Wednesday, February 22, 2012

रवि भाटिया की राह में रोड़ा अटकाने के लिए डॉक्टर सुब्रमणियन मोहरा बनेंगे क्या

नई दिल्ली | रवि भाटिया और डॉक्टर सुब्रमणियन में से किसी एक को अगले रोटरी वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार चुनने को लेकर रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल में खासा घमासान मच गया है | खास बात यह है कि दिल्ली सेंट्रल में मचे इस घमासान में डिस्ट्रिक्ट के नेताओं ने भी अपने अपने पक्ष तय कर लिए हैं, जिस कारण दिल्ली सेंट्रल का यह घमासान डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की दिशा और दशा को लेकर भी महत्वपूर्ण हो गया है | संजय खन्ना की चुनावी जीत से उत्साहित और संजय खन्ना की चुनावी जीत में डिस्ट्रिक्ट की बेहतरी को देख रहे लोगों की उम्मीदें अब रवि भाटिया पर आ टिकी हैं, लेकिन संजय खन्ना की जीत से बने माहौल को फिर से बदरंग करने और संजय खन्ना की जीत से पहले वाले माहौल को वापस लाने की इच्छा रखने वाले 'लोग' भी चूँकि चुप नहीं बैठे हैं, इसलिए उन्होंने रवि भाटिया की राह में रोड़ा अटकाने के लिए डॉक्टर सुब्रमणियन को मोहरा बना लिया है | गौर करने की बात यह है कि रवि भाटिया की बजाये डॉक्टर सुब्रमणियन को उम्मीदवार बनाये जाने की वकालत करने वालों के पास इसके अलावा और कोई तर्क नहीं है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को मुकेश अरनेजा और असित मित्तल ने समर्थन देने का भरोसा दे दिया है | इस तर्क के भरोसे डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की वकालत करने वालों के पास लेकिन इस बात का कोई जबाव नहीं है कि इन दोनों नेताओं के समर्थन के बावजूद जब रवि चौधरी का कुछ नहीं हुआ, तो डॉक्टर सुब्रमणियन का ही क्या होगा ?
दिल्ली सेंट्रल के भी और डिस्ट्रिक्ट के भी कई लोगों का साफ मानना और कहना है कि किसी भी उम्मीदवार की सफलता का आधार यह नहीं होता है कि उसे 'इसका' या 'उसका' समर्थन प्राप्त है; सफलता का आधार होता है उसकी अपनी पहचान और उसकी अपनी सामर्थ्य | सभी मानते और कहते हैं कि पहचान और सामर्थ्य को लेकर रवि भाटिया का पलड़ा डॉक्टर सुब्रमणियन की तुलना में बहुत-बहुत भारी है | रवि भाटिया की डिस्ट्रिक्ट में अच्छी पहचान है, उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में कई गवर्नर्स के साथ महत्वपूर्ण भूमिकाओं में काम किया है, डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय भूमिका निभाने वाले लोगों को वह अच्छी तरह जानते-पहचानते हैं, पीछे एक बार चुनावी प्रक्रियां का हिस्सा बन चुकने के कारण वह चुनावी राजनीति की सपरीली-पथरीली राहों को भी जानते-पहचानते हैं - और उनके बारे में सबसे बड़ी बात यह कि संजय खन्ना की चुनावी जीत में अहम् भूमिका निभाने वाले सभी बड़े-छोटे नेताओं का समर्थन उन्हें बिना किसी झंझट के मिल सकने के पूरे आसार हैं | डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ समस्या यह है कि डिस्ट्रिक्ट में उनकी न तो कोई पहचान है, और न ही उनकी किसी भी तरह की कोई सक्रियता रही है | उन्होंने कभी कोई जिम्मेदारी भी नहीं निभाई - निभाई इसलिए नहीं, क्योंकि किसी ने उन्हें कोई जिम्मेदारी दी नहीं; किसी ने उन्हें जिम्मेदारी दी इसलिए नहीं क्योंकि कोई भी उनकी सामर्थ्य के प्रति आश्वस्त नहीं हो पाया | ले देकर उनके नाम अभी हाल ही में संपन्न हुई डिस्ट्रिक्ट कांफ्रेंस की चेयरमैनी है | लेकिन यह चेयरमैनी उन्हें रोटरी में की गई उनकी सेवाओं से प्रभावित होकर नहीं मिली, बल्कि असित मित्तल के भाई की 'सेवा' करने के कारण मिली |
