नई दिल्ली । नॉर्दर्न
इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ की हरकतों के सामने आने से
इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य राजेश शर्मा एक बार फिर मुसीबत
में घिर गए हैं । राकेश मक्कड़ पर इंस्टीट्यूट के नियमों की अवहेलना करते हुए इंस्टीट्यूट के पैसे को अपने भाई के हाथों
लुटवा देने का गंभीर आरोप सामने आया है - और इसी के साथ उन्हें बचाने की
राजेश शर्मा की तरफ से भी सक्रियता सुनी जाने लगी है । इंस्टीट्यूट में और
इंस्टीट्यूट के बाहर राजेश शर्मा की जिस तरह की सक्रियता देखने को मिलती
है, और तस्वीरों में जिस तरह से इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों और
इंस्टीट्यूट के बाहर के नेताओं के साथ वह कभी दाएँ तो कभी बाएँ कभी आगे तो
कभी पीछे खड़े नजर आते हैं - उसके कारण उनसे ही सबसे ज्यादा उम्मीद की जाती
है कि वह इंस्टीट्यूट के हितों की रक्षा में भी सबसे आगे खड़े दिखेंगे; लेकिन
इंस्टीट्यूट की पहचान और प्रतिष्ठा पर जब जब आँच आती दिखी है, तब तब वह या
तो गायब दिखे हैं और या इंस्टीट्यूट के लुटेरों के साथ खड़े दिखाई दिए हैं ।
पिछले दिनों ही जब इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन की साख व प्रतिष्ठा के साथ
खिलवाड़ करते राधेश्याम बंसल, अनिल अग्रवाल, एसके गुप्ता जैसे चार्टर्ड
एकाउंटेंट्स के किस्से सामने आए थे - तब राजेश शर्मा न जाने कहाँ छिप गए
थे; और अब जब नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ की
कारस्तानी सामने आई है, तो उनके खिलाफ कार्रवाई को सुनिश्चित करवाने की
बजाए राजेश शर्मा उन्हें बचाने की तरकीबें लगाते सुने जा रहे हैं ।
मामले की गंभीरता इसी बात से जाहिर है कि राकेश मक्कड़ की कारस्तानी का आरोप या खुलासा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ही सदस्यों ने ही लगाया/किया है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के कुल तेरह सदस्यों में से छह सदस्यों ने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को संबोधित ज्ञापन में खुलासा करते हुए आरोप लगाया है कि काउंसिल की तरफ से चलाई जा रही कोचिंग क्लासेस में फैकल्टी नियुक्त करने के मामले में भारी बेईमानी की जा रही है, नियुक्ति के जरिए कमीशन खाया जा रहा है और चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ ने इंस्टीट्यूट के नियमों की अवहेलना करते हुए मनमानी शर्तों पर अपने भाई को भी फैकल्टी नियुक्त किया हुआ है । ज्ञापन में इंस्टीट्यूट के उक्त नियम को रेखांकित करते हुए - जिसके अनुसार काउंसिल के पदाधिकारी अपने रिश्तेदारों, पार्टनर्स व क्लाइंट्स को लाभ का कोई काम अलॉट नहीं कर सकते हैं - बताया गया है कि राकेश मक्कड़ ने अपने भाई राजेश मक्कड़ को काउंसिल द्वारा चलाई जा रही बहुत सी क्लासेस दी हुई हैं, और उन्हें भुगतान करने के मामले में भी नियमों व चली आ रही व्यवस्था में मनमाने तरीके से परिवर्तन किया गया है - जिसमें राजेश मक्कड़ को ज्यादा पैसा दिया जा रहा है, और काउंसिल को मिलने वाला पैसा घट गया है । आरोप यह भी है कि अधिकतर फैकल्टीज को तो फिक्स्ड अमाउंट दिया जा रहा है, लेकिन अपनी चहेती फैकल्टीज को ज्यादा पैसा दिलवाने के लिए - उनके साथ अलग तरह के कॉन्ट्रेक्ट किए गए हैं । इसके साथ-साथ, आरोप है कि चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ अपने भाई की कोचिंग को प्रमोट करने के काम में लगे हुए हैं, और इसमें वह अलग अलग तरीके से इंस्टीट्यूट के नाम को भी इस्तेमाल कर रहे हैं - और इस तरह इंस्टीट्यूट के नियम-कानूनों का उन्होंने मजाक बना कर रख दिया है । कोचिंग क्लासेस तथा काउंसिल के प्रिंटिंग व फोटोकॉपी के काम देने में भी कमीशन खाने तथा पक्षपातपूर्ण धाँधली करने के आरोप ज्ञापन में लगाए गए हैं ।
