Friday, January 31, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में एके सिंह के घोषित और संभावित समर्थकों के अपने साथ आ जाने का दावा करने के बाद भी गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की एके सिंह की उम्मीदवारी से डर रहे हैं

लखनऊ । विशाल सिन्हा और उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चुनवाने की जिम्मेदारी लिए बैठे गुरनाम सिंह के लिए यह समझना बड़ा मुश्किल हो रहा है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए एके सिंह की उम्मीदवारी को खाद-पानी आखिर कहाँ से मिल रहा है, जिसके भरोसे एके सिंह अपनी उम्मीदवारी को लगातार बनाये हुए हैं । विशाल सिन्हा और गुरनाम सिंह ने एके सिंह की उम्मीदवारी को कमजोर करने के लिए सारे दाँव चल लिए हैं - केएस लूथरा को उन्होंने अपनी तरफ मिला लेने का दावा किया है; अपने इस दावे के प्रति लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए उन्होंने केएस लूथरा से लोगों को फोन भी करवायें हैं; नीरज बोरा और शिव कुमार गुप्ता को भी उन्होंने अपने पक्ष में कर लेने के दावे किये है । अपने इन दावों की महत्ता बताते हुए विशाल सिन्हा और गुरनाम सिंह ने एक और बड़ा दावा यह किया कि 'इन उपलब्धियों' के जरिये उन्होंने एके सिंह को अकेला और निहत्था कर दिया है । एके सिंह के घोषित और संभावित समर्थकों को अपनी तरफ मिला लेने के दावे कर लेने के बाद गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने उम्मीद की थी कि अब एके सिंह के पास अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के अलावा और कोई चारा नहीं बचेगा । वह लेकिन यह देख और जान कर हैरान और परेशान हैं कि एके सिंह अभी भी अपनी उम्मीदवारी को बनाये हुए हैं तथा उसे वापस लेने के कोई संकेत नहीं दे रहे हैं । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के लिए हैरान और परेशान होने का कारण यही है कि एके सिंह को अब जब किसी भी नेता का समर्थन नहीं रह गया है, तब फिर वह किसके भरोसे उम्मीदवार बने हुए हैं ?
एके सिंह की उम्मीदवारी के बने रहने से गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा को परेशानी में पड़ा देख कर लेकिन दूसरे लोगों को हैरानी हो रही है । दूसरे लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा जब पूरी तरह आश्वस्त हैं कि उन्होंने एके सिंह के सभी घोषित व संभावित समर्थकों को अपनी तरफ मिला लिया है और ऐसा करके उन्होंने एके सिंह को अकेला और निहत्था कर दिया है - तो फिर एके सिंह की उम्मीदवारी के बने रहने से परेशान क्यों हो रहे हो ? उन्हें इस बात का विश्वास आखिर क्यों नहीं हो रहा है कि जब एके सिंह की उम्मीदवारी को किसी का समर्थन मिलेगा ही नहीं, तो एके सिंह की उम्मीदवारी विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी को भला क्या और कैसे नुकसान पहुँचा सकेगी ? हर कोई इस बात पर आश्चर्य कर रहा है कि जो गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा एक तरफ तो दावा कर रहे हैं कि एके सिंह की उम्मीदवारी को किसी का समर्थन नहीं है, और एके सिंह की उम्मीदवारी के जो भी घोषित और/या संभावित समर्थक थे उन्हें विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी के समर्थन में कर लिया गया है - लेकिन वही गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा दूसरी तरफ एके सिंह की उम्मीदवारी के बने रहने से डर भी रहे हैं ।
गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के इस दोहरे रवैये में दूसरों को भले ही हैरानी और/या आश्चर्य हो रहा हो, लेकिन गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा पिछले वर्ष के अपने अनुभव से सबक लेकर इस बार कोई खतरा चूँकि नहीं उठाना चाहते हैं इसलिए वह इस बात से आश्वस्त नहीं हो रहे हैं कि हर कोई एके सिंह की बजाये विशाल सिन्हा के साथ 'दिख' रहा है; आश्वस्त होने के लिए वह एके सिंह की उम्मीदवारी को किसी भी तरह से वापस कराना चाहते हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले लायन वर्ष में गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा को बहुत ही धोखा हुआ था । पिछले वर्ष की बातों और गतिविधियों को याद करें तो पायेंगे कि जब तक चुनाव का नतीजा नहीं आया था, तब तक डिस्ट्रिक्ट में हर कोई विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी के समर्थन में ही 'दिखता' था; विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी के समर्थन में होने वाली मीटिंग्स में नेताओं की और लोगों की भारी भीड़ जुटती थी, जबकि शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में होने वाली मीटिंग्स में गिनती के लोग पहुँचते थे । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ही लोगों को बताते थे कि शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में प्रस्तावित कुछेक मीटिंग्स तो इसलिए ही नहीं हो पा रही हैं क्योंकि उनमें आने के लिए लोग तैयार नहीं हैं । शिव कुमार गुप्ता का चुनाव अभियान भी बड़ा फीका-फीका और 'सूखा' 'सूखा' सा था । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा को एक सिर्फ केएस लूथरा से खतरा था, लिहाजा उन्होंने केएस लूथरा को चारों तरफ से ऐसा घेरा हुआ था कि उन्हें विश्वास था कि केएस लूथरा चाहेंगे भी तो कुछ नहीं कर पायेंगे । पिछले वर्ष, चुनाव का नतीजा आने से पहले तक माहौल पूरी तरह विशाल सिन्हा के पक्ष में 'दिख' रहा था और किसी को यह आभास तक नहीं था कि विशाल सिन्हा चुनाव हार जायेंगे । अनुपम बंसल तो विशाल सिन्हा के साठ से अधिक वोटों से जीतने का दावा कर रहे थे ।
चुनाव का नतीजा लेकिन हर किसी के लिए अप्रत्याशित था ।
चुनाव का नतीजा आने के बाद तरह-तरह की नई नई कहानियाँ सुनी/सुनाई गईं लेकिन इस बात का साफ जबाव अभी तक भी नहीं मिला है कि भीड़ शिव कुमार गुप्ता की बजाये विशाल सिन्हा के यहाँ जुटती थी; नेता और लोग समर्थन की कसमें शिव कुमार गुप्ता की बजाये विशाल सिन्हा के लिए खाते थे; शिव कुमार गुप्ता के लिए डिस्ट्रिक्ट में कोई समर्थन दिखता नहीं था और शिव कुमार गुप्ता ने अपना चुनाव अभियान प्रभावी तरीके से चलाया भी नहीं - फिर भी ज्यादा लोगों के वोट विशाल सिन्हा की बजाये शिव कुमार गुप्ता को क्यों मिले ? इस बात का साफ जबाव भले ही न मिला हो, लेकिन एक अनुमान यह जरूर लगा है कि डिस्ट्रिक्ट में लोग गुरनाम सिंह और उनके उम्मीदवार विशाल सिन्हा के खिलाफ भी हैं और खिलाफत का तरीका भी सीख गए हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को समझ में आ गया है कि गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा से खुल कर नहीं लड़ा जा सकता है, बल्कि उनसे 'छिप' कर ही लड़ा जा सकता है । नेता और लोग अपनी इसी 'होशियारी' के चलते पिछले वर्ष 'दिखे' तो विशाल सिन्हा के साथ थे, लेकिन वोट उन्होंने शिव कुमार गुप्ता को दिया ।
पिछले वर्ष के इसी अनुभव के कारण गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा इस वर्ष सावधान हैं । वह सिर्फ इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि एके सिंह के घोषित और संभावित समर्थक उनके समर्थन की बात करने लगे हैं । समर्थन की बात पर संतुष्ट होने के कारण उन्होंने पिछले वर्ष धोखा खा लिया है । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा चाहते हैं कि एके सिंह के समर्थक रहे जो नेता अब उनका समर्थन करने की बात कर रहे हैं, वह ही एके सिंह की उम्मीदवारी को वापस करवाएँ । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा को डर है कि एके सिंह की उम्मीदवारी यदि बनी रही तो उनके साथ वैसा ही खेल हो सकता है, जैसा कि पिछले वर्ष हुआ था । इस वर्ष तो स्थिति विशाल सिन्हा के लिए और भी मुश्किल है । पिछले वर्ष कोई यह विश्वास नहीं करता था कि गुरनाम सिंह के उम्मीदवार को हराया भी जा सकता है, इस वर्ष लोगों के बीच यह विश्वास है; पिछले वर्ष उम्मीदवार के रूप में शिव कुमार गुप्ता की चुनाव लड़ने की क्षमता को कम करके आँका जा रहा था, उनकी तुलना में एके सिंह बेहतर स्थिति में हैं । विशाल सिन्हा को उम्मीद है कि इस वर्ष उन्हें सहानुभूति का लाभ मिलेगा, लेकिन कई लोग उनकी इस उम्मीद से सहमत नहीं हैं । सहमत न होने वालों का तर्क है कि पिछले वर्ष विशाल सिन्हा को हरवाने में भूमिका निभाने वाले लोगों ने सोच-विचार कर और एक सुनियोजित रणनीति के तहत उन्हें हराया था, ऐसे लोगों को उनसे भला सहानुभूति क्यों कर होगी ? एक वरिष्ठ लायन ने तर्क दिया कि आपको यदि किसी और ने चोट पहुँचाई है और या मुझसे अनजाने में चोट पहुँची है तब तो मुझे आपसे सहानुभूति हो सकती है; लेकिन मैंने यदि आपको सोच-विचार करके चोट पहुँचाई है तब फिर मुझे आपसे सहानुभूति भला क्यों होगी ?
गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा समझ रहे हैं कि एके सिंह यदि उम्मीदवार बने रहते हैं तो उनके लिए चुनाव जीतना आसान नहीं होगा; इसीलिए एके सिंह के घोषित और संभावित समर्थकों को अपने साथ कर लेने के बाद भी वह आश्वस्त नहीं हो रहे हैं । एके सिंह के साथ किसी का समर्थन न 'दिखने' के बावजूद एके सिंह अपनी उम्मीदवारी को बनाये हुए हैं, इससे भी गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के हौंसले पस्त हुए पड़े हैं ।

Wednesday, January 29, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में उमेश चोपड़ा के साथ हुई अपनी बातचीत को तत्परता के साथ मुकेश अरनेजा तक पहुँचा कर जेके गौड़ ने अपनी 'ड्यूटी' निभाई

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी जेके गौड़ दूसरे लोगों को यह भरोसा दिलाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के चुनाव को लेकर वह मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के एजेंट के रूप में काम नहीं कर रहे हैं, लेकिन उमेश चोपड़ा के साथ हुई अपनी बातचीत को उन्होंने जिस तत्परता के साथ मुकेश अरनेजा तक पहुँचाया - उससे साफ हुआ है कि जेके गौड़ मुकेश अरनेजा के लिए डाकिये का काम कर रहे हैं । मजे की बात यह हुई है कि खुद मुकेश अरनेजा ने ही कई लोगों के बीच यह दावा किया है कि जेके गौड़ से उन्हें पल पल की खबर मिलती रहती है । मुकेश अरनेजा ने ही लोगों को बताया कि उमेश चोपड़ा को भी यह जान कर आश्चर्य हुआ कि उनके (यानि उमेश चोपड़ा के) और जेके गौड़ के बीच हुई बातचीत का ब्यौरा इतनी जल्दी उनतक (यानि मुकेश अरनेजा तक) कैसे पहुँच गया ? मुकेश अरनेजा ने उमेश चोपड़ा का आश्चर्य ख़त्म करते हुए उन्हें बताया कि जेके गौड़ आखिर उनका पक्का चेला है ।
मुकेश अरनेजा यूँ तो झूठ बोलने में बहुत एक्सपर्ट हैं, लेकिन जेके गौड़ को अपना पक्का चेला उन्होंने जिस घटनाक्रम के साथ बताया है, उससे उनका यह दावा सच लगता है । जेके गौड़ ने जो किया, दरअसल वह एक पक्का चेला ही कर सकता है ।
उल्लेखनीय है कि उमेश चोपड़ा ने सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के चुनाव में गाजियाबाद की भूमिका को लेकर जेके गौड़ से बात की । उमेश चोपड़ा ने जेके गौड़ के साथ हुई इस बातचीत में दो-तीन मुद्दे उठाये : एक मुद्दा था कि दिल्ली के नेता गाजियाबाद के लोगों को इस्तेमाल करते हैं, जिससे गाजियाबाद के लोगों को बचना चाहिए; दूसरा मुद्दा था कि जेके गौड़ को गाजियाबाद के लोगों के साथ बातचीत करके गाजियाबाद का स्टैंड तय करना चाहिए; तीसरा मुद्दा यह था कि जेके गौड़ को किसी नेता या ग्रुप का सदस्य घोषित होने से बचना चाहिए; आदि-इत्यादि । जेके गौड़ ने उमेश चोपड़ा की बातों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया और अपनी सहमति ही व्यक्त की । जेके गौड़ ने उमेश चोपड़ा को आश्वस्त किया कि वह हर मुद्दे पर गाजियाबाद के लोगों के साथ ही हैं और रहेंगे । जेके गौड़ ने दावा किया कि सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के चुनाव को लेकर उनके द्धारा रमेश अग्रवाल के लिए कॉन्करेंस और समर्थन जुटाने की कोशिशें करने की जो बातें कही जा रही हैं, वह झूठ हैं । जेके गौड़ ने साफ घोषणा की कि यदि कोई यह कह दे कि उन्होंने उससे या किसी से रमेश अग्रवाल को कॉन्करेंस देने या समर्थन देने की बात की है, तो वह रोटरी छोड़ देंगे ।
इस तरह की बातों, दावों और घोषणाओं को जो भी सुनेगा - निश्चित ही प्रभावित होगा । उमेश चोपड़ा भी हुए । उमेश चोपड़ा को लगा कि लोग नाहक ही बेचारे जेके गौड़ को बदनाम कर रहे हैं । यानि जेके गौड़ ने उमेश चोपड़ा के सामने जो नाटक दिखाया, वह हिट साबित हुआ ।
लेकिन मुकेश अरनेजा ने जेके गौड़ के इस नाटक की जल्दी ही पोल खोल दी । जेके गौड़ से उमेश चोपड़ा की हुई बातचीत को थोड़ा समय ही बीता था कि उमेश चोपड़ा को मुकेश अरनेजा का फोन आ पहुँचा, जिसमें यह शिकायत थी कि उमेश चोपड़ा बहुत राजनीति कर रहे हैं । मुकेश अरनेजा ने उन्हें बताया कि उन्होंने (यानि उमेश चोपड़ा ने) जेके गौड़ से जो कुछ भी कहा है, वह जेके गौड़ ने उन्हें (यानि मुकेश अरनेजा को) बता दिया है । यह सुन/जान कर उमेश चोपड़ा हतप्रभ रह गए । उनकी जेके गौड़ के साथ जो भी बात हुई थी, उसमें ऐसा कुछ था ही नहीं जिसे जेक गौड़ के लिए तुरंत मुकेश अरनेजा तक पहुँचाना जरूरी हो । उमेश चोपड़ा के लिए यह समझना मुश्किल हुआ कि उनसे हुई बातचीत को तुरंत से मुकेश अरनेजा तक पहुँचाना जेके गौड़ के लिए आखिर जरूरी क्यों हुआ ?
उमेश चोपड़ा के लिए यह समझना भले ही मुश्किल हुआ हो, लेकिन मुकेश अरनेजा ने इसे समझाने में कोई देर नहीं की । मुकेश अरनेजा को जेके गौड़ से जैसे ही उमेश चोपड़ा से हुई बातचीत का ब्यौरा मिला, वैसे ही मुकेश अरनेजा ने पहले तो उमेश चोपड़ा से शिकायती बात की और फिर अन्य कई लोगों को बताया कि कैसे उन्होंने उमेश चोपड़ा को 'हड़काया' । मुकेश अरनेजा ने शिकायत के साथ लोगों को बताया कि जेके गौड़ से बात करते समय उमेश चोपड़ा यह कैसे भूल गए कि जेके गौड़ उनके जासूस हैं और उन्हें हर बात की खबर देते हैं ।
मुकेश अरनेजा ने क्या कहा, इसे अगर जाने भी दें - तो भी जेके गौड़ ने खुद जो किया; उमेश चोपड़ा के साथ हुई अपनी बातचीत को जिस तत्परता के साथ मुकेश अरनेजा तक पहुँचाया उससे उन्होंने यही दिखाया/बताया/जताया है कि वह किसकी 'ड्यूटी' पर हैं और किसके हाथों का खिलौना हैं ।  

Monday, January 27, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सत्ता खेमे में फूट करवाने के उद्देश्य से चली चाल में अजय बुद्धराज ने सत्ता खेमे के दिल्ली के नेताओं को फाँसने की कोशिश की है क्या ?

