Monday, October 29, 2012

रिक्शेवाले को भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवा देने का दावा करने वाले मुकेश अरनेजा को इस बार के चुनाव से पहले 'बुखार' चढ़ा और 'दस्त' लगे

नई दिल्ली | आलोक गुप्ता के क्लब के चार्टर डे समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किये गए मुकेश अरनेजा ने अनुपस्थित रह कर जेके गौड़ को जहाँ राहत और बढ़त दी, वहीं डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को आश्चर्य में डाला | हर किसी को हैरानी हुई है कि रग-रग से राजनीति करने वाले मुकेश अरनेजा ने राजनीति करने का इतना सुनहरा मौका छोड़ क्यों दिया ? कुछेक लोगों ने अनुमान भी लगाया कि मुकेश अरनेजा शायद सुधर गए हैं और अब उन्होंने राजनीति करने से तौबा कर ली है - लेकिन जिन लोगों ने ऐसा अनुमान लगाया, उन्होंने ही फिर स्वीकार भी किया कि मुकेश अरनेजा सुधरने वाली चीज़ हैं नहीं | मुकेश अरनेजा ने राजनीति यदि छोड़ दी, तो राजनीति तो बेचारी अनाथ हो जायेगी | मुकेश अरनेजा को जानने वाले लोगों का कहना है कि मुकेश अरनेजा में लाख ऐब सही, लेकिन इतने निर्दयी वह नहीं हो सकते कि अपनी 'जान' को वह अनाथ हो जाने दें | राजनीति उनकी जान है; या कहें कि राजनीति में ही उनकी जान बसती है |
तब फिर, आलोक गुप्ता के क्लब के समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आकर राजनीति करने का जो मौका उनके सामने था - उसे उन्होंने गवाँ क्यों दिया ?
या, इस मौके को गवाने के पीछे उनकी कोई राजनीति थी ?
यह जानना/समझना दिलचस्प होगा कि मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता के क्लब के समारोह में आना स्वीकार करके ऐन मौके पर गच्चा क्यों दे दिया ? आलोक गुप्ता ने मुकेश अरनेजा के न आने का लोगों को जो कारण बताया उसके अनुसार मुकेश अरनेजा बुखार की चपेट में आ जाने के कारण समारोह में नहीं पहुँच सके | ऐन मौके पर मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता को ऐसा ही बताया था | रोटरी क्लब गाज़ियाबाद आईडियल के अध्यक्ष को मुकेश अरनेजा ने न आने का कारण लेकिन दस्त होना बताया | सयानों ने पहले से ही कहा/बताया हुआ है कि झूठ बोलने वाला अक्सर यह गलती करता है कि वह यह याद नहीं रख पाता कि पहले उसने क्या कहा है | मुकेश अरनेजा ने जिस तरह न आने का कारण किसी को बुखार आना तो किसी को दस्त होना बताया - उससे जाहिर है कि मुकेश अरनेजा ने झूठ बोला | तो क्या मुकेश अरनेजा इसलिए नहीं आये क्योंकि उन्होंने जाना/समझा कि वह आये तो मुसीबत में फँसेंगे ? मुसीबत में फँसने से बचने की कोशिश में ही उन्होंने आलोक गुप्ता के क्लब के समारोह से दूर रहने का फैसला किया - और इसका कारण किसी को कुछ तो किसी को कुछ और बताया | यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि आलोक गुप्ता के क्लब के अभी तक जितने भी चार्टर डे समारोह हुए हैं, मुकेश अरनेजा सभी में उपस्थित रहे हैं | पिछले दिनों आलोक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में दिए अपने भाषण में मुकेश अरनेजा ने खुद भी इस बात का खुलासा किया था और घोषणा की थी कि वह आगे भी - आमंत्रित न भी किये जाये, तो भी - इस क्लब के चार्टर डे समारोह में आते रहेंगे | लेकिन जब मौका आया तो आमंत्रित होने और मुख्य अतिथि होना स्वीकार करने के बावजूद वह नहीं आये | किसी को उन्होंने बताया कि उन्हें बुखार आ गया तो किसी को बताया कि उन्हें दस्त लग गए |
यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि पहले कई बार ऐसे मौके आये हैं - और यह बात खुद मुकेश अरनेजा ने ही लोगों को बताई है - कि बुखार में होने के बावजूद मुकेश अरनेजा कार्यक्रमों में शामिल हुए हैं | जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि राजनीति उनकी जान है या कहें कि राजनीति में उनकी जान बसती है - जिस कारण कोई बुखार या ख़राब तबियत उन्हें कार्यक्रम में शामिल होने से नहीं रोक सका है | इस बार, लेकिन पता नहीं 'कैसा' बुखार था या 'कैसे' दस्त थे कि मुकेश अरनेजा को कार्यक्रम में शामिल होना स्थगित करना पड़ा | मुकेश अरनेजा को जानने वाले लोगों को लगता है कि 'बुखार' और 'दस्त' की आड़ में मुकेश अरनेजा ने राजनीति से बचने की कोशिश नहीं की है, बल्कि राजनीति की है - और उनकी इस राजनीति का शिकार बने आलोक गुप्ता | उल्लेखनीय है कि आलोक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए मुकेश अरनेजा की मदद पर निर्भर हैं और अलग-अलग मौकों पर मुकेश अरनेजा के साथ अपनी नज़दीकी दिखाने का प्रयास करते रहे हैं | अपने क्लब के चार्टर डे समारोह में मुकेश अरनेजा को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने के पीछे भी आलोक गुप्ता का यही उद्देश्य देखा/पहचाना जा रहा था | इस वर्ष मुकेश अरनेजा हालाँकि दावा तो करते रहे हैं कि वह चुनाव के पचड़े में नहीं पड़ेंगे लेकिन आलोक गुप्ता के क्लब के चार्टर डे समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होने की स्वीकृति देकर उन्होंने एक बार फिर जता/बता दिया कि उनके कहे हुए पर जो विश्वास करे उससे बड़ा मूर्ख कोई नहीं होगा |
आलोक गुप्ता के क्लब के चार्टर डे समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होने की अनुमति देकर मुकेश अरनेजा चुनाव के पचड़े में न पड़ने के अपने ही दावे से पलटे - लेकिन फिर जल्दी ही जैसे ही उन्हें यह लगा कि उनका यह दांव कहीं उल्टा न पड़ जाये, लिहाजा वह एक बार फिर पलट गए और समारोह में पहुँचे ही नहीं | पिछली बार मुकेश अरनेजा ने रवि चौधरी को जितवाने का ठेका लिया था और सार्वजानिक रूप से घोषणा की थी कि वह तो किसी रिक्शेवाले को भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवा सकते हैं | इस घोषणा के बावजूद वह रवि चौधरी को चुनाव नहीं जितवा सके और अपनी मिट्टी कुटवा बैठे | मुकेश अरनेजा के समर्थन के बावजूद रवि चौधरी का क्या हुआ, यह देखते हुए भी आलोक गुप्ता ने मुकेश अरनेजा के समर्थन पर निर्भर होने का फैसला किया - यह आलोक गुप्ता का साहस है; लेकिन मुकेश अरनेजा इस बार वह गलती नहीं करना चाहते हैं जो उन्होंने पिछली बार की | आलोक गुप्ता ने तो हर संभव कोशिश की है कि मुकेश अरनेजा उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में 'दिखें' - लेकिन मुकेश अरनेजा ने इससे बचने का ही प्रयास किया है | आलोक गुप्ता के क्लब के समारोह में शामिल होने के ऐन मौके पर उन्हें जो बुखार आया या दस्त लगे - उसके पीछे के प्रेशर में उनके इसी प्रयास को देखा/पहचाना गया है |