आरोपों की गंभीरता इस आरोप से लगाई/समझी जा सकती है कि कोचिंग क्लासेस में कैसे क्या हो रहा है, इस बात को काउंसिल सदस्यों से भी छिपाया जा रहा है - काउंसिल के ही छह सदस्यों का कहना है कि वह कई दिनों से पदाधिकारियों से पूछ/कह रहे हैं कि काउंसिल द्वारा चलाई जा रही कोचिंग क्लासेस में किस तरह से नियुक्तियाँ और भुगतान हुए हैं, लेकिन उन्हें जबाव नहीं दिया जा रहा है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को संबोधित ज्ञापन में कहा गया है कि काउंसिल के अकाउंट उन्हें दिखाने/बताने से तो बचा ही जा रहा है, उनके सवालों के जबाव भी नहीं दिए जाते हैं । यहाँ तक कि पिछले कार्यकारी वर्ष के आखिरी कुछ महीनों में कार्यकारी चेयरपरसन रहीं पूजा बंसल तक से खर्चों के विवरण तथा अकाउंट छिपाए गए हैं । समझा जा सकता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ और उनके दो-तीन साथी पदाधिकारियों ने किस तरह से कब्जा किया हुआ है और वह मनमानी लूट-खसोट मचाए हुए हैं कि काउंसिल के दूसरे सदस्यों से ही उन्हें तथ्य छिपाने पड़ रहे हैं । चेयरमैन राकेश मक्कड़ की बेशर्मी और निर्लज्जता का आलम यह है कि अपने टीए/डीए के बिल उन्होंने नगद तक ले लिए हैं, जो काउंसिल के नियमों का खुला उल्लंघन है । इस तरह राकेश मक्कड़ को न तो चेयरमैन पद की जिम्मेदारियों का कोई अहसास है, और न चेयरमैन पद की गरिमा की ही चिंता है ।
चेयरमैन पद के साथ-साथ इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन की गरिमा व प्रतिष्ठा से पूरी बेशर्मी और निर्लज्जता से खिलवाड़ करने का साहस, लोगों को लगता है कि राकेश मक्कड़ को राजेश शर्मा की शह और समर्थन के कारण ही मिल रहा है । खुद राकेश मक्कड़ ही कहते सुने गए हैं कि इंस्टीट्यूट में और या इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट से कोई उनकी चाहे कितनी ही शिकायत कर ले, सेंट्रल काउंसिल में राजेश शर्मा के होते हुए उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ और उनके दो-तीन संगी-साथियों की जिस तरह की हरकतें हैं, और उनके खिलाफ जिस तरह के आरोप हैं - लोगों का मानना और कहना है कि पर्दे के पीछे से मिलने वाले किसी के समर्थन के बिना इस तरह की हरकतें कर पाना संभव ही नहीं है । कई कारणों से, उन्हें समर्थन देने वाले पर्दे के पीछे के व्यक्ति को राजेश शर्मा के रूप में पहचाना और रेखांकित किया जाता है । राकेश मक्कड़ कई मौकों पर जिस तरह से राजेश शर्मा के समर्थन की बात खुद भी कहते हैं, उससे लोगों के बीच बनने वाली धारणा और मजबूत ही होती है । काउंसिल के ही छह सदस्यों द्वारा की गई शिकायत के बावजूद, राकेश मक्कड़ यदि निश्चिन्त नजर आ रहे हैं, और कह/बता भी रहे हैं कि राजेश शर्मा के होते हुए उनके खिलाफ की गयी शिकायत से उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा - तो यह बात राजेश शर्मा के लिए भी मुसीबत बढ़ाने वाली है ।
मामले की गंभीरता इसी बात से जाहिर है कि राकेश मक्कड़ की कारस्तानी का आरोप या खुलासा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ही सदस्यों ने ही लगाया/किया है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के कुल तेरह सदस्यों में से छह सदस्यों ने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को संबोधित ज्ञापन में खुलासा करते हुए आरोप लगाया है कि काउंसिल की तरफ से चलाई जा रही कोचिंग क्लासेस में फैकल्टी नियुक्त करने के मामले में भारी बेईमानी की जा रही है, नियुक्ति के जरिए कमीशन खाया जा रहा है और चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ ने इंस्टीट्यूट के नियमों की अवहेलना करते हुए मनमानी शर्तों पर अपने भाई को भी फैकल्टी नियुक्त किया हुआ है । ज्ञापन में इंस्टीट्यूट के उक्त नियम को रेखांकित करते हुए - जिसके अनुसार काउंसिल के पदाधिकारी अपने रिश्तेदारों, पार्टनर्स व क्लाइंट्स को लाभ का कोई काम अलॉट नहीं कर सकते हैं - बताया गया है कि राकेश मक्कड़ ने अपने भाई राजेश मक्कड़ को काउंसिल द्वारा चलाई जा