Tuesday, January 31, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में क्षितिज शर्मा पर भरोसा न करने के कारण ही, क्षितिज शर्मा के पूरी तरह समर्पण करने के बावजूद सत्ता खेमे के नेता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मुकेश पाठक को भी हवा दे रहे हैं

वाराणसी । डिस्ट्रिक्ट की तीसरी कैबिनेट मीटिंग में क्षितिज शर्मा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल तुलस्यान तथा उनके खेमे के बड़े नेताओं के 'निर्देश' के अनुसार जोश के साथ 'काम' करता देख लोगों को भारी आश्चर्य हुआ । आश्चर्य का कारण दरअसल यह रहा कि क्षितिज शर्मा लगातार यह कहते/बताते रहे हैं कि वह एक उम्मीदवार की सारी 'जिम्मेदारियों' का तो पालन करेंगे किंतु सत्ता खेमे के नेताओं के इशारे पर नहीं चलेंगे । लेकिन तीसरी कैबिनेट मीटिंग में क्षितिज शर्मा का रवैया पूरी तरह सत्ता खेमे के नेताओं के इशारों पर चलने जैसा था । क्षितिज शर्मा के नजदीकियों से ही मिली एक जानकारी का हवाला देते हुए कुछेक लोगों ने मीटिंग में क्षितिज शर्मा का मजाक भी बनाया । उनके नजदीकियों ने ही लोगों को बताया था कि क्षितिज शर्मा अपने स्टॉल पर शराब का कोई और ब्रांड रखवा रहे थे, लेकिन सत्ता खेमे के नेताओं ने उन पर दबाव बनाया कि उन्हें मीटिंग में लोगों को और अच्छे ब्रांड की शराब पिलवानी चाहिए । सत्ता खेमे के नेताओं की और अच्छे ब्रांड की शराब की माँग से क्षितिज शर्मा खुश तो नहीं थे, किंतु अंततः माँग मान लेने में ही उन्होंने अपनी भलाई देखी/पहचानी । क्षितिज शर्मा के कुछेक नजदीकी यह देख कर तो बुरी तरह चौंके कि सत्ता खेमे के जिन नेताओं की पहले वह बहुत बुराई किया करते थे, अब अचानक से उनकी बड़ी तारीफ करने लगे हैं । क्षितिज शर्मा के इस बदले बदले रवैये से उनके नजदीकियों ने तथा नजदीकियों से मिलने/सुनने वाली बातों से डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों ने भी समझ लिया है कि क्षितिज शर्मा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए सत्ता खेमे के बदनाम व आलोच्य नेताओं के सामने पूरी तरह समर्पण कर दिया है ।
मजे की बात लेकिन यह दिख रही है कि क्षितिज शर्मा के पूरी तरह समर्पण करने के बावजूद सत्ता खेमे के नेताओं के बीच क्षितिज शर्मा की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन को लेकर सहमति बनती नजर नहीं आ रही है । इसीलिए सत्ता खेमे के नेताओं की तरफ से मुकेश पाठक की उम्मीदवारी को भी हवा दी जा रही है । तीसरी कैबिनेट मीटिंग में मुकेश पाठक द्धारा स्टॉल न लगाए जाने को लेकर सत्ता खेमे के ही एक नेता ने इन पँक्तियों के लेखक से कहा/बताया कि उन्होंने ही मुकेश पाठक को समझाया था कि इस तरह की बातों में नाहक ही पैसा क्यों बर्बाद करते हो, तुम अच्छे से जानते/समझते हो कि शराब पिला कर और गिफ्ट बाँटकर ही चुनाव नहीं जीते जाते हैं । सत्ता खेमे के नेताओं की राजनीति से परिचित कई लोगों को लगता है कि सत्ता खेमे के नेता क्षितिज शर्मा पर दबाव बनाए रखने के उद्देश्य से मुकेश पाठक की उम्मीदवारी को हवा दे रहे हैं; मुकेश पाठक के नजदीकियों के अनुसार, उन्होंने मुकेश पाठक को समझाया है कि उक्त हवा 'लेते' रहो - हो सकता है कि आगे चल कर क्षितिज शर्मा की सत्ता खेमे के नेताओं से खटक जाए और तब मुकेश पाठक का काम बन जाए । डिस्ट्रिक्ट में यह कहने वाले लोगों की भी कमी तो नहीं ही है कि लगता है कि क्षितिज शर्मा ने मान लिया है कि लोगों को महँगी शराब पिला कर और गिफ्ट बाँटकर वह (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन जायेंगे । हालाँकि पिछले वर्षों में, कई बार ऐसा हुआ है जबकि यह हथकंडा अपनाने वालों की दाल नहीं गली है । गौर करने वाली बात यह भी है कि कई बार सत्ता खेमे के नेताओं ने ही लोगों को शराब और गिफ्ट तो किसी और उम्मीदवार से दिलवा दिए, और चुनाव लेकिन दूसरे उम्मीदवार को जितवा दिया । इन संदर्भों को ध्यान में रखते हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मुकेश पाठक की उम्मीदवारी को हवा देने की सत्ता खेमे के नेताओं की कार्रवाई ने क्षितिज शर्मा को डराया हुआ भी है ।
क्षितिज शर्मा और उनके नजदीकियों का यह डर इसलिए भी है क्योंकि सत्ता खेमे के नेता पहले प्रकाश टंडन को उम्मीदवार बनने के लिए तैयार कर रहे थे । पारिवारिक व्यस्तता के कारण जब उनके लिए उम्मीदवार बनना संभव नहीं हुआ, तब वह मुकेश पाठक की उम्मीदवारी के पीछे लगे । क्षितिज शर्मा और उनके नजदीकियों के लिए चिंता और परेशानी की बात यह है कि अब जब वह सत्ता खेमे के नेताओं के इशारे पर चलने और 'काम' करने के लिए तैयार हो गए हैं, तब फिर सत्ता खेमे के नेता मुकेश पाठक की उम्मीदवारी को हवा देने में दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं ? सत्ता खेमे के नेताओं का कहना है कि वह क्षितिज शर्मा पर भरोसा नहीं कर सकते हैं; उन्हें लगता है कि क्षितिज शर्मा को जिस दिन अपनी 'जीत' का भरोसा हो गया, उसी दिन वह उनके हाथ से निकल जायेंगे और फिर उनकी नहीं सुनेंगे/मानेंगे । सत्ता खेमे के कुछेक नेता कुँवर बीएम सिंह के चुनाव में निभाई गई भूमिका के कारण भी क्षितिज शर्मा से खफा हैं । उक्त चुनाव में क्षितिज शर्मा ने प्रभात चतुर्वेदी का समर्थन किया था । कुँवर बीएम सिंह के साथी/समर्थक उस अनुभव को याद करते हुए कहते/बताते हैं कि क्षितिज शर्मा आसानी से तो उनका समर्थन प्राप्त नहीं कर पायेंगे । इस तरह की बातों से एक तरफ जहाँ सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मुकेश पाठक की उम्मीदवारी को बल मिल रहा है, तो दूसरी तरफ सत्ता खेमे का समर्थन जुटाने में क्षितिज शर्मा की मुश्किलें बढ़ रही हैं ।
क्षितिज शर्मा के लिए परेशानी और चुनौती की बात यह भी है कि सत्ता खेमे के नेताओं के इशारे पर चलने के जरिए उनके साथ दोस्ती गाँठने की उनकी कोशिशें उन्हें 'अपने' लोगों से दूर करने का काम कर रही हैं । क्षितिज शर्मा अपने लोगों के बीच नैतिकता और आदर्श की बड़ी ऊँची ऊँची बातें करते रहे हैं, और लोगों को बताते रहे हैं कि एक उम्मीदवार से लोगों को जो जो 'अपेक्षाएँ' होती हैं, उन्हें पूरा करने से तो वह बिलकुल भी पीछे नहीं हटेंगे - लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के बदनाम नेताओं की 'नाजायज' माँगों के आगे वह बिलकुल भी नहीं झुकेंगे । अपनी इस तरह की बातों के जरिये क्षितिज शर्मा ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी अच्छी साख और पहचान बनाई है - लेकिन डिस्ट्रिक्ट की तीसरी कैबिनेट मीटिंग में लोगों ने उन्हें जब डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के उन्हीं बदनाम नेताओं के आगे-पीछे मँडराते देखा और शराब के ब्रांड पर उन्हीं की सलाह को मानते हुए 'सुना' तो उनकी साख और पहचान सवालों के घेरे में आती हुई नजर आई । क्षितिज शर्मा के लिए मुसीबत और चुनौती की बात यही है कि दो दिशाओं से आती कॉल्स को सुनने के लिए दो कान तो उनके पास हैं - लेकिन वह मानें किसकी, जिसमें कि वह अपनी साख और पहचान भी बचा सकें और अपनी जीत को भी सुनिश्चित कर सकें ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रमेश अग्रवाल के प्रति लोगों की नाराजगी गवर्नर नॉमिनी चुनाव में अशोक जैन पर भारी पड़ी, और दीपक गुप्ता की जीत का प्रमुख कारण बनी

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर दीपक गुप्ता की जोरदार जीत पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल के लिए भारी मुसीबत बन गई है । हर कोई दीपक गुप्ता के सामने हुई अशोक जैन की करारी हार के लिए रमेश अग्रवाल को ही जिम्मेदार ठहरा रहा है । मजे की बात यह है कि जीतने वाले पक्ष के साथ-साथ हारने वाले पक्ष के लोगों का भी एक स्वर से कहना है कि अशोक जैन को रमेश अग्रवाल की कारगुजारियों की सजा मिली है । दीपक गुप्ता लगातार दो बार हारने के बाद तीसरी बार उम्मीदवार बने थे, और इस नाते से लोगों के बीच उनके प्रति सहानुभूति थी - इस सहानुभूति को रमेश अग्रवाल के प्रति लोगों की नाराजगी ने और पुख्ता किया । अशोक जैन ने अपनी सक्रियता से लोगों के बीच पैठ तो अच्छी बनाई और दीपक गुप्ता तथा उनके समर्थकों की तरफ से बेवकूफियाँ भी खूब हुईं, लेकिन रमेश अग्रवाल के प्रति लोगों की नाराजगी का पलड़ा सब पर भारी रहा - और अंततः यही नाराजगी अशोक जैन पर भारी पड़ी । अशोक जैन की खासी बुरी पराजय के लिए जिस तरह से हर कोई रमेश अग्रवाल को जिम्मेदार ठहरा रहा है, उससे संकेत मिल रहा है कि इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव ने रमेश अग्रवाल पर खासी भारी चोट की है तथा उनके लिए आने वाला समय बहुत मुश्किल साबित होने जा रहा है ।
उल्लेखनीय है कि रमेश अग्रवाल के प्रति लोगों की नाराजगी तभी फूट पड़ी थी, जब दिल्ली का उम्मीदवार लाने का तर्क देकर उन्होंने अपने ही क्लब के अशोक जैन की उम्मीदवारी प्रस्तुत कर दी थी । रमेश अग्रवाल के क्लब के ही शरत जैन ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का कार्यभार सँभाला और रमेश अग्रवाल के ही क्लब के अशोक जैन की उम्मीदवारी प्रस्तुत हो गई - इसकी लोगों के बीच काफी प्रतिकूल प्रतिक्रिया पैदा हुई । हालात बिगड़ते देख रमेश अग्रवाल ने अपने आप को पीछे तो कर लिया था; और उम्मीद की थी कि इससे लोगों की नाराजगी दूर करने में मदद मिलेगी । अशोक जैन और उनकी उम्मीदवारी के दूसरे समर्थकों ने तरकीब लगाई कि अशोक जैन की उम्मीदवारी के अभियान से रमेश अग्रवाल को दूर रखा जायेगा, तो रमेश अग्रवाल के प्रति लोगों की नाराजगी से होने वाले नुकसान से बचा जा सकेगा - किंतु अब जब नतीजा आया तो पता चला कि उक्त तरकीब काम नहीं आई है । दरअसल तरकीब को फेल करने का काम भी रमेश अग्रवाल ने ही किया - अशोक जैन की उम्मीदवारी के अभियान से दूर रह कर रमेश अग्रवाल ने लोगों के घाव भरने का काम तो किया; लेकिन इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात चला कर उन घावों को फिर से हरा कर दिया । इससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यही संदेश गया कि रमेश अग्रवाल को यदि सबक नहीं सिखाया गया, तो यह तो डिस्ट्रिक्ट को अपनी जेब में ही रख लेगा । रमेश अग्रवाल को सबक सिखाने की लोगों की कोशिश ही अशोक जैन को ले बैठी ।
अशोक जैन के तरफदारों ने दरअसल रमेश अग्रवाल के प्रति लोगों की नाराजगी के 'तापमान' को पहचानने/समझने में चूक कर दी । वह दीपक गुप्ता और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं द्धारा की जाने वाली गलतियों और बेवकूफियों पर ही निर्भर रहे; इसके अलावा, उन्हें यह भी उम्मीद रही कि पिछले रोटरी वर्ष में दीपक गुप्ता और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का विरोध करने वाले लोग इस वर्ष भी उनके विरोध में रहेंगे; और इस तरह रमेश अग्रवाल के प्रति लोगों की नाराजगी कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकेगी । लेकिन उनकी यह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी । दरअसल अशोक जैन की उम्मीदवारी रमेश अग्रवाल की चौधराहट का प्रतीक बन गई थी । पिछले रोटरी वर्ष में मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल की हरकतों के चलते दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का विरोध करने वाले कई लोग इस वर्ष शुरू से ही कह/बता रहे थे कि वह दीपक गुप्ता को पसंद तो नहीं करते हैं, लेकिन इस वर्ष उन्हें मजबूरी में उनका समर्थन करना पड़ेगा - अन्यथा रमेश अग्रवाल की मनमानियाँ व बदतमीजियाँ और बढ़ जायेंगी । जेके गौड़ ने जिस तरह से रमेश अग्रवाल के व्यवहार की शिकायतें करते हुए अपनी नाराजगी व्यक्त की, उसके कारण भी रमेश अग्रवाल के प्रति लोगों का रोष संगठित और निर्णायक बन गया । कई लोगों का कहना रहा कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने पिछले वर्ष मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल की नेतागिरी को धूल चटाई थी, रमेश अग्रवाल उसे अपनी जीत के रूप में देखने लगे थे और अपने आप को डिस्ट्रिक्ट का चौधरी समझने लगे थे - इसलिए इस बार रमेश अग्रवाल को उनकी राजनीतिक 'औकात' दिखाना जरूरी था ।
दीपक गुप्ता ने इस बार एक होशियारी यह की कि अपने चुनाव अभियान से मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल को दूर रखने का भरसक प्रयास किया । जिन मौकों पर यह दोनों सक्रिय हुए/दिखे, दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए मुसीबत बनते और नुकसान पहुँचाते हुए ही नजर आए; इस कारण से दीपक गुप्ता इनके भरोसे रहने की बजाए अकेले ही जुटे । कई बार लोगों को लगा भी कि मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल ने जैसे दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का साथ छोड़ दिया है; और इस 'लगने' ने दीपक गुप्ता की मदद ही की । पिछले वर्ष के और इस वर्ष के चुनावी नतीजे ने एक बात साफ कर दी है कि उम्मीदवार जिन नेताओं के भरोसे रहते हैं, उन नेताओं से उन्हें फायदा कुछ नहीं मिलता है - उलटे नुकसान ही उठाना पड़ता है : पिछले वर्ष दीपक गुप्ता को मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल की करतूतों का खामियाजा भुगतना पड़ा था और सुभाष जैन की जीत किसी नेता की नहीं बल्कि सिर्फ उनकी अपनी जीत थी; इस बार अशोक जैन को रमेश अग्रवाल की हरकतों का शिकार होना पड़ा है और दीपक गुप्ता की जीत किसी नेता-फेता की नहीं बल्कि उनकी अपनी जीत है । चुनावी लड़ाई में नेताओं की भूमिका के अप्रासांगिक होने का यह संकेत डिस्ट्रिक्ट में नया माहौल बनाने में सहायक हो - शायद !

