Thursday, October 31, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर नवीन गुलाटी की एकतरफा जीत को टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष में चुनाव की चाबी प्रेसीडेंट्स को सौंप कर राजा साबू खेमे के नेताओं को अलग-थलग करके मजबूर बना देने वाले फैसले के नतीजे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है 

पानीपत । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में नवीन गुलाटी की एकतरफा तथा बंपर चुनावी जीत ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में बदल रहे समीकरणों को पूरी तरह से ठोस रूप दे दिया है, और राजा साबू खेमे के नेताओं को पूरी तरह न सिर्फ किनारे लगा दिया है, बल्कि उन्हें असहाय और अलग-थलग कर दिया है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पहली बार ऐसा हुआ है कि राजा साबू और उनके खेमे के नेताओं ने अपने आप को इतना असहाय और अलग-थलग पाया कि उनके लिए यह समझ पाना और तय कर पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव हुआ कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उनकी भूमिका क्या हो ? पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू ने वर्षों अपने इशारे पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बनाये हैं; डिस्ट्रिक्ट में उनके आशीर्वाद के बिना कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बनने के बारे में सोच भी नहीं सकता था । दरअसल इसी रुतबे से पैदा हुए घमंड के चक्कर में उनकी ऐसी दशा हो गई है कि अब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उनकी आवाज का रत्ती भर का महत्त्व भी नहीं बचा रह गया है । अभी तीन-चार वर्ष पहले तक जो लोग राजा साबू तथा उनके खेमे के नेताओं के भरोसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की लाइन में लगे हुए दिख रहे थे, वह न जाने कहाँ छिप गए हैं - और वह लोग गवर्नर बन रहे हैं, जिन्हें राजा साबू खेमे के इशारे पर डिस्ट्रिक्ट टीम से ही निकाल बाहर किया गया था । नवीन गुलाटी उन बारह रोटेरियंस में चौथे हैं, जिन्हें चार वर्ष पहले टीके रूबी के समर्थन में होने वाली मीटिंग में शामिल होने के 'अपराध' में डेविड हिल्टन के गवर्नर वर्ष में डिस्ट्रिक्ट टीम से निकाल दिया गया था ।
उसके बाद से ही सत्ता का पहिया इतनी तेजी से घूमा है कि जिन टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर न बनने देने के लिए राजा साबू और उनके खेमे के नेताओं ने हर तरह की हरकत की, उन्हीं टीके रूबी का समर्थन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) पद के उम्मीदवारों के लिए जरूरी हो गया है; और टीके रूबी के साथ खड़े होने/दिखने वाले जिन लोगों को चुन चुन कर डिस्ट्रिक्ट टीम से बाहर किया गया था, वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बनते जा रहे हैं - और राजा साबू तथा उनके खेमे के नेता असहाय व अलग-थलग पड़ गए हैं । टीके रूबी को गवर्नर न बनने देने की राजा साबू और उनके खेमे के नेताओं की जिद अंततः उन्हें इतना भारी पड़ेगी, इसकी उन्होंने या अन्य किसी ने कल्पना भी नहीं की थी । पिछले रोटरी वर्ष तक राजा साबू खेमे के नेता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में भूमिका निभा रहे थे, और डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में घटते अपने प्रभाव को बचाने तथा उस पर पुनः काबिज होने की तिकड़मों में लगे थे - लेकिन इस वर्ष उन्होंने कोई हिम्मत नहीं की और पूरी तरह समर्पण करते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव से उन्होंने अपने आप को दूर ही रखा । शुरू में राजा साबू ने महिला गवर्नर की बात उठा कर अपनी चलाने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन जब उन्होंने देखा कि कोई उनकी बात सुन ही नहीं रहा है तो फिर वह चुप लगा गए । अपने ही डिस्ट्रिक्ट में राजा साबू की ऐसी राजनीतिक दुर्गति होगी, यह उन्होंने तो क्या - उनके विरोधियों ने भी नहीं सोचा था ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति से राजा साबू और उनके खेमे के नेताओं को बाहर करने में टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष में हुए/लिए गए उस फैसले का निर्णायक असर रहा है, जिसके तहत नोमीनेटिंग कमेटी की व्यवस्था को खत्म करके सीधे चुनाव के तरीके को अपनाया गया । दरअसल इस फैसले के जरिये टीके रूबी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति की चाबी क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को पकड़ा दी है और इस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में रोटेरियंस की भूमिका को न सिर्फ महत्त्वपूर्ण बना दिया, बल्कि निर्णायक रूप दे दिया है । इससे पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति की चाबी राजा साबू और उनके पाँच/सात नजदीकी गवर्नर्स के पास ही रहती थी, और इनमें भी राजा साबू का फैसला ही अंतिम फैसला होता था । दरअसल नोमीनेटिंग कमेटी वाली व्यवस्था में राजा साबू खेमे की 'राजनीतिक जान' बसती थी; और इसी कारण से टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत हुए रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के प्रस्ताव को राजा साबू खेमे ने भारी विरोध किया था और उसे प्रस्तुत होने से रोकने की हर संभव कोशिश की थी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी को इसका अंदाजा था और इसीलिए उन्होंने पूरी 'फील्डिंग' लगाई हुई थी और राजा साबू के विरोध को सफल नहीं होने दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की चाबी क्लब्स के प्रेसीडेंट्स तथा आम रोटेरियंस के हाथ में आ जाने से राजा साबू और उनके खेमे के नेताओं की राजनीतिक कमर टूट गई है और वह मजबूर बन कर रह गए हैं । 

Wednesday, October 30, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में होने वाले इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता के स्वागत/सम्मान के नाम पर रमेश अग्रवाल को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की 'राजनीति' करने का मौका देने तथा खर्च का बोझ क्लब्स पर डालने के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता मुसीबत में फँसे   

नई दिल्ली । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता के स्वागत/सम्मान में होने वाला कार्यक्रम क्लब्स से 50/50 हजार रुपए माँगने के कारण विवाद में फँस गया है । लोगों के बीच चर्चा सुनी जा रही है कि उक्त कार्यक्रम को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल की राजनीति का जरिया बना कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता क्लब्स पर नाहक ही बोझ डाल रहे हैं और इस तरह रमेश अग्रवाल को क्लब्स के पैसों पर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव लड़वाने की तैयारी कर रहे हैं । कुछेक लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि रमेश अग्रवाल ने अपने राजनीतिक स्वार्थ में दीपक गुप्ता को फँसा दिया है, और दीपक गुप्ता ने क्लब्स को फँसा दिया है । उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने पर सुशील गुप्ता का दिल्ली में जो स्वागत/सम्मान समारोह हुआ था, उसे डिस्ट्रिक्ट 3012 और डिस्ट्रिक्ट 3011 ने मिल कर किया था । उसी तर्ज पर दीपक गुप्ता के सामने इस वर्ष शेखर मेहता के स्वागत/सम्मान समारोह को आयोजित करने का ऑफर था । दीपक गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, दीपक गुप्ता इसके लिए राजी भी थे; लेकिन रमेश अग्रवाल ने दीपक गुप्ता को समझा लिया कि उक्त समारोह अकेले करना ही उचित होगा । समझा जाता है कि रमेश अग्रवाल चूँकि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार होने की तैयारी कर रहे हैं, इसलिए उन्हें लगा कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता के स्वागत/सम्मान समारोह के जरिये वह अपनी डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के लिए 'माहौल' बना सकेंगे ।   
रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए माहौल बनाने के उद्देश्य से किए जा रहे शेखर मेहता के स्वागत/सम्मान समारोह के लिए दीपक गुप्ता ने क्लब्स से 50 हजार रुपए देने की माँग की है, जिसके बदले में क्लब को पाँच युगल्स के लिए समारोह में शामिल होने का अवसर देने की बात की गई है । उल्लेखनीय है कि रोटरी में इस तरह के आयोजनों के लिए पैसे जुटाने का काम व्यक्तिगत रजिस्ट्रेशन के जरिये किया जाता है; और या कुछेक सक्रिय रोटेरियंस से स्पॉन्सरशिप ली जाती है । पिछले रोटरी वर्ष में हुए समारोह में कुछेक लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया था, तथा कई लोगों को तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन द्वारा ली गई स्पॉन्सरशिप के बदले में प्रवेश मिला था । लोगों का कहना है कि सुभाष जैन की ही तरह दीपक गुप्ता को और रमेश अग्रवाल को समारोह का खर्च जुटाने के लिए स्पॉन्सरशिप लेना चाहिए; दीपक गुप्ता ने लेकिन क्लब्स पर बोझ डाल कर नाहक ही विवाद पैदा कर दिया है । इस 'व्यवस्था' के चलते समारोह में हिस्सा लेने के लिए क्लब के पाँच युगल्स का चयन करने को लेकर क्लब्स में झगड़े होने की आशंका व्यक्त की जा रही है । लोगों का कहना है कि शेखर मेहता के स्वागत/सम्मान समारोह के खर्च के लिए दीपक गुप्ता को पिछले वर्ष जैसी ही व्यवस्था अपनाना चाहिए थी - जिससे न कोई झंझट पैदा होता, न किसी झगड़े की आशंका होती और न क्लब पर कोई बोझ पड़ता ।
शेखर मेहता के स्वागत/सम्मान समारोह का मुखिया रमेश अग्रवाल को बनाने के दीपक गुप्ता के फैसले पर पूर्व गवर्नर मुकेश अरनेजा भी नाराज बताये/सुने जा रहे हैं । मुकेश अरनेजा चूँकि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर हैं, इसलिए वह उम्मीद कर रहे थे कि दीपक गुप्ता उक्त समारोह के आयोजन की जिम्मेदारी उन्हें देंगे । मुकेश अरनेजा को यह उम्मीद इसलिए भी थी क्योंकि पिछले रोटरी वर्ष में सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में हुए स्वागत/सम्मान समारोह की जिम्मेदारी सुभाष जैन ने तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर शरत जैन को दी थी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता ने लेकिन उक्त समारोह की जिम्मेदारी के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर मुकेश अरनेजा पर भरोसा करने की बजाये रमेश अग्रवाल को चुना और मुकेश अरनेजा को निराश किया और झटका दिया । रमेश अग्रवाल को समारोह की जिम्मेदारी मिलने से शेखर मेहता के स्वागत/सम्मान में होने वाला समारोह रमेश अग्रवाल का राजनीतिक तमाशा बन गया है, जिसके खर्च का बोझ क्लब्स पर डालने के कारण वह विवादपूर्ण भी बन गया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता के पिछले कार्यक्रम, खासतौर से डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों का अधिष्ठापन कार्यक्रम और फिर दीवाली मेला - लोगों से सहयोग न मिलने के कारण बुरी तरह से 'पिटे' और फ्लॉप रहे हैं; शेखर मेहता के स्वागत/सम्मान के कार्यक्रम को लेकर दीपक गुप्ता की तैयारी जिस विवाद में फँस/पड़ गई है, उसके कारण डर पैदा हुआ है कि कहीं इस समारोह का हश्र भी उनके पिछले कार्यक्रमों जैसा तो नहीं होगा ? 

Monday, October 28, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के पूर्व प्रेसीडेंट भूषण चौहान के नाकारापन व बेईमानीपूर्ण नीयत के कारण रद्द हुए प्रोजेक्ट के पुनर्जीवित होने तथा पूरा होने का श्रेय लेने की भूषण चौहान की कोशिश में लोगों को बेशर्मी व निर्लज्जता की पराकाष्ठा दिख रही है

गाजियाबाद । रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के पूर्व प्रेसीडेंट भूषण चौहान सुनने और बोलने में लाचार बच्चों के ईलाज से जुड़े प्रोजेक्ट के पूरा होने का जिस तरह से श्रेय ले रहे हैं, उसे कई लोगों ने बेशर्मी और निर्लज्जता की पराकाष्ठा के रूप में देखा/पहचाना है । लोगों का कहना है कि भूषण चौहान के नाकारापन और बेईमानीपूर्ण नीयत के चलते उक्त प्रोजेक्ट न सिर्फ लेटलतीफी का शिकार हुआ, बल्कि रद्द भी हो गया था - किसी तरह उसे पुनर्जीवित किया/करवाया गया और पूरा किया गया; भूषण चौहान लेकिन उसके पूरा होने का श्रेय ऐसे ले रहे हैं - जैसे कि उसे पूरा करने में उनका बड़ा भारी योगदान है । हकीकत यह है कि जब तक उक्त प्रोजेक्ट की कमान भूषण चौहान के हाथ में थी, प्रोजेक्ट में रत्ती भर का काम नहीं हुआ, जिसके चलते रोटरी फाउंडेशन ने उक्त प्रोजेक्ट को रद्द ही कर दिया था । दरअसल करीब 23 लाख रुपए के उक्त प्रोजेक्ट के लिए ग्लोबल ग्रांट ली गई थी; लेकिन प्रोजेक्ट के मुखिया के रूप में भूषण चौहान रोटरी फाउंडेशन को प्रोजेक्ट से जुड़े विवरण ही नहीं दे रहे थे - जिसके चलते रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को सुनने व बोलने में लाचार बच्चों के ईलाज से जुड़े प्रोजेक्ट के पैसों में बेईमानी होने के संदेह हुए और उन्होंने प्रोजेक्ट को रद्द करने का फैसला सुना दिया ।
उल्लेखनीय है कि तीन वर्ष पहले, क्लब के प्रेसीडेंट के रूप में भूषण चौहान ने चार कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरीज के लिए 33,200 अमेरिकी डॉलर (करीब 23 लाख रुपए) की ग्लोबल ग्रांट स्वीकृत करवाई । 'जी 1233' नाम की इस ग्रांट के स्वीकृत होते ही भूषण चौहान प्रोजेक्ट का काम करने की बजाये ग्रांट के पैसों पर कुंडली मार कर बैठ गए । रोटरी फाउंडेशन ने ग्रांट स्वीकृत होते ही 6 अक्टूबर 2016 को प्रोजेक्ट का लेखाजोखा रखने का काम शुरू कर दिया, लेकिन उसे भूषण चौहान की तरफ से प्रोजेक्ट को लेकर जानकारी ही नहीं मिली । प्रोजेक्ट के तहत दस महीने में बच्चों का ईलाज हो जाना चाहिए था - लेकिन भूषण चौहान रोटरी फाउंडेशन को प्रोजेक्ट के काम को लेकर कोई जानकारी ही नहीं दे रहे थे । सिर्फ यही नहीं, रोटरी फाउंडेशन से आने वाली ईमेल्स का भी जबाव देना भूषण चौहान ने जरूरी नहीं समझा । दस महीनों तक रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को जब भूषण चौहान की तरफ से न तो कोई जानकारी मिली, और न अपनी ईमेल्स का जबाव मिला - तो उन्होंने प्रोजेक्ट को रद्द करके 2 सितंबर 2017 को इस सूचना को रिकॉर्ड पर भी लगा दिया । प्रोजेक्ट से जुड़े तथ्यों तथा उसके रद्द होने के फैसले को रोटरी फाउंडेशन के इस पृष्ठ पर देखा जा सकता है :


