Monday, October 31, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ की बौखलाहटभरी हरकतों ने पूजा बंसल तथा चेयरपरसन पद के दूसरे आकाँक्षियों के बीच चूहे-बिल्ली जैसा खेल भी शुरू कर/करा दिया है

नई दिल्ली । दीपक गर्ग के बाद, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की पहचान की फजीहतभरी बदनामी करवाने की जिम्मेदारी लगता है कि राकेश मक्कड़ ने सँभाल ली है । इसी जिम्मेदारी को निभाने के तहत राकेश मक्कड़ लोगों के बीच अपने आप को एनआईआरसी टीम को-कॉर्डीनेटर के रूप में प्रोजेक्ट करने लगे हैं । काउंसिल के कार्यालय में वह चेयरपरसन की कुर्सी पर बैठते हैं, और स्टॉफ को वह खुद को चेयरपरसन जताते हुए आदेश देते हैं । उनकी इस हरकत पर काउंसिल के पॉवर ग्रुप के सदस्यों ने ही विरोध जताया है, और उनकी अच्छी-खासी बेइज्जती भी की है - लेकिन छंटे हुए बेशर्मों की तरह उन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है । राकेश मक्कड़ की इन हरकतों और इन्हें लेकर पॉवर ग्रुप में मचे गाली-गलौच भरे घमासान की बातें बॉट्स-ऐप समूहों में चर्चित होने के बावजूद राकेश मक्कड़ तरह तरह से अपने आपको नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का मुखिया बताने/जताने का मौका निकालते रहते हैं । अपने आप के इस प्रोजेक्शन के जरिए वह लोगों के बीच यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल अब उनके ही नियंत्रण तथा दिशा-निर्देशन में काम कर रही है । राकेश मक्कड़ की बदकिस्मती लेकिन यह है कि अपनी इन तमाम कोशिशों के चलते वह लोगों के बीच मजाक का पात्र बनते जा रहे हैं, तथा अपनी हँसी ही उड़वा रहे हैं ।
राकेश मक्कड़ की इन हरकतों को लोग उनकी बौखलाहट के रूप में देख रहे हैं । दरअसल नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में पिछले दिनों जो तमाशा हुआ, उसमें राकेश मक्कड़ को 'अगले' छह महीनों के लिए चेयरमैन बन जाने का भरोसा था । लेकिन घटनाओं का जो चक्र घूमा, उसमें उनके चेयरमैन बनने की सारी योजना धूल-धूसरित हो गई । सिर्फ इतना ही नहीं, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अगले दो वर्षों के चेयरमैन पद को लेकर बनते नजर आ रहे समीकरणों में राकेश मक्कड़ कहीं भी फिट बैठते नहीं दिख रहे हैं । यह देख/जान/समझ कर राकेश मक्कड़ वास्तव में बुरी तरह बौखला गए हैं । बौखलाहट में वह चेयरमैन की कुर्सी पर बैठ कर और स्वयंभू एनआईआरसी टीम को-ऑर्डीनेटर बन कर ही चेयरमैन बनने के अपने ख़्बाव को पूरा हुआ मान लेने की मसखरी कर रहे हैं । बौखलाहट में वह ऐसी ओछी हरकतों पर उतर आए हैं, जिनके कारण उनकी खुद की तो बदनामी और फजीहत हो ही रही है - साथ ही नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की भी बदनामी हो रही है ।
दीपक गर्ग के इस्तीफे से शुरू हुए नाटक का पटापेक्ष जिस तरह पूजा बंसल को चेयरपरसन पद का कार्यभार मिलने से हुआ - उससे यूँ तो कई लोगों की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं को झटका लगा है; लेकिन राकेश मक्कड़ की हरकतों को देख कर लग रहा है कि जैसे उनका तो दिमागी संतुलन ही बिगड़ गया है । बिगड़े दिमागी संतुलन में ही उन्होंने एनआईआरसी टीम को-कॉर्डीनेटर का फर्जी पद बना लिया और अपने आप ही यह पद अपने नाम कर लिया । उल्लेखनीय है कि इस तरह का कोई पद इंस्टीट्यूट और या एनआईआरसी की व्यवस्था में नहीं है; 'टीम एनआईआरसी' शब्द  प्रयोग अभी तक कहीं कहीं होता भी रहा है, तो उसमें एनआईआरसी के सभी सदस्यों का प्रतिनिधित्व संदर्भित रहा है । पॉवर ग्रुप के लिए टीम एनआईआरसी शब्द का प्रयोग न तो कभी हुआ है, और न अभी इसे स्वीकार किया जा रहा है । यही कारण है कि पॉवर ग्रुप के आठ सदस्यों के लिए इस शब्द का प्रयोग किए जाने को लेकर राकेश मक्कड़ की वाट्स-ऐप ग्रुप्स में खासी थुक्का-फजीहत हो रही है ।
राकेश मक्कड़ की फर्जी मनमानियों के लिए पूजा बंसल की व्यवस्थापकीय-कमजोरी को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । दरअसल पॉवर ग्रुप के जिन लोगों को चेयरपरसन पद का कार्यभार मिलने से पूजा बंसल की बढ़ी राजनीतिक हैसियत में अपने लिए खतरा महसूस हो रहा है, उन्हें राकेश मक्कड़ की हरकतों की आड़ में पूजा बंसल को निशाना बनाने का मौका मिल गया है । उनकी तरफ से कहा/सुना जा रहा है कि चेयरपरसन पद का कार्यभार संभाल रहीं पूजा बंसल को राकेश मक्कड़ की हरकतों का संज्ञान लेना चाहिए और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करना चाहिए । उनका आरोप है कि पूजा बंसल की ढीलमढाल के चलते राकेश मक्कड़ को शह मिल रही है, और वह अपनी हरकतों से नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल को बदनाम कर रहे हैं । पूजा बंसल ने लेकिन राकेश मक्कड़ की हरकतों पर पूरी तरह से चुप्पी साधी हुई है । उनके नजदीकियों का कहना है कि राकेश मक्कड़ की हरकतों में पूजा बंसल को अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित व मजबूत होने का भरोसा मिला/दिखा है । उन्हें उम्मीद है कि राकेश मक्कड़ की हरकतें पॉवर ग्रुप में बबाल और विभाजन ही पैदा करेंगी, जिसका फायदा अंततः उन्हें ही मिल सकेगा - इसलिए उन्होंने चुपचाप तमाशा देखते रहने का निश्चय किया है । राकेश मक्कड़ की बौखलाहटभरी हरकतों में पूजा बंसल के लिए बन रही उम्मीदों ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पॉवर ग्रुप में चेयरमैन पद पर निगाह लगाए दूसरे सदस्यों के सामने एक अलग तरह की मुसीबत खड़ी कर दी है ।
जाहिर है कि राकेश मक्कड़ ने अपनी हरकतों से अपनी और काउंसिल की बदनामीभरी फजीहत कराने के साथ-साथ नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद के आकाँक्षियों के बीच चूहे-बिल्ली जैसा खेल भी शुरू कर/करा दिया है ।

Thursday, October 27, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में अपनी फजीहत का बदला लेने की तैयारी में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेपी सिंह ने इंद्रजीत सिंह को 'बागी' बना कर मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए विनय गर्ग की मुसीबत बढ़ाई

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग को अपने ही डिस्ट्रिक्ट के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह की सक्रियता में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की अपनी योजना और तैयारी खटाई में पड़ती नजर आ रही है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में तथा मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में चर्चा सुनने को मिल रही है कि विनय गर्ग के पटाखे को फुस्स करने का काम जेपी सिंह ने किया है । विनय गर्ग के नजदीकियों के अनुसार, विनय गर्ग को दरअसल दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों से ही सुनने को मिला है कि इंद्रजीत सिंह अपने कलीग फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को सलाह दे रहे हैं कि उन्हें अभी मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए किसी भी उम्मीदवार से 'वायदा' नहीं कर लेना चाहिए और अभी 'देखो और इंतजार करो' की नीति का पालन करना चाहिए । मजे की बात है कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से यही बात तेजपाल खिल्लन भी कहते फिर रहे हैं - जो हालाँकि हैं तो डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर, लेकिन वह खुद को मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के 'ख़ुदा' से कम नहीं समझते - और इसीलिए वह हर डिस्ट्रिक्ट में अपनी नाक या टाँग घुसाने की कोशिश करते रहते हैं । लोग उन्हें 'सत्ता' के यानि नरेश अग्रवाल एंड कंपनी के एक एजेंट के रूप में देखते हैं । विनय गर्ग ने तेजपाल खिल्लन की बातों की तो परवाह नहीं की; उनका कहना रहा कि उनकी पहुँच जब सीधी नरेश अग्रवाल तक है, तब उन्हें तेजपाल खिल्लन की बातों की परवाह करने की जरूरत क्या है ? लेकिन इंद्रजीत सिंह को भी तेजपाल खिल्लन की 'भाषा' बोलते सुन कर विनय गर्ग का माथा ठनका है और मल्टीपल चेयरमैन बनने की अपनी योजना और तैयारी उन्हें मुसीबत में पड़ती दिख रही है ।
इंद्रजीत सिंह के रवैये में दरअसल अगले लायन वर्ष में खुद मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की महत्त्वाकाँक्षा को देखा/पहचाना जा रहा है । मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की जिस तरह की सक्रियताएँ हैं, उनमें उनकी इच्छाओं को पढ़ने/देखने वालों का मानना और कहना है कि इंद्रजीत सिंह अगले लायन वर्ष में सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की ही नहीं, बल्कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की भी तैयारी कर रहे हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि उनमें मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन का बीज जेपी सिंह ने रोपा है, जो सत्ता के यानि नरेश अग्रवाल एंड कंपनी के एक दूसरे एजेंट के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं । जेपी सिंह ने जो बीज रोपा है, वह अच्छी तरह से खिल सके और उसकी जड़ें मजबूत हों - इसके लिए जेपी सिंह ने 'सिंचाई' की पक्की व्यवस्था की और इंद्रजीत सिंह को समझाया कि विनय गर्ग यदि इस वर्ष मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बन गए, तो फिर अगले वर्ष मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने का सपना देखना बंद ही कर दो - क्योंकि हर वर्ष एक ही डिस्ट्रिक्ट से चेयरमैन थोड़े ही बनेगा । समझा जाता है कि जेपी सिंह से राजनीति का यह महत्त्वपूर्ण पाठ सीख कर ही इंद्रजीत सिंह ने तेजपाल खिल्लन वाली लाइन पकड़ ली है । इसका नतीजा यह हुआ कि दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में समर्थन के लिए जुगाड़ लगाने वाले विनय गर्ग को सुनने को मिल रहा है कि पहले अपने डिस्ट्रिक्ट में अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का समर्थन तो पक्का करो ।
विनय गर्ग के पटाखे को फुस्स करने की योजना को क्रियान्वित करने के जरिए जेपी सिंह ने वास्तव में एक तीर से दो शिकार करने की चाल चली है : इससे, एक तरफ तो उन्हें विनय गर्ग से बदला लेने का मौका मिला है, और दूसरी तरफ इससे उन्हें इंद्रजीत सिंह को पुनः अपने नजदीक लाने का अवसर मिला है । जेपी सिंह को पिछले लायन वर्ष में अपने ही डिस्ट्रिक्ट में जिस भारी फजीहत का सामना करना पड़ा था, उसके लिए जिम्मेदार 'आरोपियों' की उनके द्धारा बनाई गई सूची में विनय गर्ग का नाम भी है; जेपी सिंह को विनय गर्ग से बदला लेने का चूँकि अच्छा मौका मिल रहा है, इसलिए वह इस मौके को चूकना नहीं चाहते हैं । इस मौके में उन्हें इंद्रजीत सिंह को पुनः अपने नजदीक लाने का जो अवसर दिखाई दे रहा है, उसके चलते तो उक्त मौका उनके लिए दोहरे फायदे का सबब बना है । उल्लेखनीय है कि इंद्रजीत सिंह पहले जेपी सिंह के 'आदमी' के रूप में ही देखे/पहचाने जाते थे; किंतु कुछ जेपी सिंह की हरकतों के चलते और कुछ डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में जेपी सिंह को कमजोर पड़ता देख कर इंद्रजीत सिंह ने उनके 'आदमी' का तमगा उतार फेंका था । जेपी सिंह को विश्वास है कि अब जब वह इंद्रजीत सिंह को अगले लायन वर्ष में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनवाने का जिम्मा संभालेंगे, तो इंद्रजीत सिंह उनके 'आदमी' वाली टोपी फिर से पहन लेंगे ।
जेपी सिंह ने इंद्रजीत सिंह को 'बागी' बना कर मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की विनय गर्ग की योजना व तैयारी को झटका तो जोर का दिया है, लेकिन विनय गर्ग ने उम्मीद अभी पूरी तरह से छोड़ी नहीं है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए डिस्ट्रिक्ट 321 ई के अनिल तुलस्यान व डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के योगेश सोनी के साथ उनका मुकाबला होने की जो उम्मीद की जा रही है, उनके फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को अपने साथ करने के उन्होंने गंभीर प्रयास किए हैं । विनय गर्ग के नजदीकियों का कहना है कि जिस 'राजनीति' के तहत इंद्रजीत सिंह को विनय गर्ग के खिलाफ कर दिया गया है, उसी 'राजनीति' का इस्तेमाल करते हुए विनय गर्ग ने डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय सिंघल के साथ तार जोड़ने का प्रयास किया है । दरअसल अजय सिंघल भी अगले लायन वर्ष में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने के इच्छुक बताए/देखे जा रहे हैं, और उनका मुकाबला इंद्रजीत सिंह से होना माना जा रहा है । ऐसे में, अजय सिंघल को समझाया जा रहा है कि वह इस वर्ष यदि विनय गर्ग को मल्टीपल चेयरमैन बनवाते हैं - तो अगले वर्ष में उनका 'काम' तो अपने आप आसान हो जायेगा ।
मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद को लेकर बनते/बिगड़ते समीकरणों के बीच सत्ताधारी नेताओं - यानि नरेश अग्रवाल और उनके सहारे लायनिज्म में कुछ पा लेने की कोशिशों में लगे बड़े नेताओं का रवैया चूँकि अभी स्पष्ट नहीं है; इसलिए मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की राजनीति का ऊँठ किस करवट बैठेगा, इस बारे में अभी कोई पक्का अनुमान लगाना संभव नहीं है । लेकिन जेपी सिंह की शह पर इंद्रजीत सिंह ने जो तेवर दिखाना शुरू किया है, उसके कारण विनय गर्ग के लिए मामला खासा मुश्किल जरूर हो गया है ।

Tuesday, October 25, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रवि चौधरी की मिलीभगत से अमरजीत सिंह व राजीव सागर के बीच पैदा हुए बबाल ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स - सुरेश जैन व संजय खन्ना के क्लब को मुसीबत में डाला

