Saturday, August 31, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स प्रशासन द्वारा नाकारापन व लड़ाई/झगड़ों के कारण निष्प्रभावी की गई नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के एक सदस्य, सुमित गर्ग की 'जेबी' संस्था के कार्यक्रम में शामिल होने के फैसले के चलते इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता फजीहत का शिकार हो रहे हैं

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य सुमित गर्ग 6 सितंबर को आयोजित किए जा रहे अपने कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र में इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता का नाम सबसे आखिर में रखने के कारण खासे विवाद में फँस गए हैं । अतुल गुप्ता के नजदीकी और समर्थक ही नहीं, बल्कि दूसरे लोग भी इस बात को प्रोटोकॉल का उल्लंघन मानते हुए इसे अतुल गुप्ता के अपमान के रूप में देख रहे हैं, और अपनी अपनी तरफ से सुझाव दे रहे हैं कि अपने मान-सम्मान का ख्याल रखते हुए अतुल गुप्ता को इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होना चाहिए । लोगों का कहना है कि सुमित गर्ग नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के वरिष्ठ सदस्य हैं, और उन्हें इंस्टीट्यूट के तमाम कार्यक्रमों में विभिन्न रूपों में शामिल होने का अनुभव है, इसलिए उनसे उम्मीद की जाती है कि उन्हें इतनी समझ तो होगी ही कि उनके कार्यक्रम में जो चार लोग आ रहे हैं, प्रोटोकॉल के लिहाज से उनमें अतुल गुप्ता का नाम सबसे ऊपर होना चाहिए - लेकिन उनका नाम सबसे नीचे कर दिया गया है । कुछेक लोगों को लगता है कि सुमित गर्ग ने यह जानबूझ कर किया है और इस तरीके से वह अतुल गुप्ता को नीचा दिखाना चाहते हैं, लेकिन अन्य कई लोगों का मानना/कहना है कि यह सुमित गर्ग की अति-आत्मविश्वासी सोच व उसके चलते पैदा होने वाली 'बेवकूफी' का नतीजा है । उल्लेखनीय है कि सुमित गर्ग अपनी तरफ से बहुत कोशिश करते हैं कि उनकी छवि एक शांत, मैच्योर, गंभीर व्यक्ति की बने; लेकिन कई बार वह ऐसी हरकतें कर जाते हैं जिसके चलते वह फजीहत का शिकार बनते हैं ।
सुमित गर्ग के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि 6 सितंबर के कार्यक्रम के निमंत्रण को लेकर जो विवाद हुआ, उसे खत्म करने के लिए उनकी तरफ से दिए जबाव ने मामले को और भड़का दिया है ।उनकी तरफ से सफाई दी गई कि कार्यक्रम के आमंत्रितों के नाम इस क्रम से दिए गए हैं, जिस क्रम से उनके भाषण होने हैं; और चूँकि अतुल गुप्ता का भाषण सबसे अंत में होना है, इसलिए उनका नाम सबसे अंत में दिया गया है । उनके इस जबाव ने लेकिन मामले को शांत करने की बजाए और भड़का दिया है । लोगों का कहना/पूछना है कि किसी भी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि का भाषण सबसे अंत में ही होता है, लेकिन निमंत्रण पत्र में उसका नाम सबसे पहले और प्रमुखता से छपता है । सुमित गर्ग 6 सितंबर को अपनी जेबी संस्था की वार्षिक कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं; उस कॉन्फ्रेंस में कोई मुख्य अतिथि होगा; जिन चार लोगों के नाम हैं, उनमें अतुल गुप्ता के पास ही सबसे 'भारी' पद है, इसलिए लोगों का अनुमान है कि अतुल गुप्ता ही मुख्य अतिथि होंगे - और यदि वह मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित नहीं किए गए हैं, तो क्या इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट को एक सामान्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया है ? सुमित गर्ग के नजदीकियों का कहना है कि यह झमेला दरअसल कार्यक्रम के निमत्रण पत्र के डिजाईन के कारण पैदा हुआ है; निमंत्रण पत्र का डिजाईन खासे अधकचरे तरीके व बेवकूफी से तैयार किया गया है और उसे रिलीज भी कर दिया गया - जिससे नाहक ही विवाद पैदा हो गया है; और विवाद की चपेट में इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता आ गए हैं ।
अतुल गुप्ता को सुमित गर्ग के संदर्भित कार्यक्रम का निमंत्रण स्वीकार करने के लिए इसलिए भी आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है, क्योंकि सुमित गर्ग उस नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य हैं, जिसके अधिकारों को इंस्टीट्यूट ने अभी हाल ही रद्द कर दिया है और रीजनल काउंसिल को कागजी बना दिया है । लोगों का कहना/पूछना है कि पदाधिकारियों व सदस्यों के नाकारापन व आपस में लड़ने/झगड़ने के कारण जिस रीजनल काउंसिल को निष्प्रभावी कर दिया गया है, उसके एक सदस्य के कार्यक्रम में पहुँच कर अतुल गुप्ता प्रोफेशन के लोगों को आखिर क्या संदेश देना चाहते हैं ? अतुल गुप्ता इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट न होते, तो चाहें जहाँ जाते और चाहें जो करते; लेकिन वाइस प्रेसीडेंट होने के नाते लोग उनसे उम्मीद करते हैं कि वह इंस्टीट्यूट की छवि व प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए उन लोगों के साथ खड़े नहीं दिखेंगे, जिन्हें अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से न निभाने के लिए इंस्टीट्यूट ने ही सजा दी हुई है । सुमित गर्ग की जेबी संस्था के कार्यक्रम में इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के रूप में अतुल गुप्ता के शामिल होने से लोगों को कहने का मौका मिला है कि कार्यक्रमों में शामिल होने तथा मालाएँ पहनने की अतुल गुप्ता की 'भूख' लगता है कि अभी भी मिटी नहीं है; लोगों को हैरानी लेकिन इस बात की है कि अभी वाइस प्रेसीडेंट के रूप में तथा अगले वर्ष प्रेसीडेंट के रूप में अतुल गुप्ता को बहुत से कार्यक्रमों में जाने तथा मालाएँ पहनने का मौका मिलेगा - आखिर फिर क्यों उन्होंने इंस्टीट्यूट प्रशासन द्वारा निष्प्रभावी की गई नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य की जेबी संस्था के कार्यक्रम में शामिल होने का फैसला किया ? उनका यह फैसला कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र में प्रोटोकॉल के लिहाज से उनका अपमान होने के कारण और फजीहत का शिकार हो बैठा है ।  

Friday, August 30, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की मदद के नाम पर पैसा इकट्ठा करने की राजा साबू की अपील को लोगों ने 'धंधे' का नाम दिया, जिसके बाद बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा ने पैसों की बजाये सामान जुटाने की अपील करके राजा साबू की पैसा जुटाने की कोशिश पर पानी फेरा

चंडीगढ़ । पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए पैसे जुटाने की अपील करके भारी फजीहत का शिकार बन गए हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा ने बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए पैसों की बजाए सामान जुटाने की अपील करके राजा साबू की पैसे इकट्ठा करने की योजना पर पानी भी फेर दिया है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों का कहना है कि उत्तराखंड के बाढ़ पीड़ितों के लिए इकट्ठा की गई रकम में से जो करीब तीन करोड़ रुपए बचे हुए हैं, राजा साबू उस पैसे को पंजाब के बाढ़ पीड़ितों के लिए क्यों नहीं रिलीज करते - ताकि बाढ़ पीड़ितों को तत्काल राहत पहुँचाई जा सके । उक्त करीब तीन करोड़ रुपयों पर कुंडली मारे बैठे राजा साबू तथा उनके नजदीकी पूर्व गवर्नर्स ने लोगों की यह माँग सुनकर अपनी अपनी जुबानें सिल ली हैं, और चुप्पी साध ली है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों का यह भी कहना है कि पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की मुसीबतों को देखते हुए राजा साबू को जिम्बाब्वे मेडीकल मिशन को रद्द करके उसमें खर्च होने वाले पैसे को पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए देना चाहिए । डिस्ट्रिक्ट के लोगों की इस माँग ने राजा साबू की ड्रामेबाजी तथा रोटरी को लूट-खसोट व मौज-मजे का जरिया मानने/बनाने की चालबाजियों को उद्घाटित करने का काम किया है । लोगों का आरोप है कि प्राकृतिक आपदाओं के पीड़ितों तथा बीमारों की मदद को राजा साबू तथा उनके साथी गवर्नर्स ने 'धंधा' बना लिया है । 
उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में पानीपत में आयोजित हुए मेंबरशिप डेवलपमेंट सेमीनार में राजा साबू ने अपने भाषण को नाटकीय रूप देते हुए पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए पैसे इकट्ठे करने की भावुकता भरी अपील की । डिस्ट्रिक्ट के लोग अब राजा साबू की नाटकबाजियों को खूब समझ/पहचान चुके हैं, इसलिए उन्होंने तुरंत ही कहना/पूछना शुरू कर दिया कि राजा साबू को सचमुच पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की चिंता है, या बाढ़ पीड़ितों के नाम पर पैसे इकट्ठे करने की चिंता है - और यदि उन्हें सचमुच पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की चिंता है तो उत्तराखंड बाढ़ पीड़ितों के लिए इकट्ठे हुए पैसों में से बाकी बचे करीब तीन करोड़ रुपए तथा जिम्बाब्वे दौरे में खर्च होने वाले पैसे को तुरंत से पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए उन्हें दे देने चाहिए । गौरतलब है कि कुछेक वर्ष पहले उत्तराखंड में बाढ़ ने जब विनाशलीला रची थी, तब राजा साबू की चेयरमैनी में एक प्रोजेक्ट-ट्रस्ट बना था, जिसमें करोड़ों रुपए इकट्ठा हुए थे । उस प्रोजेक्ट को बंद हुए करीब दो वर्ष हो चुके हैं, जिसका हिसाब-किताब भी दिया जा चुका है । उस हिसाब-किताब के अनुसार ही, दो करोड़ 83 लाख रुपए बचे हुए हैं । राजा साबू ने कभी किसी को नहीं बताया कि उस रकम का आखिर होगा क्या ? डिस्ट्रिक्ट में लोगों का कहना है कि राजा साबू अब जब पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की परेशानियों से व्यथित हैं और उनकी मदद करना चाहते हैं, तो उक्त रकम को तुरंत से पंजाब के बाढ़ पीड़ितों के लिए रिलीज क्यों नहीं करते हैं और उक्त रकम को क्यों दबाए बैठे हैं ?
डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के सदस्य एमपी गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा को लिखे एक पत्र में राजा साबू तथा उनके साथी पूर्व गवर्नर्स द्वारा दबाई गई रकम का हवाला देते हुए कुल करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए का जोड़ लगाया है; उनका कहना है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स से उक्त पैसों को बसूल करके पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की मदद करना चाहिए । पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की मदद के नाम पर राजा साबू द्वारा पैसे इकट्ठे करने की अपील पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों को भड़का देख कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा ने घोषणा कर दी है कि डिस्ट्रिक्ट में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए कोई नगद पैसा इकट्ठा नहीं किया जायेगा, और सिर्फ सामान के रूप में ही मदद जुटाई और की जाएगी । जितेंद्र ढींगरा की इस घोषणा से राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की मदद के नाम पर पैसा इकट्ठा करने की योजना को गहरा धक्का लगा है । इसके साथ ही, डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) के रूप में टीके रूबी ने पंजाब और महाराष्ट्र में बाढ़ की विनाशलीला को देखते हुए जिम्बाब्वे मेडीकल मिशन में खर्च होने वाले पैसे को बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए खर्च करने का वास्ता देकर उक्त मिशन को हरी झंडी देने से इंकार किया हुआ है; लेकिन राजा साबू और 'मेडीकल मिशन' के खेल में शामिल उनके सहयोगी मधुकर मल्होत्रा तरह तरह से टीके रूबी पर जिम्बाब्वे मेडीकल मिशन को हरी झंडी देने के लिए दबाव बना रहे हैं, और उन्हें 'ब्लैकमेल' करने की कोशिश कर रहे हैं । प्राकृतिक आपदाओं के अवसरों पर सरकारी अधिकारियों, ठेकेदारों व नेताओं को लूट-खसोट मचाते तो 'देखा'/पहचाना गया है; रोटरी में राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को उनके जैसी हरकतें करते देखना रोटरी की पहचान व प्रतिष्ठा के संदर्भ में बहुत ही शर्मनाक है ।  
[मेडीकल मिशन में वॉलिंटियर के नाम पर शामिल होकर राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स क्या करते हैं, इसका आभास इस रिपोर्ट के साथ प्रकाशित राजा साबू व मधुकर मल्होत्रा की तस्वीर को देख कर पाया/समझा जा सकता है !] 

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में मुकेश गोयल अपनी राजनीतिक वापसी के लिए अश्विनी काम्बोज के गवर्नर-वर्ष के पदों को बाँटने के जरिये संदेश देने की कोशिश तो कर रहे हैं कि अश्विनी काम्बोज के गवर्नर-वर्ष को वही चलायेंगे; लेकिन उनका यह हथकंडा काम करता दिख नहीं रहा है