नई दिल्ली । अजय बुद्धराज ने आरके शाह को 'सर्वसम्मति' से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'चुनवाने' के लिए फार्मूले खोजने का जो अभियान छेड़ा है, उसे कुछ लोग उनके समर्पण के रूप में देख रहे हैं तो अन्य कुछेक लोगों को इसमें उनकी 'चाल' नजर आ रही है । जो लोग उनके अभियान को उनके समर्पण के रूप में देख रहे हैं, उनका मानना और कहना है कि अजय बुद्धराज ने चूँकि समझ लिया है कि उनके उम्मीदवार विक्रम शर्मा के लिए जीतने की कहीं कोई संभावना नहीं है, इसलिए वह अपनी इज्जत बचाने के लिए आरके शाह के समर्थन में आने का कोई सम्मानजनक मौका खोज रहे हैं । नेता लोग हारने वाले उम्मीदवार के साथ नहीं खड़े दिखना चाहते हैं, इसलिए अजय बुद्धराज का ऐसा सोचना/करना स्वाभाविक ही है । लेकिन जो लोग अजय बुद्धराज के अभियान को उनकी चाल के रूप में देख रहे हैं, उनका मानना और कहना है कि अजय बुद्धराज ने अपने अभियान को जिस अंदाज में प्रस्तुत किया है उसमें चालाकी वाले तत्व छिपे पहचाने जा सकते हैं और ऐसा लगता है जैसे अपने इस अभियान के जरिये वह सत्ता खेमे में फूट डालने की कोशिश कर रहे हैं । अजय बुद्धराज द्धारा अचानक शुरू किये गए अभियान को उनका समर्पण इसलिए नहीं माना जा सकता, क्योंकि समर्पण भी एक तरह से पराजय वाला ही संकेत देगा ।
गौर करने की बात यह है कि अजय बुद्धराज ने अपना अभियान अचानक से ऐसे समय शुरू किया जबकि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को लेकर परस्पर विरोधी ख़बरें लोगों को मिल रही हैं । एक तरफ तो सुनने को मिल रहा है कि विक्रम शर्मा ने अपने समर्थक नेताओं को बता दिया है कि चुनाव की जरूरतें पूरी करने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं; और कि विक्रम शर्मा ने बाजार से पैसे लेने की जो कोशिश की उसमें वह सफल नहीं हो सके हैं; और कि विक्रम शर्मा ने अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने का फैसला कर लिया है; आदि-इत्यादि । दूसरी तरफ लेकिन लोगों को यह भी सुनने को मिल रहा है कि विक्रम शर्मा ने एक बड़े होटल में लोगों के ठहरने के लिए कमरे बुक किये हैं तथा वह अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने वास्ते लगातार लोगों से मिलजुल भी रहे हैं । जिन लोगों को इस बात का पक्का भरोसा है कि विक्रम शर्मा के लिए किसी भी तरह से कहीं कोई उम्मीद नहीं है, उनके लिए हैरानी की बात यही है कि विक्रम शर्मा आखिर किस भरोसे अभी भी अपना समय, अपनी एनर्जी और अपना पैसा खर्च कर रहे हैं ? जिन लोगों के पास यह सवाल है, उनके पास इसका जबाव भी है और वह यह कि विक्रम शर्मा के समर्थक नेता तरह-तरह से झाँसा देकर उनकी उम्मीद बनाये हुए हैं और विक्रम शर्मा को विश्वास दिलाये हुए हैं कि लगे रहोगे तो चमत्कार हो जायेगा ।
अजय बुद्धराज के अभियान में कुछेक लोगों को वही चमत्कार घटित करने/कराने का षड्यंत्र महसूस हो रहा है । अजय बुद्धराज के नजदीकी एक बड़े नेता का इन पँक्तियों के लेखक से साफ कहना है कि अजय बुद्धराज को उम्मीद है कि वह सत्ता खेमे के दिल्ली के नेताओं और हरियाणा के नेताओं - खास तौर से विजय शिरोहा के बीच फूट डलवा/करवा देंगे । उक्त बड़े नेता के अनुसार, अजय बुद्धराज ने महसूस किया है कि आरके शाह की उम्मीदवारी के तय होने तथा आरके शाह की उम्मीदवारी को बढ़त मिलने का श्रेय जिस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को मिल रहा है और डिस्ट्रिक्ट में विजय शिरोहा की जिस तरह की राजनीतिक धाक बनी है - वह सब सत्ता खेमे के दिल्ली के नेताओं को हजम नहीं हो रहा है । अजय बुद्धराज अपने नजदीकियों को बता रहे हैं कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने को लेकर पर्दे के पीछे जो राजनीति हुई उसमें सत्ता खेमे के दिल्ली के नेता अपने आप को उपेक्षित और पृष्ठभूमि में पा रहे हैं और महसूस कर रहे हैं कि उनका इस्तेमाल हुआ है । जो हुआ उसका सारा फायदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को मिला और डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने विजय शिरोहा के राजनीतिक कौशल को उसका श्रेय दिया । पक्ष-विपक्ष के दूसरे नेताओं को यह अच्छा न लगे - यह बहुत स्वाभाविक है ।
अजय बुद्धराज ने इसी स्वाभाविक-सी बात को इस्तेमाल करके चाल चली है - उन्हें पता है कि उनके अभियान को विजय शिरोहा स्वीकार नहीं करेंगे । विजय शिरोहा ने खुलेआम राकेश त्रेहन और हर्ष बंसल को लेकर अपने रिजर्वेशन घोषित किये हुए हैं । अजय बुद्धराज के नजदीकी बड़े नेता के अनुसार अजय बुद्धराज को इस बात का भी आभास है कि सत्ता खेमे के दिल्ली के नेता उनके अभियान के प्रति दो कारणों से तुरंत सहमति व्यक्त कर देंगे - एक कारण तो यह कि अजय बुद्धराज का अभियान दिल्ली में उनकी स्थिति को सुढृढ़ करेगा तथा हरियाणा के नेताओं पर उनकी निर्भरता को कम करेगा; दूसरा कारण यह कि अजय बुद्धराज का अभियान डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में बनी विजय शिरोहा की एकछत्र स्थिति को कमजोर करेगा । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के प्रमुख खिलाड़ियों के आपसी संबंधों तथा उनके 'लक्ष्यों' को समझने वाले लोगों का मानना और कहना है कि अजय बुद्धराज का सत्ता खेमे के दिल्ली के नेताओं के बारे में आकलन और महसूसना चाहें जितना भी सच हो, इस बात की उम्मीद कम ही है कि सत्ता खेमे के दिल्ली के नेता अजय बुद्धराज के झाँसे में जल्दी से आयेंगे । सत्ता खेमे के दिल्ली के नेताओं में अत्यंत सक्रिय दीपक टुटेजा संभवतः इस बात को भूले नहीं होंगे कि पिछले लायन वर्ष में भारी उठा-पटक के बीच जो रीग्रुपिंग हुई थी, उसके पीछे असल उद्देश्य अजय बुद्धराज का दीपक टुटेजा को ठिकाने लगाने का था । यह सच है कि लायन राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी ज्यादा दिन नहीं चलती है - लेकिन फिर भी अभी जो हालात हैं उनमें यह संभावना कम है कि अजय बुद्धराज की चाल से एक बार अलग-थलग पड़ने की कगार पर पहुँचे लोग दोबारा जल्दी से अजय बुद्धराज की चाल में फँसेंगे । इस तरह, अजय बुद्धराज की चाल के सफल होने की संभावना भले ही न के बराबर हो - लेकिन उनकी चाल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के बीच गर्मी तो पैदा कर ही दी है ।

Sunday, January 26, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डीजीएन जेके गौड़ की मदद से आईपीडीजी रमेश अग्रवाल ने पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर्स सुदर्शन अग्रवाल और सुशील गुप्ता की फजीहत करने की तैयारी की

नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के लिए जिस तरह की चुनावी तैयारी करते हुए देखे/सुने जा रहे हैं, उसे रोटरी के बड़े नेता बिलकुल भी पसंद नहीं कर रहे हैं । रोटरी के बड़े नेताओं का मानना और कहना है कि सीओएल को लेकर रमेश अग्रवाल की जो और जिस तरह की हरकते हैं उनसे रोटरी की इमेज ख़राब हो रही है - और रमेश अग्रवाल यह तब  कर रहे हैं जबकि वह रोटरी रिसोर्स ग्रुप्स में जोन 4 व 6 ए के असिस्टेंट रोटरी पब्लिक इमेज कोआर्डीनेटर के पद पर हैं । रोटरी के बड़े नेताओं को यह देख/जान कर बड़ा अफ़सोस भी हो रहा है कि रमेश अग्रवाल जिस पद पर हैं उस पद की गरिमा का उन्हें जरा भी ख्याल नहीं है । इस प्रकरण से यह भी साबित हो रहा है कि रमेश अग्रवाल को सिर्फ पद चाहिए होता है, उस पद के अनुरूप काम और/या व्यवहार कर सकना उनके बस की बात नहीं है ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी में बड़े नेताओं के बीच आम समझ यह है कि सीओएल में प्रतिनिधित्व के लिए काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में ही फैसला हो जाना चाहिए और सभी को उस फैसले का सम्मान करना चाहिए और किसी को भी उस फैसले को आम रोटेरियंस के बीच विवाद बनाने जैसा घटिया काम नहीं करना चाहिए । विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में प्रायः इस सोच और भावना को स्वीकार किया ही जाता है । लेकिन रमेश अग्रवाल इस सोच और भावना को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं दिखते हैं । काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में आशीष घोष से हुए मुकाबले में उन्हें जिस पराजय का सामना करना पड़ा है, उसका बदला लेने के लिए वह हर तरह का घटियापन दिखाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं । रमेश अग्रवाल की यह तैयारी रोटरी में ज्यादा बड़ा मुद्दा नहीं बनती - यदि उनकी तैयारी एक सामान्य चुनाव के बाबत होती । किंतु आशीष घोष की जीत में जिस स्तर के लोगों की भूमिका रही है, उसके कारण रमेश अग्रवाल की तैयारी रोटरी में एक बड़ा मुद्दा बन गया है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट 3010 से सीओएल में रमेश अग्रवाल की बजाये आशीष घोष को प्रतिनिधित्व देने का जो फैसला हुआ है, उसे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर्स सुदर्शन अग्रवाल और सुशील गुप्ता का समर्थन प्राप्त है । इस फैसले को स्वीकार करने से इंकार करके रमेश अग्रवाल एक तरह से सुदर्शन अग्रवाल और सुशील गुप्ता की तौहीन कर रहे हैं ।
रोटरी रिसोर्स ग्रुप्स में जोन 4 व 6 ए के असिस्टेंट रोटरी पब्लिक इमेज कोआर्डीनेटर जैसे महत्वपूर्ण पद पर होते हुए रमेश अग्रवाल जिस तरह से पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर्स सुदर्शन अग्रवाल और सुशील गुप्ता की फजीहत करने की तैयारी में हैं - उसे देख/जान कर रोटरी के बड़े नेता हैरान हैं । रमेश अग्रवाल के घटियापने की कई ख़बरें उन तक भी पहुँचीं हैं, लेकिन रमेश अग्रवाल इस स्तर तक उतर सकते हैं - इसका उन्हें आभास नहीं हो पाया था । रोटरी के बड़े नेताओं को यह देख/जान कर भी आश्चर्य हुआ है कि इस हरकत में रमेश अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जेके गौड़ और सुधीर मंगला का भी सहयोग व समर्थन मिल रहा है । रोटरी के बड़े नेताओं में चिंता इस बात को लेकर है कि जेके गौड़ और सुधीर मंगला जैसे लोगों के कारण रोटरी की पहचान और साख कैसे बनी/बची रह पायेगी ।
जेके गौड़ को इस बात का पूरा आभास है कि डिस्ट्रिक्ट में और डिस्ट्रिक्ट के बाहर उनकी पहचान रमेश अग्रवाल के पिट्ठू की बनती जा रही है; इसीलिये वह दूसरे लोगों को यह भरोसा दिलाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में हुए चुनाव में वोट उन्होंने भले ही रमेश अग्रवाल को दिया था, लेकिन अब वह रमेश अग्रवाल के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं । बेचारे जेके गौड़ के लिए समस्या लेकिन यह है कि रमेश अग्रवाल उन्हें अपने पिट्ठू से ज्यादा कुछ समझते नहीं हैं और उन्हें लगातार हड़काये रखते हैं - जिसके चलते जेके गौड़ को रमेश अग्रवाल की जीहुजूरी में भी लगे रहना पड़ता है । जेके गौड़ 'दोनों' तरफ रहने/दिखने की कोशिश में एक तरफ तो यह दावा करते हैं कि रमेश अग्रवाल को वह गाजियाबाद के क्लब्स से कॉन्करेंस भी दिलवाएंगे और फिर वोट भी दिलवाएंगे; लेकिन साथ ही दूसरी तरफ वह यह सफाई देते हुए भी सुने जाते हैं कि वह तो रमेश अग्रवाल के लिए कुछ कर ही नहीं रहे हैं । जेके गौड़ के लिए एक और समस्या है - गाजियाबाद और आसपास के जो सक्रिय क्लब्स हैं उनके प्रमुख लोग आशीष घोष के समर्थन में हैं और इस मत में हैं कि रमेश अग्रवाल को एक पद के लालच में रोटरी की सच्ची भावना और डिस्ट्रिक्ट व डिस्ट्रिक्ट के बड़े नेताओं की शान पर धब्बा लगाने वाला काम नहीं करना चाहिए; जेके गौड़ को लेकिन रमेश अग्रवाल की 'सेवा में' रहना है और इसके चलते उन्हें गाजियाबाद और आसपास के क्लब्स के प्रमुख लोगों से निपटना पड़ेगा । जेके गौड़ को रमेश अग्रवाल के सामने साबित करना है कि गाजियाबाद के दूसरे प्रमुख लोग भले ही रमेश अग्रवाल के साथ न हों, लेकिन यहाँ रमेश अग्रवाल को समर्थन वह दिलवाएंगे ।
सुधीर मंगला के मामले में आशीष घोष और उनके मंजीत साहनी व अमित जैन जैसे समर्थकों को जिस तरह का झटका लगा है, उसने भी एक दिलचस्प नजारा पेश किया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में सुधीर मंगला की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले आशीष घोष, मंजीत साहनी और अमित जैन को कई लोगों ने समझाया था कि सुधीर मंगला भरोसा करने लायक व्यक्ति नहीं हैं और सुधीर मंगला उन्हें कभी भी धोखा दे देंगे - लेकिन इन्होंने किसी की नहीं सुनी । सीओएल के चुनाव में सुधीर मंगला ने आशीष घोष की बजाये रमेश अग्रवाल का समर्थन करके जब अपना असली रंग दिखाया तब इन्हें समझ में आया है कि एक छोटी सोच वाला व्यक्ति छोटी सोच वालों के साथ में ही अपने आपको 'खड़ा' करता है ।
मजे की बात यह हुई है कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में रमेश अग्रवाल को प्रायः उन लोगों का समर्थन मिला जो डिस्ट्रिक्ट में अपनी बदजुबानी के लिए, तिकड़मी राजनीति के लिए और या 'कुछ न करने' के लिए जाने जाते हैं; जबकि आशीष घोष को ऐसे लोगों का समर्थन मिला जिनकी कामकाज के मामले में रोटरी इंटरनेशनल में खासी साख है जिसके चलते उन्हें रोटरी इंटरनेशनल में जिम्मेदारी के काम और पद मिलते हैं । दरअसल इसीलिए रोटरी के बड़े नेताओं को सीओएल में प्रतिनिधित्व के लिए रमेश अग्रवाल द्धारा की जा रही घटिया स्तर की राजनीति पसंद नहीं आ रही है ।