प्रोजेक्ट रद्द होने का कारण भी रोटरी फाउंडेशन ने बताया है, जिसे यहाँ देखा जा सकता है :


भूषण चौहान के नाकारापन व बेईमानीपूर्ण नीयत के चलते सुनने और बोलने में लाचार बच्चों के ईलाज से जुड़े प्रोजेक्ट के रद्द होने से रोटरी जगत में रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल की तो बदनामी हुई ही, साथ ही साथ रोटरी व डिस्ट्रिक्ट की पहचान व विश्वसनीयता को भी चोट पहुँची - और ईलाज का इंतजार करते मासूम बच्चे ईलाज से भी वंचित रह गए । भूषण चौहान की कारस्तानी के चलते होने वाले चौतरफा नुकसान से बचने के लिए क्लब के बाद के वर्षों के पदाधिकारियों ने डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों के साथ मिल कर रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकरियों से उक्त प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करने का अनुरोध किया और उन्हें आश्वस्त किया कि पूर्व में प्रदर्शित किए गए नाकारापन को नहीं दोहराया जायेगा और उचित तरीके से प्रोजेक्ट को पूरा किया जायेगा । जिस प्रोजेक्ट को वर्ष 2016-17 में पूरा होना चाहिए था; लेकिन भूषण चौहान के नाकारापन व बेईमानीपूर्ण नीयत के चलते जो रद्द हो गया था - उसे पुनर्जीवित करवा कर, तीन वर्ष बाद अभी हाल ही में पूरा किया गया है । लोग लेकिन यह देख कर हैरान हो रहे हैं कि प्रोजेक्ट के पूरा होने का श्रेय भूषण चौहान जोरशोर से ले रहे हैं और ऐसे जता/दिखा रहे हैं जैसे कि उन्होंने कोई बड़ा महान काम किया है । लोग उनके इस रवैये को बेशर्मी व निर्लज्जता की पराकाष्ठा के रूप में देख रहे हैं । लोगों का कहना है कि भूषण चौहान में यदि जरा सी भी नैतिकता और शर्म है तो उन्हें इस बात के लिए सार्वजनिक रूप से माफी माँगनी चाहिए कि उनके नाकारापन के चलते प्रोजेक्ट रद्द हुआ तथा क्लब और रोटरी व डिस्ट्रिक्ट की साख तथा विश्वसनीयता को चोट पहुँची - और खुद श्रेय लेने की बजाये क्लब व डिस्ट्रिक्ट के उन पदाधिकारियों का आभार व्यक्त करना चाहिए, जिन्होंने प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करवाने में तथा उसे पूरा करवाने में भूमिका निभाई । 

Tuesday, October 22, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में मलकीत सिंह जस्सर तथा अपने ही क्लब की तरफ से मुकेश गोयल को मिला दोहरा झटका सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाता दिख रहा है

हापुड़ । पंकज बिजल्वान की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी का झंडा उठाए मुकेश गोयल को हाल ही में दो झटके एक साथ लगे हैं, जिसने पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को गहरे संकट में फँसा दिया है । मुकेश गोयल को पहला झटका पूर्व गवर्नर मलकीत सिंह जस्सर ने दिया, जो मुकेश गोयल कैम्प छोड़ कर सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए रजनीश गोयल की उम्मीदवारी के झंडे को ऊँचा किए हुए विनय मित्तल कैम्प के साथ जा जुड़े दिखाई दिए हैं । इससे भी बड़ा झटका मुकेश गोयल को अपने ही क्लब के प्रेसीडेंट राकेश वर्मा से मिला, जिनके बगावती तेवर के कारण मुकेश गोयल को पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को बड़े स्तर पर प्रमोट करने के उद्देश्य से किए जा रहे अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को रद्द कर देने के लिए मजबूर होना पड़ा है । मजे की बात यह देखने को मिल रही है कि मुकेश गोयल कैम्प की तरफ से मलकीत सिंह जस्सर के मामले में तो लीपापोती करने तथा डैमेज-कंट्रोल की कोशिश की जा रही है, लेकिन मुकेश गोयल के क्लब की तरफ से जो झटका लगा है - उस पर मुकेश गोयल और उनके कैम्प के लोगों की बोलती पूरी तरफ बंद है । इन दोनों मामलों को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल के घटते राजनीतिक असर के नतीजे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है और माना/समझा जा रहा है कि मुकेश गोयल को लगने वाले यह झटके वास्तव में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने वाले हैं ।
मलकीत सिंह जस्सर के जरिये लगे झटके के मामले में डैमेज-कंट्रोल की कोशिश करते हुए मुकेश गोयल कैम्प की तरफ से मलकीत सिंह जस्सर को लेकर दुष्प्रचार शुरू कर दिया गया है; जिसके तहत कभी यह कहा/बताया जाता है कि मलकीत सिंह जस्सर 'हमारे ही साथ हैं', रजनीश गोयल के कार्यक्रम में तो वह 'हमारे' जासूस के रूप में गए थे; कभी कहा जाता है कि मलकीत सिंह जस्सर के पास है क्या, और उनके जाने से से क्या फर्क पड़ता है; कभी बताया जाता है कि मलकीत सिंह जस्सर जल्दी ही 'हमारे' साथ दिखेंगे; आदि-इत्यादि । मुकेश गोयल कैम्प के ही कुछेक अन्य लोगों का कहना है कि मलकीत सिंह जस्सर दरअसल मुकेश गोयल कैम्प में अपनी उपेक्षा से नाराज हुए और इसलिए वह विनय मित्तल कैम्प में शिफ्ट कर गए हैं । मलकीत सिंह जस्सर यह देख कर भी मुकेश गोयल कैम्प में निराश हुए कि उनके क्लब - लायंस क्लब गाजियाबाद के अधिकतर लोग विनय मित्तल के साथ हैं, और मुकेश गोयल के आयोजनों में क्लब के दो/एक लोग ही शामिल होते हैं । मलकीत सिंह जस्सर का मुकेश गोयल कैम्प छोड़ कर विनय मित्तल कैम्प में शामिल होना चुनाव के गणित को बड़े स्तर पर भले ही प्रभावित न करता हो, लेकिन मनोवैज्ञानिक व भावनात्मक रूप से मुकेश गोयल कैम्प तथा पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के अभियान को जोर का झटका देता है । 
मुकेश गोयल तथा पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को इससे भी बड़ा झटका मुकेश गोयल के क्लब से मिला है । इस झटके के चलते मुकेश गोयल को मल्टीपल के डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों तथा प्रमुख पूर्व गवर्नर्स के बीच ही नहीं, बल्कि इंटरनेशनल थर्ड वाइस प्रेसीडेंट पद के एंडॉर्सी एपी सिंह तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर संगीता जटिया तक के सामने फजीहत का शिकार होना पड़ा है । हर जगह खबर फैल गई है कि डिस्ट्रिक्ट पर अपना प्रभुत्व वापस पाने की कोशिश करने वाले मुकेश गोयल का अपने क्लब में ही प्रभुत्व नहीं रह गया है और बड़े जोरशोर से तैयारी करने के बावजूद वह अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को रद्द कर देने के लिए मजबूर हुए हैं । मजे की बात यह है कि उक्त समारोह होने की जानकारी तो मुकेश गोयल लोगों को प्रतिदिन दे रहे थे और समारोह का भारी भरकम निमंत्रण पत्र बार बार लोगों को दिखा व भेज रहे थे; लेकिन समारोह के रद्द हो जाने की सूचना को लेकर वह चुप्पी बनाए हुए हैं । अपने ही क्लब में मुसीबत व फजीहत झेलने के लिए मुकेश गोयल किस तरह खुद ही जिम्मेदार हैं, इससे जुड़े तथ्यों को 'रचनात्मक संकल्प' की 9 अक्टूबर की रिपोर्ट में पढ़ा जा सकता है । इस किस्से से एक बात यह जरूर साबित हुई है कि मुकेश गोयल के पास इस समय न कोई रणनीति है और न उनके पास कोई ढंग के सलाहकार हैं, जिस कारण से वह सेल्फ-गोल करने में तथा खुद ही अपने लिए मुसीबतें पैदा करने तथा उन्हें बढ़ाने में लगे हुए हैं । लोगों को लगता है कि मुकेश गोयल यदि थोड़ी सी समझदारी से काम लेते तो अपने क्लब में पैदा हुए झंझट से अपने आप को बचा सकते थे तथा उससे होने वाले नुकसान से बच सकते थे । किसी रणनीति के अभाव में, खुद ही अपने लिए मुसीबतें पैदा करने तथा उन्हें बढ़ाने के मुकेश गोयल के 'फैसलों' तथा उनके नतीजों ने पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को मुसीबत में फँसा दिया है । 

Sunday, October 20, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में अजीत जालान को रोटरी के पैसे से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव लड़वाने की विनोद बंसल की तैयारी ने उनके अपने क्लब में बबाल पैदा किया, जहाँ लोगों को डर हुआ है कि अजीत जालान के चक्कर में विनोद बंसल कहीं राजीव मित्तल का रोटरी फाउंडेशन में किया गया 'इन्वेस्टमेंट' मुसीबत में न फँसवा दें ?

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी के एक प्रोजेक्ट के साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार अजीत जालान की संलग्नता ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की भूमिका को एक बार फिर विवाद व चर्चा में ला दिया है । रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी विनोद बंसल के क्लब के रूप में जाना/पहचाना जाता है, और अजीत जालान को विनोद बंसल के उम्मीदवार के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है । गंभीर आरोप यह है कि अजीत जालान को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव विनोद बंसल रोटरी के पैसे से लड़वा रहे हैं । दरअसल रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी का सेनेटरी पैड्स बनाने और बाँटने का एक बड़ा महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट है; क्लब के लोगों का ही कहना/बताना है कि अजीत जालान को इस प्रोजेक्ट से जोड़ कर उन्हें चुनावी लाभ दिलवाने का आईडिया विनोद बंसल का ही है । विनोद बंसल पहले भी, केआर रविंद्रन के प्रेसीडेंट-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाने के लिए रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड से फटकार खा चुके हैं । उम्मीद की गई थी कि उस फटकार से उन्होंने सबक लिया होगा । विनोद बंसल लेकिन जिस तरह से अपने क्लब के एक महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट का राजनीतिक इस्तेमाल कर/करवा रहे हैं, और अजीत जालान को रोटरी के पैसे से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव 'लड़वा' रहे हैं - उससे लग/दिख रहा है कि उन्होंने केआर रविंद्रन के प्रेसीडेंट-वर्ष में पड़ी व दर्ज हुई उस फटकार से कोई सबक नहीं लिया है ।
रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी का सेनेटरी पैड्स का जो प्रोजेक्ट है, वह संकल्प फाउंडेशन नाम की एक स्वयंसेवी संस्था के 'सहयोग' से चल रहा है । मजे की बात यह है कि विनोद बंसल के क्लब की तमाम गतिविधियाँ इसी संस्था के सहयोग से चल रही हैं, जिसे लेकर क्लब के अन्य कुछेक सदस्यों के बीच गहरी नाराजगी है । यह संस्था दरअसल क्लब के ही एक सदस्य राजीव मित्तल की है । राजीव मित्तल ने रोटरी फाउंडेशन में बड़ा दान देने की तैयारी की हुई है; वह शायद एकेएस सदस्य बनेंगे । क्लब के सदस्यों का ही कहना लेकिन यह है कि राजीव मित्तल रोटरी फाउंडेशन में जो पैसा देंगे, वह कोई 'दान' नहीं है, बल्कि 'इन्वेस्टमेंट' है - जिसके बदले वह रोटरी फाउंडेशन से चार गुना पैसा विभिन्न प्रोजेक्ट्स के नाम पर लेंगे । विनोद बंसल ने यही 'समझा' कर राजीव मित्तल को रोटरी फाउंडेशन में 'दान' देने के लिए प्रेरित किया है । विनोद बंसल ने रोटरी फाउंडेशन में 'पैसा दो, और उसका चार गुना लो' फार्मूले के जरिये रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे इकट्ठे करने के काम में 'मास्टरी' पाई हुई है । इसी फार्मूले से वह वह अपने क्लब के राजेश गुप्ता को एकेएस सदस्य बनवा चुके हैं; जिसके ऐवज में राजेश गुप्ता ने प्रोजेक्ट के नाम पर रोटरी फाउंडेशन से जो पैसे लिए - उस पर क्लब में और रोटरी में भारी बबाल रहा; जिसके चलते रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से तीन बार उस प्रोजेक्ट का ऑडिट हुआ, वह प्रोजेक्ट क्लब से छिना और अंततः राजेश गुप्ता को भी उस प्रोजेक्ट से अलग किया गया । हालाँकि तब तक राजेश गुप्ता रोटरी फाउंडेशन से मिली रकम का सारा 'लाभ' ले चुके थे ।  
क्लब के ही लोगों का कहना है कि रोटरी फाउंडेशन से करीब चार गुना पैसा दिलवाने का वास्ता देकर विनोद बंसल ने जिस तरह राजेश गुप्ता को एकेएस बनवाया था, उसी फार्मूले के अनुसार उन्होंने राजीव मित्तल को एकेएस बनने और रोटरी फाउंडेशन में 'इन्वेस्ट' करने के लिए तैयार किया है । यही कारण है कि राजीव मित्तल को रोटरी में बड़ा 'फायदा' दिखने लगा है और क्लब की गतिविधियों में राजीव मित्तल की संस्था की संलग्नता काफी बढ़ गई है । क्लब के कुछेक सदस्यों का तो यहाँ तक कहना/बताना है कि उन्हें तो कभी कभी लगता है कि जैसे क्लब को संकल्प फाउंडेशन में गिरवी रख दिया गया है । रोटरी के पैसे से क्लब चलाने के आरोप तो क्लब के सदस्यों की तरफ से सुने जा रहे हैं, डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोग यह देख कर हैरान हैं कि विनोद बंसल ने अपने उम्मीदवार अजीत जालान को रोटरी के पैसे से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव लड़वाने का तरीका भी खोज लिया है । रोटरी फाउंडेशन से पैसे लेने/निकलवाने तथा उनका विविधता के साथ इस्तेमाल करने के मामले में विनोद बंसल ने सचमुच बड़ा 'इनोवेशन' किया है - लेकिन उनके इनोवेशंस उनके लिए फजीहत का कारण बन रहे हैं; और उनके लिए मुसीबत की बात यह है कि उनकी फजीहत के कारण उनके अपने क्लब के सदस्य ही बन रहे हैं । उल्लेखनीय है कि राजेश गुप्ता के मामले में आरोप व विरोध के स्वर क्लब में ही उठे थे, जिसके चलते राजेश गुप्ता का प्रोजेक्ट पहले क्लब से छिना और फिर उनसे; लेकिन राजेश गुप्ता खुशकिस्मत रहे कि जब तक आरोप व विरोध के स्वर उठे और उनसे चीजें छिनी - तब तक वह 'खेल' कर चुके थे; राजीव मित्तल लेकिन शुरू से ही मुसीबत में फँसते/घिरते दिख रहे हैं । क्लब में राजीव मित्तल के नजदीकियों का मानना/कहना है कि यह मामला प्रोजेक्ट के बहाने अजीत जालान को चुनावी फायदा दिलवाने की विनोद बंसल की योजना से भड़का है । राजीव मित्तल के नजदीकियों को डर है कि अजीत जालान के चक्कर में विनोद बंसल कहीं राजीव मित्तल का 'इन्वेस्टमेंट' मुसीबत में न फँसवा दें ? 

