Saturday, April 29, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में 'नो ड्यूज सर्टीफिकेट' को लेकर बहानेबाजी और बकवासबाजी करने की शिव कुमार चौधरी की हरकत से लोगों को डर हुआ है कि उनके द्वारा दिए गए ड्यूज में भी कोई घपला तो नहीं हो गया है ?

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी 'नो ड्यूज सर्टीफिकेट' देने को लेकर पहले बहानेबाजी और फिर बकवासबाजी करने के चक्कर में अपनी फजीहत और करवा बैठे हैं । हालाँकि मामला बड़े सीधे तरीके से निपट सकता था, और वह इस तरह कि जिन क्लब्स के ड्यूज क्लियर हो गए हैं, उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय अपने आप से 'नो ड्यूज सर्टीफिकेट' दे दे - न दे पाया हो, तो क्लब्स के पदाधिकारियों के माँगने पर दे दे, या उन्हें बता दे कि कब तक दे दिया जायेगा । इतने सीधे से मामले में विवाद की और या झगड़े की कोई बात नहीं है । लेकिन शिव कुमार चौधरी ने सीधे से काम को सीधे से करना सीखा ही नहीं है; सीधे से काम में भी बकवासबाजी करने और अपनी बेवकूफी दिखाने को वह अपनी होशियारी समझते हैं । इस मामले में भी उन्होंने ऐसा ही किया । 'नो ड्यूज सर्टीफिकेट' माँगने वालों पर भड़क कर उन्होंने पूछा कि पहले कभी किसी गवर्नर ने यह दिया है क्या ? सीधे तरीके से 'नो ड्यूज सर्टीफिकेट' देने की बजाए शिव कुमार चौधरी भड़क कर पूछ रहे हैं कि इसे लेकर 'इस वर्ष इतनी बेचैनी क्यों ?' क्लब्स के पदाधिकारियों का कहना है कि वह तो इस वर्ष पदाधिकारी बने हैं, उन्हें क्या पता कि पिछले वर्षों में क्या हुआ है; वह तो बस इतना जानते हैं कि उन्होंने सभी ड्यूज दे दिए हैं, तो उन्हें उसकी रसीद और सर्टीफिकेट मिल जाना चाहिए - लायंस इंटरनेशनल के नियमानुसार भी जो उनका अधिकार है ।
नो ड्यूज सर्टीफिकेट को लेकर 'इस वर्ष इतनी बेचैनी क्यों' - जैसा सवाल पूछ कर शिव कुमार चौधरी ने अपने लिए मुसीबतों को और आमंत्रित कर लिया । लोगों का कहना है कि इस 'बेचैनी' के लिए शिव कुमार चौधरी खुद ही जिम्मेदार हैं । दरअसल पहले के किसी गवर्नर पर और चाहें जो आरोप रहे हों, पैसों की ठगी के ऐसे आरोप किसी पर नहीं लगे - जैसे आरोप शिव कुमार चौधरी पर लगते रहे हैं । लायंस क्लब मसूरी के प्रेसीडेंट सतीश अग्रवाल बार-बार शिव कुमार चौधरी से अपने पैसे वापस करने की गुहार लगाते रहे, लेकिन शिव कुमार चौधरी के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी । डिस्ट्रिक्ट में इससे पहले ऐसा नजारा देखने को कभी नहीं मिला । पहले कभी नहीं सुना गया कि किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने आपदा पीड़ितों के लिए मँगवाई गई इमरजेंसी ग्रांट में घपला कर दिया है । पहले कभी यह भी नहीं सुना गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने एमजेएफ के लिए लोगों से पैसे तो ले लिए, लेकिन उक्त पैसे लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन को भेजने की बजाए अपनी जेब में रख लिए । इस तरह की हरकतें डिस्ट्रिक्ट में पहली बार हुईं, और इन हरकतों के चलते शिव कुमार चौधरी की लोगों के बीच भारी बदनामी हुई । पैसों की ठगी और लूट से जुड़ी उनकी हरकतों के कारण ही क्लब्स के पदाधिकारियों को डर रहा कि उनके ड्यूज के पैसे शिव कुमार चौधरी कहीं हड़प न लें, और कहीं उनकी दशा भी लायंस क्लब मसूरी के अध्यक्ष सतीश अग्रवाल जैसी न हो जाए । इसलिए क्लब्स के पदाधिकारी दिए गए ड्यूज की रसीद और 'नो ड्यूज सर्टीफिकेट' माँग रहे हैं, ताकि वह निश्चिन्त हो सकें कि उनके द्वारा दिए ड्यूज उचित जगह पहुँच गए हैं माँगने के बावजूद, 'नो ड्यूज सर्टीफिकेट' देने की बजाए - उसे लेकर बहानेबाजी और बकवासबाजी करने की शिव कुमार चौधरी की हरकत से लोगों के बीच डर और बैठ गया है कि उनके द्वारा दिए गए ड्यूज सही-सलामत उचित जगह पहुँच गए हैं, या दूसरे कई मामलों में किए गए घपलों की तरह शिव कुमार चौधरी ने उनमें भी कोई घपला कर दिया है ?
'नो ड्यूज सर्टीफिकेट' को लेकर डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरर तथा डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी के रवैये ने भी क्लब्स के पदाधिकारियों को चिंतित और परेशान किया । 'नो ड्यूज सर्टीफिकेट' को लेकर लोगों ने डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरर से पूछताछ की, तो उनसे जबाव मिला कि इस बारे में उन्हें कुछ नहीं पता है । डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी से पूछा गया तो उनकी तरफ से टका सा जबाव मिला कि मैं तो पारिवारिक व व्यापारिक कामों में व्यस्त हूँ, इस बारे में डिस्ट्रिक्ट ऑफिस से पूछो । लोगों ने कहा कि यह तो अच्छी बात है कि डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी लायनिज्म की बजाए पारिवारिक व व्यापारिक जिम्मेदारियों को तवज्जो दें; लेकिन लायनिज्म करने के लिए और डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी बनने के लिए किसी ने उनकी खुशामद तो की नहीं थी; उनके पास समय नहीं है, तो यह सब छोड़ क्यों नहीं देते ? लोगों ने कह तो दिया, लेकिन वह भी जानते हैं कि डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी पारिवारिक व व्यापारिक व्यस्तता का वास्ता देकर अपनी जिम्मेदारी से बचते भी रहेंगे और पद पर भी बने रहेंगे । डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरर और डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी के इस रवैये ने 'नो ड्यूज सर्टीफिकेट' के मामले को और उलझा दिया । उलझते मामले पर लोगों ने और सवाल उठाए तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी भड़क उठे - जिसके नतीजे के रूप में खुद उनकी ही और फजीहत हो गई है
नो ड्यूज सर्टीफिकेट को लेकर 'इस वर्ष इतनी बेचैनी क्यों' जैसे उनके सवाल पर लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट को चूँकि पहली बार पैसों की ठगी और लूट करने वाला गवर्नर मिला है, इसलिए 'नो ड्यूज सर्टीफिकेट' को लेकर इस 'बेचैनी' है । देखना दिलचस्प होगा कि इस फजीहत के बाद भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी सीधे तरीके से क्लब्स को 'नो ड्यूज सर्टीफिकेट' दे देंगे, या बहानेबाजी और बकवासबाजी का अपना 'शो' अभी और दिखायेंगे ?

Thursday, April 27, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में जितेंद्र ढींगरा के साथ राजा साबू की तस्वीर में अभिव्यक्त बॉडी-लैंग्वेज ने लोगों को राजा साबू की दयनीय स्थिति पर बातें बनाने का मौका दिया

चंडीगढ़ डिस्ट्रिक्ट को एक राजा की तरह चलाने वाले राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू और - डिस्ट्रिक्ट के इसी राजा की डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, बल्कि पूरे रोटरी समुदाय में फजीहत करने/करवाने वाले जितेंद्र ढींगरा की यह संयुक्त तस्वीर डिस्ट्रिक्ट के लोगों को रोमांचित तो कर ही रही है, साथ ही डिस्ट्रिक्ट के बदलते माहौल को भी बयाँ कर रही है । यूँ तो ऐसी बहुत सी तस्वीरें हैं, जिनमें राजा साबू और जितेंद्र ढींगरा साथ-साथ हैं - लेकिन उन तस्वीरों में और इस तस्वीर में दोनों की जो बॉडी-लैंग्वेज है, उसमें जमीन-आसमान का अंतर है । यह अंतर होना स्वाभाविक भी है । अभी तक दोनों की रोटरी-हैसियत में बड़ा भारी अंतर था, जो अब न सिर्फ काफी घट गया है, बल्कि पलट भी गया है । जितेंद्र ढींगरा कुछ समय पहले तक राजा साबू के गिरोह के एक खाड़कू टाइप कार्यकर्ता हुआ करते थे, जो राजा साबू के दरबारी बने हुए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के दिशा-निर्देश पर अपने जैसे दूसरे कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर राजा साबू के राजा-पने को बनाए रखने का काम करते थे । अपने अहंकार में चूर राजा साबू की दो वर्ष पहले लेकिन मति मारी गई और उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से रोकने के लिए षड्यंत्र रचा - जिसके बाद फिर भीषण संग्राम मचा, जिसमें राजा साबू की तथाकथित महानता के तिनके तिनके ऐसे उड़े कि राजा साबू का सारा राजा-पना हवा हो गया  टीके रूबी से भिड़ने की राजा साबू की एक बेवकूफ़ी ने राजा साबू को ऐसी धूल चटाई कि डिस्ट्रिक्ट और रोटरी समुदाय में व्याप्त राजा साबू का सारा ऑरा (आभामंडल) धूल में मिल गया । पिछले दो वर्षों में चले इस संग्राम के नायक बने जितेंद्र ढींगरा ।
जितेंद्र ढींगरा रोटरी की व्यवस्था में अभी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नामित घोषित हुए हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट में उनकी हैसियत इस पद से बहुत बहुत ऊँची हो गई है - और उनकी यही हैसियत राजा साबू के लिए सीधी चुनौती बन गई है । जितेंद्र ढींगरा की बनी इस हैसियत के सामने राजा साबू की स्थिति इतनी दयनीय हो उठी है, कि हर छोटी से छोटी बात में अपनी टाँग अड़ाए रखने वाले राजा साबू अब बड़ी से बड़ी बात में भी फैसला करने और निर्देश देने से बच रहे हैं । राजा साबू की इस दयनीयता के चलते सीओएल तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवार तय करने का काम डिस्ट्रिक्ट में लटका पड़ा है । राजा साबू की पहले जैसी हैसियत बची रह गई होती, तो राजा साबू का अभी तक इशारा हो गया होता - और कोई न कोई दो पूर्व गवर्नर्स उनकी कृपा पा गए होते । पर बदली हुई स्थिति में राजा साबू के लिए यह फैसला करना मुश्किल हो रहा है - दरअसल वह यह देखना चाहते हैं कि इन दोनों पदों पर जितेंद्र ढींगरा का रवैया क्या है ? मजे की बात यह है कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में अभी जितेंद्र ढींगरा का अपना कोई गुट नहीं है - और इस नाते से वह उक्त पदों के लिए 'अपने' कोई उम्मीदवार लाने की स्थिति में नहीं हैं; इसके बावजूद राजा साबू उनसे डरे हुए हैं, तो इसका कारण यह है कि जितेंद्र ढींगरा कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के बीच के परस्पर विवाद और एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ को उकसा कर मैनेज कर सकते हैं इसलिए राजा साबू अभी यह देख रहे हैं कि जितेंद्र ढींगरा उक्त पदों को लेकर क्या रवैया अपनाते हैं; तो जितेंद्र ढींगरा अभी राजा साबू की पहल का इंतजार कर रहे हैं ।
रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के वरिष्ठ पूर्व प्रेसीडेंट एमपी गुप्ता ने सीओएल की चयन प्रक्रिया में होने वाले नियम-उल्लंघन की तरफ ध्यान दिला कर राजा साबू की मुसीबतों को और बढ़ा दिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा को संबोधित एक पत्र में एमपी गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट बाई-लॉज का वास्ता देकर रेखांकित किया है कि सीओएल के लिए उम्मीदवारों के नाम डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में घोषित किए जाने चाहिए थे, लेकिन जो नहीं किए गए एमपी गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा से पूछा है कि क्या कारण है कि सीओएल के लिए प्रतिनिधि चुनने के मामले में डिस्ट्रिक्ट बाई-लॉज का पालन नहीं किया गया । रमन अनेजा बेचारे इस बात का कोई जबाव ही नहीं दे पा रहे हैं । दरअसल राजा साबू ने डिस्ट्रिक्ट के सारे कामकाज पर अपनी ऐसी पकड़ बनाई हुई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की भूमिका एक कठपुतली से ज्यादा नहीं है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को काम राजा साबू के दिशा-निर्देश पर करना पड़ता है; लेकिन जब बात फँसती है और उससे सवाल पूछा जाता है - तो उसे मुँह छिपाना पड़ता है इसी चक्कर में, पिछले दो वर्षों से राजा साबू की कारस्तानियों को जो चुनौती मिल रही है - उसके चलते दिलीप पटनायक और डेविड हिल्टन को लोगों के बीच भारी फजीहत झेलना पड़ी है, और अब रमन अनेजा के साथ भी यही हो रहा है ।
ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लग रहा है कि राजा साबू अपने आप को तथा 'अपने' गवर्नर को और ज्यादा फजीहत से बचाने के लिए अब जितेंद्र ढींगरा के साथ 'दोस्ती' करना चाहते हैं । राजा साबू भी हालाँकि जान/समझ तो रहे ही होंगे कि जितेंद्र ढींगरा खुद तो उनकी कठपुतली नहीं ही बनेंगे - कठपुतली बनने को तैयार दूसरे गवर्नर्स को भी चैन से नहीं बैठने देंगे, और इसलिए उक्त दूसरे गवर्नर्स भी उनके साथ बगावत कर सकते हैं । जितेंद्र ढींगरा ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह तो बता/समझा ही दिया है कि राजा साबू की जी-हुजूरी में जो रहेगा, वह केवल फजीहत का शिकार होगा और अपनी बदनामी ही करवायेगा । डीसी बंसल ने अपने साथ हुई नाइंसाफी को मुद्दा बना कर अभी जो कानूनी कार्रवाई की है, और प्रवीन चंद्र गोयल ने जिस तरह से अपने वास्तविक वर्ष का ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बनने' के लिए प्रयास करना शुरू किया है - वह राजा साबू की कमजोर होती पकड़ का ही संकेत और सुबूत है अपनी कमजोर होती स्थिति को सँभालने के लिए ही राजा साबू ने पहले तो जितेंद्र ढींगरा के साथ युद्ध-विराम करने का रास्ता अपनाया, और अब वह जितेंद्र  ढींगरा के नजदीक होने और 'दिखने' का प्रयास कर रहे हैं । जितेंद्र ढींगरा के साथ की उनकी तस्वीर में उनकी बॉडी-लैंग्वेज उनके इसी प्रयास की 'चुगली' कर रही है । दरअसल उनकी बॉडी-लैंग्वेज 'पढ़' लेने के कारण ही जितेंद्र ढींगरा के साथ की उनकी इस तस्वीर को लेकर डिस्ट्रिक्ट में जितने मुँह उतनी बातें वाली स्थिति है

Tuesday, April 25, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना के उद्देश्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी उनके ही घनघोर विरोधी तेजपाल खिल्लन अपने सिर लेकर मजाक का विषय बने

