Tuesday, April 28, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के कई सदस्यों के 'आईसीएआई कोविड 19 रिलीफ फंड' में दान देने से बचने की कोशिशों के चलते उक्त फंड की सूची इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को 'पहचानने' का जरिया भी बन गई है

नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता की इंस्टीट्यूट द्वारा बनाये गए 'आईसीएआई कोविड 19 रिलीफ फंड' में उदारतापूर्वक दान देने की अपील को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के कई मौजूदा पदाधिकारियों और सदस्यों ने जिस तरह से अनसुना किया हुआ है, उसे देख/जान कर रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को खासी हैरानी है । वैसे तो इस बात पर हैरान होने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि अतुल गुप्ता ने अपील ही की थी - और कोई यदि उनकी अपील नहीं सुन/मान रहा है, तो यह उसका अधिकार है और उसके अधिकार का सम्मान होना ही चाहिए । लेकिन फिर भी यह मामला रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को हैरान करने वाला बना है, तो इसका कारण यह है कि रीजनल काउंसिल के कई सदस्य और पदाधिकारी बड़ी बड़ी बातें करते हुए रीजनल काउंसिल में पद पाने के लिए उछल-कूद करने के साथ-साथ तरह तरह के जुगाड़ और धोखेबाजी तक करने में लगे रहते हैं । रीजनल काउंसिल के कई सदस्यों ने समय समय पर ऐसे करतब दिखाए हैं और ऐसी ऊँची ऊँची बातें की हैं, जिन्हें देख/सुन कर लगता है कि जैसे वह सामाजिक जिम्मेदारी व प्रोफेशन की शान बनाये रखने के बड़े ऊँचे आदर्शों का पालन करने वाले लोग हैं, और इन संदर्भों में वह आगे से आगे रहने के लिए हमेशा उपलब्ध रहेंगे । ऐसे में, रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को हैरानी इस बात पर है कि जरूरत पड़ने के मौके पर उन्हें गायब तथा छिपते हुए देखा जा रहा है ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में 13 सदस्य हैं, लेकिन 'आईसीएआई कोविड 19 रिलीफ फंड' में दान देने वालों की सूची में अभी तक कुल चार नाम ही लोगों को दिख रहे हैं । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की वेबसाइट पर दान देने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सूची प्रतिदिन अपडेट होती है, और वहाँ 26 अप्रैल तक दान देने वालों की जो सूची प्रसारित है, उसमें नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के कुल चार सदस्यों - शशांक अग्रवाल, अजय सिंघल, रतन सिंह यादव तथा गौरव गर्ग के नाम हैं । रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि रीजनल काउंसिल के बाकी सदस्य चूँकि पदों को पाने की होड़ की राजनीति करने तथा अपनी सामाजिक और प्रोफेशनल जिम्मेदारी निभाने को लेकर बड़ी बड़ी बातें करते रहे हैं, इसलिए उनके नाम इस सूची में न देख कर उन्हें हैरानी हुई है । रीजनल काउंसिल के पिछले टर्म  पदाधिकारियों और नेताओं का भी ऐसा ही हाल है । पिछले टर्म में चेयरमैन रहे सदस्यों तक का नाम इस सूची में नहीं है । पिछले टर्म में काउंसिल में रहे कुल तीन सदस्यों - पूजा अग्रवाल, राजिंदर नारंग और राजेश अग्रवाल का नाम ही उक्त सूची में है । रीजन के कुछेक चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना/बताना है कि उनसे जब आईसीएआई कोविड 19 रिलीफ फंड में दान न देने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बहानेबाजी करते हुए और यह वायदा करते हुए पीछा छुड़ाया कि जल्दी ही उक्त फंड में दान देंगे । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि काउंसिल सदस्यों को तो कम से कम शुरुआत में ही उक्त सूची में अपना नाम लिखवा लेना चाहिए था, ताकि आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स प्रेरित हों ।
'आईसीएआई कोविड 19 रिलीफ फंड' में दान देने के मामले में नॉर्दर्न रीजन के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का रिकॉर्ड अपेक्षाकृत बेहतर है । नॉर्दर्न रीजन के सभी सदस्यों के नाम उक्त सूची में दिख रहे हैं । हालाँकि सूची पर निगाह रखने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि दो/तीन सेंट्रल काउंसिल सदस्यों - यहाँ तक कि प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता का नाम भी अभी दो/एक दिन पहले ही उक्त सूची में दिखना शुरू हुआ है । यानि अतुल गुप्ता ने उक्त फंड में दान देने की अपील तो कर दी, लेकिन खुद दान देना वह भूल गए । कई दिन बाद उन्हें याद आया - या किसी ने उन्हें याद दिलाया - तब फिर उन्होंने अपनी ही अपील पर अमल किया । पिछले टर्म में सेंट्रल काउंसिल में सदस्य रहे नॉर्दर्न रीजन के सिर्फ दो सदस्यों - संजीव चौधरी और विजय गुप्ता के नाम ही उक्त सूची में लोगों को नजर आ रहे हैं । इस तरह, 'आईसीएआई कोविड 19 रिलीफ फंड' की सूची इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में भाग लेने वालों के असली इरादों और उद्देश्यों और जिम्मेदार व्यवहार को 'पढ़ने' का जरिया भी बन गई है ।                   

Monday, April 27, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में हैंड क्राफ्ट ज्वैलरी का ऑक्शन करके डब्ल्यूजीमील के तहत रोटरी फाउंडेशन के पोलियो फंड के लिए रकम जुटाने के उपक्रम के जरिये आभा झा चौधरी ने रोटरी में तो एक नई इबारत लिखी ही है, डिस्ट्रिक्ट 3011 को भी एक विशिष्ट पहचान दी है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट 3011 से बहुत समय बाद एक अच्छी खबर सुनने को मिली, जिसकी वाहक बनीं वरिष्ठ रोटेरियन आभा झा चौधरी । आभा झा चौधरी के अपने अकेले के प्रयत्नों से रोटरी फाउंडेशन के पोलियो फंड में एक ही दिन में करीब 45 हजार अमेरिकी डॉलर की रकम जुटी । आभा झा चौधरी ने खुद तैयार की हैंड क्राफ्टेड ज्वैलरी का ऑक्शन करके उक्त रकम इकट्ठा की - वास्तव में रकम उन्होंने अपने पास इकट्ठा भी नहीं की; उन्होंने तो अपने द्वारा तैयार की हैंड क्राफ्टेड ज्वैलरी को दिखाया और उसे खरीदने वाले को उसकी कीमत सीधे रोटरी फाउंडेशन को भेजने को कहा । रोटरी फाउंडेशन के पोलियो फंड के लिए पैसा इकट्ठा करने के प्रयासों में सक्रिय रहने वाली संस्था डब्ल्यूजीमील (वर्ल्ड ग्रेटेस्ट मील) की कंट्री कोऑर्डीनेटर के रूप में आभा झा चौधरी ने इस तरह अपने काम को एक नई ऊँचाई दी है । ऐसे समय में, जबकि डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर और बड़े पदाधिकारी रोटरी फाउंडेशन को टर्म गिफ्ट के रूप में 'दान' देने की वकालत करने में लगे हुए हैं, एक पूर्व प्रेसीडेंट आभा झा चौधरी ने पोलियो फंड के लिए रकम जुटाने के लिए अपनी सोच, अपनी प्रतिभा, अपने समय और अपनी मेहनत को न सिर्फ इस्तेमाल किया - बल्कि कामयाबी भी हासिल की, और कामयाबी के जरिये फंड इकट्ठा करने के प्रयासों को एक नई दिशा भी दी । आभा झा चौधरी ने जो किया, वह इस बात का भी सुबूत है कि रोटरी में एक व्यक्ति के प्रयासों को भी फलने-फूलने का मौका मिल सकता है; और यहाँ कोई भी अपनी प्रतिभा तथा अपनी कोशिशों से बड़ा काम कर सकता है । आभा झा चौधरी ने जो उदाहरण प्रस्तुत किया है, उसमें दो इंग्रेडिऐंट की खासी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही - एक उनका हुनर और दूसरा रोटरी के लिए कुछ करने का जज़्बा । 
आभा झा चौधरी ने जो किया, उसका आधार बस इन्हीं दो इंग्रेडिऐंट से ही बन गया । लॉकडाउन के चलते अन्य लोगों की तरह आभा झा चौधरी को भी जब घर की चारदीवारी में कैद हो जाना पड़ा, तो समय का सदुपयोग करने के लिए उन्होंने हैंड क्राफ्ट ज्वैलरी बनाने के बारे में सोचा । खास बात यह रही कि इससे पहले उन्होंने कभी ऐसी ज्वैलरी नहीं बनाई थी और उन्हें इसका कोई अनुभव भी नहीं था । इसके बावजूद, उन्हें यह आईडिया इसलिए आया क्योंकि अलग अलग जरूरतों के चलते घर में आया कुछ ऐसा सामान बचा पड़ा था, जिसे देख कर उनकी क्रिएटिव प्रतिभा ने उनसे ज्वैलरी तैयार करने के बारे में सोचा । अब सोचा, तो काम शुरू हुआ । काम शुरू हुआ, तो ज्वैलरी के डिजाईन तैयार करने से लेकर उन्हें क्रियान्वित करने तक के काम में आभा झा चौधरी को अपनी दोनों बेटियों का भी सहयोग मिला । समय का सदुपयोग करने के उद्देश्य से शुरू हुआ ज्वैलरी तैयार करने का काम चल रहा था, तो साथ-साथ रोटरी के लिए कुछ करने का कीड़ा भी कुलबुला रहा था - और ऐसे ही किसी क्षण आभा झा चौधरी को सूझा कि वह हैंड क्राफ्ट ज्वैलरी का ऑक्शन करके क्यों न डब्ल्यूजीमील के तहत रोटरी फाउंडेशन के पोलियो फंड के लिए रकम जुटाने का प्रयास करें - और इस तरह समय का सदुपयोग करने के उद्देश्य से किए गए काम को और सार्थक रूप दें ।
आभा झा चौधरी ने अपने इस विचार को विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में डब्ल्यूजीमील के अपने सहयोगियों के साथ साझा किया, तो उन्हें उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया मिली । डब्ल्यूजीमील की अन्तर्राष्ट्रीय प्रमुख सुजेन रेआ ने भी उन्हें उनके विचार को अमल में लाने के लिए प्रोत्साहित किया । चारों तरफ से मिले उत्साहवर्धन से आभा झा चौधरी का विश्वास बढ़ा, तो उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों - इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता, इंटरनेशनल डायरेक्टर्स भरत पांड्या और कमल सांघवी, रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी गुलाम वाहनवती आदि के साथ-साथ अन्य कई प्रमुख रोटेरियंस से अपनी योजना के बारे में बात की; उनकी खुशकिस्मती रही कि सभी ने उनकी योजना की तारीफ तो की ही - ऑक्शन में शामिल होने के लिए भी अपनी स्वीकृति दी, और इस तरह हैंड क्राफ्ट ज्वैलरी के ऑक्शन के लिए एक बड़ा मजबूत आधार तैयार हुआ । लॉकडाउन के समय का सदुपयोग करने के इरादे से शुरू हुआ उपक्रम आभा झा चौधरी की प्रतिभा तथा रोटरी के लिए कुछ करने के जज़्बे के साथ जुड़ कर एक बड़ा आयोजन बन गया, जो 26 अप्रैल को रोटरी के बड़े पदाधिकारियों तथा अन्य प्रमुख रोटेरियंस की उपस्थिति में आयोजित हुआ । इस आयोजन की कामयाबी के जरिये आभा झा चौधरी ने रोटरी में तो एक नई इबारत लिखी ही है, डिस्ट्रिक्ट 3011 को भी एक विशिष्ट पहचान दी है । 

Sunday, April 26, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच वेबिनार्स के नाम पर मची होड़ और तमाशेबाजी में ब्रांचेज के आम और खास सदस्य अपनी हालत, एक पंजाबी कहावत के 'चूम चूम कर मार दिए गए नवजात लड़के' जैसी पा रहे हैं

