Saturday, December 28, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता के साथ नजदीकी बना और 'दिखा' कर नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सत्ता पाने के खेल में श्वेता पाठक का पलड़ा भारी 'दिखने' से काउंसिल के बाकी सदस्यों के बीच हलचल मची

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता के साथ हाल ही के दिनों में कुछेक आयोजनों में श्वेता पाठक की भागीदारी होने और 'दिखने' के कारण इस चर्चा को हवा मिली है कि अतुल गुप्ता की तरफ से श्वेता पाठक को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का अगला चेयरपरसन बनाने की संभावनाएँ देखी/पहचानी जा रही हैं । मजे की बात यह है कि कई लोगों का यह भी कहना है कि इस चर्चा को खुद श्वेता पाठक तथा उनके नजदीकियों की तरफ से हवा दी जा रही है और इस तरीके से वह अतुल गुप्ता के नाम पर अगले वर्ष की टीम में अपनी जगह बनाने के जुगाड़ खोज रहे हैं । मजे की बात यह भी है कि अगले वर्ष के लिए बनने वाले पॉवर ग्रुप में जगह पाने के जुगाड़ में लगे कुछेक दूसरे काउंसिल सदस्य भी तरह तरह से अतुल गुप्ता के नजदीक होने तथा 'दिखने' के प्रयासों में लगे हैं । अगले वर्ष अतुल गुप्ता चूँकि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट होंगे, इसलिए माना/समझा जा रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में वह ऐसी टीम चाहेंगे जो बिना किसी झगड़े-झंझट के अपना काम करे और प्रेसीडेंट के रूप में अतुल गुप्ता का नाम खराब न करे । यह मानने/समझने के चलते कयास यह लगाया जा रहा है कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों का चयन अतुल गुप्ता अपनी पसंद से करेंगे; और इसी कयास के कारण रीजनल काउंसिल के कई सदस्य अतुल गुप्ता की गुडबुक में आने/रहने की कोशिशों में जुटे हैं । अतुल गुप्ता के समर्थन के सहारे श्वेता पाठक के चेयरपरसन बनने की चर्चा, इसे चाहें दूसरों ने छेड़ा हो और या इसे श्वेता पाठक की तरफ से हवा मिली हो, को लोगों के बीच ऐसी ही कोशिश के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
गौर करने की बात लेकिन यह भी है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्यों के बीच बनी खेमेबाजी को देखते हुए कई लोगों को लगता है कि अगले वर्ष के लिए पॉवर ग्रुप के सदस्यों को राजी करना मेंढकों को तराजु में तौलने जैसा काम होगा । यह इसलिए भी होगा क्योंकि जो छोटी छोटी खेमेबाजियाँ बनी हुई हैं, उनके बीच आपस में बैर के संबंध ज्यादा हैं । 'ए' को 'बी' के साथ नहीं बैठना है, वह 'सी' के साथ मिलकर 'डी' को जोड़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन 'डी' को 'सी' फूटी आँख नहीं भाता है और वह 'बी' के साथ मिलकर 'ए' को पटाने में लगा है - ऐसे में कोई किसी से पटता दिख नहीं रहा है । रतन सिंह यादव काफी समय से दावा कर रहे हैं कि वह काउंसिल सदस्यों से बात कर रहे हैं और कामकाज को पटरी पर लाने की कोशिश में जुटे हैं । उनके इस दावे की लेकिन एक मौके पर काउंसिल सदस्य अविनाश गुप्ता ने यह कहते/बताते हुए पोल खोल दी कि उन्होंने उनसे तो कभी बात नहीं की; तब रतन सिंह यादव को सफाई देनी पड़ी कि अभी वह (निलंबित) पदाधिकारियों से बात कर रहे हैं, बाकी सदस्यों से बाद में बात करेंगे । खासी मशक्कत के बाद मीटिंग तय भी हुई, लेकिन (निलंबित) पदाधिकारियों ने मीटिंग में साथ बैठने से ही इंकार कर दिया - और मामला जहाँ का तहाँ ही बना रह गया ।
गौरव गर्ग एक अलग ही राग छेड़ चुके हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मौजूदा शर्मनाक दशा के लिए वह चारों (निलंबित) पदाधिकारियों की हरकतों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । इस पर लोगों का पूछना है कि चारों पदाधिकारी जब हरकतें कर रहे थे, तब गौरव गर्ग के मुँह में छाले हो रखे थे क्या - जो उस समय वह कुछ न बोल पाए । गौरव गर्ग ने एक मौके पर हालाँकि धरने की घोषणा की थे, लेकिन उनकी वह घोषणा तमाशे से ज्यादा कुछ न हुई । गौरव गर्ग एक मौके पर श्वेता पाठक के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करके भी विवाद खड़ा कर चुके हैं । इसी के चलते रतन सिंह यादव कई मौकों पर गौरव गर्ग को सलाह दे चुके हैं कि तुम यदि अपना मुँह बंद रखोगे तो काउंसिल में हालात सामान्य बनाने में बड़ा योगदान दोगे । मजे की बात यह है कि इसी तरह की सलाह कई लोग रतन सिंह यादव को देते रहते हैं । रतन सिंह यादव औरों की नहीं सुनते, गौरव गर्ग उनकी नहीं सुनते । लोगों का कहना है कि अपने को सक्रिय दिखा कर यह दोनों दरसअल अगले वर्ष के पॉवर ग्रुप में अपनी जगह बनाने की जुगाड़ में हैं । इस समय लेकिन नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सत्ता-संघर्ष में अतुल गुप्ता के भाव ऊँचे हैं; सत्ता के आकाँक्षी किसी न किसी बहाने और तरीके से अतुल गुप्ता के साथ नजदीकी बनाने और 'दिखाने' में लगे हैं । अतुल गुप्ता के साथ नजदीकी बनाने और 'दिखाने' के खेल में इस समय श्वेता पाठक का पलड़ा भारी लग रहा है; कुछेक लोगों के अनुसार, उसे भारी 'दिखाया' जा रहा है - अब सच चाहें जो हो, 'दिखते' हुए परिदृश्य ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्यों और उनकी राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के बीच हलचल तो मचा ही दी है ।

Friday, December 27, 2019

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट का वाइस प्रेसीडेंट बनने के लिए जय छैरा ने प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ के सूरत में आने को लेकर लगाया 'कर्फ्यू' उठाया और इस तरह प्रेसिडेंट बनने के ग्यारहवें महीने में प्रफुल्ल छाजेड़ का सूरत में सम्मान होने का मौका बना

