Thursday, May 29, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में वोटों की खरीद-फ़रोख्त के सहारे मिली दीपक बाबू की जीत को रोटरी इंटरनेशनल में चेलैंज करके दिवाकर अग्रवाल ने दीपक बाबू की जीत के जश्न की तैयारी के जोश में खलल डाला

मुरादाबाद । दीपक बाबू ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए मिली अप्रत्याशित जीत का जश्न मनाने की जो तैयारी की है, दिवाकर अग्रवाल ने उसमें खलल डाल दिया है । दिवाकर अग्रवाल ने रोटरी इंटरनेशनल में दीपक बाबू को मिली जीत को चेलैंज किया है और आरोप लगाया है कि दीपक बाबू ने अपनी इस जीत को क्लब्स के पदाधिकारियों से वोटों को खरीद कर प्राप्त किया है । जीत का जश्न मनाने की तैयारी कर रहे दीपक बाबू और उनके समर्थकों को यह बात जानकर खासा तगड़ा झटका लगा है । यह पता चलने पर तो उन्हें अपनी जीत हार में बदलती हुई दिख रही है कि दिवाकर अग्रवाल ने रोटरी इंटरनेशनल में जो शिकायत दर्ज की है, उसमें शिकायत के साथ कुछेक क्लब्स के पदाधिकारियों के हलफनामे भी उन्होंने दिए हैं - जिन्हें दीपक बाबू द्धारा की गई वोटों की खरीद-फरोख्त के सुबूत के रूप में पेश किया गया है ।
दिवाकर अग्रवाल द्धारा रोटरी इंटरनेशनल में दर्ज कराई गई शिकायत की खबर मिलने के बाद से 31 मई को जीत का जश्न मनाने की तैयारी कर रहे दीपक बाबू और उनके समर्थकों का जोश ठंडा पड़ गया है । दीपक बाबू के कुछेक समर्थकों ने तो कहा भी है कि दीपक बाबू को 31 मई का आयोजन रद्द कर देना चाहिए और इस तरह के जश्न के लिए रोटरी इंटरनेशनल के फैसले का इंतजार करना चाहिए । ऐसा कहने वाले दीपक बाबू के समर्थकों का तर्क है कि पैसा देकर खरीदी गई जीत का जश्न मनाना अपनी ही खिल्ली उड़वाना होगा । इनका कहना है कि इस तरह की बातें जब तक लोगों के बीच खुसर-पुसर के रूप में थीं, तब तक तो वह ज्यादा गंभीर नहीं थीं - लेकिन अब जब इस तरह की बातें रिकॉर्ड पर आ गई हैं और कुछेक क्लब्स के पदाधिकारियों द्धारा दिए गए हलफनामों के जरिये सुबूत के रूप में सामने आ गईं हैं तो अब मामला गंभीर हो गया है । दीपक बाबू के कुछेक समर्थकों का ही सुझाव है कि दीपक बाबू को मामले की गंभीरता को समझना चाहिए और 31 मई का जश्न का आयोजन रद्द देना चाहिए - अन्यथा उस दिन उन्हें जश्न मनाने की बजाये लोगों को सफाईयाँ ही देनी पड़ेगी ।
मजे की बात है कि यह जो स्थिति बनी है, उसे 'बनाने' का श्रेय खुद दीपक बाबू को ही है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में वोटों की खरीद-फ़रोख्त के आरोप पहले भी लगते रहे हैं - लेकिन दीपक बाबू पहले उम्मीदवार हैं जिन्होंने इस आरोप के लिए लोगों को बाकायदा 'मौका दिया' । दीपक बाबू ने कई बार लोगों के बीच 'वोटों की खरीद' को चुनाव जीतने की अपनी तरकीब के रूप में व्याख्यायित किया था । उन्होंने कई मौकों पर लोगों को बताया था कि चुनाव के समय, यानि वोट देने के समय वह क्लब-अध्यक्षों को मोटी मोटी रकम ऑफर करेंगे और बदले में उनसे वोट पा लेंगे और इस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन जायेंगे । दीपक बाबू जब खुद ही इस तरह की बातें करते थे, तो उनके जीत जाने के बाद लोगों को यह कहने का मौका मिला ही है कि उनकी जीत तो वोटों की खरीद के जरिये मिली जीत है । कुछेक क्लब्स के पदाधिकारियों ने हलफनामे देकर दीपक बाबू द्धारा की गई वोटों की खरीद-फ़रोख्त के सुबूत भी दे दिए हैं । इन्हीं हलफनामों को आधार बना कर दिवाकर अग्रवाल ने रोटरी इंटरनेशनल में दीपक बाबू की जीत को चेलैंज कर दिया है ।
दीपक बाबू द्धारा की गई वोटों की खरीद-फ़रोख्त के जो किस्से लोगों के बीच चर्चा में हैं, उनसे पता चल रहा है कि दीपक बाबू ने वोटों को 'खरीदने' के लिए बड़ी हार्ड बारगेनिंग की । कुछेक क्लब के पदाधिकारियों को वोट के बदले साठ हजार रुपये के ऑफर से सौदा करना शुरू किया गया, जो फिर दस-दस हजार रुपये बढ़ता हुआ एक लाख रुपये और उससे भी अधिक तक पहुँचा । कुछेक क्लब के पदाधिकारियों ने मौके की नजाकत से फायदा उठाने की कोशिश करते हुए ज्यादा 'मुँह खोले', तो दीपक बाबू को फिर वह सौदे बीच में ही छोड़ने पड़े । जीत का नतीजा आने के बाद दीपक बाबू ने कुछेक लोगों के बीच बड़े घमंड के साथ कहा भी कि कुछेक क्लब्स से बात बनते बनते 'रह गई', अन्यथा उनकी जीत का अंतर और बड़ा होता ।
जीत का तमगा मिलते ही दीपक बाबू को आशंका हुई थी कि दिवाकर अग्रवाल उनकी जीत के नतीजे को रोटरी इंटरनेशनल में चेलैंज करेंगे; इसीलिए उन्होंने तुरंत से दिवाकर अग्रवाल को घेरना/घिरवाना शुरू कर दिया था कि वह इस फैसले को स्वीकार कर लें । दीपक बाबू ने दिवाकर अग्रवाल को ऑफर दिया कि अगले वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनकी उम्मीदवारी का झंडा लेकर वह खुद आगे-आगे चलेंगे । दिवाकर अग्रवाल के कुछेक समर्थकों ने भी उस समय राय व्यक्त की थी कि दिवाकर अग्रवाल को चुनावी नतीजे के फैसले को स्वीकार करके बड़प्पन का परिचय देना चाहिए । दिवाकर अग्रवाल अपने कुछेक समर्थकों की इस सलाह को मानने के संकेत दे भी रहे थे, लेकिन तभी उन्हें दीपक बाबू द्धारा की गई वोटों की खरीद-फ़रोख्त के सुबूत मिल गए और फिर उन्होंने दीपक बाबू की जीत की पोल खोलते हुए रोटरी इंटरनेशनल में उनकी जीत को चेलैंज कर दिया । उनके चेलैंज पर फैसला आने में तो देर लगेगी, लेकिन अभी उनके चेलैंज ने 31 मई के दीपक बाबू की जीत के जश्न की तैयारी के जोश में तो खलल डाल ही दिया है । दिवाकर अग्रवाल के चेलैंज के मद्देनजर दीपक बाबू के ही कुछेक सलाहकारों ने 31 मई के आयोजन को रद्द कर देने का सुझाव दिया है । दीपक बाबू के लिए यह फैसला करना लेकिन खासा मुश्किल हो रहा है कि अपने ही सलाहकारों की इस सलाह को वह माने या न माने !  

Monday, May 26, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में अमित जैन के गवर्नर-काल में अधूरे छूटे डिस्ट्रिक्ट विभाजन के काम को पूरा करने में विनोद बंसल द्धारा दिखाई जा रही दिलचस्पीपूर्ण सक्रियता को देख कर अरनेजा गिरोह के नेताओं को तो अपनी राजनीतिक 'दुकान' बंद होती नजर आ रही है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर कार्रवाई करने की जो तेजी दिखाई है, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों में खासा उलट-फेर होने के संकेत दिए हैं और इन संकेतों में डॉक्टर सुब्रमणियन तथा दीपक गुप्ता के लिए खासे उत्साहपूर्ण नतीजे देखे/पहचाने जा रहे हैं । विनोद बंसल के प्रयास यदि सचमुच में सफल रहे तो अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दो चुनाव हो सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर जिस फार्मूले को अभी तक व्यापक स्वीकृति मिल रही है उसमें डॉक्टर सुब्रमणियन और दीपक गुप्ता अलग-अलग डिस्ट्रिक्ट में होंगे; और इस हिसाब से दीपक गुप्ता तो - अभी तक की स्थिति के अनुसार - हो सकता है कि बिना किसी मुकाबले के ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी हो जाएँ और तब फिर डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए भी मुकाबला उतना चुनौतीपूर्ण नहीं रह जायेगा । विभाजित डिस्ट्रिक्ट में घाटा शरत जैन को उठाना पड़ेगा, क्योंकि तब उनके समर्थक नेता तो अपनी तमाम बदनामी के साथ उनके साथ रह जायेंगे, लेकिन उनका समर्थन-आधार दूसरे डिस्ट्रिक्ट में चला जायेगा । दरअसल डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की स्थिति में तगड़ी चोट अरनेजा गिरोह पर ही पड़ेगी । इस चोट से बचने के लिए अरनेजा गिरोह के सदस्य डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की कार्रवाई में बाधा डाल सकते हैं ।
उल्लेखनीय है कि पिछली बार, अमित जैन ने अपने गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर जब यही कार्रवाई करनी चाही थी, तब अरनेजा गिरोह ने ही उसमें अड़ंगा डाला था । मजे की बात लेकिन यह हुई है कि उस समय विनोद बंसल नए-नए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने गए थे और वह अरनेजा गिरोह के साथ थे, किंतु अब विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अरनेजा गिरोह के षड्यंत्रों का सामना करना है । विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर कुछ करने के संकेत तो हालाँकि काफी दिनों से दे रहे थे, लेकिन किसी को विश्वास हो नहीं रहा था कि वह इस बाबत सचमुच कुछ करेंगे ? इसीलिए अब जब विनोद बंसल ने इस मामले में फैसला करने को लेकर काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की इमरजेंसी मीटिंग बुला ली है, तो अब लोगों को लग रहा है कि विनोद बंसल शायद कुछ कर ही देंगे । विनोद बंसल ने जिस अचानक तरीके से इस मामले में तेजी दिखाई है, उससे अधिकतर लोग हतप्रभ हैं - लेकिन मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल परेशान हैं ।
इनकी परेशानी का कारण डिस्ट्रिक्ट के विभाजन का स्वरूप है । दरअसल बहुत माथापच्ची के बाद डिस्ट्रिक्ट के विभाजन का जो स्वरूप स्वीकृति पाता दिख रहा है उसमें उत्तर प्रदेश के संपूर्ण और हरियाणा व दिल्ली के सटे हुए क्षेत्र के क्लब्स मिल कर एक डिस्ट्रिक्ट बनाते हैं और दिल्ली व हरियाणा के बाकी बचे क्लब्स दूसरा डिस्ट्रिक्ट बनाते हैं । मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह है कि उनकी टुच्चई की हरकतों को समर्थन तो मिलता है पहले वाले संभावित डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स में, लेकिन वह रहना चाहते हैं दूसरे वाले संभावित डिस्ट्रिक्ट में, जहाँ उनकी हरकतें उनके काम नहीं आयेंगी । इसीलिए माना/समझा जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की स्थिति में मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल की तो राजनीतिक 'दुकान' ही बंद हो जायेगी ।
डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर जिस तरह की सक्रियता बनी है, उसमें संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगले रोटरी वर्ष में विभाजन के बाद बनने वाले दोनों डिस्ट्रिक्ट के लिए अलग-अलग चुनाव हो जाएँ । यह संभावना दीपक गुप्ता के लिए तो लॉटरी लगने जैसी स्थिति होगी । क्योंकि अगले रोटरी वर्ष के लिए जो उम्मीदवार हैं उनमें अकेले दीपक गुप्ता उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जो विभाजन के बाद एक डिस्ट्रिक्ट बनता/बनाता है । यानि - आज के सीन में - 'उस' नए डिस्ट्रिक्ट के चुनाव के लिए तो दीपक गुप्ता ही एकमात्र उम्मीदवार होंगे, ऐसा होने पर तो वह निर्विरोध ही चुन लिए जा सकेंगे । सोने पर सुहागे वाली बात यह भी होगी कि वह एक वर्ष पहले ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन सकेंगे । हालाँकि यह फायदा सुधीर मंगला को भी मिलेगा और विभाजन के बाद बनने वाले दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लिए होने वाले चुनाव के विजेता को भी मिलेगा । विभाजन की स्थिति में होने वाले चुनाव में दीपक गुप्ता को चुनौती देने के लिए सकता है कि कोई उम्मीदवार आ भी जाये, लेकिन उसके आने में इतनी देर हो चुकी होगी कि दीपक गुप्ता से मुकाबला करना उसके लिए मुश्किल ही होगा ।
विभाजन के बाद बनने वाले दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लिए जो चुनाव होगा उसमें डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए इसलिए आसानी होगी क्योंकि उन्हें जो क्षेत्र/जो क्लब्स मिलेंगे, उनमें उनकी स्थिति अच्छी है ही । उत्तर प्रदेश के संपूर्ण और हरियाणा व दिल्ली के सटे हुए क्षेत्र के जो क्लब्स अलग डिस्ट्रिक्ट के हिस्सा हो जायेंगे, उनमें ही डॉक्टर सुब्रमणियन को दीपक गुप्ता और या शरत जैन से तगड़ी चुनौती मिल रही है - ऐसे क्लब्स जब अलग डिस्ट्रिक्ट का हिस्सा हो जायेंगे तब डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए चुनौती खुद-ब-खुद ही दूर हो जाएगी । जाहिर है कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की स्थिति में, नुकसान उम्मीदवार के रूप में शरत जैन का और नेताओं के रूप में अरनेजा गिरोह के नेताओं का ही होना है । अरनेजा गिरोह के नेताओं की समस्या यह है कि वह खुद ही अपनी ताकत उत्तर प्रदेश के संपूर्ण और हरियाणा व दिल्ली के सटे हुए क्षेत्र के क्लब्स में ही देखते/पहचानते हैं - लेकिन यह क्लब्स दूसरे डिस्ट्रिक्ट के हिस्सा हो जायेंगे; उन्हें जो क्लब्स मिलेंगे उनमें उनकी टुच्ची और घटिया स्तर की राजनीति के लिए समर्थन नहीं मिलेगा । उम्मीदवार के रूप में शरत जैन के लिए समस्या यह होगी कि उन्हें रमेश अग्रवाल का 'आदमी' होने की सजा मिलेगी । डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए मजे की स्थिति यह होगी कि अभी उन्हें जिन दीपक गुप्ता से तगड़ी चुनौती मिल रही है, वह दीपक गुप्ता दूसरे डिस्ट्रिक्ट में होंगे; और जिन शरत जैन से उन्हें मुकाबला करना होगा, वह शरत जैन अपने समर्थक अरनेजा गिरोह के नेताओं की करतूतों के बोझ के नीचे दबे होंगे ।
समझा जाता है कि अपनी राजनीतिक 'दुकान' को बंद होने से बचाने के लिए अरनेजा गिरोह के नेता डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर किए जा रहे विनोद बंसल के प्रयासों में फच्चर फँसा सकते हैं । हालाँकि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के कई सदस्यों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट जितना बड़ा हो गया है, और बड़ा होने के कारण उसे सँभालना जितना मुश्किल होता जा रहा है, उसे देखते हुए डिस्ट्रिक्ट को विभाजित हो ही जाना चाहिए; और यहाँ विभाजन को टालना अब ज्यादा संभव है नहीं । यह विश्वास इसलिए भी है क्योंकि विभाजन की प्रक्रिया में विनोद बंसल ने दिलचस्पी लेना शुरू किया है । अपनी दिलचस्पी को उन्होंने जिस तरह से अपनी सक्रियता में बदल दिया है और काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की इमरजेंसी मीटिंग तक बुला ली है, उससे लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर वह वास्तव में गंभीर हैं और इस बाबत उन्होंने अच्छी तैयारी की है । उम्मीद की जा रही है कि विनोद बंसल की इस तैयारी के चलते अमित जैन के गवर्नर-काल में जो काम अधूरा छूट गया था, अब उनके गवर्नर-काल में वह पूरा हो जायेगा ।

