Friday, July 31, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की फरीदाबाद ब्रांच में जिस तरह से पैसों के घपलों और लूट-खसोटों की बातें सामने आ रही हैं, और उनमें विजय गुप्ता व उनके नजदीकियों की मिलीभगत के संकेत मिल रहे हैं - उस पर पर्दा डालने की जिम्मेदारी क्या प्रेसीडेंट मनोज फडनिस ने सचमुच ले ली है

फरीदाबाद । विजय गुप्ता ने इंस्टीट्यूट की फरीदाबाद ब्रांच के चेयरमैन संतोष अग्रवाल तथा सेक्रेटरी प्रदीप कौशिक को भरोसा दिया है कि उन्होंने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट मनोज फडनिस को पूरी तरह से सेट कर लिया है कि वह तीन अगस्त की मीटिंग के उनके एजेंडे में कोई रूकावट पैदा करने के बारे में सोचेंगे भी नहीं ।उल्लेखनीय है कि फरीदाबाद ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी की तीन अगस्त की प्रस्तावित मीटिंग का प्रमुख एजेंडा ब्रांच के बैंक एकाउंट्स से पैसा निकालने की प्रक्रिया में ट्रेजरार की भूमिका को वैकल्पिक बना देने का नियम पास कराना है । मौजूदा नियम के अनुसार, बैंक से पैसा निकालने में ट्रेजरार की भूमिका जरूरी है, और उसके साथ चेयरमैन या सेक्रेटरी के हस्ताक्षर होने की व्यवस्था है । तीन अगस्त की प्रस्तावित मीटिंग के एजेंडे में चेयरमैन की भूमिका को जरूरी बना देने तथा सेक्रेटरी व ट्रेजरार की भूमिका को वैकल्पिक कर देने की तैयारी है । फरीदाबाद ब्रांच के ट्रेजरार डीसी गर्ग ने इस तैयारी को इंस्टीट्यूट के मान्य निर्देशों का उल्लंघन करने तथा ब्रांच के पैसों का मनमाने तरीके से दुरूपयोग करने के लिए रास्ता बनाने के प्रयास के रूप में रेखांकित किया है; तथा इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट मनोज फडनिस से गुहार लगाई है कि वह हस्तक्षेप करके फरीदाबाद ब्रांच में बैंक एकाउंट्स की देखभाल में छेड़खानी करने की इस तैयारी को सफल न होने दें । इस संबंध में डीसी गर्ग ने मनोज फडनिस को तथ्यों का विस्तार से हवाला देते हुए एक लंबा पत्र लिखा है, जिसमें बताया गया है कि किस तरह से ब्रांच के चेयरमैन और सेक्रेटरी ब्रांच के पैसों का मनमाना इस्तेमाल करना चाहते हैं - जिसमें ट्रेजरार के रूप में चूँकि वह बाधा बन रहे हैं, इसलिए अब वह उन्हें ही रास्ते से हटा देना चाहते हैं । 
मनोज फडनिस को संबोधित अपने पत्र की प्रति डीसी गर्ग ने चूँकि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल, रीजनल काउंसिल के सदस्यों तथा फरीदाबाद के लोगों को भी भेजी है - इसलिए फरीदाबाद ब्रांच में पैसों की 'लूट-खसोट की व्यवस्था' बनाने की तैयारी पर थोड़ा दबाव महसूस किया जा रहा है । इस दबाव के कारण ब्रांच के चेयरमैन संतोष अग्रवाल और सेक्रेटरी प्रदीप कौशिक कहीं कमजोर न पड़ जाएँ, इसलिए उन्हें ढ़ाढ़स देने के लिए विजय गुप्ता को खुद सामने आना पड़ा है । विजय गुप्ता इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य हैं, और इस नाते से वह फरीदाबाद की ब्रांच में एक्सऑफिसो सदस्य हैं । फरीदाबाद ब्रांच को अपने कब्जे में रखने के लिए वह ब्रांच के पदाधिकारियों के चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाते हैं - और भूमिका निभाने की प्रक्रिया में जब भी जरूरत होती है, तब वह पर्दे के सामने आने में भी नहीं हिचकते हैं । ब्रांच के चेयरमैन के चुनाव में जब उन्हें लगता है कि उनके वोट के बिना उनके उम्मीदवार के लिए चुनाव जीतना मुश्किल होगा, तब वह ब्रांच के चुनाव में अपना वोट डालने के लिए आगे आ जाते हैं । इंस्टीट्यूट की महान आदर्श परंपरा में इसे अच्छा नहीं माना जाता है - लेकिन विजय गुप्ता प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट की महान आदर्श परंपराओं की बजाए अपने स्वार्थों को तवज्जो देते हैं; और जब कभी आदर्श परंपराएँ उनके स्वार्थ में बाधा बनती हैं, तो वह उन्हें कुचल कर अपने स्वार्थ पूरे करते हैं । फरीदाबाद ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी की तीन अगस्त की मीटिंग के मुख्य एजेंडा के मास्टर माइंड के रूप में विजय गुप्ता को ही देखा/पहचाना जा रहा है । दरअसल इसीलिए इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट मनोज फडनिस को लिखे डीसी गर्ग के पत्र के कारण उक्त एजेंडे के खतरे में पड़ने के संकेत मिले, तो विजय गुप्ता पर्दा हटा कर सामने आ गए हैं । 
विजय गुप्ता ने उक्त एजेंडे को सफल बनाने की तैयारी में लगे फरीदाबाद ब्रांच के चेयरमैन संतोष अग्रवाल व सेक्रेटरी प्रदीप कौशिक को तो आश्वस्त किया ही है कि उन्हें मनोज फडनिस की तरफ से डरने की जरूरत नहीं है; फरीदाबाद के अपने दूसरे समर्थकों को भी बताया है कि डीसी गर्ग बेकार में ही अपनी एनर्जी और समय खराब कर रहे हैं - उन्हें नहीं पता कि मनोज फडनिस फरीदाबाद के किसी मामले में उनके खिलाफ कोई काम कर ही नहीं सकते हैं । विजय गुप्ता लोगों को याद दिला रहे हैं कि पिछले वर्ष ब्रांच के तत्कालीन सेक्रेटरी विपिन मंगला ने तत्कालीन प्रेसीडेंट को ऑडीटोरियम से संबंधित घपलों का हवाला देते हुए खर्चों का ऑडिट कराने के लिए पत्र लिखा था, जिसका लेकिन उन्हें आज तक जबाव भी नहीं मिला है । उल्लेखनीय है कि ब्रांच की बिल्डिंग कमेटी के चेयरमैन के रूप में विजय गुप्ता पर उन घपलों में शामिल होने का आरोप है । विजय गुप्ता का दावा है कि जैसे विपिन मंगला की माँग पर इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट ऑफिस चुप बना रहा है, वैसे ही डीसी गर्ग को भी प्रेसीडेंट ऑफिस से कोई जबाव नहीं मिलेगा । विजय गुप्ता का कहना है कि प्रेसीडेंट के पद पर चाहें कोई भी बैठा हो, किसी में उनके खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर की बात, उनके खिलाफ हुई शिकायत का संज्ञान लेने तक की हिम्मत नहीं है । विजय गुप्ता का कहना है कि फरीदाबाद से और खासतौर से उनसे संबंधित मामलों में इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट उन्हें ही समझा/माना जाए । लोगों का कहना है कि इस तरह की बातों से विजय गुप्ता दरअसल अपने नजदीकियों और समर्थकों का हौंसला बनाये रखने का प्रयास कर रहे हैं । फरीदाबाद ब्रांच में जिस तरह से पैसों के घपलों और लूट-खसोटों की बातें सामने आ रही हैं, और उनमें विजय गुप्ता व उनके नजदीकियों की मिलीभगत के संकेत मिल रहे हैं - उससे विजय गुप्ता के सामने अपने नजदीकियों व समर्थकों के उखड़ने/बिदकने का खतरा पैदा हो गया है । इसलिए उन्हें जरूरी लग रहा है कि वह अपने नजदीकियों व समर्थकों को विश्वास दिलाएँ कि इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट पूरी तरह उनकी 'पकड़' में है ।
फरीदाबाद ब्रांच में बैंक से पैसे निकालने की प्रक्रिया से ट्रेजरार को अलग कर देने की कार्रवाई को जरूरी बताते हुए ब्रांच के चेयरमैन संतोष अग्रवाल व सेक्रेटरी प्रदीप कौशिक ने तर्क दिया है कि ट्रेजरार के रूप में डीसी गर्ग ने कई भुगतान करने से इंकार कर दिया है, जिस कारण ब्रांच के संचालन में बाधा पड़ रही है । उनका कहना है कि यह कदम उन्होंने बहुत मजबूरी में उठाया है, क्योंकि डीसी गर्ग के रवैये के चलते ब्रांच में कामकाज कर पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव होता जा रहा है । डीसी गर्ग ने लेकिन प्रेसीडेंट मनोज फडनिस को लिखे अपने विस्तृत पत्र में बताया है कि उन्होंने अधिकतर भुगतान किए ही हैं, और जो कुछेक भुगतान रोके हैं - वह ऐसे मामले हैं जिनमें नियम-कानूनों का पालन नहीं किया गया है और जो खर्चे संदेहास्पद हैं । डीसी गर्ग का कहना है कि ऐसे मामलों में भी उन्होंने सुझाव दिया है कि इन मामलों में ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी के सभी सदस्यों की सलाह लेकर फैसला किया जाए । डीसी गर्ग का कहना है कि ब्रांच के खर्चों को लेकर इंस्टीट्यूट के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं, जिनका पालन हर हाल में होना ही चाहिए; और यदि कहीं थोड़ा इधर-उधर होने की जरूरत हो तो ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी के सदस्यों को विश्वास में लेकर ही खर्चों का फैसला करना चाहिए । डीसी गर्ग का कहना है कि ट्रेजरार के रूप में उन्होंने सिर्फ उन्हीं खर्चों के भुगतान को करने से इंकार किया है, जिन खर्चों में न तो नियम-कानून व दिशा-निर्देशों का पालन किया गया है, और न ही ब्रांच की सामूहिक भागीदारी को सुनिश्चित किया गया है । डीसी गर्ग का कहना है कि वह ब्रांच के खर्चों में पारदर्शिता रखने की बात कर रहे हैं, और उनकी यह बात चेयरमैन व सेक्रेटरी तथा 'उनके आका' को इतनी बुरी लग रही है कि वह उन्हें प्रक्रिया से ही अलग कर देने पर आमादा हो गए हैं । इसे बिडंवना ही कहा जायेगा कि चार्टर्ड एकाउंटेंट जैसे प्रोफेशन की संस्था में हिसाब-किताब में पारदर्शिता बनाये रखने की बात को दबाने के लिए संस्था की सर्वोच्च कमेटी के एक सदस्य - विजय गुप्ता ने कमर कस ली है । यह देखना दिलचस्प होगा कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट मनोज फडनिस इस मामले में न्याय कर पायेंगे और या विजय गुप्ता के 'दावे' को सही साबित करेंगे ।

Wednesday, July 29, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तथा सीओएल सदस्य रह चुके योगेश मोहन गुप्ता ने रोटरी के बड़े पदाधिकारियों पर रोटरी फाउंडेशन के पैसे पर अय्याशी करने का आरोप लगाते हुए रोटरी फाउंडेशन में पैसे न देने का आह्वान करके रोटरी को ही चुनौती दी

