Wednesday, April 8, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के 'आती भी नहीं दिखती है, और जाती भी नहीं है' वाले रवैये के कारण प्रसून चौधरी और अशोक गर्ग के लिए अपनी अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने का काम मुश्किल हुआ

गाजियाबाद । दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के इर्द-गिर्द बुनी जाने वाली डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को खासा असमंजस में डाला हुआ है और जिसके चलते खिलाड़ियों के लिए 'पोजीशंस' लेना मुश्किल बना हुआ है । मजे की बात यह है कि दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम अपनी अपनी संभावित उम्मीदवारी के बाबत कुछ कर भी नहीं रहे हैं - और उनके कुछ न करने के कारण उनकी उम्मीदवारी के प्रस्तुत न होने के दावे भी किये/सुने जाने लगे हैं; लेकिन फिर भी चुनावी राजनीति के बनने वाले समीकरण जैसे राह भटक गए हैं, और समीकरण बनाने वाले नेता अभी और इंतजार कर लेना चाहते हैं । ऐसी स्थिति शायद ही कभी देखने में आई हो कि संभावित उम्मीदवार तो कुछ नहीं कर रहे हों और सुस्त बने हुए हों, लेकिन उन्होंने फिर भी घोषित उम्मीदवारों के लिए मुसीबत खड़ी की हुई हो और चुनावी खेमेबाजी को बनने से रोका हुआ हो । दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम के नजदीकियों का आरोप तो है कि अगले रोटरी वर्ष के लिए अपनी अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर चुके प्रसून चौधरी और अशोक गर्ग उनकी उम्मीदवारी न आने की झूठी अफवाहें फैला रहे हैं; पर यह अफवाहें फैलाने का मौका तो उन्हें एक उम्मीदवार के रूप में दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम की निष्क्रियता के कारण ही मिल रहा है । दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम के लिए राहत की बात अभी सिर्फ इतनी ही है कि लोग उनकी उम्मीदवारी के प्रति सशंकित भले ही हों, लेकिन उम्मीद से अभी भी भरे हुए भी हैं ।
पेट्स में दीपक गुप्ता की सक्रियतापूर्ण उपस्थिति ने उन नेताओं को चौंकाया, जो मान रहे थे और बता रहे थे कि दीपक गुप्ता की रोटरी में दिलचस्पी लगभग खत्म हो चुकी है और अब वह रोटरी के आयोजनों में शायद ही कहीं दिखें । इस तरह की बातें कहते/बताते हुए 'संदेश' यह देने की कोशिश की गई कि दीपक गुप्ता अगले वर्ष की चुनावी प्रतिस्पर्द्धा से दूर और बाहर ही रहेंगे । लेकिन पेट्स में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा कर दीपक गुप्ता ने इस तरह की बातों पर एकदम से विराम तो लगा दिया है, हालाँकि अपनी उम्मीदवारी के प्रति लोगों के बीच भरोसा पैदा करने के लिए उनके शुभचिंतकों को उनकी तरफ से अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत भी महसूस की जा रही है । कई लोग हैं जो अभी भी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति आश्वस्त नहीं हैं; ऐसे लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता पेट्स में नजर तो आये किंतु उनकी सक्रियता का स्तर और उनकी बॉडी लैंग्वेज उम्मीदवार होने की उनकी 'तैयारी' का आभास नहीं दे रही थी । लोगों के बीच चर्चा है कि पुराने सहयोगियों के साथ छोड़ देने के बाद दीपक गुप्ता के लिए अपना चुनाव अभियान चलाना ही मुश्किल होगा; लेकिन ऐसी ही चर्चाओं में यह भी सुनने को मिल जाता है कि दीपक गुप्ता को कई नए सहयोगी मिल गए/रहे हैं जिनके सहयोग से उनके लिए अपने चुनाव अभियान को चलाना कोई मुश्किल नहीं होगा । दरअसल इसी तरह की परस्पर विरोधी चर्चाओं के कारण लोगों के बीच दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की उम्मीद पूरी तरह टूटी नहीं है । मजे की बात यही है कि एक संभावित उम्मीदवार के रूप में दीपक गुप्ता की लोगों के बीच कहीं कोई उपस्थिति नहीं है, लोगों को उनकी बॉडी लैंग्वेज में भी उनके उम्मीदवार हो सकने का संदेश पढ़ने को नहीं मिल रहा है - लेकिन फिर भी लोग उन्हें संभावित उम्मीदवार के रूप में देख रहे हैं ।
