Thursday, January 31, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के कन्वेनर रवि गुगनानी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया और डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर विनोद बंसल के रवैये से आहत होकर उन्हें खरीखोटी सुनाते हुए डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की पूर्व संध्या पर होने वाले कार्यक्रम का बहिष्कार करने की घोषणा की

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया और डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर विनोद बंसल के रवैये से आहत और अपमानित महसूस करते हुए डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के कन्वेनर रविंदर उर्फ रवि गुगनानी ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस शुरू होने से ठीक पहले आज रात होने वाले 'बेनेवॉलेंस नाइट' कार्यक्रम के बहिष्कार की घोषणा की है, जिसके कारण डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस बदनामी और फजीहत का शिकार होती हुई नजर आ रही है । बहिष्कार की जानकारी देते हुए रवि गुगनानी ने आज विनय भाटिया और विनोद बंसल को खूब खरीखोटी भी सुनाई है, और उन पर धोखा देने का आरोप भी लगाया है । रवि गुगनानी के साथ और उनके समर्थन में रोहतक के अन्य लोगों ने भी आज रात के कार्यक्रम में शामिल न होने का फैसला किया है । विनय भाटिया और विनोद बंसल की तरफ से हालाँकि उन्हें मनाने की कोशिशें की जा रही हैं, किंतु रवि गुगनानी के नजदीकियों का कहना है कि रवि गुगनानी अपमान की आग में अभी इतना जल रहे हैं कि आज रात के कार्यक्रम में शामिल  होने के लिए तो नहीं ही राजी होंगे । रवि गुगनानी के नजदीकियों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में होने वाले कार्यक्रम का पूर्ण विवरण आज जब रवि गुगनानी को देखने को मिला, तब वह यह देख कर तमतमा उठे कि पूरे दो दिन के कार्यक्रम में उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं मिली है । रवि गुगनानी ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तैयारी में यह सोच कर अपनी संलग्नता दिखाई थी कि इसके जरिये वह अगले रोटरी वर्ष की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी संभावित उम्मीदवारी के लिए अपनी पहचान बना सकेंगे । लेकिन आज जब उन्होंने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के दो दिनों के कार्यक्रम का विवरण देखा, तो उन्हें यही लगा है कि वह ठगी का शिकार हो गए हैं ।     
उल्लेखनीय है कि 'रचनात्मक संकल्प' ने तो 9 जनवरी की रिपोर्ट में ही आशंका व्यक्त की थी कि रवि गुगनानी को अचानक से डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का कन्वेनर बना कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया और डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर विनोद बंसल की जोड़ी कहीं उन्हें झाँसा तो नहीं दे रही है । रवि गुगनानी को यह बात समझने में लेकिन 22 दिन लग गए । दरअसल विनय भाटिया और विनोद बंसल ने अलग अलग तरीके से रवि गुगनानी को घेरना शुरू किया था : एक तरफ, विनय भाटिया ने उन्हें भरोसा दिया कि वह चिंता न करें, अगले वर्ष अन्य किसी को उनके सामने उम्मीदवार नहीं बनने दिया जायेगा और उन्हें निर्विरोध डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाया जायेगा; दूसरी तरफ विनोद बंसल ने उन्हें समझाया कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह अभी ज्यादा तेजी न दिखाएँ, क्योंकि इससे उनके विरोधी सक्रिय हो जायेंगे - अभी वह डिस्ट्रिक्ट में काम करें और उचित समय आने पर अपनी उम्मीदवारी की चर्चा चलाएँ । इस तरह की लच्छेदार बातों से भला कौन प्रभावित नहीं होगा - सो, रवि गुगनानी भी हो गए । यह प्रभाव तब और गहरा हो गया जब रवि गुगनानी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के कन्वेनर बना दिए गए । दूसरों को इस सारे घटनाक्रम में विनय भाटिया और विनोद बंसल की चालबाजी नजर आ रही थी - लेकिन रवि गुगनानी समझ रहे थे कि विनय भाटिया और विनोद बंसल ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनवाने का बीड़ा उठा लिया है । लेकिन आज जब रवि गुगनानी ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के दो दिवसीय कार्यक्रम का विवरण देखा, और उसमें उन्हें अपनी कोई भूमिका नजर नहीं आई तो उनका माथा ठनका और उन्हें समझ में आया कि विनय भाटिया और विनोद बंसल की जोड़ी उन्हें उल्लू बना कर सिर्फ अपना मतलब साध रही है ।
विनय भाटिया और विनोद बंसल के खिलाफ रवि गुगनानी का आज जिस तरह से जो गुस्सा फूटा है, वह बना रहता है या जल्दी से शांत हो जाता है - यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा; लेकिन एक बात यह जरूर है कि आज रवि गुगनानी ने उन दोनों को जो खरीखोटी सुनाई है और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की पूर्व संध्या पर आज रात होने वाले कार्यक्रम का बहिष्कार करने की जो घोषणा की है, वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों पर असर जरूर डालेगी ।

Wednesday, January 30, 2019

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सूरत ब्रांच की नई बिल्डिंग के उद्घाटन को लेकर चेयरमैन भविन हिंगर तथा सेंट्रल काउंसिल सदस्य जय छैरा की 'धोखाधड़ी' भरी सोच व हरकत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर भी सूरत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'ठगा'

सूरत । सूरत ब्रांच की नई बनी बिल्डिंग के उद्घाटन के नाम पर ब्रांच के पदाधकारियों तथा सेंट्रल काउंसिल सदस्य जय छैरा ने जिस तरह की धोखाधड़ी और बेईमानी की, उसने सूरत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को बुरी तरह निराश और नाराज किया है । जय छैरा बिल्डिंग कमेटी के चेयरमैन हैं । सेंट्रल काउंसिल के लिए उन्हें सूरत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का भरपूर और एकतरफा समर्थन मिलता रहा है, जिसके बूते वह शानदार तरीके से सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जीतते रहे हैं । हाल ही में संपन्न हुए इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में वेस्टर्न रीजन में जय छैरा को सबसे ज्यादा वोट मिले और सबसे पहले वही विजेता घोषित किए गए । सूरत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को दुःख और नाराजगी इसी बात पर है कि उन्होंने तो जय छैरा को खूब खूब प्यार और सम्मान दिया, और जय छैरा ने ब्रांच की बिल्डिंग के उद्घाटन जैसे छोटे से मामले में उन्हें ही 'धोखा' दे दिया । इस मामले में गंभीर बात यह है कि जय छैरा और ब्रांच के पदाधिकारियों ने बिल्डिंग के उद्घाटन की धोखाधड़ी में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक के नाम का इस्तेमाल कर लिया - और वह भी तब, जब कि नई बिल्डिंग का काम अभी पूरा नहीं हुआ है । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य और इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट बनने की इच्छा रखने तथा अभी से उसके लिए तैयारी शुरू करने वाले जय छैरा की तरफ से मजेदार हरकत अब यह देखने/सुनने को मिल रही है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नाराजगी को देखते हुए वह सारे झमेले की जिम्मेदारी ब्रांच के चेयरमैन भविन हिंगर के सिर थोपने की कोशिश कर रहे हैं । जय छैरा की तरफ से सुनने को मिल रहा है कि नई बिल्डिंग के नाम-पट्ट पर अपना नाम खुदवाने के स्वार्थ में भविन हिंगर ने उद्घाटन करवाने में जल्दबाजी की और जिसके चलते सारा तमाशा हुआ ।
इस तमाशे की शुरुआत उस मैसेज से हुई, जिसे ब्रांच पदाधिकारियों की तरफ से भेजा गया और जिसमें बताया गया कि 30 जनवरी को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सूरत में हो रहे एक कार्यक्रम में मौजूद होंगे, इसलिए 'हमने उनसे अनुरोध किया है' कि वह ब्रांच की नई बिल्डिंग का ई-उद्घाटन कर दें । इस मैसेज में यह दावा भी किया गया कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता और वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ भी मौके पर मौजूद होंगे । ब्रांच के पदाधिकारियों की तरफ से भेजा गया यह संदेश मूर्खता का चरम उदाहरण है । ब्रांच के पदाधिकारियों को क्या इतनी भी अक्ल नहीं है, और कि उन्हें यह भी पता नहीं है कि देश के प्रधानमंत्री का 'कार्यक्रम' क्या ऐसे मिलता है ? ब्रांच के पदाधिकारी आखिर किस नशे में रहते हैं कि उन्होंने मान/सोच लिया कि प्रधानमंत्री चूँकि उनके शहर में होंगे, तो वह उनसे अनुरोध करेंगे कि सर, हमारे ऑफिस का भी उद्घाटन कर दो, और वह कर देंगे । कुछेक लोगों का कहना है कि ब्रांच के पदाधिकारियों और जय छैरा को भी पता था कि प्रधानमंत्री के हाथों ई-उद्घाटन होने का अवसर नहीं मिलेगा; लेकिन फिर भी उन्होंने यह तमाशा इसलिए किया ताकि वह लोगों को दिखा सकें कि देखो, उन्होंने तो प्रधानमंत्री से बिल्डिंग का उद्घाटन करवाने का प्रयास किया था । जिस उतावलेपन, मूर्खता और धोखाधड़ी के साथ, प्रधानमंत्री से ब्रांच की बिल्डिंग का ई-उद्घाटन करवाने का प्रयास किया गया था, वह न तो सफल होना था और न वह हुआ । तब इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता से उद्घाटन करवाने का 'प्रोग्राम' सामने आया । कुछेक लोगों ने कहा भी कि नई बिल्डिंग का काफी काम अभी बाकी है, इसलिए अभी इस आधी-अधूरी बिल्डिंग का उद्घाटन करवाना उचित नहीं होगा । किंतु जय छैरा तथा ब्रांच के पदाधिकारियों ने इस बात को अनसुना ही कर दिया, और नवीन गुप्ता को ई-उद्घाटन करने के लिए राजी कर लिया ।
इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता को कुछेक और आधी-अधूरी ब्रांच-बिल्डिंग्स का उद्घाटन करने का 'गौरव' प्राप्त है, इसलिए उन्हें सूरत ब्रांच की बिल्डिंग का भी उद्घाटन करने करने में कोई हिचक नहीं हुई । ब्रांच के चेयरमैन और इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट की कुर्सी पर चूँकि अब जल्दी ही नए लोगों को बैठना है, इसलिए उन पर अभी बैठे लोगों का 'स्वार्थ' तो समझ में आता है; लेकिन यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही है कि जय छैरा आधी-अधूरी बिल्डिंग का उद्घाटन करवाने की जल्दी में क्यों रहे ? कुछेक लोगों को शक है कि जय छैरा शायद सूरत ब्रांच की नई बिल्डिंग का उद्घाटन प्रफुल्ल छाजेड़ से नहीं करवाना चाहते हैं, इसलिए उन्हें उद्घाटन अभी करवा लेने की जल्दी रही । गौर करने की बात यह है कि करीब आठ/दस दिन बाद प्रफुल्ल छाजेड़ इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट हो जायेंगे; सूरत ब्रांच की बिल्डिंग का उद्घाटन यदि अभी नहीं होता - तो फिर उद्घाटन करने का मौका प्रफुल्ल छाजेड़ को मिलता; प्रफुल्ल छाजेड़ को मौका न मिले, इसके लिए जय छैरा भी जल्दबाजी में अभी ही उद्घाटन करवाने के लिए उतावले हो गए । नवीन गुप्ता ने भी दिल्ली में बैठे बैठे जो ई-उद्घाटन किया, उसमें भी तमाशा हो गया । ब्रांच के अधिकतर लोगों को उद्घाटन-कार्यक्रम की सूचना ही नहीं मिली, जिस कारण उद्घाटन अवसर पर गिनती के लोग ही उपस्थित हो पाए । गिनती के जो लोग उपस्थित हुए भी, उनके बैठने के लिए कुर्सी आदि की तथा पीने के पानी की व्यवस्था तक नहीं थी । उद्घाटन के लिए जो समय तय हुआ था, नवीन गुप्ता उस समय तक दिल्ली मुख्यालय में पहुँच ही नहीं सके । उनका इंतजार करते हुए सूरत ब्रांच में उपस्थित हुए लोगों को करीब एक-डेढ़ घंटा इंतजार करना पड़ा, और जैसे-तैसे बड़े ही उजाड़ तरीके से बिल्डिंग का उद्घाटन हुआ । 
सूरत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को दुःख और नाराजगी इस बात की है कि सूरत जैसी बड़ी और प्रमुख ब्रांच, जिसमें करीब पाँच हजार सदस्य हैं और जिनमें से करीब तीन हजार ने अभी हाल ही में हुए चुनाव में वोट दिया था, की जो बड़ी और बढ़िया बिल्डिंग बनी है - उसका उद्घाटन भी शानदार तरीके से होना चाहिए था, और ब्रांच के पूर्व पदाधिकारियों तथा सदस्यों को उसमें शामिल होने का अवसर मिलना चाहिए था; लेकिन भविन हिंगर, जय छैरा और नवीन गुप्ता की स्वार्थी व 'धोखाधड़ी' भरी सोच व हरकत ने उनसे वह अवसर छीन लिया ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के जरिये विनोद बंसल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी संभावित उम्मीदवारी के समर्थन के लिए डिस्ट्रिक्ट में अनुकूल माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं क्या ?