मेरठ । योगेश मोहन गुप्ता ने रोटरी क्लब मुरादाबाद नॉर्थ की एक मीटिंग में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए रोटरी के बड़े पदाधिकारियों पर रोटरी फाउंडेशन के पैसे से अय्याशी करने का आरोप लगाते हुए रोटरी फाउंडेशन में पैसे न देने का जो आह्वान किया है, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील गुप्ता तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार राजीव सिंघल के लिए भारी मुसीबत खड़ी कर दी है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों का कहना है कि योगेश मोहन गुप्ता ने उक्त मीटिंग में जो कुछ भी कहा है, वह पूरी तरह से रोटरी विरोधी है; और इसलिए सुनील गुप्ता को उन्हें तुरंत प्रभाव से डिस्ट्रिक्ट काउंसलर पद से हटा देना चाहिए । सुनील गुप्ता चूँकि योगेश मोहन गुप्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई करते हुए नहीं नजर आ रहे हैं, इसलिए लोगों की नाराजगी के निशाने पर योगेश मोहन गुप्ता के साथ साथ अब सुनील गुप्ता भी आ गए हैं । लोगों का कहना है कि यह रोटरी और डिस्ट्रिक्ट का बड़ा दुर्भाग्य है कि सुनील गुप्ता जैसा कमजोर व्यक्ति डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन गया है, जो रोटरी व रोटरी के बड़े पदाधिकारियों को खुलेआम निशाना बनाये जाते हुए चुपचाप देख रहा है, और निशाना बना रहे व्यक्ति को बड़े पद पर बनाए हुए है । राजीव सिंघल की मुसीबत यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उनकी उम्मीदवारी को योगेश मोहन गुप्ता का जो खुला समर्थन है, वह समर्थन ही अब उनके लिए बोझ बन गया है । उनके लिए एक तरफ तो लोगों को यह जबाव देना मुश्किल हो रहा है कि रोटरी के खिलाफ विषवमन करने वाले योगेश मोहन गुप्ता का समर्थन वह कैसे लेते रह सकते हैं, और दूसरी तरफ योगेश मोहन गुप्ता के प्रति लोगों के बीच पैदा हुई नाराजगी को उन्हें झेलना पड़ रहा है । योगेश मोहन गुप्ता की कारस्तानी पर न डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील गुप्ता से कुछ कहते बन रहा है और न डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की इच्छा रखने वाले राजीव सिंघल ही मुँह खोल पा रहे हैं ।
योगेश मोहन गुप्ता ने रोटरी क्लब मुरादाबाद नॉर्थ की मीटिंग में जो कुछ भी कहा, वह इसलिए ध्यान देने और कार्रवाई करने योग्य है क्योंकि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर रहने के साथ साथ सीओएल में भी रह चुके हैं । ऐसे में, उन्होंने रोटरी के विरोध में और या रोटरी को बदनाम करने वाली कोई बात कही है तो उसका तुरंत से संज्ञान लेने की जरूरत है । योगेश मोहन गुप्ता यदि किसी रोटेरियन विशेष पर बेईमानी और या अय्याशी करने का आरोप लगाते, तो भी यह समझा जा सकता था कि वह रोटरी में घुसपैठ कर चुके बेईमान लोगों की खिलाफत कर रहे हैं और इस तरह रोटरी को 'बचाने' का प्रयास कर रहे हैं; किंतु उन्होंने तो पूरी रोटरी व सभी रोटरी नेताओं को निशाने पर ले लिया और रोटरी फाउंडेशन के खिलाफ ही फतवा दे डाला । अपने इसी उद्बोधन में उन्होंने एक गंभीर आरोप यह भी लगाया कि किसी डिस्ट्रिक्ट की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के प्रतिनिधि अधिकारी के रूप में अधिकृत कराने के लिए उनसे दो करोड़ रुपए माँगे गए थे । डिस्ट्रिक्ट और रोटरी के लिए सौभाग्य की बात हालाँकि यह है कि किसी ने भी उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया है; और सभी का मानना और कहना है कि योगेश मोहन गुप्ता इस तरह की बातें दरअसल कुंठा और फ्रस्ट्रेशन में कह रहे हैं । लोगों का कहना है कि योगेश मोहन गुप्ता रोटरी में खुद निर्लज्य किस्म की हरकतें करते रहे हैं, और अब जब उनकी हरकतों के चलते रोटरी में उनकी कोई साख नहीं बची रह गई है तो वह रोटरी को ही निशाना बनाने लगे  हैं । लोगों का यह भी कहना है कि यदि रोटरी में सिर्फ अय्याशी ही होती है, तो फिर वह इसमें बने क्यों हैं - और क्यों यहाँ पद पाने की कोशिशों में लगे रहते हैं ?
योगेश मोहन गुप्ता दरअसल रोटरी के बड़े नेताओं से बुरी तरह खफा हैं - क्योंकि रोटरी के बड़े नेताओं ने पिछले वर्ष सीओएल में दोबारा जाने के उनके बेईंमानीभरे प्रयास को विफल कर दिया था, जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट और रोटरी में उनकी भारी फजीहत हुई । उल्लेखनीय है कि पिछले से पिछले वर्ष हुए सीओएल के चुनाव में उन्होंने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी । उन्हें बहुत समझाया गया था कि वह एक बार सीओएल में जा चुके हैं, इसलिए अब उन्हें इस होड़ में शामिल नहीं होना चाहिए और दूसरों के लिए मौका छोड़ देना चाहिए । लेकिन अहंकार में चूर योगेश मोहन गुप्ता ने किसी की नहीं सुनी और अपनी बेईमानीपूर्ण कारस्तानियों के बल पर वह चुनाव में कामयाब भी हो गए - लेकिन ललित मोहन गुप्ता ने उनकी बेईमानियों की पोल खोली तो रोटरी इंटरनेशनल ने न सिर्फ योगेश मोहन गुप्ता की चुनावी जीत को निरस्त कर दिया, बल्कि सीओएल के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में उनके उम्मीदवार न हो सकने के संकेत भी जारी कर दिए । योगेश मोहन गुप्ता ने हालाँकि बहुत हाथ-पैर मारे कि रोटरी इंटरनेशनल उन्हें इस कदर जलील न करे कि वह डिस्ट्रिक्ट में मुँह दिखाने लायक भी न रहें - इस पर रोटरी इंटरनेशनल ने उनके खिलाफ कोई सीधा कठोर फैसला 'सुनाया' तो नहीं, किंतु उन्हें यह जरूर स्पष्ट कर दिया कि वह सीओएल के चुनाव से दूर ही रहें - अन्यथा उन्हें रोटरी से बाहर कर दिया जायेगा । इस 'संदेश' के कारण ही - सीओएल में दोबारा जाने की जिद पर अड़े तथा उसके लिए हर संभव तिकड़म करने वाले योगेश मोहन गुप्ता को सीओएल के लिए दोबारा हुए चुनाव से अपने आप को दूर रखने के लिए मजबूर होना पड़ा । रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों और नेताओं के इस रवैये ने योगेश मोहन गुप्ता को बुरी तरह निराश किया है - उन्होंने समझ लिया है कि रोटरी में उनकी जैसी जो बदनामी हो गई है, उसके कारण यहाँ अब उन्हें कोई तवज्जो मिलने वाली नहीं है । 
राजीव सिंघल की उम्मीदवारी ने हालाँकि योगेश मोहन गुप्ता में एक नई उम्मीद का संचार किया । राजीव सिंघल के बारे में दरअसल बड़े सुनियोजित तरीके से डिस्ट्रिक्ट में एक प्रचार यह हुआ है कि उनकी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के साथ बड़ी निकटता है । योगेश मोहन गुप्ता को लगा कि राजीव सिंघल की उम्मीदवारी की डोर पकड़ कर वह मनोज देसाई तक अपनी पहुँच बना लेंगे; लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया कि यह बड़ी दूर की कौड़ी है । समस्या उन्हें राजीव सिंघल के रवैये से भी हुई - उन्होंने पाया कि उम्मीदवार के रूप में राजीव सिंघल उनसे फायदा तो उठाना चाहते हैं, किंतु उनके साथ खुले तौर पर जुड़े दिखने से बचते हैं । इसके अलावा, दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के सामने आने के बाद राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के लिए चुनावी गणित पूरी तरह से पलट गया दिख रहा है । राजीव सिंघल का चुनाव जब तक मधु गुप्ता से होता दिख रहा था, तब तक राजीव सिंघल और उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि वह मुकाबले में भारी पड़ेंगे - किंतु दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी ने उनकी उम्मीद की हवा निकाल दी है । राजीव सिंघल तीसरे स्थान पर 'दिख' रहे हैं, और चुनावी मुकाबला दिवाकर अग्रवाल व मधु गुप्ता के बीच होता नजर आ रहा है । राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों ने पीछे कोशिश की थी कि मेरठ की एकता का वास्ता देकर वह मधु गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए राजी कर लें; किंतु मधु गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों ने उन्हें समझा दिया कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच पहचान, साख व प्रतिष्ठा के मामले में राजीव सिंघल के मुकाबले मधु गुप्ता का पलड़ा भारी है - इसलिए यदि वास्तव में मेरठ की एकता और प्रतिष्ठा का ख्याल करना है, तो राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को वापस ले लेना चाहिए । मधु गुप्ता की उम्मीदवारी को वापस कराने में मिली असफलता से राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों के हौंसले बुरी तरह टूट गए हैं । 
एमएस जैन की इंटरनेशनल प्रेसीडेंट को लिखी चिट्ठी और योगेश मोहन गुप्ता का रोटरी क्लब मुरादाबाद नॉर्थ की मीटिंग में किया गया प्रलाप दरअसल इसी टूटे हौंसले से पैदा हुई निराशा का नतीजा है । उल्लेखनीय है कि इन दोनों को राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के बड़े समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जाता है; किंतु यह दोनों अपनी अपनी हरकतों से जिस तरह रोटरी और डिस्ट्रिक्ट को कलंकित कर रहे हैं - उससे राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के लिए मुसीबतें और बढ़ती ही जा रही हैं । मुसीबत डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील गुप्ता की भी बढ़ रही है, जो रोटरी व डिस्ट्रिक्ट को कलंकित होते हुए चुपचाप देख रहे हैं । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि पिछले वर्ष के गवर्नर संजीव रस्तोगी की टीम में प्रमुख पद पर रहते हुए योगेश मोहन गुप्ता ने जब हरकत की थी, तब संजीव रस्तोगी ने उन्हें उनके पद से हटाने जरा भी देर नहीं की थी - किंतु अब योगेश मोहन गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले में सुनील गुप्ता मुँह छिपाते और बहानेबाजी करते देखे जा रहे हैं । सुनील गुप्ता कई मौकों पर अपनी यह 'इच्छा' जाहिर कर चुके हैं कि रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में जैसा सम्मान उनके पूर्ववर्ती गवर्नर संजीव रस्तोगी को मिला है, उन्हें उससे भी ज्यादा मिले - लेकिन 'काम' करने के मामले में वह संजीव रस्तोगी का मुकाबला ही नहीं कर पा रहे हैं और लगातार फिसड्डी साबित होते जा रहे हैं । योगेश मोहन गुप्ता ने रोटरी क्लब मुरादाबाद नॉर्थ की मीटिंग में रोटरी को जिस तरह से लांछित किया है, उससे उन्होंने सिर्फ अपना 'चरित्र' ही नहीं प्रकट किया है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील गुप्ता की भी पोल खोल दी है ।

Monday, July 27, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रवि दयाल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की सफलता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में विनय भाटिया के लिए समस्या और चुनौती बनी

नई दिल्ली । रवि दयाल के क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली मेगापोलिस के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह में डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों की जुटी भीड़ ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत रवि दयाल की उम्मीदवारी का 'वजन' बढ़ाने का काम तो किया ही है - साथ ही उनके संभावित प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार विनय भाटिया के लिए खासी मुसीबत भी खड़ी कर दी है । हुआ दरअसल यह कि रवि दयाल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह का जलवा देख कर लोगों के बीच चर्चा छिड़ी कि विनय भाटिया के क्लब - रोटरी क्लब फरीदाबाद एनआईटी में अधिष्ठापन समारोह कब होगा । इस बारे में पक्की जानकारी तो किसी के पास नहीं थी, किंतु अधिकतर लोगों ने एक बात यह बताई कि विनय भाटिया अपने क्लब का अधिष्ठापन समारोह सितंबर माह के अंत में करने की सोच रहे हैं । इसका कारण वह यह बता रहे हैं कि तब तक क्लब्स में नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों के नाम तय हो जायेंगे और वह अधिष्ठापन समारोह में उन्हें भी खिला-'पिला' कर खुश कर लेंगे । यह जो 'कारण' सामने आया - उसने लेकिन एक उम्मीदवार के रूप में विनय भाटिया की किरकिरी कर दी । कई लोगों का कहना रहा कि देर से अधिष्ठापन समारोह करने का जो कारण विनय भाटिया बता रहे हैं - उसके जरिए वास्तव में वह यह दिखा/जता रहे हैं कि उन्हें न तो अधिष्ठापन समारोह की जरूरत व गरिमा का पता है, और न नोमीनेटिंग कमेटी के लिए चुने जाने वाले सदस्यों की इज्जत की परवाह है । लोगों का मानना और कहना है कि एक उम्मीदवार के रूप में विनय भाटिया की यह सोच ही उनकी उम्मीदवारी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है । 
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में विनय भाटिया को सबसे ज्यादा आलोचना अपने अपरिपक्व और बचकाने किस्म के व्यवहार के कारण ही झेलनी पड़ रही है । उनकी उम्मीदवारी के कई समर्थक व शुभचिंतक भी मानते/कहते हैं कि अपने व्यवहार के कारण विनय भाटिया अपने खेमे के लोगों का समर्थन भी खोते जा रहे हैं, लेकिन फिर भी कोई सबक नहीं सीख रहे हैं । उनके कुछेक समर्थकों ने बताया कि उन्होंने विनय भाटिया को जब समझाया, तो ऐसा लगा कि जैसे विनय भाटिया हालात की नाजुकता को समझ रहे हैं और एक उम्मीदवार के अनुरूप अपने आप को बदलने के लिए तैयार कर रहे हैं - लेकिन फिर देखने में आता है कि मामला जहाँ का तहाँ ही बना हुआ है । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक उनके व्यवहार से लोगों के बीच पड़ रहे नकारात्मक असर से निपटने का तरीका तो अभी खोज नहीं पाए हैं; कि उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह को लेकर मजाक और शुरू हो गए हैं । इन मजाकों में फरीदाबाद के भी लोगों के शामिल हो जाने से इन मजाकों को न सिर्फ और हवा मिली बल्कि विश्वसनीयता भी प्राप्त हुई । 
रोटरी की चुनावी राजनीति में उम्मीदवार के क्लब का अधिष्ठापन समारोह उम्मीदवार की 'ताकत' को नापने/आँकने का एक पैमाना बन गया है - हालाँकि इस पैमाने के फूलप्रूफ होने का कोई सुबूत नहीं है । यूँ तो उम्मीदवार के क्लब में हुए अधिष्ठापन समारोह के आधार पर उम्मीदवार के जीतने/हारने का अनुमान लगाना फिजूल की कसरत ही होगी - लेकिन फिर भी यह समारोह उम्मीदवार की सोच, उसके नजरिए और अपनी उम्मीदवारी के प्रति उसकी गंभीरता का पैमाना अवश्य ही है । देखने की बात यह नहीं होती है कि उम्मीदवार के क्लब का अधिष्ठापन समारोह किस तामझाम से हुआ है; देखने की बात यह होती है कि अधिष्ठापन समारोह के जरिए उम्मीदवार लोगों को दिखाता/बताता क्या है ? विनय भाटिया के क्लब का अधिष्ठापन समारोह बिना तामझाम के, सामान्य तरीके से हो जाता - तो इतना बबाल नहीं मचता; क्योंकि तब मान लिया जाता कि अपने चुनाव अभियान में वह अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को कोई अहमियत नहीं दे रहे हैं । लेकिन अभी जो कहा/बताया जा रहा है, उससे लोगों के बीच संदेश यह गया है कि विनय भाटिया अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह का राजनीतिक उपयोग तो करेंगे, किंतु इस उपयोग को ढंग से करने के लिए उनके पास आवश्यक तैयारी नहीं है; और इस चक्कर में वह अधिष्ठापन समारोह की जरूरत व गरिमा के साथ साथ अपने क्लब के पदाधिकारियों तथा चुनावी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लोगों की इज्जत के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं । 
विनय भाटिया के समर्थक समझे जाने वाले लोगों ने ही बताया है कि विनय भाटिया तो चाहते थे कि उनके क्लब का अधिष्ठापन समारोह जल्दी हो; क्लब में उन्होंने सुझाव दिया था कि अधिष्ठापन समारोह क्लब के सदस्य करें, और फिर सितंबर माह के अंतिम सप्ताह में क्लब का एक बड़ा कार्यक्रम 'वह' करेंगे । क्लब के पदाधिकारियों ने लेकिन उन्हें स्पष्ट बता दिया कि अधिष्ठापन समारोह यदि बड़ा करना है, तो उसमें होने वाला अतिरिक्त खर्च उन्हें ही उठाना होगा । उनका तर्क रहा कि उम्मीदवार होने के नाते यह उनकी जरूरत है कि क्लब का अधिष्ठापन समारोह तामझाम से हो, लिहाजा इस तामझाम के चलते जो अतिरिक्त खर्चा आयेगा - उसे उन्हें ही उठाना पड़ेगा । क्लब के पदाधिकारियों का सुझाव था कि विनय भाटिया यदि अतिरिक्त खर्च उठाने के लिए तैयार नहीं हैं, तो फिर वह अपने सामान्य तरीके से ही अधिष्ठापन समारोह कर लेते हैं, किंतु विनय भाटिया इस बात के लिए भी राजी नहीं हुए । उनका कहना रहा कि इससे एक उम्मीदवार के रूप में उनकी बड़ी फजीहत होगी । विनय भाटिया ने तब 'बीच का' रास्ता निकाला और वह यह कि सितंबर माह के अंतिम सप्ताह में नोमीनेटिंग कमेटी के लिए क्लब्स में चुने गए सदस्यों को 'निपटाने' के लिए वह जिस आयोजन के बारे में सोच रहे हैं, उसे अधिष्ठापन समारोह के रूप में ही कर लेंगे । इस तरह विनय भाटिया ने अपना काम तो बना लिया, किंतु क्लब के पदाधिकारियों को फँसा दिया । किसी भी अच्छे क्लब में नए पदाधिकारियों का अधिष्ठापन रोटरी वर्ष के शुरू के दिनों में ही हो जाता है, या हो जाना चाहिए - किंतु विनय भाटिया के रवैये के चलते रोटरी क्लब फरीदाबाद एनआईटी के पदाधिकारियों को लंबे समय तक बिना अधिष्ठापित हुए लोगों के बीच रहना होगा । इस कारण से रोटरी क्लब फरीदाबाद एनआईटी के नए पदाधिकारियों का रोटरी के प्रति सारा उत्साह फीका पड़ता जा रहा है । 
विनय भाटिया के क्लब का यह सारा झमेला सामने न आया होता, यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार रवि दयाल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह को लोगों के बीच चर्चा न मिली होती । उल्लेखनीय है कि अभी कुछ ही दिन पहले रवि दयाल के क्लब को प्लेटिनम क्लब का अवार्ड मिलने तथा खुद रवि दयाल को लीडरशिप एक्सीलेंस की ट्रॉफी मिलने के कारण लोगों के बीच व्यापक चर्चा मिली ही थी । और अब क्लब के अधिष्ठापन समारोह ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को प्रभावित किया ।डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख सदस्यों की उपस्थिति, इंतजाम, क्लब के पदाधिकारियों व सदस्यों की सक्रिय भागीदारी के लिहाज से हर किसी को अधिष्ठापन समारोह पूरी तरह परफेक्ट लगा और सभी ने माना कि इस आयोजन से रवि दयाल की उम्मीदवारी का वजन और बढ़ा ही है । इसी प्रक्रिया में विनय भाटिया की उम्मीदवारी का वजन नापने की कोशिश हुई, तो अधिष्ठापन समारोह को लेकर उनके क्लब में चल रहा झमेला सामने आया - जिससे उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को खासा तगड़ा वाला झटका लगा है । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थकों का ही कहना है कि क्लब के अधिष्ठापन समारोह को लेकर ही विनय भाटिया जब अपने क्लब को न तो प्रेरित कर पाए और न ही क्लब के सदस्यों का सहयोग जुटा पाए हैं, तब फिर अपनी उम्मीदवारी का अभियान वह कैसे संयोजित कर पायेंगे ? अधिष्ठापन समारोह के झमेले के बहाने से विनय भाटिया की उम्मीदवारी को लेकर जिस तरह की जो बातें सामने आईं हैं, उसके कारण फरीदाबाद के लोगों के बीच भी विनय भाटिया की उम्मीदवारी को लेकर गहरी नाराजगी और निराशा पैदा हुई है, और उनके बीच भी तरह तरह की बातें सुनाई देने लगी हैं - जो विनय भाटिया की उम्मीदवारी के संदर्भ में परेशानी खड़ी करने वाली हैं ।

Sunday, July 26, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 की चुनावी राजनीति को अपनी कंपनी के झगड़ों/झंझटों से निपटने में इस्तेमाल करने की कोशिश के तहत मुकेश अरनेजा ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को उकसाया है क्या

