नई दिल्ली । आरके शाह का नाम सत्ता खेमे की तरफ से
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए क्लियर करवा कर
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा ने कई शिकार एक साथ कर लिए हैं । उल्लेखनीय
है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर पद की उम्मीदवारी को लेकर इस वर्ष जैसी असमंजसता रही, वैसी शायद ही
कभी देखने को मिली हो । यह असमंजसता शुरू तो दरअसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय
शिरोहा की सोच और रणनीति के कारण हुई, लेकिन जब हर किसी ने इसमें अपनी
अपनी राजनीति करने का मौका तलाशने का काम शुरू किया तो फिर असमंजसता का
दायरा इस हद तक फैलता दिखा कि उसे नियंत्रित करना मुश्किल लगने लगा ।
विजय शिरोहा ने पहले तो असमंजसता के दायरे को सोची-समझी रणनीति के तहत
फैलने दिया और फिर उसे ऐसे नतीजे के साथ समेटवाया कि बाकी खिलाड़ी हाथ मलते
रह गए और विजय शिरोहा ने पैदा हो रही चुनौतियों को सिर उठाने से पहले ही
दबा देने में कामयाबी प्राप्त की ।
मजे की बात यह रही कि विजय शिरोहा ने कुछ किया भी नहीं ।
बिना कुछ किये सब कुछ अपनी मर्जी का और अपनी सुविधा का कर लेने का उन्होंने
लेकिन लक्ष्य प्राप्त कर लेने में कोई चूक नहीं की है ।
उल्लेखनीय है कि
विजय शिरोहा ने शुरू से घोषणा की हुई थी कि वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर पद के लिए अपना कोई उम्मीदवार नहीं लायेंगे और किसी उम्मीदवार के
'भरोसे' गवर्नरी नहीं करेंगे । इस घोषणा के बावजूद सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर पद के दोनों संभावित उम्मीदवारों - विक्रम शर्मा और आरके शाह - को
उनकी गुडबुक में देखा/पाया गया । गुडबुक में होने के चलते विजय शिरोहा ने
दोनों को ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच सक्रिय होने तथा निरंतर काम करते
रहने के लिए तो प्रेरित किया, किंतु उनसे कोई फायदा उठाने की कोशिश नहीं की
। किसी को भी यह झमेला समझ में नहीं आ रहा था कि विजय शिरोहा दोनों
संभावित उम्मीदवारों को साथ भी लिए हुए हैं, उन्हें प्रेरित भी कर रहे हैं,
उन्हें टिप्स भी दे रहे हैं - लेकिन उनसे कोई 'फायदा' उठाते हुए नहीं दिख
रहे हैं और उनमें से किसी की जिम्मेदारी नहीं ले रहे हैं । दिसंबर माह
में जब सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए गहमागहमी बढ़ी तब कुछेक
लोगों को यह लगा तो कि विजय शिरोहा ने विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को
स्वीकार करने का मन बना लिया है, लेकिन विजय शिरोहा ने अपनी तरफ से कोई
फैसला नहीं सुनाया । इस कारण से, दिसंबर और जनवरी की पहली तिमाही में पर्दे
के पीछे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार को लेकर जो जो
समीकरण बनाने के प्रयास हुए उनमें प्रायः विजय शिरोहा को या तो ठिकाने और
या किनारे लगाने के उद्देश्य प्रमुख हो उठे थे ।
विजय शिरोहा चूँकि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए
किसी भी उम्मीदवार को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे, इसलिए उनके दोस्तों
और दुश्मनों को लगा कि उन्हें किनारे और ठिकाने लगाना आसान होगा । विजय
शिरोहा के दुश्मन भी और दोस्त भी यह समझने/पहचानने में चूक गए कि सेकेंड
वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को लेकर विजय शिरोहा दिलचस्पी 'दिखा'
भले ही न रहे हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें सचमुच कोई
दिलचस्पी 'है' नहीं । विजय शिरोहा ने इसी राजनीतिक कौशल का इस्तेमाल
