Saturday, June 28, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के विभाजित डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नए नए उम्मीदवारों के मैदान में उतरने की संभावना को देख कर दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को अपना असमंजस जल्दी से दूर कर लेने की जरूरत महसूस होने लगी है; ताकि बढ़त की जो स्थिति अभी उनके पक्ष में दिख रही है, उसको नुकसान न हो

गाजियाबाद । दीपक गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को लेकर उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच जो असमंजसता पैदा हो गई है, उसे दूर करने के लिए उन्होंने जल्दी ही एक मीटिंग करने की तैयारी की है । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के एक समर्थक की मानें तो उक्त मीटिंग सोमवार, 30 जून को हो सकती है । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों के सामने समस्या दरअसल यह बनी है कि एक तरफ तो अरनेजा गिरोह ने विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लिए होने वाले दो चुनावों के लिए दीपक गुप्ता को शरत जैन के साथ अपने उम्मीदवार के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया है, तो दूसरी तरफ विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने अरनेजा गिरोह के खिलाफ लामबंद होना शुरू कर दिया है । ऐसे में, दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों के सामने यह तय करने की चुनौती आ गई है कि दीपक गुप्ता किस वर्ष के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करें - अरनेजा गिरोह द्धारा तय किए गए फार्मूले के अनुसार पहले वह शरत जैन को मौका दें और दीपक गुप्ता को उनके पीछे खड़ा करें; या पहले मौके पर ही वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का दावा करें ?
दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को लगता है कि उन्हें यदि अरनेजा गिरोह के साथ ही जुड़ना है, तो वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए पहला मौका ही क्यों न मानें, पहले मौके को वह शरत जैन के लिए क्यों छोड़ दें ? तर्कपूर्ण तरीके से उनका पूछना है कि अविभाजित डिस्ट्रिक्ट में शरत जैन और दीपक गुप्ता को साथ-साथ ही तो उम्मीदवार होना था, तब फिर विभाजित डिस्ट्रिक्ट में शरत जैन को पहला नंबर आखिर किस बिना पर मिलना चाहिए ? दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों का दावा है कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच शरत जैन के मुकाबले दीपक गुप्ता की पहचान और परिचय ज्यादा है; विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लोगों को तो शरत जैन अभी जानते/पहचानते भी नहीं हैं - विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लोग भी शरत जैन को अभी नहीं जानते/पहचानते हैं । यही कारण है कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट में शरत जैन की उम्मीदवारी की वकालत करने वाला कोई नहीं है । पिछले दिनों शरत जैन जब गाजियाबाद के दौरे पर आये थे, तब उन्होंने जिन लोगों से मिलने के लिए फोन पर संपर्क साधा था उनमें से कई बहानेबाजी करके उनसे मिलने से बच निकले थे । शरत जैन के प्रति विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लोगों में जो बेगानापन-सा देखा जा रहा है, उसे अरनेजा गिरोह के खिलाफ लामबंदी की अभिव्यक्ति के नतीजे के रूप में ही व्याख्यायित किया जा रहा है । इसी व्याख्या ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को यह 'तय' करने का हौंसला दिया है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को पहला नंबर ही मिलना चाहिए ।
दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों का मानना और कहना है कि दीपक गुप्ता को अरनेजा गिरोह का समर्थन यदि मिल रहा है तो उसे ले लेना चाहिए; उन्हें कोशिश करना चाहिए कि शरत जैन की बजाये उन्हें पहला नंबर मिले - कोशिश करने के बाद भी उन्हें यदि दूसरा नंबर ही मिले तो उन्हें उसे ही ले लेना चाहिए, और ज्यादा झंझट में नहीं पड़ना चाहिए । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के अन्य कुछेक समर्थकों के अनुसार, दीपक गुप्ता को अरनेजा गिरोह के नेताओं पर भरोसा नहीं करना चाहिए और उन्हें विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लोगों के मूड को समझना/पहचानना चाहिए और उन्हें पहली बार के लिए ही अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करनी चाहिए । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों की इसी मत-भिन्नता के कारण दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर असमंजस बन गया है ।
यह असमंजस संभावित उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने की आहट से और बना/बढ़ा है । दरअसल जैसे जैसे डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की बात सच होती दिखती जा रही है वैसे वैसे नए नए उम्मीदवारों के मैदान में उतरने की बात भी सामने आ रही है । जिन नए नए उम्मीदवारों के मैदान में उतरने की चर्चा है वह अपने अपने भौगोलिक और राजनीतिक समीकरण बैठा रहे हैं । इन संभावित समीकरणों के चलते अरनेजा गिरोह के बिखर जाने का और या अप्रभावी हो जाने का अनुमान भी लगाया जा रहा है । यह देख/जान कर ही दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को यह डर सताने लगा है कि उन्होंने अपना असमंजस यदि जल्दी ही दूर नहीं किया तो बढ़त की जो स्थिति अभी उनके पक्ष में दिख रही है, उसको नुकसान हो सकता है । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों का कहना है कि जो भी समीकरण बनने की प्रक्रिया में हैं और या जो भी नए उम्मीदवार मैदान में कूदने की तैयारी कर रहे हैं वह पहले दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की 'पोजीशन' को देख/समझ लेना चाहते हैं - लेकिन इसके लिए वह ज्यादा दिन इंतजार नहीं करेंगे । इसीलिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को लगता है कि उन्हें दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी पर पड़े असमंजस के बादलों को जल्दी से जल्दी हटा लेना चाहिए ।

Tuesday, June 24, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में सीओएल के चुनाव में मिली पराजय के बाद डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल की बढ़ती हुई बदनामी में मुकेश अरनेजा को रमेश अग्रवाल की जड़ें खोदने तथा अपनी नेतागिरी को बनाये रखने का मौका दिखा है

