Thursday, October 30, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में शरत जैन, रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ द्धारा सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के विषय को किनारे धकेल दिए जाने के कारण सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच जो निराशा और नाराजगी पैदा हो रही है उसके चलते शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए नई नई तरह की चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं

नई दिल्ली । अरनेजा गिरोह ने जिस तरह अपनी सारी ताकत शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में लगा दी है, उसे देख/जान कर सतीश सिंघल और उनके समर्थक अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि अरनेजा गिरोह के मुखिया मुकेश अरनेजा और गिरोह के दूसरे सदस्य समय समय पर सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन करने की बात तो करते रहे हैं किंतु अब जब सतीश सिंघल को सचमुच मदद की जरूरत है तो वह उनकी मदद करने से पीछे हटते हुए दिख रहे हैं । मजे की बात यह है कि सतीश सिंघल के साथ धोखा करने के लिए मुकेश अरनेजा ने रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को जिम्मेदार ठहराया है । उनका कहना है कि रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को लगता है कि उन्हें अपना सारा ध्यान सिर्फ शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में लगाना चाहिए और यदि वह सतीश सिंघल की उम्मीदवारी की भी जिम्मेदारी ले लेते हैं तो इससे शरत जैन को नुकसान होगा । मुकेश अरनेजा ने सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को यह भी बताया है कि जेके गौड़ इस समय चूँकि पूरी तरह से रमेश अग्रवाल के कहे में हैं इसलिए उनकी भी नहीं सुन रहे हैं और इस कारण वह भी सतीश सिंघल के लिए कुछ कर सकने में अपने आप को असमर्थ पा रहे हैं ।
रोटरी क्लब सोनीपत अपटाऊन के राजकुमार पांचाल की जगह विनीत पटपटिया को असिस्टेंट गवर्नर बनाने के जेके गौड़ के फैसले को जेके गौड़ पर हावी होने/रहने की रमेश अग्रवाल की कार्रवाई के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । राजकुमार पांचाल ही लोगों को बता रहे हैं कि जेके गौड़ जब खुद उम्मीदवार थे तब से उनके साथ मीठी मीठी बात करते आ रहे थे और अभी हाल तक उन्हें असिस्टेंट गवर्नर पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार रहने के संकेत दे रहे थे । उनके क्लब में ही नहीं, बल्कि सोनीपत में भी लोग यह विश्वास करने लगे थे कि जेके गौड़ के गवर्नर-काल में राजकुमार पांचाल असिस्टेंट गवर्नर बनेंगे । लेकिन जब फैसला आया तो असिस्टेंट गवर्नर के रूप में विनीत पटपटिया का नाम देख/जान कर हर कोई हैरान रह गया । अधिकतर लोगों ने जेके गौड़ के इस फैसले को राजकुमार पांचाल के साथ विश्वासघात के रूप में ही देखा/पहचाना है । जेके गौड़ के नजदीकी ही बता रहे हैं कि राजकुमार पांचाल की जगह विनीत पटपटिया को असिस्टेंट गवर्नर बनवाने का फैसला जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल के कहने पर लिया है । रमेश अग्रवाल दरअसल सोनीपत में राजकुमार पांचाल की बढ़ती राजनीतिक हैसियत को अपनी राजनीति के लिए खतरे के रूप में देख रहे हैं । राजकुमार पांचाल ने अपने कामकाज और अपने व्यवहार से रोटेरियंस के बीच अपनी अच्छी साख बनाई है । क्लब के अध्यक्ष के रूप में किए गए कामों के चलते उनकी गिनती सबसे योग्य अध्यक्षों में हुई थी और उन्हें प्लेटिनम प्रेसीडेंट अवार्ड से नवाजा गया था । रोटरी की चुनावी राजनीति में भी निर्णायक भूमिका निभाने में उनका दखल रहा है । इसीलिए जेके गौड़ जब उम्मीदवार बने थे, तब सोनीपत में समर्थन जुटाने के लिए वह राजकुमार पांचाल पर निर्भर हुए थे और तभी से उन्होंने राजकुमार पांचाल को अपने खास लोगों में रखना/देखना/गिनना शुरू कर दिया था ।