Monday, January 30, 2017

रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3080 - यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट की लीडरशिप की इंटरनेशनल बोर्ड द्धारा की गई भर्त्सना के लिए मनोज देसाई को निशाना बनाने/बनवाने की यशपाल दास की 'कार्रवाई' ने तमाशा और बढ़ाया

अंबाला । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास के क्लब के प्रमुख सदस्य और यशपाल दास के नजदीकी नैन कँवर द्धारा वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के हुए चुनाव को रद्द करने के फैसले को लेकर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड की - की गई कड़ी आलोचना ने डिस्ट्रिक्ट में एक नया तमाशा खड़ा कर दिया है । इंटरनेशनल बोर्ड के प्रति नैन कँवर की नाराजगी को दरअसल यशपाल दास की नाराजगी के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, और इसीलिए लोगों को हैरानी इस बात पर है कि राजा साबू गिरोह के दूसरे लोग तो इस फैसले पर जब खुशी व्यक्त कर रहे हैं - तब यशपाल दास इस फैसले पर दुखी क्यों हैं, और अपने लोगों के जरिए इंटरनेशनल बोर्ड को इस फैसले के लिए लानत क्यों भेज/भिजवा रहे हैं ? इंटरनेशनल बोर्ड के प्रति नैन कँवर के गुस्से का आलम यह है कि फैसले को लेकर बोर्ड सदस्यों की समझदारी और नीयत के साथ-साथ उनके 'अधिकारों' पर ही सवाल उठाते हुए उन्होंने इस फैसले को पक्षपातपूर्ण भी करार दिया है, और घोषणा की है कि वह इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्यों को बेनकाब करेंगे तथा बोर्ड सदस्यों का रवैया यदि नहीं बदला तो वह रोटरी ही छोड़ देंगे । उन्होंने आह्वान किया कि दूसरे रोटेरियंस इस काम में उनकी मदद करें । समझा जा रहा है कि नैन कँवर ने इशारों ही इशारों में इंटरनेशनल बोर्ड में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई को निशाना बनाया है । कई लोगों को लगता है कि नैन कँवर तो सिर्फ जरिया हैं, मनोज देसाई पर यह निशाना वास्तव में यशपाल दास ने लगाया/लगवाया है ।
राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के वर्ष 2017-18 के लिए हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव को रद्द कर देने के इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले से वास्तव में यशपाल दास को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है । राजा साबू सहित डिस्ट्रिक्ट के दूसरे पूर्व गवर्नर्स की तरह यशपाल दास की भी फजीहत तो हुई ही है, उनका तो लेकिन रोटरी कैरियर ही खतरे में पड़ गया है । दरअसल संदर्भित चुनाव में यशपाल दास की सक्रिय पक्षपाती भूमिका को साबित करता हुआ उनका एक ईमेल संदेश खासी चर्चा में रहा है, जिसने रोटरी जगत में उनकी काफी बदनामी की/करवाई हुई है । उक्त ईमेल के सार्वजनीकरण के लिए भी यशपाल दास ने मनोज देसाई को जिम्मेदार ठहराया हुआ है । वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के चलते राजा साबू एंड कंपनी को जो भी प्रतिकूल स्थितियों तथा फजीहतों का सामना करना पड़ा है, उसके लिए यशपाल दास और मधुकर मल्होत्रा लगातार पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता और मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई को कोसते सुने गए हैं । यशपाल दास का साफ आरोप रहा है कि रोटरी समुदाय में उन्हें बदनाम करने तथा अलग-थलग करने के लिए सुशील गुप्ता और मनोज देसाई ने ही षड्यंत्र रचा, और उनके डिस्ट्रिक्ट के एक चुनावी विवाद के बहाने उनकी फजीहत की/कराई है ।
वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव को लेकर चले झगड़े में राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों के बीच इस बात पर जब-तब चर्चा तो होती ही रहती है कि यह झगड़ा करके उन्हें आखिर मिला क्या ? गिरोह के कुछेक लोगों को लगता है कि इस झगड़े की शुरुआत इस लक्ष्य को पाने के लिए हुई थी कि राजा साबू एंड कंपनी टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बनने देगी, और अंततः इस लक्ष्य को चूँकि पा लिया गया है - इसलिए यह राजा साबू एंड कंपनी की जीत है । गिरोह/कंपनी के ही कई लोगों को लेकिन यह भी लगता है कि इस लक्ष्य को पाने के लिए डिस्ट्रिक्ट को बदनामी व फजीहत के रूप में चूँकि भारी कीमत चुकानी पड़ी है - इसलिए यह तथाकथित 'जीत' वास्तव में बड़ी हार है । रोटरी जगत में इससे ज्यादा शर्म की बात भला क्या होगी कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने अपने फैसले में राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट की पूरी लीडरशिप की इस बात के लिए भर्त्सना की है कि वह चुनावी प्रक्रिया में 4-वे-टेस्ट तथा रोटरी के अन्य महान आदर्शों व परंपराओं का पालन करने में फेल रही है । रोटरी जगत में इससे यही संदेश गया है कि राजा साबू दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में जाकर जो बड़ी बड़ी बातें करते हैं, वह उनकी थोथी बातें ही हैं; उनका असली चेहरा देखना हो तो उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में उनकी कारगुजारियों को देखो ! राजा साबू को जानने वालों का कहना है कि पोल खुलने के बाद भी राजा साबू लोगों के बीच बड़ी बड़ी हाँकने से बाज तो नहीं ही आयेंगे, और पूरी बेशर्मी से रोटरी के आदर्शों को लेकर बड़ी बड़ी बातें करते रहेंगे- लेकिन इंटरनेशनल बोर्ड द्धारा की गई टिप्पणियों को जानने वाले लोगों को तो उनकी बड़ी बड़ी बातों के पीछे छिपे नकलीपन को पहचानने में कोई समस्या नहीं होगी । इसीलिए कई लोगों को लगता है कि टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से रोकने के चक्कर में राजा साबू ने रोटरी में अपने जीवन की सारी 'कमाई' गँवा दी है ।
रोटरी जगत के कई बड़े नेताओं का भी मानना और कहना है कि टीके रूबी को हराने की जिद में राजा साबू ने वास्तव में अपने डिस्ट्रिक्ट को तथा रोटरी को ही हरा दिया है । मजे की बात यह नजर आ रही है कि संदर्भित मामले में डिस्ट्रिक्ट और डिस्ट्रिक्ट की लीडरशिप की जो फजीहत हुई है, उसने राजा साबू गिरोह के दूसरे प्रमुख सदस्यों को ज्यादा निराश और परेशान किया हुआ है । दरअसल गिरोह के जिन सदस्यों को डिस्ट्रिक्ट से ऊपर जाना/पाना नहीं है, उन्हें तो डिस्ट्रिक्ट की और अपनी फजीहत से कोई फर्क पड़ता नहीं है; लेकिन यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा, शाजु पीटर जैसे सदस्यों को इस बदनामी और फजीहत में अपनी महत्वाकाँक्षा के पंख टूटते दिख रहे हैं । इन लोगों को यह भी लग रहा है कि फजीहत और बदनामी से राजा साबू को तो कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन इनके लिए तो आगे का रास्ता ही बंद हो गया है । मधुकर मल्होत्रा और शाजु पीटर को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनना है; यशपाल दास की इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की इच्छा है - लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी बेईमानी में इनकी मिलीभगत और हरकतों की रोटरी जगत में जो चर्चा हुई है, उसके कारण इनके आगे के सफ़र पर ब्रेक लग गया है । इनकी समस्या यह है कि डिस्ट्रिक्ट में इनकी ही हरकतों के चलते जो हालात बन गए हैं, उसके कारण इनके लिए अपने ऊपर लगे धब्बों को जल्दी से धो पाना भी संभव नहीं होगा । इस स्थिति ने इन्हें बुरी तरह निराश और परेशान कर दिया है ।
इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले को लेकर यशपाल दास के नजदीकी नैन कँवर की जो नाराजगी फूटी है, वह वास्तव में यशपाल दास की निराशा और परेशानी की ही अभिव्यक्ति है । समझा जाता है कि यशपाल दास चूँकि खुद तो इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले की खुली आलोचना कर नहीं सकते हैं, इसलिए उन्होंने अपने क्लब के वरिष्ठ सदस्य और अपने नजदीकी नैन कँवर को 'काम' पर लगाया है । लोगों का मानना और कहना है कि यशपाल दास की शह और सहमति नहीं होती, तो नैन कँवर को इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले पर कुछ कहने की जरूरत भला क्यों और क्या होती ? इस तरह की बातों ने डिस्ट्रिक्ट में एक नया तमाशा खड़ा कर दिया है । यशपाल दास के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले के खिलाफ अपनी नाराजगी के लिए नैन कँवर ने लोगों से जो समर्थन माँगा, वह उन्हें नहीं मिला । इससे यही नतीजा निकाला जा रहा है कि इंटरनेशनल बोर्ड ने राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट की लीडरशिप की जो भर्त्सना की है, डिस्ट्रिक्ट के लोग उससे सहमत हैं और उसे उचित मानते हैं ।
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Sunday, January 29, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में विनय सागर जैन को डिस्ट्रिक्ट ऑनरेरी कमेटी से तीन वर्षों के लिए निकाले जाने के 'सर्वसम्मत' फैसले में उन्हें फँसाने और इस्तेमाल करने की जेपी सिंह और विनोद खन्ना की चालबाजी है क्या ?

नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय सागर जैन मुसीबत में तो फँस ही गए हैं - उनकी मुसीबत को बढ़ाने वाली बात यह और हो रही है कि वह जिन्हें अपना दोस्त समझ रहे हैं, वह भी जरूरत पड़ने पर उनकी मदद नहीं कर रहे हैं; ऐसा लग रहा है जैसे कि वह उन्हें सिर्फ इस्तेमाल कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट ऑनरेरी कमेटी की जिस मीटिंग में उनके व्यवहार को लेकर की गई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग की शिकायत पर उन्हें ऑनरेरी कमेटी से निकालने का फैसला हुआ, उस मीटिंग में उनके खेमे के सदस्य भी मौजूद थे - लेकिन जिन्होंने उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई का जरा भी विरोध नहीं किया, और ऑनरेरी कमेटी से उन्हें निकाले जाने का फैसला सर्वसम्मति से हुआ । विनय सागर जैन के लिए यह बात मुसीबत की उतनी नहीं है कि डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे के लोग उनके खिलाफ हो गए हैं, जितनी मुसीबत की बात यह है कि जरूरत पड़ने पर उनके अपने खेमे के लोगों ने उनका पक्ष रखने और उनका बचाव करने का कोई प्रयास तक नहीं किया - और उनकी सजा के पक्ष में खड़े नजर आए । विनय सागर जैन के लिए सबसे ज्यादा पहेलीभरा व्यवहार जेपी सिंह और विनोद खन्ना का रहा । विनय सागर जैन ने उम्मीद की थी कि ऑनरेरी कमेटी की जिस मीटिंग में उनके खिलाफ कार्रवाई की बात होनी थी, जेपी सिंह और विनोद खन्ना उस मीटिंग में उनकी वकालत करेंगे और उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई को रोकने का प्रयास करेंगे - इन दोनों ने लेकिन उक्त मीटिंग में उपस्थित होने/रहने तक की जरूरत नहीं समझी और अपनी अनुपस्थिति के जरिये डिस्ट्रिक्ट ऑनरेरी कमेटी में विनय सागर जैन के खिलाफ 'सर्वसम्मत' सहमति से कार्रवाई को आसानी से पूरा हो जाने का मौका दिया ।
इस किस्से में दूसरों के लिए मजे की, लेकिन खुद विनय सागर जैन के लिए बिडंवना की बात यह हुई है कि विनय सागर जैन को जिस अपराध के कारण तीन वर्षों के लिए ऑनरेरी कमेटी से निकाला गया है, वह अपराध उन्होंने जेपी सिंह और विनोद खन्ना की 'राजनीति' के पक्ष में किया था । उल्लेखनीय है कि ऑनरेरी कमेटी की एक मीटिंग में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को लेकर आम राय बनाने के लिए चार सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई, जिसे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दोनों उम्मीदवारों से बात करके एक राय बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई । अनिल सेठ, विनय गर्ग, इंद्रजीत सिंह और रवि मेहरा की सदस्यता वाली उक्त कमेटी ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दोनों उम्मीदवारों को अपने अपने क्लब के अध्यक्ष के साथ बातचीत के लिए आमंत्रित किया । गुरचरण सिंह भोला दस/बारह लोगों की टीम के साथ बातचीत करने पहुँचे, जिनमें जेपी सिंह और विनय सागर जैन जैसे पूर्व गवर्नर भी थे । कमेटी की तरफ से कहा गया कि बातचीत में इतने लोग शामिल नहीं हो सकते, और बातचीत सिर्फ उम्मीदवार तथा उनके क्लब के पदाधिकारी के साथ ही होगी । यह बात भी उठी कि गुरचरण सिंह भोला तथा उनके क्लब के पदाधिकारी वरिंदर सिंह में बातचीत करने की अक्ल नहीं है या विश्वास नहीं है कि उनकी बात इतने सारे लोग करेंगे । इतने सारे लोग आम राय बनाने को लेकर दरअसल वहाँ बात करते गए भी नहीं थे, वह तो झगड़ा करने का फैसला करके ही गए थे - और फिर उन्होंने वहाँ जमकर बदतमीजी तथा गालीगलौच किया ।
विनय सागर जैन वहाँ कुछ ज्यादा ही आपे से बाहर हो गए, और उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग के साथ खूब बदतमीजी की और उन्हें काफी बुराभला कहा । कमेटी के चारों सदस्यों ने विनय सागर जैन व जेपी सिंह से कहा भी कि आप लोग यदि एक राय बनाने के पक्ष में नहीं हैं, तो ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में इसका विरोध क्यों नहीं किया और यह चार सदस्यीय कमेटी बनने का विरोध क्यों नहीं किया ? इसके बाद भी, यदि एक राय बनाने के पक्ष में नहीं हैं तो गुरचरण सिंह भोला को लेकर इस मीटिंग में क्यों आ गए ? अब यदि आ ही गए हैं तो बात कीजिये - झगड़ा करने और गालीगलौच करने का क्या मतलब है ? इन बातों का लेकिन विनय सागर जैन पर कोई असर नहीं हुआ । जेपी सिंह ने लेकिन अक्लमंदी 'दिखाई' - उन्होंने ज्यादा कुछ कहा तो नहीं, लेकिन विनय सागर जैन को भड़काने का तथा उनमें चाबी भरने का पूरा काम किया । इस पूरे प्रकरण की जानकारी देने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग ने ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग बुलाई । मीटिंग में मौजूद लोगों ने जब विनय सागर जैन की हरकतों के बारे में जाना/सुना, तो यह बात उठी कि विनय सागर जैन ने लायनिज्म की गरिमा को ठेस पहुँचाई है और इसकी सजा के तौर पर उन्हें ऑनरेरी कमेटी से तीन वर्षों के लिए निकाल देना चाहिए । मीटिंग में विनय सागर जैन के खेमे के सदस्य भी मौजूद थे, लेकिन उन्होंने भी विनय सागर जैन के व्यवहार की भर्त्सना की और उन्हें ऑनरेरी कमेटी से निकाल दिए जाने का समर्थन किया ।
जेपी सिंह और विनोद खन्ना की नौटंकी यह रही कि इन्होंने अपने आप को ऑनरेरी कमेटी की उक्त मीटिंग से तो दूर रखा और विनय सागर जैन के खिलाफ कार्रवाई होने दी, लेकिन अब वह विनय सागर जैन के खिलाफ हुई कार्रवाई को गैरजरूरी बता रहे हैं । उनके तर्क भी मजेदार हैं : वह कह/बता रहे हैं कि प्रत्येक पूर्व गवर्नर को ऑनरेरी कमेटी में रहने का अधिकार है, तथा ऑनरेरी कमेटी से किसी पूर्व गवर्नर को हटाया नहीं जा सकता है । इनके इस तर्क पर लोगों के बीच इनका मजाक बन रहा है; लोग पूछ रहे हैं कि इनकी अक्ल-दाढ़ अब निकली है क्या - यदि ऐसा ही है तो पिछले वर्षों में इन्होंने गुरचरण घई को ऑनरेरी कमेटी से बाहर क्यों रखा था ? विनोद खन्ना को विनय सागर जैन का समर्थन करते देख/सुन कर लोगों को चुस्कियाँ लेने का और मौका मिला है । उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही तक विनोद खन्ना को विनय सागर जैन फूटी आँख भी नहीं सुहाते थे, और विनोद खन्ना उन्हें 'ब्लैकमेलर' कहते रहे थे । इसका किस्सा यह है कि विनोद खन्ना ने विनय सागर जैन से मोटी रकम उधार ली हुई थी, और बार-बार के तकादे के बावजूद वह उस रकम को वापस नहीं कर रहे थे । विनोद खन्ना जब इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार बने, तब विनय सागर जैन को ऊँगली टेढ़ी करके अपनी रकम वापस लेने का मौका मिला - और विनोद खन्ना के सामने दाँव-पेंच आजमा कर उन्होंने विनोद खन्ना से अपनी रकम बसूल ली थी । विनोद खन्ना तभी से विनय सागर जैन को 'ब्लैकमेलर' कहते आ रहे हैं ।
जेपी सिंह और विनोद खन्ना की जोड़ी ने जिस तरह विनय सागर जैन को पहले तो फँसा दिया, और ऑनरेरी कमेटी से उन्हें निकालने की कार्रवाई को आराम से हो जाने दिया - और अब वह उनकी तरफदारी कर रहे हैं; उससे लोगों को यही लग रहा है कि विनोद खन्ना ने अपने 'ब्लैकमेलर' को पूरी तरह से माफ़ करके अपनाया नहीं है, वह विनय सागर जैन को अपनी चालबाजी से सिर्फ इस्तेमाल कर रहे हैं । इस बात ने लेकिन विनय सागर जैन को एक ऐसे दोराहे पर ला खड़ा कर दिया है, जहाँ दोनों रास्ते उन्हें फजीहत भरी मंजिल की तरफ ही ले जाते दिख रहे हैं ।