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा की इसे बदकिस्मती ही कहेंगे कि वह तो किसी के भले की सोचें, लेकिन उनके हाथ बदनामी ही लगे । उनके साथ लगता है कि वही कहावत चरितार्थ हो रही है जिसमें कहा गया है कि - 'किस्मत ख़राब हो तो हाथी पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट जाता है ।' मुकेश अरनेजा ने तो कुछेक लोगों को सिर्फ यह सलाह भर दी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अगले रोटरी वर्ष में संभव है कि चार चुनाव हों, इसलिए उक्त पद के लिए उम्मीदवार बनने की इच्छा हो तो अगले वर्ष से अच्छा मौका नहीं मिलेगा; लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि मुकेश अरनेजा ने शरत जैन और शरत जैन के जरिये रमेश अग्रवाल की जड़ें खोदने का काम शुरू दिया है । दरअसल इसमें लोगों की भी गलती नहीं है । मुकेश अरनेजा की (कु)ख्याति ही ऐसी है कि वह लोगों से हवन करने को कहें और लोग शिकायत करने लगते हैं कि अरनेजा ने उनके हाथ जलवा दिए । इसी तर्ज पर, मुकेश अरनेजा के क्लब के ललित खन्ना को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी में दिलचस्पी लेते देखा/पाया गया तो लोगों ने कहने/बताने में देर नहीं लगाई कि ललित खन्ना को उकसाने में मुकेश अरनेजा का ही हाथ है ।
ललित खन्ना हालाँकि पहले भी एक बार मुकेश अरनेजा के कहने में आकर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत कर चुके हैं और मुकेश अरनेजा से धोखा खाकर फजीहत का शिकार हो चुके हैं । इसलिए लोगों के लिए यह विश्वास कर पाना भी मुश्किल बना हुआ है कि वह दोबारा मुकेश अरनेजा की बातों में आयेंगे । कुछेक लोगों को लेकिन लगता है कि बदले हुए हालात में ललित खन्ना भी शायद यह समझ रहे होंगे कि मुकेश अरनेजा अबकी बार उनके साथ पहले की तरह धोखा न करें; और फिर अगले रोटरी वर्ष में यदि सचमुच चार चुनाव होते हैं तो मौका अच्छा होने की मुकेश अरनेजा की बात में दम तो है ही । एक अच्छी और सही बात यदि किसी 'शैतान' के मुँह से भी निकल रही है, तो उसे अच्छी और सही मानने में एतराज क्यों करना चाहिए ?
ललित खन्ना की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी में प्रकट हुई दिलचस्पी में जो लोग मुकेश अरनेजा की रमेश अग्रवाल से निपटने की कोशिश को देख रहे हैं उनका तर्क है कि रमेश अग्रवाल ने जिस तरह से मुकेश अरनेजा से आगे निकलने और उन्हें अपने से पीछे धकेलने की कोशिश की है, उससे मुकेश अरनेजा को झटका लगा है और वह रमेश अग्रवाल की बढ़त को रोकने के मौके की तलाश में हैं । सीओएल के चुनाव में हुई रमेश अग्रवाल की पराजय तथा डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल की बढ़ती हुई बदनामी ने मुकेश अरनेजा को उक्त मौका दिया है । रमेश अग्रवाल से दुखी लोगों के मुँह से यह सुन सुन कर भी मुकेश अरनेजा को उत्साह मिला है कि रमेश से तो अच्छा अरनेजा ही है । राजनीतिक रूप से रमेश अग्रवाल मुकेश अरनेजा को पछाड़ पायेंगे या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा; लेकिन घटियापने में रमेश अग्रवाल ने मुकेश अरनेजा को अभी ही पछाड़ दिया है । जो लोग मुकेश अरनेजा के घटियापने की सख्त आलोचना करते रहे हैं, उनका सामना जब रमेश अग्रवाल के घटियापने से हुआ तो वह भी कह उठे कि रमेश से तो अरनेजा ही अच्छा था । इस सर्टीफ़िकेट से मुकेश अरनेजा को उत्साह मिला है । इस सर्टीफ़िकेट में जो संदेश छिपा है, उसमें मुकेश अरनेजा को दरअसल वह मौका नजर आया है कि वह रमेश अग्रवाल की बलि ले सकते हैं ।
विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लोगों में रमेश अग्रवाल के प्रति विरोध के जो तेवर हैं, और जेके गौड़ जिस तरह से अपने ही 'इलाके' में घिरे हुए दिख रहे हैं उससे मुकेश अरनेजा को यह आभास हुआ हो सकता है कि शरत जैन के मुकाबले यदि ललित खन्ना उम्मीदवार बनते हैं तो ललित खन्ना के लिए आसानी हो सकती है । शरत जैन की पराजय रमेश अग्रवाल के लिए झटका होगी और रमेश अग्रवाल को मिलने वाला झटका मुकेश अरनेजा की नेतागिरी को बनाये रखने में मदद करेगा । लोगों के बीच जो चर्चा है उसमें मुकेश अरनेजा द्धारा दीपक गुप्ता को भी अपने पाले में रखने की बात हो रही है । रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ के प्रति गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश में जिस तरह का विरोध है, उसे देखते/पहचानते हुए दीपक गुप्ता की तरफ से शरत जैन के साथ पैनल बनाने को लेकर हिचक हालाँकि बनी दिखती है; किंतु मुकेश अरनेजा को लगता है कि ललित खन्ना के साथ पैनल बनाने को दीपक गुप्ता भी तैयार हो जायेंगे - और इस पैनल के प्रति गाजियाबाद के लोगों का भी वैसा विरोध नहीं होगा, जैसा कि अभी दिख रहा है ।
यह सारी बातें यूँ तो अभी कयास भर हैं, लेकिन मुकेश अरनेजा की हर बात में लोग चूँकि उनकी कोई न कोई तिकड़म देखते/पहचानते हैं, इसलिए ललित खन्ना को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी में दिलचस्पी लेते देख लोगों ने मुकेश अरनेजा को लेकर बातें बनाना शुरू कर दिया है और इस बात पर नजर रखना शुरू कर दिया है कि मुकेश अरनेजा अगली 'सवारी' किसकी करते हैं ।

Sunday, June 22, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में जेके गौड़ की और उनके क्लब में होने वाली कारस्तानियों की अख़बारों में प्रकाशित हो रही ख़बरों के कारण डिस्ट्रिक्ट की और रोटरी की जो बदनामी हो रही है, उससे बचने का कोई उपाय है क्या ?

