Saturday, June 30, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में स्थितियों के चलते डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच मिल रहे लाभ को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए राजनीतिक समर्थन में ट्रांसफर कर पाना अमित गुप्ता के लिए बड़ी चुनौती भी है

गाजियाबाद । अमित गुप्ता को सुभाष जैन की टीम में डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी होने तथा उनके क्लब के सक्रिय सदस्य होने के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए जिस तरह का लाभ मिलता दिख रहा है, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य को खासा दिलचस्प बना दिया है । दरअसल हाल-फिलहाल में सुभाष जैन की विभिन्न उपलब्धियों के मौकों पर जिस तरह से अमित गुप्ता को आगे-आगे तथा सक्रियता निभाते देखा गया, और इसके चलते वह लोगों की निगाह में आते/चढ़ते दिखे - उसे चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले नेताओं ने उल्लेखनीय माना/पाया है; और उन्हें लगा है कि अमित गुप्ता इस स्थिति का यदि राजनीतिकरण कर सके तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में फायदा उठा सकेंगे । मजे की बात यह रही है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवार अशोक अग्रवाल को लोगों तक अपनी पहुँच बनाने/दिखाने के लिए अपने 'स्तर' पर आयोजन करने पड़े हैं, जबकि अमित गुप्ता क्लब और डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों में अपनी सहभागिता के चलते ही लोगों के बीच 'पहुँच' रहे हैं । सुभाष जैन के क्लब का सदस्य होना भी अमित जैन को चुनावी फायदा पहुँचा रहा है । दरअसल सुभाष जैन का क्लब यूँ भी डिस्ट्रिक्ट का एक अच्छा सक्रिय क्लब है, और सुभाष जैन का क्लब होने के नाते उसकी गतिविधियों को डिस्ट्रिक्ट स्तर की पहचान भी मिल जा रही है । इस पृष्ठभूमि में, क्लब के आयोजनों में सक्रिय भूमिका निभा कर अमित गुप्ता सहज रूप में डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी पहचान को बढ़ा लेने के साथ-साथ और पुख्ता कर लेने का काम भी कर ले रहे हैं । यही बात डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में उन्हें फायदा पहुँचाती नजर आ रही है ।
अभी पिछले दिनों सुभाष जैन के क्लब ने अपने एक आयोजन में रोटरी न्यूज ट्रस्ट के सेक्रेटरी चुने जाने पर सुभाष जैन का स्वागत किया । गौर करने की बात यह है कि रोटरी न्यूज ट्रस्ट में प्रत्येक वर्ष पदाधिकारी चुने जाते हैं, लेकिन उनका कोई नोटिस तक नहीं लेता; 'ऊपर' के कुछेक लोगों को छोड़कर किसी को इस बात में दिलचस्पी नहीं होती कि रोटरी न्यूज ट्रस्ट में कौन किस पद पर है । सुभाष जैन का क्लब चूँकि उत्सवप्रिय है और हर मौके को उत्सव में बदल देने का हुनर रखता है, इसलिए उनके क्लब ने उनके रोटरी न्यूज ट्रस्ट के सेक्रेटरी बनने को एक जश्न के रूप में सेलीब्रेट किया; इस सेलीब्रेशन के दृश्य तस्वीरों के रूप में डिस्ट्रिक्ट के लोगों तक पहुँचे तो लोगों ने सुभाष जैन के ठीक बगल में खड़े अमित गुप्ता का खास नोटिस लिया - और इस तरह सुभाष जैन की एक उपलब्धि और उनके क्लब के द्वारा उस उपलब्धि को सेलीब्रेट करने की कार्रवाई अमित गुप्ता के लिए लोगों के बीच पहचान बनाने और उस पहचान को 'प्रतिष्ठित' करने का अवसर बन गया । सुभाष जैन को रोटरी फाउंडेशन के लिए जो जोरदार समर्थन मिल रहा है, उसके चलते भी अमित गुप्ता को लोगों के बीच अपनी 'इमेज' बनाने का मौका मिल रहा है । दरअसल रोटरी फाउंडेशन के लिए कोई जब सुभाष जैन को चेक देता है तो उस मौके की तस्वीर खिंचती है, और उस तस्वीर में डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी होने के नाते अमित गुप्ता कभी दाएँ तो कभी बाएँ खड़े नजर आते हैं, और फिर वह तस्वीर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में अमित गुप्ता को महत्त्वपूर्ण बना देती है ।
स्थितियों को बयाँ करते तथ्यों की लोगों के बीच होने वाली आवाजाही स्थितियों से जुड़े - और जुड़े 'दिखने' वाले लोगों की पहचान बनाने तथा उस पहचान को प्रतिष्ठा दिलाने का काम करती है; जिसे तस्वीरें और हवा देती हैं । अमित गुप्ता के मामले में यह 'काम' सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि वह डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी के पद पर हैं और सुभाष जैन के क्लब के सदस्य हैं । कुछेक लोगों का हालाँकि यह भी कहना है कि अमित गुप्ता को हो रहे फायदे को 'संयोगवश' होने वाले फायदे के रूप में देखना अमित गुप्ता के साथ अन्याय करना होगा, क्योंकि इस तरह के संयोग तो हर किसी के साथ बनते ही हैं । उनका कहना है कि अमित गुप्ता चूँकि अपने पद की जिम्मेदारी को अच्छे से निभाते हैं और पद के अनुरूप जरूरत के हिसाब से काम में जुटते हैं, जिसके कारण दूसरों की तुलना में वह सहज रूप से आगे नजर आते हैं । दूसरे लोग ऐसा नहीं कर पाते है, इसलिए उन्हें संयोगों का भी कोई फायदा नहीं मिल पाता है । अमित गुप्ता से हमदर्दी रखने वाले तथा उनकी उम्मीदवारी  समर्थन करने वाले लोगों को हालाँकि यह भी लगता है कि स्थितियों के चलते अमित गुप्ता को जो लाभ मिल रहा है, उसका वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए फायदा उठाने का कोई प्रयास करते हुए नहीं दिख रहे हैं । इसलिए माना/समझा जा रहा है कि स्थितियों के चलते अमित गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट में जो लाभ मिल रहा है, उसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए राजनीतिक समर्थन में ट्रांसफर कर पाना उनके लिए बड़ी चुनौती भी है ।

Thursday, June 28, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद के खिलाफ हुई कड़ी कार्रवाई के चलते, गवर्नरी की आड़ में मनमानी व बेईमानी करने के मौके वंदना निगम से छिन गए हैं - और इस तरह उनके लिए गवर्नरी करने का सारा मजा ही खराब हो गया है

कानपुर । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से बर्खास्त किए गए दीपक राज आनंद को उनकी कारस्तानियों की सजा दिलवाने के बाद डिस्ट्रिक्ट के विरोधी खेमे के नेताओं ने वंदना निगम तथा उनके साथी पूर्व गवर्नर्स की नकेल कसने/कसवाने के लिए भी तैयारी शुरू कर दी है । लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के होने को लेकर झूठे तथ्य गढ़ने तथा लायंस इंटरनेशनल को गुमराह करने के जिस आरोप में दीपक राज आनंद को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से हटाया गया है और उन्हें 'पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर' की पहचान से भी वंचित कर दिया गया है, वह काम अकेले दीपक राज आनंद का ही नहीं है - बल्कि उस काम में वंदना निगम तथा कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की भी मिलीभगत थी, और इसलिए उन्हें भी दंडित किया जाना चाहिए । लोगों का कहना है कि जो कुछ भी हुआ, उसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते दीपक राज आनंद की जिम्मेदारी ज्यादा बनती है, इसलिए उन्हें जो सजा मिली वह उचित ही है; लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि दीपक राज आनंद यदि लायंस इंटरनेशनल के साथ 'बेईमानी' करने का साहस कर सके, तो इसलिए क्योंकि उन्हें फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वंदना निगम तथा कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का खुल्ला समर्थन व सहयोग मिला - इसलिए उनकी मिलीभगत को यदि अनदेखा कर दिया गया तो वह आगे भी लायंस इंटरनेशनल को 'ठगने' तथा उसके साथ 'बेईमानी' करने का काम कर सकते हैं । लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर फर्जीवाड़ा करने के लिए तकनीकी रूप से भले ही दीपक राज आनंद दोषी हैं, लेकिन असली मुजरिम वंदना निगम तथा उनके सहयोगी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स हैं - इसलिए उन्हें भी ऐसा कोई सबक दिया जाना चाहिए, जिससे कि वह आगे कभी फर्जीवाड़ा और बेईमानी करने के बारे में सोच भी न सकें ।
लायंस इंटरनेशनल की तरफ से दीपक राज आनंद को सजा मिलने की घोषणा के बाद डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे के लोगों के बीच निराशा है, जबकि विरोधी खेमे के लोग बम-बम हैं - और इसीलिए विरोधी खेमे के लोगों ने सत्ता खेमे के नेताओं पर दबाव बनाने के लिए आक्रामक रवैया अपना लिया है । सत्ता खेमे के लोगों ने इस बात पर राहत महसूस की है कि वंदना निगम के लिए गवर्नरी करने का मौका बच गया है और उनकी स्थिति पर कोई आँच नहीं आई है । सत्ता खेमे के लोगों को यह भी भरोसा है कि विरोधी खेमे के लोगों ने वंदना निगम तथा कुछेक पूर्व गवर्नर्स को घेरने के लिए जो आक्रामकता दिखाना शुरू किया है, उसका उनके लिए कोई खराब नतीजा नहीं निकलेगा और विरोधी खेमे की आक्रामकता कुछ दिनों का शोर-शराबा बन कर ही रह जाएगी । सत्ता खेमे के नेताओं के सामने समस्या लेकिन दूसरी है, और वह यह कि वंदना निगम की गवर्नरी की आड़ में उनके लिए मनमानी करने के मौके छिन गए हैं । दीपक राज आनंद के खिलाफ कठोर फैसला करके लायंस इंटरनेशनल ने संकेत दिया है कि वह किसी भी तरह की 'बेईमानी' को बर्दाश्त नहीं करेगा । गौर करने वाली बात यह है कि लायंस इंटरनेशनल के सौ वर्षों से ज्यादा के इतिहास में यह पहला अवसर है, जबकि गलत रिपोर्टिंग के मामले में एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को न सिर्फ गवर्नर पद से बल्कि लायनिज्म से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है । इस फैसले से वंदना निगम पर दबाव बना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह नियमानुसार ही काम करें और किसी भी तरह की बेईमानीपूर्ण हरकत से दूर ही रहें ।
वंदना निगम के लिए मुसीबत की बात यह है कि उन्होंने तथा उनके पति पूर्व गवर्नर श्याम निगम ने अपने व्यवहार के चलते डिस्ट्रिक्ट में आम और खास लोगों को बुरी तरह नाराज किया हुआ है । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हुए गड़बड़झाले के बाद तो यह दोनों लोगों से बात-बेबात उलझते रहे हैं, और 'चोरी व सीनाजोरी' वाला रवैया दिखा कर लोगों से बदतमीजी करते रहे हैं । इसके चलते यह दोनों ही लोगों के निशाने पर हैं, और लोग मौके के इंतजार में हैं कि यह कोई गड़बड़ी करें तो वह इन्हें घेरें । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वंदना निगम पर दबाव बढ़ गया है । अपनी टीम के पदों को 'बेचने' तथा उम्मीदवारों से पैसे ऐंठने की उनकी योजनाएँ खतरे में पड़ गई हैं । मुसीबत की बात यह हुई है कि उन्होंने यदि ज्यादा चूँ-चपड़ की तो लोग विरोध व शिकायत करने के लिए तैयार ही बैठे हैं; उधर लीडरशिप की भौहें तनी हुई हैं ही । वंदना निगम के लिए समस्या की बात यह हुई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में लोगों के बीच उनके लिए न तो सम्मान है, और न ही वह रौबदाब दिखाने की स्थिति में रह गई हैं - और इस तरह उनके लिए गवर्नरी करने का सारा मजा ही खराब हो गया है । हालाँकि उनके शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि वंदना निगम यदि होशियारी व उदारता से काम लें और अपने रवैये को व्यवहारकुशल बनाएँ तो स्थितियों को काफी हद तक संभालने के साथ-साथ अनुकूल बना सकती हैं । देखना दिलचस्प होगा कि मुश्किल हो गए हालात को संभालने के लिए वंदना निगम अपने रवैये में कोई परिवर्तन व सुधार करती हैं, या पहले जैसे रवैये को बनाए रखते हुए अपनी मुश्किलों में और इजाफा करती हैं ।

Wednesday, June 27, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल में मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की तरफ से डायरेक्टर बनने की जेपी सिंह की तैयारी को रोकने की अरविंद संगल की कोशिश फेल तो हुई ही, अदालत से अरविंद संगल को कड़ी फटकार और खानी पड़ी

नई दिल्ली । जेपी सिंह को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने से रोकने की कोशिश में अरविंद संगल को अदालत से जो फटकार पड़ी है, उससे एक बार फिर साबित हो गया है कि झूठ और 'ठगी' के सहारे ज्यादा दिनों तक राजनीति नहीं की जा सकती है । लायंस इंटरनेशनल की कन्वेंशन में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जेपी सिंह की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने के खिलाफ बीती 31 मई को अदालत से स्टे ले कर अरविंद संगल ने जो बड़ा 'धमाका' करने का भ्रम फैलाया था, उसका नकली धुँआ 25 जून को आए एक अन्य अदालती फैसले से हवा हो गया है । इस मामले में गंभीर पहलू यह सामने आया है कि मामला सिर्फ कानूनी हार-जीत का ही नहीं है, कानूनी मामले में 'ठगी' करने का भी है । अरविंद संगल यदि सिर्फ कानूनी लड़ाई हारे होते, तो बात ज्यादा गंभीर नहीं बनती; अरविंद संगल के लिए फजीहत की बात यह हुई कि कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए उन्होंने जिस तरह के दाँव-पेंच इस्तेमाल किए, उसके चलते उन्हें अदालत की फटकार भी खानी पड़ी । अदालती फैसले में अरविंद संगल पर अदालत को गुमराह करने तथा अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग करने का गंभीर आरोप लगाया गया है । स्वयं अदालत के इस आरोप से साबित होता है कि अरविंद संगल एक पहले से ही हारी हुई लड़ाई लड़ रहे थे, जिसमें कुछ देर के लिए उन्होंने भले ही सनसनी पैदा कर दी थी - लेकिन जिसमें अंततः उन्हें कुछ मिलना नहीं था । लगता है कि जेपी सिंह और उनके पीछे खड़ी लीडरशिप का विरोध कर रहे तेजपाल खिल्लन और सुशील अग्रवाल को भी इस बात का आभास था, और इसीलिए वह अरविंद संगल से दूरी न सिर्फ बना चुके थे, बल्कि 'दिखा' भी रहे थे । जेपी सिंह को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने से रोकने की लड़ाई में अरविंद संगल को लायंस लोगों के बीच 'चोट्टे' के रूप में कुख्यात एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का ही सहयोग मिल पाया ।
25 जून के अदालती फैसले में अरविंद संगल को इस बात के लिए फटकार लगाई गई कि जिन तथ्यों और तर्कों के आधार पर जेपी सिंह को मिले मल्टीपल एंडोर्समेंट को रद्द करवाने की कार्रवाई करीब एक वर्ष पहले अदालती फैसले में असफल हो गई थी, उन्हीं तथ्यों और तर्कों के साथ करीब एक वर्ष बाद फिर अदालत का दरवाजा खटखटाया गया और पिछली अदालती कार्रवाई को छिपाया गया । उल्लेखनीय है कि पिछले लायन वर्ष में मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए हुए एंडोर्समेंट को लेकर खासे आरोप और हंगामे रहे थे; और इस हंगामे का कभी पर्दे के पीछे से तो कभी सामने आकर नेतृत्व करते हुए तेजपाल खिल्लन मामले को अदालत भी ले गए थे, लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया कि जेपी सिंह को मिले एंडोर्समेंट को अदालती कार्रवाई के जरिए रोका नहीं जा सकेगा - इसलिए जेपी सिंह के मामले को छोड़ दिया गया और मान लिया गया कि जेपी सिंह इंटरनेशनल डायरेक्टर बन ही जायेंगे । इस बीच लीडरशिप के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट अशोक मेहता तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर राजू मनवानी के साथ विभिन्न कारणों से तेजपाल खिल्लन और सुशील अग्रवाल की नजदीकी बनी; अशोक मेहता और राजू मनवानी ने संतोष शेट्टी को इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने की लड़ाई के जरिये लीडरशिप को टक्कर देने की तैयारी की हुई थी । समझा जाता है कि उन्हें लगा कि जेपी सिंह को अदालती मामले में फँसा कर वह संतोष शेट्टी को कामयाबी दिलवा देंगे, और इसीलिए मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में जेपी सिंह के एंडोर्समेंट के मामले को फिर से 'जिंदा' कर दिया गया । यह काम अरविंद संगल को मोहरा बना कर किया गया । पिछले करीब एक महीने में पड़ी अदालती तारीखों में कई मौकों पर अरविंद संगल जिस तरह अनुपस्थित दिखे, उससे लोगों को आभास मिला कि यह मुकदमा अरविंद संगल को मोहरा बना कर वास्तव में 'कोई और' लड़ रहा है । यह 'कोई और' इतना होशियार भी था कि उसे पता था कि मामले में कुछ होना नहीं है और इसीलिए वह सामने भी नहीं आया ।
अरविंद संगल को मोहरा बना कर लड़ी गई इस लड़ाई में कोशिश सिर्फ यह 'दिख' रही थी कि अदालत को गुमराह करके तथा अदालती प्रक्रिया का दुरूपयोग करके जेपी सिंह का रास्ता यदि रोक लिया जाये, तो हो सकता है कि संतोष शेट्टी का 'काम' बन जाए । 25 जून के फैसले से साबित हुआ कि अदालत ने इस चालबाजी को पकड़ लिया । अदालती फैसले में अरविंद संगल को इस बात के लिए फटकार लगाई गई कि मामले से जुड़े सारे तथ्य पिछले करीब एक वर्ष से सभी की जानकारी में थे, और यदि अरविंद संगल को सचमुच न्याय चाहिए था तो वह पिछले एक वर्ष से क्या कर रहे थे; और वह 31 मई को ही अदालत क्यों आए, जो कि छुट्टियाँ शुरू होने से पहले का अंतिम कार्यदिवस था । इसमें भी, मामले से जुड़ी पिछली अदालती कार्रवाई और उसमें हुए फैसले को छिपाया गया । 25 जून के अदालती फैसले ने इस बात की पोल भी खोली है कि लीडरशिप से लड़ने की कोशिश करने वाले नेताओं के पास न तो पर्याप्त तथ्य हैं, और न उन तथ्यों को इस्तेमाल करने की समझ है और न लड़ाई में निरंतरता बनाए रखने का हौंसला है । इसके चलते वह अपनी कोई मजबूत टीम भी नहीं बना पाते हैं, और इस कारण जरूरत पड़ने पर मौकापरस्त व चोट्टे किस्म के लोगों पर उन्हें निर्भर होना पड़ता है । ऐसे में, लीडरशिप से बार बार उन्हें 'पिटना' पड़ता है, और लीडरशिप की मनमानियों तथा बेईमानियों के खिलाफ होने या हो सकने वाली लड़ाई कमजोर पड़ती है । 25 जून के अदालती फैसले में अरविंद संगल के लिए तो 'प्याज भी खाने और जूते भी खाने' वाला किस्सा ही चरितार्थ हुआ है ।

