Wednesday, July 30, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में अपने आपको मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के एक 'दरबारी' की तरह ही पेश करते आ रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जेके गौड़ काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के बीच जिस तरह अलग-थलग पड़ गए हैं, वैसा डिस्ट्रिक्ट तो क्या रोटरी में भी किसी के साथ नहीं हुआ होगा

गाजियाबाद । जेके गौड़ ने अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह में डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स की भीड़ जुटा कर काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में अपने अलग-थलग पड़ने संबंधी बातों को गलत साबित करने की जो कोशिश की, वह उन्हें उल्टी पड़ गई है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जेके गौड़ के अलग-अलग रूपों में दिए गए निमंत्रण का डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स ने कोई लिहाज नहीं किया और उनके निमंत्रण को कोई तवज्जो नहीं दी और उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह से दूर ही रहे । जेके गौड़ ने अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह का ईमेल से भी निमंत्रण भेजा, निमंत्रण पत्र की हॉर्ड-कॉपी भी भेजी और व्यक्तिगत रूप से भी सभी को फोन भी किए - लेकिन डिस्ट्रिक्ट का कोई पूर्व गवर्नर उनके कार्यक्रम में नहीं फटका । सिर्फ 'वही' दो पूर्व गवर्नर - मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल उनके कार्यक्रम की शोभा बने - जिन्हें उनकी 'दुर्गति' के लिए जिम्मेदार माना/बताया जाता है ।
उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ को डिस्ट्रिक्ट में 'एक रोटेरियन' या 'एक गवर्नर मैटेरियल' के रूप में नहीं, बल्कि मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के 'एक एजेंट' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । कई बार इस तरह की बातें चर्चा में आई हैं कि जेके गौड़ को अलग-अलग लोगों ने समझाया है कि अब वह गवर्नर वाली कैटेगरी में हैं, और इसलिए उन्हें गवर्नर के पद की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए और अपने आप को इस तरह से पेश नहीं करना चाहिए जिससे लगे कि वह गवर्नर नहीं, बल्कि मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के एक 'चंपू' भर हैं । लोगों ने उनसे कहा है कि उन्हें मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल से नजदीकी रखनी है तो जरूर रखें; उनकी राजनीति को सपोर्ट करना है तो जरूर सपोर्ट करें - लेकिन ऐसा करते हुए अपने आत्मसम्मान और अपनी पोजीशन को न खोयें और दूसरों को आभास दें कि उनके साथ आपके बराबर वाले संबंध हैं । जेके गौड़ लेकिन इस तरह की समझाइसों पर ध्यान नहीं दे सके और बार-बार अपने आपको मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के एक 'दरबारी' की तरह ही पेश करते रहे हैं । दरअसल इसीलिए डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स के बीच उनकी कोई 'औकात' नहीं बन सकी है ।
मजे की बात यह है कि रमेश अग्रवाल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में पहुँचने में पूर्व गवर्नर्स ने कोई परहेज नहीं किया, लेकिन जेके गौड़ के क्लब के अधिष्ठापन समारोह से वह दूर रहे - जबकि वास्तविक विरोध उनका रमेश अग्रवाल के साथ है; जेके गौड़ से तो उनका विरोध सिर्फ इस बात का है कि जेके गौड़ हमेशा ही रमेश अग्रवाल की 'सेवा में' रहते हैं । जेके गौड़ की 'औकात' की पोल पहली बार सीओएल के चुनाव में खुली थी, जिसमें जेके गौड़ ने बहुत ही बेशर्म तरीके से रमेश अग्रवाल को वोट दिलवाने का काम किया था । रमेश अग्रवाल की मदद और भी कई लोगों ने की थी - लेकिन उन्होंने अपने पद और अपनी पहचान की प्रतिष्ठा को बचाये रखते हुए उनकी मदद की थी; जेके गौड़ ने लेकिन अपने पद की प्रतिष्ठा और गरिमा को तार-तार करते हुए रमेश अग्रवाल के लिए काम किया । काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग्स के कई उदाहरण हैं जिनमें मुकेश अरनेजा या रमेश अग्रवाल द्धारा उठाये गए मुद्दों का एक जेके गौड़ को छोड़ कर किसी ने भी समर्थन नहीं किया । कुछेक पूर्व गवर्नर्स मजाक में कहते भी हैं कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग्स में जेके गौड़ तो बस मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल को ही देखते रहते हैं और यह दोनों जो भी कहते हैं बस उसी को दोहराने का काम करते हैं । रमेश अग्रवाल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में तो लोगों ने एक अद्भुत नजारा देखा - मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने समारोह-स्थल के गेट पर आगंतुकों का स्वागत करने की ड्यूटी जेके गौड़ की लगाई हुई थी और जेके गौड़ हाथ जोड़े ड्यूटी निभा रहे थे । यह नजारा देख कई लोगों को कहते हुए सुना गया कि 'कुत्तागिरी की भी हद होती है; क्लब रमेश अग्रवाल का, अधिष्ठापन समारोह रमेश अग्रवाल के क्लब का, आने वाले मेहमान रमेश अग्रवाल के और उनके क्लब के - गेट पर हाथ जोड़े खड़े जेके गौड़ का यहाँ क्या काम है ?'
दरअसल इसी तरह की हरकतों के चलते जेके गौड़ को डिस्ट्रिक्ट में न आम रोटेरियंस के बीच और न पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच वह पहचान और प्रतिष्ठा मिल सकी जो उनका हक़ है और जो उन्हें मिलना ही चाहिए । जेके गौड़ की बदकिस्मती यह है कि जिन मुकेश अग्रवाल और रमेश अग्रवाल की ड्यूटी बजाने के कारण डिस्ट्रिक्ट में उनकी बदनामी है, उन मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के साथ 'दिखने' में तो पूर्व गवर्नर्स को आपत्ति नहीं होती है - किंतु जेके गौड़ से वह दूर ही रहना चाहते हैं । रोटरी में किसी भी डिस्ट्रिक्ट में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अपने क्लब के एक महत्वपूर्ण आयोजन में निजी सक्रियता के साथ डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स को आमंत्रित करे और जिनके साथ उसके बदनामी भरे संबंध हैं उन्हें छोड़ कर कोई भी उक्त आयोजन में न पहुँचे । रोटरी में संबंधों का यह ढोंग यूँ तो खूब देखा जाता है कि एक-दूसरे के प्रति विरोध का भाव रखने वाले दिखावा लेकिन यह करते हैं जैसे उनके बीच न जाने कितने मान-सम्मान के संबंध हैं । जेके गौड़ के साथ किंतु डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स यह दिखावा तक करने को तैयार नहीं हुए हैं ।
जेके गौड़ के लिए फजीहत की बात यह हुई है कि एक तरफ तो डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स उनके कई कई बार दिए गए निमंत्रणों के बावजूद उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह में नहीं पहुँचे और दूसरी तरफ गाजियाबाद के भी कई प्रमुख रोटेरियंस उनके उक्त समारोह से दूर दिखे । उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह से दो दिन पहले हुए शरत जैन के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में भी गाजियाबाद के कई क्लब्स के लोग नहीं पहुँचे थे, जिन्हें पहुँचवाने की जिम्मेदारी जेके गौड़ को सौंपी गई थी । पिछले कुछेक दिनों में गाजियाबाद में जेके गौड़ के खिलाफ काफी सुगबुगाहट रही है और कई एक मीटिंग्स में लोगों ने जेके गौड़ के खिलाफ अपनी अपनी भड़ास निकाली है । डिस्ट्रिक्ट में क्लब से लेकर काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों तक में जेके गौड़ की ओछी-टुच्ची हरकतों के खिलाफ जो माहौल बना है - उसी का नतीजा है कि जेके गौड़ अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद गाजियाबाद के लोगों को न तो शरत जैन की उम्मीदवारी के प्रमोशन को लेकर हुए आयोजन में ले जा पाये और न ही अपने क्लब के आयोजन में ला पाये । डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स ने जेके गौड़ के क्लब के अधिष्ठापन जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम से दूर रहकर यह भी जैसे जता दिया कि जेके गौड़ को उनकी सही जगह 'दिखाने' के काम में वह भी गाजियाबाद के रोटेरियंस के साथ हैं ।
 

Friday, July 25, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के विभाजित प्रस्तावित डिस्ट्रिक्ट 3012 में पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल, शरत जैन की उम्मीदवारी के प्रमोशन कार्यक्रम को सफल बनाने की मुस्तैदी में शरत जैन की मुख्य लक्ष्य तक पहुँचने की राह में रोड़े बिछाने का काम तो नहीं कर रहे हैं ?

नई दिल्ली । शरत जैन की उम्मीदवारी के प्रमोशन में कमी न छोड़ने की रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ की कोशिशों ने दूसरे क्लब्स में लेकिन खासे बबाल पैदा कर दिए हैं । रोटरी क्लब गाजियाबाद सिटी के 26 जुलाई को होने वाले अधिष्ठापन समारोह को इन्होंने जिस षड्यंत्रपूर्ण तरीके से स्थगित करवाया, उससे क्लब के सदस्यों में भारी रोष है; तो दूसरी तरफ रोटरी क्लब दिल्ली विकास में अपने प्रति नाराजगी को निष्प्रभावी करने के लिए रमेश अग्रवाल ने जो हथकंडा अपनाया उससे मामला और बिगड़ गया है । रोटरी की चुनावी राजनीति में उम्मीदवार के क्लब के अधिष्ठापन कार्यक्रम का एक महत्व निश्चित ही होता है - पर उम्मीदवार और उसके समर्थकों के लिए यह महत्व लोगों के बीच अपनी पहुँच और स्वीकार्यता को जानने/पहचानने तथा 'जताने' के साथ-साथ अपनी कमजोरियों और अपनी राह के 'रोड़ों' को पहचानने के संदर्भ में होता है । क्लब के अधिष्ठापन समारोह के आयोजित होने तक उम्मीदवार अपनी उम्मीदवारी के प्रमोशन को लेकर कुछ काम कर चुका होता है - अधिष्ठापन समारोह उसके लिए फाइनल एग्जाम से पहले होने वाले मंथली टेस्ट की तरह; और या किसी प्रोजेक्ट के सचमुच शुरू होने से पहले के 'ट्रॉयल रन' की तरह होता है - जहाँ वह अभी तक किए गए अपने प्रयासों के नतीजों को देखता/समझता/पहचानता और 'दिखाता' है - तथा अपनी कमियों/कमजोरियों को भी चिन्हित करता है । रमेश अग्रवाल ने लेकिन क्लब के अधिष्ठापन समारोह को शरत जैन की उम्मीदवारी का फाइनल एग्जाम ही बना दिया है । रमेश अग्रवाल जिस तरह दिन में चार-चार छह-छह बार ईमेल भेज कर 'आओ' 'आओ' की गुहार लगा रहे हैं, उसने लोगों को बुरी तरह पका दिया है ।
रमेश अग्रवाल दरअसल कोई कमी नहीं रहने देना चाहते हैं और इसलिए पूरी मुस्तैदी से जुटे हैं -  मुस्तैदी में लेकिन वह इस बात को जैसे भूल रहे हैं कि उनका मुख्य लक्ष्य क्लब के अधिष्ठापन समारोह को सफल बनाना नहीं, बल्कि शरत जैन को प्रस्तावित डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट चुनवाना है; और अधिष्ठापन समारोह को सफल बनाने की मुस्तैदी में वह वास्तव में शरत जैन की मुख्य लक्ष्य तक पहुँचने की राह में रोड़े बिछाने का काम कर रहे हैं । सीओएल के अपने चुनाव में भी रमेश अग्रवाल ने बड़ी मुस्तैदी दिखाई थी, लेकिन नतीजा उन्हें पराजय के रूप में ही मिला । सीओएल के चुनाव के एक 'दृश्य' का जिक्र करना यहाँ प्रासंगिक होगा - सीओएल के लिए नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में रमेश अग्रवाल को जब आशीष घोष से बुरी तरह हारने की सूचना मिली तब रमेश अग्रवाल ने आशीष घोष को बधाई देते हुए कहा था कि अभी तो आप खुश हो लीजिये, लेकिन सीधे चुनाव में तो मैं ही जीतूँगा । सीधे चुनाव की प्रक्रिया अभी शुरू भी नहीं हुई थी, लेकिन रमेश अग्रवाल ने अपने उस प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार के सामने, जिससे वह अभी अभी ही 'पिटे' थे, दावा करना शुरू कर दिया कि सीधे चुनाव में तो वही जीतेंगे । सीओएल के चुनाव के संदर्भ में कई लोगों का मानना और कहना है कि रमेश अग्रवाल को आशीष घोष ने नहीं हराया, बल्कि रमेश अग्रवाल को उसके खुद के अहंकार ने, उसकी खुद की बेवकूफियों ने और उसके खुद के चीमड़पने ने हराया ।
शरत जैन की उम्मीदवारी के कई एक शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि शरत जैन को रमेश अग्रवाल से मदद तो अवश्य ही लेनी चाहिए और उनके अनुभवों व संपर्कों का फायदा निश्चित ही उठाना चाहिए, लेकिन साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि रमेश अग्रवाल की कारस्तानियाँ उन्हें फायदा पहुँचाने की बजाये कहीं नुकसान तो नहीं पहुँचा रही हैं ? करीब तीन वर्ष पहले जब रवि चौधरी उम्मीदवार थे तब उन्हें कई लोगों ने समझाया था कि उन्हें अपने 'समर्थकों' की हरकतों को नियंत्रित करना चाहिए या उनसे अपने आप को अलग दिखाना चाहिए । रवि चौधरी इस समझाइश पर गौर करने की बजाये अपने बड़बोले और तिकड़मों को ही हुनर समझने वाले 'समर्थकों' के रंग में रंग गए थे, जिसका नतीजा यह हुआ कि जिन संजय खन्ना से उन्हें चुनाव जीतना था उन संजय खन्ना से तीन वर्ष बाद उन्हें खुशामद करनी पड़ रही है कि इस वर्ष तो वह उन्हें गवर्नर नॉमिनी चुनवा दें । रवि चौधरी के 'समर्थकों' - उनके एक समर्थक रमेश अग्रवाल भी थे - ने उनका जैसा कबाड़ा किया था, शरत जैन के साथ भी रमेश अग्रवाल वैसी ही हरकत करते हुए 'दिख' रहे हैं ।
रमेश अग्रवाल ने अपने चेले जेके गौड़ की मदद से रोटरी क्लब गाजियाबाद सिटी के 26 जुलाई को होने वाले अधिष्ठापन समारोह को स्थगित तो करवाया शरत जैन को फायदा पहुँचवाने के इरादे से, लेकिन इसका असर उल्टा पड़ता दिख रहा है । क्लब के सदस्यों में इस बात को लेकर गहरा रोष है कि अपने फायदे के लिए शरत जैन, रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ की तिकड़ी ने उनका आयोजन खराब करवा दिया । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब गाजियाबाद सिटी के पदाधिकारियों ने अधिष्ठापन समारोह की सारी तैयारी कर ली थी - फोन करके आमंत्रितों को निमंत्रित कर लिया गया था, निमंत्रण पत्र छपवा लिए गए थे; निमंत्रण पत्र बँटते उससे पहले शरत जैन, रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ की तिकड़ी को इसकी जानकारी मिली तो उन्हें लगा कि इस आयोजन के कारण उनके आयोजन में उपस्थिति कहीं कम न रह जाए, सो वह रोटरी क्लब गाजियाबाद सिटी के आयोजन को स्थगित करवाने की मुहिम में जुट गए । खास बात यह है कि यह क्लब इन्हीं लोगों के समर्थक क्लब के रूप देखा/पहचाना जाता है; इसके बावजूद क्लब के पदाधिकारियों ने उसी तारीख को अपना आयोजन करने का फैसला किया, जिस दिन शरत जैन की उम्मीदवारी का प्रमोशन कार्यक्रम है और इन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी । रोटरी क्लब गाजियाबाद सिटी कोई ऐसा बड़ा क्लब नहीं है कि वह शरत जैन के प्रमोशन कार्यक्रम को कोई नुकसान पहुँचा देता; और फिर शरत जैन को भी यह देखने/समझने का मौका मिलता कि ऐसे कौन हैं जो उनके यहाँ की बजाये गाजियाबाद सिटी के आयोजन में जाना ज्यादा जरूरी समझते हैं, और तब शरत जैन उन पर और काम कर सकते थे । रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ लेकिन यदि ऐसा होने देते तो फिर अपने टुच्चेपन को कैसे प्रकट करते ?
रोटरी क्लब दिल्ली विकास में तो और भी बड़ा तमाशा हुआ । दिल्ली विकास के लोग पीएचएफ बनाने के मामले में की गई रमेश अग्रवाल की कारस्तानी से बड़े नाराज हैं । उल्लेखनीय है कि रमेश अग्रवाल ने अपने गवर्नर-काल में पीएचएफ की मैचिंग को लेकर जो फार्मूला घोषित किया था, दिल्ली विकास के कई लोगों ने उस मैचिंग के हिसाब से अपने हिस्से की रकम दे दी थी; किंतु रमेश अग्रवाल की चूँकि रोटरी के काम की बजाए रोटरी की राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी थी, इसलिए वह उन लोगों को पीएचएफ बनाने की कार्रवाई पूरी नहीं करवा सके और एक से दूसरे और फिर दूसरे से तीसरे चुनाव में व्यस्त रहने के चलते इस काम को बराबर टालते रहे । फिर उनका खुद का सीओएल का चुनाव आ गया । रमेश अग्रवाल ने रोटरी के काम को भी और रोटरी की राजनीति को भी एक 'ब्लैकमेलर' के तरीके से अंजाम दिया है । सीओएल के चुनाव में पीएचएफ के मामले को उन्होंने रोटरी क्लब दिल्ली विकास को ब्लैकमेल करने के जरिये के रूप में देखा/पहचाना और उन्हें बता दिया कि पहले मुझे सीओएल के चुनाव में वोट दो, फिर पीएचएफ बनाऊँगा । सीओएल चुनाव लेकिन रमेश अग्रवाल हार गए और अपनी हार का ठीकरा उन्होंने दिल्ली विकास के लोगों के सिर पर भी फोड़ा । उन्होंने साफ कह दिया कि सीओएल के चुनाव में चूँकि दिल्ली विकास ने उन्हें वोट नहीं दिया, इसलिए वह दिल्ली विकास के लोगों को पीएचएफ नहीं बनवायेंगे । रमेश अग्रवाल से मिले इस दो-टूक जबाव के बाद दिल्ली विकास के लोगों ने विनोद बंसल से बात की, तो विनोद बंसल ने 'अपने एकाउंट' से उनकी सभी की पीएचएफ की मैचिंग करवा दी । क्लब के आगरा में हुए अधिष्ठापन समारोह में इस मामले को लेकर क्लब के लोगों ने विनोद बंसल का तो आभार जताया और रमेश अग्रवाल की जमकर थू-थू की । क्लब के लोगों ने रमेश अग्रवाल को सबक सिखाने जैसी बातें भी कीं । रमेश अग्रवाल लेकिन अभी भी बाज नहीं आ रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि दिल्ली विकास में उनके कई एजेंट हैं जो जरूरत पड़ने पर उनके काम आयेंगे । रमेश अग्रवाल का दावा है कि दिल्ली विकास में उनके जो एजेंट हैं वह शरत जैन की उम्मीदवारी के प्रमोशन कार्यक्रम में भी आयेंगे और शरत जैन को वोट भी देंगे/दिलवायेंगे । यह दावा करते हुए रमेश अग्रवाल लेकिन यह भूल जाते हैं कि दिल्ली विकास में के उनके एजेंट सीओएल के चुनाव में उन्हें वोट नहीं दिलवा सके थे, और वह चुनाव हार गए थे ।