नई दिल्ली । अशोक गर्ग ने उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता को बनाए रख कर मुकेश अरनेजा के उनकी उम्मीदवारी से हाथ खींच लेने की खबरों से परेशान न होने का जो संकेत दिया है, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए होने वाले चुनावी मुकाबले को खासा रहस्यपूर्ण और दिलचस्प बना दिया है । इस रहस्य और दिलचस्पी में प्रवीन निगम के नजदीकियों व समर्थकों ने यह बताते/कहते हुए और इजाफा किया है कि मुकेश अरनेजा ने प्रवीन निगम की उम्मीदवारी को प्रमुखता दिलाने के लिए उन्हें कई जरूरी सुझाव दिए हैं तथा अपनी मदद का भरोसा दिया है ।इन दो तथ्यों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले को इसलिए रहस्यपूर्ण व रोचक बना दिया है, क्योंकि इस बीच मुकेश अरनेजा द्वारा दीपक गुप्ता को भी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए उकसाए जाने की चर्चा लोगों के बीच है । इससे लोगों के बीच चर्चा यह छिड़ी है कि मुकेश अरनेजा इस वर्ष आखिर कितने लोगों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी 'चुनवायेंगे' ? विभिन्न मौकों पर लोगों के बीच छिड़ने/होने वाली इस चर्चा का निष्कर्ष प्रायः यह निकलता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की आड़ में मुकेश अरनेजा वास्तव में अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास कर रहे हैं - और वह सचमुच में किसी भी उम्मीदवार के साथ गंभीरता के साथ जुड़े नहीं हैं ।सामान्य व्यवहार की बात है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर मुकेश अरनेजा यदि सचमुच में गंभीर होते, तो किसी एक उम्मीदवार का झंडा उठाते - वह तीन उम्मीदवारों को सलाह/सुझाव दे रहे हैं, और उन्हें मदद करने की बात कर रहे है; इससे साबित है कि वह तीनों को ही झाँसा दे रहे हैं ।
मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के अनुसार, मुकेश अरनेजा इस समय अपनी कंपनी से निकाले जाने के मामले में बुरी तरह फँसे हुए हैं । कंपनी के प्रमोटर्स के रूप में उनके भाई-भतीजे और दूसरे प्रमुख शेयरहोल्डर्स जिस तरह उनके खिलाफ हो गए हैं, उसके चलते उनके सामने कंपनी मामलों से जुड़ी कई पेचीदगियाँ खड़ी हो गई हैं । कंपनी में अपनी शेयरहोल्डिंग को बचाने और/या उसे उचित रूप में सुरक्षित रखने या पाने के लिए उन्हें जूझना पड़ रहा है - और इसके लिए उन्हें एक्सपर्ट प्रोफेशनल सलाह व मदद की जरूरत है । समस्या सिर्फ इतनी ही नहीं है - एक्सपर्ट प्रोफेशनल सलाह व मदद के लिए उनके सामने मोटी फीस की व्यवस्था करने की भी चुनौती है । नजदीकियों के अनुसार, इस चुनौती से निपटने के लिए मुकेश अरनेजा रोटरी को और रोटरी में अपनी स्थिति को इस्तेमाल कर रहे हैं । कंपनी के झगड़ों/झंझटों में अशोक गर्ग से मदद मिलने की उम्मीद में ही मुकेश अरनेजा ने पहले अशोक गर्ग की उम्मीदवारी का झंडा उठाया था । अशोक गर्ग पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं - इसलिए मुकेश अरनेजा को लगा कि वह अशोक गर्ग की उम्मीदवारी का समर्थन करने के बदले में उनसे मुफ्त में प्रोफेशनल मदद ले लेंगे । जल्दी ही लेकिन उन्हें समझ में आ गया कि उनके जिस तरह के झमेले हैं, उनसे डील करना और उन्हें सँभालना अशोक गर्ग के बस की बात नहीं है । अशोक गर्ग से निराश होकर मुकेश अरनेजा, प्रवीन निगम की शरण में आए । 
प्रवीन निगम भी पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं और कंपनी मामलों के एक्सपर्ट हैं । मुकेश अरनेजा को अपने कंपनी संबंधी झमेलों के लिए जिस तरह की प्रोफेशनल मदद की आवश्यकता है, उसे उपलब्ध करवाने की एक्सपर्टीज उन्होंने प्रवीन निगम में देखी/समझी । मुकेश अरनेजा की खुशकिस्मती यह रही कि प्रवीन निगम ने भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की हुई है । प्रवीन निगम के क्लब के एक प्रमुख सदस्य प्रशांत माथुर के साथ मुकेश अरनेजा के अच्छे संबंध पहले से ही हैं; इन्हीं संबंधों का ध्यान रखते हुए प्रवीन निगम ने प्रशांत माथुर के जरिए मुकेश अरनेजा से अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन पाने का प्रयास किया - तो मुकेश अरनेजा को प्रवीन निगम को फाँसने का अच्छा मौका अपने आप मिल गया । मुकेश अरनेजा ने समझ लिया कि प्रवीन निगम का समर्थन करने के बदले में उन्हें अपनी कंपनी के मामलों में प्रवीन निगम की एक्सपर्ट प्रोफेशनल मदद मुफ्त में मिल ही जाएगी । अशोक गर्ग और प्रवीन निगम की उम्मीदवारी को समर्थन दे रहे मुकेश अरनेजा ने अचानक जिस तरह से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को 'उकसाया', उसमें लोगों को दीपक गुप्ता को इस्तेमाल करने की उनकी चाल ही नजर आई है । लोगों को लग रहा है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को उकसाने के जरिए मुकेश अरनेजा ने दरअसल अशोक गर्ग और प्रवीन निगम को यह 'दिखाने' का काम किया है कि इससे सुभाष जैन का समर्थन-आधार कमजोर होगा - और 'उन्हें' फायदा होगा । दोनों को फायदा होने का वास्ता देकर मुकेश अरनेजा ने कंपनी मामलों के अपने झमेले में उनसे मिल सकने वाली मदद को दरअसल पक्का करने का इंतजाम किया है ।
मुकेश अरनेजा के सामने इस समय कंपनी मामलों के अपने झमेलों से निपटने के साथ-साथ रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में अपनी भूमिका को बनाए रखने की भी चुनौती है । रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शरत जैन के साथ मिल कर जिस तरह मुकेश अरनेजा को किनारे/ठिकाने लगाया हुआ है, उससे रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में मुकेश अरनेजा की राजनीति खतरे में पड़ी दिखाई दे रही है । इस खतरे से बचने/उबरने का मौका उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में ही मिल सकता है । मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के अनुसार, मुकेश अरनेजा इस मौके में भी अपने लिए अनुकूल अवसर नहीं देख/पा रहे हैं । मुकेश अरनेजा के अपने आकलन के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में सुभाष जैन का पलड़ा भारी दिख रहा है; लोगों ने जिस तरह से उनकी उम्मीदवारी को स्वीकार कर लिया है - उसे देखते/पहचानते/समझते हुए मुकेश अरनेजा को तोड़फोड़ का हथकंडा आजमाना जरूरी लगा है; और माना जा रहा है कि इसी हथकंडे के तहत उन्होंने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को उकसाया है । अशोक गर्ग ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की आहट पर चिंता करने की बजाये जिस तरह की खुशी सी जाहिर की है, उससे भी लोगों को विश्वास हुआ है कि मुकेश अरनेजा ने गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश में क्लब्स के बीच फूट डाल कर राज पाने की कोशिश के तहत दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को उकसाया है । 

Saturday, July 25, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए फरीदाबाद से प्रस्तुत विपिन शर्मा की उम्मीदवारी ने विजय गुप्ता के संग-साथ की बदनामी झेल रहे दीपक गर्ग के लिए जो मुसीबत और चुनौती खड़ी की है, उसमें तजेंद्र भारद्वाज को अपनी दाल भी पकती हुई दिख रही है

फरीदाबाद । विजय गुप्ता के साथ गठजोड़ के बाबत दीपक गर्ग की कन्फ्यूज्ड स्थिति को रीजनल काउंसिल चुनाव के संदर्भ में तजेंद्र भारद्वाज ने अपने लिए संभावनाओं के दरवाजों को खुलता हुआ पाया/देखा है, और स्थिति का पूरा पूरा फायदा उठाने की तैयारी दिखाई है । दरअसल दीपक गर्ग के लिए यह तय कर पाना खासा मुश्किल हो रहा है कि विजय गुप्ता के साथ अपने गठजोड़ को वह बनाये रखें या उससे पीछा छुड़ा लें । उनका यह असमंजस इस बात से जाहिर है कि कभी तो वह विजय गुप्ता के साथ अपनी दूरी दिखाने/जताने लगते हैं, और शिकायत करते हैं कि लोग फिजूल में ही उनका नाम विजय गुप्ता के साथ जोड़े रखते हैं; किंतु फिर कुछ ही दिन बाद वह विजय गुप्ता के साथ सक्रिय नजर आने लगते हैं । पिछले कई महीनों से चल रहा दीपक गर्ग का 'कभी दूर कभी पास' का यह खेल लोग खासी दिलचस्पी के साथ देख रहे हैं; और इसे देखते हुए दीपक गर्ग की कन्फ्यूज्ड मनःस्थिति को पहचान व समझ रहे हैं । दीपक गर्ग के नजदीकियों का कहना है कि असल में होता यह है कि जब विजय गुप्ता की बदनामियों के कारण दीपक गर्ग को नुकसान होता हुआ नजर आता है, तब वह उनसे दूरी बनाने/दिखाने लगते हैं; लेकिन जब उन्हें विजय गुप्ता से फायदा उठाना होता है, तब वह उनके पास मंडराने लगते हैं । रीजनल काउंसिल में चेयरमैन बनने की कोशिश में पिछले दो अवसरों पर दीपक गर्ग ने यही नाटक किया था । पहली बार विजय गुप्ता की मदद से चेयरमैन बनने का प्रयास करते हुए उन्होंने रीजनल काउंसिल में अपने 'साथियों' से धोखाधड़ी करने में भी परहेज नहीं किया; किंतु अपने प्रयास में असफल होने पर जब उन्हें पता चला कि उनकी असफलता में विजय गुप्ता की बदनामी का बड़ा रोल है, तो उन्होंने विजय गुप्ता से दूर होने का ऐलान कर डाला । दूसरी बार, यानि इस वर्ष के लिए चेयरमैन बनने खातिर वह लेकिन फिर से विजय गुप्ता की छाया में खड़े दिखे । रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने के प्रयास में दीपक गर्ग दोबारा असफल हुए, तो वह फिर से विजय गुप्ता को कोसते नजर आए । 
दीपक गर्ग के सामने अब जब रीजनल काउंसिल के लिए दोबारा चुने जाने की चुनौती है, तो विजय गुप्ता के साथ 'कभी दूर कभी पास' का उनका यह खेल और ज्यादा तेज हो गया है । लोगों के बीच जब वह विजय गुप्ता के प्रति विरोध के स्वर सुनते हैं तो वह विजय गुप्ता से दूर रहने की कसमें खाने लगते हैं; किंतु इसके साथ साथ वह विजय गुप्ता के आयोजनों में दिलचस्पीपूर्ण सक्रियता निभाते भी दिखाई पड़ते हैं - इस सक्रियता के जरिए चूँकि उन्हें लोगों तक पहुँचने का अवसर मिलता दिखता है, इसलिए इसका फायदा उठाने के लालच में वह यह भूल ही जाते हैं कि लोगों के बीच उन्होंने विजय गुप्ता से दूर रहने की बातें कहीं हैं । जम्मू में पिछले दिनों लोगों ने उनसे जब सवाल पूछे कि उन्होंने और विजय गुप्ता ने प्रोफेशन व प्रोफेशन से जुड़े लोगों के लिए क्या किया है, तो दीपक गर्ग ने पहले तो यह कह कर पीछा छुड़ाने की कोशिश की कि वह इस वर्ष निकासा चेयरमैन हैं, इसलिए उससे संबंधित सवाल ही पूछे जाएँ; इस पर उन्हें सुनने को मिला कि निकासा चेयरमैन तो वह पाँच महीने से हैं, सवाल तो उनसे 29 महीने के कामकाज के बारे में पूछे जा रहे हैं । इसके बाद उन्होंने विजय गुप्ता से पूछे जाने वाले सवाल उनसे पूछे जाने का विरोध किया - उनका तर्क रहा कि विजय गुप्ता ने प्रोफेशन के लिए क्या किया है, यह विजय गुप्ता से पूछिए । इस पर जब उन्हें यह सुनने को मिला कि चूँकि आप हर काम में विजय गुप्ता के साथ नजर आते हैं, तो उनके बारे में पूछे गए सवालों का जबाव भी आपको देना चाहिए - तब दीपक गर्ग ने ट्रेक बदला और दावा करने लगे कि कुछेक लोग झूठे ही विजय गुप्ता के साथ उनका नाम जोड़ते रहते हैं और कि उनका विजय गुप्ता के साथ कोई गठजोड़ नहीं है । जम्मू से लौटते ही किंतु वह विजय गुप्ता के आयोजनों में सक्रिय सहभागिता दिखाने में जुट गए । 
दीपक गर्ग का यह कन्फ्यूजन दरअसल इसलिए है क्योंकि रीजनल काउंसिल चुनाव के संदर्भ में एक तरफ तो वह विजय गुप्ता की बदनामी के छीटों से बचना चाहते हैं, और दूसरी तरफ वह विजय गुप्ता के 'इंतजामों' का फायदा भी उठाना चाहते हैं । दीपक गर्ग के नजदीकियों को हैरानी इस बात की है कि पिछली बार विजय गुप्ता के 'इंतजामों' पर निर्भर हुए बिना रीजनल काउंसिल का चुनाव जीत लेने वाले दीपक गर्ग इस बार विजय गुप्ता के इंतजामों पर इतने मजबूर क्यों हो गए हैं कि रोज रंग बदलते नजर आते हैं ? रीजनल काउंसिल के उम्मीदवार के रूप में दीपक गर्ग की पिछली बार की तथा इस बार की स्थिति की तुलना करने वाले लोगों का कहना है कि पिछली बार दीपक गर्ग ने अपने व्यवहार और अपनी बातों से लोगों के बीच विश्वास बनाया था और उम्मीद पैदा की थी, लेकिन पिछले करीब ढाई वर्षों में उन्होंने उस विश्वास को तो खत्म कर ही दिया है - अपने प्रति लोगों के बीच कोई उम्मीद भी बचा कर नहीं रखी है । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010-12 वाले कार्यकाल में फरीदाबाद ब्रांच में उन्हें एक्सऑफिसो सदस्य के रूप में प्रमोद माहेश्वरी ने बहुत परेशान किया था, जिस कारण से 2012 के रीजनल काउंसिल के चुनाव में उन्हें लोगों की अच्छी सहानुभूति मिली थी - और प्रथम वरीयता के वोटों में उनकी स्थिति प्रमोद माहेश्वरी से बहुत अच्छी और ऊपर थी । रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में लेकिन दीपक गर्ग का जो रवैया रहा, उसके कारण लोगों ने यही महसूस किया है कि दीपक गर्ग के साथ सहानुभूति दिखा कर उन्होंने बड़ी गलती की थी । दीपक गर्ग के रवैये से फरीदाबाद के लोगों ने अपने आप को ठगा हुआ महसूस किया है । विजय गुप्ता के साथ उन्होंने जिस तरह का गठजोड़ बनाया, उसने उनका और बंटाधार किया है । 
रही सही कसर विपिन शर्मा की उम्मीदवारी ने पूरी कर दी है । फरीदाबाद ब्रांच में विपिन शर्मा की जिस तरह की परफॉर्मेंस रही है, उससे उन्होंने युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच अपनी प्रभावी पहचान बनाई है और साथ में वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच भी अपने लिए विश्वास व उम्मीद पैदा की है । इससे उनकी लोकप्रियता में और इजाफा हुआ । ब्रांच के एक उत्साही व सक्रिय सदस्य के रूप में विपिन शर्मा की लोगों के बीच साख इसलिए भी बढ़ी, क्योंकि ब्रांच के चुनाव में उन्हें सबसे ज्यादा वोट मिले थे । इस बढ़ी साख के भरोसे ही दूसरे/तीसरे वर्ष में उन्हें ब्रांच के चेयरमैन पद के प्रबल दावेदार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था - किंतु विजय गुप्ता और दीपक गर्ग ने षड्यंत्र करके लोगों की भावनाओं को कामयाब नहीं होने दिया । दीपक गर्ग को खतरा था कि चेयरमैन बनने के बाद विपिन शर्मा फिर रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ेंगे और उनके लिए मुसीबत खड़ी करेंगे; इसलिए उन्होंने फार्मूला अपनाया कि वह विपिन शर्मा को चेयरमैन ही नहीं बनने देंगे - जिससे कि न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसुरी । दीपक गर्ग ने अपने इस फार्मूले को कामयाब बनाने के लिए विजय गुप्ता का सहयोग लिया । फरीदाबाद ब्रांच में राजनीति करते हुए विजय गुप्ता और दीपक गर्ग ने जिस तरह की हरकतें की हैं उससे लोगों के बीच इनके प्रति नाराजगी तथा विपिन शर्मा के प्रति हमदर्दी का भाव बना है । पिछली बार और इस बार की स्थिति की तुलना करते हुए लोगों का मानना और कहना है कि पिछली बार जो स्थिति दीपक गर्ग की थी इस बार वह स्थिति तो विपिन शर्मा की है; और पिछली बार जो दशा प्रमोद माहेश्वरी की थी, इस बार वह दशा दीपक गर्ग की है ।  
दीपक गर्ग के लिए विपिन शर्मा ने जो खतरा खड़ा किया है, उसमें तजेंद्र भारद्वाज को अपनी दाल पकती हुई दिख रही है । दरअसल कई लोगों का मानना और कहना है कि पिछली बार दीपक गर्ग ने प्रमोद माहेश्वरी को जो टक्कर दी थी, उसमें प्रमोद माहेश्वरी ने तो जैसे-तैसे करके अपनी सीट बचा ली थी - इस बार लेकिन विपिन शर्मा से दीपक गर्ग को जो टक्कर मिलती दिख रही है, उसमें दीपक गर्ग के लिए अपनी सीट बचा पाना मुश्किल लग रहा है । तजेंद्र भारद्वाज इसी स्थिति का लाभ उठाना चाहते हैं । मजे की बात है कि दीपक गर्ग और तजेंद्र भारद्वाज, दोनों ही विजय गुप्ता के साथी/सहयोगी रहे हैं - लेकिन विजय गुप्ता के संगसाथ की बदनामी दीपक गर्ग को ज्यादा मिली; और इस बदनामी के कारण ही दीपक गर्ग अक्सर ही विजय गुप्ता से दूर दिखने का प्रयास करते हैं । उनके इस प्रयास से विजय गुप्ता के कई समर्थक दीपक गर्ग से भड़के और चिढ़े हुए हैं । इस बिना पर तजेंद्र भारद्वाज को लगता है कि विजय गुप्ता के समर्थक लोगों के बीच उन्हें ज्यादा समर्थन मिल जायेगा । तजेंद्र भारद्वाज के इस बीच संजय वासुदेवा से भी तार जोड़ने की खबरें हैं, जिससे तजेंद्र भारद्वाज को अपने समर्थन-आधार को बढ़ाए जाने का भरोसा है । तजेंद्र भारद्वाज ने जो जाल फैलाया है, उसमें उनके द्वारा दीपक गर्ग का शिकार करने की तैयारी देखी जा रही है । तजेंद्र भारद्वाज की यह तैयारी यदि सचमुच कामयाब रही, तो दीपक गर्ग के लिए वास्तव में भारी मुसीबत हो जाएगी । दीपक गर्ग के समर्थक व शुभचिंतक समझे जाने वाले लोगों का कहना है कि दीपक गर्ग ने विजय गुप्ता के साथ अपने गठजोड़ को लेकर एक स्पष्ट व पारदर्शी रवैया यदि नहीं दिखाया, तो दीपक गर्ग के लिए भारी मुसीबत हो जानी है । 

