Sunday, July 31, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में सुभाष जैन के वृंदावन जाने के छोटे से काफिले को कारवाँ बनता देख डिस्ट्रिक्ट के हर खेमे के नेता को अपनी जमीन खिसकती नजर आ रही है

गाजियाबाद । सुभाष जैन का अपने कुछेक नजदीकियों के साथ वृंदावन स्थित बाँके बिहारी मंदिर जाने का एक निजी कार्यक्रम जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट का एक बड़ा कार्यक्रम बन गया है, उसे देख कर डिस्ट्रिक्ट के नेताओं के बीच खासी खलबली मच गई है । इस 'आयोजन' को डिस्ट्रिक्ट में - और जाहिर है कि डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में भी - सुभाष जैन की एक बड़ी 'छलाँग' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, जिसमें डिस्ट्रिक्ट के दूसरे नेता अपने आप को पीछे धकेले जाते पा रहे हैं । मजे की बात यह है कि यह कोई स्पॉन्सर्ड कार्यक्रम नहीं है; सुभाष जैन ने कोई आह्वान नहीं किया है कि वह वृंदावन जा रहे हैं, जो जो साथ चलना चाहें - चले । वास्तव में हुआ यह कि सुभाष जैन के अपने कुछेक नजदीकियों के साथ वृंदावन जाने के कार्यक्रम के बारे में जैसे जैसे लोगों को जानकारी मिलती गई, वैसे वैसे लोग खुद से प्रेरित होकर सुभाष जैन के साथ चलने के लिए 'तैयार' होते गए - और सुभाष जैन के साथ जाने वाला एक छोटा सा काफिला जल्दी ही एक बड़ा कारवाँ बन गया है । इस कारवाँ ने और इसके अपने आप बनने की प्रक्रिया ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच सुभाष जैन की अहमियत व पोजीशन को बहुत ऊँचा कर दिया है । सुभाष जैन को डिस्ट्रिक्ट में कई लोग चूँकि डिस्ट्रिक्ट के भावी नेता के रूप में देख रहे हैं, इसलिए लोगों के बीच उनकी अहमियत व पोजीशन को ऊँचा होता देख डिस्ट्रिक्ट के मौजूदा नेताओं तथा भावी नेता बनने की फिराक में लगे लोगों को अपनी अपनी जमीन खिसकती दिखाई देने लगी है, और उनके बीच घबराहट पैदा हुई है । अपनी जमीन बचाने तथा अपनी घबराहट को दूर करने के लिए कुछेक नेताओं ने सुभाष जैन के इस कार्यक्रम को बदनाम करने का प्रयास शुरू तो किया था, लेकिन जल्दी ही उनकी समझ में आ गया कि उनका प्रयास सुभाष जैन का कोई नुकसान करने की बजाए, उलटे उन्हें ही चोट पहुँचा सकता है - और इसीलिए झटका महसूस कर रहे नेता अपने प्रयासों को बंद करके अपनी अपनी पोजीशन के बर्बाद होने का तमाशा चुपचाप देखने के लिए मजबूर हुए हैं ।
यहाँ गौर करने वाला तथ्य यह है कि सुभाष जैन की यह पोजीशन कोई अचानक से नहीं बनी या सामने आई है, बल्कि निरंतर चलती चली आ रही प्रक्रिया का एक बड़ा और - राजनीतिक शब्दावली में कहें तो विस्फोटक - प्रकटीकरण है । यह प्रक्रिया सुभाष जैन की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी जीत के साथ ही शुरू हो गई थी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने के बाद सुभाष जैन का स्वागत-सम्मान करने के लिए डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के बीच जैसी होड़ मची थी, वैसी होड़ इससे पहले कभी कहीं देखने/सुनने को नहीं मिली । ज्यादा पुरानी बातें न भी याद करें, तो सुभाष जैन से पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बने सतीश सिंघल का मामला याद किया ही जा सकता है - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने पर जिनका स्वागत-सम्मान किसी इक्के-दुक्के क्लब में हुआ हो तो हुआ हो, जिसका कोई नोटिस भी नहीं लिया गया । सुभाष जैन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने के बाद डिस्ट्रिक्ट में लेकिन अनोखा नजारा देखने को मिला । क्लब्स के कुछेक मठाधीशों ने कुछ-कुछ क्लब्स को जोड़ कर संयुक्त रूप से स्वागत-सम्मान समारोह करने की योजना बनाना शुरू किया था, किंतु क्लब्स के पदाधिकारियों व दूसरे सदस्यों का जोश ऐसे हिलोरे मार रहा था कि उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वह संयुक्त रूप से नहीं, बल्कि अलग अलग ही सुभाष जैन का स्वागत-सम्मान करेंगे । याद करने और रखने की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस हो जाने के बाद क्लब्स की गतिविधियाँ ठप्प सी हो जाती हैं; जो क्लब्स मीटिंग्स करते भी हैं, वह बड़ी लो-प्रोफाइल किस्म की मीटिंग्स करके महज खानापूर्ति ही करते हैं - लेकिन पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस हो जाने के बाद भी क्लब्स ने तड़क-भड़क तथा जोरशोर के साथ मीटिंग्स सिर्फ इसलिए की, ताकि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सुभाष जैन का स्वागत-सम्मान भव्य तरीके से कर सकें ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए मिली चुनावी जीत पर सुभाष जैन का डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स ने जैसा स्वागत-सम्मान किया, उसके विवरण और तस्वीरें चूँकि सोशल मीडिया में भी प्रसारित हुए - जिससे दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों/नेताओं तथा रोटरी के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं की जानकारी में भी यह बात आई; और उन्हें भी इस बात पर आश्चर्य हुआ कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने गए किसी पदाधिकारी की अपने डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच इतनी ज्यादा लोकप्रियता और पसंदगी भी हो सकती है क्या ? उल्लेखनीय है कि हर डिस्ट्रिक्ट में हर वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुना ही जाता है - रोटरी के वरिष्ठ नेताओं ने ही इस तथ्य को रेखांकित किया कि अपने डिस्ट्रिक्ट में जैसा स्वागत-सम्मान सुभाष जैन का हुआ, वैसा स्वागत-सम्मान किसी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का होता हुआ नहीं सुना/देखा गया है । एक बड़े रोटरी नेता ने तो और भी उल्लेखनीय सच्चाई की तरफ ध्यान दिलाते हुए बताया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी को तो छोड़िए, बास्कर चोकालिंगम पीछे इंटरनेशनल डायरेक्टर चुने गए हैं - किंतु उनका भी अपने डिस्ट्रिक्ट में वैसा स्वागत-सम्मान नहीं हुआ, जैसा स्वागत-सम्मान सुभाष जैन का अपने डिस्ट्रिक्ट में हुआ दिखा है । स्वागत-सम्मान के चलते सुभाष जैन को अपने डिस्ट्रिक्ट के साथ साथ दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में और रोटरी के बड़े नेताओं के बीच जो ख्याति मिली, वह वास्तव में लोगों के साथ बराबर का दोस्ताना व्यवहार करने/रखने तथा लोगों को उचित सम्मान देने के उनके व्यवहार का ही नतीजा है । दरअसल अधिकतर लोग पद पाने में सफल तो हो जाते हैं, लेकिन सफल हो जाने के बाद ऐसी अकड़ में आ जाते हैं कि फिर दूसरों को कुछ समझते ही नहीं हैं; और इसीलिए बड़े बड़े पदों पर पहुँचे हुए लोगों को - पद तो मिल जाता है, पर सम्मान नहीं मिलता है । जिन्हें सम्मान नहीं मिलता, वह अपनी कमियाँ/गलतियाँ तो देखते नहीं हैं - दूसरों को कोसते हैं ।
सुभाष जैन ने लेकिन अपने व्यवहार से लोगों का दिल जीता, तो उन्हें चुनावी जीत के साथ-साथ लोगों का प्रेम और सम्मान भी मिला, जिसके कारण लोगों का उनके साथ गहरा लगाव बना । लोगों का उनके प्रति यह लगाव सिर्फ स्वागत-सम्मानों में ही नहीं दिखा है, बल्कि मौजूदा रोटरी वर्ष में हो रहे क्लब्स के अधिष्ठापन समारोहों में भी देखने को मिला है - जहाँ कि लोगों के बीच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सतीश सिंघल के मुकाबले उनकी ज्यादा माँग, पूछ और संलग्नता रहती है । सुभाष जैन ने अपने व्यवहार से लोगों का जो दिल जीता है, और नतीजे के रूप में लोगों की तरफ से उन्हें जो प्रेम व सम्मान मिला है - वृंदावन जाने के उनके कार्यक्रम के साथ लोगों का जुड़ाव उसकी ही संगठित व मुखर प्रतिक्रिया है । यह सिर्फ एक धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होना भर नहीं है । उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी कई मौके आए हैं, जबकि रोटरी पदाधिकारियों व नेताओं के यहाँ हुए धार्मिक आयोजनों में रोटेरियंस आमंत्रित हुए हैं, लेकिन उन आमंत्रणों के जबाव में ऐसा जोश और उत्साह कभी भी नहीं देखा गया । सुभाष जैन के वृंदावन स्थित बाँके बिहारी मंदिर जाने के कार्यक्रम का तो लोगों को निमंत्रण भी नहीं मिला है, लोगों को सिर्फ जानकारी मिली - और वह ऐसे जोश व उत्साह के साथ कार्यक्रम में शामिल होने के लिए तैयार हो गए, जैसे यह उनका खुद का कार्यक्रम है । इस कार्यक्रम में लोगों का जैसा जोश और जैसी संलग्नता देखने को मिली है, उसका राजनीतिक भावार्थ 'पढ़ना' शुरू कर दिया है - और यही कारण है कि इस यात्रा को लेकर नेताओं के बीच भारी खलबली मची है । डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में दिलचस्पी व सक्रियता रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि स्वागत-समारोहों से और फिर अधिष्ठापन समारोहों में डिस्ट्रिक्ट के भावी नेता के रूप में सुभाष जैन की जो 'जमीन' तैयार हो रही थी, वृंदावन यात्रा के प्रति लोगों के जोश तथा उनकी संलग्नता ने उस जमीन को ठोस आधार में बदल दिया है । ऐसे में हर खेमे के नेताओं को यदि अपनी अपनी जमीन खिसकती नजर आ रही है, और उनके बीच खलबली मच गई है - तो यह बहुत स्वाभाविक बात भी है ।

Thursday, July 28, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर काबिज दीपक गर्ग के नेतृत्व वाली चौकड़ी के सदस्यों की करतूतों के कारण हो रही बदनामी से सत्ता खेमे के ही दूसरे सदस्यों के बीच बेचैनी

