Wednesday, December 26, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में विनोद बंसल ने पिछले वर्ष के एकाउंट्स के आधे-अधूरे विवरणों के मामले में सवाल उठा कर निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की कारस्तानियों की पोल खोलने तथा उनके द्वारा की गई लूट-खसोट को सामने लाने का काम किया है

नई दिल्ली । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी अपने गवर्नर-वर्ष के हिसाब-किताब में भारी हेराफेरी करने के मामले में गहरे फँसते जा रहे हैं, और इसी कारण से पिछले रोटरी वर्ष के उनके एकाउंट्स अभी तक फाइनल नहीं हो सके हैं । डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन के रूप में विनोद बंसल द्वारा की गई तहकीकात ने रवि चौधरी के आर्थिक घपलों से जुड़ी कारस्तानियों की और पोल खोल दी है । रवि चौधरी के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि कई मौकों पर उनके संकट मोचक की भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजेश बत्रा ने भी उनकी मदद करने से इंकार कर दिया है । तीन सदस्यीय डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में राजेश बत्रा भी एक सदस्य हैं । कमेटी के तीसरे सदस्य आशीष घोष हैं, जो कमेटी के को-चेयरमैन भी हैं । रोटरी इंटरनेशनल के नियमानुसार, रवि चौधरी के पिछले वर्ष के गवर्नर-काल के एकाउंट्स अभी तक मिल जाने चाहिए थे; लेकिन वह अभी तक तैयार ही नहीं हो सके हैं । रवि चौधरी ने अपनी तरफ से एकाउंट्स फाइनल करके डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन विनोद बंसल को सौंप दिए थे, लेकिन विनोद बंसल ने पहली ही नजर में उन्हें आधा/अधूरा पाया । विनोद बंसल को कई एंट्रीज पर संदेह हुआ, जिन पर स्पष्टीकरण देने रवि चौधरी उनके ऑफिस भी आए - लेकिन विनोद बंसल उनके दिए स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुए । विनोद बंसल ने एकाउंट्स में उनके द्वारा दिए गए संदेहास्पद विवरणों से संबंधित सवालों का एक पुलिंदा रवि चौधरी को भेज दिया है, जिसने रवि चौधरी की नींद उड़ा दी है ।
विनोद बंसल द्वारा पूछे गए सवालों में सबसे गंभीर सवाल वह हैं जिनमें कुछेक प्रेसीडेंट्स से नगद में लिए गए लाखों रुपयों का विवरण माँगा गया है, जिनका जिक्र रवि चौधरी द्वारा सौंपे गए विवरण में है ही नहीं । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच चर्चा थी कि कुछेक तत्कालीन प्रेसीडेंट्स से अलग अलग आयोजनों की स्पॉन्सरशिप  के नाम पर रवि चौधरी ने अवॉर्ड का लालच दिखा कर चार-चार पाँच-पाँच लाख रुपए लिए हैं । रवि चौधरी द्वारा सौंपे गए विवरण में विनोद बंसल को जब उन रुपयों का जिक्र नहीं दिखा, तो उन्होंने पहले तो उन तत्कालीन प्रेसीडेंट्स से रुपये देने की बात पूछी और पुष्टि होने पर फिर रवि चौधरी से पूछा कि उन रुपयों को लिए जाने का विवरण उनके द्वारा सौंपे गए हिसाब-किताब में क्यों नहीं है ? आरोप है कि उन लाखों रुपयों को रवि चौधरी ने हड़प लिया है । रवि चौधरी ने उस मोटी रकम को लेकर लीपापोती करने की कोशिश की, विनोद बंसल लेकिन उनके जबाव से संतुष्ट नहीं हुए । विनोद बंसल जिस तरह से रवि चौधरी द्वारा सौंपे गए हिसाब-किताब के ब्यौरे को खंगाल रहे थे और बारीकी से जाँच रहे थे, उससे रवि चौधरी को आभास हो गया था कि हिसाब-किताब में हेराफेरी को लेकर वह फँस सकते हैं । अपने आपको बचाने के लिए उन्होंने राजेश बत्रा की मदद लेने संकेत दिए । विनोद बंसल लेकिन उनसे ज्यादा होशियार निकले; उन्होंने रवि चौधरी द्वारा दिए गए विवरणों में नजर आ रही कमियों को लेकर डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के बाकी दोनों सदस्यों से बात की - और उन्हें यह देख कर खासी राहत मिली कि आशीष घोष के साथ-साथ राजेश बत्रा ने भी साफ कहा कि एकाउंट्स में पारदर्शिता और ईमानदारी होनी भी चाहिए और 'दिखनी' भी चाहिए । रवि चौधरी के समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले राजेश बत्रा से हरी झंडी मिलने के बाद विनोद बंसल ने अपने आपको दबावमुक्त पाया और रवि चौधरी द्वारा सौंपे गए विवरण में दिए गए आधे-अधूरे तथ्यों को लेकर सवालों की सूची रवि चौधरी को सौंप दी ।
रवि चौधरी द्वारा दिए गए विवरण में घपलेबाजी का संदेह दरअसल इसलिए है, क्योंकि रवि चौधरी ने अधिकतर खर्चों के विवरण कच्चे रूप में दिए हैं; रोटरी तथा देश के नियमों के अनुसार, जो पक्के बिल के रूप में होने चाहिए । देश के आयकर विभाग की नजर कच्चे रूप में होने वाले 'बड़े' खर्चों पर है, और उनकी चपेट में रोटरी भी आ चुकी है - रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस को आयकर विभाग की तरफ से एक नोटिस मिल चुका है, जिसमें रोटरी का पक्ष रखने का काम खुद विनोद बंसल कर चुके हैं । डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन के रूप में विनोद बंसल के लिए रवि चौधरी के गवर्नर-वर्ष के एकाउंट्स इसलिए भी एक चुनौती हैं, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट में बहुत से लोगों की निगाह उस पर है । दरअसल रवि चौधरी ने अपने व्यवहार और रवैये से डिस्ट्रिक्ट में तमाम लोगों को नाराज किया हुआ है; रवि चौधरी विभिन्न मौकों पर विनोद बंसल सहित अन्य पूर्व गवर्नर्स पर बेईमानी करने के आरोप लगाते रहे हैं - ऐसे में अब पूर्व गवर्नर्स तथा अन्य लोगों को यह दिखाने/बताने का मौका मिला है कि रोटरी के सबसे बड़े 'लुटेरे' तो रवि चौधरी ही हैं । रवि चौधरी पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में पैसे कमाने/बनाने के जो आरोप लगते रहे हैं, उनके एकाउंट्स के विवरण उन आरोपों के सच साबित होने के संकेत दे रहे हैं । इसलिए पूर्व गवर्नर्स व अन्य लोगों का फाइनेंस कमेटी के सदस्यों पर दबाव है कि वह रवि चौधरी के एकाउंट्स में लीपापोती न करें । इसी दबाव के चलते राजेश बत्रा तक एकाउंट्स के मामले में रवि चौधरी का बचाव करने से पीछे हट गए हैं । कुछेक लोगों को हालाँकि यह भी लगता है और उनका कहना है कि विनोद बंसल भी हो सकता है कि एकाउंट्स में थोड़ी बहुत 'ड्रेसिंग' करके लीपापोती करते हुए अंततः रवि चौधरी को बचाने का प्रयास करें - लेकिन रवि चौधरी से स्पष्टीकरण लेने के लिए उनके द्वारा किए सवालों ने रवि चौधरी की कारस्तानियों की पोल खोलने तथा उनके द्वारा की गई लूट-खसोट को सामने लाने का काम तो कर ही दिया है ।

Tuesday, December 25, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने अमित गुप्ता के समर्थन के नाम पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन की जैसी जो खिलाफ़त की, उससे लोगों के बीच चर्चा है कि सुभाष जैन ने आखिर इन्हें कहाँ कहाँ च्युटियाँ काट ली हैं जो यह बुरी तरह बिलबिला रहे हैं ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में झटपट तरीके से जिस तरह अधिकतर क्लब्स के वोट पड़/डल गए हैं, उसके लिए मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की बदतमीजियों को जिम्मेदार ठहराया/माना जा रहा है । कई क्लब्स के प्रेसिडेंट से सुनने को मिला कि इन दोनों पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने अमित गुप्ता के पक्ष में वोट डालने के लिए जिस तरह बार-बार फोन करके उन्हें परेशान किया हुआ था, उससे बचने के लिए उन्होंने वोटिंग लाइन खुलते ही वोट डाल दिया - ताकि वह इन दोनों की परेशान करने व दबाव बनाने वाली हरकतों से बच सकें । बताया जा रहा है कि 21 दिसंबर को वोटिंग लाइन खुलने के बाद दो-तीन दिन में ही करीब 90 प्रतिशत क्लब्स के वोट पड़/डल गए । गौरतलब बात यह है कि रोटरी की चुनावी व्यवस्था में ई-वोटिंग का चलन आने के बाद देखा/पाया गया है कि वोटिंग लाइन खुलने के बाद पहले सप्ताह में मुश्किल से 40 से 50 प्रतिशत क्लब्स के ही वोट पड़ते/डलते हैं । दरअसल वोट डालने के लिए क्लब्स/प्रेसीडेंट्स को चूँकि पंद्रह दिन का समय मिलता है, इसलिए अलग अलग कारणों से प्रेसीडेंट्स वोट डालने के लिए समय 'लेते' हैं, और वोट डालने में जल्दबाजी नहीं दिखाते हैं । शुरू के दिनों में ही जिन क्लब्स के वोट पड़/डल जाते हैं, उन्हें 'इस' या 'उस' उम्मीदवार के पक्के वाले समर्थक क्लब्स के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है । हर डिस्ट्रिक्ट में हर वर्ष के चुनाव में अमूमन 40 से 50 प्रतिशत क्लब्स 'इस' या 'उस' उम्मीदवार के पक्के वाले समर्थक होते ही हैं, इसलिए यह शुरू के दिनों में वोट डाल कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो लेते हैं, जबकि बाकी क्लब्स/प्रेसीडेंट्स तरह तरह से मूल्याँकन करते हुए निर्णय पर पहुँचने की प्रक्रिया में जुटते हैं । लेकिन मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की हरकतों ने डिस्ट्रिक्ट 3012 में ऐसा आतंक मचाया कि वोटिंग लाइन खुलने के तीन-चार दिनों के भीतर ही करीब 90 प्रतिशत क्लब्स ने वोट डाल कर अपनी अपनी 'जान' बचाई ।
उल्लेखनीय यह है कि इस वर्ष हो रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की प्रक्रिया को बड़े ही शांत रूप में आगे बढ़ते देखा जा रहा था; और रोटरी व डिस्ट्रिक्ट में चुनावी राजनीति के भरोसे ही 'गुजर बसर' करने वाले नेता ढीले पड़े और 'बेचारे' बने बैठे देखे जा रहे थे । जो लोग यह मानते और कहते रहे हैं कि जैसे कुत्ते की पूँछ को किसी भी प्रयत्न से सीधा नहीं किया जा सकता है, वैसे ही मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल को हरकतें करने से नहीं रोका जा सकता है और यह दोनों किसी भी सूरत में अपनी हरकतों से बाज नहीं आ सकते हैं - उन्हें भी यह देख कर हैरानी हुई कि इस बार यह दोनों भी लाचार बने हुए हैं और सुधरे से दिख रहे हैं । लेकिन चुनाव का दिन नजदीक आते आते यह दोनों अपने असली रंग में आ गए और इन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि कुत्ते की पूँछ के साथ इनके व्यवहार की जो तुलना की जाती है, वह उचित ही है । कई प्रेसिडेंट्स का कहना रहा कि बार-बार फोन करके इन्होंने अमित गुप्ता को वोट देने के लिए पर दबाव बनाया; और मजे की बात यह रही कि इसके लिए इन्होंने रोटेरियन के रूप में अमित गुप्ता की कोई खूबी नहीं बताई - बस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन की बुराई की । प्रेसीडेंट्स के लिए यह समझना मुश्किल रहा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन का गवर्नर-वर्ष यदि खराब है, तो यह बात अमित गुप्ता को वोट देने कारण कैसे और क्यों बनती है ? प्रेसीडेंट्स इन दोनों से बार-बार सुभाष जैन की बुराई सुन सुन कर इतने उकता गए कि उन्होंने इनसे कहना/पूछना शुरू किया कि उन्होंने तो रोटरी के बड़े नेताओं और पदाधिकारियों को हमेशा ही सुभाष जैन की और उनके कामों के प्रशंसा करते हुए ही सुना है; प्रोजेक्ट्स हों, सदस्यता वृद्धि तथा रोटरी फाउंडेशन का काम हो - सभी जगह सुभाष जैन के गवर्नर-वर्ष की उपलब्धियों ने रिकॉर्ड बनाया है और लोगों के बीच खासी प्रशंसा पाई है - तब फिर वह किस आधार पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन की आलोचना कर रहे हैं ?
मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के लिए फजीहत की बात यह भी रही कि अमित गुप्ता को समर्थन देने के उनके अभियान को उनके साथ समझे/देखे जाने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी आलोक गुप्ता ने भी समर्थन नहीं दिया । मुकेश अरनेजा को तो दीपक गुप्ता ने अपने गवर्नर-वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया हुआ है, लेकिन फिर भी उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वह मुकेश अरनेजा की राजनीतिक सक्रियता व पक्षधरता के साथ नहीं हैं । समझा जाता है कि दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता रोटरी जगत में मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की बदनामी से परिचित होने के चलते इनके साथ जुड़े दिखने से बचना चाहते हैं; इसके अलावा यह दोनों इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक अग्रवाल को बड़े अंतर से जीतते हुए देख रहे हैं - इसके चलते इन्होंने अपने आप को चुनावी सक्रियता से दूर रखने में ही अपनी भलाई देखी । दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता ने  जिस तरह से अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने की मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की कोशिशों से अपने आपको दूर रखा, उसके कारण मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की कोशिशें निष्प्रभावी ही रहीं । अमित गुप्ता के नजदीकियों और समर्थकों का भी मानना/कहना है कि मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल ने अमित गुप्ता को समर्थन दिलवाने के नाम पर जिस तरह से सुभाष जैन को निशाना बनाने पर ही जोर दिया, उसने वास्तव में प्रेसीडेंट्स को भड़काने का ही काम किया - और उससे अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को फायदा होने की बजाये नुकसान और उठाना पड़ा है । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के बार बार फोन करके परेशान करने तथा दबाव बनाने की हरकत से बचने के लिए जिस तरह से प्रेसीडेंट्स ने झटपट तरीके से वोट डालने का काम किया, उसे अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए बड़े नुकसान के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । कई लोगों को यह सवाल भी परेशान कर रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन ने आखिर मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल को ऐसे कहाँ कहाँ च्युटियाँ काट ली हैं कि यह दोनों बिलबिलाते फिरे और अमित गुप्ता को समर्थन दिलवाने के नाम पर सुभाष जैन के खिलाफ नंग-नाच करते नजर आए ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 से 'मिशन ताईपाई 2021' के लॉन्चिंग समारोह में शामिल होने के जरिये महेश त्रिखा ने अपनी सक्रियता की एक लंबी छलाँग लगा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की होड़ को रोमांचपूर्ण बना दिया है