Saturday, May 24, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में अरनेजा गिरोह के 'पापों का घड़ा' शरत जैन के सिर फूटने की संभावनाओं के बीच डॉक्टर सुब्रमणियन और दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की त्रिकोणीय लड़ाई जीतने के लिए क्लब्स के बीच अपनी अपनी पैठ बनाने के प्रयास तेज किए

नई दिल्ली । डॉक्टर सुब्रमणियन और उनके समर्थकों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए लोगों के बीच जो संपर्क-अभियान चलाया है, उसमें उन्हें दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में अपने लिए फायदा नजर आने लगा है । उल्लेखनीय है कि अभी तक डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थक इस जुगाड़ में थे कि किसी भी तरह से वह दीपक गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए राजी कर लें; इसके लिए दीपक गुप्ता को संजय खन्ना की टीम  में महत्वपूर्ण पद दिलवाने का ऑफर भी दिया गया - इस सुझाव के साथ कि उस महत्वपूर्ण पद पर काम करते हुए वह लोगों के बीच अपनी पहचान को और व्यापक बनायें तथा उसके बाद फिर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करें । दीपक गुप्ता ने लेकिन इस तरह के सुझाव को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और दावा किया कि अपनी उम्मीदवारी के बाबत उन्हें लोगों से अच्छा रेस्पोंस मिल रहा है, इसलिए उन्हें लगता है कि अबकी बार लिए अच्छा मौका है; और इस बिना पर उन्होंने अपनी उम्मीदवारी को बनाये रखने पर जोर दिया । दीपक गुप्ता के इस फैसले से डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों को झटका तो लगा, लेकिन उन्होंने इसे एक तात्कालिक झटके के रूप में ही लिया और उम्मीद की कि आगे फिर कभी वह दीपक गुप्ता को मनाने का दोबारा प्रयास करेंगे ।
डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों को अब लेकिन यह महसूस हो रहा है कि दीपक गुप्ता ने अच्छा किया कि उनकी सलाह नहीं मानी । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों ने अभी तक जो संपर्क-अभियान चलाया है, उसमें उन्होंने पाया है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी कई जगह शरत जैन की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचा रही है - जिसमें प्रकारांतर से कुल मिलाकर डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी का ही फायदा है । इस 'तथ्य' को जानने/पहचानने के बाद डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों को दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में फायदा ही फायदा दिखने लगा है - लेकिन साथ ही उनमें से कुछ को यह डर भी सताने लगा है कि अगले रोटरी वर्ष में होने वाला चुनाव अगर डॉक्टर सुब्रमणियन और दीपक गुप्ता के बीच 'आ' गया तो क्या होगा ? उल्लेखनीय है कि डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थक अभी तक तो यही समझ रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव डॉक्टर सुब्रमणियन और शरत जैन के बीच होगा; और इसीलिए पहले वह दीपक गुप्ता को अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रहे थे, और अब वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी से खुश हो रहे हैं । लेकिन डॉक्टर सुब्रमणियन के कुछेक समर्थकों को यह डर भी सताने लगा है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी जिस तरह कई जगह शरत जैन की उम्मीदवारी को चोट पहुँचा रही है, उसके नतीजे के रूप में कहीं शरत जैन की उम्मीदवारी वापस ही न हो जाये और या कहीं इतनी कमजोर न पड़ जाये कि फिर उनके मुख्य प्रतिद्धंद्धी दीपक गुप्ता हो जाएँ ? दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की उपस्थिति में शरत जैन की उम्मीदवारी से निपटना डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों को आसान काम नजर आ रहा है; लेकिन दीपक गुप्ता के मुख्य प्रतिद्धंद्धी होने की स्थिति उन्हें अपने लिए मुश्किल लग रही है ।
मजे की बात यह है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को भी यह त्रिकोणीय लड़ाई 'सूट' कर रही है । सूट न कर रही होती तो डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होते ही दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी वापस हो गई होती । डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी प्रस्तुत होते ही दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के 'बड़े' समर्थकों को जिस तरह एक झटके में अपनी तरफ ले गई थी, उसके बाद दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के बने रह पाने को लेकर लोगों के बीच संदेह पैदा हो गया था । लेकिन दो बातों ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के बने रहने का 'मौका' बनाया - एक बात तो यह हुई कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी से 'बड़े' नेताओं ने भले ही हाथ खींच लिया हो, किंतु क्लब्स के स्तर पर उनके लिए समर्थन न सिर्फ बना रहा बल्कि वह बढ़ता हुआ भी दिखा; दीपक गुप्ता को स्वाभाविक रूप से इससे हौंसला मिला । दूसरी बात जेके गौड़ के अनुभव की थी - पिछले रोटरी वर्ष में जब जेके गौड़ उम्मीदवार थे, तब मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को समर्थन दिया हुआ था और डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को बाकी लोगों का समर्थन था; जेके गौड़ के साथ 'कोई' नहीं था । जेके गौड़ ने क्लब्स में अपनी पैठ बना कर स्थितियों को अपने पक्ष में किया । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों ने जेके गौड़ के इसी अनुभव से सबक लेते हुए माना कि महत्व क्लब्स में पैठ बनाने का होता है - और इसी सबक के चलते दीपक गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी को बनाये रखने का फैसला किया । उनके इस फैसले को इस बात से और बल मिला कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर सक्रिय न हो पाने की तमाम आशंकाओं को गलत साबित कर दिया है । दरअसल डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने को अरनेजा गिरोह ने अपनी जीत के रूप में देखा था - उन्हें लगा था कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी आने से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी वापस हो जाएगी; और डॉक्टर सुब्रमणियन एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय नहीं हो पायेंगे; और फिर उनके लिए मैदान जीतने में कोई दिक्कत नहीं होगी ।
अरनेजा गिरोह के लिए मुसीबत की बात यह हुई कि उनके अनुमानानुसार न तो दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी वापस हुई और न डॉक्टर सुब्रमणियन ने पहले जैसी ढीलमढाल दिखाई । सभी को हैरान और चकित करते हुए डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु प्रयास किए और लोगों के बीच अच्छी पैठ बनाई । इसका एक और फायदा डॉक्टर सुब्रमणियन और उनके समर्थकों को यह हुआ कि उन्हें त्रिकोणीय लड़ाई में अपने फायदे के प्वाइंट नजर आये । त्रिकोणीय लड़ाई में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को भी चूँकि फायदा दिख रहा है - तो इसका कारण यह है कि दोनों के समर्थन-आधार का बड़ा हिस्सा कॉमन है और वह अरनेजा गिरोह के खिलाफ अपने विरोध के कारण इनके साथ है । यह कॉमन हिस्सा सचमुच में किसके साथ जायेगा, यह इस पर निर्भर करेगा कि किसका पलड़ा भारी दिखेगा ।
यहाँ इस तथ्य को याद करना प्रासंगिक होगा कि अगले वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में सबसे पहले शरत जैन का नाम आया था और आज जो लोग डॉक्टर सुब्रमणियन और या दीपक गुप्ता के साथ दिख रहे हैं वह उस समय शरत जैन के साथ ही थे; किंतु सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल और अरनेजा गिरोह ने जो कारस्तानी की, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरण उलट-पुलट गए और रमेश अग्रवाल तथा अरनेजा गिरोह से बदला लेने वाले लोगों ने शरत जैन का साथ छोड़ कर डॉक्टर सुब्रमणियन का और या दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया । हाल के समय में देखा गया है कि अरनेजा गिरोह के खुले समर्थन के बावजूद रवि चौधरी को चुनावी हार का सामना करना पड़ा था; आलोक गुप्ता का कुछ बनता न देख, हार का बोझ ढोने से बचने लिए अरनेजा गिरोह उन्हें धोखा देते हुए उन्हें बीच में छोड़ कर जीतते दिख रहे जेके गौड़ के साथ जा मिला था; और अभी हाल ही में सीओएल के लिए अरनेजा गिरोह रमेश अग्रवाल को जितवाने में विफल रहा है । इन उदाहरणों से 'दिख' रहा है कि अरनेजा गिरोह के 'पापों का घड़ा' अबकी बार शरत जैन के सिर पर ही फूटेगा ।
इस स्थिति को डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थक भी और दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक भी अपने अपने अनुकूल पा रहे हैं । मजे की बात यह है कि दोनों ही साथ ही साथ यह भी मना रहे हैं कि शरत जैन की उम्मीदवारी बनी भी रहे, क्योंकि तभी अरनेजा गिरोह अपनी बदतमीजियाँ करेगा, जिसका फायदा यह उठायेंगे । शरत जैन की उम्मीदवारी यदि वापस हुई और या आलोक गुप्ता की तरह शरत जैन को अरनेजा गिरोह ने धोखा दिया; और डॉक्टर सुब्रमणियन व दीपक गुप्ता के बीच सीधे मुकाबले का मौका बना तब फिर दोनों के लिए ही मामला ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो जायेगा ।  

Wednesday, May 21, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में डिस्ट्रिक्ट डिस्प्यूट मामले में जगदीश गुलाटी की कार्रवाई को विश्वासघात बताते हुए हर्ष बंसल ने उम्मीद जताई है कि उनका अहसान जगदीश गुलाटी भले ही भूल गए हों, लेकिन नरेश अग्रवाल नहीं भूले होंगे; इसलिए जगदीश गुलाटी से अब नरेश अग्रवाल ही निपटेंगे