Monday, June 25, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता सहित सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को मोहित बंसल के मामले में पोपट बना कर सेंट्रल काउंसिल सदस्य अतुल गुप्ता ने क्या सचमुच मुसीबत में नहीं फँसा दिया है ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता सहित सेंट्रल काउंसिल के कई सदस्यों को, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सेक्रेटरी पूजा बंसल के साथ अपनी खुन्नस निकालने के चक्कर में - अतुल गुप्ता ने 'पोपट' बना दिया है । सेंट्रल काउंसिल के कई सदस्य अब नवीन गुप्ता और अतुल गुप्ता को कोस रहे हैं, और हैरानी व्यक्त कर रहे हैं कि अतुल गुप्ता जैसा व्यक्ति इतनी बड़ी ठगी भी कर सकता है, और नवीन गुप्ता इतना घोंचू साबित हो सकता है कि अतुल गुप्ता की ठगी का आसानी से शिकार हो जाए । उल्लेखनीय है कि 13 जून की अपनी रिपोर्ट में 'रचनात्मक संकल्प' ने आशंका व्यक्त की थी कि सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करके पूजा बंसल ने जिस तरह से मौजूदा व संभावित भावी सदस्यों की चुनावी उम्मीदों और तैयारी को खतरे में डाला है, उसकी प्रतिक्रिया में वह चुप तो नहीं बैठेंगे और निश्चित रूप से जल्दी ही पूजा बंसल और या उनके पति मोहित बंसल के खिलाफ ऐसा कुछ करेंगे, जिसमें उलझ कर पूजा बंसल अपना चुनाव भूल जाएँ । 13 जून को व्यक्त की गई यह आशंका 14 जून को ही सच साबित हो गई । 14 जून से सेंट्रल काउंसिल की मीटिंग शुरू हुई, और मीटिंग में पहले ही दिन मोहित बंसल के खिलाफ चले एक आपराधिक मुकदमे में अपराध सिद्ध होने तथा सजा होने का झूठा दावा करते हुए अतुल गुप्ता ने इंस्टीट्यूट की उनकी सदस्यता खत्म करवाने का प्रयास किया । वर्षों पहले के उक्त मामले में मोहित बंसल को दिल्ली हाईकोर्ट से अपराधमुक्त किए जाने का फैसला हुआ था । अतुल गुप्ता ने मीटिंग में मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करवाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को तो छिपा लिया, तथा निचली अदालत से मोहित बंसल को सजा होने वाले फैसले को 'दिखाते' हुए मीटिंग में मोहित बंसल के खिलाफ माहौल बनाया ।
मीटिंग में मौजूद सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने अतुल गुप्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए कागजों पर भरोसा किया, और मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई का समर्थन किया । राजेश शर्मा ने लेकिन इस आधार पर तुरंत फैसला करने का विरोध किया कि मोहित बंसल का पक्ष सुने बिना उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए । इंस्टीट्यूट के नियम-कानूनों में यह व्यवस्था दर्ज है कि इंस्टीट्यूट प्रशासन जब भी किसी सदस्य के खिलाफ कोई कार्रवाई करता है, तो उस सदस्य को अपना पक्ष रखने/बताने का मौका देता है । राजेश शर्मा ने जब यह तर्क देते हुए मोहित बंसल के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने का विरोध किया, तो अतुल गुप्ता और नवीन गुप्ता को अपने कदम पीछे खींचने के लिए मजबूर होना पड़ा । राजेश शर्मा के विरोध के बावजूद अतुल गुप्ता ने हालाँकि मोहित बंसल के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने की वकालत करना जारी तो रखा, लेकिन जल्दी ही उन्होंने भाँप लिया कि कार्रवाई करने को लेकर जल्दी मचाने की उनकी हरकत दूसरे सदस्यों के बीच संदेह पैदा कर रही है, तो फिर उन्होंने चुप हो जाने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । इस किस्से की जानकारी मोहित बंसल को मिली, तो वह सक्रिय हुए और उन्होंने सभी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले की कॉपी भेजी, जिसमें उन्हें दोषमुक्त घोषित किया गया था । मोहित बंसल ने सदस्यों को यह भी बताया कि उन्होंने तो करीब एक वर्ष पहले ही अपने केस से जुड़े सारे कागजात इंस्टीट्यूट में जमा करवा दिए थे, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की कॉपी भी थी । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को यह जानकार हैरानी हुई कि अतुल गुप्ता ने आखिर किस रंजिश में मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करने/करवाने के लिए सेंट्रल काउंसिल सदस्यों तक को धोखे में रखने का प्रयास किया । सेंट्रल काउंसिल के कई सदस्यों को डर हुआ है कि यह तो कोर्ट की अवमानना का मामला भी बन सकता है, जिसमें कि दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दोषमुक्त करार दिए गए व्यक्ति को इंस्टीट्यूट इस झूठे आधार पर सजा दे रहा है कि कोर्ट ने उसे दोषी माना है ।
बात निकली तो पता चला कि अतुल गुप्ता हाल ही में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सेक्रेटरी के रूप में पूजा बंसल द्वारा लिए गए कुछेक फैसलों से बुरी तरह बिफरे हुए थे । पूजा बंसल ने स्टडी सर्किल्स के साथ मिल कर कार्यक्रम किए, जिसके चलते चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की न केवल भागीदारी बढ़ी, बल्कि उनको कम रजिस्ट्रेशन फीस में अच्छा खाना-पीना और सर्विस मिली । पूजा बंसल के प्रयासों को जो सराहना मिली, उसने अतुल गुप्ता को खासा झटका पहुँचाया । अतुल गुप्ता ने कुछेक लोगों से कहा भी कि पूजा बंसल अपने कामकाज से उनका तो धंधा बंद करवा देंगी । इसी दौरान हुए कार्यक्रमों में कुछेक स्पीकर्स को लेकर भी अतुल गुप्ता को शिकायत हुई, कि 'उन' स्पीकर्स को दिल्ली में तवज्जो मिलेगी तो उन्हें फिर कौन पूछेगा ? अतुल गुप्ता ने सीधे सीधे आरोप लगाए कि पूजा बंसल कोई बड़ी राजनीति कर रही हैं । लोगों ने कहा भी कि पूजा बंसल यदि सचमुच कोई राजनीति कर भी रही हैं; और उनके फैसलों से प्रोफेशन से जुड़े लोगों को तथा इंस्टीट्यूट को यदि फायदा हो रहा है, तो इसमें बुरा क्या है ? इस सब के बीच पूजा बंसल ने सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी, जिससे अतुल गुप्ता के तो तोते ही उड़ गए । पूजा बंसल और मोहित बंसल को सेंट्रल काउंसिल सदस्य संजय अग्रवाल के नजदीक देखा/पहचाना जाता है, जिनके सेंट्रल काउंसिल में तीन टर्म पूरे हो रहे हैं । दूसरे कई लोगों के साथ-साथ अतुल गुप्ता को भी लगा कि पूजा बंसल की उम्मीदवारी के पीछे संजय अग्रवाल हैं । संजय अग्रवाल के वोटरों पर अतुल गुप्ता की नजर थी, लेकिन पूजा बंसल की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने से अतुल गुप्ता को संजय अग्रवाल के वोटरों पर कब्जा करने की अपनी तैयारी फेल होती हुई दिखी । यह तो कोई भी नहीं मानता/कहता है कि पूजा बंसल की उम्मीदवारी से अतुल गुप्ता की उम्मीदवारी को हल्की से खरोंच भी लगेगी, लेकिन संजय अग्रवाल के वोटों पर कब्जा करके सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में ज्यादा से ज्यादा वोट बटोरने और सबसे ज्यादा वोट पाने की अतुल गुप्ता की कोशिशों को जरूर धक्का लगा है । इसीलिए पूजा बंसल की उम्मीदवारी पेश होते ही अतुल गुप्ता ने उनके सामने मुश्किलें खड़ी करते हुए उनके पति मोहित बंसल को एक पुराने मामले में आधे-अधूरे तथा झूठे तथ्य पेश करते हुए फँसाने की चाल चल दी ।
इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की संजय अग्रवाल के साथ खासी खुन्नस रही है, लिहाजा उन्हें भी संजय अग्रवाल के नजदीकी का शिकार करते हुए संजय अग्रवाल से खुन्नस निकालने का मौका दिखा - तो उन्होंने भी अतुल गुप्ता की कार्रवाई का बिना सोचे-विचारे समर्थन कर डाला । पर अब जब सच्चाई सामने आ रही है, तो नवीन गुप्ता सहित सेंट्रल काउंसिल के सदस्य अपने आप को अतुल गुप्ता के हाथों ठगा हुआ पा रहे हैं । सभी को लग रहा है कि अतुल गुप्ता ने अपने स्वार्थ और अपनी निजी खुन्नस में काम करते हुए इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता सहित सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को पोपट बना कर मुसीबत में फँसा दिया है ।

Saturday, June 23, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए माँगे जा रहे विज्ञापनों के रेट कार्ड देने से इंकार करने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट प्रवीन गोयल तथा फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन शाजु पीटर की कार्रवाई ने डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के मामले में घपलेबाजी के आरोपों को हवा दी

चंडीगढ़ । प्रवीन गोयल के गले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की माला पड़ने में तो अभी करीब सप्ताह भर का समय बाकी है, लेकिन मुसीबतों की माला लगता है कि अभी से उनके गले का फंदा बनने लगी है । अपने गवर्नर-काल की डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए इकट्ठा किए जा रहे विज्ञापनों के रेट को छिपाने को लेकर प्रवीन गोयल संदेह और आरोपों के घेरे में आ गए हैं । दरअसल हुआ यह कि डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के पूर्व सदस्य एमपी गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के विभिन्न पृष्ठों के रेट उनसे पूछ लिए, जिस पर प्रवीन गोयल ने चुप्पी साध ली । एमपी गुप्ता को जब प्रवीन गोयल से कोई जबाव नहीं मिला तो उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया, और तब उन्होंने डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन शाजु पीटर को यह कहते/बताते हुए चिट्ठी लिखी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट प्रवीन गोयल उन्हें डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के विभिन्न पृष्ठों के विज्ञापन के रेट नहीं दे/बता रहे हैं, इसलिए वह आवश्यक कार्रवाई करें । एमपी गुप्ता को लेकिन शाजु पीटर से भी कोई जबाव नहीं मिला । यह बात जब डिस्ट्रिक्ट के लोगों के सामने आई तो कई लोगों ने कहा/बताया कि प्रवीन गोयल ने उनसे डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन तो माँगे हैं लेकिन रेट कार्ड नहीं दिया है - और इस तरह बात फिर बढ़ती ही गई । लोगों के बीच हुई बातचीत से पता चला कि प्रवीन गोयल ने समान श्रेणी के विज्ञापनों के लिए अलग अलग लोगों से अलग अलग दाम माँगे हैं, और शायद इसीलिए वह रेट कार्ड देने में आनाकानी कर रहे हैं । इसी तरह की बातों के बीच आरोप लगे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट प्रवीन गोयल अपनी डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने की आड़ में घपलेबाजी कर रहे हैं और विज्ञापन के नाम पर लोगों से मनमाने दाम बसूल रहे हैं ।
एमपी गुप्ता को विज्ञापन के रेट न देने/बताने का प्रवीन गोयल ने अपने नजदीकियों को जो कारण बताया है, उसने मामले को और दिलचस्प व संदेहास्पद तथा आरोपपूर्ण बना दिया है । प्रवीन गोयल का कहना है कि एमपी गुप्ता रेट इसलिए नहीं पूछ रहे हैं, कि उन्हें विज्ञापन देना है; वह तो रेट इसलिए पूछ रहे हैं, ताकि उसमें वह कोई गड़बड़ी खोजें और फिर उन पर आरोप लगाने का काम करें । लोगों का कहना है कि यदि यह बात सच भी है, तो प्रवीन गोयल को इसमें परेशानी क्या है और क्यों है ? लोगों के बीच सवाल है कि प्रवीन गोयल ने क्या सचमुच डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने के मामले में गड़बड़ी की हुई है, और उन्हें डर है कि एमपी गुप्ता या कोई और उन गड़बड़ियों को कहीं पकड़ न ले ? लोगों का कहना/पूछना है कि प्रवीन गोयल ने विज्ञापनों के मामले में यदि वास्तव में कोई घपला नहीं किया है, तो फिर उन्हें डर क्यों है कि एमपी गुप्ता को उन्होंने यदि रेट बताए तो वह उनकी घपलेबाजी पकड़ लेंगे ? प्रवीन गोयल के नजदीकियों और समर्थकों का भी मानना और कहना है कि एमपी गुप्ता द्वारा विज्ञापनों के रेट माँगने के बाद भी उन्हें रेट न देकर प्रवीन गोयल ने नाहक ही मुसीबत और बदनामी मोल ले ली है, और लोगों के दिमाग में शक के बीज बो दिए हैं । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू की छत्रछाया में रहने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स पर बेईमानी करने के आरोप लगते और साबित होते रहे हैं; इसी चक्कर में एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को दो दो बैलेंसशीट लानी पड़ी थीं तथा एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को हेराफेरी के आरोप में उनके क्लब से ही निकल दिया गया है । इसलिए डिस्ट्रिक्ट में लोग राजा साबू की छत्रछाया में रहने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के कामों और फैसलों को लेकर सतर्क हो गए हैं ।
लोगों की यही सतर्कता प्रवीन गोयल के लिए मुसीबत तथा घबराहट का कारण बन गई है । घबराहट में व्यक्ति जैसे रस्सी को भी साँप समझ लेता है, लगता है कि वैसे ही एमपी गुप्ता द्वारा विज्ञापन के रेट माँगे जाने को प्रवीन गोयल ने 'पकड़े' जाने के रूप में समझ लिया - और उन्होंने मान लिया कि वह रेट नहीं दे कर पकड़े जाने से बच जायेंगे । इस मामले में एमपी गुप्ता की चिट्ठी पर फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन के रूप में शाजु पीटर द्वारा भी चुप्पी मार जाने से मामला और गड़बड़ा गया है । मजे की बात यह है कि इनके ही नजदीकियों और समर्थकों का कहना है कि विज्ञापन के रेट देने/बताने से बच/छिप कर प्रवीन गोयल और शाजु पीटर ने लोगों को यह सोचने के लिए प्रेरित किया है कि डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने के मामले में जरूर ही ऐसी कोई बात है, जिसे यह दोनों लोगों से छिपाना चाहते हैं, और इस तरह इन्होंने अपने आप को मुसीबत व फजीहत के घेरे में फँसा लिया है । इनके नजदीकियों और समर्थकों का ही मानना और कहना है कि एमपी गुप्ता द्वारा विज्ञापनों के रेट कार्ड माँगते ही प्रवीन गोयल यदि उन्हें रेट कार्ड उपलब्ध करवा देते, तो बबाल न फैलता और प्रवीन गोयल आरोपों के घेरे में न फँसते । लोगों का कहना है कि इस प्रसंग से प्रवीन गोयल को सबक लेना चाहिए तथा अपने कार्यक्रमों के खर्चों को पारदर्शी बनाना/रखना चाहिए, जिससे कि कोई उन पर बेईमान होने का आरोप न लगा सके । कई लोगों को लेकिन यह भी लगता है कि राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से इतनी हेराफेरियाँ करवाते हैं, कि वह बेचारा चाहे भी - तो भी अपने कार्यक्रमों के खर्चों को लेकर पारदर्शी नहीं हो सकता है । यह देखना दिलचस्प होगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में प्रवीन गोयल कैसे राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की बेईमानियों को अंजाम देते हैं, या अपने आप को उनसे बचाते हैं !