असित मित्तल रोटरी को और डिस्ट्रिक्ट को चूँकि अपनी निजी जायदाद की तरह देखते/समझते हैं, इसलिए वह निजी रूप से उनके काम आने वालों को डिस्ट्रिक्ट 'दे देने' को तैयार हो जाते हैं | रवि चौधरी को 'लंगड़ा घोड़ा' बताते हुए वह उनके बारे में इधर जिस तरह की बातें करने लगे हैं उससे जाहिर हो रहा है कि वह रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इसलिए नहीं बनवा रहे थे क्योंकि वह रवि चौधरी की रोटरी-सेवाओं से प्रभावित थे: वह तो चूँकि रवि चौधरी ने निजी तौर पर उनकी 'सेवा' की हुई है - असित मित्तल को उन्होंने खासी मोटी रकम उपलब्ध करवाई हुई है, जिसे असित मित्तल वापिस नहीं कर रहे हैं: सो असित मित्तल ने रवि चौधरी से कहा कि मैं तुम्हें तुम्हारे पैसे तो वापस नहीं कर पा रहा हूँ, चलो मैं तुम्हें डिस्ट्रिक्ट 3010 दे देता हूँ | असित मित्तल ने यही खेल डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ खेला | डॉक्टर सुब्रमणियन ने असित मित्तल के भाई के उपचार में मदद की थी; उनके इस उपकार के बदले में असित मित्तल ने उन्हें भी डिस्ट्रिक्ट 3010 'दे देने' का वायदा कर लिया | इस वायदे को पूरा करते दिखने के उद्देश्य से ही असित मित्तल ने डॉक्टर सुब्रमणियन को कांफ्रेस चेयरमैन बनाया | असित मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट को बड़े-बड़े 'महान' लोग दिए हैं | डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ असित मित्तल ने एक जिन प्रदीप चौधरी को डायरेक्टर कांफ्रेंस प्रोमोशन बनाया, उन प्रदीप चौधरी की रोटरी सेवाओं को असित मित्तल के अलावा और कोई नहीं जानता | प्रदीप चौधरी रोटेरियंस के बीच यदि जाने जाते हैं तो सिर्फ एक काम के लिए - 25 जनवरी को गाजियाबाद में रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उदेश्य से हुई मीटिंग में लड़कीबाजी को लेकर जो मारपिटाई हुई थी उसके मुख्य आयोजक प्रदीप चौधरी ही थे | यह तथ्य जानना इसलिए जरूरी है, ताकि यह स्पष्ट रूप से समझा जा सके कि असित मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट प्रोमोशन का काम प्रदीप चौधरी और डॉक्टर सुब्रमणियन को उनकी रोटरी सेवाओं को देखते हुए नहीं, बल्कि अपने निजी स्वार्थों को पूरा करते हुए सौंपा था |
डॉक्टर सुब्रमणियन के नजदीकियों और उनके शुभचिंतकों ने उनको समझाया है कि असित मित्तल की बातों में आकर वह अपनी किरकिरी न करवाएँ | उन्हें बताया गया है कि असित मित्तल ही दूसरों से कहते हैं कि डॉक्टर के बस की चुनाव लड़ना है ही नहीं, और यह भी कि डॉक्टर को अभी इस बात का अंदाज़ा ही नहीं है कि एक उम्मीदवार को क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं | नजदीकियों और शुभचिंतकों की इस समझाइश का कोई असर पड़ता इससे पहले रवि भाटिया की उम्मीदवारी से डरे मुकेश अरनेजा जैसे लोगों ने भी डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को