हापुड़ । मुकेश गोयल ने डिस्ट्रिक्ट में कई वर्षों तक अपना जादु बनाये रखने के लिए जिस 'ट्रिक' का खूब इस्तेमाल इस्तेमाल किया था, आज उन्हें उसी ट्रिक का निशाना बनना पड़ रहा है - तो उनके नजदीकी बिलबिला उठे हैं । क्लब्स के कार्यक्रमों में कौन मुख्य अतिथि होगा, कौन मुख्य वक्ता होगा, कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र में किसका नाम होगा, किसका नाम ऊपर होगा और किसका नीचे - यह सब मुकेश गोयल तय करते थे । किसका नाम कब रख लेना है और कब उड़ा देना है, यह मुकेश गोयल का प्रिय खेल रहा है; और अपने इस खेल के जरिये वह अपनी राजनीति करते/चलाते थे । आज लेकिन मुकेश गोयल और उनके नजदीकी यह देख देख कर निराश और नाराज हो रहे हैं कि कई क्लब्स के कार्यक्रमों के निमंत्रण पत्रों में उनका नाम या तो होता नहीं है, और यदि होता है तो नीचे कहीं कोने में या दूसरे आमंत्रितों के बीच । इसके लिए वह निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय मित्तल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । उनका आरोप है कि विनय मित्तल क्लब्स के पदाधिकारियों पर दबाव डाल कर मुकेश गोयल का नाम उड़वा रहे हैं और या नीचे या बीच में करवा रहे हैं । इस तरह वास्तव में वह यह 'स्वीकार' कर रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट में अब विनय मित्तल ने वैसी ही 'हैसियत' पा ली है, जैसी कि अभी तक मुकेश गोयल की होती थी । उनके लिए मुसीबत की बात लेकिन यह है कि वह इस बात को जाहिर करते हुए भी मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं । डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों को लेकिन इस प्रकरण में मजा आ रहा है । उनका कहना है कि मुकेश गोयल को आखिरकार वही काटने को मिल रहा है, जो डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में उन्होंने ही बोया था । यह हथकंडा तो वास्तव में मुकेश गोयल का था; और यदि विनय मित्तल सचमुच इसे इस्तेमाल कर रहे हैं तो विनय मित्तल ने इसे सीखा तो उन्हीं से है ।
मुकेश गोयल के नजदीकियों तथा उनसे हमदर्दी रखने वाले लोगों का ही मानना और कहना है कि मुकेश गोयल अभी भी वास्तविकता को या तो पहचान/समझ नहीं रहे हैं, और या पहचानते/समझते हुए भी उसे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं । दरअसल किसी भी काम में और या राजनीति में हर तरीके की - हर हथकंडे की एक उम्र होती है; मुकेश गोयल ने जिन हथकंडों से राजनीति की, उन हथकंडों ने धीरे धीरे करके लोगों को उनसे दूर करने का काम किया है - कहते हैं न कि व्यापार जब अच्छा चल रहा होता है, तो छोटे-मोटे घाटों को अनदेखा ही कर दिया जाता है; मुकेश गोयल के राजनीतिक हथकंडों ने कई बार ऐसे मौके भी बनाए कि उनके रिश्तेदार भी उनके खिलाफ खड़े नजर आए - लेकिन मुकेश गोयल ने कभी इस बात की परवाह नहीं की । परवाह न करने का नतीजा रहा कि उनकी उन विनय मित्तल के साथ भी खटक गई, जो लगातार उनके सबसे विश्वस्त सहयोगी रहे । मुकेश गोयल ने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि पिछले कई वर्षों से उनकी जो राजनीतिक चौधराहट चल रही थी, उसमें विनय मित्तल का बड़ा सहयोग रहा । चौधराहट के 'नशे' में उन्होंने विनय मित्तल के साथ भी वही 'व्यवहार' किया, जो वह दूसरों के साथ करते रहे थे - यही बात उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित हुई । उल्लेखनीय है कि जब से उन्होंने विनय मित्तल को निशाने पर लिया है, तभी से डिस्ट्रिक्ट व लायन राजनीति में उनके दुर्दिन शुरू हुए हैं । आज हालत यह हो गई है कि डिस्ट्रिक्ट में जो क्लब उनके माने/पहचाने/समझे जाते थे, उनके कार्यक्रमों में उन्हें तवज्जो नहीं मिल रही है तथा उनके निमंत्रण पत्रों में उनका नाम या तो छप नहीं रहा है और यदि छप भी रहा है तो नीचे और या दूसरे आमंत्रितों के साथ में । 
मुकेश गोयल चाहते हैं कि उनका नाम निमंत्रण पत्र में सबसे ऊपर छपा हो; और इसीलिए वह उन कार्यक्रमों में नहीं जाते हैं, जहाँ उनका नाम नीचे या दूसरे आमंत्रितों के साथ छपा होता है । इसी चक्कर में वह डिस्ट्रिक्ट में और अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं । एक मशहूर नसीहत है कि किसी को कुर्सी से कोई दूसरा नहीं गिराता है, बल्कि अपने अहंकार के कारण वह खुद गिर पड़ता है । मुकेश गोयल लगता है कि इसी दुष्चक्र में फँस गए हैं, और वह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि इससे कैसे निकलें । वह अभी भी अपने पुराने हथकंडों पर ही टिके/बने हैं । अपनी राजनीतिक वापसी के लिए उन्होंने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्विनी काम्बोज को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है । अश्विनी काम्बोज के गवर्नर-वर्ष के पदों को बाँटने के जरिये मुकेश गोयल ने डिस्ट्रिक्ट में यह संदेश देने की कोशिश की है कि अश्विनी काम्बोज के गवर्नर-वर्ष को वही चलायेंगे और लोगों को पद देने का काम वही करेंगे । इसका भी लेकिन कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है । अश्विनी काम्बोज इस समय अपने कॉलिज पर आई मुसीबत को हल करने में व्यस्त हैं, और इसलिए लायन राजनीति या अपने गवर्नर-वर्ष को लेकर वह कोई सक्रियता नहीं दिखा/बना पा रहे हैं । इस कारण उनके गवर्नर-वर्ष को चलाने के मुकेश गोयल के 'संदेश' पर लोग विश्वास नहीं कर रहे हैं; और इस तरह मुकेश गोयल का हथकंडा फेल होता हुआ दिख रहा है । मुकेश गोयल के साथ बड़ी समस्या यह है कि उनके साथ कोई ऐसा अनुभवी लायन नहीं है जो हालात को समझ सके, हालात में बनने वाले मौकों की पहचान कर सके और उनका लाभ उठा सके; उनके आसपास ऐसे लोगों का जमावड़ा हो गया है जो सिर्फ फालतू किस्म की बकवास करने में एक्सपर्ट हैं - वह अपनी बातों और अपनी हरकतों से अपनी निराशा, अपनी खीझ और अपना रोना ही व्यक्त करते हैं, जिससे वास्तव में उनकी कमजोरी ही जाहिर हो रही है । 

Thursday, August 29, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी प्रक्रिया का शिड्यूल बनाए बिना उसे आगे बढ़ाने तथा चोरी-छिपे अंदाज में बॉलीवुड नाईट कार्यक्रम करने की तैयारी करने के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता तरह तरह के आरोपों में फँसे

गाजियाबाद । क्लब-प्रेसीडेंट्स के ईमेल सत्यापित करने की प्रक्रिया शुरू होते ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जल्दी होने की चर्चाओं ने फिर से जोर पकड़ लिया है, और इसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को तरह तरह से कोसा जाने लगा है । 7 सितंबर को बॉलीवुड नाईट कार्यक्रम की तैयारी करने के लिए भी दीपक गुप्ता को आरोपों में घेरा जा रहा है । सुनील मल्होत्रा के नजदीकियों व समर्थकों की तरफ से आरोप सुने जा रहे हैं कि सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के अभियान ने हाल के दिनों में जो तेजी पकड़ी है, और उनकी उम्मीदवारी को मिलने वाले समर्थन में जैसी जो वृद्धि देखी जा रही है, उसी से घबरा कर दीपक गुप्ता ने जल्दी चुनाव करवाने तथा 'चोरी-छिपे' बॉलीवुड नाईट कार्यक्रम की तैयारी शुरू कर दी है । सुनील मल्होत्रा के नजदीकियों का कहना है कि दीपक गुप्ता चूँकि चुनाव अधिकारी भी हैं, इसलिए उनसे उम्मीद की जाती है कि वह चुनाव में निष्पक्ष भूमिका निभायेंगे; लेकिन देखने में आ रहा है कि दीपक गुप्ता खुली 'बेईमानी' पर उतरे हुए हैं ।  
सुनील मल्होत्रा के नजदीकियों व समर्थकों का आरोप है कि चुनाव अधिकारी के रूप में दीपक गुप्ता की जिम्मेदारी निष्पक्ष चुनाव करवाने की है, दीपक गुप्ता लेकिन अपनी इस जिम्मेदारी को निभाने की बजाए चुनाव में एक पक्ष बन गए हैं । डिस्ट्रिक्ट के दूसरे वरिष्ठ रोटेरियंस का भी मानना/कहना है कि हालाँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता को यह अधिकार है कि रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का पालन करते हुए वह जब चाहें, तब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव करवाएँ; लेकिन निष्पक्षता के नजरिये से उन्हें चुनावी कार्यक्रम को घोषित कर देना चाहिए और उस पर सस्पेंस बना कर नहीं रखना चाहिए । दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी प्रक्रिया का शिड्यूल बनाए बिना तथा घोषित किए बिना जिस तरह तरह से टुकड़ों टुकड़ों में चुनावी प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे हैं, उससे उनकी नीयत में खोट दिख रहा है, और लोगों के बीच वह आरोपों का शिकार हो रहे हैं । 
बॉलीवुड नाईट कार्यक्रम को लेकर तो दीपक गुप्ता और भी गंभीर आरोपों के घेरे में हैं । मजे की बात यह देखने/सुनने को मिल रही है कि 7 सितंबर को प्रस्तावित उक्त कार्यक्रम की जिम्मेदारी दीपक गुप्ता ने अपने नजदीकी कुछेक असिस्टेंट गवर्नर्स को दी है, और अभी तक भी यह स्पष्ट नहीं है कि उक्त कार्यक्रम का आयोजक वास्तव में होगा कौन ? इस तरह के कार्यक्रम डिस्ट्रिक्ट में पहले भी हुए हैं, लेकिन उनके आयोजक क्लब होते रहे हैं । 7 सितंबर के कार्यक्रम को लेकर अभी तक किसी को कोई अधिकृत जानकारी नहीं है; अनधिकृत रूप से 'रचनात्मक संकल्प' को जो जानकारी मिली है उसके अनुसार अभी तक कुछेक असिस्टेंट गवर्नर्स आयोजक की भूमिका में हैं । समस्या की और समझने की बात यह है कि आयोजक यदि असिस्टेंट गवर्नर्स हैं तो फिर उक्त कार्यक्रम डिस्ट्रिक्ट का कार्यक्रम होगा - और उसमें डिस्ट्रिक्ट के प्रत्येक सदस्य को आने/पहुँचने का अधिकार होगा । देखा/समझा यह जा रहा है कि दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट के सभी सदस्यों की भागीदारी उक्त कार्यक्रम में नहीं चाहते हैं और कुछेक लोगों के साथ ही मौज-मजा करना चाहते हैं और इसीलिए उक्त कार्यक्रम को डिस्ट्रिक्ट का कार्यक्रम नहीं घोषित कर रहे हैं, तथा उक्त कार्यक्रम की तैयारी चोरी-छिपे अंदाज में कर रहे हैं । चोरी-छिपे अंदाज में बॉलीवुड नाईट कार्यक्रम करने की तैयारी को देखते/समझते हुए दीपक गुप्ता पर तरह तरह के आरोप सुने जाने लगे हैं, जिससे उनकी व्यक्तिगत पहचान व छवि को भी चोट पहुँच रही है । दीपक गुप्ता पर लगने वाले आरोपों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी माहौल में और गर्मी पैदा कर दी है । 

Wednesday, August 28, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3110 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल के जरिये राजनीतिक प्रभुत्व जमाने की पूर्व गवर्नर आईएस तोमर की तैयारी ने डिस्ट्रिक्ट में जो उथल-पुथल मचाई है, उसमें सतीश जायसवाल की उम्मीदवारी उनके लिए बड़ी चुनौती बनी; कमल सांघवी की बढ़ी राजनीतिक हैसियत ने भी उनकी मुश्किलों को बढ़ाया

बरेली । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को पिछले कई वर्षों से अपने नियंत्रण में रखे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आईएस तोमर अपने नियंत्रण को बनाए रखने के लिए अब उन्हीं लोगों को पुचकारने/मनाने में लगे हैं, जिन्हें खुद उन्होंने खुड्डे-लाइन लगा दिया था । पवन अग्रवाल को गच्चा देकर आईएस तोमर ने सतीश जायसवाल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपना उम्मीदवार तो बना लिया है, लेकिन सतीश जायसवाल की चुनावी नाव कहीं बीच मँझधार में ही न डूब जाए - आईएस तोमर को इसकी चिंता सताने लगी है । दरअसल हाल-फिलहाल के वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय हुए तथा प्रभावी बने रोटेरियंस के बीच आईएस तोमर का या तो 'परिचय' नहीं है और परिचय है तो पैठ नहीं है; कई रोटेरियंस तो बल्कि अलग अलग कारणों से आईएस तोमर को सबक सिखाने के चक्कर में हैं । कई लोगों को आईएस तोमर ने अपने व्यवहार व रवैये से अपना 'दुश्मन' बना लिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल के जरिये डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) पद को लेकर आईएस तोमर ने जो राजनीति की, उसमें भी उन्हें बदनामी के अलावा और कुछ नहीं मिला है । आईएस तोमर को यह भी लगता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी उनके डिस्ट्रिक्ट में लोगों को उनके खिलाफ भड़काने का काम कर रहे हैं, और शेखर मेहता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने से कमल सांघवी की 'ताकत' व हैसियत और बढ़ गई है । उल्लेखनीय है कि मुकेश सिंघल उसी वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होंगे, जिस वर्ष शेखर मेहता इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होंगे - ऐसे में आईएस तोमर के साथ मिलकर डीआरएफसी पद को लेकर किए गए उनके तमाशे की उन्हें 'भारी' कीमत चुकानी पड़ सकती है । इन्हीं सब स्थितियों के चलते आईएस तोमर के लिए डिस्ट्रिक्ट में अपनी चौधराहट को बचाये/बनाये रखना तथा मनमानी करते रहना एक बड़ी चुनौती है ।
यह चुनौती इसलिए भी है, क्योंकि आईएस तोमर को पिछले कुछ समय से लगातार झटके पर झटके लग रहे हैं । उल्लेखनीय है कि आईएस तोमर पहले तो बरेली के मेयर के चुनाव में बड़े अंतर से पराजित हुए । फिर रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में उन्हें कमल सांघवी से बड़ी हार मिली । यहाँ यदि सिर्फ हार मिलती तो भी कोई बड़ी बात नहीं होती - रोटरी की राजनीति में एक बार की हार को अगली बार की जीत में बदलने में देर नहीं लगती है; लेकिन आईएस तोमर ने जिस तरह से चुनाव को थोपा और चुनावी मुकाबले को वह जिस निम्न-स्तर पर ले गए, उससे उनकी साख व पहचान को खासी चोट पहुँची । इसके बाद, और ज्यादा बुरी स्थिति उनकी अपने डिस्ट्रिक्ट में डीआरएफसी पद को लेकर बनी, जहाँ उनकी 'होशियारी' ही उन पर भारी पड़ी - डीआरएफसी पद को लेकर की गई उनकी राजनीति ने ही उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की राजनीति में फँसा दिया है । डीआरएफसी पद के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किशोर कातरू के रवैये से आईएस तोमर को जोर का जो झटका लगा है, उसकी उन्होंने वास्तव में कल्पना भी नहीं की थी । किशोर कातरू के साथ उनके वर्षों के संबंध हैं; वह दावा करते हैं और बहुत से लोग उनके दावे को सही भी मानते हैं कि उन्होंने ही किशोर कातरू को रोटरी में आगे बढ़ाया है तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनाया/बनवाया है । 12 वर्षों तक डीआरएफसी रहे आईएस तोमर को उम्मीद थी कि अगले डीआरएफसी को तय करते समय किशोर कातरू उनसे सलाह करेंगे और या तो उन्हें ही पद पर बने रहने के लिए राजी करने का प्रयास करेंगे और या उनसे पूछ कर डीआरएफसी चुनेंगे । किशोर कातरू ने इस मामले में लेकिन उन्हें कोई तवज्जो ही नहीं दी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दिनेश शुक्ला व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल के साथ मिल कर पूर्व गवर्नर शरत चंद्रा को डीआरएफसी चुन लिया । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच चर्चा है कि आईएस तोमर को डीआरएफसी पद के संदर्भ में लिया/किया गया यह फैसला और फैसला करने का 'तरीका' पसंद नहीं आया, और उन्होंने मुकेश सिंघल के जरिये शरत चंद्रा को डीआरएफसी पद से - बैठने से पहले ही 'उतरवा' दिया ।
मजे की और बिडंवना की बात यह है कि पूर्व गवर्नर देवेंद्र अग्रवाल का डीआरएफसी बनना भी आईएस तोमर को पसंद नहीं है, लेकिन पसंद का डीआरएफसी बनाने/बनवाने का खेल उनके हाथ से निकल चुका है - इसलिए मन-मार कर उन्हें यह फैसला मंजूर करना ही पड़ा । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगता है कि देवेंद्र अग्रवाल से 'बदला' लेने के लिए ही आईएस तोमर ने पवन अग्रवाल की उम्मीदवारी का साथ छोड़ा है । आईएस तोमर ने पहले पवन अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करने की घोषणा की थी, लेकिन फिर उन्हें लगा कि पवन अग्रवाल तो देवेंद्र अग्रवाल के ज्यादा नजदीक हैं - इसलिए उन्होंने पवन अग्रवाल का साथ छोड़ कर सतीश जायसवाल को जबर्दस्ती उम्मीदवार बना/बनवा दिया । उम्मीदवार बनते ही सतीश जायसवाल ने हालाँकि मेहनत तो काफी की है, और लोगों के बीच तेजी से संपर्क-अभियान चलाया है; लेकिन उनके समर्थकों को भी लग रहा है कि पवन अग्रवाल की डिस्ट्रिक्ट में पहले से जो एक अच्छी व सकारात्मक पहचान है, उन्हें रोटरी के लिए काम करने वाले रोटेरियन के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है - उसके कारण पवन अग्रवाल से मुकाबला करना सतीश जायसवाल के लिए खासा चुनौतीपूर्ण होगा । असल में सतीश जायसवाल जिस तरह अचानक से उम्मीदवार बने हैं, उसके चलते लोगों के बीच उनकी उम्मीदवारी को लेकर एक नकारात्मक सोच बनी है । लोगों को लग रहा है कि आईएस तोमर ने अपनी खुन्नस व अपनी राजनीति के चक्कर में सतीश जायसवाल की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट पर जबर्दस्ती थोप दिया है । आईएस तोमर को भी लगता है कि आभास हो रहा है कि उन्होंने सतीश जायसवाल को उम्मीदवार तो बना/बनवा दिया है, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाना मुश्किल तो होगा ही । मुश्किल को दूर करने के लिए ही आईएस तोमर ने अब उन लोगों को फोन खड़खड़ाना शुरू किया है, जो पहले उनके साथ होते थे, लेकिन जो कई वर्षों से गुम हुए पड़े हैं । खास बात यह है कि अधिकतर लोग ऐसे ही हैं, जिन्हें खुद आईएस तोमर ने ही 'बेकार' समझ/मान कर अपने से दूर छिटक दिया था । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों की पहचान आईएस तोमर के भरोसे/सहारे ही थी; आईएस तोमर ने जब तक उन्हें उपयोगी समझा/पाया, उन्हें अपने साथ रखा और फिर छोड़ दिया; वह भी गुमनामी में जा पड़े - लेकिन अब आईएस तोमर को लगता है कि वह गुमनामी के अँधेरे में पड़े उन लोगों की मदद से सतीश जायसवाल की चुनावी नाव को पार लगवा देंगे । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में इस समय बदलाव को लेकर जो उथल-पुथल चल रही है, उससे लगता है कि आगे अभी और दिलचस्प नजारे देखने को मिलेंगे ।