Thursday, July 24, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में अनुपम बंसल ने जिस फार्मूले से विशाल सिन्हा की नकेल कसी थी, संजय चोपड़ा ने भी चुनावी राजनीति में अपनी अहमियत जताने/दिखाने के लिए प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी के जरिये उसी 'फार्मूले' का सहारा लिया है क्या ?

शाहजहाँपुर । संजय चोपड़ा ने प्रतुल गर्ग को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार 'बनवा' कर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों को उलट-पलट दिया है । उल्लेखनीय है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जब तक संदीप सहगल और अशोक अग्रवाल के नाम चर्चा में थे तब तक चुनावी राजनीति परंपरागत रूप से दो खेमों में ही बंटी दिख रही थी और संजय चोपड़ा परिदृश्य से बाहर दिख रहे थे । संदीप सहगल की उम्मीदवारी को हरजीत सिंह सच्चर, ब्रजेश अग्रवाल और विनय भारद्धाज जैसे पूर्व गवर्नरों के समर्थन की चर्चा सुनी जा रही थी, तो अशोक अग्रवाल के पीछे प्रमोद चंद्र सेठ को देखा/पहचाना जा रहा था । माना जा रहा था कि संदीप सहगल को लखनऊ के उन नेताओं का समर्थन मिल जायेगा जो पिछले से पिछले लायन वर्ष में शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में थे; और अशोक अग्रवाल के लिए प्रमोद चंद्र सेठ कुछ न कुछ करके गुरनाम सिंह का समर्थन जुटा लेंगे । गुरनाम सिंह यद्यपि अभी उम्मीदवारों की गहराई नाप रहे हैं और अपना फरमान सुनाने से बच रहे हैं । इस पूरे खेल में बेचारे संजय चोपड़ा के लिए कहीं कोई जगह नहीं बनती हुई दिख रही थी - हालाँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में उनकी भूमिका ही महत्वपूर्ण होनी है, लेकिन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति की बिछाई जा रही बिसात में उन्हें ही कोई भूमिका नहीं मिल रही थी । इसी पृष्ठभूमि में प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी के जरिए संजय चोपड़ा ने डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों को 'धोबीपाट' दे दिया ।
जैसे सभी गवर्नर दावा करते हैं, संजय चोपड़ा भी दावा तो वैसा ही कर रहे हैं कि उनकी कोई राजनीति नहीं है और वह किसी उम्मीदवार को फायदा पहुँचाने का काम नहीं करेंगे । अभी तक कोई ऐसा तथ्य भी सामने नहीं आया है जिससे यह लगे कि वह अतिरिक्त दिलचस्पी लेकर प्रतुल गर्ग को प्रमोट कर रहे हैं - लेकिन फिर भी, उनके क्लब के प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी जिस अचानक तरीके से प्रकट हुई उसे देख/जान कर हर किसी को लगता है कि प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी के पीछे संजय चोपड़ा की शह ही है । ऐसा लगने का एक कारण और है । डिस्ट्रिक्ट के खिलाड़ियों ने दरअसल संजय चोपड़ा को कम करके आँका हुआ था और समझा हुआ था कि वह संजय चोपड़ा को जैसे 'कच्चा ही चबा जायेंगे' । इस गलतफहमी में उनके दोस्त लोग भी थे । इसी गलतफहमी में केएस लूथरा ने दुबई में डिस्ट्रिक्ट के अधिष्ठापन कार्यक्रम के उनके प्रस्ताव पर भारी बबाल किया, लेकिन संजय चोपड़ा ने बड़ी होशियारी से 'अपने पत्ते चलते हुए' केएस लूथरा के सारे अभियान की हवा निकाल दी । मजे की बात यह भी रही कि इस मामले में केएस लूथरा ने भले ही आक्रामकता दिखाई हो किंतु संजय चोपड़ा ने विनम्रता के साथ चुपचाप 'अपना काम' किया । इस प्रकरण से संजय चोपड़ा ने साबित किया कि उन्हें काम निकालना आता है और प्रतिकूल स्थितियों को भी अनुकूल बनाने का हुनर उनमें है । यहाँ इस तथ्य पर गौर करना प्रासंगिक होगा कि प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी से संजय चोपड़ा के 'भावों' में एकदम से तेज उछाल आया है, जो उससे पहले बिलकुल नीचे गिरे हुए थे । एक उम्मीदवार के रूप में प्रतुल गर्ग का क्या होगा, यह तो आगे पता चलेगा; अभी लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में संजय चोपड़ा का रुतबा जरूर बढ़ है ।
दरअसल अशोक अग्रवाल और संदीप सहगल उम्मीदवार के रूप में संजय चोपड़ा को कोई तवज्जो ही नहीं दे रहे थे । अशोक अग्रवाल को विश्वास था कि प्रमोद चंद्र सेठ उनकी उम्मीदवारी की नैय्या को गुरनाम सिंह का समर्थन दिलवा कर पार लगवा देंगे; तो संदीप सहगल को कई पूर्व गवर्नरों के समर्थन के चलते अपने लिए भरोसा था - संजय चोपड़ा की अहमियत कोई भी नहीं समझ रहा था । समझा जाता है कि तब संजय चोपड़ा ने अनुपम बंसल वाला फार्मूला अपनाया । उल्लेखनीय है कि पिछले लायन वर्ष में जब विशाल सिन्हा के सामने किसी उम्मीदवार के आने की संभावना नहीं थी, तब तक विशाल सिन्हा किसी को कुछ समझ ही नहीं रहे थे और 'सुपर गवर्नर' की तरह व्यवहार कर रहे थे । अनुपम बंसल ने उनका 'ईलाज' करने के लिए ही चुपचाप से एके सिंह को हवा दी । एके सिंह को हवा मिली तब विशाल सिन्हा की हवा निकलना शुरू हुई और फिर वह उन लोगों की खुशामद में जुटे, जिन्हें वह पहले गालियाँ दे रहे थे । विशाल सिन्हा समझ रहे थे कि एके सिंह से यदि चुनाव की स्थिति बनी तो वह फिर हारेंगे - इसलिए 'सुपर गवर्नर' का अपना व्यवहार छोड़ कर वह सचमुच में 'उम्मीदवार' बने और किसी तरह से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने । अनुपम बंसल जिस चतुराई से विशाल सिन्हा को जमीन पर लाए - समझा जाता है कि चुनावी राजनीति में अपनी अहमियत जताने/दिखाने के लिए संजय चोपड़ा ने भी उसी 'चतुराई' का सहारा लिया है ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ी तीनों उम्मीदवारों में प्रतुल गर्ग को सबसे कमजोर उम्मीदवार रूप में भले ही देख रहे हों, लेकिन उनमें से कइयों का यह भी मानना और कहना है कि तीनों में सबसे ज्यादा प्रतुल गर्ग ही ऊर्जावान हैं । यह देखने की बात होगी कि अपनी ऊर्जा को वह कैसे संयोजित करते हैं । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों को अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी से तो ज्यादा चिंता नहीं थी, लेकिन प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी के प्रकट होने के बाद उन्हें चुनावी मुकाबले के मुश्किल होने की आशंका हुई है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों ने संदीप सहगल के पक्ष में समर्थन जुटाने के प्रयास में एक बड़ा भावुक-सा तर्क दिया है कि बार-बार शाहजहाँपुर से ही गवर्नर क्यों बनना चाहिए, दूसरे छोटे शहरों के लोगों भी मौका मिलना चाहिए । प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी के समर्थकों ने इसका जबाव देते हुए रेखांकित किया है कि लखनऊ से अनुपम बंसल, शिव कुमार गुप्ता और विशाल सिन्हा जो अभी के गवर्नर हैं वह एक ही कॉलोनी - निराला नगर क्षेत्र के ही हैं; तब क्यों नहीं कहा गया कि एक ही कॉलोनी के लोग ही गवर्नर बनेंगे क्या और क्यों नहीं गोमती नगर या चौक के किसी लायन को गवर्नर बनाने की कवायद हुई ? हल्द्वानी के बृजेश अग्रवाल जब उम्मीदवार थे तब उन्होंने विनय भारद्धाज के लिए रास्ता क्यों नहीं छोड़ा था, क्योंकि हल्द्वानी से तो हरजीत सिंह सच्चर गवर्नर बन ही चुके थे और काशीपुर को नंबर मिलना चाहिए था । प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी के समर्थकों का कहना है कि चुनावी राजनीति में कोई किसी के लिए मौका छोड़ता नहीं है; यहाँ सभी को अपना मौका अपनी सक्रियता और अपने काम के भरोसे बनाना/पाना होता है । प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी के समर्थकों के इन तेवरों को देखते हुए और प्रतुल गर्ग के संजय चोपड़ा के क्लब के होने के चलते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव गंभीर हो गया है ।

Monday, July 21, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में सीओएल के चुनाव में निभाई गई अपनी भूमिका को दोहराते हुए जेके गौड़ अब की बार शरत जैन के लिए उत्तर प्रदेश और खासकर गाजियाबाद के क्लब्स के लोगों की भीड़ इकठ्ठा करने के काम पे लग गए हैं

नई दिल्ली । शरत जैन के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में ज्यादा से ज्यादा लोगों को इकठ्ठा करने का जिम्मा रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जेके गौड़ को दिया है । रमेश अग्रवाल ने जेके गौड़ की ड्यूटी उत्तर प्रदेश और खासकर गाजियाबाद के क्लब्स के पदाधिकारियों तथा अन्य प्रमुख सदस्यों की उपस्थिति उक्त समारोह में सुनिश्चित करने के लिए लगाई है । रमेश अग्रवाल दरअसल यह जान/सुन कर परेशान हैं कि उत्तर प्रदेश और गाजियाबाद में उनके खिलाफ जो माहौल है, उसके कारण यहाँ के क्लब्स के पदाधिकारी और अन्य प्रमुख सदस्य रोटरी क्लब दिल्ली अशोका के अधिष्ठापन समारोह के निमंत्रण को अनदेखा कर सकते हैं । रोटरी क्लब दिल्ली अशोका के अधिष्ठापन समारोह में उत्तर प्रदेश और खासकर गाजियाबाद के लोग यदि पर्याप्त संख्या में नहीं पहुँचे तो यह विभाजित डिस्ट्रिक्ट के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए प्रस्तुत शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए तगड़ा झटका होगा । दीपक गुप्ता के क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद - के अधिष्ठापन समारोह में जुटी भीड़ से जो रिकॉर्ड बना है, उसके बाद शरत जैन और रमेश अग्रवाल के लिए अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह में उससे ज्यादा भीड़ जुटाने की चुनौती पैदा गई है । शरत जैन और रमेश अग्रवाल ने इस चुनौती से निपटने की तैयारी जोर-शोर से शुरू कर भी दी है और दीपक गुप्ता के क्लब में आये लोगों से ज्यादा लोगों को लाने की योजना को क्रियान्वित करना शुरू कर दिया है ।
शरत जैन और रमेश अग्रवाल की इस योजना में लेकिन उत्तर प्रदेश और खासकर गाजियाबाद के लोग पलीता लगाते दिख रहे हैं । दरअसल शरत जैन का क्लब अभी शरत जैन के क्लब के रूप में नहीं, बल्कि रमेश अग्रवाल के क्लब के रूप में देखा/पहचाना जाता है । रमेश अग्रवाल से चूँकि अलग-अलग कारणों से डिस्ट्रिक्ट के कई लोग परेशान और नाराज हैं; उत्तर प्रदेश और खासकर गाजियाबाद के लोगों ने तो अपनी नाराजगी को मुखर रूप से बार-बार प्रकट भी किया है - इसलिए लोगों में उनके क्लब के अधिष्ठापन कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर कोई उत्साह नहीं है । यूँ तो रोटरी क्लब दिल्ली अशोका अच्छा क्लब है और इस क्लब के आयोजनों में - रमेश अग्रवाल की तमाम बदनाम करतूतों के बावजूद - शामिल होने को लेकर दूसरे क्लब्स के लोग उत्सुक और उत्साहित रहते हैं, इसलिए अधिष्ठापन कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों की तो कमी नहीं होगी; चिंतापूर्ण समस्या किंतु उत्तर प्रदेश और खासकर गाजियाबाद के क्लब्स के लोगों की उपस्थिति को लेकर है । शरत जैन और रमेश अग्रवाल की चिंता इस बात को लेकर है कि उत्तर प्रदेश और खासकर गाजियाबाद के क्लब्स के लोग यदि इस समारोह में नहीं आये, तो इसका शरत जैन की उम्मीदवारी पर प्रतिकूल असर पड़ेगा ।
रमेश अग्रवाल की बदनामी और उनके खिलाफ नाराजगी के कारण शरत जैन को उत्तर प्रदेश और खासकर गाजियाबाद में पहले ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है । यहाँ शरत जैन को कई बार लोगों से सुनना पड़ा है कि वह यदि रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में आते हैं तो यहाँ समर्थन की उम्मीद न करें । शरत जैन के लिए राहत की बात अभी सिर्फ इतनी है कि इस तरह की बातें दूसरे क्षेत्रों के क्लब्स के लोगों तक अभी ज्यादा नहीं पहुँची है । ऐसे में शरत जैन के लिए इस बात पर चिंतित होना स्वाभाविक ही है कि उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह में लेकिन उत्तर प्रदेश और खासकर गाजियाबाद के क्लब्स के पदाधिकारी और अन्य प्रमुख लोग यदि नहीं पहुँचे तब फिर उनके लिए इस बात को दूसरे लोगों से छिपा कर रख पाना मुश्किल हो जायेगा और तब उनकी उम्मीदवारी को तो शुरू में ही ग्रहण लग जायेगा ।
किसी उम्मीदवार के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में कितने लोग आते हैं और कौन आते या नहीं आते हैं - इससे उम्मीदवार के जीतने/हारने की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ता है, और इसीलिए कई उम्मीदवार अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं होते हैं । किंतु फिर भी उम्मीदवार के क्लब के अधिष्ठापन समारोह से उम्मीदवार की तैयारी और लोगों तक उसकी पहुँच का अनुमान तो लगता ही है । इसीलिए कई एक उम्मीदवारों को अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को अच्छे से करना तथा उसमें भीड़-भड़क्का करना जरूरी लगता है । शरत जैन को भी यह जरूरी लग रहा है । विभाजित डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद लिए उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में जुटी भीड़ की वाहवाही सुनने के बाद तो शरत जैन के लिए जरूरी भी हो गया है कि वह उससे अच्छा और 'बड़ा' समारोह करें । शरत जैन जिस तरह से तैयारी में जुटे दिख रहे हैं, उससे लगता है कि वह कर भी लेंगे । इसके बावजूद, शरत जैन का ध्यान इस बात पर ज्यादा है कि उत्तर प्रदेश और खासकर गाजियाबाद के सभी क्लब्स के पदाधिकारी भी इस समारोह में मौजूद दिखें - रमेश अग्रवाल के खिलाफ बने हुए माहौल के चलते इसमें कहीं कोई अड़चन न पैदा हो जाये ।
इस अड़चन को दूर करने का जिम्मा जेके गौड़ को दिया गया है । जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट हैं और विभाजित डिस्ट्रिक्ट में वह चार्टर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का रूतबा पायेंगे - इस नाते से उनसे एक बड़ी भूमिका निभाने की उम्मीद की जाती है; किंतु वह खुद एक 'हरकारे' वाली भूमिका ही रहना चाहते हैं । जेके गौड़ के साथ समस्या यह हुई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद तक पहुँचने के रास्ते पर तो वह आ गए हैं लेकिन सोच के स्तर पर और ज़हन के स्तर पर वह 'दलालों' वाली टुच्ची मानसिकता में ही जकड़े हुए हैं - वह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि नियति ने उन्हें जो एक बड़ी भूमिका निभाने का अवसर दिया है, उसे वह टुच्ची किस्म की तिकड़मों में खर्च किए दे रहे हैं । रोटेरियंस ने नाकारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तो देखे हैं लेकिन छोटी-ओछी हरकतों में अपने आप को खपाने और लगाने वाला गवर्नर वह पहली बार जेके गौड़ के रूप में देख रहे हैं । सीओएल के चुनाव में जेके गौड़ ने जिस तरह से रमेश अग्रवाल की 'चाकरी' की - उससे सिर्फ उन्होंने अपनी भद्द ही पिटवाई और गवर्नर पद की गरिमा को ही कलंकित किया । जेके गौड़ उसी भूमिका को निभाते हुए एक बार फिर दिख रहे हैं । रमेश अग्रवाल ने अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह में उत्तर प्रदेश और गाजियाबाद के लोगों की ज्यादा से ज्यादा उपस्थिति को दिखाने का जो जिम्मा जेके गौड़ को सौंपा है, उसे पूरा करने में वह पूरी तरह से जुट गए हैं । रमेश अग्रवाल के ऑर्डर को पूरा करने के लिए जेके गौड़ उत्तर प्रदेश और खासकर गाजियाबाद के प्रत्येक क्लब के लोगों को रमेश अग्रवाल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में आने/पहुँचने के लिए तैयार करने के काम को मुस्तैदी से अंजाम देने में लग गए हैं । शरत जैन की उम्मीदवारी शुरू में ही कमजोर न पड़े और न 'दिखे' - इसके लिए रमेश अग्रवाल को जेके गौड़ को काम पे लगाना जरूरी लगा है और एक 'आज्ञाकारी सेवक' की तरह जेके गौड़ काम पे लग भी गए हैं ।