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों ने अपनी अपनी राजनीति जमाने और चमकाने के लिए वेबिनार्स का जैसा इस्तेमाल किया हुआ है, उसने आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को बुरी तरह परेशान किया हुआ है, और अधिकतर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अब इसे 'इमोशनल अत्याचार' तक कहने लगे हैं । ब्रांचेज के वरिष्ठ और सक्रिय सदस्यों का कहना है कि रीजनल काउंसिल व सेंट्रल काउंसिल के मौजूदा सदस्य तथा अगला चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों की तरफ से पहले वेबिनार के निमंत्रण आते हैं, फिर वह फोन करके शामिल होने के लिए आग्रह करने के साथ-साथ दबाव बनाते हैं, शामिल न हो पाने के बाद शिकायतें आती हैं । अधिकतर वेबिनार्स में किसी न किसी तथाकथित नामचीन को स्पीकर के रूप में आमंत्रित कर लिया जाता है, और फिर उसके नाम का वास्ता देकर शामिल होने का दबाव बनाया जाता है । नॉर्दर्न रीजन में आयोजित हो रहे वेबिनार्स के 'स्टार नामचीन' इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा बने हुए हैं । विषय कोई भी हो, अमरजीत चोपड़ा को वेबिनार्स में शामिल कर लिया जाता है, और वह खुशी खुशी शामिल हो भी जाते हैं । आम और खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स  के लिए समस्या यह है कि वह आखिर कितने वेबिनार्स में शामिल हों । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के छोटे/बड़े खिलाड़ियों और संभावित उम्मीदवारों ने वेबिनार्स को लेकर जो हाल मचाया हुआ है, उसे देख कर कई लोग उस पंजाबी कहावत को याद करते हुए सुनाई पड़े, जिसमें कहा गया है कि किन्नरों के परिवार में लड़का पैदा हुआ, तो उन्होंने उसे चूम चूम कर ही मार दिया ।
वेबिनार्स को लेकर मची होड़ में ब्रांचेज के आम और खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अपनी हालत उक्त कहावत में 'चूम चूम कर मार दिए गए' नवजात लड़के जैसी ही पा रहे हैं । मजे की बात यह है कि वेबिनार्स की शुरुआत ब्रांचेज के कुछेक छुटभैये किस्म के नेताओं ने की थी; इसका चलन बढ़ा, तो दिल्ली में खाली बैठे नेताओं को आईडिया मिला - और फिर तो वेबिनार्स की धूम मच गई । रीजनल काउंसिल के सदस्य हों, या सेंट्रल काउंसिल के सदस्य हों - उन्होंने रीजनल काउंसिल तथा अपनी अपनी कमेटियों के नाम पर कार्यक्रम करने के साथ-साथ अपने अपने 'चैनल' भी खोल लिए । रीजनल काउंसिल की तरफ से पहले जहाँ सप्ताह में कुल मिला कर तीन से चार सेमीनार होते थे, वेबिनार्स में इसकी संख्या दस से पंद्रह के बीच हो गई है । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने तो कई कई ब्रांचेज को 'शामिल' करके वेबिनार्स करने का अनोखा रिकॉर्ड बना लिया । तमाशेबाजी और झूठ की हद यह हो रही है कि चार-चार छह-छह ब्रांचेज द्वारा मिलजुल कर किए जाने वाले वेबिनार्स में मुश्किल से 50/60 लोग शामिल हो रहे हैं, लेकिन आयोजक नेताओं की तरफ से सैंकड़ों/हजारों के शामिल होने के दावे किए जा रहे हैं ।
इस तरह के झूठे दावों के कारण ही वेबिनार्स के लिए सीपीई ऑवर्स देने का विचार खटाई में पड़ गया । सेंट्रल काउंसिल के कुछेक सदस्यों ने कोशिश की थी कि वेबिनार्स में शामिल होने वाले सदस्यों को सीपीई ऑवर्स देने की व्यवस्था की जाए; लेकिन देखा/पाया गया कि वेबिनार्स में शामिल होने वाले सदस्यों की संख्या को लेकर सबसे ज्यादा घपलेबाजी सेंट्रल काउंसिल के सदस्य ही कर रहे हैं । इंस्टीट्यूट प्रशासन ने वेबिनार्स के लिए गाइडलाइंस बनाने की कोशिश भी की, लेकिन सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने उसमें भी अड़ंगा डाल दिया - दरअसल उन्हें डर हुआ कि गाइडलाइंस बनने पर वेबिनार्स के नाम पर तमाशेबाजी करने तथा झूठे दावे करने का उनका खेल खराब हो जायेगा । बताया/सुना जा रहा है कि वेबिनार्स के नाम पर हो रही तमाशेबाजी से इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता बहुत नाराज और निराश हैं, लेकिन तमाशेबाजी में लगे लोगों के सामने वह खुद को असहाय पा रहे हैं । अतुल गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, वेबिनार्स में शामिल होने वाले सदस्यों को सीपीई ऑवर्स देने/दिलवाने की कोशिशों को तो सफल न होने देने में अतुल गुप्ता ने कड़ाई दिखाई, लेकिन बाकी तमाशेबाजी के सामने वह मजबूर बने हुए हैं ।

Saturday, April 25, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू के पूर्व गवर्नर जितेंद्र चौहान ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपना रास्ता साफ करने के उद्देश्य से दीपक तलवार की उम्मीदवारी को वापस करवाने की कोशिशों के साथ-साथ अपने डिस्ट्रिक्ट के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में डमी उम्मीदवारों को इस्तेमाल करने का तरीका अपनाया है क्या ?

आगरा । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए दूसरी बार प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को सफल होता देखने की उम्मीद रखे सुनीता बंसल और उनके समर्थकों को विश्वास तो है कि ऐन मौके पर अचानक से प्रस्तुत हुई अनिल अग्रवाल व तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी वापस हो जाएगी - और सुनीता बंसल निर्विरोध सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन ली जायेंगी, लेकिन अपने इस विश्वास को लेकर वह पूरी तरह आश्वस्त भी नहीं हैं । सुनीता बंसल के समर्थकों का मानना और कहना है कि अनिल अग्रवाल और तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी के पीछे जो नेता हैं, वह भी जान/समझ रहे हैं कि यह दोनों या इनमें से कोई एक यदि सचमुच उम्मीदवार बना भी रहा तो उसे डिस्ट्रिक्ट में समर्थन तो नहीं ही मिलेगा और वह पराजित ही होगा - इसलिए इन्हें उम्मीदवार बनाये रख कर कोई फायदा नहीं होगा और बेवजह फजीहत ही होगी, इस कारण इनकी उम्मीदवारी वापस करवाने में ही उनका लाभ है । सुनीता बंसल के समर्थकों का कहना है कि अनिल अग्रवाल व तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी सुनीता बंसल पर दबाव बनाने तथा डिस्ट्रिक्ट में अपनी अपनी चौधराहट 'दिखाने' की कुछेक नेताओं की कोशिशों का नतीजा है, और डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर लोग इन्हें 'डमी' उम्मीदवार के रूप में ही देख रहे हैं । उल्लेखनीय है कि इन दोनों उम्मीदवारों में से एक को गवर्नर-पति विश्वदीप सिंह तथा दूसरे को जितेंद्र चौहान के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । सुनीता बंसल के समर्थकों के अनुसार, विश्वदीप सिंह ने तो डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के लिए सुनीता बंसल द्वारा किए गए एक कमिटमेंट को पूरा करवाने के लिए दबाव बनाने के उद्देश्य से उम्मीदवार खड़ा करके सुनीता बंसल की राह में रोड़े डालने का काम किया है, तो जितेंद्र चौहान ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं से समर्थन के लिए सौदेबाजी करने के इरादे से उम्मीदवार खड़ा कर दिया गया है ।
जितेंद्र चौहान को दरअसल डर है कि सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में तेजपाल खिल्लन और दीपक तलवार की उम्मीदवारी का समर्थन कर सकते हैं, और उसके चलते इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उनके द्वारा तैयार किया गया चुनावी-समीकरण गड़बड़ा सकता है । सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थकों के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले, डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू के कुछेक पूर्व गवर्नर्स नेताओं की तरफ से यह लगातार सुनने को मिल ही रहा है कि जितेंद्र चौहान लीडरशिप के जिन नेताओं के भरोसे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए मल्टीपल में एंडोर्समेंट लेने की उम्मीद कर रहे हैं, उन नेताओं ने तो डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के वरिष्ठ पूर्व गवर्नर दीपक तलवार को उम्मीदवार बना/बनवा दिया है - ऐसे में, उनके लिए तो मौका खत्म हो जाता है । उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए तीन उम्मीदवार मैदान में हैं - जितेंद्र चौहान, दीपक तलवार और तेजपाल खिल्लन । इनमें जितेंद्र चौहान और दीपक तलवार को लीडरशिप के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, और तेजपाल खिल्लन विरोधी नेताओं के भरोसे मैदान में हैं । मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के नेताओं के बीच पैठ और सक्रियता के हिसाब से लोगों को जितेंद्र चौहान का पलड़ा भारी लगता है, लेकिन दीपक तलवार की उम्मीदवारी उनके भारीपन को हल्का करती नजर आ रही है । लीडरशिप खेमे के इस आपसी 'झगड़े' का तेजपाल खिल्लन फायदा उठाने की फिराक में हैं । तेजपाल खिल्लन की यह फिराक जितेंद्र चौहान को उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में ही घेरने का काम करती है । लीडरशिप से नजदीकी रखने वाले डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व गवर्नर्स नेता जितेंद्र चौहान से विरोध रखने के कारण दीपक तलवार के साथ जुड़ सकते हैं - इस तरह, जितेंद्र चौहान अपने ही डिस्ट्रिक्ट में दोतरफा रूप में घिरे नजर आ रहे हैं । संयोग से, दोनों तरफ के उनके विरोधी नेता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थक हैं । समझा जाता है कि उन समर्थकों को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में लाने/करने की 'सौदेबाजी' करने के लिए ही जितेंद्र चौहान ने सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के रास्ते में बाधा खड़ी करने का उपक्रम किया है ।
जितेंद्र चौहान की तरफ से यह दावा भी सुना जा रहा है कि लीडरशिप के नेताओं ने उन्हें दीपक तलवार की उम्मीदवारी को वापस करने/करवाने का भरोसा दिया हुआ है, इसलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के एंडोर्समेंट के लिए लीडरशिप का एकतरफा और पूर्ण समर्थन उन्हें ही मिलेगा । कहा/सुना जा रहा है कि पिछले दिनों जितेंद्र चौहान को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी को लेकर जब असमंजस में और अनमना-सा देखा जा रहा था, तब लीडरशिप के कुछेक नेताओं ने दीपक तलवार को उम्मीदवारी के लिए तैयार किया था; उन्हीं नेताओं का कहना है कि दीपक तलवार भले व्यक्ति हैं - इसलिए अब जब उनसे अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए कहा जायेगा, तो वह इंकार नहीं करेंगे और जितेंद्र चौहान के लिए रास्ता छोड़ देंगे । हालाँकि यह सब अभी अनुमान की बातें हैं और धीरे धीरे ही स्थितियाँ स्पष्ट होंगी कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति का ऊँठ किस करवट बैठ रहा है ? जितेंद्र चौहान की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के तार चूँकि उनके डिस्ट्रिक्ट में होने वाले सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव से भी जुड़े हुए हैं, इसलिए सुनीता बंसल और उनके समर्थकों को भी अभी इंतजार करना पड़ेगा कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में जिन्हें वह डमी उम्मीदवार मान/समझ रहे हैं, वह सचमुच डमी ही हैं - और या उम्मीदवार बने रह कर उन्हें चुनावी मुकाबले के लिए मजबूर करेंगे ?

Friday, April 24, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में मुकेश अरनेजा और सुभाष जैन से एक साथ बदला लेने के उद्देश्य से, सीओएल के चुनाव में अशोक अग्रवाल द्वारा दिखाई जा रही अति-सक्रियता ने डिस्ट्रिक्ट में 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' जैसा माहौल बना दिया है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अशोक अग्रवाल ने सीओएल के चुनाव में शरत जैन को जीत दिलवाने के लिए जिस तरह की सक्रियता दिखाई हुई है, उसने लोगों को 'मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त' वाला मुहावरा याद दिलवा दिया है । लोगों का कहना है कि अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने को लेकर खुद शरत जैन उतने सक्रिय नहीं हैं, जितने उनकी उम्मीदवारी को लेकर अशोक अग्रवाल जुटे हुए हैं । कहीं कहीं अशोक अग्रवाल ने कहा भी है कि सीओएल के चुनाव में मुकेश अरनेजा के खिलाफ शरत जैन नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि वह लड़ रहे हैं । अशोक अग्रवाल तरह तरह से यह जताने/दिखाने/बताने का प्रयास कर रहे हैं कि वह वास्तव में शरत जैन को जितवाने के लिए नहीं, बल्कि मुकेश अरनेजा को हराने के लिए सीओएल के चुनाव में कूदे हुए हैं । मुकेश अरनेजा ने पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी का विरोध किया था - अशोक अग्रवाल इस बात को लेकर मुकेश अरनेजा से बुरी तरह खफा हैं, और सीओएल के चुनाव में इसका बदला लेने की तैयारी में हैं । मजे की बात लेकिन यह है कि अशोक अग्रवाल सीओएल के चुनाव के जरिये सुभाष जैन को भी सबक सिखाना चाहते हैं, जबकि पिछले वर्ष अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी का सुभाष जैन ने खुल कर सहयोग और समर्थन किया था - और पिछले वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव का आकलन करने वाले लोगों ने माना था कि अशोक अग्रवाल की चुनावी जीत के लिए सुभाष जैन के समर्थन की ही निर्णायक भूमिका थी । मुकेश अरनेजा के प्रति अशोक अग्रवाल की नाराजगी तो लोगों को समझ में आती है, लेकिन लोगों के बीच हैरानी इस बात को लेकर है कि सुभाष जैन को सबक सिखाने की बातें वह क्यों करते रहते हैं - जबकि वह आज यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी हैं, तो सुभाष जैन के समर्थन के कारण ही हैं ।
अशोक अग्रवाल  के नजदीकियों के अनुसार, दरअसल इस 'कारण' के कारण ही वह सुभाष जैन को सबक सिखाना चाहते हैं । नजदीकियों के अनुसार, अशोक अग्रवाल को यह बात बिलकुल भी पसंद नहीं है कि उनके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने का श्रेय किसी भी तरह से सुभाष जैन को दिया जाए - या मिले । वास्तव में, अशोक अग्रवाल किसी को भी श्रेय नहीं देना चाहते हैं; उनका मानना और कहना है कि वह अपने दम पर अपना चुनाव जीते हैं, और उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले लोगों ने तो उन्हें जीतता हुआ देख/समझ कर ही उनका समर्थन किया था । अशोक अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि वह तो चाहते हैं और तरह तरह से कोशिश करते रहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का 'एकछत्र नेता' उन्हें माना/समझा जाए - लेकिन हालात उन्हें अलग-थलग धकेल देते हैं । इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक अग्रवाल ने बहुत कोशिश की कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी का झंडा उनके हाथ में रहे, लेकिन ललित खन्ना ने उनका समर्थन तो ले लिया पर उन्हें ज्यादा भाव नहीं दिया । अशोक अग्रवाल के लिए झटके की बात यह रही कि वह तो बिना झंडे के रह गए, और सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी का झंडा सुभाष जैन को मिल गया । अनोखी बात यह रही कि सुनील मल्होत्रा यद्यपि चुनाव हार गए, लेकिन उन्हें मिले वोटों की संख्या के आधार पर डिस्ट्रिक्ट के नेता का खिताब सुभाष जैन को मिल गया । ललित खन्ना की जीत के लिए उनका चौथी/पाँचवीं बार उम्मीदवार बनना, सुनील मल्होत्रा की अनुभवहीनता तथा जल्दी चुनाव होने को कारण के रूप में देखा/पहचाना गया; इसके बावजूद, सुनील मल्होत्रा से ललित खन्ना को जो टक्कर मिली और वह उम्मीद के विपरीत कम अंतर से ही जीत पाए - उसके लिए सुभाष जैन के 'वोट बैंक' की ताकत को देखा/पहचाना गया । यह सुभाष जैन के लिए हार के बावजूद 'जीतने' वाला मामला रहा ।
यही कारण रहा कि अगले रोटरी वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी तैयारी में और सीओएल के चुनाव में सुभाष जैन की पक्षधरता तथा संलग्नता महत्त्वपूर्ण हो उठी; जबकि अशोक अग्रवाल को अगले रोटरी वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी तैयारी में एक बार फिर जोर का झटका लगा । शुरू में बड़े जोरशोर से चर्चा सुनी गई थी कि अशोक अग्रवाल अगले वर्ष  के चुनाव के लिए उम्मीदवार मैदान में उतार रहे हैं, लेकिन फिर वह चर्चा जल्दी ही बंद हो गई । अशोक अग्रवाल के नजदीकियों का कहना/बताना है कि अशोक अग्रवाल ने दो/एक लोगों को उम्मीदवार बनने के लिए राजी कर लिया था, लेकिन राजी हुए लोगों को जल्दी ही समझ में आ गया कि अशोक अग्रवाल अपनी राजनीति जमाने/दिखाने के लिए उन्हें इस्तेमाल कर रहे हैं, सो वह पीछे हट गए और अशोक अग्रवाल एक बार फिर अलग-थलग पड़ गए । ऐसे में, सीओएल का चुनाव अशोक अग्रवाल को संजीवनी बूटी की तरह मिल गया । सीओएल के चुनाव में सुभाष जैन चूँकि मुकेश अरनेजा की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं, इसलिए अशोक अग्रवाल को लगता है कि मुकेश अरनेजा को हरा/हरवा कर वह दोनों से एकसाथ बदला ले लेंगे और अपने आप को डिस्ट्रिक्ट की राजनीति का 'एकछत्र नेता' साबित कर देंगे । दिलचस्प नजारा यह है कि शरत जैन ने सीओएल के लिए होने वाले चुनाव के नतीजे को भाँप लिया है, और इसलिए वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर ज्यादा उत्साहित और सक्रिय नहीं हैं - लेकिन अशोक अग्रवाल ने उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने को लेकर कमर कसी हुई है । उन्हें लगता है कि समय समय पर की गई मुकेश अरनेजा की हरकतों को लेकर लोगों के बीच जो नाराजगी रही है, उसे वह इस समय भुना सकते हैं तथा मुकेश अरनेजा के खिलाफ माहौल बना कर सीओएल के चुनाव में उन्हें हरा/हरवा सकते हैं । अशोक अग्रवाल की सक्रियता का सचमुच क्या नतीजा निकलेगा, यह तो नतीजा आने पर ही पता चलेगा - लेकिन सीओएल के चुनाव में अशोक अग्रवाल की अति-सक्रियता ने डिस्ट्रिक्ट में 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' जैसा माहौल जरूर बना दिया है ।

