Wednesday, November 30, 2016

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में मुकेश गोयल के नेतृत्व में आयोजित हुए लीडरशिप सेमीनार की कामयाबी ने डिस्ट्रिक्ट, मल्टीपल और लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों व नेताओं तक को प्रभावित किया

गाजियाबाद । मुकेश गोयल की प्रेरणा से और उनके नेतृत्व में संपन्न हुए लीडरशिप सेमीनार की सफलता की लगातार फैलती खबरों ने लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों तक को जिस तरह से चौंकाया और प्रभावित किया है - उसके चलते लायन लीडर के रूप में अजय सिंघल, विनय मित्तल तथा संजीवा अग्रवाल की पहचान व साख में गुणात्मक वृद्धि हुई है । अजय सिंघल व विनय मित्तल क्रमशः फर्स्ट व सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, जबकि संजीवा अग्रवाल इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार हैं । इन तीनों ने मुकेश गोयल के दिशा-निर्देशन में जिस तरह से लीडरशिप सेमीनार की व्यवस्था को अंजाम दिया और तमाम प्रतिकूल चुनौतियों के बावजूद उसे कामयाब बनाया, उसे देख/जान कर लायंस इंटरनेशनल के वरिष्ठ पदाधिकारी व लीडर्स डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के भविष्य के प्रति आश्वस्त हुए हैं । लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों व लीडर्स के लिए चौंकने व प्रभावित होने का कारण दरअसल यह रहा कि जिस परिस्थिति में मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के पदाधिकारियों को अपनी मीटिंग को कर सकना मुश्किल हुआ, और मुश्किलों के कारण जिन्हें मल्टीपल काउंसिल की मीटिंग को स्थगित कर देने के लिए मजबूर होना पड़ा - ठीक उसी परिस्थिति में डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में मुकेश गोयल तथा डिस्ट्रिक्ट के भावी पदाधिकारियों ने एक बड़ा सेमीनार पूरी गरिमा, व्यवस्था तथा लोगों की सक्रिय संलग्नता के साथ संभव कर लिया । मजे की बात यह भी रही कि डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में ही, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के आयोजनों में जहाँ उपस्थिति कभी भी डेढ़ सौ - दो सौ से ज्यादा नहीं हो पाई, वहाँ लीडरशिप सेमीनार में 407 लोग शामिल हुए - और अपनी जेब से पैसा देकर शामिल हुए ।
दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स, दूसरे मल्टीपल्स तथा लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के सामने यही सवाल चुनौती बना हुआ है कि जिस परिस्थिति में मल्टीपल काउंसिल की मीटिंग कर पाना संभव नहीं हो सका, ठीक उसी परिस्थिति में मुकेश गोयल और उनके सहयोगियों ने इतना बड़ा आयोजन कैसे कर लिया ? कार्यक्रम हुए दस दिन होने जा रहे हैं, लेकिन उसकी कामयाबी के चर्चे थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं - बल्कि हो यह रहा है कि चर्चे रोज़ नई नई जगह तथा नए नए लोगों के पास पहुँच रहे हैं । दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स व दूसरे मल्टीपल्स के प्रमुख लोगों का कहना है कि उन्होंने लायन-व्यवस्था में बड़े बड़े आयोजन होते हुए देखे/सुने हैं, लेकिन मसूरी में आयोजित हुए लीडरशिप सेमीनार को जैसी कामयाबी मिली है - वह लायनिज्म के इतिहास का अनोखा और ऐतिहासिक उदाहरण है । लायंस इंटरनेशनल के बड़े और प्रमुख पदाधिकारियों ने इस कामयाबी को लायनिज्म के प्रति लोगों के लगाव व जुड़ाव से जोड़ कर देखा/पहचाना है । उनके अनुसार, 19/20 नवंबर को मसूरी में हुए लीडरशिप सेमीनार की सफलता का आधार सिर्फ यह नहीं है कि इंतजाम अच्छा था और वहाँ बहुत से लोग जुटे/पहुँचे; बल्कि सफलता का आधार यह है कि लीडरशिप के मुद्दों पर बात करने के लिए दो दिवसीय आवासीय कार्यक्रम करने के बारे में पहले तो सोचा गया, और फिर इस सोच को क्रियान्वित किया गया - यह बात इसलिए बड़ी है क्योंकि अधिकतर डिस्ट्रिक्ट्स में इस तरह के उपयोगी व प्रासंगिक विषयों पर चर्चा के लिए दो-तीन घंटे के कार्यक्रम ही होते देखे/सुने गए हैं ।
लोगों को इससे भी बड़ी बात यह लगी है कि इस लीडरशिप सेमीनार के आयोजन से जुड़े लोगों ने अपनी अपनी मुश्किलों के बीच इस तरह के आयोजन के बारे में सोचा और फिर उसे संभव बनाया : आयोजन के प्रेरणास्रोत मुकेश गोयल गंभीर रूप से अस्वस्थ हैं; फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय सिंघल को सात महीने में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी सँभालनी है, जिसके लिए उन्हें अभी से तैयारी में जुटना है; लायन-व्यवस्था में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कोई खास भूमिका न होने के कारण विनय मित्तल के पास न कोई अधिकार हैं और न  जिम्मेदारी; इस वर्ष के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में संजीवा अग्रवाल के सामने चुनौती बिलकुल अलग तरह की है । अलग अलग तरह की चुनौतियों व मुश्किलों का सामना करते हुए भी इन चारों का 'लीडरशिप' जैसे महत्त्वपूर्ण व गूढ़ विषय पर सेमीनार करने के बारे में सोचना, विषय पर गंभीरता से बात हो सके इसके लिए दो दिन का समय निर्धारित करना, आयोजन के खर्चे में भागीदारों की हिस्सेदारी तय करना, आदि बड़े 'खतरे' के काम थे । 'खतरे' का यह काम ऐसे समय करने के बारे में सोचना - जबकि डिस्ट्रिक्ट में पैसे उगाहने और बकलोली करने को ही लायनिज्म समझा और बनाया हुआ है । डर यही था कि डिस्ट्रिक्ट में लायनिज्म के नाम पर ठगे जा रहे तथा लफंगई का शिकार बन रहे लोग एक गंभीर किस्म के आयोजन में शामिल होना भी चाहेंगे क्या ? लीडरशिप सेमीनार में 407 लोगों की उपस्थिति यह बताने के लिए पर्याप्त है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने न सिर्फ मुकेश गोयल, अजय सिंघल, विनय मित्तल और संजीवा अग्रवाल पर भरोसा किया/दिखाया - बल्कि यह भी साबित किया कि लायनिज्म की बुनियादी व वास्तविक पहचान के प्रति उनमें गहरी आस्था है ।
खास बात यह रही कि लायनिज्म के प्रति लोगों की इस आस्था को डिगाने के प्रयास भी खूब हुए और खुद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी ने झूठ और फरेब का सहारा लेकर लोगों को लीडरशिप सेमीनार में जाने से रोकने की कोशिश की । लीडरशिप सेमीनार में लोगों को जाने से रोकने के लिए डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर योगेश सोनी के नाम पर फर्जीवाड़ा करके उन्हीं तारीखों में ताशकंद/उज़्बेकिस्तान के एक फेलोशिप टूर की योजना बना डाली । शिव कुमार चौधरी की कोशिश तो सफल नहीं ही हुई, अपनी धोखाधड़ी की योजना में अपने एक कलीग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के नाम को इस्तेमाल करने के कारण मल्टीपल के पदाधिकारियों तथा अन्य लोगों के बीच उनकी फजीहत हुई - सो अलग ।
तमाम प्रतिकूल दबावों के बावजूद लीडरशिप सेमीनार को जो सफलता मिली, उसकी चर्चा में संजीवा अग्रवाल की भूमिका को भी खासी दिलचस्पी के साथ देखा/पहचाना जा रहा है । लायन राजनीति में आमतौर पर सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार को लोगों के बीच 'गुडी गुडी' बने रहने का प्रयास करते हुए देखा जाता है, जो लायनिज्म के बुनियादी व वास्तविक सरोकार से दूर रहने में ही अपनी 'भलाई' देखता है - लेकिन इसके ठीक विपरीत आचरण करते/दिखाते हुए संजीवा अग्रवाल ने लीडरशिप सेमीनार में अपनी सक्रिय संलग्नता का उदाहरण प्रस्तुत किया । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में संजीवा अग्रवाल ने चूँकि शुरू से ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी उपस्थिति व सक्रियता को दिखाया हुआ है, इसलिए लीडरशिप सेमीनार के आयोजन में उनकी संलग्नता पर डिस्ट्रिक्ट में तो किसी को हैरानी नहीं हुई - किंतु लीडरशिप सेमीनार की सफलता से परिचित होने वाले दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों तथा लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने उनकी संलग्नता को विशेष रूप से रेखांकित किया है । संजीवा अग्रवाल दूसरे कुछेक डिस्ट्रिक्ट्स के अधिष्ठापन समारोहों में भी चूँकि शामिल हुए हैं, इसलिए मल्टीपल के लोगों के बीच वह सक्रिय लायन के रूप में पहले से भी पहचाने जाते हैं । लीडरशिप सेमीनार में उनकी सक्रिय संलग्नता ने उनकी पहचान को और गाढ़ा बनाने का ही काम किया है ।
लीडरशिप सेमीनार की जोरदार और बहुआयामी कामयाबी ने डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक परिदृश्य में भी खासी हलचल मचाई है । इसकी कामयाबी को लेकर सशंकित रहने के चलते जो नेता इस आयोजन से दूर रहे, उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ है । इसे मिली कामयाबी के राजनीतिक 'संदेश' को पढ़ते/समझते हुए कई नेताओं के बीच पाला बदलने की सरसराहट सुनी जा रही है । लायन व्यवस्था में कम ही आयोजन हुए हैं, जिन्होंने चौतरफा अपना प्रभाव बनाया/छोड़ा हो । लीडरशिप सेमीनार की कामयाबी को डिस्ट्रिक्ट में, मल्टीपल में और लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों व नेताओं के बीच जिस प्रकार की चर्चा मिली है - उससे जाहिर/साबित है कि लीडरशिप सेमीनार की सफलता ने डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट की सीमाओं से परे भी लोगों को प्रभावित किया है ।

Friday, November 25, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मुकेश गोयल की उम्मीदवारी आने से जेपी सिंह के लिए अपनी राजनीति चलाने और उसके लिए खर्चा जुटाने का काम थोड़ा आसान हो गया है

नई दिल्ली । यशपाल अरोड़ा की जगह मुकेश गोयल के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार हो जाने से जेपी सिंह और उनके समर्थकों को गुरचरण सिंह भोला के लिए उम्मीद नजर आने लगी है । गुरचरण सिंह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जेपी सिंह के उम्मीदवार हैं । जेपी सिंह की तरफ से पहले रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी थी, किंतु अचानक से उनके पीछे हटने के बाद जेपी सिंह को अपने ही क्लब के सदस्य गुरचरण सिंह को उम्मीदवार बनाना पड़ा । गुरचरण सिंह जब उम्मीदवार बने, तब प्रतिद्धंद्धी खेमे की तरफ से यशपाल अरोड़ा उम्मीदवार थे - जो पिछले करीब पाँच-छह महीने से अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान में लगे हुए थे । यशपाल अरोड़ा के सामने गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को किसी ने भी उत्साह और/या उम्मीद के साथ नहीं लिया; और हर किसी का मानना व कहना रहा कि गुरचरण सिंह को जेपी सिंह अपने राजनीतिक स्वार्थ में इस्तेमाल कर रहे हैं । जेपी सिंह के नजदीकियों की तरफ से ही सुना गया कि जेपी सिंह को अपनी राजनीति के लिए बलि का एक बकरा चाहिए, जो उन्हें गुरचरण सिंह के रूप में मिल गया है । चर्चा तो यह भी सुनी/सुनाई गई कि रमेश अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी वापस ही इसलिए ली, क्योंकि उन्होंने समझ लिया था कि जेपी सिंह उनकी उम्मीदवारी को लेकर जरा भी गंभीर नहीं हैं, तथा उनकी उम्मीदवारी की आड़ में वास्तव में अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में हैं ।
जेपी सिंह को दरअसल डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में वापसी करने के लिए इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए एक उम्मीदवार की जरूरत महसूस हुई । उनका आकलन है कि पिछले लायन वर्ष में उनकी जो ऐतिहासिक फजीहत हुई है, उसका कारण सिर्फ यह है कि उनके पास सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार नहीं था । इस कारण उनके समर्थक डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में नहीं पहुँचे, और विरोधी खेमे के लोगों ने इसी बात का फायदा उठा कर उनकी ऐसी गत बना दी, जैसी कि लायन-इतिहास में किसी की नहीं बनी होगी । पिछले वर्ष हुई दुर्गति के अनुभव से जेपी सिंह ने समझ लिया है कि उन्हें यदि सचमुच इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी बनना है, तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाले चुनाव में उन्हें अपना एक प्यादा खड़ा करना ही होगा । इससे वह दो फायदे एकसाथ उठा सकते हैं : एक तो यह कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई के चक्कर में वह अपने समर्थकों को एकजुट व सक्रिय रख सकेंगे, तथा दूसरा यह कि अपने चुनाव का खर्चा भी वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के मत्थे मढ़ सकेंगे । ब्लड बैंक की जिम्मेदारी छिन जाने से जेपी सिंह की कमाई पर जो प्रतिकूल असर पड़ा है, उसके बाद तो जेपी सिंह को इस बात की और ज्यादा जरूरत पड़ी है कि कोई दूसरा उनकी राजनीति का खर्चा वहन करे । इसी आधार पर, गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को जेपी सिंह की इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी चुने जाने की रणनीतिक व 'आर्थिक' तैयारी के रूप में देखा गया । 
प्रतिद्धंद्धी खेमे में यशपाल अरोड़ा की जगह मुकेश गोयल के उम्मीदवार बनने से गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को लोग लेकिन थोड़ी गंभीरता से देखने लगे हैं । यशपाल अरोड़ा के मुकाबले गुरचरण सिंह को जहाँ चुनावी मुकाबले से कतई बाहर देखा/पहचाना जा रहा था; वहाँ मुकेश गोयल के सामने उन्हें मुकाबले में देखा/पहचाना जाने लगा है । दरअसल लोगों के बीच एक्सपोजर के मामले में मुकेश गोयल और गुरचरण सिंह की स्थिति लगभग एक जैसी ही है; इसलिए इन दोनों के बीच उतना फर्क नहीं है, जितना फर्क यशपाल अरोड़ा और गुरचरण सिंह में था । यशपाल अरोड़ा ने लोगों के बीच जो काम किया हुआ था, उसका फायदा मुकेश गोयल को मिलेगा जरूर - और उसी फायदे के चलते वह गुरचरण सिंह से आगे भी नज़र आ रहे हैं । गुरचरण सिंह के समर्थकों को लेकिन लग रहा है कि मुकेश गोयल अभी आगे भले ही दिख रहे हों, किंतु वह इतना आगे भी नहीं हैं कि गुरचरण सिंह के लिए उन्हें 'पकड़ना' बिलकुल असंभव ही हो । मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को हालाँकि सत्ता खेमे के उम्मीदवार होने का एक बड़ा फायदा भी है । इसीलिए कई लोगों को लग रहा है कि चुनावी मुकाबले में आ जाने के बाद भी गुरचरण सिंह के लिए मुकेश गोयल से आगे निकल पाना मुश्किल ही होगा । 
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मुकेश गोयल और गुरचरण सिंह के बीच होते दिख रहे चुनाव में किसका पलड़ा भारी साबित होगा, यह तो इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों उम्मीदवार अपने अपने प्रचार-अभियान को किस प्रकार आगे बढ़ाते हैं और अपने अपने मौकों का किस प्रकार फायदा उठाते हैं; लेकिन यशपाल अरोड़ा की जगह मुकेश गोयल की उम्मीदवारी आने से जेपी सिंह को एक बड़ा फायदा यह जरूर होता हुआ देखा जा रहा है कि अब उन्हें गुरचरण सिंह को झाँसे में रखने के लिए ज्यादा माथापच्ची नहीं करना पड़ेगी । जेपी सिंह के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि गुरचरण सिंह को उम्मीदवारी के लिए राजी कर लेने के बाद भी जेपी सिंह को भरोसा नहीं था कि वह गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को ज्यादा दिनों तक 'बनाए' रख सकेंगे; लेकिन यशपाल अरोड़ा के चुनावी मैदान से हटने के बाद जो स्थितियाँ बनी हैं, उसमें अब गुरचरण सिंह को भी अपने लिए उम्मीद दिखने लगी है - और इस बात ने जेपी सिंह को बड़ी राहत दी है । इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के लिए अपनी राजनीति चलाने और उसके लिए खर्चा जुटाने के लिए गुरचरण सिंह को राजी करना अब जेपी सिंह के लिए आसान हो गया है ।