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता के रवैये से लोगों ने डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में अपने आप को 'ठगा' हुआ पाया, और टिकट के साथ मिले कूपंस की होली जलाई; 'धोखा' देने के मामले में दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता को भी नहीं बख़्शा

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव पहले हो जाने के कारण डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले के हालात बिगड़ने का अंदेशा तो सभी को था, लेकिन हालात इतने बिगड़ेंगे कि डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेला घटियापने का रिकॉर्ड बनायेगा और मेले में पहुँचे लोग नाराजगी व विरोध प्रदर्शित करने के लिए कूपंस की होली जलायेंगे - यह किसी ने नहीं सोचा था । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव संपन्न होते ही एक तरफ तो दीवाली मेले में डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस को 'ठगा' और 'धोखा' दिया, तथा दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता के क्लब से निकले सदस्यों के नए क्लब को हरी झंडी दे कर उनके क्लब में पड़ी फूट को और चौड़ा करके आलोक गुप्ता के साथ विश्वासघात किया । डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले के बदहाल रूप को देखते हुए लोगों ने पिछले रोटरी वर्ष में सुभाष जैन के गवर्नर-वर्ष में हुए दीवाली मेले की भव्यता तथा कुशल प्रबंधन को याद किया; कुछेक ने मजाक की टोन में 'शिकायत' की कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन ने पिछले वर्ष यदि बढ़िया, आकर्षक व प्रभावी आयोजन न किए होते तो हमें पता ही नहीं चलता कि कार्यक्रमों को अच्छे से भी आयोजित किया जा सकता है - और तब हमें दीपक गुप्ता के दीवाली मेले की बदहाली बुरी न लगती । डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले की बदहाली और उस पर लोगों की नाराजगी को देख कर ललित खन्ना ने राहत की साँस ली और शुक्र मनाया कि अच्छा हुआ, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव पहले ही हो गया - अन्यथा दीपक गुप्ता की इस कारस्तानी का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले की तैयारी को लेकर दीपक गुप्ता लगातार आलोचना के शिकार हो रहे थे । जगह के चुनाव तथा टिकट की कीमत 1200 रुपए रखने के कारण डिस्ट्रिक्ट के लोग नाराज थे । दीपक गुप्ता तथा उनके नजदीकी लेकिन लगातार लोगों को आश्वस्त कर रहे थे कि दीवाली मेले की व्यवस्था तथा फैलोशिप देखेंगे तो लोग शिकायत व नाराजगी को भूल जायेंगे । उनके आश्वासन पर कुछेक लोग ही भरोसा कर रहे थे, और ज्यादातर लोग भरोसा नहीं कर रहे थे । इसका असर टिकटों की बिक्री पर पड़ा और दीपक गुप्ता को टिकट बेचने के लिए तरह तरह की तिकड़में करना पड़ीं । इनमें बड़ी तिकड़म यह रही कि दस दिन पहले उन्होंने प्रत्येक टिकट पर ड्रिंक्स के दो कूपन देने का ऑफर दिया । इसके बावजूद डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में मुश्किल से सात/आठ सौ लोग पहुँचे । पिछले वर्ष तीन हजार से ज्यादा लोग मेले में थे । मेले में जो लोग पहुँचे, उन्हें मेले का रंगरूप देख कर अफसोस हुआ । कई लोगों का कहना रहा कि इतनी घटिया व्यवस्था का उन्हें अनुमान नहीं था । उनका कहना है कि दीपक गुप्ता चूँकि बड़ी बड़ी बातें करते रहते हैं, इसलिए उन्हें उम्मीद रही कि इंतजाम पिछले वर्ष जैसा नहीं तो कम से कम 'ठीक ठाक' किस्म का तो रहेगा ही - लेकिन थर्ड क्लास व्यवस्था देख कर लोग उखड़ गए । लोगों का कहना रहा कि दीपक गुप्ता ने 1200 रुपए लेकर 200 रुपए प्लेट वाला इंतजाम करवाया । लोगों ने अपने आप को उस समय ठगा हुआ पाया जब उन्हें ड्रिंक्स का काउंटर ही बंद मिला; उनके लिए यह समझना मुश्किल हुआ कि डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले के टिकट के साथ उन्हें ड्रिंक्स के जो दो कूपन मिले हैं, उनका वह क्या करें ?
इसके बाद फिर वह हुआ, जो इससे पहले किसी डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रम में शायद ही हुआ हो । लोगों ने अपनी नाराजगी जताते हुए टिकट के साथ मिले कूपंस की होली जलाई । लोगों का कहना रहा कि कूपंस के बदले जब ड्रिंक्स उपलब्ध नहीं करवाना थी, तब कूपंस दिए ही  क्यों गए ? इसे लोगों ने दीपक गुप्ता की 'धोखाधड़ी' बताया और अपने आप को 'ठगा' हुआ पाया । दीपक गुप्ता ने बदइंतजामी के जरिए लोगों को ही नहीं ठगा, बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता के साथ भी 'धोखाधड़ी' की । उल्लेखनीय है कि आलोक गुप्ता के क्लब के कुछेक सदस्यों ने पिछले रोटरी वर्ष में क्लब से इस्तीफा देकर एक नए क्लब के लिए आवेदन दिया हुआ था । माना/समझा जा रहा है कि नया क्लब बनेगा, तो उसमें क्लब के कुछ और सदस्य ट्रांसफर ले लेंगे और इस तरह आलोक गुप्ता के क्लब में एक बड़ी फूट पड़ेगी । आलोक गुप्ता के अनुरोध पर पिछले रोटरी वर्ष में सुभाष जैन ने नए क्लब के लिए हरी झंडी नहीं दी थी । इस वर्ष, ललित खन्ना की उम्मीदवारी के लिए आलोक गुप्ता का समर्थन लेने के लिए दीपक गुप्ता ने उन्हें भरोसा दिया हुआ था कि वह भी उक्त नए क्लब को हरी झंडी नहीं देंगे । आलोक गुप्ता इसी भरोसे के चलते ललित खन्ना की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए तैयार हुए थे, अन्यथा वह ललित खन्ना को समर्थन देने के लिए हरगिज तैयार नहीं थे । दरअसल दो वर्ष पहले आलोक गुप्ता से हारने के बाद से ललित खन्ना ने आलोक गुप्ता के प्रति बैर सा रखा हुआ था, और आलोक गुप्ता को बधाई देने का सामान्य-सा शिष्टाचार भी नहीं निभाया था - और इस बात से आलोक गुप्ता बुरी तरह भड़के हुए थे । आलोक गुप्ता के भड़के रवैये को दीपक गुप्ता ने 'सौदेबाजी' करके ठंडा कर दिया था; लेकिन चुनाव पूरा होते ही डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में आलोक गुप्ता यह देख/जान कर ठगे से रह गए कि दीपक गुप्ता ने काम निकलते ही उनका भरोसा तोड़ दिया है और नए क्लब को हरी झंडी देकर उनके क्लब में बड़ी फूट के लिए मौका बना दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले की बदहाली और उस पर लोगों द्वारा जताई/दिखाई गई नाराजगी को देख/जान पर ललित खन्ना ने खासी राहत महसूस की कि अच्छा हुआ कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जल्दी हो गया, अन्यथा दीपक गुप्ता की हरकतें इस वर्ष भी उनकी लुटिया डुबा देतीं । इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले की बदहाल व्यवस्था देख/सुन कर लोगों ने पिछले रोटरी वर्ष में सुभाष जैन के गवर्नर-वर्ष में हुए डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले की भव्यता, रौनक तथा खानपान की जोरदार व्यवस्था को याद किया और अफसोस किया कि दीपक गुप्ता - सुभाष जैन से कुछ तो सीख लेते । 

Thursday, October 17, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3110 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किशोर कातरू को कोलकाता में हुए शेखर मेहता के सम्मान समारोह में जो तवज्जो मिली और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल की जो उपेक्षा हुई, उसे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में तोमर खेमे के लिए बड़े झटके/खतरे का संकेत माना/देखा जा रहा है