Saturday, January 25, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सिरसा क्षेत्र में आरके शाह की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन दिखाने के साथ-साथ विजय शिरोहा ने विरोधी खेमे के नेताओं के झूठे प्रचार की पोल खोलने का काम भी कर लिया

नई दिल्ली । आरके शाह की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त करने के उद्देश्य से रानिया में आयोजित मीटिंग में 14 क्लब्स के 180 से अधिक सदस्यों के उपस्थित होने से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव आरके शाह के पक्ष में एकतरफा तौर पर झुका हुआ दिखा है । उल्लेखनीय है कि आरके शाह की उम्मीदवारी को सिरसा क्षेत्र में ऐसा जोरदार समर्थन मिलने की उम्मीद खुद आरके शाह को और उनके कुछेक समर्थक नेताओं को भी नहीं थी । एक सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को जरूर विश्वास था कि आरके शाह को सिरसा क्षेत्र में भी वैसा ही समर्थन मिलेगा, जैसा हरियाणा के दूसरे क्षेत्रों में मिलने की उम्मीद और दावा किया जा रहा है । विजय शिरोहा को इस तरह का जो विश्वास था, उसे आरके शाह और उनकी उम्मीदवारी के कुछेक दूसरे समर्थक नेता हालाँकि किंचित संदेह से देख रहे थे । विश्वास और संदेह के इसी मिलेजुले माहौल में रानिया में आरके शाह की उम्मीदवारी के समर्थन में मीटिंग आयोजित हुई ।
सिरसा क्षेत्र के लोगों के लिए आयोजित मीटिंग को रानिया में आयोजित करने के फैसले को लेकर भी आरके शाह के समर्थकों में थोड़ा मतभेद था । कुछेक समर्थक इस मीटिंग को सिरसा में ही आयोजित करना चाहते थे, जबकि अन्य कुछेक का कहना था कि इस मीटिंग को रानिया में आयोजित किया जाये । रानिया में मीटिंग आयोजित करने के पक्षधर लोगों का तर्क था कि रानिया में जो उपस्थिति होगी, वह वास्तविक ताकत को प्रदर्शित करेगी । यही हुआ भी । रानिया में आयोजित मीटिंग में 14 क्लब्स के 180 से अधिक लोगों की उपस्थिति ने सचमुच में चुनावी लड़ाई को आरके शाह के पक्ष में एकतरफा रूप से कर दिया है । यह तब हुआ जबकि आरके शाह की उम्मीदवारी के समर्थक नेता उक्त मीटिंग में नहीं गए थे; और पूरा आयोजन एक तरह से वीके हंस के भरोसे था । ख़राब मौसम और घने कोहरे के बावजूद इतने लोगों का आरके शाह की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग में जुटना विरोधी खेमे के नेताओं के दावों को बुरी तरह से ध्वस्त कर देता है ।
दरअसल विरोधी खेमे के नेताओं ने अफवाह उड़ा रखी थी कि सिरसा क्षेत्र के क्लब्स के लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के बहुत खिलाफ हैं और इसका खामियाजा आरके शाह को भुगतना पड़ेगा । इस अफवाह के चलते आरके शाह कुछ टेंशन में भी आये, लेकिन जल्दी ही उन्हें विरोधी खेमे के नेताओं की चाल समझ में आ गई । आरके शाह ने गौर किया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा ने हाल ही में सड़क सुरक्षा सप्ताह के जिस प्रोजेक्ट का आह्वान किया था, उसे डिस्ट्रिक्ट में सबसे ज्यादा उत्साह से सिरसा क्षेत्र के क्लब्स ने ही अपनाया था । विरोधी खेमे के नेताओं द्धारा उड़ाई गई अफवाह यदि सच होती, और सचमुच में सिरसा क्षेत्र के क्लब्स के लोगों के बीच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के प्रति विरोध का भाव होता तो विजय शिरोहा द्धारा आह्वानित प्रोजेक्ट के प्रति वह इतना उत्साह भला क्यों दिखाते ? इतने सब कुछ के बाद भी, आरके शाह की उम्मीदवारी के समर्थन में आयोजित मीटिंग के जरिये भी विजय शिरोहा ने विरोधी खेमे के नेताओं के झूठे प्रचार की हवा निकालने की तैयारी की । सिरसा की बजाये रानिया में मीटिंग करके और खुद के साथ-साथ दूसरे बड़े नेताओं को अनुपस्थित रख कर रानिया में आयोजित मीटिंग को सफल करवा कर विजय शिरोहा ने विरोधी खेमे के नेताओं के झूठे प्रचार की पोल खोलने का काम भी आरके शाह की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन दिखाने के साथ-साथ ही कर लिया ।

Friday, January 24, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में विक्रम शर्मा की पराजय को सुनिश्चित जान कर उनके समर्थक नेताओं ने उनसे बाकी बचे पैसे ऐंठने के लिए पीएस राठी की उम्मीदवारी के जरिये दबाव बनाने की चाल चली है

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा और उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाने की मुहिम में जुटने वाले नेताओं के बीच झगड़ा पैदा हो गया है, जिसके चलते नेताओं ने एक दूसरे उम्मीदवार पीएस राठी को उम्मीदवार बनाने की तैयारी शुरू कर दी है । लायंस क्लब दिल्ली कृष्णा के पीएस राठी बेचारे भले व्यक्ति हैं - विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी से चार दिनों में ही निराश हो चुके नेता जिनमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की लालसा जगा देने में तो कामयाब हो गए हैं, लेकिन जिन्हें कम समय में जिता देने का भरोसा दे पाने में वह सफल नहीं हो पाये हैं । विक्रम शर्मा को छोड़ कर पीएस राठी की उम्मीदवारी का झंडा थामने की तैयारी करने वाले नेता इसीलिए इस जुगाड़ में लग गए हैं कि कैसे भी करके डिस्ट्रिक्ट कॉन्फरेंस का मौजूदा शिड्यूल स्थगित हो जाये और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फरेंस आगे बढ़ जाये, ताकि उन्हें पीएस राठी की उम्मीदवारी की तैयारी करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाये ।
विक्रम शर्मा को उम्मीदवार बनाने वाले और चार दिन बाद ही अब उनके समर्थन से पीछे हटते दिख रहे नेता लायंस इंटरनेशनल को चिट्ठी लिख कर डिस्ट्रिक्ट कॉन्फरेंस में अडंगा डालने का जो प्रयास कर रहे हैं, उसके पीछे यही कारण देखा/पहचाना जा रहा है कि विक्रम शर्मा की पराजय को उन्होंने स्वीकार कर लिया है और अब वह एक नए उम्मीदवार के साथ आना चाहते हैं और उसके लिए समय चाहते हैं ।
विक्रम शर्मा और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों का जो नजारा देखा/सुना जा रहा है, उसने पूरे मामले को खासा दिलचस्प बना दिया है । विक्रम शर्मा का आरोप हैं कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के एक खेमे के नेताओं ने उन्हें उम्मीदवार तो बना दिया है, लेकिन उनकी मदद कोई भी नहीं कर रहा है और सभी नेता अपने अपने तरीके से उनसे पैसा ऐंठने के प्रयासों में लगे हैं । नेताओं का आरोप यह है कि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने से पहले उन्हें सारा हिसाब बता दिया गया था और विक्रम शर्मा द्धारा सभी खर्चे करने की स्वीकृति देने के बाद ही उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी दी गई थी, लेकिन अब विक्रम शर्मा पैसा खर्च करने में आनाकानी कर रहे हैं, जिसके चलते उनके समर्थन में किये जाने वाले काम प्रभावित हो रहे हैं ।
विक्रम शर्मा के पास इसका बड़ा तर्क संगत जबाव है - उनका कहना है कि उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी देने से पहले उनके और नेताओं के बीच जो बातचीत हुई थी, उन्होंने तो उसके अनुसार काम किया, लेकिन नेताओं ने अपने हिस्से की जिम्मेदारी नहीं निभाई है । विक्रम शर्मा के अनुसार, उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी मिलते ही उन्होंने एक मोटी रकम नेताओं को सौंप दी थी, जिस रकम को अजय बुद्धराज और हर्ष बंसल ने हथिया लिया और उस रकम को अपने अपने क्लब्स के ड्यूज जमा कराने में खर्च कर दिया । दूसरे नेताओं को जब इस बात का पता चला तो वह भड़क गए कि उनके क्लब्स के ड्यूज क्यों नहीं जमा करवाये गए । भड़के हुए नेताओं का मुँह बंद करने के लिए अजय बुद्धराज और हर्ष बंसल ने उनसे और पैसे मांगने शुरू कर दिए । विक्रम शर्मा का कहना है कि उन्होंने जब सारा हिसाब समझ कर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी की है, तो जाहिर है कि वह पैसे खर्च करने के लिए तैयार हैं और पैसे खर्च करेंगे; किंतु नेताओं को भी तो अपनी सक्रियता से यह दिखाना/बताना चाहिए कि वह पैसे 'लेने' के अलावा भी कुछ और करेंगे ।
विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थन में भिवानी में हुई मीटिंग में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता के न पहुँचने से विक्रम शर्मा को समझ में आ गया कि उन्हें उम्मीदवार बनाने वाले नेताओं की दिलचस्पी सिर्फ उनसे पैसा बसूलने में है; इसके साथ ही विक्रम शर्मा ने पैसा देने से हाथ खींच लिया । नेता लोग इस बात से भड़क गए और उन्होंने विक्रम शर्मा की बजाये पीएस राठी को उम्मीदवार बनाने की तैयारी शुरू कर दी । नेताओं ने सब्जबाग दिखाया तो पीएस राठी के मन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का ख्वाब तो जाग गया, किंतु वह अभी इस बारे में आश्वस्त नहीं हो पाये हैं कि जो नेता उन्हें सब्जबाग दिखा रहे हैं, वह उन्हें जिता ही देंगे; इसलिए पीएस राठी अपनी उम्मीदवारी को लेकर ज्यादा आगे नहीं बढ़े हैं । उन्हें सब्जबाग दिखा रहे नेताओं को लेकिन यह जरूर लग रहा है कि यदि उन्हें थोड़ा समय मिल जाये तो फिर वह पीएस राठी को जीतने का भरोसा भी दिला देंगे ।
पीएस राठी की उम्मीदवारी को कुछ लोग हालाँकि विक्रम शर्मा पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में भी देख रहे हैं । विक्रम शर्मा से पैसे ऐंठने में परेशानी अनुभव कर रहे नेताओं को लग रहा है कि पीएस राठी की उम्मीदवारी का भय दिखा कर वह विक्रम शर्मा की जेब ढीली करवाने में सफलता प्राप्त कर लेंगे । नेता लोग भी जान रहे हैं कि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी का कुछ होना/जाना नहीं है और आरके शाह को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने से अब कोई चमत्कार ही रोक सकता है; इसलिए विक्रम शर्मा से बाकी बचे पैसे ऐंठने के लिए उन्हें कुछ न कुछ हरकत करते रहना जरूरी लग रहा है - जिससे विक्रम शर्मा के मन में डर और/या उम्मीद बनी रहे और वह बाकी बचे पैसे भी 'अपने' नेताओं को दे दें ।

Monday, January 20, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में सीओएल के लिए आशीष घोष को अधिकृत उम्मीदवार घोषित होने से रोकने के लिए रमेश अग्रवाल और उनकी टीम ने अधिकृत उम्मीदवार के लिए दो-तिहाई वोटों को प्राप्त करने की जरूरत का झमेला खड़ा किया

नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल को सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के लिए चुनवाने हेतु विनय कुमार अग्रवाल और जेके गौड़ ने जिस तरह की मोर्चाबंदी की है, उससे रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी की कमजोरी ही साबित हुई है । उल्लेखनीय है कि रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रमुख झंडाबरदार विनय कुमार अग्रवाल ने माँग की है कि सीओएल के लिए अधिकृत उम्मीदवार के लिए दो-तिहाई वोट प्राप्त करना जरूरी होना चाहिए । विनय कुमार अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट के बड़े कानूनबाज किस्म के लोगों - मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल - के नजदीक हैं, इसलिए उनसे यह उम्मीद तो की ही जाती है कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट में का नियम पता ही होगा जिसके अनुसार साधारण बढ़त ही अधिकृत उम्मीदवार चुनने के लिए आवश्यक है । आखिर तब फिर विनय कुमार अग्रवाल ने दो-तिहाई वोटों को प्राप्त करने की जरूरत की माँग क्यों की है ?
रमेश अग्रवाल के नजदीकियों का ही मानना और कहना है कि लगता है कि रमेश अग्रवाल और उनके सिपहसालारों ने समझ लिया है कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में आशीष घोष को उनसे ज्यादा वोट मिल जायेंगे । उन्होंने जो हिसाब लगाया है उसके अनुसार आशीष घोष को रमेश अग्रवाल से ज्यादा वोट तो मिल जायेंगे, लेकिन आशीष घोष को मिलने वाले वोटों की संख्या कुल वोटों के दो-तिहाई स्तर को नहीं छू सकेगी । इसीलिये आशीष घोष को अधिकृत उम्मीदवार घोषित होने से रोकने के लिए रमेश अग्रवाल और उनकी टीम को अधिकृत उम्मीदवार के लिए दो-तिहाई वोटों को प्राप्त करने की जरूरत की माँग करने का रास्ता सूझा है ।
रमेश अग्रवाल और उनकी टीम का प्रयास है कि अधिकृत उम्मीदवार के लिए दो-तिहाई वोटों को प्राप्त करना यदि जरूरी बना दिया गया, तो फिर आशीष घोष अधिकृत उम्मीदवार नहीं बन पायेंगे और तब सीओएल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले सभी उम्मीदवार खुले चुनाव में चुनाव लड़ने के अधिकारी बन जायेंगे । रमेश अग्रवाल और उनके समर्थकों को डर है कि सीओएल के लिए नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने जाने वाले अधिकृत उम्मीदवार को यदि साधारण बढ़त के आधार पर ही चुना गया, तो फिर आशीष घोष ही अधिकृत उम्मीदवार चुन लिये जायेंगे । रमेश अग्रवाल की तरफ से दावा तो किया जा रहा है कि वह यदि अधिकृत उम्मीदवार नहीं चुने गए तो वह चेलैंज करेंगे - लेकिन वह खुद भी जानते/समझते हैं कि चेलैंज करना आसान नहीं होगा । इसलिए ही रमेश अग्रवाल और उनके समर्थक चाहते हैं और प्रयासरत हैं कि नोमीनेटिंग कमेटी से फैसला हो ही नहीं और मामला खुला छूट जाये । इसी के लिए अधिकृत उम्मीदवार के लिए दो-तिहाई वोट जरूरी करने वाला झमेला खड़ा किया जा रहा है । विनय कुमार अग्रवाल को उम्मीद है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल पर दबाव बना कर दो-तिहाई वोट वाले मामले को स्वीकृत करवा लेंगे । क्या होगा, यह कल पता चलेगा ।
रमेश अग्रवाल के एक दूसरे 'सिपाही' जेके गौड़ ने एक बड़ी कामयाबी पाई - उन्होंने एक छिपा हुआ वोट रमेश अग्रवाल के पक्ष में खोज निकाला । डिस्ट्रिक्ट 3060 में 1991-92 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने एसपी मैनी पिछले कुछेक वर्षों से डिस्ट्रिक्ट 3010 में रोटरी क्लब नोएडा के सदस्य हैं । एसपी मैनी यहाँ पोलियो कार्यक्रम में सक्रिय हैं और इस नाते से जेके गौड़ से उनका परिचय है । उसी परिचय का लाभ उठा कर जेके गौड़ ने एसपी मैनी से काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की कल होने वाली मीटिंग में उपस्थित होने के लिए आवेदन करवाया है । रोटरी इंटरनेशनल के नियमानुसार एसपी मैनी को डिस्ट्रिक्ट 3010 में काउंसिल ऑफ गवर्नर्स का सदस्य होने का पूरा अधिकार है । हैरानी की बात यही है कि वह अभी तक यहाँ काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्य बने क्यों नहीं ? मजे की बात यह है कि रमेश अग्रवाल को अब जिन एसपी मैनी का वोट चाहिए और जिसके लिए उनके 'सिपाही' जेके गौड़ ने एसपी मैनी से कल की मीटिंग में उपस्थित होने का आवेदन करवाया है, उन एसपी मैनी को पिछले वर्ष के अपने गवर्नर-काल में रमेश अग्रवाल ने एक बार भी तवज्जो नहीं दी और न उन्हें काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में ही शामिल किया ।
एसपी मैनी के जरिये जेके गौड़ ने दरअसल मंजीत साहनी से भी बदला लेने का काम किया है । जेके गौड़, मंजीत साहनी से इस बात को लेकर बुरी तरह खफा हैं कि पिछले वर्ष उन्होंने सुधीर मंगला का समर्थन किया था । जेके गौड़ को आशंका हुई कि मंजीत साहनी सीओएल के चुनाव में चूँकि आशीष घोष के समर्थन में हैं, इसलिए एसपी मैनी को वह कहीं आशीष घोष के समर्थन में न कर दें । पोलियो कार्यक्रम में सक्रिय होने के कारण एसपी मैनी का मंजीत साहनी के साथ भी अच्छा परिचय है । मंजीत साहनी इस बारे में कुछ सोचें और करें, जेके गौड़ उससे पहले ही एसपी मैनी को ले उड़े । इस तरह जेके गौड़ ने साबित करने की कोशिश की है कि वह मंजीत साहनी से ज्यादा होशियार और एप्रोच वाले हैं । जेके गौड़ कहते भी हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पिछले वर्ष सुधीर मंगला का समर्थन करके मंजीत साहनी ने उनका क्या बिगाड़ लिया था ? एसपी मैनी को अपने साथ करके जेके गौड़ ने लगातार दूसरे वर्ष मंजीत साहनी को मात दे दी है । 
रमेश अग्रवाल और उनकी टीम के लोग कल की काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में बिजनेस संबंधी बेईमानियों के चक्कर में पुलिस, अदालत और लेनदारों से बचते-छिपते फिर रहे असित मित्तल की उपस्थिति को भी संभव बनाने के प्रयासों में लगे हैं । उन्हें पक्का विश्वास है कि असित मित्तल का वोट रमेश अग्रवाल को ही मिलेगा ।
रमेश अग्रवाल और उनकी टीम के लोगों ने सीओएल का चुनाव जीतने के लिए जिस तरह की व्यापक घेराबंदी की है, उसके चलते कल, 21 जनवरी को सीओएल के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव करने के लिए होने वाली काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग महत्वपूर्ण हो गई है । काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के कई सदस्य समय समय पर रमेश अग्रवाल की, मुकेश अरनेजा की, विनय कुमार अग्रवाल की, असित मित्तल की और जेके गौड़ की लानत मलानत करते रहे हैं - ऐसे में देखने की बात यह होगी कि जब फैसला करने का समय आता है तब काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्य अपने छोटे-मोटे मतभेदों को भुलाकर डिस्ट्रिक्ट और रोटरी को बदनाम करने वाले लोगों के खिलाफ फैसला कर पाते हैं या डिस्ट्रिक्ट को वैसे ही लोगों के हाथों में सौंप देते हैं ?

Sunday, January 19, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी को समर्थन के मुद्दे पर मुकेश गोयल को अपने ही समर्थकों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है

गाजियाबाद । मुकेश गोयल ने अपनी मुश्किलों से उबरने के लिए शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करने का जो फैसला किया, वह अपना उल्टा असर दिखा रहा है । दरअसल मुकेश गोयल के कई समर्थक और नजदीकी ही उनके इस फैसले को पचा नहीं पा रहे हैं । शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी को समर्थन के मुद्दे पर मुकेश गोयल अपने ही लोगों के बीच जैसे घिर गए हैं और अलग-थलग पड़ गए हैं । अपने ही लोगों के बीच अलग-थलग दिखाई पड़ने की बात को छिपाये रखने के लिए ही मुकेश गोयल को शामली में आयोजित हुई तीसरी कैबिनेट मीटिंग में अपने आप को अनुपस्थित रखने के लिए मजबूर होना पड़ा । मुकेश गोयल को सबसे तगड़ा झटका तो सुनील जैन और सुनील निगम की तरफ से लगा है । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील जैन और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील निगम अभी तक मुकेश गोयल के साथ ही थे, लेकिन शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के मुद्दे पर इन्होँने अलग राग ही छेड़ दिया है । मुकेश गोयल के अन्य प्रमुख सहयोगी और साथी भी शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन को आत्मघाती कदम मान रहे हैं ।
मुकेश गोयल के समर्थकों और नजदीकियों का ही कहना है कि शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करके मुकेश गोयल ने सबसे पहले तो अगले दो वर्षों में सत्ता में होने और सत्ता को चलाने का अवसर खो दिया है । उम्मीद थी और इंतजार किया जा रहा था कि पहले सुनील जैन के और फिर सुनील निगम के गवर्नर-काल में मुकेश गोयल का ही राज-पाट चलेगा और तब मुकेश गोयल से जुड़े लोगों को सत्ता में होने का सुख प्राप्त होगा । शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करके मुकेश गोयल ने लेकिन यह मौका खो दिया है । मुकेश गोयल के समर्थकों और नजदीकियों के बीच इसीलिये उनके इस फैसले को लेकर निराशा और विरोध का भाव है । मुकेश गोयल के समर्थकों और नजदीकियों का यह भी कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच शिव कुमार चौधरी की जिस तरह की सक्रियता रही है और उनकी जिस तरह की ' पहचान' है, उसके चलते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जीतना उनके लिए मुश्किल ही होगा; लेकिन यदि वह जीत भी गए तो यह तो तय है कि वह मुकेश गोयल के साथ नहीं रहेंगे । इन्हीं तर्कों के साथ मुकेश गोयल के समर्थकों और नजदीकियों का उनसे कहना है कि शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करना हर तरह से घाटे का सौदा है - जिसमें मिलना कुछ नहीं है, सिर्फ खोना ही खोना है ।
मुकेश गोयल को उनके ही समर्थक और नजदीकी याद दिला रहे हैं कि शिव कुमार चौधरी अभी कल तक उन्हें बुरा-भला कहते रहे हैं और सार्वजनिक रूप से उन्हें इग्नोर व अपमानित करते रहे हैं; अभी कल तक शिव कुमार चौधरी दूसरे खेमे के नेताओं का समर्थन प्राप्त करने का ही प्रयास कर रहे थे - लेकिन चूँकि दूसरे खेमे के नेताओं के यहाँ उनकी दाल नहीं गली, इसलिए वह अब उनकी शरण में आये हैं । समर्थकों और नजदीकियों का कहना है कि हम एक ऐसे व्यक्ति के लिए जो कल तक हमारा नहीं था और आगे भी जिसके हमारे साथ रहने की कोई उम्मीद नहीं है, उन लोगों को क्यों छोड़ दें तो हमारे साथ रहे हैं और जिनके आगे भी हमारे साथ रहने की उम्मीदें हैं । मुकेश गोयल के पास अपने ही समर्थकों और नजदीकियों के इन सवालों के कोई जबाव नहीं हैं, इसीलिये वह अपने समर्थकों और नजदीकियों को अपने फैसले के प्रति राजी नहीं कर पा रहे हैं । मुकेश गोयल इसीलिये शामली में आयोजित हुई तीसरी कैबिनेट मीटिंग में शामिल होने नहीं पहुँचे, ताकि दूसरों को अपने ही समर्थकों व नजदीकियों के बीच अलग-थलग पड़ते हुए न दिखाई दें । मुकेश गोयल को हालाँकि उम्मीद है कि वह अपने समर्थकों व नजदीकियों को समझा लेंगे और उनके समर्थक उनके फैसले को स्वीकार कर लेंगे । मजे की बात यह है कि मुकेश गोयल के समर्थक भी इस उम्मीद से हैं कि मुकेश गोयल को जल्दी ही समझ में आ जायेगा कि शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करके उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है ।
मुकेश गोयल अपने राजनीतिक जीवन में सचमुच पहली बार ऐसे फँसे हैं, जहाँ पहले उन्हें अपने ही समर्थकों और नजदीकियों से निपटना है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी को लेकर मुकेश गोयल और उनके समर्थकों के बीच जिस तरह की दूरियाँ बनी हैं, उसके चलते इस बार की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई खासी दिलचस्प हो गई है ।

Friday, January 17, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा को लग रहा है कि केएस लूथरा 'दिख' भले ही उनके साथ रहे हैं, लेकिन वह करेंगे क्या यह पता नहीं

लखनऊ । गुरनाम सिंह ने विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा को अपनी तरफ कर तो लिया है, लेकिन केएस लूथरा की भूमिका को लेकर गुरनाम सिंह अभी भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं । यही कारण है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के संबंध में बनाई गई महत्वपूर्ण कमेटियों में केएस लूथरा को नहीं रखा गया है । उक्त कमेटियों के लिए पदाधिकारियों का चयन गुरनाम सिंह ने ही किया है । कमेटियों के पदाधिकारियों के नामों का ऐलान अभी नहीं हुआ है, लेकिन गुरनाम सिंह ने इन पंक्तियों को लेखक को बताया है कि नाम तय हो गए हैं और प्रमुख कमेटियों में केएस लूथरा को जिम्मेदारी नहीं दी गई है । मजे की बात यह है कि केएस लूथरा अपनी तरफ से हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि वह गुरनाम सिंह के साथ 'दिखें', लेकिन गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा उन पर पूरी तरह विश्वास नहीं कर पा रहे हैं । दरअसल पिछली बार का अनुभव उन्हें केएस लूथरा को लेकर लगातार सशंकित किए हुए हैं और इसीलिये वह दोनों केएस लूथरा पर पूरी तरह आँख मूँद कर भरोसा नहीं कर रहे हैं । दोनों तरफ के 'तौर-तरीके' भी उनके बीच विश्वास बनने/बनाने में बाधा बन रहे हैं । गुरनाम सिंह को 'अपने जासूसों' से यह सूचना तो मिलती है कि केएस लूथरा उनके ही साथ होने की बात कहते/करते हैं लेकिन केएस लूथरा के जो लोग हैं वह अभी भी एके सिंह की उम्मीदवारी का झंडा उठाये हुए हैं - असल में इसीलिये गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा, केएस लूथरा पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं ।
दरअसल पिछले वर्ष के अपने अनुभव के चलते भी गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के लिए केएस लूथरा पर भरोसा करना मुश्किल बना हुआ है । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष भी इन्होंने केएस लूथरा की तगड़ी घेराबंदी की थी और इन्हें विश्वास था कि केएस लूथरा चाहते हुए भी कुछ कर नहीं पायेंगे, लेकिन केएस लूथरा छुपे रुस्तम साबित हुए । गुरनाम सिंह ने जिस चौतरफा तरीके से केएस लूथरा को घेरा था, उसमें केएस लूथरा बिलकुल ऐसे हो जाते थे कि जैसे वह न तो कुछ करेंगे और न कुछ कर सकेंगे, लेकिन अंदर ही अंदर केएस लूथरा ने ऐसा इंतजाम किया कि गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा चारों खाने चित्त भी हुए और हैरान भी हुए कि यह हुआ क्या ? गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने समझ लिया कि केएस लूथरा को 'पहचानना' आसान नहीं है, वह जैसे 'दिखते' हैं वैसे हैं नहीं । इसीलिये इस वर्ष भी गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा समझ रहे हैं कि केएस लूथरा 'दिख' भले ही उनके साथ रहे हैं, लेकिन क्या करने की सोच रहे हैं इसे समझना थोड़ा मुश्किल है ।
यह मुश्किल एके सिंह के रवैये के कारण भी दिख रही है । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के लिए यह समझना भी मुश्किल हो रहा है कि केएस लूथरा यदि सचमुच उनके साथ आ गए हैं तो फिर एके सिंह किस भरोसे अभी भी उम्मीदवार बने हुए हैं ? पिछले वर्ष जैसे ही हालात अभी हैं - पिछले वर्ष इस समय तक शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर असमंजस बना हुआ था, क्योंकि कोई भी उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में 'दिख' नहीं रहा था, गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा से सभी लोग समर्थन का वायदा और दावा कर रहे थे; उम्मीदवार के रूप में खुद शिव कुमार गुप्ता भी बहुत सक्रिय नहीं थे; ले दे कर एक केएस लूथरा ही दबे-छिपे तरीके से शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी की बात करते हुए सुने जा रहे थे, लेकिन गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने उनकी ऐसी घेराबंदी की हुई थी कि उनसे भी कुछ होता हुआ दिख नहीं रहा था । इसके बावजूद क्या हुआ, यह सब जानते हैं । पिछली बार की तुलना में गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा को डराने के लिए एक बात जरूर इस बार है - और वह कि चुनाव को अफोर्ड करने को लेकर शिव कुमार गुप्ता के संदर्भ में डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच सवाल था, जबकि एके सिंह के संदर्भ में इस बार यह सवाल नहीं है । इसीलिये सब कुछ अनुकूल होने के बावजूद गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के लिए निश्चिंत होने के हालात नहीं हैं ।
दरअसल इसी हालात के चलते केएस लूथरा की भूमिका संदेहास्पद और महत्वपूर्ण हो गई है । विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी को केएस लूथरा द्धारा समर्थन दिए जाने की घोषणा पर केएस लूथरा के समर्थकों और नजदीकियों ने ही जिस तरह से सवाल उठाया है और केएस लूथरा को गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के जाल में फँसने से बचने की सलाह दी है उससे गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा को केएस लूथरा की भूमिका संदिग्ध दिखने लगी है । केएस लूथरा के समर्थक और नजदीकी अभी भी एके सिंह की उम्मीदवारी के समर्थन में लगे हुए हैं, और केएस लूथरा इसके लिए उन्हें रोक पाने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर चुके हैं । गुरनाम सिंह इस बात पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हैं कि केएस लूथरा लोगों को बताते हैं कि गुरनाम सिंह उन्हें मनाने पच्चीस बार उनके घर आये । गुरनाम सिंह को लगता है कि इस तरह के दावे करके केएस लूथरा अपनी अहमियत जता रहे हैं । केएस लूथरा के नजदीकियों को लगता है कि गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने पिछले वर्ष केएस लूथरा के साथ जो किया, उसके चलते केएस लूथरा के लिए मन से उनके साथ जाना आसान नहीं होगा; गुरनाम सिंह ने घेरघार कर केएस लूथरा को अपने साथ कर भले ही लिया हो और केएस लूथरा भी अपने आप को उनके साथ दिखा भले रहे हों - लेकिन केएस लूथरा के लिए उनके साथ जुड़ना आसान नहीं होगा । यह बात गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा भी समझ रहे हैं और इसीलिए वह केएस लूथरा पर पूरी तरह से भरोसा नहीं कर पा रहे हैं ।

Thursday, January 16, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में नरेश गुप्ता के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग की बढ़ती सुगबुगाहट के बने माहौल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा की भूमिका महत्वपूर्ण हुई

