Thursday, August 30, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में एक भी दिन गवर्नर रहे बिना दीपक बाबु को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का तमगा मिलने में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता की मिलीभगत की चर्चाओं ने मामले को गंभीर रूप दिया

मुरादाबाद । दीपक बाबु को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का तमगा मिलने की खबर ने डिस्ट्रिक्ट 3100 के लोगों को ही नहीं, बल्कि उन सभी रोटेरियंस को चौंकाया और हैरान किया है, जो रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को सम्मान की नजर से देखते हैं और उनमें भरोसा करते हैं - इस मामले में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता का नाम आने से मामला दिलचस्प और हो गया है । जिसने भी इस बात को सुना है, उसका यही मानना और कहना है कि रोटरी इंटरनेशनल भी एक अंधेर नगरी हो गया है, जिसे चौपट राजा चला रहे हैं । उल्लेखनीय है कि दीपक बाबु वर्ष 2016-17 के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने गए थे । लेकिन उनका गवर्नर-वर्ष शुरू होने के करीब तीन महीने पहले ही डिस्ट्रिक्ट को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में डाल दिया गया था । अप्रैल 2016 के शुरू में ही मजे की बात यह हुई थी कि डिस्ट्रिक्ट को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में डालने की औपचारिक घोषणा होने से पहले ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में दीपक बाबु को डिस्ट्रिक्ट असेम्बली करने से रोक दिया गया था । इस तरह दीपक बाबु को रोटरी के 113 वर्षों के इतिहास में पहले और अकेले ऐसे 'गवर्नर' होने की पहचान मिली, जिन्हें गवर्नर का पदभार संभालने से पहले ही गवर्नर पद के कामकाज करने से रोक दिया गया था । यानि दीपक बाबु ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में एक भी दिन काम नहीं किया है - इसके बावजूद उन्हें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का तमगा मिल गया है । रोटरी इंटरनेशनल के नियम के अनुसार, पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का तमगा पाने के लिए जरूरी है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वर्ष के 365 दिन रहा गया हो - पर दीपक बाबु तो एक दिन भी गवर्नर नहीं रहे । डिस्ट्रिक्ट में लोगों का कहना/पूछना है कि दीपक बाबु को यदि एक भी दिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे बिना पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का तमगा मिल सकता है, तो वर्ष 2017-18 के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने गए डीके शर्मा को भी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का तमगा मिलना चाहिए ।
दिलचस्प बात यह रही कि दीपक बाबु को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का तमगा देने की बात 'चुपचाप' तरीके से तय कर ली गई, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन तक को इस बारे में अधिकृत जानकारी नहीं दी गई - खुद दीपक बाबु ने भी इस बारे में किसी को जानकारी नहीं दी । इससे लगता है कि खुद दीपक बाबु को और इस फैसले से जुड़े बड़े पदाधिकारियों को भी यह 'अपराधबोध' तो है कि इस फैसले से उनका मजाक ही बनेगा । यह पोल तब खुली, जब 25 अगस्त को हुए इंटरसिटी सेमीनार से पहले होने वाली कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन को सिफारिश मिली कि कॉलिज और गवर्नर्स की मीटिंग में उन्हें दीपक बाबु को भी आमंत्रित करना चाहिए, क्योंकि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने नाते दीपक बाबु भी कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के सदस्य हैं । दीपक जैन का माथा ठनका और उन्होंने दिल्ली स्थित रोटरी इंटरनेशनल के साऊथ एशिया ऑफिस से इस बारे में जानकारी माँगी, जहाँ से उन्हें बताया गया कि हाँ, दीपक बाबु को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मान्यता दी गई है । इंटरसिटी सेमीनार में आए इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या और नेशनल पोलियो प्लस कमेटी के चेयरमैन दीपक कपूर भी कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में शामिल हुए और उन्हें भी दीपक बाबु को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का तमगा मिलने पर हैरानी हुई । डिस्ट्रिक्ट के 'असली' पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के साथ अनौपचारिक बातचीत में इस मामले पर बात करते हुए भरत पांड्या और दीपक कपूर ने हालाँकि औपचारिक तौर पर तो ज्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन बातों ही बातों में इशारों-इशारों में उन्होंने इसके लिए नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस के दौरान डिस्ट्रिक्ट के प्रभारी रहे संजय खन्ना और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता को जिम्मेदार ठहराने वाले संकेत जरूर दिए ।
एक भी दिन गवर्नर रहे बिना दीपक बाबु को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का तमगा मिलने जैसा चमत्कार घटने के पीछे के खेल को समझने की कोशिश करने वाले लोगों को लगता है कि इसके लिए भूमिका बनाने का काम पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के कहने पर संजय खन्ना ने किया, जिसे अंजाम तक पहुँचाने की जिम्मेदारी सुशील गुप्ता ने निभाई । दीपक बाबु की मनोज देसाई से खास निकटता की बात सभी की जानकारी में है; मनोज देसाई के इंटरनेशनल डायरेक्टर रहते हुए ही डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में गए डिस्ट्रिक्ट 3100 के प्रभारी की भूमिका मिली थी और उनके द्वारा खासी कुशलता के साथ निभाई गई उक्त भूमिका के चलते रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के बीच उनकी अच्छी पहचान और साख बनी - लोगों को लगता है कि जिसका फायदा उठाते हुए मनोज देसाई ने पहले तो संजय खन्ना के जरिये 'माहौल' तैयार किया और फिर इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में सदस्य होने का फायदा उठाते हुए सुशील गुप्ता के संपर्कों के जरिये दीपक बाबु के मामले में फैसले पर मोहर लगवाई । इस 'थ्योरी' को दरअसल इसलिए भी विश्वसनीय माना जा रहा है क्योंकि इस फैसले को पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उन्हीं के प्रेसीडेंट-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट 3100 नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में गया था । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील गुप्ता का इस्तीफा करा लेने के बावजूद रोटरी इंटरनेशनल ने डिस्ट्रिक्ट को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में नहीं डाला था; बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में दीपक बाबु की हरकतों और कारस्तानियों को देखने के बाद डिस्ट्रिक्ट को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में डाला था । दरअसल सुनील गुप्ता के इस्तीफे के बाद दीपक बाबु ने खुद को गवर्नर समझ लिया था, और वह तरह-तरह की मनमानी करने पर उतर आये थे । दीपक बाबु के मनमाने, स्वार्थपूर्ण तथा अहंकारभरे रवैये को देख कर ही केआर रवींद्रन ने डिस्ट्रिक्ट 3100 को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में डाल दिया । लोगों का कहना है कि जो दीपक बाबु डिस्ट्रिक्ट की बदनामी और बर्बादी के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार रहे, उन्हीं दीपक बाबु को नियमों की अनदेखी करते हुए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का तमगा देना दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही, डिस्ट्रिक्ट के लिए भी बदकिस्मती की बात है ।

Wednesday, August 29, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की एक कमेटी के चेयरमैन के रूप में राजेश शर्मा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच रची/बनी अपनी बदनामी की कालिख को पोंछने के लिए जिस तरह की मनमानी कर रहे हैं, उसके सामने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता आखिर मजबूर क्यों बने हुए हैं ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल ने आज शाम 'टैक्स ऑडिट एंड अवेयरनेस ऑन इन्वेस्टर प्रोटेक्शन' विषय पर आयोजित सेमीनार को जिस मखौलपूर्ण तरीके से संभव किया है, वह इस बात का एक पुख्ता उदाहरण है कि इंस्टीट्यूट में किस तरह का अंधेरखाता चल रहा है - और इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट बने बैठे नवीन गुप्ता काठ की मूर्ति बने हुए हैं । यूँ तो प्रायः हर प्रेसीडेंट के शासन में कुछेक लोग मनमानियाँ करते रहते हैं, और प्रेसीडेंट बेचारा धृतराष्ट्र की तरह आँख पर पट्टी बाँधे अँधा बना रहता है; लोगों का कहना हालाँकि यह भी है कि प्रेसीडेंट अपने जुगाड़-धंधे में रहता है और इसलिए दूसरे लोगों की मनमानियों पर ध्यान देने और उन पर रोक लगाने के लिए उसके पास समय ही नहीं होता है । लेकिन नवीन गुप्ता के प्रेसीडेंट-काल का तो गजब ही हाल है - ऐसा लगता है कि इंस्टीट्यूट में जैसे अराजकता का पूरा पूरा राज है; बड़े से बड़े काउंसिल मेंबर से लेकर छोटे छोटे पदाधिकारियों तक ने इंस्टीट्यूट की ऐसी बजा रखी है, जिसे देख/सुन कर लगता ही नहीं है कि इंस्टीट्यूट देश की एक जिम्मेदार संस्था है, जिसे चलाने के लिए नियम-कानून बने हुए हैं और उनका पालन करना होता है । प्रेसीडेंट के रूप में नवीन गुप्ता की हालत यह है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की तो बात छोड़िये, स्टडी सर्किल के पदाधिकारी तक मनमानी करते हुए कहते और दावा करते हैं कि नवीन गुप्ता तो उनकी जेब में हैं । कुछेक ब्रांचेज तथा स्टडी सर्किल के पदाधिकारियों पर पैसे लेकर सेमीनार में स्पीकर बनाने के गंभीर आरोप लगे हैं, इंस्टीट्यूट में इस बारे में शिकायतें हुई हैं, लेकिन इंस्टीट्यूट प्रशासन की तरफ से कार्रवाई तो दूर, जाँच तक होने के संकेत नहीं मिले हैं । इंस्टीट्यूट की काउंसिल्स के चुनाव नजदीक होने के कारण उम्मीदवार लोग सेमीनार में स्पीकर बनने के लिए पैसे दे रहे हैं, जिसके चलते सेमीनार सस्ते और फ्री हो गए हैं तथा ब्रांचेज व स्टडी सर्किल के पदाधिकारियों की जेबें भी भर रही हैं । स्टडी सर्किल पर परोक्ष व अपरोक्ष कब्जा किए कुछेक चार्टर्ड एकाउंटेंट्स चूँकि खुद भी रीजनल काउंसिल के उम्मीदवार हैं, इसलिए स्टडी सर्किल उनके लिए राजनीति करने का अड्डा भी बना हुआ है और पैसे बनाने का जरिया भी ।
बिलकुल नया मामला ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल का है । इसने आज शाम 'टैक्स ऑडिट एंड अवेयरनेस ऑन इन्वेस्टर प्रोटेक्शन' विषय पर एक सेमीनार आयोजित किया । इस सेमीनार का लोगों को पहले जो निमंत्रण मिला, उसमें स्टडी सर्किल के सदस्यों से कोई फीस नहीं लेने की तथा गैर सदस्यों से तीन सौ रुपए फीस लेने की बात कही गई थी । लेकिन दो दिन बाद ही लोगों को सेमीनार के आयोजकों की तरफ से एक नया संशोधित निमंत्रण मिला, जिसमें हर किसी के लिए सेमीनार मुफ्त घोषित कर दिया गया था । हर किसी के लिए सेमीनार मुफ्त होने का चमत्कार इस कारण हुआ - जैसा कि संशोधित निमंत्रण पत्र में बताया गया - कि इस सेमीनार के आयोजन में इंस्टीट्यूट की 'कैपिटल मार्केट एंड इन्वेस्टर्स प्रोटेक्शन कमेटी' का सहयोग मिल गया । जाहिर है कि सेमीनार का खर्च इंस्टीट्यूट की उक्त कमेटी के जिम्मे हो गया । सवाल यह है कि एक स्टडी सर्किल द्वारा तय और घोषित किए जा चुके सेमीनार कार्यक्रम में इंस्टीट्यूट के एक कमेटी को ऐन मौके पर शामिल होने की जरूरत आखिर क्यों पड़ी ? इस सवाल की सामान्य सी पड़ताल ही इंस्टीट्यूट में फैली अंधेरगर्दी की पोल खोल देती है । दरअसल इंस्टीट्यूट की उक्त कमेटी के चेयरमैन राजेश शर्मा हैं, जो सेंट्रल काउंसिल में पुनर्निर्वाचित होने के लिए उम्मीदवार हैं । पिछले वर्ष 'सीए डे' फंक्शन के नाम पर प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट की पहचान व साख को कलंकित करने तथा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को अपमानित करने के आरोपों का शिकार होने के चलते राजेश शर्मा की लोगों के बीच खासी फजीहत है । राजेश शर्मा इंस्टीट्यूट के इतिहास में शायद अकेले सेंट्रल काउंसिल सदस्य हैं, जिनके लिए इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में 'राजेश शर्मा चोर है' जैसे नारे गूँजे । राजेश शर्मा भाजपा नेताओं के साथ अपनी नजदीकियत दिखाते/जताते रहते हैं, लेकिन भाजपा नेता अक्सर ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'बेईमान' तथा बेईमानों के मददगार बताते रहते हैं और उन्हें अपने गिरेबाँ में झाँकने की सलाह देते रहते हैं - जिसके चलते चार्टर्ड एकाउंटेंट्स उनसे नाराज हैं । राजेश शर्मा को इस सब का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, और अपने चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें लोगों की नाराजगी और विरोध झेलना पड़ रहा है ।
ऐसे में राजेश शर्मा को सेमीनारों का सहारा लेने की जरूरत पड़ रही है । 'कैपिटल मार्केट एंड इन्वेस्टर्स प्रोटेक्शन कमेटी' की तरफ से वह कार्यक्रम करें, तो उसमें खासा काम करना पड़ेगा और काम करना राजेश शर्मा के लिए झंझट का मामला है; इसलिए उन्होंने जुगाड़ लगाया है कि अपनी चेयरमैनी वाली कमेटी के जरिये वह हो रहे सेमीनारों में ही घुस जाएँ और अपना काम बनाएँ । कल ही आयोजित हुए पंचकुईयाँ रोड सीपीई स्टडी सर्किल के सेमिनार में भी उक्त कमेटी की भागीदारी थी, और वह सेमीनार भी लोगों के लिए मुफ्त हुआ था । मजे की और हैरानी की बात यह है कि इन दोनों सेमिनार्स में लोगों को चार-चार घंटे के सीपीई आवर्स भी मिल गए हैं । उल्लेखनीय है कि सीपीई आवर्स के अलॉटमेंट के लिए बड़े नियम और प्रावधान हैं, लेकिन इन दोनों मामलों में उन नियमों व प्रावधानों का खुला उल्लंघन हुआ है - और 'कंटीन्यूइंग प्रोफेशनल एजुकेशन कमेटी' के पदाधिकारी भी आँख पर पट्टी बाँधे बैठे हुए हैं । उक्त कमेटी के लोगों का कहना है कि जब प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता ही 'अंधे' बने हुए हैं, तो हम ही क्या करें ? इस तरह 'कंटीन्यूइंग प्रोफेशनल एजुकेशन कमेटी' और 'कैपिटल मार्केट एंड इन्वेस्टर्स प्रोटेक्शन कमेटी' मजाक बन कर रह गई हैं, और ऐसा लगता है कि इनका काम सिर्फ राजेश शर्मा के चुनाव के प्रचार की व्यवस्था करना ही रह गया है । राजेश शर्मा के नजदीकियों का ही कहना है कि इन कमेटियों की भागीदारी के साथ आनन-फानन में अभी कुछेक और सेमीनार होंगे । राजेश शर्मा द्वारा इंस्टीट्यूट के संसाधनों के किए जा रहे इस दुरूपयोग की शिकायतें इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता से की गई हैं, लेकिन उनकी तरफ से इस मामले में अनदेखी ही की जा रही है । राजेश शर्मा जहाँ तहाँ कहते/बताते भी रहते हैं कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता तो उनकी जेब में रहते हैं । इस तरह की बातों/हरकतों ने इंस्टीट्यूट की पहचान और साख को जिस बुरी तरह से कलंकित किया है, वह कई लोगों को इंस्टीट्यूट के अभी तक के इतिहास का सबसे काला अध्याय लग रहा है ।