Friday, June 22, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के इसामे एरिया में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए संतोष शेट्टी की उम्मीदवारी के चक्कर में अशोक मेहता और राजु मनवानी ने वास्तव में क्या नाहक ही अपनी फजीहत नहीं करवा ली है ?

मुंबई । लायंस इंडिया तथा इसामे एरिया लीडरशिप के चेयरमैन के रूप में इंटरनेशनल डायरेक्टर विजय कुमार राजु द्वारा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर राजु मनवानी को धमकाने वाले अंदाज में लिखे पत्र ने तथा एक कारोबारी को भुगतान करने में संतोष शेट्टी द्वारा की जाने वाली आनाकानी को दर्शाते एक ऑडियो के सामने आने के बाद इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए प्रस्तुत की गई संतोष शेट्टी की उम्मीदवारी के गुब्बारे की हवा निकलती नजर आ रही है । संतोष शेट्टी की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए राजु मनवानी को धिक्कारते हुए विजय कुमार राजु ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल का नाम लेकर राजु मनवानी को साफ चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने संतोष शेट्टी का समर्थन करना बंद नहीं किया, तो इसके नतीजे को भुगतने के लिए तैयार रहें । विजय कुमार राजु के पत्र और उसके तेवर ने लायंस सदस्यों व पदाधिकारियों के बीच इस बहस को जन्म दिया है कि भारतीय क्षेत्र के लायंस सदस्य और पदाधिकारी क्या इसामे पदाधिकारियों के 'गुलाम' बन कर ही रहेंगे और इसामे के गिने-चुने पदाधिकारी ही भारत में लायनिज्म को चलायेंगे और अपनी मनमानी दूसरे लोगों पर थोपेंगे ? इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी दौड़ से पिछले वर्ष बाहर हो चुके संतोष शेट्टी को इस वर्ष अचानक से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी दौड़ में जबर्दस्ती कुदवाया ही इसलिए गया, क्योंकि इसामे पदाधिकारियों ने फैसला करते समय पूर्व प्रेसीडेंट अशोक मेहता तक को विश्वास में नहीं लिया । समझा जाता है और मुंबई में लोगों के बीच चर्चा में सुना जाता है कि अपनी उपेक्षा से दुखी और निराश होकर ही अशोक मेहता ने मैदान छोड़ चुके संतोष शेट्टी को पुनः मैदान में ला खड़ा किया । इसामे पदाधिकारियों के साथ अलग किस्म की नाराजगी के चलते राजु मनवानी ने भी संतोष शेट्टी की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया । विजय कुमार राजु ने लेकिन जिस अंदाज में राजु मनवानी को धिक्कारा और धमकाया है, उससे अशोक मेहता और राजु मनवानी का खेल बिगड़ता हुआ दिख रहा है ।
विजय कुमार राजु के पत्र ने वास्तव में संतोष शेट्टी को मिल सकने वाले समर्थन पर रोक लगाने का काम किया है । दरअसल लायनिज्म की जैसी जो 'व्यवस्था' है, लायंस सदस्यों व पदाधिकारियों का जो माइंड-सेट है - उसमें हर कोई 'सत्ता' के साथ ही रहना चाहता है । राजु मनवानी को धिक्कारते और धमकाते पत्र के जरिए विजय कुमार राजु ने इसी माइंड-सेट को नियंत्रित करने की कोशिश की है । विजय कुमार राजु के पत्र ने यह जताने/दिखाने का प्रयास किया है कि भारतीय क्षेत्र की पूरी लीडरशिप इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवारों के मामले में इसामे पदाधिकारियों के फैसले के साथ है । विजय कुमार राजु अपने प्रयास में सफल भी दिखते हैं । पत्र में धमकी भरी भाषा को लेकर राजु मनवानी ने सहानुभूति और समर्थन जुटाने का प्रयास भी किया, लेकिन उनके प्रयासों को कोई कामयाबी मिलती हुई नहीं नजर आई है । इस स्थिति ने राजु मनवानी और अशोक मेहता का मनोबल पूरी तरह से तोड़ दिया है । वास्तव में उन्हें यह देख कर तगड़ा झटका लगा है कि संतोष शेट्टी के चक्कर में भारतीय क्षेत्र के लायन लीडर्स व पदाधिकारियों के बीच वह पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं । उनके समर्थकों को भी लग रहा है कि संतोष शेट्टी के चक्कर में उन्होंने नाहक ही अपनी फजीहत करवा ली है ।
संतोष शेट्टी की आर्थिक हालत की पोल खोलते एक ऑडियो ने भी संतोष शेट्टी की उम्मीदवारी की आड़ लेकर राजनीति करने की अशोक मेहता व राजु मनवानी की कोशिशों को धक्का पहुँचाया है । असल में हवा बनाई गई थी कि संतोष शेट्टी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अच्छा पैसा खर्च करेंगे, जिसके प्रभाव में वह अपनी उम्मीदवारी के लिए जोरदार समर्थन जुटा लेंगे । लायन राजनीति में पैसे का खासा बड़ा रोल तो होता ही है । इस नाते, संतोष शेट्टी की उम्मीदवारी को गंभीरता से लिया जाने लगा । लेकिन एक ऑडियो ने संतोष शेट्टी की आर्थिक हालत की पोल खोल दी, जिसके चलते संतोष शेट्टी की उम्मीदवारी को लेकर बनाई जा रही हवा - हवा हो गई । इस ऑडियो में एक लेनदार संतोष शेट्टी को अपने काम का भुगतान न करने तथा मामले को दो वर्षों से लटकाये रखने के लिए बुरी तरह लताड़ रहा है । करीब नौ मिनट के ऑडियो में संतोष शेट्टी की आर्थिक दशा सामने आ रही है, जिसमें किस्तों में पैसे अदा करने के अपने वायदे में भी उनके लगातार असफल रहने की बात सामने आ रही है, और एक लाख रुपए तक चुकाने में वह अपनी असमर्थता जता रहे हैं । इस ऑडियो के सामने आने के बाद लोगों के बीच सवाल उठा कि आर्थिक तंगी से जूझ रहे संतोष शेट्टी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को भला कैसे अफोर्ड कर सकेंगे ? इसी तरह के सवालों के बीच संतोष शेट्टी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कोशिशों में लगे लोगों ने अपने आप को पीछे कर लिया है । संतोष शेट्टी के समर्थकों व नजदीकियों को डर हुआ है कि वह संतोष शेट्टी की उम्मीदवारी के साथ लगे, तो कहीं ऐसा कि उन्हें पैसे भी अपनी जेब से भरने पड़े । समर्थकों व नजदीकियों के पीछे हटने से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए प्रस्तुत संतोष शेट्टी की उम्मीदवारी के गुब्बारे की हवा पूरी तरह निकल गई दिख रही है । 
सामने आया राजु मनवानी को लिखा विजय कुमार राजु का पत्र :

Dear PID Lion Raju V Manwani,

Namaste!

I am appalled to receive an appeal from you requesting me and others to support the candidature of PCC Lion Santosh Shetty for the position of International Director at Las Vegas Convention.

You are well aware that Indian Leadership under the auspices of LCCIA had taken a unanimous decision to support the candidature of the following two Lion Leaders for the position of International Director from India:

1)      Lion JP Singh from MD 321, India 
2)      Dr. J Nawal Malu from MD 3234, India
 

You are also aware that ISAAME Area Leadership has decided to support two more Lion Leaders, namely:

1)      Lion Qazi Akramuddin Ahmed from MD 315, Bangladesh
2)      Lion Mian Muhammad Adrees from MD 305, Pakistan
 
in addition to the above two Lion Leaders from India.
 
You are also aware that there are only four seats for ISAAME Area to be chosen at Las Vegas Convention. When you attended the meeting at Delhi on June 13, 2018, our International President Lion Dr. Naresh Aggarwal, as well as other Directors and Past International Directors, have requested you to dissuade PCC Lion Santosh Shetty from contesting in Las Vegas Convention. A fervent appeal/plea was made to you to fall in line with the Indian Leadership in promoting the candidature of the four Lion Leaders as mentioned above in the International Convention at Las Vegas.
 
You were very kind and gracious enough to do the needful in this regard. Hope you will understand and appreciate that never in the past there was any rebellion in the promotion of candidates from India. All the candidates and all the  Leaders of various Regions in India have put their faith in the Indian Leadership and abided by their decision.  There is no room for any fissiparous tendency in promoting a dissident Lion Leader for a global position. Having listened to all these pleas and having agreed to dissuade PCC Lion Santosh Shetty from contesting in Las Vegas Convention, now it has come as a bolt from the blue to know that you are appealing to other Leaders of India to support the candidature of PCC Lion Santosh Shetty. We never expected that a committed and determined Lion Leader in the stature of Dr. Raju V Manwani to bow down to the local pressures disregarding the appeal of the Indian Leadership.
 
As the Chairman of LCCIA, I am really pained to know the deviation from the accepted path of our commitment to uphold the Leadership decision of India      
 
Even now it is not too late and I would once again appeal to you to kindly retrace your steps and refrain/restrain yourself from joining the chorus of supporting someone who is not selected by Indian Leadership.  Such a course would enhance the prestige of International President Lion Dr. Naresh Aggarwal as well as LCCIA.
 
For any reason, if you do not follow the path/decision, which all of us have jointly taken, then you will have to face the necessary consequences and you and other Leaders, who join you from that Region, will be held responsible for the same.
 
Kindly acknowledge receipt and confirm that you will uphold the decision arrived at by the Indian Leadership.
 
Thanks and regards,
 
Regards,


Vijay Kumar Raju
International Director,
Chairman, Lions India (LCCIA)​ ​
Chairman, ISAAME Area Leadership
+918388999999

Thursday, June 21, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से बर्खास्त सतीश सिंघल के अवॉर्ड फंक्शन पर रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारियों की नजर होने की सूचना के चलते दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता ने तो अपने आपको फंक्शन से दूर कर लिया है, लेकिन मुकेश अरनेजा अभी असमंजस में हैं

गाजियाबाद । पैसों की बेईमानी करने के आरोप में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से बर्खास्त सतीश सिंघल द्वारा फर्जी तरीके से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अवॉर्ड फंक्शन किए जाने का संज्ञान लेते हुए फंक्शन पर निगाह रखने की रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय की कार्रवाई ने पूर्व गवर्नर मुकेश अरनेजा तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी दीपक गुप्ता व अतुल गुप्ता के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है । सतीश सिंघल की तरफ से दावा किया गया है कि यह तीनों उनके अवॉर्ड फंक्शन में शामिल होंगे । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय की 'सख्ती' के चलते दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता ने तो कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर अपने पाँव पीछे खींच लिए हैं, जबकि मुकेश अरनेजा कभी हाँ तो कभी न के झमेले में फँसे हैं । मुकेश अरनेजा कभी तो कहते हैं कि उस दिन वह एक पारिवारिक कार्यक्रम में व्यस्त होने के कारण अवॉर्ड फंक्शन में नहीं आ सकेंगे, अन्यथा वह जरूर शामिल होते; तो कभी दावा करते हैं कि वह अवॉर्ड फंक्शन में अवश्य ही शामिल होंगे और इसके लिए रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय द्वारा दी जाने वाली किसी भी सजा को भुगतने के लिए तैयार हैं । मुकेश अरनेजा तेवर दिखाते हुए कहते/बताते हैं कि रोटरी इंटरनेशनल उनका क्या कर लेगा, ज्यादा से ज्यादा दो-तीन वर्षों के लिए इंटरनेशनल असाईनमेंट देने पर रोक लगा देगा; ऐसे भी इंटरनेशनल असाईनमेंट उन्हें कौन से मिल रहे हैं, बड़े पदाधिकारियों की खुशामद कर-करा कर कभी कहीं किसी डिस्ट्रिक्ट में रिप्रेजेंटेटिव बनने का जुगाड़ वह कर लेते हैं, वह नहीं कर पायेंगे तो क्या हो गया ? साथ ही साथ मुकेश अरनेजा लेकिन डर भी जाते हैं कि बर्खास्त सतीश सिंघल के अवॉर्ड फंक्शन में जाने के कारण कहीं दीपक गुप्ता के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के उनके पद पर संकट न आ जाये, इसलिए वह पारिवारिक कार्यक्रम का वास्ता देकर अवॉर्ड फंक्शन से दूर रहने की बात भी करते हैं ।
रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से बर्खास्त किए गए सतीश सिंघल द्वारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अवॉर्ड फंक्शन किए जाने की सूचना मिली तो उन्होंने यह देखने/जानने की 'व्यवस्था' की कि उनके फंक्शन को रोटरी इंटरनेशनल के कौन कौन पदाधिकारी समर्थन दे रहे हैं ? खास बात यह रही कि पदाधिकारियों ने फंक्शन के खिलाफ कार्रवाई करने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह कोई पुलिस नहीं हैं कि रोटरी के नाम पर हो रही ठगी को रोकने के लिए अपने स्तर पर कार्रवाई करें; उनका कहना है कि रोटरी के नाम पर होने वाली ठगी से बचने के लिए रोटेरियंस को खुद ही बचने के प्रयत्न करने होंगे; रोट्रेरियंस यदि ठगी का शिकार होने के लिए और मूर्ख बनने के लिए तैयार हैं, तो वह क्या कर सकते हैं ? लेकिन यह 'देखना' उन्होंने अपनी जिम्मेदारी माना कि रोटरी इंटरनेशनल का कोई पदाधिकारी तो रोटरी के नाम पर होने वाली ठगी में सहायक नहीं बन रहा है । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारियों का कहना है कि सतीश सिंघल चूँकि अब रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारी नहीं रह गए हैं, इसलिए वह क्या करते हैं इससे उन्हें कोई मतलब नहीं है; लेकिन दूसरे पदाधिकारी क्या कर रहे हैं, यह उन्हें जरूर देखना है । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारी मुकेश अरनेजा, दीपक गुप्ता व आलोक गुप्ता को सतीश सिंघल के समर्थकों व सहयोगियों के रूप में देखते हैं; ऐसा वह सतीश सिंघल की बातों के आधार पर ही 'देखते' हैं, सतीश सिंघल खुद कई बार कह चुके हैं कि अपने हर काम में उन्हें इन तीनों का सहयोग मिलता रहा है और मिलता रहेगा । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारियों की नजर इसीलिए इन तीनों पर है ।
रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारियों की नजर में होने की सूचना पा कर दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता ने तो अपने आपको सतीश सिंघल के अवॉर्ड फंक्शन से दूर कर लिया है । दीपक गुप्ता शहर से बाहर और दूर होने के कारण स्वतः बच गए और उन्हें कोई बहाने नहीं खोजने पड़े; आलोक गुप्ता ने लेकिन कुछ कुछ कारण बता कर 'व्यवस्था' कर ली है कि वह फंक्शन में और सतीश सिंघल के सहयोगी के रूप में न दिखें; मुकेश अरनेजा, जैसा कि पहले बताया जा चुका है, लेकिन अभी दोहरा रवैया अपनाए हुए हैं और ऐसा कोई उपाय देख रहे हैं जिससे लोगों को भी लगे कि उन्होंने सतीश सिंघल का साथ नहीं छोड़ा है, और रोटरी इंटरनेशनल की 'नजर' में आने से भी वह बच जाएँ । सतीश सिंघल और उनके साथियों को अवॉर्ड फंक्शन के प्रति रोटेरियंस के उपेक्षाभरे रवैये को भी झेलना पड़ रहा है । अवॉर्ड फंक्शन के निमंत्रण पत्र में जिन लोगों के नाम छपे हैं, उनमें ही कईयों का कहना है कि सतीश सिंघल ने मनमाने तरीके से उनके नाम छाप लिए हैं, और उनका इस अवॉर्ड फंक्शन से कोई लेनादेना नहीं है । दरअसल अवॉर्ड के आकांक्षी रोटेरियंस को भी लग रहा है कि रोटरी के नाम पर बेईमानी करने के आरोप में रोटरी इंटरनेशनल द्वारा बर्खास्त किये गए सतीश सिंघल के अवॉर्ड फंक्शन से जुड़ने में और या उनके हाथों से अवॉर्ड लेने में उपलब्धि और गर्व की बात भला क्या होगी, और इसीलिए अवॉर्ड को लेकर उनमें कोई उत्साह नहीं है । इसीलिए रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए निर्धारित की गई 20 जून की तारिख तक गिने-चुने लोगों ने ही रजिस्ट्रेशन करवाया है, जिसके कारण फंक्शन से जुड़े लोगों को 21 जून को लोगों को मैसेज भेजना पड़ा है कि जिन्होंने रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया है, वह रजिस्ट्रेशन करवा लें । सतीश सिंघल के लिए मुसीबत और फजीहत की बात यह हो रही है कि उनके समर्थक व शुभचिंतक के रूप में देखे जाने वाले कई वरिष्ठ रोटेरियंस ने अपने आपको उनके अवॉर्ड फंक्शन से दूर रखा हुआ है, और वह यह मान/कह रहे हैं कि इस फंक्शन से सतीश सिंघल ने अपनी बदनामी और फजीहत को और बढ़ा लिया है ।