लेकिन अपने 'खासों में भी खास' रमेश अग्रवाल के कहने में आकर जेके गौड़ ने राजकुमार पांचाल की बलि ले ली । रमेश अग्रवाल को डर वास्तव में यह है कि उन्होंने यदि राजकुमार पांचाल को नहीं 'रोका' तो सोनीपत में राजनीतिक मनमानी करने/दिखाने का उनका मौका ख़त्म जायेगा । सोनीपत में अपनी मनमानियों के लिए मौका बनाये रखने के लिए रमेश अग्रवाल को राजकुमार पांचाल को पीछे धकेलना जरूरी लगा और उनके असिस्टेंट गवर्नर बनने की राह में रोड़ा बन कर रमेश अग्रवाल ने यही जरूरी काम किया है । इस प्रकरण में लोगों को लेकिन जेके गौड़ के रवैये पर हैरानी है : लोगों का कहना है कि रमेश अग्रवाल के साथ उनका आखिर ऐसा क्या रिश्ता है, जिसे निभाने के चक्कर में वह उन लोगों को भी अपने से दूर करते जा रहे हैं जिन्होंने जरूरत के समय उनकी मदद की थी । मजे की बात यह है कि जेके गौड़ के साथ जुड़े कई लोगों को भी रमेश अग्रवाल के साथ उनके रिश्ते को लेकर आपत्ति होने लगी है ।  कुछेक लोग मजाक में कहने भी लगे हैं कि जेके गौड़ तो रमेश अग्रवाल के ऐसे दीवाने बने हुए हैं, जितना दीवाना तो लैला का मजनूँ भी नहीं था ।
रमेश अग्रवाल के प्रति दीवानगी के चलते जेके गौड़ जिस तरह काम कर रहे हैं और उसके कारण उनके साथ जुड़े लोग भी जिस तरह से बिदक रहे हैं - उसके चलते उनके अपने गिरोह में बिखराव बढ़ने लगा है । उनके अपने लोग ही यह कहते हुए सुने जा रहे हैं कि शरत जैन के लिए समर्थन जुटाने के नाम पर जेके गौड़ जिस तरह रमेश अग्रवाल के द्धारा इस्तेमाल हो रहे हैं, उसका वास्तव में उल्टा असर ही हो रहा है और शरत जैन का फायदा होने की बजाये नुकसान होने का खतरा बढ़ रहा है । उनकी कार्रवाइयों ने सबसे ज्यादा तो सतीश सिंघल के उन समर्थकों व शुभचिंतकों को निराश किया है, जिन्होंने इस उम्मीद के साथ शरत जैन की उम्मीदवारी के समर्थन में जुटना शुरू किया था कि इसके बदले में शरत जैन के समर्थकों व शुभचिंतकों का समर्थन सतीश सिंघल को मिलेगा । उन्हें शरत जैन के रवैये से भी निराशा हुई है : उनका कहना है कि शरत जैन उनका समर्थन तो लेना चाहते हैं, लेकिन बदले में सतीश सिंघल को अपने नजदीकियों का समर्थन दिलवाने के मुद्दे पर चुप लगा जाते हैं । मुकेश अरनेजा ने यह कह कर अपने आप को बचाने की कोशिश की हुई है कि वह क्या करें - जब शरत जैन, रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ उनकी सुनते और मानते ही नहीं हैं । शरत जैन, रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ ने जिस तरह से सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के विषय को किनारे धकेल दिया है, उससे सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच जो निराशा और नाराजगी पैदा हुई है - उसे शरत जैन के लिए घातक समझा जा रहा है । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों का कहना है कि शरत जैन, रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को सतीश सिंघल की मदद नहीं करनी थी तो न करते, झूठ बोलने की और धोखा देने की कोशिश तो न करते ।
रमेश अग्रवाल ने शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से जेके गौड़ को जैसा जो इस्तेमाल किया हुआ है, और जेके गौड़ जिस तरह से अपना इस्तेमाल होने दे रहे हैं उससे न सिर्फ जेके गौड़ की बदनामी हो रही है, बल्कि गिरोह में फूट पड़ती दिख रही है - और इस सबके चलते शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए नई नई तरह की चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं ।

Friday, October 24, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में केके गुप्ता के हस्तक्षेप के बाद मुकेश अरनेजा ने अपने ही क्लब की अध्यक्ष आभा गुप्ता के खिलाफ की जा रही हरकतों को विराम तो दिया है, लेकिन इसके चलते वह खुद की फजीहत कराने के साथ-साथ शरत जैन के लिए भी मुसीबत तो खड़ी कर ही चुके हैं

