नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा ने क्लब से अपने को निकाले जाने के फैसले को बदलवाने के लिए अपनी ही कंपनी से अपने को निकाले जाने के फैसले का जैसा इस्तेमाल किया है, वह अपनी तरह का एक अनोखा उदाहरण तो है ही - साथ ही मुकेश अरनेजा की घटिया सोच व व्यवहार का एक और वाकया भी सामने लाता है । उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा पिछले दिनों जब अपने क्लब से निकाले जाने की फजीहत झेल रहे थे, लगभग उन्हीं दिनों वह अपनी कंपनी से अपने निष्कासन का रोना भी रो रहे थे - और इसके लिए अपने रोटेरियन दोस्तों की सहानुभूति जुटाने का प्रयास कर रहे थे । इस प्रयास के तहत उन्होंने अपने रोटेरियन दोस्तों को दो पृष्ठों की एक चिट्ठी लिखी थी । हालाँकि जिन रोटेरियंस को उनकी यह चिट्ठी मिली, उन्हें आश्चर्य भी हुआ कि अपनी कंपनी के झगड़े और कंपनी से अपने निकाले जाने के मामले को वह रोटरी में क्यों ला रहे हैं - किंतु फिर उन्हें ध्यान आया कि मुकेश अरनेजा तो कुछ भी कर गुजरने की 'खूबी' रखते हैं, इसलिए इस बात पर उन्होंने ज्यादा माथापच्ची नहीं की । इंफेक्ट मुकेश अरनेजा की उस चिट्ठी पर रोटेरियंस के बीच कोई खास सुगबुगाहट नहीं सुनी/देखी गई । कुछेक रोटेरियंस ने उक्त चिट्ठी 'रचनात्मक संकल्प' के पते पर भेजने का काम जरूर किया । अपनी चिट्ठी में मुकेश अरनेजा ने अपने को कंपनी से निकाले जाने की बात को 'पूरी तरह झूठी और निराधार' बताया; उन्होंने इस बात को भी 'झूठी और निराधार' बताया कि कंपनी के डायरेक्टर्स ने उन्हें चेतावनी दी है कि वह कहीं भी अपने परिचय में अपने आप को कंपनी से किसी भी प्रकार संबद्ध नहीं बतायेंगे/दिखायेंगे । अपनी चिट्ठी में मुकेश अरनेजा ने दावा किया कि कंपनी का प्रमोटर व शेयरहोल्डर होने के नाते कंपनी से उनके संबंध को न तो कोई खत्म कर सकता है, न उसके प्रबंधन से उन्हें कोई हटा सकता है, और न कंपनी के फैसलों को प्रभावित करने से रोक सकता है ।
मुकेश अरनेजा की इस चिट्ठी का किसी ने भी कोई खास संज्ञान नहीं लिया, क्योंकि रोटेरियंस को यह चिट्ठी लिखने/भेजने का मुकेश अरनेजा का मकसद किसी को भी समझ में नहीं आया । क्लब से निकाले जाने के बाद मुकेश अरनेजा ने क्लब में पुनर्वापसी के लिए जो जो प्रयास किए, उनमें अपनी ही कंपनी से अपने को निकाले जाने के मामले का उन्होंने जिस तरह सहारा लिया - तब लोगों को उस चिट्ठी का मामला समझ में आया । लोगों को खुद से यह समझ में नहीं आया - मुकेश अरनेजा ने उन्हें समझाया, तब उन्हें समझ में आया । दरअसल क्लब से निकाले जाने के फैसले को निरस्त कराने के लिए मुकेश अरनेजा ने माफी माँगने वाला अपना पुराना फार्मूला इस्तेमाल किया । डिस्ट्रिक्ट व क्लब के कुछेक प्रमुख लोगों के सामने उन्होंने अपना दुखड़ा रोया - दुखड़ा रोने के लिए इस बार उनके सामने कंपनी से निकाले जाने का मामला भी था । कंपनी से निकाले जाने की जो चिट्ठी उन्हें कंपनी की तरफ से मिली थी, उसे लोगों को दिखा दिखा कर उन्होंने लोगों की सहानुभूति जुटाई और उनके निष्कासन वाले क्लब के फैसले को वापस कराने के लिए माहौल बनाया । लोगों के बीच उन्होंने रोना रोया कि कंपनी से तो मैं निकाल ही दिया गया हूँ, अब यदि रोटरी से भी निकाल दिया गया तो फिर मैं करूँगा क्या ? जिन लोगों को मुकेश अरनेजा ने दोनों चिट्ठियाँ उपलब्ध करवाईं, उनमें से कुछेक ने