Saturday, July 19, 2014

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी के संदर्भ में विजय कुमार गुप्ता से धोखा मिलने की संभावना के बीच मधु सुदन गोयल को अमरजीत चोपड़ा से समर्थन की हरी झंडी मिलने का इंतजार है

नई दिल्ली । अमरजीत चोपड़ा के ढुलमुल रवैये के कारण मधु सुदन गोयल इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर कोई फैसला नहीं कर पा रहे हैं । उल्लेखनीय है कि करीब सोलह महीने बाद होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनावों को लेकर संभावित उम्मीदवारों की सक्रियता में जो हलचल मचना शुरू हुई है, उसमें मधु सुदन गोयल के दोस्तों ने उनकी उम्मीदवारी की संभावना के बारे में पूछा तो उन्हें सुनने को मिला कि अमरजीत चोपड़ा अभी चूँकि पक्के तौर पर हरी झंडी नहीं दे रहे हैं, इसलिए मधु सुदन गोयल भी अपनी उम्मीदवारी को लेकर पक्के तौर पर हाँ नहीं कह रहे हैं । अमरजीत चोपड़ा चूँकि मधु सुदन गोयल की उम्मीदवारी का समर्थन करने से इंकार भी नहीं कर रहे हैं, इसलिए मधु सुदन गोयल अभी अपनी उम्मीदवारी की संभावना को ख़ारिज भी नहीं कर रहे हैं । इससे एक बात तो साफ दिख रही है कि मधु सुदन गोयल का तो मन है कि वह इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ें, लेकिन उनकी उम्मीदवारी अमरजीत चोपड़ा की हाँ/न पर निर्भर करेगी ।
अमरजीत चोपड़ा को अच्छे से जानने वालों का कहना लेकिन यह है कि अमरजीत चोपड़ा कभी भी स्पष्ट फैसला नहीं लेंगे - और इसलिए मधु सुदन गोयल की उम्मीदवारी को लटका हुआ ही समझिए, वह जमीन पर सचमुच कभी उतरेगी - इसकी उम्मीद न करें । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल की राजनीति के संदर्भ में मधु सुदन गोयल एक अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जिनके उम्मीदवार होने की चर्चा बार-बार हर बार होती है, लेकिन जो बेचारे उम्मीदवार कभी नहीं हो पाए । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में मधु सुदन गोयल वर्ष 2003 में चेयरमैन बने थे - उसके बाद से ही उनके सेंट्रल काउंसिल के लिए आने की चर्चा शुरू हो गई थी । उनसे तुरंत पहले नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन बने चरनजोत सिंह नंदा को सेंट्रल काउंसिल में बारह वर्ष हो जायेंगे और उनके तुरंत बाद नॉदर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन बने संजय कुमार अग्रवाल को सेंट्रल काउंसिल में छह वर्ष हो जायेंगे - लेकिन मधु सुदन गोयल के लिए अभी तक उम्मीदवार बनना भी संभव नहीं हो सका है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में उनके चार वर्ष बाद चेयरमैन बने पंकज त्यागी भी सेंट्रल काउंसिल में तीन वर्ष रह चुके हैं । और बाद में चेयरमैन बने अतुल कुमार गुप्ता को सेंट्रल काउंसिल में तीन वर्ष हो जायेंगे । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन रहे सुधीर कुमार अग्रवाल, भगवान दास गुप्ता, दुर्गादास अग्रवाल भी उम्मीदवार बने, हालाँकि वह सफल नहीं हो सके । रीजनल काउंसिल में चेयरमैन बने बिना भी सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वालों में एसएस शर्मा, एसपी बबूटा और बलदेव गर्ग रहे - हालाँकि वह भी सफल नहीं हो सके । चेयरमैन बने बिना सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का काम विजय कुमार गुप्ता ने भी किया जो पहले जीते, फिर हारे, फिर जीते । हाल-फ़िलहाल के वर्षों में और भी कई लोग रीजनल काउंसिल में चेयरमैन बने और या बिना चेयरमैन बने ही घर बैठ गए - लेकिन सेंट्रल काउंसिल के लिए उनके नाम की चर्चा नहीं हुई ।
इन सब लोगों के नाम लेने के पीछे उद्देश्य इस तथ्य को रेखांकित करने का है कि हाल-फ़िलहाल के वर्षों में दो तरह की कैटेगरी बनी हैं - एक में उन लोगों के नाम हैं जो सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बने, फिर वह चाहें जीते या हारे; और दूसरी तरह की कैटेगरी में वह लोग हैं जो सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार हो सकते थे लेकिन जो न तो हुए और न जिनके नाम की चर्चा ही चली । मधु सुदन गोयल इन दोनों में से किसी भी कैटेगरी में नहीं आते हैं - वह अपनी एक अलग कैटेगरी बनाते हैं जिसके सदस्य सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार तो वास्तव में कभी नहीं बनते, लेकिन जिनके उम्मीदवार बनने की चर्चा हमेशा रहती है । कहने/बताने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए कि इस तीसरी कैटेगरी में मधु सुदन गोयल अकेले सदस्य हैं ।
मधु सुदन गोयल अपने आप को अमरजीत चोपड़ा के 'बड़े खास' के रूप में प्रोजेक्ट करते रहे हैं । इस कारण पहले तो अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से वह यह कह कर बचते रहे कि उनके उम्मीदवार बनने से कहीं अमरजीत चोपड़ा को जीतने में मुश्किल न हो जाए । कुछेक वर्ष तो मधु सुदन गोयल ने यह कह कर निकाल दिए कि जब अमरजीत चोपड़ा उम्मीदवार नहीं होंगे तब वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । पिछली बार लेकिन जब अमरजीत चोपड़ा की उम्मीदवारी नहीं आनी थी, तब भी मधु सुदन गोयल की उम्मीदवारी को लेकर हाँ/न की स्थिति बनी रही थी और फिर अंततः उनकी उम्मीदवारी नहीं ही आई । पिछली बार मधु सुदन गोयल ने लोगों को बताया था कि अमरजीत चोपड़ा ने 'इस बार' विजय कुमार गुप्ता को मौका देने की बात कही है और इसलिए 'इस बार' तो वह विजय कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे और अगली बार अपनी उम्मीदवारी अवश्य ही प्रस्तुत करेंगे ।
मधु सुदन गोयल ने पिछली बार तो यहाँ तक दावा किया था कि उनके और विजय कुमार गुप्ता के बीच यह समझौता हुआ है कि 'इस बार' विजय कुमार गुप्ता उम्मीदवार होंगे और अगली बार वह मधु सुदन गोयल की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे । विजय कुमार गुप्ता लेकिन इस तरह का कोई समझौता होने की बात से इंकार करते हैं । विजय कुमार गुप्ता का साफ कहना है कि अगली बार अपनी उम्मीदवारी से उनके पीछे हटने का सवाल ही पैदा नहीं होता है । मधु सुदन गोयल हालाँकि विजय कुमार गुप्ता के इस रवैये का तो जबाव देते हैं और कहते हैं कि बात विजय कुमार गुप्ता की नहीं है बल्कि अमरजीत चोपड़ा की है : अमरजीत चोपड़ा यदि मधु सुदन गोयल का समर्थन करेंगे तो वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । अमरजीत चोपड़ा को 'जानने' का दावा करने वाले लोगों का कहना लेकिन यह है कि अमरजीत चोपड़ा कई उम्मीदवारों को समर्थन का झाँसा दिए रहने का काम करते हैं इसलिए वह एक अकेले मधु सुदन गोयल के साथ खड़े नहीं दिखेंगे और इस कारण से मधु सुदन गोयल उनसे हरी झंडी मिलने का इंतजार ही करते रह जायेंगे ।
मधु सुदन गोयल को लेकिन विजय कुमार गुप्ता के कई एक नजदीकियों से उम्मीदवारी प्रस्तुत करने को लेकर जरूर सलाह और उकसावा मिल रहा है । पिछली बार विजय कुमार गुप्ता का साथ देने वाले कई लोग उनसे नाराज दिख रहे हैं और उनका कहना है कि मधु सुदन गोयल यदि उम्मीदवार होते हैं तो वह कई ऐसे लोगों का समर्थन हासिल कर लेंगे जो पिछली बार विजय कुमार गुप्ता के साथ थे । इनका भी तथा कुछेक अन्य लोगों का भी मानना और कहना है कि मधु सुदन गोयल यदि उम्मीदवार बनते हैं और अपनी सक्रियता दिखाते हैं तो अभी ढुलमुल नजर आ रहे अमरजीत चोपड़ा भी उनकी मदद कर सकेंगे । 
मधु सुदन गोयल इस मामले में तो खुशकिस्मत हैं कि उनकी उम्मीदवारी को कई समर्थक मिल रहे हैं - समस्या लेकिन उनकी खुद की है । उन्हें नजदीक से जानने वालों का मानना और कहना है कि मधु सुदन गोयल अपनी उम्मीदवारी की चर्चा तो बनाये रखेंगे, किंतु उम्मीदवार बनने का साहस नहीं करेंगे । इस तरह की बातें विजय कुमार गुप्ता के कानों में शहद-सा घोलती हैं - क्योंकि विजय कुमार गुप्ता भी जानते/समझते हैं कि मधु सुदन गोयल यदि सचमुच उम्मीदवार बने, तो उन्हीं को नुकसान पहुँचायेंगे ।  

Thursday, July 17, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की ताकत 'दिखाने' के उद्देश्य से हुए आयोजन में संख्या और प्रतिनिधित्व के आधार पर रही उपस्थिति को दीपक गुप्ता द्धारा की गई मेहनत और उनकी उम्मीदवारी के प्रति बनती हुई स्वीकार्यता के नतीजे के रूप में ही देखा/पहचाना गया है

गाजियाबाद । रोटरी क्लब गाजियाबाद के अध्यक्ष संजय मेहरा के अधिष्ठापन समारोह में रोटेरियंस की जुटी भीड़ ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति के समीकरणों में खासी उथल-पुथल मचा दी है । उल्लेखनीय है कि यह आयोजन घोषित रूप से हालाँकि था तो संजय मेहरा के अधिष्ठापन के लिए, किंतु इस आयोजन के पीछे का वास्तविक एजेंडा दीपक गुप्ता की उम्मीवारी का शक्ति-प्रदर्शन और उसका प्रमोशन था । दरअसल रोटरी की चुनावी राजनीति में यह एक कायदा बन चुका है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के क्लब का अधिष्ठापन समारोह खुद उम्मीदवार के लिए भी और दूसरों के लिए भी राजनीतिक समर्थन की 'ताकत' को देखने/दिखाने का अवसर बन जाता है । इसी कायदे  के चलते रोटरी क्लब गाजियाबाद के अधिष्ठापन समारोह पर लोगों की नजर थी - लोग यह देखना चाहते थे कि रोटरी क्लब गाजियाबाद के अधिष्ठापन समारोह में कैसी रौनक होती है । दरअसल इस रौनक से ही दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की तैयारी और ताकत का अंदाज़ा मिलना था । क्लब के अधिष्ठापन समारोह के जरिये, उम्मीदवार के रूप में दीपक गुप्ता के सामने भी अपनी तैयारी और ताकत को आँकने और दिखाने का मौका था ।
दीपक गुप्ता और दूसरे लोगों के लिए यह देखने/दिखाने की जरूरत दरअसल इसलिए भी थी क्योंकि विभाजित डिस्ट्रिक्ट में उनका चुनाव जिन शरत जैन से होना माना जा रहा है, उन शरत जैन को तो अरनेजा गिरोह का समर्थन प्राप्त है; विभाजित डिस्ट्रिक्ट में बाकी जो पूर्व गवर्नर होंगे वह राजनीतिक रूप से चूँकि ज्यादा सक्रिय नहीं रहते हैं इसलिए लोगों के बीच सवाल यह था कि दीपक गुप्ता किसके भरोसे चुनाव लड़ेंगे ? विभाजित डिस्ट्रिक्ट में अरनेजा गिरोह के - खासकर रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ के - ख़िलाफ़ खासा गुस्सा और विरोध सुना/देखा जा रहा है इसलिए दीपक गुप्ता को उस विरोध का फायदा मिलने की बात तो की जा रही है; लेकिन यह देखना/समझना अभी बाकी था कि 'उस' फायदे का स्वरूप क्या होगा । दीपक गुप्ता के लिए भी और दूसरे लोगों के लिए भी रोटरी क्लब गाजियाबाद के अधिष्ठापन समारोह में उस स्वरूप को दिखाने और देखने का एक मौका था । दीपक गुप्ता के पास अपने क्लब का अधिष्ठापन समारोह ही एक ऐसा मौका था जिसमें वह दिखा सकते थे कि उनकी उम्मीदवारी को किसी तथाकथित बड़े नेता का घोषित समर्थन भले ही न हो लेकिन फिर भी उनकी तैयारी और ताकत को कम नहीं आँका जा सकेगा ।
इस तरह, कई कारणों से रोटरी क्लब गाजियाबाद में होने वाले अधिष्ठापन समारोह का डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में बड़ा महत्व था और अलग-अलग बजहों से कई लोगों की उस पर निगाह थी ।
रोटरी क्लब गाजियाबाद के अधिष्ठापन समारोह में शामिल हुए विभिन्न इलाकों के क्लब्स के लोगों की बात यदि मानें तो दीपक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में अपनी तैयारी और अपनी ताकत के प्रति लोगों को आश्वस्त करने में सफल रहे । सिर्फ संख्या के आधार पर ही नहीं, क्लब्स के प्रतिनिधित्व के आधार पर भी समारोह में लोगों की उपस्थिति को उल्लेखनीय तो माना ही गया, दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की स्वीकार्यता के रूप भी देखा/पहचाना गया । जो पुराने रोटेरियन हैं और डिस्ट्रिक्ट में निरंतर व व्यापक सक्रियता के चलते जो लोगों को उनके नाम, उनकी शक्ल और उनके क्लब से पहचानते हैं - उनका कहना/बताना रहा कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट का शायद ही कोई क्लब हो जिसका प्रतिनिधित्व इस समारोह में न हुआ हो । दूर के और छोटी जगहों के क्लब के लोग भी इस समारोह में जिस उत्साह से शिरकत करते हुए देखे गए, उससे रोटरी की चुनावी राजनीति के अनुभवी खिलाड़ियों को भी यह स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा कि दीपक गुप्ता ने लोगों के बीच अच्छा संपर्क बनाया हुआ है । कई एक पुराने रोटेरियन समारोह में मौजूद लोगों को बताते हुए सुने गए कि वह गाजियाबाद के किसी क्लब में पहली बार आये हैं । संख्या और प्रतिनिधित्व के आधार पर व्यापक रही उपस्थिति को दीपक गुप्ता द्धारा की गई मेहनत और उनकी उम्मीदवारी के प्रति बनती हुई स्वीकार्यता के नतीजे के रूप में ही देखा/पहचाना गया । समारोह में उपस्थित हुए विभिन्न क्लब्स के रोटेरियंस का आकलन करने वालों ने इस बात को भी नोट किया कि दीपक गुप्ता ने बड़ी होशियारी से आमंत्रितों की सूची तैयार की थी, और इस तैयारी में उनका जोर सिर्फ ज्यादा से ज्यादा भीड़ इकट्ठी करने पर ही नहीं था, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के प्रमुख लोगों को अपने साथ लाने/दिखाने पर ज्यादा था ।
समारोह-स्थल को लेकर जरूर कुछेक लोगों की शिकायतें रहीं, लेकिन क्लब के सदस्यों द्धारा की गई आमंत्रितों की आवभगत ने इस शिकायत को मुखर रूप नहीं लेने दिया । क्लब के सदस्यों की जो एकजुटता और सामूहिकता इस अवसर पर दिखी, उसने कई लोगों को अचंभित भी किया । दरअसल दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के संदर्भ में कुछेक लोगों ने षड्यंत्रपूर्ण तरीके से एक प्रचार यह किया हुआ था कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर उनके अपने क्लब में ही उत्साह नहीं है और दीपक गुप्ता के लिए अपने क्लब के सदस्यों का समर्थन और सहयोग जुटाना ही मुश्किल होगा । लेकिन दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की तैयारी दिखाने के उद्देश्य से हुए समारोह में क्लब के पदाधिकारियों तथा सदस्यों की जिस तरह की संलग्नता लोगों को देखने को मिली, उससे उक्त प्रचार की हवा अपने आप ही निकल गई । कुछेक लोगों ने इन पँक्तियों के लेखक से दो-टूक स्वर में कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि क्लब के स्तर पर और डिस्ट्रिक्ट के स्तर पर दीपक गुप्ता इतने प्रभावी रूप में स्थितियों को मैनेज कर लेंगे । दीपक गुप्ता ने किसी तथाकथित बड़े नेता की मदद के जिस तरह का शो आयोजित किया - उससे विभाजित डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए होने वाला चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है ।

