Wednesday, September 30, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में सीओएल का चुनाव बड़े अंतर से जीतने के बावजूद सुधीर मंगला डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग और अकेले पड़े, तथा इसके लिए उनके मतलबी और घमंडी व्यवहार को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है

नई दिल्ली । सीओएल का चुनाव बड़े अंतर से जीतने वाले पूर्व गवर्नर सुधीर मंगला इस बात को लेकर बुरी तरह परेशान और निराश हैं कि डिस्ट्रिक्ट में उन्हें कोई पूछता ही नहीं है, और वह पूरी तरह अलग-थलग पड़े हुए हैं । विडंबना और मजे की बात यह है कि सत्ता खेमे में तो उन्हें इसलिए तवज्जो नहीं मिल रही है, क्योंकि सीओएल के चुनाव में उन्होंने सत्ता खेमे के उम्मीदवार अमित जैन को खासे बड़े अंतर से हराया और इस तरह सत्ता खेमे के नेताओं की भारी किरकिरी की/करवाई; लेकिन विरोधी खेमे के जिन नेताओं ने सीओएल के चुनाव में उनके लिए दिन/रात एक किया, वह भी उनसे कन्नी काटते हुए दिखाई दे रहे हैं । मजे की बात यह भी है कि सुधीर मंगला यह रोना रोते हुए और शिकायत करते हुए तो सुने गए हैं कि उनके अपने लोगों ने उन्हें अलग-थलग किया हुआ है, लेकिन इस आरोप पर वह चुप्पी साध लेते हैं कि इस स्थिति के लिए खुद वह ही जिम्मेदार हैं । दरअसल, सीओएल का चुनाव जीतने के बाद सुधीर मंगला घमंड से भर गए थे, और कहते/सुनाते तथा दावा करने लगे थे कि सीओएल का चुनाव तो उन्होंने अपने दम पर जीता है, तथा किसी ने उनकी कोई मदद नहीं की ।
सुधीर मंगला की इस तरह की बातों ने उनके साथियों/सहयोगियों को बुरी तरह भड़का दिया, और उन्होंने उनसे दूरी बना ली । सीओएल के चुनाव में सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के पक्ष में वोट जुटाने में सक्रिय भूमिका निभाने वाले एक वरिष्ठ पूर्व गवर्नर का कहना/बताना रहा कि चुनाव के दौरान तो सुधीर मंगला दिन में आठ/आठ बार फोन करते थे, लेकिन चुनाव जीतने के बाद उन्होंने थैंक्यू कहने तक के लिए फोन नहीं किया । सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में लगे रहे अन्य प्रमुख नेताओं का भी आरोप रहा है कि चुनाव के समय तो सुधीर मंगला बड़ी चिकनी-चुपड़ी बातें करते थे, लेकिन जीतने के बाद तो उनके तेवर ही बदल गए । सुधीर मंगला के बदले बदले रवैये से हैरान तथा अपमानित महसूस करने वाले कुछेक साथियों/सहयोगियों को निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन के ताने भी सुनने पड़े कि उन्होंने तो पहले ही कहा था कि सुधीर मंगला बहुत ही मतलबी व्यक्ति हैं; जब तक उन्हें काम निकालना होता है तब तक वह मीठी मीठी बातें करते हैं, लेकिन काम निकलने के बाद फिर उनका रवैया बदल जाता है, इसीलिए उन्होंने सुधीर मंगला का विरोध किया था  ।
सीओएल का चुनाव जीतने के बाद सुधीर मंगला के बदले रवैये को देखते हुए, उनके साथी/सहयोगी रहे लोगों ने उनसे जब किनारा कर लिया - तब सुधीर मंगला डिस्ट्रिक्ट में अलग थलग पड़ गए । सुधीर मंगला के लिए फजीहत की बात यह हुई कि नेताओं ने जब उनसे किनारा कर लिया, तो क्लब्स के पदाधिकारियों ने भी उन्हें तवज्जो देने की जरूरत नहीं समझी । पिछले दिनों जिन भी क्लब्स के कार्यक्रम हुए हैं, उनमें अधिकतर में सुधीर मंगला को कतई पूछा तक नहीं गया । कुछेक मौकों पर सुधीर मंगला की तरफ से यह तक आरोप सुनने को मिले हैं कि नेताओं ने क्लब्स के पदाधिकारियों पर दबाव बनाये हैं कि उन्हें क्लब के कार्यक्रमों में सम्मानपूर्ण तरीके से आमंत्रित न किया जाए । उनके आरोपों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया है । लोगों का कहना है कि सुधीर मंगला को जब यह लगता है कि सीओएल की उम्मीदवारी के लिए वोट उन्होंने खुद जुटाये हैं, तो अपने लिए कार्यक्रमों के निमंत्रण भी खुद ही जुटा लें । सीओएल का चुनाव बड़े अंतर से जीतने के बाद सुधीर मंगला ने सोचा तो यह था कि अब उनकी गिनती और पहचान डिस्ट्रिक्ट के एक बड़े नेता के रूप में होगी, लेकिन हुआ ठीक उलटा है । उनके लिए फजीहत की बात यह हुई है कि उनकी इस उलटी दशा के लिए उनके मतलबी और घमंडी व्यवहार को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है ।

Tuesday, September 29, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में पहले तो प्रेसीडेंट पद का निजी खुन्नस में दुरुपयोग करने और अब वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में अपना वोट/समर्थन राजेश शर्मा को 'बेचने' के आरोपों के चलते अतुल गुप्ता की मुसीबतें और बढ़ीं; तथा उन्हें बचाने की कोशिशों में विजय झालानी भी विवाद में फँसे

नई दिल्ली । मोहित बंसल मामले में फँसे इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता को बचाने के लिए सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा तथा विजय झालानी ने जो मोर्चा संभाला है, उससे इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी आ गई है । उक्त मामले में अतुल गुप्ता की बुरी तरह फँसी गर्दन को निकालने के लिए राजेश शर्मा लगातार मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स के मंत्री से लेकर अधिकारियों तक के चक्कर काट रहे हैं, और अतुल गुप्ता को बचाने की तरकीबें ढूँढ़ने में लगे हुए हैं । अपने इस 'लगे होने' का कारण बताते हुए खुद राजेश शर्मा ने दावा किया है कि उक्त मामले में बचाने की उनकी कोशिशों के बदले में अतुल गुप्ता ने वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में उनका समर्थन करने की कसम खाई है । राजेश शर्मा के इस दावे ने वाइस प्रेसीडेंट पद के दूसरे संभावित उम्मीदवारों को भड़का दिया है, और वह प्रेसीडेंट के रूप में अतुल गुप्ता की निजी खुन्नस निकालने की हरकत को लेकर अतुल गुप्ता को निशाना बना रहे हैं । अतुल गुप्ता को निशाना बनाने वाले सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को मनाने की जिम्मेदारी विजय झालानी ने संभाली है, जिसके तहत उनके द्वारा कुछेक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को अपने घर पार्टी देने की बात भी चर्चा में है ।
विजय झालानी की सक्रियता ने सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को और भड़का दिया है । दरअसल विजय झालानी सेंट्रल काउंसिल में गवर्नमेंट नॉमिनी हैं, इसलिए सेंट्रल काउंसिल सदस्य यह बात पसंद नहीं करते हैं कि वह इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति/व्यवस्था में किसी भी तरह से कोई हस्तक्षेप करें । गवर्नमेंट नॉमिनी हस्तक्षेप करते भी नहीं हैं । विजय झालानी का मामला लेकिन अलग है । असल में, कुछ समय पहले तक वह इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में खासे सक्रिय थे, और चुनाव जीत कर सेंट्रल काउंसिल में आने की हसरत रखते थे । चुनाव जीत कर सेंट्रल काउंसिल में आने की हसरत तो उनकी पूरी नहीं हो सकी, लेकिन गवर्नमेंट नॉमिनी के रूप में सेंट्रल काउंसिल में आने का जुगाड़ उन्होंने कर लिया । जुगाड़ तो उन्होंने कर लिया, लेकिन गवर्नमेंट नॉमिनी के रूप में वह उन भटकती आत्माओं का प्रतिरूप बन गए, जो मुक्ति की तलाश में रहती हैं; मुक्ति पाने की 'कोशिशों' में विजय झालानी कई बार यह भूल जाते हैं कि सेंट्रल काउंसिल में वह सामने के रास्ते से नहीं, बल्कि पीछे के रास्ते से आए हैं - और इस चक्कर में कई बार उनकी सामने से आए सदस्यों से झड़पें भी हो चुकी हैं । मोहित बंसल के मामले में अतुल गुप्ता पर निजी खुन्नस के चलते प्रेसीडेंट पद का दुरुपयोग करने तथा कानूनी कार्रवाई में मोटी रकम खर्च करने को लेकर लगने वाले आरोपों से बनी स्थिति में विजय झालानी जिस तरह से अतुल गुप्ता का पक्ष लेते हुए नजर आ रहे हैं, उसे सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने गवर्नमेंट नॉमिनी के व्यवहार के अनुरूप नहीं माना/पाया है ।
सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का कहना है कि मोहित बंसल के मामले में दो वर्ष पहले के मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स के स्पष्टीकरण का संज्ञान लेते हुए गवर्नमेंट नॉमिनी के रूप में विजय झालानी अपने कर्तव्य व जिम्मेदारी का पालन करने में तो विफल रहे ही, अतुल गुप्ता की हरकत पर सवाल उठाने वाले सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को 'चुप' करने/करवाने की उनकी कोशिशों ने तो 'हद ही पार' कर दी है । विजय झालानी के रवैये के खिलाफ सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच अलग तरह की नाराजगी है, तो राजेश शर्मा के दावे पर अलग तरह का बबाल है । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का कहना है कि अतुल गुप्ता ने पहले तो अपनी निजी खुन्नस में प्रेसीडेंट पद का दुरुपयोग किया, और अब वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में अपना वोट/समर्थन 'बेच' कर वह और गंदगी फैला रहे हैं । अतुल गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए उनका वोट और समर्थन राजेश शर्मा के लिए होने की बात 'खुल' जाने के बाद वाइस प्रेसीडेंट पद के अन्य संभावित उम्मीदवारों ने अतुल गुप्ता के प्रति हमलावर रवैया अपना लिया है । ऐसे में, राजेश शर्मा की कोशिशों से तो अतुल गुप्ता को मदद मिलती फिलहाल नहीं दिख रही है, लेकिन राजेश शर्मा के 'दावे' के बाद भड़के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने अतुल गुप्ता के लिए फजीहत वाले हालात बना/बढ़ा दिए हैं । 

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्वनी काम्बोज द्वारा अपनी पत्नी को जोन चेयरपरसन बनाने के पीछे - पंकज बिजल्वान को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से रोकने, अन्यथा उनसे 'सौदेबाजी' करने की उनकी 'तैयारी' को देखा/पहचाना जा रहा है

देहरादून । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्वनी काम्बोज ने अपनी पत्नी प्रतिभा काम्बोज को जोन चेयरपरसन बना कर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में चर्चाओं का शोर खासा बढ़ा दिया है । माना/समझा जा रहा है कि अपनी पत्नी को जोन चेयरपरसन बना कर अश्वनी काम्बोज ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की राजनीति की चाबी अपने पास रखने की तैयारी की है; जिसके तहत जरूरत पड़ने पर वह अपनी पत्नी को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार बना सकेंगे । अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों के अनुसार, अश्वनी काम्बोज दरअसल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के रास्ते में काँटे बोना चाहते हैं, और पंकज बिजल्वान को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर न बनने देने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं । इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए अश्वनी काम्बोज ने पहले विनय शिशोदिया पर डोरे डाले थे, जिसके चलते विनय शिशोदिया ने उम्मीदवारी की तैयारी भी शुरू कर दी थी । विनय शिशोदिया को लेकिन सत्ता खेमे के दूसरे नेताओं का सहयोग/समर्थन मिलता हुआ नहीं दिखा, तो फिर वह पीछे हटते हुए नजर आए । विनय शिशोदिया को हालाँकि विरोधी खेमे के कुछेक पूर्व गवर्नर्स नेताओं ने समझाने की कोशिश तो की कि अश्वनी काम्बोज के उम्मीदवार के रूप में मैदान में कूद पड़ो, फिर उन्हें विरोधी खेमे के नेताओं का समर्थन भी मिल जायेगा । विनय शिशोदिया ने लेकिन न अश्वनी काम्बोज पर भरोसा किया और न विरोधी खेमे के नेताओं के साथ जुड़ने में दिलचस्पी दिखाई, और अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने में ही अपनी भलाई देखी ।
विनय शिशोदिया के 'हाथ से निकलने' के बाद ही अश्वनी काम्बोज ने चूँकि अपनी पत्नी को जोन चेयरपरसन बनाया है, इसलिए इस बात का ज्यादा शोर मचा है कि 'इस तरह' उन्होंने अपनी पत्नी को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार बनाने की तैयारी शुरू की है । ऐसा मानने वालों का तर्क है कि अश्वनी काम्बोज को यदि अपनी पत्नी को 'सिर्फ' जोन चेयरपरसन बनाना होता, तो वह सबसे पहले उन्हें बनाते । गवर्नर-वर्ष के दो महीने बीतने के बाद उन्हें अपनी पत्नी को जोन चेयरपरसन बनाने का ख्याल आया है - तो यह कोई सहज बात नहीं है । उल्लेखनीय है कि अश्वनी काम्बोज ने मई/जून से जोन चेयरपरसन बनाने शुरू कर दिए थे, और अधिकतर जोन चेयरपरसन बना दिए/लिए थे । इससे ही समझा जा सकता है कि अश्वनी काम्बोज ने अपनी पत्नी को सिर्फ जोन चेयरपरसन बनाने के लिए ही जोन चेयरपरसन नहीं बनाया है, बल्कि 'कुछ बड़ा' खेल करने के लिए ऐसा किया है - और यह बड़ा खेल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव ही है । अश्वनी काम्बोज के कुछेक नजदीकियों का कहना हालाँकि यह है कि अश्वनी काम्बोज अपनी पत्नी को सचमुच उम्मीदवार नहीं बनायेंगे, वह तो बस पंकज बिजल्वान के लिए मुसीबतें खड़ी करने के उद्देश्य से 'तैयारी' कर रहे हैं । 
अश्वनी काम्बोज द्वारा अपनी पत्नी को जोन चेयरपरसन बनाये जाने के बाद छिड़ी चर्चाओं में कहा/सुना जा रहा है कि अपनी पत्नी की उम्मीदवारी के जरिये अश्वनी काम्बोज पहले तो क्लब में ही पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को हरी झंडी मिलने से रोकने का काम करेंगे, और यदि पंकज बिजल्वान किसी दूसरे क्लब में ट्रांसफर लेकर उम्मीदवार बनते हैं, तब फिर अपनी पत्नी की उम्मीदवारी के जरिये वह पंकज बिजल्वान के लिए मुकाबले को मुश्किल बनायेंगे । कुछेक लोगों को यह भी लगता है कि अश्वनी काम्बोज को यदि यह लगेगा कि वह पंकज बिजल्वान को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से नहीं रोक सकेंगे, तो उन्हें 'सौदेबाजी' करने के लिए मजबूर करने की कोशिश तो करेंगे ही । पिछले वर्ष पंकज बिजल्वान को जितवाने के लिए भारी नाटकबाजी कर चुकीं अनीता गुप्ता इस वर्ष पंकज बिजल्वान के खिलाफ हैं, और कहती सुनी गईं हैं कि वह पंकज बिजल्वान को रोक नहीं भी सकीं, तो उनके ज्यादा पैसे तो खर्च करवा ही देंगी । अश्वनी काम्बोज ने पिछले दिनों सत्ता खेमे के अन्य नेताओं को अँधेरे में रख कर जिस तरह से विरोधी खेमे के लोगों के साथ संबंध जोड़ने/बनाने का प्रयास किया है, उससे भी आभास मिला है कि अश्वनी काम्बोज ने अपने काम बनाने के लिए अलग राह पकड़ ली है; और इसी क्रम में पंकज बिजल्वान को रोकने - अन्यथा उनसे सौदेबाजी करने के लिए उन्होंने तैयारी शुरू कर दी है । गवर्नर-वर्ष के दो महीने पूरे होने के बाद, अपनी पत्नी को जोन चेयरपरसन बनाने की अश्वनी काम्बोज की कार्रवाई में उनकी उसी तैयारी को देखा/पहचाना जा रहा है ।