नई दिल्ली । एक से दो फरवरी के बीच हो रही डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तैयारी में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की संलग्नता को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उनकी संभावित उम्मीदवारी की तैयारी के रूप में देखे जाने के कारण पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का रवैया अचानक से आलोचनात्मक हो गया है । उनकी तरफ से शिकायतें अचानक से तेज हो गयीं हैं, जिनमें तरह तरह से सिर्फ एक ही बात सुनी जा रही है और वह यह कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तैयारी में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया पूर्व गवर्नर्स को तो पूछ ही नहीं रहे हैं, और एक अकेले विनोद बंसल ही उनके सलाहकार बने हुए हैं । पूर्व गवर्नर्स को लग रहा है कि विनोद बंसल ने जैसे डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को हाईजैक कर लिया है, और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तैयारी में अन्य पूर्व गवर्नर्स के लिए कोई जगह, कोई मौका नहीं छोड़ा है । मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तैयारी में तथा उसके 'प्रचार' में विनोद बंसल ज्यादा 'दिख' नहीं रहे हैं, और उन्होंने अपने आप को पीछे व छिपाकर ही रखा हुआ है - क्योंकि वह जानते/समझते हैं कि वह यदि ज्यादा दिखेंगे तो अन्य पूर्व गवर्नर्स भड़केंगे और उनके लिए परेशानी पैदा करेंगे; इसके बावजूद विनोद बंसल 'पकड़' लिए गए हैं । विनोद बंसल के लिए समस्या और चुनौती की बात यह है कि उनके अपने डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स उन्हें आगे बढ़ता देख नहीं पाते हैं । उल्लेखनीय है कि पीटी प्रभाकर के इंटरनेशनल डायरेक्टर रहते हुए दिल्ली में रोटरी जोन इंस्टीट्यूट आयोजित होने की योजना बनी थी, जिसका लेकिन दिल्ली के पूर्व गवर्नर्स ने सिर्फ इसलिए भारी विरोध किया था - क्योंकि विनोद बंसल को उस इंस्टीट्यूट का चेयरमैन बनाया जा रहा था; उस विरोध के चलते पीटी प्रभाकर के डायरेक्टर-वर्ष में रोटरी जोन इंस्टीट्यूट दिल्ली में नहीं हो पाया था, और विनोद बंसल से इंस्टीट्यूट का चेयरमैन बनने का मौका छिन गया था ।
लगता है कि उसी अनुभव से सबक लेकर विनोद बंसल ने इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को हाईजैक कर लेने के बावजूद उसकी तैयारी में अपने आपको 'दिखाने' से बचने का प्रयास किया है । लेकिन चूँकि तैयारी पर उनकी छाप देख/पहचान ली गई है, इसलिए उनका प्रयास सफल नहीं रहा है - और पूर्व गवर्नर्स को शिकायतें करने का बहाना/मौका मिल गया है । पूर्व गवर्नर्स का ही कहना है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तैयारी के बहाने से विनोद बंसल दरअसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया की 'स्थिति' को सुधारने और मजबूत बनाने/करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए वह विनय भाटिया को उम्मीदवार बना/बनवा सकें । पूर्व गवर्नर्स का कहना है कि विनोद बंसल को भी पता है कि डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स में ऐसा कोई नहीं है, जो नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उनकी उम्मीदवारी की वकालत करे; और उन्हें जब नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग में अपने ही डिस्ट्रिक्ट के प्रतिनिधि का समर्थन नहीं मिलेगा, तब फिर दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के प्रतिनिधियों के समर्थन की वह कैसे क्या उम्मीद कर सकते हैं ? अगले से अगले रोटरी वर्ष में जब उक्त नोमीनेटिंग कमेटी के लिए सदस्यों का चुनाव होगा, तब तक विनय भाटिया पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स वाली कैटेगरी में आ चुके होंगे और अकेले वही होंगे जो यदि नोमीनेटिंग कमेटी के लिए चुने जा सके, तो विनोद बंसल की उम्मीदवारी के पक्ष में आवाज उठा सकेंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनय भाटिया का कार्यकाल ऐसा नहीं जा रहा है कि पूर्व हो जाने के बाद डिस्ट्रिक्ट में उनकी कोई अहमियत रहे/बचे; इसलिए विनोद बंसल की कोशिश है कि वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को ऐसी यादगार कांफ्रेंस बना/बनवा दें कि उसके सहारे विनय भाटिया की कुछ साख/पहचान बन जाये और उनके काम आए । विनय भाटिया की हरकतों से नाराज होने वाले खास तौर से फरीदाबाद तथा आमतौर से डिस्ट्रिक्ट के 'अपने' लोगों को पुनः विनय भाटिया के साथ ला कर विनोद बंसल ने अपने कुनबे को फिर से जोड़ने का काम किया है - उन्हें उम्मीद होगी कि यह काम और इसके नतीजे व्यर्थ नहीं जायेंगे और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में डिस्ट्रिक्ट में उन्हें अलग-थलग पड़ने से बचायेंगे । 
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में विनोद बंसल को अपने डिस्ट्रिक्ट में सिर्फ पूर्व गवर्नर्स से ही चुनौती मिलने का खतरा नहीं है, बल्कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता का बदलता दिख रहा रवैया भी उनके लिए मुसीबत पैदा कर रहा है । सेन डिएगो में अभी हाल ही में संपन्न हुई इंटरनेशनल असेम्बली में सुशील गुप्ता के साथ रंजन ढींगरा के जाने को विनोद बंसल के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । सुशील गुप्ता के साथ रंजन ढींगरा की नजदीकियत हालाँकि काफी पुरानी है, लेकिन हाल-फिलहाल की चर्चा में यह बात रही है कि पिछले कुछ समय से नजदीकियत की वह जगह रंजन ढींगरा से विनोद बंसल ने ले ली है । कई मौकों पर ऐसे दृश्य देखने को मिले, जिनसे उक्त बात की पुष्टि भी हुई । लेकिन सेन डिएगो जाने में सुशील गुप्ता ने विनोद बंसल की बजाये रंजन ढींगरा को जो तवज्जो दी, उससे लोगों के बीच संदेश गया कि रंजन ढींगरा की जगह अभी भी रंजन ढींगरा के पास ही है । इस संदेश का इसलिए खास अर्थ है और यह विनोद बंसल के लिए इसलिए मुसीबत की बात है - क्योंकि रंजन ढींगरा को भी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । ऐसे में, इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में विनोद बंसल के अपने ही डिस्ट्रिक्ट में विपरीत हालातों का और गंभीर चुनौतियों का सामना करने की स्थितियाँ बनी हैं । इन स्थितियों से निपटने के लिए विनोद बंसल को सहयोगियों की जरूरत तो होगी ही, जिनकी लेकिन उनके लिए बहुत कमी है । ले दे के एक विनय भाटिया पर वह कुछ भरोसा कर सकते हैं; विनय भाटिया की लेकिन डिस्ट्रिक्ट में कोई साख/पहचान नहीं बन पाई है । विनय भाटिया की मदद से विनोद बंसल ने इस वर्ष अशोक कंतूर को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने का बीड़ा उठाया था, जिसमें उन्हें लेकिन करारी मात मिली । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अच्छे से आयोजित कर/करवा कर विनोद बंसल उस हार से मिली फजीहत को धुँधला करना तथा विनय भाटिया की 'कुछ न कर सकने' वाली इमेज को सुधारना चाहते हैं - ताकि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में विनय भाटिया उनके कुछ काम आ सकें । डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स ने इस बात को पहचान/समझ कर डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर जिस तरह की शिकायतें करना शुरू कर दिया है, उससे लग रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए विनोद बंसल की अपने ही डिस्ट्रिक्ट में राह आसान नहीं है । 

Tuesday, January 29, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन में ऑफिशियल कॉल के अवैधानिक होने की शिकायत पर लायंस इंटरनेशनल कार्यालय द्वारा की गई कार्रवाई से चिंतित हुए तेजपाल खिल्लन ने आनन/फानन में दूसरी कॉल तो निकाल दी, लेकिन जिससे उनकी मुश्किलें कम होने की बजाये बढ़ और गई हैं

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तेजपाल खिल्लन ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस से संबंधित ऑफिशियल कॉल को लेकर जिस तरह से लायंस इंटरनेशनल व मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के नियम-कानूनों का उल्लंघन करते हुए मजाक बनाया है, उससे लोगों को कहने का मौका मिला है कि दूसरी बार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के बावजूद तेजपाल खिल्लन नियमों को अभी तक भी जान/समझ नहीं पाए हैं । किसी ने चुटकी लेते हुआ कहा भी कि तेजपाल खिल्लन लायनिज्म के नाम पर सिर्फ धंधा करना जानते हैं, नियम-कानूनों का पालन करने तथा लायनिज्म की भावना का सम्मान रखना/करना उन्होंने सीखा ही नहीं है - और वह दो बार नहीं, चाहें दस बार गवर्नर बन जाएँ, यह कभी सीख भी नहीं पायेंगे । डिस्ट्रिक्ट में उनके नजदीकियों का ही कहना है कि ऑफिशियल कॉल के नाम पर जो तमाशा हुआ है, वह सिर्फ इस बात का सुबूत है कि तेजपाल खिल्लन धंधे के अलावा लायनिज्म के बाकी सभी काम मनमाने तरीके से करते हैं और नियम-कानूनों का पालन करने की कोई जरूरत नहीं समझते हैं । मनमानियों और बेवकूफियों के कारण तेजपाल खिल्लन को चूँकि कोई राजनीतिक नुकसान नहीं होता है, इसलिए वह अपनी हरकतों में सुधार की कोई जरूरत भी नहीं समझते हैं - और डिस्ट्रिक्ट में उनका 'राजपाट' 'अंधेर नगरी चौपट राजा' वाली स्टाइल में चलता चला जा रहा है । हालाँकि इसके कारण, तेजपाल खिल्लन की लायनिज्म और उसके लोगों में एक नकारात्मक छवि बनी है, और कोई भी उन्हें गंभीरता से नहीं लेता है ।
मनमानी के ताजा किस्से में, तेजपाल खिल्लन ने ऑफिशियल कॉल के मामले में दो दो बार नियम-कानूनों को ठेंगा दिखा दिया है । उल्लेखनीय है कि तेजपाल खिल्लन की तरफ से पहले 5 जनवरी को ऑफिशियल कॉल निकाली गई, जिसमें 8 मार्च को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करने की बात कही गई ।सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए नामांकन भरने की अंतिम तारीख 22 जनवरी तय की गई । उक्त कॉल आते ही कई लोगों ने उसमें रही/बनी खामियों को रेखांकित करना शुरू कर दिया । यह देख कर तेजपाल खिल्लन ने उक्त कॉल को छिपाना/दबाना शुरू कर दिया और बहुत से लोगों को  उक्त कॉल की कॉपी दी ही नहीं - ताकि ज्यादा पोल न खुले और मामला दबा रह जाए । तेजपाल खिल्लन के नजदीकियों का कहना/बताना है कि तेजपाल खिल्लन ने सोचा था कि कॉल की कमियों/खामियों की बातें करने वाले लोग कुछ ही दिनों में चुप हो जायेंगे और इस तरह से बात आई/गई हो जायेगी । लेकिन कॉल की कमियों/खामियों की शिकायत लायंस इंटरनेशनल कार्यालय तक जा पहुँची । इंटरनेशनल कार्यालय ने तेजपाल खिल्लन से मामले में जबाव माँग लिया । लायंस इंटरनेशनल कार्यालय की इस कार्रवाई से तेजपाल खिल्लन चिंतित हुए - और तब आनन/फानन में उन्होंने दूसरी कॉल निकाल दी, जिसके अनुसार डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के लिए 30 मार्च की नई तारीख और फरीदाबाद के रूप में नई जगह का ऐलान किया गया । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए नामांकन भरने के लिए भी 12 फरवरी की नई तारीख घोषित की गई । तेजपाल खिल्लन ने सोचा तो यह था कि दूसरी कॉल निकालने के बाद विवाद समाप्त हो जायेगा, किंतु इस दूसरी कॉल निकालने की कार्रवाई ने उनकी मुश्किलों को कम करने की बजाये बढ़ा और दिया है ।
तेजपाल खिल्लन द्वारा निकाली गई दूसरी कॉल को लेकर आरोप यह लगा है कि इसके लिए तेजपाल खिल्लन ने डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट की मंजूरी नहीं ली है, और मनमाने तरीके से इसे जारी कर दिया है । लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानूनों के अनुसार, ऑफिशियल कॉल के लिए डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट की मंजूरी जरूरी होती है; और ऑफिशियल कॉल में बाद में यदि कोई संशोधन/परिवर्तन करने की जरूरत होती है तो उसके लिए भी कैबिनेट की मंजूरी की जरूरत होती है । तेजपाल खिल्लन ने ऑफिशियल कॉल में संशोधन/परिवर्तन ही नहीं किया है, बल्कि पूरी कॉल ही बदल दी है - और एक तरीके से दूसरी नई कॉल जारी की है, और इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी ही नहीं ली है । इस तरह, इस दूसरी ऑफिशियल कॉल को भी अवैधानिक माना/बताया जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट में तेजपाल खिल्लन के नजदीकियों का कहना/बताना है कि कैबिनेट की मंजूरी न लेने की बात यदि बढ़ी तो तेजपाल खिल्लन कैबिनेट की मंजूरी का फर्जी रिकॉर्ड 'दिखा' कर साबित कर देंगे कि उन्होंने कैबिनेट की मंजूरी तो ली है; कैबिनेट चूँकि तेजपाल खिल्लन की 'जेब' में ही रहती है - इसलिए उनके फर्जी दावे पर कोई कैबिनेट सदस्य आपत्ति भी नहीं करेगा । आगे क्या होगा, यह तो आगे पता चलेगा - लेकिन दूसरी ऑफिशियल कॉल निकालते समय भी नियम-कानूनों की परवाह न करके तेजपाल खिल्लन ने एक बार फिर दिखा दिया है कि लायनिज्म के नाम पर वह सिर्फ धंधा ही ठीक से कर सकते हैं, बाकी काम वह चलताऊ और मनमाने तरीके से ही कर सकेंगे ।

Monday, January 28, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के पूर्व प्रेसीडेंट भूषण चौहान की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन के साथ चली चुनावी राजनीति की चाल के चक्कर में सुनने और बोलने से लाचार मासूम बच्चे ईलाज से वंचित हुए

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन को अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में पक्षपात करने के उद्देश्य से ब्लैकमेल करने तथा रोटरी जगत में उन्हें बदनाम करने के लिए उनके क्लब के पूर्व प्रेसीडेंट भूषण चौहान ने सुनने व बोलने में लाचार बच्चों के ईलाज से जुड़े प्रोजेक्ट की बलि ही चढ़ा दी है । भूषण चौहान की हरकत से सिर्फ संदर्भित प्रोजेक्ट की ही बलि नहीं चढ़ी है, बल्कि उनके क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के ग्लोबल ग्रांट्स के सभी प्रोजेक्ट्स निरस्त कर दिए गए हैं; और संदर्भित प्रोजेक्ट में जो विदेशी क्लब जुड़ा था - उसने भविष्य में भारत के किसी भी क्लब के साथ ग्रांट की मैचिंग न करने की सौगंध खा ली है । यह प्रसंग इस बात का भी गंभीर उदाहरण व सुबूत है कि डिस्ट्रिक्ट 3012 में ग्लोबल ग्रांट्स को लेकर किस तरह की टुच्ची और अमानवीय राजनीति होती रही है, जिसके शिकार सुनने व बोलने में लाचार मासूम बच्चे तक बनते रहे हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले से पिछले रोटरी वर्ष में, यानि शरत जैन के गवर्नर-वर्ष में रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल को चार कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरीज के लिए करीब 23 लाख रुपए (33,200 अमेरिकी डॉलर) की ग्लोबल ग्रांट स्वीकृत हुई थी । तत्कालीन प्रेसीडेंट भूषण चौहान 'जी 1233' नाम से फाइल हुई इस ग्रांट/प्रोजेक्ट के मुखिया बने । सुनने और बोलने में लाचार बच्चों के ईलाज से जुड़े प्रोजेक्ट के मुखिया बन भूषण चौहान ने ग्लोबल ग्रांट तो मंजूर करवा ली, लेकिन जब प्रोजेक्ट पर सचमुच काम करने का नंबर आया, तो उनका नाकारापन और उनकी बेईमानी सामने आ गई ।
दरअसल जरूरी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद जब तक प्रोजेक्ट पर काम शुरू करने का समय आया, तब तक अमित गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को जाहिर कर चुके थे, और उसके लिए समर्थन जुटाने के अभियान में लग गए थे । अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के एक समर्थक के रूप में भूषण चौहान को उक्त प्रोजेक्ट का राजनीतिक इस्तेमाल करने का उपाय सूझा; क्लब में उनके नजदीकियों का हालाँकि यह भी कहना है कि उपाय उन्हें खुद नहीं सूझा, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं ने उन्हें सुझाया । अब सच चाहें जो हो - प्रोजेक्ट के राजनीतिक इस्तेमाल का उपाय उन्होंने खुद सोचा हो, या किसी ने उन्हें आईडिया दिया हो; उक्त प्रोजेक्ट एक राजनीतिक हथियार बन गया - जिसका सहारा लेकर सुभाष जैन पर दबाव बनाना शुरू किया गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्हें अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम करना चाहिए, अन्यथा प्रोजेक्ट का काम आगे नहीं बढ़ाया जायेगा; जिससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी बदनामी होगी । सुभाष जैन का कहना रहा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाना उनके लिए उचित नहीं होगा, और ऐसा करने से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की मर्यादा का उल्लंघन भी होगा - इसलिए वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पक्षपातपूर्ण भूमिका नहीं निभायेंगे । इसके बाद भी, सुभाष जैन पर राजनीतिक पक्षपात करने के लिए दबाव बनाने के उद्देश्य से भूषण चौहान ने लेकिन सुनने और बोलने से लाचार बच्चों के ईलाज के लिए स्वीकृत हुए ग्लोबल ग्रांट जी 1233 के काम को शुरू करना टाले रखा ।
रोटरी फाउंडेशन को ग्लोबल ग्रांट से जुड़े काम के विवरण नहीं मिले तो उन्हें प्रोजेक्ट के पैसों में बेईमानी होने के संदेह हुए । रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों की बातों से सुभाष जैन को भी लगा कि भूषण चौहान की हरकतों से फाउंडेशन के पदाधिकारी नाराज हो रहे हैं, और उनकी नाराजगी के चलते क्लब के दूसरे प्रोजेक्ट्स भी खतरे में पड़ सकते हैं । सुभाष जैन ने होशियारी दिखाई और समय रहते क्लब के ग्लोबल ग्रांट्स से जुड़े प्रोजेक्ट्स दूसरे क्लब्स में ट्रांसफर करवा दिए; इतना सब होने के बाद भी भूषण चौहान के कानों पर जूँ नहीं रेंगी और सुनने व बोलने से लाचार बच्चों के ईलाज से जुड़े प्रोजेक्ट पर उन्होंने काम करना शुरू नहीं किया । क्लब के कई सदस्यों ने भूषण चौहान को समझाया भी कि चुनावी राजनीति के चक्कर में उन्हें मासूम बच्चों के जीवन से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए, लेकिन सुभाष जैन के विरोध और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश में भूषण चौहान पर किसी की समझाइस का असर नहीं पड़ा । लोगों ने उनसे कहा भी कि वह जो कर रहे हैं, उससे न तो अमित गुप्ता की उम्मीदवारी का कोई भला होगा, और न सुभाष जैन का कुछ बिगड़ेगा - उलटे क्लब की ही बदनामी होगी । हुआ भी यही, भूषण चौहान के नाकारापन और बेईमानीभरी राजनीतिक सोच के कारण अंततः न सिर्फ उक्त प्रोजेक्ट पर गाज गिर गई, और रोटरी जगत में न सिर्फ रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल की, बल्कि देश के दूसरे क्लब्स की भी साख और पहचान को धक्का लगा है - और ईलाज का इंतजार करते मासूम बच्चे ईलाज से वंचित रह गए 

