Saturday, September 30, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने के मामले में राकेश मक्कड़ और उनके साथियों द्वारा दिखाई जा रही निर्लज्ज किस्म की बेशर्मी के सामने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट, वाइस प्रेसीडेंट व सेक्रेटरी जैसे प्रमुख पदाधिकारी आखिर कब तक असहाय बने रहेंगे ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे, वाइस प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता तथा सेक्रेटरी वी सागर की बेपरवाही और कानों में तेल डाले बैठे होने की धृतराष्ट्री प्रवृत्ति ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ को निर्लज्ज किस्म की बेशर्मी दिखाने का सुनहरा अवसर प्रदान किया हुआ है । गौरतलब है कि रीजनल काउंसिल के 13 में से सात सदस्यों ने रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने के लिए नोटिस दिया हुआ है, नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व करने वाले सेंट्रल काउंसिल के तीन सदस्यों तथा एक नोमीनेटेड सदस्य ने उक्त नोटिस का समर्थन किया हुआ है - लेकिन फिर भी राकेश मक्कड़ रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने की माँग पर बेशर्मी भरी चुप्पी साधे हुए हैं । इंस्टीट्यूट के नियमानुसार, रीजनल काउंसिल के तीन सदस्य रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने की माँग कर सकते हैं । चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ इस नियम का खुल्लमखुल्ला मजाक बनाए हुए हैं - और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट, वाइस प्रेसीडेंट व सेक्रेटरी आँखों पर पट्टी बाँध धृतराष्ट्र बने हुए हैं । राकेश मक्कड़ को अपनी इस बेशर्मीभरी निर्लज्जता में अपने साथी पदाधिकारियों का पूरा पूरा समर्थन मिला हुआ है । नियमानुसार, रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी या ट्रेजरर में से किसी एक के समर्थन से वाइस चेयरमैन भी रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुला सकता है - लेकिन इस संबंध में वाइस चेयरमैन विवेक खुराना के प्रयासों को न तो सेक्रेटरी राजेंद्र अरोड़ा से और न ट्रेजरर सुमित गर्ग से समर्थन मिला है ।
उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के वाइस चेयरमैन सहित सात सदस्यों - विवेक खुराना, राजिंदर नारंग, राजेश अग्रवाल, स्वदेश गुप्ता, आलोक जैन, योगिता आनंद और पूजा बंसल ने 17 सितंबर को सेक्रेटरी राजेंद्र अरोड़ा को संबोधित पत्र के जरिए 4 अक्टूबर को रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने की माँग की । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में हाल ही के दिनों में घटी घटनाओं के संदर्भ में विचार करने तथा जरूरी फैसले लेने का वास्ता देते हुए उक्त माँग की गई । उक्त माँग के साथ, बुलाई जाने वाली रीजनल काउंसिल की मीटिंग के लिए रीजनल काउंसिल की कमेटियों के पुनर्गठन तथा चेयरमैन सहित रीजनल काउंसिल के अन्य पदाधिकारियों को दिए गए विशेषाधिकारों पर पुनर्विचार को प्रमुख एजेंडे के रूप में रेखांकित किया गया है । रीजनल काउंसिल के 13 सदस्यों में से सात सदस्यों द्वारा की जा रही इस माँग से स्वतः ही साबित है कि मीटिंग में राकेश मक्कड़ की मनमानी भरी लूट-खसोट पर लगाम लगना निश्चित ही है । पिछली एक मीटिंग में जिस तरह पूर्व चेयरमैन दीपक गर्ग तथा मौजूदा ट्रेजरर सुमित गर्ग द्वारा की गई लूट को पकड़ा गया था, जिसके चलते यह दोनों काउंसिल के खजाने से 'लूटी' गई रकम को वापस करने के लिए मजबूर हुए - उससे राकेश मक्कड़ बुरी तरह घबराए हुए हैं । अपनी बेईमानीभरी हरकतों के कारण राकेश मक्कड़ रीजनल काउंसिल में बहुमत सदस्यों का समर्थन खो चुके हैं, इसलिए वह चुपचाप चेयरमैन पद पर कुंडली मार कर बैठे हुए हैं और रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने की माँग पर चुप्पी ओढ़े हुए हैं ।
राकेश मक्कड़ के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि रीजनल काउंसिल में बहुमत बनाते सात सदस्यों की रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने की माँग को सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की तरफ से जोरदार और सक्रिय समर्थन मिला है । सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व करने वाले संजय अग्रवाल, संजीव चौधरी तथा संजय वासुदेवा ने इंस्टीट्यूट के नियमों का हवाला देते हुए रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाए जाने की माँग का जोरदार तरीके से समर्थन किया । सेंट्रल काउंसिल में नॉमिनेटेड सदस्य विजय झालानी का रवैया तो राकेश मक्कड़ के लिए खासा अप्रत्याशित रहा है । उल्लेखनीय है कि विजय झालानी कुछ समय पहले तक राकेश मक्कड़ के लिए संकटमोचक की भूमिका निभाते रहे हैं, जिसके चलते उनकी राजिंदर नारंग से झड़प भी हो गई थी - लेकिन राकेश मक्कड़ के लिए मुसीबत बनी रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने की माँग का विजय झालानी ने खासी मुखरता के साथ समर्थन किया है । और सिर्फ समर्थन ही नहीं किया है, बल्कि इस मामले में लीपापोती-सी करते दिख रहे इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर तक से भिड़ गए । दरअसल, मामले में सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की सक्रियता से दबाव बढ़ता देख वी सागर ने राकेश मक्कड़ को संदेश लिखा/भेजा और उनसे मीटिंग बुलाने का अनुरोध किया । इस पर विजय झालानी ने उन्हें तुरंत लिखा कि आप अनुरोध क्यों कर रहे हैं, नियमों के हवाले से आप मीटिंग बुलाने के लिए निर्देश दीजिए ।
राकेश मक्कड़ लेकिन तमाम हील-हुज्जत के बावजूद मीटिंग बुलाने की माँग पर बेशर्मों की तरह चुप्पी साधे हुए हैं । दरअसल वह समझ रहे हैं कि रीजनल काउंसिल की इस बार की मीटिंग उनकी और उनके साथियों की लूट-खसोट पर पूरी तरह रोक लगाने का काम करेगी - इसलिए वह किसी भी तरह मीटिंग करने से बचना चाहते हैं और इसके लिए अपनी फजीहत करवाने से लेकर इंस्टीट्यूट और उसके पदाधिकारियों तक की किरकिरी करवाने के लिए तैयार हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि राकेश मक्कड़ और उनके साथियों की निर्लज्ज किस्म की बेशर्मी के सामने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट, वाइस प्रेसीडेंट व सेक्रेटरी जैसे प्रमुख पदाधिकारी आखिर कब तक असहाय बने रहते हैं ?

Thursday, September 28, 2017

रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी पद पर अचानक से गुलाम वहनवती की नियुक्ति करवा कर, जोन 4 तथा जोन 6 ए में हो रहे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को प्रभावित करने के साथ साथ इंडिया के प्रमुख रोटरी नेताओं को असहाय बना देने का, केआर रवींद्रन ने मास्टरस्ट्रोक चला है क्या ?

मुंबई । गुलाम वहनवती को अचानक से रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी बनाए जाने की घोषणा ने जोन 4 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई के अंतिम चरण को रोमांचक बना दिया है । उल्लेखनीय है कि नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले तक के चरण में गुलाम वहनवती दूसरे नंबर पर रहे थे और भरत पांड्या से मामूली अंतर से ही वह पिछड़े थे । उम्मीद की जा रही थी कि नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा अधिकृत उम्मीदवार के रूप में चुने गए भरत पांड्या को वह चेलैंज करेंगे और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए होने वाले फाइनल मुकाबले में वह भरत पांड्या को तगड़ी टक्कर देंगे । भरत पांड्या के समर्थकों की तरफ से हालाँकि यह दावा भी किया/सुना जा रहा था कि गुलाम वहनवती को चेलैंज न करने के लिए अंततः राजी कर लिया जायेगा, और गुलाम वहनवती किसी के उकसावे में आकर भरत पांड्या के लिए मुसीबत नहीं बनेंगे । भरत पांड्या के कुछेक नजदीकियों को लेकिन यह डर जरूर रहा कि गुलाम वहनवती भले ही भरत पांड्या की अधिकृत उम्मीदवारी को चेलैंज न करें, लेकिन चेलैंज करने वाले उम्मीदवार का उन्होंने यदि समर्थन किया - तो भरत पांड्या के लिए फाइनल मुकाबला मुसीबत भरा हो सकता है । गुलाम वहनवती के रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी नियुक्त होने से लेकिन भरत पांड्या के लिए उनकी तरफ से मिल सकने वाली चुनौती पूरी तरह खत्म हो गयी लगती है ।
गुलाम वहनवती की चुनौती खत्म होने - या 'करने' - से भरत पांड्या के लिए दूसरी तरह की मुसीबतें पैदा हो गईं हैं । दरअसल गुलाम वहनवती के रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी बनने से शेखर मेहता, यशपाल दास और पीटी प्रभाकर को जो जोर का झटका लगा है - उससे देश में रोटरी की राजनीति की खेमेबाजी के समीकरण को पूरी तरह से उलट-पलट दिया है । उल्लेखनीय है कि रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी पद पर शेखर मेहता, यशपाल दास और पीटी प्रभाकर की निगाह थी और तीनों ही अपने अपने तरीके से ट्रस्टी पद पर काबिज होने के लिए जुगाड़ बैठा रहे थे - और इनमें भी शेखर मेहता का दाँव बाकी दोनों से ऊँचा माना/पहचाना जा रहा था । माना/पहचाना जा रहा था कि पीटी प्रभाकर और यशपाल दास की दाल तो पूर्व प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन नहीं गलने देंगे - इसलिए शेखर मेहता के लिए ट्रस्टी पद प्राप्त करना आसान हो जाएगा । लेकिन ट्रस्टी पद पर गुलाम वहनवती की नियुक्ति ने सभी को हैरान किया है । नियुक्ति से भी ज्यादा - नियुक्ति होने में हुई जल्दबाजी ने और उसकी 'टाइमिंग' ने लोगों को ज्यादा हैरान किया है । इंडिया में रोटरी के बड़े नेताओं के बीच होने वाली चर्चा में सुना जा रहा है कि यह खेल पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन का है और इस खेल के जरिए उन्होंने वास्तव में इंडिया की रोटरी की व्यवस्था और राजनीति पर अपनी पकड़ को और मजबूत करने का दाँव चला है ।
इंडिया में रोटरी के बड़े नेताओं के बीच पिछले काफी समय से चर्चा रही है कि केआर रवींद्रन रोटरी इंटरनेशनल में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए इंडिया के प्रभावी नेताओं के पर कतरने तथा ऐसे लोगों को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं जो उनके लिए किसी भी तरह से चुनौती न बन सकें - ताकि इंडिया में रोटरी की व्यवस्था और राजनीति पर उनकी पकड़ मजबूत हो सके । इंडिया के रोटरी नेताओं के आपसी झगड़ों ने केआर रवींद्रन को अपने लक्ष्य तक पहुँचने में मदद भी की है । झगड़ों के फैसले करवाने के नाम पर किसी को 'गिराने' और किसी को 'उठाने' का खेल खेलते हुए केआर रवींद्रन ने इंडिया के अधिकतर नेताओं को अपना पिछलग्गू तो बना ही लिया है । जोन 4 और जोन 6 ए में हो रहे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावों में भी केआर रवींद्रन के रवैये से 'आग' लगी हुई है । जोन 6 ए में कमल सांघवी के नजदीकियों का ही आरोप है कि कमल सांघवी को अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को विवादास्पद बनाने के प्रयासों के पीछे केआर रवींद्रन की ही शह है । कमल सांघवी के नजदीकियों का कहना है कि उनके जोन में जो तमाशा हो रहा है, उसे देख कर लगता है कि जैसे कोशिश यह हो रही है कि या तो कमल सांघवी की सफलता को बीच रास्ते में ही रोक दिया जाए - और या उन्हें केआर रवींद्रन की शरण में पहुँचा दिया जाए ।
कमल सांघवी के नजदीकी मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम के चुनाव में डाली गई अड़चनों को कमल सांघवी के मामले में दोहराया जाता देख रहे हैं । वह यह भी समझ रहे हैं कि बासकर चॉकलिंगम के मामले में केआर रवींद्रन को जो पराजय मिली थी, उससे सबक लेकर उन्होंने अब अपनी रणनीति में फेरबदल किया है - और बदली रणनीति के तहत ही कमल सांघवी को गिराने और या समर्पित होने के विकल्प दिए जा रहे हैं । समझा जा रहा है कि जोन 4 में तो केआर रवींद्रन ने और भी सफाई से 'काम' किया है - गुलाम वहनवती को रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी बनवा कर केआर रवींद्रन ने एक तरफ तो भरत पांड्या का बड़ा सिरदर्द दूर किया है और इस तरह भरत पांड्या को मददगार होने का संकेत दिया है; और दूसरी तरफ शेखर मेहता व यशपाल दास को एक साथ झटका दे दिया है । भरत पांड्या और गुलाम वहनवती दूसरों के मुकाबले 'कूल' टाइप के व्यक्ति भी हैं और किसी भी तरह की खेमेबाजी के कोई बहुत मजबूत 'खंबे' भी नहीं हैं - इसलिए इन्हें केआर रवींद्रन इंडिया में अपने लिए किसी चुनौती की तरह नहीं देखते हैं । जोन 4 में अशोक गुप्ता और रंजन ढींगरा को चैलेंजिंग उम्मीदवार के रूप में देखा/समझा जा रहा है - हालाँकि इनकी तरफ से फैसले का इंतजार अभी किया ही जा रहा है । इन दोनों को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है । समझा जा रहा है कि भरत पांड्या की अधिकृत उम्मीदवारी चेलैंज हो या न हो, और यदि हो तो किसकी तरफ से हो - इस बारे में अंतिम फैसला सुशील गुप्ता को ही करना है । गुलाम वहनवती को अचानक और अप्रत्याशित रूप से रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी बनवा कर केआर रवींद्रन ने जो 'सीन' बनाया है, उससे सुशील गुप्ता के सामने मुश्किल तो पैदा हुई है - लेकिन वह यदि 'लड़ने' का फैसला करें तो इस मुश्किल में एक मौका भी छिपा है । देखना दिलचस्प होगा कि जोन 4 और जोन 6 ए में हो रहे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में केआर रवींद्रन द्वारा खेली जा रही चाल को मात देने के लिए इंडिया के रोटरी नेता सचमुच कोई योजना बना पाते हैं - या केआर रवींद्रन के सामने असहाय से साबित होते हैं ।

Wednesday, September 27, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में मीरा सेठ को, केएस लूथरा का समर्थन प्राप्त अशोक अग्रवाल के मुकाबले, चुनावी लड़ाई में कूदने से डरता देख गुरनाम सिंह खेमा कमल शेखर का समर्थन करने को मजबूर हुआ