नई दिल्ली । चेयरमैन दीपक गर्ग, सेक्रेटरी सुमित गर्ग, ट्रेजरार नितिन कँवर और निकासा चेयरमैन राजेंद्र अरोड़ा की चौकड़ी को अपनी अकर्मण्यता, मूर्खता और टुच्ची नेतागिरी से रीजनल काउंसिल के कामकाज और उसकी पहचान व प्रतिष्ठा को धूल में मिला देने के जिस तरह के गंभीर आरोपों का सामना कर पड़ रहा है - उसके चलते रीजनल काउंसिल के सत्ता खेमे में फूट पड़ने के संकेत मिलने लगे हैं । सत्ता खेमे के बाकी चार सदस्य - विवेक खुराना, राकेश मक्कड़, पूजा बंसल और पंकज पेरिवाल अपने आपको न सिर्फ ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं, बल्कि चौकड़ी की कारस्तानियों के चलते मिलने वाली बदनामी को ढोने की बेचैनी भी महसूस कर रहे हैं । इन चारों की तरफ से अलग अलग मौकों पर सुनने को मिल रहा है कि चौकड़ी के लोगों ने इनका समर्थन लेकर कुर्सियाँ तो प्राप्त कर लीं, लेकिन कामकाज में और फैसलों में उन्हें किसी भी स्तर पर शामिल नहीं किया जाता है । सत्ता में होने का जो 'सुख' उन्हें भी मिलना चाहिए था, वह तो उन्हें नहीं ही मिल पा रहा है; यह देख कर उन्हें और चोट पहुँची है कि उनके हिस्से का सुख चौकड़ी के लोगों ने ही छीना हुआ है । राकेश मक्कड़ के साथ तो बहुत ही बुरी बीत रही है - सत्ता खेमे के लोगों को जोड़ने का काम उन्होंने ही किया था; यानि उनकी बदौलत ही चौकड़ी के लोग कुर्सियों पर बैठे होने का सुख भोग रहे हैं, किंतु उन्हें ही दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका गया है । उनकी और उनके बाकी तीन साथियों की समस्या यह भी है कि चौकड़ी के लोगों की करतूतों से लोगों के बीच जो नाराजगी व बदनामी हो रही है, उसके लिए उन्हें भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और बदनामी के कीचड़ से बच पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है । पूजा बंसल ने हाल ही के दिनों में कई बार इस बात का प्रयास किया कि रीजनल काउंसिल में जो गड़बड़ियाँ हो रही हैं, और जिनके कारण सत्ता खेमे के लोगों की बदनामी हो रही है - उन पर सत्ता खेमे के सभी आठों सदस्यों के बीच चर्चा हो और हालात को सँभालने को लेकर आपस में विचार विमर्श किया जाए । पूजा बंसल काउंसिल में वाइस चेयरपरसन के पद पर हैं, किंतु फिर भी चौकड़ी के सदस्य उनके प्रयासों को कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं । चौकड़ी के सदस्यों का यह रवैया सत्ता खेमे में कभी भी बड़ा बबाल पैदा कर/करवा सकता है ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर कब्ज़ा जमाए चौकड़ी के काम करने के तरीके का हाल देखने का मौका इसी महीने आयोजित हुई सीए छात्रों की दो दिवसीय नेशनल कन्वेंशन में देखने को मिला । हर वर्ष होने वाली इस कन्वेंशन में 1500 के करीब छात्र शामिल होते हैं - लेकिन इस वर्ष की कन्वेंशन में पहले दिन मुश्किल से 500 छात्र और दूसरे दिन करीब 150 छात्र ही शामिल हुए । आयोजकों ने 1200 छात्रों के लिए खाने की व्यवस्था की थी । यह कन्वेंशन काउंसिल पर काबिज चौकड़ी के नाकारापन का जीता-जागता सुबूत बन गई है, जिसके चलते इंस्टीट्यूट को करीब बीस लाख रुपए का नुकसान हुआ है । इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों को भी हैरानी है कि पिछले दिनों लुधियाना में इसी तरह की कन्वेंशन हुई तो उसमें एक हजार से अधिक छात्र जुटे, और दिल्ली में कन्वेंशन के आयोजक इतने गए-गुजरे हैं कि उनके लिए दो सौ छात्रों को जुटाना मुश्किल हो गया । रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के इससे भी बड़े नाकारापन का उदाहरण यह है कि दिल्ली में लक्ष्मीनगर स्थित इंस्टीट्यूट की लाइब्रेरी का बिजली बिल पिछले तीन-चार महीनों से नहीं दिया जा रहा था, जिसके नतीजे के रूप में लाइब्रेरी की बिजली कट गई और जिसके चलते छात्रों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा । यह पढ़ते/जानते हुए कृपया यह बिलकुल मत सोचियेगा कि दीपक गर्ग, सुमित गर्ग, नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा की चौकड़ी कुछ करती ही नहीं है : 30 जून को 'सीए उत्सव' के नाम पर इन्होंने नाच-गाने का जैसा जो धूम-धड़ाका करवाया, उसमें इनकी आयोजन-प्रतिभा का सुबूत देखा/पाया जा सकता है । इस पर किसी ने चुटकी भी ली कि यह लोग नाच-गाना करवाने वाली भांड पार्टी के पदाधिकारी होने की काबिलियत रखते हैं, काउंसिल में बेचारे पता नहीं क्यों और कैसे आ गए ?
दीपक गर्ग, सुमित गर्ग, नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा की चौकड़ी पर आरोप सिर्फ यही नहीं है कि यह काउंसिल/इंस्टीट्यूट के कामकाज की जिम्मेदारी ठीक तरीके से निभा नहीं पा रहे हैं; इससे भी ज्यादा गंभीर आरोप इन पर यह है कि इंस्टीट्यूट के जो काम ठीक तरीके से हो रहे हैं - यह लोग उन्हें डिस्टर्ब व खराब करने की कोशिश करने तक की हरकत करते हैं । इस हरकत के लिए इन्हें इंस्टीट्यूट की इंटरनेशनल टैक्सेशन कमेटी के वाइस चेयरमैन संजीव चौधरी से लताड़ तक खाना पड़ी है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट इंटरनेशनल टैक्सेशन पर क्लासेस चलाता है, जिसके लिए मोटी फीस ली जाती है । क्लासेस करने वाले लोगों ने इंटरनेशनल टैक्सेशन कमेटी के वाइस चेयरमैन संजीव चौधरी से इन चारों की शिकायत की कि यह लोग बीच क्लासेस में आकर भाषणबाजी करते हैं, और इस तरह क्लास डिस्टर्ब करते हैं । शिकायत करने वाले लोगों का कहना रहा कि वह क्लासेस के लिए अपना कीमती समय और मोटी फीस इनकी बकवासबाजी सुनने के लिए थोड़े ही देते हैं । संजीव चौधरी ने पहले तो इन्हें इशारे से समझाने की कोशिश की कि यह लोग इस तरह की हरकतें न किया करें; किंतु उन्होंने जब देखा कि इशारे से समझाने की उनकी कोशिशों को यह लोग गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, तो संजीव चौधरी ने इन्हें कस कर लताड़ा । संजीव चौधरी की लताड़ से अपमान और दुख फील करते हुए दीपक गर्ग ने प्रेसीडेंट को मेल लिख कर पूछा कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी के रूप में वह इंटरनेशनल टैक्सेशन की क्लासेस करने वाले लोगों से कैसे बात कर सकते हैं ? प्रेसीडेंट की तरफ से दीपक गर्ग को उनकी मेल का कोई औपचारिक जबाव मिला है या नहीं, इसका तो नहीं पता; किंतु कई वरिष्ठ लोगों की तरफ से उन्हें इस बारे में खरी-खोटी सुनने को जरूर मिली है कि तुम लोगों को इतनी सी अक्ल सचमुच नहीं है क्या कि क्लास को डिस्टर्ब किए बिना क्लास के लोगों से कब और कैसे बात कर सकते हो ?
चौकड़ी के सदस्यों, खासकर चेयरमैन दीपक गर्ग और ट्रेजरार नितिन कँवर पर गंभीर आरोप यह भी लगा है कि जीएमसीएस की फैकल्टी में इन्होंने मनमाने तरीके से अपने अपने नाकाबिल किस्म के लोगों को घुसा दिया है, और इस तरह से जीएमसीएस की पढ़ाई व्यवस्था को खासी चोट पहुँचाई है । इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ सदस्य अविनाश गुप्ता के खिलाफ की गई हरकत को लेकर दीपक गर्ग और नितिन कँवर पहले से ही आरोपों व विवादों के घेरे में हैं । चर्चा है कि उस मामले में माफी माँग कर यह लोग मामले को ख़त्म करवाने के प्रयासों में हैं । उनके प्रयास सफल होंगे या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन यह हो रहा है कि दीपक गर्ग के नेतृत्व में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर कब्ज़ा जमाए बैठी चौकड़ी की कारस्तानियों को लेकर इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी को कई कई शिकायतें मिली हैं - उन्होंने जिनकी जाँच-पड़ताल करने/करवाने को लेकर दिलचस्पी दिखाई है । चौकड़ी के सदस्यों की करतूतों से हो रही बदनामी ने सबसे ज्यादा चौकड़ी के समर्थक सदस्यों को ही परेशान किया हुआ है । उनकी समस्या का कारण यह भी है कि रीजनल काउंसिल में जो कुछ भी मनमानियाँ और बेवकूफियाँ हो रही हैं, उनसे उनका कोई लेना-देना नहीं है - किंतु सत्ता खेमे का सदस्य होने के नाते उनकी जिम्मेदारी उनके सिर पर भी पड़ रही है । सबसे ज्यादा मुसीबत पूजा बंसल की है । वाइस चेयरपरसन होने के नाते वह यदि यह कहते हुए बचने की कोशिश करती हैं कि उनकी सुनी ही नहीं जा रही है, तो लोगों को पूछना होता है कि इतने बड़े पद पर होने के बावजूद वह यदि कोई हस्तक्षेप नहीं कर पा रही हैं - तो क्या यह उनकी प्रशासनिक अक्षमता नहीं है ? इस तरह की बातों/स्थितियों ने सत्ता खेमे के लोगों को प्रेरित किया है कि वह चौकड़ी की हरकतों पर लगाम लगाएँ । यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी लगाम लगाने की कोशिशों का चौकड़ी पर कोई असर होता भी है, या चौकड़ी की हरकतें बदस्तूर जारी रहती हैं ?

Wednesday, July 27, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी क्लब गाजियाबाद सफायर के अधिष्ठापन समारोह में हुई जेके गौड़ की खुल्लमखुल्ला फजीहत को शरत जैन ने भी चुपचाप बैठ कर तमाशे की तरह देखा और मजा लिया

गाजियाबाद । जेके गौड़ को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटे अभी एक महीना पूरा नहीं हुआ है, कि लोगों के बीच उनकी असल 'औकात' सामने आने लगी है - कल रात रोटरी क्लब गाजियाबाद सफायर के अधिष्ठापन समारोह में उनकी ऐसी गत बनी कि खुद उनके लिए कार्यक्रम में ठहर पाना मुश्किल हुआ, और अपमान की ज्वाला में जलते हुए उन्हें बीच कार्यक्रम में से निकल जाना पड़ा । इस बात को अभी एक वर्ष पूरा नहीं हुआ है - पिछले रोटरी वर्ष के इन्हीं दिनों जेके गौड़ क्लब्स के पदाधिकारियों को इस बात के लिए हड़का रहे होते थे कि 'इसे' बुलाओ, 'उसे' मत बुलाओ, 'उसे' बुलाया तो मैं नहीं आऊँगा, आदि-इत्यादि । इस बात को एक वर्ष पूरा होने से पहले पहले ही अब नौबत यह आ गई है कि जेके गौड़ को अपमानित होने का दंश झेलना पड़ रहा है, और जब उनसे अपना अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ तो उन्हें कार्यक्रम बीच में ही छोड़ कर उठ जाना पड़ा । जेके गौड़ के लिए फजीहत की बात यह भी रही कि रोटरी क्लब गाजियाबाद सफायर के पदाधिकारियों ने उनके साथ जो किया, सो तो किया ही - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन भी उनके साथ हो रहे अपमान को चुपचाप बैठे देखते रहे और उन्होंने भी इस बात की कोई कोशिश नहीं की कि उनके पूर्ववर्ती डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ का इतना खुल्लमखुल्ला कचरा न हो । कुछेक लोगों ने तो यह कहते हुए मजे भी लिए कि जेके गौड़ इसी लायक हैं, और उनके साथ जो हुआ ठीक ही हुआ ।
रोटरी क्लब गाजियाबाद सफायर के पदाधिकारियों ने कार्यक्रम की शुरुआत में ही जेके गौड़ को उनकी असली 'जगह' तब दिखा दी, जब उन्हें मंच पर बैठाने की बजाए श्रोताओं के बीच बैठा दिया । रोटरी इंटरनेशनल के प्रोटोकॉल के हिसाब से निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को मंच पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ ही जगह मिलना चाहिए । इस प्रोटोकॉल का पालन करने का ध्यान न तो क्लब के पदाधिकारियों ने रखा और न डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन ने ही उन्हें इसका पालन करने के लिए कहा । जेके गौड़ के आसपास बैठे लोगों के अनुसार, इसी बात से कार्यक्रम की शुरुआत में ही जेके गौड़ सुलग तो गए थे - लेकिन अपमान का घूँट पीकर वह फिर भी बैठे रहे । उधर रोटरी क्लब गाजियाबाद सफायर के पदाधिकारियों ने भी जैसे ठान रखा था कि उन्हें आज जेके गौड़ को पूरी तरह 'धोना' है । कार्यक्रम के अंतिम चरण में इसका मौका आया : मंच पर बैठे सारे लोग भाषण कर चुके थे, यहाँ तक कि असिस्टेंट गवर्नर पराग सिंघल भी बोल चुके थे - तब निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ को भाषण देने के लिए आमांत्रित किया गया । यह सरासर घोषित रूप से और सार्वजनिक रूप से जेके गौड़ का अपमान था - खुद जेके गौड़ ने भी इसे अपने अपमान के रूप में ही देखा/पहचाना और फिर इस पर वह अपनी नाराजगी दिखाते हुए कार्यक्रम के बीच से ही चले गए ।
यह नजारा देख रहे लोगों में अधिकतर के लिए यह समझना मुश्किल हुआ कि रोटरी क्लब गाजियाबाद सफायर के पदाधिकारियों ने जेके गौड़ की ऐसी खुल्ली फजीहत क्यों की ? क्लब की अध्यक्ष सिम्मी अग्रवाल हैं, जो अमित अग्रवाल की पत्नी हैं । अमित अग्रवाल ने जेके गौड़ को गवर्नर चुनवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन बाद में फिर वह जेके गौड़ से इस बात के लिए खफा हो गए थे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ ने उन्हें उतनी तवज्जो नहीं दी, जितनी की उन्हें मिलना चाहिए थी । अमित अग्रवाल इस बात से भी जेके गौड़ से उखड़े हुए हैं कि वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन करने को राजी नहीं हो रहे हैं । समझा गया है कि अमित अग्रवाल ने अपनी पत्नी के जरिए जेके गौड़ से इन्हीं बातों का बदला लिया है । जेके गौड़ के लिए ज्यादा फजीहत की बात यह रही कि इस क्लब में उनके नजदीक समझे जाने वाले राजीव गोयल व आलोक गर्ग की पत्नियाँ महत्त्वपूर्ण पदों पर हैं, किंतु फिर भी उनके साथ वह हुआ - जिसे वह खुद बर्दाश्त नहीं कर पाए । मजे की बात यह रही कि अमित अग्रवाल ने जेके गौड़ के साथ जो हुआ उसकी नहीं; बल्कि जेके गौड़ ने जो किया - उसकी आलोचना की । अमित अग्रवाल का तर्क रहा कि यह महिलाओं का क्लब है, इसलिए इसमें यदि कुछ गलत हो भी जाता है तो उसे अनदेखा किया जाना चाहिए और उस पर ऐसे रिएक्ट नहीं करना चाहिए - जैसे जेके गौड़ ने किया है । उनके इस तर्क पर प्रति-तर्क रहा कि क्लब के पदाधिकारियों के परिचय में तो बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं : बताया जाता है कि 'ये' डायरेक्टर हैं, 'ये' कंसलटेंट हैं, 'ये' एंत्रेप्रेनॉर' हैं, 'ये' यह हैं, 'ये' वह हैं, आदि-इत्यादि; लेकिन जब यह देखो कि इन्होंने डिलीवर क्या किया है - तो हर जगह फूहड़पन और मूर्खता का संगम देखने को मिलता है; ऐसे में आलोचना तो होगी ही ।
जेके गौड़ के लिए फजीहत की बात यह रही कि एक तरफ तो वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों से 'पिटे', और दूसरी तरफ अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों ने भी उन्हें 'बचाने' की कोशिश नहीं की । शरत जैन के रवैये पर हर किसी को हैरानी है । हर किसी का मानना और कहना है कि शरत जैन यदि वास्तव में चाहते और हस्तक्षेप करते तो जेके गौड़ का ऐसा अपमान नहीं होता । शरत जैन के रवैये से उन खबरों को और हवा मिली है, जिनमें कहा/बताया जा रहा है कि रमेश अग्रवाल व शरत जैन की जोड़ी ने समझ लिया है कि जेके गौड़ अब उनके लिए ज्यादा काम के नहीं रह गए हैं, और इसलिए उन्होंने जेके गौड़ से दूरी बनाना/दिखाना शुरू कर दिया है । सत्ता खेमे के लोगों के बीच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति को लेकर पिछले दिनों जो बातचीतें हुईं हैं, उनमें जेके गौड़ ने जिस तरह से अशोक जैन की बजाए ललित खन्ना की वकालत की, शरत जैन उससे भी चिढ़े हुए हैं । शरत जैन को लगता है कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी को खाद-पानी देने का काम जेके गौड़ ही कर रहे हैं । इसीलिए रोटरी क्लब गाजियाबाद सफायर के अधिष्ठापन समारोह में जब जेके गौड़ की खुल्लमखुल्ला फजीहत हो रही थी, तब शरत जैन ने चुपचाप बैठ कर तमाशा देखा और मजा लिया । विडंबना की बात यह रही कि रोटरी क्लब गाजियाबाद सफायर के पदाधिकारियों ने जेके गौड़ के साथ जो किया, उसकी प्रायः हर किसी ने आलोचना ही की है; किंतु फिर भी जेके गौड़ के साथ शायद ही किसी को हमदर्दी हुई हो - अधिकतर लोगों का मानना और कहना है कि जेके गौड़ ऐसे ही व्यवहार के लायक हैं, और उनके साथ यह ठीक ही हुआ है । गवर्नर के रूप में जेके गौड़ ने जिस तरह का आचरण किया और अपने व्यवहार से अपने ही कई नजदीकियों को जिस तरह से पराया कर लिया - उसी का नतीजा है कि उनकी फजीहत में हर कोई मजा लेने वाले मूड में है ।