नई दिल्ली । हर्ष बंसल को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर जगदीश गुलाटी को देने के लिए आज नई गालियाँ सीखने की जरूरत महसूस हो रही है - क्योंकि उन्हें लग रहा है कि उन्हें अभी जितनी गालियाँ आती हैं वह जगदीश गुलाटी के लिए कम हैं । लायन सदस्यों के बीच हर्ष बंसल हर उस शख्स को गालियाँ देने के लिए (कु)ख्यात हैं जो उनकी उम्मीद और अपेक्षा के अनुसार काम नहीं करता है - जगदीश गुलाटी ने तो आज वह कर दिया, हर्ष बंसल ने जिसकी सपने में भी उम्मीद नहीं की थी । डिस्ट्रिक्ट डिस्प्यूट रिजोल्यूशन प्रोसीजर में कॉन्सीलेटर-चेयरपरसन के रूप में जगदीश गुलाटी ने शिकायती पक्ष की तरफ से कॉन्सीलेटर के रूप में दिए गए हर्ष बंसल के नाम को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है । इससे हर्ष बंसल की बेइज्जती हुई है । हर्ष बंसल लेकिन इस बेइज्जती से नाराज नहीं हैं - हर्ष बंसल की दरअसल इतनी बेइज्जती हुई है, लखनऊ में हुई मल्टीपल काउंसिल की कॉन्फ्रेंस में तो सार्वजानिक रूप से उनकी पिटाई-ठुकाई भी हो चुकी है कि वह बेचारे इज्जत-बेइज्जती में फर्क करना ही भूल गए हैं; लेकिन फिर भी जगदीश गुलाटी के फैसले से वह नाराज हैं तो इस कारण से हैं कि जगदीश गुलाटी को 'उन्होंने' ही तो कॉन्सीलेटर-चेयरपरसन बनवाया है और वही जगदीश गुलाटी कॉन्सीलेटर के रूप में हर्ष बंसल की नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं । हर्ष बंसल का कहना है कि जगदीश गुलाटी की यह कार्रवाई धोखाधड़ी और विश्वासघात है और इसके लिए उन्हें जितनी भी गालियाँ दी जाएँ वह कम होंगी । इसीलिए हर्ष बंसल को जगदीश गुलाटी को देने के लिए नई गालियाँ सीखने की जरूरत आ पड़ी है ।
हर्ष बंसल को हालाँकि उम्मीद है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की तैयारी कर रहे नरेश अग्रवाल के साथ हुई जिस 'डील' के चलते जगदीश गुलाटी को चेयरपरसन-कॉन्सीलेटर बनाया गया है, वह नरेश अग्रवाल उनकी मदद करेंगे और जगदीश गुलाटी के कान उमेठेंगे और जगदीश गुलाटी को राजी करेंगे कि वह हर्ष बंसल को शिकायती पक्ष की तरफ से कॉन्सीलेटर के रूप में स्वीकार कर लें । नरेश अग्रवाल जब तक यह नहीं करते हैं, तब तक लेकिन हर्ष बंसल को जगदीश गुलाटी को गाली देते रहना जरूरी लग रहा है । लोगों को गालियाँ देते रहना हर्ष बंसल को प्रिय शौक भी है ।
किस्सा क्या है, इसे भी जान लीजिये :
डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के कुछेक फैसलों को लेकर कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की तरफ से लायंस इंटरनेशनल कार्यालय में शिकायत की गई, जहाँ से उन्हें जबाव मिला कि इस तरह की शिकायतों का निपटारा करने के लिए डिस्ट्रिक्ट डिस्प्यूट रिजोल्यूशन प्रोसीजर अपनाया जाये । इस प्रोसीजर को अपनाने के लिए कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स द्धारा की गई शिकायत को दो क्लब्स की शिकायत में बदल दिया गया । इस प्रोसीजर के तहत दोनों पक्षों को - शिकायत करने वाले पक्ष को और जिस पक्ष के खिलाफ शिकायत है उसको - एक एक कॉन्सीलेटर चुनना होता है और इन दोनों की सहमति से डिस्ट्रिक्ट में से ही एक तीसरे कॉन्सीलेटर का चुनाव करना होता है जो कॉन्सीलेटर टीम का चेयरपरसन भी होगा । दोनों पक्षों की तरफ से पहली बार कॉन्सीलेटर के जो नाम आये, उनके बीच तीसरे कॉन्सीलेटर के नाम पर सहमति नहीं बन पाई । लायंस इंटरनेशनल द्धारा तय किए गए प्रोसीजर के तहत नियम यह है कि पहली बार दोनों पक्षों द्धारा चुने गए कॉन्सीलेटर के बीच तीसरे कॉन्सीलेटर के नाम पर यदि सहमति नहीं बन पायेगी तो स्वतः यह मान लिया जायेगा कि उन दोनों कॉन्सीलेटर ने अपने अपने पद छोड़ दिए हैं और इसके बाद दोनों पक्ष अपने अपने कॉन्सीलेटर के रूप में नए नाम तय करेंगे । दोनों पक्षों द्धारा चुने गए नए कॉन्सीलेटरों के तीसरे कॉन्सीलेटर के लिए डिस्ट्रिक्ट के किसी नाम पर सहमति बनाने में विफल रहने पर प्रोसीजर में तीसरे कॉन्सीलेटर के चयन के संदर्भ में व्यवस्था यह है कि दूसरे डिस्ट्रिक्ट के इंटरनेशनल डायरेक्टर रहे लायन को तीसरे कॉन्सीलेटर के रूप में चुना जाए । शिकायत पक्ष की तरफ से तीसरे कॉन्सीलेटर के रूप में जगदीश गुलाटी का नाम आया । दूसरे पक्ष ने उनके नाम पर सहमति दे दी ।
यहाँ तक जो हुआ, सो हुआ; इसके आगे लेकिन शिकायत पक्ष की होशियारी उनकी बेवकूफी साबित होती हुई दिखी ! दरअसल हुआ यह कि चेयरपरसन-कॉन्सीलेटर के रूप में जगदीश गुलाटी को शिकायती पक्ष की तरफ से कॉन्सीलेटर के रूप में हर्ष बंसल का नाम मिला । जबकि शिकायती पक्ष की तरफ से दूसरी बार कॉन्सीलेटर के रूप में गगनजोत सिंह का नाम दिया गया था । यहाँ एक बात समझ लें कि शिकायती पक्ष तकनीकी रूप से एक क्लब जरूर है, लेकिन क्लब को तो बस मोहरा बनाया हुआ है, सारी लड़ाई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स लड़ रहे हैं क्योंकि सबसे पहले शिकायत उन्होंने ही की थी । यह लड़ाई लड़ने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का नेतृत्व हर्ष बंसल ने संभाला हुआ है, जो अपने आप को समझते तो बड़ा होशियार हैं लेकिन करते बेवकूफ़ियाँ हैं और जिनके चलते लगातार 'पिटते/कुटते' रहते हैं । यहाँ भी जगदीश गुलाटी से उनके 'पिटने' की नौबत खुद उनकी ही 'होशियारी' से पैदा हुई है । डिस्ट्रिक्ट डिस्प्यूट रिजोल्यूशन प्रोसीजर के अनुसार कॉन्सीलेटर्स की जो तीन सदस्यीय कमेटी बनेगी, उसमें दोनों पक्षों की तरफ से कॉन्सीलेटर वह होंगे, जिनके नाम दूसरी बार प्रस्तावित हुए थे । शिकायती पक्ष की तरफ से दूसरी बार कॉन्सीलेटर के रूप में गगनजोत सिंह का नाम आया था; नियमानुसार चेयरपरसन के रूप में जगदीश गुलाटी को उनका ही नाम देना चाहिए था; लेकिन हर्ष बंसल ने गगनजोत सिंह की जगह अपना नाम दे दिया ।
हर्ष बंसल ने यह जो हरकत की, यह सिर्फ उनकी मनमानी का ही नहीं बल्कि उनकी बेवकूफी का भी सुबूत है । शिकायती पक्ष के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का ही कहना है कि हर्ष बंसल ने दूसरी बार कॉन्सीलेटर के रूप में गगनजोत सिंह का नाम दरअसल यह सोच कर भेजा था कि गगनजोत सिंह तीसरे कॉन्सीलेटर के नाम पर सहमति बनने ही नहीं देंगे और उनकी भूमिका पहले कॉन्सीलेटर की तरह वहीं पर ख़त्म हो जायेगी; हर्ष बंसल ने सोचा यह कि उसके बाद फिर आगे का मोर्चा वह खुद संभाल लेंगे । डिस्ट्रिक्ट डिस्प्यूट रिजोल्यूशन प्रोसीजर का नियम या तो हर्ष बंसल ने ठीक से पढ़ा नहीं और या उसे समझा नहीं । उसमें तीसरे कॉन्सीलेटर के नाम पर सहमति न बनने की स्थिति में पहली बार चुने गए दोनों पक्षों के कॉन्सीलेटरों के 'तो' स्वतः पदमुक्त होने की बात कही गई है, लेकिन दूसरी बार चुने गए कॉन्सीलेटरों के लिए ऐसा नहीं कहा गया है । प्रोसीजर में साफ कहा गया है कि दूसरी बार चुने गए कॉन्सीलेटर यदि तीसरे कॉन्सीलेटर के रूप में डिस्ट्रिक्ट के किसी नाम पर सहमत नहीं हो पाते हैं तो वह पड़ोसी या निकट के डिस्ट्रिक्ट से नाम चुनेंगे । नियमानुसार तीसरे कॉन्सीलेटर के नाम पर सहमति बनने के बाद जो तीन सदस्यीय कमेटी होगी, उसमें दोनों पक्षों की तरफ से कॉन्सीलेटर के रूप में वह लोग होंगे, जिनके नाम दूसरी बार कॉन्सीलेटर के रूप में आये थे ।
इसीलिए चेयरपरसन-कॉन्सीलेटर के रूप में जगदीश गुलाटी ने शिकायती पक्ष की तरफ से कॉन्सीलेटर के रूप में हर्ष बंसल के नाम को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है और गगनजोत सिंह का नाम अधिकृत रूप से दर्ज करने की बात कही है । जगदीश गुलाटी की यह कार्रवाई हर्ष बंसल को ऐसी लगी है जैसे जगदीश गुलाटी ने सरे-बाजार उनके कपड़े उतार लिए हैं । हर्ष बंसल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उनकी इस बेवक़ूफीभरी होशियारी से डिस्ट्रिक्ट डिस्प्यूट रिजोल्यूशन प्रोसीजर में शिकायती पक्ष कमजोर पड़ गया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की तरफ से कॉन्सीलेटर राजिंदर बंसल है, जिनके धाकड़पने के सामने गगनजोत सिंह का टिक पाना शिकायती पक्ष को ही मुश्किल लग रहा है । इसीलिए शिकायती पक्ष के लोग हर्ष बंसल को कोस रहे हैं, और हर्ष बंसल - जगदीश गुलाटी को कोस रहे हैं । हर्ष बंसल ने कॉन्सीलेटर में उनके नाम को ख़ारिज कर देने की जगदीश गुलाटी की कार्रवाई को विश्वासघात कहा है । उनका कहना है कि उन्होंने ही तो जगदीश गुलाटी को चेयरपरसन-कॉन्सीलेटर बनवाया है, और जगदीश गुलाटी उन्हें ही कॉन्सीलेटर-टीम से बाहर रखने की बात कह रहे हैं । जगदीश गुलाटी का कहना है कि वह तो वही कर रहे हैं जो नियमानुसार उन्हें करना चाहिए । जगदीश गुलाटी के इस तर्क ने हर्ष बंसल को और ज्यादा आगबबूला कर दिया है । दरअसल इसीलिए हर्ष बंसल को जगदीश गुलाटी को देने के लिए और ज्यादा गालियों की इमरजेंसी-जरूरत आ पड़ी है ।
जगदीश गुलाटी को गालियाँ देने के साथ-साथ हर्ष बंसल का यह भी दावा है कि वह नरेश अग्रवाल से कह कर जगदीश गुलाटी को 'सीधा' करवायेंगे । हर्ष बंसल का तर्क है कि जगदीश राय गोयल को मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन बनवाने की नरेश अग्रवाल और जगदीश गुलाटी की स्कीम में उन्होंने जितनी/जो मदद की, उसका अहसान नरेश अग्रवाल और जगदीश गुलाटी इतनी जल्दी भूल गए हैं क्या ? हर्ष बंसल को विश्वास है कि उनका अहसान जगदीश गुलाटी भले ही भूल गए हों, लेकिन नरेश अग्रवाल नहीं भूले होंगे; इसलिए जगदीश गुलाटी से अब नरेश अग्रवाल ही निपटेंगे । हर्ष बंसल का कहना है कि मल्टीपल की चुनावी राजनीति में नरेश अग्रवाल और जगदीश गुलाटी की मदद करने के चक्कर में उनके फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता को आर्थिक नुकसान होने का खतरा पैदा हो गया है, क्योंकि उन पर मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के दूसरे उम्मीदवार सहजीव रतन जैन से मिले महँगे उपहार को वापस करने के लिए दबाव पड़ रहा है ।  हर्ष बंसल का कहना है कि इतने सब के बाद भी जगदीश गुलाटी उनके साथ विश्वासघात करने पर आमादा हैं तो वह चुप नहीं बैठेंगे ।
हर्ष बंसल के चुप न बैठने की स्थिति में जगदीश गुलाटी क्या करेंगे - यह देखना दिलचस्प होगा । यह देखना इसलिए भी दिलचस्प होगा, क्योंकि इससे यह भी पता चलेगा कि मल्टीपल की चुनावी राजनीति में हर्ष बंसल से मिली मदद का बदला जगदीश गुलाटी और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की तैयारी कर रहे नरेश अग्रवाल कैसे उन्हें चुकाते हैं ।

Tuesday, May 20, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी की संभावना को धक्का पहुँचाने के जरिये अजय सिंघल की उम्मीदवारी की प्रस्तुति ने अजय सिंघल को अगले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में स्थापित किया