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा को अपने क्लब की अध्यक्ष आभा गुप्ता के साथ लगातार 'बद तमीजी' करते रहना खासा महँगा पड़ा है - इसके लिए एक तरफ उन्हें अपने ही क्लब में भारी फजीहत का सामना करना पड़ा है, और दूसरी तरफ शरत जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों ने उनसे कहना/बताना शुरू कर दिया है कि उनका इस तरह का छिछोरापन शरत जैन की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम करेगा । मुकेश अरनेजा डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए दीपक गुप्ता और शरत जैन के बीच होने वाले चुनाव में शरत जैन की उम्मीदवारी का झंडा उठाये हुए हैं - लेकिन अपने ही क्लब की अध्यक्ष आभा गुप्ता को तरह-तरह से परेशान करने के मामले में मुकेश अरनेजा को संलिप्त देख कर शरत जैन की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थकों को लगने लगा है कि मुकेश अरनेजा की इस तरह की हरकतें शरत जैन की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का ही काम करेंगी । शरत जैन की मुश्किल यह है कि अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए वह पूरी तरह से रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा पर निर्भर हैं - और मुकेश अरनेजा अपने ही क्लब की अध्यक्ष आभा गुप्ता के साथ 'बद तमीजी' करने के आरोपों में जिस तरह फँसे हैं उसे देख कर दूसरे क्लब्स के अध्यक्षों में मुकेश अरनेजा के प्रति विरोध पैदा हुआ है । मुकेश अरनेजा और शरत जैन के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि आभा गुप्ता कभी अपनी तरफ से तो कभी पूछे जाने पर मुकेश अरनेजा की कारस्तानी लोगों को बता रही हैं - जिसके चलते लोगों के बीच यह समझ और मजबूत बन रही है कि मुकेश अरनेजा सुधरने वाले व्यक्ति नहीं हैं, और शरत जैन अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए ऐसे व्यक्ति का समर्थन और सहयोग ले रहे हैं ।
मुकेश अरनेजा की हरकतों से परेशान आभा गुप्ता क्लब की एक मीटिंग में मुकेश अरनेजा की कारस्तानियों का जिक्र करते हुए रो तक पड़ीं और अध्यक्ष पद छोड़ने पर जोर देने लगीं । क्लब के दूसरे पदाधिकारियों ने उन्हें समझाया कि वह ऐसा करेंगी तो मुकेश अरनेजा को उन्हें और बदनाम करने का मौका मिलेगा तथा लोगों की निगाह में वह कमजोर साबित होंगी । मुकेश अरनेजा ने पिछले दिनों लगातार ईमेल लिख लिख कर क्लब के लोगों के बीच आभा गुप्ता को एक काम न करने वाले तथा संगठन चलाने की समझ न रखने वाले अध्यक्ष के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया । क्लब के लोगों के बीच हालाँकि आभा गुप्ता की पहचान एक अत्यंत सक्रिय और बेहद दिलचस्पी के साथ काम करने वाले अध्यक्ष की बनी है । इसीलिए मुकेश अरनेजा का रवैया क्लब में किसी की समझ में नहीं आया और सभी को लगा कि मुकेश अरनेजा अपनी जिन हरकतों के लिए बदनाम हैं, उन्हीं हरकतों को वह आभा गुप्ता के साथ आजमा रहे हैं । क्लब के कई एक वरिष्ठ सदस्यों का मानना और कहना रहा कि अध्यक्ष के रूप में आभा गुप्ता के काम करने के तौर-तरीकों में सुधार की हालाँकि बहुत जरूरत है, लेकिन उस जरूरत को बताने/जताने का जो तरीका मुकेश अरनेजा ने अपनाया वह अपमान करने वाला और प्रताड़ित करने वाला है - इसलिए आभा गुप्ता ने अपने आप को यदि परेशान अनुभव किया तो यह बहुत स्वाभाविक ही है; और मुकेश अरनेजा की हरकत को किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है ।
मुकेश अरनेजा तर्क देते हैं कि वह यदि अपने क्लब के अध्यक्ष से यह पूछ रहे हैं कि क्लब में न्यूजलैटर क्यों नहीं निकल रहा है; और या क्लब के सदस्यों के क्लासीफिकेशन स्पष्ट करने की बात कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है और इससे अध्यक्ष के रूप में आभा गुप्ता को परेशान होने की या रोने की क्या बात हो गई ? जिन भी लोगों के बीच मुकेश अरनेजा ने यह तर्क दिया, उनमें से कइयों को उनका यह तर्क सड़कछाप लोफर के तर्क जैसा लगा जो सीटी बजाने और गाना गाने के चलते ईव टीचिंग के आरोप में धर लिए जाने पर तर्क देता है कि सीटी बजाना और गाना गाना तो एक कला है, यह आरोप कैसे हो गया ? मुकेश अरनेजा की तरह क्लब में जो अन्य लोग न्यूजलैटर निकलते हुए देखना चाहते हैं, उनका कहना है कि अच्छा तरीका यह होगा कि उन्हें न्यूजलैटर निकालने के लिए आभा गुप्ता को अपनी अपनी तरफ से मदद का प्रस्ताव देना चाहिए, न कि आभा गुप्ता को बदनाम करना चाहिए । उन्होंने ही बताया कि आभा गुप्ता से पहले के कई अध्यक्षों ने भी न्यूजलैटर नहीं निकाले थे - लेकिन उन्हें तो मुकेश अरनेजा ने निशाना नहीं बनाया था । क्लासीफिकेशन