नई दिल्ली । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में देखे/पहचाने जा रहे 'मिशन ताईपाई 2021' के वृन्दावन में हुए लॉन्चिंग समारोह में महेश त्रिखा की उपस्थिति ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अचानक से गर्मी पैदा कर दी है । रोटरी क्लब दिल्ली साऊथईस्ट के वरिष्ठ सदस्य महेश त्रिखा अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार बनने की तैयारी में सुने/देखे जा रहे हैं । उनके अलावा अशोक कंतूर, अजीत जालान और रवि गुगनानी को भी संभावित उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । अभी तक सभी संभावित उम्मीदवार काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के बीच अपने अपने लिए समर्थन जुटाने का ही प्रयास करते हुए देखे/सुने गए हैं; और किसी ने भी अभी लोगों के बीच अपनी सक्रियता प्रदर्शित नहीं की है । ऐसे में, महेश त्रिखा के पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के संरक्षण तथा कई डिस्ट्रिक्ट्स के प्रमुख पदाधिकारियों व रोटरी के बड़े नेताओं की मौजूदगी में आयोजित हुए 'मिशन ताईपाई 2021' के लॉन्चिंग समारोह में वृन्दावन पहुँचने के बड़े राजनीतिक अर्थ निकाले/लगाये जा रहे हैं । दरअसल 'मिशन ताईपाई 2021' को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के महत्वाकाँक्षी प्रोजेक्ट के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, जिसका लक्ष्य मार्च 2021 से पहले देश के दस हजार गाँव के लोगों को अँधत्व से मुक्ति दिलवाना है । सुशील गुप्ता का प्रोजेक्ट होने और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मंजीत साहनी का इसका चेयरमैन तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अनूप मित्तल  का इसका सेक्रेटरी जनरल होने के कारण डिस्ट्रिक्ट 3011 के लोगों के लिए इसका खास महत्त्व है । लेकिन फिर भी डिस्ट्रिक्ट 3011 के गिनती के लोग ही उक्त समारोह में नजर आए । ऐसे में, 'मिशन ताईपाई 2021' के लॉन्चिंग समारोह में महेश त्रिखा की उपस्थिति का डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच खास नोटिस लिया गया ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के संभावित अन्य उम्मीदवारों में से भी कोईं चूँकि उक्त समारोह में शामिल नहीं हुआ, इसलिए महेश त्रिखा की उपस्थिति का राजनीतिक पक्ष भी बना । यह सच है कि उक्त समारोह डिस्ट्रिक्ट 3011 का आयोजन नहीं था - वास्तव में यह किसी भी डिस्ट्रिक्ट का आयोजन नहीं था, यह रोटरी का आयोजन था - और इसके लिए किसी को निमंत्रण भी नहीं था; लेकिन सुशील गुप्ता, मंजीत साहनी, अनूप मित्तल जैसे डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों की संलग्नता वाले आयोजन के प्रति डिस्ट्रिक्ट 3011 के 'लीडर' बनने की इच्छा रखने वाले रोटेरियंस की इसमें भागीदारी करने/दिखाने की उम्मीद तो की ही जाती थी । उक्त समारोह वास्तव में 'लीडरशिप क्वालिटी' दिखाने का एक अवसर था - जिसमें महेश त्रिखा के अलावा बाकी संभावित उम्मीदवार फेल हो गए । महेश त्रिखा भी इस आयोजन में शामिल न हुए होते, तो लीडरशिप क्वालिटी की बात न उठती/होती - लेकिन महेश त्रिखा ने समारोह में अपनी उपस्थिति दिखा कर लीडरशिप क्वालिटी के मामले में अपनी बढ़त तो बना ही ली, दूसरे संभावित उम्मीदवारों को असमंजस में भी डाल दिया है । दरअसल 'मिशन ताईपाई 2021' के लॉन्चिंग समारोह में अपनी उपस्थिति दिखा कर महेश त्रिखा लोगों के बीच यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि रोटरी के प्रति वह विशेष जिम्मेदारी समझते हैं और रोटरी के किसी भी महत्त्वपूर्ण आयोजन में उपस्थित होना वह अपना कर्तव्य मानते हैं । वृन्दावन में हुए समारोह में महेश त्रिखा की उपस्थिति को डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जो चर्चा मिली है, उसे देख/सुन कर दूसरे उम्मीदवारों को अब लग रहा है कि उन्हें भी वृन्दावन में हुए समारोह में जाना चाहिए था । 
मजे की बात यह है कि चारों संभावित उम्मीदवारों में अभी तक महेश त्रिखा को ही कमजोर 'पिच' पर देखा/माना जा रहा था । दरअसल, यूँ तो महेश त्रिखा का क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली साऊथईस्ट - डिस्ट्रिक्ट का एक प्रमुख क्लब है, जिसमें सुरेश जैन तथा संजय खन्ना जैसे प्रमुख पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सदस्य हैं; लेकिन इस क्लब से आई अमरजीत सिंह की उम्मीदवारी का जो हाल हुआ, और राजीव सागर की उम्मीदवारी आते आते जिस तरह से पीछे हट गई - उसके कारण महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को लेकर खासा संशय बना हुआ था । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को शक रहा कि कहीं उनकी उम्मीदवारी भी अमरजीत सिंह तथा राजीव सागर की उम्मीदवारी जैसी गति को प्राप्त न हो । महेश त्रिखा हालाँकि पिछले तीन-चार वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में लगातार शामिल होते रहे हैं और लोगों से मेल-मिलाप करते रहे हैं और उन्हें लेकर लोगों के बीच अच्छी व सकारात्मक राय ही बनी है, लेकिन अमरजीत सिंह व राजीव सागर के साथ जो हुआ, उसके कारण उन्हें भी संदेह के साथ देखा जा रहा है । इसके अलावा, महेश त्रिखा के सामने एक बड़ी चुनौती यह है कि डिस्ट्रिक्ट के जिन प्रमुख लोगों के समर्थन की उम्मीद उन्हें है - उन्हीं लोगों के समर्थन के भरोसे रोटरी क्लब रोहतक के वरिष्ठ सदस्य रवि गुगनानी भी उम्मीदवार होने/बनने की तैयारी करते सुने/देखे जा रहे हैं । संजय खन्ना के गवर्नर-वर्ष में रवि गुगनानी अपने क्लब के प्रेसीडेंट थे, और बेस्ट प्रेसीडेंट चुने गए थे । रवि गुगनानी डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच ज्यादा सक्रिय नहीं रहे हैं, और इस नाते डिस्ट्रिक्ट के लोग उन्हें ज्यादा जानते/पहचानते नहीं हैं; लेकिन उनके समर्थकों व शुभचिंतकों का कहना है कि अपनी सक्रियता से वह जल्दी ही इस कमी को दूर कर लेंगे । रवि गुगनानी अपनी कमी को दूर करें, उससे पहले ही महेश त्रिखा ने अपनी सक्रियता की एक लंबी छलाँग लगा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की होड़ को रोमांचपूर्ण तो बना ही दिया है ।

Monday, December 24, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में कल हो रहे कार्यक्रम में आमंत्रित किए गए इंटरनेशनल डायरेक्टर जेपी सिंह तथा कुछेक फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के न आने की चर्चाओं ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस का मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने का गेमप्लान गड़बड़ाया

नई दिल्ली । इंटरनेशनल डायरेक्टर जेपी सिंह द्वारा ना-नुकुर करने के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस का कल दोपहर होने वाला कार्यक्रम मुसीबत में पड़ गया है, और इसके चलते वीके हंस के लिए फजीहत वाली स्थिति बन गई है । फजीहत से बचने के लिए वीके हंस ने गुरचरण सिंह भोला की मदद से जेपी सिंह को मनाने की कवायद शुरू तो की है; लेकिन जेपी सिंह के अन्य नजदीकियों के अनुसार, जेपी सिंह ने कार्यक्रम में न जाने का पक्का इरादा कर लिया है । जेपी सिंह के नजदीकियों का कहना/बताना है कि वीके हंस के कार्यक्रम में जाने से बचने के लिए जेपी सिंह को यदि अन्य किसी जगह अपनी व्यस्तता दिखाने की जरूरत पड़ी, तो जेपी सिंह वह भी करेंगे - ताकि वह एक ठोस बहाना पेश कर सकें । उल्लेखनीय है कि कल होने वाला कार्यक्रम दिखाने के लिए तो 'कैंसर अवेयरनेस सेमीनार' तथा 'क्रिसमस व न्यू ईयर सेलीब्रेशन'  के नाम पर हो रहा है, लेकिन इसके पीछे असली मकसद वीके हंस द्वारा मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने का देखा/बताया जा रहा है । कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र में जिस तरह से पाँच डिस्ट्रिक्ट्स के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की उपस्थिति को दिखाया गया है, और जेपी सिंह को मुख्य अतिथि बनाया गया है - उसके जरिये दरअसल यही दिखाने का प्रयास किया गया है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए वीके हंस को इन सब लोगों का सहयोग व समर्थन प्राप्त है ।
जेपी सिंह के नजदीकियों का कहना है कि एक सामाजिक हित के काम की आड़ में की जा रही वीके हंस की इस राजनीतिक हरकत की भनक लगते ही जेपी सिंह ने इस कार्यक्रम से दूर रहने का फैसला कर लिया । असल में, मल्टीपल के लोगों के बीच चर्चा है कि जेपी सिंह की वीके हंस को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनाने/बनवाने में दिलचस्पी नहीं है । वीके हंस वैसे तो आठ फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के समर्थन का दावा करते हैं और लोगों को कहते/बताते रहे हैं कि जेपी सिंह यदि नहीं भी चाहेंगे, तो भी वह मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनेंगे; लेकिन अब वीके हंस को लगने लगा है - या शायद उन्हें किसी ने समझाया होगा - कि जेपी सिंह को भी सहयोग व समर्थन के लिए राजी कर लेना चाहिए । वीके हंस ने इसीलिए कल के कार्यक्रम में जेपी सिंह को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित कर लिया । उनकी कोशिश है कि जेपी सिंह उनके कार्यक्रम में आयेंगे, तो लोगों के बीच यही संदेश जायेगा कि जेपी सिंह भी मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए उनकी उम्मीदवारी के समर्थक हो गए हैं । वीके हंस के कार्यक्रम के बहाने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के इरादे की पोल खुलते ही लेकिन जेपी सिंह भड़क गए हैं और कल के कार्यक्रम में उनका आना खटाई में पड़ गया है ।       
जेपी सिंह के फैसले का संकेत मिला तो कार्यक्रम में आमंत्रित किए गए दो तीन फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स द्वारा भी कार्यक्रम में न आने का निश्चय कर लिया बताया जा रहा है । इन चर्चाओं ने वीके हंस को बुरी तरह डरा दिया है; उन्हें लग रहा है कि यह सब बातें यदि सच साबित हो गईं, और जेपी सिंह तथा आमंत्रित किए गए पाँच फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स में से दो/तीन भी यदि कार्यक्रम में नहीं पहुँचे तो उनकी तो भारी फजीहत हो जायेगी और मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की उनकी सारी योजना अभी से ही धराशाही हो जायेगी । वीके हंस ने इस संभावित फजीहत से बचने के लिए प्रयास करने शुरू कर दिए हैं, और वह कल के कार्यक्रम में जेपी सिंह तथा आमंत्रित फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की उपस्थिति सुनिश्चित करने की कोशिशों में जुट गए हैं । वीके हंस की कोशिश है कि जेपी सिंह तो जरूर ही कल के कार्यक्रम में पहुँचे । वीके हंस के नजदीकियों के अनुसार, इसके लिए उन्होंने जेपी सिंह के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरचरण सिंह भोला से मदद माँगी है । गुरचरण सिंह भोला को चूँकि जेपी सिंह के नजदीक देखा/पहचाना जाता है; इसलिए वीके हंस ने उनसे गुजारिश की है कि वह जेपी को कल के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए किसी भी तरह से राजी करें । वीके हंस ने उनसे कहा है कि जेपी सिंह भले ही थोड़ी देर के लिए कार्यक्रम में आएँ - पर आएँ जरूर । देखना दिलचस्प होगा कि वीके हंस ने जिस उद्देश्य से कल का कार्यक्रम डिजाईन किया है, उसका उन्हें कोई लाभ होता है - या फिर उन्हें फजीहत का शिकार होना पड़ता है ।

Sunday, December 23, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में एक तरफ यदि हंसराज चुग, प्रमोद जैन, प्रमोद बूब, श्रीनिवास जोशी जैसे जेनुइन किस्म के लोगों को जीत प्राप्त हुई है; तो दूसरी तरफ राजेश शर्मा, चरनजोत सिंह नंदा, अनुज गोयल, धीरज खंडेलवाल जैसे प्रोफेशन के साथ खिलवाड़ करने वाले लोग भी जीत गए हैं - और यही बात प्रोफेशन की पहचान व प्रतिष्ठा के लिए खतरे की घंटी बजाती है

