Wednesday, February 27, 2013

विनोद बंसल को सुशील गुप्ता की नाराजगी के कारण शेखर मेहता के 'दरबार' से बाहर होना पड़ा है क्या ?

नई दिल्ली । शेखर मेहता ने हैदराबाद में आयोजित हो रही रोटरी साउथ एशिया समिट 2013 की तैयारियों से विनोद बंसल को जिस तरह दूर रखा है, उसे देख कर विनोद बंसल और उनके शुभचिंतकों को गहरा धक्का लगा है । धक्का लगने का कारण यह है कि अभी पिछले रोटरी वर्ष में ही कोलकाता में आयोजित हुए रोटरी इंस्टीट्यूट में शेखर मेहता ने विनोद बंसल को काफी तवज्जो दी थी । विनोद बंसल के लिए भी और दूसरे लोगों के लिए भी हैरानी की बात यही है कि करीब डेढ़ वर्ष की अवधि में ऐसा क्या हो गया जो इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता ने विनोद बंसल को अपनी 'कोटरी' से बाहर कर दिया है । विनोद बंसल के लिए ज्यादा तगड़े झटके की बात यह है कि शेखर मेहता ने इस बार मुकेश अरनेजा को अपेक्षाकृत ज्यादा तवज्जो दी है । मुकेश अरनेजा के पास समिट के प्रमोशन की जिम्मेदारी है । विनोद बंसल की शेखर मेहता द्धारा की गई उपेक्षा को देख/जान कर ही मुकेश अरनेजा ने समिट के प्रमोशन से विनोद बंसल को अलग-थलग रखा हुआ है और सिर्फ रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को आगे करके ही समिट को प्रमोट करने का काम कर रहे हैं ।
विनोद बंसल आने वाले वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होंगे और इस नाते से समिट के प्रमोशन में उनकी अपील ज्यादा कारगर होगी - लेकिन मुकेश अरनेजा ने उन्हें पूरी तरह अलग-थलग रखा हुआ है । किन्हीं-किन्हीं लोगों ने उनसे इस बारे में पूछा भी तो उन्होंने यह कहते हुए कि विनोद बंसल डीटीटीएस की तैयारी में व्यस्त होने के कारण समिट के प्रमोशन के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं, ठीकरा विनोद बंसल के सिर पर ही फोड़ दिया है । विनोद बंसल और शेखर मेहता के बीच की नजदीकियों की जिन भी लोगों को जानकारी हैं, उनके लिए यह समझना सचमुच मुश्किल हो रहा है कि आखिर क्यों शेखर मेहता ने खुद तो विनोद बंसल को किनारे लगाया ही है, साथ ही नए-नए बने अपने खुशामदिये मुकेश अरनेजा से भी विनोद बंसल को अपमानित करवा रहे हैं ? डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट से बाहर के भी कई लोग जानते हैं कि विनोद बंसल ने खुद से आगे बढ़-बढ़ कर शेखर मेहता की मदद की है - पिछले रोटरी वर्ष में शेखर मेहता की देख-रेख में कोलकाता में हुए रोटरी इंस्टीट्यूट के लिए शेखर मेहता को विनोद बंसल ने स्पोंसरशिप के जरिये बड़ी रकम तो दिलवाई ही थी, शेखर मेहता के हर दिल्ली दौरे पर वह उनकी सेवा में भी हाजिर रहते रहे हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में शेखर मेहता ने भी प्रायः हमेशा ही विनोद बंसल को सेवा के बदले 'मेवा' उपलब्ध करवाई है । लेकिन अब अचानक से लोगों ने शेखर मेहता को विनोद बंसल से दूरी बनाते/रखते देखा है ।
शेखर मेहता ने पिछले रोटरी वर्ष में कोलकाता में आयोजित हुए रोटरी इंस्टीट्यूट में विनोद बंसल को जो अतिरिक्त तवज्जो दी थी, उसके चलते उन्होंने डीजीएन होने के बावजूद विनोद बंसल को एक कमेटी में लिया था । अलग-अलग कमेटियों के सदस्यों में पीडीजी स्तर के लोग ही थे, एक अकेले विनोद बंसल ही थे तो पीडीजी नहीं थे, लेकिन फिर भी वह एक कमेटी में थे । कमेटी में तो शेखर मेहता ने उन्हें इस बार भी रखा है, लेकिन उनका परिचय तक गलत दिया गया है - समिट की साइट पर उन्हें पीडीजी बताया गया है, जबकि पीडीजी होने में उन्हें अभी सोलह महीने हैं; अभी तो वह डीजी भी नहीं बने हैं । शेखर मेहता ने अभी भी विनोद बंसल को फंड जुटाने की ही जिम्मेदारी दी है । विनोद बंसल और उनके नजदीकियों को इसी बात का अफ़सोस है कि शेखर मेहता ने उन्हें बस एटीएम मशीन भर माना हुआ है ।
शेखर मेहता की 'कोटरी' से विनोद बंसल के बाहर होने के कारणों की पड़ताल करने वाले लोगों ने जाना/समझा है कि इस स्थिति के लिए खुद विनोद बंसल भी जिम्मेदार हैं । विनोद बंसल ने अपनी महत्वाकांक्षा में सिर्फ शेखर मेहता के साथ ही नजदीकी नहीं बनाई, बल्कि हर 'बड़े' आदमी के नजदीक होने की कोशिश की । उनकी इस कोशिश को देख/जान कर शेखर मेहता ने समझ लिया कि विनोद बंसल पर विश्वास नहीं किया जा सकता और उन्हें अपनी 'कोटरी' का सदस्य नहीं बनाया जा सकता । इस तरह, हर किसी के नजदीक होने की विनोद बंसल की कोशिश ने उन्हें शेखर मेहता से दूर कर दिया है । कुछेक बड़े नेताओं का कहना है कि शेखर मेहता की 'कोटरी' से पत्ता कटवाने का काम पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता ने किया है । सुशील गुप्ता को विनोद बंसल का राजेश बत्रा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाना दरअसल पसंद नहीं आया । सुशील गुप्ता को हर वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से कुछ फेबर लेने होते हैं - विनोद बंसल को राजेश बत्रा के नजदीक देख कर सुशील गुप्ता ने समझ लिया कि उन्हें विनोद बंसल के गवर्नर-काल में उक्त फेबर नहीं मिल पाएंगे; लिहाजा उन्होंने शेखर मेहता के दरबार से विनोद बंसल की छुट्टी करवा दी । शेखर मेहता चूँकि सुशील गुप्ता के 'आदमी' माने जाते हैं, इसलिए सुशील गुप्ता का आदेश मान लेने में शेखर मेहता ने कोई देर नहीं की ।