Thursday, April 23, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरी गुप्ता ने सदाशयता और बड़प्पन दिखाते हुए योगेश मोहन गुप्ता की उम्मीदवारी को खारिज न करके उनकी 'योजना' पर मिट्टी डाली और उन्हें हार की दलदल में धकेलने का काम किया 

मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरि गुप्ता की पक्षपात न करते हुए सभी को मौका देने की सोच योगेश मोहन गुप्ता पर खासी भारी पड़ गई है, और सीओएल के चुनाव में उन्हें फजीहत का शिकार बनाने वाली साबित हुई है । दरअसल सीओएल के लिए योगेश मोहन गुप्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए नामांकन में कई तरह की गड़बड़ियाँ हैं, और उम्मीदवार के रूप में वह कई जरूरी शर्तों का पालन नहीं करते हैं । गड़बड़ियों/खामियों को जानते/पहचानते हुए भी योगेश मोहन गुप्ता ने नामांकन प्रस्तुत किया, तो इसलिए ताकि उनका नामांकन रद्द हो जाए । योगेश मोहन गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि योगेश मोहन गुप्ता की योजना थी कि नामांकन रद्द होने पर वह जोरशोर से इस बात को प्रचारित करेंगे कि संजीव रस्तोगी उनकी उम्मीदवारी से डर गए और हार से बचने के लिए संजीव रस्तोगी ने दबाव डाल कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के जरिये उनका नामांकन रद्द करवा दिया - और इस तरह डिस्ट्रिक्ट तथा रोटरी में जोरदार तरीके से पुनर्वापसी करेंगे । योगेश मोहन गुप्ता भी अच्छी तरह जानते हैं कि चुनाव जीतना तो उनके बस की बात नहीं है, इसलिए उन्होंने यह नाटक रचा । योगेश मोहन गुप्ता को विश्वास था कि इस नाटक के जरिये - 'न हींग लगेगी और न फिटकरी, रंग चोखा जम जायेगा ।' लेकिन हरि गुप्ता ने नामांकन रद्द न करके, योगेश मोहन गुप्ता की सारी योजना पर मिट्टी डाल दी है । हरि गुप्ता का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में सभी लोग एक बराबर हैं, और कोई यदि चुनाव लड़ना चाहता है तो तकनीकी गड़बड़ियों/खामियों के आधार पर उससे चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं छीना जाना चाहिए और उसे चुनाव लड़ने देना चाहिए । हरि गुप्ता की यह सदाशयता और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनका यह बड़प्पन योगेश मोहन गुप्ता के लिए मुसीबत बन कर उन्हें हार के अपमान व फजीहत की दलदल में धकेलने वाला बन गया है ।
हरि गुप्ता ने योगेश मोहन गुप्ता के नामांकन को स्वीकार करके योगेश मोहन गुप्ता को चुनाव लड़ने के लिए मजबूर कर दिया है - और योगेश मोहन गुप्ता का रचा गया नाटक खुद उन पर भारी पड़ गया है । योगेश मोहन गुप्ता ने चुनाव लड़ने तथा डिस्ट्रिक्ट व रोटरी में पुनर्वापसी के लिए रोटरी क्लब सरधना महान में शरण लेकर अपने लिए मुसीबत को और बढ़ा लिया है । दूसरे शहरों के क्लब के पदाधिकारी योगेश मोहन गुप्ता से पूछ रहे हैं कि वह जब रहते मेरठ में हैं, और उन्होंने रोटरी मेरठ में की है - तब फिर वह मेरठ के किसी क्लब के सदस्य न होकर सरधना महान के सदस्य क्यों बने ? अब बेचारे योगेश मोहन गुप्ता उन्हें क्या और कैसे बतायें कि उन्होंने तो मेरठ के ही किसी भी क्लब की सदस्यता के लिए बहुत कोशिश की थी, लेकिन उनके लिए मेरठ के किसी भी क्लब का दरवाजा नहीं खुला । मेरठ में यह चर्चा आम है कि योगेश मोहन गुप्ता ने सदस्यता के लिए मेरठ के कई क्लब्स के पदाधिकारियों और प्रमुख सदस्यों के दरवाजे खटखटाये थे, लेकिन उनकी हरकतों और कारस्तानियों से परिचित होने के कारण कोई भी उन्हें अपने क्लब में लेने के लिए तैयार नहीं हुआ, और तब योगेश मोहन गुप्ता को रोटरी क्लब सरधना महान में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा । ऐसे में, मेरठ में ही बातें कही/सुनी जा रही हैं कि मेरठ का कोई क्लब जब उन्हें अपने यहाँ सदस्य बनाने के लिए तैयार नहीं हुआ, तो यहाँ उन्हें वोट कौन देगा ? इस स्थिति के चलते, योगेश मोहन गुप्ता के लिए दूसरे शहरों में वोट प्राप्त करने की कोशिश करना तक मुश्किल हो गया है । लगता है कि मेरठ में योगेश मोहन गुप्ता के अलग-थलग पड़ जाने को लेकर, दूसरे शहरों के लोग उन्हें चिढ़ाने और मजे लेने के लिए जानबूझ कर उनसे पूछते हैं कि मेरठ के किसी क्लब में उन्हें सदस्यता क्यों नहीं मिली ?
डिस्ट्रिक्ट में अभी हाल ही में, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद चुनाव हुआ है, जिसमें डीके शर्मा और अशोक गुप्ता उम्मीदवार थे - यानि क्लब्स के वोट इन्हीं दोनों को मिले थे; सीओएल के चुनाव में यह दोनों संजीव रस्तोगी का समर्थन करते हुए उन्हें वोट दिलवाने के प्रयासों में जुटे हैं । इस एक तथ्य से सीओएल के चुनाव में संजीव रस्तोगी की उम्मीदवारी की मजबूती को समझा जा सकता है । वास्तव में, इसीलिए योगेश मोहन गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थकों तक का टोटा पड़ गया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मनीष शारदा ने शुरू में योगेश मोहन गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में कुछ सक्रियता दिखाई थी, लेकिन लोगों का मूड भाँप कर जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया कि उनके समर्थन के बावजूद योगेश मोहन गुप्ता का तो कोई लाभ नहीं होगा, उलटे उनके लिए मुसीबतें खड़ी हो जायेंगी - लिहाजा मनीष शारदा ने योगेश मोहन गुप्ता के समर्थन से हाथ खींच लिए । योगेश मोहन गुप्ता के नजदीकियों का ही मानना और कहना है कि योगेश मोहन गुप्ता की करतूतें और कारस्तानियाँ ही वास्तव में उनकी दुश्मन हो बैठी हैं । योगेश मोहन गुप्ता ने अपनी हरकतों, अपने व्यवहार और अपनी बातों से बहुतों के साथ दुर्व्यवहार किया है और उन्हें तरह तरह से नीचा दिखाने की कोशिश करते हुए उन्हें अपमानित किया है । सीओएल के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट के बहुत से आम और खास सदस्यों के घावों को फिर से हरा कर दिया है, और वह योगेश मोहन गुप्ता से बदला लेने के लिए सक्रिय हो उठे हैं । वास्तव में इसीलिए योगेश मोहन गुप्ता को मेरठ के किसी क्लब में सदस्यता नहीं मिली और उनकी उम्मीदवारी को समर्थक नहीं मिल रहे हैं । योगेश मोहन गुप्ता को इस स्थिति का अंदाजा तो था, लेकिन उन्होंने इस स्थिति की चिंता नहीं की थी - क्योंकि उन्हें विश्वास था कि नामांकन पत्र की गड़बड़ियों और खामियों के चलते उनका नामांकन रद्द हो जायेगा और वह आरोपों का शोर मचा कर डिस्ट्रिक्ट व रोटरी में जोरशोर के साथ अपनी पुनर्वापसी कर लेंगे; लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरि गुप्ता ने उन्हें इसका मौका नहीं दिया ।