Friday, January 27, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में अपनी करतूतों के चलते इंटरनेशनल बोर्ड से लताड़ खाने वाली राजा साबू के नेतृत्व वाली लीडरशिप इस वर्ष भी अपनी टुच्ची हरकतों के सहारे चुनाव को प्रभावित करने से लेकिन बाज नहीं आ रही है

चंडीगढ़ । राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू तथा उनके गिरोह के सदस्यों को रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड से एक बार फिर बड़ी चमाट पड़ी है - और इस तरह रोटरी इंटरनेशनल के पूर्व प्रेसीडेंट्स में राजा साबू ने अकेले ऐसे पूर्व प्रेसीडेंट बनने का रिकॉर्ड बनाया है, जिन्हें रोटरी इंटरनेशनल से कई बार लताड़ खाने को मिली है । अभी हाल ही में संपन्न हुई रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड की मीटिंग में राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3080 में वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के हुए चुनाव को रद्द करने का फैसला करते हुए, इस चुनाव में अपनाई गई भूमिका के लिए डिस्ट्रिक्ट लीडरशिप की कड़ी भर्त्सना की गई है । उल्लेखनीय है कि उक्त चुनाव में राजा साबू और डिस्ट्रिक्ट के प्रायः सभी पूर्व गवर्नर्स ने खुली तरफदारी, तिकड़म, मनमानी और बेईमानी से डीसी बंसल को चुनाव जितवाया था । इसकी शिकायत हुई, जिसे रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने सही पाया और अंततः चुनाव रद्द घोषित कर दिया । गौर करने वाली बात यह है कि अभी जिस चुनाव पर फैसला हुआ है, वह दूसरी बार हुआ था । पहली बार, फरवरी 2015 में हुआ चुनाव भी मनमानियों और बेईमानियों के आरोपों में घिरा था; और रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने राजा साबू और डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स के मुँह पर तमाचा-सा जड़ते हुए दोबारा चुनाव कराने का आदेश दिया था । राजा साबू और डिस्ट्रिक्ट के दूसरे अधिकतर पूर्व गवर्नर्स ने उससे लेकिन कोई सबक नहीं लिया, और पूरी बेशर्मी और निर्लज्जता के साथ दोबारा हुए चुनाव में भी अपनी मनमानियाँ और बेईमानियाँ कीं - जिसकी शिकायत को सही पाकर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने उसे भी रद्द कर दिया है ।
राजा साबू और डिस्ट्रिक्ट के अन्य पूर्व गवर्नर्स बस एक बात पर 'गर्व' कर सकते हैं कि अंततः उन्होंने टीके रूबी को गवर्नर न बनने देने में सफलता प्राप्त कर ली । उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता होगा कि इस चक्कर में पिछले दो वर्षों में उन्हें कई कई बार अपने अपने चेहरों पर कालिख पुतवानी पड़ी है । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने पिछले दो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स - दिलीप पटनायक तथा डेविड हिल्टन की नाम लेकर भर्त्सना की है कि चुनावी प्रक्रिया में इन्होंने नियमों व व्यवस्था का पालन नहीं किया । इन दोनों को इस भर्त्सना का शिकार सिर्फ इसलिए होना पड़ा है, क्योंकि इन्होंने अपने आपको राजा साबू तथा दूसरे पूर्व गवर्नर्स की कठपुतलियाँ बना लिया था और उनके इशारों पर ही काम करना मंजूर कर लिया था ।
जो हुआ है, उससे राजा साबू और दूसरे पूर्व गवर्नर्स तथा मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा ने शायद ही कोई सबक सीखा है - क्योंकि इस बार के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में फिर वही मनमानियाँ, तिकड़में और बेईमानियाँ हो रही हैं; क्योंकि एक बार फिर राजा साबू और डिस्ट्रिक्ट के दूसरे पूर्व गवर्नर्स ने तय कर लिया है कि इस बार उन्हें जितेंद्र ढींगरा को जीतने नहीं देना है । पिछले अनुभव से, उन्होंने यह सबक जरूर सीख लिया है कि मनमानियाँ, तिकड़में और बेईमानियाँ पहले से ही कर लो - पिछली बार पहले से तैयारी नहीं की थी, जिसके चलते बाद में करना पड़ीं । पिछली बार नोमीनेटिंग कमेटी ने अपनी मर्जी से फैसला करते हुए टीके रूबी को चुन लिया था, इसलिए इस बार नोमीनेटिंग कमेटी को ही मजाक बनाते हुए रोटरी की 'व्यवस्था' को ही मानने से इंकार कर दिया गया है ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी की व्यवस्था में क्लब का बड़ा महत्त्व है । रोटरी के किसी भी चुनाव में रोटेरियन खुद सामने नहीं आता है, बल्कि क्लब उसे अपने उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत करता है । लेकिन राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में इस बार बनाए गए अनोखे नियम के तहत डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए होने वाले चुनाव में क्लब के इस अधिकार को खत्म कर दिया गया है । नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवार तय करने के क्लब के अधिकार को छीन कर नई व्यवस्था यह बनाई गई है कि नोमीनेटिंग कमेटी बनने के दौरान क्लब्स के जो पूर्व प्रेसीडेंट्स मौके पर उपस्थित होंगे, उनके नाम की पर्ची पड़ेगी और उसमें से नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों का नाम निकलेगा । क्या किसी डिस्ट्रिक्ट को यह अधिकार है कि वह रोटरी इंटरनेशनल के नियमों तथा व्यवस्थाओं में मनमाने तरीके से परिवर्तन कर ले, और रोटरी इंटरनेशनल के मूल आदर्शों के साथ खिलवाड़ करे ? इससे भी बड़ा मजाक इस बार यह हो रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की चुनावी प्रक्रिया में उन क्लब्स को शामिल होने का अधिकार नहीं है, जिनके सभी ड्यूज निर्धारित समय पर जमा नहीं हो सके हैं - किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार प्रस्तुत करने को लेकर उन क्लब्स पर कोई रोक नहीं है । इस तरह के तमाशे सिर्फ इसलिए किए जा रहे हैं ताकी राजा साबू और उनके गुर्गे पूर्व गवर्नर्स किसी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनवा सकें या किसी को बनने से रोक सकें ।
इस 'काम' को अंजाम तक पहुँचाने के लिए राजा साबू और उनके गुर्गे पूर्व गवर्नर्स ने पहला काम मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा को दिलीप पटनायक तथा डेविड हिल्टन की तरह से ही अपनी कठपुतली बनाने का किया है । यह बात रमन अनेजा की एक हरकत से साबित होती है । रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के पूर्व प्रेसीडेंट मोहिंदर पॉल गुप्ता ने नोमीनेटिंग कमेटी बनने/बनाने की प्रक्रिया में रोटरी इंटरनेशनल के नियमों व दिशा-निर्देशों के उल्लंघन के मामले को लेकर रमन अनेजा से शिकायत की । रमन अनेजा ने उन्हें उस समय तो ठीक वैसे ही जबाव दिया, जैसे एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को देना चाहिए - रमन अनेजा ने उनसे कहा कि उन्हें जो कुछ भी कहना है उसे वह अपने क्लब से एक प्रस्ताव के रूप में भेजें, जिसे डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में विचार के लिए लोगों के सामने रख दिया जायेगा । लेकिन दो दिन बाद ही रमन अनेजा ने पलटी मारी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का चोला उतार कर कठपुतली का चोला पहन कर मोहिंदर पॉल गुप्ता से कहा कि उन्हें अपने क्लब से प्रस्ताव भिजवाने की जरूरत नहीं है, वह खुद ही उक्त मामले में कार्रवाई करेंगे । रमन अनेजा का यह बदला हुआ रवैया बता/दिखा रहा है कि यह सिर्फ उनकी बहानेबाजी है, जिसका उद्देश्य मोहिंदर पॉल गुप्ता को प्रस्ताव भेजने से रोकना है । समझा जाता है कि राजा साबू और दूसरे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की तरफ से रमन अनेजा के कान उमेंठे गए होंगे कि प्रस्ताव मँगा कर क्यों मुसीबत पैदा कर/करवा रहे हो; सो, रमन अनेजा ने खुद ही कार्रवाई करने का वायदा करते हुए मोहिंदर पॉल गुप्ता को प्रस्ताव भेजने/भिजवाने से रोकने का काम किया । हर कोई जानता है कि रमन अनेजा भले ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं - और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते उन्हें रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार काम करना चाहिए, लेकिन वह करेंगे वही जो राजा साबू और उनकी 'कंपनी' के लोग कहेंगे ।
मजेदार संयोग है कि इन्हीं मोहिंदर पॉल गुप्ता ने पिछले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन को रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्थानुसार ई-वोटिंग के जरिए चुनाव करवाने का सुझाव दिया था, जिसे स्वीकार करने से डेविड हिल्टन ने इंकार कर दिया था । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने अपने फैसले में डेविड हिल्टन के रवैये की भर्त्सना करते हुए साफ कहा है कि वह यदि ई-वोटिंग से चुनाव करवाते, तो चुनाव में बेईमानी नहीं हो पाती; डेविड हिल्टन को लेकिन मोहिंदर पॉल गुप्ता के सुझाव को मानने की बजाए राजा साबू एंड कंपनी की बात माननी थी, ताकि उन्हें चुनाव में मनमानी व बेईमानी करने का मौका मिल सके । रमन अनेजा भी लगता है कि डेविड हिल्टन की राह पर हैं - और रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्थानुसार काम करने के मोहिंदर पॉल गुप्ता के सुझाव को मानने से बचने तथा राजा साबू एंड कंपनी की मनमानी के अनुसार ही काम करने की तिकड़म लगा रहे हैं ।
रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने अपने फैसले में इस तथ्य को बहुत स्पष्टता के साथ रेखांकित किया है कि वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट की लीडरशिप 4-वे-टेस्ट तथा रोटरी के आदर्शों का पालन करने में फेल रही है । यह देखना सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपनी करतूतों से डिस्ट्रिक्ट तथा रोटरी का नाम खराब करने वाली वही लीडरशिप इस वर्ष भी अपनी टुच्ची हरकतों के सहारे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास कर रही है ।

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल तुलस्यान के मुकुंद लाल टंडन के प्रति 'दुश्मनी' तथा क्षितिज शर्मा के प्रति 'दोस्ती' वाले रवैये ने लोगों को हैरान किया है