उनसे पूछा भी कि कंपनी से निकाले जाने की बात जब सच है, तो कंपनी से निकाले जाने की बात को 'झूठी और निराधार' बताने वाली चिट्ठी उन्होंने क्यों लिखी और भेजी ? मुकेश अरनेजा का इस पर कहना रहा कि उस चिट्ठी के जरिये उन्होंने दरअसल क्लब के लोगों पर दबाव बनाने का प्रयास किया था, जिससे की क्लब से उन्हें निकाले जाने के फैसले को वह टलवा सकें । किंतु उसमें असफल होने के बाद, क्लब में पुनर्वापसी के लिए उन्हें कंपनी से निकाले जाने वाली चिट्ठी को सामने लाने के लिए मजबूर होना पड़ा है ।
मजे की बात यह रही कि कंपनी से अपने को निकाले जाने की जिस चिट्ठी की बदौलत मुकेश अरनेजा ने क्लब में अपनी वापसी का मौका बनाया, उसकी लैंग्वेज ने उन्हें बुरी तरह व्यथित किया हुआ था और उन्होंने अपने नजदीकियों को बताया था कि उससे उन्होंने अपने आप को बहुत ही अपमानित महसूस किया था । कंपनी से मिली चिट्ठी में उन्हें कंपनी के सभी पेपर्स, डॉक्युमेंट्स तथा अन्य संबंधित चीजें सौंपने को कहा गया है; और हिदायत दी गई है कि वह किसी के भी सामने खुद को कंपनी के डायरेक्टर के रूप में प्रस्तुत न करें और कंपनी के प्रबंधन से जुड़े होने का वास्ता न दें । मुकेश अरनेजा को स्पष्ट शब्दों में बता दिया गया कि यदि वह कंपनी का नाम, लोगो व डॉक्युमेंट्स इस्तेमाल करते हुए पाए गए तो कंपनी उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगी । मुकेश अरनेजा के नजदीकियों का कहना है कि इस लैंग्वेज के साथ कंपनी से निकाले जाने की सूचना ने मुकेश अरनेजा को खासा परेशान और निराश किया था । कंपनी से इस बेइज्जत तरीके से निकाले जाने की कार्रवाई ने साबित किया कि मुकेश अरनेजा अपने कामकाज और अपने परिवार में भी पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं । उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा जिस कंपनी समूह के प्रवर्तक रहे हैं, उसमें मोटे तौर पर उनके भाई-भतीजों की ही संलग्नता रही है; लेकिन मुकेश अरनेजा ने अपनी हरकतों व कारस्तानियों से उन्हें तथा कंपनी के दूसरे डायरेक्टर्स को इतना पकाया कि उन्होंने मुकेश अरनेजा को कंपनी से निकाल देने में ही अपनी खैरियत समझी/पहचानी ।
अपनी हरकतों व कारस्तानियों के कारण खुद अपने ही द्वारा प्रवर्तित कंपनी से बाहर कर दिए गए मुकेश अरनेजा के लिए यह बहुत ही शर्म की और निराश करने वाली बात होनी चाहिए थी । उनके नजदीकियों के अनुसार, उनके लिए यह शर्म की और निराश करने वाली बात थी भी - ऐसा मुकेश अरनेजा ने खुद ही उन्हें बताया था । लेकिन जैसे ही मुकेश अरनेजा को लगा कि कंपनी से निकाले जाने के मामले का वह क्लब से निकाले जाने वाले मामले में फायदा उठा सकते हैं, अपनी शर्म और निराशा भूल कर उन्होंने कंपनी से निष्कासन की मिली चिट्ठी को सार्वजनिक कर दिया । रोटरी में मुकेश अरनेजा की जो फजीहत है, उसे तो रोटरी के लोग जानते ही हैं - मुकेश अरनेजा ने लेकिन खुद से ही लोगों को यह भी बता दिया है कि उनकी अपने परिवार और अपनी कंपनी में भी रोटरी जैसी ही स्थिति है; और वहाँ भी लोग उनकी हरकतों व कारस्तानियों से तंग आकर उनसे छुटकारा पाने का फैसला करते हैं । मुकेश अरनेजा ने कंपनी से निकाले जाने के फैसले को जिस तरह से क्लब से निकाले जाने के फैसले को बदलवाने में इस्तेमाल किया है, उससे उनकी घटिया सोच व व्यवहार का एक और उदाहरण ही देखने को मिला है ।