Monday, September 28, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 में अशोक गुप्ता की गुडबुक में होते हुए तथा शेखर मेहता के नजदीक होने की कोशिश करते हुए भरत पांड्या के नजदीकी जयप्रकाश व्यास को नोमीनेटिंग कमेटी की उम्मीदवारी के लिए प्रेरित करने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजेश अग्रवाल की कोशिशों ने डिस्ट्रिक्ट में गर्मी पैदा की

अहमदाबाद । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन/चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जयप्रकाश व्यास को उम्मीदवार 'बनाने' के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजेश अग्रवाल के प्रयासों ने जयप्रकाश व्यास तथा उनके नजदीकियों को गफलत में डाल दिया है । जयप्रकाश व्यास के नजदीकियों का कहना/बताना है कि राजेश अग्रवाल ने जिस अचानक तरीके से जयप्रकाश व्यास को उम्मीदवार बनने के लिए 'प्रेरित' करना शुरू किया है, उससे उन्हें यह समझने में मुश्किल हो रही है कि इसके पीछे राजेश अग्रवाल की मंशा आखिर क्या है, और जयप्रकाश व्यास को उम्मीदवार बना/बनवा कर वह आखिर अपना कौन सा 'स्वार्थ' पूरा करना चाहते हैं ? उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राजेश अग्रवाल लगातार यह दावा करते रहे हैं कि वह डिस्ट्रिक्ट में चुनावी राजनीति को किसी भी तरह से प्रश्रय नहीं देंगे, और कोशिश करेंगे कि चुनावी राजनीति के चक्कर में डिस्ट्रिक्ट का माहौल खराब न हो; लेकिन देखने/सुनने में आ रहा है कि राजेश अग्रवाल खुद चुनावी राजनीति में दिलचस्पी ले रहे हैं, और माहौल गर्म कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के कई लोगों को यह बात भी मजे की लग रही है कि राजेश अग्रवाल एक तरफ तो तरह तरह के करतबों से अपने आप को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता के नजदीक 'दिखाने' की कोशिश करते हैं, लेकिन दूसरी तरफ वह इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या के नजदीकी के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले जयप्रकाश व्यास को डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति में 'आगे बढ़ाने' की कोशिश कर रहे हैं । 
दरअसल इसीलिए जयप्रकाश व्यास के नजदीकियों को राजेश अग्रवाल की 'राजनीतिक नीयत' पर शक हो रहा है । उन्हें लग रहा है कि राजेश अग्रवाल कहीं डबल गेम तो नहीं खेल रहे हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में पूर्व गवर्नर अशोक गुप्ता के इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उम्मीदवार बनने की चर्चा है । अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी को मजबूती देने के उद्देश्य से नोमीनेटिंग कमेटी के लिए पूर्व गवर्नर्स अजय काला व आशीष देसाई में से किसी एक के उम्मीदवार होने का अनुमान लगाया जा रहा है । इन तीनों - अशोक गुप्ता, अजय काला व आशीष देसाई को शेखर मेहता ग्रुप के सदस्यों के रूप में देखा/पहचाना जाता है । डिस्ट्रिक्ट में कुछेक पूर्व गवर्नर्स विरोधी खेमे के नजदीक तो देखे/पहचाने जाते हैं, लेकिन अभी तक उनमें से किसी को अशोक गुप्ता के रास्ते में काँटे बोने का काम करते हुए नहीं देखा/सुना गया है । जैसे जयप्रकाश व्यास ही हैं; उन्हें भले ही भरत पांड्या वाले खेमे के नजदीक देखा/पहचाना जाता हो, लेकिन अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के सामने वह कोई मुश्किल खड़ी करते हुए नहीं देखे/सुने गए हैं । असल में, जैसा कि जयप्रकाश व्यास के नजदीकियों का कहना/बताना है कि जयप्रकाश व्यास आगे आने वाले वर्षों में खुद इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार होना चाहते हैं, इसलिए वह कोई ऐसा उदाहरण नहीं बनना/बनाना चाहते हैं जिससे कि उनकी बदनामी हो तथा आगे उनके सामने 'विरोध के नाम पर विरोध' की स्थिति पैदा हो 
लेकिन राजेश अग्रवाल उन्हें समझा रहे हैं कि उन्हें अभी नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवार बनना चाहिए, ताकि आगे आने वाले वर्षों में जब वह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करें, तो उन्हें भावनात्मक फायदा मिले । जयप्रकाश व्यास के कुछेक नजदीकियों को राजेश अग्रवाल का यह तर्क समझ में आ रहा है, लेकिन उनके अन्य कुछेक नजदीकियों का मानना और कहना है कि जयप्रकाश व्यास यदि सचमुच आगे आने वाले वर्षों में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उम्मीदवार होना चाहते हैं, तो उन्हें अभी नोमीनेटिंग कमेटी की उम्मीदवारी के पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए । इन नजदीकियों का यह भी कहना है कि नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में जयप्रकाश व्यास यदि हार गए, तो और किरकिरी होगी । जयप्रकाश व्यास के नजदीकियों को इस बात की भी हैरानी है कि राजेश अग्रवाल आखिरकार जयप्रकाश व्यास को नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवार बनाने/बनवाने में दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं ? उन्हें यह हैरानी इसलिए भी है, क्योंकि वह जानते हैं कि राजेश अग्रवाल खुद अशोक गुप्ता के नजदीक रहे हैं । तीन वर्ष पहले, वह अशोक गुप्ता के सहयोग/समर्थन के बल पर ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी 'चुने' गए थे । उनके क्लब के तथा कोटा के नेता लोग विक्रांत माथुर की उम्मीदवारी के पक्ष में थे, लेकिन राजेश अग्रवाल ने तीन-तिकड़म करके अपनी उम्मीदवारी की चर्चा चला दी, और गलतफहमियाँ पैदा करके अशोक गुप्ता का समर्थन जुटा लिया और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन गए । अशोक गुप्ता के इस अहसान का बदला चुकाने के लिए राजेश अग्रवाल ने उनके क्लब के सदस्य पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर भी बनाया हुआ है और उन्हें पूरा मान-सम्मान देते हैं । जयप्रकाश व्यास के नजदीकियों को इसीलिए यह सवाल परेशान कर रहा है कि अशोक गुप्ता की गुडबुक में होते हुए, शेखर मेहता के नजदीक होने की कोशिश करते हुए राजेश अग्रवाल आखिरकार जयप्रकाश व्यास को नोमीनेटिंग कमेटी की उम्मीदवारी के लिए प्रेरित क्यों कर रहे हैं ? 

Friday, September 25, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अशोक अग्रवाल के दाँव-पेचों ने मुकेश अरनेजा व जेके गौड़ के बीच जो लड़ाई छिड़वाई है, उसमें अशोक अग्रवाल का खुद का गवर्नर-वर्ष ही फजीहत का शिकार बनता नजर आ रहा है

गाजियाबाद । मुकेश अरनेजा और जेके गौड़ की तू तू मैं मैं ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अशोक अग्रवाल की मुसीबतों को खासा बढ़ा दिया है । विडंबना और मजे की बात यह है कि मुसीबतों को बढ़ाने का काम खुद अशोक अग्रवाल ने ही किया है; इसी बिना पर उनके नजदीकियों को भी लग रहा है कि अशोक अग्रवाल ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है । दरअसल जेके गौड़ के गवर्नर-वर्ष में रोटरी फाउंडेशन के लिए जमा हुई रकम में हेराफेरी के आरोपों की जाँच के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आलोक गुप्ता द्वारा गठित की गई स्टुअर्डशिप कमेटी को भंग करने की माँग करते हुए जेके गौड़ ने मुकेश अरनेजा को जिस तरह से निशाना बनाया है, उसके पीछे अशोक अग्रवाल का ही 'दिमाग' देखा/बताया जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट में चर्चा है कि जेके गौड़ ने जो मेल 'भेजी' है, उसे 'लिखा' पूर्व गवर्नर शरत जैन ने है - और शरत जैन से लिखवाने का आईडिया अशोक अग्रवाल का था । असल में, अशोक अग्रवाल की मुकेश अरनेजा के साथ ज्यादा खुन्नस है । अशोक अग्रवाल को उम्मीद थी कि शरत जैन विस्तार से मुकेश अरनेजा की पोल खोलेंगे, तो मुकेश अरनेजा दबाव में आयेंगे और चुप बैठेंगे । अशोक अग्रवाल लेकिन सामाजिक व्यवहार का वह सिद्धांत पूरी तरह भुला बैठे कि 'जो लोग खुद शीशे के घरों में रहते हैं, उन्हें दूसरों के ऊपर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए ।' मुकेश अरनेजा के जबावी हमले ने लेकिन मामले का रुख ही बदल दिया है, और जेके गौड़ को कई तरह से बेईमानियों के आरोपों के साथ कठघरे में खड़ा कर दिया है ।
मुकेश अरनेजा ने जबावी हमले में भले ही जेके गौड़ को घेरा है, लेकिन उनके निशाने पर अशोक अग्रवाल भी रहे । उल्लेखनीय है कि रोटरी वरदान ब्लड बैंक के प्रोजेक्ट में 45 लाख रूपये डकारने की कोशिश करने का जो आरोप मुकेश अरनेजा ने लगाया है, उसमें जेके गौड़ के 'पार्टनर इन क्राइम' अशोक अग्रवाल ही थे । इस तरह, उस मामले को एकबार फिर हवा देकर मुकेश अरनेजा ने अशोक अग्रवाल को लेकर लोगों के बीच संशय पैदा कर दिया है । अशोक अग्रवाल के गवर्नर-वर्ष के क्लब्स-प्रेसीडेंट रोटरी वरदान ब्लड बैंक में 45 लाख रुपयों की घपलेबाजी की कोशिशों और उसमें जेके गौड़ तथा अशोक अग्रवाल की मिलीभगत की बात को जानते भी नहीं होंगे, लेकिन मुकेश अरनेजा ने उन्हें उक्त मामले से परिचित करवाने का काम कर दिया - और इस तरह अशोक अग्रवाल गवर्नर बनने से दस महीने पहले ही 'अपने' प्रेसीडेंट्स के बीच 'बेईमान' होने की पहचान पा बैठे हैं । ऐसे में, अशोक अग्रवाल के सामने यह तय करने की चुनौती पैदा हो गई है कि उनके प्रयासों से मुकेश अरनेजा व जेके गौड़ के बीच 'छिड़ी' लड़ाई को वह और भड़काने का काम करें, या उसे ठंडा करने के लिए प्रयास करें ? इनके बीच की लड़ाई असल में सिर्फ इन दोनों के बीच की ही लड़ाई नहीं है, बल्कि इसमें कई लड़ाईयाँ गुँथी हुई हैं - इसलिए इस लड़ाई का निपटारा होना आसान भी नहीं है । निपटारा न होने की स्थिति में और लोग तो अपनी अपनी खुन्नस निकालेंगे और मजे लेंगे, लेकिन नुकसान अशोक अग्रवाल को उठाना पड़ेगा ।

डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अकाउंट को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आलोक गुप्ता के पास जाने से रोकने के लिए डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) के रूप में जेके गौड़ ने हस्ताक्षर करने से इंकार करने का जो रवैया अपनाया हुआ है, उसे दीपक गुप्ता व शरत जैन व ललित खन्ना के साथ-साथ अशोक अग्रवाल ने भी समर्थन भले ही दिया हुआ हो - लेकिन हर कोई समझ रहा है कि यह रवैया यदि जारी रहा तो यह आलोक गुप्ता के साथ-साथ अशोक अग्रवाल को भी अपनी चपेट में लेगा - और यह अनोखा मामला होगा, जिसमें अशोक अग्रवाल अपने आपको मुसीबत में फँसाते हुए देखे जा रहे होंगे । जेके गौड़, शरत जैन, अशोक अग्रवाल, ललित खन्ना की चौकड़ी अपने रवैये से डीडीएफ के मामले में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को पहले ही तगड़ा नुकसान पहुँचा चुकी है; इनका रवैया अब अशोक अग्रवाल को मुसीबत में फँसाता नजर आ रहा है । आरोप है कि जेके गौड़ और अशोक अग्रवाल की जोड़ी ने दीपक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में अपने क्लब के प्रोजेक्ट के लिए ग्रांट के रूप में मोटी रकम ऐंठने के लिए दीपक गुप्ता को डीडीएफ का पैसा अपने निजी अकाउंट से देने के लिए राजी किया, और फिर दीपक गुप्ता की मदद करने के नाम पर मामले को वहाँ पहुँचा दिया, जहाँ दीपक गुप्ता की मोटी रकम फँसती दिख रही है । इससे जाहिर है कि जेके गौड़ और अशोक अग्रवाल के दाँवपेंचों ने अभी तक उन्हें ही फजीहत का शिकार बनाया है, और इसीलिए लग रहा है कि उनकी हरकतें कहीं अशोक अग्रवाल के गवर्नर-वर्ष को भी चपेट में न ले लें । मुकेश अरनेजा और जेके गौड़ के बीच शुरू हुई तू तू मैं मैं में यह खतरा नजर भी आ रहा है । 

Thursday, September 24, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज की विज्ञापन के जरिये पैसे जुटाने के लिए की जा रही जबरदस्तियों के आरोपों ने जितेंद्र ढींगरा और अरुण मोंगिया को फँसाया और मुसीबत में डाला

पानीपत । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने तथा विज्ञापन के मनमाने दाम बसूलने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज द्वारा की जा रही जबरदस्तियों की शिकायतों ने निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार अरुण मोंगिया को खासी मुसीबत में डाल दिया है । डिस्ट्रिक्ट में कई आम और खास रोटेरियंस का आरोप है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश बजाज ने ज्यादा से ज्यादा पैसा इकट्ठा करने को ही अपना एकमात्र उद्देश्य बना लिया है । हालाँकि जितेंद्र ढींगरा ने इस तरह की बातों/शिकायतों पर यह कहते हुए मामले से अपना पल्ला झाड़ने का रवैया अपनाया हुआ है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के काम में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहते । लेकिन जैसे जैसे रमेश बजाज की तरफ से विज्ञापन लेने के लिए जबरदस्तियाँ बढ़ती गईं, जितेंद्र ढींगरा के पास शिकायतों का ढेर भी बढ़ता गया है । लोगों ने अरुण मोंगिया पर भी यह कहते हुए दबाव बनाया कि आप लोगों ने अच्छा गठजोड़ बना लिया है - आपको हमसे वोट चाहिए, और आपके गवर्नर को हमसे विज्ञापन/पैसे चाहिए । कई लोगों ने इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि उन्होंने अरुण मोंगिया से साफ कह दिया है कि उन्हें यदि अपनी उम्मीदवारी के लिए वोट चाहिए, तो गवर्नर से कहो कि विज्ञापन के लिए जबरदस्ती न करे ।
जितेंद्र ढींगरा और अरुण मोंगिया के लिए मुसीबत की बात यह भी है कि रमेश बजाज की तरफ से पहले से ही उनके खिलाफ यह शिकायत सुनी जा रही है कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन इकट्ठा करवाने में कोई मदद नहीं की है । रमेश बजाज के नजदीकियों के अनुसार, रमेश बजाज को इस बात की बड़ी नाराजगी और शिकायत है कि जितेंद्र ढींगरा डिस्ट्रिक्ट टीम की प्रस्तावित सूची में नाम कटवाने तथा जुड़वाने के लिए तो सक्रिय रहते हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट टीम में शामिल किए/करवाने वाले लोगों से विज्ञापन दिलवाने में कोई दिलचस्पी नहीं लेते हैं । रमेश बजाज ने अपने नजदीकियों के बीच कई बार यह रोना रोया है कि डिस्ट्रिक्ट टीम के लिए उन्होंने जो नाम तय किए थे, जितेंद्र ढींगरा ने उनमें से कई नामों को डिस्ट्रिक्ट टीम में शामिल न करने के लिए कहा; और जितेंद्र ढींगरा के दबाव के चलते उन्हें कई नाम हटाने पड़े तथा उनकी जगह दूसरे नाम तय करने पड़े - और इस चक्कर में डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी का काम लेटलतीफी का शिकार हुआ । रमेश बजाज की शिकायत यह है कि उन्होंने तो जितेंद्र ढींगरा की बातों को मानने तथा अपनाने में कोई देर नहीं की, लेकिन जितेंद्र ढींगरा ने जो नाम डिस्ट्रिक्ट टीम में शामिल करवाए - उनसे डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन दिलवाने में कोई दिलचस्पी नहीं ली ।
डिस्ट्रिक्ट में आम और खास रोटेरियंस का मानना और कहना है कि लॉकडाउन के कारण रोटरी और डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियाँ जब लगभग ठप्प पड़ी हैं, तो डिस्ट्रिक्ट का ज्यादा कोई खर्चा भी नहीं हो रहा है - लेकिन फिर भी रमेश बजाज पैसों को लेकर ज्यादा हायतौबा क्यों मचा रहे हैं ? जितेंद्र ढींगरा और उनसे पहले, टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष का उदाहरण देते हुए रोटेरियंस का कहना है कि इन दोनों ने विज्ञापन जुटाने तथा अन्य तरीकों से पैसे इकट्ठे करने को लेकर कोई जबरदस्ती भी नहीं की थी, और अपने अपने कार्यक्रम भी बड़ी भव्यता के साथ किए थे । जितेंद्र ढींगरा तो एक बड़ी रकम के बचे होने की बात कहते/बताते भी सुने गए हैं । लॉकडाउन के चलते रमेश बजाज को कुछ करना भी नहीं पड़ रहा है, और वह पैसे जुटाने के काम में बुरी तरह से जुटे हुए भी हैं, और वह तरह तरह से जबरदस्ती कर रहे हैं । इससे ही लोगों को आरोपपूर्ण सवाल करने का मौका मिला है कि रमेश बजाज सिर्फ कमाई करने के लिए ही गवर्नर बने हैं क्या ? जितेंद्र ढींगरा से भी लोगों ने शिकायती स्वर में कहा है कि उन्हें अपने जो काम रमेश बजाज से करवाने होते हैं, वह तो करवा लेते हैं - लेकिन 'हम' रमेश बजाज की जबरदस्ती से बचाने की बात कहते हैं, तो बहाने करके बच निकलते हैं । रमेश बजाज की जबरदस्ती से बचने/बचाने के लिए जितेंद्र ढींगरा और अरुण मोंगिया से लगाई जा रही गुहारों का कोई असर होगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - लेकिन इन गुहारों ने डिस्ट्रिक्ट में एक दिलचस्प नजारा तो बना ही दिया है । 

Wednesday, September 23, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स बनाम मोहित बंसल मामले में हाईकोर्ट द्वारा व्यक्तिगत रूप से पार्टी बनाये जाने के खिलाफ अतुल गुप्ता सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की तैयारी करते तो सुने जा रहे हैं, लेकिन उन्हें यह डर भी है कि वहाँ राहत न मिलने पर उन्हें और ज्यादा फजीहत का शिकार बनना पड़ेगा 

नई दिल्ली । बेचारे अतुल गुप्ता 'गए थे नमाज़ पढ़ने, रोजे गले पड़ गए' वाले हालात के शिकार हो गए हैं । अतुल गुप्ता ने बड़ी तैयारी के साथ खड्डा खोदा था, जिसमें वह 24 सितंबर को मोहित बंसल को गिराने वाले थे, लेकिन एक दिन पहले आज 23 सितंबर को वह खुद उस खड्डे में गिर गए । मोहित बंसल की याचिका पर आज सुबह दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका पर फैसला होने तक मोहित बंसल वाले मामले में इंस्टीट्यूट की कार्रवाई पर रोक लगा दी है । अतुल गुप्ता के लिए इससे भी ज्यादा झटके वाली बात यह रही कि याचिका में दिए गए तथ्यों पर गौर करते हुए कोर्ट ने मामले में अतुल गुप्ता को व्यक्तिगत रूप से पार्टी बनाने का भी फैसला किया है । हाईकोर्ट के इस फैसले के आधार पर लोगों के बीच इस बात की पुष्टि होना माना/समझा जा रहा है कि अतुल गुप्ता ने व्यक्तिगत खुन्नस निकालने की तैयारी में इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट पद का दुरुपयोग किया है । अतुल गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि मामले में उन्हें व्यक्तिगत रूप से पार्टी बनाने के हाईकोर्ट के फैसले खिलाफ अतुल गुप्ता सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के बारे में तैयारी कर रहे हैं । सेंट्रल काउंसिल के कुछेक सदस्य इस बात से खफा और खिन्न हैं कि अतुल गुप्ता अपनी निजी खुन्नसबाजी में प्रेसीडेंट पद का इस्तेमाल करते हुए इंस्टीट्यूट का मोटा पैसा कानूनी कार्रवाई में नाहक ही खर्च कर रहे हैं ।
दिल्ली हाईकोर्ट में आज हुई सुनवाई/कार्रवाई में अतुल गुप्ता के उस झूठ की भी पोल खुल गई, जिसमें वह मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स द्वारा दो वर्ष पहले दिए गए स्पष्टीकरण को वापस ले लिए जाने का दावा कर रहे थे । उल्लेखनीय है कि दो वर्ष पहले मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स की तरफ से बाकायदा लिखित में यह स्पष्टीकरण आया था कि जिस आधार पर मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करने की बात की जा रही है, वह किसी भी तरह से तर्कपूर्ण तथा नियमानुसार नहीं है, और वास्तव में वह कोई आधार बनता ही नहीं है । इस स्पष्टीकरण के आने के बाद ही, दो वर्ष पहले तत्कालीन प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता ने मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करने की प्रक्रिया को रद्द कर दिया था । अतुल गुप्ता लेकिन पिछले छह/आठ दिन से लोगों को बता रहे थे कि मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स ने उक्त स्पष्टीकरण को वापस ले लिया है, और जिसके चलते मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करने का रास्ता खुल गया है । किंतु आज दिल्ली हाईकोर्ट में इंस्टीट्यूट की तरफ से ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया, जिससे उक्त स्पष्टीकरण के वापस होने का पता चलता । जानकारों का कहना है कि ऐसा कोई दस्तावेज यदि सचमुच पेश किया गया होता, तो हाईकोर्ट मोहित बंसल के मामले में कार्रवाई करने को लेकर इंस्टीट्यूट पर रोक नहीं लगाने का फैसला नहीं करता । 
हर किसी को हैरानी है कि प्रेसीडेंट पद के नशे में निजी खुन्नस के चलते मोहित बंसल को फँसाने के लिए अतुल गुप्ता इस हद तक कैसे और क्यों चले गए कि उन्होंने जरा भी इस बात का ख्याल नहीं रखा कि मोहित बंसल यदि कोर्ट चले गए, तो कोर्ट में मामला कैसे टिकेगा ? अतुल गुप्ता के नजदीकियों का बताना/कहना है कि अतुल गुप्ता ने यह तो सोचा था कि 24 सितंबर को जब वह मोहित बंसल की सदस्यता खत्म कर/करवा देंगे, तब सदस्यता बहाल करवाने के लिए मोहित बंसल कोर्ट जायेंगे; इसे लेकर अतुल गुप्ता ने लेकिन परवाह नहीं की, क्योंकि अपनी खुन्नस निकालने के लिए वह एक बार मोहित बंसल की सदस्यता खत्म कर/करवा देना चाहते थे । मोहित बंसल लेकिन होशियार निकले, वह पहले ही कोर्ट चले गए । कोर्ट ने उनके द्वारा प्रस्तुत तथ्यों को देखते हुए इंस्टीट्यूट की कार्रवाई पर रोक लगाने का फैसला करने में देर नहीं लगाई । अतुल गुप्ता के लिए मुसीबत और फजीहत की बात यह हुई कि हाईकोर्ट ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से मामले में पार्टी बना लिया है । हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अतुल गुप्ता सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी करते तो सुने जा रहे हैं; लेकिन उनके नजदीकियों के अनुसार, उन्हें यह डर भी सता रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में उन्हें यदि राहत नहीं मिली - तब उन्हें और ज्यादा फजीहत का शिकार बनना पड़ेगा । निजी खुन्नसबाजी के चक्कर में इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट पद का दुरुपयोग करते हुए अतुल गुप्ता ने अपनी और इंस्टीट्यूट की एकसाथ जैसी जो फजीहत करवाई है, वह उनके प्रेसीडेंट-वर्ष को कलंकित करने का काम भी करती है ।

Tuesday, September 22, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स के स्पष्टीकरण को अनदेखा करते हुए, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की पूर्व पदाधिकारी पूजा बंसल से खुन्नस के चलते उनके पति मोहित बंसल की सदस्यता की बलि लेने की तैयारी की  

