Saturday, March 31, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल के समर्थन के दावे के साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करके रवि सचदेवा ने अपने साथ-साथ सतीश सिंघल को भी मुसीबत में फँसाया

नोएडा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत रवि सचदेवा की उम्मीदवारी उनके अपने समर्थकों के बीच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल को लेकर छिड़ी बहस के चलते खासी मुसीबत में फँस गई लग रही है । रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच दरअसल सतीश सिंघल के साथ नजदीकी या दूरी बनाने/रखने को लेकर बहस है, और इस बहस में उनके लिए किसी नतीजे पर पहुँचना मुश्किल हो रहा है - इसी मुश्किल ने रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के अभियान को मुसीबत में फँसा दिया है । यह फसान सतीश सिंघल के रवि सचदेवा के क्लब में आ जाने से पैदा हुई है । मजे की बात लेकिन यह है कि सतीश सिंघल के क्लब में आ जाने के बाद ही तो रवि सचदेवा को उम्मीदवार बनने का ख्याल आया - और वह उम्मीदवार बन बैठे; लेकिन जल्दी ही वही सतीश सिंघल उन्हें मुसीबत बनते नजर आने लगे । रवि सचदेवा और उन्हें उम्मीदवार बनवाने वाले लोगों ने सोचा तो यह था कि 'सतीश सिंघल के उम्मीदवार' का ठप्पा लगेगा, तो रवि सचदेवा की उम्मीदवारी का घोड़ा सरपट दौड़ेगा; लेकिन पाया यह गया कि सतीश सिंघल के उम्मीदवार के ठप्पे ने तो जैसे रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के घोड़े के पैर बिलकुल ही जाम कर दिए हैं । यह देख/पा कर ही रवि सचदेवा के कुछेक नजदीकियों ने कहना शुरू कर दिया कि सतीश सिंघल इस समय जिस मुसीबत में घिरे हुए हैं, उसके चलते उनका 'समर्थन' मदद करने की बजाये मुश्किलों को बढ़ाने का ही काम करेगा - इसलिए उनसे नजदीकी नहीं, बल्कि दूरी बनाने/रखने की जरूरत है । बस यहीं से, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत रवि सचदेवा की उम्मीदवारी सतीश सिंघल से नजदीकी या दूरी बनाने/रखने के विवाद में फँस गईं । 
यह फँसाव सतीश सिंघल के रवैये के चलते भी बना । रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को लेकर सतीश सिंघल का कोई 'स्टैण्ड' ही लोगों को देखने/सुनने को नहीं मिला । रवि सचदेवा के कुछेक समर्थकों की तरफ से दावा तो किया गया कि रवि सचदेवा की उम्मीदवारी सतीश सिंघल से विचार-विमर्श करके और उनका समर्थन हासिल करके ही लाई गई है, लेकिन सतीश सिंघल खुद रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के पक्ष में कुछ करते हुए नजर नहीं आये हैं । इसी तरह के दबाव में, अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुभाष जैन भी फँसे थे; लेकिन उन्होंने शुरू में ही दो-टूक शब्दों में ऐलान कर दिया कि अगले रोटरी वर्ष में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी निभाने में व्यस्त होंगे, इसलिए उम्मीदवार के रूप में अमित गुप्ता उनसे किसी भी तरह की मदद की कोई भी उम्मीद न करें/रखें । सुभाष जैन जैसी दो-टूक घोषणा सतीश सिंघल के लिए कर पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव है । इसका कारण यही है कि सुभाष जैन की अपने क्लब में धाक और पकड़ है, जबकि सतीश सिंघल मुसीबत में घिरे होने के चलते रवि सचदेवा के क्लब में शरण लिए हुए हैं; उनके लिए डर की बात यह है कि उन्होंने भी कहीं सुभाष जैन जैसी दो-टूक घोषणा कर दी, तो कहीं ऐसा न हो कि उन्हें इस क्लब से भी निकाल दिया जाये । रवि सचदेवा और उन्हें उम्मीदवार बना/बनवा देने वाले लोगों ने सतीश सिंघल का फायदा उठा लेने का जुगाड़ तो बैठा लिया, लेकिन सतीश सिंघल की मुश्किलों को - और उनकी मुश्किलों के कारण अपने लिए पैदा होने वाली मुसीबतों को नहीं समझा/पहचाना । उन्होंने यह समझने में भी चूक कर दी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल इस समय जिस मुसीबत में घिरे हुए हैं, उसके कारण उनके समर्थन के बूते रवि सचदेवा के उम्मीदवार बनने से सतीश सिंघल की भी दुविधा बढ़ेगी और रवि सचदेवा की उम्मीदवारी भी मजाक बन जाएगी ।
रवि सचदेवा और उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों को यह देख कर और तगड़ा झटका लगा है कि सतीश सिंघल के समर्थन से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की लाइन में लगने वाले दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता भी रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के प्रति कोई समर्थन-भाव नहीं दिखा रहे हैं । दीपक गुप्ता का तो रवि सचदेवा के साथ दो वर्ष पहले का व्यावसायिक झगड़ा है, जब दीपक गुप्ता उम्मीदवार थे । दीपक गुप्ता का लगातार आरोप रहा है कि उनकी उम्मीदवारी को प्रमोट करने के नाम पर रवि सचदेवा के व्यावसायिक प्रोजेक्ट 'बाबु मोशाय' में उनसे अनाप-शनाप पैसे खर्च करवाए गए और इस तरह उन्हें ठगा गया । रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को सतीश सिंघल के समर्थन के दावे के बावजूद रवि सचदेवा के प्रति दीपक गुप्ता की नाराजगी लगता है कि अभी भी दूर नहीं हो पाई है; रवि सचदेवा और उनके समर्थकों के लिए लेकिन लोगों के इस सवाल का जबाव देना मुश्किल हो रहा है कि उन्हें सतीश सिंघल के समर्थन का दावा यदि सच है तो आलोक गुप्ता उनकी उम्मीदवारी के साथ क्यों नहीं नजर आ रहे हैं ? इन्हीं स्थितियों के चलते रवि सचदेवा और उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों को लग रहा है कि सतीश सिंघल के उनके क्लब में आने से रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को फायदा मिलने की जो उम्मीद की गई थी, वह पूरी तो नहीं ही हुई है - उनके लिए मुसीबत और बन गई है ।

Friday, March 30, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी के सामने राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की पतली हुई हालत को देखते हुए ही कपिल गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चैलेंज करने से पीछे हट रहे हैं क्या ?

चंडीगढ़ । कपिल गुप्ता को चैलेंजिंग उम्मीदवार बनने से पीछे हटता देख राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के लिए और ज्यादा फजीहत की स्थिति पैदा हो गई है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करने की समय-सीमा समाप्त होने को आ रही है, लेकिन कपिल गुप्ता और या उनके क्लब की तरफ से चेलैंज करने को लेकर कोई हलचल ही नहीं सुनाई/दिखाई दे रही है । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में और नोमीनेटिंग कमेटी का नतीजा आने के तुरंत बाद कपिल गुप्ता और उनके भाई कमल गुप्ता तथा उनके क्लब के लोगों ने 'गर्मी' तो बहुत दिखाई थी, जिससे लगा था कि कपिल गुप्ता नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को अवश्य ही चेलैंज करेंगे; लेकिन फिर जल्दी ही उनकी गर्मी उतर गई लगी । हालाँकि इस बीच राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने हर संभव कोशिश की कि कपिल गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुने गए अधिकृत उम्मीदवार रमेश बजाज को चेलैंज करें और चुनाव लड़ें, लेकिन उन्होंने पाया कि कपिल गुप्ता की चुनाव लड़ने की हिम्मत ही नहीं हो पा रही है । कपिल गुप्ता लगता है कि समझ रहे हैं कि राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स डीसी बंसल की तरह उन्हें पहले तो झाड़ पर चढ़ा देंगे और फिर उन्हें बलि का बकरा बना देंगे ।  इसी समझ के चलते कपिल गुप्ता अपने क्लब के सदस्य पूर्व गवर्नर सुभाष गर्ग की भी नहीं 'सुन' रहे हैं । कपिल गुप्ता ने टीके रूबी के गवर्नर-काल की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स की डिस्ट्रिक्ट के लोगों के जरिये जो एकतरफा फजीहत होती हुई देखी, उससे भी वह सावधान हो गए हैं ।
राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स को डर दरअसल यह भी है कि कपिल गुप्ता कहीं टीके रूबी खेमे के साथ न मिल जाएँ । डिस्ट्रिक्ट में इस समय जो राजनीतिक माहौल है, उसमें टीके रूबी खेमे का पलड़ा भारी नजर आ रहा है; और हर किसी को लग रहा है कि राजा साबू खेमे के लिए अपने उम्मीदवार को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवा पाना निकट भविष्य में तो संभव नहीं है । वास्तव में यही कारण है कि राजा साबू खेमे के भरोसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने की तैयारी कर रहे उम्मीदवार एकदम पीछे हट गए हैं । ऐसे में, राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स को डर हुआ है कि कहीं कपिल गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बनने के लिए टीके रूबी खेमे के साथ न जा मिलें । कपिल गुप्ता के नजदीकियों व शुभचिंतकों को यह कहते और सलाह देते हुए सुना भी गया है कि कपिल गुप्ता को यदि सचमुच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बनना है, तो उन्हें राजा साबू खेमे का साथ छोड़ कर टीके रूबी खेमे के साथ मिल जाना चाहिए । कपिल गुप्ता के कुछेक नजदीकी और शुभचिंतक टीके रूबी और उनके खेमे के दूसरे नेताओं के नजदीक भी हैं, जिनकी मदद से कपिल गुप्ता की टीके रूबी खेमे में एंट्री और स्वीकार्यता आसानी से हो भी जाएगी । यह 'काम' कोशिश करेंगे, तो कपिल गुप्ता के क्लब के सदस्य पूर्व गवर्नर सतीश सलूजा ही करवा देंगे । सतीश सलूजा का टीके रूबी खेमे में अच्छा सम्मान है । बल्कि पिछले रोटरी वर्ष में जब वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए चुनावी प्रक्रिया शुरू हुई थी, तब प्रस्तुत हुई कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी को टीके रूबी खेमे का समर्थन दिलवाने के लिए सतीश सलूजा की तरफ से कोशिश हुई भी थी, जिस पर मधुकर मल्होत्रा ने आपत्ति की थी और नाराजगी दिखाई थी - जिसकी शिकायत सतीश सलूजा ने राजा साबू से भी की थी ।
उसके बाद भी, कुछेक मौकों पर ऐसा लगा तो था कि कपिल गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में टीके रूबी खेमे के उम्मीदवार हो सकते हैं । दरअसल एक उम्मीदवार के रूप में रमेश बजाज की कोई सक्रियता ही नहीं बन सकी थी, और खुद टीके रूबी खेमे में ही उन्हें एक 'बोझ' की तरह देखा जा रहा था । ऐसे में, कपिल गुप्ता के नजदीकियों और शुभचिंतकों को लगा भी था कि कपिल गुप्ता यदि थोड़ा सा भी प्रयास करें - तो वह रमेश बजाज की जगह टीके रूबी खेम के उम्मीदवार हो सकते हैं । कपिल गुप्ता लेकिन पता नहीं किस गलतफहमी में रहे कि हाथ में आए सुनहरे मौके को गवाँ बैठे । उनके नजदीकियों और शुभचिंतकों को लग रहा है कि अभी तक जो हुआ सो हुआ, कपिल गुप्ता अब तो लेकिन हालात की सच्चाई को समझें और टीके रूबी खेमे का समर्थन जुगाड़ने का प्रयास करें । मजे की बात यह है कि टीके रूबी खेमे के पास उम्मीदवारों का टोटा भी दिख रहा है । खेमे के नेताओं की तरफ से अगले रोटरी वर्ष में अजय मदान को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा सुनी गई है, हालाँकि अजय मदान उम्मीदवार बनने से अभी इंकार कर रहे हैं । ऐसे में, कपिल गुप्ता के नजदीकियों और शुभचिंतकों को कपिल गुप्ता के लिए अच्छा मौका 'दिख' रहा है । राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को डर और शक है कि चैलेंज न करके कपिल गुप्ता कहीं इस 'अच्छे' मौके का फायदा उठाने के लिए ही जमीन तैयार तो नहीं कर रहे हैं ? वह समझ रहे हैं कि कपिल गुप्ता ने यदि सचमुच ऐसा कर लिया, तो यह उनके लिए बड़ी फजीहत की बात होगी । इसीलिए राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स कपिल गुप्ता को तरह तरह से उकसा रहे हैं कि वह अधिकृत उम्मीदवार रमेश बजाज को चेलैंज करें । लेकिन जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है, लग नहीं रहा है कि कपिल गुप्ता उनके झाँसे में आ रहे हैं । जल्दी ही यह स्पष्ट हो जायेगा कि कपिल गुप्ता को राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स पर भरोसा रह गया है या नहीं ?

Saturday, March 24, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में अजय डैंग की उम्मीदवारी के पक्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद तथा अन्य गवर्नर्स को दबाव में लेकर श्याम निगम व वंदना निगम ने डिस्ट्रिक्ट में अपनी चौधराहट 'दिखाई'

कानपुर । अजय डैंग की उम्मीदवारी के जरिए डिस्ट्रिक्ट में अपनी चौधराहट दिखाने/जमाने के श्याम निगम और वंदना निगम के प्रयास के तहत नवीन गुप्ता को उम्मीदवारी वापस लेने के लिए जिस तरह से घेरा जा रहा है, उससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बदमजगी-सी पैदा होने लगी है । नवीन गुप्ता के कुछेक समर्थक नेताओं को तरह तरह के ऑफर/लालच लेकर निगम दंपति जिस तरह से अपनी तरफ मिला ले रहे हैं, उससे लगता तो है कि नवीन गुप्ता अपनी उम्मीदवारी पर टिके न रह पाएँ - लेकिन जो हो रहा है, उससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच पूर्व गवर्नर्स नेताओं के खिलाफ असंतोष जरूर पनप रहा है । हालाँकि नवीन गुप्ता की उम्मीदवारी को वापस करवाने के लिए जो तर्क दिया जा रहा है, उससे सिद्धांततः किसी को भी ऐतराज नहीं है - लेकिन बात तर्क के पीछे छिपे 'उद्देश्य' और नीयत की है । तर्क दिया जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट में जब पिछले कुछ वर्षों से सौहार्द बना हुआ है और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का चुनाव/चयन सर्वसम्मति से हो रहा है, तब फिर इस वर्ष चुनाव के लिए युद्धभूमि क्यों सजाई जा रही है - और इसके जरिये डिस्ट्रिक्ट के सौहार्दपूर्ण माहौल को क्यों बिगाड़ा जा रहा है ? डिस्ट्रिक्ट में कई एक लोगों का कहना है कि सुनने में तो यह तर्क बहुत ही वाजिब और अच्छा लग रहा है; और वास्तव में हर कोई चाहता है कि चुनाव के नाम पर डिस्ट्रिक्ट में बदमजगी न फैले और पैसों की बर्बादी न हो - लेकिन सवाल और देखने की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट में चुनाव थोपने की कोशिश की किसने है और डिस्ट्रिक्ट में सौहार्द बनाये रखने के नाम पर नवीन गुप्ता की उम्मीदवारी की ही बलि लेने की कोशिश आखिर क्यों की जा रही है ? इस सवाल से दो-चार होते ही निशाने पर निगम दंपति आ जाते हैं ।
दरअसल सर्वसम्मति से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवा कर डिस्ट्रिक्ट में सौहार्द बनाए रखने की 'इच्छा' यदि वास्तव में होती तो इस वर्ष महेंद्रनाथ गुप्ता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर चुने जा रहे होते । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष महेंद्रनाथ गुप्ता की उम्मीदवारी को इसी आश्वासन के भरोसे वापस करवाया गया था कि वह अगले वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन/चुनवाए जा सकते हैं । महेंद्रनाथ गुप्ता बेचारे सीधे/शरीफ व्यक्ति हैं, वह नेताओं के झाँसे में आ गए । मौजूदा वर्ष में भी उन्हें विश्वास रहा कि जिन नेताओं ने आश्वासन देकर उनसे उनकी उम्मीदवारी वापस करवाई थी, वह अपना वायदा निभायेंगे - और इसी विश्वास के भरोसे उन्होंने एक उम्मीदवार के रूप में लोगों के बीच अपनी सक्रियता को संयोजित किया । लेकिन जल्दी ही उन्होंने देखा/पाया कि पिछले वर्ष उनकी उम्मीदवारी को वापस करवाने तथा अगले वर्ष के लिए आश्वासन देने को लेकर आगे आगे रहने वाले निगम दंपति अजय डैंग को उम्मीदवार बना रहे हैं । निगम दंपति ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद के कुछेक 'स्वार्थों' को अजय डैंग से पूरा करवा कर उन्हें महेंद्रनाथ गुप्ता के साथ किए गए वायदे को भूलने तथा अजय डैंग की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए राजी कर लिया । दीपक राज आनंद पिछले लायन वर्ष में मल्टीपल की राजनीति में अपने 'स्वार्थों' को पूरा करने के लिए जब पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किरण सिंह को धोखा देने से नहीं चूके, तब बेचारे महेंद्रनाथ गुप्ता ही उनके धोखे से कैसे बच पाते ? नवीन गुप्ता ने जब देखा/पाया कि महेंद्रनाथ गुप्ता के साथ धोखा करते हुए अजय डैंग की उम्मीदवारी लाई जा रही है, तो उन्होंने भी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत कर दी ।
नवीन गुप्ता का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाले पूर्व गवर्नर्स नेताओं ने कुछेक वर्ष उनके साथ भी वायदा किया हुआ है, जिस पर भरोसा करते हुए उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी । नवीन गुप्ता लेकिन इस बात को भूल रहे हैं कि लायन लीडर्स वास्तव में वायदा करते ही इसलिए हैं, ताकि उसे भूल सकें और तोड़ सकें । महेंद्रनाथ गुप्ता की तरह नवीन गुप्ता भी पूर्व गवर्नर्स नेताओं की वायदाखिलाफी के शिकार इसलिए भी हुए हैं, क्योंकि उनकी वकालत करने के लिए कोई दमदार गवर्नर आगे नहीं आया है । मजे की बात यह हुई है कि अजय डैंग की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने कानपुर/झाँसी का झगड़ा और खड़ा कर दिया है, जिसके तहत कहा जा रहा है कि झाँसी से लगातार गवर्नर कैसे बन सकते हैं ? यह तर्क अपने आप में धोखेभरा इसलिए है कि जब कानपुर से लगातार गवर्नर बन सकते हैं, तो झाँसी से क्यों नहीं बन सकते हैं ? जाहिर है कि बात तर्क की और वायदा निभाने की है ही नहीं, बात तो अपनी मनमानी चलाने की है । निगम पति-पत्नी ने अजय डैंग की उम्मीदवारी के संदर्भ में जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद तथा दूसरे पूर्व गवर्नर्स को दबाव में ले लिया है, उससे यह तो हो सकता है कि वह अजय डैंग को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवा लें - लेकिन उनकी इस वायदाखिलाफीपूर्ण कार्रवाई से डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच पूर्व गवर्नर्स नेताओं के प्रति बदमजगी तो पैदा हो ही जा रही है ।