नई दिल्ली विनय गर्ग को धोखा देकर तेजपाल खिल्लन ने जिस तरह से विशाल सिन्हा को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनाने की जिम्मेदारी ले ली है, उसे देख/जान कर पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना बहुत खुश हैं । बिना कुछ किए-धरे मल्टीपल की राजनीति में विनोद खन्ना का लक्ष्य पूरा हो रहा है - इसमें उनके लिए खुश होने की बात भी है । विनोद खन्ना के लिए दोहरी खुशी की बात यह है कि उनके लक्ष्य तो पूरे हो ही रहे हैं, उनके लक्ष्य पूरे करने की जिम्मेदारी भी उनके घनघोर विरोधी तेजपाल खिल्लन ने अपने सिर ले ली है । विनोद खन्ना इस बार की मल्टीपल की राजनीति के संदर्भ में सचमुच किस्मत वाले हैं कि उनका घनघोर विरोधी सरेआम बेवकूफ बन रहा है - और अपना काम समझ कर उनका काम कर रहा है । उल्लेखनीय है कि मल्टीपल की राजनीति में विनोद खन्ना के दो लक्ष्य थे - एक तो यह कि उनके अपने डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर विनय गर्ग मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन न बन सकें और मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन का पद उनके खास विशाल सिन्हा को मिले अभी पंद्रह दिन पहले तक विनोद खन्ना के यह लक्ष्य लेकिन पूरे होते हुए नहीं दिख रहे थे । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद पर विनय गर्ग की उम्मीदवारी सबसे मजबूत मानी/पहचानी जा रही थी, और विशाल सिन्हा के लिए कहीं कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी । इसी कारण से, विनय गर्ग का रास्ता रोकने के लिए विनोद खन्ना ने पहले योगेश सोनी और फिर अनिल तुलस्यान को अपने उम्मीदवार के रूप में देखना शुरू किया था । पिछले कुछ दिनों में लेकिन तेजी से हालात बदले हैं, और नई बनी स्थिति में विनय गर्ग के रास्ते से हटने का विनोद खन्ना का एक लक्ष्य तो पूरा हो गया है - जिसे पूरा करने की जिम्मेदारी निभाई मल्टीपल की राजनीति में उनके कट्टर विरोधी तेजपाल खिल्लन ने, और तेजपाल खिल्लन ने ही विशाल सिन्हा को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनाने/बनवाने की जिम्मेदारी ले ली है
तेजपाल खिल्लन ने एक बड़ा काम यह किया है कि विनय गर्ग को रास्ते से हटा देने के बाद भी - विनय गर्ग का साथ देने की कसमें खाने वाले उनके फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह को अपने साथ बनाए रखा है । तेजपाल खिल्लन ने इंद्रजीत सिंह को अगले वर्ष मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन चुनवाने का वायदा किया है । अगले वर्ष क्या होगा, यह तो अगले वर्ष ही पता चलेगा - इस वर्ष लेकिन इंद्रजीत सिंह के लिए भी बिडंवना की बात यह हो गई है कि यदि वह तेजपाल खिल्लन के साथ रहते हैं, तो अपने डिस्ट्रिक्ट में अपने विरोध में चल रहे विनोद खन्ना के लक्ष्य पूरे करने में मददगार बनेंगे तेजपाल खिल्लन ने दीपक राज आनंद का समर्थन जुटा लेने का भी दावा किया है; उनकी तरफ से दावा किया जा रहा है कि दीपक राज आनंद के डिस्ट्रिक्ट की पूर्व गवर्नर किरण सिंह मल्टीपल ट्रेजरर बनना चाहती हैं और इसके लिए दीपक राज आनंद का समर्थन उन्हें दिलवाने के लिए तैयार हैं । दीपक राज आनंद को हालाँकि अनिल तुलस्यान के समर्थन में देखा/पहचाना जा रहा था, लेकिन तेजपाल खिल्लन का दावा है कि किरण सिंह के दबाव में दीपक राज आनंद वही करेंगे - जो वह कहेंगी । तेजपाल खिल्लन को अपना मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन चुनवाने के लिए बाकी जरूरी समर्थन भी जुटा लेने का भरोसा है ।
तेजपाल खिल्लन को लेकिन विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी को समर्थन देने के मामले में अपने कई संभावित साथियों/सहयोगियों के विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है - जिनका कहना है कि अपने ही डिस्ट्रिक्ट के जेसी वर्मा से तो तेजपाल खिल्लन इसलिए नाराज हो गए, क्योंकि वह विनोद खन्ना से जा मिले; लेकिन विशाल सिन्हा को लेकर तो वह सब कुछ जानते/बूझते हुए मक्खी निगलने की तैयारी कर रहे हैं । तेजपाल खिल्लन ने उन्हें बताया है कि विशाल सिन्हा ने उनसे वायदा किया है कि वह विनोद खन्ना के साथ हरगिज हरगिज नहीं जायेंगे । विशाल सिन्हा को जानने वाले लोगों ने तेजपाल खिल्लन को बताया है कि विशाल सिन्हा एक नंबर के झूठे और अवसरवादी व्यक्ति हैं और रंग बदलने में गिरगिट को भी हरा देने में कुशल हैं; विश्वास न हो तो उनके ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर केएस लूथरा से उनकी असलियत पूछ लो - गवर्नर बनने के लिए विशाल सिन्हा को जब केएस लूथरा के समर्थन की जरूरत थी, तब विशाल सिन्हा ने जमकर उनकी खुशामद की; लेकिन गवर्नर बनते ही विशाल सिन्हा ने केएस लूथरा को न सिर्फ अपमानित करना शुरू कर दिया, बल्कि उन्हें लायनिज्म और डिस्ट्रिक्ट से निकलवाने की तैयारी तक शुरू कर दी । कई लोगों ने तेजपाल खिल्लन को चेताया है कि विशाल सिन्हा को समर्थन देना तो साँप को दूध पिलाने जैसा मामला है, जो अंततः विनोद खन्ना के साथ मिल कर आपको ही डसेगा ।
विशाल सिन्हा के मामले में तेजपाल खिल्लन को जिस तरह के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, और विशाल सिन्हा की जैसी जैसी कारस्तानियाँ उन्हें सुनने को मिल रही हैं - उससे तेजपाल खिल्लन को कैसा लग रहा है, यह तो तेजपाल खिल्लन को ही पता होगा; दूसरों को लेकिन यह दिलचस्प नजारा देखने को जरूर मिल रहा है कि तेजपाल खिल्लन कैसे अपने ही जाल में फँस गए हैं, और विनोद खन्ना से 'लड़ने' के नाम पर वह विनोद खन्ना का ही 'काम' करने में लग गए हैं

Monday, April 24, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को धोखा देने की मुकेश अरनेजा की हरकत से डिस्ट्रिक्ट के चुनावी परिदृश्य में हलचल मची

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए आशीष मखीजा की उम्मीदवारी का समर्थन करने का संकेत देकर आलोक गुप्ता को एक बार फिर बीच मँझधार में छोड़ देने का काम किया है । आशीष मखीजा के उम्मीदवार 'बनने' की घटना जिस गुपचुप तरीके से घटित हुई, उससे आभास मिलता है कि मुकेश अरनेजा की इस योजना में सतीश सिंघल भी शामिल हैं । सतीश सिंघल हालाँकि अभी यह भी दिखाने/जताने का प्रयास कर रहे हैं कि आलोक गुप्ता के प्रति उनके मन में बहुत प्यार और सम्मान है - लेकिन इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि राजनीतिक धोखे के तमाम उदाहरण प्यार और सम्मान की ओट में ही घटित हुए हैं । खुद सतीश सिंघल ही मीठी मीठी बातों के जाल में फँसा कर सुभाष जैन के साथ धोखा कर चुके हैं - और इस बात को घटित हुए कोई बहुत समय नहीं बीता है । सहज ही समझा जा सकता है कि सतीश सिंघल यदि सुभाष जैन के साथ रहने की बात करते करते उनके साथ धोखा कर सकते हैं, तो आलोक गुप्ता के प्रति अपना प्यार और सम्मान दिखाते दिखाते धोखा क्यों नहीं कर सकते हैं ? आशीष मखीजा का नाम पेट्स (प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार) के एसोसिएट ट्रेनर के रूप में जिस छिपाछिपी तरीके से जुड़ा - उससे ही संकेत और आभास मिलता है कि मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के साथ धोखा करने के लिए जो जाल बिछाया, उसे बिछवाने में सतीश सिंघल की पूरी पूरी मिलीभगत रही है ।
उल्लेखनीय है कि पेट्स की तैयारी में सतीश सिंघल के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाले खास पदाधिकारियों को भी इस बात की भनक नहीं मिली थी कि आशीष मखीजा के लिए एसोसिएट ट्रेनर जैसा नया पद ईजाद किया जा रहा है । ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में इस तरह के किसी पद की व्यवस्था नहीं है हालाँकि यह कोई बड़ी बात नहीं है - नई बातें, नई चीजें होती ही हैं, होनी भी चाहिएँ; बड़ी बात लेकिन यह है कि आशीष मखीजा के लिए जो नई व्यवस्था हुई, वह गुपचुप तरीके से हुई । सतीश सिंघल के साथ पेट्स की तैयारी में दिन-रात एक करने वाले पदाधिकारियों का कहना रहा है कि सतीश सिंघल वैसे तो छोटी से छोटी बात भी पूछ/बता कर अंजाम देते रहे - लेकिन एसोसिएट ट्रेनर का पद ईजाद करने जैसी बड़ी बात वह ऐन मौके तक 'पिए' रहे; और पेट्स की तैयारी में जुटे लोगों को भी यह बात तब पता चली, जब संबंधित प्रिंटिंग सामग्री इस्तेमाल के लिए उन्हें मिली । सतीश सिंघल की यह भूमिका संकेत और आभास देती है कि आलोक गुप्ता के साथ धोखा करने की मुकेश अरनेजा की योजना में सतीश सिंघल की पूरी मिलीभगत है - वह अभी आलोक गुप्ता को कभी छोटा भाई तो कभी बेटा बता कर उनके साथ जो प्यार और सम्मान दिखा/जता रहे हैं, वह सिर्फ इसलिए कि उन्हें अभी आलोक गुप्ता से अपने काम में मदद लेनी है ।
 कई लोगों को हैरानी है कि आलोक गुप्ता के साथ तो मुकेश अरनेजा के वर्षों से अच्छे संबंध हैं, फिर मुकेश अरनेजा उनके साथ इस तरह से धोखा क्यों कर रहे हैं - और वह भी दूसरी बार । पहली बार, जेके गौड़ के सामने मुसीबत खड़ी करने के उद्देश्य से मुकेश अरनेजा ने पहले तो आलोक गुप्ता को उम्मीदवार बना/बनवा दिया था, लेकिन बाद में फिर वह आलोक गुप्ता को धोखा देकर जेके गौड़ से ही जा मिले थे । लेकिन यह हैरानी उन लोगों को ही हो रही है, जो मुकेश अरनेजा को जानते नहीं हैं - जो लोग उन्हें जानते हैं, उन्हें पता है कि मुकेश अरनेजा संबंधों/रिश्तों को ताश के पत्तों की तरह फेंटते रहते हैं और किसी के साथ भी धोखा कर देते हैं । इससे उन्हें जीवन में हासिल हालाँकि कुछ नहीं हुआ, उलटे नुक्सान ही हुआ है - लेकिन फिर भी वह बाज नहीं आते हैं अपनी हरकतों के चलते वह अपने ही भाई/भतीजों द्वारा अपनी कंपनी से निकाले जा चुके हैं, और रोटरी में अपने क्लब से 'धकेले' जा चुके हैं - इसलिए आलोक गुप्ता के साथ धोखा करने के उनके फैसले से उन्हें जानने वालों को कोई हैरानी नहीं हुई है । लेकिन यह सवाल जरूर लोगों के बीच महत्त्वपूर्ण बना हुआ है, कि मुकेश अरनेजा ने अचानक से आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन से हाथ क्यों खींच लिया है ? 
मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के अनुसार, मुकेश अरनेजा दरअसल आलोक गुप्ता और सतीश सिंघल के बीच बनती दिख रही नजदीकी से परेशान थे । आलोक गुप्ता चूँकि सतीश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट टीम के प्रमुख सदस्य हैं, इसलिए पेट्स और दूसरे कार्यक्रमों की तैयारी के सिलसिले में उनकी सतीश सिंघल के साथ ज्यादा उठ-बैठ रही - जिसे मुकेश अरनेजा ने पसंद नहीं किया; इस बात पर लेकिन वह यदि आलोक गुप्ता का साथ छोड़ते, तो उन्हें सतीश सिंघल का साथ नहीं मिलता । सतीश सिंघल का साथ लेने के लिए मुकेश अरनेजा ने उन्हें उम्मीदवार के रूप में आलोक गुप्ता की कमजोरी की पट्टी पढ़ाई । मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के अनुसार, उन्होंने सतीश सिंघल को समझाया कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी से निपटने के लिए दिल्ली से कोई उम्मीदवार चाहिए होगा, क्योंकि आलोक गुप्ता के जरिए ललित खन्ना से निपटना संभव नहीं होगा । मुकेश अरनेजा ने सतीश सिंघल को यह भी समझाया कि अपने गवर्नर-काल में वह यदि 'अपने' उम्मीदवार को चुनाव नहीं जितवा सके, तो शरत जैन की तरह बड़ी बदनामी होगी । इस तरह की बातों से सतीश सिंघल को फुसलाते हुए मुकेश अरनेजा ने आशीष मखीजा के लिए रास्ता बनाने हेतु सतीश सिंघल को राजी कर लिया मुकेश अरनेजा की इस हरकत से लेकिन एक मजेदार बात यह हुई कि आलोक गुप्ता के प्रति लोगों के बीच हमदर्दी सी पैदा हुई । जो लोग आलोक गुप्ता के साथ नहीं भी देखे/समझे जाते हैं, उन्हें भी आलोक गुप्ता के प्रति सहानुभूति दिखाते/जताते हुआ पाया/सुना जा रहा है । यानि मुकेश अरनेजा का समर्थन आलोक गुप्ता की उतनी मदद नहीं कर पाता, मुकेश अरनेजा द्वारा दिया गया धोखा उनकी जितनी मदद करता हुआ नजर आ रहा है । लोगों से मिल रही इस हमदर्दी को आलोक गुप्ता कैसे बचा कर और बढ़ाने का काम करते हैं - यह देखना दिलचस्प होगा ।

Sunday, April 23, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में फरीदाबाद की एकजुटता और महत्ता का वास्ता देकर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एमएल बिदानी को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाए जाने की माँग पर विनय भाटिया को फरीदाबाद के लोगों से मुँह छिपाते बचना पड़ रहा है

फरीदाबाद । फरीदाबाद के रोटेरियंस की एकजुटता और महत्ता को बनाए रखने का वास्ता देकर फरीदाबाद के एकमात्र पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एमएल बिदानी को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाए जाने की माँग ने विनय भाटिया को बड़ी मुसीबत में फँसा दिया है । दरअसल समझा जाता है कि विनय भाटिया ने विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने का फैसला कर लिया है, और अपने गवर्नर-काल के बारे में उनके साथ विचार-विमर्श भी शुरू कर दिया है । विनय भाटिया के लिए समस्या की बात यह भी हुई है कि पिछले दिनों किसी किसी ने जब कभी एमएल बिदानी के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने की संभावना को लेकर व्यक्तिगत स्तर पर विनय भाटिया से बात की, तो विनय भाटिया ने बड़े ही खराब तरीके से जबाव देते हुए कहा कि एमएल बिदानी बूढ़े हो गए हैं, रोटरी के बारे में उन्हें कुछ पता नहीं है, डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर की जिम्मेदारियाँ सँभालना उनके बस की बात नहीं है । रोटरी में बातें चूँकि छिपती तो हैं नहीं, सो लोगों को जब एमएल बिदानी के बारे में व्यक्त किये गए विनय भाटिया के यह विचार सुनने को मिले - तो लोगों को लगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी विनय भाटिया के दिमाग में चढ़ गई है और वह सिर चढ़ कर बोल रही है । लोगों ने कहा भी कि विनय भाटिया को जब गवर्नर बनना था, तब तो वह एमएल बिदानी के बड़े चक्कर काटा करते थे - और अब वह कह रहे हैं कि एमएल बिदानी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के काबिल नहीं हैं । कुछ लोगों ने चुटकी लेते हुए कहा भी कि ऐसे तो विनय भाटिया भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने लायक नहीं हैं, लेकिन वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनेंगे न ? अब यदि विनय भाटिया डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन सकते हैं, तो एमएल बिदानी भी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बन सकते हैं ।
विनय भाटिया लेकिन डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के मामले में विनोद बंसल के साथ शायद इतना आगे निकल आए हैं, कि अब उनके पास पीछे लौटने का मौका नहीं है । कई लोगों को यह भी लगता है कि विनोद बंसल के लिए भी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनना बहुत जरूरी है, इसलिए वह भी विनय भाटिया को अपनी 'पकड़' से निकलने नहीं देंगे । इस वर्ष होने वाले सीओएल के चुनाव में सुशील खुराना से झटका खाने के बाद विनय भाटिया के गवर्नर-काल का डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनना विनोद बंसल के लिए और भी जरूरी हो गया है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट की व्यवस्था और राजनीति में अपनी उचित जगह पाने और बनाए रखने के लिए विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनना आवश्यक लगता है । कई लोगों का मानना और कहना है कि विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट और रोटरी के लिए जितना कुछ किया है, उसके हिसाब से उन्हें डिस्ट्रिक्ट और रोटरी में उनका उचित 'हक़' नहीं मिला है - बल्कि कुछेक लोगों के ईर्ष्याजनित विरोध का शिकार उन्हें और होना पड़ा है । इस स्थिति ने संभवतः विनोद बंसल को समझा दिया है कि रोटरी में उचित जगह अपने आप नहीं मिलती है, बल्कि लेनी/बनानी पड़ती है । इसीलिए विनय भाटिया के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद का उनके लिए खास महत्त्व है । कुछ लोगों को यह भी लगता है कि विनय भाटिया के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के लिए एमएल बिदानी का नाम उछलवाने के पीछे कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ही हैं, जो विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने से रोकना चाहते हैं ।
विनोद बंसल और विनय भाटिया के बीच जिस तरह की केमिस्ट्री है, उससे विनोद बंसल के विरोधियों को लगा होगा कि वह एमएल बिदानी के नाम का सहारा लेकर ही विनोद बंसल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के रास्ते में रोड़े डाल सकते हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए विनय भाटिया ने ही खासे जोरशोर के साथ फरीदाबाद की एकजुटता और महत्ता का वास्ता दिया था । लेकिन अब जब उसी फरीदाबाद की एकजुटता और महत्ता का वास्ता देकर एमएल बिदानी को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाए जाने की माँग की जा रही है - तो विनय भाटिया मुँह छिपाते बच रहे हैं । इससे फरीदाबाद के लोगों के बीच विनय भाटिया की पोल खुल रही है कि फरीदाबाद की एकजुटता और महत्ता की बात विनय भाटिया के लिए अपना स्वार्थ पूरा करने का एक जरिया भर थी, और अपने स्वार्थ में वह फरीदाबाद की एकजुटता व महत्ता को भूल भी सकते हैं । एमएल बिदानी को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाए जाने की माँग को विनय भाटिया होशियारी से हैंडल भी कर सकते थे, लेकिन एमएल बिदानी की काबिलियत पर सवाल उठा कर विनय भाटिया ने मामले को खुद ही खराब कर लिया है । फरीदाबाद में लोगों को लग रहा है और उनका कहना है कि विनय भाटिया जब एमएल बिदानी जैसे वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को अपमानित कर सकते हैं, तो उससे यह सहज ही समझा जा सकता है कि फरीदाबाद के दूसरे लोगों का फिर वह क्या हाल करेंगे ?