नई दिल्ली । राजीव सागर की अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा ने अमरजीत सिंह के लिए मुसीबत खड़ी करने के साथ-साथ इन दोनों के अपने क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट में खासा बबाल पैदा कर दिया है । उल्लेखनीय है कि क्लब के वरिष्ठ सदस्य अमरजीत सिंह मौजूदा रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार हैं - समझा जाता है कि राजीव सागर ने अगले वर्ष में अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करके अमरजीत सिंह की इस वर्ष की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम किया है । राजीव सागर की 'अगले वर्षों में' उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की चर्चा हालाँकि पहले से ही थी, लेकिन वह अगले ही वर्ष उम्मीदवार होंगे - क्लब में यह आहट किसी को भी नहीं थी । इसीलिए, अगले वर्ष के लिए अचानक से - और अभी से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करके राजीव सागर ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को ही नहीं, बल्कि अपने क्लब के लोगों को भी हैरान किया है - और अधिकतर लोगों को इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए 'मजबूर' किया है कि अचानक की गई उनकी इस घोषणा में अवश्य ही अमरजीत सिंह की इस वर्ष की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का 'इरादा' छिपा है । लोगों को लगता है कि राजीव सागर को 'डर' है - और या उन्हें डराया गया है कि अमरजीत सिंह इस वर्ष यदि जीत जाते हैं, तो अगले वर्ष उनका दावा कमजोर पड़ जायेगा; डिस्ट्रिक्ट एक ही क्लब के उम्मीदवारों को लगातार गवर्नर थोड़े ही चुनेगा ! इस कारण से, अगले वर्ष में अपने दावे को मजबूत बनाए रखने के लिए राजीव सागर को यह जरूरी लगता है कि वह किसी भी तरह अमरजीत सिंह की जीत की संभावनाओं को धूमिल करें । लोगों को लगता है कि अगले वर्ष के लिए अपनी उम्मीदवारी की अभी से घोषणा करके राजीव सागर ने वास्तव में 'यही' प्रयास किया है । 
राजीव सागर के इस प्रयास में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रवि चौधरी की भूमिका और 'प्रेरणा' की भी चर्चा सुनी/बताई जा रही है । राजीव सागर के ही नजदीकियों का कहना है कि रवि चौधरी ने ही उन्हें उकसाया कि उन्हें यदि सचमुच अगले वर्ष उम्मीदवार होना है, तो इसके लिए उन्हें अभी से तैयारी शुरू कर देना चाहिए - और अपनी उम्मीदवारी अभी से घोषित देना चाहिए । इन्हीं नजदीकियों के अनुसार, रवि चौधरी ने राजीव सागर को कहा/बताया कि दो-तीन और लोग अगले वर्ष उम्मीदवार होने/बनने की सोच रहे हैं - इसलिए वह यदि अभी से अपनी उम्मीदवारी घोषित कर देंगे, तो दूसरे उम्मीदवारों से आगे रहेंगे । राजीव सागर के नजदीकियों की मानें तो रवि चौधरी ने ही राजीव सागर को अमरजीत सिंह की जीत का 'डर' दिखाया है । रवि चौधरी की सलाह पर तुरंत से अमल करना राजीव सागर को दो कारणों से जरूरी लगा - एक कारण तो यही कि उन्हें रवि चौधरी की सलाह उचित ही लगी; और दूसरा कारण यह कि सलाह पर तुरंत से अमल करने से राजीव सागर को रवि चौधरी का विश्वास जीतने का मौका मिला है । मौके का फायदा उठा लेने के बावजूद राजीव सागर को रवि चौधरी का विश्वास मिलेगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - राजीव सागर की अगले वर्ष की उम्मीदवारी की अभी से की गई घोषणा ने अभी लेकिन उनके अपने क्लब में बबाल जरूर मचा दिया है ।
रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट में अमरजीत सिंह के समर्थकों व शुभचिंतकों ने कहना शुरू कर दिया है कि राजीव सागर ने अमरजीत सिंह की उम्मीदवारी के प्रति जो नकारात्मक रवैया दिखाया है, और एक उम्मीदवार के रूप में अमरजीत सिंह की संभावनाओं को असफल करने का जो प्रयास किया - अगले रोटरी वर्ष में राजीव सागर से उसका पूरा पूरा बदला लिया जायेगा । दरअसल, राजीव सागर पर अमरजीत सिंह के समर्थकों का पहले से ही यह गंभीर आरोप रहा है कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में यह प्रचार करते हुए अमरजीत सिंह की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम किया है कि अमरजीत सिंह की उम्मीदवारी को तो क्लब में ही समर्थन नहीं है - और क्लब में जो दो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, वह भी अमरजीत सिंह के साथ नहीं हैं । इस नकारात्मक प्रचार के कारण उम्मीदवार के रूप में अमरजीत सिंह को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है । इस दुष्प्रचार को दरअसल सुरेश जैन व संजय खन्ना के रवैये से विश्वसनीयता मिली । चूँकि इन दोनों पूर्व गवर्नर्स को अमरजीत सिंह की उम्मीदवारी के समर्थन में काम/बात करते हुए नहीं देखा/सुना गया - इसलिए डिस्ट्रिक्ट में लोगों ने उस दुष्प्रचार को सच मान लिया, जिसमें इन दोनों पूर्व गवर्नर्स को अमरजीत सिंह की उम्मीदवारी  खिलाफ बताया गया । अमरजीत सिंह को डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह बताने/समझाने में काफी मशक्कत करना पड़ी है, और अभी भी करना पड़ रही है कि उनके क्लब के दोनों पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनावी राजनीति के पचड़े से दूर ही रहते हैं - इसलिए वह उनकी उम्मीदवारी के संदर्भ में कुछ करते/कहते नहीं सुने जाते हैं; लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह दोनों उनके साथ नहीं हैं । अमरजीत सिंह ने बड़ा जोरदार तर्क यह दिया कि उक्त दोनों पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तथा क्लब के दूसरे लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में यदि सचमुच नहीं होते - तो क्लब में उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी भला कैसे मिल पाती ?
अमरजीत सिंह के समर्थकों व शुभचिंतकों का कहना है कि क्लब के पदाधिकारियों तथा अन्य प्रमुख सदस्यों के बीच अमरजीत सिंह की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन को लेकर कोई समस्या नहीं है; यह सिर्फ राजीव सागर तथा उनके कुछेक गिने-चुने समर्थक ही उनकी उम्मीदवारी को लेकर दुष्प्रचार कर रहे हैं । अगले वर्ष के लिए राजीव सागर ने जिस तरह से अभी से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी है, उससे भी साबित होता है कि राजीव सागर हर वह काम करने के लिए तैयार हैं - जिससे अमरजीत सिंह की चुनावी संभावनाओं को ग्रहण लग सकता हो । अमरजीत सिंह के समर्थक व शुभचिंतक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रवि चौधरी के खिलाफ भी अपनी नाराजगी व्यक्त करने से नहीं चूकते हैं, और इस सारे झमेले के लिए वह रवि चौधरी को भी जिम्मेदार ठहराते हैं । उनका आरोप है कि रवि चौधरी अपने स्वार्थ में दोनों को इस्तेमाल कर रहे हैं, और रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट में झगड़ा पैदा कर रहे हैं । अभी हाल ही में संपन्न हुई अपनी पेम में रवि चौधरी ने अमरजीत सिंह को 'मौका' देकर उनसे फायदा उठाया, और साथ-साथ ही राजीव सागर को अपने नजदीक लाने की कोशिश करते हुए उन्हें अमरजीत सिंह से ही भिड़वा दिया । इस वर्ष की अमरजीत सिंह की और अगले वर्ष की राजीव सागर की उम्मीदवारी के चलते रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट में जो बबाल मचा है, उसमें रवि चौधरी की सीधी मिलीभगत व भागीदारी को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि उसका असर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति तक पर पड़ेगा ।

Monday, October 24, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी के षड्यंत्री विरोध के बावजूद मुकेश गोयल खेमे के मसूरी में होने जा रहे लीडरशिप सेमीनार ने ऐतिहासिक सफलता का रिकॉर्ड बनाया

गाजियाबाद । मुकेश गोयल की प्रेरणा से और उनके नेतृत्व में होने जा रहे लीडरशिप सेमीनार को होने से पहले ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जो अपार समर्थन व सफलता मिली है, वह डिस्ट्रिक्ट ही नहीं - बल्कि लायनिज्म के इतिहास की अनोखी घटना है । सफलता की ऐसी कहानियाँ यदा-कदा ही सुनने को मिलती हैं । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन ही नहीं, मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में सफलता का ऐसा नजारा शायद ही कभी/कहीं घटा हो । लायनिज्म के इतिहास में भी सफलता की ऐसी घटनाएँ गिनी-चुनी ही मिलेंगी । यूँ तो हर उपलब्धि ही सफलता होती है - किंतु हर सफलता इतिहास नहीं बनती/बनाती है और इतिहास में दर्ज नहीं होती है; इतिहास में वही सफलता दर्ज होती है - जो विरोधों/प्रतिरोधों का सामना करती है, जिसे षड्यंत्रों का शिकार बनाने की कोशिशें होती हैं, जिसे सफल होने से रोकने के लिए तमाम तरह की शक्तियाँ अपने अपने तरीके से प्रयास करती हैं । कोई भी काम जब तमाम तरह के प्रतिरोधों तथा षड्यंत्री हथकंडों का सामना करते हुए और उन्हें विफल करते हुए संपन्न होता है - तभी वह सफलताओं के इतिहास में अपनी जगह बनाता है । मसूरी में 19/20 नबंवर को होने जा रहा लीडरशिप सेमीनार एक ऐसा ही आयोजन है, जिसे शुरू दिन से ही विरोध का सामना करना पड़ा - लेकिन विरोध के हर हथकंडे को धूल चटाते हुए यह सफलता की और ऊँची सीढ़ियाँ चढ़ता गया है ।
मजे की बात यह है कि लीडरशिप सेमीनार की तैयारी में शुरू से जुटे कुछेक लोगों तक को सफलता की ऐसी उम्मीद नहीं थी । उनका कहना है कि इस आयोजन के प्रति डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने जिस तरह का उत्साह दिखाया, और इसमें अपनी अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जिस तरह की होड़ रही है - उसे देख कर वास्तव में वह भी हैरान और अचंभित हैं । मुकेश गोयल की प्रेरणा व उनके नेतृत्व में होने जा रहे लीडरशिप सेमीनार की सफलता का आधार सिर्फ यह नहीं है - कि इसमें भागीदारी निभाने के लिए चार सौ से ज्यादा लोगों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है, सौ से ज्यादा लोग रजिस्ट्रेशन कराने के लिए प्रतीक्षा सूची में हैं, तथा अभी भी रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन आते जा रहे हैं । लायनिज्म में आयोजन तो इससे भी अधिक संख्या/उपस्थिति वाले हुए हैं - लेकिन लायनिज्म के इतिहास में ऐसा आयोजन शायद ही कभी कहीं हुआ होगा, जिसे फेल करने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और उनके संगी-साथियों ने अपनी पूरी ताकत झोंकी हुई हो, और जिसमें उन्हें डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख व सक्रिय पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का सहयोग भी मिल रहा हो; और उसके बावजूद डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स से लोग जिसमें शामिल होने के लिए टूटे पड़ रहे हों ।
उल्लेखनीय है कि मुकेश गोयल के नेतृत्व में हो रहे इस लीडरशिप सेमीनार को पहले दिन से ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी की चालबाजियों का शिकार होना पड़ा है । इस आयोजन को फेल करने के लिए शिव कुमार चौधरी ने पहले तो लोगों को आगाह किया कि यह डिस्ट्रिक्ट का कार्यक्रम नहीं है । लीडरशिप सेमीनार के आयोजकों ने इसे डिस्ट्रिक्ट का कार्यक्रम कभी कहा भी नहीं; लेकिन फिर भी - दरअसल लोगों को भ्रमित करने तथा भड़काने के लिए शिव कुमार चौधरी ने यह पैंतरा चला । यह पैंतरा सिरे नहीं चढ़ सका, तो शिव कुमार चौधरी ने दूसरी चाल चली और पैकेज को महँगा बता कर लोगों को बरगलाने की कोशिश की । लोगों को असलियत पता चली, तो ज्ञात हुआ कि पैकेज तो बहुत सस्ता है - और इससे सस्ता पैकेज हो ही नहीं सकता है । तब शिव कुमार चौधरी ने यह अफ़वाह उड़ा कर कार्यक्रम को बदनाम करने की कोशिश की कि कई लोगों ने गलतफहमी में रजिस्ट्रेशन करा लिया है, और इसके लिए वह पछता रहे हैं; कार्यक्रम के आयोजकों ने तुरंत घोषणा की कि रजिस्ट्रेशन करवा कर जो कोई भी पछता रहा है, वह रजिस्ट्रेशन कैंसिल करवा सकता है - उसके पैसे तत्काल वापस कर दिए जायेंगे । शिव कुमार चौधरी के लिए फजीहत की बात यह हुई कि एक भी लायन सदस्य रजिस्ट्रेशन कैंसिल करवाने के लिए आगे नहीं आया । लीडरशिप सेमीनार की खिलाफत में अपनी सार्वजनिक कोशिशों को मुहँकी खाती देख कर शिव कुमार चौधरी ने अंदरखाने की कोशिशें शुरू कीं, और अपने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने का वास्ता देकर लोगों पर दबाव बनाना शुरू किया कि वह इस कार्यक्रम से दूर रहे । यहाँ उन्हें लोगों की तरफ से लेकिन लताड़ और सुनने को मिली । लोगों ने उन्हें फटकारते हुए कहा कि तुम खुद तो कोई ढंग का कार्यक्रम कर नहीं सकते हो, जो हो रहा है - उसकी खिलाफत क्यों रहे हो ? लोगों की इस प्रतिक्रिया ने शिव कुमार चौधरी को खासा निराश किया, हालाँकि उन्होंने अपनी कोशिशों को पूरी तरह से छोड़ा नहीं है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी के खुले/छिपे भारी विरोध के बावजूद, लीडरशिप सेमीनार में शामिल होने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने वालों की लगातार बढ़ती संख्या को देख कर अनुभवी वरिष्ठ लायन सदस्यों का कहना रहा कि शिव कुमार चौधरी के खुन्नसी विरोधी रवैये ने भी इस कार्यक्रम को सफलता दिलवाने में भूमिका निभाई है । कई लोग ऐसे हैं, जो सामान्य परिस्थितियों में इस कार्यक्रम में शायद न जाते; लेकिन शिव कुमार चौधरी की हरकतों को देख कर उन्हें लगा कि उनके न जाने का अर्थ लगाया जायेगा - जैसे कि वह शिव कुमार चौधरी की बातों में आ गए हैं, सो उन्होंने रजिस्ट्रेशन करा कर दरअसल इस 'कलंक' से मुक्ति का रास्ता बनाया । रजिस्ट्रेशन बंद हो जाने के बाद भी, अभी भी लोग रजिस्ट्रेशन कराने के लिए आवेदन कर रहे हैं - तो इसका एक बड़ा कारण यही है कि लोग चाहते हैं कि मुकेश गोयल खेमा उन्हें अपने खिलाफ न समझे, बल्कि अपने साथ ही माने । एक कारण यह भी रहा कि डिस्ट्रिक्ट का प्रत्येक कार्यक्रम चूँकि बुरी तरह से फ्लॉप रहा और डिस्ट्रिक्ट के लोगों को कोई उम्मीद नहीं रही है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी अपना कोई भी कार्यक्रम ढंग से कर पायेंगे, इसलिए भी लोगों ने लीडरशिप सेमीनार से जुड़ने में उत्साह दिखाया है । इस तरह अपनी नाकारा छवि व पहचान के साथ शिव कुमार चौधरी द्धारा किया गया विरोध लीडरशिप सेमीनार के आयोजकों के लिए फायदेमंद ही साबित हुआ । इस फायदेमंदी ने मुकेश गोयल खेमे को डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक परिदृश्य में खासी राजनीतिक ऊँचाई भी दी, तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी तथा उनके सहारे अपनी अपनी राजनीति जमाने की कोशिशों में लगे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नेताओं का तगड़ा राजनीतिक झटका भी दिया ।
लीडरशिप सेमीनार को सफल बनाने में मुकेश गोयल की नेतृत्व-क्षमता के साथ-साथ फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय सिंघल तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल और इस वर्ष के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार संजीवा अग्रवाल की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही । दरअसल इन तीनों के बीच की एकजुटता ने तथा उनके बीच के आपसी तालमेल ने मुकेश गोयल खेमे को गुणात्मक मजबूती दी है । यूँ तो अजय सिंघल, विनय मित्तल और संजीवा अग्रवाल के स्वभाव, लोगों के बीच उनकी अपील तथा लायनिज्म में उनके 'लक्ष्य' अलग अलग हैं - किंतु तीनों ने आपसी तालमेल बना कर अपने आप को जिस तरह से एक-दूसरे का पूरक बना लिया है; उससे लोगों के बीच उनकी पहचान व साख और समृद्ध व विश्वसनीय हुई है । लीडरशिप सेमीनार में शामिल होने के लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जो होड़ मची है - उसमें वास्तव में अजय सिंघल, विनय मित्तल और संजीवा अग्रवाल के साथ निकटता बनाने/दिखाने की लोगों की इच्छा और कोशिश भी छिपी हुई है । इन तीनों ने आपसी तालमेल बना कर डिस्ट्रिक्ट में मुकेश गोयल के समर्थन-आधार और उनकी राजनीतिक विरासत के साथ जिस तरह से तार जोड़े हैं - उसने डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक परिदृश्य को काफी हद तक नियंत्रित किया है । 19/20 नबंवर को मसूरी में होने जा रहे लीडरशिप सेमीनार की अनोखी व ऐतिहासिक सफलता डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक परिदृश्य में मुकेश गोयल खेमे के नियंत्रण का एक उदाहरण और सुबूत भी है ।

Sunday, October 23, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में दोहरे लाभ की उम्मीद में मुकेश अरनेजा द्धारा रमेश अग्रवाल की तरफ दोस्ती के बढ़ाए कदम ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए गंभीर संकट पैदा कर दिया है