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चॉर्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के लिए हुए चुनाव में सबसे ज्यादा हैरान करने वाला फैसला संजय वासुदेवा की पराजय का रहा । हालाँकि सेंट्रल रीजन में मुकेश कुशवाह, वेस्टर्न रीजन में मंगेश किनरे, और नॉर्दर्न रीजन में संजय वासुदेवा के साथ-साथ विजय गुप्ता भी सेंट्रल काउंसिल की अपनी सीट बचा पाने में नाकाम रहे हैं - लेकिन संजय वासुदेवा की पराजय ने हर किसी को आश्चर्य में डाला है । दरअसल नॉर्दर्न रीजन में संजय वासुदेवा के पिता एससी वासुदेवा का खासा नाम है । उनके पिता द्वारा स्थापित फर्म एससी वासुदेवा एंड कंपनी को प्रोफेशन में बिग फोर फर्म्स जैसी 'हैसियत' प्राप्त है, और पूरे रीजन के हर प्रमुख शहर में उनके लाभार्थियों की अच्छी-खासी संख्या मौजूद है । एससी वासुदेवा चूँकि खुद भी इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में सक्रिय रहे हैं, और सेंट्रल काउंसिल में सदस्य भी रहे हैं - इसलिए उनकी प्रोफेशनल हैसियत का एक राजनीतिक आयाम भी रहा है; जिसका फायदा संजय वासुदेवा को पिछले चुनाव में मिला था । सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में संजय वासुदेवा का रिकॉर्ड कोई बहुत सक्रियता भरा तो नहीं रहा, लेकिन उनके खिलाफ कहीं कोई आवाज भी नहीं पैदा हुई - इसलिए माना/समझा जा रहा था कि वह अपनी सीट आसानी से बचा लेंगे । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में खानदानी परंपरा का सम्मान करने का रिवाज चूँकि है, जिसके चलते नवीन गुप्ता और नीलेश विकमसे जैसे लोग भी चुनाव जीतते गए और प्रेसीडेंट तक बन गए; और जिस रिवाज के चलते अभी संपन्न हुए चुनाव में वेस्टर्न रीजन में अनिकेत तलति तक सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जीत गए - उसी रिवाज के भरोसे संजय वासुदेवा के भी जीतने का विश्वास सभी को था । संजय वासुदेवा की चुनावी स्थिति को फायदा पहुँचाने वाली एक बड़ी बात इसी वर्ष अप्रैल में यह हुई थी कि उनकी फर्म एससी वासुदेवा एंड कंपनी तथा एक और बड़ी फर्म एसपी पुरी एंड कंपनी का विलय हुआ था, जिसके चलते माना/समझा जा रहा था कि संजय वासुदेवा की राजनीतिक ताकत और बढ़ी है । लेकिन फिर भी संजय वासुदेवा हार गए । वैसे संजय वासुदेवा यदि जीत जाते तो सेंट्रल काउंसिल में एक दिलचस्प नजारा यह बनता कि चरनजोत सिंह नंदा तथा अनुज गोयल को ऐसे सदस्यों के रूप में पहचान मिलती जिन्होंने पिता एससी वासुदेवा के साथ 19वीं काउंसिल में संगत की थी और अब 24वीं काउंसिल में पुत्र संजय वासुदेवा के साथ वह संगत करते ।
'जो जीता वह सिकंदर, बाकी सब बंदर' की तर्ज पर जीतने वालों को बड़ा जेनुइन व काबिल तथा हारने वालों को बेईमान व नाकारा मानने/बताने की सड़कछाप प्रवृत्ति की बजाये यदि गंभीरता के साथ चुनावी नतीजों का विश्लेषण करें, तो प्राप्त चुनावी नतीजे कोई 'पैटर्न' नहीं पेश करते हैं । चुनावी नतीजों में एक तरफ यदि हंसराज चुग, प्रमोद जैन, प्रमोद बूब, श्रीनिवास जोशी जैसे जेनुइन किस्म के लोगों को जीत प्राप्त हुई है; तो दूसरी तरफ राजेश शर्मा, चरनजोत सिंह नंदा, अनुज गोयल, धीरज खंडेलवाल जैसे प्रोफेशन के साथ खिलवाड़ करने वाले लोग भी जीत गए हैं । सेंट्रल काउंसिल का यह परिदृश्य संसद के उस परिदृश्य की याद दिलवाता है, जिसमें अटलबिहारी वाजपेयी के साथ फूलन देवी भी होती है । संसदीय चुनावों के मतदाताओं के बारे में कहा/माना जाता है कि उनमें बहुत से लोग अनपढ़ व भावुक व लालची होते हैं, जिसका फायदा फूलन देवी जैसे लोग उठा लेते हैं; लेकिन इंस्टीट्यूट के चुनावों के मतदाता तो पढ़े-लिखे जागरुक लोग होते हैं तथा प्रोफेशन में होने वाली ऊँच/नीच और काउंसिल सदस्यों की क्षमताओं व उनकी कारस्तानियों को नजदीक से देखते/पहचानते रहते हैं - फिर भी वह फूलन देवी किस्म के उम्मीदवारों को क्यों चुन लेते हैं ? इस 'क्यों' का जबाव मिलना आसान नहीं है, लेकिन फिर भी यह 'क्यों' इंस्टीट्यूट के सदस्य चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की समझ व जागरुकता तथा प्रोफेशन की पहचान व प्रतिष्ठा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े करता है । यह ठीक है कि किसी भी चुनाव में मतदाताओं को प्रायः 'बुरे' और 'कम बुरे' में से ही चुनने का विकल्प मिलता है; और 'कम बुरे' की तुलना में 'बुरे' उम्मीदवार मतदाताओं की आँखों में धूल झोंकने में ज्यादा होशियार साबित होते हैं - लेकिन ऐसी ही होशयारियों के बीच मतदाताओं के विवेक और उनकी समझदारी की परीक्षा होती है । ऐसे में, माना/कहा जा सकता है कि प्रोफेशन के लोग यदि संजय वासुदेवा की बजाये राजेश शर्मा व चरनजोत सिंह नंदा जैसे लोगों को तरजीह देते हैं, तो प्रोफेशन की विश्वसनीयता व प्रतिष्ठा को बनाये/बचाये रखने का काम ईश्वर भी नहीं कर सकेगा - क्योंकि माना/कहा जाता है कि ईश्वर भी उन्हीं को बचाने में मदद करता है, जो खुद को बचाने का प्रयास करते हैं ।
सेंट्रल काउंसिल के चुनावी नतीजे कुछ महत्त्वपूर्ण सबक भी देते हैं । संजय वासुदेवा की पराजय में उनके अति-आत्मविश्वास का भी योगदान है । चुनावी राजनीति में मतदाता के पास जाने के काम को एक बहुत जरूरी काम के रूप में देखा/पहचाना जाता है, जिस पर संजय वासुदेवा ने ध्यान नहीं दिया । दूसरों की तरह वह भी इस भरोसे रहे कि उनके पिता और उनकी फर्म का जो आभामंडल है, वही उन्हें चुनाव जितवा देगा - और धोखा खा बैठे । चुनाव को चुनौती की तरह लेने का काम सिर्फ दो लोगों ने किया - संजीव सिंघल और हंसराज चुग ने; और दोनों को अच्छे/खासे वोट मिले । संजीव सिंघल और उनके समर्थकों को भी इतनी बड़ी सफलता मिलने की उम्मीद नहीं थी - यदि होती तो उनके एक बड़े समर्थक के रूप में गिरीश आहुजा जैसे बड़े व्यक्ति को छोटी छोटी जगहों पर भी अपनी फजीहत नहीं कराना पड़ती । संजीव सिंघल और उनके समर्थकों ने जिस तरह से हर हथकंडा अपनाया, उसका उन्हें अच्छा सुफल भी मिला । हंसराज चुग के साथ कोई बड़ा नाम तो नहीं था, लेकिन छोटे छोटे ग्रुपों और नेताओं के बीच प्रभावी तालमेल बना कर उन्होंने अपने चुनाव अभियान को जिस तरह से संयोजित किया, उससे लगा कि उन्होंने हर चुनावी जरूरत का ध्यान रखा और खतरे वाली हर जगह पर ध्यान दिया और वहाँ हालात को साधने की कोशिश की - और अच्छा नतीजा पाया । संजय वासुदेवा की तरह अतुल गुप्ता की सीट को भी कोई खतरा नहीं समझा/पहचाना जा रहा था, लेकिन संजय वासुदेवा की तरह अतुल गुप्ता अति-आत्मविश्वास का शिकार नहीं हुए । अतुल गुप्ता को जो झटके लग रहे थे, वह उन्हें कोई बड़ा नुकसान पहुँचाते हुए नहीं दिख रहे थे, लेकिन फिर भी उन्होंने झटकों से होने वाले नुकसान की भरपाई करने के पुरजोर इंतजाम किए और जिनके चलते वह अपनी सीट बचा सकने में सफल रहे । विजय गुप्ता ने संजय वासुदेवा जैसी लापरवाही तो नहीं दिखाई, किंतु अतुल गुप्ता जैसी होशियारी भी वह नहीं दिखा सके; उन्होंने बँधे/बँधाये फार्मूले पर काम किया, जिसके तहत वह चुनाव से कुछ पहले सक्रिय हुए और उसमें भी उन्होंने खतरे वाली जगहों को पहचानने की जरूरत नहीं समझी - हंसराज चुग, प्रमोद जैन, सुधीर अग्रवाल की तरफ से मिलने वाली चुनौती को समझने/पहचानने में वह चूक कर बैठे और अपनी सीट गँवा बैठे । चुनावी नतीजों ने यह बात भी स्पष्ट कर दी है कि सिर्फ ज्ञान बाँट कर और या सिर्फ पार्टियाँ आयोजित करके ही चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं, जो लोग इन दोनों चीजों में बेहतर तालमेल बनायेंगे - जीत उन्हीं को मिलेगी ।

Saturday, December 22, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 के निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रुबी को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में कोऑर्डीनेटर की पदवी देकर सुशील गुप्ता ने, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जितेंद्र ढींगरा को अपनी तरफ मिलाकर टीके रुबी को डीआरएफसी बनने से रोकने की राजा साबू की योजना को झटका दिया

चंडीगढ़ । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के ड्रीम प्रोजेक्ट 'मिशन ताईपाई 2021' में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रुबी को कोऑर्डिनेटर बनाए जाने से राजेंद्र उर्फ राजा साबू की टीके रुबी को अलग-थलग करने की रणनीति को खासा झटका लगा है । उल्लेखनीय है कि पिछले कुछेक दिनों में राजा साबू ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जितेंद्र ढींगरा के साथ नजदीकी बनाने और 'दिखाने' का प्रयास किया है और इस तरह डिस्ट्रिक्ट की मुख्य धारा में वापस लौटने व शामिल होने की कोशिश की है । डिस्ट्रिक्ट की मुख्य धारा की बागडोर चूँकि धीरे धीरे विरोधी खेमे के हाथ आती हुई दिख रही है, इसलिए राजा साबू ने भी जैसे समझ लिया है कि विरोधी खेमे के नेताओं से वह यदि तालमेल नहीं बनायेंगे तो डिस्ट्रिक्ट में फिर वह नहीं पूछे जायेंगे । डिस्ट्रिक्ट में उनकी पूछ बनी रहे और वह लोगों के बीच 'दिखते' रहें, इसके लिए उन्होंने विरोधी खेमे में अपनी जगह देखना और बनाना शुरू कर दिया है - और इसके लिए राजा साबू ने जितेंद्र ढींगरा का हाथ पकड़ा है । राजा साबू के नजदीकियों के अनुसार, राजा साबू को यह उन्हें यह देख कर राहत मिली है कि जितेंद्र ढींगरा की तरफ से भी उन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है । जितेंद्र ढींगरा के गवर्नर-वर्ष में पूर्व गवर्नर मनमोहन सिंह के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने में भी राजा साबू के 'फायदे' को देखा जा रहा है । मजे की बात यह है कि जितेंद्र ढींगरा के कई नजदीकी मनमोहन सिंह को राजा साबू के 'आदमी' के रूप में ही देखते/पहचानते हैं । राजा साबू के लिए सारी स्थितियाँ तो अनुकूल बन रही हैं पर जैसे रस्सी जल जाने के बाद भी अपनी ऐंठन नहीं छोड़ती है, उसी तर्ज पर राजा साबू भी टीके रुबी के प्रति अपनी खुन्नस छोड़ते हुए नहीं दिख रहे हैं - और इसी खुन्नस में वह टीके रुबी के डीआरएफसी बनने में बाधा खड़ी करने के प्रयासों में लगे हैं ।
राजा साबू के नजदीकियों का कहना/बताना है कि टीके रुबी ने पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में हिसाब-किताब में जो पारदर्शिता रखी/अपनाई थी, तथा डिस्ट्रिक्ट के विभिन्न ट्रस्ट्स के हिसाब-किताब को नियमित करने का जो प्रयास किया था - उसे देख कर राजा साबू को डर है कि टीके रुबी के डीआरएफसी बनने पर राजा साबू के लिए मेडीकल मिशन के नाम पर राजनीति व 'धंधा' करने का अभियान चौपट हो जायेगा । इसलिए वह किसी भी तरह से टीके रुबी को डीआरएफसी बनने से रोकना चाहते हैं; और इसके लिए वह तरह तरह से जितेंद्र ढींगरा को इशारे दे चुके हैं । राजा साबू का 'काम' करने का 'ढंग' बहुत अनोखा रहा है, वह सिर्फ इशारों पर अपने काम करवाते रहे हैं । राजा साबू की बातें सुनों तो ऐसा लगेगा कि उनसे बड़ा संत दुनिया में दूसरा कोई नहीं होगा; लेकिन डिस्ट्रिक्ट की हर छोटी/बड़ी घटना/दुर्घटना के पीछे उन्हीं को देखा/पहचाना जाता है । दरअसल पिछले वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में जो भारी उठापटक हुई, उसे उनकी ही हरकतों के 'घड़ा भरने' के नतीजे के रूप में देखा/समझा गया - और उसके चलते डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, बल्कि रोटरी जगत में भी उनकी ही फजीहत हुई । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जितेंद्र ढींगरा के जरिये राजा साबू ने डिस्ट्रिक्ट में गड़बड़ाई अपनी स्थिति को सँभालने की जो कोशिश की है, उसे कामयाबी तो मिलती दिख रही है - लेकिन पहले जैसी स्थिति पा लेने की उनकी आकाँक्षा पूरी होती नहीं दिख रही है । जितेंद्र ढींगरा उनकी बातों को तवज्जो देते हुए भले ही नजर आ रहे हों, लेकिन टीके रुबी के मामले में वह राजा साबू की 'इच्छा' को पूरा करेंगे - इसकी कोई सूरत अभी तो नहीं दिख रही है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में सौदेबाजी करने की कोशिश के जरिये राजा साबू हालाँकि जितेंद्र ढींगरा को फाँसने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन लगता नहीं है कि उक्त चुनाव में सौदेबाजी करने के लिए राजा साबू के पास कुछ है - जिसके दबाव में जितेंद्र ढींगरा दबेंगे/झुकेंगे ।
'मिशन ताईपाई 2021' में कोऑर्डीनेटर बनाये जाने से रोटरी में टीके रुबी का कद जिस तरह से बढ़ा है, उससे राजा साबू का 'उद्देश्य' और संकट में पड़ा है । उल्लेखनीय है कि 'मिशन ताईपाई 2021' को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, जिसका लक्ष्य मार्च 2021 से पहले देश के दस हजार गाँव के लोगों को अँधत्व से मुक्ति दिलवाना है । इतने महत्त्व के प्रोजेक्ट में सुशील गुप्ता द्वारा टीके रुबी को कोऑर्डीनेटर के रूप में चुनने को इस तथ्य के संकेत व सुबूत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है कि टीके रुबी की रोटरी में संलग्नता तथा काम करने की उनकी क्षमता ने सुशील गुप्ता को गहरे से प्रभावित किया है । सुशील गुप्ता के इस चयन ने टीके रुबी की पहचान को डिस्ट्रिक्ट में भी महत्त्वपूर्ण बना दिया है । कुछेक लोगों को टीके रुबी को कोऑर्डीनेटर चुनने/बनाने में सुशील गुप्ता की राजनीति भी नजर आ रही है, जिसमें राजा साबू पर फंदा कसने का उद्देश्य छिपा पहचाना जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लग/'दिख' रहा है कि ऐसे में, जितेंद्र ढींगरा और टीके रुबी के बीच फूट डाल कर और जितेंद्र ढींगरा को अपनी तरफ मिला कर टीके रुबी को अलग-थलग करने की राजा साबू की योजना फलीभूत होना मुश्किल ही है । राजा साबू के लिए मुसीबत की बात दरअसल यह हो गई है कि जितेंद्र ढींगरा व टीके रुबी की मिलीजुली रणनीति ने उनके 'शूटर' के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले यशपाल दास, रंजीत भाटिया, मधुकर मल्होत्रा, शाजु पीटर आदि को पूरी तरह निष्प्रभावी बना दिया है - इसलिए राजा साबू के लिए अपनी किसी योजना को क्रियान्वित कर/करवा पाना मुश्किल ही है; और यही तथ्य टीके रुबी को डीआरएफसी बनने से रोकने की उनकी योजना को फेल करता नजर आ रहा है ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया और उनके साथियों द्वारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में की गईं हरकतें डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस तथा फाउंडेशन के काम को पूरा करने में मुश्किलों का कारण बनीं