Wednesday, July 16, 2014

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सदस्य डॉक्टर सुनील गुप्ता ने सोशल मीडिया के विभिन्न चैनलों में प्रकाशित/प्रसारित अपने आलेखों और अपनी टिप्पणियों का प्रिंटेड प्रारूप प्रस्तुत करके आर्थिक, वाणिज्यिक व सामाजिक विषयों में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के बीच अपनी पहचान को और समृद्ध किया है

गाजियाबाद । डॉक्टर सुनील गुप्ता ने सोशल मीडिया के विभिन्न चैनलों में प्रकाशित/प्रसारित अपने आलेखों और अपनी टिप्पणियों का प्रिंटेड प्रारूप प्रस्तुत किया है । इस प्रिंटेड प्रारूप से डॉक्टर सुनील गुप्ता को तो एक नया पाठक-वर्ग मिलेगा ही, साथ ही उन लोगों को भी डॉक्टर सुनील गुप्ता के विचारों से परिचित होने का अवसर मिलेगा जो सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं हैं । डॉक्टर सुनील गुप्ता के आलेखों और टिप्पणियों का यह प्रिंटेड प्रारूप उन लोगों के लिए भी उपयोगी साबित होगा जो सोशल मीडिया के विभिन्न चैनलों पर उपलब्ध इन आलेखों व टिप्पणियों को देख/पढ़ तो चुके होंगे, लेकिन जिन्हें कभी अचानक उनके किसी आलेख या टिप्पणी को देखने/पढ़ने की या उसका संदर्भ लेने की जरूरत आ पड़े । प्रिंटेड प्रारूप के शुरू में ही दिए गए इंडेक्स में आलेख/टिप्पणी का शीर्षक इस जानकारी के साथ दिया गया है कि वह किस तारीख को सोशल मीडिया में जारी हुआ और प्रिंटेड प्रारूप में वह किस पृष्ठ पर उपलब्ध है । इस जानकारी के साथ उपलब्ध प्रिंटेड प्रारूप शोधछात्रों के काम को आसान कर देता है ।
डॉक्टर सुनील गुप्ता के आलेखों व टिप्पणियों के विषयों का दायरा बहुत व्यापक है । अर्थव्यवस्था के नवीनीकरण (रीस्ट्रक्चरिंग) का मुद्दा हो, या नए भूमि अधिग्रहण कानून का मसला हो, या स्वच्छ भारत की बात हो, या रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नियम-कानूनों की व्याख्या हो - डॉक्टर सुनील गुप्ता ने सभी विषयों पर तथ्यपरक तरीके से अपनी कलम चलाई है । रोजगार, महँगाई, लघु उद्योगों से जुड़े विषय हों और या नौजवानों, महिलाओं, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के उत्थान से संबद्ध मामले हों - डॉक्टर सुनील गुप्ता ने समस्या को संपूर्णता में समझने का प्रयास किया है । कॉरपोरेट क्षेत्र में होने वाले बदलाव भी डॉक्टर सुनील गुप्ता की निगाह से नहीं बच पाते हैं और वहाँ नतीजों को प्रभावित करने वाली बातों को पहचानने का तथा उनका आकलन करने का उन्होंने भरसक प्रयास किया है । इसके साथ ही, देश में होने वाली राजनीतिक व सामाजिक हलचलों पर भी डॉक्टर सुनील गुप्ता की निगाह बराबर बनी रहती है । उनके आलेखों व टिप्पणियों के विषय देख कर ही लगता है देश की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ा शायद ही कोई विषय हो जो उनसे छूटा हो ।
इसी कारण से डॉक्टर सुनील गुप्ता के आलेख और टिप्पणियाँ प्रतियोगिता परीक्षाओं में भाग लेने वालों से लेकर देश और समाज के प्रति जागरूक रहने वाले लोगों के लिए - तथा देश और समाज के विकास में किसी भी स्तर की भूमिका निभाने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए उपयोगी हैं । शायद यही कारण है कि अपने आलेखों व टिप्पणियों को लेकर शुरू किए गए उनके फेसबुक पेज को तीन-साढ़े तीन माह की अवधि में ही सोलह हजार से ज्यादा पाठक मिल गए हैं । कम समय में उनको प्राप्त हुई पाठक संख्या से यह भी पता चलता है कि जिस तरह के विषयों को डॉक्टर सुनील गुप्ता ने साधा है, उन विषयों पर जानकारी पाने की लोगों के बीच कितनी ज्ञानात्मक 'भूख' है और इस ज्ञानात्मक 'भूख' को दूर करने के साधन कितने कम हैं । डॉक्टर सुनील गुप्ता ने इस तरह लोगों की एक बड़ी जरूरत को पूरा करने का महत्वपूर्ण काम किया है ।
डॉक्टर सुनील गुप्ता पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं । 15 नबंवर 1966 को एक कृषक परिवार में जन्मे डॉक्टर सुनील गुप्ता ने 1990 में चार्टर्ड एकाउंटेंसी की पढ़ाई पूरी कर ली थी । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के सदस्य के रूप में डॉक्टर सुनील गुप्ता ने शुरू से ही प्रोफेशन और प्रोफेशन से जुड़े लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उठाना और उन्हें हल करने की दिशा में आगे बढ़ाना शुरू कर दिया था । इस सक्रियता के चलते ही डॉक्टर सुनील गुप्ता बहुत जल्दी ही इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की गाजियाबाद ब्रांच के चेयरमैन बने । चेयरमैन के रूप में डॉक्टर सुनील गुप्ता की पहल से किए गए प्रयत्नों के चलते ही गाजियाबाद में चार्टर्ड एकाउंटेंसी के छात्रों को गाजियाबाद में ही परीक्षा देने की सुविधा प्राप्त हुई; अन्यथा उन्हें परीक्षा देने के लिए दिल्ली जाना पड़ता था । डॉक्टर सुनील गुप्ता द्धारा दिलचस्पी लेने के बाद ही इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया ने गाजियाबाद में चार्टर्ड एकाउंटेंसी के छात्रों के लिए कोचिंग की व्यवस्था शुरू की । इन सफलताओं से डॉक्टर सुनील गुप्ता की सक्रियता का क्षेत्र बढ़ा और उन्होंने बड़े स्तर पर अपने आपको खड़ा किया । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के जब वह सदस्य बने, तो वह उक्त काउंसिल के सदस्य बनने वाले गाजियाबाद के पहले चार्टर्ड एकाउंटेंट थे । इसके बाद, डॉक्टर सुनील गुप्ता ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा ।
डॉक्टर सुनील गुप्ता आज पंजाब नेशनल बैंक, जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया तथा रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड के निदेशक मंडल के सदस्य हैं । इसके साथ ही वह मिनिस्ट्री ऑफ स्टील की स्टील कंज्यूमर्स काउंसिल के सक्रिय सदस्य भी हैं । एसोचैम, सीआईआई तथा पीएचडी चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्रीज तथा प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की सदस्यता के जरिये भी उनकी संलग्नता और सक्रियता का व्यापक दायरा है । फिक्की की नेशनल एक्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य के रूप में फिक्की की गतिविधियों और उसके फैसलों में डॉक्टर सुनील गुप्ता की निर्णायक भूमिका रहती है । यूनिटी इंटरनेशनल फाउंडेशन की इकोनोमिक अफेयर्स कमेटी के चेयरमैन के रूप में डॉक्टर सुनील गुप्ता ने विभिन्न देशों के बीच के व्यापारिक संबंधों को और प्रगाढ़ तथा व्यावहारिक बनाने के लिए नीति संबंधी एक ड्राफ्ट तैयार करने का एक महत्वपूर्ण काम किया है । इंडिया सेंटर फाउंडेशन ने इंडिया-जापान ग्लोबल पार्टनरशिप तथा देहली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर की प्रस्तुति में जो कामयाबी प्राप्त की है, उसमें डॉक्टर सुनील गुप्ता की सक्रिय भागीदारी रही है ।
विभिन्न संस्थाओं में विविधतापूर्ण भूमिकाओं का निर्वाह करते रहने के बावजूद डॉक्टर सुनील गुप्ता ने अपनी स्वतंत्र एकेडमिक पहचान को भी बनाये रहने का अनोखा काम किया है । इसी का नतीजा है कि वह एक स्वतंत्र लेखक, विचारक और व्याख्याकार के रूप में भी पहचाने जाते हैं । आर्थिक, वाणिज्यिक व सामाजिक विषयों पर समाचार पत्रों में लेख लिखते रहने तथा टेलीविजन चैनलों पर होने वाली चर्चाओं में नियमित रूप से भाग लेते रहने के चलते डॉक्टर सुनील गुप्ता आर्थिक, वाणिज्यिक व सामाजिक विषयों में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के बीच एक जाना-पहचाना नाम है । आर्थिक व वाणिज्यिक विषयों पर उनकी कुछेक किताबें भी प्रकाशित हैं । सोशल मीडिया के विभिन्न चैनलों में प्रकाशित/प्रसारित अपने आलेखों और अपनी टिप्पणियों का प्रिंटेड प्रारूप प्रस्तुत करके डॉक्टर सुनील गुप्ता ने एक एकेडमिक की अपनी पहचान को और समृद्ध करने की दिशा में ही कदम बढ़ाया है ।

Tuesday, July 15, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में योगेश मोहन गुप्ता की हालत देख कर डरे हुए दीपक बाबू ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीतने के लिए अपनाए गए हथकंडों से ही रोटरी इंटरनेशनल की न्याय व्यवस्था से बचने और अपनी जीत को बचाये रखने का प्रयास शुरू कर दिया है

मुरादाबाद । दीपक बाबू और उनके नजदीकियों ने योगेश मोहन गुप्ता जैसी दशा में पहुँचने से बचने के लिए हाथ-पैर मारना शुरू कर दिया है; और इसके लिए उन्होंने हर वह दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया है जिसके पीछे रहने वाले लोगों ने चुनाव जीतने के लिए उनके द्धारा अपनाए गए हथकंडों की शिकायत की हुई है । दरअसल सीओएल के चुनाव में योगेश मोहन गुप्ता द्धारा प्राप्त की गई तथाकथित जीत के फैसले को अमान्य करने की घोषणा के साथ रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने चुनावी जीत के लिए अपनाए जाने वाले हथकंडों को लेकर जो सख्ती दिखाई है, उससे दीपक बाबू और उनके समर्थक भी डर गए हैं । उल्लेखनीय है कि जिन हथकंडों से योगेश मोहन गुप्ता पर सीओएल के लिए जीत प्राप्त करने का आरोप था, लगभग उन्हीं हथकंडों से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए जीत जुगाड़ने का आरोप दीपक बाबू पर भी है - और उनकी कारस्तानियों को लेकर आरोप पत्र रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय में विचाराधीन है । दीपक बाबू और उनके शुभचिंतकों व समर्थकों को डर इस बात का है कि रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने जिस तरह ललित मोहन गुप्ता को न्याय दिया है, वैसा ही न्याय उसने यदि दिवाकर अग्रवाल को भी दे दिया तो अभी तक उन्होंने अपनी जीत के जश्न को लेकर जो खर्चा किया है, वह तो पानी की तरह बहा हुआ ही हो जायेगा ।
योगेश मोहन गुप्ता जैसा हाल न हो, इसके लिए दीपक बाबू और उनके सलाहकारों ने उन लोगों पर डोरे डालना शुरू किया है, जिन्होंने उनके खिलाफ हुई शिकायत में बतौर गवाह या सुबूत के संदर्भ में अपनी भूमिका निभाई है । उल्लेखनीय है कि दीपक बाबू की जीत के खिलाफ रोटरी इंटरनेशनल में जो शिकायत दर्ज हुई है, उसे मजबूत आधार देने का काम कुछेक क्लब के पदाधिकारियों ने किया है, जिन्होंने लिखित शिकायत करके दीपक बाबू द्धारा अपनाये गए हथकंडों का सुबूत दिया है । दीपक बाबू और उनके समर्थक शिकायत करने वाले उक्त पदाधिकारियों को शिकायत वापस लेने के लिए पटाने/फुसलाने में लग गए हैं । दीपक बाबू और उनके समर्थक कोशिश कर रहे हैं कि जिन्होंने उनके खिलाफ शिकायत की है, वह लिख कर दे दें कि उन्हें धोखे में रखकर या उनपर दबाव बना कर उनसे शिकायत करवाई गई है । उन्हें लगता है कि उनके द्धारा अपनाए गए हथकंडों की शिकायत करने वाले क्लब-पदाधिकारियों द्धारा की गई शिकायतों को यदि उन्होंने वापस करवा दिया, तो फिर उनके खिलाफ मामला कमजोर पड़ जायेगा और उनका योगेश मोहन गुप्ता जैसा हाल नहीं होगा ।
मजेदार नजारा यह सुनने/देखने को मिल रहा है कि दीपक बाबू पर जिस तरह के हथकंडों के जरिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए वोट जुटाने का आरोप है, उन्हीं हथकंडों का इस्तेमाल वह शिकायतों को वापस करवाने के लिए कर रहे हैं । दीपक बाबू और उनके समर्थकों को विश्वास है कि जिन हथकंडों ने उन्हें चुनावी जीत दिलवाई है, वही हथकंडे उन्हें रोटरी इंटरनेशनल की न्याय-व्यवस्था का शिकार होने से बचायेंगे । गंभीर बात यही है कि योगेश मोहन गुप्ता की तिकड़मी जीत को अमान्य घोषित करते हुए रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने बेईमानीपूर्ण तरीकों के प्रति जो सख्त रवैया दिखाया है, दीपक बाबू और उनके समर्थक उसकी कोई परवाह करते हुए नहीं दिख रहे हैं; और अपने खिलाफ दर्ज करवाई गई शिकायत को वापस करवाने के लिए पैसों को ऑफर करने का खेल खेलने में फिर से जुट गए हैं ।
यह खेल दीपक बाबू को आसान और अचूक लगता है । दीपक बाबू की 'बहादुरी' यह है कि अपने इस खेल को उन्होंने कभी भी छिपाकर रखने तक की भी जरूरत नहीं समझी, बल्कि ढिंढोरा पीट कर उन्होंने यह खेल खेला । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उन्होंने शुरू से ही ऐलान किया हुआ था कि जब चुनाव का समय आयेगा तब क्लब-अध्यक्षों को वह मोटी मोटी रकम ऑफर करेंगे और बदले में उनसे वोट पा लेंगे और इस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन जायेंगे । अपने इस खेल पर भरोसा करने के कारण ही उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में कोई संपर्क अभियान नहीं चलाया; अपनी तरफ से लोगों से संपर्क करना तो दूर की बात थी, लोगों ने उनसे संपर्क करने की कोशिश की तो लोगों की कोशिश तक को भी उन्होंने कोई तवज्जो नहीं दी । डिस्ट्रिक्ट के कई आयोजनों में तो उन्होंने उपस्थित रहने तक की जरूरत नहीं समझी - डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में दर्ज होने वाली उनकी लंबी अनुपस्थिति के कारण कई बार तो लोगों ने उनकी उम्मीदवारी को लेकर भी संदेह करना शुरू कर दिया था । डिस्ट्रिक्ट के जिन कुछेक आयोजनों में दीपक बाबू उपस्थित भी हुए, वहाँ भी उन्होंने लोगों से मिलने-जुलने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई । उनके व्यवहार को देख कर लोगों ने - कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तक ने मजाक में कहना शुरू कर दिया था कि दीपक बाबू ने तो अपने आप को गवर्नर मान लिया है और इसीलिए उम्मीदवार होने के बावजूद वह एक उम्मीदवार के रूप में नहीं, बल्कि चुने हुए गवर्नर की तरह व्यवहार कर रहे हैं । दीपक बाबू को दरअसल अपने खेल पर भरोसा था और चुनावी नतीजे ने उनके भरोसे को सही भी साबित किया ।
ऐसा ही भरोसा योगेश मोहन गुप्ता को भी अपने खेल पर था, और उनका भरोसा भी कामयाब साबित हुआ था । रोटरी इंटरनेशनल ने लेकिन उनकी कामयाबी को उनके खेल के कारण ही पलट दिया है । इस बात ने दीपक बाबू और उनके समर्थकों को डरा दिया है - उनका जो खेल उनकी जीत का वाहक बना, उनके उसी खेल के उनकी जीत के ग्रहण बनने का खतरा उन्हें मंडराता दिखने लगा है । रिश्वत लेने के आरोप में पकड़ा गया अपराधी जिस तरह रिश्वत दे कर छूटने की तिकड़म लगाता है, उसी तर्ज पर दीपक बाबू ने जिन हथकंडों से चुनाव जीता - उन्हीं हथकंडों से रोटरी इंटरनेशनल की न्याय व्यवस्था से बचने का प्रयास उन्होंने शुरू कर दिया है । दीपक बाबू के कुछेक नजदीकियों का तो दावा है कि दीपक बाबू का खेल जैसे चुनाव में सफल हुआ था, वैसे ही अब भी सफल होगा - और उनका योगेश मोहन गुप्ता जैसा हाल नहीं होगा ।