किया और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार के चयन में
कोई दिलचस्पी न दिखाने के बावजूद उम्मीदवार तय भी नहीं होने 'दिया' ।
दिसंबर और जनवरी की पहली तिमाही में पर्दे के पीछे जो जो समीकरण बने,
उनमें किसी में दिल्ली के नेताओं के एक हो जाने का फार्मूला था - जिसमें
विजय शिरोहा के लिए कोई जगह नहीं थी; किसी में विजय शिरोहा को अलग करके
दिल्ली और हरियाणा के नेताओं के एक हो जाने का फार्मूला था; किसी में राकेश
त्रेहन और हर्ष बंसल को अलग करके विजय शिरोहा को साथ लेकर दिल्ली के
नेताओं के एक होने का फार्मूला था - जिसमें विजय शिरोहा को हरियाणा के
नेताओं और लोगों के बीच खलनायक बना देने का उद्देश्य छिपा हुआ था । लेकिन
कोई भी फार्मूला सिरे नहीं चढ़ सका । विजय शिरोहा ने जाल कुछ इस तरह से
बिछाया हुआ था कि नेता लोग अपने अपने फार्मूले लेकर घूम रहे थे लेकिन कोई
भी अपने फार्मूले को क्रियान्वित नहीं करवा पा रहा था ।
विक्रम
शर्मा के खैरख्वाह तो बहुत थे, लेकिन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद
के लिए उनकी उम्मीदवारी को वजन सिर्फ तब मिला, जब वह विजय शिरोहा की शरण
में थे - और जिस दिन वह विजय शिरोहा की नजर से गिरे उसी दिन उनकी उम्मीदवारी की हवा निकल गई ।
किसी नेता की - या किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की लायन राजनीति में ऐसी धमक
शायद ही देखी गई हो । विक्रम शर्मा का पत्ता कटने के बाद सत्ता खेमे में
उम्मीदवार का फैसला करना और भी मुश्किल हो गया था । आरके शाह की उम्मीदवारी
को लेकर सत्ता खेमे के नेताओं में सहमति ही नहीं बन पा रही थी, और दूसरी
तरफ विरोधी खेमे के लोग यह दावा कर रहे थे कि हरियाणा के नेता/लोग विजय
शिरोहा के खिलाफ हैं । ऐसे माहौल में सत्ता खेमे की तरफ से आरके शाह की
उम्मीदवारी को हरी झंडी मिल गई । आरके शाह की उम्मीदवारी को हरी
झंडी मिलने से विजय शिरोहा इतने निश्चिंत हो गए हैं कि अभी जबकि
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फरेंस होने में मुश्किल से बीस दिन से भी कम दिन बचे हैं,
विजय शिरोहा बिजनेस ट्रिप पर पाँच दिन के लिए दुबई जा पहुँचे हैं ।
आरके शाह को चूँकि राजिंदर बंसल के नजदीक समझा जाता है, इसलिए आरके शाह की
उम्मीदवारी से विजय शिरोहा के प्रति हरियाणा के नेताओं/लोगों की नाराजगी की
बात अपनेआप ही बेबुनियाद साबित हो गई ।
विजय शिरोहा ने किसी उम्मीदवार को डिस्ट्रिक्ट पर थोपने का प्रयास नहीं किया - लेकिन आरके शाह सत्ता खेमे के उम्मीदवार बने हैं और सत्ता की दहलीज तक आ पहुँचे हैं तो उनके लिए रास्ता विजय शिरोहा की 'राजनीति' ने ही बनाया है - और दूसरे तमाम नेताओं की राजनीति को फेल करके बनाया है । इस तरह, सत्ता खेमे की तरफ से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आरके शाह की उम्मीदवारी को घोषित करवा कर विजय शिरोहा ने वास्तव में कई मोर्चों पर एकसाथ जीत दर्ज कर लेने का मौका बनाया है और अपने खुले और छिपे विरोधियों को ठिकाने लगाया है ।
विजय शिरोहा ने किसी उम्मीदवार को डिस्ट्रिक्ट पर थोपने का प्रयास नहीं किया - लेकिन आरके शाह सत्ता खेमे के उम्मीदवार बने हैं और सत्ता की दहलीज तक आ पहुँचे हैं तो उनके लिए रास्ता विजय शिरोहा की 'राजनीति' ने ही बनाया है - और दूसरे तमाम नेताओं की राजनीति को फेल करके बनाया है । इस तरह, सत्ता खेमे की तरफ से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आरके शाह की उम्मीदवारी को घोषित करवा कर विजय शिरोहा ने वास्तव में कई मोर्चों पर एकसाथ जीत दर्ज कर लेने का मौका बनाया है और अपने खुले और छिपे विरोधियों को ठिकाने लगाया है ।