सूरत । जय छैरा की 'कृपा' से इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ को सूरत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच होने/पहुँचने का मौका आखिरकार मिल रहा है । इस 'कृपा' के पीछे जय छैरा की वाइस प्रेसीडेंट पद की उम्मीदवारी से जुड़ी 'मजबूरी' को देखा/समझा जा रहा है । जय छैरा की इस मजबूरी के चलते सूरत ब्रांच के पदाधिकारियों को अब, जब प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए प्रेसीडेंट पद की कुर्सी से उतरने का समय नजदीक आ गया है, ध्यान आया कि उन्हें प्रेसीडेंट के रूप में प्रफुल्ल छाजेड़ का सम्मान कर लेना चाहिए । उल्लेखनीय है कि सूरत ब्रांच वेस्टर्न रीजन में इंस्टीट्यूट की एक बड़ी और प्रमुख ब्रांच है, जिस नाते ब्रांच के सदस्यों व पदाधिकारियों के साथ-साथ प्रत्येक प्रेसीडेंट की भी इच्छा होती है कि वह सूरत अवश्य ही आए । प्रफुल्ल छाजेड़ तो इंस्टीट्यूट में वेस्टर्न रीजन का ही प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन प्रेसीडेंट के रूप में उन्हें सूरत आने का 'मौका' नहीं मिला । यहाँ तक कि वाइस प्रेसीडेंट के रूप में भी उन्हें यह मौका नहीं मिला था । इसके लिए सेंट्रल काउंसिल सदस्य जय छैरा को जिम्मेदार माना/पहचाना जाता है । दरअसल सूरत में ही नहीं, वेस्टर्न रीजन में चर्चा यह है कि सूरत में कौन आयेगा, या नहीं आएगा - इसका फैसला जय छैरा ही करते हैं । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य जय छैरा सूरत को अपनी कोंस्टीटुयेंसी के रूप में देखते/समझते हैं, और यह पसंद नहीं करते हैं कि इंस्टीट्यूट की राजनीति से जुड़े दूसरे नेता सूरत में नजर आएँ; इसके लिए वह सूरत ब्रांच के पदाधिकारियों पर भी दबाव बना कर रखते हैं । यही कारण है कि सूरत में होने वाले आयोजनों में वेस्टर्न रीजन के 'छोटे' 'बड़े' सदस्यों की उपस्थिति काफी कम रह गई है । प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ तो जय छैरा के राजनीतिक खेमेबाजी वाले विरोध के झंझट भी हैं, जिनके कारण प्रेसीडेंट होने के बावजूद प्रफुल्ल छाजेड़ को जय छैरा ने सूरत आने का मौका नहीं मिलने दिया ।
वेस्टर्न रीजन की राजनीतिक खेमेबाजी में जय छैरा को पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल के नजदीकियों में देखा/पहचाना जाता है, जिनका प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ छत्तीस का रिश्ता देखा/समझा जाता है । माना जाता है कि इसी 'रिश्ते' को निभाते हुए जय छैरा ने प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए सूरत आने का मौका नहीं बनने दिया । सिर्फ इतना ही नहीं, सूरत ब्रांच की नई बिल्डिंग के उद्घाटन का मौका प्रफुल्ल छाजेड़ से 'छीनने' के लिए बिल्डिंग कमेटी के चेयरमैन के रूप में जय छैरा ने पिछले वर्ष ही आधी-अधूरी बिल्डिंग का उद्घाटन तत्कालीन प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता से करवा दिया था । नवीन गुप्ता के पास सूरत आने का समय नहीं था, लेकिन जय छैरा ने आनन-फानन में लगभग गुपचुप तरीके से बिल्डिंग का ई-उद्घाटन करवा दिया था । मजे की बात यह है कि पिछले वर्ष उद्घाटित हुई बिल्डिंग का काम अभी तक भी पूरा नहीं हुआ है और सूरत ब्रांच अभी भी करीब दो लाख रुपए प्रति माह के किराए वाली बिल्डिंग में ही चल रही है । यह किस्सा जय छैरा की प्रशासनिक क्षमताओं पर तो सवाल खड़े करता ही है, साथ ही यह भी बताता/दिखाता है कि जय छैरा राजनीतिक खेमेबाजी में विरोध के उस स्तर तक भी पहुँच जाते हैं, जहाँ प्रशासनिक फैसले भी मजाक बन कर रह जाते हैं । सूरत ब्रांच की अपनी बिल्डिंग का उद्घाटन करने का मौका वेस्टर्न रीजन का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रफुल्ल छाजेड़ को न मिले, इसके लिए मनमाने व गुपचुप तरीके से, चलताऊ रूप में नवीन गुप्ता से आधी-अधूरी बिल्डिंग का ई-उद्घाटन करवा कर जय छैरा ने आखिर अपनी किस 'समझ' का परिचय दिया है ?
जय छैरा की उक्त समझ लेकिन अब वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव के चलते 'ढीली' पड़ रही है । माना जा रहा है कि इसीलिए जय छैरा को प्रफुल्ल छाजेड़ का सूरत ब्रांच में सम्मान करवाना जरूरी लगा है । जय छैरा के नजदीकियों के अनुसार, जय छैरा को यह उम्मीद तो नहीं है कि सूरत ब्रांच में सम्मान हो जाने के बाद प्रफुल्ल छाजेड़ वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने लगेंगे, लेकिन उन्हें यह उम्मीद जरूर है कि इसके बाद वेस्टर्न रीजन के वोटरों के बीच उनके विरोध की तल्खी कुछ कम जरूर हो जायेगी । जय छैरा ने दरअसल अपने रवैये और व्यवहार से वेस्टर्न रीजन के नेताओं के बीच अपने लिए विरोध का खासा घना माहौल बनाया हुआ है; उनके लिए बदकिस्मती की बात यह भी है कि उत्तम अग्रवाल खेमे में भी उनकी कोई अच्छी स्थिति नहीं है । जय छैरा ने वाइस प्रेसीडेंट पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए इसीलिए दूसरे रीजंस के वोटरों पर ध्यान देना शुरू किया है और उन्हें पटाने की मुहिम में वह जुटे हैं । अभी हाल ही में सूरत में हुई नेशनल कॉन्फ्रेंस में कॉन्फ्रेंस चेयरमैन के रूप में उन्होंने अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से वेस्टर्न रीजन की बजाये दूसरे रीजंस के कुछेक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों - देवाशीष मित्रा, चनरजोत सिंह नंदा, प्रमोद जैन को बुलाया । वेस्टर्न रीजन से एक अकेले अनिकेत तलति के पिता पूर्व प्रेसीडेंट सुनील तलति को उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस में बुलाया । इससे पहले एक आयोजन में मौजूदा वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता भी बुलाए जा चुके हैं । वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में जय छैरा की क्या स्थिति बनेगी, यह तो आगे आने/होने वाली 'घटनाओं' पर निर्भर करेगा - अभी लेकिन जय छैरा की उम्मीदवारी के कारण प्रफुल्ल छाजेड़ को सूरत में आने का जो मौका मिला है, वह 'बड़ी बात' है । 

Sunday, December 22, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में पिछले रोटरी वर्ष में सुभाष जैन द्वारा उद्घाटित की जा चुकी डेंटल चेकअप वैन का दोबारा उद्घाटन करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता ने धोखे, ठगी व बेईमानी का ऐसा रिकॉर्ड बनाया है, जिसने रोटरी के आदर्शों व लक्ष्यों का ही मजाक बना दिया है

नोएडा । रोटरी क्लब नोएडा द्वारा डेंटल चेकअप वैन का उद्घाटन करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता ने फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी से रोटरी करने का एक और सुबूत प्रस्तुत किया है । रोटरी क्लब नोएडा के ही कुछेक सदस्यों ने आरोप लगाया है कि दीपक गुप्ता ने क्लब के पदाधिकारियों के साथ षड्यंत्र करके पिछले रोटरी वर्ष में उद्घाटित वैन का दोबारा उद्घाटन कर लिया है और इस तरह अपनी उपलब्धि का झूठा गुणगान कर लिया है । उल्लेखनीय है कि जीएमएल के नवंबर अंक में पृष्ठ चार पर प्रकाशित एक विस्तृत रिपोर्ट में दीपक गुप्ता द्वारा उद्घाटित डेंटल चेकअप वैन के बारे में जानकारी दी गई है, जिसमें बताया गया है कि दीपक गुप्ता ने 17 नवंबर को वैन का उद्घाटन किया है । इस सूचना के साथ तस्वीरें भी प्रकाशित हैं, जिनमें दीपक गुप्ता माला पहने खड़े दिख रहे हैं । उक्त तस्वीरों का स्क्रीन शॉट यह है :


मजे की बात यह है कि ग्लोबल ग्रांट के तहत तैयार हुई इस डेंटल चेकअप वैन का उद्घाटन पिछले रोटरी वर्ष की 28 जून को ही हो चुका था । क्लब के सदस्यों द्वारा उपलब्ध करवाए गए उस कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र से इस बात की पुष्टि भी होती है । 28 जून के कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र की फोटो यह है :


उक्त कार्यक्रम की कुछेक तस्वीरें सोशल मीडिया में भी देखी गई थीं । उन्हीं तस्वीरों में कुछेक तस्वीरों का एक कोलाज यह है :


दिलचस्प बात यह है कि वैन पर 28 जून 2019 को सुभाष जैन द्वारा उद्घाटन करने की सूचना प्रकाशित है, जिसे इस तस्वीर में देखा जा सकता है :



लेकिन फिर भी दीपक गुप्ता ने उक्त वैन का 17 नवंबर को दोबारा उद्घाटन कर दिया और इसे जीएमएल में अपनी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत कर दिया । दीपक गुप्ता ने अपने गवर्नर वर्ष में धोखे, ठगी और बेईमानी के तमाम रिकॉर्ड बनाये हैं । एक मामले में तो देश की एक प्रमुख डांस परफॉर्मेंस व प्रोडक्शन कंपनी डांस स्मिथ ने दीपक गुप्ता और उनकी पत्नी रीना गुप्ता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की हुई है । लेकिन पाँच महीने के अंदर ही रोटरी क्लब नोएडा की डेंटल चेकअप वैन का दोबारा उद्घाटन करके दीपक गुप्ता ने धोखे, ठगी व बेईमानी का ऐसा रिकॉर्ड बनाया है, जिसने रोटरी के आदर्शों व लक्ष्यों का ही मजाक बना दिया है ।

Saturday, December 21, 2019

रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट के प्रमोशन के लिए बुलाई गई मीटिंग में अपनी राजनीति करते हुए अनूप मित्तल के खिलाफ मोर्चा खोलने की विनोद बंसल की कोशिश को अपने साथी गवर्नर्स को बेइज्जत करते रहने की उनकी प्रवृत्ति के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है