Thursday, July 23, 2015

रोटरी कोऑर्डिनेटर विजय जालान के रवैये से निराश और नाराज होने के बाद मुकेश अरनेजा ने असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डिनेटर के रूप में निमंत्रण और मान-सम्मान पाने के लिए इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई से मदद की जो गुहार लगाई है, उसने मनोज देसाई को मुसीबत में डाला

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा की एक गुहार ने इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई को अजीब से संकट में फँसा दिया है । मुकेश अरनेजा ने मनोज देसाई से उन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को डांट लगाने की गुहार लगाई है, जो उन्हें असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डिनेटर के उनके पद के अनुरूप काम और सम्मान नहीं दे रहे हैं । मनोज देसाई से की गई अपनी शिकायत में मुकेश अरनेजा ने अपने इमीडियेट बॉस - रोटरी कोऑर्डिनेटर विजय जालान को भी लपेट लिया है । मुकेश अरनेजा की शिकायत है कि असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डिनेटर के रूप में उन्हें जिन डिस्ट्रिक्ट्स का चार्ज मिला है, उनके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अपने अपने डिस्ट्रिक्ट में उन्हें बुला ही नहीं रहे हैं; बुलाए जाने के लिए उन्होंने खुद अपनी तरफ से पहल भी की, किंतु अलग अलग तरह की बहानेबाजी करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने उन्हें टाल दिया है । मुकेश अरनेजा का कहना है कि इस बारे में पहले उन्होंने विजय जालान से शिकायत की थी, विजय जालान ने लेकिन इस बारे में आवश्यक कार्रवाई करना तो दूर - उलटे उन्हें ही बदनाम करना शुरू कर दिया है । मुकेश अरनेजा के अनुसार, विजय जालान जहाँ-तहाँ लोगों को बताते फिर रहे हैं कि मुकेश अरनेजा की रोटरी में इतनी बदनामी है कि कोई गवर्नर उन्हें अपने यहाँ आमंत्रित ही नहीं करना चाहता है । जोन 4 तथा जोन 6ए के रोटरी कोऑर्डिनेटर विजय जालान के रवैये से निराश और नाराज होने के बाद मुकेश अरनेजा ने अब मनोज देसाई से गुहार लगाई है कि वह उन्हें संदर्भित डिस्ट्रिक्ट्स में असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डिनेटर के रूप में निमंत्रण दिलवाएँ ।
मनोज देसाई की समस्या यह है कि मुकेश अरनेजा को असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डिनेटर का पद देने के कारण वह पहले से ही रोटेरियंस की आलोचना के निशाने पर हैं । मुकेश अरनेजा जैसे बदनाम व्यक्ति को इतना महत्वपूर्ण पद देकर मनोज देसाई ने अपनी समझदारी और अपने विवेक को सवालों के घेरे में तो ला ही दिया है - रही/सही कसर मुकेश अरनेजा ने लोगों को बार बार यह बता कर पूरी कर दी कि मनोज देसाई को इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने में नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्य के रूप में उन्होंने जो मदद की थी, उसके धन्यवाद के रूप में मनोज देसाई ने उन्हें यह पद दिया है । दरअसल पिछले दिनों मुकेश अरनेजा की हरकतों के कारण उन्हें जब उनके क्लब से निकाल दिया गया था, तब यह सवाल उठा था कि इस बिना पर क्या मनोज देसाई उनसे असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डिनेटर का पद वापस ले लेंगे ? इस सवाल के जबाव में ही मुकेश अरनेजा ने लोगों के बीच दावा किया था कि उन्होंने ही मनोज देसाई को इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाया था, और इसी बात को याद रखते हुए मनोज देसाई ने उन्हें यह पद दिया है - इसलिए यह पद वापस लेने के बारे में मनोज देसाई सोच भी नहीं पायेंगे । मुकेश अरनेजा को हर बात का - खासतौर से हर किसी को चुनाव जितवाने का श्रेय लेने का बहुत शौक है; उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में उनका एक जुमला बड़ा मशहूर है कि 'मैं चाहूँ तो सड़क से एक रिक्शेवाले को पकड़ कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवा दूँ'; लेकिन मनोज देसाई के बारे में किए गए उनके इस तरह के दावे ने मनोज देसाई के लिए असहज स्थिति पैदा की । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की जिम्मेदारी सँभाल रहे मनोज देसाई इस स्थिति को तो किसी तरह झेल रहे थे, लेकिन मुकेश अरनेजा की नई गुहार ने उनके लिए एक अजीब तरह की समस्या खड़ी कर दी है । 
मनोज देसाई के लिए समस्या की बात यह है कि उनके द्वारा नियुक्त एक असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डिनेटर को यदि संदर्भित डिस्ट्रिक्ट्स में आमंत्रित करने लायक नहीं समझा जा रहा है, तो यह उनके 'फैसले' पर भी एक कठोर टिप्पणी है - मुकेश अरनेजा दरअसल इसी तर्क का सहारा लेकर मनोज देसाई को उकसा रहे हैं, और उन्हें संदर्भित डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं । मनोज देसाई के लिए किंतु समस्या यह है कि वह क्या कार्रवाई करें और किस आधार पर करें ? वह यदि कोई कार्रवाई करते भी हैं तो अपनी ही फजीहत करवायेंगे । रोटरी कोऑर्डिनेटर विजय जालान के अनुभव ने उनके लिए यह संभावना और बढ़ा भी दी है । मुकेश अरनेजा की शिकायत पर विजय जालान ने अपने तरीके से मामले को हल करने का प्रयास किया तो था, किंतु संदर्भित डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने जब उन्हें साफ बता दिया कि मुकेश अरनेजा जैसे बदनाम व्यक्ति को तवज्जो देने के लिए उनके डिस्ट्रिक्ट में कोई भी राजी नहीं है, तब फिर वह कैसे उन्हें अपने यहाँ आमंत्रित कर सकते हैं ? संदर्भित डिस्ट्रिक्ट्स में मुकेश अरनेजा के प्रति बने इस माहौल में असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डिनेटर मुकेश अरनेजा के लिए कुछ करने में मनोज देसाई को खतरा ही खतरा नजर आ रहा है । 
मनोज देसाई इसीलिए चाहते हैं कि इस मामले को मुकेश अरनेजा खुद ही हल करें । मुकेश अरनेजा लेकिन रमेश अग्रवाल के साथ हुए 'हादसे' से डरे हुए हैं । उल्लेखनीय है कि अभी कुछ ही दिन पहले रमेश अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट 3011 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला से अपने यहाँ के कार्यक्रमों में आमंत्रित न करने की शिकायत करने पर कई प्रमुख लोगों की उपस्थिति में भारी फटकार सुनने को मिली थी । रमेश अग्रवाल रोटरी इंडिया विन्स कमेटी के जोनल कोऑर्डिनेटर हैं और इस बात से बड़े परेशान रहते हैं कि उनके पास जो पद है, उसके अनुरूप उन्हें निमंत्रण और सम्मान नहीं मिलता । मुकेश अरनेजा के पहले चेले रहे और फिर साथी बने किंतु अब मुकाबलेबाज बने रमेश अग्रवाल के रंग-ढंग मुकेश अरनेजा जैसे ही हैं; और बदनामी 'कमाने' में भी उनके साथ होड़ में रहते हैं । तीन-तिकड़म से यह दोनों अपने लिए पदों का जुगाड़ तो कर लेते हैं, लेकिन पद के साथ जो मान-सम्मान मिलना चाहिए - उसके न मिलने पर परेशान रहते हैं । ये यह समझने में विफल रहे हैं कि पद तो तीन-तिकड़म से और जुगाड़ से मिल जाते हैं; किंतु मान-सम्मान तो व्यवहार और आचरण से ही मिलता है । इस बात को भूल कर एक कार्यक्रम में रमेश अग्रवाल ने जब डिस्ट्रिक्ट 3011 के गवर्नर सुधीर मंगला से शिकायत की, तो सुधीर मंगला ने उन्हें तबीयत से ऐसी झाड़ पिलाई कि उनके लिए बचना मुश्किल हो गया । मौके पर मौजूद पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता ने किसी तरह सुधीर मंगला को शांत करके रमेश अग्रवाल को बचाया । रमेश अग्रवाल के साथ यह जो बीती, उससे सबक लेते हुए मुकेश अरनेजा ने आमंत्रण न मिलने को लेकर संदर्भित डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से बात करने का साहस नहीं किया और पहले विजय जालान से मदद की गुहार लगाई, और अब मनोज देसाई से शिकायत की है । उन्हें उम्मीद है कि मनोज देसाई अवश्य ही उनकी मदद करेंगे । यह देखना दिलचस्प होगा कि मुकेश अरनेजा को संदर्भित डिस्ट्रिक्ट्स से निमंत्रण और वहाँ मान-सम्मान दिलवाने के लिए इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई क्या करते हैं ?

Wednesday, July 22, 2015

रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन का दिल्ली में होने जा रहा कार्यक्रम पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल की कारस्तानियों के कारण विवाद में फँस गया है और अपनी सारी गरिमा व महत्ता खो बैठा है

नई दिल्ली । केआर रवींद्रन का दिल्ली दौरा डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल की राजनीतिक कारस्तानियों की भेंट चढ़ता हुआ नजर आ रहा है । उल्लेखनीय है कि उनके दिल्ली दौरे के रूप में 7 अगस्त को होने वाले कार्यक्रम को यूँ तो डिस्ट्रिक्ट 3011 व डिस्ट्रिक्ट 3012 के संयुक्त कार्यक्रम के रूप में दिखाया/बताया जा रहा है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला को कार्यक्रम के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है । डिस्ट्रिक्ट 3011 के कई प्रमुख रोटेरियंस ने बताया कि केआर रवींद्रन के कार्यक्रम में उनके डिस्ट्रिक्ट की भागीदारी के बारे में उन्होंने इधर-उधर से सुना तो सुधीर मंगला से पूछा; लेकिन वह यह जानकर हैरान रह गए कि खुद सुधीर मंगला को भी इस कार्यक्रम के बारे में ज्यादा नहीं मालुम है । सुधीर मंगला के अनुसार, सुशील गुप्ता ने उनसे अचानक एक दिन बताया कि केआर रवींद्रन दिल्ली आ रहे हैं, और उनके सम्मान में दोनों डिस्ट्रिक्ट मिल कर एक कार्यक्रम कर लेते हैं । सुधीर मंगला का जबाव सुने बिना, सुशील गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट 3011 को उक्त कार्यक्रम में शामिल कर लिया । सुधीर मंगला ने भी ज्यादा पचड़े में पड़ना उचित नहीं समझा - उन्होंने न तो उक्त कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट 3011 को शामिल करने का विरोध किया, और न ही उक्त कार्यक्रम में कोई दिलचस्पी ही ली । अब मजेदार सीन यह है कि रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के सानिध्य/सम्मान में दिल्ली में आयोजित हो रहे कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट 3011 भी आयोजनकर्ता तो है; किंतु उसके गवर्नर सुधीर मंगला को उक्त कार्यक्रम की तैयारियों और उसके एजेंडे के बारे में कुछ भी पता नहीं है । 
दरअसल इस कार्यक्रम की बागडोर पूरी तरह डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल के हाथ में है । रमेश अग्रवाल ने इस कार्यक्रम को वास्तव में पहले डिस्ट्रिक्ट 3012 की इंटरसिटी के रूप में आयोजित करने की तैयारी की थी । लेकिन इस कार्यक्रम को लेकर आगे बढ़ते हुए उन्होंने इसे डिस्ट्रिक्ट 3012 के भरोसे कर पाना मुश्किल पाया । अपने डिस्ट्रिक्ट में इस कार्यक्रम के लिए उन्हें पर्याप्त समर्थन तो नहीं ही मिला, कार्यक्रम की बागडोर उनके हाथ में रहने का विरोध और होना शुरू हो गया । मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल ने अपने अपने तरीके से इस कार्यक्रम की बागडोर रमेश अग्रवाल से छीनने की कोशिश की । दोहरी मुसीबत में खुद को फँसा पाकर रमेश अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट 3011 की मदद लेने का ख्याल आया । इस ख्याल के साथ-साथ रमेश अग्रवाल को लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 के गवर्नर सुधीर मंगला के हाथों हुई फजीहत भी याद आई, जिसमें सुधीर मंगला ने कई प्रमुख लोगों के सामने रमेश अग्रवाल को उनकी बदतमीजी व बेहूदगी के लिए जमकर फटकारा था । उस फजीहत व फटकार को याद करके रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट 3011 की मदद जुटाने के लिए पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता का दामन पकड़ा । उक्त कार्यक्रम के सहारे सुशील गुप्ता अपनी राजनीति करने/दिखाने की फिराक में हैं, और उन्हें रमेश अग्रवाल की इस कोशिश में चूँकि अपना काम भी बनता/बढ़ता हुआ नजर आया, इसलिए उन्होंने सुधीर मंगला को सूचित करते हुए डिस्ट्रिक्ट 3011 को इस कार्यक्रम के आयोजनकर्ता के रूप में शामिल कर लिया । 
डिस्ट्रिक्ट 3011 को केआर रवींद्रन के सानिध्य/सम्मान में होने वाले कार्यक्रम का आयोजनकर्ता तो बना लिया गया है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 के प्रमुख लोगों में भी उक्त कार्यक्रम को लेकर कोई उत्साह नहीं है । रमेश अग्रवाल ने चालबाजीपूर्ण कोशिश की कि उक्त कार्यक्रम में होने वाले कुल खर्च का आधा हिस्सा वह डिस्ट्रिक्ट 3011 से बसूल सकें, किंतु सुधीर मंगला ने उनकी इस चालबाजी को कामयाब नहीं होने दिया है । सुधीर मंगला ने स्पष्ट कर दिया है कि कार्यक्रम में उनके डिस्ट्रिक्ट से जो लोग जाना चाहेंगे, वह अपना रजिस्ट्रेशन अपने आप करायेंगे - और इसे ही उनके डिस्ट्रिक्ट का सहयोग माना/समझा जाए । यूँ तो यह भी कोई बुरा विकल्प नहीं है; रोटरी के अधिकतर कार्यक्रम इसी तर्ज पर होते हैं - लेकिन समस्या व मुसीबत की बात यह है कि उक्त कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट 3011 के ज्यादा लोगों की उपस्थिति को संभव बनाने के लिए सुधीर मंगला कोई प्रयास करते हुए भी नहीं दिख रहे हैं । सुधीर मंगला का कहना है कि उन्हें जब कार्यक्रम के कोई डिटेल्स ही नहीं पता हैं, और कार्यक्रम की तैयारी में जब उनकी कोई भागीदारी ही नहीं है, तो फिर वह किस आधार पर लोगों को उक्त कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रेरित करें । रमेश अग्रवाल कार्यक्रम की बागडोर अपने हाथ में रखना चाहते हैं; कार्यक्रम की तैयारियों से संबंधित जानकारियाँ वह और किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहते - और सिर्फ खर्चे के लिए पैसे चाहते हैं; सुधीर मंगला ने स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा नहीं हो पायेगा । 
सुधीर मंगला के इस रवैये से रमेश अग्रवाल का सारा प्लान चौपट हो गया है । वह इस बात को ज्यादा बढ़ाना भी नहीं चाहते हैं; क्योंकि वह समझ रहे हैं कि सुधीर मंगला कहीं फिर फटकार लगाते हुए उनकी फजीहत न कर दें ! कार्यक्रम की बागडोर अपने हाथ में रखने की रमेश अग्रवाल की इस चालबाजी को देख/पहचान रहे लोगों का कहना है कि उनकी इसी चालबाजी के कारण डिस्ट्रिक्ट 3012 में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के कार्यक्रम को लेकर उत्साह नहीं बन पाया है । रमेश अग्रवाल की मनमानीपूर्ण बेहूदगियों के कारण डिस्ट्रिक्ट के दूसरे प्रमुख लोगों ने कार्यक्रम से हाथ खींचे हुए हैं । डिस्ट्रिक्ट 3012 में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट का कार्यक्रम कर पाना रमेश अग्रवाल को जब मुश्किल लगा, तो उन्होंने सुशील गुप्ता का सहारा लेकर डिस्ट्रिक्ट 3011 को भी आयोजनकर्ता तो बना लिया, किंतु चूँकि अपनी हरकतों को सुधारने का उन्होंने कोई प्रयास नहीं किया - इसलिए उनके लिए समस्या जहाँ की तहाँ ही बनी हुई है । लोगों का कहना है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट का कार्यक्रम है, इसलिए वह हो तो जायेगा ही - लेकिन कार्यक्रम की बागडोर अपने ही हाथ में रखने की कोशिशों के चलते रमेश अग्रवाल द्वारा की जा रही कारस्तानियों से वह विवाद में फँस गया है और अपनी सारी गरिमा व महत्ता खो बैठा है । 

