Sunday, April 26, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में नोएडा क्षेत्र के क्लब्स ने प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त करके अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों के चुनावी-प्रबंधन को गड़बड़ाने के साथ-साथ उनके सामने मुश्किलें खड़ी करने का काम तो किया ही है; चुनाव को खासा दिलचस्प भी बना दिया है

नोएडा । प्रवीन निगम की उम्मीदवारी को नोएडा के क्लब्स के पदाधिकारियों व प्रमुख सदस्यों की उपस्थिति में जिस जोश के साथ प्रस्तुत किया गया और उनकी उम्मीदवारी को कामयाब बनाने के लिए काम करने की योजना पर जिस दिलचस्पी के साथ विचार-विमर्श किया गया, उसने अगले रोटरी वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के समीकरणों को बुरी तरह उलट-पलट दिया है । पिछले दिनों सुभाष जैन की अचानक प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी से जो अशोक गर्ग अभी कल तक बहुत खुश दिख रहे थे, वही अशोक गर्ग अब प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के जोरशोर से प्रस्तुत होने की खबर सुनकर सकते में आ गए हैं । प्रवीन निगम की उम्मीदवारी की चर्चा यूँ तो काफी दिनों से थी; लेकिन चूँकि उनकी कोई सक्रियता नहीं देखी जा रही थी, इसलिए प्रवीन निगम की उम्मीदवारी को लेकर संदेह बना हुआ था और कोई भी उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं लेता दिख रहा था । पिछले कुछ दिनों में प्रवीन निगम किंतु जब लोगों के बीच सक्रिय होते हुए दिखना शुरू हुए, तो उनकी उम्मीदवारी की ठंडी पड़ती चर्चा एक बार फिर गर्म होने लगी, जिसका पारा नोएडा के क्लब्स की संयुक्त मीटिंग ने खासा ऊपर चढ़ा दिया । इस ऊपर चढ़े पारे ने दूसरे उम्मीदवारों, खासकर अशोक गर्ग की स्थिति को पिघलाने का खतरा पैदा कर दिया है । 
किसी भी चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवार दूसरे उम्मीदवारों की स्थिति में डेंट करने की संभावना तो पैदा करता ही है, इसलिए सुभाष जैन की उम्मीदवारी ने यदि प्रसून चौधरी के लिए तथा प्रवीन निगम की उम्मीदवारी की सक्रियता ने अशोक गर्ग के लिए मुसीबत खड़ी की है, तो यह चुनावी राजनीति का एक स्वाभाविक सीन है । अशोक गर्ग के लिए मुसीबत की बात यह हुई कि सुभाष जैन की उम्मीदवारी के कारण प्रसून चौधरी की स्थिति पर पड़ सकने वाले प्रतिकूल प्रभाव का आकलन करते हुए वह अपने पक्ष में समीकरणों का जुगाड़ बैठाते, उससे पहले ही प्रवीन निगम ने उनकी उम्मीदों की जड़ों में मट्ठा डाल दिया । दरअसल अशोक गर्ग के कई समर्थकों में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स हैं, जिनके अब प्रवीन निगम के साथ जुड़ने की संभावना है । प्रवीन निगम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स प्रोफेशन में एक बड़ा नाम है, जिन्होंने प्रोफेशन के एकेडमिक पक्ष के साथ-साथ प्रोफेशन के प्रशासनिक व राजनीतिक पक्ष में भी अपनी प्रभावी पैठ बनाई हुई है । इस नाते अधिकतर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स प्रवीन निगम के संपर्क में या तो हैं, और या उनके संपर्क में रहना/होना चाहते हैं । रोटरी की राजनीति में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स कोई अलग समूह तो नहीं बनाते हैं, लेकिन व्यक्तिगत रूप से वह महत्वपूर्ण भूमिका जरूर ही निभाते हैं । चार्टर्ड एकाउंटेंट होने के नाते अशोक गर्ग को व्यक्तिगत हैसियत में कई एक चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का सहयोग व समर्थन मिल रहा था - या मिलने का विश्वास था । प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के कारण उनका सहयोग व समर्थन लेकिन अब अशोक गर्ग से छिन जाने का खतरा पैदा हो गया है । 
अशोक गर्ग के सामने एक और समस्या आन पड़ी है । अशोक गर्ग अभी जिन मुकेश अरनेजा के समर्थन का दावा करते हैं, और इस दावे के भरोसे अपनी उम्मीदवारी को परवान चढ़ते देख/मान रहे हैं - उन मुकेश अरनेजा के प्रवीन निगम के क्लब के प्रमुख सदस्य प्रशांत माथुर के साथ अच्छे संबंध बताये/सुने जाते हैं । ऐसे में अशोक गर्ग के लिए मुकेश अरनेजा के समर्थन को अपने साथ बनाये रखने की चुनौती पैदा हो गई है । अशोक गर्ग के लिए डर यह पैदा हुआ है कि प्रशांत माथुर यदि मुकेश अरनेजा का समर्थन प्रवीन निगम के लिए ले उड़े, तो उनका क्या होगा ?
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के जो उम्मीदवार नोएडा में अपने अपने लिए समर्थन खोज/बना रहे थे, उन्हें प्रवीन निगम की सक्रियता से और नोएडा के लोगों के उनके समर्थन में खड़ा होने से झटका लगा है । दूसरे उम्मीदवारों का हालाँकि कहना तो है कि नोएडा क्षेत्र के क्लब्स के लोगों ने अभी भले ही प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के प्रति विश्वास और समर्थन दिखाया हो, लेकिन जैसे जैसे अभियान आगे बढ़ेगा वैसे वैसे समर्थन की वास्तविकता सामने आयेगी और ऐसा नहीं होगा कि नोएडा क्षेत्र के सारे वोट प्रवीन निगम ही ले जायेंगे । दूसरे उम्मीदवारों का ऐसा सोचना और कहना हालाँकि कोई गलत नहीं है, किंतु एक तथ्य अवश्य ही ध्यान में रखने योग्य है और वह यह कि नोएडा क्षेत्र के क्लब्स का रोटरी के काम करने के मामले में अच्छा ट्रेक रिकॉर्ड है; और रोटरी के काम करने के इस रिकॉर्ड के चलते उनके बीच अच्छी बॉन्डिंग है । प्रवीन निगम और उनके क्लब ने जो कई प्रोजेक्ट्स किये हैं, तथा कई एक प्रोजेक्ट्स में जो सहभागिता की है - उसके कारण नोएडा के दूसरे क्लब्स के लोगों के साथ उनके गहरे संबंध बने हैं । प्रवीन निगम और उनके समर्थकों ने यदि व्यावहारिक तरीका अपनाया तो नोएडा की रोटरी में लोगों के साथ उनकी जो बॉन्डिंग बनी हुई है, वह चुनावी राजनीति में उनके काम अच्छे से आ सकती है ।
प्रवीन निगम की सक्रियता ने तथा नोएडा में जाहिर हुए उनकी उम्मीदवारी के समर्थन ने अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों के चुनावी-प्रबंधन को गड़बड़ाने के साथ-साथ उनके सामने मुश्किलें खड़ी करने का काम तो किया ही है; चुनाव को खासा दिलचस्प भी बना दिया है ।

Saturday, April 25, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में लायनिज्म से जुड़े अपने बिजनेस को बचाने तथा खर्चों के मामले में राजीव मित्तल द्वारा दिखाई गई 'होशियारी' का बदला लेने के लिए तेजपाल सिंह खिल्लन ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए राजीव मित्तल की कोशिशों को तगड़ा झटका दिया

    
नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजीव मित्तल को अपने ही 'लायन-फादर' तेजपाल सिंह खिल्लन के साथ होशियारी दिखाना भारी पड़ गया है; और इसके चलते मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने का उनका सपना टूटता सा दिखने लगा है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए प्रस्तुत की जाने वाली राजीव मित्तल की उम्मीदवारी में उनके अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेसी वर्मा ने प्रस्तावक बनने से इंकार करके राजीव मित्तल को तगड़ा झटका दिया है । यह तगड़ा झटका जेसी वर्मा के उस उद्घाटन से और तगड़ा हो गया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि प्रस्तावक के रूप में उनके हस्ताक्षर तेजपाल सिंह खिल्लन ने एक ब्लैंक फार्म पर उनसे करवा लिए हैं । तेजपाल सिंह खिल्लन ने यह 'काम' चूँकि राजीव मित्तल को अँधेरे में रख कर किया है, इसलिए जाहिर यही है कि तेजपाल सिंह खिल्लन ने जेसी वर्मा को किसी और के लिए प्रस्तावक बनाने का विचार किया हुआ हो; और या प्रस्तावक के रूप में जेसी वर्मा की भूमिका को ही खत्म कर देने का हथकंडा अपनाया हो । दोनों में से चाहे कोई सी भी बात सच हो, राजीव मित्तल के लिए तो प्रस्तावक जुटाने की समस्या पैदा हो गई है । राजीव मित्तल के लिए अपने ही डिस्ट्रिक्ट में प्रस्तावक मिलने का रास्ता बंद हुआ, तो उन्होंने दूसरे डिस्ट्रिक्ट के अपने समर्थकों से प्रस्तावक बनने का जुगाड़ बैठाना शुरू किया । किंतु अभी तक कोई उनका प्रस्तावक बनने को राजी नहीं हुआ है । उनके जो समर्थक हैं, उनका उनसे साफ कहना है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव में वह उनका समर्थन तो करेंगे, लेकिन उनकी उम्मीदवारी के प्रस्तावक नहीं बनेंगे । 
प्रस्तावक न मिलने के कारण स्वाभाविक रूप से मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए राजीव मित्तल का दावा कमजोर पड़ता दिख रहा है । राजीव मित्तल ने हालाँकि अपने समर्थकों व शुभचिंतकों को आश्वस्त किया है कि तेजपाल सिंह खिल्लन अभी भले ही उनसे नाराज हों; लेकिन उन्हें तेजपाल सिंह खिल्लन की 'कमजोरियों' का पता है और उन्हें मालूम है कि तेजपाल सिंह खिल्लन को कैसे मनाया जा सकता है - इसलिए वह जल्दी ही उन्हें मना लेंगे, और जेसी वर्मा द्वारा हस्ताक्षरित फार्म पर उनका नाम चढ़ जायेगा । अपने समर्थकों व शुभचिंतकों को दिया जा रहा राजीव मित्तल का यह आश्वासन कब पूरा होगा; पूरा होगा भी या नहीं - यह तो आगे पता चलेगा; लेकिन अभी सभी को यह सवाल जरूर हैरान कर रहा है कि तेजपाल सिंह खिल्लन आखिरकार राजीव मित्तल से नाराज क्यों हो गए हैं ? 
इस बारे में डिस्ट्रिक्ट व मल्टीपल के लोगों के बीच कई तरह की बातें चर्चा में हैं । कुछेक लोगों का कहना है कि राजीव मित्तल ने अवार्ड देने में तथा खर्चे करने में मनमानियाँ की हैं और कई मौकों पर उन्होंने तेजपाल सिंह खिल्लन की भी नहीं सुनी/मानी है, इसलिए तेजपाल सिंह खिल्लन उनसे बुरी तरह नाराज हो गए हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार बीएम शर्मा से अनाप-शनाप खर्चे करवाने के मामले में राजीव मित्तल पहले से ही कुछेक लोगों के निशाने पर हैं । चर्चा है कि तेजपाल सिंह खिल्लन कुछेक खर्चे राजीव मित्तल से करवाना चाहते थे, राजीव मित्तल ने होशियारी दिखाते हुए वह खर्चे बीएम शर्मा के सिर मढ़ दिए । राजीव मित्तल की इसी होशियारी को देखकर तेजपाल सिंह खिल्लन उनसे नाराज हो गए हैं । तेजपाल सिंह खिल्लन इस बात पर भी ख़फ़ा हैं कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की उम्मीदवारी से जुड़े खर्चों को लेकर राजीव मित्तल बातें तो बड़ी ऊँची-ऊँची करते रहे हैं, लेकिन जब सचमुच खर्चा करने को कहे तो वह दाएँ-बाएँ देखने लगते हैं । इसीलिए तेजपाल सिंह खिल्लन ने उनकी उम्मीदवारी से हाथ खींच लिए हैं । 
मल्टीपल के नेताओं को यह भी लगता है कि तेजपाल सिंह खिल्लन मल्टीपल की राजनीति में नरेश अग्रवाल की गुडबुक में रहना चाहते हैं, और इसके लिए वही कुछ करना चाहते हैं जो नरेश अग्रवाल को पसंद हो । पिछले वर्षों में अपनी अलग राजनीति करने के चक्कर में नरेश अग्रवाल से हुए झंझट के कारण तेजपाल सिंह खिल्लन को लायनिज्म से होने वाले अपने बिजनेस में काफी नुकसान उठाना पड़ा था । उन्हें डर है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रूप में नरेश अग्रवाल कहीं लायनिज्म से जुड़े उनके बिजनेस को पूरी तरह ही न ले डूबें; इसलिए तेजपाल सिंह खिल्लन ने नरेश अग्रवाल के सामने पूरी तरह से समर्पण करने की तैयारी की हुई है । मल्टीपल काउंसिल की चुनावी राजनीति में नरेश अग्रवाल की 'इच्छा' को पूरा करना तेजपाल सिंह खिल्लन के समर्पणकारी रवैये का एक उदाहरण भर है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव में नरेश अग्रवाल ने चूँकि अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, इसलिए तेजपाल सिंह खिल्लन ने भी राजीव मित्तल की उम्मीदवारी से हाथ खींच लिया हुआ है ।
तेजपाल सिंह खिल्लन ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव के संदर्भ में राजीव मित्तल की संभावनाओं को जो झटका दिया है, उसने चेयरमैन पद की चुनावी राजनीति को दिलचस्प तो बना ही दिया है ।   

