Saturday, January 21, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी नतीजा जेके गौड़ की झाँसाबाजी की पोल खोलते हुए उनकी शामत लाने का काम करेगा क्या ?

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए हो चुके चुनाव के आने वाले नतीजे को लेकर विश्लेषण के साथ जो जो कयास लगाए/सुने जा रहे हैं, उनसे एक बात बहुत साफ होती जा रही है कि नतीजा चाहें जो हो - चुनाव चाहे जो भी जीते, शामत लेकिन जेके गौड़ की आने वाली है । दिलचस्प नजारा यह है कि हर उम्मीदवार के समर्थकों को 'अपने' जीतने के पीछे जेके गौड़ का समर्थन 'दिख' रहा है; ऐसे में हारने वाले उम्मीदवार के समर्थकों का सारा नजला जेके गौड़ के सिर पर ही गिरने का खतरा मंडराता नजर आ रहा है । इस बार के चुनाव में जेके गौड़ के समर्थन को लेकर उम्मीदवारों के समर्थकों के बीच जैसी छीना-झपटी चली, उसने चुनावी माहौल को खासा असमंजसपूर्ण भी बनाया - जो न सिर्फ चुनाव 'होने' तक बना रहा, बल्कि जो नतीजा आने तक बना रहता दिख रहा है । इससे पहले शायद ही किसी चुनाव में किसी एक व्यक्ति/नेता की भूमिका को इतना असमंजसपूर्ण पाया/देखा गया हो ।
जेके गौड़ की इस भूमिका की नींव दरअसल तब पड़ी जब उन्हें रमेश अग्रवाल के खिलाफ खुल कर बातें करते हुए सुना/पाया गया । रमेश अग्रवाल की हरकतों के प्रति जेके गौड़ को नाराजगी व रोष प्रकट करता देख दीपक गुप्ता और उनके समर्थकों की बाँछे खिल गईं; फलस्वरूप उन्होंने जेके गौड़ पर डोरे डालने शुरू कर दिए । इसमें उन्हें सफलता मिलने में दिक्कत लेकिन इस कारण से हुई क्योंकि जेके गौड़ को दीपक गुप्ता से भी बहुत शिकायतें थीं । जेके गौड़ जब उम्मीदवार थे, तब दीपक गुप्ता ने उन्हें बहुत परेशान तो किया ही था - कई मौकों पर उन्हें अपमानित तक किया था । दीपक गुप्ता के उस रवैये को जेके गौड़ भूले नहीं थे । इस बीच इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव की चर्चा शुरू हो गई, जिसमें रमेश अग्रवाल की दिलचस्पी देखी/पहचानी गई । इसमें दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को अपना 'काम' बनता हुआ नजर आया; और उन्होंने जेके गौड़ को समझाया/भड़काया कि रमेश अग्रवाल की हरकतों का उन्हें यदि बदला लेना है, तो इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उन्हें उम्मीदवार हो जाना चाहिए । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की यह तरकीब काम कर गई, और जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल के खिलाफ ताल ठोक दी । जेके गौड़ ने ताल तो ठोक दी, लेकिन दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में कूदे नहीं । उन्होंने इंतजार करने व यह देखने की रणनीति अपनाई कि रमेश अग्रवाल तथा खेमे के बाकी लोग उनकी उम्मीदवारी पर कैसे रिएक्ट करते हैं ? जेके गौड़ ने होशियारी/चालाकी से दोनों हाथों में लडडू पकड़ लिए । जेके गौड़ के इस 'रूप' ने अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को दबाव में लाने का काम किया ।
रमेश अग्रवाल ने भी चालाकी/होशियारी दिखाने की कोशिश की; उनकी शह पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन ने उक्त नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव की अधिघोषणा को टालने तथा उसमें देर करने का हथकंडा अपनाया । कोशिश शायद यह थी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव हो जाने के बाद रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ से निपटेंगे । लेकिन जैसे जैसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव नजदीक आता गया, रमेश अग्रवाल को भी समझ में आने लगा कि अपनी होशियारी के चलते उनके लिए कहीं ऐसी स्थिति न हो जाए कि वह घर/घाट कहीं के न रहें । रमेश अग्रवाल ने समझ/पहचान लिया कि स्थितियाँ अभी जिस तरह से जेके गौड़ के पक्ष में हैं, उसमें उनकी किसी चालबाजी का सफल होना मुश्किल ही है । लिहाजा अशोक जैन की उम्मीदवारी के प्रति जेके गौड़ के समर्थन को पक्का बनाए रखने के लिए रमेश अग्रवाल उक्त नोमीनेटिंग कमेटी के लिए अपनी उम्मीदवारी को छोड़ने की घोषणा करने के लिए मजबूर हुए । जेके गौड़ के सामने रमेश अग्रवाल के इस समर्पण के बाद अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थक जेके गौड़ के समर्थन को लेकर आश्वस्त हो गए ।
दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने हालाँकि तब भी उम्मीद नहीं छोड़ी - उन्होंने जेके गौड़ को यह कहते हुए उकसाना/भड़काना जारी रखा कि तुम तो अच्छी तरह जानते ही हो कि रमेश अग्रवाल भरोसे का आदमी नहीं है; अपना काम निकाल लेगा और फिर अपनी मनमानी करने लगेगा, इसलिए उसके जाल में मत फँसना । अपने इसी तर्क के भरोसे दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को भरोसा है कि जेके गौड़ ने दीपक गुप्ता को ही समर्थन दिया है; जबकि अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों का दावा है कि रमेश अग्रवाल और उनके बीच की तनातनी में जिस तरह से खेमे के दूसरे नेताओं का समर्थन जेके गौड़ को मिला है, उसके चलते जेके गौड़ का खेमे को छोड़ने का कोई कारण नहीं बनता है - और इसलिए जेके का समर्थन अशोक जैन को ही मिला है । जेके गौड़ के पास तीन-चार क्लब हैं, जो 10/12 वोट बनाते/रखते हैं - इसलिए उनका समर्थन चुनाव में महत्त्वपूर्ण हो उठा है । जेके गौड़ का समर्थन वास्तव में किसको मिला, यह तो जेके गौड़ ही जानते होंगे; लेकिन उनके समर्थन को लेकर जिस तरह की छीना-झपटी देखने को मिली - उससे एक बात स्पष्ट है कि दोनों पक्षों को अपनी अपनी जीत के लिए जेके गौड़ का समर्थन जरूरी लगा है; और जेके गौड़ भी दोनों पक्षों को अपने समर्थन का झाँसा देने में सफल रहे हैं । उनके झाँसे की पोल चुनाव का नतीजा आने पर ही खुलेगी । ऐसे में, माना/समझा यही जा रहा कि जो भी उम्मीदवार हारेगा, उसके समर्थक हार का ठीकरा जेके गौड़ के सिर पर ही फोड़ेंगे । हारने वाले उम्मीदवार के समर्थक जेके गौड़ पर धोखाधड़ी का आरोप लगायेंगे - और इस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी नतीजा जेके गौड़ के लिए शामत लाने वाला ही साबित होगा ।