Tuesday, August 28, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के लिए चुनाव लड़ रहे चरनजोत सिंह नंदा, राजेश शर्मा व अतुल गुप्ता पर अपनी टुच्ची हरकतों से बठिंडा के लोगों के बीच झगड़े पैदा करने तथा बठिंडा ब्रांच का नाम खराब करने का आरोप लगा

बठिंडा/नई दिल्ली । बठिंडा में इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में वोट हथियाने को लेकर अतुल गुप्ता, चरनजोत सिंह नंदा और राजेश शर्मा के बीच जैसी जो थुक्का-फजीहत चल रही है, उसने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स जैसे पढ़े-लिखे लोगों की सोच और व्यवहार के घटियापन को सामने लाने के साथ-साथ प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट की पहचान व प्रतिष्ठा को कलंकित करने का काम ही किया है । उम्मीद की जाती है और विश्वास किया जाता है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में जो लोग होंगे, वह अपनी सोच और व्यवहार से न सिर्फ प्रोफेशन के लोगों के बीच, बल्कि समाज के अन्य तबकों के लोगों के बीच भी एक मिसाल प्रस्तुत करेंगे और प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट की पहचान तथा प्रतिष्ठा को समृद्ध करने का काम करेंगे - और इस तरह प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट को आगे बढ़ायेंगे । लेकिन हो उल्टा रहा है । बठिंडा में अतुल गुप्ता, चरनजोत सिंह नंदा और राजेश शर्मा अपने अपने लोगों के जरिये जो हरकतें कर और करवा रहे हैं, उन्हें यदि सड़कछाप लोग देख/जान लें - तो उन्हें लगेगा कि वह नाहक ही बदनाम हैं, और वह इन लोगों से ट्यूशन लेने लग जायेंगे । लोगों का कहना/बताना है कि बठिंडा में जो कुछ हो रहा है, उसमें सबसे ज्यादा गंदगी फैलाने का काम चरनजोत सिंह नंदा ने किया है । लोगों ने अनुभव किया और बताया है कि सेंट्रल काउंसिल में अपनी पुनर्वापसी को लेकर चरनजोत सिंह नंदा इस कदर उतावले हैं कि टुच्चेपन के नए नए रिकॉर्ड बना रहे हैं । वोट जुटाने के चक्कर में चरनजोत सिंह नंदा ने अपने आपको इस कदर गिरा लिया है कि अपनी पहचान और साख को ही मिट्टी में मिला लिया है । इस मामले में राजेश शर्मा उन्हें 'बराबर की टक्कर' दे रहे हैं - जिसके चलते लोगों के लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि वह इनमें से किसे ज्यादा घटिया मानें ? विडंबना की बात यह है कि सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में अपने पुनर्निर्वाचन के लिए इन दोनों से मुकाबला करने के लिए अतुल गुप्ता भी कई मौकों पर इनके ही स्तर पर उतरने की कोशिश करते देखे गए हैं ।
चरनजोत सिंह नंदा और राजेश शर्मा के बीच ब्रांच की नई बिल्डिंग के उद्घाटन को लेकर बहुत ही निम्नस्तरीय लड़ाई छिड़ी हुई है । चरनजोत सिंह नंदा बिल्डिंग के उद्घाटन को रोकने के लिए तरह तरह के नाटक कर/करवा रहे हैं । बिल्डिंग कमेटी के चेयरमैन चूँकि राजेश शर्मा हैं, इसलिए चरनजोत सिंह नंदा को लगता है कि बिल्डिंग का उद्घाटन हुआ तो राजेश शर्मा को चुनावी फायदा होगा । राजेश शर्मा ने वहाँ लोगों को बताया हुआ है कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता तो उनकी जेब में हैं, लिहाजा वह जब चाहें तब उनसे ब्रांच की नई बिल्डिंग का उद्घाटन करवा सकते हैं । चरनजोत सिंह नंदा के समर्थकों ने बिल्डिंग के हिसाब-किताब में गड़बड़ी का आरोप लगाकर नया शिगूफा छोड़ा है, और इस मामले की आड़ में बठिंडा के सीनियर/जूनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच झगड़ा पैदा करने की भी कोशिश की है । ब्रांच में इस समय जो लोग काबिज हैं, वह दूसरे सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के नजदीक हैं, और चरनजोत सिंह नंदा के साथ उनकी ट्यूनिंग नहीं बन सकी है - इसलिए चरनजोत सिंह नंदा ने अपने करीबियों के जरिये वहाँ यह बबाल खड़ा करने/करवाने की कोशिश की है कि ब्रांच पर काबिज जूनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स सीनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की ईज्जत नहीं करते हैं । जिन्हें जूनियर कहा/बताया जा रहा है, उनकी तरफ से जबाव सुनने को मिला है कि जो लोग सीनियर्स को ईज्जत न मिलने की शिकायत कर रहे हैं, उनका काम शाम को इकट्ठा होकर शराब पीने के अलावा और क्या है - और इसके बदले में वह किस तरह की ईज्जत चाहते हैं ? चरनजोत सिंह नंदा और राजेश शर्मा के नजदीकियों के बीच हो रही इस तरह की तूतू मैंमैं के चलते प्रोफेशन और इंस्टीट्यूट की फजीहत हो रही है । बठिंडा के अधिकतर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स मान/समझ रहे हैं और कह रहे हैं कि चरनजोत सिंह नंदा व राजेश शर्मा ने अपनी अपनी टुच्ची हरकतों से बठिंडा के लोगों के बीच न सिर्फ झगड़े पैदा कर दिए हैं, बल्कि बठिंडा ब्रांच का नाम भी खराब कर दिया है ।
चरनजोत सिंह नंदा ने अतुल गुप्ता के नजदीकी और समर्थक रहे ब्रांच के एक पूर्व चेयरमैन को अपने साथ कर अतुल गुप्ता को तगड़ा झटका तो दिया है, लेकिन ब्रांच के उक्त पूर्व चेयरमैन को बैंक ऑडिट के लालच में अपने साथ आया बता कर चरनजोत सिंह नंदा ने खुद अपने लिए भी मुसीबत खड़ी कर ली है । मजे की बात यह है कि चरनजोत सिंह नंदा खुद ही लोगों को बताते हैं कि अतुल गुप्ता के उक्त नजदीकी पूर्व चेयरमैन को उन्होंने एक बैंक ऑडिट क्या दिलवा दिया, वह अतुल गुप्ता का साथ छोड़ कर मेरे साथ आ गया है । अतुल गुप्ता की तरफ से भी सुनने को मिला कि चरनजोत सिंह नंदा इस तरह बैंक ऑडिट दिलवा कर आखिर कितने वोट जुटा लेंगे ? अतुल गुप्ता ने बठिंडा के लोगों को चरनजोत सिंह नंदा तथा राजेश शर्मा की असलियत से परिचित कराने/करवाने का भी काम किया, और लोगों के बीच संदेश पहुँचवाया कि इन दोनों की हरकतों से प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट का नाम खराब ही हुआ है । समझा जाता है कि अतुल गुप्ता ने कई लोगों को यह कहते हुए भड़काने का भी काम किया कि वह चरनजोत सिंह नंदा से कहें कि हमारा समर्थन और वोट चाहिए तो हमें पहले बैंक ऑडिट या कोई और काम दिलवाओ । ऑडिट तथा अन्य काम दिलवाने के चरनजोत सिंह नंदा के दावे की लुधियाना में पोल खुलने तथा उनकी फजीहत होने के मामले को भी अतुल गुप्ता ने हवा देने का काम खूब किया है, जिसके चलते चरनजोत सिंह नंदा की चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच खासी किरकिरी हो रही है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता को अपनी जेब में होने का दावा करने वाले राजेश शर्मा को भी बेनकाब करने में अतुल गुप्ता ने जिस तरह की दिलचस्पी ली है, उसने भी इंस्टीट्यूट के चुनावी परिदृश्य को रोमांचक बना दिया है ।  कई लोग इस रोमांचक परिदृश्य को गटरछाप भी पा रहे हैं । उनका कहना है कि चरनजोत सिंह नंदा, राजेश शर्मा और अतुल गुप्ता बठिंडा में वोट जुटाने के लिए जो हरकतें कर रहे हैं - वह इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन के लिए कलंक की तरह हैं ।

Sunday, August 26, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में अपने गवर्नर-वर्ष के एकाउंट्स की 'ड्रेसिंग' करने/करवाने में लगे निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी खुद के द्वारा मंजूर करवाई गई ग्लोबल ग्रांट में हिस्सेदारी बसूलने के लिए रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ सेंट्रल में ट्रांसफर लेने की भूमिका बना रहे हैं क्या ?

नई दिल्ली । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहते हुए लोगों को बताया था कि रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में जो गंदगी है, उसे नजदीक से देखने के बाद उनकी बेटी ने उनसे पूछा/कहा है कि ऐसी रोटरी में आप क्यों बने हुए हो, और इसलिए गवर्नर-काल पूरा होते ही वह रोटरी छोड़ देंगे । सुनने/देखने में लेकिन यह आ रहा है कि खुद रोटरी छोड़ने की बजाये रवि चौधरी, रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में गंदगी देखने वाली अपनी बेटी की माँ को भी रोटरी ज्वाइन करवा रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में हर किसी के लिए यह बात एक पहेली बनी हुई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी हरकतों और अपनी कारस्तानियों से बार-बार फजीहत का शिकार होते रहे रवि चौधरी को रोटरी में आखिर ऐसा क्या मिला है, जो अब वह अपनी पत्नी को भी रोटेरियन बनवा रहे हैं ? इससे भी बड़ी पहेली की बात यह है कि रवि चौधरी अपनी पत्नी को अपने ही क्लब में नहीं, बल्कि रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ सेंट्रल में सदस्य बनवा रहे हैं । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि जिस क्लब ने रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने/बनाने का मौका दिया, उस क्लब से रवि चौधरी को आखिर ऐसी क्या नाराजगी है कि वह अपनी पत्नी को अपने ही क्लब का सदस्य नहीं बनवा रहे हैं ? उनके क्लब के लोगों का ही कहना/बताना है कि क्लब में रवि चौधरी की स्थिति बहुत ही खराब हो गई है, और उनका खुद का क्लब में बने रहना मुश्किल हो गया है - इसका बिलकुल नया सुबूत यह है कि रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे इकट्ठे करने के हाल ही में हुए कार्यक्रम में रवि चौधरी के क्लब की तरफ से कोई पैसा सिर्फ इसलिए नहीं दिया गया, क्योंकि उससे रवि चौधरी को नेतागिरी करने का मौका मिल जाता । डिस्ट्रिक्ट के फंडरेजिंग कार्यक्रम में रवि चौधरी के लिए वास्तव में बड़ी शर्मिंदगी की स्थिति बनी कि उनके क्लब से रोटरी फाउंडेशन में इकन्नी भी नहीं दी गई ।
इस तरह रवि चौधरी दूसरे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स पर अपने द्वारा लगाए जाने वाले आरोपों के खुद ही शिकार भी हो गए हैं । उल्लेखनीय है कि रवि चौधरी पूर्व गवर्नर्स पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह रोटरी के लिए कुछ ठोस काम तो करते नहीं हैं, और सिर्फ राजनीति ही करते हैं । उनके ही आरोपों का हवाला देते हुए लोगों का पूछना है कि अब रवि चौधरी खुद क्या कर रहे हैं ? अपने क्लब में उनकी क्या ऐसी भी हैसियत नहीं बची रह गई है कि वह रोटरी के एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम में अपने क्लब से कोई सहयोग दिलवा सकते और अब उनके लिए रोटरी का मतलब सिर्फ राजनीति करना ही रह गया है क्या ? रवि चौधरी पूर्व गवर्नर्स पर हिसाब-किताब में पारदर्शिता न रखने का आरोप भी लगाते रहे हैं और वह बताते रहे हैं कि पूर्व गवर्नर्स विभिन्न तरीकों से पैसों की हेराफेरी करते रहे हैं । रवि चौधरी लेकिन खुद अपने गवर्नर वर्ष के एकाउंट्स देने से बचते और मुँह छिपाते फिर रहे हैं । गवर्नर रहते हुए रवि चौधरी ने कई मौकों पर कहा था कि वह रोटरी इंटरनेशनल द्वारा तय की गई 30 जुलाई की समयावधि तक अपने गवर्नर-वर्ष के एकाउंट्स दे देंगे । 30 जुलाई को बीते एक महीना होने को आ रहा है, लेकिन रवि चौधरी के गवर्नर-वर्ष के एकाउंट्स का अभी कोई अता/पता नहीं है । उनके नजदीकियों को ही शक है कि रवि चौधरी ने अपने गवर्नर-वर्ष में इतनी घपलेबाजियाँ की हैं कि अपने एकाउंट्स की 'ड्रेसिंग' करवाने में ही उनका समय लग रहा है और इसी कारण उन्हें अपने एकाउंट्स देने में देर लग रही है । रवि चौधरी ने पिछले दिनों कोशिश की थी कि उन्हें दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में तथा जोन के कार्यक्रमों में पब्लिक इमेज पर बोलने के लिए बुलाया जाए । रवि चौधरी को लगता है और वह जताते हैं कि इस विषय के वह बहुत ज्ञाता हैं; उनके प्रोफेशन को देखते हुए उन्हें न जानने वाले लोगों को उनके ज्ञानी होने का भ्रम भी हो जाता है; इसी भ्रम के चलते दो/एक जगह उन्हें वक्ता के रूप में बुलाने की बात लगभग तय भी हो गई थी - लेकिन बुलाने वालों को जब रवि चौधरी की इमेज के बारे में पता चला तो फिर वह यह सोच कर पीछे हट गए कि जिस व्यक्ति की खुद की इमेज खराब हो तो वह रोटरी की पब्लिक इमेज पर क्या बात करेगा ?
इस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटने के बाद भी बदनामी और फजीहत रवि चौधरी का पीछा नहीं छोड़ रही हैं । अपनी पत्नी को रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ सेंट्रल का सदस्य बनवा देने के कारण वह और विवाद में फँस गए हैं । बताया जा रहा है कि रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ सेंट्रल को दो आईसीयू यूनिट के साथ 20 डायलिसिस मशीन लगाने के लिए करीब पौने दो लाख अमेरिकी डॉलर की ग्लोबल ग्रांट मिली है ।  इसके अलावा, क्लब को करीब सवा लाख अमेरिकी डॉलर की एक और ग्लोबल ग्रांट मिलना है । आरोप है कि उक्त ग्रांट्स की बंदरबाँट में अपना हिस्सा बसूलने के लिए ही रवि चौधरी ने अपनी पत्नी को रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ सेंट्रल का सदस्य बनवाया है । उक्त दोनों ग्रांट्स संभव करवाने में रवि चौधरी चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी भूमिका को निर्णायक मानते हैं, इसलिए एक होशियार 'सौदेबाज' के रूप में वह अपनी भूमिका की उचित कीमत बसूलना चाहते हैं । मजे की बात यह है कि रवि चौधरी पूर्व गवर्नर्स पर ग्लोबल तथा अन्य ग्रांट्स में हेराफेरी करने का आरोप भी खूब लगाते रहे हैं । इस मामले में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल के क्लब की एक ग्रांट का हवाला देकर वह विनोद बंसल को लगातार निशाने पर लेते रहे हैं । आरोप है कि अब वह खुद इस जुगाड़ में हैं कि विभिन्न ग्रांट्स में कैसे पैसे बनाये जाएँ ? रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ सेंट्रल के निवर्त्तमान प्रेसीडेंट मुकेश अग्रवाल को उन्होंने बेस्ट प्रेसीडेंट का (आधा) अवॉर्ड दिया ही है, और उन्हें करीब तीन लाख अमेरिकी डॉलर की ग्लोबल ग्रांट दिलवाने में भूमिका निभाई है - इसलिए उन्हें लगता है कि मुकेश अग्रवाल के सहारे वह उक्त ग्रांट्स में अपनी हिस्सेदारी निकाल सकेंगे । 'बाहर' से यह कर पाना उनके लिए मुश्किल क्या, असंभव ही होता; आरोपपूर्ण चर्चा के अनुसार, अपनी पत्नी को रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ सेंट्रल का सदस्य बनवा कर रवि चौधरी ने वास्तव में क्लब को मिली ग्रांट में सेंध लगाने का मौका बनाया है । आरोपपूर्ण चर्चा में तर्क दिया जा रहा है कि अन्यथा कोई कारण नहीं है, कि जो रवि चौधरी खुद रोटरी छोड़ देने की बात कर रहे हों, वह रवि चौधरी अपनी पत्नी को भी रोटेरियन बनवा दें, और वह भी अपने क्लब में नहीं । कुछेक लोगों को तो शक है कि रवि चौधरी हो सकता है कि कुछ दिनों में खुद भी रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ सेंट्रल में ट्रांसफर ले लें । 

Saturday, August 25, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अवैध माने गए थैंक्स गिविंग कार्यक्रम में अवॉर्ड पाए लोगों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी आलोक गुप्ता ने जिस तरह अचानक से चिन्हित करके शाबाशी देने का काम शुरू किया है, उसके पीछे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाने का खेल भी छिपा है क्या ?

