Thursday, March 31, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में पेट्स के शिड्यूल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों में ललित खन्ना व दीपक गुप्ता के मुकाबले अशोक जैन के साथ किया जाने वाला पक्षपातपूर्ण फेबर शरत जैन को एक कठपुतली गवर्नर साबित कर रहा है क्या ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन के गले में अशोक जैन रूपी हड्डी ऐसी फँसी है कि अपने आप को बेचारा और कठपुतली टाइप का गवर्नर जताने/दिखाने का काम शरत जैन को खुद ही करना पड़ रहा है । उनकी ऐसी दशा देख कर उन लोगों को खासा तगड़ा झटका लगा है, जो उम्मीद कर रहे थे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शरत जैन - रमेश अग्रवाल की वैसी गुलामी नहीं करेंगे, जैसी जेके गौड़ ने की है । शरत जैन की हालत देख कर और उनकी बातें सुनकर लोगों को अब लगने लगा है कि शरत जैन की हालत तो जेके गौड़ से भी बदतर होने वाली है - और इसका उदाहरण पेट्स में अशोक जैन को दी गईं भूमिकाओं, और इन भूमिकाओं को देने के संबंध में पूछे गए सवालों के जबाव में शरत जैन द्वारा व्यक्त की गई लाचारगी में साफ साफ देखा जा सकता है । उल्लेखनीय है कि पेट्स में दूसरे उम्मीदवारों को तो एक एक और वह भी मामूली सी भूमिका दी गई है, जबकि अशोक जैन को पाँच पाँच भूमिकाएँ मिली हैं और सभी महत्वपूर्ण किस्म की हैं । शरत जैन ने इस पक्षपातपूर्ण व्यवहार के आरोप से अपने आप को बचाने के लिए सारा दोष डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर रमेश अग्रवाल के सिर मढ़ दिया है । कहीं कहीं तो उन्होंने यहाँ तक कह दिया है कि अशोक जैन को भूमिकाएँ उन्होंने दी नहीं हैं, बल्कि अशोक जैन के लिए उन भूमिकाओं को रमेश अग्रवाल ने उनसे छीना है । इस तरह की बातें करके शरत जैन ने अपनी जो कमजोरी और लाचारी 'दिखाई' है, उससे वस्तुतः यही संकेत दिया है कि वह रमेश अग्रवाल की बेईमानीपूर्ण मनमानियों के सामने जेके गौड़ जितने ही लाचार साबित होंगे - कुछेक लोगों का तो कहना है कि शरत जैन की बेचारगी भरी हालत देख कर तो लग रहा है कि उनकी स्थिति तो जेके गौड़ से भी गई-बीती है ।
अशोक जैन की उम्मीदवारी को लेकर शरत जैन को पहले से ही डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट के बाहर भी काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी है; पेट्स में अशोक जैन को मिली - या बकौल शरत जैन, रमेश अग्रवाल द्वारा छीनी गई - भूमिकाओं ने शरत जैन के लिए उस शर्मिंदगी को और बढ़ा दिया है । उल्लेखनीय है कि शरत जैन को डिस्ट्रिक्ट में भी और दूसरे डिस्ट्रिक्ट में के अपने कुछेक कलीग गवर्नर्स से भी सुनने को मिला कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को अपने क्लब से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का उम्मीदवार नहीं लाना चाहिए - क्योंकि इससे एक तरफ तो गवर्नर-काल खराब होता है, और दूसरी तरफ गवर्नर पर पक्षपात के आरोप लगते हैं तथा लोगों के बीच उसकी बदनामी होती है । इन बातों के प्रति पूरी पूरी सहमति व्यक्त करते हुए शरत जैन ने यह कह कर अपने को बचाने की कोशिश की कि अशोक जैन के उम्मीदवार बनने का उन्होंने तो विरोध किया था, किंतु इस मामले में क्लब में चूँकि वह अकेले पड़ गए और रमेश अग्रवाल का भी उन्हें समर्थन नहीं मिला - इसलिए अशोक जैन की उम्मीदवारी के साथ साथ ही उन्हें अपनी गवर्नरी भी करनी है । शरत जैन ने हालाँकि लोगों को आश्वस्त किया कि अशोक जैन की उम्मीदवारी के बावजूद वह अपनी डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी भी अच्छे से करेंगे, और गवर्नर के रूप में वह किसी भी उम्मीदवार के साथ कोई पक्षपात भी नहीं करेंगे ।
लेकिन पेट्स का जो शिड्यूल लोगों को मिला है, वह शरत जैन के उक्त आश्वासन को झूठा ठहराता है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों को पेट्स में जो भूमिकाएँ मिली हैं, उनमें पक्षपात साफ साफ दिख रहा है - और पक्षपात भी कोई छोटा-मोटा नहीं, बल्कि भारी-भरकम टाइप का है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों में ललित खन्ना व दीपक गुप्ता को तो एक एक आयोजन में, और वह भी लकी ड्रा के आयोजन में भूमिका निभाने का मौका मिला है, जबकि अशोक जैन को पाँच पाँच आयोजनों में भूमिकाएँ मिली हैं - और वह भी रजिस्ट्रेशन तथा वोट ऑफ थैंक्स जैसे महत्वपूर्ण आयोजनों में । इन दो आयोजनों के अलावा, अशोक जैन को ग्रुप सेशन कंडक्ट करने तथा फाइनेंस की जिम्मेदारी संभालने का 'काम' भी मिला है । इन चार के साथ साथ, उन्हें हॉल इंचार्ज का जिम्मा भी दिया गया है । यानि पेट्स में अशोक जैन को वह वह भूमिकाएँ मिली हैं, जिन्हें निभाते हुए वह हर समय लोगों के बीच उपस्थित व सक्रिय होंगे । ललित खन्ना और दीपक गुप्ता को न तो ज्यादा भूमिकाएँ मिलीं और जो एक एक भूमिका उन्हें मिली भी है, वह 'गेस्ट एपीरियंस' टाइप की ही है । शरत जैन से कुछेक लोगों ने पूछा भी कि क्या इसे पक्षपात नहीं कहेंगे ? शरत जैन को इस छोटे से सवाल पर मुँह छिपाना पड़ा; और जहाँ उनके लिए मुँह छिपाना संभव नहीं हो सका - वहाँ उन्होंने सारा दोष रमेश अग्रवाल के सिर मढ़ कर अपनी इज्जत बचाने की कोशिश की । शरत जैन का कहना रहा कि उन्होंने तो उम्मीदवारों के बीच इस तरह का पक्षपात करने का विरोध किया था, किंतु डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में रमेश अग्रवाल ने उनकी नहीं सुनी और जैसा चाहा, वैसा किया - और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के बावजूद उन्हें मजबूरी में चुप रह जाना पड़ा ।
शरत जैन की यह 'सफाई' लेकिन रमेश अग्रवाल की बजाए उनकी खुद की पोल खोलती है । रमेश अग्रवाल के बारे में तो सभी जानते हैं कि वह बेईमानीभरी सोच के व्यक्ति हैं, लेकिन शरत जैन क्यों उनके नक़्शे-कदम पर चल रहे हैं ? शरत जैन के इस रवैये पर उन लोगों को भारी झटका लगा है, जो शरत जैन में एक जिम्मेदार और स्वाभीमानी 'व्यक्ति' को देख रहे थे; जो उम्मीद कर रहे थे कि शरत जैन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टुच्ची किस्म की बेईमानियाँ नहीं करेंगे, और अपने आप को एक बेहतर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर साबित करने पर ध्यान देंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ की स्थिति ने लोगों को बुरी तरह से निराश किया है; इस निराशा को लोगों ने लेकिन यह सोच कर हजम कर लिया कि व्यक्तित्व के मामले में जेके गौड़ एक 'बेचारे' किस्म के व्यक्ति हैं, और रोटरी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद उनके व्यक्तित्व से चूँकि मेल नहीं खाता है - इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह अनफिट ही देखे/पाए गए । शरत जैन से लोगों को लेकिन एक अलग तरह की उम्मीद थी - किंतु रमेश अग्रवाल के सामने उन्होंने जिस तरह से समर्पण किया हुआ है, उससे वह जेके गौड़ से भी गए-गुजरे साबित हो रहे हैं । पेट्स के शिड्यूल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों में ललित खन्ना व दीपक गुप्ता के मुकाबले अशोक जैन के साथ जो पक्षपातपूर्ण फेबर होता हुआ दिख रहा है, उससे अशोक जैन को फायदा होगा या नहीं - यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन यह जरूर पता चल रहा है कि शरत जैन एक कठपुतली गवर्नर साबित होने की तरफ बढ़ रहे हैं ।

Wednesday, March 30, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 एफ में एचजेएस खेड़ा के शिकार रहे लोगों के समर्थन के बूते प्रेसीडेंशियल अवॉर्डी हरीश दुआ ने जिस तरह से पवन आहुजा की उम्मीदवारी के पक्ष में काम करना शुरू किया है, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का सारा नजारा बदलता नजर आ रहा है

लुधियाना । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत पवन आहुजा की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के काम में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरीश दुआ ने हाल के दिनों में जिस तरह की सक्रियता दिखाई है, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से जुड़े कुछेक ऐसे प्रसंग लोगों को याद आ रहे हैं - जो मौजूदा चुनावी लड़ाई में पवन आहुजा की उम्मीदवारी को मनोवैज्ञानिक लाभ पहुँचाने का काम कर रहे हैं । इस संदर्भ में सबसे मजेदार तथ्य यह है कि पवन आहुजा की तरह खुद हरीश दुआ भी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की कॉल निकलने के बाद अचानक तरीके से उम्मीदवार बने थे, और कैम्पेन के लिए कम समय मिलने के बावजूद चुनाव जीते थे । यानि कैम्पेन के लिए कम समय मिलने के बावजूद चुनावी लड़ाई को कैसे जीता जा सकता है, इसका हरीश दुआ को सत्यापित किया गया व्यावहारिक अनुभव है, जिसका फायदा स्वाभाविक रूप से पवन आहुजा को मिलेगा ही । उल्लेखनीय है कि छह वर्ष पहले हरीश दुआ का चुनाव मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल से हुआ था - रनवीर उप्पल लायन वर्ष के शुरू से ही उम्मीदवार बने हुए थे, और एक समय ऐसा लगता था कि वह निर्विरोध ही चुन लिए जायेंगे; किंतु चुनाव के दिन नजदीक आते आते डिस्ट्रिक्ट में ऐसा माहौल बना कि हरीश दुआ नाटकीय तरीके से उम्मीदवार बने और चुनाव भी जीत गए । छह वर्ष पहले का घटना चक्र इस वर्ष जिस तरह से दोहराया जाता नजर आ रहा है, उसमें बिरिंदर सिंह सोहल के लिए बदकिस्मती की बात यह है कि उन्हें रनवीर उप्पल से यह सीखने को भी नहीं मिल रहा है कि अचानक से जब आपके रास्ते में कोई आ जाता है, तो उससे निपटने के लिए क्या क्या गलतियाँ नहीं करना चाहिए ? बिरिंदर सिंह सोहल की इससे बड़ी बदकिस्मती और क्या होगी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जो रनवीर उप्पल लायन वर्ष के शुरू से उनके साथ थे, और हर संभव तरीके से उनकी उम्मीदवारी की मदद कर रहे थे - चुनाव से ठीक पहले उनके खिलाफ हो गए हैं ।
बिरिंदर सिंह सोहल के लिए मुसीबत की बात यह रही कि उनकी उम्मीदवारी की राह में काँटे बोने का काम खुद उनके पिता केएस सोहल तथा उनके राजनीतिक गुरू एचजेएस खेड़ा ने किया है । उनके विरोधियों का ही नहीं, उनके शुभचिंतकों का भी मानना और कहना है कि बिरिंदर सिंह सोहल तो व्यावहारिक बुद्धि रखते हैं और सभी को साथ लेकर चलना चाहते हैं, किंतु अपने पिता और अपने राजनीतिक गुरू की हरकतों के चलते उम्मीदवार के रूप में वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच शर्मिंदगी वाली स्थिति में पहुँच/फँस गए हैं । कहने को तो बिरिंदर सिंह सोहल मौजूदा लायन वर्ष के शुरू से ही उम्मीदवार हैं, लेकिन एक उम्मीदवार के रूप में वह कभी भी लोगों के बीच नहीं गए और न ही वह लोगों से मिले ही । क्लब्स के लोगों की बात तो जाने दीजिए, कई एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तक का कहना है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में बिरिंदर सिंह सोहल न तो कभी उनसे मिले, और न ही उन्हें कभी फोन तक किया । दरअसल वह पूरी तरह आश्वस्त रहे कि उनके पिता और उनके राजनीतिक गुरू ही उनकी नैय्या पार लगवा देंगे, और उन्हें कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । उनके पिता और उनके राजनीतिक गुरू ने लेकिन लोगों को जोड़ने की बजाए लोगों को अपने से दूर करने का काम किया । पिता और गुरू के भरोसे रहने के कारण ही बिरिंदर सिंह सोहल का क्लब्स के लोगों व पदाधिकारियों के प्रति तो उपेक्षापूर्ण रवैया था ही, पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तक को वह अपमानित करने से नहीं चूके । इसका प्रमाण तब मुखर रूप में सामने आया जब बिरिंदर सिंह सोहल की तरफ से कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को तो महँगे गिफ्ट मिले, जबकि अधिकतर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को सस्ते किस्म के गिफ्ट देकर टरका दिया गया । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को इस तरह से अपमानित करने को लेकर जब बिरिंदर सिंह सोहल से सवाल पूछे गए तो उनकी तरफ से यही सुनने को मिला कि उन्होंने तो वही किया, जो करने के लिए उनसे कहा गया ।
बिरिंदर सिंह सोहल की उम्मीदवारी का परिवारवाद का वास्ता देकर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रीत कँवल सिंह ने जब विरोध किया था, तब केएस सोहल ने सिख होने का वास्ता देकर प्रीत कँवल सिंह को मनाने का प्रयास किया था । उनके प्रयास पर प्रीत कँवल सिंह ने लेकिन भारी बबाल मचा दिया था और उन्होंने सवाल उठाया था कि लायनिज्म में हम परिवारवाद और सिखवाद चलायेंगे क्या ? इस मुद्दे पर प्रीत कँवल सिंह को लोगों के बीच जब अच्छी शाबाशी व प्रशंसा मिली और केएस सोहल की फजीहत हुई, तो केएस सोहल लोगों से माफी माँगने के लिए मजबूर हुए । यहाँ इस बात को याद करना प्रासंगिक होगा कि केएस सोहल तीन बार हारने/असफल रहने के बाद, चौथी बार में कामयाब हो सके थे - जो इस बात का प्रमाण है कि केएस सोहल को लोगों के बीच अपने लिए सम्मान और समर्थन जुटाने की कला नहीं आती है । बिरिंदर सिंह सोहल के शुभचिंतकों का कहना है कि बिरिंदर सिंह सोहल को अपने पिता की इस कमजोरी का पता होना चाहिए था, और गवर्नरी के चुनाव में उनके साथ जो हुआ था उससे सबक लेकर अपनी उम्मीदवारी की बागडोर पूरी तरह से अपने पिता को नहीं सौंपना चाहिए था । बिरिंदर सिंह सोहल के लिए बदकिस्मती की बात लेकिन यह है कि उन्हें पिता तो पिता, गुरू भी अपनी उम्मीदवारी के दुश्मन ही मिले । उनके राजनीतिक गुरु एचजेएस खेड़ा उनकी उम्मीदवारी को दाँव पर लगा कर अपने जुगाड़ में लग गए - उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल पर पहले तो दबाव बनाया कि वह उन्हें कन्वेंशन चेयरमैन बनाए; रनवीर उप्पल ने जब उन्हें बताया कि कन्वेंशन चेयरमैन तो वह बना चुके हैं, तो एचजेएस खेड़ा ने खुद को एमओसी बनाने की माँग रख दी - रनवीर उप्पल जब इसके लिए भी राजी नहीं हुए तो एचजेएस खेड़ा ने उन्हें धमकी दे दी कि बिरिंदर सिंह सोहल की तरफ से डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जो सहयोग करने का वायदा किया गया है, वह पूरा नहीं किया जायेगा और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को खराब कर दिया जायेगा । इससे साफ हुआ कि बिरिंदर सिंह सोहल डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जो पैसे खर्च करने वाले थे, उनके बदले में एचजेएस खेड़ा अपने लिए पद जुगाड़ने में लगे थे - और उसमें असफल रहने पर उन्होंने ऐसा माहौल पैदा कर दिया, जिससे कि बिरिंदर सिंह सोहल की बसी-बसाई 'दुनिया' उजड़ गई ।
केएस सोहल और एचजेएस खेड़ा ने बिरिंदर सिंह सोहल के लिए जो मुसीबत खड़ी की, उससे उबरने के लिए बिरिंदर सिंह सोहल को अब लोगों से मिलने-जुलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है - उनकी इस मजबूरी की लोग लेकिन खिल्ली उड़ा रहे हैं । वह जहाँ कहीं जाते हैं, और या किसी को फोन करते हैं तो कई जगह उन्हें सुनने को मिलता है कि 'अब हमारी याद आई है' या 'अब क्यों बात रहे हो' या 'अब क्या लेने आए हो' आदि-इत्यादि ।
एचजेएस खेड़ा के रवैये से बिरिंदर सिंह सोहल के लिए जो मुसीबत खड़ी हुई है, उसमें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरीश दुआ की सक्रियता से और इजाफा हुआ है । एचजेएस खेड़ा के रवैये से दरअसल डिस्ट्रिक्ट के कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स बुरी तरह खफा हैं, क्योंकि एचजेएस खेड़ा समय समय पर उन्हें तरह तरह से अपमानित करते रहे हैं; बिरिंदर सिंह सोहल की उम्मीदवारी के अभियान में भी कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को अपमानित होना पड़ा है - इसलिए उन सभी को अब एचजेएस खेड़ा से बदला लेने का मौका नजर आ रहा है । हरीश दुआ की चूँकि मल्टीपल में और उससे भी ऊपर की लायन-राजनीति में पकड़ व पहचान बनी हुई है, इसलिए एचजेएस खेड़ा से निपटने की इच्छा रखने वाले लोगों ने हरीश दुआ को समर्थन देकर उनके हाथ मजबूत किए हुए हैं । उल्लेखनीय है कि प्रेसीडेंशियल अवॉर्ड प्राप्त हरीश दुआ मल्टीपल लॉयन क्वेस्ट चेयरमैन हैं, जो पहले एचजेएस खेड़ा होते थे । इसके अलावा वह मल्टीपल काउंसिल के इस वर्ष के चुनाव में नोमीनेशन कमेटी के चेयरमैन बनाए गए हैं । तीन वर्ष पहले, उनके गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ब्लड बैंक को लेकर जो काम हुआ था, जिसके उद्घाटन समारोह में नरेश अग्रवाल तथा अरुणा ओसवाल जैसे बड़े नेताओं व पदाधिकारियों की उपस्थिति संभव हुई थी - उसके चलते हरीश दुआ को डिस्ट्रिक्ट व मल्टीपल के लायन सदस्यों के बीच ही नहीं, बल्कि उससे भी ऊपर के लायन नेताओं व पदाधिकारियों की प्रशंसा मिली है । प्रेसीडेंशियल अवॉर्ड इसी प्रशंसा का प्रतिफल व सुबूत है । हरीश दुआ की यह प्रशंसा व सफलता लेकिन चूँकि एचजेएस खेड़ा को पसंद नहीं आई, इसलिए उन्होंने हरीश दुआ को डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग करने/रखने का प्रयास किया और उनके खिलाफ षड्यंत्र करते रहे । एचजेएस खेड़ा के एक बड़े शिकार रहे हरीश दुआ को पवन आहुजा की उम्मीदवारी की बागडोर, एचजेएस खेड़ा से निपटने की इच्छा रखने वाले लोगों ने यही सोच कर सौंपी है कि हरीश दुआ ही इस चुनावी लड़ाई को प्रभावी व निर्णायक तरीके से संयोजित कर सकते हैं । कुछेक लोगों को शुरू में हालाँकि शक था कि अपने बिजनेस की व्यस्तताओं के बीच हरीश दुआ के लिए चुनावी लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभा सकना सचमुच संभव होगा क्या; किंतु हरीश दुआ ने जिस तरह से पवन आहुजा की उम्मीदवारी के पक्ष में काम करना शुरू किया है, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का सारा नजारा बदल गया है ।

Monday, March 28, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अशोक जैन की उम्मीदवारी के जरिए रमेश अग्रवाल ने शरत जैन को अलग-थलग करके सत्ता खेमे में फूट डालने तथा सत्ता खेमे से जुड़े लोगों को हतोत्साहित करने का जो काम किया है, उससे दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक उत्साहित हुए हैं

नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल ने अपने ही क्लब के अशोक जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का उम्मीदवार बना कर सत्ता खेमे के अधिकतर नेताओं को जिस तरह नाराज कर लिया है, उसके कारण अशोक जैन की उम्मीदवारी अपने शुरुआती चरण में ही मुसीबत में घिरती नजर आ रही है । इस मुसीबत में शरत जैन के रवैये के कारण और इजाफा और हो रहा है । शरत जैन यूँ तो भले व्यक्ति हैं, और किसी के भी खिलाफ सीधे सीधे कुछ कहने से बचते हैं - लेकिन अशोक जैन की उम्मीदवारी को लेकर जाहिर होने वाले उनके हाव-भाव लोगों को यह अहसास करवा रहे हैं कि अशोक जैन की उम्मीदवारी को लेकर वह खुश नहीं हैं । क्लब के उनके नजदीकियों का कहना है कि शरत जैन के अशोक जैन के साथ हालाँकि पुराने और गहरे संबंध हैं, लेकिन इस समय अशोक जैन की उम्मीदवारी जिस तरह आई है - उसमें शरत जैन को अपनी इम्पोर्टेंस घटती हुई नजर आ रही है, और इसलिए ही वह अशोक जैन की उम्मीदवारी को अपने खिलाफ रमेश अग्रवाल के एक षड्यंत्र के रूप में देख रहे हैं । कुछेक लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि सत्ता खेमे के लोगों के बीच अशोक जैन की उम्मीदवारी के खिलाफ जो बातें हो रही हैं, उन्हें उकसाने व भड़काने का काम शरत जैन ही कर रहे हैं । कहा/बताया जा रहा है कि शरत जैन सत्ता खेमे के लोगों को बता/समझा रहे हैं कि अशोक जैन के उम्मीदवार रहते दीपक गुप्ता की चुनावी जीत और आसान हो जाएगी । सत्ता खेमे के लोगों को भी लग रहा है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में इस बार अलग-अलग कारणों से काफी दम दिखेगा/रहेगा, इसलिए उनका मुकाबला करने के लिए सत्ता खेमे को एक विशेष रणनीति अपनानी होगी । शरत जैन सत्ता खेमे के लोगों के दिल-दिमाग में यह बैठाने का प्रयास करते हुए सुने जा रहे हैं कि अशोक जैन को उम्मीदवार बना कर वास्तव में दीपक गुप्ता का रास्ता आसान बनाया जा रहा है; और यह सब रमेश अग्रवाल सिर्फ उन्हें (यानि शरत जैन को) क्लब में अलग-थलग करने के लिए कर रहे हैं । दरअसल अशोक जैन की उम्मीदवारी के कारण शरत जैन की गवर्नरी का सारा 'प्रभाव' धूल में मिलता हुआ दिख रहा है । 
उल्लेखनीय है कि शरत जैन की उम्मीदवारी को लेकर लोगों के बीच दो प्रभाव 'बन' रहे थे : एक प्रभाव शो-बाजी का था, और दूसरे प्रभाव का संदेश राजनीतिक था । शरत जैन की गवर्नरी के संबंध में अभी तक जो कार्यक्रम हुए हैं, उनमें खास तरह की कलात्मक डिजाइन देखी गई और इसके लिए लोगों के बीच शरत जैन की सोच व व्यावहारिकता की तारीफ हुई है । अशोक जैन की उम्मीदवारी के चलते इस तारीफ पर अब लेकिन ब्रेक लग गया है । शरत जैन का अब जो भी कार्यक्रम अच्छे से होगा, उसका श्रेय अशोक जैन के खाते में जाएगा - क्योंकि लोग तो यही मानेंगे/समझेंगे कि अशोक जैन लोगों के बीच अपनी उम्मीदवारी की छाप छोड़ने के लिए कार्यक्रम अच्छे से कर रहे हैं । ऐसे में, शरत जैन के लिए अपनी गवर्नरी की शो-बाजी दिखा पाना मुश्किल हो जाएगा । शरत जैन की गवर्नरी में लोगों को डिस्ट्रिक्ट की राजनीति भी बदलती हुई दिख रही थी : अनुमान लगाया जा रहा था कि शरत जैन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश अग्रवाल की चूँकि वैसी गुलामी नहीं करेंगे, जैसी गुलामी जेके गौड़ ने उनकी की है - इसलिए शरत जैन और रमेश अग्रवाल के बीच दूरियाँ बनेंगी/बढ़ेंगी, और इसका असर डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक समीकरणों पर भी पड़ेगा । किंतु अशोक जैन की उम्मीदवारी से इसकी संभावना घट जाएगी । अशोक जैन की उम्मीदवारी की आड़ में रमेश अग्रवाल के लिए शरत जैन को उनकी गुलामी करने के लिए मजबूर करना आसान जाएगा । शरत जैन का 'उससे' इंकार करना अशोक जैन की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने के रूप में देखा - या दिखाया जाएगा, और तब रमेश अग्रवाल के लिए शरत जैन को घेरना और भी आसान हो जाएगा । इसीलिए शरत जैन और उनके समर्थकों को लगता है कि रमेश अग्रवाल ने अशोक जैन को सचमुच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने के लिए नहीं, बल्कि शरत जैन पर सवारी गाँठने के लिए उम्मीदवार बनाया है ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अगली 'लड़ाई' शुरू होते ही रमेश अग्रवाल ने सत्ता खेमे की तरफ से दिल्ली के उम्मीदवार की आवाज लगाना शुरू कर दिया था । उनकी इस आवाज का सत्ता खेमे के बाकी लोगों ने भी समर्थन ही किया था । सत्ता खेमे के नेताओं का एकमात्र उद्देश्य दरअसल दीपक गुप्ता को 'घेरने' का था - जिसके जरिए उन्हें मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल को किनारे/ठिकाने लगाए रखने का विश्वास था । इस 'उद्देश्य' और 'विश्वास' को दिल्ली के उम्मीदवार के जरिये पाने की रणनीति को पूरी तरह से परफेक्ट माना/पहचाना गया था । सत्ता खेमे के कुछेक नेताओं ने दिल्ली के उम्मीदवार के रूप में रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के वरिष्ठ सदस्य ललित खन्ना को सक्रिय होने के लिए इशारा कर दिया था, और ललित खन्ना ने उम्मीदवार के रूप में काम करना तथा डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच पैठ बनाना शुरू कर दिया था । ललित खन्ना की उम्मीदवारी को सैद्धांतिक रूप से भी और व्यावहारिक रूप से भी उपर्युक्त समझा गया था । ललित खन्ना की व्यावहारिकता को लेकर कुछेक लोगों को कुछ शिकायत जरूर थी, लेकिन उनकी उम्मीदवारी का सैद्धांतिक पक्ष इतना स्ट्रॉंग है कि व्यावहारिकता संबंधी शिकायत हल्की पड़ गई । ललित खन्ना चूँकि मुकेश अरनेजा के क्लब के हैं, इसलिए माना जा रहा है कि ललित खन्ना के उम्मीदवार होने की स्थिति में मुकेश अरनेजा के हाथ बँध जायेंगे - और इससे सत्ता खेमे को एक अलग तरह की ताकत मिलेगी । सत्ता खेमा यह ताकत पाने की तरफ बढ़ता, उससे पहले रमेश अग्रवाल ने अशोक जैन की उम्मीदवारी के जरिए सत्ता खेमे में फूट डालने तथा सत्ता खेमे से जुड़े लोगों को हतोत्साहित करने का काम कर दिया ।
अशोक जैन की उम्मीदवारी के चलते सत्ता खेमे में पड़ी इस फूट ने तथा उनके बीच फैली निराशा ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को उत्साहित किया है; उन्हें लग रहा है कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी के चलते उन्हें जो खतरा महसूस हो रहा था - अशोक जैन की उम्मीदवारी ने उस खतरे को दूर कर दिया है, तथा दीपक गुप्ता की राह को आसान बना दिया है । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के कुछेक शुभचिंतकों को हालाँकि यह भी लगता है कि अशोक जैन की उम्मीदवारी को लेकर सत्ता खेमे में जिस तरह की फूट और निराशा दिख रही है, और सत्ता खेमे के कई एक लोग अभी भी ललित खन्ना की उम्मीदवारी को हवा देने में लगे हैं - उससे अभी सत्ता खेमे की राजनीति के प्रति निश्चिन्त नहीं हुआ जा सकता है, और इसलिए दीपक गुप्ता की लापरवाही उनके लिए घातक भी साबित हो सकती है । रमेश अग्रवाल, शरत जैन और अशोक जैन के क्लब के लोगों का ही कहना है कि अशोक जैन को यदि लगेगा कि सत्ता खेमे के सभी लोगों का समर्थन उन्हें नहीं मिल रहा है, और सत्ता खेमे के लोग पूरे मन व तैयारी के साथ उनकी उम्मीदवारी के लिए काम नहीं कर रहे हैं, तो वह अपनी उम्मीदवारी वापस भी ले सकते हैं । इस तरह, अशोक जैन की उम्मीदवारी ने सत्ता खेमे की राजनीति को ही नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को भी अनिश्चय के भँवर में फँसा दिया है ।

Saturday, March 26, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 एफ में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में पवन आहुजा के रूप में मुसीबत और चुनौती को आमंत्रित करने का काम क्या सचमुच खुद बिरिंदर सिंह सोहल ने ही किया है ?

लुधियाना । पवन आहुजा की नाटकीय तरीके से अचानक प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में न सिर्फ गर्मी ला दी है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल को भी विवाद के घेरे में ला दिया है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दूसरे - और पुराने उम्मीदवार बिरिंदर सिंह सोहल के समर्थकों का आरोप है कि उन्होंने चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल तथा उनके साथी पूर्व गवर्नर्स व अन्य कई खास लोगों की कमरों तथा खाने-पीने की नाजायज माँगों को पूरा करने के लिए सहमति नहीं दी, इसलिए रनवीर उप्पल तथा उनके साथी पूर्व गवर्नर्स ने न केवल डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की जगह व तारीख बदल दी, बल्कि पवन आहुजा को जबरदस्ती का उम्मीदवार भी बना दिया है । उल्लेखनीय है कि पहले डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस दो-तीन अप्रैल को मनाली में होने की घोषणा की गई थी । किंतु पिछले दिनों अचानक से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल ने इमरजेंसी मीटिंग बुला कर डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तारीख 24 अप्रैल तथा जगह चंडीगढ़ कर दी । डिस्ट्रिक्ट के लोग जब तक यह समझने की कोशिश करते कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल को यह सब करने की जरूरत आखिर क्यों पड़ी, तब तक एक दूसरी अप्रत्याशित घटना यह घटी कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरीश दुआ के क्लब के पवन आहुजा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में कूद पड़े । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए नाटकीय तरीके से प्रस्तुत हुई पवन आहुजा की उम्मीदवारी पर लोगों को आश्चर्य दरअसल इसलिए हुआ, क्योंकि इससे पहले उनकी उम्मीदवारी की कोई चर्चा तक नहीं थी - और बिरिंदर सिंह सोहल की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में सभी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का समर्थन मिलता दिख रहा था तथा बिरिंदर सिंह सोहल सर्वसम्मति से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर घोषित होते हुए नजर आ रहे थे ।
किंतु बिरिंदर सिंह सोहल कामयाबी तक जब पहुँचने ही वाले थे कि उनके लिए हालात नाटकीय तरीके से बदल गए और उन्होंने अपने आपको चारों तरफ से घिरा हुआ पाया । कल तक जो लोग उनके समर्थक, सहयोगी और दोस्त बने हुए थे - उनमें से कई उनके विरोधी बन गए; और पवन आहुजा के रूप में सीधी चुनौती उनके सामने आ खड़ी हुई । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को लेकर होने वाली जो राजनीति अभी तक ठंडी-ठंडी पड़ी थी, उसमें बदली परिस्थितियों के चलते खासी गर्मी पैदा हो गई । इस गर्मी को और गर्म करने का काम किया बिरिंदर सिंह सोहल के समर्थकों ने - जिनका आरोप रहा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल और उनके साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स अपने लिए तथा अपने कुछेक खास लोगों के लिए मनाली के खास होटलों में ठहरने व खाने-पीने का विशेष इंतजाम करने की जिम्मेदारी बिरिंदर सिंह सोहल पर थोप रहे थे, जिसे पूरा करने से बिरिंदर सिंह सोहल ने इंकार कर दिया, तो बदला लेने के लिए उन्होंने बिरिंदर सिंह सोहल के समर्थन हाथ खींच लिया । बिरिंदर सिंह सोहल के समर्थकों का आरोप है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल तथा उनके साथी पूर्व गवर्नर्स ने पवन आहुजा से पूरे खर्चे-पानी का हिसाब फिक्स करके उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में जितवाने का आश्वासन देकर उम्मीदवार बना दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल तथा उनके साथी पूर्व गवर्नर्स की तरफ से बिरिंदर सिंह सोहल के समर्थकों के आरोपों का करारा जबाव सुनने को मिला - जिसमें कहा/बताया गया कि सर्वसम्मत समर्थन मिलने से बिरिंदर सिंह सोहल तथा उनके नजदीकी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स इतने अहंकार में आ गए थे कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल पर हावी होने की तथा डिस्ट्रिक्ट को अपनी मर्जी से चलाने की कोशिशें शुरू कर दी थीं; उनके रवैये को चूँकि किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था, इसलिए बिरिंदर सिंह सोहल की उम्मीदवारी पर बनी सर्वसम्मति को भंग करने के लिए मजबूर होना पड़ा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल तथा कुछेक अन्य पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की तरफ से कहा/बताया गया है कि बिरिंदर सिंह सोहल की उम्मीदवारी पर बनी आम सहमति को बिरिंदर सिंह सोहल तथा उनके नजदीकी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने डिस्ट्रिक्ट पर अपनी मनमानी थोपने तथा डिस्ट्रिक्ट कार्यक्रमों को अपनी मनमर्जी से चलाने के लाइसेंस के रूप में समझ लिया; बिरिंदर सिंह सोहल ने तो अपने आपको डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ही समझ लिया था - जिसे देख कर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच काफी तीखी प्रतिक्रिया हुई । कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को लगा कि बिरिंदर सिंह सोहल के जब 'अभी' यह तेवर हैं, तो चुने जाने के बाद तो वह किसी को कुछ समझेंगे ही नहीं । दबे स्वर में हालाँकि बिरिंदर सिंह सोहल और उनके समर्थकों के आरोपों को भी कुछ हद तक स्वीकार किया गया और माना गया कि इंतजाम संबंधी मामलों में भी बिरिंदर सिंह सोहल का रवैया सहयोगात्मक नहीं रहा ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल के नजदीकियों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के आयोजन से जुड़े कुछेक खर्चों को पूरा करने की जिम्मेदारी उम्मीदवार के रूप में बिरिंदर सिंह सोहल ने पहले तो ले ली थी, किंतु जब उन जिम्मेदारियों को निभाने का समय आया - तो वह तरह तरह की बहानेबाजी करके उन जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश करने लगे । उनके इस रवैये के कारण मनाली में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस कर पाना संभव नहीं रह गया, और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को चंडीगढ़ लाना/करना मजबूरी हो गया । मजे की बात यह है कि बिरिंदर सिंह सोहल के कुछेक समर्थकों का ही कहना है कि अपने व्यवहार और कुछ पैसे बचाने के चक्कर में बिरिंदर सिंह सोहल ने अपने ही पैरों पर अपने आप कुल्हाड़ी मार ली है, और पास आती गवर्नरी को अपने से दूर कर लिया है । उनके साथ हमदर्दी रखने/दिखाने वाले लोगों का ही कहना है कि बिरिंदर सिंह सोहल के पिता केएस सोहल भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे हैं और तीसरी/चौथी बार में वह सफल हो पाए थे - इस नाते से उन्हें तो गवर्नरी की राजनीति के अच्छे-बुरे पक्षों की जानकारी व पहचान होनी ही चाहिए थी और सावधान रहना चाहिए था । बिरिंदर सिंह सोहल के समर्थकों व शुभचिंतकों का ही कहना है कि बिरिंदर सिंह सोहल पता नहीं क्यों, यह समझने में फेल हो गए कि लायन राजनीति का जो ट्रेंड बना हुआ है, उसे आप चाहें पसंद करें या न करें - एक उम्मीदवार के रूप में आपको उनका पालन करना ही होगा ! बिरिंदर सिंह सोहल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उनके विरोधी तो विरोधी, उनके समर्थक व शुभचिंतक भी उनके मुसीबत में फँसने के लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं ।
पवन आहुजा ने इस बीच लोगों से संपर्क साधने तथा उनके बीच अपने लिए समर्थन पैदा करने के जो प्रयास किए हैं, और उसके उन्हें जो सकारात्मक नतीजे मिलते दिख रहे हैं - उसने बिरिंदर सिंह सोहल के लिए हालात खासे चुनौतीपूर्ण बना दिए हैं । बिरिंदर सिंह सोहल और पवन आहुजा के बीच बिछी चुनावी बिसात ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी तो पैदा कर ही दी है, साथ ही साथ नए राजनीतिक समीकरण बनने/बनाने की संभावनाएँ भी पैदा कर दी हैं ।

Thursday, March 24, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की चुनावी राजनीति में सुनील निगम और शिव कुमार चौधरी को लगे तगड़े वाले झटके की खबर में मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारी तथा नेता जिस तरह से दिलचस्पी लेते देखे जा रहे हैं - उससे उनकी मल्टीपल की चुनावी राजनीति भी चौपट हो गई नजर आ रही है

गाजियाबाद । विनय मित्तल को डिस्ट्रिक्ट ही नहीं, बल्कि मल्टीपल में मिली ऐतिहासिक जीत के साथ फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी की और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उनके उम्मीदवार के रूप में रेखा गुप्ता की जो चुनावी दुर्गति हुई है, उसने मल्टीपल की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के नेताओं को खासा हैरान किया है । मजे की बात यह है कि उनकी इस हैरानी के लिए खुद शिव कुमार चौधरी ही जिम्मेदार हैं । मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के नेताओं के अनुसार, शिव कुमार चौधरी दरअसल उनके सामने अपनी राजनीति की और लोगों के बीच अपने असर/प्रभाव की ऐसी ऐसी तथा इतनी डींगें हाँकते/मारते रहे हैं कि अब जब असलियत सामने आई तो पता चला कि शिव कुमार चौधरी के लिए किसी को चुनाव जितवा पाना तो दूर की बात, उनका खुद का जीतना मुश्किल भरा है । विरोधी पक्ष के कुछेक लोगों को अब इस बात का अफसोस हो रहा है कि उन्होंने शिव कुमार चौधरी के खिलाफ नेगेटिव वोट डालने/डलवाने का कैम्पेन क्यों नहीं चलाया ? उन्हें लग रहा है कि वह यदि थोड़ी सी भी दिलचस्पी लेते तो शिव कुमार चौधरी के खिलाफ 51 प्रतिशत से अधिक वोट पड़ जाते । बिना कोई विरोधी कैम्पेन चलाए ही, स्वतःस्फूर्त तरीके से लोगों के बीच पनपे/पैदा हुए विरोध के चलते शिव कुमार चौधरी को जब इतने नेगेटिव वोट पड़ गए कि वह गवर्नर पद 'हारने' से बस बाल बाल ही बच सके - तो समझा जा सकता है कि लोगों के बीच उनके प्रति कितनी नापसंदगी है और उनका कितना विरोध है । मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के नेताओं व पदाधिकारियों को यह जान कर तो और भी हैरानीभरा झटका लगा है कि शिव कुमार चौधरी तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उनके उम्मीदवार को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल तथा आपने आप को भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में 'देख' रहे अरविंद संगल व अरुण मित्तल सहित डिस्ट्रिक्ट के कई अन्य तुर्रमखाँ पूर्व गवर्नर्स सहित मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील निगम का खुला व सक्रिय समर्थन मिल रहा था - लेकिन फिर भी वह रिकॉर्ड-तोड़ चुनावी दुर्गति का शिकार हुए ।
मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के नेताओं को शिव कुमार चौधरी की इस रिकॉर्ड-तोड़ चुनावी दुर्गति में दरअसल इसलिए दिलचस्पी हुई है, क्योंकि शिव कुमार चौधरी ने अपने आप को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन की चुनावी राजनीति में इन्वॉल्व किया हुआ था, और वह यह इंप्रेशन देने का प्रयास कर रहे थे कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में वह बड़ी और निर्णायक भूमिका निभायेंगे । मल्टीपल के दो-तीन फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के साथ ग्रुप 'बना' कर वह मल्टीपल की राजनीति में अपनी भूमिका 'बनाने' का प्रयास कर रहे थे । शिव कुमार चौधरी के इस प्रयास के भरोसे ही सुनील निगम भी मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने का 'सपना' देखने लगे थे । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को अपनी मुट्ठी में करने की सुनील निगम और शिव कुमार चौधरी की तिकड़मी कोशिशों को लेकिन जैसा करारा झटका लगा है, उससे मल्टीपल की इनकी राजनीति भी चौपट हो गई है ।
सुनील निगम और शिव कुमार चौधरी की जोड़ी तथा उनके समर्थक तुर्रमखाँ नेताओं को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जो जोर का झटका लगा है, वह सिर्फ वोटों की गिनती के मामले में मिली हार ही नहीं है - बल्कि सोच की, मानसिकता की और रणनीति के मामले में मिली हार भी है । इस 'हार' का पहला संकेत तभी मिल गया था, जब विनय मित्तल के मुकाबले पर रेखा गुप्ता को उम्मीदवार के रूप में लाया गया । इस 'फैसले' की प्रेरणा के पीछे विनय मित्तल की स्थिति व हैसियत को कम आँकने की 'मूर्खता' काम कर रही थी । सिर्फ इस तथ्य को ही अनदेखा नहीं किया गया कि विनय मित्तल पिछले कई वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी लड़ाई के मैनेजमेंट के मुख्य साझीदार रहे हैं, और इस नाते से चुनावी मोर्चे की 'संकरी गलियों' से तथा चुनावी लड़ाई को प्रभावित करने वाले उतार-चढ़ावों से भी अच्छे से परिचित हैं - बल्कि इस सच्चाई से भी ऑंखें मूँद ली गईं कि विनय मित्तल और मुकेश गोयल की जोड़ी एक और एक दो का नहीं, बल्कि ग्यारह का जोड़ बनाती है । अनीता गुप्ता, एलएम जखवाल व सुनील जैन जैसे 'खाड़कू' टाइप के नेताओं ने विनय मित्तल की उम्मीदवारी को और ताकत दे दी थी । रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी को बड़बोले शिव कुमार चौधरी का समर्थन था, जो डिस्ट्रिक्ट के कई एक 'फूफा' टाइप के पूर्व गवर्नर्स का समर्थन जुटाने में तो कामयाब रहे थे - लेकिन जिस तरह भारतीय परिवारों में फूफा नाम के रिश्तेदार कुछ करने के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ अपनी खातिर/तवज्जो की चिंता करने और इसमें कमी रह जाने पर अच्छे भले काम में विध्न-बाधा डालने से भी परहेज न करने के चलते बदनाम रहे हैं, उसी तर्ज पर 'फूफा' टाइप के पूर्व गवर्नर्स से रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी को न तो कोई मदद मिलना थी - और वास्तव में न वह मिली ही ।
शिव कुमार चौधरी तथा कई एक पूर्व गवर्नर्स का समर्थन रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी को मिल तो गया, किंतु वह चुनावी रणनीति बनाने तथा उसे क्रियान्वित करने में बुरी तरह विफल रहा । चुनाव वाले दिन की घटना से इसे समझा जा सकता है : चुनाव से पिछली शाम/रात मुकेश गोयल ने क्रेडेंशियल जारी करने की माँग की, जिसे रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक खेमे ने मान लिया; किंतु सुबह होते होते विनय मित्तल की उम्मीदवारी के समर्थक खेमे के नेताओं ने भाँप लिया कि यह माँग उन्हें उल्टी पड़ गई है क्योंकि रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों ने मौके का फायदा उठा कर अपने पक्ष के ज्यादा क्रेडेंशियल जारी कर दिए हैं । विनय मित्तल के समर्थक नेताओं ने तुरंत पैंतरा बदला और वह क्रेडेंशियल जारी करने का विरोध करने लगे । इस मुद्दे पर अनीता गुप्ता ने जो तांडव रचा और एलएम जखवाल व सुनील जैन ने उनके इस तांडव के लिए जैसी फील्डिंग सजाई, उसे देख कर रेखा गुप्ता के समर्थकों के छक्के छूट गए । वह बेचारे बस यही रट लगाते रहे कि क्रेडेंशियल जारी करने की माँग मुकेश गोयल ने ही तो की थी । वह यह समझने में पूरी तरह विफल रहे कि अनीता गुप्ता, एलएम जखवाल व सुनील जैन की तिकड़ी जो कर रही है, वह दरअसल सुविचारित तरीके से तैयार किया गया 'माइंड-गेम' है, जिसका उद्देश्य लोगों के बीच यह प्रभाव बनाना/दिखाना है कि वह दूसरे पक्ष पर भारी हैं । क्रेडेंशियल के मुद्दे पर रेखा गुप्ता के समर्थकों ने जिस तरह से समर्पण किया, उससे विनय मित्तल के समर्थकों का उद्देश्य पूरा हो गया । चुनाव वाले दिन लोगों के बीच चर्चा सुनी गई कि रेखा गुप्ता के समर्थकों ने कुछेक गुंडे टाइप के लोगों को बुलाया हुआ है; विनय मित्तल के समर्थकों ने इसका दो तरीके से इंतजाम किया - उन्होंने भी कुछेक गुंडे टाइप के लोगों को तो बुलाया ही, साथ ही पुलिस भी बुला ली । विनय मित्तल के समर्थकों के इस दोतरफा इंतजाम को देख कर रेखा गुप्ता के समर्थकों के पसीने छूट गए । हालात को प्रतिकूल देख कर सुशील अग्रवाल, कुञ्ज बिहारी अग्रवाल, अरविंद संगल आदि तो पतली गली से निकल भागे; मुकाबला करने के लिए अरुण मित्तल, सुनील निगम, शिव कुमार चौधरी रह गए । विनय मित्तल के समर्थकों को जब यह अहसास हुआ कि यह लोग भी चुनावी प्रक्रिया को पूरी किए बिना 'निकलने' के चक्कर में हैं, तो मुकेश गोयल ने मोर्चा संभाला और उन्होंने इन्हें बता दिया कि चुनावी प्रक्रिया यदि पूरी नहीं की गई, तो वह निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील जैन को जिम्मेदारी सौंप कर चुनावी प्रक्रिया पूरी करा लेंगे और शिव कुमार चौधरी को 51 प्रतिशत से अधिक नेगेटिव वोट रिपोर्ट करवा/दिखवा देंगे । मुकेश गोयल की यह धमकी काम कर गई, तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनील निगम ने 'अपने' उम्मीदवार की हार स्वीकार करने और उसकी सार्वजनिक घोषणा करने की औपचारिकता निभाई ।
सुनील निगम और शिव कुमार चौधरी को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जो तगड़ा वाला झटका लगा है, उसकी खबर में मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारी तथा नेता जिस तरह से दिलचस्पी लेते देखे जा रहे हैं - उससे उनकी मल्टीपल की चुनावी राजनीति भी चौपट हो गई नजर आ रही है ।

Tuesday, March 22, 2016

रोटरी ब्लड बैंक के नए बने अध्यक्ष विनोद बंसल ने कम समय में ही जिस तरह का कायाकल्प किया है, वह आश्वस्त करता है कि उनकी अध्यक्षता में रोटरी ब्लड बैंक को वह पहचान अवश्य ही मिल सकेगी, जिस पहचान के सपने के साथ इसकी स्थापना की गई थी

नई दिल्ली । विनोद बंसल को रोटरी ब्लड बैंक का अध्यक्ष पद का कार्यभार सँभाले अभी मुश्किल से 40 दिन हुए हैं, लेकिन इन 40 दिनों में यहाँ की जो कायापलट हुई है - उसे देखने/जानने वालों को खासी हैरानी हुई है । एक रोटेरियन ने बताया कि पिछले अनुभवों के कारण वह अपनी आवश्यकतापूर्ति के लिए यहाँ नहीं आना चाहते थे, लेकिन कुछेक लोगों से उन्होंने जब सुना कि यहाँ की प्रशासनिक टीम में तब्दीली हुई है और हालात बेहतर हुए हैं - तो वह यहाँ आए, और यहाँ के बदले हालात देख कर सचमुच चकित हैं । एक अन्य रोटेरियन का कहना रहा कि पिछले काफी समय से उन्होंने यहाँ के हालात को बद से बदतर होते हुए देखा है, और उन्होंने समझ लिया था कि रोटरी ब्लड बैंक जैसे अपनी अंतिम साँसे गिन रहा है, और कभी भी 'वीरगति' को प्राप्त हो जायेगा; लेकिन अब बदली हुई स्थितियों को देख कर उन्हें लग रहा है कि जैसे रोटरी ब्लड बैंक को नया जीवन मिल गया है । सर्विस के स्तर पर बुरा हाल था - आवश्यकतापूर्ति के लिए यहाँ आने वाले लोगों की स्टाफ के खराब व्यवहार को लेकर तो बहुत ही आम शिकायत थी; शिकायतकर्ताओं का कहना होता था कि स्टाफ का व्यवहार तो कभी कभी अपमान करने तक की हद तक जा पहुँचता था । इससे भी बड़ी समस्या यह होती कि अक्सर ही लोगों को उनकी जरूरत का ब्लड नहीं मिल पाता था । ब्लड बैंक की व्यवस्था के स्तर पर हालत यह बन गई थी कि ब्लड की आमद और सप्लाई में कोई सामंजस्य नहीं रह गया था; जिस का नतीजा यह हो रहा था कि खर्चे तो न सिर्फ पूरे पूरे बने हुए थे, बल्कि बढ़ भी रहे थे - जबकि आमदनी लगातार घटती जा रही थी । सबसे ज्यादा बुरी बात यह हो रही थी कि यहाँ इकठ्ठा हुए ब्लड का कोई इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था, और काफी ब्लड इस्तेमाल होने की बजाए नाली में बहाया जा रहा था । रोटरी ब्लड बैंक का घोषित किया गया कोई लक्ष्य/उद्देश्य पूरा नहीं किया जा पा रहा था, और लगातार बढ़ते घाटे के चलते यह एक बड़ा बोझ बनता जा रहा था ।
वर्ष 2001 में पाँच करोड़ रुपए से अधिक की लागत से पंद्रह हजार वर्गफुट जगह में बने अत्याधुनिक सुविधाओं वाले सेंट्रली एयरकंडीशंड रोटरी ब्लड बैंक का मिशन स्टेटमेंट है : 'दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में किसी को भी खून की कमी का शिकार नहीं होने दिया जायेगा ।' लेकिन इसकी व्यवस्था और इसकी हालत ने इसके इस मिशन स्टेटमेंट को बस एक बड़बोला बयान भर बना कर रख दिया था ।
बुरी बात यह हो रही थी कि तमाम बड़े रोटेरियंस और पदाधिकारी 'यह' देख रहे थे और रोटरी ब्लड बैंक को बर्बाद होते देख चिंता भी व्यक्त कर रहे थे, किंतु इसे बचाने के लिए कुछ करना तो दूर - कुछ कहने से भी बच रहे थे । कारण यह था कि रोटरी ब्लड बैंक के अध्यक्ष पद पर पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुदर्शन अग्रवाल कुंडली मार कर बैठे हुए थे, और किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह सुदर्शन अग्रवाल से कह पाता कि - 'महाराज, आपसे यहाँ की जिम्मेदारी जब सँभल नहीं रही है, तो इसे छोड़ क्यों नहीं देते ?' यहाँ इस तथ्य को याद करने तथा रेखांकित करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि यह ब्लड बैंक रोटरी को सुदर्शन अग्रवाल की ही देन है । सभी रोटेरियंस और पदाधिकारी यह मानते और कहते रहे हैं कि सुदर्शन अग्रवाल दिलचस्पी न लेते तो यह ब्लड बैंक बन नहीं पाता । इस ब्लड बैंक की नींव रखने से लेकर इसे चलाने/चलवाने तक का काम सुदर्शन अग्रवाल ने बखूबी किया है - उन्होंने जो किया है, शायद वही कर सकते थे । लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि जिस चीज को उन्होंने बनाया है, उसे 'मिटाने' की जिम्मेदारी भी उन्हें ही निभानी है । सुदर्शन अग्रवाल से उम्मीद की जाती थी कि उन्हें जब लगेगा कि ब्लड बैंक का काम उनसे नहीं हो पा रहा है, तो वह इसकी जिम्मेदारी छोड़ देंगे - किंतु जिम्मेदारी छोड़ने की बजाए उन्हें जिम्मेदारी से चिपके देखा गया; और इसके नतीजे के रूप में रोटरी ब्लड बैंक तबाह होता जा रहा था ।
रोटरी ब्लड बैंक की किस्मत शायद अच्छी है कि 'वन फाईन मॉर्निंग' सुदर्शन अग्रवाल को अहसास हुआ कि अब उन्हें रोटरी ब्लड बैंक का अध्यक्ष पद छोड़ देना चाहिए - सो, अध्यक्ष पद विनोद बंसल को सौंप कर वह इससे अलग हो गए । विनोद बंसल पिछले कुछ समय से रोटरी ब्लड बैंक में उपाध्यक्ष थे - शायद इसलिए भी सुदर्शन अग्रवाल ने अध्यक्ष पद उन्हें ही सौंपना उचित समझा हो । उपाध्यक्ष होने के नाते विनोद बंसल ब्लड बैंक की समस्याओं और उनके कारणों से परिचित थे ही, इसलिए वह तुरंत से सक्रिय हो गए तथा उन्होंने आवश्यक कदम उठाने में देर नहीं की । विनोद बंसल ने सबसे पहला काम स्टाफ के कान उमेठने का किया - उन्होंने स्टाफ से साफ कह दिया कि अपनी आवश्यकतापूर्ति के लिए ब्लड बैंक में आने वाले लोगों से स्टाफ के व्यवहार को लेकर उन्हें कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए । इसके साथ ही विनोद बंसल ने यह समझने और गणना करने का काम किया कि ब्लड बैंक से सप्लाई आखिर कितनी होती है और उसका पैटर्न क्या है, और इसे कैसे बढ़ाया व विविधतापूर्ण बनाया जा सकता है ? यह समझना और गणना करना उन्हें इसलिए जरूरी लगा ताकि उसी हिसाब से कैम्प आदि में इकठ्ठा हुए ब्लड को 'लिया' जाए । विनोद बंसल के अध्यक्ष-काल में यह पहली बार हुआ कि एमिटी में लगे कैम्प में जब आवश्यकता से अधिक ब्लड इकठ्ठा हो गया तो अतिरिक्त ब्लड नोएडा रोटरी ब्लड बैंक को दे दिया गया - इस तरह से अतिरिक्त ब्लड को नाली में बहाने से बचने का इंतजाम किया गया । विनोद बंसल ने ब्लड बैंक के खर्चों में कमी करने का अनोखा फार्मूला यह निकाला कि कुछेक खर्चे वाले काम - जैसे कैम्प में ब्लड डोनेट करने वाले लोगों पर होने वाले खर्चे को - उन्होंने रोटेरियंस से स्पॉन्सर करवाए । 
रोटरी ब्लड बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि विनोद बंसल ने सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण काम वास्तव में यह किया है कि अध्यक्ष पद का कार्यभार सँभालते ही उन्होंने ब्लड बैंक की छोटी  से छोटी बात से परिचित होने तथा उसे समझने/पहचानने का प्रयास किया तथा हर स्तर पर अपनी दिलचस्पी और संलग्नता दिखाई । स्टाफ को अनुशासित करने का काम उनकी इस दिलचस्पी व संलग्नता से ही हो गया । अपने अध्यक्ष-काल के अभी तक के करीब 40 दिनों में उन्होंने स्टाफ को जिस तरह से प्रेरित किया है और रोटेरियंस के बीच रोटरी ब्लड बैंक के प्रति जिस तरह की जागरूकता व संलग्नता दिखाने का भाव पैदा किया है, उसके अच्छे नतीजे मिलना/दिखना शुरू हो गए हैं । अभी तक के नतीजों ने विनोद बंसल को रोटरी ब्लड बैंक की जिम्मेदारी निभाने के प्रति खासा उत्साहित किया है; हालाँकि उन्होंने लोगों के बीच कहा है कि रोटरी ब्लड बैंक की स्थापना के मुख्य उद्देश्य को पाने के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है । अभी तक के नतीजे यद्यपि आश्वस्त जरूर करते हैं कि विनोद बंसल रोटरी ब्लड बैंक को वह पहचान अवश्य ही दिलवा सकेंगे, जिस पहचान के सपने के साथ इसकी स्थापना की गई थी ।

Monday, March 21, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में विनय मित्तल के सामने शिव कुमार चौधरी के भरोसे उम्मीदवार बनीं रेखा गुप्ता को बेहद शर्मनाक व डिस्ट्रिक्ट के इतिहास की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा

गाजियाबाद । विनय मित्तल की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर हुई जीत के 'आंकड़े' ने उन लोगों की आँख पर बँधी पट्टी को हटाने भर का काम किया है, जो दीवार पर साफ-साफ लिखी इबारत को अपने झूठे अहंकार के चलते पढ़ने से इंकार कर रहे थे । कुछेक नेता साफ साफ दिख रही सच्चाई को स्वीकार करने से इसलिए भी इंकार कर रहे थे, क्योंकि तब रेखा गुप्ता रूपी एटीएम से उन्हें पैसे मिलने बंद हो जाते । लेकिन अब चुनावी नतीजा सामने है, जिसमें रेखा गुप्ता 165 वोटों से पराजित घोषित हुईं हैं । रेखा गुप्ता को फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी ने उम्मीदवार बनाया था, और रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी की बागडोर पूरी तरह से शिव कुमार चौधरी के हाथ में ही थी । रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल का तथा डिस्ट्रिक्ट के सबसे वरिष्ठ पूर्व गवर्नर कुंजबिहारी अग्रवाल सहित अन्य कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का समर्थन था; और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील निगम भी उन्हें वोट दिलाने की होड़ में लगे हुए थे - तब भी रेखा गुप्ता को कुल 107 वोट मिल सके, और विनय मित्तल को मिले 272 वोटों की तुलना में वह 165 वोट पीछे रह गईं । बात सिर्फ यह नहीं है कि अपने आप को डिस्ट्रिक्ट का तुर्रमखाँ समझने वाले तमाम नेताओं के समर्थन के बावजूद रेखा गुप्ता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव हार गईं - बड़ी बात यह है कि अपने आपको तुर्रमखाँ समझने वाले तमाम नेताओं के समर्थन के बावजूद रेखा गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट में हार का एक बड़ा रिकॉर्ड बनाया है । उनकी हार सिर्फ शर्मनाक हार नहीं है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के चुनावी इतिहास की सबसे बड़ी हार भी है ।
यानि विनय मित्तल सिर्फ सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव भर नहीं जीते हैं, उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में जीत का एक बड़ा रिकॉर्ड भी बनाया है - और इस तरह से उन्होंने अपने विरोधियों को उनकी असल राजनीतिक औकात दिखाने का काम भी किया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में अभी तक बड़ी जीत का रिकॉर्ड सुशील अग्रवाल और अरुण मित्तल के नाम पर था । सुशील अग्रवाल ने अपना चुनाव 80 वोटों से जीता था, और अरुण मित्तल ने 83 वोटों से जीत हासिल की थी । विनय मित्तल ने लेकिन 165 वोटों से जीत प्राप्त करके इन दोनों के जीत के अंतर को बहुत पीछे छोड़ दिया है और डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के इतिहास में सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है ।
विनय मित्तल की चुनावी जीत को लेकर - रेखा गुप्ता से पैसे खींचने वाले तथा उनके पैसे पर अपनी राजनीति चमकाने में लगे कुछेक लोगों के अलावा - किसी को भी शक नहीं था । दरअसल व्यक्तित्व के मामले में, कामकाज के मामले में, लोगों के बीच पहचान के मामले में, लोगों से संपर्क व दोस्ती रखने के मामले में रेखा गुप्ता का विनय मित्तल से कोई मुकाबला ही नहीं था; लोगों को हैरानी ही हुई थी कि पता नहीं किस गलतफहमी में रेखा गुप्ता ने विनय मित्तल के मुकाबले उम्मीदवार बनने का फैसला कर लिया ? कोढ़ में खाज की बात यह हुई कि रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के मुख्य सिपहसालार शिव कुमार चौधरी बने । शिव कुमार चौधरी ने अपनी बातों और अपने व्यवहार से डिस्ट्रिक्ट में अपने विरोधी ही बनाए हैं; जिसके चलते लोगों ने मान/जान लिया कि रेखा गुप्ता ने अपनी हार का अंतर बढ़ा लिया है । उल्लेखनीय है कि रेखा गुप्ता की हार के अंतर ने हर किसी को हैरान किया है । मजे की बात यह है कि विनय मित्तल के समर्थकों/शुभचिंतकों तक को इस अंतर से जीतने की उम्मीद नहीं थी । दोनों तरफ के लोग हार/जीत के इतने बड़े अंतर के लिए शिव कुमार चौधरी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । लोगों का कहना है कि शिव कुमार चौधरी ने जब जब मुँह खोला, रेखा गुप्ता को मिलने वाले वोटों को घटाने का ही काम किया ।
शिव कुमार चौधरी की बातों व उनके व्यवहार ने खुद उन्हें भी नुकसान पहुँचाया । रेखा गुप्ता को जितने वोट मिले, शिव कुमार चौधरी को उससे ज्यादा नेगेटिव वोट मिले । उन्हें 150 से ज्यादा नेगेटिव वोट मिले । डिस्ट्रिक्ट के चुनावी इतिहास में यह भी एक नया रिकॉर्ड बना है । इस तरह सबसे ज्यादा नेगेटिव वोट पाकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने वाले शिव कुमार चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट के इतिहास में अपना नाम लिखवाया ।
विनय मित्तल और रेखा गुप्ता के बीच हुआ चुनाव इस बात के लिए भी याद रखा जायेगा कि यह चुनाव खासे हंगामाई तरीके से संपन्न हुआ । रेखा गुप्ता के समर्थकों की तरफ से बदतमीजी व बेईमानी करने के इंतजामों की भनक मिलते ही विनय मित्तल के समर्थकों ने पुलिस बुलवा ली, और फिर पुलिस की देखरेख में चुनावी प्रक्रिया संपन्न हुई । रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों की हरकतों को देख कर विनय मित्तल की उम्मीदवारी के समर्थकों ने अंदाजा लगाया कि अपनी हार को सुनिश्चित जान कर रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक नेता गड़बड़ी करके चुनाव को टलवा सकते हैं, इसलिए उन्होंने खासी होशियारी से कभी गर्म तो कभी नर्म रवैया अपना कर चुनावी प्रक्रिया को संपन्न करवाया । वोटिंग के दौरान लोगों के बीच यह चर्चा भी सुनी गई कि अपनी हार को सन्निकट देख/भाँप कर रेखा गुप्ता चुनाव से पहले अपनी उम्मीदवारी छोड़ देने के बारे में सोच रही थीं, लेकिन उनके समर्थक कुछेक नेताओं ने उन्हें आश्वस्त किया कि उम्मीदवारी ऐसे मत छोड़ो, छोड़ने के बदले में वह उन्हें विनय मित्तल से पैसे दिलवा देंगे । विनय मित्तल की तरफ से लेकिन इस तरह की सौदेबाजी करने से स्पष्ट इंकार कर दिया गया । उम्मीदवार के रूप में रेखा गुप्ता और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की इस चुनाव में जो हालत हुई है, वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का एक दिलचस्प अध्याय बन गया है ।

Saturday, March 19, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अशोक जैन को आगे करके रमेश अग्रवाल द्वारा चली गई चाल के खिलाफ शरत जैन की सक्रियता ने सत्ता खेमे में ललित खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थकों को मजबूत किया

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली अशोका के वरिष्ठ सदस्य अशोक जैन की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी की चर्चा जिस तेजी के साथ शुरू हुई थी, उसी तेजी के साथ वह विवाद में भी पड़ गई है । मजे की बात यह है कि यह विवाद भी उनके क्लब के दो 'गवर्नरों' की आपसी खींचतान के रूप में भड़का और फैला है । उल्लेखनीय है कि उम्मीदवार के रूप में अशोक जैन को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल की खोज के रूप में देखा गया है, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शरत जैन लोगों को बताते फिर रहे हैं कि अशोक जैन के बस की उम्मीदवार बनना है ही नहीं । दरअसल शरत जैन और उनके नजदीकी मान रहे हैं तथा लोगों को बता रहे हैं कि अशोक जैन की उम्मीदवारी के जरिए रमेश अग्रवाल वास्तव में क्लब में शरत जैन की बढ़ती हैसियत को रोकने का इंतजाम कर रहे हैं । रमेश अग्रवाल यह देख कर खासे परेशान हैं कि अपने क्लब में वह अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं, तथा शरत जैन ने क्लब के सदस्यों के बीच अपनी अच्छी पैठ बना ली है । इसका एक प्रमुख कारण तो यही है कि रमेश अग्रवाल गुजरे हुए समय के नेता हैं, जबकि शरत जैन आने वाले समय के नेता हैं - लोग चढ़ते सूरज को जल चढ़ाते हैं, डूबता हुआ सूरज 'साईट सीन' का मजा देने के अलावा और किसी काम का नहीं रह जाता । दूसरा कारण यह भी है कि रमेश अग्रवाल की तुलना में शरत जैन व्यावहारिक व्यक्ति हैं, और रमेश अग्रवाल जितने बद्तमीज नहीं हैं । रमेश अग्रवाल 'कारण' तो देख/समझ नहीं रहे हैं, वह तो बस यह देख/जान रहे हैं कि शरत जैन तेजी से उन्हें अपदस्थ करते जा रहे हैं । रमेश अग्रवाल समझ रहे हैं कि शरत जैन अभी उन्हें जो थोड़ी बहुत इज्जत दे भी रहे हैं, तो सिर्फ इसलिए, क्योंकि उन्हें अपने काम निकालने हैं; काम निकलने के बाद शरत जैन फिर उन्हें टके भाव नहीं पूछेंगे । यह आशंका सिर्फ रमेश अग्रवाल को ही नहीं है - बल्कि उनके क्लब के तथा डिस्ट्रिक्ट के लोगों को भी है कि शरत जैन ज्यादा दिन तक रमेश अग्रवाल को झेल नहीं पायेंगे । सभी यह जान/मान रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल की जैसी 'गुलामी' की है, वैसी गुलामी शरत जैन नहीं करेंगे । और इस 'नहीं करेंगे' में ही रमेश अग्रवाल व शरत जैन के रास्ते जुदा होने के बीज पड़ेंगे ।
समझा जाता है कि इस संभावित स्थिति को टालने के लिए ही रमेश अग्रवाल ने अशोक जैन को मोहरा बनाया है, और उनकी उम्मीदवारी की बात चला दी है । अशोक जैन को रमेश अग्रवाल के 'पक्के वाले आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । समझा जाता है कि शरत जैन की तरफ से रमेश अग्रवाल को जो जो खतरे हैं, उनसे बचने के लिए ही रमेश अग्रवाल ने अशोक जैन को उम्मीदवार रूपी मोहरा बनाने की चाल चली है । इस चाल को पहचानते हुए ही शरत जैन ने जबावी कार्रवाई शुरू कर दी है : रमेश अग्रवाल की इस चाल की हवा निकालने के लिए ही शरत जैन ने लोगों के बीच कहना शुरू किया है कि अशोक जैन के बस की उम्मीदवार 'बनना' है ही नहीं । शरत जैन का कहना है कि अशोक जैन बढ़िया व्यक्ति हैं, और पिछले कई वर्षों से क्लब में तथा डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय हैं - तथा रोटरी की चुनावी राजनीति की 'जरूरतों' को जानते/पहचानते हैं; इसलिए उम्मीद है कि वह इस पचड़े में नहीं पड़ेंगे । शरत जैन तथा उनके नजदीकियों को एक डर और है, तथा वह यह कि अशोक जैन जीतेंगे तो नहीं ही - और तब रमेश अग्रवाल उनकी हार का ठीकरा शरत जैन के सिर फोड़ेंगे और इस तरीके से वह शरत जैन को क्लब में बदनाम करेंगे । शरत जैन तथा उनके नजदीकी समझ रहे हैं कि अशोक जैन की उम्मीदवारी की बातें करने के पीछे रमेश अग्रवाल का वास्तविक उद्देश्य दरअसल क्लब में अपनी चौधराहट को बचाने व बनाए रखने - तथा शरत जैन को 'काबू' में रखने का ही है । शरत जैन तथा उनके नजदीकियों को विश्वास है कि अशोक जैन भी स्थिति को समझ रहे होंगे और रमेश अग्रवाल के जाल में नहीं फँसेंगे ।
शरत जैन तथा उनके नजदीकी हालाँकि सिर्फ अशोक जैन की 'समझ' के ही भरोसे नहीं बैठे हैं, उन्होंने खुद भी अशोक जैन की संभावित उम्मीदवारी के खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया है । शरत जैन की तरफ से सत्ता खेमे के दूसरे नेताओं को बताया गया है कि अशोक जैन उम्मीदवार की 'जरूरतों' को हरगिज हरगिज पूरा नहीं कर पायेंगे, और अशोक जैन को उम्मीदवार बनाए जाने का मतलब प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार दीपक गुप्ता को 'वॉक-ओवर' देना होगा । सत्ता खेमे में जो लोग दीपक गुप्ता के जबर्दस्त खिलाफ हैं, शरत जैन उन्हें यह बताने/समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि दीपक गुप्ता को यदि सचमुच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से रोकना है - तो उनके खिलाफ एक ऐसा उम्मीदवार लाना होगा, जो उम्मीदवार की 'जरूरतों' को समझता/पहचानता हो तथा उन्हें पूरा करने के लिए तैयार हो । उल्लेखनीय है कि सत्ता खेमे के काफी लोग ललित खन्ना की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त कर रहे हैं; समर्थन को 'घोषित' करना अभी इसलिए टाला जा रहा है जिससे कि सत्ता खेमे के सभी नेताओं की पूरी तरह से सहमति बन जाए और संगठित रूप से ललित खन्ना की उम्मीदवारी को समर्थन का ऐलान किया जाए । सत्ता खेमे के कई एक नेताओं का साफ कहना है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का मुकाबला करने के लिए ललित खन्ना ही हर तरह से परफेक्ट उम्मीदवार हैं । सत्ता खेमे के नेताओं से मिल रहे संकेतों से उत्साहित ललित खन्ना ने अपनी सक्रियता को संयोजित करना शुरू कर दिया है । अपने आपको एक गंभीर उम्मीदवार 'दिखाने' की तैयारी के तहत ही उन्होंने अभी हाल ही में कोलकाता में आयोजित लिटरेसी एंड वाश इन स्कूल्स प्रेसीडेंशियल कॉन्फ्रेंस में रोटरी के बड़े नेताओं के बीच अपनी उपस्थिति व सक्रियता को प्रदर्शित किया ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए होने वाले अगले मुकाबले में बनने वाले चुनावी समीकरणों में सत्ता खेमे के नेताओं को ललित खन्ना की उम्मीदवारी में इसलिए भी दम नजर आ रहा है, क्योंकि एक सिर्फ ललित खन्ना ही हैं जिनकी उम्मीदवारी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को मिलने वाली 'पावर-लाइन' को काट सकती है । सत्ता खेमे के नेताओं का मानना और कहना है कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी के सामने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के दो बड़े समर्थक मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल खुद-ब-खुद पीछे हट जायेंगे - मुकेश अरनेजा भले ही ललित खन्ना की उम्मीदवारी को पसंद न करें, लेकिन एक ही क्लब के होने के कारण उनके लिए ललित खन्ना की उम्मीदवारी का विरोध कर पाना मुश्किल ही होगा । नोएडा का होने के कारण सतीश सिंघल के लिए भी ललित खन्ना की उम्मीदवारी का वैसा विरोध कर पाना मुश्किल होगा, जैसा विरोध उन्होंने सुभाष जैन की उम्मीदवारी का किया था । सत्ता खेमे में ललित खन्ना की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले नेताओं को रमेश अग्रवाल की अशोक जैन को आगे करने की चाल से फिलहाल धक्का तो लगा है, लेकिन उन्हें विश्वास है कि अशोक जैन को लेकर रमेश अग्रवाल ज्यादा दूर तक चल नहीं पायेंगे । शरत जैन ने ही जिस तरह से अशोक जैन की उम्मीदवारी के खिलाफ झंडा उठा लिया है, उससे यह और स्पष्ट हो गया है कि अशोक जैन की उम्मीदवारी को जब उनके खुद के ही क्लब के शरत जैन का समर्थन नहीं मिल पा रहा है, तो अशोक जैन के लिए दूसरे लोगों का समर्थन जुटाना तो और भी मुश्किल होगा । अशोक जैन की उम्मीदवारी को लेकर रमेश अग्रवाल और शरत जैन के बीच जो 'शीत-युद्ध' छिड़ा है, उसने अभी लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को खासा दिलचस्प बना दिया है ।

Tuesday, March 15, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में करीब सौ सदस्यों की सदस्यता के साथ, मनोज देसाई व सुशील गुप्ता जैसे रोटरी के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं की मौजूदगी में खासे धूमधाम से डिस्ट्रिक्ट में 'शामिल' हो रहे योगेश गर्ग के नए क्लब का 'आगाज़' डिस्ट्रिक्ट में हलचल तो मचायेगा ही

गाजियाबाद । नवगठित रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के चार्टर प्रेजेंटेशन समारोह की तैयारी और तैयारी से जुड़ी चर्चाओं ने डिस्ट्रिक्ट 3012 की चुनावी राजनीति के नेताओं के बीच जिस तरह की हलचल मचाई हुई है, उसने एक दिलचस्प नजारा बनाया हुआ है । इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के उपस्थित होने के तथ्य ने वैसे भी समारोह को और नवगठित क्लब को उल्लेखनीय बना दिया है । मजे की बात है कि जब तक इस समारोह का निमंत्रण पत्र छपा और लोगों को मिला नहीं था, तब तक रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ और शरत जैन इस समारोह में मनोज देसाई के आने की बात को झूठा बता रहे थे और दावा कर रहे थे कि नवगठित क्लब के लोग मनोज देसाई को क्लब के कार्यक्रम में आने के लिए राजी ही नहीं कर पायेंगे । उनका तर्क था कि एक इंटरनेशनल डायरेक्टर के पास इतना समय ही नहीं होता है कि वह किसी क्लब के चार्टर प्रेजेंटेशन समारोह में शामिल हो सके । यूँ भी देखा जाता रहा है कि किसी क्लब का कोई बड़ा आयोजन हो या कोई प्रमुख प्रोजेक्ट हो - तो उसमें तो इंटरनेशनल डायरेक्टर शामिल होने के लिए समय निकाल लेते हैं; किंतु किसी नए क्लब के चार्टर प्रेजेंटेशन कार्यक्रम में इंटरनेशनल डायरेक्टर के मुख्य अतिथि बनने की बात थोड़ी अव्यावहारिक सी जरूर लगती है । इसी परसेप्शन का फायदा उठा कर रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ व शरत जैन ने नवगठित रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के चार्टर प्रेजेंटेशन समारोह को लेकर खासा दुष्प्रचार किया । यही तीनों नेता पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के भी इस समारोह में आने के दावे को झुठला रहे थे । इनका कहना था कि सुशील गुप्ता को तो 17 मार्च को दिल्ली से दूर किसी कार्यक्रम में जाना है, वह भला कैसे गाजियाबाद में होने वाले रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के समारोह में शामिल सकेंगे ? लेकिन समारोह के निमंत्रण पत्र जब लोगों को मिलना शुरू हुए, और लोगों ने निमंत्रण पत्र में मनोज देसाई का नाम मुख्य अतिथि के रूप में तथा सुशील गुप्ता का नाम विशिष्ट अतिथि के रूप में उसमें छपा देखा - तो रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ तथा शरत जैन की बोलती बंद हुई ।
नवगठित रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के प्रति रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ व शरत जैन का विरोध का भाव दरअसल इसलिए है - क्योंकि इसे योगेश गर्ग के क्लब के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि योगेश गर्ग इस नए क्लब को बनाने/बनवाने की प्रक्रिया में मौजूदा रोटरी वर्ष के शुरू से ही प्रयासरत थे, किंतु उक्त तिकड़ी उनके प्रयास में रोड़ा बनी हुई थी । दरअसल इस नए क्लब के गठन के पीछे योगेश गर्ग की राजनीतिक चाल को 'देखा' गया, जिसके पीछे छिपे उद्देश्य में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत सुभाष जैन की उम्मीदवारी को चोट पहुँचाने की 'सोच' को पहचाना गया था । योगेश गर्ग की राजनीतिक चाल को फेल करने के लिए सत्ता खेमे के नेताओं को उनके नए क्लब के बनने/बनाने की राह में रोड़े डालना जरूरी लगा - तो इसे चुनावी राजनीति की 'एक आवश्यक बुराई' के रूप में स्वीकार कर लिया गया । चुनावी राजनीति में होता ही है कि सभी पक्ष अपने अपने हथकंडे और अपनी अपनी तरकीबें अपनाते हैं, और इस प्रक्रिया में एक-दूसरे को कमजोर करने/बनाने के लिए नाजायज बातें/हरकतें तक करते ही हैं - खेमेबाजी की सीमाओं में इसे स्वीकार भी कर लिया जाता है । इसीलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव होने तक सत्ता खेमे के नेताओं ने योगेश गर्ग के नए क्लब की राह में रोड़े डालने का जो काम किया, उसे लेकर कोई बबाल नहीं हुआ - मजे की बात यह रही कि विरोधी पक्ष की तरफ से भी इस बात को कोई बड़ा मुद्दा बनाने का प्रयास नहीं हुआ । कुछेक लोगों का प्रयास था और उन्होंने योगेश गर्ग को भड़काने की कोशिश भी की थी कि इस मामले को वह 'बड़े' स्तर पर ले जाएँ - जिससे कि सत्ता खेमे के नेताओं पर दबाव भी पड़ेगा और राजनीतिक लाभ भी मिलेगा । योगेश गर्ग ने लेकिन बड़प्पन दिखाया और अपने 'राजनीतिक उद्देश्य' को पाने के लिए गंदगी करने की राह से दूर ही रहे । नए क्लब के गठन को वास्तविकता देने के लिए उन्होंने चुनाव के पूरा होने तक का इंतजार करना मुनासिब समझा और इंतजार किया । कुछेक लोगों ने इसे उनकी मजबूरी बताया - इसे मान भी लिया जाए तो भी योगेश गर्ग की इस बात के लिए तारीफ होनी ही चाहिए कि इस मजबूरी को उन्होंने पूरी गरिमा के साथ निभाया ।
उम्मीद की गई थी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव पूरा होने के बाद सत्ता खेमे की तिकड़ी योगेश गर्ग के नए क्लब के प्रति 'दुश्मनी' वाला विरोध का भाव नहीं रखेगी - और बाकी कार्रवाई आराम से पूरी हो जायेगी । यह उम्मीद इसलिए भी थी कि रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ और शरत जैन अपने अपने चुनाव में योगेश गर्ग की मदद लेने के लिए उनकी खुशामद कर चुके थे; और इन्हें योगेश गर्ग की मदद मिली भी थी - यह ठीक है कि इस वर्ष के राजनीतिक समीकरणों के चलते योगेश गर्ग चूँकि इनके साथ नहीं थे, और इसलिए इन्होंने योगेश गर्ग का क्लब समय से नहीं बनने दिया; लेकिन उम्मीद की गई थी कि योगेश गर्ग के अहसानों को याद करते/रखते हुए ये चुनाव हो जाने के बाद विरोधी रवैया नहीं अपनायेंगे और नाशुक्रे साबित नहीं होंगे । हालाँकि इसमें इन बेचारों की कोई गलती भी नहीं है । योगेश गर्ग ने दरअसल इन्हें जो धोबीपाट दिया, उससे इनकी सारी हेकड़ी निकल गई और फिर खिसिआहट में यह विरोधी बौखलाहट दिखाने को 'मजबूर' हुए । असल में, इन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस क्लब के बनने की राह में यह रोड़े बिछाते आ रहे थे, उसके चार्टर प्रेजेंटेशन समारोह में मनोज देसाई तथा सुशील गुप्ता जैसे रोटरी के बड़े लोग आयेंगे । इससे इन्हें दोतरफा चोट लगी : एक तरफ तो लोगों के बीच यह संदेश गया कि इन्होंने क्लब के बनने में बाधा खड़ी करके वास्तव में अपना छोटापन दिखाया; और दूसरी तरफ यह 'साबित' हुआ कि योगेश गर्ग चाहते तो इनकी बाधा(ओं) को फेल करके पहले ही क्लब बनवा लेते, लेकिन अपनी गरिमापूर्ण सोच के चलते उन्होंने ऐसा नहीं किया । इस दोतरफा चोट से, योगेश गर्ग के नए क्लब को न बनने देने में अपनी जीत का अहसास कर रहे तथा लोगों को इसे दिखा रहे सत्ता खेमे की तिकड़ी का सारा नशा उड़नछू हो गया और उन्हें अपनी जीत अपनी हार में बदलती दिखने लगी । इससे बचने का उनके पास एक ही तरीका था - और वह यह कि वह किसी भी तरह से मनोज देसाई और सुशील गुप्ता को नवगठित क्लब के चार्टर प्रेजेंटेशन समारोह से दूर कर दें ।
रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ और शरत जैन की तिकड़ी ने इसे करने के लिए अफवाहबाजी का सहारा लिया और इसी के तहत इन्होंने उड़ाया कि एक इंटरनेशनल डायरेक्टर किसी क्लब के चार्टर प्रेजेंटेशन जैसे छोटे समारोह में कैसे आ सकता है ? उल्लेखनीय है कि इसी तरह की अफवाहबाजी से पिछले दिनों इन्होंने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन का डिस्ट्रिक्ट 3011 की कॉन्फ्रेंस में जाना रद्द करवा दिया था । पिछले दिनों केआर रवींद्रन डिस्ट्रिक्ट 3012 के एक कार्यक्रम  सिलसिले में ठीक उन्हीं दिनों दिल्ली में थे, जिन दिनों दिल्ली में डिस्ट्रिक्ट 3011 की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस हो रही थी । इस बात का फायदा उठा कर डिस्ट्रिक्ट 3011 के पदाधिकारियों ने केआर रवींद्रन को अपने एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राजी करने का प्रयास किया, जिसे लेकिन रमेश अग्रवाल की खुराफाती खोपड़ी ने प्रोटोकॉल का कन्फ्यूजन फैला कर विफल कर दिया था । रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ व शरत जैन जैसे उनके सिपहसालारों ने योगेश गर्ग के नवगठित क्लब में मनोज देसाई व सुशील गुप्ता के आने को रोकने के लिए उसी तर्ज पर कन्फ्यूजन फैलाने का प्रयास तो खूब किया, किंतु योगेश गर्ग की तैयारी के चलते उनका प्रयास कामयाब नहीं हो सका । नए क्लब के गठन के मामले में योगेश गर्ग को मजबूर बना देने तथा 'दबा' देने में अपनी सफलता दिखा/जता रहे सत्ता खेमे की तिकड़ी पर योगेश गर्ग ने पलट कर जो 'हमला' किया है, उसने सत्ता खेमे के तिकड़ी नेताओं को चोट तो गहरी दी ही है, साथ ही डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों को भी प्रभावित करने के संकेत दिए हैं । माना जा रहा है कि करीब सौ सदस्यों की सदस्यता के साथ, मनोज देसाई व सुशील गुप्ता जैसे रोटरी के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं की मौजूदगी में खासे धूमधाम से डिस्ट्रिक्ट में 'शामिल' हो रहे एक नए क्लब का 'आगाज़' डिस्ट्रिक्ट में हलचल तो मचायेगा ही ।

Monday, March 14, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में सर्विस टैक्स की व्यवस्था के विरोध के पीछे कहीं लूट-खसोट को बनाए रखने की नीयत तो काम नहीं कर रही है ?

चंडीगढ़ । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चेतन अग्रवाल सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट में सर्विस टैक्स से जुड़े मामले का प्रतिनिधित्व करने के लिए डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के प्रेसीडेंट्स से पॉवर ऑफ अटॉर्नी माँगने/लेने के चलते मुसीबत में फँस गए हैं । कुछेक प्रेसीडेंट्स ने उनसे दोटूक तरीके से पूछा है कि सभी क्लब्स का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार उन्हें किसने दिया है; आखिर किसके कहने से उन्होंने यह तय कर लिया है कि सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट में डिस्ट्रिक्ट के सभी क्लब्स की तरफ से वह मामले की पैरवी करेंगे । चेतन अग्रवाल बेचारों को राजेंद्र उर्फ राजा साबू का नाम लेकर प्रेसीडेंट्स के गुस्से से अपने आप को बचाना पड़ा है । चेतन अग्रवाल ने लोगों को यह बताते हुए शांत करने का प्रयास किया है कि सर्विस टैक्स के मुद्दे पर राजा साबू ने उन्हें डिपार्टमेंट में पैरवी करने की जिम्मेदारी दी है । इस मामले में मधुकर मल्होत्रा व हेमंत अरोड़ा से उनकी मदद करने के लिए कहा गया है । प्रेसीडेंट्स के भड़कने का कारण दरअसल यह भी रहा कि पॉवर ऑफ अटॉर्नी के साथ-साथ चेतन अग्रवाल ने 100 रुपए प्रति सदस्य के हिसाब से पैसे जमा करने और देने का फरमान भी प्रेसीडेंट्स को सुनाया । उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ने के लिए पैसा खर्च करना होगा, और उसी खर्च को पूरा करने के लिए डिस्ट्रिक्ट के प्रत्येक सदस्य से 100-100 रुपए लेना तय किया गया है । मजे की बात यह रही कि चेतन अग्रवाल की तरफ से प्रेसीडेंट्स को जो पत्र मिला, उसमें पॉवर ऑफ अटॉर्नी की तो बात थी, लेकिन पैसों की कोई बात नहीं थी; इसके अलावा लोगों ने इस बात पर भी गौर किया कि अभी तो मामला चंडीगढ़ डिपार्टमेंट में है, मामला यदि बढ़ा और सुप्रीम कोर्ट तक जाने की बात आई भी - तो यह अभी बहुत बाद की बात है, इसके लिए अभी से पैसे क्यों लिए जा रहे हैं ? लोगों को लगा कि सर्विस टैक्स मामले की आड़ में कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने पैसे बनाने/कमाने का खेल शुरू कर दिया है । इसीलिए उनका गुस्सा चेतन अग्रवाल पर फूट पड़ा है । चेतन अग्रवाल यह कह कर अपनी जान बचाने की कोशिश करने के लिए मजबूर हो रहे हैं कि वह जो कुछ भी कह और कर रहे हैं, उसे कहने और करने के लिए उन्हें राजा साबू ने निर्देशित किया है ।
उल्लेखनीय है कि सर्विस टैक्स के मुद्दे पर पिछले कुछ समय से डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में खासा बबाल मचा हुआ है । सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट की तरफ से क्लब्स को सर्विस टैक्स चुकाने के मामले में सम्मन मिले हुए हैं, और क्लब्स के पदाधिकारियों के लिए यह समझना मुश्किल बना हुआ है कि वह करें तो क्या करें ? डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों व खास लोगों की बेसिरपैर की बयानबाजियों ने मामले को और गंभीर बना दिया है । औरों को तो छोड़ो, पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू का रवैया तक इस मामले में गैर जिम्मेदारी भरा रहा । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में राजा साबू ने लोगों को बताया था कि सर्विस टैक्स के मुद्दे पर किसी को भी चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उच्च न्यायालय के दो फैसलों में रोटरी के हक में निर्णय दिए गए हैं । किंतु कुछेक लोगों ने राजा साबू से जब उन दो फैसलों के डिटेल्स जानने चाहे, जिनका सहारा लेकर वह डिपार्टमेंट को अपना जबाव भेज सकें - तो राजा साबू बगलें झाँकने लगे । जाहिर है कि राजा साबू ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में लोगों के सामने झूठा दावा किया । उन्हें आखिर ऐसा झूठ बोलने की जरूरत क्यों पड़ी ? लोगों के लिए यह समझना भी मुश्किल हुआ कि राजा साबू ने जानबूझ कर झूठ बोला, या उन्हें खुद को ही झूठ ही पता था ? इन दोनों में से चाहे कोई सी भी बात सच हो, लेकिन राजा साबू के व्यवहार से एक सच यह जरूर सामने आया कि डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों - यहाँ तक कि राजा साबू ने भी सर्विस टैक्स के मामले को गंभीरता से नहीं लिया ।
मजे की बात यह है कि एमपी गुप्ता द्धारा बार-बार सचेत किए जाने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारियों ने सर्विस टैक्स मामले में लापरवाही दिखाई । एमपी गुप्ता रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के वरिष्ठ सदस्य हैं, और उन्होंने बार-बार लगातार डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारियों को आगाह किया कि सर्विस टैक्स के मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए अन्यथा क्लब्स के पदाधिकारियों को जो परेशानी होगी, वह तो होगी ही - साथ में रोटरी की बदनामी भी होगी । राजा साबू से लेकर डिस्ट्रिक्ट के दूसरे प्रमुख लोगों का रवैया सर्विस टैक्स को लेकर जहाँ लापरवाही वाला और विरोधपूर्ण है, वहाँ एमपी गुप्ता ने सर्विस टैक्स को लेकर संजीदा व सकारात्मक रवैया अपनाया/दिखाया है । एमपी गुप्ता का कहना है कि रोटेरियंस को सर्विस टैक्स को अपने 'दुश्मन' के रूप में नहीं, बल्कि अपने 'दोस्त' के रूप में देखना/पहचानना चाहिए; और उससे होने वाले फायदों पर गौर करना चाहिए । एमपी गुप्ता की दलील है कि अभी शुरू में सर्विस टैक्स को लेकर कुछेक व्यावहारिकतारूपी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन अंततः कुल मिलाकर इसमें सभी को फायदा मिलेगा । एमपी गुप्ता के अनुसार, सबसे बड़ा फायदा तो यह होगा कि क्लब व डिस्ट्रिक्ट में हिसाब-किताब रखना जरूरी हो जायेगा, जिससे कि पैसों की हेराफेरी होना/करना मुश्किल हो जायेगा, और पैसे का सही सही इस्तेमाल हो सकेगा । एमपी गुप्ता की इस तरह की बातों ने डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यह समझने का संकेत और मौका दिया है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक बड़े नेता आखिर क्यों सर्विस टैक्स से डरे हुए नजर आ रहे हैं, और क्यों इससे बचने की वकालत व कोशिश कर रहे हैं ?
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में और कुछेक क्लब्स में अक्सर ही पैसों की हेराफेरी को लेकर तरह तरह के सवाल और बबाल सुनने/देखने को मिलते रहते हैं । हो सकता है कि सभी मामलों में पैसों की हेराफेरी वास्तव में न होती हो; और हिसाब-किताब छिपाने के पीछे वास्तविक कारण हिसाब-किताब रखने में बरती जा रही अव्यवस्था ही हो - लेकिन इसके चलते आरोपों/प्रत्यारोपों का जो शोर सुनाई देता है, वह जिम्मेदार लोगों को 'चोर' व 'ठग' के रूप में पहचान देने का काम करता है । सर्विस टैक्स के घेरे में आने के बाद, इस तरह की बातें नहीं उठ सकेंगी और जिम्मेदार लोगों को नाहक ही 'चोर' व 'ठग' जैसे शब्दों से निशाना नहीं बनना पड़ेगा । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट के लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि हिसाब-किताब को नियमित बनाने/बनवाने तथा पैसों की हेराफेरी को बंद करवाने में सहायक हो सकने वाले सर्विस टैक्स के घेरे का विरोध क्यों किया जा रहा है ? खास बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक बड़े खास लोग ही सर्विस टैक्स की व्यवस्था में शामिल होने का विरोध करते हुए देखे जा रहे हैं । इसी से लोगों के बीच शक पैदा हो रहा है कि इसके विरोध के पीछे कहीं लूट-खसोट को बनाए रखने की नीयत तो काम नहीं कर रही है ? इसी शक के चलते, सर्विस टैक्स के मामले का प्रतिनिधित्व करने के लिए पॉवर ऑफ अटॉर्नी माँगने तथा चंदा जुटाने की भूमिका बनाने में चेतन अग्रवाल को लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा है ।

Thursday, March 10, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू के 'आशीर्वाद' के बावजूद मधुकर मल्होत्रा क्या प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी की संभावना को झंझटों में फँसा देने की तैयारी कर रहे हैं

चंडीगढ़ । राजेंद्र उर्फ राजा साबू - पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू के क्लब से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार जितेंद्र ढींगरा के खिलाफ चैलेंजिंग उम्मीदवार घोषित हो जाने के बावजूद प्रवीन चंद्र गोयल अपनी चुनावी जीत को लेकर आशंकित बने हुए हैं । अपने नजदीकियों के बीच उन्होंने आशंका भरे सवाल किए हैं कि जिन पूर्व गवर्नर्स के भरोसे वह चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं, वह पूर्व गवर्नर्स उन्हें चुनाव जितवा भी पायेंगे क्या ? अपनी आशंका, अपने डर और अपने सवाल को तर्कपूर्ण बनाने के लिए उन्होंने उदाहरण भी दिया कि इन्हीं पूर्व गवर्नर्स ने उन्हें अधिकृत उम्मीदवार चुनवाने को जिम्मा लिया था, लेकिन अपनी तमाम कोशिशों व तिकड़मों के बावजूद यह उन्हें अधिकृत उम्मीदवार चुनवा नहीं सके । प्रवीन चंद्र गोयल के पास डीसी बंसल का उदाहरणरूपी एक तर्क और है : प्रवीन चंद्र गोयल का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के सभी तुर्रमखाँ पूर्व गवर्नर्स ने डीसी बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने/बनवाने का बीड़ा उठाया था, लेकिन अपनी बेवकूफियों व हवाई दावों के चलते यह लोग अभी तक तो डीसी बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी नहीं बनवा सके हैं । प्रवीन चंद्र गोयल को डर है कि कहीं उनका हाल भी डीसी बंसल जैसा न हो ।
प्रवीन चंद्र गोयल को सबसे ज्यादा डर मधुकर मल्होत्रा से है । मजे की बात यह है कि मधुकर मल्होत्रा ही हैं जिन्होंने प्रवीन चंद्र गोयल को चुनाव जितवाने का बीड़ा अपने सिर उठाया हुआ है । लेकिन प्रवीन चंद्र गोयल उनकी ही भूमिका को लेकर आशंकित हैं । अपने नजदीकियों के बीच प्रवीन चंद्र गोयल ने आशंका जताई है कि मधुकर मल्होत्रा विश्वास करने योग्य व्यक्ति नहीं हैं - वह कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं; इसलिए उनके कहने पर विश्वास करने का मतलब है अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारना होगा । मधुकर मल्होत्रा को लेकर प्रवीन चंद्र गोयल की आशंका और उनका डर इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि मधुकर मल्होत्रा और प्रवीन चंद्र गोयल एक ही क्लब में हैं और क्लब में परस्पर विरोधी खेमे में सक्रिय रहते आए हैं; दोनों ही एक दूसरे को नीचा दिखाने और पीछे धकेलने के प्रयास करते रहे हैं । मधुकर मल्होत्रा को जो लोग जानते हैं, वह मानते हैं और कहते भी हैं कि मधुकर मल्होत्रा कभी नहीं चाहेंगे कि उनके क्लब में कोई और - और खासकर क्लब में उनके विरोधी खेमे का कोई सदस्य डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने । इसी कारण से, नोमीनेटिंग कमेटी के सामने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद लिए जिन उम्मीदवारों के नाम सामने थे - उनमें मधुकर मल्होत्रा का समर्थन प्रवीन चंद्र गोयल की बजाए नवजीत सिंह औलख को था । लोगों ने उनसे पूछा भी था कि अपने ही क्लब के प्रवीन चंद्र गोयल की बजाए वह दूसरे क्लब के नवजीत सिंह औलख की उम्मीदवारी का समर्थन क्यों कर रहे हैं ? मधुकर मल्होत्रा की तरफ से हर किसी को यही सुनने को मिला था कि प्रवीन चंद्र गोयल उनके क्लब के सदस्य जरूर हैं, लेकिन वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने लायक नहीं हैं । प्रवीन चंद्र गोयल को पक्का विश्वास है कि नोमीनेटिंग कमेटी में उनका जो खेल खराब हुआ और वह तमाम 'व्यवस्था' के बावजूद अधिकृत उम्मीदवार नहीं चुने जा सके, तो इसके लिए मधुकर मल्होत्रा ही जिम्मेदार हैं ।
प्रवीन चंद्र गोयल जिन लोगों से मधुकर मल्होत्रा को लेकर यह रोना रो रहे हैं, उनमें से कुछेक ने उन्हें यह कहते हुए ढाँढस बंधाने की कोशिश की है कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाना राजा साबू का उद्देश्य है, और मधुकर मल्होत्रा को तो राजा साबू के उद्देश्य को कामयाब बनाने की जिम्मेदारी मिली है - मधुकर मल्होत्रा भले ही आप को पसंद न करते हों, और न चाहते हों कि आप डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनें; लेकिन राजा साबू के उद्देश्य के खिलाफ जाना उनके बस की बात नहीं होगी, इसलिए आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है । ऐसा कहने वालों को प्रवीन चंद्र गोयल से सुनने को मिला है कि आप मधुकर मल्होत्रा को नहीं जानते, वह बड़ी ऊँची चीज हैं । वह क्या कहेंगे और क्या करेंगे, इसे समझना आसान नहीं है । प्रवीन चंद्र गोयल को आशंका और डर दरअसल इस कारण से है क्योंकि वह देख रहे हैं कि चुनावी प्रक्रिया को लेकर असमंजस बना हुआ है और किसी के सामने यह स्पष्ट नहीं है कि चैलेंज करने तथा कॉन्करेंस देने के लिए समय-सीमा क्या है और चुनाव कब होगा ? प्रवीन चंद्र गोयल का कहना है कि जब सब कुछ तय है और राजा साबू ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने का फरमान जारी कर दिया है, तथा सत्ता पक्ष के सभी लोग उनका फरमान पूरा करने के लिए तैयार हो गए हैं - तब फिर चुनावी प्रक्रिया को नियमानुसार और जल्दी से जल्दी पूरा क्यों नहीं करवा लिया जा रहा है, और चुनावी प्रक्रिया को लेकर नाहक ही मनमानी क्यों की जा रही है ? प्रवीन चंद्र गोयल तथा उनके शुभचिंतकों को लग रहा है कि चुनावी प्रक्रिया को लेकर की जा रही यह मनमानी उनका काम बिगाड़ सकती है, जैसा कि डीसी बंसल के मामले में हुआ है । उल्लेखनीय है कि डीसी बंसल के मामले में नाहक ही ऐसी ऐसी बेवकूफियाँ की गईं, जो उल्टी पड़ीं और बनता बनता काम बिगड़ गया । प्रवीन चंद्र गोयल को आशंका है तथा उन्हें डर है कि इस बार भी वैसा ही कुछ किया जा रहा है - और इस बार तो ऐसा लग रहा है जैसे कि जानबूझ कर किया जा रहा है । प्रवीन चंद्र गोयल इसीलिए मधुकर मल्होत्रा की भूमिका को लेकर सशंकित और डरे हुए हैं ।
इस वर्ष के चुनाव को लेकर चुनावी-प्रक्रिया के बाबत जो मनमानी होती हुई नजर आ रही है, उसमें सुना यह जा रहा है कि सत्ता खेमे के नेता इस वर्ष होने वाले वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव से पहले वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का चुनाव करवाना चाहते हैं - और इसके लिए वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव की प्रक्रिया को मनमाने तरीके से लंबा खींच देना चाहते हैं । वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर सत्ता खेमे की तरफ से डीसी बंसल का 'अधिकार' देखा जा रहा है, लेकिन मधुकर मल्होत्रा उनकी जगह नवजीत सिंह औलख को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाना चाहते हैं । प्रवीन चंद्र गोयल तथा उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों को लगता है कि वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का चुनाव पहले करवाने का फार्मूला मधुकर मल्होत्रा का ही है, और इस फार्मूले के पीछे मधुकर मल्होत्रा की नीयत वर्ष 2018-19 के लिए उनकी जीत की संभावना को धूमिल करना और या झमेले में फँसा देने की है । सत्ता खेमे के नेताओं के लिए इस बात पर यकीन करना हालाँकि मुश्किल तो हो रहा है कि मधुकर मल्होत्रा ऐसा कोई काम करेंगे, जिससे कि राजा साबू की और ज्यादा फजीहत हो - लेकिन पिछले करीब एक वर्ष में राजा साबू की जैसी छीछालेदर हुई है, उसे ध्यान में रखते हुए लोगों को लग रहा है कि राजा साबू को जब अपनी इज्जत की खुद ही परवाह नहीं है, तो फिर मधुकर मल्होत्रा ही उनकी परवाह क्यों करेंगे ? इसी तरह की बातों ने, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के संदर्भ में अनुकूल स्थितियों के बावजूद प्रवीन चंद्र गोयल को डराया हुआ है और मधुकर मल्होत्रा के इरादों में उन्हें अपनी उम्मीदवारी की संभावना झंझटों में फँसती/पड़ती नजर आ रही है । मजबूरी लेकिन उनकी यह है कि वह करें भी तो आखिर क्या करें ?

Saturday, March 5, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में एके सिंह की उम्मीदवारी को घोषित किए अपने समर्थन पर लोगों के बीच भरोसा न बन पाने का ठीकरा केएस लूथरा ने शिव कुमार गुप्ता के सिर फोड़ा

लखनऊ । केएस लूथरा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार गुप्ता को इस बात के लिए कोसना शुरू कर दिया है कि एक वही हैं जो एके सिंह को उनके समर्थन के प्रति आश्वस्त नहीं होने दे रहे हैं - और एके सिंह तथा डिस्ट्रिक्ट में लोगों को उनके खिलाफ भड़का रहे हैं । केएस लूथरा के लिए समस्या की बात दरअसल यह हुई है कि एके सिंह की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के पक्ष में होने तथा बातें करने के बावजूद एके सिंह और उनके समर्थकों के बीच ही नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के तमाम लोगों के बीच उनकी भूमिका को लेकर संदेह बना हुआ है; तथा सभी को लगता है कि केएस लूथरा कभी भी एके सिंह के खिलाफ अपना उम्मीदवार ला सकते हैं । एके सिंह की उम्मीदवारी के प्रति व्यक्त किए जा रहे केएस लूथरा के समर्थन को डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोग मजबूरी में किए जा रहे उनके नाटक के रूप में देख रहे हैं, और एके सिंह को सलाह दे रहे हैं कि केएस लूथरा की बातों में आकर उन्हें निश्चिन्त नहीं हो जाना चाहिए तथा सावधान रहना चाहिए । इस तरह की बातों ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में केएस लूथरा की भूमिका को न सिर्फ अप्रासंगिक बना दिया है, बल्कि उन्हें एक मजबूर नेता के रूप में 'दिखाने' का भी काम किया है । केएस लूथरा ने हालाँकि अभी पिछले दिनों ही बलरामपुर में एके सिंह की उम्मीदवारी के पक्ष में जोरदार भाषण दिया था और उनकी तारीफ में लंबे-चौड़े कसीदे पढ़े थे - किंतु फिर भी एके सिंह के समर्थकों के बीच तथा डिस्ट्रिक्ट के कई लोगों के बीच उनकी भूमिका को लेकर बना हुआ संदेह दूर नहीं हुआ है; और एके सिंह की तारीफों से भरे केएस लूथरा के भाषण को केएस लूथरा की एक चाल के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
केएस लूथरा अपनी भूमिका के प्रति बने इस संदेह के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार गुप्ता को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । केएस लूथरा का कहना है कि शिव कुमार गुप्ता अपने स्वार्थ में उनकी पहचान एके सिंह की उम्मीदवारी के विरोधी के रूप में बनाए रखना चाहते हैं, और इसके लिए वह लोगों के बीच उन्हें तरह तरह से बदनाम करते रहते हैं । केएस लूथरा का कहना है कि शिव कुमार गुप्ता चूँकि खुद डिस्ट्रिक्ट का नेता बनना चाहते हैं, इसलिए एके सिंह को गवर्नर बनवाने/चुनवाने का श्रेय वह अकेले ही लेना चाहते हैं - और अपनी इसी चाहत को पूरा करने के लिए वह उन्हें तथा दूसरे नेताओं के बारे में तरह तरह की बातें कहते/उड़ाते रहते हैं । शिव कुमार गुप्ता के प्रति केएस लूथरा की नाराजगी इस हद तक है कि वह यह याद दिलाने से भी नहीं चूक रहे हैं कि शिव कुमार गुप्ता उन्हीं की कृपा से आज गवर्नर हैं, और इस अहसान को मानने की बजाए आज वह उन्हीं की जड़ खोदने में लगे हुए हैं । उल्लेखनीय है कि शिव कुमार गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का कामकाज सँभालना शुरू करने के साथ ही केएस लूथरा की उनके प्रति नाराजगी दिखना शुरू हो गई थी । केएस लूथरा की शिकायत रही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार गुप्ता ने उन्हें उतनी तवज्जो नहीं दी, जितनी कि उन्हें मिलना चाहिए थी । इस मुद्दे पर दोनों के बीच शुरू हुआ खटराग सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के उम्मीदवार लेकर को और परवान चढ़ा । शिव कुमार गुप्ता ने शुरू से ही एके सिंह को अपने उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट किया, जबकि केएस लूथरा उम्मीदवार की तलाश में भटकते देखे/पाए । उम्मीद की जा रही थी कि एके सिंह की उम्मीदवारी के नाम पर डिस्ट्रिक्ट में जो आम सहमति बनती दिख रही है, उससे शिव कुमार गुप्ता व केएस लूथरा के बीच चल रहा खटराग समाप्त हो जायेगा - लेकिन देखने में आ रहा है कि समाप्त होने की बजाए उनके बीच का खटराग भड़क और रहा है ।
लोगों को लग रहा है कि उम्मीदवार खोज पाने की अपनी असफलता का ठीकरा शिव कुमार गुप्ता के सिर फोड़ने की केएस लूथरा की कोशिश इस खटराग को भड़काने का काम कर रही है । लोगों का कहना है कि एके सिंह की उम्मीदवारी के प्रति केएस लूथरा के समर्थन को डिस्ट्रिक्ट में यदि मजबूरी से प्रेरित तथा संदेह से देखा जा रहा है, तो इसके लिए खुद केएस लूथरा जिम्मेदार हैं - इसके लिए लेकिन शिव कुमार गुप्ता को जिम्मेदार ठहरा कर वह उनके प्रति अपने मन में गहरे से बैठी अपनी भड़ास को निकालने का काम कर रहे हैं । लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में हर कोई जानता है कि एके सिंह की उम्मीदवारी के प्रति केएस लूथरा ने कभी भी समर्थन का भाव नहीं दिखाया और वह पीएस जग्गी को उम्मीदवार के रूप में प्रेरित करते हुए ही हमेशा नजर आए । केएस लूथरा वोटों का पूरा गणित जेब में रखकर रहते और जबतब लोगों को दिखाते/बताते रहते कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तो वह बनेगा, जिसे उनका समर्थन मिलेगा । केएस लूथरा की बदकिस्मती लेकिन यह रही कि अपनी इस बात का भरोसा वह पीएस जग्गी को ही नहीं दिला पाए और केएस लूथरा के जीत के गणित के बावजूद वह एके सिंह के सामने उम्मीदवार बनने की हिम्मत नहीं कर सके । पीएस जग्गी के पीछे हटने के बाद अनीता गुप्ता का नाम चला - लेकिन उनका नाम जिस अचानक तरीके से सामने आया था, उतने ही अचानक तरीके से वह लुप्त भी हो गया । अनीता गुप्ता की अचानक प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी के पीछे भी केएस लूथरा को ही देखा/पहचाना गया, और माना गया कि केएस लूथरा के जीत के गणित पर उन्हें भी भरोसा नहीं हुआ । यानि बलरामपुर में केएस लूथरा ने एके सिंह की उम्मीदवारी को समर्थन देने की जो घोषणा की, वह उनका मजबूरी में लिया गया फैसला था । केएस लूथरा के लिए मुसीबत की बात यह रही कि केएस लूथरा के नजदीकी समझे जाने वाले लोगों ने ही एके सिंह और उनके समर्थकों को आगाह किया कि इसे केएस लूथरा की तरफ से अंतिम फैसला मत समझ लेना - चुनाव से पंद्रह दिन पहले भी यदि कोई उम्मीदवार बनने को राजी हो गया, तो लूथरा जी उसे समर्थन दे देंगे; जीत का गणित उनके पास है ही ! ऐसे में, एके सिंह और उनके समर्थक यदि केएस लूथरा पर भरोसा नहीं कर रहे हैं, और सावधानी बरते हुए हैं - तो केएस लूथरा भड़क क्यों रहे हैं ?

Friday, March 4, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी वरदान ब्लड बैंक की आड़ में 45 लाख रुपए से ज्यादा की रकम हड़पने के उद्देश्य से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ तथा ब्लड बैंक से जुड़े लोगों के खुले मुँह तो खुले के खुले ही रह गए हैं, और साथ ही ब्लड बैंक का बन पाना भी खटाई में पड़ता दिख रहा है

गाजियाबाद । रोटरी वरदान ब्लड बैंक के मामले को निपटाने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ की तरफ से जो 'प्रयास' हुए हैं, उससे यह बात अब रिकॉर्ड पर आ गई है कि इस ब्लड बैंक की आड़ में जेके गौड़ और उनके संगी-साथियों ने 70 हजार डॉलर, यानि 45 लाख रुपए से अधिक की रकम डकार जाने की पूरी और अच्छी तैयारी की थी । उल्लेखनीय है कि ग्लोबल ग्रांट नंबर 1527923 के तहत रोटरी वरदान ब्लड बैंक के लिए जेके गौड़ की देख-रेख में एक लाख 90 हजार डॉलर से अधिक रकम का एक प्रोजेक्ट तैयार किया था, और इसके लिए रोटरी फाउंडेशन से पैसा लेना था । इस प्रोजेक्ट के लिए 57 हजार 500 डॉलर रोटरी फाउंडेशन से मिलना तय हो चुका था, और इतनी ही रकम पाकिस्तान के रोटेरियंस से मैचिंग ग्रांट के तहत मिलना सुनिश्चित हो चुका था । दस हजार डॉलर डिस्ट्रिक्ट फंड से मिलने थे और 70 हजार डॉलर तीन क्लब्स - रोटरी क्लब साहिबाबाद, रोटरी क्लब गाजियाबाद ग्रेटर व रोटरी क्लब गाजियाबाद इंडस्ट्रियल टाउन ने अपने अपने सदस्यों से इकठ्ठा किए थे । यह सारी रकम रोटरी फाउंडेशन में संबंधित प्रोजेक्ट के नाम से इकठ्ठा हो चुकी थी - और बस मशीनों की खरीद के बिल प्रस्तुत होने का इंतजार किया जा रहा था । मशीनों की खरीद के नाम पर एक लाख 70 हजार डॉलर का जो बिल डीआरएफसी मुकेश अरनेजा की संस्तुति के लिए प्रस्तुत हुआ, उसमें लेकिन भारी लोचा देखा गया ।
'रचनात्मक संकल्प' की पिछली कुछेक रिपोर्ट्स में विस्तार से बताया जा चुका है कि मशीनों की खरीद से संबंधित विवरणों को छिपाया गया तथा मशीनों की सप्लायर कंपनी के पते व फोन नंबर देने से इंकार किया गया; और यहाँ तक कि खरीदी जा रही मशीनों की निर्माता कंपनी का नाम बताने तक से इंकार कर दिया गया । डीआरएफसी के रूप में मुकेश अरनेजा को शक हुआ कि ऐसा मशीनों की असली कीमत को छिपाने के उद्देश्य से किया गया है । उनका यह शक इस प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों द्वारा इशारों इशारों में यह बताए जाने से और मजबूत हुआ कि मशीनों की कीमतें खूब बढ़ा-चढ़ा कर - किन्हीं मामलों में तो दुगनी तक 'दिखाई' गई हैं । मुकेश अरनेजा ने स्पष्ट कर दिया कि इस तरह की बातों/चर्चाओं के बीच, मशीनों की खरीद से संबंधित पूरे डिटेल्स मिले बिना उनके लिए रकम रिलीज करने का ऑर्डर पास करना संभव नहीं होगा । इसके बाद भी जेके गौड़ और ब्लड बैंक की आड़ में पैसे 'बनाने' की तिकड़म में लगे पदाधिकारियों ने मशीनों की खरीद से जुड़े डिटेल्स नहीं दिए । डीआरएफसी के रूप में मुकेश अरनेजा को मामले से हटाने के लिए जेके गौड़ ने रोटरी फाउंडेशन से चालाकी भरा यह प्रयास जरूर किया कि इस प्रोजेक्ट को डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट की बजाए क्लब प्रोजेक्ट मान/बना दिया जाए । रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों ने लेकिन उनकी चालाकी को भाँप लिया और उनकी माँग को स्वीकार करने से मना कर दिया ।
रोटरी वरदान ब्लड बैंक की आड़ में कमाई करने की तैयारी कर चुके जेके गौड़ और उनके साथियों ने जब अपने आप को चारों तरफ से घिरा पाया, तो उन्होंने समर्पण करने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । डीआरएफसी के रूप में मुकेश अरनेजा को मशीनों की खरीद से संबंधित जेके गौड़ की तरफ से जो संशोधित बिल मिला - इन पँक्तियों को पढ़ने वालों, यह जानने से पहले अपने अपने दिल थाम लेना कि उसमें मशीनों की कीमत एक लाख 70 हजार डॉलर से घटा कर मात्र एक लाख डॉलर कर दी गई । जेके गौड़ और इस प्रोजेक्ट से जुड़े दूसरे लोग यह बताने को तैयार नहीं हैं कि ब्लड बैंक के लिए आवश्यक जो मशीनें पहले एक लाख 70 हजार डॉलर में 'खरीदी' जा रही थीं, वह अब सिर्फ एक लाख डॉलर में कैसे मिल रही हैं ? आरोपपूर्ण आशंका है कि मशीनों की खरीद के नाम पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ और इस प्रोजेक्ट से जुड़े कर्ता-धर्ताओं ने 70 हजार डॉलर, यानि 45 लाख रुपए से अधिक की रकम डकार जाने का 'इंतजाम' कर लिया था - और इसके तहत ही पहले मशीनों की कीमत को 70 हजार डॉलर बढ़ा कर दिखाया गया था; मुकेश अरनेजा के सख्त रवैये के चलते लेकिन जो कामयाब नहीं हो सका । जेके गौड़ और उनके साथियों की बदकिस्मती रही कि अपने 'इंतजाम' को सफल बनाने के लिए उन्होंने चालबाजी दिखाते हुए रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों की जो 'मदद' लेने की कोशिश की, वह भी सफल नहीं हो सकी ।
जेके गौड़ और रोटरी वरदान ब्लड बैंक के दूसरे कर्ता-धर्ता इस तरह 70 हजार डॉलर की रकम की हेराफेरी करने के मामले में जब 'रंगे-हाथ' पकड़े गए, तो उन्होंने लीपापोती करने के अंदाज में एक होशियारी और दिखाई - बाद में उन्होंने 70 हजार डॉलर के खर्चे दिखाते/बताते हुए एक बिल डीआरएफसी मुकेश अरनेजा को और भेज दिया । रोटरी वरदान ब्लड बैंक को लेकर शुरू से ही बेवकूफी पर बेवकूफी करते जाने तथा रकम हड़पने के आरोपों में गहरे से गहरे धँसते जाने से बचने के लिए चला गया यह दाँव भी जेके गौड़ और ब्लड बैंक के कामकाज से जुड़े लोगों को उल्टा पड़ा है । डीआरएफसी मुकेश अरनेजा ने अभी हाल ही में जेके गौड़ को लिखा है कि ब्लड बैंक के लिए खरीदी जाने वाली मशीनों के लिए जो तीन-तीन तरफ के बिल दिए गए हैं, उससे मशीनों पर आने वाले खर्च का तथ्य स्पष्ट नहीं हो पा रहा है - इसलिए वह उचित तरीके से बनाया गया और ऑडिट किया हुआ बिल प्रस्तुत करें । समस्या की बात यह है कि उचित तरीके से बनाया गया बिल यदि वास्तव में प्रस्तुत किया जा सकता होता, तो फिर बिल व खर्चे को लेकर जेके गौड़ तथा ब्लड बैंक से जुड़े लोगों को बार-बार कलाबाजियाँ क्यों खानी पड़तीं तथा क्यों उन्हें फजीहत झेलनी पड़ती । मामला जहाँ आकर फँसा है - वहाँ का नजारा देखकर अभी तो यही लग रहा है कि ब्लड बैंक की आड़ में 45 लाख रुपए से ज्यादा की रकम हड़पने के उद्देश्य से जेके गौड़ तथा ब्लड बैंक से जुड़े लोगों के जो मुँह खुले थे, वह खुले के खुले ही रह गए हैं - और साथ ही ब्लड बैंक का बन पाना भी खटाई में पड़ता दिख रहा है ।

Wednesday, March 2, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में रेखा गुप्ता और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के बीच एक-दूसरे की कमियाँ निकालने/बताने का खेल शुरू हो जाने से उनके समर्थकों के बीच न केवल निराशा पैदा हुई है, बल्कि वह विनय मित्तल के समर्थन की तरफ जाते हुए भी नजर आने लगे हैं

देहरादून । रेखा गुप्ता और शिव कुमार चौधरी की तरफ से संभावित हार का ठीकरा एक दूसरे के सिर फोड़ने की तैयारी जिस तरह से अभी से शुरू हो गई 'दिखने' लगी है, उससे रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच असमंजस पैदा हो गया है और वह विनय मित्तल की उम्मीदवारी के समर्थन की तरफ बढ़ने लगे हैं । पिछले दिनों रेखा गुप्ता की तरफ से उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों को कई मौकों पर सुनने को मिला कि शिव कुमार चौधरी ने उन्हें जिस तरह का समर्थन दिलवाने का भरोसा दिया था, वैसा समर्थन वह अभी तक दिलवाते नजर नहीं आ रहे हैं । रेखा गुप्ता की शिकायत है कि उनकी पार्टियों में लोग आते तो हैं, लेकिन पार्टी में खाने-पीने के बाद ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे उन्हें उनकी उम्मीदवारी से कोई मतलब ही नहीं है । रेखा गुप्ता का कहना है कि कई पार्टियाँ कर लेने और तमाम पैसा खर्च कर देने के बाद भी उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटता हुआ नहीं दिख रहा है; और वह देख रही हैं कि जो नेता लोग उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में हैं भी - वह भी उनकी उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं । अपने समर्थक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से तो रेखा गुप्ता बहुत ही नाराज हैं । अपने नजदीकियों के बीच उन्होंने हाल ही में कई बार यह बात कही है कि अपने समर्थक कई एक पूर्व गवर्नर्स पर उन्हें शक है कि वह अपने क्लब के वोट भी उन्हें दिलवा सकेंगे ? रेखा गुप्ता का स्पष्ट आरोप है कि उनकी उम्मीदवारी के समर्थक कई पूर्व गवर्नर्स उनसे पैसे खर्च करवाने में तो बहुत दिलचस्पी लेते हैं, किंतु उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम करने की कोई परवाह नहीं करते हैं । अपनी उम्मीदवारी के प्रस्तोता/प्रवर्तक शिव कुमार चौधरी पर तो उनका बड़ा दिलचस्प किस्म का आरोप है; और वह यह कि शिव कुमार चौधरी तो बस उनसे यही कहते/बताते रहते हैं कि फलाँ गवर्नर नाराज है मैं उनसे मिल लूँ - और इस तरह कभी 'इस' पूर्व गवर्नर से तो कभी 'उस' पूर्व गवर्नर से मिल लेने के लिए ही कहते रहते हैं !
रेखा गुप्ता की शिकायतों की बात शिव कुमार चौधरी तक पहुँचती हैं, तो वह भी 'अपने तरीके' से उन पर भड़ास निकालते हैं । शिव कुमार चौधरी का कहना रहता है कि रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी को जो भी समर्थन मिल पा रहा है, वह सिर्फ उनकी अकेले की मेहनत का नतीजा है - और उम्मीदवार के रूप में रेखा गुप्ता अपनी ही उम्मीदवारी की खुद कोई मदद नहीं कर रही हैं । रेखा गुप्ता मीटिंग में न तो ठीक से बोल पाती हैं और न ही अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में एक भी वोट जोड़ पा रही हैं - सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह पैसे भी नहीं खर्च करना चाहती हैं । शिव कुमार चौधरी का कहना रहता है कि उनका बहुत सा समय तो रेखा गुप्ता को राजनीति बताने/समझाने में तथा उनसे पैसा निकलवाने में खर्च हो जाता है । शिव कुमार चौधरी का कहना है कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का जो समर्थन रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी को मिलता नजर आ रहा है, वह उनके कारण संभव हो सका है - और रेखा गुप्ता इस समर्थन को वोट में बदलने की कबायद कर सकने में असफल साबित हो रही हैं, तो इसमें मैं क्या सकता हूँ ? रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के दूसरे कई समर्थकों की भी शिकायत है कि एक उम्मीदवार को लोगों के बीच जितना सक्रिय होना चाहिए, रेखा गुप्ता न तो उतना सक्रिय हैं - और न ही वह पैसे खर्च कर रही हैं जिससे कि कुछ न करने के बावजूद सक्रियता 'दिखे' तो ! मजे की बात यह देखने में आ रही है कि रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के ही कई समर्थक विनय मित्तल को रेखा गुप्ता के मुकाबले एक बेहतर उम्मीदवार बता रहे हैं, और यह कहने में भी नहीं हिचकते हैं कि लायनिज्म व डिस्ट्रिक्ट की भलाई के लिए जरूरी है कि विनय मित्तल गवर्नर बनें ।
रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में  दिख रहे कई प्रमुख नेता इस बात को छिपाने की भी कोई कोशिश नहीं करते हैं और साफ साफ कहते भी हैं कि विनय मित्तल बढ़िया व्यक्ति हैं, उन्हें विनय मित्तल से कोई शिकायत नहीं है - वह तो मुकेश गोयल के विरोध के कारण रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में आए हैं । जाहिर है कि ऐसे लोगों/नेताओं की रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी  के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बन सकी है । कहीं की ईंट और कहीं का रोड़ा लेकर रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में भानुमति का कुनबा तो जुड़ गया है - लेकिन यह कुनबा चूँकि कुछ करता हुआ नजर नहीं आ रहा है, इसलिए रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति खुद रेखा गुप्ता भी और उनके समर्थक भी नाउम्मीद व निराश हो चले हैं और अपने ही समर्थकों को कोसने लगे हैं । रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी को चूँकि उनके अपने गृह-क्षेत्र देहरादून में ही समर्थन मिलता नहीं दिख रहा है, इसलिए दूसरे क्षेत्र के लोगों के बीच भी उनकी उम्मीदवारी को लेकर उत्साह पैदा नहीं हो पा रहा है । चुनाव में अपनी हार को सुनिश्चित जान कर रेखा गुप्ता ने जिस तरह से अपने समर्थक नेताओं को ही जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया है, उससे मामला और खराब होता जा रहा है । रेखा गुप्ता और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के बीच एक-दूसरे की कमियाँ निकालने/बताने का जो खेल शुरू हुआ है, उससे उनके समर्थकों के बीच न केवल निराशा पैदा हुई है - बल्कि उनके बीच कन्फ्यूजन भी फैला है और उनमें से कई लोग विनय मित्तल की उम्मीदवारी के समर्थन में जाते नजर आने लगे हैं ।

Tuesday, March 1, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के भरोसे कॉलिज ऑफ गवर्नर्स का फैसला मानने से बचते दिख रहे दीपक बाबु पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को अपमानित करने की हद तक जा पहुँचे हैं

मुरादाबाद । दीपक बाबु जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स को छका रहे हैं और उनकी बात को अनसुना कर रहे हैं, उससे जाहिर है कि उन्होंने सुनील गुप्ता के साथ हुए प्रकरण से कुछ नहीं सीखा है और उन्होंने भी डिस्ट्रिक्ट व रोटरी का मजाक बनाने का फैसला कर लिया है । दीपक बाबु हालाँकि अभी थोड़े से भाग्यशाली दिख रहे हैं कि उनकी हरकतों से खिन्न और नाराज पूर्व गवर्नर्स अभी उनके पीछे उस तरह से नहीं पड़े हैं, जैसे कि सुनील गुप्ता से नाराज पूर्व गवर्नर्स उनके पीछे पड़ गए थे । किंतु दीपक बाबु अपनी बातों और अपनी हरकतों से जिस तरह से पूर्व गवर्नर्स को चिढ़ा रहे हैं, और उन्हें लगातार अपमानित महसूस करा रहे हैं - उससे लगता नहीं है कि अपने डिस्ट्रिक्ट में दीपक बाबु का 'हनीमून पीरियड' ज्यादा दिन चल पायेगा । दीपक बाबु के लिए मुसीबत की बात दरअसल यह हो गई है कि सुनील गुप्ता के खिलाफ हुई कार्रवाई ने लोगों को आश्वस्त किया है तथा भरोसा दिया है कि उनके द्वारा की गई शिकायतों पर रोटरी इंटरनेशनल ध्यान देता है तथा कार्रवाई करता है - इस बात से लोगों को शिकायत करने का बल मिला है, और जाहिर तौर पर इसका खामियाजा दीपक बाबु को ही भुगतना पड़ेगा । दीपक बाबु हालाँकि इस बात की कोई परवाह करते हुए अभी नहीं देखे जा रहे हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि दीपक बाबु का मानना और कहना है कि सुनील गुप्ता तो मौजूदा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की सनक का शिकार हो गए हैं, और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद पर केआर रवींद्रन के दिन अब ज्यादा नहीं बचे हैं - इसलिए उनकी परवाह करने की जरूरत नहीं है । उनके बाद इंटरनेशनल प्रेसीडेंट का पदभार सँभालने वाले जॉन जर्म उनके जैसे बिलकुल नहीं हैं, और वह शिकायतों पर कोई तवज्जो नहीं देंगे । रही बात इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की - तो उनके बारे में दीपक बाबु का मानना/कहना है कि मनोज देसाई बड़े सज्जन पुरुष हैं, उनकी बस खुशामद करते रहो, और बाकी फिर चाहे जो करो - उन्हें कोई परवाह नहीं है ।  रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों के इस आकलन के भरोसे ही दीपक बाबु ने अपने डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स को, उनकी सलाह को और कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के फैसले को ठेंगा दिखाया हुआ है ।
उल्लेखनीय है कि पिछले महीने के शुरू में कॉलिज ऑफ गवर्नर्स ने अपनी मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट में घटने वाली घटनाओं के कारण डिस्ट्रिक्ट की होने वाली बदनामी का संज्ञान लेते हुए कुछेक महत्वपूर्ण फैसले किए थे । गहन विचार-विमर्श के बाद कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के बीच जिन बातों पर सहमति बनी, वह इस प्रकार थे : डिस्ट्रिक्ट में किसी को व्यवस्था संबंधी कोई शिकायत है तो वह सीधे रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत नहीं करेगा; रोटरी इंटरनेशनल से अनुरोध किया जायेगा कि उसे कोई शिकायत मिले तो उसे वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को भेजे, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उसे डिस्ट्रिक्ट आर्बिट्रेशन कमेटी के हवाले करे; पाँच सदस्यीय डिस्ट्रिक्ट आर्बिट्रेशन कमेटी का गठन किया जाए, जिसमें वरिष्ठता क्रम के अनुसार हर वर्ष दो वरिष्ठ पूर्व गवर्नर्स हों; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के मौजूदा दोनों उम्मीदवार अपनी अपनी उम्मीदवारी से इस्तीफा दें, तथा कॉलिज ऑफ गवर्नर्स जोन-अनुसार उनकी उम्मीदवारी के बारे में फैसला करें; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए डिस्ट्रिक्ट को तीन जोन में बाँटा जाए, जहाँ से बारी बारी से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार आएँ; आदि-इत्यादि । मीटिंग में इन मुद्दों पर पूर्व गवर्नर्स के बीच हालाँकि परस्पर विरोधी विचार भी थे, और कुछेक मौकों पर उनके बीच गर्मा-गर्मी भी हुई - लेकिन अंततः डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के हित में इन मुद्दों पर उनके बीच सहमति बनी । रोटरी इंटरनेशनल के एक विशेष फैसले के आधार पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार सँभाल रहे दीपक बाबु ने कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में घोषणा की कि वह तीन-चार दिन में इस मीटिंग के मिनिट्स डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच सार्वजनिक कर देंगे, जिससे कि इन फैसलों को लागू करने के लेकर डिस्ट्रिक्ट के लोगों की भी सहमति बनाई जा सके और मीटिंग के फैसलों को क्रियान्वित करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सके । यह घोषणा किए हुए दीपक बाबु को करीब करीब तीन सप्ताह से ऊपर का समय हो चुका है, लेकिन उन्होंने अभी तक उक्त मीटिंग के मिनिट्स सार्वजनिक करने को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की है । इस बीच जिन पूर्व गवर्नर्स ने उनसे इस बारे में बात की, उन्हें उन्होंने अलग अलग तरह की बहानेबाजी करके टरका दिया है । मजे की बात यह है कि दीपक बाबु के नजदीकियों से लोगों को सुनने को मिल रहा है कि दीपक बाबु न तो आर्बिट्रेशन कमेटी बनाने के पक्ष में हैं, और न डिस्ट्रिक्ट को तीन जोन में विभक्त करने के लिए राजी हैं, और न डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को हतोत्साहित करने के लिए तैयार हैं - और इसीलिए वह कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में सर्वसम्मति से हुए फैसलों को क्रियान्वित करने को लेकर टाल-मटोल वाला रवैया अपना रहे हैं ।
वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व इलेक्शन कमेटी के चेयरमैन केजी अग्रवाल को तो इस मामले में चुनौती सी देते हुए दीपक बाबु ने अपमानित तक कर दिया । इलेक्शन कमेटी के चेयरमैन के रूप में अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए केजी अग्रवाल ने दीपक बाबु को फोन करके यह जानना चाहा कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में लिए गए फैसलों को क्रियान्वित कराने के लिए वह क्या कदम उठा रहे हैं; दीपक बाबु ने उनकी बात का जबाव देने की बजाए उन्हें चुनौती सी दे डाली कि आप दोनों उम्मीदवारों से इस्तीफा ले लें और जो उचित समझें वह फैसला करें । दीपक बाबु यह कहते हुए यह भूल गए कि डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के हित में उचित फैसला करने की जिम्मेदारी केजी अग्रवाल की नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार सँभालने के कारण उनकी है । भूले शायद वह कुछ नहीं, वह वास्तव में केजी अग्रवाल को अपमानित करते हुए यह जता/बता रहे थे कि मुझे कुछ नहीं करना है - अब तुमसे जो सकता हो वह कर लो । इकत्तीस वर्ष पहले गवर्नर रहे केजी अग्रवाल को मनमसोस कर रह जाना पड़ा । दीपक बाबु के नजदीकियों की मानें तो दीपक बाबु कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में हुए फैसलों पर धूल पड़ने देंगे, जिससे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव हो और उन्हें अपनी चौधराहट दिखाने/जताने का तथा पैसे बनाने का मौका मिले । दिवाकर अग्रवाल से बदला लेने के लिए भी दीपक बाबु को कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग के फैसले को ठंडे बस्ते में डालना जरूरी लग रहा है । दीपक बाबु को लगता है कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में लिए गए फैसले यदि लागू हो गए तो दिवाकर अग्रवाल इस वर्ष नहीं, तो अगले वर्ष आराम से गवर्नर बन जायेंगे । दीपक बाबु ऐसा नहीं होने देना चाहते हैं और इसके लिए वह अपने ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को अपमानित करने की हद तक जाने के लिए तैयार हैं ।
दीपक बाबु के इस रवैये ने राजीव सिंघल और उनके नजदीकियों को भी डराना शुरू कर दिया है । उनकी चिंता यह है कि दीपक बाबु ने अपने रवैये से पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को ज्यादा नाराज कर दिया, तो कहीं डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी मुसीबत में न पड़ जाए । राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थक और शुभचिंतक हालाँकि जोरशोर से यह दावा करने में लगे हुए हैं कि दिल्ली स्थित रोटरी इंटरनेशनल के साउथ एशिया कार्यालय के पदाधिकारियों की देखरेख में चुनाव होने से उनकी जीत 'और पक्की' हो गई है; किंतु राजीव सिंघल और उनके नजदीकियों को डर यह सता रहा है कि सुनील गुप्ता की तरह कहीं उनके साथ भी धोखा हो गया तो क्या होगा ? उल्लेखनीय है कि सुनील गुप्ता को भी आश्वस्त किया गया था - और इस काम में राजीव सिंघल खुद भी आगे आगे थे - कि मनोज देसाई के होते हुए उन्हें डरने की चिंता नहीं करना चाहिए । पर यह आश्वासन सुनील गुप्ता के काम नहीं आया । राजीव सिंघल के कुछेक नजदीकियों का मानना और कहना है कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में लिए गए फैसले से उनका गवर्नर बनने का रास्ता आसान हो गया है; अब उन्हें कोशिश सिर्फ यह करनी है कि जोन-अनुसार गवर्नर बनने की जो बात हो रही है उसमें उन्हें पहला नंबर मिल जाए - उन्हें लग रहा है कि इस कोशिश को सफल करना/बनाना कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है । इसीलिए दीपक बाबु का रवैया उन्हें डरा रहा है और उन्हें लग रहा है कि दीपक बाबु की कारस्तानी कहीं उन्हें न ले डूबे - चुनाव आखिर चुनाव है, नतीजे का ऊँठ न जाने किस करवट बैठे ? राजीव सिंघल के कुछेक नजदीकी कहने भी लगे हैं कि दीपक बाबु और कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के फैसले को न मानने में उनका साथ दे रहे लोग दरअसल अपना स्वार्थ देख रहे हैं, और उनके स्वार्थ के चक्कर में कहीं राजीव सिंघल का बंटाधार न हो जाए । राजीव सिंघल के जो नजदीकी ज्योतिष में विश्वास करते हैं, उनका तो और भी मजेदार आकलन है : उनका कहना है कि राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के जो जो लोग घनघोर समर्थक रहे - जैसे योगेश मोहन गुप्ता, बृजभूषण और सुनील गुप्ता; वह सब एक एक करके सीन से गायब होते गए हैं; अब दीपक बाबु उनकी उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में उभरे हैं, तो उनको भी मुश्किलों ने घेरना शुरू कर दिया है । राजीव सिंघल के लिए यह कोई अच्छे संकेत नहीं हैं - इसलिए उनके और उनके समर्थकों के लिए अच्छा यही होगा कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के फैसले ने जो एक मौका बनाया है, उससे वह फायदा उठाएँ । दीपक बाबु के रवैये ने लेकिन उन्हें असमंजस में डाला हुआ है; और राजीव सिंघल व उनके नजदीकियों के लिए भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि दीपक बाबु की कारस्तानियाँ उनका काम बनायेंगी या बिगाड़ेंगी ?