Tuesday, April 21, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डीडीएफ अकाउंट के पैसे से होने वाले 'धंधे' का रोटरी के बड़े नेताओं ने संज्ञान तो लिया है, और इस पर अपनी नाराजगी भी दिखाई है - लेकिन विनय भाटिया के 'रास्ते' पर चलने की सुरेश भसीन की 'तैयारी' देख कर लगता नहीं है कि उन्हें किसी का कोई डर है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुरेश भसीन ने पिछले गवर्नर विनय भाटिया की तर्ज पर डीडीएफ अकाउंट के पैसे 'बेचकर' रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे इकट्ठे करने का रिकॉर्ड बनाने तथा कुछेक मास्टरमाइंड टाइप के रोटेरियंस को जेबें भरने का मौका देने की तैयारी शुरू कर दी है । लोगों के बीच आशंकापूर्ण चर्चा और गंभीर आरोप यह भी है कि इस 'खेल' में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को भी 'कट' मिलता होगा, इसलिए वह इस खेल में 'योजनाबद्ध' तरीके से दिलचस्पी लेते हैं । सुरेश भसीन के मामले में यह चर्चा इसलिए भी जोरों पर है, क्योंकि उन्होंने अपने डीडीएफ का जो आधा हिस्सा डिस्ट्रिक्ट ग्रांट्स में खर्च करना था, वह उन्होंने जानबूझ कर खर्च नहीं किया - और उक्त रकम भी ग्लोबल ग्रांट्स में मैच करवाने के लिए बचा ली है । विनय भाटिया की तरह ही, सुरेश भसीन की भी दिलचस्पी एपीएफ (एनुअल प्रोग्राम फंड) के लिए दान लेने में दिलचस्पी नहीं है, और उनका भी जोर टर्म गिफ्ट के रूप में आने वाले दान पर ही है । रोटरी न्यूज के नए अंक में प्रकाशित तथ्यों के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी फाउंडेशन के लिए अभी तक दो लाख डॉलर से कम रकम जमा हुई है, जिसमें एपीएफ में जमा रकम करीब 81 हजार डॉलर ही है । पिछले रोटरी वर्ष में भी ऐसा ही दृश्य था, और वर्ष के आखिरी महीने में ताबड़तोड़ पैसे जमा हुए थे, जिसका करीब 80 प्रतिशत हिस्सा टर्म गिफ्ट के रूप में था । टर्म गिफ्ट रोटरी फाउंडेशन को पैसे देने का नहीं, बल्कि रोटरी फाउंडेशन से पैसे लेने का 'माध्यम' है, और इसे कुछेक धंधेबाज रोटेरियंस ने बड़ी होशियारी से डिस्ट्रिक्ट में फिट कर दिया है । डिस्ट्रिक्ट के कुछेक धंधेबाज रोटेरियंस की इस हरकत का रोटरी के बड़े नेताओं ने संज्ञान तो लिया है, और इस पर अपनी नाराजगी भी दिखाई है - लेकिन सुरेश भसीन की 'तैयारी' देख कर लगता नहीं है कि धंधेबाज रोटेरियंस को बड़े नेताओं की नाराजगी का डर है । 
रोटरी फाउंडेशन में एपीएफ अकाउंट को रोटरी का 'लाइफ-ब्लड' (जीवन-शक्ति) कहा/माना गया है, लेकिन रोटरी के धंधेबाज लोगों ने रोटरी को जीवन देने वाले इस खून को ही चूस लेने का इंतजाम कर लिया है । उल्लेखनीय है कि एपीएफ अकाउंट से डीडीएफ के रूप में मिली रकम में से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को आधी रकम डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट्स में खर्च करना होती है । इसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रेसीडेंट्स को प्रोत्साहित करते हैं कि वह समाज में लोगों की जरूरतों के हिसाब से प्रोजेक्ट बनाएँ और उसे पूरा करने के लिए कुछ पैसा क्लब  लगाएँ और बाकी पैसा उक्त अकाउंट से लें । सुरेश भसीन ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट्स में कोई दिलचस्पी नहीं ली । बीच में उन्होंने कुछ योजना बनाई थी, और काम शुरू किया था - लेकिन उसे फिर उन्होंने रोक दिया था । इसके चलते, डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट्स में खर्च की जाने वाली रकम ग्लोबल ग्रांट्स में इस्तेमाल होने के लिए जुड़ गई है ।  आरोपपूर्ण चर्चा है कि इस रकम को ' एक का चार करने' के लिए इस्तेमाल किया जायेगा, और इसके लिए धंधेबाज लोगों ने पूरी तैयारी कर ली है - जिसके तहत अस्पतालों व अन्य संस्थाओं से उनकी जरूरत की मशीनें व दूसरे काम लागत के आधे और या दो-तिहाई कीमत में देने/निकलवाने के ऑफर के साथ सौदेबाजी कर ली गई है । उदाहरण के लिए किसी अस्पताल/संस्था का कोई प्रोजेक्ट एक करोड़ रुपए का है; उसे ऑफर है कि उसका वह प्रोजेक्ट 70 लाख में लगवा देंगे; उससे 70 लाख लिए, उसमें से 40/50 लाख रोटरी फाउंडेशन में जमा करवाए और बाकी अपनी जेब में रख लिए । रोटरी फाउंडेशन को एक करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट दे दिया - उससे मिले एक करोड़ रुपए से अस्पताल/संस्था का प्रोजेक्ट लग जायेगा । इस तरह कई फायदे एक साथ मिल जाते है - रोटरी फाउंडेशन में भी रिकॉर्ड पैसा जमा हो गया, अपनी जेब भी गर्म हो गई, और समाज सेवा का पुण्य भी मिल गया । ऐसे ही 'मौकों' के लिए कहावत बनी होगी - 'हींग लगे न फिटकरी, रंग और स्वाद चोखा ।'   
ग्लोबल ग्रांट्स डिस्ट्रिक्ट 3011 में दरअसल एक बड़ा धंधा बन गई है । यह धंधा होता और भी डिस्ट्रिक्ट्स में है, तथा रोटरी फाउंडेशन की तरफ से कुछेक गवर्नर्स के खिलाफ कार्रवाई भी हुई है; लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 में कुछेक तेज दिमाग वाले लोगों ने इसे बड़ा व्यवस्थित रूप दिया हुआ है । पकड़-धकड़ हालाँकि यहाँ भी हुई है; पिछले रोटरी वर्ष में ही, बेईमानी की आशंका के चलते रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन द्वारा वापस की गई ग्रांट धोखाधड़ी से रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल को दिलवाने का मामला पकड़ा ही गया था, लेकिन रोटरी फाउंडेशन की तरफ से चूँकि किसी के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं हुई है, इसलिए धंधेबाजों के हौंसले यहाँ अभी बुलंद हैं । डिस्ट्रिक्ट 3011 में कुछेक बड़े रोटेरियंस की 'होशियारी' से - 'रोटरी फाउंडेशन में पैसा दो, और उसका तीन से चार गुना वापस लो' - फार्मूला बड़ा हिट है । इस फार्मूले ने लालच, स्वार्थ व बेईमानी का रास्ता खोल दिया है, जो रोटरी के लिए ही खतरा बन जा रहा है । दरअसल इस फार्मूले के तहत रोटरी फाउंडेशन में कोई भी 'देता' इसीलिए है, क्योंकि उसे तीन गुना से चार गुना 'लेना' होता है; और जब लेने की भावना प्रबल होती है तो फिर वह किसी भी तरह की बेईमानी करने से नहीं हिचकता है । इस बेईमानी और लूट की कोशिश उन लोगों की भावनाओं को ठगती है, जो सचमुच की जरूरत के लिए रोटरी फाउंडेशन में पैसे देते हैं । उन्हें लगता है कि रोटरी फाउंडेशन को दिया गया उनका पैसा जरूरतमंदों तक पहुँचने की बजाए रोटेरियंस के भेष में बैठे ठगों व लुटेरों की जेबों में चला जाता है । पिछले वर्ष विनय भाटिया की हरकतों के चलते डिस्ट्रिक्ट की जो बदनामी हुई थी, उसे देख कर लगा था कि धंधेबाज रोटेरियंस की हरकतों पर रोक लगेगी - लेकिन सुरेश भसीन की तैयारी देख कर लग रहा है कि पिछले वर्ष जैसा खेल इस वर्ष भी चलेगा ।

Saturday, April 18, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3110 में पूर्व गवर्नर आईएस तोमर को चीफ पेटर्न बनाने की घोषणा के जरिये डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल ने इस वर्ष हुई चुनावी हार का बदला लेने के लिए, अभी से चुनावी माहौल बनाना शुरू कर दिया है क्या ? 

अलीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल की पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आईएस तोमर को डिस्ट्रिक्ट चीफ पेटर्न बनाने की घोषणा तथा घोषणा की 'टाईमिंग' को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई के 'शंखनाद' के रूप में देखा/सुना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि आईएस तोमर को लेकर की गई उक्त घोषणा के जरिये मुकेश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह संकेत दे दिया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में इस वर्ष बुरी तरह मात खाने के बावजूद अभी उन्होंने 'हार' नहीं मानी है, और इस वर्ष की हार का बदला अगले रोटरी वर्ष में लेने के लिए उन्होंने अभी से कमर कसना शुरू कर दी है । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि पिछले दिनों इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता जब अलीगढ़ में आयोजित हुए कार्यक्रम में आये थे, तो उन्होंने इस बात के लिए बड़ी फटकार लगाई थी कि डिस्ट्रिक्ट में हमेशा राजनीतिक उठापटक ही चलती रहती है, और रोटरी के कामों की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता है; उन्होंने सुझाव दिया था कि राजनीति कम करके रोटरी के कामों पर ध्यान देने की जरूरत है । मुकेश सिंघल ने लेकिन लगता है कि शेखर मेहता की फटकार और उनके सुझाव को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया और राजनीति को ही रोटरी का मुख्य काम मान लिया है । यद्यपि यह सच है कि आईएस तोमर को अपने गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट चीफ पेटर्न बनाने की घोषणा करके मुकेश सिंघल ने कोई नियमविरुद्ध काम नहीं किया है; हर (भावी) गवर्नर को यह अधिकार है कि वह अपनी पसंद के लोगों को अपनी टीम में पद दे - मुकेश सिंघल ने अपने इसी अधिकार का उपयोग करते हुए आईएस तोमर को डिस्ट्रिक्ट चीफ पेटर्न बनाया है । लेकिन जिस 'परिस्थिति' में मुकेश सिंघल ने यह फैसला किया है, और फैसला सुनाने/बताने की उनकी जो टाईमिंग है - उसमें डिस्ट्रिक्ट के लोगों को राजनीति 'दिखाई' दे रही है ।
उल्लेखनीय है कि पिछले 12/14 महीनों में डिस्ट्रिक्ट में पहले डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन और फिर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चयन/चुनाव को लेकर जो उठापटक और छीनाझपटी वाले कांड हुए, उनके केंद्र में आईएस तोमर रहे । आईएस तोमर और उनके लोग डिस्ट्रिक्ट पर कब्जे को बनाये रखना चाहते थे, और डिस्ट्रिक्ट के दूसरे कई लोग डिस्ट्रिक्ट को उनके कब्जे से छुड़ाना चाहते थे । इस चक्कर में डिस्ट्रिक्ट में भारी गंद मचा और अंततः आईएस तोमर खेमे को बुरी हार का सामना करना पड़ा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के रूप में मुकेश सिंघल, पराजित हुए आईएस तोमर खेमे के मुख्य सिपाही थे - इसलिए उम्मीद की गई थी कि बुरी हार से सबक लेकर मुकेश सिंघल अब अपनी गवर्नरी पर ध्यान देंगे और राजनीति के पचड़े से दूर रहेंगे । आईएस तोमर को चीफ पेटर्न बना कर मुकेश सिंघल ने लेकिन जता दिया है कि उनके सिर से राजनीति का भूत अभी उतरा नहीं है और डिस्ट्रिक्ट पर आईएस तोमर का कब्जा करवाना ही उनका मुख्य उद्देश्य है । इस फैसले को 'सुनाने' की टाईमिंग ने भी मुकेश सिंघल के इरादे की पोल खोलने का काम किया । उल्लेखनीय है कि रोटरी की 'व्यवस्था' में मौजूदा दिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स इलेक्ट की सक्रियता के हैं; वह अपनी टीम पूरी कर रहे हैं, अपनी टीम के पदाधिकारियों की ट्रेनिंग करवा रहे हैं और अपने गवर्नर-वर्ष के कामकाज को पटरी पर लाने के प्रयासों में लगे हैं । रोटरी की व्यवस्था में, अभी का गवर्नर नॉमिनी जुलाई में गवर्नर इलेक्ट बनने के बाद अपनी टीम चुनने और घोषित करने का काम करता है । मुकेश सिंघल ने लेकिन गवर्नर नॉमिनी के रूप में अभी ही अपने पदाधिकारी घोषित करने शुरू कर दिए हैं । कई लोगों को कहना है कि इस तरह से मुकेश सिंघल, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दिनेश शुक्ला के कामकाज को डिस्टर्ब करने तथा डिस्ट्रिक्ट में एक समानांतर सत्ता केंद्र 'बनाने' का प्रयास कर रहे हैं; और उनके इस प्रयास के पीछे अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के लिए 'फील्डिंग' सजाने का उद्देश्य है ।
तोमर खेमे की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अभी रोटरी क्लब झांसी रानी की पूर्व अध्यक्ष देवप्रिया उक्सा के नाम की चर्चा है । उनका मुकाबला रोटरी क्लब कानपुर इंडस्ट्रियल के पूर्व अध्यक्ष विवेक गर्ग के साथ होने की संभावना देखी जा रही है । तोमर खेमे के कुछेक नेताओं का हालाँकि यह भी कहना है कि देवप्रिया उक्सा की स्थिति को विवेक गर्ग के मुकाबले कमजोर पहचाना/समझा जा रहा है, और खेमे के नेता कानपुर में ही कोई ऐसा उम्मीदवार खोज रहे हैं - जो विवेक गर्ग को सचमुच टक्कर दे सके । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीतना तोमर खेमे के लिए बहुत ही जरूरी है, अन्यथा आईएस तोमर के डिस्ट्रिक्ट में पूरी तरह अलग-थलग पड़ जाने तथा तोमर खेमे के बिखर जाने का खतरा पैदा हो जायेगा । इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में तोमर खेमे को जो झटका लगा है, उससे उनकी ताकत वैसे ही काफी कमजोर हो गई है । इस वर्ष लगे झटके के असर को तोमर खेमे के नेता हालाँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किशोर कातरू द्वारा की गई बेईमानी को तथा अपने उम्मीदवार सतीश जायसवाल के मैदान छोड़ देने को जिम्मेदार ठहराकर खत्म करने की कोशिश तो खूब कर रहे हैं, लेकिन उनकी कोशिश सफल होती हुई नजर नहीं आ रही है । ऐसे में यदि अगले रोटरी वर्ष में वह फिर चुनाव हार गए, तब उनके पास कोई बहाना भी नहीं बचेगा । तोमर खेमे के नेताओं के लिए मुसीबत और विडंबना की बात यह है कि उन्होंने देवप्रिया उक्सा को उम्मीदवार तो बना/बनवा दिया है, लेकिन उन्हें यह भरोसा भी नहीं हो पा रहा है कि उनकी उम्मीदवारी के सहारे वह लड़ाई जीत ही लेंगे । समझा जाता है और लोगों के बीच चर्चा है कि अपनी कमजोरी को भाँपते/पहचानते हुए ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल ने आईएस तोमर को चीफ पेटर्न बनाने की घोषणा अभी से करके डिस्ट्रिक्ट में चुनावी माहौल बनाना शुरू कर दिया है ।

Friday, April 17, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के आम सदस्यों को बैंक ऑडिट मिलने को लेकर पैदा हुए असमंजस में नेताओं और उनके 'आदमियों' की बबाल पैदा करने की कोशिशों को प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने 'नाटकबाजी' और 'राजनीति' बताया 