आलोक गुप्ता के क्लब के समारोह में आने से बचने की मुकेश अरनेजा की कार्रवाई ने जेके गौड़ को न सिर्फ बड़ी राहत दी, बल्कि बढ़त भी दी | दरअसल जेके गौड़ भी मुकेश अरनेजा के समर्थन का दावा करते हैं | मुकेश अरनेजा के साथ जेके गौड़ के सहयोगात्मक संबंध रहे भी हैं - जिन्हें ध्यान में रखते हुए लोगों को उनके दावे में सच्चाई भी महसूस होती है | लेकिन आलोक गुप्ता के क्लब के समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में मुकेश अरनेजा की उपस्थिति जेके गौड़ के दावे को संदेह के घेरे में लाती और उनकी स्थिति को कमजोर बनाती | आलोक गुप्ता के क्लब के समारोह में न शामिल होकर मुकेश अरनेजा ने जेके गौड़ के दावे को विश्वसनीय बना दिया है | मुकेश अरनेजा की इस कार्रवाई में लोगों ने यह सन्देश भी पढ़ा कि मुकेश अरनेजा की निगाह में आलोक गुप्ता के मुकाबले जेके गौड़ की स्थिति ज्यादा मजबूत है - इसीलिये मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता के साथ खड़े दिखने से बचने का प्रयास किया | आलोक गुप्ता को लोग समय-समय पर सावधान करते रहे हैं कि मुकेश अरनेजा के भरोसे रहोगे तो धोखा ही खाओगे - आलोक गुप्ता ने लेकिन किसी की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और अंततः धोखा खाया |
मुकेश अरनेजा का सहारा लेकर जेके गौड़ से आगे निकलने की आलोक गुप्ता की रणनीति को भले ही चोट पहुँची हो, लेकिन सुधीर मंगला के समर्थक समझे जाने वाले लोगों को अपने साथ दिखा कर आलोक गुप्ता ने सुधीर मंगला को तगड़ी चोट दी है | संभवतः सुधीर मंगला को इसका डर था - इसीलिये आलोक गुप्ता के क्लब के इस समारोह को न होने देने के लिए उन्होंने रोड़े अटकाने की कोशिश की थी | सुधीर मंगला के लिए निराशा की बात यह रही कि वह इस समारोह को होने से नहीं रोक सके | सुधीर मंगला के लिए दोहरी चोट यह रही कि उनके समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले कई लोग आलोक गुप्ता के साथ खड़े नज़र आये | चार्टर डे समारोह के जरिये हुई राजनीति में आलोक गुप्ता को जो मिलाजुला नतीजा प्राप्त हुआ है - उसमें उनके लिए भी सन्देश छिपा है : जहाँ सुधीर मंगला से निपटने में उन्होंने अपने से प्रयास किया, उसमें उन्हें सफलता मिली; लेकिन जहाँ जेके गौड़ से निपटने में उन्होंने मुकेश अरनेजा की मदद ली, वहाँ उन्हें झटका लगा और मुकेश अरनेजा उनकी मदद करने की बजाये जेके गौड़ की मदद करते हुए नज़र आये |

Sunday, October 7, 2012

आलोक गुप्ता ने सुधीर मंगला के 'कार्ड्स' छीन कर सुधीर मंगला को उनके अपने ही लोगों के बीच बेगाना सा बना दिया है

नई दिल्ली | आलोक गुप्ता ने रिश्तेदारी और बनियावाद के सुधीर मंगला के कार्ड्स को ऐसा छीना है कि विकास गुप्ता और राजीव गुप्ता की सक्रियता के साथ हुए कार्यक्रम का सुधीर मंगला को निमंत्रण तक नहीं मिला | उल्लेखनीय है कि सुधीर मंगला ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का अभियान 'रिश्तेदारी' की नींव पर खड़ा करने का प्रयास किया था | प्रयास उनका अच्छा था - क्योंकि रोटरी की चुनावी राजनीति में उम्मीदवार को समय इतना 'कम' मिलता है कि दूसरी चीजों/बातों से मतदाताओं के बीच पैठ बनाना थोड़ा मुश्किल होता है; और ऐसे में 'रिश्तेदारी' और 'जाति' काम आती है | तीन वर्ष पहले रमेश अग्रवाल ने इसका बड़े सुनियोजित तरीके से इस्तेमाल किया था | उनसे पहले भी हालाँकि कई लोगों ने रिश्तेदारी और जाति का सहारा लिया था और सफल हुए थे - लेकिन रमेश अग्रवाल ने जिस खुले तौर पर इनका इस्तेमाल किया, उसका असर यह हुआ कि इनके इस्तेमाल को बुरा मानना/समझना कुछ दूर हुआ | रमेश अग्रवाल की सफलता से प्रेरित होकर विनोद बंसल ने इनका और भी होशियारी से इस्तेमाल किया | पिछले वर्ष का मामला बिल्कुल अलग था | पिछले वर्ष चूँकि सत्ता खेमे की पक्षपातपूर्ण मनमानी और खुली बदमाशी से लड़ाई थी, इसलिए रिश्तेदारी और जाति का मामला पीछे छूट गया था | इस वर्ष चूँकि कोई खास मुद्दा नहीं है, इसलिए उम्मीदवार हवा में हाथ-पैर चला रहे हैं | ऐसे में, सुधीर मंगला ने रिश्तेदारी और जाति का सहारा लेने का जो दांव चला, वह बड़ा हिट रहा | यह हिट इसलिए भी रहा क्योंकि सुधीर मंगला इस दांव को लेकर बहुत सक्रिय भी हुए और जब सक्रिय हुए तो लोगों के बीच उन्होंने अपने रिश्तेदारों की पहचान भी करवाई |