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सेक्रेटरी, वाइस चेयरपरसन तथा कार्यकारी चेयरपरसन रहीं पूजा बंसल से अपनी खुन्नस निकालने के लिए इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने एक बार फिर उनके पति मोहित बंसल की सदस्यता खत्म करने/करवाने की तैयारी कर ली है । उल्लेखनीय है कि वर्षों पहले, मोहित बंसल के चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने से भी पहले उनके खिलाफ बने/चले एक आपराधिक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की मनमानी व्याख्या करते हुए अतुल गुप्ता ने वर्ष 2018 में भी मोहित बंसल की सदस्यता को खत्म करवाने की चाल चली थी । तत्कालीन प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता को झाँसे में रख कर अतुल गुप्ता ने तैयारी तो पूरी की थी, लेकिन जैसे ही पोल खुली कि यह मामला 'टिकेगा' नहीं, तथा इसके चक्कर में इंस्टीट्यूट प्रशासन को फजीहत का सामना और करना पड़ जायेगा - नवीन गुप्ता ने पॉँव वापस खींच लिए थे । अतुल गुप्ता उस समय नवीन गुप्ता को तो मोहित बंसल की सदस्यता खत्म करने/करवाने के लिए राजी नहीं कर सके थे, लेकिन उन्हें लगता है कि अब जब वह खुद प्रेसीडेंट हैं, तो दो वर्ष पहले अधूरे छोड़े गए काम को वह अब पूरा कर सकते हैं । अतुल गुप्ता को लोगों के बीच कहते सुना गया है कि मोहित बंसल बाद में भले ही अपनी सदस्यता बहाल करवा लें, लेकिन एक बार के लिए तो मैं उन्हें प्रेसीडेंट की पॉवर दिखा कर और मजा चखा कर ही रहूँगा ।
मोहित बंसल ने इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों को तथ्यों से अवगत करवाते हुए एक विस्तृत पत्र लिखा है, जिसमें बताया गया है कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी के रूप में पूजा बंसल ने कुछेक ऐसे फैसले लिए थे, जिनसे रीजनल काउंसिल में चेयरमैन के रूप में अतुल गुप्ता द्वारा की गई बेईमानियों की पोल खुली थी, और जिसके बाद अतुल गुप्ता तथा उनके भाई अरुण गुप्ता द्वारा इंस्टीट्यूट में किए जा रहे विभिन्न तरह के 'धंधों' को चोट पहुँची थी - उससे अतुल गुप्ता ने पूजा बंसल को सबक सिखाने का मौका देखना/खोजना शुरू कर दिया था । पूजा बंसल को सबक सिखाने के लिए ही प्रेसीडेंट पद के अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए अतुल गुप्ता ने मोहित बंसल के खिलाफ दो वर्ष पहले 'खत्म' हो चुके मामले को फिर से जिंदा कर दिया है । उल्लेखनीय है कि दो वर्ष पहले, जब मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिश की गई थी, तभी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की पैरेंट बॉडी के रूप में देखी/पहचानी जाती मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स की तरफ से बाकायदा लिखित में यह स्पष्टीकरण आया था कि जिस आधार पर मोहित बंसल खिलाफ कार्रवाई करने की बात की जा रही है, वह किसी भी तरह से तर्कपूर्ण तथा नियमानुसार नहीं है, और वास्तव में वह कोई आधार बनता ही नहीं है । इस स्पष्टीकरण के आने के बाद ही, तत्कालीन प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता ने मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करने की प्रक्रिया को रद्द कर दिया था ।
मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स के उक्त स्पष्टीकरण से मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स तथा प्रधानमंत्री कार्यालय को भी अवगत करा दिया गया था, जहाँ उक्त स्पष्टीकरण को 'स्वीकार' कर लिया गया था । लेकिन लगता है कि प्रेसीडेंट होने के नशे में अतुल गुप्ता खुद को दोनों मिनिस्ट्रीज तथा प्रधानमंत्री कार्यालय से ऊपर समझ रहे हैं, और अपनी निजी खुन्नस निकालने के लिए मोहित बंसल की सदस्यता खत्म करने का फैसला कर/करवा लेना चाहते हैं । तथ्यों से अवगत होने के बाद, सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों को लग रहा है कि अतुल गुप्ता को इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट पद का निजी लाभ/खुन्नस के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए तथा इंस्टीट्यूट और प्रेसीडेंट पद की गरिमा व मर्यादा से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए । अतुल गुप्ता लेकिन अपने नजदीकियों के बीच दावा करते सुने गए हैं कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का कहना चाहें जो हो, वह मोहित बंसल की सदस्यता खत्म करने/करवाने का फैसला तो जरूर करेंगे । अतुल गुप्ता का कहना है कि सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों को वह अच्छे से जानते/पहचानते हैं, उन्हें पता है कि किसी मुद्दे पर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का समर्थन पाने/जुटाने के लिए उन्हें क्या करना होगा । अतुल गुप्ता के तेवरों से लगता है कि मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स के स्पष्टीकरण तथा सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की असहमति के बावजूद वह पूजा बंसल से निजी खुन्नस निकालते हुए मोहित बंसल की सदस्यता की बलि चढ़ा ही देंगे ।         

Monday, September 21, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल को 'सर्विस अबव सेल्फ' का उदाहरण बताने वाले शेखर मेहता के ट्वीट को देख कर रोटेरियंस के बीच बूढ़ों, बीमारों, गरीबों व अनपढ़ों के नाम पर ली गई ग्रांट की रकम को हड़पने के मामले में अनिल अग्रवाल को दोषी ठहराए जाने तथा उनके सजायाफ्ता होने का मामला एक बार फिर चर्चा में आया  

जयपुर । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल के लिए इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता की तारीफ पाना फजीहत का कारण बन गया है । दरअसल ट्विटर पर शेखर मेहता ने ब्लड डोनेट करने को लेकर अनिल अग्रवाल की जो तारीफ की, उससे अनिल अग्रवाल का अपने गवर्नर वर्ष में ली गई ग्लोबल ग्रांट (नंबर 1420550) के करीब 20 लाख रुपये हड़पने का मामला एक बार फिर से चर्चा में आ गया, जिसके लिए अनिल अग्रवाल रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित किए जाने की सजा पा चुके हैं । हालाँकि काफी जद्दोजहद के बाद, उक्त हड़पी गई रकम वापस करने के चलते अनिल अग्रवाल को मिली सजा की अवधि कम कर दी गई, लेकिन रोटरी इंटरनेशनल के रिकॉर्ड में वह रोटरी फाउंडेशन की रकम हड़पने के मामले में दोषी हैं और सजायाफ्ता हैं । रोटेरियंस को हैरानी है कि बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों की मदद के नाम पर रोटरी फाउंडेशन से ग्रांट लेकर उसे हड़प जाने वाले अनिल अग्रवाल को शेखर मेहता 'सर्विस अबव सेल्फ' का प्रतिनिधि/उदाहरण कैसे कह/बता सकते हैं ? और ऐसा करके शेखर मेहता रोटेरियंस को आखिर क्या संदेश और प्रेरणा दे रहे हैं ? रोटेरियंस के बीच यह सवाल भी चर्चा में है कि अनिल अग्रवाल आखिरकार शेखर मेहता के लिए किस रूप में उपयोगी हैं, जिसके लिए शेखर मेहता ने अपनी, रोटरी की, और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जैसे बड़े पद की गरिमा और मर्यादा को दाँव पर लगा दिया है ?
रोटेरियंस का मानना/कहना है कि यह ठीक है कि अनिल अग्रवाल लगातार रक्तदान करके एक अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन उनके इस अच्छे काम के सामने बूढ़ों, बीमारों, गरीबों व अनपढ़ों की मदद के नाम पर ली गई रकम को हड़पने की उनकी हरकत रोटरी तथा रोटेरियंस को लज्जित व शर्मिंदा करने वाली बात है - और ऐसे व्यक्ति को शेखर मेहता द्वारा 'सर्विस अबव सेल्फ' का उदाहरण बताना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही, एक गलत परंपरा डालना भी है । इस तरह की बातों और चर्चाओं ने अनिल अग्रवाल की बदनामी के दलदल से निकलने की कोशिशों पर एक बार फिर पानी फेर दिया है । उल्लेखनीय है कि रोटरी फाउंडेशन की ग्रांट की रकम को हड़पने और फिर रोटरी इंटरनेशनल से सजा पाने के चलते मिली बदनामी से उबरने के लिए अनिल अग्रवाल ने पिछले कुछेक महीनों में प्रयास किए हैं । उनके प्रयासों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजेश अग्रवाल से भरपूर सहयोग मिल रहा है । रोटरी इंटरनेशनल द्वारा असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित रखने की सजा के फैसले को अनदेखा करते हुए राजेश अग्रवाल ने अनिल अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट वाटर एंड सेनीटेशन कमेटी का चेयरमैन बना दिया तथा कुछेक आयोजनों में उन्हें प्रमुख भूमिका निभाने का मौका दिया । 
अनिल अग्रवाल ने राजेश अग्रवाल के सहयोग से डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में वापसी की लेकिन जब जब कोशिश की, तब तब लोगों ने उन्हें 'आईना' दिखाया और जिसके चलते उन्हें फजीहत का सामना करना पड़ा । इस बीच 'बड़े नेताओं' के सहयोग से अनिल अग्रवाल ने अपनी सजा कम करवा लेने का जुगाड़ कर लिया । कोशिश तो उन्होंने दोषी ठहराये जाने के फैसले से मुक्त होने की की थी, लेकिन रोटरी इंटरनेशनल ने उन्हें दोषी होने तथा सजायाफ्ता होने से तो मुक्त नहीं किया - बस उनकी सजा की अवधि को कम कर दिया । इससे उनकी मुसीबतें बनी ही रहीं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजेश अग्रवाल भले ही उन्हें कुछेक आयोजनों में आगे आगे रखते रहे, लेकिन डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस को यह 'स्वीकार' नहीं हुआ कि बूढ़ों, बीमारों, गरीबों व अनपढ़ों के नाम पर ली गई ग्रांट की रकम को हड़पने के मामले में दोषी ठहराए गए तथा सजा पाए अनिल अग्रवाल उन्हें रोटरी का कोई पाठ पढ़ाएँ । डिस्ट्रिक्ट में रक्तदान करने वाले और कई रोटेरियंस हैं, लेकिन रक्तदान करने को नाटकबाजी में बदलने का काम सिर्फ अनिल अग्रवाल ने किया है । ऐसे ही एक मौके पर शेखर मेहता की तारीफ प्राप्त करके अनिल अग्रवाल ने सोचा तो यह था कि शेखर मेहता की तारीफ मिलने के बाद रोटेरियंस के बीच उनकी साख बनेगी/बढ़ेगी । लेकिन हो उलटा गया । शेखर मेहता के ट्वीट को देख कर रोटेरियंस को अनिल अग्रवाल का रोटरी फाउंडेशन के पैसे को हड़पना और सजायाफ्ता होना एक बार फिर याद आ गया । अनिल अग्रवाल को 'सर्विस अबव सेल्फ' का उदाहरण बताने वाले अपने ट्वीट को लेकर शेखर मेहता को रोटेरियंस की आलोचना का जिस तरह शिकार होना पड़ा है, उससे लग रहा है कि दोषी व सजायाफ्ता होने के दाग से छुटकारा पाने के लिए अनिल अग्रवाल को गंभीरता से कोई उपाय सोचना होगा - तमाशेबाजी से तो मामला बिगड़ता ही रहेगा ।

Saturday, September 19, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में जेके गौड़ पर लगे बेईमानी के आरोपों के चलते शुरू हुई तू तू मैं मैं में जेके गौड़ ने मुकेश अरनेजा को गवर्नर्स को बेफालतू की मुसीबतों में फँसाने का 'आदी' बताया, तो मुकेश अरनेजा ने जेके गौड़ के निजी जीवन के 'रसीले' किस्सों को सामने लाने की धमकी दी है

गाजियाबाद । पूर्व गवर्नर जेके गौड़ के कार्यकाल में रोटरी फाउंडेशन के लिए जमा हुई रकम में हेराफेरी के पूर्व गवर्नर मुकेश अरनेजा के आरोपों की जाँच के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आलोक गुप्ता द्वारा गठित की गई स्टुअर्डशिप कमेटी को भंग करने की माँग करते हुए जेके गौड़ ने मुकेश अरनेजा के खिलाफ जो जहर उगला है, उसने पूर्व गवर्नर्स के बीच खासी हलचल मचा दी है । जबाव में मुकेश अरनेजा ने भी जेके गौड़ के चरित्र को लांछित करने के जो तेवर अपनाए हैं, उससे लगता है कि इन दोनों के बीच शुरू हुई यह तू तू मैं मैं अभी और घटिया दृश्य दिखायेगी । मुकेश अरनेजा के आरोपों से बौखला कर जेके गौड़ ने मुकेश अरनेजा पर आरोप लगाया है कि वह झूठे और ओछे आरोप लगा कर गवर्नर्स को परेशान करने के 'आदी' रहे हैं । जेके गौड़ के इस आरोप पर मुकेश अरनेजा ने उन्हें 'हद में रहने' की नसीहत देते हुए चेताया है कि उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके निजी जीवन के 'रसीले' किस्सों पर किताब लिखी जा सकती है । मुकेश अरनेजा की इस धमकी ने मामले को संगीन तो बना ही दिया है, साथ ही जेके गौड़ को वह महान सुझाव भी याद दिला दिया होगा जिसमें कहा गया है कि 'दोस्तों के साथ झगड़ा नहीं करना चाहिए । यदि हो भी जाये, तो उसे खत्म करने की कोशिश करना चाहिए, न कि उसे बढ़ाना चाहिए । यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि कमीनों को तुम्हारे सारे राज पता होते हैं ।' 
मुकेश अरनेजा का आरोप है कि जेके गौड़ ने अपने गवर्नर-वर्ष में रोटरी फाउंडेशन के लिए उनके तथा अन्य कई रोटेरियंस द्वारा दी गई रकम के बदले में उन्हें प्वाइंट्स देने/दिलवाने की बजाये, अपने नजदीकियों को प्वाइंट्स दिलवा कर फर्जी तरीके से मेजर डोनर बनाया/बनवाया है । जेके गौड़ के गवर्नर-वर्ष में रोटरी फाउंडेशन के लिए जमा हुई रकम में गड़बड़घोटाले के आरोपों की जाँच के लिए मुकेश अरनेजा ने रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी गुलाम वाहनवती को ईमेल-पत्र लिखा था, जिसका जबाव देते हुए गुलाम वाहनवती ने उक्त आरोपों की जाँच डिस्ट्रिक्ट की स्टुअर्डशिप कमेटी से कराने के लिए कहा । गुलाम वाहनवती के सुझाव पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आलोक गुप्ता ने उक्त आरोपों की जाँच के लिए स्टुअर्डशिप कमेटी का गठन कर दिया । आलोक गुप्ता के इस फैसले का विरोध करते हुए जेके गौड़ ने तर्क दिया कि उनके कार्यकाल के अकाउंट्स पास हो चुके हैं, इसलिए स्टुअर्डशिप कमेटी को उनके कार्यकाल के हिसाब-किताब की जाँच करने का कोई अधिकार नहीं है । जेके गौड़ अपने ऊपर लगे घपलेबाजी के आरोपों की जाँच के लिए स्टुअर्डशिप कमेटी के गठन की कार्रवाई से इस कदर बौखला उठे कि उन्होंने मुकेश अरनेजा पर आरोपों की झड़ी लगा दी, और जिसके बाद मामला जेके गौड़ तथा मुकेश अरनेजा के बीच गंभीर किस्म के आरोपों तथा तू तू मैं मैं में बदल गया है ।