Sunday, July 13, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में सीओएल के चुनावी नतीजे को अमान्य घोषित करने के फैसले से लगता है कि योगेश मोहन गुप्ता की कारस्तानियों को सुन-देख कर रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों तथा अन्य प्रमुख लोगों ने भी उनकी नकेल कसने का मन बना लिया है

मेरठ । योगेश मोहन गुप्ता ने वोटों की खरीद-फ़रोख्त के जरिये सीओएल का जो चुनाव जीता था, उसे रोटरी इंटरनेशनल ने अमान्य करार दिया है और दोबारा चुनाव कराने का फैसला सुनाया है । योगेश मोहन गुप्ता ने इस फैसले के लिए राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू को कोसा है । योगेश मोहन गुप्ता ने कुछेक लोगों के बीच कहा/बताया है कि उन्होंने चूँकि कभी भी राजा साबू की चमचागिरी नहीं की है, इसलिए राजा साबू उनसे खुन्नस रखते रहे हैं और राजा साबू ने ही मनमाने तरीके से उनकी जीत को रद्द करवाने का यह फैसला करवाया है । मजे की बात यह है कि सीओएल के चुनाव में योगेश मोहन गुप्ता की जीत के फैसले के खिलाफ रोटरी इंटरनेशनल में जब शिकायत दर्ज करवाई गई थी, तब योगेश मोहन गुप्ता कहा करते थे कि ललित मोहन गुप्ता दरअसल यशपाल दास, शेखर मेहता और मनोज देसाई जैसे लोगों पर भरोसा कर रहे हैं कि ये लोग उनकी शिकायत पर रोटरी इंटरनेशनल में फैसला करवा देंगे; ललित मोहन गुप्ता लेकिन यह नहीं जानते हैं कि रोटरी में इन लोगों के 'बाप' समझे जाने वाले राजा साबू तो मेरे साथ हैं और वह ऐसा कोई फैसला नहीं होने देंगे जिसमें मेरा नुकसान होता हो या मेरी बदनामी होती हो । कल तक राजा साबू के भरोसे अपने नुकसान और अपनी बदनामी के बचने की उम्मीद करने वाले योगेश मोहन गुप्ता अब लेकिन अपने नुकसान और अपनी बदनामी के लिए राजा साबू को ही कोस रहे हैं ।
वैसे तो यह योगेश मोहन गुप्ता का पुराना स्टाइल है कि पहले तो वह हर किसी को अपना खास बतायेंगे और लेकिन जब उनका काम बिगड़ जायेगा तो वह उसी को, जिसे वह अपना खास बता रहे थे, गाली देने लगेंगे । सीओएल के चुनाव के चक्कर में योगेश मोहन गुप्ता का यह स्टाइल जिस तरह बार-बार और जल्दी-जल्दी सामने आया उसने लोगों का खासा मनोरंजन ही किया है । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि सीओएल के चुनाव को लेकर बनी ऑब्जर्वर्स की टीम के लिए योगेश मोहन गुप्ता ने अपनी तरफ से राकेश रस्तोगी का नाम दिया था, लेकिन फिर उन्हीं राकेश रस्तोगी के साथ उनकी गाली-गलौच भरी चिट्ठी-पत्री लोगों ने देखी-पढ़ी । पिछले रोटरी वर्ष में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की मनमानियों को देखते/जानते हुए भी योगेश मोहन गुप्ता पहले तो 'सोते' रहे, लेकिन सीओएल के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के बाद करीब चौथे महीने में उनकी नींद खुली और तब उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत की कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश सिंघल ने सीओएल के चुनाव को लेकर जो टाइम टेबल बनाया, उसके पीछे उनकी सीओएल पद के दूसरे उम्मीदवार को फायदा पहुँचाने की बदनीयत काम रही है ।
मौजूदा रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी के साथ तो योगेश मोहन गुप्ता ने जो किया, वह और भी दिलचस्प है । संजीव रस्तोगी से उनके संबंध पहले हालाँकि अच्छे नहीं थे, लेकिन संजीव रस्तोगी के गवर्नर-काल में आगे-आगे रहने के लालच में उन्होंने संजीव रस्तोगी से संबंध सुधार लिए थे । संजीव रस्तोगी ने भी पुराने बैर को भूलकर उनसे हाथ मिला लिए थे और उन्हें एक महत्वपूर्ण पद दे दिया था । संजीव रस्तोगी के नजदीकियों ने हालाँकि उन्हें समझाया था कि योगेश मोहन गुप्ता एक अहसानफ़रामोश व्यक्ति हैं इसलिए उनके साथ ज्यादा मेलजोल न रखें, लेकिन संजीव रस्तोगी ने किसी की नहीं सुनी । संजीव रस्तोगी को इसका भुगतान तब भुगतना पड़ा जब सीओएल के चुनाव के संदर्भ में उनके क्लब - रोटरी क्लब मेरठ कैंट - ने ललित मोहन गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में जाने का फैसला किया । यह फैसला क्लब की जिस बोर्ड मीटिंग में हुआ था, उसमें संजीव रस्तोगी मौजूद नहीं थे - यह जानते हुए भी योगेश मोहन गुप्ता ने इस फैसले के लिए संजीव रस्तोगी को जिम्मेदार ठहराया और पैसे लेकर फैसला करने/करवाने का आरोप लगा कर क्लब को और संजीव रस्तोगी को बदनाम करना शुरू कर दिया । योगेश मोहन गुप्ता का यह भी एक स्टाइल है कि जिसे वह अपने साथ नहीं पाते हैं उसे वह दूसरे के हाथ 'बिका हुआ' घोषित कर देते हैं ।
किंतु अब वह खुद अपनी जीत को 'खरीदने' के आरोप में फँस गए हैं । सीओएल के उम्मीदवार के रूप में प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं से दबाव डलवा कर तथा पैसे देकर वोट जुटाने के आरोप योगेश मोहन गुप्ता पर जब तक डिस्ट्रिक्ट के लोग लगा रहे थे, तब तक मामला गंभीर नहीं था; किंतु रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय द्धारा इस आरोप को विश्वसनीय मान लेने और उनकी जीत के फैसले को अमान्य करार देने के साथ ही योगेश मोहन गुप्ता के लिए मामला गंभीर हो गया है । रोटरी इंटरनेशनल का फैसला योगेश मोहन गुप्ता को 'रंगेहाथ' पकड़वाने जैसा साबित हुआ है । योगेश मोहन गुप्ता के साथ समस्या यह हुई है कि कोई उनके साथ हमदर्दी तक नहीं दिखा रहा है, और हर किसी को जैसे लग रहा है कि 'पाप का घड़ा' आखिर कब तक बचा रहता - उसे एक न एक दिन तो फूटना ही था । सीओएल के चुनाव में जो लोग उनके साथ थे भी, उन्हें भी मुँह छिपाते हुए देखा/पहचाना जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में योगेश मोहन गुप्ता ने ऐन मौके पर जिस तरह दिवाकर अग्रवाल को धोखा देकर दीपक बाबू की जीत का मार्ग प्रशस्त किया था - वह दीपक बाबू भी योगेश मोहन गुप्ता के प्रति हमदर्दी नहीं दिखा पा रहे हैं ।
योगेश मोहन गुप्ता के साथ जो हुआ है, उससे दीपक बाबू दरअसल डर भी गए हैं । उल्लेखनीय है कि जिन हथकंडों से योगेश मोहन गुप्ता ने जीत प्राप्त की थी, लगभग उन्हीं हथकंडों से जीत प्राप्त करने का आरोप दीपक बाबू पर भी है - और उनकी जीत के खिलाफ आरोप पत्र रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय में विचाराधीन है । दीपक बाबू और उनके शुभचिंतकों व समर्थकों को डर हुआ है कि जैसा न्याय योगेश मोहन गुप्ता के मामले में हुआ है, वैसा ही न्याय उनके मामले में अगर हो गया तो उनकी भी भैंस गई पानी में !
योगेश मोहन गुप्ता के साथ समस्या यह हुई है कि चुनावी जीत के लिए अपनाए गए उनके हथकंडों पर रोटरी इंटरनेशनल ने जो संज्ञान लिया है उससे उनके रोटरी जीवन पर विराम लगने का खतरा पैदा हो गया है । डिस्ट्रिक्ट में उन्होंने तमाम लोगों को अपना दुश्मन बना लिया है - जिन्हें नहीं भी बनाया है, वह उनकी बदनामी देख कर और उनके रवैये की बातें सुन-सुन कर उनसे दूर दूर रहने में ही अपनी भलाई देख रहे हैं । तिकड़मों से सफल होने का योगेश मोहन गुप्ता के पास जो हुनर था - उसे रोटरी इंटरनेशनल ने 'छीन' लिया है । समझा जाता है कि योगेश मोहन गुप्ता की कारस्तानियों को सुन-देख कर रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों तथा अन्य प्रमुख लोगों ने भी उनकी नकेल कसने का मन बना लिया है । इस तरह योगेश मोहन गुप्ता दोनों तरफ से घिर गए हैं - बिना कोई गोरखधंधा किए डिस्ट्रिक्ट में उनके लिए सफल हो पाना मुश्किल है, और गोरखधंधे से पाई सफलता की शिकायत होने पर रोटरी इंटरनेशनल के लोग उनके साथ रियायत करने को तैयार नहीं हैं ।
तो क्या, जैसा कि लोगों को लग रहा है कि, योगेश मोहन गुप्ता के 'पापों का घड़ा' वास्तव में इतना भर गया है कि अब उसके फूटने का समय हो गया है - या योगेश मोहन गुप्ता अपने तिकड़मी हुनर से अभी उसे फूटने से बचा लेंगे ? यह देखना दिलचस्प होगा ।

Friday, July 11, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में विनोद बंसल ने अपने गवर्नर-काल को सिर्फ भारत के ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया के डिस्ट्रिक्ट्स में पहला स्थान दिलवा कर ही कीर्तिमान स्थापित नहीं किया है, बल्कि ऑर्च क्लम्प सोसायटी का सदस्य बनकर डिस्ट्रिक्ट के सदस्यों को अनोखे किस्म के गौरव के अहसास से भी परिचित कराने का काम किया है