नई दिल्ली । अभी कल तक अशोक कंतूर को इस बार और अगली बार अजीत जालान को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव जितवाने की तैयारी कर रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया ने अचानक से रवि गुगनानी की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है । रवि गुगनानी खासे उत्साह से लोगों को बता रहे हैं कि विनय भाटिया ने उन्हें आश्वस्त किया है कि अगले वर्ष वह और उनके साथी रवि गुगनानी की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे । लोगों के बीच चल रही चर्चाओं में कहा/बताया/सुना जा रहा है कि विनय भाटिया ने रवि गुगनानी से दावा/वायदा किया है कि अन्य जो लोग अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे हैं, उन्हें वह 'बिठवा' देंगे और रवि गुगनानी आराम से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन जायेंगे । विनय भाटिया के इस बदले बदले रवैये को रवि गुगनानी कैसे समझ रहे हैं, यह तो रवि गुगनानी जानें - लेकिन इस तरह की बातों/चर्चाओं पर डिस्ट्रिक्ट में लोग मजे ले रहे हैं । उनका कहना है कि विनय भाटिया ने अपनी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के लिए फंड जुटाने तथा फाउंडेशन के लक्ष्य पूरे करने के लिए अपने 'चुनावी रवैये' को शीर्षासन करवा दिया है; और जो विनय भाटिया अपने स्वार्थ में अशोक कंतूर तथा अजीत जालान को धोखा दे सकते हैं - वह विनय भाटिया अपना काम निकल जाने के बाद रवि गुगनानी से धोखा नहीं करेंगे, इसकी क्या गारंटी है ? इसके अलावा, यह भी कहा/सुना जा रहा है कि विनय भाटिया जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहते हुए अशोक कंतूर के काम नहीं आ सके, तो पूर्व गवर्नर के रूप में रवि गुगनानी के क्या काम आ पायेंगे ?
दरअसल इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के नतीजे ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया के लिए बड़ी फजीहत वाली स्थिति बना दी है । डिस्ट्रिक्ट के और खास तौर से फरीदाबाद के कई वरिष्ठ रोटेरियंस ने विनय भाटिया को समझाया था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक कंतूर का समर्थन करने के लिए उन्हें इस हद तक सक्रिय नहीं होना चाहिए जिससे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की प्रतिष्ठा का हनन होता हो । विनय भाटिया ने लेकिन किसी की एक नहीं सुनी । वह और उनकी डिस्ट्रिक्ट टीम के पप्पूजीत सिंह सरना, अजीत जालान, अमित जोनेजा जैसे प्रमुख सदस्यों ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को जीत दिलवाने के लिए इस तरह की पक्षपातपूर्ण सक्रियता दिखाई कि वह डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर प्रमुख लोगों की आँखों में खटकी । इस बात की इन्होंने परवाह लेकिन इसलिए नहीं की, क्योंकि इनका विश्वास रहा कि अशोक कंतूर के जीतने के बाद उन्हें निष्पक्षता का पाठ पढ़ाने वाले लोग अपने आप चुप हो जायेंगे । चुनावी नतीजे में अशोक कंतूर के हार जाने के बाद लेकिन सारा नजारा बदल गया । अब जिसे देखो वह विनय भाटिया की लानत/मलानत में लग गया और विनय भाटिया पर डिस्ट्रिक्ट व रोटरी की छवि खराब करने का आरोप लगाने में जुट गया । इससे डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के लिए साधन जुटाने के काम पर खासा प्रतिकूल असर पड़ा । मामले को सँभालने के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर विनोद बंसल आगे आए, तो उन्हें भी लोगों से खरी-खोटी सुनने को मिली । लोगों ने विनोद बंसल से कहा कि चुनाव से पहले उनसे जब विनय भाटिया और उनकी डिस्ट्रिक्ट टीम के कुछेक सदस्यों की हरकतों को नियंत्रित करने के लिए कहते थे, तब तो वह चुप लगा जाते थे - तो फिर अब क्यों विनय भाटिया की मदद करने की बात करते हो । लोगों का कहना रहता है कि उन्हें तो लगता है कि अपनी डिस्ट्रिक्ट टीम के कुछेक सदस्यों के साथ मिलकर विनय भाटिया ने अशोक कंतूर को चुनाव जितवाने के लिए जो जो हरकतें कीं, उन्हें विनोद बंसल का पूरा पूरा सहयोग व समर्थन था ।
मजे की बात यह देखने में आ रही है कि विनय भाटिया तथा उनकी डिस्ट्रिक्ट टीम के कुछेक सदस्यों की चुनावी हरकतों के प्रति लोगों की नाराजगी को देखते हुए विनोद बंसल ने अगले रोटरी वर्ष में अजीत जालान की उम्मीदवारी की बात करना बंद कर दिया है । यह बात मजे की इसलिए है क्योंकि रवि गुगनानी की उम्मीदवारी सामने आने के बाद अजीत जालान ने दावा किया था कि विनोद बंसल ने उन्हें आश्वस्त किया है कि रवि गुगनानी की उम्मीदवारी से उन्हें डरने की जरूरत नहीं है और रवि गुगनानी की उम्मीदवारी को तो वह वापस करवा देंगे । लेकिन विनोद बंसल का रवैया अब पूरी तरह से बदला हुआ है । अजीत जालान के नजदीकियों का हालाँकि कहना/बताना है कि विनोद बंसल की तरफ से अजीत जालान अभी नाउम्मीद नहीं हुए हैं; उन्हें विश्वास है कि विनय भाटिया की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस तथा उनके गवर्नर-वर्ष में फाउंडेशन के पैसे जमा होने का काम पूरा हो जाने के बाद विनोद बंसल फिर से उनकी उम्मीदवारी का झंडा उठा लेंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया और उनके डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर विनोद बंसल अभी वास्तव में उस नुकसान की भरपाई करने के लिए बदले बदले से दिख रहे हैं, जो अशोक कंतूर की चुनावी पराजय से उन्हें हुआ है । विनय भाटिया को उम्मीद है कि अगले रोटरी वर्ष में रवि गुगनानी को समर्थन का झाँसा देकर वह रवि गुगनानी तथा उनके संगी-साथियों का डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस तथा फाउंडेशन के लिए सहयोग ले सकेंगे । विनय भाटिया के साथ-साथ विनोद बंसल भी चाहते हैं और इस बात के लिए प्रयास कर रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया ने समर्थन व विरोध के नाम पर जो भी हरकतें की हैं, लोग उन्हें भूल कर डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस तथा फाउंडेशन के काम को सफल करने में जुट जाएँ । देखना दिलचस्प होगा कि उनके यह प्रयास किस हद तक सफल हो पाते हैं ?

Monday, December 17, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता को पेम के खर्चों से जुड़े आरोपों के घेरे में लेने/लाने की मुकेश अरनेजा की कोशिशों ने दीपक गुप्ता के लिए फजीहत वाली स्थितियाँ बना दी हैं

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता 'पाठशाला' शीर्षक से आयोजित हुई पेम टू के हिसाब-किताब को लेकर भी विवादों और आरोपों में घिर गए हैं, और इसमें भी उनके लिए बदकिस्मती की बात यह रही है कि इसके पीछे पूर्व गवर्नर मुकेश अरनेजा की हरकत को देखा/पहचाना जा रहा है । दीपक गुप्ता के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि मुकेश अरनेजा रोटरी क्लब गाजियाबाद के सदस्यों को भड़का रहे हैं कि उन्हें दीपक गुप्ता से पेम टू के खर्च का हिसाब-किताब लेना चाहिए, ताकि पता चले कि पेम टू में वास्तव में कितना खर्चा हुआ है । उल्लेखनीय है कि पेम टू के आयोजन की जिम्मेदारी रोटरी क्लब गाजियाबाद की ही थी, जो दीपक गुप्ता का ही क्लब है । चर्चा है कि दीपक गुप्ता ने अपने क्लब के पदाधिकारियों को यह कहते/बताते हुए पेम टू केआयोजन के लिए राजी किया कि क्लब जितना/जो पैसा देना चाहे, उतना दे - बाकी पैसा वह खुद देंगे । मुकेश अरनेजा का आयोजक क्लब के लोगों से कहना/बताना है कि काफी पैसा तो पेम वन का ही बचा हुआ है; पेम टू का आयोजन उसी से हो सकता है - लेकिन दीपक गुप्ता पेम टू के आयोजन के लिए क्लब से भी पैसे ले रहे हैं और अपने पास से भी पैसे देने/लगाने की बात कर रहे हैं; लेकिन हिसाब-किताब नहीं दे रहे हैं । मुकेश अरनेजा पर दीपक गुप्ता के क्लब के पदाधिकारियों को यह कहते हुए भड़काने का आरोप है कि उन्हें दीपक गुप्ता से हिसाब-किताब माँगना चाहिए, ताकि पता तो चले कि खुद अपने पास से पैसे देने की बात करने वाले दीपक गुप्ता ने वास्तव में कितने पैसे बचा लिए हैं । मुकेश अरनेजा का कहना है कि दीपक गुप्ता जिस तरह से पेम वन और पेम टू के आयोजन से संबद्ध हिसाब-किताब को सभी से छिपा कर रख रहे हैं, उससे गड़बड़ी का शक हो रहा है ।        
मजे की बात यह है कि दीपक गुप्ता के क्लब के कंधे का सहारा लेकर जो मुकेश अरनेजा, दीपक गुप्ता के लिए फजीहत वाली स्थितियाँ बना रहे हैं - दीपक गुप्ता ने उन्हीं मुकेश अरनेजा को अपने गवर्नर-काल के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया है । मुकेश अरनेजा के साथ बड़ी समस्या दरअसल यही है कि लोग उन्हें ईज्जत देते हैं, लेकिन ईज्जत उन्हें रास नहीं आती है - और वह ईज्जत देने वालों की ही फजीहत करने/करवाने में जुट जाते हैं । पूर्व गवर्नर अमित जैन ने भी उन्हें अपना डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया था, लेकिन मुकेश अरनेजा की हरकतों को देख कर डेढ़/दो महीने में ही अमित जैन ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद से हटा दिया था; पिछले रोटरी वर्ष में सतीश सिंघल ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया था, लेकिन सतीश सिंघल को लेकर वह चेन्नई में हुई रोटरी इंस्टीट्यूट तक में खासी बकवासबाजी कर चुके हैं । अपने स्वभावानुसार, मुकेश अरनेजा ने अब दीपक गुप्ता को निशाना बनाया हुआ है । मुकेश अरनेजा के इस रवैये को देख/जान कर उन्हें ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने पर विचार कर रहे आलोक गुप्ता संशय में पड़ गए हैं कि वह उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये या नहीं ? आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के सामने आशीष माखीजा की उम्मीदवारी लाने का प्रयास करके मुकेश अरनेजा पहले भी दिखा/जता चुके हैं कि आलोक गुप्ता को तरह तरह से परेशान करने से वह पीछे नहीं 'हटेंगे' । दीपक गुप्ता को आरोपों के घेरे में लेने/लाने की मुकेश अरनेजा की कोशिशों ने लेकिन फिलहाल दीपक गुप्ता के लिए फजीहत वाली स्थितियाँ बना दी हैं ।
दीपक गुप्ता के लिए बदकिस्मती की बात यह हुई है कि पेम वन में जब उन्होंने रजिस्ट्रेशन के नाम पर पैसों की जमकर बसूली की थी, तब तो वह लोगों के आरोपों के निशाने पर आये ही थे; लेकिन अब जब पेम टू में वह पैसों की बसूली करने से बचे हैं - तब भी उन्हें आरोपों का सामना करना पड़ रहा है । ऐसा लगता है कि पेम वन में लगे बदनामी के दाग इतने गहरे साबित हुए हैं, कि पेम टू में भी उसी तरह के आरोपों ने दीपक गुप्ता को चपेटे में ले लिया है । मुकेश अरनेजा दरअसल जिन बातों के आधार पर दीपक गुप्ता को घेरने/घिरवाने का प्रयास कर रहे हैं, उनमें यही बताया/कहा जा रहा है कि पेम वन में दीपक गुप्ता ने जिस तरह से पैसों की उगाही की थी, और जिसके चलते उन्हें भारी बदनामी मिली थी - उसी बदनामी से मुक्त होने के लिए उन्होंने पेम टू में पैसे 'खुद' देने की चालबाजी रची, लेकिन उनकी इस चालबाजी में भी धोखा है; मुकेश अरनेजा का कहना/बताना है कि दीपक गुप्ता यह धोखा और चालबाजी अपने ही क्लब के लोगों के साथ कर रहे हैं । मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के अनुसार, मुकेश अरनेजा दरअसल दीपक गुप्ता से इसलिए नाराज भी हैं, क्योंकि दीपक गुप्ता ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर तो बना दिया है - लेकिन वह मुकेश अरनेजा को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं, और अधिकतर मामलों में अपने ही तरीके से फैसले कर रहे हैं । पेम टू के आयोजन के दौरान ही लोगों ने कई मौकों पर उन्हें हताश व निराश अवस्था में बैठे हुए देखा/पाया । दीपक गुप्ता के इस रवैये ने 'जिस थाली में खाना, उसी में छेद करने का प्रयास करना' जैसा आचरण करने वाले मुकेश अरनेजा को और भड़काया है - जिसके चलते मुकेश अरनेजा ने हिसाब-किताब के मुद्दे पर दीपक गुप्ता को घेरने/फँसाने का खेल और तेज कर दिया है 

Sunday, December 16, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट हरि गुप्ता की टीम से मनीष शारदा के क्लब के सदस्यों द्वारा इस्तीफे देने की घटना के चलते क्लब की हो रही बदनामी मनीष शारदा की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाती तथा दीपा खन्ना की उम्मीदवारी के लिए वरदान बनती दिख रही है

मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट हरि गुप्ता द्वारा अपने गवर्नर-वर्ष के लिए बनाई जा रही डिस्ट्रिक्ट टीम में पद पाने वाले रोटरी क्लब मेरठ महान के सदस्यों के अपने अपने पदों से इस्तीफा देने की कार्रवाई ने क्लब की तरफ से बने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार मनीष शारदा के लिए मुसीबतें बढ़ाने का ही काम किया है । समझा जाता है कि मनीष शारदा की उम्मीदवारी को चूँकि हरि गुप्ता से सहयोग और समर्थन नहीं मिल रहा था, इसलिए हरि गुप्ता को 'सबक' सिखाने तथा उन्हें दबाव में लेने के उद्देश्य से हरि गुप्ता की प्रस्तावित टीम में जगह पाने वाले क्लब के सदस्यों ने उक्त कदम उठाया है । मनीष शारदा और इस योजना के रणनीतिकारों को लेकिन पहला झटका यह देख/जान कर लगा कि हरि गुप्ता ने तुरंत ही इस्तीफे स्वीकार कर लिए । मनीष शारदा और इस योजना के रणनीतिकारों को उम्मीद थी कि एकसाथ कई इस्तीफे पा कर हरि गुप्ता घबरा जायेंगे और इस्तीफा न देने के लिए मान-मनौव्वल करेंगे और तब वह हरि गुप्ता से मनीष शारदा की उम्मीदवारी के लिए सौदेबाजी कर लेंगे । लेकिन हरि गुप्ता के रवैये ने उनकी योजना व उम्मीदों पर पानी डाल दिया है । रोटरी क्लब मेरठ महान की इस कार्रवाई से मनीष शारदा की उम्मीदवारी को दूसरा बड़ा झटका यह लगा है कि इस कार्रवाई को डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच मनीष शारदा की उम्मीदवारी की कमजोरी के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों का मानना और कहना है कि इस तरह की कार्रवाई से साफ हो गया है कि मनीष शारदा और उनके समर्थकों ने चुनाव होने से पहले ही अपनी हार स्वीकार कर ली है, और इसी निराशा व बौखलाहट में मनीष शारदा और उनके समर्थक डिस्ट्रिक्ट के बड़े पदाधिकारियों को 'ब्लैकमेल' करने पर उतर आए हैं ।
हरि गुप्ता को दीपा खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता है, जो रोटरी क्लब मुरादाबाद ब्राइट की तरफ से उम्मीदवार हैं । मुरादाबाद से अकेली उम्मीदवार होने के कारण दीपा खन्ना को मुरादाबाद तथा उसके आसपास के क्लब्स का तो लगभग एकतरफा समर्थन प्राप्त है ही; हरि गुप्ता के समर्थन के चलते खास तौर से मेरठ के और आम तौर से डिस्ट्रिक्ट के अन्य शहरों के क्लब्स का भी समर्थन मिलता दिख रहा है - जिस कारण डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों को दीपा खन्ना की उम्मीदवारी खासी बढ़त बनाए नजर आ रही है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आमतौर पर उस उम्मीदवार का पलड़ा भारी हो ही जाता है, जिसके साथ आने वाले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का समर्थन होता है । हरि गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में तो दीपा खन्ना की उम्मीदवारी को लाभ पहुँचाते हुए दिख ही रहे हैं; मेरठ के होने कारण भी उनके समर्थन को दीपा खन्ना की उम्मीदवारी के लिए महत्त्वपूर्ण माना/समझा जा रहा है । हरि गुप्ता - यानि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट - यदि मेरठ के न होते तो मेरठ के क्लब्स का दीपा खन्ना को वैसा समर्थन न दिलवा पाते जैसा मेरठ के होने के नाते वह अब दिलवा सकते हैं । मनीष शारदा के लिए मुसीबत की बात दरअसल यह हुई कि मेरठ से ही प्रस्तुत शशिकांत गोयल की उम्मीदवारी मेरठ में ही उनके समर्थन आधार को नुकसान पहुँचा रही है । डिस्ट्रिक्ट में हर जगह मनीष शारदा और उनके समर्थकों को सुनने को मिला है कि उनकी उम्मीदवारी को जब मेरठ में ही समर्थन नहीं मिल रहा है, तो दूसरी जगह वह समर्थन की कैसे, क्या और क्यों उम्मीद कर रहे हैं ? मनीष शारदा के लिए फजीहत की बात यह भी बनी हुई है कि मेरठ में चूँकि पहले शशिकांत गोयल की उम्मीदवारी प्रस्तुत हुई थी; इसलिए मेरठ में ही लोगों का कहना/पूछना है कि मेरठ की एकता को तोड़ने का काम मनीष शारदा और उनके क्लब ने ही जब बार बार और जोरशोर से किया है - तब फिर अब वह किस मुँह से मेरठ में अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन की उम्मीद कर रहे हैं ?
उल्लेखनीय है कि हरि गुप्ता के पहले चुनाव में भी मनीष शारदा के क्लब पर हरि गुप्ता की उम्मीदवारी को धोखा देने का आरोप रहा है । पिछले रोटरी वर्ष की ही उस बात को याद करते हुए मेरठ के लोगों का कहना है कि हाल फिलहाल के समय में मनीष शारदा के क्लब ने मेरठ के 'हितों' के खिलाफ ही काम किया है, इसलिए मेरठ के लोगों के बीच उनके प्रति गहरी नाराजगी है और इसी कारण से मेरठ में ही मनीष शारदा की उम्मीदवारी को कोई समर्थन मिलता हुआ नहीं दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि मनीष शारदा के क्लब से विरोध सहने और धोखा खाने के बाद भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट हरि गुप्ता ने क्लब के कई वरिष्ठ सदस्यों को अपनी प्रस्तावित टीम में प्रमुख जगहें दीं - लेकिन क्लब के लोगों को अपना यह सम्मान भी लगता है कि हजम नहीं हुआ, और उन्होंने हरि गुप्ता की तरफ से हुई एक अच्छी पहल को ही नकार दिया है । मनीष शारदा के क्लब के सदस्यों द्वारा हरि गुप्ता की टीम से इस्तीफे देने की घटना को लेकर डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जिस तरह की तीखी प्रतिक्रिया हुई है, और लोग जिस एकजुटता के साथ हरि गुप्ता के साथ खड़े नजर आ रहे हैं - उससे मनीष शारदा की उम्मीदवारी को और झटका लगा है । मनीष शारदा और उनके साथियों की इस हरकत के चलते वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जीएस धामा की भी किरकिरी हो रही है । जीएस धामा क्लब के वरिष्ठ सदस्य हैं, और पूर्व गवर्नर के रूप में उनकी अच्छी पहचान है और इसी पहचान के चलते रोटरी क्लब मेरठ महान को डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच 'उनके क्लब' के रूप में ही जाना/पहचाना जाता है । लोगों को हैरानी है कि जीएस धामा के होते हुए उनके क्लब की तरफ से आखिर ऐसी हरकतें क्यों हो रही हैं, जिससे क्लब की भी बदनामी हो रही है और मनीष शारदा की उम्मीदवारी को भी खासा नुकसान हो रहा है । मनीष शारदा की उम्मीदवारी को होने वाला यह नुकसान दीपा खन्ना की उम्मीदवारी के लिए वरदान बनता दिख रहा है । 

Thursday, December 13, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 और इसके तीन पूर्व गवर्नर्स पर इंटरनेशनल बोर्ड द्वारा लगाए गए 'चुनावी अपराधी' होने के आरोप को रद्द करने/करवाने में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में सुशील गुप्ता सचमुच कोई प्रयास करेंगे क्या ?

नई दिल्ली । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता रोटरी इंटरनेशनल से जुड़े अदालती मामलों को खत्म करवाने के अभियान में तो सफल हो रहे हैं, लेकिन अपने ही डिस्ट्रिक्ट और उसके तीन पूर्व गवर्नर्स को रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड द्वारा 'चुनावी अपराधी' घोषित किए जाने के 'आरोप' से मुक्त करवा पाने का मामला उनके लिए भारी चुनौती बना हुआ है । उल्लेखनीय है कि मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम डिस्ट्रिक्ट 3100 से जुड़े जिन अदालती मामलों को वापस करवाने के लिए जी-जान से लगे रहने के बावजूद कामयाब नहीं हो पा रहे थे, उन्हें सुशील गुप्ता ने तत्काल प्रभाव से वापस करवा दिया है । दरअसल सुशील गुप्ता का प्रयास है कि रोटरी इंटरनेशनल में जिस समय वह सर्वोच्च पद पर हों, उस समय उनके अपने देश में रोटरी इंटरनेशनल के लिए फजीहत खड़ी करने वाला कोई काम न हो । इसी प्रयास के तहत सबसे पहले तो उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल को अदालती मामलों में घसीटे जाने की कार्रवाईयों को थामने पर ध्यान दिया, और इस मामले में डिस्ट्रिक्ट 3100 के झगड़े को निपटाने में बड़ी सफलता प्राप्त की । सुशील गुप्ता के इस प्रयास को और इस प्रयास में मिल रही उनकी कामयाबी को देखते हुए उनके अपने डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट और उसके तीन पूर्व गवर्नर्स पर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड द्वारा लगाए गए 'चुनावी अपराधी' के दाग को धोने के लिए भी सक्रिय होने तथा कुछ करने की माँग उठने लगी है । उल्लेखनीय है कि तीन वर्ष पहले डिस्ट्रिक्ट 3011 में हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में दीपक तलवार, सुशील खुराना व विनोद बंसल की मिलीभगत से हुई बेईमानी का संज्ञान लेते हुए रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने बहुत ही सख्त टिप्पणी की थी, और इन तीनों पूर्व गवर्नर्स को 'दोषी' ठहराते हुए चेतावनी दी थी कि लिखित शिकायत न मिलने के कारण बोर्ड अभी तो कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है, लेकिन भविष्य में यदि ऐसी कोई घटना हुई और शिकायत मिली तो डिस्ट्रिक्ट को तथा घटना में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जायेगा । उक्त चुनाव में बेईमानी करके मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया को चुनाव जितवाया गया था । 
रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड का उक्त फैसला डिस्ट्रिक्ट 3011 पर वास्तव में एक कलंक की तरह है । इंटरनेशनल बोर्ड के उस फैसले को तत्कालीन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की खुराफाती हरकत के रूप में देखा/पहचाना गया था । याद रखने तथा गौर करने वाली बात यह है कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के उक्त फैसले का विरोध करते हुए डिस्ट्रिक्ट 3011 में काउंसिल ऑफ गवर्नर्स ने तुरंत बुलाई अपनी मीटिंग में एक प्रस्ताव पास किया था, जिसे उस समय भेजा इसलिए नहीं गया था क्योंकि केआर रवींद्रन के प्रेसीडेंट रहते काउंसिल ऑफ गवर्नर्स को न्याय मिलने की उम्मीद नहीं थी । उक्त मीटिंग में इस बात को बाकायदा रेखांकित किया गया कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने डिस्ट्रिक्ट 3011 के खिलाफ जो फैसला दिया है, वह चूँकि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की खुराफाती सोच का नतीजा है - इसलिए उनके प्रेसीडेंट रहते विरोध प्रस्ताव भेजने का कोई फायदा नहीं होगा, इसलिए विरोध प्रस्ताव भेजने के लिए केआर रवींद्रन का कार्यकाल पूरा हो जाने तक इंतजार किया जाए । 30 जून को केआर रवींद्रन का प्रेसीडेंट-काल तो पूरा गया, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 तथा इसके 'आरोपी' पूर्व गवर्नर्स के लिए मुसीबत की बात यह रही कि केआर रवींद्रन दक्षिण एशिया में रोटरी के झगड़ों/मामलों को देखने के इंचार्ज बना दिए गए । इस कारण डिस्ट्रिक्ट 3011 तथा उसके आरोपी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के लिए मामला जहाँ का तहाँ ही बना रह गया है, और इसके चलते काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में पास हुए विरोध प्रस्ताव को रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय भेजने की बजाए धूल खाने के लिए छोड़ दिया गया । लेकिन अब जब सुशील गुप्ता इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी हो गए हैं, तब डिस्ट्रिक्ट में लोगों को उम्मीद बँधी है कि अब सुशील गुप्ता ही इंटरनेशनल बोर्ड के उस फैसले को रद्द करवायेंगे तथा डिस्ट्रिक्ट व तीनों पूर्व गवर्नर्स को 'चुनावी अपराधी' के कलंक से मुक्ति दिलवायेंगे । इस मामले में सबसे ज्यादा उत्सुक व सक्रिय विनोद बंसल बताए/सुने जा रहे हैं । 
विनोद बंसल दरअसल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे हैं; जिस कारण उन्हें लगता है कि इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले में दर्ज 'आरोप' कहीं उनके लिए समस्या न खड़ी करे - इसलिए उक्त आरोप से मुक्त हो लेने में ही भलाई है । विनोद बंसल की चूँकि सुशील गुप्ता के साथ अच्छी ट्यूनिंग भी बताई/सुनी जाती है, इसलिए लोगों को लग रहा है कि विनोद बंसल की कोशिश कुछ ज्यादा है कि सुशील गुप्ता उक्त मामले में दिलचस्पी लें - और इंटरनेशनल बोर्ड के उक्त फैसले को रद्द करवाएँ । मजे की बात यह है कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के उक्त फैसले से सबक किसी ने भी नहीं लिया और डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में स्थितियाँ जस की तस जैसी ही बनी रही हैं । हद की बात यह तक रही कि पप्पूजीत सिंह सरना के मामले में इंटरनेशनल बोर्ड के उक्त फैसले का पालन नहीं किया गया । उल्लेखनीय है कि उक्त फैसले में तीन पूर्व गवर्नर्स के अलावा पप्पूजीत सिंह सरना की भूमिका की आलोचना की गई थी, और साफ फैसला सुनाया गया था कि भविष्य में पप्पूजीत सिंह सरना को डिस्ट्रिक्ट में कोई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी न दी जाए । इसके बावजूद, मौजूदा रोटरी वर्ष में पप्पूजीत सिंह सरना को महत्त्वपूर्ण भूमिका मिली । इसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनय भाटिया की अहसान चुकाने वाली भूमिका को यदि अनदेखा भी कर दें, तो डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में विनोद बंसल की भूमिका सवालों के घेरे में है - उन्होंने आखिर किस मजबूरी में पप्पूजीत सिंह सरना के मामले में रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले का उल्लंघन होने दिया ? गौर करने वाला तथ्य यह भी है कि इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में एक प्रेसीडेंट को अपह्यत करके उसका वोट डलवाने का जो किस्सा सामने आया था, उसके 'संयोजक' के रूप में पप्पूजीत सिंह सरना के नाम की ही चर्चा रही है । ऐसे में, यह देखना सचमुच दिलचस्प होगा कि तीन वर्ष पहले के इंटरनेशनल बोर्ड के जिस फैसले से डिस्ट्रिक्ट 3011 में कोई सबक नहीं लिया गया, उस फैसले को रद्द करवा कर डिस्ट्रिक्ट तथा उसके तीन पूर्व गवर्नर्स को 'आरोप'मुक्त करवाने के लिए सुशील गुप्ता क्या करते हैं ?

