नई दिल्ली । अरनेजा गिरोह ने
जिस तरह अपनी सारी ताकत शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में
लगा दी है, उसे देख/जान कर सतीश सिंघल और उनके समर्थक अपने आप को ठगा हुआ
महसूस कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि अरनेजा गिरोह के मुखिया मुकेश
अरनेजा और गिरोह के दूसरे सदस्य समय समय पर सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का
समर्थन करने की बात तो करते रहे हैं किंतु अब जब सतीश सिंघल को सचमुच मदद
की जरूरत है तो वह उनकी मदद करने से पीछे हटते हुए दिख रहे हैं । मजे
की बात यह है कि सतीश सिंघल के साथ धोखा करने के लिए मुकेश अरनेजा ने रमेश
अग्रवाल और जेके गौड़ को जिम्मेदार ठहराया है । उनका कहना है कि रमेश
अग्रवाल और जेके गौड़ को लगता है कि उन्हें अपना सारा ध्यान सिर्फ शरत जैन
की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में लगाना चाहिए और यदि वह सतीश सिंघल
की उम्मीदवारी की भी जिम्मेदारी ले लेते हैं तो इससे शरत जैन को नुकसान
होगा । मुकेश अरनेजा ने सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को
यह भी बताया है कि जेके गौड़ इस समय चूँकि पूरी तरह से रमेश अग्रवाल के कहे
में हैं इसलिए उनकी भी नहीं सुन रहे हैं और इस कारण वह भी सतीश सिंघल के
लिए कुछ कर सकने में अपने आप को असमर्थ पा रहे हैं ।
रोटरी क्लब सोनीपत अपटाऊन के राजकुमार पांचाल की जगह विनीत पटपटिया को असिस्टेंट गवर्नर बनाने के जेके गौड़ के फैसले को जेके गौड़ पर हावी होने/रहने की रमेश अग्रवाल की कार्रवाई के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । राजकुमार पांचाल ही लोगों को बता रहे हैं कि जेके गौड़ जब खुद उम्मीदवार थे तब से उनके साथ मीठी मीठी बात करते आ रहे थे और अभी हाल तक उन्हें असिस्टेंट गवर्नर पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार रहने के संकेत दे रहे थे । उनके क्लब में ही नहीं, बल्कि सोनीपत में भी लोग यह विश्वास करने लगे थे कि जेके गौड़ के गवर्नर-काल में राजकुमार पांचाल असिस्टेंट गवर्नर बनेंगे । लेकिन जब फैसला आया तो असिस्टेंट गवर्नर के रूप में विनीत पटपटिया का नाम देख/जान कर हर कोई हैरान रह गया । अधिकतर लोगों ने जेके गौड़ के इस फैसले को राजकुमार पांचाल के साथ विश्वासघात के रूप में ही देखा/पहचाना है । जेके गौड़ के नजदीकी ही बता रहे हैं कि राजकुमार पांचाल की जगह विनीत पटपटिया को असिस्टेंट गवर्नर बनवाने का फैसला जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल के कहने पर लिया है । रमेश अग्रवाल दरअसल सोनीपत में राजकुमार पांचाल की बढ़ती राजनीतिक हैसियत को अपनी राजनीति के लिए खतरे के रूप में देख रहे हैं । राजकुमार पांचाल ने अपने कामकाज और अपने व्यवहार से रोटेरियंस के बीच अपनी अच्छी साख बनाई है । क्लब के अध्यक्ष के रूप में किए गए कामों के चलते उनकी गिनती सबसे योग्य अध्यक्षों में हुई थी और उन्हें प्लेटिनम प्रेसीडेंट अवार्ड से नवाजा गया था । रोटरी की चुनावी राजनीति में भी निर्णायक भूमिका निभाने में उनका दखल रहा है । इसीलिए जेके गौड़ जब उम्मीदवार बने थे, तब सोनीपत में समर्थन जुटाने के लिए वह राजकुमार पांचाल पर निर्भर हुए थे और तभी से उन्होंने राजकुमार पांचाल को अपने खास लोगों में रखना/देखना/गिनना शुरू कर दिया था ।
लेकिन अपने 'खासों में भी खास' रमेश अग्रवाल के कहने में आकर जेके गौड़ ने राजकुमार पांचाल की बलि ले ली । रमेश अग्रवाल को डर वास्तव में यह है कि उन्होंने यदि राजकुमार पांचाल को नहीं 'रोका' तो सोनीपत में राजनीतिक मनमानी करने/दिखाने का उनका मौका ख़त्म जायेगा । सोनीपत में अपनी मनमानियों के लिए मौका बनाये रखने के लिए रमेश अग्रवाल को राजकुमार पांचाल को पीछे धकेलना जरूरी लगा और उनके असिस्टेंट गवर्नर बनने की राह में रोड़ा बन कर रमेश अग्रवाल ने यही जरूरी काम किया है । इस प्रकरण में लोगों को लेकिन जेके गौड़ के रवैये पर हैरानी है : लोगों का कहना है कि रमेश अग्रवाल के साथ उनका आखिर ऐसा क्या रिश्ता है, जिसे निभाने के चक्कर में वह उन लोगों को भी अपने से दूर करते जा रहे हैं जिन्होंने जरूरत के समय उनकी मदद की थी । मजे की बात यह है कि जेके गौड़ के साथ जुड़े कई लोगों को भी रमेश अग्रवाल के साथ उनके रिश्ते को लेकर आपत्ति होने लगी है । कुछेक लोग मजाक में कहने भी लगे हैं कि जेके गौड़ तो रमेश अग्रवाल के ऐसे दीवाने बने हुए हैं, जितना दीवाना तो लैला का मजनूँ भी नहीं था ।