गाजियाबाद । जेके गौड़ और उनके क्लब में चलने वाली कारस्तानियों की शहर के अख़बारों में रोज-रोज जो ख़बरें आ रही हैं, उन्हें पढ़-पढ़ कर क्लब के पुराने सदस्य और शहर के वरिष्ठ रोटेरियन शर्मसार हो रहे हैं । रोटरी की और या किसी क्लब की शहर के अख़बारों में एकसाथ इतनी बदनामी इससे पहले शायद ही कभी हुई हो । जेके गौड़ के क्लब के कई एक सदस्य तथा शहर के प्रमुख रोटेरियंस इस स्थिति के लिए जेके गौड़ को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । जेके गौड़ के क्लब के सदस्यों का ही कहना है कि क्लब में अपनी चौधराहट
ज़माने के उद्देश्य से क्लब के वरिष्ठ सदस्यों को किनारे लगाने के लिए जेके गौड़ ने शहर के नेताओं, दबंगों तथा लफंगों तक को अपने क्लब का सदस्य बना लिया था । इसके चलते क्लब में फैमिली मीटिंग होना तक बंद हो गईं । इसी का नतीजा रहा कि क्लब के कई जेनुइन सदस्यों ने या तो अपनी सक्रियता को सीमित कर लिया और या क्लब व रोटरी ही छोड़ दी । संजय खन्ना तथा रवि चौधरी के बीच हुए चुनाव में रवि चौधरी के लिए कराई गई पार्टी में जेके गौड़ के क्लब के कुछेक सदस्यों ने पार्टी में गाना गाने आई लड़की को लेकर जो उत्पात मचाया था, और जिसके चलते खून-खच्चर तक हो गया था और पुलिस तक को बुलाना पड़ गया था उसकी याद शहर व डिस्ट्रिक्ट के लोगों में अभी भी ताजा बनी हुई है । उसके बाद, जेके गौड़ ने अपना चुनाव जीतने के लिए जिस-जिस तरह की 'सेवाएँ' उपलब्ध करवाईं उन्हें बताने तक में वरिष्ठ रोटेरियंस को हिचक होती है ।
जेके गौड़ की इन हरकतों को लेकर पहले लोगों को यही लगा था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने के लिए ही उन्होंने 'ऐसा' किया है, और इसीलिए उनकी करतूतों को जानने/देखने के बावजूद लोगों ने उन्हें अनदेखा ही किया । लोगों को उम्मीद थी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने के बाद जेके गौड़ ठीक रास्ते पर आ जायेंगे । जेके गौड़ ने लेकिन लोगों की इस उम्मीद के विपरीत काम किया । जेके गौड़ के साथ समस्या यह हुई कि अपनी हरकतों के चलते एक तरफ तो वह डिस्ट्रिक्ट में लोगों का निशाना बने और अलग-थलग से पड़े; तथा दूसरी तरफ जिन लोगों के भरोसे उन्होंने क्लब में अपनी चौधराहट जमाई थी उनकी 'डिमांड्स' बढ़ती जा रही थीं । उनकी डिमांड्स पूरी नहीं हो रही थीं, तो पहले तो उन्होंने आपस में लड़ना शुरू कर दिया और फिर उन्होंने जेके गौड़ को ही निशाना बनाना शुरू कर दिया । समझा जाता है कि शहर के अख़बारों में जेके गौड़ और उनके क्लब को लेकर हाल ही में लगातार जो ख़बरें प्रकाशित हुई हैं उसके पीछे वही लोग हैं जिनकी मदद से जेके गौड़ ने क्लब में अपनी चौधराहट जमाई है । यानि जेके गौड़ ने जो काँटे दूसरों के लिए बोये थे, उन काँटों ने अब जेके गौड़ को ही काटना शुरू कर दिया है ।
शहर के और डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस की चिंता और शिकायत लेकिन यह है कि जेके गौड़ द्धारा बोये गए काँटे जेके गौड़ को काटे तो काटे, डिस्ट्रिक्ट को और रोटरी को क्यों काट रहे हैं - जेके गौड़ की और उनके क्लब में होने वाली कारस्तानियों की जो ख़बरें अख़बारों में प्रकाशित हो रही हैं उनसे डिस्ट्रिक्ट की और रोटरी की भी तो बदनामी हो रही है न ! मजे की बात यह है कि अख़बारों में प्रकाशित ख़बरों से डिस्ट्रिक्ट व रोटरी की जो बदनामी हो रही है उससे जेके गौड़ पर तो कोई असर पड़ता हुआ नहीं दिख रहा है, लेकिन दूसरे लोग ज्यादा परेशान दिख रहे हैं । इससे भी ज्यादा मजे की बात यह हो रही है कि परेशान दिख रहे दूसरे लोगों को लेकिन यह समझ नहीं आ रहा कि वह करें तो क्या करें ? कुछेक लोगों ने यह भी सोचा कि जेके गौड़ की जैसी हरकते हैं, उन्हें देखते हुए जेके गौड़ का बहिष्कार करना चाहिए और जेके गौड़ को अपने क्लब के आयोजनों में आमंत्रित करने से बचना चाहिए तथा जेके गौड़ के आयोजनों के निमंत्रण स्वीकार करने से इंकार करना चाहिए । कुछेक लोगों ने ऐसा सोचा तो जरूर है, लेकिन अपनी इस सोच को वह क्रियान्वित कर सकेंगे इसमें खुद उन्हें भी शक है ।
दरअसल इसीलिए जेके गौड़ के हौंसले बुलंद हैं । वह कई एक लोगों से कह भी चुके हैं कि वह जानते हैं कि कौन लोग उनके खिलाफ मीटिंग बुलाते हैं और उनके खिलाफ बातें करते हैं; वह उन्हें और उनकी औकात को अच्छी तरह जानते/पहचानते हैं; वह जानते हैं कि जो लोग उनके बहिष्कार की बातें करते हैं वही लोग उनके आयोजनों का निमंत्रण पाकर पहले पहुँचने के लिए गाड़ी दौड़ा लेंगे । जेके गौड़ कहते हैं कि क्लब में, शहर में, डिस्ट्रिक्ट में उनके खिलाफ बातें करने वाले लोगों की कमी नहीं है, लेकिन फिर भी उनके आयोजनों में वह सभी आते/जुटते हैं ही । वास्तव में, इसीलिए जेके गौड़ को अपने आलोचकों की, अपने खिलाफ बातें करने और मीटिंग्स करने वाले लोगों की जरा भी परवाह नहीं है । जेके गौड़ के इन बुलंद हौंसलों के बावजूद, उनकी कारस्तानियों के चर्चे अब जिस तरह शहर के अख़बारों में प्रकाशित होने लगे हैं, उससे जेके गौड़ के घिरने के संकेत मिले हैं और इससे उनके विरोधियों को भी बल मिला है । इस मामले से दरअसल यह 'दिखा' है कि जेके गौड़ अभी तक बाहर के 'दुश्मनों' के निशाने पर ही थे, लेकिन अब उनके भीतर के दुश्मनों ने भी उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है । उनकी करतूतों की चर्चा चूँकि अब डिस्ट्रिक्ट और रोटरी को भी लपेटे में लेने लगी है, इसलिए लगता है कि जेके गौड़ के 'पापों के घड़े' के फूटने का वक्त अब आ ही गया है । यह देखना दिलचस्प होगा कि जेके गौड़ अपने 'पापों के घड़े' को फूटने से कैसे बचाते हैं ?