लखनऊ । मीरा सेठ की तरफ से गुरनाम सिंह के समर्थन का दावा करते हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए केएस लूथरा का समर्थन प्राप्त करने का जो प्रयास किया जा रहा है, उसे देख/जान कर कमल शेखर खुद को बुरी तरह ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि कमल शेखर भी लोगों के बीच गुरनाम सिंह और उनके नजदीकियों के समर्थन का दावा कर रहे हैं, और गुरनाम सिंह के प्रमुख सिपहसालार के रूप में विशाल सिन्हा ने उनसे पैसे खर्च करवाना भी शुरू कर दिया है । इसीलिए कमल शेखर को हैरानी हुई है कि गुरनाम सिंह खेमे के लोगों ने जब उनकी उम्मीदवारी के साथ रहने का उनसे वायदा कर लिया है, तब मीरा सेठ उनके समर्थन का दावा कैसे कर रही हैं ? कमल शेखर को डर हुआ है कि गुरनाम सिंह खेमे के लोग उनके साथ कहीं कोई धोखा तो नहीं कर रहे हैं - पैसे उनसे खर्च करवा रहे हैं, और पर्दे के पीछे से मीरा सेठ को प्रमोट कर रहे हैं । यह बात कमल शेखर और उनके नजदीकी समझ भी रहे हैं कि मीरा सेठ ने अपनी उम्मीदवारी यदि सचमुच प्रस्तुत की, तो गुरनाम सिंह खेमा उनका ही समर्थन करेगा । गुरनाम सिंह के कुछेक नजदीकियों ने कमल शेखर को हालाँकि तर्क दिया है कि मीरा सेठ चुनाव लड़ने का साहस नहीं करेंगी, और अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी को लेकर केएस लूथरा खेमा अब इतना आगे बढ़ चुका है कि वह मीरा सेठ को समर्थन देने के बारे में अब सोचना/विचारना भी नहीं चाहेगा - इसलिए गुरनाम सिंह खेमे के पास तुम्हें समर्थन देने के अलावा कोई चारा भी नहीं होगा । 
इस तर्क से कमल शेखर को लेकिन इस बात का पक्का सुबूत मिल गया है कि गुरनाम सिंह खेमे का उन्हें मिल रहा समर्थन मजबूरी का सौदा है, जो सिर्फ इसलिए है ताकी खेमे के विशाल सिन्हा जैसे लोगों को उनके पैसे पर खाने और 'पीने' का मौका मिलता रहे । मजे की बात यह है कि कमल शेखर और उनके साथी कुछ समय पहले तक केएस लूथरा के नजदीकी हुआ करते थे, लेकिन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति के चक्कर में वह गुरनाम सिंह खेमे के साथ चले गए हैं । उल्लेखनीय है कि अशोक अग्रवाल ने भी पिछला चुनाव गुरनाम सिंह खेमे के समर्थन से लड़ा था और हासिल हुए नतीजे के बाद उन्होंने यह समझ लिया था कि गुरनाम सिंह खेमे के भरोसे रहे तो वह जीवन में कभी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बन पायेंगे - लिहाजा तभी से वह केएस लूथरा के नजदीक आ गए । हालाँकि केएस लूथरा ने इस वर्ष के उम्मीदवार के चयन में मीरा सेठ और कमल शेखर की तुलना में यदि अशोक अग्रवाल को वरीयता दी तो इसका प्रमुख कारण यह रहा कि उन्होंने भी समझा/पहचाना कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उन दोनों की बजाए अशोक अग्रवाल के प्रति ही सहानुभूति और समर्थन का भाव है । 
मजे की बात यह है कि गुरनाम सिंह खेमे की तरफ से भी अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा उठाने की तैयारी की जा रही थी, क्योंकि उन्हें भी लग रहा था कि इस वर्ष हालात चूँकि अशोक अग्रवाल के पक्ष में हैं इसलिए अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के सहारे/भरोसे वह अपनी राजनीति की लगातार डूबती जा रही नाव को बचा लेंगे । अशोक अग्रवाल ने लेकिन उनकी बजाए केएस लूथरा पर भरोसा किया और उनके उम्मीदवार के रूप में मैदान में आ गए । गुरनाम सिंह खेमे के लोगों को तब मजबूरी में कमल शेखर की उम्मीदवारी का झंडा उठाना पड़ा । गुरनाम सिंह खेमे के नेताओं को हालाँकि यह भी लगता है कि कमल शेखर के लिए अशोक अग्रवाल के सामने टिक पाना मुश्किल ही होगा, और इसीलिए वह मीरा सेठ को उम्मीदवार होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं । मीरा सेठ लेकिन चुनाव लड़ने से बचना चाहती हैं - और वह भी केएस लूथरा खेमे के मुकाबले; इसलिए ही वह केएस लूथरा का समर्थन पाने की जुगत में हैं । मीरा सेठ को विश्वास है कि उन्हें यदि केएस लूथरा का समर्थन मिल जाता है, तो गुरनाम सिंह खेमा कमल शेखर को छोड़ने में सेकेंड नहीं लगायेगा - और तब उनका काम आसानी से बन जाएगा । केएस लूथरा लेकिन अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा लेकर काफी आगे बढ़ चुके हैं ।
इस परिस्थिति में कमल शेखर के लिए परेशानी की बात यह हुई है कि उनकी उम्मीदवारी का झंडा उठा लेने के बावजूद गुरनाम सिंह खेमे के नेताओं को जब उन पर भरोसा नहीं हो पा रहा है - तब वह उनकी उम्मीदवारी की नैय्या को पार कैसे लगायेंगे ? गुरनाम सिंह खेमे में जब से विशाल सिन्हा का वर्चस्व बढ़ा है, तब से काम करने और लोगों के बीच साख रखने वाले लोगों की बजाए खाने और 'पीने' वाले लोगों का जमावड़ा बढ़ा है - और इसी कारण से खेमे की राजनीतिक साख लगातार घटती ही जा रही है । डिस्ट्रिक्ट में विशाल सिन्हा की बदनामी की स्थिति का आलम यह है कि अपने जिस चुनाव में उन्हें केएस लूथरा का समर्थन नहीं मिला था, उस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था; और पिछले लायन वर्ष के अपने गवर्नर-काल में उन्हें उम्मीदवार का टोटा पड़  गया था तथा उन्हें केएस लूथरा के उम्मीदवार मनोज रुहेला का समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ा था । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जब से केएस लूथरा ने मोर्चा संभाला है, तब से जीत उसी को मिली है - जिसके साथ केएस लूथरा  का समर्थन रहा है । ऐसे में, कमल शेखर के लिए रास्ता वैसे ही मुश्किलों भरा है - उस पर उनकी उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे नेता बेमन से और मजबूरी में उनके साथ हैं, और विशाल सिन्हा जैसे लोगों का पूरा ध्यान सिर्फ उनसे पैसा खर्च करवाने पर है । कमल शेखर के नजदीकियों को भी लग रहा है कि कमल शेखर गलत जगह फँस गए हैं - उनके अनुसार, सोचने की बात यह है कि अशोक अग्रवाल जिनके चंगुल से निकल भागे हैं, और मीरा सेठ जिन पर भरोसा नहीं कर पा रही हैं, वह कमल शेखर के ही क्या काम आयेंगे ?

Monday, September 25, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के गवर्नर इंद्रजीत सिंह की उनके अपने साथियों से सामने ही सौ रुपए के मुद्दे पर इंटरनेशनल डायरेक्टर वीरेंद्र लूथरा ने फजीहत कर डाली

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह ने इंटरनेशनल डायरेक्टर वीरेंद्र लूथरा को आमंत्रित तो किया था डायबिटीज जागरूकता अभियान पर बोलने के लिए, लेकिन वीरेंद्र लूथरा ने तय विषय पर बोलने की बजाए वर्ष 2022 में दिल्ली में होने वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन के खर्च के लिए प्रत्येक लायन सदस्य से सौ रुपए लिए जाने के मुद्दे पर इंद्रजीत सिंह की बुरी तरह 'धुलाई' ही कर डाली । कार्यक्रम में मौजूद जो लोग सौ रुपए लिए/दिए जाने का विरोध कर रहे हैं, उनके लिए वीरेंद्र लूथरा का एक एक शब्द दिल में शूल की तरह चुभने जैसा था - लेकिन इंद्रजीत सिंह को मनमसोस कर वीरेंद्र लूथरा की बातें सुननी पड़ी और कुछेक मौकों पर तो ताली बजा कर उनकी बात का - भले ही झूठा और मुँह दिखाऊ - समर्थन भी करना पड़ा । इंद्रजीत सिंह के लिए माहौल सचमुच बहुत ही कष्टपूर्ण और अपमानजनक रहा, तथा उनकी पीड़ा को उनके अलावा अन्य कोई समझ या महसूस नहीं ही कर पाया होगा - जिस मुद्दे पर वह डिस्ट्रिक्ट में क्लब्स के समारोहों में लगातार चीखते रहे हैं और जिन लोगों के सामने चीखते रहे हैं, उस मुद्दे पर उन्हीं लोगों के सामने इंटरनेशनल डायरेक्टर वीरेंद्र लूथरा ने जमकर उनकी ऐसी-तैसी की - और वह बेचारगी की मूरत बन चूँ तक नहीं कर पाए ।
वीरेंद्र लूथरा ने जैसे इंद्रजीत सिंह को सुनाते हुए उलाहना दिया कि लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में पहली बार देश को और दिल्ली को इंटरनेशनल कन्वेंशन आयोजित करने का ऐतिहासिक मौका मिल रहा है, लेकिन छोटी सोच के कुछेक लोग इस मौके को यादगार बनाने में सहयोग करने की बजाए सौ रुपए जैसी मामूली रकम को मुद्दा बना रहे हैं । वीरेंद्र लूथरा ने नेपाल के लायंस सदस्यों का उदाहरण देते हुए इंद्रजीत सिंह तथा उनके संगी-साथियों को लज्जित भी किया; उन्होंने विस्तार से नेपाल में लायनिज्म के विस्तार की बात बताई और इस तथ्य को रेखांकित किया कि दिल्ली में होने वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन को कामयाब बनाने के लिए किस तरह से वहाँ के लायंस सदस्यों ने अभी से कमर कस ली है । वीरेंद्र लूथरा ने सौ रुपए के मुद्दे पर पहले तो इंद्रजीत सिंह और उनके साथियों को जी भर कर 'जलाया' और फिर उनके जले पर नमक छिड़कते हुए यह और दावा किया कि कुछ लोग यदि सौ सौ रुपए नहीं देंगे तो क्या वह यह समझते हैं कि दिल्ली में इंटरनेशनल कन्वेंशन नहीं हो पाएगी - या अच्छे से नहीं हो पाएगी; वीरेंद्र लूथरा ने दावा किया कि दिल्ली में होनी वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन को लेकर अपने देश में ही नहीं, बल्कि आस-पड़ोस के देशों के लायन पदाधिकारियों तथा सदस्यों तक में जैसा जोश और उत्साह है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि देश में और दिल्ली में पहली बार वर्ष 2022 में होने वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन यादगार होगी ।
डायबिटीज जागरूकता अभियान को लेकर होने वाले कार्यक्रम में इंटरनेशनल डायरेक्टर वीरेंद्र लूथरा ने तय विषय पर बोलने की बजाए सौ रुपए के मुद्दे पर जैसी खरी-खोटी सुनाई, उससे आभास मिलता है कि यह सब उन्होंने इंद्रजीत सिंह को 'सुनाने' तथा उनकी 'धुलाई' करने के उद्देश्य से इरादतन ही किया । उल्लेखनीय है कि सौ रुपए के मुद्दे पर खुद इंद्रजीत सिंह का रवैया भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जैसा नहीं है - उनके रवैये के पीछे का उद्देश्य कुछ और ही नजर आता है । इस मुद्दे पर जैसी मुखरता और आक्रामकता वह दिखा रहे हैं, वैसी मल्टीपल का अन्य कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं दिखा रहा है । दरअसल यह मुद्दा डिस्ट्रिक्ट का मुद्दा है ही नहीं, यह तो मल्टीपल का मुद्दा है - डिस्ट्रिक्ट को तो मल्टीपल के फैसले का पालन भर करना है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में इंद्रजीत सिंह लेकिन क्लब्स के कार्यक्रमों में इस मुद्दे को लेकर जिस तरह की उत्तेजना भरी बातें करते रहते हैं, उससे लगता है कि जैसे उन्हें इस मुद्दे को लेकर ही गवर्नरी करनी है ।
सौ रुपए के मुद्दे पर डिस्ट्रिक्ट में इंद्रजीत सिंह द्वारा दिखाई जा रही आक्रामकता दरअसल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के चेयरमैन के रूप में विनय गर्ग की हो रही थुक्का-फजीहत से पैदा हुई बौखलाहट व खिसियाहट का नतीजा है । असल में, सौ रुपए के मुद्दे को लेकर मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के चेयरमैन के रूप में विनय गर्ग लायंस कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया के पदाधिकारियों के बीच पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं । क्षेत्र के ग्यारह मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट्स में एक अकेला मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 ही है, जो वर्ष 2022 की इंटरनेशनल कन्वेंशन के खर्च के लिए प्रत्येक सदस्य से सौ रुपए लिए जाने के फैसले का विरोध कर रहा है । अभी हाल ही में दिल्ली में लायंस कोऑर्डीनेशन कमेटी ऑफ इंडिया के पदाधिकारियों की मीटिंग हुई जिसमें मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के चेयरमैन के रूप में विनय गर्ग की इस मुद्दे पर भारी फजीहत हुई । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में भी, और खुद विनय गर्ग के अपने डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में भी इस मामले को लेकर विनय गर्ग और इंद्रजीत सिंह को लोगों के ताने सुनने को मिल रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के नए पदाधिकारियों का अधिष्ठापन समारोह इंद्रजीत सिंह ने अमृतसर में किया, जिसके लिए पूर्व गवर्नर्स और अपने खास खास लोगों से सात हजार रुपए तथा लायंस पदाधिकारियों से ग्यारह हजार रुपए के हिसाब से पैसे लिए - पहले तो इसी बात पर लोगों के बीच सवाल उठे कि यदि पूर्व गवर्नर्स और खास लोगों का काम सात हजार रुपए में हो गया, तो अन्य लोगों से ग्यारह हजार रुपए क्यों लिया गए; दूसरी बात यह कि इंटरनेशनल कन्वेंशन के लिए तो विनय गर्ग और इंद्रजीत सिंह को सौ रुपए भारी लग रहे हैं, और अपने काम में लोगों से हजारों रुपए बसूल कर रहे हैं ।
इस तरह की बातों के चलते मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में विनय गर्ग को दोहरी 'मार' पड़ रही है, एक तरफ तो लायंस कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया में वह पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं - और दूसरी तरफ उनके अपने मल्टीपल व डिस्ट्रिक्ट में उनके और इंद्रजीत सिंह के खर्चीले आयोजनों पर सवाल उठ रहे हैं । समझा जा रहा है कि इस दोहरी मार की चोट से पैदा हुआ फ्रस्ट्रेशन ही है, जिसके चलते इंद्रजीत सिंह क्लब्स के अधिष्ठापन समारोहों में सौ रुपए के मुद्दे पर भाषणबाजी करते रहते हैं - जो वास्तव में डिस्ट्रिक्ट का नहीं, बल्कि मल्टीपल का मुद्दा है । लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में इंद्रजीत सिंह की इस हरकत की जानकारी ऊपर के लायंस पदाधिकारियों को भी है - इसीलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर वीरेंद्र लूथरा को जैसे ही मौका मिला, उन्होंने सौ रूपए के मुद्दे पर इंद्रजीत सिंह की उनके अपने साथियों के सामने ही फजीहत कर डाली, और इंद्रजीत सिंह के लिए मजबूरी की स्थिति यह बनी कि अपने लोगों के बीच अपनी ही फजीहत पर उन्हें खुद ताली भी बजानी पड़ी । जो हुआ, उससे आभास मिलता है कि सौ रुपए के मुद्दे पर मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में विनय गर्ग की और उनके सिपहसालार के रूप में इंद्रजीत सिंह की आगे अभी और किरकिरी होती रहेगी ।