Sunday, January 27, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना की मिलीभगत से अधिष्ठापन के नाम पर किए गए फर्जीवाड़े की पोल खुलने के बाद दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी के पुराने समर्थकों ने इंद्रजीत सिंह जैसे नए समर्थक के खिलाफ मोर्चा खोला

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के क्लब्स के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन जैसे महत्त्वपूर्ण काम को फन, मस्ती व पिकनिक में बदल कर दिनेश बत्रा और उनके समर्थकों ने सोचा तो यह था कि इससे दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी के पक्ष में महौल बनेगा, लेकिन लगता है कि उनकी योजना ने उल्टा ही असर किया है - जिसके चलते उन्हें फजीहत का शिकार बनना पड़ रहा है । दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थक इसके लिए निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । दरअसल दिनेश बत्रा और उनके समर्थकों की तरफ से 26 जनवरी के कार्यक्रम में 26 क्लब्स के पदाधिकारियों का अधिष्ठापन होने का किया जा रहा दावा झूठा साबित हो रहा है और मजाक का विषय बन गया है । कहा/बताया जा रहा है कि 26 में से 10/11 क्लब्स से तो एक भी सदस्य जब कार्यक्रम में मौजूद नहीं था, तब अधिष्ठापन किसका और कैसे हो गया ? दिनेश बत्रा और उनके समर्थक नेता व पदाधिकारी इस धोखाधड़ी में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना को भी शामिल करने से नहीं चूके । कुछेक लोगों का कहना/पूछना हालाँकि यह भी है कि विनोद खन्ना ने क्या आँख बंद करके अधिष्ठापन किया, जो उन्हें यह नहीं दिखा कि अधिष्ठापित किए जा रहे नए पदाधिकारी मौके पर मौजूद ही नहीं हैं ? विनोद खन्ना और दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी की एक साथ फजीहत करवाने वाली इस कार्रवाई के लिए दिनेश बत्रा के ही समर्थक इंद्रजीत सिंह को यह कहते हुए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं कि दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी की कमान अपने हाथ में लेने के उद्देश्य से इंद्रजीत सिंह ने 26 जनवरी के कार्यक्रम को 'बड़ा' दिखाने की कोशिश में यह फर्जीवाड़ा किया - जो अब उल्टा पड़ गया है ।
उल्लेखनीय है कि 26 जनवरी को पहले गन्नौर में एक पिकनिक करने की योजना बनाई गई थी, जिसमें सुबह 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक फन व मस्ती होना थी । दिनेश बत्रा कार्यक्रम के चेयरमैन बने/बनाए गए । इससे जाहिर हो गया कि उक्त कार्यक्रम दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से किया जा रहा है । फिर विचार जुड़ा कि जब कार्यक्रम किया ही जा रहा है, और पैसे खर्च हो ही रहे हैं तो कुछेक छोटे व कमजोर क्लब्स के पदाधिकारियों काअधिष्ठापन ही कर लिया जाए, जिससे कि कार्यक्रम को थोड़ी गरिमा भी मिल जायेगी । प्राप्त जानकारी के अनुसार, शुरू में अधिष्ठापन के लिए 11/12 क्लब्स चुने गए थे । कार्यक्रम का दिन नजदीक आते आते अधिष्ठापित होने वाले क्लब्स की संख्या 26 तक जा पहुँची । कार्यक्रम से जुड़े लोगों का ही कहना/बताना है कि अधिष्ठापित होने से रह गए सभी क्लब्स के नाम जोड़ लिए गए, ताकि डिस्ट्रिक्ट में लोगों को 'संदेश' दिया जा सके कि इतने क्लब दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं । इन्हीं लोगों का कहना/बताना है कि यह आईडिया इंद्रजीत सिंह का था । उस समय तो इंद्रजीत सिंह का यह फर्जीवाड़ा सभी को पसंद आया, लेकिन अब जब फर्जीवाड़े की पोल खुल गई है और फजीहत हो रही है, तो हर कोई इंद्रजीत सिंह को कोस रहा है । दिनेश बत्रा के नजदीकियों को ही लग रहा है कि दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी की कमान अभी तक फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरचरण सिंह भोला के हाथ में थी, जिसे अब खेमा बदल कर आये इंद्रजीत सिंह अपने हाथ में लेना चाहते हैं । जोश और उतावलेपन में इंद्रजीत सिंह की 'योजना' लेकिन बदनामी का ऐसा शिकार बन गई कि दिनेश बत्रा और उनके समर्थकों के लिए शर्मिंदगी की स्थिति बन गई ।
गन्नौर के आयोजन में अधिष्ठापित हुए क्लब्स के पदाधिकारी और सदस्य वाट्स-ऐप पर पूछ रहे हैं कि अधिष्ठापन कार्यक्रम को लेकर जब हम से कोई बात नहीं की गई; हम आयोजन में मौजूद नहीं थे - तो आखिर अधिष्ठापन किसका हो गया ? इस मामले में हो रही फजीहत के चलते दिनेश बत्रा और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को तगड़ा झटका लगा है और उन्हें लगा है कि 26 जनवरी के आयोजन को लेकर उन्होंने जो तैयारी की तथा उनका जो पैसा खर्च हुआ है, उस पर पानी फिर गया है । दिनेश बत्रा के कुछेक नजदीकी इस फजीहत के लिए इंद्रजीत सिंह को कोस रहे हैं । वास्तव में खेमा/पाला बदल कर इंद्रजीत सिंह ने जिस तरह से दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी की कमान अपने हाथ में लेने की कोशिश की है, उसे दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों ने मन से स्वीकार नहीं किया है और इंद्रजीत सिंह की भूमिका में उन्होंने अपने आप को पीछे होते/खिसकते देखा/पहचाना है । ऐसे में, 26 जनवरी के कार्यक्रम में हुए फर्जीवाड़े - तथा उसके चलते हो रही फजीहत की जिम्मेदारी इंद्रजीत सिंह पर थोपने - तथा इंद्रजीत सिंह को निशाने पर लेने का उन्हें मौका मिल गया है । इस तरह, 26 जनवरी के आयोजन ने दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी के अभियान को दोहरी चोट पहुँचाई है - एक तरफ तो फर्जीवाड़े के कारण उनकी फजीहत हो रही है, और दूसरी तरफ इस फजीहत के कारण दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी के पुराने और नए समर्थकों के बीच ही जैसे 'लड़ाई' छिड़ गई है ।

Friday, January 25, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर कब्जे की राजेश शर्मा और चरनजोत सिंह नंदा की कोशिशों को अग्रवाल पिता-पुत्र की जोड़ी ने फिलहाल फेल तो कर दिया है, लेकिन आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप को एकजुट रखना इनके लिए बड़ी चुनौती भी है

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की 13 सदस्यीय नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सत्ता संभालने के लिए आठ सदस्यों का ग्रुप बन तो गया है, लेकिन बनने के साथ ही इसे तोड़ने की तथा इसके टूटने की शंकाएँ भी चूँकि पैदा हो गई हैं - इसलिए सारा नजारा अभी अधर में भी दिख रहा है । दरअसल सत्ता के लिए - शशांक अग्रवाल, अविनाश गुप्ता, अजय सिंघल, गौरव गर्ग, हरीश चौधरी, रतन सिंह यादव, रचित भंडारी, विजय गुप्ता के रूप में - आठ सदस्यों का जो ग्रुप बना है; उनमें से आधे से ज्यादा लोग चेयरमैन बनना चाहते हैं, और कुछ तो पहले ही वर्ष में चेयरमैन बनने की जुगाड़ में हैं । इतिहास गवाह है - जिसमें नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के हाल के वर्षों का इतिहास भी है - कि शीर्ष पद के लिए कैसी कैसी मारकाटें मची हैं, और देर रात तक पालें बदले गए हैं । यह वास्तव में इसलिए भी होता है क्योंकि रीजनल काउंसिल में जो समीकरण बनता दिख रहा होता है, वह तो सिर्फ कठपुतलियों के खेल जैसा होता है - असली खेल तो कहीं और चल रहा होता है, जिसके इशारे पर नॉर्दर्न रीजन की कठपुतलियाँ इधर-उधर हो रही होती हैं । इस बार इस खेल की डोर रीजनल काउंसिल के पूर्व चेयरमैन दुर्गादास अग्रवाल के हाथ में सुनी/बताई जा रही है, सत्ता ग्रुप के आठ सदस्यों में शामिल शशांक अग्रवाल जिनके पुत्र हैं । नॉर्दर्न रीजन से सेंट्रल काउंसिल के लिए पुनर्निर्वाचित हुए राजेश शर्मा और चरनजोत सिंह नंदा ने भी रीजनल काउंसिल पर कब्जा करने की कोशिश की थी, लेकिन दुर्गादास अग्रवाल ने जैसी/जो फील्डिंग सजाई - उसके सामने उन दोनों की चली नहीं ।
दुर्गादास अग्रवाल ने फिलहाल अपनी चला तो ली है, लेकिन उनकी कितने दिन चल पाएगी - इसे लेकर खुद उनके नजदीकियों के बीच संशय है । दरअसल उनका खेल इस बात पर निर्भर करेगा कि उनके पुत्र शशांक अग्रवाल का कैसा/क्या रवैया रहता है; चुनावी जीत हासिल करने के बाद से शशांक अग्रवाल ने रीजनल काउंसिल के सदस्य होने को लेकर जो उतावलापन दिखाया है - उसे देखते हुए उक्त सवाल और महत्त्वपूर्ण हो गया है; देखने की बात यह भी होगी कि शशांक अग्रवाल के रवैये पर दुर्गादास अग्रवाल कैसे रिएक्ट करते हैं ? कई लोगों को अभी से एक आशंका सता रही है कि यह पिता-पुत्र अपनी अपनी भूमिका को लेकर यदि जरूरत से ज्यादा सक्रिय हुए और 'दिखे', तो सत्ता ग्रुप को बनाए रखना मुश्किल हो जायेगा । मजे की बात यह है कि सत्ता ग्रुप का गठन इस आधार पर किया गया है कि बदनाम/बेईमान लोगों और उनके नजदीकियों को दूर रखा जायेगा; और इसी आधार पर नितिन कँवर, राजिंदर अरोड़ा, सुमित गर्ग को तो अलग रखा ही गया है - श्वेता पाठक को भी सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा के खेमे का होने के संदेह में अलग कर दिया गया है; लेकिन राजेश शर्मा के चेले पूर्व चेयरमैन राकेश मक्कड़ के नजदीकियों व चेलों के रूप में पहचाने जाने वाले अविनाश गुप्ता, अजय सिंघल और रतन सिंह यादव को ग्रुप में शामिल कर लिया गया है । इसी कारण से आठ सदस्यों वाले सत्ता ग्रुप को एक बेमेल खिचड़ी के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
समस्या हालाँकि बेमेल खिचड़ी होने से नहीं है । इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन तथा उसकी चुनावी राजनीति का जो स्वरूप है, उसमें काउंसिल में बेमेल खिचड़ी ही बनेगी - और यही सच्चाई है । समस्या लेकिन इस बात में है कि बेमेल खिचड़ी के अधिकतर 'इंग्रेडिएंट्स' को अपने महत्त्वपूर्ण होने का गुमान है और उन्हें लगता है कि उनके कारण ही यह खिचड़ी बन सकी है । आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप के कई सदस्य हालाँकि दूसरी बार में चुनाव जीते हैं, लेकिन यह लोग समझते यह हैं कि जैसे इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के सबसे बड़े तुर्रमखाँ यही हैं । इनमें से कुछेक की पिछले महीनों में जैसी/जो हरकतें रही हैं, उन्हें देखते/याद करते हुए लगता नहीं है कि अगले टर्म में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का सीन बेहूदगी व बदतमीजी भरा नहीं रहेगा । काउंसिल में लोग अपने आप को 'बड़ा' भी मानें/समझें और बेहूदगी/बदतमीजी भी करें, तो यह स्थिति 'करेला और नीम चढ़ा' वाली होगी । महत्वाकाँक्षाओं से भरे ऐसे लोगों को एकजुट रखना वास्तव में टेढ़ी खीर होगा, और इसीलिए आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप के एकजुट बने रहने को लेकर अभी से संदेह किए जा रहे हैं । पंकज गुप्ता को बड़े 'राजनीतिक परिवार' का सदस्य बता कर सत्ता ग्रुप से अलग रखने की कार्रवाई में भी खतरे की आहट सुनी जा रही है । दरअसल उक्त राजनीतिक परिवार चूँकि अगले टर्म में इंस्टीट्यूट की सभी काउंसिल्स से बाहर हो रहा है, इसलिए वह चुप तो नहीं ही बैठेगा और पंकज गुप्ता के जरिये वह नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अपना हस्तक्षेप रखने का प्रयास जरूर ही करेगा । उसका कोई भी प्रयास नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के अभी बने ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर सकता है । हालाँकि कई लोगों को लगता है कि पहले वर्ष के शुरुआती महीने तो शांतिपूर्ण ढंग से निकल जायेंगे, और जो भी उठापटक होनी होगी वह पहले वर्ष के अंतिम महीनों में ही होगी; लेकिन अन्य कई लोगों को लगता है कि पहले वर्ष के लिए चेयरमैन के चुनाव में ही खटपट होने के बीज पड़ जायेंगे । देखना दिलचस्प होगा कि चौतरफा चुनौतियों से घिरा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप सचमुच अपने आप को एक बनाए रख पाता है, या बिखरने की तरफ बढ़ता है ।

Thursday, January 24, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल की भारतीय ईकाई एलसीसीआईए के मुख्यालय के स्टॉफ को नौकरी से निकालने की कार्रवाई को नरेश अग्रवाल व विनोद खन्ना की लूटखसोट व बेईमानियों पर पर्दा डालने की कोशिश के रूप में देखते/पहचानते हुए समझा जा रहा है कि यह मामला अभी और बबाल पैदा करेगा

