Thursday, May 23, 2013

लॉयंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में विनोद खन्ना और जेपी सिंह की अपना 'धंधा' बचाने की कोशिश को प्रमोद सेठ से मदद मिलेगी क्या ?

नई दिल्ली । पहले डिस्ट्रिक्ट में और फिर मल्टीपल में डिस्ट्रिक्ट-विभाजन के मुद्दे पर हार और लताड़ का सामना करने वाले पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना और इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने का सपना देखने वाले जेपी सिंह ने लगता है कि अभी भी हार नहीं मानी है और अब वह मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन प्रमोद सेठ से 'बेईमानी' करवा कर डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को रुकवाने की तिकड़में भिड़ा रहे हैं । विनोद खन्ना और जेपी सिंह को विश्वास है कि अभी तक के उनके हथकंडे भले ही फेल हो गए हों, लेकिन प्रमोद सेठ के रूप में उनके पास आख़िरी हथियार अभी बचा हुआ है । उनका मानना है कि प्रमोद सेठ से तो वह जो चाहें करवा लेंगे । प्रमोद सेठ ने हालाँकि इन पंक्तियों के लेखक से बात करते हुए दावा तो किया है कि लॉयंस इंटरनेशनल को भेजी जाने वाली रिपोर्ट में वही लिखा जायेगा जो मल्टीपल काउंसिल की मीटिंग में हुआ है । लेकिन विनोद खन्ना और जेपी सिंह का कहना है कि प्रमोद सेठ लॉयंस इंटरनेशनल में उस रिपोर्ट को भेजेंगे जिसे वह लिखवायेंगे । विनोद खन्ना और जेपी सिंह का कहना है कि प्रमोद सेठ से मनमाफिक रिपोर्ट लिखवाने में उन्हें जगदीश गुलाटी का भी सहयोग मिलेगा । डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के विभाजन में दिलचस्पी रखने वाले मल्टीपल के लोगों का मानना और कहना है कि विनोद खन्ना और जेपी सिंह इतने षड्यंत्रकारी और धोखेबाज किस्म के व्यक्ति हैं कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं ।
डिस्ट्रिक्ट और मल्टीपल के लोगों को हैरानी लेकिन इस बात की है कि जब डिस्ट्रिक्ट में बहुसंख्यक सदस्य विभाजन के पक्ष में हैं तब विनोद खन्ना और जेपी सिंह इस विभाजन को रोकने के लिए हाय-तौबा क्यों मचाये हुए हैं ? उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को रोकने के लिए विनोद खन्ना और जेपी सिंह ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी तथा इस खातिर पहले डिस्ट्रिक्ट में और फिर मल्टीपल में हर तरह का अपमान और जलालत सहने तक को तैयार हुए । पहले डिस्ट्रिक्ट में और फिर मल्टीपल में इन दोनों की जितनी बेइज्जती हुई है उतनी लॉयनिज्म के इतिहास में शायद कभी किसी की नहीं हुई होगी, लेकिन फिर भी यह दोनों अभी भी डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को रोकने के लिए तिकड़में करने से बाज नहीं आ रहे हैं । ऐसे में, इनके विरोधियों को एक बार फिर यह कहने का मौका मिला है कि डिस्ट्रिक्ट का विभाजन हो जाने से चूँकि इनका धंधा चौपट हो जायेगा, इसलिए यह डिस्ट्रिक्ट को विभाजित नहीं होने देना चाहते हैं । उल्लेखनीय है कि विनोद खन्ना और जेपी सिंह पर लॉयनिज्म को धंधा बना लेने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं - लेकिन अब इस आरोप पर वह लोग भी विश्वास करने लगे हैं जो अभी तक इन दोनों के साथ थे और इस तरह के आरोप को सच नहीं मानते थे । इनके साथ रहे लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को रोकने के लिए विनोद खन्ना और जेपी सिंह जिस तरह की हरकतें कर रहे हैं और मल्टीपल के बड़े नेताओं से लेकर आम लॉयन सदस्यों तक के लांछनों तक का शिकार हो रहे हैं, अपमानित हो रहे हैं - उसे देख कर लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट का विभाजन जैसे इनकी रोजी रोटी छीन लेगा । विनोद खन्ना और जेपी सिंह की हरकतों ने डिस्ट्रिक्ट के उन सदस्यों को भी विभाजन के पक्ष में कर दिया है जो पहले इनके साथ थे और विभाजन का विरोध कर रहे थे । यही कारण रहा कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर अच्छी पकड़ रखने वाले विनोद खन्ना और जेपी सिंह विभाजन के मुद्दे पर हुई वोटिंग में तीस से अधिक वोटों से हार गए ।