Monday, July 25, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में पैसा बटोरने के उद्देश्य से लंबी-चौड़ी कैबिनेट बनाने और उसमें गैर-लायन सदस्यों को भी पदाधिकारी बनाने की विशाल सिन्हा की हरकत के प्रति विरोध व्यक्त करते हुए नीरज बोरा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी के चेयरमैन पद से इस्तीफा दिया

लखनऊ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा ने एक ऐसे व्यक्ति को डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट का पदाधिकारी बनाने का 'ऐतिहासिक' काम किया है, जो लायन सदस्य ही नहीं है । लायंस इंटरनेशनल के सौंवे वर्ष में विशाल सिन्हा की तरफ से यह एक अनोखा रिकॉर्ड बनाया गया है । सौ वर्षों के होने जा रहे लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ है । विशाल सिन्हा ने अपनी कैबिनेट में डॉक्टर गुरचरण सिंह को चेयरमैन परमानेंट प्रोजेक्ट्स बनाया है । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में उनके नाम/पते और पद के साथ उन्हें लायंस क्लब लखनऊ प्रीमियर का सदस्य बताया गया है । लखनऊ प्रीमियर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरनाम सिंह का क्लब है । 'रचनात्मक संकल्प' के पास लायंस क्लब लखनऊ प्रीमियर के आज/अभी - इन पँक्तियों के लिखे जाने तक के 37 सदस्यों की जो सूची है, उसमें लेकिन डॉक्टर गुरचरण सिंह का नाम नहीं है । जाहिर है कि डॉक्टर गुरचरण सिंह को कैबिनेट में लेने के लिए विशाल सिन्हा को झूठ बोलना पड़ा है, और लायंस इंटरनेशनल के साथ धोखा करना पड़ा है । अपने पाठकों को हम बता दें कि डॉक्टर गुरचरण सिंह करीब दो वर्ष पहले लखनऊ प्रीमियर के सदस्य थे; दो वर्ष पहले क्लब में झगड़ों/विवादों से परेशान होकर लेकिन उन्होंने लायंस क्लब लखनऊ में ट्रांसफर ले लिया था । ट्रांसफर तो उन्होंने ले लिया था, किंतु लायनिज्म से उनका ऐसा मोहभंग हुआ कि तीन-चार महीने में ही उन्होंने वह क्लब भी और लायनिज्म को भी छोड़ दिया । तकनीकी रूप से वह पिछले करीब एक वर्ष से लायनिज्म में नहीं हैं, और किसी भी क्लब के सदस्य नहीं हैं । इस नाते, लायंस इंटरनेशनल के नियमों/कानूनों तथा व्यवस्था के अनुसार वह डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पदाधिकारी या सदस्य नहीं बन सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा ने लेकिन लायंस इंटरनेशनल के नियमों/कानूनों को तथा उसकी व्यवस्था को ठेंगा दिखाते हुए डॉक्टर गुरचरण सिंह को कैबिनेट में पदाधिकारी बना दिया है ।
विशाल सिन्हा ने लायंस इंटरनेशनल विरोधी यह काम आखिर क्यों किया ? उन्हें भी आभास तो होगा ही कि उनकी यह हरकत उनकी और डिस्ट्रिक्ट की ही बदनामी का सबब नहीं बनेगी, बल्कि इंटरनेशनल फर्स्ट वाइस प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल को भी बदनामी दिलवायेगी । डिस्ट्रिक्ट के लोगों का ही कहना है कि नरेश अग्रवाल को लोगों से सुनना पड़ सकता है कि उनके अपने मल्टीपल में कैसे कैसे गवर्नर हैं, जो लायंस इंटरनेशनल के नियम/कानून तो नहीं ही मानते हैं, उसके साथ साथ धोखाधड़ी और करते हैं ? इसीलिए लोगों के बीच सवाल चर्चा में है कि विशाल सिन्हा ने डॉक्टर गुरचरण सिंह को लायन सदस्य न होते हुए भी डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में पदाधिकारी आखिर क्यों बनाया, और क्यों उनके क्लब की झूठी पहचान को दर्ज किया है ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में ही बैठने/उठने वाले लोगों का कहना है कि डॉक्टर गुरुचरण सिंह से साढ़े तीन हजार रुपए ऐंठने के चक्कर में विशाल सिन्हा ने लायन इंटरनेशनल से यह धोखाधड़ी की है । विशाल सिन्हा प्रत्येक कैबिनेट पदाधिकारी से साढ़े तीन हजार रुपए बसूल रहे हैं । वह ज्यादा से ज्यादा पैसा इकट्ठा कर सकें, इसके लिए उन्होंने बहुत भारी-भरकम कैबिनेट बना ली है, और ऐसे ऐसे लोगों को कैबिनेट में पदाधिकारी बना दिया है - जो पदाधिकारी होने की पात्रता भी नहीं रखते हैं । विशाल सिन्हा ने इस सिद्धांत पर काम किया कि उद्देश्य जब पैसा इकट्ठा करना हो, तो फिर पात्रता भला क्या और क्यों देखना ?
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी के चेयरमैन नीरज बोरा ने विशाल सिन्हा को आगाह भी किया था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जिस तरह से उन्होंने सिर्फ पैसे बटोरने को अपना उद्देश्य बना लिया है, और लायंस इंटरनेशनल के नियम/कानूनों व व्यवस्था का उल्लंघन करके कैबिनेट के पदाधिकारी बना रहे हो - उससे डिस्ट्रिक्ट की और खुद उनकी भी बदनामी होगी । विशाल सिन्हा ने लेकिन नीरज बोरा की बात पर ध्यान नहीं दिया । विशाल सिन्हा को मनमानी करता तथा लायंस इंटरनेशनल के नियमों/कानूनों व व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करता देख नीरज बोरा ने अंततः डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे देने में ही अपनी भलाई समझी । नीरज बोरा ने स्पष्ट कर दिया कि विशाल सिन्हा की कारस्तानियों के कारण होने वाली बदनामी का वह हिस्सा नहीं बनना चाहेंगे । नीरज बोरा के इस्तीफे से होने वाली फजीहत से भी विशाल सिन्हा ने लेकिन कोई सबक नहीं सीखा । किसी भी लायंस डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी का चेयरमैन पहले ही महीने में अपने पद से इस्तीफा दे दे, यह किसी भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए बहुत ही शर्म की बात है ।
उल्लेखनीय है कि पिछले लायन वर्ष तक डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में करीब करीब तीन सौ पदाधिकारी रहते/होते रहे हैं; विशाल सिन्हा ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पदाधिकारियों की संख्या को करीब छह सौ तक पहुँचा दिया है । उनके नजदीकियों तक का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा पैसा इकट्ठा करने के लिए विशाल सिन्हा को यही तरीका समझ में आया कि वह कैबिनेट पदाधिकारियों की संख्या अनाप-शनाप तरीके से बढ़ा दें । ऐसा करते हुए विशाल सिन्हा ने ऐसे ऐसे लोगों को भी डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में पदाधिकारी बना दिया है, जो अभी हाल-फिलहाल में ही लायन सदस्य बने हैं, तथा अभी क्लब में भी पदाधिकारी नहीं बने हैं । समझा जा सकता है कि ऐसे लोग डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पदाधिकारी के रूप में क्या करेंगे ? विशाल सिन्हा के लिए वास्तव में चिंता की बात यह है भी नहीं कि ऐसे लोग डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पदाधिकारी के रूप में करेंगे क्या ? विशाल सिन्हा ने तो बस यह किया कि साढ़े तीन हजार के हिसाब से पैसे बसूलते हुए लोगों को कैबिनेट पदाधिकारी का पद 'बेच' दिया । कैबिनेट पद बेचने के काम में विशाल सिन्हा इतने रफ़्तार में रहे कि डॉक्टर गुरचरण सिंह जैसे गैर-लायन को भी पद बेच बैठे । लायंस इंटरनेशनल के सौंवे वर्ष में विशाल सिन्हा का यह कारनामा - डिस्ट्रिक्ट के लोगों के अनुसार ही, लायनिज्म को कलंकित करने वाला ही है ।

Sunday, July 24, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन ने पिछले बुरे अनुभवों से सबक लेकर इस बार जिस होशियारी से 'काम' किया, उससे समर्थकों व शुभचिंतकों को अशोक जैन की उम्मीदवारी के अभियान के पटरी पर आने की उम्मीद बनी है