Friday, April 24, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी न बनने देने के षड्यंत्रपूर्ण खेल में अपनी भूमिका के चलते चौतरफा फजीहत का शिकार बने दिलीप पटनायक, राजा साबू के रवैये से निराश होकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद छोड़ कर इज्जत बचाने की कोशिश में - हालाँकि दूसरों को यह सहानुभूति जुटाने का शिगूफा लग रहा है

देहरादून/चंडीगढ़ । राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुनावी प्रक्रिया दोबारा से शुरू करने के मामले में हो रही फजीहत से परेशान होकर दिलीप पटनायक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से इस्तीफा देने तक की सोचने लगे हैं । दिलीप पटनायक के क्लब के ही लोगों ने बताया है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुने गए अधिकृत उम्मीदवार टीके रूबी को षड्यंत्रपूर्वक हटाने के खेल में डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने जिस तरह दिलीप पटनायक को मोहरा बना कर इस्तेमाल किया है, उससे दिलीप पटनायक खासे दुखी और परेशान हैं । इस पूरे खेल में, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी भूमिका पर डिस्ट्रिक्ट में और डिस्ट्रिक्ट के बाहर भी जिस तरह से सवाल उठे हैं, उसके कारण उनके लिए खासी अपमानजनक व जलालतपूर्ण स्थिति बनी है । दिलीप पटनायक के नजदीेकियों का कहना है कि इस स्थिति ने दिलीप पटनायक को बहुत ही व्यथित किया है, और उनके लिए लोगों का तथा उनके सवालों का सामना करना मुश्किल हो रहा है । उनकी व्यथा को 22 अप्रैल को 'रेस्पेक्टेड आरआई ऑफीसर्स' को संबोधित तथा डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स को प्रेषित ईमेल चिट्ठी में महसूस किया जा सकता है, जिसमें उन्होंने क्लब्स के अध्यक्षों द्धारा माँगे जा रहे स्पष्टीकरणों के प्रति अपना क्षोभ व्यक्त किया है; और उक्त मामले में अब आगे किसी को भी उक्त मामले में जबाव देना बंद करने का अपना फैसला उन्हें सुना दिया है ।
22 अप्रैल के इसी ईमेल पत्र के हवाले से दिलीप पटनायक के नजदीकियों का कहना है कि दिलीप पटनायक ने यह पत्र लिखने का काम जिन लोगों को विश्वास में लेकर किया है, उनसे उन्होंने साफ साफ यह भी बता दिया है कि उनके लिए हालात यदि ठीक नहीं हुए तो वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद छोड़ देंगे । दरअसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुने गए अधिकृत उम्मीदवार टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने से रोकने के लिए राजा साबू के 'दिशा-निर्देशन' में कुछेक पूर्व गवर्नर्स द्धारा रचे गए षड्यंत्र में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक का जैसा/जो इस्तेमाल किया गया, उससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दिलीप पटनायक की पहचान और प्रतिष्ठा जैसे तार-तार कर दी गई है । उल्लेखनीय है कि 16 मार्च को उन्होंने क्लब प्रेसीडेंट्स को चेलैंज व कॉन्करेंस के संबंध में जो पत्र लिखा था, उसमें इस बात का कोई जिक्र तक नहीं था कि जो चुनावी प्रक्रिया चल रही है - उसकी वैधता को लेकर कोई शिकायत की गई है और कोई कमेटी उसकी पड़ताल कर रही है । लोग अब सवाल कर रहे हैं कि 16 मार्च को दिलीप पटनायक को यदि इस बात का पता था, तो उन्होंने इस बात को क्लब प्रेसीडेंट्स के साथ शेयर क्यों नहीं किया; और यदि इस बात का उन्हें सचमुच नहीं पता था तो फिर उस तथाकथित कमेटी के फैसले को मानने के लिए वह क्यों मजबूर हुए ?
दिलीप पटनायक के पास इस सवाल का कोई जबाव नहीं है; और अनुत्तरित रह जा रहे इस सवाल ने दिलीप पटनायक को एक कठपुतली गवर्नर बना दिया है ।
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि जिस 16 मार्च को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक क्लब प्रेसीडेंट्स को चेलैंज की बात बता कर कॉन्करेंस का शिड्यूल बता रहे थे, उसी 16 मार्च को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रेम भल्ला ने टीके रूबी को पत्र लिखा जिसमें चेलैंज को डिस्ट्रिक्ट ग्रीवन्स कमेटी में भेजने की जानकारी दी गई थी । प्रेम भल्ला के तीन लाइनों के इस पत्र का मजमून षड्यंत्र का पूरा पूरा सुबूत देता है । प्रेम भल्ला ने टीके रूबी को लिखा कि आप जानते ही होंगे कि नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला चेलैंज हो गया है और इस चेलैंज को डिस्ट्रिक्ट ग्रीवन्स कमेटी को भेज दिया गया है । यह पढ़ कर टीके रूबी को कैसा/क्या लगा होगा, यह तो टीके रूबी ही बता सकते हैं - लेकिन रोटरी की दुनिया में अब वायरल हो चुके इस पत्र को जिसने भी पढ़ा है, वह इस बात को लेकर हैरान है कि नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले का चेलैंज डिस्ट्रिक्ट ग्रीवन्स कमेटी में क्यों भेज दिया गया ? नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले का चेलैंज तो कॉन्करेंस के लिए जाता है - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक ने क्लब प्रेसीडेंट्स को लिखे पत्र में रोटरी इंटरनेशनल के इसी नियम और प्रथा का पालन किया भी । फिर प्रेम भल्ला उसी तारीख को चेलैंज को ग्रीवन्स कमेटी में भेजने की बात क्यों कह रहे थे ? जाहिर है कि प्रेम भल्ला जो 'कुछ' बता रहे थे, उससे ज्यादा दरअसल छिपा रहे थे । कुछ बताने और कुछ छिपाने; तथा बताने से ज्यादा छिपाने की उनकी जो होशियारी इस पत्र में नजर आ रही है, वह पर्दे के पीछे चल रहे खेल की पोल खोलती है ।
इस सारे प्रकरण में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक की भूमिका को लेकर लोगों की राय परस्पर बँटी हुई है । कुछेक लोगों को लगता है कि टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी न बनने देने के षड्यंत्रपूर्ण खेल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक की पूरी पूरी भूमिका थी, लेकिन वह इस खेल में चूँकि शामिल दिखना नहीं चाहते हैं इसलिए उन्होंने अपने आप को इस खेल को क्रियान्वित करने की कार्रवाइयों से अपने आप को जानबूझकर दूर रखा; लेकिन कई अन्य लोगों को लगता है कि इस खेल के खिलाड़ियों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक को पूरी तरह अँधेरे में रखा और जब/जैसे/जहाँ उनकी जरूरत हुई, वहाँ उन्हें इस्तेमाल किया । इस खेल को चूँकि पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू का आशीर्वाद रहा, इसलिए दिलीप पटनायक इस्तेमाल होने के लिए मजबूर हुए । दिलीप पटनायक के लिए मुसीबत की बात यह हुई कि 'खेल' संपन्न होने के बाद लोगों के बीच जब रिएक्शन हुआ और सवाल पूछे जाने लगे तब खेल के 'असली खिलाड़ी' तो बच गए और दिलीप पटनायक फँस गए । हालाँकि यह स्वाभाविक ही था कि इस खेल में जो 'छेद' दिखाई पड़ रहे हैं, उनके बारे में सवाल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक से ही होंगे । खेल के 'असली खिलाड़ियों' ने जबाव देने के लिए दिलीप पटनायक को जिस तरह लोगों के सामने अकेला छोड़ दिया, उससे दिलीप पटनायक की और फजीहत हुई ।
दिलीप पटनायक को राजा साबू के रवैये से और परेशानी हुई । दिलीप पटनायक के नजदीकियों का कहना है कि दिलीप पटनायक को उम्मीद थी कि उनको मुसीबत में फँसा देख कर राजा साबू तो अवश्य ही उनकी मदद के लिए आगे आयेंगे, लेकिन राजा साबू ने भी उनकी कोई सुध नहीं ली है । दिलीप पटनायक ने अपने नजदीकियों से कहा है कि वह राजा साबू के कारण ही इस खेल में शामिल हुए, किंतु राजा साबू ने भी उनको मुसीबत से और लोगों के सवालों से बचाने की कोई कोशिश नहीं की । इसीलिए दिलीप पटनायक अब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद छोड़ देना चाहते हैं । डिस्ट्रिक्ट में और डिस्ट्रिक्ट के बाहर भी जिन लोगों के बीच दिलीप पटनायक की अच्छी पहचान है, और उनके प्रति सम्मान का भाव है - उनका भी कहना है कि जो कुछ भी हुआ है उससे दिलीप पटनायक की प्रतिष्ठा और पहचान को बहुत ही गहरी ठेस लगी है और ऐसे में दिलीप पटनायक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद छोड़ कर ही अपनी प्रतिष्ठा और पहचान को बचा सकते हैं । दिलीप पटनायक के कई कलीग गवर्नर्स का कहना है कि अपने विचार व व्यवहार के चलते दिलीप पटनायक ने उनके बीच अपनी एक खास जगह बना ली थी, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उन्होंने जो हरकत की, उससे उन्होंने अपने आप को उस खास जगह से गिरा लिया है ।
दिलीप पटनायक को जिस तरह अपने डिस्ट्रिक्ट में, अपने कलीग गवर्नर्स के बीच और रोटरी के बड़े पदाधिकारियों व बड़े नेताओं के बीच फजीहत का सामना करना पड़ रहा है - उससे बचने के लिए उन्हें यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद छोड़ने का विकल्प ही सूझ रहा है, तो यह बहुत स्वाभाविक ही है । हालाँकि यह कहने वाले लोगों की भी कमी नहीं है कि इस्तीफे का शिगूफा दिलीप पटनायक ने सहानुभूति प्राप्त करने के लिए छेड़ा है - वास्तव में वह कोई इस्तीफा-विस्तीफा नहीं दे रहे हैं, क्योंकि जो खेल हुआ है उसमें उनकी पूरी मिलीभगत रही है ।

Tuesday, April 21, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुभाष जैन को अपने लिए स्थितियाँ अनुकूल तो खूब दिख रही हैं, लेकिन क्लब में योगेश गर्ग ने भी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके उनके लिए बड़ी समस्या और चुनौती पैदा कर दी है