Friday, April 21, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में संजीवा अग्रवाल को मिले करीब 80 क्लब्स के समर्थन-पत्र देख कर सुनील जैन की हालत पस्त; उनकी कोशिश अब सिर्फ यह कि अश्वनी काम्बोज को इतने वोट तो मिल जाएँ, ताकि अगले लायन वर्ष में मुकेश गोयल उन्हें अपना उम्मीदवार बना लें

देहरादून । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में अश्वनी काम्बोज की और उनकी उम्मीदवारी के प्रस्तोता नेता के रूप में सुनील जैन की जैसी जो सक्रियता है, उसके चलते उनके अपने संभावित साथी/समर्थक नेताओं के बीच ही असंतोष पैदा हो रहा है - और उन्हें लग रहा है कि अश्वनी काम्बोज और सुनील जैन अगले लायन वर्ष की तैयारी करते हुए क्रमशः रेखा गुप्ता और एलएम जखवाल से आगे निकलने/होने की 'लड़ाई' लड़ रहे हैं अश्वनी काम्बोज और सुनील जैन की गतिविधियों ने उनके सबसे नजदीकी सहयोगी अनीता गुप्ता तक को सशंकित कर दिया है । अन्य संभावित साथी/समर्थक नेताओं के साथ-साथ अनीता गुप्ता तक की शिकायत है कि एक उम्मीदवार रूप में अश्वनी काम्बोज जो कुछ भी कर रहे हैं, वह पूरी तरह सुनील जैन के दिशा-निर्देशन में कर रहे हैं - और सुनील जैन भी उनसे विचार-विमर्श करने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं । अश्वनी काम्बोज और सुनील जैन के अकेले अकेले 'चलने' के इसी रवैये से उनके ही संभावित साथी/समर्थक नेताओं को लग रहा है कि यह दोनों अगले लायन वर्ष में मुकेश गोयल के साथ जुड़ने की तैयारी कर रहे हैं - और इस तैयारी के तहत इस वर्ष के चुनाव में इतनी 'ताकत' जुटा लेना चाहते हैं, जिससे कि मुकेश गोयल के यहाँ इनकी एंट्री और स्वीकार्यता आसानी से हो जाए । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हो रहे मौजूदा वर्ष के चुनाव में मुकेश गोयल के उम्मीदवार के रूप में संजीवा अग्रवाल को जब करीब 80 क्लब्स का तो खुला समर्थन अभी तक ही मिल गया है, तो मौजूदा वर्ष में तो अश्वनी काम्बोज और सुनील जैन को अपने लिए कहीं कोई उम्मीद बची नहीं दिखती है - इसलिए इस वर्ष की उनकी सक्रियता वास्तव में अगले वर्ष में अपना मौका बनाने को लेकर है  इसके लिए इन्हें डिस्ट्रिक्ट में अपने लिए रेखा गुप्ता और एलएम जखवाल से ज्यादा समर्थन दिखाने की जरूरत है - इस वर्ष के चुनाव में यह यही करने की कोशिश कर रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि सुनील जैन का इस वर्ष मुकेश गोयल से जो अलगाव हुआ, उसके केंद्र में एलएम जखवाल ही हैं । सुनील जैन की चाहत और माँग थी कि मुकेश गोयल देहरादून के नेता के रूप में उन्हें मान्यता दें, मुकेश गोयल ने लेकिन उनकी बजाए एलएम जखवाल पर भरोसा किया । इसी बात से खफा होकर सुनील जैन ने अनीता गुप्ता के साथ मिल कर देहरादून में अलग चूल्हा जला लिया । इस वर्ष के चुनाव में सुनील जैन दिखाना/साबित करना चाहते हैं कि देहरादून क्षेत्र में एलएम जखवाल की तुलना में उनका ज्यादा प्रभाव है, ताकि मुकेश गोयल खेमे की देहरादून की फ्रेंचाइजी उन्हें मिल जाए इसके लिए उन्होंने अश्वनी काम्बोज को उम्मीदवार बना लिया है । उम्मीदवार के रूप में उन्होंने अश्वनी काम्बोज को जो खोज निकाला है, उससे उन्हें एक सहूलियत भी मिल गई है । दरअसल अगले लायन वर्ष में मुकेश गोयल खेमे की तरफ से रेखा गुप्ता के उम्मीदवार होने की चर्चा है । सुनील जैन को लगता है कि रेखा गुप्ता के लिए एक मुकाबले-भरा चुनाव अफोर्ड करना संभव नहीं होगा, इसलिए अश्वनी काम्बोज को इस वर्ष यदि अपेक्षाकृत ठीक ठाक समर्थन मिल जाता है तो मुकेश गोयल पर उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में राजी होने के लिए दबाव बनाया जा सकेगा और उन्हें राजी किया जा सकेगा । इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के बीच संजीवा अग्रवाल को जो जोरदार समर्थन मिलता दिख रहा है, उसके कारण सुनील जैन को इस वर्ष तो अश्वनी काम्बोज के लिए मौका नहीं नजर आ रहा है - और इस वर्ष के लिए वह कोई मौका बनाने की कोशिश करते हुए भी नहीं नजर आ रहे हैं; और इसीलिए उनकी तरफ से मीटिंग्स करने की कोई तैयारी नहीं सुनी गई है; उनकी कोशिश तो सिर्फ छोटा-मोटा ऐसा कुछ करने की है कि अश्वनी काम्बोज की पराजय का अंतर इतना ज्यादा न हो जाए कि अश्वनी काम्बोज के लिए अगले वर्ष का नंबर भी मारा जाए ।
रेखा गुप्ता को पिछले वर्ष मिली करारी हार के कारण इस वर्ष मुकेश गोयल खेमे की उम्मीदवारी नहीं मिल सकने के घटना-चक्र से सबक लेकर ही सुनील जैन ने यह रणनीति बनाई है । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष का चुनाव खत्म होते ही रेखा गुप्ता ने मुकेश गोयल खेमे का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन मुकेश गोयल खेमे ने चूँकि बड़े भारी अंतर से चुनाव जीता था - इसलिए वह इस दबाव में नहीं आए कि उन्हें रेखा गुप्ता से एक बार फिर चुनाव लड़ना पड़ सकता है, और वह संजीवा अग्रवाल को उम्मीदवार के रूप में लाए । पिछले वर्ष के चुनाव में विजेता उम्मीदवार के रूप में विनय मित्तल को 277 वोट मिले थे, जबकि रेखा गुप्ता 107 वोट ही हासिल कर सकीं थीं । सुनील जैन का मानना/समझना और कहना है कि रेखा गुप्ता को यदि 40/50 वोट और मिल गए होते, तो मुकेश गोयल खेमे की तरफ से इस वर्ष संजीवा अग्रवाल को आगे नहीं किया जाता, और रेखा गुप्ता ही उम्मीदवार हो गईं होतीं अश्वनी काम्बोज के साथ ऐसा न हो, इसलिए सुनील जैन उनके लिए डेढ़ सौ वोट जुटाने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं । सुनील जैन को लगता है कि अश्वनी काम्बोज के पक्ष में यदि 150/160 वोट आ जाते हैं, तो एक तो उनके लिए यह दिखाना/जताना संभव हो जायेगा कि उनके अकेले के पास 40/50 वोट की ताकत है - और दूसरे अश्वनी काम्बोज की उम्मीदवारी को अगले लायन वर्ष की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल खेमे में स्वीकार्य कराने का मौका बन जायेगा
सुनील जैन के लिए मुसीबत की बात लेकिन यह हुई है कि उनकी इस सोच और रणनीति को लेकर उनके संभावित साथी/समर्थक नेता ही भड़क गए हैं, उन्हें लगता है कि सुनील जैन उन्हें इस्तेमाल करते हुए अपने लिए मौका बना रहे हैं । सुनील जैन की इस सोच और रणनीति की पोल उनकी खुद की कार्रवाइयों से ही खुल गई है । दरअसल हुआ यह कि सुनील जैन ने संभावित साथी/समर्थक नेताओं को अश्वनी काम्बोज की उम्मीदवारी के संदर्भ में फोन किया तो हर किसी से उन्हें यही सुनने को मिला कि अश्वनी काम्बोज की शक्ल तो दिखवा दो, हम तो उन्हें पहचानते ही नहीं हैं - सुनील जैन ने उन्हें आश्वस्त किया कि अश्वनी काम्बोज जल्दी ही आपसे मिलेंगे । अधिकतर नेताओं की लेकिन शिकायत है कि अश्वनी काम्बोज उनसे मिले ही नहीं हैं । अश्वनी काम्बोज हालाँकि कुछेक जगहों पर गए हैं, और क्लब्स के पदाधिकारियों से मिले हैं तथा उन्हें गिफ्ट सौंप कर आए हैं - लेकिन डिस्ट्रिक्ट के जो बड़े नेता उनके समर्थक हो सकते हैं, उन्हें अभी तक उनकी तरफ से घास भी नहीं पड़ी है बड़े नेताओं को यह और सुनने को मिला है कि सुनील जैन ने अश्वनी काम्बोज को समझा दिया है कि बड़े नेताओं के पास जाओगे, तो वह लंबे-चौड़े खर्चे का हिसाब और बता देंगे, तथा चुनावी मीटिंग्स करने के लिए कहेंगे; इसलिए उनसे दूर ही रहो - उनका समर्थन तो अपने आप ही मिल जायेगा । सुनील जैन का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में कुछ लोग तो ऐसे हैं - जिनसे वोट माँगों/ न माँगों, जिनसे बात करो/न करो, जिन्हें पूछो/न पूछो - वह मुकेश गोयल के विरोधियों को ही वोट देंगे; इसलिए ऐसे लोगों पर समय और पैसा खराब करने का कोई फायदा नहीं है । सुनील जैन के सुझावानुसार ही अश्वनी काम्बोज ने चुनावी मीटिंग्स करने पर ध्यान देने की बजाए ऐसे क्लब्स-पदाधिकारियों पर निशाना साधा है, जो गिफ्ट लेकर ही वोट दे देंगे । अश्वनी काम्बोज और सुनील जैन को विश्वास है कि सिर्फ ऐसा करके वह पिछले वर्ष रेखा गुप्ता को मिले वोटों से ज्यादा वोट प्राप्त कर लेंगे - और यह देख कर अगले लायन वर्ष में मुकेश गोयल उन्हें देहरादून की फ्रेंचाइजी दे देंगे और अश्वनी काम्बोज को उम्मीदवार के रूप में स्वीकार कर लेंगे ।
सुनील जैन की इस रणनीति को फेल करने के लिए एलएम जखवाल तथा रेखा गुप्ता ने भी लेकिन कमर कस ली है । हाल ही के दिनों में रेखा गुप्ता के बॉट्स-ऐप समूहों से निकलने/छोड़ने के जो मामले घटित हुए हैं, उनका संबंध रेखा गुप्ता की सतर्क सक्रियता से जोड़ कर देखा जा रहा है । रेखा गुप्ता की तरफ से प्रयास हैं कि अश्वनी काम्बोज को पिछले वर्ष उन्हें मिले वोटों से भी कम वोट मिलें, ताकि अश्वनी काम्बोज अगले लायन वर्ष में किसी भी रूप में उनके लिए चुनौती न बन सकें ।

Thursday, April 20, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू गिरोह को फूट और फजीहत में फँसाती डीसी बंसल की अदालती कार्रवाई में मधुकर मल्होत्रा को प्रवीन चंद्र गोयल तथा राजा साबू से एकसाथ निपटने का मौका मिलता दिखा है

चंडीगढ़ राजेंद्र उर्फ राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को लेकर मनमानी करने के मामले में पहले तो टीके रूबी के हाथों फजीहत झेलना पड़ी, और अब डीसी बंसल ने उन्हें दिन में तारे दिखा दिए हैं राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की कारस्तानियों के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट प्रवीन चंद्र गोयल और मुसीबत में फँस गए हैं । उन्हें न सिर्फ 21 से 23 अप्रैल के बीच होने वाले प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार और सेक्रेटरीज इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार जैसे अपने महत्त्वपूर्ण आयोजन को स्थगित कर देना पड़ा है - बल्कि उनकी डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी और खतरे में पड़ गई है । उल्लेखनीय है कि प्रवीन चंद्र गोयल बेचारे अच्छे-भले वर्ष 2018-19 के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने गए थे, लेकिन राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने अपनी मनमानी चलाते हुए उन्हें झगड़े में पड़ी वर्ष 2017-18 की गवर्नरी पर ट्रांसफर करवा दिया । प्रवीन चंद्र गोयल ने वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में काम करना शुरू भी कर दिया था - और इसी प्रक्रिया में प्रेसीडेंट्स इलेक्ट व सेक्रेटरीज इलेक्ट के ट्रेनिंग प्रोग्राम की तैयारी की गई थी; लेकिन डीसी बंसल द्वारा शुरू की गई अदालती कार्रवाई के कारण उनके रंग में भंग पड़ गया है - और ठीक एक दिन पहले प्रवीन चंद्र गोयल को उक्त प्रोग्राम को स्थगित कर देना पड़ा है । डीसी बंसल ने वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद पर अपना दावा करते हुए जो अदालती कार्रवाई की है, उसके चलते प्रवीन चंद्र गोयल की गवर्नरी पर खतरा और मंडराने लगा है डिस्ट्रिक्ट में दिलचस्प नजारा यह बना है कि राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने पिछले दो वर्षों से जिन लोगों को तरह तरह की अपनी हरकतों से परेशान किया हुआ था - वह यह तमाशा देख रहे हैं और मजे ले रहे हैं कि राजा साबू और उनके गिरोह के लोग कैसे अपने ही बिछाए जाल में खुद फँस गए हैं ।
राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के लिए रोटरी इंटरनेशनल के प्रमुख पदाधिकारियों के सामने शर्मिंदगी की स्थिति इसलिए और बनी है कि पिछले दो वर्षों से वह उनके सामने जिन डीसी बंसल की पैरोकारी कर रहे थे, उन्हीं डीसी बंसल द्वारा शुरू की गई अदालती कार्रवाई के चलते रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म तथा रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्यों सहित अन्य पदाधिकारियों को अदालती सम्मन जारी हुआ है । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को लेकर की जा रही अपनी मनमानी को सही साबित करने के लिए राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने रोटरी इंटरनेशनल के उच्च पदाधिकारियों को यह बताने/समझाने के लिए पूरा जोर लगाया हुआ था कि टीके रूबी तो डिस्ट्रिक्ट और रोटरी के लिए सही व्यक्ति नहीं हैं, जबकि डीसी बंसल डिस्ट्रिक्ट और रोटरी के आदर्शों और नियम-कानूनों और उसके फैसलों को लागू करने का काम जेनुइनली करने वाले व्यक्ति हैं । ऐसे में, राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के लिए रोटरी इंटरनेशनल के उच्च पदाधिकारियों को अब यह बताना/समझाना मुश्किल और शर्मिंदगीभरा काम होगा कि वह जिन टीके रूबी की बुराई किया करते थे, उन टीके रूबी ने तो रोटरी इंटरनेशनल के फैसले को सम्मान देते हुए स्वीकार कर लिया;  लेकिन वह जिन डीसी बंसल की वकालत कर रहे थे, उन डीसी बंसल ने रोटरी इंटरनेशनल के फैसले को अदालत में चुनौती देने का कदम क्यों उठाया है और क्यों पूरी रोटरी को ही अदालत में घसीट लिया है ?
डीसी बंसल ने रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के उस फैसले को अदालत में चुनौती दी है, जिसके तहत वर्ष 2017-18 के लिए हुए चुनाव में उन्हें विजयी घोषित किए गए तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन के फैसले को रद्द कर दिया गया है । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने के डीसी बंसल के फैसले को राजा साबू के रवैये के प्रति उनकी नाराजगी की अभिव्यक्ति के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है डीसी बंसल के नजदीकियों का कहना है कि डीसी बंसल बहुत ही शांतिप्रिय और रोटरी के आदर्शों का पालन करने वाले व्यक्ति हैं; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की लड़ाई में वह इतने गहरे तक नहीं धँसना चाहते थे - लेकिन राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने अपनी बेशर्म और निर्लज्ज किस्म की हरकतों के चलते उन्हें सब्ज़बाग दिखाए और उन्हें इस्तेमाल करते हुए उक्त लड़ाई को बढ़ाते गए - और जब सब कुछ हार बैठे, तब उन्होंने डीसी बंसल को अकेला छोड़ दिया । डीसी बंसल के नजदीकियों का कहना है कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड का जब फैसला आया था, तब कई लोगों ने अदालती कार्रवाई के लिए उन्हें उकसाया था, लेकिन उस समय डीसी बंसल ने और ज्यादा उकसावे में आने के प्रति दिलचस्पी नहीं दिखाई थी । उसके बाद के दिनों में राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की जो हरकतें रहीं, उससे डीसी बंसल ने लेकिन अपने आप को 'अपने ही लोगों द्वारा' ठगा हुआ महसूस किया । उल्लेखनीय है कि पिछले करीब दो वर्षों में जो तमाशा चला, उसमें डीसी बंसल और टीके रूबी - दोनों ने ही बहुत कुछ खोया और बहुत मानसिक प्रताड़ना झेली और अंततः दोनों को ही कुछ भी हासिल नहीं हुआ । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड का फैसला आने के बाद लेकिन डिस्ट्रिक्ट में जो घटना-चक्र चला उसमें टीके रूबी तो डिस्ट्रिक्ट की व्यवस्था और राजनीति में पुनः जगह पाते/बनाते नजर आए, लेकिन डीसी बंसल एक भूले-बिसरे अध्याय बनते हुए दिखे । यह ठीक है कि वर्ष 2019-20 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर हुई जितेंद्र ढींगरा की चुनावी जीत के कारण टीके रूबी को जल्दी से सक्रिय होने और केंद्रीय भूमिका में आने का अवसर मिला, लेकिन डीसी बंसल के लिए भी मौकों की कोई कमी नहीं थी - प्रवीन चंद्र गोयल की गवर्नरी के साथ उन्हें सम्मानजनक स्थान दिया जा सकता था । राजा साबू और उनके गिरोह के गवर्नर्स ने लेकिन उनके साथ 'यूज एंड थ्रो' वाला रवैया अपनाया, और उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी - लिहाजा डीसी बंसल ने भी बगावती तेवर अपना लिए, और वह अदालत की शरण में जा पहुँचे हैं
डीसी बंसल की इस अदालती कार्रवाई से डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे में नए समीकरण बनने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है । डीसी बंसल की इस कार्रवाई से पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधुकर मल्होत्रा की बाँछे खिल गई हैं - और उन्हें प्रवीन चंद्र गोयल तथा राजा साबू से एक साथ निपटने का मौका मिल गया है । मधुकर मल्होत्रा यूँ तो राजा साबू की आँख का तारा रहे हैं, और पिछले दो वर्षों में जो तमाशा हुआ - उसे राजा साबू के दिशा निर्देशन में उन्होंने ही संयोजित किया हुआ था; जितेंद्र ढींगरा की चुनावी सफलता के साथ भी वह वही खेल खेलना चाहते थे - जो उन्होंने टीके रूबी की चुनावी सफलता के साथ खेला, लेकिन राजा साबू की तरफ से हरी झंडी न मिलने के कारण ऐन मौके पर उन्हें पीछे हटना पड़ा इससे भी बड़ा झटका मधुकर मल्होत्रा को प्रवीन चंद्र गोयल द्वारा डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर नहीं बनाए जाने के कारण लगा - और इसके लिए वह राजा साबू को जिम्मेदार मानते/ठहराते हैं । राजा साबू, मधुकर मल्होत्रा और प्रवीन चंद्र गोयल चूँकि एक ही क्लब में हैं - इसलिए प्रवीन चंद्र गोयल के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद पर मधुकर मल्होत्रा अपना स्वाभाविक हक मान रहे थे, लेकिन डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद मिल गया जेपीएस सिबिया को । इसके चलते डिस्ट्रिक्ट में मधुकर मल्होत्रा की खासी किरकिरी हुई और लोगों के बीच संदेश गया कि राजा साबू के दरबार में मधुकर मल्होत्रा के नंबर घट गए हैं डीसी बंसल की अदालती कार्रवाई से प्रवीन चंद्र गोयल की गवर्नरी पर जो संकट आया है, उसने तो मधुकर मल्होत्रा को प्रफुल्लित किया ही है, साथ ही मधुकर मल्होत्रा को इस उम्मीद से भी भर दिया है कि इस नई बनी परिस्थिति से निपटने के लिए राजा साबू उन्हें फिर से अपने दरबार में पहले जैसी ही हैसियत देने के लिए मजबूर होंगे डीसी बंसल की अदालती कार्रवाई से मधुकर मल्होत्रा की छिपाए न छिप पा रही खुशी को देखते/समझते हुए राजा साबू गिरोह के ही दूसरे कुछेक पूर्व गवर्नर्स तथा अन्य लोगों को तो यह भी शक हो रहा है कि डीसी बंसल की अदालती कार्रवाई के पीछे कहीं मधुकर मल्होत्रा ही तो नहीं हैं ?
इस तरह डीसी बंसल की अदालती कार्रवाई ने राजा साबू गिरोह के बीच ही न सिर्फ बबाल पैदा कर दिया है, बल्कि राजा साबू सहित गिरोह के दूसरे पूर्व गवर्नर्स के लिए भारी फजीहत की स्थिति पैदा कर दी है । यह स्थिति क्या मोड़ और स्वरूप लेगी, यह तो अभी कुछ दिन बाद ही स्पष्ट हो सकेगा - अभी लेकिन यह बात तो साफ हो गई है कि डीसी बंसल की इस कार्रवाई से राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स उसी गड्ढे में खुद गिर पड़े हैं, जिसे उन्होंने दूसरों के लिए खोदा था