Monday, June 16, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में रमेश अग्रवाल को खुश करने के लिए जेके गौड़ एक तरफ योगेश गर्ग, राजीव वशिष्ठ और उमेश चोपड़ा जैसे वरिष्ठ रोटेरियंस को हड़काने का और दूसरी तरफ अजय सिन्हा व पवन कोहली जैसे रोटेरियंस को पदों का लालच देकर फुसलाने का काम कर रहे हैं

गाजियाबाद । कुछ लोग थुक्काफजीहत के बाद भी सुधरने का प्रयास नहीं करते हैं । लगता है कि जेके गौड़ अपने आप को उनमें से एक साबित करने में जुटे हुए हैं । इसका संकेत इस बात से मिला है कि जेके गौड़ एक बार फिर वही हरकत कर रहे हैं जो उन्होंने सीओएल के चुनाव में की थी और जिसके लिए उनकी बड़ी भारी थुक्काफजीहत हुई थी । लगता था कि सीओएल के चुनाव में की गई उनकी हरकतों के चलते उनकी जो चौतरफा बदनामी हुई है, उससे सबक लेकर वह आगे ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिसके बदले में उन्हें सिर्फ बदनामी ही मिले । लेकिन डिस्ट्रिक्ट विभाजन के मुद्दे पर गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस के बीच जो हलचल है, उसे ख़त्म करवाने के लिए जेके गौड़ ने एक तरफ गाजियाबाद के रोटेरियंस को पदों का लालच देने की तथा दूसरी तरफ इस हलचल को नियंत्रित करने वाले वरिष्ठ रोटेरियंस को बदनाम करने की जो चाल चली है - उससे जाहिर हुआ है कि जेके गौड़ जैसे न सुधरने का ऐलान कर रहे हैं ।
मजे की बात है कि जेके गौड़ खुद ही लोगों को बता रहे हैं कि उन्होंने कैसे अपने गवर्नर-काल में पदों का ऑफर देकर अजय सिन्हा और पवन कोहली को अपनी तरफ मिला लिया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन के मुद्दे पर गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के लोगों की भावनाओं को स्वर देने वाला पत्र तैयार करने का काम जिन तीन लोगों को सौंपा गया था, उन तीन में दो लोग - अजय सिन्हा और पवन कोहली थे; लेकिन इनके द्धारा तैयार किए गए पत्र को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को भेजने की कार्रवाई करने के बाबत जो मीटिंग हुई उसमें अजय सिन्हा तो आये ही नहीं और पवन कोहली ने उक्त पत्र को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को भेजे जाने का विरोध किया । अजय सिन्हा और पवन कोहली के इस अचानक से बदले रवैये ने दूसरे लोगों को खासा हैरान किया । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल ही रहा कि इन्होंने अचानक से अपने सुर क्यों बदल लिए हैं ? इस मुश्किल को हल किया जेके गौड़ ने । उन्होंने ही कुछेक लोगों को बताया कि उन्होंने अजय सिन्हा और पवन कोहली के साथ-साथ अन्य कुछेक लोगों को फोन करके साफ साफ चेता दिया कि इस तरह की गतिविधियों में वह यदि शामिल रहे तो उनके गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में उनका नाम नहीं छप सकेगा । उनकी धमकी काम आई और अजय सिन्हा व पवन कोहली ने तुरंत से यू-टर्न ले लिया ।
विभाजित डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने/बनाने के लिए जिन योगेश गर्ग और राजीव वशिष्ठ का नाम सामने आया है, जेके गौड़ ने यह कहते हुए उनकी भी खिल्ली उड़ाई है कि इनके बस की होगा क्या चुनाव लड़ना ? जेके गौड़ ने दावा किया कि डिस्ट्रिक्ट विभाजन को लेकर गाजियाबाद में जो हलचल हुई है वह सब उमेश चोपड़ा का किया-धरा है लेकिन उमेश चोपड़ा के प्रयास सफल नहीं होंगे । इस तरह से, जेके गौड़ ने गाजियाबाद में कई लोगों की इज्जत उतारने की कोशिश की । यह कोशिश उन्होंने पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के प्रति अपनी स्वामीभक्ति दिखाने के उद्देश्य से की ।
दरअसल डिस्ट्रिक्ट विभाजन के मुद्दे पर गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश में जो हलचल है, वह रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के कारण ही है । गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश में लोगों को आपत्ति इस बात पर है कि रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के क्लब्स को उनके साथ क्यों जोड़ दिया गया है ? इस 'जानकारी' ने उन्हें और भड़काया हुआ है कि उन दोनों के क्लब्स को उनके साथ जोड़ने में जेके गौड़ का हाथ है । रमेश अग्रवाल को जेके गौड़ के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनना है, इसलिए तिकड़म करके और अपने ही क्लब के लोगों को धोखे में रख कर रमेश अग्रवाल ने अपने क्लब को उत्तर प्रदेश वाले डिस्ट्रिक्ट में करवा लिया है । वैसे भी रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा को लगता है कि 'दूसरे' डिस्ट्रिक्ट में उनकी कोई पूछ होगी नहीं, इसलिए उनकी जेके गौड़ वाले डिस्ट्रिक्ट में ही रहने में भलाई है । उन्हें भरोसा है कि यहाँ जेके गौड़ पूरी तरह से उनकी सेवा में रहेगा ही । गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के लोगों की जेके गौड़ से शिकायत है कि उनसे उम्मीद की जाती है कि वह गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के लोगों की भावनाओं को समझेंगे और उनके साथ रहेंगे, लेकिन वह रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा की चाकरी में लगे हुए हैं ।
डिस्ट्रिक्ट विभाजन के मुद्दे पर गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच जो हलचल है, उसे लोगों के बीच फूट डाल कर और पदों का लालच देकर ठंडा करने की जेके गौड़ ने जो चाल चली है - उसे पहचाने जाने के कारण उनके प्रति रोष और बढ़ा ही है । जेके गौड़ लेकिन अभी खासे जोश में हैं और इसी जोश में वह गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच अपने प्रति बढ़ते हुए रोष को लेकर जरा भी चिंतित नहीं हैं - इसी जोश में वह एक तरफ योगेश गर्ग, राजीव वशिष्ठ और उमेश चोपड़ा जैसे वरिष्ठ रोटेरियंस को हड़काने का और दूसरी तरफ अजय सिन्हा व पवन कोहली जैसे रोटेरियंस को पदों का लालच देकर फुसलाने का काम कर रहे हैं । जेके गौड़ को लग रहा है कि मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल जब उनके साथ हैं तो उन्हें और किसी की परवाह करने की कोई जरूरत ही नहीं है ।