की जो बात है, तो उसका सच यह है कि सदस्यों के क्लासीफिकेशन की बात आज सिर्फ बात ही बनकर रह गई है और क्लब्स तो छोड़िये डिस्ट्रिक्ट तक में क्लासीफिकेशन स्पष्ट नहीं हैं । रोटरी के जो जानकर लोग हैं उनका कहना है कि क्लासीफिकेशन का काम दरअसल इसलिए भी नहीं हो रहा है क्योंकि रोटरी इंटरनेशनल के मुख्य कर्ता-धर्ता ही उसे लेकर कन्फ्यूज से हैं और बदलती परिस्थितियों व जरूरतों के अनुरूप कोई स्पष्ट पैमाने नहीं तय कर पा रहे हैं । ऐसे में, सदस्यों के क्लासीफिकेशन स्पष्ट करने की आभा गुप्ता से की जाने की मुकेश अरनेजा की माँग के पीछे मुकेश अरनेजा की बदनियती को यदि देखा गया - और आभा गुप्ता ने अपने आप को परेशान तथा अपमानित होता हुआ महसूस किया तो यह बहुत स्वाभाविक ही है । 
आभा गुप्ता के प्रति मुकेश अरनेजा की बदनियती लोगों ने इसलिए भी देखी क्योंकि मुकेश अरनेजा कई बार लोगों के बीच शिकायत कर चुके हैं कि आभा गुप्ता उन्हें लिफ्ट ही नहीं देती हैं । मुकेश अरनेजा की मुख्य समस्या दरअसल यही रही कि अध्यक्ष के रूप में आभा गुप्ता ने उन्हें कोई तवज्जो ही नहीं दी । मुकेश अरनेजा अपने आप को बड़ा तुर्रमखाँ नेता मानते/समझते हैं; इसलिए उनके लिए यह बर्दाश्त करना मुश्किल हुआ कि उनके अपने ही क्लब में उनकी कोई पूछ नहीं हो रही है । मुकेश अरनेजा चूँकि सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलने की स्थिति में ऊँगली टेढ़ी कर लेने वाले सिद्धांत में विश्वास करते हैं, इसलिए उन्होंने आभा गुप्ता को ठिकाने लगाने का काम शुरू कर दिया । मुकेश अरनेजा ने उम्मीद तो यह की थी - और कुछेक लोगों से उन्होंने यह कहा भी था - कि वह आभा गुप्ता की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करेंगे तो आभा गुप्ता उनकी शरण में आने को मजबूर हो जायेंगी; लेकिन हुआ उल्टा । आभा गुप्ता ने मुकेश अरनेजा के कार्य-व्यवहार की पहले तो अनदेखी की; और जब मुकेश अरनेजा की हरकतें हद से पार जाने लगीं तो मुकेश अरनेजा की शरण में जाने की बजाये उन्होंने पद छोड़ देने का विकल्प चुना - और इस तरह मुकेश अरनेजा की सारी योजना को उन्होंने फेल ही कर दिया । मुकेश अरनेजा के लिए इससे भी ज्यादा बुरी बात यह हुई कि क्लब के लोगों ने भी आभा गुप्ता का समर्थन किया और मुकेश अरनेजा की थू थू की । मास्टर स्ट्रोक चला क्लब के वरिष्ठ सदस्य और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केके गुप्ता ने ।
केके गुप्ता ने आभा गुप्ता को लिखे एक ईमेल संदेश में सुझाव दिया कि क्लब में माहौल जिस तरह से ख़राब चल रहा है, उस पर चर्चा करने के लिए उन्हें दीपावली के बाद पूर्व अध्यक्षों की कमेटी की मीटिंग बुलानी चाहिए । आभा गुप्ता को लिखे ईमेल संदेश की कॉपी उन्होंने क्लब के दूसरे सदस्यों को भी भेजी । केके गुप्ता द्धारा किए गए इस हस्तक्षेप से मुकेश अरनेजा ने भाँप लिया कि अब उनकी ख़ैर नहीं है । मुकेश अरनेजा ने समझ लिया कि केके गुप्ता के सुझाव पर पूर्व अध्यक्षों की कमेटी की मीटिंग यदि बुला ली गई तो फिर उनके खिलाफ कार्रवाई होना निश्चित ही है - और तब डिस्ट्रिक्ट में उनकी बड़ी फजीहत होगी । मुकेश अरनेजा जितनी तेजी से उफनते हैं, उतनी ही तेजी से बैठने की 'कला' के बड़े ऊँचे खिलाड़ी हैं - इसलिए वह तुरंत ही क्लब के सदस्यों की मान-मनौव्वल में जुट गए और कहने लगे कि आभा गुप्ता से कुछ कहना आभा गुप्ता को और क्लब के सदस्यों को बुरा लगा है, तो वह आभा गुप्ता को कुछ नहीं कहेंगे । क्लब के कुछेक सदस्यों को तो लगता है कि मुकेश अरनेजा को अक्ल आ गई है और अब वह आभा गुप्ता के साथ बद तमीजी नहीं करेंगे; लेकिन अन्य कुछेक लोगों को लगता है और वह कहते हैं कि मुकेश अरनेजा अपनी हरकतों से बाज आने वाले व्यक्ति नहीं हैं और जल्दी ही वह फिर कोई न कोई कारस्तानी करेंगे इसलिए आभा गुप्ता को सावधान रहने की जरूरत है ।