Tuesday, June 19, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की बदतमीजी का शिकार बनीं आभा झा चौधरी की बढ़ती पहचान-प्रतिष्ठा को देख कर बौखलाए रवि चौधरी अपनी हरकतों से अपनी कलंक-कथा को और 'चर्चित' करने में जुटे

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी इन दिनों जिस तरह से लगभग बंद हो चुके आभा झा चौधरी के मामले से जुड़े अध्याय को पुनर्जीवित करने में लगे हैं और जहाँ तहाँ आभा झा चौधरी की शिकायत करते सुने जा रहे हैं, उससे लोगों को लग रहा है कि आभा झा चौधरी के मामले में रवि चौधरी को कुछ ज्यादा गहरी चोट लगी है - जिसके दर्द से वह रह रह कर कराह उठते हैं । मजे की बात यह भी है कि उक्त मामले में रवि चौधरी अपने आपको विजेता की तरह 'दिखाते' हैं और लोगों को बताते/कहते फिर रहे हैं कि रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करने के बावजूद आभा झा चौधरी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाईं, जबकि उन्होंने उन्हें उनके क्लब से ही निकलवा दिया है । लोगों के बीच हैरानी इस बात को लेकर है कि रवि चौधरी जब अपने आप को विजेता मान/समझ रहे हैं तो वह अपनी तथाकथित जीत को एन्जॉय क्यों नहीं कर पा रहे हैं, वह जहाँ तहाँ आभा झा चौधरी को लेकर शिकायतों की पोटली खोल कर क्यों बैठ जाते हैं ? लोगों के बीच यह बात इसलिए भी उठती है, क्योंकि वह देखते/पाते हैं कि आभा झा चौधरी तो उक्त मामले का रोना नहीं रोती हैं, वह तो अपनी गतिविधियों के साथ सामाजिक जीवन में आगे बढ़ चुकी हैं - रवि चौधरी लगता है कि वहीं के वहीं ठहरे हुए हैं । रवि चौधरी का यह हाल देख कर मशहूर कहानी 'जीत की हार' याद आती है, जिसमें डाकू खड़क सिंह लूट में कामयाब हो जाने के बाद भी अपने आप को हारा हुआ महसूस करता है । रवि चौधरी की हालत भी कहानी के डाकू खड़क सिंह जैसी लग रही है; रवि चौधरी ने डॉक्टर सुब्रमणियन व संजीव राय मेहरा के साथ मिलकर तिकड़मबाजी करके पहले तो अपने आप को आभा झा चौधरी के आरोपों से बचा लिया और फिर उन्हें ही उनके क्लब से निकलवा भी दिया - लेकिन इस चक्कर में रोटरी जगत में रवि चौधरी ने अपनी जो थू थू करवाई, उसने उनकी 'जीत' को हार में बदलने का ही काम किया है । दरअसल आभा झा चौधरी के मामले ने रवि चौधरी की छिछोरबाजी के दबे/ढके 'व्यवहार' को सामने लाने का काम किया और उनकी कारस्तानियों की पोल खोली, जिसके चलते रवि चौधरी बदनामी के ऐसे दलदल में धँसे/फँसे कि उससे उनका उबरना मुश्किल क्या, असंभव ही हुआ ।
अपनी 'जीत' को हार में बदलते देख कर ही रवि चौधरी बौखलाए हुए हैं और एक लगभग बीत चुकी बात को अभी भी याद करते हुए अपनी जीत की झूठी शेखी दिखाते हुए अपने 'दर्द' को सहलाते रहते हैं । रवि चौधरी के नजदीकियों का कहना है कि रवि चौधरी वास्तव में यह देख कर और चिढ़े हुए हैं कि अपने डिस्ट्रिक्ट में तो उन्होंने तिकड़म करके आभा झा चौधरी को अलग-थलग कर दिया था, लेकिन रोटरी जगत में आभा झा चौधरी की पहचान और सक्रियता को बढ़ने से वह नहीं रोक पाए हैं । अभी हाल ही में रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3170 के एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम में तथा रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3250 के रोटरी क्लब मिथिला के एक बड़े स्थानीय आयोजन में आभा झा चौधरी को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया । गवर्नर्स के अलावा किसी रोटेरियन को रोटरी जगत में और दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में ऐसी पहचान व सम्मान मिला हो, जैसा सम्मान आभा झा चौधरी को मिला है - ऐसा देखने/सुनने में नहीं आया है । रवि चौधरी के लिए चिढ़ने की बात दरअसल यही हुई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने तथा तमाम तिकड़मों में पारंगत होने के बावजूद उनके हिस्से में तो सिर्फ बदनामी और फजीहत आ रही है, जबकि आभा झा चौधरी रोटरी में लगातार सक्रिय बनी हुई हैं और जगह जगह सम्मानित हो रही हैं । इतना ही नहीं, रोटरी के बाहर भी विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में आभा झा चौधरी ने अपनी सक्रियता से न सिर्फ अपनी पहचान बनाई है, बल्कि विभिन्न रूपों में सम्मानित भी हुई हैं । कुछ ही समय पहले एक भव्य कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह व देश के अन्य प्रमुख लोगों के हाथों आभा झा चौधरी सम्मानित हुई हैं, जिससे उनकी सामाजिक पहचान का दायरा लोगों को न सिर्फ बढ़ा हुआ दिखा है - बल्कि उसमें प्रतिष्ठित होने का सुबूत भी लोगों को देखने को मिला है ।
रवि चौधरी के साथ लेकिन इसका ठीक उल्टा हुआ है । उनकी हरकतों का ही नतीजा रहा कि डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होते हुए भी उन्हें डिस्ट्रिक्ट के बड़े आयोजनों में अलग-थलग कर देने के प्रयास हुए - जिसका नजारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया की डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में देखने को मिला, जहाँ पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन और पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता की मौजूदगी में रवि चौधरी को रिकॉग्नाइज तक नहीं किया गया । रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया तथा डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर व पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल के खिलाफ गाली-गलौच करके बताना पड़ा कि वह अभी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, और उन्हें इस तरह से अपमानित नहीं किया जा सकता है । इसके बाद, रवि चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में हुए अपने अपमान के मुद्दे पर काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुलवाई, तो उसमें भी प्रायः सभी पूर्व गवर्नर्स ने उनके व्यवहार और रवैये के लिए उन्हें ही जमकर लताड़ा । रोटरी साऊथ एशिया जोन के 39 डिस्ट्रिक्ट्स में किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को अपने ही डिस्ट्रिक्ट में काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में ऐसी लताड़ पड़ी हो, ऐसा सुनने/देखने को नहीं मिला है । समझा जा सकता है कि जब अपने ही डिस्ट्रिक्ट में रवि चौधरी की यह 'औकात' रह गई है, और वह भी तब जब वह अभी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर हैं - तो कुल मिलाकर रोटरी में उनकी 'पहचान' क्या बनी रह गई है । रोटरी साऊथ एशिया जोन में डिस्ट्रिक्ट 3012 के गवर्नर सतीश सिंघल हालाँकि बेईमानी के आरोपों के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से बर्खास्त किये गए हैं, लेकिन रोटरी में बदनामी के मामले में रवि चौधरी उनसे भी आगे 'देखे/पहचाने' जा रहे हैं । आभा झा चौधरी द्वारा की गई शिकायत पर रवि चौधरी तीन-तिकड़म करके अपनी गवर्नरी तो बचाने में किसी तरह सफल हो गए, लेकिन बदनामी के कलंक से वह फिर भी नहीं बच सके ।
रवि चौधरी के नजदीकियों का कहना/बताना है कि रवि चौधरी भी सच्चाई को समझ/पहचान रहे हैं, और इसीलिए वह तरह तरह से बौखला रहे हैं । ऐसे में, आभा झा चौधरी की सक्रियता और उपलब्धियों की खबरें व तस्वीरें उनकी बौखलाहट को और बढ़ाने का काम कर रही हैं । इसी बौखलाहट में रवि चौधरी लोगों को बताने/जताने में लगे हैं कि आभा झा चौधरी के मामले में 'जीते' तो वह हैं, और इस तरह एक लगभग बंद हो चुके अध्याय को वह पुनर्जीवित कर रहे हैं तथा अपनी ही कलंक-कथा को 'चर्चित' बनाने में लग गए हैं । लोगों का कहना है कि जीत का उनका दावा लेकिन उनकी खुशी या संतुष्टि को नहीं, बल्कि उनकी निराशा व बौखलाहटभरी चिढ़ को ही सामने ला रहा है - तथा 'दिखा/बता' रहा है कि आभा झा चौधरी के साथ की गई उनकी बदतमीजीपूर्ण हरकत तथा उस हरकत का संज्ञान लेते हुए आभा झा चौधरी द्वारा की गई कार्रवाई ने रवि चौधरी का असली रूप लोगों के सामने ला दिया है, जिसने उनकी तथाकथित जीत को भी वास्तव में हार में बदल दिया है ।

Monday, June 18, 2018

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल की चुनावी लड़ाई से महेश मडखोलकर के बाहर रहने पर भी श्रीनिवास जोशी पिछली बार की हार को जीत में सचमुच बदल सकेंगे क्या और या फिर से 'अपमान' का शिकार होंगे ?