गाजियाबाद । अजय सिंघल को अगले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाये जाने के संकेत देने के उद्देश्य से गाजियाबाद में आयोजित हुए कार्यक्रम को जिस तरह की कामयाबी मिली, उसका नतीजा यह हुआ कि अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी की संभावना को बनाये रखने के उद्देश्य से देहरादून में विजेताओं के स्वागत-सम्मान के बहाने सुनील जैन द्धारा किए जाने वाले कार्यक्रम को ही तिलांजली दे दी गई और सुनील जैन ने स्वागत-सम्मान का कार्यक्रम बस जैसे-तैसे निपटाया । उल्लेखनीय है कि अवतार कृष्ण ने अगले लायन वर्ष में अपनी उम्मीदवारी की संभावना को बनाये रखने के लिए एसएमएस के जरिए लोगों के बीच अपनी सक्रियता दिखाने का प्रयास जारी कर दिया था । उनके इस प्रयास को और मजबूती देने तथा विश्वसनीय बनाने के लिए सुनील जैन ने देहरादून में नए विजेताओं के स्वागत-सम्मान के लिए एक कार्यक्रम करने की तैयारी शुरू की । तैयारी यह थी कि विजेताओं के स्वागत-सम्मान के लिए इकठ्ठा हुए लोगों के बीच कार्यक्रम में अवतार कृष्ण को खूब तवज्जो दी जायेगी, जिससे लोगों के बीच अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी की चर्चा को खुद-ब-खुद हवा मिलेगी - और जब हवा मिलेगी तो उक्त चर्चा अपने आप ही भड़केगी ।
सुनील जैन देहरादून में इस कार्यक्रम को कर पाते, उससे पहले मुकेश गोयल ने गाजियाबाद में लायंस क्लब गाजियाबाद के अजय सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करते हुए एक कार्यक्रम कर डाला । मजे की बात यह रही कि गाजियाबाद के कार्यक्रम की आनन-फानन में जो योजना बनी उसका प्रारंभिक उद्देश्य सिर्फ इतना तय किया गया था कि अगले उम्मीदवार के रूप में अजय सिंघल की संभावना को 'देखा/दिखाया' जाए । मुकेश गोयल लेकिन चूँकि 'हल्दी की गाँठ भर मिल जाने पर पंसारी की दुकान खोल लेने' का हुनर रखते हैं, लिहाजा कार्यक्रम की तैयारी जैसे-जैसे परवान चढ़ी और कार्यक्रम हुआ तो वह अजय सिंघल की उम्मीदवारी का बाकायदा प्रमोशनल आयोजन बन गया । अगले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अजय सिंघल की उम्मीदवारी की चर्चा तो कार्यक्रम की तैयारी के दौरान ही जंगल की आग की तरह डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच फैल चुकी थी; कार्यक्रम की जोरदार सफलता ने अजय सिंघल को एक प्रभावी उम्मीदवार के रूप में भी स्थापित कर दिया । कार्यक्रम में पैंतीस से अधिक क्लब्स का प्रतिनिधित्व होने का जो दावा किया गया, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को भी खासा चक्कर में डाल दिया । अजय सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से हुए इस कार्यक्रम की सफलता ने सुनील जैन द्धारा देहरादून में अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी की संभावना को जिंदा रखने के उद्देश्य से किए जाने वाले कार्यक्रम की तैयारी को तगड़ा झटका दिया ।
अजय सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से हुए कार्यक्रम की सफलता की चमक देख कर सुनील जैन को अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी की संभावना को जिंदा रखने का प्रयत्न करना भी गैरजरूरी लगने लगा । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के दूसरे संभावित समर्थकों ने भी सुनील जैन के प्रस्तावित कार्यक्रम से हाथ खींच लिए । इसके बाद - सुनील जैन ने हालाँकि कार्यक्रम तो किया, लेकिन बस जैसे-तैसे ही 'किया' और उसमें अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को लेकर कोई संकेत-वंकेत नहीं दिया । उल्लेखनीय है कि अजय सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने वाला कार्यक्रम जब तक नहीं हुआ था, तब तक अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थक नेता अगले लायन वर्ष में अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने के संकेत दे रहे थे । उनका मानना और कहना था कि एक बार चुनाव में हारने वाला उम्मीदवार जब लगातार दूसरी बार उम्मीदवारी प्रस्तुत करता है और लोगों के बीच अपने लिए सहानुभूति जुटाने की कोशिश करता है तो प्रायः सफल हो ही जाता है । अजय सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के कार्यक्रम की तैयारी लेकिन जिस अंदाज में हुई और कार्यक्रम को जो सफलता मिली, उसमें सिर्फ सहानुभूति के भरोसे अवतार कृष्ण के लिए उम्मीद बनाए रखना संभव नहीं दिखा; और उसके चलते अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के संभावित समर्थकों के बीच जो हलचल हुई उसमें सुनील जैन द्धारा अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी की संभावना को जिंदा रखने के उद्देश्य से प्लान किया जा रहा कार्यक्रम बैठ गया ।
इसे अगले लायन वर्ष में होने वाले सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित चुनाव के संदर्भ में अजय सिंघल की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी की संभावना को जिंदा रखने के उद्देश्य से किया जाने वाला कार्यक्रम यदि होता, तो उससे अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को मनोवैज्ञानिक बढ़त तो मिलती ही और वह बढ़त अजय सिंघल के लिए एक बड़ी चुनौती होती । अजय सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से हुए पहले ही कार्यक्रम ने उस संभावित चुनौती को लेकिन झटका तो दे ही दिया है । इस उपलब्धि से हालाँकि कोई निर्णायक नतीजा निकालना जल्दबाजी करना होगा, क्योंकि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद तक की राह बड़ी रपटीली है और अभी वह लंबी भी है ।
अजय सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट की राजनीति के संदर्भ में भले ही धमाकेदार शुरुआत की है, लेकिन क्लब के स्तर पर कुछेक चुनौतियों से निपटना उनके लिए अभी बाकी है । अजय सिंघल की उम्मीदवारी के प्रकट होते ही क्लब के कुछेक असंतोषी किस्म के लोगों ने डीआर गोयल की उम्मीदवारी का राग छेड़ने की कोशिश की है । लायंस क्लब गाजियाबाद में डीआर गोयल की उम्मीदवारी की चर्चा वर्षों पहले चलती रही तरुण कंसल की उम्मीदवारी की चर्चा की तरह एक मजाक बनी हुई है । क्लब के लोगों का कहना है कि जो हाल तरुण कंसल का रहता था, वही हाल डीआर गोयल का बना हुआ है - गवर्नरी के लड्डू तो उनके मन में फूटते हैं, किंतु उम्मीदवार बनने की उनकी हिम्मत नहीं होती है । इस समय भी क्लब के जो लोग डीआर गोयल की उम्मीदवारी का नाम ले रहे हैं, उनका उद्देश्य सचमुच में डीआर गोयल की उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने का नहीं है, उनका उद्देश्य तो बस अजय सिंघल की राह में रोड़े अटकाने का है । क्लब में जो लोग अजय सिंघल की उम्मीदवारी के साथ हैं, उनका कहना है कि डीआर गोयल की उम्मीदवारी का नाम लेने वाले लोग कुछ समय शोर-शराबा करके शांत हो जायेंगे क्योंकि डीआर गोयल उम्मीदवार बनने के लिए खुद ही तैयार नहीं होंगे । इसीलिए क्लब में अजय सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थक डीआर गोयल की उम्मीदवारी की बात पर चुप्पी साधे हुए हैं और कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं - शायद वह समझ रहे हैं कि कुछ कहने से बात कहीं बढ़ या बिगड़ न जाए ।
अजय सिंघल की उम्मीदवारी जिस सावधानी और जिस तैयारी के साथ प्रस्तुत हुई है, और उसकी प्रस्तुति ने अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी की संभावना को जिंदा रखने की कोशिश को जो धक्का पहुँचाया है उसके चलते अजय सिंघल अगले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के एक मजबूत उम्मीदवार तो बन ही गए हैं । अपनी इस मजबूती को वह कैसे आगे भी बनाये रख पाते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा ।

Thursday, May 15, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी लड़ाई को जारी रखने की दीपक बाबू की 'जिद' के बीच वोटों की ख़रीद-फ़रोख्त के उनके फार्मूले ने दिवाकर अग्रवाल के मुकाबले हारी दिख रही बाजी को दीपक बाबू की झोली में ला दिया

मुरादाबाद । दीपक बाबू ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीतने के लिए जो फार्मूला बाकायदा घोषित किया था, वह अंततः कामयाब साबित हुआ । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में दीपक बाबू ने कोई संपर्क अभियान नहीं चलाया; अपनी तरफ से लोगों से संपर्क करना तो दूर की बात थी, लोगों ने उनसे संपर्क करने की कोशिश की तो लोगों की कोशिश तक को भी उन्होंने कोई तवज्जो नहीं दी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार हमेशा इस ताक में रहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट का कोई आयोजन हो तो वह उसमें सबसे पहले पहुँचे और सबसे अंत तक उस आयोजन में उपस्थित दिखें ताकि वहाँ उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों से मिलने का मौका तो मिले ही, साथ ही लोगों को यह 'दिखाने' का अवसर भी मिले कि एक उम्मीदवार के रूप में वह कितने कंसर्न हैं और कितने सक्रिय हैं - लेकिन दीपक बाबू ने ऐसा कोई भी काम नहीं किया । डिस्ट्रिक्ट के कई आयोजनों में तो उन्होंने उपस्थित रहने तक की जरूरत नहीं समझी - डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में दर्ज होने वाली उनकी लंबी अनुपस्थिति के कारण कई बार तो लोगों ने उनकी उम्मीदवारी को लेकर भी संदेह करना शुरू कर दिया था । डिस्ट्रिक्ट के जिन कुछेक आयोजनों में दीपक बाबू उपस्थित भी हुए, वहाँ भी उन्होंने लोगों से मिलने-जुलने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई । उनके व्यवहार को देख कर लोगों ने - यहाँ तक कि कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तक ने मजाक में कहना शुरू कर दिया था कि दीपक बाबू ने तो अपने आप को गवर्नर मान लिया है और इसीलिए उम्मीदवार होने के बावजूद वह एक उम्मीदवार के रूप में नहीं, बल्कि चुने हुए गवर्नर की तरह व्यवहार कर रहे हैं ।
दीपक बाबू का 'कॉन्फिडेंस लेबल' देख कर उनके समर्थक और उनके नजदीकी तक हैरान थे और फुसफुसाहटों में एक-दूसरे से पूछते थे कि दीपक बाबू आखिर हैं किसके भरोसे ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवार दिवाकर अग्रवाल के प्रति जिस तरह के विरोध का रवैया अपनाया हुआ था, उससे हर किसी को यह तो महसूस हो रहा था कि दीपक बाबू को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल का भरोसा है और राकेश सिंघल ने दाँव भी चला था जिससे दीपक बाबू को बिना चुनाव लड़े ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन जाना था । लेकिन राकेश सिंघल के हथकंडे भी फेल हो रहे थे । राकेश सिंघल के हथकंडे को सफल बनाने के लिए दीपक बाबू की तरफ से रोटरी इंटरनेशनल में आधिकारिक रूप से शिकायत भी दर्ज करवाई गई, किंतु वहाँ से भी दीपक बाबू को कोई मदद नहीं मिली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवार दिवाकर अग्रवाल को रास्ते से हटाने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल द्धारा अपनाये गए हथकंडे फेल हो रहे थे, और रोटरी इंटरनेशनल से मदद पाने की उम्मीदें भी ध्वस्त हो रही थीं - लेकिन फिर भी दीपक बाबू का कॉन्फिडेंस लेबल खासा हाई दिख रहा था । उस सवाल का जबाव लेकिन किसी को नहीं मिल रहा था कि दीपक बाबू आखिर हैं किसके भरोसे ?
मजे की बात यह रही कि दीपक बाबू लोगों को बता रहे थे कि वह किसके भरोसे हैं । किंतु कोई भी उनके भरोसे पर भरोसा ही नहीं कर रहा था ।
दीपक बाबू लोगों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीतने का फार्मूला बता रहे थे । उनका फार्मूला बड़ा सीधा था - वह लोगों को बता रहे थे कि जब चुनाव का समय आयेगा तब क्लब-अध्यक्षों को वह मोटी मोटी रकम ऑफर करेंगे और बदले में उनसे वोट पा लेंगे और इस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन जायेंगे । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में वोटों की ख़रीद-फ़रोख्त का यूँ तो पुराना इतिहास है, और कई जीतों में ख़रीद-फ़रोख्त की निर्णायक भूमिका देखी गई है; लेकिन सिर्फ - सिर्फ ख़रीद-फ़रोख्त के भरोसे चुनाव जीतने का भरोसा दीपक बाबू ही दिखा रहे थे । यही कारण था कि किसी को भी उनके इस फार्मूले के सफल होने का विश्वास नहीं था । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में वोटों की ख़रीद-फ़रोख्त की महत्ता से परिचित लोगों का भी मानना और कहना था कि सिर्फ ख़रीद-फ़रोख्त के भरोसे चुनाव जीतने की उम्मीद करना गले नहीं उतर रहा है ।
दीपक बाबू की चुनावी जीत ने लेकिन साबित कर दिया है कि उनका फार्मूला अचूक था और डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का उनका 'अनुभव' आखिरकार उनके काम आया । दीपक बाबू की चुनावी जीत ने साबित कर दिया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पाने के लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच काम करने की, लोगों से संपर्क बनाने/रखने की, लोगों को तवज्जो देने की, विभिन्न मौकों पर उनके लिए सुविधाएँ जुटाने की कोई जरूरत नहीं है - चुनाव का जब समय आये तो वोट खरीदने निकल पड़ो : जीत तुम्हारी झोली में खुद-ब-खुद आ गिरेगी ।
बात लेकिन इतनी सीधी-सरल भी नहीं है । दीपक बाबू की जीत को सिर्फ ख़रीद-फ़रोख्त से मिली जीत मानना दीपक बाबू के साथ अन्याय करना भी होगा । दीपक बाबू की एक बात के लिए तो तारीफ की ही जानी चाहिए कि तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद वह मैदान में लगातार डटे रहे । चुनाव उन्होंने अपने 'तरीके' से लड़ा; उनकी तरकीबें लगातार फेल होती जा रही थीं और उनके समर्थकों के बीच ही सवाल उठ रहे थे कि दीपक बाबू आखिर क्यों अपनी फजीहत कराने पर तुले हुए हैं - लेकिन दीपक बाबू कभी भी मैदान छोड़ते हुए नहीं 'दिखे' । दीपक बाबू अपने जिस फार्मूले के भरोसे जीतने का दावा कर रहे थे, उनके उस दावे पर दूसरों को तो छोड़िये - खुद दीपक बाबू को भरोसा नहीं हो पा रहा था । अपने फार्मूले पर दीपक बाबू को यदि सचमुच पूरा भरोसा होता तो ठीक चुनावी प्रक्रिया के बीच में वह प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करवाने के लिए रोटरी इंटरनेशनल की और ऊँची 'अदालत' में तीन हजार डॉलर की मोटी फीस देकर शिकायत दर्ज नहीं करवाते । ठीक चुनावी प्रक्रिया के बीच में उन्होंने शिकायत दर्ज करवाई, इससे जाहिर है कि उन्हें भी अपने 'फार्मूले' के सफल होने को लेकर संदेह था । शिकायत दर्ज करवाने की उनकी कार्रवाई से केवल एक बात साबित होती है और वह यह कि चुनावी नतीजा प्रतिकूल आने के बाद भी वह लड़ाई को जारी रखने की तैयारी कर रहे थे । तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद अपनी लड़ाई को जारी रखने की दीपक बाबू की इस 'जिद' को नोट किया जाना चाहिए और उन्हें मिली चुनावी जीत में उनकी इस 'जिद' की भूमिका को समझना/पहचानना चाहिए ।
दीपक बाबू की इस जिद ने दरअसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी प्रक्रिया को खासा लंबा करने का काम किया, जिसने लगता है कि दिवाकर अग्रवाल और उनकी टीम के सदस्यों को थका दिया और जिसके चलते चुनाव के आख़िरी दिनों में होने वाले उलट-फेर को काबू में करने के लिए जरूरी तैयारी करने में वह चूक गए और जिसके नतीजे के रूप में जीती-जिताई समझी जा रही बाजी दिवाकर अग्रवाल अंततः दीपक बाबू से हार गए ।

