मुंबई
। प्रफुल्ल छाजेड़ के वाइस प्रेसीडेंट बनने के बाद वेस्टर्न रीजन में वोटों
के उलटफेर होने का जो अनुमान लगाया जा रहा है, उसमें सबसे तगड़ा झटका
बृजमोहन अग्रवाल की चुनावी तैयारी और अनिल भंडारी व धीरज खंडेलवाल की सीट को लगता दिख रहा है । दरअसल
इस वर्ष दिसंबर में होने जा रहे सेंट्रल काउंसिल चुनाव में प्रफुल्ल छाजेड़
इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के रूप में उम्मीदवार बनेंगे, जिसके चलते
उन पर वोटों की बारिश होने का अनुमान लगाया जा रहा है । अब चूँकि वोटों की
संख्या तो सीमित है, इसलिए वह यदि कहीं बारिश के रूप में गिरेंगे तो
स्वाभाविक ही है कि कहीं 'सूखा' पड़ेगा । इसी सूखे की सबसे ज्यादा मार
बृजमोहन अग्रवाल की चुनावी तैयारी और अनिल भंडारी व धीरज खंडेलवाल की
मौजूदा सीट पर पड़ती नजर आ रही है । बृजमोहन अग्रवाल पिछली बार कामयाब तो
नहीं हो सके थे, लेकिन उनका चुनावी प्रदर्शन ठीकठाक रहा था; और इसीलिए इस
बार वह और जोरशोर से चुनाव में उतरने की तैयारी कर रहे थे । अनिल भंडारी और धीरज खंडेलवाल पिछली बार पहली वरीयता में अच्छे वोट पाने के बावजूद बाद में लुढ़कने/फिसलने लगे
थे और जैसे-तैसे करके सीट निकालने में सफल हुए थे । पहली वरीयता के वोटों
के आधार पर यह दोनों प्रफुल्ल छाजेड़ से कुछ ही वोटों से आगे थे, लेकिन बाद
में फिर पीछे जा पहुँचे थे । जातीय और क्षेत्रीय आधार पर यह चारों लगभग एक ही सेगमेंट का प्रतिनिधित्व करते हैं । इसलिए वोट पाने के लिए इनके बीच आपस में ही होड़ रहती है । प्रफुल्ल छाजेड़ पिछली बार सिटिंग सदस्य थे, लेकिन फिर भी पहली वरीयता के वोटों की गिनती में बृजमोहन अग्रवाल उनसे थोड़ा पीछे और अनिल भंडारी व धीरज खंडेलवाल उनसे कुछ आगे थे - इसलिए इन्हें उम्मीद थी कि अपनी तैयारी को और सुढृढ़ करके अबकी बार होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में यह अपनी अपनी स्थिति में और सुधार कर लेंगे ।
लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ के वाइस प्रेसीडेंट बन जाने से उनकी तैयारी पर पानी फिर गया लग रहा है । दरअसल वाइस प्रेसीडेंट होने से प्रफुल्ल छाजेड़ की चुनावी 'हैसियत'
में भी जोर का उछाल आया है - जिसके चलते अबकी बार के चुनाव में जो
प्रफुल्ल छाजेड़ चुनावी मैदान में होंगे, वह पिछली बार वाले प्रफुल्ल छाजेड़
से बिलकुल बदले हुए प्रफुल्ल छाजेड़ होंगे । वेस्टर्न रीजन में अबकी बार
प्रोफेशन के सदस्य प्रफुल्ल छाजेड़ को ही नहीं, बल्कि वाइस प्रेसीडेंट
प्रफुल्ल छाजेड़ को वोट देंगे - और इसीलिए विश्वास किया जा रहा है कि
प्रफुल्ल छाजेड़ पर अबकी बार वोटों की अच्छी बारिश होगी । इस 'बारिश' का बड़ा
हिस्सा उन्हें अपने जातीय व क्षेत्रीय सेगमेंट से ही मिलेगा, और यही बात