बरेली । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में शेखर मेहता के कोलकाता में हुए सम्मान समारोह में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किशोर कातरू को जो और जैसी तवज्जो मिली, उसे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में तोमर खेमे के लिए खतरे/झटके की घंटी के रूप में सुना/देखा जा रहा है । तोमर खेमे के नेताओं को भी समझ में आने लगा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के बहाने जिस लड़ाई को वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किशोर कातरू व डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर रवि प्रकाश अग्रवाल के खिलाफ समझ रहे हैं, उनकी वह लड़ाई वास्तव में इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी के साथ है । कोलकाता में हुए कार्यक्रम की तैयारी व उसके 'डिजाइन' के पीछे चूँकि कमल सांघवी ही थे; इसलिए किशोर कातरू को वहाँ जो और जैसी तवज्जो मिली, उसके पीछे कमल सांघवी की सोची-समझी रणनीति को ही देखा/पहचाना जा रहा है और माना जा रहा है कि इसके जरिये डिस्ट्रिक्ट के नेताओं को 'संदेश' दिया जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल के लिए इस 'संदेश' को खासा महत्वपूर्ण समझा जा रहा है । दरअसल मुकेश सिंघल ही तोमर खेमे की तरफ से अत्यंत सक्रिय हैं; कई लोगों का कहना है कि मुकेश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में इस होशियारी के साथ काम करना सीखना चाहिए कि वह अपना काम भी कर लें, और बदनामी से भी बच जाएँ - अभी लेकिन उल्टा हो रहा है, वह कुछ कर भी नहीं पा रहे हैं और बदनाम ज्यादा हो रहे हैं । यह भी एक कारण रहा कि कोलकाता में हुए इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के सम्मान समारोह में उन्हें कोई तवज्जो नहीं मिली ।
उल्लेखनीय है कि मुकेश सिंघल जिस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होंगे, शेखर मेहता उसी वर्ष इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होंगे - तब तक कमल सांघवी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद से तो भूतपूर्व तो हो चुके होंगे, लेकिन शेखर मेहता के सबसे ज्यादा विश्वासपात्र होने के कारण रोटरी में उनका जलवा इंटरनेशनल डायरेक्टर से ज्यादा ही होगा । ऐसे में, माना/समझा जा रहा है कि कोलकाता में मिले 'संदेशों' को पढ़ने/समझने में मुकेश सिंघल ने यदि कोई चूक की, तो अपने गवर्नर-वर्ष में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का मानना/कहना है कि मुकेश सिंघल को चुप करा कर दरअसल तोमर खेमे की राजनीति को कमजोर करने की चाल चली जा रही है । रोटरी की चुनावी राजनीति में चूँकि सत्ताधारियों की विशेष भूमिका होती है, इसलिए तोमर खेमे के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के रूप में मुकेश सिंघल की सक्रियता की खासी अहमियत है; उनके बीच डर है कि चुनावी मोर्चेबंदी में मुकेश सिंघल यदि सक्रिय नहीं रहे तो उनकी स्थिति और कमजोर हो जाएगी । मुकेश सिंघल के नजदीकियों का कहना/बताना है कि मुकेश सिंघल खुद यह रोना रोते हैं कि वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के झंझट में ज्यादा नहीं पड़ना चाहते हैं, लेकिन तोमर खेमे के नेता उन्हें जबर्दस्ती खींच लेते हैं - वह फिर बच नहीं पाते हैं और फँस जाते हैं ।
नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में जो हुआ, उससे यह बात साबित हो गई है कि तोमर खेमे के नेता जिन तरकीबों से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की लड़ाई जीतना चाहते हैं, उनसे तो वह नहीं जीत पायेंगे । नोमीनेटिंग कमेटी में जो हुआ, अपनी आपत्तियों/शिकायतों के अनसुना रहने के उनके जो आरोप रहे; और अब कोलकाता में जो हुआ - उसे देख कर तोमर खेमे के नेताओं को इस बात को साफ तौर पर समझ लेना चाहिए कि अभी तक दिखाए गए उनके तौर-तरीके कामयाबी दिलवाने के मामले में कमजोर ही साबित रहने हैं, और अब उन्हें ज्यादा व्यावहारिक व व्यवस्थित तरीके अपनाने पड़ेंगे । तोमर खेमे के नेताओं के सामने एक और समस्या यह आ पड़ी है कि नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में जो हुआ, और अब कोलकाता में जो होने की खबरें सामने आ रही हैं, उनके चलते - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उनके उम्मीदवार सतीश जायसवाल का हौंसला/भरोसा भी टूटता सुना जा रहा है । सतीश जायसवाल के कुछेक समर्थक व शुभचिंतक उन्हें समझाने लगे हैं कि पवन अग्रवाल के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई का समीकरण अब बदल चुका है और उनके लिए अब ज्यादा मौका नहीं बचा है । ऐसे में तोमर खेमे के नेताओं को डर हो चला है कि इस तरह की बातों से सतीश जायसवाल का हौंसला व भरोसा यदि सचमुच ही टूट गया तो फिर वह तो बिना लड़े ही चुनावी मैदान से बाहर हो जायेंगे । ऐसे में, तोमर खेमे के नेताओं के सामने यह चुनौती भी पैदा हो गई है कि वह सतीश जायसवाल को भी तथा डिस्ट्रिक्ट के लोगों को भी यह भरोसा व हौंसला दें/दिलवाए कि नोमीनेटिंग कमेटी में तो बेईमानी के जरिये उन्हें हरा दिया गया है, लेकिन कोई जरूरी नहीं है कि सत्ता खेमे की बेईमानी आगे भी चल सके और कामयाबी पा सके । आगे क्या होगा, यह तो आगे पता चलेगा; अभी लेकिन नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव के बाद कोलकाता में किशोर कातरू को तवज्जो मिलने तथा मुकेश सिंघल की उपेक्षा होने के चलते बने परिदृश्य में डिस्ट्रिक्ट के चुनावी माहौल में तोमर खेमा दबाव में तो आ गया है ।

Monday, October 14, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में ललित खन्ना की चुनावी जीत का गणित डिस्ट्रिक्ट के लोगों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता की 'हार' तथा निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन की 'जीत' के रूप में क्यों दिख रहा है ? 

नई दिल्ली । 'रचनात्मक संकल्प' ने पाँच अक्टूबर की अपनी रिपोर्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी नतीजे के ललित खन्ना के पक्ष में रहने की जो संभावना व्यक्त की थी, वह अंततः सच साबित हुई और ललित खन्ना की जीत के साथ रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ ने डिस्ट्रिक्ट को तीसरा गवर्नर दिया । उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ पूर्व गवर्नर एमएल अग्रवाल तथा केके गुप्ता इसी क्लब के सदस्य हैं । पूर्व गवर्नर मुकेश अरनेजा भी हालाँकि इसी क्लब के सदस्य रहते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने थे, लेकिन अपनी हरकतों के चलते उनके लिए क्लब में बने रहना असंभव हो गया था और उन्हें क्लब से निकाला जाता, उससे पहले उन्होंने खुद ही क्लब से निकल कर दूसरा क्लब बना लिया । इसी खुन्नस में मुकेश अरनेजा ने हमेशा ही ललित खन्ना की उम्मीदवारी का विरोध किया; मुकेश अरनेजा हमेशा ही ऐसा आभास करवाते रहे हैं कि जैसे उन्होंने कसम खा ली है कि वह ललित खन्ना को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बनने देंगे । लेकिन तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) चुने जाने का ललित खन्ना का सपना आखिरकार साकार हुआ । ललित खन्ना और सुनील मल्होत्रा के बीच हुए चुनाव में खासे उतार-चढ़ाव रहे - शुरू में इस चुनाव को ललित खन्ना के पक्ष में एकतरफा माना/देखा जा रहा था, लेकिन चुनाव का दिन आते आते सुनील मल्होत्रा उन्हें तगड़ी टक्कर देते हुए नजर आने लगे; और ललित खन्ना के सामने गंभीर चुनौती आ खड़ी हुई ।
ललित खन्ना के सामने यह चुनौती खड़ी करने के लिए निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (आईपीडीजी) सुभाष जैन को जिम्मेदार माना/ठहराया जा रहा है । दरअसल सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को सुभाष जैन का ही समर्थन था । मजे की बात यह रही कि अन्य कुछेक गवर्नर्स ललित खन्ना को पसंद तो नहीं करते थे, लेकिन चूँकि उन्हें सुनील मल्होत्रा के चुनाव जीतने की उम्मीद नहीं लग रही थी - इसलिए वह सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के पक्ष में नहीं जुटे । एक अकेले सुभाष जैन ही सुनील मल्होत्रा के साथ रहे । सुभाष जैन के नजदीकियों व शुभचिंतकों ने उन्हें समझाने के खूब प्रयास किए कि एक हारते दिख/लग रहे उम्मीदवार के पक्ष में रहने से आखिर क्या हासिल होगा ? सुभाष जैन ने लेकिन किसी की नहीं सुनी । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों का आकलन था कि सुनील मल्होत्रा को 20/25 से ज्यादा वोट नहीं मिलेंगे । चुनावी नतीजे में उन्हें 75 वोट के रूप में जो करीब 43 प्रतिशत वोट मिले हैं - उन्हें सुभाष जैन के राजनीतिक प्रताप तथा उनकी चुनावी रणनीति के नतीजे के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । ललित खन्ना के सामने कहीं टिकते नहीं दिख रहे सुनील मल्होत्रा को सुभाष जैन की चुनावी रणनीति ने जिस तरह से मुकाबले पर ला दिया और ललित खन्ना के लिए गंभीर चुनौती पैदा कर दी, उसे देखते/समझते हुए ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों को सुनील मल्होत्रा की पराजय में भी सुभाष जैन की जीत 'दिखाई' दे रही है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में इससे पहले किसी एक गवर्नर ने प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक माहौल में ऐसा समर्थन जुटाया हो, ऐसा याद नहीं पड़ता है ।
ललित खन्ना ने वोटिंग शुरू होने से पहले होशियारी न दिखाई होती और अपनी उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता की 'छाया' से मुक्त न किया होता, तो बहुत संभव है कि वह चुनाव हार गए होते । दीपक गुप्ता ने यूँ तो ललित खन्ना को चुनाव जितवाने के लिए सारे हथकंडे अपना लिए थे, और इसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा को भी छिन्न-भिन्न कर लिया/दिया था - लेकिन उनकी हरकतें ललित खन्ना की उम्मीदवारी को फायदा पहुँचाने की बजाये नुकसान पहुँचाती लग रही थीं । ललित खन्ना ने दीपक गुप्ता से जल्दी चुनाव करवाने का फायदा तो ले लिया, लेकिन उसके बाद उन्होंने दीपक गुप्ता से अपने आप को अलग कर लिया और इस तरह दीपक गुप्ता की हरकतों के कारण होने वाले नुकसान से अपने आप को बचा लिया । मजे की बात यह रही कि ललित खन्ना को हालाँकि दीपक गुप्ता के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है, लेकिन ललित खन्ना की जीत का श्रेय ललित खन्ना को ही दिया जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि ललित खन्ना ने हर मौके का बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता से कब उन्हें जुड़ना है और कब उनसे पीछा छुड़ा लेना है - इसे समझ/बूझ कर तथा जरूरत के हिसाब से करते हुए ललित खन्ना ने अपनी जीत का रास्ता खुद ही बनाया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव सिर्फ उम्मीदवारों के बीच ही नहीं होता है, वह उनके समर्थक नेताओं के बीच भी होता है - इसीलिए लोगों को लग रहा है कि इस वर्ष के चुनाव में दीपक गुप्ता जीत कर भी हार गए हैं, और सुभाष जैन हार कर भी जीत गए हैं । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि हिंदी कथा साहित्य की मशहूर कहानी 'हार की जीत' इसी से मिलती-जुलती परिस्थिति को लेकर लिखी गई थी ।

Sunday, October 13, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में शेखर मेहता के स्वागत-समारोह की बागडोर थामने की विनोद बंसल की कोशिशों को सुरेश भसीन के रवैये से जो झटका लगा है, उसमें विनोद बंसल को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का अभियान मुश्किल में फँसता दिख रहा है

नई दिल्ली । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में शेखर मेहता के दिल्ली में होने वाले स्वागत-समारोह के मुखिया बनने की विनोद बंसल की कोशिशों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन ने तगड़ा झटका दिया है । विनोद बंसल के लिए इससे भी ज्यादा बुरी बात यह हुई है कि सुरेश भसीन ने शेखर मेहता के स्वागत समारोह की कमान रंजन ढींगरा के हाथों में सौंप दी है । शेखर मेहता के स्वागत समारोह की कमान अपने हाथ में रख कर विनोद बंसल दरअसल शेखर मेहता को यह दिखाना/जताना चाहते हैं कि अपने डिस्ट्रिक्ट में उनकी खूब चलती है । विनोद बंसल को लगता है कि शेखर मेहता यह देखेंगे, तो इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए तैयार हो जायेंगे - और शेखर मेहता के समर्थन का जुगाड़ करके वह इंटरनेशनल डायरेक्टर बन जायेंगे । लेकिन सुरेश भसीन उनकी इस जुगाड़बाजी में बाधा बनते नजर आ रहे हैं । शेखर मेहता के स्वागत-समारोह की तैयारी के लिए वह पूरी तरह रंजन ढींगरा पर निर्भर कर रहे हैं, और उन्हीं से विचार-विमर्श कर रहे हैं । विनोद बंसल ने उक्त तैयारी में जब भी जबरन 'घुसने' की कोशिश की, तो सुरेश भसीन ने दो-टूक तरीके से उन्हें बता दिया कि 'यह' रंजन ढींगरा देख/कर लेंगे । विनोद बंसल ने दो एक बार शेखर मेहता का नाम लेकर सुरेश भसीन को दबाव में लेने की कोशिश की, लेकिन सुरेश भसीन ने यह कहते हुए उनकी कोशिश को नाकाम कर दिया कि वह और/या रंजन ढींगरा - शेखर मेहता से बात कर लेंगे ।           
विनोद बंसल ने शेखर मेहता के स्वागत-समारोह की तैयारी में प्रमुख भूमिका पाने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अनूप मित्तल की मदद लेने का प्रयास भी किया, लेकिन सुरेश भसीन की तगड़ी घेराबंदी के चलते उनका यह प्रयास भी सफल नहीं हो सका है । सुरेश भसीन के इस रवैये से विनोद बंसल को यह चिंता हो चली है कि शेखर मेहता के स्वागत-समारोह में उनकी कोई भूमिका यदि नहीं बनी/दिखी तो इसका शेखर मेहता तथा उनके नजदीकियों पर बहुत ही खराब असर पड़ेगा और इससे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उनकी उम्मीदवारी का अभियान मुश्किल में फँसेगा । विनोद बंसल दरअसल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए पूरी तरह शेखर मेहता पर निर्भर कर रहे हैं; ऐसे में उन्हें आशंका हो चली है कि शेखर मेहता जब देखेंगे कि उनकी अपने डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं चल रही है तथा डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं - तब फिर शेखर मेहता भी उनकी उम्मीदवारी में दिलचस्पी लेने से बचेंगे । विनोद बंसल को लग रहा है कि इससे शेखर मेहता के भरोसे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की उनकी प्लानिंग फेल ही हो जाएगी ।
विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में तथा प्रशासनिक व्यवस्था में पिछले करीब एक वर्ष से झटके पर झटके लग रहे हैं । पिछले रोटरी वर्ष में अनूप मित्तल व अशोक कंतूर के बीच हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में विनोद बंसल जिन अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे थे; उन अशोक कंतूर की हार तथा अनूप मित्तल की जीत से विनोद बंसल को तगड़ा झटका लगा था । मौजूदा रोटरी वर्ष में विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए जिन अजीत जालान की उम्मीदवारी को हवा दी हुई है, उनकी स्थिति कमजोर तो चल ही रही है - उन पर चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन के गंभीर आरोप भी लग रहे हैं, और डिस्ट्रिक्ट में चर्चा है कि अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से उनके द्वारा किए गए कुछेक 'कामों' की रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करने की तैयारी की जा रही है । उल्लेखनीय है कि विनोद बंसल पहले भी, केआर रविंद्रन के प्रेसीडेंट-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाने के लिए रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड से फटकार खा चुके हैं । इस सब के बीच सुरेश भसीन का रवैया उनके लिए मुसीबत भरा बना हुआ है । अभी पिछले दिनों ही रोटरी कैंसर फाउंडेशन के मुखिया पद से अजय नारायण को हटाने की सुरेश भसीन की कार्रवाई का विनोद बंसल ने विरोध करते हुए अजय नारायण को बचाने की कोशिश की थी, लेकिन सुरेश भसीन के कड़े रवैये को देखते विनोद बंसल को फिर चुप रह जाने के लिए मजबूर होना पड़ा । शेखर मेहता के स्वागत-समारोह की तैयारी की बागडोर थामने की कोशिश करते हुए विनोद बंसल ने सुरेश भसीन को यह भरोसा भी दिया कि समारोह के खर्च की व्यवस्था वह कर लेंगे, और डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से कोई पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा; सुरेश भसीन ने लेकिन फिर भी स्वागत-समारोह की कमान उन्हें सौंपने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है । विनोद बंसल ने हालाँकि अभी भी उम्मीद नहीं छोड़ी है, और वह लगातार प्रयास में हैं कि अपने डिस्ट्रिक्ट में होने वाले शेखर मेहता के स्वागत-समारोह में उन्हें कोई ऐसी भूमिका मिल जाए, जिसके जरिये वह अपने डिस्ट्रिक्ट में अपनी महत्ता दिखा सकें ।  