डिस्ट्रिक्ट के विभाजन के पक्ष में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हुए फैसले को मल्टीपल में निरस्त करवाने की विनोद खन्ना और जेपी सिंह की जोड़ी ने हर तरह की तिकड़म की - लेकिन वहाँ भी उनकी दाल नहीं गली । मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में मौजूद दूसरे डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों के बीच भी इन दोनों की पोल खूब खुली और इनकी जबर्दस्त ले-दे हुई - लेकिन यह दोनों पूरी बेशर्मी के साथ अपना 'धंधा' बचाने के अभियान में लगे रहे । मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में इंटरनेशनल डायरेक्टर जगदीश गुलाटी ने जब इनका पक्ष लेने की कोशिश की तो वहाँ मौजूद लोगों ने उनकी भी फजीहत करना शुरू कर दी - तब जगदीश गुलाटी भी चुप लगा गए । विनोद खन्ना और जेपी सिंह को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की तैयारी में लगे नरेश अग्रवाल से मदद मिलने की उम्मीद थी - लेकिन माहौल को पूरी तरह इनके खिलाफ भाँप कर नरेश अग्रवाल ने भी चुप रहने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । मल्टीपल में अपमान, जलालत और हार का सामना करने के बाद विनोद खन्ना और जेपी सिंह की उम्मीद अब मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन प्रमोद सेठ पर टिकी है । प्रमोद सेठ को चूँकि इन लोगों के 'सिपाही' के तौर पर ही देखा/पहचाना जाता है इसलिए कई लोगों को विश्वास है कि प्रमोद सेठ वही करेंगे, जो विनोद खन्ना और जेपी सिंह कहेंगे/चाहेंगे । प्रमोद सेठ ने हालाँकि इन पंक्तियों के लेखक से बात करते हुए दावा किया है कि चेयरपरसन के रूप में वह लॉयंस इंटरनेशनल को वही लिखेंगे जो हुआ है - लेकिन मल्टीपल के लॉयंस के बीच उनकी जैसी कु(ख्याति) है उसके चलते कई लोगों को लगता है कि प्रमोद सेठ डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के सदस्यों के साथ विनोद खन्ना और जेपी सिंह के दबाव में बेईमानी कर सकते हैं ।
विनोद खन्ना और जेपी सिंह के लिए डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू का विभाजन दरअसल उनके अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों का ही कहना है कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की इच्छा रखने वाले लोगों तथा डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में जगह पाने के इच्छुक लोगों से पैसे ऐंठने का इनका धंधा तो पूरी तरह ही चौपट हो जायेगा । अभी चूँकि बड़ा डिस्ट्रिक्ट है, इसलिए यह अपने विरोध को मैनेज कर लेते हैं - लेकिन डिस्ट्रिक्ट जब छोटा हो जायेगा, तब अपनी बेईमानियों के खिलाफ उठने वाली आवाजों को नियंत्रित करना इनके लिए मुश्किल होगा और तब डिस्ट्रिक्ट में न इनकी राजनीतिक चौधराहट चल पायेगी और न लॉयनिज्म की आड़ में चलने वाला इनका धंधा बना रह पायेगा । अपनी राजनीति और अपने धंधे को बनाये/बचाये रखने के लिए डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को रोकना ही इनके लिए एकमात्र उपाय है । यह देखना दिलचस्प होगा कि अपने धंधे को बचाने की इनकी कोशिश में मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन प्रमोद सेठ इनके मददगार होते हैं या अपनी इज्जत और अपनी साख बचाते हैं ।

Thursday, May 9, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद सँभालने की तैयारी कर रहे विनोद बंसल क्या रोटरी के बड़े नेताओं के बीच अपनी पैठ के भरोसे अपने डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स को अपमानित करने का काम कर रहे हैं

नई दिल्ली । सुशील खुराना के लिए यह समझना जब मुश्किल हुआ तो उन्होंने इसकी पड़ताल की कि विनोद बंसल ने डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयर) का पद जब उन्हें दिया है तो इस पद का काम वह आशीष घोष से क्यों करवा रहे हैं ? अपनी पड़ताल में सुशील खुराना को पता चला कि ऐसा इसलिए है क्योंकि विनोद बंसल जानते हैं कि डीआरएफसी पद की जिम्मेदारी सुशील खुराना की बजाये आशीष घोष ज्यादा अच्छी तरह निभा सकते हैं - और विनोद बंसल चूँकि अपने काम में परफेक्शन चाहते हैं इसलिए उन्होंने डीआरएफसी का काम सुशील खुराना की बजाये आशीष घोष से कराया । इस बात को लेकर सुशील खुराना के नाराज होने का विनोद बंसल को जब पता चला तो उन्होंने सुशील खुराना की नाराजगी को यह कहते हुए इग्नोर करने की कोशिश की कि सुशील खुराना को इस बात पर नाराज होने का हक़ इसलिए नहीं है क्योंकि सुशील खुराना को यह पद कम्प्रोमाइज के तहत ही मिला है । विनोद बंसल के इस रवैये ने सुशील खुराना को बुरी तरह अपमानित और आहत किया है । सुशील खुराना क्या 'कम्प्रोमाइज डीआरएफसी' हैं ? यह सच है कि इस पद के लिए दो दावेदार थे - सुशील खुराना और आशीष घोष । इस पद की नियुक्ति का जिम्मा विनोद बंसल और संजय खन्ना का था । सुशील खुराना का नाम विनोद बंसल ने प्रस्तावित किया था और आशीष घोष का नाम संजय खन्ना ने दिया था । विनोद बंसल ने तरह-तरह के दबाव बना कर संजय खन्ना को सुशील खुराना के नाम पर राजी कर लिया और इस तरह सुशील खुराना को डीआरएफसी का पद मिल गया । क्या इस आधार पर सुशील खुराना को 'कम्प्रोमाइज डीआरएफसी' कहा जायेगा ?