प्रवीन निगम का मामला तो और भी दिलचस्प है - और भूतों वाली कहानियों को चरितार्थ करता है । जैसे भूतों को किसी ने नहीं देखा होता है, लेकिन फिर भी कई लोग मानते हैं कि भूत होते हैं; ठीक वैसे ही एक उम्मीदवार के रूप में तो छोड़िये, एक रोटेरियन के रूप में भी प्रवीन निगम को रोटरी में कम ही देखा जा रहा है लेकिन फिर भी लोगों के बीच उनकी उम्मीदवारी प्रस्तुत होने की चर्चा लगातार बनी हुई है । इसका श्रेय हालाँकि प्रवीन निगम के क्लब के वरिष्ठ सदस्य रवि सचदेवा को है, जो लगातार लोगों को आश्वस्त किए हुए हैं कि प्रवीन निगम की उम्मीदवारी अवश्य ही प्रस्तुत होगी । उल्लेखनीय है कि पहले सुना जा रहा था कि पेट्स से प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के अभियान की शुरुआत होगी, लेकिन पेट्स में प्रवीन निगम कहीं नजर ही नहीं आए । उनकी तरफ से मोर्चा यद्यपि रवि सचदेवा ने सँभाला हुआ था और पेट्स में उपस्थित लोगों के बीच वह यह जताने/दिखाने का भरसक प्रयास कर रहे थे कि प्रवीन निगम की उम्मीदवारी एक अलग तरीके से लोगों के बीच लॉन्च होने की प्रक्रिया में है, इसलिए उनकी उम्मीदवारी की प्रस्तुति में थोड़ी देर हो रही है । रवि सचदेवा ने लोगों को यह भी बताया कि प्रवीन निगम की उम्मीदवारी का अभियान पूरी रूपरेखा बना कर ही शुरू होगा और जल्दी ही शुरू होगा । रवि सचदेवा की बातों पर जिन लोगों ने विश्वास किया, उनका भी मानना और कहना लेकिन यही रहा कि प्रवीन निगम अपनी उम्मीदवारी को लेकर यदि सचमुच गंभीर हैं, तो उन्हें उसकी प्रस्तुति में अब ज्यादा देर नहीं लगाना चाहिए । रवि सचदेवा अभी तो प्रवीन निगम की उम्मीदवारी की प्रस्तुति के प्रति विश्वास बनाये रख पा रहे हैं, लेकिन प्रवीन निगम यदि ज्यादा समय तक लोगों के बीच अनुपस्थित रहे और उन्होंने खुद सामने आकर मोर्चा नहीं सँभाला तो रवि सचदेवा के लिए भी उक्त विश्वास बनाये रख पाना मुश्किल ही होगा ।
दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के 'आती भी नहीं दिखती है, और जाती भी नहीं है' वाले रवैये के कारण प्रसून चौधरी और अशोक गर्ग के लिए अजीब मुसीबत पैदा हो गई है । उल्लेखनीय है कि अभी तक इन्हीं दोनों ने अपनी अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया हुआ है, और समर्थन जुटाने के लिए अपने अपने तरीके से प्रयास शुरू किए हुए हैं । इनके लिए समस्या की बात यह है कि जो लोग इनके साथ नहीं हैं - या नहीं होना चाहते हैं, वह दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के 'स्टेटस' को पहले देख लेना चाहते हैं । कोई भी चुनाव अपनों के भरोसे नहीं, बल्कि परायों को अपना बनाने - या तटस्थ बनाने के भरोसे पर लड़ा जाता है । दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम की उम्मीदवारी की संभावना प्रसून चौधरी और अशोक गर्ग के लिए परायों को अपना (या तटस्थ) बनाने के प्रयास को मुश्किल बना रही है । प्रसून चौधरी और अशोक गर्ग की इसी मुश्किल में दीपक गुप्ता और/या प्रवीन निगम की उम्मीदवारी के लिए रास्ता बनता दिख रहा है । जो लोग इस 'रास्ते' को देख पा रहे हैं, उनका भी मानना और कहना है कि इस 'रास्ते' का फायदा लेकिन तब मिलेगा, जब दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम खुद इस पर 'चलना' शुरू करेंगे । दीपक गुप्ता और प्रवीन निगम की उम्मीदवारी सचमुच में प्रकट होती भी है या नहीं, यह तो अगले कुछेक दिनों में स्पष्ट हो जायेगा; लेकिन जब तक यह स्पष्ट नहीं होता है - तब तक प्रसून चौधरी और अशोक गर्ग के लिए अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए एक अलग तरह की चुनौती तो बनी ही हुई है ।