाँध कर धृतराष्ट्र क्यों बने हुए हैं ? राजा साबू दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में भाषण देने खड़े होते हैं तो रोटरी के नियमों और आदर्शों की बड़ी ऊँची ऊँची बातें करते हैं; लेकिन उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में रोटरी इंटरनेशनल के नियमों व आदर्शों की धज्जियाँ उड़ रही हैं, और वह चुपचाप तमाशा देख रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों का हालाँकि कहना है कि राजा साबू तमाशा देख नहीं रहे हैं, बल्कि इस तमाशे को संचालित कर रहे हैं । कोई भी यह नहीं मानेगा कि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट का गवर्नर बिना उनकी सहमति के रोटरी इंटरनेशनल के नियमों को अनदेखा कर सकता है तथा मनमाने तरीके से फैसले ले सकता है । इसलिए ही, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक ने कॉन्करेंस जुटाने/देने में दिनों का जो घपला किया है, उसमें राजा साबू की सहमति और चालबाजी को देखा/पहचाना जा रहा है । दरअसल, टीके रूबी के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने और घोषित होने के बाद से ही डिस्ट्रिक्ट में जो 'फिल्म' दिखना शुरू हुई है, उसके निर्माता, निर्देशक व स्क्रिप्ट लेखक के रूप में राजा साबू का नाम ही लोगों की जुबान पर है । जिस तरह निर्माता, निर्देशक व स्क्रिप्ट लेखक हीरो के सामने तरह तरह की मुश्किलें खड़ी करके और तरह तरह के सस्पेंस पैदा करके फिल्म को आगे बढ़ाते हैं, वैसे ही राजा साबू 'डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वही जो राजा साबू मन भाए' शीर्षक से डिस्ट्रिक्ट में चल रही फिल्म को आगे बढ़ा रहे हैं । 
राजा साबू के नजदीकियों का कहना है कि टीके रूबी को 'परास्त' करने के लिए राजा साबू ने दोहरी रणनीति अपनाई है - एक तरफ तो टीके रूबी को चुनावी दलदल में फँसाने की तैयारी है, और दूसरी तरफ रोटरी इंटरनेशनल की तीन सदस्यीय कमेटी के फैसले को तीन हजार डॉलर फीस के साथ रोटरी इंटरनेशनल की और बड़ी अदालत में चेलैंज करवाने की योजना है । समस्या अभी सिर्फ इन दोनों योजनाओं के क्रियान्वन के लिए डीसी बंसल को राजी करने की है । इन दोनों योजनाओं के क्रियान्वन का 'भार' चूँकि एक अकेले डीसी बंसल को ही 'उठाना' होगा, इसलिए उनका राजी होना बहुत जरूरी है । डीसी बंसल को चुनाव वाले विकल्प के लिए तो राजी माना जा रहा है, लेकिन रोटरी इंटरनेशनल की और बड़ी अदालत में मामले को ले जाने को लेकर वह अभी संशय में बताये जा रहे हैं । जिन लोगों को डीसी बंसल के नजदीकियों व समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जाता है, उनका कहना है कि रोटरी इंटरनेशनल में राजा साबू जब अभी अपना मनचाहा फैसला नहीं करवा सके, तो आगे की क्या गारंटी है और इस चक्कर में डीसी बंसल के तीन हजार डॉलर नाहक ही खर्च करवा देंगे । इनका यह भी कहना है कि राजा साबू को अब पर्दादारी छोड़ कर खुल कर सामने आ जाना चाहिए - उन्हें इस सच्चाई को स्वीकार कर लेना चाहिए कि पर्दा अब बचा नहीं रह गया है, वह अब पूरी तरह हट चुका है; और पर्दा जब हट ही चुका है तो उसके भ्रम में क्या और क्यों रहना ? इनका कहना है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स यदि खुल कर चुनाव में उत्तर आएँ, तो मनचाहा नतीजा पा सकते हैं । इनकी शिकायत है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स आधे-अधूरे तरीके से और छिप/बच/डर कर काम करते हैं - जिस कारण 'पकड़े' भी जाते हैं और बदनाम भी होते हैं, लेकिन काम भी नहीं बनता । 
मजे की बात यह है कि राजा साबू व उनके 'गिरोह' के गवर्नर्स तथा डीसी बंसल के समर्थकों के बीच अगली कार्रवाई को लेकर मतभेद हैं - राजा साबू व उनके 'गिरोह' के गवर्नर्स का मानना है कि टीके रूबी से चुनाव जीतना डीसी बंसल के लिए मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव होगा; और इसलिए डीसी बंसल को रोटरी इंटरनेशनल में तीन हजार डॉलर फीस वाली शिकायत वाला रूट 'पकड़ना' चाहिए । लेकिन डीसी बंसल के नजदीकियों व समर्थकों को लगता है कि रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करके कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि इस समय वहाँ राजा साबू के विरोधियों का पलड़ा भारी है; टीके रूबी की शिकायत पर उनके पक्ष में आए फैसले से यह साबित भी हो गया है; इसलिए चुनाव वाला 'रास्ता' ज्यादा मौजूँ है । डीसी बंसल के नजदीकियों व समर्थकों का मानना और कहना है कि राजा साबू व दूसरे गवर्नर्स यदि पूरे मन से तथा खुल कर साथ दें तो डीसी बंसल निश्चित रूप से चुनाव जीत जायेंगे । डीसी बंसल के नजदीकी व समर्थक एक गंभीर तर्क यह भी दे रहे हैं कि राजा साबू व दूसरे गवर्नर्स को यदि डीसी बंसल की जीत का भरोसा नहीं है, तो फिर वह उन्हें चुनावी रास्ते पर धकेल क्यों रहे हैं ? और क्यों नहीं अपना सारा ध्यान व एनर्जी रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करने/करवाने वाले विकल्प पर लगाते हैं ? राजा साबू और उनके 'साथी' गवर्नर्स किंतु जिस तरह डीसी बंसल पर दोनों 'रास्तों' पर चलने के लिए दबाव बना रहे हैं, इससे डीसी बंसल के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोगों को लग रहा है कि यह नेता लोग सिर्फ अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं, डिस्ट्रिक्ट में अपनी अहमियत दिखाने/जताने के लिए वह 'फ्लॉप' साबित हो चुकी फिल्म को जबरदस्ती चलाते/दिखाने का प्रयास कर रहे हैं और इसके लिए डीसी बंसल को इस्तेमाल कर रहे हैं । राजा साबू व उनके 'गिरोह' के पूर्व गवर्नर्स तथा डीसी बंसल के समर्थकों के बीच किस तरह की रजामंदी होती है, इस पर आगे का घटना क्रम निर्भर करेगा । 

Monday, June 29, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट थैंक्सगिविंग कार्यक्रम में अपने क्लब के सदस्यों की अनुपस्थिति से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी के अभियान को जो तगड़ा झटका लगा है, उसके चलते व्यक्तित्व तथा लीडरशिप क्वालिटी के मामले में दूसरे उम्मीदवार रवि दयाल को उनपर बढ़त बनाते देखा जाने लगा है

नई दिल्ली । विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट 3010 के थैंक्सगिविंग कार्यक्रम में लोगों के बीच उस समय बड़ी किरकिरी का सामना करना पड़ा, जब किन्हीं किन्हीं लोगों ने उनसे पूछा कि - क्या बात है, यहाँ आपके क्लब का कोई और सदस्य नहीं दिख रहा है ? विनय भाटिया के लिए तब और मुसीबत खड़ी हुई जब फरीदाबाद के लोगों ने भी उनसे यह सवाल किया । फरीदाबाद के लोगों के यह पूछने में ऐसा लग रहा था, जैसे कि वह विनय भाटिया की फिरकी ले रहे हैं । विनय भाटिया के लिए लोगों के इस सवाल का जबाव देना मुश्किल तो हुआ ही, इस सवाल से बचने के लिए उन्हें लोगों से मुँह तक चुराना पड़ा । विनय भाटिया की तरफ से तो उक्त सवाल का कोई जबाव किसी को सुनने को नहीं मिला, किंतु क्लब के सदस्यों से बाद में कुछेक लोगों की जो बात हुई तो किसी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना पर दोष मढ़ा कि उन्होंने 'ठीक' से निमंत्रित ही नहीं किया; किसी ने क्लब के अध्यक्ष अनिल शर्मा को जिम्मेदार ठहराया कि उन्होंने न तो खुद कार्यक्रम में जाने में दिलचस्पी दिखाई और न दूसरों को ही प्रेरित किया; कई सदस्यों ने लेकिन इस स्थिति के लिए विनय भाटिया को दोष दिया - उनका कहना रहा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार होने के नाते विनय भाटिया की यह 'जरूरत' बनती है कि रोटेरियंस के बीच उनके क्लब के सदस्यों की सक्रियता व संलग्नता 'नजर' आये, और इसके लिए उन्हें ही प्रयास करने होंगे । इस कहने के पक्ष में उनका तर्क रहा कि डिस्ट्रिक्ट के एक बड़े फंक्शन में क्लब के लोगों की अनुपस्थिति के कारण लोगों के 'निशाने' पर तो वह आये न ? किसी ने भी संजय खन्ना से तो नहीं ही पूछा कि विनय भाटिया के क्लब के सदस्य यहाँ क्यों नहीं दिख रहे हैं; या अनिल शर्मा का तो कुछ नहीं गया । लोगों के सवालों के सामने शर्मिंदगी तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार होने के नाते विनय भाटिया को ही उठानी पड़ी ।
विनय भाटिया को यह शर्मिंदगी इसलिए भी उठानी पड़ी, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के एक दूसरे उम्मीदवार रवि दयाल के क्लब के सदस्यों की कार्यक्रम में अच्छी भागीदारी और संलग्नता दिखाई दे रही थी । वैसे इस बात पर शायद ही कोई ध्यान देता - किसी भी कार्यक्रम में किसी को क्या पड़ी है कि वह इस बात का हिसाब लगाता फिरे कि किस क्लब से कौन आया है और कितने लोग आये हैं; लेकिन चूँकि विनय भाटिया के क्लब के सदस्यों की अनुपस्थिति लोगों की 'पकड़' में आ गई और वह चर्चा का विषय बन गई, तो फिर रवि दयाल के क्लब के लोगों को भी 'खोजा' जाने लगा और नोट किया गया कि रवि दयाल के क्लब के सदस्यों ने कार्यक्रम में अच्छी दिलचस्पी ली हुई है । फिर लोगों के बीच की चर्चाओं में डिस्ट्रिक्ट के हाल-फिलहाल के कुछेक कार्यक्रमों को भी याद किया गया और तुलनात्मक रूप से विनय भाटिया के क्लब की तुलना में रवि दयाल के क्लब के सदस्यों को ज्यादा सक्रिय, उत्साहित और संलग्न पाया गया । इससे तुरत-फुरत यह निष्कर्ष निकाला गया कि रवि दयाल लीडरशिप क्वालिटी के मामले में विनय भाटिया पर बहुत भारी पड़ते हैं । मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव अभियान में शोर ज्यादा विनय भाटिया का सुना जा रहा है; और उनके अभियान को रवि दयाल के अभियान के मुकाबले ज्यादा बढ़त लिए देखा जाता रहा है । लेकिन डिस्ट्रिक्ट थैंक्सगिविंग कार्यक्रम में विनय भाटिया के क्लब के सदस्यों की अनुपस्थिति ने उनके अभियान को लेकर बन रहे सकारात्मक परसेप्शन को तगड़ा झटका दिया है, और लोग बात करने लगे हैं कि विनय भाटिया के अभियान में शोर सिर्फ शोर भर है, और उसके पीछे ठोस कुछ नहीं है । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को भी लग रहा है कि विनय भाटिया कुछ 'सीख' नहीं रहे हैं और 'जरूरतों' को समझ नहीं रहे हैं - और इसलिए 'व्यक्तित्व' तथा लीडरशिप क्वालिटी के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक दूसरे उम्मीदवार रवि दयाल से पिछड़ते जा रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट थैंक्सगिविंग कार्यक्रम में विनय भाटिया के क्लब के सदस्यों की अनुपस्थिति ने विनय भाटिया की उम्मीदवारी के अभियान को जो चोट पहुँचाई है, उसके लिए विनय भाटिया को ही जिम्मेदार माना/ठहराया जा रहा है । क्लब के, फरीदाबाद के और डिस्ट्रिक्ट के लोगों का कहना है कि विनय भाटिया यदि थोड़ी सी भी दिलचस्पी लेते, तो डिस्ट्रिक्ट थैंक्सगिविंग कार्यक्रम में उन्हें लोगों के बीच शर्मिंदा न होना पड़ता । उल्लेखनीय है कि उनका क्लब एक अच्छे क्लब के रूप में पहचाना जाता है । पिछले रोटरी वर्ष में संदीप गोयल की अध्यक्षता में क्लब को इलीट क्लब अवार्ड मिला था; इस वर्ष अनिल शर्मा की अध्यक्षता में प्लेटिनम क्लब अवार्ड मिला है । पिछले रोटरी वर्ष में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल से अवार्ड लेने के लिए संदीप गोयल के नेतृत्व में क्लब के कई लोग कार्यक्रम में पहुँचे थे; इस वर्ष लेकिन पिछले वर्ष जैसा माहौल नहीं बन पाया । हर किसी का मानना और कहना है कि पिछले वर्ष जैसे माहौल की इस वर्ष ज्यादा 'जरूरत' थी, लेकिन यह जरूरत जिन विनय भाटिया को थी - उन विनय भाटिया ने डिस्ट्रिक्ट थैंक्सगिविंग कार्यक्रम में पिछले वर्ष जैसा माहौल बनाने की कोई कोशिश ही नहीं की । इससे भी ज्यादा गंभीर बात यह है कि क्लब के कुछेक लोगों ने विभिन्न मौकों पर विनय भाटिया की उम्मीदवारी के अभियान से जुड़ने को लेकर जब उत्सुकता दिखाई, तो विनय भाटिया की तरफ से उन्हें कोई उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया नहीं मिली । इस बात को डिस्ट्रिक्ट थैंक्सगिविंग कार्यक्रम में क्लब के सदस्यों की अनुपस्थिति से जोड़ कर देखें तो लगता है कि - और यह बात उनके क्लब के कुछेक लोग कहने भी लगे हैं कि - अपने चुनाव अभियान में विनय भाटिया को शायद अपने क्लब के सदस्यों की मदद चाहिए ही नहीं; और वह बस पप्पुजीत सिंह सरना, सुशील खुराना और दीपक तलवार की मदद से ही गवर्नर बन जाना चाहते हैं ।
विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव अभियान में अपने क्लब के सदस्यों की मदद चाहिए या नहीं, यह तो वही जानें - लेकिन उनकी क्लब के सदस्यों के साथ बढ़ती 'दिखती' दूरी और डिस्ट्रिक्ट के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में उनके क्लब के सदस्यों की अनुपस्थिति से उनके बारे में जो नकारात्मक परसेप्शन बन रहा है - उसे, उनकी उम्मीदवारी के समर्थक व शुभचिंतक भी उनकी उम्मीदवारी के लिए घातक मान रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट थैंक्सगिविंग कार्यक्रम में अपने क्लब के सदस्यों की अनुपस्थिति के चलते विनय भाटिया की उम्मीदवारी के अभियान को जो तगड़ा झटका लगा है, उसे सँभालने के लिए विनय भाटिया आगे क्या कदम उठाते हैं - उठाते भी हैं या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा । 

Sunday, June 28, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में गाजियाबाद के वरिष्ठ रोटेरियंस योगेश गर्ग तक के साथ धोखा और चालबाजी करने वाले जेके गौड़ का रवैया यदि अशोक गर्ग के प्रति भी बदला बदला सा है, तो इसमें आश्चर्य की भला क्या बात है ?