नई दिल्ली । अशोक जैन की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को दौड़ में बनाए रखने के लिए रमेश अग्रवाल और शरत जैन के सामने अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को प्रभावी तरीके से करने की जो चुनौती थी, उसे काफी हद तक निभा लेने में उन्होंने सफलता प्राप्त की - और अधिष्ठापन समारोह में क्लब-अध्यक्षों व दूसरे प्रमुख लोगों की उपस्थिति को संभव बना लेने के अपने लक्ष्य को उन्होंने पा लिया । उनके विरोधियों ने भी उनकी इस उपलब्धि को स्वीकार किया है - हालाँकि उनका यह भी कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में यदि कई क्लब-अध्यक्ष व दूसरे प्रमुख लोग जुटे, तो इसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए । तर्क अपनी जगह सही है, किंतु विचारणीय बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर यदि कोई लक्ष्य तय करता है - और उसे पा लेने में सफल हो जाता है, तो उसकी यह तात्कालिक सफलता भविष्य की राजनीति के निर्णय को भी प्रभावित तो कर ही सकती है । अशोक जैन के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की सफलता उपस्थिति के लिहाज से बहुत मायने भले ही न रखती हो, पर इस सफलता को पाने के लिए बनाई गई रणनीति के लिहाज से बहुत महत्त्वपूर्ण है । महत्त्वपूर्ण इस लिहाज से कि अशोक जैन की उम्मीदवारी की बागडोर लोगों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन के हाथ में आ गई नजर आई; और रमेश अग्रवाल की भूमिका को सीमित कर दिया गया है ।
उल्लेखनीय है कि अशोक जैन की उम्मीदवारी की स्वीकार्यता बनने/बनाने में सबसे बड़ा रोड़ा रमेश अग्रवाल ही रहे हैं । अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों व नजदीकियों को लगता है कि साफ समझ में आ गया है कि रमेश अग्रवाल को पीछे रख कर ही अशोक जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाया जा सकता है - और इसीलिए अपने ही क्लब के अधिष्ठापन समारोह में रमेश अग्रवाल की भूमिका को काफी सीमित कर दिया गया । सभी जानते हैं कि क्लब के हर कार्यक्रम में रमेश अग्रवाल को आगे आगे रहने का भारी शौक रहता है, और उन्हें जबर्दस्ती ही लोगों पर हावी होने/रहने की कोशिश करते देखा जाता रहा है, किंतु इस बार उनका व्यवहार बड़ा संयमित नजर आया ।
रमेश अग्रवाल ने एमओसी की अपनी भूमिका को भी बड़ी 'शराफत' से निभाया - इतनी शराफत से कि लोगों को खासी हैरानी भी हुई । किसी ने कहा भी कि क्लब के लोगों ने रमेश अग्रवाल को साफ चेतावनी दे दी थी कि उसने किसी भी रूप में यदि अपना छिछोरपन दिखाया, तो बीच में ही एमओसी बदल दिया जायेगा । लगता है कि इसी चेतावनी का असर हुआ, और एमओसी के रूप में रमेश अग्रवाल ने ऐसी शराफत दिखाई - जिसकी की लोगों को उनसे कभी उम्मीद नहीं थी, और लोग वास्तव में हैरान थे । लोगों को अधिष्ठापन समारोह पर शरत जैन की पूरी पकड़ साफ दिखी । क्लब के पदाधिकारियों से ही सुनने को मिला कि आमंत्रितों का चयन करने से लेकर आयोजन-स्थल की डिजायन तय करने तक का काम शरत जैन की देखरेख में हुआ और उपस्थित लोगों के बीच शरत जैन की जिस तरह की सक्रियता रही/दिखी, उससे भी लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि अशोक जैन की उम्मीदवारी की बागडोर अब शरत जैन ने खुद संभाल ली है । अधिष्ठापन समारोह में शरत जैन जिस तरह से क्लब-अध्यक्षों को विशेष तवज्जो देते हुए नजर आए, उसे उनके अशोक जैन की उम्मीदवारी के लिए अवसर बनाने/जुटाने के प्रयासों के रूप में ही देखा/पहचाना गया । अधिष्ठापन समारोह के ऐसे नज़ारे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण संकेत देते हैं ।
अधिष्ठापन समारोह में आमतौर पर उत्तर प्रदेश व खासतौर पर गाजियाबाद के रोटेरियंस की अच्छी उपस्थिति ने भी अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों को राहत पहुँचाई । इसके पीछे भी शरत जैन की रणनीति व संलग्नता  को देखा/पहचाना गया । लोगों के बीच जो आपसी बातचीत हुई, उसमें पता चला कि चुनावी राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गाजियाबाद व उत्तर प्रदेश के लोगों को शरत जैन ने अलग अलग मौकों पर तरह तरह से अधिष्ठापन समारोह में आने के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार किया । शरत जैन को पता था कि गाजियाबाद व उत्तर प्रदेश में रमेश अग्रवाल का कुछ ज्यादा ही विरोध है, जिसका प्रतिकूल असर अधिष्ठापन समारोह में उपस्थिति पर पड़ सकता है - और जिसका कि अशोक जैन की उम्मीदवारी के संबंध में बहुत ही घातक असर पड़ेगा । इसलिए ही शरत जैन ने उत्तर प्रदेश व गाजियाबाद के लोगों पर खुद ध्यान देने की जिम्मेदारी ली - और इसका सुफल उन्हें देखने को भी मिला । अशोक जैन की उम्मीदवारी की मदद करने के संदर्भ में शरत जैन के रवैये में एक बड़ा फर्क और देखने को मिला और वह यह कि अबकी बार शरत जैन ने सारा काम बहुत ही सावधानी और नफ़ासत से किया । पिछले कुछेक आयोजनों में उन्होंने अशोक जैन की जिस तरह से मदद की थी, वह इतने फूहड़ तरीके से की थी कि उससे अशोक जैन को फायदा होने की बजाए नुकसान और हुआ था - तथा खुद शरत जैन की भी खासी फजीहत हुई थी । पिछले बुरे अनुभवों से सबक लेकर शरत जैन इस बार होशियारी से 'काम' करते हुए दिखे, तो अशोक जैन के नजदीकियों ने भी चैन की साँस ली । अशोक जैन की उम्मीदवारी के संदर्भ में रमेश अग्रवाल के पीछे होने और शरत जैन के आगे आने से अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को अशोक जैन की उम्मीदवारी के अभियान के पटरी पर आने की उम्मीद बनी है ।

Thursday, July 21, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट से दर्ज हुई चुनावी शिकायत में आरोपी बनाए जाने के कारण इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म ने पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास की इलेक्शन रिव्यू कमेटी से छुट्टी की

अंबाला । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास को मौजूदा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म ने जोर का झटका जोर से देते हुए रोटरी इंटरनेशनल की इलेक्शन रिव्यू कमेटी के न सिर्फ चेयरमैन पद से हटा दिया है, बल्कि कमेटी से ही बाहर कर दिया है । इस कारण हुई अपनी फजीहत के असर को कम करने के लिए यशपाल दास हालाँकि लोगों को बता रहे हैं कि उन्हें हटाया नहीं गया है, चेयरमैन पद से और कमेटी से उन्होंने खुद ही इस्तीफा दिया है । तकनीकी रूप से यशपाल दास का कहना सही है और रिकॉर्ड पर दर्ज यही है कि उन्होंने इस्तीफा दिया है । किंतु यह रोटरी इंटरनेशनल की 'व्यवस्था' की व्यावहारिक प्रैक्टिस के तहत हुआ है - रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय को जब किसी पदाधिकारी को उसके पद से हटाना होता है, तो वह उसे इस्तीफा देने का सुझाव देता है, ताकि उसे लोगों के बीच ज्यादा बेइज्जती न महसूस हो । यशपाल दास के साथ भी यही प्रकिया अपनाई गई, और इस प्रक्रिया के तहत इस्तीफा 'देकर' यशपाल दास ने अपनी इज्ज़त/फजीहत बचाने की कोशिश की है । किंतु फजीहत तो उनकी हो ही चुकी है । दरअसल इंटरनेशनल इलेक्शन रिव्यू कमेटी की सदस्यता और फिर चेयरमैनी पाने के लिए यशपाल दास ने पिछले रोटरी वर्ष में जोरदार लॉबिंग की थी और कई तरह की तिकड़में लगाने के बाद उन्हें यह पोजीशन मिली थी । इलेक्शन रिव्यू कमेटी के चैयरमैन के रूप में यशपाल दास ने जो 'जलवा' दिखाने की योजनाएँ बनाई थीं, रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म ने उन सब पर पानी फेर दिया है ।
यशपाल दास की इस फजीहत से सबसे ज्यादा खुश मुकेश अरनेजा हैं । डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मुकेश अरनेजा भी दरअसल इलेक्शन रिव्यू कमेटी के सदस्य होने के लिए प्रयास कर रहे थे और मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के समर्थन के भरोसे उन्हें पूरी पूरी उम्मीद थी कि उक्त कमेटी की सदस्यता उन्हें मिल ही जाएगी । मनोज देसाई ने इलेक्शन रिव्यू कमेटी की सदस्यता मुकेश अरनेजा को दिलवाने के लिए उचित तरीके से प्रयास नहीं किया और मुकेश अरनेजा को भ्रम में रखने के लिए उन्हें 'गोली' देते रहे, या मनोज देसाई की चली नहीं - यह तो किसी को नहीं पता, लेकिन यह सभी को पता है कि यशपाल दास के सामने मुकेश अरनेजा की दाल नहीं गली । हालाँकि इसके लिए मुकेश अरनेजा की बेवकूफीभरी अति महत्वाकांक्षा को भी जिम्मेदार माना/ठहराया गया । उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल ने एक जुलाई 2015 को वर्ष 2016-17 के लिए नौ कमेटियों के लिए नाम आमंत्रित किए थे, जिसके जबाव में कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने अपनी अपनी पसंददीदा कमेटी की सदस्यता के लिए आवेदन किया था । आम तौर पर एक पूर्व गवर्नर ने किसी भी एक कमेटी की सदस्यता के लिए आवेदन किया, किंतु मुकेश अरनेजा ने हद यह की कि उन्होंने एक साथ चार कमेटियों का नाम दे दिया । उनका रवैया ऐसा था, जैसे वह कह रहे हों कि बस दे दो, चाहे कुछ भी दे दो । कुछ भी हड़प लेने की ताक में होने के बावजूद मुकेश अरनेजा ने इलेक्शन रिव्यू कमेटी के लिए सारा जोर लगाया हुआ था । इलेक्शन रिव्यू कमेटी की सदस्यता का रोटरी में ज्यादा 'ग्लैमर' है, और चर्चा सुनी जाती है कि इसमें बैठे-बैठाए 'कमाई' भी हो जाती है । तमाम कोशिशों के बावजूद लेकिन मुकेश अरनेजा का काम नहीं बना, और बाजी यशपाल दास के हाथ लगी । इसीलिए अब जब यशपाल दास से उक्त कमेटी की सदस्यता छीन ली गई है, तो स्वाभाविक रूप से मुकेश अरनेजा के दिल को तसल्ली मिली है - और मुकेश अरनेजा की यह खास खूबी है कि वह अपनी खुशी को छिपा कर नहीं रख पाते हैं और धूमधाम से उसे लोगों के बीच 'बाँटते' हैं ।
जानकारों के बीच की चर्चाओं के अनुसार, यशपाल दास से इलेक्शन रिव्यू कमेटी की चेयरमैनी तथा सदस्यता छिनने का कारण उनके अपने डिस्ट्रिक्ट से दर्ज हुई चुनावी शिकायत रही । यशपाल दास के लिए मुसीबत की बात सिर्फ यही नहीं हुई कि उनके अपने डिस्ट्रिक्ट से चुनावी शिकायत दर्ज हुई; मुसीबत की बात यह भी हुई कि चुनावी शिकायत में खुद यशपाल दास के खिलाफ गंभीर आरोप हैं । नैसर्गिक न्याय की माँग कहती है कि आरोपी ही जज नहीं हो सकता है - और इस नाते से यशपाल दास को खुद ही उक्त कमेटी को छोड़ देना चाहिए था । यशपाल दास ने लेकिन कमेटी में बने रहने की कोशिशें और तिकड़में कीं - उन्होंने यहाँ तक तर्क किया कि जिस मीटिंग में उनके अपने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी शिकायत पर चर्चा होगी, वह उस मीटिंग का हिस्सा नहीं बनेंगे । उल्लेखनीय है कि यशपाल दास के डिस्ट्रिक्ट के रोटरी क्लब हिमालयन रेंजेस मनसा देवी की तरफ से रोटरी इंटरनेशनल में 22 जून को चुनावी शिकायत दर्ज हुई । यशपाल दास में यदि जरा सी भी नैतिकता होती और रोटरी की साख व प्रतिष्ठा के प्रति उनके मन में जरा सा भी सम्मान होता, तो वह उसी समय इलेक्शन रिव्यू कमेटी के लिए दिए गए अपने आवेदन को वापस ले लेते । उस समय नहीं लिया, तो जून के आखिरी सप्ताह में जब उनका नाम इलेक्शन रिव्यू कमेटी के सदस्य और चेयरमैन के रूप में घोषित हुआ, तब तुरंत उन्हें उक्त पद को स्वीकार करने से इंकार कर देना चाहिए था । यशपाल दास ने लेकिन ऐसा करने की बजाए डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यह बताना/कहना और शुरू कर दिया कि इलेक्शन रिव्यू कमेटी का चेयरमैन जब मैं ही हूँ, तो रोटरी क्लब हिमालयन रेंजेस मनसादेवी की चुनावी शिकायत का क्या होगा - समझ लो ! रोटरी क्लब हिमालयन रेंजेस मनसादेवी की चुनावी शिकायत का क्या होगा, यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन यह हुआ है कि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास को उक्त कमेटी से ही चलता कर दिया गया है ।
जाहिर है कि यशपाल दास अपनी ही हरकतों के कारण इस फजीहत का शिकार हुए हैं । इलेक्शन रिव्यू कमेटी का चेयरमैन बनने के बाद उन्होंने रोटरी क्लब हिमालयन रेंजेस मनसादेवी के खिलाफ जिस तरह की आक्रामकता का इज़हार किया, उसके कारण ही कमेटी से उनके हटने को लेकर ज्यादा चर्चा हुई है - और उन्हें अपने डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच भी फजीहत का शिकार होना पड़ा है । यशपाल दास के लिए और भी ज्यादा फजीहत की बात यह हुई है कि कमेटियाँ गठित करने को लेकर रोटरी इंटरनेशनल ने पिछले रोटरी वर्ष से जो प्रक्रिया शुरू की, जिसके तहत यशपाल दास इलेक्शन रिव्यू कमेटी की सदस्यता व चेयरमैनी पाने की तिकड़म में सफल हुए - उसे लेकर डिस्ट्रिक्ट के ही एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शाजु पीटर पिछले रोटरी वर्ष में ही गंभीर संदेह व सवाल खड़े कर चुके थे । यशपाल दास के साथ जो हुआ, उसे शाजु पीटर के लिखे हुए को पढ़ते हुए 'देखें' - तो यशपाल दास का खासा भद्दा मजाक बना नजर आता है । रोटरी में लोगों को कहने का मौका मिला है कि यशपाल दास से होशियार तो शाजु पीटर साबित हुए हैं ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की सफलता से अशोक जैन की उम्मीदवारी को लगे झटके को कंट्रोल करने के लिए रमेश अग्रवाल व शरत जैन ने अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को और 'बड़ा' करने की तैयारी शुरू की

