गाजियाबाद
। रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3030 में प्रोजेक्ट के पैसों की हेराफेरी
के आरोप में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर निखिल किबे सहित तीन वरिष्ठ
रोटेरियंस को रोटरी से निकाल देने तथा डिस्ट्रिक्ट को अगले पाँच वर्षों के
लिए रोटरी फाउंडेशन की गतिविधियों से अलग कर देने के रोटरी इंटरनेशनल के
फैसले ने डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ तथा
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सतीश सिंघल के सामने भी संकट खड़ा कर दिया है ।
दरअसल इन दोनों पर भी लगभग उसी प्रकृति के आरोप हैं, जिस आरोप के चलते
निखिल किबे को अपनी रोटरी सदस्यता से हाथ धोना पड़ा है । दिलचस्प संयोग यह
है कि डिस्ट्रिक्ट 3030 में निखिल किबे पिछले ही रोटरी वर्ष में
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थे, जबकि डिस्ट्रिक्ट 3012 में जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर थे । एक और दिलचस्प संयोग यह है कि निखिल किबे मेडीकल प्रोफेशन में
हैं और रोटरी में घपला उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में किया है; जबकि जेके
गौड़ शिक्षा के प्रोफेशन में हैं और ब्लड बैंक के नाम पर जिस घपले के आरोप
की चपेट में वह हैं - वह मेडीकल का क्षेत्र है । निखिल किबे के मुकाबले
जेके गौड़ लेकिन खुशकिस्मत जरूर हैं, और वह इसलिए कि उनके घपले को लेकर अभी रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत नहीं हुई है । रोटरी
में लोगों का कहना है कि निखिल किबे इसलिए पकड़ में आ गए और रोटरी से बाहर
हो गए - क्योंकि उनके मामले में शिकायत हो गई और वह अपने गवर्नर-काल के
इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की निगाह में चढ़ गए; जबकि जेके गौड़
के मामले में शिकायत नहीं हुई और वह केआर रवींद्रन की निगाह में चढ़ने से बच
गए ।
जेके
गौड़ ने अपनी देखरेख में अपने गवर्नर-काल में गाजियाबाद में जिस रोटरी ब्लड
बैंक को बनाने की तैयारी की थी, उसका उद्घाटन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रूप
में केआर रवींद्रन को ही करना था, लेकिन एक वर्ष से भी अधिक समय बीत जाने
के बावजूद उक्त रोटरी ब्लड बैंक अभी तक भी शुरू नहीं हो सका है । खास
बात यह है कि इस ब्लड बैंक के लिए रोटरी फाउंडेशन से मोटी रकम लेने/मिलने
के लिए जरूरी कार्रवाई वर्ष 2015 में कर ली गई थी, और तभी आवश्यक मशीनों की
भी पहचान कर ली गई थी और मशीनों की सप्लाई के लिए सप्लायर से सौदा भी तय
हो गया था । इसके बाद से 16 महीने बीत चुके हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
के रूप में जेके गौड़ द्वारा बनवाए जा रहे ब्लड बैंक के शुरू होने का कोई
अता-पता नहीं है । उल्लेखनीय है कि पहले ब्लड बैंक के लिए खरीदी जाने वाली मशीनों की कीमतों में घपलेबाजी के आरोपों
के कारण ब्लड बैंक का काम पिछड़ा; इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई और पूर्व
इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के हस्तक्षेप के बाद वह मामला किसी तरह
सुलझा, तो लगा कि अब जल्दी ही ब्लड बैंक शुरू हो जाएगा । लेकिन मामला
अभी भी जहाँ का तहाँ ही अटका पड़ा है और कोई नहीं जानता कि करीब सवा करोड़
रुपए की लागत की रूपरेखा वाला ब्लड बैंक आखिर कब शुरू होगा ? उल्लेखनीय
तथ्य यह है कि जेके गौड़ और ब्लड बैंक के कामकाज से जुड़े लोग इस बात को
छिपाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं कि ब्लड बैंक का काम किस दशा में है, और
किस कारण से उसके शुरू होने में देर हो रही है ?