नोएडा । सतीश सिंघल को लेकर तमाम प्रतिकूल स्थितियों का सामना कर रहे रवि सचदेवा की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को असमंजस में डाला हुआ है - और जिस असमंजस को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी आलोक गुप्ता की अचानक से शुरू की गई थैंक्स गिविंग के अवॉर्डियों को शाबाशी देने की कार्रवाई ने और बढ़ाने का काम किया है । डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक खिलाड़ियों के लिए असमंजस की बात यह है कि रोटरी इंटरनेशनल के एक फैसले के चलते जो सतीश सिंघल डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था से 'बाहर' हैं, और जिस कारण उनके लिए डिस्ट्रिक्ट और क्लब्स की गतिविधियों में शामिल हो सकना भी मुश्किल बना हुआ है, या 'बना दिया गया' है - उन सतीश सिंघल के उम्मीदवार के रूप में रवि सचदेवा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में बने/टिके कैसे रह पायेंगे ? डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों को हैरान/परेशान करते हुए रवि सचदेवा लेकिन न सिर्फ उम्मीदवार बने हुए हैं, बल्कि लोगों के बीच अपनी सक्रियता की निरंतरता को भी बनाए हुए हैं । उल्लेखनीय है कि रवि सचदेवा को सतीश सिंघल को अपने क्लब में शामिल करने/करवाने को लेकर डिस्ट्रिक्ट के स्वयंभू नेताओं की तरफ से बड़े भारी विरोध का सामना करना पड़ा है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल ने रवि सचदेवा पर तरह तरह से दबाव बनाया कि वह सतीश सिंघल को अपने क्लब में शामिल न करें । रवि सचदेवा ने लेकिन दो तर्कों के साथ उनके दबाव को स्वीकार करने से इंकार किया : रवि सचदेवा का कहना रहा कि पहली बात तो यह कि सतीश सिंघल के साथ उनकी बहुत पुरानी दोस्ती है, इसलिए आज जब सतीश सिंघल मुसीबत में हैं तो वह उनकी मदद करना अपना फर्ज और अपनी जिम्मेदारी समझते हैं; रवि सचदेवा का कहना है कि वह ऐसे व्यक्ति नहीं हैं कि अपने दोस्त को मुसीबत में देख/जान कर उसका साथ छोड़ दें; दूसरी बात यह कि रोटरी इंटरनेशनल को जब सतीश सिंघल के रोटेरियन होने/रहने पर कोई आपत्ति नहीं है, तो सतीश सिंघल के उनके क्लब का सदस्य होने पर आपत्ति क्यों की जा रही है ?
मजे की बात यह रही कि रमेश अग्रवाल तो रवि सचदेवा पर दबाव बना रहे थे कि वह सतीश सिंघल को अपने क्लब में न रहने दें; लेकिन रवि सचदेवा ने उनके दबाव में आने से इंकार करने के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी और प्रस्तुत कर दी । दरअसल इसके लिए उन्हें पिछले रोटरी वर्ष के थैंक्स गिविंग कार्यक्रम की सफलता से उत्साह मिला - जो घोषित रूप से तो असिस्टेंट गवर्नर्स की तरफ से आयोजित किया गया था, लेकिन अवॉर्ड देने का काम सतीश सिंघल ने ही किया था । रोटरी इंटरनेशनल द्वारा सतीश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटा देने के बाद हुए इस कार्यक्रम को रोटरी के नजरिये से अवैध भले ही माना गया हो, लेकिन रोटेरियंस की अच्छी-खासी उपस्थिति के कारण वैध/अवैध के सारे तर्क बेअसर हो कर रह गए । मजे की बात यह रही कि थैंक्स गिविंग कार्यक्रम के अवैध होने को लेकर नेताओं के बीच ऐसा 'डर' रहा कि सतीश सिंघल के नजदीक समझे जाने वाले डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर मुकेश अरनेजा तथा सतीश सिंघल की मेहरबानी से गवर्नर की कुर्सी तक पहुँचने की लाइन में लगे दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता तक ने कार्यक्रम से दूरी बनाई, हालाँकि रोटेरियंस ने उक्त कार्यक्रम में उत्साह के साथ भाग लिया । रोटेरियंस की उपस्थिति के लिहाज से थैंक्स गिविंग कार्यक्रम को जो सफलता मिली, समझा जाता है कि उससे उत्साहित हो कर ही रवि सचदेवा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में कूद पड़े हैं । रवि सचदेवा तथा सतीश सिंघल के दूसरे नजदीकियों को लगता है कि रोटरी इंटरनेशनल ने भले ही सतीश सिंघल के साथ न्याय न किया हो, और डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोग भले ही सतीश सिंघल को रोटरी के दुश्मन के रूप में देखते हों - लेकिन आम रोटेरियंस के बीच सतीश सिंघल के प्रति प्रेम और समर्थन का भाव है, जो थैंक्स गिविंग कार्यक्रम में साफ-साफ नजर आया । रवि सचदेवा को विश्वास है कि सतीश सिंघल के प्रति आम रोटेरियंस का यही प्रेम और समर्थन तथा उनकी मेहनत उनकी उम्मीदवारी को कामयाब बनायेगी । रवि सचदेवा लोगों के बीच कहते भी हैं कि वह सिर्फ उम्मीदवार नहीं हैं, बल्कि 'फाइटर' हैं - और वह सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए नहीं, बल्कि रोटरी से जुड़े कुछेक बड़े उद्देश्यों व लक्ष्यों को पूरा करने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में शामिल हुए हैं ।
रवि सचदेवा की उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के समीकरणों को उलझाने का काम किया है, और इसीलिए उन्होंने तरह तरह से रवि सचदेवा को चुनावी मैदान से बाहर करने का प्रयास किया । रवि सचदेवा को कई मौकों पर सतीश सिंघल का संदर्भ देकर उकसाने/भड़काने का प्रयास किया गया, ताकि वह ऐसा कुछ कहें/करें जिससे उन्हें लोगों के बीच बदनामी मिले । रवि सचदेवा लेकिन होशियारी दिखाते हुए 'कूल' बने रहे हैं और अभी तक तो वह उकसाने/भड़काने वाली कार्रवाई से अपने आपको बचाये हुए हैं । रवि सचदेवा ने अभी तक अपनी उम्मीदवारी के अभियान को 'लो-प्रोफाइल' रखा हुआ है और अपनी सक्रियताओं को क्लब्स के प्रेसीडेंट्स के बीच तक सीमित रखा हुआ है, दरअसल इस कारण ही उनकी उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट के नेताओं के बीच ज्यादा 'भाव' नहीं मिल रहा है । दिलचस्प नजारा लेकिन यह है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ी रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को ज्यादा भाव भी नहीं दे रहे हैं, किंतु उनकी उम्मीदवारी से 'डरे' हुए से भी हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी आलोक गुप्ता ने क्लब्स के जीओवी आयोजनों में अचानक से जिस तरह से सतीश सिंघल के अवैध माने गए थैंक्स गिविंग कार्यक्रम में अवॉर्ड पाए लोगों को चिन्हित करके उन्हें शाबाशी देने का काम शुरू किया है, उससे लग रहा है कि सतीश सिंघल के नजदीकियों की जैसे कोई अलग खिचड़ी पक रही है । रोटरी इंटरनेशनल की 'निगरानी' के चलते आलोक गुप्ता थैंक्स गिविंग कार्यक्रम में तो नहीं जा सके थे, इसलिए अब वह थैंक्स गिविंग के अवॉर्डियों को शाबाशी देकर सतीश सिंघल के 'उपकार' का ऋण चुकाने की कोशिश कर रहे हैं । आलोक गुप्ता की इस कोशिश का उद्देश्य सिर्फ सतीश सिंघल के उपकार का ऋण चुकाना भर है, या इसके पीछे रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाने का खेल भी छिपा है - यह तो आने वाले समय में ही पता चल सकेगा; लेकिन अचानक से आलोक गुप्ता की तरफ से शुरू हुई इस कार्रवाई ने रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के 'भाव' को फिलहाल महत्त्वपूर्ण जरूर बना दिया है ।

Friday, August 24, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु करवाए गए 'सीए कॉन्क्लेव' कार्यक्रम में 'ड्रिंक' का सहारा लेने पर हंसराज चुग भारी फजीहत के शिकार बने

नई दिल्ली । हंसराज चुग ने 'सीए कॉन्क्लेव' के जरिए सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के लिए माहौल बनाने और समर्थन जुटाने का जो उपक्रम किया, वह 'ड्रिंक एंड डाइन' पर जोर देने के कारण एक उम्मीदवार के रूप में उनकी फजीहत का कारण बन गया । हंसराज चुग के नजदीकियों का ही कहना/बताना रहा कि हंसराज चुग ने कार्यक्रम में ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाने के चक्कर में 'ड्रिंक' का जो दाँव चला, उसी ने कार्यक्रम का कबाड़ा कर दिया । नजदीकियों के ही अनुसार, कार्यक्रम से ठीक पहले हंसराज चुग दरअसल इस बात को लेकर चिंतित हो उठे थे कि कार्यक्रम में यदि लोग नहीं जुटे, तो क्या होगा ? इस सवाल ने उन्हें इतना परेशान कर दिया कि उन्होंने 'ड्रिंक' का ऑफर ओपन कर दिया । नजदीकियों का कहना है कि कार्यक्रम में आने वाले लोगों के लिए ड्रिंक की व्यवस्था तो पहले से थी, लेकिन उसकी बात ज्यादा प्रचारित नहीं थी । लेकिन अपनी चिंता से उबरने के लिए हंसराज चुग ने कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण ड्रिंक' ही बना दिया । इसके चलते, कार्यक्रम से ठीक पहले लोगों को जो संदेश मिले, उसमें 'ड्रिंक' की बात को खासी प्रमुखता दी गई । हंसराज चुग ने माना/समझा कि ड्रिंक का ऑफर रहेगा, तो कार्यक्रम में खूब भीड़ जुटेगी - और एक उम्मीदवार के रूप में उनका डंका बजेगा । भीड़ जुटने की उनकी उम्मीद तो पूरी हो गई; प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, उनके कार्यक्रम में साढ़े पाँच से छह सौ के बीच लोग जुटे और अधिकतर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स थे - लेकिन कार्यक्रम में जुटी भीड़ जिस तरह से 'ड्रिंक' पर टूटी पड़ी, उसके चलते न सिर्फ कार्यक्रम का सारा ग्रेस मिट्टी में मिल गया, बल्कि बदइंतजामी का ऐसा माहौल बना कि 'ड्रिंक' में दिलचस्पी न रखने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए वहाँ रुकना तक मुश्किल हो गया और कई लोगों को बिना खाना खाये ही कार्यक्रम स्थल से लौटना पड़ा ।
हंसराज चुग के नजदीकियों और समर्थकों का ही कहना है कि 'सीए कॉन्क्लेव' के जरिये हंसराज चुग ने इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में अपनी उम्मीदवारी को ऊँची छलाँग देने/दिलवाने की जो योजना बनाई थी, वह वहाँ बने अफरातफरी के माहौल के चलते पूरी तरह फेल तो हो ही गई - कार्यक्रम में फैली बदइंतजामी ने एक उम्मीदवार के रूप में हंसराज चुग की अभी तक की उपलब्धियों पर पानी और फेर दिया है । हंसराज चुग के समर्थकों का ही मानना और कहना है कि 'सीए कॉन्क्लेव' को सफल बनाने में 'ड्रिंक' का सहारा लेने तथा उसके कारण फैली अफरातफरी ने एक उम्मीदवार के रूप में हंसराज चुग को पीछे और धकेल दिया है । उल्लेखनीय है कि हंसराज चुग को लोगों के बीच एक अच्छे, पढ़े-लिखे, जेनुइन चार्टर्ड एकाउंटेंट नेता के रूप में देखा/पहचाना जाता है । पिछली बार मामूली अंतर से वह सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में सफलता पाने से रह गए थे । वह काउंसिल सदस्य बन पाने में तो सफल नहीं हो सके थे, लेकिन लोगों के दिल जीतने में वह जरूर कामयाब हुए थे । उनकी असफलता ने बहुत से लोगों को निराश किया था, क्योंकि उन्हें लगता था कि हंसराज चुग जैसे व्यक्ति को सेंट्रल काउंसिल में होना ही चाहिए । इस नाते, इस बार उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । लेकिन लगता है कि हंसराज चुग को जैसे खुद ही अपने ऊपर भरोसा नहीं रहा है । उनके कुछेक नजदीकियों का कहना/बताना है कि हंसराज चुग को आजकल कुछेक ऐसे लोगों ने भी घेर लिया है, जो उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने के नाम पर सिर्फ अपने खाने-पीने के जुगाड़ में रहते हैं । ऐसे लोगों के चक्कर में, हंसराज चुग अपने पुराने साथियों/समर्थकों से भी दूर होते हुए दिख रहे हैं । चर्चा है कि खाने-पीने के चक्कर में रहने वाले नजदीकियों ने ही उन्हें सलाह दी थी कि कार्यक्रम में ड्रिंक की बात को लोगों के बीच जोरशोर से प्रचारित करो, तो बहुत चार्टर्ड एकाउंटेंट्स जुटेंगे । ड्रिंक की बात के प्रचार के 'फार्मूले' से भीड़ तो जुट गई, लेकिन वही भीड़ हंसराज चुग की उम्मीदवारी के अभियान का कबाड़ा कर बैठी ।
हंसराज चुग ने 'सीए कॉन्क्लेव' के लिए हालाँकि अच्छी तैयारी की थी । गिरीश आहुजा, बिमल जैन, यशीष दहिया, अश्विन रस्तोगी जैसे प्रतिष्ठित व प्रमुख लोगों को कार्यक्रम में वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था । कार्यक्रम के लिए उन्होंने रफी मार्ग स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब जैसी आसान पहुँच वाली और खुली जगह चुनी थी । कार्यक्रम का निमंत्रण पत्र उन्होंने बहुत ही आकर्षक रूप में डिजाइन करवाया था, जिसकी कई लोगों ने प्रशंसा भी की थी । लेकिन कार्यक्रम का दिन नजदीक आते आते हंसराज चुग जैसे अपनी ही उम्मीद से डर गए । उन्हें डर हुआ कि कार्यक्रम में यदि ठीक-ठाक संख्या में लोग नहीं पहुँचे, तो उनकी सारी तैयारी पर पानी फिर जायेगा । उनके नजदीकियों के अनुसार, उन्हें यह डर कुछेक दूसरे उम्मीदवारों के कार्यक्रमों के पिट जाने को देख कर भी हुआ । सेंट्रल काउंसिल में तीसरी टर्म के लिए पुनर्निर्वाचित होने की तैयारी कर रहे 'स्टार' उम्मीदवार अतुल गुप्ता तक को अपने कार्यक्रमों में जिस तरह श्रोताओं का टोटा पड़ा देखा गया है, उसने लगता है कि हंसराज चुग को बुरी तरह परेशान कर दिया । ऐसे में उनके नजदीकियों ने 'ड्रिंक' की शरण में जाने का फार्मूला उन्हें सुझाया, तो उसे उन्होंने झट से लपक और अपना लिया । यह फार्मूला भीड़ जुटाने में तो सफल हुआ, लेकिन इस 'सफलता' ने हंसराज चुग की पहचान और साख पर दाग लगाने का ही काम किया है । कार्यक्रम में पहुँचे लोगों के बीच वक्ताओं को सुनने में दिलचस्पी कम ही देखी गई; अधिकतर लोग 'ड्रिंक' की तलाश में दिखे - हालत यह हो गई कि वक्ताओं के भाषण चलते हुए ही ड्रिंक और खाना खोलने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसमें फिर जो अफरातफरी फैली तो उसमें हंसराज चुग की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी की उम्मीदों की धज्जियाँ उड़ते हुए ही देखी गईं । यह देखना दिलचस्प होगा कि 'सीए कॉन्क्लेव' से हंसराज चुग की उम्मीदवारी के अभियान को जो चोट पहुँची है, उसकी भरपाई के लिए वह आगे क्या कदम उठाते हैं ?