Thursday, November 24, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में पारिवारिक जिम्मेदारियों की व्यस्तता के चलते प्रभावित होते चुनाव अभियान के कारण दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए संकट और गहराया

नई दिल्ली । दीपक गुप्ता का अमेरिका से कुछेक लोगों को फोन करना मुसीबत बढ़ाने वाला साबित हो रहा है । दरअसल जिन लोगों को उनके फोन नहीं आए हैं, उन्हें लग रहा है कि दीपक गुप्ता उन्हें ज्यादा तवज्जो देने लायक नहीं मान/समझ रहे हैं, तथा उनकी तुलना में उन्हें ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं - जिन्हें उन्होंने अमेरिका से फोन किए हैं । मजेदार संयोग है कि पिछले रोटरी वर्ष में भी चुनाव से कुछ समय पहले दीपक गुप्ता पारिवारिक कारणों से अमेरिका गए थे, और तब भी वहाँ (से) उन्होंने जो तमाशा किया था - उसके कारण वह मजाक का विषय बनते हुए विवाद में फँसे थे । इस वर्ष भी लगभग पिछले वर्ष जैसी ही कहानी दोहराई जा रही है । कई लोगों का मानना और कहना है कि इस बात से ही जाहिर है कि दीपक गुप्ता ने पिछले वर्ष के अपने ही अनुभवों से कोई सबक नहीं सीखा है; और लगातार दूसरे वर्ष भी वही गलती दोहरा रहे हैं, जिस गलती के कारण पिछले वर्ष उन्हें अपना चुनाव हारना पड़ा था । पिछले वर्ष और इस वर्ष के मामले में हालाँकि एक अंतर जरूर है - और वह यह कि पिछले वर्ष अति उत्साह में उन्होंने अपने लिए मुसीबतों को आमंत्रित किया था, जबकि इस वर्ष अतिरिक्त सावधानी के कारण मुसीबतों ने उन्हें घेर लिया है ।
उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में चुनाव से कुछ समय पहले दीपक गुप्ता अमेरिका गए थे, और वहाँ से फोन कर कर के उन्होंने लोगों से पूछा था कि वह उनके लिए अमेरिका से गिफ्ट के रूप में क्या लाएँ ? उनकी इस कार्रवाई का लोगों के बीच बहुत मजाक बना और इसे लोगों के बीच अपना समर्थन बनाने की उनकी एक फूहड़ कोशिश के रूप में देखा/पहचाना गया । दीपक गुप्ता के समर्थकों ने भी माना और कहा था कि दीपक गुप्ता ने जो किया, उसके पीछे की उनकी 'रणनीति' तो ठीक थी किंतु उसका क्रियान्वन करने में वह सावधानी नहीं रख सके - जिस कारण उनकी रणनीति मजाक बन गई और वह मजाक के पात्र बन गए । पिछले वर्ष के इस अनुभव को याद करते/रखते हुए दीपक गुप्ता ने अब की बार हालाँकि कोई फूहड़ प्रदर्शन तो नहीं किया, किंतु उन्होंने जो किया उससे उनके लिए पिछले वर्ष से भी बुरी स्थिति बन गई है । दरअसल अभी जब वह अमेरिका में हैं, तो वहाँ से उन्होंने कुछेक लोगों से बात की है - जिनसे उनकी बात हुईं हैं, उन्होंने ही दूसरे लोगों से यह बताया है । जिन 'दूसरे' लोगों को यह बताया गया, उन्हें स्वाभाविक रूप से बुरा लगा और उन्होंने अपनी अपनी नाखुशी व्यक्त करते हुए टिप्पणियाँ भी की हैं कि लगता है कि दीपक गुप्ता की निगाह में उनकी कोई अहमियत नहीं है, जिस कारण से उन्होंने उनसे बात करना जरूरी नहीं समझा है । कुछेक लोगों ने तो कहा भी है कि वह दीपक गुप्ता को चुनाव में इसका मजा चखायेंगे ।
दीपक गुप्ता के लिए समस्या की बात यह रही कि पिछले वर्ष के बुरे अनुभव को दोहराने से बचते हुए उन्होंने इस वर्ष ज्यादा 'नाटक' न करने का तो निश्चय किया था, किंतु नाटक फिर भी 'हो गया' । लोग इस वर्ष के क्लब-अध्यक्षों से चटखारे ले ले कर पूछ रहे हैं कि दीपक गुप्ता ने फोन करके उनसे पूछा नहीं है क्या कि वह उनके लिए क्या गिफ्ट लाएँ ? इस तरह की बातें क्लब-अध्यक्षों के जले पर नमक छिड़कने जैसा काम कर रही हैं । कई क्लब-अध्यक्ष तो इसी बात से दुखी और निराश हैं कि दीपक गुप्ता ने अमेरिका से कुछेक लोगों को तो फोन किया है, किंतु उन्हें फोन नहीं किया; उस पर पिछले वर्ष की दीपक गुप्ता की हरकत का संदर्भ लेकर कई लोग गिफ्ट की बात करके उनके साथ मजाक और कर रहे हैं । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक भी रेखांकित कर रहे हैं कि अमेरिका से कुछेक लोगों को फोन करके दीपक गुप्ता ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है, तथा अपने और अपनी उम्मीदवारी के लिए पिछले वर्ष जैसे हालात बना लिए हैं । समर्थकों का कहना है कि पिछले वर्ष के अनुभव को याद और ध्यान करते हुए दीपक गुप्ता को अमेरिका से किसी को फोन करना ही नहीं चाहिए था; करते भी तो ऐसी 'व्यवस्था' से करते कि फोन पाने वाले को यह आभास ही नहीं होता कि दीपक गुप्ता उन्हें अमेरिका से फोन कर रहे हैं ।
इस मामले ने दीपक गुप्ता के लिए एक अलग तरह की मुसीबत और खड़ी कर दी है । बच्चों के कारण दीपक गुप्ता को जिस तरह से जल्दी जल्दी अमेरिका जाने की जरूरत पड़ती है, उससे लोगों के बीच सवाल उठ रहा है कि ऐसे में दीपक गुप्ता रोटरी की जिम्मेदारियों को कैसे उठा/निभा पायेंगे ? कई लोग कहने भी लगे हैं कि दीपक गुप्ता को पहले अपने बच्चों की जिम्मेदारियों को पूरा कर लेना चाहिए, फिर उसके बाद रोटरी की जिम्मेदारियों के बारे में सोचना चाहिए । दीपक गुप्ता के नजदीकियों का भी कहना है कि दीपक गुप्ता ने अपने आप को जिस स्थिति में डाल लिया है, वहाँ वह किसी के साथ भी न्याय नहीं कर पायेंगे - न अपने बच्चों के साथ, और न रोटरी के साथ । उनके नजदीकियों को तथा दूसरे लोगों को भी आशंका है कि कभी वह रोटरी के कारण अपने बच्चों की जिम्मेदारियों को निभाने से चूकेंगे, तो कभी अपने बच्चों की जिम्मेदारियों के कारण रोटरी का काम करने से पिछड़ेंगे । दीपक गुप्ता के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों की तरफ से कहा/सुना जा रहा है कि दीपक गुप्ता को अभी चार-छह वर्ष रोटरी की राजनीति से तथा 'व्यवस्था' से दूर रहना चाहिए तथा अपना सारा ध्यान अपने बच्चों की जिम्मेदारियों पर देना चाहिए । उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों का तो कहना यह भी है कि बच्चों की जिम्मेदारी निभाने के कारण जल्दी जल्दी अमेरिका जाने से दीपक गुप्ता के चुनाव अभियान में बाधा भी पड़ती रही है, तथा उनका अभियान मजाक व फजीहत का शिकार भी होता रहा है । ऐसे में डिस्ट्रिक्ट के लोगों को भी लग रहा है कि पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने में व्यस्त दीपक गुप्ता को कुछेक वर्ष रोटरी से दूर ही रहना/रखना चाहिए । इस तरह की बातों से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति लोगों के बीच जो नकारात्मक भाव बनता दिख रहा है, उससे दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए संकट और गहराता नजर आ रहा है ।

Monday, November 21, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में विनोद बंसल से निपटने की तैयारी में संजय खन्ना के साथ राजनीतिक गठजोड़ बनाने की सुशील खुराना की कोशिश कामयाब होगी क्या ?