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के बीच दोस्ती होने की कोशिशों की पसीने में लथपथभरी जो एक झलक डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में देखने को मिली, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के परिदृश्य में खासी हलचल मचा दी है, जिसके नतीजे के रूप में दीपक गुप्ता और उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों के तोते उड़ने के लिए फड़फड़ा उठे हैं । दरअसल मुकेश अरनेजा डिस्ट्रिक्ट से ऊपर की रोटरी की राजनीति और व्यवस्था में जिस तरह से खदेड़े गए हैं, उससे मुकेश अरनेजा को रमेश अग्रवाल की शरण में लौटने की मजबूरी समझ में आ रही है । उल्लेखनीय है कि दिसंबर में हो रहे रोटरी जोन इंस्टीट्यूट की भारी-भरकम कमेटी में मुकेश अरनेजा को जगह तक नहीं मिली है; उनके लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि उक्त कमेटी में रमेश अग्रवाल के साथ-साथ जेके गौड़ तक को जगह मिल गई, लेकिन उन्हें कमेटी से बाहर ही रखा गया है । मुकेश अरनेजा के लिए फजीहत की बात यह हुई कि जिन इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के साथ वह अपनी निकटता की डींगे हाँकते रहे हैं, उन्हीं मनोज देसाई ने उन्हें उक्त कमेटी में 'घुसने' नहीं दिया । मुकेश अरनेजा के निकटवर्तियों का कहना है कि कुछेक दूसरे बड़े नेताओं के साथ साथ पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता ने भी उन्हें बताया/समझाया है कि डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में नकारात्मक भूमिका निभाने के कारण रोटरी के बड़े नेताओं के बीच उनकी बहुत बदनामी है, और इसीलिए रोटरी जोन इंस्टीट्यूट जैसे महत्त्वपूर्ण आयोजन में उन्हें कोई जगह नहीं मिल सकी ।
इन हालात में मुकेश अरनेजा को रमेश अग्रवाल के साथ दोस्ती कर लेने में ही अपनी भलाई नज़र आई है - और समझा जाता है कि मुकेश अरनेजा ने अपनी तरफ से रमेश अग्रवाल की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया है । हालाँकि रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के जैसे जो संबंध चल रहे हैं, उन्हें देखते/पहचानते हुए दोनों के बीच सहयोगात्मक संबंध बन पाना आसान नहीं होगा - लेकिन फिर भी दोनों के ही निकटवर्तियों का मानना और कहना है कि रोटरी में और रोटरी की राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है; और राजनीति में तो नए समीकरण बनते/बिगड़ते ही रहते हैं । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के मामले में भी लोगों ने देखा ही है कि दोनों के संबंध कई बार सर्द/गर्म होते रहे हैं । दोनों के बीच संबंध सुधारने की जरूरत इस समय भले ही मुकेश अरनेजा को लग रही है, लेकिन भविष्य की आहटों को सुनते/समझते हुए रमेश अग्रवाल को भी यह जरूरत महसूस हो रही है । रमेश अग्रवाल भी समझ रहे हैं कि जेके गौड़ जैसे लोग तक जब उन्हें आँखें दिखाने लगे हैं, तो भविष्य उनका भी कोई अच्छा नहीं है । भविष्य को सुरक्षित करने/बनाए रखने के लिए रमेश अग्रवाल को भी मुकेश अरनेजा के साथ तार एक बार फिर से जोड़ लेने की जरूरत महसूस हो रही है । रमेश अग्रवाल भी समझ रहे हैं कि मुकेश अरनेजा के साथ उनकी दोस्ती यदि फिर से हो जाएगी, तो 'नए' गवर्नर उन्हें अलग-थलग नहीं कर पायेंगे ।
मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की जरूरतों के कारण भले ही अलग अलग हों, लेकिन जरूरतें चूँकि एक सी ही हैं - इसलिए दोनों के ही नजदीकियों का मानना और कहना है कि अपने अपने ईगो को छोड़कर साथ आ मिलने में दोनों को ही देर नहीं लगेगी । मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल के बीच हो सकने वाले इस मिलन समारोह ने दीपक गुप्ता और उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों को बेचैन कर दिया है । दरअसल वह भी समझ रहे हैं कि दोनों के बीच संबंध सुधरे, तो इसका खामियाजा दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को ही भुगतना पड़ेगा । वास्तव में हर कोई समझ रहा है कि रमेश अग्रवाल के लिए तो अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थन से पीछे हटना संभव नहीं होगा; और मुकेश अरनेजा के लिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन को छोड़ देने में कोई समस्या नहीं होगी । मुकेश अरनेजा खुद भी कहते रहे हैं कि पिछले रोटरी वर्ष में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का झंडा तो उन्होंने मजबूरी में तब उठाया था, जब रमेश अग्रवाल एंड कंपनी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की राजनीति में उन्हें अलग-थलग कर दिया था । यानि मुकेश अरनेजा के लिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन डिस्ट्रिक्ट में अपनी उपस्थिति, पहचान और अहमियत बनाए रखने का एक जरिया भर है । ऐसे में, दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन से पीछे हट कर मुकेश अरनेजा को यदि रोटरी में अपनी उपस्थिति, पहचान और अहमियत बनाए रखने का मौका मिलता दिख रहा होगा - तो वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी से पीछे हटने में देर भला क्यों लगायेंगे ?
मुकेश अरनेजा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति में जातिवाद का कार्ड चल कर दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन से पीछे हटना वास्तव में शुरू भी कर दिया है । ललित खन्ना के नजदीक दिखने वाले गैर-पंजाबी लोगों को हाल-फिलहाल में मुकेश अरनेजा की तरफ से समझाने की कोशिश की गई है कि वह एक पंजाबी का साथ क्यों देना चाहते हैं, उन्हें गैर पंजाबी का साथ देना चाहिए - भले ही दीपक का साथ दो या अशोक का । मुकेश अरनेजा की जातिवादी राजनीति को रमेश अग्रवाल चूँकि अच्छे से जानते/समझते हैं, इसलिए उन्हें यह समझने/पहचानने में देर नहीं लगी कि इस तरह की बातों के स्रोत मुकेश अरनेजा ही हैं । मुकेश अरनेजा की इस समय दरअसल एक बड़ी खुन्नस ललित खन्ना हैं । मुकेश अरनेजा को अपने ही क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ से जिस तरह अपमानित होकर निकलना/भागना पड़ा, और रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के पदाधिकारी व लोग अभी भी उनके साथ जिस तरह का परायापन दिखा/जता रहे हैं, मुकेश अरनेजा उसके लिए ललित खन्ना को ही जिम्मेदार मान रहे हैं । इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में मुकेश अरनेजा का मुख्य एजेंडा दीपक गुप्ता को जितवाना नहीं, बल्कि किसी भी तरह से ललित खन्ना का हरवाना है । इसके लिए यदि उन्हें अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थन में भी जाने की जरूरत होगी, तो वह हिचकेंगे नहीं । अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थन से यदि रमेश अग्रवाल के साथ उनके संबंध सुधरते हैं, तो फिर उनके लिए तो यह बात सोने पर सुहागे वाली बात होगी ।
यानि रमेश अग्रवाल के साथ पुनः दोस्ती करने से मुकेश अरनेजा को ललित खन्ना से निपटने के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट से ऊपर की 'व्यवस्था' में भी अपनी स्थिति ठीक करने का मौका मिलेगा - तो उनके लिए तो यह दोहरा लाभ पाने का तरीका हुआ । मुकेश अरनेजा के निकटवर्तियों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट तथा उससे ऊपर की राजनीति तथा व्यवस्था में अपनी जरूरतों का ध्यान करते हुए, और दोहरे लाभ को पाने की उम्मीद में मुकेश अरनेजा ने रमेश अग्रवाल की तरफ दोस्ती का कदम बढ़ा दिया है, जिसकी एक झलक हाल ही में हुए डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में लोगों को भी देखने को मिली है । इस झलक ने लेकिन दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए गंभीर संकट पैदा कर दिया है ।

Friday, October 21, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में लायंस क्लब आगरा मेवरिक्स के मामले में सीपी सिंघल के रवैये ने मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक गवर्नर्स की मुश्किलें बढ़ाई

आगरा । लायंस क्लब आगरा मेवरिक्स के नाम पर हो रही राजनीति ने डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में खासा दिलचस्प नजारा प्रस्तुत किया हुआ है - 'मार' बेचारे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल पर पड़ रही है, लेकिन दर्द सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवार मधु सिंह के समर्थक गवर्नर्स को हो रहा है । इसका नतीजा यह हो रहा है कि मधु सिंह के समर्थक गवर्नर्स भी सीपी सिंघल को 'पीटने' में जुट गए हैं - और सीपी सिंघल दोनों तरफ से 'पिट' रहे हैं । विडंबनापूर्ण रोचक बात यह हुई है कि एक तरफ तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सीपी सिंघल हर तरह से मधु सिंह की उम्मीदवारी को प्रमोट करने में लगे हुए हैं, और इसके लिए वह दूसरे ग्रुप के लोगों की आलोचना का शिकार भी हो रहे हैं - दूसरी तरफ लेकिन मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व गवर्नर्स सीपी सिंघल की फजीहत करते हुए कह रहे हैं कि सीपी सिंघल की कारस्तानियों के चलते मधु सिंह को पिछली हार से भी बड़ी हार का सामना करना पड़ जायेगा । लायंस क्लब आगरा मेवरिक्स के मामले को लेकर सीपी सिंघल ने जिस तरह की अपरिपक्वता दिखाई, और उसके चलते जिस तरह का माहौल बना है - उसमें मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक गवर्नर्स को खतरे की घंटी की आवाज सुनाई दी है; और उन्हें लग रहा है कि यह माहौल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत मधु सिंह की उम्मीदवारी के लिए मुसीबतों को बढ़ाने वाला साबित हो सकता है ।
दरअसल हुआ यह कि लायंस क्लब आगरा मेवरिक्स के बंद होने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल की कठपुतली भूमिका को जिम्मेदार माना/बताया गया, और आरोप लगा कि पिछले लायन वर्ष में मधु सिंह की चुनावी हार को सुनिश्चित करने में मेवरिक्स की चूँकि सक्रिय भूमिका थी - इसलिए उसका बदला लेने के लिए मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक गवर्नर्स ने सीपी सिंघल को इस्तेमाल करते हुए मेवरिक्स को बंद करवा दिया । इस आरोप को डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जिस तरह का प्रचार और स्वीकार्यता मिली, उसे देख कर मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक गवर्नर्स परेशान हो उठे हैं । लिहाजा अब वह सीपी सिंघल पर आरोप मढ़ रहे हैं, कि उन्होंने मामले को उचित तरीके से हैंडल नहीं किया और अपनी बेवकूफी से एक छोटे से मामले का बबाल बनवा दिया । मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व गवर्नर्स जान/समझ रहे हैं कि इस बबाल से सीपी सिंघल की तो सिर्फ बदनामी हो रही है, जो पहले से ही है भी - इसलिए उनका तो कुछ बिगड़ना नहीं है; लेकिन इस बबाल ने मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को जिस तरह से आरोपों के घेरे में ले लिया है - उसके चलते मधु सिंह की उम्मीदवारी के अभियान को खासा तगड़ा झटका लगा है ।
उल्लेखनीय है कि लायंस क्लब आगरा मेवरिक्स पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर योगेश कंसल के क्लब के रूप में पहचाना जाता रहा है । योगेश कंसल ने अपनी उम्मीदवारी के साल में इसे अपने बेटे को आगे रखकर खुलवाया/बनवाया था । यह क्लब यूँ तो काफी सक्रिय क्लब के रूप में जाना/पहचाना जाता रहा, लेकिन इसकी ज्यादातर सक्रियता नाच/गाने की मस्ती तक ही सीमित रही - जो कभी कभी लफंगई की सीमाओं को भी छूती नजर आई । क्लब के लोगों ने ही कहना शुरू किया कि क्लब के आयोजनों में आकर उन्हें नहीं लगता कि वह किसी लायंस क्लब के आयोजन में आए हैं, उन्हें लगता है कि जैसे वह किसी रेव पार्टी में आ गए हैं । इस तरह की बातों के बीच क्लब में दो ग्रुप बन गए । एक ग्रुप का प्रयास रहा कि जैसा चल रहा है, वैसा चलता रहे; और दूसरे ग्रुप के प्रयासों में इसकी खिलाफत थी । पहला ग्रुप चूँकि सत्ता में था, लिहाजा वह मनमानी करता रहा । दूसरे ग्रुप के लोगों ने तब - पिछले लायन वर्ष में शिकायत करने का रास्ता पकड़ा । यहाँ तक मामला क्लब का आपसी झगड़ा भर था - डिस्ट्रिक्ट के नेता, यानि गवर्नर्स चाहते और कोशिश करते - तो क्लब के झगड़े को ख़त्म करवा सकते थे । शिकायत होने के बाद मामला जब लायंस इंटरनेशनल तक पहुँच गया, तब इसे लेकर डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स भी दो खेमों में बँट गए । पिछले लायन वर्ष की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रेणु नंदा के कामकाज की बागडोर चूँकि जितेंद्र चौहान के हाथ में थी, इसलिए उन्होंने चालबाजी करके लायंस क्लब मेवरिक्स के खिलाफ हो सकने वाली कार्रवाई को टलवा दिया । इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल के कामकाज की बागडोर चूँकि दूसरे ग्रुप के लोगों के हाथ में आ गई, सो चालबाजी करने का मौका उन्हें मिला और उन्होंने लायंस क्लब आगरा मेवरिक्स के खिलाफ कार्रवाई का रास्ता साफ करवा दिया ।
मामला यदि सिर्फ इतना भर ही होता, तो ज्यादा बबाल न मचता । मामले की आड़ में लेकिन जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल ने पैसे बनाने की कोशिश की - तो बात बिगड़ गई । क्लब के पदाधिकारियों के अनुसार, क्लब बचाने के ऐवज में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट के अधिष्ठापन समारोह में ज्यादा से ज्यादा रजिस्ट्रेशन कराने तथा डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पद बेचने की सौदेबाजी की । क्लब के पदाधिकारियों के आरोप के अनुसार, क्लब की तरफ से सीपी सिंघल की ऊँची डिमांड को चूँकि पूरा नहीं किया जा सका - तो क्लब को बंद करवा दिया गया । लायंस क्लब आगरा मेवरिक्स के पदाधिकारियों के इन आरोपों ने डिस्ट्रिक्ट में बबाल मचा दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल की डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच चूँकि पहले से ही काफी बदनामी है, इसलिए उक्त आरोपों को लेकर लोगों के बीच नाराजगी और बढ़ी । अलग अलग कारणों से सीपी सिंघल से नाराज होने वाले लोगों की डिस्ट्रिक्ट में जो एक बड़ी संख्या है, उन सभी को सीपी सिंघल के खिलाफ अपनी अपनी नाराजगी व्यक्त करने का मौका मिल गया । डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के कुछेक बड़े पदाधिकारियों ने अपने अपने पदों से इस्तीफ़ा देकर सीपी सिंघल की फजीहत करने में 'मदद' की । सीपी सिंघल की फजीहत में जब मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक गवर्नर्स भी फँसने लगे, तब मामला और गंभीर व रोचक हो गया । मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व गवर्नर्स ने अपने आप को बचाने के लिए, अपनी तरफ से भी सीपी सिंघल की 'धुलाई' शुरू दी । उनके द्धारा सीपी सिंघल की 'धुलाई' मधु सिंह की उम्मीदवारी के अभियान को नुकसान से बचा पायेगी, या नहीं - यह तो बाद में पता चलेगा; अभी तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों की प्रतिक्रिया में नजारा यह देखने को मिल रहा है कि लायंस क्लब आगरा मेवरिक्स के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल बेचारे 'घर' और 'घाट' दोनों जगह 'मार' खा रहे हैं ।

Thursday, October 20, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में नरेश अग्रवाल से फर्जी एल्मनॅक विमोचित करवाने की धोखाधड़ी से पीछा अभी छूटा भी नहीं था, कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा दूसरी कैबिनेट मीटिंग के लिए पैसा माँगने को लेकर निशाने पर आ गए