रही बहुत सी क्लासेस दी हुई हैं, और उन्हें भुगतान करने के मामले में भी नियमों व चली आ रही व्यवस्था में मनमाने तरीके से परिवर्तन किया गया है - जिसमें राजेश मक्कड़ को ज्यादा पैसा दिया जा रहा है, और काउंसिल को मिलने वाला पैसा घट गया है । आरोप यह भी है कि अधिकतर फैकल्टीज को तो फिक्स्ड अमाउंट दिया जा रहा है, लेकिन अपनी चहेती फैकल्टीज को ज्यादा पैसा दिलवाने के लिए - उनके साथ अलग तरह के कॉन्ट्रेक्ट किए गए हैं । इसके साथ-साथ, आरोप है कि चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ अपने भाई की कोचिंग को प्रमोट करने के काम में लगे हुए हैं, और इसमें वह अलग अलग तरीके से इंस्टीट्यूट के नाम को भी इस्तेमाल कर रहे हैं - और इस तरह इंस्टीट्यूट के नियम-कानूनों का उन्होंने मजाक बना कर रख दिया है । कोचिंग क्लासेस तथा काउंसिल के प्रिंटिंग व फोटोकॉपी के काम देने में भी कमीशन खाने तथा पक्षपातपूर्ण धाँधली करने के आरोप ज्ञापन में लगाए गए हैं ।
आरोपों की गंभीरता इस आरोप से लगाई/समझी जा सकती है कि कोचिंग क्लासेस में कैसे क्या हो रहा है, इस बात को काउंसिल सदस्यों से भी छिपाया जा रहा है - काउंसिल के ही छह सदस्यों का कहना है कि वह कई दिनों से पदाधिकारियों से पूछ/कह रहे हैं कि काउंसिल द्वारा चलाई जा रही कोचिंग क्लासेस में किस तरह से नियुक्तियाँ और भुगतान हुए हैं, लेकिन उन्हें जबाव नहीं दिया जा रहा है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को संबोधित ज्ञापन में कहा गया है कि काउंसिल के अकाउंट उन्हें दिखाने/बताने से तो बचा ही जा रहा है, उनके सवालों के जबाव भी नहीं दिए जाते हैं । यहाँ तक कि पिछले कार्यकारी वर्ष के आखिरी कुछ महीनों में कार्यकारी चेयरपरसन रहीं पूजा बंसल तक से खर्चों के विवरण तथा अकाउंट छिपाए गए हैं । समझा जा सकता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ और उनके दो-तीन साथी पदाधिकारियों ने किस तरह से कब्जा किया हुआ है और वह मनमानी लूट-खसोट मचाए हुए हैं कि काउंसिल के दूसरे सदस्यों से ही उन्हें तथ्य छिपाने पड़ रहे हैं । चेयरमैन राकेश मक्कड़ की बेशर्मी और निर्लज्जता का आलम यह है कि अपने टीए/डीए के बिल उन्होंने नगद तक ले लिए हैं, जो काउंसिल के नियमों का खुला उल्लंघन है । इस तरह राकेश मक्कड़ को न तो चेयरमैन पद की जिम्मेदारियों का कोई अहसास है, और न चेयरमैन पद की गरिमा की ही चिंता है ।
चेयरमैन पद के साथ-साथ इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन की गरिमा व प्रतिष्ठा से पूरी बेशर्मी और निर्लज्जता से खिलवाड़ करने का साहस, लोगों को लगता है कि राकेश मक्कड़ को राजेश शर्मा की शह और समर्थन के कारण ही मिल रहा है । खुद राकेश मक्कड़ ही कहते सुने गए हैं कि इंस्टीट्यूट में और या इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट से कोई उनकी चाहे कितनी ही शिकायत कर ले, सेंट्रल काउंसिल में राजेश शर्मा के होते हुए उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ और उनके दो-तीन संगी-साथियों की जिस तरह की हरकतें हैं, और उनके खिलाफ जिस तरह के आरोप हैं - लोगों का मानना और कहना है कि पर्दे के पीछे से मिलने वाले किसी के समर्थन के बिना इस तरह की हरकतें कर पाना संभव ही नहीं है । कई कारणों से, उन्हें समर्थन देने वाले पर्दे के पीछे के व्यक्ति को राजेश शर्मा के रूप में पहचाना और रेखांकित किया जाता है । राकेश मक्कड़ कई मौकों पर जिस तरह से राजेश शर्मा के समर्थन की बात खुद भी कहते हैं, उससे लोगों के बीच बनने वाली धारणा और मजबूत ही होती है । काउंसिल के ही छह सदस्यों द्वारा की गई शिकायत के बावजूद, राकेश मक्कड़ यदि निश्चिन्त नजर आ रहे हैं, और कह/बता भी रहे हैं कि राजेश शर्मा के होते हुए उनके खिलाफ की गयी शिकायत से उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा - तो यह बात राजेश शर्मा के लिए भी मुसीबत बढ़ाने वाली है ।