नई दिल्ली । रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट के प्रमोशन के लिए डिस्ट्रिक्ट्स की प्रमोशन कमेटी के पदाधिकारियों की रोटरी इंटरनेशनल के नई दिल्ली स्थित साउथ एशिया ऑफिस में हुई मीटिंग में विनोद बंसल ने जिस तरह से समिट के प्रमोशन की बजाये इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने का काम किया, उसकी चर्चा ने विनोद बंसल के लिए खासी फजीहत वाली स्थिति पैदा कर दी है । इस चर्चा ने उक्त मीटिंग में न पहुँचने वाले डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों को यह कहने का भी मौका दिया है कि अच्छा हुआ कि वह मीटिंग में नहीं गए, अन्यथा उनके समय और पैसे की बर्बादी ही होती । कई लोग कहने भी लगे हैं कि विनोद बंसल रोटरी के काम के बहाने से लोगों से मिलते-जुलते हैं और मीटिंग बुलाते/करते हैं, लेकिन रोटरी के काम की बातें कम करते हैं और अपनी राजनीति की बातें ज्यादा करते हैं । उक्त मीटिंग में आमंत्रित किए गए कुछेक लोगों ने कहा भी कि वह तो इसीलिए मीटिंग में नहीं गए । उल्लेखनीय है कि उक्त मीटिंग के लिए नौ डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों को बुलाया गया था, जिनमें से कुल चार डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारी ही मीटिंग में पहुँचे । इनमें भी विनोद बंसल के खुद के डिस्ट्रिक्ट के तो चार पदाधिकारी थे, जबकि बाकी डिस्ट्रिक्ट्स से एक एक पदाधिकारी ही उपस्थित था । इस मीटिंग में अपनी उम्मीदवारी की स्थिति पर बात करते हुए विनोद बंसल ने अपने डिस्ट्रिक्ट के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अनूप मित्तल की यह कहते हुए आलोचना भी कि उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में वैसे तो उनकी स्थिति अच्छी है, एक सिर्फ अनूप मित्तल ही उनके खिलाफ बातें करते रहते हैं ।
मजे की बात यह रही कि विनोद बंसल के इस दावे को झूठ बोल कर लोगों को भरमाने/बरगलाने के एक प्रयास के रूप में ही देखा/पहचाना गया है । डिस्ट्रिक्ट में विनोद बंसल की स्थिति कैसी है, यह इसी तथ्य से जाहिर है कि डिस्ट्रिक्ट में उनके अलावा रंजन ढींगरा तथा दीपक कपूर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार हैं; इन दोनों का भी उम्मीदवार होना क्या विनोद बंसल की स्थिति के अच्छे होने का सुबूत है ? इन दोनों को उम्मीदवार क्या अनूप मित्तल ने बनाया है ? यदि ऐसा नहीं है - और जो नहीं ही है - तो डिस्ट्रिक्ट में सिर्फ अनूप मित्तल को ही विनोद बंसल अपने विरोधी के रूप में क्यों देखते/बताते हैं ? अभी हाल ही में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता के सम्मान में हुए डिस्ट्रिक्ट समारोह में चेयरमैन होने के बावजूद विनोद बंसल को अलग-थलग रखा गया, जिससे नाराज होकर समारोह से संबद्ध एक मीटिंग का विनोद बंसल ने 'ऑय एम् नॉट इंटरेस्टिंग' कहते हुए बहिष्कार किया; समारोह की तैयारी कमेटी में कन्वेनर रंजन ढींगरा थे, एडवाइजर मंजीत साहनी तथा सुरेश जैन थे और को-चेयरमैन रमेश चंद्र थे - तब फिर उक्त कार्यक्रम की तैयारी से अलग-थलग किए जाने के लिए अनूप मित्तल कैसे जिम्मेदार हुए ? विनोद बंसल की निगाह में अनूप मित्तल क्या डिस्ट्रिक्ट के इतने बड़े नेता हो गए हैं कि डिस्ट्रिक्ट और डिस्ट्रिक्ट के सभी बड़े पदाधिकारी व नेता उनके इशारों पर चल रहे हैं ? अपनी हर मुसीबत और फजीहत के लिए अनूप मित्तल को जिम्मेदार ठहराने की विनोद बंसल की कोशिशों को डिस्ट्रिक्ट में हमेशा ही किसी एक को निशाना बनाने की विनोद बंसल की पुरानी प्रवृत्ति के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
डिस्ट्रिक्ट में लोगों को याद है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में पीटी प्रभाकर के साथ तिकड़म करके और डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों व नेताओं को अँधेरे में रख कर विनोद बंसल ने उनकी एक इंस्टीट्यूट का चेयरमैन कर दिल्ली में इंस्टीट्यूट करने की योजना के फेल हो जाने के लिए विनोद बंसल ने तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना को लेकर रोना-धोना मचाया था । विनय भाटिया के चुनाव में सक्रियता दिखा कर 'बेईमानी' करने के मामले में रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड में 'चुनावी अपराधी' के रूप में चिन्हित होने के मामले में विनोद बंसल ने आशीष घोष को लपेटे में लिया था । विनोद बंसल की यह पुरानी प्रवृत्ति है कि वह स्वार्थपूर्ण हरकतें करेंगे, तिकड़में करेंगे और उनके चलते जब मुसीबत में फँसेंगे और फजीहत का शिकार होंगे तो किसी दूसरे को जिम्मेदार ठहरा देंगे । उनकी इस प्रवृत्ति का शिकार मंजीत साहनी, अशोक घोष, राजेश बत्रा जैसे वरिष्ठ पूर्व गवर्नर तक हो चुके हैं । विनोद बंसल की इस प्रवृत्ति के नए शिकार अनूप मित्तल हैं । विनोद बंसल किस तरह से अपने साथी पूर्व गवर्नर्स को बेइज्जत करते हैं, इसका ताजा उदाहरण पूर्व गवर्नर सुधीर मंगला के साथ किए जाने वाले उनके व्यवहार में देखा/पहचाना/समझा जा सकता है । उल्लेखनीय है कि सुधीर मंगला को विनोद बंसल ने ही सेन्टेंनियल समिट के लिए डिस्ट्रिक्ट की प्रमोशन कमेटी का चेयरमैन बनाया है; और कमेटी का काम शुरू होने से पहले ही उन्होंने लोगों के बीच रोना शुरू कर दिया है कि सुधीर मंगला तो कुछ करते ही नहीं हैं, और वह तो किसी लायक ही नहीं हैं । सुधीर मंगला को विनोद बंसल कई वर्षों से जानते/पहचानते हैं, कुछ वर्ष पहले तक दोनों एक ही क्लब के सदस्य थे; इस नाते उम्मीद कर सकते हैं कि विनोद बंसल जानते/समझते होंगे कि सुधीर मंगला किस लायक हैं; यह जानते/समझते हुए ही विनोद बंसल ने उन्हें प्रमोशन कमेटी का चेयरमैन बनाया और साथ ही साथ यह कहना/बताना शुरू कर दिया कि सुधीर मंगला तो किसी लायक ही नहीं हैं । दरअसल इसी तरह के व्यवहार व रवैये के चलते विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को अपने खिलाफ किया हुआ है; लेकिन जाहिर वह यह करते हैं जैसे डिस्ट्रिक्ट में सभी लोग उनके साथ हैं, सिर्फ दो/एक लोग ही उनके खिलाफ हैं; समयानुसार इन दो/एक लोगों का चेहरा बदलता रहता है - कभी यह चेहरा संजय खन्ना का हो जाता है, तो कभी आशीष घोष का, कभी मंजीत साहनी का, कभी अशोक घोष का, कभी राजेश बत्रा का, कभी रमेश चंद्र का, कभी सुरेश जैन का, कभी रंजन ढींगरा का - आजकल यह चेहरा अनूप मित्तल का है । देखना दिलचस्प होगा कि विनोद बंसल अगला नंबर किसका लगाते हैं ?

Wednesday, December 18, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3110 में होने वाले शेखर मेहता के सम्मान समारोह का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल की हरकतों के चलते मजाक तो पहले से ही बना हुआ है; अलीगढ़ में हिंसा के कारण लगे कर्फ्यू ने समारोह के 'होने' या 'न होने' को लेकर आशंका और पैदा कर दी है

अलीगढ़ । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता का कल शाम अलीगढ़ में होने वाला सम्मान समारोह 'होने' या 'न होने' को लेकर असमंजस में फँस गया है । दरअसल नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भड़की हिंसा के चलते अलीगढ़ में कर्फ्यू लगा है तथा सार्वजनिक कार्यक्रमों पर रोक लगी हुई है । प्रशासन का मानना है कि अराजक तत्त्व शहर में छिपे हुए हैं और वह सार्वजनिक कार्यक्रमों की आड़ में शहर में अशांति फैला कर अपने मंसूबे पूरे करने की ताक में है । ऐसे में, कई रोटेरियंस का सुझाव है कि 19 दिसंबर को होने वाला शेखर मेहता का सम्मान समारोह रद्द कर देना चाहिए । समारोह के कन्वेनर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल लेकिन समारोह करने की जिद पर अड़े हुए हैं; उनका कहना है कि उक्त समारोह एक होटल के अंदर होना है और इसकी वजह से शहर की शांति भंग होने का कोई खतरा नहीं है । समारोह रद्द करने का सुझाव देने वाले रोटेरियंस का कहना लेकिन यह है कि मुकेश सिंघल के तर्क अपनी जगह उचित हैं, लेकिन शहर में जिस तरह का माहौल है उसे देखते हुए किसी भी तरह की अनहोनी से निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता है और यदि कुछ गड़बड़ हुई तो यह रोटरी के लिए बहुत ही बुरा अनुभव होगा - इसलिए किसी भी तरह का खतरा लेने की जरूरत नहीं है, तब तो बिलकुल भी नहीं जब शेखर मेहता भी कार्यक्रम से जुड़े हों; ऐसे में शहर व रोटरी की भलाई के लिए उक्त समारोह को रद्द ही कर देना चाहिए ।
मुकेश सिंघल के लिए मुसीबत की बात यह भी हुई है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक रोटेरियंस ने शेखर मेहता से संपर्क कर उन्हें शहर की स्थिति से अवगत करवाया है और समारोह में आने को लेकर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया है । यह सब सुन/जान कर मुकेश सिंघल ने आरोप लगाया है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक बड़े पदाधिकारी व नेता 19 दिसंबर के कार्यक्रम को नहीं होने देना चाहते हैं और इसके लिए शहर में बने तनाव को बढ़ाचढ़ा कर बताते हुए रोटेरियंस के बीच डर पैदा कर रहे हैं । मुकेश सिंघल के लिए राहत की बात यही है कि शेखर मेहता ने 19 दिसंबर की सुबह दिल्ली पहुँचने का अपना कार्यक्रम रद्द नहीं किया है और अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार वह 19 दिसंबर की सुबह दिल्ली पहुँच रहे हैं । दिल्ली में कोई शेखर मेहता को भड़का कर अलीगढ़ आने से रोक न दे, इसलिए मुकेश सिंघल ने शेखर मेहता को दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरते ही 'पकड़' लेने का कार्यक्रम बनाया है । मुकेश सिंघल के नजदीकियों के अनुसार, मुकेश सिंघल ने योजना बनाई है कि वह शेखर मेहता को दिल्ली में एक क्षण के लिए भी अकेला नहीं छोड़ेंगे, ताकि किसी को भी शेखर मेहता को बरगलाने व भड़काने का मौका न मिल सके और वह शेखर मेहता को अलीगढ़ ले आने में सफल हो जाएँ । मुकेश सिंघल की इस योजना को कई लोगों ने उनका बचकानापन भी कहा/बताया है । उनका कहना है कि शेखर मेहता देश में घट रही घटनाओं से और अलीगढ़ की स्थिति से क्या परिचित नहीं होंगे और अपने विवेक से फैसला करने में सक्षम नहीं होंगे क्या ? उनका कहना है कि मुकेश सिंघल एक जिम्मेदार नागरिक तथा जिम्मेदार रोटेरियन के रूप में शेखर मेहता को फैसला करने दें और समारोह को लेकर अपनी जिद थोपने की कोशिश न करें तथा समारोह को लेकर फालतू की नाटकबाजी न करें ।
मुकेश सिंघल के लिए परेशानी की बात यह भी है कि कई रोटेरियंस ने समारोह होने की स्थिति में शेखर मेहता से उनकी कारस्तानियों की शिकायत करने की तैयारी भी कर रखी है । दरअसल शेखर मेहता के सम्मान समारोह की तैयारी को लेकर मुकेश सिंघल ने जिस तरह की तमाशाबाजी की है, उसने डिस्ट्रिक्ट में खासा विवाद खड़ा किया हुआ है । मुकेश सिंघल ने पहले तो खुद को समारोह का कन्वेनर तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किशोर कातरू को चेयरमैन बना कर प्रोटोकॉल का मजाक बनाया; फिर नवनिर्वाचित डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पवन अग्रवाल का नाम निमंत्रण पर न छापने को लेकर तथा रजिस्ट्रेशन राशि को लेकर विवाद हुआ - खासी फजीहत करवाने के बाद मुकेश सिंघल रजिस्ट्रेशन राशि कम करने तथा पवन अग्रवाल का नाम निमंत्रण पत्र में छापने के लिए मजबूर हुए । नया तमाशा मुकेश सिंघल ने यह किया है कि समारोह के निमंत्रण पत्र में समारोह के आयोजक के रूप में 'अलीगढ़ के सभी रोटेरियंस' तथा 'डिस्ट्रिक्ट 3110' को बताया है; जिससे ऐसा लगता है जैसे कि वह 'अलीगढ़ के सभी रोटेरियंस' को डिस्ट्रिक्ट 3110 से अलग मानते/समझते हैं । मुकेश सिंघल की इस तरह की हरकतों ने शेखर मेहता के सम्मान में होने वाले समारोह का मजाक तो पहले से ही बनाया हुआ है; अलीगढ़ में हिंसा के कारण फैली अशांति ने समारोह के 'होने' या 'न होने' को लेकर आशंका और पैदा कर दी है ।