नई दिल्ली । जेके गौड़ के बदले-बदले से रवैये ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार अशोक गर्ग को खासा हैरान भी किया है, और बुरी तरह परेशान भी । अशोक गर्ग के नजदीकियों के अनुसार, अशोक गर्ग उन दिनों को याद करके अपनी हैरानी व परेशानी को और बढ़ाते हुए भी दिखते हैं, जब जेके गौड़ खुद उम्मीदवार थे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को कामयाब बनाने के लिए जेके गौड़ उनकी कैसे कैसे और कैसी कैसी खुशामद किया करते थे, उसे याद करते हुए - और जेके गौड़ के अब के व्यवहार के साथ उसकी तुलना करते हुए अशोक गर्ग अचंभा करते हैं कि कोई व्यक्ति इतना भी बदल सकता है क्या ? पिछले रोटरी वर्ष में भी जेके गौड़ के साथ अशोक गर्ग के इतने घनिष्ट संबंध थे कि जेके गौड़ के कहने पर अशोक गर्ग ने अपने क्लब के वरिष्ठ सदस्य संजीव रस्तोगी को क्लब से ही निकाल/निकलवा दिया था । नजदीकियों के अनुसार, अशोक गर्ग को अब लगता है कि जेके गौड़ ने पिछले वर्षों में उन्हें तरह-तरह से इस्तेमाल किया, और अब जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में उन्हें जेके गौड़ से मदद की उम्मीद है, तो जेके गौड़ उनके साथ ऐसे पेश आते हैं कि जैसे उन्हें पहचानते ही नहीं हैं । अशोक गर्ग को चूँकि दूसरे रोटेरियंस से भी यह सुनने को मिलता है कि जेके गौड़ बहुत बदल गए हैं, अब वह पहले जैसे नहीं रह गए हैं और घमंडी व बदतमीज तक हो गए हैं, तो अशोक गर्ग को थोड़ी सांत्वना तो मिलती है किंतु उनका अचंभा खत्म नहीं होता है । गाजियाबाद के वरिष्ठ रोटेरियंस तक से की जा रही जेके गौड़ की बदतमीजियों की खबरें दरअसल अशोक गर्ग के अचंभे को खत्म नहीं होने दे रही हैं । 
गाजियाबाद के वरिष्ठ रोटेरियंस को जेके गौड़ की ताजा बदतमीजी का शिकार उस समय होना पड़ा, जब 30 जून को आयोजित हो रहे अपने 'संभव - टू मेक पॉसिबल' कार्यक्रम की तैयारियों के सिलसिले में उन्होंने अपनी तथाकथित कोर टीम की मीटिंग बुलाई । इस मीटिंग में उपस्थित लोगों से विचार-विमर्श करने व सलाह लेने की बजाए जेके गौड़ ने अपने फरमान सुनाने पर ही ज्यादा ध्यान दिया । हद तब हुई जब जेके गौड़ ने ऐलान किया कि 30 जून के उक्त कार्यक्रम के लिए वह 25 जून तक ही रजिस्ट्रेशन स्वीकार करेंगे । मीटिंग में मौजूद गाजियाबाद के वरिष्ठ रोटेरियंस राजीव वशिष्ठ, उमेश चोपड़ा, विनोद चावला आदि ने जेके गौड़ को समझाने का प्रयास किया कि अपने डिस्ट्रिक्ट की रोटरी में लोग ऐन कार्यक्रम के दिन तक रजिस्ट्रेशन करवाते हैं, इसलिए इस तरह का फैसला व्यवहारिक नहीं होगा - और यह फैसला लागू नहीं किया जाना चाहिए । जेके गौड़ ने लेकिन इनकी एक न सुनी और 25 जून तक रजिस्ट्रेशन करवाने के फैसले को लागू करने पर अड़े रहे । मीटिंग में मौजूद किसी भी व्यक्ति ने उनके इस फैसले पर सहमति व्यक्त नहीं की, लेकिन जेके गौड़ फिर भी 'अपने' फैसले को लागू करने की जिद पूरी करके ही माने । मीटिंग में मौजूद लोगों के बीच नाराजगी भरे स्वर भी उभरे कि जेके गौड़ को जब किसी की सुननी/माननी ही नहीं है, तो फिर मीटिंग बुलाने का नाटक क्यों करता है ? इस किस्से में मजे की बात यह रही कि मीटिंग में जेके गौड़ को जो बात समझ में नहीं आ रही थी, और जिसे मानने के लिए वह हरगिज तैयार नहीं हुए - वह बात जेके गौड़ को तीन दिन बाद लेकिन समझ में आ गई; जब उन्होंने उक्त कार्यक्रम के लिए 25 जून तक रजिस्ट्रेशन कराने की शर्त को हटा लिया । इस पर कुछेक लोगों ने चुटकी भी ली कि जेके गौड़ की अक्ल का ताला धीरे-धीरे खुलता है क्या, जो उन्हें बात देर से समझ में आती है । 
इस मीटिंग की आड़ में जेके गौड़ ने गाजियाबाद के एक अन्य वरिष्ठ रोटेरियन योगेश गर्ग के साथ एक दूसरी किस्म की चाल खेली । इस मीटिंग में जेके गौड़ ने योगेश गर्ग को भी आमंत्रित किया । योगेश गर्ग ने मीटिंग में आने के लिए हामी भी भर दी - लेकिन ऐन मौके पर उन्हें पता चला कि जेके गौड़ ने इस मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे किसी संभावित उम्मीदवार को तो आमंत्रित किया ही नहीं है; संभावित उम्मीदवारों में एक अकेले उन्हीं को जेके गौड़ ने आमंत्रित किया है । यह जानकारी देने वाले ने योगेश गर्ग को यह जानकारी और दी कि उक्त मीटिंग में उनकी उपस्थिति को बना/दिखा कर जेके गौड़ ने उनकी संभावित उम्मीदवारी की राह के लिए रोड़ा तैयार करने की चाल चली है । समय रहते जेके गौड़ द्वारा रची गई साजिश की पोल खुल जाने से योगेश गर्ग ने उक्त मीटिंग में जाना तो स्थगित कर दिया, किंतु योगेश गर्ग को यह जानकर तगड़ा झटका लगा कि जेके गौड़ उनके साथ भी इस तरह की धोखाधड़ी कर सकता है ? जेके गौड़ की इस चालबाजी से सावधान होकर ही योगेश गर्ग ने जेके गौड़ का कामकाज देख रहे अशोक अग्रवाल को फोन करके एक बार फिर याद दिलाया कि डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में उनका नाम किसी भी रूप में नहीं छपना चाहिए । योगेश गर्ग हालाँकि यह बात जेके गौड़ व अशोक अग्रवाल को पहले बता चुके थे; किंतु जेके गौड़ द्वारा रची गई चालबाजी के बेनकाब होने के बाद बाद योगेश गर्ग को डर हुआ कि जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में नाम छापने की हरकत कर सकता है, इसलिए उन्हें अशोक अग्रवाल को वह बात दोबारा से याद दिलाना जरूरी लगा ।
जेके गौड़ ने योगेश गर्ग के साथ जो चालबाजी खेली, उसके बारे में जानकर अशोक गर्ग की अपने प्रति जेके गौड़ के बदले रवैये से पैदा हुई निराशा शायद कुछ कम हुई होगी । उन्हें लगा होगा कि जेके गौड़ जब गाजियाबाद के योगेश गर्ग जैसे वरिष्ठ रोटेरियन को धोखा देने का काम कर सकते हैं और उनके साथ चालबाजी खेल सकते हैं, तो फिर उनके साथ अपना रवैया क्यों नहीं बदल सकते ? अशोक गर्ग के प्रति जेके गौड़ के बदले रवैये के पीछे हालाँकि मुकेश अरनेजा वाले ऐंगल को भी देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि अशोक गर्ग को मुकेश अरनेजा के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । अशोक गर्ग के समर्थकों व शुभचिंतकों का कहना है कि जेके गौड़ ने आजकल अपना 'आका' चूँकि रमेश अग्रवाल को बनाया हुआ है, और रमेश अग्रवाल तथा मुकेश अरनेजा के बीच छत्तीस का संबंध बना हुआ है - इसलिए जेके गौड़ को भी मुकेश अरनेजा से दूरी बनानी/दिखानी पड़ रही है; और इस चक्कर में अशोक गर्ग को 'पिसना' पड़ रहा है । कुछेक अन्य लोगों का कहना लेकिन यह भी है कि खेमेबाजी के कारण अशोक गर्ग को जेके गौड़ से जो चोट पड़ेगी, वह इतनी बुरी नहीं लगती; जितनी चोट अशोक गर्ग को जेके गौड़ के बदलते व्यवहार और उनके घमंडी हो जाने के कारण लग रही है । अशोक गर्ग के समर्थकों का कहना है कि जेके गौड़ यदि मुकेश अरनेजा के उम्मीदवार होने के नाते भी अशोक गर्ग के साथ सौतेला व्यवहार कर रहे हैं, तो यह बात भी तो जेके गौड़ के अवसरवादी होने का सुबूत ही है - जेके गौड़ को क्या यह बात याद नहीं है कि रोटरी में आज वह जहाँ हैं, वहाँ तक उन्हें पहुँचाने में मुकेश अरनेजा का कितना और कैसा सहयोग रहा है ? अशोक गर्ग ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का अभियान जब शुरू किया था, तब उन्हें बड़ा भरोसा था कि मुकेश अरनेजा के उम्मीदवार होने का जो लाभ उन्हें मिलेगा, उसके साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ की भी मदद उन्हें मिलेगी । यह भरोसा उन्हें इसलिए भी था, क्योंकि जेके गौड़ की उम्मीदवारी के समय उन्होंने जेके गौड़ की हर तरह से मदद की थी । अशोक गर्ग को यह देख/जान कर लेकिन खासा झटका लगा है कि जेके गौड़ पूरी तरह अहसानफरामोश निकले । जेके गौड़ की इस अहसानफ़रामोशी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में अशोक गर्ग की चुनौती को बढ़ा दिया है ।

Saturday, June 27, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में क्लब से निकाले गए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मुकेश अरनेजा ने क्लब में अपनी पुनर्वापसी के लिए अपने द्वारा प्रवर्तित कंपनी से अपने ही भाई-भतीजों द्वारा बेइज्जत तरीके से निकाले जाने का रोना रोकर मौका बनाया

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा ने क्लब से अपने को निकाले जाने के फैसले को बदलवाने के लिए अपनी ही कंपनी से अपने को निकाले जाने के फैसले का जैसा इस्तेमाल किया है, वह अपनी तरह का एक अनोखा उदाहरण तो है ही - साथ ही मुकेश अरनेजा की घटिया सोच व व्यवहार का एक और वाकया भी सामने लाता है । उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा पिछले दिनों जब अपने क्लब से निकाले जाने की फजीहत झेल रहे थे, लगभग उन्हीं दिनों वह अपनी कंपनी से अपने निष्कासन का रोना भी रो रहे थे - और इसके लिए अपने रोटेरियन दोस्तों की सहानुभूति जुटाने का प्रयास कर रहे थे । इस प्रयास के तहत उन्होंने अपने रोटेरियन दोस्तों को दो पृष्ठों की एक चिट्ठी लिखी थी । हालाँकि जिन रोटेरियंस को उनकी यह चिट्ठी मिली, उन्हें आश्चर्य भी हुआ कि अपनी कंपनी के झगड़े और कंपनी से अपने निकाले जाने के मामले को वह रोटरी में क्यों ला रहे हैं - किंतु फिर उन्हें ध्यान आया कि मुकेश अरनेजा तो कुछ भी कर गुजरने की 'खूबी' रखते हैं, इसलिए इस बात पर उन्होंने ज्यादा माथापच्ची नहीं की । इंफेक्ट मुकेश अरनेजा की उस चिट्ठी पर रोटेरियंस के बीच कोई खास सुगबुगाहट नहीं सुनी/देखी गई । कुछेक रोटेरियंस ने उक्त चिट्ठी 'रचनात्मक संकल्प' के पते पर भेजने का काम जरूर किया । अपनी चिट्ठी में मुकेश अरनेजा ने अपने को कंपनी से निकाले जाने की बात को 'पूरी तरह झूठी और निराधार' बताया; उन्होंने इस बात को भी 'झूठी और निराधार' बताया कि कंपनी के डायरेक्टर्स ने उन्हें चेतावनी दी है कि वह कहीं भी अपने परिचय में अपने आप को कंपनी से किसी भी प्रकार संबद्ध नहीं बतायेंगे/दिखायेंगे । अपनी चिट्ठी में मुकेश अरनेजा ने दावा किया कि कंपनी का प्रमोटर व शेयरहोल्डर होने के नाते कंपनी से उनके संबंध को न तो कोई खत्म कर सकता है, न उसके प्रबंधन से उन्हें कोई हटा सकता है, और न कंपनी के फैसलों को प्रभावित करने से रोक सकता है ।
मुकेश अरनेजा की इस चिट्ठी का किसी ने भी कोई खास संज्ञान नहीं लिया, क्योंकि रोटेरियंस को यह चिट्ठी लिखने/भेजने का मुकेश अरनेजा का मकसद किसी को भी समझ में नहीं आया । क्लब से निकाले जाने के बाद मुकेश अरनेजा ने क्लब में पुनर्वापसी के लिए जो जो प्रयास किए, उनमें अपनी ही कंपनी से अपने को निकाले जाने के मामले का उन्होंने जिस तरह सहारा लिया - तब लोगों को उस चिट्ठी का मामला समझ में आया । लोगों को खुद से यह समझ में नहीं आया - मुकेश अरनेजा ने उन्हें समझाया, तब उन्हें समझ में आया । दरअसल क्लब से निकाले जाने के फैसले को निरस्त कराने के लिए मुकेश अरनेजा ने माफी माँगने वाला अपना पुराना फार्मूला इस्तेमाल किया । डिस्ट्रिक्ट व क्लब के कुछेक प्रमुख लोगों के सामने उन्होंने अपना दुखड़ा रोया - दुखड़ा रोने के लिए इस बार उनके सामने कंपनी से निकाले जाने का मामला भी था । कंपनी से निकाले जाने की जो चिट्ठी उन्हें कंपनी की तरफ से मिली थी, उसे लोगों को दिखा दिखा कर उन्होंने लोगों की सहानुभूति जुटाई और उनके निष्कासन वाले क्लब के फैसले को वापस कराने के लिए माहौल बनाया । लोगों के बीच उन्होंने रोना रोया कि कंपनी से तो मैं निकाल ही दिया गया हूँ, अब यदि रोटरी से भी निकाल दिया गया तो फिर मैं करूँगा क्या ? जिन लोगों को मुकेश अरनेजा ने दोनों चिट्ठियाँ उपलब्ध करवाईं, उनमें से कुछेक ने उनसे पूछा भी कि कंपनी से निकाले जाने की बात जब सच है, तो कंपनी से निकाले जाने की बात को 'झूठी और निराधार' बताने वाली चिट्ठी उन्होंने क्यों लिखी और भेजी ? मुकेश अरनेजा का इस पर कहना रहा कि उस चिट्ठी के जरिये उन्होंने दरअसल क्लब के लोगों पर दबाव बनाने का प्रयास किया था, जिससे की क्लब से उन्हें निकाले जाने के फैसले को वह टलवा सकें । किंतु उसमें असफल होने के बाद, क्लब में पुनर्वापसी के लिए उन्हें कंपनी से निकाले जाने वाली चिट्ठी को सामने लाने के लिए मजबूर होना पड़ा है । 
मजे की बात यह रही कि कंपनी से अपने को निकाले जाने की जिस चिट्ठी की बदौलत मुकेश अरनेजा ने क्लब में अपनी वापसी का मौका बनाया, उसकी लैंग्वेज ने उन्हें बुरी तरह व्यथित किया हुआ था और उन्होंने अपने नजदीकियों को बताया था कि उससे उन्होंने अपने आप को बहुत ही अपमानित महसूस किया था । कंपनी से मिली चिट्ठी में उन्हें कंपनी के सभी पेपर्स, डॉक्युमेंट्स तथा अन्य संबंधित चीजें सौंपने को कहा गया है; और हिदायत दी गई है कि वह किसी के भी सामने खुद को कंपनी के डायरेक्टर के रूप में प्रस्तुत न करें और कंपनी के प्रबंधन से जुड़े होने का वास्ता न दें । मुकेश अरनेजा को स्पष्ट शब्दों में बता दिया गया कि यदि वह कंपनी का नाम, लोगो व डॉक्युमेंट्स इस्तेमाल करते हुए पाए गए तो कंपनी उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगी । मुकेश अरनेजा के नजदीकियों का कहना है कि इस लैंग्वेज के साथ कंपनी से निकाले जाने की सूचना ने मुकेश अरनेजा को खासा परेशान और निराश किया था । कंपनी से इस बेइज्जत तरीके से निकाले जाने की कार्रवाई ने साबित किया कि मुकेश अरनेजा अपने कामकाज और अपने परिवार में भी पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं । उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा जिस कंपनी समूह के प्रवर्तक रहे हैं, उसमें मोटे तौर पर उनके भाई-भतीजों की ही संलग्नता रही है; लेकिन मुकेश अरनेजा ने अपनी हरकतों व कारस्तानियों से उन्हें तथा कंपनी के दूसरे डायरेक्टर्स को इतना पकाया कि उन्होंने मुकेश अरनेजा को कंपनी से निकाल देने में ही अपनी खैरियत समझी/पहचानी । 
अपनी हरकतों व कारस्तानियों के कारण खुद अपने ही द्वारा प्रवर्तित कंपनी से बाहर कर दिए गए मुकेश अरनेजा के लिए यह बहुत ही शर्म की और निराश करने वाली बात होनी चाहिए थी । उनके नजदीकियों के अनुसार, उनके लिए यह शर्म की और निराश करने वाली बात थी भी - ऐसा मुकेश अरनेजा ने खुद ही उन्हें बताया था । लेकिन जैसे ही मुकेश अरनेजा को लगा कि कंपनी से निकाले जाने के मामले का वह क्लब से निकाले जाने वाले मामले में फायदा उठा सकते हैं, अपनी शर्म और निराशा भूल कर उन्होंने कंपनी से निष्कासन की मिली चिट्ठी को सार्वजनिक कर दिया । रोटरी में मुकेश अरनेजा की जो फजीहत है, उसे तो रोटरी के लोग जानते ही हैं - मुकेश अरनेजा ने लेकिन खुद से ही लोगों को यह भी बता दिया है कि उनकी अपने परिवार और अपनी कंपनी में भी रोटरी जैसी ही स्थिति है; और वहाँ भी लोग उनकी हरकतों व कारस्तानियों से तंग आकर उनसे छुटकारा पाने का फैसला करते हैं । मुकेश अरनेजा ने कंपनी से निकाले जाने के फैसले को जिस तरह से क्लब से निकाले जाने के फैसले को बदलवाने में इस्तेमाल किया है, उससे उनकी घटिया सोच व व्यवहार का एक और उदाहरण ही देखने को मिला है । 