Wednesday, May 14, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में चेयरपरसन पद के लिए सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी का समर्थन करके मल्टीपल में धाक जमाने की दिशा में बढ़ रहे जितेंद्र चौहान को तटस्थता का दिखावा कर रहे नरेश अग्रवाल ने अपनी मीठी बातों से फुसलाया

नई दिल्ली । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट 'बनने' की तैयारी कर रहे नरेश अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन जितेंद्र चौहान को ठिकाने लगाने के लिए जो रणनीति बनाई है, उसे 'साँप भी मर जाए, और लाठी भी न टूटे' वाले मुहावरे को व्याख्यायित करने के लिए एक प्रभावी उदाहरण के रूप में नोट किया जा सकता है । जितेंद्र चौहान के साथ नरेश अग्रवाल का कोई झगड़ा/लफड़ा नहीं है, लेकिन फिर भी नरेश अग्रवाल ने उन्हें निपटाने की जो बात सोची है वह उनमें दूरदृष्टि होने का परिचायक है । नरेश अग्रवाल दरअसल मल्टीपल में ज्यादा नेता नहीं चाहते हैं; वह जान/समझ रहे हैं कि मल्टीपल में जितने ज्यादा नेता होंगे उतना ही उनकी नाक में दम रहेगा । इसीलिए उन्होंने जितेंद्र चौहान के नेता बनने से पहले ही पर कतर देने की योजना बना डाली है । मजे की बात यह हुई है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के जिस चुनाव के जरिये जितेंद्र चौहान ने मल्टीपल में नेता बनने की तैयारी की थी, मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के उसी चुनाव को नरेश अग्रवाल ने जितेंद्र चौहान के पर कतर देने के मौके के रूप में इस्तेमाल किया है ।
इस प्रसंग में गौर करने वाला तथ्य यह है कि डिस्ट्रिक्ट में जितेंद्र चौहान के सहजीव रतन जैन के साथ यूँ तो तनातनी वाले संबंध ही थे, लेकिन जब मौका आया तब मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद की सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी की डोर जितेंद्र चौहान के हाथ में ही दिखी । जितेंद्र चौहान ने दरअसल समझ लिया था कि उन्हें यदि अपने आप को मल्टीपल में नेता बनाना/साबित करना है तो उन्हें यह दिखाना/जताना होगा कि अगला मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन तो वह बनेगा, जिसे वह चाहेंगे । मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी का झँडा उठाना उनके लिए मजबूरी इसलिए भी बना, क्योंकि एक तो सहजीव रतन जैन उनके ही डिस्ट्रिक्ट के हैँ; और दूसरे, मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए अन्य जो उम्मीदवार थे उनकी उम्मीदवारी के झंडे दूसरे नेताओं ने थाम रखे थे; और तीसरी बात यह कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए जो भी उम्मीदवार थे उनमें सहजीव रतन जैन का पलड़ा भारी दिख रहा था । जितेंद्र चौहान ने मौका ताड़ा और यह समझने में कोई देर नहीं की कि सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी के सहारे वह मल्टीपल में अपनी नेतागिरी का जलवा दिखा देंगे । डिस्ट्रक्ट में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर अपने उम्मीदवार को जितवा पाने में असफल रहने के बाद तो जितेंद्र चौहान ने सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी का झँडा और भी कसकर पकड़ लिया । जितेंद्र चौहान को लगा कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उनकी जो फजीहत हुई है उसकी भरपाई वह मल्टीपल की चुनावी राजनीति में कर लेंगे । यह भरपाई करने के लिए ही जितेंद्र चौहान कुछेक जगह सहजीव रतन जैन के चुनाव अभियान में उनके साथ गए ।
नरेश अग्रवाल ने जितेंद्र चौहान की इस सक्रियता में मल्टीपल की चुनावी राजनीति में एक और नेता के 'पैदा' होने को देखा । नरेश अग्रवाल की दूरदृष्टि ने उन्हें आगाह किया कि जितेंद्र चौहान को उन्होंने यदि यहीं नहीं रोका तो फिर भविष्य में उनके लिए समस्या होगी । नरेश अग्रवाल ने यह भी समझ लिया कि जितेंद्र चौहान को वह मीठे सपने दिखा कर ही सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी के समर्थन से अलग और दूर कर सकते हैं । चूहेदानी में लगे रोटी के टुकड़े की तरफ बढ़ते हुए बेचारे चूहे को यह आभास भी नहीं होता है कि यह जाल उसे पकड़ने के लिए बिछाया गया है । नरेश अग्रवाल ने जितेंद्र चौहान को ज़िम्मेदारी सौंपी कि उन्हें प्रयास करना चाहिए कि मल्टीपल में काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए चुनाव नहीं होना चाहिए, क्योंकि चुनाव से लोगों के बीच मनमुटाव होगा और मल्टीपल की बदनामी होगी । नरेश अग्रवाल ने यह कहकर जितेंद्र चौहान में हवा भरी कि उन्हें विश्वास है कि वह यह 'काम' कर सकते हैं - तो जितेंद्र चौहान तो उड़ने लगे । उन्हें लगा कि नरेश अग्रवाल उन्हें इतनी तवज्जो दे रहे हैं, तो वह तो बिना कुछ किए-धरे ही नेता बन गये । जितेंद्र चौहान यह समझ ही नहीं पाए, या उन्होंने समझने की जरुरत ही नहीं समझी कि नरेश अग्रवाल लोगों में हवा भर कर उन्हें 'उड़ाने' की कला के बड़े ऊँचे कलाकार हैं ।
नरेश अग्रवाल यूँ तो मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के चुनाव में तटस्थ दिखने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन जितेंद्र चौहान को जिस कलाकारी के साथ उन्होंने सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी के समर्थन से अलग किया, वह उनकी पक्षपाती भूमिका का नजारा पेश करता है । कई लोगों का कहना है कि नरेश अग्रवाल यदि सचमुच यह चाहते हैं कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के चुनाव में राजनीति न हो तो जो पट्टी वह जितेंद्र चौहान को पढ़ा रहे हैं, उसे वह विनोद खन्ना और जेपी सिंह को क्यों नहीं पढ़ाते, जिन्होंने मल्टीपल को राजनीति का अखाड़ा बनाया हुआ है । नरेश अग्रवाल ऐसा इसलिए नहीं करेंगे क्योंकि विनोद खन्ना और जेपी सिंह की राजनीति उन्हेंं सूट करती है । जगदीश राय गोयल मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन बनेंगे तो नरेश अग्रवाल को कोई समस्या नहीं होगी, क्योंकि जगदीश राय गोयल तो सिर्फ़ रबड़ स्टैम्प बन कर रहेंगे और इस रबड़ स्टैम्प का इस्तेमाल करने वाले विनोद खन्ना और जेपी सिंह वही करेंगे जो उन्हें सूट करेगा । लेकिन यदि सहजीव रतन जैन मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन बनेंगे तो एक तो वह रबड़ स्टैम्प नहीं बनेंगे और दूसरे मल्टीपल में जितेंद्र चौहान के रुप में एक नेता और 'पैदा' हो जायेगा ।
नरेश अग्रवाल ने जितेंद्र चौहान को जिस तरह से फाँसा है उसमें उनका स्वार्थ तो दिखता है, लेकिन जितेंद्र चौहान उनके जाल में क्या सोच कर फँसे हैं यह उनके नजदीकियों की भी समझ में नहीं आ रहा है । जितेंद्र चौहान के नजदीकियों का ही कहना है कि जितेंद्र चौहान यदि यह सोच कर नरेश अग्रवाल के जाल में फँसे हैं कि ऐसा करके वह नरेश अग्रवाल की गुडबुक में आ जायेंगे, तो वह बड़े भ्रम में हैं । नरेश अग्रवाल की गुडबुक में तो वह आ जायेंगे - लेकिन वहाँ उनका नंबर सौवाँ होगा या पाँच सौवाँ, कौन जानता है; और फिर नरेश अग्रवाल की गुडबुक में दस नंबर के बाद जिनका भी नाम होता है - नरेश अग्रवाल उन्हें सिर्फ इस्तेमाल करते हैं, उनके काम नहीं आते । जितेंद्र चौहान के शुभचिंतकों का कहना है कि जितेंद्र चौहान को समझना चाहिए कि वह यदि नरेश अग्रवाल की गुडबुक के पहले दस नामों में अपना नाम लिखवाना चाहते हैं तो पहले उन्हें अपने आप को साबित करना होगा । मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए होने जा रहा चुनाव उन्हें अपने आप को साबित करने का मौका दे रहा है - चाहें तो वह इस मौके का फायदा उठा सकते हैं । अन्यथा उनके जैसे को - जो डिस्ट्रिक्ट में अपने उम्मीदवार को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव न जितवा सके और मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के 'अपने' उम्मीदवार को बीच में ही छोड़ कर निकल ले - नरेश अग्रवाल ही क्या, कोई भी भला नेता क्यों मानेगा ? जितेंद्र चौहान के साथ हमदर्दी ऱखने वाले लोगों का यही कहना है कि जितेंद्र चौहान को यदि मल्टीपल में अपनी धाक जमानी है और डिस्ट्रिक्ट में झटका खाई अपनी पहचान पर पड़ी धूल को साफ करना है तो उन्हें सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी का झँडा फिर से उठा लेना चाहिए और इस बात को समझना चाहिए कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के चुनाव में जीत के साथ मुकुट भले ही सहजीव रतन जैन के माथे पर सजेगा, लेकिन नेतागिरी उनकी जमेगी ।

Monday, May 12, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में चेयरपरसन पद के चुनाव में सहजीव रतन जैन का समर्थन करने के जरिये डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के नरेश गुप्ता अपने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को पद मिलने की सँभावना खत्म करने का सौदा कर सकते हैं

नई दिल्ली । मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के चुनाव के शुभ-अवसर पर डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता और उनकी नकेल थामे रखने वाले डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर अजय बुद्धराज तथा राकेश त्रेहन बड़े असमंजस में फँस गए हैं । इस शुभ-अवसर ने उनके सामने एक 'बलि' लेने का मौक़ा बनाया है; समस्या उनके सामने लेकिन यह फैसला करने की आ पड़ी है कि वह किसकी 'बलि' लें - अभी इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने गये आरके शाह की, या डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा की ? उल्लेखनीय है कि अभी तक उन्होंने आरके शाह की 'बलि' लेने का फैसला किया हुआ था, और इसके लिए उनका पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना के साथ सौदा हो चुका था । विनोद खन्ना ने जगदीश राय गोयल को मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन चुनवाने का ठेका लिया हुआ है । नरेश गुप्ता का वोट अपनी जेब में लिए घूम रहे अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन ने विनोद खन्ना के साथ सौदा किया - जिसके तहत नरेश गुप्ता के वोट के बदले में विनोद खन्ना ने उन्हें भरोसा दिलाया कि आरके शाह के चुने जाने को लायंस इंटरनेशनल से वह निरस्त करवायेंगे । अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन को विनोद खन्ना के इस भरोसे पर इसलिए भरोसा हुआ क्योंकि वही क्या, सभी जानते हैं कि विनोद खन्ना के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की लाइन में लगने जा रहे नरेश अग्रवाल के साथ बहुत ही खास संबंध हैं । ऐसे में, नरेश अग्रवाल के जरिये लायंस इंटरनेशनल में कोई भी फैसला करवा लेना तो विनोद खन्ना के लिए जरा भी मुश्किल नहीं होगा ।
विनोद खन्ना से मिले इस भरोसे के कारण ही अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन अपने डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यकीन दिला रहे हैं कि लायंस इंटरनेशनल का फैसला आरके शाह के खिलाफ ही आयेगा । आरके शाह से चुनाव में पराजित हुए विक्रम शर्मा को तो विनोद खन्ना से मिले भरोसे पर इतना ज्यादा भरोसा है कि वह बाकायदा ईमेल करके लोगों को आगाह कर रहे हैं कि आरके शाह को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मत मानों क्योंकि लायंस इंटरनेशनल उनके ख़िलाफ ही फैसला देगा ।
मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए होने वाली जिस चुनावी लड़ाई ने आरके शाह की 'बलि' लेने का मौका बनाया है, उसी चुनावी लड़ाई ने लेकिन मामला गड़बड़ा भी दिया है । हुआ यह कि सहजीव रतन जैन को मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन बनाने/बनवाने वाले खेमे के नेताओं ने विजय शिरोहा को वाइस चेयरपरसन या सेक्रेटरी बनाने की बात शुरू की । यह बात सुनकर अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन के तो तोते उड़ गए । अब वह इस कोशिश में जुटे कि उन्हें चाहें कुछ भी करना पड़े, विजय शिरोहा को मल्टीपल काउंसिल में कोई भी पद न मिले । इसके लिए उन्होंने सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं से संपर्क किया और उन्हें नरेश गुप्ता का वोट ऑफर करते हुए उनसे वायदा लेने का प्रयास करना शुरु किया कि विजय शिरोहा को वह मल्टीपल काउंसिल में कोई जगह नहीं देंगे । विनोद खन्ना को जब इसकी भनक लगी तो वह भड़के और अजय बुद्धराज व राकेश त्रेहन से पूछ बैठे कि आरके शाह को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से नहीं हटवाना है क्या ?
अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन के सामने यही समस्या पैदा हो गई है । उनके लिए यह फैसला करना मुश्किल हो रहा है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए नरेश गुप्ता के वोट के बदले में वह क्या पाने का सौदा करें - वह आरके शाह को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटवाने का सौदा करें या विजय शिरोहा को मल्टीपल काउंसिल में कोई पद न मिलने का ?
अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन के नजदीकियों की बात मानें तो उन्हें सहजीव रतन जैन के समर्थकों के साथ सौदेबाजी करना ज्यादा जरूरी लग रहा है । दरअसल उनकी लड़ाई है ही विजय शिरोहा के साथ । आरके शाह को निशाने पर लेकर तो वास्तव में वह विजय शिरोहा को ही 'हराना' चाहते हैं । इसके अलावा, अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन भी जानते/समझते हैं कि आरके शाह का कुछ भी बिगड़ने नहीं जा रहा है; लायंस इंटरनेशनल को प्रत्येक वर्ष कई एक डिस्ट्रिक्ट्स से चुनाव के खिलाफ शिकायतें मिलती हैं और लायंस इंटरनेशनल के लोग भी जानते/समझते हैं कि शिकायत करने वाले लोग नकारात्मक सोच रखने वाले और रोना-धोना मचाने वाले लोग होते हैं जिनकी शिकायतों पर ध्यान न देने में ही लायनिज्म की भलाई है । जहाँ तक विनोद खन्ना की मदद का सवाल है तो अभी तक तो विनोद खन्ना द्धारा मदद होती हुई दिखी नहीं है । जिन नरेश अग्रवाल के भरोसे विनोद खन्ना मदद करने की बात कर रहे हैं वह नरेश अग्रवाल जहाँ मौका मिलता है - आरके शाह को अपनी बगल में बैठाते हैं । आरके शाह को मल्टीपल काउंसिल की मीटिंग में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उचित पहचान और सम्मान मिलने जा रहा है; लायंस इंटरनेशनल की तरफ से होने जा रही स्कूलिंग का निमंत्रण उन्हें मिला है - इस सबसे स्पष्ट है कि लायंस इंटरनेशनल भी और मल्टीपल काउंसिल भी आरके शाह को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मान रहे हैं । अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन अपने नज़दीकियों से कह भी देते हैं कि आरके शाह के चुनाव को निरस्त करवाने का जो शोर उन्होंने मचा/मचवा रक्खा है वह तो बस विक्रम शर्मा को उल्लू बनाने की उनकी योजना का हिस्सा है । उनके लिए तो खुशी की बात यही है कि विक्रम शर्मा उन पर अभी भी भरोसा कर रहे हैं ।
मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने लेकिन विजय शिरोहा को मल्टीपल काउंसिल में लेने को लेकर जो बात चलाई है, उसके चलते विक्रम शर्मा को उल्लू बनाये रखने खातिर चलाये जा रहे नाटक को जारी रखने में अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन को मुश्किल आ पड़ी है । उन्हें लग रहा है कि आरके शाह का तो वह कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे - लेकिन अगर यह नाटक करने के चक्कर में विनोद खन्ना के साथ रहे तो विजय शिरोहा मल्टीपल काउंसिल में जगह ज़रुर पा जायेंगे । उन्हें हकीकत समझ में आ रही है कि वह आरके शाह का तो कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे, लेकिन यदि जोर-शोर से प्रयास करें तो विजय शिरोहा को मल्टीपल काउंसिल में पद मिलने से तो जरूर रोक सकते हैं ।
मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद की चुनावी लड़ाई के संदर्भ में अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन के सामने सचमुच यह फैसला करने की चुनौती पैदा हो गई है कि नरेश गुप्ता के वोट के सहारे वह किसे निशाने पर लें - आरके शाह को या विजय शिरोहा को ।