Monday, December 16, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन के रूप में प्रियतोष गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कोशिशें आलोचना व विरोध का कारण बन रही हैं

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन के रूप में प्रियतोष गुप्ता की भूमिका को लेकर आलोचना व विरोध की आवाजें उठने तथा तेज होने लगी हैं, और इन आवाजों की आँच ने प्रियतोष गुप्ता को उक्त बड़े पदाधिकारी के रूप में अपनी टीम में रखने का फैसला करने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता को भी अपनी ज़द में लेना शुरू कर दिया है । रोटरी के बड़े नेताओं व पदाधिकारियों तक डिस्ट्रिक्ट के आधिकारिक आयोजनों में प्रियतोष गुप्ता की अति-सक्रियता को लेकर शिकायतें पहुँचने लगी हैं । किसी को कोई शक नहीं है कि यह प्रियतोष गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार होने की वजह से ही हो रहा है । आरोप सुने/सुनाये जा रहे हैं कि प्रियतोष गुप्ता डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन पद का फायदा उठा कर अपनी उम्मीदवारी का प्रचार कर रहे हैं । 'पहले अंडा या पहले मुर्गी' की तर्ज पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह मजेदार बहस है कि प्रियतोष गुप्ता पहले  डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन बने या उम्मीदवार बने - दरअसल प्रियतोष गुप्ता के नजदीकियों व शुभचिंतकों का कहना है कि प्रियतोष गुप्ता तो डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन की जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रहे हैं, और ऐसा करते हुए वह यदि लोगों के सामने/बीच 'दिख' रहे हैं और इससे उन्हें उम्मीदवार के रूप में फायदा मिल रहा है तो इसमें आरोप वाली बात भला क्या है ?
डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर लोगों का कहना लेकिन यह है कि प्रियतोष गुप्ता डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन बने/बनाये ही इसलिए हैं, ताकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में उन्हें फायदा मिले । वह यदि उम्मीदवार नहीं 'होते', तो कदापि डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन नहीं बनते/बनाये जाते । इसलिए वह पहले उम्मीदवार बने और उम्मीदवार के रूप में फायदा उठा सकें, इसलिए डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन बने/बनाये गए । लोगों का कहना है कि जैसा कि नाम से जाहिर होता है, डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन के रूप में उनका काम डिस्ट्रिक्ट में व्यवस्था बनाये रखने के काम में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की मदद करने का है; लेकिन वह तरह तरह के बहाने से मंच पर आने/दिखने का तथा लोगों से मिलने/जुलने का मौका बना लेते हैं । लोगों को लगता है कि इससे प्रियतोष गुप्ता को दो फायदे एक साथ मिलते हैं - एक तो उन्हें डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी के रूप में लोगों के बीच दिखने तथा उनसे मिलने-जुलने के अवसर मिलते हैं, और दूसरा फायदा यह कि लोगों के बीच उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के उम्मीदवार के रूप में पहचान मिलने लगती है ।
प्रियतोष गुप्ता को मिलने वाले यह फायदे डिस्ट्रिक्ट के कई खास और आम लोगों को अलग अलग कारणों से खटक रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ी नेता प्रियतोष गुप्ता को मिलने वाले इन फायदों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता को 'घेरने' का मौका देख/पा रहे हैं । दरअसल इस नाते भी प्रियतोष गुप्ता को मिला डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन का पद तथा इस पद की आड़ में अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में उनके द्वारा चलाया जा रहा अभियान आलोचना व शिकायत का कारण बन रहा है । 

Tuesday, December 10, 2019

रोटरी इंस्टीट्यूट 2020 के ट्रेजरर पद पर रंजन ढींगरा की नियुक्ति के जरिये कमल सांघवी ने उनके साथ अपनी नजदीकी के किस्से सुना सुना कर लोगों को प्रभावित करने के विनोद बंसल के जुगाड़ को फेल किया और उनकी मुसीबतें बढ़ाईं 

नई दिल्ली । रंजन ढींगरा को अगले रोटरी वर्ष में कोच्चि में होने वाले रोटरी इंस्टीट्यूट का ट्रेजरर बना कर इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी ने विनोद बंसल को जोर का झटका दिया है । विनोद बंसल को उम्मीद थी और अपनी इस उम्मीद को कई मौकों पर उन्होंने दावे के साथ बताया/जताया भी है कि वर्ष 2020 के इंस्टीट्यूट के मुखिया के रूप में कमल सांघवी उन्हें खासी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी देंगे । दरअसल कमल सांघवी से मिलने वाली महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी को विनोद बंसल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए कमल सांघवी और शेखर मेहता के समर्थन के संकेत के रूप में 'दिखाने' की कोशिश करते रहे हैं । उल्लेखनीय है कि शेखर मेहता जब से इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी बने हैं, तभी से विनोद बंसल लोगों को बताने/जताने का उपक्रम कर रहे हैं कि शेखर मेहता इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में उनका समर्थन करेंगे और इस कारण से उनका इंटरनेशनल डायरेक्टर बनना पक्का है । कमल सांघवी को चूँकि शेखर मेहता के सबसे नजदीकी व विश्वासपात्र रोटेरियन के रूप में देखा/पहचाना जाता है, इसलिए कमल सांघवी के साथ अपने नजदीकी संबंधों को विनोद बंसल अपनी 'अतिरिक्त योग्यता' बताते रहे हैं और दावा करते रहे हैं कि शेखर मेहता के साथ-साथ चूँकि कमल सांघवी के साथ भी उनके खास संबंध रहे हैं, और वह चूँकि दोनों के काम आते रहे हैं, इसलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के मामले में उन्हें दोनों का ही समर्थन मिलेगा ।
शेखर मेहता और कमल सांघवी के नजदीकी तथा इन दोनों के नेतृत्व में होने वाली मीटिंग्स में शामिल रहे लोगों का कहना हालाँकि यह रहा है कि किसी भी मौके पर इन दोनों की तरफ से विनोद बंसल को कोई विशेष तवज्जो मिलती हुई नहीं दिखी है; बल्कि कुछेक मौकों पर तो ज्यादा ही स्मार्ट बनने/दिखने की विनोद बंसल की कोशिशों पर शेखर मेहता व कमल सांघवी को खिन्न होते तथा विनोद बंसल को झिड़कते हुए भी देखा गया है । विनोद बंसल के दावों के विपरीत, लोगों ने बल्कि कुछेक मौकों पर शेखर मेहता की तरफ से रंजन ढींगरा को खास महत्त्व मिलते देखा है । बातें बनाने और बातों को बढ़ा-चढ़ा कर बताने के मामले में रंजन ढींगरा चूँकि फिसड्डी हैं, और विनोद बंसल एक्सपर्ट हैं - इसलिए विनोद बंसल तरह तरह से लोगों को यह बताने/जताने में लगे रहे हैं कि शेखर मेहता तथा कमल सांघवी की उन पर विशेष कृपा है । इस विशेष कृपा को साबित करने के लिए ही विनोद बंसल लगातार दावा करते रहे हैं कि कमल सांघवी के नेतृत्व में होने वाले वर्ष 2020 के इंस्टीट्यूट में उन्हें अवश्य ही महत्त्वपूर्ण पद मिलेगा । कमल सांघवी ने लेकिन इंस्टीट्यूट के चार महत्त्वपूर्ण पदों में से एक पद रंजन ढींगरा को दे कर विनोद बंसल की उम्मीदों को ध्वस्त कर दिया है और उन्हें जोर का झटका दिया है ।
विनोद बंसल के लिए झटके की बात यह नहीं है कि कमल सांघवी ने उन्हें महत्त्वपूर्ण पद नहीं दिया है; उनके लिए झटके की बात यह है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के एक अन्य उम्मीदवार के रूप में रंजन ढींगरा को महत्त्वपूर्ण पद मिल गया है । इसके चलते विनोद बंसल के लिए शेखर मेहता तथा कमल सांघवी के साथ अपनी नजदीकी के किस्से सुना सुना कर लोगों को प्रभावित करने का मौका छिन गया है । इस कारण से विनोद बंसल के लिए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपने पक्ष में अभियान चलाना मुश्किल हो गया है । उनके लिए मुसीबत व फजीहत की बात यह है कि अभी तक वह जिस 'आधार' पर विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों तथा प्रमुख लोगों को प्रभावित करने का जुगाड़ बनाये हुए थे, वह 'आधार' ही खिसक गया है और इसलिए अब उन्हें कोई नया जुगाड़ खोजना पड़ेगा । विनोद बंसल ने शेखर मेहता तथा कमल सांघवी के साथ अपनी नजदीकी में सहारा दरअसल इसलिए खोजा/बनाया था, क्योंकि उन्हें अपने डिस्ट्रिक्ट में अपने साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का कोई समर्थन नहीं है और उन्हें उनके संगठित विरोध व उपेक्षा का लगातार सामना करना पड़ रहा है । उनके डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3011 के राजनीतिक समीकरणों को जानने/पहचानने वाले लोगों को लग रहा है कि रंजन ढींगरा को इंस्टीट्यूट का ट्रेजरर बनाए जाने से डिस्ट्रिक्ट में रंजन ढींगरा के लिए समर्थन और बढ़ेगा तथा ऐसे में डिस्ट्रिक्ट में विनोद बंसल अपने डिस्ट्रिक्ट में और अलग-थलग पड़ेंगे; और तब विनोद बंसल के लिए मुसीबतें और बढ़ेंगी ।

