नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन
के चुनाव में पूजा बंसल से पाला बदलवाने में इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट
नवीन गुप्ता के 'इस्तेमाल' होने की खबरों/चर्चाओं ने मामले को खासा दिलचस्प
और गंभीर बना दिया है । दरअसल पूजा बंसल के पाला बदलने और उन
लोगों के साथ जा मिलने ने, जिनकी बेईमानी व बदतमीजी भरी हरकतों के खिलाफ वह
पिछले करीब एक वर्ष से सघन और निरंतर अभियान चलाये हुए थीं - हर किसी को
हैरान किया है । पूजा बंसल की तरफ से उनके पति मोहित बंसल जिस तरह चुनाव के
कुल तीन-चार घंटे पहले तक विरोधी खेमे के नेताओं के साथ रणनीति तय कर रहे
थे, उससे किसी को संदेह तक नहीं हुआ कि पूजा बंसल सत्ता खेमे के साथ मिल जा
सकती हैं । पूजा बंसल की तरफ से पाला बदलने के कारण के रूप में विवेक
खुराना का विरोध करने की मजबूरी का जो तर्क दिया जा रहा है, वह किसी को भी
हजम नहीं हो रहा है । दरअसल पूजा बंसल के विरोध को देखते हुए ही विरोधी
खेमे ने विवेक खुराना की जगह राजिंदर नारंग को चेयरमैन पद का उम्मीदवार चुन
लिया था, लेकिन फिर भी पूजा बंसल का वोट पंकज पेरिवाल को ही मिला ।
इससे तथा अन्य कुछेक प्रसंगों से लोगों को आभास हुआ है कि पूजा बंसल का सत्ता खेमे के साथ जाना पहले ही तय हो चुका था, विरोधी खेमे के साथ अंत समय तक 'दिखने' के पीछे वास्तव में सत्ता खेमे को संचालित करने वाले नेताओं की सोची-समझी रणनीति थी - ताकि विरोधी खेमे के लोगों को अंत समय तक भ्रम में रखा जा सके । पूजा बंसल के पाला बदल ने सभी को हैरान तो किया ही, लोगों के बीच इस सवाल को भी पैदा किया कि पूजा बंसल ने आखिर किस स्वार्थ में यह कदम उठाया ? कोई भी यह मानने को तो तैयार नहीं ही है कि पूजा बंसल ने सेक्रेटरी बनने के लिए पाला बदला है । हर कोई मान रहा है कि पूजा बंसल के पाला बदलने के पीछे कोई बड़ा खेल है । तरह-तरह के कयासों के बीच जिस एक बात पर सभी की सहमति-सी बनती नजर आ रही है, वह मोहित बंसल को एक मामले में इंस्टीट्यूट से 'रिहा' करवाने का है ।
इसी मामले ने नवीन गुप्ता की भूमिका को महत्त्वपूर्ण बना दिया है । उल्लेखनीय है कि एक पुराने आपराधिक मुकदमे को लेकर मोहित बंसल की शिकायत इंस्टीट्यूट में की गई है, जिस पर इंस्टीट्यूट पदाधिकारियों को फैसला लेना है । चर्चा है कि मोहित बंसल के पक्ष में फैसला करवाने का आश्वासन देकर पूजा बंसल के वोट की व्यवस्था की गई । एक आम समझ यह है कि ऐसा आश्वासन इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट की तरफ से ही दिया जा सकता है । हालाँकि यह तो कोई भी नहीं मानेगा कि रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के लिए इस तरह ही डील प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता खुद करेंगे; लेकिन उनके नजदीकी सेंट्रल काउंसिल सदस्य - विजय झालानी, राजेश शर्मा और विजय गुप्ता जिस तरह पंकज पेरिवाल को चेयरमैन बनवाने के अभियान में लगे हुए थे; उससे किसी के लिए यह समझना भी मुश्किल नहीं हो रहा है कि पूजा बंसल का वोट जुटाने की डील प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के स्तर पर ही हुई होगी । नवीन गुप्ता के बारे में वैसे भी मशहूर है कि वह कोई भी 'डील' खुद नहीं करते हैं, बल्कि अपने लोगों के जरिए करते हैं । मजे की बात है कि जिन कुछेक लोगों को पूजा बंसल का वोट जुगाड़ने के लिए नवीन गुप्ता की मिलीभगत की थ्योरी पर विश्वास नहीं भी हो रहा है, उनके लिए भी नवीन गुप्ता के बचाव में कोई तर्क दे पाना संभव नहीं हो रहा है । किसी के लिए भी यह विश्वास करना मुश्किल ही है कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की मिलीभगत के बिना अन्य कोई भी इंस्टीट्यूट से मोहित बंसल को - या अन्य किसी को भी अनुकूल फैसला करवाने का वायदा कर सकता है ।