Friday, June 26, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में हर किसी को हैरान करते हुए रोटरी इंटरनेशनल ने टीके रूबी द्वारा की गई चुनावी शिकायत को सही पाया और टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अधिकृत उम्मीदवार का दर्जा देने का फैसला सुनाया

चंडीगढ़ । राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुने गए अधिकृत उम्मीदवार टीके रूबी को षड्यंत्रपूर्वक हटाने की कोशिश को रोटरी इंटरनेशनल ने तगड़ा झटका दिया और टीके रूबी को अधिकृत उम्मीदवार मानते हुए आगे की चुनावी प्रक्रिया को पूरा करने का फैसला सुनाया है । जिन लोगों को उक्त षड्यंत्र से जुड़े तथ्यों की पूरी जानकारी है, उन्हें तो इस फैसले पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ है; लेकिन जो लोग इस मामले को 'राजनीतिक' चश्मे से देख रहे थे, उन्हें इस फैसले ने चौंकाया है । दरअसल हर कोई मान रहा था कि टीके रूबी के साथ जो षड्यंत्र हुआ, उसके वास्तविक सूत्रधार राजेंद्र उर्फ राजा साबू हैं; और चूँकि राजा साबू नहीं चाहते हैं कि टीके रूबी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनें - इसलिए रोटरी में तो टीके रूबी को किसी भी कीमत पर 'न्याय' नहीं ही मिलेगा । हर किसी को विश्वास था कि टीके रूबी की तरफ से रोटरी इंटरनेशनल में की गई शिकायत को रोटरी में खासी धमक रखने वाले राजा साबू निरस्त करवा देंगे । किंतु आज सुबह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय को रोटरी इंटरनेशनल से जो चिट्ठी मिली तो चिट्ठी के मजमून ने जैसे सभी के होश उड़ा दिए । जो लोग यह मानते भी थे कि टीके रूबी का पक्ष बहुत मजबूत है, और जो तथ्य हैं उन्हें देखते हुए टीके रूबी के पक्ष में ही फैसला होना चाहिए - उन्हें भी यह जानकर हैरानी हुई कि उनका मानना सच साबित हुआ है । 
यह हैरानी दरअसल इसलिए ही हुई क्योंकि हर कोई मान रहा था कि राजा साबू कुछ भी करेंगे और टीके रूबी के पक्ष में फैसला होने ही नहीं देंगे । लेकिन अब जब टीके रूबी के पक्ष में फैसला आ गया है, तो लोग दो खेमों में बँटे नजर आ रहे हैं - कुछेक लोगों को लगता है कि राजा साबू की चली नहीं और रोटरी इंटरनेशनल में उनके विरोधियों ने उन्हें नीचा दिखाने के लिए टीके रूबी की शिकायत को निरस्त करने/करवाने की उनकी सिफारिश को सफल नहीं होने दिया; जबकि अन्य कई एक लोगों को लगता है कि राजा साबू ने इस मामले में कोई हस्तक्षेप किया ही नहीं, और जो होता हो उसे हो जाने दिया । राजा साबू के नजदीकियों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर इस वर्ष जो राजनीति हुई, राजा साबू उससे बहुत दुखी और परेशान थे; तथा चाहते थे कि जल्दी से जल्दी इस मामले का पटापेक्ष हो । असल में, टीके रूबी के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने को निरस्त करने को लेकर जो तमाशा हो रहा था, उसमें - राजा साबू की कोई भूमिका थी या नहीं - फजीहत लेकिन राजा साबू की ही हो रही थी । राजा साबू ने वर्षों की अपनी सक्रियता और संलग्नता से रोटरी में अपनी जो साख व प्रतिष्ठा बनाई थी, वह इस मामले के चलते धूल-धूसरित हो रही थी । राजा साबू का डिस्ट्रिक्ट रोटरी के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के बीच एक आदर्श व उदाहरण बना हुआ था, और इसके चलते पायलट प्रोजेक्ट से बाहर बना हुआ था तथा एक विशेष हैसियत पाया हुआ था - लेकिन इस मामले के चलते पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट की उक्त विशेष हैसियत छिन गई थी और वह पायलट प्रोजेक्ट में आ गया था । 
इन स्थितियों ने राजा साबू को खिन्न किया हुआ था और वह अपने डिस्ट्रिक्ट के उन पूर्व गवर्नर्स से नाराज बताये जा रहे थे, जिनके कारण बात यहाँ तक आ पहुँची थी । राजा साबू के नजदीकियों का कहना है कि स्थितियों ने जो टर्न लिया था, उसमें राजा साबू खिन्न और नाराज जरूर थे - लेकिन असहाय भी थे । उन्होंने भी समझ लिया था कि टीके रूबी के खिलाफ षड्यंत्र करने वाले पूर्व गवर्नर्स पर उन्होंने यदि शुरू में ही नकेल कसी होती, तो बात इतनी नहीं बिगड़ती । बुरी बात यह हुई कि टीके रूबी के खिलाफ षड्यंत्र करने वाले पूर्व गवर्नर्स ने मामले को अपने पक्ष में करने के लिए जो भी चालें चलीं, वह सब उलटी पड़ीं तथा मामला बद से बदतर ही होता गया । षड्यंत्रकारी पूर्व गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए । हालात इस कदर बिगड़ गए कि राजा साबू को मसूरी में आयोजित हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट डेविड हिल्टन के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनिंग असेम्बली कार्यक्रम में लोगों के सवालों का सामना करने से बचने के लिए अपना जाना ही स्थगित करना पड़ा । लोगों के बीच चर्चा थी ही कि राजा साबू ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए टीके रूबी की शिकायत को निरस्त करवा भी दिया, तो टीके रूबी तीन हजार डॉलर फीस वाली शिकायत दर्ज करवायेंगे । इस तरह की बातों से साफ हो गया कि टीके रूबी मामले को आसानी से खत्म नहीं होने देंगे । ऐसे में, जैसा कि राजा साबू के नजदीकियों का कहना है कि राजा साबू को समझ में आ गया कि अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके वह टीके रूबी की शिकायत को निरस्त भले ही करवा दें, लेकिन 'पराजित' उन्हें ही होना है । वह यदि 'जीत' भी गए, तो भी जीतने के बावजूद उनके हिस्से में 'हार' ही आएगी । हिन्दी लेखक सुदर्शन की मशहूर कहानी 'जीत की हार' राजा साबू ने पढ़ी है या नहीं - यह तो नहीं पता, लेकिन जिसने भी पढ़ी होगी, वह समझ रहा होगा कि वर्षों पहले लिखी गई उक्त कहानी राजा साबू की मौजूदा स्थिति पर पूरी तरह फिर बैठती है । 
नजदीकियों के अनुसार, राजा साबू ने समझ लिया कि टीके रूबी से जीती हुई बाजी छीनने के चलते रोटरी में उनकी जो फजीहत हुई है, उसे नियंत्रित करने तथा और आगे न बढ़ने देने का एक ही तरीका है कि वह अपने आप को इस मामले से अलग कर लें और टीके रूबी को न्याय मिलने की राह का अब और रोड़ा न बनें । हालाँकि कुछेक लोग अभी भी टीके रूबी का रास्ता रोकने का जुगाड़ लगाने के फेर में हैं और इसके लिए रोटरी इंटरनेशनल से आई चिट्ठी की लैंग्वेज की अपने तरीके से व्याख्या कर रहे हैं । उन्हें लगता है कि इस चिट्ठी में गोलमोल तरीके से जो लिखा गया है, उसका फायदा उठाते हुए टीके रूबी को जीत से दूर रखा जा सकता है । उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल से आई चिट्ठी में लिखा गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की प्रक्रिया जहाँ तक पूरी हो चुकी है, वह सही है और अब उसके आगे की प्रक्रिया पूरी की जाए । इसका अर्थ हर किसी ने यही निकाला है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक ने 24 फरवरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए टीके रूबी को अधिकृत उम्मीदवार घोषित करते हुए जो परिपत्र निकाला था, उसे मान्य करते हुए रोटरी इंटरनेशनल ने उसके आगे की कार्रवाई करने का निर्देश दिया है । कुछेक लोग लेकिन चिट्ठी की लैंग्वेज में ऐसा कुछ पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे कि टीके रूबी को उनका हक न मिल सके । राजा साबू ने कल चंडीगढ़ में कुछेक पूर्व गवर्नर्स की मीटिंग बुलाई है, जिसमें रोटरी इंटरनेशनल से आए इस फैसले के आधार पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की प्रक्रिया को पूरी करने संबंधी प्रक्रिया पर विचार किया जायेगा । टीके रूबी ने एक बड़ी लड़ाई जीत ली है; उम्मीद की जाती है कि उनकी इस जीत की औपचारिक घोषणा जल्दी ही कर दी जाएगी । 
रोटरी इंटरनेशनल के फैसले को कई लोग टीके रूबी की जीत या राजा साबू - और(या) उनके नजदीकी होने का दावा करने वाले पूर्व गवर्नर्स की हार के रूप में देखने की बजाये रोटरी की जीत के रूप में देख रहे हैं । उन्हें लगता है कि अंत भला तो सब भला ।  

Thursday, June 25, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत हुई दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी ने - राजीव सिंघल की उम्मीदवारी की आड़ में सुनील गुप्ता द्वारा अपने गवर्नर-काल की 'जरूरतों' को पूरा करने के बैठाए हिसाब को बिगाड़ा