नई दिल्ली । विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपना कार्यकाल शुरू करते समय अपने (इंटरनेशनल) प्रेसीडेंट रॉन बर्टन से 'बी द चेंज' का जो वायदा किया था, उसे उन्होंने अप्रत्याशित कीर्तिमान के साथ निभाने का काम किया है । किए गए वायदे को निभाने के चलते ही, रोटरी फाउंडेशन के लिए रकम इकठ्ठा करने के मामले में विनोद बंसल के गवर्नर-काल को सिर्फ भारत के ही नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया के डिस्ट्रिक्ट्स में पहला स्थान मिला है । इस तरह, विनोद बंसल का गवर्नर-काल रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के सदस्यों के लिए भी गर्व करने का सुनहरा मौका बनाता है । विनोद बंसल के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट 3010 की तरफ से रोटरी फाउंडेशन में करीब साढ़े सत्रह लाख अमेरिकी डॉलर की रकम जमा हुई है । रोटरी फाउंडेशन के लिए रकम इकठ्ठा करने के मामले में दूसरे स्थान पर करीब पौने सोलह लाख अमेरिकी डॉलर की रकम के साथ डिस्ट्रिक्ट 3131 और तीसरे स्थान पर करीब ग्यारह लाख अमेरिकी डॉलर की रकम के साथ डिस्ट्रिक्ट 3140 रहे हैं । जाहिर है कि विनोद बंसल के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट 3010 को रोटरी में जो ऊँचाई मिली है, उसे हासिल कर पाना पहले के वर्षों में सिर्फ सपना ही रहा था । विनोद बंसल की इस उपलब्धि ने डिस्ट्रिक्ट को ऊँचे और बड़े सपने देखने के लिए प्रेरित और उत्साहित तो किया ही है, साथ ही उनके पूरा हो सकने को लेकर आश्वस्त भी किया है । विनोद बंसल की उपलब्धि में इसी संदेश को पढ़ा जाना चाहिए ।
विनोद बंसल की यह उपलब्धि लेकिन रमेश अग्रवाल पर एक गाज की तरह गिरी है । विनोद बंसल की इस उपलब्धि के कारण, रोटरी फाउंडेशन के लिए रकम इकठ्ठा करने के मामले में अपनी उपलब्धि पर इतराने का मौका रमेश अग्रवाल से एक वर्ष में ही छिन गया है । उल्लेखनीय है कि विनोद बंसल से पहले वाले वर्ष में रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में करीब दस लाख अमेरिकी डॉलर की रकम रोटरी फाउंडेशन के लिए इकठ्ठा की थी । हालाँकि डिस्ट्रिक्ट के लिहाज से यह भी एक रिकॉर्ड था -  यह अलग बात है कि डिस्ट्रिक्ट से ऊपर इस रिकॉर्ड की कोई अहमियत नहीं थी । रोटरी फाउंडेशन के लिए रकम इकठ्ठा करने के मामले में रमेश अग्रवाल के गवर्नर-काल को तत्कालीन वर्ष में देश में तीसरा स्थान मिला था । रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रोटरी फाउंडेशन के लिए डिस्ट्रिक्ट में लेकिन तब तक की सबसे ज्यादा रकम इकठ्ठा करने का जो रिकॉर्ड बनाया था, उसे लेकर ही वह उड़े-उड़े घूम रहे थे । विनोद बंसल के रिकॉर्ड ने लेकिन उनकी सारी हवा निकाल दी है । अपने गवर्नर-काल के दस लाख अमेरिकी डॉलर के मुकाबले विनोद बंसल के गवर्नर-काल के साढ़े सत्रह लाख अमेरिकी डॉलर को देखते हुए तो रमेश अग्रवाल के लिए तो इतराने का कोई मौका ही नहीं बचा है । विनोद बंसल ने रमेश अग्रवाल के मुकाबले करीब 75 प्रतिशत ज्यादा रकम इकठ्ठा की है - देश में ही नहीं, दक्षिण एशिया में डिस्ट्रिक्ट 3010 को पहला स्थान दिलाया, सो अलग ।
बात इकठ्ठा हुई रकम की ही नहीं है - रकम इकठ्ठा करने के तरीके की भी है । रमेश अग्रवाल ने एक 'माफिया' के 'जबरन बसूली' जैसे तौर-तरीके इस्तेमाल करते हुए रोटरी फाउंडेशन के लिए रकम इकठ्ठा की थी । रोटरी क्लब गाजियाबाद के साथ किए गए सुलूक में उनके इस तरीके के सुबूत देखे/पहचाने जा सकते हैं । रोटरी क्लब गाजियाबाद ने चूँकि उनकी डिमांड पूरी नहीं की, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश अग्रवाल ने उनकी मैचिंग ग्रांट ही रोक ली । रमेश अग्रवाल द्धारा अपनाये गए इस तरह के हथकंडों के और भी उदाहरण हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर जेके गौड़ को चुनवाने के लिए रमेश अग्रवाल ने जेके गौड़ को जमकर ब्लैकमेल किया और उनसे रोटरी फाउंडेशन के लिए मोटी रकम धरवाई । रोटरी फाउंडेशन के लिए मोटी रकम लेकर जेके गौड़ को चुनवाने में रमेश अग्रवाल द्धारा की गई बेईमानियों की शिकायत सुधीर मंगला ने रोटरी इंटरनेशनल तक में की थी । विनोद बंसल ने रमेश अग्रवाल जैसे कोई हथकंडे अपनाये हों - या डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों को जितवाने का लालच देकर ब्लैकमेल किया हो - ऐसी कोई बात सुनने को नहीं मिली । यानि, जिस रिकॉर्ड को बनाने में रमेश अग्रवाल ने तमाम बदनामी कमाई - वह रिकॉर्ड भी उनके पास ज्यादा दिन नहीं रह सका; और विनोद बंसल द्धारा स्थापित किए गए कीर्तिमान के सामने रमेश अग्रवाल अपने रिकॉर्ड की बात करने लायक भी नहीं रह सके हैं ।
विनोद बंसल ने एक अकेले रोटरी फाउंडेशन के लिए रकम इकठ्ठा करने के मामले में ही कीर्तिमान स्थापित नहीं किया है, बल्कि ऑर्च क्लम्प सोसायटी का सदस्य बनकर डिस्ट्रिक्ट के सदस्यों को अनोखे किस्म के गौरव के अहसास से भी परिचित कराने का काम किया है । रोटरी फाउंडेशन के रचयिता और संस्थापक ऑर्च सी क्लम्प के नाम पर स्थापित ऑर्च क्लम्प सोसायटी की सदस्यता रोटरी फाउंडेशन में ढाई लाख अमेरिकी डॉलर देने वाले व्यक्ति को मिलती है । इस सोसायटी के सदस्य बनने वाले का उसके जीवन साथी के साथ रोटरी इंटरनेशनल के अमेरिका स्थित मुख्यालय में आयोजित होने वाले इंडक्शन समारोह में सम्मान किया जाता है; और उसके परिचय के साथ उसकी और उसके जीवनसाथी की तस्वीर उसी मुख्यालय की अठारहवीं मंजिल पर स्थापित इंटरएक्टिव गैलरी में लगाई जाती है । ऑर्च सी क्लम्प रोटरी इंटरनेशनल के छठे प्रेसीडेंट थे, और उन्होंने ही 1917 में रोटरी फाउंडेशन की स्थापना की थी । इस सोसायटी के करीब दो सौ सदस्य हैं ।
विनोद बंसल सिर्फ डिस्ट्रिक्ट 3010 के ही नहीं, उत्तर और पूर्व के पास-पड़ोस के 12/15 डिस्ट्रिक्ट्स के पहले रोटेरियन हैं, जो ऑर्च क्लम्प सोसायटी के सदस्य बने हैं । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता भी इसी वर्ष इस सोसायटी के सदस्य बने हैं, लेकिन वह विनोद बंसल के बाद बने हैं । विनोद बंसल की प्रेरणा से उनके गवर्नर-काल में उनके क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी - के अध्यक्ष रहे राजेश गुप्ता भी इस सोसायटी के सदस्य बने हैं । पिछले रोटरी वर्ष में इन तीन के अलावा चार और रोटेरियंस इस सोसायटी के सदस्य बने हैं - तीन पुणे और एक जयपुर से । यानि रोटरी फाउंडेशन की एक बड़ी खास और क्लॉसी सोसायटी - ऑर्च क्लम्प सोसायटी - से परिचित होने का और उसके बारे में जानने का मौका सिर्फ डिस्ट्रिक्ट 3010 के रोटेरियंस को ही नहीं, बल्कि आसपास के डिस्ट्रिक्ट्स के रोटेरियंस को भी विनोद बंसल के सौजन्य से मिला ।
जाहिर है कि विनोद बंसल ने अपने गवर्नर-काल में जो रिकॉर्ड बनाया है - उसे 'इससे ज्यादा' या 'उससे ज्यादा' या 'अब तक का सबसे ज्यादा' जैसे शब्दों से ही नहीं देखा/पहचाना या परिभाषित किया जा सकता है । विनोद बंसल ने एक नई इबारत लिखी है, उन्होंने सिर्फ रिकॉर्ड ही नहीं बनाया है - उन्होंने कुछ अलग-कुछ खास करने का हौंसला पैदा किया है, उन्होंने दिखाया है कि पुराने ढर्रे पर या पुरानी लीक पर चलने की बजाये नए नए लोगों को प्रेरित किया जा सकता है, नए नए क्षेत्रों में संभावनाएँ तलाशी जा सकती हैं, और सचमुच ऐसा कुछ किया जा सकता है जिसके बारे में दूसरों ने कभी सोचा भी न हो । विनोद बंसल ने जो किया है - उससे उनके खुद के नंबर तो बने/बढ़े ही हैं, साथ ही डिस्ट्रिक्ट के सदस्यों को भी गौरवान्वित होने का मौका मिला है । इसीलिए विनोद बंसल की उपलब्धियाँ सिर्फ रिकॉर्ड भर नहीं हैं - उससे कहीं ऊँची बात है ।

Wednesday, July 9, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के विभाजित डिस्ट्रिक्ट में क्लब से हरी झंडी मिलने के साथ साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत हुई सतीश सिंघल की उम्मीदवारी ने भी, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर बने असमंजस को ख़त्म करने का काम किया है

गाजियाबाद/नोएडा । रोटरी क्लब गाजियाबाद ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को औपचारिक रूप से हरी झंडी देकर तथा रोटरी क्लब नोएडा ने सतीश सिंघल की उम्मीदवारी की प्रस्तुति के संकेत देकर विभाजित डिस्ट्रिक्ट में चुनावी राजनीति की गर्मी बढ़ा दी है । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की चर्चा तो पहले से ही थी, किंतु डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की स्थिति में इस बात को लेकर कन्फ्यूजन बना हुआ था कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए उम्मीदवार होंगे, या डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए ? यह कन्फ्यूजन दरअसल इसलिए बना क्योंकि अरनेजा गिरोह ने लोगों के बीच अफवाह उड़ाई हुई थी कि दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए शरत जैन की उम्मीदवारी को देखते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का फैसला कर लिया है । अरनेजा गिरोह के लोगों की बातों पर चूँकि लोग भरोसा नहीं करते हैं, इसलिए किसी ने उनके इस दावे पर विश्वास तो नहीं किया; लेकिन चूँकि दीपक गुप्ता ने जोरशोर से उनके दावे का जबाव नहीं दिया, इसलिए मामला कन्फ्यूजन में आ गया । इस स्थिति से निपटने के लिए दीपक गुप्ता ने जब जोरशोर से यह साफ किया कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए ही उम्मीदवार थे, हैं और रहेंगे - तब भी अरनेजा गिरोह के नेताओं ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर कन्फ्यूजन बनाये रखने की अपनी कोशिशों को छोड़ा नहीं । अभी चार दिन पहले तक जेके गौड़ लोगों के बीच यह दावा करते हुए सुने गए थे कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट में वह चुनाव नहीं होने देंगे और समझाबुझा कर दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए राजी कर लेंगे । अरनेजा गिरोह के दूसरे नेता भी बताते फिर रहे थे कि उन्होंने दीपक गुप्ता को भरोसा दिलाया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनके आलावा और कोई उम्मीदवार नहीं आयेगा और इस तरह वह बिना कुछ किये ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन जायेंगे ।
रोटरी क्लब गाजियाबाद के बोर्ड ने विभाजित डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को औपचारिक रूप से हरी झंडी देकर कन्फ्यूजन फैलाने की सारी कोशिशों पर लेकिन विराम लगा दिया है । जो जानकारी मिली है उसके अनुसार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का प्रस्ताव जीपी अग्रवाल ने रखा जिसका अनुमोदन मनमोहन अग्रवाल ने किया । बाकी सदस्यों ने एक स्वर से प्रस्ताव का समर्थन किया । इस जानकारी का प्रतीकात्मक रूप से बड़ा महत्व है । महत्व का कारण यह है कि जेके गौड़ ने जीपी अग्रवाल और मनमोहन अग्रवाल के भरोसे ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की राह में रोड़ा बिछाने की तैयारी की थी । जेके गौड़ अक्सर ही जीपी अग्रवाल और मनमोहन अग्रवाल का अपने 'आदमी' के रूप में जिक्र करते रहे हैं । समझा जाता है कि दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए राजी करने का भरोसा जेके गौड़ को इन्हीं दोनों से मिलने वाली मदद पर निर्भर था । जेके गौड़ को उम्मीद थी कि क्लब के लोगों में मनमुटाव पैदा करके जैसी खलबली उन्होंने रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल में मचा/मचवा दी है, वैसी ही खलबली वह रोटरी क्लब गाजियाबाद में भी मचा/मचवा देंगे । किंतु लगता है कि जीपी अग्रवाल और मनमोहन अग्रवाल उनके झाँसे में नहीं आये और इसीलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को जीपी अग्रवाल द्धारा प्रस्तावित करने का और मनमोहन अग्रवाल द्धारा अनुमोदित करने का खास महत्व है ।
इसी के साथ, विभाजित डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर पैदा किए जा रहे असमंजस पर आधिकारिक रूप से पानी पड़ गया है ।
दीपक गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद की उम्मीदवारी को लेकर बने असमंजस को ख़त्म करने का काम सतीश सिंघल की उम्मीदवारी की प्रस्तुति ने भी किया है । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति का अपना अलग झमेला शुरू हो गया है, जिसमें दीपक गुप्ता पर दबाव बनाने वाले अरनेजा गिरोह के लोगों के हाथ से दीपक गुप्ता को झाँसा देने का मौका छिन गया है । रोटरी क्लब नोएडा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रस्तुत करके विभाजित डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा कर दी है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए हालाँकि पिछले ही सप्ताह रोटरी क्लब वैशाली ने प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया था । उम्मीदवारी की घोषणा करने के बाद से प्रसून चौधरी चूँकि सीन से गायब दिख रहे हैं, इसलिए उनकी उम्मीदवारी से जो लोग उत्साहित हुए थे उनका उत्साह ठंडा पड़ने लगा । प्रसून चौधरी के क्लब के लोगों ने प्रसून चौधरी के देश से बाहर होने की जानकारी देकर उनकी उम्मीदवारी से उत्साहित लोगों का उत्साह बनाये रखने का प्रयास तो किया है, लेकिन प्रसून चौधरी की अनुपस्थिति से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई का परिदृश्य सूना-सूना जरूर हो गया है । ऐसे में, सतीश सिंघल की उम्मीदवारी की प्रस्तुति ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई के परिदृश्य को रोचक बना दिया है ।
सतीश सिंघल ने पिछले रोटरी वर्ष में भी अपनी उम्मीदवारी के संकेत दिए थे, लेकिन फिर जल्दी ही उन्होंने अपने आप को पीछे कर लिया था । अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने का तब सतीश सिंघल ने तो कोई कारण नहीं बताया था, लेकिन उनके नजदीकियों का कहना था कि एक उम्मीदवार के रूप में जो तैयारियाँ जरूरी होती हैं उनमें सतीश सिंघल ने कोई कमी पाई होगी और इसीलिए फिर उन्होंने अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने का फैसला किया होगा । अपने नजदीकियों में सतीश सिंघल योजना बना कर और पूरी तैयारी के साथ काम करने वाले व्यक्ति के रूप में जाने/पहचाने जाते हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि पिछले अनुभव से सबक लेकर सतीश सिंघल ने अबकी बार उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से पहले आवश्यक तैयारी निश्चित ही कर ली होगी । ब्लड बैंक बना कर सतीश सिंघल अपनी कार्य-क्षमता का तथा तय किए गए लक्ष्य को प्राप्त करने की अपनी सामर्थ्य का परिचय पहले ही दे चुके हैं । ब्लड बैंक की स्थापना जैसे बड़े और महत्वपूर्ण काम को सफलतापूर्वक अंजाम देने के चलते रोटरी में उनका नाम भी है और उनकी पहचान भी है । इसी नाम और पहचान के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत हुई उनकी उम्मीदवारी ने विभाजित डिस्ट्रिक्ट के संदर्भ वाली चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा कर दी है । प्रसून चौधरी के साथ सतीश सिंघल के संभावित चुनावी मुकाबले को खासी दिलचस्पी के साथ देखा जा रहा है । यह सच है कि रोटेरियंस के बीच नाम और पहचान के मामले में सतीश सिंघल का पलड़ा प्रसून चौधरी से भारी है, लेकिन अपने क्लब के सक्रिय सदस्यों का जैसा समर्थन प्रसून चौधरी के साथ है, वैसा समर्थन सतीश सिंघल को अभी जुटाना है । प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी को रमणीक तलवार जैसे रोटेरियंस का खुला समर्थन प्राप्त है, जिन्हें संजय खन्ना की घमासानपूर्ण चुनावी लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अनुभव है । सतीश सिंघल को ऐसे किसी 'सारथी' की अभी तलाश करना है । जाहिर है कि सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी की अपनी अपनी खूबियाँ और कमजोरियाँ हैं - अपनी अपनी खूबियों और कमजोरियों के साथ वह कैसे अपना चुनाव अभियान चलाते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा ।  

Sunday, July 6, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के विभाजित डिस्ट्रिक्ट में दीपक तलवार ने जिस अंदाज में रवि चौधरी की उम्मीदवारी के प्रति पूर्व गवर्नर्स के समर्थन का दावा किया है, उससे रवि चौधरी की राह में वास्तव में रोड़े ही पड़े हैं