नई दिल्ली । अब तो अजय बुद्धराज ने भी मानना और कहना शुरू कर दिया है कि नरेश गुप्ता के व्यवहार और तौर-तरीकों के कारण हरियाणा के लोगों के बीच नरेश गुप्ता का विरोध बढ़ता जा रहा है और नरेश गुप्ता इससे होने वाले नुकसान को पहचान नहीं पा रहे हैं । उल्लेखनीय है कि अजय बुद्धराज के कहने पर नरेश गुप्ता ने सिरसा के लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए सिरसा में तो मीटिंग की थी, लेकिन दूसरे कुछेक अन्य शहरों में उस तरह की मीटिंग करने के अजय बुद्धराज के प्रस्ताव को नरेश गुप्ता ने कोई तवज्जो नहीं दी । अजय बुद्धराज दरअसल इसी बात से भड़के हुए हैं । अजय बुद्धराज के लिए मुसीबत की बात यह हुई कि हरियाणा के कई एक लोगों से उन्होंने कहा हुआ है कि नरेश गुप्ता उनके यहाँ आयेंगे और उन्हें नरेश गुप्ता की मदद करनी है । अजय बुद्धराज ने जिन लोगों से यह कहा है वह लोग बेचारे नरेश गुप्ता का इंतजार ही कर रहे हैं । नरेश गुप्ता ने उनके यहाँ जाना तो दूर, उन्हें फोन करने तक का कष्ट नहीं किया । उन्होंने अजय बुद्धराज से शिकायत की कि वह उन्हें ऐसे व्यक्ति की मदद करने के लिए क्यों कह रहे हैं, जिसे मदद की जरूरत ही नहीं है ।
नरेश गुप्ता की मुश्किल यह है कि सत्ता खेमे के लोगों के बीच पहले से ही उन्हें विरोधी खेमे के नेताओ के नजदीक देखा/पहचाना जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के खिलाफ की गई नरेश गुप्ता की बयानबाजी को मुद्दा बना कर हरियाणा के लोगों ने नरेश गुप्ता को सबक सिखाने की तैयारी करना शुरू भी कर दिया है । मजे की बात यह हुई कि नरेश गुप्ता ने यह सफाई भी देने की कोशिश की कि उन्होंने विजय शिरोहा के खिलाफ कोई बयानबाजी नहीं की तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा व उनके समर्थकों के बीच उन्हें बदनाम करने के लिए कुछेक लोगों ने इस तरह की झूठी बातें फैलाई हैं । नरेश गुप्ता की इस सफाई पर किसी ने भी भरोसा नहीं किया तो इसका कारण यही रहा कि नरेश गुप्ता के बयान उन नेताओं के जरिये ही सामने आये हैं, जिन्हें नरेश गुप्ता तवज्जो देते हुए पहचाने जाते हैं । इसके अलावा, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा की प्रेरणा और उनके प्रोत्साहन से हरियाणा के विभिन्न क्लब्स ने 'सड़क सुरक्षा सप्ताह' प्रोजेक्ट को लेकर जो आयोजन किये, नरेश गुप्ता उनसे प्रायः दूर ही रहे । हरियाणा के कुछेक क्लब्स ने अपने अपने प्रोजेक्ट्स में नरेश गुप्ता को सम्मान के विभिन्न रूपों में आमंत्रित भी किया, किंतु नरेश गुप्ता ने उनके निमंत्रणों को कोई अहमियत ही नहीं दी । नरेश गुप्ता के इस रवैये से समझा यही गया कि 'सड़क सुरक्षा सप्ताह' के तहत हुए आयोजनों की सफलता से चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा की तारीफ होगी और विजय शिरोहा का ही मान बढ़ेगा, इसलिए नरेश गुप्ता किसी भी प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं बने ।
नरेश गुप्ता के खैरख्वाह बनने/दिखने वाले नेता ही बताते और दावा करते हैं कि उन्हें तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा की हर बात नरेश गुप्ता के जरिये पता चल जाती है । ऐसा कई बार देखा/पाया भी गया है कि विजय शिरोहा द्धारा की गई कोई बात या उनके द्धारा उठाये गए किसी भी कदम की जानकारी तुरंत ही विरोधी खेमे के नेताओं तक पहुँच जाती है । इसके लिए नरेश गुप्ता को ही जिम्मेदार माना/पहचाना गया है । नरेश गुप्ता ने खुद कई बार अलग-अलग लोगों से इस बात का रोना रोया है कि कुछेक नेताओं ने तो उन्हें अपना जासूस समझा हुआ है और वे चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट आयोजनों की और/या डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ हो रही मीटिंग की पल-पल की खबर वह उन्हें देते रहें । इस तरह का रोना रोते रहने के बावजूद नरेश गुप्ता को प्रायः विरोधी खेमे के नेताओं की कठपुतली बने हुए ही देखा गया है । इसीलिये सत्ता खेमे के लोगों के बीच नरेश गुप्ता के लिए विरोध का भाव बढ़ता ही जा रहा है ।
नरेश गुप्ता और उनके खैरख्वाह नेताओं को इसका आभास भी है और अपने तरीके से वह विरोध की हवा निकालने की कोशिश भी करते रहे हैं । इसी सिलसिले में नरेश गुप्ता ने केएल खट्टर से अभयदान लेने का प्रयास किया । केएल खट्टर ने उन्हें निश्चिंत रहने का आश्वासन भी दे दिया । नरेश गुप्ता ने खुशी खुशी यह बात अजय बुद्धराज को बताई तो अजय बुद्धराज बिफर गए; उन्होंने नरेश गुप्ता को समझाया कि केएल खट्टर की बात पर भरोसा मत करना । अजय बुद्धराज ने अपने अनुभव का वास्ता देकर नरेश गुप्ता को सावधान किया कि केएल खट्टर जो कहते हैं, करते उसका उल्टा हैं । अजय बुद्धराज के अनुसार, केएल खट्टर ने नरेश गुप्ता को यदि निश्चिंत रहने का आश्वासन दिया है तो नरेश गुप्ता को समझ लेना चाहिए कि उन्हें निश्चिंत नहीं रहना है । इसी 'शिक्षा' के साथ अजय बुद्धराज ने नरेश गुप्ता को पहले सिरसा में और फिर बाद में हरियाणा के दूसरे शहरों में मीटिंग करने के जरिये लोगों से मेल-मुलाकात करने का सुझाव दिया - सुझाव क्या दिया, उनका प्रोग्राम ही बनवा दिया था; जिस पर लेकिन नरेश गुप्ता ने कोई अमल नहीं किया ।
सिरसा में मीटिंग करके नरेश गुप्ता को दरअसल तगड़ा वाला झटका लगा । तगड़ा वाला झटका इसलिए क्योंकि उक्त मीटिंग का खर्चा उन्हें देना पड़ा । सिरसा में जेब हल्की करवा कर लौटे नरेश गुप्ता ने अजय बुद्धराज को खूब कोसा और तय किया कि अजय बुद्धराज ने हरियाणा के दूसरे शहरों में मीटिंग करने का जो सुझाव उन्हें दिया हुआ है, वह उस पर अमल नहीं करेंगे । नरेश गुप्ता के इस रवैये से उनके अपने खेमे के लोग भी खफा हो गए हैं । नरेश गुप्ता ने अपने व्यवहार से जिस तरह डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोगों को अपने खिलाफ कर लिया है, उसके चलते नरेश गुप्ता के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग होने को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा की भूमिका महत्वपूर्ण हो उठी है । विजय शिरोहा ने जिस तरह एक झटके में विक्रम शर्मा और आरके शाह की स्थितियों को बदल दिया है, उसे देखते/पहचानते हुए नरेश गुप्ता के मामले में भी विजय शिरोहा का फैसला ही निर्णायक होगा ।

Wednesday, January 15, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में ललित मोहन गुप्ता द्धारा घेरे जाने की कोशिशों के बीच योगेश मोहन गुप्ता को भरोसा है कि जोड़-तोड़ और तिकड़मों से वह सीओएल में दोबारा से जाने का रास्ता बना लेंगे

मुरादाबाद/मेरठ । ललित मोहन गुप्ता ने सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु जो संपर्क अभियान छेड़ा है, उसने मुरादाबाद के उन पूर्व गवर्नर्स के सामने अजीब-सा धर्मसंकट खड़ा कर दिया है, जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को चूँकि मेरठ के क्लब्स का लगभग एकतरफा समर्थन मिल रहा है, जिसके बदले में मेरठ के क्लब्स दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों से सीओएल के चुनाव में योगेश मोहन गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए समर्थन मांग
रहे हैं । दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के मुरादाबाद के समर्थकों के सामने समस्या यह आ खड़ी हुई है कि सीओएल के चुनाव में ललित मोहन गुप्ता मुरादाबाद को संगठित रूप से खड़े करने/दिखाने का आह्वान कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट के किसी भी आयोजन में - वह आयोजन चाहें चुनाव ही क्यों न हो - मुरादाबाद अमूमन एकसाथ खड़ा दिखता भी रहा है । कभी-कभार मुरादाबाद यदि विभाजित हुआ भी है - जैसे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर इस बार वह है - तो सिर्फ उन्हीं मौकों पर जब मुरादाबाद के ही दो लोग आमने-सामने आ खड़े हुए हों । किसी बाहर वाले के लिए मुरादाबाद के लोगों ने अपने बीच के विश्वास और साथ-सहयोग को कभी ख़त्म नहीं किया है ।
यह ठीक है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर मुरादाबाद मौजूदा रोटरी वर्ष में पहले से ही विभाजित है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में जहाँ तक दो उम्मीदवारों के बीच के मुकाबले का संदर्भ है तो उसके कारण विभाजन बहुत ज्यादा नहीं है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक उम्मीदवार - दीपक बाबू ने चूँकि लोगों के बीच कोई काम ही नहीं किया, इसलिए मुरादाबाद में उनके लिए सिर्फ उन्हीं लोगों का समर्थन है जो प्रोफेशन या रिश्तेदारी के चलते उनसे जुड़े हुए हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवार - दिवाकर अग्रवाल से किसी कारण से विरोध का भाव रहने वाले कुछेक लोगों का भी समर्थन दीपक बाबू को मिल सकता है । दीपक बाबू एक उम्मीदवार के रूप में मुरादाबाद के लोगों का समर्थन जुटाने में चूँकि असफल होते हुए दिख रहे हैं, इसलिए मुरादाबाद से दो उम्मीदवार होने के बावजूद मुरादाबाद के रोटेरियंस के बीच कोई विशेष तनाव या घमासान मचता हुआ नहीं नजर आ रहा है । दरअसल इसीलिए ललित मोहन गुप्ता को उम्मीद है कि मुरादाबाद सीओएल के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी का पूरी एकजुटता के साथ उनका समर्थन करेगा तथा बाकी शहरों और कस्बों में भी समर्थन जुटाने के लिए काम करेगा । सीओएल के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने का काम पहले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की नोमीनेटिंग कमेटी को 18 जनवरी को करना है, इसलिए ललित मोहन गुप्ता ने उनके बीच समर्थन जुटाने का अभियान शुरू किया है ।
सीओएल के चुनाव को लेकर ललित मोहन गुप्ता के पास तुरुप का जो इक्का है, वह यह तर्क है कि सीओएल में पहले जो लोग जा चुके हैं उनके अलावा जो लोग सीओएल में जाना चाहते हैं उन्हें मौका मिलना चाहिए । इस तर्क के जरिये ललित मोहन गुप्ता ने दरअसल योगेश मोहन गुप्ता की उम्मीदवारी को निशाने पर लिया है । उल्लेखनीय है कि योगेश मोहन गुप्ता पिछली बार ही सीओएल में गए थे और अब वह दोबारा सीओएल में जाने के लिए ताल ठोंक रहे हैं । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि सीओएल में डिस्ट्रिक्ट का प्रतिनिधित्व कर चुके बृज भूषण भी इस बार फिर अपनी उम्मीदवारी पेश कर चुके थे, लेकिन ललित मोहन गुप्ता के साथ-साथ जब दूसरे कई लोगों ने यह सवाल उठाया कि जो लोग सीओएल में जा चुके हैं, वही बार-बार क्यों सीओएल में जाने वालों की लाइन में खड़े हो जाते हैं - तो बृज भूषण ने अपनी उम्मीदवारी को तुरंत से वापस ले लिया । बृज भूषण को शायद इस बात पर शर्म आई होगी कि लोग उन्हें सत्तालोलुप समझें । योगेश मोहन गुप्ता लेकिन इस तरह की बातों पर शर्म-वर्म के पचड़े में नहीं पड़ते, इसलिए वह तो दोबारा से सीओएल में जाने की लाइन में लग गए हैं ।
योगेश मोहन गुप्ता ने ऐलान कर दिया है कि वह यदि नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा अधिकृत उम्मीदवार नहीं चुने गए, तो फिर वह अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करेंगे । योगेश मोहन गुप्ता का मानना और कहना है कि चुनाव जीतने का 'हुनर' उन्हें आता है, इसलिए वह किसी भी चुनाव का सामना करने के लिए तैयार हैं । योगेश मोहन गुप्ता के नजदीकियों का हालाँकि दावा है कि नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला योगेश मोहन गुप्ता के पक्ष में ही आयेगा और वही अधिकृत उम्मीदवार चुने जायेंगे । मजे की बात यह है कि योगेश मोहन गुप्ता लगातार दूसरी बार सीओएल में जाने के लिए 'तैयार' तो हो रहे हैं, लेकिन इसके लिए समर्थन जुटाने वास्ते लोगों के बीच जाने से बच रहे हैं । दरअसल उन्हें डर इस बात का है कि लोग जब उनसे पूछेंगे कि सीओएल में वह बार-बार क्यों जाना चाहते हैं, तो वह क्या जबाव देंगे ? योगेश मोहन गुप्ता को भरोसा है कि लोगों के बीच जाये बिना, लोगों के सवाल का जबाव दिए बिना, जोड़-तोड़ और तिकड़मों से वह सीओएल में दोबारा से जाने का रास्ता बना ही लेंगे । योगेश मोहन गुप्ता ने अपने भरोसे के बीच अपनी जिस कमजोरी को उद्घाटित किया है, ललित मोहन गुप्ता ने उनकी उसी 'कमजोरी' में अपने लिए संभावना देखी/पहचानी है और इसीलिए उन्होंने मुद्दा बनाया है कि सीओएल में डिस्ट्रिक्ट का प्रतिनिधित्व किसी नए को करना चाहिए ।  

Tuesday, January 14, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सत्ता खेमे की तरफ से आरके शाह की उम्मीदवारी को घोषित करवा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा ने वास्तव में कई मोर्चों पर एकसाथ जीत दर्ज कर लेने का मौका बनाया है