Monday, July 20, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुभाष जैन की उम्मीदवारी को मिल रहे व्यापक समर्थन को देख कर निराश/परेशान मुकेश अरनेजा ने गाजियाबाद/नोएडा में उम्मीदवार खोजने की जो कोशिश शुरू की है, उससे अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के अभियान का बंटाधार होता नजर आ रहा है

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए गाजियाबाद/नोएडा में उम्मीदवार खोजने की खबरों ने अशोक गर्ग की उम्मीदवारी को तगड़ा झटका दिया है । झटका इसलिए क्योंकि अभी तक अशोक गर्ग को मुकेश अरनेजा के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है; लेकिन मुकेश अरनेजा अब यदि कोई और उम्मीदवार खोज रहे हैं - तो इसका मतलब है कि अशोक गर्ग में उन्होंने अपना विश्वास खो दिया है । अशोक गर्ग की उम्मीदवारी को मुकेश अरनेजा का बड़ा सहारा था - लेकिन अब इस सहारे के छिन जाने से अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया है । मुकेश अरनेजा के नजदीकियों का कहना है कि मुकेश अरनेजा ने पाया/समझा है कि सुभाष जैन की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह का समर्थन मिलता दिख रहा है, उसका मुकाबला करना अशोक गर्ग के बस की बात नहीं है; सुभाष जैन की उम्मीदवारी ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश में अपने लिए समर्थन जुटाया है और इस समर्थन के भरोसे सुभाष जैन की उम्मीदवारी ने अशोक गर्ग की उम्मीदवारी पर बढ़त बना ली है - उससे मुकेश अरनेजा को यह भी लगा है कि सुभाष जैन की उम्मीदवारी का मुकाबला गाजियाबाद/नोएडा का कोई उम्मीदवार ही कर सकता है । इसीलिए वह गाजियाबाद/नोएडा में एक उपर्युक्त और समर्थ उम्मीदवार की तलाश में जुट गए हैं । मुकेश अरनेजा की तलाश का क्या नतीजा निकलता है और उनकी तलाश कहाँ/किस पर खत्म होती है, यह तो आगे पता चलेगा - उनकी इस तलाश ने लेकिन अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के लिए बड़ा संकट तो खड़ा कर ही दिया है । 
मुकेश अरनेजा की यह तलाश लेकिन कुछेक लोगों को मुकेश अरनेजा की चाल नजर आ रही है । उन्हें लग रहा है कि सुभाष जैन को खासतौर पर गाजियाबाद और आमतौर पर उत्तर प्रदेश में जो समर्थन मिल रहा है, उसे कमजोर करने के लिए उन्हें गाजियाबाद/नोएडा में एक उम्मीदवार 'पैदा' करना होगा - और इस फार्मूले से वह अशोक गर्ग की राह को आसान बना सकेंगे । मुकेश अरनेजा की इस 'चाल' को पहचानने का दावा करने वाले लोगों का कहना है कि तीन वर्ष पहले जेके गौड़ का रास्ता रोकने के लिए मुकेश अरनेजा ने रमेश अग्रवाल के साथ मिल कर जिस तरह से आलोक गुप्ता का इस्तेमाल किया था, उसी तरह से अब वह सुभाष जैन का रास्ता रोकने के लिए गाजियाबाद/नोएडा में किसी को खोज रहे हैं । रंग बदलने की कला में गिरगिट को पीछे छोड़ते हुए मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल बाद में जेके गौड़ की जीत का श्रेय लेने में भले ही कामयाब हो गए हों, लेकिन जेके गौड़ की उम्मीदवारी के साथ शुरू से जुड़े रहे लोगों को तो सच्चाई का पता है ही, दूसरे लोगों को भी जानकारी है कि इन दोनों ने कैसे कैसे जेके गौड़ को छकाया था । आलोक गुप्ता ने रमेश अग्रवाल से मिले धोखे के कारण आज तक उन्हें माफ नहीं किया है । मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता के साथ हुई धोखाधड़ी का सारा दोष रमेश अग्रवाल पर मढ़ कर आलोक गुप्ता से हालाँकि पुनः संबंध जोड़ लिए है - मुकेश अरनेजा में आलोक गुप्ता का भरोसा भी पुनः लौट आया है, यह यद्यपि अभी 'देखना' बाकी है । इस किस्से को जिन लोगों ने नजदीक से देखा है, वह उस अनुभव को याद करते बहुत ही विश्वास के साथ कहते हैं कि मुकेश अरनेजा गाजियाबाद/नोएडा में कोई उम्मीदवार नहीं, बल्कि 'बलि का बकरा' खोज रहे हैं - जिसका सहारा लेकर वह सुभाष जैन का शिकार कर सकें, और उन्हें कमजोर कर सकें । 
अब सच चाहें जो हो - मुकेश अरनेजा चाहें अशोक गर्ग की उम्मीदवारी की परफॉर्मेंस से निराश होकर वास्तव में एक ऐसा उम्मीदवार खोज रहे हों, जो सुभाष जैन को टक्कर दे सके; और या रणनीतिक चाल के रूप में 'बलि का बकरा' तलाश कर रहे हों - मुकेश अरनेजा की इस कार्रवाई से अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के लिए तो संकट खड़ा हो ही गया है । वह तो एक तर्क दिया जाता है न कि चाहे चाकू खरबूजे पर गिरे चाहे खरबूजा चाकू पर गिरे, कटना खरबूजे को ही है - उसी तर्ज पर मुकेश अरनेजा के किसी भी 'कारण' से किसी दूसरे उम्मीदवार की तलाश में जुटने का सीधा नुकसान अशोक गर्ग को ही होना है । यही हुआ भी है । अशोक गर्ग ने पिछले दिनों अपनी उम्मीदवारी के अभियान को जिस तरह से संयोजित किया था, उससे चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले कई खिलाड़ी रोटेरियंस प्रभावित हुए थे और वह यह मानने/कहने लगे थे कि सुभाष जैन की उम्मीदवारी का अभियान भले ही काफी बढ़त बनाए हुए दिख रहा हो, किंतु अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के अभियान से उसे कड़ी टक्कर मिलेगी । इस तरह की बातों से अशोक गर्ग की उम्मीदवारी का मोमेंटम बढ़ रहा था - जिसे लेकिन मुकेश अरनेजा की नई हरकत ने धूल में मिला दिया है । पिछले दिनों मुकेश अरनेजा का नाम लेकर कुछेक नए उम्मीदवारों के नाम जिस तरह से चर्चा में आए, उससे एक उम्मीदवार के रूप में अभी तक हासिल की गई अशोक गर्ग की उपलब्धियों पर पानी फिर गया है । मुकेश अरनेजा की यह कार्रवाई यदि सचमुच अशोक गर्ग की स्थिति से निराश होने के कारण प्रेरित है, तब तो यह अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के लिए बड़ा झटका है ही; यह कार्रवाई मुकेश अरनेजा की यदि एक चाल है तो भी मुकेश अरनेजा की इस चाल ने अशोक गर्ग की उम्मीदवारी का कबाड़ा करने का ही काम किया है । 
उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा को एक बड़े चालबाज नेता/व्यक्ति के रूप में देखा/पहचाना जाता है - कुछेक लोग उनकी चालबाजियों के बड़े मुरीद भी हैं; किंतु यह तथ्य बहुत निराश करने वाला है कि अपनी तमाम चालबाजियों के बावजूद उन्हें अभी तक हासिल कुछ नहीं हुआ है - अपनी चालबाजियों के बावजूद वह अपने क्लब से, अपने परिवार से और अपने बिजनेस से खदेड़े ही गए हैं । क्लब में, परिवार में, बिजनेस पार्टनर्स में मनमुटाव होते ही हैं; मनमुटाव के कारण बँटवारे भी होते हैं - यह बड़ी स्वाभाविक सी स्थितियाँ हैं । मुकेश अरनेजा के अपने क्लब में, परिवार में और बिजनेस में झमेले रहे तो यह कोई बहुत बुरी बात नहीं है - यह स्वाभाविक सी बात है; पर जो बात स्वाभाविक नहीं है और बहुत बुरी है वह यह कि मुकेश अरनेजा हर जगह से खदेड़े गए हैं, भगाए गए हैं, निकाले गए हैं; और कहीं भी उनकी चालबाजी काम नहीं आई । इसी आधार पर माना जा रहा है कि मुकेश अरनेजा यदि सचमुच अशोक गर्ग की परफॉर्मेंस से निराश होकर किसी और उम्मीदवार की तलाश में जुटे हैं - तो सवाल यह है कि मुकेश अरनेजा जब अशोक गर्ग की उम्मीदवारी में दम नहीं भर सके तो किसी और उम्मीदवार को ही भला कैसे 'खड़ा' कर सकेंगे ? और यदि यह उनकी चाल है तो जैसे अभी तक मुकेश अरनेजा की हर चाल खुद उन्हें ही उल्टी पड़ी है, तो इस चाल के सीधी पड़ने की ही क्या गारंटी है - मुकेश अरनेजा अपनी चालबाजियों से जब अपने आप को न अपने क्लब में, न अपने परिवार में और न बिजनेस में बचा सके, तो दूसरे किसी को वह भला कैसे बचायेंगे ? जाहिर तौर पर मुकेश अरनेजा के गाजियाबाद/नोएडा में उम्मीदवार खोजने की खबरों ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सुगबुगाहट तो पैदा की है, लेकिन अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के अभियान का बंटाधार कर दिया है । 

Friday, July 17, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से लिखी एमएस जैन की चिट्ठी के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील गुप्ता को तो लोगों से मुँह छिपाना पड़ रहा है; और राजीव सिंघल की उम्मीदवारी का बाजा बजता सुनाई दे रहा है