सुशील खुराना के एक नजदीकी ने चुटकी ली कि विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने वाले लोगों ने उनका रास्ता आसान बनाने के लिए रवींद्र सिंह को अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए राजी किया था, तो क्या विनोद बंसल को 'कम्प्रोमाइज डिस्ट्रिक्ट गवर्नर' कहा जाये और विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की कुछेक जिम्मेदारियाँ निभाने का मौका क्या रवींद्र सिंह को देंगे ? जिन भी लोगों के सामने यह किस्सा आया उन सभी का मानना और कहना है कि सुशील खुराना को 'कम्प्रोमाइज डीआरएफसी' कहना और उनका काम किसी और से करवाना सुशील खुराना को जानबूझ कर अपमानित करना है । जिन भी लोगों के सामने यह किस्सा आया उनके लिए हैरानी की बात यह भी रही कि विनोद बंसल को जब यह लगता है कि डीआरएफसी पद की जिम्मेदारी सुशील खुराना की बजाये आशीष घोष ज्यादा अच्छे से निभायेंगे और आशीष घोष का नाम इस पद के लिए प्रस्तावित भी हुआ था, तो उन्होंने आशीष घोष को ही इस पद के लिए क्यों नहीं चुना ? आशीष घोष और संजय खन्ना के साथ वर्षों की अपनी दोस्ती होने की बात वह खुद ही लोगों को बताते भी हैं । तब भी उन्होंने सुशील खुराना का समर्थन करके इन दोनों को अपमानित करने का काम क्यों किया ? इस सवाल का लोगों को जबाव यह मिला कि आशीष घोष के साथ और आशीष घोष का नाम प्रस्तावित करने वाले संजय खन्ना के साथ विनोद बंसल की भले ही वर्षों की दोस्ती रही है, और वह भले ही आशीष घोष को डीआरएफसी पद के लिए सर्वथा उपयुक्त समझते हैं - लेकिन फिर भी उन्होंने आशीष घोष को इस पद पर आने से रोकने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया तो इसलिए क्योंकि उन्हें डर था कि आशीष घोष के होते हुए वह रोटरी फाउंडेशन से आने वाली ग्रांट्स में अपनी मनमानी नहीं कर पायेंगे ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी फाउंडेशन से आने वाली ग्रांट्स को संभव करने में डीआरएफसी के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं - आशीष घोष चूँकि नियम-कायदे से काम करने वाले व्यक्ति हैं, इसलिए विनोद बंसल को डर रहा कि आशीष घोष कहीं-कहीं अड़ंगा डाल देंगे; सुशील खुराना 'भले' व्यक्ति हैं - विनोद बंसल को भरोसा रहा कि सुशील खुराना से तो वह जहाँ चाहेंगे वहाँ 'अँगूठा' लगवा लेंगे । इसलिए उन्होंने आशीष घोष की बजाये सुशील खुराना को डीआरएफसी बनवाने पर जोर दिया । इस तरह विनोद बंसल ने ग्रांट्स में मनमानी करने का रास्ता साफ कर लिया और काम कराने के लिए उन्होंने आशीष घोष को राजी कर लिया । विनोद बंसल ने सोचा यह था कि सुशील खुराना पद पाकर ही खुश रहेंगे और इस बात पर ध्यान नहीं देंगे कि पद पर होने के बावजूद उन्हें पर्याप्त तवज्जो नहीं मिल रही है । विनोद बंसल की यह बदकिस्मती रही कि सुशील खुराना सिर्फ रबर स्टैम्प बन कर रहने को तैयार नहीं हुए और उन्होंने अपनी नाराजगी को जाहिर किया । इसके बाद विनोद बंसल ने जो कहा, उससे सुशील खुराना को और ज्यादा अपमानित होना पड़ा । इस किस्से को जो लोग पूरा पूरा जानते हैं उनका कहना है कि विनोद बंसल का यह विचित्र रवैया रहा जिसमें उन्होंने पहले तो संजय खन्ना और आशीष घोष को अपमानित किया और फिर इन्हें अपमानित करके जिन सुशील खुराना को खुश किया था, उन्हें अपमानित किया । इस तरह, विनोद बंसल ने दूसरों को अपमानित करने के अपने विशेष हुनर को प्रदर्शित किया ।
संजय खन्ना, आशीष घोष और सुशील खुराना के साथ विनोद बंसल ने यह जो किया, वह तो उसके सामने कुछ भी नहीं जो उन्होंने वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश जैन के साथ किया । सुरेश जैन वर्ष 2001-02 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर थे । सुरेश जैन ने डिस्ट्रिक्ट को रोटरी हेबिटेट सेंटर जैसी अद्भुत सौगात दी है । रोटरी हेबिटेट सेंटर की कल्पना करने और फिर उस कल्पना को संभव करने का काम सुरेश जैन ने लगभग अकेले ही किया है । रोटरी में, किसी रोटेरियन के अकेले दम पर पूरे होने वाले स्थाई महत्व के गिने-चुने ही प्रोजेक्ट होंगे - उनमें एक सुरेश जैन की पहल और सक्रियतापूर्ण संलग्नता के चलते पूरा हुआ डिस्ट्रिक्ट 3010 का रोटरी हेबिटेट सेंटर है । इस प्रोजेक्ट के लिए सुरेश जैन की तारीफ होनी चाहिए, लेकिन सुरेश जैन को विनोद बंसल से कड़ी फटकार सुनने को मिली । हुआ यह कि विनोद बंसल ने अपना एक कार्यक्रम रोटरी हेबिटेट सेंटर में आयोजित किया और वहां उन्हें कुछ अव्यवस्था का शिकार होना पड़ा । उस अव्यवस्था के लिए विनोद बंसल ने सुरेश जैन को खूब खरी-खोटी सुनाई । 