Sunday, May 11, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के चुनाव में जगदीश राय गोयल की जीत को मुश्किल में फँसा देख कर विनोद खन्ना तरह-तरह के हथकंडे अपना कर सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी को वापस कराने के अभियान में जुटे

नई दिल्ली । मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद की चुनावी लड़ाई में जगदीश राय गोयल के मुकाबले सहजीव रतन जैन का पलड़ा भारी देख कर जगदीश राय गोयल की उम्मीदवारी का 'ठेका' लिए पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना अब ब्लैकमेलिंग पर उतर आये हैं । विनोद खन्ना ने मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं के सामने प्रस्ताव रखा है कि वह यदि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए जगदीश राय गोयल का समर्थन करते हैं, तो उसके बदले में वह मल्टीपल विभाजन के उनके प्रस्ताव में अड़ंगा नहीं डालेंगे । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं के लिए मल्टीपल विभाजन का मुद्दा इस समय सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा है । विनोद खन्ना ने इस बात को समझा/पहचाना और डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं की इस कमजोर नस को दबा दिया है । विनोद खन्ना की इस 'चाल' ने 'काम' तो कुछ किया, लेकिन उनकी (कु)ख्याति ने उनकी चाल को सफल होने का पूरा भरोसा अभी भी नहीं दिया है ।
विनोद खन्ना के नजदीकियों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं को विनोद खन्ना का ऑफर अच्छा तो लगा है, किंतु अॉफर को स्वीकार करने को लेकर उनमें अभी हिचक भी बनी हुई है । उनकी हिचक का कारण विनोद खन्ना खुद हैं । दरअसल डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेता जानते हैं कि विनोद खन्ना एक बहुत ही धूर्त और झूठा किस्म का व्यक्ति है - इसलिए उन्हें डर है कि विनोद खन्ना की बातों में आकर उन्होंने मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए जगदीश राय गोयल का समर्थन यदि कर भी दिया तब भी कोई जरूरी नहीं है कि मल्टीपल विभाजन के मुद्दे को किसी न किसी बहाने से विनोद खन्ना अटका न दे । असल में, मल्टीपल विभाजन के मुद्दे पर विनोद खन्ना का अभी तक जो रवैया रहा है; उससे लोगों के बीच यही संदेश है कि विनोद खन्ना किसी भी तरह से मल्टीपल को विभाजित नहीं होने देना चाहते हैं । इसीलिए डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं के गले यह बात नहीं उतर रही है कि जगदीश राय गोयल को मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन बनवाने के लिए विनोद खन्ना मल्टीपल को विभाजित होता देखने के लिए तैयार हो जायेंगे । इस तर्क के साथ, विनोद खन्ना के अभी तक के 'चरित्र' को याद करते हुए डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं को लग रहा है कि उक्त अॉफर की आड़ में विनोद खन्ना उनके साथ कोई खेल खेल रहे हैं - और इसी कारण से विनोद खन्ना के अॉफर को आकर्षक मानने और उसे स्वीकार कर लेने के प्रति झुकाव दिखाने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं ने उक्त ऑफर को अभी स्वीकार करने की घोषणा नहीं की है ।
डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं ने विनोद खन्ना के ऑफर को स्वीकार करने की घोषणा अभी इसलिए भी नहीं की है - क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके समर्थन न करने के बाद भी सहजीव रतन जैन को यदि पर्याप्त समर्थन मिल गया और वह मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन बन गए और उसके बाद विनोद खन्ना ने भी उन्हें धोखा दे दिया - तो वह तो कहीं के भी नहीं रहेंगे । गौर करने की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं को विनोद खन्ना द्धारा दिए गए ऑफर की बात सामने आने के बाद सहजीव रतन जैन ने साफ घोषणा कर दी है कि वह किसी भी हालत में मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को नहीं छोड़ेंगे । सहजीव रतन जैन को यह घोषणा दरअसल इसलिए करनी पड़ी, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं को ऑफर देने के बाद; अपने ऑफर के प्रति डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं को फिसलता देख कर विनोद खन्ना ने दावा करना शुरु कर दिया था कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं के समर्थन से पीछे हटने के बाद सहजीव रतन जैन के सामने अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचेगा । सहजीव रतन जैन ने लेकिन अपनी उम्मीदवारी से पीछे न हटने का फैसला सुना कर विनोद खन्ना के दावे की हवा निकाल दी है ।
मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के इस बार के चुनावी परिदृश्य पर निगाह लगाए लोगों का मानना और कहना है कि विनोद खन्ना को चुनाव होने की स्थिति में जगदीश राय गोयल को जितवाना मुश्किल दिख रहा है - इसलिए वह किसी भी तरह से चुनाव की स्थिति को टालना चाहते हैं और इसके लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना कर वह सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी को वापस कराना चाहते हैं । इसीलिए सहजीव रतन जैन के समर्थकों को तरह-तरह के ऑफर देकर वह ऐसे हालात बना देने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे कि सहजीव रतन जैन खुद ही अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट जाएँ और वाइस चेयरपरसन या सेक्रेटरी बनने को राजी हो जाएँ । सहजीव रतन जैन के अभी तक के तेवरों से और डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के नेताओं के विनोद खन्ना पर भरोसा न करने के संकेतों से तो यही लग रहा है कि विनोद खन्ना की दाल गल नहीं रही है । विनोद खन्ना लेकिन इससे अभी निराश नहीं हुए हैं और अपनी चालबाजियों को आजमाना उन्होंने जारी रखा हुआ है - इसलिए आगे कुछ दिलचस्प दृश्य देखने को अभी मिलते रहेंगे ।

Friday, May 9, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में विनोद बंसल और संजय खन्ना को नीचा दिखाने की कोशिश उल्टी पड़ने के कारण रमेश अग्रवाल की जैसी जो फजीहत हुई, उससे यह साफ हो गया है कि रमेश अग्रवाल अपने जैसी बदनामी जेके गौड़ की भी करवायेंगे

नई दिल्ली । सुशील गुप्ता के जिस सुझाव को मुद्दा बना कर रमेश अग्रवाल ने विनोद बंसल और संजय खन्ना को अपमानित करने की कोशिश की, वह रमेश अग्रवाल को उल्टी पड़ी और फिर कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने रमेश अग्रवाल को बुरी तरह 'धोया' । रमेश अग्रवाल लेकिन चूँकि बेशर्म किस्म का व्यक्ति है, इसलिए यह उम्मीद तो किसी को नहीं रही कि जो हुआ उससे रमेश अग्रवाल ने कोई सबक लिया होगा - किंतु हर किसी ने इस बात पर बड़ी निराशा-सी व्यक्त की कि रमेश अग्रवाल को ऐसा शौक आखिर क्यों है कि अपनी 'पिटाई' के मौके वह खुद बनाता रहता है और अपनी खिल्ली उड़वाता है ।
मामला पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के एक सुझाव का था । सुशील गुप्ता ने एक पत्र लिख कर काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों के बीच सुझाव रखा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (इलेक्ट) को अपने कार्यक्रमों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों और उनके क्लब्स से स्पॉन्सर नहीं कराना चाहिए । काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में रमेश अग्रवाल को पता नहीं क्यों ऐसा लगा कि सुशील गुप्ता के इस सुझाव की आड़ में वह विनोद बंसल और संजय खन्ना को अपमानित कर सकते हैं । रमेश अग्रवाल को किसी भी विषय पर चूँकि बेसिरपैर की बकवास करने की आदत है, इसलिए वह सुशील गुप्ता के सुझाव का समर्थन करते हुए तरह-तरह की बकवास करने लगे और किसी न किसी तरह से विनोद बंसल और संजय खन्ना को लपेटने की कोशिश करने लगे । उन्हें रोकने की कोशिश करते हुए किसी ने उनसे कहा भी कि सुशील गुप्ता का जो सुझाव है, उसका यहाँ कोई भी विरोध नहीं कर रहा है इसलिए इस बारे में इतना हल्ला करने की क्या जरूरत है । किसी ने रमेश अग्रवाल को याद दिलाया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्होंने भी तो उम्मीदवारों से पैसे लिए थे, तो अब इस मामले में इतना क्यों बोल रहे हो ? यह बात मुहावरे की भाषा में कहें तो रमेश अग्रवाल के मुँह पर सीधा तमाचा था - लेकिन जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि वह इतना बेशर्म किस्म का व्यक्ति है कि उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और उसने उक्त मुद्दे पर अपनी बकवास करना जारी रखा । दूसरे लोगों ने इससे यही निष्कर्ष निकाला कि रमेश अग्रवाल इस तरह से दरअसल सुशील गुप्ता को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार और उनके क्लब्स डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों को स्पॉन्सर करते ही रहे हैं । और ऐसा सिर्फ डिस्ट्रिक्ट 3010 में ही नहीं, बल्कि सभी डिस्ट्रिक्ट्स में होता है । और ऐसा सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार ही नहीं करते हैं, बल्कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार भी करते हैं । माना/समझा जाता है कि महत्वाकांक्षी और आगे बढ़ने की इच्छा रखने वाले रोटेरियन ही कार्यक्रमों को स्पॉन्सर करने के लिये आगे आयेंगे - और इसीलिए इस 'व्यवस्था' को स्वीकार कर लिया गया है । रोटरी में जो व्यवस्था सर्वमान्य रूप से स्वीकार है - और पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में, तथा फिर इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में जो सुशील गुप्ता खुद इस व्यवस्था को अपनाये रहे हैं वही अचानक से इस व्यवस्था के खिलाफ क्यों हो गये; यह किसी के लिए भी समझना मुश्किल रहा । अधिकतर लोगों का यही मानना/कहना रहा कि सुशील गुप्ता को समय-समय पर अपनी अहमियत दिखाने का जो शौक है, उसे पूरा करने के लिए वह इसी तरह की 'हरक़तें' करते रहते हैं । दरअसल इसीलिए किसी ने भी सुशील गुप्ता के इस सुझाव को कोई तवज्जो ही नहीं दी - न विरोध किया और न समर्थन किया । रमेश अग्रवाल ने मौका ताड़ा और सुशील गुप्ता को खुश करने के लिए भारी नाटक कर डाला । इस नाटक के जरिये रमेश अग्रवाल ने एक तरफ़ सुशील गुप्ता को खुश करने की कोशिश की तो दूसरी तरफ विनोद बंसल और संजय खन्ना को नीचा दिखाने की कोशिश की ।
इस कोशिश में लेकिन रमेश अग्रवाल ने अपना तमाशा बनवा लिया । उनका तमाशा दो कारणों से बना - एक कारण तो यह रहा कि उन्होंने मामले को 'आउट ऑफ प्रोपोर्शन' प्रोजेक्ट किया; और दूसरा कारण उनके खिलाफ हुई वह छींटाकशी बनी जिसमें कहा/सुना गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अभी पिछले रोटरी वर्ष में खुद उन्होंने क्या किया था ? काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में कहा/सुना गया कि उम्मीदवार और उनके क्लब्स से 'काम' तो कई गवर्नर्स ने लिए हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश अग्रवाल ने तो उम्मीदवारों से सिर्फ़ काम नहीं निकाले बल्कि उन्हें जमकर लूटा । पहले समर्थन का सब्जबाग दिखा कर आलोक गुप्ता की 'जेब काटी' और फिर जब आलोक गुप्ता का कुछ बनता हुआ नहीं दिखा तो गिरगिट की तरह रंग बदल कर जेके गौड़ का समर्थन करना शुरु किया और जेके गौड़ को बुरी तरह लूटा । रमेश अग्रवाल अकेले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं जिन्होंने बाकायदा घोषणा की थी कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों को पेट्स में नहीं ले जायेंगे - लेकिन फिर अपने ही फैसले को पलटते हुए वह उम्मीदवारों को पेट्स में ले गये, और सिर्फ इसलिए ले गए ताकि उनसे पैसे बसूल कर सकें । सरोज जोशी और ललित खन्ना से चूँकि वह पेट्स में पैसे नहीं ले सके इसलिए उनकी उम्मीदवारी को ही निरस्त करने की नीचता तक करने पर रमेश अग्रवाल उतरे । वह तो जब तत्कालीन इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास ने रमेश अग्रवाल के 'कान उमेठे' तब रमेश अग्रवाल ने सरोज जोशी और ललित खन्ना की उम्मीदवारी को स्वीकार किया । इस प्रसंग के कारण पूरे रोटरी समाज में रमेश अग्रवाल की भारी थू-थू हुई और हर किसी का कहना रहा कि ऐसा लालची गवर्नर तो उन्होंने कहीं नहीं देखा । यह सच है कि पेट्स में गए उम्मीदवारों से पैसे लेने का काम कुछेक दूसरे गवर्नर्स ने भी किया है, लेकिन रमेश अग्रवाल ने इस काम को जिस शेखचिल्लीपने और बेशर्मी के साथ किया - वैसा उदाहरण रोटरी में दूसरा नहीं मिलेगा । काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में यही बात हुई कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जिस रमेश अग्रवाल ने अभी मात्र एक वर्ष पहले शर्मनाक कारस्तानियाँ की थीं और जिनके कारण भारी बदनामी पाई है - वह रमेश अग्रवाल अब इस मुद्दे पर किस मुँह से बोल रहा है ?
काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में रमेश अग्रवाल की जो फजीहत हुई उसने जेके गौड़ के लिए अजीब-सा संकट खड़ा कर दिया है । अपनी हरकतों के कारण रमेश अग्रवाल को जिस तरह काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों के बीच ही नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है - जिसकी बानगी अभी हाल ही में सीओएल के चुनाव में उनकी दोहरी हार के रूप में देखी गई; जिसमें पहले तो वह काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के बीच हुए चुनाव में हारे, और फ़िर लोगों के बीच हुए चुनाव में लोगों ने भी उन्हें दुत्कार दिया । जेके गौड़ को जैसे आभास है कि वह अपना गवर्नर-काल जिस रमेश अग्रवाल के भरोसे चलाना चाहते हैं उस रमेश अग्रवाल के कारण उन्हें सिर्फ़ बदनामी ही मिलने का खतरा है । सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल का समर्थन करके जेके गौड़ ने इसे भुगत भी लिया है । रमेश अग्रवाल को लेकर जेके गौड़ दूसरों के सामने रोना तो रोते हैं, लेकिन रमेश अग्रवाल का साथ छोड़ते हुए भी नहीं दिखते हैं । जिन लोगों के सामने जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल का रोना रोया है, उनके लिए हैरानी की बात यही है कि जेके गौड़ को जब रमेश अग्रवाल का साथ नहीं छोड़ना है तब फ़िर वह उनका रोना रोते ही क्यों हैं ? कई लोगों ने इस सवाल पर खासी माथापच्ची की है कि जेके गौड़ का रमेश अग्रवाल के साथ आखिर ऐसा कौन सा 'रिश्ता' है जिसने उन्हें मजबूर किया हुआ है कि वह बदनाम होने, अलग-थलग पड़ने और रोना रोने के बावजूद रमेश अग्रवाल से अलग नहीं हो सकते हैं । काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में रमेश अग्रवाल की जैसी जो फजीहत हुई उसने जेके गौड़ के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है - लोगों ने मान लिया है कि रमेश अग्रवाल ने रोटरी में अपने लिए जिस तरह की बदनामी कमाई है, उसी तरह की बदनामी वह जेके गौड़ को भी दिलवायेंगे ।