Tuesday, August 27, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया तथा उनके छोटे/बड़े 'समर्थकों' ने सचिन जैन के साथ खुन्नस निकालने के लिए रोटरी क्लब पलवल संस्कार के 'बनने' का विरोध तो खूब किया, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन ने डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के भले के लिए उनकी एक न सुनी

पलवल । रोटरी क्लब पलवल संस्कार की तरफ से चार्टर मिलने के दो दिन बाद ही ब्लड डोनेशन कैम्प के आयोजन की हुई घोषणा के जरिए क्लब के प्रवर्तकों व पदाधिकारियों ने निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया तथा उनके छोटे/बड़े 'समर्थकों' को 'आईना दिखाने' का काम किया है - हालाँकि इससे किसी को कोई शर्म महसूस होगी और वह कोई सबक लेंगे, इसकी कोई उम्मीद नहीं है । रोटरी में किसी क्लब का 'बनना' हालाँकि कोई बड़ी बात नहीं होती है; सभी लोग चाहते हैं और कोशिश करते हैं कि नए क्लब बने; इसीलिए नए क्लब बनते हैं - और इसी कारण से नए क्लब्स का बनना एक रूटीन कार्रवाई के रूप में देखा/पहचाना जाता है । लेकिन रोटरी क्लब पलवल संस्कार का बनना एक जंग जीतने जैसा मामला रहा है । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया व उनके 'छोटे' समर्थकों ने खुल्ले रूप में तथा 'बड़े' समर्थकों ने पर्दे के पीछे से इस क्लब को न बनने देने के लिए जबर्दस्त मोर्चा खोला हुआ था । विनय भाटिया और उनके छोटे/बड़े समर्थक दरअसल इस क्लब के मुख्य प्रवर्तक के रूप में देखे/पहचाने जा रहे रोटरी क्लब पलवल सिटी के निवर्त्तमान प्रेसीडेंट सचिन जैन से बुरी तरह चिढ़े हुए हैं, और इसीलिए वह जोरदार तरीके से इस क्लब के बनने का विरोध कर रहे थे । सचिन जैन से चिढ़ने का कारण यह है कि पिछले वर्ष प्रेसीडेंट के रूप में सचिन जैन ने विनय भाटिया व उनके छोटे/बड़े समर्थकों के दबाव के बावजूद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उनके कहने के अनुसार वोट नहीं डाला । चर्चा तो यहाँ तक रही थी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में जबर्दस्ती वोट डलवाने के लिए सचिन जैन का 'अपहरण' तक कर लिया गया था, लेकिन सचिन जैन होशियारी दिखाते हुए उनके चंगुल से बच निकले थे । 
सचिन जैन का वोट डलवाने में असफल रहने से विनय भाटिया और उनके छोटे/बड़े समर्थक बुरी तरह बौखला गए और फिर उन्होंने क्लब में सचिन जैन के खिलाफ माहौल बनाना/बनवाना शुरू किया । सचिन जैन ने समझ लिया कि अब उनका क्लब में रह पाना असंभव ही होगा, लिहाजा उन्होंने नया क्लब बनाने की तरफ ध्यान देना शुरू किया । विनय भाटिया तथा उनके छोटे/बड़े समर्थकों की इससे और 'सुलग' गई तथा वह अजन्मे क्लब के पीछे पड़ गए । सचिन जैन के खिलाफ तरह तरह के आरोप लगाते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन पर दबाव बनाया गया कि वह सचिन जैन द्वारा प्रवर्तित क्लब को हरी झंडी न दें । 'बड़े' नेताओं को सचिन जैन तथा अजन्मे क्लब के खिलाफ मोर्चा खोले देख सुरेश भसीन ने मामले को गंभीरता से लिया और खुद से सचिन जैन पर लगाए जा रहे आरोपों की जाँच/पड़ताल की; अपनी जाँच/पड़ताल में उन्होंनेआरोपों को बदनीयती से प्रेरित पाया तथा उनमें कोई दम नहीं देखा । सुरेश भसीन ने यह भी देखा/पाया कि क्लब के मठाधीश बने बैठे कुछेक लोग झूठे आरोप लगा लगा कर क्लब के सक्रिय तथा कुछ करने की इच्छा रखने वाले लोगों को परेशान करते रहते हैं, जिस कारण लोग क्लब छोड़ देते हैं - और इस तरह डिस्ट्रिक्ट व रोटरी को नुकसान होता है । रोटरी क्लब पलवल सिटी के मठाधीश बने बैठे लोगों की हरकतों के चलते पलवल में रोटरी बढ़/फल नहीं पाई है । पलवल के अकेले क्लब में कुल 16 सदस्य थे । सचिन जैन ने दूसरे नए क्लब की जो तैयारी की, उसमें करीब 40 सदस्य हैं । सचिन जैन ऐसे कई लोगों को रोटरी में वापस लाए हैं, जो रोटरी क्लब पलवल सिटी के मठाधीश बने बैठे लोगों की हरकतों के चलते रोटरी से दूर चले गए थे । नए क्लब में पाँच/छह तो ऐसे सदस्य हैं, जो रोटरी क्लब पलवल सिटी में प्रेसीडेंट रह चुके हैं । इन सच्चाइयों से परिचित होने के बाद सुरेश भसीन ने तमाम आरोपों व शिकायतों को दरकिनार करके रोटरी क्लब पलवल संस्कार के गठन को मंजूरी दे दी । 
विनय भाटिया और उनके छोटे/बड़े समर्थकों ने रोटरी इंटरनेशनल तक में शिकायतें करके रोटरी क्लब पलवल संस्कार के गठन को रोकने का प्रयास किया, लेकिन अंततः उनके सारे प्रयास फेल हुए और अभी दो/तीन दिन पहले ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन ने एक क्लब के कार्यक्रम में रोटरी क्लब पलवल संस्कार को चार्टर मिलने की सूचना दी थी । चार्टर मिलते ही रोटरी क्लब पलवल संस्कार के पदाधिकारियों ने पहला काम ब्लड डोनेशन कैम्प लगाने की घोषणा करने का किया है । इस घोषणा के जरिए क्लब के पदाधिकारियों ने दरअसल यही संदेश देने की कोशिश की है कि रोटेरियन के रूप में समुदाय व समाज के लिए काम करना ही उनकी प्राथमिकता है । रोटरी क्लब पलवल संस्कार के गठन तथा उसकी सक्रियता से उम्मीद की जा रही है कि पलवल में रोटरी का विस्तार होगा तथा उसकी पहचान व प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी । वास्तव में इसी उम्मीद के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुरेश भसीन ने निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया तथा उनके छोटे/बड़े समर्थकों के दबाव को नहीं स्वीकार किया और उन्हें डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के हित में जो उचित लगा, वह किया । यह किस्सा विनय भाटिया तथा उनके छोटे/बड़े समर्थकों के लिए भी सबक होना चाहिए, लेकिन किसी को लगता नहीं है कि वह लोग कोई सबक सीखेंगे और अपनी टुच्ची हरकतों से डिस्ट्रिक्ट व रोटरी को नुकसान पहुँचाना छोड़ेंगे ।  

Monday, August 26, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अजीत जालान की उम्मीदवारी को जबर्दस्ती बनाने के पीछे विनोद बंसल का उद्देश्य क्या सचमुच इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में रवि चौधरी को कमजोर करना है ?

नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी के गुस्से का नया शिकार अजीत जालान बने हैं । एक समय हालाँकि दोनों के बीच बड़े अच्छे संबंध थे । लेकिन रवि चौधरी के बदतमीजीपूर्ण व्यवहार का कब कौन शिकार हो जाये - यह कोई नहीं जानता है । रवि चौधरी लोगों के साथ बदतमीजी करने के मामले में खासे कुख्यात हैं । एक मामले में तो उनकी शिकायत रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय तक पहुँची थी, और बड़ी मुश्किल से उन्हें बचाया जा सका था । लेकिन अपनी बदतमीजीपूर्ण हरकतों के चलते रवि चौधरी अपने क्लब की सदस्यता नहीं बचा सके । क्लब में उनसे साफ कह दिया गया कि क्लब से निलंबन की कार्रवाई से वह यदि बचना चाहते हैं, तो किसी दूसरे क्लब में ट्रांसफर ले लें । रवि चौधरी ने हालाँकि अपने क्लब में बने रहने के लिए हाथ-पैर तो खूब चलाये, लेकिन अंततः उन्हें क्लब से निकलना ही पड़ा । इस तरह की फजीहतों के बाद भी रवि चौधरी ने लेकिन कोई सबक नहीं सीखा है; और अभी हाल ही में उन्होंने अजीत जालान को अपनी बदतमीजी का शिकार बनाया है । मजे की बात यह है कि अजीत जालान अपने शिकार होने की बात जिस तरह से खुद ही फैला रहे हैं, रवि चौधरी उसके पीछे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल का षड्यंत्र बता रहे हैं । रवि चौधरी के नजदीकियों के अनुसार, रवि चौधरी का कहना है कि अजीत जालान बात का बतंगड़ बना रहे हैं और यह सब वह विनोद बंसल के भड़काने पर कर रहे हैं । रवि चौधरी का कहना है कि विनोद बंसल का रवैया उनके लिए पहेली बना हुआ है, क्योंकि वह खुद तो उनके नजदीक आने/रहने का प्रयास कर रहे हैं, और हर जगह दूसरों के सामने उन्हें तवज्जो देने की कोशिश करते हैं; लेकिन अजीत जालान के जरिये लोगों के बीच उन्हें बदनाम करवा रहे हैं ।  
रवि चौधरी के नजदीकियों के अनुसार, अभी हाल ही में एक क्लब के कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में रवि चौधरी ने अजीत जालान को हतोत्साहित करते हुए कुछ बातें कहीं । जिन कुछेक लोगों के सामने वह बातें हुईं, उनके हवाले से बताया गया है कि रवि चौधरी ने ज्यादा कुछ कहा तो नहीं, लेकिन कहने का उनका तरीका 'खराब' था । अजीत जालान उस समय तो चुप रहे, लेकिन बाद में उन्होंने लोगों से कहना/बताना शुरू किया कि रवि चौधरी ने उनके साथ बदतमीजी की और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी से हट जाने के लिए उन पर दबाव बनाया । जानकारों के अनुसार, रवि चौधरी ने उनसे कहा था कि वह नाहक ही अपनी उम्मीदवारी को लेकर मेहनत कर रहे हैं, और उनकी उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है । रवि चौधरी ने अजीत जालान से 'बड़ी बात' यह कही कि वह जिसके इशारे पर उम्मीदवार बने हुए हैं, वह अपनी राजनीति के चक्कर में उन्हें इस्तेमाल कर रहा है; रवि चौधरी ने अजीत जालान को आगाह किया कि जिसके चक्कर में तुम इस बार उम्मीदवार बने हो, उसने अगले रोटरी वर्ष के लिए मोहन भाटिया को उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है - यानि तुम्हें अगले वर्ष में भी नंबर नहीं मिलेगा और तुम इस्तेमाल भर हो कर रह जाओगे । उस 'घटना' के गवाह रहे लोगों तथा खुद अजीत जालान के अनुसार, रवि चौधरी ने हालाँकि किसी का नाम नहीं लिया - लेकिन अजीत जालान व दूसरे लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि रवि चौधरी का इशारा विनोद बंसल की तरफ है । उल्लेखनीय है कि अजीत जालान की उम्मीदवारी के पीछे डिस्ट्रिक्ट में हर कोई विनोद बंसल को ही देख/पहचान रहा है । हर किसी को हैरानी है कि अजीत जालान की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में जब कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है, तब विनोद बंसल आखिर अपनी कौन सी राजनीति को साधने के लिए अजीत जालान को जबर्दस्ती उम्मीदवार बनाए हुए हैं । पहले तो लोगों का अनुमान था कि अजीत जालान को उम्मीदवार बनवा कर विनोद बंसल वास्तव में अगले रोटरी वर्ष के लिए उनकी 'जमीन पक्की' कर रहे हैं; लेकिन अगले वर्ष के लिए उनके द्वारा रोटरी क्लब फरीदाबाद अरावली के मोहित भाटिया को 'हवा' देने की चर्चा से उक्त अनुमान गफलत में पड़ गया है । लोग अब कहने लगे हैं कि विनोद बंसल रोटरी की राजनीति में एक साथ इतनी चालें चलते हैं, कि वह चालें आपस में ही उलझ कर उन्हें और उनके लोगों को ही 'घायल' कर देती हैं । रवि गुगनानी उनकी बहुस्तरीय चालों का ऐसे शिकार हुए हैं, कि अभी तक संभल नहीं पाए हैं । रवि चौधरी की सुनें/मानें तो विनोद बंसल की चालों के अगले शिकार अजीत जालान होंगे ।
रवि चौधरी दरअसल अजीत जालान को यह समझाने/बताने की कोशिश कर रहे थे कि उनकी उम्मीदवारी के चलते अशोक कंतूर की जीतने की संभावना धूल में मिली जा रही है, और इससे खुद उन्हें (यानि अजीत जालान को) भी कोई फायदा नहीं होगा । रवि चौधरी ने अन्य मौकों पर अपने नजदीकियों व दूसरे लोगों के बीच कई बार कहा है कि विनोद बंसल दरअसल उन्हें नीचा दिखाने तथा 'कमजोर' करने के उद्देश्य से अशोक कंतूर को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव हरवाना चाहते हैं, और इसके लिए ही उन्होंने अजीत जालान को जबर्दस्ती उम्मीदवार 'बनाया' हुआ है । उन्होंने अजीत जालान को समझाया है कि वह सीधे मुकाबले में नहीं, बल्कि त्रिकोणीय मुकाबले में चुनाव जीत सकते हैं; अजीत जालान को भी यह बात समझ में आ गई है और इसी उम्मीद में वह उम्मीदवार बन बैठे हैं । रवि चौधरी के अनुसार, विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर जो चाल चल रहे हैं, उसके पीछे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उनकी राजनीति है । विनोद बंसल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव/चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विनय भाटिया को अपना उम्मीदवार बनाने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन रवि चौधरी के भी उक्त कमेटी के लिए उत्सुकता दिखाने से विनोद बंसल को अपनी तैयारी कमजोर पड़ती लग रही है । रवि चौधरी को कमजोर करने तथा 'दिखाने' के लिए विनोद बंसल ने अशोक कंतूर को निशाने पर लिया है । अशोक कंतूर को चूँकि रवि चौधरी के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है, इसलिए विनोद बंसल को लगता है कि अशोक कंतूर की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में दोबारा होने वाली हार रवि चौधरी को कमजोर करेगी - और इससे विनय भाटिया को नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में फायदा होगा । मजे की बात यह है कि रवि चौधरी को तो लग रहा है कि विनोद बंसल उनके खिलाफ षड्यंत्र कर रहे हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट में लोगों को 'दिख' यह रहा है कि विनोद बंसल तो रवि चौधरी को बहुत तवज्जो दे रहे हैं । ऐसे में रवि चौधरी के लिए भी यह बात बड़ी मुसीबत बनी हुई है कि विनोद बंसल के इस दोहरे रवैये से वह निपटें तो कैसे निपटें ? इस असमंजस में रवि चौधरी के गुस्से का शिकार फिलहाल अजीत जालान बन गए हैं । प्रतिक्रिया में अजीत जालान ने जिस तरह जगह जगह रवि चौधरी के व्यवहार का रोना रोना शुरू किया है, और उनके इस रोने को रवि चौधरी ने विनोद बंसल की 'रणनीति' बताया है - उससे लग रहा है कि इस तरह के और तमाशे अभी आगे भी देखने को मिलेंगे ।