हवा देने का काम शुरू कर दिया | मजे की बात यह है कि मुकेश अरनेजा ने कुछ ही दिन पहले रवि भाटिया को अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया था | रवि भाटिया लेकिन उन्हें जैसे ही प्रेरित होते दिखे, उन्होंने डॉक्टर सुब्रमणियन को उकसाने का काम हाथ में ले लिया | रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल में जो लोग रवि भाटिया को आगे बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहते हैं, उन्होंने भी डॉक्टर सुब्रमणियन को हवा देना शुरू कर दिया है | डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि उन्हें मुकेश अरनेजा और असित मित्तल जैसे अपनी राजनीतिक दुकान के लिए 'सामान' खोज रहे लोगों तथा रवि भाटिया के विरोधी लोगों के बहकाने में नहीं आना चाहिए और तथ्यपूर्ण तरीके से डिस्ट्रिक्ट के चुनावी समीकरण व अपनी स्थिति का आकलन करना चाहिए और तब अपनी उम्मीदवारी के बारे में फैसला करना चाहिए | रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल के कई प्रमुख लोगों का तथा डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के प्रमुख खिलाड़ियों का मानना और कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की बजाये यदि रवि भाटिया उम्मीदवार बनते हैं तो वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के प्रबल दावेदार हो सकेंगे | रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल के पदाधिकारियों पर रवि भाटिया को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने का दबाव तो बहुत है, लेकिन डॉक्टर सुब्रमणियन को हवा दे रहे रवि भाटिया के विरोधियों ने भी अभी अपनी कोशिशें नहीं छोड़ी हैं - इसलिए रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल में उम्मीदवार चुनने को लेकर खासा घमासान मचा हुआ है |

Thursday, February 2, 2012

सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी से डरे मुकेश अरनेजा और असित मित्तल उन्हें मनाने के साथ-साथ उन्हें बदनाम करने की मुहिम में जुटे

नई दिल्ली | सतीश गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों के साथ मीटिंग करके अपनी चुनावी रणनीति को जिस आक्रामक तरीके से जाँचा-परखा है, उसके बारे में जान/सुन कर मुकेश अरनेजा और असित मित्तल को तगड़ा झटका लगा है | दरअसल इन्हें क्या, अन्य कईयों को यह उम्मीद नहीं थी कि सतीश गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में कई-एक प्रमुख लोगों का खुल्लमखुल्ला समर्थन जुटा लेंगे | अपनी चुनावी रणनीति को लेकर सतीश गुप्ता ने जो मीटिंग की, उसमें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अशोक घोष के बहुत खासमखास सतिंदर नारंग, पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केके गुप्ता के बेटे समीर गुप्ता, असित मित्तल की डिस्ट्रिक्ट टीम में ट्रेजरार अशोक गर्ग के क्लब के कुछेक खास सदस्य, असित मित्तल-रमेश अग्रवाल-विनोद बंसल की चुनावी जीत में प्रमुख भूमिका निभाने वाले गाजियाबाद के रवींद्र सिंह, असित मित्तल की डिस्ट्रिक्ट टीम के चार-पाँच असिस्टेंट गवर्नर आदि की उपस्थिति ने उनकी मीटिंग को महत्वपूर्ण बना दिया | इन तथा कुछेक अन्य प्रमुख लोगों