बृजमोहन अग्रवाल, अनिल भंडारी व धीरज खंडेलवाल के लिए मुसीबत वाली है ।
उम्मीद की जा रही है कि प्रफुल्ल छाजेड़ को पहली वरीयता के वोटों में ही
पिछली बार की तुलना में जोरदार फायदा होगा । पहली वरीयता में प्रफुल्ल
छाजेड़ को पिछली बार 1665 वोट मिले थे, जबकि धीरज खंडेलवाल को 1683 तथा अनिल
भंडारी को 1693 वोट मिले थे । बृजमोहन अग्रवाल को मिले वोटों का संख्या
1401 थी । पिछली बार कोटा 3230 वोट का तय हुआ था, जिसके इस बार 3800 के आसपास तय होने की उम्मीद की जा रही है । अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रफुल्ल छाजेड़ को अबकी बार पहली वरीयता में ही 3500
के आसपास वोट तो मिलने ही चाहिए । उनके वोटों में जो बढ़ोत्तरी होगी, उसका
सीधा असर अनिल भंडारी और धीरज खंडेलवाल के वोटों पर पड़ने की ही आशंका है । इस आशंका में बृजमोहन अग्रवाल को तो तगड़ा नुकसान होने का डर है ही, अनिल भंडारी और धीरज खंडेलवाल को भी अपनी अपनी सीट बचा पाने के मामले में संकट में देखा/पहचाना जा रहा है ।
प्रफुल्ल
छाजेड़ के वाइस प्रेसीडेंट बनने के साइड इफेक्ट्स की चपेट में जुल्फेश शाह
और दुर्गेश काबरा के भी आने/फँसने का डर व्यक्त किया जा रहा है । प्रफुल्ल
छाजेड़ की विदर्भ क्षेत्र की ब्रांचेज में पहले से ही अच्छी पकड़ है, और इस
नाते उम्मीद की जा रही है कि वाइस प्रेसीडेंट के रूप में उन्हें वहाँ से और
ज्यादा वोट मिलेंगे - जो जुल्फेश शाह के समर्थन आधार पर सीधी चोट होगी ।
जुल्फेश शाह को पिछली बार 2100 से ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन फिर भी वह
सेंट्रल काउंसिल का हिस्सा बनने से पिछड़ गए थे । अबकी बार जब प्रफुल्ल
छाजेड़ उनके वोट आधार पर सीधी सेंध लगाने जा रहे हैं, तब तो उनके लिए
मुकाबला और भी मुश्किल होता नजर आ रहा है । प्रफुल्ल छाजेड़ के पक्ष में अनुमानित की जा रही वोटों की बारिश में
दुर्गेश काबरा की तैयारी और उम्मीदें भी बहती हुई दिख रही हैं, क्योंकि वह
भी उसी सेगमेंट के भरोसे हैं जिस सेगमेंट पर प्रफुल्ल छाजेड़ सवार हैं । इस तरह की अनुमानपूर्ण चर्चाओं ने वेस्टर्न रीजन में चुनावी माहौल में दिलचस्प किस्म की गर्मी पैदा हो गई है । प्रफुल्ल
छाजेड़ के वाइस प्रेसीडेंट के रूप में चुनावी मैदान में उतरने की स्थिति
में मारवाड़ी व जैन व दक्षिण महाराष्ट्र की ब्रांचेज के वोटों के भरोसे रहने वाले उम्मीदवारों के बीच जहाँ चिंता और परेशानी देखी जा रही है, वहाँ दूसरे 'सेगमेंट' के उन उम्मीदवारों की उम्मीदें बढ़ गईं हैं जो अभी तक मुकाबले में कहीं देखे/पहचाने नहीं जा रहे थे ।
जाहिर तौर पर इन अनुमानपूर्ण चर्चाओं ने वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल
काउंसिल के चुनावों की पूरी तस्वीर को ही उल्टा-पुल्टा कर दिया है ।