गाजियाबाद । सुभाष जैन ने अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की बात करके लोगों को हैरान कर दिया है । लोगों के लिए हैरान होने का कारण यह रहा कि अभी चार दिन पहले ही तो उन्होंने सुभाष जैन को यह कहते हुए सुना था कि अगले तीन-चार वर्ष तो वह बहुत ही व्यस्त होने के कारण अपनी उम्मीदवारी के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं; लेकिन अब वही सुभाष जैन खुद ही अपनी उम्मीदवारी की बात कह रहे हैं । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि चार दिन में आखिर ऐसा क्या हो गया है कि सुभाष जैन की सारी व्यस्तता छूमंतर हो गई और वह उम्मीदवार बनने के लिए तैयार हो गए हैं ? लोगों के बीच यह सवाल भी चर्चा में है कि चार दिन पहले अपनी व्यस्तता की जो बात उन्होंने कही थी, वह यदि झूठ थी - तो क्या जरूरी है कि अब जो वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की बात कर रहे हैं, वह झूठ नहीं होगी ? दरअसल सुभाष जैन के इसी विरोधाभासी व्यवहार के कारण अभी कोई भी उनकी उम्मीदवारी की बात को गंभीरता से नहीं लेता दिख रहा है ।
सुभाष जैन की उम्मीदवारी की बात को कोई इसलिए भी गंभीरता से नहीं ले रहा है, क्योंकि उनके अपने क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल में उनकी उम्मीदवारी को लेकर झमेला पैदा हो गया है । सुभाष जैन ने अपनी उम्मीदवारी की बात बताते हुए लोगों से इस बात का दावा किया कि उन्हें अपने क्लब में अपनी उम्मीदवारी के लिए हरी झंडी मिल गई है; और जब कुछेक लोगों ने क्लब के वरिष्ठ सदस्य योगेश गर्ग की उम्मीदवारी के बारे में उनसे पूछा तो उन्होंने जबाव दिया कि योगेश गर्ग ने भी उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त कर दिया है । सुभाष जैन ने लोगों के बीच भले ही यह दावे कर दिए, लेकिन उनके यह दावे जल्दी ही झूठे साबित हो गए । क्लब के पदाधिकारियों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि क्लब में औपचारिक तौर पर अभी सुभाष जैन की उम्मीदवारी के बारे में कोई फैसला होना तो दूर की बात है, अभी कोई विचार-विमर्श भी नहीं हुआ है । क्लब के पदाधिकारियों का तो यहाँ तक कहना है कि जिस दिन उन्हें सुभाष जैन की तरफ से अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की इच्छा जताता हुआ ईमेल संदेश मिला, उसके अगले ही दिन उन्हें योगेश गर्ग की तरफ से भी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने बाबत पत्र प्राप्त हुआ । अब यदि योगेश गर्ग भी अगले रोटरी वर्ष में अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की बात कर रहे हैं, तो सुभाष जैन का यह कहना/बताना झूठ ही हुआ न कि उनके क्लब ने उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी दे दी है और योगेश गर्ग भी उनकी उम्मीदवारी को लेकर राजी हैं ।
इन तथ्यों ने सुभाष जैन की उम्मीदवारी को लोगों के बीच मजाक का विषय बना दिया है । जिन लोगों को सुभाष जैन के साथ हमदर्दी है और जो चाहते हैं कि सुभाष जैन को उम्मीदवार बनना चाहिए, उन्हें भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि सुभाष जैन ने अपनी उम्मीदवारी को इतने बचकाने तरीके से और झूठ का सहारा लेते हुए प्रस्तुत क्यों किया है ? उन्हें भी लगता है कि सुभाष जैन को अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में पहले अपने क्लब को भरोसे में लेना चाहिए था, और क्लब के झगड़ों/झंझटों को निपटाना चाहिए था - और फिर उसके बाद उन्हें दूसरे लोगों से अपनी उम्मीदवारी की बात करना चाहिए था । सुभाष जैन के शुभचिंतकों को भी लगता है कि अपने क्लब में अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाए बिना सुभाष जैन ने जिस तरह से अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया है, उससे न सिर्फ उनकी उम्मीदवारी का हल्कापन जाहिर हुआ है, वह बल्कि मजाक का विषय भी बन गई है ।
दूसरों के बीच भले ही सुभाष जैन की उम्मीदवारी मजाक का विषय बन गई हो, लेकिन अपनी उम्मीदवारी को लेकर सुभाष जैन खुद बहुत आश्वस्त हैं । लोगों से बात करते हुए उन्होंने जो कुछ कहा है उसका सार यह है कि सुभाष जैन को लगता है कि प्रवीन निगम को कोई जानता नहीं है; दीपक गुप्ता को कोई पसंद नहीं करता; अशोक गर्ग के बस की चुनाव लड़ना नहीं है; प्रसून चौधरी के कट्टर समर्थक विकास चोपड़ा जब उनके समर्थन में आ जायेंगे तो प्रसून चौधरी के पास भी कुछ बचा नहीं रह जायेगा । दरअसल सुभाष जैन ने विकास चोपड़ा को कुछ बिजनेस दिया है, जिसके भरोसे वह मानते हैं कि वह उम्मीदवार बनेंगे तो विकास चोपड़ा, प्रसून चौधरी को छोड़ कर उनके समर्थन में आ जायेंगे । सुभाष जैन ने जेके गौड़ का समर्थन मिलने का भी दावा किया है । स्कूलों की जो एसोसिएशनबाजी होती है, उसमें जेके गौड़ चूँकि सुभाष जैन की हाँ में हाँ मिलाते रहते हैं, इसलिए सुभाष जैन को भरोसा है कि वह उम्मीदवार बनेंगे तो जेके गौड़ उनकी उम्मीदवारी का झंडा खुद-ब-खुद उठा लेंगे । इतनी अनुकूल स्थितियों के बीच, फिर मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल भी उनका समर्थन करने को मजबूर हो जायेंगे । इस तरह, सुभाष जैन को विश्वास है कि वह बड़े आराम से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुन लिए जायेंगे ।
सुभाष जैन का आराम से चुन लिए जाने के इस सपने का क्या होगा, यह तो बाद में पता चलेगा; सुभाष जैन के लिए अभी मुसीबत लेकिन यह पैदा हो गई है कि उनकी इन बातों के आधार पर उनका मजाक ज्यादा बन रहा है । क्लब में योगेश गर्ग ने भी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके सुभाष जैन के लिए बड़ी चुनौती पैदा कर ही दी है । क्लब में सुभाष जैन के लिए जो समस्याएँ पैदा हुई हैं, उनके लिए खुद सुभाष जैन को ही जिम्मेदार माना/बताया जा रहा है । क्लब में सुभाष जैन के संगी-साथियों का ही कहना है कि सुभाष जैन ने अपने व्यवहार और अपने रवैये से लोगों को अपने खिलाफ कर लिया है; समस्या की बात यह है कि उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं है कि उनका तौर-तरीका उन्हें सच्चाई से अवगत ही नहीं होने दे रहा है और वह खामख्याली में ही अनुमान लगाये जा रहे हैं । यही कारण है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी प्रस्तुत होते ही लोगों के बीच मजाक का विषय बन गई है ।

Monday, April 20, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के मॉरटोरिअम में जाने के बावजूद वीके हंस को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और/या एडमिनिस्ट्रेटिव का पद दिलवाने के लिए उनके कलीग्स फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने प्रयास तो शुरू किए हैं, लेकिन सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट बनने की तैयारी कर रहे नरेश अग्रवाल का रवैया वीके हंस को 'न्याय' दिलाने के मामले में अभी स्पष्ट नहीं है

नई दिल्ली । वीके हंस को मॉरटोरिअम पीरियड में डिस्ट्रिक्ट का गवर्नर और/या एडमिनिस्ट्रेटिव बनाने/बनवाने के लिए कुछेक दलाल किस्म के लायन नेता सक्रिय हो गए हैं, जो ऑफर दे रहे हैं कि वीके हंस यदि नरेश अग्रवाल के सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट पद के अभियान के लिए मोटी रकम खर्च करें तो वह नरेश अग्रवाल से कह कर उन्हें मॉरटोरिअम पीरियड में डिस्ट्रिक्ट का गवर्नर और/या एडमिनिस्ट्रेटिव नियुक्त करवा देंगे । इनका कहना है कि नरेश अग्रवाल ने ही डिस्ट्रिक्ट के नेताओं की हरकतों और शिकायतों से परेशान होकर डिस्ट्रिक्ट को मॉरटोरिअम में डलवाया है, ताकि डिस्ट्रिक्ट के नेताओं की अक्ल कुछ ठिकाने लगे । अपनी इस कार्रवाई में नरेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट के नेताओं को अपनी शरण में आने के लिए मजबूर करने का मौका भी पाया/देखा है : उन्हें पक्का विश्वास है कि डिस्ट्रिक्ट को मॉरटोरिअम से बाहर निकलवाने के लिए डिस्ट्रिक्ट के नेता उनकी खुशामद करने उनके पास अवश्य ही आयेंगे । दरअसल नरेश अग्रवाल के इन्हीं तेवरों को देखते हुए कुछेक दलाल किस्म के लोगों ने वीके हंस के लिए ऑफर निकाल दिया है कि वह यदि नरेश अग्रवाल के 'काम' आना स्वीकार करें, तो नरेश अग्रवाल भी उनका काम कर/करवा सकते हैं । इनका तो यहाँ तक दावा है कि वीके हंस ने चूँकि नरेश अग्रवाल के चुनाव अभियान के लिए पैसे नहीं दिए हैं, इसलिए 'भी' नरेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट को मॉरटोरिअम में डलवा दिया और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का वीके हंस का मौका खत्म करवा दिया ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का वीके हंस का मौका जिस तरह से छिना है, उसे लेकर उनके कलीग्स फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच गहरी नाराजगी और निराशा है । उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में जो कुछ भी हुआ और जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट के मॉरटोरिअम में जाने की स्थितियाँ बनीं, उसमें वीके हंस का भला क्या दोष है ? वीके हंस का कोई दोष भी नहीं है, लेकिन फिर भी डिस्ट्रिक्ट के मॉरटोरिअम में जाने से सबसे ज्यादा नुकसान उन्हीं का हुआ है । इसी तर्क के साथ मल्टीपल के डिस्ट्रिक्ट्स के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स लायंस इंटरनेशनल से यह गुहार लगाने की तैयारी कर रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट को भले ही मॉरटोरिअम में डाल दिया गया है, लेकिन मॉरटोरिअम-काल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद वीके हंस को ही सौंपा जाए । मल्टीपल के कुछेक बड़े नेताओं को भी लगता है कि लायंस इंटरनेशनल ने डिस्ट्रिक्ट को मॉरटोरिअम में डालने का फैसला करने के साथ-साथ ही जिस तरह से वीके हंस को इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में पहुँचने के लिए टिकिट भेजा है, उससे लगता है कि लायंस इंटरनेशनल वीके हंस के साथ अन्याय नहीं होने देने का मन शायद बना चुका है । उल्लेखनीय है कि पूर्व में डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में पहले अशोक कपूर और फिर श्याम विजयवर्गीय के साथ लायंस इंटरनेशनल न्यायपूर्ण उदारता दिखा चुका है जिसमें अशोक कपूर बारह महीनों की बजाये सत्रह महीने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर रहे और इक्यावन प्रतिशत से अधिक खिलाफ वोट पाने के बावजूद श्याम विजयवर्गीय डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने । इन्हीं उदाहरणों के भरोसे तथा होनोलुलु का टिकट आने की स्थिति से उम्मीद की जा रही है कि वीके हंस के साथ भी 'अन्याय' शायद न हो ।
हालाँकि सारा दामोमदार नरेश अग्रवाल के रवैये पर निर्भर है । कुछेक लोगों को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री को मॉरटोरिअम में डलवाने का सारा खेल नरेश अग्रवाल ने ही संभव करवाया है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री की राजनीति में वीके हंस विरोधी नेताओं के साथ नरेश अग्रवाल की नजदीकी जगजाहिर बात है । ऐसे में, नरेश अग्रवाल की तरफ से वीके हंस को सहानुभूतिपूर्ण न्याय दिलवाने की कोई उम्मीद नहीं कर रहा है । लेकिन नरेश अग्रवाल के लिए खतरा भी है - मल्टीपल के डिस्ट्रिक्ट्स में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच जिस तरह वीके हंस को लेकर अभी जो सहानुभूति दिख रही है, उसने यदि सचमुच संगठित रूप ले लिया और नरेश अग्रवाल पर दबाव बनाया तो नरेश अग्रवाल को वीके हंस को न्याय दिलाने के लिए मजबूर भी किया जा सकता है । नरेश अग्रवाल को यह तथ्य अच्छे से पता है कि पिछले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव का फैसला करीब पाँच सौ वोटों के अंतर से ही हुआ था; इसलिए वीके हंस के मुद्दे पर मल्टीपल 321 के गवर्नर्स यदि वास्तव में आंदोलित हो गए तो सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट पद का उनका चुनाव खतरे में भी पड़ सकता है ।
जाहिर तौर पर वीके हंस के लिए उम्मीदें अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई हैं; हालाँकि उनकी उम्मीद के फलीभूत होने का सारा दारोमदार इस बात पर निर्भर है कि उनका केस किस तरह आगे बढ़ता है । उन्हें न्याय दिलवाने के नाम पर नरेश अग्रवाल से नजदीकी होने का दावा करने वाले कुछेक लोग जिस तरह से उनसे पैसे ऐंठने के की तरकीबें लगाने लगे हैं, उससे यह भी लग रहा है कि वीके हंस के लिए आगे की राह बहुत चुनौतीपूर्ण भी है ।