नई दिल्ली । बैंकों की ब्रांचेज के ऑडिट को लेकर पैदा हुए कन्फ्यूजन को और हवा देते हुए इंस्टीट्यूट के छुटभैये नेताओं और बड़े नेताओं के विभिन्न शहरों में बैठे 'लोगों' ने जो शोर मचाया है, इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने उसे 'नाटकबाजी' और 'राजनीति' करार दिया है । उल्लेखनीय है कि आईबीए (इंडियन बैंक एसोसिएशन) द्वारा आरबीआई (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) को लिखे पत्र का हवाला देते हुए इंस्टीट्यूट की राजनीति से जुड़े कुछेक छुटभैये नेताओं, जिनमें से अधिकतर किसी न किसी सेंट्रल काउंसिल सदस्य के साथ जुड़े हैं और उनके 'आदमी' के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं, ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को यह कहते/बताते हुए डराना शुरू कर दिया कि इस वर्ष आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को बैंकों की ब्रांचेज का ऑडिट करने का काम नहीं मिलेगा । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को डराने के साथ-साथ इन्होंने इंस्टीट्यूट के बड़े पदाधिकारियों और सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों से गुहार लगाना भी शुरू किया कि उन्हें जरूरी कदम उठाना चाहिए, ताकि आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के 'अधिकार' को छीना न जा सके । इस मामले को लेकर छुटभैये नेता खूब सक्रियता दिखा रहे हैं - वह सोशल मीडिया में बड़े नेताओं को लिखे पत्र जारी कर रहे हैं, अपील कर रहे हैं, और यहाँ तक कि जूम मीटिंग्स कर रहे हैं । मामले में पत्र लिखने और अपील करने की बात तो फिर भी समझ में आती है, लेकिन आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ जूम मीटिंग्स करने की जरूरत और उपयोगिता किसी को समझ में नहीं आ रही है - इसीलिए बबाल पैदा करने की कोशिशों को इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने 'नाटकबाजी' और 'राजनीति से प्रेरित' बताया है ।
अतुल गुप्ता का कहना है कि मामले को सही रूप में जानने/समझने की कोई कोशिश नहीं कर रहा है, और हर कोई सिर्फ राजनीति कर रहा है - ताकि वह आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'दिखा' सकें कि वह उनके लिए कितने परेशान हैं, और मामले के सही रूप में आने पर उसका श्रेय लूट सकें । अन्य कुछेक लोगों का यह भी कहना है कि मामले के सही रूप की जानकारी देने/बताने में प्रेसीडेंट के रूप में अतुल गुप्ता और इंस्टीट्यूट प्रशासन ने भी कोई पहल और कार्रवाई नहीं की, इसलिए चुनाव की तैयारी के तहत कुछेक नेताओं और उनके 'लोगों' ने आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच भय पैदा करने तथा अपनी राजनीति जमाने की कोशिशें शुरू कर दीं । जानकारों का कहना/बताना है कि लॉकडाउन के कारण बैंकों की ब्रांचेज के ऑडिट होने के काम को आगे बढ़ाने की व्यवस्था जिस तरह से बिगड़ी, उसे सुधारने के लिए जरूरी प्रबंध चूँकि नहीं किए गए, इसलिए असमंजस की स्थिति पैदा हुई । उल्लेखनीय है कि हमेशा की तरह कुछेक बैंकों ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को ऑडिट के लिए ब्रांचेज अलॉट कर दी थीं, लेकिन लॉकडाउन के कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ब्रांचेज में पहुँच ही नहीं सके । लॉकडाउन के कारण ही अन्य कुछेक बैंकों को अलॉटमेंट का काम रोक देना पड़ा ।  इस बीच, मौजूदा हालात का वास्ता देते हुए आईबीए ने बैंकों की ब्रांचेज के ऑडिट के काम को सीमित करने का सुझाव आरबीआई को दे डाला । आईबीए के इस सुझाव ने लॉकडाउन में खाली बैठे हुए इंस्टीट्यूट के छुटभैये नेताओं को 'काम' दे दिया - उनके बड़े नेताओं ने भी अपनी अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए उन्हें काम पर लगा दिया ।
उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण दुनिया और देश में अभूतपूर्व स्थिति पैदा हुई है, और लोगों के लिए तरह तरह के संकट पैदा हुए हैं । शक्तिशाली सरकारें, नेता, योजनाकार हक्के-बक्के हैं और किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि मौजूदा हालात से कैसे निपटें ?  मौजूदा समय में, सोशल मीडिया में ज्ञान झाड़ने वाले 'मूर्खों' के पास तो हर समस्या को हल करने का फार्मूला है; लेकिन जिन्हें सचमुच समस्याओं को हल करना है, उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा है और वह तीर-तुक्के से काम चला रहे हैं । बैंकों की ब्रांचेज के ऑडिट के मामले में भी यही हाल है; ब्रांच अलॉट होने के बाद भी ऑडिट का काम शुरू नहीं हो सका - इससे ही जाहिर है कि बातें कोई चाहें जो और जितनी कर ले, समस्या को हल करने को लेकर ठोस तरीके का सुझाव किसी के पास नहीं है । इस मामले में विडंबना और मजे की बात यह है कि बैंकों के सीएसए (सेंट्रल स्टेटुटरी ऑडीटर्स) - जो इंस्टीट्यूट के ही सदस्य हैं, और कुछेक तो आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोटों से सेंट्रल काउंसिल के सदस्य भी बने हैं - इस कोशिश में बताये जा रहे हैं कि आरबीआई, आईबीए के सुझाव को मान ले; ताकि बैंकों की सीमित ब्रांचेज के ऑडिट का काम भी उन्हें ही मिल जाए । ऐसे में, आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए यह समझना ही मुश्किल हो रहा है कि उनका 'अधिकार' छीनने में ज्यादा दिलचस्पी किस की है - आईबीए की, केंद्र सरकार की, और या उनके ही बीच में बैठे सीएसए की; उनके लिए समझना भी मुश्किल है कि इंस्टीट्यूट प्रशासन सरकार के सामने लाचार पड़ेगा, या सीएसए के दबाव में रहेगा । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स भले ही असमंजस में हों और अपना काम/अधिकार छिनने की आशंका से डरे हुए हों, लेकिन उनके नाम पर इस्टीट्यूट में राजनीति करने वाले नेता और उनके 'आदमी' के रूप में पहचाने जाने वाले छुटभैये नेता अपनी अपनी राजनीति चमकाने के लिए पूरी तरह से सक्रिय हैं । 

Wednesday, April 15, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी क्लब दिल्ली अनंता ने कोरोना-काल में सेवा-कार्यों के जरिये दूसरों को प्रेरित करने के साथ साथ डिस्ट्रिक्ट की इज्जत बचाई, तो प्रियतोष गुप्ता ने रोटरी के सेवा-धर्म के अभियान को नागरिक-समाज में और विश्वसनीय व प्रतिष्ठित करने की लीडरशिप खूबी को दिखाया

गाजियाबाद । कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते बने हालात में परेशानी का शिकार बन रहे लोगों की मदद के लिए आगे आकर रोटरी क्लब दिल्ली अनंता, रोटरी क्लब दिल्ली शाहदरा, रोटरी क्लब दिल्ली अशोका, रोटरी क्लब इंदिरापुरम परिवार, रोटरी क्लब गाजियाबाद मेट्रो, रोट्रेक्टर्स आदि ने मानवता की सेवा का रोटरी धर्म तो निभाया ही है, साथ ही साथ डिस्ट्रिक्ट की इज्जत बचाने का काम भी किया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता ने कोरोना वायरस के प्रकोप से बने हालात के पीड़ितों के लिए किसी भी तरह के सहायता कार्यक्रम चलाने से इंकार कर दिया था । कुछेक रोटेरियंस ने उन्हें सहायता कार्यक्रम चलाने के लिए कहा था, तो उन्होंने उन्हें सिविल डिफेंस के साथ मिल कर सहायता कार्यक्रम करने/चलाने की सलाह देकर अपनी जिम्मेदारी से हाथ झाड़ लिया था । दीपक गुप्ता के गैरजिम्मेदारी से भरे इस रवैये से निराश होकर कुछेक क्लब्स ने अपनी अपनी पहल से पीड़ितों की मदद के लिए सक्रियता दिखाई । इस मामले में रोटरी क्लब दिल्ली अनंता डिस्ट्रिक्ट के दूसरे क्लब्स तथा रोटेरियंस के लिए प्रेरणास्रोत बना । इस क्लब ने रोटरी इंडिया ह्यूमेनिटी फाउंडेशन में मोटी रकम तो दान में दी ही, परेशान और पीड़ित लोगों की मदद करने तथा उनके लिए खाने की व्यवस्था करने को लेकर भी निरंतर सक्रियता दिखाई । रोटरी क्लब दिल्ली अनंता की सक्रियता के क्षेत्र दिल्ली की बस्तियाँ रहीं, तो गाजियाबाद क्षेत्र में परेशान व पीड़ितों की तरफ रोटरी क्लब गाजियाबाद मेट्रो के पदाधिकारियों व सदस्यों ने मदद का हाथ बढ़ाया । दीपक गुप्ता ने खासा अवसरवादी रवैया दिखाया - पहले तो वह कोई सहायता कार्यक्रम चलाने/करने के पक्ष में ही नहीं थे, लेकिन उनके द्वारा हतोत्साहित किए जाने के बाद भी कुछेक क्लब्स ने जब अपने अपने स्तर पर काम शुरू किए, तो उन कामों का श्रेय जबर्दस्ती लेने के लिए वह आगे आ गए; और शेखर मेहता, भरत पांड्या, कमल सांघवी आदि को यह 'दिखाने' लगे जैसे कि यह सब काम वही कर/करवा रहे हैं ।
अच्छी बात यह रही कि दीपक गुप्ता की इस हरकत पर काम करने वाले क्लब्स के पदाधिकारियों और सदस्यों ने कोई ध्यान नहीं दिया, और इसलिए नाहक कोई विवाद पैदा नहीं हुआ । क्लब्स के पदाधिकारियों और सदस्यों ने अपने अपने काम पर ध्यान दिया, और अपनी अपनी सामर्थ्यानुसार पीड़ितों व परेशान लोगों की मदद के लिए काम किया । रोटरी क्लब दिल्ली अनंता ने अपने स्तर पर तो मदद की ही, रिलायंस फाउंडेशन के साथ तालमेल बना कर भी मदद की व्यवस्था की । रोटरी क्लब दिल्ली अनंता की सक्रियता दूसरे कुछेक क्लब्स के लिए भी प्रेरणा बनी और इस तरह डिस्ट्रिक्ट में रोटरी के सेवा-धर्म के संदर्भ में माहौल बना । रोटरी क्लब गाजियाबाद मेट्रो के पदाधिकारियों और सदस्यों ने गाजियाबाद क्षेत्र में दिल्ली अनंता की तर्ज पर काम किया । गाजियाबाद मेट्रो के पदाधिकारियों और सदस्यों को प्रेरित व सक्रिय करने का काम क्लब के वरिष्ठ सदस्य प्रियतोष गुप्ता ने किया । प्रियतोष गुप्ता अगले रोटरी वर्ष की आलोक गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट टीम के एक प्रमुख पदाधिकारी भी हैं, और इस नाते उन्हें आलोक गुप्ता द्वारा आयोजित की जाने वाली कई जूम मीटिंग्स में भी शामिल होना पड़ा - और अपने पद की जरूरत के अनुसार, उसके लिए आवश्यक तैयारी करने में भी व्यस्त होना पड़ा । उल्लेखनीय है कि आलोक गुप्ता ने हाल ही के दिनों में रोटरी के बड़े पदाधिकारियों से लेकर अगले वर्ष के अपने गवर्नर-काल के क्लब-प्रेसीडेंट्स तथा अपनी डिस्ट्रिक्ट टीम के सदस्यों साथ अलग अलग ग्रुप्स में जूम मीटिंग्स की हैं; जिनके चलते आलोक गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट टीम के प्रमुख पदाधिकारी होने के नाते प्रियतोष गुप्ता को उक्त मीटिंग्स की तैयारी करने से लेकर अपने पद की जिम्मेदारी निभाने की तैयारी तक में जुटना और व्यस्त रहना पड़ा ।
प्रियतोष गुप्ता ने आलोक गुप्ता के कार्यक्रमों में जिम्मेदारी निभाने से लेकर समाज में पैदा हुई विपदा में रोटरी का सेवा-धर्म निभाने के संदर्भ में अपनी सक्रियता और व्यस्तता को जिस प्रभावी तरीके से संभव किया और दिखाया, उसके जरिये डिस्ट्रिक्ट में लोगों को प्रियतोष गुप्ता की लीडरशिप खूबियों से परिचित होने का मौका मिला । प्रियतोष गुप्ता चूँकि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे हैं, इसलिए उनकी लीडरशिप खूबियों से परिचित होने का डिस्ट्रिक्ट के लोगों को मिले मौके का राजनीतिक अर्थ और महत्त्व भी है । रोटरी में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति में उम्मीदवारों को रोटेरियंस से अलग नागरिक-समाज की मदद करते हुए कम ही देखा गया है । इस लिहाज से, कोरोना प्रकोप के चलते बने हालात में जरूरतमंदों की मदद को लेकर दिखाई गई प्रियतोष गुप्ता की सक्रियता ने वास्तव में एक उदाहरण प्रस्तुत किया है । प्रियतोष गुप्ता ने अपने क्लब के पदाधिकारियों व सदस्यों को तो जरूरतमंदों की मदद के लिए तो प्रेरित किया ही, शहर की अन्य कुछेक सामाजिक संस्थाओं के साथ भी तालमेल बनाया - और इस तरह न सिर्फ जरूरतमंदों को पहुँचाई जाने वाली मदद को व्यापक बनाने का काम किया, बल्कि अन्य सामाजिक संस्थाओं के साथ तालमेल बनाने के 'रास्ते' भी खोजे और खोले । प्रियतोष गुप्ता की इन कार्रवाईयों को रोटरी के सेवा-धर्म के अभियान को नागरिक-समाज में और विश्वसनीय व प्रतिष्ठित करने की लीडरशिप खूबी के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।  

Monday, April 13, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी ब्लड बैंक के अकाउंट से जुड़े झमेले की आँच पर सुधीर मंगला सीओएल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी का पुलॉव पकने की जो उम्मीद कर रहे हैं, उससे लेकिन उनके नजदीकी ही उत्साहित नहीं हैं