Monday, December 9, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन को इंदौर इंस्टीट्यूट में मिले पाँच अवॉर्ड उनके साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट का सम्मान बढ़ाने वाले साबित हुए हैं और यह तथ्य उन्हें पूर्व गवर्नर्स के बीच विशेष पहचान देता/दिलाता है

गाजियाबाद । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (आईपीडीजी) सुभाष जैन के कार्यकाल की उपलब्धियों व खूबियों को विभिन्न मौकों पर डिस्ट्रिक्ट के लोग तो याद करते ही रहते हैं, इंदौर में संपन्न हुए रोटरी जोन इंस्टीट्यूट में भी रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं के बीच उनके कामों तथा उनकी उपलब्धियों का विशेष रूप से गुणगान हुआ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन की पाँच उपलब्धियों को जोन में सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों के रूप में रेखांकित किया गया और उन्हें अवॉर्ड के लिए चुना गया । सुभाष जैन के कामों तथा उनकी उपलब्धियों के चलते डिस्ट्रिक्ट 3012 जोन में अकेला डिस्ट्रिक्ट बना/रहा जिसे पाँच महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अवॉर्ड मिला । सुभाष जैन डिस्ट्रिक्ट के पहले और अकेले पूर्व गवर्नर हैं, जिनके कार्यकाल को इतने अवॉर्ड एकसाथ मिले हैं । किसी भी डिस्ट्रिक्ट और उसके सदस्यों के लिए वास्तव में यह गर्व की बात होती है कि उसके गवर्नर को रोटरी के एक बड़े आयोजन में भूतपूर्व, मौजूदा व भावी पदाधिकारियों की मौजूदगी में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट उसके कार्यों के लिए सम्मानित करे और अवॉर्ड दे । इंदौर इंस्टीट्यूट में चार जोन - जोन 4, जोन 5, जोन 6 व जोन 7 - के पिछले/अगले पदाधिकारियों तथा बड़े पदाधिकारियों व नेताओं की मौजूदगी में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट मार्क डेनियल मलोनी द्वारा सुभाष जैन को अवॉर्ड देने का दृश्य डिस्ट्रिक्ट 3012 के सदस्यों के लिए निश्चित ही एक अविस्मरणीय दृश्य है ।
इससे भी 'बड़ा' और अविस्मरणीय दृश्य वह है, जिसमें अपने कार्यकाल को मिले पाँचों अवॉर्ड्स सुभाष जैन इंस्टीट्यूट के आयोजन स्थल पर अपनी कोर टीम के सदस्यों के साथ लिए हुए हैं । अपनी कोर टीम के सदस्यों को किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर द्वारा रोटरी के एक बड़े आयोजन में इस तरह का सम्मान देना भी रोटरी जगत की शायद पहली घटना होगी । सुभाष जैन का अपनी कोर टीम के सदस्यों के साथ जैसा संबंध है, और जो बार-बार दिखता भी रहता है - वह अपने आप में अनोखी बात है । किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का अपनी कोर टीम के सदस्यों के साथ ऐसा आत्मीय, गहरा, लगाव व संलग्नताभरा संबंध इससे पहले शायद ही कभी देखा गया हो । यहाँ तो ऐसे गवर्नर देखने को मिलते हैं, जिनकी कोर टीम के सदस्य उन्हें दो/तीन महीने भी नहीं झेल पाते हैं और जिनके व्यवहार व रवैये से तंग आकर उनकी कोर टीम के सदस्य इस्तीफा देकर उनसे अलग ही हो जाते हैं । दरअसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन यदि ऐसे उल्लेखनीय काम कर सकें हैं, जो डिस्ट्रिक्ट के सदस्यों की यादों में भी बस गए हैं और जो सुभाष जैन को जोन स्तर पर अवॉर्ड भी दिलवा सकें हैं - तो उसका एक कारण उनकी कोर टीम के सदस्यों की तरफ से उन्हें मिला सहयोग भी रहा है । ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है - सुभाष जैन को यदि अपनी कोर टीम के सदस्यों से अनुकरणीय सहयोग मिला, तो इसलिए भी कि सुभाष जैन ने उनके साथ पारदर्शिता रखी और उन्हें उचित सम्मान दिया ।
 डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन द्वारा किए गए कामों ने यदि डिस्ट्रिक्ट के सदस्यों से लेकर रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों तक को प्रभावित किया है, तो वास्तव में यह उनकी कार्यप्रणाली का भी नतीजा है । दरअसल अपनी कार्यप्रणाली के कारण ही सुभाष जैन रोटरी के मुख्य लक्ष्यों व उद्देश्यों पर अपना ध्यान केंद्रित कर सके और उल्लेखनीय रिकॉर्ड बना सके । रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने जोन में श्रेष्ठ काम करने के लिए तो सुभाष जैन को चुना ही, साथ ही इस बात के लिए भी सुभाष जैन की प्रशंसा की कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन ने रोटरी के बुनियादी कामों को प्राथमिकता दी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन ने पोलियो उन्मूलन के लिए रोटरी फाउंडेशन में धन जुटाने के, प्रिंट मीडिया में रोटरी की पब्लिक इमेज को लेकर, सदस्यता वृद्धि के साथ-साथ महिला सदस्यता वृद्धि के लिए जो काम किए और रिकॉर्ड बनाए - उसके लिए उन्हें अवॉर्ड के लिए चुना गया । सदस्यता वृद्धि में पर्सेंटेज की गणना में भी सुभाष जैन की उपलब्धी उल्लेखनीय पाई गई, और पाँच अवॉर्ड में से उनके एक अवॉर्ड का कारण बनी । सुभाष जैन को मिले पाँच अवॉर्ड उनका खुद का मान बढ़ाने के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट 3012 का सम्मान बढ़ाने वाले भी साबित हुए हैं और यह तथ्य सुभाष जैन को पूर्व गवर्नर्स के बीच विशेष पहचान देते/दिलाते हैं । 

Friday, December 6, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए पंकज बिजल्वान को कमजोर व कंजूस उम्मीदवार बता कर मुकेश गोयल खेमे ने मुकुल अग्रवाल को उम्मीदवार बनाया और पंकज बिजल्वान को धोखा दिया