नई दिल्ली । सुशील खुराना ने संजय खन्ना को आगे करके विनोद बंसल का 'शिकार' करने की जो योजना बनाई है, उसने दीपक तलवार को भड़काने के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक समीकरणों में भी हलचल सी पैदा कर दी है - जिसका असर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव पर भी पड़ने का अनुमान लगाया जा रहा है । दरअसल सुशील खुराना के सामने सीओएल पद के लिए विनोद बंसल से मुकाबला करने की जो चुनौती है, उससे निपटने के लिए वह अगले रोटरी वर्ष में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के इस वर्ष होने वाले चुनाव में संजय खन्ना को उम्मीदवार बनाने/बनवाने की योजना बना रहे हैं । सुशील खुराना को लगता है कि वह यदि संजय खन्ना को उक्त नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के लिए उम्मीदवार बनने को राजी कर लेते हैं, तो संजय खन्ना सहित उनके नजदीकी चार-पाँच पूर्व गवर्नर्स का समर्थन सीओएल के लिए उन्हें मिल जाएगा - और तब वह आसानी से विनोद बंसल को ढहा लेंगे । सुशील खुराना की इस योजना की भनक दीपक तलवार को मिली, तो वह बुरी तरह भड़क उठे हैं । दरअसल दीपक तलवार खुद उक्त नोमीनेटिंग कमेटी में जाने की तैयारी कर रहे हैं, जिसके लिए उनका मुकाबला मंजीत साहनी से होने की चर्चा सुनी जा रही है । मजे की बात यह हुई है कि दीपक तलवार 'अपनी' तैयारी में सुशील खुराना से मदद मिलने की उम्मीद कर रहे थे - सिर्फ उम्मीद ही नहीं कर रहे थे, बल्कि अपने सबसे भरोसे के सहयोगी के रूप में सुशील खुराना को देख रहे थे; लेकिन उन्हें पता चला है कि सुशील खुराना तो उनके लिए शेक्सपियर के विश्वप्रसिद्ध नाटक 'जूलियस सीजर' के पात्र ब्रूटस वाली भूमिका निभा रहे हैं । नाटक में अचानक से और विश्वास तोड़ते से ब्रूटस से मिले धोखे को लेकर जैसे जूलियस सीजर भौंचक था; सुशील खुराना की योजना के बारे में जानकर लगभग वैसी ही दशा दीपक तलवार की हुई है ।
सुशील खुराना की मुसीबत वास्तव में दोहरी है - सीओएल के लिए एक तरफ तो उन्हें विनोद बंसल से मुकाबला करना है; दूसरी तरफ उनका नाम दीपक तलवार के साथ ऐसे चिपका हुआ है कि दीपक तलवार की बदनामी का ठीकरा उनके सिर पर भी फूटता है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में दीपक तलवार की इस बात के लिए बड़ी बदनामी है कि उन्हें करना-धरना तो कुछ होता नहीं है, प्रत्येक पद लेकिन उन्हें जरूर चाहिए होता है । दीपक तलवार को सुशील खुराना के साथ जोड़ी के रूप में भी देखा जाता है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच यह धारणा भी बनी है कि सभी पदों पर यह दोनों ही काबिज़ होना चाहते हैं । इस बदनामी - और इस बदनामी के चक्कर में होने वाले नुकसान से बचने लिए सुशील खुराना ने दीपक तलवार से पीछा छुड़ाने की योजना बनाई, और अपनी इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए उन्होंने संजय खन्ना का सहारा लिया । उनके नजदीकियों का कहना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए संजय खन्ना को आगे करके सुशील खुराना एक तीर से दो शिकार करने की ताक में हैं : संजय खन्ना के साथ 'जुड़' कर एक तरफ तो वह दीपक तलवार के साथ बनी अपनी जोड़ी की धारणा को तोड़ेंगे और इस तरह दीपक तलवार की बदनामी के कारण होने वाले नुकसान से बचने का इंतजाम करेंगे, और दूसरी तरफ अपने सीओएल के चुनाव में संजय खन्ना तथा उनके नजदीकी पूर्व गवर्नर्स के समर्थन को पक्का करने का काम करेंगे ।
सुशील खुराना को लगता है कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में विनोद बंसल को यूँ तो ज्यादा लोगों का समर्थन नहीं मिल पायेगा, लेकिन सुशील गुप्ता तथा सुदर्शन अग्रवाल जैसे बड़े नेताओं पर विनोद बंसल ने जो जादू-सा किया हुआ है - उसके चलते यह दोनों कहीं विनोद बंसल की खुली वकालत कर बैठे, तो फिर विनोद बंसल के लिए समर्थन जुटने में मुश्किल नहीं होगी । यह मुश्किल इसलिए भी नहीं होगी, क्योंकि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में खुद सुशील खुराना के लिए भी कोई खास समर्थन या उत्साह नहीं है । डिस्ट्रिक्ट के महत्त्वपूर्ण पदों को सुशील खुराना ने जिस तरह से कब्जाया हुआ है, उसके कारण पूर्व गवर्नर्स के बीच उन्हें लेकर विरोध का भाव जरूर है । दूसरे लोगों का भी मानना और कहना है कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में हालाँकि दोनों की स्थिति एक जैसी ही है - दोनों के लिए ही ज्यादा समर्थन व उत्साह नहीं है; किंतु सुशील गुप्ता व सुदर्शन अग्रवाल के कारण विनोद बंसल का पलड़ा भारी हो जाता है । हालाँकि सारा मामला इस पर निर्भर करेगा कि सुशील गुप्ता और सुदर्शन अग्रवाल मामले में कोई पहल करते हैं या नहीं । इनको पहल करने से रोकने के लिए और या इनकी पहल से उत्पन्न वाली स्थिति का मुकाबला करने के लिए सुशील खुराना को एक मजबूत 'वकील' की जरूरत है ।
सुशील खुराना के नजदीकियों का कहना है कि उन्हें संजय खन्ना में वह वकील 'दिखाई' देता है । दरअसल रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से संजय खन्ना को जिस तरफ से डिस्ट्रिक्ट 3100 का मामला सुलझाने की जिम्मेदारी मिली है, और जिस तरह से उन्हें डिस्ट्रिक्ट 3250 की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित होने का मौका मिला है - उससे रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में उनका कद बढ़ा है । उनके इस बढ़े कद का फायदा सुशील खुराना अपनी उम्मीदवारी के लिए उठाना चाहते हैं । सुशील खुराना को लगता है कि वह यदि संजय खन्ना को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवार बनने को राजी कर लेते हैं, तो काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में सत्ता समीकरण पूरी तरह बदल जायेंगे - जिसमें सीओएल के लिए उनकी दाल आसानी से गल जाएगी । सुशील खुराना के नजदीकियों ने बताया है कि उम्मीदवार बनने के सुशील खुराना के ऑफर को संजय खन्ना ने अभी स्वीकार तो नहीं किया है, लेकिन चूँकि स्पष्ट रूप से ठुकराया भी नहीं है - इसलिए सुशील खुराना को विश्वास है कि वह संजय खन्ना को उम्मीदवारी के लिए अंततः राजी कर लेंगे । समझा जाता है कि रोटरी के कई कामों में अपनी संलग्नता व व्यस्तता के कारण संजय खन्ना अभी उम्मीदवार बनने को लेकर थोड़ा हिचक रहे हैं, और यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि सभी कामों के लिए वह समय निकाल भी पायेंगे या नहीं । संजय खन्ना के साथ सुशील खुराना के बनते दिख रहे राजनीतिक गठजोड़ ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में रवि दयाल के समर्थकों को भी उत्साहित किया है; उन्हें लगता है कि सुशील खुराना व संजय खन्ना के बीच यदि सचमुच राजनीतिक गठजोड़ बन जाता है, तो डिस्ट्रिक्ट में जो समीकरण बनेगा - वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत रवि दयाल की उम्मीदवारी को भी मदद पहुँचायेगा ।

Saturday, November 19, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में मुकेश गोयल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार बनाने की आड़ में चौधराहट दिखाने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग की कोशिश में इंदरजीत सिंह ने अड़ंगा डाला

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग ने यशपाल अरोड़ा के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी से पीछे हटते ही जिस फुर्ती के साथ उनकी जगह मुकेश गोयल को उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है, उस पर फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंदरजीत सिंह द्धारा अपनी नाराजगी दिखाए जाने के कारण सत्ता खेमे में मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को लेकर असमंजस पैदा हो गया है । सत्ता खेमे के एक बड़े नेता ने इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि इंदरजीत सिंह की तरफ से कहा गया है कि मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को लेकर लोगों के बीच जो सवाल उठ रहे हैं, उन पर विचार किए बिना उन्हें उम्मीदवार बनाए जाने से लोगों के बीच गलत संदेश जायेगा और उसका नुकसान उठाना पड़ सकता है । इंदरजीत सिंह चाहते हैं कि मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को लेकर उठने वाले सवालों पर खुले मन से विचार-विमर्श करके तथा संभावित लाभ-हानी का आकलन करके ही मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को प्रोजेक्ट करने का काम शुरू किया जाए । इंदरजीत सिंह के इस रवैये से सत्ता खेमे के लोगों में ही मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को लेकर असमंजसता पैदा हो गई है । सत्ता खेमे के ही कुछेक लोगों का कहना हालाँकि यह भी है कि इंदरजीत सिंह दरअसल अपनी इंपोर्टेंस दिखाने/जताने के लिए यह नाटक कर रहे हैं, और सभी जल्दी ही देखेंगे कि उनके हाथ में भी मुकेश गोयल की उम्मीदवारी का झंडा होगा । इंदरजीत सिंह के नजदीकियों का कहना है कि वास्तव में मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को लेकर इंदरजीत सिंह को कोई समस्या या शिकायत नहीं है; उनका दुःख और विरोध सिर्फ इस बात को लेकर है कि उन्हें अलग-थलग रख कर विनय गर्ग ने अकेले ही मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को प्रमोट करना शुरू कर दिया । विनय गर्ग की इस कार्रवाई में इंदरजीत सिंह को अपनी तौहीन लगी, जिसकी प्रतिक्रिया में उन्हें यह दिखाना/जताना जरूरी लगा कि विनय गर्ग उन्हें अलग-थलग करके अकेले ही कोई फैसला नहीं ले सकते हैं ।
इस कारण से इंदरजीत सिंह के अड़ंगा डालने के रवैये को मुकेश गोयल के लिए नहीं, बल्कि विनय गर्ग के लिए झटके के रूप में देखा जा रहा है । सत्ता खेमे के दूसरे कई लोगों का भी मानना/कहना है कि विनय गर्ग को अकेले ही मनमाने तरीके से मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को हरी झंडी नहीं दे देनी चाहिए थी - और मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को सत्ता खेमे के सामूहिक फैसले के रूप में ही 'दिखना' चाहिए था । विनय गर्ग ने मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को घोषित करने में जो जल्दीबाजी व मनमानी की, उसके लिए दो कारणों को पहचाना गया है : ऐसा करके विनय गर्ग एक तो डिस्ट्रिक्ट में अपनी चौधराहट दिखाना चाहते थे, और दूसरे उन्हें 27 नवंबर को करनाल में होने वाली सेकेंड कैबिनेट मीटिंग के लिए 'मददगार' जुटाने की जल्दी थी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मददगार के रूप में सबसे पहले उम्मीदवार को ही 'पकड़ता' है । अभी तक यशपाल अरोड़ा ने विनय गर्ग के मददगार की भूमिका निभाई हुई थी, किंतु अचानक से स्वास्थ्य बिगड़ जाने से उनके उम्मीदवारी छोड़ देने से विनय गर्ग के सामने एक अदद मददगार की जरूरत आन पड़ी । लिहाजा जैसे ही मुकेश गोयल ने मददगार 'बनने' का ऑफर दिया, विनय गर्ग ने आव देखा न ताव - फौरन से मुकेश गोयल की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया । जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि विनय गर्ग के इस रवैये में इंदरजीत सिंह को अपनी तौहीन दिखी, फलस्वरूप उन्होंने इसमें अड़ंगा डाल दिया ।
इंदरजीत सिंह को अड़ंगा डालने का मौका भी आसानी से मिल गया । मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को लेकर मुख्यतः दो आपत्तियाँ चर्चा में रहीं - गंभीर आपत्ति यह रही कि उम्मीदवार बनने के लिए उन्होंने हरियाणा के क्लब से दिल्ली के क्लब में ट्रांसफर लिया है, और इस तरह डिस्ट्रिक्ट में बने हरियाणा व दिल्ली के बीच बारी बारी से गवर्नर बनने के फार्मूले के साथ उन्होंने धोखा किया । मुकेश गोयल की तरफ से जो तथ्य दिए/बताए गए, उन्होंने इस आरोप की धार को हालाँकि कुंद कर दिया है । बताया गया कि मुकेश गोयल करीब डेढ़ वर्ष पहले ही सोनीपत से दिल्ली आ गए थे, और सोनीपत की बजाए, दिल्ली में ज्यादा सक्रिय थे । दिल्ली में उनकी सक्रियता के कारण ही वह लायंस ब्लड बैंक के ट्रेजरार बने/बनाए गए । दिल्ली में सक्रियता के कारण ही उन्होंने लायंस क्लब दिल्ली नॉर्थ एक्स में ट्रांसफर ले लिया था, और यह तभी ले लिया था जब यशपाल अरोड़ा ही उम्मीदवार थे । इन तथ्यों का हवाला देते हुए मुकेश गोयल की तरफ से कहा गया कि इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि उन्होंने उम्मीदवार बनने के लिए क्लब बदला है । दूसरी आपत्ति यह रही कि लायंस ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद की जिम्मेदारी संभालते हुए वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की भी जिम्मेदारी कैसे सँभालेंगे ? इसका जबाव मुकेश गोयल के नजदीकियों की तरफ से आया; जिनका कहना रहा कि उन्होंने मुकेश गोयल की क्षमताओं को नजदीक से देखा/पहचाना है, और जानते हैं कि मुकेश गोयल ने अपना जीवन जिस तरह से सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित किया हुआ है - उसके कारण उनके लिए दोनों पदों की जिम्मेदारी सँभालना उनके लिए मुश्किल नहीं होगा । अन्य कई लोगों का यह भी कहना रहा कि मुकेश गोयल दोनों पदों को एक दूसरे के पूरक के रूप में इस्तेमाल करने की काबिलियत भी रखते हैं, और उनके गवर्नर होने से लायंस ब्लड बैंक का काम बढ़ेगा भी और व्यवस्थित भी होगा । इस तरह, मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को लेकर जो दो प्रमुख आपत्तियाँ चर्चा में आईं - वह ज्यादा समय टिक तो नहीं पाईं; लेकिन विनय गर्ग को झटका देने के लिए इंदरजीत सिंह ने उनका बेहतर इस्तेमाल जरूर कर लिया ।
सत्ता खेमे के लोगों का भी मानना और कहना है कि इंदरजीत सिंह के रवैये से सत्ता खेमे में मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को लेकर थोड़ा असमंजस जरूर पैदा हुआ है, लेकिन इस असमंजस को जल्दी ही दूर कर लिया जाएगा । सत्ता खेमे के लोगों का ही मानना और कहना है कि इंदरजीत सिंह के निशाने पर चूँकि मुकेश गोयल की उम्मीदवारी नहीं, बल्कि विनय गर्ग की चौधराहट है - और विनय गर्ग की तरफ से भी इंदरजीत सिंह के रवैये को लेकर कोई तीखी टिप्पणी नहीं आई है, इसलिए उम्मीद की जाती है कि मामले को जल्दी ही हल कर लिया जाएगा । दरअसल विनय गर्ग भी इस मामले को बढ़ाना/बढ़वाना नहीं चाहते हैं और वह इंदरजीत सिंह की इस बात को मानने के लिए राजी हैं कि मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को लेकर जो सवाल हैं, उन पर सामूहिक रूप से बात कर ली जाए । असल में, विनय गर्ग मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की अपनी उम्मीदवारी के चक्कर में इंदरजीत सिंह से ज्यादा पंगा लेने की स्थिति में हैं भी नहीं, और वह खुशी खुशी इंदरजीत सिंह की बात को मान ही लेंगे । इससे सत्ता खेमे के लोगों के साथ-साथ मुकेश गोयल की उम्मीदवारी के समर्थकों को भी विश्वास हो चला है कि मुकेश गोयल की उम्मीदवारी पर छाए असमंजसता के बादल जल्दी ही छंट जायेंगे । लोगों का यह भी कहना है कि विनय गर्ग जल्दीबाजी न करते और चतुराई न दिखाते, तो मामला बिगड़ता भी नहीं ।

Thursday, November 17, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में जेके गौड़ इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के सहारे रमेश अग्रवाल को सबक सिखाने का काम करेंगे क्या ?

नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल के साथ समय बड़ा क्रूर मज़ाक कर रहा है - जिन जेके गौड़ को उन्होंने कभी भी पैर की जूती से ज्यादा तवज्जो नहीं दी, उन्हीं जेके गौड़ के कारण उनका राजनीतिक भविष्य चौपट होने की कगार पर आ पहुँचा है और जिसे बचाने के लिए उन्हें जेके गौड़ को मनाने/फुसलाने में 'लगना' पड़ रहा है । रमेश अग्रवाल अगले रोटरी वर्ष में रोटरी जोन 4 और 6ए में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के इस वर्ष होने वाले चुनाव में उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे हैं; किंतु उनकी इस तैयारी को जेके गौड़ ने तगड़ा झटका दिया हुआ है । दरअसल जेके गौड़ ने भी उक्त नोमीनेटिंग कमेटी के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी दिखाई है । नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता का फैसला पहले काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में होगा, जहाँ लेकिन जेके गौड़ के मुकाबले रमेश अग्रवाल की हालत बहुत ही पतली है । काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के दस प्रभावी सदस्यों में रमेश अग्रवाल को कुल दो सदस्यों - शरत जैन और सुभाष जैन का ही समर्थन मिल सकता है । जाहिर तौर पर इससे तो उनकी दाल गलेगी नहीं । इसके बाद, रमेश अग्रवाल के पास सीधे चुनाव में जाने का विकल्प ही बचता है । रमेश अग्रवाल को लोगों के बीच अपनी स्थिति/हैसियत का अंदाजा है, इसलिए उक्त विकल्प अपनाने का दुस्साहस वह नहीं करेंगे । इस तरह का दुस्साहस करने का मजा वह पहले एक बार चख चुके हैं । पैतृक डिस्ट्रिक्ट 3010 में सीओएल के चक्कर में वह आशीष घोष से जा भिड़े थे और अपनी नाक कटवा बैठे थे । उनके नजदीकियों का कहना है कि उस तरह की शेख़ीबाजी में वह इस बार नहीं पड़ेंगे; और प्रयास सिर्फ यह करेंगे कि किसी तरह जेके गौड़ को फुसला/समझा कर वह रास्ते से हटा/हटवा दें ।
रमेश अग्रवाल के लिए इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में जाना दरअसल रोटरी में अपने राजनीतिक भविष्य को बचाने/सँवारने के लिए बहुत ही जरूरी है । तमाम तिकड़मों व जुगाड़ों के बावजूद रमेश अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट के ऊपर की रोटरी की व्यवस्था व राजनीति में अपनी जगह नहीं बना सके हैं । ले दे कर रोटरी विन्स में उन्हें 'मजदूरी' करने का मौका भर मिला हुआ है, जिसमें भी कुछ करते दिखने की तस्वीरें खिंचवाने के लिए उन्हें विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के गवर्नर्स की खुशामद और करना पड़ती हैं । अपने अपने डिस्ट्रिक्ट में बुलाने की ऐवज में गवर्नर्स उन्हें जिस तरह से खिजाते और अपमानित करते हैं, इसे सिर्फ वही जानते हैं । दूसरों ने तो इसे तब जाना, जब पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट 3011 के तत्कालीन गवर्नर सुधीर मंगला ने कई लोगों के सामने उन्हें बुरी तरह फटकारा था । रमेश अग्रवाल के नजदीकी बताते हैं कि रोटरी विन्स का काम तो वह इस मजबूरी में कर रहे हैं, क्योंकि उनके पास और कोई असाइनमेंट ही नहीं है । ऐसे में, रमेश अग्रवाल को लगता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता उनके सारे संकट दूर कर देगी और रोटरी में उनके 'भविष्य' को सुरक्षित कर देगी । उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव एक बड़ा चुनाव होता है, और उसमें रोटरी के तमाम बड़े नेता इन्वॉल्व होते हैं । रमेश अग्रवाल को लगता है - और स्वाभाविक रूप से ठीक ही लगता है कि वह नोमीनेटिंग कमेटी में होंगे तो रोटरी के तमाम बड़े नेताओं के साथ असाइनमेंट के लिए सौदेबाजी कर सकेंगे; और इस तरह से रोटरी की ऊपर की 'व्यवस्था' में उनकी गाड़ी चल निकलेगी ।
रमेश अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि जैसा वह सोच रहे हैं, ठीक वैसा ही जेके गौड़ भी सोच रहे हैं । जेके गौड़ रोटरी में कोई घास छीलने ही - या रमेश अग्रवाल की 'गुलामी' करने ही थोड़े ही आए हैं । उनका भी 'आगे बढ़ने' का मन होगा ही । यह जेके गौड़ की खुशकिस्मती है कि उन्हें एक ऐसा सुनहरा मौका मिला है, जिसमें कुछ किए बिना ही इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता खुद-ब-खुद उनकी जेब में आ रही है । जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट की राजनीतिक खेमेबाज़ी में हालाँकि अभी भी हैं तो उसी खेमे में, जिसे रमेश अग्रवाल के खेमे के रूप में देखा/पहचाना जाता है - लेकिन रमेश अग्रवाल के लिए वह रास्ता छोड़ेंगे, इसकी उम्मीद कम देखी जा रही है । वास्तव में इस स्थिति के लिए रमेश अग्रवाल खुद ही जिम्मेदार हैं । रमेश अग्रवाल ने जेके गौड़ को हर कदम पर इतना सताया और बार बार अपमानित किया है कि जेके गौड़ उनके लिए अपने हाथ में आए सुनहरे मौके को छोड़ने के लिए शायद ही तैयार होंगे । लोगों को लगता है कि जेके गौड़ को रोटरी की ऊपर की व्यवस्था व राजनीति में बड़ी भूमिका ही पाने का मौका नहीं मिला है, बल्कि रमेश अग्रवाल से मिले अपमान का बदला लेने का अवसर भी मिला है । यूँ तो रमेश अग्रवाल राजनीतिक हैसियत और चतुराई के मामले में जेके गौड़ को अपने सामने कुछ नहीं समझते, लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें जेके गौड़ के सामने मजबूर व असहाय बना दिया है ।
रमेश अग्रवाल ने हालाँकि अभी हिम्मत नहीं हारी है, और उनकी तरफ से तरह तरह से जेके गौड़ को पटाने/फुसलाने के प्रयास किए जा रहे हैं; तथा उनके साथ सौदेबाजी करने के 'मौके' खोजे/बनाए जा रहे हैं - लेकिन जेके गौड़ की तरफ से अभी पीछे हटने का संकेत उन्हें नहीं मिला है । जेके गौड़ के नजदीकियों का कहना है कि जेके गौड़ के मन में अभी रमेश अग्रवाल के प्रति जो नाराजगी है, उसे देखते हुए तो यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह रमेश अग्रवाल के लिए रास्ता छोड़ेंगे । उनका कहना है कि बात यदि सिर्फ एक पद पाने की होती, तो जेके गौड़ से उम्मीद की जा सकती थी कि  वह रमेश अग्रवाल की राह का रोड़ा न बनते; किंतु जेके गौड़ के सामने चूँकि रमेश अग्रवाल से बदला लेने और उन्हें सबक सिखाने का मौका है - इसलिए उम्मीद नहीं है कि जेके गौड़ मौका छोड़ेंगे । जेके गौड़ चूँकि यह भी अच्छे से जानते/समझते हैं कि रमेश अग्रवाल का स्वभाव कुत्ते की उस दुम की तरह है जिसे सीधा करने का चाहें जितना प्रयास करो, वह सीधी नहीं होती है; पटाने/फुसलाने की कोशिशों तथा सौदेबाजी के चक्कर में वह यदि रमेश अग्रवाल के लिए मौका यदि छोड़ भी देते हैं, तो भी रमेश अग्रवाल आगे उन्हें अपमानित करने की हरकतों से बाज नहीं आयेंगे - लिहाजा जेके गौड़ उन्हें सबक सिखाना ही चाहेंगे । तमाम प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद रमेश अग्रवाल चूँकि अभी भी जेके गौड़ को रास्ते से हटाने की मुहिम में लगे हुए हैं, इसलिए देखना दिलचस्प होगा कि जेके गौड़ उनकी मुहिम में फँसने से अपने आपको बचा पाते हैं या नहीं ?

Wednesday, November 16, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 के 'गवर्नर इलेक्ट' दिनेश शर्मा को सबक सिखाने की कोशिश में इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई क्या सचमुच मामले को सुलझने नहीं देंगे ?

सिकंदराबाद । दिनेश शर्मा के प्रति इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के रवैये के कारण डिस्ट्रिक्ट 3100 का संकट मौजूदा रोटरी वर्ष में हल होता हुआ नहीं दिख रहा है । हालाँकि यूँ तो डिस्ट्रिक्ट 3100 में परिस्थितियाँ पटरी पर लौटती नजर आ रही हैं - रोटरी इंटरनेशनल के विशेष प्रतिनिधि संजय खन्ना की कोशिशों से अधिकतर क्लब्स के ड्यूज जमा हो गए हैं, मैचिंग ग्रांट्स पर लगी बंदिश रोटरी इंटरनेशनल द्धारा हटा ली गई है, रोटरी इंटरनेशनल के खिलाफ किए गए मुकदमे को वापस ले लिया गया है, डिस्ट्रिक्ट को बबाल-मुक्त बनाने के लिए डिस्ट्रिक्ट के नियम-कानूनों में आवश्यक सुधार व फेरबदल करने को लेकर पूर्व गवर्नर्स के बीच सहमति बन गई है, आदि-इत्यादि । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म से डिस्ट्रिक्ट 3100 से जुड़े मामलों को लेकर जब भी कोई बात पूछी/बताई जाती है, तो उनकी तरफ से तुरंत जबाव या प्रतिक्रिया मिलती है - जिससे 'पता' चलता है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 के मामले को उन्होंने अपनी प्राथमिकता में रखा हुआ है । इन बातों व तथ्यों को सकारात्मक रूप से लिया जा रहा है, और इनके आधार पर उम्मीद की जा रही है कि इस वर्ष के अंत तक डिस्ट्रिक्ट को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस से बाहर निकाल दिया जायेगा - और डिस्ट्रिक्ट पुनः पहले की तरह से अपनी स्वतंत्र पहचान के साथ काम शुरू कर सकेगा ।
मनोज देसाई के रवैये ने लेकिन इस उम्मीद पर ग्रहण लगाया हुआ है । मनोज देसाई के रवैये ने दरअसल इस सवाल पर विवाद खड़ा कर दिया है कि नॉन डिस्ट्रिक्ट स्टेटस से बाहर आने के बाद अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट का गवर्नर कौन होगा ? उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में यदि बबाल पैदा नहीं हुआ होता, तो दिनेश शर्मा इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के पद पर होते - और इस नाते से वह स्वाभाविक रूप से अपने आप को अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में देखते हैं । डिस्ट्रिक्ट 3100 के दूसरे लोग भी इस वर्ष के अंत तक संकट हल हो जाने की स्थिति में अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दिनेश शर्मा को ही 'देख' रहे हैं । वास्तव में किसी को भी दिनेश शर्मा के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने को लेकर शक नहीं है । किंतु मनोज देसाई के रवैये ने यह शक पैदा कर दिया है । बात यह नहीं है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर तथा दुबई में हो रहे रोटरी जोन इंस्टीट्यूट के कन्वेनर के रूप में मनोज देसाई ने दिनेश शर्मा को आधिकारिक रूप से शामिल होने की अनुमति नहीं दी है - मनोज देसाई को यह अनुमति देने का अधिकार है भी नहीं । तकनीकी आधार पर जब डिस्ट्रिक्ट ही 'डिस्ट्रिक्ट' नहीं है, तो दिनेश शर्मा भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट नहीं हैं - और इस नाते से वह आधिकारिक रूप से इंस्टीट्यूट में शामिल होने के अधिकारी नहीं हैं । इस बात को लेकर किसी को भी न तो कोई शक है, और न शिकायत है । लेकिन इस सामान्य सी नियमपूर्ण बात को मनोज देसाई ने यह कहते हुए काफी पेचीदा बना दिया है कि गवर्नर इलेक्ट के लिए होने वाले ट्रेनिंग सेमीनार में शामिल हुए बिना दिनेश शर्मा गवर्नर आखिर कैसे बन सकेंगे ?
मनोज देसाई ने एक सामान्य सी बात को पेचीदा बना देने की जो कोशिश की है, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट 3100 में सामान्य होती स्थितियों को ग्रहण लग गया है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस से बाहर आने के बाद यदि दिनेश शर्मा गवर्नर नहीं बने, तो डिस्ट्रिक्ट एक बार फिर से बबाल में फँसेगा । डिस्ट्रिक्ट में जो लोग मनोज देसाई के नजदीक हैं या जिनकी इन दिनों उनसे बातें हो रही हैं, उनके हवाले से सुनने को मिल रहा है कि मनोज देसाई दरअसल दिनेश शर्मा से बहुत ही बुरी तरह से नाराज हैं । दिनेश शर्मा ने पिछले दिनों मनोज देसाई के खिलाफ काफी कुछ बातें कहीं, जो लगता है कि मनोज देसाई तक जा पहुँची हैं - और समझा जाता है कि उन्हीं बातों के चलते मनोज देसाई ने दिनेश शर्मा को सबक सिखाने की ठान ली है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 के मामले में मनोज देसाई की भूमिका शुरू से ही आरोपों के घेरे में रही है और यहाँ के झगड़ों को हवा देकर भड़काने में उनकी भूमिका को पिछले रोटरी वर्ष के शुरू से ही चिन्हित किया जाता रहा है । कई लोगों का मानना और कहना है कि मनोज देसाई के इंटरनेशनल डायरेक्टर के पद पर रहते हुए डिस्ट्रिक्ट 3100 का मामला हल हो ही नहीं पायेगा ।
मनोज देसाई के रवैये की शिकायत सुनने वाले रोटरी इंटरनेशनल के दूसरे बड़े (भूतपूर्व) पदाधिकारियों ने हालाँकि डिस्ट्रिक्ट 3100 के लोगों को आश्वस्त करते हुए समझाया है कि डिस्ट्रिक्ट के भविष्य का फैसला मनोज देसाई को नहीं करना है, इसलिए मनोज देसाई चाहते हुए भी कोई अड़ंगा नहीं डाल पायेंगे । इन पदाधिकारियों का यह भी मानना और कहना है कि मामला इस वर्ष ही हल हो जाने की स्थिति में अगले वर्ष के गवर्नर दिनेश शर्मा ही होंगे, भले ही उनकी ट्रेनिंग न हो पाए; और इस संबंध में मनोज देसाई अपनी मनमानी नहीं चला पायेंगे । डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह भी बताया/समझाया गया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद से मनोज देसाई की अब चलाचली की बेला है, तथा सी बासकर की भूमिका अब महत्त्वपूर्ण होगी - और इस कारण से मनोज देसाई के लिए अब मनमानी कर पाना संभव नहीं होगा । कुछेक बड़े नेताओं का हालाँकि यह भी कहना है कि दिनेश शर्मा को अपनी जुबान पर थोड़ा काबू रखना चाहिए और मनोज देसाई के खिलाफ अशालीन किस्म की बातें नहीं करना चाहिए; दिनेश शर्मा को समझना चाहिए कि मनोज देसाई अभी इंटरनेशनल डायरेक्टर के पद पर हैं और उनका 'काम' बिगाड़ तो सकते ही हैं । मनोज देसाई के रवैये से भी यही दिख रहा है कि वह दिनेश शर्मा को आसानी से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद तक नहीं पहुँचने देंगे - और उनके इस रवैये में डिस्ट्रिक्ट 3100 का मामला सुलझने की तरफ बढ़ते बढ़ते उलझता ज्यादा नजर आ रहा है ।