Friday, October 11, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में अपने मेडीकल मिशन को हरी झंडी दिलवाने के लिए राजा साबू की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में बिना माँगे सत्ता खेमे के उम्मीदवार नवीन गुलाटी को वोट देने की तैयारी को उनकी चालबाजी के रूप में देखते/समझते हुए सत्ता पक्ष के नेता उनके वोटों को लेकर कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखा रहे हैं

चंडीगढ़ । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में टीके रूबी व जितेंद्र ढींगरा के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के सामने समर्पण करते हुए उनके उम्मीदवार का समर्थन करना चाहते हैं, लेकिन सत्ता खेमे के नेता उनके समर्थन को लेकर उत्साह ही नहीं दिखा रहे हैं । समझा जाता है कि राजा साबू ने अपने स्वार्थों - खासकर अपने तथाकथित मेडीकल मिशनों को पूरा करने के लिए टीके रूबी व जितेंद्र ढींगरा के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के सामने समर्पण करने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी है । पिछले वर्षों में लगातार मिलती रही चुनावी पराजयों को देखते हुए राजा साबू ने समझ लिया है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की कमान उनके हाथ से निकल चुकी है, इसलिए रोटरी के नाम पर पूरे किए जाने वाले अपने स्वार्थों के लिए उन्हें सत्ता खेमे की मदद की जरूरत पड़ेगी ही । राजा साबू तथा उनके साथी गवर्नर्स मान/समझ रहे हैं कि 13 अक्टूबर की सुबह से शुरू होने वाली वोटिंग में उनके समर्थन के बिना भी नवीन गुलाटी को काफी वोट मिल जायेंगे और वह भारी बहुमत से चुनाव जीत जायेंगे, इसलिए उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार को वोट देने का भला क्या फायदा । राजा साबू के लिए मुसीबत की बात लेकिन यह है कि वह तो समर्पण करने के लिए तैयार हैं, लेकिन सत्ता खेमे के नेताओं की तरफ से अभी यह स्पष्ट नहीं है कि वह राजा साबू का समर्पण 'स्वीकार' करेंगे या नहीं । उनकी तरफ से कहा जा रहा है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में जिसको वोट देना चाहें दें, वह उनसे नवीन गुलाटी के लिए वोट देने को नहीं कहेंगे । दरअसल सत्ता खेमे के कुछेक नेताओं का मानना और कहना है कि राजा साबू विश्वास करने योग्य व्यक्ति नहीं हैं; अभी अपना काम निकालने के लिए वह भले ही मीठे-मीठे बनने/दिखने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन काम निकलने के बाद और मौका मिलने पर वह फिर अपने असली रंग में आ जायेंगे ।
राजा साबू के प्रति यह अविश्वास दरअसल इसलिए भी है, क्योंकि देखा/पाया जा रहा है कि राजा साबू एक तरफ तो सत्ता खेमे के नेताओं के साथ मेल-मिलाप करने की कोशिशें कर रहे हैं, लेकिन साथ ही साथ दूसरी तरफ उन्होंने अपने नजदीकी गवर्नर्स को सत्ता खेमे के नेताओं को तरह तरह से परेशान करने व निशाने पर लेने की छूट दी हुई है । इससे लग रहा है कि राजा साबू ने सत्ता खेमे के नेताओं के प्रति 'पुचकारों' और 'धमकाओ' की दोहरी रणनीति अपना रखी है । असल में राजा साबू को पता है कि सत्ता खेमे के कुछेक नेता उनके प्रति नरम रवैया रखते हैं और उनकी 'जरूरतों' को पूरा करने/करवाने में बाधा खड़ी करने के पक्ष में नहीं हैं; लेकिन अन्य कुछेक नेता जानते/समझते हैं कि राजा साबू खेमे की 'जान' डिस्ट्रिक्ट के ट्रस्टों व मेडीकल मिशन जैसे तथाकथित प्रोजेक्ट्स में बसती है और इसलिए उन्हें निशाने पर रख कर वह राजा साबू खेमे के नेताओं को दबाव में रख सकते हैं । ऐसे में, अपनी दोहरी रणनीति के जरिये राजा साबू वास्तव में सत्ता खेमे में दरार डालना चाहते हैं, ताकि उसमें फूट पड़े और राजा साबू को डिस्ट्रिक्ट में मनमानी करने का फिर से मौका मिले । राजा साबू फिलहाल जिम्बाब्बे मेडीकल मिशन को डिस्ट्रिक्ट में हरी झंडी न मिलने से परेशान हैं; राजनीतिक समर्पण के जरिये वह असल में सत्ता खेमे के नरम पक्ष के नेताओं को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वह सत्ता पक्ष के गरम पक्ष के लोगों से इस बात को लेकर झगड़ें कि राजा साबू जब हमारे उम्मीदवार के सामने समस्या खड़ी नहीं कर रहे हैं तो हमें उनके काम में बाधा क्यों डालना चाहिए । राजा साबू बड़ी होशियारी से यह 'दिखाने'/जताने का माहौल भी बना रहे हैं कि कोई पूर्व गवर्नर्स यदि किन्हीं अन्य पूर्व गवर्नर के खिलाफ कुछ कर रहे हैं तो यह उनकी व्यक्तिगत लड़ाई है, और इसमें उनका कोई हाथ नहीं है और इसका डिस्ट्रिक्ट व रोटरी पर प्रभाव नहीं पड़ने देना चाहिए ।
राजा साबू की इन चालाकियों को समझते हुए सत्ता खेमे के कुछेक नेता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनकी मदद लेने को उत्साहित नहीं हैं । उनका कहना है कि राजा साबू तथा उनके खेमे के नेताओं का समर्थन नहीं भी मिलेगा, तब भी नवीन गुलाटी को 110 के करीब वोट आराम से मिल जायेंगे; और वह बड़े अंतर से चुनाव जीत जायेंगे - इसलिए राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स का समर्थन लेने की कोई जरूरत ही नहीं है । इनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में उन्होंने जो प्रभुत्व बनाया है, वह स्थितियों से 'लड़' कर और उनका मुकाबला करके बनाया है; इस स्थिति को बनाए रखने के लिए आगे भी उन्हें 'लड़ना' ही पड़ेगा - अन्यथा राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स फिर से सिर उठा लेंगे; इसलिए राजा साबू के झाँसे में आने की जरूरत नहीं है । इससे राजा साबू के सामने बड़ी फजीहत वाली स्थिति बन गई है - अपने मेडीकल मिशन को हरी झंडी दिलवाने के लिए वह बिना माँगे सत्ता खेमे के उम्मीदवार को वोट देने के लिए तैयार हैं, लेकिन उनकी चालबाजी समझते हुए सत्ता पक्ष के नेता उनके वोटों को लेकर कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखा रहे हैं । राजा साबू को हालाँकि उम्मीद है कि सत्ता खेमे के उम्मीदवार को बिना माँगे समर्थन देने का उन्होंने जो 'रास्ता' पकड़ा है, वह अभी भले ही उनकी फजीहत करवाने वाला लग रहा हो - किंतु भविष्य में यही 'रास्ता' सत्ता खेमे में फूट डालने का काम करेगा और उन्हें डिस्ट्रिक्ट में पहले जैसी हैसियत में पहुँचायेगा । 

Thursday, October 10, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3110 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए पवन अग्रवाल को अधिकृत उम्मीदवार चुनवा कर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि प्रकाश अग्रवाल ने पहले राउंड में अपने गुरु रहे आईएस तोमर को मात दी

बरेली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नोमीनेटिंग कमेटी के जरिये पवन अग्रवाल के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने से डिस्ट्रिक्ट में छिड़ी चुनावी लड़ाई का पहला राउंड गवर्नर खेमे ने जीत लिया है । तोमर खेमे ने इस जीत को बेईमानी से पाई गई जीत घोषित किया है, और इसके खिलाफ रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करने की घोषणा की है । लेकिन जैसा कि माना/कहा जाता है कि 'जो जीता, वह सिकंदर' - इस आधार पर गवर्नर खेमे में उत्साह व खुशी का माहौल है, जिसने तोमर खेमे के लोगों की निराशा को और बढ़ाया हुआ है । इस जीत का हालाँकि आंशिक महत्त्व ही है, क्योंकि असली लड़ाई तो अभी बाकी है; लेकिन प्रतीकात्मक रूप से इस जीत/हार का बड़ा 'मतलब' है । दरअसल नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में जो घटनाक्रम हुआ, उससे साबित होता है कि गवर्नर खेमे के पास एक कुशल रणनीति थी, जबकि तोमर खेमा गलतफहमी में था और वह समझ रहा था कि वह धौंस-डपट से इस लड़ाई को जीत लेगा । तोमर खेमे के पास समर्थन आधार ज्यादा था, लेकिन वह यह समझने की चूक कर बैठा कि चुनावी लड़ाई सिर्फ संख्या-बल से नहीं जीती जाती - उसमें रणनीति नाम की चीज की भी जरूरत होती है । तोमर खेमे के नेताओं ने इस तथ्य की भी अनदेखी की कि गवर्नर खेमे की बागडोर जिन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि प्रकाश अग्रवाल के पास है, वह आईएस तोमर के ही पक्के वाले मुख्य चेले रहे हैं, और इसलिए उनके सारे राजनीतिक हथकंडों को जानते/समझते हैं - और इस कारण से वह उनके हथकंडों को फेल करने की तरकीबें लगायेंगे । गवर्नर खेमे ने तरकीबें लगाईं और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की पहली बाजी जीत ली ।
गवर्नर खेमे ने तोमर खेमे से निपटने के लिए दो बड़े काम किए - एक तो उन्होंने 'घटना' स्थल पर बाउंसर्स लगा लिए, और दूसरा काम उन्होंने यह किया कि रोटरी इंटरनेशनल से ऑब्जर्वर माँग/बुला लिया । रोटरी में चुनावी प्रक्रिया को ईमानदारी से पूरी करवाने के लिए ऑब्जर्वर माँगने/बुलाने की घटनाएँ तो होती हैं, लेकिन ऑब्जर्वर की माँग विरोधी खेमे की तरफ से होती है । डिस्ट्रिक्ट 3110 में यह उल्टी गंगा बही कि खुद गवर्नर ने ही ऑब्जर्वर की माँग की । और बाउंसर्स की तैनाती तो डिस्ट्रिक्ट क्या, रोटरी के इतिहास की अनोखी घटना बनी । दरअसल गवर्नर खेमे को डर था कि तोमर खेमे के लोग दादागिरी व धौंस-डपट के जरिये नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में और फिर उसके फैसले में मनमानी करेंगे और इससे भी उन्हें अपनी दाल गलती हुई नहीं दिखेगी, तो वह पूरी प्रक्रिया को रद्द करवा देने का काम करेंगे । पाँच सदस्यीय इलेक्शन कमेटी में तीन सदस्य तोमर खेमे के थे, और इलेक्शन को रद्द या अमान्य कर देना उनके लिए बहुत आसान होता । रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार, 9 अक्टूबर को यदि प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब पिछले पाँच गवर्नर्स की नोमीनेटिंग कमेटी बनती और वह अधिकृत उम्मीदवार का चयन/चुनाव करती । तोमर खेमे के नेताओं ने सोचा यह था कि वह 9 अक्टूबर को प्रक्रिया पूरी नहीं होने देंगे - और फिर स्थितियाँ पूरी तरह उनके हाथ में आ जायेंगी । गवर्नर खेमे ने इसीलिए रोटरी इंटरनेशनल से नोमीनेटिंग कमेटी की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए ऑब्जर्वर की माँग की ।
ऑब्जर्वर के रूप में आए डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर संजय खन्ना के सामने चुनौती यह थी कि वह प्रक्रिया को पूरा करवाएँ - तभी उनके 'आने' का कोई मतलब है; संजय खन्ना ऑब्जर्वर के रूप में तमाशबीन की भूमिका निभाने के लिए तैयार नहीं थे । उन्होंने आईएस तोमर तथा उनके खेमे के अन्य नेताओं से अलग अलग बात की और यह कहते हुए उन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया कि रोटरी इंटरनेशनल द्वारा तय की गई प्रक्रिया यदि पूरी नहीं होगी, तो डिस्ट्रिक्ट की बदनामी होगी । आईएस तोमर तथा उनके संगी-साथी इस मनोवैज्ञानिक दबाव से निपटने के लिए तैयार नहीं थे; वह तो वास्तव में इसके लिए भी तैयार नहीं थे कि कोई ऑब्जर्वर आ जायेगा । गवर्नर खेमे ने ऑब्जर्वर आने की बात उनसे छिपा कर ही रखी, और तोमर खेमे को यह बात 8 अक्टूबर को तब पता चली, जब संजय खन्ना ने बरेली पहुँच कर उनसे संपर्क किया । ऑब्जर्वर की नियुक्ति करवा कर गवर्नर खेमे ने जो मास्टरस्ट्रोक चला, उसने फिर तोमर खेमे के नेताओं के हाथ-पैर बाँध दिए । 'घटना'स्थल पर बाउंसर्स की तैनाती को देख कर तोमर खेमे के लोगों के हौंसले पूरी तरह पस्त हो गए । प्रक्रिया के दौरान इलेक्शन कमेटी में तोमर खेमे के लोगों ने कई-कई मामलों में आपत्तियाँ करते हुए प्रक्रिया में बाधा पहुँचाने तथा प्रक्रिया को रद्द करवाने के लिए कोशिशें तो खूब कीं, लेकिन संजय खन्ना ने उनकी कोशिशों को कामयाब नहीं होने दिया - संजय खन्ना ने कुछ आपत्तियों को सुना और उन्हें ठीक करवाया, कुछ आपत्तियों पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किशोर कातरू को झिड़का भी, और कुछेक आपत्तियों को अनसुना भी किया; और यह सब करते हुए उन्होंने सुनिश्चित किया कि प्रक्रिया पूरी तरह से संपन्न हो । इससे तोमर खेमे के लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया; कुछ कुछ शिकायतों के सहारे उन्होंने अपनी उम्मीदों को बनाये रखने का प्रयास तो खूब किया - लेकिन संजय खन्ना की व्यूह रचना के सामने उनकी एक नहीं चली और अंततः उनके हाथ पराजय व निराशा ही लगी ।
तोमर खेमे के नेता बेईमानी होने के आरोपों के साथ-साथ इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी की भी आलोचना करते हैं । उनका कहना है कि कमल सांघवी ने संजय खन्ना को सिखा-पढ़ा कर भेजा था कि उन्हें क्या करना है, और संजय खन्ना ने ठीक वही किया । आरोप गवर्नर खेमे के भी कम नहीं हैं । दोनों खेमों के आरोप-प्रत्यारोप अपनी जगह पर हैं और औपचारिक शिकायत होने पर उनके बारे में फैसला रोटरी इंटरनेशनल करेगा; अभी लेकिन यही माना/कहा जा सकता है कि अधिकृत उम्मीदवार चुनने की 'लड़ाई' में गवर्नर खेमे का पलड़ा भारी साबित हुआ है - और यह इसलिए क्योंकि उनके पास एक बेहतर रणनीति थी । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगने लगा है कि तोमर खेमे के लोगों ने यदि राजनीतिक होशियारी से काम नहीं लिया और यही मानते/समझते रहे कि वह धौंस-डपट से चुनावी नतीजे को प्रभावित कर लेंगे, तो वह झटका खायेंगे ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता की असफलता ने सुभाष जैन के गवर्नर-वर्ष की गतिविधियों व सक्रियताओं की याद दिला कर लोगों को नमन जैन को उम्मीदवार बनाने की माँग करने के लिए जिस तरह से प्रेरित किया है, वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में कोई बड़ा गुल सचमुच खिलायेगी क्या ?