वाराणसी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल तुलस्यान की तरफ से हाल के दिनों में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मुकुंद लाल टंडन को डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच बदनाम करने तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार क्षितिज शर्मा को अपनी तरफ करने के लिए जो प्रयास किए गए हैं, उन्हें देखने/जानने वाले डिस्ट्रिक्ट के लायंस सदस्यों को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति एक नई करवट लेती दिख रही है । मुकुंद लाल टंडन को ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग करने या न करने के मामले में जिस तरह से बदनाम किया जा रहा है, वह अपने आप में खासा दिलचस्प मामला बन गया है - जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनिल तुलस्यान की कार्यप्रणाली की पोल खोलता है । मुकुंद लाल टंडन यूँ तो उसी 'गिरोह' के सदस्य हैं, जिसके प्रतिनिधि के रूप में अनिल तुलस्यान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर हैं - और इसी 'रिश्ते' से वह ऑनरेरी कमेटी के चेयरमैन बने हुए हैं; लेकिन फिर भी वह अनिल तुलस्यान की चालबाजियों का शिकार बनने से नहीं बच सके हैं । मजे की बात यह है कि अनिल तुलस्यान खुद ही तो ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग करने से बच रहे हैं, ताकि उन्हें अपनी कारस्तानियों को लेकर उठने वाले सवालों का सामना न करना पड़े; लेकिन इसका ठीकरा वह मुकुंद लाल टंडन के सिर यह आरोप लगाते हुए फोड़ रहे हैं कि मीटिंग के खर्चे से बचने के लिए मुकुंद लाल टंडन ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग करने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में कैबिनेट मीटिंग से पहले ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग होने की एक गौरवशाली परंपरा बनी हुई है । पिछले कई वर्षों से इस परंपरा का निर्वाह होता रहा है, और चार नहीं तो तीन कैबिनेट मीटिंग से पहले तो ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग होती ही रही है । अनिल तुलस्यान दूसरी कैबिनेट मीटिंग से पहले ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग नहीं करवा सके थे; इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि डिस्ट्रिक्ट की तीसरी कैबिनेट मीटिंग से पहले तो ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग अवश्य ही होगी । तीसरी कैबिनेट मीटिंग में अब सिर्फ दो दिन बचे हैं, लेकिन उससे पहले ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग होने को लेकर किसी को कोई जानकारी नहीं है । जिस किसी ने इसके बारे में अनिल तुलस्यान से पूछा, उसे यही जबाव सुनने को मिला कि ऑनरेरी कमेटी के चेयरमैन मुकुंद लाल टंडन मीटिंग करने को लेकर इच्छुक नहीं हैं । अनिल तुलस्यान पूछने वाले को यह बताने से भी नहीं चूक रहे हैं कि मुकुंद लाल टंडन ने ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग का खर्चा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट पद के उम्मीदवार क्षितिज शर्मा से करवाने का जुगाड़ बैठाने का प्रयास किया/करवाया था, जिसमें असफल रहने के बाद उन्होंने उक्त मीटिंग को लेकर बात करना ही छोड़ दिया । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग का खर्चा करने की जिम्मेदारी कमेटी के चेयरमैन की होती है, और वही यह जिम्मेदारी निभाता है; चेयरमैन 'होशियार' होता है तो वह यह खर्चा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार से भी करवा लेता है । हालाँकि जो लोग मुकुंद लाल टंडन को जानते हैं, उन्हें अनिल तुलस्यान की इस बात पर भरोसा है नहीं कि मुकुंद लाल टंडन खर्चे से बचने की कोशिश करेंगे ।
अब पर्दे के पीछे की सच्चाई चाहे जो हो, पर्दे के सामने का सच यह है कि तीसरी कैबिनेट मीटिंग से पहले ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग होने को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं है - और लोगों के लिए हैरानी की बात है कि ऑनरेरी कमेटी के चेयरमैन मुकुंद लाल टंडन उक्त मीटिंग को लेकर अनिल तुलस्यान पर निर्भर तथा उनके सामने मजबूर आखिर क्यों हैं ? अनिल तुलस्यान ने मुकुंद लाल टंडन को डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बदनाम करने के मामले में ही नहीं, बल्कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार क्षितिज शर्मा को अपनी तरफ करने के प्रयासों के मामले में भी लोगों को हैरान किया हुआ है । लोगों के लिए हैरानी का कारण यह है कि जो अनिल तुलस्यान और लायनिज्म में उनके गुरू पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीरेंद्र गोयल अभी कुछ दिन पहले तक सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मुकेश पाठक को अपनी पसंद बताने का संकेत दे रहे थे - अब अचानक से क्षितिज शर्मा की उम्मीदवारी की तरफ झुकते हुए से क्यों दिख रहे हैं ? समझा जा रहा है कि अनिल तुलस्यान की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के तथा अन्य खर्चों की पूर्ति के लिए क्षितिज शर्मा की जेब पर निगाह पड़ गई है और इसलिए उन्होंने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार क्षितिज शर्मा को पटाने का काम करना शुरू किया है ।
अनिल तुलस्यान की बातों से अब यह पोल भी खुल रही है कि पहले उनकी तरफ से मुकेश पाठक की उम्मीदवारी को समर्थन देने के जो संकेत दिए जा रहे थे, उसके पीछे उनकी वास्तव में क्षितिज शर्मा को अपनी तरफ खींचने की चाल थी । यूँ तो क्षितिज शर्मा को वीरेंद्र गोयल एंड कंपनी की तरफ होने में कोई समस्या नहीं है, लेकिन चूँकि क्षितिज शर्मा ने पूरी तरह उनके कहे में चलने में दिलचस्पी नहीं ली है - इसलिए बात कभी बनती तो कभी बिगड़ती से रही है । क्षितिज शर्मा की तरफ से उन्हें बता दिया गया है कि वह जरूरी खर्चे करने के लिए तो तैयार हैं, लेकिन 'लुटने' के लिए तैयार नहीं हैं । क्षितिज शर्मा को पूरी तरह अपने कब्जे में लेने के लिए ही वीरेंद्र गोयल एंड कंपनी ने मुकेश पाठक की उम्मीदवारी की बात करना और उन्हें अपने उम्मीदवार के रूप में 'दिखाने' का काम शुरू किया । वीरेंद्र गोयल एंड कंपनी को लगा कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए क्षितिज शर्मा के अलावा चूँकि कोई और उम्मीदवार नहीं है, इसलिए क्षितिज शर्मा उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहे हैं । मुकेश पाठक की उम्मीदवारी को हवा देकर उन्होंने वास्तव में क्षितिज शर्मा को संदेश देने की कोशिश की कि वह यदि पूरी तरह से उनके कहने में नहीं चले, तो फिर उन्हें कड़े चुनावी मुकाबले का सामना करना पड़ेगा । क्षितिज शर्मा ने चूँकि तब भी परवाह नहीं की, और वह वीरेंद्र गोयल एंड कंपनी के सामने समर्पण के लिए तैयार नहीं हुए - तब अनिल तुलस्यान को डर हुआ कि ज्यादा लालच के चक्कर में कहीं ऐसा न हो कि वह घर/घाट कहीं के न रहें, सो उन्होंने क्षितिज शर्मा के प्रति अपने रवैये को थोड़ा लचीला बनाया है । इससे पहले लेकिन अनिल तुलस्यान तथा उनके साथियों ने जो किया, उससे मुकेश पाठक की उम्मीदवारी को भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण बना दिया है । इस कारण सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संदर्भ में डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक समीकरण एक नई करवट लेते नजर आ रहे हैं ।

Wednesday, January 25, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में यशपाल अरोड़ा की उम्मीदवारी की पुनर्प्रस्तुति से सत्ता खेमे के मतभेद सामने आए; पहले यशपाल अरोड़ा ने अपने साथ हुए धोखे की शिकायत की थी, अब मुकेश गोयल ने अपने आप को ठगा हुआ पाया है

नई दिल्ली । यशपाल अरोड़ा के एक बार फिर से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार बन जाने से डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के सत्ता खेमे में भारी उथल-पुथल होने का लोग अनुमान लगा रहे हैं, और प्रतिद्धंद्धी खेमा इस बात का फायदा उठाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है । पिछले दिनों में उम्मीदवारों की जिस तरह से अदला-बदली हुई है, उसे लेकर डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच जो सवाल पैदा हुए हैं - उनके संतोषजनक जबाव दे पाना सत्ता खेमे के नेताओं के लिए मुश्किल हो रहा है, जिसका नतीजा यह दिख रहा है कि सत्ता खेमे की एकता सवालों के घेरे में आ रही है । उल्लेखनीय है कि पहले सत्ता खेमे की तरफ से यशपाल अरोड़ा ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार थे, लेकिन करीब दो महीने पहले उनकी उम्मीदवारी अचानक से वापस हो गई - और उनकी जगह मुकेश गोयल ने ले ली । यशपाल अरोड़ा की उम्मीदवारी के वापस होने का औपचारिक कारण उनका बीमार होना बताया गया था । लोगों से कहा/बताया गया था कि अचानक से बीमार होने के कारण डॉक्टर्स ने उन्हें थकान से बचने को कहा है और इसलिए कई महीनों तक उनके लिए यात्रा करना संभव नहीं होगा - और इस कारण से उनके लिए एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय रह पाना मुश्किल होगा । हालाँकि बीमार होने तथा उम्मीदवारी के वापस होने के कुछ ही दिन बाद यशपाल अरोड़ा लोगों के बीच सक्रिय दिखने लगे थे । उनकी सक्रियता देख कर लोगों को शक भी हुआ कि उनकी उम्मीदवारी वापस कराने के मामले में उनकी बीमारी को कहीं बहाने के रूप में तो इस्तेमाल नहीं किया गया है ?
बाद के दिनों में यशपाल अरोड़ा जिस तरह की बातें करते हुए सुने गए, उससे उक्त शक सच्चाई में बदलता दिखने भी लगा । दरअसल यशपाल अरोड़ा अपने नजदीकियों से कहने/बताने लगे कि कैसे उनकी बीमारी को इस्तेमाल करते हुए उन्हें उम्मीदवारी वापस लेने के लिए 'तैयार' किया गया और उनके साथ धोखा हुआ । यशपाल अरोड़ा ने इसके लिए कभी संकेतों में तो कभी स्पष्ट रूप में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग को जिम्मेदार ठहराया । यशपाल अरोड़ा का आरोप रहा कि विनय गर्ग ने उनकी बीमारी को लेकर उनके परिवार के सदस्यों को इतना डराया कि उनका परिवार उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ हो गया और फिर परिवार के दबाव में उन्हें अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा । यशपाल अरोड़ा की शिकायत रही कि विनय गर्ग ने एक तरफ तो उनके परिवार को उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ भड़का दिया; और दूसरी तरफ उन पर जल्दी से यह तय करने का दबाव बनाया कि उम्मीदवार रहोगे या नहीं ? इस दोहरे दबाव को यशपाल अरोड़ा झेल नहीं पाए और उनकी उम्मीदवारी वापस हो गई । उम्मीदवारी वापस होने के बाद, यशपाल अरोड़ा ने जब अपने आपको स्वस्थ होते हुए पाया और यह जाना कि उनकी बीमारी ऐसी नहीं थी जिसमें उन्हें लंबे समय तक आराम करने की जरूरत पड़ती; तब उन्हें महसूस हुआ कि उनके साथ धोखा किया गया है ।
उनकी उम्मीदवारी को जल्दी से वापस करवा कर आनन-फानन में मुकेश गोयल को उम्मीदवार 'बनाने' में जो तत्परता दिखाई गई, उसे देख भी यशपाल अरोड़ा को धोखे वाली फीलिंग आई । उस दौरान प्रकाशित 'रचनात्मक संकल्प' ने अपनी एक रिपोर्ट में इस तथ्य को रेखांकित भी किया था कि मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने में जो जल्दीबाजी की जा रही है, उसे लेकर सत्ता खेमे के नेताओं के बीच मतभेद हैं । बीमारी से उबरते उबरते हुए यशपाल अरोड़ा ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई, उसके पीछे अपनी उम्मीदवारी को वापस पाने की उनकी इच्छा और कोशिश को भी देखा/पहचाना गया । उन्होंने सत्ता खेमे अपने नजदीकी नेताओं से कहा भी कि इस वर्ष उम्मीदवार होने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत और तैयारी की है, और कि उनके लिए इस वर्ष सफल होना आसान है - इसलिए उन्हें इसी वर्ष उम्मीदवार होना है । यशपाल अरोड़ा की खुशकिस्मती रही कि उम्मीदवार के रूप में मुकेश गोयल द्धारा अपनाए/दिखाए जा रहे रवैये से सत्ता खेमे के नेता कोई ज्यादा खुश नहीं हो रहे थे । इससे भी ज्यादा बड़ी खुशकिस्मती की बात यह रही कि इस बीच कुछ ऐसी स्थितियाँ बनी कि सत्ता खेमे के नेताओं को मुकेश गोयल की उम्मीदवारी से पीछा छुड़ाना आसान हो गया ।
'पहले' की तरह ही इस बार भी सत्ता खेमे की तरफ से हालाँकि दिखाया/बताया तो यही गया है कि उम्मीदवारी का ट्रांसफर आपसी सहमति से हुआ है और खेमे में सब ठीक-ठाक है; लेकिन यशपाल अरोड़ा के फिर से उम्मीदवार बन जाने पर मुकेश गोयल के नजदीकी जिस तरह से भड़के हुए हैं - उससे लग रहा है कि सत्ता खेमे में भीतर ही भीतर खासी खलबली है । मुकेश गोयल के नजदीकियों को लग रहा है कि जिन बातों को लेकर मुकेश गोयल की उम्मीदवारी  को वापस कराया गया है, वह कोई बहुत गंभीर बातें नहीं हैं; चुनावी राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप लगते ही हैं और उनका सामना किया जाता है - मुकेश गोयल को लेकर जो कुछ कहा जा रहा था, उसका जबाव दिया ही जा रहा था और उन बातों को निष्प्रभावी बनाया जा रहा था । लेकिन अचानक से जिस तरह मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को वापस करा कर यशपाल अरोड़ा को फिर से उम्मीदवार बना दिया गया है - उससे लग रहा है कि सत्ता खेमे के नेताओं में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवारों को लेकर भारी मतभेद हैं । पिछली बार यशपाल अरोड़ा ने अपने साथ हुए धोखे की शिकायत की थी, अब की बार मुकेश गोयल ने अपने आप को ठगा हुआ पाया है । सत्ता खेमे में उम्मीदवारों को लेकर होने वाली इस उथल-पुथल ने प्रतिद्धंद्धी खेमे के नेताओं को खासा उत्साहित किया है, और वह इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिशों में जुट गए हैं ।

Tuesday, January 24, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति में संजय खन्ना से आकाँक्षित समर्थन न मिलता देख रवि दयाल और उनके नजदीकियों को डर हुआ है कि उनके साथ कहीं पिछले वर्ष जैसा ही धोखा न हो जाए

नई दिल्ली । संजय खन्ना से आकाँक्षित समर्थन न मिलता देख डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार रवि दयाल का धैर्य एक बार फिर उनका साथ छोड़ता दिख/लग रहा है । उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में जब डिस्ट्रिक्ट के कई नेताओं से मिले धोखे के कारण रवि दयाल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पिछड़ना पड़ा था, तब वह बहुत नाराज हुए थे और नाराजगी में उन्होंने कई नेताओं को निशाना बनाया था और रोटरी में लोगों के दोहरे चरित्र की शिकायत करते हुए उन्होंने अपने गुस्से को जाहिर किया था । निराशा और गुस्से में उन्होंने फिर कभी उम्मीदवार न बनने का फैसला भी सुना दिया था । किंतु तीन-चार महीने में उनका गुस्सा शांत हुआ और इस वर्ष फिर से उनकी उम्मीदवारी प्रस्तुत हुई । उन्हें उम्मीद बनी कि पिछली बार जिन लोगों ने उन्हें झाँसे में रखा और उनकी मदद का वायदा करने के बाद भी उनकी मदद नहीं की, वह इस वर्ष उनके साथ धोखा नहीं करेंगे । जिस तरह 'दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है' - उसी तरह पिछले वर्ष धोखा खाए रवि दयाल इस वर्ष अपने समर्थक नेताओं को शुरू से परखने का प्रयास कर रहे हैं; और इस प्रयास में वह संजय खन्ना की भूमिका को लेकर सशंकित बताए/समझे जा रहे हैं । रवि दयाल के नजदीकियों का कहना है कि रवि दयाल को अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में संजय खन्ना से उपयोगी सुझाव तो जरूर मिले हैं, लेकिन संजय खन्ना उनकी 'वैसी' मदद करते हुए नहीं दिखे हैं, 'जैसी' मदद की रवि दयाल व उनके समर्थक उम्मीद लगाए बैठे हैं - और जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में रवि दयाल के लिए निर्णायक साबित हो सकती है ।
संजय खन्ना ने सीओएल के चुनाव के संदर्भ में जिस तरह से सुशील खुराना को समर्थन देकर विनोद बंसल को मुकाबले से बाहर हो जाने के लिए मजबूर कर दिया है - उसे देख/जान कर रवि दयाल को भी उम्मीद बंधी थी कि संजय खन्ना और सुशील खुराना की जोड़ी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उनकी भी नैय्या पार लगा/लगवा देगी । रवि दयाल की चिंता और निराशा यह देख कर लेकिन बढ़ती जा रही है कि संजय खन्ना उनके मामले में कोई दिलचस्पी लेते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । संजय खन्ना की जान को लेकिन अमरजीत सिंह भी हैं, जो चूँकि संजय खन्ना के ही क्लब के हैं - इसलिए वह संजय खन्ना पर अपना ज्यादा अधिकार समझते हैं; मजे की बात लेकिन यह है कि उनकी भी शिकायत है कि संजय खन्ना उनकी मदद नहीं कर रहे हैं । अमरजीत सिंह और उनके नजदीकियों का तो आरोप है कि संजय खन्ना उनकी बजाए रवि दयाल की मदद कर रहे हैं । दिलचस्प नजारा यह है कि अब यदि अमरजीत सिंह और रवि दयाल, दोनों को ही शिकायत है कि संजय खन्ना उनकी मदद नहीं कर रहे हैं - तो संजय खन्ना आखिर मदद किसकी कर रहे हैं ? संजय खन्ना को नजदीक से जानने वाले लोगों का कहना है कि संजय खन्ना किसी की मदद नहीं कर रहे हैं; दरअसल वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के चक्कर में फँसना ही नहीं चाहते हैं; उन्हें लगता है कि इस चक्कर में रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं के बीच बनी उनकी साख व पहचान खतरे में पड़ जाएगी - इसलिए वह इस चक्कर से दूर ही रहना चाहते हैं ।
यह 'तर्क' लेकिन उनकी मदद की उम्मीद लगाए बैठे रवि दयाल और उनके समर्थकों को कनविंस नहीं कर पा रहा है; उनका कहना है कि सीओएल के चुनाव में संजय खन्ना जब सुशील खुराना की मदद करते 'दिख' कर सुशील खुराना को बढ़त दिला सकते हैं, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उनके सामने क्या समस्या है ? रवि दयाल और उनके नजदीकियों को यह संतोष जरूर है कि संजय खन्ना अपने क्लब के होने के बावजूद अमरजीत सिंह की कोई मदद नहीं कर रहे हैं; लेकिन इतना संतोष उन्हें काफी नहीं लग रहा है । रवि दयाल और उनके नजदीकियों को लग रहा है कि जिस तरह से संजय खन्ना और सुशील खुराना की जोड़ी ने सीओएल के चुनाव में अपना 'काम' बना लिया है, ठीक उसी तरह से यह जोड़ी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उनका काम बना सकती है; इसके साथ-साथ उन्हें लेकिन यह भी लग रहा है कि संजय खन्ना उनका काम बनाने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । रवि दयाल के कुछेक नजदीकियों को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रवि चौधरी इसमें फच्चर फँसा रहे होंगे ।
रवि चौधरी और रवि दयाल की पुरानी खुन्नस है, जिसमें अब रवि चौधरी को बदला लेने का मौका मिल रहा है । रवि चौधरी ने पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता की सिफारिश को दरकिनार रख कर जिस तरह से अपने ही क्लब के सदस्य पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश चंदर से खुन्नस निकाली हुई है; समझा जा रहा है कि उसे देखते/समझते हुए संजय खन्ना और सुशील खुराना ने अपने आप को रवि दयाल की उम्मीदवारी के लिए कुछ करने से रोका हुआ है - उन्हें लग रहा होगा कि रवि दयाल के चक्कर में वह रवि चौधरी के 'यहाँ' अपनी स्थिति रमेश चंदर जैसी क्यों बना लें ? ऐसी बातों से रवि दयाल और उनके नजदीकियों को लग रहा है कि उनकी उम्मीदवारी से दूर रहने के लिए संजय खन्ना या तो खुद कोई बहाना खोज लेते हैं, और या उनके विरोधी नए नए बहाने उन्हें सुझा देते हैं - और इस तरीके से उन्हें संजय खन्ना का समर्थन मिलते मिलते रह जाता है । ऐसे में, रवि दयाल और उनके नजदीकियों को यह भय सताने लगा है कि उनके साथ कहीं पिछले वर्ष जैसा ही धोखा न हो जाए ।

Saturday, January 21, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी नतीजा जेके गौड़ की झाँसाबाजी की पोल खोलते हुए उनकी शामत लाने का काम करेगा क्या ?

