Tuesday, April 7, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में संदीप सहगल की जीत से, डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का चौधरी बनने का केएस लूथरा को मिला मौका लेकिन अगले लायन वर्ष में एके सिंह की प्रस्तावित उम्मीदवारी के इर्द-गिर्द बनते समीकरण के कारण एक बड़ी चुनौती बना

लखनऊ । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए संदीप सहगल की अप्रत्याशित जीत ने केएस लूथरा को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का हीरो तो बना दिया है, लेकिन साथ ही उनके सामने इस हीरो(पंती) को बचाये रखने की चुनौती भी पैदा कर दी है । यह चुनौती अगले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी पर बनती दिख रही आम सहमती के कारण और भी ज्यादा गंभीर हो रही है । उल्लेखनीय है कि पिछले से पिछले लायन वर्ष में विशाल सिन्हा के मुकाबले शिव कुमार गुप्ता को चुनाव जितवा कर केएस लूथरा को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का 'हीरो' बनने का जो मौका मिला था, उसे उन्होंने पिछले वर्ष एके सिंह की उम्मीदवारी का विरोध करके गँवा दिया था । अगले लायन वर्ष में प्रस्तुत होने वाली एके सिंह की उम्मीदवारी ही एक बार फिर केएस लूथरा के लिए चुनौती बनने जा रही है । पिछले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी का विरोध करना केएस लूथरा को भारी पड़ा था, तो अगले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी का समर्थन करना केएस लूथरा के लिए अपने पैरों पर अपने आप कुल्हाड़ी मारने जैसा हो जायेगा । अगले लायन वर्ष में प्रस्तावित एके सिंह की उम्मीदवारी का विरोध करना भी केएस लूथरा के लिए आसान नहीं होगा - केएस लूथरा के लिए चुनौती की बात यही है ।
अगले लायन वर्ष में आने वाली एके सिंह की उम्मीदवारी को गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी का समर्थन मिलने की उम्मीद है, तो अगले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार सँभालने वाले शिव कुमार गुप्ता भी एके सिंह की उम्मीदवारी के प्रति खुलकर समर्थन व्यक्त कर चुके हैं । शिव कुमार गुप्ता तो यहाँ तक घोषणा कर चुके हैं कि केएस लूथरा यदि एके सिंह की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं भी करेंगे, तो भी वह एके सिंह की उम्मीदवारी के साथ ही होंगे । केएस लूथरा के लिए समस्या की बात यह है कि एके सिंह यदि सर्वसम्मत उम्मीदवार बन जाते हैं, तो उनके डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का चौधरी बनने का मौका उनसे एक बार फिर छिन जायेगा । पिछले लायन वर्ष में विशाल सिन्हा के लिए सर्वसम्मति बनाने के लिए राजी होने को लेकर केएस लूथरा को इस वर्ष लोगों से बार-बार माफी माँगनी पड़ी है । इस बार तो लगता है कि उन्हें माफी मिल गई है, अगली बार गुरनाम सिंह के साथ खड़े होने को लेकर फिर पता नहीं कि उन्हें माफी मिल पाये या नहीं ।
केएस लूथरा के सामने दो समस्याएँ हैं - एक तो उन्हें एके सिंह के साथ अपनी खुन्नस को भुलाना पड़ेगा; और दूसरे, एके सिंह के लिए उन्हें गुरनाम सिंह के साथ एक मंच पर बैठना पड़ेगा । समस्या की बात यह भी है कि वह तो एके सिंह के साथ खुन्नस भुलाने को तैयार हो भी जाएँ, पर क्या एके सिंह उनकी खुन्नस को भूल पायेंगे ? सर्वसम्मत उम्मीदवार होने की स्थिति में उम्मीद यही की जा रही है कि एके सिंह - केएस लूथरा की बजाये गुरनाम सिंह के ज्यादा निकट 'दिखेंगे' । केएस लूथरा इस स्थिति को कैसे बर्दाश्त करेंगे ? उल्लेखनीय है कि गुरनाम सिंह के साथ निकटता दिखाने के कारण ही तो एके सिंह, केएस लूथरा की आँख की किरकिरी बने हैं; और इसी किरकिरी के चलते केएस लूथरा पिछले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी का समर्थन करने को हरगिज तैयार नहीं हुए, जिस कारण एके सिंह को अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था । पिछले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी के खिलाफ रहने के बाद केएस लूथरा के लिए अगले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी के समर्थन में आना स्वाभाविक रूप से आसान नहीं होगा - तब तो और भी नहीं, जबकि एके सिंह की उम्मीदवारी के समर्थकों में गुरनाम सिंह भी होंगे ।
दरअसल जो लोग केएस लूथरा को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरी के रूप में देखना चाहते हैं उनका मानना और कहना है कि संदीप सहगल की जीत से केएस लूथरा को एक बार फिर जो मौका मिला है, उसका फायदा उठाने के लिए उन्हें एके सिंह को साफ साफ बता देना चाहिए कि अपनी उम्मीदवारी का झंडा उन्हें केएस लूथरा को ही सौंपना होगा, और गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी से कोई संबंध नहीं रखना होगा; अन्यथा केएस लूथरा को एके सिंह के खिलाफ अपना कोई उम्मीदवार लाना चाहिए । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थन के चक्कर में इस वर्ष केएस लूथरा को 'अपने ही' लोगों का भेदभाव सहना पड़ा है । संदीप सहगल का सारा कैम्पेन केएस लूथरा ने ही सँभाला हुआ था, लेकिन संदीप सहगल की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थकों ने उन्हें पीछे ही धकेला हुआ था । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के दूसरे कई समर्थकों ने हवा बनाई हुई थी कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों में केएस लूथरा की बड़ी बदनामी है, इसलिए उन्हें पीछे रखना ही उचित होगा । केएस लूथरा यह सब सहने के लिए मजबूर थे । इसलिए भी मजबूर थे क्योंकि उन्हें भी संदीप सहगल के जीतने की उम्मीद नहीं थी । कहने/दिखाने को तो केएस लूथरा भी और संदीप सहगल की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थक नेता भी संदीप सहगल की जीत के दावे कर रहे थे, किंतु अपने अंदरूनी आकलन में उन्हें संदीप सहगल की जीत का जरा भी विश्वास नहीं था ।
संदीप सहगल किंतु जब चमत्कारिक रूप से जीत गए तो जीत का सेहरा केएस लूथरा के सिर बँधा । यूँ तो किसी भी चुनावी नतीजे में बहुत सारे कारण जिम्मेदार होते हैं - इसी तर्ज पर संदीप सहगल की अप्रत्याशित व चमत्कारिक जीत के लिए भी बहुत से कारण जिम्मेदार होंगे; लेकिन संदीप सहगल की इस जीत का सेहरा जिस तरह केएस लूथरा के सिर बँधा है, और उनकी कुशल रणनीति व उनकी अथक मेहनत को प्रशंसा मिली है - उसके चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का चौधरी बनने का मौका उनके हाथ एक बार फिर से आ गया है । किंतु अगले लायन वर्ष में एके सिंह की प्रस्तावित उम्मीदवारी के इर्द-गिर्द बनते समीकरण में केएस लूथरा के लिए इस मौके का फायदा उठा पाना एक बड़ी चुनौती है ।