Thursday, August 22, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के अधिकतर संभावित उम्मीदवारों के अलग अलग तरह की मुसीबतों में घिरे होने के कारण डिस्ट्रिक्ट 321 ई के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर क्षितिज शर्मा को अपनी उम्मीदवारी को सफल बनाना आसान दिखने लगा है

वाराणसी । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए राजीव अग्रवाल तथा गुरचरण सिंह भोला की दावेदारी के कमजोर पड़ने के साथ ही डिस्ट्रिक्ट 321 ई के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर क्षितिज शर्मा का दावा मजबूत होता नजर आने लगा है । उनके नजदीकियों का भी कहना/बताना है कि क्षितिज शर्मा ने पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर जगदीश गुलाटी के जरिये लीडरशिप के नेताओं को भी अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में लेने/करने का काम शुरू कर दिया है । क्षितिज शर्मा की उम्मीदवारी को हालाँकि डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गोपाल कृष्ण शर्मा से चुनौती मिलने की उम्मीद की जा रही है, लेकिन क्षितिज शर्मा को विश्वास है कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में पिछले वर्ष गोपाल कृष्ण शर्मा की जैसी जो राजनीति रही, उससे लीडरशिप के नेता उनसे नाराज हैं, और इसके चलते गोपाल कृष्ण शर्मा की उम्मीदवारी की तरफ से मिल सकने वाली चुनौती से निपटना उनके लिए आसान होगा । उल्लेखनीय है कि पिछले लायन वर्ष में बिरिंदर सिंह सोहल के खिलाफ गोपाल कृष्ण शर्मा की जैसी जो जिद रही थी, उसके चलते बिरिंदर सिंह सोहल की राजनीति तो खराब हुई ही, लीडरशिप को भी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा । क्षितिज शर्मा मान रहे हैं कि लीडरशिप इसका बदला गोपाल कृष्ण शर्मा से अवश्य ही लेगी, और इसके चलते मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की तरफ उनकी राह आसान हो जाएगी । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए क्षितिज शर्मा का पलड़ा इसलिए भी भारी लग रहा है क्योंकि उनके अलावा बाकी जो संभावित उम्मीदवार हैं, उनमें से किसी के पास कोई उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में बात करने के लिए कोई 'वकील' नहीं है - एक अकेले क्षितिज शर्मा ही हैं, जिनकी उम्मीदवारी की वकालत के लिए जगदीश गुलाटी मुस्तैद हैं ।
'वकील' न होने के कारण ही डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजीव अग्रवाल की स्थिति में भारी उलटफेर हो गया है । उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले तक मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए उनकी स्थिति को सबसे मजबूत माना/पहचाना जा रहा था । लीडरशिप के साथ उनकी जैसी निकटता है, वैसी किसी की नहीं है; चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को साधने का 'हुनर' भी उनमें खूब है । लेकिन उनके डिस्ट्रिक्ट के झगड़ों ने उनके लिए मुसीबतें खड़ी कर दी हैं; डिस्ट्रिक्ट के नेताओं के बीच के झगड़ों ने उनके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी करना मुश्किल बना दिया है - और ऐसे में लीडरशिप के नेताओं का समर्थन मिलने की उम्मीद भी कमजोर पड़ गई है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के गवर्नर गुरचरण सिंह भोला लीडरशिप के नेताओं के समर्थन के भरोसे मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की उम्मीद में थे, लेकिन अपने डिस्ट्रिक्ट के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन गुप्ता का समर्थन जुटाना मुश्किल होने के कारण उन्हें अपनी दाल गलना मुश्किल ही लग रहा है । लीडरशिप के नेताओं ने पिछले वर्ष बिरिंदर सिंह सोहल के चक्कर में अपनी जैसी फजीहत करवाई है, उसे वह इस वर्ष गुरचरण सिंह भोला के चक्कर में दोहराना नहीं चाहेंगे । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के पद को लेकर डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मनोज रुहेला तथा डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बलविंदर सिंह सैनी ने भी अपनी अपनी उत्सुकता दिखाई है, लेकिन अभी तक इनकी उम्मीदवारी को किसी ने भी गंभीरता से लिया/देखा नहीं है । मनोज रुहेला ने हालाँकि विरोधी खेमे के नेताओं के साथ 'दोस्ती' करने के प्रयास तो खूब किए हैं, लेकिन पिछले वर्ष वाइस चेयरमैन पद के लिए एके सिंह का समर्थन करने के कारण विरोधी खेमे के मुखिया गुरनाम सिंह ने उन्हें धमकी दी थी कि वह देखेंगे कि मनोज रुहेला गवर्नरी कैसे करते हैं । ऐसे में, मनोज रुहेला के लिए अपने डिस्ट्रिक्ट के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कमल गुप्ता का समर्थन पाना ही मुश्किल होगा । 
मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के अधिकतर संभावित उम्मीदवारों के अलग अलग तरह की मुसीबतों में घिरे होने के कारण क्षितिज शर्मा को अपनी उम्मीदवारी को सफल बनाना आसान दिखने लगा है । हालाँकि मल्टीपल काउंसिल की चुनावी राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रमुख नेताओं ने अभी अपने अपने इरादे जाहिर नहीं किए हैं, इसलिए मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद को लेकर बनने वाले समीकरण अभी अस्पष्ट हैं - और अभी कोई भी दावे के साथ नहीं कह सकता है कि मल्टीपल की चुनावी राजनीति में प्रभावी समीकरण का ऊँट किस करवट बैठेगा ? मल्टीपल काउंसिल की राजनीति को प्रभावित कर सकने वाले नेता लोग अभी जिस तरह से चुप्पी साधे बैठे हैं, और हालात की टोह ले रहे हैं - उससे यह आभास भी लग रहा है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के पद को लेकर बनने वाले समीकरणों में खासा उलटफेर हो सकता है । क्षितिज शर्मा के नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि नेताओं का रवैया अभी स्पष्ट न होने का कारण ही यह है कि नेता लोग किसी अन्य उम्मीदवार में ऐसा दम ही नहीं देख रहे हैं, जिस पर वह दाँव लगाने की हिम्मत कर सकें; इसलिए नेता लोग अंततः क्षितिज शर्मा के समर्थन में आ जायेंगे । क्षितिज शर्मा के नजदीकियों व समर्थकों का कहना/बताना है कि अभी क्षितिज शर्मा ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर गंभीरता से काम करना वास्तव में शुरू भी नहीं किया है, लेकिन फिर भी अभी से उन्हें सबसे मजबूत व काफी बढ़त बनाते हुए देखा/पहचाना जा रहा है - ऐसे में सोचने की बात यही है कि जब वह सचमुच अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने निकलेंगे, तब फिर दूसरे उम्मीदवार और नेता उनके सामने कहाँ और कैसे टिकेंगे ?

Wednesday, August 21, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के अधिकार निरस्त करने के फैसले के कारण होने वाली अपनी फजीहत से बचने के लिए वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने फैसले को रोकने की कोशिश तो खूब की थी, लेकिन प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ के सख्त रवैये के सामने अंततः उन्हें भी फैसले को स्वीकार करना पड़ा

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के अधिकार निरस्त कर देने तथा जरूरी काम इंस्टीट्यूट की विभिन्न कमेटियों को सौंप देने के फैसले का इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने काफी विरोध किया था, लेकिन प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ के सख्ती दिखाने पर फिर अतुल गुप्ता को उनके सामने समर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा । प्रफुल्ल छाजेड़ का कहना था कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो कुछ हो रहा है, उससे प्रोफेशन तथा इंस्टीट्यूट की बदनामी हो रही है, और इसे जारी नहीं रहने दिया जा सकता है । इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, प्रफुल्ल छाजेड़ तो उसी समय कठोर फैसला करना चाहते थे जब नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक ने काउंसिल के कुछेक पदाधिकारियों व सदस्यों के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट की थी । अतुल गुप्ता ने लेकिन उस समय प्रफुल्ल छाजेड़ को कदम आगे बढ़ाने से रोक लिया था । प्रफुल्ल छाजेड़ की पहल से इंस्टीट्यूट के कार्यकारी सचिव राकेश सहगल ने उस समय मामले को निपटाने की कोशिश की थी, लेकिन उनकी कोशिशें शुरू होते ही अफवाह फैल गई - या फैला दी गई - की श्वेता पाठक ने इंस्टीट्यूट के सचिव के रवैये से नाराज होकर उनके खिलाफ भी पुलिस में रिपोर्ट कर दी है । इस अफवाह ने राकेश सहगल को आगे कोशिश करने से रोक दिया । इससे पहले सेंट्रल काउंसिल के कुछेक सदस्यों - विजय झालानी, चरनजोत सिंह नंदा, हंसराज चुग, प्रमोद जैन आदि ने भी रीजनल काउंसिल के सदस्यों के साथ अनौपचारिक मीटिंग करके हालात को ठीक करने का प्रयास किया था, लेकिन उनके प्रयासों का भी कोई नतीजा नहीं निकला था । रीजनल काउंसिल के एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मेघराज के निधन ने लेकिन हालात ऐसे बना दिए कि उसी दिन शुरू हुई सेंट्रल काउंसिल की दो दिवसीय मीटिंग में प्रफुल्ल छाजेड़ ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के अधिकार निरस्त कर देने तथा कामकाज इंस्टीट्यूट की कमेटियों को सौंप देने का फैसला 'करवा' दिया । प्रफुल्ल छाजेड़ ने मीटिंग में इस मुद्दे को इस तरह 'उठवाया' कि अतुल गुप्ता के सामने समर्पण करने के आलावा कोई चारा नहीं रहा ।
अतुल गुप्ता दरअसल इसलिए इस तरह के कठोर फैसले के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि इससे उनकी फजीहत होनी है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट के इतिहास में यह पहला मौका है, जबकि किसी रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के अधिकार निरस्त किए गए हों । अतुल गुप्ता सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व करते हैं, और वह इस वर्ष वाइस प्रेसीडेंट हैं । इसलिए इस मामले को अतुल गुप्ता की लीडरशिप की असफलता के रूप में ही देखा/पहचाना जायेगा; और यही कहा/माना जायेगा कि जो अतुल गुप्ता अपने रीजन की काउंसिल में हालात को नियंत्रित नहीं कर पाए - वह इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट पद की जिम्मेदारी कैसे निभा सकेंगे ? नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में समस्याएँ थीं - समस्याएँ लेकिन कहाँ नहीं होती हैं ? अतुल गुप्ता को लगता था कि जो समस्याएँ हैं, वह अंततः खुद-ब-खुद हल हो जायेंगी - लेकिन इंस्टीट्यूट ने यदि कोई बड़ा फैसला लिया, तो मामला रिकॉर्ड पर आ जायेगा; और यह बात नॉर्दर्न रीजन से होने तथा वाइस प्रेसीडेंट होने के नाते उनके लिए फजीहत भरी होगी । मामला रिकॉर्ड पर न आए, इसके लिए अतुल गुप्ता जैसा जो हो रहा है वैसा होने देने के पक्ष में थे । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अधिकतर समस्याएँ तरह तरह के भुगतान न होने के कारण हो रही थीं, जिनके लिए अतुल गुप्ता ने यह 'फार्मूला' भी सुझाया था कि उक्त भुगतान इंस्टीट्यूट की तरफ से कर दिए जाएँ । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मामले में एक बार पहले भी ऐसा हो चुका है । अतुल गुप्ता का कहना था कि इससे रीजनल काउंसिल में झगड़ रहे पदाधिकारी अपने आप 'रास्ते' पर आ जायेंगे और उनके बीच का झगड़ा खत्म हो जायेगा । प्रफुल्ल छाजेड़ लेकिन इसके लिए तैयार नहीं हुए । दरअसल भुगतान के मामले जिन आधारों पर अटके थे - या अटकाए गए थे, उनके 'बने' रहते हुए मामले में इंस्टीट्यूट के भी फँसने के मौके बनते; जिससे बचने के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ ने अतुल गुप्ता के 'फार्मूले' को हरी झंडी नहीं दी ।
प्रफुल्ल छाजेड़ को अतुल गुप्ता के रवैये पर इसलिए भी भरोसा नहीं हो रहा था, क्योंकि उन्हें 'बताया' जा रहा था कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो चल रहा है, उसके वास्तविक सूत्रधार अतुल गुप्ता ही हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की गतिविधियों से परिचित रहने वाले लोगों का मानना/कहना रहा कि यहाँ बबाल के बीज तो अतुल गुप्ता ने ही बोए, लेकिन बाद में फिर हालात उनकी पकड़ से छूट गए - और वह भी असहाय से हो गए; और वाइस प्रेसीडेंट के रूप में अपनी ईज्जत बचाने में लग गए । मजे की बात यह रही कि उनकी 'गुडबुक' में आने के लिए रतन सिंह यादव, अजय सिंघल, पंकज गुप्ता, गौरव गर्ग ने अपने अपने तरीके से हथकंडे अपनाना शुरू किए - इनमें भी गौरव गर्ग ने 'ऐतिहासिक' कदम उठाते हुए धरने की घोषणा कर डाली, जिसके लिए उन्होंने कुछेक काउंसिल सदस्यों का समर्थन भी जुटा लिया । रतन सिंह यादव व अजय सिंघल ने लेकिन चालाकी दिखाते हुए उनके धरने की हवा निकाल दी - उन्होंने हवा तो निकाल दी, लेकिन गौरव गर्ग को राजनीति के मार्ग से वह डिगा नहीं पाए । हद की बात तो यह हुई कि अपने पिता के निधन से उपजे निजी शोक के बीच भी गौरव गर्ग राजनीति करने से बाज नहीं आए; और जब उनके घर पर शोक/शुद्धि का कामकाज भी पूरा नहीं हुआ था, तब भी गौरव गर्ग वाट्स-ऐप संदेशों के जरिये राजनीतिक दाँव-पेंच चलने में मशगूल थे । पंकज गुप्ता प्रोफेशन के एक बड़े ग्रुप से जुड़े होने का फायदा उठाते हुए श्वेता पाठक व विजय गुप्ता की मदद से अपनी चाल आगे बढ़ा रहे थे । इस तरह की बातों से लगने लगा था कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में हालात जल्दी सुधरने वाले नहीं हैं । अतुल गुप्ता लेकिन तब भी किसी तरह के कठोर फैसले के पक्ष में नहीं थे । लेकिन मेघराज के असामयिक निधन ने स्थिति को एकदम से पलट दिया । मेघराज के निधन के लिए रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के बीच चलने वाले झगड़े के कारण पगार का भुगतान न होने को जिम्मेदार माना गया और इस आरोप ने प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ को यह विचार करने पर मजबूर किया कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मामले को अब वह और अतुल गुप्ता की मर्जी पर नहीं छोड़ सकते हैं । संयोग से उसी दिन सेंट्रल काउंसिल की मीटिंग शुरू हुई; प्रफुल्ल छाजेड़ ने मीटिंग में ऐसी फील्डिंग सजाई कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के अधिकार छीन लेने का फैसला अंततः हो गया, और अतुल गुप्ता के सामने भी इस फैसले का समर्थन करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा । 