Sunday, May 4, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में शिव कुमार चौधरी के किस्से से सबक लेते हुए सुरेंद्र गर्ग और अजय सिंघल ने मुकेश गोयल का अभिनंदन करने का कार्यक्रम बना डाला है

गाजियाबाद । मुकेश गोयल की तो निकल पड़ी है । अभी कुछ समय पहले तक डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अलग-थलग कर दिए - और मान लिए गए - मुकेश गोयल के दिन ऐसे फिरे हैं कि लायंस क्लब गाजियाबाद के पूर्व अध्यक्ष अजय सिंघल अपने क्लब के एक अन्य प्रमुख सदस्य सुरेंद्र गर्ग के साथ मिलकर मुकेश गोयल का अभिनंदन समारोह आयोजित कर रहे हैं । लायंस क्लब गाजियाबाद के दो प्रमुख सदस्यों का मुकेश गोयल के लिए अभिनंदन समारोह आयोजित करना एक बड़ी राजनीतिक घटना इस कारण से है - क्योंकि इस क्लब में आरएन गुटगुटिया और मलकीत सिंह जस्सर नाम के जो दो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, उनका मुकेश गोयल के साथ खुले विरोध का रिश्ता कोई छिपी हुई बात नहीं है; और मुकेश गोयल के लिए हो रहे अभिनंदन समारोह के निमंत्रण पत्र में पचास लोगों के नाम छपे हैं, लेकिन अभिनंदन समारोह आयोजित करने वाले क्लब के दो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के नाम के लिए उसमें जगह नहीं बन सकी । मुकेश गोयल के अभिनंदन समारोह में क्लब के दो प्रमुख लोगों के साथ किया जाने वाला यह सौतेलापन इसलिए भी उल्लेखनीय है - क्योंकि मुकेश गोयल के इस अभिनंदन समारोह को अगले लायन वर्ष मैं सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अजय सिंघल की उम्मीदवारी के लॉन्चिंग पैड के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
यहाँ यह याद करना भी प्रासंगिक होगा कि लायंस क्लब गाजियाबाद के दो पूर्व गवर्नर्स का ही मुकेश गोयल के साथ बैर नहीं हैँ; खुद लायंस क्लब गाजियाबाद के भी मुकेश गोयल के साथ खुले विरोध के संबंध रहे हैं । लायंस क्लब गाजियाबाद में एक से अधिक बार बोर्ड मीटिंग में बाकायदे प्रस्ताव पास हुए हैं कि मुकेश गोयल को क्लब के किसी कार्यक्रम में घुसने नहीं देना है । क्लब में मुकेश गोयल के खिलाफ विरोध का झंडा कई बार सुरेंद्र गर्ग के हाथों में ही रहा है । लेकिन समय ने पलटा खाया है; राजनीति में वैसे भी दोस्तियाँ और दुश्मनियाँ अपने अपने स्वार्थों के हिसाब से अदलती/बदलती रहती हैं । इसलिए यह देख कर किसी को भी आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि पीछे कई मौकों पर मुकेश गोयल के विरोध का झँडा उठाते रहे सुरेंद्र गर्ग अब माला लिए मुकेश गोयल का अभिनंदन करने को प्रस्तुत नजर आ रहे हैं ।
यह देख कर आश्चर्य भले ही न हो, लेकिन यह कहना तो बनता ही है - जैसा कि इस रिपोर्ट के शुरु में कहा गया है - कि मुकेश गोयल की तो निकल पड़ी है ।
यहाँ इस तथ्य को याद करना पूरे प्रसंग को समझने में मदद ही करेगा कि लायंस क्लब गाजियाबाद में जो दो पूर्व गवर्नर हैं, वह अभी भले ही मुकेश गोयल के खिलाफ हों लेकिन जब उम्मीदवार थे तब मुकेश गोयल की शरण में ही थे ।
अभी, इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने गये शिव कुमार चौधरी का मामला भी दिलचस्प है । शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी पहली बार प्रकट ही इस उद्घोषणा के साथ हुई थी कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट में मुकेश गोयल की राजनीति खत्म करनी है । अपना पहला चुनाव सुनील निगम से बुरी तरह हारने के बाद भी शिव कुमार चौधरी के मुकेश गोयल विरोधी तेवरों में कोई कमी नहीं थी । करीब छह महीने तक वह मुकेश गोयल को गालियाँ देते रहे और दावा करते रहे कि मुकेश गोयल की मदद के बिना ही वह जीत के दिखायेंगे और मुकेश गोयल की राजनीति को हमेशा हमेशा के लिए खत्म करेंगे । लेकिन फिर उनके दिमाग की बत्ती जली और उसके जलने से जो रोशनी हुई उससे उन्हेँ समझ में आ गया कि इस तरह की डीगों से कुछ नहीं होगा और मुकेश गोयल की शरण में जाये बिना उनका काम नहीं बनेगा । सो शिव कुमार चौधरी ने फटाक से गुलाटी खाई और मुकेश गोयल को गालियाँ देना छोड़ उनकी शरण में जा पहुँचे । कई लोगों ने कहा भी कि यह तो दोगलापन दिखाना होगा; थूक के चाटने जैसी बात होगी - अभी तक मुकेश गोयल को गाली दे रहे थे और अब उनकी जयजयकार करोगे । शिव कुमार चौधरी ने लेकिन इस तरह की बातें करने वाले लोगों को यह कह कर चुप कर दिया कि इसमें क्या है, अपना थूका हुआ ही तो चाटना है, उसमें क्या दिक्कत है, उसमें कैसी शर्म ? चुनावी नतीजे ने साबित किया कि शिव कुमार चौधरी ने दिमाग की बत्ती जलने के बाद मुकेश गोयल को लेकर जो फैसला किया, वह सही था ।
शिव कुमार चौधरी का यह जो किस्सा रहा, उससे सबक लेने में सुरेंद्र गर्ग और अजय सिंघल ने कोई देर नहीं की । जिस 'गलती' के कारण शिव कुमार चौधरी और उनके सलाहकारों को पहला चुनाव बुरी तरह से हारना पड़ा था, उस गलती का लोगों के बीच कोई आभास भी न पैदा हो - इसका ख्याल रखते हुए ही सुरेंद्र गर्ग और अजय सिंघल ने मुकेश गोयल का अभिनंदन करने का कार्यक्रम बना डाला । इन्होंने, लगता है कि अपनी पिछली गलतियों से भी सबक सीखा है । सुरेंद्र गर्ग ने क्लब में अध्यक्ष बनने की 'लाइन' को तोड़ कर अजय सिंघल को अध्यक्ष बनाने की जो कोशिश की थी, उसमें उन्हें एक से अधिक बार मात खानी पड़ी थी । अजय सिंघल अंततः तब ही क्लब के अध्यक्ष बन सके थे, जब वह 'लाइन' में आये थे । उस अनुभव से उन दोनों को ही 'तरीके' से काम करने की नसीहत निश्चित ही मिली होगी । मुकेश गोयल का अभिनंदन समारोह आयोजित करके अजय सिंघल और सुरेंद्र गर्ग ने जता/दिखा दिया है कि 'तरीके' से काम करना उन्होंने सीख़ लिया है ।

Saturday, May 3, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में छह मई को होने जा रही काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल बेनामी अपमानपूर्ण ईमेल भेजने वाले हरकती का नाम सचमुच में सामने लायेंगे क्या ?