Tuesday, February 26, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में शिव कुमार गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी की शक्ति को प्रदर्शित किया और दिखाया कि उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता

लखनऊ । शिव कुमार गुप्ता ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने और दिखाने के उद्देश्य से लखनऊ में जो आयोजन किया, उसे विशाल सिन्हा द्धारा किये गए पिकनिक कार्यक्रम के जबाव के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । विशाल सिन्हा के पिकनिक कार्यक्रम ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी को जो 'बढ़त' दिखाई थी, उसे 'रोकने' के लिए शिव कुमार गुप्ता पर कुछ करने का भारी दबाव था । राजनीति के खिलाड़ी अच्छी तरह जानते हैं कि चुनाव तथ्यों के भरोसे नहीं, अवधारणा और दिखावे के सहारे लड़े जाते हैं । विशाल सिन्हा और उनके समर्थक भी जानते थे - तथा शिव कुमार गुप्ता और उनके समर्थक भी जानते थे - कि यह बिलकुल जरूरी नहीं है कि विशाल सिन्हा की पिकनिक पार्टी में शामिल होने वाले सभी लोगों का वोट विशाल सिन्हा को ही मिलेगा । लेकिन इसके बावजूद पिकनिक पार्टी में जुटे लोगों की भीड़ ने विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी को 'बढ़त' देने का काम किया ही था ।
विशाल सिन्हा और उनके समर्थकों ने भी पिकनिक पार्टी में जुटे लोगों की भीड़ का विवरण दे दे कर लोगों के बीच यह प्रचरित किया और यह माहौल बनाने कि कोशिश की की उन्हें लखनऊ में एकतरफा समर्थन है । इस प्रदर्शन और प्रचार के बाद शिव कुमार गुप्ता के लिए कुछ करना जरूरी हो गया था । यह इसलिए भी जरूरी हो गया था ताकि लोगों को ऐसा न लगे कि शिव कुमार गुप्ता तो कुछ कर ही नहीं रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह इंप्रेशन अभी भी बना हुआ है - यह सच है कि इसे बनाये रखने में उनके विरोधियों ने बहुत होशियारी से मेहनत भी की है - कि शिव कुमार गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा ने जबरदस्ती उम्मीदवार बनाया हुआ है और वह उम्मीदवार के 'कर्तव्यों' का कोई पालन नहीं करेंगे । इस इंप्रेशन के कारण भी शिव कुमार गुप्ता के लिए कुछ करना सचमुच जरूरी हो गया था । उनके समर्थक जानते हैं कि उनकी लड़ाई आसान नहीं है । शिव कुमार गुप्ता के एक समर्थक कहते भी हैं कि विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी के पीछे जो लोग हैं, उनकी क्षमताएँ जाहिर हैं और उनके दावे सच साबित होते रहे हैं, जबकि शिव कुमार गुप्ता के पीछे जो लोग हैं उन्हें अपनी क्षमताएँ अभी दिखानी हैं और अपने दावों को सच करके अभी दिखाना है । इसलिए भी शिव कुमार गुप्ता के लिए कुछ करना जरूरी था ।
शिव कुमार गुप्ता ने जो करके दिखाया है, उसके जरिये उन्होंने अपने समर्थकों और शुभचिंतकों को आश्वस्त करने का और डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह संदेश देने का काम किया है कि वह पूरी गंभीरता के साथ अपनी उम्मीदवारी को ले रहे हैं और उम्मीदवार के 'कर्तव्यों' का सक्रियता के साथ निर्वाह करने को तैयार हैं । शिव कुमार गुप्ता और उनके समर्थकों को उम्मीद है कि इस आयोजन से डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनकी उम्मीदवारी के प्रति विश्वास बनेगा/बढ़ेगा । हालाँकि जो बात विशाल सिन्हा की पिकनिक पार्टी के बारे में सच थी, वही बात शिव कुमार गुप्ता के इस आयोजन के बारे में भी सच है कि उपस्थित लोगों को उनके समर्थक और वोटर के रूप में नहीं देखा/माना जा सकता है । दोनों ही कार्यक्रमों में विरोधी उम्मीदवार के समर्थक और वोटर उपस्थित थे । लेकिन इस आयोजन के जरिये शिव कुमार गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी को विश्वसनीय बनाने का जो प्रयास किया है, उसके चलते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनावी मुकाबला दिलचस्प जरूर हो गया है ।
शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में हुए आयोजन की कुछ झलकियाँ : 









Sunday, February 24, 2013

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन के चुनाव में गोपाल कुमार केडिया को प्रेसीडेंट सुबोध कुमार अग्रवाल की मदद सचमुच मिल पायेगी क्या