'सुरेश जैन कौन हैं', 'सुरेश जैन क्या हैं', 'मैं देखता हूँ कि यहाँ कैसे कार्यक्रम होते हैं' आदि-इत्यादि डायलॉग विनोद बंसल ने सार्वजनिक रूप से बोले । जो लोग उस कार्यक्रम में थे, उनमें से जिनसे भी इन पंक्तियों के लेखक की बात हो सकी उन सभी का कहना रहा कि व्यवस्था में बदइंतजामी तो थी, और विनोद बंसल का नाराज होना स्वाभाविक ही था - लेकिन वह जिस तरह 'आउट ऑफ द प्रोपोर्शन' नाराज हुए उसे देख कर ऐसा लगा जैसे सुरेश जैन के खिलाफ उनके मन में पहले से ही बहुत-सा जहर भरा हुआ था जो मौका मिलते ही फूट पड़ा । लोगों के अनुसार बदइंतजामी तो विनोद बंसल के पेट्स और सेट्स कार्यक्रम में भी बहुत थी । पेट्स में जो हुआ उसके किस्से 'रचनात्मक संकल्प' में पहले बताये जा चुके हैं, सेट्स में उससे कोई सबक नहीं सीखा गया । सेट्स में तो आलम यह हुआ कि लोगों को जो कमरे अलॉट हुए, उन्हें फिर बार-बार बदला गया । लोग अपना सामान लेकर इधर से उधर भटकने के लिए मजबूर हुए - लेकिन वहाँ तो विनोद बंसल ने कोई नाराजगी नहीं दिखाई । वहाँ तो वह लोगों को समझा रहे थे कि कुछ करने में परेशानी तो उठानी ही पड़ती है । अपने पेट्स और सेट्स में बदइंतजामी पर पर्दा डालने की कोशिश करने वाले विनोद बंसल रोटरी हेबिटेट सेंटर की बदइंतजामी पर आपे से बाहर हुए और उन्होंने सुरेश जैन जैसे वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को अपमानित किया - जाहिर है कि यह सिर्फ बदइंतजामी से पैदा हुआ गुस्सा नहीं था ।
विनोद बंसल को जो लोग जानते हैं, उनके लिए विनोद बंसल का यह रवैया बेहद चौंकाने वाला है - क्योंकि उन्होंने विनोद बंसल को हमेशा ही बहुत भले रूप में देखा/पाया है । लोगों ने विनोद बंसल को प्रायः आगे बढ़ कर दूसरों को सम्मान देते हुए ही देखा/पाया है । कुछ लोगों को उनके व्यवहार में चतुराई के तत्व जरूर दिखते रहे हैं लेकिन उसके पीछे अपना काम निकालने का स्वार्थ प्रेरक रहा होता है - उससे आगे जाकर वह दूसरों को अपमानित करें, यह कभी किसी ने नहीं देखा । लेकिन पिछले कुछ समय से विनोद बंसल का रवैया बदला-बदला सा दिखा है । संजय खन्ना-आशीष घोष-सुशील खुराना के साथ उन्होंने जहाँ तक खेल किया, वहाँ तक उनकी 'चतुराई' थी - उसमें कोई बहुत शिकायत की बात नहीं हो सकती है; लेकिन जहाँ उन्होंने सुशील खुराना को अपमानित करना शुरू किया, वहाँ उनका बदला हुआ रूप दिखा । सुरेश जैन के साथ विनोद बंसल ने जो किया, उसकी तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है । जो लोग घटना-स्थल पर मौजूद नहीं थे, उनके लिए तो यह विश्वास करना ही मुश्किल होगा कि विनोद बंसल ऐसा कर भी सकते हैं । समझा जाता है कि विनोद बंसल को आजकल रोटरी के बड़े नेताओं के यहाँ जो तवज्जो मिल रही है, उसका असर है कि वह अपने डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स को अपमानित करने तक की हद तक जा रहे हैं । उल्लेखनीय है कि विनोद बंसल आरआईडी (रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर) शेखर मेहता की गुड बुक में तो हैं ही; आरआईडीई (रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट) पीटी प्रभाकर के यहाँ भी उन्होंने अच्छी पैठ बना ली है; आरआईडी'एफ' (रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर 'फ्यूचर') कमल सांघवी तो उनके यार हो गए हैं । कमल सांघवी से पहले जो कोई भी इंटरनेशनल डायरेक्टर बनेगा, विनोद बंसल उससे भी तार जोड़ ही लेंगे । इस तरह, लोगों को लगता है कि जब आने वाले छह-आठ वर्षों के इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद बंसल की जेब में हैं तो फिर उन्हें अपने डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स की परवाह करने की भला क्या जरूरत है ? और जब जरूरत नहीं है, तो फिर उन्हें अपमानित करने में हिचकना क्या ? संजय खन्ना, आशीष घोष, सुशील खुराना और सुरेश जैन के साथ विनोद बंसल ने जो किया उसे बड़े नेताओं की नजदीकी से पैदा हुए उनके '(अति)विश्वास' के नतीजे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स के बीच आजकल उत्सुकता और चर्चा का विषय यही है कि विनोद बंसल का अगला निशाना कौन बनता है ?