Tuesday, April 18, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 से ऑर्च क्लम्प सोसायटी के पहले और अकेले सदस्य बनकर सुभाष जैन ने रोटरी की व्यवस्था में अपने खुद के नंबर तो बनाए/बढ़ाए ही हैं, साथ ही डिस्ट्रिक्ट के सदस्यों को भी गौरवान्वित होने का मौका दिया है

गाजियाबाद । ऑर्च क्लम्प सोसायटी (एकेएस) के नए बने सदस्यों के सम्मान में रोटरी इंटरनेशनल के वरिष्ठ पदाधिकारियों की तरफ से रोटरी इंटरनेशनल के मुख्यालय में आयोजित हुए डिनर में सुभाष जैन की उपस्थिति ने डिस्ट्रिक्ट 3012 के सदस्यों को अनोखे किस्म के गौरव के अहसास से परिचित कराने का काम किया है । सुभाष जैन डिस्ट्रिक्ट 3012 के पहले और अकेले सदस्य हैं, जो ऑर्च क्लम्प सोसायटी के सदस्य बने हैं । उल्लेखनीय है कि रोटरी फाउंडेशन के रचयिता और संस्थापक ऑर्च सी क्लम्प के नाम पर स्थापित ऑर्च क्लम्प सोसायटी की सदस्यता रोटरी फाउंडेशन में ढाई लाख अमेरिकी डॉलर देने वाले व्यक्ति को मिलती है । इस सोसायटी के सदस्य बनने वाले का उसके जीवन साथी के साथ रोटरी इंटरनेशनल के अमेरिका स्थित मुख्यालय में आयोजित होने वाले इंडक्शन समारोह में सम्मान किया जाता है; और उसके परिचय के साथ उसकी और उसके जीवनसाथी की तस्वीर उसी मुख्यालय की अठारहवीं मंजिल पर स्थापित इंटरएक्टिव गैलरी में लगाई जाती है । ऑर्च सी क्लम्प रोटरी इंटरनेशनल के छठे इंटरनेशनल प्रेसीडेंट थे, और उन्होंने ही 1917 में रोटरी फाउंडेशन की स्थापना की थी । इस सोसायटी के दुनिया भर में करीब ढाई सौ सदस्य हैं । सुभाष जैन के साथ, पड़ोसी डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3011 के नवदीप चावला तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश जैन भी इस सोसायटी के सदस्य बने हैं ।
डिस्ट्रिक्ट 3012 से सुभाष जैन के ऑर्च क्लम्प सोसायटी के पहले और अकेले सदस्य बनने के तथ्य का दिलचस्प पहलू यह भी है कि पिछले दो वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में रोटरी फाउंडेशन की जो मीटिंग्स हुई हैं, उनमें ऑर्च क्लम्प सोसायटी का सदस्य बनने की घोषणा करके रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ और दीपक गुप्ता भी तालियाँ बटोर चुके हैं - लेकिन जब सोसायटी का सदस्य बनने के लिए पैसे देने का समय आया - तो यह तीनों ही पीछे हट गए हैं । डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में कई लोग इस तरह की धोखेबाजी करते हैं - तालियाँ बटोरने के लिए पीएचएफ बनने के लिए वह अपना नाम तो दे देते हैं, लेकिन जब उसके लिए पैसे देने की बात आती है तो मुँह छिपाते फिरते हैं; इस तरह की हरकत लेकिन रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ और दीपक गुप्ता जैसे लोग भी कर सकते हैं - और वह भी रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों के सामने, यह किसी ने नहीं सोचा होगा उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3012 को ऑर्च क्लम्प सोसायटी की तरफ जाने वाला रास्ता दिखाने का श्रेय भी सुभाष जैन को ही है । पिछले रोटरी वर्ष में सुभाष जैन ने ही इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता की उपस्थिति में हुए रोटरी फाउंडेशन के आयोजन में ऑर्च क्लम्प सोसायटी की सदस्यता के लिए दिलचस्पी दिखाई थी । रोटरी के बड़े नेताओं की निगाह में चढ़ने के लिए रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ ने भी सुभाष जैन का अनुसरण किया । सुभाष जैन के खिलाफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव लड़ रहे दीपक गुप्ता को भी लगा कि वह भी उक्त सोसायटी का सदस्य बनने की घोषणा कर देंगे, तो चुनाव जीत जायेंगे - लिहाजा उन्होंने भी सुभाष जैन का अनुसरण किया और अपने लिए तालियाँ बजवा लीं । पिछले रोटरी वर्ष में उक्त सोसायटी का सदस्य बनने की घोषणा करने वाले रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ और दीपक गुप्ता के लिए इस वर्ष जब सचमुच पैसे देने का मौका आया - तो यह रोटरी नेताओं व पदाधिकारियों से बचते/छिपते फिरे । दीपक गुप्ता ने तो कुछ ज्यादा ही ड्रामा फैलाया दरअसल पिछले वर्ष की पराजय के चलते वह इतने सदमे में थे कि उन्हें लगा कि ऑर्च क्लम्प सोसायटी का सदस्य बनने के लिए हामी भरने के बाद भी वह यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव नहीं जीत सकते हैं, तो फिर रोटरी में पैसे खर्च करने का क्या फायदा ?
मजे की बात यह है कि ऑर्च क्लम्प सोसायटी का सदस्य बनने के लिए पूरी रकम एक साथ देने की जरूरत भी नहीं है । जरूरत सिर्फ एक एग्रीमेंट करने की है, जिसके तहत तीन वर्ष में रकम पूरी करना होगी । रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ और दीपक गुप्ता लेकिन उक्त एग्रीमेंट करने से भी बचने के लिए भाग खड़े हुए । दिलचस्प बात यह है कि उक्त सोसायटी का सदस्य बनने के लिए जब तालियाँ बजी थीं - तब मंच पर सुभाष जैन के साथ रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ और दीपक गुप्ता भी थे; किंतु उक्त सोसायटी की सदस्यता के लिए एग्रीमेंट करने का मौका आया तो सुभाष जैन अकेले रह गए इसी का नतीजा रहा कि अभी जब रोटरी इंटरनेशनल के शिकागो स्थित मुख्यालय में नए बने सोसायटी सदस्यों के लिए डिनर का आयोजन हुआ, तो उसमें डिस्ट्रिक्ट 3012 से सिर्फ सुभाष जैन ही मौजूद थे । इस प्रसंग में मुकेश अरनेजा का रवैया भी ध्यान देने योग्य है । पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन के रूप में बीच समयावधि में उन्होंने एक सूची जारी की थी, जिसमें उन लोगों के नाम थे जिन्होंने रोटरी फाउंडेशन के लिए घोषणा करने के बावजूद पैसे नहीं दिए थे । पैसे देने का समय बीत नहीं गया था, लेकिन फिर भी मुकेश अरनेजा ने अपनी नीच सोच का परिचय देते हुए उक्त सूची जारी की थी - जिसके पीछे उनका वास्तविक उद्देश्य सुभाष जैन को नीचा दिखाना था; सुभाष जैन के चक्कर में उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के और कई रोटेरियंस को अपमानित करने का प्रयास किया था । लेकिन अब जब उनके 'चेले' दीपक गुप्ता ने रोटरी फाउंडेशन को ठेंगा दिखा दिया है, तो डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन के रूप में मुकेश अरनेजा ने अपने मुँह पर ताला लगा लिया है । इस प्रसंग में मजेदार संयोग यह भी है कि दीपक गुप्ता के साथ रोटरी फाउंडेशन के साथ धोखाधड़ी करने वाले रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ भी रोटरी को मुकेश अरनेजा की ही देन हैं
उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में जब सुभाष जैन ने ऑर्च क्लम्प सोसायटी का सदस्य बनने की घोषणा की थी, तब मुकेश अरनेजा और दीपक गुप्ता ने उनकी इस घोषणा को चुनाव जीतने के उनके एक हथकंडे के रूप में प्रचारित किया था । फिर उन्होंने खुद भी इसी 'हथकंडे' को अपना लिया । लेकिन इसे जब पूरा करने का समय आया, तो मैदान से ही भाग खड़े हुए । सुभाष जैन ने लेकिन दिखाया और साबित किया कि उक्त सोसायटी का सदस्य बनने की उनकी घोषणा उनका कोई हथकंडा नहीं था, बल्कि रोटरी के लिए ईमानदारी और गहरी संलग्नता के साथ कुछ बड़ा करने के ज़ज्बे की अभिव्यक्ति था - जिसे उन्होंने पूरी ईमानदारी से निभाया और पूरा किया है इस तरह डिस्ट्रिक्ट 3012 के इतिहास में सुभाष जैन ने एक नई इबारत लिखी है, उन्होंने सिर्फ एक रिकॉर्ड ही नहीं बनाया है - उन्होंने लोगों के बीच कुछ अलग, कुछ खास करने का हौंसला पैदा किया है, उन्होंने दिखाया है कि पुराने ढर्रे पर या पुरानी लीक पर चलने की बजाये नए नए तरीकों से लोगों को प्रेरित किया जा सकता है, नए नए क्षेत्रों में संभावनाएँ तलाशी जा सकती हैं, और सचमुच ऐसा कुछ किया जा सकता है जिसके बारे में दूसरों ने कभी सोचा भी न हो । सुभाष जैन ने जो किया है - उससे रोटरी की व्यवस्था में उनके खुद के नंबर तो बने/बढ़े ही हैं, साथ ही डिस्ट्रिक्ट के सदस्यों को भी गौरवान्वित होने का मौका मिला है । इसीलिए सुभाष जैन की यह उपलब्धि सिर्फ एक रिकॉर्ड भर नहीं हैं - बल्कि उससे कहीं ऊँची और बड़ी बात है ।

Monday, April 17, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में जेपी सिंह और गुरचरण सिंह भोला के सामने बने पराजय के जिम्मेदार कारण ही विनय गर्ग के लिए मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की चुनावी राजनीति में भी मुसीबत बनेंगे क्या ?