Tuesday, August 20, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में सुनील मल्होत्रा के कार्यक्रम में आम व खास रोटेरियंस की जुटी भीड़ तथा उनके उत्साह को सुनील मल्होत्रा तथा उनके नजदीकी व समर्थक एक सकारात्मक संदेश के रूप में देख/पहचान रहे हैं

नई दिल्ली । सुनील मल्होत्रा की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी के प्रति समर्थन 'दिखाने' तथा जुटाने के उद्देश्य से आयोजित किए गए स्वतंत्रता दिवस को सेलीब्रेट करने के कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट के आम और खास रोटेरियंस की जुटी भीड़ ने सुनील मल्होत्रा तथा उनके नजदीकियों व समर्थकों को खासा उत्साहित किया है । दरअसल इस कार्यक्रम पर सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के अभियान का सारा दारोमदार टिका हुआ था और इस कार्यक्रम के जरिये सुनील मल्होत्रा तथा उनके नजदीकियों व समर्थकों को कई तरह के संदेश 'देने' थे । असल में, चुनावी राजनीति की एक बड़ी गहरी समस्या यह होती है कि उसमें उम्मीदवारों पर आरोप तो 'शब्दों' व बातों में लगते हैं, लेकिन उनके जबाव संकेतों व संदेशों के जरिये देने होते हैं । किसी भी उम्मीदवार के खिलाफ नकारात्मक माहौल तो शब्द-बाणों में व्यक्त किए जाने वाले आरोपों से बन जाता है, लेकिन उस नकारात्मक माहौल को पलटने तथा सकारात्मक माहौल बनाने का काम संकेतों व संदेशों में छिपे सुबूतों के माध्यम से देना होता है । संकेतों व संदेशों में छिपाकर सुबूत देने का काम जो उम्मीदवार प्रभावी तरीके से कर लेता है, चुनावी बाजी वही जीत ले जाता है । इसीलिए उम्मीदवारों की बॉडी-लैंग्वेज तथा उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यक्रमों से मिलने वाले संकेतों व संदेशों का चुनावी राजनीति - खासतौर से रोटरी की चुनावी राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका मानी व देखी जाती है । सुनील मल्होत्रा तथा उनके नजदीकियों व समर्थकों ने इसीलिए स्वतंत्रता दिवस को सेलीब्रेट करने का कार्यक्रम डिजाइन किया था और संकेतों व संदेशों के जरिए माहौल बनाने की तैयारी की थी । 
अपने पक्ष में माहौल बनाने तथा 'दिखाने' की तैयारी के नतीजे ने सुनील मल्होत्रा तथा उनके नजदीकियों व समर्थकों को खासा उत्साहित किया है । उनका कहना/बताना है कि खुद उन्हें भी उम्मीद नहीं थी कि उनके कार्यक्रम में इतने रोटेरियंस जुटेंगे और उन्हें डिस्ट्रिक्ट के आम व खास रोटेरियंस का ऐसा जोरदार समर्थन मिलेगा । दावा किया गया है कि कार्यक्रम में करीब छह सौ लोगों की उपस्थिति रही, जिनमें करीब 70 क्लब्स के प्रेसीडेंट्स थे । दिल्ली, सोनीपत, गाजियाबाद, नोएडा, हापुड़ क्षेत्र के साथ-साथ छोटे कस्बों के क्लब्स से भी रोटेरियंस कार्यक्रम में पहुँचे । सुनील मल्होत्रा ने यूँ तो पिछले दिनों विभिन्न क्लब्स के पदाधिकारियों तथा वरिष्ठ रोटेरियंस के बीच संपर्क अभियान चलाया था, लेकिन उनके संपर्क अभियान के प्रभावी होने को लेकर खुद उनके नजदीकी व समर्थक ही सशंकित थे । सुनील मल्होत्रा के व्यक्तित्व में तथा उनके व्यवहार में चूँकि कोई तड़क-भड़क नहीं 'दिखती' है, इसलिए उनके नजदीकियों व समर्थकों को ही आशंका रही है कि उनके संपर्क अभियान का डिस्ट्रिक्ट के लोगों पर कोई प्रभावी असर हो भी रहा है या नहीं । स्वतंत्रता दिवस को सेलीब्रेट करने के लिए हुए कार्यक्रम में वास्तव में इस बात का 'रिजल्ट' भी मिलना था कि डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस ने सुनील मल्होत्रा के संपर्क अभियान को तथा उनकी उम्मीदवारी को सकारात्मक रूप से स्वीकार किया भी है, या नहीं । इसीलिए कार्यक्रम की तैयारी करते हुए खुद सुनील मल्होत्रा तथा उनके नजदीकी व समर्थक थोड़ा आशंकित भी थे । लेकिन कार्यक्रम में जुटे रोटेरियंस की भीड़ तथा उनके उत्साह ने सुनील मल्होत्रा तथा उनके नजदीकियों व समर्थकों को राहत तो दी ही, साथ ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के प्रति उन्हें आश्वस्त भी किया ।
सुनील मल्होत्रा तथा उनकी उम्मीदवारी के समर्थक व शुभचिंतक असल में उन तथ्यों को लेकर तो आश्वस्त रहे हैं, जो किसी भी उम्मीदवार की ताकत होते हैं - लेकिन उक्त तथ्य सचमुच उनके काम आयेंगे, उन तथ्यों से सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को वास्तव में कोई फायदा पहुँचेगा; इसे लेकर उनके बीच एक संशय था । सुनील मल्होत्रा का क्लब डिस्ट्रिक्ट का सबसे बड़ा क्लब है; प्रेसीडेंट के रूप में सुनील मल्होत्रा को एक बड़े क्लब का नेतृत्व करने का मौका मिला - जिससे उनकी नेतृत्व क्षमता का सुबूत लोगों को मिला । सहज ही समझा जा सकता है कि विभिन्न अनुभव, स्वभाव व विचार रखने वाले लोगों के क्लब को नेतृत्व देना सुनील मल्होत्रा के लिए खासा चुनौतीपूर्ण रहा होगा । एक बड़े क्लब का नेतृत्व करना वास्तव में एक डिस्ट्रिक्ट का नेतृत्व करने जैसा ही चुनौतीपूर्ण मामला होता है - या शायद उससे भी मुश्किल । डिस्ट्रिक्ट में तो बहुत से क्लब्स तथा सदस्य इस बात पर ध्यान भी नहीं देते/रखते हैं कि नेतृत्व आखिर कर क्या रहा है; लेकिन क्लब का नेतृत्व हमेशा ही क्लब के हर सदस्य के 'राडार' पर होता है - इस बिना पर सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के समर्थक दावा तो करते रहे हैं कि एक बड़े क्लब का नेतृत्व करने - और खासी सफलता के साथ करने वाले सुनील मल्होत्रा डिस्ट्रिक्ट का नेतृत्व करने के लिए बिलकुल परफेक्ट हैं; लेकिन उनके लिए यह समझना मुश्किल हो रहा था कि उनके इस दावे को डिस्ट्रिक्ट के लोग स्वीकार भी कर रहे हैं क्या ? स्वतंत्रता दिवस को सेलीब्रेट करने के कार्यक्रम में उपस्थित हुई रोटेरियंस की भीड़ को सुनील मल्होत्रा तथा उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों ने सकारात्मक जबाव के संकेत व संदेश के रूप में ही देखा/पहचाना है । संदर्भित समारोह में रोटरी को करीब सौ करोड़ रूपए का दान देने वाले रोटेरियन रवि शंकर दाकुजो को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करके सुनील मल्होत्रा व उनके क्लब के पदाधिकारियों ने यह भी दिखाया/जताया है कि कार्यक्रम के जरिये उनका उद्देश्य भले ही सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के लिए समर्थन देखने/ दिखाने / जताने का हो, लेकिन यह काम भी वह रोटरी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के साथ ही कर रहे हैं । इससे कार्यक्रम में उपस्थित न हो सके डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस के बीच भी सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को लेकर एक सकारात्मक संदेश गया है ।

Sunday, August 18, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के कर्मचारी मेघराज के असामयिक निधन से गुस्साए कर्मचारी इसके लिए काउंसिल के चारों पदाधिकारियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, और माँग कर रहे हैं कि इनके खिलाफ मेघराज की 'हत्या' का मामला चले

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के नाकारापन तथा अपने अपने अहंकारीपूर्ण रवैये के कारण चलने वाली उनकी आपसी लड़ाई ने काउंसिल के एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मेघराज की जान ले ली है । 25/26 वर्ष का मेघराज अपने घर गया हुआ था, और वहाँ ह्रदयाघात के कारण उसकी इहलीला समाप्त हो गई । मेघराज की मृत्यु की खबर से गुस्साए कर्मचारियों का कहना है कि जिस तनाव के चलते उसे हृदयाघात हुआ, उसके लिए रीजनल काउंसिल के चारों प्रमुख पदाधिकारी जिम्मेदार हैं, और इसके लिए इन पर मेघराज की 'हत्या' का मुकदमा चलना चाहिए । उसके साथियों का कहना है कि पिछले माह मिलने वाली पगार के अभी तक न मिलने के कारण मेघराज बहुत ही परेशान था, और इसी परेशानी में उसकी जान चली गई । घर जा रहा मेघराज अपने परिवार के सदस्यों के लिए कुछ सामान ले जाना चाहता था, लेकिन पगार न मिलने के कारण वह अपने रोजमर्रा के खर्चे ही मुश्किल से चला पा रहा था - परिवार के सदस्यों के लिए सामान कहाँ से ले जाता ? घर जाने से पहले उसने अपनी पगार पाने के लिए प्रायः हर पदाधिकारी से गुहार लगाई, लेकिन वह सब हिंदी फिल्म 'दीवार' में बोले गए अमिताभ बच्चन के मशहूर डॉयलॉग को सुनाते मिले कि 'जाओ, पहले उसके साइन लेकर आओ' - और इस तरह उसे पगार नहीं मिली । उसके साथियों का कहना है कि वह बड़ा कलपता हुआ घर गया था, और घर पर भी वह इस बात को लेकर बहुत परेशान था कि उसके पास पैसे नहीं हैं और उसे अपने छोटे-मोटे खर्चों के लिए भी परिवार के दूसरे सदस्यों का मुँह देखना पड़ रहा है । इस स्थिति ने मेघराज को अपने परिवार के सदस्यों के बीच शर्मिंदगी तथा बेहद तनाव में ला दिया था, और इसी तनाव ने अंततः युवावस्था में ही उसकी जान ले ली । 
मेघराज के अलावा, रीजनल काउंसिल के बाकी कर्मचारी भी पगार न मिलने के कारण बुरी तरह परेशान हैं । कर्मचारियों का कहना है कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की आपसी लड़ाई ने कर्मचारियों की जान को जोखिम में डाल दिया है । जरूरी खर्चे पूरे न होने के कारण कई कर्मचारी बुरी तरह तनाव में हैं, लेकिन रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी इस सारे बबाल के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते में लगे हुए हैं और मस्त हैं । उनकी अहंकारभरी आपसी लड़ाई के चलते भुगतान नहीं हो पा रहे हैं और इस वजह से काउंसिल की तरफ से प्रत्येक सप्ताह होने वाला सेमीनार कई सप्ताह से नहीं हो पा रहा है, जीएमसीएस के नए बैच नहीं बन पाने के कारण चार्टर्ड अकाउंटेंट छात्रों को भटकना पड़ रहा है, कर्मचारियों को पगार नहीं मिल पा रही है - जिसके चलते उनका जीवन तबाह हुआ पड़ा है । मसला क्या है ? मसला यह है कि सेक्रेटरी पंकज गुप्ता और ट्रेजरर विजय गुप्ता का कहना है कि रीजनल काउंसिल में जो भी काम हो रहे हैं, विभिन्न कामों के लिए जो भी वेंडर्स हैं, उनके साथ एग्रीमेंट होना चाहिए । उनका आरोप है कि चेयरमैन हरीश चौधरी जैन अपने साथियों के दबाव में एग्रीमेंट करने को लेकर तैयार नहीं हैं । लेकिन हरीश चौधरी जैन की तरफ से कहा जाता है कि यह लोग एग्रीमेंट की बात तो करते हैं, लेकिन एग्रीमेंट करने की तैयारी करने में कोई दिलचस्पी नहीं लेते हैं । हरीश चौधरी जैन का कहना है कि इन दोनों ने एग्रीमेंट न होने को एक बहाना व एक हथियार बनाया हुआ है, जिसका इस्तेमाल करते हुए इन्होंने रीजनल काउंसिल के कामकाज को बाधित किया हुआ है और पूरी व्यवस्था को छिन्न-भिन्न किया हुआ है । दूसरे लोगों को भी लगता है कि बात यदि सिर्फ एग्रीमेंट न होने की ही है, तो चारों पदाधिकारी मिलकर एग्रीमेंट कर क्यों नहीं लेते ? यहाँ लेकिन काउंसिल के चारों पदाधिकारियों का अपना अपना उनका अहंकार आड़े/आगे आ जाता है और इसके चलते कोई पहल नहीं हो पाती है ।
पिछले दिनों, भुगतान की समस्या को लेकर पंकज गुप्ता और विजय गुप्ता की तरफ से एक सुझाव यह भी आया था कि जिन खर्चों को लेकर एग्रीमेंट नहीं है, उन खर्चों के बारे में फैसला रीजनल काउंसिल की मीटिंग और या एक्जीक्यूटिव कमेटी की मीटिंग में हो । यह काम भी लेकिन नहीं हो पाया । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मौजूदा हाल को - अभी तक के घोषित अंतिम सेमीनार, जो फिर नहीं हो सका था, से जुड़ा प्रसंग - बयान करता है । उक्त सेमीनार के रद्द होने की जो सूचना लोगों को मिली थी, उसमें वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक को जिम्मेदार बताया गया था; श्वेता पाठक ने इस पर जब बबाल मचाया और इसे मुद्दा बना कर जब पुलिस में रिपोर्ट कर दी, तब उक्त सूचना पर खेद व्यक्त करते हुए उसे वापस लेने वाला संदेश लोगों को भेजा । मजे की स्थिति यह है कि एक सेमीनार घोषित हुआ, और फिर वह रद्द हुआ - लेकिन रीजनल काउंसिल में कोई आधिकारिक रूप से यह बताने वाला नहीं है कि उक्त सेमीनार रद्द करने की नौबत आखिर क्यों आई और कौन उसके लिए जिम्मेदार है ? पदाधिकारियों के नाकारापन का यह एक बड़ा उदाहरण है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के हालात इसलिए और भी खराब हैं क्योंकि यहाँ पदाधिकारियों के साथ-साथ दूसरे सदस्य भी अपनी अपनी राजनीति करने के मौके बनाते रहते हैं । पदाधिकारियों की मनमानियों पर लगाम लगाने तथा उनके फैसलों की जानकारी काउंसिल के सभी सदस्यों को करवाने की माँग के साथ गौरव गर्ग ने काउंसिल कार्यालय में धरना देने की घोषणा की, उन्हें काउंसिल के अन्य कुछेक सदस्यों का समर्थन भी मिल गया - लेकिन ऐन मौके पर रतन सिंह यादव ने उनके कार्यक्रम को पंक्चर कर दिया । दरअसल रतन सिंह यादव अगले वर्षों में चेयरमैन बनना चाहते हैं, और इसी चाहना में उन्हें डर हुआ कि अपने कार्यक्रम के जरिये कहीं गौरव गर्ग काउंसिल के सदस्यों के बीच पैठ न बना लें, इसलिए उन्होंने अपनी चालबाजी से गौरव गर्ग के कार्यक्रम में ही पंक्चर कर दिया । रतन सिंह यादव की चालबाजी सिर्फ इतने तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि इससे आगे भी गई । वह काउंसिल की बातों की चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं करते हैं, लेकिन इस मामले की चर्चा उन्होंने खूब जमकर की । यह प्रसंग जिस समय का है, तब की तुलना में काउंसिल में हालात और बदतर ही हुए हैं - एक मामले में शिकायत पुलिस तक पहुँची है, और एक अन्य मामले में एक कर्मचारी को अपनी जान गँवाना पड़ी है, लेकिन पीछे तमाम नाटकबाजी करने वाले गौरव गर्ग और रतन सिंह यादव को काउंसिल के मामलों से जैसे अब कोई मतलब नहीं रह गया है । 
मेघराज के निधन ने लेकिन काउंसिल के कर्मचारियों को खासा उत्तेजित किया हुआ है, उनका कहना है कि काउंसिल के कुछेक सदस्यों के रवैये व व्यवहार से तंग आकर चेयरपरसन श्वेता पाठक जब पुलिस में शिकायत कर सकती हैं, तो मेघराज को जिन हालात में अपनी जान गँवाना पड़ी है उसकी जाँच के लिए भी पुलिस में मामला दर्ज करवाया जाना चाहिए । कर्मचारी मेघराज के असामयिक निधन के लिए रीजनल काउंसिल के चारों पदाधिकारियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, और माँग कर रहे हैं कि इनके खिलाफ मेघराज की 'हत्या' का मामला चले । 