Saturday, May 4, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभालने की तैयारी कर रहे अनुपम बंसल क्या अपना क्लब छोड़ने की फ़िराक में हैं ?

लखनऊ । लखनऊ में एक नए क्लब के बनने की चर्चा के साथ अनुपम बंसल के लायंस क्लब लखनऊ अभिलाषा छोड़ने की कानाफूसी तेज हो गई है । उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों संपन्न हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हुए चुनाव में विशाल सिन्हा की पराजय के बाद गुरनाम सिंह खेमे की तरफ से भूपेश बंसल के लिए जिस तरह की गाली-गलौज की गई, उसे देखते हुए अनुपम बंसल के लिए अपने क्लब में बने रह पाना मुश्किल लग रहा है । अनुपम बंसल का क्लब दरअसल उनका कम और भूपेश बंसल का ज्यादा माना जाता है - यह बात अनुपम बंसल के लिए इसलिए और भी मुसीबतभरी है क्योंकि उन्हें गुरनाम सिंह के साथ ही रहना है । अनुपम बंसल के अभी तक के रवैये से लोगों ने यही निष्कर्ष निकाला हुआ है कि अनुपम बंसल के सामने गुरनाम सिंह और भूपेश बंसल में से किसी एक को चुनने की नौबत आई तो वह गुरनाम सिंह को ही चुनेंगे । विशाल सिन्हा की चुनावी हार से गुरनाम सिंह की राजनीतिक चौधराहट का जो रायता फैला है उसे समेटने का वह हर संभव प्रयास करेंगे ही और इस प्रयास में उन्हें भूपेश बंसल से ही चुनौती मिलने का डर है । अपनी राजनीतिक चौधराहट के फैले रायते को समेटने में गुरनाम सिंह को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनुपम बंसल की मदद चाहिए ही होगी, इसलिए गुरनाम सिंह की कोशिश है कि अनुपम बंसल पूरी तरह से भूपेश बंसल की छाया से बाहर आ जाये । अब जब गुरनाम सिंह ऐसा चाहते हैं, तो अनुपम बंसल को यह करना ही होगा ।
अनुपम बंसल ने अपने तमाम फैसलों से भूपेश बंसल को अलग-थलग ही रखा है और दूसरे लोगों की तरह भूपेश बंसल को भी अनुपम बंसल के तमाम फैसलों की जानकारी तभी मिली - जब वह लिए जा चुके थे । अपनी इस उपेक्षा के बावजूद भूपेश बंसल ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे क्लब में अनुपम बंसल के लिए समस्या पैदा हो । अनुपम बंसल के लिए क्लब में लेकिन समस्याएँ तो फिर भी पैदा हुईं - और अनुपम बंसल ने उनके लिए भूपेश बंसल को ही जिम्मेदार माना । पिछले दिनों संपन्न हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में अनुपम बंसल समर्थन तो कर रहे थे विशाल सिन्हा का, लेकिन उनके क्लब के वोट जा रहे थे शिव कुमार गुप्ता के पास - क्योंकि क्लब के वोटों पर कब्ज़ा भूपेश बंसल का था । भूपेश बंसल से कह-सुन कर अनुपम बंसल ने हालाँकि क्लब के पाँच वोटों में से दो वोट ले लिए थे, लेकिन इस सब चक्कर में अनुपम बंसल की किरकिरी भी हुई ही । अनुपम बंसल ने क्लब के लोगों को और भूपेश बंसल को तवज्जो नहीं दी, तो क्लब के लोगों ने भी उन्हें अकेला छोड़ दिया । अनुपम बंसल और संजय चोपड़ा व शिव कुमार गुप्ता को सम्मानित करने के वास्ते होने वाले कार्यक्रम की तैयारी के लिए जो मीटिंग बुलाई गई उसमें अनुपम बंसल के क्लब से कोई भी नहीं पहुंचा । अनुपम बंसल के लिए सार्वजनिक रूप से यह खासा तगड़ा झटका था । अनुपम बंसल को खुश करने में तथा अनुपम बंसल को भूपेश बंसल से दूर करने में लगे लोगों ने इस झटके के पीछे भूपेश बंसल को पहचाना और बताया । शायद, अनुपम बंसल ने भी उनकी बात को सच माना । हालाँकि क्लब के लोगों का कहना रहा कि अनुपम बंसल ने अपने रवैये से और गुरनाम सिंह के साथ बने रहने के अपने फैसले से क्लब के लोगों को अपने खिलाफ कर लिया है ।
कारण चाहे जो भी हो, यह सभी को दिखने लगा कि अनुपम बंसल के गुरनाम सिंह के साथ होने के कारण अपने क्लब में 'बने' रहना मुश्किल ही होगा - बने भी रहेंगे तो गुरनाम सिंह की मनमानियों को पूरा नहीं करवा सकेंगे । इसीलिये गुरनाम सिंह भी अनुपम बंसल पर दबाव बना रहे थे कि वह लायंस क्लब लखनऊ अभिलाषा छोड़ें तथा अन्य किसी क्लब में जाएँ या कोई नया क्लब बनाएँ । इस बीच एक नया क्लब बनने की सुगबुगाहट शुरू हुई जिसके पीछे अनुपम बंसल के नजदीकियों को देखा/पहचाना गया है । इससे इस बात को बल मिला कि इस नए क्लब के बनने के बाद अनुपन बंसल इसमें अपना ट्रांसफर ले लेंगे । इस मुद्दे पर अनुपम बंसल ने हालाँकि चुप्पी ही बनाये रखी है, लेकिन अधिकतर लोगों का यही मानना और कहना है कि लायंस क्लब लखनऊ अभिलाषा में अनुपम बंसल के दिन बस अब गिने-चुने ही हैं । 