Wednesday, December 12, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में वर्ष 2020-21 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव की तारीख को लेकर बनी अनिश्चितता के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन फिर से आरोपों में घिरे

मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन ने वर्ष 2020-21 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव की प्रक्रिया पर ब्रेक लगा कर एक बार फिर रोटरी व डिस्ट्रिक्ट की विश्वसनीयता पर संकट खड़ा कर दिया है । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता और रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह के आगाह करने के बावजूद दीपक जैन ने जिस तरह से उक्त चुनाव की प्रक्रिया को मजाक बनाया हुआ है, उसके कारण रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 को नॉन डिस्ट्रिक्ट स्टेटस से बाहर लाकर इंटरनेशनल प्रशासन ने जैसे बड़ी गलती कर दी है । उल्लेखनीय है कि प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट में वर्ष 2020-21 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पिछले रोटरी वर्ष में ही तय हो चुके थे । नॉन डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में होने के कारण डिस्ट्रिक्ट 3100 में यह नहीं हो पाया था; लेकिन मौजूदा रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट 3100 को डिस्ट्रिक्ट का स्टेटस मिला तो उम्मीद की गई थी कि सितंबर/अक्टूबर तक डिस्ट्रिक्ट 3100 को भी वर्ष 2020-21 का गवर्नर मिल जायेगा । दीपक जैन यदि सचमुच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में व्यवहार करते तो यह हो भी जाता, लेकिन दीपक जैन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की बजाये कुछेक लोगों की 'कठपुतली' बन गए - इसलिए उक्त मामला लटक गया । इस मामले को लेकर होने वाली चौतरफा फजीहत को देख कर दीपक जैन ने अक्टूबर के तीसरे सप्ताह में नामांकन की प्रक्रिया शुरू की, तो लगा कि उन्होंने कठपुतली का चोगा उतार कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में व्यवहार करना शुरू किया है - लेकिन यह भ्रम साबित हुआ । 
दीपक जैन नामांकन करवा कर फिर 'सो' गए । रोटरी में आम रिवाज है कि नामांकन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद निरंतरता में ही चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाती है । हाल ही के दिनों में डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 में इसी रिवाज का पालन करते हुए चुनाव या तो हो चुके हैं और या हो रहे हैं - लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3100 में नामांकन हो जाने के बाद किसी को भी पता नहीं है कि चुनाव आखिर कब होंगे ? मजे की बात यह है कि दीपक जैन ने यह कहते हुए ठीकरा रोटरी इंटरनेशनल के सिर फोड़ा हुआ है कि वह जब लिंक भेज देगा, तब चुनाव शुरू हो जायेंगे; व्यवस्था जबकि यह होती है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को चुनाव की तारीख सुनिश्चित करना होती है - रोटरी इंटरनेशनल उसी तारीख के हिसाब से लिंक भेजता है । चुनाव की तारीख का डिस्ट्रिक्ट में किसी को पता नहीं है । डिस्ट्रिक्ट के कुछेक प्रमुख लोगों के अनुसार यह मामला दीपक जैन की काबिलियत की कमी से जुड़ा है । उनका कहना है कि दीपक जैन तीन-तिकड़म और वोटों की खरीद-फरोख्त से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तो बन गए, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी का निर्वाह कर पाने की काबिलियत उनमें नहीं है और इसीलिए जो चुनाव सितंबर/अक्टूबर तक हो जाना चाहिए था - उसका अभी दिसंबर में भी कोई अता-पता नहीं है । यह मामला इसलिए भी गंभीर है कि वर्ष 2021-22 के गवर्नर पद के लिए भी इसी वर्ष चुनाव होने हैं । लोगों का कहना/पूछना है कि दीपक जैन जब अभी पहला चुनाव ही नहीं करवा पा रहे हैं, तो दूसरा चुनाव कब और कैसे करवा सकेंगे ? इसी सवाल के जबाव में उनके 'कठपुतली' होने के आरोप को बल मिलता है । लोगों का कहना है कि एक कठपुतली की यही तो खूबी होती है - उसकी डोर खींची रखी जाये तो वह कुछ नहीं करती है और ढीली छोड़ दी जाये, तो वह आनन-फानन में जल्दी से काम निबटा देगी । वर्ष 2020-21 के गवर्नर पद के चुनाव में दीपक जैन भले ही छह महीने से ज्यादा का समय ले रहे हों; लेकिन आप देखियेगा - वर्ष 2021-22 के गवर्नर पद के चुनाव वह आनन-फानन में संपन्न कर/करवा देंगे ।  
दीपक जैन दो वर्षों के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के चुनावों को लेकर अपने साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट व रोटरी की जो फजीहत कर/करवा रहे हैं; उसमें डिस्ट्रिक्ट के कुछेक लोगों को कमाई करने का ऐंगल भी लग रहा है । लोगों का सीधा/साफ आरोप है कि दीपक जैन ने वर्ष 2020-21 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव की प्रक्रिया को जिस तरह से बीच अधर में लटका दिया है, उससे लगता है कि वह उम्मीदवारों से पैसे ऐंठने के जुगाड़ में हैं और इसीलिए चुनावी प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक जैन का रवैया प्रायः संदेहास्पद तथा आरोपों से परिपूर्ण रहा है, इसलिए उम्मीदवारों से पैसे ऐंठने के आरोप को लोगों के बीच स्वीकार्यता मिलती दिख रही है । डिस्ट्रिक्ट से लेकर रोटरी की बड़ी दुनिया तक में वर्ष 2020-21 के गवर्नर पद के चुनाव को न करवाने को लेकर दीपक जैन की भारी फजीहत हो रही है, लेकिन वह इसकी कोई परवाह करते हुए नहीं दिख रहे हैं - इससे भी लोगों को आभास हो रहा है कि उक्त चुनाव को लेकर दीपक जैन किसी बड़ी सौदेबाजी के चक्कर में हैं, और उसके चक्कर में किसी भी तरह की बदनामी उठा लेने के लिए तैयार हैं । दीपक जैन के रवैये से स्पष्ट है कि उन्होंने सुनील गुप्ता के हुए हश्र से कोई सबक नहीं सीखा है, और डिस्ट्रिक्ट 3100 को दो वर्षों तक नॉन डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में डालने का कोई फायदा नहीं मिला है ।

Tuesday, December 11, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन की प्रबंधकीय कुशलता और अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी को मिलते दिख रहे जोरदार समर्थन ने चुनावी राजनीति के भरोसे ही रोटरी में 'गुजर बसर' करने वाले नेताओं को ठंडा किया और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव बिना हुड़दंग के संपन्न होता नजर आ रहा है

गाजियाबाद । इस तथ्य को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन की रणनीतिक कुशलता और प्रशासनिक क्षमता के उदाहरण व सुबूत के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए तीन तीन उम्मीदवार चुनावी दौड़ में हैं,  और उनके अपने अपने समर्थक नेता हैं - उसके बावजूद चुनावी माहौल 'ठंडा' पड़ा हुआ है और चुनावी प्रक्रिया विवादहीन व शांत रूप में पूरी होने की दिशा में बढ़ती नजर आ रही है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन ने ऐसी 'व्यवस्था' बना दी हुई है कि रोटरी में चुनावी राजनीति के भरोसे ही 'गुजर बसर' करने वाले नेता लोग तक ढीले पड़े हुए हैं, और सभी को हैरान करते हुए भले लोगों जैसी बातें कर रहे हैं । राजनीति से दूर रहने और किसी का भी पक्ष न लेने जैसी बातें खुर्राट नेताओं के मुँह से निकलती देख लोगों को सहसा विश्वास तो नहीं हो रहा है, लेकिन सच्चाई यही देखने में आ रही है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति में बढ़चढ़ कर भूमिका निभाते रहे नेता लोग इस वर्ष के चुनाव में 'बेचारे' बने बैठे हैं, और चुपचाप बैठ कर नजारा देखने के लिए मजबूर हुए हैं । प्रत्येक वर्ष चुनावी राजनीति के जोड़तोड़ भरे तमाशे को देखते रहे लोग इस स्थिति का श्रेय डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन को दे रहे हैं । उनका कहना है कि सुभाष जैन ने साबित कर दिया है कि कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर यदि चाहे और प्रयास करे तो चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष तरीके से और बिना हुड़दंगबाजी के संपन्न करा सकता है ।
खास बात यह है कि चुनावी राजनीति में भूमिका निभाने को ही रोटरी 'समझने' वाले कुछेक नेताओं ने समय समय पर इस या उस उम्मीदवार का झंडा उठा कर अपनी सक्रियता बनाने/दिखाने का प्रयास हालाँकि किया था, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन ने जो जाल फैलाया हुआ था, उसमें फँस कर कोई भी नेता ज्यादा दूर तक चल नहीं पाया और फिर हर कोई सीधी/सच्ची बात करने के लिए मजबूर हो उठा । मजे की बात यह भी रही कि किन्हीं किन्हीं नेताओं ने चुनावी राजनीति के चक्कर में सुभाष जैन को ही फँसाने का प्रयास किया, लेकिन सुभाष जैन ने रणनीतिक कुशलता के साथ न सिर्फ अपने आपको बचा लिया, बल्कि षड्यंत्रकारियों को यह संदेश भी दे दिया कि उनके षड्यंत्र उलटे उन्हें ही मुश्किल में फँसा देंगे । यही कारण रहा कि चुनावी राजनीति के बदनाम खिलाड़ियों ने हालात को प्रतिकूल पा कर अपने कदम जल्दी ही पीछे खींच लिए - और डिस्ट्रिक्ट में बड़े ही सद्भाव व शांति के साथ चुनाव होने का माहौल बना । लोगों के बीच हालाँकि चर्चा तो हो जाती है कि फलाँ नेता फलाँ उम्मीदवार के समर्थन में है, लेकिन नेता बेचारा कुछ करता/कहता हुआ नहीं दिख रहा है । बदनाम नेता तक सज्जनता की ऐसी मूर्ति बने दिख रहे हैं, कि बेचारी सज्जनता भी लजा रही है । नौ सौ चूहे खा चुकी बिल्ली के हज पर जाने वाले मुहावरे को यदि कोई व्यावहारिक रूप में चरितार्थ होते देखना चाहता है, तो उसे डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं को देखना चाहिए ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी माहौल के ठंडा रहने का एक कारण हालाँकि अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी में भी देखा/पहचाना जा रहा है । दरअसल अशोक अग्रवाल की रोटरी में तमाम वर्षों की जो सक्रियता है, और प्रायः हर गवर्नर के साथ उनका सहयोग व समर्थन का जो संबंध रहा है. उसके कारण प्रत्येक पूर्व या भावी गवर्नर उनके खिलाफ सक्रिय होने और 'दिखने' से बचा है । राजनीतिक खेमेबाजी व राजनीतिक उठापटक की 'जरूरतों' के चलते जो पूर्व व भावी गवर्नर्स अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के खिलाफ होना भी चाहते थे, वह एक उम्मीदवार के रूप में अशोक अग्रवाल की लोकप्रियता व स्वीकार्यता को देख/पहचान कर पीछे हट गए । वास्तव में दूसरे उम्मीदवार कभी भी यह समझ ही नहीं सके कि अशोक अग्रवाल से वह कैसे 'लड़ें' - अशोक अग्रवाल से मुकाबला करने के लिए उनके पास चूँकि कोई रणनीति ही नहीं थी, इसलिए वह डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं को अपने साथ जोड़ ही नहीं सके । चुनावबाज नेताओं की तरफ से समय समय पर यह शिकायत भी सुनने को मिली कि अशोक अग्रवाल का मुकाबला करने की इच्छा रखने वाले उम्मीदवारों को उनकी मदद तो चाहिए थी, लेकिन वह उन पर भरोसा नहीं कर रहे थे - जिस कारण उम्मीदवारों और उनके संभावित समर्थक नेताओं के बीच विश्वास का संबंध नहीं बन सका । इसमें डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं की बदनामी ने भी निर्णायक भूमिका निभाई । डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं की बदनामी को देखते/समझते हुए उनके समर्थन की इच्छा रखने वाले उम्मीदवारों ने उनके साथ दूरी बनाए रखते हुए ही उनके समर्थन की उम्मीद की, जिससे बात लेकिन बनी नहीं । डिस्ट्रिक्ट के नेताओं ने कहना भी शुरू कर दिया है कि चुनाव में उन्हें जब अशोक अग्रवाल की स्पष्ट जीत 'दिखाई' दे रही है, तो वह 'इस' या 'उस' उम्मीदवार के समर्थन में जा कर अपनी राजनीतिक फजीहत क्यों करवाएँ ?