मुंबई । पिछली बार के चुनाव में सेंट्रल काउंसिल की अपनी सीट गवाँ बैठे श्रीनिवास जोशी इस बार के चुनाव में अपनी जीत पक्की करने के लिए महेश मडखोलकर को चुनाव न लड़ने के लिए राजी करने के प्रयासों में जुटे हैं, लेकिन रमेश प्रभु की उम्मीदवारी की चर्चा उनकी मुसीबतों को बढ़ाने का काम कर रही है - जिसके चलते श्रीनिवास जोशी के लिए मामला 'आसमान से टपके, खजूर पर अटके' जैसी हो गई है । उल्लेखनीय है कि पिछली बार की अपनी पराजय के लिए श्रीनिवास जोशी, मंगेश किनरे और महेश मडखोलकर की उम्मीदवारी को मानते/ठहराते हैं । दरअसल उनका ही नहीं, अन्य लोगों का भी मानना और कहना है कि मुंबई से एक ही मराठी उम्मीदवार सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जीत सकता है । वर्ष 2012 में श्रीनिवास जोशी को इसी बात का अच्छा फायदा मिला था, और वह जीतने वाले लोगों में छठवें नंबर पर रहे थे । वर्ष 2012 में सेंट्रल काउंसिल के लिए अच्छी जीत हासिल करने वाले श्रीनिवास जोशी वर्ष 2015 के चुनाव में लेकिन 16वें नंबर पर लुढ़क गए । वर्ष 2015 में श्रीनिवास जोशी की सेंट्रल काउंसिल की सीट मंगेश किनरे ने छीन ली । श्रीनिवास जोशी के लिए संकट की बात यह रही कि पहले तो पहली वरीयता के वोटों की गिनती में श्रीनिवास जोशी, मंगेस किनरे से करीब दो सौ वोट पीछे रहे; और फिर मंगेस किनरे तो उछलते/बढ़ते 15वें स्थान से छठवें स्थान पर पहुँच गए, लेकिन श्रीनिवास जोशी 17वें स्थान से बढ़ कर 16वें स्थान तक ही पहुँच पाए । इस बुरे नतीजे को श्रीनिवास जोशी ने अपने अपमान के रूप में लिया है, और वह लगातार दावा कर रहे हैं कि इस बार के चुनाव में वह पिछली बार हुए अपमान का बदला लेंगे ।
पिछली बार हुए अपमान का बदला लेने के लिए श्रीनिवास जोशी तरह तरह से महेश मडखोलकर पर दबाव बना रहे हैं कि वह इस बार सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत न करें । श्रीनिवास जोशी उन्हें समझा रहे हैं कि वह यदि उम्मीदवार बनेंगे तो जीत तो नहीं ही पायेंगे; इसलिए वह यदि इस बार उन्हें उम्मीदवार बनने दें, तो अगली बार वह उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे; श्रीनिवास जोशी ने महेश मडखोलकर से वायदा किया है कि उन्हें बस एक बार चुनाव लड़ना है और पिछली बार के अपमान का बदला लेना है । उल्लेखनीय है कि पिछली बार पहली वरीयता के वोटों की गिनती में 1395 वोटों के साथ श्रीनिवास जोशी 17वें स्थान पर थे, तो महेश मडखोलकर 1254 वोटों के साथ 18वें स्थान पर थे । मंगेस किनरे 1603 वोटों के साथ 15वें स्थान पर थे । वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के 22 उम्मीदवारों की गिनती का काम आगे बढ़ा तो श्रीनिवास जोशी और मंगेस किनरे के बीच का अंतर कम हो रहा था; लेकिन महेश मडखोलकर के मुकाबले से बाहर होने पर मंगेस किनरे को खासी बढ़त मिली । दरअसल महेश मडखोलकर के दूसरी वरीयता के वोटों में बड़ा हिस्सा मंगेस किनरे को मिला, जिसके चलते श्रीनिवास जोशी के लिए फिर मंगेस किनरे को पकड़ पाना मुश्किल हो गया । श्रीनिवास जोशी को लगता है कि महेश मडखोलकर की उम्मीदवारी ने पहले तो पहली वरीयता के उनके वोटों में सेंध लगाई और फिर दूसरी वरीयता के वोटों में भी वह पिछड़ गए; उनका आकलन है कि महेश मडखोलकर यदि उम्मीदवार न होते, तो मंगेस किनरे को ज्यादा बढ़त नहीं मिलती - और जो मिलती उसे वह कवर कर लेते । इसी आकलन के भरोसे, श्रीनिवास जोशी इस बार प्रयास कर रहे हैं कि महेश मडखोलकर इस बार उम्मीदवार न बनें - ताकि वह सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जीत सकें और पिछली बार के अपमान का बदला ले सकें ।
श्रीनिवास जोशी के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना हालाँकि यह भी है कि पिछली बार की अपनी हार के लिए महेश मडखोलकर को जिम्मेदार ठहराकर श्रीनिवास जोशी अपनी कमजोरियों पर पर्दा डालने का काम कर रहे हैं, और इस रवैये से वह पिछली बार की हार को जीत में नहीं बदल सकेंगे । उनका कहना है कि श्रीनिवास जोशी को इस तथ्य पर भी विचार करना चाहिए कि सेंट्रल काउंसिल में होते हुए भी वह लोगों के बीच अपना समर्थन-आधार बनाए रखने व बढ़ाने में सफल क्यों नहीं हुए, और क्यों मंगेस किनरे उनके समर्थकों का एक बड़ा हिस्सा ले उड़े ? महेश मडखोलकर भी उनके समर्थकों के बीच सेंध लगाने में सफल रहे और वह समर्थक दूसरी वरीयता का वोट भी श्रीनिवास जोशी को देने को तैयार नहीं हुए । श्रीनिवास जोशी के शुभचिंतकों का ही मानना और कहना है कि श्रीनिवास जोशी यदि इसी चक्कर में पड़े रहे कि महेश मडखोलकर को सेंट्रल काउंसिल की चुनावी लड़ाई से बाहर रख/रखवा कर वह पिछली बार के अपमान का बदला ले लेंगे, तो अब की बार वह फिर अपमान का शिकार होंगे; इसलिए जरूरी है कि वह चुनावी परिदृश्य का तथा अपनी कमजोरियों का ईमानदारी से आकलन करें और अपनी कमजोरियों को सचमुच में दूर करने का प्रयास करें । शुभचिंतकों की इस तरह की नसीहतों के साथ-साथ को-ऑपरेटिव सेक्टर में अच्छी दखल रखने वाले वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट रमेश प्रभु के उम्मीदवार बनने की चर्चा ने भी श्रीनिवास जोशी के लिए मुसीबतों का बढ़ाने का ही काम किया है । दरअसल रमेश प्रभु और महेश मडखोलकर के बीच अच्छे संबंध देखे/बताये जाते हैं; जिस बिना पर लोगों को लगता है कि श्रीनिवास जोशी के दबाव में महेश मडखोलकर ने सेंट्रल काउंसिल का चुनाव यदि नहीं भी लड़ा, तो वह रमेश प्रभु की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे । इस तरह श्रीनिवास जोशी के लिए मामला 'आसमान से गिरे, खजूर पर अटके' जैसा हो गया है । देखना दिलचस्प होगा कि पिछली बार की अपनी हार का बदला लेने के लिए श्रीनिवास जोशी अपने ही शुभचिंतकों की नसीहत पर ध्यान देते हैं या नहीं; और यदि देते हैं तो करते क्या हैं ?

Sunday, June 17, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में टीके रूबी को लेकर 'डाउन सिंड्रोम' के शिकार राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स के रवैये को एक बार फिर जाहिर करते हुए शाजु पीटर ने टीके रूबी के डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के आवेदन को चालाकी दिखाते हुए खारिज किया और कई क्लब्स का हक मारा

चंडीगढ़ । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर और रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी सुशील गुप्ता की सहमति तथा रोटरी इंटरनेशनल की रीजनल ग्रांट्स ऑफिसर चंद्रा पामर के आदेश के बावजूद डीआरएफसी के रूप में शाजु पीटर ने डिस्ट्रिक्ट ग्रांट 1860814 को स्वीकृति देने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी की माँग को खारिज करके एक बार फिर साबित कर दिया है कि रस्सी जल गई है, पर राजा साबू गिरोह के लोगों का बल अभी भी नहीं गया है - और डिस्ट्रिक्ट में मनमानी लूट-खसोट करने की कोशिशों से वह अभी भी बाज नहीं आ रहे हैं । पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन हाल ही में संपन्न हुए डिस्ट्रिक्ट असेम्बली कार्यक्रम में 'जोर का झटका धीरे से' वाले अंदाज में बता गए हैं कि रोटरी में राजा साबू और उनके डिस्ट्रिक्ट की अब पहले जैसी साख नहीं रह गई है; राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने इस बात को कैसे लिया, यह तो वही जानें, लेकिन शाजु पीटर की कार्रवाई 'बताती' है कि उन्होंने केआर रवींद्रन की 'चेतावनी' भरे तथ्य की परवाह करने की जरूरत नहीं समझी है । अभी हाल ही में, रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने डिस्ट्रिक्ट 3080 के गवर्नर्स को 'सलाह' दी है कि जिन मुद्दों पर उनके बीच मतभेद उभरते हैं, उन्हें आपस में विचार-विमर्श करके स्वयं ही हल करें - लेकिन लगता है कि टीके रूबी को लेकर राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने जिस तरह से अपना मुँह खुद ही नोच नोच कर कर लहुलुहान कर लिया है, उससे उनका मन अभी भी भरा नहीं है और वह अभी अपनी और फजीहत करवाने पर तुले हुए हैं ।
डिस्ट्रिक्ट ग्रांट 1860814 के मामले में शाजु पीटर ने जो रवैया 'दिखाया', उससे एक बार फिर लोगों को यह नजारा देखने को मिला कि टीके रूबी के मामले में राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स में 'डाउन सिंड्रोम' जैसी बीमारी के लक्षण न सिर्फ बने हुए हैं, बल्कि वह बढ़ते ही जा रहे हैं । इस बीमारी के शिकार लोगों में जो मानसिक विकार पैदा होता है, उसमें हालाँकि 'उचित देखभाल' से सुधार किया जा सकता है; लेकिन टीके रूबी को लेकर राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स में जो मानसिक विकार पैदा हुआ है, उसे रोटरी इंटरनेशनल के विभिन्न पदाधिकारियों के द्वारा किये गए 'उपचार' के बावजूद सुधारा नहीं जा सका है । इस बीमारी के शिकार राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने निवर्त्तमान इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म तक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, क्योंकि उन्होंने टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर घोषित कर दिया था । डिस्ट्रिक्ट 3080 में ही नहीं, शायद किसी भी डिस्ट्रिक्ट में पहली बार यह देखने को मिला कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में इंटरनेशनल डायरेक्टर को शामिल होना पड़ा हो, ताकि गवर्नर्स के बीच विचार-विमर्श के जरिये मामलों को हल करने की 'सोच' बन सके । लेकिन बासकर चॉकलिंगम के जरिये रोटरी इंटरनेशनल पदाधिकारियों द्वारा किया गया यह प्रयास भी राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की बीमारी दूर नहीं कर सका । एक सर्वमान्य समझ है कि व्यक्ति ठोकरें खाकर भी सबक सीखता है; टीके रूबी के मामले में राजा साबू और उनके साथी ठोकरों पर ठोकरें खाते रहे हैं लेकिन मजाल है कि उन्होंने कोई सबक सीखा हो । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने टीके रूबी को 'गिराने' के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से डिस्ट्रिक्ट में तिकड़में कीं, रोटरी इंटरनेशनल में शिकायतें कीं, थाना-कचहरी तक किया - लेकिन इतने सब के बाद भी वह टीके रूबी का कुछ नहीं बिगाड़ पाए हैं । इस असफलता ने लगता है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की बीमारी को और बढ़ा दिया है, जिसका असर डिस्ट्रिक्ट ग्रांट 1860814 के मामले में शाजु पीटर द्वारा अपनाए गए रवैये में दिखता है ।
शाजु पीटर को उक्त 'बीमारी' ने किस कदर जकड़ा हुआ है, यह इसी से साबित है कि चंद्रा पामर को संबोधित पत्र में शाजु पीटर यह झूठ बोलने में भी नहीं हिचकिचाये कि उक्त ग्रांट का पूरा लाभ टीके रूबी के क्लब को मिलेगा । शाजु पीटर ने अपने इस पत्र में यह जताने का प्रयास किया है कि जैसे वह बहुत नियम-कानून से काम करने वाले व्यक्ति हैं; पर यदि वह सचमुच नियम-कानून से काम करते होते तो वर्ष 2015-16 की जो डिस्ट्रिक्ट ग्रांट उन्होंने अब बंद की है, वह जून 2016 में बंद हो गई होती । जून 2016 में बंद हो जाने वाली डिस्ट्रिक्ट ग्रांट को शाजु पीटर ने यदि दो वर्ष तक खोले रखा है, तो इसमें पीछे उनका वास्तवविक उद्देश्य डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के पैसे को ग्लोबल ग्रांट में ट्रांसफर करवाने की तिकड़म के रूप में देखा गया है । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ग्लोबल ग्रांट को हड़प कर उससे अपने घूमने/फिरने और अपने संबंध बनाने का काम करने का जुगाड़ बनाये रखने में दिलचस्पी लेते हैं । शाजु पीटर ने जो डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अब बंद की है, वह यदि जून 2016 में बंद हो गई होती, तो उसके बाद के दो वर्षों में मंजूर होने वाली डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा क्लब्स को मिलता; लेकिन शाजु पीटर के बेईमानीपूर्ण रवैये से रमन अनेजा और टीके रूबी के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा ग्लोबल ग्रांट में ट्रांसफर हो गया है, जो प्रोजेक्ट्स के नाम पर राजा साबू व उनके साथी गवर्नर्स के घूमने/फिरने व संबंध बनाने के काम आयेगा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी ने एक प्रोजेक्ट के जरिये डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा कुछेक क्लब्स के प्रोजेक्ट्स को दिलवाने का प्रयास किया था, जिसे लेकिन शाजु पीटर ने नियमों का हवाला देकर सफल नहीं होने दिया ।
खास बात यह रही कि शाजु पीटर की आपत्ति को लेकर टीके रूबी ने रोटरी इंटरनेशनल की रीजनल ग्रांट्स ऑफिसर चंद्रा पामर से भी बात की और चंद्रा पामर ने भी माना और कहा कि टीके रूबी की माँग को पूरा किया जा सकता है; पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर और रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी सुशील गुप्ता ने भी टीके रूबी के दावे को उचित माना और उसके लिए समर्थन घोषित किया - लेकिन फिर भी शाजु पीटर ने टीके रूबी के आवेदन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है । ऐसा करते हुए शाजु पीटर को यह भी लगता है कि जैसे उन्होंने टीके रूबी को भी चोट पहुँचाई है । आरोपपूर्ण चर्चा यही है कि शाजु पीटर ने ऐसा इसलिए भी किया है कि टीके रूबी की कोशिशों के चलते डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा यदि क्लब्स को मिल गया तो ग्लोबल ग्रांट के जरिये राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को मिलने वाला पैसा कम पड़ जाता; राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को ग्लोबल ग्रांट में पैसे की कमी न पड़ जाये, इसलिए शाजु पीटर ने चालाकी दिखाते हुए क्लब्स को मिल सकने वाली ग्रांट का पैसा मार लिया है ।

Saturday, June 16, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में हार का बदला लेते हुए केएस लूथरा ने जीमखाना क्लब के चुनाव में गुरनाम सिंह को जो पटखनी दी है, उसके चलते गुरनाम सिंह खेमे के सामने बीएन चौधरी, पराग गर्ग और जगदीश अग्रवाल में से उम्मीदवार चुनने की चुनौती गंभीर हो गई है

लखनऊ । विशाल सिन्हा जिस तरह से बीएन चौधरी की उम्मीदवारी की बात करते करते पराग गर्ग की उम्मीदवारी की बात करने लगे हैं, और जगदीश अग्रवाल भी जिस तरह से विशाल सिन्हा के समर्थन का नाम लेकर अपनी उम्मीदवारी की चर्चा चला रहे हैं, उससे लोगों को लगने लगा है कि विशाल सिन्हा ने अगले लायन वर्ष में उम्मीदवारी के नाम पर अपनी जेब भरने का अच्छा इंतजाम कर लिया है । उल्लेखनीय है कि गुरनाम सिंह खेमे की तरफ से हालाँकि अभी तक बीएन चौधरी का नाम ही 'क्लियर' है, और गुरनाम सिंह तरह तरह की कोशिशों के जरिये उनकी उम्मीदवारी के लिए सहमति बनाने का प्रयास कर रहे हैं । बीएन चौधरी की उम्मीदवारी पर सहमति बनाने के प्रयासों के बीच विशाल सिन्हा ने लेकिन पराग गर्ग की उम्मीदवारी की बात चलाई हुई है । इसी 'बात' का नतीजा है कि जो पराग गर्ग कुछ समय पहले तक गुरनाम सिंह की बड़ी खिलाफत और आलोचना किया करते थे, आज उन्हीं गुरनाम सिंह के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं । समझा जा रहा है कि पराग गर्ग के इस हृदय परिवर्तन के पीछे मुख्य कारण विशाल सिन्हा का उन्हें उम्मीदवारी के बाबत दिया गया आश्वासन ही है । विशाल सिन्हा के नजदीकियों का ही कहना है कि विशाल सिन्हा ने पराग गर्ग को समझाया है कि गुरनाम सिंह भले ही बीएन चौधरी की उम्मीदवारी के पक्ष में सहमति बनाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन सहमति बनेगी नहीं और चुनाव लड़ने के लिए बीएन चौधरी तैयार होंगे नहीं; इसलिए उनके खेमे में उम्मीदवार की बैकेंसी खाली ही समझिये - जिसे भरने का मौका पराग गर्ग को ही मिलेगा । यानि अभी पराग गर्ग गुरनाम सिंह खेमे के अतिरिक्त खिलाड़ी हैं, जिन्हें मुख्य खिलाड़ी के 'आउट' होने पर ही खेलने का मौका मिलेगा । पराग गर्ग ने लगता है कि इस 'स्थिति' को स्वीकार कर लिया है ।
पराग गर्ग के लिए लेकिन इससे भी बड़ी समस्या जगदीश अग्रवाल की सक्रियता है । जगदीश अग्रवाल का दावा है कि गुरनाम सिंह खेमे की तरफ से उन्हें उम्मीदवार बनाने का भरोसा दिया गया है । उनकी तरफ से दावा किया गया है कि इसीलिए उन्हें प्रदीप अग्रवाल के काफी विरोध के बावजूद अगले लायन वर्ष में रीजन चेयरमैन का पद दिया गया है । उल्लेखनीय है कि प्रदीप अग्रवाल, जगदीश अग्रवाल के क्लब के ही वरिष्ठ सदस्य हैं और गुरनाम सिंह के बड़े खास हैं । प्रदीप अग्रवाल और जगदीश अग्रवाल की बिलकुल भी नहीं बनती है और दोनों ही एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश करते देखे जाते रहे हैं । इसी नाते से प्रदीप अग्रवाल ने एड़ीचोटी का जोर लगाया हुआ था कि जगदीश अग्रवाल को एके सिंह की टीम में कोई महत्त्वपूर्ण पद न मिले; उन्हें जब पता चला कि जगदीश अग्रवाल को एके सिंह की टीम में रीजन चेयरमैन बनाया जा रहा है, तो उन्होंने गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के आगे बड़ा रोना-धोना मचाया - लेकिन उनकी नहीं सुनी गई और जगदीश अग्रवाल को रीजन चेयरमैन बनाया गया । जगदीश अग्रवाल की तरफ से सुनने को मिला है कि गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने प्रदीप अग्रवाल की बात इसीलिए नहीं सुनी है, क्योंकि उन्हें जगदीश अग्रवाल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाना है, और उन्हें लगता है कि रीजन चेयरमैन का पद उनकी उम्मीदवारी में मदद करेगा । जगदीश अग्रवाल की सक्रियता और उनकी तरफ से सुनी जा रही बातों ने पराग गर्ग की उम्मीदवारी को संदेहास्पद बना दिया है ।
विशाल सिन्हा के नजदीकियों का कहना/बताना है कि विशाल सिन्हा तो पराग गर्ग को उम्मीदवार बनाना चाहते हैं, लेकिन उनके खेमे के ही कुछेक पूर्व गवर्नर्स पराग गर्ग की उम्मीदवारी के समर्थन में नहीं हैं । केएस लूथरा खेमे की तरफ से बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी घोषित हो जाने के चलते गुरनाम सिंह खेमा उम्मीदवार को लेकर अपने खेमे में फूट को अफॉर्ड नहीं कर सकता है; समझा जाता है कि इसीलिए गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने जगदीश अग्रवाल को भी सक्रिय होने के लिए कहा है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के इस वर्ष हुए चुनाव में गुरनाम सिंह खेमा मामूली अंतर से जीता तो है, लेकिन जीत का अंतर इतना मामूली रहा है कि अगले वर्ष भी जीत हासिल होने का उसे भरोसा नहीं है । लखनऊ के जीमखाना क्लब के चुनाव में गुरनाम सिंह को जो खासी बुरी हार का सामना करना पड़ा है, उसने भी गुरनाम सिंह खेमे के नेताओं की हवा टाइट करने का काम किया है । दरअसल गुरनाम सिंह के प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार हो जाने के चलते जीमखाना क्लब का इस बार का चुनाव लायन राजनीति की खेमेबाजी का शिकार हो गया; गुरनाम सिंह और उनकी टीम को जितवाने के लिए गुरनाम सिंह खेमे के लोग लगे, तो उन्हें हरवाने के लिए केएस लूथरा और उनके समर्थकों ने कमर कसी । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव की हार का बदला लेते हुए केएस लूथरा ने जीमखाना क्लब के चुनाव में गुरनाम सिंह की ऐसी घेराबंदी की कि गुरनाम सिंह खुद तो चारों खाने चित्त हुए ही, उनकी टीम के बाकी दस उम्मीदवारों को भी हार का सामना करना पड़ा ।
जीमखाना क्लब के चुनाव में गुरनाम सिंह और उनकी टीम को मिली करारी पराजय के चलते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में केएस लूथरा के उम्मीदवार के रूप में बीएम श्रीवास्तव के 'भाव' जहाँ बढ़े नजर आ रहे हैं, वहाँ गुरनाम सिंह खेमा बीएन चौधरी, पराग गर्ग और जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी में 'वजन' देखने/टटोलने के काम में ही उलझा हुआ है । इस उलझन में भी लेकिन विशाल सिन्हा की 'निकल पड़ी' है, क्योंकि उन्हें तो तीन तीन संभावित उम्मीदवारों से पैसे ऐंठने का मौका मिल गया है ।

Thursday, June 14, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन द्वारा चेरिटेबल फाउंडेशन में की गई 'घपलेबाजी' में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल को भी लपेटने के उद्देश्य से ऑडीटर राजेश मंगला निशाने पर लिए जा रहे हैं क्या ?

नई दिल्ली । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन की घपलेबाजियों में सहयोग करने और या उनकी तरफ से आँख मूँद लेने के कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट राजेश मंगला मुसीबत में फँसते दिख रहे हैं । राजेश मंगला ने रोटरी 3010 चेरिटेबल फाउंडेशन के एकाउंट्स ऑडिट किए हैं, और उन पर आरोप है कि ऐसा करते हुए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट 3012 के एकाउंट्स का या तो संज्ञान ही नहीं लिया, और यदि लिया भी तो उसमें हुई 'घपलेबाजी' को अनदेखा करने का काम किया । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3010 के दो डिस्ट्रिक्ट्स में विभाजित होने के बाद भी उसका चेरिटेबल फाउंडेशन अलग अलग नहीं हुआ है और वह पूर्ववत ही चल रहा है । ऐसे में उसका जो एकाउंट बनता है, उसमें विभाजन के बाद बने दोनों डिस्ट्रिक्ट्स के एकाउंट जोड़ लिए जाते हैं । आरोप है कि ऑडिटर के रूप में राजेश मंगला ने डिस्ट्रिक्ट 3012 के एकाउंट का संज्ञान ही नहीं लिया; उन्होंने संज्ञान ले लिया होता तो शरत जैन की घपलेबाजियाँ पहले ही पकड़ ली जातीं, और मामला रोटरी इंटरनेशनल तक नहीं जाता । रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों की लीपापोती के चलते शरत जैन तो किसी बड़ी सजा से बच गए हैं, लेकिन इस मामले को उठाने तथा बनाये रखने में दिलचस्पी रखने वाले लोगों द्वारा अब राजेश मंगला को लपेटने की तैयारी करते सुना जा रहा है । सुना जा रहा है कि रोटरी के पैसों में की गई घपलेबाजी में 'सहयोग' करने तथा अपने काम में लापरवाही बरतने के लिए राजेश मंगला की शिकायत चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट में करने की तैयारी की जा रही है । राजेश मंगला को फँसाने के पीछे उद्देश्य दरअसल एक तीर से दो निशाने साधने का भी है; राजेश मंगला को फँसा कर शरत जैन के साथ साथ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल को भी परेशान करने की तैयारी है । उल्लेखनीय है कि राजेश मंगला अभी कुछ समय पहले तक अपनी फर्म के साथ साथ विनोद बंसल की फर्म में भी पार्टनर थे, और समझा जाता है कि ऑडिट का यह काम उन्हें विनोद बंसल ने ही दिलवाया था; इसलिए राजेश मंगला के लिए मुसीबत खड़ी करने की तैयारी में लगे लोगों को लगता है कि इसके कुछ छीटें विनोद बंसल पर भी पड़ेंगे ही और उनकी भी किरकिरी होगी ही । 
राजेश मंगला की तरफ से हालाँकि दावा किया जा रहा है कि उन पर जो आरोप लगाया जा रहा है, वही इस बात का सुबूत है कि आरोप लगाने वालों को एकाउंटिंग व्यवस्था की जानकारी नहीं है; उनकी तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि उन्होंने जो एकाउंट हस्ताक्षर किए हैं, उनमें दोनों डिस्ट्रिक्ट के एकाउंट जोड़ दिए गए हैं तथा उन्होंने न कुछ छिपाया है और न कोई लापरवाही की है । उनकी तरफ से जो कुछ कहा/सुना जा रहा है, उसमें यह बात तो सामने आई है कि शरत जैन ने अपने एकाउंट देने में लेटलतीफी की और उन्हें बहुत छकाया, लेकिन उसके बावजूद ऑडीटर के रूप में उन्होंने अपना काम नियमानुसार किया है और इस मामले में उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है । राजेश मंगला को निशाने पर लेने की तैयारी कर रहे लोगों का कहना लेकिन यह है कि ऑडीटर के रूप में राजेश मंगला ने अपना काम यदि ठीक से किया होता, तो रोटरी इंटरनेशनल को शरत जैन पर प्रतिकूल टिप्पणी करने की जरूरत नहीं पड़ती । रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से शरत जैन हालाँकि बड़ी सजा से तो बच गए हैं, लेकिन उनके एकाउंट पर रोटरी इंटरनेशनल ने जो प्रतिकूल टिप्पणी की है - उसके लिए राजेश मंगला अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं । आखिर शरत जैन के एकाउंट में जिस अनियमितता को रोटरी इंटरनेशनल ने 'पकड़ा' और रेखांकित किया है, उसे ऑडीटर के रूप में राजेश मंगला को पकड़ना व रेखांकित करना चाहिए था - जो काम में लापरवाही के चलते उन्होंने नहीं किया ।
डिस्ट्रिक्ट 3012 का चेरिटेबल फाउंडेशन का एकाउंट गाजियाबाद में पंजाब नेशनल बैंक की राजनगर शाखा में है । राजेश मंगला ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में लेकिन इस एकाउंट का कोई जिक्र नहीं किया है । उनकी तरफ से बताया गया है कि उन्होंने इस अकाउंट की रकम हिसाब में जोड़ ली है । उनका यह दावा लेकिन संदेह इसलिए पैदा करता है क्योंकि अपनी रिपोर्ट में जब वह बैंक ऑफ इंडिया तथा बैंक ऑफ बड़ौदा के चार एकाउंट्स का अलग अलग विवरण दे रहे हैं, तो फिर पंजाब नेशनल बैंक के एकाउंट का विवरण अलग से देने से क्यों बचा गया ? यह संदेह इसलिए और पुष्ट होता है, क्योंकि पंजाब नेशनल बैंक के ही एकाउंट में पैसों की घपलेबाजियाँ हैं और नियमविरुद्ध ट्रांसफर्स हैं, जिनके लिए शरत जैन को रोटरी इंटरनेशनल से लताड़ पड़ी है । इस मामले में ऑडीटर के रूप में राजेश मंगला पर आरोप इसीलिए बनता है कि यदि उन्होंने अपने काम में लापरवाही नहीं की होती और डिस्ट्रिक्ट 3012 के पंजाब नेशनल बैंक के एकाउंट को देख भर लिया होता, और उसका संज्ञान लिया होता तो शरत जैन की घपलेबाजी को वह शुरू में ही पकड़ लेते और मामला ऊपर तक जाने की नौबत नहीं आती ।

Wednesday, June 13, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के लिए अचानक से प्रस्तुत हुई पूजा बंसल की उम्मीदवारी नॉर्दर्न रीजन में चुनावी परिदृश्य को रोमांचक बनाने के साथ-साथ कई उम्मीदवारों को अपनी अपनी चुनावी रणनीति व तैयारी पर नए सिरे से विचार करने के लिए मजबूर भी करेगी

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सेक्रेटरी पूजा बंसल ने सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करके लोगों को न सिर्फ चौंकाया है, बल्कि नॉर्दर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति के समीकरणों में भी भारी उलटफेर के हालात बना दिये हैं । लोगों को चौंकाना लगता है कि पूजा बंसल की चुनावी राजनीति का स्थायी तत्त्व है । अभी करीब साढ़े तीन महीने पहले, उनका नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का सेक्रेटरी बनना भी किसी चमत्कार से कम नहीं था । पिछले वर्ष नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जिन लोगों के साथ उनका भारी झगड़ा रहा, और जिनकी फजीहत करने में उन्होंने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी - उन्हीं लोगों के साथ इस वर्ष सत्ता शेयर करने का मौका मिलना, उनकी राजनीतिक कुशलता का ही परिणाम कहा जायेगा । रीजनल काउंसिल में 'सत्ता' के लिए संघर्ष कर रहे दूसरे लोग जहाँ ताकते रह गए, वहाँ पूजा बंसल सेक्रेटरी का पद पा गईं । रीजनल काउंसिल में अपने पहले टर्म के पहले ही वर्ष में पूजा बंसल वाइस चेयरमैन बनीं, और रीजनल काउंसिल में पहले वर्ष घटे नाटकीय घटनाचक्र में उन्हें छह महीने के लिए चेयरपर्सन के रूप में काम करने का मौका मिला । पहले वर्ष में जो नाटकीय घटनाक्रम हुआ, उसमें चमत्कार की बात यह रही कि जो लोग उस घटनाक्रम में भूमिका निभा रहे थे, उन्हें तो सिर्फ बदनामी मिली - फायदा एक अकेले पूजा बंसल को मिला । पूजा बंसल के साथ लेकिन सबसे बड़ा चमत्कार तो नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में उन्हें मिली जीत में देखने को मिला था । पिछले चुनाव में, पहली वरीयता के वोटों की गिनती में पूजा बंसल को मात्र 385 वोट मिले थे, और वह 28वें नंबर पर थीं - पहली वरीयता के वोटों की गिनती पूरी होने के बाद चलने वाली गिनती की प्रक्रिया में किसी को उम्मीद नहीं थी कि पूजा बंसल भी नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के 13 सदस्यों में शामिल हो जायेंगी; लेकिन चमत्कारिक रूप से सफलता पूजा बंसल की झोली में आ गिरी ।
 चमत्कारों और चौंकाने वाली घटनाओं व प्रसंगों से भरी पूजा बंसल की अभी तक की राजनीतिक यात्रा को देखते हुए ही सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत हुई उनकी उम्मीदवारी ने नॉर्दर्न रीजन के चुनावी खिलाड़ियों के बीच हलचल मचा दी है । पूजा बंसल की उम्मीदवारी को सेंट्रल काउंसिल के कुछेक मौजूदा सदस्यों तथा अगली काउंसिल में प्रवेश पाने की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के चुनावी गणित को बिगाड़ने का काम करते देखा/पहचाना जा रहा है । ऐसे हालात में जबकि सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन की एक सीट घटने की संभावना के चलते कुछेक मौजूदा सदस्यों के सामने अपनी सीट बचाने की चुनौती आ खड़ी हुई है, तथा आगामी काउंसिल में प्रवेश की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों को मुकाबला कठिन होता हुआ लगा है - जिसके चलते कुछेक उम्मीदवार तो अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटते देखे/सुने जा रहे हैं; पूजा बंसल ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की है - तो इसे एक बड़ी परिघटना के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । कुछेक लोग इसे इंस्टीट्यूट की राजनीति में पूजा बंसल के लिए आत्मघाती भी मान रहे हैं, लेकिन कई लोग उनके फैसले को उनकी सोची-विचारी रणनीति के रूप में भी देख रहे हैं और मान रहे हैं कि पूजा बंसल की उम्मीदवारी नॉर्दर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के चुनावी परिदृश्य को निश्चित रूप से रोमांचक तो बनायेगी ही - जिसके चलते कई उम्मीदवारों को अपनी अपनी चुनावी रणनीति व तैयारी पर नए सिरे से विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा ।
लेकिन चुनावी राजनीति चूँकि कभी भी उतनी सीधी चाल नहीं चलती है, जितनी सीधी चाल की अधिकतर लोग उससे उम्मीद कर लेते हैं; उसकी चाल कब टेढ़ी हो जाये और 'पकड़' से बाहर निकल जाए पता ही नहीं चलता है - इसलिए उम्मीद की जा रही है कि पूजा बंसल की उम्मीदवारी ने जिस तरह से मौजूदा व संभावित भावी सदस्यों की चुनावी उम्मीदों और तैयारी को खतरे में डाला है, उसकी प्रतिक्रिया में वह चुप तो नहीं बैठेंगे और निश्चित रूप से ऐसा कुछ करेंगे जिससे पूजा बंसल की चुनावी तैयारी में बाधा पड़े । अनुमान लगाया जा रहा है कि जल्दी ही पूजा बंसल और या उनके पति मोहित बंसल के खिलाफ ऐसा कुछ किया जा सकता है, जिसमें उलझ कर पूजा बंसल अपना चुनाव भूल जाएँ । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि रीजनल काउंसिल के मौजूदा टर्म के पहले वर्ष में दीपक गर्ग के चेयरमैन पद से इस्तीफा देने के बाद वाइस चेयरपर्सन होने के नाते नियमानुसार पूजा बंसल को रीजनल काउंसिल के मुखिया की जिम्मेदारी मिलनी चाहिए थी, लेकिन रीजनल काउंसिल के सत्ताधारी ग्रुप के बेईमान लोगों ने उन्हें उक्त जिम्मेदारी आसानी से नहीं लेने दी थी और इंस्टीट्यूट प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद ही उन्हें मुखिया की जिम्मेदारी मिल सकी थी; बाद में उनके काम में भी तरह तरह से अड़चने पैदा करने की कोशिश की गईं थीं । उसी किस्से को याद करते हुए कुछेक लोगों का कहना/बताना है कि सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत की गई पूजा बंसल की उम्मीदवारी के सामने उसी तर्ज पर अड़चनें पैदा करने की कोशिशें की ही जायेंगी । देखना दिलचस्प होगा कि उन अड़चनों से पूजा बंसल कैसे निपटती हैं - और अड़चनों से निपटने के उनके प्रयासों में कैसे क्या चमत्कार देखने को मिलेंगे ?