Tuesday, November 15, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी क्लब गाजियाबाद के वरिष्ठ सदस्य विनय चंद्रा को क्लब से निकलवाने में दीपक गुप्ता की मिलीभगत के तथ्य सामने आने के बाद मचे बबाल से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी पर खतरा मँडराया

गाजियाबाद । रोटरी क्लब गाजियाबाद में विनय चंद्रा के इस्तीफे की कहानी के जिस जिन्न को दीपक गुप्ता तथा उनके साथियों ने बहुत ही तरकीबभरी होशियारी से बोतल में बंद कर दिया था, बोतल का ढक्कन तोड़ कर वह कहानी एक बार फिर बोतल से बाहर आ गई है - और इसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार दीपक गुप्ता की मुसीबतों को और बढ़ा दिया है । उक्त कहानी के बोतल से बाहर आने के पीछे दरअसल क्लब में दीपक गुप्ता के विरोधियों के सक्रिय होने के संकेत देखे/पहचाने जा रहे हैं, और इसी बात ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए मुसीबतों को और बढ़ा दिया है । उल्लेखनीय है कि क्लब में जब विनय चंद्रा का इस्तीफा हुआ था, तब हालात ऐसे थे - या ऐसे बना दिए गए थे, कि विनय चंद्रा को चुपचाप इस्तीफा दे देना पड़ा और क्लब में उनके संगी-साथियों को भी चुप रह जाना पड़ा था । जो लोग विनय चंद्रा को जानते/पहचानते हैं तथा क्लब में उनकी पहुँच/पकड़ से परिचित हैं, उन्हें आश्चर्य भी हुआ था कि क्लब से विनय चंद्रा का निकलना इतने चुपचाप तरीके से कैसे हो गया ? उस समय घटे घटनाचक्र की जानकारी जिन लोगों को थी, उन्होंने यही पाया/जाना था कि विनय चंद्रा की घेराबंदी ऐसी होशियारी के साथ की गई है कि विनय चंद्रा और उनके साथी उसमें फँस गए थे तथा चाहते हुए भी वह कुछ कर सकने में असमर्थ हो गए थे ।को  विनय चंद्रा की घेराबंदी करने में दीपक गुप्ता ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी - जिसे विनय चंद्रा और उनके संगी-साथी उस समय तो नहीं समझ/पहचान पाए थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता उनके सामने दीपक गुप्ता की भूमिका की पोल खुलती गई ।
दीपक गुप्ता ने लेकिन पोल खुलने की परवाह भी नहीं की । वह विनय चंद्रा को ठिकाने लगाने की जीत ही मनाते रहे । पर अब जब विनय चंद्रा और उनके साथी बदला लेने के लिए सक्रिय होते नजर आए हैं - तो दीपक गुप्ता और उनके साथियों को मुसीबत दिखाई देने लगी है । क्लब के लोगों का कहना है कि यह मुसीबत दीपक गुप्ता ने खुद ही बुलाई है । दरअसल दीपक गुप्ता और उनके साथी लगातार बढ़चढ़ कर यह बताते/जताते रहे हैं कि उन्होंने कैसे क्लब के एक प्रमुख सदस्य को क्लब से निकाल दिया, और वह ज्यादा चूँ-चपड़ भी नहीं कर पाया । यह बताते/जताते हुए दीपक गुप्ता वास्तव में क्लब के उन सदस्यों को 'धमकाने' का काम कर रहे थे, जो उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ बात करते हुए सुने जा रहे थे । ऐसे सदस्यों को दीपक गुप्ता की तरफ से बताया गया कि विनय चंद्रा भी उनकी उम्मीदवारी की खिलाफत कर रहे थे, जिसकी सजा देते हुए उन्हें क्लब से ही निकलवा दिया गया । यह बताने/जताने के जरिए दरअसल क्लब के सदस्यों को 'धमकी' ही दी गई कि जो कोई भी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का विरोध करेगा, उसका हाल भी विनय चंद्रा जैसा ही कर दिया जायेगा । इस तरह की बातों से भेद खुला कि विनय चंद्रा के लिए क्लब से बाहर का रास्ता खुलवाने का 'काम' वास्तव में दीपक गुप्ता ने किया था । दीपक गुप्ता दरअसल विनय चंद्रा से इस बात पर नाराज थे कि विनय चंद्रा क्लब में उनकी उम्मीदवारी को लगातार निशाना बना रहे थे ।
विनय चंद्रा ने क्लब के एक सदस्य के साथ सोशल मीडिया में हुई झड़प के चलते गुस्से में क्लब की सदस्यता छोड़ने की जो बात की/कही, दीपक गुप्ता ने उसमें मौका ताड़ा और फिर अपने कुछेक साथियों के साथ मिल कर साजिश का ऐसा जाल बुना कि विनय चंद्रा क्लब से बाहर ही दिखाई दिए । दीपक गुप्ता और उनके साथियों की ही बातों से लोगों को पता चला कि विनय चंद्रा को मनाने का प्रयास दीपक गुप्ता और उनके साथियों ने ही सफल नहीं होने दिया था; और प्रयास को फेल करने के लिए उन्होंने बहुत ही सुनियोजित तरीके से प्लान बनाया था । मामले को खत्म करवाने की जिम्मेदारी जिस तरह से जीपी अग्रवाल को दिलवाई गई थी, उससे कुछेक लोगों को शक तो हुआ था कि मामले को खत्म करवाने की कोशिश की आड़ में उद्देश्य कुछ और ही है । विनय चंद्रा और जीपी अग्रवाल के बीच तनातनी चूँकि पहले से ही थी, इसलिए क्लब के कुछेक सदस्यों ने कहा भी कि मामले को खत्म करवाने की जिम्मेदारी जीपी अग्रवाल की बजाए किसी और को सौंपी जानी चाहिए - पर उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया गया; लोगों को अब समझ में आ रहा है कि जानबूझ कर ही उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया गया था । मजे की बात यह है कि दीपक गुप्ता तथा क्लब के दूसरे कुछेक प्रमुख लोग उस समय तो जोरशोर से दावा कर रहे थे कि वह विनय चंद्रा को किसी भी हालत में क्लब से बाहर नहीं जाने देंगे, लेकिन जीपी अग्रवाल ने जैसे ही विनय चंद्रा को मनाने की कोशिशों में रायता फैलाया - सभी लोगों ने चुप्पी साध ली । विनय चंद्रा और उनके साथियों को बहुत देर बाद समझ में आया कि उनके साथ किस तरह से धोखा किया गया है । पहले तो वह जीपी अग्रवाल को ही जिम्मेदार मान रहे थे, लेकिन जैसे जैसे बातें बाहर आती/निकलती रहीं - वैसे वैसे साफ होता गया कि विनय चंद्रा को क्लब से बाहर करवाने में दीपक गुप्ता की ही मुख्य और षड्यंत्रकारी भूमिका थी ।
दीपक गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी को सुरक्षित बनाए रखने के लिए ही विनय चंद्रा को क्लब से बाहर करवाने की योजना को क्रियान्वित किया । दरअसल विनय चंद्रा जिन तर्कों के आधार पर दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे थे, उन तर्कों को क्लब के सदस्यों के बीच समर्थन मिलता देख दीपक गुप्ता तथा उनके साथ के लोगों के बीच डर पैदा हुआ कि उनकी उम्मीदवारी कहीं उनके अपने क्लब में ही अमान्य न हो जाए । इस डर को दूर करने के लिए ही दीपक गुप्ता को विनय चंद्रा को ठिकाने लगाना जरूरी लगा । सीधे तरीके से तो वह ऐसा नहीं कर सकते थे, लिहाजा उन्होंने विनय चंद्रा को धोखे में रख कर उन्हें ठिकाने लगाने की तैयारी की । दीपक गुप्ता की तैयारी तो सफल हुई, लेकिन इस तैयारी की बात को वह छिपा कर नहीं रख सके और खुद ही इसका बखान करते रहे । इसी का नतीजा हुआ कि क्लब में विनय चंद्रा के संगी-साथी सक्रिय हो उठे हैं । उनकी सक्रियता के चलते ही विनय चंद्रा के इस्तीफे की कहानी फिर से जी उठी है । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह है कि उक्त कहानी के जी उठने से उनके सामने दोहरी समस्या खड़ी हो गई है : एक तरफ तो उन्हें विनय चंद्रा के साथियों की नाराजगी व उनके विरोध का सामना करना पड़ेगा, और दूसरी तरफ क्लब में उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ बातें और तेज होंगी ।
दीपक गुप्ता के क्लब में कई लोगों का मानना और कहना है कि दीपक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी के चक्कर में क्लब की बदनामी करवा रहे हैं; लगातार चुनाव हारते रहने के चलते डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोग क्लब के पदाधिकारियों का मजाक उड़ाते हैं; दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के चलते गाजियाबाद के दूसरे क्लब्स के पदाधिकारियों व प्रमुख लोगों के साथ उनकी दूरियाँ और बन/बढ़ रही हैं - इन कारणों से क्लब का कोई भी सदस्य दीपक गुप्ता के साथ चुनाव अभियान में जरा भी सक्रिय नहीं है । पिछले वर्ष अनिल अग्रवाल ने उनके साथ काफी भाग-दौड़ की थी, लेकिन इस वर्ष उन्होंने तौबा कर ली है । जीपी अग्रवाल भी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए कुछ करते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । क्लब के लोगों का मानना और कहना है कि दीपक गुप्ता की इस बार भी दाल गलती हुई नहीं दिख रही है, इसलिए उनके चक्कर में अपनी फजीहत क्यों करवाई जाए ? ऐसे में, विनय चंद्रा के संगी-साथियों के सक्रिय हो उठने की आहट ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की मुसीबतों को और बढ़ाने का ही काम किया है ।

Thursday, November 10, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में अनुकूल स्थिति के बावजूद सुरेश भसीन व रवि दयाल के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद अभी दूर की कौड़ी ही लग रहा है

