Wednesday, December 5, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता ने चुनाव से ऐन पहले विजय गुप्ता के समर्थकों के बीच पहुँच कर चुनावी परिदृश्य को रोमांचपूर्ण बनाया, जिसमें विजय गुप्ता के साथ अतुल गुप्ता, संजय वासुदेवा व हंसराज चुग को अगली सेंट्रल काउंसिल के सदस्य के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता ने इंस्टीट्यूट की काउंसिल के लिए हो रहे चुनाव के अंतिम चरण में एक नाटकीय कदम उठाया, जिसने नॉर्दर्न रीजन के चुनावी परिदृश्य में एक नया रोमांच भर दिया है । दिल्ली में जनपथ पर स्थित मॅसोनिक क्लब में आयोजित हो रही 'सीए मीट ऑन इन्सॉल्वेंसी' - जिसमें सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार विजय गुप्ता के समर्थकों का जमावड़ा था, और जिन्होंने विजय गुप्ता को भी मीटिंग में बुला लिया था - में अचानक से पहुँच कर एनडी गुप्ता ने सभी को हतप्रभ कर दिया । एनडी गुप्ता चूँकि सेंट्रल काउंसिल के एक अन्य उम्मीदवार सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थन में होने वाली मीटिंग्स में शामिल होते रहे हैं; इस कारण से विजय गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों की मीटिंग में उपस्थित होकर उन्होंने हर किसी को चौंकाया - फलस्वरूप विजय गुप्ता के समर्थकों की मीटिंग में एनडी गुप्ता के उपस्थित होने की खबर जंगल में आग की तरह नॉर्दर्न रीजन में फैल गई । दरअसल उक्त मीटिंग में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पाँच/छह पूर्व चेयरमैन मौजूद थे, और रीजनल काउंसिल के बारह/पंद्रह उम्मीदवार अपनी अपनी उम्मीदवारी का प्रचार करने में लगे थे - जिन्हें एनडी गुप्ता को वहाँ पहुँचा देख कर घोर आश्चर्य हुआ और उनके द्वारा ही फिर यह आश्चर्य पूरे रीजन के लोगों के बीच पहुँचा । एनडी गुप्ता ने मीटिंग में हालाँकि कहा कुछ नहीं; सुधीर अग्रवाल की मीटिंग्स में भी वह कभी कुछ कहते हुए नहीं सुने गए हैं - और उनकी उपस्थिति से ही लोग 'मतलब' निकालते/लगाते रहे हैं । 'मतलब' निकालने/लगाने की प्रक्रिया में ही लोगों के बीच सवाल के रूप में चर्चा रही कि एनडी गुप्ता जब सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करने का संकेत दे रहे थे, तो उन्हें चुनाव से ठीक पहले विजय गुप्ता की उम्मीदवारी का भी समर्थन देने का संकेत देने की जरूरत आखिर क्यों पड़ी ?
इस चर्चा में एक मजेदार बात यह सुनने को मिली कि हो सकता है कि दो उम्मीदवारों का एक साथ समर्थन करके एनडी गुप्ता ने एक दूसरे पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा की बराबरी करने की कोशिश की हो । उल्लेखनीय है कि इस बार के चुनाव में अमरजीत चोपड़ा भी दो उम्मीदवारों के समर्थन में दिख रहे हैं - एक संजीव सिंघल के और दूसरे हंसराज चुग के । अमरजीत चोपड़ा के कई एक नजदीकी और समर्थक हंसराज चुग की उम्मीदवारी के समर्थन में जिस तरह से सक्रिय हैं, उसे देख/जान कर लोगों को लग रहा है कि इसके लिए निश्चित ही उन्हें अमरजीत चोपड़ा की तरफ से निर्देश दिए गए होंगे । लोगों को लगता है कि अमरजीत चोपड़ा को दो दो उम्मीदवारों के समर्थन में देख एनडी गुप्ता को भी प्रेरणा मिली होगी, और फिर उन्होंने भी सुधीर अग्रवाल के साथ-साथ विजय गुप्ता की भी उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया । उल्लेखनीय है कि सुधीर अग्रवाल के साथ-साथ विजय गुप्ता भी एनडी गुप्ता के 'राजनीतिक शिष्यों' में रहे हैं, और एनडी गुप्ता की छत्रछाया में दोनों ने ही अपनी अपनी राजनीतिक यात्राओं को आगे बढ़ाया है । राजनीतिक संदर्भ में विजय गुप्ता चूँकि सुधीर अग्रवाल के मुकाबले ज्यादा 'कामयाब' हुए हैं, इसलिए हो सकता है कि विजय गुप्ता के प्रति एनडी गुप्ता का पुराना स्नेह पुनः जागा हो और उन्हें लगा हो कि चुनावी दौर में उन्हें विजय गुप्ता के साथ भी खड़ा होना चाहिए और 'दिखना' भी चाहिए । दिलचस्प संयोग है कि अभी कुछ ही दिन पहले नफरा (एनएफआरए - नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी) मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में दर्ज अपील की सुनवाई में पार्टी बनाए गए इंस्टीट्यूट का प्रतिनिधित्व करने का सवाल आया तो एनडी गुप्ता के बेटे और इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता ने विजय गुप्ता की काबिलियत और क्षमताओं पर भरोसा किया और उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट में मामले को देखने और फैसला लेने की पूरी स्वतंत्रता दी । समझा जाता है कि नवीन गुप्ता ने विजय गुप्ता पर यह भरोसा अपने पिता एनडी गुप्ता के साथ बने विजय गुप्ता के काबिलियत व जिम्मेदारी के संबंधों को देखते/समझते हुए  ही लिया होगा । विजय गुप्ता के समर्थकों की मीटिंग में उपस्थित होकर एनडी गुप्ता ने विजय गुप्ता की काबिलियत तथा जिम्मेदारीभरी क्षमताओं से जुड़ी बातों को जिस तरह से चुनाव से ऐन पहले चर्चा के केंद्र में ला दिया है, उससे विजय गुप्ता की उम्मीदवारी को और ताकत मिली दिख रही है ।          
यूँ भी संजय वासुदेवा के साथ-साथ विजय गुप्ता ही अकेले ऐसे सेंट्रल काउंसिल सदस्य हैं, जिन्हें लेकर कोई नकारात्मक बात चर्चा में नहीं है । इन्हें नापसंद करने वाले लोग तो हैं, लेकिन इनकी राजनीतिक केमिस्ट्री को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाली स्थितियाँ नहीं हैं; और इसीलिए सेंट्रल काउंसिल में इनकी पुनर्वापसी करने को लेकर किसी को संदेह नहीं है । अतुल गुप्ता की जान को हालाँकि बहुत सी मुसीबतें हैं, लेकिन किसी को भी उनकी पुनर्वापसी को लेकर संदेह नहीं है, और हर किसी का मानना/कहना है कि तमाम मुसीबतों के बीच भी अतुल गुप्ता अपनी सीट आसानी से बचा लेंगे । सेंट्रल काउंसिल के मौजूदा सदस्यों में राजेश शर्मा ही ऐसे हैं, जिन्हें काउंसिल में हुए तो सिर्फ तीन वर्ष ही हैं, लेकिन जिन्होंने इन तीन वर्षों में ही इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन को तरह तरह से न सिर्फ बदनामी ही दिलवाई है, बल्कि खुद के लिए भी बदनामी ही कमाई है । इसलिए उनकी पुनर्वापसी को लेकर न सिर्फ संदेह है, बल्कि कई लोगों का तो मानना/कहना है कि राजेश शर्मा यदि जीते तो यह इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा । नए उम्मीदवारों में हंसराज चुग अकेले ऐसे हैं, जिनके समर्थन-आधार को कहीं किसी की चुनौती नहीं है और जिन्होंने वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ-साथ युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच भी अपनी पहचान बनाई है और अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन की अपील पैदा की है । सक्रियता के लिहाज से संजीव सिंघल, प्रमोद जैन और सुधीर अग्रवाल ने भी अपने आपको लोगों  के बीच संभावित विजेताओं के रूप में स्थापित किया है - लेकिन इनके मामलों में सकारात्मक पक्षों के साथ-साथ नकारात्मक पक्षों का भी जोर रहा है, जिस कारण इनके सामने गंभीर चुनौतियाँ हैं । हंसराज चुग इस मामले में भाग्यशाली रहे हैं कि उन्हें नकारात्मक पक्षों से मुठभेड़ नहीं करना पड़ी, और इस तथ्य को लोगों के बीच उनकी नेतृत्व-कुशलता के रूप में देखा/पहचाना गया है । संभावित मुश्किलों को हंसराज चुग तथा उनके समर्थकों ने जिस कुशलता के साथ संभाला और उन्हें बढ़ने से रोका - तथा जिसके चलते उन्हें अपनी सकारात्मक पहचान बनाने व उसे स्थापित करने का प्रभावी मौका मिला, उससे उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में लोगों के बीच अच्छी हवा बनी है । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक अच्छे लीडर से उम्मीद करते हैं कि उसे प्रोफेशन से जुड़े विषयों की भी उपयोगी जानकारी हो तथा उस जानकारी को बढ़ाने के प्रति उसमें दिलचस्पी भी हो, और साथ-साथ ही उसमें संगठनात्मक स्थितियों को मैनेज करने की काबिलियत भी हो - लोगों ने हंसराज चुग में इन दोनों ही खूबियों को देखा/पाया है; और यह भी देखा/पाया है कि हंसराज चुग को इन दोनों खूबियों के बीच तालमेल बैठाना भी आता है । अधिकतर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का मानना/कहना है कि हंसराज चुग जैसे व्यक्ति को तो सेंट्रल काउंसिल में होना ही चाहिए । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के इस मूड को भाँपते/देखते हुए इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को हंसराज चुग सेंट्रल काउंसिल के चौथे सदस्य के रूप में नजर आ रहे हैं । बाकी दो सीटों के लिए संजीव सिंघल, सुधीर अग्रवाल, प्रमोद जैन और राजेश शर्मा के बीच काँटे का मुकाबला होता हुआ माना/पहचाना जा रहा है ।