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन के चुनाव में गोपाल कुमार केडिया द्धारा इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट सुबोध कुमार अग्रवाल की मदद जुटाने की कोशिशों ने खासी गर्मी पैदा कर दी है । गोपाल कुमार केडिया दरअसल इस वर्ष चेयरमैन बनने के लिए अपने आप को पूरी तरह उपर्युक्त मान रहे हैं, लेकिन उनकी समस्या यह है कि जिन लोगों को चेयरमैन चुनना है, उनके बीच उनके पक्ष में पर्याप्त समर्थन दिख नहीं रहा है । गोपाल कुमार केडिया रीजनल काउंसिल में अभी वाइस चेयरमैन के पद पर हैं और अभी हाल ही में हुए चुनाव में नॉर्दर्न रीजन में उन्हें सबसे ज्यादा वोट मिले हैं - जिसे वह इस बात के सुबूत के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं कि उन्हें अनुभव भी है और लोगों का समर्थन भी उनके साथ है; और इसलिए चेयरमैन बनने के लिए वह सर्वथा उपर्युक्त हैं । लेकिन उनकी मुसीबत यह है कि जिन बातों को वह अपनी 'उपलब्धियों' के रूप में देख/बता रहे हैं, उनकी वही उपलब्धियाँ उनकी राह का रोड़ा बनी हुईं हैं ।
रीजनल काउंसिल में वाइस चेयरमैन होने को गोपाल कुमार केडिया भले ही अपनी उपलब्धि के रूप में देख/बता रहे हों, लेकिन दूसरे लोगों का कहना है कि उनके वाइस चेयरमैन होने के बावजूद रीजनल काउंसिल का यह वर्ष सबसे ख़राब वर्ष रहा है - क्या इससे यह साबित नहीं होता कि प्रतिकूल स्थितियों से निपटने की उनमें जरा भी काबिलियत नहीं है ? यह ठीक है कि रीजनल काउंसिल में इस वर्ष जो भी गड़बड़ियाँ रहीं, गोपाल कुमार केडिया उनके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं रहे हैं; लेकिन उन्होंने हालात को सँभालने की भी तो कोई कोशिश नहीं की, और यदि की तो सँभाल नहीं सके - और इस कारण से वाइस चेयरमैन होने के कारण चेयरमैन बनने के उनके तर्क का दम निकल जाता है । रीजन में ज्यादा वोट पाना भी गोपाल कुमार केडिया के लिए मुसीबत बन गया है । अगली बार सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार होने के लिए तैयारी कर रहे लोगों को गोपाल कुमार केडिया में एक दमदार प्रतिद्धन्द्धी दिख रहा है । उन्हें डर हो रहा है कि चेयरमैन होने के बाद गोपाल कुमार केडिया सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे और तब उनके लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे - इसलिए उन्हें गोपाल कुमार केडिया को खींचे रखने में ही अपनी भलाई दिख रही है । गोपाल कुमार केडिया ऐसे लोगों को हालाँकि यह विश्वास दिलाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि सेंट्रल काउंसिल में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन कोई भी उनकी बात का भरोसा ही नहीं कर रहा है ।
गोपाल कुमार केडिया अपनी खूबियों के कमजोरियाँ बन जाने के कारण रीजनल काउंसिल के नए सदस्यों के बीच पूरी तरह अकेले और अलग-थलग पड़ गए नजर आ रहे हैं । इसके बावजूद खेल अभी भी उनके लिए पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है । प्रतिकूल स्थितियों में भी गोपाल कुमार केडिया के लिए अपने पक्ष में मौका बनाने का अवसर छिपा हुआ है । गोपाल कुमार केडिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती आठ सदस्यों वाला जो ग्रुप बना हुआ है, उसमें चेयरमैन पद के कई उम्मीदवारों के होने में गोपाल कुमार केडिया की उम्मीद बनी हुई है । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के अगले सत्र के लिए चुने गए तेरह सदस्यों में से आठ सदस्यों का जो ग्रुप बना है, वह ऊपर से देखने पर तो बाकी बचे पाँच सदस्यों - जिनमें एक गोपाल कुमार केडिया भी हैं - को सत्ता से बाहर रखने का आभास देता है; लेकिन कई लोगों को लगता है कि ग्रुप बना चुके लोगों में चूँकि चेयरमैन पद के कई उम्मीदवार हैं इसलिए इस ग्रुप के एक बने रहने को लेकर संदेह है । आठ लोगों के ग्रुप में हंसराज चुग, विशाल गर्ग, राधे श्याम बंसल और राज चावला को चेयरमैन पद के घोषित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है - और कई लोगों को लगता है कि जिस दिन चेयरमैन पद के लिए उम्मीदवार तय करने का मौका आएगा, उस दिन यह ग्रुप टूट जायेगा । ग्रुप के कर्ता-धर्ताओं को भी शायद इस बात का अंदेशा है, इसीलिये वह अभी तक चेयरमैन पद की उम्मीदवारी पर आपस में बात करने से बच रहे हैं ।
आठ सदस्यों के ग्रुप में टूट की यही आशंका गोपाल कुमार केडिया की उम्मीद को बनाये हुए है । गोपाल कुमार केडिया को ग्रुप से बाहर रह गए बाकी चार सदस्यों के समर्थन की भी उम्मीद है । यूँ तो 'यह' चारों अलग-अलग 'मिजाज' और खेमों के लोग हैं, लेकिन मजबूरी में यह एक हो सकते हैं - गोपाल कुमार केडिया के सामने चुनौती सिर्फ इस बात की है कि वह इन्हें अपने पक्ष में 'एक' कैसे करें ? यहीं इन्हें इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट सुबोध कुमार अग्रवाल की मदद की जरूरत नजर आती है । गोपाल कुमार केडिया को लगता है कि सुबोध कुमार अग्रवाल के दिलचस्पी लेने पर ग्रुप से बाहर रह गए चारों सदस्यों को उनके पक्ष में किया जा सकता है और फिर उसके बाद आठ सदस्यीय ग्रुप में तोड़-फोड़ करवा कर से उसके दो-तीन सदस्यों को अपनी तरफ कर लेने में भी कोई मुश्किल नहीं होंगी; और इस तरह वह चेयरमैन बन जायेंगे । किंतु सवाल यह है कि सुबोध कुमार अग्रवाल आखिर क्यों गोपाल कुमार केडिया की मदद करेंगे ? गोपाल कुमार केडिया को इसका भरोसा इस कारण से क्योंकि सुबोध कुमार अग्रवाल से उनका नजदीकी रिश्ता है । गोपाल कुमार केडिया कई मौकों पर सुबोध कुमार अग्रवाल को अपना साढु भाई बता चुके हैं । अब साढु भाई वाले रिश्ते में सुबोध कुमार अग्रवाल से गोपाल कुमार केडिया इतनी मदद की उम्मीद तो कर ही सकते हैं । सुबोध कुमार अग्रवाल भी चूँकि चुनावी राजनीति की तिकड़मों के ऊँचे खिलाड़ी हैं, इसलिए गोपाल कुमार केडिया की उनसे जो उम्मीद है वह संभव और प्रासंगिक दिखती है । इस संभावना को सच बनाने को लेकर गोपाल कुमार केडिया की जो सक्रियता है, उसके चलते नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद का चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है - और रोज नये-नये तमाशे देखने को मिल सकते हैं ।           

Tuesday, February 19, 2013

डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में मुकेश गोयल ने सुनील निगम की कमजोर नस को पकड़ कर चुनावी राजनीति का सारा सीन ही बदल दिया है