की उपस्थिति से यह स्वतः साबित हुआ कि जिन सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी को हल्के में लिया जा रहा है, उन सतीश गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी के लिए लोगों के बीच अच्छा समर्थन जुटाया हुआ है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनावी मुकाबले में वह 'छुपे रुस्तम' साबित हो सकते हैं | इस मीटिंग में सतीश गुप्ता के क्लब के प्रायः सभी पूर्व अध्यक्ष तथा मौजूदा पदाधिकारी भी उपस्थित थे | उनकी उपस्थिति से सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह के उन 'नेताओं' को स्वतः ही जबाव मिल गया जो लगातार यह झूठ फैलाए हुए थे कि सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी को तो उनके अपने ही क्लब में विरोध का सामना करना पड़ रहा है |
सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों की इस मीटिंग की जानकारी मिलते ही मुकेश अरनेजा और असित मित्तल के तो हाथों के तोते उड़ गए | दरअसल इन दोनों को उम्मीद थी कि यह सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी को वापस करवा देंगे | मुकेश अरनेजा ने तो पिछले दिनों झूठ बोल-बोल कर लोगों को यह बताना भी शुरू कर दिया था कि सतीश गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी को वापस ले लिया है | इससे पहले मुकेश अरनेजा और असित मित्तल ने तरह-तरह से सतीश गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी के प्रति हतोत्साहित करने का हर संभाव प्रयास किया था | मुकेश अरनेजा ने तो कई-कई बार यह दावा करते हुए कि सतीश गुप्ता को चार से ज्यादा वोट नहीं मिलेंगे, सतीश गुप्ता की स्थिति और पहुँच को कम करके आँकने का और उन्हें अपमानित करने का काम किया था | असित मित्तल ने सतीश गुप्ता के साथ दोस्ती की आड़ में धोखाधड़ी की | असित मित्तल मीठी-मीठी बातें करके सतीश गुप्ता से यह पता कर लेते कि वह किन-किन लोगों से मिल रहे हैं तथा कौन-कौन लोग उनके साथ आ रहे हैं, और फिर उन लोगों को बहला/फुसला कर सतीश गुप्ता से दूर कर देते | सतीश गुप्ता को जब तक असित मित्तल की धोखाधड़ी का पता चला, तब तक असित मित्तल उनका काफी नुकसान कर चुके थे | पता चलने के बाद सतीश गुप्ता सावधान हो गए और फिर उन्होंने असित मित्तल की चालाकी में फँसने से बचने का गुण सीख लिया | विनोद बंसल से भी सतीश गुप्ता को कुल मिलाकर निराशा ही हाथ लगी | विनोद बंसल ने हालांकि शुरू में सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन दिखाया था, लेकिन खुलकर उनके लिए कुछ करने से उन्होंने यह तर्क देकर अपने को बचा लिया था कि चूंकि वह डीजीएन हैं, इसलिए उनके लिए खुलकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में पार्टी बनना उचित नहीं होगा और यह उनके पद की गरिमा के अनुकूल भी नहीं होगा | सतीश गुप्ता लेकिन बाद में यह देख कर हैरान रह गए कि पद की गरिमा की दुहाई देने वाले विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में न सिर्फ पार्टी बने बल्कि कहीं-कहीं तो उन्होंने मुकेश अरनेजा व असित मित्तल से भी 'आगे निकलने' की कोशिश की |
सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी को कम करके आँकने, उन्हें हतोत्साहित करने, उनके साथ दोस्ती की आड़ में धोखाधड़ी करने के बाद भी मुकेश अरनेजा और असित मित्तल जब अपने 'उद्देश्यों' में सफल नहीं हुए हैं; और सतीश गुप्ता ने अपनी तैयारी तथा अपनी उम्मीदवारी के प्रति लोगों के समर्थन की एक झलक दिखा दी है तो मुकेश अरनेजा और असित मित्तल ने सतीश गुप्ता को झूठे और बेहूदा किस्म के आरोप लगा कर बदनाम करने की चाल भी चल दी है | मुकेश अरनेजा और असित मित्तल की घटिया हरकतें चूंकि लोगों के बीच जाहिर हो चुकी हैं - पच्चीस जनवरी को इनकी शह पर आयोजित हुई गाजियाबाद की मीटिंग में शराबबाजी और लड़कीबाजी के चक्कर में हुई खूनी मार-पिटाई की घटना पर पर्दा डालने की इनकी तमाम कोशिशों के बाद भी इनकी 'दिलचस्पियों' के किस्से चूंकि अब हर जुबान पर हैं, इसलिए इन्होंने दूसरों को भी अपने जैसा ही बताने/दिखाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं | सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों की मीटिंग के बाद सतीश गुप्ता पर झूठे और बेहूदा आरोप लगाने की जो कोशिश हुई है, उसके पीछे मुकेश अरनेजा और असित मित्तल को ही पहचाना जा रहा है | चूंकि यह भी जानते हैं कि सतीश गुप्ता पर और या अन्य दूसरों पर यह जो आरोप लगा रहे हैं, वह झूठे हैं - इसलिए यह फर्जी या बेनामी रूप से आरोप लगा रहे हैं | सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों की मीटिंग होने, तथा इस मीटिंग के कारण सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी के मजबूती से दिखने के बाद मुकेश अरनेजा और असित मित्तल ने सतीश गुप्ता के खिलाफ जिस तरह का हल्ला बोला है, उससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनावी परिदृश्य दिलचस्प हो गया है |
सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी की तैयारी और उनको मिलते 'दिख' रहे समर्थन के प्रभाव को समझने वाले सत्ताधारी गवर्नर्स के नज़दीकियों ने ही यह कहना शुरू कर दिया है कि सत्ताधारी गवर्नर्स को यदि अपनी चुनावी इज्ज़त बचानी है तो उन्हें सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में आ जाना चाहिए | इस बात को लेकर रमेश अग्रवाल तथा विनोद बंसल पर ज्यादा दबाव है | रमेश अग्रवाल पर इसलिए भी, क्योंकि सतीश गुप्ता के कई शुभचिंतक और समर्थक रमेश अग्रवाल के क्लब में हैं | विनोद बंसल के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि विनोद बंसल जितना जल्दी यह समझ लेंगे कि मुकेश अरनेजा और असित मित्तल 'जैसी' राजनीति करके उन्हें सिर्फ बदनामी ही मिलेगी, उतना ही उनके लिए भी अच्छा है | मुकेश अरनेजा और असित मित्तल को भी इस बात का आभास है कि कुछेक लोग रमेश अग्रवाल व विनोद बंसल को सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन के लिए राजी करने का प्रयास कर रहे हैं; इसीलिए उन्होंने सतीश गुप्ता को बदनाम करने की मुहिम छेड़ दी है | मजे की बात यह है कि यह लोग एक तरफ तो सतीश गुप्ता को बदनाम कर रहे हैं, और दूसरी तरफ सतीश गुप्ता को यह समझा कर 'बैठाने' की कोशिश भी कर रहे हैं कि उनकी उम्मीदवारी संजय खन्ना की उम्मीदवारी को फायदा पहुँचा रही है | सतीश गुप्ता लेकिन इनकी अपमानित करने तथा बदनाम करने की बातों और दोस्ती की आड़ में की गई इनकी धोखाधड़ी की हरकतों से