नई दिल्ली । रोटरी ब्लड बैंक को लेकर डिस्ट्रिक्ट के नेताओं का जो तमाशा चल रहा है और अभी हाल ही में उसकी जमापूँजी में से बड़े हिस्से को दान करने के मामले में जो रिजल्ट निकला, सीओएल के चुनावी समीकरणों के संदर्भ में सुधीर मंगला उससे गदगद हैं और उसे अपनी उम्मीदवारी के हित में मान/देख रहे हैं । उनके नजदीकियों का कहना/बताना है कि ब्लड बैंक को लेकर पिछले छह/आठ महीनों से जो तमाशा चल रहा है, उसमें सीओएल के चुनावी समीकरणों के संदर्भ में पहले संजय खन्ना फायदे में लग रहे थे - लेकिन ब्लड बैंक की जमापूँजी हल्की करने के मामले में जो बबाल हुआ, उससे स्थितियाँ बदली हैं, और फायदे का संकेत देने वाली सुई संजय खन्ना से हट कर सुधीर मंगला पर आ टिकी है । दरअसल ब्लड बैंक को लेकर पिछले छह/आठ महीनों से जो नाटक चल रहा था, उसने संजय खन्ना को 'हीरो' बनाया हुआ था । लोगों के बीच चर्चा थी कि ब्लड बैंक के ट्रेजरर के रूप में संजय खन्ना ने ही ब्लड बैंक में गुपचुप रूप से होने वाले मनमाने खर्चों का मामला उठाया था, जिसके चलते बात खुली कि ब्लड बैंक की गवर्निंग बॉडी के सदस्य और पदाधिकारी कार्यकाल पूरा होने के बाद भी, बिना चुनाव करवाए अपने अपने पदों पर जमे हुए हैं और कामकाज में मनमानियाँ हो रही हैं । इसके बाद ही, ब्लड बैंक की गवर्निंग बॉडी के सदस्यों और पदाधिकारियों के चुनाव करने/करवाने की बात शुरू हुई और यह प्रमुख फैसला हुआ कि मौजूदा गवर्निंग बॉडी तथा पदाधिकारी बड़े खर्चों वाले किसी काम के बारे में फैसला नहीं करेंगे । ब्लड बैंक में हुए इस डेवलपमेंट को लोगों ने अच्छी भावना से लिया, और इसका श्रेय संजय खन्ना को दिया ।
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव होने के बाद रोटेरियंस नेता लोग प्रायः 'खाली' हो जाते हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 में सीओएल के चुनाव के साथ-साथ ब्लड बैंक के झमेले ने उन्हें सक्रिय बनाये रखा । वैसे तो सीओएल के चुनावी समीकरणों और ब्लड बैंक के झमेले का कोई संबंध नहीं बनता है, लेकिन चूँकि ब्लड बैंक के झमेले के बढ़ने के साथ-साथ सीओएल के चुनाव के दिन नजदीक आते गए - और दोनों जगह संजय खन्ना 'मौजूद' दिखे, तो लोगों के बीच बनने वाली बातों में ब्लड बैंक के झमेले तथा सीओएल के चुनावी समीकरणों में संबंध स्वतः जुड़ गया । इस जुड़े संबंध ने संजय खन्ना की सीओएल की उम्मीदवारी के लिए माहौल अनुकूल बनाया । लेकिन ब्लड बैंक के अकाउंट को हल्का करने के फैसले में शामिल होकर संजय खन्ना ने अपने लिए मुसीबत थोड़ा बढ़ा ली है । उनके नजदीकियों का कहना है कि संजय खन्ना उक्त मामले में दरअसल हालात को भाँप नहीं पाए; उन्हें लगा कि अधिकतर लोग उक्त फैसले के पक्ष में हैं, और फैसला हो ही जायेगा । ब्लड बैंक की गवर्निंग बॉडी की मीटिंग में सुरेश जैन के स्टैंड के जाहिर होने के बाद हालाँकि संजय खन्ना भी अकाउंट को हल्का करने के फैसले के खिलाफ हो गए, लेकिन माना यही गया कि उन्होंने मजबूरी में पलटी मारी । ब्लड बैंक के अकाउंट को हल्का करने के मामले में मंजीत साहनी ने जिस तरह से काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की भूमिका को शामिल किया, उसमें सुधीर मंगला ने 'बहती गंगा में हाथ धोने' का काम कर लिया । इसी आधार पर सुधीर मंगला को लगता है कि सीओएल के उम्मीदवारों में एक अकेले वही हैं, जिन्होंने ब्लड बैंक के अकाउंट को हल्का करने के प्रयास का विरोध किया - और इसलिए उक्त प्रयास का जिन भी लोगों ने विरोध किया है, उनका समर्थन उन्हें ही मिलेगा ।
सुधीर मंगला यह देख/जान/सुन कर और गदगद हैं कि डिस्ट्रिक्ट में हर कोई ब्लड बैंक के अकाउंट को हल्का करने के प्रयास के विफल हो जाने से खुश हैं । डिस्ट्रिक्ट के लोगों की इस खुशी में उन्हें सीओएल के लिए अपनी उम्मीदवारी की नाव इस बार पार होती दिख रही है । उल्लेखनीय है कि पिछली बार सीओएल के चुनाव में वह हार गए थे । मजे की बात लेकिन यह है कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर जैसा भरोसा सुधीर मंगला को है, वैसा भरोसा उनके नजदीकियों को नहीं है - और यही कारण है कि खुद सुधीर मंगला को ही यह शिकायत करते हुए सुना जा रहा है कि उन्हें जिन लोगों से मदद की उम्मीद है, वह उनकी मदद कर नहीं रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लग रहा है कि ब्लड बैंक के अकाउंट से जुड़े ताजा मामले में सही फैसला कर पाने में संजय खन्ना चूक भले ही गए हों, लेकिन उससे सीओएल के चुनाव पर उनकी पकड़ ढीली नहीं पड़ी है । ब्लड बैंक के अकाउंट से जुड़े मामले के कारण काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों में जो 'गर्मी' पैदा हुई है, वह यदि कोई नया समीकरण बनाती भी है तो उसका फायदा अमित जैन को मिल सकता है । अमित जैन सीओएल के लिए अपनी उम्मीदवारी का अभियान बड़े चुपचाप तरीके से चलाते 'सुने' जा रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में चलते रहने वाले तमाम झमेलों और विवादों से अमित जैन जिस तरह अपने आप को बचाये रखे हुए हैं, उसे उनकी 'कूल' और कुशल प्रबंधन नीति के नतीजे के रूप में देखा/पहचाना जाता है । चुनावी उठापटक में अमित जैन की इस नीति को कुछेक लोग उनकी कमजोरी के रूप में देखते हैं, तो अन्य कई लोग इसे उनकी ताकत के रूप में पहचानते हैं । सीओएल की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को लगता है कि ब्लड बैंक के अकाउंट से जुड़े जिस झमेले पर सुधीर मंगला उत्साहित हो रहे हैं, उस पर जल्दी ही धूल पड़ जाएगी और तब उम्मीदवारों की वास्तविक पहचान तथा लोगों के बीच उनकी छवि ही निर्णायक भूमिका निभायेगी ।

Sunday, April 12, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में डीके शर्मा की जीत के चलते संजीव रस्तोगी के बढ़े 'राजनीतिक भाव' के बीच सीओएल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करके योगेश मोहन गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपने आपको मजाक का विषय बना लिया है, और अपनी फजीहत को ही आमंत्रित किया है

मेरठ । योगेश मोहन गुप्ता ने सीओएल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प बनाने के साथ-साथ अपनी घटिया व षड्यंत्रपूर्ण हरकतों का एक बार फिर नजारा पेश किया है, और अपनी फजीहत के हालात बनाए हैं । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब मेरठ से 'निकाले' जाने के बाद योगेश मोहन गुप्ता को किसी क्लब में शरण नहीं मिली, और वह रोटरी से बाहर ही हो गए थे । लेकिन सीओएल के लिए उनकी उम्मीदवारी जिस क्लब से आई है, आरोप सुने जा रहे हैं कि उसकी सदस्यता उन्होंने फर्जी तरह से 'प्राप्त' की है । डिस्ट्रिक्ट में लोग इस बात को भी याद कर रहे हैं कि योगेश मोहन गुप्ता ने रोटरी में कोई भी चुनाव न लड़ने की घोषणा की थी; दरअसल योगेश मोहन गुप्ता की बेईमानीपूर्ण हरकतों को लेकर रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने उनके खिलाफ कुछ फैसले किए/लिए थे, जिससे नाराज होकर उन्होंने रोटरी, रोटेरियंस तथा रोटरी के कामकाज को लेकर प्रतिकूल टिप्पणियाँ की थीं - और उसी नाराजगी में उन्होंने रोटरी में कोई चुनाव न लड़ने की घोषणा की थी; लेकिन जैसी कि एक मशहूर कहावत है कि 'बंदर गुलाटियाँ मारना नहीं छोड़ पाता', सो योगेश मोहन गुप्ता से ज्यादा दिन रोटरी से और चुनाव लड़ने से दूर नहीं रहा गया । योगेश मोहन गुप्ता रोटरी में वापस लौटे - और चुनाव लड़ने के उद्देश्य से वापस लौटे, तो लोगों के बीच उनकी करतूतों और कारस्तानियों के गड़े मुर्दे उखड़ने लगे । इससे डिस्ट्रिक्ट का राजनीतिक माहौल दिलचस्प हो उठा है ।
योगेश मोहन गुप्ता की करतूतों और कारस्तानियों के गड़े मुर्दों के उखड़ने और उन पर लोगों के बीच होने वाली चर्चाओं के चलते संजीव रस्तोगी के लिए सीओएल का चुनाव आसान होता नजर आ रहा है । असल में योगेश मोहन गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट में अलग अलग लोगों से इतने झगड़े-फसाद रहे हैं कि उन सभी का समर्थन संजीव रस्तोगी को स्वतः मिलने की उम्मीद बन रही है । इसका एक पुख्ता सुबूत राजीव रस्तोगी के अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के प्रसंग में देखा/पहचाना जा सकता है । उल्लेखनीय है कि सीओएल के लिए राजीव रस्तोगी भी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन योगेश मोहन गुप्ता की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने के बाद उन्हें लगा कि तीन उम्मीदवार होने से कहीं योगेश मोहन गुप्ता बाजी न मार लें, और क्षेत्रावार वोटों की गणना करते हुए उन्हें यह भी समझ में आया कि योगेश मोहन गुप्ता के मंसूबों को संजीव रस्तोगी ही धूल चटा सकते हैं - सो, उन्होंने संजीव रस्तोगी के पक्ष में अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली । अखिलेश कोठीवाल भी उम्मीदवारी के इच्छुक सुने/बताये जा रहे हैं, लेकिन उनके नजदीकी और समर्थक ही उन्हें समझा रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट में जो चुनावी परिदृश्य दिख रहा है, उसमें उनके लिए कहीं कोई संभावना है नहीं - इसलिए उनकी उम्मीदवारी सिर्फ औपचारिक ही होगी और उन्हें पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए । सबसे ज्यादा मजे की बात अशोक गुप्ता और विकास गोयल के रवैये में देखने/सुनने को मिल रही है - यह दोनों अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे हैं; इसलिए दोनों अगले रोटरी वर्ष में प्रस्तुत होने वाली अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए संजीव रस्तोगी का समर्थन पाने की उम्मीद में सीओएल के चुनाव में संजीव रस्तोगी की उम्मीदवारी का समर्थन करते नजर आ रहे हैं ।
दरअसल इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में डीके शर्मा की जीत ने संजीव रस्तोगी का 'राजनीतिक भाव' बढ़ाया हुआ है । डीके शर्मा को संजीव रस्तोगी के उम्मीदवार के रूप में ही देखा/पहचाना गया था । डीके शर्मा की चुनावी जीत में हालाँकि और बहुत से कारण जिम्मेदार बने, लेकिन माना/समझा यही जा रहा है कि डीके शर्मा की उम्मीदवारी के अभियान का समीकरण बनाने और उसे क्रियान्वित करने की तैयारी के पीछे संजीव रस्तोगी ही थे, इसलिए डीके शर्मा की जीत वास्तव में संजीव रस्तोगी की जीत ही है ।डीके शर्मा की जीत के चलते संजीव रस्तोगी के 'राजनीतिक भाव' बढ़ने का असर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभालने की तैयारी कर रहे मनीष शारदा पर पड़ा है । मनीष शारदा कहने के लिए तो योगेश मोहन गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं, लेकिन योगेश मोहन गुप्ता की शिकायत यह है कि मनीष शारदा उनकी उम्मीदवारी को समर्थन/वोट दिलवाने के लिए कोई प्रयास ही नहीं कर रहे हैं । मनीष शारदा की चिंता यह है कि उन्होंने योगेश मोहन गुप्ता के लिए यदि काम किया, तो संजीव रस्तोगी के नजदीकी और समर्थक - तथा अलग अलग कारणों से योगेश मोहन गुप्ता के विरोधी बने लोग उनके गवर्नर-वर्ष में उनके साथ सहयोग नहीं करेंगे, और तब उनके लिए गवर्नरी करना ही मुश्किल हो जायेगा । मनीष शारदा को यह भी 'नजर' आ रहा है कि योगेश मोहन गुप्ता चाहें जो कर लें, सीओएल का चुनाव जीतेंगे तो नहीं ही - इसलिए उनके चक्कर में वह अपना गवर्नर-वर्ष खतरे में क्यों डालें ? योगेश मोहन गुप्ता के साथ जिन लोगों को सहानुभूति है, उनका भी मानना और कहना है कि सीओएल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करके योगेश मोहन गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपने आपको मजाक का विषय बना लिया है, और अपनी फजीहत को ही आमंत्रित किया है । 

Thursday, April 9, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर मंजीत साहनी ने रोटरी ब्लड बैंक के अकाउंट से बड़ी रकम दान करने के जरिये शेखर मेहता को खुश करके अपनी राजनीति संभालने की विनोद बंसल की कोशिश को बाहर से जो झटका दिया, उसे गवर्निंग बॉडी की मीटिंग में सुरेश जैन ने अंजाम तक पहुँचाया और विनोद बंसल की योजना पर पानी फेर दिया 