Saturday, August 17, 2019

रोटरी इंटरनेशनल द्वारा प्रेसीडेंट नॉमिनी 'घोषित' होने से पहले ही गोवा में आयोजित हो रही डीजीएन मीट में शेखर मेहता को प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में प्रस्तुत करने तथा 'दिखाने' की कार्रवाई रोटरी की 'व्यवस्था' का मजाक बनाने की कोशिश नहीं है क्या - और जिसमें खुद शेखर मेहता भी शामिल हैं !

नई दिल्ली । गोवा में आयोजित हो रही डीजीएन (डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी) मीट में शेखर मेहता को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में प्रस्तुत करने, 'दिखाने' और उनका स्वागत करने के मामले ने विवाद का रूप ले लिया है । कई वरिष्ठ रोटेरियंस का मानना/कहना है कि शेखर मेहता बड़े और अनुभवी रोटेरियन हैं, और अब तो वह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे हैं - इसलिए उनसे उम्मीद की जाती है कि वह रोटरी की 'व्यवस्था' का सम्मान करेंगे और कम से कम अपने नाम पर तथा अपने सामने रोटरी की व्यवस्था का मजाक नहीं बनने देंगे । उल्लेखनीय है कि रोटरी की 'व्यवस्था' के अनुसार, शेखर मेहता अभी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी नहीं घोषित हुए हैं; अभी वह नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा सेलेक्ट हुए हैं - व्यवस्था के अनुसार, एक समय सीमा में उनके इस सेलेक्शन को चुनौती दी जा सकती है, चुनौती मिलने पर चुनाव होगा और उस चुनाव में जीतने पर ही वह प्रेसीडेंट नॉमिनी होंगे; चुनौती न मिलने की स्थिति में उक्त समय सीमा पूरी होने पर उन्हें प्रेसीडेंट नॉमिनी घोषित किया जायेगा । रोटरी की यह 'व्यवस्था' प्रत्येक पद के लिए है - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर, इंटरनेशनल डायरेक्टर और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने वाले को इस व्यवस्था से गुजरना ही होता है । गोवा में 16 से 18 अगस्त के बीच आयोजित हो रही डीजीएन मीट में शामिल होने वाले विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या इसी व्यवस्था से गुजर कर अपने पदों पर पहुँचे हैं, लेकिन लगता है कि 'पूरे कुएँ में ही भाँग पड़ी हुई है', इसलिए किसी ने भी इस बात की न परवाह की और न जरूरत समझी कि उन्हें रोटरी की व्यवस्था का पालन करना चाहिए और उसके प्रति सम्मान दिखाना चाहिए । 'पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं' वाली कहावत को याद करते हुए सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं कि रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारी के रूप में जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अपने पहले ही कार्यक्रम में रोटरी की व्यवस्था का मजाक बना बैठे हों, वह अपने गवर्नर-काल में कैसे कैसे और क्या क्या गुल खिलायेंगे ?
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी तथा इंटरेनशनल डायरेक्टर ने क्या किया, यह तो चलो छोड़ो भी - खुद शेखर मेहता ने रोटरी की व्यवस्था के उल्लंघन होने पर ध्यान नहीं दिया, इस पर वरिष्ठ रोटेरियंस को बड़ी हैरानी है । उन्हें हैरानी इसलिए भी है कि यह 'हरकत' शेखर मेहता के प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने की प्रक्रिया में मुसीबत भी खड़ी कर सकती है । रोटरी इंटरनेशनल के इतिहास में एक बार ऐसा हो चुका है कि नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा सेलेक्ट होने के बाद करीब करीब इसी तरह की हरकतों के चलते एक अधिकृत उम्मीदवार को सचमुच प्रेसीडेंट नॉमिनी होने से रोक दिया गया था । उसी मामले का संज्ञान लेते हुए पिछले वर्ष, सुशील गुप्ता के प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होने के बाद बहुत सावधानी रखी गई थी कि व्यवस्था के अनुसार, प्रक्रिया पूरी होने तक सुशील गुप्ता को प्रेसीडेंट नॉमिनी न कहा जाए और उनके चयन पर ज्यादा जोश न दिखाया जाए । लेकिन शेखर मेहता के मामले में वैसी सावधानी नहीं दिखाई जा रही है, और इसलिए उनके प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होते ही तरह तरह के नाटक देखने को मिल रहे हैं । शेखर मेहता के प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होते ही किसी ने दावा करना शुरू कर दिया कि अब शेखर मेहता उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवा/बनवा देंगे; तो किसी ने बताना/दिखाना शुरू किया कि रोटरी फाउंडेशन के पैसों में घपलेबाजी के आरोप में उन्हें जो सजा मिली है, शेखर मेहता उसे माफ करवा देंगे । इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या तथा विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी की देखरेख में होने वाले कार्यक्रम में प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही शेखर मेहता को प्रेसीडेंट नॉमिनी घोषित करने का करतब कर दिया । इस तरह देखने में आ रहा है कि शेखर मेहता के प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होते ही अपने अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए बड़े बड़े पदों पर रहने वाले तथा बड़े पदों पर पहुँचने की कोशिश में लगे लोग 'सैंया भये कोतवाल' की 'फील' लेने लगे हैं और उसकी धुन पर नाचने लगे हैं ।
वरिष्ठ रोटेरियंस का मानना और कहना है कि दूसरे लोग क्या कर रहे हैं, इसे यदि जाने भी दें; तो देखने की बात यह है कि खुद शेखर मेहता क्या कर रहे हैं और क्या होने दे रहे हैं ? उन्हें तो कम से कम रोटरी की व्यवस्था का पालन होने/करने पर ध्यान देना चाहिए - तब तो और भी, जबकि अभी प्रेसीडेंट नॉमिनी उन्हें घोषित होना है । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए देश के रूप में भारत की किस्मत और बदकिस्मती लगता है कि आगे-पीछे ही चल रही हैं - किस्मत की बात रही कि सुशील गुप्ता के रूप में नौ वर्ष बाद भारत को रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद पर प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलना तय हुआ, लेकिन बदकिस्मती ने तेजी से झपट्टा मारा और बीमारी के चलते सुशील गुप्ता को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा और भारत से वह मौका छिन गया; शेखर मेहता के रूप में किस्मत ने एक बार फिर भारत के लिए अनुकूल हालात बनाए हैं । लोगों का मानना और कहना है कि सुशील गुप्ता के मामले में खुशियों ने जितनी जल्दी उदासी का चोला पहन लिया था, उससे सबक लेकर शेखर मेहता को सावधानी बरतने की जरूरत है, और कम से कम इतनी सावधानी रखने की जरूरत तो है ही कि अपनी तरफ से वह बदकिस्मती को दरवाजा खटखटाने का मौका न दें । शेखर मेहता के प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होने की बात कई लोगों को हजम नहीं हो रही है, इसलिए शेखर मेहता को और भी सावधान रहने की जरूरत है - लेकिन गोवा में डीजीएन मीट में जो हुआ है; रोटरी इंटरनेशनल द्वारा प्रेसीडेंट नॉमिनी घोषित होने से पहले ही शेखर मेहता को प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में प्रस्तुत करने तथा 'दिखाने' की जो कार्रवाई हुई है, उसे उनके विरोधियों का मौका देने के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । 

Friday, August 16, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जीएमसीएस बैच न बन पाने के लिए नितिन कँवर के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि वह जितना ही पंकज गुप्ता और विजय गुप्ता को जिम्मेदार ठहराने/बताने की कोशिश कर रहे हैं, उतने ही और ज्यादा खुद बेनकाब होते जा रहे हैं

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जीएमसीएस कमेटी के चेयरमैन के रूप में नितिन कँवर की बेईमानीपूर्ण मनमानी के चलते जीएमसीएस के नए बैच नहीं बन पा रहे हैं और इस कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट छात्रों को गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुड़गॉंव की तरफ भागना पड़ रहा है । उल्लेखनीय है कि रिजल्ट आते ही छात्रों के बीच जीएमसीएस के बैच में शामिल होने की होड़ मचती है । दिल्ली में करीब छह बैच बनते हैं, छात्रों की संख्या बढ़ने से अक्सर ही उनकी गिनती आठ/नौ तक हो जाती है । दो दिन पहले रिजल्ट आने के बाद, अभी तक नए बैच बन जाने चाहिए थे, लेकिन उनके बनने की कोई सूरत नजर नहीं आ रही है । रीजनल काउंसिल के कार्यालय की तरफ से छात्रों को बताया जा रहा है कि वेंडर्स तथा फैकल्टीज को भुगतान न हो पाने के कारण उन्होंने आगे काम करने से इंकार कर दिया है, जिसके चलते नई क्लासेस शुरू होने के हालात नहीं बनते दिख रहे हैं । इस स्थिति में दिल्ली के छात्रों के बीच अफरातफरी का माहौल बन गया है और उन्होंने गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुड़गाँव में जीएमसीएस के बैच में शामिल होने के लिए जुगाड़ लगाना शुरू कर दिया है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के इतिहास में यह नजारा पहली बार दिखाई दे रहा है, और इसके लिए जीएमसीएस कमेटी के चेयरमैन नितिन कँवर को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । आरोप सुने जा रहे हैं कि कमीशनबाजी के चक्कर में जीएमसीएस कमेटी के चेयरमैन के रूप में नितिन कँवर जिस तरह की बेईमानियाँ कर रहे हैं, उसके नतीजे में ही यह हालात बने हैं और चार्टर्ड एकाउंटेंट छात्रों को नाहक ही परेशान होना पड़ रहा है ।
नितिन कँवर हालाँकि इस स्थिति के लिए रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी पंकज गुप्ता तथा ट्रेजरर विजय गुप्ता को जिम्मेदार ठहराया रहे हैं । उनका कहना है कि इन दोनों के द्वारा अकाउंट पास न करने तथा भुगतान में अड़ंगा डालने के कारण वेंडर्स तथा फैकल्टीज को भुगतान नहीं हो पा रहा है और उन्होंने आगे काम करने से मना कर दिया है । नितिन कँवर की तरफ से गंभीर आरोप यह सुनने को मिल रहा है कि पंकज गुप्ता वेंडर्स व फैकल्टीज से कमीशन माँग रहे हैं तथा अपनी पसंद की फैकल्टीज लगाना चाहते हैं, और इन मामलों में दाल न गलने के कारण भुगतान रोके हुए हैं । पंकज गुप्ता तथा विजय गुप्ता का कहना लेकिन यह है कि जीएमसीएस क्लासेस के लिए वेंडर्स व फैकल्टीज तय करने में नितिन कँवर ने काउंसिल के सदस्यों व पदाधिकारियों को विश्वास में नहीं लिया है और मनमाने तरीके से उन्हें नियुक्त किया है, जिसका उन्हें कोई अधिकार नहीं है । पंकज गुप्ता व विजय गुप्ता का कहना है कि जीएमसीएस के चेयरमैन के रूप में नितिन कँवर की जिम्मेदारी व्यवस्था देखने की है, खर्चे वाले काम अकेले और मनमाने तरीके से करने का अधिकार उन्हें नहीं है । इनका कहना है कि पंकज गुप्ता पर लगाए जाने वाले अपने आरोपों को लेकर नितिन कँवर यदि सचमुच गंभीर हैं, तो उन्हें तुरंत इस मामले को रीजनल काउंसिल और या रीजनल काउंसिल की एक्जीक्यूटिव कमेटी में रखना चाहिए । नितिन कँवर लेकिन ऐसा करने को तैयार नहीं हो रहे हैं, इससे ही जाहिर है कि वेंडर्स तथा फैकल्टीज से कमीशन वास्तव में वह खा रहे हैं, और अपनी तरफ से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए वह पंकज गुप्ता को निशाना बना रहे हैं । 
इस मामले में दूसरे कई लोग भी नितिन कँवर को ही दोषी ठहरा रहे हैं । माना/समझा जा रहा है कि नितिन कँवर को चूँकि सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ना है इसलिए वह अपने समर्थकों को फैकल्टीज के रूप में रख/रखवा कर अपना समर्थन-आधार मजबूत कर रहे हैं; साथ ही कमीशन बाजी से पैसे भी बना रहे हैं । मजे की बात यह देखने/सुनने को मिल रही है कि नितिन कँवर के नजदीकी व शुभचिंतकों के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले लोग भी नितिन कँवर की बेईमानीपूर्ण हरकतों को उनके लिए घातक मान रहे हैं । उनका कहना है कि नितिन कँवर सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर यदि सचमुच गंभीर हैं, तो उन्हें इस तरह की हरकतों से बचना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए कि किसी को भी उन पर चोरी-चकारी का आरोप लगाने का 'मौका' न मिले तथा उनके फैसलों से प्रोफेशन के लोगों को परेशान न होना पड़े । जीएमसीएस क्लासेस के वेंडर्स व फैकल्टीज के चयन/चुनाव के मामले में वह यदि रीजनल काउंसिल के सभी पदाधिकरियों व सदस्यों को विश्वास में लेकर काम करें, तो न तो किसी को उन पर आरोप लगाने का मौका मिलेगा और न ही क्लासेस के सस्पेंड होने के कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट छात्रों के परेशान होने की नौबत आएगी । नितिन कँवर के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि जीएमसीएस बैच न बन पाने के लिए वह जितना ही पंकज गुप्ता और विजय गुप्ता को जिम्मेदार ठहराने/बताने की कोशिश कर रहे हैं, उतने ही और ज्यादा खुद बेनकाब होते जा रहे हैं । उनके ही नजदीकियों व समर्थकों का कहना है कि नितिन कँवर ने यदि जल्दी ही अपना रवैया नहीं सुधारा, तो उनके लिए मुसीबतें और बढ़ेंगी ही । 