गाजियाबाद । मुकेश गोयल के एक मास्टर स्ट्रोक ने कुंजबिहारी अग्रवाल, सुशील अग्रवाल, एलएम जखवाल, सुधीर जनमेजा जैसे खुद को धुरंधर समझ रहे नेताओं को ऐसा 'अकेला' कर दिया कि उनके लिए यह समझना मुश्किल हो गया है कि वह करें तो क्या करें ? मजे की बात यह हुई है कि अपना मास्टर स्ट्रोक चलने के लिए मुकेश गोयल ने 'छड़ी' भी इनकी ही इस्तेमाल की है । उल्लेखनीय है कि सुनील निगम की उम्मीदवारी के भरोसे इन लोगों ने अपने-अपने उल्लू सीधे किये हुए थे और मुकेश गोयल को किनारे किया हुआ था । मुकेश गोयल प्रतिकूल परिस्थितियों में कुछ ऐसे फँसे हुए थे कि उन्हें अपने लायन राजनीतिक जीवन में सबसे बुरे दिनों का सामना करना पड़ रहा था । उनके पास कोई उम्मीदवार नहीं था और सुनील निगम के रूप में डिस्ट्रिक्ट में जो एक अकेला उम्मीदवार था, वह उन्हें खुलेआम लताड़ रहा था । मुकेश गोयल को धूल में मिलाने की पहले भी कई बार कोशिशें हुईं हैं और कुछेक बार ऐसा लगा भी कि मुकेश गोयल का खेल बस अब ख़त्म हो गया है - लेकिन मुकेश गोयल ने हर बार उसी धूल में अपने लिए ताकत बटोरी और फिर से खड़े हो गए । इस बार नजारा लेकिन कुछ संगीन था । हालाँकि कुछेक लोग यह देखने/जानने को जरूर उत्सुक थे कि मुकेश गोयल अब की बार कैसे उबरते हैं ? इस 'उत्सुकता' में हालाँकि मजा लेने का भाव ज्यादा था ।
यह इसलिए था क्योंकि मुकेश गोयल के लिए उम्मीद की किरण कहीं नहीं दिख रही थी । मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एलएम जखवाल और आने वाले वर्ष के गवर्नर सुधीर जनमेजा ने सुनील निगम को सिर पर बैठाया हुआ था, तो कुंजबिहारी अग्रवाल तथा सुशील अग्रवाल बार-बार सुनील निगम को आशीर्वाद दे रहे थे और इस कारण से सुनील निगम आपे से बाहर हुए जा रहे थे और मुकेश गोयल के खिलाफ जो कुछ भी कह सकते थे, वह कह रहे थे । इस स्थिति से निपटने के लिए जरूरी था कि मुकेश गोयल कोई दमदार उम्मीदवार लायें । जब तक विनय मित्तल के उम्मीदवार बनने की चर्चा/संभावना थी, तब तक तो सुनील निगम थोड़ा डरे हुए से थे; लेकिन स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों और प्रोफेशन संबंधी व्यस्तताओं के कारण जब विनय मित्तल की उम्मीदवारी की संभावना ख़त्म हो गई, तब सुनील निगम बिलकुल बेफिकर और बेलगाम हो गए । इसके साथ ही मुकेश गोयल के सीन में बने रहने की उम्मीदें भी ध्वस्त हो गईं ।
मुकेश गोयल ने लेकिन फिर ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला कि सारा सीन ही बदल गया । लोग यह देख कर आश्चर्य में पड़ गए कि जो सुनील निगम लगातर मुकेश गोयल को गलिया रहे थे, अब वह उनकी आरती गाने लगे । हर किसी के सामने यह सवाल आ खड़ा हुआ कि मुकेश गोयल ने सुनील निगम पर आखिर ऐसा क्या जादू किया ? जादू-वादू कुछ नहीं, मुकेश गोयल ने सुनील निगम की कमजोर नस को पकड़ लिया था : मुकेश गोयल ने सुनील निगम को बहुत व्यावहारिक तरीके से बताया कि वह उन्हें कैसे मुफ्त में गवर्नर बनवा सकते हैं । सुनील निगम ने यह जानते/समझते ही सुर और अपने 'देवता' तुरंत बदल लिए । उनकी लताड़ के निशाने पर अब कुंज बिहारी अग्रवाल, सुशील अग्रवाल और एलएम जखवाल आ गए । सुनील निगम ने इन लोगों की इस बात के लिए तीखी आलोचना की कि इन लोगों ने उनसे खूब-खूब पैसे खर्च करवाने का इंतजाम किया हुआ है । सुनील निगम की बातों को एलएम जखवाल ने सुना तो उनके तो हाथों के तोते उड़ गए । उन्हें अपनी डिस्ट्रिक्ट कोंफ्रेंस तबाह होती हुई दिखी । डिस्ट्रिक्ट कोंफ्रेंस के कई आयोजन उन्होंने सुनील निगम के भरोसे संपन्न करने की योजना बनाई हुई थी, वह आयोजन उन्हें डूबते हुए नजर आये । एलएम जखवाल ने बीच-बचाव के लिए सुधीर जनमेजा से गुहार लगाई; सुधीर जनमेजा ने सुनील निगम को समझाने की कोशिश की कि कुछेक खर्चे तो उन्हें करने ही पड़ेंगे; सुनील निगम ने लेकिन उन्हें भी ऐसी खरी-खोटी सुनाई कि सुधीर जनमेजा को चुप रहने में ही अपनी भलाई दिखी ।
मुकेश गोयल ने सिर्फ सुनील निगम को ही अपने पाले में नहीं किया, मलकीत सिंह जस्सर को सुधीर जनमेजा के गवर्नर-काल में इंस्टालेशन चेयरपरसन 'बनवा' कर उन्हें भी अपना मुरीद बना लिया । कुंज बिहारी अग्रवाल ने यह जाना तो मलकीत सिंह जस्सर से नाराजगी व्यक्त की - इसका असर यह हुआ कि मलकीत सिंह जस्सर ने मुकेश गोयल से नजदीकी और बना ली । सुधीर जनमेजा कहने को तो अभी भी सुशील अग्रवाल के खासमखास हैं, लेकिन मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन की अपनी भविष्य की राजनीति के लिए सुनील जैन को साधने के लिए उन्होंने भी मुकेश गोयल के साथ जुड़ने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । पिछले लायन वर्ष में अचानक से सुनील जैन को उम्मीदवार बना और जितवा कर मुकेश अरनेजा ने जिन सुनील निगम को अपने से दूर कर लिया था; और जिन सुनील निगम को छड़ी बना कर मुकेश गोयल को पीटने की तैयारी की गई थी उन्हीं सुनील निगम को अपने पाले में ला कर मुकेश गोयल ने अपनी खोई हुई जमीन को फिर से पाने का जो उद्द्यम किया है, उसे देख/जान कर उनके विरोधी अभी तो भौंचक हैं और मुकेश गोयल के इस वार से निपटने की तरकीबें सोचने में लगे हैं । यानि आगे आने वाले दिन दिलचस्प होंगे ।

Thursday, February 14, 2013

विनोद बंसल को नीचा दिखाने और उनके पारिवारिक समारोह में खलल डालने के इरादे से रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट प्रतियोगिता को 17 फरवरी को ही करने की जिद की है क्या ?

नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल ने रोटरी के झगड़े को व्यक्तिगत झगड़े का रूप देकर विनोद बंसल की बिटिया की शादी के रंग में भंग डालने का काम कर दिया है । इसके तहत, उन्होंने डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट प्रतियोगिता का जो आयोजन 24 फरवरी के लिए घोषित हुआ था, उसे दबाव डाल कर 17 फरवरी को करवा दिया है । उल्लेखनीय है कि 17 फरवरी को ही विनोद बंसल की बिटिया की शादी का आयोजन है । डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट प्रतियोगिता के आयोजन से जुड़े तथा उसमें भाग लेने वाले क्लब्स के रोटेरियंस ने रमेश अग्रवाल से जब यह कहा कि इसके कारण उनके लिए विनोद बंसल के यहाँ जाना मुश्किल होगा तो रमेश अग्रवाल ने उन्हें यह कह कर चुप कर दिया कि उनके लिए रोटरी ज्यादा जरूरी है या विनोद बंसल को खुश करना ज्यादा जरूरी है ? डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट प्रतियोगिता के आयोजन को 17 फरवरी को करने के उनके फैसले पर सवाल उठाने वाले रोटेरियंस को उन्होंने यह कहते हुए भी धमकाया कि अवार्ड तुम्हें मुझसे लेने हैं या विनोद बंसल से लेने हैं । 
डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट प्रतियोगिता के आयोजन से जुड़े लोगों के अनुसार, उन्होंने तो 24 फरवरी को यह प्रतियोगिता करने की तैयारी की थी - जिसके लिए रमेश अग्रवाल ने भी अपनी सहमति दे दी थी; लेकिन पूरा कार्यक्रम घोषित हो जाने के बाद अचानक से रमेश अग्रवाल ने 24 फरवरी को एनआईडी होने का वास्ता देकर इसे 17 फरवरी को करने को कहा । आयोजन से जुड़े लोगों ने 17 फरवरी को विनोद बंसल के यहाँ होने वाले शादी समारोह का जिक्र करते हुए प्रस्ताव रखा कि तब 3 मार्च को क्रिकेट प्रतियोगिता कर लेते हैं । उनका तर्क था कि 17 फरवरी को प्रतियोगिता रखते हैं तो एक तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में विनोद बंसल के लिए उसमें आ पाना संभव नहीं होगा, और दूसरी बात यह कि जिन रोटेरियंस को विनोद बंसल के यहाँ शादी समारोह में जाना है उन्हें मुश्किल होगी । इस पर रमेश अग्रवाल ने चुटकी भी ली कि तुन्हें विनोद बंसल की बड़ी फिक्र है, तुम रोटरी में विनोद बंसल को खुश करने आये हो क्या ? रमेश अग्रवाल ने यह कहते हुए भी 17 फरवरी को ही प्रतियोगिता कराने पर जोर दिया कि विनोद बंसल यदि नहीं आ पाएंगे तो प्रतियोगिता का आयोजन नहीं हो पायेगा क्या और विनोद बंसल की सुविधा के अनुसार डिस्ट्रिक्ट के और रोटरी के कार्यक्रम तय होंगे क्या ? रमेश अग्रवाल के इस रवैये को देख कर प्रतियोगिता के आयोजन से जुड़े लोगों ने रमेश अग्रवाल की बात मान लेने में ही अपनी भलाई देखी और 17 फरवरी को ही प्रतियोगिता आयोजित कर लेने के लिए वह मजबूर हुए ।
रमेश अग्रवाल के इस रवैये ने उन लोगों को भी हैरान किया है जो पहले से ही यह मानते/समझते रहे हैं कि रमेश अग्रवाल एक बहुत ही घटिया सोच का व्यक्ति है । दरअसल उन्हें भी यह उम्मीद नहीं रही कि रमेश अग्रवाल घटियापन में इस हद तक चले जायेंगे कि अपने साथी रोटेरियंस के पारिवारिक समारोह तक के प्रति बैर जैसा भाव दिखायेंगे । इस मामले का संगीन पक्ष यह है कि इस रवैये के लिए हर कोई जहाँ रमेश अग्रवाल की थू-थू कर रहा है, वहाँ मुकेश अरनेजा के रूप में रमेश अग्रवाल को अपने रवैये का एक समर्थक लेकिन मिल गया है । मुकेश अरनेजा का कहना है कि पेम के आयोजनों में विनोद बंसल ने जिस तरह रमेश अग्रवाल को किनारे करने की कोशिश की, उसके बाद रमेश अग्रवाल यदि उनके प्रति ऐसा रवैया दिखा रहे हैं तो यह 'जैसे को तैसा' जैसा मामला है । मुकेश अरनेजा के अनुसार, रमेश ने उनसे पेम के तीनों आयोजनों में उनके प्रति विनोद बंसल के व्यवहार की शिकायत की थी । रमेश अग्रवाल की शिकायत रही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते पेम के आयोजनों में उन्हें जितनी तवज्जो मिलना चाहिए थी, उतनी नहीं मिली । मुकेश अरनेजा के अनुसार, रमेश अग्रवाल को विनोद बंसल से भी ज्यादा शिकायत विनोद बंसल की पत्नी संगीता बंसल के रवैये से रही । मुकेश अरनेजा के अनुसार रमेश अग्रवाल यह देख कर बहुत खफा रहे कि संगीता बंसल ने लोगों के बीच हावी होने/दिखने की लगातार कोशिश की और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के बावजूद उन्हें किनारे लगाने का प्रयास किया ।
तो क्या, 17 फरवरी को डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन रखवाने के जरिये विनोद बंसल की बिटिया के विवाह समारोह के रंग में भंग डाल कर रमेश अग्रवाल पेम के आयोजनों में विनोद बंसल और संगीता बंसल के द्धारा हुई अपनी उपेक्षा का बदला ले रहे हैं ? मुकेश अरनेजा के दावे पर भरोसा करके जो लोग इसे सच भी मान रहे हैं, उनका भी कहना है कि रमेश अग्रवाल को रोटरी के झगड़ों को रोटरी तक ही रखना चाहिए और उन्हें इतना नहीं बढ़ा लेना चाहिए कि उसकी आँच पारिवारिक समारोहों तक को छूने लगे । रमेश अग्रवाल ने एक बार जब डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट प्रतियोगिता के लिए 24 फरवरी की तारीख को मंजूर कर लिया था, तो फिर बंसल दंपति को नीचा दिखाने और उनके पारिवारिक समारोह में खलल डालने के इरादे से उसे 17 फरवरी को करने के लिए दबाव नहीं बनाना चाहिए था । डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट प्रतियोगिता के आयोजकों का कहना है कि उन्होंने रमेश अग्रवाल को यह तक सुझाव दिया था कि 24 फरवरी को एनआईडी का काम ग्यारह/बारह बजे तक हो जायेगा, उसके बाद एनआईडी के लिए बाहर से आने वाली टीम के सदस्यों को लंच के लिए प्रतियोगिता स्थल पर ही ले आया जायेगा और इस तरह वह डिस्ट्रिक्ट की दूसरी गतिविधियों से भी परिचित हो सकेंगे; लेकिन रमेश अग्रवाल तो बस प्रतियोगिता को 17 फरवरी को करने की जिद पकड़े रहे । लोगों का मानना और कहना है कि रमेश अग्रवाल अपनी इस जिद से विनोद बंसल का तो कुछ नहीं बिगाड़ पाए हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उन्होंने अपने आप को और छोटा व घटिया साबित कर लिया है ।