Friday, March 23, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह के वोट के भरोसे मल्टीपल काउंसिल में ट्रेजरर के पद के साथ-साथ नोट जुगाड़ने की विशाल सिन्हा की कोशिश सफल हो सकेगी क्या ?

लखनऊ । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट बी वन के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह के वोट को अपनी जेब में 'बताते' हुए निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा ने मल्टीपल ट्रेजरर बनने और नोट बसूलने के लिए दोनों खेमों के सदस्यों को ब्लैकमेल की जो चाल चली हुई है, उसने मल्टीपल की चुनावी राजनीति के नजारे को खासा दिलचस्प बना दिया है । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष विशाल सिन्हा ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने के लिए बहुत हाथ-पैर मारे थे; बाद में फिर वह वाइस चेयरमैन और या सेक्रेटरी बनने के लिए भी तैयार हो गए थे - लेकिन उनकी तैयारी को किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया । विशाल सिन्हा की दरअसल भारी बदनामी है और पैसों के मामले में तो हर कोई उनसे अपनी जेब बचा कर रखना चाहता है, इसलिए पिछली बार दोनों खेमों के नेताओं ने उन्हें अपने से दूर ही रखा । विशाल सिन्हा को लगता है कि एके सिंह के वोट की बदौलत इस वर्ष वह दोनों खेमों के साथ सौदेबाजी कर सकते हैं, और इस तरह मल्टीपल काउंसिल में पदाधिकारी होने/बनने की पिछले वर्ष अधूरी रह गई अपनी हसरत को वह इस वर्ष पूरा कर सकते हैं । मजे की बात यह है कि सोच, व्यवहार और खेमेबाजी के लिहाज से एके सिंह के वोट को लीडरशिप के उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे पारस अग्रवाल के पक्ष में देखा/समझा जा रहा है, लेकिन विशाल सिन्हा ने पारस अग्रवाल और उनके नेता जितेंद्र चौहान को स्पष्ट कर दिया है कि एके सिंह का वोट तभी पक्का समझियेगा, जब मुझे ट्रेजरर बना रहे हों । विशाल सिन्हा ने पैसों को लेकर इशारा करते हुए पारस अग्रवाल और जितेंद्र चौहान को यह भी बता दिया है कि तेजपाल खिल्लन ने एके सिंह के वोट के बदले में उन्हें मल्टीपल ट्रेजरर बनाने के साथ-साथ नोट भी देने/दिलवाने का आश्वासन दे दिया है ।
विशाल सिन्हा की इस हरकत ने एके सिंह की साख व पहचान पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है । एके सिंह डिस्ट्रिक्ट की खेमेबाजी में यूँ तो गुरनाम सिंह के खेमे में ही देखे/पहचाने जाते हैं, जिसमें विशाल सिन्हा सेकेंड-इन-कमांड हैं - लेकिन एके सिंह की डिस्ट्रिक्ट में अपनी एक साफ-सुथरी पहचान भी है, जिसका नतीजा है कि दूसरे खेमे के लोग भी उन्हें सम्मान से देखते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह लायनिज्म को धंधा तथा अपनी बदतमीजियों का अड्डा बना देने वाले विशाल सिन्हा जैसे व्यक्ति के इशारों पर नहीं चलेंगे । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनका चुनाव सर्वसम्मति से निर्विरोध हुआ था - और उनके विरोधी समझे जाने वाले खेमे के शिव कुमार गुप्ता के गवर्नर-काल में हुआ था । इस वर्ष हुए चुनाव में एके सिंह का समर्थन हालाँकि गुरनाम सिंह खेमे के उम्मीदवार के पक्ष में ही देखा/सुना गया, लेकिन चुनाव-अभियान के दौरान विशाल सिन्हा द्वारा की गई बदतमीजियों के साथ और या उनके समर्थन में उन्हें कभी नहीं देखा/पाया गया । एके सिंह ने अपनी भूमिका को बहुत ही गरिमा और शालीनता के साथ निभाया । विरोधी खेमे की तरफ से यह तो सुनने को मिला कि एके सिंह जब स्वयं सर्वसम्मति से निर्विरोध चुने गए थे, तब उन्हें भी चुनाव में तटस्थ रहना चाहिए था; लेकिन विरोधी खेमे की तरफ से यह सुनने को बिलकुल नहीं मिला कि चुनाव में उन्होंने कोई ऐसी भूमिका निभाई हो, जो उनके या लायनिज्म के और या डिस्ट्रिक्ट की गरिमा के खिलाफ हो । अपने डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, बल्कि मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों के बीच एके सिंह की एक विशेष पहचान और साख है । वास्तव में, इसीलिए हर किसी को हैरानी है कि विशाल सिन्हा की ब्लैकमेल करने वाली राजनीति में वह अपना नाम और अपना वोट इस्तेमाल क्यों होने दे रहे हैं ? मल्टीपल काउंसिल की राजनीति के संदर्भ में विशाल सिन्हा की ब्लैकमेल करने वाली राजनीति के सामने एके सिंह असहाय कैसे और क्यों बन गए हैं ?
जैसा कि पहले ही कहा/बताया जा चुका है कि सोच, व्यवहार और खेमेबाजी के लिहाज से मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में एके सिंह का समर्थन पारस अग्रवाल के साथ ही समझा/पहचाना जा रहा है । दरअसल तेजपाल खिल्लन जिस तरह की मनमानी और चालाकी/बेईमानी भरी राजनीति करते हैं, एके सिंह उसके साथ तालमेल नहीं बैठा पाते हैं - और इसीलिए मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच जो खेमेबाजी बनती नजर आ रही है, उसमें एके सिंह और तेजपाल खिल्लन अलग अलग समूहों का हिस्सा हैं । खेमेबाजी के लिहाज से गुरनाम सिंह लीडरशिप के साथ रहते ही हैं । इन संकेतों के भरोसे ही एके सिंह को पारस अग्रवाल के साथ समझा जा रहा है । इस स्थिति में विशाल सिन्हा ने भी अपनी दाल गला लेने की भी तिकड़म लगा ली है । अब यह बड़ा ओपन सीक्रेट है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में पैसों का लेन-देन होता ही है । विशाल सिन्हा यह भी जानते/समझते हैं कि एके सिंह अपने वोट के बदले में सौदेबाजी करने वाले व्यक्ति नहीं हैं, इसलिए उनके वोट के नाम पर विशाल सिन्हा ने सौदेबाजी करने के लिए जाल फैला लिया है । विशाल सिन्हा जान/समझ रहे हैं कि इस वर्ष मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन का चुनाव दोनों पक्षों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, इसलिए उनकी ब्लैकमेलिंग अवश्य ही कामयाब हो जाएगी । विशाल सिन्हा ने तो एके सिंह के वोट के भरोसे मल्टीपल काउंसिल में ट्रेजरर के पद के साथ-साथ नोट जुगाड़ने के लिए भी जाल फैला दिया है; लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि एके सिंह अपने वोट का विशाल सिन्हा की ब्लैकमेलिंग के लिए इस्तेमाल होने देंगे क्या ?

Thursday, March 22, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की राजनीति को छोड़ अनुज गोयल का विधान परिषद का टिकट जुगाड़ने में लगने और सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन ज्ञान चंद्र मिश्र के सेंट्रल काउंसिल का उम्मीदवार बनने की तैयारी में जुटने की खबरों ने उत्तर प्रदेश में इंस्टीट्यूट की राजनीति के समीकरण बिगाड़े

गाजियाबाद । अनुज गोयल के इंस्टीट्यूट की राजनीति में दिलचस्पी लेना छोड़ कर उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की सदस्यता जुगाड़ने में लग जाने से मुकेश कुशवाह, मनु अग्रवाल, विनय मित्तल, अमरेश वशिष्ठ आदि ने राहत की जो साँस लेना शुरू किया था, उसमें ज्ञान चंद्र मिश्र की सेंट्रल काउंसिल के लिए दिखाई गई दिलचस्पी ने फिर से मुसीबत खड़ी कर दी है । उल्लेखनीय है कि मुकेश कुशवाह और मनु अग्रवाल सेंट्रल रीजन से चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में हैं, और इन्हें इस वर्ष दिसंबर में होने वाले चुनाव में पुनर्वापसी के लिए फिर से चुनाव का सामना करना है; जबकि विनय मित्तल और अमरेश वशिष्ठ सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश करने की कोशिश के तहत चुनाव में उतरने की तैयारी करते सुने जा रहे हैं । विनय मित्तल पिछली बार चुनाव हार गए थे, और अमरेश वशिष्ठ पिछले तीन चुनावों से लगातार हारते आ रहे हैं । इन चारों को पिछले महीनों में यह देख कर खासा तगड़ा झटका लगा कि अनुज गोयल एक बार फिर से सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गए हैं, जिसके चलते वह ब्रांचेज के कार्यक्रमों में बाहर ही हाथ जोड़े खड़े मिल/दिख जा रहे हैं । लगातार तीन टर्म ही सेंट्रल काउंसिल में रहने के नियम के चलते अनुज गोयल को पिछली बार चुनाव से बाहर बैठना पड़ा था; हालाँकि बाहर बैठ कर भी उन्होंने अपने भाई जितेंद्र गोयल को सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़वा दिया था - जितेंद्र गोयल लेकिन चुनाव हार गए थे, यद्यपि वोट उन्हें अच्छे मिल गए थे । जितेंद्र गोयल की हार से लोगों ने मान लिया था कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीती में अनुज गोयल के दिन पूरे हो गए हैं । अनुज गोयल लेकिन जब चुनाव की तैयारी करते नजर आए - तो मुकेश कुशवाह, मनु अग्रवाल, विनय मित्तल और अमरेश वशिष्ठ को डर हुआ कि सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में अनुज गोयल की उम्मीदवारी उनमें से न जाने किसका खेल बिगाड़ दे ?
अनुज गोयल लेकिन चुनावी सीन से अचानक से गायब हो गए । अभी कुछ महीने पहले तक वह सेंट्रल रीजन की हर ब्रांच के हर प्रमुख कार्यक्रम में हाथ जोड़े बाहर ही खड़े मिलते/दिखते थे, किंतु काफी दिनों से रीजन के लोगों को वह न कहीं दिख रहे हैं और न उनके फोन और मैसेज लोगों को मिल रहे हैं । उनके शुभचिंतकों ने पता किया तो मालुम चला कि अनुज गोयल आजकल उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य होने का जुगाड़ बैठाने में लगे हैं, और इसके लिए आजकल रामदेव की सेवा में हैं । उनके नजदीकियों का तो कहना/बताना है कि रामदेव की सिफारिश पर विधान परिषद की सदस्यता मिलने का अनुज गोयल को पूरा पूरा भरोसा है, इसलिए उन्होंने इंस्टीट्यूट की राजनीति से ध्यान हटा कर अपनी सक्रियता का केंद्र रामदेव तक सीमित किया हुआ है । उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2012 में सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की ब्रांचेज के चेयरमेंस की हरिद्वार में मीटिंग हुई थी, जिसमें एक वक्ता के रूप में रामदेव को भी बुलाया गया था । अनुज गोयल ने तभी से रामदेव से पींगें बढ़ाना शुरू कर दिया था । अनुज गोयल के नजदीकियों का कहना/बताना है कि रामदेव की सत्ताधारी नेताओं से नजदीकी का फायदा उठा कर अनुज गोयल ने उत्तर प्रदेश विधान परिषद के टिकट के लिए चक्कर चलाया है; और चूँकि उत्तर प्रदेश में जल्दी ही विधान परिषद के चुनाव होने हैं - इसलिए अनुज गोयल ने अपना सारा ध्यान रामदेव पर और विधान परिषद के टिकट पर लगाना शुरू किया है, और इस कारण से इंस्टीट्यूट के सेंट्रल काउंसिल के चुनावी परिदृश्य से वह गायब हैं ।
अनुज गोयल के इंस्टीट्यूट के चुनावी परिदृश्य से गायब होने पर मुकेश कुशवाह, मनु अग्रवाल, विनय मित्तल, अमरेश वशिष्ठ को एक बड़े दबाव से मुक्ति मिलने का अहसास हुआ और उन्होंने राहत की साँस ली थी । लेकिन यह बेचारे अभी राहत की साँस पूरी तरह ले भी नहीं पाए थे कि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के नए बने चेयरमैन ज्ञान चंद्र मिश्र की तरफ से सेंट्रल काउंसिल का उम्मीदवार बनने की तैयारियाँ शुरू होने की खबरें मिलने लगीं । ज्ञान चंद्र मिश्र ने जिस तरह से पिछली बार रीजनल काउंसिल का चुनाव जीता था, और जिन हालात में वह चेयरमैन बने हैं - उससे लोगों के बीच यह संदेश तो है ही कि उनका नेटवर्क भी अच्छा है और उनकी किस्मत भी तेज है । पिछले चुनाव के दौरान वह जिस पारिवारिक मुसीबत में घिरे थे, उसके कारण उन्हें चुनावी दौड़ से बाहर ही मान लिया गया था - लेकिन वह न सिर्फ चुनाव लड़े, बल्कि जीते भी तो इसे उनके प्रभावी नेटवर्क के सुबूत के तौर पर देखा गया । रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में भी उनकी उम्मीदवारी के सामने ऐन मौके पर भारी मुसीबत खड़ी हो गयी थी, लेकिन फिर भी वह चेयरमैन बन गए - तो इसे उनकी तेज किस्मत के रूप में देखा/पहचाना गया है । इसीलिए माना/समझा जा रहा है कि ज्ञान चंद्र मिश्र ने यदि सचमुच सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने का निश्चय कर लिए तो उनका प्रभावी नेटवर्क और उनकी तेज किस्मत उत्तर प्रदेश में सेंट्रल काउंसिल के दूसरे उम्मीदवारों के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है । इस तरह उत्तर प्रदेश में सेंट्रल काउंसिल उम्मीदवारों के लिए मामला 'आसमान से गिरे, खजूर पर अटके' की तर्ज पर 'अनुज गोयल से गिरे, ज्ञान चंद्र मिश्र पर अटके' जैसा हो गया है ।

Wednesday, March 21, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में अनीता गुप्ता की सलाह पर 'रंगा-बिल्ला की जोड़ी' से बचने और विनय मित्तल से जुड़ने की कोशिश में हो रही देरी के कारण ही अश्वनी काम्बोज का गाजियाबाद दौरा बार-बार स्थगित हो रहा है क्या ?