नई दिल्ली । आरके शाह का नाम सत्ता खेमे की तरफ से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए क्लियर करवा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा ने कई शिकार एक साथ कर लिए हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी को लेकर इस वर्ष जैसी असमंजसता रही, वैसी शायद ही कभी देखने को मिली हो । यह असमंजसता शुरू तो दरअसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा की सोच और रणनीति के कारण हुई, लेकिन जब हर किसी ने इसमें अपनी अपनी राजनीति करने का मौका तलाशने का काम शुरू किया तो फिर असमंजसता का दायरा इस हद तक फैलता दिखा कि उसे नियंत्रित करना मुश्किल लगने लगा । विजय शिरोहा ने पहले तो असमंजसता के दायरे को सोची-समझी रणनीति के तहत फैलने दिया और फिर उसे ऐसे नतीजे के साथ समेटवाया कि बाकी खिलाड़ी हाथ मलते रह गए और विजय शिरोहा ने पैदा हो रही चुनौतियों को सिर उठाने से पहले ही दबा देने में कामयाबी प्राप्त की ।
मजे की बात यह रही कि विजय शिरोहा ने कुछ किया भी नहीं । बिना कुछ किये सब कुछ अपनी मर्जी का और अपनी सुविधा का कर लेने का उन्होंने लेकिन लक्ष्य प्राप्त कर लेने में कोई चूक नहीं की है ।
उल्लेखनीय है कि विजय शिरोहा ने शुरू से घोषणा की हुई थी कि वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपना कोई उम्मीदवार नहीं लायेंगे और किसी उम्मीदवार के 'भरोसे' गवर्नरी नहीं करेंगे । इस घोषणा के बावजूद सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दोनों संभावित उम्मीदवारों - विक्रम शर्मा और आरके शाह - को उनकी गुडबुक में देखा/पाया गया । गुडबुक में होने के चलते विजय शिरोहा ने दोनों को ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच सक्रिय होने तथा निरंतर काम करते रहने के लिए तो प्रेरित किया, किंतु उनसे कोई फायदा उठाने की कोशिश नहीं की । किसी को भी यह झमेला समझ में नहीं आ रहा था कि विजय शिरोहा दोनों संभावित उम्मीदवारों को साथ भी लिए हुए हैं, उन्हें प्रेरित भी कर रहे हैं, उन्हें टिप्स भी दे रहे हैं - लेकिन उनसे कोई 'फायदा' उठाते हुए नहीं दिख रहे हैं और उनमें से किसी की जिम्मेदारी नहीं ले रहे हैं । दिसंबर माह में जब सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए गहमागहमी बढ़ी तब कुछेक लोगों को यह लगा तो कि विजय शिरोहा ने विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को स्वीकार करने का मन बना लिया है, लेकिन विजय शिरोहा ने अपनी तरफ से कोई फैसला नहीं सुनाया । इस कारण से, दिसंबर और जनवरी की पहली तिमाही में पर्दे के पीछे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार को लेकर जो जो समीकरण बनाने के प्रयास हुए उनमें प्रायः विजय शिरोहा को या तो ठिकाने और या किनारे लगाने के उद्देश्य प्रमुख हो उठे थे ।
विजय शिरोहा चूँकि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए किसी भी उम्मीदवार को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे, इसलिए उनके दोस्तों और दुश्मनों को लगा कि उन्हें किनारे और ठिकाने लगाना आसान होगा । विजय शिरोहा के दुश्मन भी और दोस्त भी यह समझने/पहचानने में चूक गए कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को लेकर विजय शिरोहा दिलचस्पी 'दिखा' भले ही न रहे हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें सचमुच कोई दिलचस्पी 'है' नहीं । विजय शिरोहा ने इसी राजनीतिक कौशल का इस्तेमाल किया और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार के चयन में कोई दिलचस्पी न दिखाने के बावजूद उम्मीदवार तय भी नहीं होने 'दिया' । दिसंबर और जनवरी की पहली तिमाही में पर्दे के पीछे जो जो समीकरण बने, उनमें किसी में दिल्ली के नेताओं के एक हो जाने का फार्मूला था - जिसमें विजय शिरोहा के लिए कोई जगह नहीं थी; किसी में विजय शिरोहा को अलग करके दिल्ली और हरियाणा के नेताओं के एक हो जाने का फार्मूला था; किसी में राकेश त्रेहन और हर्ष बंसल को अलग करके विजय शिरोहा को साथ लेकर दिल्ली के नेताओं के एक होने का फार्मूला था - जिसमें विजय शिरोहा को हरियाणा के नेताओं और लोगों के बीच खलनायक बना देने का उद्देश्य छिपा हुआ था । लेकिन कोई भी फार्मूला सिरे नहीं चढ़ सका । विजय शिरोहा ने जाल कुछ इस तरह से बिछाया हुआ था कि नेता लोग अपने अपने फार्मूले लेकर घूम रहे थे लेकिन कोई भी अपने फार्मूले को क्रियान्वित नहीं करवा पा रहा था ।
विक्रम शर्मा के खैरख्वाह तो बहुत थे, लेकिन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उनकी उम्मीदवारी को वजन सिर्फ तब मिला, जब वह विजय शिरोहा की शरण में थे - और जिस दिन वह विजय शिरोहा की नजर से गिरे उसी दिन उनकी उम्मीदवारी की हवा निकल गई । किसी नेता की - या किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की लायन राजनीति में ऐसी धमक शायद ही देखी गई हो । विक्रम शर्मा का पत्ता कटने के बाद सत्ता खेमे में उम्मीदवार का फैसला करना और भी मुश्किल हो गया था । आरके शाह की उम्मीदवारी को लेकर सत्ता खेमे के नेताओं में सहमति ही नहीं बन पा रही थी, और दूसरी तरफ विरोधी खेमे के लोग यह दावा कर रहे थे कि हरियाणा के नेता/लोग विजय शिरोहा के खिलाफ हैं । ऐसे माहौल में सत्ता खेमे की तरफ से आरके शाह की उम्मीदवारी को हरी झंडी मिल गई । आरके शाह की उम्मीदवारी को हरी झंडी मिलने से विजय शिरोहा इतने निश्चिंत हो गए हैं कि अभी जबकि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फरेंस होने में मुश्किल से बीस दिन से भी कम दिन बचे हैं, विजय शिरोहा बिजनेस ट्रिप पर पाँच दिन के लिए दुबई जा पहुँचे हैं । आरके शाह को चूँकि राजिंदर बंसल के नजदीक समझा जाता है, इसलिए आरके शाह की उम्मीदवारी से विजय शिरोहा के प्रति हरियाणा के नेताओं/लोगों की नाराजगी की बात अपनेआप ही बेबुनियाद साबित हो गई ।
विजय शिरोहा ने किसी उम्मीदवार को डिस्ट्रिक्ट पर थोपने का प्रयास नहीं किया - लेकिन आरके शाह सत्ता खेमे के उम्मीदवार बने हैं और सत्ता की दहलीज तक आ पहुँचे हैं तो उनके लिए रास्ता विजय शिरोहा की 'राजनीति' ने ही बनाया है - और दूसरे तमाम नेताओं की राजनीति को फेल करके बनाया है । इस तरह, सत्ता खेमे की तरफ से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आरके शाह की उम्मीदवारी को घोषित करवा कर विजय शिरोहा ने वास्तव में कई मोर्चों पर एकसाथ जीत दर्ज कर लेने का मौका बनाया है और अपने खुले और छिपे विरोधियों को ठिकाने लगाया है ।  

Saturday, January 11, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में सीओएल का चुनाव संजय खन्ना की गैर मौजूदगी में करवाने की विनोद बंसल की कार्रवाई को जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी को विनोद बंसल के समर्थन के रूप में व्याख्यायित किया

नई दिल्ली । जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल को सीओएल(काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) चुनवाने का बीड़ा उठा कर सीओएल के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है । डिस्ट्रिक्ट की काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों के बीच यूँ तो जेके गौड़ की ऐसी हैसियत नहीं है कि वह उन्हें रमेश अग्रवाल के पक्ष में वोट देने के लिए राजी कर सकें, लेकिन अपने गवर्नर-काल की टीम के प्रमुख सदस्यों को चुनने की तैयारी करने के कारण जेके गौड़ को 'उक्त' हैसियत मिलती दिख रही है । उन्हें लगता है कि कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ऐसे जरूर हैं जो किसी पद के लालच में उनके कहने से रमेश अग्रवाल का समर्थन करने को निश्चित ही तैयार हो जायेंगे । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ से पहले गवर्नर का पदभार संभालने वाले संजय खन्ना ने तो अपनी टीम लगभग बना ली है; अब अगले चार-पाँच माह में जेके गौड़ को अपनी टीम के लिए प्रमुख सदस्यों को चुनना है । इस तरह जेके गौड़ के पास चूँकि देने के लिए पद हैं, इसलिए काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों के बीच रमेश अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने की हैसियत उन्होंने पहचान/बना ली है । इसी हैसियत को जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने में लगा दिया है ।
रमेश अग्रवाल ने चूँकि अपने आप को जेके गौड़ के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में 'पोज' करना शुरू कर दिया है, उस नाते से वह भी जेके गौड़ के गवर्नर-काल के पदों का लालच देकर अपने लिए समर्थन जुटाने का प्रयास कर रहे हैं । मजे की बात है कि जेके गौड़ ने अभी तक अपने गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का नाम नहीं लिया है; कोई इस बारे में उनसे पूछता भी है तो वह जवाब में यही कहते हैं कि वह अभी विचार कर रहे हैं । लेकिन रमेश अग्रवाल का कहना रहता है कि जेके गौड़ मेरे अलावा किसी और को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने के बारे में सोच भी कैसे सकता है ? जो लोग जेके गौड़ की गतिविधियों को नजदीक से देख रहे हैं उनका कहना है कि पहले तो जेके गौड़ ने संकेत दिए थे कि वह सभी को साथ लेकर और सभी का विश्वास जीत कर काम करेंगे और किसी एक का पिटठू नहीं बनेंगे, लेकिन अब ऐसा लगता है कि वह पूरी तरह रमेश अग्रवाल की गिरफ्त में हैं; और उन्हें कहीं भी नाम लेना होता है तो उनके मुँह से रमेश अग्रवाल का ही नाम निकलता है । इसी भरोसे रमेश अग्रवाल अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग लोगों के बीच दावा कर चुके हैं कि जेके गौड़ तो बस नाम का गवर्नर होगा, गवर्नरी तो मैं चलाऊँगा ।
सीओएल के उम्मीदवार के रूप में यूँ तो कई नाम सुने जा रहे हैं लेकिन मुख्य मुकाबला रमेश अग्रवाल और आशीष घोष के बीच होता दिख रहा है । आशीष घोष ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी से निवृत्त होने के बाद देश और विदेश में रोटरी के कई बड़े और प्रमुख आयोजनों में जिम्मेदारी के पदों पर काम किया है और इस नाते से उन्हें रोटरी का व्यापक अनुभव है । रमेश अग्रवाल अभी करीब छह महीने पहले ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी से निवृत्त हुए हैं और उन्हें रोटरी के किसी बड़े और प्रमुख आयोजन में जिम्मेदारी निभाने का मौका अभी तक नहीं मिला है । इस मूल्याँकन के आधार पर सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल के मुकाबले आशीष घोष का पलड़ा भारी माना जा रहा है । लेकिन रमेश अग्रवाल और उनके समर्थकों का मानना और कहना है कि चुनावी राजनीति में बाजी प्रायः 'खोटे सिक्के' ही जीतते हैं इसलिए आशीष घोष का व्यक्तित्व और प्रोफाइल चाहें कितना ही भारी हो, रमेश अग्रवाल की तीन-तिकड़मों का मुकाबला करना उनके लिए आसान नहीं होगा । पिछली बार के सीओएल के चुनाव का उदाहरण देते हुए वह तर्क भी करते हैं कि व्यक्तित्व और प्रोफाइल के आधार पर मुकेश अरनेजा का अशोक घोष से भला क्या मुकाबला है, लेकिन चुनाव में बाजी तो मुकेश अरनेजा के हाथ ही लगी थी न !
रमेश अग्रवाल और उनके समर्थकों को सीओएल के चुनाव के मौके पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजय खन्ना की अनुपस्थिति में भी अपना फायदा नजर आ रहा है । उल्लेखनीय है कि नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा सीओएल के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव 21 जनवरी को होना निश्चित हुआ है, जिस दिन संजय खन्ना दिल्ली में नहीं होंगे । रमेश अग्रवाल और उनके समर्थकों का मानना और कहना है कि संजय खन्ना यदि होते तो वह आशीष घोष के लिए समर्थन जुटा सकते थे । और तो और, संजय खन्ना की गैर मौजूदगी में सीओएल का चुनाव करवाने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की कार्रवाई को जेके गौड़ ने तो रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी को विनोद बंसल के समर्थन के रूप में व्याख्यायित कर दिया है । जेके गौड़ ने कुछेक लोगों के बीच तर्कपूर्ण दावा किया है कि विनोद बंसल सीओएल के लिए रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थन में यदि नहीं होते तो ऐसे समय चुनाव क्यों करवाते, जबकि संजय खन्ना यहाँ नहीं हैं । विनोद बंसल ने हालाँकि इस बात को गलत बताया है । उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों और संजय खन्ना के बाहर जाने की तारीखों का चक्कर ही कुछ ऐसा पड़ा कि सीओएल का चुनाव संजय खन्ना की अनुपस्थिति में करवाना मजबूरी ही बना है ।
रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ जैसे उनके 'सिपाही' ने सीओएल के चुनाव को भी तिकड़मी, जुगाड़ु और गटर-छाप टाइप राजनीति में बदल दिया है । दरअसल इन्हें भी मालुम है कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में रमेश अग्रवाल की कोई साख नहीं है और इस नाते उनके लिए कोई समर्थन नहीं है; अभी करीब छह महीने पहले तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश अग्रवाल को काउंसिल और गवर्नर्स में कई बार अपने फैसलों और अपनी कारस्तानियों के कारण अलग-थलग पड़ जाना पड़ा और अपमानित होना पड़ा है । उन्हीं सब बातों और अनुभवों को याद करते हुए रमेश अग्रवाल और उनके समर्थकों को लगता है कि उन्होंने यदि सीधे और साफ और गरिमापूर्ण तरीके से चुनाव लड़ा तो फिर उन्हें आशीष घोष से हारना ही पड़ेगा । सो, जीतने के लिए उन्हें हथकंडे अपनाने ही पड़ेंगे । इस मामले में आशीष घोष के मुकाबले रमेश अग्रवाल खुशकिस्मत हैं, क्योंकि रमेश अग्रवाल को अपने हथकंडे दिखाने/अपनाने के लिए जेके गौड़ का साथ/सहयोग मिल गया है ।

Friday, January 10, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में राकेश त्रेहन को शक होने लगा है कि उन्हें अँधेरे में रख कर अजय बुद्धराज ने कहीं सत्ता खेमे से संबंध तो नहीं जोड़ लिए हैं