Sunday, April 19, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के कुछेक नेताओं की नकारात्मक राजनीति के कारण डिस्ट्रिक्ट मॉरटोरिअम में गया और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता अपने अधिकार छिनवाने वाले देश के पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने

नई दिल्ली । नरेश गुप्ता देश के पहले ऐसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने हैं जिनसे लायंस इंटरनेशल ने कार्यकाल खत्म होने से पहले गवर्नर पद के अधिकार छीन लिए हैं । देश में लायनिज्म का यह साठवाँ वर्ष है - और इस साठवें वर्ष में डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के गवर्नर के रूप में नरेश गुप्ता ने लायनिज्म को जिस तरह कलंकित किया है, वह अपने आप में बेमिसाल उदाहरण तो है ही; एक रिकॉर्ड भी है । अपने और लायनिज्म के मुँह पर एक साथ कालिख पुतवाने का नरेश गुप्ता ने जो 'कमाल' किया है, वह सिर्फ इस कारण से संभव हो सका क्योंकि उन्होंने अपने आपको पूरी तरह हर्ष बंसल और डीके अग्रवाल के यहाँ गिरवी रख दिया और अपने आप को उनकी कठपुतली बना लिया । डिस्ट्रिक्ट के मॉरटोरिअम में जाने से उन गतिविधियों पर रोक लग गई है, जिन गतिविधियों ने पिछले करीब एक वर्ष से डिस्ट्रिक्ट में लायनिज्म को एक गंदा नाला बना दिया था । डिस्ट्रिक्ट में राजनीति और राजनीति के नाम पर फर्जीवाड़ा वर्षों से हो रहा था और प्रत्येक नेता ने अपने अपने तरीके से फर्जी कामों में भूमिका निभाई हुई थी । लायनिज्म का तानाबाना लेकिन इतना विशाल और महान है कि वह तमाम तरह की टुच्चईयों को झेल लेता है । लायनिज्म ने हर्ष बंसल को झेल लिया, जिसने हर किसी से गालियाँ खाईं हैं - और सिर्फ गालियाँ ही नहीं, भरी मीटिंग में लात-घूँसे भी खाए हैं ।
लायनिज्म किंतु तब हर्ष बंसल से हार गया, जब हर्ष बंसल ने ऐलान कर दिया कि वह किसी भी कीमत पर वीके हंस को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बनने देंगे । हर्ष बंसल चुनावी तरीके से तो वीके हंस को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से रोकने में विफल रहे और फिर उन्होंने गैर-लायनिस्टिक तरीके अपनाए - जहाँ लायनिज्म को हारना ही था । डीके अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट में बहुत से लोगों को बनाया और बिगाड़ा है - इसके बावजूद वह डिस्ट्रिक्ट के एक सर्वमान्य नेता बने और सभी के बीच अपने लिए आधार बनाया; किंतु दीपक टुटेजा को 'बिगाड़ने' के अपने इरादे में वह इतनी दूर तक चले गए कि हर्ष बंसल जैसे घटिया व्यक्ति के साथ हाथ मिलाने से भी परहेज नहीं बनाये रख सके, तो डिस्ट्रिक्ट को मॉरटोरिअम में पहुँचाने के एक जिम्मेदार वह भी बने । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश त्रेहन के कुछेक 'खेल' विजय शिरोहा के कारण यदि कामयाब नहीं हो सके, तो राकेश त्रेहन के मन में उनके प्रति गुस्सा पैदा हुआ - यहाँ तक तो बात समझ में आती है; लेकिन यह गुस्सा एक लीचड़ किस्म के व्यक्तिगत विरोध में बदल जाये तो फिर हालात मॉरटोरिअम की तरफ ही जाते हैं । ओंकार सिंह रेनु लायनिज्म में कुछ अच्छा करने के इरादे से आते हैं और बहुत कुछ करते भी हैं; यह करते हुए वह डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में एक पक्ष के साथ जुड़ जाते हैं - इसमें कोई गलती नहीं है; लेकिन एक पक्ष के साथ वह इस हद तक जुड़ जाते हैं कि उस पक्ष की राजनीति को साधने के लिए वह रीजन चेयरमैन होने के बाद जोन चेयरमैन बनना भी स्वीकार कर लेते हैं, तो यह घटिया लोगों के साथ सहभागी बनने का उदाहरण है ।
डिस्ट्रिक्ट के मॉरटोरिअम में जाने के लिए हर्ष बंसल, डीके अग्रवाल, राकेश त्रेहन जैसे लोग ही जिम्मेदार नहीं हैं - ओंकार सिंह रेनु जैसे लोग भी जिम्मेदार हैं । इसलिए जिम्मेदार हैं क्योंकि इन्होंने जो पाना/करना चाहा उसके लिए इन्होंने लिमिट क्रॉस करने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई । बात सिर्फ यह नहीं है कि इन्होंने फर्जीवाड़े किए और षड्यंत्र किए - वह तो दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा ने भी किए । किसने नहीं किए ? कम/ज्यादा का अंतर भले ही हो, फर्जीवाड़े और षड्यंत्र के गंदे नाले में सभी ने हाथ धोये हैं । लायनिज्म में यदि चुनाव की व्यवस्था है, तो राजनीति तो होगी ही; और यदि राजनीति होगी तो फर्जीवाड़ा व षड्यंत्र भी होंगे - यह एक कठोर सच्चाई है; जो लोग बड़ी आदर्शात्मक बातें करते हैं या कर रहे हैं और धर्मात्मा 'दिखने' का प्रयास कर रहे हैं, वह झूठे और पाखंडी लोग हैं । बात फर्जीवाड़े और षड्यंत्र की नहीं है - बात दाल में नमक या नमक में दाल की है !
डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री मॉरटोरिअम में इसलिए नहीं गया क्योंकि इसमें राजनीति हुई और राजनीति में फर्जीवाड़ा व षड्यंत्र हुआ - यह सब तो यहाँ शुरू से हो रहा था । दूसरे डिस्ट्रिक्ट में भी खूब राजनीति होती है और खूब फर्जीवाड़े व षड्यंत्र होते हैं । यह कोई नई बात नहीं है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री मॉरटोरिअम में इसलिए गया क्योंकि यहाँ कुछेक नेताओं ने अपनी नकारात्मक राजनीति को सफल बनाने के लिए किसी भी हद तक जाने का फैसला लिया था । आरके शाह की चुनावी जीत में लायंस इंटनेशनल के फैसले के जरिये तथा विक्रम शर्मा के 'चयन' में अदालती कार्रवाई के जरिये फच्चर फँसा देने के बाद भी हालात बहुत खराब नहीं हुए थे; और इसी का नतीजा था कि दोनों पक्षों के नेता आरके शाह व विक्रम शर्मा को बारी बारी से गवर्नर 'चुन' लेने के फार्मूले पर लिए राजी हो गए थे । आरके शाह के समर्थक नेता पहला नंबर विक्रम शर्मा को भी देने को तैयार हो गए थे । पर यह हो न सका, क्योंकि विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं का उद्देश्य दरअसल 'कुछ' और था ! हर्ष बंसल को वीके हंस से दुश्मनी निकालनी थी; डीके अग्रवाल को दीपक टुटेजा से निपटना था; राकेश त्रेहन को विजय शिरोहा से बदला लेना था; नरेश गुप्ता को हर्ष बंसल व डीके अग्रवाल की गुलामी करनी थी; ओंकार सिंह रेनु को इन लोगों के सहारे 'आगे' बढ़ना था - और इस सबके लिए यह विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को 'इस्तेमाल' कर रहे थे ।
विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं को यदि सचमुच में विक्रम शर्मा को गवर्नर बनवाना होता, तो विक्रम शर्मा को वह आराम से गवर्नर बनवा लेते; पर वह तो अपनी अपनी राजनीति करने में लगे रहे और डिस्ट्रिक्ट को मॉरटोरिअम की भेंट चढ़ा बैठे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता यदि जरा सी अक्ल और जरा सा आत्मसम्मान दिखाते तो न तो डिस्ट्रिक्ट को इस तरह से बदनाम होना पड़ता और न खुद उन्हें इस तरह बेइज्जत होना पड़ता ।  

Friday, April 17, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी के अभियान का उत्साह जिस तरह उन्माद में बदल कर लोगों के बीच बदनामी प्राप्त कर रहा है, उसे देख/जान कर विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को भी चिंता होने लगी है