गाजियाबाद । लायंस क्लब गाजियाबाद के पूर्व प्रेसीडेंट मुकुल अग्रवाल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बना कर मुकेश गोयल खेमे ने पंकज बिजल्वान से पीछा छुड़ाने की कार्रवाई शुरू कर दी है और इस तरह पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को तगड़ा झटका दिया है । मुकेश गोयल खेमे के दो पूर्व गवर्नर सदस्यों - अजय सिंघल तथा सुनील जैन ने मुकुल अग्रवाल को 'अपने' उम्मीदवार के रूप में संबोधित किया है तथा दावा किया है कि अनीता गुप्ता व खेमे के अन्य कुछेक पूर्व गवर्नर्स भी जल्दी ही मुकुल अग्रवाल को अपना समर्थन घोषित कर देंगे । खेमे के लोगों का ही कहना/बताना है कि इस नाटक के वास्तविक सूत्रधार मुकेश गोयल ही हैं, लेकिन अभी वह पर्दे के पीछे हैं ताकि वह पंकज बिजल्वान को धोखा देते हुए न 'दिखें' । खेमे के लोगों का कहना/बताना है कि पंकज बिजल्वान उम्मीदवार तो बन गए, लेकिन वह एक 'उम्मीदवार के रूप में' व्यवहार नहीं कर पाए और खर्चा करने में भी कंजूसी दिखाने लगे, जिस कारण वह मुकेश गोयल तथा दूसरे नेताओं की 'डिमांड्स' पूरी नहीं कर पाए । इसके चलते मुकेश गोयल व खेमे के दूसरे नेता कोई और उम्मीदवार खोज कर पंकज बिजल्वान से पीछा छुड़ाने की कोशिश में थे । मुकुल अग्रवाल की खोज के साथ उनकी कोशिश अंततः पूरी हुई है । पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी थोड़ा सम्मानजनक तरीके से वापस करने का मौका 'बनाने' के लिए मुकेश गोयल अभी मुकुल अग्रवाल की उम्मीदवारी से थोड़ा 'छिपे' हुए हैं । खेमे के लोगों के अनुसार, अजय सिंघल ने मुकेश गोयल से कहा है कि वह पंकज बिजल्वान से बात कर लें - उम्मीदवारी के चक्कर में पंकज बिजल्वान का अभी तक जो पैसा खर्च हुआ है, वह मुकुल अग्रवाल से उन्हें दिलवा दिया जायेगा ।
मुकुल अग्रवाल की अचानक प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दूसरे उम्मीदवार रजनीश गोयल को भी झटका दिया है । दरअसल लायंस क्लब गाजियाबाद के पदाधिकारियों व प्रमुख सदस्यों ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में उन्हें समर्थन देने की घोषणा की हुई थी; मुकुल अग्रवाल की उम्मीदवारी आने से वह घोषणा लेकिन अब सवालों के घेरे में आ गई है । हालाँकि इस समस्या को इसलिए ज्यादा गंभीर नहीं माना जा रहा है, क्योंकि लायंस क्लब गाजियाबाद के बारे में यह प्रसिद्धी है कि उसके वोट कभी भी एक तरफ नहीं पड़ते हैं और वह बँटते ही हैं । रजनीश गोयल और उनके समर्थकों को भी यह विश्वास नहीं था कि समर्थन घोषित होने के बाद भी उन्हें क्लब के सभी वोट मिल जायेंगे । इसलिए वोटों के मामले में रजनीश गोयल और उनके समर्थकों को ज्यादा नुकसान होने की चिंता नहीं हुई है । मुकुल अग्रवाल को उम्मीदवार बना कर मुकेश गोयल को सबसे बड़ा फायदा यह नजर आ रहा है कि इससे निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय मित्तल तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीवा अग्रवाल के सामने यह समस्या खड़ी होगी कि वह अपने क्लब के उम्मीदवार की बजाये दूसरे उम्मीदवार का समर्थन कैसे करें ? किंतु यह समस्या अन्य कई गवर्नर्स के साथ है । खुद मुकेश गोयल का अपने क्लब के पदाधिकारियों के साथ ऐसा झगड़ा है, कि अभी तक उनके क्लब का अधिष्ठापन समारोह ही नहीं हो सका है ।
इस तरह, लग यह रहा है कि मुकुल अग्रवाल की उम्मीदवारी के जरिये भी मुकेश गोयल खेमे को कोई फायदा नहीं होने जा रहा है । चुनावी लड़ाई के बीच में उम्मीदवार बदलने की कार्रवाई से बल्कि उनकी अपनी कमजोरी ही साबित हुई है । दरअसल लायन राजनीति में यह माना/समझा जाता है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव दो उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि दो खेमों के बीच होता है । बीच लड़ाई में उम्मीदवार बदलने से लोगों के बीच मुकेश गोयल खेमे की 'ताकत' को लेकर जो नकारात्मक संदेश गया है, पहले तो उन्हें उससे निपटना होगा और फिर मुकुल अग्रवाल को लेकर अपनी व्यूह रचना जमाने के लिए नए सिरे से उन्हें जुटना होगा । मुकेश गोयल खेमे के नेता पर्याप्त समर्थन न मिलने के लिए ठीकरा भले ही पंकज बिजल्वान के सिर फोड़ने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन वास्तव में इसके लिए पंकज बिजल्वान की बजाये खेमे के नेता जिम्मेदार हैं । ऐसे में सवाल यही है कि जो मुकेश गोयल और उनके खेमे के नेता पंकज बिजल्वान के लिए समर्थन नहीं जुटा पाए, वह मुकुल अग्रवाल के लिए कैसे जुटा लेंगे - पंकज बिजल्वान डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच पहचाने जाने लगे थे और उनके साथ फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्विनी भारद्वाज का समर्थन था; मुकुल अग्रवाल के मामले में तो ऐसी कोई पॉजिटिव बात भी नहीं है । मजे की बात यह भी है कि मुकेश गोयल तथा खेमे के दूसरे नेता पंकज बिजल्वान की जगह संजीव गुप्ता को पटाने में लगे थे, लेकिन संजीव गुप्ता उनकी बातों में नहीं आए और तब मुकुल अग्रवाल को उम्मीदवार बनाने के लिए वह मजबूर हुए । इसलिए लग रहा है कि उम्मीदवार बदलने की कार्रवाई से मुकेश गोयल खेमा अपने ही जाल में खुद फँस गया है । 

Thursday, December 5, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सत्ता के समर्थन के बावजूद प्रियतोष गुप्ता की पतली हालत तथा दूसरे संभावित उम्मीदवारों की कमजोरियों के बीच रमनीक तलवार को अपना मौका बनता दिख रहा है 

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में प्रियतोष गुप्ता को पहचान के संकट से जूझता देख रमनीक तलवार को अपनी उम्मीदवारी के लिए मौका बनता नजर आ रहा है, और उन्होंने इस मौके का राजनीतिक फायदा उठाने की तैयारी शुरू कर दी है । रमनीक तलवार के नजदीकियों का मानना और कहना है कि रमनीक तलवार को भी यह बात अच्छे से पता है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले रोटेरियंस के बीच उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव अभी नहीं है; लेकिन इस तथ्य से वह निराश इसलिए नहीं हैं क्योंकि हर संभावित उम्मीदवार की स्थिति उनके जैसी ही है - और इस बात ने उन्हें यकीन दिया/दिलाया है कि भले ही अभी हालात उनके अनुकूल नहीं हैं, लेकिन हालात को अनुकूल बनाया जा सकता है । रमनीक तलवार को यह यकीन प्रियतोष गुप्ता की स्थिति को देख/जान कर भी हुआ है । दरअसल संभावित उम्मीदवारों में प्रियतोष गुप्ता ही अकेले ऐसे उम्मीदवार हैं, जिन्हें सत्ता का समर्थन भी मिलता दिख रहा है और जिन्होंने अपनी तरफ से भी एक उम्मीदवार के रूप में गंभीरता से काम करना शुरू किया है; लेकिन इसके बावजूद वह अभी भी लोगों के बीच पहचान बनाने में असफल रहे हैं और हाल-फिलहाल में आयोजित हुए क्लब्स के आयोजनों में उन्हें अलग-थलग ही देखा/पाया गया है । 
प्रियतोष गुप्ता संभावित उम्मीदवारों में अकेले हैं, जिन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव करवाने वाले भावी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आलोक गुप्ता ने अपनी टीम में प्रमुख पद दिया है; और उसी प्रमुख पद के चलते प्रियतोष गुप्ता को आलोक गुप्ता के पेम वन तथा पेम टू में ऐसी भूमिकाएँ मिलीं, जिन्हें निभाते हुए उन्हें लोगों के बीच 'दिखने' का मौका मिला । किसी भी उम्मीदवार को ऐसे मौके बहुत से लाभ पहुँचाते हैं - एक बड़ा लाभ उसे यह मिलता है कि उसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का नजदीकी मान लिया जाता है और इस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ रहने वाले लोगों का समर्थन उसे खुद-ब-खुद मिल जाता है । प्रियतोष गुप्ता को भी यह लाभ मिलने का माहौल बना - लेकिन देखने में यह आ रहा है कि यह 'लाभ' ही प्रियतोष गुप्ता के लिए मुसीबत बन गया है । दरअसल प्रियतोष गुप्ता जैसे ही आलोक गुप्ता के उम्मीदवार के रूप में दिखना शुरू हुए, वैसे ही डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के दूसरे नेता प्रियतोष गुप्ता के खिलाफ हो गए नजर आ रहे हैं, जिनमें ऐसे नेता भी हैं जिन्हें पहले प्रियतोष गुप्ता के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । प्रियतोष गुप्ता के एक बड़े समर्थक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अशोक अग्रवाल तो इतना नाराज हुए हैं कि प्रियतोष गुप्ता को सबक सिखाने के लिए उन्होंने अपने क्लब के वरिष्ठ सदस्य सुरेंद्र शर्मा को ही उम्मीदवार बना दिया है । क्लब के सदस्यों का हालाँकि कहना है कि सुरेंद्र शर्मा उम्मीदवार बने नहीं रह पायेंगे और उनकी उम्मीदवारी तो अशोक अग्रवाल ने सिर्फ प्रियतोष गुप्ता को अपनी नाराजगी का अहसास करवाने के लिए प्रस्तुत करवाई है । 
रोटरी क्लब सोनीपत सिटी के चार्टर प्रेसीडेंट दीपक गुप्ता ने भी अपनी उम्मीदवारी के लिए माहौल देखना/बनाना शुरू किया है, लेकिन इसके साथ ही उनकी देख/रेख में बनने/चलने वाले रोटरी ब्लड बैंक से जुड़े मामले जिस तरह से सिर उठाने लगे हैं - उसके कारण अपनी उम्मीदवारी को बनाये रख पाना उनके लिए मुश्किल माना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि ब्लड बैंक के चक्कर में सतीश सिंघल ने जब से अपना गवर्नर पद खोया है, तभी से सोनीपत सिटी के ब्लड बैंक के कामकाज पर लोगों की पैनी नजर है, और कामकाज से जुड़े कई मामलों को संदेह की नजर से देखा जा रहा है । लोगों का मानना और कहना है कि ब्लड बैंक से जुड़े मामले जब आरोपों की शक्ल में उठेंगे, तब हर कोई दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन से बचने की कोशिश करेगा और तब दीपक गुप्ता के लिए उम्मीदवार बने रहना मुश्किल ही होगा । ऐसे में, रमनीक तलवार को लगता है कि प्रियतोष गुप्ता के मुकाबले दूसरे उम्मीदवार वही हो सकते हैं । दूसरे लोगों को भी लगता है कि रमनीक तलवार चूँकि कई एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के चुनाव अभियान से जुड़े रहे हैं, इसलिए चुनावी राजनीति के समीकरण बनाने का उन्हें अच्छा अनुभव है । लोगों को लगता है कि उन्हीं अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे संभावित उम्मीदवारों की कमजोरियाँ के बीच वह अपनी उम्मीदवारी के लिए मौका बना सकते हैं । लोगों की इस प्रतिक्रिया ने भी रमनीक तलवार को विश्वास दिलाया है कि अभी भले ही हालात उनके अनुकूल न हों, लेकिन जब वह चुनाव अभियान शुरू करेंगे तब हालात उनके अनुकूल होने लगेंगे और कई कारणों से उन्हें उन नेताओं का भी समर्थन मिलने लगेगा, जो अभी उनके साथ नहीं हैं । 