जेके गौड़ की बौखलाहट ने जेके गौड़ की स्थिति को संदेहास्पद बना दिया है, और उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया है । जिन लोगों को उनसे हमदर्दी है भी, उनका भी कहना है कि वह मुकेश अरनेजा के बारे में जो कहना चाहते हैं, वह सच है - लेकिन कहने के तरीके की उनकी फूहड़ता ने मुकेश अरनेजा को उन पर हमलावर होने का मौका दे दिया है । इस मामले में मजे की बात यह है कि गुलाम वाहनवती को ईमेल-पत्र लिखने से पहले मुकेश अरनेजा व अन्य कुछेक लोगों ने जेके गौड़ से रोटरी फाउंडेशन में दी गई रकम के बदले में प्वाइंट्स न मिलने की शिकायत की थी, और उनसे सच्चाई बताने का अनुरोध किया था । जेके गौड़ ने उनके अनुरोध पर लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया, और 'अपनी तड़ी' में उन्हें जबाव दिया कि अभी वह एमएलसी के चुनाव में व्यस्त हैं और इसलिए अभी उनके पास सच्चाई देखने/बताने का समय नहीं है । जेके गौड़ के इस जबाव पर कुछेक लोगों ने चुटकी भी ली कि एमएलसी के चुनाव के चक्कर में उनके पास यदि रोटरी तथा रोटेरियंस के काम के लिए समय नहीं है, तो उन्होंने डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) तथा अशोक अग्रवाल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर जैसे जिम्मेदार पद अपने पास क्यों रखे हुए हैं, और वह इन पदों को छोड़ क्यों नहीं देते हैं ? दरअसल इसी तरह के प्रसंगों ने जेके गौड़ को पद-लोलुप तथा बेईमान होने के आरोपों के घेरे में ला दिया है । मुकेश अरनेजा ने उनके जीवन के 'रसीले' किस्सों की किताब लिखने/छापने की बात करके उनकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है ।

Friday, September 18, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए रीता कालरा की पीएस तुलसी की मदद से टीके रूबी का समर्थन जुटाने की कोशिशों ने अरुण मोंगिया को परेशान किया, तो जितेंद्र ढींगरा को सत्ता खेमे के गवर्नर्स की इमरजेंसी मीटिंग बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा 

चंडीगढ़ । रोटरी क्लब चंडीगढ़ मिडटाउन की पूर्व प्रेसीडेंट रीता कालरा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर सक्रियता दिखा/जता कर डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे के नेताओं के बीच खलबली सी मचा दी है, जिसे शांत करने के लिए निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा ने कुरुक्षेत्र में अपने घर पर सत्ता खेमे के गवर्नर्स की एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाई । समझा जाता है कि इस मीटिंग को करने/बुलाने के लिए जितेंद्र ढींगरा को सत्ता खेमे के उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे अरुण मोंगिया ने 'मजबूर' किया । दरअसल, रीता कालरा को अभी पंद्रह/बीस दिन पहले अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने के बाद, अचानक से फिर आगे बढ़ता देख - अरुण मोंगिया को शक हो रहा है कि सत्ता खेमे के ही कुछेक नेता रीता कालरा की उम्मीदवारी को हवा दे रहे हैं । अरुण मोंगिया के नजदीकियों के अनुसार, उन्हें पूर्व गवर्नर टीके रूबी और मौजूदा गवर्नर रमेश बजाज के रवैये पर शक है । इसीलिए अरुण मोंगिया ने जितेंद्र ढींगरा पर दबाव बनाया कि उन्हें यह जानने/समझने की कोशिश करना चाहिए कि टीके रूबी और रमेश बजाज के मन में आखिर चल क्या रहा है, और यह दोनों डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में सचमुच हैं भी या नहीं ?
रमेश बजाज के समर्थन को लेकर अरुण मोंगिया हालाँकि शुरू से ही कंफर्टेबल नहीं रहे हैं, लेकिन रमेश बजाज की उन्हें ज्यादा चिंता भी नहीं रही; अरुण मोंगिया को विश्वास रहा कि जितेंद्र ढींगरा उन्हें 'सँभाल' लेंगे । लेकिन टीके रूबी को लेकर अरुण मोंगिया को झटका लगा है । हालाँकि अरुण मोंगिया की तरफ से टीके रूबी को लेकर कभी कोई शिकायत या संदेह के स्वर सुनाई नहीं दिए हैं, और अरुण मोंगिया पूरी तरह उन पर विश्वास करते रहे हैं । लेकिन हाल ही के दिनों में उन्हें सुनने को मिला कि रीता कालरा अपनी उम्मीदवारी के लिए टीके रूबी का सहयोग/समर्थन लेने की कोशिश कर रही हैं, और इसके लिए उन्होंने अपने क्लब के वरिष्ठ सदस्य पीएस तुलसी की मदद भी ली है । टीके रूबी की इन दोनों से ही अच्छी नजदीकियत है; उनके गवर्नर-वर्ष में रीता कालरा क्लब की प्रेसीडेंट थीं और टीके रूबी की सलाह पर उन्होंने खूब काम किया था । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी ने उन्हें और उनके क्लब को कई अवॉर्ड तो दिए ही थे, उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए भी प्रेरित किया था । पिछले दिनों रीता कालरा ने जब जब भी अपनी उम्मीदवारी की बात की, टीके रूबी के समर्थन का दावा जरूर किया । पीएस तुलसी की मदद के चलते टीके रूबी के यहाँ रीता कालरा का दावा और मजबूत हो गया, क्योंकि पीएस तुलसी के प्रति टीके रूबी बहुत ही मान/सम्मान रखते हैं ।
रीता कालरा की उम्मीदवार के रूप में वापसी करने में अरुण मोंगिया इन्हीं कयासों/अनुमानों के चलते डर गए । उल्लेखनीय है कि रीता कालरा ने करीब पंद्रह/बीस दिन पहले अपनी उम्मीदवारी को लेकर सक्रियता दिखाई थी, और इसके लिए सत्ता खेमे के मुखिया के रूप में देखे/पहचाने जाते जितेंद्र ढींगरा से बात की थी । जितेंद्र ढींगरा ने लेकिन उन्हें साफ कह दिया था कि इस वर्ष के उनके उम्मीदवार अरुण मोंगिया हैं, और इसमें कोई फेरबदल नहीं हो सकता है । रीता कालरा ने अगले रोटरी वर्ष के उम्मीदवार के रूप में अपने नाम की घोषणा करने की माँग की, जितेंद्र ढींगरा ने लेकिन उनकी इस माँग को यह कहते हुए टाल दिया कि इस वर्ष का चुनाव हो जाने के बाद अगले वर्ष के बारे में सोचेंगे । रीता कालरा को अपनी दाल गलती नहीं दिखी, तो वह चुप बैठ गईं । अभी लेकिन अचानक से उनकी उम्मीदवार के रूप में सक्रियता सुनी/देखी गई । पता चला कि अपनी उम्मीदवारी के लिए उन्होंने अपने क्लब में हरी झंडी भी ले ली है । डिस्ट्रिक्ट में हर किसी को हैरानी हुई कि इतना सब करने के लिए शह आखिर उन्हें कहाँ से और किससे मिली है ? क्लब के लोगों का कहना है कि रीता कालरा ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर जल्दबाजी इसलिए भी दिखाई है, क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं उनके क्लब की अन्य सदस्य ऋतु सिंघल अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत न कर दें । टीके रूबी ने उन्हें भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की प्रेरणा दी हुई है । रीता कालरा की सक्रियता और पीएस तुलसी की मदद से टीके रूबी का समर्थन जुटाने की कोशिशों की खबरों ने अरुण मोंगिया को परेशान किया, तो उन्होंने जितेंद्र ढींगरा पर जोर दिया कि उन्हें टीके रूबी और रमेश बजाज से बात तो करना चाहिए । जितेंद्र ढींगरा के घर पर हुई सत्ता खेमे के नेताओं की मीटिंग में क्या बातें हुईं, यह तो किसी को नहीं पता है - लेकिन उस मीटिंग के बाद से अरुण मोंगिया जिस तरह राहत महसूस करते देखे/सुने गए हैं, उससे लग रहा है कि जितेंद्र ढींगरा ने मामले को फिलहाल तो मैनेज कर लिया है ।

Tuesday, September 15, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में विनय भाटिया के साथ मिल कर विनोद बंसल एक बार फिर अपने निजी स्वार्थ में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के मामले में डिस्ट्रिक्ट के लोगों तथा डिस्ट्रिक्ट की पहचान को 'धोखा' देने की तैयारी कर रहे हैं क्या ? 

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट में आयोजित हुए रोटरी फाउंडेशन के लेबल टू ट्रेनिंग सेमीनार में की-नोट स्पीकर के रूप में शामिल हुए टीएन सुब्रमणियन उर्फ राजु सुब्रमनियन की पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल के साथ जो जुगलबंदी देखने को मिली, उससे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में इन दोनों के बीच गठबंधन होने के कयासों को खासी हवा मिली है । इन कयासों में यह भी सुना/बताया जा रहा है कि विनोद बंसल ने एक बार फिर अपने निजी स्वार्थ में डिस्ट्रिक्ट के हितों के साथ 'सौदा' कर लिया है, और इसके लिए पूर्व गवर्नर विनय भाटिया को अपने साथ मिला लिया है । दरअसल ट्रेनिंग सेमीनार में कुछेक लोगों ने जब रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे जुटाने के विनोद बंसल के 'तरीकों' को लेकर सवाल उठाये, तो राजु सुब्रमणियन ने खासी तत्परता के साथ विनोद बंसल का बचाव किया । यह नजारा देख कर ट्रेनिंग सेमीनार में शामिल लोगों का माथा ठनका । उल्लेखनीय है कि विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट में रोटरी फाउंडेशन को 'एक के चार' करने का जरिया बना देने के आरोपों का सामना पड़ रहा है, और उन पर यह गंभीर आरोप लगता रहा है कि उन्होंने रोटरी को 'बिजनेस' तथा रोटरी फाउंडेशन में दिए जाने वाले दान को 'इन्वेस्टमेंट' बना दिया है । ऐसे में, राजु सुब्रमणियन की उनके बचाव की कोशिशों में 'राजनीतिक डील' के संकेतों को देखा/पहचाना गया - और डिस्ट्रिक्ट में चर्चा शुरू हुई कि विनोद बंसल और विनय भाटिया की जोड़ी ने डिस्ट्रिक्ट की पहचान के साथ 'धोखा' करने की तैयारी कर ली है ।
उल्लेखनीय है कि विनोद बंसल ने रोटरी में ऊँची छलाँग लगाने के लिए हमेशा ही डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों व प्रमुख लोगों को अँधेरे में रख कर बड़े नेताओं के साथ 'सौदेबाजी' करने के प्रयास किए हैं । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर के साथ जोन इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद को लेकर की गई उनकी सौदेबाजी का किस्सा थोड़ा पुराना जरूर है, लेकिन लोगों को उसकी खूब याद है । विनोद बंसल ने पीटी प्रभाकर को अच्छी घुट्टी पिला कर इंस्टीट्यूट दिल्ली में करने के लिए राजी कर लिया था, और खुद इंस्टीट्यूट के चेयरमैन का पद 'ले लिया' था । यह सब जुगाड़ करते हुए विनोद बंसल ने अपने डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों व प्रमुख लोगों को भनक भी नहीं लगने दी । लेकिन उनकी यह जुगाड़बाजी तब ढेर हो गई, जब डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों व प्रमुख लोगों के सामने मामला आया । उन्होंने पीटी प्रभाकर से साफ कह दिया कि उन्हें यदि दिल्ली में इंस्टीट्यूट करना है, तो उन्हें दिल्ली के डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों से बात करना होगी - और तब न इंस्टीट्यूट दिल्ली में हुआ, और न विनोद बंसल इंस्टीट्यूट के चेयरमैन बन सके । रोटरी ब्लड बैंक के अकाउंट से चार/पाँच करोड़ रूपये शेखर मेहता के एक प्रोग्राम के लिए देने का मामला तो अभी हाल ही का, जिसके लिए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट तो छोड़िये - ब्लड बैंक के अन्य पदाधिकारियों से भी सलाह करना उचित नहीं समझा । इस मामले में भी न सिर्फ विनोद बंसल की फजीहत हुई, बल्कि उनके चक्कर में शेखर मेहता को भी बुरा बनना पड़ा ।
विनोद बंसल को समय समय पर उनके नजदीकी रहे प्रमुख लोग समझाते रहे हैं कि उन्हें रोटरी में जो कुछ करना/पाना है, उसके लिए उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ जुड़ कर प्रयास करने चाहिए - तथा अपने निजी स्वार्थ में डिस्ट्रिक्ट और डिस्ट्रिक्ट की पहचान को 'धोखा' देने का काम तो नहीं ही करना चाहिए । उनका खुद का अनुभव रहा है कि उन्होंने जब जब डिस्ट्रिक्ट को 'धोखा' देकर कुछ पाने की कोशिश की है, उसमें बुरी तरह असफल रहे हैं और फजीहत के शिकार बने हैं - लेकिन लगता है कि उन्होंने कोई सबक नहीं सीखा है । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोगों ने प्रयास किए हैं कि डिस्ट्रिक्ट में चूँकि एक से अधिक उम्मीदवार हैं, इसलिए उन्हें वरीयता क्रम अनुसार आपस में एक अंडरस्टैंडिंग बना लेना चाहिए । रंजन ढींगरा और दीपक कपूर के बीच यह अंडरस्टैंडिंग बनती नजर भी आ रही है, और दोनों नोमीनेटिंग कमेटी के लिए दीपक तलवार पर भरोसा करते देखे जा रहे हैं कि वह डिस्ट्रिक्ट की पहचान के हित में फैसला करेंगे - लेकिन विनोद बंसल ने नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विनय भाटिया को आगे करके अपनी अलग चाल चली है, और डिस्ट्रिक्ट की बजाये अपने निजी हित को महत्ता दी है । रोटरी फाउंडेशन के लेबल टू ट्रेनिंग सेमीनार में डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह संकेत भी मिल गया है कि विनोद बंसल और विनय भाटिया ने डिस्ट्रिक्ट के हितों तथा डिस्ट्रिक्ट की पहचान के साथ धोखा करने के लिए कहाँ तार जोड़े हैं । विनोद बंसल ने जब जब अपने निजी स्वार्थ में डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ 'धोखा' किया है, तब तब डिस्ट्रिक्ट के लोगों से उन्हें समर्थन नहीं मिला है, और उन्हें फजीहत का ही शिकार होना पड़ा है - इसलिए देखना दिलचस्प होगा कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट के साथ 'धोखा' करने की उनकी तैयारी का कैसा क्या हश्र होता है ? 