फरीदाबाद । विनय भाटिया की जगह नवदीप चावला को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनाये जाने के 'सुझाव' सुने जाने से विनय भाटिया की उम्मीदवारी पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं । खतरे के यह बादल इसलिए और भी घने हैं क्योंकि यह 'सुझाव' ऐसे लोगों की तरफ से आ रहे हैं, जिन्हें विनय भाटिया की उम्मीदवारी के पक्के समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जाता है । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के एक बड़े समर्थक नेता ने इन पँक्तियों के लेखक से बात करते हुए स्वीकार किया कि अगले रोटरी वर्ष के लिए जो चुनावी परिदृश्य बनता हुआ दिख रहा है, उसमें विनय भाटिया फिट नहीं लग रहे हैं; और इसलिए फरीदाबाद के लोग यदि सचमुच चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर फरीदाबाद से हो तो उन्हें नवदीप चावला को उम्मीदवार बनाना चाहिए । नवदीप चावला की उम्मीदवारी हालाँकि दूर की कौड़ी लाने वाली बात है । नवदीप चावला के नजदीकियों का ही मानना और कहना है कि नवदीप चावला की इच्छा तो है, लेकिन अभी वह जल्दी में नहीं हैं । फरीदाबाद की रोटरी में अभी जो हुड़दंग है, उसके कारण भी वह अभी अपनी उम्मीदवारी लाने का जोखिम नहीं लेना चाहेंगे । वह जान/समझ रहे हैं कि अभी उम्मीदवारी लायेंगे तो यहाँ अभी जो हुड़दंगी किस्म के लोग सक्रिय हैं, वह उनके सिर पर बैठने की कोशिश करेंगे; इसलिए उम्मीदवारी के पचड़े से अभी दूर रहने में ही वह अपनी भलाई देख रहे हैं । नवदीप चावला की इस सोच के कारण विनय भाटिया की उम्मीदवारी के लिए कोई सीधा खतरा तो नहीं है, किंतु नवदीप चावला की उम्मीदवारी का 'सुझाव' जिस कारण से सामने आया है, वह कारण विनय भाटिया की उम्मीदवारी के लिए चुनौती जरूर है ।
दरअसल विनय भाटिया की उम्मीदवारी का उत्साह जिस तरह उन्माद में बदलता दिख रहा है, उसने विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को भी चिंता में डाल दिया है । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के अभियान में अभी तक फरीदाबाद की एकता का शोर-शराबा ज्यादा सुनाई पड़ रहा है - और यह शोर-शराबा उत्साह की सीमारेखा को तोड़ कर उन्माद की तरफ जाता हुआ दिख रहा है । पेट्स में इस उन्माद को देखते हुए यह सवाल उठे कि विनय भाटिया और उनके समर्थक रोटरी जैसे संगठन को अंतर्राष्ट्रीय से आंचलिक बना देने पर क्यों आमादा हैं ? और ऐसा करके वह रोटरी का व डिस्ट्रिक्ट का भला कैसे भला कर पायेंगे ? यह ठीक है कि चुनावी राजनीति में कोई भी उम्मीदवार शुरुआत जातिवाद व क्षेत्रवाद का सहारा लेकर करता है - लेकिन कामयाब होने के लिए फिर वह इसकी सीमाओं को भेद कर आगे बढ़ता है । विनय भाटिया भी अपनी उम्मीदवारी की शुरुआत यदि फरीदाबाद-फरीदाबाद की रट से करते हैं, तो इसमें कोई बुरी बात नहीं है - लेकिन यह रट यदि स्थाई टेक ही बन गई तो फिर मुसीबत हो सकती है । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगता है कि विनय भाटिया और उनका झंडा उठाये उनके साथ चल रहे लोग जिस तरह फरीदाबाद-फरीदाबाद पर अटक गए हैं, ऐसा न हो कि फिर वहीं अटके रह जाये । इस बात का दो तरह से नुकसान हो रहा है : एक तरफ तो फरीदाबाद के लोगों को डर हुआ है कि विनय भाटिया की यह राजनीति उन्हें एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन का नहीं, बल्कि एक आँचलिक संगठन का सदस्य बना देगी; दूसरी तरफ खतरा यह पैदा हुआ है कि फरीदाबाद-फरीदाबाद के जबाव में कहीं दिल्ली-दिल्ली का नारा लग गया, तो विनय भाटिया की उम्मीदवारी का क्या होगा ? केवल फरीदाबाद के भरोसे तो उनकी उम्मीदवारी की नैय्या पार नहीं लग पायेगी न । इस तरह की हरकतों से विनय भाटिया की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को उनके अभियान में मैच्योरिटी का अभाव दिख रहा है, और वह उनके समर्थन से हाथ खींचते दिख रहे हैं ।
रवि चौधरी के मामले से इस संबंध में सबक लिया जा सकता है । उल्लेखनीय है कि रवि चौधरी जब पहली बार उम्मीदवार बने थे, तब वह काली-काली जुल्फों के मालिक हुआ करते थे । उस समय कुछेक लोगों ने उन्हें सलाह भी दी थी कि उनकी जुल्फें उनकी उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचायेंगी, इसलिए इन्हें कटवा लो । रवि चौधरी को तब लेकिन यह लगा था कि पिछला गवर्नर उनके साथ है, मौजूदा गवर्नर उनके साथ है, आने वाले तीन गवर्नर उनके साथ हैं, और सबसे बड़ी बात यह कि सड़क पर खड़े रिक्शेवाले को भी गवर्नर चुनवा/बनवा देने का दावा करने वाले मुकेश अरनेजा उनके साथ हैं - तो भला उनकी जुल्फें उन्हें क्या नुकसान पहुँचायेंगी । तमाम चौधरियों के समर्थन के बावजूद उस चुनाव में हुई उनकी हार में उनकी जुल्फों का कितना/क्या योगदान था, इसका तो पता नहीं; लेकिन सच यह देखने में आया कि इस बार रवि चौधरी जब दोबारा से उम्मीदवार बने तो अपनी जुल्फों को कटवा कर और बालों को रंगना छोड़ कर बने । इस बार मिली जीत में उनके बालों में दिखती सफेदी का योगदान हो या न हो लेकिन मॉरल ऑफ द स्टोरी तो यह है ही कि खुद रवि चौधरी भी स्वीकार करते नजर आये कि एक उम्मीदवार को मैच्योर 'दिखना' तो चाहिए ही ।
विनय भाटिया की उम्मीदवारी का अभियान अभी तक जिस तरह चल रहा है, उसमें हाय-हल्ला और शोर-शराबा ज्यादा नजर आ रहा है; और इस कारण उसमें मैच्योरिटी का अभाव दिख रहा है । इससे हो यह रहा है कि फरीदाबाद में ही लोग नाराज होने लगे हैं । अभी कोई खुल कर तो कुछ नहीं कह रहा है, लेकिन भीतर ही भीतर फैल रही नाराजगी को यदि समय रहते नहीं पहचाना गया और उसे नियंत्रित करने का प्रयास नहीं किया गया, तो यह नाराजगी महँगी पड़ सकती है । पेट्स के गिफ्ट स्पॉन्सर करने के मामले में विनय भाटिया और उनके सलाहकारों द्धारा तैयार की गई योजना की जैसी फजीहत हुई और फिर जिस तरह उन्हें पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा था, उससे भी उन्होंने कोई सबक नहीं लिया है । इन्हीं कारणों से विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक नेता उनकी जगह दूसरे किसी को उम्मीदवार बनाने का सुझाव देने लगे हैं, तो यह स्थिति विनय भाटिया के रास्ते को मुश्किल तो बनाती ही है ।

Thursday, April 16, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में मनमाने और षड्यंत्रपूर्ण तरीके से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को अमान्य घोषित करने के फैसले में रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय को तथा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने जा रहे केआर रवींद्रन को भी लपेट लिए जाने से केआर रवींद्रन सचमुच नाराज हैं क्या ?

चंडीगढ़ । राजेंद्र उर्फ राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में रोटरी का जो मजाक बन रहा है, उस पर केआर रवींद्रन ने गहरी नाराजगी और चिंता जताई है । केआर रवींद्रन रोटरी इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट बनने की तैयारी कर रहे हैं, और इस तैयारी में उनकी कोशिश है कि वह रोटरी को एक व्यापक पहचान और प्रतिष्ठा दिलाएँ तथा साथ ही रोटरी को फालतू किस्म के विवादों से भी बचाएँ । केआर रवींद्रन के नजदीकियों के अनुसार, राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए हुए चुनाव को जिस मनमाने व षड्यंत्रपूर्ण तरीके से रद्द कर दिया गया है, उस पर केआर रवींद्रन ने गहरी नाराजगी जताई है । केआर रवींद्रन की नाराजगी इस बात को लेकर ज्यादा है कि राजा साबू और उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स अपनी इस मनमानी कार्रवाई को सही ठहराने लिए रोटरी इंटरनेशनल का और उनका नाम इस्तेमाल कर रहे हैं । दरअसल हुआ यह है कि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर जो कारस्तानी हुई, वह वायरल हो गई है और देश के रोटरी नेताओं के बीच चर्चा का विषय बन गई है । देश के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के रोटरी नेताओं में कुछेक मजे लेने के उद्देश्य से तो कुछेक तथ्यों को विस्तार से समझने के उद्देश्य से राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स को फोन कर रहे हैं । राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स सभी को एक बात जरूर बता रहे हैं कि उनके यहाँ जो हुआ है, वह रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारियों से विचार-विमर्श करके ही हुआ है - और इसलिए जो हुआ है उस पर रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय की मुहर लगी हुई है ।
राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स द्धारा किए जा रहे इस दावे ने केआर रवींद्रन को खासा नाराज किया हुआ है । उन्होंने पता किया है और पाया है कि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक ने या अन्य किसी ने रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से उक्त मामले में  विचार-विमर्श नहीं किया है तथा कोई भी सलाह नहीं ली है । रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साउथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों का भी कहना है कि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में अभी जो कुछ हुआ है, उसके बारे में आधिकारिक रूप से उन्हें कोई जानकारी नहीं है । रोटरी में जो लोग केआर रवींद्रन के नजदीक हैं, उनका कहना है कि केआर रवींद्रन इस बात से बहुत ही खफा हैं कि राजा साबू के समर्थक पूर्व गवर्नर्स अपनी कारस्तानी को सही ठहराने के लिए रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय का नाम इस्तेमाल कर रहे हैं । केआर रवींद्रन को यह भी पता चला है कि राजा साबू के समर्थक गवर्नर्स इस तरह के दावे भी कर रहे हैं कि केआर रवींद्रन तो राजा साबू के ही 'आदमी' हैं और उन्हीं की 'कृपा' से प्रेसीडेंट बनने जा रहे हैं, इसलिए जिस 'काम' को राजा साबू का आशीर्वाद प्राप्त है, उसे पलटने का फैसला रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय कर ही नहीं सकता है । राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स नेता जिस तरह से केआर रवींद्रन का नाम लेकर अपनी कारस्तानी को सही ठहराने तथा 'पक्की' बताने/जताने की कोशिश कर रहे हैं, उसके कारण राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में मनमाने व षड्यंत्रपूर्ण तरीके से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को अमान्य घोषित करने का फैसला रोटरी की राजनीति में एक बड़ा बबाल बन गया है ।
यह सच है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने जा रहे केआर रवींद्रन को रोटरी में राजा साबू के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है और उन्हें इंटरनेशनल प्रेसीडेंट 'चुनवाने' में राजा साबू का भी बड़ा सहयोग/समर्थन रहा है; लेकिन इसके साथ साथ सच यह भी है कि केआर रवींद्रन एक अलग तरह की शख्सियत रखते हैं और रोटरी में काम करने को लेकर उनके बहुत अलग तरह के ख्यालात हैं । सबसे बड़ी बात यह है कि वह रोटरी में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहते हैं और अपनी इस चाहत को पूरा करने के मामले में वह काफी हद तक कामयाब भी हैं । वह किसी के - राजा साबू के भी - 'आदमी' के तमगे में बंधे नहीं रहना चाहते हैं और इसीलिए न सिर्फ सभी को साथ लेकर चल रहे हैं, बल्कि अपने फैसलों और अपनी सक्रियता से अपने आप को अलग बनाने/दिखाने की कोशिश भी कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि उनकी यह कोशिश तब से ही नजर आ रही है जब वह इंटरनेशनल डायरेक्टर थे । इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में केआर रवींद्रन ने भरसक प्रयास किये थे कि नेताओं की टुच्ची सोच व उनके छोटे-छोटे स्वार्थों के चलते पैदा होने वाले झगड़ों से बचा जाये, उन्हें समय रहते नियंत्रित कर लिया जाये और उन्हें बढ़ने न दिया जाये । इसके लिए केआर रवींद्रन को जहाँ कहीं सख्ती करने/दिखाने की जरूरत महसूस हुई थी, वहाँ उन्होंने खासी सख्ती भी की/दिखाई थी; और बड़े नेताओं की सिफारिशों को दरकिनार करने का साहस भी दिखाया था - और स्वाभाविक रूप से रोटरी को इसके अच्छे नतीजे भी मिले थे ।
केआर रवींद्रन की इस कोशिश को लेकिन राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में मनमाने और षड्यंत्रपूर्ण तरीके से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को अमान्य घोषित करने के फैसले ने ग्रहण लगा दिया है । इस फैसले को 'करने/करवाने' वाले डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स ने राजा साबू का समर्थन जिस तरह से जुटा लिया है, उससे उनके हौंसले खासे बढ़े हुए हैं - और इस बढ़े हुए हौंसले के कारण ही उन्होंने अपने मनमाने व षड्यंत्रपूर्ण फैसले में रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय को तथा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने जा रहे केआर रवींद्रन को भी लपेट लिया है । राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स की इस हरकत पर केआर रवींद्रन नाराज तो बताये जा रहे हैं, लेकिन इस नाराजगी के चलते वह कुछ करेंगे या अपने आप को राजा साबू का 'आदमी' ही साबित करेंगे - यह देखने की बात होगी ।

Wednesday, April 15, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 से रोटरी इंडिया विन्स में शरत जैन को डिस्ट्रिक्ट कॉर्डिनेटर बनवा कर रमेश अग्रवाल ने अपने लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद को पक्का करने का दाँव तो चला ही है, साथ ही साथ रोटरी की राजनीति में मुकेश अरनेजा को किनारे लगाने का काम भी कर लिया है

नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल ने रोटरी इंडिया की विन्स(वॉश इन स्कूल्स) कमेटी में डिस्ट्रिक्ट विन्स कॉर्डिनेटर के रूप में शरत जैन का नाम जुड़वा कर एक तरफ तो मुकेश अरनेजा को तगड़ा झटका दिया है, और दूसरी तरफ अपने लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद की कुर्सी पक्की करने का दाँव चला है । मुकेश अरनेजा के लिए बदकिस्मती की बात यह हुई है कि सुशील गुप्ता से सिफारिश करके विन्स कमेटी में रमेश अग्रवाल को जगह उन्होंने ही दिलवाई थी; लेकिन अब रमेश अग्रवाल ने इस कमेटी से मुकेश अरनेजा का पत्ता पूरी तरह ही कटवा दिया है । सुशील गुप्ता रोटरी इंडिया विन्स के चेयरमैन हैं । सुशील गुप्ता के साथ मुकेश अरनेजा की नजदीकियत को जानते/पहचानते हुए रमेश अग्रवाल लगातार मुकेश अरनेजा से सिफारिश करने की खुशामद कर रहे थे । रमेश अग्रवाल का यही तर्क था कि इस कमेटी में उन्हें यदि जगह मिल गई तो डिस्ट्रिक्ट से ऊपर के लोगों के बीच उठने बैठने का उन्हें भी कुछ मौका मिल जायेगा । मुकेश अरनेजा की इस कमेटी का हिस्सा बनने में इसलिए दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि फिर उन्हें ज्यादा समय देना पड़ता और काम करना पड़ता । मुकेश अरनेजा की खुद की दिलचस्पी नहीं थी, और रमेश अग्रवाल उनकी खुशामद कर रहे थे, लिहाजा मुकेश अरनेजा ने सुशील गुप्ता से बात करके रमेश अग्रवाल को रोटरी इंडिया विन्स कमेटी में जगह दिलवा दी ।
मुकेश अरनेजा ने सोचा तो यह था कि वह रमेश अग्रवाल को एक बड़ा पद दिलवा रहे हैं तो रमेश अग्रवाल उनका अहसान मानेंगे । रमेश अग्रवाल लेकिन मुकेश अरनेजा के पक्के वाले चेले हैं - उन्होंने मुकेश अरनेजा की अच्छी बातें तो कुछ नहीं सीखीं, किंतु घटिया बातें खूब सीख ली हैं । अहसान न मानने का 'गुण' हो सकता है कि उनमें पहले से भी हो, और मुकेश अरनेजा की चेलागिरी करते हुए तो वह और ठोस हुआ हो - जैसे करेला यूँ तो कड़वा ही होता है, पर यदि वह नीम पर चढ़ा हुआ हो तो और ज्यादा कड़वा होने का अहसास कराता है । सो, अपने आप को मुकेश अरनेजा का पक्का वाला चेला साबित करते हुए रमेश अग्रवाल ने सबसे पहले मुकेश अरनेजा को ही डसा । मुकेश अरनेजा की विन्स की केंद्रीय कमेटी का सदस्य बनने में तो दिलचस्पी नहीं थी (क्योंकि वहाँ कुछ काम भी करना पड़ता); लेकिन डिस्ट्रिक्ट कॉर्डिनेटर के रूप में उक्त कमेटी का हिस्सा बनने में पूरी दिलचस्पी थी (क्योंकि तब काम तो कुछ करना नहीं होता, और नेतागिरी दिखाने का पूरा पूरा अवसर होता) । डिस्ट्रिक्ट कॉर्डिनेटर का पद चूँकि पीडीजी किस्म के लोगों को ही मिलता है, इसलिए मुकेश अरनेजा आश्वस्त थे कि डिस्ट्रिक्ट 3012 से उनका ही नंबर लगेगा । रमेश अग्रवाल ने लेकिन उन्हें तगड़ा झटका देते हुए उनकी जगह शरत जैन को डिस्ट्रिक्ट कॉर्डिनेटर के रूप में ले लिया है ।
गौर करने वाला तथ्य यह है कि शरत जैन को इससे कोई फायदा नहीं है ! डिस्ट्रिक्ट कॉर्डिनेटर के रूप में वह विन्स की जिस भी मीटिंग में हिस्सा लेने के अधिकारी होंगे, उस मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में भी हिस्सा लेने का अधिकार उन्हें होगा ही । रमेश अग्रवाल की इस 'हरकत' से शरत जैन को तो कोई फायदा नहीं होगा, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3012 को नुकसान जरूर हो गया है । विन्स की मीटिंग्स में डिस्ट्रिक्ट का प्रतिनिधित्व घट गया है - क्योंकि दो पदों का प्रतिनिधित्व एक अकेले शरत जैन ही करेंगे । और यदि कभी शरत जैन नहीं जा पाये तो उक्त मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट 3012 के प्रतिनिधित्व का तो बस भगवान ही मालिक है । अगले रोटरी वर्ष में शरत जैन पेम/पेट्स की तैयारियों में व्यस्त रहेंगे, लिहाजा संभव है कि वह विन्स की मीटिंग्स के लिए समय न निकाल पाएँ । इसी वजह से कुछेक लोगों का कहना रहा कि शरत जैन की बजाये जेके गौड़ को रमेश अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट कॉर्डिनेटर बनवा सकते थे । उसमें भी समस्या लेकिन यही है कि जेके गौड़ भले ही रमेश अग्रवाल को सिर पर बैठाये हुए हों और उनके 'गुलाम' की तरह बने हुए हों, लेकिन रमेश अग्रवाल उन्हें मुकेश अरनेजा के 'आदमी' के रूप में ही देखते हैं । कुछेक लोगों का तो मानना और कहना है कि रमेश अग्रवाल हमेशा ही जेके गौड़ को इसीलिए जलील किए रहते हैं, क्योंकि जेके गौड़ 'में' वह मुकेश अरनेजा को देखते हैं ।
शरत जैन को रोटरी इंडिया विन्स में डिस्ट्रिक्ट कॉर्डिनेटर बनवा कर रमेश अग्रवाल ने दरअसल अपने लिए शरत जैन के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद को पक्का करने का भी दाँव चला है । उन्होंने शरत जैन को अहसास करवाया है कि उनकी कृपा से वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (इलेक्ट) ही नहीं बने हैं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट से ऊपर की रोटरी में भी उनके लिए मुँह दिखाने का मौका बना है । रमेश अग्रवाल को विश्वास है कि यह मौका बनाने के लिए उन्हें शरत जैन से ईनाम अवश्य मिलेगा और शरत जैन उनकी तरह के अहसानफरामोश साबित नहीं होंगे; और अवश्य ही उन्हें ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनायेंगे । एक पंथ दो काज वाली शैली में रमेश अग्रवाल ने शरत जैन को डिस्ट्रिक्ट विन्स कॉर्डिनेटर बनवा कर मुकेश अरनेजा को किनारे लगाने का काम भी कर लिया । इसी स्थिति के लिए गुरु के गुड़ रह जाने तथा चेले के शक्कर हो जाने वाली कहावत बनी है ।

Sunday, April 12, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार के ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने की वर्षों पुरानी प्रथा टूटी और और एक षड्यंत्र के तहत टीके रूबी के चयन को अमान्य घोषित कर दिया गया

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक ने टीके रूबी के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने के नतीजे को अमान्य घोषित करने का जो फैसला सुनाया है, उसने एक बार फिर साबित कर दिया है कि राजा साबू को जो निर्णय स्वीकार नहीं होता है उसे वह किसी भी हद तक जाकर बदलवा देते हैं । डिस्ट्रिक्ट में हर कोई (हर कोई मतलब जो इस फैसले से खुश हैं वह भी और जो नहीं खुश हैं वह भी) मानता है कि दिलीप पटनायक इस तरह का मनमाना फैसला राजा साबू की सहमति के बिना ले ही नहीं सकते हैं । यह फैसला लेने में जितनी देर हुई है, उससे लोगों को यह भी लगता है कि दिलीप पटनायक शायद यह फैसला न लेना चाहते हों और इसीलिए उन्होंने राजा साबू के इशारों को अनदेखा किया, लेकिन जब राजा साबू ने 'सख्ती' दिखाई तब दिलीप पटनायक, टीके रूबी के चुने जाने के निर्णय को अमान्य घोषित करने के लिए मजबूर हुए । गौर करने वाला तथ्य यह है कि 22 फरवरी को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में नोमीनेटिंग कमेटी ने टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुना । इसके 47वें दिन बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक को 'पता चला' कि नोमीनेटिंग कमेटी के गठन में और नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा अपनाई गई प्रक्रिया में चूँकि व्यवस्थासंबंधी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया है, इसलिए नोमीनेटिंग कमेटी के टीके रूबी को अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के निर्णय को स्वीकार नहीं किया जा सकता । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने अब दोबारा से नोमीनेटिंग कमेटी के गठन तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक का यह फैसला रोटरी के इतिहास में अपनी तरह का अनोखा फैसला है, जिसमें उन्होंने अपने द्धारा की गई गलतियों की सजा दूसरों को दी है । रोटरी में चुनाव संबंधी बहुत झगड़े होते हैं, उनमें फैसले भी होते हैं - लेकिन यह कभी देखने में नहीं आया कि 'अपराधी' खुद ही अपना अपराध स्वीकार कर ले और अपने को सजा देने की बजाये दूसरों की 'गर्दन उड़ा' दे । चुनावी प्रक्रिया में व्यवस्थासंबंधी दिशा-निर्देशों का पालन न होने का आरोप यदि सच भी है, तो इसके लिए दोषी कौन है ? चुनावी प्रक्रिया में व्यवस्थासंबंधी दिशा-निर्देशों के पालन को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के अलावा और किसकी होती है ? दिलीप पटनायक ने जो फैसला किया उससे साबित हुआ है कि पहले तो उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी जिम्मेदारी का पालन नहीं किया; और जब इस बारे में शिकायत की गई तो बिना किसी जाँच-पड़ताल के उन्होंने शिकायत को स्वीकार कर लिया और अपने आप को सजा देने की बजाये नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों तथा उनके द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार टीके रूबी पर तलवार चला दी ।
इस फैसले तक 'पहुँचने' के लिए व्यूहरचना तो बड़ी पक्की की गई, लेकिन इस व्यूहरचना का जो सारा तानाबाना है, वह व्यूहरचना के पीछे छिपे षड्यंत्र की खुद-ब-खुद पोल खोलता है । उल्लेखनीय है कि नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा अधिकृत उम्मीदवार के रूप में टीके रूबी के चुने जाने के फैसले को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक अन्य उम्मीदवार डीसी बंसल ने चेलैंज किया । चेलैंज के साथ-साथ उनकी तरफ से चुनावी प्रक्रिया की गड़बड़ियों को लेकर शिकायत भी की गई । दोनों बातें एक साथ करने के पीछे इरादा शायद यही रहा था कि चेलैंज को मान्य कराने के लिए जरूरी कॉन्करेंस यदि नहीं जुटाई जा सकीं तो फिर शिकायत के आधार पर टीके रूबी के चयन को निशाना बनाया जायेगा । यही हुआ भी । चेलैंज को मान्य कराने के लिए जरूरी कॉन्करेंस जुटाई नहीं जा सकीं, जिस कारण चेलैंज वाला मसला तो अपने आप खत्म हो गया; और फिर चुनावी प्रक्रिया की गड़बड़ियाँ मुद्दा बन गईं । गड़बड़ियों की जाँच के लिए बाकायदा एक कमेटी बनी और कमेटी ने गड़बड़ियों को सही पाया और फिर इस आधार पर 22 फरवरी को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हुए चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया । इस फैसले को कन्विंसिंग बनाने के लिए तानाबाना तो पूरा बुना गया; लेकिन इस तानेबाने में इतने झोल हैं कि यह साफ पता चलता है कि 'फैसला' तो पहले ही कर लिया गया था और जैसे यह तय कर लिया गया था कि टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी नहीं ही बनने देना है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक ने इन पँक्तियों के लेखक को झूठ बोल कर जिस तरह से बहकाने की कोशिश की, उससे भी यह साबित होता हुआ नजर आया कि उन्होंने जो किया, या उनसे जो करवाया गया उसे लेकर उनमें 'अपराध' का बोध है । इन पँक्तियों के लेखक ने इस फैसले के बारे में जानकारी पाने के लिए दिलीप पटनायक से मोबाइल पर बात की, तो उन्होंने इस तरह का फैसला होने की बात से ही इंकार कर दिया । अपनी व्यस्तता का वास्ता देकर उन्होंने ज्यादा बात करने से तो बचने की कोशिश की, किंतु उक्त फैसला होने की बात को उन्होंने हरगिज हरगिज स्वीकार नहीं किया । दिलीप पटनायक का यह रवैया बताता है कि जो कुछ हुआ, उसे लेकर वह खुद बहुत दुविधा में हैं और उसके साथ जुड़े 'दिखने' से बचने की कोशिश करना चाहते हैं ।
दरअसल, 22 फरवरी को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में टीके रूबी के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के साथ ही यह सुना जाने लगा था कि डिस्ट्रिक्ट के 'राजा' - पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू इस फैसले को किसी भी कीमत पर लागू नहीं होने देंगे । उल्लेखनीय है कि राजा साबू के इस डिस्ट्रिक्ट में पिछले कई वर्षों से यह प्रथा बनी हुई है कि नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार को कोई चेलैंज नहीं करता है और अधिकृत उम्मीदवार ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनता है । इस बार लेकिन अधिकृत उम्मीदवार का नाम घोषित होने के साथ ही यह कहने/सुनने में आने लगा कि डीसी बंसल अवश्य ही अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करेंगे । नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला आने से पहले वास्तव में हर किसी को डीसी बंसल के अधिकृत उम्मीदवार के रूप में चुने जाने की उम्मीद थी । डीसी बंसल को राजा साबू के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । डिस्ट्रिक्ट में राजा साबू का जैसा जलवा है, उसके चलते कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्य डीसी बंसल के अलावा अन्य किसी को चुन सकते हैं । नोमीनेटिंग कमेटी के अधिकतर सदस्यों ने लेकिन टीके रूबी में भरोसा जताया और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उन्हें चुना । यह फैसला आते ही डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में उपस्थित रोटेरियन सकते में आ गए । किसी के लिए भी विश्वास करना मुश्किल था कि डिस्ट्रिक्ट में राजा साबू की इच्छा के विपरीत कोई फैसला हो सकता है । फैसला तो लेकिन हो गया । फैसला हो भले ही गया, किंतु साथ ही साथ यह सुनाई भी पड़ने लगा कि राजा साबू इस फैसले को मान्य नहीं होने देंगे । जो सुनाई पड़ा था, वह अंततः सच भी साबित हुआ ।
इसके लिए लेकिन डिस्ट्रिक्ट की प्रथा की बलि चढ़ानी पड़ी है । प्रथा हालाँकि लोग अपने फायदे के लिए ही बनाते हैं; और जब वह फायदे में रूकावट डालने लगती हैं तो उन्हें तोड़ने में भी नहीं हिचकिचाते हैं । डिस्ट्रिक्ट 3080 में - राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में भी यदि ऐसा ही हुआ है, तो इसमें आश्चर्य की भला क्या बात है ?