Tuesday, December 3, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अपने बदतमीजीपूर्ण व्यवहार के लिए माफी माँग कर पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल ने क्लब की अपनी सदस्यता को फिलहाल तो बचा लिया है, लेकिन देखने की बात होगी कि क्लब में वह कब तक रह पाते हैं ?

नई दिल्ली । इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने का ख्बाव देख रहे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल को अपने क्लब में अपनी सदस्यता बचाने के लिए आखिरकार माफी माँगने के लिए मजबूर होना पड़ा है । हालाँकि क्लब के कुछेक सदस्यों का ही कहना है कि रमेश अग्रवाल अभी भले ही क्लब से निकाले जाने से बच गए हैं, लेकिन ज्यादा समय तक क्लब में बने नहीं रह सकेंगे । इसके पीछे उनका तर्क है कि रमेश अग्रवाल अपनी बदतमीजियों से बाज आयेंगे नहीं और फिर फिर ऐसी हरकतें करेंगे कि क्लब से निकाले जाने के हालातों में फँसेंगे । एक मशहूर मुहावरे का उपयोग करते हुए कुछेक लोगों का कहना है कि जैसे कुत्ते की पूँछ को चाहें कितने भी दिन नली में डाले रखो, उसे सीधा नहीं किया जा सकता है; वैसे ही रमेश अग्रवाल को बदतमीजीपूर्ण हरकतें करने से नहीं रोका/सुधारा जा सकता है । इस बार रमेश अग्रवाल अपनी हरकतों को लेकर जिस तरह से क्लब के पदाधिकारियों के निशाने पर आए हैं तथा क्लब के सदस्यों के बीच अलग थलग पड़े है, और माफी माँगने के लिए मजबूर हुए हैं, उसके कारण क्लब के सदस्यों हौंसले भी बुलंद हुए हैं  उन्हें लगा है कि रमेश अग्रवाल की बदतमीजियों को चुपचाप बर्दाश्त करने की जरूरत नहीं है ।
उल्लेखनीय है कि अभी तक रमेश अग्रवाल क्लब के कुछेक सदस्यों को अपनी तरफ मिला कर क्लब के पदाधिकारियों पर दबाव बना लेते थे और बच जाते थे । इस बार भी रमेश अग्रवाल ने वैसी ही कोशिश तो की थी, किंतु उनकी कोशिश सफल नहीं हो सकी । दरअसल रमेश अग्रवाल की बदतमीजियों से क्लब के अधिकतर सदस्य परेशान हो चुके हैं और वह रमेश अग्रवाल की चालाकी को भी समझ चुके हैं, इसलिए इस बार क्लब के सदस्य उनके झाँसे में नहीं आए । रमेश अग्रवाल के खिलाफ कार्रवाई को लेकर इस बार क्लब में जो एकता बनी, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता से क्लब  पदाधिकारियों को धौंस दिलवा कर भी रमेश अग्रवाल बच सकने का जुगाड़ नहीं बना पाए । गौरतलब है कि रमेश अग्रवाल के एजेंट का काम करते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता ने क्लब के पदाधिकारियों को धमकी दी कि वह रमेश अग्रवाल के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते हैं, जिस पर क्लब के पदाधिकारियों की तरफ से दीपक गुप्ता को बता दिया गया कि उन्हें अपनी गवर्नरी पर ध्यान देना चाहिए और किसी क्लब के अंदरूनी मामले में जबर्दस्ती हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और वह जो भी करेंगे रोटरी इंटरनेशनल के नियमानुसार तथा व्यवस्थानुसार ही करेंगे ।
इससे रमेश अग्रवाल को समझ में आ गया कि इस बार उनके लिए बच पाना मुश्किल है; और तब वह खुशामद पर उतर आए । कुछेक लोगों ने बीचबचाव करने के फार्मूलों पर बात की, तो क्लब के पदाधिकारियों की तरफ से उन्हें साफ साफ बता दिया गया कि रमेश अग्रवाल को अपनी कारस्तानियों के लिए माफी तो माँगनी ही पड़ेगी - और लिखित में माँगनी पड़ेगी । 'मरता, क्या न करता' की तर्ज पर रमेश अग्रवाल लिखित में माफी माँगने के लिए तैयार हो गए । माफीनामे के लिए रमेश अग्रवाल और क्लब के पदाधिकारियों के बीच जो लिखित बयान तैयार होना था, उसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को भी शामिल कर लिया गया - ताकि रमेश अग्रवाल आगे कोई हरकत करें तो उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई में दीपक गुप्ता और या अन्य गवर्नर अनुचित हस्तक्षेप न कर सकें । दीपक गुप्ता के घर पर रमेश अग्रवाल और क्लब  पदाधिकारियों की बैठक हुई, माफीनामे का बयान तैयार हुआ, रमेश अग्रवाल तथा संबंधित अन्य लोगों के उस पर हस्ताक्षर हुए और इस तरह रमेश अग्रवाल की क्लब की सदस्यता बची । क्लब के ही सदस्यों का कहना है कि रमेश अग्रवाल की क्लब की सदस्यता फिलहाल तो बच गई है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि यह कब तक बची रह पाती है ?