Tuesday, June 12, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नागपुर की राजनीति में 'जिंदा' रहने के लिए जुल्फेश शाह के पास वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में 'लौटने' का ही विकल्प बचा है, लेकिन जो अभिजीत केलकर के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है

नागपुर । जुल्फेश शाह के वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ने की संभावनापूर्ण चर्चाओं ने नागपुर से वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य अभिजीत केलकर के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं । अभिजीत केलकर के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर हो चला है कि जुल्फेश शाह यदि सचमुच रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बने, तो अभिजीत केलकर के लिए कहीं अपनी सीट को बचा पाना मुश्किल न हो जाये । वर्ष 2012 में रीजनल काउंसिल के लिए जुल्फेश शाह और अभिजीत केलकर उम्मीदवार थे, अभिजीत केलकर जिसमें जुल्फेश शाह से काफी पीछे रह गए थे और हार गए थे । हालाँकि यह बात भी सच है कि अभिजीत केलकर की आज जो स्थिति है, वह वैसी नहीं हैं जो 2012 में थी - लेकिन फिर भी यह भी कोई दावे से कहने की स्थिति में नहीं है कि जुल्फेश शाह की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने पर भी अभिजीत केलकर के लिए सीट बचाने/निकालने में कोई समस्या नहीं होगी । जुल्फेश शाह ने पिछली बार सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ा था, और पहली वरीयता के वोटों की गिनती में 2144 वोटों के साथ वह सातवें नंबर पर रहे थे । पहली वरीयता में इतने अच्छे वोट पाने के बावजूद, दूसरी वरीयता के वोट पाने में कमजोर पड़ने के चलते वह कामयाब नहीं हो सके थे, और थोड़े से अंतर से पीछे रह गए थे । इस बार भी उनके सेंट्रल काउंसिल के लिए ही उम्मीदवार होने/बनने की उम्मीद की जा रही थी, और इसके लिए उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी थी ।
लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ के इंस्टीट्यूट का वाइस प्रेसीडेंट बनने से जुल्फेश शाह की सारी तैयारी पर पानी पड़ गया । पिछली बार के चुनाव में पहली वरीयता के वोटों की गिनती में जुल्फेश शाह का प्रदर्शन हालाँकि प्रफुल्ल छाजेड़ से बेहतर था, लेकिन उसके बावजूद प्रफुल्ल छाजेड़ कामयाब हो गए थे और जुल्फेश शाह रह गए थे । इस बार प्रफुल्ल छाजेड़ वाइस प्रेसीडेंट के रूप में चुनावी मैदान में होंगे और उम्मीद की जा रही है कि उन पर वोटों की बारिश होगी । प्रफुल्ल छाजेड़ पर होने वाली वोटों की बारिश में जुल्फेश शाह की उम्मीदवारी के बहने का खतरा सबसे ज्यादा है । प्रफुल्ल छाजेड़ की विदर्भ क्षेत्र की ब्रांचेज में अच्छी पकड़ है; पिछली बार वहाँ उन्हें भले ही पहली वरीयता के ज्यादा वोट न मिले हों, लेकिन इस बार जब वह वाइस प्रेसीडेंट के रूप में उम्मीदवार होंगे तो उन्हें वहाँ ज्यादा वोट मिलने की उम्मीद लगाई जा रही है - जो जुल्फेश शाह के समर्थन आधार पर सीधी चोट होगी । प्रफुल्ल छाजेड़ के कारण जुल्फेश शाह के लिए अपने पक्के समझे जाने वाले वोटों को भी बचा कर रख पाना मुश्किल होगा, और इस कारण से उनके लिए मुकाबला खासा मुश्किल हो गया नजर आ रहा है । जुल्फेश शाह के नजदीकियों और समर्थकों ने भी मान लिया है कि इस बार सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जीत पाना जुल्फेश शाह के लिए मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही है ।
ऐसे में, जुल्फेश शाह को इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में अपना 'भविष्य' खत्म होता हुआ ही दिख रहा है । पिछली बार जुल्फेश शाह खुद तो सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में सफलता नहीं ही पा सके थे, रीजनल काउंसिल के चुनाव में वह 'अपने' उम्मीदवार सतीश सारदा को भी कामयाबी नहीं दिलवा पाए थे । पिछले चुनाव में सतीश सारदा की उम्मीदवारी के पीछे जुल्फेश शाह को ही देखा/पहचाना गया था, और अभिजीत केलकर के साथियों/समर्थकों का साफ आरोप था कि जुल्फेश शाह ने सतीश सारदा की उम्मीदवारी को उनकी राह का रोड़ा बनाने के लिए ही प्रस्तुत किया/करवाया है । जुल्फेश शाह को खतरा यह दिख/लग रहा है कि इस बार भी वह यदि सेंट्रल काउंसिल का चुनाव नहीं जीते, जो निश्चित ही है, तो वह प्रोफेशन के लोगों की नजरों से लगातार ओझल ही रहेंगे और नए बने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स तो उन्हें पहचानेंगे भी नहीं; और अगली बार कहीं अभिजीत केलकर सेंट्रल काउंसिल के लिए आ गए तो उनके मुकाबले अभिजीत केलकर का पलड़ा भारी रहेगा । इस खतरे से निपटने के लिए जुल्फेश शाह को जो उपाय सूझा है, वह रीजनल काउंसिल के लिए चुनाव लड़ने के लिए उन्हें 'तैयार' करता है । जुल्फेश शाह के नजदीकियों ने इन पंक्तियों के लेखक से बात करते हुए बताया है कि जुल्फेश शाह को लग रहा है कि रीजनल काउंसिल का चुनाव तो वह जीत ही जायेंगे और रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में वह प्रोफेशन के लोगों के बीच रह सकेंगे, जिसका फायदा अगली बार के चुनाव में उन्हें होगा । उनके चुनाव लड़ने की स्थिति में अभिजीत केलकर यदि रीजनल काउंसिल की अपनी सीट बचा पाने में असफल हो जाते हैं, तब तो जुल्फेश शाह के 'मजे ही मजे' हैं । नजदीकियों के अनुसार, जुल्फेश शाह ने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने को लेकर अभी कोई फाइनल फैसला तो नहीं किया है, लेकिन इस बात को अच्छे से समझ जरूर लिया है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में 'जिंदा' रहने के लिए उनके पास 'यही' एक विकल्प बचा है । नजदीकियों की इस तरह की बातों ने नागपुर के लोगों के बीच रीजनल काउंसिल के लिए जुल्फेश शाह की उम्मीदवारी की संभावना की चर्चा को हवा दी हुई है, जिसके नतीजे के रूप में अभिजीत केलकर और उनके साथियों की साँसे अटक सी गई हैं ।

Monday, June 11, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी व डिस्ट्रिक्ट के साथ साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की भी 'सेवा' करने और उन्हें मौज-मजा करवाने के कारण मुकेश अग्रवाल और राजेंद्र सिंघल बेस्ट प्रेसीडेंट अवॉर्ड के पक्के वाले दावेदार बने, लेकिन उनकी यही दावेदारी रवि चौधरी के लिए मुसीबत बनी

नई दिल्ली । बेस्ट प्रेसीडेंट के अवॉर्ड को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी के बदले बदले से रवैये को लेकर रोटरी क्लब साऊथ सेंट्रल के प्रेसीडेंट मुकेश अग्रवाल और रोटरी क्लब दिल्ली रीजेंसी के प्रेसीडेंट राजेंद्र सिंघल बुरी तरह नाराज नजर आ रहे हैं, और खुद को ठगा हुआ पा रहे हैं । यह दोनों दरअसल बेस्ट प्रेसीडेंट के अवॉर्ड के आकांक्षी हैं; दोनों के नजदीकियों का दावा है कि रवि चौधरी ने दोनों को ही बेस्ट प्रेसीडेंट का अवॉर्ड देने का झाँसा दिया हुआ था, और इसके बदले में दोनों को ही जम कर 'लूटा' । रवि चौधरी के कहने पर दोनों ने ही रोटरी पर और डिस्ट्रिक्ट के विभिन्न कार्यक्रमों पर तो पैसा खर्च किया ही, रवि चौधरी पर निजी रूप से भी पैसा लुटाया और अपने पैसे से रवि चौधरी को मौज-मजा करवाया । इसके चलते दोनों मान रहे थे कि बेस्ट प्रेसीडेंट का अवॉर्ड उन्हें ही मिलेगा । समस्या की बात लेकिन यह हुई कि अवॉर्ड तो एक ही है, एक अवॉर्ड दो लोगों को कैसे दिया जाये ? रवि चौधरी की तिकड़मी बुद्धि ने लेकिन इसका उपाय भी खोज लिया । उन्होंने दोनों को ही बेस्ट प्रेसीडेंट का अवॉर्ड देने का विचार बनाया । मुकेश अग्रवाल के नजदीकियों के अनुसार, मुकेश अग्रवाल ने लेकिन इस विचार के प्रति अपनी नाराजगी और असहमति जाहिर कर दी है । मुकेश अग्रवाल की तरफ से रवि चौधरी को साफ बता दिया गया है कि बेस्ट प्रेसीडेंट का अवॉर्ड उन्हें देने की बात रवि चौधरी ने खुद कई बार उनसे कही है, लिहाजा अब यदि वह अपनी ही बात से पलटना चाहते हैं - तो ठीक है, मैं क्या कर सकता हूँ । रवि चौधरी हालाँकि उन्हें इस बात के लिए राजी करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं कि वह बेस्ट प्रेसीडेंट का अवॉर्ड राजेंद्र सिंघल के साथ शेयर करने के लिए राजी हो जाएँ, और दोनों लोग छह छह महीने ट्रॉफी अपने पास रखें । मुकेश अग्रवाल के नजदीकियों के अनुसार, मुकेश अग्रवाल लेकिन अभी तक तो इसके लिए राजी नहीं हुए हैं ।
रवि चौधरी ने एक फार्मूला यह भी निकाला कि एक को वह बेस्ट प्रेसीडेंट का तथा दूसरे को बेस्ट क्लब का अवॉर्ड दे दें । किंतु इससे भी बात बनती हुई नहीं दिखी है । बेस्ट क्लब के अवॉर्ड में प्रेसीडेंट के लिए गर्व करने वाली बात भला क्या होती है ? मुकेश अग्रवाल और राजेंद्र सिंघल की तरफ से रवि चौधरी को साफ बता दिया गया है कि बेस्ट प्रेसीडेंट का अवॉर्ड नहीं, तो फिर जो कुछ भी मिलेगा - उसका उनके लिए कोई मतलब नहीं है । इन दोनों ने ही रोटरी व डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ रवि चौधरी की भी जिस तरह से 'सेवा' की है, उसके कारण रवि चौधरी इन  दोनों को ही खुश करना/रखना चाहते हैं - ताकि वह आगे भी इनसे अपनी 'सेवा' करवा सकें । रोटरी और डिस्ट्रिक्ट का काम करने के मामले में रोटरी क्लब फरीदाबाद ईस्ट के प्रेसीडेंट तरुण गुप्ता का भी अच्छा रिकॉर्ड रहा है, लेकिन जो बात उन्हें बेस्ट प्रेसीडेंट के अवॉर्ड की दौड़ से उन्हें बाहर करती है, वह यह कि उन्होंने रोटरी और डिस्ट्रिक्ट के लिए तो बहुत कुछ किया, लेकिन रवि चौधरी के लिए निजी रूप से कुछ नहीं किया । तरुण गुप्ता कुछ समय हालाँकि इस गलतफहमी में रहे कि उनके क्लब के वरिष्ठ सदस्य केसी लखानी ने रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव जितवाने में चूँकि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इसलिए रवि चौधरी बेस्ट प्रेसीडेंट के अवॉर्ड का फैसला करते समय इस बात का अवश्य ही लिहाज करेंगे; रवि चौधरी ने लेकिन जब कुछेक लोगों के बीच साफ-साफ कह दिया कि बेस्ट प्रेसीडेंट के अवॉर्ड में किसी लखानी-फखानी की नहीं सुनी जाएगी, तब तरुण गुप्ता ने बेस्ट प्रेसीडेंट के अवॉर्ड की दौड़ से अपने आपको बाहर ही कर लिया । बेस्ट प्रेसीडेंट के अवॉर्ड की दौड़ में रोटरी क्लब दिल्ली के प्रेसीडेंट कपिल दत्ता को भी देखा/पहचाना जाता रहा है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सुरेश भसीन के क्लब का होना उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गया है; डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगता है कि रवि चौधरी किसी भी हाल में सुरेश भसीन के क्लब के प्रेसीडेंट को तो बेस्ट प्रेसीडेंट के अवॉर्ड के लिए नहीं ही चुनेंगे । इसलिए लोगों के बीच प्रेसीडेंट के रूप में उनके काम की तारीफ भले ही होती हो, लेकिन बेस्ट प्रेसीडेंट अवॉर्ड की दौड़ से लोग उन्हें बाहर ही मानते हैं ।   
कुछ ही समय पहले तक रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट की प्रेसीडेंट सारिका यादव को बेस्ट प्रेसीडेंट अवॉर्ड के प्रबल दावेदार के रूप में देखा जाता था । डिस्ट्रिक्ट विन्स सेमीनार में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर तथा विन्स इंडिया के प्रेसीडेंट सुशील गुप्ता को भाषण के लिए समय न देकर सारिका यादव के एक निजी अवसर को सेलीब्रेट करने के लिए केक काटने/कटवाने को प्राथमिकता देकर रवि चौधरी ने पूरे डिस्ट्रिक्ट को साफ संदेश दे दिया था कि उनके लिए एक तरफ सारी रोटरी है और दूसरी तरफ सारिका यादव हैं । रवि चौधरी ने 'दिखा' दिया था कि सारिका यादव के लिए वह रोटरी के विन्स जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम की और रोटरी के सुशील गुप्ता जैसे बड़े नेता की भी ऐसीतैसी कर सकते हैं । ऐसे में हर कोई मान रहा था कि बेस्ट प्रेसीडेंट का अवॉर्ड तो सारिका यादव के लिए ही पक्का है । लेकिन यह कई दिन पहले की बात है । सारिका यादव से रवि चौधरी जो लाभ ले सकते थे, वह ले चुके हैं; और रवि चौधरी को अब मुकेश अग्रवाल और राजेंद्र सिंघल ज्यादा उपयोगी दिखने/लगने लगे हैं । रवि चौधरी जिन लोगों के साथ मिल कर अवॉर्ड तय करने के काम में जुटे हैं, उनका कहना है कि बेस्ट प्रेसीडेंट अवॉर्ड को लेकर रवि चौधरी के लिए मुकेश अग्रवाल और राजेंद्र सिंघल के बीच फैसला करना मुश्किल बना हुआ है । मुश्किल की बात उनके लिए यह हो रही है कि बेस्ट प्रेसीडेंट का अवॉर्ड वह संयुक्त रूप से दोनों को देते हैं, तो दोनों ही नाराज होते हैं; और यदि किसी एक को देते हैं तो दूसरा नाराज होता है । दोनों में से किसे खुश रखना उनके लिए फायदेमंद होगा, रवि चौधरी के लिए इस समय यह सवाल बड़ा महत्त्वपूर्ण बना हुआ है ।

Sunday, June 10, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की पुणे ब्रांच के चेयरमैन आनंद जखोटिया वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य सत्यनारायण मूंदड़ा को तरह तरह से अपमानित और परेशान करके रीजनल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की 'तैयारी' कर रहे हैं क्या ?