Sunday, September 13, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में गाजियाबाद में समर्थन जुटाने की अजय सिन्हा की कोशिशों को विफल होता देख दीपक गुप्ता को अपना 'गणित' बिगड़ता नजर आ रहा है; और इन दोनों की असफलता प्रियतोष गुप्ता के लिए वरदान बनती दिख रही है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने और 'दिखाने' के लिए अजय सिन्हा और दीपक गुप्ता द्वारा की जा रही पार्टियों को लगातार जो झटके पर झटके लग रहे हैं, उससे प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी को समर्थन की और मजबूती मिलती लग रही है । अजय सिन्हा ने पिछले दिनों अपने घर और अपने ऑफिस में छोटे-छोटे समूहों में गाजियाबाद के रोटेरियंस के लिए पार्टियाँ आयोजित कीं, लेकिन उनमें भी इक्का-दुक्का लोग ही पहुँचे । दीपक गुप्ता ने गाजियाबाद में आयोजित की गई पिछली पार्टी की असफलता से सबक लेकर, और ज्यादा तैयारी के साथ एक और पार्टी आयोजित की - लेकिन उसका हाल पिछली वाली पार्टी से भी बुरा हुआ । अजय सिन्हा की तरफ से आयोजित हुई पार्टियों का तो लोगों के बीच खासा मजाक भी बना । अजय सिन्हा ने अपने घर और ऑफिस में छोटे-छोटे समूहों में जो पार्टियाँ आयोजित कीं, उन्हें लेकर लोगों का कहना रहा कि उन्हें तो यही समझ में नहीं आया कि अजय सिन्हा अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए पार्टी कर रहे हैं, या अपनी उम्मीदवारी के श्राद्ध का भोज दे रहे हैं ।
अजय सिन्हा को इस बीच दोहरी मुसीबतों ने घेर लिया है । एक तरफ तो उनके द्वारा दी गई पार्टियों में आमंत्रित किए गए लोग पहुँचे नहीं तथा उनकी पार्टियों का मजाक बना, तो दूसरी तरफ उनके क्लब में अगले रोटरी वर्ष के लिए प्रेसीडेंट तय नहीं हो पा रहा है । अगले रोटरी वर्ष में गवर्नर बनने की तैयारियों में जुटे अशोक अग्रवाल बेचारे पेम वन के लिए अजय सिन्हा के क्लब के प्रेसीडेंट का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन अजय सिन्हा उन्हें अपने क्लब के प्रेसीडेंट का नाम ही नहीं दे पा रहे हैं । अजय सिन्हा का क्लब एक बड़ा क्लब है, और बहुत सक्रिय रहा है । पिछले दो वर्षों में राकेश छारिया और उनके बेटे क्लब के प्रेसीडेंट रहे, और उन्होंने अपनी अपनी सक्रियता से क्लब का नाम खूब रोशन किया तथा दोनों ने ही बड़े अवॉर्ड प्राप्त किए । लेकिन इस वर्ष अजय सिन्हा ने अप्रत्यक्ष रूप से क्लब की बागडोर सँभाली, और दो महीनों में ही क्लब के माहौल का ऐसा कबाड़ा कर दिया है कि कोई क्लब का अगला प्रेसीडेंट बनने को तैयार नहीं है । अजय सिन्हा अपने एक रिश्तेदार सहित दो/तीन लोगों को बारी बारी से प्रेसीडेंट बनने के लिए राजी करने का प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली है । 

लोगों ने इसे अजय सिन्हा की लीडरशिप की असफलता के रूप में देखा/पहचाना है, और माना/कहा है कि अजय सिन्हा को पहले अपने क्लब में अपनी लीडरशिप बनानी चाहिए, और उसके बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के बारे में सोचना चाहिए । गाजियाबाद में समर्थन जुटाने की अजय सिन्हा की कोशिशों को विफल होता देख दीपक गुप्ता को अपना 'गणित' बिगड़ता नजर आ रहा है । उन्हें लगता था कि अजय सिन्हा की उम्मीदवारी गाजियाबाद में प्रियतोष गुप्ता के समर्थन-आधार को कमजोर करने का काम करेगी, और इससे उन्हें प्रियतोष गुप्ता के साथ अपनी दूरी को कम करने का मौका मिलेगा । दीपक गुप्ता को लेकिन यह देख कर झटका लगा है कि गाजियाबाद में न उन्हें समर्थन मिल पा रहा है, और न अजय सिन्हा को । ऐसे में, इन दोनों के नजदीकियों को ही लगने लगा है कि प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी को उनकी खुद की सक्रियता से जितना जो फायदा हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा फायदा उन्हें अजय सिन्हा तथा दीपक गुप्ता की गतिविधियों को लगातार मिल रही असफलताओं से हो रहा है । दरअसल जब तक अजय सिन्हा और दीपक गुप्ता की सक्रियता नहीं थी, तब तक उनकी मुट्ठी बंद थी और कुछेक लोगों को लगता था कि उनकी मुट्ठी में बंद समर्थन प्रियतोष गुप्ता के लिए चुनौती सकता है - लेकिन अब जब अजय सिन्हा और दीपक गुप्ता की मुट्ठी खुलती जा रही है, तो पता चल रहा है कि जिसे 'लाख की समझा जा रहा था, वह तो खाक की है ।'  

Saturday, September 12, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में पारस अग्रवाल के मल्टीपल अकाउंट्स को लेकर लगे आरोपों की जाँच करने वाली कमेटी के चेयरमैन के चुनाव/चयन में अशोक कपूर के हाथ लगा अवसर, क्या सचमुच पारस अग्रवाल की मुश्किलों को बढ़ाने का काम कर सकेगा ?

आगरा । पूर्व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पारस अग्रवाल के अकाउंट्स को लेकर चल रहे विवाद में निर्णायक भूमिका निभाने का मौका जिस प्रकार पूर्व गवर्नर अशोक कपूर के हाथ में आ गया दिख रहा है, उससे निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह और उनके नजदीकी खुश हो रहे हैं - और उन्हें लग रहा है कि अब पारस अग्रवाल को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा । पारस अग्रवाल के अकाउंट्स को लेकर लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानून के तहत मधु सिंह ने मल्टीपल में अधिकृत रूप से शिकायत दर्ज कराई थी, जिस पर कार्रवाई करते हुए जाँच कमेटी बनाने की तैयारी शुरू हुई है । इस तैयारी के तहत शिकायतकर्ता के रूप में मधु सिंह ने अशोक कपूर को; तथा शिकायत में आरोपी बनाये गए पारस अग्रवाल और विशाल सिन्हा ने क्रमशः अशोक गुप्ता तथा संजय चोपड़ा को अपना अपना प्रतिनिधि बनाया है । जाँच कमेटी का चेयरमैन कोई पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर होगा, जिसका चुनाव/चयन तीनों प्रतिनिधियों के वोटों के बहुमत से तय होगा । नियमानुसार व व्यवस्थानुसार, तीनों प्रतिनिधियों को दो दो पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर्स के नाम देने होंगे, और जिसका नाम सबसे ज्यादा बार लिया गया होगा, वह चेयरमैन बनेगा । खेमेबाजी तथा पसंद/नापसंद के आधार पर जो अनुमान लगाए जा रहे हैं, उनमें अशोक कपूर के द्वारा दिए जाने वाले दो नामों में से एक के चेयरमैन बनने की संभावना देखी जा रही है - और लोगों को लग रहा है कि यह संभावना पारस अग्रवाल के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाली हो सकती है ।
पारस अग्रवाल के अकाउंट्स को लेकर लगे आरोपों की जाँच करने वाली कमेटी के चेयरमैन के चुनाव/चयन में अशोक कपूर के हाथ लगा अवसर दरअसल कई तरह के संयोगों के कारण बना है । माना/समझा जा रहा है कि पारस अग्रवाल और विशाल सिन्हा के प्रतिनिधि के रूप में अशोक गुप्ता तथा संजय चोपड़ा किसी भी हालत में विनोद खन्ना का नाम नहीं देंगे; ऐसे में उनके पास केएम गोयल व जगदीश गुलाटी का नाम देने का ही विकल्प बचा रह जाता है । अशोक कपूर को लेकर लोगों का मानना और कहना है कि वह विनोद खन्ना का नाम तो जरूर देंगे, और दूसरा नाम केएम गोयल तथा जगदीश गुलाटी में से किसी एक का देंगे । ऐसे में अशोक कपूर दूसरा जो भी नाम देंगे, वह सबसे ज्यादा - तीन वोट पाकर चेयरमैन बनने का अधिकारी हो जायेगा । वह चूँकि तीनों प्रतिनिधियों की पसंद होगा, इसलिए कोई उसके चुनाव/चयन पर आपत्ति भी नहीं कर पायेगा । ऐसे में जाहिर है कि अशोक कपूर के सामने यह देखने/समझने का पूरा मौका है कि जाँच कमेटी के चेयरमैन के रूप में केएम गोयल तथा जगदीश गुलाटी में से कौन पारस अग्रवाल के अकाउंट्स पर की जा रही आपत्तियों को सही ठहराने का 'काम' कर सकेगा - और पारस अग्रवाल की मुश्किलों को बढ़ायेगा ?
हालाँकि मल्टीपल के कई एक नेताओं को लगता है कि पारस अग्रवाल के समर्थक व शुभचिंतक अवश्य ही कोई तोड़ निकाल लेंगे और वह अशोक कपूर को मिलते दिख रहे 'अवसर' को आसानी से सफल नहीं होने देंगे । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जितेंद्र चौहान के एंडोर्समेंट को लेकर उड़ी एक बेफालतू की खबर पर बौखलाहट दिखाते हुए मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन क्षितिज शर्मा ने जैसी जो सक्रियता दिखाई थी, उसे याद/ध्यान करते हुए लोगों को लगता है कि क्षितिज शर्मा जाँच कमेटी का ऐसा कोई स्वरूप तो नहीं 'बनने' देंगे, जो पारस अग्रवाल के लिए मुश्किलें खड़ी कर सके । इसके लिए नरेश अग्रवाल के नाम का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जो पूर्व प्रेसीडेंट होने के साथ-साथ पूर्व डायरेक्टर भी तो हैं - और जिन्हें लेकर भले ही कहा जा रहा हो कि उन्हें इस 'झगड़े' में नहीं खींचना चाहिए । मधु सिंह के नजदीकियों का भी कहना/बताना है कि उन्हें आशंका है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में पारस अग्रवाल के अकाउंट्स को लेकर की गई शिकायत की जाँच को आसानी से नहीं होने दिया जायेगा; लेकिन जो भी होगा - उससे अंततः लोगों के बीच यही संदेश जायेगा कि पारस अग्रवाल और उनके समर्थक व शुभचिंतक निष्पक्ष जाँच नहीं होने देना चाहते हैं; और यह संदेश कुल मिलाकर पारस अग्रवाल के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाला ही साबित होगा । इसीलिए माना/समझा जा रहा है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में दर्ज हुई शिकायत पर जाँच की प्रक्रिया को पारस अग्रवाल और उनके समर्थकों ने यदि ठीक से हैंडल नहीं किया, और सारा मामला मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन क्षितिज शर्मा पर ही छोड़ दिया, तो कहीं जितेंद्र चौहान वाले मामले की तरह लेने के देने न पड़ जाएँ ? 