गाजियाबाद । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई में गाजियाबाद को लेकर अश्वनी काम्बोज इतनी उलझन में फँस गए हैं कि उन्हें तीन बार गाजियाबाद का दौरा टालना पड़ा है । उल्लेखनीय है कि उम्मीदवार के रूप में अश्वनी काम्बोज लायन-डिस्ट्रिक्ट की भौगोलिक सीमा में आने वाले प्रमुख शहरों में प्रायः सभी शहरों का दौरा कर उन शहरों के प्रमुख लायन नेताओं और पदाधिकारियों से मिल चुके हैं, लेकिन एक अकेले गाजियाबाद के लायन नेताओं व पदाधिकारियों से वह दूर दूर बने हुए हैं । अश्वनी कम्बोज के नजदीकियों का कहना है कि उन्होंने तीन बार गाजियाबाद का प्रोग्राम बनाया, लेकिन तीनों बार ऐन मौके पर उन्हें अपना प्रोग्राम स्थगित कर देना पड़ा । तीनों ही बार इसका कारण उनकी यह असमंजसता रही कि गाजियाबाद में वह 'ऊँगली' किसकी पकड़े । खेमेबाजी के लिहाज से उन्हें निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी की 'ऊँगली' पकड़ कर गाजियाबाद में चलना चाहिए, पिछले वर्ष अश्वनी कम्बोज ने उन्हीं के सहारे/भरोसे चुनाव लड़ा था । लेकिन उनकी प्रमुख समर्थक और सलाहकार के रूप में देखी/पहचानी जा रहीं पूर्व गवर्नर अनीता गुप्ता ने उन्हें सख्त हिदायत दी हुई है कि इस वर्ष उन्हें शिव कुमार चौधरी से दूर रहना है, और गाजियाबाद में तो 'रंगा-बिल्ला की जोड़ी' से बिलकुल ही बच कर रहना है । बताया जाता है कि शिव कुमार चौधरी और उनके खासमखास विनीत शर्मा को अनीता गुप्ता 'रंगा-बिल्ला की जोड़ी' के रूप में संबोधित करती हैं । अश्वनी काम्बोज पिछले वर्ष शिव कुमार चौधरी के हाथों जिस तरह की 'ठगी' के शिकार हुए और उसके बाद भी बुरी तरह चुनाव हार गए, उसके चलते वह खुद भी इस बार शिव कुमार चौधरी से बच कर चल रहे हैं । उन्हें बहुत अच्छे से समझ में आ गया है कि वह यदि रंगा-बिल्ला की जोड़ी के चक्कर में फिर फँसे तो फिर न सिर्फ ठगे जायेंगे, बल्कि निश्चित रूप से चुनाव भी हारेंगे । इसलिए अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में वह गाजियाबाद में अपने नए आधार की तलाश में हैं ।
उम्मीदवारी का पर्चा दाखिल करने के मौके पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय सिंघल के यहाँ उन्हें जो सकारात्मक 'ट्रीटमेंट' मिला, उससे वह उत्साहित हुए थे और उन्हें उम्मीद बनी थी कि गाजियाबाद में उन्हें डिस्ट्रिक्ट के तिकड़ी पदाधिकारियों की ऊँगली पकड़ने को मिल सकती है - लेकिन कुछ मुकेश गोयल की 'राजनीतिक होशियारी' और कुछ अश्वनी काम्बोज की 'राजनीतिक अनुभवहीनता' के कारण अजय सिंघल के यहाँ मिले 'ट्रीटमेंट' को अश्वनी काम्बोज अपने लिए रास्ते के रूप में विकसित नहीं कर सके । अश्वनी काम्बोज और अनीता गुप्ता को विनय मित्तल से बहुत उम्मीदें रही हैं, लेकिन विनय मित्तल को पकड़ने के लिए 'दूर' 'दूर' से की जा रही उनकी कोशिशों का भी अभी तक तो कोई फल उन्हें नहीं मिला है । मजे की बात यह हो रही है कि विनय मित्तल को लेकर वह जब भी नाउम्मीद होते हैं, तभी कुछ ऐसा घट जाता है - जो उनकी उम्मीदों को फिर से जगा देता है । पिछले सप्ताहांत अश्वनी काम्बोज ने गाजियाबाद का दौरा करने का कार्यक्रम बनाया था, लेकिन तभी विनय मित्तल की तरफ से अगले वर्ष के अपने गवर्नर-काल के पदों के बँटवारे के राजनीतिक-उपयोग पर 'बैन' लगाने की घटना घट गई - जिसने अश्वनी काम्बोज और अनीता गुप्ता की उम्मीदों को एक बार फिर से हवा दे दी । ऐसे में, उनके सामने गाजियाबाद के दौरे को पुनर्व्यवस्थित करने की जरूरत आन पड़ी, और जिस जरूरत को पूरा करने के चक्कर में अश्वनी काम्बोज को तीसरी बार फिर अपनी उम्मीदवारी के प्रचार अभियान से जुड़ा गाजियाबाद का अपना प्रोग्राम स्थगित करना पड़ा ।  
विनय मित्तल ने अपने गवर्नर-काल के पदों के राजनीतिक-उपयोग पर जिस दो-टूक तरीके से बैन लगाया है, उसमें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में एक बड़ा संदेश है - जो छिपा हुआ भी नहीं है । दरअसल हुआ यह कि राजेश गुप्ता के कुछेक नजदीकियों ने राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से अगले लायन वर्ष के पदों की सौदेबाजी शुरू कर दी । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति का यह एक आम फंडा/फार्मूला है, जिसका उपयोग करके अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए समर्थन जुटाया जाता है । राजेश गुप्ता के लिए भी यही करने का प्रयास हो रहा था । विनय मित्तल को इसकी भनक लगी, तो उन्होंने तुरंत दो-टूक संदेश डिस्ट्रिक्ट के लोगों को भेज दिया कि उन्होंने अभी अपनी टीम का गठन करना शुरू नहीं किया है और इसलिए उन्होंने किसी को यह अधिकार नहीं दिया है कि वह अगले वर्ष के लिए पदाधिकारी बनाए; विनय मित्तल ने अपने संदेश में स्पष्ट कहा कि अपनी टीम गठित करने का काम वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस हो जाने के बाद करेंगे, क्योंकि नियमानुसार अभी तो उन्हें टीम गठित करने का अधिकार भी नहीं है । 'देखने' में तो ऐसा लगता है जैसे कि विनय मित्तल ने तकनीकी आधार पर अगले वर्ष की अपनी टीम गठित करने के काम को रोका हुआ है, लेकिन राजनीति समझने वाले लोगों ने उनके इस संदेश में चिपटी/लिपटी राजनीति को भी समझ/पहचान लिया है । इससे लोगों के बीच यह भी जाहिर हुआ है कि विनय मित्तल और मुकेश गोयल के बीच ऊपर ऊपर से सब कुछ भले ही ठीक दिख रहा हो, अंदरखाने उनके बीच लेकिन समस्या अभी बनी हुई है । यह स्थिति अश्वनी काम्बोज के लिए एक मौका तो बनाती है, लेकिन इस मौके का फायदा उन्हें तभी मिल सकेगा - जब वह राजनीतिक-होशियारी से स्थिति का आकलन करेंगे और अपने कदम रखेंगे ।

Tuesday, March 20, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हुई अपनी फजीहत के लिए 'इंटरनेशनल प्रतिनिधि' मुकेश अरनेजा को जिम्मेदार मान रहे राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने मुकेश अरनेजा को सबक सिखाने की तैयारी दिखाई है

चंडीगढ़ । राजेंद्र उर्फ राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स ने रोटरी इंटरनेशनल में मुकेश अरनेजा के रवैये की शिकायत करने तथा यह अनुरोध करने की तैयारी शुरू की है कि मुकेश अरनेजा को आगे किसी भी डिस्ट्रिक्ट में प्रतिनिधि बना कर न भेजा जाये । मुकेश अरनेजा डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व गवर्नर हैं और राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3080 की अभी हाल ही में संपन्न हुई डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए थे । राजा साबू और उनके साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का आरोप है कि उनके डिस्ट्रिक्ट के एक मामले में अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर मुकेश अरनेजा ने हस्तक्षेप किया, जिसके कारण कॉन्फ्रेंस में मौजूद लोगों के बीच डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स की बदनामी हुई और उन्हें फजीहत का सामना करना पड़ा । डिस्ट्रिक्ट 3080 के एक पूर्व गवर्नर ने इन पंक्तियों के लेखक से बात करते हुए बताया कि उन्हें शिकायत इस बात की है कि मुकेश अरनेजा डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में एक मेहमान के रूप में थे, और रोटरी इंटरनेशनल का प्रतिनिधित्व कर रहे थे - लेकिन उन्होंने न एक मेहमान की गरिमा का ध्यान रखा और न रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि होने की जिम्मेदारी निभाई । कॉन्फ्रेंस में डिस्ट्रिक्ट की कार्यप्रणाली से जुड़े एक मामले में चल रही एक बहस में वह नाहक ही कूद पड़े और एक पक्ष बन गए - और इस तरह उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि होने का मजाक बना दिया । डिस्ट्रिक्ट 3080 के पूर्व गवर्नर्स का मानना और कहना है कि मुकेश अरनेजा का व्यवहार डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स को अपमानित करने वाला रहा और रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में उक्त मामले में उनका हस्तक्षेप गैरजरूरी था ।
राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट की कॉन्फ्रेंस में एक प्रस्ताव डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के चुनाव से जुड़ी व्यवस्था को लेकर प्रस्तुत हुआ । मौजूदा व्यवस्था के अनुसार, अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव करने के लिए नोमीनेटिंग कमेटी बनती है, जिसमें वरिष्टतानुसार दो पूर्व गवर्नर्स भी होते हैं । डिस्ट्रिक्ट में आरोप रहा है कि यह पूर्व गवर्नर्स नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को प्रभावित करते हैं और अपनी पसंद का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी 'चुनवाते' हैं । रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल ने प्रस्ताव दिया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में नोमीनेटिंग कमेटी की व्यवस्था को हटाया जाये और सीधा चुनाव करवाया जाये, ताकी क्लब्स के प्रेसीडेंट और बोर्ड सदस्यों की 'राय' से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव हो सके । यह प्रस्ताव डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की मनमानी भूमिका को चूँकि खत्म करता है, इसलिए इस प्रस्ताव पर उनको भड़कना ही था - और वह भड़के भी, वह बुरी तरह भड़के । पूर्व गवर्नर्स की तरफ से मोर्चा संभाला जेपीएस सीबिया और शाजु पीटर ने । उनका कहना था कि चूंकि इस प्रस्ताव पर कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में विचार नहीं किया गया है, इसलिए इसे अभी कॉन्फ्रेंस में नहीं रखा जा सकता है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी का कहना था कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में किसी प्रस्ताव को रखने के लिए रोटरी इंटरनेशनल का जो नियम है, उसका पूरी तरह पालन हुआ है - इसलिए यह प्रस्ताव और इस पर लिया जाने वाला फैसला पूरी तरह वैध होगा । दोनों पक्षों की तरफ से भारी गर्मागर्मी थी - पूर्व गवर्नर्स पूरा जोर लगाए हुए थे कि वह किसी भी तरह से इस प्रस्ताव को बेदखल कर/करवा दें । लेकिन अचानक से मामले में कूद पड़ कर मुकेश अरनेजा ने पूर्व गवर्नर्स के जोर की सारी हवा निकाल दी ।
मुकेश अरनेजा ने पूर्व गवर्नर्स के तर्कों को बेमानी बताया और कहा कि कॉन्फ्रेंस में प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए निर्धारित व्यवस्था का पालन यदि किया गया है, तो पूर्व गवर्नर्स का इस बिना पर विरोध करने का कोई मतलब नहीं रह जाता है कि प्रस्ताव पर उनके बीच चर्चा नहीं हुई है । मुकेश अरनेजा की बात को सुनकर पूर्व गवर्नर्स के प्रति लोगों के मन में दबा गुस्सा फूट पड़ा और फिर माहौल पूरी तरह पूर्व गवर्नर्स के खिलाफ हो गया । लोगों की बढ़ती और मुखर होती नाराजगी को भाँप कर राजा साबू तो चुपचाप मौके से ही निकल भागे । रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के वरिष्ठ पूर्व प्रेसीडेंट मोहिंदर पॉल गुप्ता द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव तो भारी समर्थन के साथ पास हुआ ही, राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स की भारी फजीहत भी हुई । राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स अपनी इस फजीहत के लिए मुकेश अरनेजा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । उनका मानना और कहना है कि वह अपनी एकजुटता से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी पर पहले के कई अवसरों की तरह दबाव बना ही लेते और उन्हें उक्त प्रस्ताव वापस लेने के लिए मजबूर कर देते, लेकिन मुकेश अरनेजा के गैरजरूरी व अनपेक्षित हस्तक्षेप ने मामले को इस तरह उनके खिलाफ कर दिया कि फिर उन्हें पीछे हटना ही पड़ा । अपनी फजीहत में मुकेश अरनेजा की निर्णायक भूमिका को देख/पहचान कर ही राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स मुकेश अरनेजा के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी में जुट गए हैं । वह मुकेश अरनेजा के रवैये की शिकायत रोटरी इंटरनेशनल में करने की तैयारी कर रहे हैं ।
राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स मुद्दा बना रहे हैं कि मुकेश अरनेजा की पूर्व की हरकतों के साथ इस नई हरकत को देखते हुए उन्हें जिम्मेदारी का कोई काम सौंपना ही नहीं चाहिए । वह रेखांकित कर रहे हैं कि अपनी हरकतों के चलते ही मुकेश अरनेजा अपने क्लब से खदेड़े जा चुके हैं; पूर्व गवर्नर अमित जैन ने अपने गवर्नर-काल के लिए उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया था, लेकिन उनकी हरकतों से तंग आकर दो महीने बाद ही उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटा दिया था; पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने मुकेश अरनेजा की कुख्याति को देखते हुए ही उन्हें अपनी देखरेख में हुई जोन इंस्टीट्यूट से दूर ही रखा था; डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन के रूप में मुकेश अरनेजा की बेईमानीपूर्ण कारगुजारियों की शिकायत निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन ने की हुई है; मुकेश अरनेजा के खिलाफ एक महिला रोटेरियन के साथ अभद्रता व बदतमीजी करने का आरोप लगा, जिसकी जाँच के लिए रोटरी इंटरनेशनल को जाँच टीम का गठन करना पड़ा था; आदि-इत्यादि ऐसे मामले हैं जो मुकेश अरनेजा के फितरती स्वभाव तथा उनके 'चरित्र' की तरफ संकेत करते हैं । अपनी फजीहत से परेशान और इसके लिए मुकेश अरनेजा को जिम्मेदार मान रहे राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने मुकेश अरनेजा को सबक सिखाने की जो तैयारी दिखाई है, उसने मुकेश अरनेजा के लिए मुश्किलों को बढ़ाने का ही काम किया है ।

Sunday, March 18, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर रमेश बजाज की जीत कपिल गुप्ता के साथ-साथ वास्तव में राजा साबू और उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स की हार है तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी की जोरदार जीत है