Monday, December 2, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस से नवीन गुप्ता को अलग-थलग रखने/करने के लिए उनके नजदीकी, वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता को मौकापरस्त व अवसरवादी बताते हुए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के निवर्त्तमान प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता को मुंबई में होने वाली इंस्टीट्यूट की इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में कोई तवज्जो न मिलने के चलते इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता को खासी आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है । नवीन गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि अतुल गुप्ता को जब वाइस प्रेसीडेंट बनना था, तब तो वह नवीन गुप्ता के आसपास मँडराते रहते थे और तरह तरह से उन्हें खुश करने के प्रयासों में लगे रहते थे - लेकिन अतुल गुप्ता को अब इस बात की भी परवाह नहीं है कि इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे इंस्टीट्यूट के प्रमुख कार्यक्रम में वह नवीन गुप्ता की उपस्थिति को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी निभाएँ । नवीन गुप्ता के नजदीकियों की नाराजगी से बचने के लिए अतुल गुप्ता ने पहले तो प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की, लेकिन जब इस कोशिश से उन्हें अपना काम बनता हुआ दिखाई नहीं दिया - तो उन्होंने नवीन गुप्ता की कुछ न करने की प्रवृत्ति को जिम्मेदार बताना शुरू कर दिया है । उल्लेखनीय है कि 6 और 7 दिसंबर को मुंबई हो रही कॉन्फ्रेंस में इंस्टीट्यूट के 11 पूर्व प्रेसीडेंट्स वक्ताओं के रूप में शामिल हो रहे हैं । भावना दोषी, जयंत गोखले व पंकज जैन जैसे पूर्व काउंसिल सदस्यों को भी वक्ताओं के रूप में कॉन्फ्रेंस में शामिल होने का मौका मिल रहा है; लेकिन पिछले वर्ष ही प्रेसीडेंट रहे नवीन गुप्ता को कॉन्फ्रेंस में कोई भूमिका नहीं मिली है ।
नवीन गुप्ता को इस महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम से अलग-थलग रखने पर नवीन गुप्ता के नजदीकियों और शुभचिंतकों की नाराजगी दरअसल इसलिए और भड़की हुई है, क्योंकि नॉर्दर्न रीजन से अमरजीत चोपड़ा व वेद जैन उन 11 पूर्व प्रेसीडेंट्स में शामिल हैं जिन्हें वक्ता के रूप में कॉन्फ्रेंस में शामिल होने का मौका मिलेगा । नवीन गुप्ता के नजदीकियों व शुभचिंतकों की नाराजगी से बचने के लिए अतुल गुप्ता ने पहले प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ के सिर ठीकरा तो फोड़ा, लेकिन यह तरकीब उनके काम आई नहीं । अतुल गुप्ता ने नवीन गुप्ता के नजदीकियों व शुभचिंतकों को समझाने का प्रयास किया कि इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस का पूरा कार्यक्रम प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ ने डिजाईन किया है, और उन्होंने उनसे कोई सलाह नहीं ली है । अतुल गुप्ता का कहना है कि यदि उनसे सलाह ली जाती तो वह अवश्य ही नवीन भाई साहब को वक्ता बनवाते । नवीन गुप्ता के नजदीकी व शुभचिंतक लेकिन अतुल गुप्ता की इस सफाई से संतुष्ट नहीं हैं । उनका कहना है कि इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस की बागडोर भले ही प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ के हाथ में हो, लेकिन यदि अतुल गुप्ता दिलचस्पी लेते और कोशिश करते तो नवीन गुप्ता को इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में अवश्य ही वक्ता बनवा लेते ।
नवीन गुप्ता को इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस से दूर रखने के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ को जिम्मेदार ठहराकर अपने आप को 'बचाने' की कोशिश के फेल हो जाने के बाद अतुल गुप्ता ने घुमाफिरा कर नवीन गुप्ता को ही जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया है । अतुल गुप्ता का कहना है कि नवीन भाई साहब इंस्टीट्यूट की गतिविधियों में दिलचस्पी तो लेते नहीं हैं, और भूतपूर्व प्रेसीडेंट होते ही उन्होंने इंस्टीट्यूट की तरफ से पूरी तरह मुँह मोड़ लिया है, इसलिए इंस्टीट्यूट के कार्यक्रमों में उन्हें कोई बुलाना ही नहीं चाहता है । अतुल गुप्ता ने कुछेक लोगों को सफाई भी दी कि वह यदि कोशिश करके नवीन भाई साहब को वक्ता बनवा भी देते, तो भी कोई गारंटी नहीं थी कि वह कार्यक्रम में पहुँचते ही । अतुल गुप्ता का कहना है कि नवीन भाई साहब को यदि इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में सचमुच शामिल होना था, तो वह उनसे कहते - वह कोशिश करते । अतुल गुप्ता की बदकिस्मती है कि यह तर्क भी नवीन गुप्ता के नजदीकियों व शुभचिंतकों को संतुष्ट नहीं कर सका है; और वह इंस्टीट्यूट के इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम से नवीन गुप्ता को अलग-थलग रखने/करने के लिए लगातार अतुल गुप्ता को मौकापरस्त व अवसरवादी बताते हुए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं ।

Sunday, December 1, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में होने वाले शेखर मेहता के सम्मान समारोह में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा को पटा-पटू कर राजा साबू ने अपना काम तो बना लिया, लेकिन पूर्व गवर्नर कवल बेदी को फजीहत से बचाने के लिए कोई कोशिश नहीं की

चंडीगढ़ । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कवल बेदी डिस्ट्रिक्ट में होने वाले इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता के सम्मान-समारोह की तैयारी कमेटी के चेयरपरसन पद से हटाये जाने के कारण निराश और नाराज हैं । मजे की बात यह है कि अपनी निराशा व नाराजगी पर वह तो ज्यादा कुछ नहीं बोल रही हैं, लेकिन उनके साथ हमदर्दी रखने वाले लोग उन्हें चेयरपरसन के पद से हटाये जाने के लिए राजा साबू को कोस रहे हैं । उनका कहना है कि राजा साबू ने अपने स्वार्थ में डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे के नेताओं के साथ सौदा/समझौता कर लिया है, और अपने साथी गवर्नर्स के मान/अपमान व हितों की परवाह करना छोड़ दिया है । उल्लेखनीय है कि इससे पहले, पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मनप्रीत सिंह की तरफ से भी उस समय राजा साबू के लिए इसी तरह के विचार सुनने को मिले थे, जब कॉलिज ऑफ गवनर्स की मीटिंग में मनप्रीत सिंह को उक्त रकम वापस करने का फैसला सुनाया गया था - जो पिछले रोटरी वर्ष में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल के साथ मिलकर धोखाधड़ी से डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से उन्होंने निकाल ली थी । मनप्रीत सिंह तथा अन्य लोगों का मानना और कहना था कि राजा साबू की सहमति नहीं होती तो कॉलिज और गवर्नर्स की मीटिंग में मनप्रीत सिंह को झटका देने वाला फैसला न हो पाता । इस मामले में राजा साबू के रंग बदलने का 'सुबूत' यह भी है कि पिछले वर्ष मनप्रीत सिंह को डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से मोटी रकम दिए जाने वाले फैसले में भी राजा साबू की 'सहमति' थी, और अब उक्त रकम मनप्रीत सिंह से वापस माँगने वाले फैसले में भी राजा साबू की रजामंदी है । राजा साबू के नजदीकी रहे लोगों का ही मानना और कहना है कि अपने निजी स्वार्थ पूरे करने के चक्कर में राजा साबू सत्ता खेमे के पदाधिकारियों और नेताओं के सामने समर्पण कर रहे हैं और वर्षों से अपने साथी/सहयोगी रहे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को छोड़ते जा रहे हैं ।
राजा साबू के रंग बदलने के चलते कवल बेदी की होने वाली फजीहत का मामला खासा दिलचस्प है । उल्लेखनीय है कि राजा साबू ने अपनी पहल से शेखर मेहता से बात करके उनके सम्मान समारोह के लिए 2 नवंबर की तारिख तय की थी और चंडीगढ़ में होने वाले उस समारोह की जिम्मेदारी कवल बेदी को सौंप दी थी । उन्होंने कवल बेदी को समारोह की तैयारी कमेटी का चेयरपरसन बना दिया था । राजा साबू ने जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा को विश्वास में लिए बिना, मनमाने तरीके से शेखर मेहता के सम्मान समारोह का कार्यक्रम तय कर लिया, उसका जितेंद्र ढींगरा और उनके साथियों ने बुरा माना और साफ घोषणा कर दी कि उक्त समारोह राजा साबू ही कर लें, उनका उक्त समारोह से कोई मतलब नहीं है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अजय मदान, जो शेखर मेहता के प्रेसीडेंट वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होंगे, ने उक्त समारोह में शामिल होने में अपनी असमर्थता जता दी । सत्ता खेमे के पदाधिकारियों और नेताओं की इस प्रतिक्रिया ने राजा साबू को असमंजस में डाल दिया । सहयोगियों/साथियों ने हालाँकि राजा साबू को समझाया कि उन्हें किसी की परवाह नहीं करना चाहिए और 2 नवंबर को समारोह करना चाहिए । राजा साबू को लेकिन सत्ता खेमे के पदाधिकारियों से 'लाभ' लेने हैं, इसलिए वह उनके साथ कोई पंगा नहीं लेना चाहते हैं - और इसी कारण से सत्ता खेमे के पदाधिकारियों व नेताओं के सामने समर्पण करते हुए राजा साबू ने 2 नवंबर का कार्यक्रम रद्द कर दिया और सत्ता खेमे के नेताओं से कह दिया कि वह जब चाहें, तब शेखर मेहता का सम्मान समारोह कर लें । सत्ता खेमे के नेताओं ने 20 दिसंबर को शेखर मेहता का सम्मान समारोह करने का फैसला किया, और समारोह के लिए चंडीगढ़ की बजाये कुरुक्षेत्र को चुना ।
कवल बेदी को लेकिन जोर का झटका यह देख कर लगा कि 2 नवंबर के समारोह में तो वह तैयारी कमेटी की चेयरपरसन थीं, जबकि 20 दिसंबर के कार्यक्रम में उनका कहीं कोई नाम ही नहीं है । इस बात पर उन्हें जोर का झटका दरअसल यह जान कर लगा कि राजा साबू ने अपने घर पर शेखर मेहता को चायपान करवाने के लिए तो जितेंद्र ढींगरा को राजी कर लिया, लेकिन कवल बेदी के चेयरपरसन मामले में जितेंद्र ढींगरा से बात तक नहीं की । उल्लेखनीय है कि राजा साबू को बड़े पदाधिकारियों को अपने घर बुलाने का बड़ा शौक है । अभी तक तो उनका यह शौक बड़ी सहजता से पूरा होता रहा है, किंतु डिस्ट्रिक्ट में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद उनके लिए अपने इस शौक को पूरा करने के लिए सत्ताधारियों का सहयोग लेना जरूरी हुआ है । इसीलिए कुरुक्षेत्र में शेखर मेहता के सम्मान समारोह होने की जानकारी मिलने पर राजा साबू को पहली चिंता यही हुई कि अब शेखर मेहता उनके घर चायपान के लिए कैसे आ पायेंगे ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा को इसके लिए राजी करके राजा साबू ने अपना काम तो बना लिया, लेकिन कवल बेदी के मामले में उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं ली । कुछ ही दिन पहले मनप्रीत सिंह के मामले में तथा अब कवल बेदी के मामले में राजा साबू के रवैये को देख/जान कर हर किसी ने समझ लिया है कि राजा साबू ने अपने स्वार्थ में और अपने काम निकालने के लिए सत्ता खेमे के पदाधिकारियों तथा नेताओं के सामने पूरी तरह समर्पण कर दिया है और अपने सहयोगी/साथी रहे गवर्नर्स को अकेला छोड़ दिया है ।