Monday, February 11, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में विशाल सिन्हा ने पिकनिक कार्यक्रम के जरिये अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने और 'दिखाने' का काम जोरदार तरीके से किया है

लखनऊ । विशाल सिन्हा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान में लखनऊ में एक बड़ा 'प्रदर्शन' किया । उनके द्धारा आयोजित पिकनिक कार्यक्रम में दो क्लब्स को छोड़ कर लखनऊ के अन्य सभी क्लब्स के लोगों की हुई भागीदारी ने एक उम्मीदवार के रूप में विशाल सिन्हा की सक्रियता और संलग्नता को तो जाहिर किया ही - साथ ही यह 'संदेश' भी दिया कि जरूरत पड़ने पर वह अपने से नाराज और विरोधी लोगों को भी मना सकते हैं और अपने साथ जोड़ सकते हैं । विशाल सिन्हा द्धारा आयोजित पिकनिक कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कई ऐसे प्रमुख लोगों को भी दिलचस्पी के साथ सक्रिय देखा गया जिन्हें विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी के खिलाफ और शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में समझा/पहचाना जाता है । शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों ने हालाँकि यह कहते हुए पिकनिक के प्रभाव को कम करने की कोशिश की है कि पिकनिक में कई क्लब्स के लोगों को तरह-तरह से फुसला कर तथा तरह-तरह के भावनात्मक दबावों से घेर-घार कर इकठ्ठा किया गया - ताकि उन्हें अपने समर्थन में 'दिखाया' जा सके । शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों ने यह तर्क भी दिया है कि विशाल सिन्हा द्धारा आयोजित पिकनिक कार्यक्रम में शामिल होने का मतलब यह नहीं हो जाता है कि पिकनिक कार्यक्रम में जो लोग शामिल हुए वह वोट भी विशाल सिन्हा को ही देंगे ।
विशाल सिन्हा द्धारा आयोजित पिकनिक कार्यक्रम की सफलता की जो व्याख्या विशाल सिन्हा और उनके समर्थक तथा शिव कुमार गुप्ता और उनके समर्थक कर रहे हैं उसे यदि अनदेखा भी करें और उन लोगों की बातों पर ध्यान दें जो अभी किसी भी तरफ नहीं हैं - तो पिकनिक कार्यक्रम की सफलता से विशाल सिन्हा ने यह साबित तो कर ही दिया है कि लोगों को अपने साथ जोड़ने और 'दिखाने' का हुनर उन्हें आता है और अपने इसी हुनर का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में लोगों के भारी जमावड़े को संभव कर दिखाया । यह ठीक है कि पिकनिक कार्यक्रम की जोरदार सफलता के बावजूद एक उम्मीदवार के रूप में उनकी चुनौतियाँ ख़त्म नहीं हो गईं हैं - पिकनिक कार्यक्रम में भूपेश बंसल की अनुपस्थिति ने उनकी चुनौतियों को बरक़रार रखने का ही काम किया है । विद्या शंकर दीक्षित और नीरज बोरा की अनुपस्थिति को तो विशाल सिन्हा और उनके समर्थकों ने यह कह कर तवज्जो नहीं दी कि यह दोनों चूँकि शिव कुमार गुप्ता के क्लब में हैं, इसलिए इन्हें तो इस पिकनिक कार्यक्रम में नहीं ही आना था; लेकिन भूपेश बंसल की अनुपस्थिति को लेकर विशाल सिन्हा के समर्थकों के बीच कुछ निराशा का-सा माहौल था । विशाल सिन्हा ने हालाँकि यह बता कर अपने समर्थकों की निराशा को कम करने का प्रयास किया कि भूपेश बंसल ने उनसे पहले ही कह दिया था कि पिकनिक वाले दिन उन्हें बाहर जाना है, इसलिए उस दिन लखनऊ में न रहने के कारण वह पिकनिक में नहीं आ सकेंगे ।
भूपेश बंसल की अनुपस्थिति के कारण विशाल सिन्हा के 'प्रदर्शन' में जो कमी रह गई, उसे अनुपम बंसल की सक्रियता भरी मौजूदगी ने काफी हद तक भरने का काम किया । भूपेश बंसल के 'तेवरों' से डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी को अनुपम बंसल के समर्थन को लेकर शंकाएँ पैदा होने लगी थीं । यह शंकाएँ दरअसल इसलिए पैदा हो रही थीं, क्योंकि अनुपम बंसल से जब भी कोई उनके फैसले के बारे में पूछता था, तो अनुपम बंसल यह कह कर बच निकलने की कोशिश करते कि 'जैसा भाई साहब कहेंगे' । 'भाई साहब' से उनका आशय भूपेश बंसल से होता । विशाल सिन्हा के समर्थकों के बीच चूँकि 'भाई साहब' की भूमिका ही संदिग्ध थी, इसलिए अनुपम बंसल की भूमिका को लेकर भी संदेह होने लगे । विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन दिखाने के उद्देश्य से आयोजित हुई पिकनिक में अपनी सक्रिय भागीदारी से अनुपम बंसल ने लेकिन सारे संदेहों को दूर कर दिया है और विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी के प्रति अपना समर्थन स्पष्ट कर दिया है । अनुपम बंसल की उपस्थिति के जरिये विशाल सिन्हा और उनके समर्थकों ने लोगों को यह संदेश देने का प्रयास भी किया है कि अब जब अनुपम बंसल उनके पक्ष में खुल कर आ गये हैं, तो आने वाले दिनों में भूपेश बंसल भी उनके साथ ही खड़े दिखेंगे ।
पिकनिक कार्यक्रम के जरिये विशाल सिन्हा ने अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने और दिखाने का जो आयोजन किया है, उससे साफ है कि अपनी 'लड़ाई' को भले ही वह जीता हुआ मान रहे हों, लेकिन फिर भी वह महसूस कर रहे हैं कि उनकी लड़ाई एकतरफा नहीं है और अपनी जीत को सचमुच सुनिश्चित करने के लिए उन्हें लगातार लोगों के बीच रहना होगा और किसी भी कारण से नाराज हो सकने वाले लोगों को अपने साथ जोड़े रखना होगा । पिकनिक कार्यक्रम के जरिये उन्होंने लोगों को अपने साथ दिखाने में अभी तो सफलता पाई है, लेकिन देखना होगा कि इस सफलता को बनाये रखने के लिए वह आगे क्या करते हैं ?
विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई पिकनिक के कुछ जीवंत दृश्य :