Wednesday, August 22, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की उम्मीदवारी के लिए वोट जुटाने चंडीगढ़ गए रतन सिंह यादव अपनी ससुराल के लिए समय न निकाल पाने की बात कह कर भारी फजीहत का शिकार हुए

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने चंडीगढ़ पहुँचे रतन सिंह यादव को सोशल मीडिया में कही गई अपनी ही एक बात के कारण खासी मुसीबत और फजीहत झेलना पड़ रही है । अपने चुनाव प्रचार के लिए चंडीगढ़ रवाना होने से पहले रतन सिंह यादव ने सोशल मीडिया पर एक कमेंट लिखा, जिसे पढ़कर लोगों को पता चला कि चंडीगढ़ में उनकी ससुराल है, लेकिन जहाँ वह जा/आ नहीं पाते हैं और इसे लेकर उनकी ससुराल वालों को उनसे शिकायत रहती है । रतन सिंह यादव का यह कहना ही उनके लिए भारी मुसीबत बन गया । चंडीगढ़ में कई लोगों ने उनसे पूछा कि आपके पास जब अपनी ससुराल वालों के लिए समय नहीं है, जिन्होंने आपको अपनी लड़की दी है - तो हमारे लिए आपके पास समय कैसे होगा, हम तो आपके कुछ लगते भी नहीं हैं ? रतन सिंह यादव से लोगों ने वहाँ पूछा कि अपने जीवन को संपूर्णता देने के लिए जीवनसंगिनी लेने जब आप ससुराल आए होंगे, तब तो खूब समय निकाल कर रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ आए होंगे; लेकिन अपना काम निकल जाने के बाद ससुराल वालों को दिखाने/जताने/बताने लगे कि आपके पास उनके लिए तो समय ही नहीं है - ऐसे में, इस बात की क्या गारंटी है कि हमारा वोट लेकर अपना काम निकाल लेने के बाद आप हमें भी दिखाने/जताने/बताने नहीं लगोगे कि हमारे लिए तो आपके पास समय ही नहीं है ? लोगों ने उनसे पूछा कि आपके इस अहसानफरामोशी वाले रवैये को देखते हुए हम वही गलती क्यों करें, जो आपकी ससुराल वालों ने की - जो बेचारे आपके आने का इंतजार करते रहते हैं, लेकिन जिनके लिए आपके पास समय ही नहीं है ? 
रतन सिंह यादव को उम्मीद नहीं थी, कि यूँ ही अपनी बात में थोड़ा मजाक भरने की कोशिश के चलते उन्हें ऐसी फजीहत का शिकार होना पड़ेगा । लोगों के सवालों को उन्होंने मजाक में उड़ाने/टालने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन लोगों को भी जैसे उनकी खिल्ली उड़ाने और खिंचाई करने का मौका मिल गया और उन्होंने रतन सिंह यादव की जमकर फजीहत की । चंडीगढ़ में हुई उनकी फजीहत की बात जब दिल्ली में उनके साथियों व अन्य लोगों को पता चली, तो उनका कहना रहा कि रतन सिंह यादव बेवकूफीभरी बातों के कारण अक्सर ही मजाक का विषय बनता रहता है, लेकिन फिर भी सबक नहीं सीखता है और न जाने कैसी कैसी बकवास करता रहता है । उनके कुछेक नजदीकियों ने ही इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि उन्होंने रतन सिंह यादव को कई बार समझाया है कि थोड़ा कम बोला/लिखा कर, और बोलने/लिखने से पहले थोड़ा सोच/विचार कर लिया कर - लेकिन सोच/विचार करने से तो लगता है कि उसका पुराना बैर है और वह सोचने/विचारने की तो जैसे कोई जरूरत ही नहीं समझता है । रतन सिंह यादव के शुभचिंतकों का कहना है कि उन्होंने अपने साथ अपने ही जैसे लोग भी जोड़े हुए हैं, जो बिना सोचे/समझे कुछ भी बोलते रहते हैं । पिछले चुनाव के दौरान उनके एक घनघोर समर्थक ने उनकी उपलब्धियों को बखान करने के जोश में होश खोते हुए दावा किया कि वह इंस्टीट्यूट की कई कमेटियों में सदस्य रहे हैं; किसी ने पूछ लिया कि कृपया बताइये कि रतन सिंह यादव कौन कौन सी कमेटियों में सदस्य रहे हैं ? उस जोशीले समर्थक को तो जैसे साँप सूँघ गया, वह बेचारा क्या बताता ? रतन सिंह यादव ने मामले को सँभालने की बजाये यह कहते/कमेंट करते हुए हुए मामले को और हास्यास्पद बना दिया कि मैं अभी चुनाव प्रचार में व्यस्त हूँ, चुनाव हो जाने के बाद मैं बताऊँगा कि मैं इंस्टीट्यूट की किन किन कमेटियों में रहा हूँ ।
रतन सिंह यादव के नजदीकियों का कहना/बताना है कि फालतू और बेमतलब की बातें करने के साथ-साथ ऊँची ऊँची हाँकने तथा जुमलेबाजी करने का रतन सिंह यादव को जो शौक है, उसके कारण उन्होंने अपना मजाक बनवाया हुआ है । पिछले कुछेक महीनों में ही वह एक तरफ तो न्याय की और आदर्श की बड़ी बड़ी बातें करते/लिखते सुने गए हैं, और दूसरी तरफ रीजनल काउंसिल में होने वाली बेईमानियों और बदतमीजियों के लिए जिम्मेदार लोगों के समर्थन में खड़े दिखते रहे हैं । पिछले वर्ष राकेश मक्कड़ के चेयरमैन-वर्ष में रीजनल काउंसिल में बेईमानियों और बदतमीजियों के कई किस्से हुए, लेकिन मजाल है कि किसी भी मामले में रतन सिंह यादव ने मुँह खोला हो; हालाँकि मुँह तो उन्होंने कई बार खोला, लेकिन हर बार राकेश मक्कड़ का बचाव करने के लिए । दरअसल रतन सिंह यादव को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में राकेश मक्कड़ का समर्थन चाहिए, इसलिए उन्होंने चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ की हर बेईमानी और हरकत पर या तो चुप्पी साध ली और या उनका बचाव किया । कई मौकों पर तो उन्होंने राकेश मक्कड़ की बेईमानी व बदतमीजी का विरोध करने वाले लोगों को ही निशाने पर लेने की कोशिश की । रतन सिंह यादव के इस दोहरे चरित्र को देखते हुए ही कई लोगों ने कहना शुरू किया कि रतन सिंह यादव यदि चुनाव जीत कर रीजनल काउंसिल में आ भी गए, तो इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन का उससे ज्यादा ही नुकसान पहुँचायेंगे, जितना राकेश मक्कड़ ने पहुँचाया है । रतन सिंह यादव को जानने वाले लोगों का ही कहना है कि रतन सिंह यादव अपनी बातों और अपनी हरकतों से अपना असली 'चरित्र' बताते/दिखाते रहते हैं, जिसमें उन्हें उनकी जीवनसंगिनी देने वाले परिवार के लिए तो उनके पास समय नहीं है, लेकिन इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को कलंकित करने वाले राकेश मक्कड़ की 'सेवा' के लिए वह हर समय तैयार खड़े मिले/दिखे हैं । अपनी बातों और अपने व्यवहार से रतन सिंह यादव ने अपने ही चुनाव को खासा चुनौतीपूर्ण बना लिया है ।

Tuesday, August 21, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए अमित गुप्ता ने अपने समर्थन-आधार को जिस तरह से बढ़ाया है, उसमें अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए भी फायदे का मौका देखा जा रहा है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य में अमित गुप्ता की उम्मीदवारी की स्थिति का आकलन करने के लिए उनके समर्थकों व शुभचिंतकों की हुई मीटिंग ने चुनावी परिदृश्य का एक दिलचस्प नजारा पेश किया है । नजारा दिलचस्प इसलिए माना गया क्योंकि इस मीटिंग में कई ऐसे लोग शामिल हुए जिन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक दूसरे उम्मीदवार रवि सचदेवा के समर्थकों व शुभचिंतकों के रूप में देखा/पहचाना जाता है । इस स्थिति ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के तीसरे उम्मीदवार अशोक अग्रवाल के नजदीकियों को बड़ी राहत दी है; क्योंकि उन्हें लगता है कि यह स्थिति इस बात का संकेत और सुबूत है कि डिस्ट्रिक्ट में जो लोग उनकी उम्मीदवारी के विरोधी हैं, उनके बीच इस बात को लेकर कंफ्यूजन है कि वह अमित गुप्ता और रवि सचदेवा में से किस की उम्मीदवारी का झंडा उठाएँ । विरोधियों के इसी कंफ्यूजन में अशोक अग्रवाल के साथियों व समर्थकों को अपनी राह आसान होती नजर आ रही है । उन्हें लग रहा है कि उनकी उम्मीदवारी के विरोधी लोग इसी गफलत में पड़े रहेंगे कि वह अमित गुप्ता की उम्मीदवारी का साथ दें, या रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के समर्थन में रहें - और उनकी यही गफलत इन दोनों उम्मीदवारों की स्थिति को कमजोर करने का काम करेगी, और इन दोनों की कमजोरी स्वाभाविक रूप से अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए माहौल को अनुकूल बनाने का काम करेगी । मजे की बात लेकिन यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में इस स्थिति में अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के समर्थक व शुभचिंतक भी अपने अपने तर्कों से अपने अपने फायदे देख रहे हैं ।
अमित गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों का मानना/कहना है कि रवि सचदेवा के समर्थकों व शुभचिंतकों के अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ आ मिलने से अमित गुप्ता की उम्मीदवारी की ताकत बढ़ी ही है, और उनकी उम्मीदवारी के समर्थन-आधार ने एक ऊँची छलाँग लगाई है । अमित गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगता है कि जो हुआ उसके चलते अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को दोहरा लाभ हुआ है - रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों के पाला बदल लेने से एक तरफ तो रवि सचदेवा की स्थिति कमजोर हुई है, और दूसरी तरफ अमित गुप्ता की स्थिति में गुणात्मक उछाल दर्ज हुई है । लेकिन रवि सचदेवा के नजदीकियों का कहना है कि महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि कौन किसकी मीटिंग में गया, महत्त्वपूर्ण यह देखना है कि वहाँ उसने 'किया' क्या ? उन्होंने बताया कि अमित गुप्ता द्वारा बुलाई गई मीटिंग में ज्यादातर लोगों ने उनकी उम्मीदवारी के अभियान की कमजोरियों को ही चिन्हित करने का काम किया; और इस तरह इस बात को रेखांकित किया कि अमित गुप्ता जिस तरीके से अपनी उम्मीदवारी के अभियान को चला रहे हैं, वह चुनाव के संदर्भ में नाकाफी है और अमित गुप्ता को अपने अभियान को एक आक्रामक शक्ल देना चाहिए । एक तरह से मीटिंग में जो लोग उपस्थित हुए, उन्होंने अमित गुप्ता के चुनाव-अभियान को सिर के बल खड़ा करने की ही कोशिश की; ऐसे में अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए चुनौती की बात यह हुई है कि वह मीटिंग में दी गई गई सलाह पर अमल करते हुए कैसे अपने चुनाव अभियान को पुनर्संयोजित करें ?
अमित गुप्ता के नजदीकियों की तरफ से इस बात का जबाव यह सुनने को मिला है कि जब 'नए' लोग एक-दूसरे के साथ जुड़ते हैं, तब उनके बीच सोच/विचार तथा व्यवहार की कुछ दिक्कतें होती ही हैं, जो धीरे-धीरे स्वतः दूर हो जाती हैं । अमित गुप्ता को जो नए समर्थक मिले हैं, उनके साथ सोच/विचार व व्यवहार की अभी जो दिक्कतें नजर आ रही हैं, वह जल्दी ही समाप्त हो जायेंगी और तब अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को मिलने वाली ताकत का नजारा सामने आएगा । अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के बीच समर्थकों/शुभचिंतकों को लेकर जो छीना-झपटी मची है, उसने अशोक अग्रवाल के समर्थकों व शुभचिंतकों को खासा उत्साहित किया है; उन्हें लगता है कि समर्थकों व शुभचिंतकों को लेकर मची यह छीना-झपटी अलग अलग तरीकों से अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के चुनाव अभियान पर प्रतिकूल असर डालेगी - और जब तक यह मामला सेटल होगा, तब तक इन्हें काफी नुकसान हो चुका होगा; और उसके बाद का उनका समय उस नुकसान की भरपाई में बीतेगा । अशोक अग्रवाल के नजदीकियों को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट में जो लोग उनके साथ नहीं हैं, उनके बीच यदि यह कन्फ्यूजन रहेगा कि वह अन्य किस उम्मीदवार के साथ जाएँ - तो उससे अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी को पहले मनोवैज्ञानिक और फिर व्यावहारिक फायदा ही मिलेगा । अमित गुप्ता की उम्मीदवारी की स्थिति का आकलन करने के लिए उनके समर्थकों व शुभचिंतकों की हुई मीटिंग ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में मजेदार नजारा यह बनाया है कि उक्त मीटिंग में उपस्थित लोगों की पहचान के कारण अमित गुप्ता के समर्थक तो इसमें अपना फायदा देख ही रहे हैं, अशोक अग्रवाल के नजदीकी भी खुश और उत्साहित हो रहे हैं ।

Sunday, August 19, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट भरत पांड्या खुद को टॉर्चबियरर कहने के बावजूद इंदौर में अगले वर्ष होने वाली अपनी इंस्टीट्यूट के लिए तय किए गए चेयरमैन व सेक्रेटरी के नामों पर रोशनी डालने से आखिर बच क्यों रहे हैं ?