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव कपिल गुप्ता के लिए चुनौतीपूर्ण तो था, लेकिन वह इतनी बुरी तरह से चुनाव हार जायेंगे - इसकी उम्मीद उनके विरोधियों को भी नहीं थी । कपिल गुप्ता अपनी हार का ठीकरा जिस तरह पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधुकर मल्होत्रा के सिर फोड़ते 'सुने' जा रहे हैं, उससे लग रहा है कि वह आगे के लिए भी अपने रास्ते बंद कर ले रहे हैं । मोटे तौर पर डिस्ट्रिक्ट का चुनावी माहौल कपिल गुप्ता के लिए पूरी तरह अनुकूल था; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी भारी दबाव में थे, जिसके चलते उनके उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे रमेश बजाज को सत्ता का समर्थन मिलता नहीं दिख रहा था, उम्मीदवार के रूप में खुद रमेश बजाज का व्यवहार और रवैया भी ढीला/ढाला था - लेकिन फिर भी कपिल गुप्ता मौके का फायदा नहीं उठा सके, उसे देख कर लोगों को लग रहा है कि कपिल गुप्ता के बस की चुनाव लड़ना है ही नहीं । चुनाव वाले दिन, डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में चुनाव संबंधी एक प्रस्ताव को लेकर मचे हंगामे में कपिल गुप्ता और उनके भाई कमल गुप्ता का 'कुल्हाड़ी पर पैर मारने' वाला जो रवैया देखा गया - उससे ही साबित हो गया था कि कपिल गुप्ता जब खुद ही अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, और खुद ही अपनी चुनावी नाव डुबोने में लगे हैं, तब फिर उन्हें भला कौन बचा सकता है ? नोमीनेटिंग कमेटी में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधुकर मल्होत्रा के होने से कपिल गुप्ता को उम्मीद थी कि कमेटी के सदस्यों को वह मैनेज कर लेंगे और उन्हें अधिकृत उम्मीदवार चुनवा देंगे, लेकिन मधुकर मल्होत्रा ने अपनी तरफ से कोई अतिरिक्त प्रयास किया ही नहीं और कपिल गुप्ता नोमीनेटिंग कमेटी में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव भारी अंतर से चुनाव हार गए ।
कपिल गुप्ता, राजा साबू और उनके गिरोह के जिन नेताओं के भरोसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मैदान में थे - उनके बीच तालमेल के अभाव का नजारा यह रहा कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के पहले दिन राजा साबू और उनके गिरोह के नेता कॉन्फ्रेंस में आने की बजाये यमुना नगर में अपना एक अलग कार्यक्रम कर रहे थे । लोगों के बीच चर्चा रही कि राजा साबू गिरोह के सदस्यों ने यह हरकत डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को फेल करने के उद्देश्य से की थी । उन्हें उम्मीद थी कि डिस्ट्रिक्ट के लोग टीके रूबी की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जाने की बजाये उनके कार्यक्रम में आना पसंद करेंगे और इस तरह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का रंग फीका पड़ जायेगा । पर हुआ उल्टा । टीके रूबी की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में रिकॉर्ड आठ/नौ सौ लोग जुटे और राजा साबू के कार्यक्रम में यमुनानगर के ही थोड़े से लोग आए । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी मुख्य अतिथि थे । राजा साबू ने जब देखा/पाया कि उनका कार्यक्रम तो पिट गया है और टीके रूबी की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस 'सुपर हिट' जा रही है, तो उन्हें अक्ल आई और उन्होंने सोचा कि चलो, डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में ही चलते हैं और वहाँ हरियाणा के राज्यपाल के साथ फोटो-सेशन भी कर/करवा लेंगे । लेकिन इस मामले में भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी उनसे तेज निकले । टीके रूबी को जैसे ही पता चला कि राजा साबू अपने साथी गवर्नर्स के साथ कॉन्फ्रेंस में आ रहे हैं, तो उन्होंने आनन-फानन में कॉन्फ्रेंस का समापन ही कर/करवा दिया । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को कॉन्फ्रेंस स्थल पर खाली कुर्सियाँ ही मिली/दिखीं - और इस तरह एक ही दिन में उन्हें दो बार चोट पड़ी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने पहला झटका तो उन्हें अपनी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में रिकॉर्ड उपस्थिति के जरिये डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को खराब करने की उनकी कोशिश को फेल करके दिया, और दूसरे झटके के रूप में अंतिम क्षणों में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में शामिल होने की राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की कोशिश को फेल करने का काम किया ।
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का दूसरा दिन राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व सदस्यों के लिए और भी बुरा रहा । रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के वरिष्ठ पूर्व प्रेसीडेंट मोहिंदर पॉल गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी प्रक्रिया में संशोधन का एक प्रस्ताव रखा, जिसमें नोमीनेटिंग कमेटी की व्यवस्था को हटा कर रोटरी इंटरनेशनल की एमओपी के अनुसार चुनाव करवाने का सुझाव दिया गया । इस प्रस्ताव पर कॉन्फ्रेंस में बबाल हो गया । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेपीएस सीबिया और शाजु पीटर ने इस प्रस्ताव के खिलाफ भारी शोर मचाया । उनका कहना रहा कि इस प्रस्ताव पर कॉलिज और गवर्नर्स में कोई चर्चा नहीं हुई है, इसलिए इस प्रस्ताव पर यहाँ विचार नहीं हो सकता है । उन्होंने इस प्रस्ताव को स्थगित करने की माँग की । मोहिंदर पॉल गुप्ता का तर्क लेकिन यह रहा कि किसी भी प्रस्ताव को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में रखने के लिए जिस भी प्रक्रिया का पालन करना होता है, उनके क्लब ने उस प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन किया है और इसलिए इस प्रस्ताव को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में रखने से और इस पर फैसला होने से नहीं रोका जा सकता है । इसके बाद भी, राजा साबू की शह पर शुरू हुआ जेपीएस सीबिया व शाजु पीटर का शोर जब कम नहीं हुआ तथा राजा साबू गिरोह के कुछेक और पूर्व गवर्नर्स ने उनका साथ देना शुरू कर दिया, तब डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में मौजूद मुकेश अरनेजा ने मोर्चा संभाला और साफ कहा कि किसी भी प्रस्ताव को कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में रखना कोई जरूरी नहीं है; कॉन्फ्रेंस में रखने वाले प्रस्ताव को क्लब्स के प्रेसीडेंट को भेजना जरूरी होता है और यदि किसी पूर्व गवर्नर को प्रस्ताव के बारे में जानकारी नहीं है तो इस बारे में शिकायत उसे अपने क्लब में करना चाहिए । जेपीएस सीबिया और शाजु पीटर वैसे तो अपने आप को रोटरी का बड़ा ज्ञाता समझते/बताते हैं, लेकिन मुकेश अरनेजा के तर्क से लोगों के सामने पोल खुली कि उन्हें या तो रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का अता/पता नहीं है और या वह अपनी हेकड़ी दिखाने/जताने की कोशिश कर रहे हैं ।
मुकेश अरनेजा से मिली जानकारी से कॉन्फ्रेंस में मौजूद लोग जेपीएस सीबिया और शाजु पीटर पर भड़क उठे । रोटरी क्लब करनाल मिडटाउन की युवा महिला सदस्य अंशु गोयल का चौधराहटभरी मनमानी राजनीति के खिलाफ जो गुस्सा फूटा, उसने कॉन्फ्रेंस के माहौल को ही बदल दिया । फिर तो हर किसी ने राजा साबू और उनके गिरोह के सदस्यों की लानत-मलानत शुरू कर दी । लोगों का आरोप रहा कि नोमीनेटिंग कमेटी के जरिये पूर्व गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के चुनाव में अपनी मनमानी थोपने की कोशिश करते हैं, इसलिए मोहिंदर पॉल गुप्ता के प्रस्ताव से उन्हें चूँकि अपनी मनमानी के मौके छिनते दिख रहे हैं - इसलिए वह बौखला रहे हैं । माहौल को खिलाफ बनता देख राजा साबू ने तो मौके से खिसक लेने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी और वह अपने संगी-साथियों को वही छोड़ कर चुपचाप कॉन्फ्रेंस से निकल गए । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने मोहिंदर पॉल गुप्ता के प्रस्ताव पर मत-विभाजन करवाते हुए आह्वान किया कि जो लोग प्रस्ताव के समर्थन में हैं वह राइट साइड में आ जाएँ, और जो लोग प्रस्ताव के खिलाफ हैं वह लेफ्ट साइड में रहें । राजा साबू गिरोह के पूर्व गवनर्स के लिए शर्मनाक स्थिति यह बनी कि लेफ्ट साइड में उनके साथ कुल छह/आठ रोटेरियंस ही बचे, जबकि कॉन्फ्रेंस में मौजूद तमाम सदस्य राइट साइड में जा पहुँचे । मजेदार और आत्मघाती रवैया रहा कपिल गुप्ता और उनके भाई कमल गुप्ता का । वह देख रहे थे कि कॉन्फ्रेंस में मौजूद लोगों में 95 प्रतिशत मोहिंदर पॉल गुप्ता के प्रस्ताव के समर्थन में हैं, लेकिन फिर भी वह प्रस्ताव के विरोध में रहे - और बड़े मुखर तरीके से रहे । उनके समर्थकों को ही आश्चर्य हुआ कि उम्मीदवार होने के चलते उन्हें इस बबाल में सक्रिय रूप से कूदने की जरूरत भला क्या थी ? उनके सामने पूर्व गवर्नर्स का समर्थन करने की मजबूरी यदि थी भी, तो भी उन्हें 'साइलेंट समर्थक' की भूमिका में रहना था । मौके पर मौजूद हर किसी ने माना कि मोहिंदर पॉल गुप्ता के जिस प्रस्ताव को कॉन्फ्रेंस में जबर्दस्त समर्थन मिल रहा था, उसका सक्रिय विरोध करके कपिल गुप्ता ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मार ली थी, बल्कि अपने पैर ही कुल्हाड़ी पर मार लिए थे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में कपिल गुप्ता की हार को उसी समय लोगों ने पहचान लिया था और कहना शुरू कर दिया था कि कपिल गुप्ता को अब अगले वर्ष की तैयारी शुरू कर देना चाहिए । चुनाव शुरू होने से पहले ही लोगों के मुँह से इस तरह की बातें सुन कर कपिल गुप्ता की पत्नी ने कुछेक लोगों के प्रति अपनी नाराजगी भी दिखाई, लेकिन उनकी नाराजगी भी कपिल गुप्ता को एक बड़ी पराजय से नहीं बचा सकी ।

Friday, March 16, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में नामांकन के मौके पर रमन गुप्ता के समर्थन में क्लब्स के पदाधिकारियों की जुटी भीड़ ने चुनाव के संदर्भ में डिस्ट्रिक्ट के लोगों के मूड का संकेत देने का काम किया है - और इस संकेत ने मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं को चिंता और परेशानी में डाल दिया है

नई दिल्ली । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए नामांकन भरने के दौरान के प्रदर्शन में मदन बत्रा के मुकाबले रमन गुप्ता का पलड़ा जिस तरह से भारी दिखा है, उसने मदन बत्रा के समर्थकों को भारी चिंता में डालते हुए दबाव में ला दिया है । दरअसल नामांकन के दौरान के प्रदर्शन में रमन गुप्ता से पिछड़ जाने के कारण मदन बत्रा के अभियान की दो खामियाँ एकदम से सामने आ गई हैं : रमन गुप्ता के नामांकन के साथ पचास से अधिक क्लब्स के पदाधिकारियों के जुटने से एक तरफ तो यह साफ हो गया है कि मदन बत्रा और उनके समर्थक नेता 'वायदे' और 'कमिटमेंट' के जिस चप्पू के भरोसे चुनावी नाव के पार हो जाने की उम्मीद कर रहे हैं, वह चप्पू ही उनकी नाव को बीच में ही डुबाते नजर आ रहे हैं; और दूसरी बात यह कि मदन बत्रा के समर्थक नेताओं के बीच जरूरी तालमेल का अभी भी अभाव दिख रहा है । रमन गुप्ता के नामांकन के समर्थन में क्लब्स की जो भीड़ जुटी, उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मदन बत्रा के समर्थक कुछेक नेताओं ने कहा कि वह चाहते तो मदन बत्रा के समर्थन में उनसे ज्यादा क्लब्स इकट्ठा कर/दिखा सकते थे । इस जबाव ने लोगों को सवाल करने/पूछने के लिए प्रेरित किया कि फिर चाहा क्यों नहीं, करा क्यों नहीं, दिखाया क्यों नहीं ? यह सवाल इसलिए महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि मदन बत्रा के नामांकन के मौके को भी 'शो' बनाने की कोशिश तो हुई ही थी - वह तो उनका 'शो' जब बुरी तरह पिट गया, तब वह कह/बता रहे हैं कि वह चाहते तो शो अच्छा कर सकते थे । यह तो ऐसी ही बात हुई कि जब सामान लुट गया, तब सोचा गया कि सामान की सुरक्षा की जा सकती थी - और इसी बात से जाहिर है कि मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं में सोच व तालमेल का अभाव है, जिसका फायदा रमन गुप्ता और उनके समर्थक नेता उठा रहे हैं ।
मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं के सामने इससे भी बड़ी मुसीबत लेकिन यह है कि 'वायदे' और 'कमिटमेंट' की याद दिला दिला कर वह लोगों को अपनी तरफ करने की जो कोशिश कर रहे हैं, उसका कोई सार्थक नतीजा निकलता/मिलता उन्हें नहीं नजर आ रहा है । उल्लेखनीय है कि दो वर्ष पहले भी मदन बत्रा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी; उस वर्ष लेकिन वह अपने प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार रवि मेहरा के साथ एक समझौता करके चुनावी मैदान से हट गए थे । वास्तव में समझौता उनके और रवि मेहरा के बीच नहीं हुआ था, बल्कि दोनों के समर्थक नेताओं के बीच हुआ था । मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं का कहना है कि उक्त समझौते के तहत मदन बत्रा को इस बार निर्विरोध सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुना जाना चाहिए - और निर्विरोध न सही, तो सभी लोगों को उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करना चाहिए । उक्त समझौते में शामिल रहे नेताओं और लोगों का कहना लेकिन यह है कि मदन बत्रा और उनके समर्थक नेता समझौते की आधी बात बता कर डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बरगला रहे हैं । उनके अनुसार, समझौता यह हुआ था कि मदन बत्रा अपनी उम्मीदवारी वापस लेंगे और सभी को साथ लेकर डिस्ट्रिक्ट में काम करेंगे, जिसके फलस्वरूप अगली बार सभी लोग उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे । मदन बत्रा लेकिन उम्मीदवारी वापस लेकर घर बैठ गए और करीब करीब डेढ़ वर्ष तक उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में लोगों को शक्ल भी नहीं दिखाई । पिछले वर्ष हुए चुनाव में उन्होंने उस वायदे का भी पालन नहीं किया जिसके तहत उन्हें सभी के साथ समान व्यवहार करना था और किसी एक खेमे के साथ नहीं होना/दिखना था । पिछले वर्ष मदन बत्रा ने गुरचरण सिंह भोला की उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रियता दिखाई थी । इस तरह मदन बत्रा खुद ही समझौते की शर्तों से बाहर निकल गए थे । लोगों का कहना/पूछना है कि इसलिए अब वह किस मुँह से समझौते में हुए 'वायदे' और 'कमिटमेंट' की बात कर रहे हैं ।
मदन बत्रा की 'वायदे' और 'कमिटमेंट' की बात इसलिए भी समर्थन जुटाती नहीं दिख रही है, क्योंकि मदन बत्रा ने दो वर्ष पहले समझौते के तहत अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के बाद अपने आपको तमाम गतिविधियों से अलग कर लिया था और घर बैठ गए थे । लोगों का कहना है कि इससे लग रहा है कि मदन बत्रा को लायनिज्म में और डिस्ट्रिक्ट में कुछ करना नहीं है, उन्हें सिर्फ गवर्नर बनना है - 'वायदे' और कमिटमेंट' को लेकर मदन बत्रा यदि जरा भी जिम्मेदार होते तो न तो गतिविधियों से मुँह मोड़ते और न ही किसी एक खेमे का पक्ष लेते । मदन बत्रा और उनके समर्थक लोगों के बीच समर्थन जुटाने के लिए उनके लंबे समय से लायनिज्म में होने के तर्क का भी इस्तेमाल कर रहे हैं, पर यह तर्क उनके खुद के दोहरे रवैये को ही दिखा रहा है - लोगों का कहना है कि पिछले वर्ष तो उन्होंने यह तर्क माना नहीं था और यशपाल अरोड़ा के खिलाफ गुरचरण सिंह भोला को चुनाव लड़वा दिया था और अब कह रहे हैं कि जिसे लायनिज्म में ज्यादा वर्ष हुए हैं उसे बनाओ/जिताओ । इस तरह की बातों से लग रहा है कि मदन बत्रा और उनके समर्थक नेता अपने ही बुने/बनाये जाल में फँस गए हैं और उनके पास मदन बत्रा की उम्मीदवारी को जस्टीफाई करने के लिए उचित तर्क नहीं हैं । दरअसल रमन गुप्ता ने पिछले कुछ वर्षों की अपनी सक्रियता से दिखाया और साबित किया है कि लायनिज्म में उन्हें भले ही ज्यादा समय न हुआ हो, लेकिन लायनिज्म और डिस्ट्रिक्ट के लिए कुछ अच्छा और बड़ा करने की इच्छा और जिद उनमें बहुत है । कुछेक वर्षों में ही रमन गुप्ता ने जो जो और जैसे जैसे काम किए हैं, उनके सामने मदन बत्रा का तीस से भी अधिक वर्षों का लायन जीवन फीका फीका सा ही है । लगता है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने भी इस अंतर को समझ लिया है कि महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि कौन कितने समय से लायनिज्म में है, बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि वह जितने समय से भी है उतने समय में उसने किया क्या है ? नामांकन के मौके पर रमन गुप्ता के समर्थन में जिस तरह से क्लब्स के पदाधिकारियों की भीड़ जुटी, उसने सेकेंड वाइस गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में लोगों के मूड का संकेत देने का काम किया है - और इस संकेत ने मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं को चिंता और परेशानी में डाल दिया है ।