लखनऊ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा डिस्ट्रिक्ट की सेकेंड कैबिनेट मीटिंग के लिए कैबिनेट के सदस्यों से पैसे माँग कर गंभीर आरोपों के घेरे में फँस गए हैं । दरअसल विशाल सिन्हा कैबिनेट सदस्यों से पहले ही मोटी रकम बसूल चुके हैं, और उक्त रकम बसूलते समय उन्होंने दावा/वायदा किया था कि कैबिनेट सदस्यों से किसी कैबिनेट मीटिंग में, अधिष्ठापन समारोह और अवॉर्ड समारोह में पैसा नहीं लिया जायेगा । लोगों को हैरानी है कि विशाल सिन्हा दूसरी कैबिनेट मीटिंग तक आते-आते अपना दावा/वायदा भूल गए, और कैबिनेट मीटिंग के लिए पैसे माँगने लगे । विशाल सिन्हा हालाँकि लोगों को पैसे माँगने का 'कारण' बता/समझा रहे हैं, लेकिन उनकी बदकिस्मती है कि लोग उनके द्धारा बताए जा रहे कारण को समझने की बजाए उन्हें कोसने में लगे हैं - और उनके द्धारा बताए जा रहे कारण को उनकी ठगी की एक तरकीब के रूप में देख/बता रहे हैं । विशाल सिन्हा का कहना है कि दूसरी कैबिनेट मीटिंग वह भीमताल में कर रहे हैं, और वहाँ एक बढ़िया होटल में लोगों के एक रात ठहरने की व्यवस्था कर रहे हैं - वह तो एक रात होटल में ठहरने के खर्च को पूरा करने के लिए पैसे माँग रहे हैं । विशाल सिन्हा का यह तर्क कैबिनेट सदस्यों को लेकिन उनकी चालाकी लग रहा है । लोगों का कहना है कि विशाल सिन्हा कान सीधे न पकड़ कर, थोड़ा घुमा कर पकड़ रहे हैं - और चाह रहे हैं कि लोग उनकी इस चालाकी को चुपचाप स्वीकार कर लें । लोगों का कहना है कि विशाल सिन्हा कैबिनेट मीटिंग भीमताल में करें या झुमरी तलैया में करें - अपने दावे/वायदे के अनुसार उसके लिए कोई पैसा न माँगे; और जो कोई वहाँ होटल में रुकना चाहता है, उसे अपना इंतजाम खुद करने का मौका/अधिकार दें । हाँ, वह अपनी तरफ से एक विकल्प/पैकेज दे सकते हैं; जिसे उनका पैकेज पसंद आएगा, वह उनसे ले लेगा । लोगों का कहना है कि विशाल सिन्हा को कैबिनेट सदस्यों से किए गए अपने दावे/वायदे को याद करते/रखते हुए कैबिनेट मीटिंग के लिए पैकेज थोपना नहीं चाहिए ।
विशाल सिन्हा के तर्क से जो लोग सहमत भी हैं, उनका भी कहना है कि विशाल सिन्हा ने एक रात होटल में ठहरने/ठहराने के नाम पर कैबिनेट सदस्यों से पैसे माँग कर गलत किया है, और नाहक ही परेशानी मोल ले ली है । विशाल सिन्हा लेकिन अपनी 'गलती' मानने को तैयार ही नहीं हैं । उनका कहना है कि पिछले वर्षों में कई एक (पूर्व) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने भीमताल और या ऐसी ही जगहों पर कैबिनेट मीटिंग्स या अन्य कार्यक्रम किए हैं, और उसके लिए लोगों से पैसे लिए हैं - इस पर कभी कोई विरोध नहीं हुआ; उन्हें लेकिन निशाना बनाया जा रहा है । लोगों की तरफ से इसका जबाव भी सुनने को मिला है, जिसमें कहा/बताया जा रहा है कि दूसरे गवर्नर्स की तुलना में विशाल सिन्हा की बदनामी ज्यादा है; लोग अच्छी तरह जानते/पहचानते हैं कि विशाल सिन्हा झूठ बोलने में, सामने कुछ और पीछे कुछ कहने में, धोखेबाजी करने में, इधर की उधर करने में बड़े एक्सपर्ट हैं - इसलिए उनकी हर बात, उनका हर काम शक के घेरे में आ जाता है । वह हर काम इतना घुमाफिरा कर तथा छिपा कर करते हैं कि कुछेक लोगों का शक फिर सभी का विश्वास बन जाता है । बेचारे विशाल सिन्हा की डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच (कु)ख्याति ऐसी है कि उनकी हर हरकत तुरंत से लोगों की पकड़ में आ जाती है - और फिर उनकी खुद की सफाई भी उन्हें किसी भी तरह से नहीं बचा पाती है ।
डिस्ट्रिक्ट के अधिष्ठापन समारोह में डिस्ट्रिक्ट एल्मनॅक को लेकर विशाल सिन्हा ने इंटरनेशनल फर्स्ट वाइस प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर अरुणा ओसवाल सहित लायंस इंटरनेशनल के अन्य पदाधिकारियों सहित डिस्ट्रिक्ट के लोगों की आँखों में धूल झोंकने का जो काम किया - वह इस बात का सुबूत है कि धोखाधड़ी करने में विशाल सिन्हा खासा दुस्साहस रखते हैं । डिस्ट्रिक्ट के अधिष्ठापन समारोह में विशाल सिन्हा ने नरेश अग्रवाल से डिस्ट्रिक्ट एल्मनॅक को विमोचित करवाया । एल्मनॅक हालाँकि उन्होंने किसी को दी नहीं - उनका कहना था कि प्रिंटर/बाइंडर ने अभी कुछ ही प्रतियाँ दी हैं; जैसे ही उन्हें एल्मनॅक की प्रतियाँ मिलेंगी, वह सभी के पते पर पहुँचा देंगे । विमोचित करते समय जो थोड़ी सी प्रतियाँ मंचासीन अतिथियों के पास थीं, विशाल सिन्हा ने उन्हें भी झटपट तरीके से इकट्ठा करके छिपा दिया । बाद में प्रिंटर/बाइंडर से लोगों को पता चला कि एल्मनॅक तो अभी तैयार ही नहीं हुई है; और विशाल सिन्हा ने रद्दी कागजों को जोड़ कर फर्जी एल्मनॅक की पाँच/सात कॉपी बनवा ली थीं, और नरेश अग्रवाल से उसे ही विमोचित करवा लिया । फर्जी एल्मनॅक की एक कॉपी 'रचनात्मक संकल्प' के पास भी आ गई है । फर्जी एल्मनॅक का भेद खुला, तो विशाल सिन्हा ने पैंतरा बदला और लीपापोती करते हुए कहना शुरू किया कि उन्होंने एल्मनॅक नहीं, बल्कि एल्मनॅक का टाइटल कवर विमोचित करवाया था । इस सवाल का जबाव लेकिन उन्होंने नहीं दिया कि टाइटल कवर ही यदि उन्हें विमोचित करवाना था, तो प्रिंटर/बाइंडर से रद्दी कागजों को जोड़ कर फर्जी एल्मनॅक की पाँच/सात कॉपी बनवाने की उन्हें क्या जरूरत थी ? एल्मनॅक के नाम पर किए गए फर्जीवाड़े की पोल खुलने से विशाल सिन्हा की कार्यक्षमता की पोल और खुल गई : लोगों ने पूछना शुरू किया है कि गवर्नरी के तीसरे महीने में तो वह एल्मनॅक का कवर तैयार कर/करवा पाए हैं - ऐसे में एल्मनॅक उनकी गवर्नरी का कार्यकाल पूरा होने तक आ जाएगी या नहीं ?
एल्मनॅक के फर्जीवाड़े को लेकर विशाल सिन्हा की फजीहत अभी हो ही रही थी, कि दूसरी डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट मीटिंग के लिए कैबिनेट सदस्यों से पैसे माँगने का विवाद शुरू हो गया । लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विशाल सिन्हा विवादों का कोई रिकॉर्ड बनायेंगे - एक विवाद थमता नहीं है, कि वह दूसरे विवाद में जा फँसते हैं । विशाल सिन्हा से हमदर्दी रखने वाले लायन सदस्यों को भी लगता है और वह कहते भी हैं कि विशाल सिन्हा ने अपनी हरकतों से अपनी गवर्नरी का मज़ाक बनवा लिया है, और इसी का नतीजा है कि डिस्ट्रिक्ट में उनकी बातों को कोई भी गंभीरता से नहीं लेता है । यही कारण है कि विशाल सिन्हा जिस किसी को भी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपने उम्मीदवार के रूप में तैयार करते हैं, वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच विशाल सिन्हा की असलियत देख/जान कर भाग खड़ा होता है - और तमाम कोशिशों के बावजूद विशाल सिन्हा एक उम्मीदवार खड़ा नहीं कर पा रहे हैं ।

Wednesday, October 19, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल तुलस्यान को अपनी दूसरी कैबिनेट मीटिंग में ही जो तगड़ा वाला झटका लगा है, उससे वह सबक लेंगे क्या ?

वाराणसी । प्रकाश मिश्र के बाद राधे मारवाह के हाथों डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल तुलस्यान की जो फजीहत हुई, उसका सीधा असर डिस्ट्रिक्ट की दूसरी कैबिनेट मीटिंग पर पड़ा - जिसका अधिकतर कैबिनेट सदस्यों ने बहिष्कार किया । कैबिनेट सदस्यों ने ही नहीं, पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने भी डिस्ट्रिक्ट की दूसरी कैबिनेट मीटिंग से अपनी दूरी बनाई/दिखाई । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कुँवर बीएम सिंह ने भी कैबिनेट मीटिंग में शामिल होने की जरूरत नहीं समझी, और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रभात चतुर्वेदी कैबिनेट मीटिंग में शामिल तो हुए, लेकिन बड़े बेमन से हुए - और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आयोजन के दौरान बड़े उखड़े उखड़े से रहे । उल्लेखनीय है कि अनिल तुलस्यान ने 600/650 सदस्यों की तो भारी भरकम कैबिनेट बनाई हुई है; 250 के करीब पीएसटी होते हैं - लेकिन सिंगरौली के ऑफीसर्स क्लब में आयोजित हुई डिस्ट्रिक्ट की दूसरी कैबिनेट मीटिंग में मुश्किल से सवा सौ लोग ही जुटे, और मीटिंग-स्थल की ज्यादातर कुर्सियाँ खाली ही पड़ी रह गईं । जो लोग मीटिंग में थे भी, उनमें भी बहुतायत आसपास के क्लब्स के लोगों की थी । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स में वीरेंद्र गोयल और निधि कुमार भी - शायद स्थानीय होने के नाते ही मीटिंग में शक्ल दिखाने पहुँचे । जो लोग पिछले लायन वर्ष में भी डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में थे, और कैबिनेट मीटिंग्स में शामिल होते रहे थे - उन्होंने तुलनात्मक अध्ययन करते हुए बताया कि निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रकाश जी अग्रवाल की चारों कैबिनेट मीटिंग्स उपस्थिति के लिहाज से भी और व्यापक सक्रियता के लिहाज से भी बेहतरीन रही थीं; और उनके मुकाबले मौजूदा लायन वर्ष में अनिल तुलस्यान की दूसरी कैबिनेट मीटिंग ही बुरी तरह पिट गई और फ्लॉप रही ।
डिस्ट्रिक्ट की दूसरी कैबिनेट मीटिंग में अनिल तुलस्यान को डिस्ट्रिक्ट के आम और खास - दोनों तरह के लोगों से जो झटका लगा है, उसके लिए अनिल तुलस्यान के व्यवहार और रवैये को ही जिम्मेदार बताया/ठहराया जा रहा है । लोगों की तरफ से, विशेष कर डिस्ट्रिक्ट के 'खास' लोगों की तरफ से एक आम शिकायत यह रही कि अनिल तुलस्यान ने उन्हें उचित सम्मान के साथ मीटिंग के लिए आमंत्रित ही नहीं किया । इस मामले में बेचारे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर जगदीश गुलाटी के साथ तो बहुत ही बुरी बीती । अनिल तुलस्यान ने उन्हें मीटिंग में उदबोधन देने के लिए राजी कर लिया था । उसी दिन हालाँकि जगदीश गुलाटी के क्लब का भी इलाहबाद में एक कार्यक्रम था, लेकिन फिर भी जगदीश गुलाटी ने अपने क्लब के कार्यक्रम की बजाए डिस्ट्रिक्ट की कैबिनेट मीटिंग को प्रमुखता दी, और अनिल तुलस्यान के निमंत्रण पर अपनी सहमति प्रकट कर दी थी । जगदीश गुलाटी लेकिन यह देख कर हैरान रह गए कि सहमति मिलने के बाद अनिल तुलस्यान ने फिर उनसे न तो कोई बात की, और न मीटिंग को लेकर सलाह/विचार किया । जगदीश गुलाटी मीटिंग में देने वाले उदबोधन का मैटर ड्राफ्ट भी कर चुके थे, लेकिन अनिल तुलस्यान के उपेक्षापूर्ण रवैये से खुद को अपमानित महसूस करते हुए जगदीश गुलाटी ने ऐन मौके पर कैबिनेट मीटिंग में जाने का विचार त्याग दिया । अन्य कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तथा अन्य प्रमुख लोगों की भी शिकायत रही कि अनिल तुलस्यान ने उन्हें चूँकि उचित तरीके से मीटिंग के लिए निमंत्रित नहीं किया, इसलिए उन्होंने मीटिंग से दूर रहने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी ।
डिस्ट्रिक्ट की इलाहबाद में हुई पहली कैबिनेट मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनिल तुलस्यान ने कैबिनेट के कई प्रमुख पदाधिकारियों के साथ चूँकि बहुत ही बदतमीजीपूर्ण व्यवहार किया था, और धौंसभरी बातों से उन्हें बुरी तरह अपमानित व जलील किया था - इसलिए कैबिनेट के तमाम प्रमुख पदाधिकारियों ने दूसरी कैबिनेट मीटिंग से दूर रहने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । लायंस इंटरनेशनल के जो प्रमुख प्रोग्राम व प्रोजेक्ट्स हैं, उनसे जुड़े पदाधिकारी ही जब कैबिनेट मीटिंग में नहीं पहुँचे - तो समझा जा सकता है कि कैबिनेट मीटिंग में फिर क्या काम हुआ होगा ? जाहिर तौर पर कैबिनेट मीटिंग सिर्फ एक औपचारिकता भर बन कर रह गई । डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ लायन सदस्यों का कहना है कि गवर्नरी के चौथे महीने में ही अनिल तुलस्यान की लोगों के बीच जैसी बुरी गत बन गई है, वैसा तो डिस्ट्रिक्ट में इससे पहले किसी भी गवर्नर के साथ नहीं हुआ । मजे की बात यह है कि इस स्थिति के लिए खुद अनिल तुलस्यान को ही जिम्मेदार ठहराया/बताया जा रहा है । आरोप है कि अनिल तुलस्यान अपने आप को लोगों पर जबर्दस्ती थोपते हैं, और अपनी बातें मनवाने के लिए लोगों पर दबाव बनाते/बढ़ाते हैं - लेकिन जब कोई उन्हें उनके दबाव में आने से बचने का प्रयास करता नज़र आता है, तो वह उस पर भड़क उठते हैं तथा उसे अपमानित करने का प्रयास करते हैं । अपने इस रवैये से अनिल तुलस्यान ने डिस्ट्रिक्ट में तमाम लोगों को अपने खिलाफ कर लिया है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनिल तुलस्यान के इस रवैये के पहले शिकार उनके अपने क्लब के निवर्तमान अध्यक्ष प्रकाश मिश्र बने । उल्लेखनीय है कि प्रकाश मिश्र के साथ उनके वर्षों से अच्छे संबंध रहे हैं; दोनों एक ही क्लब में थे - अनिल तुलस्यान के चुनाव में प्रकाश मिश्र ने तन-मन के साथ-साथ धन से भी सहयोग किया था । प्रकाश मिश्र वाराणसी के जाने-माने पंडित हैं, और इस नाते शहर के लोगों के बीच उनकी अच्छी व प्रभावी पहचान तथा प्रतिष्ठा है । उनकी पहचान व प्रतिष्ठा का अनिल तुलस्यान ने अपने चुनाव में जमकर फायदा उठाया । अनिल तुलस्यान के चुनाव में प्रकाश मिश्र की जो महत्त्वपूर्ण भूमिका रही, उसने दोनों के बीच के संबंधों को और प्रगाढ़ बनाया । इसी प्रगाढ़ता का नतीजा रहा कि पिछले लायन वर्ष में अनिल तुलस्यान ने अपने कुछेक साथियों के साथ मिलकर जब नया क्लब बनाया तो प्रकाश मिश्र भी उनके साथ पुराना क्लब छोड़ कर नए क्लब में आए - प्रकाश मिश्र बल्कि नए क्लब के चार्टर प्रेसीडेंट बने । सिर्फ इतना ही नहीं, अनिल तुलस्यान ने अपनी कैबिनेट बनाई तो उन्होंने प्रकाश मिश्र को जोन चेयरमैन बनाया । एक तरफ तो यह हो रहा था, इसके साथ-साथ दूसरी तरफ लेकिन गवर्नरी की कुर्सी की तरफ बढ़ते हुए अनिल तुलस्यान के दिमाग में 'गर्मी' भी पैदा होने लगी थी - और इस गर्मी के कारण उन्होंने लोगों के साथ बदतमीजियाँ भी करना शुरू कर दिया था । लोगों के लिए हैरानी की बात यह रही कि उनकी गवर्नरी की 'गर्मी' का पहला शिकार प्रकाश मिश्र ही बने । गवर्नरी के दूसरे महीने में ही प्रकाश मिश्र के साथ उनके संबंध इतने विवादपूर्ण हो गए कि उन्होंने प्रकाश मिश्र को जोन चेयरमैन पद से ही हटा दिया । प्रकाश मिश्र का गुनाह सिर्फ इतना रहा कि उन्होंने अनिल तुलस्यान की बदतमीजियों को बर्दाश्त करने से इंकार किया । प्रकाश मिश्र ही नहीं, अभी पिछले दिनों ही अनिल तुलस्यान ने डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ सदस्य राधे मारवाह तक के साथ सार्वजनिक रूप से तू तू मैं मैं की । राधे मारवाह का गुस्सा अभी तक भी शांत नहीं हुआ है, जिसकी अभिव्यक्ति के रूप में दूसरी कैबिनेट मीटिंग में लोगों की कम उपस्थिति पर सोशल मीडिया में उनके द्धारा ली गई चुटकी को देखा/पढ़ा गया ।
डिस्ट्रिक्ट की दूसरी कैबिनेट मीटिंग में ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल तुलस्यान को डिस्ट्रिक्ट के आम और खास लोगों की तरफ से जो तगड़ा वाला झटका लगा है, वह अनिल तुलस्यान के लिए सबक भी है, और चुनौती भी है - देखना दिलचस्प होगा कि इससे सबक लेते हुए उनके रवैये व व्यवहार में कोई फर्क पड़ेगा या फिर वह अपनी और फजीहत करवायेंगे ?

Monday, October 17, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में पेम वन की अव्यवस्था व बदइंतजामी में खुद को ठगा हुआ महसूस करने वाले मौजूदा रोटरी वर्ष के अध्यक्षों तथा वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना/पूछना है कि सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा ने उन्हें क्या अपमानित करने के लिए ही बुलाया था ?