इतने दुखी हो चुके हैं कि वह इन पर जरा भी भरोसा करने को तैयार नहीं हैं | सतीश गुप्ता को अपने काम पर, अपनी उम्मीदवारी के लिए जुटाये अपने समर्थन-आधार पर इतना भरोसा हो गया है कि वह अब और ज़ोर-शोर से न सिर्फ अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान में लग गए हैं, बल्कि यह व्यवस्था करने में भी जुट गए हैं कि सत्ताधारी गवर्नर्स चुनाव में किसी तरह की बेईमानी या हेराफेरी न कर सकें | सतीश गुप्ता ने अपने समर्थकों को चेता दिया है कि मुकेश अरनेजा और असित मित्तल चुनाव में किसी भी तरह की धांधली कर सकते हैं, इसलिए इनकी हर हरकत पर निगाह रखने की जरूरत है | यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि सतीश गुप्ता की शिकायत के बाद ही पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता और सुदर्शन अग्रवाल की 'अदालत' ने मुकेश अरनेजा को 'तड़ीपार' करने का आदेश सुनाया था |
सतीश गुप्ता ने बड़े नेताओं - पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के समर्थन के बिना - और सत्ताधारी गवर्नर्स के खुले व षडयंत्रपूर्ण विरोध के बावजूद जिस तरह अपनी उम्मीदवारी के लिए न सिर्फ अच्छा-खासा समर्थन जुटा लिया है, बल्कि अपनी उम्मीदवारी की हवा भी बना ली है, उससे उनके हौंसले काफी बुलंद हैं | उन्हें उम्मीद है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए डिस्ट्रिक्ट में जो चुनावी घमासान मचा हुआ है और जिस तरह से क्लब्स के अध्यक्षों को तथा अन्य रोटेरियंस को परेशान किया हुआ है उससे तंग होकर लोग उन्हें ही चुनना पसंद करेंगे | सतीश गुप्ता की उम्मीदवारी, उनकी सक्रियता, प्रभावपूर्ण नतीजे पाने की उनकी सामर्थ्य (जैसे मुकेश अरनेजा को 'तड़ीपार' करवा देना) ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों को बुरी तरह डरा दिया है | असित मित्तल का मानना और कहना है कि सतीश गुप्ता यह नहीं समझ रहे हैं कि उनके साथ जो लोग नज़र आ रहे हैं, वह वास्तव में संजय खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थक हैं, और उन्हें सिर्फ इस्तेमाल कर रहे हैं; तथा उनकी उम्मीदवारी संजय खन्ना की जीत को ही सुनिश्चित करने का काम करेगी | सतीश गुप्ता लेकिन असित मित्तल या रवि चौधरी के किसी और समर्थक की बात को सुनने/मानने को तैयार नहीं हैं |

Wednesday, February 1, 2012

पोलियो के नाम पर हुई मीटिंग में घटी मार-पिटाई की घटना पर पर्दा डाल कर असित मित्तल ने राजा साबू के नाम का भी इस्तेमाल किया

नई दिल्ली/गाजियाबाद | संजय खन्ना की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों द्धारा आयोजित की गई मीटिंग में लोगों को शामिल होने से रोकने के लिए सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह ने षड्यंत्र के तहत जिस मीटिंग का आयोजन किया, वह बुरी तरह फ्लॉप हुई | सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह द्धारा आयोजित इस मीटिंग को 'बुरी तरह फ्लॉप' इसलिए माना गया, क्योंकि इसके जरिये न तो वह 'राजनीति' की जा सकी, जिस राजनीति को करने के लिए वास्तव में इसका आयोजन किया गया था; और न उस उद्देश्य को ही प्राप्त किया जा सका - दिखावे के लिए जिसे औपचारिक तौर पर घोषित किया गया था | उल्लेखनीय है कि सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह ने तीस जनवरी की रात आठ बजे बुलाई गई मीटिंग का घोषित उद्देश्य कॉन्फ्रेंस में पोलियो कार्यक्रम को लेकर रोटेरियंस को प्रेरित करने का बताया था | सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह के एक सदस्य ने इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू ने फरवरी के अंत में दिल्ली में होने वाले पोलियो के कार्यक्रम को कामयाब बनाने के लिए ज़ोर दिया हुआ है और इसे लेकर वह कॉन्फ्रेंस में तैयारियों का जायेजा भी लेंगे | पोलियो का तो बहाना था, इस मीटिंग के पीछे सत्ताधारी गवर्नर्स का मूल उद्देश्य संजय खन्ना की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों द्धारा की जा रही मीटिंग को फेल करना था | इसीलिए इन्होंने जानबूझ मीटिंग का समय वही रखा जो कि संजय खन्ना के शुभचिंतकों व समर्थकों द्धारा तय की गई मीटिंग का था | इन्हें यदि सचमुच पोलियो पर बात करना थी तो कोई दूसरा समय तय करना चाहिए था, ताकि इनकी मीटिंग में ज्यादा से ज्यादा लोग शामिल हो सकते |
सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह के सदस्य - मुकेश अरनेजा, असित मित्तल, रमेश अग्रवाल और विनोद बंसल - पोलियो के बारे में यदि सचमुच गंभीर हैं, तो इन्हें पच्चीस जनवरी को हुई मीटिंग का संज्ञान लेना चाहिए, जो इन्होंने नहीं लिया और जिसके कारण डिस्ट्रिक्ट की और रोटरी की बदनामी हुई है | उल्लेखनीय है कि पच्चीस जनवरी को रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन दिखाने और जुटाने के उद्देश्य से मीटिंग का आयोजन किया था | यह मीटिंग पोलियो के नाम पर की गई थी | मीटिंग के आयोजन की जिम्मेदारी संभालने वाले अशोक अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट पोलियो प्लस कमेटी के चेयरमैन हैं | गौर करने की बात यह है कि संजय खन्ना की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों ने संजय खन्ना की उम्मीदवारी के लिए समर्थन दिखाने और जुटाने के उद्देश्य से जो मीटिंग की वह पर्यावरण तथा वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के नाम पर की | गौर करने की बात यह है कि इन्होंने पर्यावरण तथा वृक्षारोपण के नाम पर यदि मीटिंग की तो पर्यावरण तथा वृक्षारोपण के प्रति लोगों को प्रोत्साहित भी किया और आगंतुकों को प्रेरित व उत्साहित करने के उद्देश्य से उनके बीच पौधे भी वितरित किए | लेकिन डिस्ट्रिक्ट पोलियो प्लस कमेटी के चेयरमैन अशोक अग्रवाल द्धारा पोलियो के नाम पर की गई मीटिंग में पोलियो के बारे में एक शब्द तक नहीं बोला गया | सिर्फ इतना ही नहीं, पोलियो के नाम पर आयोजित हुई मीटिंग में लोगों के बीच लात-घूसों से मार-पिटाई और हो गई | इससे भी जायदा शर्मनाक बात यह हुई कि इस मार-पिटाई के लिए शराबबाजी और लड़कीबाजी को जिम्मेदार ठहराया गया | सत्ताधारी गवर्नर्स ने शराबबाजी और लड़कीबाजी के आरोप से इंकार करने में तो देर नहीं लगाई, लेकिन मामले की जांच कराने की मांग को एकदम से खारिज कर दिया | लोगों का कहना यही रहा कि सत्ताधारी गवर्नर्स जब मौके पर मौजूद ही नहीं थे, तो उन्हें क्या पता और कैसे पता कि पोलियो के नाम पर हुई मीटिंग में मार-पिटाई की घटना का कारण क्या था ?