सुधीर मंगला के इस हिट अभियान को लेकिन आलोक गुप्ता ने ग्रहण लगा दिया है | आलोक गुप्ता ने भी उन्हीं कार्ड्स को इस्तेमाल करना शुरू किया, जो सुधीर मंगला इस्तेमाल कर रहे थे, तो नतीजा यह निकलता दिखा कि सुधीर मंगला अपने ही लोगों के बीच बेगाने हो गए | सुधीर मंगला के लिए सबसे बड़ा झटका यह रहा कि उन्हें विकास गुप्ता और राजीव गुप्ता की पहलभरी सक्रियता के साथ हुए कार्यक्रम का निमंत्रण तक नहीं मिला | सुधीर मंगला के लिए यह झटका इसलिए और बड़ा रहा क्योंकि इस कार्यक्रम में आलोक गुप्ता उपस्थित थे - न सिर्फ उपस्थित थे, बल्कि आयोजक लोगों के साथ उनकी नजदीकी भी दिख रही थी | उक्त कार्यक्रम में हालंकि डॉक्टर सुब्रमणियन और सरोज जोशी के रूप में दूसरे उम्मीदवार भी थे, लेकिन सुधीर मंगला की अनुपस्थिति के कुछ अलग ही मतलब निकाले गए | लोगों को जब यह पता चला कि सुधीर मंगला को इस कार्यक्रम का निमंत्रण ही नहीं दिया गया, तब उस 'मतलब' के अर्थ और बड़े हो गए | यह तो पता नहीं चल पाया कि सुधीर मंगला को उक्त कार्यक्रम का निमंत्रण न मिलने के पीछे आलोक गुप्ता का कोई 'मूव' काम कर रहा था या नहीं; लेकिन जो 'दिख' रहा था उससे लोगों के बीच यह संदेश जरूर गया कि जिन कार्ड्स के भरोसे सुधीर मंगला अपनी उम्मीदवारी के समर्थन का आधार बना रहे थे, वह कार्ड्स अब आलोक गुप्ता के हाथों में हैं | इससे पहले फरीदाबाद में सुधीर मंगला द्धारा आयोजित मीटिंग फ्लॉप हो चुकी थी और गाजियाबाद में चार अक्टूबर को प्रस्तावित मीटिंग भी खतरे में नजर आ रही थी - जिसे खतरे से उबारने के लिए उसे चार की बजाये आठ अक्टूबर को आयोजित करने का फैसला लिया जा रहा था | फरीदाबाद और गाजियाबाद में सुधीर मंगला को जो झटका लगा, उसके लिए सुधीर मंगला ने औपचारिक रूप से तो टी20 विश्व कप को जिम्मेदार ठहराया, लेकिन अपने निशाने पर उन्होंने आलोक गुप्ता को लेना शुरू किया |
सुधीर मंगला ने जिस तरह आलोक गुप्ता को निशाने पर लेना शुरू किया है, उससे लोगों को यही लगा है कि पहले फरीदाबाद में, फिर दिल्ली में और फिर गाजियाबाद में सुधीर मंगला को जो झटका लगा है - सुधीर मंगला उसके लिए आलोक गुप्ता को ही जिम्मेदार मानते हैं | डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई को दिलचस्पी के साथ देखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि आलोक गुप्ता ने सुधीर मंगला को कितना क्या नुकसान पहुँचाया है - यह कहना तो अभी मुश्किल है, लेकिन यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि सुधीर मंगला के 'कार्ड्स' आलोक गुप्ता ने अवश्य ही उनसे छीन लिए हैं | आलोक गुप्ता को चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल का नजदीकी समझा जाता है, और इन कार्ड्स को इस्तेमाल करने की महारत का ख़िताब चूँकि रमेश अग्रवाल के पास ही है - इसलिए यह कहने वालों की भी कमी नहीं है कि सुधीर मंगला से इन 'कार्ड्स' को छीनने में कहीं रमेश अग्रवाल ने तो आलोक गुप्ता की मदद नहीं की है ?