Wednesday, June 11, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में रमेश अग्रवाल की छाया में जकड़े हुए शरत जैन को रमेश अग्रवाल के प्रति लोगों के विरोध को देखते हुए अपनी उम्मीदवारी के समर्थन वास्ते गाजियाबाद के लोगों के बीच अंततः खुद हाजिर होना पड़ा

गाजियाबाद । शरत जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच आखिर खुद आना ही पड़ा । गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच शरत जैन के आने की टाइमिंग गौर करने वाला तथ्य है । यहाँ खुद आने की जरूरत उन्होंने दरअसल तब महसूस की जब डिस्ट्रिक्ट के विभाजन के संदर्भ में हुई गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश तथा उससे सटे दिल्ली के क्लब्स के प्रमुख लोगों की मीटिंग में रमेश अग्रवाल, मुकेश अरनेजा और जेके गौड़ के प्रति प्रकट हुए विरोध के स्वरों की बात जगजाहिर हुई । इस मीटिंग में एक तो इस बात पर गहरी नाराजगी सामने आई कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन का फार्मूला बनाने वालों ने रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा जैसे डिस्ट्रिक्ट के 'कचरे' को इधर क्यों भेज दिया; और जेके गौड़ के प्रति इसलिए नाराजगी व्यक्त हुई कि उन्होंने इस फार्मूले का विरोध क्यों नहीं किया । मजे की बात यह है कि रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा को विभाजन के बाद जो डिस्ट्रिक्ट मिलना तय हुआ है, उससे वह तो बहुत खुश हैं - लेकिन उनके क्लब के लोग नाराज हैं । उनके क्लब के लोग दूसरे डिस्ट्रिक्ट में रहना चाहते हैं । रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा इसलिए खुश हैं कि जो डिस्ट्रिक्ट उन्हें मिलना तय हुआ है, उसमें तो उन्हें अपनी टुच्ची हरकतों को करने/दिखाने का मौका फिर भी मिल जायेगा; दूसरे डिस्ट्रिक्ट में तो उन्हें अलग-थलग ही रहना पड़ेगा । रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के लिए चुनौती और बिडंवना की बात लेकिन यह है कि जिस विभाजित डिस्ट्रिक्ट में उन्हें अपनी 'काली दाल' के गलने की उम्मीद है, उसी विभाजित डिस्ट्रिक्ट में उनका खुला और मुखर विरोध भी है ।
इसी खुले और मुखर विरोध की अभिव्यक्ति गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश तथा उससे सटे दिल्ली के क्लब्स के प्रमुख लोगों की मीटिंग में देखने को मिली - जिसमें उपस्थित लोगों ने रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली । रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के प्रति विरोध और नाराजगी के इन तेवरों ने शरत जैन को गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच खुद आने और सक्रिय होने के लिए मजबूर किया । अभी तक ऐसा लग रहा था जैसे कि 'इस क्षेत्र' का जिम्मा शरत जैन ने रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा को ही दिया हुआ था । इसीलिए उन्होंने 'इस क्षेत्र' को पूरी तरह से इग्नोर किया हुआ था । हालाँकि इसके लिए वह बिटिया की शादी की तैयारी में व्यस्त होने का तर्क दे रहे थे । इस तर्क को कोई भी स्वीकार नहीं कर रहा था, क्योंकि उक्त व्यस्तता के बावजूद शरत जैन दिल्ली के क्लब्स के लोगों के बीच पहुँचने का समय तो निकाल ही रहे थे । जाहिर है कि शरत जैन ने खुद उस क्षेत्र का जिम्मा संभाला हुआ था जो विभाजन के बाद दूसरे डिस्ट्रिक्ट का हिस्सा हो जायेगा । शरत जैन की बी-टीम के जो लोग हैं, उनमें भी अधिकतर उन क्लब्स के हैं जो दूसरे डिस्ट्रिक्ट में चले जायेंगे । ऐसे में, शरत जैन के सामने वही नौबत आ गई जिससे कि वह बच रहे थे ।
शरत जैन के लिए यह नौबत गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश तथा उससे सटे दिल्ली के क्लब्स के प्रमुख लोगों की मीटिंग में प्रकट हुए रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा विरोधी तेवरों के सामने आने के बाद और जरूरी हो गई । शरत जैन के लिए मुसीबत की बात दरअसल यह है कि वह रमेश अग्रवाल की छाया में बुरी तरह जकड़े हुए हैं । उनसे लोगों को कोई शिकायत नहीं है - लेकिन फिर भी वह लोगों के बीच अपने लिए स्वीकार्यता नहीं बना पा रहे हैं तो इसका कारण सिर्फ यही है कि उन्हें रमेश अग्रवाल के आदमी के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है - और रमेश अग्रवाल से बहुत लोगों का विरोध है । इसीलिए शरत जैन को लगा है कि वह सिर्फ रमेश अग्रवाल के भरोसे नहीं रह सकते और उन्हें खुद ही चल कर कुछ करना होगा । लोगों के बीच रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा को लेकर जो विरोध के तेवर हैं, उनके मुखर तरीके से सामने आने के बाद शरत जैन को लगा है कि ऐसे में उन्हें खुद ही अपनी उम्मीदवारी के लिए काम करना होगा ।
शरत जैन ने अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के भरोसे रहकर पिछले दिनों काफी नुकसान उठाया है । उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के जिन क्लब्स ने खास आयोजन किए, उन्होंने अकेले दीपक गुप्ता को ही तवज्जो दी । रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा ने शरत जैन के लिए मौके बनाने की कोशिश तो की, लेकिन उनकी कोशिशें कामयाब नहीं हो सकीं । जेके गौड़ से भी उन्हें मदद नहीं मिल सकी । रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा का दावा तो है कि जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में दीपक गुप्ता के लिए नहीं, बल्कि उनके कहने पर शरत जैन के लिए काम करेंगे; जेके गौड़ लेकिन अभी तक शरत जैन के लिए कुछ करते हुए दिखे नहीं हैं । दरअसल सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करने के कारण जेके गौड़ की जो फजीहत हुई, उसके चलते जेके गौड़ शायद कुछ सावधान हुए हैं । इसके अलावा, रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा का पिछलग्गू बने रहने के कारण जेके गौड़ की गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच जो किरकिरी हो रही है, उसके कारण भी जेके गौड़ के लिए शरत जैन के लिए कुछ कर पाना संभव नहीं हुआ है । शरत जैन को रमेश अग्रवाल, मुकेश अरनेजा और जेके गौड़ का समर्थन होने के बावजूद गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों कोई भाव ही नहीं मिला और प्रायः सभी मौकों का लाभ अकेले दीपक गुप्ता को मिला । इसलिए ही शरत जैन को गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच खुद उपस्थित होने की जरूरत महसूस हुई है ।
इस जरूरत को महसूस करने के बाद शरत जैन ने गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच दौड़ तो लगाई है, लेकिन उनकी यह दौड़ उन्हें रमेश अग्रवाल की छाया से कैसे मुक्त करा सकेगी - और मुक्त न करा सकने की स्थिति में कैसे उन्हें लोगों के बीच स्वीकार्य करा सकेगी, यह देखने की बात होगी ।