Friday, April 10, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के पेट्स आयोजन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जेके गौड़ सहित डिस्ट्रिक्ट की पूरी लीडरशिप गिनती के 'शराबियों' के सामने लाचार पड़ी और उनकी माँग के सामने झुकने को मजबूर हुई

जयपुर/नई दिल्ली/गाजियाबाद । जयपुर में आयोजित पेट्स के दौरान जेके गौड़ के क्लब के लोगों ने शराब पीने को लेकर रात एक बजे जो हंगामा किया - उसने न केवल पेट्स के आयोजन से जुड़े वरिष्ठ रोटेरियन आशीष माखीजा व अशोक अग्रवाल के लिए अपमानजनक स्थितियाँ बनाईं, बल्कि रोटरी व डिस्ट्रिक्ट को एक बार फिर कलंकित भी किया । इस घटना ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में जेके गौड़ द्धारा गाजियाबाद में आयोजित की गई मीटिंग में हुए हंगामे की याद ताजा कर दी, जिसमें गाली-गलौच के सार्वजनिक प्रदर्शन के बाद मार-पिटाई भी हो गई थी और जिसके कारण पुलिस बुलानी पड़ गई थी । शायद उसी अनुभव से सबक लेकर अशोक अग्रवाल ने रात डेढ़ बजे के बाद भी शराब की उपलब्धता की माँग करने वाले लोगों के सामने समर्पण करने में ही अपनी भलाई समझी और हालात को गाली-गलौच से आगे न बढ़ने देने में कामयाब रहे; और शायद उसी अनुभव के डर से हंगामे की जानकारी मिलने के बाद भी जेके गौड़ अपने कमरे में ही दुबके रहे और मामला शांत हो जाने के बाद ही चैन में आए । प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि हंगामा जब शुरू ही हुआ था, जेके गौड़ यदि तब ही हस्तक्षेप करते तो फिर हंगामें को ज्यादा बढ़ने से रोका जा सकता था । जेके गौड़ की लेकिन हंगामा कर रहे अपने ही क्लब के लोगों के सामने आने की हिम्मत ही नहीं हुई । जेके गौड़ के नजदीकियों का तथा अन्य दूसरे लोगों का भी कहना है कि हर मामले में रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा का मुँह ताकने वाले जेके गौड़ ने इस मामले में भी उनसे मदद की गुहार लगाई, लेकिन उन्होंने भी अपने अपने कमरे में बंद रहने में ही अपनी भलाई देखी ।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, रात करीब बारह बजे के बाद जब शराब पीने वाले लोगों की संख्या घट कर तीन-चार ही रह गई थी, तब होटल स्टॉफ ने आयोजन की व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे आशीष माखीजा से पूछा कि काउंटर कब तक खुला रखना है ? आशीष माखीजा ने जब जाना कि ज्यादातर लोग अपने अपने कमरों में जा चुके हैं तो उन्होंने काउंटर बंद कर देने का सुझाव दिया । काउंटर बंद हुआ तो जो तीन-चार लोग अभी भी वहाँ बैठे शराब पी रहे थे, उन्होंने हंगामा खड़ा कर दिया । उनकी माँग थी कि वह जब तक बैठे हैं, तब तक काउंटर खुला रहना चाहिए । काउंटर सँभाल रहे होटल के स्टॉफ के लोग अब और काउंटर खोले रखने के मूड में नहीं थे; और फिर उनके पास काउंटर बंद कर देने की एक प्रमुख आयोजनकर्ता आशीष माखीजा की स्वीकृति भी थी । काउंटर खोले रखने की माँग करने वाले लोगों को काउंटर स्टॉफ ने आशीष माखीजा की स्वीकृति का हवाला दे दिया । हंगामा करने वाले रोटेरियंस ने तब आशीष माखीजा के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल शुरू कर दिया । हंगामा करने वाले लोगों के बीच जेके गौड़ के क्लब के अध्यक्ष वीरेंद्र अरोड़ा भी थे । उनका तर्क था कि इस आयोजन के आयोजनकर्ता तो हम हैं, यह आशीष माखीजा कौन है ? हंगामे के बीच ही जेके गौड़ को फोन किया गया और शिकायत की गई कि आयोजन हम करें और यहाँ हमें ही शराब पीने को न मिले !
हंगामे की जानकारी मिलने के बाद भी जेके गौड़ खुद तो नहीं आये लेकिन उन्होंने अशोक अग्रवाल को भेजा । अशोक अग्रवाल ने हंगामा कर रहे लोगों को समझाने का भरसक प्रयास किया कि बहुत रात हो गई है, अधिकतर लोग अपने अपने कमरों में जा चुके हैं, होटल स्टॉफ ज्यादा देर तक सर्विस नहीं दे पायेगा, तीन-चार लोगों के लिए सर्विस जारी नहीं रखी जा सकती है, आदि-इत्यादि । लेकिन हंगामा कर रहे लोगों पर उनकी इस समझाईस का कोई असर नहीं पड़ा और उन्होंने अशोक अग्रवाल के साथ भी जमकर बदतमीजी की । इस बीच कुछ और रोटेरियंस भी घटनास्थल पर आ गए । होटल स्टॉफ से भी सलाह की गई कि क्या करना चाहिए ? होटल स्टॉफ ने साफ कह दिया कि यह तो आपको तय करना है कि काउंटर खोले रखना है या नहीं; हम तो यहाँ सर्विस देने के लिए हैं, आप जो कहेंगे वह करेंगे । होटल स्टॉफ की तरफ से यह इशारा भी दे दिया गया कि उनकी समस्या हंगामा करने वाले लोग नहीं हैं; ऐसे लोगों से निपटने के लिए उनके पास पूरी व्यवस्था है; अभी वह बाउंसर्स बुलवायेंगे और इन लोगों को होटल के बाहर फिंकवा देंगे । यह इशारा मिलने के बाद ही शायद अशोक अग्रवाल के जहन में रवि चौधरी के लिए की गई मीटिंग में हुए हादसे का चित्र उभर आया होगा, सो उन्होंने जल्दी से फैसला लेने की जरूरत महसूस की ।
इस मौके पर अशोक अग्रवाल को सुरेंद्र शर्मा और एसके मिश्र की सलाह ने मदद पहुँचाई । इन दोनों ने अशोक अग्रवाल को समझाया कि काउंटर को बंद करने के फैसले को लेकर नाहक ही जिद क्यों कर रहे हो; हंगामा बढ़ेगा और कुछ ऊँच-नीच हो गई तो ज्यादा समस्या हो जायेगी; इसलिए भलाई इसी में है कि काउंटर खुलवा दो; होटल स्टॉफ काउंटर खोले रखने को तैयार है ही । अशोक अग्रवाल ने भी समझ लिया कि शराबियों की माँग के आगे वह यदि नहीं झुके तो रोटरी व डिस्ट्रिक्ट की पता नहीं यहाँ और कितनी चिन्दियाँ बिखरेंगी । अंतिम फैसला करने से पहले अशोक अग्रवाल ने हालाँकि जेके गौड़ तथा अन्य कुछेक लोगों से सलाह की, और सभी से उन्हें यही राय मिली कि रोटरी और डिस्ट्रिक्ट की चाबी शराबियों को सौंपो तथा चैन की नींद सोयो । रात करीब डेढ़ बजे अशोक अग्रवाल ने होटल स्टॉफ को काउंटर खोलने का फैसला सुनाया और फिर उसके बाद डिस्ट्रिक्ट की लीडरशिप की ऐसीतैसी करने में मिली जीत का जश्न मनाया गया तथा कई बोतलें खुलीं । यह जश्न कब तक चला, यह बताने वाला अभी तक कोई नहीं मिला है ।

Wednesday, April 8, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के 'आती भी नहीं दिखती है, और जाती भी नहीं है' वाले रवैये के कारण प्रसून चौधरी और अशोक गर्ग के लिए अपनी अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने का काम मुश्किल हुआ