मेरठ । दिवाकर अग्रवाल द्वारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत की गई उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद संभालने की तैयारी कर रहे सुनील गुप्ता को भारी मुसीबत में फँसा दिया है । दरअसल सुनील गुप्ता ने अभी पिछले दिनों ही रोटरी क्लब मेरठ साकेत के राजीव सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार 'बनवा' कर अपना गवर्नर-काल 'सुधारने' का जो पक्का इंतजाम किया था - दिवाकर अग्रवाल की प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने लेकिन उनके उस 'इंतजाम' को तो धक्का पहुँचाया ही है, साथ ही उनके सामने अपने गवर्नर-काल को ठीक से चलाने की चुनौती भी पैदा कर दी है । राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के जरिए सुनील गुप्ता ने जो कुछ भी 'पाने' के सपने देखे थे, दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने से उनके वह सारे सपने चकनाचूर हो गए हैं । सुनील गुप्ता के लिए समस्या सिर्फ यही नहीं है, उनके सामने असल समस्या यह आ खड़ी हुई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्हें अपने आपको राजीव सिंघल व दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों के बीच पिसने से बचाना है ।  
सुनील गुप्ता के लिए यह स्थिति इसलिए बनी है क्योंकि एक तरफ तो वह राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के बृजभूषण व योगेश मोहन गुप्ता जैसे घनघोर समर्थकों की 'गिरफ्त' में हैं, और दूसरी तरफ अपने गवर्नर-काल के तमाम कामकाजों को कराने के लिए वह दिवाकर अग्रवाल के नजदीकियों व समर्थकों पर निर्भर हैं । सुनील गुप्ता ने अपने गवर्नर-काल की प्रिंटिंग का सारा काम मुरादाबाद में करवाना तय किया हुआ है, जिसकी जिम्मेदारी उन लोगों के पास है - जिन्हें दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के रणनीतिकारों से लेकर सक्रिय कार्यकर्ताओं के रूप में देखा/पहचाना जाता है । सुनील गुप्ता को दरअसल मेरठ में काम करने के लिए कोई मिला ही नहीं, और इसलिए उन्हें अपना काम करवाने के लिए मुरादाबाद के लोगों का सहारा लेना पड़ा है । अपने गवर्नर-काल के कई कामों के लिए वह मुरादाबाद के लोगों पर निर्भर हैं । सुनील गुप्ता के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि उनका गवर्नर-काल शुरू होते होते डिस्ट्रिक्ट में चुनावी बिसात बिछ गई है, और डिस्ट्रिक्ट एक रोमांचक चुनावी घमासान की तरफ बढ़ता दिख रहा है । जो लोग सुनील गुप्ता की क्षमताओं को जानते हैं, वह मानते और कहते हैं कि चुनावी राजनीति के चक्कर में डिस्ट्रिक्ट में जो खेमेबाजी बन रही है, उससे निपटना और उसमें अपनी गवर्नरी चलाना सुनील गुप्ता के लिए टेढ़ी खीर होगा । 
उल्लेखनीय है कि चुनावी राजनीति का चक्कर मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी के लिए भी कोई कम चुनौतीपूर्ण नहीं था; उनके लिए बल्कि ज्यादा 'काम' था - क्योंकि उन्हें पिछले वर्ष के चुनावी नतीजों से भी निपटना था और अपने कार्यकाल की स्थितियों का भी सामना करना था । जो लोग संजीव रस्तोगी और सुनील गुप्ता, दोनों को जानते हैं - उनका कहना है कि संजीव रस्तोगी में निर्णय लेने की जो क्षमता है तथा अपनी जिम्मेदारियों को खुद उठाने/निभाने की जो सामर्थ्य है, उसके चलते उन्होंने धाकड़ तरीके से अपना गवर्नर-काल चलाया और चुनावी राजनीति की लगाम को अपने ही नियंत्रण में रखा । सुनील गुप्ता के लिए ऐसा कर पाना मुश्किल ही होगा - क्योंकि उनमें न तो निर्णय लेने की क्षमता है और अपनी जिम्मेदारियों को भी वह हमेशा दूसरों के कंधों पर डालने की फिराक में रहते हैं । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि सुनील गुप्ता ने बृजभूषण और योगेश मोहन गुप्ता के प्रति पहले तो विरोधी तेवर दिखाए, लेकिन इन्होंने जब घुड़की दी तो सुनील गुप्ता ने इनके सामने समर्पण करने में भी देर नहीं लगाई । राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को सुनील गुप्ता ने प्रोत्साहित ही इसलिए किया, ताकि राजीव सिंघल उनके गवर्नर-काल की 'जरूरतों' को पूरा करते रहें । संजीव रस्तोगी का प्रयास था कि उनके गवर्नर-काल में चुनाव न हो; सुनील गुप्ता ने पहली चिंता ही यह की कि उनके गवर्नर-काल में चुनाव की स्थितियाँ कैसे बनें ? मंजु गुप्ता और दीपा खन्ना के बीच चुनाव की जो स्थितियाँ बन रही थीं, उसमें सुनील गुप्ता को अपना 'काम' बनता हुआ नहीं दिख रहा था, इसलिए वह लगातार एक ऐसे उम्मीदवार की तलाश में थे जो उनके 'काम' भी बनाए । उनकी यह तलाश राजीव सिंघल पर जाकर खत्म हुई । 
राजीव सिंघल की उम्मीदवारी की आड़ में बृजभूषण व योगेश मोहन गुप्ता जैसे लोगों को इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई तक 'रास्ता' बनाने का मौका दिखा, तो सुनील गुप्ता को लगा कि उनकी तो जैसे लाटरी लग गई । उन्हें विश्वास हो गया कि बृजभूषण, योगेश मोहन गुप्ता और राजीव सिंघल की जो अपनी अपनी 'जरूरतें' हैं - वह चूँकि एक दूसरे पर निर्भर हैं इसलिए वह एक साथ रहेंगे और उनके गवर्नर-काल की जरूरतों को पूरा कर देंगे । दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी ने लेकिन उनके इस विश्वास का सब गुड़ गोबर कर दिया है । दिवाकर अग्रवाल और उनके समर्थकों के लिए इस बार का चुनाव खासी प्रतिष्ठा का चुनाव है; एक तरह से कह सकते हैं कि जीने-मरने का चुनाव है - इसलिए उनके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनील गुप्ता की किसी भी पक्षपातपूर्ण राजनीतिक चालबाजी को इग्नोर करना संभव नहीं होगा । सुनील गुप्ता को उनकी सतर्क व कठोर घेरेबंदी का सामना करना ही होगा । दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों पर अपने कामकाज के लिए निर्भर न होते, तो सुनील गुप्ता इस घेरेबंदी से बेपरवाह भी बने रह सकते थे; किंतु सुनील गुप्ता की मुसीबत यह है कि वह इस तरह का चांस नहीं ले सकते हैं क्योंकि तब उनके कामकाज का ही कबाड़ा जायेगा । उनकी मुसीबत इस कारण से और बड़ी हो जाती है कि यदि उन्होंने बृजभूषण, योगेश मोहन गुप्ता व राजीव सिंघल के 'काम' नहीं किए - तो यह लोग उनका जीना मुहाल कर देंगे ।   
मजे की बात यह है कि सुनील गुप्ता इस जिस मुसीबत में फँसे हैं, वह उन्होंने खुद ही पैदा की है । राजीव सिंघल को उम्मीदवारी के लिए प्रोत्साहित करते हुए दिखाई तो उन्होंने होशियारी थी, किंतु उनकी यही होशियारी उनके लिए आफत बनती नजर आ रही है । अपने ही फैसलों से सुनील गुप्ता जिस तरह लोगों के बीच मजाक का विषय बनते जा रहे हैं और खुद के लिए मुसीबतों को आमंत्रित कर रहे हैं, उससे लग रहा है कि आगे और दिलचस्प नजारे देखने को मिलेंगे ।

Wednesday, June 24, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी को लेकर मनोज गुप्ता, नीलेश गुप्ता और अभय शर्मा के बीच लुकाछिपी का जो खेल चल रहा है, उसने इंदौर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को खासा दिलचस्प बना दिया है

इंदौर । मनोज गुप्ता की उम्मीदवारी के 'आने' के भय ने इंदौर में रीजनल काउंसिल के संभावित उम्मीदवारों को अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करने से जिस तरह रोका हुआ है, वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति में परस्पर अविश्वास तथा अनिश्चय के माहौल के होने का दिलचस्प नजारा प्रस्तुत करता है । मजे की बात यह है कि खुद मनोज गुप्ता कई मौकों पर यह घोषणा कर चुके हैं कि वह इस बार चुनावी झमेले से दूर ही रहेंगे, लेकिन फिर भी इंदौर में कई लोगों के लिए मनोज गुप्ता की इस घोषणा पर विश्वास करना मुश्किल बना हुआ है - उन्हें लगता है कि मनोज गुप्ता कभी भी अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर देंगे और सफाई दे देंगे कि वह तो उम्मीदवार नहीं होना चाहते थे, किंतु समर्थकों व शुभचिंतकों के दबाव के कारण उन्हें उम्मीदवार बनने के लिए मजबूर होना पड़ा है । लोगों को यदि ऐसा लगता है, तो इसका कारण खुद मनोज गुप्ता ही हैं; वह स्वयं लोगों को यह भी बताते/कहते हैं कि उम्मीदवार बनने से उनके स्पष्ट इंकार करने के बावजूद उनके कई समर्थक व शुभचिंतक उन्हें उम्मीदवार बनने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं, और उन्हें समझाते हैं कि इस बार उनके लिए अच्छा मौका है, कि चुनावी राजनीति में उन्हें गैप नहीं छोड़ना चाहिए, कि बाद में फिर जरूरी नहीं है कि उनके लिए अभी जैसी ही अनुकूल स्थितियाँ बनी रहें, आदि-इत्यादि । मनोज गुप्ता चूँकि स्वयं ही इस तरह की बातें लोगों के बीच कहते हैं, इसलिए उम्मीदवार न होने की उनकी घोषणा शक के दायरे में आ जाती है । लोग दरअसल जानते हैं कि चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के 'लिए' न और हाँ के बीच बहुत ही पतली लाइन होती है, जिसे पार करना उनके लिए जरा भी मुश्किल नहीं होता है । चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के प्रति बनी इस धारणा के कारण ही मनोज गुप्ता की इस बार उम्मीदवार न बनने की घोषणा पर कई लोगों को भरोसा नहीं हो पा रहा है । 
मनोज गुप्ता की घोषणा पर भरोसा न हो पाने का एक कारण वास्तव में यह भी है कि पिछले से पिछले वर्ष, यानि त्रिवर्षीय सत्र के पहले वर्ष में इंदौर ब्रांच के चेयरमैन के रूप में उनका कामकाज बहुत ही सक्रियताभरा रहा था, जिसके लिए उनकी खासी प्रशंसा भी हुई और उन्हें अवार्ड भी मिले । उस समय उनकी सक्रियता और उनकी उपलब्धियों को देख कर लोगों को लग गया था कि ब्रांच में झंडे गाड़ने के बाद मनोज गुप्ता का अगला ठिकाना रीजनल काउंसिल होगा । मनोज गुप्ता ने इससे कभी इंकार भी नहीं किया । अभी भी वह सिर्फ यह कह रहे हैं कि वह इस बार उम्मीदवार नहीं होंगे - आगे कभी उम्मीदवार होने की संभावना से वह इंकार नहीं कर रहे हैं । उनका कहना है कि अभी वह अपने कामकाज पर ध्यान देना चाहते हैं और कामकाज सँभालने के बाद ही वह इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में आयेंगे । समस्या दरअसल इस कारण से है कि मनोज गुप्ता जो कह रहे हैं वह उनका व्यक्तिगत फैसला है, लेकिन चुनावी राजनीति में जो होता है वह प्रायः एक समूह से निर्देशित होता है और उसका 'व्यक्तिगत' आमतौर पर कमजोर साबित होता है; मनोज गुप्ता पर उनके 'समूह' की तरफ से तो उम्मीदवार होने का दबाव पड़ ही रहा है - उनका व्यक्तिगत अभी तक तो समूह के दबाव को नकार रहा है; शक यही है कि उनका यह नकार टिका रह पायेगा क्या ?
समझा जाता है कि इसी शक के कारण नीलेश गुप्ता अपनी उम्मीदवारी की घोषणा नहीं कर रहे हैं । नीलेश गुप्ता लोगों से तो हालाँकि यह कह रहे हैं कि चुनाव में अभी बहुत समय है, अभी से घोषणा करने की क्या जरूरत है, उचित समय पर ही घोषणा करना सही होगा, आदि-इत्यादि; लेकिन उनके नजदीकियों का कहना है कि वह मनोज गुप्ता की तरफ से पूरी तरह आश्वस्त हो लेना चाहते हैं, और मनोज गुप्ता का 'न आना' पक्का होने के बाद ही अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करेंगे । मनोज गुप्ता की उम्मीदवारी की उपस्थिति में नीलेश गुप्ता अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं करेंगे; और इसीलिए वह इंतजार कर रहे हैं कि मनोज गुप्ता की तरफ से स्थिति विश्वसनीय तरीके से साफ हो जाए ।
नीलेश गुप्ता को अभय शर्मा की तरफ से भी खतरा है । अभय शर्मा ने पिछले दो वर्षों में जिस तरह से ऊँची छलाँगें लगाई हैं, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि उनकी निगाह रीजनल काउंसिल में विकास जैन द्वारा खाली की गई जगह पर है और वह उसे भरने के लिए उत्सुक हैं । अभय शर्मा हालाँकि अभी तक तो अपनी उम्मीदवारी से इंकार कर रहे हैं, लेकिन कुछेक लोगों का कहना है कि वह जिस तरह से इंकार कर रहे हैं उसमें दरअसल मौका देखने का भाव है । अभय शर्मा के कुछेक नजदीकियों तथा शुभचिंतकों का उनके लिए सुझाव हालाँकि यह है कि पहले उन्हें  इंदौर ब्रांच का चुनाव जीत कर लोगों को दिखाना चाहिए, फिर उसके बाद उन्हें रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाहिए । उल्लेखनीय है कि अभय शर्मा आज भले ही इंदौर ब्रांच के सचिव बने हुए हैं, लेकिन लोगों को यह बात अच्छी तरह याद है कि इंदौर ब्रांच का पिछला चुनाव वह जीत नहीं पाए थे - और इस कारण से लोगों के बीच उनके प्रति एक नकारात्मक भाव है । कुछेक लोगों का यद्यपि यह भी कहना है कि लोग कल की नाकामयाबी की बजाए आज की सफलता को याद रखते हैं; इसलिए इस बात को भूल कर कि पिछली बार का इंदौर ब्रांच का चुनाव वह नहीं जीत पाए थे, अभय शर्मा को रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ ही लेना चाहिए । अभय शर्मा के कुछेक समर्थकों का तर्क भी है कि नीलेश गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को लेकर जिस तरह कन्फ्यूज से दिख रहे हैं, उससे अभय शर्मा की उम्मीदवारी के लिए अच्छा मौका बन रहा है । 
अभय शर्मा लेकिन नीलेश गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हो लेना चाहते हैं । अभी ऐसा लग/दिख रहा है कि नीलेश गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ अभय शर्मा अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से बचना चाहते हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि लेकिन नीलेश गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करने में देर की तो फिर अभय शर्मा अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर देंगे । रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी को लेकर नीलेश गुप्ता और अभय शर्मा के बीच लुकाछिपी का जो खेल चल रहा है, उसने इंदौर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को खासा दिलचस्प बना दिया है ।

Monday, June 22, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दोबारा शुरू हुई चुनावी प्रक्रिया पर 'कब्जा' करके यशपाल दास ने सुधीर चौधरी की उम्मीदों को तगड़ा झटका दिया