पुणे । पुणे ब्रांच के चेयरमैन आनंद जखोटिया ने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य सत्यनारायण मूंदड़ा के खिलाफ जिस तरह का अभियान छेड़ा हुआ है और अलग अलग तरीकों से उन्हें अपमानित करने तथा रीजनल काउंसिल की चुनावी राजनीति से बाहर करने के लिए वह प्रयास कर रहे हैं, उसके चलते माहेश्वरी समाज और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स छात्रों के बीच गहरी नाराजगी पनपती देखी/महसूस की जा रही है । आनंद जखोटिया के लिए मुसीबत की बात यह भी हो गई है कि ब्रांच में भी वह पूरी तरह अलग-थलग और अकेले पड़ गए हैं, जिसका परिणाम 31 मई को स्थगित होकर चार जून को संपन्न हुई ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी की मीटिंग में देखने को मिला । 31 मई को बुलाई गई मीटिंग में तो ऐतिहासिक काण्ड हो गया, क्योंकि पुणे ब्रांच के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि चेयरमैन द्वारा बुलाई गई मैनेजिंग कमेटी की मीटिंग का सभी सदस्यों ने बहिष्कार किया, जिसके चलते मीटिंग में चेयरमैन के अलावा अन्य कोई सदस्य पहुँचा ही नहीं - जिसके नतीजे में चेयरमैन के रूप में आनंद जखोटिया को मीटिंग के लिए नई तारीख की घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ा । 4 जून को जब दोबारा बुलाई गई मीटिंग हुई, तो उसमें अधिकतर सदस्यों ने आनंद जखोटिया को जमकर खरीखोटी सुनाई । पुणे ब्रांच के सेक्रेटरी तथा पुणे विकासा चेयरमैन राजेश अग्रवाल का तो गंभीर आरोप रहा कि उनसे पूछे व उन्हें बताये बिना ही आनंद जखोटिया ब्रांच के खर्चे तथा छात्रों से जुड़े कार्यक्रम कर ले रहे हैं । राजेश अग्रवाल कई मौकों पर रोना रो चुके हैं कि आनंद जखोटिया पिछले वर्ष जब चेयरमैन बनने की तिकड़में लगा रहे थे, तब तो वह तत्कालीन चेयरमैन अरुण गिरी का समर्थन दिलवाने के लिए उनकी खुशामद में रहते थे, लेकिन चेयरमैन बनने के बाद आनंद जखोटिया उन्हें सहयोगी पदाधिकारी के अनुरूप तक इज्जत देने को तैयार नहीं हैं । पुणे में कई लोग जानते हैं कि राजेश अग्रवाल ने आनंद जखोटिया को चेयरमैन बनवाने के लिए अरुण गिरी को समर्थन के लिए कितनी मुश्किलों से तैयार किया था, क्योंकि अरुण गिरी जानते/समझते थे कि आनंद जखोटिया भरोसा करने वाले व्यक्ति नहीं है । राजेश अग्रवाल अब महसूस कर रहे हैं कि अरुण गिरी की बात न मान कर उन्होंने बड़ी गलती की है ।
मीटिंग में एक्सऑफिसो सदस्य के रूप में वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य सर्वेश जोशी ने आनंद जखोटिया की इस बात के लिए भारी आलोचना की कि वह ब्रांच के पदाधिकारी अपने साथियों के साथ-साथ वरिष्ठ सदस्यों को भी पर्याप्त इज्जत नहीं देते हैं, और अपनी कारगुजारियों व अपने व्यवहार से कभी भी किसी भी मौके पर किसी को भी बेइज्जत कर देते हैं । सर्वेश जोशी ने उन्हें यह कहते हुए सलाह दी, कि हालाँकि मैं जानता हूँ कि आप इसे मानेंगे नहीं, कि आपको सभी को उचित सम्मान देना चाहिए, ब्रांच की कार्रवाईयों में सभी सदस्यों को सम्मिलित करना चाहिए तथा सभी का सहयोग लेना चाहिए । पिछले वर्ष ब्रांच के चेयरमैन रहे अरुण गिरी ने आनंद जखोटिया के कार्य-व्यवहार की आलोचना करते हुए चेतावनी दी कि आनंद जखोटिया का काम करने का तरीका और उनका व्यवहार पुणे ब्रांच में हमेशा से रहे सौहार्द के माहौल को खराब करने के साथ-साथ पुणे ब्रांच को बदनाम करने का भी काम कर रहा है । आनंद जखोटिया पर एक गंभीर आरोप यह लगा कि ब्रांच की तरफ से होने वाले सेमिनार्स आदि में स्पीकर्स के रूप में अपने परिचितों के नाम पर वह मनमाने तरीके से ऐसे लोगों को बुला रहे हैं, जिनकी एकेडमिक क्षमताएँ कम और संदिग्ध हैं, और इस तरह वह सेमिनार्स व स्पीकर्स के मामले में पुणे ब्रांच की बनी हुई पहचान व प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं । 4 जून की मीटिंग में आनंद जखोटिया का जो हाल हुआ और उन पर जिस तरह के गंभीर आरोप लगे, उसके बारे में पुणे के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को जैसे जैसे पता चला, वैसे वैसे पुणे के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच आनंद जखोटिया के कार्य-व्यवहार को लेकर शिकायती बातें चर्चा में आने लगी हैं । इन्हीं चर्चाओं में वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य सत्यनारायण मूंदड़ा के खिलाफ आनंद जखोटिया द्वारा की जा रही कारगुजारियों की बातें प्रमुखता से सुनाई देने लगी हैं । सत्यनारायण मूंदड़ा पुणे के वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, जो कई वर्षों से वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में पुणे का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । रीजनल काउंसिल के पिछले चुनाव में उन्हें पुणे के उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा वोट मिले थे । सत्यनारायण मूंदड़ा को पुणे में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की राजनीति में मारवाड़ी, खासकर माहेश्वरी समाज के एक बड़े प्रवक्ता व प्रतिनिधि के रूप में भी देखा/पहचाना जाता है । देखने में आ रहा है कि पुणे ब्रांच के चेयरमैन के रूप में आनंद जखोटिया तरह तरह की कार्रवाईयों के जरिये सत्यनारायण मूंदड़ा को अपमानित तथा परेशान करने का काम कर रहे हैं ।
समझा जा रहा है कि आनंद जखोटिया वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ने की 'तैयारी' कर रहे हैं, और इसी तैयारी के तहत वह सत्यनारायण मूंदड़ा पर इस बार चुनावी मुकाबले से बाहर रहने के लिए दबाव बना रहे हैं । दरअसल आनंद जखोटिया भी अपनी संभावित उम्मीदवारी के समर्थन के लिए माहेश्वरी वोटों पर निर्भर हैं; और जानते/समझते हैं कि सत्यनारायण मूंदड़ा के उम्मीदवार होते/रहते हुए तो माहेश्वरी वोट उन्हें मिलेंगे नहीं - लिहाजा वह किसी भी तरह से सत्यनारायण मूंदड़ा को रास्ते से हटाने के अभियान में जुट गए हैं । आनंद जखोटिया पुणे में माहेश्वरी प्रोफेशनल फोरम के चेयरमैन भी हैं, और इस रूप में वह माहेश्वरीज के बीच सत्यनारायण मूंदड़ा को बदनाम करने का प्रयास भी कर रहे हैं । इसके लिए आनंद जखोटिया अक्सर उस किस्से का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें पुणे ब्रांच की एक मीटिंग में सत्यनारायण मूंदड़ा ने कथित रूप से यह कहा कि 'बिल्डिंग चेयरमैन के बाप की नहीं है ।' आनंद जखोटिया ने इस किस्से को वाट्स-ऐप पर भी प्रचारित किया और तरह तरह से लोगों को बताया भी कि सत्यनारायण मूंदड़ा ने मीटिंग में असभ्य भाषा का इस्तेमाल करते हुए उन्हें निशाना बनाया और अपमानित किया । आनंद जखोटिया के लिए मुसीबत की बात लेकिन यह है कि कोई इस बात पर विश्वास करने के लिए ही तैयार ही नहीं है कि सत्यनारायण मूंदड़ा किसी के लिए भी असभ्य भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं; कुछेक लोगों ने तो यहाँ तक कहा कि और यदि सत्यनारायण मूंदड़ा ने वास्तव में आनंद जखोटिया के लिए असभ्य भाषा का इस्तेमाल किया भी है, तो यह इस बात का प्रमाण है कि वह आनंद जखोटिया के व्यवहार से बुरी तरह तंग व परेशान हो गए होंगे । आनंद जखोटिया ने खुद ही बताया कि सत्यनारायण मूंदड़ा ब्रांच बिल्डिंग में छात्रों के साथ तस्वीर खिंचवाते समय उनके एक आदेश का हवाला देते हुए उन्हें रोके जाने पर नाराज थे, हालाँकि उन्होंने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है । लोगों का यह पूछना है कि चेयरमैन के रूप में आनंद जखोटिया ने क्या इस बात की जाँच और कार्रवाई की, कि उनके आदेश का झूठा हवाला देते हुए आखिर किसने और क्यों सत्यनारायण मूंदड़ा जैसे वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट व पदाधिकारी को ब्रांच बिल्डिंग में अपमानित करने का काम किया ? 
आनंद जखोटिया जहाँ तहाँ सत्यनारायण मूंदड़ा की तो शिकायत करते रहते हैं, लेकिन उनका नाम लेकर ब्रांच बिल्डिंग में हुए सत्यनारायण मूंदड़ा के अपमान पर चुप्पी बनाये रखते हैं । आनंद जखोटिया के इस व्यवहार पर पुणे के माहेश्वरी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच गहरा रोष है, जिसका सामना आनंद जखोटिया को माहेश्वरी प्रोफेशनल फोरम में भी करना पड़ रहा है । लोगों का कहना है कि आनंद जखोटिया अपने राजनीतिक स्वार्थ में माहेश्वरी समाज के सत्यनारायण मूंदड़ा जैसे वरिष्ठ व प्रतिष्ठित व्यक्ति को अपमानित कर/करवा सकते हैं, तो फिर उन पर कौन भरोसा कर सकता है ? आनंद जखोटिया के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने की तैयारी के तहत माहेश्वरी वोटों का समर्थन पक्का करने के उद्देश्य से सत्यनारायण मूंदड़ा को रास्ते से हटाने के लिए उन्हें तरह तरह से अपमानित व परेशान करने का जो दुष्चक्र रचा है, वह आनंद जखोटिया के लिए ही मुसीबत का कारण बन रहा है ।

Saturday, June 9, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानूनों तथा उसकी व्यवस्था का अपमान करते हुए होने वाले लायंस क्लब कानपुर सेंट्रल के कार्यक्रम के पीछे वंदना निगम को 'देखते' हुए लायंस इंटरनेशनल पदाधिकारियों ने वंदना निगम के प्रति रवैया कड़ा करने की जरूरत समझी/पहचानी

कानपुर । लायंस क्लब कानपुर सेंट्रल के अगले लायन वर्ष के 'विजयी' पदाधिकारियों के अभिनंदन समारोह को लेकर लायंस इंटरनेशनल पदाधिकारियों के बीच वंदना निगम के प्रति नाराजगी बढ़ गई है, जिसे देख/सुन कर समझा जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पाना वंदना निगम के लिए और मुश्किल हो सकता है । दस जून को हो रहे कार्यक्रम में अजय डंग को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के रूप में अभिनंदित किये जाने की तैयारी है, जबकि अजय डंग का चुनाव ही अभी सवालों के घेरे में है । मायएलसीआई की साईट पर अजय डंग का नाम दिखा कर कुछेक लोग लायंस इंटरनेशनल द्वारा उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मान्यता देने का दावा कर रहे हैं, लेकिन अभी हाल ही में हैदराबाद में संपन्न हुई ऑल इंडिया स्कूलिंग में अजय डंग को विजयी उम्मीदवार के रूप में स्वीकार करने व मान्यता देने से जिस तरह से साफ इंकार कर दिया गया - और जिसके चलते अजय डंग स्कूलिंग में नहीं जा सके, उससे मायएलसीआई की साईट में दिखे नाम के आधार पर किए जा रहे दावों की हवा अपने आप ही निकल गई है । इसके बावजूद, कानपुर सेंट्रल के कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र में अजय डंग को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में 'दिखाया' गया है । इसे वंदना निगम और उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स की कारगुजारी के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । लायंस इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों ने इसका संज्ञान लिया है, और इसे लायंस इंटरनेशनल की प्रतिष्ठा व कार्यपद्धति के लिए एक चुनौती के रूप में देखा/पहचाना है - और इस हरकत के लिए मुख्य रूप से वंदना निगम को जिम्मेदार ठहराया है । इससे डर यह पैदा हुआ है कि इस हरकत के लिए जिम्मेदार माने जाने के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पाने की चुनौती से जूझ रहीं वंदना निगम की परेशानियाँ कहीं और न बढ़ जाएँ ?
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जो भी तमाशा हुआ, वंदना निगम ने उसका सारा ठीकरा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद के सिर फोड़ने की कोशिश की - और सवाल किया कि जो कुछ भी गलत हुआ उसकी सजा उन्हें क्यों दी जा रही है ? लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोग जानते हैं और कई लोग तो गवाह हैं कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जो हुआ तथा अजय डंग को चुनाव जितवाने के लिए जो जो भी चालबाजियाँ खेली गईं हैं, उनमें वंदना निगम की बराबर की हिस्सेदारी/भागीदारी रही है । गौर करने की बात यह रही कि अपने आप को 'भोली' दिखाने की वंदना निगम की कोशिश उनके अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच में सफल भले ही नहीं हो रही थी, लेकिन दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स तथा लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के बीच उनकी चाल कामयाब होती नजर आ रही थी । लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारी यह मानने/समझने लगे थे कि जो कुछ भी हुआ है उसके लिए वंदना निगम को कोई सख्त सजा नहीं मिलना चाहिए । लेकिन कानपुर सेंट्रल के अभिनंदन कार्यक्रम ने लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकरियों को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में जो भी तमाशा हुआ है, उसकी मुख्य सूत्रधार वंदना निगम ही हैं, और अभी भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही हैं - और इसलिए उन्हें कड़ा संदेश देने की जरूरत है । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बलविंदर सैनी ने कानपुर सेंट्रल के अभिनंदन कार्यक्रम में शामिल होने से इंकार करके वंदना निगम के लिए मुसीबतों को और बढ़ा दिया है । बलविंदर सैनी ने कानपुर सेंट्रल के पदाधिकारियों को साफ बता दिया है कि आप जिस तरह से यह कार्यक्रम कर रहे हो, वह लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानूनों तथा उसकी व्यवस्था का मजाक बनाने जैसा है, और लायंस इंटरनेशनल का एक पदाधिकारी होने के नाते मेरे लिए इस कार्यक्रम में शामिल होना उचित नहीं होगा । लोगों की निगाह अब वंदना निगम पर है, कि लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानूनों तथा उसकी व्यवस्था का अपमान करते हुए होने वाले लायंस क्लब कानपुर सेंट्रल के इस कार्यक्रम में वह शामिल होती हैं या नहीं ?
अधिकतर लोगों का मानना और कहना है कि कानपुर सेंट्रल के इस कार्यक्रम के पीछे दिमाग और प्रेरणा वंदना निगम की ही है, इसलिए वह तो कार्यक्रम में शामिल होंगी ही । वंदना निगम के लिए समस्या और मुसीबत की बात दरअसल यह भी है कि पिछले दिनों कानपुर और झाँसी में जिन भी क्लब्स के कार्यक्रम हुए हैं, उनमें उन्हें पूछा/बुलाया तक नहीं गया । कई क्लब्स के पदाधिकारी और प्रमुख सदस्य सोशल मीडिया में बाकायदा घोषणा कर चुके हैं कि वंदना निगम की कारगुजारियों को देखते हुए वह यह उचित समझ रहे हैं और फैसला कर रहे हैं कि अपने क्लब के कार्यक्रमों में वह वंदना निगम को नहीं बुलायेंगे । वंदना निगम ने डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह अपने आप को अलग-थलग पड़ते हुए पाया, उसे देखते हुए उन्हें किन्हीं क्लब्स में खुद का अभिनंदन करवाना जरूरी लगा । इसी जरूरत को पूरा करने के लिए कानपुर सेंट्रल के कार्यक्रम की रूपरेखा बनी । इस कार्यक्रम में अजय डंग को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'दिखाने' की जो हरकत हुई है, उस पर लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के भड़कने की खबर मिलने के बाद वंदना निगम के शुभचिंतकों ने भी माना है कि अजय डंग का नाम शामिल न किया जाता, तो कार्यक्रम बिना विवाद के हो जाता - तथा वंदना निगम का भी उद्देश्य पूरा हो जाता । लेकिन कार्यक्रम में अजय डंग का भी नाम शामिल करने की जो चतुराई और चालबाजी दिखाई गई, उससे वंदना निगम ने अपने लिए मुसीबतों को और बढ़ा लिया है ।