रमेश अग्रवाल के प्रति दीवानगी के चलते जेके गौड़ जिस तरह काम कर रहे हैं और उसके कारण उनके साथ जुड़े लोग भी जिस तरह से बिदक रहे हैं - उसके चलते उनके अपने गिरोह में बिखराव बढ़ने लगा है । उनके अपने लोग ही यह कहते हुए सुने जा रहे हैं कि शरत जैन के लिए समर्थन जुटाने के नाम पर जेके गौड़ जिस तरह रमेश अग्रवाल के द्धारा इस्तेमाल हो रहे हैं, उसका वास्तव में उल्टा असर ही हो रहा है और शरत जैन का फायदा होने की बजाये नुकसान होने का खतरा बढ़ रहा है । उनकी कार्रवाइयों ने सबसे ज्यादा तो सतीश सिंघल के उन समर्थकों व शुभचिंतकों को निराश किया है, जिन्होंने इस उम्मीद के साथ शरत जैन की उम्मीदवारी के समर्थन में जुटना शुरू किया था कि इसके बदले में शरत जैन के समर्थकों व शुभचिंतकों का समर्थन सतीश सिंघल को मिलेगा । उन्हें शरत जैन के रवैये से भी निराशा हुई है : उनका कहना है कि शरत जैन उनका समर्थन तो लेना चाहते हैं, लेकिन बदले में सतीश सिंघल को अपने नजदीकियों का समर्थन दिलवाने के मुद्दे पर चुप लगा जाते हैं । मुकेश अरनेजा ने यह कह कर अपने आप को बचाने की कोशिश की हुई है कि वह क्या करें - जब शरत जैन, रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ उनकी सुनते और मानते ही नहीं हैं । शरत जैन, रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ ने जिस तरह से सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के विषय को किनारे धकेल दिया है, उससे सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच जो निराशा और नाराजगी पैदा हुई है - उसे शरत जैन के लिए घातक समझा जा रहा है । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों का कहना है कि शरत जैन, रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को सतीश सिंघल की मदद नहीं करनी थी तो न करते, झूठ बोलने की और धोखा देने की कोशिश तो न करते ।
रमेश अग्रवाल ने शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से जेके गौड़ को जैसा जो इस्तेमाल किया हुआ है, और जेके गौड़ जिस तरह से अपना इस्तेमाल होने दे रहे हैं उससे न सिर्फ जेके गौड़ की बदनामी हो रही है, बल्कि गिरोह में फूट पड़ती दिख रही है - और इस सबके चलते शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए नई नई तरह की चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं ।
रोटरी क्लब सोनीपत अपटाऊन के राजकुमार पांचाल की जगह विनीत पटपटिया को असिस्टेंट गवर्नर बनाने के जेके गौड़ के फैसले को जेके गौड़ पर हावी होने/रहने की रमेश अग्रवाल की कार्रवाई के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । राजकुमार पांचाल ही लोगों को बता रहे हैं कि जेके गौड़ जब खुद उम्मीदवार थे तब से उनके साथ मीठी मीठी बात करते आ रहे थे और अभी हाल तक उन्हें असिस्टेंट गवर्नर पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार रहने के संकेत दे रहे थे । उनके क्लब में ही नहीं, बल्कि सोनीपत में भी लोग यह विश्वास करने लगे थे कि जेके गौड़ के गवर्नर-काल में राजकुमार पांचाल असिस्टेंट गवर्नर बनेंगे । लेकिन जब फैसला आया तो असिस्टेंट गवर्नर के रूप में विनीत पटपटिया का नाम देख/जान कर हर कोई हैरान रह गया । अधिकतर लोगों ने जेके गौड़ के इस फैसले को राजकुमार पांचाल के साथ विश्वासघात के रूप में ही देखा/पहचाना है । जेके गौड़ के नजदीकी ही बता रहे हैं कि राजकुमार पांचाल की जगह विनीत पटपटिया को असिस्टेंट गवर्नर बनवाने का फैसला जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल के कहने पर लिया है । रमेश अग्रवाल दरअसल सोनीपत में राजकुमार पांचाल की बढ़ती राजनीतिक हैसियत को अपनी राजनीति के लिए खतरे के रूप में देख रहे हैं । राजकुमार पांचाल ने अपने कामकाज और अपने व्यवहार से रोटेरियंस के बीच अपनी अच्छी साख बनाई है । क्लब के अध्यक्ष के रूप में किए गए कामों के चलते उनकी गिनती सबसे योग्य अध्यक्षों में हुई थी और उन्हें प्लेटिनम प्रेसीडेंट अवार्ड से नवाजा गया था । रोटरी की चुनावी राजनीति में भी निर्णायक भूमिका निभाने में उनका दखल रहा है । इसीलिए जेके गौड़ जब उम्मीदवार बने थे, तब सोनीपत में समर्थन जुटाने के लिए वह राजकुमार पांचाल पर निर्भर हुए थे और तभी से उन्होंने राजकुमार पांचाल को अपने खास लोगों में रखना/देखना/गिनना शुरू कर दिया था ।