रुड़की । यशपाल दास ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय पर जिस तरह से 'कब्जा' कर लिया है, उससे सुधीर चौधरी व उनके समर्थकों को खासा तगड़ा झटका लगा है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर टीके रूबी के हुए चयन को मनमाने तरीके से निरस्त करके दोबारा चुनाव की जो प्रक्रिया शुरू हुई है, उसमें सुधीर चौधरी और उनके समर्थकों को अपनी जीत का पूरा भरोसा था । यह भरोसा उन्हें इसलिए था क्योंकि दोबारा हो रहे चुनाव के लिए उनके अलावा उम्मीदवार के रूप में जो चार नाम आए हैं - उनमें डीसी बंसल, राजीव सूद और सुभाष धीर की उम्मीदवारी नियम-कानून के तहत विवादास्पद ठहरती है; और टीके रूबी के नाम पर तो यह झमेला ही खड़ा हुआ तथा दोबारा चुनाव की नौबत आई है । डिस्ट्रिक्ट में अब हर कोई यह मान रहा है कि राजा साबू और उनके 'गिरोह' के लोग पिछली बार की तरह अबकी बार कोई लापरवाही नहीं बरतेंगे तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर अपने ही 'आदमी' की जीत को सुनिश्चित करेंगे । इसी मानने के चलते डीसी बंसल, राजीव सूद, सुभाष धीर और सुधीर चौधरी अपने अपने चुने जाने की उम्मीद कर रहे हैं - इन्हें विश्वास है कि राजा साबू और उनके 'गिरोह' के लोग कुछ भी करेंगे और टीके रूबी को तो रोकेंगे; तथा इन्हें अपना 'आदमी' मान कर जितवायेंगे/बनवायेंगे । सुधीर चौधरी और उनके समर्थकों का मानना और कहना रहा कि टीके रूबी की जीत को 'छीनने' के लिए डिस्ट्रिक्ट में जो हरकतें हुईं उससे डिस्ट्रिक्ट तथा राजेंद्र उर्फ राजा साबू की रोटरी समुदाय में भारी फजीहत हुई है; इससे सबक लेते हुए डीसी बंसल, राजीव सूद व सुभाष धीर को चुनवाने का खतरा नहीं उठाया जायेगा, क्योंकि इनमें से किसी को भी चुनवाने का अर्थ होगा - और बड़े विवाद को आमंत्रित करना । इसी कारण से सुधीर चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपना रास्ता साफ दिख रहा था । 
यशपाल दास की सक्रियता देख कर लेकिन सुधीर चौधरी और उनके समर्थकों को अपने इस साफ रास्ते पर रोड़े पड़ते दिख रहे हैं । सुधीर चौधरी और उनके समर्थक यह देख/जान कर हैरान भी हुए हैं और डर भी गए हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दोबारा हो रहे चुनाव की सारी प्रक्रिया को यशपाल दास ने अपने नियंत्रण में ले लिया है, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय तथा चुनावी प्रक्रिया को अंजाम देने वाले पदाधिकारियों को वही दिशा-निर्देश दे रहे हैं । सुधीर चौधरी तथा उनके समर्थकों का पिछले कुछेक दिनों का अनुभव रहा है कि चुनाव संबंधी कोई भी बात डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक, डिस्ट्रिक्ट एडवाइजर प्रेम भल्ला, डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर शाजु पीटर से पूछो तो एक ही जबाव सुनने को मिलता है कि - इस बारे में कोई भी बात यशपाल दास से पूछो । सुधीर चौधरी के क्लब के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हेमंत अरोड़ा ने भी माजरे को जानने/समझने का प्रयास किया, तो उन्हें भी यही जानकारी मिली कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दोबारा हो रहे चुनाव की 'देखरेख' का जिम्मा यशपाल दास ने ले लिया है और उन्हीं के निर्देशानुसार तथ्यों व सूचनाओं को बताया/छिपाया जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दोबारा से शुरू हुई चुनावी प्रक्रिया में यशपाल दास ने अचानक से जिस तरह दिलचस्पी लेना शुरू किया है, उससे सुधीर चौधरी तथा उनके समर्थकों के कान खड़े हुए हैं और उन्हें यशपाल दास की इस सक्रियता में अपना बनता दिख रहा 'काम' बिगड़ता नजर आ रहा है । 
सुधीर चौधरी और उनके समर्थकों को लग रहा है कि चुनावी प्रक्रिया में यशपाल दास की पैदा हुई दिलचस्पी के पीछे सुभाष धीर को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने की मंशा काम कर रही है । ऐसा लगने के पीछे एक कारण यह भी है कि टीके रूबी की जीत में मट्ठा डालने के काम की शुरुआत यशपाल दास के क्लब की तरफ से ही हुई थी । टीके रूबी की जीत को निरस्त कराने की 'जिम्मेदारी' हालाँकि बाद में डीसी बंसल ने सँभाल ली थी, किंतु सुधीर चौधरी तथा उनके समर्थकों को लग रहा है कि यशपाल दास ने उस समय बड़ी होशियारी से डीसी बंसल का इस्तेमाल कर लिया था । यशपाल दास ने समझ लिया था कि टीके रूबी की जीत को निरस्त करवाने में यदि उनकी सीधी भागीदारी नजर आई, तो उनकी बदनामी होगी - इसलिए टीके रूबी की जीत को निरस्त करवाने का रास्ता 'दिखा' कर, उस रास्ते पर आगे बढ़ने का जिम्मा उन्होंने डीसी बंसल को सौंप दिया । डीसी बंसल को लगा कि यशपाल दास द्वारा सौंपी गई 'जिम्मेदारी' को पूरा करके वह यशपाल दास ही नहीं, बल्कि राजा साबू की निगाह में भी चढ़ जायेंगे और तब टीके रूबी को हटा कर जो जगह खाली होगी, वह उन्हें मिल जायेगी । डीसी बंसल बेचारे इसी उम्मीद में अपने चुने जाने का सपना देख रहे हैं । सुधीर चौधरी तथा उनके नजदीकियों को लग रहा है कि यशपाल दास ने अपना 'काम' बना/बनवा लेने के बाद डीसी बंसल को तो बीच मँझदार में छोड़ ही दिया है, साथ ही सुधीर चौधरी की राह को रोकने की तैयारी भी कर ली है । जैसा कि पहले कहा/बताया जा चुका है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए आए पाँच उम्मीदवारों में 'पाकसाफ' उम्मीदवार के रूप में टीके रूबी तथा सुधीर चौधरी को ही देखा/पहचाना जा रहा है; सुधीर चौधरी तथा उनके समर्थकों का मानना और कहना रहा है कि राजा साबू तथा उनके 'गिरोह' के लोग टीके रूबी को तो बनने नहीं देंगे, इसलिए सुधीर चौधरी ही उनकी च्वाइस बचते हैं । किंतु यशपाल दास की सक्रियता से उन्हें लगने लगा है कि यशपाल दास ने सुभाष धीर को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने का बीड़ा उठा लिया है । उनका यह डर, सुभाष धीर के 'उत्साह' को देख कर, दूसरे लोगों को भी सच होता हुआ नजर आ रहा है ।  
कुछेक लोगों को हालाँकि लग रहा है कि टीके रूबी के साथ हुए 'खेल' के चलते डिस्ट्रिक्ट व राजा साबू की रोटरी समुदाय में जो फजीहत हुई है, उससे सबक लेते हुए यशपाल दास अब ऐसा कोई काम नहीं करेंगे - जिससे फजीहत में और इजाफा हो । लेकिन अन्य कुछेक लोगों को लगता है कि राजा साबू और उनके 'गिरोह' के लोग अपनी मनमानियाँ करने से बाज नहीं आयेंगे । टीके रूबी के मामले में जरूर उनके अनुमान व विश्वास गलत साबित हो गए हैं और उन्हें चौतरफा रूप से बदनामी का सामना करना पड़ा है; किंतु उनका अनुमान व विश्वास है कि बाकी जो लोग हैं उनमें से कोई भी वैसा साहस नहीं दिखा पायेगा, जैसा साहस टीके रूबी ने दिखाया है - और इसलिए वह अपनी मनमानी चलाते रह सकते हैं । सुभाष धीर की उम्मीदवारी को मान्य मानने/कराने में अड़चन पैदा हो सकने का मौका तो बनेगा, लेकिन यशपाल दास को भरोसा है कि अड़चन पैदा करने का साहस कोई करेगा नहीं । डीसी बंसल भले ही अपने को ठगा हुआ महसूस करें, और सुधीर चौधरी भले ही दुखी हों कि उनके जैसे 'पाकसाफ' उम्मीदवार के होते हुए नियमों/कानूनों पर खरे न उतरते एक दूसरे उम्मीदवार को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवा दिया गया - लेकिन यह दोनों 'फैसले' को चुपचाप स्वीकार कर लेंगे और टीके रूबी जैसा आत्मसम्मान नहीं दिखा सकेंगे । लोगों को यह भी लगता है कि यशपाल दास मान रहे होंगे कि टीके रूबी के साथ जो हुआ उससे रोटरी समुदाय में डिस्ट्रिक्ट की और राजा साबू की बदनामी तो हुई है किंतु उससे क्या फर्क पड़ा ? रोटरी में 'सिकंदर' तो राजा साबू ही साबित हुए हैं ! इन्हीं बातों के बीच, सुधीर चौधरी और उनके समर्थकों को भी लगने लगा है कि यशपाल दास ने अपनी मनमानी करने के उद्देश्य से ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दोबारा शुरू हुई चुनावी प्रक्रिया पर अपना कब्जा कर लिया है तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक, डिस्ट्रिक्ट एडवाइजर प्रेम भल्ला व डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर शाजु पीटर को किनारे कर दिया है ।

Thursday, June 18, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रंजन ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये जाने के सुझाव को अनसुना करने के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की तरफ बढ़ रहे डॉक्टर सुब्रमणियन के खिलाफ उनके अपने क्लब के लोगों में नाराजगी बढ़ने लगी है

नई दिल्ली । रंजन ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये जाने के अपने ही क्लब के लोगों के सुझाव को अनसुना करने के कारण डॉक्टर सुब्रमणियन अपने ही क्लब के लोगों की नाराजगी का शिकार होने लगे हैं । उनके प्रति यह नाराजगी इसलिए भी बढ़ रही है, क्योंकि क्लब के लोग देख/पा रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी टीम बनाने तथा काम करने के संदर्भ में वह अपने क्लब के लोगों से न तो कोई विचार-विमर्श कर रहे हैं, और न ही उन्हें कुछ बता/पूछ रहे हैं । क्लब के कुछेक सदस्यों ने समय समय पर डॉक्टर सुब्रमणियन से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनके द्वारा बनाई जा रही योजनाओं को जानने तथा उन योजनाओं से जुड़ने के प्रति दिलचस्पी दिखाई भी है, लेकिन डॉक्टर सुब्रमणियन ने उनमें से किसी को कोई तवज्जो ही नहीं दी । डॉक्टर सुब्रमणियन के इस रवैये से क्लब के वह सदस्य तो अपने आप को ठगा हुआ पा रहे हैं, जिन्होंने उनके चुनाव में कंधे से कंधा मिला कर और खूब बढ़चढ़ कर काम किया था । यह देख कर उनकी निराशा और नाराजगी खासी बढ़ी है कि डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए जैसे जैसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद-भार सँभालने का मौका नजदीक आ रहा है, वैसे वैसे वह अपने मददगारों को भूलते और छोड़ते जा रहे हैं । हालाँकि डॉक्टर सुब्रमणियन के नजदीकियों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की तैयारियों को लेकर डॉक्टर सुब्रमणियन का खुद का रवैया चूँकि 'कूल' सा है, इसलिए ऐसा लग रहा है कि वह किसी को तवज्जो नहीं दे रहे हैं - जब जरूरत होगी, तब वह अवश्य ही लोगों के साथ शेयर करेंगे । इन्हीं नजदीकियों में से कुछ का कहना यद्यपि यह भी है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की तरफ बढ़ रहे डॉक्टर सुब्रमणियन को इस सच्चाई को भी समझना होगा कि वह जिस 'स्थिति' में हैं, उसमें लोगों को उनसे कुछ अलग तरह की उम्मीदें व अपेक्षाएँ होंगी - जिन्हें पूरा करना उनकी जिम्मेदारी है; अन्यथा लोगों को उनके खिलाफ होने में देर नहीं लगेगी । 
डॉक्टर सुब्रमणियन के नजदीकी क्लब के लोगों के निराश और नाराज होने के लिए उनके 'कूल' से रवैये की आड़ लेने की भले ही कोशिश कर रहे हों - लेकिन रंजन ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये जाने की क्लब के लोगों की माँग को तवज्जो न देने के कारण डॉक्टर सुब्रमणियन क्लब के लोगों के निशाने पर हैं । डॉक्टर सुब्रमणियन के क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल के कई सदस्यों को लगता है कि डॉक्टर सुब्रमणियन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक तलवार व सुशील खुराना के 'कब्जे' में हैं और उन्हीं के दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हैं - तथा इसलिए ही क्लब के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं; और रंजन ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये जाने के सुझाव को अनसुना ही किए जा रहे हैं । क्लब के लोगों को लगने लगा है कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपने गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में दीपक तलवार या सुशील खुराना का चुनाव कर लिया है - और इसीलिए वह डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के लिए रंजन ढींगरा के नाम पर रिएक्शन तक देने से बच रहे हैं । रंजन ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये जाने की वकालत करने वाले लोगों का कहना है कि रंजन ढींगरा को चूँकि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का अभियान चलाना है, जिसमें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद उनके अभियान का 'वजन' बढ़ायेगा - इसलिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर उन्हें ही बनाया जाना चाहिए । इस सुझाव के साथ साथ डॉक्टर सुब्रमणियन को याद दिलाया जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में जब वह समर्थन जुटाने के लिए लोगों के बीच निकलने की तैयारी कर रहे थे, तब अकेले उनके क्लब के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रंजन ढींगरा ही उनकी मदद के लिए आगे बढ़े थे । उस समय जब कोई भी यह विश्वास करने को तैयार नहीं हो रहा था कि अपनी व्यस्तता और अपने 'स्वभाव' के कारण डॉक्टर सुब्रमणियन एक उम्मीदवार के रूप में सचमुच सक्रिय हो भी पायेंगे, तब अकेले रंजन ढींगरा ने ही उनपर विश्वास किया था और उनके चुनावी अभियान की शुरुआत करवाई थी । 
डॉक्टर सुब्रमणियन लेकिन रंजन ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये जाने की वकालत करने वालों की किसी भी बात का नोटिस लेते हुए नहीं दिख रहे हैं । क्लब के कई एक लोगों ने बताया कि इस बारे में डॉक्टर सुब्रमणियन से जब भी कोई बात करने की कोशिश करो, तो वह यह कह कर बात को टाल जाते हैं कि - बैठते हैं, बात करते हैं । डॉक्टर सुब्रमणियन पिछले करीब दो महीने से इसी फार्मूले को अपनाते हुए बात करने से बच रहे हैं । शुरू में तो लोगों को लगा कि डॉक्टर सुब्रमणियन बैठेंगे, बात करेंगे; लेकिन जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है - लोगों को लगने लगा है कि वह सिर्फ बहानेबाजी कर रहे हैं और समय बिता रहे हैं । हाल-फिलहाल में दीपक तलवार और सुशील खुराना ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई है, उसमें लोगों को संकेत यह मिला है जैसे कि डॉक्टर सुब्रमणियन के गवर्नर-काल की बागडोर पूरी तरह से उनके ही हाथ में रहेगी । दीपक तलवार और सुशील खुराना की इस सक्रियता से ही डॉक्टर सुब्रमणियन के क्लब के सदस्यों को खटका हुआ है, और उन्हें लगा है कि डॉक्टर सुब्रमणियन अपने 'कूल' रवैये की आड़ में उन्हें इग्नोर कर रहे हैं ।डॉक्टर सुब्रमणियन के रवैये से उनके अपने क्लब के लोगों का धैर्य अब टूटने लगा है और क्लब के लोगों में डॉक्टर सुब्रमणियन के खिलाफ नाराजगी बढ़ने लगी है । मुकेश अरनेजा अपने रवैये के चलते जिस तरह से अपने क्लब से निकाले गए हैं, उसकी चर्चा की गर्मी के बीच डॉक्टर सुब्रमणियन के प्रति उनके अपने क्लब में बढ़ती नाराजगी की खबरों से संकेत मिलता है कि गवर्नरों के दिन आजकल कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं । 

Wednesday, June 17, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में मुकेश अरनेजा को क्लब से निकाले जाने में उनसे डीआरएफसी का पद छीनने का रमेश अग्रवाल ने मौका देखा है, लेकिन मुकेश अरनेजा का दावा है कि जब इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ही उनसे असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डिनेटर का पद वापस नहीं ले पा रहे हैं, तो जेके गौड़ की क्या औकात है कि उन्हें डीआरएफसी के पद से हटा दे