नई दिल्ली । रवि चौधरी की विभाजित डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनने की कोशिश उनके अपने ही क्लब के पूर्व गवर्नरों के दिलचस्पी न लेने के कारण सिरे नहीं चढ़ पा रही है । उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक तलवार ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी को हरी झंडी दिलवाने की तैयारी की; और इस तैयारी के तहत उन्होंने लोगों के बीच अफवाह फैला दी कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट में आने वाले लगभग सभी पूर्व गवर्नर्स ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी को हरी झंडी दे दी है, और जो दो-तीन पूर्व गवर्नर अभी हरी झंडी देने को राजी नहीं हैं - उन्हें भी जल्दी ही राजी कर लिया जायेगा । विभाजित डिस्ट्रिक्ट अभी बना नहीं है, लेकिन उस प्रस्तावित डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी रवि चौधरी होंगे - दीपक तलवार ने जैसे यह 'घोषित' कर दिया है । जिस भी पूर्व गवर्नर ने यह सुना उसने इस बात को एक चुटकुले से ज्यादा महत्व नहीं दिया । जिसने भी किसी पूर्व गवर्नर से इस बारे में पूछा, उसे जबाव की बजाये सवाल सुनने को मिला कि तुम भी दीपक तलवार की बातों पर विश्वास करते हो ? किसी किसी ने रवि चौधरी के प्रति सहानुभूति भी प्रकट की कि उस बेचारे को पहले असित मित्तल मिले थे और अब दीपक तलवार मिल गए हैं । यह सुझाव भी आये कि रवि चौधरी को यदि सचमुच अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करनी है, तो उन्हें ऐसे लोगों से सलाह करनी चाहिए और ऐसे लोगों को बागडोर सौंपनी चाहिए जो सिर्फ अपना ऊल्लू सीधा करने के चक्कर में ही न रहते हों । असित मित्तल के चक्कर में वह पहले ही मुसीबतों में फँस चुके हैं । उस अनुभव से तो उन्हें सबक लेना ही चाहिए ।
दीपक तलवार ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी के जिस गुब्बारे को फुलाने की कोशिश की, वह फुलाते-फुलाते ही इसलिए फट गया क्योंकि रवि चौधरी के क्लब में जो दो पूर्व गवर्नर हैं उन्हें ही उक्त गुब्बारे से दूर देखा/पाया गया । उल्लेखनीय है कि रवि चौधरी के क्लब में दो पूर्व गवर्नर हैं - रमेश चंद्र और दमनजीत सिंह । इन दोनों को चूँकि रवि चौधरी की उम्मीदवारी की प्रस्तुति में कोई दिलचस्पी लेते हुए नहीं देखा गया, इसलिए अन्य पूर्व गवर्नर्स को यह समझने में देर नहीं लगी कि दीपक तलवार ने रवि चौधरी की भलाई के लिए नहीं बल्कि अपने जुगाड़ों को जुटाने के लिए तैयारी शुरू कर दी है । यहाँ यह स्पष्ट रूप से जान लें कि रमेश चंद्र और या दमनजीत सिंह ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी का कोई विरोध नहीं किया है; किंतु चूँकि यह दोनों रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए कुछ करते हुए भी नहीं दिख रहे हैं इसलिए रवि चौधरी की उम्मीदवारी के प्रति इनकी भूमिका संदेहास्पद बनी है । लोगों को कहना यह है कि रवि चौधरी अपनी उम्मीदवारी को लेकर यदि सचमुच गंभीर हैं तो सबसे पहले उन्हें अपने क्लब के इन दोनों पूर्व गवर्नर्स में अपनी उम्मीदवारी के प्रति दिलचस्पी पैदा करनी होगी । यह सच है कि यह दोनों लोग चुनावी राजनीति के झमेले में ज्यादा नहीं पड़ते हैं, लेकिन फिर भी रवि चौधरी को ऐसा कुछ तो करना ही चाहिए जिससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह भ्रम न फैले कि यह दोनों उनकी उम्मीदवारी के साथ नहीं हैं ।
दीपक तलवार ने हो सकता है कि रवि चौधरी को समझा दिया हो कि यह दोनों तुम्हारे साथ नहीं भी होंगे तो क्या करेंगे, मैं तुम्हें गवर्नर बनवा दूँगा । ऐसा ही कुछ असित मित्तल और उनके साथियों ने भी उन्हें समझाया था; मुकेश अरनेजा तो सार्वजनिक रूप से दावा करते थे कि वह चाहें तो किसी रिक्शेवाले को गवर्नर चुनवा/बनवा दें । उनकी बातों में आकर रवि चौधरी भी उन पूर्व गवर्नर्स के लिए अपमानपूर्ण शब्दावली का इस्तेमाल करने लगे थे, जो उनके साथ नहीं दिख रहे थे । दीपक तलवार के भरोसे रवि चौधरी क्या एक बार फिर उसी 'दिशा' की तरफ बढ़ रहे हैं ? रवि चौधरी के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि चुनावी नजरिये से रवि चौधरी के लिए अच्छा मौका है; बशर्ते वह इस अच्छे मौके का फायदा उठाने में होशियारीपूर्ण संलग्नता का परिचय दें । वह लोगों के बीच सक्रिय नहीं होंगे और 'इसके' या 'उसके' भरोसे रहेंगे तो फिर यह अच्छा मौका भी अच्छा साबित नहीं होगा ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन  के हालात जिस तरह से मजबूत बने हैं, उसके चलते विभाजित डिस्ट्रिक्ट में दो चुनाव होने की संभावना बनी है । पहले वर्ष के लिए डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी है, और उनके सामने कोई चुनौती भी नहीं देखी/पहचानी जा रही है । सुरेश भसीन की उम्मीदवारी की आहट पहले थी तो, लेकिन चूँकि उनकी कोई सक्रियता नहीं देखी जा रही है इसलिए उनकी उम्मीदवारी को लेकर संदेह पैदा हो गया है । उनके परिवार में हुए एक फंक्शन में रोटेरियंस की उपस्थिति भी कम देखी गई, जिससे उक्त संदेह और बढ़ गया है । कुछेक लोगों को लगता है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की स्थिति के मजबूत दिखने और दो चुनाव होने के मद्देनजर हो सकता है कि सुरेश भसीन यह तय करने के लिए इंतजार कर लेना चाहते हों कि वह पहले वर्ष के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करें या दूसरे वर्ष के लिए - और इसीलिए उन्होंने अपने आप को अभी पीछे कर लिया हो । सुरेश भसीन के साथ साथ सरोज जोशी और अजय नारायण की उम्मीदवारी की भी चर्चा सुनी जाती रही है । किंतु उनकी भी कोई सक्रियता नहीं देखी गई है । संभव है कि सुरेश भसीन की तरह वह भी फैसला करने के लिए डिस्ट्रिक्ट के विभाजित होने का इंतजार कर लेना चाहते हों ।
ऐसे में, रवि चौधरी ने दीपक तलवार के जरिये अपनी उम्मीदवारी की चर्चा चलवा कर दूसरे वर्ष के लिए अपनी बढ़त बनाने की जो चाल चली है, वह शुरुआत के लिहाज से तो अच्छी है; लेकिन वह जिस तरह दीपक तलवार की हवा-हवाई बातों पर भरोसा करते दिख रहे हैं उससे उनकी उड़ान के शुरू होते ही बैठने का खतरा पैदा हो गया है । रवि चौधरी के लिए चुनौती की बात दरअसल यह है कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट में जिन लोगों का बहुमत है उनके बीच उनकी एक नकारात्मक पहचान है । इस नकारात्मक पहचान से पीछा छुड़ाने का काम वह अपनी सक्रियता और संलग्नता से ही कर सकते हैं और यही करने में वह कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । दीपक तलवार ने जिस अंदाज में रवि चौधरी की उम्मीदवारी के प्रति पूर्व गवर्नर्स के समर्थन का दावा किया है, उससे रवि चौधरी के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद तक की राह में वास्तव में रोड़े ही पड़े हैं ।

Saturday, July 5, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जेके गौड़ ने सुभाष जैन को सब्जबाग दिखा कर रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल को विघटन के कगार पर पहुँचा दिया है

गाजियाबाद । रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के सदस्यों ने आजकल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जेके गौड़ को निशाने पर लिया हुआ है । उनके बीच इस बात को लेकर बेहद नाराजगी और गुस्सा है कि जेके गौड़ ने अपनी घटिया तिकड़मों से उनके क्लब में फूट पड़वाने वाली स्थितियाँ पैदा कर दी हैं । रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल में योगेश गर्ग और सुभाष जैन के बीच चल रहे 'शीत-युद्ध' के कारण क्लब के विघटन की जो स्थिति बनी है उसके पीछे मुख्य खेल जेके गौड़ का ही देखा/पहचाना जा रहा है । क्लब के कुछेक लोगों ने दावा तो किया है कि योगेश गर्ग और सुभाष जैन के बीच जो मामला है, उसे सुलझा लिया जायेगा और क्लब की एकता बनी रहेगी । लेकिन क्लब के अन्य कुछेक लोगों के अनुसार, सुभाष जैन के रवैये को देखते/समझते हुए इस दावे के सच साबित होने की उम्मीद कम ही है । इन कुछेक सदस्यों का कहना है कि उन्होंने योगेश गर्ग से अनुरोध किया था कि वह सुभाष जैन से मिलकर 'अपना झगड़ा' ख़त्म करें - लेकिन योगेश गर्ग ने यह कहकर उनके अनुरोध को ख़ारिज कर दिया कि उनका सुभाष जैन के साथ कोई झगड़ा ही नहीं है, वह किस झगड़े को ख़त्म करें । इन लोगों ने योगेश गर्ग पर लेकिन दबाव बनाया कि वह अपनी तरफ से पहल करके सुभाष जैन से बात करें । क्लब के सदस्यों का दबाव बना, तो योगेश गर्ग इसके लिए राजी हो गए । उन्होंने सुभाष जैन को फोन किया और मिलने की बात की - सुभाष जैन ने अगले दिन अपने ऑफिस में मिलने का समय तय किया । अगले दिन वह समय आता, उससे पहले योगेश गर्ग को सुभाष जैन से एसएमएस मिला जिसमें कहीं जाने की बात कहते हुए मिलने के आयोजन को ख़त्म दिया । सुभाष जैन की तरफ से - न उस समय और न बाद में ही - यह भी नहीं बताया गया कि मिलने का कार्यक्रम कब हो सकता है । सुभाष जैन के इस रवैये से साफ हो जाता है कि क्लब का भविष्य किस दिशा की तरफ बढ़ रहा है ।
समझा जाता है कि सुभाष जैन के इस रवैये को खाद-पानी जेके गौड़ की तरफ से मिल रहा है । सुभाष जैन और जेके गौड़ के 'संबंधों' से परिचित क्लब के सदस्यों का कहना है कि जेके गौड़ ने सुभाष जैन को समझा दिया है कि वह तो उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाना चाहते हैं, लेकिन योगेश गर्ग उनकी राह का रोड़ा बनेंगे - इसलिए पहले योगेश गर्ग से ही निपटो । हाल ही के दिनों में, पहले गाजियाबाद के अन्य क्लब्स के लोगों के बीच और फिर अपने ही क्लब की असेम्बली में योगेश गर्ग को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाने की बात जिस तरह से उठी उससे सुभाष जैन को जेके गौड़ की बात में दम दिखा है और वह जेके गौड़ की सलाहानुसार योगेश गर्ग से निपटने की तैयारी में जुट गए हैं । योगेश गर्ग के साथ सुभाष जैन के रोटरी के स्तर पर ही नहीं, परिवार के स्तर पर भी जिस तरह के संबंध रहे हैं, उनसे परिचित रहे क्लब के सदस्यों को - मिलने की योगेश गर्ग की कॉल को टाल देने की सुभाष जैन की कार्रवाई में उक्त तैयारी के संकेत और सुबूत दिख रहे हैं । योगेश गर्ग और सुभाष जैन के बीच का जो 'शीत-युद्ध' क्लब की एकता के लिए खतरा बन गया है, उसके लिए एक अकेले जेके गौड़ को जिम्मेदार ठहराना, हालाँकि उनके साथ ज्यादती करना भी होगा । सच यही है कि क्लब में 'आग' तो पहले से ही सुलग रही थी - लेकिन हाँ, उसमें घी डालने का काम जेके गौड़ ने ही किया है । जेके गौड़ ने घी तबियत से डाला है, और इसके चलते ही क्लब में सुलग रही आग भड़क उठी है ।
क्लब के सदस्यों का ही कहना है कि पिछले तीन-चार वर्षों में सुभाष जैन को यह बात सालना शुरू हुई कि रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट में 'योगेश गर्ग के क्लब' के रूप में क्यों देखा/पहचाना जाता है । यह खुन्नस पहली बार उस वर्ष देखने में आई, जिस वर्ष संजय पाण्डेय अध्यक्ष थे । जीओेवी में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर असित मित्तल ने अध्यक्ष के रूप में संजय पाण्डेय की परफॉर्मेंस पर असंतोष व्यक्त किया था, लेकिन इसके दो महीने बाद ही उन्होंने संजय पाण्डेय के लिए सबसे बड़े अवार्ड का फैसला किया । असित मित्तल ने अपने इस फैसले से जब योगेश गर्ग को अवगत कराया तो योगेश गर्ग ने उनके इस फैसले पर हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कि अभी दो महीने पहले ही तुम जिस अध्यक्ष के कामकाज पर असंतोष जता चुके हो, उसे सबसे बड़ा अवार्ड दोगे तो यह पक्षपातपूर्ण फैसला नहीं लगेगा । असित मित्तल ने उन्हें बताया कि इस फैसले के लिए असिस्टेंट गवर्नर अतुल गोयल और सुभाष जैन की बड़ी तगड़ी सिफारिश है । बाद में, अतुल गोयल ने योगेश गर्ग को समझाने का प्रयास किया कि हमारे क्लब के अध्यक्ष को डिस्ट्रिक्ट का सबसे बड़ा अवार्ड मिल रहा है, तो आप उसका विरोध क्यों कर रहे हैं । योगेश गर्ग ने उनसे कहा कि वह विरोध नहीं कर रहे हैं; वह तो सिर्फ यह कह रहे हैं कि तिकड़म और सिफारिश से लिए गए अवार्ड से क्लब की बदनामी ही होगी । योगेश गर्ग के इस तर्क को तरह तरह से व्याख्यायित करके अतुल गोयल और सुभाष जैन ने क्लब के लोगों को बताया कि संजय पाण्डेय को उक्त अवार्ड मिलने का विरोध योगेश गर्ग इसलिए कर रहे हैं, ताकि डिस्ट्रिक्ट के सबसे बड़े अवार्ड के प्राप्तकर्ता के रूप में भाभी जी का नाम ही चलता रहे - भाभी जी, यानि योगेश गर्ग की पत्नी रेखा गर्ग । उल्लेखनीय है कि क्लब के अध्यक्ष के रूप में रेखा गर्ग को तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुशील खुराना ने डिस्ट्रिक्ट का सबसे बड़ा अवार्ड दिया था । रेखा गर्ग को मिले अवार्ड को बीच में लाकर सुभाष जैन ने अतुल गोयल के साथ मिल कर योगेश गर्ग पर पहला बड़ा हमला किया था ।
बाद में, पता यह चला कि संजय पाण्डेय को उक्त अवार्ड दिलवाने के लिए अतुल गोयल और सुभाष जैन ने असित मित्तल के साथ क्लब के वोट का सौदा किया था । यह सौदा कराने का काम जेके गौड़ ने किया था । उस रोटरी वर्ष में, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए संजय खन्ना और रवि चौधरी के बीच चुनाव हो रहा था, जिसमें रवि चौधरी की उम्मीदवारी की बागडोर असित मित्तल के हाथ में थी और गाजियाबाद में रवि चौधरी के लिए समर्थन जुटाने का ठेका जेके गौड़ ने लिया हुआ था । रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने वास्ते जेके गौड़ द्धारा आयोजित पार्टी में गाना गाने आई लड़की को लेकर मार-पिटाई और खून-खच्चर तक होने वाली घटना 'रचनात्मक संकल्प' के पाठकों को याद होगी ही । उस चुनाव में योगेश गर्ग ने संजय खन्ना की उम्मीदवारी का समर्थन करने की वकालत की थी, किंतु जेके गौड़ के मार्फ़त असित मित्तल से हो चुके सौदे के चलते अतुल गोयल और सुभाष जैन ने रवि चौधरी के हक़ में फैसला करवाया । ऐसा करने के जरिये सुभाष जैन ने दरअसल यह दिखाने/बताने की कोशिश की कि जिस क्लब को योगेश गर्ग के क्लब के रूप में देखा/पहचाना जाता है, उस क्लब में योगेश गर्ग की चलती ही नहीं है ।
इसके अगले वर्ष, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में जेके गौड़ ने इन पँक्तियों के लेखक को ही कई बार बताया था कि गाजियाबाद में एक अकेले योगेश गर्ग ही उनसे नाराज थे, लेकिन उन्हें तो उन्होंने एक बार मिल कर ही मना लिया था । पीछे, नोमीनेटिंग कमेटी के एक चुनाव में जेके गौड़ ने योगेश गर्ग के साथ धोखाधड़ी की थी, योगेश गर्ग उसी के कारण जेके गौड़ से खफा थे । खुद जेके गौड़ के अनुसार, जेके गौड़ ने जब अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन की गुहार लगाई तो योगेश गर्ग ने उन्हें इस बात का कोई अहसास ही नहीं होने दिया कि वह उनसे नाराज भी थे । लेकिन चुने जाते ही, जेके गौड़ ने कहना/बताना शुरू किया कि योगेश गर्ग तो उनकी जगह डॉक्टर सुब्रमणियन का समर्थन करना चाहते थे लेकिन क्लब में उनकी किसी ने सुनी ही नहीं । जेके गौड़ के अनुसार ही, सुभाष जैन लगातार उन्हें बताते रहते थे कि क्लब में योगेश गर्ग तो डॉक्टर सुब्रमणियन के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करते हैं । क्लब के लोगों का कहना था कि सुभाष जैन इस तरह की बातें दरअसल यह बताने/जताने के लिए करते हैं ताकि लोगों के बीच यह संदेश जाए कि क्लब में योगेश गर्ग की तो जरा भी नहीं चलती है, और क्लब का जो भी फैसला होता है वह उनकी मर्जी और पसंद से होता है । क्लब के लोगों ने हालाँकि तुरंत ही स्पष्ट कर दिया था कि उम्मीदवारों को लेकर क्लब में जब भी कभी चर्चा होती थी, योगेश गर्ग हमेशा ही यही कहते थे कि जो भी उम्मीदवार हैं उनमें गवर्नर बनने लायक तो डॉक्टर सुब्रमणियन हैं, किंतु गाजियाबाद का होने के नाते हमें समर्थन जेके गौड़ का करना चाहिए । यानि, सच यह है कि जेके गौड़ गवर्नर के रूप में योगेश गर्ग के लिए पहली पसंद तो नहीं थे, किंतु जेके गौड़ का विरोध उन्होंने कभी नहीं किया । सुभाष जैन और जेके गौड़ लेकिन फिर भी योगेश गर्ग को विरोधी के रूप में देखते/बताते रहे ।
पिछले दिनों हुए सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल के पक्ष में, तथा डिस्ट्रिक्ट के विभाजन के पक्ष में क्लब का वोट/समर्थन जुटाने के लिए जेके गौड़ ने सुभाष जैन की मदद ली, और सुभाष जैन ने योगेश गर्ग को अँधेरे में और धोखे में रखकर उक्त फैसले करवाए । इस तरह, पिछले तीन वर्षों में क्लब के भीतर रहते हुए सुभाष जैन ने और क्लब से बाहर रहते हुए जेके गौड़ ने क्लब में योगेश गर्ग की जड़ें खोदने का काम किया और अधिकतर मौकों पर वह सफल भी रहे/दिखे । लेकिन निरंतर प्राप्त की जाती रही सफलताओं के बावजूद वह योगेश गर्ग की पहचान और हैसियत को एक खरोंच भी नहीं दे पाए । डिस्ट्रिक्ट विभाजन की राजनीति के चलते गाजियाबाद के रोटेरियंस के सामने जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारों को चुनने का मौका आया तो उन्होंने सुभाष जैन को नहीं, योगेश गर्ग को चुना । यह तो हुई गाजियाबाद की बात; इसके बाद जब रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के सदस्यों ने क्लब असेम्बली में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने की प्रक्रिया को अंजाम दिया तो उन्होंने भी सुभाष जैन की मौजूदगी में योगेश गर्ग को उम्मीदवार के रूप में चुना । इस तरह पहले शहर में और फिर क्लब में सुभाष जैन को योगेश गर्ग से मात खानी पड़ी । समझा जाता है कि इससे सुभाष जैन बुरी तरह बौखला गए हैं और अब वह योगेश गर्ग के साथ आरपार कर लेना चाहते हैं । उनका रवैया देख/जान कर ऐसा लगता है कि जैसे उन्होंने तय कर लिया है कि अब बात नहीं होगी, अब एक्शन होगा ।
जेके गौड़ ने सुभाष जैन को आश्वस्त किया है कि अपने गवर्नर-काल में वह उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवायेंगे । उस महान उपलब्धि को प्राप्त करने के लिए - सुभाष जैन को भी लगता है, और जेके गौड़ ने भी उन्हें समझाया है कि योगेश गर्ग का पक्का इंतजाम करना होगा । इसीलिए सुभाष जैन ने योगेश गर्ग की बात करने की पहल को ठुकरा दिया है । सुभाष जैन के इस रवैये से रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल में कुछ खास धमाका होने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है ।  

Wednesday, July 2, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल ने डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में पिछले लायन वर्ष में हुई डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अमान्य घोषित करके डिस्ट्रिक्ट के सत्ताधारियों को जो सबक दिया है, उसे वह सीखेंगे क्या और अपना काम नियमानुसार करेंगे क्या ?