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए हो चुके चुनाव के आने वाले नतीजे को लेकर विश्लेषण के साथ जो जो कयास लगाए/सुने जा रहे हैं, उनसे एक बात बहुत साफ होती जा रही है कि नतीजा चाहें जो हो - चुनाव चाहे जो भी जीते, शामत लेकिन जेके गौड़ की आने वाली है । दिलचस्प नजारा यह है कि हर उम्मीदवार के समर्थकों को 'अपने' जीतने के पीछे जेके गौड़ का समर्थन 'दिख' रहा है; ऐसे में हारने वाले उम्मीदवार के समर्थकों का सारा नजला जेके गौड़ के सिर पर ही गिरने का खतरा मंडराता नजर आ रहा है । इस बार के चुनाव में जेके गौड़ के समर्थन को लेकर उम्मीदवारों के समर्थकों के बीच जैसी छीना-झपटी चली, उसने चुनावी माहौल को खासा असमंजसपूर्ण भी बनाया - जो न सिर्फ चुनाव 'होने' तक बना रहा, बल्कि जो नतीजा आने तक बना रहता दिख रहा है । इससे पहले शायद ही किसी चुनाव में किसी एक व्यक्ति/नेता की भूमिका को इतना असमंजसपूर्ण पाया/देखा गया हो ।
जेके गौड़ की इस भूमिका की नींव दरअसल तब पड़ी जब उन्हें रमेश अग्रवाल के खिलाफ खुल कर बातें करते हुए सुना/पाया गया । रमेश अग्रवाल की हरकतों के प्रति जेके गौड़ को नाराजगी व रोष प्रकट करता देख दीपक गुप्ता और उनके समर्थकों की बाँछे खिल गईं; फलस्वरूप उन्होंने जेके गौड़ पर डोरे डालने शुरू कर दिए । इसमें उन्हें सफलता मिलने में दिक्कत लेकिन इस कारण से हुई क्योंकि जेके गौड़ को दीपक गुप्ता से भी बहुत शिकायतें थीं । जेके गौड़ जब उम्मीदवार थे, तब दीपक गुप्ता ने उन्हें बहुत परेशान तो किया ही था - कई मौकों पर उन्हें अपमानित तक किया था । दीपक गुप्ता के उस रवैये को जेके गौड़ भूले नहीं थे । इस बीच इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव की चर्चा शुरू हो गई, जिसमें रमेश अग्रवाल की दिलचस्पी देखी/पहचानी गई । इसमें दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को अपना 'काम' बनता हुआ नजर आया; और उन्होंने जेके गौड़ को समझाया/भड़काया कि रमेश अग्रवाल की हरकतों का उन्हें यदि बदला लेना है, तो इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उन्हें उम्मीदवार हो जाना चाहिए । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की यह तरकीब काम कर गई, और जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल के खिलाफ ताल ठोक दी । जेके गौड़ ने ताल तो ठोक दी, लेकिन दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में कूदे नहीं । उन्होंने इंतजार करने व यह देखने की रणनीति अपनाई कि रमेश अग्रवाल तथा खेमे के बाकी लोग उनकी उम्मीदवारी पर कैसे रिएक्ट करते हैं ? जेके गौड़ ने होशियारी/चालाकी से दोनों हाथों में लडडू पकड़ लिए । जेके गौड़ के इस 'रूप' ने अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को दबाव में लाने का काम किया ।
रमेश अग्रवाल ने भी चालाकी/होशियारी दिखाने की कोशिश की; उनकी शह पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन ने उक्त नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव की अधिघोषणा को टालने तथा उसमें देर करने का हथकंडा अपनाया । कोशिश शायद यह थी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव हो जाने के बाद रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ से निपटेंगे । लेकिन जैसे जैसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव नजदीक आता गया, रमेश अग्रवाल को भी समझ में आने लगा कि अपनी होशियारी के चलते उनके लिए कहीं ऐसी स्थिति न हो जाए कि वह घर/घाट कहीं के न रहें । रमेश अग्रवाल ने समझ/पहचान लिया कि स्थितियाँ अभी जिस तरह से जेके गौड़ के पक्ष में हैं, उसमें उनकी किसी चालबाजी का सफल होना मुश्किल ही है । लिहाजा अशोक जैन की उम्मीदवारी के प्रति जेके गौड़ के समर्थन को पक्का बनाए रखने के लिए रमेश अग्रवाल उक्त नोमीनेटिंग कमेटी के लिए अपनी उम्मीदवारी को छोड़ने की घोषणा करने के लिए मजबूर हुए । जेके गौड़ के सामने रमेश अग्रवाल के इस समर्पण के बाद अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थक जेके गौड़ के समर्थन को लेकर आश्वस्त हो गए ।
दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने हालाँकि तब भी उम्मीद नहीं छोड़ी - उन्होंने जेके गौड़ को यह कहते हुए उकसाना/भड़काना जारी रखा कि तुम तो अच्छी तरह जानते ही हो कि रमेश अग्रवाल भरोसे का आदमी नहीं है; अपना काम निकाल लेगा और फिर अपनी मनमानी करने लगेगा, इसलिए उसके जाल में मत फँसना । अपने इसी तर्क के भरोसे दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को भरोसा है कि जेके गौड़ ने दीपक गुप्ता को ही समर्थन दिया है; जबकि अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों का दावा है कि रमेश अग्रवाल और उनके बीच की तनातनी में जिस तरह से खेमे के दूसरे नेताओं का समर्थन जेके गौड़ को मिला है, उसके चलते जेके गौड़ का खेमे को छोड़ने का कोई कारण नहीं बनता है - और इसलिए जेके का समर्थन अशोक जैन को ही मिला है । जेके गौड़ के पास तीन-चार क्लब हैं, जो 10/12 वोट बनाते/रखते हैं - इसलिए उनका समर्थन चुनाव में महत्त्वपूर्ण हो उठा है । जेके गौड़ का समर्थन वास्तव में किसको मिला, यह तो जेके गौड़ ही जानते होंगे; लेकिन उनके समर्थन को लेकर जिस तरह की छीना-झपटी देखने को मिली - उससे एक बात स्पष्ट है कि दोनों पक्षों को अपनी अपनी जीत के लिए जेके गौड़ का समर्थन जरूरी लगा है; और जेके गौड़ भी दोनों पक्षों को अपने समर्थन का झाँसा देने में सफल रहे हैं । उनके झाँसे की पोल चुनाव का नतीजा आने पर ही खुलेगी । ऐसे में, माना/समझा यही जा रहा कि जो भी उम्मीदवार हारेगा, उसके समर्थक हार का ठीकरा जेके गौड़ के सिर पर ही फोड़ेंगे । हारने वाले उम्मीदवार के समर्थक जेके गौड़ पर धोखाधड़ी का आरोप लगायेंगे - और इस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी नतीजा जेके गौड़ के लिए शामत लाने वाला ही साबित होगा ।

Friday, January 20, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री को प्रतिबंध से बाहर लाने की नरेश अग्रवाल और केएम गोयल की कोशिशें हर्ष बंसल, डीके अग्रवाल व अजय बुद्धराज की मनमानी व नकारात्मक राजनीति के सामने सफल होंगी या दम तोड़ देंगी

नई दिल्ली । हर्ष बंसल, डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज की जो तिकड़ी डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री को प्रतिबंधित कराने के लिए जिम्मेदार थी - लगता है कि वही तिकड़ी अब डिस्ट्रिक्ट के प्रतिबंध से बाहर आने/निकलने की राह का रोड़ा बन रही है । डिस्ट्रिक्ट को प्रतिबंध से बाहर लाने/निकालने की प्रक्रिया से परिचित लोगों का कहना/बताना है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे नरेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री को जल्दी से जल्दी प्रतिबंध से बाहर निकलवाने की पूरी तैयारी कर ली है; दरअसल वह नहीं चाहते हैं कि उनके प्रेसीडेंट-वर्ष में उनके खुद के मल्टीपल का एक डिस्ट्रिक्ट प्रतिबंधित हो । नरेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के झगड़े-टंटों को खत्म करवाने की जिम्मेदारी पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर केएम गोयल को सौंपी हुई है; और जो रिपोर्ट्स बाहर आईं हैं उनसे पता चलता है कि केएम गोयल ने बहुत होशियारी, मेहनत तथा कड़ाई से डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री की तमाम 'गंदगी' को साफ करने में सफलता प्राप्त की है । तिकड़ी समर्थक तीन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के फर्जी किस्म के क्लब्स को स्टेटस-को में डालने में भी उन्होंने कोई हिचक नहीं दिखाई है; और यह बात भी स्पष्ट कर दी है कि इंटरनेशनल के नियमानुसार इन क्लब्स में जल्दी ही सुधार नहीं दिखा तो वह इन्हें बंद कर देने की सिफारिश कर देंगे । नरेश अग्रवाल और केएम गोयल की सदइच्छाओं तथा प्रयासों को देखते हुए डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री तथा मल्टीपल 321 के लोगों को उम्मीद बँधी हैं कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री जल्दी ही प्रतिबंध से बाहर आ जायेगा । लेकिन हर्ष बंसल, डीके अग्रवाल व अजय बुद्धराज की तिकड़ी की हरकतें आभास दे रही हैं कि वह डिस्ट्रिक्ट के प्रतिबंध से बाहर आने के रास्ते में काँटे बोने की पूरी तैयारी कर रहे हैं ।
केएम गोयल के साथ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की जो बात हो रही है, उसमें मामला दरअसल वीके हंस की स्थिति को लेकर अटका हुआ है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट प्रतिबंध से बाहर आयेगा, तो उसमें सबसे पहला काम यह करने का होगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर, फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनें । इस बारे में फैसला यह होना है कि यह तीनों पद कैसे भरे जाएँ : इस मामले में दो विकल्प सामने रखे गए - एक में तीनों पदों के लिए चुनाव होने की बात है, और दूसरे में आपसी रजामंदी से तीनों पदों के लिए तीन नाम तय हो जाने और उन्हें नोमीनेट कर दिए जाने की बात आई । इस मुद्दे पर बात हुई तो एक सुझाव यह आया कि चूँकि वीके हंस अकेले लायन हैं, जो चुनाव जीते हैं, जिनके चुनाव की कोई शिकायत नहीं है, और जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की न्यूनतम शर्तों को पूरा करते हैं - इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर उन्हें नोमीनेट करते हुए बाकी दो पदों के लिए चाहें जो विकल्प अपना लिया जाए । हर्ष बंसल, डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज की तिकड़ी इस सुझाव पर लेकिन बिफरी हुई है - और उसने स्पष्ट कर दिया है कि डिस्ट्रिक्ट भले ही और लंबे समय तक प्रतिबंधित बना रहे, पर वीके हंस किसी भी हालत में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमीनेट नहीं होंगे ।
इस तिकड़ी के रवैये में पेंच यह नहीं है कि वीके हंस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने या न बने; पेंच इस बात पर फँसा है कि वीके हंस के मामले में फैसला किस आधार पर हो - क्या इन तीन की इच्छा से हो, या व्यापक विचार-विमर्श के जरिए बहुमत की राय से हो । इन तीन का रवैया है कि इनकी मानी जाए - बाकी किसी की न सुनी जाए । क्या कोई भी संस्था या संगठन गिने-चुने लोगों की मनमानी पर चल सकता है ? बाकी लोगों का कहना है कि उनकी ऐसी कोई जिद नहीं है कि वीके हंस गवर्नर के पद पर नोमीनेट हो हीं; वह तो सिर्फ यह कह रहे हैं कि जो भी फैसला हो, वह व्यापक विचार-विमर्श के बाद बहुमत की राय लेकर हो । केएम गोयल के साथ हुई पूर्व गवर्नर्स की पिछली मीटिंग में हर्ष बंसल, डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज की तिकड़ी ने नोमीनेट न होने का फैसला जबर्दस्ती 'करवाने' की कोशिश की थी, लेकिन अरुण पुरी के तर्कपूर्ण हस्तक्षेप के चलते उनकी मनमानी चल नहीं पाई । अरुण पुरी ने मुद्दे पर विचार-विमर्श की जरूरत को रेखांकित किया । अन्य लोगों के अनुसार, यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चुनाव यदि होता है - जो कि उक्त तिकड़ी की माँग है, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाले चुनाव में वीके हंस के अलावा डिस्ट्रिक्ट में अन्य कोई क्वालीफाई उम्मीदवार ही नहीं होगा; यानि तिकड़ी के लोग तब फिर झगड़ा खड़ा करेंगे ।
तिकड़ी के तीनों सदस्यों में से हर्ष बंसल की तो वीके हंस के साथ निजी खुन्नस है; डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज चूँकि डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग पड़ गए हैं, इसलिए डिस्ट्रिक्ट में अपने आप को सीन में बनाए रखने के लिए इनके सामने हर्ष बंसल की 'बीन पर नाचने' की मजबूरी है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में इनकी बुरी दशा है - हरियाणा से यह पूरी तरह खदेड़े जा चुके हैं, जहाँ कि 55 क्लब्स में करीब 1100 की सदस्यता है; ले दे कर इनकी दिल्ली में ही उपस्थिति है - जहाँ कि 25 क्लब्स में करीब 500 की सदस्यता है । दिल्ली में भी मुख्य तौर पर इनके पास कुल तीन क्लब्स ही हैं; दिल्ली के इनके बाकी क्लब गए-गुजरे हैं, जिनमें से कुछेक स्टेटस-को में चले गए हैं और उन्हें बंद ही होना है; दिल्ली में जो तीन पूर्व गवर्नर्स इनके विरोध में हैं, उनके पास नौ क्लब्स हैं; सुरेश बिंदल को ये अपने साथ मानते हैं, लेकिन सुरेश बिंदल कई मौकों पर इनकी भारी फजीहत कर चुके हैं । ये तिकड़ी छह और पूर्व गवर्नर्स के समर्थन का दावा तो करती है, लेकिन उक्त पूर्व गवर्नर्स या तो कागजी किस्म के हैं जिनसे अपने अपने क्लब्स तक नहीं संभल रहे हैं - और या जिन्होंने इनकी दुर्गति को देख कर इनसे दूरी बना ली है । इन्हें डिस्ट्रिक्ट में और किसी का सहारा या समर्थन भले ही न हो, लेकिन अपनी नॉनसेंस वैल्यू और नकारात्मक हरकतों का खूब सहारा है । इन्हें भरोसा है कि इनके सहारे यह लायनिज्म में अपना 'धंधा' चलाते रह सकेंगे, डिस्ट्रिक्ट की इन्हें जरूरत ही नहीं है; इसलिए इनकी बला से डिस्ट्रिक्ट रहे या न रहे । देखना दिलचस्प होगा डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री को प्रतिबंध से बाहर लाने/निकालने की नरेश अग्रवाल और केएम गोयल की कोशिशें सफल होती हैं या हर्ष बंसल, डीके अग्रवाल व अजय बुद्धराज की नकारात्मक राजनीति के सामने दम तोड़ देती हैं ?