पानीपत । जेपी सिंह और गुरचरण सिंह भोला की चुनावी जीत ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए विनय गर्ग की उम्मीदवारी को खतरे में डाल दिया है यूँ तो जेपी सिंह और गुरचरण सिंह भोला की मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव में कोई निर्णायक भूमिका नहीं है, लेकिन फिर भी इनकी चुनावी जीत यदि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए विनय गर्ग की उम्मीदवारी के लिए खतरे की घंटी बजाती 'सुनी' जा रही है तो इसका कारण यह है कि - जेपी सिंह और गुरचरण सिंह भोला की चुनावी जीत वास्तव में विनय गर्ग और उनके साथियों की 'चुनावी रणनीति' की हार की कहानी कह रही है - जो मल्टीपल की चुनावी राजनीति में दोहराती दिख रही है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की सत्ता पूरी तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनय गर्ग और उनके साथियों के हाथ में थी और पिछले वर्ष मिले झटके के कारण जेपी सिंह पूरी तरह पस्त थे; सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जेपी सिंह खेमे की तरफ से जिन गुरचरण सिंह भोला को उम्मीदवार बनाया गया, उनका लायनिज्म में ज्यादा कोई परिचय और अनुभव नहीं था - इसके बावजूद विनय गर्ग और उनके साथियों को पराजय का सामना करना पड़ा, जो इस बात का सुबूत है कि उनकी चुनावी रणनीति पूरी तरह फेल रही । ऐसे में, लोगों को लग रहा है कि विनय गर्ग और उनके साथी जब डिस्ट्रिक्ट में हर तरह से अनुकूल समझे जा रहे चुनाव को 'मैनेज' करने में असफल रहे हैं, तो मल्टीपल के थोड़े ट्रिकी समझे जाने वाले चुनाव को वह कैसे संभाल सकेंगे और कैसे मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बन सकेंगे ?
विनय गर्ग और उनके साथियों को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जो तगड़ा झटका लगा है, वह वास्तव में नकारात्मक सोच पर पूरी तरह निर्भर रहने के साथ-साथ उनके बीच तालमेल के अभाव और उनके अति-विश्वास का नतीजा है । उन्होंने अपने प्रचार-अभियान में सिर्फ जेपी सिंह और गुरचरण सिंह भोला की कमजोरियों को निशाना बनाया; उन्होंने अपने उम्मीदवारों की कमजोरियों पर कोई ध्यान नहीं दिया - उन्होंने इस बात पर भी गौर नहीं किया कि जेपी सिंह और गुरचरण सिंह भोला किस तरह से अपनी अपनी कमजोरियों को दूर करने तथा अपनी अपनी खूबियों से उन्हें ढँकने का प्रयास कर रहे हैं । विनय गर्ग और उनके साथियों पर नकारात्मक सोच इस हद तक हावी थी कि पिछले वर्ष उनके साथ रहे जो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तथा हाल ही तक साथ रहे जो 'फ्यूचर' डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उनका साथ छोड़ रहे थे, उन्हें अपने साथ बनाए रखने की कोशिश करने की बजाए - वह उन पर 'बिकने' का आरोप लगाने लगे थे । तालमेल का अभाव कई मौकों पर सामने आया, लेकिन उससे उन्होंने कोई सबक नहीं लिया । यह सब इसलिए भी हुआ, क्योंकि विनय गर्ग और उनके साथी अति-विश्वास का बुरी तरह शिकार थे । पिछले एक महीने में गुरचरण सिंह भोला के प्रचार अभियान ने जो रफ्तार पकड़ी थी, और जिसके कारण उन्हें दिल्ली और हरियाणा दोनों जगह समर्थन मिलता और बढ़ता नजर आ रहा था - वह विनय गर्ग और उनके साथियों को 'दिखा' ही नहीं, और चुनाव के पहले तक वह खतरे को भाँप ही नहीं पाए और यशपाल अरोड़ा को सौ वोटों से जीता हुआ घोषित कर रहे थे ।
विनय गर्ग और उनके साथियों ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जो मात खाई, उसे चूँकि उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता के नतीजे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है - इसीलिए विनय गर्ग से हमदर्दी रखने वाले लोगों को डर हुआ है कि इसी अपरिपक्वता के चलते विनय गर्ग कहीं मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन का मिलता दिख रहा पद न गवाँ दें । जिस तरह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को ताकत देने वाले सारे तत्त्व विनय गर्ग और उनके साथियों के हाथ में थे, ठीक उसी तरह से मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए सारी अनुकूलता विनय गर्ग के पक्ष में दिखाई दे रही है - लेकिन जो गलतियाँ उनसे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में हुई हैं, ठीक वही गलतियाँ वह मल्टीपल की राजनीति में करते देखे जा रहे हैं । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की राजनीति में संभावित समर्थकों को अपने साथ रखने की विनय गर्ग की तरफ से कोई कोशिश ही नहीं हो रही है, और उन्होंने सारा दारोमदार तेजपाल खिल्लन पर छोड़ दिया है - जो सिर्फ इस बात पर भरोसा किए बैठे हैं कि विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चूँकि लीडरशिप के खिलाफ हैं, इसलिए उनके वोट उन्हें अपने आप ही मिल जायेंगे । सच जबकि यह है किसी भी चुनावी राजनीति में अपने आप कुछ नहीं होता है । स्थितियाँ यदि अनुकूल होती भी हैं, तो उन अनुकूल स्थितियों को समर्थन में बदलने के लिए प्रयत्न करना होता है । तेजपाल खिल्लन का रवैया मल्टीपल की राजनीति में संभावित सहयोगियों को लेकिन एक-दूसरे के सामने नीचा दिखाने और उन्हें अपमानित करने वाला है ।
तेजपाल खिल्लन ने अपने डिस्ट्रिक्ट की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जितेंद्र चौहान की ठीक उसी अंदाज में बेइज्जती की, जैसी कि उन्होंने पिछले दिनों जितेंद्र चौहान के सामने मुकेश गोयल की - की थी । पिछले दिनों एक मौके पर इकट्ठा हुए तेजपाल खिल्लन, जितेंद्र चौहान के साथ मुकेश गोयल से मिलने उनके कमरे में आए और उन्हें खुश करने वाली बातें कीं - लौटते समय लेकिन वह जितेंद्र चौहान से बोले कि 'मुकेश को ठीक बना दिया न' । तेजपाल खिल्लन से यह सुन कर जितेंद्र चौहान भौंचक तो हुए, लेकिन चुप रह गए । यह बात उन्हें लेकिन अभी तब याद आई, जब तेजपाल खिल्लन के डिस्ट्रिक्ट की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में वह मुकेश गोयल की तरह से ही तेजपाल खिल्लन के शिकार बने । अपने डिस्ट्रिक्ट की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में तेजपाल खिल्लन ने परिस्थितियोंवश 'मजबूर' होकर जितेंद्र चौहान को मुख्य अतिथि तो बना दिया, लेकिन उनकी पीठ पीछे कई लोगों से उन्होंने पूछने के अंदाज में कहा कि 'जितेंद्र तो सेट हो गया है न' । लायनिज्म में बातें छिपती तो हैं नहीं, सो जितेंद्र चौहान तक बात पहुँच ही गई । उन्होंने यह सुना तो उन्हें मुकेश गोयल के साथ किया गया तेजपाल खिल्लन का व्यवहार याद आ गया और फिर उन्होंने उक्त किस्सा लोगों को सुनाया । इस तरह की हरकतों से तेजपाल खिल्लन मल्टीपल में नेतागिरी कर सकेंगे - इसमें लोगों को शक है । लोगों के बीच यह चर्चा पहले से ही है कि मल्टीपल की राजनीति में तेजपाल खिल्लन की दिलचस्पी सिर्फ इसलिए है ताकि उनका धंधा ठीक से चलता रहे और बढ़े ।
ऐसे में, तेजपाल खिल्लन पर निर्भरता विनय गर्ग के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है । मल्टीपल की इस वर्ष की चुनावी राजनीति में तेजपाल खिल्लन, मुकेश गोयल, जितेंद्र चौहान, केएस लूथरा आदि की निर्णायक भूमिका देखी जा रही है - इनके बीच लेकिन तालमेल और परस्पर विश्वास का नितांत अभाव है । इसके चलते मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव को लेकर इनकी तरफ से कोई कारगर रणनीति ही नहीं बन पा रही है । इसका फायदा उठाते हुए अनिल तुलस्यान ने इनके बीच अपने लिए समर्थन तलाशने/बनाने का काम शुरू कर दिया है । समस्या की और आलोचना की बात यह है कि विनय गर्ग इस सारे घटनाचक्र से या तो अनजान बने हुए हैं, और या देखते हुए भी इसके पीछे छिपे खतरे को समझ नहीं पा रहे हैं - और अपनी तरफ से कोई प्रयत्न करते हुए नहीं दिख रहे हैं । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव में पर्दे के सामने और पर्दे के पीछे से भूमिका निभाने वाले लोगों की मुख्य शिकायत यही है कि विनय गर्ग अपनी उम्मीदवारी को लेकर खुद ही गंभीर नहीं हैं । इस तरह, विनय गर्ग के लिए ठीक डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति जैसे ही हालात हैं : डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में स्थितियाँ पूरी तरह अनुकूल होने के बावजूद विनय गर्ग और उनके साथियों ने सब कुछ खो दिया; मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए परिस्थितियाँ पूरी तरह विनय गर्ग के अनुकूल हैं - लेकिन यहाँ भी वह उन्हीं गलतियों और कमजोरियों का शिकार बनते नजर आ रहे हैं ।

Sunday, April 16, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में सीओएल के चुनाव में रूपक जैन के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर रहे केके गुप्ता की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने से रूपक जैन पर सम्मानस्वरूप उम्मीदवारी छोड़ने के लिए नैतिक दबाव बना

नई दिल्ली । केके गुप्ता ने सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिस्लेशन) के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करके रूपक जैन के सामने एक बड़ा नैतिक संकट पैदा करके उनके लिए अच्छी-खासी मुसीबत खड़ी कर दी है दरअसल रूपक जैन को मुकेश अरनेजा ने सीओएल के लिए उम्मीदवार बनाया हुआ है - कई लोगों ने मुकेश अरनेजा से कहा भी कि रूपक जैन की डिस्ट्रिक्ट में कोई सक्रियता नहीं है; पिछले कुछ वर्षों में रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में जुड़े लोगों को न वह जानते/पहचानते हैं और न लोग उन्हें जानते/पहचानते हैं; इस नाते से रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में जो नई चुनौतियाँ पैदा हुई हैं, उन्हें भी रूपक जैन समझते/पहचानते नहीं होंगे, इसलिए सीओएल में जाकर वह आखिर करेंगे क्या ? लेकिन मुकेश अरनेजा तो मुकेश अरनेजा हैं, उन्हें रोटरी से और डिस्ट्रिक्ट से क्या, उन्हें तो सिर्फ इससे मतलब है कि वह तय करेंगे कि कौन कहाँ जायेगा - सो, उन्होंने तय कर दिया कि रूपक जैन सीओएल में जायेंगे । उन्होंने तो रूपक जैन से कह भी दिया कि अमेरिका जाने के लिए अपना सामान बाँध लो - हो सकता है कि मुकेश अरनेजा की बातों में आकर रूपक जैन ने सामान बाँध भी लिया हो मुकेश अरनेजा ने उन्हें आश्वस्त किया था कि बिना किसी प्रयास के, घर बैठे बैठे ही उनका मुफ्त में अमेरिका जाने का जुगाड़ हो जायेगा । केके गुप्ता की उम्मीदवारी आने से मुकेश अरनेजा और रूपक जैन की यह योजना तो ध्वस्त हो गई है कि वह बिना कोई प्रयास किए, घर बैठे बैठे ही अमेरिका का टिकट प्राप्त कर लेंगे
केके गुप्ता की उम्मीदवारी ने रूपक जैन के लिए एक बड़ा नैतिक संकट भी खड़ा कर दिया है
। दरअसल केके गुप्ता करीब बीस वर्ष पहले रूपक जैन के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर थे । रूपक जैन के सामने नैतिक संकट के रूप में यह सवाल आ खड़ा हुआ है कि अपनी गवर्नरी को ठीक से चलाने के लिए उन्होंने जिन केके गुप्ता पर भरोसा करते हुए उनकी मदद लेने के लिए उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया था, क्या अब उन्हीं केके गुप्ता के सामने उन्हें अपनी उम्मीदवारी बनाए रखनी चाहिए ? लोगों का मानना और कहना है कि इस तथ्य के प्रति कि केके गुप्ता उनके गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर रहे हैं - आभार और सम्मान व्यक्त करते हुए रूपक जैन को सीओएल पद की अपनी उम्मीदवारी छोड़ देना चाहिए
यूँ भी रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में केके गुप्ता की सक्रियता का जो रिकॉर्ड है, रूपक जैन उसके सामने कहीं नहीं ठहरते/टिकते ! डिस्ट्रिक्ट और जोन में तो विभिन्न भूमिकाओं में केके गुप्ता की सक्रियता रही ही है; वह दो बार इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के प्रतिनिधि के रूप में दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में जाने के लिए भी चुने गए हैं, और रोटरी फाउंडेशन (इंडिया) के कई वर्षों तक सेक्रेटरी भी रहे हैं इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में ओपी वैश्य को वर्ष 1999 में जब रोटरी जोन इंस्टीट्यूट का आयोजन करना था, तब उन्होंने उक्त इंस्टीट्यूट के चेयरमैन के रूप में केके गुप्ता को ही चुना था
बात सिर्फ महत्त्वपूर्ण पदों पर रहने की ही नहीं है, महत्त्वपूर्ण बात यह है कि केके गुप्ता ने रोटरी में अपनी सक्रियता में निरंतरता बनाए रखी है - और
पच्चीस वर्ष पहले, वर्ष 1992-93 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे केके गुप्ता अपनी वरिष्ठता की गरिमा के साथ आज भी रोटरी की मुख्य धारा में सक्रिय हैं - जिसका उदाहरण और सुबूत दुबई में आयोजित हुई पिछली रोटरी जोन इंस्टीट्यूट में उनका शामिल होना है
उल्लेखनीय है कि रोटरी जोन इंस्टीट्यूट में वही (वरिष्ठ) रोटेरियंस शामिल होते हैं, जिन्हें रोटरी के प्रति सचमुच का लगाव होता है और जो रोटरी के लिए वास्तव में कुछ करना चाहते हैं । प्रसंगवश बता दें कि उक्त रोटरी जोन इंस्टीट्यूट में न मुकेश अरनेजा शामिल हुए थे, और न रूपक जैन ने उसमें शामिल होने की जरूरत समझी थी हाँ, सीओएल सदस्य के रूप में मुफ्त में अमेरिका जाने का मौका लेने के लिए रूपक जैन खुशी से तैयार हो गए हैं । गौर करने वाली बात है कि केके गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के चार वर्ष बाद ही रूपक जैन भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने थे - बाद के वर्षों में लेकिन रूपक जैन अपनी ऐसी कोई सक्रियता नहीं दिखा सके, जो दूसरों को प्रेरित या प्रभावित कर सके
। यही कारण है कि रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में उनकी पहचान 'मुकेश अरनेजा के आदमी' के रूप में है - जबकि मुकेश अरनेजा उनके ग्यारह वर्ष बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने हैं । वरिष्ठता के क्रम के अनुसार, मुकेश अरनेजा को उनका 'आदमी' होना चाहिए था - लेकिन चूँकि वरिष्ठ होने के बावजूद उन्होंने रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में कुछ किया ही नहीं, इसलिए हो उल्टा गया और वह मुकेश अरनेजा के 'आदमी' हो कर रह गए
रूपक जैन के विपरीत, केके गुप्ता को रोटरी में अपनी संलग्नता और सक्रियता की निरंतरता को बनाए रखने के कारण ही - रोटरी समुदाय और डिस्ट्रिक्ट में रोटरी की गहरी जानकारी रखने वाले तथा रोटरी व डिस्ट्रिक्ट के उत्थान के लिए हमेशा तत्पर रहने वरिष्ठ रोटेरियन के रूप में जाना/पहचाना जाता है । केके गुप्ता की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने से डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगा है कि सीओएल के लिए केके गुप्ता ही उचित रूप से प्रतिनिधित्व कर सकेंगे - और सीओएल में उनकी उपस्थिति से रोटरी को तो जो लाभ होगा, वह होगा ही - साथ ही डिस्ट्रिक्ट की पहचान और प्रतिष्ठा में भी इजाफा होगा केके गुप्ता वरिष्ठ होने के साथ-साथ चूँकि लगातार रोटरी में अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं, इसलिए समाज के बदलते स्वरूप के साथ-साथ रोटरी में जो बदलाव आ रहे हैं या आने चाहिएँ - उन्हें भी वह अच्छी तरह जान/समझ रहे हैं, और इसलिए वह सीओएल की मीटिंग में अच्छे और व्यावहारिक सुझाव दे सकेंगे । रूपक जैन तो सीओएल की मीटिंग में शामिल होने को बस एक पिकनिक के रूप में ही देख/मना सकेंगे - इससे न तो रोटरी का ही भला होगा, और न ही डिस्ट्रिक्ट की छवि में कुछ जुड़ेगा डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लग रहा है कि रूपक जैन सीओएल के लिए अपनी उम्मीदवारी को सिर्फ मुकेश अरनेजा की खुश्की पूरी करने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं - इस बात से लोगों को हैरानी भी हो रही है कि वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के बावजूद रूपक जैन आखिर क्यों मुकेश अरनेजा जैसे व्यक्ति की कठपुतली बने हुए हैं, और उन केके गुप्ता के सामने उम्मीदवार बने रहने की जिद ठाने हुए हैं - जिन्हें उन्होंने अपने गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया था

Friday, April 14, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की जगह बदलने को लेकर सौदेबाजी करने के लिए मीटिंग बुलाई

गाजियाबाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी की नस नस को लोग इतना पहचान गए हैं कि उन्होंने जब डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस लेह में करने की विधिवत घोषणा की थी, तब हर कोई यही कह/बता रहा था कि शिव कुमार चौधरी को कॉन्फ्रेंस सचमुच लेह में करना नहीं है - वह तो चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को ब्लैकमेल करने के लिए, उनसे पैसे ऐंठने के लिए अभी लेह का नाम दे रहे हैं, बाद में वह कॉन्फ्रेंस की जगह बदल देंगे लोगों का कहा/बताया सच हो रहा है । शिव कुमार चौधरी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की जगह बदलने के बाबत मीटिंग करने जा रहे हैं । इसके लिए उन्होंने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ-साथ कुछेक अन्य लोगों की मांग का हवाला दिया है । लोग उनके नाटक को समझ रहे हैं - दूसरों की माँग का उन्हें यदि सचमुच ख्याल होता, तो वह लेह में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करने की घोषणा ही नहीं करते । उल्लेखनीय है कि विधिवत घोषणा करने से बहुत पहले से ही शिव कुमार चौधरी लेह में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करने की बात कह रहे थे, और हर कोई कह/बता रहा था कि लेह में कॉन्फ्रेंस करना बहुत ही अव्यावहारिक है - शिव कुमार चौधरी ने लेकिन किसी की नहीं 'सुनी' । 'सुनी' इसीलिए नहीं, क्योंकि वह भी जानते ही थे कि अव्यावहारिक है - लेकिन उन्हें कौन सचमुच लेह में कॉन्फ्रेंस करना थी, उन्हें तो लेह में कॉन्फ्रेंस करने की घोषणा करके उम्मीदवारों से पैसे ऐंठने की जमीन तैयार करना थी । डिस्ट्रिक्ट की तीसरी कैबिनेट मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के बारे में और सभी मुद्दे डिस्कस करते हुए जगह की बात को शिव कुमार चौधरी ने बाद के लिए टाल दिया था, क्योंकि उन्हें पता था कि वह लेह का नाम लेंगे तो उसका विरोध होगा - और तब यदि वह लेह का नाम पास नहीं करवा सके, तो उम्मीदवारों को ब्लैकमेल करने का मौका उनसे छिन जायेगा । उनके इस व्यवहार से साबित है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की जगह को लेकर दूसरे लोगों की राय और सुझावों की उन्हें कभी भी परवाह नहीं थी, लेकिन अब यदि वह दूसरों की माँग का हवाला देकर जगह बदलने के लिए मीटिंग करने जा रहे हैं तो इसलिए कि उन्हें लग रहा है कि अब जगह बदलने के ऐवज में उम्मीदवारों से पैसे ऐंठने का उचित समय आ गया है
शिव कुमार चौधरी के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि लेह में कॉन्फ्रेंस के मामले में उन्हें अनीता गुप्ता तथा सुनील जैन से भी धोखा मिला । इन्होंने उन्हें आश्वस्त किया था कि ये अपने उम्मीदवार से उन्हें पैसे दिलवा देंगे, लेकिन अब ये दोनों ही अपने ही दिए आश्वासन को पूरा करने से बचने के लिए बहानेबाजी कर रहे हैं । इनके नजदीकियों के अनुसार, मामला वास्तव में इस बात पर बिगड़ा हुआ है कि शिव कुमार चौधरी चाहते हैं कि खर्चे के नाम पर पैसे उन्हें दे दिए जाएँ; अनीता गुप्ता और सुनील जैन का कहना है कि बताओ खर्चा कहाँ करना हैं - खर्च हम करेंगे । शिव कुमार चौधरी की पैसों के मामले में दरअसल इतनी कुख्याति है कि अनीता गुप्ता और सुनील जैन को डर है कि उन्होंने पैसे यदि शिव कुमार चौधरी को दे दिए - तो फिर उनका कोई भरोसा नहीं कि वह काम भी करेंगे या नहीं  इसी अविश्वास के चलते शिव कुमार चौधरी फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय सिंघल से बात करने को मजबूर हुए कि - बताओ क्या करना है ? अजय सिंघल चाहते ही थे कि शिव कुमार चौधरी बात करने को तो तैयार हों - और इस तरह मीटिंग करने के लिए जरूरत और भूमिका बन गई ।
शिव कुमार चौधरी दरअसल इस गलतफहमी में हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते वह जैसे जो चाहेंगे, वह कर लेंगे । जानकारों का कहना है कि शिव कुमार चौधरी के साथ समस्या यह है कि न तो उन्हें ज्यादा कुछ पता है, न वह पता करने की जरूरत समझते हैं - 'कोढ़ में खाज' वाली बात यह हुई कि उन्हें सलाहकार भी मूर्ख किस्म के मिल गए, जो उन्हें उल्टी-सीधी पट्टी पढ़ाते हुए उनसे मूर्खतापूर्ण फैसले करवाते हैं, और उनकी फजीहत करवाते हैं । मूर्ख किस्म के सलाहकारों की सलाह पर ही शिव कुमार चौधरी ने लेह में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की घोषणा कर दी, लेकिन जब उन्होंने देखा/पाया कि इससे उन्होंने जो कमाई करने की सोची थी, वह कमाई होना तो दूर की बात - उनकी फजीहत के लिए मौका और बन रहा है, तो अब वह जगह बदलने के लिए सौदेबाजी पर उतर आए हैं अनीता गुप्ता और सुनील जैन की तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि शिव कुमार चौधरी ने उनसे कहा है कि जहाँ कहो वहाँ कॉन्फ्रेंस की घोषणा कर देता हूँ; शिव कुमार चौधरी ने अपनी तरफ से ऑफर भी दिया है कि चाहो तो सुनील जैन के इंस्टीट्यूट में कॉन्फ्रेंस करवा लो, वहाँ व्यवस्था में उनके ही लोग होंगे - जिनकी मदद से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में मनमाफिक 'फैसला' करवाना आसान हो जायेगा; लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की रिपोर्ट को ही स्वीकार करेगा । अनीता गुप्ता और सुनील जैन को ऑफर आकर्षक तो लग रहा है, लेकिन मामला पैसों को लेकर अटका हुआ है । चर्चा है कि इस ऑफर को संभव करने की जो कीमत शिव कुमार चौधरी माँग रहे हैं, उस कीमत के लिए अनीता गुप्ता और सुनील जैन अपने उम्मीदवार को राजी नहीं कर पा रहे हैं इसके आलावा विश्वास का भी संकट है - अनीता गुप्ता और सुनील जैन, शिव कुमार चौधरी की चालबाजियों पर निर्भर होने के बाद भी उनके ऑफर पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं ।
दरअसल शिव कुमार चौधरी ने अनीता गुप्ता और सुनील जैन से पैसे ऐंठने के लिए यह जो तर्क दिया है कि लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की रिपोर्ट को ही स्वीकार करेगा - उसमें बड़ा पेंच है । तकनीकी रूप से यह बात सच है कि लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की रिपोर्ट को स्वीकार करता है - लेकिन सच यह भी है कि विवाद होने पर लायंस इंटरनेशनल पूरी प्रक्रिया और नीयत की भी पड़ताल करता है, और इस आधार पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के फैसले को स्वीकार करने से इंकार भी कर देता है । अजित निगम के क्लब को बंद करवाने के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी को लायंस इंटरनेशनल के कारण जो फजीहत झेलना पड़ी, वह इस बात का पुख्ता सुबूत और उदाहरण है तथ्यात्मक रूप से देखें तो अजित निगम का क्लब बंद होने के संदर्भ में बिलकुल परफेक्ट केस था, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में बैठे मूर्खों ने इसे जिस तरह से हैंडल किया - उसके कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की रिपोर्ट को लायंस इंटरनेशनल ने स्वीकार करने से इंकार कर दिया । इस प्रसंग से सोचने/विचारने की बात यह बनती है कि एक क्लब को बंद करने के बारे में दी गई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की रिपोर्ट को स्वीकार करने से जब लायंस इंटरनेशनल ने इंकार कर दिया, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की रिपोर्ट को वह आँख बंद करके कैसे और क्यों स्वीकार कर लेगा ? इसी बात को सोच-विचार कर अनीता गुप्ता तथा सुनील जैन के लिए शिव कुमार चौधरी के ऑफर को स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है । लोगों का कहना है कि 15 अप्रैल की मीटिंग वास्तव में अनीता गुप्ता और सुनील जैन पर दबाव बनाने के लिए रखी गई है - और लोगों को लग रहा है कि इस मीटिंग में जगह को लेकर सिर्फ सौदेबाजी ही होनी है ।

Thursday, April 13, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में ललित खन्ना के आयोजन में डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों व अन्य लोगों को उत्साह के साथ सक्रिय देख बौखलाए मुकेश अरनेजा ने आयोजन को खराब करने की जो कोशिश की, उसके कारण लोगों के बीच ललित खन्ना के लिए हमदर्दी और पैदा हुई

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए ललित खन्ना की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से आयोजित हुए रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के आयोजन में जुटे लोगों की भीड़ देख कर बौखलाए मुकेश अरनेजा ने रंग में भंग डालने का जो प्रयास किया, उसके लिए उन्हें मौके पर ही लताड़ मिली और लोगों के बीच उनकी जम कर फजीहत हुई । उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा दो वर्ष पहले तक इसी क्लब के सदस्य हुआ करते थे और कुछ वर्ष पहले तक ललित खन्ना उनके बड़े खास हुआ करते थे । ललित खन्ना के साथ खास संबंधों के साथ इस क्लब में रहते हुए मुकेश अरनेजा न सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने, बल्कि रोटरी की व्यवस्था और राजनीति में ऊँचाइयों तक पहुँचे - लेकिन अपनी घटिया और टुच्ची हरकतों के चलते दो वर्ष पहले उन्हें न सिर्फ बड़े बेआबरू होकर क्लब से निकलना पड़ा, बल्कि रोटरी की व्यवस्था व राजनीति में भी उनका ऐसा बुरा हाल हुआ कि रोटरी इंस्टीट्यूट जैसे प्रमुख आयोजन में उन्हें कोई जगह नहीं मिली । यहाँ इस तथ्य पर ध्यान देना प्रासंगिक होगा कि इसी क्लब के दो और सदस्य - एमएल अग्रवाल तथा केके गुप्ता भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने हैं, और मुकेश अरनेजा से बहुत पहले बने हैं तथा रोटरी की व्यवस्था और राजनीति में मुकेश अरनेजा से ज्यादा ऊँचाइयों पर पहुँचे और रहे हैं - और क्लब में भी बहुत सम्मान के साथ बने हुए हैं मुकेश अरनेजा क्लब के पदाधिकारियों तथा वरिष्ठ सदस्यों के साथ बदतमीजीपूर्ण व्यवहार के कारण पिछले कुछ वर्षों से लगातार क्लब से निकाले जाने की कार्रवाइयों के निशाने पर आते रहे थे, लेकिन हर बार वह माफी माँग कर बचते रहे थे - दो वर्ष पहले लेकिन हालात ऐसी स्थिति में आ पहुँचे थे कि फिर उनका माफी माँग कर बचना भी संभव नहीं हो सका ।
मुकेश अरनेजा जिस क्लब से दो वर्ष पहले बड़े बेआबरू होकर निकले थे, उस क्लब को उन्होंने घटती सदस्य-संख्या के लिए निशाना बनाया । अपने इस रवैये के लिए मुकेश अरनेजा को दोतरफा फजीहत झेलनी पड़ी - क्लब के लोगों ने तो यह कहते हुए मुकेश अरनेजा को लताड़ा कि क्लब की घटी सदस्य-संख्या का जिक्र करते हुए मुकेश अरनेजा इस तथ्य को छिपा बैठे कि इसके लिए वही तो प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं पिछले कुछ वर्षों में मुकेश अरनेजा की कारस्तानियों के कारण ही कई लोग क्लब तथा रोटरी ही छोड़ गए, दो वर्ष पहले जब मुकेश अरनेजा बेआबरू होकर खुद क्लब से निकले तब उनके साथ उनके कुछ संगी-साथी भी क्लब से निकले । मुकेश अरनेजा इस तथ्य को भी छिपा गए कि उनके निकलने पर क्लब की जो सदस्य-संख्या थी, उनके निकलने के बाद उसमें इजाफा हुआ है इन तथ्यों से अनभिज्ञ, आयोजन में मौजूद दूसरे क्लब के सदस्यों ने मुकेश अरनेजा को यह कहते हुए कोसा कि अतिथि के रूप में आयोजन में शामिल होने आए मुकेश अरनेजा को इस तरह का नकारात्मक व्यवहार नहीं करना चाहिए था । मुकेश अरनेजा के लिए बड़ी फजीहत की बात यह हुई कि उनके बाद बोलने आए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सतीश सिंघल ने क्लब की भूरि-भूरि प्रशंसा की । अन्य वक्ताओं के रूप में निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ तथा मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन और अन्य वक्ताओं ने भी क्लब के कामकाज की जमकर तारीफ की । लोगों का कहना रहा कि क्लब में रहते हुए क्लब के दूसरे सदस्यों के साथ मुकेश अरनेजा के जो भी झगड़े रहे हों, जो भी खुन्नसे रही हों - क्लब छोड़ देने के साथ मुकेश अरनेजा को उन्हें भी छोड़ देना चाहिए लेकिन जो लोग मुकेश अरनेजा को जानते हैं, उनका कहना है कि मुकेश अरनेजा अपने दुष्ट व्यवहार व सोच को छोड़ नहीं सकते हैं - जैसे कुत्ते की पूँछ को किसी भी तरह से सीधा नहीं किया सकता है, ठीक वैसे ही मुकेश अरनेजा को भी किसी भी तरह से दुष्टता से दूर नहीं किया जा सकता है ।
मुकेश अरनेजा ने अपने ही पूर्व क्लब के आयोजन को खराब करने की जो कोशिश की, उसे कई लोगों ने उनकी बौखलाहट के रूप में देखा/पहचाना । उक्त आयोजन दरअसल क्लब का आयोजन तो था ही, वास्तव में उसके पीछे का उद्देश्य ललित खन्ना की उम्मीदवारी को प्रमोट करना था । ऐसे में, आयोजन में रोटेरियंस की जो भीड़ जुटी - उसे देख कर मुकेश अरनेजा को तगड़ा झटका लगा और वह बुरी तरह बौखला गए मुकेश अरनेजा की कोशिश है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए ललित खन्ना की उम्मीदवारी को लोगों के बीच स्वीकार्यता न मिले । इसके लिए, अगले रोटरी वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को त्रिकोणीय बनाने के लिए मुकेश अरनेजा ने अशोक जैन को पुनः उम्मीदवार बनने के लिए प्रेरित करने के साथ साथ कुछेक और लोगों को भी उम्मीदवारी के लिए उकसाया, जिसमें अभी तक तो उनकी दाल नहीं गली है । इस मामले में असफल रहने का उनका फ्रस्ट्रेशन, ललित खन्ना की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से हुए आयोजन को सफल होता देख और भड़क गया । आयोजन में क्लब्स के प्रेसीडेंट-इलेक्ट की अच्छी-खासी उपस्थिति को देख कर तो मुकेश अरनेजा का माथा ऐसा चकराया कि फिर वह आयोजन में एक अतिथि के रूप में आमंत्रित और अपनी उपस्थिति की गरिमा को पूरी तरह भुला बैठे और अपनी बातों से आयोजन को खराब करने में - तथा आयोजन में उपस्थित दूसरे लोगों के रंग में भंग डालने में जुट गए मुकेश अरनेजा की बदकिस्मती यह रही कि उनकी यह हरकत बैकफायर कर गई - उन्हें क्लब के पदाधिकारियों से भी लताड़ सुनने को मिली और दूसरे लोगों ने भी उन्हें लानत दी ।
मुकेश अरनेजा के इस रवैये और इस रवैये के चलते हुई उनकी फजीहत ने लोगों के बीच ललित खन्ना के लिए हमदर्दी पैदा करने और बनाने का काम किया । लोगों ने इस तथ्य को एक बार फिर याद किया कि कुछ समय पहले तक ललित खन्ना उनके बड़े नजदीक और खास हुआ करते थे - लेकिन जब से ललित खन्ना ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के बारे में सोचा, मुकेश अरनेजा उनके साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार करने लगे हैं । यह मुकेश अरनेजा की घटिया सोच का ही सुबूत है कि वह अपने नजदीक के लोगों को सिर्फ इस्तेमाल करना चाहते हैं - उन्हें आगे बढ़ता देखते हैं तो उनके खिलाफ हो जाते हैं । दीपक गुप्ता जब पहली बार उम्मीदवार बने थे, मुकेश अरनेजा तब उनके खिलाफ थे । आलोक गुप्ता जब पहली बार उम्मीदवार बने थे, मुकेश अरनेजा ने तब उन्हें धोखा देकर जेके गौड़ का साथ दिया था इस तरह, अपने नजदीकियों के साथ धोखा करने का मुकेश अरनेजा का पुराना इतिहास है । ललित खन्ना उनके नए शिकार हैं ।
मुकेश अरनेजा को दरअसल यह बात इसलिए ही हजम नहीं हुई कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से आयोजित हुए आयोजन में डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने खासी दिलचस्पी ली, और अपनी उपस्थिति दिखा कर उन्होंने अपनी दिलचस्पी को जाहिर भी किया । क्लब्स के प्रेसीडेंट-इलेक्ट के साथ-साथ खासतौर से उत्तरप्रदेश के क्लब्स के पदाधिकारियों व वरिष्ठ सदस्यों ने इस आयोजन में जिस उत्साह के साथ भागीदारी की, उसे देख कर मुकेश अरनेजा के पेट में कुछ ज्यादा ही दर्द हो गया । आयोजन में उपस्थित लोगों के अनुसार, ललित खन्ना की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से हुए आयोजन में 30 से अधिक क्लब्स के प्रेसीडेंट-इलेक्ट देखे गए और खासतौर से उत्तरप्रदेश के क्लब्स के पदाधिकारियों व प्रमुख लोगों को सक्रिय देखा गया - जो लोग नहीं दिखे, आयोजन में उपस्थित लोगों ने खुद से उन्हें फोन करके उनकी अनुपस्थिति के बारे में पूछा तो सभी से प्रायः यही सुनने को मिला कि अपनी निजी व्यस्तता के चलते वह आयोजन में नहीं आ पाए हैं, और उनकी अनुपस्थिति के अन्य कोई अर्थ न निकाले जाएँ इस तरह की बातों से आयोजन का माहौल ललित खन्ना की उम्मीदवारी के संदर्भ में उत्साहजनक बना, जिसे देख कर मुकेश अरनेजा ने आपा खो दिया - लेकिन आपा खो देने के कारण किए गए उनके व्यवहार ने उनकी ही फजीहत की/कराई तथा लोगों के बीच ललित खन्ना के प्रति हमदर्दी पैदा की ।

Wednesday, April 12, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में हरीश वाधवा ने जेपी सिंह को वोट देने की घोषणा करके डिस्ट्रिक्ट के चुनावी माहौल के तापमान को खासा बढ़ा दिया है

नई दिल्ली हरीश वाधवा ने अपने एक वाट्स-ऐप संदेश में अपने क्लब - लायंस क्लब गन्नौर गोल्ड के वोट जेपी सिंह और यशपाल अरोड़ा को देने की घोषणा करके डिस्ट्रिक्ट के चुनावी परिदृश्य को खासा रोमांचक बना दिया है । मजे की बात यह हुई है कि उनकी इस घोषणा को दोनों खेमे अपनी अपनी जीत के रूप में भी देख रहे हैं, लेकिन अंदरूनी तौर पर उनकी इस घोषणा के पीछे छिपे मंतव्य के चक्कर में परेशान भी हो रहे हैं । दोनों खेमों के नेताओं का मानना और कहना है कि जो घोषणा हुई है, वह किसी और ने की होती - तो महत्त्वपूर्ण नहीं होती; किंतु उक्त घोषणा चूँकि हरीश वाधवा ने की है, इसलिए खासी महत्त्वपूर्ण हो उठी है - और दोनों खेमों को एक तरफ आश्वस्त भी करती है, तो दूसरी तरफ असमंजस में भी डालती है । उक्त घोषणा हरीश वाधवा की तरफ से होने के कारण क्यों महत्त्वपूर्ण हो गई है - यह समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि हरीश वाधवा हैं कौन ? हरीश वाधवा सत्ता खेमे के एक प्रमुख समर्थक हैं, और सत्ता खेमे के एक प्रमुख स्तंभ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश नांगिया के 'आदमी' के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं; और वह सत्ता खेमे के नेताओं के भरोसे अगले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार होने/बनने की तैयारी कर रहे हैं । अब ऐसा व्यक्ति अपने क्लब के वोट इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडॉर्सी के चुनाव में प्रतिद्धंद्धी खेमे के उम्मीदवार जेपी सिंह को देने की खुली घोषणा कर रहा है, तो इसमें प्रतिद्धंद्धी खेमे के लिए खुश होने की बात तो बनती ही है; सत्ता खेमे के लोग हालाँकि इसलिए खुश हैं कि हरीश वाधवा अपने क्लब के वोट सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में उनके उम्मीदवार को दे/दिलवा रहे हैं ।
खुश होने के साथ-साथ सत्ता खेमे में निराशा लेकिन इस बात पर है कि उनका एक पक्का समर्थक आधा आधा बँट गया है और वह प्रतिद्धंद्धी खेमे से भी जा मिला है । प्रतिद्धंद्धी खेमे के लोगों की निराशा का कारण यह है कि हरीश वाधवा को फाँसने के लिए उन्होंने जाल तो पूरा बिछाया था, हरीश वाधवा लेकिन आधे ही फँसे । हरीश वाधवा के दोनों नावों में पैर रखने के इस किस्से में पर्दे के पीछे की कहानी दरअसल यह है कि जेपी सिंह ने अगले लायन वर्ष में हरीश वाधवा को उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन देने का संकेत दिया है । हरीश वाधवा को यूँ तो सत्ता खेमे के नेताओं का समर्थन भी घोषित है, लेकिन सत्ता खेमे में लायंस क्लब अंबाला सेंट्रल गोल्ड के रमन गुप्ता का नाम भी चल रहा है । इसलिए अगले लायन वर्ष की अपनी उम्मीदवारी में वजन पैदा करने के लिए हरीश वाधवा ने जेपी सिंह से भी तार जोड़ लिए हैं जेपी सिंह खेमे की तरफ से अगले लायन वर्ष के लिए चूँकि लायंस क्लब सोनीपत के मदन बत्रा का नाम भी है, इसलिए हरीश वाधवा पूरी तरह जेपी सिंह के खेमे में नहीं गए हैं । संभवतः हरीश वाधवा को लगता है कि दोनों खेमों में वह अपनी एक एक टाँग फँसाए रखेंगे, तो अगले लायन वर्ष में उनका 'काम' शर्तिया बन ही जाएगा । उनका काम बनेगा या नहीं, यह तो अगले लायन वर्ष में ही पता चलेगा - अभी के उनके रवैये ने लेकिन दोनों खेमों के नेताओं की खुशियों को आधा-आधा जरूर कर दिया है; और साथ ही साथ उम्मीदों व आशंकाओं से भी भर दिया है । जेपी सिंह के खेमे के नेताओं को लग रहा है कि हरीश वाधवा को वह अपनी तरफ यदि आधा खींच सकने में सफल रहे हैं, तो बाकी बचे दिनों में वह उन्हें गुरचरण सिंह भोला के समर्थन के लिए भी राजी कर लेंगे । दूसरी तरफ, सत्ता खेमे के नेताओं के बीच यह देख कर राहत तो है कि हरीश वाधवा उन्हें बार-बार आश्वस्त कर रहे हैं कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में उनके क्लब के वोट यशपाल अरोड़ा को ही मिलेंगे - लेकिन इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडॉर्सी पद के चुनाव को लेकर हरीश वाधवा ने उन्हें जो झटका दिया है, उसके कारण वह उन्हें लेकर सशंकित भी हैं ।
बात सिर्फ हरीश वाधवा और उनके क्लब के चार वोटों की नहीं है - भले ही किसी भी चुनाव में एक एक वोट भी महत्त्वपूर्ण होता है । बात एक रुझान की है - जिसका प्रतिनिधित्व हरीश वाधवा करते हुए नजर आ रहे हैं । हरीश वाधवा के जेपी सिंह को वोट देने के फैसले को जेपी सिंह खेमे के नेता अपनी बड़ी जीत के रूप में देख रहे हैं - डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उन्हें यह कहने और बताने का मौका मिला है कि सत्ता खेमे के नेताओं ने ब्लड बैंक से जुड़े आरोपों को मुद्दा बना कर जेपी सिंह को घेरने की जो कोशिश की है, वह सफल नहीं हो सकी है; और उनके तमाम जेपी सिंह विरोधी प्रचार के बाद भी हरीश वाधवा जैसे उनके ही नजदीकी जेपी सिंह के समर्थन में खड़े हो रहे हैं । एक दिलचस्प संयोग यह रहा कि ब्लड बैंक से जुड़ी बयानबाजी में अपना पक्ष रखते हुए जेपी सिंह खेमे की तरफ से 'लायंस ब्लड बैंक की सच्चाई' शीर्षक से जो फोल्डर लोगों के बीच प्रचारित/प्रसारित किया गया, उसके बाद ही हरीश वाधवा का जेपी सिंह को समर्थन घोषित करते हुए वाट्स-ऐप संदेश जारी हुआ । हरीश वाधवा के जेपी सिंह को समर्थन घोषित करने से जेपी सिंह खेमे के लोगों को यह कहने का मौका मिला और उन्होंने जोर-शोर से इसे कहा भी कि 'लायंस ब्लड बैंक की सच्चाई' फोल्डर में दिए गए तथ्यों ने लोगों को सच्चाई से परिचित कराया है, और हरीश वाधवा जैसे सत्ता खेमे के प्रमुख लोगों ने भी ब्लड बैंक के मामले में जेपी सिंह को क्लीन चिट दे दी है । हरीश वाधवा के जेपी सिंह को वोट देने के फैसले ने सत्ता खेमे के नेताओं की ब्लड बैंक से जुड़े आरोपों के जरिए जेपी सिंह को घेरने की रणनीति को तगड़ा झटका दिया है ।
हरीश वाधवा के कारण जेपी सिंह खेमे की तरफ से ब्लड बैंक के बारे में बताई गयी 'सच्चाई' को स्वीकृति मिलने और इस तरह सत्ता खेमे के नेताओं के हाथ से एक बड़ा मुद्दा छिन जाने के बाद सत्ता खेमे के नेताओं ने अपना सारा ध्यान सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव पर केंद्रित कर लिया है । पिछले दस-पंद्रह दिनों में दिल्ली और हरियाणा व हिमाचल प्रदेश के विभिन्न शहरों में दोनों खेमों की तरफ से जो मीटिंग्स हुई हैं, उनमें लोगों की कुल मिलाकर लगभग बराबर की सी भागीदारी ही रही है । इससे संकेत मिल रहा है कि दोनों खेमों के बीच मुकाबला खासी टक्कर का है । मजे की बात यह देखने को मिल रही है कि एक तरफ हरीश वाधवा का उदाहरण देकर जेपी सिंह खेमे की तरफ से संदेश दिया जा रहा है कि उन्होंने सत्ता खेमे के एक बड़े हिस्से को अपनी तरफ कर लेने में सफलता प्राप्त कर ली है; तो दूसरी तरफ सत्ता खेमे के लोग भी हरीश वाधवा का ही उदाहरण देकर दावा कर रहे हैं कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में उनके साथ के लोग अभी भी उनके ही साथ हैं । दोनों खेमों के नेताओं की तरफ से किए जा रहे अपनी अपनी जीत के दावों के बीच हरीश वाधवा ने वाट्स-ऐप संदेश के जरिए दोनों तरफ रहने के संकेत देकर लेकिन चुनावी माहौल के तापमान को और बढ़ा दिया है ।

Monday, April 10, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा मक्खनबाजी के जरिए लीडरशिप के नेताओं को खुश करने के चक्कर में नरेश अग्रवाल से लताड़ खाने के बाद, मल्टीपल काउंसिल में कोई भी पद पाने के लिए तेजपाल खिल्लन की शरण में आ गए हैं

लखनऊ । विशाल सिन्हा को नरेश अग्रवाल, सुशील अग्रवाल, विनोद खन्ना, जगदीश गुलाटी की चमचागिरी करने पर नरेश अग्रवाल से सार्वजनिक रूप से जो लताड़ सुनने को मिली - और जिसके बाद विशाल सिन्हा ने तेजपाल खिल्लन का दामन पकड़ने की जो कोशिश की है, उसके चलते मल्टीपल काउंसिल की चुनावी राजनीति का परिदृश्य खासा रोचक हो उठा है उल्लेखनीय है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के पद के लिए मुख्य रूप से दो नाम चर्चा में हैं - डिस्ट्रिक्ट 321 ई के अनिल तुलस्यान और डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के विनय गर्ग । अनिल तुलस्यान को लीडरशिप के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, जिसकी बागडोर विनोद खन्ना ने संभाली हुई है; जबकि विनय गर्ग को लीडरशिप से नहीं, बल्कि लीडरशिप के गुर्गे नेताओं से चिढ़ने वाले लोगों का समर्थन देखा/पहचाना जा रहा है - जिनकी बागडोर तेजपाल खिल्लन के हाथ में है । तेजपाल खिल्लन को लीडरशिप के नाम पर इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे नरेश अग्रवाल से समस्या नहीं है, उनको - खुद को नरेश अग्रवाल का प्रतिनिधि मानने/समझने वाले विनोद खन्ना से समस्या है । तेजपाल खिल्लन को विनोद खन्ना से इस हद तक समस्या है कि विनोद खन्ना के नजदीकी होने के 'अपराध' में उन्होंने अपने ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर - पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर केएम गोयल और मौजूदा मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन जेसी वर्मा को डिस्ट्रिक्ट में बर्फ में लगाया हुआ है । मजे की बात यह है कि जेसी वर्मा को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनवाने में तेजपाल खिल्लन की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, किंतु जेसी वर्मा बाद में चूँकि विनोद खन्ना के नजदीक हो गए - जिसके नतीजे के रूप में जेसी वर्मा को तेजपाल खिल्लन के विरोध का इस हद तक सामना करना पड़ा कि अपने ही डिस्ट्रिक्ट की हाल ही में संपन्न हुई डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस से उन्हें दूर-दूर रहना पड़ा ।
इस पृष्ठभूमि में, मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन का चुनाव किन्हीं दो उम्मीदवारों के बीच नहीं - बल्कि वास्तव में विनोद खन्ना और तेजपाल खिल्लन के बीच है । विशाल सिन्हा ने लीडरशिप का दामन पकड़ा हुआ था । वह तरह तरह से नरेश अग्रवाल तथा अन्य पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर्स को खुश करने के अभियान में लगे हुए थे । हालाँकि खुद को नरेश अग्रवाल का प्रतिनिधि और प्रवक्ता समझने वाले विनोद खन्ना की दिलचस्पी उनकी बजाए पहले योगेश सोनी में और फिर अनिल तुलस्यान में होती दिखी, तो भी विशाल सिन्हा ने उम्मीद नहीं छोड़ी । उन्हें विश्वास रहा कि खुशामद करने वाले अपने गुण से वह विनोद खन्ना को राजी कर लेंगे । वैसे भी वह विनोद खन्ना के पक्के वाले चेले रहे हैं । विनोद खन्ना को भी उनसे कोई समस्या या शिकायत तो नहीं रही; लेकिन फिर भी विनोद खन्ना ने उन्हें उम्मीदवार के रूप में स्वीकार करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई तो इसका कारण यह रहा कि विनोद खन्ना ने पाया कि एक उम्मीदवार के रूप में विशाल सिन्हा के पास कुछ भी नहीं है - न अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का समर्थन उनके पास है, और न वह उम्मीदवार के रूप में पैसे खर्च करने को तैयार हैं । मल्टीपल काउंसिल की पिछली दो मीटिंग्स में विनोद खन्ना ने विशाल सिन्हा को गिफ्ट बाँटने का सुझाव दिया था, लेकिन विशाल सिन्हा ने गिफ्ट बाँटने की बजाए गिफ्ट लेने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई । अब ऐसे 'फुकरे' उम्मीदवार का विनोद खन्ना भी क्या करते ? यूँ तो अनिल तुलस्यान के पास भी अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का समर्थन नहीं है, लेकिन एक उम्मीदवार के रूप में वह पैसे खर्च करने के लिए तैयार हैं - लिहाजा विनोद खन्ना ने उनके नाम पर हरी झंडी दे दी
विशाल सिन्हा ने लेकिन तब भी उम्मीद नहीं छोड़ी और लीडरशिप के नेताओं की खुशामद में वह लगे रहे । उन्हें विश्वास रहा कि लीडरशिप के नेताओं की आरती कर कर के वह उन्हें अपनी उम्मीदवारी के लिए राजी कर लेंगे लेकिन पिछले दिनों उनसे गड़बड़ यह हो गई कि लीडरशिप के नेताओं की उन्होंने कुछ ज्यादा ही आरती कर दी - जिस पर खुद नरेश अग्रवाल ही भड़क गए और उन्होंने विशाल सिन्हा को नसीहत दे डाली कि कुछ भी कहने से पहले सोच विचार लिया करो । हुआ दरअसल यह कि वर्ष 2022 की इंटरनेशनल कन्वेंशन के लिए दिल्ली को हरी झंडी मिली तो इस अवसर को विशाल सिन्हा ने लीडरशिप के नेताओं को मक्खन लगाने के अवसर के रूप में पहचाना । विशाल सिन्हा की एक बड़ी खूबी यह है कि चाहें मक्खन लगाने का काम करना हो, चाहें गालियाँ देनी हों - वह कंजूसी नहीं करते । उक्त मामले में भी यही हुआ - दिल्ली में इंटरनेशनल कन्वेंशन को हरी झंडी मिलने का श्रेय देने के जोश में विशाल सिन्हा ने सोशल मीडिया में लीडरशिप के नेताओं को कुछ ज्यादा ही मक्खन लगा दिया, जो नरेश अग्रवाल को हजम नहीं हुआ और उन्होंने सोशल मीडिया में ही विशाल सिन्हा को लताड़ लगा दी । विशाल सिन्हा के लिए नमाज़ पढ़ने के चलते रोज़े गले पड़ जाने वाला मामला हो गया नरेश अग्रवाल के इस रवैए को देख कर विशाल सिन्हा ने समझ लिया कि लीडरशिप मल्टीपल चेयरमैन पद के लिए तो छोड़िए - किसी भी पद के लिए उनके नाम पर विचार नहीं करेगी । लिहाजा उन्होंने तुरंत पैंतरा बदला और वह तेजपाल खिल्लन की शरण में आ गए । विशाल सिन्हा को पता है कि तेजपाल खिल्लन किस बात से खुश होते हैं - सो, तेजपाल खिल्लन के डिस्ट्रिक्ट की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में पहुँच कर तेजपाल खिल्लन के सामने विनोद खन्ना को उन्होंने जी भर कर कोसा जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि न खुशामद करने में और न गालियाँ बकने में - विशाल सिन्हा कोई कंजूसी नहीं करते हैं ।
तेजपाल खिल्लन के सामने विनोद खन्ना को गालियाँ देना विशाल सिन्हा के कितना काम आएगा - यह तो बाद में पता चलेगा; क्योंकि तेजपाल खिल्लन के यहाँ अभी तो विनय गर्ग का पलड़ा भारी दिख रहा है । इसका सबसे जोरदार कारण तो यही है कि विनय गर्ग और विनोद खन्ना के बीच छत्तीस का रिश्ता है - तेजपाल खिल्लन आश्वस्त हैं कि विनय गर्ग उन्हें जेसी वर्मा की तरह से धोखा नहीं देंगे, और किसी भी कीमत पर विनोद खन्ना के साथ नहीं जायेंगे । इसके अलावा, विनय गर्ग अकेले ऐसे उम्मीदवार हैं जिन्हें अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह का पूरा और पक्का समर्थन है; साथ ही उम्मीदवार के रूप में विनय गर्ग पैसे खर्च करने के लिए भी तैयार हैं । समझा जाता है कि मल्टीपल की राजनीति में तेजपाल खिल्लन जो कुछ भी करना चाहते हैं - वह जिन भी नेताओं से खासतौर से निपटना चाहते हैं, उसमें मल्टीपल चेयरमैन के रूप में विनय गर्ग ही उनके लिए फिट रहेंगे । इस स्थिति को विशाल सिन्हा भी समझ रहे हैं । इसलिए उन्होंने यह तो समझ लिया है कि चेयरमैन पद के लिए तो उनकी दाल नहीं गल पाएगी - लेकिन फिर भी वह तेजपाल खिल्लन के सामने विनोद खन्ना को गालियाँ दे रहे हैं तो इस उम्मीद में कि इससे खुश होकर तेजपाल खिल्लन उन्हें मल्टीपल काउंसिल में कोई पद तो दिलवा ही देंगे । चमचागिरी के जरिए लीडरशिप के नेताओं को खुश करने की विशाल सिन्हा की चाल के उलटी पड़ने और नरेश अग्रवाल से लताड़ खाने के बाद उनके तेजपाल खिल्लन की शरण में आ जाने से मल्टीपल काउंसिल की चुनावी राजनीति में कुछ रौनक तो आ गई है । 


Sunday, April 9, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में इंटरनेशनल डायरेक्टर का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन के रवैए ने रमेश अग्रवाल के लिए मुसीबत पैदा की

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शरत जैन जिस तरह से रमेश अग्रवाल द्वारा तय की गई वोट-जुटाऊ योजना को क्रियान्वित करने से पीछे हटते दिख रहे हैं, उसके चलते रमेश अग्रवाल को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव के लिए प्रस्तुत की गई अपनी उम्मीदवारी अभी से संकट में पड़ती नजर आ रही है रमेश अग्रवाल ने क्लब के कुछेक सदस्यों को यह कहते/बताते हुए शरत जैन के खिलाफ भड़काने का प्रयास किया है कि शरत जैन का यही रवैया रहा, तो क्लब को डिस्ट्रिक्ट में एक बार फिर से बदनामी का सामना करना पड़ेगा । अपनी जीत/हार को क्लब के मान/अपमान से जोड़ कर रमेश अग्रवाल ने शरत जैन पर मदद के लिए सक्रिय होने के लिए दबाव बनाने का काम शुरू तो किया है, लेकिन क्लब के ही कुछेक सदस्यों का कहना है कि शरत जैन को रमेश अग्रवाल को पूरी तरह बर्फ में लगा देने का जो मौका मिला है - उसे वह यूँ ही नष्ट नहीं होने देंगे । शरत जैन जानते/समझते हैं कि रमेश अग्रवाल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए यदि चुन लिए गए तो डिस्ट्रिक्ट तो छोड़िए, क्लब तक में उनकी स्थिति को दोयम दर्जे की बना देंगे शरत जैन के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि शरत जैन को यह अच्छी तरह समझ में आ रहा है कि डिस्ट्रिक्ट में और क्लब में अपनी स्थिति को सम्मानजनक बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि रमेश अग्रवाल इंटरनेशनल डायरेक्टर के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी का चुनाव हार जाएँ । रमेश अग्रवाल को हरवाने के लिए तो शरत जैन कुछ नहीं कर सकते हैं, लेकिन वह इतना तो कर ही सकते हैं कि वह उन्हें चुनाव जितवाने के लिए कुछ न करें ।
रमेश अग्रवाल के लिए समस्या की बात यह है कि उन्होंने अपनी जीत का सारा ताना-बाना ही शरत जैन के भरोसे बुना है । रमेश अग्रवाल की डिस्ट्रिक्ट में वैसे ही खासी बदनामी है, जिसके चलते इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक जैन को बुरी तरह से हारना पड़ा । अशोक जैन की बुरी हार के लिए डिस्ट्रिक्ट में हर किसी ने 'रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार' की उनकी पहचान को ही जिम्मेदार माना/ठहराया डिस्ट्रिक्ट में लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच रमेश अग्रवाल के प्रति जो गुस्सा और नाराजगी है, उसका खामियाजा अशोक जैन को भुगतना पड़ा है । रमेश अग्रवाल को भी इस बात का अहसास तो है, और इसीलिए वह पहले इंटरनेशनल डायरेक्टर के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव से दूर रहने में ही अपनी भलाई देख रहे थे रमेश अग्रवाल के लिए रोटरी की राजनीति और व्यवस्था में लेकिन जीने/मरने वाले हालात बन गए हैं । रोटरी की राजनीति और व्यवस्था में अपने पुनर्जीवन के लिए उन्हें कुछ बड़ा करना जरूरी लग रहा है । इंटरनेशनल डायरेक्टर के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता में उन्हें ऐसा ही मौका दिख रहा है । रमेश अग्रवाल को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों में उनके प्रति जो गुस्सा और नाराजगी है, वह अशोक जैन का 'खून पीकर' काफी कुछ रिलीज हो चुकी है - बाकी जो थोड़ी/बहुत बची होगी, उसे वह शरत जैन की मदद से दूर कर लेंगे । शरत जैन के नजदीकियों के अनुसार, रमेश अग्रवाल ने शरत जैन को फार्मूला सुझाया है कि इस वर्ष के अवॉर्ड्स का लालच दिखा कर क्लब-प्रेसीडेंट्स के वोट खरीदे जा सकते हैं । रमेश अग्रवाल का विश्वास है कि क्लब्स के प्रेसीडेंट्स अवॉर्ड के लालची होते ही हैं - और शरत जैन के जरिए वह उनके इस लालच का फायदा उठा कर उनके वोट हासिल कर सकेंगे रमेश अग्रवाल ने शरत जैन को जिम्मेदारी सौंपी कि क्लब-प्रेसीडेंट्स को अवॉर्ड का आश्वासन देकर वह उनके लिए वोट पक्के करने का काम करें
रमेश अग्रवाल लेकिन यह देख/जान कर हैरान और परेशान हैं कि शरत जैन इस काम में कोई दिलचस्पी ही नहीं ले रहे हैं । हाल/फिलहाल के दिनों में अपनी उम्मीदवारी के सिलसिले में रमेश अग्रवाल ने जिन भी लोगों से बात की, उनसे उन्हें ऐसे कोई संकेत नहीं मिले जिनसे उन्हें आभास हुआ हो कि शरत जैन ने उनकी उम्मीदवारी के लिए तय की गई वोट-जुटाऊ योजना पर कुछ किया हो । यह जान कर रमेश अग्रवाल को अपनी उम्मीदवारी पर अभी से खतरा मँडराता दिखने लगा है, और उन्होंने शरत जैन की नकेल कसने के लिए क्लब में शरत जैन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है । रमेश अग्रवाल लोगों को बता रहे हैं कि उन्होंने ही शरत जैन को गवर्नर बनवाया और डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में उनकी गवर्नरी चलवाई, लेकिन अब जब उन्हें शरत जैन की मदद की जरूरत है - तो शरत जैन उनके साथ परायो जैसा व्यवहार कर रहे हैं, और इस तरह अहसानफरामोशी दिखा रहे हैं क्लब के सदस्यों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने के लिए रमेश अग्रवाल क्लब की इज्जत का हवाला भी यह कहते हुए दे रहे हैं कि यदि वह चुनाव हारे तो क्लब की दोहरी बेइज्जती होगी । इस तरह की बातों का शरत जैन की तरफ से भी जबाव आ रहा है कि डिस्ट्रिक्ट में क्लब का नाम यदि खराब है तो इसके लिए रमेश अग्रवाल की घटिया हरकतें जिम्मेदार हैं । शरत जैन की तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि रमेश अग्रवाल की घटिया हरकतों के कारण ही अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल इतने पीड़ित हैं कि वह रमेश अग्रवाल को अपने किसी भी कार्यक्रम में कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं; सगे भाई जैसे पड़ोसी डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3011 में निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला ने रमेश अग्रवाल को अपने डिस्ट्रिक्ट में 'घुसने' तक नहीं दिया था; अपने डिस्ट्रिक्ट में भी निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ उनकी कारस्तानियों से परेशान होकर उनके खिलाफ गए हैं; उनकी हरकतों का ही परिणाम निकला कि अशोक जैन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में बुरी तरह हार गए शरत जैन की तरफ से कहा जा रहा है कि रमेश अग्रवाल उन पर मदद न करने का आरोप लगा कर दरअसल इंटरनेशनल डायरेक्टर के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में अपनी संभावित हार का ठीकरा उनके सिर फोड़ने की अभी से तैयारी कर रहे हैं ।
रमेश अग्रवाल और शरत जैन के बीच की इस झींगामश्ती को स्वाभाविक घटनाचक्र के रूप में देख/पहचान रहे लोगों का मानना और कहना है कि रमेश अग्रवाल के बदतमीजीपूर्ण रवैए और स्वभाव को देखते हुए शरत जैन का असहयोगात्मक रुख उचित ही है । शरत जैन को डिस्ट्रिक्ट में और क्लब में यदि उचित सम्मान के साथ रहना है, तो यह जरूरी है कि रमेश अग्रवाल हारे हुए ही रहें - जीतने के बाद तो रमेश अग्रवाल फिर शरत जैन को कुछ समझेंगे ही नहीं । दरअसल रमेश अग्रवाल हैं ही ऐसे - वह किसी के लिए कुछ करना चाहेंगे, तो फिर खुशी के साथ उसके लिए बहुत कुछ करेंगे - लेकिन करने के साथ-साथ उसकी पूरी पूरी कीमत भी बसूलते चलेंगे और इस प्रक्रिया में उसके साथ बदतमीजी की सीमाएँ भी लाँघते जायेंगे । रमेश अग्रवाल ने यही कुछ जेके गौड़ के साथ किया जेके गौड़ को गवर्नर बनवाने से लेकर उनकी गवर्नरी चलाने/चलवाने तक में रमेश अग्रवाल ने पूरी पूरी मेहनत की - लेकिन बदले में जेके गौड़ को उन्होंने ऐसा ऐसा 'निचोड़ा' कि आज वह जेके गौड़ के दुश्मन नंबर एक बन गए हैं । यही हाल उन्होंने शरत जैन का किया है - इसलिए ही शरत जैन जान/समझ रहे हैं कि रमेश अग्रवाल यदि इंटरनेशनल डायरेक्टर का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए चुन लिए गए, तो डिस्ट्रिक्ट में और क्लब में उनके लिए सम्मान के साथ रह पाना मुश्किल हो जाएगा । यह जान/समझ लेने के कारण ही शरत जैन ने रमेश अग्रवाल की वोट-जुटाऊ योजना से दूर रहने का निश्चय किया है । शरत जैन के इस निश्चय ने रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के सामने शुरू में ही संकट खड़ा कर दिया है । इस संकट से उबरने के लिए ही रमेश अग्रवाल ने क्लब में शरत जैन की गर्दन पकड़ने और उन्हें रास्ते पर लाने की चालबाजियाँ तेज कर दी हैं - उन्होंने अपने नजदीकियों से कहा है कि किसी भी तरह उन्हें शरत जैन को 'रास्ते पर लाना' ही है यह देखना दिलचस्प होगा कि शरत जैन किस तरह से रमेश अग्रवाल की चालबाजियों का मुकाबला करते हैं - कर भी पाते हैं, या नहीं ?

Friday, April 7, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में सुरेश भसीन को मिली अप्रत्याशित जीत ने डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक ठेकेदार बनने की कोशिश करने वाले रवि चौधरी और विनय भाटिया को तगड़ा झटका दिया

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रवि चौधरी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी विनय भाटिया ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का ठेकेदार बनने का प्रयास तो खूब किया, लेकिन डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के पदाधिकारियों ने उन्हें ऐसी धूल चटाई है कि उसका स्वाद उन्हें कई दिनों तक याद रहेगा सुरेश भसीन की चुनावी जीत को लोग भले ही उनकी किस्मत के उपहार के रूप में देख/बता रहे हों, लेकिन किस्मत के इस उपहार को पाने लायक बनने के लिए उन्होंने जो समर्थन प्राप्त किया - वह डिस्ट्रिक्ट के तमाम राजनीतिक चौधरियों के लिए एक बड़ा सबक है । वोटों की गिनती के अंतिम चरण में सुरेश भसीन से दो वोटों से पिछड़ जाने वाले अनूप मित्तल को लोगों का जो समर्थन मिला, उसने डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक चौधरियों को मिले सबक को और गहरा कर दिया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक चौधरियों ने सुरेश भसीन की उम्मीदवारी को तो कोई तवज्जो नहीं दी हुई थे, किंतु अनूप मित्तल की सक्रियता ने उन्हें जरूर परेशान करने के साथ-साथ डराया हुआ था -  इसलिए अनूप मित्तल की उम्मीदवारी को वापस कराने/करवाने से लेकर उन्हें चुनाव हरवाने के लिए चौधरियों ने सारे घोड़े खोले हुए थे । रवि चौधरी और विनय भाटिया ने चौधरियों का भी चौधरी बनने की कोशिश में कमान अपने हाथ में ले ली थी, और चौधरियों के उम्मीदवार के रूप में संजीव राय मेहरा को चुनाव जितवाने के लिए वह जैसी जो घटिया हरकत कर सकते थे, वह उन्होंने की । इसके बावजूद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में वह संजीव राय मेहरा को अमरजीत सिंह, अतुल गुप्ता और रवि दयाल से ही आगे कर पाए - अनूप मित्तल तथा सुरेश भसीन से वह पीछे ही रह गए
चुनावी नतीजों में सबसे बुरी स्थिति अमरजीत सिंह की रही - उन्हें अपने क्लब के वोट भी नहीं मिले । पहली वरीयता के वोटों की गिनती में अतुल गुप्ता को 3, रवि दयाल को 23, सुरेश भसीन को 29, संजीव राय मेहरा को 30, अनूप मित्तल को सबसे ज्यादा 37 वोट मिले । अतुल गुप्ता और रवि दयाल के मुकाबले से बाहर होने के बाद उन्हें मिले अन्य वरीयताओं के वोटों के बँटवारे के साथ संजीव राय मेहरा के वोटों की गिनती 35, सुरेश भसीन के वोटों की गिनती 38 और अनूप मित्तल के वोटों की गिनती 47 हो गई । इस तरह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों के उम्मीदवार संजीव राय मेहरा चौथे चरण की गिनती में मुकाबले से बाहर हो गए । संजीव राय मेहरा को मिले अन्य वरीयताओं के वोटों की गिनती में पोल खुली कि उन्हें चुनाव जितवाने में लगे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों की सोच कितनी घटिया थी और उन्होंने कैसे कैसे हथकंडे अपनाए थे । दरअसल संजीव राय मेहरा को मिले वोटों में हैरान कर देने वाला तथ्य यह पाया गया कि 35 में से 22 लोगों ने दूसरी वरीयता का वोट ही नहीं दिया था । अनुमान यह लगाया जा रहा है कि चौधरियों ने अपने 'आदमियों' को दूसरी वरीयताओं के वोट न देने की हिदायत दी होगी ।  इस हिदायत के पीछे उनका उद्देश्य क्या रहा होगा, यह तो वही जानें - लेकिन इतनी बड़ी संख्या में क्लब-अध्यक्षों का दूसरी वरीयताओं का वोट न देना डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में नासमझी और टुच्चेपन के तत्वों के होने का तथ्य तो प्रस्तुत करता ही है
संजीव राय मेहरा को मिले 35 वोटों में से 22 ने भले ही दूसरी वरीयताओं के वोट नहीं दिए, लेकिन बाकी 13 ने दूसरी वरीयताओं के वोट दिए - और उनका बँटवारा सुरेश भसीन के लिए चकित करने वाला उपहार बन कर आया । पहले चरण की गिनती में तीसरे नंबर पर रहने वाले सुरेश भसीन चौथे चरण तक आते आते दूसरे नंबर पर तो आ गए थे, किंतु शुरू से ही पहले नंबर पर चल रहे अनूप मित्तल से वह अभी भी 9 वोट से पीछे थे । संजीव राय मेहरा के 13 वोटों के दूसरी वरीयताओं के वोटों में सुरेश भसीन ने 12 वोट पाकर लेकिन ऊँची छलाँग लगाई और अपने वोटों की संख्या को वह 50 पर ले गए । अनूप मित्तल को एक ही वोट मिला और उनके कुल वोटों संख्या 48 ही रह गई वोटों की गिनती के अंतिम चरण में यह जो अप्रत्याशित चमत्कार हुआ, उसे भले ही किस्मत की बात कहा जा रहा हो - लेकिन इससे भी अंततः वही बात सच साबित हुई है जो सयानों ने कही है कि किस्मत भी उसी का साथ देती है, जो खुद प्रयत्न करता है । सुरेश भसीन पिछले कई वर्षों से लगातार उम्मीदवार हो रहे थे, और हार रहे थे - और बुरी तरह हार रहे थे । तमाम सक्रियता के बावजूद डिस्ट्रिक्ट के चौधरियों तथा अन्य नेताओं के बीच उनकी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता का भाव नहीं बनता दिख रहा था । लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी, और वह लगातार अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का प्रयत्न करते रहे । उनकी चुनावी जीत साबित करती है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों और नेताओं की मदद के बिना भी लोगों का समर्थन जुटाया जा सकता है ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों और नेताओं को असली चोट लेकिन अनूप मित्तल से लगी है । अनूप मित्तल चुनाव से करीब दो-ढाई महीने पहले ही अचानक से उम्मीदवार बने थे । वह जिस अचानक तरीके से उम्मीदवार बने थे, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों को तगड़ा झटका लगा था - और प्रायः सभी चौधरी उनकी उम्मीदवारी की खिलाफत में जुट गए थे । कुछेक चौधरियों ने कोशिश की कि वह अनूप मित्तल को अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए राजी कर लें - लेकिन अनूप मित्तल उन्हें जब उनकी बात सुनते/मानते नहीं दिखे तो उन्होंने अनूप मित्तल के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया । रवि चौधरी और विनय भाटिया का इस्तेमाल करते हुए, उनके जरिए अनूप मित्तल की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने के जो प्रयास किए गए - वह घटिया राजनीति के विलक्षण उदाहरण हैं इसके बावजूद, वोटों की गिनती के अंतिम चरण में अप्रत्याशित रूप से अनूप मित्तल पिछड़ भले ही गए - लेकिन उन्होंने जिस तरह का समर्थन प्राप्त किया, वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों के लिए तगड़ा झटका तो है ही ।