नई दिल्ली । एलसीसीआईए (लायंस को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया एसोसिएशन) के दिल्ली ऑफिस में स्टॉफ को लेकर चल रही उठापटक के कारण न सिर्फ दिल्ली ऑफिस के, बल्कि एलसीसीआईए के - और वर्ष 2022 में दिल्ली में होने वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन के भविष्य को लेकर संशय पैदा हो गए हैं । उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल कन्वेंशन को आयोजित करने की जिम्मेदारी लायंस इंटरनेशनल के इसामे (आईएसएएएमई - इंडिया, साउथ एशिया, अफ्रीका, व मिडिल ईस्ट) फोरम को मिली है, जिसे बेहद चालाकी से एलसीसीआईए ने हथिया ली है; और एलसीसीआईए भी सिर्फ दो लोगों - पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल और पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना के कब्जे में है - जो सुविधानुसार मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर वीके लूथरा और जेपी सिंह को तरह तरह से इस्तेमाल करते रहते हैं । एलसीसीआईए के हिसाब-किताब में भारी हेरफेर के आरोप सुने/कहे जाते हैं । इसके वर्ष 2017-18 के वित्तीय हिसाब किताब पर गंभीर सवाल उठे हैं; डिस्ट्रिक्ट 324 ए वन के लायंस क्लब मद्रास ग्रेटर के वरिष्ठ सदस्य वी वल्लभन ने तो बाकायदा ईमेल लिख कर हिसाब-किताब की गड़बड़ियों को रेखांकित किया और जबाव माँगे - लेकिन एलसीसीआईए के पदाधिकारी जबाव देने की बजाये लगातार चुप्पी साधे हुए हैं । इसके चलते एलसीसीआईए में पैसों की लूट-खसोट के आरोपों को खूब हवा मिली है, और आम लायन सदस्यों से लेकर लायंस इंटरनेशनल के खास सदस्यों/पदाधिकारियों तक आरोपों की चर्चा है; और मान लिया गया है कि एलसीसीआईए तथा इंटरनेशनल कन्वेंशन को नरेश अग्रवाल व विनोद खन्ना की जोड़ी ने पैसा बनाने/कमाने का जरिया बना लिया है ।
एलसीसीआईए के दिल्ली ऑफिस में स्टॉफ को लेकर जो उठापटक चल रही है, उसे एलसीसीआईए पदाधिकारियों द्वारा की जा रही पैसों की हेराफेरी के मामले से जोड़ कर ही देखा/पहचाना जा रहा है, और तरह तरह की बातें चर्चा में हैं । हालांकि नरेश अग्रवाल के नजदीकियों की तरफ से इसे सामान्य प्रशासनिक कार्रवाई बताया जा रहा है, लेकिन यह सामान्य कार्रवाई जितनी असामान्य दिख रही है - उसे किसी बड़े कांड पर पर्दा डालने की कोशिश के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । हुआ यह है कि एलसीसीआईए के दिल्ली ऑफिस के बहुत से स्टॉफ को अचानक से हटा दिया गया है । पहले लोगों के बीच बात फैली कि स्टॉफ को तनख्वाह देने के लिए पैसे नहीं हैं, इसलिए या तो स्टॉफ के लोग खुद नौकरी छोड़ रहे हैं और या उन्हें हटा दिया जा रहा है । इस पर लेकिन नरेश अग्रवाल के नजदीकियों की तरफ से सुनने को मिला कि स्टॉफ की तनख्वाह को लेकर कोई समस्या नहीं है; समस्या स्टॉफ की कार्यकुशलता को लेकर है - जिसके बारे में लगातार शिकायतें मिल रही थीं, और उन शिकायतों को देखते हुए कई लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया है, और उनकी जगह नए लोगों को नौकरी पर रखे जाने के लिए कार्रवाई हो रही है । यह बात किसी को हजम नहीं हुई । एलसीसीआईए के मुख्यालय के लिए स्टॉफ का चयन सड़क चलते लोगों को पकड़ कर तो कर नहीं लिया होगा; उनके चयन के लिए प्रोफेशनल तरीके ही अपनाए गए होंगे और चयनित स्टॉफ में यह तो देखा ही गया होगा कि वह जरूरत के काम करने लायक हैं या नहीं । किसी भी संस्था में काम करने वाले लोगों की कार्यकुशलता को लेकर शिकायतें आमतौर पर होती ही हैं; शिकायतों के चलते स्टॉफ को नौकरी से निकालने के मौके कभी-कभार ही आते हैं - अधिकतर मामलों में डाँट/डपट कर और या समझा/बुझा कर काम चलाया जाता है । एलसीसीआईए में एक झटके में जिस तरह से स्टॉफ को निकाल दिया गया है, ऐसा होता हुआ कहीं देखा/सुना नहीं जाता है । और फिर इस बात की ही क्या गारंटी है कि नया स्टॉफ कार्यकुशल होगा ही, और उनकी कार्यकुशलता को लेकर शिकायतें नहीं मिलेंगी ?
इसी से लोगों को शक हुआ है कि स्टॉफ को हटाने के पीछे असली कारण कुछ और है, जिसे छिपाया जा रहा है । एलसीसीआईए के कामकाज के तरीकों तथा उसके हिसाब-किताब को छिपा कर रखने के प्रयास किए जाने के कारण स्टॉफ को एकसाथ हटाए जाने का कारण भी संदेह के घेरे में आ गया है - और इसलिए इसे लेकर तरह तरह की बातें लोगों के बीच चर्चा में हैं । एक गंभीर आरोप यह सुना जा रहा है कि एलसीसीआईए के पदाधिकारियों द्वारा तरह तरह से पैसा बनाने की बात चूँकि स्टॉफ की जानकारी में थी, इसलिए उन्होंने भी खर्चों के अनाप-शनाप बिल बनाना तथा अन्य तरीकों से पैसों की हेराफेरी करना शुरू कर दिया था, और आपत्ति करने पर वह पदाधकारियों को उनका भांडा फोड़ने की धमकियाँ देने लगे थे - इसलिए मौका देख कर कार्यकुशलता में कमी और शिकायतों का सहारा लेकर उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है । समझा जाता है कि स्टॉफ को नौकरी से निकाल कर एलसीसीआईए के पदाधिकारी अपनी लूटखसोट व अपनी बेईमानियों पर पर्दा डालने की जो कोशिश कर रहे हैं, वह अभी और बबाल पैदा करेगी - और इसीलिए एलसीसीआईए के मुख्यालय में स्टॉफ को एक झटके में निकाल देने की कार्रवाई को एक बड़े संकट के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि एलसीसीआईए को लायंस इंटरनेशनल की अधिकृत ईकाई के रूप में स्वीकार करने को लेकर भी गंभीर आरोप और सवाल हैं । इन आरोपों और सवालों के चलते एलसीसीआईए के अस्तित्व पर भी संशय है तथा वर्ष 2022 में इंटरनेशनल कन्वेंशन के दिल्ली में होने को लेकर आशंकाएँ हैं । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि पीछे एक बार इसामे फोरम की मीटिंग दिल्ली में होने की बात हुई थी, लेकिन दिल्ली के नेताओं/पदाधिकारियों के आपसी झगड़ों और लूट-खसोट की उनकी कोशिशों को देखते हुए दिल्ली की बजाये उक्त मीटिंग फिर अफ्रीका में हुई थी । कई लोगों को लगता है कि नरेश अग्रवाल और विनोद खन्ना की मनमानियों को देखते हुए, उसी तर्ज पर वर्ष 2022 में होने वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन दिल्ली से छिन सकती है ।

Wednesday, January 23, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में राजेश गुप्ता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए फिलहाल राजी तो हो गए हैं, पर उनके उम्मीदवार बने रहने को लेकर डिस्ट्रिक्ट के लोग आश्वस्त नहीं हैं; कई लोगों ने तो राजेश गुप्ता से पूछ भी लिया कि उम्मीदवार बने तो रहोगे, या बीच में मैदान छोड़ दोगे - जैसे कि पिछले वर्ष छोड़ गए थे ?

देहरादून । एक नाटकीय घटनाक्रम में (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के  लिए राजेश गुप्ता एक बार फिर उसी 'गंदगी' के ढेर पर जा बैठे हैं, जिस पर तीन वर्ष पहले उनकी पत्नी बैठी थीं - और डिस्ट्रिक्ट की सबसे भीषण पराजय को प्राप्त हुईं थीं; और जिसके बाद पति/पत्नी ने गंदगी के उस ढेर से दूरी बना ली थी । मजे की बात यह रही कि तीन वर्ष पहले के उस झटके का सदमा इतना गहरा रहा कि उसके बाद राजेश गुप्ता को उम्मीदवार बनने के कई ऑफर मिले, लेकिन वह उम्मीदवार बनने की हिम्मत नहीं कर पाए । पिछले वर्ष वह उम्मीदवार बने भी थे, लेकिन फिर जल्दी ही वापस हो लिए थे । अभी करीब पंद्रह दिन पहले तक मुकेश गोयल की तरफ से राजेश गुप्ता को उम्मीदवार बनने का ऑफर था; उस ऑफर में चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल का समर्थन सुनिश्चित नहीं था - इसलिए राजेश गुप्ता ने बदतमीजी की हद तक जा कर मुकेश गोयल के ऑफर को ठुकरा दिया था । पिछले वर्ष भी विनय मित्तल ही राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी में रोड़ा बने थे । पिछले वर्ष और अभी कुछ दिन पहले तक ऐसा लग रहा था कि राजेश गुप्ता ने जैसे तय कर लिया है कि जब तक उन्हें विनय मित्तल का समर्थन नहीं मिलेगा, तब तक वह उम्मीदवार नहीं बनेंगे; विनय मित्तल के चक्कर में ही राजेश गुप्ता ने मुकेश गोयल तक से 'बदतमीजी' कर ली । लेकिन अब अचानक से राजेश गुप्ता ने पलटी मारी और लगभग उन्हीं लोगों के भरोसे उम्मीदवार बन गए हैं, जिनके भरोसे रहते हुए तीन वर्ष पहले ही राजेश गुप्ता की पत्नी ने पराजय के अंतर का रिकॉर्ड बनाया था ।
मजे की और बिडंवना की बात यह भी है कि राजेश गुप्ता जिन लोगों के भरोसे चुनावी मैदान में उतरे हैं, राजेश गुप्ता उम्मीदवारी के लिए उनकी पहली पसंद नहीं हैं; वह लोग उम्मीदवार की खोज में कई एक लायंस के दरवाजे खटखटा चुके हैं । अपने आपको डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का 'चाणक्य' कहने वाले एक लायन ने लायन-समाज में 'चोर' के रूप में कुख्यात एक नेता के भरोसे चुनावी मैदान में उतरने को लेकर दिलचस्पी दिखाई थी, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनय मित्तल की लोकप्रियता तथा मुकेश गोयल के साथ उनकी पुनः बनती जोड़ी को देख फिर उनकी हिम्मत आगे बढ़ने की नहीं हुई और उन्होंने अपनी 'चाणक्ययी' को समेट लेने में ही अपनी भलाई देखी । दरअसल विनय मित्तल और मुकेश गोयल की जोड़ी को चुनावी राजनीति के लिहाज से डिस्ट्रिक्ट में एक अजेय जोड़ी के रूप में देखा जाता है; डिस्ट्रिक्ट में कई लोग जो अपने आपको नेता 'दिखाने' की कोशिश में लगे रहते हैं, वह विनय मित्तल व मुकेश गोयल की जोड़ी के समर्थन के सहारे ही गवर्नर बने हैं । इस वर्ष विनय मित्तल और मुकेश गोयल के बीच कुछेक मामलों को लेकर जो दूरी पैदा होती दिख रही थी, उसमें कुछेक लोगों को 'राजनीतिक जीवन' मिलता नजर आ रहा था; उन्हें लग रहा था कि विनय मित्तल और मुकेश गोयल एक साथ रहेंगे, तब तो इन्हें हराना असंभव है - इसलिए इनके बीच पैदा हो रही दरार को चौड़ा करके इन्हें अलग कर दिया जाये और इनके बीच बने गैप में अपना तम्बू तान लिया जाए । विनय मित्तल और मुकेश गोयल ने लेकिन होशियारी और बड़प्पन दिखाते हुए अपने बीच पैदा हो रही गलतफहमियों को दूर कर लिया और डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों को फिर से पुराने गणित में ले आए । 
पिछले वर्ष और इस वर्ष अभी तक विनय मित्तल का समर्थन न मिल पाने के कारण राजेश गुप्ता उम्मीदवार बनने से इंकार कर रहे थे; लेकिन अब वह विनय मित्तल के समर्थन के बिना ही उम्मीदवार बनने को राजी हो गए हैं । राजेश गुप्ता राजी तो हो गए हैं, पर उनके सामने समस्या यह है कि डिस्ट्रिक्ट में लोग उनके उम्मीदवार बने रहने को लेकर आश्वस्त नहीं हैं । कई लोगों ने तो राजेश गुप्ता से पूछ भी लिया कि उम्मीदवार बने तो रहोगे, या बीच में मैदान छोड़ दोगे - जैसे कि पिछले वर्ष छोड़ गए थे ? दरअसल कहा/सुना जा रहा है कि राजेश गुप्ता यह देख/सोच कर उम्मीदवार बन गए हैं कि गौरव गर्ग कमजोर व्यक्ति हैं, वह राजेश गुप्ता को उम्मीदवार बनते देखेंगे तो उम्मीदवारी से पीछे हट जायेंगे । राजेश गुप्ता और उन्हें उम्मीदवार बनवा देने वालों को यह भी उम्मीद थी कि विनय मित्तल और मुकेश गोयल के बीच पटती दिख रही दरार पट नहीं पाएगी और मुकेश गोयल का समर्थन राजेश गुप्ता को मिल जायेगा । लेकिन उनकी दोनों उम्मीदें पूरी होती हुई नहीं दिख रही हैं - न तो गौरव गर्ग कमजोर पड़ते नजर आ रहे हैं, और न विनय मित्तल व मुकेश गोयल के बीच बने संबंध कमजोर पड़ते दिख रहे हैं । राजेश गुप्ता के लिए मुसीबत और चुनौती की बात यह है कि तीन वर्ष पहले उनकी पत्नी रेखा गुप्ता जब विनय मित्तल से भारी अंतर से चुनाव हारी थीं, तब रेखा गुप्ता को फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का समर्थन प्राप्त था; लेकिन अब राजेश गुप्ता को किसी भी सत्ताधारी गवर्नर का समर्थन नहीं मिल सकेगा । तीन वर्ष पहले रेखा गुप्ता जब उम्मीदवार बनी थीं, तब अधिकतर लोगों ने उन्हें कहा/समझाया था कि इस समय उम्मीदवार बनना उनके लिए राजनीतिक रूप से आत्मघाती साबित होगा, और वही हुआ भी । अब राजेश गुप्ता के उम्मीदवार बनने पर भी डिस्ट्रिक्ट की राजनीति के समीकरणों को समझने/पहचानने वाले लोगों का कहना है कि उम्मीदवार बन कर राजेश गुप्ता ने एक बार फिर आत्मघाती कदम उठाया है । कई लोगों का कहना है कि रेखा गुप्ता की रिकॉर्ड पराजय के बाद डिस्ट्रिक्ट में गुप्ता दंपति के प्रति सहानुभूति तो पैदा हुई थी, राजेश गुप्ता लेकिन अब की बार सहानुभूति भी खो देंगे ।

Tuesday, January 22, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि मेहरा को फर्जी साइन करने के मामले में फँसाने की फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरचरण सिंह भोला की राजनीतिक चाल कहीं डिस्ट्रिक्ट को ही तो मुसीबत में नहीं फँसा देगी ?