Sunday, September 24, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने प्रेसीडेंट्स के बाद, ठीक से काम न करने के लिए असिस्टेंट गवर्नर्स को हड़काया - जिसे जान/सुन कर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को डर हुआ है कि कहीं अगला नंबर उनका तो नहीं है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने अपने गुस्से की ऊँगली के निशाने पर प्रेसीडेंट्स के बाद अब असिस्टेंट गवर्नर्स को लिया है - उनकी इस हरकत को देख/जान कर लोगों ने मजाक में कहना शुरू कर दिया है कि इसके बाद अब पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की बारी है । असिस्टेंट गवर्नर्स से रवि चौधरी के खफ़ा होने का कारण यह है कि असिस्टेंट गवर्नर्स ने मेंबरशिप सेमीनार में कोई दिलचस्पी ही नहीं ली, और 14 में से कुल दो असिस्टेंट गवर्नर्स ही उक्त सेमीनार में पहुँचे । ऐसे में रवि चौधरी को उनकी क्लास लेना जरूरी लगा और इसलिए रवि चौधरी ने उनके साथ मीटिंग की और उन्हें उनकी ड्यूटीज और जिम्मेदारियाँ समझाईं । रवि चौधरी के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि असिस्टेंट गवर्नर्स के साथ उनका व्यवहार हालाँकि उतना 'कड़क' नहीं था, जितना कि छोटे क्लब्स के प्रेसीडेंट्स के साथ था - लेकिन रवि चौधरी ने असिस्टेंट गवर्नर्स को यह अहसास करवाने में कोई कमी नहीं छोड़ी कि वह लोग अपना काम गंभीरता से और ठीक से नहीं कर रहे हैं । कुछेक असिस्टेंट गवर्नर्स ने शिकायत की कि क्लब्स के प्रेसीडेंट्स उनके साथ उचित सहयोग नहीं करते हैं, जिस पर रवि चौधरी ने उनसे तुरंत कहा कि ऐसे प्रेसीडेंट्स के नाम बताओ - मैं उनके खिलाफ कार्रवाई करता हूँ ।
रवि चौधरी ने असिस्टेंट गवर्नर्स के साथ मीटिंग में जो तेवर दिखाए, उसकी जानकारी मिलने के बाद डिस्ट्रिक्ट में लोगों ने मजाक में कहना शुरू कर दिया है कि रवि चौधरी अब जल्दी ही काम न करने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की खबर लेंगे; पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के प्रति शिकायतें करते हुए तो उन्हें सुना ही जाता रहा है - इसी बिना पर लोगों ने कहना शुरू किया है कि रवि चौधरी काम न करने वाले क्लब्स बंद करवाने और उनके प्रेसीडेंट्स को चलता करवाने के साथ साथ काम न करने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को भी संट करेंगे । क्लब्स के खिलाफ कार्रवाई करने/करवाने को लेकर रवि चौधरी ने अपना अच्छा मजाक बनवा लिया है, जिसकी चर्चा रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस तक में सुनने को मिली है । साऊथ एशिया ऑफिस जाने वाले डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स को क्लब एण्ड डिस्ट्रिक्ट सपोर्ट हेड जतिंदर सिंह से सुनने को मिला कि आपका गवर्नर कैसा है - यहाँ पूछ रहा था कि क्लब्स बंद करवाने का क्या प्रोसीजर है; गवर्नर्स तो क्लब्स खुलवाने में दिलचस्पी लेते हैं, यह अनोखा ही गवर्नर देखा जो क्लब्स बंद करवाने में दिलचस्पी ले रहा है । इस पर जतिंदर सिंह को सुनने को मिला कि हमारा रवि चौधरी ही 'असली' वाला गवर्नर है, उससे बच कर रहना - कहीं वह तुम्हें भी यहाँ हेड के पद से न हटवा दे । इस तरह की बातचीतों में रवि चौधरी का जमकर मजाक बन रहा है ।
डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स का कहना है कि रवि चौधरी के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनका सारा ध्यान दूसरों में कमियाँ निकालने पर ही है - और अपना कोई काम ठीक से करने पर उनका जरा भी ध्यान नहीं है । इस संबंध में बड़ा सटीक उदाहरण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के चुनाव से जुड़े डिस्ट्रिक्ट बाई-लॉज के उल्लंघन का है । रवि चौधरी ने अपने गवर्नर-काल की डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में पृष्ठ 168 पर डिस्ट्रिक्ट बाई-लॉज का नियम प्रकाशित किया है, जिसके अनुसार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को 31 जुलाई तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारों के नाम आमंत्रित कर लेने चाहिए होते हैं - और 30 सितंबर तक उक्त नाम मँगा लेने होते हैं । रवि चौधरी ने लेकिन अभी तक इस बारे में कोई कार्रवाई शुरू नहीं की है । उन्हें इत्ती सी बात भी लगता है कि समझ में नहीं आई है कि डिस्ट्रिक्ट बाई-लॉज सिर्फ डायरेक्टरी में प्रकाशित करने के लिए ही नहीं बने हैं - बल्कि अमल करने के लिए बने हैं । तारीखों की इस समयबद्धता से हालाँकि बच सकने का उनके पास मौका होता - यदि वह 31 जुलाई से पहले काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में यह फैसला करवा लेते कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अपनी सुविधा-अनुसार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की प्रक्रिया पूरी कर लेगा; रवि चौधरी ने लेकिन यह काम भी नहीं किया - और सीधे सीधे डिस्ट्रिक्ट बाई-लॉज का मज़ाक बना दिया है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों को नियमानुसार चलाने के लिए सुझाव और सहयोग लेने खातिर रवि चौधरी को शुरू में ही काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग कर लेना चाहिए थी - लेकिन उन्होंने तो तीन महीने पूरे होने जा रहे समय में भी काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुलाने/करने की जरूरत नहीं समझी है, और मनमाने तरीके से ही काम किए जा रहे हैं - जिससे हर मौके पर और हर जगह पर उनका मजाक ही बनता जा रहा है । लगातार बन रहे अपने मजाक से बेफिक्र दिख रहे रवि चौधरी लेकिन अपने काम पर ध्यान देने की बजाए दूसरों पर ऊँगली उठाने का - 'दूसरों को नसीहत, और खुद मियाँ फजीहत' की तर्ज पर जो काम किए जा रहे हैं - उसमें यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रेसीडेंट्स और असिस्टेंट गवर्नर्स के बाद उनकी ऊँगली के निशाने पर कौन आता है ?

Saturday, September 23, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू व यशपाल दास तथा उनके साथी गवर्नर्स सीधे-सीधे हिसाब-किताब देने के नाम पर अपनी छवि खराब होने/करने का रोना क्यों रो रहे हैं ?

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने डिस्ट्रिक्ट और डिस्ट्रिक्ट में रोटरी के नाम पर चल रही संस्थाओं के हिसाब-किताब सँभालने की छोटी-सी कोशिश क्या की, कि डिस्ट्रिक्ट के बड़े बड़े महारथी 'नंगे' होते चले जा रहे हैं । टीके रूबी ने निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा से 'रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3080 ट्रस्ट' के अकाउंट के बारे में पत्र लिख कर पूछा, तो रमन अनेजा की तरफ से उन्हें जबाव मिला कि उक्त ट्रस्ट का काम पूर्व गवर्नर शाजु पीटर देखते हैं और उसका अकाउंट उन्हीं से मिलेगा । तब टीके रूबी ने शाजु पीटर का दरवाजा खटखटाया, लेकिन शाजु पीटर से यह सुन  कर वह अवाक् रह गए कि उक्त ट्रस्ट से उनका कोई वास्ता नहीं है और इसलिए उसके अकाउंट से भी उनका कोई लेना-देना नहीं है । अपनी जिम्मेदारी से बचने/भागने और दूसरे पर थोपने का यह सर्कस मजेदार है - करीब तीन महीने पहले तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर रहे रमन अनेजा ने क्या अपने आप को या किसी और को बचाने के लिए झूठे ही शाजु पीटर का नाम लिया है, या शाजु पीटर झूठ बोल रहे हैं ? 'रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3080 ट्रस्ट' के अकाउंट में आखिर ऐसा क्या झोलझाल है कि डिस्ट्रिक्ट के इन दोनों बड़े लोगों को इस तरह से सच्चाई छिपाना पड़ रहा है - और कोई माई का लाल अभी तक सामने नहीं आया है जो कहे कि ट्रस्ट का हिसाब-किताब मेरे पास है, और मैं उसका अकाउंट देता हूँ । डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट का हिसाब-किताब किसके पास है, यह पता लगाने का काम क्या अब सीबीआई को सौंपना पड़ेगा ?
इस तरह के मामलों में चटक मजेदारी का तड़का पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास ने यह कहते हुए लगाया है कि टीके रूबी लोगों के बीच पूर्व गवर्नर्स की छवि खराब करने तथा उन्हें बदनाम करने का काम कर रहे हैं । किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है कि पूर्व गवर्नर्स का जो नंगापन सामने आ रहा है, उसके लिए टीके रूबी को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी तो डिस्ट्रिक्ट का हिसाब/किताब व्यवस्थित करते हुए विभिन्न कमेटियों और ट्रस्टों के अकाउंट माँग रहे हैं, अब इसके जबाव में सीधे सीधे एकाउंट देने की बजाए कमेटियों और ट्रस्टों पर कुंडली मारे बैठे पूर्व गवर्नर्स यदि अपने या दूसरे के कपड़े उतारने में जुट गए हैं तो इसके लिए टीके रूबी को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है ? वह तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपना काम कर रहे हैं । ऐसे में, टीके रूबी पर पूर्व गवर्नर्स की छवि खराब करने का यशपाल दास का आरोप ही संदेह के घेरे में आ जाता है - और लोगों को लगता है कि यशपाल दास अपनी और अपने साथी गवर्नर्स की कारस्तानियों पर पर्दा डालने के लिए टीके रूबी को निशाना बना रहे हैं । लोगों को याद नहीं है कि यशपाल दास ने कभी दिलीप पटनायक पर सवाल उठाया हो, जिन्हें अपने गवर्नर-काल के हिसाब/किताब की गड़बड़ियों पर पर्दा डालने के लिए दो दो बैलेंसशीट तैयार करवाना पड़ी थीं; रमन अनेजा की कारस्तानी पर भी यशपाल दास चुप बने हुए हैं, जिन्होंने अपने गवर्नर-काल के हिसाब/किताब को लेकर गजब किस्म की नाटकबाजी की हुई है - उल्लेखनीय है कि रमन अनेजा को मौजूदा रोटरी वर्ष की फाइनेंस कमेटी को अपने गवर्नर-काल का हिसाब/किताब देना है; रमन अनेजा ने लेकिन फाइनेंस कमेटी को हिसाब/किताब न देकर सुभाष गर्ग को दे दिया - सुभाष गर्ग ने उसे हेमंत अरोड़ा को भेज दिया, हेमंत अरोड़ा पूछ रहे हैं कि यह मुझे क्यों दे दिया, मेरा इससे क्या मतलब, मैं इसका क्या करूँ ? लोगों के बीच पूर्व गवर्नर्स की छवि खराब करने वाली रमन अनेजा की इस हरकत पर तो यशपाल दास चुप बने हुए हैं, और आरोप टीके रूबी पर लगा रहे हैं ।
हिसाब/किताब को लेकर नाटकबाजी करने के मामले में तो यशपाल दास ने रमन अनेजा को भी पछाड़ दिया है । उल्लेखनीय है कि पिछले दो वर्षों में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में खुद यशपाल दास ने लोगों के बीच घोषणा की कि रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के अकाउंट वह या तो ईमेल के जरिए लोगों को भेजेंगे और या जीएमएल में प्रकाशित करवायेंगे । उनकी इसी घोषणा का उल्लेख करते हुए टीके रूबी ने जीएमएल के अगले अंक के लिए उनसे उक्त ट्रस्ट के अकाउंट भेजने का अनुरोध किया । टीके रूबी ने तो उम्मीद की थी कि उनके अनुरोध पर यशपाल दास की तरफ से उन्हें खुशी खुशी अकाउंट मिल जायेंगे, लेकिन यशपाल दास को तो नाटक दिखाना था - सो उन्होंने टीके रूबी को लंबा/चौड़ा पत्र लिख मारा जिसमें विस्तार से बताया कि राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू की चेयरमैनी वाले उक्त ट्रस्ट में कौन कौन हैं और ट्रस्ट ने क्या क्या किया है; यशपाल दास ने यह भी बताया कि ट्रस्ट की हर वर्ष बैलेंसशीट तैयार होती है जिसे ट्रस्टियों को भेजा जाता है; उन्होंने यह भी बताया कि ट्रस्ट के अकाउंट जल्दी ही रोटरी न्यूज में प्रकाशित किए/करवाए जायेंगे; यशपाल दास ने और भी बहुत कुछ बताया, पर जीएमएल के लिए अकाउंट नहीं दिए - अपने पत्र में उन्होंने टीके रूबी पर आरोप और मढ़ दिया कि वह लोगों के बीच उनकी छवि खराब कर रहे हैं । उक्त ट्रस्ट का हिसाब/किताब जीएमएल में प्रकाशित करने का आईडिया यशपाल दास का ही था, अपना यह आईडिया उन्होंने खुद ही लोगों के सामने जाहिर किया था - टीके रूबी तो उनके ही आईडिया को अमल में लाने का प्रयास कर रहे थे । ऐसे में यशपाल दास का भड़कना किसी को भी समझ में नहीं आया - 'चोर की दाढ़ी में तिनका' वाली कहावत लोगों को लेकिन जरूर याद आई है ।
इस बीच मेडीकल मिशन टीम के साथ वॉलिंटियर के रूप में मंगोलिया गए राजा साबू और मधुकर मल्होत्रा की तस्वीरें लोगों को देखने को मिली हैं, जिनमें यह दोनों पर्यटन करते और मौज-मजा करते देखे गए हैं । लोगों के लिए हमेशा ही यह उत्सुकता का विषय रहा है कि मेडीकल मिशन में वॉलिंटियर के रूप में यह दोनों करते क्या होंगे ? तस्वीरों को देख कर भेद खुला है कि यह वास्तव में क्या करते हैं । इनके क्लब के कई लोगों का कहना है कि उनका भी मन है कि वह भी वॉलिंटियर के रूप में मेडीकल मिशन में जाएँ - पर राजा साबू और मधुकर मल्होत्रा के होते हुए हुए 'सेवा' और कोई कैसे कर सकता है ? लेकिन खबरदार, राजा साबू और मधुकर मल्होत्रा की इस सेवा में किसी ने भी 'मेवा' 'देखने' की कोशिश की - और यह सवाल उठाया कि मंगोलिया मेडीकल मिशन में कितनी रकम खर्च हुई है और कैसे-कैसे खर्च हुई है; ऐसा हुआ तो यही समझा जायेगा कि वह इन बेचारों की छवि खराब करने तथा इन्हें बदनाम करने का काम कर रहा है ।

Friday, September 22, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में गवर्नरी पाने के लिए अदालती कार्रवाई करने वाले दिनेश शर्मा और उनके सलाहकार पूर्व गवर्नर्स से बार बार फजीहत का शिकार होने के बावजूद इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम इंटरनेशनल बोर्ड में दिनेश शर्मा को न्याय दिलाने का सचमुच प्रयास करेंगे क्या ?