Friday, May 3, 2013

हैदराबाद में आयोजित हो रही 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' के आयोजन के जरिये शेखर मेहता और कमल सांघवी क्या एक-दूसरे को इस्तेमाल कर रहे हैं

धनबाद/कोलकाता । कमल सांघवी हैदराबाद में आयोजित हो रही 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' के जरिये क्या रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद तक पहुँचने की तिकड़म बना/लगा रहे हैं ? अभी तक यह सवाल उनके डिस्ट्रिक्ट के लोगों की जुबान पर था, लेकिन अब यह दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच भी चर्चा का विषय है । कमल सांघवी खुशकिस्मत हैं कि जो लोग उन्हें नहीं भी जानते हैं और/या उनके इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में जिनकी कहीं कोई भूमिका नहीं होनी है, वह भी इस सवाल के जबाव में उनके समर्थक बन जाते हैं और प्रश्न का जबाव देने की बजाये प्रतिप्रश्न करते हैं कि कमल सांघवी यदि ऐसा कर भी रहे हैं तो क्या गलत कर रहे हैं ? लेकिन इन नादान किस्म के लोगों की इस तरह की पैरवी कमल सांघवी की इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की तिकड़म की बात को और पुष्ट करने का ही काम कर रही है । ऐसे में, कमल सांघवी के लिए इस 'आरोप' के घेरे से खुद को बाहर निकालना और मुश्किल हो गया है ।
हैदराबाद में आयोजित हो रही 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' को कमल सांघवी की इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की तिकड़म से जोड़ने की बात को दरअसल इसलिए हवा मिली क्योंकि रोटरी के तमाम बड़े नेता इस आयोजन की प्रासंगिकता और जरूरत को समझने/पहचानने में असफल रहे हैं । चूँकि इस तरह के किसी आयोजन की बात रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्था में नहीं है इसलिए तमाम बड़े नेताओं के लिए यह समझना बड़ा मुश्किल हुआ कि यह समिट आखिर हो किसलिए रही है । रोटरी के कई एक बड़े नेताओं ने इन पंक्तियों के लेखक का ध्यान इस तथ्य की तरफ दिलाया कि रोटरी इंटरनेशनल के प्रत्येक कार्यक्रम का एक खास डिजाइन है, उसका एक उद्देश्य है और इस कारण उसका एक टारगेट ऑडिएंस होता है । तथाकथित 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' एक ऐसा आयोजन है, जिसका कोई डिजाइन नहीं है और इसलिए उसका कोई निश्चित उद्देश्य नहीं है और यही कारण है कि उसका कोई टारगेट ऑडिएंस नहीं है । समिट में कौन रोटेरियन शामिल होने का अधिकारी है, इसका कोई मापदण्ड तय नहीं किया गया है । यह इसीलिये नहीं किया गया क्योंकि इसका एकमात्र उद्देश्य यह 'दिखाना' है कि आयोजक लोग कितनी भीड़ इकट्ठी कर सकते हैं । इसी वजह से हैदराबाद में आयोजित हो रही समिट में ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है, जिनके लिए रोटरी तफरीह का दूसरा नाम है । यहाँ तमाम लोग ऐसे हैं जो अपने क्लब की मीटिंग्स में ही कभी-कभार जाते हैं और डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में तो शायद ही कभी गए होंगे - यानि उन्हें न तो रोटरी में कोई दिलचस्पी है और न ही कभी उन्हें प्रेरित करने की जरूरत ही समझी गई ।
समझा जा सकता है कि जो रोटेरियन बेचारा कभी डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में नहीं गया वह यहाँ - तथाकथित रोटरी साऊथ एशिया समिट में क्या करने आया होगा ? जाहिर है कि वह आया नहीं है, उसे 'लाया गया' है । समिट के आयोजकों की तरफ से डिस्ट्रिक्ट के नेताओं से पूछा गया कि कितने लोग हैदराबाद लाओगे - डिस्ट्रिक्ट के नेताओं ने अपनी हैसियत और आयोजकों के निगाह में चढ़ने की जरूरत के हिसाब से लोगों की संख्या बता दी; कुछेक डिस्ट्रिक्ट के नेताओं ने अपनी बताई संख्या के हिसाब से रजिस्ट्रेशन का पैसा भी अपनी ही जेब से भर दिया । डिस्ट्रिक्ट 3120 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सतपाल गुलाटी बेचारे को यह अहसान उतारने