नई दिल्ली । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरचरण सिंह भोला के फर्जी साइन करके नए क्लब बनाने/बनवाने के आरोप पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि मेहरा ने मामले को राजनीतिक रंग देने की जो कोशिश की है, उसने डिस्ट्रिक्ट में राजनीतिक तापमान को और बढ़ा दिया है । एकतरफ जेपी सिंह के नजदीकियों की तरफ से जोरशोर से दावे किए/सुने जा रहे हैं कि रवि मेहरा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर अब कुछ ही दिनों के मेहमान हैं और लायंस इंटरनेशनल द्वारा जल्दी ही उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से बर्खास्त कर दिया जायेगा । उनका कहना/बताना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में जेपी सिंह ने लायन इंटरनेशनल के वरिष्ठ पदाधिकारियों से बात कर ली है, जिन्होंने जेपी सिंह को आश्वस्त किया है कि लायंस इंटरनेशनल के साथ धोखाधड़ी करने की कार्रवाई को किसी भी रूप में स्वीकार व बर्दाश्त नहीं किया जायेगा और रवि मेहरा के खिलाफ निश्चित ही कड़ी कार्रवाई की जायेगी - जिसमें उन्हें उनके पद से हटाना भी शामिल है । दूसरी तरफ, इस तरह की बातों के जबाव में रवि मेहरा के नजदीकियों की तरफ से भी जेपी सिंह को निशाने पर लिया जा रहा है और दावा किया जा रहा है कि जेपी सिंह की हरकतों ने  जिस तरह से लायनिज्म को विवादग्रस्त और सड़क के झगड़ों में तब्दील कर दिया है, उसे लायंस इंटरनेशनल के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने समझ/पहचान लिया है और उन्होंने जेपी सिंह को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया है, जिसके कारण जेपी सिंह का इंटरनेशनल डायरेक्टर पद ही खतरे में है । डिस्ट्रिक्ट और मल्टीपल के कुछेक वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट ए टू में जिस तरह से झगड़े लगातार बने हुए हैं, और बढ़ रहे हैं - उसके कारण डिस्ट्रिक्ट ए थ्री की तरह कहीं डिस्ट्रिक्ट ए टू को भी सस्पेंड न कर दिया जाए और डिस्ट्रिक्ट का अधिकृत स्टेटस कुछ समय के लिए खत्म न कर दिया जाए ? यदि सचमुच ऐसा हो गया तो रवि मेहरा का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद तो छिनेगा ही, अगले वर्ष गुरचरण सिंह भोला भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बन पायेंगे और डिस्ट्रिक्ट ए टू का सदस्य होने के कारण जेपी सिंह को भी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद से हाथ धोना पड़ेगा ।
लायंस इंटरनेशनल में डिस्ट्रिक्ट ए टू का जो नया झगड़ा पहुँचा है, उसमें फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरचरण सिंह भोला ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि मेहरा पर उनके फर्जी साइन करके क्लब बनाने का आरोप लगाया है । उल्लेखनीय है कि लायंस इंटरनेशनल के नियमानुसार, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नए 9 क्लब तो अपने आप बना/बनवा सकता है, लेकिन इसके बाद नए क्लब बनाने/बनवाने के लिए उसे फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की सहमति भी 'दिखानी' होगी । लायंस इंटरनेशनल को लिखी शिकायत में गुरचरण सिंह भोला ने आरोप लगाया है कि 9 के बाद डिस्ट्रिक्ट में पाँच और जो नए क्लब बने हैं, उनमें उनकी सहमति दिखाने के लिए उनके फर्जी साइन बनाए गए हैं - और यह धोखाधड़ी का मामला है तथा इसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि मेहरा के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए । गुरचरण सिंह भोला के शिकायती पत्र को लायंस इंटरनेशनल कार्यालय ने जबाव देने के लिए रवि मेहरा के पास भेज दिया । रवि मेहरा की तरफ से आरोप से इंकार किया गया और दावा किया गया कि साइन गुरचरण सिंह भोला ने ही किए हैं, लेकिन वह राजनीतिक कारणों से अब इससे मुकर रहे हैं और राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से वह उन पर झूठा आरोप लगा रहे हैं । रवि मेहरा ने मामले को जो राजनीतिक ट्विस्ट दिया है, उसके चलते यह किस्सा दिलचस्प और ज्यादा गंभीर हो गया है । मामले में रवि मेहरा और गुरचरण सिंह भोला में से कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ - यह बात तो सिर्फ रवि मेहरा और गुरचरण सिंह भोला ही जानते होंगे; दूसरे लोग तो सिर्फ परिस्थितियों व कॉमनसेंस के आधार पर ही मामले को समझने की कोशिश कर सकते हैं । 
परिस्थितियों व कॉमनसेंस के आधार पर मामले को देखने/समझने की कोशिश में रवि मेहरा का पलड़ा भारी नजर आता है; क्योंकि उनकी तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि रवि मेहरा को फर्जीवाड़ा करने की जरूरत क्या थी - गुरचरण सिंह भोला यदि नए क्लब के आवेदनों पर साइन करने के लिए राजी नहीं होते तो लायंस इंटरनेशनल उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन गुप्ता के साइन करवा कर आवेदन भेजने का अधिकार देता है, और रवि मेहरा आसानी से ऐसा कर लेते । रवि मेहरा के नजदीकियों का कहना है कि जो काम करने के लिए वह गुरचरण सिंह भोला पर निर्भर नहीं थे, जिस काम को वह रमन गुप्ता की मदद से संभव कर सकते थे - उस काम को करने के लिए वह फर्जी साइन क्यों करेंगे भला ? मजे की बात यह भी है कि खुद गुरचरण सिंह भोला भी कह रहे हैं कि उन्हें नए बने क्लब्स को लेकर कोई शिकायत नहीं है और रवि मेहरा यदि उन्हें साइन करने को कहते, तो वह साइन कर देते । दोनों पक्षों की तरफ से होने वाली इन बातों से लोगों को लगा है कि मामला कोई ज्यादा गंभीर नहीं है और गुरचरण सिंह भोला नाहक ही मामले को तूल दे रहे हैं । क्लब्स और डिस्ट्रिक्ट्स में होने वाले कामकाज से परिचित लोगों का कहना है कि कई बार किसी के साइन किसी और के द्वारा करने की स्थितियाँ बनती रहती हैं, और गलत होने के बावजूद उन स्थितियों को 'स्वीकार' कर लिया जाता है - इसलिए लगता है कि इस मामले को तूल देकर गुरचरण सिंह भोला कोई राजनीतिक उद्देश्य ही साधना चाहते हैं । कुछेक लोगों का यह भी कहना है कि फर्जी साइन करने की बात यदि सच है, और इसे लेकर गुरचरण सिंह भोला वास्तव में सेंसेटिव हैं तो उन्हें लायंस इंटरनेशनल की बजाये पुलिस में शिकायत करना चाहिए ।
दरअसल पैसों की लूट-खसोट और मनमाने व घमंडी तरीके से काम करने को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि मेहरा की डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच भारी बदनामी तो है ही; उनके खेमे के कुछेक प्रमुख लोगों ने पाला भी बदल लिया है । समझा जाता है कि रवि मेहरा की इस बदनामी को और गहरा बनाने के लिए ही गुरचरण सिंह भोला ने उन पर फर्जी साइन करने का आरोप मढ़ दिया है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी खेमेबाजी में यह दोनों चूँकि अलग अलग उम्मीदवारों की कमान सँभाले हुए हैं, इसलिए माना/समझा जा रहा है कि रवि मेहरा को राजनीतिक रूप से दबाव में लेने तथा कमजोर करने के लिए ही गुरचरण सिंह भोला ने फर्जी साइन करने का मुद्दा उछाल दिया है, जिस पर रवि मेहरा की तरफ से हुई जबावी कार्रवाई ने लेकिन मामले को और गंभीर बना दिया है - तथा डिस्ट्रिक्ट के अस्तित्व को ही खतरे में पहुँचा देने वाले हालात बना दिए हैं ।

Monday, January 21, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अमित गुप्ता की बड़े अंतर से हुई हार को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता और डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर मुकेश अरनेजा की हार के रूप में देखा जाना भी, अगले रोटरी वर्ष के संभावित उम्मीदवारों की असमंजसता का एक कारण बना

गाजियाबाद । अमित गुप्ता की संशयभरी चुप्पी के कारण अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की सोच रहे संभावित उम्मीदवारों ने भी अपने अपने कदम रोके हुए हैं, और इस वजह से अगले रोटरी वर्ष के चुनावी परिदृश्य को लेकर डिस्ट्रिक्ट अभी भी अनिश्चय बना हुआ है । समय के लिहाज से हालाँकि यह कोई खास बात नहीं है, लेकिन रोटरी की राजनीति में ही नहीं - बल्कि हर राजनीति में चूँकि कोई 'गैप पीरियड' नहीं होता है और एक चुनाव खत्म होते ही, अगले चुनाव की तैयारियाँ शुरू हो जाती है; इसलिए यह थोड़ा आश्चर्य की बात जरूर है कि संभावित उम्मीदवार अभी चुप्पी ओढ़े बैठे हैं । यह बात आश्चर्य की इसलिए भी है क्योंकि संभावित उम्मीदवारों के रूप में कई लोगों को देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन जिन्हें देखा/पहचाना जा रहा है उनकी तरफ से कोई सुगबुगाहट नहीं है ।डिस्ट्रिक्ट में सभी लोगों की निगाहें अमित गुप्ता की तरफ हैं; डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोग यह तो मान रहे हैं कि अमित गुप्ता दोबारा अपनी उम्मीदवारी जरूर प्रस्तुत करेंगे, किंतु अमित गुप्ता की तरफ से कोई सक्रियता नहीं देखी/सुनी जा रही है । कुछेक लोगों को लग रहा है कि अमित गुप्ता इस बार जितने भारी अंतर से चुनाव में हारे/पिछड़े हैं, उसे देखते हुए अमित गुप्ता अब अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं करेंगे । हालाँकि अगले वर्ष दीपक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के कारण अमित गुप्ता के लिए स्थितियों को अनुकूल भी देखा/समझा जा रहा है, लेकिन दीपक गुप्ता और उनके डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर मुकेश अरनेजा के समर्थन के बावजूद इस वर्ष उनकी उम्मीदवारी का जो हाल हुआ, उसे देखते हुए इन दोनों के भरोसे रहना अमित गुप्ता के लिए आत्मघाती भी साबित हो सकता है । समझा जाता है कि अमित गुप्ता अभी यही 'देख' रहे हैं कि वह आखिर किसके भरोसे दोबारा अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करें ?
अगले रोटरी वर्ष की उम्मीदवारी के संदर्भ में सबसे ज्यादा रोचक स्थिति रोटरी क्लब दिल्ली विकास के प्रेसीडेंट सुनील मल्होत्रा की बनी है । मजे की बात यह है कि सुनील मल्होत्रा जब से क्लब के प्रेसीडेंट बने हैं, तब ही से अगले रोटरी वर्ष में उनके उम्मीदवार बनने की चर्चा है - लेकिन अब जब उन्हें उम्मीदवार के रूप में 'दिखना' चाहिए, तो वह न जाने कहाँ 'छिप' गए हैं ? जानकारों का कहना है कि सुनील मल्होत्रा के क्लब के कुछेक पूर्व प्रेसीडेंट ही उनकी टाँग खींचने में इस कदर लगे हुए हैं कि उनसे अपनी टाँग छुड़ाकर उम्मीदवार बनना सुनील मल्होत्रा के लिए मुश्किल बना हुआ है । सुनील मल्होत्रा के लिए अनुकूल बात यह तो है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनकी उम्मीदवारी को लेकर चर्चा है और उन्हें संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन अभी वह खुद ही ढीले पड़े नजर आ रहे हैं । प्रेसीडेंट के रूप में रोटरी क्लब नोएडा के प्रेसीडेंट सुधीर वालिया की जैसी सक्रियता रही है, उसके कारण उन्हें भी अगले रोटरी वर्ष के संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन उनके समर्थक अभी उनकी उम्मीदवारी के लिए संभावना खोजने के काम में ही लगे हुए हैं । सुधीर वालिया और उनके क्लब के लोग अपने लिए समर्थन जुटाने की कोशिश करने की बजाये अभी यही देखने/जानने/समझने में लगे हुए हैं कि कौन कौन अपनी उम्मीदवार प्रस्तुत कर रहे हैं, और उन्हें किन किन नेताओं का समर्थन मिल रहा है । 
डिस्ट्रिक्ट में कई लोग ललित खन्ना को संभावित उम्मीदवार के रूप में 'देख' रहे हैं, हालाँकि ललित खन्ना की तरफ से अभी न 'हाँ' किया जा रहा है और न ही 'न' । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में कई लोगों ने ललित खन्ना से उनकी उम्मीदवारी की संभावना के बारे में पूछा - और उस 'पूछने' में उन्हें प्रेरित करने वाला अंदाज भी था, लेकिन ललित खन्ना अभी भी अपनी उम्मीदवारी को लेकर 'हाँ' कहने की स्थिति में नहीं हैं । रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के प्रतिनिधि के रूप में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में पधारे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उपकार सेठी तथा अतिथि के रूप में शामिल हुए मशहूर पत्रकार रजत शर्मा ने अपने अपने भाषणों में बार बार जिस तरह से ललित खन्ना का जिक्र किया और उनकी प्रशंसा की, उससे भी लोगों को लगा कि ललित खन्ना को उम्मीदवार बनना चाहिए - लेकिन ललित खन्ना की तरफ से संकेत दिया जा रहा है कि वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर जल्दबाजी में फैसला नहीं करेंगे और सोच-विचार कर ही निष्कर्ष पर पहुँचेंगे । हर मौके पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन के दाएँ और बाएँ रहते आ रहे आलोक गर्ग और विपुल कुछल को भी संभावित उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन इनके नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि इनके लिए अभी उम्मीदवार बनना संभव नहीं है; दरअसल इनकी जैसी जो सक्रियता रही है उसमें उम्मीदवारी की तैयारी जैसा कोई भाव रहा/दिखा भी नहीं है । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सचमुच में कौन कौन उम्मीदवार बनेंगे, यह अभी भले ही स्पष्ट न हो - लेकिन इस अस्पष्टता में डिस्ट्रिक्ट के दो राजनीतिबाजों - मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल की बुरी गत बनी हुई है । उनके जोरदार सक्रियताभरे समर्थन के बावजूद अमित गुप्ता को बड़े अंतर से जिस हार का सामना करना पड़ा है, उसने मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल की राजनीतिक हैसियत की पोल खोल दी है, और हर संभावित उम्मीदवार इनकी छाया से भी बच रहा है और यह दोनों चुपचाप बैठने के लिए मजबूर हो रखे हैं ।

Sunday, January 20, 2019

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर 'कब्जा' करने की उत्तम अग्रवाल की 'धमकी-राजनीति' को फेल करने के उद्देश्य से वेस्टर्न रीजन के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के नए पदाधिकारियों के चुनाव में वोट देने का फैसला करके हालात को उत्तम अग्रवाल के लिए और मुश्किल बनाया

मुंबई । संदीप जैन को 'आगे करके' उत्तम अग्रवाल ने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर कब्जे की लड़ाई की जो तैयारी की है, उसका मुकाबला करने के लिए वेस्टर्न रीजन के कई एक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने भी कमर कस ली है - और इस तरह वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के नए पदाधिकारियों के चुनाव का नजारा खासा दिलचस्प हो उठा है । उल्लेखनीय है कि 13 जनवरी की 'रचनात्मक संकल्प' की रिपोर्ट में बताया गया था कि 22 सदस्यीय अगली रीजनल काउंसिल में उत्तम अग्रवाल खेमे के पास 9 सदस्यों का समर्थन है; बहुमत पूरा करने के लिए उन्हें तीन और सदस्यों के समर्थन की जरूरत है - जिसे पूरा करने के लिए वह तीन-चार सदस्यों को तरह तरह की धमकियाँ देकर अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं; और जब तक उनके पास बहुमत नहीं जुट जाता है, तब तक वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन संदीप जैन अगली काउंसिल के सदस्यों की मीटिंग नहीं बुलायेंगे । वेस्टर्न रीजन में हर किसी के लिए यह समझना मुश्किल हुआ है कि उत्तम अग्रवाल के साथ संदीप जैन के आखिर ऐसे कौन से स्वार्थ जुड़े हुए हैं कि वह पूरी तरह से उत्तम अग्रवाल की कठपुतली बन गए हैं - और अपनी, इंस्टीट्यूट की तथा प्रोफेशन की पहचान व साख को दाँव पर लगा देने को तैयार हैं । संदीप जैन को इस्तेमाल करके उत्तम अग्रवाल ने रीजनल काउंसिल पर कब्जे के लिए जो हथकंडा अपनाया है, उसकी वेस्टर्न रीजन के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच तीखी प्रतिक्रिया देखने/सुनने को मिली है; और संकेत मिले हैं कि उत्तम अग्रवाल ने डरा-धमका कर यदि सदस्यों का समर्थन जुटाया और बहुमत प्राप्त किया, तो वह रीजनल काउंसिल के पदाधिकरियों के चुनाव में वोट करेंगे और उत्तम अग्रवाल के मंसूबों को पूरा नहीं होने देंगे । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की इस प्रतिक्रिया ने उत्तम अग्रवाल खेमे को तगड़ा झटका दिया है ।
दरअसल नई सेंट्रल काउंसिल के लिए वेस्टर्न रीजन में चुने गए 11 सदस्यों में से 7 - निहार जम्बूसारिया, प्रफुल्ल छाजेड़, श्रीनिवास जोशी, दुर्गेश काबरा, अनिल भंडारी, एनसी हेगड़े और वसंत चितले को उत्तम अग्रवाल के विरोधियों के रूप में देखा/पहचाना जाता है । इनमें से पाँच सदस्य तो रीजनल काउंसिल के 13 सदस्यों की उस मीटिंग में भी उपस्थित हुए थे, जो आगे की रणनीति पर विचार करने के लिए आयोजित हुई थी । जय छेरा को हालाँकि अभी तक उत्तम अग्रवाल खेमे में ही माना/समझा जाता रहा है, लेकिन रीजनल काउंसिल की अनौपचारिक मीटिंग बुलवाने को लेकर उन्होंने जो दिलचस्पी दिखाई है, उसके चलते उनके तेवर बदले बदले से नजर आ रहे हैं और संदर्भित मामले में उत्तम अग्रवाल खेमे को उनका समर्थन मिल पाने को लेकर शक जताया जा रहा है । अनिकेत तलति मौजूदा रीजनल काउंसिल के सदस्य के रूप में तो उत्तम अग्रवाल खेमे में हैं, लेकिन सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में वह उत्तम अग्रवाल के गेम प्लान का हिस्सा बनेंगे - इसे लेकर खुद उत्तम अग्रवाल खेमे में संदेह है । असल में, इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसिडेंट पद की चुनावी राजनीति में अनिकेत के पिता सुनील तलति और उत्तम अग्रवाल का हमेशा ही छत्तीस का रिश्ता रहा है, और कोई भी अभी यह बात भूला नहीं है कि उत्तम अग्रवाल के विरोध के बावजूद सुनील तलति वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनाव कमलेश विकमसे की मदद से जीते थे । इस पृष्ठभूमि में अनिकेत तलति यदि उत्तम अग्रवाल के गेमप्लान का समर्थन करते हैं, तो उनके लिए कई तरह की समस्याओं और चुनौतियों को दावत देना होगा । बाकी बचे दो सदस्यों - धीरज खंडेलवाल और तरुण घिआ का उत्तम अग्रवाल को पक्का समर्थन रहेगा । इस तरह, रीजनल काउंसिल के नए पदाधिकारियों के चुनाव में वोट देने के अधिकारी कुल 33 सदस्यों में उत्तम अग्रवाल के गेमप्लान को अभी कुल 11 का पक्का समर्थन है; ऐसे में उत्तम अग्रवाल खेमे के लोग रीजनल काउंसिल के दो-तीन सदस्यों को यदि धमका-धमकु कर अपनी तरफ कर भी लेते हैं - तब भी बहुमत से बहुत दूर ही रह जाते हैं; और ऐसे में वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर कब्जे की उनकी कोशिश को फेल ही होना है ।
सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की इस तैयारी के चलते संदीप जैन के सहारे बहुमत जुटाने के लिए समय लेने की उत्तम अग्रवाल की कोशिश निरर्थक ही हो जाती है; क्योंकि इसके बाद संदीप जैन कभी भी मीटिंग करें - उत्तम अग्रवाल खेमा बहुमत से दूर ही होगा । रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के चुनाव में हिस्सा लेने के फैसले को 'मजबूरी' बताते हुए सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का कहना है कि उन्हें यह अच्छा तो नहीं लगेगा कि जो चुनाव रीजनल काउंसिल के सदस्यों को आपस में मिल-बैठ कर करना चाहिए - उसमें वह भी पड़ें; लेकिन कुछेक लोगों ने जिस तरह से इस चुनाव को अपनी गंदी व स्वार्थी राजनीति का अड्डा बना लिया है, तो उन्हें रोकना और सबक सिखाना जरूरी हो गया है; उन्हें यह बताना/दिखाना जरूरी है कि उनकी मनमानियाँ चलने नहीं दी जायेंगी । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का कहना है कि रीजनल काउंसिल के सदस्यों के बीच सहमतियाँ बन गई हैं और उनके गठजोड़ तय हो गए हैं - सभी को उसका सम्मान करना चाहिए; कुछेक लोग अपनी चौधराहट जमाने/दिखाने के लिए यदि रीजनल काउंसिल के बहुमत सदस्यों के फैसले को स्वीकार नहीं कर रहे हैं, और धौंस-डपट से बहुमत जुटाने का प्रयास कर रहे हैं - तो सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में वह चुपचाप बैठे नहीं रह सकते हैं । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के नए पदाधिकारियों के चुनाव में सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की सक्रियता ने उत्तम अग्रवाल खेमे की तैयारियों को जो झटका दिया है, उसने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को दिलचस्प बना दिया है ।