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली मोनार्क के निवर्त्तमान प्रेसीडेंट (आईपीपी) नमन जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनाने की लगातार बढ़ती माँग ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को खासा असमंजस में डाल दिया है । नमन जैन चूँकि निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (आईपीडीजी) सुभाष जैन के सुपुत्र हैं; इसलिए डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को लगता है कि नमन जैन यदि उम्मीदवारी के रास्ते से होते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने, तो डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के सारे समीकरण बदल जायेंगे और तब दूसरे नेताओं के लिए बहुत ही सीमित मौके बचेंगे और सुभाष जैन पर उनकी निर्भरता बढ़ जाएगी । नमन जैन की तरफ से, और सुभाष जैन की तरफ से भी - हालाँकि अभी तक नमन जैन की उम्मीदवारी को लेकर कोई संकेत नहीं दिए गए हैं; लेकिन दूसरे लोगों को लगता है कि नमन जैन को उम्मीदवार बनाये जाने को लेकर यदि इसी तरह चर्चा चलती व बढ़ती रही तो नमन जैन की उम्मीदवारी आने में देर भी नहीं लगेगी । यूँ भी नमन जैन रोटरी तथा उसकी गतिविधियों में खासी दिलचस्पी लेते देखे गए हैं । पिछले रोटरी वर्ष में क्लब की तरफ से डिस्ट्रिक्ट की पहली मोबाइल मेमोग्राफी वैन तैयार करने व एक अस्पताल को देने में तथा मौजूदा रोटरी वर्ष में अपने क्लब द्वारा स्पॉन्सर रोट्रेक्ट क्लब के सदस्यों व पदाधिकारियों के साथ प्लानिंग करने में नमन जैन ने जिस तरह की पहलभरी सक्रियता दिखाई है, उसे देख/जान कर ही लोगों को लगा है कि रोटरी को लेकर उनमें उत्साह भी है और स्पष्ट नजरिया भी ।
मजे की बात यह है कि नमन जैन को उम्मीदवार बनाने की चर्चा शुरू तो सुभाष जैन के नजदीकियों ने की थी, लेकिन बढ़ते बढ़ते उक्त चर्चा में ऐसे लोग भी शामिल दिखने लगे हैं जो व्यक्तिविशेष की बजाए डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के हितों को प्रमुखता देते हैं । ऐसे लोगों का मानना/कहना है कि नमन जैन ने पिछले कुछ समय में जिस तरह की सक्रियता दिखाई है, उससे लगता है कि नमन जैन अपने पिता से भी अच्छे व प्रभावी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर साबित होंगे । ऐसा मानने/कहने के पीछे उनका तर्क है कि नमन जैन को स्वाभाविक रूप से सुभाष जैन के अनुभवों का जो फायदा मिलेगा, उसे वह अपनी समझ व सामर्थ्य से और विस्तार दे सकेंगे - और इस तरह सुभाष जैन के गवर्नर-वर्ष में जो थोड़ी-बहुत कमी रह गई थी, उसे भी दूर कर लिया जायेगा तथा डिस्ट्रिक्ट के कामकाज को विविधता भी दी जा सकेगी । दरअसल मौजूदा रोटरी वर्ष में दीवाली मेले को लेकर जैसा नाटक चल रहा है, और टिकटों की बिक्री की स्थिति जिस तरह से ठंडी पड़ी हुई है - उसे देख/जान कर डिस्ट्रिक्ट के लोग पिछले रोटरी वर्ष के दीवाली मेले को याद कर रहे हैं । लोगों को याद है कि पिछले रोटरी वर्ष में सुभाष जैन के प्रयत्नों से लोगों के बीच दीवाली मेले को लेकर खासा जोश था, जिसके चलते करीब डेढ़ महीने पहले ही सभी टिकट बिक चुके थे । इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता दीवाली मेले को लेकर लोगों के बीच जोश पैदा करने में बुरी तरह विफल रहे हैं और इसी का नतीजा है कि दीवाली मेले का दिन नजदीक आ रहा है, लेकिन दीपक गुप्ता को अभी उसके टिकट बेचने के लिए ही माथापच्ची करना पड़ रही है । डिस्ट्रिक्ट में लोग महसूस कर रहे हैं कि सुभाष जैन के गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट में कार्यक्रमों की खासी गहमागहमी थी और सुभाष जैन ने क्लब्स के पदाधिकारियों व वरिष्ठ रोटेरियंस को प्रेरित व उत्साहित किया हुआ था, जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट में एक अलग ही माहौल बना हुआ था ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता की नीरसता व असफलता ने चार महीनों में ही सुभाष जैन के गवर्नर-वर्ष की गतिविधियों व सक्रियताओं की लोगों को जिस तरह से याद दिला दी है, उसके कारण ही वास्तव में नमन जैन को उम्मीदवार बनाने की माँग उठी है । लोगों को लगता है कि नमन जैन के गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट एक बार फिर से वैसी ही रौनक व सक्रियता प्राप्त कर सकेगा, जैसी कि सुभाष जैन के गवर्नर-वर्ष में थी । यह कहने/बताने वाले लोगों की भी कमी नहीं है कि अगले रोटरी वर्ष में जो चुनावी हालात व समीकरण बनते दिख रहे हैं, उसमें नमन जैन के लिए चुनाव जीतना कोई मुश्किल भी नहीं होगा । उल्लेखनीय है कि शुरू में जब यह माँग उठने की आवाजें सुनाई दी थीं, तब डिस्ट्रिक्ट में किसी ने इस माँग को गंभीरता से नहीं लिया था । तब लोगों को लग रहा था कि सुभाष जैन के नजदीक रहने वाले लोग सुभाष जैन को खुश करने/रखने के लिए नमन जैन को उम्मीदवार बनाने की बात कर रहे हैं, और उनकी माँग में ज्यादा दम नहीं है । लेकिन अभी हाल ही में एक वरिष्ठ रोटेरियन के बेटे के विवाह से संबद्ध कार्यक्रम में पहुँचे ऐसे रोटेरियन भी जब नमन जैन को उम्मीदवार बनाये जाने की जरूरत रेखांकित करते देखे/सुने गए, जो रोटरी व डिस्ट्रिक्ट के हितों पर जोर देने की बातें करते रहे हैं - तब डिस्ट्रिक्ट की राजनीति के खिलाड़ियों के कान खड़े हुए और उन्हें भी लगा है कि नमन जैन को उम्मीदवार बनाये जाने की माँग जिस तरह जोर पकड़ती जा रही है, वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जरूर कोई बड़ा गुल खिलायेगी ।

Wednesday, October 9, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में मुकेश गोयल ने इंटरनेशनल थर्ड वाइस प्रेसीडेंट पद के एंडॉर्सी एपी सिंह के मुख्य आतिथ्य में अपने क्लब के जिन प्रेसीडेंट राकेश वर्मा के अधिष्ठापन का कार्यक्रम बनाया है, उन्हीं राकेश वर्मा ने मुकेश गोयल पर इंसानियत को ताक पर रख कर राजनीति करने का आरोप लगा कर उनकी फजीहत कर दी है

हापुड़ । मुकेश गोयल को चुनावी राजनीति के चक्कर में अपने ही क्लब के प्रेसीडेंट राकेश वर्मा से जो और जिस तरह से फटकार सुनने को मिली, उसमें मुकेश गोयल की कमजोर होती पकड़ व राजनीति के संकेतों को साफ देखा/पहचाना जा सकता है । राकेश वर्मा ने मुकेश गोयल को जो फटकार लगाई, उसका ऑडियो सार्वजनिक करके मुकेश गोयल के लिए और भी फजीहत वाली स्थिति पैदा कर दी है । मुकेश गोयल के तौर-तरीकों ने उनके क्लब के सदस्यों व पदाधिकारियों को हालाँकि पहले भी कई बार गुस्सा दिलाया है, लेकिन अक्सर ही उन्हें अपना गुस्सा पी जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है । पहली बार यह देखने को मिला है कि मुकेश गोयल के तौर-तरीकों से खफा होकर उनके क्लब के प्रेसीडेंट ने बड़े ही कर्रे तरीके से न सिर्फ अपना गुस्सा प्रकट किया, बल्कि प्रकट किए अपने गुस्से को उन्होंने सार्वजनिक भी किया है । लोगों का कहना है कि राकेश वर्मा का यह व्यवहार वास्तव में इस बात का संकेत व सुबूत है कि मुकेश गोयल की पकड़ अपने ही क्लब में ढीली पड़ रही है - जिसे वास्तव में डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति तथा प्रशासनिक व्यवस्था में उनकी ढीली पड़ती पकड़ के साइड इफेक्ट के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
उल्लेखनीय है कि मुकेश गोयल के क्लब के प्रेसीडेंट राकेश वर्मा तथा अन्य पदाधिकारियों का अधिष्ठापन कार्यक्रम पहले 20 अक्टूबर को होना निश्चित हुआ था । सितंबर के अंतिम सप्ताह में राकेश वर्मा के जवान भतीजे का निधन हो जाने के कारण 20 अक्टूबर का उक्त कार्यक्रम लेकिन स्थगित करना पड़ा । राकेश वर्मा तो अपने परिवार व नजदीकियों के साथ शोक में थे, मुकेश गोयल लेकिन उनका अधिष्ठापन करवाने वाले कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने में व्यस्त हुए । कार्यक्रम की नई तारीख 2 नवंबर की तय हुई । यहाँ तक कोई समस्या नहीं थी; समस्या लेकिन तब खड़ी हुई जब एक तरफ तो राकेश वर्मा ने अपने भतीजे की तेरहवीं की सूचना सोशल मीडिया में दी, और उसी के साथ-साथ मुकेश गोयल ने 2 नवंबर के कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र सोशल मीडिया में चस्पाँ किए - जिसमें फेस्टिव सेलीब्रेशन व डांडिया पर खासा जोर था । इससे राकेश वर्मा के परिवार के सदस्यों व नजदीकियों के बीच यह संदेश गया कि राकेश वर्मा को फेस्टिव सेलीब्रेशन व डांडिया की बड़ी जल्दी है, और वह अपने भतीजे की तेरहवीं हो जाने का भी इंतजार नहीं कर रहे हैं । राकेश वर्मा ने पाया कि मुकेश गोयल की हरकत के चलते उन्हें अपने परिवार के सदस्यों तथा नजदीकियों के बीच शर्मिंदा होना पड़ा है, और इस कारण से मुकेश गोयल के प्रति उनका गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने यह कहते हुए मुकेश गोयल को फटकारा कि उन्हें राजनीति के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं है ।
मुकेश गोयल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के अपने उम्मीदवार पंकज बिजल्वान को प्रमोट करने के उद्देश्य से आयोजित किए जा रहे अपने क्लब के अधिष्ठापन कार्यक्रम को लेकर खासे उत्साहित हैं । इंटरनेशनल थर्ड वाइस प्रेसीडेंट पद के एंडॉर्सी एपी सिंह को इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है; पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर संगीता जटिया को राकेश वर्मा तथा अन्य पदाधिकारियों का अधिष्ठापन करवाना है । मल्टीपल के प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख नेताओं को राकेश वर्मा तथा अन्य पदाधिकारियों के अधिष्ठापन का नजारा देखना है - लेकिन जिन राकेश वर्मा का अधिष्ठापन होना है, उन राकेश वर्मा ने इन लोगों को आमंत्रित करने वाले मुकेश गोयल की सार्वजनिक रूप से फजीहत की हुई है और आरोप लगाया है कि मुकेश गोयल में जरा सी भी इंसानियत नहीं है और उन्हें सिर्फ राजनीति ही करनी होती है । गौरतलब बात यह है कि मुकेश गोयल ने अभी जो किया है, वह उनकी राजनीतिक स्टाइल का ही एक नजारा है और उन्हें जानने वाले लोगों का मानना/कहना है कि इसमें कुछ भी अनोखा नहीं है - अबकी बार लेकिन जो अनोखापन हुआ है, वह यह कि राकेश वर्मा ने उन्हें उनकी ही स्टाइल में जबाव दे दिया है । राकेश वर्मा ने जो किया है, अब से पहले वह कोई और नहीं कर सका है । लोगों का कहना है कि यह एक इशारा है कि मुकेश गोयल का स्टाइल अब पिट चुका है, और जिस स्टाइल के चलते उन्होंने वर्षों अपनी राजनीति चलाई है, वह अब उनकी फजीहत का कारण बन रहा है । राकेश वर्मा ने जिस तरह से मुकेश गोयल की फजीहत की है, उसे देखते हुए 2 नवंबर के लिए घोषित हुए प्रेसीडेंट के रूप में उनके अधिष्ठापित होने के कार्यक्रम को लेकर भी अनिश्चितता पैदा हो गई है । लोगों को लग रहा है कि मुकेश गोयल के प्रति पैदा हुई उनके ही क्लब के प्रेसीडेंट की नाराजगी अभी और गुल खिलायेगी जो मुकेश गोयल तथा पंकज बिजल्वान के लिए मुसीबत बनेगी ।



रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में अजय नारायण से रोटरी कैंसर फाउंडेशन के मुखिया पद की कुर्सी छिनने के बाद रोटरी ब्लड बैंक में विनोद बंसल का मुखिया पद मुसीबत में फँसा, विनोद बंसल ने इसके लिए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की रमेश अग्रवाल की राजनीति को जिम्मेदार ठहराया

नई दिल्ली । रोटरी कैंसर फाउंडेशन के मुखिया पद पर वर्षों से कुंडली मारे बैठे अजय नारायण की छुट्टी करने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन ने रोटरी ब्लड बैंक के मुखिया विनोद बंसल को निशाने पर लेने की तैयारी शुरू की है । विनोद बंसल वाले मामले में सुरेश भसीन को सहयोगी/साथी डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता का भी समर्थन मिलता नजर आ रहा है । दीपक गुप्ता के रवैये पर हैरानी व्यक्त करते हुए विनोद बंसल ने यह कहते/बताते हुए रमेश अग्रवाल के सिर ठीकरा फोड़ा है कि दीपक गुप्ता को भड़का कर रमेश अग्रवाल उन्हें रोटरी ब्लड बैंक के मुखिया पद से हटवाने का षड्यंत्र कर रहे हैं, ताकि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति में उनकी स्थिति को कमजोर किया जा सके । मजे की बात यह हुई है कि अपनी कुर्सी पर आई आफत से बचने के लिए विनोद बंसल ने अजय नारायण की कुर्सी बचाने की कोशिशों से किनारा कर लिया, हालाँकि पहले वह अजय नारायण की कुर्सी बचाने की लड़ाई में जोरशोर से शामिल थे । दरअसल अजय नारायण को पूर्व गवर्नर्स विनय अग्रवाल व रवि चौधरी के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा का खुला समर्थन रहा; पूर्व गवर्नर विनोद बंसल इस उम्मीद में अजय नारायण की कुर्सी बचाने की मुहिम में शामिल हुए कि इससे वह संजीव राय मेहरा की गुडबुक में आ जायेंगे । लेकिन उन्होंने जब देखा/पाया कि दोनों डिस्ट्रिक्ट्स के छह पदाधिकारियों (दोनों डिस्ट्रिक्ट्स के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी) में से बाकी पाँच अजय नारायण के खिलाफ हैं, और अजय नारायण के खिलाफ छिड़ी लड़ाई की आँच रोटरी ब्लड बैंक की उनकी कुर्सी की तरफ भी बढ़ रही है - तब उन्होंने अजय नारायण के पक्ष में चल रही कोशिशों से अपने आप को अलग कर लिया । अजय नारायण और उनके समर्थकों के बीच बुरा बनने के बावजूद विनोद बंसल अपनी कुर्सी पर मँडराने वाले संकट को लेकिन टाल नहीं सके हैं ।
रोटरी कैंसर फाउंडेशन के मुखिया पद पर वर्षों से कब्जा जमाये बैठे अजय नारायण के खिलाफ नाराजगी तो पिछले कुछेक वर्षों से लगातार बनी हुई थी, लेकिन अजय नारायण तिकड़में लगा कर अपनी कुर्सी को बचाये रखने में कामयाब होते आ रहे थे; अबकी बार लेकिन सुरेश भसीन ने अजय नारायण की ऐसी घेराबंदी की कि उनकी कोई भी तिकड़म काम नहीं आई । रोटरी कैंसर फाउंडेशन के मुखिया के रूप में अजय नारायण ने जैसी मनमानी फैलाई हुई थी, दरअसल उससे सभी खफा थे; सुरेश भसीन ने इसी बात का फायदा उठाया । बची-खुची कसर विनय अग्रवाल व रवि चौधरी जैसे डिस्ट्रिक्ट के बदनाम लोगों के समर्थन ने पूरी कर दी । इन दोनों को अजय नारायण के समर्थन में देख, जिन कुछेक लोगों को अजय नारायण के प्रति हमदर्दी थी भी - उन्होंने भी अजय नारायण की वकालत से हाथ खींच लिए । विनय अग्रवाल व रवि चौधरी के समर्थन ने अजय नारायण को लाभ पहुँचाने की जगह नुकसान पहुँचाने का ही काम किया । जिस आधार पर अजय नारायण की आलोचना की जा रही थी, उसी आधार पर रोटरी ब्लड बैंक का कामकाज भी निशाने पर आया, तो विनोद बंसल ने यह समझने में देर नहीं लगाई कि अजय नारायण के खिलाफ भड़की आग उन्हें भी अपने लपेटे में ले सकती है । अजय नारायण को बचाने की लड़ाई में विनोद बंसल कूदे तो इसलिए थे, ताकि वह विनय अग्रवाल व रवि चौधरी के साथ अजय नारायण के वकील बने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा का भरोसा जीत सकें; लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया कि संजीव राय मेहरा का भरोसा जीतने के चक्कर में वह कहीं मुसीबत में न घिर जाएँ - सो वह चुपचाप तरीके से पीछे हट गए । 
विनोद बंसल लेकिन पीछे हटने के बावजूद मुसीबत से बचते नहीं लग रहे हैं । असल में, रोटरी कैंसर फाउंडेशन के कामकाज पर विचार करते समय रोटरी ब्लड बैंक के कामकाज पर भी पदाधिकारियों का ध्यान गया । उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट में जो भी ट्रस्ट हैं - उसके पदाधिकारियों को कामकाज व हिसाब-किताब का ब्यौरा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को देना जरूरी होता है । इसी नियम के हवाले से रोटरी ब्लड बैंक के कामकाज का जिक्र आया तो यह उल्लेख भी हुआ कि ट्रस्ट के संविधान के अनुसार, प्रत्येक दो वर्ष में पदाधिकारियों का चुनाव होना चाहिए, जो नहीं हुआ है । इस पर दीपक गुप्ता ने रेखांकित किया कि इस आधार पर विनोद बंसल रोटरी ब्लड बैंक के प्रमुख पदाधिकारी नहीं हो सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता से यह सुनकर विनोद बंसल के तनबदन में जैसे आग लग गई । वह बिफर उठे और बताने लगे कि उन्होंने रोटरी ब्लड बैंक में क्या क्या किया है, और उसे कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया है । लोगों के पास इसका जबाव जैसे तैयार था; उनका कहना रहा कि उन्हें पदाधिकारी बनाया ही इसलिए गया था कि उन्हें काम करना है, और काम करने का मतलब यह थोड़े ही है कि नियमों का पालन नहीं होगा । इस तर्क से तो कभी कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दावा कर सकता है कि उसने बहुत काम किया है, इसलिए कार्यकाल खत्म होने के बाद भी उसे गवर्नर बने रहने दिया जाना चाहिए । यह सुनकर विनोद बंसल को चुप हो जाने के लिए मजबूर हो जाना पड़ा । उनकी खुशकिस्मती रही कि दूसरे लोगों ने भी रोटरी ब्लड बैंक के मामले को लेकर ज्यादा बात नहीं की, क्योंकि उन्हें रोटरी कैंसर फाउंडेशन के मामले को निपटाना था । विनोद बंसल समझ रहे हैं कि अभी तो वह बच गए हैं, लेकिन जिस तरह की बातें हुई हैं उसके चलते वह ज्यादा दिन तक बचे नहीं रह सकेंगे । इसीलिए उन्होंने मामले को राजनीतिक ट्विस्ट देकर राजनीतिक लाभ उठाने की चाल चली है । दीपक गुप्ता के रवैये के पीछे विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल को 'देखा'/बताया है और दावा किया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में उन्हें नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से रमेश अग्रवाल ने दीपक गुप्ता को भड़का कर रोटरी ब्लड बैंक के मुखिया पद से उन्हें हटवाने का षड्यंत्र रचा है । विनोद बंसल के इस आरोप ने मामले को रोचक व रोमांचक बना दिया है । 

Saturday, October 5, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में जल्दी चुनाव के फार्मूले के हिट/फिट रहने से प्रियतोश गुप्ता भी आलोक गुप्ता के नजदीक होकर उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जल्दी करवाने के लिए राजी करने की कोशिश में जुटेंगे क्या ?

गाजियाबाद । करीब नब्बे प्रतिशत वोटिंग हो जाने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी नतीजा ललित खन्ना के पक्ष में आने/रहने की संभावना के साथ अगले रोटरी वर्ष में आलोक गुप्ता द्वारा भी जल्दी चुनाव करवाने की चर्चा चल पड़ी है । लोगों को लगता है कि यह 'काम' डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तथा उसके पसंदीदा उम्मीदवार - दोनों का भला करता है, इसलिए हो न हो आलोक गुप्ता भी इस 'प्रथा' को अपना लेंगे । अगले रोटरी वर्ष में संभावित उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे प्रियतोश गुप्ता के नजदीकियों व समर्थकों को उम्मीद है कि प्रियतोश गुप्ता अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में आलोक गुप्ता का समर्थन जुटा लेंगे और फिर जल्दी चुनाव करवाने के लिए उन्हें राजी भी कर लेंगे । सच क्या है, यह तो आलोक गुप्ता व प्रियतोश गुप्ता ही जानते होंगे - डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच चर्चा लेकिन यह है कि पेम वन के आयोजन में प्रियतोश गुप्ता ने खासा सहयोग दिया है, और जिसके जरिए उन्होंने आलोक गुप्ता के नजदीक होने की कोशिश की है । प्रियतोश गुप्ता और उनके नजदीकियों व समर्थकों को लगता है कि चूँकि अभी और किसी संभावित उम्मीदवार ने अपनी तैयारी नहीं दिखाई है, इसलिए उनके सामने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी को लेकर बढ़त बनाने का अच्छा मौका है ।
अगले रोटरी वर्ष में संभावित उम्मीदवारों के रूप में दो-तीन अन्य नाम लोगों के बीच चर्चा में जरूर हैं, लेकिन अभी तक किसी ने चूँकि कोई तैयारी नहीं दिखाई है - इसलिए अभी यह कहना मुश्किल है कि प्रियतोश गुप्ता का चुनावी मुकाबला आखिर किससे होगा ? अन्य संभावित उम्मीदवारों के बीच फैले/बने इसी अनिश्चय का फायदा प्रियतोश गुप्ता उठाना चाहते हैं । हालाँकि प्रियतोश गुप्ता को जानने/पहचानने वाले लोगों का कहना यह भी है कि चुनावी मुकाबले के टेंशन को झेल पाना उनके लिए मुश्किल होगा, और यदि जरा भी मुश्किल चुनौती उनके सामने खड़ी हुई तो फिर उनकी उम्मीदवारी मुसीबत में फँस जाएगी । ऐसे में, उनके सामने बचाव का एक ही रास्ता बचा रह जाता है और वह यह कि एक तरफ तो वह उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता को इतना बढ़ा लें, कि किसी भी दूसरे उम्मीदवार के लिए उनका पीछा करना मुश्किल हो जाए; और दूसरी तरफ वह तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में आलोक गुप्ता का समर्थन पक्का कर लें । इस मामले में प्रियतोश गुप्ता के नजदीकियों व समर्थकों की उन्हें ललित खन्ना के कार्य-व्यवहार से सबक लेने की नसीहत है ।
प्रियतोश गुप्ता के नजदीकियों व समर्थकों का कहना है कि प्रियतोश गुप्ता को ललित खन्ना जैसे तौर-तरीकों को अपनाना चाहिए । ललित खन्ना ने अपनी उम्मीदवारी घोषित करते ही दो काम बड़े तत्परता से किए - एक तरफ उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को अपने समर्थन में किया, और दूसरी तरफ अपनी उम्मीदवारी को लेकर खासी तेजी से संपर्क अभियान चलाया । ललित खन्ना ने शुरू में ही जो बढ़त बना ली थी, उसका फायदा यह हुआ कि बाद में लगे झटकों के बावजूद ललित खन्ना को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता की हरकतों व बदनामी के कारण हो सकने वाले नुकसान से बचने के लिए ललित खन्ना ने वोटिंग शुरू होने से पहले दीपक गुप्ता से दूरी बना ली और लोगों से तर्क भी किया कि दीपक गुप्ता से नाराजगी का बदला उन्हें उनसे क्यों लेना चाहिए । ललित खन्ना की इस रणनीति ने लोगों के बीच दीपक गुप्ता के प्रति पैदा हुई नाराजगी से उन्हें बचाने का काम किया । उम्मीदवार के रूप में ललित खन्ना के तौर-तरीके प्रियतोश गुप्ता के नजदीकियों व समर्थकों को पूरी तरह परफेक्ट लग/दिख रहे हैं और इसीलिए उन्हें लग रहा है कि प्रियतोश गुप्ता को जल्दी से जल्दी ललित खन्ना की राह पर चल पड़ना चाहिए । यह देखना सचमुच दिलचस्प होगा कि जल्दी चुनाव के फार्मूले से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बनने' वाले आलोक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जल्दी चुनाव करवाते हैं या नहीं ? 