Monday, June 9, 2014

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में महत्वपूर्ण पद पाने के लालच में सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने मनोज फडनिस से यह पूछने का साहस ही नहीं किया कि वह इंस्टीट्यूट के उपाध्यक्ष हैं, जल्दी ही वह अध्यक्ष होंगे - ऐसे में, वही इंस्टीट्यूट के नियम की अवहेलना क्यों करवा रहे हैं और क्यों इंस्टीट्यूट को विष्णु झवर के यहाँ गिरवी रखने की तैयारी कर रहे हैं ?


नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट मनोज फडनिस ने इंस्टीट्यूट को विष्णु झवर के पास गिरवी रखने की तैयारी कर ली है क्या ? इंस्टीट्यूट की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की इंदौर ब्रांच के न्यूजलेटर के मई अंक में उपर वाली तस्वीर को छपा देख कर कई लोगों के मन में यह सवाल कुलबुलाने लगा है । यह तस्वीर माउंट आबू में 19-20 अप्रैल को सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल द्धारा आयोजित चेयरमैन मीट एंड ओरिएंटेशन प्रोग्राम के मौके की है । इस तस्वीर में विष्णु झवर की मौजूदगी ने हर किसी को चौंकाया है । हर किसी के मन में यही सवाल उठा है कि माउंट आबू में आयोजित हुए उक्त कार्यक्रम में विष्णु झवर क्या कर रहे हैं और काउंसिल के विभिन्न पदाधिकारियों के साथ बैठ कर तस्वीर खिंचाने का मौका उन्हें कैसे मिल गया ?
विष्णु झवर इंदौर के एक वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं । इंदौर के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच वह 'काका' के संबोधन से पुकारे और पहचाने जाते हैं । उनकी प्रोफेशनल एक्सपर्टीज क्या हैं - यह तो उनके क्लाइंट जानते होंगे; इंदौर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के बीच उनकी पहचान लेकिन दो सौ-चार सौ वोटों के 'एक थोक सप्लायर' की है । इसीलिए इंदौर में इंस्टीट्यूट के किसी भी स्तर का चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास अवश्य ही करता है । माना/कहा जाता है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में मनोज फडनिस उन्हीं की देन हैं । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट 'बनने' का मौका तो मनोज फडनिस ने अपनी तीन-तिकड़म, अपने आचार-व्यवहार, अपने जुगाड़ और अपनी किस्मत से पाया है - लेकिन इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल तक पहुँचने और वहाँ लंबे समय तक टिके रहने में उन्हें विष्णु झवर की सक्रिय और संलग्न मदद मिली है ।
लेकिन यह तो कोई वजह नहीं बनती है, जिसके चलते माउंट आबू में सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के एक प्रोफेशल व ट्रेनिंग कार्यक्रम में विष्णु झवर को उपस्थित होने का मौका मिले ? मनोज फडनिस को विष्णु झवर के अहसानों का बदला यदि चुकाना ही है तो उसके और बहुत अच्छे अच्छे तरीके हो सकते हैं - एक प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट के प्रोफेशनल कार्यक्रम को अपने निजी मंतव्यों के लिए इस्तेमाल करने का मनोज फडनिस का यह कारनामा कोई अच्छा उदाहरण तो प्रस्तुत नहीं करता है ।
बात यदि 'सिर्फ' इतनी ही होती, तो भी कोई बात न होती ! मनोज फडनिस इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष होने जा रहे हैं - वह यदि अपने 'राजनीतिक गुरु' को अपना जलवा दिखाने के लिए कार्यक्रम का प्रोटोकॉल तोड़ कर कार्यक्रम में शामिल कर भी लेते हैं, तो इसमें किसी के लिए भी बहुत तेवर दिखाने की जरूरत नहीं है । मनोज फडनिस आखिर इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष होने जा रहे हैं, उनकी इस तरह की 'छोटी-छोटी' बातों का यदि नोटिस लिया जायेगा तो यह कोई अच्छी बात नहीं होगी । इंस्टीट्यूट के अध्यक्षों ने कैसे-कैसे गुल खिलाये हुए हैं - उन्हें याद कीजिये और मनोज फडनिस की इस 'छोटी' सी बात पर धूल डालिए यार !
लेकिन .... लेकिन, जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि, बात यदि 'सिर्फ' इतनी ही होती; बात यदि सिर्फ विष्णु झवर की एक कार्यक्रम में उपस्थिति भर की होती तो सचमुच धूल डालने लायक ही होती । किंतु विष्णु झवर की इस उपस्थिति के पीछे के कारण के खुलासे से इंस्टीट्यूट को विष्णु झवर के यहाँ गिरवी रखने वाला सवाल पैदा हुआ है ।
माउंट आबू में सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के उक्त कार्यक्रम में पात्रता न रखने के बावजूद विष्णु झवर की उपस्थिति दरअसल इंदौर ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी में अभय शर्मा को शामिल किए जाने को सुनिश्चित करने बाबत हुई थी । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की आठ सदस्यीय इंदौर ब्रांच में नवीन खण्डेलवाल के इस्तीफ़ा दे देने के बाद उनकी जगह भरने को लेकर इंदौर से लेकर दिल्ली तक भारी ड्रामा हुआ । ध्यान रखने योग्य तथ्य यह है कि इस तरह की स्थिति के लिए इंस्टीट्यूट का नियम यह कहता है कि ब्रांच के 'किसी भी सदस्य' को खाली हुई जगह दी जा सकती है । इंदौर ब्रांच के चेयरमैन नरेंद्र भंडारी ने लेकिन जब इंस्टीट्यूट के इस नियम का संदर्भ लेकर नवीन खण्डेलवाल के इस्तीफे से खाली हुई जगह को भरने की कार्रवाई शुरू की, तो मनोज फडनिस ने उन्हें लगभग आदेश जैसे भाव के साथ कहा कि उक्त खाली जगह उन्हें आठ सदस्यीय इंदौर ब्रांच के लिए हुए चुनाव में नवें नंबर पर रहने वाले अभय शर्मा को देनी चाहिए । नरेंद्र भंडारी ही नहीं, दूसरे कई लोगों ने भी मनोज फडनिस के इस रवैये पर हैरानी जताई । उनका कहना/पूछना रहा कि मनोज फडनिस इंस्टीट्यूट के उपाध्यक्ष हैं, जल्दी ही वह अध्यक्ष होंगे - ऐसे में, वही इंस्टीट्यूट के नियम की अवहेलना करने को क्यों कह रहे हैं ?
मनोज फडनिस यदि अभय शर्मा को मैनेजिंग कमेटी में लेने की सिफारिश करते, तो भी बात समझ में आती; क्योंकि इंस्टीट्यूट के 'किसी भी सदस्य' संदर्भित नियम में अभय शर्मा भी आते ही हैं - लेकिन मनोज फडनिस जिस तर्क के साथ अभय शर्मा के लिए जगह बनाने की बात कह रहे थे, उससे सीधे-सीधे जाहिर हो रहा था कि मनोज फडनिस इंस्टीट्यूट के नियम की ही ऐसी-तैसी करने पर आमादा थे । कई लोगों को आश्चर्य भी हुआ कि मनोज फडनिस इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं - ऐसे में उनकी चिंताओं और उनकी सक्रियताओं का दायरा बड़ा होना चाहिए; किंतु वह एक टुच्चे किस्म के मामले में अपना नाम, अपनी साख, अपनी प्रतिष्ठा दाँव पर लगाये दे रहे हैं । उनके नजदीकियों ने हालाँकि समझ लिया था कि यह सब वह किसी की सेवा खातिर कर रहे हैं । जल्दी ही इस रहस्य पर से पर्दा भी हट गया । मनोज फडनिस केलिफोर्निया जाने से पहले इंदौर ब्रांच के पदाधिकारियों को हालाँकि आदेश दे गए थे कि उनके वापस लौटने तक मैनेजिंग कमेटी में की खाली जगह को भरने का फैसला न किया जाये, लेकिन फिर भी उन्हें और उन्हें चला रही पर्दे के पीछे की ताकतों को डर हुआ कि ब्रांच के पदाधिकारी कहीं कोई फैसला कर न लें - लिहाजा विष्णु झवर ने सामने आकर मोर्चा संभाला । तब भेद खुला कि ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी के मामले में इंस्टीट्यूट के नियम को ही ठेंगा दिखाने का काम मनोज फडनिस दरअसल विष्णु झवर की सेवा खातिर कर रहे हैं ।
विष्णु झवर के लिए अभय शर्मा को मैनेजिंग कमेटी में लाने का काम असल में विकास जैन के हाथ मजबूत करने के उद्देश्य से करना जरूरी हुआ । विष्णु झवर ने अगले वर्ष होने वाले चुनाव में विकास जैन को सेंट्रल काउंसिल में चुनवाने का बीड़ा उठाया है । इस बार इंदौर ब्रांच के चेयरमैन के चुनाव में विकास जैन को जिस तरह से मुँह की खानी पड़ी, उससे विकास जैन को ही नहीं, विष्णु झवर को भी झटका लगा । चेयरमैन के चुनाव में विकास जैन की जो फजीहत हुई, उससे लोगों के बीच यह संदेश तो गया ही है कि इंदौर में विकास जैन की नहीं चलती । इसलिए इंदौर ब्रांच पर कब्ज़ा करना विकास जैन और विष्णु झवर को जरूरी लगा । अभय शर्मा को विकास जैन के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । अभय शर्मा को किसी भी तरह से मैनेजिंग कमेटी में घुसा कर विकास जैन और विष्णु झवर को अपना उद्देश्य पूरा होता दिखा और इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने पहले मनोज फडनिस को 'काम' पर लगाया और फिर खुद मैदान में कूद पड़े ।
माउंट आबू में आयोजित सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के कार्यक्रम में पात्रता न रखने के बावजूद - समझा जाता है कि - विष्णु झवर गए ही इसलिए थे ताकि वह मनोज फडनिस से अभय शर्मा वाले काम को पक्के से करवा सकें । कार्यक्रम में शामिल होने माउंट आबू पहुँचे इंदौर ब्रांच के चेयरमैन नरेंद्र भंडारी को रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की तरफ से आश्चर्यजनक तरीके से एक मीटिंग में बने नियम का हवाला पकड़ा दिया गया जिसमें मैनेजिंग कमेटी की खाली हुई जगह हारे हुए निकटतम उम्मीदवार को देने की बात कही गई थी । उक्त मीटिंग और उसमें बने नियम की प्रक्रिया हालाँकि संदेह के घेरे में है - लेकिन मनोज फडनिस ने दबाव बनाया कि रीजनल काउंसिल के उक्त तथाकथित नियम के तहत अभय शर्मा को खाली जगह दी जाए ।
मनोज फडनिस अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में तो अंततः सफल हुए, लेकिन उनकी इस सफलता ने अकेले उनकी ही नहीं - सेंट्रल काउंसिल के सभी सदस्यों की भी पोल खोल कर रख दी है । दरअसल हुआ यह कि उक्त मसले पर अपने आप को बुरी तरह से घिरा पा कर इंदौर ब्रांच के पदाधिकारियों ने फैसला करने से पहले सेंट्रल काउंसिल के सभी सदस्यों से सलाह लेने की कोशिश की और ईमेल के जरिये यह पूछा कि ब्रांच में की खाली जगह को भरने के मामले में उन्हें इंस्टीट्यूट के नियम का पालन करना चाहिए या रीजनल काउंसिल द्धारा फर्जी तरीके से बनाये गए तथाकथित नियम का ? संयोग यह रहा कि इंदौर ब्रांच की तरफ से सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों को जिस समय यह ईमेल मिला उस समय दिल्ली में उनकी एक मीटिंग चल रही थी । इस कारण सभी के सामने यह मामला एक साथ आ गया । जो हालात बने उसमें मीटिंग में मौजूद मनोज फडनिस ने अपनी किरकिरी तो बहुत महसूस की, लेकिन उनकी खुशकिस्मती यह रही कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच 'मौसेरे भाई' बनकर 'मैं तुझे बचाऊँ, तू मुझे बचा' तथा 'मैं तेरी ढाँकु, तू मेरी ढाँक' वाला जो खेल चलता है वह अब भी चला । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को मनोज फडनिस के अध्यक्ष-काल में महत्वपूर्ण पद पाने हैं, ऐसे में भला कौन मुँह खोलता और मनोज फडनिस से कहता कि उन्हें इंस्टीट्यूट के नियम की इस तरह से अवहेलना नहीं करना चाहिए । इंदौर ब्रांच के पदाधिकारियों को सेंट्रल काउंसिल सदस्यों से अपने सवाल का जबाव नहीं ही मिला ।
यह पूरा प्रसंग कुछ ही लोगों की जानकारी में था - और रहता; यदि इंदौर ब्रांच के न्यूजलेटर में ऊपर वाली तस्वीर न छपी होती । न्यूजलेटर में छपी तस्वीर को देखकर कई लोगों का ध्यान इस तथ्य पर गया कि रीजनल काउंसिल की मीटिंग में विष्णु झवर क्या करने और क्यों गए थे ? बात शुरू हुई तो फिर सारी पोल खुली और उसी खुली पोल में यह सवाल पैदा हुआ कि मनोज फडनिस ने इंस्टीट्यूट को विष्णु झवर के यहाँ गिरवी रखने की तैयारी कर ली है क्या ?