आलोक गुप्ता ने सुधीर मंगला के समर्थन-आधार पर जिस तरह का 'हमला' बोला है तथा जिस तरह उनके 'कार्ड्स' अपने हाथ में ले लिए हैं, सुधीर मंगला उससे गंभीर दवाब में आ गए हैं | आलोक गुप्ता की इस कार्रवाई के पीछे रमेश अग्रवाल के होने की संभावनाओं ने तो उन्हें और चिंता में डाल दिया है | आलोक गुप्ता के इस हमले से निपटने के लिए सुधीर मंगला ने फ़िलहाल तो जेके गौड़ को अपनी ढाल बनाया है | आलोक गुप्ता ज्यादा बढ़त न बना सकें, इसके लिए सुधीर मंगला ने कहना/बताना शुरू किया है कि आलोक गुप्ता की इस कार्रवाई से जेके गौड़ को ही फायदा होगा | सुधीर मंगला की निगाह दरअसल ऐसे लोगों पर है जो किसी न किसी कारण से जेके गौड़ के साथ नहीं जाएँगे | 'ऐसे' लोगों को आलोक गुप्ता अपने पक्ष में न कर लें, इसलिए ही सुधीर मंगला ने लोगों को यह बताना/समझाना शुरू किया है कि आलोक गुप्ता के झांसे में मत आना - क्योंकि यदि आयोगे तो जेके गौड़ को फायदा पहुँचेगा | आलोक गुप्ता और उनके समर्थक व शुभचिंतक लेकिन फरीदाबाद, दिल्ली और गाजियाबाद में सुधीर मंगला को मिले झटके से उत्साहित हैं और मान कर चल रहे हैं कि आलोक गुप्ता ने सुधीर मंगला के 'कार्ड्स' अभी तो छीने ही हैं - सुधीर मंगला जब अभी ही दबाव में आ गए हैं तो आगे जब वह उन कार्ड्स को और ज्यादा तैयारी के साथ इस्तेमाल करना शुरू करेंगे, तब क्या होगा ? सुधीर मंगला और आलोक गुप्ता के बीच समर्थन-आधार को लेकर यह जो लड़ाई छिड़ी है, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई को और रोचक बना दिया है |

Friday, October 5, 2012

डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपनी सक्रियता से लोगों पर जो छाप छोड़ी है - उसने उनकी उम्मीदवारी को लोगों के बीच गंभीर तो बनाया ही है, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के चुनाव को वास्तव में दिलचस्प भी बना दिया है

नई दिल्ली | डॉक्टर सुब्रमणियन ने जिस तेजी और जिस सक्रियता के साथ अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम शुरू किया है, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को अचरज में तो डाला ही है, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की राजनीति को दिलचस्प भी बना दिया है | डॉक्टर सुब्रमणियन अभी तक चूँकि सक्रिय नहीं हुए थे, और अपनी उम्मीदवारी को लेकर जरा भी गंभीर नज़र नहीं आ रहे थे - उसके कारण हर किसी को लग रहा था कि डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए चुनावी तौर-तरीकों का पालन करना मुश्किल ही होगा और इस बजह से उनके लिए लोगों का समर्थन जुटा पाना एक बड़ी चुनौती होगा | लेकिन पिछले करीब एक महीने में डॉक्टर सुब्रमणियन ने जो किया है उससे लोगों को लगने लगा है कि डॉक्टर सुब्रमणियन में चुनावी चुनौतियों से निपटने का दम भी है |