Wednesday, January 18, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अचानक से प्रस्तुत हुई अनूप मित्तल की उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट के चुनावी परिदृश्य को काफी गर्म करते हुए दूसरे उम्मीदवारों के लिए मुकाबले को खासा कठिन बना दिया है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट 3011 में 'शीत लहर' और 'कोहरे' का शिकार बनी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति में अनूप मित्तल की अचानक हुई एंट्री ने सभी को हक्का-बक्का करते हुए खासी गर्मी पैदा कर दी है । मजे की बात यह रही कि पहले किसी ने भी उम्मीदवारी की अनूप मित्तल की घोषणा को गंभीरता से नहीं लिया : किसी को लगा कि अनूप मित्तल मज़ाक कर रहे हैं, किसी को लगा कि अनूप मित्तल अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार होना चाहते हैं और उसकी तैयारी के तहत उन्होंने इस वर्ष से ही अपने आप को लाइन में लगा लिया है; कोई कोई और दूर की सोच बैठे तथा बताने लगे कि अनूप मित्तल मौजूदा उम्मीदवारों में से किसी उम्मीदवार के वोट काटने और उसे नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से उम्मीदवार बने हैं; आदि-इत्यादि । इस तरह, शुरू के दो-चार दिन तो अनूप मित्तल की उम्मीदवारी को लेकर 'जितने मुँह उतनी बातें' वाला मामला था । लेकिन लोगों ने जब अनूप मित्तल को अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु दौड़-भाग करते हुए देखा/सुना, तब जाकर लोगों को यकीन हुआ कि अनूप मित्तल अपनी उम्मीदवारी को लेकर बहुत गंभीर हैं, और बहुत सोच-विचार कर ही इस समय उन्होंने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की है ।
उल्लेखनीय है कि अनूप मित्तल की उम्मीदवारी की चर्चा हाल-फिलहाल के वर्षों में सुनी जाती रही थी; रोटरी में उनकी सक्रियता और संलग्नता को देखते हुए पिछले तीन-चार वर्षों में चुनावी राजनीति के खिलाड़ी नेता उन्हें उम्मीदवार बनने के लिए प्रेरित करते रहे हैं; पिछले तीन-चार वर्षों में उनकी उम्मीदवारी प्रस्तुत होने का इतना 'डर' रहा है कि उम्मीदवार बनने वाले कुछेक लोग तो टोह लेने और उनकी उम्मीदवारी न आने के प्रति आश्वस्त होने के बाद ही उम्मीदवार बने - इस बार भी, अब जब अनूप मित्तल उम्मीदवार हो गए हैं तो कुछेक उम्मीदवारों ने रोना रोया है कि वह तो अनूप मित्तल के भरोसे थे और उन्हें पता होता कि अनूप मित्तल उम्मीदवार होंगे तो वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत ही न करते । दरअसल इसी तरह की बातों के कारण अनूप मित्तल की उम्मीदवारी बहुत देर से प्रस्तुत होने के बाद भी महत्त्वपूर्ण हो चुकी है । अनूप मित्तल की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने की टाइमिंग ने भी उनकी उम्मीदवारी के संदर्भ को खासा रहस्यपूर्ण तथा महत्त्वपूर्ण बना दिया है । कायदे से और व्यवहारतः अनूप मित्तल की उम्मीदवारी जब प्रस्तुत हुई है, तब तक तो इस वर्ष का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव - या चुनाव की प्रक्रिया को शुरू हो जाना चाहिए था । इससे लगता है कि अनूप मित्तल की इस वर्ष उम्मीदवार बनने की कोई तैयारी नहीं थी । ऐसे में क्या यह सिर्फ एक संयोग होगा या इसके पीछे कोई सुनियोजित योजना होगी कि एक तरफ तो चुनाव लेट-लतीफी का शिकार हुआ, और दूसरी तरफ अचानक से अनूप मित्तल उम्मीदवार बन गए । कुछेक लोगों ने शक भी प्रकट किया कि क्या अनूप मित्तल की उम्मीदवारी को मौका देने के लिए ही जानबूझ कर चुनाव को लेट किया गया है ?
अधिकतर लोगों का मानना हालाँकि यह है कि इस वर्ष के चुनावी माहौल में जोश व उत्साह का जो अभाव पैदा हुआ, और उसके कारण लोगों के बीच असमंजसता की जो स्थिति बनी - उसे अपने लिए अनुकूल मान/समझ कर अनूप मित्तल चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं । उल्लेखनीय है कि इस वर्ष का चुनावी माहौल पूरी तरह से थका-थका सा बन गया था; उम्मीदवार दौड़ते-भागते कम, अपनी अपनी थकान उतारते हुए ज्यादा देखे/पाए जा रहे थे - उम्मीदवारों के थकाऊ व्यवहार ने लोगों को भी निराश किया हुआ था । इस कारण से चुनावी माहौल पूरी तरह असमंजसपूर्ण और अनिश्चितताभरा हो गया था : उम्मीदवार कंफ्यूज थे कि अपने पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए वह करें तो क्या करें; लिहाजा मतदाता और दूसरे लोग कंफ्यूज हुए कि अपना भावी गवर्नर वह किसे चुने ? सभी उम्मीदवार हालाँकि अपने अपने तरीके से अपनी अपनी उम्मीदवारी को लेकर सक्रिय थे, और जिस जिस से मिलना जरूरी समझ रहे थे - उससे मिलजुल भी रहे थे, अधिकतर से तो वे कई कई बार मिल चुके थे; लेकिन चुनावी माहौल में वह कोई गर्मी पैदा नहीं कर पा रहे थे । चुनावी माहौल पूरी तरह 'कोहरे' में फँसा नजर आ रहा था, जहाँ हर किसी के लिए भी समझना मुश्किल हो रहा था कि वह आगे बढ़े तो कैसे बढ़े; उम्मीदवारों के व्यवहार में 'शीत लहर' वाली ठंडक का अहसास हो रहा था, जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के संदर्भ में चुनावी माहौल में पूरी तरह बर्फ जमी लग रही थी ।
अनूप मित्तल की अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने इस बर्फ को तोड़ने का काम किया है । चुनावी माहौल में गर्मी सिर्फ इसलिए नहीं पैदा हुई कि उम्मीदवारों की संख्या में एक और उम्मीदवार का इजाफा हो गया है - गर्मी इसलिए पैदा हुई क्योंकि अनूप मित्तल की उम्मीदवारी ने दूसरे सभी उम्मीदवारों के सत्ता समीकरणों को बुरी तरह से तहस-नहस कर दिया है । अनूप मित्तल और उनके नजदीकी 12/15 क्लब्स का एक ग्रुप बनाते/चलाते/रखते बताए जाते हैं, जिनके करीब 30/35 वोट हैं; इन वोटों के लिए कुछेक उम्मीदवार पिछले महीनों में अनूप मित्तल और उनके नजदीकियों का समर्थन पाने की कोशिश करते रहे हैं । अब अनूप मित्तल के खुद उम्मीदवार बन जाने से उनकी वह सारी कोशिश और उस कोशिश के चलते उनके पक्ष में बन सकने वाले समीकरण स्वाभाविक रूप से गड़बड़ा गए हैं ।  
अनूप मित्तल की उम्मीदवारी देर से जरूर प्रस्तुत हुई है, किंतु उनकी सक्रियता किसी भी दूसरे उम्मीदवार के मुकाबले ज्यादा ही देखी/पहचानी गई है । लोगों ने ही हिसाब लगा के पाया/बताया है कि अनूप मित्तल ने उम्मीदवार न होने के बावजूद जितने क्लब्स के अधिष्ठापन समारोहों में शिरकत की है, उतनी शिरकत तो किसी एक उम्मीदवार ने नहीं की है । डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में भी उनकी ऐसी संलग्नता व सक्रियता रही, जो लोगों को दिखाई भी दी है । लोगों के बीच परिचय, पहचान और संवाद के मामले में अनूप मित्तल किसी भी दूसरे उम्मीदवार के मुकाबले इक्कीस ही ठहरेंगे । इन्हीं कारणों से, अनूप मित्तल की अचानक प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवारों के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया है । उनके समर्थक हालाँकि उन्हें समझा रहे हैं कि अनूप मित्तल को उम्मीदवार के रूप में सक्रिय होने का चूँकि कम समय मिला है, इसलिए वह तेज चलेंगे - 'बर्फ' और 'कोहरे' में तेज चलने पर 'दुर्घटनाग्रस्त' होने का खतरा होता ही है; इसलिए इंतज़ार करो, अनूप मित्तल अवश्य ही गलती करेंगे । अनूप मित्तल गलती करेंगे या नहीं, और उनकी संभावित गलती उनकी उम्मीदवारी को किस तरह से प्रभावित करेगी - यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन यह जरूर पता चल रहा है कि अचानक से प्रस्तुत हुई अनूप मित्तल की उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट के चुनावी परिदृश्य को काफी गर्म कर दिया है, और दूसरे उम्मीदवारों के लिए मुकाबले को खासा कठिन बना दिया है ।

Tuesday, January 17, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मधु सिंह की उम्मीदवारी का रास्ता आसान बनाने के लिए विरोधी खेमे के नेताओं को बड़े प्यार से पोपट बनाने की पारस अग्रवाल की 'कलाकारी' की पोल खुली

आगरा । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पारस अग्रवाल ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत मधु सिंह की उम्मीदवारी के विरोधी पूर्व गवर्नर्स के कंधे पर हाथ रखे रखे उनकी पीठ में जिस तरह से छुरा भोंक दिया है, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्प नजारा पैदा हो गया है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अब साफ हुआ कि सुमित गुप्ता को उम्मीदवार बनाने के पीछे पारस अग्रवाल की चाल वास्तव में यह थी कि ऐन मौके पर सुमित गुप्ता की उम्मीदवारी वापस हो जाएगी - या वापस करवा दी जाएगी, और मधु सिंह के लिए रास्ता सुगम हो जाएगा । पारस अग्रवाल की इस चाल की पोल दरअसल अजय भार्गव के उम्मीदवार बनने की तैयारी में अड़ंगा डालने की पारस अग्रवाल की कोशिशों के चलते खुल गई । कह सकते हैं कि अजय भार्गव की तैयारी ने पर्दे के पीछे से चाल चल रहे पारस अग्रवाल को पर्दा हटा कर सामने आने के लिए मजबूर कर दिया; अन्यथा उनके लिए 'साँप भी मर जाने और लाठी भी न टूटने' वाली स्थिति साफ साफ बन रही थी । पारस अग्रवाल की चाल के सामने आने से विरोधी खेमे के नेताओं ने अपने आप को ठगा हुआ पाया है और वह एक तरह की आत्मग्लानी में हैं कि पारस अग्रवाल ने कितनी सफाई से उनका 'पोपट' बना दिया ।
उल्लेखनीय है कि पारस अग्रवाल ने पिछले लायन वर्ष में मधु सिंह की उम्मीदवारी का समर्थन किया था; उनके समर्थन के बावजूद हालाँकि मधु सिंह चुनाव नहीं जीत सकीं थीं - मधु सिंह की उम्मीदवारी का समर्थन करने के चलते उन्हें नेगेटिव वोट लेकिन खूब पड़ गए थे । उक्त नतीजे ने पारस अग्रवाल को बुरी तरह निराश किया, और इस निराशा में उन्होंने जीतने वाले लोगों के साथ मेल-मिलाप शुरू किया और यह आभास दिया कि उन्होंने पाला बदल लिया है । मौजूदा लायन वर्ष में मंजु सिंह की उम्मीदवारी जब पुनः प्रस्तुत होती हुई दिखी, तो पारस अग्रवाल ने अपने नजदीकी सुमित गुप्ता की उम्मीदवारी की बात चला दी । इससे पारस अग्रवाल के पाला बदलने की बात पर मोहर भी लग गई । सभी ने विश्वास किया कि पारस अग्रवाल जब मधु सिंह की उम्मीदवारी के खिलाफ अपना उम्मीदवार ले आए हैं, तो यह बात तो पक्की ही है कि मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं से वह दूर हो गए हैं । मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के कहे में चल रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल ने जिस तरह कई मौकों पर उन्हें उपेक्षित और अलग-थलग रखा, उससे भी इस बात की पुष्टि ही हुई । मजे की बात यह रही कि जब भी एक उम्मीदवार के रूप में सुमित गुप्ता की निष्क्रियता की बात उठती, पारस अग्रवाल उनकी तरफदारी में तर्क देते कि अभी बहुत समय है और उचित समय आने पर सुमित गुप्ता सक्रिय हो जायेंगे ।
सुमित गुप्ता लेकिन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के संदर्भ में सक्रिय हुए बिना ही अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटते हुए नजर आए । यहाँ तक सारा खेल ठीक चला - किसी को शक भी नहीं हुआ कि पर्दे के पीछे आखिर हो क्या रहा है ? सारा खेल लेकिन बिगड़ा अभी तब जब अजय भार्गव सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी शुरू करते हुए सुने गए - और पारस अग्रवाल ने अजय भार्गव को यह कहते हुए हतोत्साहित करने का काम किया कि इस बार मधु सिंह को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन जाने दो, तुम अगले वर्ष आ जाना । अजय भार्गव को हतोत्साहित करने की पारस अग्रवाल की कोशिश के बारे में जान/सुन कर विरोधी खेमे के नेता सकते में आ गए, और उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि पारस अग्रवाल उनके बीच वास्तव में 'भेदिये' के रूप में थे - और पारस अग्रवाल ने कोई पाला नहीं बदला था, उन्होंने बस अपनी रणनीति बदली थी । विरोधी खेमे में वह विरोधी खेमे को भीतर से कमजोर करने के लिए ही शामिल हुए थे, और इस तरह उनकी योजना विरोधी खेमे के नेताओं को बेवकूफ बना कर मधु सिंह की उम्मीदवारी के लिए रास्ता आसान बनाना था । अजय भार्गव बीच में न आए होते, तो उनकी योजना बड़े आराम से पूरी होती और कोई उनकी योजना के बारे में जान भी न पाता ।
अजय भार्गव के 'सीन' में आने की स्थिति भी खासी दिलचस्प है : अजय भार्गव इस वर्ष कैबिनेट सेक्रेटरी बनाए गए थे, किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल तथा मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व गवर्नर्स के रवैये के चलते उन्होंने जल्दी ही कैबिनेट सेक्रेटरी पद से इस्तीफा दे दिया । मजे की बात यह रही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल ने तुरंत से उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया, और उनकी जगह किसी और को कैबिनेट सेक्रेटरी बना दिया । किंतु अब सीपी सिंघल ने अचानक से उन्हें कैबिनेट सेक्रेटरी के रूप में फिर से काम शुरू करने के लिए मनाना शुरू कर दिया है । अलीगढ़ में होने वाली तीसरी कैबिनेट मीटिंग के निमंत्रण पत्र में सीपी सिंघल ने फर्जीवाड़ा करके अजय भार्गव के हस्ताक्षर के साथ उनका नाम कैबिनेट सेक्रेटरी के रूप में छापा है । अजय भार्गव ने इस पर कड़ी आपत्ति करते हुए एक सख्त संदेश लिखा है । पारस अग्रवाल और सीपी सिंघल के जरिए मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने अजय भार्गव को फुसलाने/पटाने की जो कोशिशें शुरू की हैं - और जिसके तहत फर्जीवाड़ा तक किया गया है, उसके पीछे उनका वास्तविक उद्देश्य अजय भार्गव को उम्मीदवार बनने से रोकने का है ।
अजय भार्गव रुकेंगे या नहीं - यह तो आगे पता चलेगा; अजय भार्गव के चक्कर में लेकिन पारस अग्रवाल की जो पोल खुली है, उसने डिस्ट्रिक्ट में दिलचस्प नजारा पेश कर दिया है । पारस अग्रवाल की धोखाधड़ी पर विरोधी खेमे के नेताओं ने गहरी नाराजगी व्यक्त की है, और कुछेक ने तो साफ-साफ कहना भी शुरू कर दिया है कि इस धोखाधड़ी के लिए पारस अग्रवाल को कीमत तो चुकानी पड़ेगी । पारस अग्रवाल लेकिन पोल खुलने के बाद भी निश्चिन्त हैं; अपने नजदीकियों से उन्होंने कहा है कि विरोधी खेमे के नेता नेगेटिव वोट डलवाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकेंगे, इसलिए उनकी ज्यादा परवाह करने की जरूरत नहीं है । यह देखना दिलचस्प होगा कि विरोधी खेमे के नेताओं को बड़े प्यार से पोपट बनाने की पारस अग्रवाल की 'कलाकारी' डिस्ट्रिक्ट के सत्ता समीकरणों को किस प्रकार प्रभावित करेगी ।

Sunday, January 15, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के आयोजनों में रजिस्ट्रेशन न कराने के मुद्दे पर हो रही नरेश अग्रवाल की फजीहत का ठीकरा शान ट्रैवल्स के सिर फोड़ कर केएम गोयल एक तीर से दो शिकार करने का काम कर रहे हैं क्या ?