Thursday, March 15, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केके गुप्ता का अपने गवर्नर-वर्ष की सिल्वर जुबली मनाने का 'यूनीक आईडिया' रोटरी के बड़े पदाधिकारियों की प्रशंसा पाने के साथ-साथ कई पूर्व गवर्नर्स के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बना है

नई दिल्ली । पच्चीस वर्ष पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे केके गुप्ता के पद्चिन्हों पर चलने की कोशिश करते हुए विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के कुछेक पूर्व गवर्नर्स को अपने अपने गवर्नर-काल की सिल्वर जुबली मनाने की तैयारियाँ करते हुए सुना जा रहा है । इस तरह पच्चीस वर्ष पहले इंटरनेशनल प्रेसीडेंट रहे क्लिफ डॉचटर्मन का केके गुप्ता के गवर्नर-काल के सिल्वर जुबली कार्यक्रम को 'यूनीक आईडिया' कहना/बताना सच साबित हो रहा है । उल्लेखनीय है कि अपने प्रेसीडेंट-काल के एक गवर्नर के रूप में केके गुप्ता से गवर्नरी के सिल्वर जुबली कार्यक्रम का निमंत्रण पाकर क्लिफ डॉचटर्मन ने पहली प्रतिक्रिया में यही कहा था कि रोटरी में उन्होंने इस तरह के आयोजन की बात नहीं सुनी है, और यह बहुत ही यूनीक आईडिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में केके गुप्ता का रोटरी-जीवन बहुत ही सक्रियता भरा तो रहा ही है, साथ ही इस बात के लिए भी उल्लेखनीय रहा है कि उन्होंने हमेशा ही कुछ नया करने और नए मापदंड स्थापित करने का प्रयास किया है । रूटीन के कामों को भी उन्होंने जिस तरह नए अंदाज और नए तरीके से करने के प्रयास किए हैं, उसके कारण ही उनके द्वारा किए गए रूटीन के काम भी उल्लेखनीय बन गए हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का आयोजन तालकटोरा गार्डंस में करना और पहले रोटरी इंडिया अवॉर्ड फंक्शन की मेजबानी के लिए तैयार होना - जिसमें प्रख्यात समाजसेविका मदर टेरेसा को पॉल हैरिस फेलो के रूप में सम्मानित किया गया था, और मेरठ में आयोजित किए गए रायला कार्यक्रम में टीएन शेषन जैसी शख्सियत को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करना - ऐसे उदाहरण बने, जो उनकी अलग, बड़ी व उदार सोच के संकेत और सुबूत बने । अपने अलग, बड़े व उदार नजरिये के कारण ही केके गुप्ता अपने गवर्नर-काल की सिल्वर जुबली बनाने के लिए प्रेरित हुए और दूसरे पूर्व गवर्नर्स के लिए भी प्रेरणा स्रोत बने हैं ।
केके गुप्ता के 'यूनीक आईडिया' को रोटरी इंटरनेशनल के मौजूदा व पूर्व पदाधिकारियों से जिस तरह का समर्थन और सराहना मिली, उससे ही जाहिर है कि अपने गवर्नर-काल की सिल्वर जुबली मनाने की उनकी योजना सिर्फ पच्चीस वर्ष पहले उनके प्रेसीडेंट रहे क्लिफ डॉचटर्मन को ही यूनीक नहीं लगी - बल्कि अन्य कई प्रमुख लोगों को भी भायी । मौजूदा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट ईआन रिसेले, रोटरी फाउंडेशन के चेयरमैन पॉल नेत्ज़ेल, इंटरनेशनल जनरल सेक्रेटरी जॉन हेब्को, रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी सुशील गुप्ता तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम सहित पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट कल्याण बनर्जी व केआर रवींद्रन तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर पांडुरंगा सेट्टी व अन्य कई प्रमुख पदाधिकारियों ने केके गुप्ता के आयोजन की भूरि भूरि प्रशंसा की तथा केके गुप्ता व आयोजन के लिए शुभकामनाएँ भेजीं । पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू तो केके गुप्ता के इस आयोजन को लेकर इतने उत्साहित थे कि उन्होंने वीडियो क्लिप के जरिये अपनी बधाई और शुभकामनाएँ भेजीं । अपने संदेश में राजा साबू ने कहा भी कि वह आयोजन में शामिल होना चाहते थे, लेकिन पूर्वनियोजित व्यस्तता के कारण उनके लिए यह संभव नहीं हो पा रहा है और इसका उन्हें बेहद अफसोस है । इनरव्हील क्लब की पहली इंटरनेशनल प्रेसीडेंट मिन्ना कपूर की उपस्थिति ने रोटरी परिवार की पुरानी स्मृतियों को ताजा करने का काम किया । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मंजीत साहनी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुभाष जैन की मौजूदगी ने केके गुप्ता के गवर्नर वर्ष की गतिविधियों से जुड़ी यादों को सजीव बनाया । यह दोनों केके गुप्ता के गवर्नर वर्ष में अपने अपने क्लब के प्रेसीडेंट थे । सिल्वर जुबली आयोजन में 42 प्रेसीडेंट्स तथा 64 टीम मेंबर्स का शामिल होना भी कार्यक्रम की एक बड़ी उपलब्धि कही/मानी जाएगी । 10 पूर्व गवर्नर्स की मौजूदगी ने भी सिल्वर जुबली कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई ।
केके गुप्ता ने अपने संबोधन में अपने गवर्नर वर्ष की गतिविधियों और उपलब्धियों का जिक्र करते हुए उन गतिविधियों व उपलब्धियों में सहभागी बने रोटेरियंस की भूमिकाओं को रेखांकित किया और उनके प्रति अपना आभार व्यक्त किया । केके गुप्ता ने 1978 में उन्हें रोटरी से परिचित करवाने के लिए राजेंद्र प्रसाद का आभार व्यक्त किया । उन्होंने कैंसर हॉस्पिटल आइआरसीएच को 26.5 लाख रुपए का सहयोग देने के लिए प्रेसीडेंट सुरेश माथुर का धन्यवाद किया । सुभाष जैन के ऑर्च क्लम्फ सोसायटी का सदस्य बनने का केके गुप्ता ने अपने संबोधन में खास जिक्र किया और सुभाष जैन को बधाई दी । केके गुप्ता ने अपने उन सहयोगियों को भी याद किया, जो अब उनके साथ और या उनके संपर्क में नहीं हैं - लेकिन जिन्होंने 'दूसरों की सहायता करने में ही वास्तविक खुशी है' तथा 'गरिमा के साथ रोटरी करने' के उनके उद्देश्यों को पूरा करने में अपना अमूल्य सहयोग दिया । केके गुप्ता ने याद किया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी गतिविधियों व उपलब्धियों से प्रभावित होकर ही पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर ओपी वैश्य ने वर्ष 1999-2000 में आगरा में आयोजित हुए रोटरी जोन इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी थी । उनकी गतिविधियों और उपलब्धियों के कारण ही उन्हें 'सर्विस अबव सेल्फ' तथा 'डिस्टिंगुइश्ड सर्विस अवॉर्ड' जैसे रोटरी के प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित होने का गौरव मिला । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में केके गुप्ता की गतिविधियाँ और उपलब्धियाँ तो उल्लेखनीय रही हीं, सिल्वर जुबली आयोजन के जरिये उन गतिविधियों व उपलब्धियों को याद करने व सेलीब्रेट करने की योजना उससे भी ज्यादा उल्लेखनीय बन गई - इसीलिए रोटरी के 113वें स्थापना दिवस पर आयोजित हुआ सिल्वर जुबली आयोजन गरिमा व भव्यता से न सिर्फ संपन्न हुआ - बल्कि यह आयोजन कई पूर्व गवर्नर्स के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बना है ।
केके गुप्ता के गवर्नर-वर्ष के सिल्वर जुबली आयोजन की 
कुछेक झलकियाँ इन तस्वीरों में देखी/पहचानी जा सकती हैं :





Wednesday, March 14, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल में वापसी की तैयारी कर रहे चरनजोत सिंह नंदा की जबर्दस्ती निमंत्रण जुगाड़ कर सेमीनार में शामिल होने के मौके और तस्वीरें बना लेने की तरकीब उन्हें कहीं उलटी और भारी न पड़ जाए ?

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की ब्रांचेज के पदाधिकारियों के बीच चरनजोत सिंह नंदा को लेकर एक मजेदार किस्म का भय व्याप्त हो रखा है, जिसके तहत उन्हें बराबर यह डर सताता रहता है कि चरनजोत सिंह नंदा कब उन पर किसी सेमीनार में आमंत्रित करने के लिए दबाव डाल दें - और उन्हें मजबूर होकर चरनजोत सिंह नंदा को किसी सेमीनार में आमंत्रित करना ही पड़ जाए । ब्रांचेज के पदाधिकारियों ने अलग अलग मौकों पर सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों तथा रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों से चरनजोत सिंह नंदा की इस हरकत की शिकायत की है, लेकिन कोई भी उन्हें चरनजोत सिंह नंदा से 'बचने' का उपाय नहीं बता सका है । दबाव में जिन ब्रांचेज के पदाधिकारियों ने चरनजोत सिंह नंदा को अपने अपने यहाँ सेमीनार में आमंत्रित कर भी लिया, उनकी मुश्किलें उनके रवैये को लेकर और और बढ़ीं । चरनजोत सिंह नंदा को अपने यहाँ सेमीनार में आमंत्रित करने वाले पदाधिकारियों की शिकायत है कि चरनजोत सिंह नंदा पाँच/छह घंटे के कार्यक्रम में बीस/तीस मिनट का अपना भाषण देते हैं, और उसके अलावा बाकी समय हॉल से बाहर बैठ कर राजनीति करते हैं - और इस तरह सेमीनार कार्यक्रम को डिस्टर्ब करते हैं । वास्तव में, सेमीनार में आमंत्रित किए जाने के लिए वह दबाव ही इसलिए बनाते हैं, ताकि सेमीनार में आए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उन्हें राजनीति करने का मौका मिले । इस तरीके को अपना कर चरनजोत सिंह नंदा दोहरा फायदा उठाते हैं - पहले तो वह सेमीनार में आने/पहुँचने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच अपने आपको 'दिखाते' हैं, और फिर सोशल मीडिया में बार-बार अपनी तस्वीरें दिखा दिखा कर वह दूसरे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भरमाते हैं ।
उल्लेखनीय है कि चरनजोत सिंह नंदा कई वर्ष इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में रहे हैं । उससे पहले वह रीजनल काउंसिल में रहे थे । इंस्टीट्यूट की काउंसिल्स में सबसे ज्यादा वर्ष रहने वाले सदस्य के लिए यदि किसी अवॉर्ड की स्थापना हो - तो उस अवॉर्ड पर चरनजोत सिंह नंदा का ही हक होगा । लोगों को लगता है कि चरनजोत सिंह नंदा चार्टर्ड एकाउंटेंट शायद बने ही इसलिए हैं, ताकि वह काउंसिल में रह सकें । हो सकता है कि उन्हें काउंसिल से बाहर करने के लिए ही इंस्टीट्यूट ने कॉउंसिल में रहने के लिए समय-सीमा का नियम बनाया हो । अधिकतम लगातार नौ वर्ष ही काउंसिल में रहने का नियम बनाने वाले पदाधिकारियों ने सोचा होगा कि चरनजोत सिंह नंदा बाहर होंगे, तो फिर बाहर ही रह जायेंगे । चरनजोत सिंह नंदा लेकिन नियम बनाने वाले पदाधिकारियों से ज्यादा होशियार निकले । जिस प्रकार गुड़ पर बैठी मक्खी बार-बार भगाये जाने के बाद भी गुड़ पर फिर फिर लौट आती है, उसी प्रकार चरनजोत सिंह नंदा भी एक टर्म बाहर रहने के बाद फिर से सेंट्रल काउंसिल में जाने के लिए तैयार हो गए । तैयार तो वह हो गए, लेकिन यह देख कर वह भौंचक रह गए कि अपने साथ रहे जिन लोगों से वह अब फिर मदद की उम्मीद कर रहे थे, वह उनसे बचने/छिपने की कोशिश कर रहे हैं । अपने ही संगी-साथी और लगातार कई चुनावों में समर्थक रहे लोगों के इस रवैये को देख कर चरनजोत सिंह नंदा को समझ में आ गया कि अबकी बार का चुनाव जीत कर सेंट्रल काउंसिल में अपनी वापसी करने को वह जितना आसान समझ रहे हैं, मामला उतना आसान है नहीं ।
चरनजोत सिंह नंदा के लिए मुसीबत की बात यह रही कि उनके कुछेक नजदीकियों व शुभचिंतकों ने ही उन्हें समझाया कि सेंट्रल काउंसिल में वापसी करने की उनकी कोशिशों को प्रोफेशन के लोगों के बीच अच्छी भावना से नहीं देखा जा रहा है और इससे लोगों के बीच उनकी नकारात्मक पहचान ही बन रही है - ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि वह सेंट्रल काउंसिल का चुनाव भी हार जाएँ और उनकी जो थोड़ी-बहुत साख है, उसे भी वह खो दें । इस समझाइश का चरनजोत सिंह नंदा पर कोई असर न तो पड़ना था, और न ही वह पड़ा । इससे सिर्फ इतना हुआ कि उन्होंने यह समझ लिया कि अपने पुराने साथियों/सहयोगियों के भरोसे रह कर उनका काम चलने वाला नहीं है, तथा उन्हें नए साथी/सहयोगी बनाने पड़ेंगे । नए साथी/सहयोगी बनाने के लिए उन्हें ब्रांचेज की शरण में जाने की जरूरत महसूस हुई । ब्रांचेज के पदाधिकारियों के सामने काउंसिल के मौजूदा सदस्यों को तवज्जो देने की जरूरत होती है, जिसके चलते वह भूतपूर्व सदस्यों को तो फिर 'चल चुके कारतूस' के ही रूप में देखते/पहचानते हैं । ब्रांचेज के पदाधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए चरनजोत सिंह नंदा ने ब्रांचेज के पुराने और अपने समय के पदाधिकारियों की मदद लेना शुरू किया । दबाव बना कर चरनजोत सिंह नंदा ने कुछेक ब्रांचेज में सेमीनार आदि में अपने लिए निमंत्रणों का जुगाड़ करने में तो सफलता पाई, लेकिन उनकी सफलता ब्रांचेज के पदाधिकारियों के लिए मुसीबत बन गई है । ब्रांचेज के पदाधिकारियों की शिकायत है कि चरनजोत सिंह नंदा बार-बार आमंत्रित किए जाने की उम्मीद करते हैं और इसके लिए दबाव बनाते हैं । चरनजोत सिंह नंदा जबर्दस्ती निमंत्रण जुगाड़ कर सेमीनार में शामिल होने के मौके और तस्वीरें तो बना ले रहे हैं, लेकिन उनके इस तरीके से उनकी बदनामी भी खूब हो रही है । इससे उनके नजदीकियों को ही डर हो चला है कि चरनजोत सिंह नंदा की यह तरकीब कहीं उन्हें उलटी और भारी न पड़ जाए ?

Tuesday, March 13, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अश्विनी काम्बोज की सक्रियता के मुकाबले राजेश गुप्ता क्या सिर्फ मुकेश गोयल के भरोसे ही चुनावी मैदान में टिके रह पायेंगे ?