मुंबई । इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट भरत पांड्या ने रोटरी इंस्टीट्यूट 2019 के इंदौर में होने की घोषणा तो कर दी है, लेकिन इंस्टीट्यूट के चेयरमैन व सेक्रेटरी पद को लेकर सस्पेंस बनाए हुए हैं । कोचीन में अभी हाल ही में संपन्न हुई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स इलेक्ट मीटिंग में भरत पांड्या ने अपने डायरेक्टर-वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के साथ अन्य कई मुद्दों के साथ-साथ 'अपनी' इंस्टीट्यूट को लेकर भी गंभीर चर्चा तो की, लेकिन इंस्टीट्यूट के चेयरमैन व सेक्रेटरी पद पर कौन रहेगा - इसे लेकर चुप्पी साध गए । कुछेक वरिष्ठ रोटेरियंस का हालाँकि दावा है कि भरत पांड्या ने अपने ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर टीएन उर्फ राजु सुब्रमणियन को चेयरमैन तथा डिस्ट्रिक्ट 3070 के पूर्व गवर्नर गुरजीत सिंह को सेक्रेटरी नियुक्त कर लिया है । लोगों को हैरानी है कि खुद को टॉर्चबियरर कहने वाले भरत पांड्या अपनी इंस्टीट्यूट के मुख्य पदाधिकारियों के नाम पर रोशनी डालने से बच/छिप क्यों रहे हैं ? कोचीन में हुई मीटिंग से लौटे जिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स इलेक्ट से इन पंक्तियों के लेखक की बात हो सकी है, उन सभी ने बताया कि भरत पांड्या ने वहाँ यह तो बताया कि वर्ष 2019 की इंस्टीट्यूट दिसंबर में इंदौर में होगी, लेकिन चेयरमैन और सेक्रेटरी के बारे में वहाँ कोई घोषणा नहीं की । इंदौर इंस्टीट्यूट की घोषणा होते ही इंस्टीट्यूट के चेयरमैन या सेक्रेटरी पद पाने की हसरत पाले नेताओं ने तुरंत से सक्रियता दिखाई, ताकि कोई एक पद वह हासिल कर सकें - लेकिन जल्दी ही उनके चेहरे लटके दिखाई दिए, क्योंकि उन्हें पता चला कि दोनों प्रमुख पदों पर तो भरत पांड्या ने पहले ही नियुक्ति कर ली है । यह जानकारी मिलने से चौंके लोगों को हैरानी लेकिन इस बात की है कि भरत पांड्या दोनों महत्त्वपूर्ण पदों पर की गई नियुक्तियों को छिपाने का प्रयास क्यों कर रहे हैं ? भरत पांड्या के इस 'प्रयास' के कारण कुछेक लोगों को उम्मीद बंधी है कि उनकी दाल शायद अभी भी गल सकती है ।
भरत पांड्या के नजदीकियों का कहना/बताना है कि दोनों पदों को लेकर भरत पांड्या पर दरअसल कई लोगों की तरफ से सिफारिशों का भारी दबाव रहा; कई लोग इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव में की गई उनकी मदद की 'कीमत' के रूप में उक्त पद हथियाने की कोशिश में थे । जिन लोगों को भविष्य में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव लड़ना है, उनकी तो खास निगाह इन पदों पर थी । रोटरी की चुनावी राजनीति में इंस्टीट्यूट का चेयरमैन बनना इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में अच्छा संकेत माना जाता है । इसीलिए भरत पांड्या के डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर विजय जालान की इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद पर खास निगाह थी; विजय जालान के लिए बदकिस्मती की बात लेकिन यह रही कि डिस्ट्रिक्ट के ही कई लोग विजय जालान को चेयरमैन बनाये जाने का विरोध भी कर रहे थे । भरत पांड्या के डिस्ट्रिक्ट में गुलाम वहनवती को भी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के भावी उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है । पीछे हुए चुनाव में वह उम्मीदवार थे ही, रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी बन जाने से लेकिन उन्होंने भरत पांड्या के लिए अंततः रास्ता साफ कर दिया । रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी बन जाने से गुलाम वहनवती का कद बढ़ भी गया है, इसलिए वह और उनके साथी नहीं चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट में कोई और उनके लिए चुनौती बने । इसी उठापटक में कोशिश की गई कि विजय जालान को इंस्टीट्यूट का चेयरमैन नहीं बनने दिया जाए । डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल की भी कोशिश थी कि भरत पांड्या अपनी इंस्टीट्यूट का उन्हें चेयरमैन न सही, तो सेक्रेटरी ही बना दें । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करने वाले रमेश अग्रवाल को उम्मीद थी कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में उन्होंने भरत पांड्या का जो समर्थन किया था, उसके ईनाम के रूप में भरत पांड्या उन्हें इंस्टीट्यूट का सेक्रेटरी तो बना ही देंगे । रमेश अग्रवाल के लिए बदकिस्मती की बात लेकिन यह रही कि वह तो नोमीनेटिंग कमेटी में भरत पांड्या की उम्मीदवारी का समर्थन करने का दावा करते रहे, लेकिन भरत पांड्या और उनके साथियों ने सुशील गुप्ता के साथ उनकी नजदीकी को देखते हुए उनके दावे पर भरोसा नहीं किया ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करने वाले विनोद बंसल ज्यादा होशियार निकले । सुशील गुप्ता के नजदीकी के रूप में पहचाने जाने के कारण उन्होंने समझ लिया था कि भरत पांड्या इंस्टीट्यूट के चेयरमैन या सेक्रेटरी पद के लिए तो उनके नाम पर विचार नहीं ही करेंगे, सो उन्होंने कोई प्रयास भी नहीं किया; लेकिन दूसरे इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट कमल सांघवी के साथ उनके अच्छे संबंधों को ध्यान में रखते हुए दूसरे - खासतौर से उनके प्रतिद्धंद्धी लोगों को यह डर जरूर रहा कि कहीं कमल सांघवी उन्हें 'फिट' न करवा दें । भरत पांड्या और कमल सांघवी के बीच एक एक इंस्टीट्यूट का जिम्मा लेने की जो सहमति बनी है - जिसके अनुसार वर्ष 2019 की इंस्टीट्यूट भरत पांड्या और 2020 की इंस्टीट्यूट कमल सांघवी करवायेंगे - उससे उक्त संभावना और लोगों का डर लेकिन स्वतः दूर हो गया । डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चैलेंजिंग उम्मीदवार अशोक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट में होते हुए भरत पांड्या की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ था, इस नाते वह भी उम्मीद में थे कि भरत पांड्या उनका 'ख्याल' रखेंगे ।  रोटरी की राजनीति तथा प्रशासनिक व्यवस्था में ऊँची छलाँग लगाने की इच्छा रखने वाले कुछेक और लोग भी भरत पांड्या से उम्मीद कर रहे थे कि वह उनकी छलाँग के लॉन्चिंग बेस बन जायेंगे । भरत पांड्या के नजदीकियों का कहना है कि तमाम लोगों से मिल रही सिफारिशों के दबाव के चलते ही भरत पांड्या ने राजु सुब्रमणियन को चेयरमैन तथा गुरजीत सिंह को सेक्रेटरी नियुक्त कर लेने के अपने फैसले को 'छिपाये' रखने का तरीका अपनाया है । इस तरह के फैसले लेकिन छिपते तो हैं नहीं, सो भरत पांड्या का यह फैसला भी लोगों के बीच चर्चा में आ ही गया है । भरत पांड्या ने यह देख कर राहत की साँस ली है कि लोगों को उनके फैसले की जानकारी भी मिल गई है और कोई बबाल भी नहीं हो रहा है । इंस्टीट्यूट के चेयरमैन व सेक्रेटरी पद पर निगाह लगाए कुछेक लोगों को हालाँकि अभी भी उम्मीद है, और इस उम्मीद में वह अभी भी प्रयासरत हैं कि भरत पांड्या चूँकि दोनों पदों के पदाधिकारियों की घोषणा स्वयं से नहीं कर रहे हैं, इसलिए हो सकता है कि विभिन्न दबावों में वह अपना फैसला शायद बदल भी लें ।

Saturday, August 18, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल में पुनर्वापसी करने तथा प्रेसीडेंट बनने के नाम पर चुनाव में उतरे अतुल गुप्ता अपने अवसरवादी व घमंडी व्यवहार से तथा प्रशासनिक अक्षमता की पोल खुलने के कारण मुसीबत में फँसे

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल में छठवाँ वर्ष गुजार रहे अतुल गुप्ता को हाल-फिलहाल के दिनों में जिस तरह की प्रतिकूल स्थितियों और आरोपों-शिकायतों का सामना करना पड़ा है, उसने उन्हें सेंट्रल काउंसिल में अपने पुनर्निर्वाचन के प्रति शंकालु बना दिया है; और अपनी ही शंका को दूर करने के लिए उन्होंने सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में अपनी सक्रियताओं व उपलब्धियों को लेकर एक लंबा-चौड़ा खत लिखा और लोगों को भेजा है । अतुल गुप्ता के इस खत को लेकर भी लोग मजे ले रहे हैं और चर्चा कर रहे हैं कि अतुल गुप्ता की सक्रियता व उपलब्धियाँ इतनी 'खुफिया' रही हैं क्या, कि किसी को दिखी ही नहीं - और इसीलिए अपनी सक्रियताओं व उपलब्धियों के बारे में उन्हें लोगों को बताना पड़ रहा है । अतुल गुप्ता ने अपने इस खत में 'प्रोफेशन की समृद्धि के लिए मिलजुल कर काम करने' के सिद्धांत को अपनी प्रेरणा के रूप में रेखांकित किया है । लोगों का कहना है कि अतुल गुप्ता काश इस सिद्धांत को व्यवहार में भी उतार पाते, तो उन्हें अपने ही साथी/सहयोगी रहे लोगों के विरोध और आरोप नहीं देखने/सुनने पड़ते । मजे की बात यह है कि एक तरफ तो अतुल गुप्ता की पहचान एक 'पढ़े-लिखे' और 'विषयों' को गंभीरता से समझने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट की रही है, लेकिन दूसरी तरफ उन्हें बहुत स्वार्थी, घमंडी और अवसरवादी व्यक्ति के रूप में देखा/पहचाना जाता है । उनकी खूबियों के कारण बहुत से, खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स उनसे प्रभावित हुए और उनके साथ जुड़े; लेकिन जल्दी ही जब उन्होंने अतुल गुप्ता का स्वार्थी, घमंडी और अवसरवादी रूप देखा - तो उन्होंने अतुल गुप्ता के खिलाफ होने में भी देर नहीं लगाई । शुरू के वर्षों में तो अतुल गुप्ता अपने व्यवहार के चलते पैदा हुई नाराजगी को मैनेज करने में सफल रहे, लेकिन समय बढ़ने के साथ-साथ उनके खिलाफ लोगों का, खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का गुस्सा उनके खिलाफ और मुखर व संगठित होता गया है ।
इसी का नतीजा रहा कि अंबाला, भटिंडा, लुधियाना, जालंधर आदि में अतुल गुप्ता को अपने ही साथी/सहयोगी रहे लोगों, खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से खूब खूब खरी-खोटी सुननी पड़ी । लोगों ने इस बात को लेकर सवाल पूछे और नाराजगी दिखाई कि पिछले चुनाव से पहले उन्होंने रेलवे का काम आने/निकलने का वास्ता देकर लोगों को काम मिलने/दिलवाने का जो वायदा किया था, बाद में उसकी सुध लेने की कोशिश उन्होंने क्यों नहीं की ? उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव से पहले अतुल गुप्ता ने लोगों को, खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को रेलवे का काम मिलने/दिलवाने का वास्ता देकर खूब वोट बटोरे थे । उन्हें वोट देने वाले तथा उनकी उम्मीदवारी को वोट दिलवाने के लिए रात-दिन एक करने वाले लोगों ने बाद में लेकिन अपने आप को ठगा हुआ पाया । कईयों की शिकायत रही कि चुनाव के बाद तो अतुल गुप्ता सीधे मुँह बात तक नहीं करने को तैयार होते थे, तथा उनके वायदे की याद दिलाने पर बदतमीजी और करने लगते थे । अपने घमंडी और अवसरवादी व्यवहार के चलते अतुल गुप्ता को चंडीगढ़ में तो बहुत ही बुरी स्थिति का सामना करना पड़ा । चंडीगढ़ में नॉर्दर्न रीजन की पहली फोरेंसिक लैब के उद्घाटन अवसर पर इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के साथ अतुल गुप्ता भी इस उम्मीद में गए कि वहाँ उन्हें बड़ी भीड़ के सामने बोलने का मौका मिलेगा, लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि अतुल गुप्ता का जब बोलने का नंबर आया तो सुनने वालों की संख्या कुल दस/बारह के करीब थी । हालाँकि उक्त कार्यक्रम ही बुरी तरह फ्लॉप रहा । प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के बोलते समय उपस्थित लोगों की संख्या मुश्किल से सौ के करीब थी, जिनमें आधे के लगभग छात्र थे । अतुल गुप्ता के लिए शर्मनाक स्थिति यह बनी/रही कि उन्हें तो एक अच्छे वक्ता के रूप में देखा/पहचाना जाता है, लेकिन फिर भी उनको सुनने में किसी ने दिलचस्पी नहीं ली । कुछेक लोगों ने कहा भी कि उन्होंने पहचान लिया है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में अतुल गुप्ता एक बहुत मतलबी और धोखेबाज व्यक्ति है, ऐसे व्यक्ति की बातों को सुनने का क्या फायदा ?
अतुल गुप्ता के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि जब चंडीगढ़ में उन्हें सुनने के लिए दस/बारह लोग भी 'मजबूरी' में जुटे, लगभग उसी समय उसी चंडीगढ़ में आयोजित हुई सुधीर अग्रवाल की मीटिंग में तीन सौ के करीब लोग थे । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पूर्व चेयरमैन सुधीर अग्रवाल सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार हैं । उनकी मीटिंग में इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट वेद जैन मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद थे । सुधीर अग्रवाल की मीटिंग की सफलता के शोर के बीच अतुल गुप्ता को श्रोता न मिलने से जो झटका लगा, उसने वास्तव में अतुल गुप्ता की बुरी हालत का ही सुबूत पेश किया है । इस बीच, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सेक्रेटरी पूजा अग्रवाल बंसल ने सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में प्रस्तुत की गई अपनी उपलब्धियों की रिपोर्ट में रीजनल काउंसिल के स्टॉफ के प्रोवीडेंट फंड व सर्विस टैक्स से जुड़ी वर्ष 2010-11 से चली आ रही समस्या के हल के लिए किए गए उपाय का जिक्र करके अतुल गुप्ता की प्रशासनिक क्षमता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010-11 में अतुल गुप्ता नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन थे; चेयरमैन के रूप में स्टॉफ की नियुक्ति और उनके अधिकारों से जुड़े कामों की व्यवस्था के लिए अतुल गुप्ता ने एक बेंडर की नियुक्ति की थी, जो स्टाफ के प्रोवीडेंट फंड व सर्विस टैक्स के करीब 25 लाख रुपए लेकर भाग गया था । अतुल गुप्ता अपनी तीन-तिकड़मों से उस बेंडर के खिलाफ कार्रवाई को टलवाते रहे और इंस्टीट्यूट को करीब 25 लाख रुपए की चपत की बात को छिपाए रखने/रखवाने में सफल रहे; लेकिन दो वर्ष पहले कार्यकारी चेयरपरसन के रूप में काम करते हुए पूजा अग्रवाल बंसल ने वर्षों से लटके चल रहे इस मामले में कार्रवाई की । अपनी कार्रवाई को अपनी उपलब्धियों में शामिल करने और उसे लोगों के सामने लाने की पूजा अग्रवाल बंसल की कार्रवाई ने वास्तव में अतुल गुप्ता की प्रशासनिक अक्षमता को सामने लाने का काम किया है, और इस तरह अतुल गुप्ता के लिए फजीहत वाली स्थिति बनाई है ।
अतुल अग्रवाल इस बार का चुनाव इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट बनने के नाम पर लड़ रहे हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में उनके द्वारा की गई 'घपलेबाजी' और फिर उसे छिपाने को लेकर की गई उनकी कार्रवाई ने लेकिन उनकी अक्षमताओं की जो पोल खोली है, उससे उनके सामने गंभीर संकट खड़ा हो गया है । अपने आपको चारों तरफ से संकटों और मुसीबतों से घिरा पाकर अतुल गुप्ता ने अपनी सक्रियताओं और उपलब्धियों का सहारा लेने की सोची है, और लोगों के बीच उनका लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है । अपनी सक्रियताओं और उपलब्धियों के विवरण से अतुल गुप्ता अपने अवसरवादी और घमंडी व्यवहार से पैदा हुई मुसीबतों का मुकाबला सचमुच कर सकेंगे क्या - यह देखना दिलचस्प होगा ।