Friday, January 18, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद पर विनोद बंसल की नियुक्ति और उसके बाद, डीआरएफसी पद पर रंजन ढींगरा और आशीष घोष को लेकर चल रही खींचतान के पीछे इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता का हाथ है क्या ?

नई दिल्ली । अगले तीन वर्षों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद संभालने वाले क्रमशः सुरेश भसीन, संजीव राय मेहरा और अनूप मित्तल के बीच सहमति न बन पाने के कारण अगले तीन वर्षों के लिए नियुक्त होने वाले डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन का नाम तय होने का काम लगातार टलता ही जा रहा है - और उसके हल होने के जल्दी ही कोई आसार नहीं दिख रहे हैं । सुरेश भसीन और अनूप मित्तल उक्त पद के लिए रंजन ढींगरा का नाम ले रहे हैं, जबकि संजीव राय मेहरा ने आशीष घोष के नाम को लेकर पैर जमाया हुआ है । संजीव राय मेहरा का गंभीर आरोप यह है कि डीआरएफसी के लिए आशीष घोष के नाम पर पहले तीनों की सहमति बन गई थी, लेकिन फिर अचानक से पता नहीं क्या हुआ कि सुरेश भसीन और अनूप मित्तल ने आशीष घोष के नाम पर दी गई अपनी अपनी सहमति को वापस ले लिया और वह रंजन ढींगरा के नाम की वकालत करने लगे । संजीव राय मेहरा चूँकि अपनी राय बदलने के लिए तैयार नहीं हुए, इसलिए मामला अटक गया । संजीव राय मेहरा की तरफ से यह सुझाव भी दिया गया कि चूँकि इन दोनों नामों पर सहमति नहीं बन पा रही है, इसलिए किसी तीसरे नाम पर विचार किया जाए । सुरेश भसीन और अनूप मित्तल लेकिन इसके लिए भी राजी नहीं हो रहे हैं । इससे लगा है कि जैसे सुरेश भसीन और अनूप मित्तल डीआरएफसी पद के लिए रंजन ढींगरा के नाम की जिद पकड़ कर बैठ गए हैं; जिसकी प्रतिक्रिया में संजीव राय मेहरा ने भी जिद पकड़ ली लगती है - औरडीआरएफसी पद को लेकर मामला फँस गया है ।
इस झमेले की शुरुआत वास्तव में सुरेश भसीन के गवर्नर-वर्ष के लिए विनोद बंसल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने से हुई । दरअसल सुरेश भसीन के गवर्नर-वर्ष का डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद रंजन ढींगरा को मिलने की चर्चा थी ।इसके लिए कई लोग रंजन ढींगरा को बधाई भी दे चुके थे, और रंजन ढींगरा बधाई ले भी चुके थे । लेकिन डिस्ट्रिक्ट में लोग तब हक्के-बक्के रह गए जब डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद पर उन्होंने विनोद बंसल की ताजपोशी होते हुए देखी । विनोद बंसल की ताजपोशी पर लोगों को आश्चर्य इसलिए भी हुआ, क्योंकि विनोद बंसल को अक्सर ही कहते/बताते सुना जाता है कि रोटरी फाउंडेशन एंडोवमेंट मेजर गिफ्ट एडवाइजर लीडरशिप टीम में शामिल होने के बाद उनके लिए डिस्ट्रिक्ट और जोन का हर पद छोटा है, और उन्हें डिस्ट्रिक्ट में या जोन में कोई पद नहीं चाहिए । यह कहते/बताते रहने के बावजूद अगले रोटरी वर्ष में लगातार दूसरे वर्ष उनको डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद लेते देख लोगों को कहने का मौका मिला कि विनोद बंसल कहते तो हैं कि उन्हें कोई पद नहीं चाहिए, लेकिन वास्तव में उन्हें हर पद चाहिए । कुछेक लोगों का हालाँकि यह भी मानना/कहना है कि रोटरी फाउंडेशन एंडोवमेंट मेजर गिफ्ट एडवाइजर लीडरशिप टीम में पद मिलना भले ही इंटरनेशनल लेबल की बात हो, लेकिन उक्त पद का रोटेरियंस के बीच वास्तव में कोई 'ग्लैमर' नहीं है; सच तो यह है कि डिस्ट्रिक्ट में और या जोन में कोई जानता भी नहीं होगा कि ऐसी कोई लीडरशिप टीम है, जिसमें विनोद बंसल को शामिल किया गया है । इसलिए उक्त पद पर होने में कोई 'मजा' नहीं है, और ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि इंटरनेशनल लेबल का एक बड़ा पद मिलने के बाद भी डिस्ट्रिक्ट और जोन के 'छोटे' 'छोटे' पदों के लिए विनोद बंसल का मोह न छूट पाता हो । अब एक इंटरनेशनल लेबल के पद पर रहते हुए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर जैसे डिस्ट्रिक्ट के पद को - और वह भी लगातार दूसरे वर्ष - विनोद बंसल ने क्यों स्वीकार कर लिया, यह तो विनोद बंसल ही जानते होंगे; लेकिन उनके डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के साथ ही डिस्ट्रिक्ट में झमेला खड़ा हो गया । रंजन ढींगरा से डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद छिना तो उन्हें डीआरएफसी का पद देने की चर्चा शुरू हुई ।
इस चर्चा ने ही मामले में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता की मिलीभगत के संकेत दिए । चूँकि विनोद बंसल और रंजन ढींगरा को सुशील गुप्ता के नजदीकियों के रूप में देखा/पहचाना जाता है; इसलिए माना/समझा जा रहा है कि सुशील गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट के दोनों महत्त्वपूर्ण पदों पर अपने नजदीकियों की नियुक्ति के लिए दबाव बनाया है । डीआरएफसी पद के लिए आशीष घोष के नाम पर बनी सहमति से सुरेश भसीन और अनूप मित्तल ने जिस तरह से पलटी मारी, उससे भी मामले में सुशील गुप्ता की मिलीभगत के संदेह और मजबूत हुए हैं - क्योंकि सुरेश भसीन और अनूप मित्तल को भी सुशील गुप्ता की 'टीम' के सदस्य के रूप में देखा/पहचाना जाता है । संजीव राय मेहरा ने भी जिस तरह से जिद पकड़ ली है; और वह आशीष घोष के नाम को तो छोड़ने के लिए तैयार हो गए हैं, लेकिन रंजन ढींगरा के नाम को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं - उससे भी उक्त मामला डिस्ट्रिक्ट में सुशील गुप्ता खेमे और उनके विरोधी खेमे के बीच का झगड़ा बनता नजर आ रहा है । संजीव राय मेहरा ने इस मामले को एक बड़ी बहस में तब्दील करने की भी कोशिश की है, जिसके तहत उनका सवाल है कि ग्रांट्स आदि के काम करने का रंजन ढींगरा को जब कोई अनुभव नहीं है, तब डीआरएफसी का पद उन्हें ही देने पर जोर क्यों दिया जा रहा है; और इस तरह से पद देने के मामले में सिफारिश और पक्षपातपूर्ण व्यवहार क्यों हावी हो रहा है ? डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोगों को लग रहा है कि इस तरह की बातों के जरिये वास्तव में सुशील गुप्ता को निशाने पर लेने और उन्हें घेरने की कोशिश की जा रही है । समझा जा रहा है कि विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद दिलवा कर सुशील गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट में एक ऐसा पिटारा खोल दिया है, जिसमें विवाद ही विवाद हैं ।

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह की गुरनाम सिंह के खिलाफ की गई कार्रवाई तथा नीरज बोरा के समर्थन से उत्साहित होकर पराग गर्ग ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर जो सक्रियता बढ़ाई है, उससे जगदीश अग्रवाल और विशाल सिन्हा मुसीबत में फँसे

लखनऊ । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नीरज बोरा के सहयोग/समर्थन के भरोसे पराग गर्ग ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी बनाये रख कर जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए खासी मुसीबत पैदा कर दी है । मजे की बात यह है कि जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी की बागडोर सँभाले रख रहे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा लगातार जगदीश अग्रवाल को आश्वस्त कर रहे हैं कि पराग गर्ग को जब कहीं से कोई समर्थन नहीं मिलेगा, तो वह उम्मीदवार के रूप में बने रहने का साहस नहीं करेंगे और बैठ जायेंगे; लेकिन पराग गर्ग चूँकि 'बैठते' हुए दिख नहीं रहे हैं, इसलिए जगदीश अग्रवाल के नजदीकियों को लग रहा है कि विशाल सिन्हा उन्हें उल्लू बना रहे हैं और जगदीश अग्रवाल को सिर्फ इसलिए उम्मीदवार बनाये हुए हैं - ताकि उनसे पैसे ऐंठते रह सकें । उल्लेखनीय है कि वर्ष के शुरू से ही गुरनाम सिंह की तरफ से उम्मीदवार बनने के लिए पराग गर्ग और जगदीश अग्रवाल के बीच होड़ थी । जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी का हालाँकि उनके अपने क्लब में ही भारी विरोध सुना/बताया जाता है; उनके क्लब के प्रदीप अग्रवाल की डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अच्छी धाक देखी/पहचानी जाती है और डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच चर्चा रही है कि प्रदीप अग्रवाल ने इस वर्ष जगदीश अग्रवाल को रीजन चेयरमैन बनाये जाने का खासा विरोध किया था । प्रदीप अग्रवाल को डर था कि रीजन चेयरमैन के रूप में जगदीश अग्रवाल को लोगों के बीच रहने/दिखने का मौका मिलेगा और इससे उनकी उम्मीदवारी का दावा मजबूत होगा । क्लब के सदस्यों के अनुसार ही, प्रदीप अग्रवाल के विरोध को देखते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह ने जगदीश अग्रवाल को रीजन चेयरमैन बनाने का फैसला टालने की तैयारी भी कर ली थी, किंतु विशाल सिन्हा के दबाव में एके सिंह फिर जगदीश अग्रवाल को रीजन चेयरमैन बनाने के लिए मजबूर हो गए थे । जगदीश अग्रवाल को रीजन चेयरमैन बनवाने में विशाल सिन्हा की दिलचस्पी सिर्फ इसलिए ही थी, ताकि वह जगदीश अग्रवाल को यह विश्वास दिला सकें कि वह उनके लिए पूरे जोरशोर से 'काम' कर रहे हैं, और उनसे पैसे ऐंठते रह सकें ।
जगदीश अग्रवाल को उम्मीदवार बनाये रख कर विशाल सिन्हा ने पराग गर्ग को भी दबाव में लेने की चाल चली हुई थी । विशाल सिन्हा समझ रहे थे कि गुरनाम सिंह खेमे की तरफ से पराग गर्ग यदि अकेले उम्मीदवार रहे, तो सबसे पहले उनकी ही जड़ खोदेंगे; इसके अलावा उम्मीदवार बने पराग गर्ग से विशाल सिन्हा पैसे भी नहीं ऐंठ पाते - इसलिए जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के जरिये विशाल सिन्हा ने पराग गर्ग की घेराबंदी की, जिससे कि पराग गर्ग उनके दबाव में और उन पर आश्रित रहें । खास बात यह रही कि विशाल सिन्हा, पराग गर्ग को समझाते भी रहे कि जगदीश अग्रवाल के बस की उम्मीदवार बने रहना होगा नहीं, और अंततः उन्हें ही - यानि पराग गर्ग को ही केएस लूथरा खेमे के बीएम श्रीवास्तव से मुकाबला करना होगा । इस तरह विशाल सिन्हा एक साथ जगदीश अग्रवाल और पराग गर्ग के साथ दोहरा खेल खेलते रहे और दोनों को एकसाथ 'गोली' देते रहे । पराग गर्ग ने विशाल सिन्हा के दोहरे खेल को खत्म करने के लिए नीरज बोरा की मदद ली । नीरज बोरा ने पराग गर्ग की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने के लिए कुछेक प्रमुख लोगों से बात की और विशाल सिन्हा पर भी दबाव बनाया । नीरज बोरा के हस्तक्षेप से विशाल सिन्हा को अपना खेल बिगड़ता हुआ लगा । इस बीच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह ने गुरनाम सिंह के रवैये से नाराज होकर उन्हें तगड़ा झटका दिया और गुरनाम सिंह को कॉन्फ्रेंस चेयरमैन के पद से हटा दिया । गुरनाम सिंह के चेलों के रूप में विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल ने गुरनाम सिंह का कॉन्फ्रेंस चेयरमैन का पद बचाने का बहुत प्रयास भी किया, लेकिन एके सिंह के क्रोध के कारण गुरनाम सिंह को फजीहत झेलना ही पड़ी । पराग गर्ग और नीरज बोरा के दबाव के बीच विशाल सिन्हा के लिए एके सिंह को नाराज करना और महँगा पड़ता, लिहाजा उन्होंने गुरनाम सिंह की फजीहत का घूँट चुपचाप पी लेने में ही भलाई समझी ।
एके सिंह ने गुरनाम सिंह और उनके चेलों का जो हाल किया, उससे पराग गर्ग को और बल मिला तथा अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह और ज्यादा दृढ़ निश्चयी होते हुए दिखे । पराग गर्ग को विश्वास है कि नीरज बोरा के सहयोग से सत्ता/प्रशासन की धमक दिखा कर वह डिस्ट्रिक्ट के कई लोगों का समर्थन जुटा लेंगे और तब विशाल सिन्हा भी उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए मजबूर हो जायेंगे । पराग गर्ग का आकलन है कि विशाल सिन्हा तथा गुरनाम सिंह खेमे के दूसरे लोग किसी भी कीमत पर केएस लूथरा खेमे के बीएम श्रीवास्तव को चुनाव नहीं जीतने देना चाहेंगे; और यह भी समझेंगे कि पराग गर्ग और जगदीश अग्रवाल - दोनों की उम्मीदवारी होने का सीधा फायदा बीएम श्रीवास्तव को ही मिलेगा; इसलिए पराग गर्ग की उम्मीदवारी के रहते विशाल सिन्हा को जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी को वापस करवाने के लिए मजबूर होना ही पड़ेगा । इसी आकलन के चलते पराग गर्ग ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर अपनी गंभीरता जताना/दिखाना शुरू किया है । पराग गर्ग के इस रवैये ने जगदीश अग्रवाल और उनके नजदीकियों को मुसीबत में फँसा दिया है । जगदीश अग्रवाल और उनके नजदीकियों को लग रहा है कि विशाल सिन्हा तरीके से पराग गर्ग को हैंडल नहीं कर रहे हैं, कर रहे होते तो पराग गर्ग अभी तक अपनी उम्मीदवारी को छोड़ चुके होते । विशाल सिन्हा लगता है कि पराग गर्ग की अपने खिलाफ कुछेक वर्ष पहले की गई एक 'कार्रवाई' को अभी तक भूले नहीं हैं और इसलिए वह पराग गर्ग को 'आगे' नहीं बढ़ने देना चाहते हैं - और इसके लिए जगदीश अग्रवाल को मोहरा बनाये हुए हैं । गुरनाम सिंह खेमे में उम्मीदवारी को लेकर चल रही पराग गर्ग और जगदीश अग्रवाल के बीच की इस होड़ ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी को खासी 'सुविधा' दे दी है, और चुनावी मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है ।