Friday, October 4, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा नॉर्दन इंडिया रीजनल काउंसिल में बेईमानी से पैसे बनाने की बात पर पहले तो जोश में आए थे, लेकिन अविनाश गुप्ता द्वारा परिस्थितजन्य साक्ष्य देने के बाद चुप बैठ गए लगते हैं

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में कुछेक सदस्यों पर रीजनल काउंसिल की गतिविधियों के नाम पर पैसा कमाने के आरोपों को लेकर पहले तो खासे तेवर दिखाए और जताया कि उन्हें यदि सुबूत मिलें, तो वह कार्रवाई करें/करवायेंगे - लेकिन सुबूत दिए जाने के बाद वह चुप्पी लगा गए हैं । वह यदि कोई कार्रवाई कर रहे हैं तो यह सिर्फ उन्हें ही पता होगा - सुबूत माँगने और देने का काम पब्लिक डोमेन में हुआ है; कार्रवाई की कोई बात लेकिन पब्लिक डोमेन में नहीं है । उल्लेखनीय है कि एक सार्वजनिक चर्चा में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउन्सिल. के सदस्य अविनाश गुप्ता ने आरोप लगाया कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउन्सिल. के कुछेक सदस्य काउंसिल की गतिविधियों की आड़ में पैसे बना रहे हैं । अमरजीत चोपड़ा तुरंत इस बहस में कूदे और उन्होंने अविनाश गुप्ता से कहा कि उनका आरोप बहुत ही गंभीर है और उनके आरोप यदि सच हैं तो वह सुबूत बताएँ/दिखाएँ । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के पूर्व सदस्य संजीव चौधरी ने भी अविनाश गुप्ता से इसी तरह की बातें कहीं । अविनाश गुप्ता ने तुरंत से इस तरह की बातें बताईं, जो उनके आरोप को सच साबित करती दिखती/दिखाती हैं । लेकिन उसके बाद अमरजीत चोपड़ा और संजीव चौधरी ने चुप्पी साध ली है । कुछेक लोगों को लगता है कि हो सकता है कि अविनाश गुप्ता द्वारा दिए गए तथ्य अमरजीत चोपड़ा व संजीव चौधरी को आरोप साबित करने के मामले में पर्याप्त न लगे हों, और इसीलिए वह चुप हो गए हैं ।
यह मामला एक मशहूर किस्से जैसा बन पड़ा है, जो है तो फूहड़ लेकिन प्रासंगिक है । किस्सा यह है कि एक व्यक्ति पर उसकी पत्नी और पत्नी के भाईयों ने दुश्चरित्र होने का आरोप लगाया और शिकायत उसके पिता से की । पिता ने उनसे पूछा के उनके बेटे को दुश्चरित्र साबित करने के लिए उनके पास कोई सुबूत है क्या ? तब उन्हें यह कहते हुए एक वीडियो दिखाया कि कल शाम आपका बेटा आपसे यह कह कर बाहर गया था कि उसके एक दोस्त का बड़ा भयंकर एक्सीडेंट हो गया है और वह उसे देखने अस्पताल जा रहा है; लेकिन यह देखिए, उस समय वह किसी अस्पताल नहीं बल्कि एक होटल में गया है; होटल की लॉबी में लगी घड़ी समय बता रही है, आप देख सकते हैं । आगे देखिए, लॉबी में पहले से बैठी महिला आपके बेटे को देखते ही उठ खड़ी हुई और उसकी तरह बढ़ी । वीडियो में देखिए, दोनों ने एक दूसरे को आलिंगन में ले लिया है और वह एक दूसरे को किस कर रहे हैं । इसके बाद दोनों एक दूसरे की बाँहों में बाँहें डाले लिफ्ट की तरफ बढ़ रहे हैं । और यह देखिए, यहाँ लिफ्ट से निकल कर दोनों पहले से बुक करवाए गए कमरे में गए हैं और कमरा बंद करने से पहले उन्होंने दरवाजे पर 'डू नॉट डिस्टर्ब' का फलैग टाँग दिया है । पिता ने प्रश्नवाचक निगाह से पूछा, हाँ इसके आगे क्या हुआ ? उन्हें बताया गया कि इसके आगे क्या हुआ, उसे तो वह वीडियो पर रिकॉर्ड नहीं कर पाए हैं; लेकिन जितना बताया/दिखाया - उससे क्या उनके आरोप की पुष्टि नहीं होती है ? पिता का कहना रहा कि जो कुछ उन्हें दिखाया/बताया गया है, उससे यह तो साबित होता है कि उनके बेटे ने उनसे झूठ बोला है और घायल दोस्त को देखने अस्पताल जाने की बजाए वह एक होटल में महिला से मिलने गया; लेकिन जब तक उन्हें कोई पक्का सुबूत नहीं दिया जायेगा वह यह स्वीकार नहीं करेंगे कि उनका बेटा दुश्चरित्र है ।
अमरजीत चोपड़ा लगता है कि इस किस्से में जो पिता है, उसके दूर के रिश्तेदार हैं ।अविनाश गुप्ता ने उन्हें बताया कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में परचेज कमेटी की संस्तुति लिए बिना होटल के रेट बढ़ा दिए गए और बढ़े रेट के हिसाब से भुगतान भी कर दिए गए हैं । अविनाश गुप्ता ने उन्हें बताया कि कई मामलों में संबंधित पदाधिकारियों व सदस्यों की जानकारी में लाए बिना पेमेंट्स किए गए हैं । अविनाश गुप्ता ने दावा किया कि कई मामलों में तो चेयरमैन की अनुमति लिए बिना पेमेंट्स किए गए हैं । अविनाश गुप्ता ने बताया कि वह रीजनल काउंसिल के सदस्य हैं, लेकिन उन्हें भी रीजनल काउंसिल के अकाउंट्स देखने की अनुमति नहीं मिली है और बार-बार के उनके अनुरोधों को लगातार टाला जाता रहा है । लेकिन लगता है कि अमरजीत चोपड़ा को इन सब बातों से यह साबित होता हुआ नहीं दिख/लग रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में कोई बेईमानी हो रही है । किस्से वाले पिता की तरह अमरजीत चोपड़ा को भी पक्के सुबूत की जरूरत है, जो यह साबित करे कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में कुछेक सदस्य बेईमानी कर रहे हैं और पैसे बना रहे हैं । लगता है कि पक्का सुबूत न मिलने के कारण ही अमरजीत चोपड़ा ने उत्साह दिखाने के बावजूद मामले में अब चुप्पी साध ली है । उल्लेखनीय है कि अमरजीत चोपड़ा सिर्फ इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट ही नहीं हैं; वह अभी भी कई रूपों में इंस्टीट्यूट की कार्य-प्रणाली से जुड़े हुए हैं; दरअसल इसीलिए अविनाश गुप्ता के आरोप पर उन्होंने जब दिलचस्पी दिखाई थी - तब कई लोगों को लगा था कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चलने वाली बेईमानियों पर लगाम लगाने के लिए वह सचमुच कुछ करेंगे; लेकिन अमरजीत चोपड़ा के चुप्पी साध लेने से उन लोगों को खासी निराशा हुई है ।

Thursday, October 3, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3110 में नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किशोर कातरू द्वारा की गई मनमानी व नियमों की अनदेखी के आरोपों के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की पवन अग्रवाल की उम्मीदवारी मुसीबत में फँसेगी क्या ?

बरेली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किशोर कातरू डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी झमेले में रोटरी के प्रमुख कामों तथा उसके नियम-कानूनों की अनदेखी तथा ऐसीतैसी करने के कारण रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों और नेताओं की 'निगाह' में आ गए हैं, जिसे उनके और डिस्ट्रिक्ट के लिए अच्छा नहीं समझा जा रहा है । दिल्ली में अभी हाल ही में आयोजित हुए नेशनल लेबल के पोलियो कार्यक्रम में उपस्थित रहना जरूरी समझने की बजाये डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सक्रिय रहने को तरजीह देने के कारण किशोर कातरू रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं के बीच आलोचना का शिकार बन रहे हैं । किशोर कातरू की इस हरकत के चलते इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी को भी नीचा देखना पड़ा है । चर्चा रही कि कमल सांघवी के जोन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पोलियो कार्यक्रम की महत्ता नहीं समझ रहे हैं । उक्त कार्यक्रम में देशभर के रोटरी डिस्ट्रिक्ट्स के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तथा रोटरी के बड़े पदाधिकारी व नेता उपस्थित हुए थे । इस कार्यक्रम में किशोर कातरू की अनुपस्थिति ने उनकी और डिस्ट्रिक्ट 3110 की छवि खराब करने का काम किया । दरअसल कुछेक पदाधिकारियों और नेताओं को डिस्ट्रिक्ट के लोगों की तरफ से बता दिया गया है कि किशोर कातरू को जिस समय पोलियो के कार्यक्रम में शामिल होना था, उस समय वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार पवन अग्रवाल को लेकर अलीगढ़ के क्लब्स में राजनीतिक प्रचार में जुटे हुए थे । दिल्ली में हुए नेशनल लेबल के पोलियो कार्यक्रम में किशोर कातरू की अनुपस्थिति दरअसल इसलिए तुरंत से नोटिस में आ गई, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनके मनमाने व नियम-विरुद्ध कार्य-व्यवहार को लेकर ढेरों शिकायतें रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों व नेताओं के पास पहले से ही पहुँची हुई हैं ।
नोमीनेटिंग कमेटी के लिए चलने वाली चुनावी प्रक्रिया को लेकर रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों व बड़े नेताओं के पास किशोर कातरू की बहुत सी शिकायतें पहुँची हुई हैं । आरोप हैं कि उक्त चुनावी प्रक्रिया में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में किशोर कातरू ने जी भर कर मनमानियाँ की हैं और रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानूनों का तरह तरह से खूब उल्लंघन किया है । नोमीनेटिंग कमेटी में प्रतिनिधित्व के लिए जोन में आने वाले क्लब्स का निर्धारण गुपचुप तरीके से किया गया और इस बात को डिस्ट्रिक्ट के लोगों से छिपाया गया । आरोपों के अनुसार, चुनाव से दो दिन पहले तक क्लब्स को जोन में जोड़ने/घटाने काम किया गया । नए बने छह क्लब्स को मनमाने तरीके से जोन्स में शामिल किया गया और इस काम में भी कोई पारदर्शिता नहीं रखी गई तथा जानकारी माँगने वालों को जबाव तक नहीं दिए गए । कई क्लब्स के पदाधिकारियों को तो ऐन मौके पर ही पता चला कि वह किस जोन में हैं, और नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उनके उम्मीदवार कौन हैं । आरोप है कि किशोर कातरू ने यह सब 'अपने' उम्मीदवारों की जीत को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया, ताकि वह नोमीनेटिंग कमेटी में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए पवन अग्रवाल को अधिकृत उम्मीदवार चुनवा सकें ।
किशोर कातरू को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मनमानियाँ करने का हौंसला इसलिए भी मिला, क्योंकि उनकी कारगुजारियों की शिकायतों पर रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से कोई कार्रवाई होती हुई नहीं दिखी । मजे की बात यह रही कि शिकायत करने वालों को रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से इस बात की भी जानकारी नहीं मिली कि उन्हें कोई शिकायत मिली भी है । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के इस व्यवहार को किशोर कातरू को इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी के समर्थन के रूप में देखा/पहचाना गया है । लोगों का कहना है कि कमल सांघवी की तरफ से शह मिलने के कारण ही किशोर कातरू के हौंसले खासे बुलंद हुए और चुनाव संबंधी नियम-कानूनों का मजाक बना देने में उन्होंने कोई संकोच नहीं किया । किशोर कातरू के लिए मुसीबत व फजीहत की बात यह हो गई है कि पवन अग्रवाल के कई समर्थकों व शुभचिंतकों को डर हो गया है कि किशोर कातरू की मनमानियाँ कहीं पवन अग्रवाल की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम न करें । दरअसल नोमीनेटिंग कमेटी के लिए हुए चुनाव में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में किशोर कातरू ने जो और जिस तरह की मनमानियाँ की हैं, उसके कारण कई क्लब्स के प्रेसीडेंट्स व पदाधिकारियों ने अपने आपको अपमानित महसूस किया है । कई क्लब्स के प्रेसीडेंट्स व अन्य पदाधिकारियों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में किशोर कातरू उन पर अपने फैसले थोपने की कोशिश कर रहे हैं, और उन्हें मनमाने तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं । क्लब्स के पदाधिकारियों की तरफ से किशोर कातरू के खिलाफ नाराजगी व्यक्त करने वाली बातों को सुन कर ही पवन अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को आशंका हो चली है कि किशोर कातरू की मनमानियाँ और उनके कारण होने वाली उनकी बदनामी कहीं पवन अग्रवाल की उम्मीदवारी के अभियान की कहीं हवा न निकाल दे ?