देहरादून । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चुनावी बिगुल बज जाने के बाद भी राजेश गुप्ता जिस तरह से चुनावी अभियान से गायब दिख रहे हैं, उससे लोगों को आशंका होने लगी है कि कहीं मुकेश गोयल का दाँव इस बार उन्हें उल्टा पड़ने वाला तो नहीं है ? राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के नाम पर खेमे में पड़ती दिख रही फूट को बचा लेने में तो मुकेश गोयल कामयाब रहे हैं, लेकिन राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर अपने लोगों में मुकेश गोयल वह जोश भरने में विफल होते नजर आ रहे हैं - जिसके लिए वह विख्यात रहे हैं । मुकेश गोयल ने चुनाव के लिए सेना तो तैयार कर ली है - उन्होंने अपनी 'सेना' में योद्धाओं की वृद्धि कर ली है, योद्धा हथियारबंद भी हो गए हैं, और इस तरह सेना पूरी तरह सुसज्जित हो गई है; लेकिन देखने में यह आ रहा है कि अधिकतर योद्धा जैसे असमंजस में हैं कि उन्हें करना क्या है, उन्हें किसके लिए लड़ना है ? दरअसल मुकेश गोयल ने जिन राजेश गुप्ता के लिए सेना सजाई है, वह राजेश गुप्ता ही सीन से गायब हैं और इसलिए उनके समर्थन में जुटे कई योद्धा/नेता अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं । मुकेश गोयल की तरफ से हालाँकि यह बताते हुए योद्धाओं/नेताओं का हौंसला बनाए रखने का प्रयास हो रहा है कि राजेश गुप्ता अभी एक पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने में व्यस्त हैं, इसलिए कुछ दिनों के लिए सीन से गायब रहेंगे - लेकिन जल्दी ही वह लोगों के बीच सक्रिय होंगे । बात यदि सचमुच ऐसी ही होती, जैसी मुकेश गोयल बता रहे हैं तो समस्या की कोई बात ही नहीं होती - समस्या की बात वास्तव में है ही इसलिए कि राजेश गुप्ता ने अपने आप को अभी तक कभी भी उम्मीदवार के रूप में 'दिखाया' ही नहीं है । राजेश गुप्ता का हमेशा ही ऐसा 'व्यवहार' रहा है जैसे कि उम्मीदवार बन कर वह डिस्ट्रिक्ट और डिस्ट्रिक्ट के लोगों पर कोई ऐहसान कर रहे हैं । उनके इसी व्यवहार के कारण, मुकेश गोयल के अलावा - मुकेश गोयल खेमे में उनकी उम्मीदवारी के अन्य समर्थक नेताओं में उनकी उम्मीदवारी को लेकर कोई उत्साह व सक्रियता नहीं दिख रही है ।
अश्वनी काम्बोज ने इस स्थिति का फायदा उठाने की तैयारी 'दिखा' कर चुनावी परिदृश्य को रोचक बनाने का प्रयास किया है । कुछ दिन पहले तक हालाँकि उनकी तरफ से भी ढीलमढाल दिख रही थी और अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह भी कन्फ्यूज से नजर आ रहे थे । लेकिन पिछले कुछ दिनों में अश्वनी काम्बोज ने जो सक्रियता दिखाई है, उसके कारण कई लोगों को वह चुनावी मुकाबले में वापसी करते हुए नजर आए हैं । मुकेश गोयल खेमे के ही कुछेक नेता कहने लगे हैं कि राजेश गुप्ता की पस्ती/सुस्ती में अश्वनी काम्बोज की चुस्ती यदि ऐसे ही बनी रही, तो मुकेश गोयल के लिए इस बार अपनी राजनीतिक साख बचाना मुश्किल हो जायेगा । मुकेश गोयल खेमे के कई नेता हालाँकि इस तर्क के साथ निश्चिंत भी दिख रहे हैं कि पिछले वर्ष अश्वनी काम्बोज अपनी तमाम ताकत झोंक देने के बाद भी बुरी तरह चुनाव हार गए थे, और उनकी हार का अंतर जितना बड़ा था - उसे पाट पाना उनके लिए किसी भी तरह से संभव नहीं होगा । अंकगणित के हिसाब से देखेंगे, तो यह तर्क उचित ही लगेगा - लेकिन राजनीति अंकगणित से ही नहीं होती है; उसमें केमिस्ट्री के घुमावदार पेंच भी होते हैं । पिछले वर्ष मुकेश गोयल खेमे के उम्मीदवार को यदि जोरदार जीत मिली थी - तो उसमें मुकेश गोयल की सांगठनिक क्षमता व रणनीतिक कुशलता का योगदान तो था, लेकिन उसके साथ-साथ उनके उम्मीदवार संजीवा अग्रवाल की वर्ष भर रही 'उदारतापूर्ण' सक्रियता का भी बराबर का योगदान था । मुकेश गोयल के कुछेक नजदीकी नेता जी-जान से संजीवा अग्रवाल के लिए लगे हुए थे; और पिछले वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी की लूटखसोट व बदतमीजीपूर्ण हरकतों ने भी मुकेश गोयल खेमे के उम्मीदवार की जीत के अंतर को बढ़ाने में अमूल्य सहयोग दिया था ।
मुकेश गोयल खेमे के उम्मीदवार के रूप में संजीवा अग्रवाल को बड़ी जीत दिलवाने में जिन जिन फैक्टर्स का योगदान था, उनमें से अधिकतर फैक्टर्स इस बार पूरी तरह चूँकि गायब हैं - इसलिए पिछले वर्ष के बड़े अंतर के भरोसे रहना मुकेश गोयल खेमे के लिए इस बार आत्मघाती साबित हो सकता है । उम्मीदवार के रूप में संजीवा अग्रवाल और राजेश गुप्ता के व्यवहार और रवैये में जो भारी अंतर है, एक वही वोटों के अंतर को मिटा सकता है और या कम कर सकता है । हालाँकि खेमेबाजी और वोटों के गणित के लिहाज से मुकेश गोयल खेमे का पलड़ा अभी भी भारी ही दिख रहा है; और विरोधी खेमे के जो नेता अश्वनी काम्बोज के मददगार होने चाहिएँ, वह अभी भी अलग-अलग रूपों में अश्वनी काम्बोज का काम खराब करने का ही काम करते नजर आ रहे हैं; मुकेश गोयल खेमे के नेताओं को भरोसा है कि जैसे पिछले वर्ष शिव कुमार चौधरी की बदतमीजीपूर्ण हरकतों ने उनको मदद पहुँचाई थी - वैसे ही इस बार भी शिव कुमार चौधरी का संग-साथ अश्वनी काम्बोज की उम्मीदवारी का कबाड़ा करेगा । अश्वनी काम्बोज भी इस खतरे को समझ रहे हैं, और इसलिए वह कहीं दूरी और कहीं नजदीकी 'दिखा' कर सामंजस्य बनाने का प्रयास कर रहे हैं । एक उम्मीदवार के रूप में अश्वनी काम्बोज के व्यवहार में जो 'होशियारी' इस बार दिख रही है, उससे लग रहा है कि पिछले वर्ष की बड़ी पराजय से उन्होंने कई सबक सीखें हैं । जो सबक उनके द्वारा सीखे लग रहे हैं, उन पर वह यदि वास्तव में अमल कर सके - और प्रभावी व व्यावहारिक रूप से अमल कर सके तो कई लोगों को उम्मीद बन रही है कि वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट पद के चुनाव की केमिस्ट्री बदल सकते हैं ।

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के डायरेक्टर वीके लूथरा ने जेपी सिंह और इंद्रजीत सिंह के बीच हुए विवाद में मनमाने तरीके से कूद कर और विनय गर्ग को भी लपेटे में ले कर अपने बेटे का धंधा जमाने का जुगाड़ किया है क्या ?

नई दिल्ली । नरेश अग्रवाल और जेपी सिंह को खुश करने के चक्कर में इंटरनेशनल डायरेक्टर वीके लूथरा ने मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के चेयरमैन विनय गर्ग तथा डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह को लेकर जो बयानबाजी की, उसके चलते वह भारी फजीहत का शिकार हो गए हैं । उनकी बयानबाजी पर विनय गर्ग ने सख्त आपत्ति करते हुए जो पत्र लिखा है, वह लायंस इंटरनेशनल के इतिहास की अनोखी घटना बन गया है । इससे पहले शायद ही कभी यह हुआ होगा कि किसी इंटरनेशनल डायरेक्टर को किसी मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन से फटकार खानी पड़ी हो । विनय गर्ग का कहना रहा कि इंटरनेशनल डायरेक्टर के पद को लेकर उनके मन में बहुत सम्मान है, लेकिन वीके लूथरा ने हरकत ही ऐसी की कि उन्हें उनके खिलाफ कठोर शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर होना पड़ा । जिसने भी इस किस्से को जाना है, उसने यही माना है कि लालच के चक्कर में वीके लूथरा ने न तो अपने पद की गरिमा का ध्यान रखा और न ही लायन भावना की परवाह की - और दूसरे के फटे में टाँग अड़ा कर अपनी फजीहत करवा बैठे हैं ।
मामला डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू की तीसरी कैबिनेट मीटिंग में जेपी सिंह और इंद्रजीत सिंह के बीच हुई तू तू मैं मैं का है । उस मामले को लेकर इंद्रजीत सिंह ने लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों से जेपी सिंह के व्यवहार की शिकायत की है । इंद्रजीत सिंह का आरोप है कि जेपी सिंह ने उनके साथ धक्का-मुक्की की और उनके हाथ से माइक छीना । इंद्रजीत सिंह ने अपने साथ हुई घटना का विवरण देते हुए लायन इंटरनेशनल के पदाधिकारियों से अनुरोध किया कि इस घटना का संज्ञान लेते हुए उन्हें जेपी सिंह को इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में स्वीकार करने के बारे में विचार करना चाहिए । उनका कहना रहा कि जेपी सिंह इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने से पहले ही जब एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ इस तरह की हरकत कर सकते हैं, तो सोचने की बात यह है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने के बाद वह क्या क्या करेंगे ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में इंद्रजीत सिंह ने अपनी शिकायत में लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों से अनुरोध किया कि जेपी सिंह द्वारा उनके साथ किए गए व्यवहार को देखते हुए उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए ।
इंद्रजीत सिंह को लायंस इंटरनेशनल कार्यालय की तरफ से अपने शिकायती पत्र का तो कोई जबाव नहीं मिला, लेकिन उक्त मामले को लेकर इंटरनेशनल डायरेक्टर वीके लूथरा का एक पत्र जानकारी में आया है । इस पत्र में वीके लूथरा ने दावा किया कि उन्होंने उक्त घटना की अपने स्तर पर जाँच की है और पाया है कि जो हुआ उसमें गलती जेपी सिंह की नहीं, बल्कि इंद्रजीत सिंह और विनय गर्ग की है । इंद्रजीत सिंह और विनय गर्ग पर दोषारोपण करते हुए वीके लूथरा इस हद तक चले गए कि उन्होंने इन दोनों को लायनिज्म से निकालने तक की सिफारिश कर दी है । वीके लूथरा के इस पत्र ने इंद्रजीत सिंह और विनय गर्ग को बुरी तरह भड़का दिया है । विनय गर्ग की नाराजगी इसलिए भी है कि जिस घटना को लेकर बात की जा रही है, वह जेपी सिंह और इंद्रजीत सिंह के बीच घटी थी - वीके लूथरा ने उन्हें नाहक ही मामले में लपेट लिया है; वह घटनास्थल पर मौजूद तो थे, लेकिन न उन्होंने जेपी सिंह से कुछ कहा था और न जेपी सिंह ने उनसे कुछ कहा था । विनय गर्ग और इंद्रजीत सिंह का कहना/पूछना है कि वीके लूथरा अपने स्तर पर जाँच करने की जो बात कर रहे हैं, वह उन्होंने किस हैसियत से और किस आधार पर और या किसके कहने पर की है; और ऐसे कैसी जाँच की है जिसमें घटना के एक पक्ष के रूप में उनकी बात सुने बिना ही वह नतीजे पर पहुँच गए हैं ?
वीके लूथरा के इस पत्र और इसमें कही गईं बातों के सामने आने के बाद से वीके लूथरा लोगों के निशाने पर आ गए हैं । आरोप सुने जा रहे हैं कि वीके लूथरा ने मनमाने तरीके से विनय गर्ग और इंद्रजीत सिंह को निशाने पर लेकर दरअसल इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर होने जा रहे जेपी सिंह को खुश करने की कोशिश की है, ताकि लायनिज्म के नाम पर वह और उनका बेटा धंधा करता रह सकें । लोगों के बीच चर्चा सुनी जाती है कि वीके लूथरा का बेटा दिल्ली में ही लायंस प्रोजेक्ट्स के काम करने लगा है, और कुछेक प्रोजेक्ट्स में वीके लूथरा और उनके बेटे की सीधी संलग्नता है । यह संलग्नता बनी रहे, इसके लिए नरेश अग्रवाल और जेपी सिंह को खुश रखना उन्हें जरूरी लग रहा है । आरोप है कि इसीलिए जेपी सिंह और इंद्रजीत सिंह के बीच हुए विवाद में वीके लूथरा मनमाने तरीके से कूद पड़े हैं और उन्होंने इंद्रजीत सिंह के साथ-साथ विनय गर्ग को भी लपेटे में ले लिया है । वीके लूथरा की इस हरकत ने उनकी खुद की फजीहत तो की ही है, जेपी सिंह के लिए भी मामले को और मुश्किल बना दिया है । जेपी सिंह के शुभचिंतकों का कहना है कि वीके लूथरा जैसे उनके स्वार्थी हमदर्द उनके लिए परेशानी बढ़ाने का ही काम करेंगे - इसलिए जेपी सिंह को ऐसे लोगों से बच कर रहना चाहिए ।

Sunday, March 11, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद पर प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत के साइड इफेक्ट्स ने बृजमोहन अग्रवाल, जुल्फेश शाह, दुर्गेश काबरा, अनिल भंडारी, धीरज खंडेलवाल आदि के लिए अच्छी-खासी मुसीबत खड़ी कर दी है