मुकेश अरनेजा की अपने ही क्लब के अध्यक्ष के साथ की गई हरकत और उनकी हरकत पर हुई प्रतिक्रिया के चलते मुकेश अरनेजा की तो फजीहत हुई ही है, साथ ही शरत जैन के लिए भी मुसीबत हो गई है । कई क्लब्स के अध्यक्षों ने अपनी कलीग आभा गुप्ता के प्रति अपनाये गए मुकेश अरनेजा के रवैये की भर्त्स्ना की है और इस बात को रेखांकित किया है कि मुकेश अरनेजा के रहते हुए रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में किसी की भी इज्जत सुरक्षित नहीं है । शरत जैन के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उन्हें चूँकि मुकेश अरनेजा के उम्मीदवार के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है - इसलिए मुकेश अरनेजा के खिलाफ डिस्ट्रिक्ट में बनते हुए माहौल में उनके लिए दीपक गुप्ता के मुकाबले अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाना एक बड़ी चुनौती होगा । यानि अपने ही क्लब की अध्यक्ष आभा गुप्ता के साथ की गई मुकेश अरनेजा की हरकतों ने उनकी खुद की फजीहत तो कराई ही है, शरत जैन के लिए भी मुसीबत खड़ी कर दी है ।

Thursday, October 16, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए मुसीबत और मुकेश अरनेजा की नकारात्मक छवि से छुटकारा पाने की कोशिशों में बाधा बनने के कारण असिस्टेंट गवर्नर संजीव रस्तोगी, मुकेश अरनेजा की आँख की किरकिरी बने

नई दिल्ली । अरनेजा गिरोह ने संजीव रस्तोगी का रोटरी-जीवन खत्म करने के उद्देश्य से जो ताना-बाना बुना था, संजीव रस्तोगी ने उसे समय से पहले ही पहचान लिया और एहतियादि कदम उठा कर अरनेजा गिरोह की चाल को फेल कर दिया है । अरनेजा गिरोह के मुखिया मुकेश अरनेजा और गिरोह के दूसरे सदस्यों ने पिछले कई दिनों से हवा बनाई हुई थी कि वह संजीव रस्तोगी को उनके अपने क्लब से इस तरह निकलवायेंगे जिससे कि संजीव रस्तोगी का असिस्टेंट गवर्नर का पद भी छिनेगा और फिर वह रोटरी में भी नहीं रह पायेंगे । मुकेश अरनेजा लोगों को बता रहे थे कि रोटरी क्लब दिल्ली शाहदरा के वरिष्ठ और सक्रिय सदस्य अशोक कुमार गर्ग उनके पक्के वाले चेले हैं और अशोक कुमार गर्ग के जरिये ही वह संजीव रस्तोगी का 'ईलाज' करेंगे । मुकेश अरनेजा का दावा था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना भी संजीव रस्तोगी को नहीं बचा पायेंगे । यह दावा करने से भी पहले से मुकेश अरनेजा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना की इस बात के लिए आलोचना कर चुके थे कि वह संजीव रस्तोगी को शह दे रहे हैं । इस तरह की बातों/चर्चाओं के चलते डिस्ट्रिक्ट के कुछेक लोगों के बीच पिछले कुछेक दिनों से चर्चा थी कि मुकेश अरनेजा ने संजीव रस्तोगी को रोटरी से बाहर करने का दृढ़ निश्चय कर लिया है; और अपने इस निश्चय को पूरा करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं ।
संजीव रस्तोगी से मुकेश अरनेजा दरअसल इसलिए नाराज हैं क्योंकि संजीव रस्तोगी ने डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए होने वाले चुनाव के अभियान में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ है । मुकेश अरनेजा को समस्या सिर्फ इस बात से ही नहीं है कि संजीव रस्तोगी ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ है; समस्या उन्हें इस बात से भी है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में संजीव रस्तोगी ने खासा आक्रामक अभियान चला रखा है - और उनके अभियान के चलते दीपक गुप्ता के प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार शरत जैन के लिए ऐसी मुश्किलें खड़ी हो गईं जिन्हें हल करने का उन्हें कोई तरीका ही समझ में नहीं आ रहा । शरत जैन की उम्मीदवारी का झंडा चूँकि मुकेश अरनेजा के हाथ में है - इसलिए शरत जैन की मुश्किलें मुकेश अरनेजा को अपनी मुश्किल लगी और इस कारण उन्हें संजीव रस्तोगी से निपटना जरूरी लगा । मुकेश अरनेजा ने कई बार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना से इस बात की शिकायत की कि संजीव रस्तोगी असिस्टेंट गवर्नर पद का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं । मुकेश अरनेजा को संजय खन्ना लेकिन कोई कार्रवाई करते हुए नहीं दिखे, तो उन्होंने संजीव रस्तोगी से खुद ही निपटने का फैसला किया ।