नई दिल्ली । जेके गौड़ द्वारा मुकेश अरनेजा को डीआरएफसी पद से हटाने की चर्चा ने मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के बीच खलबली मचा दी है । मुकेश अरनेजा ने अपने नजदीकियों को हालाँकि आश्वस्त किया है कि जेके गौड़ गवर्नर भले ही बन रहा हो, लेकिन उसकी इतनी औकात नहीं है कि वह उन्हें डीआरएफसी पद से हटा दे । मुकेश अरनेजा ने यह आशंका तो व्यक्त की है कि उन्हें क्लब से निकाले जाने से बने मौके का फायदा उठाते हुए रमेश अग्रवाल तो जेके गौड़ पर उनसे डीआरएफसी पद वापस लेने के लिए दबाव बना सकते हैं; किंतु उन्हें विश्वास है कि पूरी तरह से रमेश अग्रवाल की गिरफ्त में होने के बावजूद जेके गौड़ दबाव में यह बात नहीं मानेगा । इस बात को चर्चा दरअसल तब मिली जब जेके गौड़ की परछाईं बने हुए अशोक अग्रवाल ने कुछेक लोगों के बीच कहा/बताया कि रमेश अग्रवाल ने जेके गौड़ को सुझाव दिया है कि मुकेश अरनेजा को क्लब से निकाले जाने का मामला जब तक हल नहीं हो जाता है, तब तक उन्हें मुकेश अरनेजा को डीआरएफसी पद से हटा देना चाहिए । रमेश अग्रवाल ने तर्क दिया है कि मुकेश अरनेजा इस समय चूँकि किसी भी क्लब के सदस्य नहीं हैं - और इस कारण से रोटेरियन नहीं हैं; इसलिए रोटरी में वह किसी पद पर नहीं बने रह सकते हैं । अशोक अग्रवाल के अनुसार, रमेश अग्रवाल ने यहाँ तक कहा कि रोटरी के नियमों व आदर्शों का पालन करते हुए मुकेश अरनेजा को खुद ही रोटरी के पदों को छोड़ देना चाहिए; मुकेश अरनेजा की जगह कोई शर्म महसूस करने वाला व्यक्ति होता तो खुद ही रोटरी के पद छोड़ चुका होता - लेकिन मुकेश अरनेजा को पदों पर बने रहने में न तो कोई शर्म है और न ही उन्हें नियम-कानूनों से कोई मतलब है ।
अरनेजा और रमेश अग्रवाल के बीच बनती/बढ़ती दूरियों के बारे में डिस्ट्रिक्ट में चूँकि हर कोई जानता है, इसलिए अशोक अग्रवाल के जरिए सामने आई मुकेश अरनेजा को ठिकाने लगाने की रमेश अग्रवाल की कोशिशों की बात को सच माना गया और इन बातों ने फिर मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के बीच खलबली मचा दी । यह खलबली इसलिए भी मची क्योंकि डिस्ट्रिक्ट में हर कोई यह भी अच्छी तरह जानता है कि जेके गौड़ तो पूरी तरह रमेश अग्रवाल की कठपुतली हैं और वही करते हैं जो रमेश अग्रवाल चाहते/कहते हैं । इन्हीं बातों के चलते डीआरएफसी पद से मुकेश अरनेजा की छुट्टी होने के कयास लगाये जाने लगे ।
मुकेश अरनेजा ने लेकिन अपने नजदीकियों को आश्वस्त किया है कि उन्हें चिंता करने की और परेशान होने की जरूरत नहीं है; जेके गौड़ भले ही रमेश अग्रवाल की कठपुतली बना हुआ हो, किंतु उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं करेगा । मुकेश अरनेजा ने तर्क दिया कि अपनी करतूतों और कारस्तानियों के कारण क्लब से निकाले जाने के बाद भी उनसे जब मनोज देसाई ने असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डिनेटर का पद वापस नहीं लिया है, तो जेके गौड़ की क्या औकात है कि उन्हें डीआरएफसी के पद हटा दे ? उन्होंने अपने नजदीकियों को बताया है कि उन्हें क्लब से निकाले जाने का वास्ता देकर कई लोगों ने मनोज देसाई से कहा है कि वह मुझसे असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डिनेटर का पद वापस ले लें - किंतु मनोज देसाई ने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया है । मुकेश अरनेजा का कहना है कि मनोज देसाई को इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने/बनवाने में उन्होंने जो मदद की थी - एक तो उसे याद रखते हुए मनोज देसाई उन्हें असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डिनेटर के पद से नहीं हटा रहे हैं; दूसरे, रोटरी इंटरनेशनल के नियमों तथा उसकी व्यवस्थाओं के कारण भी उन्हें रोटरी के किन्हीं भी पदों से नहीं हटाया जा सकता है ।
अन्य कई लोगों का कहना लेकिन यह है कि हो सकता है कि रोटरी इंटरनेशनल के किसी नियम और/या व्यवस्था के अनुसार मुकेश अरनेजा को रोटरी के किसी पद से न हटाया जा सकता हो, किंतु नैतिकता और शर्म भी कोई चीज होती है न ? उनका तर्क है कि मुकेश अरनेजा जिन कारणों से अपने क्लब से निकाले गए हैं, उससे जाहिर और साबित हो गया है कि वह रोटरी में रहने/रखने लायक नहीं हैं - जो व्यक्ति अपने क्लब में रहने लायक नहीं समझा गया; उसे किसी भी बहाने/तरीके से रोटरी में बने रहने का अधिकार भला क्यों मिलना चाहिए ? उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा के किसी और क्लब की सदस्यता लेकर या एक नया क्लब बना कर रोटरी में बने रहने की तिकड़में लगाने की चर्चा है - इस पर कई लोगों का कहना है कि मुकेश अरनेजा अपनी करतूतों व कारस्तानियों के चलते जब अपने ही क्लब में नहीं बने रह सके, तो किसी दूसरे क्लब में और रोटरी में रह कर ही क्या करेंगे ? मुकेश अरनेजा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं - इस नाते उनका क्लब से निकाला जाना रोटरी समुदाय में एक बड़ी घटना है; कई रोटेरियंस का मानना और कहना है कि क्लब से निकाले जाने की घटना पर शर्मसार होकर मुकेश अरनेजा को खुद ही रोटरी को अब अलविदा कह देना चाहिए; लेकिन मुकेश अरनेजा ने शर्मसार होना तो जाना ही नहीं है - इसलिए वह रोटरी में बने रहने की हर संभव कोशिश करेंगे ही ।
मुकेश अरनेजा रोटरी में बने रहने का जुगाड़ तो कर लेंगे, किंतु रमेश अग्रवाल ने जिस तरह उन्हें क्लब से निकाले जाने में उनसे डीआरएफसी का पद छीनने का मौका देखा है - उससे एक मजेदार स्थिति बनी है । यह देखना दिलचस्प होगा कि डिस्ट्रिक्ट 3012 के गवर्नर जेके गौड़ इस मामले में रमेश अग्रवाल की 'कोशिश' को सफल बनायेंगे और/या मुकेश अरनेजा के दावे को सच साबित करेंगे कि उनके खिलाफ कोई कदम उठाने का उनमें दम ही नहीं है ।

Saturday, June 13, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के प्रेसीडेंट मनोज फडनिस ने आखिर किस स्वार्थ और या किस मजबूरी में ऐसे लोगों को अपनाया हुआ है, जिनके कारण इंदौर ब्रांच में कामकाज की बदइंतजामी फैली हुई है और खुद मनोज फडनिस की साख व प्रतिष्ठा दाँव पर लग गई है

इंदौर । मनोज फडनिस की 'घरेलू' ब्रांच के सदस्यों को अभी जून माह में जब मार्च माह का न्यूजलेटर मिला, तो ब्रांच के कामकाज की पोल खुली और सवाल उठे कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष मनोज फडनिस की अपनी ब्रांच में कामकाज का इतना बुरा हाल क्यों है ? कामकाज के बुरे हाल का संदर्भ सिर्फ यही नहीं है कि मार्च माह का न्यूजलेटर लोगों को जून माह में मिला; संदर्भ यह भी है कि मार्च माह का न्यूजलेटर जब समय से प्रकाशित नहीं किया जा सका था, तब चार माह बाद उसे प्रकाशित करके पैसे की बर्बादी क्यों की गई । यानि कामकाज का बुरा हाल सिर्फ क्रियान्वन के स्तर पर ही नहीं, बल्कि सोच और नीति के स्तर पर भी है । इंस्टीट्यूट के मौजूदा अध्यक्ष मनोज फडनिस चूँकि इंदौर के हैं, इसलिए इंस्टीट्यूट की इंदौर ब्रांच को उनकी घरेलू ब्रांच के रूप में देखा/पहचाना जाता है और उम्मीद की जाती है कि इंदौर ब्रांच अपने कामकाज में गुणवत्ता को स्थापित करेगी । इंदौर ब्रांच अपने कामकाज में गुणवत्ता के मामले में लेकिन निकृष्ट दौर में दिखाई दे रही है । लोगों के बीच जो चर्चा है उसमें मतभेद सिर्फ इस बात को लेकर है कि इंदौर ब्रांच में कामकाज की बुरी दशा के लिए मनोज फडनिस को सिर्फ नैतिक आधार पर ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है; और या इंदौर ब्रांच में कामकाज की बदइंतजामी के लिए मनोज फडनिस सचमुच में सीधे जिम्मेदार भी ठहरते हैं ?
यह जानने/समझने के लिए कुछेक तथ्यों पर गौर करना उपयोगी होगा । 
इंदौर ब्रांच में कामकाज की बदइंतजामी के लिए ब्रांच के चेयरमैन सुनील खंडेलवाल ब्रांच के सचिव अभय शर्मा से अपेक्षित सहयोग न मिलने को जिम्मेदार ठहराते हैं । उन्होंने अलग अलग मौकों पर कई लोगों से कहा/बताया है कि अभय शर्मा ने सचिव पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह यदि ठीक से किया होता, तो ब्रांच के न्यूजलेटर भी समय से निकलते और ब्रांच के दूसरे काम भी उचित समय पर और प्रभावी तरीके से संपन्न होते । ब्रांच के दूसरे पदाधिकारियों के अनुसार भी, अभय शर्मा की सचिव पद की जिम्मेदारियों को निभाने से ज्यादा रुचि अपनी राजनीति करने में दिखाई दे रही है । अभय शर्मा पर गंभीर आरोप है कि वह ब्रांच के स्वयंभू मीडिया प्रभारी बन गए हैं, और शहर के अखबारों में अपनी तथाकथित सक्रियता की खबरें प्रकाशित करवाते हैं - और इस सब के बाद उन्हें जो समय मिलता है उसमें वह विकास जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम करते हैं । इस तरह, अभय शर्मा काम तो बहुत करते हैं; बस ब्रांच के सचिव पद का काम करने में वह कोई दिलचस्पी नहीं लेते हैं - और इसका नतीजा यह है कि ब्रांच में ठीक ढंग से कोई काम नहीं हो पा रहा है; न्यूजलेटर तक चार महीने बाद लोगों को मिल रहा है । उल्लेखनीय तथ्य यह है कि यह अभय शर्मा इंदौर ब्रांच को मनोज फडनिस का ही गिफ्ट है । मनोज फडनिस ने पिछले वर्ष नियम-कायदों की अनदेखी करते हुए अपनी पूरी धमकीबाजी से जिस तरह अभय शर्मा को इंदौर ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी का सदस्य बनवाया था, वह मनोज फडनिस के राजनीतिक जीवन का शायद सबसे शर्मनाक काम होगा । (इस किस्से को यहाँ क्लिक करके पढ़ा जा सकता है ।)
मनोज फडनिस ने पिछले वर्ष अभय शर्मा को इंदौर ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी का सदस्य बनवाया था; और इस वर्ष उन्हें इंदौर ब्रांच का सचिव बनवाया । मजे की बात यह रही कि अभय शर्मा को सचिव बनवाने के लिए मनोज फडनिस को पिछले वर्ष बनाई गई अपनी ही व्यवस्था का उल्लंघन करना पड़ा । उल्लेखनीय है कि पिछले ही वर्ष मनोज फडनिस ने इंदौर ब्रांच के लिए पदाधिकारियों के चयन के लिए लैडर सिस्टम बनाया था, जिसके अनुसार इस वर्ष नीलेश गुप्ता को सचिव पद पर होना था । मनोज फडनिस ने लेकिन तिकड़म करके अभय शर्मा को सचिव बनवा दिया । अभय शर्मा को दरअसल विकास जैन के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और विकास जैन को इस बार सेंट्रल काउंसिल के लिए चुनवाने का जिम्मा मनोज फडनिस ने लिया हुआ बताया जाता है । विकास जैन की उम्मीदवारी के अभियान में ब्रांच की मदद ली जा सके, इसके लिए ही मनोज फडनिस ने अपनी ही बनाई व्यवस्था को एक वर्ष में ही ध्वस्त करके अभय शर्मा को ब्रांच में सचिव बनवा दिया है । 
मनोज फडनिस की तिकड़मबाजी से ब्रांच में सचिव का पद पाने वाले अभय शर्मा के कारण ब्रांच कामकाज की बदइंतजामी का शिकार यदि होती है, तो इसके लिए मनोज फडनिस भी स्वाभाविक रूप से सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहरते हैं । मनोज फडनिस इसलिए भी जिम्मेदार ठहरते हैं क्योंकि उनकी तरफ से इंदौर ब्रांच में कामकाज की गुणवत्ता स्थापित कराने की कोई कोशिश होती हुई नहीं दिखी है । कुछेक लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि अभय शर्मा और उनके असली वाले 'गॉडफॉदर्स' ने मनोज फडनिस से अपने 'काम' तो करवा लिए हैं, लेकिन अब उनकी सुनते नहीं हैं - और मनोज फडनिस असहाय बन कर रह गए हैं । बात चाहें जो सच हो : इंदौर ब्रांच में कामकाज की बदइंतजामी को लेकर मनोज फडनिस चाहें सबकुछ जानते/बूझते हुए भी चुप बने हुए हों, या असहाय बनकर चुप हों - बदइंतजामी के लिए जिम्मेदार वही ठहराए जा रहे हैं । लोगों के बीच सवाल यही चर्चा में है कि मनोज फडनिस ने आखिर किस स्वार्थ में और या किस मजबूरी में ऐसे लोगों को अपनाया हुआ है जिन्हें ब्रांच व प्रोफेशन के काम में कोई दिलचस्पी ही नहीं है; और जिनके कारण ब्रांच में कामकाज की बदइंतजामी फैली हुई है । 
मनोज फडनिस के लिए इंदौर में एक और खतरा मंडरा रहा है । सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के बाद से सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की पूर्व चेयरपरसन केमिशा सोनी के खिलाफ जिस तरह का नकारात्मक व अशालीन प्रचार अभियान शुरू किया गया है, उसके पीछे मनोज फडनिस के नजदीकियों को ही देखा/पहचाना जा रहा है । केमिशा सोनी की उम्मीदवारी को दरअसल विकास जैन की उम्मीदवारी के लिए सीधी चुनौती के रूप में रेखांकित किया गया है । केमिशा सोनी की उम्मीदवारी को विकास जैन की उम्मीदवारी के लिए खतरे के रूप में देख रहे विकास जैन के कुछेक समर्थकों ने केमिशा सोनी के खिलाफ अपमानजनक अभियान छेड़ दिया है । उनका मानना है कि उनके इस अभियान से डर कर केमिशा सोनी चुनावी मैदान छोड़ जायेंगी और तब विकास जैन के लिए मैदान एकदम से खाली हो जायेगा । केमिशा सोनी के खिलाफ अपमानजनक अभियान चलाने वालों को मनोज फडनिस के करीबियों के रूप में भी देखा/पहचाना जाता है, इसलिए कुछेक लोगों को लगता है कि उनके अभियान को मनोज फडनिस की भी शह है । मनोज फडनिस की साख और प्रतिष्ठा की परवाह करने वाले लोगों को इस बात की फिक्र है कि केमिशा सोनी के खिलाफ अभियान चलाने वाले लोग केमिशा सोनी को कोई नुकसान पहुँचा सकेंगे या नहीं - यह तो अभी नहीं पता है; किंतु मनोज फडनिस की साख व प्रतिष्ठा को वह अवश्य ही धूल-धूसरित कर देंगे । मनोज फडनिस के कुछेक समर्थकों व शुभचिंतकों को तो उनकी साख और प्रतिष्ठा की चिंता है, खुद मनोज फडनिस को यह चिंता है - इसके कोई संकेत उन्होंने अपने 'व्यवहार' से तो अभी तक नहीं दिए हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष मनोज फडनिस अपने नजदीकियों की हरकतों को रोकने व नियंत्रित करने की कोई कोशिश करते हैं - और या अपने नजदीकियों को अपनी साख व प्रतिष्ठा के साथ खेलने देते हैं । 