Friday, September 11, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी ब्लड बैंक में मोटी रकम के बकाया बिलों के मामले का ठीकरा दिवंगत सुदर्शन अग्रवाल के सिर फोड़ कर खुद को बचाने की कोशिश ने पूर्व गवर्नर विनोद बंसल की मुश्किलों को बढ़ा और दिया है 

नई दिल्ली । रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट पद से 'जबर्दस्ती' और बड़े फजीहतपूर्ण तरीके से हटा दिए जाने के बाद भी, पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल को ब्लड बैंक के गड़बड़झालों से जुड़ी मुश्किलों से छुटकारा नहीं मिल पा रहा है । ब्लड बैंक के नए पदाधिकारियों के सामने जैसे जो तथ्य आ रहे हैं, उनसे तमाम वित्तीय अनियमितताओं की चर्चाओं को बल मिला है । एक सप्लायर के मोटी रकम के बकाया बिलों ने तो ब्लड बैंक के नए पदाधिकारियों का सिर ही चकरा दिया है, जिसके बाद ब्लड बैंक के पदाधिकारियों व प्रमुख सदस्यों की मीटिंग बुलाना पड़ी । ब्लड बैंक के नए बने ट्रेजरर आशीष घोष ने मीटिंग में मोटी रकम के बकाया बिलों का मामला उठाया, तो विनोद बंसल ने उन बिलों की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए बताया कि उक्त बिल उनके प्रेसीडेंट बनने से पहले के, यानि सुदर्शन अग्रवाल के प्रेसीडेंट रहने के दौरान के हैं - और उनके लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता । विनोद बंसल के इस जबाव ने उनकी मुश्किलों को कम करने की बजाये बढ़ाने का काम किया । लोगों का कहना है कि विनोद बंसल अपनी नाकामियों तथा बेईमानियों को छिपाने के लिए दिवंगत सुदर्शन अग्रवाल का नाम बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर रहे सुदर्शन अग्रवाल का नाम डिस्ट्रिक्ट तथा रोटरी में बहुत सम्मान से लिया और याद किया जाता है । इसीलिए, रोटरी ब्लड बैंक में अपनी नाकामियों तथा बेईमानियों को सुदर्शन अग्रवाल के नाम से ढकने की विनोद बंसल की कोशिश ने कई लोगों को भड़का दिया है ।
लोगों का कहना/पूछना है कि उक्त बिल यदि उनके प्रेसीडेंट बनने से पहले के हैं भी, तो अपने करीब साढ़े चार वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने उन बिलों का भुगतान क्यों नहीं किया - और यदि उन बिलों को लेकर उनकी कोई आपत्तियाँ रहीं, तो उन आपत्तियों को उन्होंने ब्लड बैंक के दूसरे पदाधिकारियों के साथ बातचीत करके हल करने के प्रयास क्यों नहीं किए ? उनके साथ ब्लड बैंक में पदाधिकारी रहे वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना है कि उनके सामने कभी यह बात नहीं आई कि पिछले कार्यकाल के कोई बिल बकाया हैं । लोगों को हैरानी इस बात की भी है कि ऐसा कौन सप्लायर है, जिसकी मोटी रकम का भुगतान नहीं हुआ - लेकिन वह फिर भी सप्लाई दिए जा रहा है, और बकाया मोटी रकम माँग ही नहीं रहा है ? लोगों को शक है कि यह कहीं रोटरी ब्लड बैंक में फर्जी बिलिंग से पैसे बनाने के मामले का तो परिणाम नहीं है ? ब्लड बैंक के नए पदाधिकारियों से लोगों की माँग है कि इस मामले की गहराई व बारीकी से जाँच की जानी चाहिए और तथ्यों को डिस्ट्रिक्ट के सभी सदस्यों के सामने रखना चाहिए ।
विनोद बंसल ने मीटिंग में बकाया बिलों को राइट-ऑफ 'करवाने' का दावा करके मामले को और संशयपूर्ण बना दिया है । उन्होंने ब्लड बैंक के नए पदाधिकारियों को सांत्वना-सी देते हुए कहा कि वह इन बकाया बिलों को लेकर परेशान न हों, वह सप्लायर से बात करके इन्हें राइट-ऑफ करवा देंगे । इससे लोगों के बीच सवाल पैदा हुआ कि विनोद बंसल यदि बकाया बिलों को राइट-ऑफ करवा सकते हैं, तो वह करीब साढ़े चार वर्ष से इन बकाया बिलों को बनाये क्यों रखे हुए हैं - उन्होंने अपने कार्यकाल में इन्हें राइट-ऑफ क्यों नहीं करवाया ? इस तरह, सवाल तो बहुत हैं - लेकिन उनके जबाव किसी के पास नहीं हैं । ब्लड बैंक के नए पदाधिकारी इस बात से परेशान हैं कि वह जहाँ भी देखते हैं, उन्हें न समझ में आने वाला गड़बड़झाला मिल जाता है । मजे की बात यह है कि ब्लड बैंक की नए पदाधिकारियों की टीम में करीब आधे पदाधिकारी वहीं हैं, जो विनोद बंसल की पदाधिकारियों की टीम में भी थे, लेकिन उन्हें भी नहीं पता कि प्रेसीडेंट के रूप में विनोद बंसल क्या क्या गुल खिलाते रहे हैं ?  अभी जब मोटी रकम के बकाया बिलों का मामला सामने आया है, तो विनोद बंसल ने ठीकरा दिवंगत सुदर्शन अग्रवाल के सिर फोड़ कर बचने की कोशिश की । उनकी यह कोशिश लेकिन उनकी मुश्किलों को बढ़ाती हुई दिख रही है ।

Tuesday, September 8, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3110 में पदों का लालच देकर अपने उम्मीदवार को नोमीनेटिंग कमेटी का चुनाव जितवाने के अभियान में लगे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मुकेश सिंघल अपने जोन के रोटेरियंस के साथ दोहरा विश्वासघात करने के आरोप में फँसे

अलीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मुकेश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में 'अपनी' पराजय को सुनिश्चित देख/जान कर जोन जीतने पर ध्यान केंद्रित किया है, और इसके लिए अपने जोन - अलीगढ़ के क्लब्स के साथ ही विश्वासघात करने पर उतर आए हैं । अभी हाल ही में अलीगढ़ के क्लब्स के पदाधिकारियों तथा नेताओं के बीच बनी सहमति में मुकेश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए अपने उम्मीदवार अंबरीश गर्ग की उम्मीदवारी को वापस लेने का भरोसा दिया/दिलाया था, लेकिन गिरगिट की तरह रंग बदल कर अब वह अंबरीश गर्ग के लिए समर्थन जुटाने में लगे हुए हैं - और इस चक्कर में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद की मर्यादा व गरिमा भी भूल बैठे हैं । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता कभी अप्रत्यक्ष तो कभी प्रत्यक्ष रूप से मुकेश सिंघल को कई मौकों पर नसीहत दे चुके हैं कि उन्हें नेतागिरी छोड़कर रोटरी तथा डिस्ट्रिक्ट के काम पर ध्यान देते हुए सभी को साथ लेकर चलना चाहिए, मुकेश सिंघल ने लेकिन शेखर मेहता की बात को भी एक कान से सुनकर दूसरे कान से बाहर निकालने का जुगाड़ अपना लिया है ।
मुकेश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए अपने उम्मीदवार अंबरीश गर्ग को किसी भी तरह जितवाने को अपना उद्देश्य बना लिया है, और इसके लिए मुकेश सिंघल अलीगढ़ के रोटेरियंस के साथ दोहरा विश्वासघात करने तक पर उतर आए हैं । उल्लेखनीय है कि दो वर्ष पहले, जब मुकेश सिंघल खुद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार थे, मुकेश सिंघल ने ही अलीगढ़ जोन में यह फार्मूला सुझाया था कि नोमीनेटिंग कमेटी में क्लब की वरिष्ठता के क्रम से प्रतिनिधित्व होना चाहिए । सभी को यह फार्मूला अच्छा लगा, और माना गया कि इससे आपस में व्यर्थ के विवाद व मनमुटाव नहीं होंगे तथा क्लब्स के बीच आपसी सौहार्द बना रहेगा । पिछले दो वर्ष उसी फार्मूले के अनुसार, नोमीनेटिंग कमेटी में अलीगढ़ जोन का प्रतिनिधित्व हुआ । इस वर्ष उक्त फार्मूले के हिसाब से वरिष्ठता क्रम में रोटरी क्लब अलीगढ़ मानसी को प्रतिनिधित्व का मौका मिलना था, और क्लब के पदाधिकारियों ने क्लब की सक्रिय व वरिष्ठ सदस्य शशि पवार को उम्मीदवार बनाया । शशि पवार का उम्मीदवार बनना मुकेश सिंघल को पसंद नहीं आया । मुकेश सिंघल के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि मुकेश सिंघल को शशि पवार के उम्मीदवार बनने से समस्या नहीं है - उनकी समस्या यह है कि रोटरी क्लब अलीगढ़ मानसी ने उनसे सलाह किए बिना शशि पवार को नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवार क्यों और कैसे बना दिया ?
अलीगढ़ के क्लब्स पर यह दबाव बनाने के लिए कि वह जो भी फैसले करें, उनसे पूछ कर करें - मुकेश सिंघल ने अपने क्लब के अंबरीश गर्ग को नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवार बना/बनवा दिया । मुकेश सिंघल को दो वर्ष से चले आ रहे फार्मूले के विरोध में उतरते देख, दो और क्लब्स ने अपने अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिए । इस पर बबाल हुआ और अलीगढ़ के क्लब्स के नेताओं की बातचीत हुई; अधिकतर लोगों ने मुकेश सिंघल को इस बात के लिए कोसा कि वह अलीगढ़ में बने सौहार्द को नष्ट करने का काम कर रहे हैं । मुकेश सिंघल ने अपने खिलाफ ऊँची होती आवाजों को सुना, तो चुपचाप सरेंडर करने में ही अपनी भलाई देखी - और एक बार फिर अलीगढ़ के रोटेरियंस के बीच सहमति बनी कि पिछले दो वर्ष से अपनाए जा रहे फार्मूले के अनुसार, इस वर्ष रोटरी क्लब अलीगढ़ मानसी की शशि पवार नोमीनेटिंग कमेटी में अलीगढ़ जोन का प्रतिनिधित्व करेंगी । लेकिन जैसे जैसे चुनाव का समय नजदीक आता गया, लोगों को यह देख कर हैरानी हुई कि मुकेश सिंघल अपने उम्मीदवार अंबरीश गर्ग के लिए समर्थन जुटाने के अभियान में जुट गए हैं और क्लब्स के पदाधिकारियों व नेताओं को अगले वर्ष की अपनी गवर्नर टीम में पद देने का प्रलोभन देकर वोट पक्के करने में लगे हुए हैं । मुकेश सिंघल को विश्वास है कि पदों के लालच में क्लब्स के पदाधिकारी उनके उम्मीदवार को वोट दे देंगे, और इस तरह वह अपने उम्मीदवार को आसानी से नोमीनेटिंग कमेटी का चुनाव जितवा लेंगे । चुनाव का नतीजा क्या निकलेगा, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन लोगों के बीच यह सवाल जरूर चर्चा में है कि अपने पद की गरिमा व मर्यादा को भूल कर अपने जोन के रोटेरियंस के साथ दोहरा विश्वासघात करने वाले मुकेश सिंघल के नेतृत्व में डिस्ट्रिक्ट व रोटरी की कैसी पहचान बनेगी ? 

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता और मुकेश अरनेजा के बीच के 'झगड़े' में होने वाले नुकसान से बचने के लिए ललित खन्ना ने दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने के वायदे से पीछे हटने की तैयारी शुरू कर दी है क्या ?

गाजियाबाद । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी ललित खन्ना के गवर्नर वर्ष में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने की तैयारी खटाई में पड़ती नजर आ रही है । ऐसा उन्हें ललित खन्ना के बदले बदले से तेवरों को देख/सुन के लग रहा है । ललित खन्ना दरअसल हाल के दिनों में दीपक गुप्ता और उनके नजदीकियों को बता चुके हैं कि पूर्व गवर्नर मुकेश अरनेजा उन्हें इशारों इशारों में दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये जाने के प्रति आगाह कर चुके हैं । उल्लेखनीय है कि ललित खन्ना की मुकेश अरनेजा के साथ लंबी दोस्ती रही है, जिसमें वह उनके 'पार्टनर इन क्राइम' रहे थे - और फिर दुश्मनी भी रही; इसलिए ललित खन्ना उनके खुन्नसी व्यवहार और बदला लेने की प्रवृत्ति से परिचित, सहयोगी व शिकार रहे हैं । ललित खन्ना जानते हैं कि मुकेश अरनेजा के नए/ताजे शिकार दीपक गुप्ता हैं । ललित खन्ना विभिन्न मौकों पर कुछेक लोगों के बीच कहते/बताते सुने गए हैं कि डीडीएफ अकाउंट मामले में दीपक गुप्ता को जो फजीहत झेलना पड़ रही है, उसके वास्तविक रचयिता और सूत्रधार मुकेश अरनेजा हैं ।
मुकेश अरनेजा की दीपक गुप्ता से नाराजगी इस बात को लेकर है कि दीपक गुप्ता को जब तक उनकी मदद की जरूरत रही, तब तक तो वह हँस हँस कर उनके गले लगते रहे, लेकिन काम निकल जाने के बाद वह उन्हें तरह तरह से अपमानित करने लगे; दीपक गुप्ता ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर तो बना दिया - लेकिन उन्हें तवज्जो जरा भी नहीं दी, और अलग/थलग रखा । डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में मुकेश अरनेजा इस आशंका को लेकर हमेशा डरे डरे रहे कि दीपक गुप्ता कहीं उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद से हटा न दें । सीओएल का चुनाव हारने के बाद से तो मुकेश अरनेजा की दीपक गुप्ता के प्रति नाराजगी और बढ़ गई है ।दीपक गुप्ता के प्रति मुकेश अरनेजा की नाराजगी को देखते/समझते/पहचानते हुए ही ललित खन्ना को डर हो चला है कि उन्होंने यदि दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया, तो दीपक गुप्ता को मुसीबत में डालने/फँसाने के लिए मुकेश अरनेजा उनके गवर्नर-वर्ष को निशाना बना सकते हैं, और तब उनका गवर्नर-वर्ष नाहक ही परेशानी में फँसेगा । दीपक गुप्ता और मुकेश अरनेजा के 'झगड़े' में होने वाले नुकसान से बचने के लिए ललित खन्ना को एक ही रास्ता दिख रहा है, और वह यह कि मुकेश अरनेजा की 'इच्छा' का सम्मान करते हुए वह दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर न बनाएँ ।