Friday, August 17, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर मुकेश अरनेजा की बदनामी और कभी किसी के काम न आने वाली अपनी छवि/पहचान के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता के लिए अपने पहले ही कार्यक्रम पेम वन के लिए स्पॉन्सरशिप जुटाना मुश्किल हो रहा है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता के लिए पेम वन के रूप में किया जाने वाला अपना पहला कार्यक्रम ही भारी मुसीबत बन गया है । उल्लेखनीय है कि 23 सितंबर को प्रस्तावित पेम वन के आयोजन के लिए करीब एक महीने का ही समय बचा रह गया है, लेकिन दीपक गुप्ता अभी तक पेम वन को स्पॉन्सर करने वाले क्लब्स ही तय नहीं कर पाए हैं, और जो क्लब स्पॉन्सर करने के लिए जबर्दस्ती राजी भी हुए हैं - या राजी करवाए गए हैं, वह पूरे दो लाख रुपए देने में आना-कानी कर रहे हैं । दीपक गुप्ता के नजदीकियों का ही कहना है कि पेम वन की स्पॉन्सरशिप को लेकर माहौल सब्जी बाजार जैसा बना हुआ है, जहाँ पैसों को लेकर भारी बारगेनिंग हो रही है - अधिकतर क्लब्स दो लाख रुपए देने को तैयार ही नहीं हो रहे हैं । कई लोगों का कहना/पूछना है कि दीपक गुप्ता एक तरफ तो यह कहते/बताते हैं कि वह अपने कार्यक्रमों में सुभाष जैन के कार्यक्रमों जैसी तड़क-भड़क नहीं करेंगे - लेकिन पेम वन के लिए पैसे उनकी तुलना में करीब तीन गुना ले रहे हैं । उल्लेखनीय है कि सुभाष जैन ने अपने पेम वन के आयोजन को स्पॉन्सर करने वाले क्लब्स से 75 हजार रुपए लिए थे । लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता को जब अपना कार्यक्रम सुभाष जैन की तरह भव्य तरीके से नहीं करना है, तो उन्हें तो उनसे भी कम पैसे लेने चाहिए - लेकिन वह उल्टा कर रहे हैं । कुछेक लोगों को लगता है कि दो लाख रुपए की रकम डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर मुकेश अरनेजा ने दीपक गुप्ता को सुझाई होगी, और इस तरह अपनी जेब भरने का जुगाड़ किया होगा - लेकिन जो अब दीपक गुप्ता के लिए परेशानी का सबब बन गई है ।
दीपक गुप्ता को इस मामले में सबसे बड़ा झटका रोटरी क्लब दिल्ली विकास के प्रेसीडेंट सुनील मल्होत्रा से लगा है । सुनील मल्होत्रा से अपनी नजदीकी का वास्ता देकर मुकेश अरनेजा ने उन्हें आश्वस्त किया था कि उनसे तो स्पॉन्सरशिप एक बार कहने से ही मिल जाएगी । दीपक गुप्ता और मुकेश अरनेजा की जोड़ी ने सुनील मल्होत्रा को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनाने और समर्थन देने का लालच भी दिया हुआ है । इसके बावजूद, सुनील मल्होत्रा से उन्हें स्पॉन्सरशिप मिलती नहीं दिख रही है । रोटरी क्लब दिल्ली विकास में दरअसल प्रथा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के कार्यक्रमों में जो भी पैसा देना होता है, वह प्रेसीडेंट और प्रेसीडेंट इलेक्ट आधा-आधा अपनी अपनी जेब से देते हैं । दीपक गुप्ता के लिए बदकिस्मती की बात यह हुई है कि पेम वन के लिए प्रेसीडेंट इलेक्ट अरुण गुप्ता भी अपने हिस्से के एक लाख रुपए देने को तैयार नहीं हो रहे हैं । अरुण गुप्ता और सुनील मल्होत्रा ने दीपक गुप्ता और मुकेश अरनेजा को बता दिया है कि वह दोनों मिल कर एक लाख रुपए ही दे पायेंगे । रोटरी क्लब दिल्ली विकास को डिस्ट्रिक्ट के एक बड़े और अच्छे क्लब के रूप में देखा/पहचाना जाता है, जो अपने कार्यक्रमों को तो खासी भव्यता के साथ आयोजित करता ही है, डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़ कर भाग लेता है । प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अपने विभिन्न कार्यक्रमों में मदद और सहभागिता के लिए सबसे पहले रोटरी क्लब दिल्ली विकास के पदाधिकारियों की तरफ ही देखता है । इस नाते भी, और प्रेसीडेंट सुनील मल्होत्रा की सक्रियता तथा अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने को लेकर उनकी चाहत को देखते हुए और मुकेश अरनेजा के साथ उनकी नजदीकी के चलते दीपक गुप्ता को पूरा विश्वास था कि रोटरी क्लब दिल्ली विकास से तो उन्हें पेम वन के लिए स्पॉन्सरशिप की पूरी रकम आराम से मिल ही जाएगी । लेकिन उसमें भी उन्हें अड़ंगा लगता दिख रहा है ।
रोटरी क्लब दिल्ली विकास से मिले इस झटके का असर यह होता दिख रहा है कि स्पॉन्सरशिप के लिए राजी हुए अन्य क्लब्स के पदाधिकारियों ने भी दो लाख रुपए देने में आनाकानी करना शुरू कर दिया है और कोई पचास हजार तो कोई पिचहत्तर हजार और कोई एक लाख रुपए ही देने की बात कर रहा है । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उन्होंने जिन मुकेश अरनेजा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया है, डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनकी छवि बहुत ही खराब है, और लोगों को लगता है कि मुकेश अरनेजा ने रोटरी को जैसे अपना धंधा बना लिया है । डीआरएफसी के रूप में उन पर क्लब्स से पैसे ऐंठने के गंभीर आरोप रहे हैं । मुकेश अरनेजा दूसरों से तो हिसाब-किताब माँगने और दूसरों के हिसाब-किताब जाँचने में खूब दिलचस्पी लेते हैं, लेकिन अपने हिसाब-किताब देने में बचते-छिपते हैं । मुकेश अरनेजा पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर थे; पिछले रोटरी वर्ष में शरत जैन के गवर्नर-काल के हिसाब-किताब को लेकर तो मुकेश अरनेजा रोटरी इंटरनेशनल तक जा पहुँचे थे, लेकिन सतीश सिंघल के गवर्नर-काल के हिसाब-किताब को लेकर वह चुप्पी साधे हुए हैं । पेम वन के स्पॉन्सरशिप के लिए दो लाख रुपए प्रति क्लब की रकम तय करने में भी मुकेश अरनेजा की मिलीभगत को देखा/पहचाना जा रहा है । दीपक गुप्ता को इस मामले में 'अपने' असिस्टेंट गवर्नर्स से भी अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है । इसके अलावा, लोगों के बीच अपनी बुरी पहचान के चलते भी दीपक गुप्ता को स्पॉन्सरशिप जुटाना मुश्किल हो रहा है । लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता खुद चूँकि कभी किसी के काम नहीं आए हैं, इसलिए उनकी मदद करने तथा उनके कार्यक्रमों में सहभागिता करने को लेकर किसी में कोई उत्साह नहीं है । पेम वन के रूप में अपने पहले ही कार्यक्रम को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता जिस तरह से मुसीबत में घिर गए हैं, उसे देखते हुए उनके गवर्नर-काल को लेकर उनके अपने ही नजदीकी और शुभचिंतक आशंकित हो गए हैं ।

Wednesday, August 15, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस की लूट-खसोट के प्रति हरियाणा के नेताओं की नाराजगी के चलते ओंकार सिंह रेनु को मिले मौके ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को दिलचस्प बनाया और आरके शाह के लिए मुसीबत खड़ी की

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजिंदर बंसल से मिली फटकार के लिए आरके शाह को जिम्मेदार ठहरा कर ओंकार सिंह रेनु को जो 'हौंसला' दिया है, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में एक नया समीकरण बनता दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारियों के गोवा में हुए अधिष्ठापन समारोह के लिए वीके हंस ने जिस तरह से कई लोगों से स्पॉन्सरशिप के नाम पर पैसे उगाहे, उसे लेकर राजिंदर बंसल ने उन्हें जोरदार तरीके से फटकारा । राजिंदर बंसल का कहना रहा कि इस तरह की हरकतों से लायनिज्म का, डिस्ट्रिक्ट का और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर रहे लोगों का नाम खराब होता है, इसलिए इस तरह की हरकतों से बचा जाना चाहिए । वीके हंस की पैसा उगाहु हरकत पर कई लोगों की नाराजगी रही, और सभी का कहना रहा कि वीके हंस ने गोवा का जो पैकेज दिया/लिया, वह वैसे ही खासा महँगा था - वीके हंस को उसके बाद भी लोगों से स्पॉन्सरशिप के नाम पर पैसे लेने की जरूरत आखिर क्यों पड़ी ? लोगों ने खुलकर आरोप लगाए कि वीके हंस ने अधिष्ठापन समारोह को अपनी जेब भरने के कार्यक्रम में बदल दिया, और महँगे पैकेज के बावजूद स्पॉन्सरशिप के नाम पर जमकर पैसे बसूले । वीके हंस की हरकत के चलते लोगों के बीच पैदा हुई नाराजगी को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजिंदर बंसल ने 'आवाज' दी और इस मामले में वीके हंस को फटकार लगाई । अधिष्ठापन समारोह में गैरहाजिर होकर भी राजिंदर बंसल ने वीके हंस के प्रति अपनी नाराजगी को जाहिर किया । वीके हंस ने राजिंदर बंसल से मिली फटकार के लिए आरके शाह को जिम्मेदार ठहराया है । वीके हंस का कहना है कि आरके शाह ने ही राजिंदर बंसल से उनकी शिकायत की और उनके कान भरे । 
आरके शाह को सबक सिखाने के लिए ही वीके हंस ने अधिष्ठापन समारोह में ओंकार सिंह रेनु को ज्यादा तवज्जो दी । ओंकार सिंह रेनु को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । हालाँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की तरफ से इस वर्ष आरके शाह को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने का भरोसा दिया गया है । ओंकार सिंह रेनु की सक्रियता भरी तैयारी के पीछे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन को देखा/पहचाना जा रहा है । उनके नजदीकियों का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि आरके शाह अवश्य ही ऐसी हरकतें करेंगे, जिनसे पूर्व गवर्नर्स नाराज होंगे और तब ओंकार सिंह रेनु के लिए मौका बन जायेगा । राकेश त्रेहन और ओंकार सिंह रेनु के लिए खुशकिस्मती की बात यह रही कि डिस्ट्रिक्ट के पहले ही आयोजन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस, राजिंदर बंसल से मिली फटकार के चलते आरके शाह से नाराज हो गए । आरके शाह के लिए मुसीबत की बात यह रही कि उन्होंने स्पॉन्सरशिप के नाम पर वीके हंस को मुँहमाँगा पैसा भी दिया, और उनसे नाराजगी के चलते वीके हंस ने अधिष्ठापन समारोह में कोई तवज्जो भी नहीं दी । राजिंदर बंसल के साथ-साथ केएल खट्टर और चंद्रशेखर मेहता ने भी अधिष्ठापन समारोह का जो बहिष्कार किया, और अपने लोगों से भी बहिष्कार करवाया - उसे राकेश त्रेहन और ओंकार सिंह रेनु ने अपनी 'रणनीति' के लिए उत्साहजनक माना/पाया है । उन्हें लगता है कि हरियाणा के नेता लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस को यदि इसी तरह से अपमानित करते रहेंगे, तो वीके हंस भी प्रतिक्रिया में जबाव देंगे और इससे डिस्ट्रिक्ट के चुनावी राजनीति के समीकरण नए सिरे से बनेंगे - जिसमें उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए अपनी राजनीति करने का मौका मिल सकेगा ।
अधिष्ठापन समारोह में वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डीके अग्रवाल और उनके साथी अजय बुद्धराज जिस तरह से वीके हंस को हर मुद्दे पर समर्थन देते हुए उनके 'नजदीक' बने रहने की कोशिश करते देखे गए, उससे भी लग रहा है कि वीके हंस के बहाने से डिस्ट्रिक्ट के चुनावी राजनीतिक समीकरण में एक नया ध्रुवीकरण होगा - जो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव की दशा और दिशा तय करेगा । डिस्ट्रिक्ट में कुछेक नेताओं को लगता है कि ओंकार सिंह रेनु चुनाव लड़ने का साहस नहीं दिखा सकेंगे, और इसलिए आरके शाह के 'चयन' को कोई खतरा नहीं है; हालाँकि यह मानने/समझने और कहने वालों की भी कमी नहीं है कि चुनाव लड़ना तो आरके शाह के भी बस की नहीं है, चुनाव लड़ने का दिखावा करके पिछले वर्ष उन्होंने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को समझौते के लिए मजबूर तो कर दिया था, लेकिन यदि सचमुच चुनाव की नौबत आती - तो वह मैदान छोड़ जाते । इसीलिए लोगों को लगता है कि आरके शाह और ओंकार सिंह रेनु में से जो भी ज्यादा देर तक उम्मीदवार बने रहने का दिखावा कर लेगा, वह बाजी मार लेगा । ओंकार सिंह रेनु की सक्रियता और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस का 'समर्थन' जुटा लेने से आरके शाह की उम्मीदवारी की सफलता पर कोई प्रतिकूल असर पड़ेगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन उसके चलते आरके शाह के लिए मुसीबत जरूर खड़ी हो गई है ।

Tuesday, August 14, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में केरल के बाढ़/बारिश पीड़ितों के नाम पर डिस्ट्रिक्ट सर्विस ट्रस्ट के एकाउंट में पैसा इकट्ठा करने की यशपाल दास की तैयारी आरोपों के घेरे में