Wednesday, January 16, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी को लेकर अकेले चलने के रवैये के कारण कपिल गुप्ता अपने स्वाभाविक समर्थकों के बीच ही अलग-थलग पड़ गए हैं और उनके सामने अपने समर्थकों को ही अपने समर्थन में बनाए रखने की चुनौती पैदा हो गई है

चंडीगढ़ । कपिल गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में वोट जुटाने के लिए तीन-तिकड़म तो खूब करते सुने जा रहे हैं, लेकिन उनकी तिकड़में कामयाब होती हुई दिख नहीं रही हैं । कपिल गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह नजर आ रही है कि उनकी उम्मीदवारी के जो स्वाभाविक सहयोगी/समर्थक हो सकते हैं, वह तक उनकी उम्मीदवारी को लेकर उत्साहित नहीं हो पा रहे हैं - जिसका फायदा अजय मदान की उम्मीदवारी को होता लग रहा है । कपिल गुप्ता के नजदीकी और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में देखे जाने वाले लोग ही कहते सुने जा रहे हैं कि कपिल गुप्ता की गर्दन में पता नहीं कोई सरिया लगा है क्या, कि वह हमेशा अकड़ी हुई सी ही रहती है । कपिल गुप्ता के समर्थकों का ही मानना और कहना है कि कपिल गुप्ता के लिए इस वर्ष अच्छा मौका है कि अपनी उम्मीदवारी के लिए पर्याप्त समर्थन जुटा लें और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में जीत हासिल करें, लेकिन अपने व्यवहार और रवैये के चलते वह हाथ में रखे मौके को गवाँ रहे हैं । कपिल गुप्ता के सामने सबसे अच्छा मौका इस बात का है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल उनके सहयोगी/समर्थक हो सकते हैं । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सलूजा तो कपिल गुप्ता के क्लब के ही सदस्य हैं, और डिस्ट्रिक्ट में उनकी अच्छी साख/पहचान है - कपिल गुप्ता उनकी मदद लेते, तो कई छोटे क्लब्स का समर्थन जुटा सकते थे । डिस्ट्रिक्ट के कई पूर्व गवर्नर्स खेमेबाजी की राजनीति के चलते अजय मदान को चुनाव जीतने से रोकना चाहते हैं, और इस कारण से वह कपिल गुप्ता के स्वाभाविक सहयोगी/समर्थक हो सकते हैं - लेकिन कपिल गुप्ता इनमें से किसी का भी समर्थन जुटा पाने में सफल नहीं हो सके हैं; और इसीलिए उनकी उम्मीदवारी डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच कोई अपील बनाती नहीं दिख रही है ।
मजे की बात यह है कि यह स्थिति तब है जब कपिल गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को लेकर बहुत गंभीर भी हैं । अपनी तरफ से वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर जी-जान लगाए हुए हैं, और वोट जुटाने के जुगाड़ों में सिर खपा रहे हैं । लेकिन उनके सिर खपाने में चूँकि कोई सोच और या रणनीति नहीं है, इसलिए उनके तमाम प्रयास निरर्थक तो साबित हो ही रहे हैं, अलग अलग कारणों से लोगों को नाराज भी कर रहे हैं । जैसे कपिल गुप्ता एक तरफ तो रिश्तेदारियाँ निकाल निकाल कर वोट जुटाने के काम में लगे हुए हैं, तो दूसरी तरफ छोटे क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को ऑब्लाइज करके समर्थन जुटाने की तिकड़म बैठा रहे हैं - लेकिन उनके यह दोनों ही दाँव उन्हें फायदा पहुँचाने के बजाए उलटे पड़ रहे हैं और नुकसान पहुँचा रहे हैं । दरअसल कपिल गुप्ता के समर्थकों का ही कहना है कि कपिल गुप्ता इतनी मोटी सी बात नहीं समझ रहे हैं कि रोटरी की चुनावी राजनीति में प्रेसीडेंट्स और या दूसरे रोटेरियंस डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ रोटेरियंस की बात ही सुनते/मानते हैं - इसलिए उन्हें उनके जरिये ही 'प्रभावित' किया जा सकता है; रिश्तेदारियाँ और ऑब्लीगेशंस महत्त्वपूर्ण भूमिका तो निभाते हैं, लेकिन यह चीजें यदि प्रॉपर चैनल से आती हैं - तो । कपिल गुप्ता ने प्रेसीडेंट्स तक पहुँच बनाने के लिए प्रॉपर चैनल ही नहीं बनाए । अजय मदान की उम्मीदवारी के लिए माहौल बनाने तथा वोट जुटाने के काम को नियंत्रित करने के लिए प्रायः हर शहर में वरिष्ठ रोटेरियंस हैं, जिन्हें अजय मदान ने नहीं तैयार किया है; वह तो खेमे के बड़े नेताओं के संगी-साथी हैं जिनका फायदा अजय मदान को मिल रहा है । प्रतिद्धंद्धी खेमे के वरिष्ठ रोटेरियंस भी हर शहर में हैं, जिनका फायदा कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी को मिल सकता है, लेकिन कपिल गुप्ता ने उनका फायदा उठाने के लिए कोई योजना ही नहीं बनाई - लिहाजा उनके पल्ले कुछ हाथ लगता नहीं दिख रहा है ।
कपिल गुप्ता के लिए बेहतर स्थिति की बात यह है कि खेमेबाजी की राजनीति के चलते डिस्ट्रिक्ट के बड़े क्लब्स, ज्यादा वोट्स के क्लब्स का समर्थन उन्हें मिलता दिख रहा है; ऐसे में कुछेक क्लब्स का समर्थन जुटाने की ही उन्हें जरूरत है - लेकिन देखने में यह आ रहा है कि कपिल गुप्ता इस सुनहरे मौके का भी लाभ उठाने की तैयारी नहीं कर पाए हैं । अपने अकेले चलने के रवैये के कारण कपिल गुप्ता अपने स्वाभाविक समर्थकों के बीच ही अलग-थलग पड़ गए हैं और उनके सामने अपने समर्थकों को ही अपने समर्थन में बनाए रखने की चुनौती पैदा हो गई है । व्यवहार और रवैये को लेकर अजय मदान से भी लोगों को खूब शिकायतें हैं, लेकिन अजय मदान के प्रति पैदा होने वाली शिकायतों को उनके साथी/समर्थक संभाल लेते हैं और अजय मदान निशाना बनने से बच जाते हैं । अजय मदान की बाकी मदद कपिल गुप्ता कर देते हैं । अजय मदान की कमजोरियों और गलतियों का कपिल गुप्ता फायदा उठाने की कोई कोशिश ही नहीं करते हैं, और इस तरह अजय मदान की खासी मदद करते हैं । कपिल गुप्ता के नजदीकियों और समर्थकों का ही कहना है कि जीतने के बाद अजय मदान को सबसे पहले कपिल गुप्ता को शुक्रिया कहना चाहिए । 

Tuesday, January 15, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में जेपी सिंह और गुरचरण सिंह भोला के परस्पर विरोधी रवैये से लोगों को शक हो रहा है कि कहीं आपसी मिलीभगत से अपने किसी और 'उद्देश्य' को साधने के लिए तो इन्होंने दिनेश बत्रा को उम्मीदवार नहीं बनाया हुआ है ?

नई दिल्ली । दिनेश बत्रा और उनके नजदीकी यह देख कर हैरान/परेशान हैं कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के काम में जेपी सिंह कोई दिलचस्पी ही नहीं ले रहे हैं, और इस कारण से डिस्ट्रिक्ट में कोई उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहा है । दिनेश बत्रा और उनके नजदीकियों को सबसे बड़ा झटका हरियाणा में लग रहा है, जहाँ जेपी सिंह के नजदीक माने/देखे जाने वाले लोग ही दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी को ज्यादा तवज्जो देते हुए नजर नहीं आ रहे हैं; उनमें से कोई कोई तो साफ साफ कह भी चुका है कि दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी में जब जेपी सिंह ही कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं - तो उनके कहने/करने से भला क्या होगा ? दिनेश बत्रा को एक गुरचरण सिंह भोला का सहयोग/समर्थन तो मिल रहा है, लेकिन उनके रवैये में ही यह देखने को मिल रहा है जैसे कि वह बहुत ही बेमन से दिनेश बत्रा के लिए बात कर रहे हैं । दिनेश बत्रा और उनके नजदीकियों को यह बात भी समझ में नहीं आ रही है कि निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह जब उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में आने की कोशिश कर रहे हैं, तो जेपी सिंह की तरफ से इंद्रजीत सिंह को खेमे में शामिल करने का विरोध क्यों किया जा रहा है ? कई बातों और घटनाओं के कारण दिनेश बत्रा और उनके नजदीकियों को लग रहा है कि जेपी सिंह ने उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी तो दे है, लेकिन उनकी उम्मीदवारी की गाड़ी सचमुच आगे बढ़े इसके लिए पटरियों को क्लियर करने/करवाने के काम में वह कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । 
जेपी सिंह के नजदीकियों की बातों में उभरने वाले संकेतों को यदि 'पढ़ें' तो यही समझ में आता है कि जेपी सिंह को दरअसल दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी से कोई उम्मीद नहीं है, और वह मान कर चल रहे हैं कि दिनेश बत्रा के लिए चुनाव में टिके रह पाना ही मुश्किल होगा, और उनका हाल पिछले वर्ष हुए मदन बत्रा के हाल से भी बुरा होगा । जेपी सिंह को 'डर' इस बात का है कि मदन बत्रा के बाद दिनेश बत्रा की भी होने वाली भारी पराजय लायन जगत में उनके लिए भारी फजीहत वाली साबित होगी । लायन जगत में लोगों को कहने का मौका मिलेगा कि जेपी सिंह कैसे इंटरनेशनल डायरेक्टर हैं, जो अपने डिस्ट्रिक्ट में अपने उम्मीदवार को चुनाव नहीं जितवा पाते हैं ? इससे भी बड़ा सवाल यह होगा कि जेपी सिंह आखिर कैसे 'लीडर' हैं जो अपने ही डिस्ट्रिक्ट में यह नहीं समझ/पहचान पाते हैं कि उनके डिस्ट्रिक्ट के लोग डिस्ट्रिक्ट को लीड करने के लिए किसे पसंद करते हैं और किसे नकार देते हैं । अधिकतर पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर ऐसे हैं, जिनकी अपने डिस्ट्रिक्ट में टके की पूछ/हैसियत नहीं है; जेपी सिंह उन जैसे नहीं बनना चाहते हैं और प्रयास करना चाहते हैं कि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर हो जाने के बाद भी उनकी पूछ/हैसियत पहले जैसी ही बनी रहे । हाल के कुछेक वर्षों में अपने डिस्ट्रिक्ट में उन्हें जो झटके लगे हैं, उनसे लेकिन उनकी 'स्थिति' गड़बड़ाई है । मदन बत्रा की बुरी हार के बाद दिनेश बत्रा की संभावित बुरी हार गुरचरण सिंह भोला की जीत के प्रभाव को भी धो देगी । लोग फिर यही कहेंगे और मानेंगे कि गुरचरण सिंह भोला की जीत जेपी सिंह की नहीं, बल्कि गुरचरण सिंह भोला की खुद की जीत थी । जेपी सिंह इसी तरह की बातों के 'डर' से दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी के लिए काम करने से बच रहे हैं, ताकि लोगों को यह कहने का मौका न मिले कि जेपी सिंह के सक्रिय समर्थन के बावजूद दिनेश बत्रा बुरी तरह से हार गए ।
दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी को 'ताकत' दिलवाने के लिए जेपी सिंह, इंद्रजीत सिंह के व्यवहार को भी भूलने के लिए तैयार नहीं हैं । उन्हें लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में इंद्रजीत सिंह ने पिछले वर्ष उन्हें जितना तंग और अपमानित किया है, उसके कारण वह उन्हें कभी माफ नहीं कर पायेंगे और कभी उन्हें अपने साथ नहीं करेंगे । जेपी सिंह के नजदीकियों का कहना है कि जेपी सिंह को लगता है कि उन्हें अब आगे जो भी राजनीति करनी है, उसमें उन्हें इंद्रजीत सिंह की जरूरत नहीं पड़ेगी और इसलिए उन्हें इंद्रजीत सिंह को अपने खेमे में शामिल करने की जरूरत नहीं है । जेपी सिंह, दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी के लिए तो इंद्रजीत सिंह से मिले अपमान को भूलने तथा उन्हें माफ करने के मूड में बिलकुल नहीं हैं । जेपी सिंह के इस तरह के रवैयों ने दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी को सवालों के घेरे में ला दिया है । दिनेश बत्रा और उनके नजदीकियों को लग रहा है कि जेपी सिंह का सक्रिय सहयोग न मिलने पर तो उनकी उम्मीदवारी का और बुरा हाल होगा । अकेले गुरचरण सिंह भोला के सहयोग/समर्थन के भरोसे अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटा लेने का विश्वास उन्हें नहीं है । गुरचरण सिंह भोला भले ही फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, लेकिन चुनावी राजनीति के लिहाज से अभी उनकी कोई पहचान व साख नहीं बन सकी है; अभी उन्हें जेपी सिंह के 'आदमी' के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है । लोगों को यह बात भी न समझ में आने वाली पहेली की तरह लग रही है कि दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी में जब जेपी सिंह ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं, तब गुरचरण सिंह भोला क्यों उनकी उम्मीदवारी का झंडा थामे हुए हैं ? इसमें लोगों को एक ही आशंका लग रही है कि जेपी सिंह और गुरचरण सिंह भोला आपसी मिलीभगत से कहीं अपने किसी और 'उद्देश्य' को साधने के लिए तो दिनेश बत्रा को उम्मीदवार नहीं बनाये हुए हैं ? दिनेश बत्रा के अपने खेमे के लोगों को ही शक है कि उस उद्देश्य के पूरा होते ही और या उसे पूरा न होता देख गुरचरण सिंह भोला भी दिनेश बत्रा की उम्मीदवारी के प्रति वैसा ही रवैया अपना लेंगे, जैसा जेपी सिंह का है ।