नई दिल्ली । दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की जोरदार सफलता से घबराए अशोक जैन के समर्थकों ने उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह को और ज्यादा सफलतापूर्वक करने के लिए कमर कस ली है । दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह के होने के बाद अशोक जैन और उनके समर्थकों को अशोक जैन के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की तैयारी के संदर्भ में कुछ ज्यादा ही सक्रिय देखा/सुना जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल को अचानक से सक्रिय हुआ देख/सुन कर लोगों को खासा अचरज हुआ है । अशोक जैन का क्लब चूँकि शरत जैन व रमेश अग्रवाल का भी क्लब है, इसलिए अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को लेकर यह दोनों यदि सक्रिय हैं - तो इसमें किसी को अचरज नहीं होना चाहिए । किंतु लोगों का कहना है कि अचरज इनके सक्रिय होने पर नहीं है, बल्कि इनके अचानक से अभी, दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह के होने के बाद - सक्रिय होने को लेकर है । अशोक जैन के नजदीकियों ने ही बताया कि दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की जोरदार सफलता को देख कर रमेश अग्रवाल व शरत जैन को जोर का झटका लगा है, जिसके चलते उन्हें 'अपने' क्लब के अधिष्ठापन समारोह को दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह से 'बड़ा' दिखाने की जरूरत महसूस हुई है - और इस जरूरत को पूरा करने के लिए अधिष्ठापन समारोह की कमान उन्होंने अपने हाथ में ले ली है । रमेश अग्रवाल और शरत जैन अपने अपने तरीके से यह सुनिश्चित करने में जुट गए हैं कि उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह में सभी क्लब्स के अध्यक्ष व प्रमुख सदस्य अवश्य ही पहुँचे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई की बिसात में रमेश अग्रवाल और शरत जैन दरअसल अधिष्ठापन समारोह के संदर्भ में अशोक जैन को दीपक गुप्ता से पिछड़ा हुआ नहीं देखना चाहते हैं, और इसलिए अधिष्ठान समारोह होने के तीन दिन पहले उन्होंने सारी जिम्मेदारी स्वयं ले ली है । 
दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की तैयारी में तैयारी करने वाले लोगों के बीच हालाँकि तालमेल का नितांत अभाव था, जिसके कारण दीपक गुप्ता और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच भारी कंफ्यूजन था - उसके बावजूद उनके अधिष्ठापन समारोह में डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने जिस संख्या व जोश के साथ शिरकत की, उससे दीपक गुप्ता के समर्थकों को ही नहीं, उनके विरोधियों को भी हैरानी हुई है । जिन लोगों ने अधिष्ठापन समारोह शुरू होने के समय दीपक गुप्ता को देखा, उन्हें बॉडी लैंग्वेज के संदर्भ में दीपक गुप्ता बड़े थके-थके से और उदास/निराश से नजर आए थे - लेकिन समारोह जैसे जैसे आगे बढ़ा, लोगों की आमद बढ़ती गई और कुल नजारा दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के संदर्भ में खासा उत्साहजनक आँका गया । दावा किया गया कि डिस्ट्रिक्ट के प्रत्येक क्लब के पदाधिकारी तो समारोह में मौजूद थे ही, सभी क्लब्स के महत्त्वपूर्ण लोग भी वहाँ उपस्थित हुए - और प्रायः सभी ने औपचारिक व अनौपचारिक रूप से दीपक गुप्ता के बारे में अच्छी अच्छी व सकारात्मक बातें कीं । समारोह का नजारा देख कर दीपक गुप्ता के कुछेक समर्थकों ने चुटकी भी ली कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर दीपक गुप्ता और उनके क्लब के सदस्यों से ज्यादा उत्साहित तो दूसरे क्लब्स के लोग हैं । कुछेक लोगों का कहना रहा कि दीपक गुप्ता के सामने लोगों के समर्थन को अपने साथ बनाए रखने की चुनौती ही है ।
दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की जोरदार सफलता ने अशोक जैन और उनके समर्थक नेताओं के सामने खतरे की घंटी बजा दी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में अशोक जैन की हालत पहले से ही काफी पतली है; उनके समर्थकों को लगता है कि दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की सफलता से अशोक जैन की उम्मीदवारी को और झटका लगा है । इस झटके को कंट्रोल करने के लिए अशोक जैन के रमेश अग्रवाल व शरत जैन जैसे समर्थकों को अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को और 'बड़ा' करना जरूरी लगा है - ताकि अशोक जैन अभी से उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर न 'दिखने' लगें । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के संदर्भ में अशोक जैन को दरअसल दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है : एक तरफ तो उनके खुद के लिए अपने आप को चुनावी मुकाबले के लिए तैयार कर पाना मुश्किल हो रहा है; दूसरी तरफ उन्हें रमेश अग्रवाल की बदनामी से जूझना पड़ रहा है । डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल की हरकतों के खिलाफ खासी नाराजगी है, जिसे लोग मुखर रूप में व्यक्त करते हैं । अशोक जैन को चूँकि रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए रमेश अग्रवाल की बदनामी और उनके प्रति लोगों की नाराजगी का ठीकरा अशोक जैन के सिर पर ही फूट रहा है । रमेश अग्रवाल ने जिस अचानक तरीके से अपने ही क्लब के अशोक जैन को उम्मीदवार बना दिया, उसे डिस्ट्रिक्ट पर अपनी चौधराहट जमाने की रमेश अग्रवाल की कोशिश के रूप में देखा/पहचाना गया - और उससे पैदा हुई नाराजगी का शिकार अशोक जैन को होना पड़ रहा है । डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में रमेश अग्रवाल तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शरत जैन ने डिस्ट्रिक्ट के कुछेक आयोजनों में अशोक जैन को प्रोमोट करने का जो प्रयास किया, उसका उल्टा असर ही पड़ा - और लोगों को लगा कि अशोक जैन को उनके ऊपर जबर्दस्ती थोपा जा रहा है ।
अशोक जैन इस 'स्थिति' से निपटने का कोई तरीका अभी तक नहीं खोज सके हैं । एक उम्मीदवार के रूप में वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी कोई स्वतंत्र छवि या पहचान बनाने में भी अभी तक असफल ही रहे हैं । पहले तो वह लोगों के बीच सक्रिय ही नहीं हो सके; उनके समर्थक नेता हालाँकि अब दावा करते और बताते हैं कि अशोक जैन अब तो लोगों के बीच आने जाने लगे हैं, तथा बात करने लगे हैं; कुछेक जगह उन्होंने छोटी छोटी मीटिंग्स-मुलाकातें भी की हैं - समस्या लेकिन यही है कि वह लोगों के बीच प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं । उन्हें अभी भी अशोक जैन के रूप में नहीं, रमेश अग्रवाल के 'आदमी' के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है । उम्मीदवार के रूप में ललित खन्ना की मौजूदगी ने अशोक जैन की हालत और ख़राब की हुई है । ललित खन्ना की उम्मीदवारी को सत्ता खेमे के ही कुछेक नेताओं का समर्थन माना/बताया जाता है; दरअसल सत्ता खेमे के ही कुछेक नेताओं को लगता है कि अशोक जैन उम्मीदवार के रूप में ज्यादा दिन तक टिके नहीं रह पायेंगे, और तब ललित खन्ना उनके काम आयेंगे । इस तरह की बातों से अशोक जैन के लिए हालात बहुत ही दुविधापूर्ण बन गए हैं - जिनसे उबरने/निकलने के लिए न अशोक जैन को कोई तरीका सूझ रहा है, और न उनके समर्थक नेताओं को । ऐसे में, दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को प्रोमोट करने के उद्देश्य से आयोजित हुए उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह की जोरदार सफलता ने अशोक जैन और उनके समर्थक नेताओं के सामने गंभीर संकट और चुनौती पैदा कर दी है । यूँ तो अभी यमुना और हिंडन में बहुत पानी बहना है, और कोई नहीं जानता कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई का समीकरण आने वाले दिनों में कौन सी करवट लेगा; इसलिए अशोक जैन की उम्मीदवारी के रमेश अग्रवाल व शरत जैन जैसे समर्थक नेता अशोक जैन को मुकाबले में बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं - और इसी क्रम में उन्होंने फिलहाल जिम्मेदारी यह ली है कि वह अपने क्लब का अधिष्ठापन समारोह दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह से 'बड़ा' करें और दिखाएँ ।

Sunday, July 17, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए रवि दयाल की उम्मीदवारी के पुनः प्रस्तुत होने की सुगबुगाहट ने अतुल गुप्ता व सुरेश भसीन के सामने अपने अपने समर्थन आधार को बचाए रखने की गंभीर चुनौती पैदा की

नई दिल्ली । रवि दयाल की उम्मीदवारी की सुगबुगाहट ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई के लगभग सेट हो चुके समीकरणों को गड़बड़ा दिया है, और इस गड़बड़ाहट में सुरेश भसीन व अतुल गुप्ता के सामने नई तरह की समस्याएँ पैदा हो गई हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष के चुनावी मुकाबले में पिछड़ जाने के बाद रवि दयाल राजनीति के कोपभवन में चले गए थे, और उनकी तरफ से लोगों को यही संदेश सुनने को मिला था कि चुनावी पचड़े में दोबारा से पड़ने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है । पिछले रोटरी वर्ष का चुनावी मुकाबला लेकिन जिस तरह से बदनामी के भँवर में फँसा, और रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड तक में जिसकी गूँज पहुँची; और चारों तरफ जिस तरह से यह बात फैली कि पिछले रोटरी वर्ष का चुनावी नतीजा पक्षपातपूर्ण बेईमानी से निकला था - उसे देख/पहचान कर रवि दयाल के कुछेक समर्थकों व शुभचिंतकों ने रवि दयाल को दोबारा से अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए राजी करने का प्रयास किया । उनका कहना रहा कि पिछले रोटरी वर्ष की चुनावी प्रक्रिया में हुई बेईमानी की जैसी जो पोल खुली है, उसके चलते रवि दयाल को सहानुभूति-लाभ मिल सकता है । रवि दयाल लेकिन फिर भी दोबारा से उम्मीदवार बनने को राजी नहीं हुए । अभी लेकिन अचानक से लोगों के बीच रवि दयाल की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की चर्चा सुनाई दी है । रवि दयाल के हवाले से कुछेक वरिष्ठ रोटेरियंस ने उनकी उम्मीदवारी प्रस्तुत होने का दावा भी किया है; उन्होंने बताया है कि खुद रवि दयाल ने उनसे कहा है कि वह उम्मीदवार हो रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में हालाँकि अभी भी कुछेक लोगों को रवि दयाल की उम्मीदवारी की प्रस्तुति को लेकर संदेह है; उनका कहना है कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर रवि दयाल चूँकि पहले भी हाँ-न के चक्कर में फँसे रहे हैं, इसलिए एक उम्मीदवार के रूप में सचमुच सक्रिय होने पर ही मानियेगा कि वह उम्मीदवार हैं !
रवि दयाल सचमुच उम्मीदवार बनेंगे या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन अचानक से शुरू हुई उनकी उम्मीदवारी की पुनः प्रस्तुति की चर्चाओं ने चुनावी राजनीति के संदर्भ में बन रहे मौजूदा रोटरी वर्ष के समीकरणों को गड़बड़ाने का काम जरूर किया है । समीकरणों के गड़बड़ाने में झटका सुरेश भसीन व अतुल गुप्ता को लगा दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि अभी तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चार वरिष्ठ रोटेरियंस के नाम चर्चा में थे : रोटरी क्लब दिल्ली के सुरेश भसीन, रोटरी क्लब नई दिल्ली के संजीव राय मेहरा, रोटरी क्लब दिल्ली हैरिटेज के अतुल गुप्ता और रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट के अमरजीत सिंह । इनमें अमरजीत सिंह एक उम्मीदवार के रूप में अपनी ऐसी सक्रियता नहीं दिखा सके हैं, जिसके भरोसे वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर लोगों को आश्वस्त कर सकें; उनके क्लब के जो बड़े नेता हैं, चूँकि वही उनकी उम्मीदवारी को लेकर बहुत आश्वस्त भाव से बात करते हुए नहीं देखे/सुने गए - इसलिए उनकी उम्मीदवारी को लेकर कोई लोगों के बीच कोई मूव नहीं बन सका । संजीव राय मेहरा को शुरू में बहुत दमदार उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना गया था, किंतु सक्रियता के मामले में वह चूँकि लोगों के बीच कोई प्रभाव नहीं बना सके हैं - इसलिए उन्हें अपने ही क्लब के सतिंदर नारंग की दशा को प्राप्त होते देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पहले सतिंदर नारंग भी उन्हीं नेताओं के भरोसे उम्मीदवार बने थे, जिन नेताओं के भरोसे संजीव राय मेहरा इस वर्ष चुनावी रिंग में उतरे हैं । सतिंदर नारंग हो और चाहें संजीव राय मेहरा हों - ये लोग डिस्ट्रिक्ट के बड़े लोग हैं और डिस्ट्रिक्ट के एक तबके में इनकी बड़ी प्रतिष्ठा है; चुनावी मुकाबले में लेकिन यह बड़ा'पन' और प्रतिष्ठा काम नहीं आती है । चुनावी 'जरूरतें' कुछ और होती हैं - समस्या की बात यह है कि इनके जैसे लोग इस जरूरत को समझ/पहचान नहीं पाते, और इसलिए चुनावी मुकाबले में मिसफिट रहते हैं । संजीव राय मेहरा ने चूँकि अपने आप को चुनावी मुकाबले के लिहाज से फिट बनाने की कोई कोशिश ही नहीं की, इसलिए तमाम अनुकूलताओं के बावजूद एक उम्मीदवार के रूप में लोगों के बीच उन्हें स्वीकार्यता नहीं मिल सकी है । इस स्थिति का उम्मीदवार के रूप में अतुल गुप्ता और सुरेश भसीन को फायदा मिला ।
अतुल गुप्ता ने एक उम्मीदवार के रूप में सक्रियता दिखा/जता कर लोगों के बीच अपनी उम्मीदवारी के प्रति भरोसा तो पैदा किया ही है, साथ ही कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का भी समर्थन जुटाया है - और इस तरह चुनावी मुकाबले में अपनी उम्मीदवारी को मजबूती दी है । सुरेश भसीन उम्मीदवार के रूप में सक्रियता के मामले में अतुल गुप्ता से आगे हैं, लेकिन उनके साथ सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि वह अभी तक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के किसी समूह का समर्थन नहीं जुटा सके हैं - जिसका नतीजा यह है कि डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच उनकी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता का भाव नहीं बन सका है । हालाँकि संभावना दिख रही है कि जो पूर्व गवर्नर्स अतुल गुप्ता का 'रास्ता' रोकना चाहेंगे, वह सुरेश भसीन की उम्मीदवारी का झंडा उठा सकते हैं । ऐसे पूर्व गवर्नर्स अभी हालाँकि संजीव राय मेहरा के साथ हैं; किंतु संजीव राय मेहरा की उम्मीदवारी चूँकि उनकी उम्मीदानुसार लोगों के बीच पकड़ बनाते हुए नहीं नजर आ रही है - इसलिए उनकी निगाह सुरेश भसीन की उम्मीदवारी की तरफ बढ़ी है । इस वर्ष की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई क्या शक्ल लेगी, इस बारे में अभी पक्के तौर पर कुछ भी कहना जल्दबाजी करना होगा; लेकिन अभी की स्थितियों के आकलन के अनुसार, इस वर्ष अतुल गुप्ता और सुरेश भसीन के बीच चुनावी मुकाबला होता हुआ नजर आ रहा था - जिसे लेकिन रवि दयाल की उम्मीदवारी की पुनः प्रस्तुति की चर्चा ने डिस्टर्ब कर दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट में प्रायः हर राजनीतिक खेमे के लोगों के अनुसार, रवि दयाल की उम्मीदवारी यदि सचमुच प्रस्तुत होती है तो वह अतुल गुप्ता और सुरेश भसीन के बीच चुनावी मुकाबले के बनते समीकरण पर सीधी चोट करेगी । दरअसल अतुल गुप्ता और सुरेश भसीन की उम्मीदवारी के जो समर्थक व शुभचिंतक हैं - या हो सकेंगे, उनमें से अधिकतर के रवि दयाल की उम्मीदवारी के साथ जाने की संभावना है । हालाँकि यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि रवि दयाल अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में किस तरह से कैम्पेन चलाते हैं । उम्मीदवारी को लेकर हाँ-न के चक्कर में उन्होंने अपना काफी समय बर्बाद कर लिया है; देखना होगा कि इसकी भरपाई वह कैसे करते हैं ? कुछेक लोगों का कहना है कि हालाँकि इससे पहले तो यह देखना होगा कि अपनी उम्मीदवारी की प्रस्तुति के लिए फिलहाल हामी भरने के बावजूद वह वास्तव में उम्मीदवार बने भी रहते हैं क्या ? रवि दयाल की उम्मीदवार सचमुच में प्रस्तुत होगी या नहीं, यह तो आगे आने वाले दिनों में पता चलेगा; अभी उनकी उम्मीदवारी की आहट ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरण को अवश्य ही गड़बड़ा दिया है । रवि दयाल की उम्मीदवारी के पुनः प्रस्तुत होने की सुगबुगाहट ने अतुल गुप्ता व सुरेश भसीन के सामने अपने अपने मौजूदा व संभावित समर्थन आधार को बनाए/बचाए रखने की गंभीर चुनौती पैदा कर दी है ।