Tuesday, August 13, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद को लेकर व्यापक प्रतिनिधित्व के साथ करवाए गए आंतरिक सर्वेक्षण के नतीजे ललित खन्ना के नजदीकियों व समर्थकों को एक बड़ी जीत के प्रति उत्साहित व आश्वस्त कर रहे हैं

नई दिल्ली । ललित खन्ना के नजदीकी व समर्थक/शुभचिंतक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों, खासकर क्लब्स के प्रेसीडेंट्स के मूड को भाँपने के उद्देश्य से करवाए गए आंतरिक सर्वेक्षण के नतीजों से खासे बम बम हैं, और उनका दावा है कि सर्वेक्षण के नतीजों से आभास मिल रहा है कि ललित खन्ना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ में खासे आगे हैं । सर्वेक्षण के अनुसार, कुल करीब 180 वोटों में से 115 से 120 के बीच वोट ललित खन्ना को मिलते नजर आ रहे हैं । ललित खन्ना को उनके जन्मदिन पर बधाई देने वालों का सोशल मीडिया में जो ताँता लगा दिखा, उसे भी प्रतीकात्मक रूप से उनकी उम्मीदवारी के प्रति बढ़े हुए समर्थन के रूप में देखा/पहचाना गया है । ललित खन्ना के नजदीकियों और समर्थकों का ही कहना/बताना है कि यूँ तो चुनावी दौड़ में शामिल प्रत्येक उम्मीदवार अपने आप को जीता हुआ ही मानता/समझता है; दरअसल वोटर तथा उस पर प्रभाव रखने वाले लोग किसी भी उम्मीदवार व उसके समर्थकों को नाराज नहीं करना चाहते हैं और हर किसी को अहसास करवाते हैं कि वह उनके ही साथ हैं - इससे उम्मीदवार बेचारा 'धोखा' खा जाता है और अपने आपको जीता हुआ समझने लगता है; वास्तविक नतीजे में बहुत ही कम वोट पाकर बुरी तरह पिछड़ा रहा उम्मीदवार भी नतीजा आने से पहले तक अपने आप को जीता हुआ ही मानता/समझता है - इसलिए हम भी ललित खन्ना को जीता हुआ ही मानते रहे हैं; लेकिन अपने 'मानने' को विश्वसनीय व ठोस आधार देने के लिए एक आंतरिक सर्वेक्षण करने/करवाने का निश्चय किया गया । आंतरिक सर्वेक्षण के नतीजे ने ललित खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थकों को आश्वस्त व उत्साहित किया है ।
आंतरिक सर्वेक्षण के नतीजे तथा अपने नजदीकियों व समर्थकों के उत्साह के बावजूद ललित खन्ना लेकिन अपने चुनाव-अभियान में कोई कमी या लापरवाही नहीं आने देना चाहते हैं; और उन्होंने अपने नजदीकियों व समर्थकों को भी आगाह किया है कि आंतरिक सर्वेक्षण के नतीजे को चुनावी नतीजा मानने/समझने की भूल मत करना और अपने समर्थन-आधार को बनाए रखने तथा और बढ़ाने के लिए प्रयास करते रहना है । आंतरिक सर्वेक्षण को करने में भूमिका निभाने वाले ललित खन्ना के नजदीकियों व समर्थकों का कहना लेकिन यह भी है कि आंतरिक सर्वेक्षण जिस गहराई व 'ईमानदारी' के साथ किया गया है, उसके चलते सर्वेक्षण के नतीजे सच्चाई के आसपास ही हैं और इसमें मुश्किल से पाँच से दस प्रतिशत के बीच ही ऊँच/नीच हो सकती है । ललित खन्ना के नजदीकियों के अनुसार, इस आंतरिक सर्वेक्षण को करने/करवाने के लिए सबसे पहली बात तो यह तय की गई कि ललित खन्ना को इस प्रक्रिया से दूर रखा गया; क्योंकि माना/समझा गया कि ललित खन्ना के सामने हर कोई मुँह देखी बात ही करेगा और तब सर्वेक्षण का कोई विश्वसनीय अर्थ नहीं रह जायेगा । आंतरिक सर्वेक्षण के लिए ललित खन्ना के दस/बारह नजदीकियों व समर्थकों ने मोर्चा संभाला और उन्होंने अलग अलग क्षेत्रों/शहरों/कस्बों के वरिष्ठ व सक्रिय रोटेरियंस के साथ-साथ प्रेसीडेंट्स के मूड को भाँपने/समझने के लिए काम किया । कई एक लोगों की राय को गोपनीयता बरतते हुए लिखित में लिया गया, ताकि उनकी निष्पक्ष राय मिल सके और कई एक से तीसरे व्यक्ति के जरिये संपर्क किया गया - जिससे कि कोई मुँहदेखा जबाव न मिल सके और सही राय सामने आए । 
आंतरिक सर्वेक्षण को व्यापक रूप से प्रतिनिधिक बनाने के लिए प्रयास किए गए कि छोटे कस्बों के क्लब्स से लेकर बड़े क्लब्स के पदाधिकारियों तथा प्रमुख लोगों की राय मिल सके । अक्सर होता यह है कि कुछेक बड़े क्लब्स के लोगों तथा डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय लोगों की राय को ही डिस्ट्रिक्ट के सभी लोगों की राय मान लिया जाता है, और फिर नतीजा आने पर झटका खाया जाता है । ललित खन्ना के नजदीकियों व समर्थकों ने आंतरिक सर्वेक्षण करवाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा कि उनके सर्वेक्षण में हर क्षेत्र तथा हर 'तरह' के क्लब्स का प्रतिनिधित्व हो । मजे की बात यह रही कि कुछेक क्लब्स को लेकर मिले अनुकूल नतीजों को संदेहास्पद माना गया और उनकी राय दोबारा जानने व 'समझने' के लिए उन पर दोबारा काम किया गया - इस चक्कर में उनमें से कुछेक क्लब को प्रतिकूल राय रखने वाले क्लब्स में शामिल किया गया । आंतरिक सर्वेक्षण में भूमिका निभाने वाले लोगों का कहना/बताना है कि यह सर्वेक्षण जुलाई के आखिरी तथा अगस्त के शुरुआती सप्ताह के आठ से दस दिन के भीतर किया गया । इस सर्वेक्षण को करने में इस बात का ध्यान रखा गया कि इसे इस तरह से किया जाए कि डिस्ट्रिक्ट में किसी को इसका आभास न हो पाए । डर दरअसल यह था कि सर्वेक्षण होने का अहसास होने पर लोग फिर मुँहदेखी बात करते और सर्वेक्षण 'ईमानदार' नहीं रह पाता । सर्वेक्षण के नतीजे को लेकर ललित खन्ना के नजदीकियों व समर्थकों के बीच ही मजे की बात यह देखने को मिल रही है कि उनके कुछेक नजदीकी व समर्थक जहाँ ललित खन्ना की उम्मीदवारी की कामयाबी को लेकर निश्चिन्त हो जाना चाहते हैं, वहीं कई नजदीकी और समर्थक मानते हैं कि सर्वेक्षण के नतीजे से उन्हें उत्साहित तो होना चाहिए, किंतु अति-उत्साहित होने से बचना चाहिए - और स्थितियों पर तथा डिस्ट्रिक्ट के चुनावी माहौल पर लगातार निगाह रखना चाहिए, क्योंकि चुनावी माहौल किसी भी छोटी/बड़ी घटना से उलट-पलट भी जाता है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में इस बार क्या नतीजा आयेगा, यह तो नतीजा आने पर ही पता चलेगा, लेकिन आंतरिक सर्वेक्षण नतीजे से ललित खन्ना के नजदीकियों व समर्थकों को उत्साहित करने वाली आश्वस्ति तो मिलती दिख रही है ।

Thursday, August 8, 2019

रोटरी इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट नॉमिनी पद के लिए सेलेक्ट हुए शेखर मेहता के दाएँ और बाएँ खड़े होकर डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल की रोटरी इंटरनेशनल से 'लूटे' गए करीब 20 लाख रुपयों को वापस किये बिना ही सजा मुक्त होने की तरकीब सफल हो सकेगी क्या ?

जयपुर । शेखर मेहता को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद की कुर्सी अभी मिली नहीं है, लेकिन स्वार्थी व अवसरवादी रोटेरियंस ने उन्हें घेरना, उनके नजदीक 'दिखने' और उनसे फायदा उठाने के प्रयास तेज कर दिए हैं । नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के बाद अपने घर - कोलकाता लौटे शेखर मेहता का हवाई अड्डे पर स्वागत करने वालों, तथा उनके नजदीक खड़े होकर फोटो खिंचवाने वाले लोगों में डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को अतिरिक्त रूप से सक्रिय देख कर लोगों को लगने लगा है कि शेखर मेहता  और उनके नजदीकी यदि सावधान नहीं रहे तो रोटरी के स्वार्थी, बेईमान और रोटरी के पैसों में घपलेबाजी करने वाले लोग उनके चारों तरफ दिखेंगे और यह बात खुद शेखर मेहता तथा उनकी साख के लिए बहुत ही घातक होगी । कई लोगों को शेखर मेहता को इस्तेमाल करने की चालबाजी के अनिल अग्रवाल के 'साहस' पर भी हैरानी हुई; उनका कहना है कि रोटरी फाउंडेशन के करीब 20 लाख रुपयों में घपलेबाजी करने की हरकत के उजागर होने तथा उसके लिए रोटरी इंटरनेशनल से सजा पाने - और उसके बाद भी रोटरी फाउंडेशन के पैसों को वापस करने में तरह तरह की बहानेबाजी के साथ आनाकानी करने के बावजूद अनिल अग्रवाल की आखिर हिम्मत कैसे हुई कि वह शेखर मेहता का स्वागत करने वालों में शामिल हों, और आगे बढ़ बढ़ कर कभी उनके दाएँ खड़े होकर तो कभी बाएँ खड़े होकर फोटो खिंचवाएँ ?
यह प्रकरण लेकिन अनिल अग्रवाल की हिम्मत से ज्यादा चालाकी को 'दिखाता' है । हिम्मत तो अनिल अग्रवाल रोटरी फाउंडेशन का करीब 20 लाख रुपया हड़प कर पहले ही दिखा चुके हैं । और यह भी उनकी हिम्मत का ही सुबूत है कि पकड़े जाने और सजा पाने के बाद भी, रोटरी के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं से लगातार झूठ पर झूठ बोलते हुए और उन्हें तरह तरह से झाँसा देते हुए वह यह कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें इकन्नी भी वापस न करना पड़े और उनकी सजा भी माफ हो जाए । दरअसल इसी कोशिश में उन्होंने चालाकी यह दिखाई है कि वह अपने आप को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के नजदीक 'दिखाएँ', ताकि रोटरी इंटरनेशनल से सजायाफ्ता होने से होने वाले 'नुकसान' से बच सकें । कोलकाता हवाई अड्डे पर शेखर मेहता का स्वागत होने के मौके पर शेखर मेहता के कभी दाएँ तो कभी बाएँ खड़े होकर खिंचवाई गई तस्वीरों को अपने नजदीकियों को भेज/दिखा कर अनिल अग्रवाल ने दावा किया है कि बस अब शेखर मेहता प्रेसीडेंट होंगे और उनका मामला निपट जायेगा तथा उन्हें क्लीन चिट मिल जाएगी । उनके नजदीकी तथा दूसरे लोग सिर्फ तस्वीरों से ही उनके दावे पर यकीन न करें, इसलिए अनिल अग्रवाल ने इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी का नाम भी लिया और बताया कि कमल सांघवी ने ही उन्हें फोन करके कोलकाता हवाई अड्डे के कार्यक्रम के बारे में बताया था और मौके पर उपस्थित होने/रहने की सलाह दी थी । 
कमल सांघवी का नाम लेकर अनिल अग्रवाल ने दरअसल अपने नजदीकियों को विश्वास दिलाने का प्रयास किया है कि शेखर मेहता के खासमखास कमल सांघवी उनके बड़े खास हैं और कमल सांघवी के कारण ही वह कोलकाता हवाई अड्डे पर शेखर मेहता का स्वागत करने पहुँचे और कमल सांघवी ही शेखर मेहता से उनका काम करवायेंगे । अनिल अग्रवाल के नजदीकियों का इन पंक्तियों के लेखक से कहना/बताना लेकिन यह है कि अनिल अग्रवाल दो दिवसीय कोलकाता फैशन एक्सपो 2019 में 'केडी' के स्टॉल पर उपस्थित रहने के लिए कोलकाता में थे, और उसी दौरान उन्हें शेखर मेहता के कोलकाता लौटने का प्रोग्राम पता चला तो उन्होंने 'बहती गंगा में हाथ धोने' का जुगाड़ कर लिया । अनिल अग्रवाल असल में रोटरी फाउंडेशन के पैसों की घपलेबाजी के मामले में कुछेक बड़े पदाधिकारियों व नेताओं की सिफारिश पर 'सख्त' सजा पाने से बच गए हैं; इसलिए उन्हें लगता है कि उन्हें अब यदि कोई तगड़ी सिफारिश मिल जाए तो जो सजा उन्हें मिली भी है, उससे भी वह बच सकते हैं । शेखर मेहता के रूप में उन्हें वह 'बड़ी सिफारिश' नजर आ रही है । रोटरी के कुछेक बड़े पदाधिकारियों व नेताओं ने उन्हें समझाया है कि वह यदि रोटरी फाउंडेशन के लूटे हुए 20 लाख रुपए लौटा दें, तो उनकी सजा माफ करवाई जा सकती है । अनिल अग्रवाल लेकिन इस जुगाड़ में हैं कि उन्हें रोटरी फाउंडेशन के पैसे भी न लौटाने पड़ें, और उनकी सजा भी माफ हो जाए । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होकर लौटे शेखर मेहता के दोनों तरफ खड़े होकर फोटो खिंचवा कर और लोगों को उसे दिखा कर अनिल अग्रवाल ने वास्तव में यह दिखाने/जताने की कोशिश की है कि रोटरी फाउंडेशन को पैसे वापस किए बिना ही, शेखर मेहता जल्दी ही उनकी सजा माफ करवा देंगे ।
मजे की बात यह है कि दो दिन पहले ही, शेखर मेहता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होने की जानकारी मिलते ही वर्ष 2013-14 में अनिल अग्रवाल के फेलो गवर्नर रहे विनोद बंसल की तरफ से घोषणा सुनी गई थी कि शेखर मेहता अब उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने का काम करेंगे । इस तरह, लगता है कि शेखर मेहता को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होते ही दो काम तो तुरंत से असाइन हो गए हैं - एक तो उन्हें डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर विनोद बंसल को इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाना/बनवाना है, और दूसरा रोटरी फाउंडेशन के पैसों की लूट के मामले में रोटरी इंटरनेशनल से सजा पाए डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल को बरी करवाना है । देखना दिलचस्प होगा कि शेखर मेहता को अभी और क्या क्या काम मिलते हैं ?