दीपक गुप्ता तथा उनके नजदीकियों को हालाँकि यह भी लगता है कि मुकेश अरनेजा का नाम ले कर दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर न बनाना ललित खन्ना की अपनी चालाकी भी हो सकती है । दरअसल इस बीच यह पोल पूरी तरह खुल चुकी है कि दीपक गुप्ता को रोटरी के बारे में न तो कुछ अतापता है, और न वह ढंग/तरीके से कोई काम कर सकते हैं । दीपक गुप्ता बस एक ही काम में माहिर हैं, और वह है - ज्यादा बोलना, बढ़चढ़ कर बोलना और बोलने के नाम पर बकवास करना । इसलिए ललित खन्ना को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में दीपक गुप्ता उन पर बोझ ही साबित होंगे । इस तरह की बातें ललित खन्ना ने कुछेक लोगों के बीच कही भी हैं, जो दीपक गुप्ता तक भी पहुँची हैं । असल में, इसीलिए दीपक गुप्ता को लग रहा है कि ललित खन्ना खुद ही उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाना नहीं चाहते हैं, और इसके लिए मुकेश अरनेजा के खुन्नसी व्यवहार तथा बदला लेने की प्रवृत्ति को बहाने के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के मामले में दीपक गुप्ता से पीछा छुड़ाने की ललित खन्ना की कोशिशों का कारण चाहें जो हो; लोगों को लेकिन लग रहा है कि दीपक गुप्ता यदि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने में सफल हो गए, तो ललित खन्ना के गवर्नर-वर्ष में खूब पटाखे फूटेंगे - कुछ दीपक गुप्ता के व्यवहार और रवैये के कारण, तो कुछ मुकेश अरनेजा की बदला लेने की प्रवृत्ति के कारण । 

Monday, September 7, 2020

रोट्रेक्ट इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में अन्यायपूर्ण तरीके से डीआरआर पद से हटाई गईं यामिनी थरेजा को न्याय दिलवाने के अभियान में शामिल होने की बजाये डीआरआर बनने का लालच दिखाने के कारण सार्थक बंसल को मुश्किलों के साथ-साथ, फजीहत का सामना भी करना पड़ रहा है

नई दिल्ली । सार्थक बंसल ने रोट्रेक्ट इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डीआरआर (डिस्ट्रिक्ट रोट्रेक्ट रिप्रेजेंटेटिव) का पद तो संभाल लिया है, लेकिन उन्हें अपनी टीम के लिए पदाधिकारियों को चुनने में खासे विरोध और फजीहत का सामना करना पड़ रहा है । दरअसल रोट्रेक्ट्स उनसे बुरी तरह नाराज हैं, और उनके साथ काम नहीं करना चाहते हैं । रोट्रेक्ट्स का कहना है कि सार्थक बंसल यदि एक सच्चे रोट्रेक्ट हैं, तो उन्हें यामिनी थरेजा को मनमाने व षडयंत्रपूर्ण तरीके से डीआरआर पद से हटाने का विरोध करना चाहिए, और डीआरआर पद पर हुई अपनी 'गैरकानूनी' नियुक्ति को स्वीकार नहीं करना चाहिए । रोट्रेक्ट्स का मानना और कहना है कि नैतिकता, न्याय की स्वाभाविक प्रक्रिया तथा रोटरी इंटरनेशनल के नियम व 'व्यवस्था' को एक साथ ठेंगा दिखाते हुए यामिनी थरेजा को डीआरआर पद से हटाये जाने के बाद सार्थक बंसल ने जिस तत्परता से डीआरआर का पद स्वीकार कर लिया - उससे साबित होता है कि सार्थक बंसल को न नैतिकता की परवाह है, न वह न्याय की स्वाभाविक प्रक्रिया में यकीन रखते हैं, और न वह रोटरी के उच्च आदर्शों व नियमों का पालन करने की जरूरत समझते हैं; उन्हें तो किसी भी तरह से सिर्फ बड़ा पद चाहिए । रोट्रेक्ट्स का कहना है कि सार्थक बंसल यदि डीआरआर का पद स्वीकारने की जल्दबाजी न दिखाते, तो यामिनी थरेजा को उक्त पद वापस दिलवाने के लिए रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के गवर्नर संजीव राय मेहरा पर दबाव बनाया जा सकता था ।
रोट्रेक्ट्स तथा रोटेरियंस का विश्वास है कि संजीव राय मेहरा को जिस तरह, मनमाने तरीके से रंजन ढींगरा को हटा कर विनय भाटिया को डीएमसी (डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन) बनाने के फैसले को वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया गया था, वैसे ही डीआरआर के मामले में भी मजबूर किया जा सकता था - लेकिन पद के लालच में सार्थक बंसल ने उस संभावना को समाप्त कर दिया; और इसी बात से नाराज रोट्रेक्ट्स उनके साथ काम करना नहीं चाहते हैं । उल्लेखनीय है कि एक जुलाई से डीआरआर के रूप में यामिनी थरेजा ने काम करना शुरू किया था । मजे की बात यह है कि डीआरआर के रूप में उनका चयन करीब पाँच महीने पहले कई उम्मीदवारों का इंटरव्यू करने के बाद खुद संजीव राय मेहरा ने ही किया था । डीआरआर के रूप में काम करते हुए यामिनी थरेजा को अभी 50 दिन ही हुए थे, कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में संजीव राय मेहरा ने उन्हें उनके पद से हटा देने की जानकारी दी । पद से हटाने का यामिनी थरेजा को कोई कारण नहीं बताया गया । इस मनमानी कार्रवाई पर संजीव राय मेहरा की जब थुक्काफजीहत होना शुरू हुई, तब चार दिन बाद बताया गया कि उन पर वित्तीय गड़बड़ी के आरोप लगाये जाने के कारण उन्हें पद से हटाया गया है । हद की बात यह रही कि तब भी - और उसके बाद भी किसी को यह जानकारी नहीं है कि 50 दिन के अपने कार्यकाल में यामिनी थरेजा ने आखिर ऐसी क्या वित्तीय गड़बड़ी कर दी, जिसके चलते संजीव राय मेहरा को उन्हें आरोपों की जानकारी तथा आरोपों का जबाव देने का मौका दिए बिना तत्काल पद से हटा देने की जरूरत पड़ गई ?
यामिनी थरेजा को बिना कारण बताये, तथाकथित आरोपों की जानकारी दिए बिना, और उन्हें जबाव देने का मौका दिए बिना डीआरआर पद से मनमाने तरीके से हटाये जाने पर रोट्रेक्ट्स व रोटेरियंस के बीच नाराजगी और गुस्सा पैदा हुआ । लोगों का कहना रहा कि रोट्रेक्ट के रूप में बेहतर व उल्लेखनीय काम करने तथा उपलब्धियाँ हासिल करने वाली यामिनी थरेजा के साथ संजीव राय मेहरा का ऐसा व्यवहार रोट्रेक्ट्स को हतोत्साहित करेगा, तथा डिस्ट्रिक्ट में रोट्रेक्ट गतिविधियों पर बुरा असर डालेगा । यामिनी थरेजा को पिछले पाँच वर्षों में बेस्ट रोट्रेक्ट क्लब सेक्रेटरी, बेस्ट रोट्रेक्ट क्लब प्रेसीडेंट, बेस्ट रोट्रेक्टर, आउटस्टैंडिंग डिस्ट्रिक्ट रोट्रेक्ट सेक्रेटरी के अवॉर्ड मिले हैं; तथा रायला चेयरपरसन के रूप में रोटरी कैंसर फाउंडेशन में उनके सहयोग को विशेष तौर से रेखांकित किया गया और सराहा गया । कम समय में प्राप्त की गईं इन उपलब्धियों तथा निरंतर सक्रियता के कारण ही डीआरआर पद के उम्मीदवारों में उन्हें सबसे योग्य पाया गया था और चुना गया था । रोट्रेक्ट्स तथा रोटेरियंस का कहना रहा कि यामिनी थरेजा के साथ किया गया व्यवहार उनके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी है । उन्हें न्याय दिलवाने के लिए रोट्रेक्ट्स तथा रोटेरियंस ने तैयारी शुरू की थी, और अपनी तैयारी को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने सार्थक बंसल से अनुरोध किया था कि उन्हें यामिनी थरेजा को न्याय दिलवाने की मुहिम में शामिल होना चाहिए और डीआरआर का पद स्वीकार नहीं करना चाहिए । सार्थक बंसल ने लेकिन पद को महत्ता दी । सार्थक बंसल के पद के लालच ने रोट्रेक्ट्स को उनके खिलाफ कर दिया है, और कई सक्रिय रोट्रेक्ट्स उनके साथ काम करने से इंकार करने लगे हैं । इससे, डीआरआर 'बनने' के बावजूद सार्थक बंसल को मुश्किलों का सामना करने के साथ-साथ, फजीहत का सामना भी करना पड़ रहा है । 

Thursday, September 3, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 का ग्रांट्स के मामलों में एक के बाद एक लगातार मुसीबतों व फजीहतों का शिकार बनने के लिए पूर्व गवर्नर शरत जैन की पनोती को जिम्मेदार माने/ठहराए जाने के साथ ही पूछा जा रहा है कि दीपक गुप्ता के बाद उनका अगला शिकार कौन होगा ?

नई दिल्ली । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता डीडीएफ ग्रांट की रकम के मामले में कहीं पूर्व गवर्नर शरत जैन की पनोती के शिकार तो नहीं हो गए हैं ? डीडीएफ ग्रांट की रकम के मामले में दीपक गुप्ता के साथ जो तमाशा हुआ है, और जिसके चलते वह करीब 70 लाख रुपये गँवाते नजर आ रहे हैं, वह दीपक गुप्ता का बड़ा बेवकूफीपूर्ण काम है - और इसे लेकर दीपक गुप्ता का डिस्ट्रिक्ट में और रोटरी में खासा मजाक बन रहा है । हर किसी को हैरानी है कि दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अकाउंट में अपने हस्ताक्षर जुड़वाने जैसा मामूली काम आखिर क्यों नहीं करवा सके ? इसी हैरानी में लोगों का ध्यान इस बात पर गया है कि कहीं शरत जैन की पनोती की 'हवा' ने तो दीपक गुप्ता पर असर नहीं कर दिया, जिसके चलते दीपक गुप्ता एक सामान्य सी प्रक्रिया को भी पूरा नहीं कर सके - और अपनी जेब भी ढीली करवा बैठे तथा मजाक का विषय भी बन गए । इस बात पर लोगों का ध्यान दरअसल इसलिए गया, क्योंकि रोटरी फाउंडेशन की ग्रांट के जिस भी मामले में शरत जैन प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े, उसका अंततः कबाड़ा ही हुआ है ।
उल्लेखनीय है कि शरत जैन खुद अपने गवर्नर-वर्ष में डीडीएफ ग्रांट का पैसा प्रोजेक्ट्स में इस्तेमाल नहीं कर पाए थे । प्रोजेक्ट्स तैयार करने/करवाने में उनकी तरफ से हुई लापरवाही के चलते प्रोजेक्ट्स के लिए आवेदन देने का समय निकल गया, और डीडीएफ ग्रांट की रकम से प्रोजेक्ट्स नहीं हो पाए । शरत जैन ने डीडीएफ ग्रांट का पैसा पोलियो में देकर ठिकाने लगाया । शरत जैन ने अपने गवर्नर-वर्ष में रोटरी क्लब ई मैग्नम को दो ग्लोबल ग्रांट मंजूर करवाई थीं, जिनमें लेकिन एक धेले का काम नहीं हुआ और रकम हड़पने के आरोप लगे । रोटरी फाउंडेशन ने ग्रांट्स के रूप में दी गई रकम वापस पाने के लिए सख्ती दिखाई, तब वह रकम वापस की/करवाई गई । मजे की बात यह है कि वापस की गई रकम का एक बड़ा हिस्सा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता द्वारा दिए जाने की चर्चा है, लेकिन काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि दीपक गुप्ता ने आखिर कौन से अकाउंट से रकम दी है । इन मामलों के चलते कुछेक लोगों ने मजाक में कहा भी था कि रोटरी की ग्रांट्स के मामले में शरत जैन की पनोती डिस्ट्रिक्ट व क्लब्स के लिए मुसीबत बन गई ।

किसे पता था कि रोटरी की ग्रांट्स के मामले में शरत जैन की पनोती दीपक गुप्ता के लिए भी फजीहत का कारण बन जायेगी । मजे की बात यह रही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता किसी भी मामले में शरत जैन पर निर्भर नहीं थे, लेकिन डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस से पहले पता नहीं किस घड़ी में उन्होंने शरत जैन को डिस्ट्रिक्ट एडवाईजर बना लिया । उसके बाद शरत जैन असिस्टेंट रीजनल रोटरी कोऑर्डीनेटर बन गए, जिसके चलते दीपक गुप्ता ने शरत जैन से निकटता और बढ़ा ली । लोगों को लग रहा है कि इस तरह शरत जैन की पनोती को दीपक गुप्ता ने खुद ही गले लगाया, और डीडीएफ ग्रांट की रकम को लेकर झमेले में फँस गए । शरत जैन के क्लब, रोटरी क्लब दिल्ली अशोका के कुछेक सदस्यों को लगता है कि उनके क्लब में जो फूट हुई, उसके लिए भी शरत जैन की पनोती ही जिम्मेदार है - क्योंकि क्लब में झगड़े की शुरुआत ग्लोबल ग्रांट के इस्तेमाल के तरीके को लेकर ही हुई थी, जो क्लब को दोफाड़ करने का कारण बनी । लोगों को हैरानी लेकिन इस बात की है कि शरत जैन की पनोती से पूर्व गवर्नर सुभाष जैन आखिर कैसे बचे रह गए, जबकि शरत जैन तो उनके डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर थे । लोगों को लगता है कि या तो सुभाष जैन की किस्मत शरत जैन की पनोती पर भारी पड़ी, और या सुभाष जैन डिस्ट्रिक्ट के कामकाज के लिए शरत जैन पर ज्यादा निर्भर नहीं रहे होंगे - और उन्होंने अपना काम अपने आप ही किया होगा । इन चर्चाओं के बीच देखना दिलचस्प होगा कि दीपक गुप्ता के बाद शरत जैन की पनोती का अगला शिकार कौन होता है ?