नवीन गुप्ता की मिलीभगत से, पंकज पेरिवाल को चेयरमैन बनवाने के लिए पूजा बंसल का वोट जुटाने की चर्चाओं ने मामले को रोचक मोड़ दे दिया है । लोगों का कहना है कि रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में नवीन गुप्ता की यदि कोई मिलीभगत नहीं भी है, तो भी यह कोई कम गंभीर बात नहीं है कि उनके नजदीकी - उनके साथ अपनी नजदीकियत का वास्ता देकर लोगों के साथ इंस्टीट्यूट में काम करवाने की 'सौदेबाजी' कर लें । लोगों का कहना है कि इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट यदि ऐसा व्यक्ति है, जिसे उसके नजदीकी जैसे जब चाहें - इस्तेमाल कर लेते हैं, तो यह इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है । नवीन गुप्ता को एक शरीफ व्यक्ति के रूप में तो देखा/पहचाना जाता है, पर एक कुशल प्रशासक के रूप में लोगों को उनसे ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं - ऐसे में, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में उनके इस्तेमाल हो जाने की चर्चाओं ने प्रेसीडेंट के रूप में उनके कार्यकाल को शुरुआत में ही संदेहों के घेरे में ला दिया है ।
इससे तथा अन्य कुछेक प्रसंगों से लोगों को आभास हुआ है कि पूजा बंसल का सत्ता खेमे के साथ जाना पहले ही तय हो चुका था, विरोधी खेमे के साथ अंत समय तक 'दिखने' के पीछे वास्तव में सत्ता खेमे को संचालित करने वाले नेताओं की सोची-समझी रणनीति थी - ताकि विरोधी खेमे के लोगों को अंत समय तक भ्रम में रखा जा सके । पूजा बंसल के पाला बदल ने सभी को हैरान तो किया ही, लोगों के बीच इस सवाल को भी पैदा किया कि पूजा बंसल ने आखिर किस स्वार्थ में यह कदम उठाया ? कोई भी यह मानने को तो तैयार नहीं ही है कि पूजा बंसल ने सेक्रेटरी बनने के लिए पाला बदला है । हर कोई मान रहा है कि पूजा बंसल के पाला बदलने के पीछे कोई बड़ा खेल है । तरह-तरह के कयासों के बीच जिस एक बात पर सभी की सहमति-सी बनती नजर आ रही है, वह मोहित बंसल को एक मामले में इंस्टीट्यूट से 'रिहा' करवाने का है ।
इसी मामले ने नवीन गुप्ता की भूमिका को महत्त्वपूर्ण बना दिया है । उल्लेखनीय है कि एक पुराने आपराधिक मुकदमे को लेकर मोहित बंसल की शिकायत इंस्टीट्यूट में की गई है, जिस पर इंस्टीट्यूट पदाधिकारियों को फैसला लेना है । चर्चा है कि मोहित बंसल के पक्ष में फैसला करवाने का आश्वासन देकर पूजा बंसल के वोट की व्यवस्था की गई । एक आम समझ यह है कि ऐसा आश्वासन इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट की तरफ से ही दिया जा सकता है । हालाँकि यह तो कोई भी नहीं मानेगा कि रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के लिए इस तरह ही डील प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता खुद करेंगे; लेकिन उनके नजदीकी सेंट्रल काउंसिल सदस्य - विजय झालानी, राजेश शर्मा और विजय गुप्ता जिस तरह पंकज पेरिवाल को चेयरमैन बनवाने के अभियान में लगे हुए थे; उससे किसी के लिए यह समझना भी मुश्किल नहीं हो रहा है कि पूजा बंसल का वोट जुटाने की डील प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के स्तर पर ही हुई होगी । नवीन गुप्ता के बारे में वैसे भी मशहूर है कि वह कोई भी 'डील' खुद नहीं करते हैं, बल्कि अपने लोगों के जरिए करते हैं । मजे की बात है कि जिन कुछेक लोगों को पूजा बंसल का वोट जुगाड़ने के लिए नवीन गुप्ता की मिलीभगत की थ्योरी पर विश्वास नहीं भी हो रहा है, उनके लिए भी नवीन गुप्ता के बचाव में कोई तर्क दे पाना संभव नहीं हो रहा है । किसी के लिए भी यह विश्वास करना मुश्किल ही है कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की मिलीभगत के बिना अन्य कोई भी इंस्टीट्यूट से मोहित बंसल को - या अन्य किसी को भी अनुकूल फैसला करवाने का वायदा कर सकता है ।
नवीन गुप्ता की मिलीभगत से, पंकज पेरिवाल को चेयरमैन बनवाने के लिए पूजा बंसल का वोट जुटाने की चर्चाओं ने मामले को रोचक मोड़ दे दिया है । लोगों का कहना है कि रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में नवीन गुप्ता की यदि कोई मिलीभगत नहीं भी है, तो भी यह कोई कम गंभीर बात नहीं है कि उनके नजदीकी - उनके साथ अपनी नजदीकियत का वास्ता देकर लोगों के साथ इंस्टीट्यूट में काम करवाने की 'सौदेबाजी' कर लें । लोगों का कहना है कि इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट यदि ऐसा व्यक्ति है, जिसे उसके नजदीकी जैसे जब चाहें - इस्तेमाल कर लेते हैं, तो यह इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है । नवीन गुप्ता को एक शरीफ व्यक्ति के रूप में तो देखा/पहचाना जाता है, पर एक कुशल प्रशासक के रूप में लोगों को उनसे ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं - ऐसे में, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में उनके इस्तेमाल हो जाने की चर्चाओं ने प्रेसीडेंट के रूप में उनके कार्यकाल को शुरुआत में ही संदेहों के घेरे में ला दिया है ।