Wednesday, December 5, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता ने चुनाव से ऐन पहले विजय गुप्ता के समर्थकों के बीच पहुँच कर चुनावी परिदृश्य को रोमांचपूर्ण बनाया, जिसमें विजय गुप्ता के साथ अतुल गुप्ता, संजय वासुदेवा व हंसराज चुग को अगली सेंट्रल काउंसिल के सदस्य के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता ने इंस्टीट्यूट की काउंसिल के लिए हो रहे चुनाव के अंतिम चरण में एक नाटकीय कदम उठाया, जिसने नॉर्दर्न रीजन के चुनावी परिदृश्य में एक नया रोमांच भर दिया है । दिल्ली में जनपथ पर स्थित मॅसोनिक क्लब में आयोजित हो रही 'सीए मीट ऑन इन्सॉल्वेंसी' - जिसमें सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार विजय गुप्ता के समर्थकों का जमावड़ा था, और जिन्होंने विजय गुप्ता को भी मीटिंग में बुला लिया था - में अचानक से पहुँच कर एनडी गुप्ता ने सभी को हतप्रभ कर दिया । एनडी गुप्ता चूँकि सेंट्रल काउंसिल के एक अन्य उम्मीदवार सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थन में होने वाली मीटिंग्स में शामिल होते रहे हैं; इस कारण से विजय गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों की मीटिंग में उपस्थित होकर उन्होंने हर किसी को चौंकाया - फलस्वरूप विजय गुप्ता के समर्थकों की मीटिंग में एनडी गुप्ता के उपस्थित होने की खबर जंगल में आग की तरह नॉर्दर्न रीजन में फैल गई । दरअसल उक्त मीटिंग में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पाँच/छह पूर्व चेयरमैन मौजूद थे, और रीजनल काउंसिल के बारह/पंद्रह उम्मीदवार अपनी अपनी उम्मीदवारी का प्रचार करने में लगे थे - जिन्हें एनडी गुप्ता को वहाँ पहुँचा देख कर घोर आश्चर्य हुआ और उनके द्वारा ही फिर यह आश्चर्य पूरे रीजन के लोगों के बीच पहुँचा । एनडी गुप्ता ने मीटिंग में हालाँकि कहा कुछ नहीं; सुधीर अग्रवाल की मीटिंग्स में भी वह कभी कुछ कहते हुए नहीं सुने गए हैं - और उनकी उपस्थिति से ही लोग 'मतलब' निकालते/लगाते रहे हैं । 'मतलब' निकालने/लगाने की प्रक्रिया में ही लोगों के बीच सवाल के रूप में चर्चा रही कि एनडी गुप्ता जब सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करने का संकेत दे रहे थे, तो उन्हें चुनाव से ठीक पहले विजय गुप्ता की उम्मीदवारी का भी समर्थन देने का संकेत देने की जरूरत आखिर क्यों पड़ी ?
इस चर्चा में एक मजेदार बात यह सुनने को मिली कि हो सकता है कि दो उम्मीदवारों का एक साथ समर्थन करके एनडी गुप्ता ने एक दूसरे पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा की बराबरी करने की कोशिश की हो । उल्लेखनीय है कि इस बार के चुनाव में अमरजीत चोपड़ा भी दो उम्मीदवारों के समर्थन में दिख रहे हैं - एक संजीव सिंघल के और दूसरे हंसराज चुग के । अमरजीत चोपड़ा के कई एक नजदीकी और समर्थक हंसराज चुग की उम्मीदवारी के समर्थन में जिस तरह से सक्रिय हैं, उसे देख/जान कर लोगों को लग रहा है कि इसके लिए निश्चित ही उन्हें अमरजीत चोपड़ा की तरफ से निर्देश दिए गए होंगे । लोगों को लगता है कि अमरजीत चोपड़ा को दो दो उम्मीदवारों के समर्थन में देख एनडी गुप्ता को भी प्रेरणा मिली होगी, और फिर उन्होंने भी सुधीर अग्रवाल के साथ-साथ विजय गुप्ता की भी उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया । उल्लेखनीय है कि सुधीर अग्रवाल के साथ-साथ विजय गुप्ता भी एनडी गुप्ता के 'राजनीतिक शिष्यों' में रहे हैं, और एनडी गुप्ता की छत्रछाया में दोनों ने ही अपनी अपनी राजनीतिक यात्राओं को आगे बढ़ाया है । राजनीतिक संदर्भ में विजय गुप्ता चूँकि सुधीर अग्रवाल के मुकाबले ज्यादा 'कामयाब' हुए हैं, इसलिए हो सकता है कि विजय गुप्ता के प्रति एनडी गुप्ता का पुराना स्नेह पुनः जागा हो और उन्हें लगा हो कि चुनावी दौर में उन्हें विजय गुप्ता के साथ भी खड़ा होना चाहिए और 'दिखना' भी चाहिए । दिलचस्प संयोग है कि अभी कुछ ही दिन पहले नफरा (एनएफआरए - नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी) मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में दर्ज अपील की सुनवाई में पार्टी बनाए गए इंस्टीट्यूट का प्रतिनिधित्व करने का सवाल आया तो एनडी गुप्ता के बेटे और इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता ने विजय गुप्ता की काबिलियत और क्षमताओं पर भरोसा किया और उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट में मामले को देखने और फैसला लेने की पूरी स्वतंत्रता दी । समझा जाता है कि नवीन गुप्ता ने विजय गुप्ता पर यह भरोसा अपने पिता एनडी गुप्ता के साथ बने विजय गुप्ता के काबिलियत व जिम्मेदारी के संबंधों को देखते/समझते हुए  ही लिया होगा । विजय गुप्ता के समर्थकों की मीटिंग में उपस्थित होकर एनडी गुप्ता ने विजय गुप्ता की काबिलियत तथा जिम्मेदारीभरी क्षमताओं से जुड़ी बातों को जिस तरह से चुनाव से ऐन पहले चर्चा के केंद्र में ला दिया है, उससे विजय गुप्ता की उम्मीदवारी को और ताकत मिली दिख रही है ।          
यूँ भी संजय वासुदेवा के साथ-साथ विजय गुप्ता ही अकेले ऐसे सेंट्रल काउंसिल सदस्य हैं, जिन्हें लेकर कोई नकारात्मक बात चर्चा में नहीं है । इन्हें नापसंद करने वाले लोग तो हैं, लेकिन इनकी राजनीतिक केमिस्ट्री को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाली स्थितियाँ नहीं हैं; और इसीलिए सेंट्रल काउंसिल में इनकी पुनर्वापसी करने को लेकर किसी को संदेह नहीं है । अतुल गुप्ता की जान को हालाँकि बहुत सी मुसीबतें हैं, लेकिन किसी को भी उनकी पुनर्वापसी को लेकर संदेह नहीं है, और हर किसी का मानना/कहना है कि तमाम मुसीबतों के बीच भी अतुल गुप्ता अपनी सीट आसानी से बचा लेंगे । सेंट्रल काउंसिल के मौजूदा सदस्यों में राजेश शर्मा ही ऐसे हैं, जिन्हें काउंसिल में हुए तो सिर्फ तीन वर्ष ही हैं, लेकिन जिन्होंने इन तीन वर्षों में ही इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन को तरह तरह से न सिर्फ बदनामी ही दिलवाई है, बल्कि खुद के लिए भी बदनामी ही कमाई है । इसलिए उनकी पुनर्वापसी को लेकर न सिर्फ संदेह है, बल्कि कई लोगों का तो मानना/कहना है कि राजेश शर्मा यदि जीते तो यह इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा । नए उम्मीदवारों में हंसराज चुग अकेले ऐसे हैं, जिनके समर्थन-आधार को कहीं किसी की चुनौती नहीं है और जिन्होंने वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ-साथ युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच भी अपनी पहचान बनाई है और अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन की अपील पैदा की है । सक्रियता के लिहाज से संजीव सिंघल, प्रमोद जैन और सुधीर अग्रवाल ने भी अपने आपको लोगों  के बीच संभावित विजेताओं के रूप में स्थापित किया है - लेकिन इनके मामलों में सकारात्मक पक्षों के साथ-साथ नकारात्मक पक्षों का भी जोर रहा है, जिस कारण इनके सामने गंभीर चुनौतियाँ हैं । हंसराज चुग इस मामले में भाग्यशाली रहे हैं कि उन्हें नकारात्मक पक्षों से मुठभेड़ नहीं करना पड़ी, और इस तथ्य को लोगों के बीच उनकी नेतृत्व-कुशलता के रूप में देखा/पहचाना गया है । संभावित मुश्किलों को हंसराज चुग तथा उनके समर्थकों ने जिस कुशलता के साथ संभाला और उन्हें बढ़ने से रोका - तथा जिसके चलते उन्हें अपनी सकारात्मक पहचान बनाने व उसे स्थापित करने का प्रभावी मौका मिला, उससे उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में लोगों के बीच अच्छी हवा बनी है । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक अच्छे लीडर से उम्मीद करते हैं कि उसे प्रोफेशन से जुड़े विषयों की भी उपयोगी जानकारी हो तथा उस जानकारी को बढ़ाने के प्रति उसमें दिलचस्पी भी हो, और साथ-साथ ही उसमें संगठनात्मक स्थितियों को मैनेज करने की काबिलियत भी हो - लोगों ने हंसराज चुग में इन दोनों ही खूबियों को देखा/पाया है; और यह भी देखा/पाया है कि हंसराज चुग को इन दोनों खूबियों के बीच तालमेल बैठाना भी आता है । अधिकतर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का मानना/कहना है कि हंसराज चुग जैसे व्यक्ति को तो सेंट्रल काउंसिल में होना ही चाहिए । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के इस मूड को भाँपते/देखते हुए इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को हंसराज चुग सेंट्रल काउंसिल के चौथे सदस्य के रूप में नजर आ रहे हैं । बाकी दो सीटों के लिए संजीव सिंघल, सुधीर अग्रवाल, प्रमोद जैन और राजेश शर्मा के बीच काँटे का मुकाबला होता हुआ माना/पहचाना जा रहा है । 

Tuesday, December 4, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में अनूप मित्तल के स्वागत समारोह के बहाने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति जो नई करवट लेती हुई दिखी है, उसमें अशोक कंतूर तथा अजीत जालान की उम्मीदवारी की तैयारी मुश्किलों में घिरती नजर आ रही है

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी द्वारा आयोजित अनूप मित्तल के सम्मान-समारोह में अशोक कंतूर तथा अजीत जालान की अनुपस्थिति को उन दोनों के लिए बड़े राजनीतिक झटके के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । अशोक कंतूर इस वर्ष अनूप मित्तल से चुनाव हारने के बाद अगले रोटरी वर्ष में फिर से अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की घोषणा कर चुके हैं, तो अजीत जालान बहुत पहले से ही अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार होने/बनने का ऐलान करते आ रहे हैं । ऐसे में उन्हें डिस्ट्रिक्ट में होने वाले हर छोटे/बड़े आयोजन में 'दिखना' चाहिए - रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के एक बड़े आयोजन में लेकिन दोनों ही नहीं दिखे - खुद उनकी तरफ से बताया गया है कि उन्हें 'उचित' तरीके से समारोह में निमंत्रित ही नहीं किया गया ।सामान्य स्थिति होती, तो उनकी अनुपस्थिति और या उचित तरीके से उन्हें निमंत्रित न किए जाने की बात का कोई विशेष मतलब नहीं होता; डिस्ट्रिक्ट लेकिन चूँकि इस समय राजनीतिक रूप से एक असामान्य स्थिति में है - इसलिए यह बात अशोक कंतूर और अजीत जालान के लिए खासी अहम् है और मुसीबत का संकेत है । उक्त समारोह हालाँकि था तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने के उपलक्ष्य में अनूप मित्तल के स्वागत-सम्मान में; लेकिन एक तरह से इसे अनूप मित्तल की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले खेमे के शक्ति-प्रदर्शन के रूप में देखा/पहचाना गया; उपस्थितों/अनुपस्थितों की पहचान करते हुए साफ पहचाना जा सकता है कि उक्त आयोजन को खास उद्देश्य के साथ डिजाईन किया गया था और यह विजेता उम्मीदवार द्वारा दी गई पार्टी ही नहीं थी - कई लोगों को लगता है कि उक्त आयोजन वास्तव में डिस्ट्रिक्ट की भविष्य की चुनावी राजनीति का संकेत देता है, और संकेत देने का काम जैसे जानबूझ कर किया गया है । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए संभावित उम्मीदवारों के रूप में देखे/पहचाने जा रहे महेश त्रिखा तथा रवि गुगनानी की उपस्थिति ने मामले को और स्पष्ट कर दिया है ।
अनूप मित्तल के स्वागत-सम्मान समारोह में कुछेक विरोधियों को जिस तरह से दूर रखा गया तथा कुछेक को शामिल होने का मौका मिला, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति एक नई करवट लेती हुई दिख रही है । इस नई करवट में ही अशोक कंतूर तथा अजीत जालान के लिए मुश्किलों के संकेत नजर आ रहे हैं । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में चुनावी राजनीति का जो सीन बनता हुआ दिख रहा है, उसमें यह बात साफ जाहिर होती हुई नजर आ रही है कि अशोक कंतूर को अगली बार उन लोगों का समर्थन मिलना ही मुश्किल क्या, असंभव ही होगा जिन्होंने इस बार उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया था और जिनके समर्थन के बावजूद वह जीत नहीं पाए थे । उल्लेखनीय है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में हर कहीं प्रायः देखा जाता है कि चुनाव हारने वाले के साथ उसके विरोधी रहे लोगों के बीच भी हमदर्दी पैदा हो जाती है, जिसका फायदा उसे अगली बार मिल जाता है; लेकिन अशोक कंतूर के मामले में ऐसा होता हुआ नजर नहीं आ रहा है । ऐसा दरअसल निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी के कारण हो रहा है । रवि चौधरी ने अपनी हरकतों और कारस्तानियों से तमाम लोगों को अपना विरोधी बनाया हुआ है; उधर अशोक कंतूर पर रवि चौधरी की ऐसी गहरी छाप लगी हुई है कि जिन लोगों को अशोक कंतूर से हमदर्दी है भी, वह भी रवि चौधरी की छाप देख कर उनसे दूर हट जाते हैं । अशोक कंतूर के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि इस बार के चुनाव में कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ देने वाले अजीत जालान अगले वर्ष उम्मीदवार बनने की तैयारी करने लगे हैं । अजीत जालान हालाँकि पहले से ही अगले वर्ष उम्मीदवार होने की बात कर रहे थे, लेकिन यह तब की बात है जब वह और उनके गॉडफादर्स अशोक कंतूर की जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे । अशोक कंतूर का कहना है कि इस बार चूँकि उन्हें कामयाबी नहीं मिली है, इसलिए उनके समर्थक रहे लोगों को उन्हें और मौका देना चाहिए; अजीत जालान और उनके समर्थक नेता फिलहाल लेकिन अशोक कंतूर को एक और मौका देने के लिए राजी नहीं दिख रहे हैं ।
अशोक कंतूर और अजीत जालान के लिए मुसीबत की बात लेकिन यह भी है कि इनमें से जो भी पीछे हटा, उसके लिए आगे भी रास्ते बंद ही हो जायेंगे और फिर इन्हें गवर्नर बनने की अपनी इच्छा को दफ्न ही करना होगा । इन दोनों के साथ समस्या वास्तव में यह देखी/पहचानी जा रही है कि इनका अपना कोई 'जज़्बा' नहीं है; लोगों को लगता है कि अशोक कंतूर ने रवि चौधरी की ऊँगली पकड़ी हुई है, जिसका हश्र उन्होंने इस बार देख लिया है, जबकि अजीत जालान को विनोद बंसल से उम्मीद है - लेकिन लगता नहीं है कि विनोद बंसल अपने कंधे पर अजीत जालान को बैठा कर चुनावी वैतरणी पार करवाने में ज्यादा दिलचस्पी लेंगे । ऐसे में, इनमें से जो भी अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटेगा, वह लोगों के बीच चर्चित बात को ही सही साबित करेगा और फिर कभी दूसरी पहचान नहीं बना सकेगा । यानि इनके लिए आगे खाई है तो पीछे कुआँ । गौर करने की बात यह है कि संभावित उम्मीदवारों के रूप में जिन महेश त्रिखा व रवि गुगनानी के नाम अभी चर्चा में हैं, उनकी डिस्ट्रिक्ट में अभी कोई खास पहचान या सक्रियता नहीं है और इस नाते यह दोनों ही अशोक कंतूर और/या अजीत जालान के लिए कोई खास चुनौती नहीं हैं - लेकिन अशोक कंतूर और अजीत जालान जब पहले से ही हार माने बैठे हों, तो फिर दूसरा कोई क्या कर सकता है ? अशोक कंतूर और अजीत जालान डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जिस 'परसेप्शन' में फँसे हैं, उससे निकलने/उबरने का भी वह चूँकि कोई प्रयास करते हुए नहीं नजर आ रहे हैं इसलिए वह अपनी स्थिति को और कमजोर बना रहे हैं । इसी पृष्ठभूमि में, रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के आयोजन में जिस तरह से उन्हें उपेक्षित किया गया और डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग करने का प्रयास किया गया - उसके कारण अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए की जा रही उनकी तैयारी मुसीबतों में घिर गई है ।

Monday, December 3, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के चुनाव में अपने झूठे और बढ़े-चढ़े दावों के चलते आरोपों के घेरे में घिरे राजेश शर्मा द्वारा कन्वोकेशन समारोह में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स लड़कियों के साथ की गई हरकत के मामले के फिर से सिर उठाने से राजेश शर्मा के लिए मुश्किलें और बढ़ीं