नई दिल्ली । लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 डी के लायन सदस्यों व पदाधिकारियों के इसामे फोरम में रजिस्ट्रेशन न कराने के मामले में नरेश अग्रवाल की हो रही फजीहत का ठीकरा क्या शान ट्रैवल्स पर फोड़ने की तैयारी की जा रही है; और क्या पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर केएम गोयल इस मामले को वास्तव में हवा दे रहे हैं ? उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 321 डी इस समय इसलिए निशाने पर है, क्योंकि अभी पिछले दिनों ही कोलम्बो में हुई इसामे फोरम की मीटिंग में इस डिस्ट्रिक्ट से गए तो डेढ़ सौ से अधिक लोग - लेकिन वहाँ रजिस्ट्रेशन करीब बीस/पच्चीस लोगों का ही हुआ । मल्टीपल के लोगों के बीच सवाल यह चर्चा में है कि डिस्ट्रिक्ट के जो लोग इसामे फोरम की मीटिंग में शामिल होने के नाम पर कोलम्बो गए थे - उन्होंने वहाँ हुई मीटिंग के लिए जब रजिस्ट्रेशन ही नहीं कराया, यानि जब वह मीटिंग में शामिल ही नहीं हुए, तो वह वहाँ आखिर करने क्या गए थे ? यह प्रश्नाकुल आरोप भी सुनने को मिले कि लायनिज्म के नाम पर कहीं 'कबूतरबाजी' तो नहीं हो रही है । मामला इतना गंभीर हो उठा कि मल्टीपल काउंसिल की दिल्ली में हुई मीटिंग में मल्टीपल के इसामे चेयरमैन मुकुंदलाल टंडन ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए इस मामले को उठाया, और इस तरह की हरकतों को रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने की जरूरत को रेखांकित किया । इस मामले में लायंस इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट बनने जा रहे नरेश अग्रवाल की भारी फजीहत हुई, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट 321 डी उन्हीं का डिस्ट्रिक्ट है । उनके डिस्ट्रिक्ट से इस बार शिकागो में हो रही इंटरनेशनल कन्वेंशन में काफी लोगों के जाने की चर्चा है । इसामे फोरम में जो हुआ, उसके हवाले से सवाल उठे कि नरेश अग्रवाल के डिस्ट्रिक्ट से शिकागो जाने वालों में कितने लोग सचमुच में वहाँ रजिस्ट्रेशन करवायेंगे ? इस तरह के सवालों से जाहिर हुआ कि इसामे फोरम में जाने वाले डिस्ट्रिक्ट 321 डी के सदस्यों व पदाधिकारियों की हरकतों के कारण नरेश अग्रवाल निशाने पर आ रहे हैं, और वह फजीहत का शिकार बन रहे हैं ।
नरेश अग्रवाल को फजीहत से बचाने के लिए उनके कुछेक नजदीकी आगे आए और उनकी तरफ से सुझाव दिए/सुने गए कि लायन सदस्यों व पदाधिकारियों की यात्रा की व्यवस्था करने वाली कंपनी शान ट्रैवल्स को ही रजिस्ट्रेशन करवाने की जिम्मेदारी सौंप दी जानी चाहिए । उल्लेखनीय है कि शान ट्रैवल्स लायंस सदस्यों व पदाधिकारियों की अधिकृत ट्रैवल एजेंट है और वही शिकागो के लिए बुकिंग कर रही है । लायंस इंटरनेशनल के आयोजनों में लायंस सदस्यों व पदाधिकारियों के रजिस्ट्रेशन की जिम्मेदारी शान ट्रैवल्स को सौंपने की बात कई लायन सदस्यों व पदाधिकारियों को नागवार गुजरी है । इनका कहना है कि नरेश अग्रवाल में क्या इतनी नैतिक अपील भी नहीं है कि वह यह सुनिश्चित कर सकें कि उनके डिस्ट्रिक्ट के जो लोग लायंस इंटरनेशनल के आयोजनों के नाम पर बाहर जायेंगे, वह अपना रजिस्ट्रेशन जरूर करवायेंगे । यह समस्या सिर्फ डिस्ट्रिक्ट 321 डी की ही नहीं है; जानकारों का कहना है कि इस तरह की हरकतें दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोग भी करते हैं - यह जरूर है कि दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में ऐसी हरकतें गिने-चुने लोग करते हैं, जबकि नरेश अग्रवाल के डिस्ट्रिक्ट में इस तरह की हरकतें करने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा होती है । लायंस सदस्यों व पदाधिकारियों का मानना और कहना है कि इस समस्या को हल करने की जिम्मेदारी शान ट्रैवल्स पर थोपने की बजाए लायंस पदाधिकारियों को ही लेनी चाहिए; वही इस समस्या को हल भी कर सकते हैं ।
मजे की बात यह हुई है कि इस मामले में शान ट्रैवल्स की तरफदारी करने वाले लायंस सदस्यों व पदाधिकारियों की नाराजगी नरेश अग्रवाल के साथ-साथ केएम गोयल पर भी निकल रही है । नरेश अग्रवाल को तो यह कहते हुए निशाना बनाया जा रहा है कि नरेश अग्रवाल अपनी नाकामी और फजीहत से बचने के लिए शान ट्रैवल्स को बलि का बकरा बनाने की कोशिश कर रहे हैं; और केएम गोयल पर आरोप यह सुना जा रहा है कि इस मामले की आड़ में शान ट्रैवल्स को परेशान करके वह अपनी बेटी की ट्रैवल कंपनी के लिए काम निकालने का मौका देख रहे हैं । केएम गोयल के डिस्ट्रिक्ट के लोगों का ही कहना/बताना है कि केएम गोयल को इस बात का बड़ा अफसोस है कि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर होने के बावजूद वह अपनी बेटी की कंपनी को लायंस में काम नहीं दिलवा सके हैं; वह कई बार विभिन्न मौकों पर इस बात पर हैरानी जता चुके हैं और लोगों से पूछ चुके हैं कि लायंस का सारा काम शान ट्रैवल्स को ही क्यों मिल जाता है ? इस वर्ष उनके डिस्ट्रिक्ट के जगदीश वर्मा मल्टीपल काउंसिल के चेयरमैन हैं; लेकिन जगदीश वर्मा ने भी शान ट्रैवल्स को ही वरीयता दी और उसे ही काम सौंपा ।
केएम गोयल के डिस्ट्रिक्ट के लोगों को ही लगता है कि ऐसे में, लायंस इंटरनेशनल के आयोजनों में रजिस्ट्रेशन न कराने के मुद्दे पर जो बबाल मचा है - उसकी आड़ में केएम गोयल को शान ट्रैवल्स को फँसाने का अच्छा मौका मिला है । लोगों को लगता है कि रजिस्ट्रेशन कराने की जिम्मेदारी शान टैवल्स के माथे मढ़ने की बात करके केएम गोयल एक तीर से दो शिकार करने का काम कर रहे हैं - एक तरफ तो उन्हें शान ट्रैवल्स के खिलाफ मोर्चा खोलने का मौका मिला है, और दूसरी तरफ ऐसा करके उन्होंने नरेश अग्रवाल के और नजदीक होने का प्रयास किया है । लोगों का कहना है कि नरेश अग्रवाल के साथ इन दिनों हालाँकि केएम गोयल की ठीक बनी हुई है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि नरेश अग्रवाल की फजीहत का ठीकरा शान ट्रैवल्स के सिर फोड़ कर वह नरेश अग्रवाल के और नजदीक हो जायेंगे । यानि समस्या को ठीक से समझने/पहचानने तथा उसे हल करने में किसी की दिलचस्पी नहीं है, और जिन पर समस्या को हल करने की जिम्मेदारी है - वह अपने अपने तरीके से मामले को अपने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने में लगे हैं ।

Saturday, January 14, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में विशाल सिन्हा की बदनामी योगेश सोनी के लिए वरदान तो बनी, लेकिन काउंसिल चेयरमैन पद के लिए विनय गर्ग की स्थिति उनके लिए अभी भी चुनौती बनी हुई है

लखनऊ । अभी हाल तक पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना की खुशामद का कोई मौका न छोड़ने वाले विशाल सिन्हा, अब उन्हें चुन चुन कर गालियाँ देते हुए मल्टीपल काउंसिल में कोई भी पद फिक्स करने के जुगाड़ में लग गए हैं । मल्टीपल काउंसिल की अभी हाल ही में दिल्ली में हुई दूसरी मीटिंग में विनोद खन्ना को अगले मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर योगेश सोनी को बढ़ावा देते देख विशाल सिन्हा को खासा तगड़ा वाला झटका लगा । कुछेक लोगों से उन्होंने कहा भी कि विनोद खन्ना के लिए उन्होंने क्या क्या नहीं किया, लेकिन विनोद खन्ना इतना अहसानफरामोश निकलेंगे - उन्हें यह उम्मीद नहीं थी । विशाल सिन्हा के नजदीकियों के अनुसार, विनोद खन्ना के रवैये को लेकर विशाल सिन्हा ने पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर जगदीश गुलाटी से भी बात की - लेकिन जगदीश गुलाटी ने उन्हें साफ साफ बता दिया कि विनोद खन्ना को चूँकि तुम्हारे जीतने की कोई उम्मीद नहीं है, इसलिए उन्होंने तुम पर भरोसा छोड़ दिया है । विशाल सिन्हा ने प्रयास किया कि गुरनाम सिंह उनका बिगड़ा काम बचाने/बनाने के लिए विनोद खन्ना से बात करें; लेकिन लगता है कि गुरनाम सिंह ने या तो विनोद खन्ना से बात की नहीं, और या उनकी बात बनी नहीं । दिल्ली से लौट कर विशाल सिन्हा ने विनोद खन्ना को 'सँभालने' के लिए जो प्रयास किए, उनके विफल रहने के बाद विशाल सिन्हा फिर अपने असली रूप में आ गए हैं - और विनोद खन्ना के खिलाफ उन्होंने आरोपों व गालियों की झड़ी लगा दी है । विशाल सिन्हा के बारे में अब यह बात खूब मशहूर हो चुकी है कि अपना काम बनाने के लिए वह खुशामद भी जोरशोर से कर लेते हैं, और काम निकल जाने या सामने वाले को अपने अनुकूल न जाते देख फिर वह उसे गालियाँ देने में भी कोई कमी नहीं रहने देते हैं । इसी तर्ज पर उनकी खुशामद को एन्जॉय कर चुके विनोद खन्ना के लिए अब उनकी गालियाँ सुनने का अवसर है ।
विनोद खन्ना मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए जिस तरह से योगेश सोनी की उम्मीदवारी का झंडा उठाते हुए दिखे हैं, उससे विशाल सिन्हा को अपना खेल बुरी तरह पिटता हुआ दिख गया है । इसीलिए उनका पारा सातवें आसमान पर है, और उनके क्रोध के निशाने पर विनोद खन्ना हैं । इसके साथ ही विशाल सिन्हा ने लेकिन यह जुगाड़ भी बैठाना शुरू कर दिया है कि चेयरमैन न सही, मल्टीपल काउंसिल में उन्हें और कोई पद ही मिल जाए । विशाल सिन्हा के सामने समस्या दरअसल यह है कि उन्होंने भाँप लिया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से उतरने के बाद अपने ही डिस्ट्रिक्ट में उनकी बुरी हालत होने वाली है; और अगले लायन वर्ष से ही इसका नजारा लोगों को देखने को मिल जायेगा । अपनी हरकतों और कारस्तानियों से उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में अपनी हालत ऐसी बेचारगी भरी कर ली है कि इसके संकेत अभी से मिलने शुरू हो गए हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच उनके प्रति विरोध को देखते हुए ही उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए कोई उम्मीदवार ही नहीं मिला; मौजूदा लायन वर्ष के शुरू में उनके जो दो उम्मीदवार थे भी, असलियत देख कर वह भी भाग/बच लिए । विशाल सिन्हा को मजबूरी में विरोधी खेमे के उम्मीदवार को ही अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है । ऐसे में, विशाल सिन्हा को लगता है कि अगले लायन वर्ष में उनके पास मल्टीपल में यदि कोई पद होगा - तो उनकी थोड़ी बहुत पूछ-परख तो कम से कम बनी रहेगी । विशाल सिन्हा के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि जिन कारणों से उन्हें मल्टीपल काउंसिल में कोई भी पद चाहिए; ठीक उन्हीं कारणों से वह मल्टीपल की राजनीति में पीछे धकेल दिए गए हैं । समझा जाता है कि विनोद खन्ना ने मल्टीपल के दूसरे बड़े नेताओं को बताया/समझाया है कि विशाल सिन्हा अपनी बदनामी के चलते जब किसी भी काम के नहीं रह गए हैं, तो उन्हें ढोने से भला क्या फायदा ?
विशाल सिन्हा की बदनामी ने योगेश सोनी के लिए वरदान का काम किया । कोलम्बो में हुए इसामे फोरम में जेपी सिंह जैसों के समर्थन से योगेश सोनी की उम्मीदवारी को जो 'हवा' मिली थी, विनोद खन्ना की शह से वह और भड़क उठी है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के संदर्भ में योगेश सोनी की सबसे बड़ी उपलब्धि अपने डिस्ट्रिक्ट में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केके साहनी का समर्थन पाना रहा । केके साहनी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आनंद साहनी के पिता हैं । डिस्ट्रिक्ट और मल्टीपल में लोगों को योगेश सोनी की उम्मीदवारी को आनंद साहनी के समर्थन के प्रति संदेह रहा है; इसलिए अब जब लोगों को आनंद साहनी के पिता केके साहनी ही योगेश सोनी की उम्मीदवारी का झंडा उठाए नजर आ रहे हैं, तो उक्त संदेह खुद-ब-खुद दूर होता हुआ दिख रहा है । योगेश सोनी की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर लेकिन खुद योगेश सोनी से ही है । उनकी शिकायत है कि योगेश सोनी अपनी उम्मीदवारी को लेकर खुद ज्यादा सक्रिय नहीं 'दिख' रहे हैं, और उनके मामले में 'मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त' वाला मामला है । समर्थकों व शुभचिंतकों का कहना है कि योगेश सोनी यदि खुद ठीक से सक्रिय नहीं होते हैं और अपनी उम्मीदवारी को आक्रामक स्वरूप नहीं देते हैं, तो फिर अपने संभावित समर्थकों को खो देने का ही काम करेंगे । जैसा कि दिल्ली में आयोजित हुई मल्टीपल काउंसिल की दूसरी मीटिंग में देखने को मिला - जहाँ शुरू में योगेश सोनी के पक्ष में माहौल बनता हुआ दिखा, लेकिन फिर धीरे-धीरे उनके समर्थन में जुटे लोग उनकी उम्मीदवारी के प्रति सशंकित होकर खिसकने लगे ।
योगेश सोनी के समर्थकों व शुभचिंतकों को ही लगता है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए उनका मुकाबला जिन डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के गवर्नर विनय गर्ग से होने की संभावना है, उन विनय गर्ग ने मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच पैठ बनाने से लेकर लीडरशिप के बीच भी जिस तरह से समर्थन जुटाने का काम किया है - उसके कारण योगेश सोनी के लिए मुकाबला तगड़ा होगा । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए विनय गर्ग के अभियान में जो सुनियोजित रणनीति है, और लीडरशिप के नजदीक समझे जाने वाले तेजपाल सिंह खिल्लन का उन्हें जैसा समर्थन मिलता दिख रहा है, उसके कारण वह एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हैं । विनय गर्ग की उम्मीदवारी को इस तथ्य से भी खासा बल मिला है, जिसमें अगले लायन वर्ष में नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-काल में मल्टीपल में जिस तरह की लीडरशिप की जरूरत को पहचाना जा रहा है - उसमें विनय गर्ग को पूरी तरह से परफेक्ट माना/देखा जा रहा है । दरअसल मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद का चुनाव नरेश अग्रवाल के नजदीकियों के बीच के मुकाबले के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है - जो विनय गर्ग और योगेश सोनी को आगे करके अपना वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास करेंगे । योगेश सोनी के समर्थक भी मानते हैं कि योगेश सोनी के मुकाबले विनय गर्ग की तैयारी में आक्रामकता का भाव भी है और सुनियोजन भी है; जिसके चलते योगेश सोनी के सामने अपने लिए समर्थन जुटाने और फिर उस समर्थन को बनाए रखने की गंभीर चुनौती है ।