Thursday, July 14, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की तैयारी तालमेल की कमी का शिकार हुई

गाजियाबाद । दीपक गुप्ता ने अपने क्लब के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ में ललित खन्ना से आगे निकलने के उद्देश्य से आयोजित करने की तैयारी तो पूरी की है, लेकिन तैयारी के बीच बीच में मिलने वाले संकेत उनके लिए मुसीबतें भी पैदा कर रहे हैं । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की 'यात्रा' को ध्यान से नोट करने वाले एक वरिष्ठ रोटेरियन का कहना है कि दीपक गुप्ता के क्लब का अधिष्ठापन समारोह दरअसल शुरू से ही कन्फ्यूज्ड सोच का शिकार रहा है, समस्या यह है कि वह कन्फ्यूज्ड सोच अभी भी हावी है - जिसके चलते अधिष्ठापन समारोह की तैयारी से जो माहौल बनना चाहिए था, वह नहीं बन पा रहा है । उल्लेखनीय है कि दीपक गुप्ता के क्लब का अधिष्ठापन समारोह पहले किसी और तारीख को होना निश्चित हुआ था । समारोह का 'साइज' भी छोटा होना था - और हैरत की बात यह थी कि मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किए गए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन ने उक्त तारीख को अपनी अनुपलब्धता बता दी थी, और दीपक गुप्ता उनकी अनुपस्थिति में ही अधिष्ठापन समारोह करने को तैयार हो गए थे । उनके जिन शुभचिंतकों को इसका पता चला तो उन्होंने दीपक गुप्ता को चेताया कि शरत जैन की अनुपस्थिति में अधिष्ठापन करना चुनावी दृष्टि से आत्मघाती होगा, इसलिए किसी ऐसी तारीख को अधिष्ठापन समारोह करो जिस दिन डिस्ट्रिक्ट के सभी 'कुर्सीधारी' पदाधिकारी उपलब्ध हों । तब दीपक गुप्ता को यह बात समझ में आई और उन्होंने अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह की तारीख को बदला । 6 जुलाई को हुए ललित खन्ना के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की कामयाबी को देख कर दीपक गुप्ता अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह का 'साइज' बढ़ाने के लिए मजबूर हुए । इस प्रसंग से जाहिर/साबित हुआ कि दीपक गुप्ता 'सब कुछ' करने का ज़ज़्बा तो रखते हैं, करते भी हैं - लेकिन करने की टाइमिंग को लेकर तथा करने की प्रक्रिया में तालमेल बनाने में कन्फ्यूज रहते हैं; शायद इसी का नतीजा है कि उन्हें रोटरी में अपने किए-धरे का उचित हक़ नहीं मिला है ।
दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की तैयारी यूँ तो जोरशोर से हो रही है, और दीपक गुप्ता के साथ-साथ उनके क्लब के कुछेक प्रमुख लोग डिस्ट्रिक्ट के लोगों को आमंत्रित करने के काम में दिलचस्पी के साथ लगे हुए हैं - लेकिन इस मामले में भी आपसी तालमेल का नितांत अभाव नजर आ रहा है, जिस कारण लोगों के बीच उल्टा ही असर पड़ रहा है । असल में हो यह रहा है कि किसी किसी को तो निमंत्रण के आठ-आठ दस-दस फोन मिले हैं, तो किसी को दो ही फोन मिले हैं; यानि निमंत्रण की कहीं 'बाढ़' है तो कहीं 'सूखा' है - लोगों के बीच आपस में बात होती ही है; जिसमें जब यह पता चलता है तो लोग अलग-अलग कारणों से नाराज होते हैं । यह समस्या सिर्फ इस कारण हो रही है, क्योंकि अधिष्ठापन समारोह का निमंत्रण देने वाले लोगों के बीच कोई तालमेल ही नहीं है । बात बहुत छोटी सी है - लेकिन उससे जो नुकसान हो रहा है, वह बहुत बड़ा है; विडंबना की बात यह है कि दीपक गुप्ता और उनके संगी-साथियों को इसका आभास भी नहीं है । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह है कि उनकी उम्मीदवारी के विरोधी उनकी हर गलती या हर चूक का फायदा उठाने की ताक में रहते हैं । यूँ तो हर उम्मीदवार के समर्थक और विरोधी होते ही हैं; लेकिन दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह है कि उनके कुछेक विरोधी तो बिलकुल कट्टर वाले विरोधी हैं, जो उनकी जरा सी भी बिगड़ी चाल पर उन्हें गिरा देने की फिराक में रहते हैं । ऐसे में दीपक गुप्ता को जितना सावधान रहने की जरूरत है, वह उतने सावधान हो नहीं पा रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट में इस वर्ष की चुनावी राजनीति का जो समीकरण बनता हुआ दिख रहा है, उसे पहचानने/समझने का दावा करने वाले लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता अपने धुर विरोधी सत्ता खेमे में पड़ती दिख रही दरारों का फायदा उठाने में चूकते जा रहे हैं । सत्ता खेमे के नेताओं के बीच दीपक गुप्ता का भारी विरोध एक हकीकत है; इस हकीकत में दीपक गुप्ता के लिए राहत की बात यह है कि सत्ता खेमे के नेताओं के बीच अब पहले जैसी एकता नहीं बची है और उनके बीच आपसी अविश्वास व दूरियाँ बनती दिख रही हैं । अशोक जैन की उम्मीदवारी ने सत्ता खेमे को बाँटने की प्रक्रिया को और तेज ही किया है । सत्ता खेमे के कुछेक नेताओं को अशोक जैन की उम्मीदवारी बोझ लगने लगी है, जिस कारण अशोक जैन को सत्ता खेमे के नेताओं का पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पा रहा है । कुछ नेताओं का समर्थन न मिलने के कारण तो कुछ अपनी ढीलमढाल के चलते अशोक जैन उम्मीदवारी की दौड़ में पिछड़ते जा रहे हैं; इसे शायद खुद अशोक जैन ने भी समझ लिया है और इसीलिए पिछले दिनों जिन क्लब्स के अधिष्ठापन समारोह आयोजित हुए, उनमें से कुछेक में उपस्थित होना अशोक जैन ने जरूरी तक नहीं समझा । इस स्थिति का फायदा दीपक गुप्ता को मिल सकता था, लेकिन उन्होंने फायदा उठाने की कोई कोशिश ही नहीं की - जिसका फायदा ललित खन्ना ने उठाया है । दीपक गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, हालाँकि यह कहना सही नहीं होगा कि दीपक गुप्ता ने फायदा उठाने की कोशिश नहीं की - समस्या यह है कि उनकी कोशिशों में कोई तारतम्य व निरंतरता नहीं बन सकी तथा कई बार उनकी कोशिशें अतिरेक का शिकार भी हुईं, और इसलिए दीपक गुप्ता को अपनी कोशिशों का कोई लाभ नहीं मिल सका ।
दीपक गुप्ता ने पिछले दिनों जेके गौड़ पर अपना बहुत समय और अपनी बहुत एनर्जी खर्च की; रमेश अग्रवाल के साथ जेके गौड़ की बढ़ती दूरी की खबरों से प्रेरित होकर दीपक गुप्ता को लगा कि जेके गौड़ को वह पटा लेंगे और अपने साथ कर लेंगे । थ्योरिटीकली दीपक गुप्ता ने जो सोचा, उसमें कुछ भी गलत नहीं था; लेकिन अपनी सोच को प्रैक्टिकली क्रियान्वित करने को लेकर उन्होंने बिना बिचारे अपना समय और अपनी एनर्जी लगाई - जिसका उन्हें कोई लाभ नहीं मिला । दीपक गुप्ता ने जहाँ कहीं जेके गौड़ के बराबर में बैठ कर लोगों को उन्हें अपने साथ 'दिखाने' का प्रयास किया भी, वहाँ लोगों को 'दिखा' लेकिन यह कि साथ साथ बैठे होने के बावजूद दोनों ही एक दूसरे के साथ सहज नहीं हैं । दीपक गुप्ता की गतिविधियों तथा उनके नतीजों को देखने/परखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि समस्या की जड़ दीपक गुप्ता की कोशिशों में निरंतरता की कमी ही है - कभी वह बहुत रफ्तार से सक्रिय दिखेंगे, तो कभी ऐसा लगेगा जैसे कि वह सो गए हैं । तीसरी बार की अपनी उम्मीदवारी में भी दीपक गुप्ता का यह हाल बताता है कि अपने पिछले अनुभवों से उन्होंने शायद कुछ सीखा नहीं है, और या वह किसी बड़ी गलतफहमी का शिकार हैं । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों का ही कहना है कि पिछले अनुभवों से न सीखने की बात क्लब के अधिष्ठापन समारोह की तैयारी में साफ साफ और मुखर रूप में नजर आ रही है ।