नई दिल्ली । विनोद बंसल ने रोटरी ब्लड बैंक के अकाउंट से मोटी रकम दान में देने के अपने मनमाने फैसले को तथाकथित गवर्निंग बॉडी की मीटिंग में मंजूर करवाने के लिए फील्डिंग तो बेहद कसी हुई सजाई थी, लेकिन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मंजीत साहनी की एक 'आउट स्विंग' ने उनकी फील्डिंग को ऐसा ऐसा तहसनहस किया कि फिर उनका फैसला तो मंजूर नहीं ही हुआ - उन्हें फजीहत का सामना और करना पड़ा । इस मामले में और भी बुरी बात यह हुई कि विनोद बंसल के चक्कर में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता के लिए भी दुविधा के हालात बने । मामले से परिचित हर व्यक्ति को हैरानी हुई कि शेखर मेहता आखिर विनोद बंसल के चक्कर में फँस कैसे गए ? हालाँकि मीटिंग से पहले तक जो 'स्थिति' थी, उसमें कोई भी विनोद बंसल के चक्कर में फँस सकता था । अपने फैसले को मंजूर करवाने के लिए विनोद बंसल ने बड़ी चाक-चौबंद व्यवस्था की थी; उनकी 'व्यवस्था' में कोई सेंध न लगा सके, इसके लिए उन्होंने शेखर मेहता का और उनके नाम का भरपूर इस्तेमाल किया । मीटिंग में उन्हें, जिन सदस्यों की तरफ से विरोध की आशंका थी, उनके मुँह बंद रखवाने के लिए उन्होंने शेखर मेहता रूपी टेप का पक्का इस्तेमाल किया हुआ था । विनोद बंसल ने ब्लड बैंक के सेक्रेटरी रमेश अग्रवाल और ट्रेजरर संजय खन्ना को अपने फैसले के पक्ष में करके हालात को पूरी तरह साध लिया था; यह दोनों सिर्फ विनोद बंसल के फैसले के साथ ही नहीं थे, बल्कि फैसले के विरोध में दिख रहे गवर्निंग बॉडी के सदस्यों को भी मनाने के काम में लगे हुए थे । ऐसे में, यही माना/समझा जा रहा था कि रोटरी ब्लड बैंक की गवर्निंग बॉडी की जूम मीटिंग में 'अपने' फैसले को मंजूर करवाने में विनोद बंसल को कोई दिक्कत नहीं होगी ।
लेकिन मंजीत साहनी ने विनोद बंसल की सारी तैयारी पर पानी फेर दिया ।
मीटिंग शुरू होने से कुछेक घंटे पहले, मंजीत साहनी ने सोशल मीडिया में एक संदेश दिया, जिसमें उन्होंने बताया कि रोटरी में बने ट्रस्ट के असली 'मालिक' डिस्ट्रिक्ट के सदस्य होते हैं, और काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की सहमति के बाद ही वह बनते हैं - इसलिए उसकी संपत्ति व जमापूँजी के बारे में फैसला करने का अधिकार ट्रस्ट की गवर्निंग बॉडी को नहीं है । मंजीत साहनी के इस संदेश ने दरअसल 'बिल्ली के गले में घंटी बाँधने' का काम किया । असल में, मंजीत साहनी के मामले में कूदने से पहले हर कोई शेखर मेहता की संलग्नता के कारण चुप बना हुआ था । विनोद बंसल इसी चुप्पी में अपना काम निकालने की तैयारी में थे । मंजीत साहनी के संदेश ने लेकिन उक्त चुप्पी को भंग कर दिया । सोशल मीडिया में फिर कई पूर्व गवर्नर्स ने विनोद बंसल की ब्लड बैंक का अकाउंट खाली करने की मनमानी कार्रवाई के प्रति अपनी नाराजगी दिखाई । यह इस बात का स्पष्ट संकेत था कि विनोद बंसल का 'रायता' फैलने लगा है । यह फैलता 'रायता' गवर्निंग बॉडी की मीटिंग में लेथन/गंदगी न करे, इसके लिए विनोद बंसल ने अभूतपूर्व तरीका अपनाया - और वह यह कि गवर्निंग बॉडी की मीटिंग की शुरुआत उन्होंने शेखर मेहता से करवाई । दिल्ली स्थित रोटरी ब्लड बैंक से शेखर मेहता का कोई मतलब नहीं है; एक बड़े पदाधिकारी होने के नाते ब्लड बैंक के किसी समारोह में शेखर मेहता उपस्थित हों - तो बात समझ में आती है; लेकिन ब्लड बैंक की गवर्निंग बॉडी की मीटिंग में उनकी मौजूदगी एक अभूतपूर्व बात बनी । समझा जाता है कि विनोद बंसल ने शेखर मेहता से मीटिंग की शुरुआत मीटिंग में मौजूद सदस्यों पर दबाव बनाने के लिए करवाई । लेकिन उनकी  तरकीब बुरी तरह फेल हो गई ।
मंजीत साहनी ने जो काम 'बाहर' किया था, गवर्निंग बॉडी की मीटिंग में वही काम वरिष्ठ पूर्व गवर्नर सुरेश जैन ने किया । मीटिंग में, शेखर मेहता के तुरंत बाद सुरेश जैन ने बोला और उन्होंने पूरी स्पष्टता व दृढ़ता के साथ ब्लड बैंक के अकाउंट को खाली करने की विनोद बंसल की कोशिश का दो-टूक विरोध किया । सुरेश जैन की बातों ने शेखर मेहता की मौजूदगी तथा उनकी अपील से बने प्रभाव को पूरी तरह धो-पोंछ दिया । सुरेश जैन की बातों ने एक तरह से मीटिंग की दशा-दिशा तय कर दी । रही-सही कसर रूपक जैन ने पूरी कर दी । इसके बाद तो हर कोई जैसे विनोद बंसल से बदला लेने पर उतारू दिखा । माहौल देख कर रमेश अग्रवाल और संजय खन्ना ने भी पाला बदल लिया, और वह भी विनोद बंसल के फैसले की खिलाफत करते नजर आए । रमेश अग्रवाल ने तो जोश जोश में यह पोल भी खोल दी कि विनोद बंसल तो यह मीटिंग ही नहीं करना चाहते थे, वह तो इस कोशिश में थे कि तीन-चार पदाधिकारी मिल कर ही ब्लड बैंक के अकाउंट को खाली करने का फैसला कर लें । यह पोल खुलने के बाद माहौल और गर्मा गया, तथा अनूप मित्तल बुरी तरह भड़के । इसके बाद तो मीटिंग में विनोद बंसल पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए और किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया । ऐसे में, विनोद बंसल ब्लड बैंक के अकाउंट को खाली करने का अपना फैसला मंजूर भला कैसे करवाते ? मीटिंग  में जो हुआ, उसमें विनोद बंसल को सिर्फ अपना फैसला मंजूर करवाने में ही हार का मुँह नहीं देखना पड़ा, बल्कि यह सच्चाई भी लोगों के सामने आई कि अपने ही डिस्ट्रिक्ट में वह पूरी तरह अलग-थलग हैं । इस बात ने राजनीतिक रूप से विनोद बंसल को तगड़ा झटका दिया है ।

Wednesday, April 8, 2020

रोटरी ब्लड बैंक के हिसाब-किताब में मनमानी और गड़बड़ी करने के मामलों के चलते मुसीबत में फँसने के बावजूद विनोद बंसल ने कोरोना वायरस के कारण पैदा हुए हालात का फायदा उठा कर, इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से ब्लड बैंक के पैसे का मनमाना इस्तेमाल करने का 'मौका' बनाया 

नई दिल्ली । रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट पद से हटाये जाने की कोशिशों से नाराज विनोद बंसल ने जाते-जाते ब्लड बैंक के अकाउंट को 'लुटाने' की अच्छी व्यवस्था कर ली है, और इस बार उनके लिए खुशकिस्मती की बात यह है कि उनकी 'व्यवस्था' में कोई टाँग अड़ाने की कोशिश भी नहीं कर रहा है । विनोद बंसल ने ब्लड बैंक की जमा पूँजी का मोटा हिस्सा प्रधानमंत्री कोविड19 रिलीफ फंड में देने का फैसला करके ब्लड बैंक के अकाउंट को खाली करके जाने का दाँव चला है । ब्लड बैंक के सेक्रेटरी रमेश अग्रवाल और एक्स-ऑफिसो सदस्य के रूप में डिस्ट्रिक्ट 3012 के गवर्नर दीपक गुप्ता ने शुरू में यह तर्क देते हुए विनोद बंसल के फैसले का विरोध किया था कि विनोद बंसल और अन्य पदाधिकारी इस समय कार्यकारी पदाधिकारी हैं, और कानूनन उन्हें ब्लड बैंक की जमा पूँजी को लेकर कोई फैसला करने का अधिकार नहीं है; लेकिन विनोद बंसल ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता का नाम लेकर उनकी ऐसी हवा टाइट की है कि उन्होंने अब पूरी तरह समर्पण कर दिया है । विनोद बंसल ने मुद्दे पर विचार-विमर्श करने के लिए 9 अप्रैल की शाम चार बजे ब्लड बैंक की गवर्निंग बॉडी की जूम मीटिंग बुलाई है । विचार-विमर्श की बात सिर्फ धोखा है; विनोद बंसल ने वास्तव में पक्की व्यवस्था कर ली है कि वह प्रस्ताव रखेंगे और बाकी सदस्य बिना कोई चूँ-चपड़ किए उनके प्रस्ताव पर ताली बजायेंगे । मजे की बात यह है कि जो लोग 9 अप्रैल की शाम 4 बजे की मीटिंग में ब्लड बैंक का अकाउंट खाली करने का फैसला करेंगे, वही लोग कुछ दिन पहले ही यह फैसला कर चुके हैं कि अगली गवर्निंग बॉडी बनने तक ब्लड बैंक के अकाउंट से सिर्फ रोजमर्रा के जरूरी खर्चों के लिए ही पैसे निकाले जायेंगे, और कोई भी बड़ा खर्चा अगली गवर्निंग बॉडी ही करेगी । यानि, मीटिंग में शामिल होने वालों को फैसला करने का अधिकार ही नहीं है । 
रमेश अग्रवाल और दीपक गुप्ता का उक्त फैसले का हवाला देते हुए दरअसल यही कहना रहा कि प्रधानमंत्री रिलीफ फंड में पैसा देने में जल्दबाजी करने की बजाये विनोद बंसल को ब्लड बैंक की अगली गवर्निंग बॉडी चुनवाने/बनवाने में जल्दबाजी करना चाहिए और ब्लड बैंक के पैसे का कैसे/क्या करना है - इसका फैसला उन्हें करने देना चाहिए । विनोद बंसल लेकिन पैसे देने का श्रेय खुद लेना चाहते हैं; आरोप है कि यह श्रेय लेकर वह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अपनी उम्मीदवारी के लिए फायदा उठाने की तिकड़म लगा रहे हैं - और इसलिए वह बड़ा खर्चा न करने के उस फैसले की अनदेखी करने के लिए तैयार हैं, जिस फैसले में वह खुद भी शामिल थे । लोगों के बीच चर्चा रही है कि विनोद बंसल की रोटरी के पैसे पर राजनीति करने के मामले में 'मास्टरी' है; रोटरी फाउंडेशन को 'एक का चार करने' की 'मशीन' बना कर वह पहले ही (कु)ख्याति पा चुके हैं । ब्लड बैंक में भी हिसाब-किताब में मनमानी और गड़बड़ी करने के मामले सामने आने के बाद विनोद बंसल को प्रेसीडेंट पद से हटाने की बात व प्रक्रिया शुरू हुई । इसे विनोद बंसल की 'मास्टरी' ही कहेंगे कि रोटरी ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट पद छिनने की प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद उन्होंने ब्लड बैंक के पैसे का मनमाना इस्तेमाल करने का मौका बना लिया है - और ब्लड बैंक के दूसरे पदाधिकारियों को अपना फैसला स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया है । इसके लिए, विनोद बंसल ने बड़ी सफाई से इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता के नाम का इस्तेमाल कर लिया है । 
9 अप्रैल की शाम चार बजे की जूम मीटिंग का जो संदेश विनोद बंसल ने ब्लड बैंक की गवर्निंग बॉडी के सदस्यों को भेजा है, उसमें शेखर मेहता का नाम जोड़ कर विनोद बंसल ने सदस्यों पर दबाव बनाने की जो चाल चली है, वह कामयाब रही है । दबी जुबान में तो चर्चा है कि शेखर मेहता ने जो 'टारगेट' दिया है, वह आराम से पूरा और पार हो तो रहा है - आखिर तब फिर विनोद बंसल उनका नाम लेकर ब्लड बैंक का खजाना खाली करने पर क्यों तुले हुए हैं । उल्लेखनीय है कि शेखर मेहता ने देश के रोटेरियंस की तरफ से प्रधानमंत्री रिलीफ फंड में 25 करोड़ रुपए देने का टारगेट तय किया है । पाँच डिस्ट्रिक्ट्स के रोटेरियंस की तरफ से तथा रोटरी न्यूज ट्रस्ट की तरफ से प्रधानमंत्री रिलीफ फंड में दिए जाने वाले पैसे की अभी तक जो घोषणाएँ हुई हैं, उनमें करीब 21 करोड़ रुपए का जोड़ बैठ रहा है । इससे जाहिर है कि प्रधानमंत्री रिलीफ फंड के लिए रोटेरियंस की तरफ से शेखर मेहता ने जो टारगेट रखा है, वास्तव में उससे कहीं ज्यादा रकम रोटेरियंस की तरफ से जा रही है - ऐसे में, रोटरी ब्लड बैंक का अकाउंट खाली करने की कोई जरूरत नहीं है; लेकिन फिर भी विनोद बंसल ब्लड बैंक का अकाउंट खाली करने पर आमादा हैं - तो इसका कारण सिर्फ यही है कि ऐसा करके विनोद बंसल अपना निजी हित साध सकेंगे । इसे बिडंवना ही कहेंगे कि नोएडा ब्लड बैंक के कर्ताधर्ता सतीश सिंघल पर ब्लड बैंक में इकट्ठा हुए खून की कमाई से निजी हित साधने का आरोप लगा, तो उनसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद ही छिन गया और उन्हें पूर्व गवर्नर की मान्यता भी नहीं मिली; जबकि दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक में इकट्ठा हुए खून से हुई कमाई को मनमाने तरीके से 'निजी हित' में इस्तेमाल करने के आरोपों के बीच विनोद बंसल लेकिन इंटरनेशनल डायरेक्टर पद पर पहुँचने की तैयारी कर रहे हैं ।

