Saturday, May 24, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में अरनेजा गिरोह के 'पापों का घड़ा' शरत जैन के सिर फूटने की संभावनाओं के बीच डॉक्टर सुब्रमणियन और दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की त्रिकोणीय लड़ाई जीतने के लिए क्लब्स के बीच अपनी अपनी पैठ बनाने के प्रयास तेज किए

नई दिल्ली । डॉक्टर सुब्रमणियन और उनके समर्थकों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए लोगों के बीच जो संपर्क-अभियान चलाया है, उसमें उन्हें दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में अपने लिए फायदा नजर आने लगा है । उल्लेखनीय है कि अभी तक डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थक इस जुगाड़ में थे कि किसी भी तरह से वह दीपक गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए राजी कर लें; इसके लिए दीपक गुप्ता को संजय खन्ना की टीम  में महत्वपूर्ण पद दिलवाने का ऑफर भी दिया गया - इस सुझाव के साथ कि उस महत्वपूर्ण पद पर काम करते हुए वह लोगों के बीच अपनी पहचान को और व्यापक बनायें तथा उसके बाद फिर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करें । दीपक गुप्ता ने लेकिन इस तरह के सुझाव को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और दावा किया कि अपनी उम्मीदवारी के बाबत उन्हें लोगों से अच्छा रेस्पोंस मिल रहा है, इसलिए उन्हें लगता है कि अबकी बार लिए अच्छा मौका है; और इस बिना पर उन्होंने अपनी उम्मीदवारी को बनाये रखने पर जोर दिया । दीपक गुप्ता के इस फैसले से डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों को झटका तो लगा, लेकिन उन्होंने इसे एक तात्कालिक झटके के रूप में ही लिया और उम्मीद की कि आगे फिर कभी वह दीपक गुप्ता को मनाने का दोबारा प्रयास करेंगे ।
डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों को अब लेकिन यह महसूस हो रहा है कि दीपक गुप्ता ने अच्छा किया कि उनकी सलाह नहीं मानी । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों ने अभी तक जो संपर्क-अभियान चलाया है, उसमें उन्होंने पाया है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी कई जगह शरत जैन की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचा रही है - जिसमें प्रकारांतर से कुल मिलाकर डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी का ही फायदा है । इस 'तथ्य' को जानने/पहचानने के बाद डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों को दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में फायदा ही फायदा दिखने लगा है - लेकिन साथ ही उनमें से कुछ को यह डर भी सताने लगा है कि अगले रोटरी वर्ष में होने वाला चुनाव अगर डॉक्टर सुब्रमणियन और दीपक गुप्ता के बीच 'आ' गया तो क्या होगा ? उल्लेखनीय है कि डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थक अभी तक तो यही समझ रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव डॉक्टर सुब्रमणियन और शरत जैन के बीच होगा; और इसीलिए पहले वह दीपक गुप्ता को अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रहे थे, और अब वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी से खुश हो रहे हैं । लेकिन डॉक्टर सुब्रमणियन के कुछेक समर्थकों को यह डर भी सताने लगा है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी जिस तरह कई जगह शरत जैन की उम्मीदवारी को चोट पहुँचा रही है, उसके नतीजे के रूप में कहीं शरत जैन की उम्मीदवारी वापस ही न हो जाये और या कहीं इतनी कमजोर न पड़ जाये कि फिर उनके मुख्य प्रतिद्धंद्धी दीपक गुप्ता हो जाएँ ? दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की उपस्थिति में शरत जैन की उम्मीदवारी से निपटना डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों को आसान काम नजर आ रहा है; लेकिन दीपक गुप्ता के मुख्य प्रतिद्धंद्धी होने की स्थिति उन्हें अपने लिए मुश्किल लग रही है ।