Wednesday, July 13, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के घपलेबाजों को संरक्षण देते हुए सुधीर मंगला की सिफारिश को अनदेखा करने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम की कार्रवाई कहीं डिस्ट्रिक्ट को बड़ी मुसीबत में तो नहीं फँसा देगी ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम को अजीत जालान से आखिर ऐसा क्या डर है कि वह अजीत जालान के क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट में होने वाली वित्तीय धांधलियों के मामले में कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं ? निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला मामले से जुड़े सारे तथ्य डॉक्टर सुब्रमणियम को सौंप कर उनसे उचित कार्रवाई करने की सिफारिश कर चुके हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर मंगला ने बहुत मेहनत व धैर्य से रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों तथा कब्जाधारियों द्धारा की जा रही धांधलियों की पड़ताल की थी; क्लब के पदाधिकारियों ने उनकी पड़ताल को बंद करवाने तथा भटकाने की कोशिश तो बहुत की - लेकिन सुधीर मंगला की कार्रवाई धांधलियों के परिस्थितिजन्य सुबूत जुटाने में कामयाब रही । इस कामयाबी तक पहुँचने में हालाँकि उन्हें इतना समय लग गया कि उनका गवर्नर-काल ही पूरा हो गया । इसलिए तथ्यों के सहारे/भरोसे आगे की कार्रवाई पूरी करने की जिम्मेदारी उन्होंने डॉक्टर सुब्रमणियम को सौंप दी । डॉक्टर सुब्रमणियम लेकिन सुधीर मंगला की सिफारिश पर कोई ध्यान देते हुए नहीं दिख रहे हैं । उनका ध्यान न देना लोगों के नोटिस में शायद नहीं भी आता; किंतु रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के लोगों का जोश इस मामले में डॉक्टर सुब्रमणियम की मुसीबत बन गया है । रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के प्रमुख लोग जिस तरह से सुधीर मंगला को कोस रहे हैं और उनके बारे में अभद्र व अशालीन तरीके से बातें कर रहे हैं, उससे डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लग रहा है कि डॉक्टर सुब्रमणियम की शह के कारण ही दिल्ली साऊथ वेस्ट के लोगों की इतनी हिम्मत हो रही है कि उन्होंने हाल ही में पूर्व हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है । सुधीर मंगला के प्रति रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के कुछेक प्रमुख लोगों की नाराजगी का कारण यही है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्होंने क्लब में चल रही धांधलियों के आरोपों को गंभीरता से लिया और आरोपों को सच भी 'साबित' कर दिया तथा नियमों के हवाले से क्लब को निलंबित करने की सिफारिश तक कर दी ।
रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के प्रमुख लोगों की सुधीर मंगला के खिलाफ की जा रही बेहूदा किस्म की बयानबाजी को डॉक्टर सुब्रमणियम की शह होने का डिस्ट्रिक्ट के लोगों का विश्वास इस कारण भी बना है - क्योंकि दिल्ली साऊथ वेस्ट के एक प्रमुख सदस्य अजीत जालान पहले से ही डॉक्टर सुब्रमणियम का नाम लेकर सुधीर मंगला को चुनौती देते रहे हैं । सुधीर मंगला जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दिल्ली साऊथ वेस्ट में हो रही गड़बड़ियों के आरोपों की जाँच-पड़ताल कर रहे थे, और आरोपों को सच पा रहे थे - तब यह अजीत जालान ही थे जो बढ़चढ़ कर दावा कर रहे थे कि डॉक्टर सुब्रमणियम के होते हुए सुधीर मंगला क्लब खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पायेंगे । अजीत जालान की डॉक्टर सुब्रमणियम से निकटता कोई छिपी हुई बात है भी नहीं । डॉक्टर सुब्रमणियम ने उन्हें अपने गवर्नर-वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरार बनाया है - और यह जानते/बूझते हुए बनाया है कि अजीत जालान पर हिसाब-किताब में गड़बड़ी करने के गंभीर आरोप रहे हैं । पिछले से पिछले रोटरी वर्ष में अजीत जालान अपने क्लब के ट्रेजरार थे; ट्रेजरार के रूप में उनपर हिसाब-किताब में गड़बड़ी करने के गंभीर आरोप लगे : उनके शुभचिंतकों तक ने उन्हें सलाह दी कि हिसाब-किताब का ब्यौरा सामने रख दो, आरोप अपने आप खारिज हो जायेंगे - लेकिन अजीत जालान ने अपने शुभचिंतकों की भी नहीं सुनी, और हिसाब-किताब नहीं दिया तो नहीं ही दिया । अजीत जालान ने आरोप और बदनामी तो सही, लेकिन हिसाब-किताब नहीं दिया । इस बात का हवाला देते हुए डॉक्टर सुब्रमणियम की टीम बनवाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले लोगों ने डॉक्टर सुब्रमणियम को सलाह दी थी कि वह अजीत जालान को और चाहें जो पद दे दें, लेकिन ट्रेजरार का पद न दें । डॉक्टर सुब्रमणियम ने लेकिन किसी की नहीं सुनी; और अजीत जालान को वही पद दिया, जो अजीत जालान अपने लिए चाहते थे । इससे अजीत जालान के साथ डॉक्टर सुब्रमणियम के रिश्ते के 'ताप' को समझा/पहचाना जा सकता है । इस 'ताप' को इस तथ्य से भी समझा/पहचाना जा सकता है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरार के रूप में अजीत जालान पर डॉक्टर सुब्रमणियम के पेम/पेट्सअसेम्बली आदि कार्यक्रमों के खर्चों में गोलमाल होने के आरोप भी लगे, लेकिन डॉक्टर सुब्रमणियम ने उन आरोपों पर कोई ध्यान नहीं दिया ।
डिस्ट्रिक्ट में लोगों का कहना है कि इन बातों/तथ्यों को तो फिर भी इग्नोर किया जा सकता है; लेकिन यह बात समझ से कतई परे है कि रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट में चल रही धांधलियों पर कार्रवाई करने की सुधीर मंगला की सिफारिश पर डॉक्टर सुब्रमणियम चुप्पी क्यों बनाए हुए हैं ? सुधीर मंगला ने अपनी कार्रवाई - मामले की पड़ताल करने से लेकर डॉक्टर सुब्रमणियम को की गई सिफारिश तक की कार्रवाई - के दस्तावेज रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय को भी भेजे हुए हैं; जिस कारण रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट की घपलेबाजी का मामला खासा गंभीर हो गया है - जिसकी अनदेखी करना डिस्ट्रिक्ट को खासा महँगा पड़ सकता है । पिछले रोटरी वर्ष में सुधीर मंगला ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में चुनावी बेईमानी को लेकर जो अनदेखी की थी, उसकी भारी कीमत डिस्ट्रिक्ट के सिर पहले ही पड़ चुकी है । डिस्ट्रिक्ट को लेकर इंटरनेशनल बोर्ड की मीटिंग में की जो प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज है, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट पहले से ही मुसीबत में है । पिछले रोटरी वर्ष में जो कुछ भी हुआ, उसे कुछेक लोगों ने तत्कालीन प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की निजी ख़ब्तीबाजी के रूप में देखा/पहचाना था और उम्मीद की थी कि प्रेसीडेंट पद से उनके हटने के बाद मामले को संभाल लिया जायेगा । मुसीबत की बात लेकिन यह हुई कि नए बने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म ने केआर रवींद्रन को एशियाई देशों के मामलों का इंचार्ज बना दिया है । यानि हालात जहाँ थे, वहीं फिर वापस आ गए हैं । डिस्ट्रिक्ट 3011 चूँकि पहले से ही केआर रवींद्रन के 'रडार' पर है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट 3011 के पदाधिकारियों से सावधानी से काम करने की उम्मीद की जाती है । इसी उम्मीद के चलते लोगों को डर है कि रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट की घपलेबाजियों पर कार्रवाई करने की सुधीर मंगला की सिफारिश पर डॉक्टर सुब्रमणियम की चुप्पी डिस्ट्रिक्ट की मुसीबतों को और बढ़ा सकती है ।
रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट में चलने वाली घपलेबाजियों के आरोप हैं; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर मंगला द्धारा की गई जाँच-पड़ताल में सामने आए साक्ष्य व सुबूत हैं; क्लब के खिलाफ कार्रवाई करने की सुधीर मंगला की सिफारिश है - इसके बावजूद मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम कार्रवाई तो नहीं ही कर रहे हैं; बल्कि घपलेबाजियों के एक मास्टरमाइंड समझे जाने वाले अजीत जालान से निकटता बनाए हुए हैं । इस निकटता का वास्ता देकर अजीत जालान तथा क्लब के अन्य कुछेक प्रमुख लोग निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला के खिलाफ अभद्र व अशालीन किस्म की बातें कर रहे हैं, और दावा कर रहे हैं कि उनपर चाहें जो आरोप हों और उसके चाहें जितने साक्ष्य व सुबूत हों - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेंगे । डॉक्टर सुब्रमणियम के रवैये से अजीत जालान तथा रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के दूसरे कुछेक लोगों द्धारा किया जा रहा दावा यदि सच साबित भी होता नजर आ रहा हो - तब लोगों के बीच यह सवाल तो उठेगा ही कि डॉक्टर सुब्रमणियम आखिर किस मजबूरी में रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के घपलेबाजों को संरक्षण दे रहे हैं और क्लब में की घपलेबाजी को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं - और अपने से पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे सुधीर मंगला की सिफारिश को अनदेखा कर रहे हैं ?

Tuesday, July 12, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले के खिलाफ कोर्ट जाने की कार्रवाई को इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की शह होने की चर्चाओं ने मामले को दिलचस्प और महत्वपूर्ण बनाया

मुरादाबाद । डिस्ट्रिक्ट 3100 के मामले के कोर्ट-कचहरी पहुँचने के पीछे इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की शह होने की चर्चाओं ने मामले को खासा रोमांचक बना दिया है । समझा जाता है कि केआर रवींद्रन को एशियाई मामलों का इंचार्ज बना देने के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म के फैसले से आहत मनोज देसाई ने डिस्ट्रिक्ट 3100 के नाराज व असंतोषी लोगों को कोर्ट-कचहरी करने के लिए उकसाया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 को लेकर रोटरी इंटरनेशनल पदाधिकारियों तथा बोर्ड ने पिछले महीनों में जब जब फैसले लिए, तब तब कोर्ट-कचहरी होने/करने की चर्चाएँ सुनी गईं थीं; इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले के चलते जब दीपक बाबु के गवर्नर की कुर्सी तक पहुँचने का रास्ता पूरी तरह बंद हो गया था - तब तो यह चर्चा पूरे जोरों पर थी कि दीपक बाबु रोटरी इंटरनेशनल के फैसले के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं । लेकिन फिर सुनने को मिला कि मनोज देसाई ने उन्हें कोर्ट न जाने के लिए मना लिया है । इससे पहले, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से इस्तीफा देने के लिए सुनील गुप्ता को मनोज देसाई द्वारा राजी करने की बातें लोगों के बीच जब चर्चा में थीं, तब तो खुद सुनील गुप्ता लोगों को बता रहे थे कि उन्होंने मनोज देसाई से साफ साफ कह दिया है कि रोटरी इंटरनेशनल ने उन्हें यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटाया, तो वह कोर्ट चले जायेंगे । उस समय सुनील गुप्ता को घेरने/फँसाने तथा मामले को शांतिपूर्ण तरीके से निपटा देने में मनोज देसाई ने ही तिकड़में लगाई थीं । मनोज देसाई ने सुनील गुप्ता को ही नहीं; डिस्ट्रिक्ट में प्रशासनिक व आर्थिक घपलों के लिए जिम्मेदार ठहराए गए तीन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के 'गुस्से' को शांत करने में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी; दीपक बाबु व दिनेश शर्मा को भी चुप कराने में मनोज देसाई सफल रहे थे । किंतु दीपक बाबु व दिनेश शर्मा को जल्दी ही समझ में आ गया कि मनोज देसाई ने उन्हें 'पोपट' बना दिया है । राजीव सिंघल के कोऑर्डीनेटर बनने के बाद तो दीपक बाबु व दिनेश शर्मा ने पक्के तौर पर समझ लिया कि इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने उन्हें इस्तेमाल किया है, और राजनीतिक रूप से उन्हें ठगा है । दूसरे लोग मनोज देसाई के हाथों 'पोपट' बनने के बाद चूँकि चुप रह गए, इसलिए मनोज देसाई की 'रणनीति' की तारीफ हुई; लेकिन दीपक बाबु और दिनेश शर्मा ने चुप रहने की बजाए मनोज देसाई को सार्वजनिक रूप से कोसना जारी किया - तो मनोज देसाई को डेमेज कंट्रोल की जरूरत पड़ी ।
रोटरी इंटरनेशनल के नए बने प्रेसीडेंट जॉन जर्म के एक फैसले ने मनोज देसाई को अपनी 'पोजीशन' बदलने के लिए डेमेज कंट्रोल की आड़ लेने का अच्छा बहाना भी दे दिया । जॉन जर्म ने निवर्तमान प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को एशियाई देशों के मामलों का इंचार्ज बना कर दरअसल मनोज देसाई के पर पूरी तरह से कतर दिए हैं । उल्लेखनीय है कि केआर रवींद्रन के प्रेसीडेंट रहते हुए मनोज देसाई की ज्यादा चल नहीं पा रही थी । वह उम्मीद में थे कि केआर रवींद्रन के प्रेसीडेंट पद से हटने के बाद वह पूरी तरह से अपनी चला सकेंगे - लेकिन जॉन जर्म ने केआर रवींद्रन को उनके सिर पर बैठा कर उनकी उम्मीदों को ध्वस्त कर दिया है । इस स्थिति ने मनोज देसाई को डिस्ट्रिक्ट 3100 के नाराज व असंतोषी लोगों को यह बताने/समझाने का अवसर दिया कि केआर रवींद्रन के होते हुए मैं कुछ नहीं कर पाउँगा, इसलिए मेरे भरोसे मत रहना और जो उचित समझो करो । इस तरह मनोज देसाई ने एक तीर से दो निशाने लगा दिए हैं : एक तरफ तो उन्होंने उन्हें कोसने वाले दीपक बाबु व दिनेश शर्मा जैसे लोगों के ज़ख्मों पर मरहम लगाया, और उनके सामने जताने की कोशिश की कि वह तो उनके लिए कुछ करना चाहते थे - किंतु केआर रवींद्रन के कारण अब वह कुछ नहीं कर पायेंगे; दूसरी तरफ मनोज देसाई ने जॉन जर्म और केआर रवींद्रन को कोर्ट-कचहरी की मुसीबत में फँसवा दिया है । मामले में हालाँकि मनोज देसाई को भी पार्टी बनाया गया है, किंतु कोर्ट-कचहरी के मामले में ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी तो जॉन जर्म व केआर रवींद्रन की ही बनेगी ।
डिस्ट्रिक्ट 3100 में झगड़ों को हवा देने में मनोज देसाई की भूमिका को पिछले रोटरी वर्ष के शुरू से ही चिन्हित किया जाता रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में राजीव सिंघल खुलकर मनोज देसाई के समर्थन का दावा करते रहे हैं । राजीव सिंघल की उम्मीदवारी का रास्ता आसान बनाने के लिए मंजू गुप्ता की उम्मीदवारी को वापस कराने के उद्देश्य से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के स्तर से लेकर दिल्ली स्थित रोटरी इंटरनेशनल के साऊथ एशिया ऑफिस तक में जो 'खेल' हुआ, उसमें मनोज देसाई की भूमिका को देखा/पहचाना गया और उसकी भारी आलोचना हुई । डिस्ट्रिक्ट में पिछले रोटरी वर्ष में घटी घटनाओं को नजदीक से देखने वाले लोगों को लगता है, और उन्होंने दूसरे लोगों के बीच इसे कहा भी है कि मनोज देसाई ने पहले सुनील गुप्ता को और फिर दीपक बाबु को इस्तेमाल किया - और ऐसे इस्तेमाल किया कि दोनों बर्बादी की दशा को प्राप्त हुए । कुछेक लोगों को तो शक है कि मनोज देसाई ने जानबूझ कर डिस्ट्रिक्ट 3100 में झगड़ों को हवा दी, ताकि डिस्ट्रिक्ट को बर्बाद किया/करवाया जा सके । यह शक करने वालों का तर्क है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की मनोज देसाई की उम्मीदवारी को चूँकि नोमीनेटिंग कमेटी में डिस्ट्रिक्ट 3100 का समर्थन नहीं मिला था, इसलिए उसी की खुन्नस में उन्होंने डिस्ट्रिक्ट 3100 से बदला लिया है ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार के रूप में मनोज देसाई ने हालाँकि डिस्ट्रिक्ट 3100 के पूर्व गवर्नर्स के बीच अच्छा काम किया था । नोमीनेटिंग कमेटी के लिए चुने गए राजीव रस्तोगी का समर्थन जुटाने के लिए मनोज देसाई ने उनकी परफेक्ट घेराबंदी की थी, जिसके चलते उन्हें विश्वास था कि नोमीनेटिंग कमेटी में राजीव रस्तोगी उनका ही समर्थन करेंगे । नोमीनेटिंग कमेटी में लेकिन राजीव रस्तोगी ने भरत पांड्या का समर्थन किया । बाद में पता चला कि राजीव रस्तोगी का मन बदलने में जयपुर वाले अशोक गुप्ता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । राजीव रस्तोगी का समर्थन न मिलने के बावजूद मनोज देसाई नोमीनेटिंग कमेटी में अधिकृत उम्मीदवार तो बन गए, किंतु अब लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 के प्रति उनके मन में नाराजगी ने जैसे गहरी पैठ बना ली थी - और उसी नाराजगी के चलते बहुत योजनाबद्ध तरीके से उन्होंने डिस्ट्रिक्ट 3100 को बर्बादी के कगार पर पहुँचा दिया है ।
रोटरी इंटरनेशनल और उसके पदाधिकारियों के खिलाफ कोर्ट-कचहरी करने का क्या नतीजा निकलेगा - यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन कई लोगों को लगता है कि इस 'काम' में पर्दे के आगे और पीछे जो लोग हैं, उन्हें तो शायद ही कोई फायदा होगा - डिस्ट्रिक्ट के लिए मुसीबतें हो सकता है कि और बढ़ जाएँ । डिस्ट्रिक्ट के लोग कोर्ट-कचहरी करें, यह शायद कोई बड़ा मुद्दा न होता; इस कोर्ट-कचहरी के पीछे लेकिन इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की शह होने की चर्चाओं ने मामले को दिलचस्प और महत्वपूर्ण बना दिया है ।