Saturday, February 9, 2013

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव चुनावी पंडितों के लिए चौंकाने वाला भी हो सकता है

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी लड़ाई अब पूरी तरह दिल्ली आ गई है और चूँकि इस लड़ाई के सारे खिलाड़ी और प्यादे दिल्ली आ गए हैं, इसलिए इस लड़ाई की सारी तीन-तिकड़में अब यहीं अपने को संभव करने में जुट गई हैं । वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी लड़ाई के दिल्ली में केंद्रित हो जाने के चलते, इस लड़ाई के फिलबक्त सबसे बड़े खिलाड़ी समझे जाने वाले संजीव माहेश्वरी को एक बड़ा फायदा यह हुआ है कि अभी तक परदे के पीछे से उनका समर्थन करने वाले इंस्टीट्यूट के पूर्व अध्यक्ष अमरजीत चोपड़ा अब परदे के आगे आ गए हैं । मौजूदा वाइस प्रेसीडेंट सुबोध कुमार अग्रवाल के समर्थन के कारण संजीव माहेश्वरी की स्थिति पहले से ही अच्छी समझी जा रही है, उसमें अमरजीत चोपड़ा का समर्थन भी जुट जाने से उनके नजदीकियों को उनका कम 'बनता' हुआ दिख रहा है । हालाँकि कुछेक लोगों को लगता है कि सुबोध कुमार अग्रवाल और अमरजीत चोपड़ा का समर्थन संजीव माहेश्वरी के लिए 'बिल्ली के रास्ता काटने वाला काम करेगा' और संजीव माहेश्वरी के लिए भारी पड़ेगा ।
निलेश विकमसे ने इसका फायदा उठाना शुरू कर भी दिया है । उल्लेखनीय है कि निलेश विकमसे को भी वाइस प्रेसीडेंट पद के प्रबल दावेदार के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है, लेकिन संजीव माहेश्वरी की तुलना में उन्हें अभी तक पीछे ही पाया जा रहा था । लेकिन जैसे ही उन्हें भनक लगी है कि सुबोध कुमार अग्रवाल और अमरजीत चोपड़ा के समर्थन के कारण कुछेक लोग संजीव माहेश्वरी से बिदक रहे हैं और विरोधी लोगों ने सुबोध और अमरजीत की न चलने देने का 'फैसला' किया है, निलेश विकमसे उन विरोधी लोगों का समर्थन जुटाने में लग गए हैं । निलेश विकमसे की सक्रियता से संजीव माहेश्वरी के लिए खतरा तो पैदा हुआ है, लेकिन उनकी उम्मीद पंकज जैन की सक्रियता पर टिकी है । संजीव माहेश्वरी के समर्थक मान रहे हैं कि निलेश विकमसे और पंकज जैन के बीच आगे निकलने की जो होड़ है, वह संजीव माहेश्वरी का काम आसान करेगी । सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों के बीच जो समीकरण बनते हुए दिख रहे हैं, उसमें संजीव माहेश्वरी, निलेश विकमसे और पंकज जैन - तीनों को अपनी अपनी जीत नज़र आ रही ।
इन तीनों के अपनी-अपनी जीत के दावों के बावजूद वेंकटेश्वरलु अपनी जीत को लेकर बिलकुल भी चिंतित नहीं दिख रहे हैं । संथानाकृष्णन के उम्मीदवारी से हटने के बाद वेंकटेश्वरलु को अपनी स्थति और भी सुरक्षित दिखने लगी है । वेंकटेश्वरलु की सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच अच्छी स्वीकार्यता है और उनका नाम किसी झगड़े-झंझट में भी नहीं सुना गया है । चरनजोत सिंह नंदा, नवीन गुप्ता और अनुज गोयल सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच अलग-अलग कारणों से बुरी तरह बदनाम होने के बावजूद नाउम्मीद नहीं हैं । उनकी तरफ से तर्क भी सुने जाते हैं कि बदनाम और घटिया आचरण रखने वाले वाले लोग क्या पहले (वाइस) प्रेसीडेंट नहीं बने हैं क्या ? नवीन गुप्ता के लिए तो बहुत ही कन्विंसिंग तर्क चर्चा में है - और वह यह कि उनके पिता एनडी गुप्ता तो बहुत ही बदनाम थे, लेकिन फिर भी वह (वाइस) प्रेसीडेंट बने ही थे न ? इस तरह के तर्कों और बदनामियों वाले सदस्यों के भी वाइस प्रेसीडेंट बनने की कोशिशों के चलते इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव का नजारा खासा दिलचस्प हो गया है ।
इस दिलचस्प नज़ारे में के रघु, संजय अग्रवाल और शिवाजी जावरे भी अपनी-अपनी उम्मीदवारी लेकर सक्रिय हैं । ये तीनों चूँकि अपने-अपने दम पर सक्रिय हैं इसलिए इनकी उम्मीदवारी का ज्यादा हल्ला नहीं है । संजय अग्रवाल और शिवाजी जावरे हमेशा ही अंडर ऐस्टीमेट किये जाने के शिकार बने हैं । नॉर्दर्न रीजन में संजय अग्रवाल और वेस्टर्न रीजन में शिवाजी जावरे को चुनाव में ही घेरने की चौतरफा कोशिश की गई थी और इनके चुनाव जीतने पर ही सवालिया निशान लगाये गए थे, लेकिन यह दोनों अपने अपने रीजन में अच्छे समर्थन के साथ चुनाव जीते । वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में भी - अभी तक लगभग वैसी ही कहानी दोहराई जाती दिख रही है; खिलाड़ी नेताओं का प्रचार इनके पक्ष में नहीं है लेकिन कई लोग हैं जो मान रहे हैं कि जैसा चमत्कार इन्होंने सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में किया वैसा ही चमत्कार यह यहाँ भी कर दें तो आश्चर्य नहीं होगा । जो लोग ऐसा मान रहे हैं उन्होंने ऐसा मानने का कारण यह बताया कि संजय अग्रवाल और शिवाजी जावरे बहुत ही साफ-सुथरे तरीके से अपना अभियान चला रहे हैं और सचमुच इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन के प्रति अपना कंसर्न दिखा/जाता रहे हैं । कई लोगों को लगता है कि इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव चुनावी पंडितों के लिए चौंकाने वाला हो सकता है ।