Tuesday, April 7, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में अपनी अपनी हार के अंतर से झटका खाए महेश त्रिखा और अजीत जालान के अपनी उम्मीदवारी की पुनर्प्रस्तुति को लेकर असमंजस में होने के कारण पुष्पा सेठी अपनी जीत को आसान मान रही हैं, और इसलिए उन्हें अभी से सक्रिय होने की जरूरत नहीं लग रही है   

नई दिल्ली । महेश त्रिखा और अजीत जालान की असमंजसपूर्ण चुप्पी के चलते पुष्पा सेठी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी को लेकर जो ढीला-ढाला रवैया अपनाया है, उसने उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को बुरी तरह निराश किया हुआ है । पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी के संभावित समर्थक एक नेता ने इन पंक्तियों के लेखक से बात करते हुए कहा/बताया कि यूँ तो लॉकडाउन के कारण रोटरी की गतिविधियाँ ठप्प पड़ी हुई हैं; लेकिन एक कुशल लीडर प्रतिकूल स्थितियों में भी अपनी राह बनाने/निकालने की कोशिश करता ही है - किंतु पुष्पा सेठी की तरफ से ऐसी कोशिश होती हुई दिख नहीं रही है । उन्होंने ही बताया कि तय यह हुआ था कि इस वर्ष हुए चुनाव का नतीजा आते ही पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी का अभियान शुरू हो जायेगा, ताकि पेट्स में जुटे प्रेसीडेंट्स के बीच उनकी उम्मीदवारी की दावेदारी को मजबूती से 'दिखाया' जा सके; लेकिन लॉकडाउन के कारण चूँकि पेट्स का आयोजन ही खतरे में पड़ा दिख रहा है - इसलिए लगता है कि उम्मीदवार के रूप में पुष्पा सेठी कुछ करने की जरूरत नहीं समझ रही हैं । पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी के एक अन्य संभावित समर्थक नेता का कहना है कि अभी चूँकि यही स्पष्ट नहीं हो रहा है कि उनका चुनाव होगा किस से, संभवतः इसलिए भी पुष्पा सेठी को सक्रिय होने या 'दिखने' की जरूरत न लग रही हो । उम्मीद की जा रही है कि इस वर्ष हुए चुनाव में असफल रहे महेश त्रिखा और अजीत जालान में से कोई एक अथवा दोनों ही अगले चुनाव में भी उम्मीदवार बनेंगे - लेकिन दोनों की तरफ से ही अपनी उम्मीदवारी को लेकर अभी तक चुप्पी बनी हुई है, और इस कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अगले चुनाव को लेकर अभी तस्वीर धुँधली सी ही बनी हुई है ।
महेश त्रिखा और अजीत जालान - दोनों के लिए ही इस वर्ष हुए चुनाव का नतीजा खासा झटके वाला रहा है ।यह कोई बड़ी बात नहीं है कि दोनों के हाथ असफलता लगी है; बड़ी बात यह है कि उनकी असफलता का अंतर बहुत बड़ा रहा है - और इसीलिए अगली बार उम्मीदवारी प्रस्तुत करने को लेकर वह अच्छे से विचार कर लेना चाहते हैं; और अगली बार के चुनाव में अपनी अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहते हैं । यही कारण है कि अगले चुनाव में अपनी अपनी उम्मीदवारी को लेकर इन दोनों ने ही चुप्पी बनाई हुई है । दरअसल उम्मीदवार के रूप में जो कुछ भी किया जा सकता था, महेश त्रिखा और अजीत जालान ने अपने अपने तरीके से वह सब किया - इसके बावजूद दोनों ही विजेता उम्मीदवार से बहुत बहुत पीछे रहे; ऐसे में, दोनों के सामने चुनौती है कि अगले चुनाव के संदर्भ में वह ऐसा और क्या करें कि इस वर्ष रह गई कमी को पूरा कर सकें । महेश त्रिखा और अजीत जालान की इस मुसीबतपूर्ण असमंजसता का फायदा पुष्पा सेठी को मिल सकता है, लेकिन उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को ही हैरानी है कि पुष्पा सेठी मौके का फायदा उठाने के लिए सक्रिय क्यों नहीं हो रही हैं ? उनके शुभचिंतकों को ही लग रहा है कि उनकी उम्मीदवारी को चूँकि उन नेताओं व पदाधिकारियों का समर्थन है, जो अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थन में थे - इसलिए पुष्पा सेठी को लग रहा होगा कि अशोक कंतूर की तरह वह भी बड़े अंतर से जीत ही जायेंगी, और इसलिए उन्हें अभी से सक्रिय होने की जरूरत नहीं लग रही होगी ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अगले चुनाव में पुष्पा सेठी का मुकाबला - महेश त्रिखा व अजीत जालान में से जो भी उम्मीदवार बनेगा, उससे होगा । लगता है कि पुष्पा सेठी और उनके नजदीकी अभी इंतजार कर लेना चाहते हैं कि महेश त्रिखा और अजीत जालान में से कौन उम्मीदवार बनता है । महेश त्रिखा और अजीत जालान के 'फैसले' का दो/एक संभावित उम्मीदवार और इंतजार कर रहे हैं । दरअसल दो/एक और उम्मीदवार अपनी उम्मीदवारी के लिए मौका देख रहे हैं, लेकिन तीन-तीन उम्मीदवारों की चर्चा के बीच जिनकी दाल अभी गल नहीं रही है; समर्थकों के न मिल पाने के कारण जो अभी पर्दे के पीछे इंतजार करने के लिए मजबूर हैं । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट में अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है - पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी पक्की जरूर समझी जा रही है, लेकिन उन्हें अपनी उम्मीदवारी को लेकर गंभीर होते हुए नहीं देखा जा रहा है; महेश त्रिखा और अजीत जालान हाँ और न की उलझन में फँसे दिख रहे हैं - दो/एक लोग उम्मीदवार बनने को इच्छुक तो हैं, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद उनकी उम्मीदवारी की डोर थामने को कोई तैयार होता हुआ नहीं दिख रहा है । लॉकडाउन के कारण रोटरी की गतिविधियाँ ठप्प जरूर हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की तैयारी के संदर्भ में बनी असमंजस की मौजूदा स्थिति के लिए लॉकडाउन जिम्मेदार नहीं है - इसलिए उम्मीद की जा रही है कि लॉकडाउन भले ही कुछ दिन अभी और जारी रहे, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर बनी असमंजसता जल्दी ही खत्म हो सकती है ।

Saturday, April 4, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में विदेश से लौटे राजा साबू और उनकी मेडीकल मिशन की टीम के सदस्यों की गैरजिम्मेदारी कनिका कपूर और तबलीगी जमात की तरह देश में रोटरी व रोटेरियंस की भी बदनामी करवा सकती थी, वह तो कहो कि किस्मत से बच गए

चंडीगढ़ । पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू कोरोना वायरस के प्रकोप से पैदा हुए हालात से निपटने में मदद की अपील करके एक बार फिर मुसीबत में घिर गए हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों का कहना है कि उनकी अपील वास्तव में हर मौके का फायदा उठा लेने के उनके तौर-तरीके का नया उदाहरण है । राजा साबू के इस तौर-तरीके से परिचित डिस्ट्रिक्ट के लोगों का कहना है कि राजा साबू यदि कोरोना के खतरे को लेकर यदि सचमुच सावधान होते तो मेडीकल मिशन के तहत टीम लेकर जिम्बाब्वे नहीं जाते । राजा साबू बड़े जागरूक व्यक्ति हैं; दुनिया के विभिन्न देशों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की वह जानकारी रखते हैं, और उस जानकारी के आधार पर ही वह विभिन्न देशों में मेडीकल मिशन के तहत टीम लेकर जाते हैं । ऐसे में, ऐसा नहीं हो सकता कि दुनिया के देशों में कोरोना का जो प्रकोप जनवरी से सामने आने लगा था - राजा साबू उससे परिचित नहीं होंगे; लेकिन फिर भी वह मार्च के पहले डेढ़ सप्ताह के दौरान जिम्बाब्वे मेडीकल मिशन की टीम लेकर गए । 11/12 मार्च को विदेश से वापस लौटने पर उन्होंने इस बात की भी जरूरत नहीं समझी कि वह अपनी और अपनी टीम के सदस्यों की मेडीकल जाँच करवाएँ । अब जब यह साबित हो चुका है कि भारत में कोरोना का प्रवेश मार्च में विदेश से लौटने वाले लोगों के सौजन्य से हुआ है, तब यह समझना मुश्किल नहीं है कि राजा साबू ने कोरोना को लेकर कितना बड़ा खिलवाड़ किया है । सिर्फ इतना ही नहीं, 11/12 मार्च को विदेश से लौटने के बाद भी राजा साबू और उनकी टीम के कई सदस्य भीड़भाड़ वाले आयोजनों में शामिल हुए, और उन्होंने जरा भी सावधानी नहीं अपनाई ।    
यह सिर्फ किस्मत की बात ही रही कि मेडीकल मिशन के तहत विदेश गए और लौटे रोटेरियंस कोरोना के संक्रमण लिए जिम्मेदार नहीं बने, अन्यथा कनिका कपूर और तबलीगी जमात की तरह देश में रोटरी व रोटेरियंस की भी थू थू हो रही होती । कह सकते हैं कि रोटरी और रोटेरियंस बस किस्मत के भरोसे ही कनिका कपूर और तबलीगी जमात जैसी बदनामी पाने से बच गए, अन्यथा राजा साबू ने अपनी तरफ से उनके जैसी हरकत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । इस तरह राजा साबू कोरोना प्रकोप के मामले में एक जिम्मेदार नागरिक व एक जिम्मेदार रोटेरियन की तरह व्यवहार करने में पूरी तरह विफल रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के लोगों की नाराजगी इस बात को लेकर है कि वही राजा साबू अब कोरोना प्रकोप के मामले में राहत कार्यों की बात करके मसीहा बनने की कोशिश कर रहे हैं - और इस तरह अपनी स्वार्थी व गैरजिम्मेदाराना हरकतों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यह देख कर भी हैरानी हो रही है कि राजा साबू की चालबाजियों को उनके समर्थक रहे लोगों का तो समर्थन मिल ही रहा है, पिछले तीन-चार वर्षों से उनकी चालबाजियों के शिकार रहे तथा उनसे लड़ते रहे लोगों का भी सहयोग/समर्थन मिल रहा है । पिछले तीन-चार वर्षों में मेडीकल मिशन पर लगातार सवाल उठाने वाले नेता लोगों ने; और यहाँ तक कि राजा साबू पर मेडीकल मिशन के बहाने बिजनेस डील करने के आरोप लगाने वाले नेता लोग भी अब राजा साबू के साथ खड़े नजर आ रहे हैं ।
ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लग रहा है कि पिछले तीन-चार वर्षों में राजा साबू की चालबाजियों के शिकार रहे और उनसे लड़ते रहे नेताओं ने भी या तो किसी मजबूरी में और या किसी स्वार्थ में राजा साबू के सामने समर्पण कर दिया है । इसी समर्पण का नतीजा है कि राजा साबू के कब्जे में बने रोटरी ट्रस्टों की कमान डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारियों को सौंपने की माँग को छोड़ दिया गया है; राजा साबू के कब्जे वाले ट्रस्टों के पास करीब तीन/सवा तीन करोड़ रुपयों के होने का हिसाब बताया जाता रहा था, लेकिन अब उस हिसाब को भी भुला दिया गया है; राजा साबू के नजदीकी पूर्व गवर्नर मनप्रीत सिंह गंधोके को डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से गैरकानूनी रूप से दिए गए रुपयों को वापस माँगने में पिछले वर्ष तक तो बड़ी गर्मी थी, लेकिन उस मामले में भी अब ठंड पड़ती दिख रही है । लोगों का कहना है कि कोरोना प्रकोप से लड़ने के लिए दान देने की अपील करने वाले राजा साबू अपने कब्जे वाले ट्रस्टों में रखे हुए करीब तीन/सवा तीन करोड़ रुपयों को क्यों नहीं खर्च करते हैं - उक्त रकम को आखिर वह क्यों दबा कर बैठे हुए हैं ? इस तरह की बातों/चर्चाओं के बीच राजा साबू के कुछेक शुभचिंतकों का यह कहना भी खासा मजेदार है कि राजा साबू मसीहा बनने/दिखने की कोशिश में यह भूल जाते हैं कि उनके तौर-तरीकों की पोल अब खुल चुकी है, इसलिए उनकी कोशिश लोगों को भड़का देती है और फिर लोग उनकी फजीहत में जुट जाते हैं । शुभचिंतकों की सलाह है कि राजा साबू ने अब जब अपने विरोधी रहे नेताओं को भी पटा लिया है, और उन्हें अपने साथ मिला लिया है - तो चुपचाप उनसे अपने काम निकालें और मौज करें; पब्लिकली मसीहा बनने की कोशिश न करें; क्योंकि तब लोग उनकी कारस्तानियों और बेईमानियों की चर्चा करने लगते हैं । उल्लेखनीय है कि कोरोना मामले में राजा साबू ने गैरजिम्मेदारी का जो व्यवहार किया, उस पर लोगों का ध्यान नहीं गया था; लेकिन राजा साबू ने जैसे ही रूप बदल कर जिम्मेदार 'दिखने' की कोशिश की है, लोगों ने तुरंत उनका अवसरवादी दोहरा रूप 'पकड़' लिया और उनके लिए मामला उल्टा पड़ गया ।