डिस्ट्रिक्ट के कुछेक लोगों के बीच की चर्चाओं के अनुसार, लाइसेंस न मिल पाने के कारण ब्लड बैंक का काम शुरू नहीं हो पा रहा है । इस
मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सतीश सिंघल पर दोष मढ़ा जा रहा है ।
जेके गौड़ के नजदीकियों की तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि गाजियाबाद में
रोटरी ब्लड बैंक शुरू हो जाने से चूँकि सतीश सिंघल की देखरेख में चल रहे
नोएडा ब्लड बैंक के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इसलिए सतीश सिंघल
अपने परिचय का इस्तेमाल करते हुए गाजियाबाद के ब्लड बैंक के शुरू होने में
रोड़े अटका रहे हैं । मजे की बात यह है कि गाजियाबाद के ब्लड बैंक के
बनने की कागजी कार्रवाई शुरू करने/करवाने में सतीश सिंघल की ही मदद ली गई
थी । उल्लेखनीय तथ्य यह है कि जेके गौड़ और ब्लड बैंक बनवा रहे उनके
साथियों ने पहले डीआरएफसी मुकेश अरनेजा को लेटलतीफी के लिए जिम्मेदार
ठहराया था; उनका साफ आरोप था कि वह चूँकि मुकेश अरनेजा की 'डिमांड' पूरी
नहीं कर रहे हैं, इसलिए तरह तरह की बहानेबाजियों से वह ब्लड बैंक के काम को
लटका रहे हैं । मुकेश अरनेजा से मामला निपटा, तो सतीश सिंघल गाजियाबाद में
बनने वाले रोटरी ब्लड बैंक के रास्ते में आ गए । जेके गौड़ के नजदीकियों
की तरफ से लोगों को बताया जाता है कि सतीश सिंघल तरह तरह की अड़ंगेबाजियों
से गाजियाबाद के रोटरी ब्लड बैंक को शुरू नहीं होने देना चाहते हैं, ताकि
उनकी देखरेख में चल रहे नोएडा रोटरी ब्लड बैंक का काम निर्बाध रूप से चलता
रह सके - और उनकी कमाई बनी रह सके ।
मामले का सनसनीखेज पहलू यह है कि सतीश सिंघल खुद नोएडा रोटरी ब्लड बैंक की कमाई हड़पने के आरोपों के घेरे में हैं । आरोप है कि पूर्व
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की देखरेख में चल रहा दिल्ली स्थित रोटरी
ब्लड बैंक करीब ढाई हजार यूनिट बेच कर प्रति माह 15 लाख रुपए के करीब का
लाभ कमा
लेता है, जबकि सतीश सिंघल की देखरेख में चलने वाले ब्लड बैंक की कमाई ढाई
हजार यूनिट ब्लड बेचने के बाद भी 34/35 हजार रुपए के आसपास ही ठहर
जाती है । लाभ
के इस भारी अंतर ने नोएडा ब्लड बैंक के कर्ता-धर्ता के रूप में सतीश सिंघल की
भूमिका को न सिर्फ संदेहास्पद बना दिया है, बल्कि गंभीर वित्तीय आरोपों के
घेरे में भी ला दिया है । यह आरोप नोएडा ब्लड बैंक के ट्रस्टियों की इस शिकायत के चलते और गंभीर हो गया है कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक का हिसाब-किताब
देने/बताने में हमेशा आनाकानी करते हैं, और पूछे जाने पर नाराजगी दिखाने
लगते हैं । सतीश
सिंघल के इस व्यवहार और रवैये से लोगों को लगता है कि सतीश
सिंघल ब्लड बैंक में ऐसा कुछ करते हैं, जिसे दूसरों से छिपाकर रखना चाहते
हैं । ब्लड बैंक के कुछेक ट्रस्टियों का ही आरोप भी रहा है कि सतीश सिंघल
ब्लड
बैंक को अपने निजी संस्थान के रूप में इस्तेमाल करते हैं, और उसकी कमाई
हड़प जाते हैं । दरअसल इसलिए भी गाजियाबाद में बनने वाले रोटरी ब्लड बैंक के
शुरू होने में उनके द्वारा अड़ंगा डालने की बात लोगों को सच लगने लगती है ।
कुछेक लोगों को हालाँकि यह भी लगता है कि जेके गौड़ और उनकी टीम ही नहीं
चाहती है कि उनका ब्लड बैंक शुरू हो - क्योंकि शुरू होगा, तो उसकी खामियाँ
सामने आयेंगी और तब उनकी घपलेबाजियों की पोल खुलेगी; इसलिए ही लाइसेंस
लेने के काम को वह खुद ही लटकाए हुए हैं, और ठीकरा सतीश सिंघल के सिर पर फोड़ रहे हैं ।
सतीश
सिंघल की देखरेख में चल रहे नोएडा ब्लड बैंक तथा जेके गौड़ द्वारा बनवाए जा
रहे गाजियाबाद ब्लड बैंक से जुड़े आरोप अभी तक इधर से उधर उछलते रहे हैं;
आरोपों पर कोई निर्णायक कार्रवाई होती हुई अभी तक नहीं दिखी है । लेकिन
जेके गौड़ के कलीग रहे डिस्ट्रिक्ट 3030 के निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
निखिल किबे घपलेबाजी के आरोप में जिस तरह रोटरी से नपे हैं, उसके कारण जेके
गौड़ और सतीश सिंघल पर भी खतरा मंडरा उठा है ।