नोएडा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सतीश सिंघल की पेम वन में आमंत्रितों के तमाशबीन बनने और ठगे जाने का जो अनुमान था, वह तो सच साबित हुआ ही - बदइंतजामी के कारण वह परेशानी व दुर्गति के दोहरे शिकार और बने । जो वरिष्ठ रोटेरियन पिछले वर्षों में पेम में शामिल होते रहे हैं, उनमें से जिनसे भी इन पँक्तियों के लेखक की बात हो सकी - उनका बेहिचक कहना रहा कि इतना घटिया आयोजन इससे पहले उन्होंने नहीं देखा है । आमतौर से रोटरी के और खासतौर से डिस्ट्रिक्ट 3012 (पूर्व के 3010) के आयोजनों के बारे में माना/कहा जाता रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चाहें जितना भी नाकारा हो, उसके कार्यक्रम अच्छे से हो ही जाते हैं । इसका कारण यह बताया/समझा जाता रहा है कि आयोजन का एक बना-बनाया ढाँचा होता है और आयोजन किसी बड़े होटल में होता है - लिहाजा बिना किसी खास प्रयास के आयोजन अच्छा हो ही जाता है । सतीश सिंघल ने लेकिन यह रिकॉर्ड तोड़ दिया - उन्होंने साबित कर दिया कि बने-बनाए ढाँचे में और एक बड़े होटल में आयोजित होने वाले कार्यक्रम को भी बिगाड़ा जा सकता है और उसे घटिया रूप दिया जा सकता है ।
पेम वन से लौटे लोगों की शिकायत रही कि आयोजन-स्थल का हॉल बहुत छोटा था, जिसमें कुर्सी-मेज सटा सटा कर लगाए गए थे - जिस कारण एक जगह से दूसरी जगह तक पहुँच पाना संभव ही नहीं हो रहा था, और इसका नतीजा यह हुआ कि स्नैक्स अधिकतर लोगों को सर्व ही नहीं हो सके । फैलोशिप-स्टॉल की बदइंतजामी का हाल मछली बाज़ार का माहौल बना रहा था, और खाने की क्वालिटी देख कर लोगों को भ्रम हो रहा था कि खाने की व्यवस्था कहीं किसी लो-बजट हलवाई से तो नहीं करवा ली गई । अव्यवस्था सिर्फ खाने-पीने के मामले में ही नहीं थी - साँस्कृतिक कार्यक्रम के तहत नृत्य प्रस्तुत करने वाली बच्चियों को सम्मानित करने का काम सतीश सिंघल को करना था; इसके लिए सतीश सिंघल का नाम पुकारा भी गया, लेकिन जब तक वह 'मौके' पर पहुँचते - मोमेंटो लेकर आने वाली युवतियों ने ही बच्चियों को मोमेंटो दे दिया और बच्चियाँ सम्मानित होकर वहाँ से निकल चुकी थीं । बच्चियों को सम्मानित करने 'मौके' पर पहुँचे सतीश सिंघल को खिसिया कर बैरंग ही वापस लौटना पड़ा । एमओसी की भूमिका निभा रहे जनाब ने तो और कमाल किया - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन को वह पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कहते/बताते हुए संबोधित कर रहे थे । यह संबोधन सुनकर शरत जैन ने अपने आसपास बैठे लोगों से चुटकी भी ली कि सतीश सिंघल और उनके लोगों ने तो उन्हें आठ महीने पहले ही रिटायर कर दिया है । यह पेम वन के अलग-अलग मौकों के कुछ उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि पेम वन के आयोजन में हर स्तर पर अव्यवस्था, बदइंतजामी व अराजकता का राज था ।
सतीश सिंघल के नजदीकियों का ही कहना है कि इसका मुख्य कारण योजना का अभाव था । कार्यक्रम की तैयारी तथा उसके विभिन्न चरणों को लेकर सतीश सिंघल के पास कोई योजना थी ही नहीं; और यदि थी भी तो उन्होंने उसे किसी के साथ शेयर नहीं किया था । कार्यक्रम की तैयारी को लेकर सतीश सिंघल ने कुछेक लोगों के साथ मीटिंग्स की तो थीं, लेकिन उन मीटिंग्स में अपनी शेखी मारने के अलावा उन्होंने और कुछ नहीं किया । पेम वन की तैयारी से जुड़े लोगों को भी यह नहीं पता था कि किस मौके पर क्या काम होना है, और कैसे होना है ? यहाँ तक कि किन किन लोगों को पेम वन में आमंत्रित करना है, और कितने लोगों के लिए व्यवस्था करनी है - इसका भी किसी को नहीं पता था । मुकेश अरनेजा को जिस जिस की याद आती जा रही थी, वह उसे उसे आमंत्रित करते जा रहे थे । सतीश सिंघल भी ऐन मौके तक उन लोगों को भी फोन करके आमंत्रित कर रहे थे, जिनके साथ वह पहले खासी बुरी तरह से पेश आ कर झगड़ चुके थे । सतीश सिंघल पेम वन में लोगों की भारी भीड़ जुटा कर लोगों के बीच अपनी स्वीकार्यता व लोकप्रियता दिखाना चाहते थे; और साथ ही साथ, जैसा कि लोगों का आरोप रहा कि ज्यादा से ज्यादा पैसा इकट्ठा कर लेना चाहते थे ।
सतीश सिंघल अपने इन दोनों उद्देश्यों को पाने में तो सफल रहे, किंतु इस सफलता के चक्कर में उन्होंने कार्यक्रम का कबाड़ा कर लिया और पेम को लेकर रोटरी का जो कॉन्सेप्ट है, उसकी ऐसी-तैसी कर दी । पेम यानि प्रेसीडेंट इलेक्ट मीट, सिर्फ प्रेसीडेंट इलेक्ट का आयोजन होना चाहिए था - और इसमें सिर्फ उन्हें ही तवज्जो मिलना चाहिए थी, जिसके तहत वह रोटरी से और अपने समानधर्मा साथियों से परिचित होते । सतीश सिंघल ने लेकिन पेम के नाम पर ऐसा मेला जमाया कि बेचारे प्रेसीडेंट्स इलेक्ट को तो आपस में मिलने-जुलने तथा एक-दूसरे से परिचित होने का मौका ही नहीं मिल पाया । पेम वन के नाम पर मुकेश अरनेजा ने अपने जिस राजनीतिक मंसूबे को पूरा करने की योजना बनाई थी, वह भी आयोजन की बदइंतजामी व अव्यवस्था के चलते धूल-धूसरित हो गई । मुकेश अरनेजा ने मौजूदा रोटरी वर्ष के अध्यक्षों तथा कई वरिष्ठ रोटेरियंस को आमंत्रित तो कर लिया, लेकिन आयोजन में उन्हें चूँकि कोई तवज्जो नहीं मिली - और उनकी भूमिका सिर्फ ताली बजाने वाले तमाशबीनों जैसी बन कर रह गई, इसलिए वह बुरी तरह नाराज़ हुए हैं । मौजूदा रोटरी वर्ष के कई अध्यक्षों व वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना है कि सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा ने पेम वन के आयोजन में उन्हें क्या अपमानित करने के लिए ही बुलाया था ?

Sunday, October 16, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में अपनी फजीहत का बदला लेने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी विनय भाटिया ने अपने ही क्लब में अध्यक्ष अनिल मग्गू के खिलाफ बबाल करवाया

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी विनय भाटिया अपने ही क्लब - रोटरी क्लब फरीदाबाद एनआईटी के अध्यक्ष अनिल मग्गू के खिलाफ षड्यंत्र करने/रचने तथा उन्हें अध्यक्ष पद से हटवाने की मुहिम चलवाने के आरोपों में 'पकड़े' गए हैं - और इस पकड़ से छूटने के चक्कर में उन्हें अपने ही क्लब के सदस्यों से बचना/छिपना पड़ रहा है । उनके इस रवैये से क्लब में घमासान और बढ़ गया है । रोटरी क्लब फरीदाबाद एनआईटी के कुछेक सदस्य पिछले करीब पंद्रह दिन से क्लब के सदस्यों के बीच तथा सोशल मीडिया पर क्लब के अध्यक्ष अनिल मग्गू के खिलाफ इस बात को लेकर अभियान चलाए हुए हैं कि उन्होंने अध्यक्ष पद से जब इस्तीफ़ा दे दिया है, तब फिर वह अध्यक्ष के रूप में काम/व्यवहार क्यों कर रहे हैं ? अनिल मग्गू की तरफ से भी इस अभियान का जोरदार जबाव दिया जा रहा है, और चुनौती दी जा रही है कि जिन लोगों को लगता है कि अनिल मग्गू अब क्लब के अध्यक्ष नहीं हैं - वह हिम्मत दिखाएँ और क्लब का नया अध्यक्ष चुन/चुनवा लें, फालतू की बयानबाजी क्यों कर रहे हैं ? दोनों तरफ की बयानबाजियों में क्लब की गतिविधियों के गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं, और एक दूसरे की पोल-पट्टी खोली जा रही है । इस सीन में लेकिन असली पोल-पट्टी विनय भाटिया की खुल रही है - जो इस क्लब के एक प्रमुख सदस्य होने के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी भी हैं । क्लब में मचे घमासान से दुखी क्लब के सदस्यों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट का लीडर होने जा रहे विनय भाटिया के सामने जब क्लब में अपनी लीडरशिप क्षमता दिखाने का मौका आया है, तो वह मुँह छिपाते फिर रहे हैं; इससे समझा जा सकता है कि डिस्ट्रिक्ट में वह क्या करेंगे ?
विनय भाटिया पर इससे भी गंभीर आरोप यह है कि क्लब में मचे इस घमासान की जमीन उन्होंने ही तो तैयार की, और फिर उसे हवा भी दी - घमासान लेकिन चूँकि उनकी योजनानुसार नहीं चला, तो अब वह इससे मुँह चुरा रहे हैं । मामला रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के एक कार्यक्रम में विनय भाटिया के क्लब के को-होस्ट बनने को लेकर था । साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों ने इसके लिए विनय भाटिया से संपर्क किया था । विनय भाटिया की एक बड़ी खूबी यह बताई जाती है कि उनसे किसी काम के लिए कहो, तो वह कभी भी मना नहीं करेंगे; लेकिन उस काम की जिम्मेदारी तुरंत किसी दूसरे के सिर मढ़ देंगे - काम हो जायेगा, तो अपनी पीठ थपथपायेंगे; और यदि नहीं हो पायेगा, तो जिसके सिर मढ़ा था उसे जिम्मेदार ठहरा देंगे । इस मामले में भी यही हुआ । रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकरियों ने कहा, तो विनय भाटिया ने तुरंत अपने क्लब के को-होस्ट बनने के लिए हामी भर दी - और इस काम को करने की जिम्मेदारी उन्होंने क्लब के अध्यक्ष अनिल मग्गू को सौंप दी । अनिल मग्गू ने यह जिम्मेदारी ले तो ली, लेकिन उन्होंने विनय भाटिया से कहा कि को-होस्ट बनने के लिए जो पैसे देने होंगे, उसके लिए क्लब के लोगों को राजी करने का काम विनय भाटिया करें । विनय भाटिया लेकिन चूँकि काम नहीं करते हैं, वह सिर्फ काम का श्रेय लेते हैं - इसलिए उन्होंने कुछ नहीं किया और फलस्वरूप रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों के साथ किया गया उनका वायदा पूरा नहीं हो सका । स्वाभाविक रूप से, इससे विनय भाटिया की भारी फजीहत हुई । अपनी इस फजीहत के लिए उन्होंने अपने क्लब के अध्यक्ष अनिल मग्गू को जिम्मेदार ठहराया ।
इसी के साथ अनिल मग्गू के लिए क्लब में मुसीबतें शुरू हुईं । समझा जाता है कि विनय भाटिया की शह पर कुछेक लोगों ने अनिल मग्गू के सामने तरह तरह की अड़चने खड़ी करना शुरू कर दिया । इससे परेशान हो कर अनिल मग्गू ने गुस्से में कहीं अध्यक्ष पद छोड़ने की बात कर/कह दी । क्लब में विनय भाटिया के चेलों के इससे हौंसले और बुलंद हो गए । अब वह अनिल मग्गू की गतिविधियों पर सवाल उठाने लगे । उनका कहना रहा कि अनिल मग्गू ने जब अध्यक्ष पद छोड़ दिया है, तो वह अध्यक्ष के रूप में काम/व्यवहार क्यों कर रहे हैं ? अनिल मग्गू के नजदीकियों ने जब देखा कि कुछेक लोगों की बद्तमीज़ियाँ बढ़ती ही जा रही हैं, तो उन्होंने भी कार्रवाई करते हुए जबाव देना शुरू किया । उनका कहना रहा कि गुस्से में कही गई बात को आधार बना कर कुछेक लोग यदि अनिल मग्गू को अध्यक्ष पद से हटाना/हटवाना चाहते हैं, तो वह भी देखते हैं कि उनके मंसूबे कैसे पूरे होते हैं ? दोनों तरफ के रवैये के चलते क्लब में भारी घमासान मच गया है और तरह तरह की बातों के जरिये कीचड़-उछाल कार्यक्रम चल पड़ा है । इस सारे प्रसंग का दिलचस्प पहलू लेकिन यह है कि विनय भाटिया पता नहीं कहाँ छुप बैठ कर तमाशा देख रहे हैं । क्लब के सदस्यों को उम्मीद थी कि विनय भाटिया डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के रूप में अपनी जिम्मेदारी समझते हुए मामले में हस्तक्षेप करेंगे तथा मामले को बिगड़ने से बचायेंगे; लेकिन वह तो मामले से ऐसे दूर बने हुए हैं, जैसे कि उन्हें तो इससे कुछ लेना-देना ही नहीं है ।
विनय भाटिया के रवैये से हतप्रभ व निराश क्लब के सदस्यों ने क्लब ट्रेनर संदीप गोयल से गुहार लगाई है कि दोनों तरफ के कुछेक लोगों ने जिस तरह से क्लब में अराजकता-सी फैलाई हुई है, उसे नियंत्रित करने के लिए वही कुछ करें । पूर्व अध्यक्ष संदीप गोयल क्लब के वरिष्ठ और सक्रिय सदस्य हैं, तथा उनका अध्यक्ष-काल ऐसा उल्लेखनीय रहा था कि डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों का ध्यान उन पर गया था । वास्तव में उनके अध्यक्ष-काल में ही रोटरी क्लब फरीदाबाद एनआईटी की पहचान डिस्ट्रिक्ट में बढ़ी थी, जिसका फायदा विनय भाटिया के चुनाव में मिला था । विनय भाटिया के चुनाव में फरीदाबाद के जिन कुछेक लोगों ने निर्णायक भूमिका निभाई थी, संदीप गोयल उनमें एक हैं । संदीप गोयल से कहा जा रहा है कि वह क्लब में यदि शांति स्थापित करवायेंगे, तो यह उनकी तरफ से विनय भाटिया की एक और मदद होगी । क्लब के सदस्यों ने संदीप गोयल से गुहार लगाई है कि क्लब में जो बबाल मचा है, उसे थामने तथा क्लब के सदस्यों के बीच पहले जैसा परस्पर सहयोग व सौहार्द बनाये रखने का उपाय करें । क्लब में कुछेक सदस्यों ने लेकिन जिस तरह की गर्मी पैदा की हुई है, उसे देखते हुए संदीप गोयल से की जा रही गुहार संदीप गोयल के लिए खासी बड़ी चुनौती है । विनय भाटिया ने क्लब में जो आग लगाई है, संदीप गोयल सचमुच उसे बुझा सकेंगे, या नहीं - यह देखना दिलचस्प होगा ।

Friday, October 14, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सतीश सिंघल पर रोटरी को कमाई का जरिया बनाने के अपने हुनर का पेम वन पर भी इस्तेमाल करने का आरोप लगा