मेरठ । सुनील गुप्ता पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में तरह तरह से पैसे जुटाने/बसूलने के गंभीर आरोपों को लेकर 'रचनात्मक संकल्प' ने पीछे जो रिपोर्ट प्रकाशित की थी, उसे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एमएस जैन द्वारा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को लिखी चिट्ठी में दिए गए विवरणों ने न केवल सही साबित कर दिया है, बल्कि सुनील गुप्ता द्वारा मचाई गई लूट-खसोट के मामले को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ला दिया है । एमएस जैन ने अपनी चिट्ठी में जिस विस्तार के साथ डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी तथा रोटरी के विभिन्न कार्यक्रमों की आड़ में सुनील गुप्ता द्वारा पैसा बनाने के तथ्यों का हवाला दिया है, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनील गुप्ता की सरेआम फजीहत कर दी है - लोगों को लग रहा है कि एमएस जैन ने सुनील गुप्ता को जैसे भरे बाजार रंगे हाथ पकड़ लिया है । मजे की बात यह हुई है कि एमएस जैन ने अपनी इसी चिट्ठी में निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी पर भी अपने अवार्ड फंक्शन को एक उम्मीदवार से स्पॉन्सर कराने का आरोप लगाया, किंतु संजीव रस्तोगी ने तुरंत से इस आरोप का प्रतिवाद किया और ऐलान किया कि इस आरोप को एमएस जैन यदि साबित कर दें तो वह कोई भी सजा भुगतने के लिए तैयार हैं - जिसके बाद एमएस जैन, संजीव रस्तोगी से माफी माँगने के 'मोड' में आ गए । संजीव रस्तोगी ने तो अपने ऊपर लगे आरोप का तत्परता से जबाव दिया और सुबूत प्रस्तुत करने की चुनौती दी, लेकिन सुनील गुप्ता ने एमएस जैन के आरोपों पर पूरी तरह चुप्पी साध ली है । दरअसल सुनील गुप्ता जानते हैं कि वह संजीव रस्तोगी जैसा न तो साहस दिखा सकते हैं और न साफगोई अपना सकते हैं - क्योंकि उनपर जो आरोप लगे हैं, वह पूरी तरह सच हैं । 
एमएस जैन की चिट्ठी ने और इस चिट्ठी में लिखी बातों ने सुनील गुप्ता की इतनी फजीहत नहीं की है, जितनी एमएस जैन के आरोपों पर सुनील गुप्ता द्वारा अपनाई गई चुप्पी ने और आरोपों पर मिट्टी डालने की उनकी कोशिश ने की है । सुनील गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि एमएस जैन की चिट्ठी पर रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने जिस तरह से कार्रवाई की, उसे डिस्ट्रिक्ट के लोगों से छिपा कर सुनील गुप्ता ने मामले को दबा देने का पक्का इंतजाम कर लिया था - किंतु संजीव रस्तोगी ने उनके सारे इंतजाम पर पानी फेर दिया । उल्लेखनीय है कि केआर रवींद्रन को संबोधित चिट्ठी की कॉपी एमएस जैन ने इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई को भी भेज दी थी । मनोज देसाई ने उनकी चिट्ठी संजीव रस्तोगी तथा सुनील गुप्ता को भेज कर दोनों से जबाव देने को लिखा/कहा । सुनील गुप्ता का इरादा और प्रयास था कि मनोज देसाई को जबाव दे दिया जाए और इस बात को डिस्ट्रिक्ट के लोगों से छिपा लिया जाए । संजीव रस्तोगी ने लेकिन इस बात को मंजूर नहीं किया और डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच झूठे आरोप लगाने के लिए एमएस जैन की लानत-मलानत की, और एमएस जैन को माफी माँगने पर मजबूर किया । सुनील गुप्ता ऐसा नहीं कर सके, क्योंकि वह जानते हैं कि एमएस जैन ने उनपर जो आरोप लगाए हैं उनके सुबूत तो जगजाहिर हैं । 
मजे की बात यह हुई है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को संबोधित एमएस जैन की चिट्ठी जिसने भी देखी/पढ़ी है, वह इस बात पर हैरान हुआ है कि एमएस जैन को यह चिट्ठी लिखने की जरूरत आखिर पड़ी क्यों, और इस चिट्ठी से वह वास्तव में हासिल क्या करना चाहते हैं ? इस चिट्ठी में जो कुछ भी झूठ-सच कहा गया है, उसे पढ़कर साफ पता चलता है कि एमएस जैन ने यह चिट्ठी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए इस वर्ष होने वाले चुनाव को प्रभावित करने के इरादे से लिखी है - और इसमें दिवाकर अग्रवाल को लपेटने का तथा राजीव सिंघल के लिए स्थितियाँ अनुकूल बनाने का प्रयास किया गया है । इस 'उद्देश्य' के चलते किंतु फिर उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील गुप्ता को निशाना क्यों बनाया, क्योंकि सुनील गुप्ता तो राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के घनघोर समर्थक हैं ? एमएस जैन के नजदीकियों के अनुसार, इसके दो कारण हैं : एक तो यह कि उन्हें पता चला कि सुनील गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मदद करने के नाम पर राजीव सिंघल से मोटी रकम ऐंठने की तिकड़म लगा रहा है; और दूसरा यह कि राजीव सिंघल की उम्मीदवारी की बागडोर सँभाले एमएस जैन को लग यह रहा है कि सुनील गुप्ता पहले तो राजीव सिंघल से पैसे ऐंठ लेगा, और फिर और रकम बटोरने के उद्देश्य से दिवाकर अग्रवाल से जा मिलेगा तथा राजीव सिंघल को धोखा देगा । इसलिए ही, एमएस जैन को सुनील गुप्ता को अभी ही बेनकाब करना जरूरी लगा, जिससे कि सुनील गुप्ता की गर्दन को पकड़े रखा जा सके । राजीव सिंघल के कुछेक समर्थकों ने एमएस जैन से कहा भी कि इस तरह से तो सुनील गुप्ता बिदक जायेगा और वह अभी से राजीव सिंघल के खिलाफ हो जायेगा; लेकिन एमएस जैन ने उन्हें यह कर चुप कर दिया कि वह सुनील गुप्ता को अच्छे से जानते हैं, वह पैसे का लालची है और अभी राजीव सिंघल के खिलाफ जाने की हिम्मत बिलकुल भी नहीं करेगा । 
सुनील गुप्ता हिम्मत करेंगे या नहीं; और सरे आम 'जूते मारने' वाले लोगों के साथ ही बने रहेंगे या उनका साथ छोड़ेंगे - यह तो आगे पता चलेगा; लेकिन एक बात साफ है कि एमएस जैन की इस चिट्ठी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में राजीव सिंघल के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है । मेरठ के दो गवर्नर्स - संजीव रस्तोगी और सुनील गुप्ता पर एमएस जैन ने झूठे/सच्चे आरोपों के साथ जो हमला बोला है, उसके कारण मेरठ में राजीव सिंघल के लिए मुसीबत खड़ी हो गई है । एमएस जैन की इस चिट्ठी को बदनीयतीभरा माना/देखा गया है, और कहा जा रहा है कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में मिलते दिख रहे समर्थन से राजीव सिंघल के समर्थक नेता इस कदर हताश/निराश होकर बौखला गए हैं कि 'अपनों' को ही निशाना बनाने लगे हैं । राजीव सिंघल के ही समर्थकों ने कहना शुरू कर दिया है कि एमएस जैन जैसे समर्थकों के होते हुए राजीव सिंघल को दुश्मनों की जरूरत नहीं पड़ेगी; और एमएस जैन जैसे समर्थक ही राजीव सिंघल की उम्मीदवारी का बाजा बजा देंगे । एमएस जैन ने चिट्ठी लिखी तो थी दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने के लिए, किंतु उनकी चिट्ठी पर डिस्ट्रिक्ट में जो तमाशा हुआ - झूठे आरोपों के कारण उन्हें संजीव रस्तोगी से माफी माँगने के लिए मजबूर होना पड़ा, तथा सच्चे आरोपों के कारण सुनील गुप्ता को लोगों से मुँह छिपाना पड़ रहा है - उससे नुकसान राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को होता दिखा है । एमएस जैन की इस चिट्ठी से दरअसल राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों की फूट सामने आई है और उनमें आपस में एक-दूसरे को नीचा दिखाने की तथा एक-दूसरे पर हावी होने की होड़ लोगों के बीच प्रकट हुई है । इससे राजीव सिंघल की उम्मीदवारी ही संकट में फँसी नजर आने लगी है । 

Thursday, July 16, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल की खाली हो रही तीन सीटों को देखते हुए दुर्गेश काबरा और अनिल भंडारी ने तैयारी तो अच्छे से की है, किंतु प्रफुल्ल छाजेड़ की सक्रियता ने उनके सामने चुनौती भी गंभीर बना दी है

मुंबई । संजीव माहेश्वरी, राजकुमार अदुकिया और पंकज जैन द्वारा खाली की गईं सेंट्रल काउंसिल की सीटों पर कब्जा करने के लिए इंस्टीट्यूट के वेस्टर्न रीजन में उम्मीदवारों के बीच जो घमासान मचा है, उसने वेस्टर्न रीजन में दिलचस्प चुनावी नजारा प्रस्तुत किया हुआ है । इस नजारे को खासा नजदीक से और गंभीरता से देख रहे चुनावी विश्लेषकों का मानना और कहना है कि सेंट्रल काउंसिल की खाली हो रही इन तीनों सीटों को भरने के लिए हाथ-पैर मारना तो कई लोगों ने शुरू किया है, किंतु अभी तक कोई ऐसा दमदार उम्मीदवार नहीं दिख रहा है - जिसे/जिन्हें इन खाली हो रही सीटों का वारिस मान लिया जाए । दरअसल इसीलिए वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के लिए होने वाला चुनाव खासा मजेदार हो गया है । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में वेस्टर्न रीजन से जो तीन लोग सीट खाली कर रहे हैं, उनमें दो बातें कॉमन हैं - एक तो यह कि तीनों मुंबई के हैं और दूसरा यह कि तीनों मोटे तौर पर मारवाड़ी वोटों का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं । अभी जो उम्मीदवार सक्रिय दिख रहे हैं और उनकी जो दशा/दिशा नजर आ रही है, उसमें यह बात तो निश्चित ही दिख रही है कि इनकी जगह अब जो भी लोग आयेंगे - वह मारवाड़ी वोटों का वैसा प्रतिनिधित्व तो नहीं ही कर रहे होंगे, जैसा प्रतिनिधित्व इन तीनों ने किया है । 'खतरा' यह भी है कि मुंबई भी अपनी तीनों सीटें बचाकर शायद न रख सके । माना जा रहा है कि खाली हो रही तीन सीटों में कम-से-कम एक सीट तो मुंबई के बाहर निश्चित ही जा रही है । अभी सक्रियता व चुनावी समीकरणों के आधार पर जो परसेप्शन बना है, उसमें एक सीट पर अहमदाबाद के पराग रावल 'आते' हुए नजर आ रहे हैं । 
मारवाड़ी वोटों के प्रतिनिधित्व के लिए दुर्गेश काबरा और अनिल भंडारी के बीच तगड़ी होड़ देखने को मिल रही है । दुर्गेश काबरा ने पिछली बार भी सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी, लेकिन तब वह कोई बहुत उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर सके थे और असफल रहे थे । अनिल भंडारी ने भी रीजनल काउंसिल का पिछला चुनाव कोई बहुत प्रभावी तरीके से नहीं जीता था । पिछली बार सेंट्रल काउंसिल के वेस्टर्न रीजन के 24 उम्मीदवारों की मतगणना में पहली वरीयता के 967 वोटों के साथ दुर्गेश काबरा 18वें नंबर पर रहे थे; फाइनली 1039 वोटों के साथ 18वें नंबर पर रहते हुए ही वह चुनावी होड़ से बाहर हो गए थे । अनिल भंडारी रीजनल काउंसिल के 49 उम्मीदवारों में पहली वरीयता के 772 वोटों के साथ 16वें स्थान पर थे; फाइनली अपने वोटों की संख्या को 1243 तक पहुँचाते हुए उन्होंने विजेता उम्मीदवारों में अपना स्थान एक ऊँचा करते हुए 15वाँ कर लिया था । सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में इसे कोई बहुत प्रभावी नतीजा नहीं कहा जा सकता है । उल्लेखनीय है कि वेस्टर्न रीजन में इस बार 75 हजार से ज्यादा वोट मान्य होने का अनुमान है, जिसमें से 35 से 38 हजार के बीच वोट पड़ने की उम्मीद की जा रही है । चुनावी विश्लेषकों का आकलन है कि सेंट्रल काउंसिल में वापसी करने की तैयारी करने वाले मौजूद आठ सदस्य इनमें से 20/22 हजार वोट झटक लेंगे । कोटा तीन हजार वोटों तक जा सकता है । ऐसे में खाली हो रही तीन सीटों पर कब्जा करने की कोशिशों में लगे उम्मीदवारों के लिए मामला खासा कठिन हो जाता है ।
मामला भले ही खासा कठिन हो जाता हो, लेकिन फिर भी मारवाड़ी वोटों का प्रतिनिधित्व करने वाली तीन सीटों के खाली होने से मारवाड़ी वोटों के भरोसे रहने वाले उम्मीदवारों के लिए मौका तो अच्छा ही है । यह अच्छा मौका ही - पिछला प्रदर्शन प्रभावी न होने के बावजूद - दुर्गेश काबरा और अनिल भंडारी के लिए उम्मीद पैदा करता है । दुर्गेश काबरा के समर्थक कहते भी हैं कि कई मारवाड़ी उम्मीदवारों के रहते हुए दुर्गेश काबरा ने 24 उम्मीदवारों में 18वीं स्थिति भी जो पाई, वह कोई खराब नतीजा नहीं है; इसलिए अब की बार जब संजीव माहेश्वरी, राजकुमार अदुकिया, पंकज जैन चुनावी मैदान में नहीं होंगे - तब दुर्गेश काबरा के लिए ज्यादा चुनौती नहीं होगी और उनके लिए जीत कोई मुश्किल नहीं होगी । दुर्गेश काबरा के समर्थक एक और जोरदार तर्क देते हैं और वह यह कि सेंट्रल काउंसिल चुनाव की जो एक अलग और विस्तृत केमिस्ट्री होती है, दुर्गेश काबरा ने पिछली बार की अपनी उम्मीदवारी के चलते उसे समझ/पहचान लिया है; तथा पिछली बार की अपनी कमजोरियों व गलतियों से भी सबक लिया है - इसलिए इस बार उनके लिए ज्यादा समस्या नहीं ही होगी । यह तर्क एक तरह से अनिल भंडारी के लिए चुनौती खड़ी करता है - क्योंकि अनिल भंडारी अभी सेंट्रल काउंसिल चुनाव की केमिस्ट्री से ज्यादा परिचित नहीं हैं और रीजनल काउंसिल का पिछला चुनाव भी उन्होंने कोई बहुत आकर्षक तरीके से नहीं जीता था । अनिल भंडारी के समर्थकों का कहना लेकिन यह है कि पिछले वर्ष वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में अनिल भंडारी ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई थी और उनकी जो उपलब्धियाँ रहीं थीं, उसके कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उनकी जो पोजीटिव पहचान बनी है - उसका उन्हें फायदा मिलेगा । अनिल भंडारी की उम्मीदवारी के समर्थकों का यह भी तर्क है कि पिछले दो-तीन वर्षों में जो नए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स बने हैं, उनके बीच अनिल भंडारी की रीजनल काउंसिल के सदस्य व चेयरमैन के रूप में अच्छी पहचान बनी है - जिसके भरोसे युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच समर्थन जुटाना उनके लिए आसान होगा । 
दुर्गेश काबरा और अनिल भंडारी के समर्थकों के अपने अपने जो तर्क हैं, वह यूँ तो बहुत मौजूँ हैं - किंतु चुनाव सिर्फ तर्कों के सहारे तो जीता नहीं जाता है; संजीव माहेश्वरी, राजकुमार अदुकिया और पंकज जैन का ही उदाहरण देखें तो पाते हैं कि लंबी सक्रियता और भारी स्वीकार्यता के बावजूद वह कोई बहुत प्रभावी तरीके से अपनी अपनी जीत प्राप्त नहीं कर सकें हैं । दरअसल चुनावी नतीजे का ऊँठ किस करवट बैठता है, यह बहुत सारे फैक्टर्स पर निर्भर करता है । इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है, और वह उदाहरण यह कि मारवाड़ी वोटों के भरोसे जिन दुर्गेश काबरा और अनिल भंडारी के लिए मुकाबले को थोड़ा अनुकूल समझा जा रहा है, उन्हें लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ से तगड़ी चुनौती मिलती दिख रही है । चुनावी विश्लेषकों का मानना और कहना है कि संजीव माहेश्वरी, राजकुमार अदुकिया और पंकज जैन के बाहर होने से इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में मारवाड़ी वोटों का प्रतिनिधित्व प्रफुल्ल छाजेड़ के पास आने की संभावना है; और उनके वोटों में भारी उछाल मिलने की उम्मीद है । अनुमानपूर्ण दावे हैं कि पंकज जैन को मिलने वाले जैन वोट तो प्रफुल्ल छाजेड़ के खाते में जायेंगे ही, दूसरे मारवाड़ी वोटों का झुकाव भी उन्हीं ही तरफ होने का अनुमान है । प्रफुल्ल छाजेड़ के पक्ष में एक तथ्य और है : इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में इंस्टीट्यूट के पूर्व अध्यक्ष बंसीधर मेहता की बड़ी गहरी छाया रही है । उनकी फर्म में ऑर्टिकल या पार्टनर रहे लोगों की इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में बड़ी धूम रही है । गौतम दोषी, भावना दोषी, पंकज जैन आदि इसके उदाहरण हैं । बंसीधर मेहता की छाया से फायदा उठाने/मिलने का मौका अब प्रफुल्ल छाजेड़ के पास आ गया है । लोगों का मानना और कहना है कि प्रफुल्ल छाजेड़ ने यदि सुनियोजित तरीके से काम किया, तो इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में बड़ी पहचान और धाक बनायेंगे । प्रफुल्ल छाजेड़ की यह अनुमानित बड़ी पहचान और धाक लेकिन दुर्गेश काबरा और अनिल भंडारी के लिए मुसीबत खड़ी करेगी और उनकी चुनावी यात्रा को चुनौतीपूर्ण बनायेगी ।

Tuesday, July 14, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करके अक्षय गुप्ता ने कानपुर की इंस्टीट्यूट की राजनीति का गॉडफादर बनने का जो दाँव चला है, वह लेकिन मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए मुसीबत बन गया है