मुकेश अरनेजा जिससे नाराज होते हैं, उससे निपटने का उनका अपना एक स्टाइल है - अपने इस स्टाइल से वह गाजियाबाद में योगेश गर्ग, राजीव वशिष्ट, उमेश चोपड़ा, रवींद्र सिंह, दीपक गुप्ता, आलोक गुप्ता आदि को अलग-अलग तरीके से बेइज्जत और 'अकेला' कर चुके हैं । इन लोगों के बारे में मुकेश अरनेजा का 'अनुभव' चूँकि यह रहा है कि यह लोग भले किस्म के लोग हैं, इन्हें मुकेश अरनेजा ने कैसे भी अपमानित और परेशान किया हो, किंतु अब जब मुकेश अरनेजा इनकी खुशामद करेंगे और इनसे माफी माँगेंगे - तो यह अपना पिछला अपमान और परेशानी भूल भी जायेंगे । 'पहले गाली, फिर माफी' वाले अपने स्टाइल से मुकेश अरनेजा को लेकिन संजीव रस्तोगी से निपटना चूँकि मुश्किल लगा, इसलिए संजीव रस्तोगी से निपटने के लिए उन्होंने दूसरे तरीकों पर विचार किया । यह विचार करना उन्हें इसलिए भी जरूरी लगा क्योंकि संजीव रस्तोगी ने उनकी राजनीतिक सत्ता को सीधी चुनौती दी हुई थी । संजीव रस्तोगी इस बात को खूब धड़ल्ले से कहा करते हैं कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट में मुकेश अरनेजा की चौधराहट और गुंडागर्दी खत्म करनी है ।
मुकेश अरनेजा को समस्या या खतरा इस बात से नहीं है कि संजीव रस्तोगी क्या करना चाहते हैं; उन्हें समस्या इस बात से है कि संजीव रस्तोगी की बातें उनकी नकारात्मक छवि को बनाये रखने का काम कर रही हैं । डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों ने इस बात पर गौर किया है कि मुकेश अरनेजा अपनी नकारात्मक छवि से छुटकारा पाने का प्रयास कर रहे हैं; हालाँकि कई लोग यह भी मानते और कहते हैं कि मुकेश अरनेजा प्रयास चाहें जितना करें, लेकिन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ सकते हैं । लोगों के ऐसा मानने और कहने के बीच, संजीव रस्तोगी की बातें मुकेश अरनेजा को अपने प्रयासों में बाधा बनती हुईं दिखीं । मुकेश अरनेजा के लिए तकलीफ की बात यह थी कि जो लोग संजीव रस्तोगी की बातों और उनकी गतिविधियों के खिलाफ भी थे, वह भी यही कहते सुने जा रहे थे कि संजीव रस्तोगी 'दूसरे मुकेश अरनेजा' बनने की कोशिश कर रहे हैं । मुकेश अरनेजा के लिए समस्या की बात यह हुई कि संजीव रस्तोगी तो उनकी ऐसीतैसी करने के अभियान में लगे हुए थे ही, संजीव रस्तोगी का जो विरोध हो रहा था उसमें भी मुकेश अरनेजा की ही किरकिरी हो रही थी । इस तरह मुकेश अरनेजा को संजीव रस्तोगी दोनों तरफ से काट रहे थे । इससे, डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच स्थापित अपनी नकारात्मक छवि को बदलने का मुकेश अरनेजा का प्रयास बाधित हो रहा है ।
मुकेश अरनेजा के खिलाफ संजीव रस्तोगी ने जो अभियान छेड़ा हुआ है, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए प्रस्तुत शरत जैन की उम्मीदवारी के अभियान का भी पूरी तरह कबाड़ा किया हुआ है । शरत जैन को हर जगह मुकेश अरनेजा तथा रमेश अग्रवाल की कारस्तानियों को लेकर तथा उनके साथ अपने संबंधों को लेकर सफाई ही देनी पड़ती है । इससे अपनी उम्मीदवारी के बारे में बात करने का उनका उत्साह न तो बन पाता है और न ही वह बना पाते हैं । शरत जैन को चूँकि मुकेश अरनेजा तथा रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है, इसलिए मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के प्रति लोगों के बीच जो रोष है उसका खामियाजा शरत जैन को भुगतना पड़ रहा है । स्थिति को सँभालने के लिए मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने अपने आप को पीछे भी किया किंतु - संजीव रस्तोगी के आक्रामक प्रचार अभियान के चलते - उन दोनों की बदनामी चूँकि उनसे आगे चल रही है, इसलिए उसका भी कोई फायदा शरत जैन को नहीं मिल पा रहा है । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल की बदनामी शरत जैन की उम्मीदवारी पर एक बोझ की तरह लद गई है, जिससे उबर पाना न शरत जैन के लिए संभव हो पा रहा है और न मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल जैसे उनके समर्थक नेताओं के लिए । ऐसे में, संजीव रस्तोगी के अभियान ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है ।