नोएडा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सतीश सिंघल का पहला औपचारिक कार्यक्रम - पेम वन - होने से पहले ही जिस तरह की आलोचना और विवाद का शिकार हो गया है, उससे संकेत और सुबूत मिल रहे हैं कि सतीश सिंघल के गवर्नर-काल में रोटरी और डिस्ट्रिक्ट का मजाक ही बनना तय है । सतीश सिंघल ने घोषणा की भी है कि अपने गवर्नर-काल में वह ऐसे ऐसे काम करेंगे, जैसे रोटरी और डिस्ट्रिक्ट के इतिहास में पहले कभी नहीं हुए होंगे । इस घोषणा में हालाँकि उनका आशय अच्छे और प्रभावी कामों से रहा होगा, पर अभी तक जो होता हुआ नजर आ रहा है - उसमें बेवकूफियों और तमाशों का ज्यादा जोर बन रहा है; और उसमें रोटरी के नियम-कानून तथा व्यवस्थाएँ टूट रही हैं और उनका मजाक बन रहा है । पेम वन को सतीश सिंघल जिस तरह से आयोजित कर रहे हैं, उसके बारे में जान/सुन कर आरोप यह लग रहा है कि पेम आयोजित करने के पीछे रोटरी में जो उद्देश्य है, सतीश सिंघल ने अपने आयोजन में उसे ही अनदेखा कर दिया है - और अपने इस पहले ही औपचारिक कार्यक्रम को पैसा बनाने तथा राजनीति करने का जरिया बना दिया है ।   
उल्लेखनीय है कि पेम यानि प्रेसीडेंट इलेक्ट मीट, जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि अगले रोटरी वर्ष में होने/बनने वाले अध्यक्षों की मीटिंग का कार्यक्रम है - जिसका उद्देश्य उन्हें रोटरी की बातों और व्यवस्थाओं से परिचित कराना होता है । इस कार्यक्रम में प्रेसीडेंट इलेक्ट और रोटरी के अनुभवी व जानकार लोगों की उपस्थिति ही वांछनीय होती है । कार्यक्रम की व्यवस्था करने/देखने के लिए कुछेक और रोटेरियंस भी कार्यक्रम में न्यौत लिए जाते रहे हैं । कुछेक अदृश्य किस्म की 'मजबूरियों' व 'जरूरतों' के चलते व्यवस्था करने/देखने वाले रोटेरियंस की संख्या बढ़ती भी रही है, लेकिन पेम में मुख्य फोकस प्रेसीडेंट इलेक्ट पर ही रहा है । सतीश सिंघल ने लेकिन रोटरी और डिस्ट्रिक्ट के इतिहास में पहली बार यह किया है कि इस फोकस को ही बदल दिया है । अपनी पेम वन में उन्होंने क्लब्स के मौजूदा प्रेसीडेंट तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के संभावित उम्मीदवारों को भी आमंत्रित किया है - और इस तरीके से पेम को मौजूदा रोटरी वर्ष की चुनावी राजनीति के अखाड़े के रूप में सजा दिया है, जिसमें प्रेसीडेंट इलेक्ट तो बेचारे बस तमाशबीन होंगे । इस तरह जो आयोजन रोटरी के भावी कर्ता-धर्ताओं के लिए रोटरी की बुनियादी बातों व भावनाओं को जानने/समझने/पहचानने का मौका होना चाहिए था - सतीश सिंघल ने उसे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के एक एडवांस-शो में कन्वर्ट कर दिया है ।
पेम के पीछे के रोटरी उद्देश्यों की ऐसी-तैसी करने के सतीश सिंघल के इस 'पराक्रम' का कारण तो और भी मजेदार है । पेम की तैयारी से जुड़े उनके ही नजदीकियों का कहना है कि मौजूदा रोटरी वर्ष के अध्यक्षों को आमंत्रित करने का फैसला यह सोच कर लिया गया कि उससे कार्यक्रम में भीड़ बढ़ेगी और ज्यादा से ज्यादा पैसे मिलेंगे/बनेंगे । उल्लेखनीय है कि पेम वन के आयोजन का खर्च जुटाने के लिए सतीश सिंघल ने 19 क्लब्स से साठ-साठ हजार रुपए लिए हैं । पेम वन का आयोजन यदि अपने मूल स्वरूप में होता - जिसमें प्रेसीडेंट इलेक्ट के लिए तो भागीदारी मुफ़्त होती, लेकिन बाकी लोगों से रजिस्ट्रेशन का पैसा लिया जाता; तो क्लब्स से इकट्ठा हुए 11 लाख 40 हजार रुपए में से ज्यादा कुछ नहीं बचता । एक साधारण सा व्यापारिक फार्मूला पहचाना गया कि रजिस्ट्रेशन वाले भागीदारों की संख्या को यदि बढ़ा लिया जाए, तो रजिस्ट्रेशन से इकट्ठा हुए पैसे से ही खर्चा निकल आयेगा - और क्लब्स से इकट्ठा हुए पैसे को बचाया जा सकेगा । समस्या लेकिन यह पैदा हुई कि रजिस्ट्रेशन वाले भागीदारों को कहाँ से और कैसे जुटाया जाए ? तब क्लब्स के मौजूदा अध्यक्षों पर निगाह गई, और ज्यादा से ज्यादा रजिस्ट्रेशन हो सकें - इसके लिए उन्हें भी पेम में आमंत्रित कर लिया गया । अब लोग माथापच्ची करते रहें कि पेम का जो डिजाईन है, जो कॉन्सेप्ट है - उसमें मौजूदा अध्यक्षों का भला क्या काम है ? आरोप है कि सतीश सिंघल ने रोटरी को कमाई का जरिया बनाने में जो महारत हासिल की हुई है, और रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के जरिए अपनी इस व्यापारिक महारत का जो सुबूत दिया हुआ है - उसी का उन्होंने अपनी गवर्नरी के पहले औपचारिक कार्यक्रम पेम वन में एक और नजारा प्रस्तुत किया है ।
सतीश सिंघल ने अभी तक जो भी कार्यक्रम किए हैं, उनमें अपनी सोच का बेतुकापन और स्वार्थी रूप ही जाहिर किया है । पिछले दिनों तो उन्होंने कोर टीम का गठन किए बिना ही कोर टीम की मीटिंग तक कर लेने का - 'कमाल'  दिखाया था । उनके हर कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों ने अपने आपको ठगा हुआ और ताली बजाने वाली भूमिका में ही महसूस किया था । पेम वन में भी इसी का और बड़ा रूप देखने/दिखाने का सतीश सिंघल ने इंतजाम किया है । आमंत्रितों के 'ग्रुप्स' देख कर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पेम वन में रोटरी का तो कोई भी काम हो पाना मुश्किल ही होगा - और आमंत्रितों को बस बेवकूफ ही बनना होगा । सतीश सिंघल के नजदीकियों का कहना है कि सतीश सिंघल लेकिन आश्वस्त हैं कि उनके कार्यक्रमों में लोग भले ही अपमानित महसूस करते हों, और अपने को ठगा हुआ पाते हों - लेकिन देखना, भारी संख्या में वह आयेंगे जरूर । सतीश सिंघल की व्यापारिक सोच व्यापार में उन्हें भले ही कामयाबी न दिला पाई हो, लेकिन रोटरी का व्यापारिक इस्तेमाल करने के मामले में उन्हें फायदा पहुँचाने वाली साबित हुई है । आरोपपूर्ण चर्चाओं के अनुसार ही, इसी नाते सतीश सिंघल को पूरा भरोसा है कि पेम वन के नाम पर वह जो तमाशा करने जा रहे हैं : वह प्रेसीडेंट इलेक्ट के लिए भले ही बेमतलब की कसरत हो, मौजूदा प्रेसीडेंट्स व दूसरे भागीदारों के लिए भले ही ताली बजाने वाली भूमिका निभाने का अपमानजनक मौका हो, और रोटरी को व डिस्ट्रिक्ट को भले ही बदनाम करने वाला अवसर हो - लेकिन खुद उनके लिए निश्चित रूप से जेब भरने वाला मौका साबित होगा ।

Thursday, October 13, 2016

दुबई इंस्टीट्यूट में रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दिनेश शर्मा की स्थिति को क्लियर करने से बचने की मनोज देसाई की कोशिश में कहीं दिनेश शर्मा का शिकार करने की उनकी मंशा तो नहीं छिपी है ?

सिकंदराबाद । इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई, डिस्ट्रिक्ट 3100 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दिनेश शर्मा के साथ जो खेल खेल रहे हैं, उसके कारण लोगों के बीच यह सवाल एक बार फिर मुखर हो गया है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 को लेकर मनोज देसाई की नीयत और राजनीति वास्तव में है क्या ? उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस की बर्बादी तक पहुँचाने में डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर लोग मनोज देसाई को ही प्रमुख रूप से जिम्मेदार मानते/समझते हैं - और बातचीत में वह इसे जब-तब मुखर होकर प्रकट भी करते हैं । समझा जाता है कि पिछले कुछेक वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में अपनी आवभगत ठीक से न होने की शिकायतों के साथ-साथ मनोज देसाई को अपने चुनाव में डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की भूमिका को लेकर भी 'गहरी चोट' लगी हुई है, जिसके 'दर्द' के कारण उन्होंने डिस्ट्रिक्ट 3100 के प्रति दुश्मनी वाला भाव रखा हुआ है । इस भाव के चलते वह सुनील गुप्ता और दीपक बाबू की राजनीतिक बलि लेने के साथ-साथ कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स व पूरे डिस्ट्रिक्ट को भी सबक सिखा चुके हैं; और लोगों को ऐसा लगता है कि अब दिनेश शर्मा का नंबर है । सुनील गुप्ता, दीपक बाबू और कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट को जो सबक मिला, उसके लिए बहुत हद तक ये लोग खुद भी जिम्मेदार रहे हैं; इसलिए मनोज देसाई के खिलाफ तमाम शिकायतें व नाराजगी होने के बावजूद मनोज देसाई सीधे निशाने पर नहीं आ पाए । किंतु दिनेश शर्मा की तरफ से चूँकि अभी तक कोई नकारात्मक काम होता हुआ नहीं दिखा है, इसलिए उनके मामले ने डिस्ट्रिक्ट 3100 के प्रति मनोज देसाई की नीयत तथा उनकी राजनीति को सीधे निशाने पर ला दिया है । 
 दिनेश शर्मा का मामला बड़ा सीधा और आसान सा है, लेकिन मनोज देसाई के रवैये ने उसे बड़ा क्रिटिकल बना दिया है । दिनेश शर्मा दिसंबर में दुबई में होने जा रहे रोटरी इंस्टीट्यूट में अपनी भूमिका को लेकर मनोज देसाई से स्पष्टीकरण माँग रहे हैं, मनोज देसाई लेकिन उनकी इतनी सी बात पर चुप्पी साधे हुए हैं । दरअसल दिनेश शर्मा दुबई इंस्टीट्यूट के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं । उनके सामने सवाल लेकिन यह है कि दुबई इंस्टीट्यूट में उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट की पहचान और मान्यता मिलेगी या नहीं ? दिनेश शर्मा यह जानना चाहते हैं कि इंस्टीट्यूट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के लिए होने वाले ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल होने का मौका उन्हें मिलेगा या नहीं ? इंस्टीट्यूट में जाने का दिनेश शर्मा के लिए उक्त प्रोग्राम में शामिल होना ही एकमात्र उद्देश्य है । दिनेश शर्मा को उक्त प्रोग्राम में शामिल होने के लिए चूँकि अभी तक कोई औपचारिक निमंत्रण नहीं मिला है; इसलिए वह इंस्टीट्यूट के संदर्भ में अपनी पूरी स्थिति को, अपने स्टेटस को जान/समझ लेना चाहते हैं । मनोज देसाई इंटरनेशनल डायरेक्टर होने के साथ-साथ चूँकि उक्त इंस्टीट्यूट के कन्वेनर भी हैं, इसलिए दिनेश शर्मा उनसे अपने स्टेटस को क्लियर करने की बात कर रहे हैं । मनोज देसाई लेकिन पूरे मामले में चुप बने हुए हैं और उन्हें कोई जबाव ही नहीं दे रहे हैं । दिनेश शर्मा ने लोगों को बताया है कि उन्होंने कई प्रमुख पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से भी गुहार लगाई हुई है कि वह मनोज देसाई से उनकी स्थिति स्पष्ट करवाएँ - लेकिन दिनेश शर्मा अपनी स्थिति, अपने स्टेटस को लेकर अभी भी अँधेरे में ही हैं । दिनेश शर्मा ने लोगों को बताया है कि उन्होंने मनोज देसाई को साफ साफ लिखा/कहा है कि इंस्टीट्यूट में यदि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में शामिल नहीं किए जा सकते हैं, तो उनका रजिस्ट्रेशन रद्द करके उनका पैसा वापस कर दिया जाए; मनोज देसाई की तरफ से लेकिन इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है ।
मनोज देसाई के इस रवैये ने दिनेश शर्मा तथा उनके साथियों को ही नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों को भी हैरान किया हुआ है । उनकी हैरानी का कारण यही है कि दिनेश शर्मा ने ऐसी कोई माँग तो नहीं ही की है, जिसे पूरा करने में मनोज देसाई को पसीने छूट रहे हों । इस हैरानी के चलते ही लोगों को लग रहा है कि दिनेश शर्मा की साधारण सी बात/माँग को अनसुना करके मनोज देसाई लगता है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 के संदर्भ में अपनी किसी योजना को क्रियान्वित करना चाहते हैं । लोगों के बीच की चर्चाओं में जो कुछ कहा/बताया जा रहा है, उसके अनुसार लोगों को लग रहा है कि दिनेश शर्मा की बात/माँग को अनसुना करके मनोज देसाई दरअसल दिनेश शर्मा को उकसाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि दिनेश शर्मा कोई ऐसी हरकत कर बैठें - जिसे आधार बना कर फिर वह सुनील गुप्ता और दीपक बाबू की तरह दिनेश शर्मा का भी शिकार कर सकें । लोगों को लग रहा है कि संजय खन्ना के प्रयासों से डिस्ट्रिक्ट में हालात सामान्य होने की तरफ जिस तरह से बढ़ते हुए दिख रहे हैं, उससे लगता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर होने के बावजूद मनोज देसाई खुश नहीं हैं;  इसलिए वह डिस्ट्रिक्ट में कोई नया बखेड़ा खड़ा करने/करवाने के हालात पैदा करने के प्रयास कर रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल के विशेष प्रतिनिधि के रूप में डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना ने डिस्ट्रिक्ट 3100 में हालात को सामान्य बनाने की तरफ मोड़ने में आश्चर्यजनक रूप से सफलता प्राप्त की है । वह एक तरफ तो डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स को सक्रिय करने तथा रोटरी के काम करने व अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए प्रेरित करने में सफल रहे हैं, और दूसरी तरफ रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को इस बात पर आश्वस्त कर पाने में सफल हुए हैं कि डिस्ट्रिक्ट 3100 में लोग रोटरी के कामों व उद्देश्यों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं । इन दो-तरफ़ा सफलताओं के कारण ही संजय खन्ना डिस्ट्रिक्ट में मैचिंग ग्रांट व ग्लोबल ग्रांट का काम फिर से शुरू करवाने में कामयाब हुए हैं । संजय खन्ना की इस कामयाबी ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को आश्वस्त किया है कि संजय खन्ना के सद्प्रयत्नों से डिस्ट्रिक्ट का नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस जल्दी ही हैट जायेगा, और डिस्ट्रिक्ट 3100 जल्दी ही रोटरी की मुख्य धारा का हिस्सा हो जायेगा । लोगों की इस आश्वस्ती ने दिनेश शर्मा और उनके नजदीकियों व समर्थकों को उत्साहित किया है, जिसकी प्रतिक्रिया में उनके बीच उम्मीद पैदा हुई है कि दिनेश शर्मा को गवर्नरी करने का मौका मिल जायेगा । इस उम्मीद के साथ-साथ उन्हें लेकिन इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई का रवैया डरा भी रहा है । मनोज देसाई के तौर-तरीके देख कर दिनेश शर्मा व उनके नजदीकियों/समर्थकों को ही नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों को भी शक व डर हो रहा है कि डिस्ट्रिक्ट में सामान्य होते माहौल को फिर से बिगाड़ने के लिए मनोज देसाई लगता है कि कोई चाल खोज रहे हैं । दुबई इंस्टीट्यूट में दिनेश शर्मा के स्टेटस को क्लियर करने से बचने की मनोज देसाई की कोशिश को ऐसी ही किसी चाल को खोजने की कोशिश के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । यह देखना सचमुच दिलचस्प होगा कि मनोज देसाई की चाल में दिनेश शर्मा फँसते हैं, या उससे बच निकलते हैं ।