लेकिन अपने 'खासों में भी खास' रमेश अग्रवाल के कहने में आकर जेके गौड़ ने राजकुमार पांचाल की बलि ले ली । रमेश अग्रवाल को डर वास्तव में यह है कि उन्होंने यदि राजकुमार पांचाल को नहीं 'रोका' तो सोनीपत में राजनीतिक मनमानी करने/दिखाने का उनका मौका ख़त्म जायेगा । सोनीपत में अपनी मनमानियों के लिए मौका बनाये रखने के लिए रमेश अग्रवाल को राजकुमार पांचाल को पीछे धकेलना जरूरी लगा और उनके असिस्टेंट गवर्नर बनने की राह में रोड़ा बन कर रमेश अग्रवाल ने यही जरूरी काम किया है । इस प्रकरण में लोगों को लेकिन जेके गौड़ के रवैये पर हैरानी है : लोगों का कहना है कि रमेश अग्रवाल के साथ उनका आखिर ऐसा क्या रिश्ता है, जिसे निभाने के चक्कर में वह उन लोगों को भी अपने से दूर करते जा रहे हैं जिन्होंने जरूरत के समय उनकी मदद की थी । मजे की बात यह है कि जेके गौड़ के साथ जुड़े कई लोगों को भी रमेश अग्रवाल के साथ उनके रिश्ते को लेकर आपत्ति होने लगी है । कुछेक लोग मजाक में कहने भी लगे हैं कि जेके गौड़ तो रमेश अग्रवाल के ऐसे दीवाने बने हुए हैं, जितना दीवाना तो लैला का मजनूँ भी नहीं था ।
रमेश अग्रवाल के प्रति दीवानगी के चलते जेके गौड़ जिस तरह काम कर रहे हैं और उसके कारण उनके साथ जुड़े लोग भी जिस तरह से बिदक रहे हैं - उसके चलते उनके अपने गिरोह में बिखराव बढ़ने लगा है । उनके अपने लोग ही यह कहते हुए सुने जा रहे हैं कि शरत जैन के लिए समर्थन जुटाने के नाम पर जेके गौड़ जिस तरह रमेश अग्रवाल के द्धारा इस्तेमाल हो रहे हैं, उसका वास्तव में उल्टा असर ही हो रहा है और शरत जैन का फायदा होने की बजाये नुकसान होने का खतरा बढ़ रहा है । उनकी कार्रवाइयों ने सबसे ज्यादा तो सतीश सिंघल के उन समर्थकों व शुभचिंतकों को निराश किया है, जिन्होंने इस उम्मीद के साथ शरत जैन की उम्मीदवारी के समर्थन में जुटना शुरू किया था कि इसके बदले में शरत जैन के समर्थकों व शुभचिंतकों का समर्थन सतीश सिंघल को मिलेगा । उन्हें शरत जैन के रवैये से भी निराशा हुई है : उनका कहना है कि शरत जैन उनका समर्थन तो लेना चाहते हैं, लेकिन बदले में सतीश सिंघल को अपने नजदीकियों का समर्थन दिलवाने के मुद्दे पर चुप लगा जाते हैं । मुकेश अरनेजा ने यह कह कर अपने आप को बचाने की कोशिश की हुई है कि वह क्या करें - जब शरत जैन, रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ उनकी सुनते और मानते ही नहीं हैं । शरत जैन, रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ ने जिस तरह से सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के विषय को किनारे धकेल दिया है, उससे सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच जो निराशा और नाराजगी पैदा हुई है - उसे शरत जैन के लिए घातक समझा जा रहा है । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों का कहना है कि शरत जैन, रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को सतीश सिंघल की मदद नहीं करनी थी तो न करते, झूठ बोलने की और धोखा देने की कोशिश तो न करते ।
रमेश अग्रवाल ने शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से जेके गौड़ को जैसा जो इस्तेमाल किया हुआ है, और जेके गौड़ जिस तरह से अपना इस्तेमाल होने दे रहे हैं उससे न सिर्फ जेके गौड़ की बदनामी हो रही है, बल्कि गिरोह में फूट पड़ती दिख रही है - और इस सबके चलते शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए नई नई तरह की चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं ।