Tuesday, March 22, 2016

रोटरी ब्लड बैंक के नए बने अध्यक्ष विनोद बंसल ने कम समय में ही जिस तरह का कायाकल्प किया है, वह आश्वस्त करता है कि उनकी अध्यक्षता में रोटरी ब्लड बैंक को वह पहचान अवश्य ही मिल सकेगी, जिस पहचान के सपने के साथ इसकी स्थापना की गई थी

नई दिल्ली । विनोद बंसल को रोटरी ब्लड बैंक का अध्यक्ष पद का कार्यभार सँभाले अभी मुश्किल से 40 दिन हुए हैं, लेकिन इन 40 दिनों में यहाँ की जो कायापलट हुई है - उसे देखने/जानने वालों को खासी हैरानी हुई है । एक रोटेरियन ने बताया कि पिछले अनुभवों के कारण वह अपनी आवश्यकतापूर्ति के लिए यहाँ नहीं आना चाहते थे, लेकिन कुछेक लोगों से उन्होंने जब सुना कि यहाँ की प्रशासनिक टीम में तब्दीली हुई है और हालात बेहतर हुए हैं - तो वह यहाँ आए, और यहाँ के बदले हालात देख कर सचमुच चकित हैं । एक अन्य रोटेरियन का कहना रहा कि पिछले काफी समय से उन्होंने यहाँ के हालात को बद से बदतर होते हुए देखा है, और उन्होंने समझ लिया था कि रोटरी ब्लड बैंक जैसे अपनी अंतिम साँसे गिन रहा है, और कभी भी 'वीरगति' को प्राप्त हो जायेगा; लेकिन अब बदली हुई स्थितियों को देख कर उन्हें लग रहा है कि जैसे रोटरी ब्लड बैंक को नया जीवन मिल गया है । सर्विस के स्तर पर बुरा हाल था - आवश्यकतापूर्ति के लिए यहाँ आने वाले लोगों की स्टाफ के खराब व्यवहार को लेकर तो बहुत ही आम शिकायत थी; शिकायतकर्ताओं का कहना होता था कि स्टाफ का व्यवहार तो कभी कभी अपमान करने तक की हद तक जा पहुँचता था । इससे भी बड़ी समस्या यह होती कि अक्सर ही लोगों को उनकी जरूरत का ब्लड नहीं मिल पाता था । ब्लड बैंक की व्यवस्था के स्तर पर हालत यह बन गई थी कि ब्लड की आमद और सप्लाई में कोई सामंजस्य नहीं रह गया था; जिस का नतीजा यह हो रहा था कि खर्चे तो न सिर्फ पूरे पूरे बने हुए थे, बल्कि बढ़ भी रहे थे - जबकि आमदनी लगातार घटती जा रही थी । सबसे ज्यादा बुरी बात यह हो रही थी कि यहाँ इकठ्ठा हुए ब्लड का कोई इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था, और काफी ब्लड इस्तेमाल होने की बजाए नाली में बहाया जा रहा था । रोटरी ब्लड बैंक का घोषित किया गया कोई लक्ष्य/उद्देश्य पूरा नहीं किया जा पा रहा था, और लगातार बढ़ते घाटे के चलते यह एक बड़ा बोझ बनता जा रहा था ।
वर्ष 2001 में पाँच करोड़ रुपए से अधिक की लागत से पंद्रह हजार वर्गफुट जगह में बने अत्याधुनिक सुविधाओं वाले सेंट्रली एयरकंडीशंड रोटरी ब्लड बैंक का मिशन स्टेटमेंट है : 'दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में किसी को भी खून की कमी का शिकार नहीं होने दिया जायेगा ।' लेकिन इसकी व्यवस्था और इसकी हालत ने इसके इस मिशन स्टेटमेंट को बस एक बड़बोला बयान भर बना कर रख दिया था ।
बुरी बात यह हो रही थी कि तमाम बड़े रोटेरियंस और पदाधिकारी 'यह' देख रहे थे और रोटरी ब्लड बैंक को बर्बाद होते देख चिंता भी व्यक्त कर रहे थे, किंतु इसे बचाने के लिए कुछ करना तो दूर - कुछ कहने से भी बच रहे थे । कारण यह था कि रोटरी ब्लड बैंक के अध्यक्ष पद पर पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुदर्शन अग्रवाल कुंडली मार कर बैठे हुए थे, और किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह सुदर्शन अग्रवाल से कह पाता कि - 'महाराज, आपसे यहाँ की जिम्मेदारी जब सँभल नहीं रही है, तो इसे छोड़ क्यों नहीं देते ?' यहाँ इस तथ्य को याद करने तथा रेखांकित करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि यह ब्लड बैंक रोटरी को सुदर्शन अग्रवाल की ही देन है । सभी रोटेरियंस और पदाधिकारी यह मानते और कहते रहे हैं कि सुदर्शन अग्रवाल दिलचस्पी न लेते तो यह ब्लड बैंक बन नहीं पाता । इस ब्लड बैंक की नींव रखने से लेकर इसे चलाने/चलवाने तक का काम सुदर्शन अग्रवाल ने बखूबी किया है - उन्होंने जो किया है, शायद वही कर सकते थे । लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि जिस चीज को उन्होंने बनाया है, उसे 'मिटाने' की जिम्मेदारी भी उन्हें ही निभानी है । सुदर्शन अग्रवाल से उम्मीद की जाती थी कि उन्हें जब लगेगा कि ब्लड बैंक का काम उनसे नहीं हो पा रहा है, तो वह इसकी जिम्मेदारी छोड़ देंगे - किंतु जिम्मेदारी छोड़ने की बजाए उन्हें जिम्मेदारी से चिपके देखा गया; और इसके नतीजे के रूप में रोटरी ब्लड बैंक तबाह होता जा रहा था ।
रोटरी ब्लड बैंक की किस्मत शायद अच्छी है कि 'वन फाईन मॉर्निंग' सुदर्शन अग्रवाल को अहसास हुआ कि अब उन्हें रोटरी ब्लड बैंक का अध्यक्ष पद छोड़ देना चाहिए - सो, अध्यक्ष पद विनोद बंसल को सौंप कर वह इससे अलग हो गए । विनोद बंसल पिछले कुछ समय से रोटरी ब्लड बैंक में उपाध्यक्ष थे - शायद इसलिए भी सुदर्शन अग्रवाल ने अध्यक्ष पद उन्हें ही सौंपना उचित समझा हो । उपाध्यक्ष होने के नाते विनोद बंसल ब्लड बैंक की समस्याओं और उनके कारणों से परिचित थे ही, इसलिए वह तुरंत से सक्रिय हो गए तथा उन्होंने आवश्यक कदम उठाने में देर नहीं की । विनोद बंसल ने सबसे पहला काम स्टाफ के कान उमेठने का किया - उन्होंने स्टाफ से साफ कह दिया कि अपनी आवश्यकतापूर्ति के लिए ब्लड बैंक में आने वाले लोगों से स्टाफ के व्यवहार को लेकर उन्हें कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए । इसके साथ ही विनोद बंसल ने यह समझने और गणना करने का काम किया कि ब्लड बैंक से सप्लाई आखिर कितनी होती है और उसका पैटर्न क्या है, और इसे कैसे बढ़ाया व विविधतापूर्ण बनाया जा सकता है ? यह समझना और गणना करना उन्हें इसलिए जरूरी लगा ताकि उसी हिसाब से कैम्प आदि में इकठ्ठा हुए ब्लड को 'लिया' जाए । विनोद बंसल के अध्यक्ष-काल में यह पहली बार हुआ कि एमिटी में लगे कैम्प में जब आवश्यकता से अधिक ब्लड इकठ्ठा हो गया तो अतिरिक्त ब्लड नोएडा रोटरी ब्लड बैंक को दे दिया गया - इस तरह से अतिरिक्त ब्लड को नाली में बहाने से बचने का इंतजाम किया गया । विनोद बंसल ने ब्लड बैंक के खर्चों में कमी करने का अनोखा फार्मूला यह निकाला कि कुछेक खर्चे वाले काम - जैसे कैम्प में ब्लड डोनेट करने वाले लोगों पर होने वाले खर्चे को - उन्होंने रोटेरियंस से स्पॉन्सर करवाए । 
रोटरी ब्लड बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि विनोद बंसल ने सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण काम वास्तव में यह किया है कि अध्यक्ष पद का कार्यभार सँभालते ही उन्होंने ब्लड बैंक की छोटी  से छोटी बात से परिचित होने तथा उसे समझने/पहचानने का प्रयास किया तथा हर स्तर पर अपनी दिलचस्पी और संलग्नता दिखाई । स्टाफ को अनुशासित करने का काम उनकी इस दिलचस्पी व संलग्नता से ही हो गया । अपने अध्यक्ष-काल के अभी तक के करीब 40 दिनों में उन्होंने स्टाफ को जिस तरह से प्रेरित किया है और रोटेरियंस के बीच रोटरी ब्लड बैंक के प्रति जिस तरह की जागरूकता व संलग्नता दिखाने का भाव पैदा किया है, उसके अच्छे नतीजे मिलना/दिखना शुरू हो गए हैं । अभी तक के नतीजों ने विनोद बंसल को रोटरी ब्लड बैंक की जिम्मेदारी निभाने के प्रति खासा उत्साहित किया है; हालाँकि उन्होंने लोगों के बीच कहा है कि रोटरी ब्लड बैंक की स्थापना के मुख्य उद्देश्य को पाने के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है । अभी तक के नतीजे यद्यपि आश्वस्त जरूर करते हैं कि विनोद बंसल रोटरी ब्लड बैंक को वह पहचान अवश्य ही दिलवा सकेंगे, जिस पहचान के सपने के साथ इसकी स्थापना की गई थी ।