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर असित मित्तल ने पोलियो के काम के नाम पर हुई शराबबाजी और लड़कीबाजी तथा उस कारण हुई मार-पिटाई की घटना पर पर्दा डालने की जो कोशिश की, उससे पोलियो के प्रति उनकी जिम्मेदारी को सहज ही समझा जा सकता है | असित मित्तल ने इस कार्यक्रम के 'आयोजक' अशोक अग्रवाल के खिलाफ भी कोई कार्यवाई नहीं की | लोगों के बीच इसके 'कारण' की चर्चा भी खूब है | लोगों के बीच चर्चा है कि असित मित्तल ने अशोक अग्रवाल से तरह-तरह से मोटी रकम बसूली हुई है, जिसे वह वापस नहीं कर रहे हैं | इसी कारण से उनकी अशोक अग्रवाल के खिलाफ कार्यवाई करने की हिम्मत नहीं हो रही है | सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह के 'सरदार' मुकेश अरनेजा का भी असित मित्तल पर अशोक अग्रवाल के खिलाफ कार्यवाई न करने के लिए दबाव है | मुकेश अरनेजा का भी पैसा असित मित्तल के पास दबा हुआ है, जो मुकेश अरनेजा को वापस नहीं मिल रहा है | अशोक अग्रवाल और मुकेश अरनेजा लोगों के बीच ताल ठोक कर कहते भी हैं कि असित मित्तल पहले उनका पैसा वापस करें, तब उनके खिलाफ कार्यवाई करने के बारे में सोचें | उनके यह कहने में दम भी दिखा है | पच्चीस जनवरी को पोलियो के नाम पर तमाशा करवा देने वाले अशोक अग्रवाल तीस जनवरी की मीटिंग में मंच पर गवर्नर्स के साथ बैठे थे | लोगों ने माना कि अशोक अग्रवाल का जलवा है |
तीस जनवरी को सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह द्धारा बुलाई गई मीटिंग में अशोक अग्रवाल का जलवा और असित मित्तल की बेचारगी तो साबित हुई, लेकिन पोलियो के काम की ऐसी-तैसी हुई | आनन-फानन में बुलाई गई इस मीटिंग को लेकर दरअसल पहले ही सत्ताधारी गवर्नर्स की इतनी थू-थू हो चुकी थी कि इसे लेकर उनका उत्साह भी खत्म हो चुका था और इसके आयोजन को लेकर वह बचाव की मुद्रा में भी आ चुके थे | सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह के 'सरदार' मुकेश अरनेजा ने तो मीटिंग में न आने में ही अपनी ख़ैर समझी | लोगों की नाराज़गी को देखते हुए गिरोह के दूसरे सदस्य भी लोगों को यह सफाई देते नज़र आए कि इस मीटिंग में वह कोई राजनीति नहीं करेंगे | हालांकि किसी के लिए भी यह जबाव देते नहीं बना कि जब तुम्हें राजनीति नहीं करनी है तो फिर इस मीटिंग को ऐसे समय करने की क्या जरूरत थी जिस समय अधिकतर लोग एक दूसरी मीटिंग में व्यस्त हैं ? मुश्किल से बीस कदमों की दूरी पर आयोजित हुईं दो मीटिंग्स में लोगों की उपस्थिति के आधार पर जिन लोगों ने तुलना की उन्होंने पाया कि संजय खन्ना की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों द्धारा आयोजित मीटिंग में कहीं ज्यादा लोगों की उपस्थिति थी | अधिकतर लोग ऐसे रहे जो सिर्फ संजय खन्ना की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों द्धारा आयोजित मीटिंग में उपस्थित हुए, जबकि कुछेक लोग सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह द्धारा आयोजित मीटिंग में मुँह-दिखाई करके संजय खन्ना की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों द्धारा आयोजित मीटिंग में पहुंचे | सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह द्धारा अड़ंगा डालने की तमाम कोशिशों के बावजूद संजय खन्ना की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों द्धारा आयोजित मीटिंग में लोगों की अच्छी-ख़ासी उपस्थिति ने यही साबित किया है कि सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह ने पोलियो के काम का, रोटरी का और डिस्ट्रिक्ट का जो मज़ाक बनाया हुआ है उसे अधिकतर लोग पसंद नहीं कर रहे हैं | राजा साबू का नाम लेकर तीस जनवरी की मीटिंग करने वाले सत्ताधारी गवर्नर्स गिरोह ने जिस तरह पच्चीस जनवरी की घटना पर पर्दा डालने की कोशिश की है, उससे यही पता चलता है कि इन्हें रोटरी की और डिस्ट्रिक्ट की पहचान की परवाह तो नहीं ही है, राजा साबू के नाम की भी फिक्र नहीं है |