सिकंदराबाद । दिनेश शर्मा द्वारा शुरू की गई अदालती कार्रवाई को बंद करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की रोटरी इंटरनेशनल की कार्रवाई को लेकर कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने जिस तरह से दिनेश शर्मा को भड़काने का काम किया है, उससे लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व गवर्नर्स चाहते ही नहीं हैं कि डिस्ट्रिक्ट में हालात सुधरें और डिस्ट्रिक्ट पटरी पर लौटे । उल्लेखनीय है कि 14 सितंबर को दिल्ली में कुछेक पूर्व गवर्नर्स के साथ दिनेश शर्मा ने इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम के साथ मुलाकात और बातचीत की । उस मुलाकात और बातचीत का कुल नतीजा यह निकला कि दिनेश शर्मा खुश और संतुष्ट होकर लौटे । पाँच दिन बाद दिनेश शर्मा और पूर्व गवर्नर्स को पता चला कि 15 सितंबर को रोटरी इंटरनेशनल ने दिनेश शर्मा की अदालती कार्रवाई को निरस्त करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी । रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से इसी तरह की दूसरी कोशिश कल, यानि 21 सितंबर को हुई, लेकिन उस कोशिश को भी मुँहकी खानी पड़ी । रोटरी इंटरनेशनल की इन कोशिशों को लेकर कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने दिनेश शर्मा को यह कहते हुए भड़काने का काम किया है कि रोटरी इंटरनेशनल तुम्हारे साथ दोहरा खेल खेल रहा है, और तुम्हें उसके खेल में फँसना नहीं है और मजबूती से अपनी अदालती कार्रवाई को जारी रखना है ।
समझा जाता है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व गवर्नर्स अपनी करतूतों पर पर्दा डालने तथा डिस्ट्रिक्ट में अपने आप को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए दिनेश शर्मा को मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं - मजे की बात यह है कि दिनेश शर्मा भी खुशी खुशी उनके हाथों इस्तेमाल हो रहे हैं । हमारे यहाँ सयानों ने कहा/बताया है कि आदमी को जो चीज मुफ़्त में या सस्ते में मिल जाती है, आदमी उसकी कद्र नहीं करता है । दिनेश शर्मा के प्रसंग में दरअसल यही बात सही साबित होती दिख रही है । अलग अलग मौकों पर उन्हें कई बार कहते हुए सुना गया है कि उनकी कार्रवाई से यदि डिस्ट्रिक्ट और बर्बाद तथा रोटरी और बदनाम होती हो, तो उनकी बला से; उनकी बला से डिस्ट्रिक्ट और रोटरी भाड़ में जाए ! उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी करने का मौका तो दीपक बाबु को भी नहीं मिला, लेकिन डिस्ट्रिक्ट और रोटरी को लेकर ऐसे 'वचन' उनकी तरफ से सुनने को नहीं मिले । दोनों के रवैये में यह अंतर शायद इसीलिए है कि दीपक बाबु को गवर्नरी बहुत 'मेहनत' करने के बाद मिली थी, इसलिए उनके मन में उसके लिए कद्र थी और उन्हें गवर्नरी करने का मौका जब नहीं मिला तो थोड़ा बहुत असंतोष दिखा कर उन्होंने इसे अपनी किस्मत मान लिया; लेकिन दिनेश शर्मा को तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी की होशियारी के चलते गवर्नरी सस्ते में मिल गई थी, इसलिए उनके मन में उसके लिए कद्र नहीं बन पाई और जब उन्हें अपनी गवर्नरी छिनती हुई दिखी तो वह डिस्ट्रिक्ट रोटरी को 'भाड़' में पहुँचाने की तैयारी में जुट गए ।
दिनेश शर्मा जिस डिस्ट्रिक्ट और रोटरी में सालों-साल रहे, जहाँ उन्होंने गवर्नर बनने के बारे में सोचा और बने, जहाँ वह अभी भी गवर्नरी करना चाहते हैं - वहाँ के बारे में उनकी ऐसी 'सोच' देख/सुन कर लोगों को लगा भी है कि वह यदि सचमुच में गवर्नर बन भी गए तो करेंगे क्या ? डिस्ट्रिक्ट की मौजूदा दशा/दिशा के लिए जिम्मेदार पूर्व गवर्नर्स पर दिनेश शर्मा की निर्भरता को देख कर यही लगता है कि तब वह दूसरे तरीके से डिस्ट्रिक्ट और रोटरी को भाड़ में पहुँचायेंगे ? गौर करने वाली बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट के बदनाम पूर्व गवर्नर्स - जिन्हें रोटरी इंटरनेशनल से भी लताड़ मिली और जिनमें से कुछ अपनी हरकतों के कारण डिस्ट्रिक्ट के अभी तक के अंतिम गवर्नर संजीव रस्तोगी द्वारा अपनी टीम से निकाले गए - के हाथों की कठपुतली बने दिनेश शर्मा ने न तो रोटरी इंटरनेशनल के फैसले को स्वीकार करने के मामले में संजीदगी का परिचय दिया और न ही मामले को हल करने में व्यावहारिक समझदारी दिखाई । उल्लेखनीय है कि गवर्नरी पाने के लिए उनके अदालत जाने के बाद बासकर चॉकलिंगम की तरफ से उन्हें ऑफर मिला था कि वह यदि अदालती मामला वापस ले लेते हैं तो वर्ष 2017-18 से डिस्ट्रिक्ट को उसका स्टेटस वापस दिलवाने तथा उन्हें गवर्नरी दिलवाने की कार्रवाई शुरू करवाई जा सकती है । दिनेश शर्मा को लेकिन यह ऑफर पसंद नहीं आया; अपने सलाहकारों की सलाहानुसार उन्होंने जिद की कि पहले उन्हें गवर्नर माना/बनाया जाए, उसके बाद ही वह अपनी अदालती कार्रवाई को वापस लेंगे ।
रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्था से परिचित जिस भी व्यक्ति ने दिनेश शर्मा की यह बात सुनी, वह दिनेश शर्मा की अज्ञानता और बेवकूफी पर हँसा ही; हर किसी ने यही कहा कि न तो दिनेश शर्मा को कुछ पता है और न उनके सलाहकारों को । रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्था से परिचित हर व्यक्ति जानता है, और जो नहीं भी जानता है वह अपनी कॉमनसेंस से समझता है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 को उसका स्टेटस वापस देने तथा गवर्नर अधिकृत करने का फैसला करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ इंटरनेशनल बोर्ड को है; बासकर चॉकलिंगम उस बोर्ड के एक सदस्य हैं और इस नाते उनका काम और अधिकार सिर्फ इतना है कि वह डिस्ट्रिक्ट और दिनेश शर्मा की वहाँ प्रभावी तरीके से पैरवी करें । बासकर चॉकलिंगम पैरवी के लिए जरूरी और अधिकृत फीडबैक के लिए इंटरनेशनल द्वारा डिस्ट्रिक्ट में नियुक्त पदाधिकारी संजय खन्ना पर निर्भर हैं । ऐसे में, दिनेश शर्मा और डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बासकर चॉकलिंगम और संजय खन्ना के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहिए - लेकिन देखने में आया कि दिनेश शर्मा और डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोग इन दोनों से ही लड़ने लगे और इनकी ही फजीहत करने में जुट गए । एक मौके पर बासकर चॉकलिंगम ने पूर्व गवर्नर्स से मिलने और बातचीत करने के लिए मेरठ में मीटिंग रखी, लेकिन पूर्व गवर्नर्स ने उस मीटिंग का ही बहिष्कार कर दिया ।
दिनेश शर्मा और उनके सलाहकार बने पूर्व गवर्नर्स का रवैया ऐसा रहा है जैसे कोई अपराधी न्यायालय के स्टॉफ तथा वकीलों से यह तर्क देते हुए झगड़ा कर ले कि उसे पता है कि उसके साथ न्याय नहीं होगा । उसकी आशंका यदि सच भी है तो भी न्यायालय के स्टॉफ व वकीलों से झगड़ा करके क्या वह न्याय पा लेगा ? दिनेश शर्मा और उनके सलाहकार बने पूर्व गवर्नर्स की बुद्धि में इतनी मोटी सी बात भी नहीं घुस पा रही है क्या कि रोटरी इंटनेशनल बोर्ड में डिस्ट्रिक्ट 3100 के मामले में रिपोर्ट भारत के इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में बासकर चॉकलिंगम को ही देनी है, यह काम अमेरिका या जापान या जर्मनी या फ्रांस या ग्वाटेमाला या कोरिया या ऑस्ट्रेलिया या ब्राजील के इंटरनेशनल डायरेक्टर को नहीं देनी है; इसलिए बासकर चॉकलिंगम से यदि आपको शिकायतें हैं भी तो भी आपको अंततः उन्हीं से अपनी बात करनी है, उनसे लड़ना नहीं है या उनका बहिष्कार नहीं करना है । संजय खन्ना के मामले में भी पूर्व गवर्नर्स को इस सच्चाई को 'समझना' होगा कि उनकी ही करतूतों के कारण डिस्ट्रिक्ट को सजा मिली और वह नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में कर दिया गया तथा संजय खन्ना को उसकी जिम्मेदारी सौंप दी गई । जाहिर है कि संजय खन्ना तो मेहमान की तरह से हैं, उनके तौर-तरीके यदि पसंद नहीं भी आ रहे हैं तो भी अच्छा और जरूरी तो यह होना चाहिए कि उनके साथ मिल कर डिस्ट्रिक्ट को बुरी स्थिति से निकाला जाए, जिसके बाद संजय खन्ना की भी विदाई हो ही जाएगी । घर में कोई मेहमान आता है और उसकी बातें या उसका व्यवहार यदि पसंद नहीं भी आता है तो हम क्या उससे लड़ने लगते हैं ? डिस्ट्रिक्ट के बदनाम पूर्व गवर्नर्स का रवैया तो फिर भी समझ में आता है; उन्होंने तो न सुधरने की कसम खा रखी है - लेकिन दिनेश शर्मा ने अपने आप को जिस तरह से उनकी कठपुतली बना लिया है, उससे डिस्ट्रिक्ट का मामला उलझता ही जा रहा है ।

Tuesday, September 19, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में ललित खन्ना की बढ़त को रोकने के लिए प्रेसीडेंट्स से अपने सामने वोट डलवाने की आलोक गुप्ता के समर्थक नेताओं की 'डांडिया' कार्रवाई पर इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम ने अपनी डंडी चलाई

गाजियाबाद । 24 सितंबर की रात गाजियाबाद के 'द मोनार्क' में आयोजित हो रही डांडिया नाइट को लेकर इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम ने सख्त रवैया अपनाते हुए फैसला सुनाया है कि 25 सितंबर की सुबह तक पड़े वोटों की सख्ती से स्क्रीनिंग की जाएगी और यदि कुछ भी गड़बड़ होने का संदेह पाया गया तो उन सभी वोटों को निरस्त कर दिया जाएगा । बासकर चॉकलिंगम के इस रवैये और फैसले ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आलोक गुप्ता के लिए व्यावहारिक तथा मनोवैज्ञानिक समस्या पैदा कर दी है । दरअसल उक्त डांडिया नाइट को आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में वोटर-प्रेसीडेंट्स को 'घेरने' तथा अपनी निगरानी में उनके वोट डलवाने के जुगाड़ के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि 24 सितंबर की रात 12 बजे से ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए वोटिंग लाइन खुलनी है - चर्चा और आरोप यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल और उनके ट्रेनर मुकेश अरनेजा की योजना यह है कि क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को इस आयोजन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जाए और उन्हें रात 12 बजे तक रोके रखा जाए - ताकि वोटिंग लाइन खुलते ही अपने सामने उनसे आलोक गुप्ता के पक्ष में वोट डलवाया जाए । यह चर्चा और आरोप चूँकि रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों तक पहुँच गया है, इसलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम ने तो इसे लेकर सख्त रवैया जाहिर कर ही दिया है - इस मामले ने लेकिन आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को मिल रहे समर्थन को लेकर किए जा दावे को भी संदेहास्पद बनाने का काम किया है ।
आलोक गुप्ता के समर्थक नेताओं का दावा है कि आलोक गुप्ता को उससे भी बड़ी जीत मिलेगी, जैसी पिछले वर्ष दीपक गुप्ता को मिली थी । समर्थक नेताओं ने दावा तो कर दिया है; लेकिन लगता है कि उन्हें खुद अपने ही दावे पर भरोसा नहीं है - यदि भरोसा होता तो वह वोटों का जुगाड़ करने के लिए प्रेसीडेंट्स को अपमानित करने वाली हरकतें न करते । सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा ने कई प्रेसीडेंट्स को फोन कर कर के पहले तो पूछा कि 'आलोक गुप्ता ने जो डिजिटल फोटो फ्रेम उन्हें गिफ्ट में दिया है, वह अच्छा तो है न'; फिर बताया कि 'तुम्हें पता तो होगा ही कि यह काफी महँगा गिफ्ट है !' साथ ही इन्होंने यह भी जोड़ा कि 'देखो, अब आलोक गुप्ता को धोखा मत देना ।' प्रेसीडेंट्स ने इनकी इन बातों को अपमानजनक माना है । प्रेसीडेंट्स के लिए इससे भी ज्यादा अपमान की बात यह हो रही है कि सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा उन पर भरोसा भी नहीं कर रहे हैं और इस बात पर जोर दे रहे हैं कि वह उनके या उनके द्वारा बताए गए व्यक्ति से सामने ही वोट डालें । सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा को दरअसल यह भरोसा ही नहीं हो पा रहा है कि प्रेसीडेंट्स को अच्छे से खिलवा/पिलवा देने और महँगे गिफ्ट दिलवा देने के बाद भी प्रेसीडेंट्स आलोक गुप्ता को वोट देंगे ही - इसीलिए वह चाहते हैं कि प्रेसीडेंट्स उनकी आँखों के सामने ही आलोक गुप्ता के पक्ष में वोट डालें । इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ही 24 सितंबर को डांडिया नाइट का आयोजन किया गया है ।
मजे की बात यह है कि गाजियाबाद क्षेत्र के क्लब्स में आलोक गुप्ता के लिए अच्छा समर्थन बताया जा रहा है, लेकिन गाजियाबाद क्षेत्र के क्लब्स के प्रेसीडेंट्स पर ही आलोक गुप्ता के समर्थक नेताओं की तरफ से सबसे ज्यादा दबाव भी बनाया जा रहा है । यह परस्पर विरोधी रवैया वास्तव में इसलिए है क्योंकि गाजियाबाद क्षेत्र के अधिकतर बड़े और प्रमुख नेता आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के खिलाफ हैं; खास बात यह भी है कि जिन नेताओं के सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा के साथ अच्छे संबंध भी हैं, वह भी आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन करने को तैयार नहीं हैं । इसीलिए आलोक गुप्ता और उनके समर्थक नेताओं को डर है कि क्षेत्र के बड़े और प्रमुख नेताओं के विरोधी तेवरों को देखते हुए कहीं प्रेसीडेंट्स पर किया गया उनका 'काम' बेकार न चला जाए । गाजियाबाद क्षेत्र के क्लब्स के प्रेसीडेंट्स अपने अपने क्लब के बड़े और प्रमुख नेताओं के कहने में न आ जाएँ, इसलिए आलोक गुप्ता और उनके समर्थक नेता क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को अपनी पकड़ में कस कर जकड़ लेना चाहते हैं । उन्हें विश्वास है कि डांडिया में इस्तेमाल होने वाली डंडियाँ क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को जकड़ने में काम आयेंगी । लेकिन इस पर मचे बबाल ने इनके सामने दोतरफा मुसीबत भी खड़ी कर दी है ।
गाजियाबाद क्षेत्र के क्लब्स के वोटों को अपनी तरफ करने के लिए आलोक गुप्ता और उनके समर्थक नेता यदि कोई कसर नहीं छोड़े रखना चाहते हैं और इसके लिए हर छोटा/बड़ा और अच्छा/बुरा प्रयास कर रहे हैं तो इसलिए क्योंकि उन्हें भी पता है कि बाकी क्षेत्रों में उनकी स्थिति ललित खन्ना से बहुत ही खराब है । हाल-फिलहाल के दिनों में दोनों ही तरफ से जो मीटिंग्स व पार्टियाँ हुई हैं, उनमें अधिकतर में ललित खन्ना के यहाँ ज्यादा लोग जुटे देखे/पाए गए हैं - इसलिए भी आलोक गुप्ता और उनके समर्थक नेताओं को अपने वोटों की निगरानी व चौकीदारी करने की जरूरत आ पड़ी है । आलोक गुप्ता और ललित खन्ना के बीच हो रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के गणित में दिलचस्पी रखने वाले जिन लोगों ने वोटों का क्षेत्रवार विश्लेषण किया है, उन्होंने पाया है कि कुल करीब 160 वोटों में 82 से 86 वोट तो ललित खन्ना के पक्ष में और 38 से 44 वोट आलोक गुप्ता के पक्ष में पक्के माने/समझे जा रहे हैं; जबकि 35 से 40 वोटों के बारे में अनुमान नहीं लगाया जा सका है ।
क्षेत्रवार हिसाब में आलोक गुप्ता की बढ़त गाजियाबाद में तो देखी/पहचानी जा रही है, लेकिन बाकी क्षेत्रों में वह ललित खन्ना से पिछड़ते हुए ही दिख रहे हैं । दिल्ली के करीब 56 वोटों में ललित खन्ना को 37 से 40; नोएडा के 9 वोटों में 5 से 6; सोनीपत के 20 वोटों में 9 से 12; हापुड़ के 20 वोटों में 11 से 12; और गाजियाबाद के 58 वोटों में 16 से 19 वोट ललित खन्ना को मिलने का अनुमान लगाया गया है । आलोक गुप्ता के समर्थक नेता भी अंदरखाने इस अनुमान को सच मान रहे हैं और इसलिए ही उनका सारा ध्यान उन प्रेसीडेंट्स पर है जिनका रवैया अभी तक भी साफ नहीं है; इसके साथ ही गाजियाबाद के अपने वोटों को अपने साथ बनाए रखने के लिए भी उन्हें जूझना पड़ रहा है । पक्के पक्के समझे जाने वाले वोटों की गिनती में ललित खन्ना से पिछड़ने के तथ्य को पहचानते हुए, आलोक गुप्ता के समर्थक नेताओं ने डांडिया नाइट के जरिए आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को मुकाबले में लाने की जो तैयारी की है, उस पर डंडी चला कर इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम ने लेकिन उनके लिए मुसीबत बढ़ा और दी है ।