नई दिल्ली । समर्थक पूर्व गवर्नर नेताओं के पीछे हटने तथा ठंडे पड़ने से संजीव राय मेहरा की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी खतरे में पड़ गई नजर आ रही है, जिसका फायदा उठाने के लिए सुरेश भसीन तथा रवि दयाल ने कमर तो कस ली है - किंतु उसके फायदे को लेकर खुद उनके समर्थक भी आश्वस्त नहीं हैं । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के 'पंडितों' का मानना और कहना है कि इस बार का चुनाव इन दोनों के लिए बहुत ही अनुकूल होने के साथ-साथ महत्वपूर्ण भी है; महत्वपूर्ण इसलिए भी - कि इनमें से जो भी असफल रहा, उसके लिए गवर्नरी का रास्ता आगे फिर बंद ही समझो । इस लिहाज से इन दोनों के लिए यह आख़िरी मौका ही है । सुरेश भसीन और रवि दयाल ने इस बात को शायद खुद भी समझा हुआ है, और इसलिए अपनी अपनी तरफ से उन्होंने अपना अपना पूरा जोर लगाया हुआ है । हालाँकि दोनों के 'तौर-तरीकों' को देखते हुए राजनीतिक 'पंडितों' का कहना है कि दोनों ने ही अपने पिछले अनुभवों से कुछ नहीं सीखा है, और दोनों ही इस बार भी वही गलतियाँ दोहरा/तिहरा रहे हैं - जिनके कारण वह अभी तक सफलता से दूर बने हुए हैं । दोनों ने ही दरअसल इस सच्चाई को या तो समझा/पहचाना नहीं है, और या समझते/पहचानते हुए भी उसे क्रियान्वित करने की जरूरत नहीं समझी है - कि किसी भी चुनाव की तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में एक राजनीतिक समीकरण बनता है, और वही उम्मीदवार सफल हो सकने की उम्मीद कर सकता है जो अपने आप को 'उस' राजनीतिक समीकरण का हिस्सा बना लेता है ।
रवि दयाल के साथ पिछले दिनों जो हुआ, उससे इस बात को समझा जा सकता है : रवि दयाल अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से पिछले दिनों फरीदाबाद के कुछेक प्रमुख लोगों से मिले, जिन्होंने एक पूर्व गवर्नर का नाम लेते हुए उनसे कहा कि हम तो 'उनके' कहे अनुसार फैसला करेंगे । यह सुनकर रवि दयाल पलटे और 'उन' पूर्व गवर्नर से मिलने के लिए जुगाड़ बैठाने में लग गए । रवि दयाल 'उन' पूर्व गवर्नर से मिल पाए या नहीं मिल पाए; और यदि मिल पाए तो फिर हुआ क्या - यह तो पता नहीं; किंतु जितना पता है, उससे ही साबित है कि रवि दयाल ने जिस क्रम में सक्रियता दिखाई - उसके कारण ही उन्हें खासी फजीहत का सामना करना पड़ा । रवि दयाल यदि लोगों के बीच बने/सधे राजनीतिक तारों को पहले से ही समझ/पहचान कर आगे बढ़ते तो और जो होता सो होता, उन्हें कम से कम राजनीतिक फजीहत का सामना तो नहीं ही करना पड़ता । यही कहानी सुरेश भसीन के साथ है । सुरेश भसीन एक उम्मीदवार के रूप में यूँ तो काफी सक्रिय हैं, लेकिन इस सक्रियता के बावजूद वह अपना विश्वसनीय समर्थन-आधार यदि नहीं बना पा रहे हैं, तो इसका सीधा सा कारण यही है कि उनकी सक्रियता राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रख कर संयोजित नहीं है ।
इन दोनों की इस दशा पर सटीक बैठती एक कहानी है : एक हष्ट-पुष्ट लकड़हारा लकड़ी के एक व्यापारी के पास काम माँगने गया । उसने व्यापारी को आश्वस्त किया कि वह मेहनत से काम करेगा । व्यापारी ने उसे एक नई कुल्हाड़ी दी और जंगल का पता बता दिया, जहाँ उसे पेड़ काटने थे । लकड़हारे ने बहुत मेहनत से काम किया और शाम तक उसने बीस पेड़ काट दिए । व्यापारी ने उसके काम से खुश होकर उसे मजदूरी के साथ-साथ ईनाम भी दिया । अगले दिन लेकिन वह अठारह पेड़ ही काट पाया । तीसरे दिन उसने और ज्यादा मेहनत से काम किया तथा जरा भी समय बर्बाद नहीं किया, किंतु कटे पेड़ों की संख्या सोलह ही रह गई । कटे पेड़ों की संख्या हर रोज कम होती जा रही थी, हालाँकि लकड़हारा पूरी मेहनत से काम कर रहा था । उसे यह बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा था कि गड़बड़ क्या हो रही है ? कटे पेड़ों की संख्या जब छह/आठ रह गई, तब लकड़हारे ने व्यापारी के सामने अपनी व्यथा कही । व्यापारी ने उसकी पूरी बात सुनी और उससे पूछा कि उसने कुल्हाड़ी को धार कब दी थी ? इस कहानी का प्रतीकात्मक संदेश यही है कि सफलता सिर्फ मेहनत से नहीं मिलती है, मेहनत के औजारों की धार की भी सफलता में निर्णायक भूमिका होती है ।
सुरेश भसीन और रवि दयाल की स्थिति भी कहानी के लकड़हारे जैसी ही है : उम्मीदवार के रूप में इन दोनों के लिए स्थितियाँ खासी अनुकूल हैं, अपने चुनाव अभियान को लेकर यह मेहनत भी खूब कर रहे हैं - पर समस्या यह है कि अपनी उम्मीदवारी और अपने चुनाव अभियान में यह कोई 'धार' नहीं दिखा पा रहे हैं । रवि दयाल को फरीदाबाद के मामले में जो फजीहत झेलनी पड़ी, उसका कारण सिर्फ यही है । और इसी वजह से, तमाम मेहनत के बावजूद सुरेश भसीन उस अनुकूल स्थिति का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं - जो उनके ठीक सामने है ।
संजीव राय मेहरा एक उम्मीदवार के रूप में लोगों के बीच अपनी स्वीकार्यता बना सकने में जिस तरह से असफल साबित हुए हैं, उससे उनके समर्थक गवर्नर्स को तगड़ा झटका लगा है तथा वह संजीव राय मेहरा की उम्मीदवारी के समर्थन से पीछे हटते नजर आ रहे हैं । उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स हालाँकि इस बात से भी परेशान हैं कि इस स्थिति का फायदा कहीं रवि दयाल को न मिल जाए; रवि दयाल को रोकने के लिए कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने सुरेश भसीन की तरफ 'देखना' शुरू किया है । सुरेश भसीन के लिए यह एक बहुत अनुकूल स्थिति है, लेकिन वह अभी तक यह कोशिश करते हुए नहीं दिखे हैं कि संजीव राय मेहरा से जो राजनीतिक समर्थन छूट रहा है, उसे वह अपनी तरफ कर लें । सुरेश भसीन के एक हमदर्द ने तो बड़ी पते की बात कही - कि सुरेश भसीन को इस बात का शायद अंदाजा भी नहीं है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाले लोगों के बीच उन्हें लेकर नकारात्मक भाव ही है । यानि सुरेश भसीन सिर्फ मेहनत पर भरोसा कर रहे हैं, और अपनी उम्मीदवारी तथा अपने अभियान को 'धार' देने की कोई जरूरत वह नहीं समझ रहे हैं ।
सुरेश भसीन की यह कमजोरी रवि दयाल की पूँजी बन सकती है, लेकिन चूँकि उनका भी तरीका सुरेश भसीन जैसा ही है - इसलिए उनकी स्थिति को लेकर खुद उनके हमदर्द ही आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं । रवि दयाल के सामने संकट अलग किस्म का है, और बड़ा है । पूर्व गवर्नर्स का एक बड़ा तबका उनके समर्थन में नहीं है, और कई तो  उनके खिलाफ हैं; जो उनके समर्थन में हो सकते थे - उनमें से कई अमरजीत सिंह तथा अतुल गुप्ता की उम्मीदवारी के कारण उनकी उम्मीदवारी के साथ नहीं हैं । उनके कुछेक हमदर्दों का कहना है कि रवि दयाल की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपनी मेहनत के आधार पर अपने आप को जीता हुआ मान लिया है तथा चुनावी राजनीति के ताने बाने को पूरी तरह अनदेखा कर दिया है । सुरेश भसीन की तरह रवि दयाल भी वोटर अध्यक्षों से मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया से बाग-बाग हैं और अपनी सफलता के प्रति आश्वस्त हैं । कहानी के लकड़हारे की तरह वह आश्वस्त हैं कि उन्हें सहृदय 'मालिक' मिल गए हैं, पेड़ों से लदा-फदा जंगल उनके सामने है और कुल्हाड़ी उनके हाथ में है - लिहाजा सफलता निश्चित ही उनके कदमों में होगी । पर सफलता का रास्ता इतना सीधा होता नहीं है ।
सुरेश भसीन और रवि दयाल की इस स्थिति ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य को खासा दिलचस्प बना दिया है । पूर्व गवर्नर्स चूँकि सीओएल तथा डायरेक्टर नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव का गणित बैठाने में व्यस्त हैं, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के चुनाव पर उनका अभी ज्यादा ध्यान नहीं है । समझा जा रहा है कि उन दो चुनावों से पूर्व गवर्नर्स की जो पोजीशनिंग बनेगी, उसका भी असर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के चुनाव पर पड़ेगा । इसीलिए माना/कहा जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव अभी रंग बदलेगा - जो इस बात पर भी निर्भर करेगा कि उम्मीदवार लोग डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के सत्ता-समीकरणों में अपने आप को कैसे फिट करते हैं ।

Tuesday, November 8, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में लायंस इंटरनेशनल के साथ बेईमानी व धोखाधड़ी करने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल और उन्हें समर्थन दे रहे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के सामने नरेश अग्रवाल असहाय और मजबूर आखिर क्यों हैं ?

आगरा । लायंस क्लब आगरा मेवरिक्स के खिलाफ कार्रवाई होने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल के क्लब - लायंस क्लब आगरा ग्रेटर में हो रही कारगुजारियों की जो पोल खुली है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल से लेकर इंटरनेशनल फर्स्ट वाइस प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल तक भारी मुसीबत में फँस गए हैं । सीपी सिंघल के लिए मुसीबत की बात यह है कि लायंस क्लब आगरा ग्रेटर उनका अपना क्लब है - ऐसे में, क्लब में होने वाली कारगुजारियों की सीधी जिम्मेदारी उन पर आती है; और इस कारण से क्लब के साथ-साथ उनके खिलाफ भी कार्रवाई होने का मामला बनता है । लायंस क्लब आगरा ग्रेटर की जिस तरह की हरकतें चर्चा में हैं, वह हरकतें सामान्य बेईमानी व धोखाधड़ी की बातें भर नहीं हैं; बल्कि लायंस इंटरनेशनल के साथ बेईमानी व धोखाधड़ी करने का मामला है । अब कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर यदि अपनी देख-रेख में लायंस इंटरनेशनल के साथ बेईमानी व धोखाधड़ी की कार्रवाई को क्रियान्वित होने दे रहा है - तो क्या उसे एक पल के लिए भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर बने रहने का अधिकार है ? नरेश अग्रवाल के लिए मुसीबत और चुनौती  की बात यह है कि जिस लायंस इंटरनेशनल के अध्यक्ष पद से वह बस एक कदम दूर हैं, और जिस एक कदम की दूरी को भी वह जल्दी ही नाप लेंगे - उस लायंस इंटरनेशनल के साथ हो रही बेईमानी व धोखाधड़ी को वह चुपचाप देखते रहें, और कोई कार्रवाई न करें; तो वह लायन सदस्यों के सामने अपनी कैसी पहचान स्थापित करेंगे ? नरेश अग्रवाल की यह मुसीबत और चुनौती इसलिए और बढ़ जाती है, क्योंकि सीपी सिंघल लोगों के बीच दावा करते सुने गए हैं कि उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स ने उन्हें आश्वस्त किया है कि नरेश अग्रवाल इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने भले ही जा रहे हों, लेकिन एक आरोपी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के खिलाफ कार्रवाई कर सकने की उनकी हिम्मत नहीं है ।
इसी तरह की चर्चाओं के बीच सीपी सिंघल की देख-रेख में होने वाली उनके क्लब की कारगुजारियों से परिचित लोगों के बीच सवाल यह सुना/पूछा जा रहा है कि लायंस इंटरनेशनल के साथ बेईमानी व धोखाधड़ी करने वाले सीपी सिंघल और उन्हें समर्थन दे रहे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के सामने नरेश अग्रवाल असहाय और मजबूर आखिर क्यों हैं ?
लायंस क्लब आगरा ग्रेटर में लायंस इंटरनेशनल के साथ बेईमानी व धोखाधड़ी करने के लिए फैमिली सदस्यता के संबंध में बनाए गए नियम का निहायत बेशर्मी के साथ दुरुपयोग करने का मामला चर्चा में आया है । उल्लेखनीय है कि लायनिज्म के विस्तार के साथ-साथ लायनिज्म को परिवार की सोच के रूप में प्रेरित करने के उद्देश्य से लायंस इंटरनेशनल ने फैमिली सदस्यता को प्रोत्साहित करने के लिए फैमिली मेंबर्स की सदस्यता फीस में भारी छूट देने का एक महत्वपूर्ण फैसला किया हुआ है । लायंस इंटरनेशनल की इस महान सोच को लायंस क्लब आगरा ग्रेटर के कर्ताधर्ताओं ने लेकिन पैसे बनाने/कमाने का जरिया बना लिया । आरोप है कि सीपी सिंघल सहित क्लब के अन्य कर्ताधर्ताओं ने क्लब के कई सदस्यों को दूसरे सदस्यों के फैमिली मेंबर के रूप में रिपोर्ट करके, उनसे मिली सदस्यता फीस के बड़े हिस्से को अपनी जेब में कर लिया - और इस तरह लायंस इंटरनेशनल के साथ बेईमानी व धोखाधड़ी की । इस बेईमानी में बेशर्मी इस तथ्य से जुड़ी कि यादव लोगों को अग्रवाल फैमिली का सदस्य रिपोर्ट कर दिया गया, तथा लालवानिया को गुप्ता फैमिली का सदस्य बना दिया गया । ऐसा करते हुए सोचा तो शायद यही गया होगा कि लायंस इंटरनेशनल में ऊपर तो सब 'गधे' बैठे हैं, वह यह बेईमानी भला कैसे पकड़ पायेंगे ? उनका सोचना लगता है कि सही भी था - बेईमानी को पकड़ना तो दूर, बेईमानी के सुबूत अब जब लोगों के बीच उपलब्ध हैं; लायन इंटरनेशनल के पदाधिकारी तब भी लायंस क्लब आगरा ग्रेटर व सीपी सिंघल के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल के खिलाफ एक और गंभीर आरोप यह है कि पिछले लायन वर्ष में 4 अक्टूबर को आयोजित हुए अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्होंने 46 नए सदस्यों का अधिष्ठापन कराया था, किंतु लायंस इंटरनेशनल में क्लब की तरफ से सिर्फ 7 नए सदस्यों को ही रिपोर्ट किया गया । बाकी 39 नए सदस्यों से ली गई फीस किसकी जेब में गई, लोगों के बीच यह एक बड़ा सवाल है ? उन 39 सदस्यों में से कई इस वर्ष भी क्लब में सक्रिय हैं, यानि इस वर्ष की उनकी फीस भी 'कोई' डकार गया है । लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानूनों को जानने वाले वरिष्ठ लायन सदस्यों का मानना और कहना है कि यह हरकतें लायंस इंटरनेशनल के साथ बेईमानी व धोखाधड़ी करने का जीता-जागता उदाहरण हैं, और इस आधार पर लायंस क्लब आगरा ग्रेटर की मान्यता तुरंत खत्म हो जानी चाहिए; और इन हरकतों को अंजाम तक पहुँचाने और/या पहुँचाने में मदद करने के आरोप में सीपी सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से तुरंत हटा देने की कार्रवाई हो जाना चाहिए । इन लोगों का कहना/पूछना है कि लायंस क्लब आगरा मेवरिक्स के खिलाफ यदि कार्रवाई हो सकती है, तो फिर लायंस क्लब आगरा ग्रेटर के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो सकती है ?  उनके अनुसार, लायनिज्म की साख व प्रतिष्ठा को बचाए रखने के लिए लायंस क्लब आगरा ग्रेटर तथा सीपी सिंघल के खिलाफ तुरंत से कार्रवाई होना और भी जरूरी है । सीपी सिंघल जिस क्लब और डिस्ट्रिक्ट का प्रतिनिधित्व करते हैं, वह चूँकि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे नरेश अग्रवाल के अपने मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट का हिस्सा हैं - इसलिए उम्मीद की जाती है कि सीपी सिंघल व उनके क्लब के खिलाफ कार्रवाई और भी तेज गति से हो । किंतु सीपी सिंघल खुशकिस्मत हैं कि उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स ने उन्हें जो आश्वासन दिया है कि नरेश अग्रवाल इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने भले ही जा रहे हों, लेकिन एक आरोपी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के खिलाफ कार्रवाई कर सकने की उनकी हिम्मत नहीं है - वह सच साबित होता हुआ नजर आ रहा है ।

Monday, November 7, 2016

रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति की पिच पर सुशील गुप्ता से निपटने के लिए अशोक महाजन ने राजा साबू के नजदीकियों को मोहरा बना कर इस्तेमाल किया है क्या ?