डॉक्टर सुब्रमणियन ने इस बीच एक बड़ा काम पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रंजन ढींगरा को साधने और अपने पक्ष में करने का किया है | रंजन ढींगरा उनके ही क्लब के सदस्य हैं और डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह चर्चा बहुत आम रही थी कि रंजन ढींगरा का डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी से खुला विरोध है | रंजन ढींगरा ने रवि भाटिया की उम्मीदवारी का सार्वजनिक रूप से समर्थन किया था और रवि भाटिया की उम्मीदवारी की जोरदार वकालत की थी | बात सिर्फ इतनी ही नहीं थी कि रंजन ढींगरा का समर्थन डॉक्टर सुब्रमणियन की बजाये रवि भाटिया को था - यह बात इस कारण से और बड़ी हो गई थी कि डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों ने बढ़त बनाने के लिए रंजन ढींगरा को अलग-थलग तक कर दिया था | रंजन ढींगरा के डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ कुछ पुराने झंझट भी सुने/बताये जाते थे | इन्हीं बातों के चलते माना जा रहा था कि रंजन ढींगरा को जब भी मौका मिलेगा, वह डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का प्रयास जरूर ही करेंगे - वह नहीं करेंगे, तो उनका नाम लेकर दूसरे करेंगे | डॉक्टर सुब्रमणियन ने लेकिन इस आशंका को रहने ही नहीं दिया और सभी को हैरान करते हुए रंजन ढींगरा को अपने साथ कर लिया | इससे भी बड़ी बात जो डॉक्टर सुब्रमणियन ने की - वह यह कि उन्होंने न सिर्फ रंजन ढींगरा को अपने साथ कर लिया, बल्कि मौका निकाल/बना कर लोगों को यह 'दिखा' भी दिया कि रंजन ढींगरा उनकी उनके साथ हैं | राजनीति में, खासकर चुनावी राजनीति में 'होने' से ज्यादा 'दिखने' का जो असर होता है - डॉक्टर सुब्रमणियन ने उसे समझा/पहचाना और उसे क्रियान्वित किया | निश्चित रूप से यह उन्होंने एक बड़ा काम किया |
रंजन ढींगरा के साथ डॉक्टर सुब्रमणियन ने संबंध सुधारने की जरूरत को समझा और फिर संबंध सुधार लिए और लोगों को सुधरे हुए संबंध 'दिखा' भी दिए - प्रतीकात्मक रूप से इस बात के बड़े अर्थ हैं | इस प्रसंग से स्पष्ट है कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने चुनाव में असर डालने और/या डाल सकने वाली छोटी-छोटी बातों को गंभीरता से पहचाना है, और उन्हें अपने अनुकूल बनाने के प्रयास किए हैं तथा कामयाब होने के बाद अपनी कामयाबी को 'प्रदर्शित' करने पर भी ध्यान दिया है | रंजन ढींगरा ही नहीं, और कई लोग भी अचानक से डॉक्टर सुब्रमणियन की सक्रियता और उनकी सक्रियता के पीछे की सोच व तैयारी की तारीफ करने लगे हैं | जो लोग अभी कुछ समय पहले तक यह शिकायत करते हुए नहीं थकते थे कि डॉक्टर सुब्रमणियन को न तो चुनावी राजनीति की जरूरतों के बारे में पता है और न ही वह पता करने की जरूरत को ही समझ रहे हैं; वही लोग अब बताते हैं कि डॉक्टर सुब्रमणियन बड़ी होशियारी से चाल चल रहे हैं और लोगों पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं | कई लोग जो पहले शिकायत करते थे कि डॉक्टर सुब्रमणियन उन्हें पहचानते ही नहीं हैं और या पर्याप्त तवज्जो नहीं दे रहे हैं, अब इस बात पर अपनी खुशी जताते हैं कि डॉक्टर सुब्रमणियन का अच्छा होमवर्क है | जिन भी लोगों से डॉक्टर सुब्रमणियन मिले हैं या जिनसे उनकी बात हुई है, उनमें से जिन भी लोगों से इन पंक्तियों