गाजियाबाद । दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के इर्द-गिर्द बुनी जाने वाली डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को खासा असमंजस में डाला हुआ है और जिसके चलते खिलाड़ियों के लिए 'पोजीशंस' लेना मुश्किल बना हुआ है । मजे की बात यह है कि दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम अपनी अपनी संभावित उम्मीदवारी के बाबत कुछ कर भी नहीं रहे हैं - और उनके कुछ न करने के कारण उनकी उम्मीदवारी के प्रस्तुत न होने के दावे भी किये/सुने जाने लगे हैं; लेकिन फिर भी चुनावी राजनीति के बनने वाले समीकरण जैसे राह भटक गए हैं, और समीकरण बनाने वाले नेता अभी और इंतजार कर लेना चाहते हैं । ऐसी स्थिति शायद ही कभी देखने में आई हो कि संभावित उम्मीदवार तो कुछ नहीं कर रहे हों और सुस्त बने हुए हों, लेकिन उन्होंने फिर भी घोषित उम्मीदवारों के लिए मुसीबत खड़ी की हुई हो और चुनावी खेमेबाजी को बनने से रोका हुआ हो । दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम के नजदीकियों का आरोप तो है कि अगले रोटरी वर्ष के लिए अपनी अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर चुके प्रसून चौधरी और अशोक गर्ग उनकी उम्मीदवारी न आने की झूठी अफवाहें फैला रहे हैं; पर यह अफवाहें फैलाने का मौका तो उन्हें एक उम्मीदवार के रूप में दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम की निष्क्रियता के कारण ही मिल रहा है । दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम के लिए राहत की बात अभी सिर्फ इतनी ही है कि लोग उनकी उम्मीदवारी के प्रति सशंकित भले ही हों, लेकिन उम्मीद से अभी भी भरे हुए भी हैं ।
पेट्स में दीपक गुप्ता की सक्रियतापूर्ण उपस्थिति ने उन नेताओं को चौंकाया, जो मान रहे थे और बता रहे थे कि दीपक गुप्ता की रोटरी में दिलचस्पी लगभग खत्म हो चुकी है और अब वह रोटरी के आयोजनों में शायद ही कहीं दिखें । इस तरह की बातें कहते/बताते हुए 'संदेश' यह देने की कोशिश की गई कि दीपक गुप्ता अगले वर्ष की चुनावी प्रतिस्पर्द्धा से दूर और बाहर ही रहेंगे । लेकिन पेट्स में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा कर दीपक गुप्ता ने इस तरह की बातों पर एकदम से विराम तो लगा दिया है, हालाँकि अपनी उम्मीदवारी के प्रति लोगों के बीच भरोसा पैदा करने के लिए उनके शुभचिंतकों को उनकी तरफ से अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत भी महसूस की जा रही है । कई लोग हैं जो अभी भी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति आश्वस्त नहीं हैं; ऐसे लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता पेट्स में नजर तो आये किंतु उनकी सक्रियता का स्तर और उनकी बॉडी लैंग्वेज उम्मीदवार होने की उनकी 'तैयारी' का आभास नहीं दे रही थी । लोगों के बीच चर्चा है कि पुराने सहयोगियों के साथ छोड़ देने के बाद दीपक गुप्ता के लिए अपना चुनाव अभियान चलाना ही मुश्किल होगा; लेकिन ऐसी ही चर्चाओं में यह भी सुनने को मिल जाता है कि दीपक गुप्ता को कई नए सहयोगी मिल गए/रहे हैं जिनके सहयोग से उनके लिए अपने चुनाव अभियान को चलाना कोई मुश्किल नहीं होगा । दरअसल इसी तरह की परस्पर विरोधी चर्चाओं के कारण लोगों के बीच दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की उम्मीद पूरी तरह टूटी नहीं है । मजे की बात यही है कि एक संभावित उम्मीदवार के रूप में दीपक गुप्ता की लोगों के बीच कहीं कोई उपस्थिति नहीं है, लोगों को उनकी बॉडी लैंग्वेज में भी उनके उम्मीदवार हो सकने का संदेश पढ़ने को नहीं मिल रहा है - लेकिन फिर भी लोग उन्हें संभावित उम्मीदवार के रूप में देख रहे हैं ।
प्रवीन निगम का मामला तो और भी दिलचस्प है - और भूतों वाली कहानियों को चरितार्थ करता है । जैसे भूतों को किसी ने नहीं देखा होता है, लेकिन फिर भी कई लोग मानते हैं कि भूत होते हैं; ठीक वैसे ही एक उम्मीदवार के रूप में तो छोड़िये, एक रोटेरियन के रूप में भी प्रवीन निगम को रोटरी में कम ही देखा जा रहा है लेकिन फिर भी लोगों के बीच उनकी उम्मीदवारी प्रस्तुत होने की चर्चा लगातार बनी हुई है । इसका श्रेय हालाँकि प्रवीन निगम के क्लब के वरिष्ठ सदस्य रवि सचदेवा को है, जो लगातार लोगों को आश्वस्त किए हुए हैं कि प्रवीन निगम की उम्मीदवारी अवश्य ही प्रस्तुत होगी । उल्लेखनीय है कि पहले सुना जा रहा था कि पेट्स से प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के अभियान की शुरुआत होगी, लेकिन पेट्स में प्रवीन निगम कहीं नजर ही नहीं आए । उनकी तरफ से मोर्चा यद्यपि रवि सचदेवा ने सँभाला हुआ था और पेट्स में उपस्थित लोगों के बीच वह यह जताने/दिखाने का भरसक प्रयास कर रहे थे कि प्रवीन निगम की उम्मीदवारी एक अलग तरीके से लोगों के बीच लॉन्च होने की प्रक्रिया में है, इसलिए उनकी उम्मीदवारी की प्रस्तुति में थोड़ी देर हो रही है । रवि सचदेवा ने लोगों को यह भी बताया कि प्रवीन निगम की उम्मीदवारी का अभियान पूरी रूपरेखा बना कर ही शुरू होगा और जल्दी ही शुरू होगा । रवि सचदेवा की बातों पर जिन लोगों ने विश्वास किया, उनका भी मानना और कहना लेकिन यही रहा कि प्रवीन निगम अपनी उम्मीदवारी को लेकर यदि सचमुच गंभीर हैं, तो उन्हें उसकी प्रस्तुति में अब ज्यादा देर नहीं लगाना चाहिए । रवि सचदेवा अभी तो प्रवीन निगम की उम्मीदवारी की प्रस्तुति के प्रति विश्वास बनाये रख पा रहे हैं, लेकिन प्रवीन निगम यदि ज्यादा समय तक लोगों के बीच अनुपस्थित रहे और उन्होंने खुद सामने आकर मोर्चा नहीं सँभाला तो रवि सचदेवा के लिए भी उक्त विश्वास बनाये रख पाना मुश्किल ही होगा ।
दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के 'आती भी नहीं दिखती है, और जाती भी नहीं है' वाले रवैये के कारण प्रसून चौधरी और अशोक गर्ग के लिए अजीब मुसीबत पैदा हो गई है । उल्लेखनीय है कि अभी तक इन्हीं दोनों ने अपनी अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया हुआ है, और समर्थन जुटाने के लिए अपने अपने तरीके से प्रयास शुरू किए हुए हैं । इनके लिए समस्या की बात यह है कि जो लोग इनके साथ नहीं हैं - या नहीं होना चाहते हैं, वह दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के 'स्टेटस' को पहले देख लेना चाहते हैं । कोई भी चुनाव अपनों के भरोसे नहीं, बल्कि परायों को अपना बनाने - या तटस्थ बनाने के भरोसे पर लड़ा जाता है । दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम की उम्मीदवारी की संभावना प्रसून चौधरी और अशोक गर्ग के लिए परायों को अपना (या तटस्थ) बनाने के प्रयास को मुश्किल बना रही है । प्रसून चौधरी और अशोक गर्ग की इसी मुश्किल में दीपक गुप्ता और/या प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के लिए रास्ता बनता दिख रहा है । जो लोग इस 'रास्ते' को देख पा रहे हैं, उनका भी मानना और कहना है कि इस 'रास्ते' का फायदा लेकिन तब मिलेगा, जब दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम खुद इस पर 'चलना' शुरू करेंगे । दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम की उम्मीदवारी सचमुच में प्रकट होती भी है या नहीं, यह तो अगले कुछेक दिनों में स्पष्ट हो जायेगा; लेकिन जब तक यह स्पष्ट नहीं होता है - तब तक प्रसून चौधरी और अशोक गर्ग के लिए अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए एक अलग तरह की चुनौती तो बनी ही हुई है ।

Tuesday, April 7, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में संदीप सहगल की जीत से, डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का चौधरी बनने का केएस लूथरा को मिला मौका लेकिन अगले लायन वर्ष में एके सिंह की प्रस्तावित उम्मीदवारी के इर्द-गिर्द बनते समीकरण के कारण एक बड़ी चुनौती बना

लखनऊ । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए संदीप सहगल की अप्रत्याशित जीत ने केएस लूथरा को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का हीरो तो बना दिया है, लेकिन साथ ही उनके सामने इस हीरो(पंती) को बचाये रखने की चुनौती भी पैदा कर दी है । यह चुनौती अगले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी पर बनती दिख रही आम सहमती के कारण और भी ज्यादा गंभीर हो रही है । उल्लेखनीय है कि पिछले से पिछले लायन वर्ष में विशाल सिन्हा के मुकाबले शिव कुमार गुप्ता को चुनाव जितवा कर केएस लूथरा को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का 'हीरो' बनने का जो मौका मिला था, उसे उन्होंने पिछले वर्ष एके सिंह की उम्मीदवारी का विरोध करके गँवा दिया था । अगले लायन वर्ष में प्रस्तुत होने वाली एके सिंह की उम्मीदवारी ही एक बार फिर केएस लूथरा के लिए चुनौती बनने जा रही है । पिछले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी का विरोध करना केएस लूथरा को भारी पड़ा था, तो अगले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी का समर्थन करना केएस लूथरा के लिए अपने पैरों पर अपने आप कुल्हाड़ी मारने जैसा हो जायेगा । अगले लायन वर्ष में प्रस्तावित एके सिंह की उम्मीदवारी का विरोध करना भी केएस लूथरा के लिए आसान नहीं होगा - केएस लूथरा के लिए चुनौती की बात यही है ।
अगले लायन वर्ष में आने वाली एके सिंह की उम्मीदवारी को गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी का समर्थन मिलने की उम्मीद है, तो अगले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार सँभालने वाले शिव कुमार गुप्ता भी एके सिंह की उम्मीदवारी के प्रति खुलकर समर्थन व्यक्त कर चुके हैं । शिव कुमार गुप्ता तो यहाँ तक घोषणा कर चुके हैं कि केएस लूथरा यदि एके सिंह की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं भी करेंगे, तो भी वह एके सिंह की उम्मीदवारी के साथ ही होंगे । केएस लूथरा के लिए समस्या की बात यह है कि एके सिंह यदि सर्वसम्मत उम्मीदवार बन जाते हैं, तो उनके डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का चौधरी बनने का मौका उनसे एक बार फिर छिन जायेगा । पिछले लायन वर्ष में विशाल सिन्हा के लिए सर्वसम्मति बनाने के लिए राजी होने को लेकर केएस लूथरा को इस वर्ष लोगों से बार-बार माफी माँगनी पड़ी है । इस बार तो लगता है कि उन्हें माफी मिल गई है, अगली बार गुरनाम सिंह के साथ खड़े होने को लेकर फिर पता नहीं कि उन्हें माफी मिल पाये या नहीं ।
केएस लूथरा के सामने दो समस्याएँ हैं - एक तो उन्हें एके सिंह के साथ अपनी खुन्नस को भुलाना पड़ेगा; और दूसरे, एके सिंह के लिए उन्हें गुरनाम सिंह के साथ एक मंच पर बैठना पड़ेगा । समस्या की बात यह भी है कि वह तो एके सिंह के साथ खुन्नस भुलाने को तैयार हो भी जाएँ, पर क्या एके सिंह उनकी खुन्नस को भूल पायेंगे ? सर्वसम्मत उम्मीदवार होने की स्थिति में उम्मीद यही की जा रही है कि एके सिंह - केएस लूथरा की बजाये गुरनाम सिंह के ज्यादा निकट 'दिखेंगे' । केएस लूथरा इस स्थिति को कैसे बर्दाश्त करेंगे ? उल्लेखनीय है कि गुरनाम सिंह के साथ निकटता दिखाने के कारण ही तो एके सिंह, केएस लूथरा की आँख की किरकिरी बने हैं; और इसी किरकिरी के चलते केएस लूथरा पिछले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी का समर्थन करने को हरगिज तैयार नहीं हुए, जिस कारण एके सिंह को अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था । पिछले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी के खिलाफ रहने के बाद केएस लूथरा के लिए अगले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी के समर्थन में आना स्वाभाविक रूप से आसान नहीं होगा - तब तो और भी नहीं, जबकि एके सिंह की उम्मीदवारी के समर्थकों में गुरनाम सिंह भी होंगे ।
दरअसल जो लोग केएस लूथरा को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरी के रूप में देखना चाहते हैं उनका मानना और कहना है कि संदीप सहगल की जीत से केएस लूथरा को एक बार फिर जो मौका मिला है, उसका फायदा उठाने के लिए उन्हें एके सिंह को साफ साफ बता देना चाहिए कि अपनी उम्मीदवारी का झंडा उन्हें केएस लूथरा को ही सौंपना होगा, और गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी से कोई संबंध नहीं रखना होगा; अन्यथा केएस लूथरा को एके सिंह के खिलाफ अपना कोई उम्मीदवार लाना चाहिए । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थन के चक्कर में इस वर्ष केएस लूथरा को 'अपने ही' लोगों का भेदभाव सहना पड़ा है । संदीप सहगल का सारा कैम्पेन केएस लूथरा ने ही सँभाला हुआ था, लेकिन संदीप सहगल की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थकों ने उन्हें पीछे ही धकेला हुआ था । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के दूसरे कई समर्थकों ने हवा बनाई हुई थी कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों में केएस लूथरा की बड़ी बदनामी है, इसलिए उन्हें पीछे रखना ही उचित होगा । केएस लूथरा यह सब सहने के लिए मजबूर थे । इसलिए भी मजबूर थे क्योंकि उन्हें भी संदीप सहगल के जीतने की उम्मीद नहीं थी । कहने/दिखाने को तो केएस लूथरा भी और संदीप सहगल की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थक नेता भी संदीप सहगल की जीत के दावे कर रहे थे, किंतु अपने अंदरूनी आकलन में उन्हें संदीप सहगल की जीत का जरा भी विश्वास नहीं था ।
संदीप सहगल किंतु जब चमत्कारिक रूप से जीत गए तो जीत का सेहरा केएस लूथरा के सिर बँधा । यूँ तो किसी भी चुनावी नतीजे में बहुत सारे कारण जिम्मेदार होते हैं - इसी तर्ज पर संदीप सहगल की अप्रत्याशित व चमत्कारिक जीत के लिए भी बहुत से कारण जिम्मेदार होंगे; लेकिन संदीप सहगल की इस जीत का सेहरा जिस तरह केएस लूथरा के सिर बँधा है, और उनकी कुशल रणनीति व उनकी अथक मेहनत को प्रशंसा मिली है - उसके चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का चौधरी बनने का मौका उनके हाथ एक बार फिर से आ गया है । किंतु अगले लायन वर्ष में एके सिंह की प्रस्तावित उम्मीदवारी के इर्द-गिर्द बनते समीकरण में केएस लूथरा के लिए इस मौके का फायदा उठा पाना एक बड़ी चुनौती है ।