चंडीगढ़ । राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट 3080 के गिरोह के कुछेक सदस्यों ने वर्ष 2017-18 के गवर्नर के चुनाव को लेकर रोटरी इंटरनेशनल से बार-बार मिल रही लताड़/फटकार के लिए सुशील गुप्ता को जिम्मेदार ठहरा कर - राजा साबू और सुशील गुप्ता के बीच कम होती दूरियों को बढ़ाने का जो काम शुरू किया है, उसने रोटरी की ऊपर की राजनीति के समीकरणों को दिलचस्प बना दिया है । सुशील गुप्ता को निशाने पर ले रहे डिस्ट्रिक्ट 3080 के राजा साबू गिरोह के सदस्यों को अशोक महाजन से मिल रहे खाद-पानी के संकेतोंभरी चर्चाओं ने इस दिलचस्पी के दायरे को खासा विस्तार दिया हुआ है । समझा जाता है कि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर अशोक महाजन पिछले कुछ समय से पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू और पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के बीच बढ़ती निकटता की ख़बरों से काफी परेशान हैं; और अपनी इस परेशानी को हल करने के लिए ही उन्होंने डिस्ट्रिक्ट 3080 के पूर्व गवर्नर्स यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर को सुशील गुप्ता के खिलाफ सक्रिय किया है । इस बात को दरअसल यह देख/जान कर बल मिला कि इन तीनों पूर्व गवर्नर्स ने अचानक से अपने डिस्ट्रिक्ट के झमेले में सुशील गुप्ता को कोसना शुरू कर दिया है । उल्लेखनीय है कि इनके डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3080 में वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव को लेकर मार्च 2015 से झगड़ा चल रहा है, जिसमें एक पक्ष राजा साबू और उनका गिरोह है । इस झगड़े को लेकर तीन-चार बार जब जब रोटरी इंटरनेशनल से फैसला होने की बारी आई, तब तब फैसला राजा साबू और उनके गिरोह की उम्मीदों के खिलाफ ही आया । इससे राजा साबू और उनके गिरोह के सदस्यों की फजीहत तो हुई ही, साथ ही लोगों के बीच यह पोल भी खुली कि राजा साबू ने अपनी जैसी जो हवा बना रखी है - वास्तव में उनकी वैसी हवा है नहीं, और रोटरी में सभी लोग राजा साबू की असलियत को पहचान गए हैं ।
समझा जाता है कि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के चुनावी झमेले और उस झमेले के कारण राजा साबू की होने वाली फजीहत में अशोक महाजन ने अपने लिए मौका ताड़ा और राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर को अपने 'स्लीपर सेल' के रूप में सुशील गुप्ता के खिलाफ सक्रिय कर दिया । दरअसल, सुशील गुप्ता और अशोक महाजन रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की तैयारियों में लगे हैं । अशोक महाजन यूँ तो राजा साबू के समर्थन के भरोसे हैं, लेकिन पिछले कुछ समय में राजा साबू और सुशील गुप्ता के बीच बढ़ी नजदीकियों ने उन्हें राजा साबू के समर्थन के प्रति सशंकित कर दिया है । समझा जाता है कि राजा साबू के समर्थन को अपने साथ बनाए रखने तथा सुशील गुप्ता को राजा साबू से दूर करने/रखने के लिए अशोक महाजन ने राजा साबू के नजदीकियों के रूप में पहचाने जाते यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर को सुशील गुप्ता के खिलाफ सक्रिय होने के लिए प्रेरित किया है । इन तीनों ने पिछले कुछ समय से जिस अचानक तरीके से अपने डिस्ट्रिक्ट के चुनावी झमेले के लिए सुशील गुप्ता को जिम्मेदार ठहराना शुरू किया है, उसे देख कर लोगों को शक हुआ है कि इनमें जरूर किसी ने चाभी भरी है । असल में, जो लोग सुशील गुप्ता को जानते हैं और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की उनकी तैयारी से भी परिचित हैं - उनके लिए इस बात/आरोप को हजम कर पाना मुश्किल हुआ है कि सुशील गुप्ता क्यों कर ऐसा कोई काम करेंगे, जिससे राजा साबू की फजीहत होती हो ? इसी कारण से यह पड़ताल करने की जरूरत महसूस हुई कि सुशील गुप्ता को निशाना बनाने वाले यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर के पीछे वास्तव में है कौन, और किसने इन तीनों में चाभी भरी है ? लोगों द्धारा की गई पड़ताल में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति के समीकरण सामने आए और इसी संदर्भ में अशोक महाजन का नाम आया ।
यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर की अपनी अपनी समस्याएँ हैं । राजा साबू को तरह तरह से खुश करते रहने और उनके 'आदमी' के रूप में पुख्ता पहचान बनाने के बावजूद इन बेचारों को डिस्ट्रिक्ट से बाहर की रोटरी में उचित सम्मान और जगह नहीं मिली है । राजा साबू ने इन्हें इस्तेमाल तो खूब किया, और यह खुशी खुशी इस्तेमाल हुए भी खूब - लेकिन उन्होंने इनके लिए कुछ खास किया नहीं । यशपाल दास को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनवाने के बाद तो उन्होंने बिलकुल ही 'अनाथ' छोड़ दिया । यशपाल दास इस वर्ष रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी बनना चाहते थे, लेकिन आरोप है कि राजा साबू ने कोई दिलचस्पी ही नहीं ली । यशपाल दास के लिए राहत की बात बस यही रही कि रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी बनने की शेखर मेहता की हसरत भी पूरी नहीं हो सकी - अन्यथा यशपाल दास की बड़ी किरकिरी होती । मधुकर मल्होत्रा और शाजु पीटर की भी रोटरी में ऊँची ऊँची उम्मीदें और महत्वाकांक्षाएँ हैं - लेकिन जो सिर्फ राजा साबू के भरोसे उन्हें पूरी होती हुई नहीं दिख रही हैं । लिहाजा इन तीनों ने ही अशोक महाजन के साथ भी तार जोड़ने की कोशिश की है - और अपनी इस कोशिश में कुछ बड़ा करके 'दिखाने' का प्रयास करते हुए इन्होंने सुशील गुप्ता को लपेट लिया है ।
यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा और शाजु पीटर पिछले कुछ समय से लोगों के बीच लगातार इस बात को प्रचारित कर रहे हैं कि उनके डिस्ट्रिक्ट में वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद को लेकर चल रहे चुनावी झगड़े में रोटरी इंटरनेशनल में उनके पक्ष का काम बिगाड़ने का काम सुशील गुप्ता ने किया है; और वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद का झगड़ा टीके रूबी और डीसी बंसल के बीच का झगड़ा नहीं रह गया है - बल्कि राजा साबू और सुशील गुप्ता के बीच का झगड़ा बन गया है । इनका कहना है कि सुशील गुप्ता यदि बीच में नहीं पड़े होते, तो रोटरी इंटरनेशनल से वर्ष 2017-18 की गवर्नरी अभी तक डीसी बंसल को मिल चुकी होती । मजे की बात यह है कि इनकी इस तरह की बातों से राजा साबू के दूसरे नजदीकियों को राजा साबू की फजीहत में और बढ़ोत्तरी होती हुई महसूस हो रही है । राजा साबू के दूसरे नजदीकियों का मानना/कहना है कि इन तीनों की इस तरह की बातों से तो लोगों के बीच यही संदेश जा रहा है कि रोटरी इंटरनेशनल में राजा साबू की अब कोई पहचान व प्रतिष्ठा नहीं रह गई है, और वहाँ सुशील गुप्ता उन पर हावी हैं । यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर को लेकिन इससे शायद कोई मतलब नहीं है - उन्हें तो बस अशोक महाजन को खुश करने की पड़ी हुई है । इनके जरिए अशोक महाजन दरअसल राजा साबू और सुशील गुप्ता के बीच बढ़ती नजदीकियों की ख़बर को झुठलाने का प्रयास कर रहे हैं; और रोटरी में लोगों को यह दिखाने/जताने का प्रयास कर रहे हैं कि राजा साबू की सुशील गुप्ता के साथ कभी भी नजदीकी नहीं हो सकती है - और राजा साबू तो उनके ही हैं तथा आगे भी उनके ही रहेंगे । अशोक महाजन ने राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के चुनावी झमेले को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति की पिच पर सुशील गुप्ता से निपटने में जिस तरह से इस्तेमाल किया है, उसने रोटरी के राजनीतिक समीकरणों का एक दिलचस्प नजारा प्रस्तुत किया है ।

Wednesday, November 2, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता से मिले निरंतर अपमान को याद रखने के कारण भी डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जेके गौड़ को अपनी तरफ करने की मुकेश अरनेजा की चालबाजियाँ सफल नहीं हो पा रही हैं

गाजियाबाद । निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ को अपनी तरफ करने के लिए मुकेश अरनेजा ने जिस तरह जमीन-आसमान एक किया हुआ है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जेके गौड़ के भाव यकायक बहुत बढ़ गए हैं । दरअसल मुकेश अरनेजा ने पाया है कि खासतौर से गाजियाबाद तथा आमतौर से उत्तर प्रदेश में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए समर्थन कुछेक गिने-चुने क्लब्स तक ही सीमित है; यहाँ सुभाष जैन ने जो फील्डिंग सजाई हुई है, उसके चलते मुकेश अरनेजा को यहाँ दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए समर्थन बढ़ाना मुश्किल नज़र आ रहा है । ऐसे में, मुकेश अरनेजा की निगाह जेके गौड़ पर पड़ी है । प्रतिद्धंद्धी खेमे में वह जेके गौड़ को एक ऐसी कमजोर कड़ी के रूप में देख रहे हैं, जिसे आसानी से तोड़ा जा सकता है । मुकेश अरनेजा को उम्मीद है कि जेके गौड़ यदि उनके साथ आ जाते हैं, तो दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए दो-तीन क्लब्स के समर्थन का इजाफ़ा हो जायेगा । इस मामले में विडंबना की बात लेकिन यह है कि मुकेश अरनेजा जिन दीपक गुप्ता के लिए जेके गौड़ को पटाने की कोशिश कर रहे हैं, वही दीपक गुप्ता - जेके गौड़ के 'पटने' में बाधा बने हुए हैं । दरअसल जेके गौड़ इस बात को अभी तक भूले नहीं हैं कि जब वह उम्मीदवार थे, तब दीपक गुप्ता ने उन्हें बार-बार लगातार किस तरह से अपमानित किया था । उस समय के अपने व्यवहार के लिए दीपक गुप्ता हालाँकि जेके गौड़ से हाल के दिनों में कई बार माफी माँग चुके हैं, लेकिन जेके गौड़ की तरफ से उन्हें माफ़ कर देने वाला संदेश मिला नहीं है । इसलिए, एक अच्छे पैकेज के ऑफर के साथ जेके गौड़ को 'खरीदने' का जिम्मा अब मुकेश अरनेजा ने संभाला है ।
मुकेश अरनेजा ने इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के लिए जेके गौड़ के समर्थन का ऑफर देकर जेके गौड़ को अपनी तरफ करने का दाँव चला है । मजे की बात यह है कि मुकेश अरनेजा के पास जेके गौड़ को उक्त सदस्यता 'दिलवाने' के लिए आवश्यक समर्थन है ही नहीं । काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में मुकेश अरनेजा को सतीश सिंघल और रूपक जैन का समर्थन है; जबकि एमएल अग्रवाल, केके गुप्ता, रमेश अग्रवाल, शरत जैन और सुभाष जैन के विरोध का सामना करना पड़ेगा । एसपी सचदेवा बीमार होने के कारण कहीं आने-जाने में समर्थ नहीं हैं; और एसपी मैनी वरिष्ठ पूर्व गवर्नर्स एमएल अग्रवाल व केके गुप्ता के साथ 'बैठना' चाहेंगे - या जीतते दिख रहे खेमे के साथ रहना चाहेंगे । जाहिर है कि मुकेश अरनेजा ने जेके गौड़ को इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के ऑफर की आड़ में वास्तव में उन्हें बलि का बकरा बनाने की चाल चली है । मुकेश अरनेजा को लगता है कि उक्त सदस्यता पर चूँकि रमेश अग्रवाल की भी निगाह है, इसलिए वह अवश्य ही जेके गौड़ की उम्मीदवारी का विरोध करेंगे - और तब जेके गौड़ चाहें हारें या जीतें, रमेश अग्रवाल से तो निश्चित ही और 'दूर' होंगे; और तब रमेश अग्रवाल से 'बनने' वाली यह दूरी जेके गौड़ को मुकेश अरनेजा के नजदीक लाने का काम करेगी ।
मुकेश अरनेजा ने यह 'ख्याली पुलाव' बना तो लिया है, पर यह 'पकेगा' कैसे - यह उन्हें खुद भी मालूम नहीं है; तिस पर मजे की बात यह है कि उन्हें विश्वास है कि जेके गौड़ उनके इस ख्याली पुलाव को खाने के लिए जरूर बैठेंगे । जेके गौड़ के नजदीकियों का कहना लेकिन यह है कि जेके गौड़ को मुकेश अरनेजा की हवाबाजियों की अच्छी पहचान है, और मुकेश अरनेजा की 'राजनीतिक हैसियत' से भी वह अच्छी तरह परिचित हैं; उन्हें इस बात का भी खूब अहसास है कि मुकेश अरनेजा इस समय यदि उनकी खुशामद में लगे हैं, तो सिर्फ अपना मतलब निकालने के लिए लगे हैं । यूँ तो राजनीति में जो भी समीकरण बनते/बिगड़ते हैं, वह 'मतलब' से ही संचालित होते हैं - लेकिन मुकेश अरनेजा ने तो इस 'मतलब' को भी निर्लज्ज किस्म का मतलबी बना दिया है । जेके गौड़ के नजदीकियों का यह भी कहना है कि जेके गौड़ एक बार को मुकेश अरनेजा के साथ तो मतलब वाला संबंध जोड़ भी सकते हैं, लेकिन दीपक गुप्ता को लेकर वह मुकेश अरनेजा के झाँसे में हरगिज नहीं फँसेंगे । ऐसे में तो बिलकुल भी नहीं, जबकि इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के संदर्भ में वह बेहतर स्थिति में हैं, और मुकेश अरनेजा के समर्थन और या उनकी मदद पर बिलकुल भी निर्भर नहीं हैं ।
जेके गौड़ के नजदीकियों का कहना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के लिए वह किसी खेमे के उम्मीदवार की बजाए स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे - उस स्थिति में उन्हें एमएल अग्रवाल, केके गुप्ता व एसपी मैनी का समर्थन मिल सकता है; और तब झक मार कर मुकेश अरनेजा या रमेश अग्रवाल में से कोई भी एक खेमा उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए मजबूर होगा ही । जाहिर है कि इस संभावित कामयाबी की स्थिति में जेके गौड़ का समर्थन करने के बदले में मुकेश अरनेजा उनके साथ कोई सौदेबाजी नहीं कर सकेंगे । इस तरह इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता की आड़ में जेके गौड़ को रमेश अग्रवाल से और दूर करने की मुकेश अरनेजा की चालबाजियाँ सफल होती नजर नहीं आ रही हैं । मुकेश अरनेजा दरअसल रमेश अग्रवाल के साथ जेके गौड़ की नाराजगी की ख़बरों से खासे उत्साहित हैं; वह दोनों के बीच के झगड़े को और बढ़वा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं । सुभाष जैन यहाँ लेकिन उनका काम बिगाड़ रहे हैं । जेके गौड़ की रमेश अग्रवाल के साथ नाराजगी हो सकती है, लेकिन सुभाष जैन के कारण वह अशोक जैन की उम्मीदवारी के खिलाफ जाने से पहले सौ बार जरूर सोचेंगे । जेके गौड़ के नजदीकियों का मानना और कहना है कि जेके गौड़ अच्छी तरह समझ रहे हैं कि दीपक गुप्ता यदि चुनाव जीते, तो दीपक गुप्ता और सतीश सिंघल तो उन्हें गाजियाबाद व उत्तर प्रदेश में साँस भी नहीं लेने देंगे - इसलिए उन्हें सुभाष जैन के साथ रहने में ही अपनी भलाई दिख रही है । बीते हुए कल में दीपक गुप्ता से मिले निरंतर अपमान को याद करें, और आने वाले कल में दीपक गुप्ता के हाथों होने वाली फजीहत का अनुमान लगाए - तो जेके गौड़ को सुभाष जैन के साथ रहने में ही अपना भविष्य सुरक्षित नज़र आ रहा है ।
इसके अलावा, रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों के बीच मुकेश अरनेजा की जैसी बदनामीभरी फजीहत है - जिसके चलते रोटरी जोन इंस्टीट्यूट की भारी-भरकम कमेटी में उन्हें जगह तक नहीं मिली; उसे देखते हुए जेके गौड़ को मुकेश अरनेजा की छाया से भी दूर रहने की जरूरत समझ में आ रही है । जेके गौड़ जान/समझ रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट से ऊपर की रोटरी की व्यवस्था में उन्हें यदि कुछ पाना है, तो मुकेश अरनेजा से उन्हें दूर सिर्फ रहना ही नहीं, बल्कि 'दिखना' भी होगा । मजे की और मुकेश अरनेजा के लिए धक्का पहुँचाने वाली बात यह रही है कि रोटरी जोन इंस्टीट्यूट की जिस कमेटी में तमाम तिकड़मों और खुशामदभरी सिफारिशों के बाद भी मुकेश अरनेजा को जगह नहीं मिली, उस कमेटी में जेके गौड़ का नाम है । इस कारण से, मुकेश अरनेजा के साथ 'दिखने' को लेकर जेके गौड़ बहुत ही सावधान हैं । जेके गौड़ की यह सावधानी गाजियाबाद तथा उत्तर प्रदेश में दीपक गुप्ता को समर्थन दिलवाने की मुकेश अरनेजा की कोशिशों में बड़ी रुकावट बनी हुई है, जो  इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के लिए समर्थन के ऑफर से भी दूर होती नहीं दिख रही है ।