Tuesday, July 5, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी चौतरफा बदनामी में फँसने/घिरने और अलग-थलग पड़ने के कारण बौखलाए और डिस्ट्रिक्ट में तमाशा 'दिखाने' की तैयारी में जुटे

गाजियाबाद । जापान के फुकुओका में आयोजित हुए लायंस इंटरनेशनल के 99वें अधिवेशन से लौट कर शिव कुमार चौधरी ने एक बार फिर डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की पोल खोलने की जो घोषणा की है, उससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों को तमाशा देखने की एक बार फिर उम्मीद बँधी है । दरअसल उनकी घोषणा के तुरंत बाद कुछेक लोगों ने ऐलान किया है कि वह भी शिव कुमार चौधरी की असलियत लोगों के सामने लायेंगे । कुछेक लोगों का कहना है कि उनके पास शिव कुमार चौधरी की बातों के कई ऑडियो व वीडियो हैं - जिनमें वह डिस्ट्रिक्ट के महत्वपूर्ण लोगों के बारे में अभद्र, अशालीन व अश्लील तरीके से बात कर रहे हैं । लोगों का कहना है कि शिव कुमार चौधरी को बकवासबाजी करने का रोग तो है ही; जिसके चलते वह किसी के बारे में भी - यहाँ तक कि लायनेस सदस्यों, लायन सदस्यों के परिवार की महिलाओं व लड़कियों के बारे में भी अशालीन व अश्लील किस्म की बातें करते रहते हैं । कई लोगों ने उनकी बातें अपने अपने मोबाइल में रिकॉर्ड की हुईं हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर वह शिव कुमार चौधरी की असलियत को लोगों के सामने ला सकें । लोगों का कहना है कि बदतमीजी के मामले में शिव कुमार चौधरी ने यदि लक्ष्मणरेखा लाँघी तो फिर वह भी चुप नहीं बैठेंगे और लोगों को सुबूतों के साथ बतायेंगे कि शिव कुमार चौधरी किस हद तक की नीची और घटिया सोच के व्यक्ति हैं । इसके साथ साथ, शिव कुमार चौधरी द्धारा लोगों के पैसे मारे जाने के किस्से तो हैं ही । इस तरह की बातों से डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लग रहा है कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट में अब जोरदार तमाशा देखने को मिलेगा - एक तरफ शिव कुमार चौधरी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की पोल खोलेंगे, और दूसरी तरफ अन्य लोग शिव कुमार चौधरी की कारस्तानियों को सामने लायेंगे । इससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों को खासा मनोरंजन होने की उम्मीद है । 
डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोगों को हैरानी इस बात पर भी है कि इंटरनेशनल अधिवेशन से लौट कर शिव कुमार चौधरी अधिवेशन में हुई बातों को यहाँ लोगों के साथ शेयर करने की बजाए, लोगों के मनोरंजन के लिए स्टेज तैयार करने में क्यों जुट गए हैं ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अधिष्ठापित होकर, इंटरनेशनल अधिवेशन से लौटे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से लोग उम्मीद करते हैं कि वह उन्हें लायनिज्म के नए वर्ष के उद्देश्यों व लक्ष्यों के बारे में बतायेंगे - लेकिन शिव कुमार चौधरी ने इंटरनेशनल अधिवेशन से लौटते ही एक अलग राग छेड़ दिया है । उनकी इस हरकत से लोगों को लगा है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन जरूर गए हैं, लेकिन लायनिज्म में उन्हें करना कुछ नहीं है । कुछेक लोगों का कहना है कि बेचारे को इंटरनेशनल अधिवेशन में जो हुआ है, वह समझ में ही नहीं आया होगा - इंटरनेशनल अधिवेशन में चूँकि सारा काम और सारी बातें अंग्रेजी भाषा में होती हैं; और अंग्रेजी भाषा शिव कुमार चौधरी के लिए भैंस बराबर है - इसलिए वह तो बस पिकनिक मनाकर और फोटो खिंचवा कर लौटे हैं; ऐसे में, वहाँ से लौट कर वह लोगों को बताएँ भला क्या ? इंटरनेशनल अधिवेशन में जाने वाले कई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के साथ भाषा संबंधी समस्या होती ही है; समस्या का सामना करने वाले लोग मिलजुल कर लेकिन उसका हल निकाल लेते हैं - इसके लिए किंतु व्यवहार में विनम्रता की जरूरत होती है । शिव कुमार चौधरी में उसका नितांत अभाव है । वह झूठी हेकड़ी में रहते हैं और दूसरों पर हावी होने की कोशिश करते हैं - और इसके चलते फजीहत का शिकार बनते हैं । अधिवेशन में फुकुओका पहुँचे दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लायन लीडर्स के बीच शिव कुमार चौधरी ने अपने इसी व्यवहार से अपने आप को जल्दी से बदनाम कर लिया । मुकेश गोयल के साथ अजय सिंघल ने वहाँ पहुँच कर शिव कुमार चौधरी की और फजीहत करवा दी । दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लायन लीडर्स वहाँ शिव कुमार चौधरी की बजाए अजय सिंघल को ज्यादा तवज्जो दे रहे थे, और इस बात से जलभुन कर शिव कुमार चौधरी अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच लौटे ।
यहाँ लौट कर शिव कुमार चौधरी को जब यह पता चला कि क्लब्स के अधिष्ठापन समारोहों में उन्हें बुलाया ही नहीं जा रहा है, तो उनका पारा और चढ़ गया । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में अभी तक जिन क्लब्स के अधिष्ठापन समारोह हुए हैं, या जिनके होने की तैयारी हो रही है, उनमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी को बुलाया ही नहीं जा रहा है । किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए इससे ज्यादा फजीहत की बात क्या होगी कि उसके गवर्नर-काल में होने वाले क्लब्स के अधिष्ठापन समारोहों में उसे ही नहीं बुलाया जा रहा है । इस फजीहत से उबरने के लिए शिव कुमार चौधरी क्लब्स के पदाधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाये भी कि अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह में मुझे भी बुला लो ! शिव कुमार चौधरी की बदकिस्मती रही कि क्लब्स के पदाधिकारियों की तरफ से तब भी उन्हें कोई सकारात्मक जबाव नहीं मिला । इससे भी ज्यादा बड़ा झटका शिव कुमार चौधरी को यह देख कर लगा कि उन्होंने जिन लोगों को पद दिए थे, वह पद के तय किए गए पैसे देने में आनाकानी कर रहे हैं; शिव कुमार चौधरी को पैसे डूबते हुए दिखे तो वह सौदेबाजी पर उतर आए - उन्होंने कहा कि पंद्रह हजार नहीं दे रहे हो, तो दस हजार ही दे दो; किसी किसी को तो उन्होंने पाँच हजार तक दे देने का विकल्प दिया । यह छूट देने के बावजूद उन्हें पैसे मिलते हुए दिख नहीं रहे हैं । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया है कि शिव कुमार चौधरी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सिर्फ पैसे इकट्ठे करने के अभियान में लगे हैं, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं ।
पैसे हड़पने के मामले में शिव कुमार चौधरी की पहले से ही बड़ी बदनामी है । बिजनेस के नाम पर लोगों से पैसे ले लेने और फिर वापस न करने के गंभीर आरोपों को लेकर शिव कुमार चौधरी को न केवल बदनामी झेलनी पड़ रही है, बल्कि कोर्ट केस तक का सामना करना पड़ रहा है । इस मामले में शिव कुमार चौधरी को अपने डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, फुकुओका में दूसरे तमाम लायन लीडर्स के सामने भी भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा; और इस तरह से लायनिज्म तथा डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के लिए फजीहत का कारण बने । इन्हीं बातों को देखते/सुनते/जानते हुए डिस्ट्रिक्ट में पदाधिकारी बनने वाले लोग अब शिव कुमार चौधरी को पैसे देने से बचने लगे हैं । यानि शिव कुमार चौधरी को बदनामी भी मिली, और बदनामी के चलते पैसे मिलने में भी समस्या आने लगी है । शिव कुमार चौधरी के सामने समस्या की बात यह हुई है कि कई एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तो उनसे दूर दूर बने ही हुए हैं, जिन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को वह अपने साथ समझते भी हैं - वह भी उनकी कोई मदद नहीं कर रहे हैं । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुशील अग्रवाल, जो पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर भी हैं, को खुश करने/रखने के लिए शिव कुमार चौधरी ने उनकी पत्नी अर्चना अग्रवाल को जोन चेयरपरसन भी बनाया है - किंतु सुशील अग्रवाल फिर भी उनकी मदद करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं । सुशील अग्रवाल के इस रवैये ने भी शिव कुमार चौधरी को निराश किया है । इस तरह शिव कुमार चौधरी को न तो क्लब्स के पदाधिकारियों से सहयोग व सम्मान मिल रहा है, और न पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से कोई सहयोग मिल रहा है । चौतरफा बदनामी और हो रही है । इस स्थिति ने शिव कुमार चौधरी को पूर्व गवर्नर्स के खिलाफ भड़का दिया है; और भड़कते हुए ही उन्होंने पूर्व गवर्नर्स की पोल खोलने की घोषणा की है ।
शिव कुमार चौधरी की इस घोषणा, और उनकी इस घोषणा के जबाव में सामने आई उनकी असलियत सामने लाने की चर्चाओं ने डिस्ट्रिक्ट में तमाशे की स्थिति पैदा कर दी है । लोगों को लग रहा है कि शिव कुमार चौधरी लायनिज्म का कुछ काम भले ही न करें, अपने गवर्नर-काल में तमाशा जरूर दिखा/दिखवा देंगे । सो, लोगों को इंतजार है कि अपनी घोषणा के अनुसार शिव कुमार चौधरी तमाशे की शुरुआत आखिर कब करते हैं ?