के एवज में करना पड़ा । उल्लेखनीय है कि सतपाल गुलाटी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के लिए पिछले रोटरी वर्ष में हुए चुनाव में हार गए थे । उन्हें चुनाव लड़ाने वाले डिस्ट्रिक्ट के उनके आका जब उन्हें सीधे मुकाबले में चुनाव नहीं जितवा सके तो उन्होंने चोर दरवाजे से सतपाल गुलाटी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनवाने का बीड़ा उठाया । उनके आकाओं के तार चूँकि इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता से जुड़े हैं, इसलिए शेखर मेहता की मदद से एक 'शिकायती खेल' हुआ और सतपाल गुलाटी को हारी हुई बाजी जितवा दी गई । शेखर मेहता का उन पर यह अहसान था, इसलिए 'रोटरी साउथ एशिया समिट' के प्रमुख कर्ता-धर्ता के रूप में शेखर मेहता ने जब उनसे पूछा कि कितने लोग हैदराबाद लाओगे तो उन्होंने झट से कई लोगों के रजिस्ट्रेशन का पैसा उन्हें भेज दिया । बाद में वह उतने लोगों का जुगाड़ करने में जुटे । यह पता हालाँकि अभी नहीं लग पाया है कि उन्होंने जितने लोगों का रजिस्ट्रेशन करवाया था, उतने लोगों का जुगाड़ वह कर पाए या नहीं ? इस 'तरकीब' से जो आयोजन हो रहा हो उसके बारे में लोगों का यह सोचना स्वाभाविक ही है कि इसके पीछे असल उद्देश्य क्या है ?
हैदराबाद में आयोजित हो रही 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' में जिस तरह से और जिस तरह के लोगों को जुटाया गया है उससे 'दिखा' यही है कि इस तथाकथित समिट के आयोजकों का मुख्य उद्देश्य भीड़ इकट्ठी करके अपना उल्लू सीधा करना है । यह समिट शेखर मेहता के दिमाग की उपज है और इसे संभव करने के लिए उन्होंने कमल सांघवी पर भरोसा किया । शेखर मेहता ने वर्ष 2011 में कोलकाता में आयोजित किये रोटरी इंस्टीट्यूट के आयोजन में भी कमल सांघवी पर भरोसा किया था । उस समय भी कुछेक लोगों के जहन में यह बात आई थी कि शेखर मेहता इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का लालच दिखा कर कमल सांघवी को इस्तेमाल कर रहे हैं । इस समिट में शेखर मेहता ने जब एक बार फिर कमल सांघवी को 'आगे' रखा - तो वही बात साबित होती हुई दिखी । हालाँकि कमल सांघवी के नजदीकियों का कहना है कि शेखर मेहता उन्हें इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, बल्कि वह शेखर मेहता को इस्तेमाल कर रहे हैं । उनका कहना है कि कमल सांघवी ने रोटरी के बड़े नेताओं के बीच इतनी जड़ें जमाई हुई हैं कि वह इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने के लिए शेखर मेहता की मदद के मोहताज नहीं हैं । कई लोगों को लगता है कि दोनों को एक दूसरे की जरूरत है - शेखर मेहता को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनना है और कमल सांघवी को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनना है, इसलिए दोनों एक दूसरे की मदद से आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं । हैदराबाद में आयोजित हो रही 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' के आयोजन को उन दोनों के इसी संयुक्त प्रयास के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । 

Wednesday, May 1, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में रमेश अग्रवाल अपनी उपस्थिति के बिना ही क्लब्स को जीओवी करने/कराने का विकल्प सुझा रहे हैं

नई दिल्ली । साल भर से लोगों के साथ मुँहफटी और बदतमीजी करने तथा लोगों को तरह-तरह से अपमानित करते रहने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल लोगों से अब संबंध सुधारते नजर आ रहे हैं । जिन लोगों का यह मानना/समझना रहा है कि 'जैसे कुत्ते की दुम को कितनी ही कोशिश करने के बाद भी सीधा नहीं किया जा सकता है' वैसे ही रमेश अग्रवाल अपने बुनियादी घटिया स्वभाव को नहीं छोड़ सकते हैं - उन्हें रमेश अग्रवाल के बदले-बदले से रवैये ने हैरान किया । उन्होंने रमेश अग्रवाल के बदले-बदले रवैये के पीछे के रहस्य को जानने/समझने की कोशिश की तो भेद खुला कि क्लब्स में जीओवी का रिकॉर्ड पूरा करने के लिए रमेश अग्रवाल को 'भला बनने/दिखने' का नाटक करना पड़ रहा है । दरअसल रमेश अग्रवाल के घटिया और अपमानजनक व्यवहार के कारण कई क्लब्स ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी जीओवी नहीं करवाई है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट के सभी क्लब्स में जीओवी करने का रिकॉर्ड पूरा कर लेना चाहते हैं - इसीलिये जिन क्लब्स के लोगों को उन्होंने तरह-तरह से तंग और अपमानित किया उन क्लब्स के लोगों को जीओवी कराने के लिए अब वह पटाने/मनाने में जुटे हैं ।