के लेखक से बात हुई है वह सभी यह कहते और स्वीकार करते हैं कि डॉक्टर सुब्रमणियन की अच्छी तैयारी है और चुनावी राजनीति की तिकड़मों तथा उसके समीकरणों की उन्हें खूब पहचान है | कुछेक लोगों ने दूसरे उम्मीदवारों के साथ उनकी तुलना करते हुए इस बात पर भी गौर किया है कि डॉक्टर सुब्रमणियन में यह एक विलक्षण गुण भी है कि वह दूसरों की बातों व सुझावों को भी बहुत ध्यान से सुनते हैं तथा उनके अनुरूप अपनी रणनीति को व्यावहारिक बनाने का प्रयास करते हैं | यह बताते हुए एक वरिष्ट रोटेरियन ने चुटकी भी ली कि लगता कि डॉक्टर होने के नाते उनके जो अनुभव हैं, उन्हें वह यहाँ - अपनी उम्मीदवारी के लिए चलाये जा रहे अपने अभियान में वह इस्तेमाल कर रहे है : एक डॉक्टर को मरीज की बात को ध्यान से सुनना ही होता है, और उसकी बात को सुन कर ही एक डॉक्टर उसके इलाज की रणनीति बनाता है | चुनावी अभियान में यदि कोई उम्मीदवार लोगों की बातों पर गौर करता है और उनके अनुरूप अपनी रणनीति बनाता है - तो यह उस उम्मीदवार के लिए तो फायदे की बात होती ही है, लोगों को भी प्रभावित करती है और उन्हें अहसास कराती है कि उक्त उम्मीदवार उन्हें गंभीरता से ले रहा है | डॉक्टर सुब्रमणियन ने इसी फंडे का इस्तेमाल करके लोगों को प्रभावित किया है |
डॉक्टर सुब्रमणियन ने जबसे अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेना शुरू किया है, तभी से डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने भी उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से देखना/पहचानना शुरू किया है | इससे आभास मिलता है कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने शुरू में बहुत सा समय भले ही बर्बाद कर दिया हो, लेकिन अब जब वह सक्रिय हुए हैं तो लोगों को प्रभावित करने की तैयारी के साथ सक्रिय हुए हैं | डॉक्टर होने - एक बड़ा डॉक्टर होने के नाते डॉक्टर सुब्रमणियन का डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच एक ऑरा (आभामंडल) तो है ही - लेकिन उम्मीदवार के रूप में सक्रियता के अभाव में उन्हें अपने ऑरा का फायदा नहीं मिल रहा था | लोगों को लग रहा था कि डॉक्टर सुब्रमणियन अपने ऑरा के भरोसे ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुन लिए जाने की उम्मीद कर रहे थे | या तो उन्हें उनके शुभचिंतकों ने समझाया होगा कि सिर्फ ऑरा के भरोसे चुनाव नहीं जीता जा सकेगा और या फिर शायद यह उनकी रणनीति ही हो कि चुनाव से कुछ पहले ही वह सक्रिय होंगे - चूँकि लोगों के बीच उनका ऑरा है इसलिए उन्हें दूसरे उम्मीदवारों जितनी मेहनत करने की जरूरत नहीं है | कारण चाहे जो भी हो, डॉक्टर सुब्रमणियन ने सक्रिय होते ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों पर जो छाप छोड़ी है - उसके कारण उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से लिया जाने लगा है | डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की गंभीरता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के चुनाव को वास्तव में दिलचस्प बना दिया है |