Monday, September 18, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने सेंट्रल काउंसिल सदस्य अतुल गुप्ता से अपनी और राजेश शर्मा की खुन्नस निकालने के लिए छात्रों को भड़काया और इस्तेमाल किया है क्या ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के दिल्ली स्थित मुख्यालय के बाहर बोर्ड ऑफ स्टडीज के खिलाफ छात्रों द्वारा की गई नारेबाजी को सेंट्रल काउंसिल सदस्य अतुल गुप्ता के खिलाफ नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सत्ताधारी नेताओं द्वारा छेड़ी गई लड़ाई के रूप देखा/पहचाना गया है । इस लड़ाई के मास्टरमाइंड के रूप में विवादों और आरोपों में घिरे रहे इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के ही एक अन्य सदस्य राजेश शर्मा को देखा/पहचाना जा रहा है । अतुल गुप्ता बोर्ड ऑफ स्टडीज के चेयरमैन हैं; पिछले दिनों नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के खिलाफ पैसों की हेराफेरी और लूट के मामलों की पड़ताल में जो सुबूत मिले और जिसके कारण पदाधिकारियों को लूट के पैसे वापस करने तक के लिए मजबूर होना पड़ा - उसमें अतुल गुप्ता की भूमिका से रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी बुरी तरह जले-भुने हुए हैं । अतुल गुप्ता की भूमिका से नाराजगी के चलते रीजनल काउंसिल में सत्ता खेमे के सदस्य नितिन कँवर ने मीटिंग में तमाम लोगों के सामने अतुल गुप्ता के साथ बदतमीजी भी की थी । समझा जाता है कि अतुल गुप्ता के साथ अपनी खुन्नस निकालने तथा राजेश शर्मा की हसरत पूरी करने के लिए ही रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने अपने साथियों के साथ मिल कर पहले तो छात्रों को नाराज करने वाले हालात पैदा किए और फिर छात्रों को बोर्ड ऑफ स्टडीज तथा अतुल गुप्ता के खिलाफ नारेबाजी करने के लिए भड़काया और संगठित किया । कुछेक लोगों का दावा है कि नारेबाजी करने के लिए इकट्ठा हुए छात्रों में अधिकतर राकेश मक्कड़ के भाई की कोचिंग के छात्र ही थे ।
छात्रों की नाराजगी रीजनल काउंसिल द्वारा चलाई जा रही लाइब्रेरीज को बंद करने को लेकर है । मजे की बात यह है कि लाइब्रेरीज को चलाने की जिम्मेदारी रीजनल काउंसिल की है, और हाल ही में इन्हें बंद करने का फैसला भी रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने लिया - लेकिन छात्रों ने आंदोलन बोर्ड ऑफ स्टडीज तथा उसके चेयरमैन अतुल गुप्ता के खिलाफ किया । दरअसल छात्रों को यह कहते/बताते हुए भड़काया गया कि लाइब्रेरीज चलाने में होने वाला खर्च बोर्ड ऑफ स्टडीज ने देने से मना कर दिया है, इसलिए लाइब्रेरीज को बंद किया जा रहा है । यह कहने/बताने में भी तथ्यों को छिपाया गया तथा सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया - क्योंकि वास्तविक उद्देश्य छात्रों को भड़का कर उन्हें अतुल गुप्ता के खिलाफ इस्तेमाल करना था, और इस तरह अतुल गुप्ता से बदला लेना था ।
उल्लेखनीय है कि लाइब्रेरीज चलाने का खर्च रीजनल काउंसिल और बोर्ड ऑफ स्टडीज के पदाधिकारियों के बीच तकरार का एक बहुत पुराना कारण और मामला है । इस मामले को हल करने के लिए जिम्मेदारीपूर्ण प्रयास यूँ तो कभी भी नहीं हुए और हमेशा ही लीपापोती करते हुए मामले को आगे के लिए टाला जाता रहा है - लेकिन रीजनल काउंसिल की मौजूदा टर्म के पदाधिकारियों और खासकर मौजूदा चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने तो गैरजिम्मेदारी में बेईमानी का भी जो तड़का लगाया है, उससे मामला काफी बिगड़ गया । राकेश मक्कड़ और उनके साथियों ने काउंसिल में लूट का जो नंगा-नाच किया हुआ है, उससे काउंसिल में और लाइब्रेरीज चलाने में बेमतलब के खर्चे बढ़ गए हैं । हाल-फिलहाल के पहले के वर्षों में लाइब्रेरीज चलाने का जो खर्च करीब 70/80 लाख रुपए आता था, वह पिछले वर्ष तूफानी गति से बढ़कर सवा करोड़ रुपए के करीब जा पहुँचा । रीजनल काउंसिल के बाकी सदस्यों ने कई बार सवाल उठाए कि लाइब्रेरीज चलाने का खर्च अचानक से आखिर बढ़ क्यों गया है ? राकेश मक्कड़ और उनके साथियों ने लेकिन न तो इस सवाल का जबाव दिया और न ही लाइब्रेरीज चलाने के खर्चों का कोई हिसाब-किताब दिया । बोर्ड ऑफ स्टडीज के पदाधिकारियों की तरफ से कई बार सुझाव दिया गया कि लाइब्रेरीज चलाने के खर्चे को कम किया जाए, लेकिन राकेश मक्कड़ और उनके साथियों ने काउंसिल में कभी इस बारे में बात करने और या ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी ।
राकेश मक्कड़ और काउंसिल में पदाधिकारी उनके साथियों का कहना है कि लाइब्रेरीज के खर्चे पूरे करने के लिए काउंसिल के पास पैसे नहीं हैं, इसलिए वह लाइब्रेरीज खोले नहीं रख सकते हैं । मजे की बात है कि राकेश मक्कड़ के भाई को अनाप-शनाप भुगतान करने के लिए काउंसिल के पास पैसों की कमी नहीं है; अपने चहेतों को फोटोकॉपी के काम में लाखों रुपए का भुगतान करने के लिए पैसों की कमी नहीं है; दिनभर ऑफिस में पड़े रह कर राकेश मक्कड़ को अपने और अपने साथियों के ऊपर खाने-पीने में लाखों रुपए खर्च करने में भी पैसों की कमी नहीं है; ट्रेन से यात्रा करने के अधिकारी होने के बावजूद हवाई जहाज में यात्रा करने के लिए भी काउंसिल के पास पैसों की कमी नहीं है - लेकिन छात्रों के लिए लाइब्रेरीज चलाने के लिए काउंसिल के पास पैसे नहीं हैं । काउंसिल के हिसाब-किताब को काउंसिल सदस्यों से ही छिपाने को लेकर पिछले दिनों भारी विवाद हुआ; चारों तरफ से घिर जाने के बाद राकेश मक्कड़ और उनके साथी थोड़ा-बहुत हिसाब दिखाने को मजबूर हुए तो उसमें बहुत सी 'हेरा-फेरियाँ' पकड़ी गईं - जिसमें पूर्व चेयरमैन दीपक गर्ग और मौजूदा ट्रेजरर सुमित गर्ग काउंसिल के 'लूटे गए' पैसे काउंसिल को वापस करने के लिए मजबूर हुए । पोल खुलती तथा लूटे गए पैसे वापस करने की नौबत आते देख राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों ने 'जबरदस्ती' बजट पास करवाया, जिस पर आपत्ति दर्ज कराते हुए काउंसिल सदस्यों ने ही इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को शिकायत की हुई है ।
इन बातों से सहज ही समझा जा सकता है कि लाइब्रेरीज बंद होने के लिए वास्तव में राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों का गैरजिम्मेदारना तथा 'लुटेरा' व्यवहार ही जिम्मेदार है । इनकी बेशर्मी लेकिन यह है कि इस स्थिति में भी इन्होंने राजनीति दिखा दी - और मामला बोर्ड ऑफ स्टडीज के पदाधिकारियों के सिर मढ़ दिया । छात्रों के हित में कुछ करना तो दूर, अपनी लूट को बचाने के लिए इन्होंने छात्रों का इस्तेमाल और कर लिया । लोगों के बीच चर्चा है कि छात्रों को भड़का कर उन्हें इस्तेमाल करने के पीछे दिमाग सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा का है । पिछले दिनों हुई बदनामी से राजेश शर्मा ने लगता है कि कोई सबक नहीं सीखा है : उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में 'राजेश शर्मा चोर है' और 'राजेश शर्मा दलाल है' जैसे नारे राजेश शर्मा ने खुद और खूब सुने हैं - उम्मीद की जा रही थी कि उससे सबक लेकर वह इंस्टीट्यूट में हो रही 'चोरी' और 'दलाली' जैसे मामलों को समर्थन व शह देने से बाज आयेंगे, लेकिन इस नए प्रकरण से उक्त उम्मीद करने/रखने वाले लोगों को निराशा ही हुई है । राजेश शर्मा के दिशा-निर्देशन में राकेश मक्कड़ और उनके संगी-साथियों ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल को जिस तरह से लूट का अड्डा बनाया हुआ है, जिसके चलते छात्रों के लिए पहले तो परेशानी वाले हालात बने और फिर उन्हें इस्तेमाल किया गया - वह इंस्टीट्यूट में चल रही गंदी राजनीति का एक निहायत बेशर्मीभरा उदाहरण है ।

Sunday, September 17, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद पर कमल सांघवी की जीत तो निश्चित रूप से उनकी ही जीत है; लेकिन भरत पांड्या की जीत वास्तव में अशोक गुप्ता की हार है और अशोक गुप्ता को भरत पांड्या ने नहीं, बल्कि खुद अशोक गुप्ता ने ही हराया है

नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल के जोन 6 ए में कमल सांघवी तथा जोन 4 में भरत पांड्या को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में जो जीत मिली है, वह अप्रत्याशित तो नहीं है - लेकिन इन दोनों 'जीतों' की कहानी है बहुत दिलचस्प, जो इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के भावी उम्मीदवारों के लिए एक सबक भी है । कमल सांघवी के लिए सफलता सुनिश्चित थी, हालाँकि पिछले तीन-चार माह उम्मीदवार के रूप में उनके लिए काफी मुसीबत भरे थे; उधर भरत पांड्या के लिए जीत आसान तो नहीं थी, लेकिन उनके मुख्य प्रतिद्धंद्धी अशोक गुप्ता द्वारा की गई गलतियों पर गलतियों ने उनके लिए मुकाबले को आसान बना दिया था । कमल सांघवी के मामले में तो यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि उनकी जीत वास्तव में उनकी ही जीत है; लेकिन भरत पांड्या के मामले में सच यह है कि उनकी जीत वास्तव में अशोक गुप्ता की हार है और अशोक गुप्ता को भरत पांड्या ने नहीं, बल्कि खुद अशोक गुप्ता ने ही हराया है । इन दोनों चुनावों का एक बड़ा सबक यह है कि इन दोनों चुनावों में बड़े नेताओं की भूमिका नतीजों को प्रभावित करने में पूरी तरह फेल रही और यहाँ हुई हार/जीत उम्मीदवारों की अपनी अपनी 'कोशिशों' का ही नतीजा रही ।
कहने को तो कमल सांघवी को सुशील गुप्ता, शेखर मेहता और मनोज देसाई की तिकड़ी का समर्थन था; तथा भरत पांड्या को अशोक महाजन और राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था - लेकिन इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव की 'लड़ाई' जब निर्णायक दौर में पहुँच रही थी, तब इन नेताओं ने 'अपने' उम्मीदवारों का साथ छोड़ दिया था । राजा साबू ने तो चुनाव से 27 दिन पहले दिल्ली में पोलियो मीटिंग के आयोजन की आड़ में दीपक कपूर की उम्मीदवारी का झंडा उठा कर भरत पांड्या को बीच मँझदार में ही छोड़ दिया था । चुनाव की तारीख से ऐन पहले राजा साबू से मिले इस धोखे से भरत पांड्या की स्थिति काफी कमजोर हो गई थी, लेकिन उनकी खुशकिस्मती यह थी कि उनके मुकाबले पर अशोक गुप्ता थे - जो तमाम अनुकूलताओं में सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे थे और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में अपने खुद के दुश्मन साबित हो रहे थे ।
कमल सांघवी और भरत पांड्या की सफलता का एक बड़ा कारण यह भी रहा कि इस सफलता को पाने के लिए उन्होंने बहुत पहले से तैयारी शुरू कर दी थी, और अपनी तैयारी में एक निरंतरता बनाए रखी थी - अन्य किसी उम्मीदवार की तरफ से लेकिन तैयारी की निरंतरता नहीं दिखाई पड़ी । वर्ष 2011 में कोलकाता में हुए जोन इंस्टीट्यूट के चेयरमैन के रूप में कमल सांघवी ने 'मछली की आँख' की तरह इंटरनेशनल पद पर निशाना लगाने की तैयारी की जो शुरुआत की, तो उसके बाद फिर कभी उन्हें चुप बैठे हुए नहीं देखा गया; भरत पांड्या सक्रियता और संलग्नता के मामले में कमल सांघवी के सामने तो नहीं टिकते हैं, लेकिन पिछले चुनाव में मनोज देसाई से पिछड़ जाने के बाद उन्होंने तुरंत से ही अगले चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी । भरत पांड्या की तैयारी की चाल हालाँकि कछुए की चाल की तरह थी, और उनके लिए चुनौती की बात यह थी कि उनके मुख्य प्रतिद्धंद्धी अशोक गुप्ता बीच बीच में खरगोश की तरह कुलाँचे भरते दिख रहे थे - भरत पांड्या के लिए लेकिन फायदे की बात यह रही कि अशोक गुप्ता 'कछुए और खरगोश की दौड़' की मशहूर कहानी वाले खरगोश का अनुसरण करते नजर आए । पिछले से पिछले वर्ष, जयपुर में हुए जोन इंस्टीट्यूट का चेयरमैन बना कर अशोक गुप्ता को तत्कालीन इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने एक बड़ा मौका दिया था - अशोक गुप्ता ने इंस्टीट्यूट का आयोजन किया भी बहुत शानदार तरीके से था और इसके लिए उन्होंने हर किसी से प्रशंसा भी बटोरी थी । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई में इस प्रशंसा को लेकिन वह राजनीतिक समर्थन में नहीं बदल सके - बदल क्या नहीं सके; सच यह है कि उन्होंने इस संबंध में कोई प्रयास तक नहीं किया ।
अशोक गुप्ता को वास्तव में बहुत मौके मिले; इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में मनोज देसाई की उन पर बहुत ही कृपा रही - इंटरनेशनल डायरेक्टर के अपने दो वर्षों के कार्यकाल के पहले वर्ष के जोन इंस्टीट्यूट का उन्होंने अशोक गुप्ता को चेयरमैन बनाया, और दूसरे वर्ष में दुबई में हुए जोन इंस्टीट्यूट का काउंसलर का पद तो उन्होंने अशोक गुप्ता को दिया ही, साथ ही और कई पद भी दिए । मनोज देसाई से मिलने वाली कृपा का इस्तेमाल करने में अशोक गुप्ता ने अपना जो रवैया दिखाया, उससे उन्होंने अपनी छोटी सोच का ही परिचय दिया । पिछली दिसंबर में दुबई में आयोजित हुए जोन इंस्टीट्यूट में अशोक गुप्ता ने अपने 'आदमियों' के रूप में पहचाने जाने वाले अजय काला, रत्नेश कश्यप, आशीष देसाई को तो विभिन्न कमेटियों में सटवाया - लेकिन अपनी खुन्नस के चलते अपने ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल को किसी भी कमेटी में जगह नहीं लेने दी । रोटेरियंस के बीच अनिल अग्रवाल की पहचान अजय काला, रत्नेश कश्यप, आशीष देसाई से बहुत ज्यादा है - अशोक गुप्ता थोड़ा उदार रवैया अपनाते और बड़ी सोच का परिचय देते तो अनिल अग्रवाल की पहचान का फायदा उठा सकते थे; लेकिन वह अपनी छोटी सोच का शिकार होने से खुद को बचा नहीं सके । इस प्रसंग का यहाँ जिक्र करने का उद्देश्य यह बताना नहीं है कि अशोक गुप्ता, अनिल अग्रवाल की वजह से चुनाव हार गए; उद्देश्य सिर्फ यह बताना है कि एक बड़े चुनाव की तैयारी के दौरान अशोक गुप्ता कैसी कैसी बेवकूफियाँ कर रहे थे । अशोक गुप्ता की बदकिस्मती यह भी रही कि उन्हें नजदीकी और सलाहकार भी अपने जैसी छोटी सोच के लोग ही मिले - जो उन्हें बरगलाने और भड़काने में ही लगे रहे ।
रोटरी के बड़े नेताओं को डॉक्टरेट की टोपी 'पहनाने' के किस्से हों, या मनोज देसाई की कृपा पाने के उदाहरण हों - इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवारों में अकेले अशोक गुप्ता ही 'बेहतर' स्थिति में थे; लेकिन इसके बावजूद वह नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों का पर्याप्त समर्थन नहीं जुटा सके - तो इसकी वजहें उनके अपने व्यवहार और रवैये में ही हैं । उनके व्यवहार और रवैये का अध्ययन इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के आगामी उम्मीदवारों के लिए सबक का काम कर सकता है ।

Saturday, September 16, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में पप्पूजीत सिंह सरना को डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेटर बनाए जाने के विनय भाटिया के फैसले में रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड की अनदेखी करने का जो आरोप है, उसके घेरे में पूर्व डायरेक्टर सुशील गुप्ता भी फँसे