रमेश अग्रवाल को इस चक्कर में लोगों से जमकर लताड़ भी सुनने को मिल रही है - लेकिन वह फिर भी लोगों की खुशामद में लगे हुए हैं । एक क्लब के एक वरिष्ठ और क्लब में प्रभाव रखने वाले रोटेरियन से रमेश अग्रवाल ने सिफारिश की कि वह अपने क्लब के पदाधिकारियों को जीओवी करने के लिए मनाये - तो उन वरिष्ठ रोटेरियन ने उन्हें टका-सा जबाव दिया कि 'रमेश, मेरे क्लब के लोग तुझसे बहुत ही नाराज हैं । मुझे भी लगता है कि तू अपनी हरकतों से बाज आयेगा नहीं । जीओवी में तू जरूर कुछ न कुछ बकवास और बेहूदा बात करेगा ही, उससे भड़क कर क्लब के लोग तेरे साथ पता नहीं क्या करें ? अपनी हरकतों के चलते राजेंद्र जेना से तू पिट चुका है, केके भटनागर से पिटते-पिटते बच चुका है - मैं नहीं चाहता कि अब तेरे साथ कुछ और हो, इसलिए भलाई इसी में है कि मेरे क्लब में आने के बारे में न ही सोच ।' कई लोगों ने इसी तरह के तर्क देकर जीओवी कराने से बचने की कोशिश की तो रमेश अग्रवाल ने इसका भी तोड़ निकाल लिया । उन्हें अपने क्लब में न घुसने देने पर आमादा क्लब्स के लोगों को उन्होंने सुझाव दिया कि 'ठीक है, जीओवी में मैं नहीं आऊँगा । तुम जिसे कहो मैं उसे अपने प्रतिनिधि के रूप में तुम्हारे यहाँ भेज दूँगा ।' डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में नियम-कानूनों की और प्रोटोकॉल की ऊँची-ऊँची बातें करते रहने वाले रमेश अग्रवाल अब यह कहने में भी कोई शर्म या ग्लानी महसूस नहीं कर रहे हैं कि जीओवी न करना चाहो तो न करो, बस संबंधित फॉर्म पर हस्ताक्षर कर दो ताकि रिकॉर्ड पूरा हो जाये ।
रमेश अग्रवाल की इस 'गिरगिटी कलाबाजी' ने उन्हें विनोद चावला के साथ भी अपने व्यवहार को अच्छा बनाने के लिए मजबूर किया है । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि विनोद चावला को तरह-तरह से परेशान करने और अपमानित करने का रमेश अग्रवाल ने कोई भी मौका नहीं छोड़ा । विनोद चावला के खुद के क्लब की बात तो छोड़िये, उनके प्रभाव में समझे जाने वाले क्लब तक को रमेश अग्रवाल ने गाजियाबाद के बाहर के जोन में डाल कर नीचा दिखाने की हरकत तो की ही; रोटरी क्लब गाजियाबाद के एक कार्यक्रम में उन्हें निशाना बनांते हुए उनके लिए नितांत असभ्य और अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल तक किया । लेकिन अब, रमेश अग्रवाल जीओवी कराने के लिए विनोद चावला के साथ मीठा-मीठा बनने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें तरह-तरह से फुसलाने में लगे हुए हैं ।
उल्लेखनीय है कि यूँ तो हर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को जीओवी का अपना रिकॉर्ड पूरा करने के लिए अपनी गवर्नरी के आख़िरी दिनों में काफी मशक्कत करनी पड़ती है - लेकिन रमेश अग्रवाल का मामला उनसे इसलिए अलग है कि कई क्लब रमेश अग्रवाल के घटिया व्यवहार के कारण जीओवी करने/कराने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं । मजे की बात यह है कि रमेश अग्रवाल ने इस बात को समझ लिया है और इसीलिये वह क्लब के पदाधिकारियों की पसंद के रोटेरियन को अपने प्रतिनिधि के रूप में भेज कर जीओवी कराने का विकल्प दे रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की उपस्थिति के बिना जीओवी होने का रोटरी के इतिहास में शायद यह पहला मौका होगा । रमेश अग्रवाल ने अपनी ओछी किस्म की सोच और अपने घटिया व्यवहार के कारण रोटरी की भावना और उसकी प्रतिष्ठा को बहुत ही नुकसान पहुँचाया है । बिना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की उपस्थिति के होने वाली जीओवी से डिस्ट्रिक्ट की और रोटरी की साख को जो चोट पहुँची है या पहुँचेगी, वह रमेश अग्रवाल की डिस्ट्रिक्ट को और रोटरी को देन है ।