Tuesday, October 11, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी को लायंस क्लब संभल के लोगों की तरफ से क्लब के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बाज आने तथा डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में ध्यान केंद्रित करने की नसीहत लायंस इंटरनेशनल के इतिहास की पहली और अनोखी घटना है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी को डिस्ट्रिक्ट के एक क्लब - लायंस क्लब संभल की तरफ से सार्वजनिक रूप से अप्रत्याशित चेतावनी मिली है कि वह 'हमारे क्लब के आंतरिक मामलों में बेवजह हस्तक्षेप न करें ।' क्लब की तरफ से शिव कुमार चौधरी को यह नसीहत भी दी गई है कि वह 'बेतुकी बातों में समय जाया न करते हुए अपने डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में ज्यादा ध्यान केंद्रित करें ।' यह इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी हरकतों और कारस्तानियों से शिव कुमार चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी क्या गत बना ली है । उनसे पहले भी हालाँकि घटिया सोच और व्यवहार के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हुए हैं, लेकिन अभी तक किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को सार्वजनिक रूप से लताड़ पड़ती नहीं सुनी गई । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रवैये के प्रति अलग अलग कारणों से अधिकतर लोगों के बीच नाराजगी व असंतोष रहता ही है; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बना व्यक्ति भी इस बात को जानता/समझता है - और इसलिए वह प्रयास करता है कि वह ऐसा कुछ न करे जिससे कि लोगों की नाराजगी व असंतोष ज्यादा भड़के तथा मुखर बने । शिव कुमार चौधरी के साथ लेकिन उल्टा ही हो रहा है । उन्हें जानने वालों का कहना है कि दरअसल घटियापन उनकी सोच व उनके व्यवहार में इतना कूट कूट कर भरा है कि वह जो कुछ भी करते हैं - उससे अपनी फजीहत में और इजाफा ही कर/करवा लेते हैं । यही कारण है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी के चौथे महीने में ही उनके लिए यह नौबत आ गई है कि एक क्लब के लोग उन्हें वॉट्स-ऐप पर सार्वजनिक रूप से लताड़ लगाते हुए क्लब के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बाज आने तथा डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में ध्यान केंद्रित करने की नसीहत दे रहे हैं ।
यह इस बात का भी पुख्ता सुबूत है कि अपने आचरण और अपने व्यवहार से शिव कुमार चौधरी ने अपनी ही फजीहत नहीं कराई है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा व प्रतिष्ठा को भी नीचे गिरा लिया है ।
डिस्ट्रिक्ट में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ टकराव बनाने/बढ़ाने में भी शिव कुमार चौधरी ने अनोखा रिकॉर्ड बनाया है । इस मामले में भी इस तथ्य को रेखांकित किया जा सकता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के अपने वाइस के साथ उचित तालमेल के न होने के उदाहरण दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में भी मिल जायेंगे; ऐसे उदाहरण भी मिल जायेंगे जिनमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और उनके वाइस एक दूसरे को फूटी आँख न देख रहे हों - लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का अपने वाइस के साथ खुला टकराव हो, यह 'कमाल' सिर्फ और सिर्फ शिव कुमार चौधरी के नाम पर है । शिव कुमार चौधरी के लिए फ्रस्ट्रेशन का और चिढ़न का कारण वास्तव में यह है कि उनके दोनों वाइस एक साथ हैं, एकजुट हैं और डिस्ट्रिक्ट के लोगों को अपने साथ जोड़ने में सफल हैं । डिस्ट्रिक्ट के दोनों वाइस गवर्नर्स की देख/रेख में मसूरी में आयोजित हो रहे सेमीनार को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी द्धारा तमाम रोड़े डालने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट के लोगों की तरफ से जो जबर्दस्त समर्थन मिला है, उसके कारण शिव कुमार चौधरी का फ्रस्ट्रेशन तथा उनकी चिढ़न और बढ़ गई है । कुछेक लोगों ने शिव कुमार चौधरी को सुझाव भी दिया कि डिस्ट्रिक्ट के दोनों वाइस द्धारा किए जा रहे आयोजन और उसे मिल रहे व्यापक समर्थन से यदि इतना ही जल-भुन रहे हो, तो उनसे भी बड़ा आयोजन करके उन्हें जबाव दो । इस सुझाव पर अमल कर पाना लेकिन शिव कुमार चौधरी के बस की बात नहीं है । उनके द्धारा किए गए डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों की जैसी जो भद्द पिटी है और व्यवस्था तथा उपस्थिति के लिहाज से उनका हर आयोजन जिस तरह से फ्लॉप साबित हुआ है, उससे शिव कुमार चौधरी ने इतना सबक तो सीख ही लिया है कि कुछ करने की बजाए - जो हो रहा है, उसे बिगाड़ने की कोशिश करने का काम करना ही उनके लिए संभव है ।
बिगाड़ने का काम भी चूँकि एक काम होता है, इसलिए शिव कुमार चौधरी को उसमें भी कोई सफलता नहीं मिल रही है । मसूरी में हो रहे आयोजन के खिलाफ लोगों को भड़काने की शिव कुमार चौधरी ने जो कोशिश की, उसका वास्तव में उल्टा ही असर हुआ, और उक्त आयोजन के प्रति लोगों का जोश व समर्थन और ज्यादा बढ़ा नजर आया । शिव कुमार चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की जो चाल चली है, वह भी औंधे मुँह गिरती दिख रही है । इस मामले में शिव कुमार चौधरी को जितने समर्थन की उम्मीद थी भी, वह भी उन्हें मिलता हुआ नहीं दिख रहा है । इस मामले में शिव कुमार चौधरी के लिए भारी फजीहत का कारण यह तथ्य भी बना है कि उनकी अपनी कैबिनेट के सदस्यों और उनके क्लब्स का समर्थन भी उन्हें मिलता हुआ नहीं नजर आ रहा है । इस मामले में शिव कुमार चौधरी को सबसे बड़ा झटका पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स अरुण मित्तल व अनीता गुप्ता की तरफ से लगा है । उन्हें उम्मीद थी कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की इच्छा रखने वाले यह दोनों पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अलग अलग डिस्ट्रिक्ट में हो जाने को अपने अपने लिए फायदेमंद समझेंगे, और इस कारण से डिस्ट्रिक्ट विभाजन के उनके अभियान को बढ़-चढ़ कर आगे बढ़ायेंगे; किंतु इन दोनों ने ही डिस्ट्रिक्ट विभाजन मुद्दे पर ठंडा रुख अपनाया है । समझा जाता है कि अरुण मित्तल और अनीता गुप्ता को दरअसल भरोसा नहीं है कि डिस्ट्रिक्ट में शिव कुमार चौधरी की जैसी फजीहत हो रही है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट विभाजन का उनका अभियान सफल हो भी पायेगा; दोनों वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट विभाजन की बात का दो-टूक विरोध किया है - उसके कारण डिस्ट्रिक्ट विभाजन के मुद्दे की पूरी तरह से हवा निकल गई है । ऐसे में, अरुण मित्तल और अनीता गुप्ता को डर है कि उनके विभाजन के पक्ष में उतरने के बाद भी विभाजन नहीं हुआ तो वह 'दूसरे' क्षेत्र के क्लब्स में तो मुँह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे - इसी डर की वजह से अरुण मित्तल तथा अनीता गुप्ता ने विभाजन के मुद्दे से दूरी बनाई हुई है; उनके इस रवैये ने शिव कुमार चौधरी को पूरी तरह अलग-थलग कर दिया है ।
शिव कुमार चौधरी ने आपदा पीड़ितों की मदद के नाम पर झूठ बोल कर और नरेश अग्रवाल तथा नेविल मेहता जैसे बड़े नेताओं को चकमा देकर एलसीआईएफ एमरजेंसी ग्रांट की पाँच हजार अमेरिकी डॉलर की रकम हड़पने की जो कोशिश की, उसके कारण लायंस इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों को भी उनकी ठगीबाजी के 'सुबूत' मिल गए हैं । शिव कुमार चौधरी की ठगीबाजी के एक शिकार सतीश अग्रवाल जब-तब वाट्स-ऐप पर शिव कुमार चौधरी की फजीहत करते ही रहते हैं । इस तरह, चौतरफा मुसीबतों में घिरे शिव कुमार चौधरी का फ्रस्ट्रेशन व चिढ़न इस हद तक बढ़ गई है कि वह क्लब्स के लोगों से खुन्नस निकालने लगे हैं । लायंस क्लब संभल के लोगों की तरफ से लेकिन उन्हें जो करारा जबाव मिला है, वह उनकी फजीहत में और इजाफा करने वाला तो है ही, साथ ही लायंस इंटरनेशनल के इतिहास की पहली और अनोखी घटना भी है, जिसमें एक क्लब के लोग एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को क्लब के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बाज आने तथा डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में ध्यान केंद्रित करने की नसीहत दे रहे हैं ।

Sunday, October 9, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के दबाव में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा रोटरी इंटरनेशनल के फैसले का मजाक बनायेंगे क्या ?

पानीपत । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा के लिए यह तय करना एक बड़ी भारी मुसीबत बन गया है कि वह रोटरी इंटरनेशनल की बात मानें या राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की ? हालाँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह प्रतिनिधि/पदाधिकारी तो रोटरी इंटरनेशनल के हैं, गवर्नरी करने के लिए उन्हें पैसे भी रोटरी इंटरनेशनल से मिलते हैं या मिलेंगे - इसलिए बात तो उन्हें रोटरी इंटरनेशनल की ही माननी चाहिए; लेकिन डिस्ट्रिक्ट में राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का जैसा 'आतंक' हैं और बात न मानने वालों के खिलाफ वह नीचता की जिस हद तक जाने में गुरेज नहीं करते हैं - उसे देखते/जानते हुए रमन अनेजा के लिए उनकी बात मानने से इंकार करना भी आसान नहीं है । रमन अनेजा के सामने अपने पूर्ववर्ती दो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स - डेविड हिल्टन और दिलीप पटनायक का उदाहरण भी है; जिन्होंने राजा साबू और उनके गिरोह के चक्कर में अपनी जो फजीहत और बदनामी कराई - रमन अनेजा उससे भी डरे हुए हैं । राजा साबू और उनके गिरोह के रवैये ने रमन अनेजा के सामने सचमुच  विकल्प नहीं छोड़ा है । दिलीप पटनायक और डेविड हिल्टन की तरह वह राजा साबू और उनके गिरोह की कठपुतली बनते हैं, तो फजीहत व बदनामी का शिकार बनते हैं; रोटरी इंटरनेशनल के फैसले को यदि वह नहीं मानते हैं, तो रोटरी इंटरनेशनल पता नहीं उनके साथ क्या करेगा; राजा साबू और उनके गिरोह की यदि नहीं मानते हैं, तो वह उनका और भी बुरा हाल करेंगे । ऐसे में, रमन अनेजा के लिए यह समझना वास्तव में मुश्किल बना हुआ है कि वह आखिर करें तो क्या करें ?
मामला वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का है । रोटरी इंटरनेशनल ने हाल ही में अपने एक फैसले में वर्ष 2017-18 के लिए टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर घोषित किया है । रोटरी इंटरनेशनल के इस फैसले के चलते टीके रूबी अब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट हुए । राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने लेकिन घोषणा की है कि वह रोटरी इंटरनेशनल के इस फैसले को नहीं मानेंगे और टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में मान्यता नहीं देंगे । उन्होंने रमन अनेजा से भी साफ बता दिया है कि वह टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में कतई तवज्जो न दें । यह राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के नीचता की हद की नई ऊँचाई पर पहुँचने का उदाहरण है, जहाँ से वह रोटरी इंटरनेशनल के फैसले को भी मानने से इंकार कर रहे हैं । इस बारे में दिया जा रहा उनका तर्क भी मजेदार है : उनका कहना है कि फैसला करने वाली कमेटी के जो सदस्य हैं, वह बहुत ही इम्मैच्योर किस्म के लोग हैं और रोटरी के बारे में सही समझ नहीं रखते हैं, इसलिए उनके द्धारा लिए गए फैसले को स्वीकार व लागू नहीं किया जा सकता है । अब यदि इस तर्क को और आगे बढ़ाएँ, तो यह भी कहा जा सकता है कि रोटरी की सही समझ न रखने वाले इम्मैच्योर किस्म के लोगों को कमेटी का सदस्य नियुक्त करने वाले वरिष्ठ रोटरी पदाधिकारी तो और भी ज्यादा इम्मैच्योर तथा रोटरी की सही समझ न रखने वाले हुए । ऐसे वरिष्ठ पदाधिकारियों को कमेटी सदस्य नियुक्त करने की जिम्मेदारी देने वाले रोटरी इंटरनेशनल के और बड़े अधिकारी तो और भी ज्यादा इम्मैच्योर तथा रोटरी की सही समझ न रखने वाले हुए । यानि रोटरी इंटरनेशनल में ऊपर से नीचे तक हर कोई इम्मैच्योर तथा रोटरी की सही समझ न रखने वाला है । यानि रोटरी में मैच्योर तथा रोटरी की सही समझ रखने वाले सिर्फ राजा साबू और उनकी हाँ में हाँ मिलाने वाले उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ही हैं बस !
बात दरअसल मैच्योर/इम्मैच्योर या रोटरी की सही समझ रखने या न रखने की नहीं है; बात सिर्फ इतनी है कि कमेटी ने ऐसा फैसला दिया है, जो राजा साबू और उनके गुर्गे पूर्व गवर्नर्स को पसंद नहीं है - और इसलिए उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है । इनका दोगलापन इससे भी जाहिर है कि फैसले के एक हिस्से को स्वीकार करने से तो यह इंकार कर रहे हैं, लेकिन फैसले के दूसरे हिस्से को यह शब्दशः स्वीकार कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस में क्लब व डिस्ट्रिक्ट सपोर्ट टीम के को-ऑर्डीनेटर दमन बावेजा ने रमन अनेजा को भेजे ईमेल संदेश में रोटरी इंटरनेशनल के तीन सदस्यीय पैनल द्धारा लिए गए फैसले के बारे में जो जानकारी दी है, उसमें दो बातें मुख्य हैं : पहली के अनुसार, वर्ष 2017-18 के लिए टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर घोषित करना; और दूसरी के अनुसार, इस फैसले को 21 दिन के भीतर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड में चेलैंज करने का अधिकार देना । राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स बता रहे हैं कि वह डीसी बंसल से इस फैसले को चेलैंज करवायेंगे । इनसे कोई पूछे कि आप जब कमेटी के फैसले को स्वीकार ही नहीं कर रहे हैं, तो फिर कमेटी ने फैसले को चेलैंज करने का जो अधिकार दिया है, उसे क्यों इस्तेमाल कर रहे हैं ? इन्हें यदि सचमुच कमेटी का फैसला न मानने की अपनी बात और अपना तर्क सही लगता है, तो यह कहें कि फैसले को न स्वीकार करने के कारण यह डीसी बंसल को ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (इलेक्ट) मानेंगे और उनसे फैसले को चेलैंज नहीं करवायेंगे । राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि मनमानी करने के नाम पर निरंतर दोगलापन दिखाते रहना ही इनका असली चरित्र है ।
राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स दोगलापन चाहें जितना दिखाएँ, वह भी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि कमेटी का जो फैसला है उसकी पूरी पूरी अहमियत और मान्यता है - इसीलिए वह डीसी बंसल से फैसले को अवश्य ही चेलैंज करवायेंगे । डीसी बंसल को इसका पूरा अधिकार है । कमेटी का फैसला भी डीसी बंसल को यह अधिकार देता है । लेकिन कमेटी का फैसला यह भी कहता/बताता है कि इस समय टीके रूबी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट हैं । यह फैसला चेलैंज होगा, इस आधार पर टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मानने से इंकार नहीं किया जा सकता है । टीके रूबी की तरफ से डीसी बंसल के चुने जाने को चेलैंज करने के बावजूद डीसी बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट माना जाता रहा था न; उसी तर्क और व्यवस्था से डीसी बंसल की तरफ से चेलैंज होने के बावजूद टीके रूबी ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट होने चाहिए । राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा पर दबाव बनाए हुए हैं कि वह डीसी बंसल को ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मानें/समझें और टीके रूबी को कोई तवज्जो न दें । उन्होंने रमन अनेजा को आश्वस्त किया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई और या रोटरी इंटरनेशनल के किसी अन्य पदाधिकारी से डरने की कोई जरूरत नहीं है; और जैसा हम कह रहे हैं, वैसा ही करो । जो लोग रमन अनेजा को जानते हैं, उनका कहना है कि रमन अनेजा भी दिलीप पटनायक और डेविड हिल्टन के 'रास्ते'  पर ही चलेंगे और वही करेंगे जो राजा साबू और उनके गिरोह के गवर्नर उनसे करने के लिए कहेंगे ।
राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने रोटरी इंटरनेशनल के फैसले को न मानने के जो तेवर दिखाएँ हैं - और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमन अनेजा की तरफ से भी रोटरी इंटरनेशनल के फैसले की अवमानना करने के जो संकेत मिल/दिख रहे हैं, उस पर इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई, रोटरी में नियम-कानून के पालन होने की चिंता करने वाले निवर्त्तमान इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन और रोटरी इंटरनेशनल के अन्य पदाधिकारी क्या प्रतिक्रिया देते हैं - यह देखना दिलचस्प होगा ।

Saturday, October 8, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में पूजा बंसल को चेयरपरसन पद की मिली जिम्मेदारी ने रीजन काउंसिल के सत्ता समीकरणों का नए सिरे से गठित होने का मौका बनाया, और उसमें नए गुल खिलने की उम्मीद पैदा की