नई दिल्ली । नए बने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को इंस्टीट्यूट की सदस्यता का सर्टीफिकेट देने के लिए यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में पिछले दिनों आयोजित हुए कन्वोकेशन समारोह में की गई अपनी हरकतों और कारस्तानियों पर पर्दा डालने की राजेश शर्मा की कोशिशें लगता है कि चुनाव से ठीक पहले फेल हो रही हैं, और राजेश शर्मा के लिए उन्हें और ज्यादा समय तक छिपाये/दबाये रखना मुश्किल हो रहा है । उल्लेखनीय है कि नए बने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए हुए कन्वोकेशन समारोह में मौजूद कुछेक अभिभावकों ने आरोप लगाया था कि सर्टीफिकेट लेने मंच पर पहुँचने वाली लड़कियों को मंच पर व्यवस्था बनाये रखने के नाम पर राजेश शर्मा गलत तरीके से और गलत जगहों पर छू रहे हैं । उससे पहले नए बने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, उनके अभिभावकों और मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित भारतीय सेना के पूर्व चीफ जनरल वीके मलिक के सामने अन्य सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के साथ भाषण देते हुए राजेश शर्मा भाषण के नाम पर फूहड़ व सस्ते किस्म के शेर कहते हुए अपने लोगों से तालियाँ व सीटियाँ बजवा कर अपना 'चरित्र' दिखा चुके थे । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता तथा कुछेक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने इशारों इशारों में कई बार प्रयास भी किया कि कार्यक्रम में कम से कम सीटियाँ तो न बजाई जाएँ, लेकिन राजेश शर्मा के लोगों को इस तरह से सिखा/पढ़ा कर लाया गया था कि उन्होंने किसी की नहीं सुनी और जब तक राजेश शर्मा का भाषण व शेर-ओ-शायरी चलती रही - वह अपनी हरकतों को दोहराते हुए इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की पहचान और साख के साथ खिलवाड़ करते रहे । लोगों ने कई कई तरीकों से इस बात को कहा/दोहराया कि राजेश शर्मा की हरकतों पर यदि लगाम नहीं लगा सकते हैं, तो इंस्टीट्यूट के कार्यक्रमों में बाहर के प्रतिष्ठित लोगों को आमंत्रित नहीं करना चाहिए, ताकि कम से कम बाहर के लोगों को तो न पता चले कि एक गंभीर और प्रतिष्ठित समझे जाने वाले विषय के प्रमुख इंस्टीट्यूट के बड़े आयोजनों तक में खुद आयोजक-सदस्यों की तरफ से ही किस तरफ की टुच्ची और लफंगईभरी हरकतें होती हैं ।
दरअसल राजेश शर्मा के इस 'रूप' के उद्घाटित होने के कारण मंच पर सर्टीफिकेट लेने/देने के दौरान लड़कियों को गलत तरीके से और गलत जगहों पर छूने/पकड़ने की राजेश शर्मा की हरकत ने गंभीर रूप ले लिया, और अभिभावकों ने राजेश शर्मा की हरकत पर शोर-शराबा किया - जिसे इंस्टीट्यूट के स्टॉफ ने बड़ी मुश्किल से जैसे-तैसे करके शांत करवाया । इंस्टीट्यूट के स्टाफ के लोगों ने अनुभव किया कि राजेश शर्मा के भाषण के दौरान जिस तरह का बेहूदा व फूहड़ सीन बना, उसे तथा मंच पर राजेश शर्मा की बेमतलब में की जा रही उछल-कूद को देख कर अभिभावकों के बीच राजेश शर्मा को लेकर समझ बनी कि वह कोई सड़कछाप व्यक्ति हैं; और इस समझ के चलते ही बहानेबाजी से लड़कियों को छूने की राजेश शर्मा की हरकत उन्हें नागवार लगी । इस सारे नजारे को देख कर नए बने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, उनके अभिभावक और मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित पूर्व सेना चीफ जनरल वीके मलिक यह नजारा देख कर हैरान थे; उनके लिए यह समझना मुश्किल हुआ कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स जैसे प्रोफेशन में ऐसे 'सड़कछाप' लोग हैं कैसे ? राजेश शर्मा के व्यवहार से नाराज अभिभावकों को उस समय तो इंस्टीट्यूट के स्टॉफ ने किसी तरह शांत किया और मामले को संभाला, लेकिन अभिभावकों ने लिखित में शिकायत दर्ज करके और कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग के असंपादित - रॉ फुटेज माँग कर इंस्टीट्यूट प्रशासन के सामने मुसीबत खड़ी कर दी । हालाँकि शिकायतों को जाँच के नाम पर कैसे लटकाये रखा जाता है, और कैसे उन्हें 'अपनी मौत मरने' के लिए छोड़ दिया जाता है - मामले में इंस्टीट्यूट प्रशासन को अच्छा अनुभव है; और उनके इसी अनुभव ने राजेश शर्मा को बचा लिया । राजेश शर्मा ने भी अपने खिलाफ हुई शिकायत को 'खुद मरने के लिए' छोड़ देने का दबाव बनाया ही होगा । लेकिन राजेश शर्मा के खिलाफ कोई कार्रवाई होती न देख चार्टर्ड एकाउंटेंट्स बनी लड़कियों के साथ की गई राजेश शर्मा की हरकत पर आवाज उठाने वाले अभिभावकों ने जिस तरह से इंस्टीट्यूट का दरवाजा फिर से खटखटाया है, उससे राजेश शर्मा की मुश्किलें बढ़ी हुई नजर आ रही हैं । वास्तव में उक्त शिकायत के फिर से उठने/उभरने की टाइमिंग ने राजेश शर्मा के लिए फजीहत की स्थिति बना दी है । उन्हें और उनके समर्थकों को डर हुआ है कि इंस्टीट्यूट की विभिन्न काउंसिल्स के लिए हो रहे चुनाव से ठीक पहले कन्वोकेशन समारोह में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स लड़कियों के साथ की गई उनकी हरकत की बात यदि उछली और उसने जोर पकड़ा, तो उससे उनका चुनावी गणित गड़बड़ा सकता है ।
राजेश शर्मा इस समय अपने झूठे और बढ़े-चढ़े दावों के चलते यूँ भी आरोपों के घेरे में हैं । सॉफ्टवेयर द्वारा बैंक ऑडिट अलॉट होने तथा नॉन-प्रैक्टिसिंग अलाउंस के फैसले को लेकर किए जा रहे उनके दावों को लेकर लोगों के बीच चर्चा है कि राजेश शर्मा चुनाव जीतने के लिए झूठ बोल कर लोगों को धोखा देने तक से बाज नहीं आ रहे हैं । उल्लेखनीय है कि बैंक ऑडिट अलॉट करने वाले सॉफ्टवेयर को तैयार करने का काम 32 सदस्यों वाली प्रोफेशनल डेवलपमेंट कमेटी ने किया है, जिसके चेयरमैन रंजीत अग्रवाल हैं और जिसमेँ नॉर्दर्न रीजन से राजेश शर्मा के अलावा संजय वासुदेवा तथा विजय गुप्ता भी सदस्य हैं । कमेटी द्वारा किए गए काम का राजेश शर्मा ने जिस तरह से अकेले ही श्रेय लेने का प्रयास किया है, उससे जाहिर है कि अपनी चुनावी जीत को लेकर वह भारी आशंका में हैं और किसी भी तरह झूठ बोल कर लोगों को बरगला कर वह वोट पा लेना चाहते हैं । नॉन-प्रैक्टिसिंग चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को अलाउंस के मामले में तो राजेश शर्मा ने झूठ बोलने की हद ही कर दी है । उल्लेखनीय है कि कंपनियों में काम करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अक्सर ही डॉक्टर्स की तरह नॉन-प्रैक्टिसिंग अलाउंस की माँग करते सुने गए हैं; उनकी भावनाओं का इस्तेमाल करते हुए राजेश शर्मा ने कई जगह कंपनियों में काम करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को बताया है कि उनकी पहल पर सेंट्रल काउंसिल ने नॉन-प्रैक्टिसिंग अलाउंस के प्रस्ताव को पास कर दिया है, और पास प्रस्ताव को क्रियान्वन के लिए मंत्रालय में भेज दिया गया है । इस मामले में सच्चाई जबकि यह है कि उक्त मामले में प्रस्ताव पास होना तो दूर सेंट्रल काउंसिल में कभी एजेंडे के रूप में भी नहीं आया है । दरअसल राजेश शर्मा को लगता है कि उनके झूठ कुछ ही लोग पकड़ पायेंगे, और अधिकतर लोगों को जब तक सच्चाई पता चलेगी - तब तक चुनाव हो चुकेंगे और लोग वोट डाल चुकेंगे । राजेश शर्मा के लिए बदकिस्मती की बात लेकिन यही रही कि उनके झूठे दावे तुरंत ही पकड़े जा रहे हैं, और उनकी फजीहत करा रहे हैं । पिछले वर्ष 'सीए डे' से जुड़ी बदनामी उनकी लाख कोशिशों के बाद भी उनका पीछा छोड़ती नहीं दिख रही है, और 'सीए डे' की हरकतों को लेकर लोग अभी भी उन्हें जहाँ-तहाँ जलील करने लगते हैं । ऐसे में, कन्वोकेशन समारोह में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स लड़कियों के साथ की गई उनकी हरकत के मामले के फिर से सिर उठाने से राजेश शर्मा के लिए मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं ।

Sunday, December 2, 2018

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के सेंट्रल काउंसिल चुनाव में अनुज गोयल की हो रही फजीहत ज्ञान चंद्र मिसरा और या राजस्थान के उम्मीदवारों के लिए वरदान बनती नजर आ रही है

गाजियाबाद । अनुज गोयल की पतली हालत की खबरें सुनकर विनय मित्तल में अचानक से जोश भरा है, और वह सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को लेकर तेजी से गंभीर और सक्रिय हो गए हैं । उनके नजदीकियों का हालाँकि कहना यह भी है कि लखनऊ में जब से अविचल कपूर ने एक उम्मीदवार के रूप में उनकी तारीफ की है, तब से विनय मित्तल में ज्यादा जोश भरा है और उन्हें लगता है कि चुनाव में उनका कुछ हो सकता है । जोश के बावजूद विनय मित्तल की सक्रियता का आलम यह है कि अभी जब चुनाव में मुश्किल से चार दिन बचे हैं, तब वह सोशल मीडिया में विभिन्न शहरों/राज्यों के अपने दोस्तों से अनुरोध कर रहे हैं कि वह उन्हें अपने परिचित व नजदीकी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के नाम/नंबर दें, ताकि वह उनसे अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन माँग सकें । उनकी इस 'सक्रियता' पर लोग हँस रहे हैं और कह रहे हैं कि जो काम उन्हें कम से कम चार महीने पहले तो कर ही लेना चाहिए था, उसे अब चुनाव से चार दिन पहले करके वह क्या हासिल कर लेंगे ? उनके नजदीकियों का ही मानना/कहना है कि विनय मित्तल ने अपनी उम्मीदवारी को दरअसल गंभीरता से कभी लिया ही नहीं; वह असल में इस बात से बेफिक्र से थे कि अनुज गोयल और उनके भाई को तो चुनाव में आना नहीं है, इसलिए इस बार का चुनाव आसान होगा । ज्ञान चंद्र मिसरा को वह गंभीरता से ले नहीं रहे थे, और उन्हें विश्वास था कि सेंट्रल रीजन में जो एक सीट बढ़ रही है, वह उन्हें आराम से मिल जाएगी । लेकिन अचानक से जब अनुज गोयल ने सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत कर दी, तो विनय मित्तल को अपनी उम्मीद खत्म होती हुई नजर आई और वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर ढीले पड़ गए । 
लेकिन विनय मित्तल को अब जब सुनने को मिला है कि अनुज गोयल की उम्मीदवारी को लोगों के बीच अपेक्षित समर्थन नहीं मिल पा रहा है, तो विनय मित्तल को फिर से अपनी उम्मीदवारी के लिए उम्मीद बंधी है और वह पुनः सक्रिय हुए हैं । अनुज गोयल को रीजन में यूँ तो करिश्माई नेता के रूप में देखा/पहचाना जाता है, लेकिन इस बार के चुनाव में उनका करिश्मा फीका पड़ता नजर आ रहा है । उनके करिश्मे के फीके पड़ने के संकेत हालाँकि पिछली बार के चुनाव में ही मिल गया था, जब उनके भाई जितेंद्र गोयल पहली वरीयता के वोटों की गिनती में नौवें नंबर पर जा पहुँचे थे । इसे जितेंद्र गोयल की नहीं, बल्कि अनुज गोयल की हार के रूप में देखा/पहचाना गया था । दरअसल लोगों को यह अच्छा नहीं लगा था कि नियमानुसार जब अनुज गोयल को उम्मीदवार बनने का अधिकार नहीं मिला, तो उन्होंने अपने भाई को उम्मीदवार बना/बनवा दिया है और इस तरह इंस्टीट्यूट को उन्होंने जैसे अपनी बपौती समझ लिया । अनुज गोयल की इस समझ का बदला पिछली बार लोगों ने जितेंद्र गोयल से लिया, तो इस बार लोग अनुज गोयल को सबक सिखाना चाहते हैं । अनुज गोयल ने सोचा तो यह था कि रीजन में एक सीट जो बढ़ी है, उसका फायदा उन्हें मिल जायेगा और वह आसानी से विजयी हो जायेंगे । किंतु अनुज गोयल जब अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने निकले तो अधिकतर जगहों पर उन्हें लोगों से लताड़ ही सुनने को मिली कि 12 वर्ष सेंट्रल काउंसिल में रहते हुए उनके लिए और क्या करना बाकी रह गया है, जो अब वह फिर सेंट्रल काउंसिल में जाना चाहते हैं और या उन्होंने इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल को अपनी पारिवारिक संपत्ति समझ लिया है, जहाँ कि उनकी कुर्सी हमेशा रहनी ही चाहिए । लोगों का कहना है कि पिछली बार अपने भाई की और इस बार अपनी उम्मीदवारी के जरिये अनुज गोयल ने सत्ता से चिपके रहने की अपनी हवस दिखा कर वास्तव में इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की पहचान व साख को कलंकित ही किया है । 
अनुज गोयल को इस बार लोगों के बीच जिस विरोध और तीखी बातों को झेलना/सुनना पड़ रहा है, उसके चलते उनकी उम्मीदवारी मुसीबत में फँसी नजर आ रही है । समस्या की बात यह भी है कि गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश में उम्मीदवारों की संख्या काफी है, जो आपस में एक दूसरे को ही नुकसान पहुँचायेंगे; इसके अलावा इस बार के चुनाव में राजस्थान के मुकाबले उत्तर प्रदेश के वोटों की संख्या काफी घटी है - इस कारण से एक अनुमान यह लगाया जा रहा है कि रीजन में बढ़ी हुई सीट उत्तर प्रदेश की बजाये राजस्थान में भी जा सकती है । उत्तर प्रदेश में मनु अग्रवाल की सीट तो सुरक्षित ही समझी/देखी जा रही है; मुकेश कुशवाह की उम्मीदवारी को हालाँकि कई झटके लगे हैं - सबसे बड़ा झटका तो यही कि पिछली बार के उनके एक बड़े समर्थक रहे ज्ञान चंद्र मिसरा इस बार खुद उम्मीदवार बन गए हैं, जिन्होंने मुकेश कुशवाह के कुछेक और समर्थकों को भी अपने साथ कर लिया है - लेकिन फिर भी लोगों को लग रहा है कि मुकेश कुशवाह अपनी सीट बचा लेंगे । रीजन में जो एक सीट बढ़ी है, उसे पाने के लिए ज्ञान चंद्र मिसरा ने ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया हुआ है । मजेदार संयोग यह है कि गाजियाबाद से सेंट्रल काउंसिल सदस्य होने वाले अनुज गोयल और मुकेश कुशवाह ने सेंट्रल काउंसिल का पहला चुनाव उस वर्ष लड़ा था, जिस वर्ष वह सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन थे - यह तीसरा उदाहरण होगा कि ज्ञान चंद्र मिसरा सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के पद पर रहते हुए पहली बार सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ रहे हैं । इनके अलावा गाजियाबाद से वेद गोयल, सुनील गुप्ता, जितेंद्र गोयल और विनय मित्तल ने रीजनल काउंसिल में चेयरमैन हुए बिना सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ा, लेकिन कामयाब नहीं हो सके । यह अनोखा संयोगभरा तथ्य ज्ञान चंद्र मिसरा की उम्मीदवारी की सफलता की संभावना को बढ़ा देता है । ज्ञान चंद्र मिसरा की उम्मीदवारी हालाँकि सिर्फ संयोग के भरोसे नहीं है, और रीजनल काउंसिल का चेयरमैन होने के नाते उन्होंने प्रत्येक ब्रांच में अपनी पैठ बनाने और अपने लिए समर्थन जुटाने का प्रयास किया है । ज्ञान चंद्र मिसरा ने उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड तथा बिहार व झारखंड में समर्थन जुटाने के लिए सघन प्रयास किए हैं । इन क्षेत्रों में प्रयास हालाँकि दूसरे उम्मीदवारों ने भी किए हैं, लेकिन पूर्व के होने के नाते ज्ञान चंद्र मिसरा के प्रयासों को पूर्वीय क्षेत्र में अच्छा समर्थन मिलने की उम्मीद है । अनुज गोयल की हो रही फजीहत ने इस उम्मीद को और बढ़ा दिया है । अनुज गोयल की हो रही फजीहत को देख कर विनय मित्तल में भी उम्मीद तो जगी है और उनमें जोश भी पैदा हुआ है, लेकिन लोगों को लग रहा है कि उनमें जोश देर से पैदा  हुआ है, इसलिए उनका जोश उनके काम आ सकेगा, इसमें संदेह है ।