इसीलिए मुकेश अरनेजा के लिए संजीव रस्तोगी का 'ईलाज' करना जरूरी हो गया । मुकेश अरनेजा को जब यह पता चला कि संजीव रस्तोगी की अपने क्लब में ही खटपट चल रही है, तो उन्हें संजीव रस्तोगी का 'ईलाज' करने का आसान रास्ता भी मिल गया । मुकेश अरनेजा ने खुद ही लोगों को बताया कि वह संजीव रस्तोगी का ऐसा हाल कर देंगे कि संजीव रस्तोगी न अपने क्लब में रह पायेंगे और न रोटरी में ही रह पायेंगे । संजीव रस्तोगी ने जब यह देखा/पहचाना कि मुकेश अरनेजा ने उनके क्लब के कुछेक प्रमुख सदस्यों के साथ मिल कर उनके खिलाफ षड्यंत्र करने और उन्हें फँसाने की तैयारी कर ली है तो उन्होंने पहले ही क्लब को छोड़ दिया । इससे मुकेश अरनेजा और उनके गिरोह के लोगों की संजीव रस्तोगी को रोटरी से आउट करने की योजना फ़िलहाल तो फेल हो गई है । संजीव रस्तोगी ने अभी भले ही मुकेश अरनेजा की योजना को फेल कर दिया दिया हो, लेकिन सभी लोग जानते/समझते हैं कि मुकेश अरनेजा चुप बैठने वाले नहीं हैं - इसलिए उम्मीद की जा रही है कि इस मामले में अभी और पटाखे फूटेंगे ।

Thursday, October 9, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में सतीश सिंघल ने गाजियाबाद की अपनी मीटिंग के जरिए प्रसून चौधरी के समर्थक नेताओं को उनके अपने अपने क्लब में ही घेरने की जो कोशिश की है उससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है

गाजियाबाद । सतीश सिंघल ने गाजियाबाद में एक बड़ी सफल मीटिंग करके प्रसून चौधरी के गढ़ में सेंध मारने की जो कार्रवाई की है, उसने डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य को खासा दिलचस्प बना दिया है । डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में गाजियाबाद क्षेत्र में प्रसून चौधरी ने जिस तेजी के साथ अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाया था; और उनकी तुलना में सतीश सिंघल जिस तरह उदासीन दिख रहे थे - उसे लेकर सतीश सिंघल के समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच असमंजस बना हुआ था और उनके लिए यह समझना लगातार मुश्किल बना हुआ था कि गाजियाबाद को लेकर सतीश सिंघल आखिर क्या सोच रहे हैं । सतीश सिंघल के नजदीकियों और शुभचिंतकों का ही मानना और कहना रहा कि गाजियाबाद के रोटेरियंस के साथ सतीश सिंघल के जैसे जो दोस्ताना संबंध रहे हैं, उन्हें यदि वह समय रहते निरंतरता के प्रवाह में बनाये रखते तो प्रसून चौधरी को यहाँ पैर जमाने का मौका ही नहीं मिलता । गाजियाबाद के रोटेरियंस को साथ लेने में सतीश सिंघल ने जो उदासीनता दिखाई, प्रसून चौधरी ने उसका पूरा पूरा फायदा उठाया और अपनी उम्मीदवारी के प्रचार अभियान में ऐसे ऐसे लोगों को अपने साथ लेने में सफलता पाई - जो वास्तव में सतीश सिंघल के नजदीक देखे/समझे जाते थे और जिन्होंने सतीश सिंघल के रोटरी ब्लड बैंक जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए, उनके साथ बढ़चढ़ कर काम किया था । प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के प्रचार अभियान में गाजियाबाद के कई एक प्रमुख लोग जिस तरह से खुल कर सक्रिय दिख रहे थे, उससे सतीश सिंघल के समर्थकों व शुभचिंतकों को निराशा होने लगी थी । इसी निराशा के चलते गाजियाबाद में सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से आयोजित हुई मीटिंग का खास महत्व बना ।
सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से गाजियाबाद में आयोजित हुई मीटिंग की रौनक देखने के बाद सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों की सारी निराशा लेकिन अब भारी उत्साह में बदल गई है । समर्थकों व शुभचिंतकों को लगने लगा है कि सतीश सिंघल यदि 'एक उम्मीदवार के रूप में' सक्रिय हो सकें, तो गाजियाबाद में अपनी खोई हुई 'जमीन' को वापस भी पा सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों ने माना और कहा/बताया भी कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से गाजियाबाद में आयोजित मीटिंग की सफलता का पैमाना सिर्फ यही नहीं है कि मीटिंग में खूब लोग जुटे - मीटिंग में लोग तो आ ही जाते हैं; मीटिंग की सफलता का पैमाना यह है कि इसे राजनीतिक चतुराई के साथ आयोजित किया गया । सतीश सिंघल ने लोगों को आमंत्रित करने में जिस खुलेपन का और जिस रणनीति का परिचय दिया, उसका उन्हें पूरा पूरा लाभ भी मिला । मीटिंग में मौजूद लोगों को देख कर लगा कि सतीश सिंघल ने आमंत्रितों की सूची तैयार करते समय उन क्लब्स के लोगों का खास ध्यान रखा, जिनके नेता प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में खुल कर सक्रिय नजर आ रहे हैं । इस तरकीब से सतीश सिंघल ने प्रसून चौधरी के समर्थक नेताओं को उनके अपने अपने क्लब में ही घेरने की कोशिश की है ।
सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से गाजियाबाद में आयोजित हुई मीटिंग में उपस्थित हुए वरिष्ठ रोटेरियंस ने जिस तरह याद करते हुए रोटरी में सतीश सिंघल की निरंतर सक्रियता और उनकी उपलब्धियों को रेखांकित किया, उससे उन नए रोटेरियंस के बीच सतीश सिंघल की एक कर्मठ और 'कुछ करने' वाले रोटेरियन की विश्वसनीय पहचान बनी जिनका सतीश सिंघल के साथ परिचय नहीं था । इस तरह सतीश सिंघल को दो फायदे एकसाथ हुए - एक तो उनके लिए नए रोटेरियंस के बीच विश्वसनीय पहचान बनाने का बोझ कुछ कम हुआ, वह खुद यदि अपने काम गिनाते तो विश्वसनीयता नहीं बना पाते; दूसरे वरिष्ठ रोटेरियंस से मिली तारीफ से उनकी उम्मीदवारी का एक आभामंडल बना, जिसे बना पाना अन्यथा उनके लिए मुश्किल ही होता । इससे पहले हापुड़ और दिल्ली में आयोजित मीटिंग्स में अपनाई गई रणनीति के विपरीत, सतीश सिंघल ने गाजियाबाद की मीटिंग को 'क्षेत्रीय' दर्जा देने की बजाये 'डिस्ट्रिक्ट मीटिंग' टाइप का दर्जा दिया और यह दिखाने का प्रयास किया कि डिस्ट्रिक्ट के हर क्षेत्र के लोग उनके साथ हैं ।
सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से गाजियाबाद में आयोजित हुई मीटिंग की जोरदार सफलता में लेकिन सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के लिए एक खतरा भी 'पैदा' होता दिखा है । खतरा यह कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों ने इस सफल मीटिंग के भरोसे सतीश सिंघल को जीता हुआ ही मान लिया है । काश, मीटिंग्स में लोगों को इकठ्ठा करके चुनाव जीते जा सकते होते ! तब चुनाव जीतना कितना आसान हो गया होता ! सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले वरिष्ठ रोटेरियंस का ही कहना है कि गाजियाबाद में हुई चुनावी मीटिंग की सफलता से सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के भाव निश्चित रूप से बढ़े तो हैं, लेकिन इस सफलता से आश्वस्त हो जाना आत्मघाती साबित हो सकता है । प्रसून चौधरी के समर्थन में दिखने वाले कुछेक लोगों के सतीश सिंघल की मीटिंग में सक्रिय होने को उपलब्धि मानने के प्रति सावधान रहने की हिदायत देते हुए इन्हीं वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना है कि हो सकता है कि कल यही लोग फिर से प्रसून चौधरी के साथ नजर आयें । इनका सुझाव है कि सतीश सिंघल को इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि रोटरी की चुनावी राजनीति में पाला बदलने में लोग देर नहीं लगाते हैं ।
सतीश सिंघल के समर्थक वरिष्ठ रोटेरियंस का ही मानना और कहना है कि गाजियाबाद की मीटिंग की सफलता से यह तो साबित हुआ है कि सतीश सिंघल का रोटेरियंस के बीच एक ऑरा (आभामंडल) है तथा अपनी सक्रियता से वह अपने इस ऑरा को राजनीतिक समर्थन में भी बदल सकने की सामर्थ्य रखते हैं - समस्या सिर्फ इतनी सी ही है कि 'एक उम्मीदवार के रूप में' वह अपनी सक्रियता की निरंतरता को बनाये रख सकें । सतीश सिंघल से 'परिचित' वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना है कि सतीश सिंघल के लिए चुनौती प्रसून चौधरी की तरफ से उतनी नहीं हैं, जितनी खुद उनकी अपनी तरफ से उन्हें है । कई लोगों का मानना और कहना है कि प्रसून चौधरी ने चुनावी मुकाबले में अपनी दमदार उपस्थिति यदि बनाई है, तो इसके लिए एक उम्मीदवार के रूप में सतीश सिंघल की उदासीनता ही ज्यादा जिम्मेदार है । खरगोश और कछुए की दौड़ वाले किस्से में कछुआ तेज दौड़ने के कारण नहीं जीता था, बल्कि इसलिए जीता था क्योंकि खरगोश दौड़ जीतने के लिए जरूरी रवैया अपनाये जाने को लेकर उदासीन हो गया था । हापुड़ और दिल्ली के बाद गाजियाबाद में एक सफल मीटिंग करके सतीश सिंघल ने 'एक उम्मीदवार के रूप में' सक्रिय होने के जो तेवर लेकिन अभी तक दिखाए हैं उससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है ।