Saturday, June 7, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में नरेश गुप्ता द्धारा छात्रों को फर्जी तरीके से अपने फर्जी लायंस क्लबों का सदस्य बनाये जाने को लेकर इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के छात्रों व उनके अभिभावकों के बीच अफरातफरी और गुस्सा भड़का हुआ है; पीके अग्रवाल और उमा शंकर गोयल मामले को रफादफा करने के चक्कर में

नई दिल्ली । लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के कई एक क्लब्स में फर्जी तरीके से सदस्य बनाने के मामले ने उत्तर प्रदेश टेक्नीकल यूनीवर्सिटी से संबद्ध इंस्टीट्यूट - इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में खासा बबाल पैदा कर दिया है । इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पीके अग्रवाल तथा सचिव उमा शंकर गोयल से कई छात्रों तथा उनके अभिभावकों ने शिकायत की है कि उनके/उनके बच्चों के नाम उनसे पूछे या उन्हें बताये बिना किन्हीं किन्हीं क्लब्स में क्यों और कैसे दर्ज कर लिए गए हैं । इंस्टीट्यूट के छात्रों के बीच यह खबर दरअसल जंगल में आग की तरह फैली कि उनमें से कइयों को फर्जी तरीके से दिल्ली के कुछेक लायंस क्लबों में सदस्य बना लिया गया है । छात्रों को बेचारों को तो यह भी नहीं पता कि लायंस क्लब में सदस्य बनकर उन्हें करना क्या होगा और ऐसा क्यों हुआ कि उनसे बिना पूछे या उन्हें बिना बताये ही उन्हें लायंस क्लब का सदस्य बना लिया गया । अभिभावकों की चिंता और शिकायत यह है कि उन्होंने अपने बच्चों को जिस इंस्टीट्यूट में पढ़ने भेजा है - उस इंस्टीट्यूट में ऐसा कौन है जो उनके बच्चों के नाम उनसे बिना पूछे और उन्हें बताये बिना इधर-उधर इस्तेमाल कर रहा है ? 
इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में हुए इस फर्जीवाड़े से परेशान छात्रों और उनके अभिभावकों ने महसूस किया है कि उन्होंने इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पीके अग्रवाल तथा सचिव उमा शंकर गोयल से जो शिकायत की है, उस पर इन दोनों का रवैया गंभीर नहीं है । इससे उन्हें शक हुआ है कि जो फर्जीवाड़ा हुआ है, उसमें या तो इन दोनों की भी मिलीभगत है और या ये किसी को बचा रहे हैं । पीके अग्रवाल और उमा शंकर गोयल के रवैये से निराश छात्रों और उनके अभिभावकों ने कहा है कि उन्हें यदि यहाँ न्याय नहीं मिला तो वह यूनीवर्सिटी के उपकुलपति से तथा अन्य संबद्ध अधिकारियों से इस मामले की शिकायत करेंगे । छात्रों और उनके अभिभावकों की चिंता यह है कि जिस गुपचुप तरीके से, उनसे पूछे बिना और उन्हें बताये बिना उन्हें दिल्ली के लायंस क्लबों का सदस्य बना दिया गया है, उसके कारण वह कहीं किसी मुसीबत में न फँस जाएँ ? पहली बात तो उनको यही समझ में नहीं आ रही है कि उन्हें डेढ़ सौ-दो सौ किलोमीटर दूर दिल्ली के क्लबों का सदस्य क्यों बनाया गया; और फिर सदस्य बनाने के नाम पर उनसे न जाने कितने पैसे बाद में ऐंठे जाएँ ? जिस तरीके से यह काम हुआ है उससे छात्रों और उनके अभिभावकों के बीच इस बात को लेकर भी भारी अफरातफरी मची हुई है कि किन्हें सदस्य बनाया गया है और किन्हें नहीं । मजे की बात यह है कि न गजरौला स्थित इंस्टीट्यूट के परिसर में और न दिल्ली में मधु विहार स्थित इंस्टीट्यूट के प्रमुख कार्यालय में कोई यह बताने को तैयार है कि किस किस छात्र को लायंस क्लब का सदस्य बनाया गया है । इस कारण से छात्रों तथा उनके अभिभावकों के बीच भारी खलबली और नाराजगी फैली हुई है ।
इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के छात्रों और उनके अभिभावकों की इस परेशानी के लिए इंस्टीट्यूट की प्रवर्तक आईपैक्स एजुकेशनल सोसायटी के सदस्य नरेश गुप्ता को जिम्मेदार माना/ठहराया जा रहा है । नरेश गुप्ता लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट हैं और वह एक जुलाई से शुरू होने वाले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में नरेश गुप्ता को 'अपने' इंस्टीट्यूट के छात्रों के नामों का फर्जी तरीके से इस्तेमाल करने की कोई जरूरत नहीं है । किंतु चूँकि वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की टुच्ची और षड्यंत्रपूर्ण तरकीबों के हिस्सेदार भी बन गए हैं, इसलिए उन्होंने अपने इंस्टीट्यूट में पढ़ने आए छात्रों के साथ इस तरह की धोखाधड़ी की है । नरेश गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि नरेश गुप्ता को तो ज्यादा षड्यंत्र करना आता नहीं है; उनकी स्थिति लेकिन वैसी हो गई है जिसके लिए 'रजिया फँस गई गुंडों में' वाला जुमला कहा जाता है । यहाँ यह जरूर कहा जा सकता है कि 'रजिया' अपनी पूरी सक्रियता और संलग्नता के साथ 'गुंडों में' फँसी है । इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के छात्र यदि फर्जी तरीके से कई एक लायंस क्लब्स के सदस्य बने हैं तो यह नरेश गुप्ता की मिलीभगत से ही संभव हुआ है । इस खेल का मास्टरमाइंड तो हालाँकि लायंस राजनीति का माफिया हर्ष बंसल बताया जा रहा है; लेकिन हर्ष बंसल के लिए भी इस खेल को जमाना नरेश गुप्ता की मदद से ही संभव हुआ है ।
इस मामले का तानाबाना खासा दिलचस्प है । फर्जी सदस्यता के नाम पर जो नाम जोड़े गए हैं, वह नरेश गुप्ता के इंस्टीट्यूट के छात्र हैं; जिन क्लबों में यह फर्जी सदस्यता जोड़ी गई है उनमें से अधिकतर नरेश गुप्ता के खाते के फर्जी क्लब्स के रूप में पहचाने जाते हैं - इन सदस्यों को स्पॉन्सर लेकिन हर्ष बंसल ने किया है । चर्चा है कि नरेश गुप्ता के फर्जी क्लब्स के पासवर्ड हर्ष बंसल के पास ही हैं, और वही उन फर्जी क्लब्स में जोड़-घटाव करते रहते हैं । इस तरह फर्जी कामों के लिए नरेश गुप्ता ने हर्ष बंसल के साथ न सिर्फ गठजोड़ बना लिया है, बल्कि उनके सामने पूरी तरह से समर्पण भी कर दिया है । इस गठजोड़ और समर्पण के चलते नरेश गुप्ता लेकिन 'अपने' इंस्टीट्यूट के छात्रों के साथ धोखाधड़ी करने के लिए भी तैयार हो जायेंगे - यह उनके नजदीकियों ने भी नहीं सोचा था ।
नरेश गुप्ता और हर्ष बंसल की इस कारस्तानी के चलते इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के छात्रों व उनके अभिभावकों के बीच जो अफरातफरी और गुस्सा है, वह आगे और क्या गुल खिलायेगा - यह देखना दिलचस्प होगा ।

Wednesday, June 4, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री की कैबिनेट मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट में नियमानुसार कामकाज न होने की शिकायत करने वाले चार्टर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डीके अग्रवाल के हर्ष बंसल और नरेश गुप्ता की करतूत पर चुप बने रहने का कारण आखिर क्या है ?