मजे की बात यह है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को भी यह त्रिकोणीय लड़ाई 'सूट' कर रही है । सूट न कर रही होती तो डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होते ही दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी वापस हो गई होती । डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी प्रस्तुत होते ही दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के 'बड़े' समर्थकों को जिस तरह एक झटके में अपनी तरफ ले गई थी, उसके बाद दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के बने रह पाने को लेकर लोगों के बीच संदेह पैदा हो गया था । लेकिन दो बातों ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के बने रहने का 'मौका' बनाया - एक बात तो यह हुई कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी से 'बड़े' नेताओं ने भले ही हाथ खींच लिया हो, किंतु क्लब्स के स्तर पर उनके लिए समर्थन न सिर्फ बना रहा बल्कि वह बढ़ता हुआ भी दिखा; दीपक गुप्ता को स्वाभाविक रूप से इससे हौंसला मिला । दूसरी बात जेके गौड़ के अनुभव की थी - पिछले रोटरी वर्ष में जब जेके गौड़ उम्मीदवार थे, तब मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को समर्थन दिया हुआ था और डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को बाकी लोगों का समर्थन था; जेके गौड़ के साथ 'कोई' नहीं था । जेके गौड़ ने क्लब्स में अपनी पैठ बना कर स्थितियों को अपने पक्ष में किया । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों ने जेके गौड़ के इसी अनुभव से सबक लेते हुए माना कि महत्व क्लब्स में पैठ बनाने का होता है - और इसी सबक के चलते दीपक गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी को बनाये रखने का फैसला किया । उनके इस फैसले को इस बात से और बल मिला कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर सक्रिय न हो पाने की तमाम आशंकाओं को गलत साबित कर दिया है । दरअसल डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने को अरनेजा गिरोह ने अपनी जीत के रूप में देखा था - उन्हें लगा था कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी आने से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी वापस हो जाएगी; और डॉक्टर सुब्रमणियन एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय नहीं हो पायेंगे; और फिर उनके लिए मैदान जीतने में कोई दिक्कत नहीं होगी ।
अरनेजा गिरोह के लिए मुसीबत की बात यह हुई कि उनके अनुमानानुसार न तो दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी वापस हुई और न डॉक्टर सुब्रमणियन ने पहले जैसी ढीलमढाल दिखाई । सभी को हैरान और चकित करते हुए डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु प्रयास किए और लोगों के बीच अच्छी पैठ बनाई । इसका एक और फायदा डॉक्टर सुब्रमणियन और उनके समर्थकों को यह हुआ कि उन्हें त्रिकोणीय लड़ाई में अपने फायदे के प्वाइंट नजर आये । त्रिकोणीय लड़ाई में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को भी चूँकि फायदा दिख रहा है - तो इसका कारण यह है कि दोनों के समर्थन-आधार का बड़ा हिस्सा कॉमन है और वह अरनेजा गिरोह के खिलाफ अपने विरोध के कारण इनके साथ है । यह कॉमन हिस्सा सचमुच में किसके साथ जायेगा, यह इस पर निर्भर करेगा कि किसका पलड़ा भारी दिखेगा ।
यहाँ इस तथ्य को याद करना प्रासंगिक होगा कि अगले वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में सबसे पहले शरत जैन का नाम आया था और आज जो लोग डॉक्टर सुब्रमणियन और या दीपक गुप्ता के साथ दिख रहे हैं वह उस समय शरत जैन के साथ ही थे; किंतु सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल और अरनेजा गिरोह ने जो कारस्तानी की, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरण उलट-पुलट गए और रमेश अग्रवाल तथा अरनेजा गिरोह से बदला लेने वाले लोगों ने शरत जैन का साथ छोड़ कर डॉक्टर सुब्रमणियन का और या दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया । हाल के समय में देखा गया है कि अरनेजा गिरोह के खुले समर्थन के बावजूद रवि चौधरी को चुनावी हार का सामना करना पड़ा था; आलोक गुप्ता का कुछ बनता न देख, हार का बोझ ढोने से बचने लिए अरनेजा गिरोह उन्हें धोखा देते हुए उन्हें बीच में छोड़ कर जीतते दिख रहे जेके गौड़ के साथ जा मिला था; और अभी हाल ही में सीओएल के लिए अरनेजा गिरोह रमेश अग्रवाल को जितवाने में विफल रहा है । इन उदाहरणों से 'दिख' रहा है कि अरनेजा गिरोह के 'पापों का घड़ा' अबकी बार शरत जैन के सिर पर ही फूटेगा ।
इस स्थिति को डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थक भी और दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक भी अपने अपने अनुकूल पा रहे हैं । मजे की बात यह है कि दोनों ही साथ ही साथ यह भी मना रहे हैं कि शरत जैन की उम्मीदवारी बनी भी रहे, क्योंकि तभी अरनेजा गिरोह अपनी बदतमीजियाँ करेगा, जिसका फायदा यह उठायेंगे । शरत जैन की उम्मीदवारी यदि वापस हुई और या आलोक गुप्ता की तरह शरत जैन को अरनेजा गिरोह ने धोखा दिया; और डॉक्टर सुब्रमणियन व दीपक गुप्ता के बीच सीधे मुकाबले का मौका बना तब फिर दोनों के लिए ही मामला ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो जायेगा ।