फरीदाबाद । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के एक फैसले में लताड़ खा चुके और डिस्ट्रिक्ट के महत्त्वपूर्ण व निर्णायक समझे जाने वाले पदों से दूर रखने की हिदायत पा चुके पप्पूजीत सिंह सरना को अपनी टीम में डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेटर का पद देकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया ने रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले को तो सीधी चुनौती दी ही है, साथ ही वह रोटरी के बड़े नेताओं के निशाने पर भी आ गए हैं । डिस्ट्रिक्ट के ही बड़े पदाधिकारियों और नेताओं का भी कहना है कि पप्पूजीत सिंह सरना जैसे व्यक्ति को डिस्ट्रिक्ट का तीसरा बड़ा महत्त्वपूर्ण पद सौंप कर विनय भाटिया ने यह दिखा/जता दिया है कि रोटरी इंटरनेशनल के फैसलों को मानने की बजाए उनके लिए अपने निजी स्वार्थों को तवज्जो देना ज्यादा जरूरी है । उनके नजदीकियों का हालाँकि यह भी कहना है कि डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेटर के पद के लिए विनय भाटिया ने पहले अमित जोनेजा के नाम का चयन किया था; यह बात जब पप्पूजीत सिंह सरना को पता चली तो उन्होंने विनय भाटिया को जम कर धमकाया और उन्हें साफ चेतावनी दी कि डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेटर यदि उन्हें नहीं बनाया गया, तो वह फरीदाबाद में तो विनय भाटिया को कुछ करने नहीं देंगे - तब मजबूर होकर विनय भाटिया को डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेटर का पद पप्पूजीत सिंह सरना को ही देना पड़ा; अमित जोनेजा के लिए उन्हें डायरेक्टर कोऑर्डीनेटर का नया पद ईजाद करना पड़ा । लोग हालाँकि अभी यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेटर के होते हुए डायरेक्टर कोऑर्डीनेटर को डिस्ट्रिक्ट में करने के लिए काम आखिर बचेगा क्या ?
पप्पूजीत सिंह सरना की धमकी के सामने विनय भाटिया के समर्पण कर देने के बावजूद पप्पूजीत सिंह सरना को डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेटर बनाए जाने का विनय भाटिया का निर्णय यदि बड़े विवाद का कारण बना है, तो इसकी वजह केआर रवींद्रन के प्रेसीडेंट-काल में रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड द्वारा लिया/किया गया वह निर्णय है - जिसके अनुसार पप्पूजीत सिंह सरना को आगे डिस्ट्रिक्ट में कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं देनी है । दरअसल पिछले से पिछले रोटरी वर्ष में हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में विनय भाटिया को चुनाव जितवाने के लिए पप्पूजीत सिंह सरना ने इस हद तक छिछोरपंती की थी, कि उसकी दुर्गंध रोटरी इंटरनेशनल तक पहुँची थी - और रोटरी इंटरनेशनल के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हुआ था कि बिना कोई औपचारिक शिकायत हुए रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने किसी मामले का खुद से संज्ञान लिया हो । जाँच-पड़ताल से निकाले गए निष्कर्षों के आधार पर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने नाम लेकर पप्पूजीत सिंह सरना की भूमिका की भर्त्सना की और हिदायत दी कि पप्पूजीत सिंह सरना को डिस्ट्रिक्ट में आगे कोई महत्त्वपूर्ण पद न दिया जाए । माना/समझा गया था इंटरनेशनल बोर्ड में उक्त मामला तत्कालीन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के सख्त रवैये के चलते लाया गया था - केआर रवींद्रन भूतपूर्व प्रेसीडेंट भले ही हो गए हों, लेकिन रोटरी में जो अंधेरगर्दियाँ और बेईमानियाँ होती हैं - उनसे निपटने के मामले में उनकी भूमिका अभी भी निर्णायक बनी हुई है । इसके बावजूद, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया ने पप्पूजीत सिंह सरना के मामले में रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले की परवाह ही नहीं की है ।
इस मामले में डिस्ट्रिक्ट के कुछेक लोग विनोद बंसल और सुशील गुप्ता को भी घेरने/लपेटने की कोशिश कर रहे हैं । लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर होने के नाते विनोद बंसल को और डिस्ट्रिक्ट के तथा रोटरी के 'लीडर' होने के नाते सुशील गुप्ता को विनय भाटिया को बताना/समझाना चाहिए कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्हें रोटरी इंटरनेशनल के फैसलों की तथा उन फैसलों के पीछे की सोच व भावना का सम्मान करना चाहिए । जिन पप्पूजीत सिंह सरना की हरकतों के कारण रोटरी की दुनिया में डिस्ट्रिक्ट 3011 की न सिर्फ भारी बदनामी हुई, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के सामने अपने अस्तित्व को बचाए/बनाए रखने का खतरा तक पैदा हुआ, उन पप्पूजीत सिंह सरना को अपनी टीम में महत्त्वपूर्ण पद देकर विनय भाटिया आखिर क्या दिखाना या साबित करना चाहते हैं ? ऐसे मामलों में सुशील गुप्ता का व्यवहार बड़ा दिलचस्प हो जाता है । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता रोटरी में और बड़ी 'भूमिका' निभाने की तैयारी में हैं, और इस तैयारी के तहत वह अपनी लीडरशिप क्षमता दिखाने का प्रयास करते रहते हैं - जिसके चलते वह जब/तब सलाह, सुझाव और हिदायतें देते रहते हैं; लेकिन जब किसी मामले में वह फँसते हैं तब वह यह कहते हुए बचने की कोशिश करते हैं कि मेरा इस मामले से क्या मतलब, मेरा इसमें क्या रोल ? लोगों का कहना लेकिन यह है कि सुशील गुप्ता को जब बड़ा लीडर 'बनना' है, तो उन्हें उन मामलों का खुद से संज्ञान लेना ही चाहिए जिनमें रोटरी की बदनामी और फजीहत हो रही हो - लीडर को रोल दिया नहीं जाता है, लीडर को रोल खुद 'लेना' होता है; और मामला यदि उनके खुद के डिस्ट्रिक्ट का हो, तब तो उनकी जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है ।
ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट के महत्त्वपूर्ण व निर्णायक समझे जाने वाले पदों से दूर रखने की हिदायत के साथ इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले में लताड़ खा चुके पप्पूजीत सिंह सरना को डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेटर बनाए जाने के विनय भाटिया के फैसले में रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड की अनदेखी करने का जो आरोप है, उसके घेरे से सुशील गुप्ता भी बाहर नहीं हैं । लोगों का कहना है कि सुशील गुप्ता के होते हुए विनय भाटिया रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले को मानने/अपनाने से इंकार करते हैं, तो यह सुशील गुप्ता के लिए भी तो चुनौती की और फजीहत की बात होती है ।

Thursday, September 14, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में कभी सक्रिय न दिखे विपिन शर्मा ने अचानक से उम्मीदवारी प्रस्तुत करके डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के तापमान को बढ़ाया

नई दिल्ली । विपिन शर्मा को फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बना कर सुरेश बिंदल और नरेश गुप्ता की जोड़ी ने राजीव अग्रवाल और ओंकार सिंह रेनु के सामने गंभीर चुनौती पैदा करते हुए डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी बढ़ा दी है । इनमें भी ओंकार सिंह रेनु के लिए मामला ज्यादा संगीन हो गया है - क्योंकि अपने क्लब के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह में उन्होंने सुरेश बिंदल को तवज्जो दे/दिलवा कर अपनी उम्मीदवारी के लिए माहौल बनाने की जो तैयारी की थी, सुरेश बिंदल ने उसी दिन विपिन शर्मा की उम्मीदवारी घोषित करके उनकी सारी तैयारी पर पानी फेर दिया है । ओंकार सिंह रेनु ने अपने नजदीकियों के बीच रोना भी रोया कि सुरेश बिंदल के चक्कर में उन्होंने दिल्ली के कई पूर्व गवर्नर्स को नाराज भी किया, जिसके चलते चुनावी राजनीति में महत्त्व रखने वाले दिल्ली के चार पूर्व गवर्नर्स ने उनके क्लब के कार्यक्रम का बहिष्कार भी किया - लेकिन सुरेश बिंदल ने भी उन्हें धोखा दे दिया, जिसके बाद वह 'न घर के रहे हैं और न घाट के' । राजीव अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि जिस क्षेत्र विशेष को अपने समर्थक-आधार के रूप में दिखा/बता कर वह अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट कर रहे थे, उस क्षेत्र विशेष से ही विपिन शर्मा के भी चुनावी मैदान में कूद पड़ने से उनका 'आधार-क्षेत्र' कमजोर पड़ गया है ।
फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को लेकर डिस्ट्रिक्ट में जो गहमागहमी चल रही है, उसमें विपिन शर्मा की उम्मीदवारी के प्रवेश से लेकिन जो राजनीतिक समीकरण बना है - उसने राजीव अग्रवाल के लिए राजनीतिक अनुकूलता भी बनाई है । दरअसल दिल्ली में चुनावी नजरिए से पूर्व गवर्नर्स का जो ताकतवर खेमा है, उसके रवैये से लगता है कि वह न तो ओंकार सिंह रेनु की उम्मीदवारी को समर्थन देगा और न विपिन शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थन में खड़ा होगा; ऐसे में राजीव अग्रवाल के सामने मौका है कि वह उक्त खेमे का समर्थन प्राप्त कर लें । राजीव अग्रवाल ने उक्त खेमे के नेताओं का समर्थन जुटाने के प्रयास तो किए हैं, लेकिन हाँ या न में उन्हें कोई साफ जबाव अभी नहीं मिला है । उक्त खेमे के नेता असल में राजीव अग्रवाल में उस मैच्योरिटी का अभाव पा/देख रहे हैं, जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए उन्हें जरूरी लगती है - इसलिए वह राजीव अग्रवाल को 'हाँ' नहीं कह पा रहे हैं, और 'न' इसलिए नहीं कह रहे हैं कि कहीं उन्हें कोई मैच्योर उम्मीदवार यदि नहीं मिला - तो फिर उन्हें राजीव अग्रवाल की उम्मीदवारी का ही झंडा उठाना पड़ेगा । आरके शाह इस खेमे का समर्थन प्राप्त कर पाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उन्हें समर्थन देने के मामले में खेमे के नेताओं के बीच सहमति नहीं बन पा रही है । इसीलिए राजीव अग्रवाल के सामने चुनौती के साथ-साथ उम्मीद की किरण भी है ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री पिछले दो वर्षों से नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में है और उम्मीद की जा रही है कि इस वर्ष अगले लायन वर्ष से उसका डिस्ट्रिक्ट स्टेटस बहाल होने की घोषणा हो जाएगी । चर्चा है कि अगले वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की नियुक्ति तो लायंस इंटरनेशनल कार्यालय करेगा, और फर्स्ट व सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए इस वर्ष चुनाव हो जायेगा । ओंकार सिंह रेनु पिछले कुछ वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में काफी सक्रिय हैं और विभिन्न मंचों पर उन्होंने प्रभावी सक्रियता और संलग्नता दिखाई है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट में नकारात्मक सोच रखने वाले नेताओं के साथ निकटता के चलते उन्हें वह मुकाम हासिल नहीं हो सका है - जिसके कि वास्तव में वह हकदार हैं । राजीव अग्रवाल ने पिछले कुछ समय में अपने आप को सक्रिय किया है और उन्होंने हर किसी की गुडबुक में शामिल होने का प्रयास किया है; अभी तक पक्के तौर पर तो वह किसी की गुडबुक में 'दर्ज' नहीं हो पाए हैं, लेकिन चुनावी नजरिए से दिल्ली में पूर्व गवर्नर्स का जो खेमा है - वह उन्हें एक विकल्प के रूप में जरूर देखने लगा है । विपिन शर्मा की अचानक प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने सभी को चौंकाया है । यूँ तो इस वर्ष वह रीजन चेयरमैन हैं, लेकिन एक लायन सदस्य के रूप में उन्हें कभी सक्रिय नहीं देखा गया है और डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर लोग उन्हें पहचानते भी नहीं हैं । फिर भी अचानक से प्रस्तुत हुई उनकी उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के तापमान को बढ़ा तो दिया ही है ।

Wednesday, September 13, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की पगड़ी पहनने में दिलचस्पी न होने की खुद से कही जा रही बात अशोक गुप्ता की बेवकूफी है या फिर इसके पीछे उनकी कोई गहरी चाल है ?

जयपुर । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में एक उम्मीदवार के रूप में अशोक गुप्ता का व्यवहार और रवैया ही उनका दुश्मन बन गया है । उनके समर्थक और शुभचिंतक तक हैरान हैं कि अशोक गुप्ता हर किसी से यह क्यों कहते हैं कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में उनकी तो कोई दिलचस्पी नहीं है, और उन्होंने तो बस अपने नजदीकियों के कहने में आकर नामाँकन भर दिया है । उनकी इस बात से लोगों ने यही अनुमान लगाया है कि अशोक गुप्ता ने चुनाव होने से पहले ही अपनी हार को स्वीकार कर लिया है और अपनी हार को पचाने के लिए अभी से कहना शुरू कर दिया है कि उन्हें तो इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में कोई दिलचस्पी है ही नहीं । अशोक गुप्ता के लिए एक मुसीबत की बात यह भी हुई है कि अपने डिस्ट्रिक्ट में ही उनके विरोध का झंडा उठाए घूम रहे पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल को उन्होंने 'पटा' लिया है, तो उसके कारण उनके खासमखास पूर्व गवर्नर रत्नेश कश्यप उनसे नाराज हो गए हैं । रत्नेश कश्यप को भय है कि अनिल अग्रवाल के संबंध यदि अशोक गुप्ता के साथ सुधर गए, तो अशोक गुप्ता के 'दरबार' में उनकी पोजीशन और पीछे हो जाएगी । रत्नेश कश्यप इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में डिस्ट्रिक्ट का प्रतिनिधित्व करेंगे - और नोमीनेटिंग कमेटी में अपनी दाल गलवाने के लिए अशोक गुप्ता को एक अकेले रत्नेश कश्यप का ही सहारा है । इसलिए रत्नेश कश्यप की नाराजगी अशोक गुप्ता के लिए कोई अच्छे संकेत नहीं हैं ।
अशोक गुप्ता को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के संयोजक विजय गुप्ता के 'रंग-ढंग' भी कुछ अच्छे नहीं लग रहे हैं; इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अलग अलग कारणों से दिलचस्पी रखने वाले अन्य कई लोगों की तरह अशोक गुप्ता को भी लगता है कि नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग पंचकुला में रखवा कर विजय गुप्ता ने पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू को चुनाव में हस्तक्षेप करने का मौका दिया है - जो अशोक गुप्ता के लिए परेशानी की बात है । उल्लेखनीय है कि उक्त मीटिंग पहले दिल्ली में होने की बात हुई थी, लेकिन दिल्ली को इस बिना पर खारिज कर दिया गया कि तब चुनाव पर पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता की छाया पड़ती । चुनाव को सुशील गुप्ता की छाया से बचाने के लिए राजा साबू की छाया में 'डाल' देने का विजय गुप्ता का तर्क किसी को भी हजम नहीं हो पा रहा है । हालाँकि विजय गुप्ता ने पंचकुला में मीटिंग करने/रखने का फैसला अपनी खुद की सुविधा के लिए किया बताया है; उनके इस दावे को लेकिन उनकी बहानेबाजी के रूप में देखा जा रहा है - लोगों का कहना है कि एक अपनी सुविधा के लिए उन्होंने नोमीनेटिंग कमेटी के कई सदस्यों के लिए परेशानी पैदा कर दी, जिनके लिए दिल्ली के मुकाबले पंचकुला पहुँचना परेशानी भरा होगा । दरअसल इस लचर दावे के कारण ही नोमीनेटिंग कमेटी के संयोजक के रूप में विजय गुप्ता की भूमिका संदिग्ध हो गई है ।
विजय गुप्ता की इस संदिग्ध भूमिका के कारण ही लगता है कि अशोक गुप्ता को अपनी सफलता की उम्मीद घटती हुई लगी है, और इसी नाउम्मीदी में उन्होंने लोगों से कहना/बताना शुरू कर दिया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में उनकी तो वास्तव में कोई दिलचस्पी है नहीं - बन गए तो ठीक है, काम कर लेंगे । अशोक गुप्ता के इस रवैए से उनकी उम्मीदवारी को सफल होते देखने वाले उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को तगड़ा झटका लगा है । उन्हें लगा है कि इस तरह की बातों से तो अशोक गुप्ता अपनी पराजय को सुनिश्चित ही कर लेंगे । नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को लगेगा कि वह यदि अशोक गुप्ता को वोट करेंगे, तो अशोक गुप्ता तो उनका कोई अहसान मानेंगे ही नहीं - और इसलिए अशोक गुप्ता को दिया गया उनका वोट तो बट्टे-खाते में ही जाएगा । माना जाता है कि नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों के भिन्न भिन्न तरह के 'स्वार्थ' होते हैं, और अपने उन स्वार्थों के पूरा होने के आश्वासन के भरोसे ही वह अपने वोट की 'दिशा' और 'दशा' निर्धारित करते हैं । ऐसे में, अशोक गुप्ता यदि यह कह रहे हैं कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है - तो नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को अपना स्वार्थ उनसे पूरा होता नहीं 'दिखेगा' और इसलिए वह उन्हें वोट देने के बारे में सोचेंगे भी नहीं ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव में दिलचस्पी रखने वाले कुछेक नेता हालाँकि 'इस' रवैये को अशोक गुप्ता की चाल के रूप में भी देख रहे हैं । इनका तर्क है कि अशोक गुप्ता ने कोई कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं और वह बड़ा बारीक 'काटने' वाले व्यक्ति हैं - इसलिए यह मान लेना बेवकूफी ही होगी कि वह जो 'कह' रहे हैं, उससे हो सकने वाले नुकसान को वह नहीं समझ/पहचान रहे होंगे । ऐसा मानने और कहने वाले नेताओं का अनुमान है कि अशोक गुप्ता ने नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला अपने पक्ष में करवाने के लिए एक अलग रणनीति बनाई है, और उस रणनीति को छिपा कर रखने तथा लोगों का ध्यान भटकाने के लिए उन्होंने यह कहना शुरू किया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में उनकी तो कोई दिलचस्पी नहीं है । दरअसल अशोक गुप्ता ने अपने मुखर विरोधी अपने ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल को चुप करने/कराने का जो काम किया है, उसे जान/पहचान कर ही कुछेक लोगों को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अशोक गुप्ता द्वारा अपनाई जा रही दोहरी रणनीति का शक हुआ है ।
उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल वास्तव में अशोक गुप्ता को फूटी आँख भी नहीं सुहाते हैं; अशोक गुप्ता के बारे में मशहूर है कि जो उन्हें नहीं सुहाता है, वह उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद करके ही दम लेते हैं - अनिल अग्रवाल के प्रति भी उनका यही रवैया था, जिसके चलते अपने ही डिस्ट्रिक्ट में अनिल अग्रवाल के लिए बहुत थोड़ी सी ही जगह बची रह गई है । ऐसे में, अपने स्वभाव के विपरीत अशोक गुप्ता ने जिस तरह अनिल अग्रवाल को गले लगा लिया है - उससे उनके नजदीकियों के साथ साथ उनके विरोधियों को भी हैरानी हुई है; और इस हैरानी में ही कुछेक लोगों ने अशोक गुप्ता की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति की 'जरूरत' को देखा/पहचाना है । उन्हें लगता है कि अशोक गुप्ता ने इस तथ्य को समझ लिया है कि अनिल अग्रवाल के बस की और कुछ कर पाना भले ही न हो, लेकिन वह उनकी दोहरी रणनीति की पोल जरूर खोल सकेंगे । इसलिए अनिल अग्रवाल को 'चुप' करने के लिए अशोक गुप्ता ने अपने स्वभाव के विपरीत अनिल अग्रवाल को गले लगा लिया - जिसके बाद अशोक गुप्ता के खिलाफ छेड़े गए अपने अभियान को अनिल अग्रवाल ने भी रोक दिया है । अशोक गुप्ता द्वारा अनिल अग्रवाल के साथ किए गए इस मेल मिलाप की बात को जानते/समझते हुए ही लोगों को लगता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में दिलचस्पी न होने की कही जा रही बात के पीछे अशोक गुप्ता की कोई गहरी चाल है ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की पगड़ी पहनने में अशोक गुप्ता को सचमुच कोई दिलचस्पी नहीं है, और या ऐसा कह कर वह अपनी किसी छिपी चाल को सफल बनाने का प्रयास कर रहे हैं - यह बात जल्दी ही सामने आ जाएगी; लेकिन उनके इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में दिलचस्पी न होने की खुद उनके द्वारा ही कही जा रही बात ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी परिदृश्य को रोमांचक जरूर बना दिया है ।