Monday, February 4, 2013

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद की राह में संजीव माहेश्वरी रूपी काँटे को मनोज फडनिस पहचान तो रहे हैं और 'इस' काँटे को निकालने की तरकीबें भी भिड़ा रहे हैं

नई दिल्ली । मनोज फडनिस को इस बार अपनी 'लॉटरी' लगने का पूरा भरोसा है । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के (वाइस) प्रेसीडेंट चुने जाने को मनोज फडनिस लॉटरी लगने जैसा ही मानते और बताते रहे हैं । हालाँकि इस बार वह पूरी तैयारी के साथ जुटे नज़र आ रहे हैं और 'लॉटरी' को अपने पक्ष में कर लेने का हर संभव उपाय आजमा रहे हैं । मनोज फडनिस कई वर्षों से सेंट्रल काउंसिल में हैं और इस नाते वाइस प्रेसीडेंट के कई चुनावों के बनते-बिगड़ते, बनते-बनते बिगड़ते और अचानक से बनते समीकरणों को उन्होंने बहुत नजदीक से देखा/पहचाना है । वाइस प्रेसीडेंट चुनने वाले 'वोटर' किस किस तरह झांसा देते हैं - मनोज फडनिस इसे भी अच्छी तरह जानते/समझते हैं । देखी/पहचानी/जानी/समझी स्थितियों के बीच मनोज फडनिस ने इस बार मैदान मार लेने की लेकिन अच्छी तैयारी की है । सेंट्रल काउंसिल में उनके साथ रहे सदस्य बताते हैं कि यह 'तैयारी' वह पिछले तीन वर्षों से सुनियोजित तरीके से कर रहे हैं ।
मनोज फडनिस के साथ रहे दूसरे काउंसिल सदस्यों के अनुसार, पिछले वर्षों में मनोज फडनिस ने बिग फोर खेमे में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है । इंस्टीट्यूट की विभिन्न कमेटियों के सदस्य-पदाधिकारियों के रूप में उन्होंने इस तरह की गतिविधियाँ संयोजित कीं जिससे कि बिग फोर खेमे में उन्हें स्वीकार्यता मिले । हालाँकि सेंट्रल काउंसिल में बिग फोर खेमे की नुमाइंदगी करने वाले अपने 'लोग' भी रहे हैं और उनमें से कुछ लगातार वाइस प्रेसीडेंट बनने की लाइन में भी लगे रहे हैं - जाहिर है कि वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए मनोज फडनिस का उनसे सीधा मुकाबला रहा और रहेगा; लेकिन फिर भी मनोज फडनिस ने बिग फोर खेमे में अपनी स्वीकार्यता बनाने की कोशिश की तो इसका कारण उनका यह मानना रहा कि बिग फोर खेमे का समर्थन उन्हें यदि निचली प्राथमिकताओं पर भी मिला तो हो सकता है कि उनका काम बन जाये ।
मनोज फडनिस की इस रणनीति को हालाँकि इस बार के चुनावों ने तगड़ा झटका दिया है । इस बार के चुनावी नतीजों ने सेंट्रल काउंसिल में बिग फोर की आधिकारिक ताकत को घटा दिया है । इससे बिग फोर से मदद मिलने की मनोज फडनिस की उम्मीद की 'मात्रा' काफी घट गई है; लेकिन फिर भी मनोज फडनिस के लिए सौदा कोई बुरा नहीं हुआ है । उन्हें उम्मीद है कि बिग फोर खेमा यदि अपने आधिकारिक प्रतिनिधि को वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने की स्थिति में नहीं होता है तो उसका समर्थन उन्हें मिल सकेगा । मनोज फडनिस को विश्वास है कि बिग फोर के बीच अपनी स्वीकार्यता को बनाने के उन्होंने जो प्रयास लगातार किये हैं, उसका सुफल उन्हें अवश्य ही मिलेगा ।
मनोज फडनिस को इंस्टीट्यूट के मौजूदा वाइस प्रेसीडेंट सुबोध कुमार अग्रवाल की मदद मिलने की भी उम्मीद है । मनोज फडनिस एकेडमीकली स्ट्रांग माने/समझे जाते हैं - जिसे सुबोध कुमार अग्रवाल की बड़ी कमजोरी के रूप में देखा/पहचाना जाता है । सुबोध कुमार अग्रवाल राजनीतिक रूप से तो बहुत पहुँच वाले और तिकड़मी माने जाते हैं, लेकिन एकेडमीकली उनका हाथ जरा तंग माना/समझा जाता है । इसके चलते समझा जाता है कि प्रेसीडेंट के रूप में वह एक ऐसा वाइस प्रेसीडेंट चाहेंगे जो उनकी एकेडमिक कमजोरी को ढँक सके । मनोज फडनिस को लगता है कि यह 'काम' उनसे अच्छा कोई और नहीं कर सकेगा और इसी कारण से उन्हें उम्मीद है कि सुबोध कुमार अग्रवाल वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने में उनकी मदद करेंगे ।
सुबोध कुमार अग्रवाल के भरोसे लेकिन वेस्टर्न रीजन के संजीव माहेश्वरी भी हैं । संजीव माहेश्वरी और सुबोध कुमार अग्रवाल के बीच पिछले वर्षों में काफी नजदीकी देखी गई है और दोनों के बीच कई मामलों में अच्छी ट्यूनिंग रही है । संजीव माहेश्वरी को वाइस प्रेसीडेंट पद के एक गंभीर उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, तो इसका एक बड़ा कारण सुबोध कुमार अग्रवाल के साथ उनकी नजदीकी भी है । संजीव माहेश्वरी रूपी काँटे को मनोज फडनिस पहचान भी रहे हैं और 'इस' काँटे को निकालने की तरकीबें भी भिड़ा रहे हैं - क्योंकि मनोज फडनिस इस बार के मौके को अपने लिए बहुत अनुकूल पा रहे हैं ।