नई दिल्ली । लायंस क्लब्स इंटरनेशनल बोर्ड ने डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री की वर्ष 2013-14 की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अमान्य घोषित कर दिया है और इसी के साथ सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हुए चुनाव में आरके शाह की जीत का फैसला भी स्वतः ही निरस्त हो गया है । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अमान्य करने की माँग दरअसल की ही इसलिए गई थी ताकि आरके शाह की चुनावी जीत के फैसले को पलटा जा सके । चुनावी मुकाबले में मात खाए नेताओं ने कॉन्फ्रेंस को निशाना बनाने के चोर दरवाजे का इस्तेमाल वास्तव में किया ही इसलिए था, ताकि वह चुनावी मुकाबले में मिली पराजय की धूल को साफ कर सकें । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के आयोजन में - या डिस्ट्रिक्ट की किसी भी गतिविधि में - नियमों का कितना/क्या पालन किया जाता है, इसे सब जानते ही हैं । नियमों का पालन न होने की आड़ लेकर डिस्ट्रिक्ट के बहुमत सदस्यों द्धारा किए गए फैसले को निरस्त कराने की चाल - का सफल होना - तिकड़मों वाली राजनीति के लिए कामयाबी व उपलब्धि की बात तो जरूर ही है; लेकिन इस 'सफलता' की कीमत डिस्ट्रिक्ट को और आने वाले गवर्नरों को किस रूप में चुकानी पड़ेगी, यह देखना दिलचस्प होगा ।
समझा जाता है कि पिछले लायन वर्ष के विरोधी खेमे ने जिन तरीकों से तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा की नाक में दम किए रखा, उन्हीं तरीकों का इस्तेमाल करने की इस वर्ष के विरोधी खेमे ने तैयारी की हुई है और उनकी तैयारी की जितनी जो सूचनाएँ चर्चा में हैं उनसे लगता नहीं है कि नरेश गुप्ता का गवर्नर-काल चैन से बीतेगा । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के बाद के डिस्ट्रिक्ट के माहौल को देखें - जिसमें पर्दे के पीछे सिर्फ गाली-गलौच हुई और एक-दूसरे को बदनाम करने की कोशिशें हुईं; आरोप-प्रत्यारोप लगाये गए । क्यों ? सिर्फ इस कारण से क्योंकि विरोधी खेमा अपनी चुनावी पराजय को हजम नहीं कर पाया और अपनी पराजय का बदला लेने के लिए हर तरह का धतकर्म करने पर उतारू हो बैठा । लायंस इंटरनेशनल के फैसले से इस वर्ष के विरोधी खेमे को जो झटका लगा है, उससे 'उबरने' के लिए उसने भी यदि उन्हीं 'तौर-तरीकों' को अपनाया तो कल्पना कीजिए कि किस तरह का माहौल बनेगा ?
पिछले लायन वर्ष में हुई डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अमान्य कराने और उसके जरिये सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आए चुनावी नतीजे को निरस्त कराने में कामयाब रही 'राजनीति' और उसके समर्थकों के लिए निश्चित ही बम-बम होने का समय है - लेकिन उनके लिए भी यह सोचने/विचार करने का अवसर है कि गंदी राजनीति और तिकड़म से प्राप्त की गई इस सफलता को वह कब तक और कैसे अपने साथ बनाये रख सकते हैं ? यहाँ इस मौके पर दीपक टुटेजा और पुरुषोत्तम गोयल के बीच हुए चुनाव को याद करना प्रासंगिक होगा - तिकड़म की 'राजनीति' ने तब पुरुषोत्तम गोयल के रूप में सफलता तो प्राप्त कर ली थी, लेकिन उसके बाद तिकड़म की उस राजनीति को लगातार पराजय का ही शिकार होना पड़ा है । तिकड़म की राजनीति से अभी जो लोग सफल हुए हैं, उनके लिए याद और ध्यान रखने की बात यही है कि डिस्ट्रिक्ट में हुए चुनावी मुकाबले में उन्हें बार-बार पराजय का ही सामना करना पड़ा है । जाहिर है कि उनके सामने असली चुनौती यही है कि वह कैसे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी साख और प्रतिष्ठा को बचाए/बढ़ाए - ताकि चुनावी मुकाबलों में भी जीतने का स्वाद वह चख सकें ।
डिस्ट्रिक्ट के लोग तो उनके साथ नहीं थे, इसीलिए वह बार-बार चुनाव हार रहे थे - लेकिन तिकड़मों को अंजाम देने का हुनर उनमें खूब था, और किस्मत उनके साथ थी; किंतु याद और ध्यान रखने की बात यही है कि तिकड़में और किस्मत हमेशा साथ नहीं देती हैं । तिकड़म और किस्मत से जो जीत उन्हें अभी मिल गई है, उसे यदि स्थाई रूप से वह अपने पास/साथ रखना चाहते हैं तो उन्हें अपना रवैया और तौर-तरीका बदलना पड़ेगा । अपना रवैया और तौर-तरीका वह यदि बदलेंगे तो उनका तो भला होगा ही होगा - डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म का भी भला होगा । लायंस इंटरनेशनल का फैसला वास्तव में उनके लिए भी सबक है - वह इस वर्ष चूँकि सत्ता में हैं, इसलिए उनके लिए सबक ज्यादा है । आगे क्या होगा, लायंस इंटरनेशनल के फैसले ने सत्ता में बैठे लोगों के लिए जो सबक दिया है - उससे किसने कितना सबक लिया है; यह जल्दी ही नजर आने लगेगा ।

Tuesday, July 1, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के विभाजित डिस्ट्रिक्ट में होने वाले दो चुनावों में पहले वाले चुनाव के लिए दीपक गुप्ता और दूसरे वाले चुनाव के लिए प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की 'व्यवस्था' ने चुनावी समीकरणों को उलट-पलट दिया है

गाजियाबाद । रोटरी क्लब वैशाली के सदस्यों ने अपने चार्टर प्रेसीडेंट प्रसून चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत करके न सिर्फ डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में खासी हलचल पैदा कर दी है, बल्कि चुनावी राजनीति के सत्ता-समीकरणों को भी उलट-पलट दिया है । क्लब के लोगों ने स्पष्ट कर दिया है कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लिए होने वाले दो चुनावों में दूसरे वाले चुनाव में प्रसून चौधरी उम्मीदवार होंगे । रोटरी क्लब वैशाली के सदस्यों द्धारा की गई इस घोषणा के साथ ही रोटरी क्लब गाजियाबाद के दीपक गुप्ता की तरफ से भी इस बात के संकेत मिले हैं कि दीपक गुप्ता विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लिए होने वाले दो चुनावों में पहले वाले चुनाव में उम्मीदवार होंगे । दीपक गुप्ता की तरफ से मिले इस संकेत ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उनकी उम्मीदवारी को लेकर चल रहे असमंजस को ख़त्म करने का काम तो किया ही है, साथ ही अरनेजा गिरोह द्धारा फैलाई जा रही अफवाह पर धूल डालने का काम भी किया है । उल्लेखनीय है कि अरनेजा गिरोह के नेता लोग पिछले कुछ समय से इस बात को हवा दे रहे थे कि उन्होंने दीपक गुप्ता को अपनी तरफ मिला लिया है और पहले वह शरत जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवायेंगे और फिर दीपक गुप्ता को । इस बात के चलते दीपक गुप्ता को अरनेजा गिरोह के उम्मीदवार के रूप में देखा जाने लगा । ऐसे में, विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लोगों का जो एक तबका अरनेजा गिरोह के खिलाफ संगठित होने की कोशिश कर रहा है, उस के लिए दीपक गुप्ता के खिलाफ उम्मीदवार लाने की कवायद शुरू करना जरूरी हो गया था । इससे दीपक गुप्ता के ऊपर भी दबाव बना कि वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर पैदा हो रहे असमंजस को जल्दी से जल्दी दूर करें ।
प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की प्रस्तुति ने दीपक गुप्ता को भी असमंजस में फँसी अपनी उम्मीदवारी के बाबत तुरंत से फैसला करने के लिए प्रेरित किया - और समझा जाता है कि उन्होंने पहले वाले मौके को पकड़ लिया है । विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लिए होने वाले दो चुनावों में पहले वाले चुनाव के लिए दीपक गुप्ता और दूसरे वाले चुनाव के लिए प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की 'व्यवस्था' ने चुनावी समीकरणों को उलट-पलट दिया है । दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी के बीच कोई चुनावी तालमेल बना है या नहीं, यह तो वे जानें - लेकिन जो हुआ है उससे विभाजित डिस्ट्रिक्ट में अरनेजा गिरोह की चौधराहट न जमने देने के लिए प्रयास कर रहे लोगों को बड़ा बल मिला है । उन्हें उम्मीद बनी है कि अब वह अरनेजा गिरोह की राजनीति को खूँटे से बाँध सकेंगे । दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी का अपना अपना जो समर्थन आधार है, उसका एक बड़ा हिस्सा कॉमन है । दरअसल यही बात दोनों की उम्मीदवारी के बीच एक दूसरे के साथ सहयोग वाला संबंध बनाने की जमीन तैयार करती है और एक दूसरे की स्थिति को मजबूत बनाने का काम करती है ।
प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की अचानक से हुई प्रस्तुति अरनेजा गिरोह में दरार डालने की जमीन भी तैयार करती है । उल्लेखनीय है कि प्रसून चौधरी के क्लब - रोटरी क्लब वैशाली को मुकेश अरनेजा के क्लब के रूप में पहचाना जाता है । पीछे हालाँकि कई मौकों पर रोटरी क्लब वैशाली को मुकेश अरनेजा की 'राजनीति' के खिलाफ खड़े देखा/पाया गया है लेकिन उसके बावजूद क्लब के और मुकेश अरनेजा के तार फिर फिर जुड़ते रहे हैं । 'फिर फिर जुड़ते रहे' तार को देखते/पहचानते हुए ही रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ लगातार दावा करते रहे कि प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी अभी नहीं आयेगी । उल्लेखनीय है कि प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की चर्चा पिछले काफी समय से सुनी जा रही है लेकिन चूँकि उसकी कोई स्पष्ट घोषणा नहीं हो रही थी इसलिए अरनेजा गिरोह के नेताओं को यह दावा करने का मौका मिल रहा था कि प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी उनकी हरी झंडी मिलने पर ही घोषित होगी । जेके गौड़ ने तो क्लब में फूट पड़वा कर प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की संभावना को ख़त्म ही कर देने का प्रयास किया था; लेकिन न तो उनका वह प्रयास सफल हो पाया और न ही प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी को ही वह रोक सके । कई लोगों को शक है कि प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी कहीं मुकेश अरनेजा का ही तो 'खेल' नहीं है । चार-छह दिन पहले ही, जेके गौड़ के क्लब के कार्यक्रम में आकर मुकेश अरनेजा जिस तरह की डींगें सुना चुके थे - उससे भी इस आशंका को बल मिला है ।
मुकेश अरनेजा दरअसल इस बात से बहुत खिन्न देखे गए हैं कि रमेश अग्रवाल उन्हें पीछे धकेलते जा रहे हैं और इस काम में जेके गौड़ भी रमेश अग्रवाल के साथ मिले हुए हैं । मुकेश अरनेजा ने ही नहीं, दूसरे लोगों ने भी पाया/महसूस किया है कि जेके गौड़ - मुकेश अरनेजा की बजाये रमेश अग्रवाल के साथ ज्यादा जुड़े हुए हैं । मुकेश अरनेजा ने शरत जैन को भी रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ के साथ ज्यादा नजदीक देखा/पाया है । ऐसे में मुकेश अरनेजा को डर हुआ है कि शरत जैन यदि गवर्नर बन गए तो यह तीनों तो मिलकर उन्हें घर ही बैठा देंगे । इसी पृष्ठभूमि में, मुकेश अरनेजा की राजनीति को जानने/समझने वाले लोगों को शक है कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट में जो राजनीति हो रही है उसे किसी न किसी रूप में मुकेश अरनेजा की शह है । विभाजित डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह से रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ के खिलाफ लामबंदी हो रही है, उसे रोकने और या कमजोर करने में मुकेश अरनेजा कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ की जैसी जो फजीहत हो रही है, उसे मुकेश अरनेजा जिस तरह चुपचाप बैठकर तमाशे की तरह देख रहे हैं उसमें लोगों को मुकेश अरनेजा की कोई अलग खिचड़ी पकती महसूस हो रही है । गौर करने वाला तथ्य यह है कि अभी कुछ दिन पहले तक, सीओएल का चुनाव होने तक मुकेश अरनेजा का रवैया ऐसा न था । सीओएल के चुनाव में मुकेश अरनेजा ने रमेश अग्रवाल को जितवाने के लिए अथक प्रयास किए थे । किंतु सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल को मिली पराजय के बाद से मुकेश अरनेजा बदले-बदले से नजर आ रहे हैं ।
समझा जाता है कि सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल की पराजय ने मुकेश अरनेजा को यह अहसास करवा दिया कि डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल के खिलाफ ऐसा माहौल है, जिसमें वह यदि उनके और जेके गौड़ के साथ रहे तो उनके साथ-साथ खुद भी डूबेंगे । यह अहसास होने के साथ ही मुकेश अरनेजा ने रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ के पचड़ों से दूर होना और 'दिखना' शुरू कर दिया है । कुछ लोगों को हालाँकि यह भी लगता है कि 'यह' मुकेश अरनेजा की सिर्फ एक चाल भर है और वह उन दोनों के साथ ही हैं । लेकिन कई लोगों का तर्क है कि रमेश अग्रवाल ने जिस तरह उनकी ऊँगली पकड़ कर सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ी और सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते उन्हें नीचे धकेलते गए हैं और जिस तरह उन्होंने जेके गौड़ को भी अपने साथ मिला लिया है, उससे मुकेश अरनेजा ने सबक लिया है और अब वह उन्हें और कामयाब नहीं होने देंगे । रमेश अग्रवाल कामयाब न हों, इसके लिए जरूरी है कि शरत जैन की राह में रोड़े पड़े । यह रोड़े यदि अपने आप पड़ रहे हैं, तो मुकेश अरनेजा को चुपचाप बैठे तमाशा देखने में भी 'बहुत कुछ करने' का मजा आ रहा होगा ।
राजनीति का - किसी भी चुनावी राजनीति का एक फंडा बड़ा क्लियर होता है और वह यह कि 'आप यदि साथ नहीं हैं', तो इसका बहुत स्पष्ट मतलब है कि 'आप खिलाफ हैं' ।
विभाजित डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति जो शक्ल लेती दिख रही है - उसमें रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ की जैसी जो फजीहत हो रही है - उसके प्रति मुकेश अरनेजा का जो रवैया है, उससे साफ दिख रहा है कि वह रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ के साथ नहीं हैं । मुकेश अरनेजा उनके खिलाफ हो गए हैं या नहीं, यह जानने के लिए अभी थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा । दरअसल मुकेश अरनेजा कोई कदम उठाने से पहले आश्वस्त हो लेना चाहेंगे कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल के खिलाफ लामबंदी होने की जो सुगबुगाहट है, वह कोई निर्णायक रूप ले पाती है या नहीं । मुकेश अरनेजा वास्तव में 'चलती हुई ट्रेन' में चढ़ने वाले खिलाड़ी हैं । इस नाते वह इंतजार करना चाहेंगे और देखना चाहेंगे कि कौन उम्मीदवार अपना पलड़ा भारी कर पाता है । जिसका पलड़ा भारी दिखेगा, मुकेश अरनेजा उसकी उम्मीदवारी का झंडा उठा लेंगे । आगे क्या होगा, यह तो आगे पता चलेगा - अभी लेकिन प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने से विभाजित डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का नजारा दिलचस्प तथा उथल-पुथल भरा हो गया है ।