Thursday, January 12, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में लायंस ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद से मुकेश गोयल का संभावित इस्तीफा जेपी सिंह के लिए फजीहत भरा तथा गुरचरण सिंह के लिए परेशानी बढ़ाने वाला ही साबित होगा

नई दिल्ली । मुकेश गोयल के लायंस ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद से इस्तीफा दे देने के लिए तैयार हो जाने की खबरों ने गुरचरण सिंह को तो खुश किया है, लेकिन उनके सबसे बड़े समर्थक जेपी सिंह को बुरी तरह से परेशान किया है - और इस तरह गुरुचरण सिंह की खुशी को तुरंत से निराशा व मुसीबत में बदल दिया है । मजे की बात यह हुई है कि गुरचरण सिंह तो इस खबर को अपनी नैतिक जीत के रूप में देख रहे हैं, लेकिन जेपी सिंह के लिए यह खबर नैतिक रूप से लज्जित करने वाली तो है ही - साथ ही उनकी मुसीबत बढ़ाने वाली भी है । उल्लेखनीय है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत मुकेश गोयल की उम्मीदवारी के खिलाफ जेपी सिंह खेमे की तरफ से लगातार यह सवाल उठाया जा रहा था कि मुकेश गोयल ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद पर होते हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर अपना दावा कैसे पेश सकते हैं; डिस्ट्रिक्ट में सारे पद उन्हीं के पास क्यों होने चाहिएँ ? मुकेश गोयल और उनके समर्थक नेताओं ने इस सवाल को अनसुना करने का काम किया; और जहाँ कहीं जबाव देना जरूरी भी हुआ वहाँ तर्क दिया कि मुकेश गोयल दोनों पदों को एक दूसरे के पूरक के रूप में इस्तेमाल करने की काबिलियत रखते हैं, और इसलिए उनके गवर्नर होने से लायंस ब्लड बैंक का काम बढ़ेगा भी और व्यवस्थित भी होगा । इससे साफ हो गया कि मुकेश गोयल ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद से इस्तीफा नहीं देंगे, जिसके चलते विरोधियों ने 'अपने' सवाल को जोरशोर से उठाना शुरू कर दिया । उन्हें लगा कि इस सवाल के जरिए वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच मुकेश गोयल की छवि पद-लोभी की बना सकेंगे और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में गुरचरण सिंह के पक्ष में फायदा उठा सकेंगे ।
जेपी सिंह खेमे की यह चाल सफल होती हुई दिखी, और मुकेश गोयल तथा उनके समर्थक नेता दबाव में आते हुए नजर आए । यही कारण रहा कि मुकेश गोयल पर ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद से इस्तीफा देने के लिए 'अपनों' का भी दबाव बढ़ने लगा । मुकेश गोयल के शुभचिंतकों ने ही उन्हें समझाया कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में उन्हें लोगों का प्रभावी समर्थन मिलता नजर आ रहा है, जिस कारण से चुनाव में उनके जीतने की अच्छी संभावना है - इस संभावना को ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद के चक्कर में वह खतरे में क्यों डाल रहे हैं ? इस समझाइस का नतीजा यह हुआ कि मुकेश गोयल ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद से इस्तीफा देने के लिए अंततः राजी हो गए हैं; और डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच चर्चा है कि किसी भी दिन ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद से उनके इस्तीफे की औपचारिक घोषणा हो सकती है ।
इस चर्चा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मुकेश गोयल के प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार गुरचरण सिंह का तो मनोबल बढ़ाया है, लेकिन गुरचरण सिंह के सबसे बड़े समर्थक जेपी सिंह के सामने बड़ा भारी संकट खड़ा कर दिया है । दरअसल जेपी सिंह समझ रहे हैं कि ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद से मुकेश गोयल के इस्तीफे के बाद, उनके विरोधी उन पर दबाव बनायेंगे कि वह इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के लिए उम्मीदवार बनना चाहते हैं, तो उन्हें मुकेश गोयल का अनुसरण करते हुए जीएलटी एरिया लीडर पद से इस्तीफा दे देना चाहिए । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की दूसरी कैबिनेट मीटिंग में यह बात जोरशोर के साथ कही ही गई थी कि जीएलटी एरिया लीडर के रूप में जेपी सिंह ने लायंस इंटरनेशनल में अपनी पहचान बनाई ही हुई है, इसलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर (एंडोर्सी) का पद उन्हें छोड़ देना चाहिए ताकि दूसरे लोगों को भी आगे बढ़ने का मौका मिले - और जेपी सिंह को पदों के लोभी/लालची व्यक्ति की तरह सारे ही पद अपने पास रखने का प्रयास नहीं करना चाहिए । जेपी सिंह अभी तक तो इस तरह की बातों को एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देते रहे हैं, लेकिन वह भी समझ रहे हैं कि ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद से मुकेश गोयल का इस्तीफा हो जाने के बाद उनके लिए दोनों कानों का उपयोग करने वाली बेशर्मी को धारण किए रहना मुश्किल होगा ।
जेपी सिंह के लिए विडंबना की बात यह हुई है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में मुकेश गोयल को 'गिराने' के लिए 'एक व्यक्ति एक पद' का नारा उन्होंने ही लगाया/लगवाया था; उन्हें उम्मीद नहीं थी कि मुकेश गोयल ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद को छोड़ने के लिए राजी हो जायेंगे - उन्हें इस बात का भी अंदाजा नहीं था कि वह जो गड्ढा मुकेश गोयल के लिए खोद रहे हैं, उसमें गिरने से मुकेश गोयल खुद को तो बचा लेंगे - लेकिन उन्हें धकेल देंगे । उम्मीद की जा रही है कि ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद से मुकेश गोयल का इस्तीफा हो जाने के बाद सत्ता खेमे की तरफ से माँग की जाएगी कि लायनिज्म में और डिस्ट्रिक्ट में ऊँचा आदर्श दिखाने व उच्चस्तरीय नैतिकता का पालन करने का जैसा उदाहरण मुकेश गोयल ने प्रस्तुत किया है, वैसा ही उदाहरण जेपी सिंह को भी प्रस्तुत करना चाहिए । यह माँग जेपी सिंह की तो फजीहत करेगी/करायेगी ही, मुकेश गोयल के इस्तीफे में अपनी नैतिक जीत देखने वाले गुरचरण सिंह को भी अपनी खुशी प्रकट करने से रोकेगी । इस तरह, ब्लड बैंक के ट्रेजरार पद से मुकेश गोयल का संभावित इस्तीफा जेपी सिंह के साथ-साथ गुरचरण सिंह के लिए भी परेशानी बढ़ाने वाला ही साबित होगा ।

Tuesday, January 10, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के मुख्य सलाहकार डॉक्टर क्षितिज शर्मा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से रोकने के लिए मुकेश पाठक को आगे करने की वीरेंद्र गोयल एंड पार्टी की तैयारी सवालों के घेरे में

वाराणसी । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए डॉक्टर क्षितिज शर्मा की उम्मीदवारी में रोड़े अटकाने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल तुलस्यान तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीरेंद्र गोयल और उनके ग्रुप के दूसरे पूर्व गवर्नर्स ने जिस तरह की तैयारी शुरू की है, उसे देख/सुन कर डिस्ट्रिक्ट के लोग खासे हैरान हैं । क्षितिज शर्मा के खिलाफ मुकेश पाठक को उम्मीदवार बनाने की इनकी कोशिश ने तो खुद इनके ग्रुप के लायन सदस्यों को भी हैरान और निराश किया है । उल्लेखनीय है कि मुकेश पाठक पहले भी दो-तीन बार उम्मीदवार बन चुके हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों का समर्थन पाने में बुरी तरह असफल रहे हैं । मुकेश पाठक के क्लब - लायंस क्लब वाराणसी शिवगंगा में गिनती के सदस्य हैं; और वह भी ड्यूज जमा न होने के कारण सस्पेंड है और उस पर लायंस इंटरनेशनल के ड्यूज के करीब 60/70 हजार रुपए बकाया बताए/सुने जा रहे हैं । लोगों के बीच सवाल यही चर्चा में है कि जो मुकेश पाठक अपना क्लब तक नहीं चला पा रहे हैं, और लायंस इंटरनेशनल के ड्यूज तक चुकाने से बचते रहे हैं - वीरेंद्र गोयल एंड पार्टी उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आखिर क्यों बनाना चाहती है ? खुद इनके नजदीकियों व साथियों का कहना है कि खेमेबाजी की राजनीति के चलते वीरेंद्र गोयल एंड पार्टी को अपना कोई उम्मीदवार यदि लाना ही है - तो पर्सनलिटी, कामकाज और ख्याति में कम से कम डॉक्टर क्षितिज शर्मा की टक्कर का तो लाएँ । लायनिज्म में मुकेश पाठक की सक्रियता से परिचित लोगों का भी मानना और कहना है कि मुकेश पाठक एक अच्छे कार्यकर्त्ता तो हो सकते हैं, पर लीडर बनने की क्षमता उनमें नहीं है - उनके अपने क्लब की हालत से भी यह स्पष्ट है । यह सब जानते बूझते हुए भी वीरेंद्र गोयल एंड पार्टी उन्हें डिस्ट्रिक्ट और डिस्ट्रिक्ट के सदस्यों पर जबर्दस्ती थोपने के लिए भला क्यों तत्पर है ?
डिस्ट्रिक्ट में जिन भी लोगों ने डॉक्टर क्षितिज शर्मा को जाना/पहचाना है, उन्होंने माना और कहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डॉक्टर क्षितिज शर्मा निश्चित ही एक बेहतर च्वाइस हैं; और उनके गवर्नर होने से डिस्ट्रिक्ट का मान/सम्मान शर्तिया रूप से बढ़ेगा ही । डॉक्टर क्षितिज शर्मा बच्चों के हृदय रोग के विशेषज्ञ और प्रतिष्ठित फिजिशियन हैं । मेडीकल की पढ़ाई उन्होंने बंगलौर व मणिपाल की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज और दिल्ली व चेन्नई के प्रमुख संस्थानों से की है । उनके पिता भी डॉक्टर थे और उनकी माँ व पत्नी भी डॉक्टर हैं - इस नाते से मेडीकल प्रोफेशन में उनका अच्छा नाम और सम्मान है । डॉक्टर क्षितिज शर्मा की सामाजिक सक्रियता भी खासी उल्लेखनीय रही है - लायनिज्म के साथ-साथ वह इंडियन मेडीकल एसोसिएशन तथा बच्चों के डॉक्टर्स की एसोसिएशन में भी सक्रिय तथा पदाधिकारी रहे हैं । लायनिज्म में उनकी सक्रियता तथा उपलब्धियों को खासी ऊँची पहचान मिली है - क्लब के प्रेसीडेंट, जोन चेयरमैन तथा रीजन चेयरमैन के रूप में उन्हें लायंस इंटरनेशनल के एक्सीलेंस अवॉर्ड तो मिले ही हैं; लायनिज्म के प्रति उनकी सोच तथा उनकी व्यापक संलग्नता को देखते हुए मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल तुलस्यान ने उन्हें अपना - यानि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का मुख्य सलाहकार बनाया हुआ है । अब जो व्यक्ति डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का मुख्य सलाहकार बन/बनाया जा सकता है, वह यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना चाहता है - तो उसकी राह में रोड़े अटकाने का भला क्या औचित्य हो सकता है ?
निस्संदेह मुकेश पाठक ने भी डिस्ट्रिक्ट में महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किया है, और कुछेक लायन वर्षों में वह लोगों के बीच बहुत सक्रिय भी रहे हैं और एक अच्छे कार्यकर्त्ता होने का सुबूत देने में भी वह सफल रहे हैं । लेकिन, जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि, अपनी सक्रियता को वह 'राजनीतिक उपलब्धि' में बदल पाने में वह हमेशा ही असफल साबित हुए हैं । वह चूँकि कई बार गवर्नर पद की परीक्षा में बैठ चुके हैं, और हर बार बुरी तरह फेल हुए हैं - इससे साबित है कि डिस्ट्रिक्ट में लोग उन्हें गवर्नर के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं । लोगों के इतने स्पष्ट रवैये के बावजूद वीरेंद्र गोयल एंड पार्टी मुकेश पाठक को क्यों डिस्ट्रिक्ट पर जबर्दस्ती थोपना चाहती है - यह डिस्ट्रिक्ट के लोगों की समझ में नहीं आ रहा है ।
वीरेंद्र गोयल एंड कंपनी के लोगों से ही यह भी सुनने को मिल रहा है कि मुकेश पाठक को चुनाव लड़वाने का खर्चा भी डिस्ट्रिक्ट के लोगों से ही बसूल किये जाने की तैयारी की जा रही है; और इस तैयारी के तहत डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल तुलस्यान पर दबाव बनाया जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के लिए रजिस्ट्रेशन फीस वह पिछले वर्षों के मुकाबले तिगुनी-चौगुनी बढ़ा कर बसूल करें । बढ़ी रजिस्ट्रेशन फीस से जो रकम इकट्ठा होगी, उससे मुकेश पाठक को एक बार फिर चुनाव लड़वाया जायेगा । मुकेश पाठक उम्मीदवार बनने के 'योग्य' हो सकें, इसके लिए पहले तो उनके क्लब के ड्यूज जमा करवा कर उनके क्लब को सस्पेंशन से बाहर निकलवाने की जरूरत है - और इस जरूरत को पूरा करने के लिए पैसे चाहिए होंगे; क्लब की स्थिति ऐसी है नहीं कि वह बकाया ड्यूज जमा करवा सके - होती, तो यह नौबत आती ही क्यों ? लिहाजा, अलग अलग तरीकों से लोगों से पैसे ऐंठ कर ही मुकेश पाठक के क्लब को 'जिंदा' करके उन्हें उम्मीदवार बनाने/बनवाने की तरकीबें लगाई/भिड़ाई जा रही हैं । इस स्थिति ने डिस्ट्रिक्ट में सभी को हैरान किया हुआ है - और वीरेंद्र गोयल एंड कंपनी की मंशा सवालों के घेरे में आ फँसी हैं ।