कानपुर । मनु अग्रवाल की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी की कमान अक्षय गुप्ता द्वारा सँभाल लेने के चलते कानपुर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का परिदृश्य खासा दिलचस्प हो गया है । कुछेक लोगों को लगता है कि अक्षय गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी की कमान सौंप कर मनु अग्रवाल ने बड़ी होशियारी का काम किया है और अपनी जीत को सुनिश्चित कर लिया है; लेकिन अन्य कई लोगों को लगता है कि ऐसा करके मनु अग्रवाल ने अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली है और अपनी चुनावी जीत की संभावना को खतरे में डाल लिया है । मजे की बात यह है कि मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी की कमान अक्षय गुप्ता के हाथ में आने को मनु अग्रवाल के लिए वरदान और अभिशाप मानने वाले परस्पर विरोधी लोग इस बात पर लेकिन एकमत हैं कि अक्षय गुप्ता ने मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी की कमान मनु अग्रवाल के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए सँभाली है । ऐसा मानने वाले लोगों का कहना है कि मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी की आड़ में दरअसल अक्षय गुप्ता कानपुर की इंस्टीट्यूट की राजनीति में गॉडफादर का पद पाने की 'लड़ाई' लड़ रहे हैं । उल्लेखनीय है कि यह पद अभी तक नृपेन्द्र गुप्ता के पास रहा है । नृपेन्द्र गुप्ता लेकिन चूँकि अब बहुत सक्रिय नहीं रह गए हैं और कानपुर में अधिकतर लोग अब उनके प्रति अपनी नापसंदगी खुल कर जाहिर भी करने लगे हैं, इसलिए अक्षय गुप्ता को लगता है कि उनके लिए यह सही मौका है कि वह कानपुर की इंस्टीट्यूट की राजनीति के गॉडफादर का पद नृपेन्द्र गुप्ता से ले लें । कानपुर में इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए चूँकि एक अकेले मनु अग्रवाल की ही उम्मीदवारी सामने हैं, जिस कारण से उनकी जीत की अच्छी संभावना दिख रही है - इसलिए भी अक्षय गुप्ता को उनकी उम्मीदवारी की कमान सँभाल लेने में फायदा दिखा । मनु अग्रवाल की चुनावी जीत के जरिए वह लोगों को बता/दिखा सकेंगे कि उन्होंने मनु अग्रवाल को चुनाव जितवा दिया - और इस तरह उनका कानपुर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का गॉडफादर बनना पक्का हो जायेगा । 
अक्षय गुप्ता के मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी की कमान सँभाल लेने को जो लोग मनु अग्रवाल के लिए वरदान मान रहे हैं उनका कहना है कि मनु अग्रवाल के जीतने की उम्मीद तो पिछली बार भी थी, लेकिन पिछली बार जीतती हुई बाजी उनके हाथ से इसलिए फिसल गई थी क्योंकि उन्हें चुनावी राजनीति के फंडे क्लियर नहीं थे; अबकी बार चुनावी राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी अक्षय गुप्ता का सहयोग/समर्थन उन्हें मिल रहा है, तो विश्वास किया जाना चाहिए कि पिछली बार जैसी गलतियाँ नहीं होंगी और मनु अग्रवाल की जीत सचमुच संभव हो सकेगी । लेकिन जो लोग अक्षय गुप्ता के सहयोग/समर्थन को मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए अभिशाप मान रहे हैं - उनका कहना है कि अपनी उम्मीदवारी की कमान अक्षय गुप्ता को सौंप कर मनु अग्रवाल ने अपने लिए नए विरोधी पैदा कर लिए हैं, जिन्हें अभी पहचानना भी मुश्किल है और ऐसे में जिनसे निपटना और भी मुश्किल होगा । इनका तर्क है कि मनु अग्रवाल के कई समर्थक और संभावित वोटर ऐसे हैं जो अक्षय गुप्ता के विरोधी रहे हैं - सबसे पहले तो ऐसे लोग मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी की कमान अक्षय गुप्ता के हाथ में देख कर मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के विरोधी होंगे; दूसरी बात यह कि बहुत से लोग अक्षय गुप्ता के बहुत विरोधी तो नहीं होंगे, किंतु वह यह भी नहीं चाहेंगे कि अक्षय गुप्ता कानपुर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के गॉडफादर का पद सँभाले । ऐसे लोगों के लिए मनु अग्रवाल को चुनाव हरवाना इसलिए जरूरी लगेगा जिससे कि वह गॉडफादर बनने की अक्षय गुप्ता की कोशिशों में मट्ठा डाल सकें । अक्षय गुप्ता के खिलाफ होने वाली राजनीति मनु अग्रवाल को सीधी चोट पहुँचाएगी और उनकी जीत की संभावना को कमजोर करेगी । 
मनु अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि अक्षय गुप्ता के कमान सँभालने से पैदा हुए खतरे को मनु अग्रवाल पहचान/समझ तो रहे हैं, लेकिन उनकी उम्मीदवारी की कमान लेकर अक्षय गुप्ता इतना आगे बढ़ गए हैं कि मनु अग्रवाल के लिए अब उन्हें रोक पाना या पीछे करना मुश्किल लग रहा है । मनु अग्रवाल के नजदीकियों ने ही बताया कि अक्षय गुप्ता के कमान सँभाल लेने से एक समस्या और पैदा हो गई है; और वह यह कि मनु अग्रवाल की जो अपनी कोर टीम थी उसके अधिकतर सदस्य तो उनकी उम्मीदवारी के लिए काम करने से पीछे हट गए हैं, लेकिन अक्षय गुप्ता के जो नजदीकी रहे हैं वह अभी तक भी मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के काम में नहीं जुड़ पाए हैं - यानि मनु अग्रवाल दोहरे नुकसान में हैं । इसके कारण समस्या यह पैदा हुई है कि अक्षय गुप्ता का सहयोग/समर्थन मिलने का मनु अग्रवाल को वास्तविक फायदा होता हुआ अभी नहीं नजर आ रहा है । अक्षय गुप्ता का सक्रिय सहयोग/समर्थन मिलने से मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी का 'वज़न' तो निश्चित रूप से बढ़ा है, किंतु इस वज़न को सँभालने के लिए जिस तरह का नेटवर्क चाहिए, वह नहीं बन सका है - मनु अग्रवाल का अपना जो नेटवर्क था वह छिन्न-भिन्न और हो गया है । इसलिए अक्षय गुप्ता के सहयोग/समर्थन के कारण मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी का जो 'वज़न' बढ़ा, उसमें मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के ही दबने का खतरा पैदा हो गया है ।
मनु अग्रवाल ने अपने व्यवहार और अपने तौर-तरीकों को लेकर इस बार जो सुधार किया व 'दिखाया' है, अक्षय गुप्ता के सहयोग/समर्थन के कारण लेकिन उसका कोई लाभ उठाना उनके लिए अभी तक तो मुश्किल बना हुआ है । उल्लेखनीय है कि पिछली बार अपनी चुनावी जीत को लेकर मनु अग्रवाल इतने (अति)विश्वास में थे कि उन्होंने विरोधियों को तो छोड़िये, अपने समर्थकों के सुझावों तक की परवाह नहीं की थी । इस बार लोगों ने किंतु उनका बदला हुआ रूप पाया है । मनु अग्रवाल ने अपने विरोधियों को भी मनाने का प्रयास किया है, तथा साथ ही ऐसे लोगों को भी अपनी उम्मीदवारी के अभियान में जोड़ने का प्रयास किया है - जो चुनावी राजनीति में तटस्थ माने/पहचाने जाते हैं तथा इस नाते से लोगों के बीच उनकी विश्वसनीय पहचान है । मनु अग्रवाल के प्रयास किंतु अक्षय गुप्ता के कारण सिरे नहीं चढ़ पा रहे हैं - क्योंकि ऐसे लोगों से मनु अग्रवाल को प्रायः यही सुनने को मिल रहा है कि 'अरे, आप को मेरी मदद की क्या जरूरत है; अक्षय आपके साथ हैं, तब फिर आपको जीतने से कौन रोक सकेगा ?' मनु अग्रवाल भी समझते हैं कि इस बात के पीछे का भाव क्या है - और यही भाव मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए भारी मुसीबत बना हुआ है । 

Monday, July 13, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी ने पुणे में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के समीकरणों को उलझाया

पुणे । अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी से वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए पुणे में होने वाली चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा हो गई है । यूँ तो अंबरीश वैद्य को पुणे के उस खेमे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, जिस खेमे की तरफ से पिछली बार विजयकांत कुलकर्णी ने उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी और रीजनल काउंसिल में जगह बनाने में असफल रहे थे - इस नाते से कुछेक लोगों को अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी से पुणे के सत्ता समीकरणों में कोई बड़ा उलटफेर होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है; किंतु अन्य कई लोगों को अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी में पुणे में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का भविष्य आकार लेता हुआ 'दिखाई' दे रहा है । जो लोग अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी को एक सामान्य चुनावी कार्रवाई के रूप में देख रहे हैं, उनका कहना है कि विजयकांत कुलकर्णी पुणे ब्रांच के चेयरमैन रह चुकने के बाद भी जब रीजनल काउंसिल का चुनाव नहीं जीत सके - तो अंबरीश वैद्य ही क्या खास कर लेंगे ? इस बार चूँकि दिलीप ऑप्टे रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं दिख रहे हैं, इसलिए हो सकता है कि अंबरीश वैद्य आसानी से चुनाव जीत जाएँ - पर इसमें क्या खास बात है ? दिलीप ऑप्टे पिछली बार चुनाव यदि नहीं लड़ते, तो हो सकता है कि विजयकांत कुलकर्णी भी चुनाव जीत जाते । पिछली बार पुणे से रीजनल काउंसिल के लिए छह उम्मीदवार थे, जिसमें से तीन रीजनल काउंसिल में जगह बनाने में कामयाब रहे थे; इस बार पुणे में रीजनल काउंसिल के लिए चार उम्मीदवार रहने की उम्मीद है, इसलिए अंबरीश वैद्य के रीजनल काउंसिल में जगह पाने को लेकर किसी को कोई शक नहीं है । इसके बावजूद कुछेक लोगों को अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी में कोई खास बात नहीं लग रही है, जबकि कई लोग हैं जो अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी को लेकर बहुत रोमांच महसूस कर रहे हैं । 
पुणे में जिन लोगों को अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी में बहुत रोमांच महसूस हो रहा है, वह दरअसल अंबरीश वैद्य के व्यक्तित्व, प्रोफेशन को लेकर उनकी सोच तथा काम करने के उनके तरीके से बहुत प्रभावित हैं - और विश्वास करते हैं कि अंबरीश वैद्य अपनी सक्रियता को यदि सचमुच चुनावी समर्थन यानि वोटों में बदल सके, तो इंस्टीट्यूट में पुणे को एक खास जगह और पहचान दिलवायेंगे । पुणे के जो लोग यह काम कर सकते थे, दुर्भाग्य से वह चुनावी पचड़े से दूर रहे; और जो पचड़े में कूदे भी उन्हें चुनावी सफलता नहीं मिली; और जिन्हें चुनावी सफलता मिली, वह 'छोटे' कद के साबित हुए । रीजनल काउंसिल के चुनाव में पिछली बार सत्यनारायण मुंदड़ा को सबसे ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन वह इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए कुछ भी डिलीवर करने में विफल रहे हैं । हालाँकि वह लोगों के काम तो खूब आते हैं, लेकिन वह जिस तरह के काम करने में दिलचस्पी लेते हैं उनका प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट को नई दिशा या विज़न देने से कोई वास्ता नहीं है । पहली वरीयता के वोटों में दिलीप ऑप्टे से पीछे रहने के बावजूद कुल वोटों की गणना में दूसरे नंबर पर रहने वाले सर्वेश जोशी अपनी अतिमहत्वाकांक्षा के ऐसे शिकार हुए कि कुछ करना/कराना तो दूर, अपने दोस्तों और सहयोगियों तक को खो बैठे । पहली वरीयता के वोटों की गिनती में दूसरे स्थान पर रहते हुए वोटों की कुल गणना में तीसरे स्थान पर खिसके दिलीप ऑप्टे यह समझने में ही विफल रहे कि वह करें तो क्या करें ? रीजनल काउंसिल में अपनी कोई भूमिका खोजने में विफल रहे दिलीप ऑप्टे के बारे में माना जा रहा है कि वह सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के बारे में सोच रहे हैं । 
दिलीप ऑप्टे लेकिन सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी को लेकर कुछ उलझन में हैं । दिलीप ऑप्टे की चूँकि मुंबई में भी सक्रियता है, इसलिए उनके कुछेक समर्थक उन्हें सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए उत्साहित कर रहे हैं । सेंट्रल काउंसिल में वेस्टर्न रीजन की तीन सीटों के खाली होने का वास्ता देकर कुछेक समर्थक दिलीप ऑप्टे को सेंट्रल काउंसिल के लिए कूद पड़ने की सलाह दे रहे हैं । किंतु उनके अन्य कुछेक समर्थकों का सुझाव है कि उन्हें यदि सचमुच में सेंट्रल काउंसिल में आने का मन है, तो उन्हें उसके लिए अगली बार प्रयास करना चाहिए - जब एसबी जावरे की सीट खाली होगी । यह सुझाव देने वालों का तर्क है कि इस बार यदि वह सफल नहीं हो पाए, तो फिर उनका राजनीतिक जीवन खत्म हुआ ही समझो; इसलिए दिलीप ऑप्टे के लिए इनकी सलाह है कि इस बार उन्हें रीजनल काउंसिल में ही आना चाहिए जिससे कि अगली बार सेंट्रल काउंसिल में आने की उनकी तैयारी में निरंतरता बनी रहे । इन्होंने दिलीप ऑप्टे को सावधान भी किया है कि रीजनल काउंसिल में उनकी जगह यदि अंबरीश वैद्य ने ले ली, तो फिर अगली बार सेंट्रल काउंसिल के लिए अंबरीश वैद्य आयेंगे और तब अंबरीश वैद्य का ही पलड़ा भारी साबित होगा । जो लोग इस बार दिलीप ऑप्टे के लिए सेंट्रल काउंसिल का उम्मीदवार होने की वकालत कर रहे हैं, उनका कहना है कि सेंट्रल काउंसिल का चुनाव इस बार वह यदि नहीं भी जीत पाते हैं तो अगली बार के लिए तो उनका दावा मजबूत हो ही जायेगा - और यदि जीत गए, तो फिर उनकी राजनीति सुरक्षित है ही । इनका डर दरअसल यह है कि रीजनल काउंसिल का चुनाव न लड़ने में भी घाटा है, और लड़ने में खतरा यह है कि दिलीप ऑप्टे यदि नहीं जीत सके, तो फिर उनके लिए सब खत्म जायेगा । रीजनल काउंसिल का चुनाव न लड़ने और या हारने से बेहतर दिलीप ऑप्टे के लिए सेंट्रल काउंसिल का चुनाव हारना होगा । समर्थकों के अलग अलग सुझावों ने दिलीप ऑप्टे को और भी ज्यादा कन्फ्यूज कर दिया है ।   
उनका यह कन्फ्यूजन वास्तव में अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी ने और बढ़ा दिया है । पुणे में जो लोग अंबरीश वैद्य को जानते/पहचानते हैं, और उनकी सक्रियता को देखते रहे हैं उनका मानना और कहना है कि अंबरीश वैद्य इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में लंबी पारी खेलने के लिए उतरे हैं । इसके लिए उन्होंने पर्याप्त 'होमवर्क' किया है और एक एक कदम करके अपनी राजनीतिक यात्रा पर बढ़ रहे हैं । पिछली बार ब्रांच का चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने पर्दे के पीछे से अपने साथियों के चुनाव के संचालन में हिस्सेदारी की थी और इस तरह चुनावी प्रक्रिया को नजदीक से देखने/समझने का प्रयास किया था । उन्होंने सीखा कि कैसे अपने आप को डी-ग्रेड किए बिना भी लोगों के बीच अपनी साख और स्वीकार्यता बनाई जा सकती है, तथा वोट प्राप्त किए जा सकते हैं । पिछली बार इंदौर ब्राँच के चुनाव में उन्हें सबसे ज्यादा वोट मिले थे । इसके बावजूद अंबरीश वैद्य ब्राँच में सत्ता की लड़ाई में नहीं पड़े/फँसे और ब्राँच में कोई पद पाए बिना भी प्रोफेशन से जुड़े लोगों के बीच काम करते रहे और उन्हें प्रोफेशन के प्रति जागरूक व जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित करते रहे । लोगों ने भी अंबरीश वैद्य में एक नए तरह के 'नेता' को देखा/पहचाना - और माना कि उन्हें अंबरीश वैद्य जैसी सोच और सक्रियता रखने वाला नेता ही चाहिए । अंबरीश वैद्य ने एक बिलकुल नई तरह की राजनीति की नींव रखी है - और उन्हें अभी तक उसके सकारात्मक नतीजे ही मिले हैं । रीजनल काउंसिल के लिए - अभी जो स्थिति है उसमें - उनकी जीत को लेकर शायद ही किसी को कोई शक हो । लोगों को बल्कि लग यह रहा है कि अंबरीश वैद्य की जिस तरह की सक्रियता है, उसमें रीजनल काउंसिल का चुनाव जीतने के बाद की राजनीति को साधने की तैयारी ज्यादा है । दरअसल इसीलिए रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी ने पुणे में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा कर दी है । 

Friday, July 10, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के बोर्ड सदस्यों द्वारा सर्वसम्मत फैसले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुभाष जैन को क्लब का अधिकृत उम्मीदवार घोषित करने तथा उनकी उम्मीदवारी को क्लब की इज्जत व प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लेने से चुनावी समीकरणों में उलटफेर होने की संभावना बढ़ी