Monday, January 14, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के दूसरे सदस्यों को दरकिनार कर मनमाने तरीके से की जा रही विनोद बंसल की कार्रवाई रवि चौधरी की लूट-खसोट पर पर्दा डालने का मौका बना रही है, जो इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के लिए भी फजीहत का कारण हो सकता है

नई दिल्ली । पिछले रोटरी वर्ष के अपने गवर्नर-काल के हिसाब-किताब को लेकर निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन विनोद बंसल पर राजनीति करने तथा उन्हें परेशान और बदनाम करने का आरोप लगाया है । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता का डिस्ट्रिक्ट होने के नाते इस मामले में रोटरी के छोटे/बड़े नेताओं की भी दिलचस्पी नजर आ रही है । रवि चौधरी की तरफ से गंभीर आरोप यह सुनने को मिल रहा है कि विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के बाकी सदस्यों को विश्वास में लिए बिना, उनके द्वारा दिए/सौंपे गए विवरण में कमी निकाल रहे हैं और तरह तरह से उन्हें दबाव में लेने की कोशिश कर रहे हैं । रवि चौधरी की तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि उन्होंने अक्टूबर में ही अपने गवर्नर-वर्ष के अकाउंट्स डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के तीनों सदस्यों को भेज दिए थे, जिस पर तीनों सदस्यों को मीटिंग करना थी और तीनों सदस्य जिन कमियों पर एकराय होते - उन कमियों के बारे में उनसे स्पष्टीकरण माँगते - चेयरमैन के रूप में विनोद बंसल ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के बाकी सदस्यों के साथ कोई मीटिंग ही नहीं की, और खुद 'चौधरी' बन कर हिसाब-किताब में कमियाँ निकालने/बताने लगे । रवि चौधरी का कहना है कि विनोद बंसल उनके द्वारा दिए गए विवरणों को लीक कर रहे हैं, और उनके आधे-अधूरे होने की बात कहते हुए उन पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में पैसे कमाने/बनाने के आरोपों को हवा दे रहे हैं । रवि चौधरी और उनके समर्थकों की तरफ से कहा जा रहा है कि विनोद बंसल के रवैये से लग रहा है कि उनकी दिलचस्पी पिछले रोटरी वर्ष के अकाउंट्स को क्लियर करने/करवाने में नहीं है, और वह उसकी आड़ में डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के बाकी दो सदस्यों के सामने खुद को 'बॉस' दिखाने/जताने तथा रवि चौधरी को परेशान और बदनाम करने का काम कर रहे हैं ।
विनोद बंसल पर लगाए जा रहे रवि चौधरी के इन आरोपों को डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोग 'उल्टा चोर कोतवाल को डांटे' वाले मुहावरे के रूप में ले रहे हैं । लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी ने पैसों की जो लूट-खसोट मचाई, और जिसे लेकर खुद अपने द्वारा दिए विवरण में ही वह 'पकड़े/फँसते' दिख रहे हैं - उससे लोगों का ध्यान भटकाने के लिए वह उलटे विनोद बंसल पर ही आरोप लगा रहे हैं । लोगों का कहना है कि विनोद बंसल पर आरोप लगाने की बजाये; कई एक रोटेरियंस से पैसे लेने और उस पैसे का विवरण न देने के जो आरोप 'पब्लिक डोमेन' में सुने/सुनाये जा रहे हैं - वह भले ही विनोद बंसल के यहाँ से लीक हुए हों - रवि चौधरी को उन आरोपों का जबाव देना चाहिए । लोगों की माँग है कि रवि चौधरी पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में लोगों से पैसे लेने और उसका विवरण हिसाब-किताब में न देने तथा खर्चों के कच्चे/फर्जी बिल देने के जो आरोप लग रहे हैं, वह बहुत ही गंभीर किस्म के आरोप हैं, और डिस्ट्रिक्ट व रोटरी को कलंकित करने वाले हैं - इसलिए रवि चौधरी को सीधे सीधे तरीके से उनके जबाव देने चाहिए; और यदि वह ऐसा नहीं करते हैं, तो काउंसिल ऑफ गवर्नर्स को रवि चौधरी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना चाहिए ।
रवि चौधरी अपने ऊपर लगे आरोपों को भटकाने का जो प्रयास कर रहे हैं, कई लोग उसके लिए विनोद बंसल को भी जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । लोगों का कहना है कि विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के बाकी दोनों सदस्यों - आशीष घोष और राजेश बत्रा को दरकिनार कर पिछले रोटरी वर्ष के अकाउंट्स को लेकर रवि चौधरी के साथ जो 'खेल' खेल रहे हैं, उसने रवि चौधरी को 'टेबल टर्न' करने का अवसर दिया है, और रवि चौधरी इसी का फायदा उठा रहे हैं । उल्लेखनीय है कि नियम, तरीका, परंपरा यह है कि निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अपने वर्ष के अकाउंट्स का विवरण डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के सभी सदस्यों को भेजता है; कमेटी सदस्य उस विवरण को लेकर मीटिंग करते हैं - और आपसी सहमति से उन्हें जो कोई तथ्य संदेहास्पद लगते हैं, उसके बारे में कमेटी निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से स्पष्टीकरण माँगती है; और इस तरह अकाउंट्स मान्य होने की तरफ बढ़ते हैं । इस बार लेकिन विनोद बंसल ने एक अलग ही नजारा पेश किया । वह चूँकि डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन हैं, शायद इसलिए उन्होंने मान लिया कि 'बॉस' वही हैं और उन्हें बाकी सदस्यों के साथ मीटिंग करने की कोई जरूरत ही नहीं है और उन्होंने अकेले ही रवि चौधरी से मीटिंग कर ली । रवि चौधरी ने अक्टूबर में अपने अकाउंट्स के विवरण सौंप दिए थे; उसके बाद किसी किसी ने विनोद बंसल से डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी की मीटिंग के बारे में पूछा भी, लेकिन हर किसी को विनोद बंसल से यही सुनने को मिला कि जल्दी क्या है, मीटिंग हो जाएगी - पर जो अभी करीब करीब तीन महीने होने पर भी नहीं हो पाई है । तीन सदस्यीय डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में चेयरमैन होता जरूर है, लेकिन वह सिर्फ एक व्यवस्था के तहत होता है, उसे कोई विशेषाधिकार नहीं होता है - लेकिन विनोद बंसल ने लगता है कि अपने लिए विशेषाधिकार खुद गढ़ लिया और चेयरमैन होने के नाते उन्होंने अपने आप को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का 'बॉस' मान लिया । विनोद बंसल के इस रवैये ने पिछले रोटरी वर्ष के अकाउंट्स के मामले को और उलझा दिया है, जिसमें रवि चौधरी को बचने का चोर-दरवाजा नजर आ रहा है । विनोद बंसल के रवैये के चलते रवि चौधरी की लूट-खसोट पर यदि पर्दा पड़ा रह गया, तो यह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के लिए भी फजीहत भरी स्थिति हो सकती है । 

Sunday, January 13, 2019

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर 'कब्जा' करने के लिए सदस्यों को धमकी देने तथा नए पदाधिकारियों के चुनाव के लिए होने वाली अनौपचारिक मीटिंग को चेयरमैन संदीप जैन से टलवाने जैसी कार्रवाईयों से उत्तम अग्रवाल बहुमत जुटाने में सफल हो पायेंगे क्या ?

मुंबई । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर कब्जे के लिए उत्तम अग्रवाल को नए सिरे से 'तैयारी' करने का समय देने के लिए चेयरमैन संदीप जैन काउंसिल के नए पदाधिकारियों के चुनाव के लिए होने वाली अनौपचारिक मीटिंग करने से बच रहे हैं और तरह तरह की बहानेबाजियों का सहारा लेकर उक्त मीटिंग की माँग को स्वीकार करने से मुँह छिपा रहे हैं । उल्लेखनीय है कि हर बार चुनावी नतीजा घोषित होने के बाद 20 जनवरी के आसपास नई काउंसिल के सदस्यों की अनौपचारिक मीटिंग हो जाती रही है, जिसमें तीनों वर्ष के चेयरमैन 'तय' हो जाते रहे हैं । परंपरा के अनुसार,  इस बार भी नई काउंसिल के सदस्यों को 20 जनवरी के आसपास की किसी तारीख में होने वाली अनौपचारिक मीटिंग के निमंत्रण का इंतजार है -लेकिन जो उन्हें मिल ही नहीं रहा है । चेयरमैन संदीप जैन को इस मामले में ढुलमुल रवैया अपनाते/दिखाते देख कुछेक सदस्यों ने उक्त मीटिंग के बाबत उन्हें ईमेल भी लिखे, लेकिन संदीप जैन की तरफ से उन्हें कोई जबाव नहीं मिल रहे हैं । ऐसे में आरोप लग रहे हैं कि इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल ने रीजनल काउंसिल पर अपने 'कब्जे' को लेकर बहुमत जुटाने की जो तैयारी की है, उसमें कुछ कमी पड़ रही है - इसलिए संदीप जैन तब तक उक्त मीटिंग को टालते रहना चाहते हैं, जब तक कि उत्तम अग्रवाल बहुमत का पूरा जुगाड़ न कर लें । रीजनल काउंसिल के 22 सदस्यों में उत्तम अग्रवाल को अभी 9 सदस्यों का ही समर्थन मिला बताया जा रहा है । बहुमत के लिए उन्हें तीन और सदस्यों के समर्थन की जरूरत है । चर्चा है कि उत्तम अग्रवाल ने बाकी 13 सदस्यों में से तीन-चार सदस्यों को अपने 'निशाने' पर लिया हुआ है, जिन्हें वह धमकाने और लालच देने का काम कर रहे हैं । आरोपों और चर्चाओं के अनुसार, किसी को वह प्रोफेशनल क्लाइंट्स तोड़ने की तथा किसी को अगले चुनाव में 'देख लेने' की धमकी दे रहे हैं । नई काउंसिल में चुने गए 'अपने' समर्थक 9 लोगों को एकजुट रखने के लिए उत्तम अग्रवाल उन्हें आश्वस्त कर रहे हैं कि वह जल्दी ही तीन-चार सदस्यों का समर्थन जुटा लेंगे । 
मजे की बात यह है कि उत्तम अग्रवाल ने चुनावी नतीजे घोषित होते ही नई काउंसिल के लिए चुने गए सदस्यों में से 12/13 का समर्थन जुटा लिया था, और तीनों वर्षों के चेयरमैन तय भी कर लिए थे - उनकी तैयारी के तहत पहले वर्ष में सुश्रुत चितले, दूसरे वर्ष में कमलेश साबू और तीसरे वर्ष में प्रीति साँवला को चेयरमैन बनना था । लेकिन उत्तम अग्रवाल के चौधराहट भरे व्यवहार के चलते प्रीति साँवला तथा अन्य कुछेक सदस्य बिदक गए और वह उनकी 'योजना' से अलग हो गए । उत्तम अग्रवाल के लिए इस वर्ष बड़ी उपलब्धि सुश्रुत चितले को अपने खेमे में लाने की रही । उल्लेखनीय है कि सुश्रुत चितले को मौजूदा टर्म के पहले वर्ष में उत्तम अग्रवाल विरोधी खेमे की तरफ से चेयरमैन बनना था, लेकिन श्रुति शाह ने ऐन मौके पर रातोंरात पाला बदल कर उनका खेल बिगाड़ दिया था । सुश्रुत चितले ने लगता है कि यह समझ लिया है कि वह उत्तम अग्रवाल के सहारे से ही चेयरमैन बन सकते हैं । सुश्रुत चितले इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट मुकुंद चितले के पुत्र हैं; मुकुंद चितले की प्रोफेशन के लोगों के बीच अच्छी साख/पहचान है - और इसी साख/पहचान के चलते लोगों को हैरानी है कि वह उत्तम अग्रवाल जैसे व्यक्ति से 'हाथ मिलाने' के लिए तैयार कैसे और क्यों हो गए ? हालाँकि कई लोगों को लगता है कि सुश्रुत चितले पिछली बार उत्तम अग्रवाल के विरोध में होने के कारण चेयरमैन नहीं बन पाए थे, और इस बार उत्तम अग्रवाल के समर्थन में होने के कारण उनका चेयरमैन बनना खटाई में पड़ता दिख रहा है । वेस्टर्न इंडिया रीजन की नई काउंसिल में चुने गए 22 सदस्यों में 13 ने अपने आपको जिस तरह से जोड़ा है, उन्हें एकजुट करने  के पीछे इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ की भूमिका को देखा/पहचाना जा रहा है, जिन्हें रीजनल काउंसिल में चेयरमैन तथा सेंट्रल काउंसिल में सदस्य रहे पंकज जैन, संजीव माहेश्वरी, अतुल भेडा आदि का सहयोग/समर्थन बताया/सुना जाता है । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में सक्रिय रहे इन लोगों का अलग अलग कारणों से उत्तम अग्रवाल के साथ छत्तीस का संबंध है और यह वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में उत्तम अग्रवाल के 'कब्जे' की कोशिशों को किसी भी तरह से रोकने के प्रयासों में हैं ।
वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अभी जो 13 सदस्यों का ग्रुप बना है, उसकी तरफ से तीनों वर्ष के चेयरमैन पद के लिए प्रीति साँवला, दृष्टि देसाई, मनीष गडिया और ललित बजाज के नाम हैं; और इनसे कहा गया है कि आपस में बात करके तीन नामों पर सहमति बना लो और आगे-पीछे का क्रम भी तय कर लो । इन चारों को राकेश अलशी, विशाल दोषी, जयेश काला, अर्पित काबरा, मुर्तुजा कांचवाला, उमेश शर्मा, यशवंत कसार, अरुण गिरि, आनंद जखोटिया आदि का समर्थन देखा/बताया जा रहा है । इन 13 सदस्यों में तीन-चार लोग उत्तम अग्रवाल  के 'रडार' पर हैं, जिन्हें धमकियाँ और लालच देकर अपनी तरफ करने के प्रयास करने का आरोप उत्तम अग्रवाल पर है । उत्तम अग्रवाल को हालाँकि अपने प्रयासों में अभी तक सफलता तो नहीं मिली है, लेकिन उनकी तरफ से सफल होने के दावे जरूर किए जा रहे हैं । उत्तम अग्रवाल के नजदीकियों को हालाँकि यह डर भी सता रहा है कि उत्तम अग्रवाल की बदनामी तथा उनके प्रयासों की पोल खुलने के कारण बहुमत जुटाने का उनका अभियान फेल हो जा सकता है । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में 'कब्जा' करने के खेल में उत्तम अग्रवाल की बाजी जिस तरह से पलट गई है, और उनका खेल बिगड़ने की पूरी पूरी संभावना नजर आ रही है, उसके कारण अहमदाबाद के तीनों सदस्यों का मन बदलने की सूचनाएँ भी सुनी जा रही हैं । दरअसल मौजूदा काउंसिल में अहमदाबाद के सदस्यों की सत्ता में अच्छी भागीदारी रही है, जिस कारण काउंसिल में अहमदाबाद का प्रतिनिधित्व रहा है । नई काउंसिल के लिए अहमदाबाद से चुने गए सदस्यों को डर हुआ है कि उत्तम अग्रवाल का साथ देने के चक्कर में काउंसिल में अहमदाबाद  का प्रतिनिधित्व यदि नहीं हो पाया, तो अहमदाबाद के लोगों का सामना करना उनके लिए मुश्किल होगा । अहमदाबाद के सदस्यों में मची इस घबराहट ने उत्तम अग्रवाल की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है । परंपरानुसार, नई काउंसिल के पदाधिकारियों के चुनाव के लिए होने वाली अनौपचारिक मीटिंग को 20 जनवरी के आसपास करने/करवाने से बचने की कोशिश के जरिये उत्तम अग्रवाल अपने 9 सदस्यों को वास्तव में यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वह बहुमत जुटाने में लगे हैं, और जब तक बहुमत जुटा नहीं लेंगे - तब तक चेयरमैन संदीप जैन उक्त मीटिंग नहीं बुलायेंगे/करेंगे । यह देखना दिलचस्प होगा कि संदीप जैन के जरिये वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर कब्जे की उत्तम अग्रवाल की कोशिश सफल होती है - या उन्हें मुँहकी खानी पड़ेगी ।