Tuesday, November 1, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के गवर्नर शिव कुमार चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के गवर्नर योगेश सोनी तथा इंटरनेशनल फर्स्ट वाइस प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल के नाम पर ठगी के जो प्लान बनाए, उनकी जल्दी ही पोल खुल गई है

गाजियाबाद । लायनिज्म के नाम पर ठगी के नए-नए तरीके आजमा चुके डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के गवर्नर शिव कुमार चौधरी ने अपने कलीग डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के गवर्नर योगेश सोनी के नाम पर ठगी करने का बड़ा मौलिक तरीका ईज़ाद किया है । योगेश सोनी ने अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के लिए ताशकंद/उज़्बेकिस्तान के एक फेलोशिप टूर की योजना बनाई । शिव कुमार चौधरी ने उनकी योजना में ठगी करने का मौका ताड़ा, और उनकी योजना को अपनी योजना बता कर बुकिंग अमाउंट के नाम पर अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों से 12/12 हजार रुपए जुटाने की योजना बना ली । टूर का कुल खर्चा 42 हजार रुपए प्रति व्यक्ति बताया गया । मजे की बात यह रही कि शिव कुमार चौधरी की तरफ से वाट्स-ऐप पर तथा ईमेल से लोगों को जो विस्तृत संदेश मिला, उसमें यह नहीं बताया गया कि बाकी के 30 हजार रुपए कब तक देने होंगे । दरअसल इसी बात से लोगों का माथा ठनका । लोगों को हैरानी हुई कि शिव कुमार चौधरी न तो टूर का पूरा पैसा माँग रहे हैं, और न ही यह बता रहे हैं कि बुकिंग अमाउंट के 12 हजार रुपए देने के बाद बाकी के 30 हजार रुपए कब तक देने होंगे ? शिव कुमार चौधरी द्धारा भेजे गए ब्रॉशर को ध्यान से पढ़ा गया, तो उसमें टूर के होस्ट के रूप में एमजेएफ लायन योगेश सोनी का नाम था । लोग चकराए कि यह योगेश सोनी कौन हैं ? बात चली तो उन्हें पता चला कि योगेश सोनी डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के गवर्नर हैं । ऐसे में एक नया सवाल खड़ा हुआ कि डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के गवर्नर द्धारा होस्ट किए जा रहे टूर प्लान के लिए शिव कुमार चौधरी पैसे क्यों इकट्ठे कर रहे हैं ? क्या दोनों डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स ने अपने अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को एक साथ टूर पर ले जाने की योजना बनाई है ?
योगेश सोनी से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस बात से साफ इंकार किया कि उन्होंने अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के लिए जो टूर प्लान किया है, उसमें शिव कुमार चौधरी की किसी भी तरह की कोई भागीदारी है; और या कि उन्होंने अपने टूर प्लान के लिए शिव कुमार चौधरी को लोगों को इकट्ठा करने की तथा बुकिंग अमाउंट जुटाने की कोई जिम्मेदारी सौंपी है । योगेश सोनी ने बताया कि शिव कुमार चौधरी ने कुछेक दिन पहले फोन पर बात करते हुए उनसे उनके टूर प्लान के बारे में पूछा था, जिसके जबाव में उन्होंने उन्हें जरूरी जानकारी के साथ-साथ टूर ऑपरेटर का नाम व टेलीफोन नंबर दिया था । योगेश सोनी ने साफ कहा कि इससे ज्यादा शिव कुमार चौधरी के साथ उनकी और कोई बात नहीं हुई है । योगेश सोनी के ब्रॉशर पर शिव कुमार चौधरी लोगों से बुकिंग अमाउंट क्यों माँग रहे हैं, इस बारे में योगेश सोनी ने अपनी अनभिज्ञता प्रकट की । योगेश सोनी ने स्पष्ट कहा कि अपने ब्रॉशर पर बुकिंग अमाउंट इकट्ठा करने के लिए उन्होंने शिव कुमार चौधरी को कोई अधिकार नहीं दिया है; उनका कहना रहा कि सच तो यह है कि शिव कुमार चौधरी से इस बारे में उनकी कोई बात ही नहीं हुई । योगेश सोनी से बात किए बिना, उन्हें पूरी तरह अँधेरे में रखते हुए उनके टूर ब्रॉशर पर शिव कुमार चौधरी अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों से बुकिंग अमाउंट के नाम पर 12/12 हजार रुपए क्यों माँग रहे हैं - यह बात डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के गवर्नर योगेश सोनी को भले ही समझ में न आई हो, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के लोगों को इसके पीछे छिपा शिव कुमार चौधरी का 'उद्देश्य' समझने में देर नहीं लगी ।
डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में शिव कुमार चौधरी के ठगी के किस्से चूँकि खासे मशहूर हो चुके हैं, इसलिए लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि किसी दूसरे के ताशकंद/उज्बेकिस्तान टूर के नाम पर शिव कुमार चौधरी ने लोगों से पैसे ऐंठने की तैयारी कर ली है । शिव कुमार चौधरी को लगा होगा कि टूर की पूरी कीमत के 42 हजार रुपए वह माँगेंगे, तो लोग पूछताछ ज्यादा करेंगे और उनकी ठगी तुरंत से पकड़ी जाएगी; बुकिंग अमाउंट के नाम पर वह 12 हजार रुपए माँगेंगे, तो लोग पूछताछ भी नहीं करेंगे और ज्यादा लोग बुकिंग करवा भी लेंगे । शिव कुमार चौधरी ने माना होगा कि जब तक लोगों को पता चलेगा कि वह ठगे गए हैं, तब तक तो उन्हें काफी रकम मिल चुकी होगी । इसके बाद तो फिर बुकिंग कराने वालों का हाल लायंस क्लब मसूरी के अध्यक्ष सतीश अग्रवाल जैसा होगा । सतीश अग्रवाल, शिव कुमार चौधरी की ठगीबाजी के एक शिकार हैं - जो बेचारे जब तब वाट्स-ऐप पर अपना पैसा वापस करने की गुहार लगाते रहते हैं; शिव कुमार चौधरी उनकी गुहार पर लेकिन ध्यान ही नहीं देते हैं । ताशकंद/उज्बेकिस्तान टूर के नाम पर ठगी करने की शिव कुमार चौधरी की पोल खुली, तो लोग सावधान हो गए । फलस्वरूप शिव कुमार चौधरी ने भी इस टूर प्लान में 'दिलचस्पी' लेना बंद कर दिया । हालाँकि इसके बारे में कोई आधिकारिक घोषणा उन्होंने नहीं की है । किसी को जानकारी नहीं है कि ताशकंद/उज्बेकिस्तान का 'उनका' टूर प्लान अभी भी ओपन है, या बंद हो गया है - और उनके ऑफर पर डिस्ट्रिक्ट के किसी लायन सदस्य ने बुकिंग कराई है या नहीं, कराई है तो कितने लोगों ने ?
शिव कुमार चौधरी ने ताशकंद/उज्बेकिस्तान के साथ-साथ शिकागो भ्रमण का भी एक प्लान लोगों को दिया हुआ है, जिसने लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों तक को चौंकाया हुआ है । दरअसल शिकागो भ्रमण का प्लान उन्होंने इंटरनेशनल फर्स्ट वाइस प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल के हाथ मजबूत करने के नाम पर बनाया है । लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारी शिव कुमार चौधरी के इस प्लान के बारे में जान कर चौंके इस कारण से हैं, क्योंकि आने वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन में शामिल होने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने का काम फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर करता है । यह उसी का काम होता भी है । कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इस काम में 'दिलचस्पी' ले, तो यह हैरान करने वाली बात है भी । हैरानी इसलिए और बढ़ी कि लायन साथियों को लिखे अपने पत्र में रजिस्ट्रेशन फीस माँगते हुए शिव कुमार चौधरी यह जानकारी भी दे रहे हैं कि शिकागो का टूर पैकेज अभी वह तैयार करवा रहे हैं । शिव कुमार चौधरी की जैसी (कु)ख्याति है, उसके कारण लोगों का कहना है कि टूर पैकेज वह तैयार करवा लेते, और उसे लोगों के सामने रखते - उसके बाद ही रजिस्ट्रेशन फीस माँगते । शिव कुमार चौधरी को लोगों से रजिस्ट्रेशन फीस माँगने की जल्दी आखिर क्यों है ? रजिस्ट्रेशन फीस देने के बाद किसी को यदि शिव कुमार चौधरी द्धारा तैयार करवाया गया टूर पैकेज सस्ता/अच्छा नहीं लगा, तो उसके तो रजिस्ट्रेशन के पैसे डूब ही गए समझो ।
शिव कुमार चौधरी ने अपने शिकागो प्लान में चूँकि नरेश अग्रवाल का नाम इस्तेमाल किया है, इसलिए लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारी उनके इस प्लान के बारे में सुन/जान कर सावधान हो गए हैं । कुछेक पदाधिकारियों ने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय सिंघल को जिम्मेदारी दी है कि वह अपने डिस्ट्रिक्ट में लोगों को सावधान करें और साफ साफ बता दें कि शिव कुमार चौधरी के ऑफर प्लान में वह यदि किसी भी तरह की ठगी या बेईमानी का शिकार होते हैं, तो उसके लिए लायंस इंटरनेशनल और या उसके पदाधिकारी जिम्मेदार नहीं होंगे । शिव कुमार चौधरी के ठगी के किस्सों की मशहूरी ने डिस्ट्रिक्ट की सीमाओं से और दूर - मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में तथा इंटरनेशनल पदाधिकारियों तक उन्हें जिस तरह से 'मशहूर' किया है, उस मशहूरी के कारण उनके प्लान शुरू होते ही फ्लॉप हो जा रहे हैं । इस बात ने शिव कुमार चौधरी की स्थिति को लायन सदस्यों व पदाधिकारियों के बीच और भी दयनीय व हास्यास्पद बना दिया है ।