Friday, June 12, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सेंट्रल काउंसिल पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए वोट जुटाने वास्ते फूल भेज कर लोगों को 'फूल' बनाने की विजय गुप्ता की कोशिश पर साहिल भाटिया के रिएक्शन ने विजय गुप्ता की भारी फजीहत तो की ही है, उनके सामने मुसीबत भी खड़ी कर दी है

फरीदाबाद । साहिल भाटिया को जन्मदिन पर फूल भेजने के चक्कर में विजय गुप्ता को उनसे जो लताड़ सुनने को मिली है उसने विजय गुप्ता के सामने एक अजीब संकट खड़ा कर दिया है । संकट दरअसल यह फैसला करने को लेकर है कि साहिल भाटिया के हाथों उनकी जो सार्वजनिक फजीहत हुई है उसके बाद भी वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को उनके जन्मदिन पर फूल भेज कर उन्हें 'फूल' बनाने की अपनी कार्रवाई को जारी रखें, या लोगों को फूल भेजने का काम बंद कर दें । विजय गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि उन्होंने दोनों ऑप्शन पर विचार किया है - और दोनों के फायदों व नुकसानों के बारे में पड़ताल की है; किंतु किसी नतीजे पर पहुँचना अभी उन्हें मुश्किल लग रहा है । विजय गुप्ता जान/समझ रहे हैं कि उनके फूल भेजने पर साहिल भाटिया ने जिस तरह से रिएक्ट किया है, उससे लोगों के बीच उनकी भारी फजीहत हुई है; लेकिन वह यह भी जानते हैं कि अपने जन्मदिन पर उनकी तरफ से भेजे गए फूल पाकर कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स खुश भी हुए हैं और अपनी खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने उन्हें थैंक्स भी कहा है । विजय गुप्ता अच्छी तरह से इस बात को जानते/समझते हैं कि चुनावी वर्ष में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को उनके जन्मदिन पर फूल भेजने की उनकी जो 'नौटंकी' है, उसके पीछे छिपे उद्देश्य को हर कोई जानता/पहचानता है - लेकिन फिर भी अधिकतर लोगों को उनकी यह 'नौटंकी' अच्छी लगती है और वह इससे प्रभावित होते हैं । 
असल में, मौजूदा समय ऐसा समय है जहाँ अधिकतर लोग भावनात्मक रूप से 'अकेले' रह रहे हैं; उन्हें कोई पूछता ही नहीं है; अपना 'होना' उन्हें निरर्थक जान पड़ता है - ऐसे में किसी की तरफ से उन्हें अपने जन्मदिन पर यदि फूलों के गुच्छे के साथ शुभकामनाओं के शब्द मिलते हैं; तो यह जानते हुए भी कि फूल भेजने वाला उन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता है और इन फूलों को भेजने के पीछे उसका स्वार्थ है, उन्हें अच्छा लगता है । सब कुछ जानते/समझते हुए भी 'अच्छा लगने' की इस हकीकत में विजय गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी के लिए रास्ता बनता दिखता है - और इसीलिए उन्होंने फूल भेजने की नौटंकी को अपना लिया । विजय गुप्ता को पता है कि कई लोग हैं जो फूल मिलने पर खुश नहीं होंगे, किंतु उन्होंने 'खुश न होने वालों' की बजाए 'खुश होने वालों' पर ध्यान दिया और फूल भेजने की नौटंकी तैयार की । खुश न होने वालों की परवाह विजय गुप्ता ने इसलिए भी नहीं की, क्योंकि उन्होंने पाया कि खुश न होने वाले चूँकि अपनी नाखुशी सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं करते हैं - इसलिए नाखुश लोग उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाते हैं ।
साहिल भाटिया ने लेकिन इस 'व्यवस्था' को पलट देने वाला काम किया है । साहिल भाटिया के रिएक्शन ने बता/जता दिया है कि विजय गुप्ता की नौटंकी को पहचानने/समझने वाले नाखुश लोग अब चुप नहीं बैठेंगे और अपनी नाखुशी को सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्त करेंगे । साहिल भाटिया ने नाखुश होने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को जैसे एक रास्ता दिखा दिया है । नाखुश लोगों के रवैये में आ रहे इस बदलाव ने विजय गुप्ता के सामने चुनौती खड़ी कर दी है । उनके सामने खतरा यह पैदा हो गया है कि साहिल भाटिया की तरह ही कुछेक अन्य लोगों ने भी इसी तरह उनकी सार्वजनिक फजीहत की तो फिर उनकी यह सारी नौटंकी ही फिजूल साबित हो जाएगी । समस्या यह है कि लोगों के जन्मदिन तो ऐन चुनाव के दिन तक आते रहेंगे - इसलिए विजय गुप्ता को कम-से-कम चुनाव के दिन तक तो लोगों को फूल भेजने होंगे: ऐसे में विजय गुप्ता के सामने ऐन चुनाव के दिन तक फजीहत का शिकार होने का खतरा है । अपने जन्मदिन पर विजय गुप्ता की तरफ से मिले फूलों पर साहिल भाटिया द्वारा व्यक्त की गई प्रतिक्रिया को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच जिस तरह की चर्चा मिली है, उसने विजय गुप्ता को बता/जता दिया है कि फूल भेज कर वोट जुटाने का उनका फार्मूला उलटा असर भी कर सकता है और राजनीतिक फायदे के लिए उनके द्वारा अपनाया गया हथकंडा उन्हें नुकसान भी पहुँचा सकता है । 
विजय गुप्ता के सामने मुसीबत यह खड़ी हो गई है कि लोगों को फूल भेज कर वोट पक्का करने की अपनी तरकीब को उन्होंने यदि अभी तुरंत बंद कर दिया, तो लोगों के बीच मैसेज जायेगा कि साहिल भाटिया के हाथों उनकी जो फजीहत हुई है - उससे वह डर गए हैं; और तब साहिल भाटिया तथा उनके जैसे दूसरे नाखुश रहने वाले लोगों का उत्साह और बढ़ेगा तथा वह उनकी और आफत कर देंगे । विजय गुप्ता के कुछेक नजदीकियों ने हालाँकि उन्हें सलाह दी है कि साहिल भाटिया के हाथों हुईं फजीहत से डर कर उन्हें अभी तुरंत फूल भेजना बंद नहीं करना चाहिए और इंतजार करना तथा देखना चाहिए कि और लोग भी उनके 'दिखाए' रास्ते पर चलते हैं या नहीं - आगे जो स्थिति बने, उसके अनुरूप देखा जाए कि क्या करना सही होगा । उनके नजदीकियों का भी मानना/कहना है कि फूल पाने के बाद दिए गए साहिल भाटिया के रिएक्शन ने विजय गुप्ता की भारी फजीहत तो की ही है, उनके सामने मुसीबत भी खड़ी कर दी है ।

Thursday, June 11, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में गवर्नर बनने की दौड़ के संदर्भ में पप्पुजीत सिंह सरना के 'इरादों' से आशंकित विनय भाटिया के समर्थक विनय भाटिया को पप्पुजीत सिंह सरना से बच कर रहने की सलाह दे रहे हैं; किंतु अन्य कई लोगों का कहना है कि विनय भाटिया को उनसे 'डरने' की जरूरत नहीं है

फरीदाबाद । पप्पुजीत सिंह सरना की गवर्नर बनने की इच्छा के फिर से बलबती होने की खबरों ने विनय भाटिया की उम्मीदवारी के लिए बड़ा खतरा पैदा कर दिया है । उल्लेखनीय है कि हाल-फिलहाल के दिनों में पप्पुजीत सिंह सरना ने कई लोगों से कहा है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में उनका जितना इन्वॉल्वमेंट हो गया है, उसमें उन्हें लग रहा है कि वह खुद गवर्नर पद के उम्मीदवार क्यों नहीं हो जाते हैं ? शुरू में तो उनकी इस बात का किसी ने नोटिस नहीं लिया; और उनके इस कहने को सामान्य बात के रूप में लिया गया - किंतु इस बात को उन्हें जब बार-बार दोहराते हुए देखा/सुना गया, तो लोगों के कान खड़े हुए । उनके नजदीकियों ने उनके इस बात को बार-बार कहने/दोहराने में गवर्नर बनने की उनकी इच्छा को फिर से अँगड़ाई लेने के रूप में देखा/पहचाना है । यह देखना/पहचानना इसलिए हुआ, क्योंकि कुछ समय पहले तक पप्पुजीत सिंह सरना को सचमुच में भावी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में देखा/पहचाना जाता था; दो-तीन वर्ष पहले फरीदाबाद में ही नहीं, पूरे डिस्ट्रिक्ट में उनके बारे में चर्चा थी कि अगले किसी वर्ष वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । दो-तीन-चार वर्ष पहले उनकी सक्रियता को उम्मीदवार बनने की उनकी तैयारी के रूप में ही रेखांकित किया जाता था । किंतु फिर अचानक पप्पुजीत सिंह सरना पीछे हट गए ।
रोटरी में यूँ तो यह खूब देखने को मिलता है कि संभावित उम्मीदवार के रूप में जिन लोगों के नाम चर्चा में रहते हैं, वह वास्तव में कभी उम्मीदवार नहीं बनते - और उनके सचमुच में उम्मीदवार न बनने पर किसी को कोई हैरानी भी नहीं होती है; किंतु पप्पुजीत सिंह सरना का मामला बिलकुल अलग था, इसलिए हर किसी को हैरानी हुई कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की कुर्सी की तरफ बढ़ते-बढ़ते पप्पुजीत सिंह सरना ने अचानक से यू-टर्न क्यों ले लिया ? हर किसी को हैरानी दरअसल इसलिए ही हुई, क्योंकि पप्पुजीत सिंह सरना को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए बड़े दमदार उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । इस बात का जबाव भले ही किसी को नहीं मिल पाया कि उम्मीदवारी के प्रति दमदारी दिखाते-दिखाते पप्पुजीत सिंह सरना अचानक से पीछे क्यों हट गए - किंतु लोगों ने इस 'क्यों' का अपने अपने तरीके से जबाव खोजने का काम जरूर किया और इस संदर्भ में तरह-तरह की बातें हुईं । किसी का मानना/कहना रहा कि पप्पुजीत सिंह सरना उम्मीदवारी के खर्च से डर गए और पीछे हट गए; किसी ने दावा किया कि पप्पुजीत सिंह सरना ने उन्हें बताया है कि पहले उम्मीदवारी और फिर गवर्नरी में जो समय लगता है उतना समय वह नहीं दे पायेंगे, इसलिए उन्होंने अपना इरादा बदल लिया है; किसी ने कहा कि पप्पुजीत सिंह सरना को समझ में आ गया कि उम्मीदवारी की बातें करना जितना आसान है, सचमुच में उम्मीदवार बनना उतना ही मुश्किल है - और इसलिए उन्होंने समझ लिया कि खुद उम्मीदवार बनने की बजाए दूसरों को उम्मीदवार बनाने का 'ठेका' लेना आसान है । यह बात समझ में आते ही पप्पुजीत सिंह सरना ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी का 'ठेका' ले लिया । 
विनय भाटिया की उम्मीदवारी का जिम्मा निभाते हुए पप्पुजीत सिंह सरना को लगा कि समय तो उनका अब भी खूब लग रहा है । कई मौकों पर उन्होंने कहा भी कि उन्हें तो लगता है कि जैसे उम्मीदवार विनय भाटिया नहीं, बल्कि वह हैं । पप्पुजीत सिंह सरना को लग रहा है - और अपने इस लगने को उन्होंने कई बार कहा भी है कि विनय भाटिया तो ज्यादा कुछ किए बिना और ज्यादा कुछ 'हुए' बिना ही उम्मीदवार बन गए हैं । इसी तरह की बातों के बीच पप्पुजीत सिंह सरना ने कहना/बताना शुरू किया कि वह सोचते हैं कि वह खुद ही गवर्नर पद के उम्मीदवार क्यों नहीं हो जाते हैं ? इस बात को दावे के साथ तो कोई नहीं कह सकता कि पप्पुजीत सिंह सरना की इस तरह की बातें सिर्फ भावावेश में कहे गए उद्गार हैं, या अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह सचमुच में किसी उथल-पुथल से गुजर रहे हैं; किंतु एक बात पर अधिकतर लोग सहमत हैं कि पप्पुजीत सिंह सरना की इस तरह की बातें विनय भाटिया की उम्मीदवारी के लिए खतरा जरूर हैं । लोगों को लग रहा है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की राह आसान बनाने के लिए डॉक्टर सुब्रमणियन और उनके समर्थकों ने रवि भाटिया की उम्मीदवारी के साथ जैसा जो 'खेल' किया था, वैसा ही खेल पप्पुजीत सिंह सरना अब की बार विनय भाटिया की उम्मीदवारी के साथ कर सकते हैं । 
दरअसल यह हर कोई जान/समझ रहा है कि विनय भाटिया यदि इस वर्ष कामयाब हो गए, तो पप्पुजीत सिंह सरना को अपनी उम्मीदवारी के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ेगा - पप्पुजीत सिंह सरना को इंतजार न करना पड़े, इसके लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी की बलि लेना जरूरी होगा । इसी सोच और आशंका के चलते विनय भाटिया के समर्थक विनय भाटिया को पप्पुजीत सिंह सरना से बच कर रहने की सलाह दे रहे हैं । फरीदाबाद में लोगों ने पाया है कि विनय भाटिया पिछले कुछ समय से पप्पुजीत सिंह सरना से दूर-दूर रहने का प्रयास कर रहे हैं; इससे लग रहा है कि विनय भाटिया ने अपने समर्थकों की सलाह को मानना शुरू कर दिया है और उन्होंने पप्पुजीत सिंह सरना से बचना शुरू कर दिया है । हालाँकि कई एक लोगों का कहना यह भी है कि पप्पुजीत सिंह सरना बातें चाहें जो कर रहे हों, सचमुच में उम्मीदवार बनना उनके बस की बात नहीं है - और इसलिए विनय भाटिया को उनसे 'डरने' की जरूरत नहीं है । 
पप्पुजीत सिंह सरना की बातें और उन बातों से गवर्नर बनने की उनकी इच्छा के फिर से बलबती होने के संकेतों ने फरीदाबाद से गवर्नर होने के नारे के तहत लड़ी जा रही चुनावी लड़ाई को दिलचस्प तो बना ही दिया है, विनय भाटिया की उम्मीदवारी के लिए खासा बड़ा संकट भी पैदा कर दिया है । 

Tuesday, June 9, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में सुभाष जैन की चुनावी मीटिंग में उपस्थित हुए उनके अपने क्लब के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा लोगों के बीच की गईं बातों ने सुभाष जैन की उम्मीदवारी की संभावना को लेकर लोगों के बीच बने हुए संशय व अनिश्चय को वास्तव में और बढ़ा दिया है