मुंबई । प्रफुल्ल छाजेड़ के वाइस प्रेसीडेंट बनने के बाद वेस्टर्न रीजन में वोटों के उलटफेर होने का जो अनुमान लगाया जा रहा है, उसमें सबसे तगड़ा झटका बृजमोहन अग्रवाल की चुनावी तैयारी और अनिल भंडारी व धीरज खंडेलवाल की सीट को लगता दिख रहा है । दरअसल इस वर्ष दिसंबर में होने जा रहे सेंट्रल काउंसिल चुनाव में प्रफुल्ल छाजेड़ इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के रूप में उम्मीदवार बनेंगे, जिसके चलते उन पर वोटों की बारिश होने का अनुमान लगाया जा रहा है । अब चूँकि वोटों की संख्या तो सीमित है, इसलिए वह यदि कहीं बारिश के रूप में गिरेंगे तो स्वाभाविक ही है कि कहीं 'सूखा' पड़ेगा । इसी सूखे की सबसे ज्यादा मार बृजमोहन अग्रवाल की चुनावी तैयारी और अनिल भंडारी व धीरज खंडेलवाल की मौजूदा सीट पर पड़ती नजर आ रही है । बृजमोहन अग्रवाल पिछली बार कामयाब तो नहीं हो सके थे, लेकिन उनका चुनावी प्रदर्शन ठीकठाक रहा था; और इसीलिए इस बार वह और जोरशोर से चुनाव में उतरने की तैयारी कर रहे थे । अनिल भंडारी और धीरज खंडेलवाल पिछली बार पहली वरीयता में अच्छे वोट पाने के बावजूद बाद में लुढ़कने/फिसलने लगे थे और जैसे-तैसे करके सीट निकालने में सफल हुए थे । पहली वरीयता के वोटों के आधार पर यह दोनों प्रफुल्ल छाजेड़ से कुछ ही वोटों से आगे थे, लेकिन बाद में फिर पीछे जा पहुँचे थे । जातीय और क्षेत्रीय आधार पर यह चारों लगभग एक ही सेगमेंट का प्रतिनिधित्व करते हैं । इसलिए वोट पाने के लिए इनके बीच आपस में ही होड़ रहती है । प्रफुल्ल छाजेड़ पिछली बार सिटिंग सदस्य थे, लेकिन फिर भी पहली वरीयता के वोटों की गिनती में बृजमोहन अग्रवाल उनसे थोड़ा पीछे और अनिल भंडारी व धीरज खंडेलवाल उनसे कुछ आगे थे - इसलिए इन्हें उम्मीद थी कि अपनी तैयारी को और सुढृढ़ करके अबकी बार होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में यह अपनी अपनी स्थिति में और सुधार कर लेंगे ।
लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ के वाइस प्रेसीडेंट बन जाने से उनकी तैयारी पर पानी फिर गया लग रहा है । दरअसल वाइस प्रेसीडेंट होने से प्रफुल्ल छाजेड़ की चुनावी 'हैसियत' में भी जोर का उछाल आया है - जिसके चलते अबकी बार के चुनाव में जो प्रफुल्ल छाजेड़ चुनावी मैदान में होंगे, वह पिछली बार वाले प्रफुल्ल छाजेड़ से बिलकुल बदले हुए प्रफुल्ल छाजेड़ होंगे । वेस्टर्न रीजन में अबकी बार प्रोफेशन के सदस्य प्रफुल्ल छाजेड़ को ही नहीं, बल्कि वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ को वोट देंगे - और इसीलिए विश्वास किया जा रहा है कि प्रफुल्ल छाजेड़ पर अबकी बार वोटों की अच्छी बारिश होगी । इस 'बारिश' का बड़ा हिस्सा उन्हें अपने जातीय व क्षेत्रीय सेगमेंट से ही मिलेगा, और यही बात बृजमोहन अग्रवाल, अनिल भंडारी व धीरज खंडेलवाल के लिए मुसीबत वाली है । उम्मीद की जा रही है कि प्रफुल्ल छाजेड़ को पहली वरीयता के वोटों में ही पिछली बार की तुलना में जोरदार फायदा होगा । पहली वरीयता में प्रफुल्ल छाजेड़ को पिछली बार 1665 वोट मिले थे, जबकि धीरज खंडेलवाल को 1683 तथा अनिल भंडारी को 1693 वोट मिले थे । बृजमोहन अग्रवाल को मिले वोटों का संख्या 1401 थी । पिछली बार कोटा 3230 वोट का तय हुआ था, जिसके इस बार 3800 के आसपास तय होने की उम्मीद की जा रही है । अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रफुल्ल छाजेड़ को अबकी बार पहली वरीयता में ही 3500 के आसपास वोट तो मिलने ही चाहिए । उनके वोटों में जो बढ़ोत्तरी होगी, उसका सीधा असर अनिल भंडारी और धीरज खंडेलवाल के वोटों पर पड़ने की ही आशंका है । इस आशंका में बृजमोहन अग्रवाल को तो तगड़ा नुकसान होने का डर है ही, अनिल भंडारी और धीरज खंडेलवाल को भी अपनी अपनी सीट बचा पाने के मामले में संकट में देखा/पहचाना जा रहा है ।
प्रफुल्ल छाजेड़ के वाइस प्रेसीडेंट बनने के साइड इफेक्ट्स की चपेट में जुल्फेश शाह और दुर्गेश काबरा के भी आने/फँसने का डर व्यक्त किया जा रहा है । प्रफुल्ल छाजेड़ की विदर्भ क्षेत्र की ब्रांचेज में पहले से ही अच्छी पकड़ है, और इस नाते उम्मीद की जा रही है कि वाइस प्रेसीडेंट के रूप में उन्हें वहाँ से और ज्यादा वोट मिलेंगे - जो जुल्फेश शाह के समर्थन आधार पर सीधी चोट होगी । जुल्फेश शाह को पिछली बार 2100 से ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन फिर भी वह सेंट्रल काउंसिल का हिस्सा बनने से पिछड़ गए थे । अबकी बार जब प्रफुल्ल छाजेड़ उनके वोट आधार पर सीधी सेंध लगाने जा रहे हैं, तब तो उनके लिए मुकाबला और भी मुश्किल होता नजर आ रहा है । प्रफुल्ल छाजेड़ के पक्ष में अनुमानित की जा रही वोटों की बारिश में दुर्गेश काबरा की तैयारी और उम्मीदें भी बहती हुई दिख रही हैं, क्योंकि वह भी उसी सेगमेंट के भरोसे हैं जिस सेगमेंट पर प्रफुल्ल छाजेड़ सवार हैं । इस तरह की अनुमानपूर्ण चर्चाओं ने वेस्टर्न रीजन में चुनावी माहौल में दिलचस्प किस्म की गर्मी पैदा हो गई है । प्रफुल्ल छाजेड़ के वाइस प्रेसीडेंट के रूप में चुनावी मैदान में उतरने की स्थिति में मारवाड़ी व जैन व दक्षिण महाराष्ट्र की ब्रांचेज के वोटों के भरोसे रहने वाले उम्मीदवारों के बीच जहाँ चिंता और परेशानी देखी जा रही है, वहाँ दूसरे 'सेगमेंट' के उन उम्मीदवारों की उम्मीदें बढ़ गईं हैं जो अभी तक मुकाबले में कहीं देखे/पहचाने नहीं जा रहे थे । जाहिर तौर पर इन अनुमानपूर्ण चर्चाओं ने वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के चुनावों की पूरी तस्वीर को ही उल्टा-पुल्टा कर दिया है ।

Saturday, March 10, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में विजय गुप्ता के हस्तक्षेप पर पंकज पेरिवाल ने कमेटियों को पुनर्गठित करने का फैसला करके नितिन कँवर को संकेत दे दिया कि इस वर्ष उनकी हरकतें नहीं चलेंगी

नई दिल्ली । विजय गुप्ता के दखल के चलते पंकज पेरिवाल ने कमेटियों के पुनर्गठन का आदेश देकर नितिन कँवर को झटका तो तगड़ा दिया है, लेकिन नितिन कँवर ने भी अपने लोगों के बीच स्पष्ट कर दिया है कि दोबारा उनका ऐसा अपमान हुआ तो वह बर्दाश्त नहीं करेंगे - और यदि जरूरत पड़ी तो वह वाइस चेयरमैन का पद छोड़ देंगे । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की नई बनी टीम की पहली ही मीटिंग में नई बनी कमेटियों को लेकर खासा बबाल हो गय । नई बनी कमेटियों में हालाँकि विरोधी खेमे के सदस्यों को भी शामिल तो किया गया, और कुछेक कमेटियों में उन्हें प्रमुख पद भी दिए गए - लेकिन कमेटियों का गठन कुछ इस तरह से किया गया कि उन्हें सिर्फ सजावटी सदस्य/पदाधिकारी बन कर ही रहना पड़ता । यह देख/समझ कर विरोधी खेमे के सदस्य खासे भड़के हुए थे । उन्होंने चेयरमैन पंकज पेरिवाल को उलाहना भी दिया कि बातें तो सभी को साथ लेकर चलने की कर रहे हो, लेकिन रवैया पक्षपातपूर्ण है । पंकज पेरिवाल ने उन्हें समझाने की कोशिश भी की कि वह उनकी शिकायतों को सुनेंगे और आवश्यक कार्रवाई करेंगे, लेकिन चूँकि वह कुछ करते हुए नजर नहीं आ रहे थे - इसलिए विरोधी सदस्य भड़के ही रहे । विरोधी सदस्यों के भड़कने पर वाइस चेयरमैन नितिन कँवर ने पूर्व की भाँति अपना बदतमीजी भरा व्यवहार प्रदर्शित किया, तो मामला और ज्यादा गरमा गया । राजिंदर नारंग ने तो कमेटियों से इस्तीफा दे देने तक की घोषणा कर दी । मामले को बढ़ता और गंभीर रूप लेता देख मीटिंग में मौजूद सेंट्रल काउंसिल सदस्य विजय गुप्ता ने हस्तक्षेप किया और मोर्चा संभाला ।
विजय गुप्ता ने पहले तो नितिन कँवर को हड़काया । उन्होंने साफ कहा कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो होता रहा है, उससे काउंसिल और इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन की बहुत बदनामी हुई है; इसलिए काउंसिल के पदाधिकारियों को अपने व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए, और अपने पद की गरिमा के साथ-साथ इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की गरिमा को भी बनाए रखने पर गौर करना चाहिए । इसके बाद, विजय गुप्ता ने चेयरमैन पंकज पेरिवाल को सुझाव दिया कि काउंसिल के सदस्यों की यदि कोई शिकायत है, तो उन्हें उन शिकायतों को सुनना चाहिए और उन्हें दूर करने के लिए तुरंत ही कार्रवाई करना चाहिए । विजय गुप्ता ने जिस ढृढ़ता और स्पष्टता से अपनी बात कही, उसे सुन कर नितिन कँवर को मन मार कर चुप होना पड़ा और पंकज पेरिवाल ने भी तुरंत ही कमेटियों को पुनर्गठित करने का फैसला सुना दिया । नितिन कँवर के लिए यह बड़ी झटके वाली बात हुई । दरअसल कमेटियों में सदस्यों का नामांकन करने का काम उन्होंने ही किया था, और इस मनमानी के साथ किया था - जिससे कि उनकी चौधराहट तथा बदतमीजियाँ पिछले वर्ष की तरह बदस्तूर चलती रहें । नितिन कँवर को शिकायत रही है कि कुछेक बड़ी ब्रांचेज के पदाधिकारी उनकी लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें कोई तवज्जो ही नहीं देते हैं, इस कारण से उन्होंने ऐसा जुगाड़ किया कि बड़ी ब्रांचेज में भी उन्हें मुँह दिखाने का मौका मिल जाए । नितिन कँवर के लिए लेकिन बदकिस्मती की बात यह रही कि रीजनल काउंसिल की इस वर्ष की पहली ही मीटिंग में उनके सारे जुगाड़ पर पानी फिर गया है ।
नितिन कँवर ने अपनी इस बदकिस्मती के लिए विजय गुप्ता को जिम्मेदार ठहराया है । उल्लेखनीय है कि नितिन कँवर एक बार पहले भी विजय गुप्ता से सार्वजनिक रूप से लताड़ खा चुके हैं । कुछ ही दिन पहले दिल्ली में हुए इंस्टीट्यूट के कॉन्वोकेशन समारोह में नितिन कँवर की बदतमीजीपूर्ण हरकत पर विजय गुप्ता ने समारोह के बीच में ही उन्हें फटकारा था । पिछली बार फटकार खाकर नितिन कँवर हालाँकि चुप लगा गए थे; अबकी बार लेकिन वह गर्मी खाते नजर आ रहे हैं । विजय गुप्ता के सामने तो यद्यपि उन्होंने कुछ नहीं कहा, लेकिन अपने नजदीकियों के सामने उन्होंने विजय गुप्ता के प्रति भड़ास निकाली । नितिन कँवर के ही नजदीकियों का कहना है कि नितिन कँवर इस बात पर बुरी तरह निराश और फ्रस्ट्रेशन में हैं कि पंकज पेरिवाल ने भी विजय गुप्ता का साथ दिया और उनकी बात मान कर कमेटियों को पुनर्गठित करने का फैसला सुना दिया । दरअसल पिछले वर्ष के चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने नितिन कँवर की बदतमीजीपूर्ण हरकतों को पूरा पूरा संरक्षण दिया हुआ था, लेकिन वैसा संरक्षण उन्हें पंकज पेरिवाल से मिलता नहीं दिख रहा है - उनके लिए फजीहत की बात यह और हुई कि विरोधी खेमे के सदस्यों की शिकायत को विजय गुप्ता ने तवज्जो देकर उनका हौंसला और बढ़ा दिया । इससे नितिन कँवर को लगने लगा है कि इस वर्ष उनके लिए अपनी हरकतों को जारी रख पाना मुश्किल ही होगा । नितिन कँवर इस स्थिति के लिए विजय गुप्ता को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । अपने नजदीकियों के सामने उन्होंने विजय गुप्ता के खिलाफ अपनी भड़ास तो निकाल ली, और यह घोषणा भी कर दी कि दोबारा ऐसा अपमान होने पर वह वाइस चेयरमैन पद छोड़ देंगे - लेकिन नितिन कँवर के लिए सचमुच ऐसा कर पाना संभव होगा क्या ?

Friday, March 9, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अमित गुप्ता के साथ होते दिख रहे चुनावी मुकाबले में अशोक अग्रवाल के लिए जेके गौड़ का 'आदमी' होने की पहचान सचमुच मुसीबत बनेगी क्या ?

गाजियाबाद । अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की प्रस्तुति ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य में जितनी तेजी से तूफान खड़ा किया था, वह तूफान उतनी ही जल्दी बैठ भी गया है । अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी प्रस्तुत होते ही ऐसा माहौल बना जिसमें लगा कि अशोक अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बस बन ही गए हैं । मजे की बात यह है कि ऐसा ही माहौल पिछले तीन महीने से अमित गुप्ता को लेकर बना हुआ था । कई लोगों का तो कहना रहा कि अमित गुप्ता ने तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में 'दिखना' और व्यवहार करना शुरू भी कर दिया है । दरअसल जिन अन्य संभावित उम्मीदवारों की चर्चा थी, उन्हें अमित गुप्ता के मुकाबले कमजोर समझा जा रहा था और इसलिए दूसरों ने भी - और खुद अमित गुप्ता ने भी अपने आप को विजयी समझ लिया था । लेकिन जैसा कि राजनीति के बारे में कहा जाता है कि वह अक्सर चौंकाती है और मजबूत दिख रहे समीकरणों को नष्ट-भ्रष्ट कर देती है । अमित गुप्ता ने दूसरों की उम्मीदों पर पानी फेरा था, तो उनकी उम्मीदों को पानी में बहा देने का काम अशोक अग्रवाल ने कर दिया । किंतु, जैसा कि शुरू में ही कहा गया है कि अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी ने चर्चा में आते ही जो हवा बनाई थी, वह तुरंत से निकल भी गई । असल में, जिन जिन नेताओं के समर्थन के दावे के भरोसे अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की हवा बनाई गई थी - हवा बनांते बनाते ध्यान गया कि इन्हीं नेताओं के समर्थन के बूते तो जेके गौड़ ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता का चुनाव लड़ा था, और रमेश अग्रवाल से बुरी तरह हार गए थे । अशोक अग्रवाल को जेके गौड़ के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । माना जा रहा है कि जिन कमजोरियों के चलते जेके गौड़ तमाम अनुकूल स्थितियों और कई नेताओं के समर्थन के बावजूद इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की नोमीनेटिंग कमेटी का चुनाव हार गए थे, वह कमजोरियाँ अशोक अग्रवाल की भी मुसीबत बनेंगी ।
असल में, जेके गौड़ की बदनामी के अशोक अग्रवाल की तमाम 'खूबियों' पर भारी पड़ने के अंदेशे ने ही अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की संभावनाओं को सवालिया बना दिया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ ने डिस्ट्रिक्ट में भारी बदनामी कमाई है, और डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोग उनकी धोखेबाजियों की शिकायत करते हुए सुने गए हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ के रवैये से लोग किस हद तक नाराज हुए, इसे समझने के लिए एक ही उदाहरण काफी है - और वह यह कि लोगों को रमेश अग्रवाल अच्छे लगने लगे । गौर करने की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल की खासी बदनामी रही है, जिसका उन्हें रह रह कर खामियाजा भुगतना पड़ा है - लेकिन जेके गौड़ की बदनामी ने रमेश अग्रवाल की बदनामी के रंग को हल्का कर दिया, जिसका नतीजा इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में देखने को मिला । अशोक अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह है कि गवर्नरी के दौरान की जिन हरकतों के चलते जेके गौड़ को बदनामी और चुनावी पराजय का सामना करना पड़ा, उन हरकतों में अशोक अग्रवाल की भी बराबर की भूमिका देखी/पहचानी गई है - और उन हरकतों के लिए अशोक अग्रवाल को भी बराबर का जिम्मेदार माना/ठहराया जाता रहा है । उम्मीदवार के रूप में अशोक अग्रवाल के लिए यह एक बड़ी चुनौती की बात होगी कि जिन हरकतों के लिए जेके गौड़ को चुनावी पराजय के रूप में सजा मिल चुकी है, वैसी सजा से वह अपने आप को किसी भी तरह से बचा लें ।
अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की वकालत करने वाले नेताओं का तर्क है कि जेके गौड़ का चुनावी मुकाबला रमेश अग्रवाल जैसे खिलाड़ी नेता से था, और अशोक अग्रवाल का मुकाबला अमित गुप्ता जैसे नौसिखिया से होना है - इसलिए अशोक अग्रवाल के साथ वैसा कुछ होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, जैसा जेके गौड़ के साथ हुआ । यह तर्क कुछ हद तक उचित तो है, लेकिन इसके पूरी तरह सच साबित होने की निर्भरता इस बात पर टिकी है कि चुनावी समीकरण क्या बनते हैं ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में प्रायः यह देखा जाता है कि चुनाव दो उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि दो खेमों के बीच होता है । अशोक अग्रवाल का खेमा लगभग तय है, अमित गुप्ता का खेमा अभी बनना है - इसलिए अभी से किसी नतीजे पर पहुँचना जल्दबाजी करना होगा । अनुभव के मामले में अशोक अग्रवाल का पलड़ा निश्चित रूप से भारी है, लेकिन उनके उस पलड़े पर बदनामी का बोझ भी है; अमित गुप्ता को इस बात का फायदा है कि लोगों के बीच उनकी कोई खास बदनामी नहीं है - लेकिन उनके लिए समस्या और चुनौती की बात यह है कि उनकी खूबियों से भी अभी लोगों का कोई परिचय नहीं है । अमित गुप्ता को जानने वाले यह तो बताते हैं कि वह धुन के पक्के हैं, जो काम करने की ठान लेते हैं उसे करने में फिर वह रम/जुट जाते हैं । यह बात यदि सच है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को उन्होंने यदि वास्तव में गंभीरता से लिया तो उनके और अशोक अग्रवाल के बीच होता दिख रहा चुनावी मुकाबला सचमुच काँटे का होगा और दिलचस्प होगा ।