नई दिल्ली । राकेश त्रेहन की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को विरोधी खेमे की हरी झंडी दिलवाने की कोशिशों में अजय बुद्धराज ने अड़ंगा डाल दिया है । अजय बुद्धराज ने यह अड़ंगा इस तर्क के साथ डाला है कि विक्रम शर्मा को वह चुनाव जितवा तो नहीं पायेंगे - आखिर तब फिर विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को लेकर वह चुनाव में क्यों जाएँ ? अजय बुद्धराज के इस तर्कपूर्ण अड़ंगे से विक्रम शर्मा और राकेश त्रेहन को तगड़ा झटका लगा है । विक्रम शर्मा के लिए तो 'न इधर के रहे, और न उधर के' वाला किस्सा हो गया है; जबकि राकेश त्रेहन के लिए इस वर्ष की चुनावी राजनीति में कतई अप्रासंगिक होने का खतरा पैदा हो गया है । राकेश त्रेहन को अजय बुद्धराज से इस तरह का झटका मिलने की उम्मीद नहीं थी - राकेश त्रेहन को यह आशंका तो थी कि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को अपने खेमे के दूसरे नेताओं का समर्थन दिलवाना उनके लिए आसान नहीं होगा, लेकिन उन्हें यह आभास नहीं था कि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को अपनाने के उनके अभियान में अजय बुद्धराज ही रोड़ा अटका देंगे ।
अजय बुद्धराज के इस रवैये ने राकेश त्रेहन को चौंकाया है और इसमें राकेश त्रेहन को अजय बुद्धराज की एक अलग खिचड़ी पकने की महक आ रही है । राकेश त्रेहन को आशंका हो रही है कि अजय बुद्धराज कहीं डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा से तो मिल जाने की तैयारी नहीं कर रहे हैं ।
दरअसल राकेश त्रेहन भी इस बात को समझ रहे हैं कि वह विक्रम शर्मा को चुनाव नहीं जितवा सकेंगे । राकेश त्रेहन भले ही कहें न और स्वीकार न करें, लेकिन वह भी जान/समझ रहे हैं कि उम्मीदवार तो वही जीतेगा जिसे विजय शिरोहा का समर्थन होगा । इसीलिये राकेश त्रेहन ने बड़ी चतुराई से विक्रम शर्मा को विजय शिरोहा के हाथों से 'छीन' लिया । विक्रम शर्मा पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि उन्हें किसी का समर्थन मिले या न मिले, वह तो इस बार उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे ही । राकेश त्रेहन की चाल यह रही कि विक्रम शर्मा को पहले तो विजय शिरोहा के हाथों से छुड़ा लो, और फिर विक्रम शर्मा को समर्थन की घोषणा करो । विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के जरिये राकेश त्रेहन ने असल में, अपने और अपने खेमे के दूसरे नेताओं के फर्जी क्लब्स और सदस्यों के ड्यूज जुटाने की तिकड़म लगाई । विरोधी खेमे के नेताओं के सामने चूँकि अपने अपने फर्जी क्लब्स और सदस्यों के ड्यूज जुटाने की समस्या है - इसलिए ही राकेश त्रेहन को भरोसा रहा कि विक्रम शर्मा का 'शिकार' कर लेने के बाद उनकी उम्मीदवारी को खेमे के नेताओं का समर्थन दिलवाने में उन्हें कोई समस्या नहीं आयेगी ।
अजय बुद्धराज ने लेकिन समस्या पैदा कर दी है । अजय बुद्धराज के सामने भी हालाँकि अपने फर्जी क्लब्स व सदस्यों के ड्यूज जुटाने की चुनौती है - लेकिन इसके लिए वह हार का सामना करने से बचना चाहते हैं । इसीलिए वह विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी का समर्थन करने से इंकार कर रहे हैं । वह समझ रहे हैं कि अपने फर्जी किस्म के क्लब्स और सदस्यों के ड्यूज जुटाने के चक्कर में वह जिस पराजय को पायेंगे - उससे उन्हें दूरगामी नुकसान होगा ।
अजय बुद्धराज के पास लेकिन इस सवाल का कोई जबाव नहीं है कि उनके और उनके खेमे के दूसरे नेताओं के फर्जी क्लब्स और सदस्यों के ड्यूज कैसे और किससे मिलेंगे ? इस सवाल का कोई जबाव न होने के बावजूद अजय बुद्धराज जिस तरह से विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी का समर्थन करने से इंकार कर रहे हैं - उससे राकेश त्रेहन को शक हो रहा है कि अजय बुद्धराज उनसे छिपा कर कुछ अलग खिचड़ी पका रहे हैं । राकेश त्रेहन ने अपने कुछ लोगों से पूछने वाले अंदाज में कहा/बताया है कि अजय बुद्धराज कहीं डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा से तो नहीं जा मिले हैं ? उल्लेखनीय है कि राकेश त्रेहन को यह तो पता है ही कि अजय बुद्धराज की दीपक टुटेजा और अरुण पुरी के साथ बातचीत होती रहती है - इसी नाते से राकेश त्रेहन को शक हो रहा है कि अजय बुद्धराज ने कहीं इन दोनों के मार्फ़त विजय शिरोहा से संबंध तो नहीं जोड़ लिया है; और इस तरह से अपने फर्जी क्लब्स और सदस्यों के ड्यूज पाने का जुगाड़ कर लिया है ।
राकेश त्रेहन दरअसल यह समझ रहे हैं कि सत्ता खेमे के नेताओं की यह कोशिश तो होगी ही कि उनके उम्मीदवार को चुनाव का सामना न करना पड़े - और अजय बुद्धराज का रवैया सत्ता खेमे के नेताओं की उसी 'कोशिश' की मदद कर रहा है । वास्तव में, राकेश त्रेहन को इसीलिए लग रहा है कि अजय बुद्धराज ने गुपचुप रूप से सत्ता खेमे के साथ संबंध जोड़ लिए हैं । राकेश त्रेहन के कारण विक्रम शर्मा का जो अच्छा-खासा बना-बनाया काम बिगड़ा है, उसके चलते तो राकेश त्रेहन की बदनामी हुई ही है - अब यदि अजय बुद्धराज के उनसे छिप-छिपाकर सत्ता खेमे से संबंध बनाने की बात भी सच साबित हुई तो राकेश त्रेहन के लिए तो बड़ी समस्या हो जायेगी ।

Tuesday, January 7, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में राकेश त्रेहन के साथ हुई विक्रम शर्मा की मेल-मुलाकात पर सत्ता खेमे के नेताओं के बिफरने के चलते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने का काम और विकट हो गया है

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा की विरोधी खेमे के नेताओं - खासकर राकेश त्रेहन के साथ हुई मेल-मुलाकातों की खबरें मिलने के बाद सत्ता खेमे के नेताओं के बीच सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में बनते दिख रहे समर्थन को लेकर विवाद पैदा हो गया है । मजे की बात यह हुई है कि सत्ता खेमे के नेताओं के बीच पैदा हुए इस विवाद को भड़काने में विरोधी खेमे के नेताओं का - खासतौर से राकेश त्रेहन का हाथ माना/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार तय करने को लेकर जो परिस्थितियाँ बनीं, उसमें विक्रम शर्मा के नंबर पिछले दिनों अचानक से बढ़े हुए नजर आये थे । विक्रम शर्मा को हालाँकि विरोधी खेमे के नेताओं के नजदीक पहचाना जाता रहा था, लेकिन पिछले कुछ दिनों में विक्रम शर्मा ने विरोधी खेमे के नेताओं के साथ संबंध ख़त्म करके सत्ता खेमे के नेताओं के साथ संबंध बना लिए थे । सत्ता खेमे में उन्हें हालाँकि अभी तक भी पूरी तरह स्वीकार नहीं किया जा सका है - सत्ता खेमे के दिल्ली के नेताओं के बीच उनकी प्रतिबद्धता को लेकर शक/संदेह अभी भी बना हुआ है; लेकिन फिर भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के यहाँ पैठ बना कर उन्होंने सत्ता खेमे में अपनी स्थिति अपेक्षाकृत रूप से अच्छी बना ली थी । दरअसल जो स्थितियाँ बनीं, विक्रम शर्मा को उसका फायदा मिलता हुआ दिख रहा था ।
लेकिन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन के साथ हाल ही में हुईं मेल-मुलाकातों की ख़बरें मिलने के बाद विक्रम शर्मा की स्थिति सत्ता खेमे में फिर संदेहपूर्ण हो उठी हैं । सत्ता खेमे में एक विजय शिरोहा ही विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के पैरोकार हो सकते थे, लेकिन राकेश त्रेहन के साथ हुईं उनकी मेल-मुलाकातों की ख़बरों ने विजय शिरोहा के मन में भी शक/संदेह के बीज डाल दिए हैं । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि विक्रम शर्मा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित करने का काम राकेश त्रेहन ने ही किया था । किंतु जल्दी ही विक्रम शर्मा ने समझ लिया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा की मदद मिले बिना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का उनका सपना पूरा नहीं होगा - लिहाजा विक्रम शर्मा ने विजय शिरोहा के साथ नजदीकी बनाने का काम शुरू किया । इस काम में उन्हें निरंतर सफलता भी मिलती गई । विजय शिरोहा के साथ बनी नजदीकी का राजनीतिक फायदा उठाने के लिए विक्रम शर्मा ने इस बात को भी समझ लिया कि उन्हें विरोधी खेमे के नेताओं से - विशेषकर राकेश त्रेहन के साथ दूरी बनानी - सिर्फ बनानी ही नहीं, बल्कि 'दिखानी' भी पड़ेगी । विक्रम शर्मा ने इस 'काम' को करने में काफी देर तो कर दी, लेकिन फिर भी उन्होंने इसे कर लिया । विक्रम शर्मा चूँकि विरोधी खेमे के नेताओं का साथ छोड़ कर पूरी तरह से सत्ता खेमे के नेताओं की शरण में आ गए थे, इसलिए सत्ता खेमे की तरफ से उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी मिलने की संभावना भी बनती दिखने लगी थी ।
यह संभावना लेकिन राकेश त्रेहन से जिस मेल-मुलाकात के कारण खतरे में पड़ी दिखाई दे रही है - उसे लेकर यह विवाद भी शुरू हो गया है कि उक्त मेल मुलाकात विक्रम शर्मा की पहल पर हुई या उसे विक्रम शर्मा का खेल बिगाड़ने के उद्देश्य से राकेश त्रेहन ने अंजाम दिया ? कुछेक लोगों को लगता है कि विक्रम शर्मा राजनीति की 'नजाकत' को नहीं समझ रहे हैं और 'राजनीतिक नासमझी' में राकेश त्रेहन से मिल बैठे और अपनी उम्मीदवारी के लिए खतरा पैदा कर लिया । अन्य कुछेक लोग इसमें लेकिन राकेश त्रेहन की चाल देख रहे हैं । राकेश त्रेहन जानते/समझते हैं कि उनकी और विक्रम शर्मा की मेल-मुलाकात की ख़बरें मिलेंगी तो विजय शिरोहा भड़केंगे और तब विक्रम शर्मा का खेल बिगड़ेगा । कुछेक लोगों को लगता है कि राकेश त्रेहन अभी भी ओंकार सिंह के लिए 'रास्ता' बनाने की ताक में हैं, और इसके लिए उन्हें विक्रम शर्मा को 'गिराना' जरूरी लगता है । 'चित भी मेरी और पट भी मेरी' वाले स्टाइल में राकेश त्रेहन की चाल में यह भी मौका रहा कि विक्रम शर्मा यदि नहीं 'गिरते' हैं तो राकेश त्रेहन भी उनके 'बनने' का श्रेय ले लेंगे ।
विरोधी खेमे के नेताओं को एक और भी चिंता सता रही है - वह चिंता यह कि यदि चुनाव की स्थितियाँ नहीं बनीं तो उनके जो फर्जी किस्म के क्लब्स और वोट हैं उनके ड्यूज का पैसा नहीं मिल पायेगा और उन्हें उन क्लब्स और वोटों से हाथ धोना पड़ जायेगा । ऐसा होने पर उनकी तो राजनीति ही चौपट हो जायेगी । राकेश त्रेहन और विक्रम शर्मा के बीच हुई मेल-मुलाकात को इस नजरिये से भी देखा जा रहा है । इसलिए भी राकेश त्रेहन के साथ हुई विक्रम शर्मा की मेल-मुलाकात पर सत्ता खेमे के लोग बिफरे हुए हैं । विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के प्रति सत्ता खेमे के नेताओं के बिफरने के चलते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने का काम और विकट हो गया है ।

Sunday, January 5, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को चौतरफा बदनामी और फजीहत के बाद अंततः डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने की घोषणा करनी ही पड़ी

मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ने अंततः वह फैसला सुना ही दिया, जिसे सुनाने से इंकार करने के कारण पिछले करीब दो महीने से उनकी भारी फजीहत और छीछालेदर हो रही थी । बेचारे राकेश सिंघल - अभी तक लोग उनकी इस बात के लिए आलोचना कर रहे थे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए आये नामांकनों की वैधता पर वह कोई फैसला नहीं ले रहे हैं; लेकिन अब जब उन्होंने फैसला सुना दिया है तो लोग यह कहते हुए उन्हें निशाना बना रहे हैं कि उन्हें यदि यही फैसला करना था तो फिर इतना नाटक करने की क्या जरूरत थी ? राकेश सिंघल ने जो किया, उसे व्याख्यायित करने के लिए कुछ लोगों ने एक पुरानी कविता को याद किया - ' खाया/पिया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा बारह आना'; कुछ गर्म दिमाग और बदतमीज स्वभाव वाले लोगों ने 'जूते भी खाये, और प्याज भी खाया' वाला मुहावरा भी हवा में उछाला - लेकिन अधिकतर लोगों ने माना कि 'अंत भला तो सब भला ।' ऐसे लोगों का मानना और कहना रहा कि राकेश सिंघल को अंततः सद्बुद्धि आई, जिसके चलते उन्होंने झुकना स्वीकार किया और उनकी तथा डिस्ट्रिक्ट की और ज्यादा बदनामी होने से बच गई ।
हमारे यहाँ माना/कहा भी जाता है कि सुबह का भूला यदि शाम को घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहा जाता है ।
इस आधार पर लेकिन कई लोग अभी भी राकेश सिंघल को माफ़ करने के मूड में नहीं हैं । उनका तर्क है कि राकेश सिंघल कुछ भूले नहीं थे, उन्होंने षड्यंत्रपूर्वक एक योजना बनाई थी; और वह पश्चाताप करते हुए लौटे नहीं हैं, वह तब लौटे हैं जब लौटने के लिए मजबूर हुए हैं ।
राकेश सिंघल की षड्यंत्रपूर्ण योजना में अपना फायदा देख रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक उम्मीदवार दीपक बाबू और उनके समर्थकों के लिए आश्चर्य की बात यह रही कि अभी पाँच-छह दिन पहले तक ताल ठोक रहे और 'देख लेंगे' 'निपट लेंगे' जैसे दावे कर रहे राकेश सिंघल ने अचानक से पलटी क्यों मार ली ? उल्लेखनीय है कि 29 दिसंबर को होने वाली कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग को ऐन मौके पर स्थगित करके राकेश सिंघल ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया था कि वह 'अपने' फैसले में कॉलिज और गवर्नर्स की भी नहीं सुनेंगे । 31 दिसंबर को राकेश सिंघल के घर पर संजीव रस्तोगी, सुनील गुप्ता, ब्रज भूषण तथा कुछेक अन्य लोगों की उपस्थिति में हुई अनौपचारिक मुलाकात में भी काफी गर्मागर्मी हुई थी, जिसमें संजीव रस्तोगी को यहाँ तक धमकाया गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मुरादाबाद में वह कैसे घुस पायेंगे । यहीं राकेश सिंघल ने एक बार फिर यह घोषणा की कि पाँच जनवरी को मेरठ में होने वाली संजीव रस्तोगी की बॉन बॉयज मीटिंग में वह शामिल नहीं होंगे । इससे लगा था कि राकेश सिंघल पूरी तरह से टकराव के मूड में हैं । लेकिन उसके तुरंत बाद ही घटनाचक्र तेजी से घूमा और फिर राकेश सिंघल को जमीन पर आने में देर नहीं लगी ।
टकराव का मूड दिखाने के तुरंत बाद ही राकेश सिंघल को पहला झटका तब लगा जब रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से उन्हें साफ जबाव मिल गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में लिए गए उनके फैसले को तभी स्वीकार किया जायेगा जब वह कॉलिज ऑफ गवर्नर्स द्धारा अनुमोदित होगा । इसके साथ ही राकेश सिंघल को पता चला कि उनकी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फरेंस में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू के कानों तक भी उनकी कारस्तानियों के किस्से पहुँच गए हैं और वह उनके किये-धरे से नाराज हो रहे हैं । इसके अलावा, राकेश सिंघल के सामने यह स्पष्ट होता ही जा रहा था कि डिस्ट्रिक्ट में उन्होंने जो झगड़ा पैदा किया है उसके चलते उनकी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फरेंस का कबाड़ा होना निश्चित ही है । इन सब बातों से राकेश सिंघल ने अपने आप को चारों तरफ से घिरा हुआ पाया और फिर उनके तेवरों ने ढीले होने में समय नहीं लिया ।
राकेश सिंघल ने तुरंत स्थितियों को सँभालने का ऑपरेशन शुरू किया और अपने लिए सम्मानजनक वापसी का एक फॉर्मूला तैयार किया । मुजफ्फरनगर में सरेआम उनकी जो फजीहत हुई थी, उसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार दिवाकर अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराकर उन्होंने पहले दिवाकर अग्रवाल से माफी मँगवाने की शर्त रखी । पाँच जनवरी को मेरठ में होने वाली संजीव रस्तोगी की बॉन बॉयज मीटिंग के लिए राकेश सिंघल ने एक पटकथा तैयार की जिसके अनुसार पहले दिवाकर अग्रवाल द्धारा माफी माँगने का कार्यक्रम संपन्न होना था और फिर राकेश सिंघल को उनकी उम्मीदवारी को मान्यता देने की घोषणा करनी थी । दिवाकर अग्रवाल ने लेकिन माफी मॉँगने से इंकार कर दिया । उनका कहना रहा कि मुजफ्फरनगर में जो कुछ भी हुआ, उसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी - जो कुछ भी हुआ वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों के गुस्से का इजहार था, उसके लिए वह माफी क्यों माँगे । राकेश सिंघल ने तब सुझाव दिया कि माफी न सही, दिवाकर अग्रवाल खेद तो प्रकट करें ताकि उनके लिए सम्मानजनक वापसी का मौका बन सके । डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों के हस्तक्षेप के बाद फार्मूला यही बना कि दिवाकर अग्रवाल खेद व्यक्त करेंगे और फिर राकेश सिंघल उनकी उम्मीदवारी को स्वीकार करने की घोषणा करेंगे ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव रस्तोगी की बॉन बॉयज मीटिंग में पहले से तैयार पटकथा को क्रियान्वित करने का माहौल बनाया गया - दिवाकर अग्रवाल ने बड़ी होशियारी से तैयार किये गए बयान को पढ़ा जिसमें राकेश सिंघल के घावों पर मलहम लगाने की कोशिश की गई थी । उसके बाद राकेश सिंघल को अपने हिस्से की भूमिका निभानी थी - 'चोर चोरी से जाये, हेराफेरी से न जाये' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए राकेश सिंघल ने लेकिन इस मौके पर भी शरारत करने की कोशिश की । दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को सीधे-सीधे स्वीकार करने की बजाये उन्होंने इधर-उधर की बातें करके निकलने की कोशिश की । उनके इस रवैये पर माहौल गर्म होना शुरू हो गया ।
राकेश सिंघल को लेकिन जल्दी ही समझ में आ गया कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने के अलावा उनके पास कोई चारा बचा नहीं है - सो, चारों तरफ से घिर जाने के बाद राकेश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने की घोषणा अंततः कर ही दी । 