Monday, September 11, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के एक पदाधिकारी नितिन कँवर पहले अतुल गुप्ता और अब विजय गुप्ता जैसे सेंट्रल काउंसिल सदस्यों तक के साथ बदतमीजी करने का हौंसला आखिर पा कहाँ से रहे हैं ?

नई दिल्ली । जहाँ तहाँ और जिस तिस के साथ बदतमीजी करने के मामले में कुख्याति का रिकॉर्ड बना रहे नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में निकासा चेयरमैन नितिन कँवर के अब सेंट्रल काउंसिल सदस्य विजय गुप्ता के साथ भिड़ने का प्रसंग सामने आया है । इससे पहले सेंट्रल काउंसिल के ही एक अन्य सदस्य अतुल गुप्ता के साथ उन्होंने जमकर बदतमीजी की थी । उससे भी पहले नितिन कँवर ने रीजनल काउंसिल की मीटिंग में काउंसिल के कुछेक सदस्यों के साथ इस हद तक बदतमीजी की कि उनकी बदतमीजी का शिकार काउंसिल सदस्यों को पुलिस में रिपोर्ट करने का कदम उठाने के बारे में सोचना पड़ा था । नितिन कँवर ने लेकिन विजय गुप्ता के साथ जो किया, वह इस संदर्भ में बड़ा मामला है कि विजय गुप्ता तो उनकी बदतमीजी का नाहक ही शिकार बन गए; विजय गुप्ता का कुसूर तो सिर्फ यह था कि वह इंस्टीट्यूट के एक महत्त्वपूर्ण आयोजन को मजाक बना देने की नितिन कँवर की हरकत को रोकने का प्रयास कर रहे थे - जिसके नतीजे के रूप में उन्हें नितिन कँवर की बदतमीजी का शिकार बनना पड़ा ।
घटना पिछले सप्ताह दिल्ली में हुए इंस्टीट्यूट के कॉन्वोकेशन समारोह की है, जिसमें इंस्टीट्यूट के नए बने सदस्यों को मेंबरशिप सर्टीफिकेट देने का काम किया जा रहा था । इस कॉन्वोकेशन समारोह को संपन्न करवाने की जिम्मेदारी विजय गुप्ता निभा रहे थे । एक सामान्य व्यवस्था के तहत इंस्टीट्यूट के नए बने सदस्यों को एक तरफ से मंच पर आना था और समारोह के मुख्य अतिथि से मेंबरशिप सर्टीफिकेट लेकर दूसरी तरफ से निकल जाना था । मंच पर मुख्य अतिथि की मदद के लिए विजय गुप्ता उनके साथ ही खड़े थे तथा सेंट्रल काउंसिल व नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के कुछेक सदस्य भी उनके साथ मंच पर थे । कार्यक्रम और मंच की गरिमा और प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए मंच पर मौजूद लोगों से उम्मीद की जाती है कि वह अपना सारा ध्यान 'मुख्य गतिविधि' पर रखेंगे तथा अपनी कोई अलग गतिविधि नहीं करेंगे - जो मुख्य गतिविधि से लोगों का ध्यान भटकाए । लेकिन इंस्टीट्यूट और काउंसिल की गतिविधियों को अपनी हरकतों से मजाक बना देने और शर्मिंदा कर देने के मामले में कुख्याति पा और बार बार लताड़ खा चुके नितिन कँवर यहाँ भी अपने व्यवहार का घटियापन दिखाने से बाज नहीं आए ।
नितिन कँवर मंच पर उस तरफ के किनारे पर खड़े थे, जिस तरफ से नए सदस्यों को सर्टीफिकेट लेने आना था । मंच पर मौजूद सभी सदस्यों को ध्यान कार्यक्रम की मुख्य गतिविधि पर ही केंद्रित था - लेकिन बदतमीजी दिखाने के अपने स्वभाव के अनुसार, नितिन कँवर मुख्य गतिविधि पर ध्यान केंद्रित करने की बजाए अपनी बारी का इंतजार कर रहे नए सदस्य से बातें करने और हाथ मिलाने के काम में मशगूल हो गए । स्वाभाविक रूप से उनकी यह हरकत कार्यक्रम को डिस्टर्ब कर रही थी । उनके बगल में खड़े रीजनल काउंसिल के सदस्य दीपक गर्ग और सुमित गर्ग ने उन्हें कई बार टोका भी कि वह यह हरकत न करें, विजय गुप्ता ने भी कई बार इशारों में उन्हें समझाने की कोशिश की - लेकिन नितिन कँवर अपनी हरकत से बाज नहीं आए । एक मौके पर तो विजय गुप्ता को उनकी हरकत पर इतना तेज गुस्सा आया कि ऊँगली से इशारा करते हुए उन्होंने नितिन कँवर को कस कर डाँटा भी और दूसरी तरफ के किनारे पर खड़े होने को कहा । नितिन कँवर लेकिन इतने बेशर्म निकले कि विजय गुप्ता की डाँट खाने और दूसरी तरफ धकेले जाने के बाद भी अपनी हरकत से बाज नहीं आए । दूसरी तरफ, सर्टीफिकेट लेकर निकल रहे सदस्यों को रोक कर नितिन कँवर ने उनसे गले मिलने का अपना कार्यक्रम शुरू कर दिया । इस पर विजय गुप्ता ने उन्हें फिर हड़काया, तो वह मंच पर ही विजय गुप्ता से बदतमीजी करने पर उतर आए । नितिन कँवर का कहना रहा कि वह इलेक्टेड मेंबर हैं और विजय गुप्ता उन्हें इस तरह नहीं डाँट सकते । विजय गुप्ता का कहना था कि इलेक्टेड मेंबर होने के नाते तुम्हें हर जगह हरकत करने और बदतमीजी करने का अधिकार नहीं मिल जाता है । नितिन कँवर ने उनसे मुँहजोरी करना जारी रखा, तो विजय गुप्ता को कहना पड़ा कि मैं तुम्हारी 'ऊपर' शिकायत करूँगा - इस पर नितिन कँवर ने उन पर पलटवार किया कि मैं भी तुम्हारी शिकायत करूँगा ।
विजय गुप्ता से नितिन कँवर को इस तरह उलझता देख मौके पर मौजूद लोगों को लगा कि नितिन कँवर जैसे लोगों ने इंस्टीट्यूट का कैसा क्या हाल बना दिया है । कई लोगों का कहना रहा कि सेंट्रल काउंसिल के सदस्य यदि अतुल गुप्ता के साथ की गई नितिन कँवर की बदतमीजी को गंभीरता से लेते और उनके खिलाफ कार्रवाई करते/करवाते, तो नितिन कँवर की विजय गुप्ता के साथ बदतमीजी करने की हिम्मत नहीं होती; इन लोगों की चेतावनी है कि नितिन कँवर को अब भी यदि ऐसे ही 'छोड़' दिया गया तो इससे नितिन कँवर के हौंसले और बुलंद होंगे और तब सेंट्रल काउंसिल के अन्य सदस्यों को भी उनकी और ज्यादा बदतमीजियों का शिकार बनकर अपमानित होना पड़ेगा । रीजनल काउंसिल और ब्रांचेज में नितिन कँवर द्वारा की जाने वाली हरकतों और बदतमीजियों पर सेंट्रल काउंसिल सदस्य चुप्पी साध लेते रहे हैं - यह बात तो फिर भी समझ में आती है; लेकिन पहले अतुल गुप्ता और अब विजय गुप्ता के साथ की गई नितिन कँवर की बदतमीजी पर भी सेंट्रल काउंसिल सदस्य यदि चुप्पी मार लेते हैं, तो यही समझा जायेगा कि नितिन कँवर की बदतमीजी के सामने सभी लाचार हैं और सभी ने समर्पण कर दिया है ।
(ऊपर की तस्वीर में विजय गुप्ता ऊँगली के इशारे के साथ नितिन कँवर को डाँटते हुए नजर आ रहे हैं, तो नीचे की तस्वीरों में देखा जा सकता है कि नितिन कँवर को चाहें किसी भी तरफ खड़ा कर दो - बदतमीजी करने का मौका वह बना ही लेते हैं ।) 

Sunday, September 10, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में 'ड्रिंक' और 'डिनर' के सहारे उत्तर प्रदेश के क्लब्स के वोट जुटाने की सतीश सिंघल की कार्रवाई से आलोक गुप्ता को फायदा होने की बजाए नुकसान और हो गया है

नोएडा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल ने अपनी घटिया और पक्षपातपूर्ण राजनीति के लिए रोटरी फाउंडेशन के नाम का जैसा जो इस्तेमाल किया, उसे लेकर डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच तो उनकी थुक्का-फजीहत हुई ही है - उसकी गूँज रोटरी के बड़े नेताओं तक भी पहुँची है, जिन्होंने बड़ी हैरानी से सवाल किया है कि सतीश सिंघल आखिर और कितना नीचे गिरेंगे ? अपनी हरकतों और अपनी कारस्तानियों से सतीश सिंघल ने रोटरी और डिस्ट्रिक्ट का तो नाम खराब किया हुआ है ही, खुद अपनी भी फजीहत करवाई हुई है । रोटरी के बड़े नेताओं का भी कहना है कि देश के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में हाल-फिलहाल के वर्षों में जो लोग भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने हैं, उनमें सतीश सिंघल ही ऐसे हैं - जिनका रोटरी से सबसे पुराना और ज्यादा परिचय है; इस नाते से उम्मीद की गई थी कि सतीश सिंघल वर्षों के अपने रोटरी-अनुभव से ऐसा कुछ करेंगे जिसके चलते वह दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के गवर्नर्स के लिए एक उदाहरण बनेंगे । लेकिन मात्र दो महीनों में ही सतीश सिंघल ने अपने कार्य-व्यवहार और अपनी हरकतों से उक्त उम्मीद को बुरी तरह धूल-धूसरित कर दिया है - और देश के सभी मौजूदा 39 डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स में उनकी सबसे ज्यादा शिकायतें सुनी गईं हैं, जिसके चलते उनकी रेटिंग सबसे नीचे देखी/पहचानी जा रही है, और उन्हें सबसे घटिया डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में चिन्हित किया जा रहा है ।
सतीश सिंघल का हर कारनामा उनके पिछले कारनामे से बड़ा होता है; उनके हर कारनामे पर लोग सोच लेते हैं कि सतीश सिंघल अब इससे ज्यादा घटियापन और क्या करेंगे - लेकिन सतीश सिंघल अगले ही कारनामे से सिद्ध कर देते हैं कि घटियापन दिखाने के मामले में उन्हें कम न समझा जाए । सतीश सिंघल ने नया कारनामा पिछले दिनों रोटरी फाउंडेशन के नाम पर किया । दरअसल सतीश सिंघल की तरफ से लोगों को जब 'रोटरी फाउंडेशन व वेल्थ मैनेजमेंट सेमीनार' का निमंत्रण मिला, तो सभी का सिर चकराया - क्योंकि रोटरी फाउंडेशन का सेमीनार अभी हाल ही में तो हो चुका था । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हुआ कि सतीश सिंघल जल्दी से रोटरी फाउंडेशन सेमीनार दोबारा क्यों कर रहे हैं ? लोग अभी इस बात पर माथापच्ची कर ही रहे थे कि सतीश सिंघल की तरफ से उक्त निमंत्रण संशोधन के साथ दोबारा मिला - जिसमें बताया गया था कि यह सेमीनार सिर्फ जोन 9 से लेकर जोन 16 तक के क्लब्स के लोगों के लिए है । इससे बात और उलझ गई; और लोगों के बीच सवाल उठा कि सिर्फ जोन 9 से जोन 16 के क्लब्स के लोगों के लिए दोबारा और जल्दी से रोटरी फाउंडेशन का सेमीनार करने की जरूरत क्यों आ पड़ी ? निमंत्रण पत्र में दी गई एक सूचना ने उक्त सवाल के जबाव तक पहुँचने में लोगों की लेकिन मदद की - जिसमें बताया गया था कि सेमीनार में ड्रिंक और डिनर की पूरी व्यवस्था है और यह पूरी तरह फ्री है । रोटरी के अधिकृत कार्यक्रमों के निमंत्रण पत्रों में 'फैलोशिप' शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जिसका मतलब होता है कि कार्यक्रम में खाने-पीने की भी व्यवस्था होगी । सतीश सिंघल ने विवादित सेमीनार के निमंत्रण पत्र में जिस तरह खुल कर 'ड्रिंक' और 'डिनर' शब्द का इस्तेमाल किया - उससे लोगों को यह समझने में आसानी हुई कि यह निमंत्रण सेमीनार की आड़ में वास्तव में ड्रिंक और डिनर का निमंत्रण है ।
इसके बाद लोगों के लिए यह समझना भी मुश्किल नहीं रह गया कि ड्रिंक और डिनर के इस निमंत्रण को जोन 9 से जोन 16 तक के क्लब्स के लोगों के लिए सीमित क्यों कर दिया गया ? लोगों के बीच सुना गया कि 9 से 16 तक के जोन्स में आने वाले उत्तर प्रदेश के क्लब्स को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अपने उम्मीदवार आलोक गुप्ता के पक्ष में एकजुट करने के लिए ही सतीश सिंघल ने यह ड्रामा रचा है । ड्रामा कामयाब हो भी जाता, लेकिन उसके क्रियान्वन में जो जो बेवकूफी हुई उसके चलते पर्दा खुलने से पहले ही ड्रामे की 'कहानी' लीक हो गई - और फिर सतीश सिंघल को भारी फजीहत का सामना करना पड़ा । लोगों ने देखा और कहा भी कि सतीश सिंघल की चमड़ी तो थोड़ी मोटी है, इसलिए उन्होंने तो इस फजीहत को बेशर्मी के साथ झेल लिया - लेकिन उनकी फजीहत में अपने लिए मुसीबत देखते/पहचानते हुए आलोक गुप्ता ने अपने आप को उक्त सेमीनार से दूर कर लिया । आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों ने भी माना और कहा है कि ड्रिंक और डिनर के सहारे उत्तर प्रदेश के क्लब्स के वोट जुटाने की कार्रवाई को सतीश सिंघल ने जिस बेवकूफी के साथ अंजाम दिया है, उससे आलोक गुप्ता को फायदा होने की बजाए नुकसान और हो गया है ।
उत्तर प्रदेश के क्लब्स के पदाधिकारी तो इस बात पर नाराज हुए हैं कि आलोक गुप्ता और सतीश सिंघल ने उन्हें क्या ड्रिंक और डिनर पर 'बिकने' वाला समझ लिया है; दिल्ली, सोनीपत और नोएडा के क्लब्स के पदाधिकारियों की नाराजगी इस बात को लेकर है कि आलोक गुप्ता और सतीश सिंघल उन्हें दरकिनार कर क्या सिर्फ उत्तर प्रदेश के क्लब्स के भरोसे ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीत लेंगे ? उल्लेखनीय है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में पार्टियों की निर्विवाद रूप से अहम् भूमिका है, और हर किसी ने इसे एक 'आवश्यक बुराई' के रूप में स्वीकार कर लिया है । लेकिन उम्मीद की जाती है कि उम्मीदवार और उनके समर्थक नेता इस 'काम' को लोगों की गरिमा व प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाएँ बिना अंजाम देंगे - इससे उम्मीदवार की लीडरशिप क्षमता का भी पता चलता है । आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए सतीश सिंघल ने 'ड्रिंक' और 'डिनर' का लेकिन जिस तरह से लालच दिया - वह पूरी तरह से फूहड़ता की तो मिसाल बना ही, जोन 9 से 16 तक के क्लब्स के पदाधिकारियों को अपमानित और जलील करने वाला भी नजर आया । इस बात ने उम्मीदवार के रूप में आलोक गुप्ता की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी का सारा दारोमदार दरअसल उत्तर प्रदेश के क्लब्स पर टिका हुआ है । आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थकों के साथ-साथ सतीश सिंघल ने भी पाया और माना है कि दिल्ली, सोनीपत तथा नोएडा क्षेत्र में आलोक गुप्ता के मुकाबले ललित खन्ना का पलड़ा ज्यादा भारी है; इसलिए उत्तर प्रदेश के क्लब्स को एकजुट करके ही आलोक गुप्ता की चुनावी नैय्या को पार लगाया जा सकता है । उत्तर प्रदेश में आलोक गुप्ता के सामने लेकिन कई चुनौतियाँ हैं - यहाँ कुछ लोग पिछली बातों/घटनाओं के चलते उनके खिलाफ हैं, तो कुछ लोग सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा जैसे उनके समर्थक नेताओं के खिलाफ हैं; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुभाष जैन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों के कारण भी और दो वर्ष पहले हुए अपने चुनाव में आलोक गुप्ता की विरोधी भूमिका को ध्यान में रखने के कारण भी - आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी खिलाफ हैं । सुभाष जैन का खिलाफ होना आलोक गुप्ता के लिए इसलिए मुसीबत बनता है, क्योंकि अधिकतर क्लब्स के प्रेसीडेंट्स अगले रोटरी वर्ष के गवर्नर की गुड-बुक में रहने की कोशिश करते हैं - और बिना कहे ही उसकी 'राजनीतिक-भावनाओं' का ध्यान रखते हैं । आलोक गुप्ता के लिए जेके गौड़ और दीपक गुप्ता भी मुसीबत बने हैं । उन्हें इन दोनों के सक्रिय समर्थन की उम्मीद थी - लेकिन लगता है कि जेके गौड़ इस बात को अभी तक भी भूले नहीं हैं कि उनके चुनाव में आलोक गुप्ता ने उनका प्रतिद्धंद्धी बनकर उन्हें खासा परेशान किया था; दीपक गुप्ता चुनावी पचड़े से दूर रहने में अपनी भलाई देख रहे हैं - दीपक गुप्ता को डर है कि चुनावी झमेले में शामिल होने के कारण कहीं उनकी 'ऊपर' शिकायत हो गई, तो उनकी अपनी गवर्नरी और खतरे में पड़ जाएगी । ऐसे में, उत्तर प्रदेश में अकेले बचे आलोक गुप्ता के समर्थक नेता सतीश सिंघल को लगा कि आलोक गुप्ता के लिए उन्हें अब ड्रिंक और डिनर का ही सहारा बचा है । लेकिन इस सहारे को सतीश सिंघल ने जिस फूहड़ता और बेवकूफी से इस्तेमाल किया है, उससे मामला सँभलने की बजाए बिगड़ और गया है ।