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की 13 सदस्यीय मैनेजमेंट कमेटी ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के इतिहास में पहला कलंकित अध्याय जोड़ा है, जिसमें वह खुद बिना पूर्णकालिक चेयरमैन के बिना पाँच महीने काम करेगी - इस कलंकित इतिहास को रचने के लिए कई लोग इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य राजेश शर्मा को भी कोस रहे हैं । लोगों का कहना है कि अपनी बेवकूफीभरी छोटी सोच से राजेश शर्मा ने रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों व सदस्यों को न केवल रीजन के लोगों के बीच, बल्कि दूसरे रीजन्स के पदाधिकारियों के बीच भी 'कार्टून' बना कर रख दिया है । जो कोई भी पूरे प्रसंग का रिकॉर्डेड घटनाक्रम देखता/सुनता/जानता है, वह इसी बात पर आश्चर्य करता है कि - नॉर्दर्न रीजन के लोगों ने करीब दस महीने पहले अपनी काउंसिल के लिए प्रतिनिधि चुने थे, या कार्टून चुने थे । रिकॉर्डेड घटनाक्रम के अनुसार, नॉदर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन दीपक गर्ग 22 अगस्त को इंस्टीट्यूट प्रशासन पर सहयोग न करने के गंभीर आरोप लगाते हुए चेयरमैन के रूप में काम करने में असमर्थता व्यक्त करते हुए इस्तीफा दे देते हैं । 9 सितंबर को बुलाई गई रीजनल काउंसिल की मीटिंग में - आश्चर्यजनक रूप से, न दीपक गर्ग के इस्तीफे पर और न इंस्टीट्यूट प्रशासन पर सहयोग न करने के उनके आरोपों पर कोई चर्चा नहीं होती है । इसके बाद, 7 अक्टूबर को रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाई जाती है, जिसमें दीपक गर्ग के इस्तीफे को स्वीकार करके वाइस चेयरपरसन पूजा बंसल को चेयरपरसन पद का भी कामकाज देखने के लिए अधिकृत करने का फैसला लिया जाता है ।
रीजनल काउंसिल सदस्यों के कार्टूनपने का पुख़्ता सुबूत इस सवाल में ही छिपा है कि 7 अक्टूबर को जो फैसला हुआ है, वह 9 सितंबर की मीटिंग में ही क्यों नहीं ले लिया गया था ? इस सवाल का सबसे दिलचस्प जबाव यही सुनने को मिल रहा है कि 7 अक्टूबर को लिया गया फैसला यदि 9 सितंबर की मीटिंग में ले लेते, तो काउंसिल सदस्य और पदाधिकारी अपना कार्टूनपना कैसे दिखाते और साबित करते ? अब ज़रा इस बात पर भी गौर करें कि दीपक गर्ग के इस्तीफ़ा देने के दिन से लेकर उनका इस्तीफा स्वीकार होने वाले दिन तक के 45 दिनों में रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों व सदस्यों ने किया क्या ? बेहिचक सीधा सा जबाव है कि इन दिनों में भी उन्होंने वही कुछ किया, जो यह पहले करते थे : इस्तीफ़ा देने के बावजूद दीपक गर्ग काउंसिल के कार्यक्रमों में चेयरमैन के रूप में खुशी खुशी शामिल होते रहे, और उनके संगी-साथी मीटिंग्स में सेल्फियाँ खींचते रहे । जाहिर है कि न दीपक गर्ग ने और न उनके संगी-साथियों ने और न दूसरे सदस्यों ने इंस्टीट्यूट प्रशासन पर लगाए दीपक गर्ग के आरोपों को गंभीरता से लिया । दीपक गर्ग का इस्तीफ़ा और उनके लगाए आरोप वास्तव में एक गंभीर मुद्दा है : दीपक गर्ग के आरोप यदि झूठे हैं, तो इस बात की जाँच होनी ही चाहिए कि आखिर किस स्वार्थ और षड्यंत्र के चलते उन्होंने इंस्टीट्यूट प्रशासन को बदनाम करने का काम किया; और यदि उनके आरोप सच हैं तो यह रीजनल काउंसिल के प्रत्येक सदस्य के लिए चिंता की बात होनी चाहिए । पर पिछले 45/47 दिनों में ऐसे कोई संकेत देखने को नहीं मिले हैं, जिनसे लगता हो कि किसी को भी दीपक गर्ग के आरोपों को लेकर ज़रा सी भी फ़िक्र हो । रीजनल काउंसिल के मौजूदा सदस्यों को वोट देने वाले लोगों को सोचना चाहिए कि उन्होंने इन्हें क्या इसलिए वोट दिए थे कि काउंसिल में जा कर यह सेल्फियाँ खींचे और इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को बदनाम करें, उनका मजाक बनाएँ ?
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो ड्रामा चला, उसके रिकॉर्डेड पक्ष से काउंसिल सदस्यों के 'कार्टून' होने का पता चला, तो पर्दे के पीछे की कहानी उनका और भी घटिया रूप सामने लाती है । रिकॉर्डेड पक्ष में जो तमाम 'छेद' हैं, वह आभास देते हैं कि मामला सिर्फ उतना ही नहीं है - जितना कि दिख रहा है; बल्कि उससे कहीं ज्यादा बड़ा और गंभीर है । लोगों के बीच की चर्चाओं के अनुसार इस सारे तमाशे के वास्तविक सूत्रधार सेंट्रल काउंसिल के सदस्य राजेश शर्मा हैं, जिन्होंने भाँप लिया कि रीजनल काउंसिल के अधिकतर सदस्य निरे मूर्ख किस्म के हैं, और इन्हें जैसे चाहें वैसे हाँका जा सकता है । राजेश शर्मा ने इन्हें पट्टी पढ़ाई कि चेयरमैन बनने के लिए ज्यादा इंतजार क्यों करते हो; छह-छह महीने के हिसाब से तीन वर्ष में छह लोग चेयरमैन बन जाओ ! चेयरमैन बनने की दौड़ में लगे लोगों को यह फार्मूला तुरंत से पसंद भी आ गया, और वह राजेश शर्मा को अपना गुरु घोषित कर उनके बताए रास्ते पर चल पड़े । राजेश शर्मा खुद भी बड़ी अनोखी चीज हैं : आमतौर पर जो लोग बड़े बनना चाहते हैं, वह बड़े काम करने और बड़ी सोच रखने की जरूरत समझते हैं; राजेश शर्मा इस पचड़े में पड़ने की जरूरत नहीं समझते - बड़ा 'बनने' का उनका बड़ा आसान सा फार्मूला है और वह यह कि 'बड़े' लोगों के पीछे या दाएँ या बाएँ जबर्दस्ती घुस/घुसा कर फोटो खिंचवाओ और फिर उस फोटो को लोगों को दिखाओ - बस बड़े बन गए, और देखिए कितनी आसानी से बन गए । इसी तर्ज पर उन्होंने रीजनल काउंसिल के चेयरमैन-लोभी सदस्यों को जोड़ा और उन्हें बताया कि छह छह महीने के लिए चेयरमैन बनोगे, तो ज्यादा काम भी नहीं करना पड़ेगा और चेयरमैन भी कहलाने लगोगे । दीपक गर्ग का इस्तीफ़ा दरअसल इसी फार्मूले को क्रियान्वित करने के लिए उठाया गया कदम था ।
राजेश शर्मा के कहने में आकर रीजनल काउंसिल के सत्ता खेमे के लोगों ने कदम तो बढ़ा दिया - चर्चा तो यहाँ तक सुनी गई कि राजेश शर्मा की बातों में आकर पंकज पेरिवाल ने तो चेयरमैन पद की शपथ लेने के दौरान पहनने के लिए सूट चूज कर लिया था और उसे फिटिंग के अनुसार ऑल्टर करने के लिए भी दे दिया था - लेकिन इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी ने इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन को मज़ाक बनाने की कोशिश करने वाले लोगों के ऐसे कान उमेंठे कि बेचारे न तो दर्द से कराह पाए और न कान छुड़ा पाए । इस बीच नॉर्दर्न रीजन की चंडीगढ़ ब्रांच में भी कुछ इसी तरह का तमाशा हुआ, और उन्होंने थोड़ी बहुत 'हेकड़ी' दिखाने की भी कोशिश की - जिसे देख कर राजेश शर्मा और उनके चंगु-मंगुओं को भी उम्मीद बँधी कि शायद उनके लिए भी कोई सम्मानजनक रास्ता निकल आए । दरअसल इसी उम्मीद में 9 सितंबर की मीटिंग में दीपक गर्ग के इस्तीफे को लेकर कोई बात या फैसला नहीं लिया गया । लेकिन इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया । राजेश शर्मा और उनके चंगु-मंगुओं के लिए मुसीबत की बात यह भी हुई कि सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व करने वाले बाकी सदस्यों ने उनकी हरकत की भर्त्सना ही की और उन्हें किसी भी तरह से समर्थन देने से साफ इंकार कर दिया । 'मरता क्या न करता' वाली तर्ज पर राजेश शर्मा और उनके चंगु-मंगुओं ने 7 अक्टूबर को आखिरकार वह फैसला कर लिया, जिसे वह 9 सितंबर को भी कर सकते थे - और जिसने न सिर्फ उनके सारे प्लान को चौपट कर दिया, बल्कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल और इंस्टीट्यूट के इतिहास में काला और कलंकित करने वाला अध्याय जोड़ दिया ।
वाइस चेयरपरसन पूजा बंसल को बाकी के पाँच महीनों में चेयरपरसन पद की जिम्मेदारियाँ निभाने का जो मौका मिला है, उसमें रीजन काउंसिल के सत्ता समीकरणों को नए सिरे से गठित होने के अवसर के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । पूजा बंसल दरअसल सत्ता खेमे का हिस्सा थीं तो, लेकिन सत्ता खेमे में उनकी भूमिका एक किनारे खड़े मूक दर्शक की और समर्थक की ही थी - अब लेकिन सत्ता खेमे में उनकी भूमिका न सिर्फ महत्त्वपूर्ण बल्कि निर्णायक भी हो गई है । इससे स्वाभाविक ही है कि उनकी महत्त्वाकांक्षाओं को हवा मिलेगी । यही चीज नॉर्दर्न रीजन की चुनावी राजनीति में नए गुल खिलाएगी और उसके परिदृश्य को दिलचस्प बनाएगी ।

Wednesday, October 5, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी की सुशील गुप्ता द्धारा की जा रही वकालत में अशोक गुप्ता को अपने साथ धोखा क्यों नज़र आ रहा है ?

नई दिल्ली । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के विरोधाभासी रवैये ने अशोक गुप्ता और उनके नजदीकियों व समर्थकों को चक्कर में डाला हुआ है । डिस्ट्रिक्ट 3052 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अशोक गुप्ता अगले रोटरी वर्ष में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी करते हुए सुने/बताए जा रहे हैं, और इसके लिए वह पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट कल्याण बनर्जी, पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता और मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के समर्थन का दावा करते हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी भी आने की चर्चा से सुशील गुप्ता का अशोक गुप्ता को समर्थन संदेह के घेरे में आ गया है । रंजन ढींगरा को सुशील गुप्ता के बड़े खास नजदीकियों के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और इसी बिना पर माना/समझा गया कि रंजन ढींगरा यदि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उम्मीदवार हो रहे हैं - तो निश्चित ही सुशील गुप्ता के साथ विचार-विमर्श करके और उनके समर्थन का आश्वासन मिलने के बाद ही हो रहे हैं । हालाँकि इस मानने/समझने को गलत साबित करने के लिए इस बीच सुशील गुप्ता ने रंजन ढींगरा के कुछेक असाइनमेंट दूसरे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को दिलवा दिए । सुशील गुप्ता की इस कार्रवाई ने लोगों को हैरान भी किया । दरअसल रोटरी में कोई इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता कि सुशील गुप्ता, रंजन ढींगरा से असाइनमेंट वापस ले/लिबवा कर किसी दूसरे को दे/दिलवा देंगे । पर सुशील गुप्ता की इस कार्रवाई ने अशोक गुप्ता को राहत की साँस दी थी और उन्होंने विश्वास कर लिया था कि रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी में सुशील गुप्ता का कोई हाथ नहीं है, और सुशील गुप्ता का समर्थन उनकी उम्मीदवारी को ही मिलेगा । अभी पिछले दिनों लेकिन अशोक गुप्ता को यह जान/सुन कर चक्कर सा आ गया कि सुशील गुप्ता रोटरी इंटरनेशनल के जोन 4 के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी की वकालत कर रहे हैं ।
अशोक गुप्ता दरअसल यह देख/जान कर हैरान हुए कि पिछले दिनों जोन 4 के कुछेक डिस्ट्रिक्ट्स के महत्त्वपूर्ण आयोजनों में रंजन ढींगरा को बहुत अहमियत देते हुए निमंत्रण मिले और रंजन ढींगरा उन आयोजनों में शामिल हुए । डिस्ट्रिक्ट 3080 का समर्थन एक अन्य संभावित उम्मीदवार दीपक कपूर को मिलने का अनुमान लगाया जाता है, किंतु उसके एक प्रमुख आयोजन में रंजन ढींगरा की उल्लेखनीय उपस्थिति और संलग्नता देखी गई । जोन 4 के डिस्ट्रिक्ट्स में रंजन ढींगरा की अचानक से बढ़ी सक्रियता के बारे में जान/सुन कर अशोक गुप्ता का माथा ठनका, तो उन्होंने अपने स्तर पर सारे माजरे को जानने/समझने की कोशिश की, और अपनी कोशिश में उन्हें पता चला कि रंजन ढींगरा की इस अचानक बढ़ी सक्रियता में सुशील गुप्ता का भी 'योगदान' है । यह पता चलने पर अशोक गुप्ता को सुशील गुप्ता के रवैये पर हैरानी भी हुई, और साथ ही उन्होंने यह भी समझ लिया कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति में सुशील गुप्ता दोहरा खेल खेल रहे हैं ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति के समीकरण को जानने/समझने वाले तथा बदलते समीकरणों पर निगाह रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि अगले रोटरी वर्ष में होने वाला इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव सुशील गुप्ता के 'भविष्य' के लक्ष्य के लिहाज से बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं, और अपने 'भविष्य' के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ही वह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अपनी भूमिका निभायेंगे । इसी लिहाज से माना जा रहा है कि 'सारे अण्डे एक ही टोकरी में न रखने' के सिद्धांत पर विश्वास और अमल करते हुए सुशील गुप्ता किसी एक उम्मीदवार की ही सरपरस्ती नहीं करेंगे । सुशील गुप्ता के नजदीकियों का भी कहना है कि सुशील गुप्ता अभी अशोक गुप्ता और रंजन ढींगरा - दोनों के ही साथ खड़े हैं; और वह देखेंगे कि चुनाव अभियान में किसका पलड़ा भारी रहता है । स्वाभाविक रूप से जिसका पलड़ा भारी दिखेगा - अंततः वह उसके साथ हो लेंगे । अभी सुशील गुप्ता ने एक सुरक्षित रास्ता यह निकाला/बनाया हुआ है कि वह रंजन ढींगरा के प्रति हमदर्दी रखने वालों के सामने रंजन ढींगरा की बात करते हैं, और अशोक गुप्ता के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोगों के सामने अशोक गुप्ता की बात करते हैं । उनकी इस रणनीति में वह यदि रंजन ढींगरा के ज्यादा समर्थन में दिख रहे हैं, तो इसका कारण यही माना/समझा जा रहा है कि जोन 4 के अधिकतर डिस्ट्रिक्ट्स में रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोग ज्यादा हैं; और आश्चर्य की बात यह है कि कई डिस्ट्रिक्ट्स में लोग अशोक गुप्ता को ज्यादा जानते/पहचानते भी नहीं हैं ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति के समीकरणों पर निगाह रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि अशोक गुप्ता जिस तरह से अपनी उम्मीदवारी को बड़े नेताओं के भरोसे टिकाए/बनाए हुए हैं, और उम्मीद लगाए हुए हैं कि उन्हें तो मनोज देसाई ही इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवा देंगे - उसके कारण अशोक गुप्ता अपने समर्थन-आधार को और कमजोर करने का ही काम कर रहे हैं । लोगों को हैरानी है कि अशोक गुप्ता इंटरनेशनल डायरेक्टर बनना चाहते हैं, लेकिन जोन 4 के अधिकतर डिस्ट्रिक्ट्स में न तो उनकी कोई सक्रियता है, और न उनके भरोसे के कोई लोग हैं । आईआईएस यूनीवर्सिटी के स्वयंभू उपकुलपति के रूप में अशोक गुप्ता ने रोटरी के बड़े नेताओं को डॉक्टरेट बाँट कर उन्हें खुश करने का तो प्रयास किया, लेकिन रोटेरियंस के बीच जाने की उन्होंने कभी कोई कोशिश नहीं की । अशोक गुप्ता ने 'मैं तुम्हें डॉक्टरेट दूँगा, तुम मुझे इंटरनेशनल डायरेक्टर का पद देना' फार्मूले को अपना कर इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की जो योजना बनाई थी, वह तो काम करती हुई दिख नहीं रही है; और भरत पांड्या के मुकाबले उनकी स्थिति को बहुत ही कमजोर माना/समझा जा रहा है । दरअसल इसी कारण से सुशील गुप्ता ने रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी को हवा दी है । रोटरी के विभिन्न प्रोजेक्ट्स में अपनी संबद्धता के चलते रंजन ढींगरा का अपना जो काम है, तथा विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में रोटेरियंस के बीच अपनी जो पहचान व सक्रियता है - उसमें सुशील गुप्ता के समर्थन के कारण और इजाफ़ा ही हुआ है । इस बात ने अशोक गुप्ता के सामने गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है; उन्हें और उनके समर्थकों को लग रहा है कि सुशील गुप्ता उनके साथ धोखा कर रहे हैं : सुशील गुप्ता एक तरफ तो अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन करने की बात कर रहे हैं; लेकिन व्यवहार में वह रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी को प्रमोट कर रहे हैं । सुशील गुप्ता के इस विरोधाभासी व्यवहार का कारण दूसरों को भले ही समझ में आ रहा हो - किंतु अशोक गुप्ता और उनके नजदीकी इस 'कारण' को तो पहचानने/देखने को तैयार नहीं हैं । वह तो बस सुशील गुप्ता को ही कोसने में लगे हैं ।