अंबाला । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास उत्तराखंड व हिमाचल के बाढ़/बारिश पीड़ितों की बजाये केरल के बाढ़/बारिश पीड़ितों के लिए पैसे इकट्ठे करने के मामले में अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के निशाने पर आ गए हैं, और लूट-खसोट के आरोपों में एक बार फिर से घिर गए हैं । उल्लेखनीय है कि देश के कई राज्य इन दिनों भारी बारिश और बाढ़ की चपेट में हैं; केरल, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा तबाही होने की खबरें आ रही हैं । आमतौर पर इस तरह की विपदा के शिकार लोगों की मदद के लिए सामाजिक संस्थाएँ आगे आती हैं । इस तरह के मौकों पर रोटरी भी अक्सर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती है, और इसके लिए वरिष्ठ पदाधिकारी पहल करते हैं और रोटेरियंस को मदद करने के लिए प्रेरित करने का काम करते हैं । लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल को डिस्ट्रिक्ट की भौगोलिक सीमा में पड़ने वाले उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश के बाढ़/बारिश पीड़ितों की मदद के लिए कोई पहल करते हुए नहीं देखा गया; डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ पूर्व गवर्नर्स भी उत्तराखंड व हिमाचल के बाढ़/बारिश पीड़ितों की तरफ से आँखें मूँदे रहे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल और पूर्व गवर्नर्स के इस रवैये को लेकर डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस के बीच रोष तो था, लेकिन वह मुखर रूप में प्रकट नहीं हो रहा था । लेकिन केरल के बाढ़/बारिश पीड़ितों की मदद की अपील करके यशपाल दास और उनकी अपील को आगे बढ़ा कर प्रवीन गोयल ने लोगों के 'जले' पर जैसे नमक रगड़ने का काम किया । डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ सदस्यों ने सीधे सीधे आरोप लगाए कि अपने 'घर' के लोगों की मुसीबतों की सुध लेने की बजाये दूसरों की मदद करने के नाम पर कुछेक लोग अपनी जेब भरने की तैयारी कर रहे हैं ।
इस मामले में यशपाल दास ने ज्यादा 'स्मार्ट' बनने/दिखने की कोशिश की, जिसके चलते वह लोगों के आरोपों के निशाने पर आ गए । यशपाल दास ने यह जो सक्रियता दिखाई, वह दरअसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को संबोधित इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम की अपील आने के बाद दिखाई । मजे की बात यह रही कि बासकर चॉकलिंगम ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को मदद की जो अपील संबोधित की, डिस्ट्रिक्ट 3080 के गवर्नर प्रवीन गोयल ने उसका संज्ञान नहीं लिया - उन्होंने संज्ञान तब लिया जब यशपाल दास ने उन्हें 'जगाया' । लोगों ने सवाल उठाये कि यशपाल दास किस हैसियत से केरल के बाढ़/बारिश पीड़ितों के लिए पैसा इकट्ठा कर रहे हैं ? दरअसल यशपाल दास पर उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ फंड तथा रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3080 सर्विस ट्रस्ट के एकाउंट्स में हेराफेरी करने के गंभीर आरोप रहे हैं, जिन्हें लेकर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड तक में शिकायत हुई है । उन्हीं आरोपों का हवाला देते हुए यशपाल दास को यह कहते हुए घेरा गया कि उनके जैसे लोग प्राकृतिक आपदा को अपने लिए पैसा इकट्ठा करने के मौके के रूप में देखते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल की यह कहते हुए आलोचना की गई कि उन्होंने केरल में बाढ़/बारिश पीड़ितों की मदद के लिए सक्रिय हुए वहाँ के डिस्ट्रिक्ट्स - डिस्ट्रिक्ट 3201 तथा डिस्ट्रिक्ट 3202 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से भी कोई सीख और प्रेरणा नहीं ली, और उत्तराखंड व हिमाचल के बाढ़/बारिश पीड़ितों के लिए कुछ करने को लेकर सक्रिय नहीं हुए । लोगों का कहना है कि प्रवीन गोयल को खुद से उत्तराखंड व हिमाचल के बाढ़/बारिश पीड़ितों की सुध लेना चाहिए थी, लेकिन उन्होंने खुद तो सुध नहीं ही ली - डिस्ट्रिक्ट 3201 तथा डिस्ट्रिक्ट 3202 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के कर्तव्य और जिम्मेदारियों का सबक नहीं सीखा । प्रवीन गोयल ने सिर्फ यह किया कि यशपाल दास ने उनसे केरल के बाढ़/बारिश पीड़ितों की मदद करने की अपील को दोहराने के लिए कहा, जिसे उन्होंने दोहरा दिया ।
यशपाल दास की केरल के बाढ़/बारिश पीड़ितों के लिए दी जाने वाली मदद के पैसे रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3080 सर्विस ट्रस्ट के एकाउंट में जमा करवाने की अपील ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को और गुस्सा दिलाया है । दरअसल इस ट्रस्ट के एकाउंट पर यशपाल दास और डिस्ट्रिक्ट के तमाम फंड्स व प्रोजेक्ट के 'मास्टरमाइंड' पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू कुंडली मारे बैठे हैं । ट्रस्ट के नियमानुसार, ट्रस्ट का चेयरमैन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होता है, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सेक्रेटरी तथा निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ट्रेजरर होता है - लेकिन राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स इस ट्रस्ट के एकाउंट पर कब्जा जमाये बैठे हैं, और ट्रस्ट के वाजिब पदाधिकारियों को उनका हक देने को तैयार नहीं हैं । पिछले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने इस मामले में रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड तक गुहार लगाई, लेकिन राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स बेशर्मी धारण करते हुए ट्रस्ट के एकाउंट पर कुंडली मारे बैठे हुए हैं । लोगों का कहना है कि पिछले वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने ट्रस्ट का चेयरमैन पद का अधिकार पाने का प्रयास तो किया था, इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल से तो उस तरह का प्रयास किए जाने की उम्मीद करना/रखना ही बेकार है । ऐसे ही संदर्भों के साथ, लोगों को शक है और उनका आरोप है कि केरल के बाढ़/बारिश पीड़ितों के नाम पर पैसा इकट्ठा करने के पीछे असल उद्देश्य अपनी जेब भरना है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के लिए यह समझना भी मुश्किल हो रहा है कि राजा साबू और यशपाल दास तथा उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स अपने यहाँ के पीड़ितों की मदद करने की बजाये दूसरे दूसरे देशों और प्रदेशों के पीड़ितों की मदद करने में दिलचस्पी क्यों लेते हैं ? जिन लोगों ने इस बात को समझने की कोशिश की है, उन्हें लगता है कि राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स पीड़ितों की मदद के नाम पर अपनी ब्रॉन्डिंग करने, मौज-मजा करने, राजनीति करने, बिजनेस करने तथा अपनी जेब भरने का उद्देश्य पूरा करते हैं ।

Sunday, August 12, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अशोक अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए रोटरी में अपनी सक्रियताओं व उपलब्धियों का सहारा लेना शुरू किया

गाजियाबाद । अशोक अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में अपने आप को आगे रखने के लिए अपनी सक्रियताओं और अपनी उपलब्धियों से रोटेरियंस को परिचित करवाने का जो काम शुरू किया है, उसने कई नए रोटेरियंस को चकित किया है और उन्हें लगा है कि इतना कुछ करने/पाने वाले अशोक अग्रवाल अभी तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आखिर क्यों नहीं बने ? नए रोटेरियंस के बीच सवाल यही है कि कमजोर बैकग्राउंड और ज्यादा कुछ न करने वाले लोग भी जब गवर्नर बन गए हैं, तब अशोक अग्रवाल गवर्नर बनने के मामले में पीछे क्यों रह गए हैं ? अशोक अग्रवाल का रोटरी बैकग्राउंड और रोटरी में उनकी निरंतर सक्रियता का इतिहास वास्तव में प्रेरणापूर्ण है और किसी को भी प्रभावित कर सकता है । अशोक अग्रवाल वर्ष 2003-04 में अपने क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद ग्रेटर के प्रेसीडेंट बने थे, और उसके दूसरे वर्ष में ही, वर्ष 2005-06 में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्य बन गए थे । उन वर्षों में जो लोग डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय थे, वह जानते हैं और बताते हैं कि सात/आठ क्लब्स का प्रतिनिधित्व करने वाले जोन में नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के लिए चुनाव कितना चुनौतीपूर्ण था, जिसे जीतने के लिए अशोक अग्रवाल को अपने साथियों/समर्थकों के साथ-साथ अपने विरोधियों को भी अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में बनाए रखने को लेकर मेहनत तो करना ही पड़ी थी, साथ ही अपनी रणनीतिक कुशलता का भी इस्तेमाल करना पड़ा था ।
अशोक अग्रवाल ने नोमीनेटिंग कमेटी का उक्त चुनाव जिस रणनीतिक कुशलता के साथ लड़ा था, उसमें 'पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं' वाली कहावत को चरितार्थ होते देख कई लोगों ने मान/समझ लिया था कि अशोक अग्रवाल को रोटरी की राजनीति में काफी आगे तक जाना है । रोटरी की राजनीति में आगे तक जाने का मतलब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से होता है, इसलिए कई लोग अशोक अग्रवाल को भावी उम्मीदवार/गवर्नर के रूप में देखने लगे । अशोक अग्रवाल ने लेकिन सभी को निराश किया और उम्मीदवारी के पचड़े से दूर ही रहने की घोषणा की । उनके क्लब से जेके गौड़ की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने से लोगों ने मान लिया कि अशोक अग्रवाल गवर्नर बनने की बजाये, गवर्नर 'बनाने' के खेल में हिस्सेदारी करेंगे । जेके गौड़ को अशोक अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना गया था; और जेके गौड़ पूरी तरह उन्हीं पर निर्भर रहे थे । जेके गौड़ की उम्मीदवारी की दौड़ के दौरान एक मजेदार किस्सा हुआ था - जेके गौड़ उम्मीदवार के रूप में वरिष्ठ रोटेरियन राजीव वशिष्ठ से मिलने पहुँचे थे; राजीव वशिष्ठ ने बातों बातों में उनसे कहा/बताया कि उनके सुनने में आया है कि अशोक अग्रवाल उनकी उम्मीदवारी से खुश नहीं हैं और उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में नहीं हैं । यह सुनकर जेके गौड़ के तो जैसे होश ही उड़ गए । वह अगले ही दिन अशोक अग्रवाल को लेकर राजीव वशिष्ठ के यहाँ फिर पहुँचे - यह बताने/दिखाने के लिए कि देखिये, अशोक अग्रवाल उनकी उम्मीदवारी से बहुत खुश हैं और पूरी तरह से उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में हैं । बाद के वर्षों में अशोक अग्रवाल ने कहीं यह कह दिया था कि वह उस वर्ष उम्मीदवार बनेंगे, जिस वर्ष आलोक गुप्ता उम्मीदवार बनेंगे । यह उस समय की बात है, जब अशोक अग्रवाल और आलोक गुप्ता के बीच संबंध गड़बड़ चल रहे थे । अशोक अग्रवाल की उक्त घोषणा का असर यह था कि पिछले रोटरी वर्ष में आलोक गुप्ता ने जब अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी शुरू की, तो सबसे पहला काम यह सुनिश्चित करने का किया कि अशोक अग्रवाल उनके साथ-साथ अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत न करें ।
यह दो किस्से अशोक अग्रवाल की राजनीतिक व रणनीतिक कुशलता की ठोस गवाही देते हैं । हालाँकि कुछेक लोग इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ के बीच हुए चुनाव में जेके गौड़ की पराजय के लिए अशोक अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते/बताते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ की हरकतों का बचाव करने के कारण अशोक अग्रवाल ने कई लोगों को नाराज किया है, जिसके चलते अब उनका पहले जैसा जलवा नहीं रह गया है । कुछेक लोगों को यह भी लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ की हरकतों को देखते हुए लोग रमेश अग्रवाल की बद्तमीजियों को भी भूल गए और 'ट्रबल शूटर' के रूप में अशोक अग्रवाल उस स्थिति को हैंडल नहीं कर सके । उस झटके ने अशोक अग्रवाल के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अपने चुनाव को खासा चुनौतीपूर्ण बना दिया है । अशोक अग्रवाल ने पिछले वर्षों में हुए चुनावों में सक्रिय भूमिका निभाई है, और अधिकतर बार अपनी भूमिका से 'अपने' उम्मीदवारों को सफलता दिलवाई है, कुछेक बार हालाँकि उनके तमाम प्रयत्नों के बावजूद 'उनके' उम्मीदवारों को पराजय का मुँह भी देखना पड़ा है । अशोक अग्रवाल के लिए चुनौती की बात यह है कि जो लोग उनकी सक्रियता के इतिहास से पूरी तरह परिचित हैं, वह तो जानते हैं कि रोटरी की चुनावी राजनीति में अशोक अग्रवाल के हिस्से में सफलताएँ ज्यादा हैं, असफलताएँ कम हैं; लेकिन जो लोग उनकी सक्रियता के इतिहास को पूरी तरह नहीं जानते हैं, वह आधी-अधूरी बातों के आधार पर ही उम्मीदवार के रूप में उनका मूल्याँकन करेंगे ।
अशोक अग्रवाल ने इसी चुनौती से निपटने के लिए अपनी सक्रियताओं और उपलब्धियों से लोगों को परिचित करने/करवाने का काम शुरू किया है । पुराने रोटेरियंस तो अशोक अग्रवाल को जानते ही हैं; नए रोटेरियंस को यह जान कर लेकिन जरूर आश्चर्य हुआ है कि अशोक अग्रवाल दो बार असिस्टेंट गवर्नर रहे हैं और तीन बार डिस्ट्रिक्ट पोलियो कमेटी के चेयरमैन रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट पब्लिक इमेज कमेटी और डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप कमेटी के चेयरमैन रहने के साथ-साथ वह डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन कमेटी के प्रमुख तथा डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी के पद की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं । इस वर्ष वह डिस्ट्रिक्ट एडवाईजर हैं ही । रोटरी में अपनी सेवाओं के लिए अशोक अग्रवाल बेस्ट रोटेरियन अवॉर्ड से भी नवाजे जा चुके हैं । अशोक अग्रवाल और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को उम्मीद है कि उनकी सक्रियता और उपलब्धियों की बात लोग जानेंगे, तो उससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी को फायदा पहुँचेगा । अपनी सक्रियताओं और उपलब्धियों को अशोक अग्रवाल सचमुच अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में ट्रांसफर कर/करवा सकेंगे या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा ।

Saturday, August 11, 2018

इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट चुने गए सुशील गुप्ता को फजीहत से बचाने के लिए डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव से 'बचने' और या चुनाव को ईमानदारी से करवाए जाने की कोशिशें सचमुच सफल हो सकेंगी क्या ?

नई दिल्ली । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने के बाद सुशील गुप्ता को देश/विदेश में/से बधाईयाँ भले ही खूब मिल रही हों, और देश/विदेश के लोग उनके प्रति भले ही सम्मान उड़ेले दे रहे हों - लेकिन अपने ही डिस्ट्रिक्ट में उन्हें बहुत ही प्रतिकूल चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है । सुशील गुप्ता के नजदीक समझे जाने वाले कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के डिस्ट्रिक्ट में कम से कम दो-तीन वर्ष तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर आपसी सहमति से चयन करने के सुझाव को जिस तरह से नकारने का काम हुआ है, उससे संकेत मिल रहा है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट चुने जाने के बाद सुशील गुप्ता के साथ नजदीकी 'दिखाने' को लेकर डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच होड़ भले ही मची हो, लेकिन उनके मान/सम्मान को बनाये रखने को लेकर किसी को फिक्र नहीं है । सुशील गुप्ता के कुछेक नजदीकियों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर पिछले रोटरी वर्ष में जिस तरह और जिस स्तर की बेईमानी हुई और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व कुछेक पूर्व गवर्नर्स की उसमें खुली भागीदारी रही, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट का माहौल काफी विषाक्त हो गया है । पिछले वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी इस वर्ष भी जिस तरह से अपनी हरकतों को जारी रखे हुए हैं, और मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया का छिपा तथा उनके साथियों का खुला सहयोग/समर्थन रवि चौधरी की हरकतों को मिलता दिख रहा है - उससे लग रहा है कि पिछले वर्ष जैसी ही हरकतें इस वर्ष भी हो सकती हैं । अब जब हरकतें होंगी, तो उसकी चर्चाएँ भी होंगी - और तब डिस्ट्रिक्ट व सुशील गुप्ता के बड़े 'दुश्मनों' को उन्हें बदनाम करने का मौका मिलेगा; और यह स्थिति इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट सुशील गुप्ता के लिए फजीहत वाली होगी ।
कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स याद दिलाते हैं कि एक बार पहले भी, विनय भाटिया के चुनाव में हुई बेईमानी को लेकर रोटरी इंटरनेशनल के तत्कालीन पदाधिकारियों ने खुद से संज्ञान लेकर डिस्ट्रिक्ट 3011 के राजनीतिक माहौल पर चर्चा की थी, और तीन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तथा पप्पूजीत सिंह सरना की भूमिका की आलोचना करते हुए तीखी टिप्पणी की थी । उसी प्रकरण को याद करते हुए कुछेक पूर्व गवर्नर्स का कहना है कि सुशील गुप्ता के प्रेसीडेंट होते हुए डिस्ट्रिक्ट में चुनावी राजनीति को लेकर यदि गंदी हरकतें होती हैं, तो सुशील गुप्ता के प्रेसीडेंट इलेक्ट चुने जाने से नाखुश हुए बड़े नेताओं को उन्हें और डिस्ट्रिक्ट को बदनाम करने का मौका मिलेगा । इस स्थिति से बचने के लिए ही सुशील गुप्ता के नजदीकियों के रूप में देखे जाने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को तरकीब सूझी कि क्यों न अगले दो-तीन वर्षों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए आपसी विचार-विमर्श से सहमति बनाई जाए, ताकि कोई विवाद पैदा न हो सके - और सुशील गुप्ता के प्रेसीडेंट इलेक्ट चुने जाने से नाखुश हुए बड़े नेताओं को उन्हें और डिस्ट्रिक्ट को बदनाम करने का मौका न मिल सके । डिस्ट्रिक्ट, सुशील गुप्ता और उनके नजदीकी पूर्व गवर्नर्स की बदकिस्मती लेकिन यह रही कि इस विचार को कोई खास समर्थन मिलता हुआ दिख नहीं रहा है, और इस विचार की भ्रूण हत्या ही होती नजर आ रही है । 
दरअसल डिस्ट्रिक्ट के कुछेक चुनावबाज नेताओं को डर है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुनाव यदि नहीं हुए, तो उनके सामने तो अस्तित्व का ही संकट खड़ा हो जायेगा । कुछेक 'नेताओं' की तो वास्तव में समस्या ही यह है कि उनका रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में कोई सकारात्मक योगदान तो है नहीं, वह राजनीति व बदतमीजी के जरिये ही अपनी 'चौधराहट' जमाने की कोशिश करते हैं - उन्हें जब राजनीति करने का मौका नहीं मिलेगा, तो उनके लिए तो रोटरी का 'मतलब' ही खत्म हो जायेगा । ऐसे लोगों ने ही विचार-विमर्श के जरिये डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सहमति बनाने के विचार को सिरे से ही नकार दिया है । इसके लिए उन्होंने तर्क भी जोरदार गढ़ लिया है और वह यह कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी कौन हो, इसका फैसला कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को नहीं - बल्कि क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को ही करने देना चाहिए । कुछेक वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना यह भी है कि चुनाव से 'बचने' की बजाये चुनाव को ईमानदारी से करवाए जाने का प्रयास किया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और या उसके संगी-साथी और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स चुनाव के नाम पर अपनी गंदी राजनीति और हरकतें न कर सकें - जिससे कि डिस्ट्रिक्ट की पहचान को कलंकित होने से और सुशील गुप्ता को फजीहत का शिकार होने से बचाया जा सके । डिस्ट्रिक्ट में लेकिन जिस तरह का माहौल है, और डिस्ट्रिक्ट टीम के कुछेक पदाधिकारियों ने जिस तरह से अपने आपको 'सुपर गवर्नर' समझा हुआ है, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया जिनके सामने असहाय व मजबूर से बने हुए हैं - उसके चलते ऐसा हो सकेगा, यह देखना दिलचस्प होगा ।