Saturday, January 4, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करने के मुकेश गोयल के फैसले को मुकेश गोयल के कई साथियों/सहयोगियों ने ही पसंद नहीं किया है

गाजियाबाद । शिव कुमार चौधरी को मुकेश गोयल के दरबार में समर्पण करने के लिए अंततः मजबूर होना ही पड़ा है । कल तक मुकेश गोयल को हर जगह भला-बुरा कहने वाले शिव कुमार चौधरी की मुकेश गोयल के घर मुकेश गोयल के साथ बैठे होने की तस्वीरें वाट्स अप पर उपलब्ध करवा कर अब यह संदेश दिया जा रहा है कि मुकेश गोयल ने शिव कुमार चौधरी को अपने उम्मीदवार के रूप में मान्यता दे दी है । मुकेश गोयल के घर हुई मीटिंग के एक प्रत्यक्षदर्शी ने इन पँक्तियों के लेखक को बताया कि अभी तक खुद को कुञ्ज बिहारी अग्रवाल का उम्मीदवार बताने वाले शिव कुमार चौधरी ने मुकेश गोयल को भरोसा दिया है कि उनकी उम्मीदवारी के नेता वही होंगे और उनके कहे अनुसार ही वह आगे काम करेंगे ।
शिव कुमार चौधरी की इस कलाबाजी ने सभी को चौंकाया है - क्योंकि अभी तक शिव कुमार चौधरी लोगों को यही कहते/बताते थे कि उन्हें तो दूसरे खेमे के नेताओं ने समर्थन दे दिया है और वह मुकेश गोयल से तो दूर ही रहेंगे । शिव कुमार चौधरी सिर्फ यह कहते ही नहीं थे, बल्कि मुकेश गोयल को इग्नोर करने का खुलेआम प्रदर्शन भी करते थे । वह कहते भी थे कि वह पप्पू भाई और राजीव अग्रवाल को अपने साथ तो सिर्फ इसीलिए रखते हैं ताकि मुकेश गोयल को चिढ़ा सकें । कल तक मुकेश गोयल को इग्नोर और अपमानित करने के मौकों की तलाश में रहने वाले शिव कुमार चौधरी अब मुकेश गोयल की शरण में आने के लिए आखिर क्यों मजबूर हो गए ?
शिव कुमार चौधरी दरअसल दावा तो करते थे कि उनकी उम्मीदवारी को दूसरे खेमे का समर्थन मिल गया है, लेकिन दूसरे खेमे के नेताओं के बीच उनकी उम्मीदवारी को लेकर सहमति नहीं बन पा रही थी । दूसरे खेमे के कई नेताओं का साफ कहना रहा कि शिव कुमार चौधरी को अभी कुछ वर्ष काम करना चाहिए तथा लोगों के साथ व्यवहार करना सीखना चाहिए और तब उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाहिए । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनीता गुप्ता ने जरूर उनके साथ रियायत बरती और कुछ वर्ष नहीं, सिर्फ दो महीने का समय दिया कि वह अपने तौर-तरीके में सुधार करें तो उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया जा सकता है । इस बात का पता तो नहीं चल पाया है कि शिव कुमार चौधरी ने अनीता गुप्ता की रियायत को गंभीरता से लिया या नहीं; लेकिन इस बात का पता लोगों को जरूर चल गया कि अनीता गुप्ता ने शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं लिया और उन्होंने अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को एक तरफ तो दूसरे खेमे के दो बड़े नेताओं - आरसी जैन और एसएन मित्तल का समर्थन मिल गया और दूसरी तरफ मुकेश गोयल खेमे के सुनील जैन का समर्थन मिल गया । दूसरे खेमे के एक बड़े नेता कुञ्ज बिहारी अग्रवाल अभी भी हालाँकि शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में बताये जा रहे थे, लेकिन शिव कुमार चौधरी ने समझ लिया था कि कुञ्ज बिहारी अग्रवाल के भरोसे उनके लिए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना मुश्किल ही नहीं, असंभव ही होगा । ऐसे में, शिव कुमार चौधरी के सामने मुकेश गोयल की शरण में आने के अलावा और कोई चारा ही नहीं बचा था ।
मुकेश गोयल की शरण में आने के बाद भी शिव कुमार चौधरी के लिए मुश्किलें लेकिन कम होती हुई नजर नहीं आ रही हैं । इसका कारण यह है कि मुकेश गोयल ने भले ही उन्हें उम्मीदवार के रूप में स्वीकार कर लिया हो, लेकिन मुकेश गोयल के कई साथियों/सहयोगियों ने मुकेश गोयल के इस फैसले को पसंद नहीं नहीं किया है । मुकेश गोयल के ऐसे साथियों/सहयोगियों में कुछ तो शिव कुमार चौधरी के व्यवहार और तौर-तरीके से पीड़ित हैं और कुछेक को लगता है कि शिव कुमार चौधरी का समर्थन करके मुकेश गोयल धोखा ही खायेंगे । मुकेश गोयल की टीम पहले से ही छिन्न-भिन्न है - शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन के मुद्दे पर मुकेश गोयल की टीम के सदस्यों के बिदकने से मुकेश गोयल का समर्थन-आधार और कमजोर ही होगा । मुकेश गोयल का कमजोर पड़ता समर्थन-आधार शिव कुमार चौधरी के कितना और कैसे काम आएगा - इसे समझना और इससे उबरना शिव कुमार चौधरी के लिए एक बड़ी चुनौती है ।

Friday, January 3, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में पिछले वर्ष विशाल सिन्हा को हरवाने में दिन-रात एक कर देने और विशाल सिन्हा के हारने पर झूम के नाचने वाले वाले केएस लूथरा इस वर्ष उन्हीं विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे क्या ?

लखनऊ । विशाल सिन्हा को केएस लूथरा के समर्थन का दावा करके गुरनाम सिंह ने केएस लूथरा के लिए डिस्ट्रिक्ट में भारी मुसीबत खड़ी कर दी है । डिस्ट्रिक्ट में केएस लूथरा के समर्थकों के लिए गुरनाम सिंह के इस दावे पर यकीन करना असंभव बना हुआ है । केएस लूथरा के समर्थकों के लिए ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों के लिए भी इस बात पर विश्वास करना इसलिए मुश्किल हो रहा है क्योंकि केएस लूथरा ने पिछले लायन वर्ष में ही गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के खिलाफ गंभीर अभियान चलाया था और इन्हें चुनावी पटखनी देने का असंभव-सा काम संभव कर दिखाया था । केएस लूथरा कुछ महीने पहले तक डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच गुरनाम सिंह की मनमानी और उनकी चौधराहट को डिस्ट्रिक्ट से हमेशा हमेशा के लिए ख़त्म कर देने का आह्वान कर रहे थे । उनके आह्वान और गुरनाम सिंह के खिलाफ चलाये गए अभियान के दौरान की गईं उनकी बातें लोगों के जहन में चूँकि अभी तक भी ताजा हैं, इसलिए किसी के लिए भी गुरनाम सिंह के इस दावे पर यकीन करना संभव नहीं हो रहा है कि पिछले लायन वर्ष में विशाल सिन्हा को हरवाने में दिन-रात एक कर देने वाले और विशाल सिन्हा के हारने पर झूम के नाचने वाले वाले केएस लूथरा इस वर्ष उन्हीं विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे ।
गुरनाम सिंह भी जानते हैं कि डिस्ट्रिक्ट में लोग उनकी इस बात का विश्वास नहीं करेंगे, इसीलिए उन्होंने कुछ लोगों को केएस लूथरा से फोन करवाये । जिन लोगों को गुरनाम सिंह के दावे को सच साबित करता हुआ केएस लूथरा का फोन मिला, वह पहले तो हैरान हुए - लेकिन फिर इसे गुरनाम सिंह की कलाकारी के रूप में पहचानते/समझते हुए इसे अनदेखा किया । डिस्ट्रिक्ट में लोग अब गुरनाम सिंह की इस तरकीब को जान/पहचान गए हैं - कि गुरनाम सिंह अपने सामने अपने मतलब के फोन करवाने का काम करते हैं । सामने-सामने हर किसी के लिए गुरनाम सिंह के आग्रह को टालना संभव भी नहीं होता है । इसीलिये केएस लूथरा का फोन सुनने वाले लोगों ने भी माना/समझा कि उन्होंने जो फोन सुना वह केएस लूथरा ने उन्हें किया नहीं है, बल्कि गुरनाम ने केएस लूथरा से करवाया है ।
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी को केएस लूथरा के समर्थन का गुरनाम सिंह का दावा लोगों के गले नहीं उतर रहा है तो इसका कारण सिर्फ यही नहीं है कि केएस लूथरा पिछले लायन वर्ष में विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी के खिलाफ थे; इसका कारण बल्कि यह है कि डिस्ट्रिक्ट में हर कोई इस बात को जानता है कि गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने केएस लूथरा को किस हद तक परेशान और अपमानित किया है । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने केएस लूथरा के लिए किस किस तरह की बातें कीं और किस किस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया - इसे डिस्ट्रिक्ट में हर व्यक्ति जानता है; और इसीलिये किसी को भी इस बात का विश्वास नहीं हो रहा है कि केएस लूथरा किसी भी तरह से गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के साथ जा सकेंगे । केएस लूथरा के नजदीकियों का कहना है कि गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने जिस तरह का व्यवहार केएस लूथरा के साथ किया है और केएस लूथरा ने जिस तरह का अभियान उनके खिलाफ चलाया है - उसके बाद केएस लूथरा यदि उनके साथ हो जाते हैं तो लोगों के बीच बनी हुई अपनी सारी साख और प्रतिष्ठा को हमेशा हमेशा के लिए खो देंगे; डिस्ट्रिक्ट में फिर कोई केएस लूथरा की किसी भी बात का कभी विश्वास नहीं करेगा ।
केएस लूथरा के नजदीकियों का मानना और कहना है कि केएस लूथरा भी इस बात को अच्छी तरह जानते/समझते हैं कि अपना काम निकाल लेने के बाद गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा उन्हें दोबारा से दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेकेंगे । गुरनाम सिंह को केएस लूथरा से ज्यादा भला और कौन जान/समझ सकता है ? उल्लेखनीय है कि केएस लूथरा एक समय गुरनाम सिंह के बड़े खास हुआ करते थे - लेकिन फिर भी वह गुरनाम सिंह के कोप से नहीं बच पाये और उनके द्धारा ही नहीं, उनकी शह पर विशाल सिन्हा के द्धारा भी बुरी तरह परेशान और अपमानित किये गए । केएस लूथरा के नजदीकियों का कहना है कि अभी गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा अपना काम निकालने के लिए भले ही केएस लूथरा को पटाने तथा अपनी तरफ करने का प्रयास कर रहे हों - लेकिन काम निकलने के बाद वह केएस लूथरा के साथ फिर वैसा ही सुलूक करेंगे जैसा कि पीछे उन्होंने किया था ।
केएस लूथरा के नजदीकियों को यह भी लगता है कि गुरनाम सिंह ने केएस लूथरा को हमेशा के लिए निपटा देने के उद्देश्य से ही उन्हें मनाने/पटाने का नाटक रचा है । दरअसल केएस लूथरा को गुरनाम सिंह ने अपने सबसे खतरनाक विरोधी के रूप में पहचाना है । यह सच है कि गुरनाम सिंह ने सबसे ज्यादा ऐसी-तैसी केएस लूथरा की ही की है, लेकिन सच यह भी है कि केएस लूथरा ने भी तुरंत ही उनसे बदला भी ले लिया । गुरनाम सिंह समझ रहे हैं कि केएस लूथरा को लड़ कर नहीं, 'दोस्ती' करके ही निपटाया जा सकता है - लिहाजा उन्होंने केएस लूथरा से दोस्ती करने तथा उन्हें अपने साथ लाने का अभियान छेड़ दिया है । गुरनाम सिंह जानते हैं कि केएस लूथरा उनके साथ आ गए तो फिर डिस्ट्रिक्ट में केएस लूथरा अपने लोगों का विश्वास खो देंगे और फिर कोई भी उनका उस तरह से साथ नहीं देगा, जैसा कि पिछले वर्ष केएस लूथरा को मिला था । और इस तरह केएस लूथरा अपने समर्थन आधार को पूरी तरह खो देंगे और तब गुरनाम सिंह का पिछले वर्ष का बदला भी पूरा हो जायेगा ।
केएस लूथरा भी लगता है कि गुरनाम सिंह के इस खेल को समझ/पहचान रहे हैं और इसीलिए वह उस तरह से सक्रिय नहीं हो रहे हैं जैसे कि गुरनाम सिंह चाहते हैं । गुरनाम सिंह ने जबर्दस्ती उनसे जिन लोगों को फोन करवा लिए, उन्होंने सिर्फ उन्हीं लोगों को फोन किया है । इस तरह, केएस लूथरा ने अभी अपनी तरफ से विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी का समर्थन करने को लेकर कोई उत्साह नहीं दिखाया है । लगता है कि वह भी समझ रहे हैं कि पिछले वर्ष उन्होंने जिस तरह से गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के खिलाफ अभियान चलाया था, उसके चलते उनके सामने सचमुच यह खतरा है कि गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के समर्थन में आने पर लोगों के बीच बना हुआ उनका भरोसा ख़त्म हो जायेगा और तब डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उनका दखल हमेशा हमेशा के लिए कमजोर हो जायेगा । केएस लूथरा भी जान/समझ रहे हैं कि उनके समर्थन के बावजूद विशाल सिन्हा का भला होगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - लेकिन उनकी विश्वसनीयता का भट्टा अभी ही बैठ जायेगा । इसीलिये गुरनाम सिंह के दावे पर जो लोग भरोसा नहीं कर रहे हैं, उन्हें भरोसा दिलाने का केएस लूथरा अपनी तरफ से कोई प्रयास भी नहीं कर रहे हैं ।