नई दिल्ली । विनोद बंसल छह मई को होने जा रही काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में रोटरी, डिस्ट्रिक्ट और उनके खुद के साथ किए गए 'अपराध' के अपराधी का नाम उजागर सचमुच में करेंगे क्या ? विनोद बंसल के नजदीकियों ने बताया है कि छह मई की काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में विनोद बंसल ऐसा कुछ विस्फोटक काम करेंगे, जैसा इस डिस्ट्रिक्ट में पहले कभी नहीं हुआ है - और अपने इस काम के जरिये वह डिस्ट्रिक्ट में गंदी राजनीति करने वाले चेहरों को बेनकाब करेंगे । विनोद बंसल के कुछेक ज्यादा नजदीक लोगों ने बताया है कि इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए हुए चुनाव से पहले विनोद बंसल और उनकी पत्नी संगीता बंसल को बदनाम करने वाली जो बेनामी ईमेल निकली थी, विनोद बंसल ने उसे निकालने वाले का नाम पता कर लिया है - और इसी नाम का खुलासा वह छह मई की काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में करेंगे । विनोद बंसल के इन्हीं नजदीकियों का दावा है कि विनोद बंसल ने उक्त हरकत करने वाले नेता को यह बता भी दिया है, और उक्त हरकती ने अपना अपराध स्वीकार भी कर लिया है; उक्त हरकती ने अपने किये-धरे के लिए विनोद बंसल से माफी भी माँग ली है और उनसे वायदा किया है कि आगे कभी वह इस तरह की हरकत नहीं करेगा । विनोद बंसल के नजदीकियों का कहना है कि विनोद बंसल ने पहले उसे माफ कर देने और उसका नाम सार्वजनिक न करने का फैसला लिया था, और इसीलिए करीब दो महीने पहले पता चल गये उक्त हरकती के नाम को उन्होंने दबा लिया था; लेकिन अब उन्होंने विचार बनाया है कि इस तरह की हरकत करने वाले का नाम सभी के सामने तो आना ही चाहिए, ताकि उसकी और उसके दूसरे संगी-साथियों की हिम्मत आगे ऐसा कुछ करने की न हो ।
विनोद बंसल के नजदीकियों की मानें तो छह मई को होने जा रही काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में विनोद बंसल उस हरकती का नाम जाँच के पूरे तथ्यों के साथ सामने रखेंगे और इस तरह डिस्ट्रिक्ट में पहली बार एक हरकती के चेहरे से मुखौटा हटेगा ।
विनोद बंसल को 'जानने' का दावा करने वाले दूसरे लोगों को लेकिन लगता है कि विनोद बंसल ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जैसा कुछ करने का दावा उनके नजदीकी कर रहे हैं । उनका तर्क है कि विनोद बंसल को यदि सचमुच ऐसा कुछ करना होता, तो वह अब तक कर चुके होते - दो महीने से जाँच रिपोर्ट को दबाये बैठे नहीं होते और काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग का इंतजार नहीं कर रहे होते । कई लोगों का कहना है कि 'देख लूँगा' 'देख लूँगा' तो विनोद बंसल उस दिन से कर रहे हैं जिस दिन वह बेनामी ईमेल सामने आई थी; लेकिन जब 'देख लेने' का मौका आया तो विनोद बंसल चुप लगा गये हैं - लगता है कि वह इतने मात्र से ही संतुष्ट हो गए हैं कि उक्त हरकत करने वाले ने उनसे तो माफी माँग ही ली है । कुछेक लोगों को तो शक यह भी है कि विनोद बंसल को सच में उक्त हरकती का पता चला भी है या वह झूठे ही यह दावा करके अपना रौब बना रहे हैं ? यह शक करने वालों का तर्क है कि उक्त बेनामी ईमेल में विनोद बंसल और उनकी पत्नी संगीता बंसल के लिए जिस तरह की अपमानजनक बातें कहीं गईं थीं, उन्हें देखते/पढ़ते हुए उक्त बेनामी ईमेल के पीछे छिपे चेहरे को विनोद बंसल द्धारा जान लेने के बाद भी छिपाए रखने की बात हजम कर पाना मुश्किल है ।
विनोद बंसल के नजदीकियों के दावे के विपरीत, जिन भी लोगों को लगता है कि विनोद बंसल छह मई की काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में कुछ नहीं करेंगे - उनका एक तर्क यह भी है कि विनोद बंसल जिन कुछेक पूर्व गवर्नर्स की बदतमीजी का लगातार शिकार रहे, उनका कभी भी प्रतिवाद नहीं कर सके - प्रतिवाद करना तो दूर की बात, उनके साथ अपनी दूरी तक नहीं बना/दिखा सके । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में रमेश अग्रवाल, विनय कुमार अग्रवाल और मुकेश अरनेजा ने उन्हें लगातार तरह-तरह से परेशान और अपमानित किया, लेकिन वह कभी भी जबावी कार्रवाई करते हुए नहीं दिखे । जेके गौड़ जैसे व्यक्ति तक ने - जिसे लोग न तीन में मानते हैं न तेरह में - उन्हें बुरी तरह खिजाया । इन लोगों से विनोद बंसल हमेशा 'हारते' हुए से नजर आए - तो इसका कारण कुछ लोगों की निगाह में यह रहा कि विनोद बंसल को जबाव देना नहीं आया, तो अन्य कुछेक की निगाह में यह रहा कि विनोद बंसल भले व्यक्ति हैं और उन्होंने घटिया लोगों से निपटने के लिए घटियापन पर उतरने की जरूरत नहीं समझी ।
लेकिन अब - जैसा कि विनोद बंसल के नजदीकियों का दावा है कि विनोद बंसल के लिए यह बताने/दिखाने का समय आ गया कि उन्हें कमजोर समझने वाले कितनी गलतफहमी में थे । नजदीकियों का कहना है कि विनोद बंसल ने दरअसल टकराव को टालने की गरज से अभी तक भले ही बातों को इग्नोर करने वाला रवैया अपनाया हुआ हो, लेकिन अब चूँकि उनके हाथ ऐसा मौका लगा है जिसमें 'साँप भी मरेगा और उनकी लाठी भी नहीं टूटेगी' - लिहाजा वह यह मौका नहीं गँवायेंगे । नजदीकियों के अलावा भी कुछेक अन्य लोगों को भी विनोद बंसल ने चूँकि छह मई को होने जा रही काउंसिल में कुछ विस्फोटक करने/होने के संकेत दिए हैं, इसलिए विनोद बंसल से नाउम्मीद रहने वाले कुछेक लोगों को भी आशा बँधी हैं कि विनोद बंसल अब की बार शायद कुछ कर ही गुजरेंगे । इसी आशा/उम्मीद के चलते छह मई को होने जा रही काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग को लेकर डिस्ट्रिक्ट में खासी उत्सुकता है । छह मई की काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में एक काम तो हालाँकि यह होना है कि संजय खन्ना को अगले रोटरी वर्ष के अपने गवर्नर-काल के लिए बजट पास करवाना है । इस काम में संजय खन्ना के अलावा और किसी की शायद ही कोई दिलचस्पी हो - सभी की दिलचस्पी तो सिर्फ़ इस बात में है कि अपने खिलाफ प्रसारित की गई बेनामी अपमानपूर्ण ईमेल के पीछे छिपे चेहरे से पर्दा हटाने का काम विनोद बंसल करते हैं - और या उस चेहरे को देखने को उत्सुक लोगों को वह निराश छोड़ जाते हैं ।

Thursday, May 1, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में रोटरी क्लब गाजियाबाद आईडियल के डॉक्टर राजीव गोयल के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि जिन जेके गौड़ के लिए उन्होंने अपने ही क्लब में अपने विरोधी बना लिए हैं, उन जेके गौड़ ने भी पेट्स में उन्हें महत्व दिलवाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया

गाजियाबाद । पेट्स से लौटने के बाद डॉक्टर राजीव गोयल को अपने क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद आईडियल - में हवा अपने खिलाफ बहती हुई-सी महसूस हो रही है । क्लब के लोगों का ही कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के बड़े नेताओँ तथा पदाधिकारियों तक पहुँच के हवाले से डॉक्टर राजीव गोयल का क्लब में जो एक रुतबा था, पेट्स ने उनके उस रुतबे को गहरी चोट पहुँचाई है । क्लब के लोगों को दरअसल यह जान कर गहरा धक्का लगा है कि डॉक्टर राजीव गोयल की पेट्स में कोई भूमिका ही नहीं थी, और वह वहाँ सिर्फ एक स्पाउस के रूप में उपस्थित थे - उनकी पत्नी चूँकि एक क्लब की अध्यक्ष हैं, इसलिए डॉक्टर राजीव गोयल उनके पति के रुप में ही वहाँ देखे गये । उल्लेखनीय है कि डॉक्टर राजीव गोयल पिछले तीन-चार वर्ष से डिस्ट्रिक्ट में काफी सक्रिय हैं और इन वर्षों में प्रायः प्रत्येक गवर्नर की गुडबुक मैं रहे हैं । अपने व्यक्तित्व, अपने व्यवहार और रोटरी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के चलते वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की ही नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के दूसरे प्रमुख लोगों की निगाह में बसे । इसी कारण से वह डिस्ट्रिक्ट में क्लब के 'ब्रांड एम्बेसेडर' बने - और इस वजह से क्लब में उनका रुतबा बना । क्लब के लोगों को हैरानी की बात यह लगी है कि ऐसे मैं अब अचानक से ऐसा क्या हो गया है कि संजय खन्ना ने उन्हें पेट्स में कोई तवज्जो देने लायक तक नहीं समझा ।
डॉक्टर राजीव गोयल के लिये इससे भी ज्यादा झटके की बात यह रही कि पेट्स में संजय शर्मा और देवेंद्र चौहान को बड़ी सक्रिय भूमिका मिली हुई थी - जिनकी डिस्ट्रिक्ट में कोई ज्यादा सक्रियता भी नहीं रही है । संजय शर्मा हालाँकि अध्यक्ष होने के नाते डिस्ट्रिक्ट के कुछेक कार्यक्रमों मैं सक्रिय रहे भी, लेकिन उसके बावजूद रोटरी में उनकी कोई बहुत महत्वाकाँक्षा को नहीं देखा/पहचाना गया । उनके नजदीकियों का ही कहना रहा है कि उन्होंने अध्यक्ष पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह तो बहुत दिलचस्पी और संलग्नता के साथ किया, लेकिन ऐसा कभी आभास नहीं होने दिया कि रोटरी में इसके आगे भी वह कुछ करना चाहते हैं । देवेंद्र चौहान तो इस वर्ष वाइस प्रेसीडेंट ही हैं । इसके बावजूद संजय शर्मा और देवेंद्र चौहान को पेट्स में महत्वपूर्ण भूमिका मिली । क्लब के लोगों में इससे यही संदेश गया है कि डिस्ट्रिक्ट में डॉक्टर राजीव गोयल का कद घटा है और संजय शर्मा को उनकी जगह मिलती दिख रही है । क्लब में और गाजियाबाद में जिन लोगों की डॉक्टर राजीव गोयल के साथ नजदीकी और हमदर्दी है उनका कहना है कि डॉक्टर राजीव गोयल ने जेके गौड़ का साथ देकर अपने क्लब में, अपने शहर के दूसरे क्लब्स के लोगों के बीच और डिस्ट्रिक्ट में अपने आप को बदनाम कर लिया है - और पेट्स में उनके साथ जो हुआ वह इसी बदनामी का नतीजा है ।
जेके गौड़ के कहने में आकर डॉक्टर राजीव गोयल ने पहले तो - दो वर्ष पहले संजय खन्ना और रवि चौधरी के बीच हुए चुनाव में क्लब के तत्कालीन अध्यक्ष अतुल सालवान पर रवि चौधरी का समर्थन करने के लिये दबाव बनाया, लेकिन अतुल सालवान ने जब उनकी बात नहीं मानी तो षड्यंत्र करके उन्हें क्लब से निकलने के लिये मजबूर कर दिया था । अभी, इस वर्ष हुए सीओएल के चुनाव में जेके गौड़ के कहने पर क्लब के वोट रमेश अग्रवाल को दिलवाने के लिए तो डॉक्टर राजीव गोयल ने हद ही कर दी । उन्होंने जो किया उससे क्लब के अध्यक्ष संजय शर्मा की लोगों के बीच भारी बेइज्जती हुई । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ को खुश करने के चक्कर में डॉक्टर राजीव गोयल ने क्लब में सीओएल के लिए रमेश अग्रवाल को वोट देने का फैसला करवा लिया । क्लब में सबकुछ ठीकठाक था - क्लब में डॉक्टर राजीव गोयल का रूतबा था ही; लिहाजा यह फैसला होने मैं कोई दिक्कत नहीं हुई । अध्यक्ष संजय शर्मा भी इस फैसले का पालन करने के लिए तैयार दिख रहे थे । वोट डालने के लिए पहुँचने में कोई अड़चन न आ जाये, इसलिए संजय शर्मा पिछली रात घर नहीं लौटे और दूसरे रोटेरियंस के साथ ही ठहरे । अगले दिन, लेकिन जब वोट डालने का मौका आया तो वहाँ मौजूद हर कोई यह देख कर हैरान रह गया कि रोटरी क्लब गाजियाबाद आईडियल का वोट क्लब के अध्यक्ष संजय शर्मा की बजाये डॉक्टर राजीव गोयल डाल रहे हैं ।
रोटरी के चुनावों में यह हालाँकि होता है - और इस 'होने' को मान्यता भी प्राप्त है - कि अध्यक्ष की बजाये क्लब का कोई दूसरा सदस्य वोट डाले; लेकिन यह तब होता है जब अध्यक्ष किसी कारण से मौके पर उपस्थित न हो पा रहा हो । डॉक्टर राजीव गोयल ने जो किया, उसे देख कर लोगों के हैरान होने का कारण लेकिन यह था कि उनके क्लब के अध्यक्ष संजय शर्मा वहाँ मौके पर मौजूद थे - लेकिन फिर भी वोट देने का काम अध्यक्ष की बजाये डॉक्टर राजीव गोयल कर रहे थे । चर्चा यह सुनी गई कि रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को चूँकि शक हुआ कि संजय शर्मा उन्हें वोट नहीं देंगे, इसलिए उनके कहने पर डॉक्टर राजीव गोयल ने वोट देने का अधिकार संजय शर्मा से छीन कर खुद ले लिया । चर्चा चली तो उसमें यह भी सुना गया कि डॉक्टर राजीव गोयल ने संजय शर्मा को रमेश अग्रवाल के पैसों पर होटल में ठहरवा कर मौज करवा दी और उसके बदले में उनसे वोट का अधिकार ले लिया - यानि संजय शर्मा ने अपना वोट बेचा । इस तरह की बातें सुनकर संजय शर्मा ने स्वाभाविक ही अपने आप को अपमानित महसूस किया । उन्होंने लोगों को बताने की कोशिश भी की कि होटल में ठहरने का बिल उन्होंने खुद दिया है - रमेश अग्रवाल ने नहीं दिया; लेकिन उनकी बात चर्चा के शोर-शराबे में अनसुनी ही रह गई । किसी किसी ने यह जरूर कहा कि संजय शर्मा को वोट जब नहीँ देना था, तो वह होटल में रुके ही क्यों थे ? संजय शर्मा ने समझ लिया कि वह जिस स्थिति में फँसे हैं उसमें उनके हाथ सिर्फ़ बदनामी ही लगनी है ।
संजय शर्मा ने ही नहीं, संजय शर्मा के नजदीकियों तथा क्लब के लोगों ने भी - और दूसरे लोगों ने भी इस स्थिति के लिये डॉक्टर राजीव गोयल को ही ज़िम्मेदार ठहराया । हर किसी का यही कहना रहा कि जेके गौड़ को खुश करने/रखने के चक्कर में डॉक्टर राजीव गोयल को क्लब के लोगों को और पदाधिकारियों को इस तरह अपमानित नहीं करना चाहिए । संजय शर्मा के साथ हुई हरकत के चलते क्लब में भी - और गाजियाबाद में भी - डॉक्टर राजीव गोयल के खिलाफ माहौल बना । समझा जाता है कि इसी स्थिति को भाँप/पहचान कर संजय खन्ना ने डॉक्टर राजीव गोयल की बजाये संजय शर्मा को तवज्जो देना ज्यादा उपयोगी समझा । पेट्स में लोगों ने जो देखा - वह संभवतः इसी समझ का नतीज़ा था । डॉक्टर राजीव गोयल के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि जिन जेके गौड़ के लिए उन्होंने अपने ही क्लब में अपने विरोधी बना लिए; उन जेके गौड़ ने भी उनकी मदद नहीं की, और पेट्स में उन्हें महत्व दिलवाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया । डॉक्टर राजीव गोयल के नज़दीकियों का कहना है कि जेके गौड़ यदि चाहते और प्रयास करते तो डॉक्टर राजीव गोयल पेट्स में यूँ अलग-थलग न पड़ते और सिर्फ़ स्पाउस बनके न रह जाते । तो क्या जेके गौड़ ने भी डॉक्टर राजीव गोयल को इस्तेमाल किया - और छोड़ दिया है ?