Thursday, August 9, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद को लेकर वीके हंस तथा बिरिंदर सोहल की उम्मीदवारी पर लीडरशिप खेमे की असमंजसता का फायदा उठाने के लिए तेजपाल खिल्लन ने लीडरशिप के लोगों के साथ नजदीकी बनाना शुरू की

नई दिल्ली । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के दो गवर्नर्स - डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के वीके हंस और डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के बिरिंदर सोहल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने के लिए अपनी अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कोशिशें तो शुरू कर दी हैं, लेकिन दोनों को ही अपने अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रवैये से अपनी कोशिशें धूल में मिलती हुई भी दिख रही हैं । मल्टीपल की चुनावी राजनीति के जानकारों का कहना है कि वीके हंस को अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजीव अग्रवाल की अतिरिक्त महत्वाकांक्षा का तथा बिरिंदर सोहल को अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गोपाल कृष्ण शर्मा की खेमेबाजी की राजनीति का शिकार होना पड़ सकता है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के लोगों का भी मानना और कहना है कि राजीव अग्रवाल ने लायनिज्म में जिस तरह की सक्रियता बनाई है और जिस 'स्तर' पर अपने आपको पहुँचाया है, उसे देखते हुए लगता है कि वह लायनिज्म में लंबी पारी खेलना चाहते हैं, और इसके लिए  मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनना चाहेंगे - और अपना मौका वीके हंस के चक्कर में नहीं गँवाना चाहेंगे । लोगों को यह भी लगता है कि हालाँकि इसके लिए राजीव अग्रवाल को वीके हंस को लंगड़ी लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि बहुत संभव है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की वीके हंस की हसरत खुद ही दम तोड़ दे । दरअसल वीके हंस को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है; हर किसी का मानना और कहना यही है कि वीके हंस में लीडरशिप की कोई सी भी खूबी नहीं है, और यही बहुत है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन गए । वीके हंस को हालाँकि उम्मीद है कि लीडरशिप मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए उन्हें समर्थन दिलवाएगी और वही राजीव अग्रवाल को भी उनका समर्थन करने के लिए राजी करेगी ।
मजे की बात है कि लीडरशिप के समर्थन के भरोसे ही बिरिंदर सोहल मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की तैयारी कर रहे हैं । उनका दावा है कि पारस अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए उन्होंने लीडरशिप को समर्थन ही इस आश्वासन के बाद दिया था कि अगली बार लीडरशिप उन्हें चेयरमैन बनवाएगी । बिरिंदर सोहल को विश्वास है कि लीडरशिप अपने आश्वासन को पूरा करेगी । लीडरशिप को बचने का कोई बहाना न मिले, इसके लिए बिरिंदर सोहल ने अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गोपाल कृष्ण शर्मा को अपने साथ करने/रखने के प्रयत्न किए हुए हैं । उनके डिस्ट्रिक्ट के नेताओं का कहना लेकिन यह है कि बिरिंदर सोहल और गोपाल कृष्ण शर्मा के बीच खेमेबाजी की जो विभाजक रेखा है, उसे मिटा पाना बिरिंदर सोहल के बस की बात नहीं है । इस मामले में बिरिंदर सोहल के सबसे बड़े समर्थक एचजेएस खेड़ा ही उनके सबसे बड़े 'दुश्मन' साबित हो रहे हैं । दरअसल गोपाल कृष्ण शर्मा की एचजेएस खेड़ा से बिलकुल भी नहीं पटती है; इसका कारण सिर्फ इतना है कि गोपाल कृष्ण शर्मा को एचजेएस खेड़ा की मनमानियाँ और चौधरीपना दिखाने वाला रवैया कतई बर्दाश्त नहीं है । इसके चलते दोनों के बीच कई बार झड़प हो चुकी है । बिरिंदर सोहल के समर्थकों व शुभचिंतकों को ही लगता है कि बिरिंदर सोहल और गोपाल कृष्ण शर्मा के बीच खेमेबाजी की जो दीवार है, उसे ढहाने की बिरिंदर सोहल कोशिश भी करें - तो एचजेएस खेड़ा और गोपाल कृष्ण शर्मा के बीच की लगातार चलती रहने वाली तनातनी बिरिंदर सोहल की मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की कोशिशों की तैयारी को तबाह करने का ही काम करेगी । 
मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए कुछेक लोगों को तेजपाल खिल्लन की उम्मीदवारी आने का भी इंतजार है । उन्हें लगता है कि तेजपाल खिल्लन ने हाल के दिनों में डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के अपने साथियों से दूरी बनाने और 'दिखाने' तथा लीडरशिप के लोगों के साथ नजदीकी बनाने की कोशिश करते हुए जो रंग बदला है, उसमें मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की उनकी ख्वाहिश ही छिपी है । तेजपाल खिल्लन ने कई मौकों पर कहा है कि उनका लीडरशिप के साथ कोई झगड़ा न था और न है, वह तो डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के झगड़े का बेकार में ही शिकार बन गए । तेजपाल खिल्लन की इस तरह की बातों और उनकी कोशिशों को देख कर लोगों ने यही माना और समझा है कि तेजपाल खिल्लन अब लीडरशिप के लोगों के साथ दोस्ती करना चाहते हैं, ताकि उनके धंधे पर और खराब असर न पड़े । तेजपाल खिल्लन के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि धंधा बचाने के साथ-साथ तेजपाल खिल्लन मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन की कुर्सी पर भी निगाह लगाए हुए हैं । हालाँकि अधिकतर लोगों का मानना और कहना है कि लीडरशिप के लोगों के साथ तेजपाल खिल्लन यदि संबंध सुधार भी लें, तो भी मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के मामले में उनकी दाल नहीं ही गलेगी । इसका कारण यही है कि लीडरशिप के लोग अभी तेजपाल खिल्लन पर भरोसा नहीं करना चाहेंगे । तेजपाल खिल्लन के नजदीकियों का कहना है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद को लेकर लीडरशिप खेमे में जो असमंजसता है, उसका फायदा तेजपाल खिल्लन उठा सकते हैं । अधिकतर लोगों को लेकिन यह बात भी हजम नहीं हो रही है । उनका कहना है कि पहली बात तो यह है कि तेजपाल खिल्लन के पास अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के अलावा और किसी का समर्थन नहीं है, और दूसरी बात यह कि लीडरशिप किसी भी हाल में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन का पद उनके पास नहीं जाने देगी । मजे की बात यह है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद को लेकर तेजपाल खिल्लन अभी खुद कुछ नहीं कह रहे हैं; अभी वह अपने लोगों से अपने नाम की चर्चा चलवा रहे हैं और देख/समझ रहे हैं कि चेयरमैन पद को लेकर वह आखिर क्या चाल चलें - और या पीछे ही रहें ? 

Wednesday, August 8, 2018

इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट सुशील गुप्ता के लिए - 'हू इज सुशील गुप्ता' कहने वाले डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता के धमकीभरे रवैये से अगले रोटरी वर्ष में क्लब्स के प्रेसीडेंट के बीच डर बैठा

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता के धमकीभरे रवैये ने क्लब्स के प्रेसीडेंट इलेक्ट को बुरी तरह डराया हुआ है, और कई तो बेचारे यह सोच-सोच कर परेशान हैं कि अगले रोटरी वर्ष में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता को झेलेंगे कैसे ? कई एक क्लब्स के पदाधिकारियों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होते हुए सुभाष जैन उन पर इतना रौब नहीं जमाते हैं, जितना रौब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट होते हुए दीपक गुप्ता दिखाते हैं । उल्लेखनीय है कि इन दिनों क्लब्स में अधिष्ठापन समारोह हो रहे हैं; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन ने सुझाव दिया हुआ है कि अधिष्ठापन समारोह के साथ-साथ क्लब्स जीओवी (गवर्नर्स ऑफिशियल विजिट) भी करवा लें - प्रायः सभी क्लब्स ने उनके इस सुझाव को उपयोगी माना है, जिसके चलते क्लब्स जीओवी तथा अधिष्ठापन समारोह साथ-साथ ही करवा रहे हैं । इसके चलते कार्यक्रम लंबा हो जाता है; लंबाई कतरने के लिए क्लब्स के पदाधिकारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के भाषण पर कैंची चला देते हैं - इस बात पर दीपक गुप्ता बुरी तरह भड़क उठते हैं । शुरू में इस तरह की स्थितियों से दो-चार होने पर दीपक गुप्ता ने तमाशा शुरू किया, जिसके तहत वह कार्यक्रम वाले दिन क्लब के प्रेसीडेंट को फोन करके कार्यक्रम का पूरा ब्यौरा लेते हैं - कि कार्यक्रम कितने बजे सचमुच शुरू होगा, क्या क्या होगा, कैसे कैसे होगा, कितना कितना समय लगेगा, मुझे बोलने का मौका मिलेगा या नहीं, मौका मिलेगा तो कितना समय मिलेगा आदि-इत्यादि । कुछेक क्लब्स के प्रेसिडेंट्स ने बेहद नाराजगी के साथ बताया कि कार्यक्रम वाले दिन वैसे ही टेंशन रहता है, उस पर दीपक गुप्ता दिमाग का दही और बना देता है । दीपक गुप्ता को यदि पता चलता है कि उन्हें बोलने का मौका नहीं मिलेगा, या कम समय मिलेगा - तो वह भड़क उठते हैं और प्रेसीडेंट के साथ बदतमीजी करने लगते हैं । 
दीपक गुप्ता के इस रवैये ने दिल्ली के एक बड़े व प्रमुख क्लब के प्रेसीडेंट को तो इतना परेशान किया कि वह बेचारा रोने को आ गया । जिन क्लब्स के प्रेसीडेंट दीपक गुप्ता को उचित रूप में इज्जत/मान देना चाहते हैं, और व्यस्त शिड्यूल में उन्हें ठीक-ठाक समय देते हैं - दीपक गुप्ता उन्हें भी तरह तरह से परेशान करते हैं; कार्यक्रम में देर से पहुँचेंगे और फिर जिद करेंगे कि उन्हें जल्दी वापस लौटना है, इसलिए पहले उनका भाषण करवाओ । उनकी माँग पूरी नहीं होती है तो वह प्रेसीडेंट के साथ-साथ क्लब के दूसरे पदाधिकारियों से भी नाराजगी दिखाते हैं । कुछेक प्रेसीडेंट्स को अपने साथी पदाधिकारियों से भी सुनने को मिलता है कि 'इसे' बुला क्यों लेते हो ? दीपक गुप्ता अपने इस रवैये को लेकर इतने कुख्यात हो चुके हैं कि कई एक क्लब्स ने उन्हें आमंत्रित न करने का फैसला किया; कुछेक ने यह सोच कर उनका नाम निमंत्रण पत्र पर नहीं छापा, कि नाम नहीं छपा दिखेगा तो दीपक गुप्ता खुद ही कार्यक्रम में नहीं आने का फैसला कर लेंगे - लेकिन इतनी होशियारी करने के बाद भी वह दीपक गुप्ता के क्रोध से नहीं बच सके । दीपक गुप्ता ने कुछेक प्रेसीडेंट्स को हड़काया कि निमंत्रण पत्र में मेरा नाम क्यों नहीं है, या कार्यक्रम का निमंत्रण मुझे क्यों नहीं भेजा ? आदि-इत्यादि । दीपक गुप्ता को जानने वाले लोग हालाँकि दीपक गुप्ता के व्यवहार से परेशान व दुखी होने वाले प्रेसीडेंट्स को सांत्वना देते  और उन्हें समझाते हुए बताते हैं कि दीपक गुप्ता की बातों से परेशान न हों, वह हैं ही ऐसे; वह किसी के साथ भी बदतमीजी कर सकते हैं; उनके क्रोध से हाल ही में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने गए सुशील गुप्ता तक नहीं बच सके हैं - दो-तीन वर्ष पहले ही कई लोगों के बीच किसी मुद्दे पर बात करते हुए सुशील गुप्ता का जिक्र आने पर दीपक गुप्ता ने भड़क कर कहा था - हूँ इज सुशील गुप्ता (सुशील गुप्ता हैं कौन) ?
दीपक गुप्ता के रवैये और उनकी कुख्याति ने लेकिन अगले रोटरी वर्ष के प्रेसीडेंट्स को डरा दिया है । उन्हें डर हुआ है कि इस वर्ष दीपक गुप्ता जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट हैं, तब उन्होंने क्लब्स के पदाधिकारियों पर आतंक जमाया हुआ है, तो अगले रोटरी वर्ष में जब वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होंगे तब कितना और कैसा आतंक मचायेंगे ? मजे की बात यह है कि दीपक गुप्ता के रवैये के कारण खुद दीपक गुप्ता को भी परेशानी हो रही है, और अपने रवैये के चलते उन्हें 23 सितंबर को होने वाली पेम वन को स्पॉन्सर करने के लिए क्लब नहीं मिल रहे हैं । दीपक गुप्ता के एक नजदीकी का ही कहना/बताना है कि इस मामले में उनके लिए समस्या इसलिए भी गंभीर हो गई है, क्योंकि उन्हें 'अपने' असिस्टेंट गवर्नर्स का ही पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पा रहा है । दीपक गुप्ता को अब पछतावा हो रहा है कि उन्होंने कई ऐसे लोगों को नाहक ही असिस्टेंट गवर्नर्स बना दिया है, जो वास्तव में किसी काम के नहीं हैं । नाकारा किस्म के लोगों की टीम बना लेने तथा अपने अकड़ू रवैये के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता के लिए अपने पहले कार्यक्रम के रूप में पेम वन करने को लेकर जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, उसने उनके गवर्नर-काल के कामकाज को लेकर उनके नजदीकियों और शुभचिंतकों को ही सशंकित बना दिया है ।