Saturday, March 31, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल के समर्थन के दावे के साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करके रवि सचदेवा ने अपने साथ-साथ सतीश सिंघल को भी मुसीबत में फँसाया

नोएडा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत रवि सचदेवा की उम्मीदवारी उनके अपने समर्थकों के बीच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल को लेकर छिड़ी बहस के चलते खासी मुसीबत में फँस गई लग रही है । रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच दरअसल सतीश सिंघल के साथ नजदीकी या दूरी बनाने/रखने को लेकर बहस है, और इस बहस में उनके लिए किसी नतीजे पर पहुँचना मुश्किल हो रहा है - इसी मुश्किल ने रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के अभियान को मुसीबत में फँसा दिया है । यह फसान सतीश सिंघल के रवि सचदेवा के क्लब में आ जाने से पैदा हुई है । मजे की बात लेकिन यह है कि सतीश सिंघल के क्लब में आ जाने के बाद ही तो रवि सचदेवा को उम्मीदवार बनने का ख्याल आया - और वह उम्मीदवार बन बैठे; लेकिन जल्दी ही वही सतीश सिंघल उन्हें मुसीबत बनते नजर आने लगे । रवि सचदेवा और उन्हें उम्मीदवार बनवाने वाले लोगों ने सोचा तो यह था कि 'सतीश सिंघल के उम्मीदवार' का ठप्पा लगेगा, तो रवि सचदेवा की उम्मीदवारी का घोड़ा सरपट दौड़ेगा; लेकिन पाया यह गया कि सतीश सिंघल के उम्मीदवार के ठप्पे ने तो जैसे रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के घोड़े के पैर बिलकुल ही जाम कर दिए हैं । यह देख/पा कर ही रवि सचदेवा के कुछेक नजदीकियों ने कहना शुरू कर दिया कि सतीश सिंघल इस समय जिस मुसीबत में घिरे हुए हैं, उसके चलते उनका 'समर्थन' मदद करने की बजाये मुश्किलों को बढ़ाने का ही काम करेगा - इसलिए उनसे नजदीकी नहीं, बल्कि दूरी बनाने/रखने की जरूरत है । बस यहीं से, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत रवि सचदेवा की उम्मीदवारी सतीश सिंघल से नजदीकी या दूरी बनाने/रखने के विवाद में फँस गईं । 
यह फँसाव सतीश सिंघल के रवैये के चलते भी बना । रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को लेकर सतीश सिंघल का कोई 'स्टैण्ड' ही लोगों को देखने/सुनने को नहीं मिला । रवि सचदेवा के कुछेक समर्थकों की तरफ से दावा तो किया गया कि रवि सचदेवा की उम्मीदवारी सतीश सिंघल से विचार-विमर्श करके और उनका समर्थन हासिल करके ही लाई गई है, लेकिन सतीश सिंघल खुद रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के पक्ष में कुछ करते हुए नजर नहीं आये हैं । इसी तरह के दबाव में, अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुभाष जैन भी फँसे थे; लेकिन उन्होंने शुरू में ही दो-टूक शब्दों में ऐलान कर दिया कि अगले रोटरी वर्ष में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी निभाने में व्यस्त होंगे, इसलिए उम्मीदवार के रूप में अमित गुप्ता उनसे किसी भी तरह की मदद की कोई भी उम्मीद न करें/रखें । सुभाष जैन जैसी दो-टूक घोषणा सतीश सिंघल के लिए कर पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव है । इसका कारण यही है कि सुभाष जैन की अपने क्लब में धाक और पकड़ है, जबकि सतीश सिंघल मुसीबत में घिरे होने के चलते रवि सचदेवा के क्लब में शरण लिए हुए हैं; उनके लिए डर की बात यह है कि उन्होंने भी कहीं सुभाष जैन जैसी दो-टूक घोषणा कर दी, तो कहीं ऐसा न हो कि उन्हें इस क्लब से भी निकाल दिया जाये । रवि सचदेवा और उन्हें उम्मीदवार बना/बनवा देने वाले लोगों ने सतीश सिंघल का फायदा उठा लेने का जुगाड़ तो बैठा लिया, लेकिन सतीश सिंघल की मुश्किलों को - और उनकी मुश्किलों के कारण अपने लिए पैदा होने वाली मुसीबतों को नहीं समझा/पहचाना । उन्होंने यह समझने में भी चूक कर दी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल इस समय जिस मुसीबत में घिरे हुए हैं, उसके कारण उनके समर्थन के बूते रवि सचदेवा के उम्मीदवार बनने से सतीश सिंघल की भी दुविधा बढ़ेगी और रवि सचदेवा की उम्मीदवारी भी मजाक बन जाएगी ।
रवि सचदेवा और उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों को यह देख कर और तगड़ा झटका लगा है कि सतीश सिंघल के समर्थन से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की लाइन में लगने वाले दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता भी रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के प्रति कोई समर्थन-भाव नहीं दिखा रहे हैं । दीपक गुप्ता का तो रवि सचदेवा के साथ दो वर्ष पहले का व्यावसायिक झगड़ा है, जब दीपक गुप्ता उम्मीदवार थे । दीपक गुप्ता का लगातार आरोप रहा है कि उनकी उम्मीदवारी को प्रमोट करने के नाम पर रवि सचदेवा के व्यावसायिक प्रोजेक्ट 'बाबु मोशाय' में उनसे अनाप-शनाप पैसे खर्च करवाए गए और इस तरह उन्हें ठगा गया । रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को सतीश सिंघल के समर्थन के दावे के बावजूद रवि सचदेवा के प्रति दीपक गुप्ता की नाराजगी लगता है कि अभी भी दूर नहीं हो पाई है; रवि सचदेवा और उनके समर्थकों के लिए लेकिन लोगों के इस सवाल का जबाव देना मुश्किल हो रहा है कि उन्हें सतीश सिंघल के समर्थन का दावा यदि सच है तो आलोक गुप्ता उनकी उम्मीदवारी के साथ क्यों नहीं नजर आ रहे हैं ? इन्हीं स्थितियों के चलते रवि सचदेवा और उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों को लग रहा है कि सतीश सिंघल के उनके क्लब में आने से रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को फायदा मिलने की जो उम्मीद की गई थी, वह पूरी तो नहीं ही हुई है - उनके लिए मुसीबत और बन गई है ।