गाजियाबाद । सुभाष जैन की गाजियाबाद में हुई चुनावी मीटिंग में उनके अपने क्लब के वरिष्ठ सदस्यों ने उनके चुनाव अभियान की हवा बिगाड़ दी - और इस तरह उनके अपने क्लब के वरिष्ठ सदस्य ही उनकी उम्मीदवारी के दुश्मन साबित हुए । सुभाष जैन के लिए मुसीबत की बात यह हुई कि अपनी चुनावी मीटिंग में अपने क्लब के वरिष्ठ सदस्यों की उपस्थिति को उन्होंने इस योजना के तहत संभव बनाया था ताकि वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बता/दिखा सकें कि उनकी उम्मीदवारी को लेकर उनके अपने क्लब में चल रहा झगड़ा सुलट गया है, और उनके अपने क्लब में उनकी उम्मीदवारी को लेकर एक राय बन गई है । लेकिन उनके क्लब के वरिष्ठ सदस्यों ने मीटिंग में मौजूद दूसरे लोगों को जो बताया, उससे सुभाष जैन की योजना तो सफल नहीं ही हुई - बल्कि बात बिगड़ और गई । मीटिंग में लोगों के बीच जो बातें हुईं, उससे न सिर्फ पुराने घाव हरे और हो गए - बल्कि क्लब में सुभाष जैन की उम्मीदवारी का झगड़ा नए सिरे से गर्म और हो गया । सुभाष जैन के क्लब के ही लोगों ने मीटिंग में मौजूद दूसरे लोगों को बताया कि सुभाष जैन ने तो योगेश गर्ग को भी इस मीटिंग में बुलाया था और उनकी मौजूदगी को संभव करने के लिए काफी प्रयास किए थे - किंतु उनके प्रयास कामयाब नहीं हुए; और इसी से जाहिर है कि योगेश गर्ग ने अपनी उम्मीदवारी का दावा अभी छोड़ा नहीं है, तथा क्लब में उम्मीदवारी का झगड़ा अभी बदस्तूर जारी है । मीटिंग में सुभाष जैन के विरोधी और योगेश गर्ग के समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले सदस्यों की उपस्थिति ने हालाँकि मीटिंग के शुरू में दूसरे लोगों को आभास दिया कि सुभाष जैन ने क्लब को मैनेज कर लिया है तथा अपने विरोधियों को 'ठंडा' कर दिया है । लेकिन जल्दी ही उनके क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल में उम्मीदवारी के जारी झगड़े की असलियत सामने आ गई । 
सुभाष जैन के क्लब के मीटिंग में मौजूद कुछेक सदस्यों ने तो लोगों के बीच यह तक स्वीकार किया और बताया कि इस मीटिंग में उनकी मौजूदगी की बात योगेश गर्ग को पता है, तथा वह योगेश गर्ग से बात करके ही इस मीटिंग में आए हैं । मजा यह हुआ कि उन्होंने तो लोगों को यह कहा/बताया कि इस मीटिंग में उपस्थित होने/न होने को लेकर उन्होंने योगेश गर्ग से बात की तो योगेश गर्ग ने उनसे यही कहा कि वह अपनी समझ और अपने विवेक से फैसला करें - दूसरे लोगों ने लेकिन यह समझा कि यह लोग मीटिंग में आये ही यह सोच कर थे कि वह दूसरे लोगों को क्लब की स्थिति की सच्चाई बतायेंगे । उनके सच्चाई बताने के चक्कर में लेकिन सुभाष जैन की मीटिंग के उद्देश्य का कबाड़ा हो गया ।
सुभाष जैन के लिए मुसीबत की बात यह हो रही है कि अपने ही क्लब में उन्हें अपनी उम्मीदवारी को लेकर जिस भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है, उसके कारण उनके लिए डिस्ट्रिक्ट में समर्थन जुटाना तो दूर की बात, अपनी उम्मीदवारी के प्रति लोगों को आश्वस्त तक कर पाना मुश्किल हो रहा है । सुभाष जैन ने पीछे एक बड़ा दाँव चला और दावा किया कि जैनी भाई होने के चलते पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रूपक जैन ने उन्हें समर्थन दे दिया है । उनकी चुनावी मीटिंग में शामिल हुए उनके ही क्लब के लोगों ने लेकिन उनके इस दावे को झूठा बताया । उनका कहना रहा कि रूपक जैन ने योगेश गर्ग को फोन करके बताया है कि सुभाष जैन उनके पास समर्थन माँगने आए थे, लेकिन उन्होंने सुभाष जैन को साफ बता दिया है कि उनका समर्थन तो योगेश गर्ग के लिए होगा - या उसके लिए होगा, जिसका समर्थन योगेश गर्ग करेंगे । रूपक जैन ने सुभाष जैन को इस बात के लिए उलाहना भी दिया कि तुमने तो हमारी इतनी इज्जत भी नहीं रखी कि उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से पहले विचार-विमर्श कर लेते; समर्थन माँगने अब आए हो, जब तीन सौ लोगों से समर्थन माँग चुके हो; समर्थन माँगने वाले लोगों की सूची में तीन सौ एक नंबर तो उसका होता है, जिसे तुम कुछ समझ ही नहीं रहे हो - अब जब हमें कुछ समझ ही नहीं रहे हो, तो हमारे समर्थन की चिंता क्यों कर रहे हो ? आदि-इत्यादि । इस तरह की जली-कटी सुनाने के साथ-साथ रूपक जैन ने सुभाष जैन को कुछ अच्छे सुझाव भी दिए - जिनमें प्रमुख यही था कि अपनी उम्मीदवारी के लिए दूसरों से समर्थन माँगने से पहले उन्हें अपने क्लब में समर्थन हासिल करने का प्रयास करना चाहिए । इन सब बातों को बताने के साथ ही सुभाष जैन के क्लब के वरिष्ठ सदस्यों ने अनुमान व्यक्त किया कि शायद रूपक जैन के सुझाव पर ही सुभाष जैन अंततः योगेश गर्ग के घर जाने और उनसे बात करने के लिए मजबूर हुए । 
डिस्ट्रिक्ट में रूपक जैन और योगेश गर्ग की नजदीकियत को हर कोई जानता/पहचानता है । इसके बावजूद सुभाष जैन ने योगेश गर्ग को दरकिनार कर रूपक जैन से तार जोड़ने की कोशिश यह सोच कर की होगी कि जैन होने के कारण रूपक जैन बिना किसी ना-नुकुर के उनके समर्थन के लिए राजी हो जायेंगे । जैन होने के कारण हर जैन उनका सगा होगा, सुभाष जैन यदि अपने पिछले अनुभव को याद रखते तो ऐसा न सोचते । उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा के साथ हुए अपने पिछले चुनाव में मिली पराजय के बाद खुद उन्होंने ही लोगों के बीच रोना रोया था कि रिश्ते के एक साले ने ही उन्हें धोखा दिया । यानि जिससे धोखा खाने की शिकायत वह कर रहे थे वह रिश्ते में उनका साला भी था और जैन भी था । इस अनुभव के बावजूद जैन होने के कारण उन्होंने रूपक जैन से समर्थन मिलने की उम्मीद की, और बदले में रूपक जैन से जली-कटी सुनी । रूपक जैन से जली-कटी सुनने के बाद हो सकता है कि सुभाष जैन को समझ में आ गया हो कि योगेश गर्ग को वह जितने हलके में ले रहे हैं, उससे उनकी मुश्किलें बढ़ ही रही हैं और इसलिए ही वह योगेश गर्ग के घर जाने और उन्हें मनाने के लिए प्रयास करने के लिए मजबूर हुए । 
सुभाष जैन की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए जो लोग तैयार हैं, उनका भी मानना और कहना है कि योगेश गर्ग को मनाने तथा अपने क्लब का पूरा व एकतरफा समर्थन पाने का प्रयास उन्हें सबसे पहले करना चाहिए था । इस काम में देर करके और इसे तवज्जो न देने से सुभाष जैन ने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है । इसका सबसे बड़ा नुकसान यही है कि अपनी उम्मीदवारी लिए समर्थन का माहौल बनाने का उनका हर प्रयास फेल हो जा रहा है । अपनी सक्रियता से वह दो कदम आगे बढ़ते हैं, लेकिन क्लब का विवाद उन्हें चार कदम पीछे कर देता है । उल्लेखनीय है कि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए जिन भी उम्मीदवारों का नाम चर्चा में है, उनमें अभी एक अकेले सुभाष जैन ही लोगों के बीच सक्रिय हैं - इस हिसाब से सुभाष जैन की उम्मीदवारी को दूसरे संभावित उम्मीदवारों से बहुत बहुत आगे दिखना चाहिए था; हकीकत और विडंबना की बात किंतु यह है कि डिस्ट्रिक्ट में लोग अभी उनकी उम्मीदवारी को लेकर ही आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं - और डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच अभी उनकी उम्मीदवारी को लेकर ही अनिश्चय व संशय बना हुआ है । गाजियाबाद में आयोजित की गई चुनावी मीटिंग में उनके ही क्लब के वरिष्ठ सदस्यों से दूसरे लोगों को जो जो बातें सुनने को मिलीं, उससे उनकी उम्मीदवारी की संभावना को लेकर बना हुआ उक्त अनिश्चय व संशय वास्तव में और बढ़ गया है । 

Friday, June 5, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए एके सिंह के खिलाफ पीएस जग्गी को तैयार करने में विशाल सिन्हा और उनके संगी-साथियों द्वारा की जा रही कोशिशों ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों में गर्मी पैदा कर दी है

लखनऊ । एके सिंह के खिलाफ सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए पीएस जग्गी को उम्मीदवार बनाए जाने की कोशिशों की सुगबुगाहटों के चलते अगले लायन वर्ष की चुनावी राजनीति को लेकर डिस्ट्रिक्ट में गर्मी पैदा हो गई है । उल्लेखनीय है कि पीएस जग्गी ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर अभी तक किसी भी तरह की दिलचस्पी नहीं 'दिखाई' है; और उनके नजदीकियों का भी कहना है कि पीएस जग्गी ने उम्मीदवार बनने के अभी तक कोई संकेत उन्हें तो नहीं दिए हैं । इसके बावजूद, पीएस जग्गी की उम्मीदवारी की संभावना की चर्चा लोगों के बीच है - तो इसका कारण यह है कि पीएस जग्गी की उम्मीदवारी को विशाल सिन्हा और उनके संगी-साथियों की तरफ से हवा दी जा रही है । चर्चा यही है कि विशाल सिन्हा और उनके संगी-साथी लगातार मिलती जा रही पराजयों से बुरी तरह हताश हैं और जीत के लिए खासे लालायित हैं । उन्हें लगता है कि एके सिंह की राह में केएस लूथरा भी रोड़ा बनना चाहेंगे और इसलिए एके सिंह के खिलाफ उम्मीदवार उतार कर वह पराजयों के निरंतर चलते आ रहे सिलसिले की दिशा बदल सकेंगे । विशाल सिन्हा और उनके संगी-साथियों का सोचना-मानना चाहें जो हो, अभी का सच यही है कि अपनी सोच और अपनी योजना के लिए उन्हें डिस्ट्रिक्ट में कोई खास समर्थन मिलता हुआ अभी तो नहीं ही दिख रहा है । 
विशाल सिन्हा और उनके संगी-साथियों को हालाँकि सबसे तगड़ा झटका अपने गॉडफादर गुरनाम सिंह से लग रहा है; गुरनाम सिंह अभी एके सिंह की उम्मीदवारी के साथ और समर्थन में ही रहने के संकेत दे रहे हैं । मजे की बात यह है कि एके सिंह और उनके समर्थक भी विश्वास कर रहे हैं कि गुरनाम सिंह ने विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी को सुरक्षित बनाने के लिए 'अगली' बार सहयोग/समर्थन का जो वायदा करके पिछले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी को वापस करवाया था, वह अपने उस वायदे को अवश्य ही याद रखेंगे और निभायेंगे । विशाल सिन्हा और उनके संगी-साथियों को गुरनाम सिंह की तरफ से तगड़ा झटका भले ही लग रहा है, लेकिन गुरनाम सिंह को लेकर उन्हें ज्यादा चिंता नहीं है; उनका मानना/समझना है कि गुरनाम सिंह को तो वह कभी भी 'समझा' लेंगे - उन्हें विश्वास है कि गुरनाम सिंह के कारण उनकी 'उम्मीदें' नहीं टूटेंगी । उनकी 'उम्मीदें' अब सिर्फ गुरनाम सिंह की 'जगह' लेने को तैयार हो रहे केएस लूथरा के रवैये पर टिकी हैं ।
केएस लूथरा से उम्मीद रखने के दो कारण हैं : एक तो यह कि उन्हें लगता है कि केएस लूथरा को अपने गवर्नर-काल में एके सिंह से जो 'घाव' लगा था, वह अभी तक नहीं भरा है और उसके लिए केएस लूथरा ने अभी तक एके सिंह को माफ नहीं किया है । दूसरा यह कि एके सिंह का अभी भी ज्यादा झुकाव गुरनाम सिंह की तरफ 'दिखता' है, और राजनीतिक शब्दावली में जो बात की जाती है उसके अनुसार एके सिंह को गुरनाम सिंह का 'आदमी' माना जाता है । ऐसे में, केएस लूथरा के लिए यह फैसला करना आसान नहीं होगा कि वह गुरनाम सिंह के 'आदमी' के लिए अपना समर्थन घोषित करें ? संदीप सहगल की जीत के साथ केएस लूथरा को जो राजनीतिक ऊँचाई मिली है, उसके बाद उनके लिए जो राह खुली है - उसे वह एके सिंह के यहाँ 'बंद' करने को तैयार होंगे क्या; यह बड़ा सवाल है । शिव कुमार गुप्ता की जीत को संयोग व किस्मत से मिली जीत के रूप में देखा/पहचाना गया था, लेकिन इस वर्ष हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में संदीप सहगल की जीत के जरिए केएस लूथरा ने अपनी राजनीतिक ठसक का जो ठोस सुबूत दिया है, उसने उन्हें गुरनाम सिंह का विकल्प बनने का सुनहरा मौका दिया है - उनके इसी मौके में उनके एके सिंह के खिलाफ जाने का अनुमान लगाया जा रहा है । 
इस अनुमान के पूरा होने में अड़चन सिर्फ यह है कि इसके लिए केएस लूथरा को विशाल सिन्हा से हाथ मिलाना पड़ेगा - जिसे हर कोई आज की तारीख में असंभव ही मान रहा है । यह 'असंभव' ही एके सिंह की ताकत है । एके सिंह की उम्मीदवारी पर यूँ तो अलग-अलग कारणों से कई लोगों की तिरछी नजर है - लेकिन एके सिंह की खुशकिस्मती यह है कि उनके तमाम विरोधियों के बीच इतने लफड़े/झगड़े हैं कि वह कभी एकसाथ नहीं खड़े हो सकते हैं - और यही चीज एके सिंह की उम्मीदवारी को सुरक्षित बनाती है । इसके बावजूद, विशाल सिन्हा और उनके संगी-साथियों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है - उन्हें विश्वास है कि शिव कुमार गुप्ता की गवर्नरी में और एके सिंह के चुनावी अभियान में अवश्य ही कुछ ऐसी गलतियाँ होंगी, जिनसे चुनावी समीकरण प्रभावित होंगे और वह बदलेंगे - चुनावी समीकरणों में होने वाला वही बदलाव एके सिंह की उम्मीदवारी को चुनौती देने के काम आयेगा । इसी उम्मीद के सहारे विशाल सिन्हा और उनके संगी-साथी पीएस जग्गी में हवा भरने की कोशिश कर रहे हैं । पीएस जग्गी लेकिन उनकी उम्मीद पर अभी कोई भरोसा करते हुए नहीं दिख रहे हैं । इससे एके सिंह की उम्मीदवारी के लिए अभी तो कोई चुनौती पैदा होती हुई नहीं लग रही है, किंतु विशाल सिन्हा और उनके संगी-साथियों की सक्रियता ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों में गर्मी जरूर पैदा कर दी है ।