Wednesday, August 7, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के सबसे बड़े क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली विकास के 16 अगस्त के कार्यक्रम के पीछे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के प्रति डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बने समर्थन को 'दिखाने' का उद्देश्य काम कर रहा है क्या ?

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली विकास की तरफ से स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में 16 अगस्त को किए जा रहे कार्यक्रम की तैयारी के पीछे सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन दिखाने और जुटाने के उद्देश्य को देखे जाने से उक्त कार्यक्रम के प्रति डिस्ट्रिक्ट के लोगों की दिलचस्पी खासी बढ़ गई है । उक्त कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए क्लब के पदाधिकारी तथा वरिष्ठ सदस्य, खासकर क्लब के पूर्व प्रेसीडेंट्स जिस तरह से सक्रिय हैं, उससे कार्यक्रम की महत्ता तो बढ़ ही गई है - साथ ही सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के लिए क्लब के पदाधिकारियों व पूर्व प्रेसीडेंट्स सहित क्लब के वरिष्ठ सदस्यों की समर्थन जुटाने की कोशिशों का भी नजारा लोगों के सामने आया है । यह नजारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में दरअसल इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सुनील मल्होत्रा का क्लब एक बड़ा और पुराना क्लब है, जिसके कई वरिष्ठ सदस्य डिस्ट्रिक्ट में अपनी खास पहचान रखते हैं । पिछले कई वर्षों से यह देखने को मिलता रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के जो भी उम्मीदवार होते हैं, वह खुद और उनके समर्थक व शुभचिंतक पहले तो क्लब के कार्यक्रमों, विशेषकर क्लब के अधिष्ठापन समारोह का निमंत्रण प्राप्त करने के लिए और फिर वोट माँगने के लिए क्लब के वरिष्ठ सदस्यों से ही सिफारिश करते हैं । प्रत्येक वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के जो भी उम्मीदवार होते हैं, उनकी बड़ी हसरत होती है कि उन्हें रोटरी क्लब दिल्ली विकास के अधिष्ठापन समारोह में आमंत्रित कर लिया जाए । क्लब के जो वरिष्ठ सदस्य डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी लेते हैं, उनके पास जितने वोट होते हैं, उतने तो डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के महारथी समझे जाने वाले नेताओं के पास नहीं होते हैं । और इस तरह चुनावी राजनीति के लिहाज से रोटरी क्लब दिल्ली विकास के नेता बिना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वाली 'हैसियत' में होते हैं । ऐसे में, क्लब के वरिष्ठ नेताओं के दिशा-निर्देशन में क्लब के पदाधिकारी सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से आयोजित होते देखे/समझे जा रहे 16 अगस्त के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जिस तरह से जुटे हैं, उसने सुनील मल्होत्रा की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट के लोगों की निगाह में महत्त्वपूर्ण बनाने का काम किया है ।
सुनील मल्होत्रा को डिस्ट्रिक्ट के विभिन्न क्लब्स के अधिष्ठापन समारोहों में जो विशेष तवज्जो मिलती देखी गई है, उसके पीछे भी क्लब के वरिष्ठ सदस्यों की सक्रियताभरी भूमिका को देखा/पहचाना जा रहा है । दरअसल अधिष्ठापन समारोहों में सुनील मल्होत्रा को सिर्फ एक उम्मीदवार के रूप में ही नहीं देखा/पहचाना गया, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के सबसे बड़े क्लब के प्रतिनिधि के रूप में भी 'देखा' गया है; आयोजक क्लब के कई वरिष्ठ सदस्य सुनील मल्होत्रा के क्लब के कई वरिष्ठ सदस्यों से निजी रूप से परिचित होने के कारण सुनील मल्होत्रा को उन वरिष्ठ सदस्यों के प्रतिनिधि के रूप में भी देखते हैं, और इस नाते उन्हें खास अहमियत देते हुए देखे गए हैं । इसके अलावा, अधिष्ठापन समारोहों में सुनील मल्होत्रा को निवर्त्तमान प्रेसीडेंट होने का भी फायदा मिलता नजर आया है; अधिष्ठापन समारोह में चूँकि निवर्त्तमान प्रेसीडेंट की मुख्य भूमिका होती है, इसलिए आयोजक क्लब का निवर्त्तमान प्रेसीडेंट सुनील मल्होत्रा को फेलो प्रेसीडेंट के रूप में देखते/पहचानते हुए उनका स्वागत करता है, तो उससे समारोह में मौजूद लोगों के बीच सुनील मल्होत्रा की एक अलग पहचान बनती है । इस तरह सुनील मल्होत्रा ने विभिन्न क्लब्स के अधिष्ठापन कार्यक्रमों में लोगों के बीच अपनी उम्मीदवारी को लेकर समर्थन का माहौल बनाया; और इसे अधिष्ठापन समारोहों के अलावा भी अपनी सक्रियता दिखा कर और मजबूत करने का काम किया है । माना/समझा जा रहा है कि 16 अगस्त के कार्यक्रम के जरिए वास्तव में सुनील मल्होत्रा की सक्रियता के चलते उनकी उम्मीदवारी को लेकर लोगों के बीच बने/पड़े समर्थन का आकलन किया जाएगा; और साथ ही इस कार्यक्रम के जरिए सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के प्रति बने समर्थन को 'दिखाने' का काम भी हो जाएगा ।
इसीलिए रोटरी क्लब दिल्ली विकास के पदाधिकारी तथा पूर्व प्रेसीडेंट्स सहित वरिष्ठ सदस्य 16 अगस्त के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जोरशोर से लगे हैं । उन्हें विश्वास है कि अपने प्रयासों से वह उक्त कार्यक्रम को प्रभावी रूप देने में सफल होंगे । इस विश्वास का कारण भी है । दरअसल एक पुराना, बड़ा और अत्यंत सक्रिय क्लब होने के नाते डिस्ट्रिक्ट में जो कोई भी थोड़ा बहुत सक्रिय है, वह सुनील मल्होत्रा के क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली विकास के किसी न किसी सदस्य के साथ गहरे से जुड़ा है; और जो नहीं भी जुड़ा है, वह क्लब के पुराने, बड़े और सक्रिय होने के तथ्य से प्रेरित होता है । बड़ा और संगठित व सक्रिय क्लब होने के कारण रोटरी क्लब दिल्ली विकास जिस जोन में होता है, उस जोन के बाकी क्लब्स भी उसके 'प्रभाव' में रहते हैं - और इस तरह उस जोन की डिस्ट्रिक्ट में एक अलग पहचान व भूमिका बन जाती है । ऐसे में, सुनील मल्होत्रा के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में बड़ी अनुकूल स्थिति यह बनी है कि वह रोटरी क्लब दिल्ली विकास के ही नहीं, बल्कि अपने जोन के क्लब्स के उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हैं । असल में इसीलिए डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ी नेताओं के साथ-साथ दूसरे लोगों के बीच भी यह चर्चा रही है कि एक बड़े क्लब का सदस्य होने तथा उस बड़े क्लब के प्रभाव के चलते सुनील मल्होत्रा को मिलने वाले वोटों की गिनती 25/30 से तो शुरू होती है - और यह तथ्य डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले में सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को महत्त्वपूर्ण बना देता है । समझा जा रहा है कि 16 अगस्त का कार्यक्रम में इसी महत्त्व को रेखांकित करने के साथ-साथ और पुख्ता व मजबूत करने के उद्देश्य से किया जा रहा है ।

Tuesday, August 6, 2019

रोटरी इंटरनेशनल के वर्ष 2021-22 के प्रेसीडेंट पद पर शेखर मेहता के चुने जाने में विनोद बंसल को अपना इंटरनेशनल डायरेक्टर बनना 'पक्का' लग रहा है; उन्हें विश्वास है कि दूसरे बड़े नेताओं की तरह शेखर मेहता उन्हें धोखा नहीं देंगे और उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने की जिम्मेदारी निभायेंगे

नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल के वर्ष 2021-22 के प्रेसीडेंट पद के लिए शेखर मेहता के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने की जानकारी मिलने के बाद से विनोद बंसल ने दावा करना शुरू कर दिया है कि अब उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर चुने जाने से कोई नहीं रोक सकता है । विनोद बंसल ने अपने नजदीकियों से कहना शुरू कर दिया है कि अब कोई चाहें कुछ भी करे या कहे, उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने से नहीं रोक पायेगा । विनोद बंसल का कहना है कि शेखर मेहता के साथ उनके जैसे संबंध हैं, उसके चलते उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने/बनवाने की जिम्मेदारी अब वह खुद लेंगे -  और जब इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में शेखर मेहता उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने/बनवाने की जिम्मेदारी लेंगे, तो फिर कौन उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने से रोक सकेगा ? विनोद बंसल ने अपने नजदीकियों को बताया है कि शेखर मेहता से उनकी उस समय से दोस्ती है, जब वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी थे और शेखर मेहता इंटरनेशनल डायरेक्टर थे । वर्ष 2011 में शेखर मेहता ने कोलकाता में जो रोटरी इंस्टीट्यूट करवाया था, उसके लिए उन्होंने मोटी रकम की स्पॉन्सरशिप दिलवाई थी; जिसके चलते शेखर मेहता उनसे काफी प्रभावित हुए थे और फिर दोनों के संबंध मजबूत होते गए । विनोद बंसल ने अपने नजदीकियों को बताया है कि शेखर मेहता जब भी पारिवारिक कारणों से और या रोटरी के काम से दिल्ली आते हैं, तो उनसे जरूर मिलते हैं । ऐसे में, स्वाभाविक ही है कि शेखर मेहता इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में विनोद बंसल की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी का झंडा उठा लें और उन्हें चुनवा/बनवा कर ही मानें ।
विनोद बंसल का कहना/बताना है कि शेखर मेहता ने जिस तरह से कमल सांघवी को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनवाया/चुनवाया है, वैसे ही वह उन्हें भी चुनवाएँगे/बनवाएँगे । उल्लेखनीय है कि यूँ तो विनोद बंसल के रोटरी के हर बड़े नेता/पदाधिकारी के साथ अच्छे संबंध रहे हैं, लेकिन उनके लिए मुसीबत की बात यह रही कि मौकों पर तथा जरूरत पड़ने पर कोई भी उनके काम नहीं आया । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर के साथ उनके बड़े नजदीकी संबंध रहे हैं; पीटी प्रभाकर के रोटरी इंस्टीट्यूट को स्पॉन्सर करने की जिम्मेदारी लेने को वह तैयार थे, और बदले में वह इंस्टीट्यूट के चेयरमैन बनना चाहते थे । पीटी प्रभाकर दिल्ली में इंस्टीट्यूट करने के लिए तैयार भी हो गए थे, लेकिन विनोद बंसल के डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स ने अड़ंगा डाल दिया कि विनोद बंसल यदि चेयरमैन होंगे तो वह इंस्टीट्यूट से नहीं 'जुड़ेंगे' - विनोद बंसल ने पीटी प्रभाकर को बहुत समझाया कि उन्हें किसी के सहयोग/समर्थन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, वह अकेले ही सब संभाल लेंगे, लेकिन पीटी प्रभाकर ने उनकी एक नहीं सुनी और सिर्फ इतना ही नहीं कि वह इंस्टीट्यूट चेन्नई ले गए, उन्होंने विनोद बंसल को चेयरमैन भी नहीं बनाया । इसके बाद, गुलाम वाहनवती के रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी बनने से खाली हुई आरआरएफसी (रीजनल रोटरी फाउंडेशन को-ऑर्डिनेटर) की कुर्सी पाने के लिए विनोद बंसल ने पीटी प्रभाकर, बासकर चॉकलिंगम, मनोज देसाई, शेखर मेहता से लेकर सुशील गुप्ता तक की मदद लेने की कोशिश लेकिन उनकी दाल गली नहीं । पिछले कुछ समय में वह सुशील गुप्ता के काफी नजदीक पहुँचे, लेकिन यहाँ भी उन्होंने पाया कि खासी नजदीकियत के बावजूद सुशील गुप्ता जब कुछ देने/दिलवाने की 'हैसियत' में आते हैं, तो उन्हें भूल जाते हैं और तब वह या तो अशोक गुप्ता को याद करते हैं और या रंजन ढींगरा को । सुशील गुप्ता की तरफ से निराश होने के बाद विनोद बंसल ने पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन से तार जोड़े, लेकिन वहाँ भी उन्होंने केआर रवींद्रन को उनकी बजाए आशीष घोष को ज्यादा तवज्जो देते हुए देखा/पाया ।
हर तरफ से धोखा खाए विनोद बंसल को यकीन है कि शेखर मेहता उनके साथ दूसरों की तरह धोखा नहीं करेंगे । ऐसा भी नहीं है कि दूसरों ने विनोद बंसल को कुछ नहीं दिलवाया; विनोद बंसल को बहुत कुछ मिला भी है - विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में आरआई रिप्रेजेंटेटिव बनने का उन्हें अवसर मिला; लेकिन यह अवसर तो किसी को भी मिल जाता है, इसलिए विनोद बंसल इससे संतुष्ट नहीं हुए । इंटरनेशनल में उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी भी मिली है, लेकिन वह जिम्मेदारी ऐसी है कि रोटेरियंस को उसके बारे में कुछ पता ही नहीं है; उन्होंने कई बार लोगों को बताने की कोशिश भी की, लेकिन लोगों की समझ में कुछ आया नहीं । उन्हें इस बात का बड़ा अफसोस रहा कि उन्हें रोटरी इंटरनेशनल में इतना बड़ा पद मिला, और किसी ने उन्हें बधाई भी नहीं दी । उन्हें रीजनल लीडर्स ग्रुप में शामिल होने का मौका भी मिला, जहाँ उन्हें एंडाउमेंट एडवाइजर का पद मिला है । यह पद तो उन्होंने ले लिया, ताकि इसके बहाने से देश के डिस्ट्रिक्ट्स के डायरेक्टरी में नाम/फोटो छपने का जुगाड़ हो जाए, लेकिन इस पद की जिम्मेदारी निभाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है । हद की, मजाक की और विडंबना की बात यह है कि विनोद बंसल के क्लब ने रोटरी फाउंडेशन में यूँ तो करीब सवा दो लाख डॉलर दिए हैं, लेकिन एंडाउमेंट फंड में इकन्नी भी नहीं दी है । समझा जा सकता है कि एडवाइजर के रूप में विनोद बंसल जब अपने ही क्लब को, और इस तरह जब अपने आप को ही एडवाइज नहीं करना चाहते हैं, तो फिर दूसरों को वह क्या और क्यों करेंगे ? विनोद बंसल को दरअसल रोटरी में ऐसा पद चाहिए, रोटेरियंस के बीच जिसका 'भौकाल' बने - और इसीलिए उन्होंने मिली जिम्मेदारियों को निभाने की बजाये अपना सारा ध्यान इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में लगाया हुआ है । यहाँ लेकिन उन्हें अपने ही डिस्ट्रिक्ट में मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है । लेकिन शेखर मेहता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने में उन्हें अपनी सारी मुसीबतें दूर होती हुई नजर आ रही हैं । इसीलिए उन्होंने अपने नजदीकियों को आश्वस्त किया है कि अब फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है, शेखर मेहता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने के बाद अब उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने से कोई नहीं रोक सकेगा ।