गाजियाबाद । रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के बोर्ड ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुभाष जैन की उम्मीदवारी को जिस सहजता के साथ हरी झंडी दे दी है, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को हैरान किया है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को आशंका व उम्मीद थी कि क्लब में चूँकि सुभाष जैन के साथ-साथ योगेश गर्ग ने भी उम्मीदवारी का दावा ठोका हुआ है, इसलिए क्लब में उम्मीदवारी का निर्णय आराम से और जल्दी से तो नहीं ही हो पायेगा - और निर्णय लेने की प्रक्रिया में दोनों उम्मीदवारों व उनके समर्थकों की तरफ से क्लब में खूब पटाखेबाजी होगी । उम्मीदवारी के मुद्दे पर रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल में पटाखेबाजी व तमाशाबाजी होती देखने की प्रतीक्षा कर रहे लोगों को यह जानकर लेकिन भारी निराशा हुई है कि क्लब के लोगों ने दूसरों को मजा लेने का तथा क्लब की फजीहत करने का मौका नहीं दिया और बहुत ही मैच्योर तरीके से एक मुश्किल दिख रहा फैसला सहजता से ले लिया । इस फैसले से नहीं, बल्कि सौहार्दपूर्ण माहौल में फैसला होने से उन लोगों को तगड़ा झटका लगा है जो उम्मीद कर रहे थे कि उम्मीदवारी के फैसले को लेकर सुभाष जैन और योगेश गर्ग अपने अपने समर्थकों के साथ एक दूसरे पर कीचड़ उछालेंगे और तमाशाबाजी करेंगे - जिसमें उन्हें मजा लेने का मौका मिलेगा । डिस्ट्रिक्ट के कई लोगों का कहना है कि उन्हें सचमुच उम्मीद नहीं थी कि सुभाष जैन और योगेश गर्ग के बीच उम्मीदवारी को लेकर चलती दिख रही होड़ इतनी आसानी से और क्लब के सदस्यों के बीच सौहार्द बनाए रखते हुए किसी नतीजे पर पहुँच सकेगी । रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल की डिस्ट्रिक्ट में एक खास पहचान रही है : क्लब के वरिष्ठ सदस्यों में कभी कभी खटपट सुनाई देती रही है, और उनके बीच एक-दूसरे के प्रति जाहिर होने वाली शिकायतें सार्वजनिक चर्चा का विषय भी बनी हैं - लेकिन अपने बीच की नाराजगियों और शिकायतों को क्लब के सदस्य बहुत ही गरिमापूर्ण तरीके से हल करते रहे हैं; और उन्होंने क्लब की साख व प्रतिष्ठा पर कभी आँच नहीं आने दी । इस बार का 'झगड़ा' लेकिन थोड़ा बड़ा और गंभीर था - और इसलिए ही दूसरे लोगों को लग रहा था कि क्लब के सदस्यों के लिए इस बार क्लब की साख व प्रतिष्ठा को बचा पाना मुश्किल ही होगा । लेकिन क्लब के सदस्यों ने दिखा दिया कि बात अगर क्लब की साख व प्रतिष्ठा को बचाने की होगी - तो उनके लिए कुछ भी करना मुश्किल नहीं होगा । 
उल्लेखनीय है कि सुभाष जैन की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने का फैसला क्लब की जिस बोर्ड मीटिंग में हुआ, उस बोर्ड मीटिंग में योगेश गर्ग के नजदीकी व समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले सदस्य भी थे, और उन्होंने योगेश गर्ग की उम्मीदवारी के लिए वकालत भी की - किंतु जब उन्हें लगा कि उनके तर्क कमजोर पड़ रहे हैं तो फिर उन्होंने सुभाष जैन के पक्ष में हामी भरने में भी देर नहीं लगाई । योगेश गर्ग के इन नजदीकियों और समर्थकों से भी ज्यादा मैच्योर रवैया क्लब के अध्यक्ष आशीष गर्ग ने दिखाया । आशीष गर्ग को सुभाष जैन के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है; उनके बारे में यह भी प्रचलित है कि वह जो कहना/करना चाहते हैं उसे किसी की परवाह किए बिना दो-टूक ढंग से कह/कर देते हैं । इस 'ख्याति' के चलते आशंका यह व्यक्त की जा रही थी कि सुभाष जैन की उम्मीदवारी को क्लियर कराने के लिए आशीष गर्ग कहीं ऐसा कुछ न कर बैठें जिससे झमेला खड़ा हो जाए । अपनी 'ख्याति' के विपरीत आशीष गर्ग ने लेकिन बहुत ही संयम का परिचय दिया और वह कोई पक्ष लेने से बचते हुए ही दिखे । योगेश गर्ग और सुभाष जैन के समर्थकों के इस संयमी और मैच्योर व्यवहार ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए क्लब में चल रही उम्मीदवारी की होड़ में सुभाष जैन को जितवाने या योगेश गर्ग को हरवाने का काम नहीं किया - बल्कि क्लब को और रोटरी को 'जितवाया' है । 
रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल की मौजूदा वर्ष की पहली बोर्ड मीटिंग में उम्मीदवारी के मुद्दे पर फैसला करना दरअसल इसलिए जरूरी हो गया था, क्योंकि पिछले रोटरी वर्ष की अंतिम बोर्ड मीटिंग में योगेश गर्ग ने क्लब की तत्कालीन अध्यक्ष स्वाति गुप्ता से इस बात पर अपनी नाराजगी दिखाई थी कि उन्हें उम्मीदवारी के जो आवेदन मिले - उससे क्लब के बोर्ड के सदस्यों को अवगत कराने का काम उन्होंने नहीं किया और इस तरह उन्होंने अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया । स्वाति गुप्ता का कहना था कि उम्मीदवारी के जो दो आवेदन उन्हें मिले, वह चूँकि अगले रोटरी वर्ष के लिए थे - इसलिए उन्होंने उन पर कोई कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं समझी; और ऐसा करके उन्होंने यदि कोई गलती की है, तो इसे अनजाने में हुई गलती समझा जाए और इसके लिए वह माफी माँगती हैं । योगेश गर्ग ने उन्हें माफ तो कर दिया, लेकिन उन्हें यह सुझाव भी दिया कि अपना अध्यक्ष-काल पूरा होने पर वह अगले अध्यक्ष को उम्मीदवारी के दोनों आवेदन सौंपे और उस पर जल्दी कार्रवाई करने की सिफारिश करें । स्वाति गुप्ता ने 30 जून और या एक जुलाई को जब अध्यक्ष पद आशीष गर्ग को हस्तांतरित किया तो कवरिंग लैटर में योगेश गर्ग द्वारा दिए गए सुझावों को लिख दिया । आशीष गर्ग ने भी अध्यक्ष के रूप में पहला काम वह किया, जिसे करीब ढाई महीने तक न करने और लटकाये रखने के लिए योगेश गर्ग ने स्वाति गुप्ता से नाराजगी व्यक्त की थी । क्लब के बोर्ड के अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में रोटरी इंटरनेशनल ने अपने संविधान के आर्टिकल 10 के सैक्शन 1, सैक्शन 2 और सैक्शन 3 में जो नियम प्रतिपादित किए हैं - उनका अक्षर-अक्षर पालन करते हुए रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के बोर्ड ने अपनी पहली मीटिंग में उम्मीदवारी के मुद्दे पर चर्चा की और एकमत से सुभाष जैन की उम्मीदवारी के पक्ष में फैसला किया । 
उम्मीदवारी पर चर्चा करने बैठे रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के बोर्ड सदस्यों के सामने प्रमुख रूप से दो सवाल थे : एक यह कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए क्लब की तरफ से उम्मीदवारी प्रस्तुत की जाए या नहीं; और दूसरा सवाल यह कि यदि क्लब की तरफ से उम्मीदवारी प्रस्तुत की जानी है तो किसकी उम्मीदवारी प्रस्तुत करें ? पहला सवाल दरअसल इसलिए चर्चा में लिया गया क्योंकि क्लब में भी और क्लब के बाहर के कुछेक लोगों के बीच भी यह चर्चा सुनी गई थी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के चक्कर में क्लब में झगड़ा पैदा हो रहा है और क्लब की बदनामी हो रही है, इसलिए बेहतर यह होगा कि इस चक्कर से दूर ही रहा जाए । बोर्ड मीटिंग में हालाँकि किसी ने भी इस तर्क का समर्थन नहीं किया । सभी की रजामंदी इस बात को लेकर थी कि क्लब में जब दो दो वरिष्ठ सदस्य उम्मीदवारी प्रस्तुत कर रहे हैं, तब उम्मीदवारी से पीछे हटने में क्लब की ज्यादा बदनामी होगी । सभी ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि यह ठीक है कि उम्मीदवारी के चलते बहुत सी ऐसी अप्रिय बातें हो रही हैं तथा ऐसी समस्याएँ खड़ी हो रही हैं, जो क्लब की साख व प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं हैं - किंतु क्लब उन बातों और समस्याओं का सामना करने तथा आपस में मिलबैठ कर उन्हें हल करने की बजाये, उनसे बचने और मुँह छिपाने की कोशिश करेगा तो अपनी साख व प्रतिष्ठा को खोयेगा । बोर्ड मीटिंग में सभी ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि हम लोग भी और क्लब के दूसरे सदस्य भी मैच्योर लोग हैं और अपने झगड़ों को आपस में बातचीत करके हल कर सकते हैं; इसलिए जो भी झगड़े हैं उन्हें हल कर लेने का विश्वास रखते हुए क्लब को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाहिए । ऐसा करना इसलिए भी जरूरी समझा गया कि क्लब में झगड़े की बात फैला कर क्लब के बाहर के जो लोग क्लब को बदनाम कर रहे हैं, तथा क्लब को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की होड़ से बाहर करने का षड्यंत्र कर रहे हैं, उन्हें उचित जबाव दिया जा सके । 
क्लब की तरफ से उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का फैसला तो आराम से हो गया, किंतु उम्मीदवारी योगेश गर्ग और सुभाष जैन में से किसकी प्रस्तुत हो - यह फैसला करना थोड़ा पेचीदा काम था । मीटिंग में मौजूद एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि उम्मीदवार को लेकर बातचीत जब शुरू हुई, तो माहौल में थोड़ी गर्मी पैदा हो गई थी । ऐसा लगा जैसे योगेश गर्ग और सुभाष जैन के समर्थक अपनी अपनी तरफ से पूरी तैयारी करके मीटिंग में आए थे । योगेश गर्ग के समर्थकों ने क्लब में और रोटरी में योगेश गर्ग के लंबे योगदान का हवाला देते हुए तर्क दिया कि डिस्ट्रिक्ट में योगेश गर्ग की बड़ी पहचान है, और डिस्ट्रिक्ट के कई बड़े नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध हैं - इसलिए उनकी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया जाना चाहिए । सुभाष जैन के समर्थकों का कहना रहा कि डिस्ट्रिक्ट में बेशक योगेश गर्ग की बड़ी पहचान है, लेकिन हाल-फिलहाल की उनकी गतिविधियों को देखें तो लगता है कि रोटरी में उन्हें जो कुछ करना था उसे वह कर चुके हैं तथा आगे रोटरी के लिए ज्यादा कुछ करने का उनमें पहले जैसा उत्साह बचा नहीं रह गया है, जबकि सुभाष जैन ने अपनी सक्रियता से यह दिखाया/जताया है कि उनमें रोटरी के लिए बहुत कुछ करने का हौंसला अभी बाकी है और क्लब उनमें अपना भविष्य देख/पा सकता है । इस बात के पक्ष में सुभाष जैन के रोटरी फाउंडेशन की ऑर्च क्लम्प सोसायटी के सदस्य बनने का जिक्र किया गया, जिसके लिए सुभाष जैन को इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की प्रशंसा तो मिली ही, साथ ही मनोज देसाई ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर सुभाष जैन को प्रमुखता से स्थान भी दिया और उनकी तस्वीर लगाई । इस पर योगेश गर्ग की वकालत करने वालों ने टिप्पणी की कि यह काम तो सुभाष जैन ने अपनी उम्मीदवारी की हवा बनाने के लिए किया; जिसका सुभाष जैन के समर्थकों ने तुरंत जबाव दिया कि यदि इसे सच भी मान लिया जाए, तो इसमें गलत क्या है ? 
सुभाष जैन के समर्थकों ने यह तथ्य भी बताया कि सुभाष जैन ने पिछले रोटरी वर्ष में जब अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं की थी, तब भी उन्होंने दो हजार डॉलर रोटरी फाउंडेशन में दिए थे और साथ ही घोषणा भी की थी कि क्लब को अपने लक्ष्य तक पहुँचने में कुछ कमी पड़ेगी, तो वह उस कमी को भी पूरा करेंगे । इसलिए यह कहना झूठा प्रचार है कि सुभाष जैन जो कर रहे हैं, वह सिर्फ अपनी उम्मीदवारी को ध्यान में रखकर कर रहे हैं । सुभाष जैन जब उम्मीदवार नहीं थे, तब भी वह रोटरी का 'काम' कर रहे थे; और जब उम्मीदवार बने, तब और जोरशोर से रोटरी का काम करने लगे । किसी भी उम्मीदवार को अपनी उम्मीदवारी की हवा बनाने के लिए बहुत कुछ करना ही होता है; कुछ करने वाले उम्मीदवार से बेहतर वह उम्मीदवार भला कैसे हो सकता है, जो उम्मीदवार बनने से पहले भी कुछ न कर रहा हो, और उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के बाद अपनी उम्मीदवारी की हवा बनाने के लिए भी कुछ न कर रहा हो ? सुभाष जैन के समर्थकों की इस तरह की बातें सुनकर योगेश गर्ग के समर्थकों के हौंसले पस्त पड़ गए और उनसे कुछ कहते हुए नहीं बना । सुभाष जैन के समर्थकों ने इसके बाद जो तर्क दिया, उसे सुनकर तो योगेश गर्ग के समर्थक सुभाष जैन के समर्थक बन गए । सुभाष जैन के समर्थकों का कहना रहा कि योगेश गर्ग ने करीब ढाई महीने पहले अपनी उम्मीदवारी तो प्रस्तुत की है, किंतु अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु इन ढाई महीनों में उन्होंने किया कुछ नहीं है - इससे ऐसा लग रहा है कि जैसे वह अपनी उम्मीदवारी के प्रति जरा भी गंभीर नहीं हैं, और वह सिर्फ सुभाष जैन की उम्मीदवारी को बिगाड़ने के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात कर रहे हैं । योगेश गर्ग के समर्थक भी यह दावा नहीं कर सके कि योगेश गर्ग अपनी उम्मीदवारी के प्रति सचमुच गंभीर हैं; और इसके साथ ही योगेश गर्ग की उम्मीदवारी की वकालत किसी ने नहीं की और सुभाष जैन सर्वसम्मति से क्लब की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार घोषित कर दिए गए । सुभाष जैन को उम्मीदवार घोषित करने के साथ ही बोर्ड सदस्यों ने यह फैसला भी किया कि अभी तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुभाष जैन अकेले अपने दम पर अपना अभियान चला रहे थे, किंतु अब उनके अभियान में क्लब भी जुटेगा - क्योंकि उनकी उम्मीदवारी अब क्लब की इज्जत और प्रतिष्ठा का मुद्दा भी बन गई है ।  
सुभाष जैन की उम्मीदवारी पर क्लब के बोर्ड सदस्यों की सर्वसम्मत मोहर लगते ही, यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई । इसकी एक वजह यह भी रही कि रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के बोर्ड सदस्य जिस समय डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए क्लब के अधिकृत उम्मीदवार के रूप में सुभाष जैन के नाम पर सर्वसम्मत सहमति दर्ज और घोषित कर रहे थे, ठीक उसी समय शहर के कई रोटेरियंस के साथ सुभाष जैन रोटरी क्लब गाजियाबाद के भजन संध्या कार्यक्रम में थे - और वहीं उन्हें अपने अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने की सूचना मिली, और उनसे दूसरे लोगों को जानकारी मिली । सुभाष जैन के इतनी आसानी से क्लब के सर्वसम्मत उम्मीदवार बन जाने से दूसरे उम्मीदवारों की उम्मीदों को खासा तगड़ा झटका लगा है, और उन्हें अपनी चुनावी रणनीति नए सिरे से बनाने की जरूरत महसूस हुई है । सुभाष जैन की उम्मीदवारी को रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के बोर्ड सदस्यों ने जिस तरह अपनी इज्जत और प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया है और घोषित कर दिया है, उससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के समीकरणों में काफी उलटफेर देखने को मिल सकता है ।