नई दिल्ली । भिवानी में आयोजित हुई डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट मीटिंग में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डीके अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट में नियमानुसार कामकाज न होने की जो शिकायत मंच से सार्वजनिक रूप से की, उसे लेकर डिस्ट्रिक्ट के लोगों में एक दिलचस्प किस्म की बहस तेजी से छिड़ गई है । बहस इस बात की कि यह कहने के पीछे डीके अग्रवाल का असली इरादा आखिर क्या था ? कुछ लोगों का कहना है कि यह कह कर डीके अग्रवाल ने दरअसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को निशाना बनाया और लोगों के बीच उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की; कुछेक अन्य लोगों का कहना लेकिन यह है कि डीके अग्रवाल इस तरह की टुच्ची हरकतें नहीं करते हैं और इसीलिए डिस्ट्रिक्ट में उन्हें उन लोगों का भी सम्मान प्राप्त है जो खेमेबाजी के लिहाज से दूसरे खेमे के माने जाते हैं और इसी कारण से मल्टीपल में भी उन्हें अहमियत मिलती है - भिवानी में आयोजित कैबिनेट मीटिंग में उन्होंने जो कहा उसमें उन्होंने अपनी एक सामान्य चिंता ही प्रकट की थी । यह कहने वालों का तर्क है कि इस समय डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर चूँकि विजय शिरोहा हैं और उनके गवर्नर-काल में कुछेक काम तो ऐसे हुए ही हैं जो न हुए होते तो डीके अग्रवाल ने जो कहा उसे कहने की जरूरत उन्हें न पड़ती - इसलिए डीके अग्रवाल के कहे हुए को विजय शिरोहा पर आरोपित के रूप में देखा जाना स्वाभाविक ही है; लेकिन इसके पीछे डीके अग्रवाल की बदनियती को नहीं देखा/पहचाना जाना चाहिए । उनका कहना है कि डीके अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट के चार्टर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते सबसे वरिष्ठ हैं और इसलिए उनके कहे हुए को एक वरिष्ठ की पीड़ा के उद्गार के रूप में लिया जाना चाहिए और उसे सकारात्मक भाव से देखना चाहिए ।
भिवानी में आयोजित कैबिनेट मीटिंग में डीके अग्रवाल के कहे हुए में जो लोग लेकिन बदनियती देख/पहचान रहे हैं, उनका तर्क है कि डीके अग्रवाल ने पिछले लायन वर्ष में राकेश त्रेहन के गवर्नर-काल में तो कभी इस तरह की शिकायत नहीं की थी - तब उन्हें क्या सभी कुछ ठीक और नियमानुसार होता हुआ दिखा था क्या ? इनका कहना है कि डीके अग्रवाल 'जिन' लोगों के साथ हैं उन लोगों की कारस्तानियों पर जिस तरह से चुप्पी साधे रहते हैं उससे भी यही साबित होता है कि कैबिनेट मीटिंग में उन्होंने जो कहा उसके पीछे उनका उद्देश्य डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को निशाना बनाना ही था । अगर ऐसा नहीं है - इनका कहना है कि - तो डीके अग्रवाल 'अपने' साथियों द्धारा की जा रही अभी की हरकतों पर भी चुप क्यों हैं ? 'अभी की हरकतों' से आशय 17 क्लब्स में अभी हाल ही में बढ़ाई गई फर्जी सदस्यता से है । इस मामले में डीके अग्रवाल की चुप्पी ने सभी को हैरान किया हुआ है - क्योंकि डीके अग्रवाल फर्जी क्लब्स और फर्जी वोटों को ख़त्म करने पर लगातार जोर देते रहे हैं ।
डीके अग्रवाल फर्जी क्लब्स और फर्जी वोटों को ख़त्म करने पर लगातार जोर देते रहने के बावजूद 17 क्लब्स में अभी हाल ही में बढ़ाई गईं फर्जी सदस्यता को लेकर क्या सिर्फ इसलिए चुप हैं, क्योंकि यह काम उनके 'अपने' लोगों ने किया है ? उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में दिल्ली आनंद निकेतन में 13, दिल्ली अशोक फोर्ट में 20, दिल्ली भगवान नगर में 26, दिल्ली जेपी कैम्पस में 15, दिल्ली किरण गैलेक्सी में 20, दिल्ली कृष्णा में 22, दिल्ली महानगर रॉयल में 27, दिल्ली मंथन में 10, दिल्ली नारायण विहार में 24, दिल्ली राइजिंग सन में 18, दिल्ली सहयोग में 19, दिल्ली समर्पण में 20, दिल्ली सुविधाकुंज में 20, हाँसी प्रेरणा में 13, हाँसी युवा में 20, जींद एक्टिव में 23 और नई दिल्ली गीतांजली में 21 सदस्य फर्जी तरीके से जोड़े गए हैं । यहाँ यह गौर करना प्रासंगिक होगा कि इन क्लब्स में से अधिकतर फर्जी किस्म के क्लब ही हैं । नए बने इन कुल 331 सदस्यों में से अधिकतर फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता के उत्तर प्रदेश के गजरौला स्थित शिक्षण संस्थान के छात्र हैं - क्योंकि छात्रों को सदस्य बनाने में कुछ कम पैसे लगते हैं । इनमें से अधिकतर को हर्ष बंसल ने स्पॉन्सर किया है । समझने की बात है कि जो छात्र दिल्ली से करीब दो सौ किलोमीटर दूर पढ़ता/रहता है, वह दिल्ली के क्लब में क्या करेगा - जाहिर है कि वह तो डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के चुनावी खिलाड़ियों की राजनीति का मोहरा बना है । इन नए सदस्यों की तरफ से अभी तक किसी भी तरह के ड्यूज जमा नहीं किए गए हैं ।
अगले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी सँभालने की तैयारी कर रहे नरेश गुप्ता और हर्ष बंसल की जोड़ी का प्लान यह बताया जा रहा है कि अभी यह इन नए बने सदस्यों को ड्रॉप दिखायेंगे ताकि डिस्ट्रिक्ट में सदस्यता वृद्धि का फायदा विजय शिरोहा को न मिल सके । इन फर्जी सदस्यों की पुनःसदस्यता अगले लायन वर्ष में तब ली जाएगी जब किसी उम्मीदवार से इनके ड्यूज खसोटने का मौका बनेगा । जाहिर है कि इन नए सदस्यों के इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट ड्यूज तो बट्टे-खाते में ही गए । हर्ष बंसल तो इस तरह की हरकतों को ही लायनिज्म समझता है, इसलिए उसकी तो बात ही क्या करना; लेकिन सवाल यहाँ यह है कि नरेश गुप्ता उसके साथ मिल गए हैं तो भी डीके अग्रवाल चुपचाप तमाशा क्यों देख रहे हैं - वह डीके अग्रवाल जो फर्जी क्लब्स और फर्जी वोटों को ख़त्म करने की लगातार वकालत करते हैं और जो कैबिनेट मीटिंग में बाकायदा कुछ कहने की अनुमति लेकर नियमानुसार कामकाज न होने की शिकायत करते हैं । कैबिनेट मीटिंग में नियमानुसार कामकाज न होने की शिकायत करने वाले डीके अग्रवाल यदि सचमुच चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट में नियमानुसार कामकाज हों तो क्या उन्हें यह जरूरी नहीं लगता कि वह इन नए सदस्यों के ड्यूज तो कम से कम तुरंत जमा करवाने की माँग करें और व्यवस्था करवाएँ ?
इस मामले में डीके अग्रवाल की चुप्पी ने कुछेक लोगों को यह कहने का मौका दिया है कि नरेश गुप्ता और हर्ष बंसल की जोड़ी ने यह जो फर्जीवाड़ा किया है, उसके पीछे 'दिमाग' डीके अग्रवाल का ही है । हालाँकि कई लोगों का कहना/मानना है कि हर्ष बंसल और नरेश गुप्ता की जोड़ी ने यह जो फर्जीवाड़ा किया है, डीके अग्रवाल उससे खुश नहीं हैं - किंतु राजनीतिक मजबूरी के चलते उन्हें चुप रहना पड़ रहा है । इन्हीं लोगों का साथ ही लेकिन यह भी मानना और कहना है कि राजनीतिक मजबूरियों के कारण डीके अग्रवाल को यदि अपने पक्ष की बेईमानियों पर चुप रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है तो फिर उन्हें कैबिनेट मीटिंग में यह शिकायत नहीं करना चाहिए थी कि डिस्ट्रिक्ट में नियमानुसार कामकाज नहीं होता है । विजय शिरोहा का गवर्नर-काल तो पूरा हो चला है, उसमें जो होना था वह हो चुका है - डीके अग्रवाल को यदि सचमुच नियमानुसार काम न होने को लेकर चिंता है तो उन्हें नरेश गुप्ता के कामकाज पर निगाह रखना चाहिए । नरेश गुप्ता की हरकतों पर तो डीके अग्रवाल ने लेकिन चुप्पी साध ली है । इसीलिए कैबिनेट मीटिंग में व्यक्त की गई डीके अग्रवाल की चिंता संदेह के घेरे में है ।