Saturday, September 9, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में 'सभी कुछ' विनोद खन्ना को ही सौंप देने की नरेश अग्रवाल की कार्रवाई से खुद को ठगा पा रहे सुशील अग्रवाल ने बदला लेने के लिए नरेश अग्रवाल के फैसले के खिलाफ कार्रवाई की है क्या ?

नई दिल्ली । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल ने पिछले ही दिनों आगरा में संपन्न हुई मल्टीपल काउंसिल की मीटिंग में प्रत्येक लायन सदस्य से अतिरिक्त सौ रूपए बसूलने के फैसले को निरस्त करने की जो 'कार्रवाई' की, उसे उनकी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल को राजनीतिक रूप से 'ब्लैकमेल' करने की तिकड़म के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि अतिरिक्त सौ रुपए बसूलने के फैसले को पिछले लायन वर्ष की वार्षिक मीटिंग में खुद नरेश अग्रवाल ने पास करवाया था । इसके लिए नरेश अग्रवाल ने दिल्ली में वर्ष 2022 में होने वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन के लिए खर्च जुटाने का वास्ता दिया था । मजे की बात यह है कि नरेश अग्रवाल जब मीटिंग में उक्त प्रस्ताव पास करवा रहे थे, तब सुशील अग्रवाल भी मौके पर मौजूद थे - और तब उन्होंने नरेश अग्रवाल के प्रस्ताव तथा प्रस्ताव को पास करवाने के लिए अपनाई जा रही प्रक्रिया पर कोई आपत्ति नहीं की थी । किंतु तीन महीने बाद सुशील अग्रवाल को समझ में आया कि उक्त प्रस्ताव को पास करवाने में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है, इसलिए उक्त प्रस्ताव को पास हुआ नहीं माना जा सकता है । मजे की और ज्यादा बात यह भी है कि मल्टीपल काउंसिल के जिन मौजूदा पदाधिकारियों ने सुशील अग्रवाल के 'दावे' पर तालियाँ बजाईं, उन लोगों ने नरेश अग्रवाल के प्रस्ताव पर भी तालियाँ बजाईं थीं - यानि फैसला चाहें 'ऐसा' हो या 'वैसा' हो, उनका काम सिर्फ ताली बजाना ही है ।
मल्टीपल काउंसिल के चेयरमैन विनय गर्ग तथा अन्य पदाधिकारियों के रवैये में दिलचस्प बात यह भी है कि उन्होंने नरेश अग्रवाल द्वारा पास करवाए गए प्रस्ताव के अनुसार, प्रति सदस्य अतिरिक्त सौ रुपए के हिसाब से बिल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को भेज दिए हैं - जिसे लेकिन उन्होंने सुशील अग्रवाल के दावे के बाद भी वापस लेने की घोषणा नहीं की है । इससे यही समझा जा रहा है कि विनय गर्ग तथा मल्टीपल काउंसिल के अन्य पदाधिकारी भी मान/समझ रहे हैं कि सुशील अग्रवाल ने नरेश अग्रवाल द्वारा पास करवाए गए प्रस्ताव को निरस्त करने/करवाने की जो कार्रवाई की है, वह सिर्फ गीदड़-भभकी ही है - और सुशील अग्रवाल जल्दी ही 'लाइन' पर आ जायेंगे । इसीलिए विनय गर्ग और मल्टीपल काउंसिल के अन्य पदाधिकारियों ने एक तरफ सुशील अग्रवाल के 'दावे' पर तालियाँ भी बजा दीं - और दूसरी तरफ नरेश अग्रवाल द्वारा पास करवाए गए प्रस्ताव के अनुसार अतिरिक्त सौ रुपए बसूलने के अपने प्रयास को भी उन्होंने जारी रखा हुआ है । मल्टीपल काउंसिल के चेयरमैन विनय गर्ग और मल्टीपल काउंसिल के अन्य पदाधिकारियों के इसी रवैये को देखते हुए नरेश अग्रवाल तथा उनके नजदीकियों ने सुशील अग्रवाल के 'दावे' को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं समझी है ।  
नरेश अग्रवाल द्वारा पास करवाए गए प्रस्ताव को सुशील अग्रवाल ने निरस्त करने/करवाने का जो 'काम' किया है, उसे नरेश अग्रवाल के नजदीकियों के बीच सुशील अग्रवाल की नरेश अग्रवाल पर दबाव बनाने तथा उनके प्रेसीडेंट-वर्ष में फायदा उठाने के लिए जुगाड़ लगाने - और नरेश अग्रवाल को राजनीतिक रूप से ब्लैकमेल करने की कोशिश के रूप में बल्कि और देखा/पहचाना जा रहा है । नरेश अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि सुशील अग्रवाल दरअसल यह देख/जान कर बहुत ही निराश और परेशान हैं कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रूप में नरेश अग्रवाल ने उन्हें कोई महत्त्वपूर्ण पोजीशन ही नहीं दी है । सुशील अग्रवाल ने कुछेक लोगों के बीच शिकायत भी की है कि प्रेसीडेंट बनने के लिए अभियान चलाने में नरेश अग्रवाल को जब उनकी मदद की जरूरत थी, तब तो नरेश अग्रवाल ने उनकी खुशामद करके उनकी मदद ले ली - लेकिन प्रेसीडेंट बनने पर वह उन्हें पूरी तरह भूल ही गए हैं, और विनोद खन्ना ही उनके सगे बन गए हैं । सुशील अग्रवाल इस बात पर बुरी तरह खफा हैं कि नरेश अग्रवाल ने विनोद खन्ना को ही तो डायरेक्टर एंडॉर्सी बना/बनवा दिया है, और विनोद खन्ना को ही दिल्ली कार्यालय का प्रमुख बनाने की तैयारी कर ली है । सुशील अग्रवाल ने चूँकि अपने आप को बुरी तरह ठगा हुआ महसूस किया है - इसलिए वह नरेश अग्रवाल से बदला लेने तथा उन पर दबाव बना कर इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रूप में उनसे अपने लिए कुछ 'प्राप्त' कर लेने की जुगाड़ में लगे हैं ।
आगरा में संपन्न हुई मल्टीपल काउंसिल की मीटिंग में, प्रत्येक लायन सदस्य से अतिरिक्त सौ रूपए बसूलने के फैसले को निरस्त करने की सुशील अग्रवाल की 'कार्रवाई' के पीछे चूँकि उनकी इसी मंशा को देखा/पहचाना जा रहा है - इसलिए ही चेयरमैन विनय गर्ग तथा मल्टीपल काउंसिल के अन्य पदाधिकारियों ने उनकी कार्रवाई को गंभीरता से नहीं लिया है; और इसीलिए ही उन्होंने अतिरिक्त सौ रुपए बसूले जाने वाले अपने बिलों को न तो वापिस लिया है और न ही संशोधित बिल भेजने की कोई जरूरत समझी है ।

Friday, September 8, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी के दिशा-निर्देशन में हुए डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप सेमीनार की अपार और रिकॉर्ड सफलता ने राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के प्रति लोगों की नाराजगी को भी जाहिर किया है

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी के कार्यकाल में हुए डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप सेमीनार में रोटेरियंस पदाधिकारियों तथा सदस्यों की जैसी जोशपूर्ण भागीदारी रही, उसने डिस्ट्रिक्ट 3080 के इतिहास में एक अनोखा रिकॉर्ड तो बनाया ही है - साथ ही साथ डिस्ट्रिक्ट में अपने आप को तुर्रमखाँ समझने वाले पूर्व गवर्नर्स की नींद भी उड़ा दी है । ऐसे ही पूर्व गवर्नर्स यमुनानगर में पूर्व गवर्नर सुभाष गर्ग के यहाँ जुटे और उन्होंने इस बात को लेकर घंटों माथापच्ची की कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच टीके रूबी की बढ़ती लोकप्रियता और स्वीकार्यता से कैसे मुकाबला किया जाए ? अपने आप को तुर्रमखाँ समझने वाले इन पूर्व गवर्नर्स के लिए मुसीबत और चुनौती की बात वास्तव में यह है कि यह लोग तो टीके रूबी के गवर्नर-काल को फेल करने, बताने और दिखाने की जीतोड़ कोशिशों में लगे हैं - लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोग टीके रूबी के साथ ऐसे जुड़ते जा रहे हैं, जैसे टीके रूबी के रूप में वह रोटरी और डिस्ट्रिक्ट का कोई मसीहा पा गए हैं । सुभाष गर्ग के यहाँ जुटे पूर्व गवर्नर्स के लिए फजीहत की बात यह भी रही कि वह तो टीके रूबी के गवर्नर-काल में कोई भी सहयोग करने और या भूमिका निभाने से पीछे हट रहे हैं, लेकिन उनके क्लब के पदाधिकारी और वरिष्ठ सदस्य टीके रूबी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं ।
इस संदर्भ में सबसे ज्यादा फजीहत शाजु पीटर को झेलना पड़ रही है । शाजु पीटर ने तो टीके रूबी के विरोध का झंडा उठाया हुआ है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी के हर फैसले व कदम का विरोध करने का ठेका लिया हुआ है, लेकिन उनके क्लब के वरिष्ठ सदस्य रवि तुलसी ने टीके रूबी के गवर्नर-काल की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन पद की जिम्मेदारी संभाली हुई है । शाजु पीटर ने बहुत प्रयास किए कि रवि तुलसी इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने से इंकार कर दें, रवि तुलसी को उन्होंने क्लब से निकलवाने तक की धमकी भी दी - लेकिन शाजु पीटर को अंततः मनमसोस कर ही रह जाना पड़ा । शाजु पीटर के लिए इससे भी बड़े झटके वाली बात यह हुई कि उनके क्लब के साप्ताहिक बुलेटिन के नए अंक में मुख्य पृष्ठ पर ही टीके रूबी के साथ क्लब के पदाधिकारियों की तस्वीरें प्रमुखता से प्रकाशित की गईं हैं । टीके रूबी के गवर्नर-काल में सहयोग करने और भूमिका निभाने से इंकार करने वाले - किसी भी तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी को फेल साबित करने के चक्कर में लगे पूर्व गवर्नर्स के अपने अपने क्लब में अलग-थलग पड़ जाने का इससे बड़ा सुबूत और भला क्या होगा कि टीके रूबी के दिशा-निर्देशन में हुए डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप सेमीनार में डिस्ट्रिक्ट के 77 क्लब्स में से 71 क्लब्स का प्रतिनिधित्व हुआ और सेमीनार में एक हजार से ज्यादा रोटेरियंस शामिल हुए । इससे पहले, इतनी बड़ी संख्या में रोटेरियंस की भागीदारी तो डिस्ट्रिक्ट के अवॉर्ड फंक्शन और या डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस तक में देखने/सुनने को कभी नहीं मिली है ।
डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों का मानना और कहना है कि टीके रूबी के गवर्नर-काल में सक्रिय होने और दिखने को लेकर डिस्ट्रिक्ट के लोगों में जो उत्साह है, वह वास्तव में राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के प्रति लोगों की नाराजगी की अभिव्यक्ति भी है । राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की हरकतों और कारस्तानियों से लोग दुःखी और परेशान तो थे ही, उससे भी बड़ी मुसीबत उनके लिए यह थी कि अपने दुःख व अपनी परेशानी से पैदा होने वाली अपनी नाराजगी को जताने का उनके पास कोई मौका नहीं था । टीके रूबी के गवर्नर-काल के रूप में उन्हें यह मौका मिला है, तो इसका वह भरपूर फायदा उठा लेना चाहते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी ने जिस तरह से पूर्व गवर्नर्स द्वारा कब्जा जमाये ट्रस्टों के हिसाब-किताब में दिलचस्पी लेना शुरू किया है, उससे भी पूर्व गवर्नर्स हड़बड़ाए हुए हैं । उन्हें डर हुआ है कि टीके रूबी की यह दिलचस्पी ट्रस्टों की आड़ में हो रही बेईमानियों और लूट-खसोट की पोल खोलेगी । ऐसे में, पूर्व गवर्नर्स को लग रहा है कि टीके रूबी के विरोध का झंडा उठाए रख कर वह ट्रस्टों के हिसाब-किताब में दिलचस्पी लेने से टीके रूबी को रोक सकेंगे - लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों की तरफ से, यहाँ तक कि पूर्व गवर्नर्स के क्लब्स तक के लोगों की तरफ से मिल रहे समर्थन को देख कर टीके रूबी ने भी पूर्व गवर्नर्स के विरोधी रवैये की परवाह न करने का तेवर दिखाया हुआ है । दरअसल उन्होंने पाया/समझा है कि डिस्ट्रिक्ट में मनमानी करते और थोपते रहे पूर्व गवर्नर्स के वह जितना ज्यादा 'विरोध' में  रहेंगे और दिखेंगे, लोगों के बीच उतना ही ज्यादा समर्थन और सहयोग वह पायेंगे । डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप सेमीनार की अपार और रिकॉर्ड बनाती सफलता तो बस एक झलक भर है ।