Tuesday, March 6, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में पैसों की घपलेबाजी के आरोप में पूर्व गवर्नर मनप्रीत सिंह के क्लब से निलंबित होने के बाद, राजा साबू के निर्देश पर पूनम सिंह ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी से नाम वापस लिया

चंडीगढ़ । राजेंद्र उर्फ राजा साबू के नजदीकी पूर्व गवर्नर मनप्रीत सिंह को क्लब के एक प्रोजेक्ट में करीब चार लाख रुपए की घपलेबाजी करने के आरोप में क्लब की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया है - जिसके बाद उनकी पत्नी पूनम सिंह को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है । उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ समय से राजा साबू और उनके नजदीकी पूर्व गवर्नर्स पर रोटरी के नाम पर पैसों की लूट-खसोट के गंभीर आरोप लगते आ रहे हैं, जिनके चलते उनके द्वारा पैसों की लूट-खसोट करने के तौर-तरीकों का भंडाफोड़ तो हुआ ही है - काफी कुछ पैसा लुटने से बचा भी है । यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि राजा साबू और उनके नजदीकी पूर्व गवर्नर्स अपनी देखरेख में चलने वाले प्रोजेक्ट्स का कभी हिसाब-किताब ही नहीं देते/बताते थे; आरोपों के चलते वह हिसाब-किताब देने/दिखाने के लिए मजबूर हुए तो उनके द्वारा की जाने वाली चोरी/चकारी का भंडाफोड़ हुआ । पोल खुली तो राजा साबू और उनके नजदीकी पूर्व गवर्नर्स को अपने कुछेक 'प्रोजेक्ट्स' स्थगित भी करने पड़े - क्योंकि पोल खुलने के बाद उन प्रोजेक्ट्स में चोरी/चकारी कर पाना मुश्किल हो गया था, इसलिए उन्हें स्थगित कर देने में ही भलाई समझी गई । इतने सब के बावजूद, राजा साबू और उनके नजदीकी पूर्व गवर्नर्स अपनी अपनी बेईमानियों को लेकर लगने वाले आरोपों को विरोधियों की उन्हें बदनाम करने वाली कार्रवाई के रूप में बताते हुए अपने आप को बचाने की कोशिश कर रहे थे । इस लिहाज से, मनप्रीत सिंह को क्लब से निलंबित किए जाने की घटना ने राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स को दबाव में ला दिया है । डिस्ट्रिक्ट में सुना जा रहा है कि जैसा साहस मनप्रीत सिंह के क्लब - रोटरी क्लब मोहाली के पदाधिकारियों ने दिखाया है, वैसा ही साहस यदि अन्य पूर्व गवर्नर्स के क्लब्स के पदाधिकारियों ने भी दिखाया तो राजा साबू सहित अन्य कई पूर्व गवर्नर्स भी अपने अपने क्लब्स से निलंबित होंगे ।
मनप्रीत सिंह पर आरोप है कि उन्होंने क्लब के एक प्रोजेक्ट के तहत बनाए गए रोटरी वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर के निर्माण कार्य के खर्चों के अनाप-शनाप बिल दिए/लगाए और बसूले और फर्जी तरीके से उन्हें सत्यापित कराया । उनकी हरकत की जब पोल खुली, और उनसे उन्हीं के द्वारा दिए गए बिलों व दस्तावेजों को फिर से सत्यापित करवाने की कार्रवाई शुरू की गई - तो उन्होंने बचने/छिपने की कोशिश की और अलग अलग मौकों पर की गई कार्रवाइयों में कोई सहयोग नहीं किया । क्लब के कुछेक वरिष्ठ सदस्यों ने मामले को सम्मानजनक तरीके से निपटाने के लिए मनप्रीत सिंह को समझाने तथा जाँच में सहयोग करने के लिए मनाने का प्रयास भी किया, किंतु मनप्रीत सिंह किसी भी सवाल का जबाव देने को तैयार ही नहीं हुए । क्लब के वरिष्ठ सदस्य, एक अन्य पूर्व गवर्नर जेपीएस सिबिआ ने भी मनप्रीत सिंह को 'बचाने' का भरसक प्रयास किया, किंतु मनप्रीत सिंह की बेईमानियों के तथ्य इतने पुख्ता हैं कि उनके लिए भी मनप्रीत सिंह का बचाव कर पाना संभव नहीं हुआ । मनप्रीत सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले अपना बचाव करने तथा अपना पक्ष रखने के उन्हें कई मौके दिए गए, लेकिन हर मौके पर अपना पक्ष रखने की बजाए उन्होंने तिकड़मों से बचने का प्रयास किया - इससे उनका मामला लगातार बिगड़ता ही गया । क्लब से निलंबित किए जाने की सूचना देते हुए क्लब के प्रेसीडेंट हरविंदर सिंह ने उन्हें जो चिट्ठी लिखी है, उसमें उन्होंने विस्तार से इस बात का जिक्र किया है कि मनप्रीत सिंह को अपना बचाव करने के लिए कितने कितने मौके दिए गए, लेकि हर बार मनप्रीत सिंह ने चालाकी ही दिखाने की कोशिश की । पर उनकी चालाकी भी उन्हें बचा नहीं सकी ।
मनप्रीत सिंह के क्लब से निलंबित हो जाने का तत्काल सबसे बुरा प्रभाव उनकी पत्नी पूनम सिंह पर पड़ा, जिन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा । पूनम सिंह को राजा साबू खेमे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था और चर्चा थी कि इस बार के चुनाव में राजा साबू खेमा अपने उम्मीदवार के रूप में पूनम सिंह को चुनाव जितवाने के लिए पूरी तैयारी कर रहा है - क्योंकि इस बार का चुनाव उसके लिए राजनीतिक रूप से जीने/मरने का मामला है । लेकिन मनप्रीत सिंह के क्लब से निलंबित हो जाने के बाद बनी परिस्थिति में राजा साबू खेमे के लिए पूनम सिंह की उम्मीदवारी पर बने/टिके रह पाना मुश्किल हुआ; आनन/फानन में राजा साबू से विचार/विमर्श हुआ और राजा साबू का भी मानना/कहना रहा कि वह लोग पहले से ही मुसीबत में घिरे/फँसे हुए हैं और मनप्रीत सिंह के निलंबन ने उनकी मुसीबतों को और बढ़ाने का ही काम किया है, जिसके बाद पूनम सिंह की उम्मीदवारी को लेकर आगे बढ़ पाना मुश्किल ही होगा और भलाई इसी में है कि पूनम सिंह की उम्मीदवारी को वापस ले लिया जाए । राजा साबू से मिले निर्देश के बाद फिर पूनम सिंह ने अपनी उम्मीदवारी को वापस ले लिया । इस तरह, मनप्रीत सिंह का क्लब की सदस्यता से निलंबन राजा साबू खेमे के लिए एक बड़ा और बहुआयामी झटका साबित हुआ है ।

Monday, March 5, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू की तीसरी कैबिनेट मीटिंग में जेपी सिंह और इंद्रजीत सिंह के बीच हुई तू तू मैं मैं ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति पर असर डालने के संकेत दिए हैं, और इन संकेतों ने रमन गुप्ता के नजदीकियों को चिंतित किया है

नई दिल्ली । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए डिस्ट्रिक्ट से एंडोर्समेंट की रिपोर्ट भेजने को लेकर डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू की तीसरी कैबिनेट मीटिंग में जेपी सिंह और इंद्रजीत सिंह के बीच जो तू तू मैं मैं हुई, उसने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में इंद्रजीत सिंह खेमे के उम्मीदवार रमन गुप्ता की मुश्किलों को बढ़ाने का काम किया है । हालाँकि ऊपरी तौर पर दोनों मामलों में कोई संबंध नहीं दिखता है; लेकिन तीसरी कैबिनेट मीटिंग में जेपी सिंह ने अपने मामले को जिस चतुराई से उठाया और इंद्रजीत सिंह को भड़काया - और इंद्रजीत सिंह भड़क भी गए, उससे रमन गुप्ता के नजदीकियों को लगने लगा है कि जेपी सिंह ने अपने मामले की आड़ में वास्तव में लोगों को इंद्रजीत सिंह के खिलाफ करने का काम किया है, जिसका प्रतिकूल असर रमन गुप्ता की उम्मीदवारी पर पड़ेगा । दरअसल तीसरी कैबिनेट मीटिंग में जेपी सिंह और इंद्रजीत सिंह के बीच जो तू तू मैं मैं हुई है, उसे देखने/सुनने तथा उसके बारे में जानने वाले लोगों में अधिकतर का मानना/कहना है कि इंद्रजीत सिंह निजी खुन्नस में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की तरफ बढ़ते जेपी सिंह के कदमों को रोकने का जो प्रयास कर रहे हैं, उससे वास्तव में वह डिस्ट्रिक्ट को मिलने वाले सम्मान के खिलाफ काम कर रहे हैं, और यह डिस्ट्रिक्ट विरोधी कार्रवाई है । ऐसे में, रमन गुप्ता के नजदीकियों को डर हुआ है कि इंद्रजीत सिंह के रवैये को लोगों के बीच यदि डिस्ट्रिक्ट विरोधी कार्रवाई के रूप में देखा/पहचाना जाने लगा, तो इससे रमन गुप्ता के लिए वोट जुटाने में मुश्किल हो जायेगी । इसीलिए रमन गुप्ता के नजदीकियों को यह डर सताने लगा है कि जेपी सिंह और इंद्रजीत सिंह की लड़ाई में कहीं सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी मुसीबत में न फँस जाए ?
जेपी सिंह ने डिस्ट्रिक्ट की तीसरी कैबिनेट मीटिंग में पहली होशियारी तो अपने मामले को उठाने की दिखाई और दूसरी होशियारी यह दिखाई कि शुरू में उन्होंने अपना रवैया नरम रखा - इससे मीटिंग में तू तू मैं मैं का जो नजारा बना, उसके लिए इंद्रजीत सिंह को ही जिम्मेदार ठहराया गया । दरअसल इंद्रजीत सिंह और सत्ता खेमे के दूसरे नेताओं को इस बात का जरा भी आभास नहीं था, कि कैबिनेट मीटिंग में जेपी सिंह यह 'खेल' कर सकते हैं । वास्तव में, जेपी सिंह ने अपना जो मामला उठाया, वह डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ मल्टीपल का मामला भी था; इंद्रजीत सिंह और या सत्ता खेमे के दूसरे नेता यदि थोड़ा सावधान रहते तो जेपी सिंह के सवाल को इग्नोर कर सकते थे । सारे मामले को यदि सिलसिलेवार देखें तो समझ सकते हैं कि जेपी सिंह का उद्देश्य अपने सवाल का जबाव पाना था भी नहीं; जबाव उन्हें पता था - उनका असल उद्देश्य इंद्रजीत सिंह को भड़काना तथा लोगों के बीच उन्हें एक्सपोज करना तथा अपने लिए सहानुभूति पैदा करना था । इंद्रजीत सिंह उनकी चाल समझ नहीं पाए और उनके जाल में फँस गए - नतीजा यह रहा कि जेपी सिंह के जो जो उद्देश्य थे, उन्हें पाने में वह सफल रहे । उनकी 'सफलता' की आँच चूँकि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को भी प्रभावित करती है, इसलिए इंद्रजीत सिंह व सत्ता खेमे के अन्य नेताओं के भरोसे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बने रमन गुप्ता के नजदीकियों का चिंतित होना स्वाभाविक है ।
जेपी सिंह ने तीसरी कैबिनेट मीटिंग में बड़ी सफाई से अपना जाल बिछाया । मीटिंग में उन्हें जब बोलने का मौका मिला - या उन्होंने लिया, तब पहले तो उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में इंद्रजीत सिंह के कामकाज तथा उनकी उपलब्धियों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और बताया कि इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट की पहचान व प्रतिष्ठा में और बढ़ोत्तरी हुई है । यह बताते/कहते हुए उन्होंने अपना मामला उठा दिया । जेपी सिंह ने कहना शुरू किया कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए पिछले वर्ष पहले उन्हें डिस्ट्रिक्ट में एंडोर्समेंट मिला और फिर मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में एंडोर्समेंट मिला; नियम और व्यवस्था के अनुसार इस फैसले की रिपोर्ट लायंस इंटरनेशनल कार्यालय में जानी चाहिए, पर जो अभी तक नहीं गई है । जेपी सिंह ने मीटिंग में बताया कि उक्त रिपोर्ट भेजने को लेकर उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह को पचासों बार फोन किए हैं, दर्जनों ईमेल लिखी हैं, और उनके घर भी गए हैं - लेकिन इंद्रजीत सिंह ने उन्हें रिपोर्ट न भेजने का न तो कोई कारण बताया है और न ही रिपोर्ट भेजने का काम किया है । जेपी सिंह ने बीच बीच में अपने इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने को डिस्ट्रिक्ट की पहचान व प्रतिष्ठा के साथ भी जोड़ा, और सवाल उठाया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में इंद्रजीत सिंह पता नहीं क्यों डिस्ट्रिक्ट की पहचान व प्रतिष्ठा को बढ़ने नहीं देना चाहते हैं ? जेपी सिंह ने अपने जाल का ताना-बाना बड़ी होशियारी से बुना - लोगों के सामने उन्होंने तथ्य पेश किए, अपने आप को डिस्ट्रिक्ट की पहचान व प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले व्यक्ति के साथ साथ पीड़ित के रूप में पेश किया, इंद्रजीत सिंह के प्रति सम्मान भी दिखाया और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद पर अपनी जीत के मामले में उन्हें बदले की भावना से काम करने वाले तथा डिस्ट्रिक्ट की पहचान व प्रतिष्ठा से खिलवाड़ करने वाले व्यक्ति के रूप में भी पेश किया ।
जेपी सिंह की पूरी कोशिश इंद्रजीत सिंह को भड़काने की थी; और इंद्रजीत सिंह ने भड़क कर उन्हें सफलता दिलवा दी । जेपी सिंह के बिछाए जाल में फँस कर इंद्रजीत सिंह इतने भड़क गए कि मंच की कुर्सी छोड़ कर वह सामने आ गए । इससे पहले वह अपनी कुर्सी पर बैठे बैठे ही जबाव दे रहे थे, लेकिन जेपी सिंह को जबाव देने के लिए वह आगे आ गए । जेपी सिंह को अपनी 'योजना' कामयाब होती दिखी, तो वह और 'सक्रिय' हो गए । इंद्रजीत सिंह ने कुछ कहना/बताना शुरू किया, तो जेपी सिंह ने उन्हें झूठा ठहराना शुरू किया । इसके चलते माहौल फिर तू तू मैं मैं वाला हो गया । जेपी सिंह को अपने सवाल का जबाव तो नहीं मिला, जो शायद उन्हें चाहिए भी नहीं था - लेकिन मीटिंग में उपस्थित लोगों के सामने वह यह दिखाने/जताने में सफल रहे कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की तरफ बढ़ते उनके कदमों को रोकने के लिए इंद्रजीत सिंह बदले की भावना से काम कर रहे हैं और इस तरह डिस्ट्रिक्ट की पहचान व प्रतिष्ठा को भी चोट पहुँचा रहे हैं । जेपी सिंह की इस 'कामयाबी' ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति पर असर डालने के संकेत दिए हैं, जिन संकेतों ने रमन गुप्ता के नजदीकियों को डराने का काम किया है ।